पिटते–पिटते बेहोश हो जाने के बाद जलीस को जल्दी ही पुनः होश आया तो उसने स्वयं को फर्श पर पड़ा पाया । उसकी हालत बेहद खस्ता थी । सर दर्द से फटा जा रहा था । लेकिन शरीर के और किसी हिस्से में कोई दर्द नहीं था उसे पहले तो ताज्जुब हुआ फिर इसकी वजह भी समझ में आ गई । वह कुर्सी समेत नीचे पड़ा था । अभी भी उसके टखने आपस में बंधे थे और हाथ कुर्सी के साथ । रक्त प्रवाह रुक जाने के कारण टाँगे और बाँहें सुन्न हो गई थी इसीलिए वहाँ दर्द महसूस नहीं हो रहा था ।

तभी दारूवाला का स्वर उसके कानों में पड़ा ।

"इमरान । यहाँ आओ ।"

बैडरूम की ओर से कदमों की आहट आती सुनाई दी ।

"कहिए ?" इमरान द्वारा पूछा गया ।

"इसे यहाँ से ले जाओ ।"

इमरान ने उबासी ली । फिर बेमन से आगे आकर जलीस की पसलियों में पैर से टहोका लगाया ।

"इसे यहीं पड़ा रहने देने में क्या हर्ज है ?"

दारुवाला अब पुराने वक़्तों वाला दारुवाला नहीं रह गया था । वह पुराने वक़्तों जैसी बातें जरुर कर सकता था । उस ढंग से सोच भी सकता था । और उसी तरह रहने की कोशिश भी कर सकता था । लेकिन बढ़ती उम्र ने उसके भीतरी हौसले को इतना कम कर दिया था कि मारा मारी के माहौल का टेंशन ज्यादा देर तक बर्दाश्त कर पाना उसके वश की बात नहीं रह गई थी ।

"सवाल मत करो । इसे मेरे सामने से हटा दो । बैडरूम में ले जाओ और इसके पास ही रहो ।"

"लानत है ।" इमरान खीजता सा बोला–"मैं सोना चाहता हूँ । इसे खत्म करके इसकी लाश को ठिकाने लगाने भी तो मुझे ही जाना पड़ेगा ।"

"तुम कुर्सी में सो लेना । इसे अंदर ले जाओ ।"

जाहिर था कि इंकार करने की स्थिति में इमरान नहीं था लेकिन इस काम से खुश भी वह नहीं था ।

जलीस को घसीटने के लिए इमरान को पहले उसे कुर्सी से खोलना था ।

जलीस को सिर्फ आहटो और जिस ढंग से इमरान उसे उलट पुलट रहा था, से ही पता लग सका कि उसे खोला जा रहा था । अपने सुन्न हाथ–पैरों में उसे कुछ महसूस नहीं हुआ । अपनी आँखें भी उसने बंद ही रखी । हालांकि वह जानता था, जिस ढंग से आँखें सूज गई महसूस हो रही थी उससे इमरान को पता ही नहीं चलना था कि वे बंद थी या खुली हुई ।

इमरान ने उसकी बगलों में हाथ डाले, उसे बोरें की तरह घसीटकर बैडरूम में ले गया और बिस्तर की बगल में कारपेट पर औंधे मुंह डाल दिया बिल्कुल इस तरह मानों वह मर चुका था ।

फिर वह वापस दूसरे कमरे में गया, दारुवाला से कुछ कहा और अपने लिए ड्रिंक बना लिया ।

घसीटकर लाए जाने की वजह से अचानक पूरे शरीर में हुई हरकत ने जलीस के सोए दर्द को जगा दिया । धीरे–धीरे दर्द का अहसास बढ़ता गया और उसके समस्त शरीर से दर्द की तेज लहरें सी गुजरने लगीं । जल्दी ही, हाथ–पैरों में पुनः रक्तप्रवाह आरंभ हो जाने के कारण दर्द की लहरें उन हिस्सों में भी महसूस होने लगीं ।

असहनीय पीड़ा के बावजूद जलीस खुश था । वक्ती तौर पर मुर्दा हो गए हाथ पैरों को नई जिंदगी मिलनी शुरु हो गई थी । हालांकि उन्हें ज्यादा हिला पाने की ताकत उसमें नहीं थी लेकिन अगर किस्मत ने साथ दिया और कोई चूक उससे नहीं हुई तो इतना ही काफी था ।

जलीस चुपचाप पड़ा रहा ।

इमरान वापस लौटा तो उसके हाथ में रस्सी के वे दोनों टुकड़े थे जिनसे जलीस को कुर्सी के साथ बाँधा गया था ।

उसने नीचे झुककर जलीस के हाथ पुनः पीठ के पीछे ले जाकर बाँध दिए । रस्सी के दूसरे टुकड़े से उसने दोनों पैरों का आपस में बाँध दिया और पुनः बिस्तर के हवाले हो गया मानों कुछ हुआ ही नहीं था ।

बाहर दारुवाला अपने लिए दूसरा ड्रिंक बना रहा था ।

कुछेक मिनटों में ही उसने दो और ड्रिंक लिए और उनके बीच में पाशा और सोनिया को मोटी–मोटी गालियाँ बक डाली ।

बिस्तर पर पड़ा इमरान धीमी और हल्की साँस लेने लगा था । लेकिन पूरी तरह नींद में वह नहीं था इसलिए अभी उसे डिस्टर्ब करने का रिस्क नहीं लिया जा सकता था । जलीस ने महसूस किया कि बंधे होने के बावजूद उसके हाथ सामान्य होते जा रहे थे । रस्सी मजबूत थी । मगर इमरान द्वारा बेमन और लापरवाही से बाँधे गए बंधनों में कोई मजबूती नहीं थी । कलाइयों पर जोर डालकर उनसे मुक्त होना ज्यादा मुश्किल नहीं था ।

लेकिन जलीस के लिए सही वक्त तक इंतजार करना जरुरी था इसलिए वह चुपचाप पड़ा रहा ।

दर्द और मौजूदा स्थिति के तनाव से छुटकारा पाने के प्रयास में उसने सोचने की कोशिश की । ताकि इस तमाम सिलसिले की सही तस्वीर नजर आ सके ।

इसकी शुरुआत रनधीर की मौत से हुई थी । इसलिए सबसे पहला सवाल था–रनधीर की हत्या क्यों की गई ?

जिंदा रनधीर एक खतरा था । उसके पास ताकत थी, जिसके दम पर वह हर एक को अपने इशारों पर नचा सकता था–स्थानीय राजनीति में भी और अपराध जगत में भी । मिस्टर नायर तक ने भी यह स्वीकार किया था और उस रात क्लब में पाशा की मौजूदगी से भी यही साबित होता था । दूसरे कई और लोगों के इनवाल्व होने से भी इस बात की पुष्टि होती थी ।

लेकिन मिस्टर नायर ने एक खास बात कही थी–सिंडिकेट को रनधीर से कोई परेशानी नहीं थी । उसकी हत्या करने के मुकाबले में उसे मनाना ज्यादा आसान था ।

क्यों ?

इसके जवाब में जलीस को रनधीर के बारे में विनोद महाजन का नज़रिया याद आ गया जो कि कमोबेस सोनिया का नज़रिया भी था ।

रनधीर मेच्योर्ड नहीं था ।

असल में उसकी चाहत कोई ज्यादा बड़ी नहीं थी । बड़ा होने का उसका आइडिया वास्तव में इतना छोटा था कि सिंडिकेट को उसे मनमानी करने देने में कोई एतराज नहीं था...लेकिन जो 'चीज' उसके पास थी वो बहुत ज्यादा बड़ी थी इसलिए वे बेहिचक उसके इशारों पर नाचते थे ।

नहीं, सिंडिकेट उसे जिंदा रखना चाहता था । उसकी मौत से कोई फायदा उन्हें नहीं होना था ।

तो क्या उसका हत्यारा जैकी था ?

लेकिन इससे भी बड़ा सवाल था–क्या जैकी हत्या कर सकता था । और जवाब था–नहीं ।

इतना बड़ा काम करने लायक हौसला न तो उसमें था और न ही वह जुटा सकता था । उसके हाव भाव से उसका यह इरादा जरुर जाहिर हो जाना था और रनधीर ने उसकी नीयत को भांपकर यकीनन पहले ही उसे खत्म कर देना था । या फिर अगर सिंडिकेट को पता लग जाता कि जैकी रनधीर को ठिकाने लगाने के फेर में था तो उन्होंने ही जैकी को खत्म कर देना था । क्योंकि उस 'पावर पैकेज' के साथ रनधीर के मुकाबले में जैकी ने उनके लिए कहीं ज्यादा खतरनाक साबित होना था ।

रनधीर की हत्या के बाद इस सिलसिले की दूसरी कड़ी थी–माला सक्सेना की हत्या । जिसे भुला दिया गया था ।

जलीस को याद आया एक और भी बात थी जिसे वह लगभग भूल गया था । और वो थी–जिसने माला की हत्या की थी उसी ने रनधीर की हत्या की थी और उसी ने उसकी जान लेने की कोशिश भी की थी ।

इसी से जुड़ी अहम बात थी–इन तीनों वारदातों में इस्तेमाल किए गए हथियार ।

न तो कोई भारी कैलीबर की हैडगन प्रयोग की गई थी और न ही इतनी ज्यादा गोलियाँ चलाई गई थीं कि यकीनी तौर पर फौरन मृत्यु हो जाती । जैसा कि अमोलक अरमान अली और पीटर के साथ हुआ था ।

दूसरा सीधा सा अर्थ था कि रनधीर और माला का हत्यारा और उस पर कातिलाना हमला करने वाला कोई तजुर्बेकार और पेशेवर बदमाश नहीं था ।

रनधीर की हत्या बाइस कैलाबर की गोली से की गई थी, माला की बोतल से और उस पर भी सोडे की बोतल से हमला किया गया था ।

बाइस कैलीबर यानि पाइप गन या जिप गन और एक बोतल ।

मोटे तौर पर यह किसी बदमाश छोकरे द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली तरकीब थी । लेकिन इस बचकाना ट्रिक ने हत्याओं का एक ऐसा सिलसिला शुरु कर दिया था जो अभी तक खत्म नहीं हुआ था ।

शुरुआत इसी ढंग से हुई थी । किसी बदमाश छोकरे ने सोचा कि रनधीर जैसा आदमी अपने पास और घर में मोटी नगदी ज़रूर रखता होगा । उसने 'फ्रेंड्स विला' की निगरानी करके वहाँ के रुटीन का पता लगा लिया । वह जान गया कि रात में सिर्फ रनधीर अकेला ही वहाँ रहता था । उस रात वह जानता था कि रनधीर और दीना ही वहाँ थे । उसने इंतजार किया और दीना के बाहर चले जाने के बाद विला के प्रवेश द्वार पर लगी डोरबैल बजाई । रनधीर ने यह सोचते हुए कि दीना वापस आ गया था प्रवेश द्वार खोल दिया । छोकरा लिफ्ट द्वारा ऊपर पहुंचा और दस्तक दी । रनधीर ने दरवाज़ा खोला तो छोकरे को सामने खड़ा पाया ।

किसी को गोली मारने का शायद उस छोकरे का वो पहला मौका था । उसने जिप गन से गोली चला दी । गोली रनधीर की गरदन में लगी...शायद रनधीर लड़खड़ाया और नीचे जा गिरा । लेकिन वह मरा नहीं । छोकरे ने यह देखा और बुरी तरह डर गया । दोबारा जिप गन में गोली डालकर चलाना तो दूर रहा वह इतना ज्यादा आतंकित था कि नगदी लूटना भी भूल गया और रनधीर को वहीं पड़ा छोड़कर वापस लिफ्ट में सवार होकर नीचे चला गया ।

उत्तेजना सी अनुभव करते जलीस ने उसके बाद के रनधीर और उस छोकरे के एक्शन्स को एक साथ सोचने की कोशिश की तो तस्वीर साफ नजर आने लगी ।

प्रत्यक्षतः, वह छोकरा उसी इलाके के किसी छोकरों के गैंग का मेम्बर था । रनधीर उसे पहचानता था और जानता था कि कहाँ वापस जाएगा । उसे रास्ते में ही पकड़ने के लिए रनधीर भी बाहर भागा और फायर एस्केप द्वारा पिछली गली में पहुँच गया । उसी गली में जिसमें कि अमोलक की हत्या कर दी जाने के बाद फरमान अली का पीछा करता हुआ उस रात जलीस पहुंचा था । रनधीर उस गली से गुजरकर उधर ही सड़क पर आते छोकरे को पकड़ना चाहता था । इस पूरे दौर में वह गरदन में बने सुराख को हाथ से दबाए रहा था ।

लेकिन उस गली से बाहर वह नहीं जा सका । संभवतया इन्टरनल हेमरेज ने उसकी जान ले ली और वह वहीं ढ़ेर हो गया ।

सडक पर रात में उस वक्त कोई चहल पहल नहीं थी । बस देर से घर लौटने वाले इक्का–दुक्का लोग ही वहाँ से गुजर रहे थे । उन्हीं में से एक माला सक्सेना थी । नशे की झोंक में चली जा रही माला की निगाह उस पर पड़ गई । इसका मतलब था, रनधीर गली के दहाने के एकदम पास पड़ा था इसीलिए उसे सड़क से आसानी से देख लिया गया । माला ने उसे देखा, पहचाना और उस पर थूक कर ख़ुशी ख़ुशी आगे बढ़ गई । वह जानती थी कि अब एक जबरदस्त हंगामा शुरु हो जाएगा ।

फिर प्रीतम वहाँ पहुंचा और रनधीर की घड़ी, पर्स वगैरा लेकर चम्पत हो गया ।

लेकिन इन दोनों की वजह से तस्वीर बदल चुकी थी ।

तभी कई प्रश्न एक साथ हथौड़े की तरह जलीस के दिमाग से टकराए ।

इस पूरे दौर में हत्यारा कहाँ था ? वह भागा क्यों नहीं ? क्या वह माला द्वारा उस इलाके में देख लिया गया था या हत्यारे ने सोचा कि उसे देख लिया गया था ?

उसे माला की हत्या नहीं करनी चाहिए थी । माला ने कभी भी उसके खिलाफ नहीं बोलना था । फिर भी माला की हत्या कर दी गई । इसका मतलब था, माला अचानक उसके लिए बड़ा भारी खतरा बन गई थी ।

क्यों ?

इसके जवाब में सर खपाने की बजाय उसने एक नई संभावना पर गौर किया हो सकता है, गली के दहाने में पड़ी लाश हत्यारे के घर या अन्य किसी ठिकाने के भी इतनी ज्यादा नज़दीक थी कि उसके साथ उसका रिश्ता जोड़ा जा सकता था । इसलिए हत्यारे ने लाश को वहाँ पड़ी रहने देने की बजाय उसे वहाँ से हटा देना में ही कुशलता समझी ।

हालांकि कद बुत के लिहाज से रनधीर का भार कम नहीं था लेकिन आतंक और किसी भी कीमत पर खुद को बचाने की स्थिति में कमजोर और बूढ़े व्यक्ति भी असाधारण कार्य कर गुजरते हैं, हत्यारा भी उस वक्त ऐसे ही दौर से गुजर रहा था । वह रनधीर की लाश उठाकर पिछली गली से फायर एस्केप के रास्ते वापस अपार्टमेंट में ले आया और ड्राइंगरूम में फेंककर चला गया ।

इस पूरी वारदात से ताल्लुक रखती एक डिटेल ने पुलिस को भी बेवकूफ़ बना दिया था । गोली लगने के बाद रनधीर की गरदन से काफी खून बहा था । अपने साथ हुई इस सर्वथा अनपेक्षित वारदात ने रनधीर को बेहद बौखला दिया होगा । बौखलाहट के उसी आलम में इधर–उधर जाने–आने की वजह से कमरे में जगह–जगह खून फैल गया था । उस हालत में कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि गोली लगने के बाद रनधीर बाहर गया था । और फिर उसकी लाश को उठाकर वापस उसी स्थान पर लौटा दिया गया था ।

एक 'जिप गन' । एक छोकरे की बचकाना ट्रिक । एक सीधा लेकिन नासमझी भरा हत्या का मामला और पूरे शहर में भयंकर खून खराबे का माहौल बन गया ।

बाहर से आती बोतल टूटने और गालियाँ बकने की आवाज़ों से जलीस को समझते देर नहीं लगी कि दारुवाला नशे में था ।

अपनी उस स्थिति में जलीस दरवाजे से, बाहर मौजूद दारुवाला को देख नहीं सकता था ।

दारुवाला रुका, पुनः गाली बकी और अंधेरे बैडरूम में आ गया । जलीस को लगा उसका अंतिम समय आ पहुंचा था ।

"साले दो टके के गुंडे और घटिया प्रिंसेज पैलेस क्लब ।" भन्नाए से दारुवाला ने कहा, अपने गिलास से एक घूँट लिया और बाहर निकलकर दरवाज़ा भड़ाक से बंद कर दिया ।

कितनी अजीब थी । जलीस ने सोचा । बरसों पहले का सिर्फ एक मामूली बेसमेंट क्लब लेकिन उसका प्रभाव कभी खत्म नहीं हुआ । लोग उसे कभी अपने दिमागों से नहीं निकाल पाए । प्रिंसेज पैलेस क्लब किसी का चाहे किसी भी रूप में संबंध रहा मगर क्लब जिंदगी भर के लिए उन पर हावी होकर रह गया था । इसकी वजह पुरानी यादें, जज्बात, बेफिक्री भरा जैसा माहौल था, उनके लिए जो बतौर मेम्बर उससे जुड़े थे या मेम्बरों के दोस्त थे । या फिर उसी इलाके में रहने की वजह से खुद को उससे अलग नहीं रख पाए थे । जबकि दारुवाला जैसे लोगों के लिए वो क्लब एक बेहद तल्ख तर्जुबा था । जिसने उन्हें जिंदगी भर रिसते रहने वाले जख्म दिए थे ।

जलीस को याद आया । उसने सोनिया से कहा था कि यह सारा मामला क्लब से ही जुड़ा हुआ था ।

अचानक उसके दिमाग में बिजली की भांति एक विचार कौंधा और सारी असलियत उसकी समझ में आ गई ।

सब कुछ उसके सामने था । सारे सिलसिले की कड़ियाँ इधर उधर बिखरी हुई थीं । कुछ उसके अपने पास थीं, कुछ सोनिया, विनोद महाजन, जयपाल यादव, दारुवाला और मिस्टर नायर के पास थीं । उन सबको सही जगह फिट करके वह पूरी चेन बनाने में कामयाब हो गया था ।

इस पूरे किस्से को अंजाम तक पहुंचाने का सही वक्त आ गया था ।

बिस्तर पर पड़े इमरान की साँसें भारी थीं और नाक धीरे–धीरे बज रही थी । वह गहरी नींद में था ।

चुपचाप पड़े जलीस ने अपनी कलाइयों के बंधनों पर जोर लगाना शुरु कर दिया ।

कई बार कोशिश करने के बाद आखिरकार वह अपने एक हाथ को मुक्त करने में सफल हो ही गया । हालांकि इस प्रयास में उसके हाथ के पृष्ठ भाग की चमड़ी छिल गई थी । लेकिन इसकी कोई परवाह उसे नहीं थी । उसने दूसरे हाथ पर लिपटी रस्सी खोल डाली । फिर बैठकर अपने पैर भी आजाद कर लिए ।

कुछ देर उसी तरह बैठा वह पहले अपने हाथों और फिर पैरों को मसलता रहा ।

बंधनमुक्त होने के अहसास ने उसके शरीर में नवीन उत्साह एवं शक्ति का संचार कर दिया । दर्द और दुखन के बावजूद वह स्वयं को सामान्य अनुभव करने लगा ।

वह धीरे धीरे उठा । करवट के बल सोए पडे इमरान की कनपटी पर बंद मुट्ठी का जोरदार प्रहार कर दिया ।

इमरान की नींद बेहोशी में बदल गई ।

उसी का रुमाल निकालकर उसके मुँह में ठूँसा । दोनों जुराबें उतारकर एक साथ बाँधी और उन्हें पट्टी की तरह कसकर उसके मुँह पर बाँध दिया । फिर रस्सी के एक ही टुकड़े के एक सिरे से उसकी कलाईयाँ और दूसरे सिरे से टखने आपस में मजबूती से बाँध दिए ।

तभी बाहर पहले टेलीफोन की घंटी की आवाज़ सुनाई दी फिर दारुवाला का स्वर सुनाई दिया–"हाँ...हाँ...मैं समझ गया ।" फिर नंबर डायल करने की आवाज़ के बाद पुनः स्वर कानों में पड़ने लगा–"मलखान सिंह ? ...तुम्हारे पास कितने आदमी है ?...हाँ, आठ काफी है । मिस्टर नायर ने तुम्हें फोन किया था ? ...ओह, तो तुम जानते हो कि इस मुहिम पर तुमने मेरे आदेशों का पालन करना है...नहीं, वहीं ठहरो । मैं खुद भी तुम्हारे साथ रहूँगा । इसलिए मेरे बिना मूव मत करना । उस इमारत के पास ही ठहरो मेरे वहाँ पहुँचते ही भीतर दाखिल हो जाना । सुलेमान पाशा को खत्म कर देना लेकिन लड़की को जिंदा ही पकड़ना है । हम सब कुछ उस इमारत के अंदर ही करेंगे ताकि बाहर कोई कुछ न सुन सके…नहीं, मेरे पहुंचने का पता तुम्हें लग जाएगा । मैं रेस्टोरेंट का लाल सफेद ट्रक लेकर आऊंगा । ट्रक को देखते ही इमारत की ओर बढ़ना शुरु कर देना । तुमने बस मेरे पहुंचने का इंतजार करना है, समझ गए...।"

उसने रिसीवर यथास्थान रखकर कहकहा लगाया । फिर गिलास जोर से रखा जाने की आवाज़ सुनाई दी और फिर उसके कदमों की आहट दरवाजे की ओर आने लगी ।

जलीस फौरन दरवाजे की आड़ में छुप गया । उसकी रिवॉल्वर अभी भी दारुवाला के पास थी ।

दरवाज़ा भड़ाक से खुला ।

दारुवाला ने अंदर आते ही बिस्तर की ओर मुंह कर लिया । विस्की का उस पर खासा असर था और रोशनी से एकदम अंधेरे में आ जाने की वजह से वह साफ नहीं देख पा रहा था । इसलिए वह समझ बैठा था कि बिस्तर पर जलीस पड़ा था और इमरान अलग कुर्सी में, जो कि उस स्थिति में उसके पीछे थी, पसरा सो रहा था ।

"तुम्हारा आखिरी वक्त आ पहुँचा, जलीस ।" वह चटखारा सा लेकर बोला–"जानते हो, मैंने तुम्हें अब तक जिंदा क्यों रखा ? इसलिए कि मैं तुम्हें बताना चाहता था, सोनिया का क्या अंजाम होगा । जानते हो पाशा उसे कहाँ ले गया है ? पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब की इमारत में । क्योंकि सोनिया जानती है, उस इमारत में ही कहीं रनधीर का वो 'पावर पैकेज' मौजूद है । और पाशा उसके जरिए उस पैकेज को हासिल करने वाला है । लेकिन उसे इस्तेमाल करने के लिए वह जिंदा नहीं रहेगा और न ही सोनिया जिंदा रहेगी । सोनिया को आसान मौत नहीं मिलेगी । उसे पहले मुझे बेवकूफ़ बनाने की कीमत भी चुकानी पड़ेगी–अपने जिस्म से ।"

दारुवाला के हाथ में जलीस की रिवॉल्वर थी ।

जलीस कुछ भी करने से पहले उसे बताना चाहता था कि सोनिया कुछ नहीं जानती थी । वह पाशा को सिर्फ इसलिए वहाँ ले गई थी क्योंकि पाशा पहले ही उससे कुछ कबूलवा चुका था । सोनिया को उसकी आखिरी बात, कि यह सारा सिलसिला प्रिंसेज क्लब से जुड़ा था, याद थी और मजबूरन उसने वही दोहरा दी थी ।

लेकिन कुछ भी कहने की बजाय जलीस ने भूत की भांति नि:शब्द आड़ से निकलकर अपने खुले हाथ का भरपूर प्रहार उसकी दाँयी कलाई पर कर दिया ।

दारुवाला के हाथ से रिवॉल्वर छूट गई । तभी जलीस ने एक वजनी घूँसा उसकी कनपटी पर जड़ दिया ।

दारुवाला त्यौराकर नीचे गिरा और होश गवाँ बैठा ।

रस्सी के दूसरे टुकड़े से जलीस ने इमरान की तरह उसे भी बाँध दिया । अपनी रिवॉल्वर उठाकर होल्सटर में रखी और बाहर आ गया ।

तभी कॉरीडोर में एक जोड़ी कदमों की आहट सुना दी ।

जलीस समझ गया, टोनी वापस आ गया था और उसके स्वागत के लिए तैयार हो गया ।

दरवाज़ा खोलकर अंदर आते ही अपनी ओर रिवॉल्वर तनी पाकर टोनी ठिठक गया । फिर लापरवाही से बोला–"मैने मिस्टर नायर से पहले ही कहा था कि तुम्हें खत्म कर देना चाहिए ।"

"अपनी पिस्तौल निकालकर, नीचे डाल दो, टोनी ।" जलीस ने आदेश दिया–"खबरदार । कोई चालाकी मत करना ।"

टोनी ने चुपचाप पिस्तौल निकालकर फर्श पर गिराई और पैर की ठोकर से जलीस की ओर खिसका दी ।

"उन दोनों को खत्म कर दिया ?" उसने पूछा और जलीस को जवाब न देता पाकर बोला–"ठीक है, मैं समझ गया । मुझे भी शूट कर दो ।"

"वे दोनों अंदर है ।"

टोनी मुस्कराया ।

"यानी वे दोनों जिंदा हैं ।" वह बोला–"शुक्रिया, दोस्त ।" और पलटकर दीवार की ओर मुंह कर लिया–"ओ. के., कम ऑन । आयम आल सो रेडी ।"

जलीस ने आगे बढ़कर रिवॉल्वर के दस्ते के नपे तुले प्रहार से टोनी को बेहोश करके उसी की बैल्ट और जुराबों की सहायता से उसके भी हाथ–पैर बांध दिए ।

 

* * * * * *

 

रेस्टोरेंट की इमारत के पिछवाड़े जलीस को लाल–सफेद ट्रक खड़ा मिल गया । चाबियाँ भी उसी में मौजूद थीं ।

जलीस इंजिन स्टार्ट करके उसे मेन रोड पर ले आया और पुराने प्रिंसेज क्लब की ओर दौड़ाने लगा ।

रात में उस वक्त सड़कों पर यातायात नाममात्र को ही था ।

मुश्किल से पंद्रह मिनट बाद वह गोविंदपुरी के इलाके में दाखिल हुआ ।

उस सड़क का नाम बेला रोड था । जिसके लगभग बीच में क्लब की इमारत थी । उसने ट्रक की स्पीड कम कर दी । ताकि दारुवाला के वे आठ आदमी, जिन्हें उसने फोन किया था, ट्रक को देखकर पहचान सकें । हालांकि इमारतों के साए में छिपे उन आदमियों को वह नहीं देख सकता था लेकिन वह जानता था कि वे आस–पास ही थे और ट्रक के पहुँचने का इंतजार कर रहे थे ।

क्लब की इमारत के सामने से गुजरते जलीस ने उधर निगाह डाली । किसी भी खिड़की में उसे न तो कहीं रोशनी नजर आई और न ही अन्य कोई ऐसा चिंह जिससे पता लगे कि अंदर क्या हो रहा था ।

उस ब्लॉक के आखिर में अपेक्षाकृत अंधेरे स्थान पर पहुंचकर उसने ट्रक पार्क करके इंजिन बंद कर दिया ।

उसे इंतजार नहीं करना पड़ा ।

सडक पार एक इमारत के साए से निकलकर एक मानवाकृति उसे उधर ही आती दिखाई दी ।

उसने अपनी रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।

आगंतुक ड्राइविंग सीट वाला दरवाज़ा खोलकर बोला–"पाशा के दोनों गनमैन अभी अंदर गए है । आप...।"

अचानक जलीस को पहचानकर वह झटका सा खाकर खामोश हो गया ।

जलीस ने फौरन रिवॉल्वर के दस्ते से उसकी खोपड़ी पर प्रहार करके उसे ऊपर खींच लिया । गनीमत थी कि वह आदमी भारी नहीं था और इस तरह उसे खींचने में ज्यादा दिक्कत पेश नहीं आई ।

उसके बेहोश शरीर को सीट पर डालकर जलीस ने खिड़की लॉक कर दी ।

उसे कम–से–कम दो घंटे से पहले होश नहीं आना था । दारुवाला ने आठ आदमी कहे थे लेकिन उस एक के कम हो जाने से अब वे सात रह गए । उसके साथी सोचेंगे कि कारणवश उसे ट्रक में ही रोक लिया गया था और वे इमारत की ओर बढ़ना शुरू कर देंगे ।

जलीस दूसरी साइड वाले दरवाजे से नीचे उतरा और तेजी से क्लब की इमारत के पिछवाड़े की ओर चल दिया ।

 

* * * * * *

 

बेसमेंट के पिछले दरवाजे के पल्ले में चौखट के साथ कीलें ठोककर तरलोचन सिंह ने उसे सचमुच स्थायी रूप से बंद कर दिया ।

उधर से अंदर दाखिल होने की कोशिश करना मूर्खता थी । दरवाज़ा तोड़ने में वक्त भी काफी लगना था और शोर भी बहुत होना था । इसलिए उस लफड़े में जलीस नहीं पड़ा ।

अंदर दाखिल होने का एक रास्ता और भी था । क्लब के शुरुआती दिनों में इमारत के बूढ़े मालिक ने बेसमेंट जलीस और रनधीर को दो सौ रुपए माहवार किराए पर दिया था । लेकिन उन दिनों में जब भी वे वक्त पर किराया नहीं दे पाते थे तो बूढ़ा बेसमेंट के दोनों दरवाजे अंदर से बंद कर दिया करता था ताकि वे भीतर दाखिल न हो सकें । तब वे चोरी से उसी रास्ते को इस्तेमाल किया करते थे ।

वो रास्ता वास्तव में एक खिड़की थी जो बेसमेंट में ही उस कोठरीनुमा कमरे में खुलती थी जिसे कोयले, लकड़ी वगैरा के अलावा बेकार और फालतू की चीजें रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था । खिड़की ग्रिल विहीन थी और उसके पल्ले में लगे काँच के आयताकार टुकड़ो में से दो टुकड़े उन दिनों जलीस द्वारा ही तोड़े गए थे । अंदर हाथ डालकर कुंडी खोलने के लिए ।

बरसों गुजर जाने के बाद भी जलीस को वे टुकड़े उसी तरह गायब मिले । उसने अंदर हाथ डालकर कुंडी खोली और पल्ला पीछे धकेल दिया ।

खिड़की खुल गई ।

सावधानी पूर्वक उससे गुजरकर अंदर पहुंचने के बाद उसने खिड़की पुन: बंद कर दी ।

अंदर घुप्प अंधेरा था । लेकिन जलीस उस स्थान के चप्पे–चप्पे से परिचित था । अंधों की तरह टटोलता हुआ सा वह दरवाजे पर पहुँचा । धीरे से उसे खोलकर वह दूसरी कोठरी में आ गया ।

दरवाज़ा पुनः बंद करके दीवार पर टटोलकर उसने लाइट स्विच ऑन कर दिया । धूल और मक्खियों की गंदगी जमे बल्ब की धुँधली सी रोशनी वहाँ फैल गई ।

कबाड़खाने जैसी हालत वाली उस कोठरी में हर तरफ धूल की मोटी चादर फैली हुई थी ।

जलीस की निगाहें एक दीवार के साथ खड़े आदमकद रैक पर जम गई । लकड़ी के उस रैक के नीचे चारों सिरों पर लोहे के छोटे–छोटे पहिए लगे थे । रैक के बीच वाले खाने में लगे मोटे फट्टे में एक हैंडल लगा था जिसे पकड़कर रैक को दीवार से अलग करके इधर–उधर ले जाया जा सकता था ।

हैंडल के सिरों पर तो धूल की मोटी परत जमी थी लेकिन बीच के चार–पाँच इंच के हिस्से पर धूल नहीं के बराबर थी ।

जलीस ने हैंडल पकडकर रैक को दीवार से दूर कर दिया ।

रैक के पीछे ठीक बीचों–बीच दीवार में एक छोटी अलमारी थी । जो रैक के दीवार से सटी होने की हालत में बिल्कुल नजर नहीं आती थी । वो अलमारी वास्तव में पुराने प्रिंसेज क्लब का शस्त्रागार थी ।

जलीस ने अलमारी खोली ।

दो चाकू, तीन कृपाण, दो पाइप के टुकड़े, चार मोटरसाइकिल की चेनें, दो जिप गनें और तीन बाईस कैलीबर की गोलियों के डब्बे अभी भी अलमारी के फर्श पर लगे लकड़ी के उतने की आकार के फट्टे पर सजे रखे थे । वे सब किशोर उम्र की यादगार चीजें थीं ।

लेकिन दोनों जिप गनों के पास तीसरी जिप गन रखी होने के स्पष्ट चिंह भी वहाँ मौजूद थे । किसी ने गोलियों का एक डब्बा भी खोला था । शायद यह जानने के लिए कि गोलियाँ गन में फिट आती थीं या नहीं और यह काम जल्दबाजी में किया गया लगता था ।

जलीस मुस्कराने पर विवश हो गया ।

पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब में हर एक के लिए कुछ था और वो 'कुछ' उन्हें हमेशा वहाँ वापस ले आता था ।

मसलन, अगर किसी व्यक्ति को गन की जरुरत पड़ती है तो वह सिगरेट के पैकेट की तरह बाजार से नहीं ले सकता था । उस हालत में तो यह काम और भी मुश्किल हो जाता है अगर जरूरत मंद व्यक्ति यह भी चाहे कि किसी को भी उस गन के बारे में पता नहीं चले । ऐसी हालत में उसके लिए एक ही सुरक्षित ठिकाना था–पुराने प्रिंसेज पैलेस क्लब का अस्त्रागार ।

किसी को यह बात अच्छी तरह याद थी ।

लेकिन अलमारी में एक गुप्त स्थान ऐसा भी था जिसे सिर्फ जलीस और रनधीर मलिक ही जानते थे । जहाँ वे अपनी सबसे कीमती चीजें रखा करते थे । जिनमें उनमें दिनों सबसे महत्वपूर्ण चीज थी–जलीस की रिवॉल्वर ।

लकड़ी के फट्टे के नीचे अलमारी का फर्श सिर्फ ईटों को आपस में सीमेंट से जोड़कर बना था और उसके नीचे आयताकार गड्डे की शक्ल में खाली स्थान था ।

जलीस ने फट्टे का बायाँ सिरा ऊपर उठाकर उस तरफ की पहली ईंट, जो शेष ईंटों से अलग थी, उठाकर बाहर निकाली और खाली स्थान में हाथ घुसेड़ दिया ।

उंगलियों पर चिकनी सी चीज का स्पर्श अनुभव करके उसने वो चीज बाहर निकाल ली ।

वो पॉलीथीन का एक मजबूत लिफाफा था ।

जलीस ने लिफाफा खोलकर अंदर मौजूद चींजे बाहर निकाली । लैटर्स, फोटो, डाक्युमेंट्स की फोटो कापियाँ और ओरिजिनल डाक्युमेंट्स ।

चीजें ज्यादा नहीं थीं लेकिन काफी थीं ।

रनधीर उनके दम पर अपनी हुक़ूमत आसानी से चला सकता था ।

वो पावर पैकेज था ।

सारे फसाद की जड़ ।

जिसकी वजह से पूरे स्थानीय अंडरवर्ल्ड में भयंकर खून खराबे का माहौल पैदा हो गया था । यही वो 'खजाना' था जिसने सिंडिकेट तक की नींद हराम कर दी थी और जिसे पाने के लिए पेशेवर गिरोहबंद बदमाश ही नहीं बल्कि राजनीतिबाज, आला अफसर और बिजनेसमैन तक मरे जा रहे थे ।

जलीस ने तमाम चीजें लिफाफे में डाली । लिफाफा वापस उसी तरह रखकर ईंट को पूर्ववत, जमाया और फट्टा सही ढंग से रख दिया । फिलहाल वही उसके लिए सर्वाधिक सुरक्षित स्थान था ।

अलमारी बंद करके उसने रैक भी पहले की भांति दीवार से सटा दिया ।

जलीस पुराने क्लब के मेन हाल में आ गया ।

लम्बा–चौड़ा कमरा...जगह–जगह फैली कुसियाँ और खाली पेटियाँ और एक खास जगह पर रखा बड़ा सा पुराना रेडियो । उन दिनों टी.वी. का आम प्रचलन नहीं था और बढ़िया रेडियो स्टेटस सिम्बल का दर्जा रखता था ।

कोने में टेलीफोन उपकरण रखा था । जो कि स्टेटस सिम्बल होने के साथ–साथ मौजूदा दौर में क्लब हाउस के लिए जरूरी जरुरत भी था ।

सहसा, ऊपर की मंज़िल पर कदमों की हल्की आहट के अलावा घुटी सी चीख भी सुनाई दी ।

स्पष्ट था कि सोनिया को टार्चर किया जा रहा था...उसे फौरन वहाँ पहुँचकर सोनिया को बचाना चाहिए । लेकिन जलीस जानता था कि इस वक्त जोश और जल्दबाजी से ज्यादा होश की जरुरत थी ।

यह आखिरी मौका था । अगर इस वक्त वह चूक गया तो बड़ी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती थी । उसका सब कुछ दांव पर लगा था । इससे भी बड़ी बात थी–शहर में अंडरवर्ल्ड और उससे जुड़े लोगों में बाकायदा खुलेआम जंग छिड़ जानी थी । जो वह किसी भी कीमत पर नहीं होने देना चाहता था ।

टेलीफोन उपकरण के पास आकर उसने रिसीवर उठाया 'डाइरेक्ट्री' इंक्वायरी का नंबर डायल करके आप्रेटर को जयपाल यादव का नाम–पता बताकर उसका फोन नंबर पूछा और उससे संबंध स्थापित किया ।

"जयपाल ?" वह धीमे स्वर में बोला ।

जवाब में यादव का स्वर लाइन पर उभरा ।

"हाँ ?"

"जलीस बोल रहा हूँ ।"

इस दफा यादव को नुक्ता–चीनी करता न पाकर जलीस समझ गया कि उसे गैस्ट हाउस में हुई अरमान अली और पीटर की हत्याओं और उस इमारत के पीछे गली में पड़ी सिंडिकेट के किलर की लाश के बारे में पता चल चुका था ।

"तुम्हारे लिए एक और स्कूप है, दोस्त ।" वह बोला–

"मैं कह चुका हूँ, मुझे तुम्हारी मेहरबानी नहीं चाहिए ।"

"वह मेहरबानी नहीं, बेहद धाँसू खबर की फर्स्ट हैंड जानकारी है ।

"बोलो ।"

"यह किस्सा खत्म हो गया । आर्गेनाइजेशन, सिंडिकेट वगैरा सबका सफाया होने वाला है ।" जलीस ने पूर्ववत धीमे स्वर में कहा–"मुश्किल से पाँच मिनट बाद एक गैगवार छिड़ने वाली है उसमें जो बचेंगे वे भी शहर से भागते नजर आएँगे । क्योंकि बाजी पूरी तरह मेरे हाथ में है । रनधीर का वो पावर पैकेज मुझे मिल गया है और मैंने उन सब सुअरों को पुराने वक़्तों की तरह खदेड़ना है ।"

"तुम हो कहाँ, जलीस ?"

"पुराने क्लब हाउस में । तुम अपना पैड और पेंसिल लेकर आ जाओ । यह तुम्हारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी कहानी होगी...वही कहानी जिसे लिखना तुम्हारी चाहत रही है...मेरे पुराने गैंग के बारे में ।

"जलीस...।"

"लेकिन पूरी अहतियात से आना । ऊपर सोनिया उन लोगों के कब्ज़े में है और पहले मुझे उसको छुड़ाना है । हो सकता है, तुम्हारी इकलौती ख़्वाहिश पूरी हो जाए । हो सकता है मैं सोनिया को छुड़ाने में कामयाब न हो पाऊं । इसलिए उसे संभालने के लिए किसी का यहाँ होना जरुरी है ।"

इससे पहले कि यादव कुछ कहता जलीस ने संबंध विच्छेद कर दिया । फिर कुछेक पल सोचने के बाद उसने 'डाइरेक्टरी इंक्वायरी' से फोन नंबर पूछकर इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह को भी ताजा स्थिति की पूरी सूचना दे दी ।

रिसीवर यथास्थान रखते जलीस को पुनः ऊपर चीख सुनाई दी । वह अपनी रिवॉल्वर निकालकर दबे पाँव सीढ़ियों की ओर दौड़ गया ।

पहली लैंडिंग पर अंधेरे में पहले से ही पड़े एक मानव शरीर में उलझकर वह गिरता–गिरता बचा ।

उसने नीचे झुककर टटोला तो उस शरीर के पास पड़ी टार्च हाथ आ गई । उसने टार्च जलाकर उस पर रोशनी डाली और फिर टार्च बुझा दी ।

वह तरलोचन सिंह था और बेहोश था । उसके सर से अभी भी खून रिस रहा था ।

जलीस के लिए एक–एक पल कीमती था लेकिन बूढ़े और वफादार तरलोचन सिंह को इस तरह पड़ा वह नहीं छोड़ सकता था । उसे बाँहों में उठाकर जलीस नीचे दौड़ा और उसकी चारपाई पर डाल दिया ।

पुनः सीढ़ियाँ चढ़ते जलीस को मौजूदा तस्वीर अब और ज्यादा साफ नजर आने लगी । सुलेमान पाशा ने सोनिया सहित यहाँ पहुँचकर तरलोचन सिंह के सर पर किसी कठोर चीज से प्रहार करके उसे बेहोश कर दिया था । फिर सोनिया के साथ उसने पूरी इमारत का चक्कर लगाया होगा । फिर जब सोनिया कोई करामद जानकारी नहीं दे सकी तो उसने अपने दोनों गनमैन को फोन करके बुला लिया । उसके गनमैन हालांकि सही हालत में नहीं होने थे फिर भी एक लड़की को टार्चर करके उसकी ज़ुबान खुलवाने के मामले में पाशा के मुकाबले में वे कहीं ज्यादा बेहतर थे । पाशा कठोर और निर्दयी तो था लेकिन वह सिर्फ हुक्म दे सकता था । किसी को टार्चर करने लायक हौसला उसमें नहीं था ।

अब स्थिति यह थी कि सात आदमियों का गैंग तीन आदमियों के गैंग को ढूँढ रहा था । कुल मिलाकर दस गनें, अगर पाशा के पास भी गन थी, उस अकेले के मुकाबले परे थीं और फिलहाल सोनिया की जान दाँव पर लगी थी ।

पहली मंज़िल पर पहुँचते ही जलीस ने पुनः चीख सुनी । फिर अन्य आवाजें भी सुनाई दी । वे टॉप फ्लोर पर थे । साथ ही वह समझ गया कि अब तक इमारत में दाखिल हो चुके वे सातों भी इस बात को समझ गए होंगे ।

लेकिन उन सातों के मुकाबले में उसका पलड़ा ज्यादा भारी था । क्योंकि इमारत के भूगोल की जानकारी उनसे ज्यादा उसे थी । वहाँ के इंच–इंच भाग से परिचित जलीस जानता था कि कौन सा मोड़ कितनी दूरी पर जाकर कहाँ खत्म होता था । यह भी जानता था कैसे खिड़की से गुजरकर पुराने फायर एस्केप के बचे खुचे ऊपरी हिस्से पर पहुँचा जा सकता था और अगर रिस्क लिया जाए तो उसके द्वारा ऊपर भी जाया जा सकता था ।

उसने फायर एस्केप वाला रास्ता ही चुना ।

बुरी तरह जंग खाए लोहे में अभी भी मज़बूती बाकी थी वरना वो ढाँचा बहुत पहले ही टूटकर नीचे गिर चुका होता ।

जलीस उस खिड़की तक पहुँचने में कामयाब हो गया जिसकी उसे तलाश थी । बरसों बाद भी । खिड़की आसानी से खुल गई । इससे जाहिर था कि तरलोचन सिंह मेहनती और कुशल केयर टेकर था ।

खिड़की से गुजरकर वह उस खंड के पृष्ठभाग वाले अंधेरे गलियारे में आ गया ।

पास ही एक अधयुला दरवाज़ा और उसकी बगल में खुली खिड़की थी । दोनों उसी बड़े हाल में खुलते थे जिसमें सुलेमान पाशा अपने गनमैन और सोनिया सहित मौजूद था । हाल में रोशनी थी लेकिन उस दरवाजे और खिड़की तक नहीं पहुंच पा रही थी ।

जलीस ने अहतियातन स्वयं को आड़ में रखते हुए खिड़की से अंदर देखा ।

कोई आठ–दस फुट दूर सोनिया फर्श पर पड़ी थी बाल बिखरे हुए और कपड़े अस्त–व्यस्त । लेकिन होश में थी उसके पास टाँगे चौड़ी किए शंकर, जिसकी बाँह में जलीस ने गोली मारी थी, अपनी पट्टियों में लिपटी बाँह को एक अन्य पट्टी की सहायता से गले में लटकाए खड़ा था । उसने अपनी सही हाथ पर चमड़े का दस्ताना चढ़ाया ताकि सोनिया को चोट पहुँचाते वक्त उसकी उंगलियों में चोट न आ सके । उससे थोड़े से फासले पर खड़ा एक अपरिचित उत्सुकता पूर्वक उन दोनों को देख रहा था । उन सबसे तनिक अलग पाशा सर झुकाए खड़ा था । खिड़की की तरफ उन तीनों की पीठ थी ।

जलीस ने अपना दायाँ हाथ धीरे–धीरे ऊपर उठाया ताकि रिवॉल्वर से शंकर के सर के पृष्ठ भाग को निशाना बना सके । उसके फौरन बाद वह पाशा और उस तीसरे को शूट कर देना चाहता था ।

शंकर द्वारा सोनिया को ठोकर ज़माने के लिए पैर उठाया जाता देखकर जलीस की उंगली ट्रीगर पर कसनी शुरू हो गई ।

तभी कोई चीखा और पाशा दूर हाल के सिरे पर बने दरवाजे की ओर पलट गया ।

"कौन था वह ?"

"लाइट बंद करो ।" शंकर चिल्लाया ।

पाशा ने लपककर स्विच ऑफ कर दिया ।

हाल में गहरा अंधेरा छा गया ।

उन्होंने दरवाज़ा अंदर से लॉक कर रखा था । उस पर बाहर से गोलियों की बौछार छोड़ी गई ।

पाशा चिल्लाकर दूर दूसरे सिरे की और दौड़ा । लेकिन बाकी दोनों की तरह वह पेशेवर नहीं था । उन दोनों ने दरवाजे की दिशा में एक–एक फायर करके भागकर फर्नीचर के पीछे आडलेली ।

मैदान साफ था । वे तीनों सोनिया को भूलकर इस नई विपत्ति की फिक्र कर रहे थे ।

मौका चूकना मूर्खता थी । जलीस ने रिवॉल्वर होल्सटर में रखा और अधखुले दरवाजे को खोलकर चौपायों की तरह अंदर रेंग गया ।

कुछेक सैकेंडों में ही वह फर्श पर पड़ी सोनिया के पास पहुँच गया ।

तभी बाहर से पुनः गोलियों की बौछार की गई । लॉक टूट गया । दरवाजे का पल्ला अंदर धकेला गया और कोई रोशनी के लिए चिल्लाया ।

"सोनिया" | जलीस फुसफूसाकर बोला–"मैं हूँ जलीस । मेरे साथ आओ ।"

उसकी आवाज़ पहचान गई सोनिया ने राहत की गहरी साँस ली और जलीस के साथ कोहनियों और घुटनों के बल रेंगने लगी ।

उसी दरवाजे से गुजरकर दोनों पिछले गलियारे में आ गए ।

हाल में लगातार गोलियाँ चल रही थीं और दीवारों, फर्नीचर वगैरा से टकरा रही थीं । किसी ने चीखना शुरू किया और चीखता ही चला गया ।

"तुम ठीक हो ?" जलीस ने पूछा ।

"हाँ ।" सोनिया ने जवाब दिया–"मेरे साथ ज्यादा मार पीट नहीं कर पाए ।"

"हमें फायर एस्केप से एक फ्लोर उतरकर इन लोगों से बचना होगा ।

"ठीक है ।"

जलीस ने पहले उसे खिड़की से गुजारकर फायर एस्केप पर पहुँचाया फिर खुद भी पहुँच गया ।

सावधानी पूर्वक सोनिया सहित सीढ़ियाँ उतरता जलीस मन ही मन दुआ कर रहा था कि उनके भार से फायर एस्केप टूटकर नीचे न जा गिरे ।

उसकी दुआ कबूल हुई और वे सकुशल निचले खंड पर पहुँच गए ।

ऊपर फ़ायरिंग तनिक रुकी फिर पुनः आरंभ हो गई ।

वे दोनों सीढ़ियों द्वारा पहले खंड पर पहुंचे ही थे कि ऊपर से सीढ़ियों पर नीचे भागते कदमों की आहटें सुनाई दी । जलीस सोनिया का हाथ थामें उस खंड के पृष्ठ भाग वाले गलियारे की ओर बढ़ गया । वहाँ एक और सीढ़ियाँ थीं जो सीधी बेसमेंट तक जाती थीं ।

टॉप फ्लोर से कोई चिल्लाया कि तीनों मारे गए और अचानक फायरिंग रुक गई । एक आवाज़ ने बताया कि शंकर मिल गया । दूसरी आवाज़ ने पाशा की लाश मिल जाने की घोषणा की फिर तीसरी लाश मिलने की भी घोषणा कर दी गई ।

सोनिया को वहाँ न पाकर वे दौड़कर पिछले गलियारे में पहुँचे और समझ गए कि वह कहाँ से खिसकी थी । लेकिन अभी भी यही समझ रहे थे कि वह अकेली ही थी । फिर किसी ने तीव्र स्वर में आदेश दिया और सीढ़ियों पर नीचे भागते कदमों की आहटें सुनाई देने लगीं ।

जलीस और सोनिया तब तक नीचे बेसमेंट में पुराने क्लब रुम में पहुँच चुके थे ।

तभी अचानक सड़क पर पुलिस साइरनों की आवाज़ गूँजी और प्रतिपल तेज होती चली गई ।

ऊपर सीढ़ियों से नीचे आती भागते कदमों की आहट एकदम रुक गईं । वे भी साइरनों की आवाजें सुन चुके थे और समझ गए कि पुलिस ने इमारत को घेर लिया था ।

जलीस और सोनिया, कोठरी से बाहर आ रही मरियल सी रोशनी में खड़े हाँफ रहे थे ।

पुलिस प्रवेश द्वार तोड़कर भीतर दाखिल हुई और फ़ायरिंग पुनः शुरु हो गई । ऊपर मौजूद सभी लोग पेशेवर बदमाश थे और वहीं पड़ी पाशा और उसके साथियों की लाशों की वजह से उन्होंने पुलिस का मुकाबला करते हुए भागने की नाकाम कोशिश करनी थी । क्योंकि आत्म समर्पण करके लम्बी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद कानून द्वारा फाँसी चढ़ाए जाने के मुकाबले में ऐसा करना कम यातनापूर्ण था ।

"जलीस..." सोनिया पीड़ित स्वर में बोली ।

जलीस उसका आशय समझ गया ।

"मैने किसी को शूट नहीं किया है ।"

सोनिया ने अपने हाथों में उसका चेहरा थामकर नीचे झुकाया और होंठों पर चुंबन अंकित कर दिया ।

जलीस ने नोट किया, उसके हाथों में कंपन था और होंठ सर्द थे ।

"मुझे बताओ, प्लीज...मैं कुछ नहीं समझ पा रही हूँ ।" वह बोली–"पाशा मेरे पास आया था और मुझसे वो कबूलवाया जो तुमने कहा था । उसने एक डायरी दिखाते हुए यह भी बताया था कि शहर में इस ढंग से फसाद कराएगा कि बाद में सारा इल्जाम तुम पर मढ़ा जा सके ।"

जलीस ने उसके कंधे सहलाए ।

"मैं जानता हूँ, उसने क्या किया था ।"

"वह समझ रहा था कि मैं सब जानती हैं ।"

"वह गलत समझ रहा था ।"

ऊपर से अब स्टेनगनें चलने और सीटियों की आवाजें आ रही थी । साथ ही जगतवीर सिंह अधिकारपूर्ण स्वर में सरेंडर की चेतावनी भी दे रहा था । बाहर से आते साइरनों के शोर से जाहिर था कि और पुलिस फोर्स आ पहुंची थी और पूरे ब्लॉक को घेर लिया गया था ।

"मैंने जयपाल को फोन कर दिया था ।" जलीस बोला–"वह भी यह सारा तमाशा देख रहा होगा । ऐसा नज़ारा उसने कभी नहीं देखा होगा ।"

"लेकिन...वह तुमसे नफरत करता है ।"

"वह हर एक से नफरत करता रहा है ।" जलीस ने कटुतापूर्वक कहा ।

"क्या मतलब ?"

"पहले तुम बताओ कि क्या रनधीर के साथ तुम्हारी एंगेजमेंट हो गई थी या होने वाली थी ?"

सोनिया ने उससे अलग हटकर खोजपूर्ण निगाहों से उसे देखा ।

"नहीं, जलीस । ऐसा कुछ नहीं था । रनधीर ने मुझसे कहा जरुर था लेकिन मैने इंकार कर दिया । तुम तो जानते हो, मैं क्या करने की कोशिश कर रही थी ।"

"उस बात की जानकारी उसे नहीं थी । तुम्हारे इंकार को भी उसने सीरियसली नहीं लिया । वह समझता था कि तुम उसे प्यार करती हो । वह एक बहुत बड़ी पार्टी में सरप्राइज के तौर पर सबके सामने यह घोषणा करने वाला था कि तुम दोनों शादी करने वाले हो ।"

"लेकिन मेरी मर्जी के बगैर वह ऐसा कैसे...।"

"वह दिमागी तौर पर मेध्योर नहीं था ।" जलीस उसकी बात काटकर बोला–"याद करो...उसका सोचने का ढंग अभी भी वैसा ही था जैसा कि पुराने 'प्रिंसेज पैलेस' के दिनों में हुआ करता था । तुम उसके काफी नज़दीक आ गई थीं इसी से वह समझ बैठा कि तुम सिर्फ उसकी ही हो ।"

"वह पागल था । मैंने कभी...।"

"क्या तुमने जयपाल को बताया था कि रनधीर ने तुम्हारे साथ शादी करने के लिए कहा था ?"

"हाँ, बताया था । लेकिन...।"

ऊपर अब फ़ायरिंग और तेज हो गई थी ।

अचानक बुरी तरह चौंक गई सोनिया घोर अविश्वासपूर्वक उसे देखने लगी । जलीस के प्रश्न का वास्तविक आशय वह समझ गई थी लेकिन उस पर यकीन नहीं कर पा रही थी ।

"तुम्हारा मतलब है, जयपाल ही...नहीं ।"

"यह असलियत है, सोनिया । तुम्हारा भाई ही सारे फसाद की जड़ है ।"

"मेरा भाई वह नहीं है । मेरी माँ उसकी माँ की मुँहबोली बहन थी । इस नाते मैं तो उसे भाई कहकर पुकारती हूँ । लेकिन उसने कभी मुझे बहन नहीं कहा । हमेशा मेरा नाम ही लिया करता है ।"

सोनिया की इस बात ने सारी तस्वीर पूरी तरह साफ कर दी ।

"वह तुम्हें इसलिए बहन नहीं कहता क्योंकि शुरु से ही तुम्हें प्यार करता है ।"

"ओह नो", सोनिया ने उसके सीने से चेहरा सटा लिया ।

"यह एक कड़वा सच है जिसे जयपाल कभी जाहिर नहीं कर पाया । वह हम सबसे नफरत करता रहा है । लेकिन उसकी इस नफरत की बुनियाद भी इसी सच पर रखी गई थी । क्योंकि बरसों पहले, लड़कपन में ही मैंने तुम्हें पा लिया था और वह इसे जान गया था । वह शुरु से ही तुम्हें अपने लिए चाहता था । इसलिए यह असलियत काँटे की तरह उसके मन में गड़कर रह गई । वक्त़ गुजरने के साथ–साथ इस काँटे की चुभन भी बढ़ती गई और नफरत के रुप में प्रगट होती रही । हर पल नफरत से सुलगता रहने की वजह से उसकी पूरी जिंदगी नफरत की भेंट चढ़कर रह गई । तुम्हारी तरह वह भी गोविंदपुरी के इस इलाके से दूर जा सकता था लेकिन वह यहीं बना रहा । सिर्फ इसलिए ताकि उन सब चीजों को अपनी नफरत की आग में जला सके जिन्होंने तुम्हें उससे दूर कर दिया था....जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो बरसों पहले यहाँ से चला गया था । मगर नफरत की आग में जलता जयपाल मानसिक रुप से असामान्य होना आरंभ हो चुका था । वह दूसरी चीजों को अपनी नफरत का निशाना बनाने लगा । वह सबको निशाना बना सकता था–मुझे और रनधीर को छोड़कर । क्योंकि मैं तो यहाँ था नहीं और रनधीर उसकी पहुँच से दूर एक ऊँचे मुकाम पर पहुँच चुका था । फिर जब तुम रनधीर के बहुत ज्यादा करीब आ गई तो उसके लिए यह बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो गया । और फिर जब तुमने बताया कि रनधीर तुमसे शादी करना चाहता था तो वह सचमुच वक्ती तौर पर पागल हो गया–पूरा पागल । उसके दिमाग में बस एक ही बात गड़कर रह गई–रनधीर को कैसे खत्म किया जा सकता था । उसके पास गन नहीं थी लेकिन हमारे पुराने क्लब से जुड़ा होने की वजह से वह जानता था उन दिनों हम अपने हथियार कहाँ रखा करते थे । वह उस जगह पहुँचा और अलमारी खोल कर एक जिप गन और कुछ गोलियाँ निकाल ली ।" उसने तनिक रुककर पूछा–"जिस रात रनधीर की हत्या हुई, उससे कितने रोज पहले रनधीर ने तुमसे शादी करने के बारे में कहा था ?"

"दो रोज पहले ।"

"और तुमने जयपाल को इस बारे में कब बताया था ?"

"अगले रोज ।"

"इसका मतलब है, जयपाल को रनधीर द्वारा दी जाने वाली पार्टी और उसमें की जाने वाली घोषणा के बारे में पता चल गया था ।"

"यह तुम कैसे कह सकते हो ?"

"इसलिए कि जब दारुवाला को इस बात की जानकारी थी तो जयपाल को भी जरुर कहीं से पता चल गया होगा । आखिरकार वह एक रिपोर्टर है । उसे यह भी जरुर पता होगा कि उस रात उस वक्त रनधीर 'फ्रेंडस विला' में अकेला था । इसलिए मौके का फायदा उठाकर वह वहाँ पहुँचा और रनधीर को जो कि उस वक्त दीना का इंतजार कर रहा था, शूट करके वहाँ से भाग खड़ा हुआ । लेकिन रनधीर गोली लगते ही नहीं मर गया था । वह जानता था, जयपाल भागकर कहाँ जाएगा । उसे पकड़ने के लिए फायर एस्केप के जरिए वह पिछली गली में जा पहुँचा और गली के सिरे पर पहुँचकर दम तोड़ दिया । तभी जयपाल भी सड़क पर गली के सामने से गुजरा । वह अपने परमानेंट और सुरक्षित ठिकाने 'फ्रांसिस के कैफे' की ओर भाग गया । लेकिन उसे पता चल चुका था कि रनधीर ने उसका पीछा किया था । धीरे धीरे यह विचार उसे आतंकित करने लगा कि कोई भी उस वारदात से उसका रिश्ता जोड़ सकता था । बेहद आतंकित जयपाल ने तब एक ऐसा काम किया जो सामान्य हालत में उसके लिए नामुमकिन था । रनधीर की लाश को उठाकर उसने फायर एस्केप के रास्ते से वापस अपार्टमेंट में पहुँचाया और वहाँ से गोल हो गया । नफरत से पागल हो गए जयपाल ने तो इस तरह रनधीर की हत्या करके अपने दिमागी जुनून से निजात पा ली । लेकिन उसकी इस हरकत ने एक और खौफनाक सिलसिले की शुरुआत कर दी । रनधीर मर गया तो मुझे यहाँ आना पड़ा । मगर उससे पहले ही, रनधीर के मरते ही उसकी हुक़ूमत खासतौर पर 'पॉवर पैकेज' पर कब्ज़ा करने के लिए बाक़ायदा खुलेआम जंग छिड़ने के हालात पैदा हो गए थे । वो ताक़तें भी मैदान में आ गई थीं जिनके अस्तित्व तक की जानकारी जयपाल को नहीं थी । अपने पागलपन में उसने एक बार भी नहीं सोचा कि वह क्या कर चुका था ।"

ऊपर फ़ायरिंग अभी भी जारी थी ।

"यह सही है कि पहली हत्या उसने पागलपन के दौर में ही की थी ।" जलीस ने कहा–"लेकिन दूसरी हत्या करते वक्त वह पूरे होशो–हवास में था ।"

"दूसरी हत्या ?" सोनिया चौंकी ।

"हाँ । माला सक्सेना की हत्या भी जयपाल ने ही की थी ।"

"नहीं ।"

"यह सच है, सोनिया और यह भी कि उस वक्त वह पूरे होश में था और जानता था कि क्या कर रहा था । जब मैंने उसे बताया कि माला ने रनधीर की लाश पर थूका था तो वह डर गया और यह जानने पर कि प्रीतम ने रनधीर की लाश से उसकी घड़ी और पर्स पार कर लिए थे उसके छक्के ही छूट गये । इसका उसने एक ही नतीजा निकाला कि उन दोनों ने उसे वहाँ से भागते या लाश को वापस ले जाते देख लिया था । उस वक्त उसे एक ही हथियार उपलब्ध था–बोतल । उसी से उसने माला की खोपड़ी कूट डाली और मुझ पर भी घातक हमला कर दिया । शुरु में इस ओर कोई ध्यान मैंने नहीं दिया । यह सीधी सीधी एक अनाड़ी द्वारा की गई हत्या की वारदात थी जबकि मैं दूसरे लोगों को इसका क्रेडिट देता रहा ।"

"लेकिन माला...।"

"उस वक्त जयपाल पर पागलपन सवार नहीं था, सोनिया । वह उन लोगों को रास्ते से हटा रहा था जिनके बारे में उसे डर था कि उनकी वजह से रनधीर की हत्या का आरोप उस पर लगाया जा सकता था । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ अगर प्रीतम की सर कटी या गला कटी लाश अभी तक नहीं मिली है तो जल्दी ही मिल जाएगी । जयपाल सारे दाँव पेच जानता है । अब वह खुद को सुरक्षित समझने की भूल कर रहा है ।"

सहसा, पिछली कोठरी से जयपाल का स्वर उभरा ।

"नहीं, जलीस । इतना बेवकूफ़ मैं नहीं हूँ ।"

उन दोनों को वह दिखाई तो नहीं दिया लेकिन स्वर से बहशीपन साफ झलक रहा था ।

उसका हाथ दरवाजे की आड़ से बाहर निकला जिसमें जिप गन थमी थी ।

जलीस समझ गया जयपाल ने पहले उसे खत्म करके सोनिया को भी खोपड़ी कूटकर आसानी से ठिकाने लगा देना था और फिर दोनों हत्याओं की सही सफाई भी उसने पेश कर देनी थी ।

जिप गन का रुख सीधा जलीस के सर की ओर था और फ़ासला इतना कम था कि निशाना चूकने की कोई गुंजाइश नहीं थी ।

ऊपर अचानक फ़ायरिंग रुक गई । सीढ़ियों पर कदमों की आहटें...और ऊंची आवाज़ों में लाशों की गिनती की जाती सुनाई दे रही थी ।

कुछेक पुलिसमैन सावधानी पूर्वक नीचे आ रहे थे । किसी को वो दरवाज़ा भी मिल गया था जिससे सीधा पुराने क्लब में पहुँचा जा सकता था ।

जयपाल जानता था कि पुलिस के पहुँचते ही उसका खेल खत्म हो जाना था और जलीस जानता था कि पुलिस पहुँचने का इंतजार करने का मतलब था–उसकी और सोनिया की मौत ।

प्रत्यक्षतः जयपाल पर एक बार फिर वही पागलपन सवार था ।

अचानक सोनिया ने जलीस की बाँह दबाई । भयभीत होने की बजाय उसे निश्चिंत पाकर जलीस चकराया फिर उसका इरादा भांप गया । वह खुद को उसके और जिप गन के बीच में लाकर उसे बचाना चाहती थी ।

जलीस ने फौरन उसे पीछे धकेल दिया ।

"तुम्हारा आखिरी वक्त आ गया, जलीस ।" जयपाल बोला । उसका स्वर तनावपूर्ण था–"तुम भी उन तीनों के पास पहुँचने वाले हो ।"

जलीस का हाथ अपनी बैल्ट पर पहुंच चुका था । अब वह जयपाल को सामने लाना चाहता था ।

"तीनों ? यानी रनधीर, माला और प्रीतम ?"

"हाँ ।"

"तुम पागल हो, जयपाल ।"

"हूँ नहीं, था । अब मैं खुद को बचा रहा हूँ ।"

"तुम अभी भी पागल हो ।"

"नहीं ।"

"तुम नहीं बचोगे । क्योंकि पागलपन में एक बहुत बड़ी बात को भूल रहे हो ।"

"कौन सी बात ?"

जलीस हँसा ।

"तुम्हारे हाथ में जो खिलौना है उससे इस तरह आड़ में रहकर निशाना नहीं लगाया जा सकता, पागल ।"

अगले ही पल किसी अनाड़ी की तरह चीखता हुआ वह बाहर आ गया उसी जिप गन को ताने जिससे उसने रनधीर की हत्या की थी । उसी से अब जलीस की जान लेना चाहता था । लेकिन असलियत को भांप गई सोनिया चीख पड़ी । जलीस ने रिवॉल्वर निकालकर जयपाल पर फायर झोंक दिया । गोली उसके माथे को फाडती हुई गुजर गई । उसका बेजान शरीर नीचे जा गिरा । लेकिन जिप गन अभी भी उसके हाथ में थी ।

सोनिया अपना चेहरा हाथों में छुपाए रो पड़ी । जयपाल के लिए नहीं । जलीस द्वारा रिवॉल्वर इस्तेमाल की जाने की वजह से उसके अंजाम को सोचकर ।

पुलिस की सीटियाँ गूँजी । सीढ़ियों पर सर्तकता पूर्वक नीचे आते कदमों की आहटें सुनाई देने लगी ।

"इंस्पैक्टर, जगतवीर सिंह ।" जलीस ने हाँक लगाई–"किस्सा खत्म हो गया । यहाँ सिर्फ मैं और सोनिया है ।"

सीढ़ियों पर धड़धड़ाहट हुई । कई आदमी तेजी से नीचे आ गए ।

इंस्पैक्टर जगतवीर सिंह के पीछे उसके कई मातहत भी थे । इंस्पैक्टर के चेहरे पर मुस्कराहट थी । उसके संकेत पर सभी मातहतों ने अपनी गनें नीचे कर ली ।

"वैलडन, माई फ्रेंड ।" जगतवीर सिंह बोला–"नाऊ कीप यूअर सर्विस रिवाल्वर बैक, इंस्पैक्टर जलीस खान ।"

जलीस ने रिवाल्वर वापस होल्सटर में रख ली ।

"खुश हो, इंस्पैक्टर ?" उसने मुस्कराते हुए पूछा ।

"मैं इतना ज्यादा खुश हैं कि अपने चेहरे का हुलिया बिगड़वाने का भी कोई अफसोस मुझे नहीं है ।" जगतवीर सिंह हँसा–"तुमने वाकई कमाल कर दिखाया । एक ऐसा कमाल जिसे सिर्फ तुम ही कर सकते थे, इंस्पैक्टर जलीस खान ।"

उसके मातहत है रानी से मुँह बाए खड़े थे ।

सोनिया घोर अविश्वासपूर्वक अपलक जलीस को देखे जा रही थी ।

"य...यह...सच है ?" वह फँसी सी आवाज़ में बोली ।

"सौ फीसदी सच है, मैडम ।" जगतवीर सिंह ने कहा–"दूसरा सच यह है कि फिलहाल इस शहर में अंडरवर्ल्ड और सिंडिकेट तक की कमर टूट गई है ।"

"एक सच और भी है, सोनिया ।" जलीस बोला ।

"क्या ?"

"अब हम दोनों को कोई जुदा नहीं कर सकता ।" जलीस ने मुस्कराते हुए कहा और उसे खींचकर सीने से लगा लिया ।

सोनिया एतराज करने की बजाय उसकी बाँहों में सिमट गई ।

 

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समाप्त