बारहवीं का परिणाम आए दो महीने से ज्यादा समय बीत गया था। मैं अपनी भविष्य के बारे में सोच रहा था और कमरे मेलेटा हुआ टेबल लैंप को कभी जला तो कभी बुझा रहा था। अभी रात के ग्यारह बजे थे। मेरा भाई दूसरे लैंप से पढ़ रहा था। गर्मी का मौसम था पर कमरे में ऐसी से अच्छी-खासी ठंड हो रही थी। अमित ने कहा, “भाई ठंड लग रही है, ऐसी धीमा कर दो और लैंप के जलने-बुझने से पढ़ाई में खलल पड़ रहा है।” 

मैं रुक गया और सोने लगा। तभी अमित ने कहा, “भाई तुम गूगल पर क्या ढूँढते रहते हो?” 

“बस यही कि‍ जिंदगी में आगे खेती करूँगा। मैं किसान बनना चाहता हूँ।” 

ये सुनकर अमित हँसने लगा, “तुम खेतों में मजदूरी करोगे?” 

“हाँ यही समझ लो।” कहकर मैं मुँह एक तरफ करके लेट गया। अमित ने सोचा कि मैं मजाक कर रहा हूँ। लेकिन वो कुछ बोला नहीं, फिर से पढ़ने लगा।

सच में मैं एक किसान बनकर आगे का काम करना चाहता था। पर फिर भी अपनी पढ़ाई जारी रखकर। इस काम के लिए हमारे गाँव गागोली में नौ एकड़ जमीन भी थी जो कि‍ में वात सोहना (हरियाणा) में एक गाँव है। इस जमीन में पाँच एकड़ तो पुश्तैनी है। बाकी की जमीन पापा ने धीरे-धीरे खरीदी थी जिस में मेरे चाचा खेती करते थे, लेकिन हमें कुछ नहीं देते थे। पापा सोचते थे कि चाचा राजिंदर को ज्यादा नहीं बचता है, इसलिए पापा ने उनसे कुछ नहीं माँगा। कभी पहले चाचा साल में एक बार चावल या गेंहूँ ट्रक में भरकर भेज देते थे। पर पिछले पाँच साल से वो भी बंद कर दिया था। हमें भी गाँव गए पाँच साल हो गए थे। दादा जिंदा थे तब हम वहाँ साल में एक बार चले जाया करते थे, पर पापा हर चार या पाँच महीने में गाँव का चक्कर लगा आते थे। दादा के निधन के बाद गाँव जाना बंद था। दादी को तो मैंने कभी देखा ही नहीं था। मरने से पहले दादा ने पापा और चाचा की जमीनों का बँटवारा कर दिया था, साथ में घर का भी। नया घर चाचा के पास था और पुराना पापा के पास था, जो अब खण्डहर हो चला था। 

अब मुझे पापा को मनाना था कि‍ अब मैं गाँव जाकर खेती करूँ। मुझे खेती में क्या करना था, उसकी एक योजना भी बना ली थी। मैंने एक दिन पापा से कह ही दिया, जब वे ऑफिस से आए। 

“पापा अब मैं खेती करना चाहता हूँ।” मैंने डरते-डरते कहा। 

पहले पापा हँसे फिर बोले, “कभी फावड़ा भी उठाया है जो तुम खेती करने की कह रहे हो? तुझे पता नहीं कितनी अकल से खेती की जाती है। तुमने कभी चावल की निराई की है? बस तुम पढ़कर नौकरी कर लो, यही तुम्हारे लिए अच्छा है।” यह कहकर हँसते हुए वो अपने कमरे में चले गए। पर मैं भी ढीठ था। मैंने सोचा इतवार को पापा की छुट्टी होगी तब पापा से बात करूँगा। अगले दिन इतवार था तो मैं उनके पास गया। पापा अखबार पढ़ रहे थे।

“पापा मैं... पापा मैं किसान बनना चाहता हूँ... पर मैं पढ़ाई जारी रखूँगा। मुझे एक मौका चाहिए। मैं खेती-बाड़ी करना चाहता हूँ।”

“तेरी समझ में नहीं आता क्या? तेरे से ये नहीं होने वाला, तू बस पढ़ाई कर। ये काम वो लोग करते हैं जिन्होंने इसे शुरू से किया हो। तू बस पढ़ाई कर, ये काम अनपढ़ों के होते हैं तुम्हारे जैसों के नहीं।” पापा के विचार सुन कर मैं हैरान रह गया। मैं समझ गया की उन्हें मनाना आसान नहीं रहने वाला है। 

“पर क्यों नहीं कर सकता? मैं भी कर सकता हूँ, मैं सच कह रहा हूँ। मुझे एक मौका तो दो।” पापा मुझे घूरकर देख ही रहे थे कि तभी मम्मी वहाँ आ गई, “क्या करना है तुम्हें?” 

“साहबजादे खेती करना चाहते हैं।” फिर वो अखबार के पन्ने पलटने लगे। मम्मी ने कहा, “तुम जानते नहीं कितनी मेहनत का काम है ये। कभी बारिश तो कभी ओले मार देते हैं फसल को। तेरे से ये नहीं होने वाला और तेरी ऊम्र ही क्या है जो तुम अपने शरीर को खेती में तोड़ो।” 

“मम्मी मैं अठारह साल का हूँ। मेहनत-मशक्कत से तो शरीर बनता है बिगड़ता नहीं है। प्लीज मान जाओ।” मम्मी ने मुझे घूर कर देखा पर फिर नरम हो गई।

“तू बेवकूफ है जो अपना चाँद-सा चेहरा खेती में काला करना चाहता है।” मम्मी ने कहा। पापा गुस्से में अखबार टेबल पर रखकर नहाने चले गए। अमित भी हँसने लगा। 

“भाई हम में से एक को तो किसान होना ही चाहिए, जो सेब-संतरे-केले-अमरूद और चावल लाकर हमें खिला सके।” 

“किसान ओए किसान! इतना भी नहीं जानते सेब ठंड में होते हैं।” 

“मैं कौन-सा अभी किसान हूँ जो मुझे ये सब पता होगा।” कहकर मैं मम्मी के पीछे चाय लेने रसोई में गया, “मम्मी प्लीज मान जाओ। हमारे क्या खेत नहीं हैं जो हमेजमीन खरीदनी पड़ेगी? एक-दो साल खेती कर लेने दो।” मम्मी मुस्कराई और शरारती अन्दाज में कहा “वो तेरी गर्लफ्रेंड है ना गुप्ता जी की लड़की, वो तेरे से शादी नहीं करेगी। अगर उससे शादी करनी है तो पढ़-लिखकर अफसर बन जा। किसान से शहर की कोई लड़की शादी नहीं करती है।” मम्मी हँसती रही काफी देर तक। मैंने चाय लेकर अमित से कहा, “क्या पट्टी पढ़ा दी तुमने मम्मी को? निधि के बारे में वो मजाक उड़ा रही है। मैंने पहले ही कहा था मम्मी और पापा से कोई इस बारे में बात नहीं करना।”

मुझे अमित पर गुस्सा आ रहा था मैं तो अपने काम के लिए उन्हें राजी कर रहा था ये तो मुझे कहीं और फँसा रहा था। 

उसने कहा, “किसान अब नहीं मिलेगी वो निधि तुझे। कौन लड़की शहर से गाँव जाती है?” 

अपना मजाक चारों तरफ से बनता देख मैं मुँह फुलाकर कमरे में घुस गया। तभी मम्मी कमरे में आई, “बेटा चाय पी ले। इस खेती-बाड़ी को दिमाग से निकाल दे। तेरे चाचा भी खेती करते हैं, उन्हें क्या बचता है? समझ अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है, बस अठारह साल। पढ़-लिखकर कुछ बन जा।” मुझे चाय देते हुए मम्मी ने कहा। 

एक बार तो लगा की ऐसे बात नहीं बनेगी पर मम्मी पापा की रजामन्दी के बाद ही मैं खेती कर सकता था इसीलिए मुझे अपनी बात पर अड़ा रहना था। 

“पर मम्मी, मुझे ऐसी खेती नहीं करनी।” 

“पर कैसी करनी है?” 

“मैं अभी नहीं बता सकता हूँ।” मम्मी ने मेरे सर पर हाथ रखा और कहा

“बेटा पढ़ने-लिखने की उम्र में तुम किसान बनोगे? सच पूछो तो गाँव के लड़के भी खेती नहीं करते हैं। वे भी पढ़-लिखकर नौकरी करना चाहते हैं। जो हैं वे बस पेट पालने के लिए ही इस काम में घुसे हैं। उनके माँ बाप भी नहीं चाहते कि वे खेती-बाड़ी करें। तुम क्या करोगे गाँव जाकर? ये काम मैं तुम्हें नहीं करने दूँगी। मैं नहीं चाहती कि तुम गाँव जाओ। तुम्हें नहीं पता मैं और तेरे पापा कैसे निकले हैं उस गाँव से। हाँ अगर तुम खेती करना चाहते हो तो अपने चाचा के घर दो महीने साल मेजाकर ये शौक पूरा कर सकते हो। बेटा ये समय तुम्हारे पढ़ने का है। मेरी बात ध्यान से समझ। तुम दोनों भाई पढ़-लिखकर कुछ बन जाओ। बहुत समय है तुम्हारे कमाने के। मैं तुम्हें मेहनत-मजदूरी में नहीं झोंक सकती हूँ।” 

मैंने चाय की आखिरी घूँट लेते हुए कहा, “पर मम्मी, मैं ऐसी खेती नहीं करना चाहता। तुम नहीं जानती इस काम में पैसे भी हैं अगर सूझ-बूझ से खेती की जाए।” पर मम्मी ने मुँह बनाकर मेरे सर पर हल्की सी चपत लगाई। वे शायद सही भी हो वो मेरे भले के लिए ही कह रही थी शायद मेरी बेवकूफों वाली सोच पर उन्हें गुस्सा भी आ रहा था।

“तेरे दिमाग में भूसा भरा है जो तेरे भले की बात समझ नहीं आती। क्या करेगा खेती करके? तेरी शादी भी नहीं होगी किसी अच्छी लड़की से। इतनी-सी उम्र में ये मत सोच कि‍ तुझे करना क्या है। तू बस पाँच-छह साल पढ़ाई कर। और ये शौक खेती का अपने चाचा के घर जाकर पूरा कर लेना।” 

मैं सिर्फ सुनता रहा। मुझे किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। पापा कमरे में आए और बोले, “बेटा इस खेती को दिमाग से निकाल दे। गाँव में भी कोई आदमी अपने बच्चों को इस काम में नहीं धकेलना चाहता है। लोग तो मजबूरी में ही इस काम को करते हैं।” 

“पर पापा...” पापा को भी अब गुस्सा आ गया। वो भी मेरे खेती के काम को करने से नाखुश ही थे पर मैं अड़ा रहना चाहता था। नहीं तो मैं कुछ भी नहीं कर सकता था। उन्होने गुस्से में कहा “पर क्या? बाग लगाएगा खेतों में जो तू सोच रहा है बहुत पैसे है इस काम में? गाँवों से हर साल न जाने कितने ही लोग शहर का रुख करते हैं। कुछ नहीं रखा बेकार के इस काम में। मैं भी पढ़-लिखकर गाँव को छोड़ आया हूँ। जानते नहीं हो हरियाणा मेलड़कों की शादी तक नहीं होती है। तुझे शहर में रहकर अच्छा मौका मिला है पढ़ाई का। छोड़ ये सब, ये तुम्हें ठोकरकेअलावा कुछ नहीं देगा। किसान सुबह चार बजे उठते हैं और रात के आठ बजे तक काम करते हैं। मिलता क्या है इस काम में, कुछ पैसे छह महीने में? जानते हो टीवी देखने का भी समय नहीं मिलता है किसानी में। बस मशीन की तरह काम मेलगे रहो सुबह से शाम तक। अगर नहीं मानता तो जाकर गाँव में देख आ, वे अपनी साल भर की कमाई में एक बाइक भी नहीं ले पाते हैं। मैंने तो तुम्हें बुलेट दिला दी है।” पापा गुस्से में थे पर मैं उन्हें प्यार से मनाना चाहता था। पर लगा उन्हें समझाना बहुत मुशकिल है। वे अपनी सोच नहीं बदल सकते थे। उन्होंने शायद खेती का सिर्फ एक पहलू ही देखा था जो की मदर इन्डिया फिल्म की तरह का था। जहाँ किसान बस गरीबी और भूख से ही मरते रहते हैं।

“पर पापा मैंने इस काम के लिए पूरी तैयारी की है गूगल से। पापा मैं कर सकता हूँ और अपनी पढ़ाई भी जारी रख लूँगा। मेरा काम ज्यादा मेहनत का नहीं है।

तुझे समय ही नहीं मिलेगा वहाँ पढ़ने का। मैं तेरे भले के लिए ही तो कह रहा हूँ। अगले साल पूरी तैयारी के साथ कॉलेज पहुँच।” मेरी आँखों में पानी आ गया ये सब समझाने में, मैं शायद मम्मी-पापा को नहीं मना सकता था मुझे लगने लगा पर मैं अभी हार मानने वाला नहीं था “पर पापा, मैं ये काम कर सकता हूँ। आप मेरी बात पर विश्वास करिए। मैं अगर गलत साबित हुआ तो आपको मैं मुँह नहीं दिखाऊँगा।” 

“चुप कर नहीं तो पिटेगा! जो कहा है उस पर ध्यान दे। कितने समय से समझा रहा हूँ, किसने ये तेरे दिमाग में डाल दिया है कि‍ खेती-बाड़ी करके करोड़पति बन जाएगा।” 

पापा ने अपना धैर्य खोते हुए कहा। तभी मम्मी ने कमरे में आकर कहा, “बेटा जवान है, प्यार से समझाओ। ये सब मैं इसे कह चुकी हूँ। जाकर महीने भर इसे चाचा के घर छोड़ आओ, सब समझ में आ जाएगा कि‍ कितना कमाते हैं वो। कुछ दिन हाँड़ गला देने वाली मेहनत करने दो।” मुझे लगा की बात बनने की जगह बिगड़ रही है। पर मैं अपने सपने को छोड़ नहीं सकता था। मुझे तो जीतना ही है चाहे जो हो जाए। 

“मम्मी मैं ऐसी खेती नहीं करूँगा जिसमें मेहनत है।” 

“तो क्या गेहूँ चावल की फैक्ट्री लगाएगा?” पापा ने अपना पारा बढ़ाकर मुझे धमकाया। मैं भी सुनकर एक तरफ हो गया। पापा वहाँ से चले गए। मम्मी ने कहा कि आप फिक्र मत करें, मैं समझा दूँगी। 

मम्मी-पापा वहाँ से चले गए। अमित भी कमरे में आ गया और बोला, “भाई खेती में ऐसा क्या है जो तुम करना चाहते हो?” 

“मेरी बात पर किसी को यकीन नहीं है, पर ये एक अच्छा काम है।” 

“पर मम्मी-पापा नहीं मानेंगे।” 

“क्या मैं उनकी तरह ही जियूँ? मैं अपने लिए कोई रास्ता नहीं बना सकता?” मैंने रोते हुए कहा। किसी की सोच को बदलना बेहद मुशकिल होता है मेरे माॅ पिता की तरह। उनमें ये सोच बस कर रम गई थी की खेती एक आजीविका का सबसे बुरा विकल्प है। 

“रो मत। बस अब एक ही रास्ता है तुम्हें अपनी बात मनवाने का। तुम दो दिन तक खाना-पीना छोड़ दो तो शायद वे मान जाएँ। जब पापा ने बाइक खरीदने के लिए तुम्हें ना कर दी थी तो तुमने खाना छोड़ दिया था तो वो मान गए थे।” 

“पर तब की बात अलग थी। अब मैं खाना नहीं छोड़ सकता।” 

“तुम बस नाटक करो और खाना मत छोड़ो। मैं तुम्हें अपने में से आधा खाना दे दूँगा।” सुन कर मैं समझ गया मेरा भाई मरे से ज्यादा अक्ल वाला है। अब मुझे लगा एसे मेरा काम हो जाएगा। वे मेरे माॅ-पिता थे वे हरगिज नहीं देख सकते थे की मैं भूखा रहूँ।

“यार तेरे में बहुत अक्ल है। सच में पूरा शातिर है तू, पूरा का पूरा कमीना है।” ये कहते हुए मैंने धीरे से उसके सर पर चपत लगाई। जैसे ही शाम का खाना बना, मम्मी ने कहा, “राघव, खाना लग गया है, आकर खा ले।” 

मेरे प्लान के हिसाब से मैं खाना खाने नहीं गया। पापा-मम्मी ने खाना खा लिया। मुझे आते ना देख पापा ने कहा, “क्या ड्रामा है अब ये खाना क्यों नहीं खा रहा है?”

“वही बात। खेती-बाड़ी करूँगा और क्या! जिद्दी है बचपन से ही, कितना भी समझा लो नहीं मानेगा।” मम्मी ने कहा। मैं ये सब सुन रहा था। 

“एक ही दिन में पता चल जाएगा और एक दिन ना खाने से मर थोड़ी जाएगा। आज नहीं तो कल खा लेगा, तुम परेशान मत हो।” मम्मी से पापा ने कहा और वो अपने हाथ धोकर चले गए। मम्मी भी बर्तन धोने चली गई। 

अमित मेरे लिए खाना ले आया। मैंने कहा, “इतना कम खाना?” 

“वो मुझे ज्यादा भूख थी, इसलिए एक रोटी ज्यादा खा ली।” 

“पर ये तो ऊँट के मुँह मेजीरा है।” मैंने कहा तो अमित हँसते हुए टीवी देखने लगा।

अगली सुबह भी ये खाना ना खाने का ढोंग चलता रहा और जब शाम को पापा घर आए तो उन्होंने मम्मी से पूछा, “खाना खाया इसने?” 

“नहीं, चाय तक नहीं पी है।” 

“ठीक है, आज नहीं तो कल खा लेगा।” 

उन्होंने भी रात का खाना नहीं खाया। ये सब देखकर मुझे भी बुरा लग रहा था। रात को अमित मेरे लिए खाना लेकर आया। पर ये जान कर की पापा ने खाना नहीं खाया मेरी भी भूूख मर गई। मन से मैं अपराधी महसूस कर रहा था मैं इस नाटक को अब आखरी कोशिश के बाद बन्द करना चाहता था की मैं खेती करूँ। 

“यार मेरा मन नहीं है, पापा ने आज खाना नहीं खाया।” 

“तो क्या हुआ तू तो खा सकता है।”

“नहीं मेरा मन नहीं है।” मैं बिस्तर पर लेट गया। तभी मम्मी मेरे पास आई, “बेटा दूध तो पी ले।” 

“नहीं मम्मी, नहीं पीना मुझे दूध। आप मेरी बात क्यों नहीं मानते?” 

“बेटा मान रहे हैं पर तू पहले सीख खेती कैसे की जाती है, तभी तो कर पाएगा। अगले महीने चला जा अपने चाचा के घर।” 

“मम्मी मैं जानता हूँ तुम मुझे ये सब भुलवाना चाहते हो जो एक महीने के लिए कह रही हो।” इतना सुनकर मम्मी मुस्कुराती हुई वहाँ से चली गई।

रात बारह बजे मैं पापा के कमरे में गया, “पापा उठो।” 

“हाँ बोलो।” पापा ने उठते हुए कहा। 

“पापा, क्या मैं कभी अपनी मर्जी से जी पाऊँगा? आप मेरी जिंदगी के सारे फैसले लेते हो पापा, पर मैं अब बड़ा हो गया हूँ। अपना भला-बुरा समझता हूँ। मैं अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए खेती-बाड़ी करूँगा। मेरी तरह की खेती में मेहनत कम है। और ज्यादा कुछ होगा तो मजदूर रख लूँगा। मैंने इन सब की तैयारी पहले ही कर ली है। आप अपने बेटे पर विश्वास कर सकते हैं। आप मुझे ये सब करने दीजिए। मैं अगर कुछ नहीं कर पाया तो कभी कुछ करने के लिए आप से नहीं कहूँगा। आप एक मौका तो मुझे दे ही सकते हैं, प्लीज पापा।” पापा अब पिघल गए। वे शायद समझ गए की जवान होते बच्चों पर अपनी सोच को थोपा नहीं जा सकता है। उन्हें भी नई सोच बना लेना चाहिए। 

“ठीक है, तेरी जैसी मर्जी। मैं तो तुम्हें समझा रहा था कि बड़ी परेशानी होगी। तुम्हें ये काम करने में साथ में पढ़ाई भी करनी है पर जो तुम चाहो कर सकते हो बेटा, अब तुम जवान हो गए हो। धीरे-धीरे सब समझ जाओगे। ऐसे ही बाल सफेद नहीं किए हैं मैंने। जाओ तुम खेती ही करो।” 

पापा ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा। मम्मी भी वहीं पर लेटी हुई थी। वो उठकर बोली पापा से, “ये क्या कह रहे हो आप? जानते नहीं कि इससे नहीं होगा?” 

पापा ने कहा, “एक मौका तो देना चाहिए। कर लेने दो इसे अपने मन की।” 

इतना सुनकर मैं हवा में उछल पड़ा और पापा से कहा, “नौ-दस लाख भी देने होंगे आपको।”

“अरे दस लाख किसलिए बेवकूफ? वो मेरी तो जीवन भर की पूँजी है।” पापा चिल्लाए।

तभी मम्मी ने हँसते हुए कहा, “अब मान गए हो तो दे दो। इसे भी पता चलेगा कि‍ शादी के लिए रखे पैसे भी पानी में गए।” 

मैंने कहा, “मैं चंडीगढ़ जा रहा हूँ कल ही।”

“पर वहाँ क्यों?” मम्मी ने पूछा। 

“खेती के बारे में पता करने।” 

“पर ये खेती कैसी खेती है?” 

“जब करूँगा तो पता चल जाएगा।”

“अच्छा अब खाना तो खाले।” मम्मी रसोई में गई और राजमा चावल ले आई।

“पापा के लिए भी ले आओ।” मैंने कहा तो मम्मी उनके लिए खाना लाने चली गई।

अगले दिन शाम को चंडीगढ़ के लिए निकल गया। सुबह वहाँ पहुँचकर मैंने अपनी जानकारी एक फिल्म मेली। बाजार से कुछ जरूरी सामान खरीदा जो मुझे गाँव मेजरूरी था और वहाँ नहीं मिलता था। फिर वहाँ से रात को ही घर के लिए चल दिया।

उधर पापा ने चाचा से भी अपनी जमीन वापसी के लिए कहा। थोड़ी ना-नुकुर के बाद वो मान गए। मैंने अमित से भी दो दिन के लिए गाँव जाने को कहा पर उसने कहा कि उसके दसवीं के एगजाम आने वाले हैं और स्कूल मेजरूरी टेस्ट भी है। मैं सुबह-सुबह ही अपने गाँव गागोली के लिए निकल गया। ये खेती क्या थी, मेरे अलावा किसी को पता नहीं था। तीन घंटे बाइक चलाकर मैं सोहना से अपने गाँव पहुँचा। पहुँचते ही मैंने चाचा-चाची के पाँव छुए तो उन्होंने आधे मन से आशीर्वाद दिया। मैं फिर अपने भाई से मिला जिसका नाम था सत्ते। सत्ते तो मुझे देखकर खुश था पर चाचा-चाची को मुझसे मिलने की कोई खुशी प्रतीत नहीं हो रही थी। चाची ने मुझे काली चाय दी और कहा, “बेटा इस जमींदारी का तुम्हें कुछ पता भी है जो अचानक ही यहाँ आ गए। अभी तो तुम्हारे खेतों में हमारी फसल खड़ी है, उसे तो काट लेने देते।”

“चाची, खेतों में कौन-सी फसल है?” 

“ज्वार की फसल है बेटा।”

“ठीक है, मैं आपको ज्वार के पैसे दे दूँगा।” 

“दो लाख की ज्वार है दे पाओगे इतने पैसे?” चाचा ने कमरे में आते हुए कहा। 

“हाँ क्यों नहीं। दे दूँगा।” ये सुनकर चाचा ने कहा, “पर तुम करोगे क्या यहाँ पर?” “वो मैं बता दूँगा क्या करूँगा।” इतना सुनकर चाचा मुँह बनाते हुए वहाँ से चले गए।

शाम को सत्ते ने कहा, “चलो गाँव में तुम्हें घुमा लाता हूँ।” 

“नहीं यार, अभी थका हुआ हूँ। कल चलेंगे, अभी तीन घंटे बाइक चलाकर आया हूँ।”

“ठीक है, तुम मेरे कमरे मेलेट जाओ। मैं बाहर जा रहा। खेत से थोड़ी ज्वार भी लानी है।” 

“तू लाएगा ज्वार? कौन काटेगा ज्वार को? आती भी है क्या तूमने ये काम कभी किया भी है?” 

“हाँ, मम्मी काट देती है और मैं अपनी बाइक पर ले आता हूँ।” 

मैं सत्ते के कमरे में आ गया। उसने कमरा बहुत अच्छी तरह सजा रखा था। हॉल के मुकाबले कमरे में ऐसी भी था, जो मैं देखकर दंग रह गया। फिर मैं घर के पीछे गया तो देखा एक जेनरेटर भी था जिसे खेतों में पानी निकालने वाले इंजन से जोड़ रखा था। मुझे पता था गाँव में बिजली दिन में कुछ घंटे ही रहती है। इस समय घर में कोई नहीं था। मैं दूसरे कमरे में गया, ये कमरा चाचा-चाची का था। इस कमरे में भी ऐसी था। मैं फिर घर के ऊपर गया, यहाँ पर भी दो कमरे थे। अब सिर्फ एक कमरा बचा था जहाँ मैं नहीं गया। ये कमरा चचेरी बहन किरण का था। उस में गेहूँ पीसने वाली एक चक्की लगी थी। चक्की काफी बड़ी थी, ये शायद गाँव के लोगों के लिए थी जिस में पैसों में गेहूँ पीसा जाता था। चक्की को डीजल के इंजन के साथ-साथ मोटर से भी जोड़ रखा था। बस पट्टे से जोड़ना था। 

उस घर में केवल तीन लोग ही रहते थे। किरण की शादी हो चुकी थी। गाँव मेलड़कियों की शादी जल्दी कर देते हैं। मैं सत्ते के कमरे में चला गया जहाँ पर हल्की ठंड रह गई थी ऐसी के चलने के बाद। मैंने कमरे में अलमारी को देखा जहाँ पर एक लैपटॉप भी था। ऐसा लग ही नहीं रहा था ये किसी गाँव वाले का घर हो। किचन को भी मैंने देखा, यहाँ पर गैस सिलेंडर से लेकर मिक्सी तक थी। घर पर एक समरसिबर भी था, पहले यहाँ पर हैंडपंप हुआ करता था जिससे सारे घर का पानी मिलता था। घर में एक ही कमी थी, बस गाड़ी नहीं थी। देखने से लगता था चाचा चार-पाँच साल में धनी व्यक्ति हो गए हैं। मैं फिर सत्ते के कमरे मेजाकर सो गया। ये सोचते हुए कि‍ सत्ते के कमरे में एक भी किताब नहीं देखी थी ना और किसी कमरे में थी। शायद उसने पढ़ाई छोड़ दी थी। पर चाचा ने तो पापा से कहा था सत्ते बी.ए. के पहले साल में है। ये सब सोचते-सोचते मेरी आँख लग गई।

रात को जब घर की घंटी बजी तब मेरी नींद खुली। अब रात के नौ बज रहे थे चाचा-चाची घर आ गए थे। मैंने पूछा, “चाचा इस समय घर आए, अभी तक कहाँ थे?” 

“अरे बेटा, खेती ऐसे ही नहीं होती। बड़ी मेहनत का काम है।” चाची ने कहा।

“क्या चाचा, घर में चक्की लगी है? आप ने गेहूँ पीसने की दुकान बना रखी है?” मैंने पूछा।

“हाँ बेटा, खेती से क्या काम चलता है? कुछ और भी करके इस महँगाई मेजीवन कटता है।” 

मैंने उन्हें और ज्यादा कुछ नहीं कहा। असलियत में चाचा-चाची आस-पड़ोस में ये कहने गए थे कि‍ देखो रमेश भाई साहब का लड़का अब खेती-बाड़ी करने आ गया है। हम उनकी जमीन से दो रोटी खा लेते थे, पर उन्हें मंजूर नहीं कि‍ कोई चैन से रहे। लड़का पढ़ा नहीं तो कसूरवार हमें ठहरा रहे हैं। रात-दिन जमींदारी में पिसेगा तब पता चलेगा यहाँ क्या बचता है और क्या नहीं। देख लेना दो महीने में ही भाग जाएगा।

मैं रात बारह बजे तक खाने का इंतजार करता रहा पर अभी खाना नहीं बना था। घर में चक्की की आवाज आ रही थी, जहाँ चाची गेंहूँ पीसने मेलगी थी। मैंने रसोई मेजाकर देखा तो पाया चाची ने खाना तो बना दिया था, पर मुझे नहीं दिया था। चाचा घर के बाहर फिर से चले गए थे। तभी सत्ते आया और कहा, “राघव खाना खा लिया?” 

“नहीं अभी नहीं खाया। किसी ने कहा ही नहीं।” 

“अरे मम्मी चक्की सँभाल रही है। वो शायद काम मेलग गई होगी। मैं अभी खाना लाता हूँ तुम्हारे लिए।” 

उसने खाना परोस दिया। कद्दू की सब्जी थी जिस में दुनिया भर की मिर्ची थी। जैसे ही मैंने पहला निवाला मुँह में डाला, मुँह जल गया। यही हाल सत्ते का भी हुआ। उसने खाना नहीं खाया और चाची के पास जाकर चिल्लाने लगा, “मम्मी क्या मिर्ची सब्जी से भी ज्यादा डाल दी, कौन खाएगा ऐसा खाना?” 

“अरे बेटा डाली तो उतनी ही थी पर मुझे क्या पता था मिर्ची ज्यादा तीखी थी। तू शक्कर से रोटी खा ले।” मैं सब समझ रहा था कि वे मेरे आने से खुश नहीं थी।

“पर राघव किससे खाएगा?” 

“उसे भी शक्कर दे दो।” 

सत्ते रसोई में गया और दो कटोरी शक्कर में घी डालकर ले आया जिससे मैंने और सत्ते ने खाना खाया। मैंने सत्ते के मुँह से शराब की बदबू महसूस की पर बोला कुछ नहीं। मैं खाना खाकर ऊपर चला गया। फिर देव और सोनू से बारी-बारी से बात की। 

सत्ते भी थोड़ी देर में ऊपर आ गया तो मैंने सत्ते से पूछा, “यार तुने पढ़ाई छोड़ दी है क्या?” 

“हाँ दसवीं में दो बार फेल हो गया था, इसलिए पापा ने पढ़ाई बंद करवा दी ताकि‍ कोई मजाक ना बनाए कि‍ उनके लड़के का...” 

“तो अब क्या करते हो? शराब की बदबू भी आ रही है तुम से।” 

सत्ते हँसते हुए बोला, “मुझे पढ़ाई करने की क्या जरूरत? मुझे कौन-सी नौकरी करनी है? गाँव भर में पापा का नाम है, जमीन-जायदाद की कमी नहीं है। यार तू भी देख जब साल में चार लाख के चावल दो-दो लाख के गेंहूँ और ज्वार हो जाए तो क्या तुम पढ़ते? साथ में रोज चक्की का एक हजार रुपया अलग से आ जाता है। जानते हो, पूरे गाँव में पापा का नाम चलता है।”

“पर ये सब तो उनका है। तुम्हें भी तो कुछ करना चाहिए न?” 

“अरे अकेला हूँ। कौन से दो-तीन भाई हैं जो कमाना पड़े! मेरे पापा ने मेरे लिए कौन-सी कमी छोड़ी है? अब तो मेरे लिए शादी के भी रिशते बड़े-बड़े घर से आने लगे हैं। मेरी शादी में स्विफ्ट गाड़ी मिल ही जाएगी।”

मुझे उसे अब कुछ नहीं समझाना था। समझ गया कि बैल बुद्धि है, उसको कुछ समझ में नहीं आने वाला। मगर सत्ते जैसा भी था, दिल का साफ था। वो मुझे प्यार भी बहुत करता था, नहीं तो मुझे ये सब नहीं बताता। 

“तू बता तेरे दिमाग में खेती करने की क्या घुस गई जो मैंने कभी नहीं सोचा?” सत्ते ने पूछा।

“यार कॉलेज में एडमिशन नहीं हुआ इसलिए।” 

“पर तेरे परिणाम में 81 प्रतिशत नंबर थे।” 

“इससे भी ज्यादा चाहिए थे।” 

“हमारे यहाँ तो बस बारहवीं में पास हो जाने पर ही एडमिशन हो जाता है।” 

“चलो ठीक है, अब कल बात करना, मुझे सोना है।” 

“ठीक है तू सो जा।” 

सत्ते की बात सुनकर मैं सारी रात सोच में चकित था कि पापा तो कह रहे थे खेती-बाड़ी में बड़ी मेहनत है, पर पैसे नहीं हैं। लेकिन यहाँ तो उल्टी गंगा बह रही थी। सोचने लगा कि चाचा तो पापा के सामने गरीबी का नाटक करते हैं, पर असलियत कुछ और है। वो तो गेहूँ-चावल ना भेजने का कारण कम उपज बताते हैं, साथ में पापा से किरण की शादी में चार लाख ऐंठ भी लिए थे। तीन साल हो गए हैं पर पैसे वापस नहीं दिए हैं। जब भी मम्मी ने उनसे पैसे वापसी के लिए कहा तो वो कहते रहे कि फसल अच्छी नहीं हुई है। 

अगले दिन मैं गाँव में घूमने निकला। मैंने देखा कि ये गाँव वैसा गाँव नहीं रह गया था। यहाँ तो बहुत बदलाव आ गया था। गाँव में जो पहले कच्ची सड़क थी या गली थी उसकी जगह पर कंकर-ईंट की पक्की सड़क बन गई थी। साथ में जो नालियाँ कच्ची थी, उनकी जगह सीवर की लाइन पड़ गई थी। मैंने सत्ते से पूछा, “इन सीवर लाइन का गंदा पानी कहाँ छोड़ा जाता है।” 

“वो गाँव की पोखर में जो गाँव के बाहर है।” 

मैं गाँव के घर भी देख रहा था। सारे गाँव के घर सुंदर बन गए थे। मैंने कुछ गाँव के पुराने घर भी देखे जो पहले के जैसे थे, पर फिर भी नए घर ज्यादा थे। गाँव में घूमने से पता चला कि‍ अब इस गाँव के लोग काम भी नए तरीके से कर रहे थे। ये लोग मवेशियों का चारा भी खेत से बाइक से लाते थे। साथ में खेतों में भी काम आसान हो गया था। यहाँ अब खेत की फसल हाथ से काटने के बजाय मशीन से काटी जाती थी। सड़क किनारे के कई घरों के बाहर मशीन भी देखी।

सत्ते से पता चला इन मशीनों से एक दिन में पाँच से दस हजार भी गाँव के लोग कमा रहे थे जिनके पास ये मशीनें थी। मैंने कुछ दलितों के घर भी देखे। वे भी पक्के बन चुके थे। सत्ते से पता चला कि गाँव के लोग अब खेती पर ही निर्भर नहीं थे, वे अब नौकरी भी करते थे, कोई फैक्ट्री में तो कोई कंपनी में। शायद बड़े शहर के पास होने से ये सँभव हो पाया। 

मैंने सत्ते से पूछा, “क्या गाँव के दलितों पर भी कुछ फर्क पड़ा या अब भी वे गरीब ही रह गए हैं?” 

“अरे उनकी तो सबसे ज्यादा मौज है। थोड़ा बहुत पढ़-लिख जाने से ही उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाती है। पर फिर भी गाँव में छुआछूत है। लोग उन्हें अब भी छोटा ही मानते हैं, पर असलियत मैं इनकी माली हालत सबसे अच्छी है।” 

मैंने एक बड़ी हवेली देखी जो अब भी ठीक-ठाक हालत में थी। जिसकी ये हवेली थी, मैं उन्हें जानता था। मैंने सत्ते से कहा, “ये हवेली अभी तक वैसी ही है। क्या ये लोग अब गाँव में सबसे पैसे वाले नहीं रहे?” 

सत्ते हँसा, “अरे अब ये बड़े जाटों के लोग हवेली में नहीं रहते हैं। वे अब अपने खेतों में बड़े से बंगलो में रहते हैं। उन्होंने तो पाँच साल पहले ही बंगला बना लिया था और वहाँ बस गए थे।”

“अब भी वे गाँव में सबसे ज्यादा खेत रखते हैं?” 

“हाँ अब भी वे गाँव में सबसे ज्यादा खेत रखते हैं। कोई सौ एकड़ भूमि‍ तो होगी ही, पर घर मेज्यादा लड़के होने के कारण उन पर ज्यादा खेत अब हिस्से नहीं आते हैं।”

मैं हँसने लगा, “क्या लड़कों की जगह लड़कियों को जमीन नहीं दी जाती है?”

“लड़की की शादी हो जाने पर उन्हें जमीन नहीं मिलती है, दी जाती तो जमीन ही नहीं बचती।” मैं और सत्ते इस बात पर हँसने लगे।

“अब वे बड़े जाट क्या करते हैं? मतलब उनका धंधा क्या है?” 

“उनका धंधा वही है, ईंटों के दो भट्ठे हैं। किसी के पास रोड़ी डस्ट बनाने की मशीन है।” 

“फिर तो उनके पास पैसों की क्या कमी?” 

“हाँ यही सच है। चलो आज उनके लड़कों के साथ पार्टी करते हैं। वे मेरे अच्छे दोस्त हैं।” 

हम गाँव में घूमकर रोड पर आ गए। और रोड के मंदिर में आकर माथा टेका। मैंने सत्ते से पूछा, “यहाँ क्या अभी भी इस मंदिर में दलितों को आने की मनाही है?” 

उसने मंदिर के बाहर जूते पहनते हुए कहा, “हाँ अब भी इस मंदिर में दलित नहीं आ सकते हैं, पर उनके पास भी मंदिर है जो उनके घरों के पास है।” 

मैंने भी मंदिर के बाहर जूते पहने, “यार तू कह रहा था कि तेरी दोस्ती बड़े जाटों से है। कौन है वो जो तेरी उम्र का है या तेरे से बड़ा है?”

“अरे रघुवीर है मेरे साथ पढ़ा है, मेरी ही उम्र का है। तो आज पार्टी मेरी तरफ से कहीं अच्छी जगह करते हैं।” 

“ठीक है पार्टी की जगह उसके खेत में भट्ठे पर है, पर उसके साथ एक लड़का और आएगा।” 

गाँव घूमकर हम सड़क पर आ गए। मैंने सत्ते से कहा, “क्या अब चाचा-चाची भैंस नहीं रखते हैं?” मैंने इसलिए पूछा की वो कल ज्वार लाया था पर मुझे सारे घर में भैस या गाय नहीं देखी थी।

“रखते हैं, मैं कल उनके लिए ही तो ज्वार लाया था।” 

“पर कहाँ पर है भैंस रखने की जगह?” 

“प्लॉट में है जहाँ हम घूमा करते थे पहले वहीं पर।” 

तभी सत्ते ने कहा, “यार तूने मेरी भाईली तो देखी नहीं।” भाईली का नाम सुनकर मैं हैरान रह गया ये सोचते हुए की ये क्या बला है। 

“ये भाईली क्या होती है?” 

“गर्लफ्रेंड, जिसे हम भाईली कहते हैं। चले क्या वहाँ?”

“कहाँ रहती है तेरी ये भाईली?” 

“पास के ही गाँव मिडकोला में। मेरी ही कक्षा में पढ़ती थी जब हम स्कूल में थे।”

“ठीक है मिला देना।”

“चलो अभी चलते हैं। मैं घर से तुम्हारी बुलेट ले आता हूँ।” 

“क्या मेरी? अपनी ले आ।” 

“अरे बुलेट से छाप अच्छी पड़ेगी।” 

“ठीक है।”

वो फिर चला गया और दस मिनट में मेरी बुलेट लेकर वापस आ गया। हम मिडकोला के लिए चल दिए। उसने बुलेट को गाँव के बाहर लगाई और अपनी भाईली या गर्लफ्रेंड को फोन करने लगा। कुछ ही देर में उसकी भाईली सामने थी। उसने मुझे देखते हुए कहा, “ये शहरी कबूतर कौन है?” 

“ये मेरा भाई है, ताऊ का लड़का। यहाँ गाँव में कुछ काम से आया है।” 

उसने

मेरे से हाथ मिलाया। ये देखकर मैं हैरान रह गया कि‍ गाँव की लड़कियाँ भी लड़कों से हाथ मिलाती थी। मैंने पूछा, “आपका नाम क्या है?” 

“नीतू, और तुमारा?”

“मेरा नाम राघव है।” 

“कहाँ रहते हो?”

“दिल्ली में महरौली।”

वो बहुत गोरी लड़की थी पर उसके बाल भूरे थे। उसने सूट-सलवार पहना था। सूट घुटने से ऊपर था। मैंने सत्ते से कहा, “तुम इनसे बातें करो, मैं सड़क तक घूम आता हूँ।” 

गाँव के बाहर बहुत-सी दुकानें थी। वहीं पर एक चाय की टपरी पर मैं चाय पीने लगा और गाँव के बारे में सोचने लगा कि‍ यहाँ कितना बदलाव आ गया है। पहले गाँव भर में एक ही गाड़ी हुआ करती थी, वो भी बड़े जाटों के घर पर, वो भी छोटी ही जेन। पर अब गागोली गाँव में ही हर चौथे-पाँचवें घर में गाड़ी थी। कैसे गाँव में पहले कच्ची सड़कें हुआ करती थी, पर अब तो गाँव में सीवर भी है। अब देश तरक्की पर है। अब देश में बदलाव देखा जा सकता है।