सोहनलाल की हालत ठीक-ठीक ही थी।
दो दिन बंधे रहने की वजह से शरीर दुःख रहा था। चेहरे और जिस्म पर कुछ चोटें अभी भी ताजी थीं। जो कि ठीक हो रही थीं। वो सीधा देवराज चौहान के बंगले पर, नगीना के पास पहुंचा था और नानिया को अपने ठीक होने की ख़बर दे दी थी। नगीना से उसे देवराज चौहान और जगमोहन के सारे हालातों का पता चला तो गम्भीर हो गया। कठपुतली के बारे में सुनकर वो हैरान हुआ था कि क्या ऐसा भी नशा बनाया जा सकता है, परन्तु सब कुछ सामने था। वो बांके और रुस्तम के बारे में भी जान गया था कि वो मोना चौधरी पर नजर रखे हुए हैं। ऐसे में नगीना को उस फ्लैट का भी पता चल गया था जहां राधा, मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ ने अपना ठिकाना बनाया हुआ था।
सोहनलाल बंगले पर पहुंचकर, बातें करके, कुछ खाकर सो गया था। दो घण्टे की नींद लेकर जब उठा तो खुद को बेहतर महसूस कर रहा था और दिमाग में सब बातें घूम रही थीं।
नगीना कॉफी बना लाई थी।
सोहनलाल ने कॉफी का घंट भरा और नगीना से कहा---
“भाभी, हालात बुरे हो चुके हैं। एक तरफ देवेन साठी है तो दूसरी तरफ मोना चौधरी। कठपुतली के बारे में तुमने जो बताया है उस पर भरोसा नहीं करने वाले। विलास डोगरा अपना खेल, खेल चुका है।”
“विलास डोगरा से तो निपट ही लिया जायेगा।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा--- “पर सबसे पहले मैं ये चाहती हूं कि मिन्नो और देवेन साठी को सम्भाला जाये। मिन्नो तो कठपुतली के बारे में मानने को तैयार नहीं कि...।"
"वो क्या, कोई भी नहीं मानेगा।” सोहनलाल ने चिन्ता भरे स्वर में कहा--- "देवेन साठी को तो बिल्कुल भी समझाया नहीं जा सकता, क्योंकि देवराज चौहान ने उसके भाई को मारा है। देवेन साठी तो...।"
“अब इन हालातों से कैसे निकला जाये?"
“सोचना पड़ेगा भाभी! मामला गम्भीर हो चुका है।” सोहनलाल ने कहा ।
नगीना के चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे।
“मेरे ख्याल में इस बारे में देवराज चौहान से बात करनी चाहिये।" सोहनलाल ने कहा।
"देवराज चौहान भी ये ही सब कुछ सोच रहा होगा। अगर करने को कुछ होता तो वो बता देते।” नगीना ने कहा।
"उस जगह पर वो कब तक बैठे रहेंगे ?"
"वहां से बाहर निकलकर करेंगे भी क्या ?” नगीना बोली--- “देवेन साठी के सैंकड़ों आदमी मुम्बई में उन्हें ढूंढते फिर रहे हैं। काफी बड़ी रकम का इनाम भी लगा दिया है। ऐसे में बाहर निकलने पर खामखाह का टकराव ही होगा। किसी की भी जान जा सकती है। तब बात काफी ज्यादा बढ़ जायेगी, जबकि अभी तो सम्भालने के काफी मौके हैं।"
"क्या मौके हैं?" सोहनलाल ने नगीना को देखा।
“मोना चौधरी, महाजन, पारसनाथ को देर-सवेर में कठपुतली के बारे में समझाया जा सकता...।"
इसी पल नगीना का मोबाइल बज उठा।
“हैलो।” नगीना ने बात की। दूसरी तरफ देवराज चौहान था।
"मैंने कुछ सोचा है। ये काम तुम्हें ही पूरा करना होगा। कोई और नहीं है, जो काम सम्भाल सके।"
“आप कहिये काम क्या है?" नगीना बोली।
देवराज चौहान ने अपनी योजना बताई।
सब कुछ सुनने के बाद नगीना गम्भीर स्वर में कह उठी---
“देवेन साठी के बारे में तो ठीक है पर क्या पारसनाथ और महाजन पर हाथ डालना ठीक होगा। मिन्नो और भी गुस्से में...।"
"इसके अलावा मेरे सामने कोई और रास्ता नहीं है। इन लोगों के कदम मेरी तरफ ना बढ़ें, इसके लिए ये ही करना पड़ेगा। जब हालात हमारे काबू में आ जायेंगे तो इन्हें यकीन दिलाने की कोशिश की...।"
“मिन्नो, पारसनाथ और महाजन को मैंने कठपुतली के बारे में बताया था, परन्तु उन्होंने मेरी बात की परवाह नहीं की।"
“कठपुतली वाली बात पर कोई भी यकीन नहीं करेगा।" उधर से देवराज चौहान ने कहा।
नगीना खामोश रही। सोचती रही।
"तुम्हें जो कहा है, वो ही करो। सरबत सिंह का नम्बर तुम्हें बता दिया है उसे फोन कर लेना।"
“इस तरह कहीं मामला और ना बिगड़ जाये ।” नगीना ने शंका जाहिर की।
“इसके अलावा हम कुछ कर भी नहीं सकते। तुम इस काम की तैयारी शुरू कर दो। मेरे ख्याल में देवेन साठी के आदमी पाटिल से काम की शुरुआत करना। पहले उससे जानो कि देवेन साठी का परिवार कहां है, फिर परिवार को अपने कब्जे में लो। सब तैयारी पहले ही कर लेना कि उन्हें कहां रखना है। उसके बाद महाजन, पारसनाथ पर हाथ डालना।" उधर से देवराज चौहान ने फोन बन्द कर दिया।
नगीना ने कानों से फोन हटाया तो सोहनलाल ने पूछा--
"क्या बात है?"
"देवराज चौहान ने कुछ करने को कहा है।" नगीना सोच भरे गम्भीर स्वर में कह उठी--- "पता नहीं क्या होने वाला है।"
"मुझे बताओ, क्या कहा देवराज चौहान ने ?"
नगीना ने देवराज चौहान की कही सारी बात बता दी।
सुनकर सोहनलाल और भी गम्भीर हो गया।
"देवराज चौहान ने जो करने को कहा है, उसके पीछे उसकी खास वजह होगी। हमें वही करना चाहिये जो उसने कहा है।" सोहनलाल ने कहा--- "और रुस्तम को भी इस काम में ले लेना चाहिये कि...।"
“नहीं।” नगीना ने इन्कार में सिर हिलाया--- "बांके, रुस्तम, मिन्नो पर निगाह रख रहे हैं, ये काम भी जरूरी है कि अगर मिन्नो, देवराज चौहान तक पहुंच जाये तो, उस स्थिति में वो मिन्नो को रोक लें ।"
"तो फिर सरबत सिंह को फोन लगाओ। ताकि हम मिलकर पाटिल तक पहुंच सकें। पाटिल देवेन साठी का खास आदमी है। उस तक पहुंचने में भी हमें काफी मेहनत करनी पड़ेगी।”
नगीना, फोन से सरबत सिंह का नम्बर मिलाने लगी।
■■■
दया उस काली विदेशी वैन को सड़क पर दौड़ाये जा रहा था।
वैन की पिछली सीटों पर विलास डोगरा और रीटा मौजूद थे। शाम के पांच बज रहे थे। विलास डोगरा ने गोल गले की आधी बांह वाली स्कीवी पहन रखी थी, जिसकी छाती पर ड्रेगन छपा था। नीचे जींस की पैंट और जूते थे। गले में सोने की भारी चेन चमक रही थी। चेहरे पर हमेशा छाये रहने वाले शान्त भाव थे। रीटा घुटनों तक जाती स्कर्ट और छोटी शर्ट में थी। हमेशा की तरह वो आज भी हसीन लग रही थी।
"रीटा डार्लिंग!" विलास डोगरा ने मीठे स्वर में कहा--- "कुछ बातें करो ना। तुम साथ हो तो चुप बैठना अच्छा नहीं लगता।"
"तो मैं हर वक्त बोलती रहूं?" रीटा हंस पड़ी।
“तुम्हारे दांत कितने सुन्दर हैं। जब हंसती हो तो मोतियों की लड़ी की तरह खुल जाते हैं।"
"ये बात आप सैंकड़ों बार कह चुके हैं।"
"मैं भी क्या करूं। हर रोज तुम नई लगती हो। तुम्हारे बिना मैं किसी काम का नहीं था। तुमने तो मेरे में जान भर रखी है। समझो कि मेरी जान तुममें बसी हुई है। तुम्हारे बिना मैं कुछ भी नहीं।" डोगरा ने गहरी सांस ली।
"सच में?"
"तेरी कसम रीटा डार्लिंग!"
“बड़े झूठे हैं आप तो। मुझे बेवकूफ बनाते रहते हैं।"
“कितना बदकिस्मत हूं मैं कि मेरी सच बात को भी सच नहीं मानती तुम।”
"बदकिस्मत हों आपके दुश्मन।” रीटा ने डोगरा का हाथ थाम लिया--- "मैं भी तो आपके दम पर जिन्दा हूं।”
"सच कहती हो?"
“कसम से डोगरा साहब! रीटा आपसे कभी झूठ नहीं बोलती।”
“ओह, कितना किस्मत वाला हूं मैं जो तुम जैसी प्रियसी मिली।" डोगरा ने उसका हाथ थपथपाया।
“पर मुझे आपकी चिन्ता रहती है। "
"क्या रीटा डार्लिंग ?”
“आप हमेशा ही इस वैन में अकेले निकल जाते हैं, जैसे कि अब जा रहे हैं। अगर कभी दुश्मनों को पता चल गया और उन्होंने हमें घेर लिया तो हमारे प्यार का अन्जाम अधूरा रह जायेगा।" रीटा ने प्यार से कहा।
"ओह, तुम सच में मेरी चिन्ता करती हो। लेकिन ऐसा होने पर भी हमें कुछ नहीं होगा।"
“क्यों?"
“हमारी ये खास विदेशी वैन बुलेट प्रूफ है। गोली ऐसे लगेगी। जैसे हमें मक्खी लगकर भाग जाती है। इस वैन में और भी बहुत खास इन्तजाम हैं। जिनके बारे में तुम्हें पता ही नहीं...!"
"वो क्या ?"
"रीटा डार्लिंग अगर सौ लोग भी इस वैन को घेर लें तो वो हार जायेंगे। वैन की बॉडी में गनें लगी हुई हैं हर तरफ। भीतर से बटन दबाओ और दुश्मन का काम खत्म। गनें हर दिशा में घूमकर काम करती हैं। हमें कभी भी कुछ नहीं हो सकता इसलिए तुम मेरी चिन्ता मत किया करो। हमारे प्यार का अन्जाम बढ़िया होगा।"
"इस इन्तजाम के बारे में आपने पहले मुझे नहीं बताया।" रीटा शिकायत भरे स्वर में कह उठी।
"क्योंकि तुम्हें पहले कभी मेरी चिन्ता ही नहीं हुई।" डोगरा मुस्कराया--- “अब क्यों चिन्ता होने लगी?”
"यूं ही देवराज चौहान और जगमोहन का ख्याल मन में आ गया था, वो...।"
"वो तो मेरे बच्चे हैं।" डोगरा ने रीटा के गले में बांह डाली और अपने साथ सटा लिया--- “आज तुम गर्म लग रही हो।"
"मैं तो हमेशा ही गर्म रहती हूं। आप हुक्म तो कीजिये ।" रीटा खिलखिला उठी।
“सच में, तुम्हारी गर्मी देखकर मुझे भी गर्मी आ जाती है। तभी तो कहता हूँ तुम जैसी दूसरी नहीं...।"
"मैं देवराज चौहान और जगमोहन के बारे में बात कर रही थी। आपने उन्हें तगड़ी मुसीबत में फंसा दिया। वैसे तो वो देवेन साठी के हाथों बचने वाले नहीं। मोना चौधरी भी उसे मारने के लिए भाग-दौड़ कर रही है। वो भी उसकी दुश्मन बन गई है। अगर वो बच निकले तो आपको जरूर ढूंढेंगे।"
"रीटा डार्लिंग!" विलास डोगरा हंसकर कह उठा--- "वो दोनों देवेन साठी और मोना चौधरी के हाथों बचने वाले नहीं। जैसे चूहा चूहेदान में फंस जाता है, ठीक वैसे ही इस वक्त उनकी हालत हो रही होगी। खुले में वो आयेंगे तो मर जायेंगे। किसी जगह पर ज्यादा देर छिपे भी नहीं रह सकते। वो तो मरे ही मरे ।"
“आपके मुंह में घी-शक्कर। लेकिन देवराज चौहान और जगमोहन खतरनाक हैं बहुत।"
"वो इस बुरी तरह फंस चुके हैं कि अब नानी याद आ रही होगी। कठपुतली तो रात को भी मेरे सपनों में आती है।" विलास डोगरा हंस पड़ा--- “कसम से, क्या कमाल की चीज है। अब्दुल्ला का जवाब नहीं। मोना चौधरी भी मारी जाती तो काम खत्म हो जाता। अब मोना चौधरी का कोई इन्तजाम करूंगा।”
"डोगरा साहब! अगर किसी तरह देवराज चौहान ने मोना चौधरी और देवेन साठी को बता दिया कि उसने कठपुतली के असर में सब कुछ किया है तो कहीं देवेन साठी, मोना चौधरी आपके पीछे ना पड़ जायें।" ।
विलास डोगरा ठहाका मारकर हंस पड़ा।
"मैंने ऐसा क्या कह दिया जो...।"
"तुम बहुत भोली हो रीटा डार्लिंग...।"
"मैं भोली नहीं हूं।" रीटा ने प्रतिरोध किया।
“पर कभी-कभी भोलेपन की बातें कर जाती हो।" डोगरा ने रीटा का गाल थपथपाया--- “तुम खुद ही सोचो कि क्या कोई भी कठपुतली के वजूद पर यकीन करेगा कि कोई ऐसा भी नशा हो सकता है जो इन्सान से कुछ भी करा ले और करने वाले को पता ना चले। तुम्हें कोई बताये तो क्या तुम कठपुतली के वजूद पर यकीन करती ?"
"कभी नहीं।"
"तो देवेन साठी और मोना चौधरी क्यों करेंगे? फिर देवराज चौहान ने तो देवेन के भाई को मारा है। उसे कठपुतली या मेरे से क्या मतलब? वो तो देवराज चौहान और जगमोहन को मारेगा।"
“साथ में हरीश खुदे भी है उनके... ।” रीटा ने जैसे याद दिलाया।
"वो तो मच्छर है। उसकी बात मत करो।" डोगरा ने हवा में हाथ हिलाया।
रीटा हंस पड़ी।
डोगरा ने उसकी गर्दन से बांह हटाई और सिगरेट सुलगा ली ।
“सिगरेट मत पिया करें। इससे सेहत खराब होती है।" रीटा ने प्यार से कहा।
“तुम मेरा कितना ध्यान रखती हो। तुम्हारी ये ही बातें तो मुझे अच्छी लगती है।” विलास डोगरा ने कश लेते प्यार भरी निगाहों से उसे देखते कहा--- “मेरी सेहत की भी तुम चिन्ता मत करो। ऊपर से लिखवा कर लाया हूं कि जिन्दगी में जो भी करूं नब्बे साल तक जरूर जिऊंगा ।”
“नब्बे साल तक?” रीटा ने आंखें फैलाई--- “और मैं...।"
"तुम तो हजार साल तक जिओगी। इसी तरह जवान रहोगी और मैं बार-बार जन्म लेकर तुमसे मिला करूंगा।”
"सच डोगरा साहब...!"
"तुम्हारी कसम रीटा डार्लिंग... मैं तो...।"
तभी वैन रुक गई।
विलास डोगरा की बात अधूरी रह गई फिर बोला---
"हम पहुंच गये क्या? जरा दया से पता तो करो...।"
रीटा उठकर आगे गई और दया से बात करके वापस आ गई।
“पहुंच गये डोगरा साहब! दया पूछ रहा है वैन को ठिकाने में ले चलूं या यहीं पर...।"
"भीतर जाकर ज्यादा वक्त लगेगा।” डोगरा ने फोन निकालकर रीटा को दिया--- "मौला हुसैन को यहीं बुला लो।"
रीटा ने फोन किया। बात करके फोन बन्द किया और बोली---
"मौला हुसैन आ रहा है। आपको मेरी बात याद है ना?"
"क्या बात ?"
"यही कि वो हमारा काम छोड़कर अपना ड्रग्स का काम शुरू करने की सोच रहा है।"
“तुमने ये बात मुझे पहले भी कही थी कि तुम्हें रमेश टूडे से ये खबर मिली।"
"हां, रमेश टूडे...।"
"रीटा डार्लिंग !” विलास डोगरा उसकी टांगों पर हाथ फेरता कह उठा--- "रमेश टूडे की मजाक करने की आदत है। उसे कई बार कहा है मजाक मत किया कर, पर आदत से मजबूर है। मानता नहीं। फिर भी मौला हुसैन से बात करूंगा। आता ही होगा।"
रीटा ने वैन का दरवाजा खोला तो मौला हुसैन भीतर आ गया। दरवाजा बन्द कर दिया गया।
मौला हसैन पचास बरस का थोड़ा-सा मोटा व्यक्ति था। चेहरे पर दाढ़ी थी। सिर के काले बालों में अब सफेदी आनी शुरू हो गई थी। पठानी पायजामा और कमीज पहन रखी थी। आंखों से ही वो चुस्त लगता था।
"सलाम डोगरा साहब...!" मौला हुसैन ने सिर हिलाकर, मुस्कराकर कहा।
"आ मौला, बैठ।” विलास डोगरा ने सिर हिलाया।
मौला हुसैन बैठा।
रीटा दरवाजे के पास ही खड़ी थी।
"काम कैसा चल रहा है?" डोगरा बोला।
"एकदम बढ़िया।"
"विक्टर को ड्रग्स पहुंचा दी थी कल?"
"माल तैयार पड़ा है, लेकिन डिलीवर नहीं किया।" मौला हुसैन ने कहा--- "विक्टर के साथ हमारा तय है कि न या माल लेते समय पिछले माल की पेमेंट देगा। परन्तु उसके पास दो बार के माल की पेमेंट पड़ी है और इस बार भी कहता है कि माल दे दो। पेमेंट दस दिन बाद देगा।"
“ये तो गलत बात है। ऐसा क्या हो गया विक्टर के साथ। वो पैसा कहीं और लगा रहा है क्या?"
"चार महीने से एक छोकरी के चक्कर में पड़ा है। वो विस्टर को खाली कर रही है।"
"पता किया ये?"
"जी हां।"
"उस लड़की की वजह से हमारे धन्धे पर असर पड़ रहा है। सालों से विक्टर हमसे माल ले रहा है। पैसा वक्त पर देता रहा है। लेकिन उस लड़की ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया।"
"विक्टर क्या कहता है?"
"कहता है वो उस छोकरी से प्यार करता है। ज्यादा बात नहीं की मैंने। परन्तु वो उसे खाली कर रही है।"
"तो मार दे छोकरी को।” डोगरा ने शान्त स्वर में कहा।
“जी। मैं रात तक ये काम निपटा देता हूं।" मौला हुसैन बोला।
"रोमी वाली बात का क्या रहा? वो माना?"
"रोमी तो जमीन बेचने को तैयार है। लेकिन वो कहता है उसकी मां नहीं मानती ।"
“नहीं मानती।” डोगरा ने शान्त स्वर में कहा--- "तू जाकर उसे राजी कर। हमें वो जमीन हर कीमत पर चाहिये। उन्हें जमीन का डेढ़ गुणा भाव दे रहे हैं, वो बुढ़िया क्या पागल है, जो इन्कार कर रही है। कब बात हुई रोमी से?"
"घण्टा भर पहले।"
"तू अभी उसके घर जा। उसकी मां को तैयार कर ।"
"ठीक है।"
"अगर वो तब भी नहीं मानती। तेरे को लगे कि नहीं मानेगी तो उसे रास्ते से हटा दे।"
"रोमी की मां मरेगी तो रोमी बुरा मानेगा।"
"नहीं मानेगा। जमीन के बदले उसे इतनी बड़ी रकम मिल रही है। वो तो खुश होगा। पहले जाकर उसे समझा। शायद वो मान जाये।"
मौला हुसैन सिर हिलाकर कह उठा---
"सूरज वारा ने फोन किया था। वो हमसे माल उठाना चाहता है ।"
"सूरजवारा तो साठी से ड्रग्स लेता है, फिर हमसे क्यों?" डोगरा ने उसे देखा ।
"जब से पूरबनाथ साठी मरा है उसके बाद वो लोग धन्धे पर ध्यान नहीं दे रहे। देवेन साठी भी देवराज चौहान के पीछे लगा है। उसने अपने सारे आदमी देवराज चौहान पर लगा दिए हैं। साठी की दो पार्टियां पहले भी हमारे पास आई हैं। पर मेरा ख्याल है सूरज वारा से सम्बन्ध बना लेना ठीक रहेगा। वो काफी ज्यादा माल उठाता है।"
“अब कितना माल उठाना चाहता है?"
"सौ करोड़ का ।"
“उसे बोल, कल को साठी का काम ठीक हुआ तो तू फिर उसके पास भाग जायेगा। बात करना उससे ।"
"वो आपसे बात करने को कह रहा था।"
"मैं बहुत व्यस्त हूं। तू ही बात कर। अगर वो हर बार हमसे माल लेने का वादा करता है तो तब मैं उससे बात करूंगा।"
"बात करूंगा सूरज वारा से।"
"रमेश टूडे कैसा है ?"
“बढ़िया ।” मौला हुसैन मुस्कराया--- "वो हमेशा ही बढ़िया ढंग से काम करता है। समुद्र के रास्ते उसने माल की खेप भेजी है। काफी ज्यादा माल है। पांच दिन तक वो अफगानिस्तान से वापस आयेगा, तब तक वो और माल भेज देगा।"
"मुझे पहले ही पता था कि ये बढ़िया काम करेगा। चार सालों में रमेश टूडे ने कभी शिकायत का मौका नहीं दिया।”
"एक बार अफगानिस्तान जाता है और साल भर की सैटिंग कर आता है कि माल आता रहे।" मौला हुसैन ने कहा--- "माल भी अच्छी क्वालिटी का होता है। इस काम में वो काफी समझदार है।"
“तूने भी तो इधर सब काम सम्भाल रखा है।” डोगरा मुस्कराया--- "मैं तेरे से हमेशा खुश रहा हूं।”
“शुक्रिया डोगरा साहब...।"
“पर इधर मैंने कुछ सुना है, बोलूं क्या?"
"कहिये डोगरा साहब।” मौला हुसैन सम्भला।
“कोई बोला कि तू मेरा काम छोड़कर, अपना ड्रग्स का काम शुरू करने जा रहा है।"
“नहीं।" मौला हुसैन ने फौरन इनकार में सिर हिलाया--- “गलत सुना। ऐसी कोई बात नहीं है।”
“पक्का, कोई बात नहीं है। "
"नहीं।"
“ऐसा सोचना भी मत।” डोगरा बोला--- "तू चला गया तो मुझे बहुत परेशानी होगी। तेरे जैसा मुझे फिर नहीं मिलेगा।"
“पर ऐसी बात आपको किसने कह दी?"
“एक बेवकूफ है। मैं पहले ही जानता था कि वो गलत कह रहा है। भूल जा उसे।” डोगरा हाथ हिलाकर बोला--- "तू रोमी की मां से बात कर। विक्टर की उस छोकरी को खत्म कर दे। सूरज वारा से भी बात करना। मेरे से कुछ पूछना हो तो फोन कर लेना। अब जाना है मुझे। कई काम करने हैं।"
मौला हुसैन बैठा रहा।
"क्या बोलना है तेरे को?”
"रमेश टूडे ने आपसे कहा कि मैं अपना ड्रग्स का काम शुरू करने वाला हूं?"
“तूने कैसे सोचा ये?” मुस्कराया डोगरा ।
“एक छोकरी है।” मौला हुसैन भी मुस्कराया--- “हम दोनों उसे पटाने के चक्कर में हैं, तभी वो... ।”
"छोकरी के चक्कर में मत पड़ मौला। रमेश टूडे को भी मैं समझा दूंगा। ये अच्छी बात नहीं है कि तुम दोनों एक छोकरी की वजह से झगड़ा करो। इससे धन्धे पर असर पड़ेगा। मुझे पसन्द नहीं ।"
"वो रमेश टूडे ही है ना डोगरा साहब?" मौला हुसैन ने पुनः पूछा।
"पता नहीं। मैं तेरे को बताने वाला नहीं। तू भी उस छोकरी को भूल जा और रमेश टूडे को भी समझा दूंगा। मेरी बात नहीं मानी तो छोकरी गायब करवा दूंगा। अब तू जा, मैं लेट हो रहा हूं।"
मौला हुसैन वैन से निकल गया।
रीटा ने दरवाजा बन्द किया।
"दया को बोल पंचम जावेरी के यहां चलना है।"
रीटा दया को बोल आई।
वैन वहां से चल पड़ी।
"पंचम जावेरी से क्या काम पड़ गया डोगरा साहब?” रीटा पास बैठती कह उठी।
"तू सुन लेना।” विलास डोगरा उसकी टांग पर हाथ फेरता कह उठा--- "कितनी खूबसूरत लग रही है तू। जरा इधर तो बैठ। मेरी गोद में। तेरे को पास से देखूं। प्यार से देखूं। आराम से देखूं ।"
रीटा खिलखिलाई और डोगरा की गोद में जा बैठी।
"रीटा डार्लिंग...!" विलास डोगरा ने उसके गालों को चूमा।
“हूं...।”
"अगर तू ना होती तो मैं कब का मर खप गया होता। तेरे बिना मेरी जिन्दगी नर्क बन जाती।”
रीटा ने विलास डोगरा के गले में बांहें डाली और डोगरा के होंठों पर होंठ टिका दिए।
डोगरा की बांहें रीटा के शरीर के गिर्द कसती चली गईं।
वैन मध्यम रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी।
■■■
रात के नौ बज रहे थे।
सरबत सिंह और सोहनलाल एक साथ कार में थे। सरबत सिंह कार चला रहा था। सोहनलाल की हालत ज्यादा बेहतर नहीं थी। चेहरे पर अभी भी पिटाई के निशान थे और शरीर के एक-दो हिस्से दर्द भी कर रहे थे। सरबत सिंह को नगीना ने सब कुछ बता दिया था। पूरी बात सुनकर वो गम्भीर हो उठा था। सारा मामला खतरनाक लगा उसे, परन्तु वो मन से देवराज चौहान के लिए कुछ करना चाहता था। इसलिए इस काम में लग गया। बीते छः घण्टों से वो सोहनलाल के साथ था और पाटिल की तलाश कर रहे थे। इसके लिए सरबत सिंह ने अपनी ऐसे पहचान वाले को फोन किया जो साठी के लिए काम करता था। उससे जाना कि पाटिल कहां मिलेगा।
परन्तु पाटिल आसानी से नहीं मिल सका।
देवराज चौहान की तलाश में लगे आदमियों के सम्पर्क में था और कभी इधर तो कभी उधर दौड़े जा रहा था। आधा घण्टा पहले ही वो पाटिल को देख पाये थे तब वो दो आदमियों के साथ एक कार में बैठकर वहां से रवाना हुआ था। सरबत सिंह ने अपनी कार उसके पीछे लगा दी थी। अब पीछा जारी था।
"इस तरह पीछा करने का क्या फायदा।" सोहनलाल बोला--- "पाटिल अकेला नहीं है।"
"कभी तो वो अकेला होगा कि...।"
"हमें दो-तीन लोग अपने साथ रखने चाहिये। पाटिल को उठा ले जाना आसान नहीं है। वो अपने आप में खतरनाक है। साठी का खास आदमी है। इस वक्त उसके साथ दो लोग भी...।"
"तुम फिक्र मत करो। अभी हम पाटिल को उठाने वाले नहीं।"
"तो उसके पीछे क्यों हो?"
"पाटिल पर तभी हाथ डालेंगे, जब वो अकेला होगा।" सरबत सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा।
"वो दस दिन तक अकेला नहीं मिला तो, क्या हम... ।"
"इतने दिनों तक मैं इन्तजार करने वाला नहीं।"
"अगर तुम्हारे पास आदमियों का इन्तजाम ना हो तो, मैं आदमी बुला लेता हूं।”
"मैं पूरी फौज इकट्ठी कर सकता हूं। लेकिन अभी जरूरत नहीं। पाटिल देवराज चौहान की तलाश में लगा हुआ है। ऐसे में भागदौड़ में कहीं तो अकेला होगा। मैं नहीं चाहता कि पाटिल को उठाने में शोर हो। जो काम चुपचाप हो जाये, वो ज्यादा बढ़िया रहता है। हमें जरूर कहीं मौका मिलेगा।" सरबत सिंह ने कहा।
सोहनलाल ने सिगरेट सुलगा ली।
"तुम कब से देवराज चौहान के साथ हो?" सरबत सिंह बोला ।
"बाइस सालों से... ।"
"फिर तो तुमने देवराज चौहान के साथ बहुत डकैतियां की होंगी।"
"बहुत...।"
"पैसा भी तगड़ा बना लिया होगा।" सरबत सिंह मुस्कराया।
सोहनलाल ने गर्दन घुमाकर उसे देखा फिर सामने देखता कह उठा---
"तुम बेकार की बातें क्यों कर रहे हो?"
"मैंने एक बार ही देवराज चौहान के साथ काम किया।”
"अच्छा...।”
“छोटा-सा काम था। मुझे पैसे की जरूरत थी। बहन की शादी करनी थी। ये बात देवराज चौहान को बताई तो उसने मुझे उस काम से मिली सारी दौलत ही दे दी। उस पैसे से मैंने बहन की शादी की। काफी सारा पैसा बच गया। अभी तक उसी पैसे से काम चला रहा हूं। तुम्हें भी कभी देवराज चौहान ने...।"
"पाटिल की कार धीमी हो रही है।" सोहनलाल बोला।
सरबत सिंह ये देख चुका था। उसने भी रफ्तार धीमी कर दी।
फिर अगली कार सड़क के किनारे स्थित रेस्टोरेंट एण्ड बॉर की तरफ मुड़ी और देखते-ही-देखते पार्किंग में कार जा रुकी। सरबत सिंह भी कार को पार्किंग में लेता चला गया। उन्होंने देखा पाटिल अकेला ही कार से निकला और रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया। जगमोहन फौरन कार से निकलकर पाटिल के पीछे चल दिया।
पाटिल रेस्टोरेंट के बॉर में पहुंचा और वेटर को लार्ज पैग का ऑर्डर दिया।
जगमोहन ने पाटिल को गहरी निगाहों से देखा और बगल वाली सीट पर बैठ गया। वो शराब नहीं पीता था। यही वजह थी कि उसने ऑर्डर नहीं दिया। वेटर आया तो कह दिया, कुछ देर इन्तज़ार करे। उसका दोस्त आने वाला है। पाटिल का पैग आ चुका था और वो आराम से बैठा छोटे-छोटे घूंट भर रहा था।
कुछ देर बाद सरबत सिंह वहां आ पहुंचा।
“ऑर्डर नहीं दिया?" सरबत सिंह आंख के कोने से पाटिल को देखता बोला।
उनमें और पाटिल में मात्र तीन फीट का फर्क था।
सोहनलाल ने वेटर को इशारे से बुलाया तो सरबत सिंह अपने लिए पैग का ऑर्डर दिया। वेटर चला गया तो सरबत सिंह वहां नज़रें दौड़ाने लगा। जल्दी ही वेटर पैग टेबल पर रख गया।
सरबत सिंह ने घूंट भरा।
"तुम नहीं पीते?" सरबत सिंह ने पूछा।
"नहीं।"
"अच्छी आदत है। शराब से ज्यादा बढ़िया चीज नहीं है कि जरूर पी जाये।" सरबत सिंह की आवाज इतनी ऊंची थी कि पाटिल के कानों तक पहुंचे--- "देवराज चौहान के बारे में सुना । "
सोहनलाल ने चौंककर सरबत सिंह को देखा।
पाटिल की गर्दन भी घूमती दिखी।
सरबत सिंह घूंट भरता कह उठा---
"सुना है देवराज चौहान ने पूरबनाथ साठी को मार दिया। और देवेन साठी अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए देवराज चौहान को ढूंढ रहा है।"
“कौन देवराज चौहान ?” सोहनलाल के चेहरे पर उलझन थी कि वो ये बात पाटिल को क्यों सुना रहा है।
"डकैती मास्टर देवराज चौहान! साठी ने तो उस पर इनाम भी रख दिया है कि जो देवराज चौहान की खबर देगा, उसे एक करोड़ दिया जायेगा। पर मैं एक करोड़ कमाने का खतरा नहीं ले सकता।"
सोहनलाल की आंखें सिकुड़ीं ।
"क्या मतलब?” सोहनलाल पूरी तरह सतर्क दिखने लगा था।
पाटिल की गर्दन पूरी तरह इनकी तरफ घूम गई थी।
"मैं जानता हूं देवराज चौहान कहां पर मिलेगा।"
"जानता है?" सोहनलाल बोला।
सरबत सिंह ने गिलास में दो घूंट भरे।
“हां। मुझे पता है।"
"तो उसके बारे में बताकर, एक करोड़ का इनाम क्यों नहीं ले लेता।"
“मेरा दिमाग खराब नहीं है जो ऐसा करूं। देवराज चौहान मुझे मार देगा। वो बहुत खतरनाक है।”
तभी पाटिल गिलास थामे अपनी टेबल से उठा और उनके पास आ गया।
सोहनलाल ने पाटिल पर नजर मारी। वो अभी तक उलझन में था कि सरबत सिंह ऐसी बातें करके क्या करना चाहता है। तभी पाटिल कह उठा ।
"हैलो.... मैं यहां बैठना चाहता हूं।”
"यहां और भी खाली टेबलें हैं।" सरबत सिंह बोला--- “वहां बैठो... ।”
पाटिल ने कुर्सी खींची और बैठते हुए बोला---
"मेरा नाम पाटिल है। मैंने तुम्हारी बातें सुनी।”
"क्या बातें ?” सरबत सिंह के माथे पर बल पड़े।
सोहनलाल सतर्क हो गया था। वो समझ गया कि सरबत सिंह के मन में कुछ है।
"तुम अभी डकैती मास्टर देवराज चौहान की बात कर रहे थे।"
“पागल हो ?” सरबत सिंह ने हड़बड़ाकर सोहनलाल को देखा--- "क्यों मैंने तुमसे ऐसी कोई बात की?"
“नहीं...।” सोहनलाल ने कहा।
"तुमने गलत सुन लिया है।" सरबत सिंह ने पाटिल से कहा--- "यहां से उठो और कहीं और बैठो...।”
"मैंने सही सुना है कि तुम देवराज चौहान के ठिकाने के बारे में जानते हो और देवेन साठी द्वारा घोषित एक करोड़ के इनाम के बारे में भी जानते हो। मैं देवेन साठी का खास आदमी पाटिल हूं।" पाटिल का स्वर शान्त था।
सरबत सिंह ने पाटिल को दिखाने के लिए बेचैनी से पहलू बदला।
"हम ऐसी कोई बात नहीं कर रहे थे।" सोहनलाल कह उठा।
“तुम चुप रहो।" पाटिल ने सोहनलाल को देखा।
सोहनलाल चुप होकर सरबत सिंह को देखने लगा।
“बोलो।" पाटिल ने सरबत सिंह से कहा।
“क्या?"
"देवराज चौहान कहां है?"
"मैं नहीं जानता, तुम जबर्दस्ती कर रहे हो मेरे साथ।" सरबत सिंह ने परेशान स्वर में कहा।
पाटिल ने अपना गिलास खाली किया फिर बोला---
"तुम देवराज चौहान से डरो मत। वो तुम्हें कुछ नहीं कह सकता। उससे पहले ही हमारे हाथों मर जायेगा।"
"लेकिन...।"
"नाम क्या है तुम्हारा?” पाटिल ने पूछा।
“सरबत सिंह।"
"क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारे साथ सख्ती करूं। ऐसी स्थिति में तुम्हें इनाम का एक करोड़ भी नहीं मिलेगा।"
सरबत सिंह परेशान दिखा।
"हमारे साथ दोस्ती करने में ही तुम्हारा फायदा है। कहां देखा तुमने देवराज चौहान को ?"
"तुम किसी को मेरे बारे में नहीं बताओगे कि मैंने तुम्हें देवराज चौहान के बारे में बताया है।"
"नहीं बताऊंगा। पर तुम्हें पक्का भरोसा है कि तुमने देवराज चौहान को ही देखा ?"
“हां, मैं उसे पहचानता हूं। उसके साथ दो लोग और भी थे।"
"वो जगमोहन और हरीश खुदे होंगे।” पाटिल का स्वर सख्त हो गया--- “कहां है वो ?"
"एक घर पर। मैं भी उसी गली में रहता है। नजर पड़ गई देवराज चौहान पर। तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें वो मकान दिखा देता हूं।" सरबत सिंह ने व्याकुल स्वर में कहा--- “मेरे बारे में किसी को बताना मत।"
“चिन्ता मत करो। तुम्हारी खबर सही निकली तो एक करोड़ का इनाम भी मिलेगा।” पाटिल कठोर स्वर में बोला--- "चलो ।”
सरबत सिंह ने अपना गिलास खाली किया।
"तुम अकेले हो ना?"
"दो आदमी मेरे साथ... ।”
“फिर मैं तुम्हारे साथ नहीं चलूंगा।” सरबत सिंह ने इन्कार सिर हिलाया--- "वो मुझे देख लेंगे और बात बाहर निकल ही जाती है कि मैंने तुम्हें देवराज चौहान के बारे में बताया। मैं किसी तरह का रिस्क नहीं... ।”
“वो मेरे आदमी हैं, तुम उनकी फिक्र मत... ।”
“नहीं। मैं उनके सामने नहीं पड़ना चाहता। चुपचाप तुम मेरे साथ चलो तो तुम्हें वो मकान दिखा देता हूं।”
"ठीक है। मैं ही तुम्हारे साथ चलता हूं।” पाटिल कह उठा ।
“तुम दोनों जाओ ।” सोहनलाल बोला--- “मुझे क्यों इस मामले में...।"
“यार को इस तरह अकेला छोड़कर जा रहा है।" सरबत सिंह ने नाराज़गी से कहा--- "ये तो गलत बात है।"
“तुम भी साथ चलो।" पाटिल ने सोहनलाल से कहा।
सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा।
"मैं बिल चुका दूं उसके बाद....।"
पाटिल ने इशारे से वेटर को बुलाया। उसे 'बिल' दिया। वो चला गया।
"अब चलो...।"
"ठीक है।" सरबत सिंह उठता हुआ बोला--- "तुम्हारे आदमी मुझे देख ना लें, इसलिये मैं पहले निकलता हूँ और कार में जाकर उसे स्टार्ट करके सामने लाता हूँ तुम मेरे दोस्त के साथ, पाँच मिनट बाद बाहर आ जाना।" कहकर वो चला गया।
सोहनलाल समझ चुका था कि सरबत सिंह की प्लानिंग क्या है। पाटिल को उसने बातों में फंसा लिया था और अब आसानी से पाटिल उनकी तरफ खिंचा चला आया था।
सरबत सिंह कार को तेजी से दौड़ा रहा था। पाटिल उसकी बगल में बैठा था।
सोहनलाल पीछे वाली सीट पर मौजूद था।
बीस मिनट हो चुके थे कार को दौड़ते।
"मुझे एक करोड़ पक्का मिलेगा ना ?" सरबत सिंह ने कहा।
"अगर देवराज चौहान तुम्हारी बताई जगह पर हुआ।" पाटिल बोला।
“वो वहीं पर है। उसे मत बताना कि मैंने तुम्हें उसके बारे में बताया है। बताया तो गद्दारी होगी।" सरबत सिंह ने कहा--- "क्या अभी मुझे एक करोड़ दे दोगे। अभी दे दो तो बढ़िया रहेगा।"
"कल तुम्हारे घर पहुंच जायेगा। पता बता देना। एक करोड़ की फिक्र मत करो। तुम देवराज चौहान के बारे में...।"
"बस, पन्द्रह मिनट में वहां पहुंच रहे हैं। जिसमें देवराज चौहान है, वो मकान देख लेना। फिर तुम जानो, तुम्हारा काम।"
“उसके साथ दो लोग और भी देखे तुमने, यही कहा था ना?" पाटिल बोला।
"हाँ।"
पाटिल ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
"क्या तुम मेरे बारे में किसी को बताने जा रहे हो?" सरबत सिंह हड़बड़ाकर बोला।
"नहीं।" फिर पाटिल ने फोन पर बात की--- "पच्चीस आदमी हथियारों के साथ तैयार रखो। शायद मैं देवराज चौहान तक पहुंचने जा रहा हूं। कुछ ही देर में फिर फोन करूंगा तुम्हें।" कहकर पाटिल ने फोन बन्द किया।
"मेरे ख्याल में तुम देवराज चौहान को मार दोगे। छोड़ना मत उसे, मार देना ही ठीक है। अब तो मुझे भी उससे खतरा पैदा हो गया है कि उसे पता चल गया कि मैंने उसके बारे में तुम्हें बताया है तो... ।"
"तुम देवराज चौहान को कैसे पहचानते हो?"
“एक बार अखबार में उसकी तस्वीर देखी थी। मेरी खासियत है कि देखी तस्वीर का चेहरा मैं कभी नहीं भूलता। बेशक बीस साल ही क्यों ना बीत जाये। बस उसे देखते ही मैं पहचान गया।"
फिर वो वक्त भी आया जब एक इलाके में पहुंचकर सरबत सिंह ने कार रोक दी। रात के ग्यारह बज रहे थे। इस वक्त कम लोग ही सड़कों पर दिख रहे थे। इंजन बन्द करता सरबत सिंह बोला---
"यहां से हमें पैदल ही गली में जाना होगा। कार को गली ले जाना ठीक नहीं। वो कार की आवाज सुनकर सतर्क हो सकते हैं। मकान दिखाकर मैं तुम्हें अपने घर का पता बता दूंगा। कल एक करोड़ रुपया भिजवा देना। धोखा मत देना। तुमने वादा किया है कि मुझे एक करोड़ दोगे। दोगे ना पाटिल भाई?"
"हां। देवराज चौहान तुम्हारी बताई जगह पर हुआ तो...।"
“वो वहीं हैं। जल्दी आओ, तुम्हें वो मकान दिखा दूं।"
तीनों कार से निकले और गली में प्रवेश कर गये।
गली में अन्धेरा था। स्ट्रीट लाइट भी नहीं लगी थी। लगी तो जल नहीं रही थी।
कुछ आगे जाकर सरबत सिंह एक मकान के गेट के सामने ठिठका। मकान में अन्धेरा था। भीतर कहीं भी लाइट नहीं जल रही थी। सरबत सिंह धीमे स्वर में कह उठा।
"ये ही है वो मकान। लगता है वो तीनों पी-पाकर सो चुके हैं। तभी तो लाइट नहीं जल रही। सोहनलाल, अब सोचता क्या है, लाइट निकाल और पाटिल साहब के पीछे लगा दे।" सरबत सिंह कह उठा ।
इससे पहले पाटिल, सरबत सिंह की बात समझता, उसकी कमर से रिवाल्वर लग चुकी थी।
पाटिल चौंका।
"ये क्या कर रहे हो?" पाटिल गुर्रा उठा ।
“चुप रहो, वरना सारी गोलियां तुम्हारे जिस्म में उतार दूंगा।" सोहनलाल ने कठोर स्वर में कहा।
“जानते हो मैं कौन...?”
"तुम पाटिल हो। आज की तारीख में देवेन साठी के सबसे खास आदमी...।" सोहनलाल की आवाज में सख्ती थी।
सरबत सिंह मकान का गेट खोलता बोला---
"भीतर चलो।"
पाटिल वहीं खड़ा सरबत सिंह को मौत की-सी नजरों से देखने लगा ।
"मरना चाहते हो क्या?" सरबत सिंह ने एकाएक खतरनाक स्वर में कहा--- "इस वक्त तुम्हारा अपहरण किया गया है। तुम हमारे कब्जे में हो पाटिल। अगर जरा भी गड़बड़ की तो अभी मार देंगे तुम्हें...।"
"कौन हो तुम लोग?"
“भीतर चल। सारे जवाब मिल जायेंगे।” पीछे से सोहनलाल ने रिवाल्वर का दबाव बढ़ाते कहा।
सरबत सिंह ने भी रिवाल्वर निकाल ली।
पाटिल को उनकी बात माननी पड़ी। उसने अपने कदम आगे बढ़ा दिए। पीछे सोहनलाल रिवाल्वर लगाये हुए था और सरबत सिंह रिवाल्वर थामे उसके साथ चल रहा था। वे दरवाजे तक पहुंचे।
“ये मेरा घर है।" सरबत सिंह दरवाजे का ताला खोलते कह उठा--- "यहां तेरे को पेट भर खाने को मिलेगा। टी०वी० देखने को मिलेगा। फ्रिज का ठण्डा पानी मिलेगा। मतलब कि तेरी सेवा में कोई कमी नहीं रहेगी।" सरबत सिंह ने दरवाजा खोल दिया और पाटिल को लिए वो भीतर प्रवेश कर गये। दरवाजा बन्द किया। लाइट ऑन कर दी गई।
"इसकी तलाशी ले।" सोहनलाल रिवाल्वर उसकी कमर से सटाये सतर्क स्वर में बोला।
“तुम लोग बहुत बुरी मौत मरोगे।" पाटिल गुर्रा उठा ।
"अपनी फिक्र कर।" सरबत सिंह ने तलाशी लेकर रिवाल्वर और मोबाइल निकाला।
"मोबाइल तोड़ दे। अब इसे फोन की जरूरत नहीं पड़ेगी।" सोहनलाल बोला।
"पहले इसके हाथ-पांव बांध दूं। उसके बाद बाकी के काम हो जायेंगे।" सरबत सिंह ने कहा और मकान के भीतरी हिस्से में चला गया। उधर भी लाइटें ऑन होने लगीं।
"कौन हो तुम लोग?" पाटिल ने दांत भींचकर कहा।
"पता चल जायेगा।" सोहनलाल ने सख्त अन्दाज में कहा।
"चाहते क्या हो?"
"सब बातें होंगी। जल्दी क्या है।" सरबत सिंह कमरे में आता कह उठा। उसके हाथ में रेशम की मजबूत डोरी थी--- "तुम तो आसानी से हमारे हाथ चढ़ गये। मैं तो सोचता था बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। तुमने क्या सोचा कि हम तुम्हें देवराज चौहान का ठिकाना बताने ले जा रहे हैं। चल नीचे लेट, ताकि तेरे हाथ-पांव बांध सकूं।"
मिनट भर में ही सरबत सिंह ने पाटिल के हाथ-पांव बांध दिए थे।
“बेटे ये रेशम की मजबूत डोरी है।" सरबत सिंह ने मुस्कराकर कहा--- "हाथ-पैरों को आजाद कराने के लिए जितना तड़पेगा ये उतनी ही कसती चली जायेगी और तेरे को तकलीफ देगी। समझदारी तो यही है कि अब ठण्डा होकर पड़ा रह।"
■■■
रात के बारह बजने वाले थे कि देवराज चौहान का फोन बजा। वो सब अभी जाग ही रहे थे। बिल्ला और खुदे फर्श पर लेटे थे। छत पर लगा पंखा आवाज कर रहा था।
"हैलो।" देवराज चौहान ने फोन पर बात की।
"पाटिल को पकड़ लिया गया है।" उधर से नगीना का स्वर कानों में पड़ा।
"इतनी जल्दी।” देवराज चौहान के होंठों से निकला--- "ये बहुत अच्छा किया।"
“सोहनलाल और सरबत सिंह ने ये काम किया है।"
"बांके और रुस्तम नहीं मिले क्या?"
“उन्हें मैंने किसी और काम पर लगा दिया है।" उधर से नगीना ने कहा।
“अब तुम्हें पता है कि पाटिल से क्या बात करनी है?"
“मैं सब सम्भाल लूंगी।"
"उसे रखा कहां है?"
“सरबत सिंह ने अपने घर में रखा है। मैं भी अब वहीं जा रही हूं।"
“ठीक है। जितनी जल्दी उसका मुंह खुलवा सको, उतना ही बढ़िया रहेगा। हालात काबू में आयेंगे। जब वो मुंह खोल दे तो तब महाजन और पारसनाथ पर हाथ डालना है। ताकि देवेन साठी और मोना चौधरी को हम एक साथ ही बेबस कर सकें। मैं बाहर निकलकर विलास डोगरा को उसके किए की सजा दे सकूं।"
बात खत्म हो गई। फोन बन्द हो गया।
देवराज चौहान ने जगमोहन को पाटिल के बारे में बताया।
"इतनी जल्दी पाटिल हाथ आ जायेगा। मैंने नहीं सोचा था।" जगमोहन बोला।
"मेरा ख्याल है कि वो मेरी तलाश में इधर-उधर दौड़ रहा होगा कि सोहनलाल, सरबत सिंह के हाथ लग गया। अब देखना ये है कि देवेन साठी का वो कितना सगा है। मुंह खोलता है या नहीं।"
बिल्ला ने फर्श पर बिछी चादर पर करवट ली तो खुदे कह उठा----
"नींद नहीं आ रही?"
“मैं तेरे से बात नहीं करता।” बिल्ले ने नाराज़गी से कहा--- “तू मेरा दोस्त नहीं है।"
"मैंने तो तेरे साथ कोई गलत नहीं किया कि तू... ।”
"तूने टुन्नी से मेरी बात नहीं कराई। टुन्नी मेरे से बात करना चाहती थी।"
“तू टुन्नी को भूल नहीं सकता?” खुदे ने सब्र के साथ कहा।
"नहीं। वो रोज मेरे सपनों में आती है। वो...।"
“तेरे सपनों में आती है?" खुदे उठ बैठा।
"हां। वो मेरे से प्यार ना करती हो, मेरे सपनों में कभी नहीं आती।”
“बिल्ले!” खुदे ने शान्त स्वर में कहा--- "सपने-वपने कुछ नहीं होते। अपना दिमाग ठीक रख। टुन्नी मेरी पत्नी है और तू मेरे ही सामने उसके बारे में ऐसी बातें कहता है। ये अच्छी बात नहीं है।"
“टुन्नी मुझे अच्छी लगती है।"
"वो मेरी पत्नी है।"
“होगी। पर वो मुझे अच्छी लगती है। हर वक्त उसके बारे में ही सोचता हूं, उसके ख्याल आते हैं। अब भी पता नहीं वो सोई होगी या मेरी तरह करवटें बदल रही होगी।” बिल्ला ने गहरी सांस ली।
"अगर तू ऐसी ही बातें करता रहा तो मैं तेरी दोस्ती खत्म कर दूंगा।” खुदे उखड़े स्वर में बोला।
"कर दे। अब दोस्ती में रखा ही क्या है। लेकिन याद रख टुन्नी सिर्फ मुझे चाहती है। आज तो वो मुझसे फोन पर बात भी करना चाहती थी। तू हम दोनों के बीच दीवार बनकर खड़ा है।"
"मेरी बात तेरे को समझ नहीं आती कि ये सब तेरे दिमाग का फितूर है। टुन्नी तो तुझे गालियां देती है।"
"हां...हां तू तो ऐसा ही कहेगा ताकि हमारा रिश्ता खराब हो। मैं उसे जान से भी ज्यादा प्यार करता हूं। तू तो उसे जरा भी नहीं चाहता। इतने-इतने दिन टुन्नी से दूर रहता है, मैं तो एक पल के लिए भी उससे दूर ना होऊं।" बिल्ला गम्भीर स्वर में बोला--- "तू किसी और से शादी कर ले, टुन्नी मुझे दे दे।"
“अबे... !” खुदे ने दांत भींचकर कहा--- "टुन्नी क्या पैंट है जो तेरे को दे दूं और मैं नई सिलवा लूं। होश में है तू या तुझे होश में लाऊं। साले आराम से सोने दे मुझे...।”
"मेरा सोना, खाना-पीना सब हराम हो गया है। मैं टुन्नी के बिना जिन्दा नहीं रह... ।"
खुदे ने दांत भींचकर, जोरों का घूंसा बिल्ले के चेहरे पर मारा।
बिल्ला चीख उठा।
“तू मेरे हाथों से मरेगा कमीने।” खुदे गुर्रा उठा।
“मार ले, मार ले।" बिल्ला तड़पकर कह उठा--- “सब कुछ बताऊंगा टुन्नी को कि तू मुझे कैसे मारता है।”
■■■
रात बीत रही थी। सुबह के चार बज रहे थे। नगीना, सोहनलाल और सरबत सिंह ने अपना पूरा ध्यान पाटिल पर लगाया हुआ था।
पाटिल की टांगें बंधनों से आजाद कर रखी थीं, परन्तु हाथ पीछे की तरफ बंधे थे। उससे सिर्फ एक ही सवाल पूछा जा रहा था कि देवेन साठी का परिवार कहां पर रहता है। परन्तु पाटिल ने मुंह बन्द कर रखा था। वो अभी तक नहीं समझ पाया था कि ये लोग कौन हैं और ये बात क्यों जानना चाहते हैं।
नगीना शान्त-सी कुर्सी पर बैठी ये सब देख रही थी।
पाटिल को तगड़ी यातना दी जा रही थी। लातें, घूसें, बालों को पकड़कर खींचना, ये सब किया जा रहा था, परन्तु पाटिल मुंह खोलने को तैयार नहीं था। उसके कपड़े फट चुके थे। शरीर पर कई जगह ज़ख्म दिख रहे थे, जहां से ज़रा-ज़रा खून उभरने लगा था। सख्त जान था पाटिल। कुछ लोग कम यातना पर मुंह खोल देते हैं तो कुछ ज्यादा यातना मिलने पर मुंह खोलते हैं। पाटिल शायद दूसरी तरह के लोगों में से था।
इस वक्त पाटिल के होंठों के कोने से खून निकल रहा था। सोहनलाल का घूंसा उसके दांतों पर पड़ा था, जिसकी वजह से उसका दांत हिल-सा गया और खून निकलने लगा।
पाटिल अब थकने लगा था। ये साफ नज़र आ रहा था।
"हम इसी तरह तेरी जान ले लेंगे।" सरबत सिंह कठोर स्वर में कह उठा--- "परन्तु हमें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हमें तो हमारे सवाल का जवाब मिल ही जायेगा। तू नहीं तो कोई और देगा। पर तू जान से जा चुका होगा।"
पाटिल नीचे लुढ़का पड़ा हांफ रहा था।
“तुम लोग कौन हो? ये क्यों नहीं बता रहे?" पाटिल ने गहरी सांस लेकर कहा--- “लेकिन तुम लोग जो भी हो बचोगे नहीं। देवेन तुम लोगों को नहीं छोड़ेगा। गलत बन्दे से पंगा ले लिया तुम लोगों ने... तुम...।"
"किसी को पता भी नहीं चलेगा कि तेरे साथ क्या हुआ।" सोहनलाल ने खतरनाक स्वर में कहा--- "बस तेरी लाश किसी सड़क के किनारे पड़ी मिलेगी और किस्सा खत्म। देवेन साठी भूल जायेगा तेरे को। जिन्दा रहना चाहता है तो हमारी बातों का जवाब दे। तेरे को देवेन साठी नहीं सिर्फ हम बचा सकते हैं। तू हमारे रहमो-करम पर...।"
“तुम लोग कौन हो और देवेन साठी के परिवार के बारे में क्यों जानना...।"
"ये बात तुम जरूर जानना चाहते हो?" नगीना कह उठी। इससे पहले वो कुछ ना बोली थी।
"हां...।" पाटिल ने नगीना को देखा।
"मैं जानती हूं कि तुम अब थकना शुरू हो गये हो। ज्यादा देर तुम यातना नहीं सह सकते। फिर भी मैं तुम्हारे सवाल का जवाब दे रही हूं। लेकिन इसके बाद हम यातना का रूप बदल देंगे। लोहा गर्म करके तुम पर 'दागा' जायेगा। मुंह में कपड़ा ठूंसकर दबा देंगे कि तुम चीख ना सको।” नगीना का स्वर बेहद कठोर हो गया था--- "या तो तुम हमें देवेन साठी के परिवार के बारे में बता दोगे या फिर साठी की वफादारी निभाते अपनी जान से जाओगे।"
पाटिल ने नगीना को देखते सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"मैं देवराज चौहान की पत्नी हूँ।"
“क्या?" पाटिल बुरी तरह चौंका--- "देवराज चौहान की पत्नी...?"
"इतना हैरान क्यों हो रहे हो?"
"दे... देवराज चौहान की पत्नी भी है।" पाटिल के होंठों से निकला।
"मैं हूं।"
पाटिल अविश्वास भरी नजरों से नगीना को देखता रहा। बोला---
"तुम तो बहुत खूबसूरत हो।”
तभी सोहनलाल की ठोकर पड़ी कमर में।
पाटिल कराह उठा।
“अपनी मौत के बारे में सोच।" सोहनलाल ने कठोर स्वर में कहा।
"देवराज चौहान नहीं बचेगा।" पाटिल कह उठा--- "देवेन साठी उसे मार के ही दम लेगा, वो...।"
"जो भी हुआ, उसमें देवराज चौहान की गलती नहीं थी।" नगीना बोली--- "उसमें विलास डोगरा का हाथ था।"
"विलास डोगरा ? वो इस मामले में कहां से आ गया।" पाटिल के माथे पर बल पड़े।
“तुम्हें सब कुछ बताने की जरूरत नहीं है। सही वक्त आया तो विलास डोगरा के बारे में सबको पता चल जायेगा। इस वक्त तो देवराज चौहान को इस मुसीबत से निकालना है और हमें देवेन साठी की फैमिली के बारे में जानना है कि वो कहां है।"
पाटिल के चेहरे पर गम्भीरता आ ठहरी थी।
“तो तुम लोग देवेन साठी के परिवार को अपने कब्जे में करके, उस पर दबाव बनाना चाहते हो।”
"शायद कुछ ऐसा ही। हम तो वो ही कर रहे हैं, जो देवराज चौहान चाहता है।"
"वो कहां है?"
“सुरक्षित जगह पर ।”
“छिपा पड़ा है।"
"ये तो तुम भी जानते हो कि इन हालातों में उसका बाहर निकलना ठीक नहीं।” नगीना बेहद शान्त स्वर में कह रह थी--- "ऐसा करना ही समझदारी है। इधर देवेन साठी को उसकी तलाश है, उधर मोना चौधरी को। अब तुम्हें तुम्हारी काफी बातों का जवाब मिल गया है। दिन का उजाला फैलने में एक घण्टा बाकी है।" नगीना कुर्सी से उठ खड़ी हुई--- "हमारा प्रोग्राम ये था कि रात-रात में या तो तुमसे देवेन के परिवार के बारे में जान लेंगे, या तुम्हें मारकर, किसी और को उठा लायेंगे जो कि हमारी नज़र में है। उससे देवेन के परिवार के बारे में जान...।"
"और कौन?"
"है कोई, तुम भी उसे जानते हो। वो देवेन के परिवार के बारे में जानता है। मतलब कि तुम्हारे पास एक घण्टा है। इस एक घण्टे में तुम हमारे सवालों का जवाब देकर अपनी जिन्दगी बचा सकते...।"
"अपने मतलब की बात पूछकर तुम लोग मुझे मार दोगे।" पाटिल कह उठा।
"कभी नहीं।" नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हम इस तरह लोगों की जान नहीं लेते। परन्तु तुम्हें अभी आजाद भी नहीं करेंगे। जब सही वक्त आयेगा तो तुम्हें छोड़ देंगे। कुछ दिन तुम्हें यहीं पर कैद में रहना होगा।"
"वादा करती हो कि मेरी जान नहीं लोगे?"
"मेरा कह देना ही वादे के बराबर है। क्या तुम हमें देवेन के परिवार के बारे में बताने जा रहे हो?"
पाटिल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
"सोच लो। अभी तुम्हारे पास एक घण्टा है। दिन की रोशनी फैलते ही हम तुम पर और वक्त खराब नहीं करेंगे और तुम्हें मार देंगे।" नगीना ने कहकर सोहनलाल और सरबत सिंह से कहा--- "लोहा गर्म करो। उससे इसे दागा जायेगा। तब इसके मुंह में कपड़ा...!"
"रुको-रुको, तुम लोग जो जानना चाहते हो, मैं बता देना चाहता हूं।" पाटिल व्याकुल स्वर में कह उठा।
तीनों की निगाह पाटिल पर जा टिकी।
"तुम लोगों को भ्रम है कि ऐसी कोई कोशिश करके, देवराज चौहान को बचा लोगे, परंतु ऐसा नहीं होने वाला। देवेन को अपने भाई से बहुत प्यार था। वो उसकी मौत का बदला लेकर रहेगा।" पाटिल बोला।
"देवेन साठी का परिवार कहां रहता है?" सरबत सिंह गुर्रा उठा।
पाटिल ने बांद्रा में एक पता बताया।
"कौन-कौन है उसके परिवार में?"
"देवेन साठी की पत्नी आरू। दो बेटे। एक आठ साल का, एक ग्यारह साल का।" पाटिल ने गहरी सांस ली--- “अब मेरी जान मत लेना। तुमने वादा किया है कि मुझे मारोगे नहीं।"
"तुम यहीं पर बंधे रहोगे, कुछ दिन के लिए। हम तुम्हारी जान नहीं लेंगे।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
■■■
सुबह के सवा सात बज रहे थे।
आरू अपने दोनों बेटों को स्कूल के लिए तैयार कर रही थी।
"मेरे राजे बेटे आज नये स्कूल में जायेंगे।" आरू खुश थी— “नये दोस्त बनेंगे। नयी मैडमें होंगी। जल्दी-जल्दी दूध पीओ। दूध पीने से रंग गोरा होता है। मेरे बेटे सबसे सुन्दर दिखेंगे स्कूल में।"
“मम्मा-मम्मा, मैं ड्राइंग भी बनाऊंगा।” छोटा बेटा अर्जुन कह उठा।
“हां-हां, बढ़िया ड्राइंग बनाना। तुम तो बहुत अच्छी ड्राइंग बनाते हो।"
“मम्मा स्कूल में क्रिकेट होगी?" बड़े बेटे ग्यारह बरस के गुंजन ने पूछा।
"जरूर होगी बेटे। तुम छक्के मारना। मेरे बच्चे बहुत होनहार हैं। पढ़-लिखकर सबसे आगे निकल जाओ। बड़े साहब बनाना है तुम दोनों को। दूध अभी तक पड़ा है, जल्दी खत्म करो। ड्राइवर तुम लोगों का इन्तज़ार कर रहा है। आज पहला दिन है तो मैं साथ में जाऊंगी स्कूल तक। स्कूल से कोई शिकायत आई तो कान खींचूंगी और...।"
तभी एक नौकर कमरे के दरवाजे पर आ पहुंचा।
“आपसे कोई मैडम मिलने आई है।" नौकर ने कहा।
“इस वक्त ?” आरू ने नौकर को देखा--- “उसे बाद में आने को कह... ।”
"वो कहती है आपकी रिश्तेदार है।”
“रिश्तेदार ?” आरू की आंखें सिकुड़ीं--- “क्या नाम बताया उसने?"
“नाम नहीं बताया, मुझे पूछना याद नहीं रहा...।"
“तुम चलो, मैं आती हूं।"
नौकर चला गया।
"दूध और ब्रेड जल्दी से खत्म करो बच्चों। मैं अभी आई फिर स्कूल चलते हैं।" आरू ने कहा और बाहर निकल गई।
आरू बंगले के ड्राइंगरूम में पहुंची तो वहां नगीना को खड़े पाया।
नगीना की निगाह आरू पर जा टिकी।
"कौन हो तुम? तुम तो मेरी रिश्तेदार नहीं हो। तुमने झूठ क्यों बोला कि...।"
"बोलना पड़ा।” नगीना उसकी तरफ बढ़ती कह उठी--- "वरना मुझे कोई भीतर नहीं आने देता।"
"तुम कौन...?"
तब तक पास पहुंच चुकी नगीना ने रिवाल्वर निकालकर आरू के पेट से लगा दी। आरू सिर से पांव तक कांप उठी। चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गये। इस वक्त वहां कोई नौकर नहीं था।
"क...कौन हो तुम?"
"दोस्तों की तरह पेश आओगी तो दोस्त हूं। नहीं तो दुश्मन हूं।" नगीना ने कठोर स्वर में कहा--- “यहां कोई नहीं जानता कि तुम देवेन साठी की पत्नी हो। अगर कोई जानता भी है तो वो यहां मौजूद देवेन का खास आदमी होगा जो तुम्हारी रक्षा के लिए तैनात कर रखा होगा देवेन साठी ने। क्या तुम चाहती हो कि यहां खून-खराबा हो।"
आरू का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था।
“जवाब दो। क्या तुम खून-खराबा चाहती हो?" नगीना का स्वर बेहद कठोर था।
"न... नहीं...।" स्वर कांप रहा था आरू का--- "त... तुम कौन हो... ये सब क्यों...।"
"मैं तुम्हें और तुम्हारे दोनों बच्चों को लेने आई हूं। चुपचाप मेरे साथ चलो। बंगले के बाहर मेरे आदमी मौजूद हैं। अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो यहां गोलियां चल जायेंगी। अगर तुमने मेरी बात मानी तो मेरे साथ बहन की तरह रहोगी। तुम्हारे बच्चों को भी कुछ नहीं होगा। केवल कुछ दिन के लिए ये सब होगा।"
"तु... तुम ऐसा क्यों कर...।"
“सवाल मत करो। चुपचाप मेरे साथ चलो। तुम्हारे दोनों बच्चे कहां हैं?"
"क... कमरे में...।"
"चल, उनके पास चलते हैं। उन्हें साथ लेकर यहां से...।"
"ऐसा मत करो...।" आरू की आंखों से आंसू बह निकले--- “मेरे बच्चों को यहीं रहने...।"
"फिक्र मत करो। उन्हें कुछ नहीं होगा, अगर तुमने मुझे सहयोग दिया तो। देर मत करो। जल्दी करो। मेरे आदमी बाहर ज्यादा देर इन्तजार नहीं करेंगे। वो गोलियां चलानी शुरू कर देंगे।" नगीना ने सख्त स्वर में कहा।
“तुम्हें पैसा चाहिये तो मैं...।"
"चुप रहो और जैसा कहा है, वैसा करती जाओ। मैं रिवाल्वर जेब में रख रही हूं कि कोई देख लेगा तो तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की जान खतरे में पड़ जायेगी। तभी तो कहती हूं जल्दी करो और मेरे साथ यहां से निकल चलो।"
“अ... आओ।” आरू घबराये स्वर में कहती पलटी लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ी।
“ठीक से चलो। किसी को देखकर शक ना हो कि गड़बड़ है।” नगीना कह उठी।
आरू ने खुद को सम्भाला। परन्तु वो अपनी कांपती टांगों को महसूस कर रही थी। चेहरे की रौनक गायब हो गई थी। वहां फीकापन उभर आया था। नगीना उससे दो कदम पीछे थी।
"मेरे बच्चों को तो कुछ नहीं होगा?” आरू कांपते स्वर में कह उठी।
“किसी को कुछ नहीं होगा। सिर्फ मेरी बात मानती जाओ। एक सौदे के बारे में देवेन साठी को समझाना है। उसका परिवार मेरे पास होगा तो वो मेरी बात ध्यान से सुनेगा। असल बात ये ही है तुम्हें और तुम्हारे बच्चों को ले जाने की। तुम मेरे साथ मेरी बहन की तरह रहोगी, अगर मेरे साथ सहयोग करती रही तो...।"
■■■
रात पारसनाथ रेस्टोरेंट में ही रहा था। सितारा, उसकी बहन के घर से लौट आई थी। अगले दिन ग्यारह बजे वो रेस्टोरेंट से निकला और कार में बैठते हुए मोना चौधरी को फोन किया।
“तुम कहां हो?" पारसनाथ ने पूछा।
“मैं और महाजन अभी फ्लैट पर पहुंचे हैं। अब लंच के बाद ही यहां से निकलेंगे।” उधर से मोना चौधरी ने कहा।
"देवराज चौहान की कोई खबर नहीं मिली?"
“अभी तो नहीं।” मोना चौधरी की आवाज कठोर हो गई--- "लेकिन किसी भी वक्त उसका पता चल सकता है।"
"मैं वहीं आ रहा हूं।" पारसनाथ ने कहा और फोन बन्द करके कार आगे बढ़ा दी। चेहरे पर गम्भीरता छाई हुई थी।
आधे घण्टे बाद पारसनाथ उसी फ्लैट पर था।
राधा किचन में लंच तैयार करने में व्यस्त थी।
"मैं तुम दोनों से कुछ बात करना चाहता हूं।" पारसनाथ ने मोना चौधरी और महाजन को देखते गम्भीर स्वर में कहा--- "नगीना ने देवराज चौहान और जगमोहन के बारे में जो बताया... ।"
"कठपुतली वाले नशे की बात कर रहे हो तुम?" महाजन कह उठा।
"हां।"
"वो बकवास बात है।" महाजन मुंह बनाकर बोला--- "हमें भटकाने के लिए कहा...।"
"ये बात सच है।" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्या?" महाजन ने अचकचाकर उसे देखा--- "तुम कठपुतली वाली बात को सही कह रहे हो?"
मोना चौधरी के माथे पर भी बल पड़ गये थे।
“हां। नगीना ने जो कहा, सही कहा है।" पारसनाथ बोला--- “कल मैं अब्दुल्ला से मिला था। उससे मेरी जो बातचीत हुई, वो कठपुतली के बारे में ही थी। उसने कठपुतली के असर के बारे में बताया। ये भी बताया कि विलास डोगरा उससे दो बन्दों के लिये कठपुतली ले गया था और मेरे कहने पर अब्दुल्ला ने फोन करके विलास डोगरा से पूछा तो उसने बताया कठपुतली का इस्तेमाल देवराज चौहान पर किया था। नगीना ने जो कहा, सही कहा। देवराज चौहान और जगमोहन ने जो किया कठपुतली के प्रभाव में किया और ये काम विलास डोगरा उससे करवा रहा था। वो पूरबनाथ साठी और मोना चौधरी को उनके हाथों खत्म करवा देना चाहता था। वरना देवराज चौहान अब इस तरह कहीं छिपकर ना बैठा होता। वो हमसे डरने वाला नहीं है जो छिपकर बैठ जाये। दो दिन से हमें ऐसी कोई खबर भी नहीं मिली कि वो हमें ढूंढ रहा हो। अब्दुल्ला ने बताया कि कठपुतली का नशा उतरने के बाद, इन्सान को ये याद नहीं रहता कि उसने क्या किया नशे के दौरान। ये सब विलास डोगरा की शरारत है। दुबई से बन्दा उठवा लाने की बात पहले तुमने विलास डोगरा से की और फिर ये काम पूरबनाथ साठी को दे दिया, इसी बात का बदला लिया डोगरा ने ये सब करके।"
महाजन गम्भीर दिखने लगा था।
"तुम कहना क्या चाहते हो पारसनाथ ?" मोना चौधरी कठोर स्वर में कह उठी ।
"मोना चौधरी, अगर तुम्हें मेरी बात पर जरा भी शक हो तो, अब्दुल्ला के पास चलो। उससे बात...।"
"मैंने पूछा है तुम कहना क्या चाहते हो?"
"देवराज चौहान को कठपुतली नाम का नशा देकर, उससे विलास डोगरा ने ये काम करवाया है। जबकि देवराज चौहान का ऐसा कोई इरादा नहीं था। इस सच को हमें स्वीकार करना होगा मोना चौधरी !”
“देवराज चौहान और जगमोहन ने मेरी जान लेनी चाही कि नहीं?” मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“तब उसके दिमाग पर कठपुतली छाई थी। वो होश में नहीं था।"
“उस वक्त वो मुझे मारने में सफल हो जाता तो तुम क्या करते?"
पारसनाथ के चेहरे पर सख्त भाव उभरे।
"वो महाजन और राधा को भी मारने जा रहे थे। ये दोनों मर जाते तो तब तुम क्या करते ?”
पारसनाथ के चेहरे पर कठोरता छाई रही।
"मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि देवराज चौहान और जगमोहन ने मुझे, महाजन और राधा को...।”
"देवराज चौहान और जगमोहन तब होश में नहीं थे। तुम अब्दुल्ला से बात करो तो सारी बात तुम्हें समझ में आ जायेगी। नगीना की कही हर बात सच है इस बारे में। विलास डोगरा ने ये खेल खेला था। देवराज चौहान... ।”
"पारसनाथ !” मोना चौधरी सख्त स्वर में कह उठी--- "तुम जो कहना चाहते हो स्पष्ट कहो।"
"देवराज चौहान और जगमोहन को याद भी नहीं कि उन्होंने क्या किया है। अब्दुल्ला कहता है कि कठपुतली का नशा उतरने... ।”
“तुम ये नहीं बता रहे कि तुम्हारी बातों का मतलब क्या है। तुम मुझे क्या...।"
“देवराज चौहान और जगमोहन की इस हरकत को हमें भूल जाना चाहिये।” पारसनाथ ने कहा--- “अब उन्हें याद ही नहीं कि उन्होंने क्या किया तो सजा कैसी देनी उन्हें...।"
"बहुत गलत बात कह रहे हो पारसनाथ !" मोना चौधरी दांत पीसकर कह उठी--- "वो दोनों मौत के हकदार हैं और तुम कह रहे हो कि हमें ये बात भूल जानी चाहिये। देवराज चौहान और जगमोहन को मैं जिन्दा नहीं...।”
"बेबी!" महाजन गम्भीर स्वर में कह उठा--- "पारसनाथ की बात पर भी सोचो। वो इतनी बड़ी बात यूँ ही नहीं कहेगा।"
"मुझे सिर्फ देवराज चौहान और जगमोहन चाहिये। उनकी मौत चाहिये।” मोना चौधरी ने मौत भरे स्वर में कहा और उठकर वहां से दूसरे कमरे में चली गई।
महाजन और पारसनाथ की नज़रें मिलीं।
"मैं सही कह रहा हूं महाजन! जो भी हुआ, उसमें देवराज चौहान और जगमोहन की कोई गलती नहीं थी। ये सारा खेल विलास डोगरा का था। वो मोना चौधरी और पूरबनाथ साठी से अपना बदला लेना चाहता था। ये बात मोना चौधरी को समझाना जरूरी है। हम गलत दिशा की तरफ बढ़ रहे हैं। हमें रास्ता बदलना होगा। अब्दुल्ला की बात को मैं झूठला नहीं सकता। मैंने उसके मुंह से सच बातें निकलवाई हैं।" पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं बेबी से फिर बात करने की कोशिश...।"
"कोशिश नहीं, बात करनी होगी।" पारसनाथ ने सिर हिलाया--- "इस बात के सामने आने के बाद मैं अपने कदम देवराज चौहान की तरफ गलत इरादे से नहीं बढ़ा सकूंगा। क्योंकि मैं सच को जान चुका हूं। नगीना की कही बातें, अब्दुल्ला की बातों से पूरी तरह मेल खा रही हैं। करने वाला जब अपने होश में ही नहीं था और विलास डोगरा पीठ पीछे सारी चालें चल रहा था तो देवराज चौहान और जगमोहन को कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा।”
"तुम्हें अपनी बात पर पूरा भरोसा है पारसनाथ ?" महाजन गम्भीर था ।
"पूरी तरह...।"
"मतलब कि देवराज चौहान जगमोहन को कुछ नहीं पता उन्होंने कब, क्या किया?"
“कुछ नहीं पता। उन्होंने जो भी किया कठपुतली नाम के नशे के प्रभाव में किया। नशा उतरा तो खेल खत्म हो गया।”
“ये तो तुम दिमाग खराब करने वाली बात कह रहे हो। बेबी तो वैसे भी देवराज चौहान के जिक्र पर गुस्सा कर जाती है। ये बात उसे समझा पाना आसान नहीं।" महाजन ने चिन्तित स्वर में कहा।
“मोना चौधरी ने अगर इस बात को नहीं समझा तो मैं खुद को इस मामले से अलग कर लूंगा।"
“जल्दी मत करो पारसनाथ!” महाजन बोला--- "ये अब आसान मामला नहीं रहा। परेशानी पैदा करने वाली बातें सामने आने वाली हैं। मुझे सोचने दो कि बेबी को ये बात कैसे समझाई जाये। वो देवराज चौहान के मामले में आसानी से पीछे हटने वाली नहीं।"
■■■
देवेन साठी परेशान था। एक तो देवराज चौहान की कोई खबर नहीं मिल रही थी। दूसरे कल शाम से पाटिल का अता-पता नहीं था। फोन करने पर, उसका स्विच ऑफ आ रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि पाटिल कहां चला गया। जबकि उसे खबर दिए बिना वो कहीं नहीं जा सकता था। पाटिल की तलाश में भी उसने आदमी दौड़ा दिए थे।
दिन के ग्यारह बज चुके थे।
साठी कई जगह फोन करके पाटिल के बारे में पूछ चुका था। उसके घर भी फोन किया तो ये ही पता चला कि तीन दिन से वो घर नहीं आया है। वो समझ नहीं पा रहा था कि पाटिल गया तो आखिर कहां गया?
तभी देवेन साठी का मोबाइल बजने लगा।
दूसरी तरफ जाफर था जो साठी के खास आदमियों में से एक था।
"हैलो।"
"साठी साहब, पाटिल का फोन नहीं लग रहा। मैं दो घण्टे से ट्राई कर रहा हूं।" उधर से जाफर की आवाज आई।
"पाटिल कल शाम से गायब है... ।”
"गायब?"
“हां उसका कोई पता नहीं। फोन भी बन्द है। तुम्हें कोई खबर मिले तो बताना।” देवेन साठी ने कहा।
“जी...।"
“देवराज चौहान, जगमोहन का पता चला?"
"हम उन्हें तलाश कर रहे हैं, परन्तु लगता है वो अण्डरग्राउंड हो गये हैं। उनकी हवा भी नहीं मिल रही।"
"तुम लोग एक मामूली सा काम नहीं कर सकते।" देवेन साठी ने गुस्से से कहा।
"उन्हें हम तलाश तो कर रहे...।"
"काम तेज कर दो। हमारी बाकी के काम रुके हुए हैं उनके पीछे। जल्दी पता लगाकर उन्हें खत्म करो। "
"ज... जी साठी साहब!"
देवेन साठी ने फोन बन्द कर दिया। चेहरे पर कठोरता उभरी पड़ी थी।
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन बिल्ला के एक कमरे वाले घर पर ही मौजूद थे और बाहर नहीं निकले थे। खुदे भी बाहर नहीं गया था। उनकी जरूरतें बिल्ला पूरी कर रहा था।
इस वक्त दिन के बारह बजे थे। बिल्ला शेव करके नहा-धोकर तैयार हुआ और बालों को संवारने लगा। ये देखकर खुदे की आंखें सिकुड़ीं। वो पास आकर बोला---
“कहां जा रहा है?"
“तुझे क्या ?"
“मुझे ये लगा कि कहीं तू टुन्नी के पास तो नहीं जा रहा इतना सज-संवर कर ।"
“तू जलता है मेरे से कि मैं तेरे से बढ़िया दिखता हूं।" बिल्ला ने शान्त स्वर में कहा।
“अबे चूहे की औलाद, मैंने पूछा है टुन्नी के पास तो नहीं जा रहा?"
"नहीं। कोई और काम है।"
"क्या काम ?"
"तू क्या समझता है मेरे कोई काम नहीं हो सकते।” बिल्ला कह उठा--- "तुम लोगों की वजह से कितने दिन मैं घर में बैठा रहूं। मुझे भी तो बाहर जाना होता है।"
"दोपहर तक लंच लेकर आ जाना ।”
"पांच बजे वापस आऊंगा।”
"तो हमारा लंच ?"
"आज लंच की छुट्टी कर लो। वैसे भी सुबह छोले-भठूरे लाकर खिलाये हैं। पेट खाली रहना ही ठीक है।"
“बहुत समझदारी की बातें कर रहा है।"
"मैं बेवकूफ कब था ।” बिल्लो ने भौंहें उठाई--- "वो तो टुन्नी के प्यार में पड़कर थोड़ा दिवाना हो जाता हूं वरना...।"
"चुप-चुप साले। टुन्नी में क्या रखा है जो तू उसके बारे में...।"
"टुन्नी में तो सब कुछ रखा है। वो मेरी जान है। मेरे दिल की धड़कन है। वो मुझे बहुत प्यारी लगती है। वो भी मुझे प्यार करती है। अब तो वो तुम्हें कहने लगी है, जरा बिल्ले से मेरी बात करा दो। पर तू सच्चा दोस्त नहीं है। तू नहीं चाहता कि मैं और टुन्नी एक हो जायें। तू हमारी बात नहीं कराता । विलेन की तरह मेरे और टुन्नी के बीच खड़ा है।"
"तू कहीं जा रहा था।” खुदे ने दांत पीसते हुए कहा।
"हां।"
"तो जा, जाता क्यों नहीं। यहां क्यों खड़ा...।”
"मैं तो कब का चला गया होता। वो तो तूने ही मेरी दुखती रग छेड़ दी टुन्नी के बारे में बात करके... ।”
“दफा हो जा...।” खुदे के चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था।
"तू कहे तो आते वक्त टुन्नी का हाल-चाल पूछ...।"
“निकल जा हरामजादे, नहीं तो जान से मार दूंगा।” खुदे गुर्रा उठा।
बिल्ला बाहर निकल गया।
खुदे गहरी-गहरी सांस लेने लगा। गुस्से पर काबू पाने लगा।
देवराज चौहान और जगमोहन, खुदे को ही देख थे ।
“तुम दोनों की बात ना होती तो मैं इस हरामी के चितड़ों पर लात मारकर कब का यहां से चला गया होता।” खुदे दोनों को देखता कह उठा--- “साला हर वक्त टुन्नी-टुन्नी करता रहता है।"
देवराज चौहान और महाजन के चेहरों पर मुस्कान उभरी।
खुदे गहरी सांस लेकर कुर्सी पर आ बैठा ।
“हम यहां पर कब तक बैठे रहेंगे।” खुदे ने कहा--- “यहां से निकलने के बारे में कुछ सोचो...।”
“देवेन साठी के परिवार पर कब्जा कर लिया गया है।" देवराज चौहान ने कहा ।
खुदे उछल पड़ा।
“क्या?" खुदे का मुंह खुल गया--- "देवेन साठी का परिवार तुम्हारे कब्जे में हैं?"
“ऐसा ही हुआ है।"
“ये काम तुम्हारी पत्नी ने किया है?"
"हां।"
"बहुत हिम्मती है वो...वो... ।"
"अकेले नहीं, उसके साथ और भी लोग हैं। अब पारसनाथ और महाजन पर उन्होंने काबू पाना है। उसके बाद देवेन साठी और मोना चौधरी से बात करके, उनके पीछे रहने को कह दिया जायेगा फिर हम खुले घूम सकेंगे।"
“वो मानेंगे तुम्हारी बात?”
“माननी पड़ेगी।”
“तब बाहर निकलकर हम क्या करेंगे?"
"विलास डोगरा को खत्म करेंगे।" जगमोहन गुर्रा उठा-- “उसने खिलौनों की तरह हमारा इस्तेमाल किया। अब वो जिन्दा रहने का हक खो चुका है। उसे बहुत बुरी मौत देंगे।"
"वो क्या आसानी से तुम लोगों के हाथ आयेगा ?"
"जैसे भी हाथ आये, आयेगा जरूर। मरना तो उसे है ही।" जगमोहन का चेहरा धधक रहा था।
खुदे गम्भीर और बेचैन दिखा।
"मैंने तो सुना है विलास डोगरा साठी से भी ज्यादा खतरनाक है।" खुदे ने कहा ।
"वो इतना भी खतरनाक नहीं कि हमारे हाथ ना आ सके।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।
“विलास डोगरा के पास एक से एक खतरनाक लोग भरे पड़े हैं। जिनमें से एक रमेश टूडे भी है। वो ऐसा दरिन्दा, ऐसा कमीना इन्सान है कि उस जैसा कोई दूसरा नहीं।” खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- "साठी के आदमियों का रमेश टूडे के साथ एक बार पंगा खड़ा हो गया था तो तब मैं भी उन लोगों में शामिल था। तब हमें हाथ खड़े करके, बात को खत्म करना पड़ा था।"
“हमारा शिकार विलास डोगरा है। हम उसे...।"
“विलास डोगरा तक पहुंचने के लिए, रमेश टूडे जैसी बाधाएं पार करनी पड़ेंगी। ये राह आसान नहीं होगी।” खुदे दोनों को देखते कह उठा--- "क्या इस काम में भी मैं तुम लोगों के साथ रहूंगा ?"
"तू डरता क्यों है खुदे !" जगमोहन कह उठा--- “हम...।"
“मैं डरता नहीं हूँ।" खुदे ने गहरी सांस ली--- "वो तो यूं ही पूछा। एक मुसीबत अभी खत्म नहीं हुई और अब तुम लोग विलास डोगरा का खाता खोलने जा रहे हो। पता नहीं ये सब कुछ कहां जाकर खत्म होगा। लेकिन डकैती का याद रखना। तुम लोगों ने ऐसी डकैती करनी है जिसमें मोटा पैसा मिले और उसमें मैं तुम लोगों का साथी रहूंगा।"
■■■
आरू के चेहरे पर घबराहट के भाव थे। गुंजन और अर्जुन भी सहमें हुए थे। सरबत सिंह के घर पर ही थे वे सब। आरु एक कमरे में, पाटिल को बंधा देख चुकी थी। पाटिल को अच्छी तरह पहचानती थी वो और ये भी समझ गई कि उसके घर का पता पाटिल से ही पूछा गया है।
आरू को एक कमरा दे दिया था सरबत सिंह ने। उसे कहा कि बच्चों के साथ वो कमरे में ही रहे। किसी चीज की जरूरत हो तो आवाज दे दे। बाहर ना निकले। ये बात उसे सही से समझा दी गई थी कि यहां से भागने की कोशिश की तो उसे और उसके बच्चों को मार दिया जायेगा।
वे ड्राइंगरूम में बैठे, पारसनाथ और महाजन का अपहरण करने का प्लॉन बनाने लगे।
दो घण्टे बाद नगीना ने दरवाजा खोलकर कमरे में प्रवेश किया। आरू दोनों बच्चों के साथ बैड पर बैठी थी। नगीना कुछ पल उन्हें देखती रही फिर मुस्कराकर बोली---
"डर तो नहीं लग रहा?"
आरू ने हां में सिर हिला दिया। चेहरा फक्क था।
"डरो मत। तुम तीनों को छोड़ दिया जायेगा। ये बात कुछ ही देर की बात है। मैं फिर कहती हूं कि यहां से भागने की सोचना भी मत। वो वक्त तुम्हारे और बच्चों के लिए घातक होगा। आराम से रहो। मेरी बहन बनकर रहो। ऐसा कुछ मत करो कि मैं तुम्हारी दुश्मन बन जाऊं तुम्हारे पति से मुझे थोड़ा-सा काम है और मैं तुम्हें यकीन दिलाती हूं कि तुम्हारा पति देवेन साठी मेरे काम करे या ना करे, तुम्हें बच्चों के साथ छोड़ दूंगी। तुम तीनों को पकड़ने का मकसद देवेन साठी पर दबाव बनाना है।" नगीना ने शान्त स्वर में कहा।
“पू...पूरबनाथ को तुम लोगों ने मारा था ?" आरू ने हिम्मत करके पूछा ।
नगीना कुछ पल आरू के चेहरे को देखती रही फिर कह उठी---
"नहीं।" इसके साथ ही वो कमरे से बाहर निकली और दरवाजा बन्द कर दिया।
तभी नगीना का मोबाइल बजा।
"हैलो... ।” नगीना ने बात की।
"बहणो, अमं बांकेलाल राठौर। म्हारे को, ओरो छोकरे को कबो तक मोन्नो चौधरी पर नज़रो रखनो हौवे ?"
"मैं तुम्हें फोन करने ही वाली थी बांके भैया... ।”
“काये को ?”
"हमने पारसनाथ और महाजन का अपहरण करना था। तुम दोनों उन पर नजर रखे हो और बेहतर बता सकते हो कि उन पर कब हाथ डालना ठीक रहेगा।” नगीना ने कहा।
“यो तो बोत डेंजरस बातो हौवे। अमं छोरे से बातों करके थारे को फोन मारूं।" इतना कहकर उधर से बांकेलाल राठौर ने फोन बन्द कर दिया था। नगीना, सोहनलाल और सरबत सिंह को देखकर बोली ।
"बांके का फोन आने के बाद ही हम पारसनाथ और महाजन को उठा लाने का प्रोग्राम फाइनल करेंगे।”
■■■
बिल्ला, पारसनाथ के रेस्टोरेंट के सामने टैक्सी से उतरा और जेब से सौ-सौ के तीन नोट निकालकर ड्राइवर को दिए और रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया। खुदे का माल जेब में था। मजे कर रहा था वो। लंच का वक्त हो चुका था। रेस्टोरेंट में भीड़ थी। भीतर प्रवेश करके बिल्ला ठिठका। आस-पास नज़र मारी फिर सामने मौजूद काउंटर की तरफ बढ़ गया। जहां पर ग्राहक का 'बिल' बनाने का काम होता था।
कैश काउंटर पर एक युवक मौजूद था।
“पारसनाथ कहां है?" बिल्ला ने सीधे ही पूछा।
“सर, अभी रेस्टोरेंट में मौजूद नहीं हैं।” युवक ने बिल्ला को सिर से पांव तक देखते कहा।
“नहीं है तो, कोई तो होगा जिससे मैं बात कर सकूं।”
"डिसूजा साहब भी नहीं हैं।"
“देख भाई...!” बिल्ला अपने स्वर को गम्भीर बनाता कह उठा--- "पारसनाथ से मुझे बहुत जरूरी काम है। पारसनाथ ने मुझे यहां बुलाया था। अगर उसके साथ मेरी बात ना हुई उसका लाखों का नुकसान हो जायेगा। तू मुझे पारसनाथ का मोबाइल नम्बर दे दे। वैसे उसने मुझे नम्बर दिया था, परन्तु खो गया। समझा क्या...?"
युवक ने सहज भाव में एक कागज पर नम्बर लिखकर बिल्ले को दे दिया।
बिल्ला रेस्टोरेंट से बाहर आया और मोबाइल निकालकर पारसनाथ का नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी थी।
“हैलो...।" पारसनाथ का स्वर कानों में पड़ा।
“क्या हाल है पारसनाथ ?” बिल्ला ने मुस्कराकर कहा।
"कौन?"
“तू मुझे नहीं पहचानता। पहचानने की जरूरत भी क्या है। जरा मोना चौधरी से बात करा।”
"किससे ?” उधर से आने वाले पारसनाथ के स्वर में उलझन आई थी।
“मोना चौधरी से...।"
“तुम कौन हो?"
"कौन-कौन मत कर। मोना चौधरी से जल्दी से बात करा। टेम नहीं है अपने पास।” बिल्ला बोला।
चन्द पलों के बाद मोना चौधरी की आवाज बिल्ले के कानों पड़ी।
"मैं मोना चौधरी हूं, बोलो।"
"बढ़िया खबर, फड़फड़ाती खबर तेरे को देनी है कि देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे किधर है।"
“बता...।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती आ गई थी।
"ऐसे कैसे बता दूं। कहती है बता।” बिल्ला फोन पर ही मुंह बनाकर कह उठा--- "नोट लगेंगे नोट। देवेन साठी ने तो खबर देने वाले को एक करोड़ देने को कहा है। उससे भी एक करोड़ लूंगा। तू बता क्या देगी ?"
"नाम क्या है तेरा?"
"काम की बात कर। नाम में क्या रखा है। टेम नहीं है मेरे पास। जल्दी बोल के फोन बन्द कर दूं।"
"एक खबर दो-दो को बेचेगा ?"
“क्यों ना बेचूं। मौका अच्छा है। मुझे पैसा कमा लेना चाहिये। तेरे को ये खबर नहीं चाहिये तो...।"
“एक करोड़ मैं भी दूंगी।"
“ठीक है। माटुंगा के मेन चौराहे के पास बस स्टॉप है। एक करोड़ लेकर वहाँ आ जा।”
“तेरे को पक्का पता है ना कि देवराज चौहान किधर है?"
"पक्का क्या पता है, वो जगमोहन और हरीश खुदे के साथ मेरे घर पर ही रह रहा है। समझी ना। एक करोड़ लेकर माटुंगा के मुख्य चौराहे के पास के बस स्टॉप पर आ जा। ब्रीफकेस में नोट डालकर आना। मैं तुझे पहचान जाऊंगा। ज्यादा देर इन्तज़ार नहीं करूंगा। बोल, कब तक आती है?"
"डेढ़ घण्टे में।"
"डेढ़ घण्टे से ज्यादा, मैं इन्तजार नहीं करूंगा। जल्दी पहुंच।" कहकर बिल्ले ने फोन बन्द कर दिया। आंखों में चमक थी और चेहरा खुशी से भरा हुआ था। वो बड़बड़ा उठा--- "बिल्ले तू तो सबका उस्ताद निकला। क्या तरकीब सोची है।" फिर वो फोन से पुनः नम्बर मिलाने लगा।
बिल्ला ने फोन कान से लगाया। दूसरी तरफ बेल जाती सुनी।
"हैलो।" उधर से देवेन साठी की आवाज सुनी।
"हैलो-हैलो क्या करता है।" बिल्ला बोला--- "देवेन साठी से बात करा।"
क्षण भर की चुप्पी के बाद देवेन साठी की आवाज पुनः कानों में पड़ी।
"बोल रहा हूं।"
“क्या बोल रहा है। देवेन साठी से...।”
"देवेन साठी ही बोल रहा हूं। तुम कौन हो?"
बिल्ला क्षण भर के लिए सकपकाया फिर कह उठा---
"साठी साहब हैं। ओह गुस्ताखी माफ हो। मैंने पहले कभी आपसे बात नहीं की। आपकी आवाज पहचानता नहीं इसलिए मेरी आवाज थोड़ी-सी कड़क हो गई। वरना आपके सामने मेरी औकात क्या जो...।"
"काम की बात करो।" देवेन साठी की सख्त आवाज, बिल्ले के कानों में पड़ी।
"वो ही-वो ही।" बिल्ला फोन पर सिर हिलाता कह उठा--- "मैं अर्ज कर रहा था कि ये तो बहुत नाइन्साफी है कि बाहर के आदमियों को एक करोड़ का इनाम मिलेगा और अपने लोगों को दो करोड़... ।"
"देवराज चौहान के बारे में बात कर रहे हो?" देवेन साठी का सतर्क स्वर कानों में पड़ा।
"जी मैं तो देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे, तीनों की ही बात कर रहा हूँ।" बिल्ले ने फोन पर ही दांत दिखाये।
"तुम जानते हो वो तीनों कहां...।"
"तभी तो फोन किया है कि कुछ इनाम बढ़ा दें तो, ज्याद नहीं। बस एक करोड़ के साथ चाय-पानी भी लगा दें। मैं लालची नहीं हूं पर कभी-कभी लार टपक जाती है। वैसे मैं एक करोड़ में भी, ये बताने को तैयार हूं कि वो कहां है, मैं...।"
"तुम्हें एक करोड़ से ज्यादा मिलेगा, बताओ वो तीनों कहां...।"
"बुरा मत मानियेगा साठी साहब, वैसे तो मैं आपका गुलाम हूं मुफ्त में भी आपकी सेवा करके मुझे खुशी होगी। पर नोट हाथों हाथ मिल जायें तो, मैं सारी उम्र आपको सलाम मारूंगा मैं सारी उम्र... ।”
“मेरे पास आ जाओ, पता सुनो...।”
“अब आपसे क्या छिपाऊं, इस खबर का सौदा मोना चौधरी के साथ भी कर रहा हूं। वो मुझे माटूंगा के मेन चौराहे के पास बने बस स्टॉप पर मिलने वाली है। आप भी अपना आदमी वहीं भेज दें तो...।"
“मैं खुद वहां आता हूं। पैंतालीस मिनट में वहां पहुंच जाऊंगा। लेकिन मैं तुम्हें पहचानता नहीं...।”
“आपको तो पूरी मुम्बई पहचानती है।” बिल्ला दांत दिखाते कह उठा--- “आप वहां पर आ जाइये। बस, हाथ में नोटों वाला ब्रीफकेस थामे रहियेगा। मैं आपको पहचान लूंगा। पैंतालीस मिनट में आ रहे हैं ना आप?"
“हां... मैं...।”
“आप क्यों कष्ट करते हैं, किसी और को भेज देते, तो भी काम चल जाता ।"
“तुम मुझे वहीं मिलना, जहां कहा है।"
"आ जाइये। दोनों टांगों पर खड़ा मिलूंगा।"
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बिल्ले से पहले देवेन साठी मिला।
बिल्ला कड़कती धूप में माटुंगा के उस बस स्टॉप पर खड़ा था कि सड़क पार सामने एक सफेद रंग की एम्बूलैंस के साइज की बड़ी वैन रुकते देखी। फिर बिल्ला ने चार आदमियों को बाहर निकलते और वैन के आस-पास फैलते देखा तो वो समझ गया कि देवेन साठी आ गया है। दो के हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर थे।
पांच मिनट ऐसे ही बीत गये।
फिर एक ने वैन के भीतर कुछ कहा तो वैन का दरवाजा खुला और देवेन साठी बाहर निकला। भीतर से ब्रीफकेस उठाया और सड़क पार करता बस स्टॉप की तरफ बढ़ गया।
बिल्ले ने कभी देवेन साठी को देखा नहीं था। परन्तु उसके हाव-भाव से फौरन पहचान गया कि ये देवेन साठी हो सकता है। देवेन साठी सड़क पार करके बस स्टॉप पर पहुंचा और वहां खड़े लोगों पर नजर मारने लगा। बिल्ले ने वैन के पास खड़े चारों आदमियों को देखा, जो कि साठी पर नजर रखे हुए थे।
बिल्ला का दिल धड़का। कुछ पसीना भी चेहरे पर आया फिर देवेन साठी की तरफ बढ़ गया। टांगों में हल्का-सा कम्पन्न आ गया था। लेकिन उसने खुद को सम्भाले रखा।
पास आते दिल्ले पर, देवेन साठी की निगाह टिक गई।
"नमस्कार साठी साहब!" बिल्ला हड़बड़ाए स्वर में कह उठा--- "आप साठी साहब ही हैं ना?"
"मैंने तुम्हारी आवाज पहचान ली है।" देवेन साठी, बिल्ले पर निगाहें टिकाये कह उठा--- "देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे कहां पर हैं। मुझे पक्की खबर चाहिये।"
"पक्की से भी पक्की खबर है। वो मेरे घर पर मौजूद हैं।"
"तुम्हारे घर पर?"
"जी हां। वो खुदे मेरा दोस्त है ना। उन दोनों को लेकर मेरे घर पर आ धमका। अब क्या करता, बाहर तो निकाल ही नहीं सकता था तो सोचा आपको बता देना ही ठीक रहेगा।"
"घर का पता बताओ।"
बिल्ले ने तुरन्त अपने घर का पता बता दिया।
"ये तीनों वहां ना मिले तो तुम जिन्दा नहीं बचोगे ।" देवेन साठी ने कठोर स्वर में कहा।
"क्या बात करते हैं साठी साहब! सुबह इन्हें छोले-भठूरे खिलाये हैं। इस वक्त वो मेरे आने का इन्तजार कर रहे होंगे कि मैं खाना लेकर कब आता हूँ। बाहर निकलने से डर रहे हैं। आपके डर से छिपे पड़े हैं। मैं जरा ये ब्रीफकेस ले लूं?" बिल्ले ने एकाएक देवेन साठी के हाथ में थमे, ब्रीफकेस की तरफ इशारा किया।
साठी ने उसे ब्रीफकेस थमा दिया।
"नोट हैं ना इसमें ?" बिल्ले ने दांत फाड़कर पूछा।
"अगर तेरी खबर गलत ना निकली तो नोट ही हैं, नहीं तो समझ तेरी मौत आने वाली है।" देवेन साठी कहकर जाने लगा।
"एक बात और साठी साहब!"
देवेन साठी ने ठिठककर उसे देखा।
"वो जो हरीश खुदे है ना, उसे जिन्दा मत छोड़ना। उसे जरूर मार देना।”
देवेन साठी पल्टा और सड़क पार करता, वैन की तरफ बढ़ गया।
इसके आधे घण्टे बाद मोना चौधरी बस स्टॉप पर पहुंची। कार को सौ कदम पहले ही रोक दिया था और उसमें महाजन और पारसनाथ भीतर ही बैठे रहे। महाजन बेचैन था और पारसनाथ गम्भीर था। वो जानते थे कि मोना चौधरी को देवराज चौहान के ठिकाने के बारे में खबर मिलने जा रही है, जबकि दोनों कई बार मोना चौधरी को समझा चुके थे कि देवराज चौहान और जगमोहन ने जो किया, तब वो होश में नहीं थे और सारा खेल विलास डोगरा खेल रहा था। परन्तु मोना चौधरी अपने इरादे से पीछे नहीं हट रही थी।
बिल्ले ने मोना चौधरी को उसके हाथ में थमे ब्रीफकेस से पहचाना। देवेन साठी का दिया ब्रीफकेस बिल्ले ने पहले ही थाम रखा था। वो फौरन मोना चौधरी के पास पहुंच गया।
“तुम मोना चौधरी हो ?”
“तो तुमने ही मुझे फोन किया था।" मोना चौधरी ने उसकी आवाज पहचानी ।
"ब्रीफकेस में नोट हैं?" बिल्ले ने उसके हाथ में थमे ब्रीफकेस पर नज़र मारी।
"हां।"
"कितने ?”
"एक करोड़ ।”
"इसमें आ गये एक करोड़। ये देखो, देवेन साठी तो इस बड़े वाले ब्रीफकेस में एक करोड़ लाया था। तुम्हारा ब्रीफकेस छोटा क्यों ?"
“तुमने ब्रीफकेस लेना है या एक करोड़ रुपये।” मोना चौधरी सख्त स्वर में बोली।
"एक करोड़...।"
"देवराज चौहान कहां है?" मोना चौधरी के होंठों से गुर्राहट निकली।
"ये ब्रीफकेस तो मुझे दो।” बिल्ले ने कहा और हाथ बढ़ाकर मोना चौधरी के हाथों से ब्रीफकेस ले लिया। दोनों ब्रीफकेस टांगों के पास रख लिए और बोला--- “मैं तुम्हें एक पता बता रहा हूं। देवराज चौहान और जगमोहन के साथ हरीश खुदे भी वहां मौजूद है। हरीश खुदे को जरूर मार देना। उसे जिन्दा मत छोड़ना। वो मेरा दुश्मन है।"
“पता बता...।” मोना चौधरी के होंठ भिंचे हुए थे ।
बिल्ले ने अपने घर का पता बता दिया।
“अगर तेरी खबर गलत निकली तो तुझे ढूंढकर ऐसी मौत मारूंगी कि...।"
“देवेन साठी भी ऐसा ही कह रहा था। पर ऐसा कुछ नहीं है। जाओ और तीनों को गोली मार दो। देवेन साठी और जगमोहन बेशक बच जायें पर हरीश खुदे को जिन्दा मत छोड़ना।"
मोना चौधरी पलटकर अपनी कार की तरफ बढ़ती चली गई ।
बिल्ले ने दोनों ब्रीफकेस उठा लिए। एक हाथ में एक ब्रीफकेस, दूसरे हाथ में दूसरा ब्रीफकेस। चेहरा रात के चन्द्रमा की तरह चमक रहा था। बहुत खुश था वो।
“हरीश खुदे मर जायेगा अब और टुन्नी मेरी हो जायेगी। मैंने रास्ता साफ कर दिया टुन्नी। हमें मिलने से अब कोई नहीं रोक सकता। टुन्नी मेरी है और मेरी ही होकर रहेगी। वो भी मुझे कितना चाहती है। मेरे से फोन पर बात करना चाहती थी। उसका बस चले तो दीवारें तोड़कर मेरी छाती से आ लगे। आह, मेरी टुन्नी इस वक्त भी मुझे ही याद कर रही होगी। कुछ ही घण्टों में सब ठीक हो जायेगा टुन्नी। खुदे मर जायेगा और तेरा दिवाना तेरी बांहों में होगा हमेशा-हमेशा के लिए।" बिल्ला बड़बड़ा उठा था।
समाप्त
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