अगले दिन भुल्ले खान नौ बजकर पैंतालीस मिनट पर कार पर आ पहुंचा। देवराज चौहान तैयार था। वो कार में बैठे और इंटेलिजेंस की बिल्डिंग की तरफ चल पड़े। देवराज चौहान सामान्य दिख रहा था।

"रात कैसी कटी?" भुल्ले खान ने मुस्कुराकर पूछा

"बहुत बढ़िया।"

"खाना भी बढ़िया लगा?"

"हां। रात कुछ देर से ही सोया। अपनी प्लानिंग पर विचार करता रहा।" देवराज चौहान बोला।

"कुछ प्लॉन किया?"

"थोड़ा-बहुत ऑफिस चल कर बताऊंगा। उन चौदह लोगों का तुमने क्या किया?"

"उन्हें फोन कर दिए गए हैं। कल वो सरहद पर एक खास ठिकाने पर पहुंच जाएंगे। परसों उन्हें सीमा पार करा दी जाएगी। उन्हें मुंबई पहुंचने को कहा है। उनके घर दस-दस लाख रुपए पहुंचाए जा रहे हैं। अगले चार दिन तक वो लोग मुंबई पहुंच जाएंगे और सीमा पार जो खास-खास आतंकवादी हैं, उनमें से मैंने छः को चुना है और मुंबई पहुंचने को कहा है।"

"मुंबई में कहां पहुंचना है, वो जानते हैं?"

"उन्हें बता दिया गया है। मुंबई में अपने लोगों को भी सूचना दे दी गई है।" भुल्ले खान ने कहा।

"वहां हथियार हैं?"

"बहुत। महीना भर पहले हथियारों से भरी एक नाव मुंबई पहुंचा दी गई थी। सब इंतजाम तैयार है। अब तुम्हारा ही काम बाकी है कि तुम क्या प्लान करते हो और उनसे कैसे काम लेते हो?"

देवराज चौहान मुस्कुराया

"मेरे काम की परवाह मत करो। मैं तुम लोगों को दिखाऊंगा कि काम कैसे किए जाते हैं।"

सुनकर भुल्ले खान खुश हो गया।

"हमें तुम पर पूरा भरोसा है देवराज चौहान।"

"पाकिस्तान में दो राते ही मैंने आराम से बिताई हैं और मुझे बहुत अच्छा लगा। चैन और आराम है यहां। भागदौड़ नहीं है। पुलिस का डर नहीं है कि कि वो गिरफ्तार कर लेगी। यहां की जिंदगी अलग है।"

"वक्त बीतने दो। यहां तुम्हें और भी अच्छा लगेगा।"

"तो कल रात को वो चौदह लोग सीमा पार कर जाएंगे?"

"हर हाल में। हमारे लोग ही उन्हें सीमा पार कराएंगे।"

"गफूर अली करेगा ये काम?"

"नहीं। वो अभी इस्लामाबाद में अपने परिवार के पास हफ्ता भर रहेगा। परंतु हमारे पास गफूर जैसे कई लोग सीमा पर ठिकाना बनाए रहते हैं। वो आसानी से ये काम कर देंगे।" भुल्ले खान ने कहा।

कार इंटेलिजेंस की इमारत पर जा पहुंची। दोनों उतरकर भीतर प्रवेश कर गए। रजिस्टर पर हाजिरी दर्ज करने के बाद, वो पहली मंजिल पर अपने ऑफिस में पहुंचे।

"अब तुम क्या करोगे?" भुल्ले खान बोला

"कॉफी लूंगा और एक बार अपनी योजना पर गौर करूंगा। उसके बाद सारा प्लान ब्रिगेडियर साहब और तुम्हें बताऊंगा कि मैं मुंबई में किस तरह का काम करने जा रहा हूं।"

"तुमने बहुत जल्दी सब कुछ प्लान कर लिया।" भुल्ले मुस्कुराया--- "आज तुम्हारा दूसरा दिन है।"

"मैंने कल भी कहा था कि मैं वक्त नहीं गंवाता, जो काम करना है, कर दो के हिसाब से करता हूं और जगमोहन को मैं अपने पास देखना चाहता हूं। मेरी जल्दी की ये वजह भी है।"

"ये काम करके लौट आओ, उसके बाद जगमोहन तुम्हारे पास ही होगा।"

■■■

रहमान अहमद का ऑफिस!

रहमान अहमद के अलावा भुल्ले खान कुर्सियों पर बैठे थे। कमरे में टहलता देवराज चौहान बोला।

"मुंबई सेंट्रल के रेलवे स्टेशन पर मैंने काम करने की सोचा है। स्टेशन पर कुछ नहीं किया जाएगा। वहां से हर ट्रेन फुल होकर चलती है। हम इंजन के पीछे वाली बोगी पर कब्जा जमाएंगे। तब-जब वो जाने के लिए पटरी पर रेंगनी शुरू कर देगी। तभी हमारे तीन आदमी इंजन में भी घुसेंगे। एक बोगी के बाहर जाने के चार रास्ते होते हैं। दो दाईं तरफ, दो बाईं तरफ। उन दरवाजों को बंद करके उन पर कब्जा कर लिया जाएगा। आजकल ट्रेन की एक बोगी, से दूसरी बोगी में जाने का रास्ता होता है। ऐसे में ट्रेन के पांच किलोमीटर आगे जाने पर, इंजन में मौजूद हमारे आदमी ट्रेन को रुकवा देंगे और तेजी से काम करते हुए पांच मिनट में ही इंजन के साथ लगी बोगी को, इंजन के साथ ही रखेंगे और बाकी ट्रेन को अलग करके, इंजन एक बोगी के साथ आगे बढ़ जाएगा। और उस बोगी पर हमारा कब्जा होगा, इंजन पर हमारा कब्जा होगा।"

रहमान अहमद और भुल्ले खान की निगाह देवराज चौहान पर ही थी।

"फिर क्या होगा?" रहमान अहमद ने गंभीर स्वर में कहा।

"एक बोगी में, बहत्तर लोगों के लेटने की व्यवस्था होती है। परंतु हम इंजन और बोगी का हाईजैक दिन में करेंगे। दिन में बोगी बैठने वाले लोगों से भरी होगी और तब दो सौ से ज्यादा लोग भीतर मौजूद होंगे हमारे दो आदमी इंजन में मौजूद होंगे और बारह आदमी बोगी में और फोन पर वे आपस में संपर्क पर रहेंगे। बाकी बोगियों को अलग कर देने के बाद ट्रेन ड्राइवरों के माध्यम से हमारे आदमी, सरकार से संपर्क करेंगे कि दो सौ से ज्यादा लोग हमारे कब्जे में हैं। मैं भी फोन द्वारा ट्रेन में मौजूद अपने आदमियों से संपर्क में रहूंगा और उन्हें निर्देश देता रहूंगा। अब आप मुझे ये बताइए कि हिन्दुस्तान सरकार के सामने मांगें क्या रखनी हैं?"

"मांगें?" रहमान अहमद के चेहरे पर सोच के भाव उभरे--- "हम अपने खास लोगों को आजाद कराएंगे जो काम के हैं और भारतीय जेलों में बंद हैं। यही मांग करेंगे हम?"

"तो ऐसे चार लोगों के नाम मुझे बता दीजिएगा और किन-किन जेलों में बंद हैं वो।"

रहमान अहमद ने भुल्ले खान को देखा तो भुल्ले खान बोला।

"जनाब मैं संगठनों से पूछताछ करता हूं कि वो भारतीय जेलों से किसे छुड़ाना चाहते हैं।"

"शाम तक ये काम कर लेना।" रहमान अहमद ने कहा फिर देवराज चौहान से बोला--- "ट्रेन का इंजन तो डीजल का होगा।"

"हां।"

"डीजल खत्म हो जाएगा तो तब क्या होगा?"

"सरकार इंजन में डीजल भरेगी।" देवराज चौहान ने कहा।

"ना भरा तो?"

"तब हम दो-चार लोगों की हत्या करके, लाशों को रास्ते में पड़ने वाले स्टेशनों पर फेंकेंगे। भारत सरकार हमारी किसी बात को मना नहीं कर सकेगी। 200 लोग हमारे रहमों-करम पर होंगे। वो डीजल भी देगी, खाना भी देगी और ट्रेन की बोगी के बाथरूम साफ करने के लिए आदमी भी देगी। पूरे हिन्दुस्तान की निगाहें उस इंजन और बोगी पर लग चुकी होंगी। जरा सोचो कि दस दिन तक हमारे आदमी ऐसे ही इंजन और बोगी को लेकर पटरियों पर शहर-शहर घूमते रहेंगे तो पूरे हिन्दुस्तान में सनसनी मच जाएगी। बीच-बीच में हमारे आदमी एक-दो लाशें भी बाहर फेंक दिया करेंगे। हमने जो आदमी छोड़ने के लिए कहे होंगे, भारत सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ेगा। ऐसे में पूरी दुनिया के सामने हिन्दुस्तान की कितनी बेइज्जती होगी, ये आसानी से सोचा जा सकता है।"

देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान नाच रही थी

रहमान अहमद, भुल्ले खान के चेहरों पर गंभीरता नजर आ रही थी

"मान लो।" रहमान अहमद ने कहा--- "हिन्दुस्तान की सरकार हमारी बात मान लेती है तो, अपने लोगों की डिलीवरी कहां लेंगे। कहां पर वो हमारे आदमियों को।"

"तब उनसे कहा जाएगा कि उन्हें सीमा पार कराकर पाकिस्तान में प्रवेश करा दिया जाए। ये हम बता देंगे कि किस तरफ की सीमा से उन्हें पाकिस्तान में भेजना है।" देवराज चौहान बोला--- "ये जरूरी नहीं है कि हालात वैसे ही रहें, जैसा कि हम सोच रहे हैं। तब कुछ भी हो सकता है। ऐसे में मैं हालातों को संभालूंगा।"

रहमान अहमद ने, भुल्ले खान को देखकर कहा।

"मेरे ख्याल में देवराज चौहान का प्लान बढ़िया है।"

"बहुत बढ़िया है जनाब। इस तरह तो हिन्दुस्तान में तहलका मच जाएगा। इंजन, एक बोगी को लिए पटरियों पर शहर-दर-शहर घूमता रहेगा। मीडिया, सरकार, जनता सब की नींद हराम हो जाएगी।"

"तुम बढ़िया काम करने जा रहे हो देवराज चौहान।" रहमान अहमद खुशी से कह उठा।

देवराज चौहान मुस्कुराया।

"लेकिन मुझे एक बात समझ नहीं आ रही।" भुल्ले खान कह उठा।

"कहो।" देवराज चौहान ने भुल्ले को देखा।

"मान लो तुम्हारी योजना सफल रहती है। वो हमारे कहे चार लोगों को सीमा पार पाकिस्तान में भेज देती है, तो ट्रेन में मौजूद हमारे लोगों का बाद में क्या होगा?" भुल्ले खान बोला।

"हमें उनकी ज्यादा परवाह नहीं करनी चाहिए। फिर भी मैं उन्हें समझा दूंगा कि काम खत्म हो जाने के बाद ट्रेन से कैसे फरार होना है। एक-एक करके वो किसी वीरान जगह कूद जाएंगे और वहां से मुंबई पहुंचेंगे। परंतु तब भी ट्रेन में हमारे आदमी मौजूद रहेंगे। जब ट्रेन से निकले लोग ठीक से ठिकाने पर पहुंच जाएंगे तो तब बाकी के लोग ट्रेन छोड़ देंगे? अगर पहले वाले लोगों को पुलिस पकड़ लेती है तो ट्रेन में मौजूद हमारे लोग, लोगों को मारने की धमकी देकर उन्हें छुड़ा लेंगे। ये सब बाद की बातें हैं। वहां के हालातों को मैं संभालूंगा। जब हमारे चौदह लोग मुंबई पहुंच जाएंगे तो तब मैं यहां से मुंबई के लिए चलूंगा और वहां जाकर तैयारी करूंगा।"

"तुम ये काम करो देवराज चौहान।" रहमान अहमद ने हरी झंडी दिखा दी--- "हिन्दुस्तान में तहलका मचा दो। वहां की सरकार हमारे कहे आदमियों को छोड़ दें। ये एक जबरदस्त काम होगा। इंजन कैदी यात्रियों की बोगी को लेकर शहरों, शहर घूमता रहेगा। सारे देश की पुलिस दौड़ती फिरेगी। पूरी दुनिया में पाकिस्तान का नाम फैलेगा। हंगामा खड़ा हो जाएगा।"

देवराज चौहान और भुल्ले ऑफिस में पहुंचे।

भुल्ले खान उत्साह से भरा दिख रहा था।

"तुम बहुत अच्छे ढंग से काम करने जा रहे हो। तुम्हारा आईडिया मुझे पसंद आया। इस तरह से हमारे आदमियों ने कभी काम नहीं किया। शायद उन्होंने सोचा भी नहीं होगा।" भुल्ले खान हंस पड़ा।

उसे देखकर देवराज चौहान मुस्कुराया।

"मैं चाहता हूं जल्दी से जल्दी ये काम तुम शुरू कर दो।"

"मेरे मुंबई पहुंचने के पांच दिन बाद काम शुरू हो जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"जब तक मैं इस काम का अंजाम देख नहीं लेता बेचैन रहूंगा। अब यहां क्या करने का प्रोग्राम है?"

"सोचूंगा। जो योजना बनाई है, उस पर अपने से विचार-विमर्श करूंगा। जो कमियां दिखेंगी, वो दूर करूंगा।" जबकि देवराज चौहान कल की योजना पर विचार कर रहा था कि क्या वो जगमोहन को लेकर फरार हो सकेगा?

"लंच का वक्त हो चुका है। कैंटीन में चलें या यहीं पर...।"

"कैंटीन में चलते हैं। उसके बाद कॉफी यहां पर पिएंगे।" देवराज चौहान बोला।

दोनों ऑफिस से बाहर निकलकर आगे बढ़ गए। देवराज चौहान महसूस कर रहा था कि इन लोगों का उस पर विश्वास जमता जा रहा है। ये बात उसके फरार होने में सहायक सिद्ध होगी कल।

"इस काम के लिए चौदह लोगों का इस्तेमाल करोगे?" भुल्ले ने पूछा।

"चौदह तो चाहिए ही। बाकी प्रोग्राम तब पक्का होगा जब मुंबई जाकर तैयारी करूंगा। चौदह में से दो तो ट्रेन के इंजन में ड्राइवर और उसके सहायक पर काबू बनाए रखेंगे। बाकी बारह में से चार, बोगी के चार दरवाजों पर तैनात रहेंगे। बाकी के आठ बोगी के लोगों को आसानी से संभाल लेंगे। जरूरत पड़ी तो दो-चार आदमी और भी ले लूंगा। परंतु ये सब मौके पर तय होगा। अभी तो सिर्फ योजना ही बनाई है। जो भी कमियां दिखेंगी, उन्हें दूर करते जाना है। तुम उन चार लोगों का चयन करो, जिन्हें भारतीय जेलों से छुड़ाना है।"

"उनके बारे में तुम्हें कल बता दूंगा।" भुल्ले ने देवराज चौहान का कंधा थपथपाते हुए कहा।

शाम को जीतसिंह लाहौर से वापस आ गया था। उसे मेजर की वर्दी में देखकर वो बहुत खुश और हैरान हुआ। हालांकि उसने बताया कि उसे, उसके बारे में खबर मिल गई थी, वो हमारे में शामिल हो गया है। आधा घंटा वो देवराज चौहान से बात करता रहा। देवराज चौहान ने भी खुशी से उससे बात की। इस दौरान भुल्ले खान ने बताया कि देवराज चौहान ने मुंबई को हिलाने के लिए क्या प्लानिंग की है। सब कुछ जानकर जीतसिंह ने कहा।

"तुमने तो बहुत ही शानदार प्लान सोचा है कि इंजन एक बोगी को लेकर हिन्दुस्तान के शहरों को नापता रहेगा और इस दौरान सरकार से बातचीत चलती रहेगी। सरकार इंजन में डीजल भी डलवाएगी और बोगी में फंसे लोगों के लिए खाना भी देगी। हंगामा मच जाएगा हिन्दुस्तान में।" जीतसिंह ने सलाह दी कि क्यों ना हिन्दुस्तान से यात्रियों को छोड़ने के बदले कश्मीर मांगा जाए। परंतु देवराज चौहान ने मना कर दिया कि काम वो करो, मांग वो रखो, जो पूरी हो जाए।

शाम सात बजे देवराज चौहान को, भुल्ले खान उस बंगले पर छोड़ गया। देवराज चौहान ये सोचकर गंभीर था कि कल सुबह उसने अपने प्लान पर काम करना है, जगमोहन के साथ फरार होना है। नहा-धोकर देवराज चौहान ने कपड़े पहने और कॉफी के लिए कहकर ड्राइंग रूम में जा बैठा। वसीम राणा को फोन किया।

"तुम कहां हो?" देवराज चौहान ने बात होते ही पूछा--- "सीमा पार जा रहे हो या नहीं?"

"जा रहा हूं। इस्लामाबाद तो सुबह दस बजे ही छोड़ दिया था। मेरे साथ मेरी पत्नी और बेटा है।"

"सीमा पार कौन कराएगा?"

"है एक आदमी। तीन लाख दिया है उसे। वो मुझे राजस्थान के बाड़मेर इलाके में पहुंचा देगा।"

"उस तरफ से क्यों?"

"उसका कहना है कि उधर उसकी पहचान है। कोई दिक्कत नहीं आएगी। तुम-तुम क्या कर रहे हो?"

"मैं कल सुबह जगमोहन के साथ निकलने की कोशिश करूंगा।"

"निकल जाओगे?"

"कोशिश तो कर रहा हूं तुम अपना ध्यान रखो। सब ठीक रहा तो मुंबई में मिलेंगे।"

देवराज चौहान ने अगला फोन जगमोहन को किया।

नौकर कॉफी रख गया था।

"तुम कल सुबह ग्यारह और सवा ग्यारह के बीच मुझे फोन करके कहोगे कि तुम्हें घबराहट हो रही है, तुम्हारी तबीयत खराब है। उसके बाद तुम दवा के पत्ते से दो गोलियां खा लोगे। मैं पन्द्रह मिनट में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगा। तुम्हें कुछ नहीं करना है। इसलिए कुछ मत सोचो। जो करना है, मैंने ही करना है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।

■■■

अगले दिन सुबह सात बजे देवराज चौहान ने गफूर अली को फोन किया।

"जनाब।" गफूर अली की आवाज आई--- "मैंने घंटा भर पहले ही फोन को ऑन किया है।"

"आज तुम्हारा टेस्ट है। इम्तिहान है। याद रखो, अगर इम्तिहान में पास हो जाते हो तो तुम्हें ढेर सारा पैसा और मेरे साथ काम करने का बढ़िया मौका मिलेगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"मैं पास हो जाऊंगा हजूर।" उधर से गफूर खान ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

"किस तरफ से सीमा पार कराओगे?"

"कश्मीर में पहुंचा दूंगा।"

"रास्ते में सारे इंतजाम तैयार कर लिए हैं? ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि इम्तिहान जरा सख्त है। मिलिट्री रास्ते में तुम्हें रोकने की कोशिश करेगी। सीमा पर भी चौकसी बढ़ा दी जाएगी। सबकी नजरें तुम पर होंगी कि तुम दो लोगों को कैसे सीमा पार कराते हो। तुम्हें रोकने की हर संभव कोशिश की जाएगी।"

"पर मुझे कोई नहीं पकड़ पाएगा जनाब जी, गफूर की आधी जिंदगी सीमा पर ही गुजरी है।"

"मुझे खुशी है कि तुम्हें खुद पर पूरा भरोसा है। ब्रिगेडियर साहब ने कहा है कि मैं एक और ऑफिसर को लेकर तुम्हारे साथ रहूं और तुम्हारे काम को देखूं कि तुम कैसे काम करते हो। यूं समझो कि तुमने मुझे और एक दूसरे ऑफिसर को सीमा के पार पहुंचाना है।" देवराज चौहान ने कहा।

"आप मेरा काम देखना जनाब जी।"

"ठीक है। ये टेस्ट साढ़े ग्यारह-बारह के बीच शुरू होगा। मैं तुम्हें फोन करूंगा। तुम गाड़ी के साथ तैयार रहना।"

उसके बाद देवराज चौहान नहाया-धोया, तैयार हुआ। वर्दी पहनी। नाश्ता किया, चेहरे पर शांत भाव थे परंतु दिमाग तेजी से उड़ रहा था सोचों को लेकर। वो जानता था कि अगर आज सफल ना हो सका तो फिर कभी भी सफल होने का मौका पाकिस्तानी मिलिट्री नहीं देगी। तब जाने ये लोग उसका और जगमोहन का क्या हाल करेंगे। जो भी हो, उसे हर हाल में सफल होने की चेष्टा करनी है। उसने अपनी पूरी योजना पर गौर किया और सोचा कि अगर गड़बड़ होती है तो कहां हो सकती है? बस एक ही बात सामने आई कि भुल्ले खान को किसी तरह का शक नहीं होना चाहिए उसे यही लगना चाहिए कि जो भी हो रहा है, वो अचानक हुई सामान्य घटना है।

9:50 पर भुल्ले खान मिलिट्री की कार में आ गया।

दोनों को लिए कार इंटेलिजेंस की इमारत की तरफ बढ़ गई।

"आज क्या करोगे?" भुल्ले ने पूछा।

"योजना को पॉलिश करूंगा। काम की बातें इकट्ठी करूंगा और बेकार की बातें दूर करूंगा। किसी भी काम को तैयार करने में काफी वक्त लगता है। आज हमें लगता है कि ऐसा करना बहुत जरूरी है, परंतु अगले दिन लगता है कि ऐसा करना तो बिल्कुल बेकार है, एक-एक चीज पर कई-कई बार सोचना पड़ता है। ऐसे काम एक ही बार में तैयार नहीं होते। दिमाग हर वक्त खुद-ब-खुद ही योजना को तैयार करने के लिए काम पर लगा रहता है।"

भुल्ले खान ने सिर हिलाया।

"तुमने आज उन चार लोगों के बारे में बताना है, जिनकी रिहाई की हिन्दुस्तान सरकार से बात करनी है। उनके नाम, उनकी तस्वीरें, और वो हिन्दुस्तान की किस-किस जेल में बंद हैं, ये सब मुझे लिखकर दे देना।"

"शाम तक ये काम हो जाएगा। रात मैंने दो संगठन के नेताओं से फोन पर बात की है। वो आज अपने उन लोगों के बारे में बताएंगे, जो उनके लिए जरूरी हैं और भारतीय जेलों में बंद हैं, परंतु हम सिर्फ चार लोगों की डिमांड क्यों रख रहे हैं। हम दस लोग भी तो भारतीय जेलों से आजाद करा सकते हैं।" भुल्ले खान बोला।

"किसी का गला उतना ही दबाओ कि वो सह सके। ज्यादा गला दबाओगे तो वो वापस वार कर देगा।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "अगर ज्यादा लोगों को आजाद कराने की डिमांड रखी तो, हम सफल नहीं हो सकेंगे।"

वे इंटेलिजेंस के ऑफिस पहुंचे। सवा दस हो रहे थे। देवराज चौहान ने दो कॉफी मंगाई और भुल्ले खान के साथ आतंकवादियों पर बनाई योजना पर डिस्कस करने लगा। भुल्ले खान अपने विचार जाहिर कर रहा था। देवराज चौहान खुद को बहुत ज्यादा व्यस्त दर्शा रहा था कि जैसे इसी योजना पर उसकी जिंदगी दांव पर लगी हो। भुल्ले खान मन-ही-मन खुश था कि देवराज चौहान जरूर हिन्दुस्तान में कमाल करके दिखाएगा।

इसी बातचीत में वक्त ग्यारह से ऊपर हो गया।

देवराज चौहान टेबल पर कागज फैलाए, भुल्ले से डिस्कस के दौरान, कभी-कभी कागजों पर कुछ लिख भी देता कि 11:10 पर देवराज चौहान का फोन बजने लगा। बात करते-करते देवराज चौहान ने फोन उठाया और बात की। दूसरी तरफ जगमोहन था। उसने कहा।

"मेरी तबीयत खराब हो रही है। घबराहट-सी हो रही है।"

"क्या?" देवराज चौहान चौंका--- "क्या हुआ तुम्हारी तबियत को...मैं अभी आता हूं।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद किया और बोला--- "जगमोहन का फोन था, कहता है तबीयत खराब है। घबराहट हो रही है। उसके पास चलना है।"

"अभी चलो।" भुल्ले खान फौरन उठ खड़ा हुआ।

देवराज चौहान और भुल्ले खान दस मिनट में कार पर, मिलिट्री हैडक्वार्टर पहुंच गए। देवराज चौहान अपने को चिंतित दर्शा रहा था। भुल्ले ने उसकी बेचैनी देखी तो कह उठा।

"फिक्र मत करो। जगमोहन को कोई समस्या नहीं आने वाली।"

"पर मुझे उसकी चिंता है।"

वे चौथी मंजिल पर पहुंचे। ज्योंही वे 28 नंबर कमरे के सामने पहुंचे तो देवराज चौहान बोला।

"तुम जगमोहन को देखो। मैं जरा गोरिल्ला का हाल देखकर आता हूं।"

"तुम्हें उसकी क्यों चिंता?"

"कोई चिंता नहीं, मैं बस उस पर नजर मारना चाहता हूं।" देवराज चौहान ने कहा और दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया।

गोरिल्ला कुर्सी पर बंधा था। गर्दन लटकी हुई थी। वो बुरे हाल में था।

देवराज चौहान उसके करीब पहुंचा और बोला।

"कैप्टन रंजन गुलाटी।"

उसने फौरन आंखें खोली। सिर उठाकर देवराज चौहान को देखा।

"मैं देवराज चौहान, मेजर का भेजा आदमी...।"

उसी पल गोरिल्ला ने फर्श पर थूक दिया। चेहरे पर नफरत के भाव उभरे।

"तुम पाकिस्तानी कुत्ते हो। मेजर की वर्दी पहने कहते हो कि देवराज चौहान हो, मेजर ने भेजा है। दफा हो जाओ वरना तुम्हारे मुंह पर थूक दूंगा। तुम लोग मेरे से वो फाइल कभी भी नहीं ले सकते।" गोरिल्ला गुर्रा उठा।

"समझदारी से काम लो।" देवराज चौहान आगे झुकता बेहद धीमे स्वर में बोला--- "मैं कुछ ही देर में यहां से निकलने वाला हूं। तुम भी मेरे साथ चलना चाहो तो मैं तुम्हारे लिए भी कुछ कर सकता...।"

"मैं तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला। यहीं मर जाऊंगा पर, उस फाइल के बारे में नहीं बताऊंगा।"

"मैं हिन्दुस्तानी हूं। होश से काम लो...।"

"हिन्दुस्तानी होते तो पाकिस्तान की मिलिट्री की वर्दी कभी भी नहीं पहनते। तुम पाकिस्तानी मिलिट्री के आदमी हो। मैं पागल नहीं हूं जो तुम्हारी बातों में आ जाऊंगा दफा हो जाओ यहां से और।"

तभी तेजी से भुल्ले खान ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

"देवराज चौहान। जगमोहन की हालत बहुत खराब लग रही है। उसे जाने क्या हो गया...।"

"क्या हुआ उसे?" देवराज चौहान ने पलटते हुए तेज स्वर में कहा और कमरे से बाहर की तरफ भागा।

देवराज चौहान और भुल्ले ने तेजी से 29 नंबर कमरे में प्रवेश किया।

ठिठककर रह गया देवराज चौहान।

जगमोहन फर्श पर ऐंठा सा था पड़ा था। मुंह से झाग निकल रही थी। आंखें उल्टी हो रही थी।

"जगमोहन।" देवराज चौहान चीखकर जगमोहन की तरफ लपका और नीचे बैठते उसे संभालने की कोशिश में बोला--- "होश में आओ। क्या हो गया है तुम्हें?"

परंतु जगमोहन वास्तव में होश में नहीं था।

"स्ट्रेचर मंगवाओ।" देवराज चौहान चीखकर भुल्ले से कह उठा।

बाहर खड़े रहने वाले जवान भीतर आ चुके थे। एक स्ट्रेचर लेने दौड़ा।

"मिलिट्री हॉस्पिटल कहां है?" देवराज चौहान ने दांत भींचे भुल्ले से पूछा।

"पांच-छः किलोमीटर पर है। हम दस मिनट में वहां पहुंच जाएंगे।" भुल्ले खान ने कहा।

"अगर जगमोहन को कुछ हो गया तो मैं तुम लोगों का कोई काम नहीं करूंगा।" देवराज चौहान चीखा।

"मुझ पर भरोसा रखो। जगमोहन ठीक हो जाएगा।" भुल्ले खान परेशान स्वर में कह उठा--- "मुझे तो हैरानी हो रही है। कि इसे क्या हो गया है। लगता है कोई जहरीली चीज खा ली है।"

"तुम्हारे आदमियों ने ही दी होगी।"

"मेरे लोग ऐसा क्यों करेंगे। इसका तो बहुत ज्यादा ध्यान रखा जा रहा था।" भुल्ले को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

देवराज चौहान, जगमोहन को हिलाता कह उठा।

"होश में आओ जगमोहन, होश में आओ। तुम्हें क्या हो गया है।" देवराज चौहान भुल्ले खान को सोचने का मौका नहीं देना चाहता था। उसे डर था कि भुल्ले को ये ना समझ में आ जाए कि कोई गड़बड़ जरूर है--- "तुम लोगों ने तीन दिन में ही जगमोहन की क्या हालत बना दी है। ऐसा ख्याल रखते हो तुम लोग।"

स्ट्रेचर आ गया। जगमोहन को उठाकर आनन-फानन स्ट्रेचर पर रखा और दोनों जवान स्ट्रेचर उठाए बाहर निकलते चले गए। देवराज चौहान और भुल्ले खान उनके पीछे-पीछे दौड़े। देवराज चौहान मौके पर बहुत ज्यादा घबराहट दिखा रहा था कि भुल्ले को ये सब वास्तविकता लगती रहे। वो लिफ्ट के द्वारा तुरंत नीचे, फिर बाहर कम्पाउन्ड में पहुंचे। जहां मिलिट्री के कई वाहन खड़े थे। भुल्ले ने एक जीप का स्टेयरिंग संभाल लिया। देवराज चौहान बगल में बैठ गया। पीछे दो जवान स्ट्रेचर के साथ सैट हो गए। जीप दौड़ पड़ी।

जगमोहन का तड़पना अब कम हो गया था। परंतु उसकी आंखें बंद थीं। वो गहरी-गहरी सांसें ले रहा था। होंठों के आसपास झाग ही झाग दिख रही थी जो गले तक आ गई थी

मिलिट्री एरिये में जीप तेजी से दौड़ी जा रही थी। भुल्ले खान परेशान दिख रहा था।

देवराज चौहान ने भुल्ले पर नजर मारी।

"समझ में नहीं आता मुझे कि जगमोहन को अचानक क्या हो गया है।" भुल्ले ने उलझन भरे स्वर में कहा--- "ऐसा तो यहां पर पहले किसी कैदी के साथ नहीं हुआ फिर जगमोहन तो हमारा मेहमान है।"

देवराज चौहान ने आसपास नजरें घुमाईं।

मिलिट्री एरिये की ये सड़क सुनसान थी। सड़क के दोनों तरफ ऑफिसर्स बंगले बने हुए थे। इक्का-दुक्का जवान ही साइकिल पर जाता दिखाई दे जाता था।

"जीप रोको।" देवराज चौहान ने कहा।

"क्यों?" भुल्ले ने हैरान निगाहों से देवराज चौहान को देखा।

"एक सेकेंड के लिए रोको।"

भुल्ले ने जीप रोकते हुए कहा।

"क्या बात है। जगमोहन को हॉस्पिटल...।"

"जीप मैं चलाऊंगा। नीचे उतरो।" देवराज चौहान ने कहा।

"ये क्या बचपना है, तुम...।"

"नीचे उतरो। वक्त बर्बाद मत करो।" देवराज चौहान ने नीचे उतरते हुए कहा।

भुल्ले ने उलझन भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा और जीप से उतरा।

तब तक देवराज चौहान जीप के साथ घूम कर उसके पास पहुंच चुका था। देवराज चौहान ने अपनी कमर पर लटके होलस्टर से रिवाल्वर निकाली और भुल्ले को थमाता बोला।

"ये तुम रखो। इसमें तुम लोगों ने नकली गोलियां डालकर मुझे दी थी। ये मेरे काम की नहीं है।" कहने के साथ ही फुर्ती से देवराज चौहान ने भुल्ले की जेब में पड़ी रिवाल्वर निकाल ली--- "ये मेरे काम की है।"

"तुम क्या...।"

तभी देवराज चौहान ने रिवाल्वर की नाल का वार भुल्ले की कनपटी पर किया।

भुल्ले कराह उठा।

दूसरा वार किया तो भुल्ले के घुटने मुड़ते चले गए। वो बेहोश होकर नीचे जा गिरा। पीछे जीप में स्ट्रेचर संभाले जवानों ने ये सब देखा तो वे चौंके। देवराज चौहान ने उनसे कठोर स्वर में कहा।

"मरना चाहते हो तो कोई हरकत करना। मैं तुम दोनों को सिर्फ बेहोश करूंगा। चालाकी की तो गोली मार दूंगा।"

दोनों थम से बैठे रह गए।

"एक-एक करके नीचे उतरो?" देवराज चौहान गुर्राया।

पहले एक उतरा, देवराज चौहान ने उसे बेहोश कर दिया रिवाल्वर की चोट मारकर।

दूसरे के साथ भी ऐसा ही किया।

फिर देवराज चौहान ने जगमोहन को स्ट्रेचर से हटाकर जीप के फर्श पर लिटाया और स्ट्रेचर सड़क के किनारे फेंककर जीप की ड्राइविंग सीट पर आ बैठा। स्टार्ट जीप को तेजी से आगे बढ़ा दिया। उसके होंठ भिंचे हुए थे। जेब से फोन निकालकर उसने गफूर अली को फोन किया।

"कहिए जनाब।" गफूर अली की आवाज कानों में पड़ी।

"तुम्हारा इम्तिहान शुरू। मैं मिलिट्री हैडक्वार्टर से चल पड़ा हूं। तुम कहां मिलोगे। अब हमें एक मिनट भी बर्बाद नहीं करना है। तुम फेल हो गए तो मुझे बहुत दुख होगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"आप सितारा होटल के बाहर पहुंचें। दस मिनट में आप पहुंच जाएंगे। दस मिनट में मैं भी पहुंच जाऊंगा।"

"मैं मिलिट्री की जीप में हूं पर ये जीप मुझे छोड़नी है। और...।"

"आप सितारा होटल तक आ जाएं। उसके बाद आपको कुछ नहीं करना। सब काम मैंने ही करना है। आप गफूर की काबिलियत देखते रहें कि मैं मिलिट्री को फेल कर दूंगा। वो हमें नहीं पकड़ सकेंगे।

गफूर अली सितारा होटल के बाहर आधे घंटे में पहुंचा। तब तक देवराज चौहान बेचैनी भरे अंदाज में उसका इंतजार करता रहा था। पास ही में मिलिट्री एरिया था। खतरा सिर पर था। वो जानता था कि पाकिस्तानी मिलिट्री उसे और जगमोहन को तलाश करने में जमीन-आसमान एक कर देगी। और पकड़े जाने के बाद उनका जो हाल किया जाएगा, वो सोचने के भी काबिल नहीं था। गफूर के आने तक जगमोहन को होश आ गया था। उसकी तबीयत ढीली थी, परंतु ये वक्त तबीयत देखने का नहीं था। देवराज चौहान उसे बता दिया था कि वो फरार हो चुके हैं। जगमोहन के शरीर पर मिलिट्री के सादे कपड़े वाली कमीज-पैंट थी और देवराज चौहान मेजर की वर्दी में था।

गफूर अली मिलिट्री की बड़ी एंबुलेंस गाड़ी में आया था। जिसके आगे-पीछे, दाएं-बाएं प्लस का लाल रंग का निशान बना हुआ था और एक जवान चला रहा था, दूसरा उसकी बगल वाली सीट पर आगे बैठा था। दोनों ने मिलिट्री की पर्याप्त वर्दी पहन रखी थी।

गफूर ने देवराज चौहान और जगमोहन को एंबुलेंस के पीछे वाले दरवाजे से भीतर ले लिया और दरवाजा बंद कर दिया था। एंबुलेंस के भीतर, दाईं तरफ दीवार के साथ ट्रेन जैसे दो बर्थ बनी हुई थी घायलों को डालने के लिए। एक तरफ छोटी सी लोहे की फिक्स टेबल औजार रखने के लिए थी।

एंबुलेंस दौड़ पड़ी थी।

खिड़की नहीं थी एंबुलेंस में। पीछे के दरवाजे के दोनों पल्लों के ऊपरी हिस्से में शीशे की दो खिड़कियां बनी थी। भीतर बहुत कम रोशनी आ रही थी। गफूर उत्साह में दिख रहा था

"तुमने क्या प्लान किया है गफूर?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"जनाब, मिलिट्री वाले हर गाड़ी को तो चैक कर सकते हैं, परंतु अपनी एंबुलेंस को नहीं। मिलिट्री के अस्पताल से मैंने रात को ही पार्किंग में खड़ी एंबुलेंस उड़ा ली थी। आपसे बात करने के बाद मैं तैयारी ही करता रहा।"

"मिलिट्री हमारी तलाश में लग चुकी होगी। उनके हाथ लगे तो तुम्हें फेल माना जाएगा।" देवराज चौहान बोला।

"देखते जाओ जनाब जी। हम चालीस मिनट में इस्लामाबाद से बाहर होंगे। मैं आपको रात में ही सीमा पार पहुंचा दूंगा।"

"जल्दी की कोई जरूरत नहीं है। समय की कोई पाबंदी नहीं है इस इम्तिहान में। देखना ये है कि सबकी नजरों से बचाकर तुम हम दोनों को सीमा पार सुरक्षित पहुंचा पाते हो या नहीं?" देवराज चौहान ने कहा।

"गफूर के काम करने का ढंग अभी आपने देखा ही कहां है।"

जगमोहन चुप था।

देवराज चौहान ने उसके आने पर गफूर के बारे में बता दिया था। सुनकर जगमोहन ने कहा कि क्या गफूर पर भरोसा करना सही होगा। तो देवराज चौहान ने कहा गफूर को हालातों का कुछ पता नहीं, वो ये ही सोचता है कि उसका टेस्ट ले रही है मिलिट्री। जगमोहन ने यही सोचा कि देवराज चौहान ने सोच-समझकर ही गफूर का इंतजाम किया होगा।

"हमें दूसरे कपड़े चाहिए पहनने को।" देवराज चौहान ने कहा।

"सब इंतजाम हैं।" गफूर ने एक तरफ रखे थैले से पठानी कमीज-सलवार निकाले और एक-एक जोड़ा उन दोनों को दे दिया--- "रास्ते में पड़ने वाले मेरे ठिकाने के लोग भी तैयार हैं। मैंने उन्हें इतना ही बताया है कि दो को सीमा पार पहुंचाना है और मिलिट्री हमें रोकेगी। परंतु हमें सफल होना है। वो मेरे आदमी हैं तो मेरी ही बात मानेंगे। मिलिट्री से उन्हें क्या मतलब। नोट तो मैंने ही उन्हें देने हैं।"

गफूर हंसा।

■■■

मिलिट्री की एंबुलेंस बिना रुके दौड़ती रही। रास्ते में कहीं उसे रोका भी नहीं गया।

रात के दस बजे गाड़ी एक जगह रुक गई।

भीतर मध्यम रोशनी का बल्ब जल रहा था। वे एक दूसरे को देख पा रहे थे। गफूर दिन भर भीतर बैठा, मोबाइल फोन पर ही व्यस्त रहा था। वो अपने काम में संजीदा दिखाई दे रहा था।

"यहां हमें एम्बुलेंस छोड़नी होगी। मेरे आदमी एंबुलेंस वापस ले जाएंगे। ये यहां मिलिट्री वालों को नहीं मिलनी चाहिए, नहीं तो वो सोच सकते हैं कि हमने ही एंबुलेंस का इस्तेमाल किया है।"

तीनों एंबुलेंस से नीचे उतरे, गफूर ने आगे की सीटों पर जवानों की वर्दी पहने दोनों से बात की और उन्हें एंबुलेंस वापस इस्लामाबाद ले जाने को कहकर आगे बढ़ गया। कुछ दूरी पर छोटी-छोटी रोशनियां नजर आ रही थी। गफूर ने बताया कि वो कोतल्हू गांव है, उन्होंने वहीं जाना है।

देवराज चौहान और जगमोहन गफूर के साथ आगे बढ़ने लगे।

"अभी तक तो कोई परेशानी नहीं आई।" गफूर चलते-चलते बोला--- "ये तो साधारण सा काम लग रहा है।"

"मिलिट्री ने जरूर ऐसा कोई इंतजाम कर लिया होगा कि हम सीमा पार ना जा सकें।" जगमोहन बोला।

"पता चल जाएगा। इस्लामाबाद में जरूर हलचल मची हुई है। फोन पर मैंने अपने आदमी से बात की है। उसने बताया कि पुलिस और मिलिट्री बौखलाई सी घूम रही है। इस्लामाबाद की सीमाएं सील कर दी गई हैं। कई जगह छापेमारी, तलाशी की जा चुकी है। मिलिट्री का कहना है कि दो हिन्दुस्तानी जासूस उनकी कैद से निकल भागे हैं।"

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

"तुम्हें फेल करने के लिए मिलिट्री हर संभव कोशिश करेगी। वो तो ये किसी को कह नहीं सकते कि वो किसी खास काम के लिए गफूर का टेस्ट ले रहे हैं। ऐसे में हमें जासूस कहा जा रहा है।"

"मैं उनकी बातों में नहीं आने वाला मेजर साहब। मैं जानता हूं कि ये मेरा इम्तिहान है।"

"यहां से सीमा कितनी दूर है?"

"सिर्फ चार घंटे का रास्ता है सीमा तक पहुंचने के लिए, हम रात में ही...।"

"मैं फिर कहता हूं जल्दी मत करो। ये पता करो कि सीमा पर मिलिट्री ने कोई इंतजाम तो नहीं किए?"

"अभी पता चल जाएगा। मेरे आदमी सरहद की पूरी खबर रखते हैं।"

गफूर उन्हें गांव के एक बड़े से घर में ले गया। वहां दस-बारह आदमी मौजूद थे और चार-पांच औरतें भी दिखी जो कि एक तरफ चूल्हा जलाए, खाना तैयार करने में लगी थी। खामोश चहल-पहल वहां पर थी। उनके वहां पहुंचते ही एक मोटा सा आदमी तुरंत उनके पास आ पहुंचा।

"अब्दुल।" गफूर ने कहा--- "ये जनाब मेजर साहब हैं और ये...।"

"कैप्टन आशिक अली।" जगमोहन फौरन कह उठा।

"इन दोनों को सीमा पार पहुंचाना है। मिलिट्री किसी काम के लिए मेरा इम्तिहान ले रही है। मुझे इम्तिहान में पास होकर दिखाना है। ये काम बहुत जरूरी है मेरे लिए।" फिर गफूर ने देवराज चौहान और जगमोहन से कहा--- "तुम लोग नहा-धो लो। उसके बाद खाना खा लेना। मैं भी नहा-धो लेता हूं।"

एक अन्य आदमी देवराज चौहान और जगमोहन को मकान के भीतर, पीछे वाले हिस्से में ले गया। वहां दीवारें करके नहाने के लिए खुले बाथरूम बना रखे थे। पानी ड्रमों में मौजूद था। वे नहा-धोकर हल्के हुए। कपड़े दिन वाले ही पहन लिए। फिर उन्हें मकान के उसी सामने वाले हिस्से की तरफ लाया गया। वहां चारपाइयां रखी हुई थी।

पांच-छः लोग वहां बैठे खाना खा रहे थे। देवराज चौहान और जगमोहन भी एक चारपाई पर बैठ गए। तभी एक कमरे से गफूर और अब्दुल को आते देखा। अब्दुल तो अपने कामों में व्यस्त हो गया। गफूर ने कुछ दूर रखी कुर्सी उठाई और उनकी चारपाई के पास आकर कुर्सी पर बैठ गया। चेहरे पर गंभीरता दिख रही थी।

"मेजर साहब।" गफूर बोला--- "मामला जरा कठिन होता जा रहा है।"

"कैसे?" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"अब्दुल ने बताया कि शाम को सीमा की तरफ मिलिट्री से भरे तीन ट्रक गए हैं और वहां आने वाले अपने आदमी ने बताया है कि सरहद पर बहुत ही चौकसी से मिलिट्री के जवान फैल चुके हैं। ऐसे में सरहद पार नहीं की जा सकती।"

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

"तो तुम क्या समझते थे कि ये इम्तिहान आसान रहेगा।" देवराज चौहान बोला--- "तुम्हें बहुत बड़ा काम दिया जाएगा, अगर तुम इस इम्तिहान में पास हो गए तो। अगर हार मान ली है तो मैं ये टेस्ट अभी खत्म करवा देता हूं।"

"गफूर कभी हारता नहीं मेजर साहब। मैंने तो आपको सीमा के हालात बताएं हैं।"

"मैं फिर कहता हूं जल्दी मत करना। बेशक दो दिन लग जाएं, टेस्ट में पास तभी माने जाओगे जब हम सीमा के पार पहुंच जाएंगे।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैंने यही देखना है कि तुम कैसे काम करते हो। अब मैं तुम्हें सलाह नहीं दूंगा। मेरा कहा ये देखना है कि तुम सफलता से काम कैसे पूरा करते हो?"

"काम तो पूरा हो ही जाएगा। अब्दुल हैरानी में है कि मेरे टेस्ट के लिए, मिलिट्री ने बॉर्डर सील कर दिया है।"

"मिलिट्री के काम तो ऐसे ही होते हैं।"

उसके बाद खाना खाया गया।

उन्हें सोने को एक कमरा दे दिया गया। गफूर ने कह दिया था कि आज रात तो वो सरहद पार नहीं कर पाएंगे। वो हालातों के शांत होने का इंतजार करेंगे। वहां मौजूद छः लोग तो ऐसे थे कि जिन्हें अब्दुल सीमा पार से लाया था दोपहर को। वो पाकिस्तानी थे और रात को ही वो छः लाहौर की तरफ रवाना हो गए थे।

सुबह घर पर गफूर, अब्दुल के अलावा तीन आदमी, और वो औरतें ही दिखीं। गफूर पूरी तरह विश्वास से भरा हुआ था। उसने पास आकर देवराज चौहान और जगमोहन से कहा कि वो इम्तिहान में पास होकर दिखाएगा। अब्दुल सुबह आठ बजे ही अपनी पुरानी जीप लेकर सरहद की तरफ चला गया था कि वहां देख कर आता है। देवराज चौहान, जगमोहन और गफूर मकान के भीतर, कमरे में ही रहे। देवराज चौहान ने गफूर से कह दिया था कि वो बाहर खुले में नहीं घूमेगा और कम लोगों को ही वो दिखेगा। दिनभर गफूर कमरे में ही रहा। दोपहर बाद चार लड़के हथियारों के साथ वहां पहुंचे। उन्होंने अब्दुल को पूछा, उन्होंने बताया कि आज रात अब्दुल ने उन्हें सीमा पार करानी है। वो पैसा लाए हैं। घर की औरतों ने उन्हें एक कमरे में ठहरा दिया। अब्दुल शाम आठ बजे लौटा। तब अंधेरा हो गया था। वो सीधा देवराज चौहान के पास पहुंचा। उसके चेहरे पर उलझन और गंभीरता के भाव दिख रहे थे।

"मिलिट्री ने बॉर्डर सील कर रखा है।" अब्दुल ने बताया--- "किसी को भी सीमा के उस पार नहीं जाने दे रहे। मैंने तो ऐसा पहले होते नहीं देखा। बहुत ज्यादा सख्ती की जा रही है।"

गफूर ने देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान मुस्कुरा कर बोला।

"मैंने तो पहले ही कहा था कि इम्तिहान सख्त होगा। देखना ये है कि तुम पास होते हो या नहीं।"

गफूर विश्वास भरे अंदाज में सिर हिलाकर रह गया।

"गफूर मियां।" अब्दुल ने कहा--- "महज इम्तिहान की खातिर इतनी मिलिट्री लगी है, ये मुझे समझ में नहीं आता।"

"मिलिट्री वाले मुझे बड़ा काम देने वाले हैं।" गफूर बोला--- "इसलिए वो मेरी काबिलियत देखना चाहते हैं। मुझे इस पहरे के बीच ही मेजर साहब और कैप्टन साहब को सीमा के उस पार ले जाना होगा।"

"सीमा पर जबर्दस्त पहरा है गफूर।" अब्दुल ने पुनः कहा।

"कोई रास्ता सोच। मैंने इम्तिहान में पास होना है। मैं भी देखता हूं कि क्या किया जा सकता है।"

अब्दुल उन चारों से मिला, जो सीमा पार जाने के लिए आए थे। उनके पास काफी सारे हथियार थे। लगता था जैसे वो उस पार जाकर हमला करेंगे। गफूर ने उनसे पैसे लेकर जेब में रखे और कहा।

"आज रात सीमा पार नहीं हो सकेगी। सीमा पर अचानक ही मिलिट्री का पहरा बढ़ गया है। वो किसी को भी उस पार नहीं जाने दे रहे। एक-दो दिन बाद ही शायद कुछ हो जब मिलिट्री वहां से हटेगी।"

"लेकिन उस पार हमारे साथी आज हमें लेने आएंगे।" एक ने कहा।

"इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।"

"उन्हें सेटेलाइट फोन पर खबर कर दो कि हम आज नहीं सीमा पार आ सकेंगे।" दूसरे ने अपने साथी से कहा।

तीसरा फौरन एक थैले से सेटेलाइट को निकालने में लग गया।

उधर देवराज चौहान और जगमोहन गफूर को हवा दे रहे थे कि उसने इम्तिहान में पास होकर दिखाना है। गफूर पूरे विश्वास से भरा था। उसने यकीन दिलाया कि वो कुछ सोच रहा है। काम पूरा करके रहेगा। रात बारह बजे तक आंगन में चारपाई पर बैठा वो अब्दुल से बातचीत करता रहा। रात का खाना हो चुका था।

"जितना वक्त बीत रहा है, खतरा उतना ही बढ़ता जा रहा है।" जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा।

"हम कुछ नहीं कर सकते। सारी बाजी गफूर के हाथ में है कि वो हमें कैसे सीमा पार ले जाता है।" देवराज चौहान बोला।

"अगर हम खुद निकल लें तो?"

"सीमा पर मिलिट्री फैली है। अगर निकलने का कोई रास्ता होता तो गफूर इस तरह वक्त खराब नहीं करता। हमसे बेहतर गफूर जानता है कि सीमा पार कैसे जाना है। वो अपने काम का एक्सपर्ट है।" देवराज चौहान गंभीर था।

"इस तरह तो हमें कई दिन यहां रहना पड़ सकता है।"

"कोई फर्क नहीं पड़ता।"

"गोरिल्ला वहीं रह गया।"

"वो आने को तैयार नहीं था।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "मुझे वो शुरू से ही पाकिस्तानी मिलिट्री का आदमी समझ रहा था। ऊपर से मेजर की वर्दी में मुझे देख लिया। वो साथ चलने को नहीं माना। मैंने तब पूछा था उससे।"

अगले दिन सुबह आठ बजे वो उठे। नहा-धोकर नाश्ता ही किया था कि अब्दुल बुरी खबर ले आया कि मिलिट्री वाले आसपास के सब गांवों के घरों की तलाशी ले रहे हैं। यहां से आगे सीमा की तरफ कोई गांव नहीं पड़ता था। बस आखिरी यही चार-पांच गांव थे। मिलिट्री वाले तलाशी के काम पर लग चुके थे।

देवराज चौहान ने गफूर अली से कहा।

"मिलिट्री वाले जानते हैं कि तुम लोग सीमा पार कराने का काम करते हो?"

"कुछ खास मिलिट्री वाले जानते हैं, परंतु उन्हें हमारे काम से कोई एतराज नहीं।" गफूर ने बताया।

"वो यहां आएंगे तो यहां की तलाशी लेंगे?"

"हां। हम उन्हें रोक नहीं सकते।"

"फिर तो वो हमें पकड़ लेंगे। तुम इम्तिहान में फेल हो जाओगे। तुम्हें कोई जानता हुआ हुआ तो खेल खत्म हो जाएगा।"

गफूर फेल होने की चिंता में पड़ गया।

"बात तो तब बने कि मिलिट्री यहां की तलाशी ले और हम तीनों उन्हें ना मिलें।" जगमोहन ने कहा।

"बगल के कमरे में, जमीन के नीचे एक छोटी सी कोठरी तो बनी रखी है छिपने के लिए। परंतु भुल्ले खान उस कोठरी को जानता है। अगर वो यहां आ गया तो, कोठरी को जरूर चैक करेगा।"

"जरूरी तो नहीं कि भुल्ले खान यहां आए। तुम्हें पहले से मालूम था कि वो मिलिट्री इंटेलिजेंस का आदमी है?" देवराज चौहान बोला।

"हां। परंतु वो आतंकवादियों को सीमा पार कराता है। यही उसकी ड्यूटी है।"

"मतलब कि वो तुम्हारे सारे राज जानता है।"

गफूर ने सहमति से सिर हिलाया।

"जरूरी नहीं कि भुल्ले खान यहां आए। हम जमीन के भीतर कोठरी में छिपे रह सकते हैं। अब्दुल कैसा आदमी है?"

"वो मेरा आदमी है। पन्द्रह सालों से मेरे साथ काम कर रहा है और भरोसे का है। तुम ठीक कहते हो कि जरूरी नहीं कि भुल्ले खान यहां पर आए। वो जाने कहां पर दौड़ा फिर रहा होगा। हम बच जाएंगे। मिलिट्री वाले गांवों की तलाशी ले लें तो शायद यहां से चले जाएं।" गफूर ने अब्दुल को बुलाकर कहा--- "जब मिलिट्री यहां की तलाशी लेने आएगी तो हम कोठरी में छुप जाएंगे। जो चार आतंकवादी आगे वाले कमरे में हैं, उन्हें वहीं रहने देना। मिलिट्री देख भी लेगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। मिलिट्री तो खुद कहती है कि हम आतंकवादियों को सीमा पार कराते रहें।"

दोपहर को तीन बजे अब्दुल दौड़ा-दौड़ा घर पहुंचा। वो हांफ रहा था। उसने बताया कि भुल्ले खान को उसने जीप पर इसी गांव में देखा है। ये सुनते ही वो तीनों जल्दी से साथ वाले कमरे में पहुंचे। वहां पर एक चारपाई बिछी थी और तीन कुर्सियां रखी थी। फर्श मिट्टी का था। उन्होंने चारपाई उठाकर एक तरफ की और नीचे रखा प्लाई का दो फीट चौड़ा, दो फीट लंबा टुकड़ा हटाया तो नीचे चकोर खाना दिखाई दिया। लकड़ी की सीढ़ी नीचे लगी थी। गफूर, देवराज चौहान और जगमोहन नीचे उतर गये सीढ़ी से। कोठरी में घुप्प अंधेरा था।

"भुल्ले खान इधर आया तो इस कोठरी को जरूर देखेगा।" गफूर ने नीचे से कहा।

"मैं कोशिश करूंगा कि वो यहां ना देख सकें।" अब्दुल ने कहा।

"अगर वो देखना चाहे तो पकड़ लेना उसे।" गफूर ने गंभीर स्वर में कहा।

"वो मिलिट्री का आदमी है। उसे पकड़ा तो लेने के देने पड़ जाएंगे गफूर।" अब्दुल के स्वर में चिंता थी।

"कुछ नहीं होगा। ये मेरा इम्तिहान है। जैसे भी हो मुझे अपने काम में सफल होना है। बाद में सब ठीक हो जाएगा।"

देवराज चौहान ने गफूर को शाबाशी दी कि उसने बढ़िया सोचा है कि भुल्ले खान को पकड़ लिया जाए। ये भी कहा कि अगर भुल्ले खान हाथ में आ जाता है तो आगे की तरकीब मैं बताऊंगा कि क्या-कैसे काम करना है।

चार बजे भुल्ले खान जीप में वहां आ पहुंचा। उसके साथ दो और जवान थे भुल्ले वर्दी में था। अब्दुल ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया और ऊंचे स्वर में कमरों को देख कर कहा।

"गुलवीरा। जनाब भुल्ले साहब आए हैं। तीन गिलास ठंडी लस्सी लाना।"

"तुम मुझे जनाब कह रहे हो।" भुल्ले ने आसपास देखते हुए कहा--- "हम तो दोस्त हैं अब्दुल।"

"जरूर है। परंतु इस समय आप वर्दी में हैं।"

"उसकी परवाह मत करो। मैं तुम्हारे लिए वही भुल्ले हूं।" भुल्ले खान ने कहा।

"बात क्या है, हर तरफ मिलिट्री है। सरहद के पार भी किसी को जाने नहीं दिया जा रहा।" अब्दुल बोला।

"जैसे तुम्हें पता ही नहीं।" भुल्ले मुस्कुराया--- "तुम तो खबरें लाने में उस्ताद हो।"

"तुम कहो भुल्ले कि क्या बात है?"

"दो हिन्दुस्तानी जासूस मिलिट्री हैडक्वार्टर से भाग निकले हैं।" भुल्ले ने होंठ भींचकर कहा।

"ये तो बुरा हुआ।"

"गफूर कहां है?"

"वो तो इस्लामाबाद में है।"

"मैं यहां की तलाशी लेना चाहता हूं।"

"तुम्हारा अपना घर है। जहां चाहो, देख लो।" अब्दुल ने सहज स्वर में कहा।

"लोग हैं यहां सीमा पार जाने के लिए?"

"चार हैं। वो तो कब के चले गए होते। पर सीमा पार नहीं करने दी जा रही।"

"मुझे उनके पास ले चलो।" भुल्ले ने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली--- "मैं उन्हें देखना चाहता हूं।"

"आओ, वो आगे वाले कमरे में है।"

तभी बीस बरस की गुलवीरा थाल में रखे लस्सी के तीन गिलास ले आई।

तीनों ने गिलास थामें। गुलवीरा भुल्ले से कह उठी।

"भाईजान। ये वर्दी असली है या नकली?"

भुल्ले जवाब में मुस्कुरा कर रह गया।

"तुम दोनों उधर चारपाई पर बैठ कर लस्सी का मजा लो। मैं भुल्ले के साथ हूं।" अब्दुल ने जवानों से कहा।

जवान चारपाई पर जा बैठे।

भुल्ले ने लस्सी का गिलास खाली किया और अब्दुल के साथ उस कमरे में जा पहुंचा, जहां चार लोग हथियारों के साथ मौजूद थे और सीमा पार करने का इंतजार कर रहे थे।

उन चारों को देखने के बाद भुल्ले ने रिवाल्वर वापस रखते हुए कहा।

"बस, यही लोग हैं?"

"हां।" अब्दुल बोला।

उसके बाद भुल्ले ने पूरा घर घूम कर देखा। यहां अक्सर उसका आना-जाना लगा रहता था। यहां की हर जगह को वो जानता था। फिर उसने अब्दुल से कहा।

"कमरे के नीचे की कोठरी देखनी है।"

"मुझ पर भरोसा नहीं?" अब्दुल मुस्कुराया।

"ये संगीन मामला है। उन दोनों जासूसों को मैं हर हाल में पकड़ना चाहता हूं।" भुल्ले दांत पीसकर बोला।

"परंतु यहां कोई नहीं है।"

"तुम्हें कोठरी दिखाने में एतराज है?"

"मुझे क्यों एतराज होगा। आओ।"

अब्दुल और भुल्ले उस कमरे में जा पहुंचे। अब्दुल कुछ ऊंचे-ऊंचे स्वर में यूं ही बातें कर रहा था कि गफूर और बाकी दोनों सुन सकें कि ऊपर क्या हो रहा है। चारपाई हटाई गई। लकड़ी का फट्टा हटाया गया। नीचे घुप्प अंधेरा दिखा। अब्दुल ने कोठरी के मुहाने की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा।

"देख ले भुल्ले। कोई नहीं है।"

भुल्ले आगे बढ़ा और कोठरी के किनारे पर बैठकर भीतर झांका। ऊपर से लकड़ी की सीढ़ी नीचे जा रही थी। परंतु नीचे गहरा अंधेरा था। कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

"टॉर्च देना।" भुल्ले ने कहा।

"सैल नहीं है टॉर्च में।" अब्दुल ने कहा--- "यार तुम तो बहुत ज्यादा शक वाली बात कर रहे हो।"

"करनी ही पड़ती है। तुम लोग नोटों के लिए काम करते हो। नोट मिल जाएं तो हिन्दुस्तानी जासूसों को भी सीमा पार पहुंचा सकते हो। मैं उन दोनों को सीमा पार नहीं जाने देना चाहता।"

"क्या पता वो सीमा पार ना जाएं?"

"वो सीमा पार ही जाएंगे।"

अब्दुल समझ गया कि इम्तिहान वाली बात सही है। भुल्ले जानता है कि उन्होंने सीमा पार ही जाना है। उसने देखा, भुल्ले ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली और सीढ़ी पर पांव रखा।

"ध्यान से नीचे उतरना।" अब्दुल गफूर को सुनाने वाले ढंग से बोला--- "नीचे अंधेरा है।'"

भुल्ले सीढ़ी उतरने लगा।

अब्दुल धड़कते दिल के साथ उसे नीचे जाता देखता रहा। भुल्ले नीचे चला गया। वो दिखना बंद हो गया था। अगले ही पल नीचे कोठरी में छीना-झपटी, कराहने, बोलने की कुछ आवाजें आईं। कभी आवाजें तेज हो जातीं तो कभी मध्यम। फिर आवाजें शांत पड़ गई। अब्दुल कोठरी के मुहाने पर पहुंचा और धीमे से बोला।

"सब ठीक है?"

"हां। गफूर की आवाज आई--- "भुल्ले अकेला आया है?"

"साथ में दो जवान हैं।" अब्दुल ने बताया।

"उन्हें संभाल। जब रास्ता साफ हो तो बताना।"

अब्दुल ने लकड़ी का फट्टा पुनः ऊपर रखा। उसके ऊपर चारपाई खिसकाई। कमरे से बाहर आ गया। उधर पहुंचा, जिधर दोनों जवान बैठे थे। वो अब वहां नहीं थे। गुलवीरा ने बताया कि वो बाथरूम तक गए हैं। पांच मिनट बाद वो वापस आए तो अब्दुल मुस्कुरा कर उनसे बोला।

"कुछ आराम करना हो तो कर लो।"

"नहीं। साहब कहां हैं?"

"वो अभी बाहर गए हैं। और तुम दोनों के लिए कह गए हैं कि बाकी जवानों के साथ पूरा गांव छान मारो। उन्होंने ये भी कहा है कि जीप बाहर ही खड़ी रहने दी जाए। रात को आकर ले जाएंगे।" अब्दुल ने कहा।

शक की कोई वजह नहीं थी। वो दोनों जवान चले गए।

■■■

वो सब कोठरी से बाहर आ चुके थे। भुल्ले खान को होश आ गया था और देवराज चौहान, जगमोहन को गफूर के साथ देखकर वो हक्का-बक्का रह गया था।

"जनाब को मेरा सलाम।" गफूर बोला--- "आप तो हम तक आ ही पहुंचे थे।"

"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है गफूर। ये दोनों हिन्दुस्तानी जासूस हैं और---।"

"आपकी बात का मुझ पर कोई असर नहीं होने वाला। ये तो मेजर साहब हैं। आपके साथ ही मैंने इन्हें मेजर की वर्दी में देखा था। मुझे सब मालूम है कि मेरे सामने आप इन्हें जासूस क्यों कह रहे हैं। मैं आपको इम्तिहान में पास होकर दिखाऊंगा। आपकी बातों में फंसने वाला नहीं।"

"कैसा इम्तिहान?" भुल्ले की आंखें सिकुड़ी।

"कहा ना, आपकी बातों में नहीं फसूंगा।"

जगमोहन की चेहरे पर मुस्कान आ गई।

भुल्ले ने गफूर और अब्दुल को बहुत समझाने की चेष्टा की। परंतु गफूर पर इन बातों का कोई असर नहीं हो रहा था, जबकि अब्दुल चुप रहा। वो इन बातों में नहीं पड़ना चाहता था।

"कैप्टन।" देवराज चौहान ने मेजर की हैसियत से कहा--- "गफूर कहता है कि मैं इम्तिहान में पास होकर दिखाऊंगा। ये हमें सीमा पार पहुंचा देगा। बढ़िया काम कर रहा है ये। मुझे यकीन है कि ये सफल रहेगा। अगर ये सफल रहा तो मैं इसे अपने साथ अगले मिशन में शामिल कर लूंगा।"

भुल्ले अब कुछ समझा कि गफूर को देवराज चौहान ने किस तरह चक्कर में ले रखा है। भुल्ले ने पुनः गफूर को बताने की चेष्टा की कि ये कोई इम्तिहान नहीं हो रहा। जो हो रहा, वो सच है ये दोनों हिन्दुस्तानी जासूस हैं। सारी मिलिट्री इन्हें पकड़ लेना चाहती है। जबकि गफूर सिर्फ मुस्कुराता रहा।

"गफूर।" देवराज चौहान ने कहा--- "अब तो दिल करता है कि मैं भी तुम्हारा साथ दूं।"

"आपने मेरा साथ दिया तो मुझे खुशी होगी जनाब।" गफूर बोला।

"अब मैं तुम्हें बताऊंगा कि आगे क्या करना है। भुल्ले को मेरे पास ही रहने दो और इसके हाथ-पांव बांध दो।"

भुल्ले चीखता-चिल्लाता रहा परंतु गफूर और अब्दुल उसके हाथ-पांव बांधकर बाहर निकल गए। भुल्ले ने आहत भाव से दोनों को देखा तो देवराज चौहान मुस्कुरा कर बोला।

"भुल्ले। गफूर को मेरी हर बात का यकीन है, क्योंकि ये मुझे मेजर की वर्दी में देख चुका है।"

"तुम बच नहीं सकोगे देवराज चौहान।" भुल्ले तड़प कर बोला।

"तुम हाथ आ गए हो तो, मेरे ख्याल में अब मैं बच सकता हूं।" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

भुल्ले खा जाने वाली नजरों से देवराज चौहान को देखने लगा।

"तुमने हमारे साथ गद्दारी की।" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला--- "तुमने देवराज चौहान को मिलिट्री के हाथों में फंसा दिया। तुमने मुझे भी अपने चक्कर में ले लेना चाहा। तुम हमें हिन्दुस्तान के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहते थे। कैसे सोच लिया तुमने कि हम हिन्दुस्तान के खिलाफ काम करेंगे। वो हमारा देश है। हमारा बिछौना है। वहां हम पैदा हुए हैं। वहीं हमने मरना है। हम पैसे के नहीं, पैसा हमारा गुलाम है। दौलत के लिए देश को बेचने का काम नहीं करते हम। हर कोई सूबेदार जीत सिंह नहीं होता, जो देश को बेच देता है।"

"मत भूलो कि अभी तुम पाकिस्तान में ही हो।" भुल्ले खान गुर्राया।

"याद है। पर तुम भी मत भूलो कि हम यहां से निकल जाएंगे। अब हम किसी के हाथ नहीं आने वाले।"

"तुम लोग पकड़े जाओगे। यहां हर तरफ मिलिट्री है। वो...।"

"मिलिट्री को कैसे पता चला कि हम इस इलाके में हैं।" देवराज चौहान ने पूछा।

"मिलिट्री की एंबुलेंस को पकड़ा था, वो चोरी की गई थी। उन्होंने हमें बताया कि इस तरफ तीन लोगों को छोड़कर आ रहे हैं। उस एंबुलेंस ने इस्लामाबाद से यहां तक का सफर तय किया था। ऐसे में हमने इधर की सीमा सील कर दी और आसपास के गांवों की तलाशी लेने लगे। और हमारा शक सही निकला तुम लोग यहां हो। गफूर को तुमने बुरी तरह अपने चक्कर में ले रखा है। वो तुम पर पूरा भरोसा करके चल रहा है। मेरी भी परवाह नहीं कर रहा।" भुल्ले खान के होंठ भिंच गए--- "तुमने बहुत ही शानदार योजना बनाई, जगमोहन को वहां से निकाल ले जाने की। मैं भी नहीं समझ सका कि ये सब तुम्हारी चाल है। लेकिन तुम सीमा पार नहीं कर पाओगे... तुम।"

देवराज चौहान ने भुल्ले वाली रिवाल्वर ही आगे बढ़ कर उसकी छाती से लगा दी।

भुल्ले ने जलती आंखों से देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

"जिंदा रहना चाहते हो या मरना?" देवराज चौहान गुर्राया।

"क्या मतलब?"

"सीमा तो हम पार कर ही लेंगे। परंतु तुम तभी बचे रह सकते हो, अगर मेरी बात मानोगे।" देवराज चौहान दरिंदगी भरे स्वर में कह रहा था--- "तुम हमें सीमा पार कराओगे।"

"नहीं। मैं।"

"हां या ना। ना कहोगे तो तुम्हें शूट कर दूंगा।"

"तुम मुझे शूट नहीं कर सकते, गोली की आवाज गूंजेगी। आसपास मिलिट्री फैली है।"

"गोली की आवाज नहीं गूंजेगी। रिवाल्वर पर साइलेंसर लग जाएगा। या चाकू से तुम्हारा गला काट...।"

"तुम ऐसा नहीं करोगे।"

"मैं ऐसा ही करूंगा। तुम लोगों ने मेरे साथ जो सलूक किया है, उसके बाद मेरे से रहम की उम्मीद मत रखना।" देवराज चौहान ने दांत पीसते हुए कहा--- "तुम्हारे मर जाने से मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

"गोली मारो इसे। जगमोहन कठोर स्वर में बोला--- "इसके बिना भी हम सीमा पार कर लेंगे।"

देवराज चौहान ने भुल्ले की आंखों में झांकते हुए कहा।

"तुम्हारी जिंदगी और मौत में फासला कम हो चुका है भुल्ले। मैंने तुम्हें मारने का सोच लिया है।"

"नहीं।" भुल्ले ने सूख रहे होंठों पर जीभ फेरी--- "मैं-मैं तुम दोनों को सीमा पार करा दूंगा।"

"ये तो तैयार हो गया।" देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

"अपनी जान बचा ली।" जगमोहन कड़वे स्वर में बोला--- "हां कहकर हम पर कोई एहसान नहीं किया।"

देवराज चौहान ने भुल्ले की छाती से रिवाल्वर हटाते हुए कहा।

"जीत सिंह कहां है?"

"यहां से चार किलोमीटर दूर, दूसरे गांव में मिलिट्री वालों के साथ तलाशी में लगा...।"

"उसे फोन करो और यहां बुलाओ।"

"क-क्यों?" भुल्ले के होंठों से निकला।

"जो कहा है, वो करो।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा--- "जीत सिंह को यहां बुलाओ।"

"म-मेरे हाथ खोलो। फोन मेरी जेब में है।"

जगमोहन ने हाथ खोले।

भुल्ले खान ने व्याकुल अंदाज में फोन निकाला और जीत सिंह का नंबर मिलाने लगा।

"कोई चालाकी मत करना। उसे जरा भी शक ना हो कि यहां कोई गड़बड़ है।" देवराज चौहान गुर्राया।

भुल्ले ने जीतसिंह से फोन पर बात की। उसे गांव के बारे में बताकर, अब्दुल के घर पहुंचने को कहा कि गांव में आकर किसी से भी अब्दुल का घर पूछ ले। जीत सिंह ने कहा कि वो आधे घंटे में पहुंच रहा है। बात होने के बाद देवराज चौहान ने भुल्ले का फोन लिया और जगमोहन ने उसकी बांहें पीठ पीछे करके फिर बांध दी।

"जीतसिंह आने वाला है।" देवराज चौहान बोला--- "मैं गफूर को आगे का काम समझा के आता हूं।"

■■■

जीतसिंह एक घंटे में आया और उसे भी कैद कर लिया गया। देवराज चौहान और जगमोहन को सामने देखकर वो हक्का-बक्का रह गया था। भुल्ले खान के पास ही उसे डाल दिया गया था। देवराज चौहान ने गफूर को बातों से सैट कर रखा था कि अब उसका काम और भी बढ़िया माना जाएगा, क्योंकि उन्हें मिलिट्री का कैप्टन भुल्ले खान उर्फ नसीम चौधरी सीमा पार कराएगा। मिलिट्री के महकमें में उसकी वाह-वाह हो जाएगी। जबकि गफूर जब भी भुल्ले के सामने जाता तो भुल्ले उसे सच बताने की कोशिश करता, परंतु गफूर तो विश्वास से भरा हुआ था। वो ये ही सोचता कि मिलिट्री का मेजर (देवराज चौहान) जो कह रहा है, ठीक कर रहा है। उसे देवराज चौहान पर पूरा भरोसा हो चुका था। रात दस बजे वो सब बाहर खड़ी मिलिट्री की जीप पर, सरहद की तरफ चल पड़े। साथ में उन चार आतंकवादियों को भी ले लिया गया था जो तीन दिन से सीमा पार करने के लिए वहां बैठे, इंतजार कर रहे थे। अब्दुल के यहां मिलिट्री की कई वर्दियां पड़ी थी। सीमा पार कराने और उधर से आने वालों को लाने के लिए, उन वर्दियों का इस्तेमाल किया जाता था। देवराज चौहान और जगमोहन ने अपने साइज की मिलिट्री की वर्दियां पहन ली थी। भुल्ले खान जीप चला रहा था। बगल की, आगे की सीट पर बैठे देवराज चौहान ने उसकी कमर से रिवाल्वर लगा रखी थी, जो कि नजर नहीं आ रही थी इस अंधेरे में। पीछे की सीटों पर जगमोहन, गफूर, जीतसिंह और चारों आतंकवादी बैठे थे। जीतसिंह का चेहरा पीला पड़ा हुआ था। वो कोई शरारत ना कर सके, इसलिए उसकी पिंडलियां रस्सी से बांध दी गई थी। सामने जगमोहन रिवाल्वर थामें बैठा था। गफूर को जीतसिंह के बारे में बताया गया था कि वो भी मिलिट्री का एजेंट है। बहरहाल गफूर निश्चिंत था।

गांव में अभी भी मिलिट्री फैली थी। गांव से निकलने तक उन्हें दो जगह रोका गया था। परंतु भुल्ले खान को जीप चलाते देखकर रास्ता दे दिया जाता रहा। भुल्ले खान मिलिट्री डिपार्टमेंट में मशहूर था। उसे अधिकतर मिलिट्री वाले जानते थे। अब, इस बात का काफी फायदा मिल रहा था। अब्दुल साथ नहीं आया था, क्योंकि गफूर साथ में था। गफूर खुश था कि वो अब इम्तिहान में पास होने जा रहा है। अंधेरे में जीप सीमा की तरफ जाने वाले रास्ते पर दौड़ पड़ी थी। देवराज चौहान ने गफूर को कह दिया था कि रास्ता देखता रहे, कहीं भुल्ले गलत रास्ते पर ना चल दे। गफूर उत्साह से भरा इस बात का पूरा ध्यान रख रहा था।

"मेरा क्या करोगे?" जीतसिंह जगमोहन से बोला।

"हिन्दुस्तानी माल को पाकिस्तान में कैसे छोड़ सकते हैं।" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा था।

"इसे भी सीमा पार ले जाएंगे फिर वापस ले आएंगे।" गफूर ने हंसकर कहा।

चुप्पी में डूबा, जीप चलाते भुल्ले बोला।

"बेवकूफ ये दोनों हिन्दुस्तानी जासूस हैं।"

"मैं सब समझता हूं कैप्टन साहब।" गफूर पुनः हंसा--- "पर मैं आपकी बातों में नहीं फंसने वाला। मेरे से जो इम्तिहान लिया जा रहा है, उसमें मैं पास होकर दिखाऊंगा। मेजर साहब (देवराज चौहान) और कैप्टन साहब (जगमोहन) को सीमा पार पहुंचा कर दिखा दूंगा कि मुझे मिलिट्री भी नहीं रोक सकी।"

भुल्ले कुछ कहने लगा कि देवराज चौहान ने कमर में लगी रिवाल्वर का दबाव बढ़ाकर कहा।

"चुप रहो और जीप चलाने की तरफ ध्यान दो। स्पीड बढ़ा दो।"

सुनसान रास्ते पर जीप की हैडलाइट दूर तक जा रही थी।

रास्ते में तीन जगह मिलिट्री के जवानों ने उन्हें रोका परंतु भुल्ले खान के द्वारा अपना आई कार्ड दिखाने पर, उन्हें जाने दिया गया। जीप में बैठे लोगों के बारे में भी कुछ नहीं पूछा गया। देवराज चौहान के रिवाल्वर की नाल, उसकी कमर में धंसी हुई थी। भुल्ले मन ही मन बल खा रहा था कि उसे कोई मौका मिल जाए, परंतु मौके की कोई गुंजाइश नहीं थी। देवराज चौहान और जगमोहन भी जानते थे कि इसके बाद उन्हें बचने का मौका नहीं मिलेगा।

साढ़े चार घंटे बाद भी लोग भारत-पाकिस्तान की सीमा पर जा पहुंचे। वहां पर ड्यूटी दे रहे पाकिस्तान के जवान फौरन गनें उठाए उनकी तरफ आने लगे। वो पांच थे।

"इन्हें संभालो।" देवराज चौहान ने गुर्राकर भुल्ले से कहा--- "वरना मैं तुम्हें भून दूंगा। कोई चालाकी नहीं।"

"कैप्टन साहब तो बुरी तरह फंसे पड़े हैं।" गफूर हंसकर कह उठा।

"चुप रह।" जगमोहन ने कहा--- "अभी मत बोल।"

उन्होंने जीप को घेर लिया।

परंतु भुल्ले ने अपना परिचय देकर, आई कार्ड दिखाकर कहा।

"जीप में बैठे लोगों को सीमा पार करानी है।" भुल्ले खान का खून खौल रहा था--- "तुम लोग अपनी ड्यूटी पर जाओ।"

वो पांचों जवान चले गए।

भुल्ले ने जीप का इंजन और हैडलाइट बंद कर दी। वो नीचे उतरा तो देवराज चौहान ने तुरंत नीचे उतर कर, उसे कवर कर लिया। हर तरफ अंधेरा था। कोई नहीं जानता था कि इधर क्या हो रहा है। जीत सिंह की पिंडलियों पर बंधी रस्सी को खोलकर, उसके हाथ पीछे की तरफ करके उसकी रस्सी से बांध दिए थे। चारों आतंकवादी भी हथियारों के साथ नीचे आ गए। जगमोहन के कहने पर गफूर, जीतसिंह पर सतर्कता से निगाह रख रहा था। यहां सीमा पर कांटेदार तारे लगी हुई थीं। ऐसे में गफूर ने एक तरफ बढ़ते हुए कहा।

"इधर आओ। थोड़ा आगे रास्ता है।"

सब गफूर के पीछे बढ़ गए।

पांच मिनट बाद गफूर तारों के पास एक जगह रुका और अंधेरे में तारों पर हाथ चलाने लगा। जीतसिंह को जगमोहन ने रिवाल्वर की नोक पर रखा हुआ था।

गफूर ने वहां पर तारें यूं ही अटका रखी थी कि सीमा पार आने-जाने में कोई परेशानी ना हो। वहां से तारें हटा दी तो रास्ता बन गया। वो हंसकर कह उठा।

"आइये मेजर साहब, यहां से निकल चलिए।"

सब वहां से निकलते चले गए।

दस कदम आगे जाकर गफूर रुकता हुआ खुशी से बोला।

"मैं इम्तिहान में पास हो गया। आप लोगों को सीमा पार करा दी।"

देवराज चौहान भी रुका और गफूर से बोला।

"यहां नहीं, कुछ और आगे आओ।"

"कुछ और आगे, कोई हर्ज नहीं। इस तरफ हिन्दुस्तानी सैनिक कभी-कभार ही होते हैं।"

वे पचास कदम आगे आ पहुंचे।

"तुम बहुत बड़ी गलती कर चुके हो गफूर।" भुल्ले खान गुर्राया--- "ये हिन्दुस्तानी जासूस हैं।"

"कैप्टन साहब।" गफूर मुस्कुराया--- "आप लोग हार गए हैं मैं जीता, ये बातें अब छोड़िए और वापस चलते हैं।" फिर गफूर उन चारों आतंकवादियों से बोला--- "तुम लोग जाओ और कुछ करके दिखाना हिन्दुस्तान में।"

वो चारों अपने हथियारों का बोझा उठाए जाने लगे।

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें अंधेरे में मिली। उसके बाद उनकी रिवाल्वरें, भुल्ले और जीत सिंह के शरीर में से कुछ सेकेंडों के लिए हटी। दोनों की रिवॉल्वरों से कई गोलियां निकली और वो चारों आतंकवादी ढेर हो गए। रिवाल्वर की गर्म नाल पुनः जीत सिंह और भुल्ले खान के शरीर से आ सटी।

गफूर हक्का-बक्का रह गया ये देखकर। उसने तुरंत अपनी रिवाल्वर निकालनी चाही कि जगमोहन ने उस पर फायर कर दिया। वो चीखता हुआ पीछे को जा गिरा। तभी भुल्ले खान ने देवराज चौहान की रिवाल्वर पर कब्जा करना चाहा। वो उस पर झपट पड़ा। परंतु देवराज चौहान ने एक के बाद एक दो फायर कर दिए। भुल्ले खान नीचे गिरता चला गया। देवराज चौहान ने उसके सिर पर नाल लगाकर ट्रिगर दबा दिया। वो शांत पड़ गया। भय से कांपता जीतसिंह, जगमोहन की रिवाल्वर के साए में खड़ा था। उसकी हिम्मत नहीं हुई कुछ करने की।

"यहां से चलो।" देवराज चौहान ने खाली हो चुकी रिवाल्वर फेंकते हुए कहा।

जगमोहन, जीत सिंह को कवर किए आगे चल पड़ा।

"मुझे-मुझे छोड़ दो।" जीतसिंह कांपते स्वर में कह उठा।

"चलता रह।" जगमोहन गुर्राया--- "वरना तू भी मरेगा।"

देवराज चौहान उन दोनों के पीछे चल रहा था कि जीतसिंह पीछे से कोई गड़बड़ करे तो उसे संभाल सके। अभी वे तीन-चार सौ कदम ही आगे गए थे कि एकाएक उन टार्चों की रोशनी पड़ी और कड़कता स्वर गूंजा।

"हाल्ट। वहीं रुक जाओ। हाथ ऊपर, वरना मार दिए जाओगे। लास्ट वार्निंग।"

देवराज चौहान और जगमोहन ने हाथ ऊपर कर लिए। जगमोहन के हाथ में अभी भी रिवॉल्वर रखी थी। जीतसिंह ने हाथ ऊपर कर लिए थे। टार्चों की रोशनी उन पर पड़ रही थी।

"रिवाल्वर गिरा दो।" आवाज पुनः उभरी--- "तुम तीनों हमारे निशाने पर हो।"

जगमोहन ने फौरन रिवाल्वर गिरा दी।

"हाथ नीचे किये तो मारे जाओगे।"

"सर।" तभी दूसरी आवाज कानों में पड़ी--- "सर, ये पाकिस्तानी मिलिट्री वाले हैं। इनमें से दो ने वर्दियां पहन रखी हैं।"

"हम हिन्दुस्तानी हैं।" देवराज चौहान ने ऊंची आवाज में कहा--- "पाकिस्तानी वर्दियां तो, पाकिस्तानी मिलिट्री से बचने के लिए पहनी थी। पुंछ सेक्टर में तैनात मेजर कमलजीत सिंह ने हमें पाकिस्तान में गोरिल्ला मिशन पर भेजा था। ये सब बातें मेजर कमलजीत सिंह आप लोगों को बेहतर समझा सकते हैं।"

"हाथ दोनों ऊपर रहने चाहिए। हम पास आ रहे हैं। जो भी सच है सामने आ जाएगा। इस वक्त तुम हिन्दुस्तानी मिलिट्री की हिरासत में हो।" आवाज के साथ ही गहरी खामोशी आ ठहरी। फिर टॉर्च के करीब आने लगीं। कदमों की आहटें भी।

"जीतसिंह।" जगमोहन बोला--- "यहां से पुंछ सेक्टर कितनी दूर है?"

"पांच घंटे का रास्ता है।" जीत सिंह ने भय से कांपते सूखे स्वर में कहा।

"तू तो गया बेटा।" जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा--- "तेरा तो काम हो गया।"

"एक कमाल तेरी मां ने किया था कि उसने जीत सिंह और मीत सिंह, हु-ब-हू एक जैसे जुड़वा पैदा कर दिए।" देवराज चौहान ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा--- "और दूसरा कमाल मैंने किया कि तुझे पाकिस्तान से पकड़कर हिन्दुस्तान ले आया। मेजर कमलजीत सिंह जब तुझे देखेगा और तेरी मां के कमाल को समझेगा तो फिर तीसरा कमाल वो तुम दोनों भाइयों पर करेगा।"

तभी हिन्दुस्तानी मिलिट्री वाले उनके पास आ पहुंचे और उनके शरीरों से गनें सट गईं।

■■■

उन्हें गिरफ्तार करने वाले मिलिट्री के जवान कुछ दूरी पर बने मिलिट्री के कैम्प में ले गए। वहां देवराज चौहान और जगमोहन से गहन पूछताछ की गई, क्योंकि उन दोनों ने ही पाकिस्तानी मिलिट्री की वर्दी पहन रखी थी। मिलिट्री वालों का व्यवहार उनके प्रति कठोर था। सारी बात सुनने के बाद, कैम्प में मौजूद कैप्टन ने पुंछ सेक्टर फोन लगाकर मेजर कमलजीत सिंह से बात की। तब सुबह के चार बज रहे थे। कठिनता से मेजर कमलजीत सिंह से बात हो पाई। सब कुछ सुनने के बाद मेजर ने देवराज चौहान से बात की-- उसे पहचाना, फिर कैप्टन से कहा कि उन्हें मेरे पास भेज दो। देवराज चौहान ने जीतसिंह की कोई बात नहीं की थी। इस दौरान जीतसिंह पीले चेहरे के साथ, सहमा सा बैठा रहा था। वो जानता था कि उसके साथ आगे क्या होने वाला है। वो बुरी तरह फंस चुका था। ये भी जानता था कि अब बचा नहीं जा सकता।

सुबह सात बजे मिलिट्री की मीडियम साइज की बंद वैन वहां से पुंछ सेक्टर के लिए रवाना हुई। ड्राइवर के अलावा, एक जवान उसके बगल में बैठा था। बंद वैन में देवराज चौहान, जगमोहन और जीतसिंह को हथकड़ियां लगा रखी थी और चार जवान हथियारों के साथ उनके पास ही बैठे थे। छः घंटे के सफर के बाद वैन पुंछ सेक्टर पहुंची। रास्ता काफी खराब रहा था। एक जगह तो पहाड़ टूट कर गिरा हुआ था। एक घंटा तो वहां से निकलने में लग गया था। मेजर कमलजीत सिंह बेचैनी से उनके आने का इंतजार कर रहा था। उसे देवराज चौहान और जगमोहन के साथ, जीतसिंह को वैन से बाहर निकलते देखा तो हैरान हो उठा। कई पलों तक वो जीतसिंह को देखता रहा फिर बोला।

"जीतसिंह तुम इनके साथ कैसे-- तुम तो यहां ड्यूटी पर हो। कुछ देर पहले ही मुझसे मिले थे।"

"ये गद्दार है मेजर। हम इसे पाकिस्तान से पकड़ कर लाए हैं।" देवराज चौहान बोला--- "ये दो भाई हैं। जुड़वां। एक जैसे कि तुम आज तक धोखा खाते चले आ रहे थे। दोनों पाकिस्तान के लिए जासूसी करते हैं। इनके नाम जीतसिंह और मीतसिंह हैं। तुम कभी ये जान ही नहीं पाए कि यहां ड्यूटी पर जीतसिंह होता है या मीतसिंह। इस हद तक दोनों एक जैसे हैं। यहां के कई महत्वपूर्ण राज ये अब तक पाकिस्तानी मिलिट्री को देते रहे हैं। इस्लामाबाद में तुम्हारे एजेंटों में से कोई गद्दार नहीं है। सारी गद्दारी इन दोनों भाइयों की रही। ये ही खबरें पाकिस्तानी मिलिट्री को देते रहे। गोरिल्ला को फंसाने में और मुझे फंसाने में इनका ही हाथ था।" देवराज चौहान, जीतसिंह-मीतसिंह की सारी बातें बताता चला गया।

सब कुछ सुनकर मेजर कमलजीत सिंह भौचक्का रह गया। अविश्वास भरी निगाहों से जीतसिंह को देखता रहा। उसकी हालत ऐसी थी जैसे भरे बाजार में किसी बच्चे ने उसे ठग लिया हो। कई पलों तक कमलजीत सिंह के होंठों से बोल ना निकला। फिर दो जवानों द्वारा जीतसिंह को बुला भेजा। जीतसिंह आया तो अपने भाई को वहां देखकर घबरा गया। उसने घबराहट में रिवाल्वर निकालनी चाही, परंतु जवानों ने उस पर फौरन काबू पाया।

"हे भगवान। ये क्या देख रहा हूं। ये दोनों आज तक इतना बड़ा धोखा देते रहे मिलिट्री को।" मेजर कमलजीत सिंह परेशान सा कह उठा--- "ले जाओ इन्हें।" लॉकअप में बंद करके सख्त पहरा लगा दो। ये देश के बहुत बड़े गद्दार हैं।"

जवान जीतसिंह और मीतसिंह को ले गए।

"इनकी हथकड़ियां खोल दो।" मेजर ने कहा।

साथ आए जवानों ने दोनों की हथकड़ियां खोल दी।

"मेजर।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "गोरिल्ला को मैं वापस नहीं ला सका और ना ही वो फाइल मिल सकी। मैंने गोरिल्ला को चलने के लिए कहा, परंतु वो मुझे पाकिस्तानी मिलिट्री वाला समझता रहा और मेरे साथ नहीं आया। वो अपनी जगह सही भी था। दुश्मन देश में, मिलिट्री के पास कैद है और ये ही सोचता था कि इस स्थिति में उसे छुड़ाने कोई नहीं आ सकता। वो पूरी तरह शक-वहम में भर चुका था।"

"देवराज चौहान।" कमलजीत सिंह ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैं जानता हूं कि तुमने कोशिश जरूर की होगी, लेकिन हालात ऐसे होंगे कि गोरिल्ला को नहीं ला सके। परन्तु तुमने जीतसिंह-मीतसिंह की गद्दारी को उजागर करके, गोरिल्ला को लाने से भी बड़ा काम है, अगर ये पकड़े नहीं जाते तो आने वाले वक्त में जाने क्या कर देते। दोनों इतनी चालाकी से काम कर रहे थे कि इन्हें पकड़ पाना आसान काम नहीं था। तुम्हारे द्वारा किए गए इतने बढ़िया काम के लिए मैं तुम्हें सैल्यूट देता हूं।" मेजर ने उसी पल देवराज चौहान को सैल्यूट किया--- "तुमने बहुत बड़े काम को पूरा किया है। मैं दिल से तुम्हारा शुक्रिया अदा करता हूं।"

जगमोहन मुस्कुरा पड़ा। देवराज चौहान ने गहरी सांस ली।

"तुमने हमें इतने बड़े खतरे में डाल दिया, हम मरते-मरते बचे, उसका क्या होगा?" जगमोहन बोला।

"उसके लिए मैं तुम दोनों को बढ़िया कपड़े दूंगा पहनने को। मैस में ले जाकर खाना खिलाऊंगा। इसके साथ ही आजाद कर दिए जाओगे कि जहां जाना चाहते हो, जा सकते हो दोनों।" मेजर कमलजीत सिंह मुस्कुराकर बोला।

"बस?" जगमोहन ने मुंह बनाया।

"और क्या चाहिए तुम्हें?" मेजर ने जगमोहन को देखा।

"तुमसे इतना ही बहुत है।" जगमोहन कह उठा--- "और के चक्कर में दोबारा ना फंस जाएं। जो कहा है, वो करो मेजर और हमें जाने दो। सबसे पहले तो कपड़े दो, ताकि पाकिस्तानी मिलिट्री की ये वर्दी उतार सकें। तुम नहीं समझ सकते कि पाकिस्तान में हमने कैसा बुरा वक्त देखा। कोई रास्ता नहीं था फिर भी वहां से बच आए। वो लोग भी बहुत तेज और चालाक थे।"

"वसीम राणा, मुंबई पहुंच चुका होगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "हमारे आने का इंतजार कर रहा होगा।"

"अब वापस मुंबई ही तो जाना है। वसीम राणा की बहन की शादी पर जाना, आसानी से नहीं भूलेगा।" जगमोहन मुस्कुरा पड़ा--- "और जीतसिंह-मीतसिंह कभी हमें ना भूल सकेंगे कि हमने उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचा दिया।"

"मैं भी तुम दोनों को हमेशा याद रखूंगा। मैंने नहीं सोचा था कि तुम लोग कभी जिंदा लौटोगे पाकिस्तान से।" मेजर ने कहा फिर पास खड़े जवान से बोला--- "मेहमानों को बाथरूम तक ले जाओ कि ये नहा सकें। तब तक मैं तुम दोनों के लिए कपड़ों का इंतजाम करता हूं। उसके बाद खाना, फिर जहां जाना चाहो जा सकते हो। जीतसिंह का असली चेहरा उजागर करके तुम दोनों ने शानदार काम किया। मैं अभी तक हैरान हूं इन दोनों भाइयों के बारे में सोचकर कि किस चालाकी से ये हिन्दुस्तान की मिलिट्री को धोखा दे रहे थे। तुम तो उसे पाकिस्तान से पकड़कर साथ ले आए।"

"उसे साथ ना लाते तो तुमने अभी भी हमारी बात का यकीन नहीं करना था।" देवराज चौहान बोला।

जवान, देवराज चौहान और जगमोहन को लेकर बाहर निकल गया।

"तुमने बहुत बढ़िया काम किया देवराज चौहान।" मेजर चेहरे पर मुस्कान समेटे बड़बड़ा उठा।

समाप्त