अर्जुन ने 204 नम्बर कमरे के बंद दरवाजे के पास लगी कॉल बेल दबा दी।
“मुझे अजीब-सा लग रहा है कि इस कमरे में हम रानी ताशा से मिलने जा रहे हैं।” नीना कह उठी।
अर्जुन ने कुछ नहीं कहा।
तभी दरवाजा खोला गया। आधा दरवाजा और बीच में सोमाथ खड़ा दिखा।
अर्जुन और नीना ने उसे गहरी निगाहों से देखा।
“मुझे रानी ताशा से मिलना है।” कहने के साथ ही अर्जुन ने अपना कार्ड निकाला और आगे कर दिया।
“ये क्या है?” सोमाथ ने पूछा।
“मेरा कार्ड।”
“तो मैं इसका क्या करूं?” सोमाथ का स्वर शांत था।
अर्जुन के होंठ सिकुड़े और कार्ड वापस अपनी जेब में रखता कह उठा।
“इस पर मेरा नाम लिखा है और मेरे काम के बारे में लिखा है कि मैं क्या करता हूं। साथ में मेरी तस्वीर लगी है।”
“तुम्हारा नाम क्या है?” सोमाथ ने पूछा।
“अर्जुन भारद्वाज और मैं प्राइवेट जासूस हूं। रानी ताशा से बात करना चाहता हूं।”
दो पल चुप रहने के बाद सोमाथ ने कहा।
“यहीं रुको।” इसके साथ ही पीछे हटकर सोमाथ ने दरवाजा बंद कर दिया।
“ये विजय बेदी होगा, जिसने रात जगमोहन और नगीना को फोन किया था।” नीना ने कहा।
“अभी पता चल जाएगा।” अर्जुन गम्भीर दिख रहा था।
दो मिनट के इंतजार के बाद दरवाजा खुला। विजय बेदी ने दरवाजा खोला था।
“हैलो, तो तुम प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज हो। ये ही कहा था न तुमने। कहो, यहां क्यों आए?” बेदी कह उठा।
“तुम कौन हो?”
“मैं विजय बेदी हूं।”
“रानी ताशा से मिलना है।”
“क्यों?”
“मैं अपनी क्लाइंट नगीना के लिए काम कर रहा हूं। उसका कहना है कि रानी ताशा उसका पति छीनना चाहती है।”
“ऐसा तो कुछ नहीं है मेरे भाई।” बेदी प्यार से बोला –“रानी ताशा को क्या पड़ी है किसी का पति छीनने की। वो तो खुद ही ऐसी शय है कि दुनिया भर के पति उसके सामने गिर-गिर कर मरने लगे।”
अर्जुन भारद्वाज ने तीखी निगाहों से बेदी को देखा।
“वो मेरे से भी सुंदर है।” नीना ने मुंह बनाकर कहा।
“बुरा मत मानना, तुम फुलझड़ी हो तो वो डबल बम है।” बेदी ने छोटी-सी मुस्कान फेंकी।
“तो तुम विजय बेदी हो।” अर्जुन बोला –“रात तुमने ही जगमोहन और नगीना को फोन किया था।”
बेदी बुरी तरह चौंका।
“जगमोहन?” हां...लेकिन-ओह तो तुम देवराज चौहान की बात कर रहे हो?” बेदी के होंठों से निकला।
“अब सही समझे।”
“नगीना, देवराज चौहान की पत्नी है?”
अर्जुन ने सहमति से सिर हिलाया।
‘तो ये चक्कर है।’ बेदी बड़बड़ाया फिर बोला –“रानी ताशा से मिलकर क्या करोगे?”
“मुझे ये जानना है कि ये क्या चक्कर है। रानी ताशा किस फेर में है। वो खुद को दूसरे ग्रह से आई बताती...”
“तुम किन पागलों के चक्कर में फंस गए।” बेदी ने गहरी सांस लेकर कहा।
“क्या मतलब?”
“देख भाई प्राइवेट जासूस।” विजय बेदी ने शांत स्वर में कहा –“ये पागलों वाला मामला है। यहां हर कोई अपने को दूसरे ग्रह से आया बताता है। पर तू इन बातों की परवाह क्यों करता है। मैं प्राइवेट जासूसों को जानता हूं वो सब नोट बनाने के चक्कर में लगे रहते हैं। इस काम की तूने मोटी फीस ली होगी। क्यों न लेगा, आखिर प्राइवेट जासूस जो ठहरा। इधर मुझे भी नोटों की जरूरत है। मेरे सिर में गोली फंसी है उसे ऑप्रेशन करवाकर निकालना है। ऑपरेशन के बारह लाख लगते हैं, रानी ताशा से मैंने बीस लाख में सौदा तय किया है कि देवराज चौहान उसे ढूंढकर दूंगा। पांच लाख तो एडवांस में मार लिए। अब तेरे को तो पता ही होगा कि देवराज चौहान कहां पर है, मुझे उसका पता बता दे। मेरा तो काम बन जाएगा दोस्त।”
अर्जुन ने मुस्कराकर होंठ सिकोड़े।
“बता दे मेरे भाई...”
“तेरे को क्या लगता है कि वो लोग सच में दूसरे ग्रह से आए हैं?” अर्जुन बोला।
“ऐसा भी कभी होता है।” बेदी ने झल्लाकर कहा –“किसी ग्रह पर कोई दुनिया नहीं बसती। सिर्फ पृथ्वी ग्रह पर हम लोग ही रहते हैं। मैंने तुम्हें पहले भी कहा है कि ये पागल लोग हैं, जो खुद को दूसरे ग्रह से आया बताते हैं।”
“मतलब कि ये यहीं के लोग हैं।”
“सौ प्रतिशत।” बेदी ने गर्दन हिलाई।
“किस चक्कर में है। देवराज चौहान के पीछे क्यों है? देवराज चौहान के बारे में ये क्यों कहते हैं कि पीछे एक जन्म में वो राजा देव था, रानी ताशा का पति था और अब उसे वापस...”
“तू कैसा प्राइवेट जासूस है। तेरे को नहीं पता कि पागल लोग कुछ भी कह देते हैं। कहने दे। मैं तो बाकी का पंद्रह लाख लेने के फेर में हूं। तू मुझे देवराज चौहान का पता बता दे। मेरा कल्याण हो जाएगा। उधर तू देवराज चौहान की पत्नी से अपनी मोटी फीस झाड़। हम दोनों का काम हो जाएगा।”
“बहुत समझदार है तू।” अर्जुन मुस्कराया –“तू मेरा असिस्टेंट क्यों नहीं बन जाता?”
“मेरे सिर में फंसी गोली निकलवा दे, तेरा असिस्टेंट भी बन जाऊंगा।”
“तेरे को ट्रेनिंग की काफी जरूरत है।”
“क्यों?”
“क्योंकि तेरे को अभी तक ये नहीं पता कि देवराज चौहान कौन है।” अर्जुन भारद्वाज ने शांत स्वर में कहा।
“कौन है?”
“डकैती मास्टर देवराज चौहान है वो।”
विजय बेदी एकटक अर्जुन को देखने लगा
“नाम सुना है?”
“डकैती मास्टर देवराज चौहान।” बेदी ने लम्बी सांस ली –“ये देवराज चौहान, वो वाला देवराज चौहान है?”
“वो ही वाला।”
बेदी से फौरन कुछ कहते नहीं बना।
“क्या हो गया तुझे?”
“व-वो तो बहुत खतरनाक है, सुना है ऐसा, तू मिला उससे?” बेदी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“मिला।”
“वो खतरनाक है?”
“बहुत। सामने वाला बंदा उसे पसंद न आए तो उसकी गर्दन मरोड़ देता है। तेरे को तो वो पसंद करेगा ही नहीं।”
“क्यों, मैंने उसका क्या बिगाड़ा है?”
“तू दरवाजे पर अड़ा हुआ है, मुझे रानी ताशा से मिलने नहीं दे रहा।”
“पागल लोगों से मिलकर क्या करेगा। वो साले दूसरे ग्रह से कम, बात नहीं करते।” बेदी ने मुंह बनाया।
“कितने लोग हैं भीतर?”
“तीन। रानी ताशा, सोमारा और सोमाथ।”
“जिसने दरवाजा खोला था, वो सोमाथ था?”
“हां।”
“सोमारा कौन है?”
“वो भी अपने को दूसरे ग्रह की बताती...”
“रास्ता दे। मुझे रानी ताशा से मिलना है।”
“यार तू मेरा खेल बिगाड़ देगा। मेरा पंद्रह लाख डूब गया तो...”
अर्जुन भारद्वाज ने पलक झपकते ही कमर में फंसी रिवॉल्वर निकाली और विजय बेदी की छाती पर नाल लगा दी। बेदी घबरा उठा। उसकी जान अटक गई।
“ये-ये क्या?” बेदी के होंठों से हड़बड़ाया-सा स्वर निकला।
“सर।” नीना जल्दी से कह उठा –“पिछली बार गलती से ट्रिगर दब गया और बंदा मर गया था। इस बार भी कहीं गलती से ट्रिगर मत दबा देना। बेचारा मर गया तो सिर में फंसी गोली ऑपरेशन करके कैसे निकलवाएगा।”
विजय बेदी का चेहरा फक्क पड़ गया।
“रि-रिवॉल्वर हटाओ।” बेदी सूखे स्वर में कह उठा।
“रास्ता दे।” अर्जुन ने सख्त स्वर में कहा –“कोई मेरी बात न माने तो कभी-कभी ट्रिगर दब जाता...”
बेदी फौरन दरवाजे से पीछे हटता चला गया।
अर्जुन भारद्वाज ने रिवॉल्वर जेब में रखी और दरवाजा पूरा खोलकर भीतर प्रवेश कर गया। उसके पीछे-पीछे नीना अंदर आई और दरवाजा बंद कर दिया।
बेदी सकपकाया-सा एक तरफ खड़ा था।
अर्जुन ने पूरे कमरे में नजर मारी।
सोमाथ एक तरफ खड़ा था। रानी ताशा सोफे पर बैठी उसे देख रही थी। सोमारा का भी ये ही हाल था।
अर्जुन की घूमती नजर रानी ताशा पर जा टिकी, क्योंकि वो बेहद खूबसूरत थी। इसी से समझ गया कि वो रानी ताशा हो सकती है। तभी बेदी अपने पर काबू पाता कह उठा।
“रानी ताशा ये मिस्टर अर्जुन भारद्वाज है। प्राइवेट जासूस है और देवराज चौ...मतलब कि राजा देव की पत्नी नगीना ने इन्हें आपके पास भेजा है कि आपसे कुछ बातचीत कर सके।”
रानी ताशा के खूबसूरत चेहरे पर कुछ बल पड़े।
“राजा देव की इस जन्म की पत्नी ने भेजा है इन्हें-क्यों...? राजा देव को क्यों नहीं भेजा?”
अर्जुन आगे बढ़ा और रानी ताशा के सामने सोफे पर बैठता हुआ बोला।
“मैं ये जानने की चेष्टा कर रहा हूं कि ये सारा मामला क्या है?”
“कैसा मामला?” रानी ताशा बोली –“मैं अपने राजा देव को वापस ले जाने के लिए आई हूं।”
“कहां से?”
“सदूर ग्रह से। मैं वहां की रानी हूं और राजा देव वहां के राजा हैं।” रानी ताशा ने बेबाक स्वर में कहा।
“सदूर ग्रह कहां पर है?”
“ऊपर, आसमानों के पार।”
“कैसे आईं आप?”
“पोपा से।”
“पोपा?”
“अंतरिक्ष यान को ये लोग पोपा कहते हैं।” बेदी मुस्कराकर कह उठा –“क्यों फालतू के चक्कर में पड़ते हो?”
“तो पोपा इस वक्त कहां है?”
“बर्फीले पहाड़ों के पास, डोबू जाति के यहां पोपा खड़ा है।”
“डोबू जाति कौन-सी जगह पड़ती है इस पृथ्वी पर?”
“कौन-सी जगह?” रानी ताशा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे –“ये मैं नहीं बता सकती। क्योंकि मैं पृथ्वी के रास्तों को नहीं जानती।” उसकी निगाह बेदी पर गई –“तुम बताओ।”
“मैं? मैं क्या बताऊं, मैं तो कभी वहां गया नहीं।” बेदी ने जल्दी से कहा।
“अगर आपको अब पोपा के पास जाना हो तो कैसे जाएंगी?” अर्जुन ने पूछा।
“उसका इंतजाम है हमारे पास।” रानी ताशा ने एक तरफ रखे ट्रांसमीटर जैसे यंत्र की तरफ इशारा किया –“इस यंत्र से मैं किलोरा से सम्पर्क करूंगी और कहूंगी कि वो डोबू जाति के किसी व्यक्ति को यहां भेजे जो हमें पोपा तक ले आए तो डोबू जाति से कोई आ जाएगा, हमें राह दिखाने।”
“किलोरा कौन है?”
“मेरा सेवक, जो कि इस वक्त पोपा पर तैनात है और सब देखभाल करता है।” रानी ताशा ने कहा।
“बबूसा कौन है?”
“तुम बबूसा को कैसे जानते हो?” रानी ताशा के माथे पर बल पड़े।
“मैं उससे मिल चुका हूँ।”
“बबूसा, राजा देव के पास है?” रानी ताशा ने पूछा।
“हां।”
“बबूसा ने हमसे विद्रोह करके बुरा किया। उसे इसकी सजा मिलेगी।” रानी ताशा सख्त स्वर में बोली।
“मुझे तो लगता है कि बबूसा देवराज चौहान का शुभचिंतक है।”
रानी ताशा के होंठ भिंच गए।
“बबूसा के बारे में आपने कुछ नहीं बताया?”
रानी ताशा ने बबूसा के बारे में बताया।
अर्जुन भारद्वाज चेहरे पर गम्भीरता समेटे रानी ताशा की बात सुनता रहा।
रानी ताशा चुप हुई तो अर्जुन सोमाथ और सोमारा को देखकर बोला।
“ये दोनों भी सदूर ग्रह से आए हैं।”
“हां।”
बबूसा ने अपने बारे में जो बताया था, वो ही रानी ताशा ने कहा।
जबकि इस वक्त दोनों एक-दूसरे के खिलाफ काम कर रहे थे। इस बात ने अर्जुन को सोचने पर मजबूर किया कि इनकी बातें आपस में मिल रही हैं।
“लेकिन यहां पर कोई भी ये मानने को तैयार नहीं कि आप लोग किसी दूसरे ग्रह से आए हैं।” अर्जुन बोला।
“तो क्या हम झूठ बोल रहे हैं।” सोमारा कह उठी।
“हो सकता है आप लोग झूठ कह रहे हों।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा –“पृथ्वी ग्रह पर किसी ने कभी भी कहीं पर दुनिया के बसे होने की बात नहीं सुनी कभी। इसलिए कोई नहीं मानेगा ये बात।”
“बेशक कोई मत माने। हम राजा देव को लेकर चले जाएंगे यहां से।” सोमाथ बोला।
“लेकिन देवराज चौहान आप लोगों के साथ नहीं जाना चाहता। वो आपको नहीं जानता।”
“ये सच है कि इस वक्त राजा देव को अपना वो जन्म याद नहीं, परंतु मेरे से बात करते वो तड़प उठते हैं। मेरे पास आना चाहते हैं वो, लेकिन कोई उनसे फोन ले लेता है और बात पूरी नहीं होने देता।”
“ऐसा कुछ नहीं है। मैंने देवराज चौहान से बात की है, वो आपके पास नहीं आना चाहता।” अर्जुन ने कहा।
“सब ठीक हो जाएगा।” रानी ताशा की आंखों से आंसू बह निकले –“मैं जानती हूं अभी राजा देव को उस जन्म का या मेरे बारे में कुछ भी याद नहीं आ रहा, परंतु जल्दी ही उन्हें याद आ जाएगा। जब मेरा चेहरा देखेंगे तो राजा देव को याद आना शुरू हो जाएगा। महापंडित ने ऐसा ही कहा था। तभी तो चाहती हूं कि एक बार राजा देव मुझे अपने सामने देख लें, उसके बाद सब ठीक होता चला जाएगा। वो मुझे बहुत प्यार करते हैं। मेरे बिना रह नहीं सकते। इतना लम्बा वक्त उन्होंने मेरे बिना कैसे बिताया होगा। अपनी ताशा को बांहों में लेने को वो तड़प रहे होंगे।”
अर्जुन भारद्वाज गम्भीर निगाहों से रानी ताशा को देखते कह उठा।
“देवराज चौहान का वक्त बढ़िया कट रहा है क्योंकि उन्हें कुछ भी याद नहीं आपके बारे में।”
“पर मुझे तो सब याद है।” रानी ताशा गालों पर आ लुढ़के आंसुओं को साफ करती कह उठी –“मैं तो कभी नहीं भूली राजा देव को। एक भी पल के लिए भी नहीं भूली। हर वक्त उनकी याद में तड़पती रही और उन्हें ढूंढकर सदूर ग्रह पर लाने के ख्वाब देखती रही। हर जन्म में मैंने राजा देव को ही याद किया।
“हर जन्म में?”
“हां, हर...”
“पर इंसान तो एक जन्म के बाद जब दूसरा जन्म पाता है तो पहले जन्म की बातें भूल जाता है।”
“ऐसा अवश्य होता है परंतु महापंडित की मेहरबानी से मैं कुछ नहीं भूली। महापंडित की कृपा जिस पर रहती है, उसे जरूरत की बातें याद आ जाती हैं। जन्म कराते समय महापंडित दिमाग में कुछ डाल देता है कि बीता जन्म याद रहे।”
“महापंडित जन्म कराता है सदूर ग्रह पर?”
“हां। जीना-मरना उसी के हाथों में है। बहुत बातें हैं जो महापंडित ही करता है। परंतु वो राजा देव का कहा मानता है। वो राजा देव की बहुत इज्जत करता है। राजा देव के लिए वो महत्वपूर्ण है।”
“तो क्या महापंडित नहीं मरता?”
“मरता है। उसका जीवन भी अन्य लोगों की तरह एक दिन खत्म हो जाता है, परंतु ऐसे वक्त के लिए वो अपना नया रूप पहले से ही तैयार करके रखता है। उसे पता रहता है कि उसका शरीर कब तक चलेगा और वक्त आने पर खुद को वो नए रूप में प्रवेश करा लेता है और पुराना शरीर छोड़ देता है। इस तरह वो सब कामों को संभाले रहता है।”
अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर सोचें दौड़ रही थीं।
नीना कमरे में खड़ी सब सुन रही थी।
“देवराज चौहान को ग्रह से बाहर क्यों फेंका गया?”
“वो मेरी भयानक भूल थी। सब मेरी गलती की वजह से ही हुआ।” रानी ताशा की आंखों से पुनः आंसू बह निकले –“तब मैं राजा देव के प्यार को ठीक से समझ नहीं पाई और भूल कर बैठी।”
“क्या हुआ था तब?” अर्जुन ने पूछा।
“ये मैं नहीं बता सकती।” रानी ताशा ने आंसू पोंछे –“बताने की जरूरत भी नहीं है।”
“आपकी बातों पर यकीन कर लेना आसान नहीं है रानी ताशा। आप खुद को दूसरे ग्रह से आया बताती हैं, ये ही बात अविश्वास पैदा करती है। अगर आपकी बातें जनता जान ले तो हो-हल्ला मच जाए। पुलिस को पता चल जाए तो फिर आपको भगवान ही बचाए। आप लोग मुसीबतों में घिर जाएंगे।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैं चाहता हूं कि अब आप सच बोलें। तभी मैं इस मामले को सुलझा सकता हूं नहीं तो पहेलियां खड़ी हो जाएंगी।”
“तो अब तक मैं तुमसे झूठ कह रही थी।” रानी ताशा ने नाराजगी भरे स्वर में कहा।
“आपके पास पहचान-पत्र तो होगा ही, वो दिखाइए।” एकाएक अर्जुन कह उठा।
“पहचान-पत्र? वो क्या होता है।”
विजय बेदी मुंह लटकाए कभी अर्जुन को देखता तो कभी रानी ताशा को।
“लाइसेंस, वोटर पहचान पत्र, पासपोर्ट या ऐसा ही कुछ और...”
रानी ताशा ने सोमाथ को देखकर कहा।
“ऐसा कुछ हमारे पास है सोमाथ?”
“नहीं। हम इन चीजों का इस्तेमाल नहीं करते। ये शायद इस ग्रह की चीजें हैं।” सोमाथ बोला।
“सुना तुमने।” रानी ताशा ने अर्जुन को देखा।
अर्जुन भारद्वाज ने विजय बेदी पर निगाह मारी।
बेदी ने तुरंत मुंह फेर लिया।
“सर।” नीना कह उठी –“ये शातिर लोग हैं, आसानी से सही रास्ते पर नहीं आने वाले।”
सोमारा के माथे पर बल पड़ गए।
“क्या कहा तुमने?” सोमारा तीखे स्वर में कह उठी- “तुम हमें बेईमान कह रही हो।”
“इसमें नाराज होने वाली बात नहीं।” अर्जुन भारद्वाज ने तुरंत गम्भीर स्वर में कहा –“आप लोग अजीब-सी बातें कर रहे हैं। खुद को दूसरे ग्रह से आया बता रहे हैं, जो कि झूठ है। रानी ताशा और राजा देव वाली आपकी बात भी मानने वाला कोई नहीं। दूसरे ग्रह से आए लोग आप जैसे नहीं होते। आप जैसे लोग तो हमारे यहां हैं...”
“हम तुम लोगों जैसे क्यों नहीं हो सकते?” रानी ताशा कह उठी –“जैसे तुम हो, वैसे हम हैं।”
“ये ड्रामा छोड़िए मैडम।” अर्जुन भारद्वाज का स्वर सख्त हो गया –“सीधी तरह बताइए कि बात क्या है। आप क्यों देवराज चौहान के पीछे पड़ी हैं। क्या आप उसे पहले से जानती हैं या...”
“मैंने बताया तो मैं राजा देव को पहले से जानती हूं।” रानी ताशा उठ खड़ी हुई। चेहरे पर तनाव आ गया –“वो सदूर ग्रह के मालिक और मेरे राजा पति थे। वो मेरे बिना नहीं रह सकते...”
“आपकी ये बात मानने के काबिल नहीं है।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा –“देवराज चौहान की पत्नी नगीना ने मुझे ये ही जानने भेजा है कि इस मामले की हकीकत क्या है और तुम लोग कौन हो। परंतु तुम मेरे सामने दूसरे ग्रह की बातें कर रही हो। पोपा और महापंडित की बातें कर रही हो। राजा देव की बातें कर रही हो। इसके अलावा तुमने कोई बात नहीं की। तुम चालाकी से अपनी बातों में मुझे उलझा रही हो।”
रानी ताशा ने सख्त निगाहों से अर्जुन भारद्वाज को देखा।
अर्जुन भारद्वाज भी उठ खड़ा हुआ।
“तुम जानते हो कि इस वक्त राजा देव कहां पर मौजूद हैं।” रानी ताशा ने स्पष्ट स्वर में पूछा।
“बेशक जानता हूं। मैं अभी वहीं से आ रहा हूं।” अर्जुन बोला।
“मुझे राजा देव का पता बताओ।”
“पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम क्या खेल खेल रही हो।” अर्जुन
आंखें सिकोड़कर कह उठा।
रानी ताशा ने सोमाथ को देखकर सपाट स्वर में कहा।
“ये राजा देव का पता जानता है सोमाथ । इससे पता पूछो।”
सोमाथ तुरंत अर्जुन भारद्वाज की तरफ बढ़ गया।
अर्जुन सतर्क हो उठा। उसने फौरन रिवॉल्वर निकालकर सोमाथ की
तरफ कर दी।
“वहीं रुक जाओ।” अर्जुन भारद्वाज गुर्रा उठा।
“सर।” नीना जल्दी-से कह उठी –“गोली मत चला देना।”
परंतु सोमाथ नहीं रुका।
हालातों को बदलते देखकर विजय बेदी घबरा उठा।
“रिवॉल्वर जेब में रख लो।” बेदी ने तेज स्वर में कहा –“गोली चल जाएगी।”
तब तक सोमाथ अर्जुन भारद्वाज के पास पहुंच चुका था। गोली चलाने का अर्जुन का इरादा वैसे भी नहीं था। परंतु सोमाथ के सिर पर आ जाने की वजह से वो उलझन में घिर गया। सोमाथ ने उसके हाथ में दबी रिवॉल्वर को पकड़कर दूर फेंका और अर्जुन के सिर के बालों को पकड़ने लगा तभी अर्जुन ने अपना घुटना सोमाथ की टांगों के बीच दे मारा।
लेकिन सोमाथ पर इसका कोई असर नहीं हुआ।
अर्जुन भारद्वाज छिटककर चार कदम पीछे हट गया और सोमाथ को देखने लगा। सोमाथ के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी। वो पुनः अर्जुन की तरफ बढ़ा। उसी पल अर्जुन भारद्वाज उछला और तेजी से सोमाथ से आ टकराया। अर्जुन को लगा जैसे किसी लोहे के पेड़ से टकरा गया हो। उसका पूरा शरीर झनझना उठा। सोमाथ ने उसे बांहों के घेरे के बीच बांध लिया।
अर्जुन छटपटाया।
“इससे पूछो सोमाथ कि राजा देव का पता क्या है।” रानी ताशा सख्त स्वर में कह उठी।
“राजा देव का पता क्या है?” सोमाथ ने रानी ताशा के शब्द दोहरा दिए।
“ये बात तुम कभी नहीं जान सकते।” अर्जुन भारद्वाज दांत भींचे कह उठा।
सोमाथ ने बांहों का घेरा तंग कर लिया।
अर्जुन तड़पा। होंठों से कराह निकली।
“बोलो।” सोमाथ शांत स्वर में बोला।
“नहीं। कभी नहीं...”
सोमाथ ने बांहों का घेरा और तंग कर लिया।
अर्जुन चीख उठा।
सोमाथ की बांहों ने उसे चिमटे की तरह भींच लिया था।
“बता दो, नहीं तो मैं तुम्हें मार दूंगा।” सोमाथ ने कहा।
“छोड़ दे कमीने।” नीना कह उठी –“अभी तो इन्होंने शादी भी नहीं की। बात चलाने की कोशिश कर रही हूं।”
सोमाथ ने नीना को देखा और बोला।
“तुम भी तो जानती हो राजा देव का पता।”
नीना चौंकी।
“भाग जा नीना। भाग...” अर्जुन चीखा।
“आपको छोड़कर?” नीना कसमसा-सी उठी।
“मैंने कहा भाग...” अर्जुन ने गुस्से से कहा।
नीना तुरंत दरवाजे की तरफ भागी।
“पकड़ो उसे।” रानी ताशा ने विजय बेदी से तेज स्वर में कहा।
“मैं?” बेदी के होंठों से निकला और अगले ही पल नीना की तरफ दौड़ा।
तब नीना दरवाजा खोलने जा रही थी।
“रुक जाओ।” बेदी ने धीमे स्वर में कहा –“मैंने तो पहले ही कहा था कि टांग मत फंसाओ। ये पागल लोग हैं पर तुम लोगों ने मेरी बात नहीं मानी। पंगा लिया है तो भुगतना भी पड़ेगा।”
नीना ने दरवाजा खोला कि बेदी ने फौरन बंद करके कहा।
“मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा। रानी ताशा का ऑर्डर तो मानना ही पड़ेगा। उसने मुझे पंद्रह लाख देने हैं।”
नीना ने कठोर निगाहों से विजय बेदी को देखा।
“माफ करना।” बेदी ने परेशान स्वर में कहा –“पर मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा। नहीं तो पंद्रह लाख हाथ से निकल जाएंगे।” इसके साथ ही बेदी ने नीना की कलाई पकड़ी और खींचकर उसे कमरे के भीतर ले आया।
तभी अर्जुन की चीख सुनाई दी।
सोमाथ ने अपनी बांहें और तंग कर ली थीं।
“अब तू मर जाएगा।” सोमाथ बोला –“राजा देव का पता बता दे तो बच जाएगा।”
अर्जुन भारद्वाज सोमाथ जैसे लोहे के इंसान की बांहों में फड़फड़ाकर रह गया।
“नहीं बताएगा?” सोमाथ का स्वर सामान्य था।
“नहीं-मैं नहीं...” अर्जुन ने कहना चाहा।
तभी सोमाथ की बांहें खुली और हाथ अर्जुन भारद्वाज के सिर पर पड़ा।
अर्जुन वहीं का वहीं कटे पेड़ की तरह ढेर हो गया।
“सर...” नीना चीखी और बांह छुड़ाकर अर्जुन की तरफ दौड़ी।
बेदी दो पलों के लिए हक्का-बक्का रह गया फिर बोला।
“ये तुमने क्या किया?” मार दिया इसे?”
सोमाथ रानी ताशा को देखकर बोला।
“ये राजा देव का पता नहीं बता रहा। इसे मार दूं रानी ताशा?”
“पागल हो गए हो।” विजय बेदी भड़क उठा –“अगर तुम लोगों ने खून-खराबा किया तो मैं तुम लोगों के लिए देवराज चौहान को तलाश नहीं करूंगा। किसी की जान ली तो मैं यहां से गया।”
“ये तुम्हारा क्या लगता है?” रानी ताशा ने कहा।
“कुछ भी नहीं। पर इसे मार दिया जाए, ये मुझे पसंद नहीं। पुलिस किसी को भी नहीं छोड़ेगी। मैं भी फंस जाऊंगा। तुम लोग इसकी जान नहीं लोगे।” बेदी पूरी तरह गुस्से में आ चुका था –“इन्हें जाने दो। देर-सबेर में मैं तुम्हारे राजा देव को ढूंढ़ लूंगा। इस तरह किसी की जान लेने का कोई मतलब नहीं बनता।”
“इस लड़की से राजा देव का पता पूछो सोमाथ।” रानी ताशा कह उठी।
सोमाथ ने नीना को देखा, जो कि बेहोश अर्जुन भारद्वाज के पास बैठी थी।
नीना का चेहरा फक्क पड़ गया, वो तुरंत कह उठी।
“मैं-मैं-मुझे क्या पता। मैं तो होटल के कमरे में सो रही थी। ये आया और मुझे साथ चलने को कहने लगा। नौकरी करनी है तो नखरे कैसे। मैं साथ चल पड़ी और यहां आकर फंस गई। मुझे नहीं मालूम राजा देव या देवराज चौहान जो भी है, कहां रहता है। कसम से मुझे तो कुछ भी नहीं पता है कि ये सब क्या हो रहा है।”
सोमाथ तब तक नीना की तरफ बढ़ चुका था।
“मैं नहीं जानती कि...”
तब तक सोमाथ ने नीना की बांह पकड़ी और उसे खड़ा कर दिया।
“इसे कुछ मत कहो।” विजय बेदी परेशानी भरे स्वर में कह उठा –“ये
सच में देवराज चौहान के बारे में कुछ नहीं जानती। मेरे होते तुम लोग चिंता क्यों करते हो। मैं देवराज चौहान का पता पाने में लगा हूं न। मैं ढूंढ़ लूंगा उसे।”
“ठहरो सोमाथ।” रानी ताशा कह उठी।
सोमाथ, नीना की बांह पकड़े रुक गया।
रानी ताशा ने बेदी से कहा।
“तुम जल्दी से राजा देव को ढूंढ़ दोगे?”
“कोशिश कर तो रहा हूं। मुझे कुछ वक्त दो।” बेदी ने तेज स्वर में कहा।
रानी ताशा की आंखों से एकाएक आंसू बह निकले।
“मैं अब जल्दी-से राजा देव को साथ लेकर सदूर ग्रह पर वापस चले जाना चाहती हूं। मैं अपने प्यारे देव के बिना नहीं रह सकती। वो मुझे सबसे प्यारे हैं। मुझे उनके पास ले चलो।” रानी ताशा सुबक उठी।
“हौसला रखो। मैं देवराज चौहान को जल्दी ही ढूंढ़ लूंगा।” बेदी ने गम्भीर स्वर में कहा।
रानी ताशा ने गीली आंखों से नीना की तरफ देखकर कहा।
“तो इसका क्या करें?”
“इन्हें जाने दो यहां से रानी ताशा।” बेदी ने संभले स्वर में कहा –“इनका यहां कोई काम नहीं।”
“सोमाथ, जाने दो इनको।” रानी ताशा ने भीगे स्वर में कहा और धप्प
से सोफे पर बैठ गई।
सोमाथ ने नीना की बांह छोड़ दी।
नीना ने व्याकुल भाव से बेहोश अर्जुन भारद्वाज को देखा फिर बेदी से
कह उठी।
“ये तो बेहोश है।”
“मैं इसे होश में लाता हूं।” कहने के साथ ही बेदी बाथरूम से पानी का मग लाया और अर्जुन पर छींटे डालने लगा।
पंद्रह मिनट बाद अर्जुन भारद्वाज को होश आया। वो उठ बैठा।
“सर, कुछ कहना मत।” नीना फौरन कह उठी –“चुपचाप यहां से चलिए।”
“लेकिन...” अर्जुन ने खड़े होते कहना चाहा।
“चुप रहिए सर।” नीना गम्भीर स्वर में बोली –“जो भी कहना हो, बाहर जाकर कहिए।”
अर्जुन भारद्वाज ने रानी ताशा और सोमाथ को देखा।
“उधर क्या देख रहे हैं सर। दरवाजा इधर है।” नीना अर्जुन भारद्वाज की बांह पकड़े दरवाजे की तरफ बढ़ती बोली।
विजय बेदी उनसे कदम पीछे था।
“इनसे बात तो करने दो नीना। ये लोग...”
“सर, जो भी बात करनी हो मुझसे करना। यहां के हालात बुरे हैं। निकल चलिए यहां से।” दरवाजे के पास पहुंच चुकी नीना ने दरवाजा खोला और अर्जुन भारद्वाज की कलाई थामे बाहर निकल गई।
विजय बेदी ने चैन की सांस ली और दरवाजा बंद करने लगा कि नीना पलटकर बोली।
“विजय बेदी नाम है न तुम्हारा। थैंक्यू बेदी भैया। तुमने हमें बचा लिया।”
“दोबारा इन पागलों की तरफ मुंह करके भी मत सोना। दूसरे को बेवकूफ समझकर ये खुद को दूसरे ग्रह से आया बता रहे हैं। मैं तो बाकी के पंद्रह लाख वसूल करने के फेर में हूं।” विजय बेदी कह उठा –“तुम लोग मेरी समस्या का समाधान कर सकते हो। देवराज चौहान का पता बता दो। उसके बाद मैं इन लोगों से छुटकारा पा...”
“चलिए सर।” नीना, अर्जुन भारद्वाज को आगे को धकेलती कह उठी –“बेदी भैया क्या कह दिया, ये तो पीछे ही पड़ गया। सबको अपनी पड़ी है। ये पंद्रह लाख पाने के चक्कर में अपना ‘घोटा’ मारे जा रहा है।”
बेदी ने गहरी सांस ली और दरवाजा बंद कर दिया। पलटा तो रानी ताशा की आंखों में आंसू देखे। सोमारा सोचों में डूबी हुई थी, वो बेदी से कह उठी।
“तुम राजा देव को जल्दी से क्यों नहीं ढूंढ़ते?"
“कोशिश कर रहा हूं। ये काम जल्दी का नहीं है। देवराज चौहान जाना-माना डकैती मास्टर है, ये मुझे अब पता चला है।”
“किससे पता चला?”
“अर्जुन भारद्वाज से। जो अभी आया था।”
“डकैती मास्टर क्या होता है?”
“जो बड़ी-बड़ी दौलतें लूटता है। इसके बारे में मैंने काफी सुन रखा है। ये तो सच में खतरनाक इंसान है। अभी भी सोच लो कि तुम लोगों का राजा देव ये ही है न?” विजय बेदी ने कहा।
“ये ही हमारे राजा देव हैं।” रानी ताशा के भर्राये स्वर में कहा –“मैंने फोन पर उनकी आवाज पहचानी है। वो ही ताशा कहने का ढंग। वो ही अंदाज बातें करने का। आह, मेरे देव...” रानी ताशा फफक पड़ी।
“कहां फंस गया मैं।” विजय बेदी बड़बड़ा उठा –‘नोटों की माया ने मुझे जाने क्या-क्या रंग दिखाने हैं। सिर में फंसी गोली को निकलवाने की बात न होती तो इन पागलों को कब का छोड़कर भाग गया होता। इन्हें और कोई नहीं मिला, वो साला खतरनाक डकैती मास्टर ही मिला राजा देव कहने को। मेरे लिए तो ये हजारों मुसीबतों वाली बात हो गई। देवराज चौहान का क्या भरोसा कि गुस्से में आकर मुझे ही गोली मार दे कि मैंने इन पागलों को उसका पता-ठिकाना क्यों बता दिया। पता भी तो नहीं चल रहा कि ये लोग कौन हैं और किस फेर में देवराज चौहान के पीछे पड़े हैं। जब भी बात करो तो दूसरे ग्रह की रट लगाना शुरू कर देते हैं। मुझे बेवकूफ समझते हैं।’
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अर्जुन भारद्वाज और नीना सीधे देवराज चौहान के बंगले पर पहुंचे। अर्जुन भारद्वाज गम्भीर नजर आ रहा था। रास्ते में नीना से ज्यादा बात नहीं की थी। वो सोचों में ही डूबा रहा।
बबूसा और धरा तब देवराज चौहान के बेडरूम में मौजूद थे। जगमोहन भी वहीं था। तब नगीना किचन में सबके लिए कॉफी बना रही थी। अर्जुन, नीना, किचन में नगीना के पास जा पहुंचे।
“आ गए आप लोग।” नगीना उन्हें देखते ही कह उठी –“रानी ताशा से मिल आए?”
अर्जुन भारद्वाज ने सिर हिला दिया।
“आपकी हालत कुछ ठीक नहीं लग रही, क्या हुआ?”
अर्जुन भारद्वाज को होश में लाने के लिए उस पर पानी डाला गया था। ऐसे में सिर के बाल बिखर गए थे। कमीज पर सिलवटें आ गई थीं। ये ही देखकर नगीना ने ऐसा कहा था।
“मैं ठीक हूं।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा –“रानी ताशा से मुलाकात हुई हमारी।”
“क्या बातें हुईं?” नगीना ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“आप मुझ पर भरोसा करती हैं?” अर्जुन ने पूछा।
“हां। पूरा भरोसा करती हूं। क्यों?”
“क्योंकि मैंने रानी ताशा से बात करके जो महसूस किया, वो आपको बता देना चाहता हूं।” अर्जुन ने पूर्ववत स्वर में कहा –“जैसे कि बबूसा से बात करके मुझे महसूस हुआ कि वो सच्चा हो सकता है उसी तरह रानी ताशा से बात करके मुझे लगा कि वो सच्ची हो सकती है। मेरे ख्याल में वो जो कह रही है, वो सही हो सकता है।”
“ये आप कैसे कह सकते हैं?” नगीना व्याकुल हो उठी।
“क्योंकि उन्होंने जो कहा, उनके चेहरे के हाव-भाव बताते हैं कि वो सच कह रहे हैं।”
“आपका मतलब कि वो दूसरे ग्रह से आए हैं।”
“हो सकता है।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा –“अगर उन्होंने झूठ कहा है तो समझिए मैं उनके झूठ को पकड़ नहीं पाया। परंतु मेरा काम ही लोगों के झूठ पकड़ना है, ऐसे में मैं कह सकता हूं कि मुझे वो सच्ची लगी।”
“आपका मतलब कि राजा देव वाली बात सही है।” नगीना के होंठों से निकला।
“बात सच भी हो सकती है।”
“रानी ताशा की बातों की सच्चाई पर आपको पूरा भरोसा है मिस्टर
अर्जुन?”
“पूरा तो नहीं, परंतु उनकी सच्चाई पर बहुत ज्यादा भरोसा है। बाकी
तो आगे के हालात देखने पर पता चलेगा।”
अर्जुन की निगाह नगीना पर ही थी। नगीना भी उसे देख रही थी।
“रानी ताशा का जो हाल मैंने देखा, उसमें कहीं भी मुझे झूठ नहीं लगा।”
“परंतु इस बात को आप कैसे कह सकते हैं कि वो दूसरे ग्रह से आए हैं।” नगीना बोली।
“उनकी बातों से। वो अपने अंतरिक्ष यान के बारे में भी बताते हैं कि वो कहां खड़ा है। बबूसा की कही बातें और रानी ताशा की बातें आपस में मिलती हैं जबकि दोनों एक-दूसरे के खिलाफ काम कर रहे हैं।”
“कहीं बबूसा और रानी ताशा मिलकर किसी चाल को अंजाम दे रहे
हों?” नगीना बोली।
“मुझे ऐसा नहीं लगता। बाकी आने वाला वक्त बताएगा।”
“सोमाथ तो बहुत ताकतवर है।” नीना कह उठी –“मिनटों में ‘सर’ का बुरा हाल कर दिया।”
“कौन सोमाथ?”
“रानी ताशा के साथ था वो।” नीना ने कहा।
“वो लोहे की तरह ताकत रखता है।” अर्जुन भारद्वाज ने छोटी-सी मुस्कान के साथ कहा –“उसका मुकाबला कर पाना सम्भव नहीं। वो मुझसे देवराज चौहान का पता पूछ रहे थे, इसी बात पर झड़प हो गई थी।”
“वो तो मुझे भी पकड़ लेना चाहते थे परंतु भला हो बेदी भैया का कि जिन्होंने बात संभाल ली और हमें वहां से निकाल दिया। तब तो ‘सर’ बेहोश पड़े थे। बहुत मुश्किल से बचे हैं।'
“बेदी भैया कौन?” नगीना ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“विजय बेदी।” अर्जुन ने कहा –“जिससे फोन पर आपने बातें की थीं।”
“ओह, वो।”
“हालांकि विजय बेदी को रानी ताशा पर यकीन नहीं है कि वो दूसरे ग्रह से आए हैं। वो गलत भी नहीं है, इस बात पर आसानी से यकीन भी नहीं किया जा सकता। बेदी तो उन लोगों से इसलिए जुड़ा हुआ है कि सिर में फंसी गोली के ऑपरेशन के लिए उसे पैसा चाहिए। उनसे पैसा लेने की फिराक में है और उन्हें कहता है कि वो उनके लिए देवराज चौहान को जल्दी ही ढूंढ़ लेगा।” अर्जुन भारद्वाज ने सोच भरे स्वर में कहा।
नगीना व्याकुल-सी खड़ी दोनों को देखती रही।
“अब मेरे लिए क्या काम है। इस केस को यहीं छोड़ दूं या आगे बढ़ाऊं?” अर्जुन बोला।
“आप इस केस पर ही रहिए। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि ये क्या हो रहा है।” नगीना परेशान थी।
“फिर मुझे रानी ताशा पर नजर रखनी होगी कि वो किससे मिलती है या उससे मिलने कौन आता है।” अर्जुन ने कहा –“कोई गड़बड़ होगी तो मुझे पता चल जाएगा। रानी ताशा हर वक्त मेरी नजर में रहेगी।”
“और मैं क्या करूं?” नगीना के होंठों से निकला।
“आप देवराज चौहान के पास रहिए और आने वाले वक्त का इंतजार कीजिए।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा –“एक बात मैं आपसे
जरूर कहना चाहूंगा नगीना जी, अगर रानी ताशा की बातें सच हैं, जो कि
मुझे सच लगती हैं, तो आने वाला वक्त बहुत ही खतरनाक मोड़ ले सकता है क्योंकि रानी ताशा जी-जान से राजा देव को चाहती है और हर हाल में उसे वापस अपने ग्रह पर ले जाना चाहती है। वो खतरनाक और दृढ़ निश्चय वाली औरत लगी मुझे। देवराज चौहान के मामले में उससे किसी भी तरह की छूट की आशा मत रखना। वो कभी भी, कुछ भी कर सकती है और देर-सबेर में वो देवराज चौहान का पता लगा ही लेगी कि वो यहां रहता है और यहां तक पहुंच जाएगी।”
नगीना के होंठ भिंचने लगे।
“यहां आकर वो क्या करेगी?”
“मेरे ख्याल में तो देवराज चौहान को अपने साथ ले जाना चाहेगी।”
“हम उसे ऐसा नहीं करने देंगे।” नगीना के चेहरे पर सख्ती आने लगी।
“बेशक। आप लोग उसे रोकेंगे, परंतु वो भी तो किसी दम के साथ ही
आई है कि राजा देव को वापस ले जाना है। उसे कमजोर समझने की भूल
मत करें। अभी तो मैंने उसके एक ही आदमी सोमाथ को देखा है जो लोहे
से भी मजबूत है।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा –“उसके पास और भी
इंतजाम होंगे। मेरे ख्याल में तो आप लोगों को आने वाले खतरे के प्रति
सतर्क हो जाना चाहिए।”
नगीना के होंठ पूरी तरह भिंच चुके थे।
“बेहतर होगा कि इस बारे में आप लोग अपना मजबूत इंतजाम करके
रखें। रानी ताशा कभी भी देवराज चौहान के लिए यहां पहुंच सकती है। मैंने महसूस किया है कि वो अपनी सोच से पीछे हटने वाली औरत नहीं है।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।
“आपका मतलब कि अब आने वाले वक्त में कुछ भी हो सकता है।”
नगीना गुर्रा उठी।
“हां। बस रानी ताशा के यहां तक पहुंचने की देर है।” अर्जुन बेहद
गम्भीर था।
“देवराज चौहान मेरा पति है मिस्टर अर्जुन भारद्वाज।” नगीना का लहजा खतरनाक हो उठा –“और उसे मेरे से कोई नहीं छीन सकता। रानी ताशा भी नहीं। ये बात जुदा है कि अगर देवराज चौहान, ताशा के साथ जाना चाहे तो मुझे एतराज नहीं होगा। वरना रानी ताशा के लिए अपनी मनमानी करना आसान नहीं होगा।”
“आप क्या सोच रही हैं?” अर्जुन के होंठों से निकला।
“नीना।” नगीना बोली –“तुम कॉफी बनाकर भीतर सबको दे दो।” कहकर नगीना जाने लगी।
“परंतु आप कहां जा रही हैं?” अर्जुन ने नगीना को रोकना चाहा।
“कुछ देर में लौट आऊंगी।” नगीना का स्वर बेहद सख्त था।
“रानी ताशा के पास जा रही हैं।”
“मुझे क्या पड़ी है उसके पास जाने की।” नगीना ने कठोर स्वर में कहा –“मैं किसी और के पास जा रही हूं, मुझे भी अपनी तैयारी करनी है कि रानी ताशा अपने मकसद को जबर्दस्ती कामयाब न कर सके।”
“मैं आपके साथ चलता...”
“कोई जरूरत नहीं मिस्टर अर्जुन।”
“आप इस वक्त गुस्से में हैं। मैं आपके साथ चलता हूं। जिससे मिलना है मिलिए। मैं बाहर खड़ा रहूंगा।”
“मैं पूरी तरह अपने होश में हूं आप मेरी चिंता न करें। इस मामले में आप जो ठीक समझते हैं वो कीजिए। ताशा पर नजर रखना बेहतर है तो ऐसा ही कीजिए। मैं अपने काम करती हूं क्योंकि रानी ताशा अपनी सोच से पीछे हटने वाली नहीं तो मैं उसे देवराज चौहान को ले जाने न दूंगी।” दांत भींचे कहती नगीना वहां से चली गई।
अर्जुन भारद्वाज होंठ सिकोड़े नगीना को ही देखता रहा।
“सर।” नीना कह उठी –“गड़बड़ हो रहा है मामला।”
“होगा ही।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा –“नगीना कैसे अपने पति को, ताशा को ले जाने देगी।”
“झगड़ा होगा?”
“तगड़ा।” अर्जुन बोला –“सोमाथ की ताकत देखकर ही मैं चिंता में पड़ गया हूं। अगर रानी ताशा के पास ऐसे और भी इंतजाम हुए तो आने वाले वक्त में कुछ भी हो सकता है।”
“मैं कुछ कहूं सर?”
“क्या?”
“निकल चलते हैं। ऐसा न हो कि इस मामले में पड़कर हमारी जानें चली जाएं।”
अर्जुन ने नीना को घूरा।
“क-क्या हुआ सर?”
“पहले कभी मैं कोई केस छोड़कर पीछे हटा हूं?” अर्जुन भारद्वाज ने
तीखे स्वर में कहा।
“वो बात नहीं सर। ये मामला जरा ज्यादा खतरनाक है। दूसरे ग्रह के
लोग, बीते जन्म के रिश्ते, सोमाथ जैसा खतरनाक इंसान। रानी ताशा जैसी अपने मकसद को हासिल करने वाली आधी पागल औरत और इधर डकैती मास्टर देवराज चौहान और वो बबूसा भी डटा बैठा है कि रानी ताशा को सफल नहीं होने देगा। कभी भी बहुत कुछ हो सकता है और हमारी तो गिनती भी नहीं होगी कहीं, अगर हमें कुछ हो गया तो।”
“मैं इस मामले को पूरा देखूगा कि आगे क्या होता है।”
“पूरा देखेंगे?” नीना का मुंह लटक गया।
“तुम दिल्ली वापस जा सकती हो।”
“मैं नहीं जा सकती। वापस चली गई तो मां मेरा बुरा हाल कर देगी।”
“मां?” अर्जुन ने आंखें सिकोड़कर नीना को देखा।
“वो ही सर, शादी वाली बात। आप ही कहिए कि मां को शादी वाली बात का क्या जवाब दूं। हां कह दूं?”
“कॉफी बनाकर भीतर दो। वो इंतजार कर रहे हैं।” अर्जुन ने मुस्कराकर कहा।
“सर, मैंने आज तक की सारी तनख्वाहें संभाल रखी हैं। आपके एक
इशारे पर वापस कर दूंगी।”
“संभाले रखो। तुम्हारे बच्चों के काम आएगा वो पैसा।”
“मेरे बच्चों के-पर सर उन बच्चों का बाप भी तो कोई होगा। ये बता दीजिए वो कौन होगा।”
अर्जुन भारद्वाज पलटा और ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ गया।
“कभी तो मेरा हाथ थामोगे ही अर्जुन साहब।” नीना गहरी सांस लेकर बड़बड़ाई –“फिर गला पकड़कर, सारा हिसाब लूंगी। शादी के बाद देखूंगी कि आप नखरे कैसे लगाते हैं। देखती हूं ऐसा कब तक चलता है। कभी तो नीना के बन ही जाओगे।”
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अर्जुन भारद्वाज और नीना जा चुके थे। नीना ने कॉफी बनाकर देवराज चौहान और अन्यों को दी थी और अर्जुन ने देवराज चौहान से कह दिया था कि रानी ताशा की बातों में हकीकत हो सकती है। बबूसा नहाने चला गया था। धरा, देवराज चौहान और जगमोहन के पास बैठी कॉफी पी रही थी। नगीना बंगले से जा चुकी थी। देवराज चौहान से वो इतना ही कह कर गई थी कि वो अभी लौट आएगी।
कॉफी समाप्त हो गई तो धरा खाली प्याले किचन में रख आई।
तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा।
जगमोहन ने उसी पल फोन उठाकर नम्बर देखा और कह उठा।
“रानी ताशा का फोन है।” देवराज चौहान को देखा।
“मुझे दो।” देवराज चौहान बोला।
“रहने दो।” धरा बोली –“तुम फिर होश गंवा दोगे।”
“मुझे दो।” देवराज चौहान ने हाथ बढ़ाकर जगमोहन से फोन लिया
और बात की –“हैलो।”
“मेरे राजा देव।” रानी ताशा का भर्राया स्वर कानों में पड़ा –“आप
कहां हैं?”
“ताशा?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
जगमोहन सतर्क-सा पास बैठा था।
“आपकी ताशा। आपकी प्यारी।” उधर से रानी ताशा रो पड़ी –“आप मुझसे मिलते क्यों नहीं। मेरे पास क्यों नहीं आ जाते। आपको देखने के लिए मैं कितना तड़प रही हूं। क्या आपका दिल नहीं करता मुझे बांहों में लेने को। वैसा ही प्यार करने को जैसा आप पहले करते थे। इतना भूल गए अपनी ताशा को कि...।”
“ता-शा।” एकाएक देवराज चौहान के चेहरे पर बेचैनी की छाप उभरने लगी –“ताशा-तुम...”
“हां-हां कहो मेरे देव...”
“पता नहीं।” देवराज चौहान के होंठों से निकला –“मैंने तुम्हारी आवाज सुन रखी है। कहीं सुना है तुम्हें-मैं...”
“मैं तुम्हारी ताशा ही हूं देव। तुम घंटों बैठकर मेरे से बातें किया करते थे। मेरा हाथ अपने हाथों में थामे रखते थे। वो सदूर ग्रह के सुहावने दिन तुम मुझे कितना प्यार करते थे। मेरे चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए, मुझे
हमेशा खुश रखते थे। मुझे बांहों में भर लेते थे और मैं किसी तरह आजाद
होकर दौड़ जाया करती थी। तुम मेरे पीछे दौड़ते थे और फिर मुझे बांहों में भर लेते थे। मैं तुम्हारा प्यार हूं देव और तुम मेरी जान हो। तुम मेरे से अब और जुदा नहीं रह सकते। मैं तुम्हें वापस ले जाने आई हूं देव, हम फिर अपनी प्यार की दुनिया बसाएंगे। लेकिन इस बार तुम्हारी ताशा तुम्हें, तुमसे भी ज्यादा प्यार देगी। इतना प्यार कि तुम कभी मेरे से दूर नहीं जा पाओगे देव।”
देवराज चौहान के चेहरे के भाव तेजी से बदलते जा रहे थे।
जगमोहन और भी चौकस हो चुका था।
“ताशा।” देवराज चौहान का स्वर कांपा –“ताशा तुम-तुम...”
“आ जाओ न देव।” रानी ताशा का भर्राया स्वर कानों में पुनः पड़ा –“मैं मर जाऊंगी तुम्हारे बिना...”
“नहीं ताशा नहीं-तुम नहीं मर सकतीं।”
“मेरे पास आ जाओ। होटल सी-व्यू पर्ल में मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं। नहीं तो मुझे अपना पता बता दो मेरे प्यारे देव, तुम्हारे बिना अब चैन नहीं मिलता। मैं पागल हो...”
देवराज चौहान उछलकर खड़ा हो गया। चेहरे पर अजीब से भाव और चमक छा चुकी थी।
“मैं आ रहा हूं ताशा । मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं।”
“जल्दी आ जाओ देव। मैं तुम्हें बहुत प्यार करूंगी, कितना भाग्य वाला दिन है कि तुम्हें देखूगी तीन जन्मों के बाद...”
देवराज चौहान ने फोन फेंका और दरवाजे की तरफ लपका।
जगमोहन तुरंत सामने आ गया।
“तुम कहीं नहीं जाओगे।” जगमोहन दृढ़ स्वर में कह उठा।
“ताशा-वो ताशा मुझे बुला रही...”
“होश में आओ तुम कहीं नहीं जाओगे।” जगमोहन गुस्से से बोला।
देवराज चौहान के चेहरे पर पागलों जैसे भाव उभरे हुए थे। एकाएक उसके चेहरे पर गुस्सा उभरा और पूरी ताकत से घूसा जगमोहन के चेहरे पर मारा। जगमोहन के होंठों से कराह निकली और उसका माथा पीछे, दरवाजे से जा टकराया तो तीव्र कराह के साथ नीचे को जा लुढ़का। माथे पर खून उभरता दिखा। वो बेहोश हो चुका था।
“ये तुमने क्या किया?” घबराई सी धरा कह उठी।
“ताशा-ऽ-ऽ-ऽ-।” देवराज चौहान चीखता हुआ कमरे से बाहर निकला और मुख्य दरवाजे की तरफ दौड़ता चला गया –“मैं आ रहा हूं ताशा। तुम्हारे पास आ रहा हूं। तुम्हारा देव आ रहा है ताशा।”
“रुक जाओ।” पीछे से धरा चीखी।
परंतु देखते ही देखते देवराज चौहान दौड़ता-चिल्लाता बाहर निकलता चला गया।
“बबूसा...” धरा गला फाड़कर चीखती, बाथरूम की तरफ दौड़ी जहां बबूसा नहा रहा था।
qqq
राघव, धर्मा और एक्स्ट्रा।
R.D.X.
इन तीनों की कार सड़क पर ट्रैफिक के साथ दौड़ रही थी। एक्स्ट्रा कार ड्राइव कर रहा था और धर्मा बगल में बैठा था। राघव पीछे की सीट पर अधलेटा-सा पड़ा था।
“ओम तलपड़े को फिल्म बनाने के वास्ते हमने पैंतीस करोड़ दिया। अब साला पच्चीस करोड़ और मांगता है। कहता है बजट बढ़ गया फिल्म का।”
धर्मा ने कहा –“साले का सिर तोड़ देना चाहिए। पहले कहता था पैंतीस करोड़ में फिल्म बन जाएगी और साठ करोड़ हमें लौटा देगा। पहले ही फिल्म लेट शुरू हुई। हीरोइन की डेट नहीं मिल रही...”
“तो दिक्कत क्या है।” पीछे से राघव कह उठा –“पच्चीस करोड़ और
दे देते हैं। बीस का तो इंतजाम बाबू भाई से होने जा रहा है। बाकी पांच हमारे पास पड़ा ही है।”
“बाबू भाई अपनी बेटी को ढूंढने का हमें पचास करोड़ दे रहा है।”
एक्स्ट्रा ने कहा –“लेकिन उसकी बेटी हमें मिल नहीं रही।”
“मिल जाएगी।” राघव ने पुनः कहा –“हमारे मुखबिर बाबू भाई की लड़की की खबर पाने को दौड़े फिर रहे हैं। सुरेश कांवड़े ने सुबह कहा था कि उसके एक आशिक का पता चला है, वो भी घर से गायब है। तो इस बात को बल मिलता है कि दोनों एक साथ ही भागे होंगे। हमारे मुखबिर जल्दी ही उनकी कोई पक्की खबर पा लेंगे।”
“तलपड़े से अब सख्ती से बात करनी होगी कि इस पच्चीस करोड़ के बाद और पैसा उसने मांगा तो साले का सिर तोड़ देंगे।” धर्मा ने कहा –“पक्की तरह समझा देना है कमीने को।”
“मैं समझा दंगा।” एक्स्ट्रा ने कहा।
“एक काम और आया है हाथ में।” राघव ने कहा।
“क्या?” धर्मा बोला।
“अंडरवर्ल्ड का सुधीर तौले। उसकी आजकल बाबा खान से तगड़ी लगी हुई है। सुधीर तौले के आदमी का फोन आया था कि बाबा खान के ड्रग्स के गोदाम को आग लगानी है। पांच करोड़ देगा।”
“पांच करोड़ कम हैं।” एक्स्ट्रा बोला –“ये बाबा खान का मामला है।”
“कम-से-कम पंद्रह तो होना चाहिए।” धर्मा ने गर्दन घुमाकर राघव को देखा –“तुमने क्या कहा?”
“मना कर दिया?”
“क्यों?”
“पैसे भी कम थे और हमें सुधीर तौले और बाबा खान के झगड़े में नहीं पड़ना है।”
“ठीक किया मना करके। सुधीर तौले के पास ढेरों आदमी हैं, उनसे क्यों नहीं करा लेता ये काम।”
“पंगे वाला काम तभी करना ठीक होता है जब माल भी तगड़ा मिले।”
एक्स्ट्रा ने कहा –“पांच-दस करोड़ के चक्कर में बड़े मगरमच्छ से झगड़ा ले लेना ठीक नहीं। हम तो...।” एकाएक एक्स्ट्रा चौंककर बोला –“ये क्या...देवराज चौहान...”
“देवराज चौहान।” राघव तुरंत उठकर बैठ गया –“कहां?”
“वो रहा।” धर्मा हैरानी से बोला –“कारों के बीच दौड़ता सड़क पार कर रहा है। नाइट सूट पहने है। ये क्या-पांवों में भी कुछ नहीं पहना है। नंगे पांव है। गड़बड़ है राघव।”
“लगता है देवराज चौहान किसी मुसीबत में है।” एक्स्ट्रा कह उठा।
तीनों की नजरें देवराज चौहान पर थीं।
देवराज चौहान कारों की परवाह न करता, दौड़ता सड़क पार करता जा रहा था।
“पीछे देखो, पीछे कौन लगा है।” राघव कह उठा।
परंतु पीछे उन्हें कोई नहीं दिखा।
“कार रोक एक्स्ट्रा।” धर्मा सोच भरे स्वर में कह उठा –“देवराज चौहान किसी मुसीबत में लगता है।”
“यहीं रोकूं, सड़क के बीच?”
“रोक, मुझे उतरना है।” धर्मा दरवाजा खोलता कह उठा।
एक्स्ट्रा ने तुरंत ब्रेक लगा दिए।
पीछे आते वाहनों के टायर भी चीखे।
कार रुकते ही धर्मा दरवाजा खोलकर बाहर निकला और देवराज चौहान की तरफ दौड़ पड़ा। राघव भी कार का दरवाजा खोलकर, बाहर निकलते एक्स्ट्रा से बोला।
“कार हमारे पीछे लेता आ।” कहने के साथ ही राघव भी उस तरफ भागता चला गया।
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“ताशा। मेरी ताशा।” बदहवासी के हाल में देवराज चौहान सड़कों पर दौड़ता कहता जा रहा था –“मैं आ रहा हूं ताशा। मैं आ रहा हूं। मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। मैं तुम्हें चाहता हूं ताशा। तुम मेरी हो, सिर्फ मेरी...” देवराज चौहान का चेहरा, शरीर पसीने से भरा हुआ था। चेहरे पर अजीब-सा पागलपन नजर आ रहा था। दो बार कारों से टकराते-टकराते बचा था। नंगे पांव यूं ही बोलता वो भागे जा रहा था। उसे कुछ भी होश नहीं था कि वो क्या कर रहा है।
राघव और धर्मा भागते-भागते उसके पीछे पहुंच चुके थे। वो देवराज चौहान को पुकारे जा रहे थे, परंतु देवराज चौहान ने एक बार भी पलटकर पीछे नहीं देखा था, जैसे कोई शक्ति उस पर अधिकार जमाए, उसे भगाए जा रही हो। उसकी सोचने-समझने की सारी शक्ति छीन ली हो।
देवराज चौहान के दौड़ने की रफ्तार भी बहुत तेज थी।
परंतु किसी तरह भागते-भागते धर्मा उसके पास पहुंचा और पीछे से उसकी कमीज का कॉलर पकड़ लिया। देवराज चौहान को झटका लगा। वो जोरों से लड़खड़ाया और गिरते-गिरते बचा। संभला।
तब तक राघव भी पास आ पहुंचा।
तीनों बुरी तरह हांफ रहे थे। देवराज चौहान के चेहरे पर छाए अजीब-से भावों को देखकर धर्मा-राघव चौंके।
“ताशा। मुझे ताशा के पास जाना है।” देवराज चौहान कह उठा –“वो मेरा इंतजार कर रही...”
“चिंता मत कर।” राघव ने खोज भरी निगाह उसके चेहरे पर मारी –“हम सब ठीक कर देंगे। अपना हाल तो देख कि क्या बना रखा है। हमें बता क्या मामला है। तेरे काम आकर हमें खुशी होगी देवराज चौहान।”
“ताशा। ताशा-ऽ-ऽ-ऽ-...” ऊंचे स्वर में कहता देवराज चौहान पुनः भागने लगा।
“पकड़ राघव।” धर्मा भी भागा –“मुझे गड़बड़ लग रही है। देवराज चौहान अपने होश में नहीं लगता।”
देवराज चौहान इस बार पंद्रह कदम से ज्यादा न भाग सका।
राघव उसके पास पहुंचकर उसकी बांह पकड़ चुका था।
“क्या हुआ तुझे?” राघव कह उठा –“नाइट सूट में, नंगे पांव सड़कों पर कहां भागा जा रहा है?”
“ये ताशा कौन है।” धर्मा बोला –“लड़की के चक्कर में पड़ के खुद को बर्बाद मत कर। हमें देख, धंधे की तरफ ही ध्यान देते हैं। लड़कियों की तरफ तो देखते भी...”
“ताशा। मुझे ताशा के पास जाना...”
“कहां रहती है वो?” धर्मा ने पूछा।
“वो-वो होटल सी-व्यू पर्ल में रहती है।” देवराज चौहान गुम होश में कह उठा –“वो मेरा इंतजार कर रही है। वो रो रही है। मेरे बिना वो मर जाएगी। मैं भी उसके बिना नहीं रह सकता-ताशा के पास जाना है मुझे।” कहते हुए देवराज चौहान ने राघव की गिरफ्त से अपनी बांह छुड़ानी चाही।
परंतु राघव पहले से ही सावधान था। बांह नहीं छोड़ी।
एकाएक देवराज चौहान के चेहरे पर गुस्सा नाच उठा।
“संभल।” धर्मा जल्दी-से राघव से बोला –“ये पंगा खड़ा करने वाला है।”
उसी पल देवराज चौहान ने जोरदार घूसा राघव के चेहरे पर मारा।
राघव सावधान था। उसने फौरन देवराज चौहान की कलाई बीच में ही रोक ली।
“होश में आ देवराज चौहान।” राघव सख्त स्वर में कह उठा।
तभी कार पास आकर रुकी और भीतर से एक्स्ट्रा ने कहा।
“क्या हो रहा है? झगड़ा कर रहे हो क्या?”
देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली और वो राघव पर झपट पड़ा। तभी पास खड़े धर्मा ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाली और उसका दस्ता वेग के साथ देवराज चौहान के सिर के पिछले हिस्से में मारा। देवराज चौहान के होंठों से तेज कराह निकली और वो लहराकर राघव की बांहों में आ फंसा।
“कार में डाल इसे।” धर्मा कार का पीछे का दरवाजा खोलता कह उठा –“मामला बहुत ज्यादा गड़बड़ लग रहा है। हैरानी की बात है कि डकैती मास्टर देवराज चौहान, बुरे हाल में सड़कों पर एक लड़की के लिए पागल हुआ दौड़ता फिर रहा है।”
राघव और धर्मा ने देवराज चौहान को कार के पीछे की सीट पर लिटाया।
धर्मा उसके साथ बैठा। राघव आगे की सीट पर बैठा तो एक्स्ट्रा ने तेजी से कार दौड़ा दी। आस-पास आते-जाते लोगों ने ये सब कुछ देखा। परंतु कार के चले जाने के बाद, वे सब अपने रास्तों पर निकल गए। मुम्बई जैसे शहर में किसी के पास वक्त नहीं था कि दूसरे के बारे में सोचें कि ऐसा क्यों हो रहा है। सब अपनी ही दौड़ में, दौड़े जा रहे थे।
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नगीना ने कॉलबेल बजाई।
चेहरे पर गम्भीरता थी। कुछ गुस्सा भी उभरा हुआ था। दरवाजे के पास खड़ी रही और दूसरी बार बेल बजाई तो भीतर से करीब आते कदमों की आहटें सुनीं फिर दरवाजा खोल दिया गया।
सामने मोना चौधरी खड़ी थी।
मोना चौधरी ने मुम्बई में एक फ्लैट ले रखा था कि मुम्बई आना अक्सर होता रहता है, होटलों में बार-बार रुकना ठीक नहीं था। नगीना इस फ्लैट के बारे में जानती थी और मोना चौधरी को देखने यहां आ पहुंची थी और मोना चौधरी इत्तेफाक से मिल भी गई।
“बेला (नगीना के पूर्वजन्म का नाम) तुम?” नगीना पर निगाह पड़ते ही मोना चौधरी बुरी तरह चौंकी।
नगीना, मोना चौधरी को देखने लगी। मोना चौधरी ने नगीना के चेहरे पर छाई गम्भीरता को महसूस किया और पीछे हटती बोली।
“आओ, भीतर आओ।”
नगीना भीतर आई तो मोना चौधरी दरवाजा बंद करने के बाद बोली।
“बात क्या है बेला। तेरा चेहरा नार्मल नहीं लग रहा।”
“बहन, बहन के पास सहायता मांगने आई है।” नगीना ने थके स्वर में कहा।
“कह तो, क्या बात है, मैं तेरे लिए सब कुछ करूंगी।” मोना चौधरी ने नगीना का हाथ थाम लिया –“आज पहली बार है जो तू इस तरह मेरे पास आई है, जरूर कोई खास वजह होगी। कह तो...”
दोनों सोफे पर जा बैठी।
“मैं बहुत-से अजीब हालातों में फंस गई हूं और देवराज चौहान इस स्थिति में नहीं है कि, वो कुछ कर सके। ऐसे में मुझे तेरी ही याद आई । तेरे पास आकर मैंने कुछ गलत तो नहीं किया?”
“बिल्कुल भी नहीं, मुझे बता क्या बात है। इस जन्म की न सही, पूर्व जन्म में मैं तेरी बहन थी बेला। फिर कुछ रिश्ते तो ऐसे होते हैं जो कभी नहीं टूटते। हमारा रिश्ता भी ऐसा है, बेशक हममें जो भी बातें होती रहें।”
“एक औरत।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा –“जो खुद को रानी ताशा कहती है और कहती है कि वो दूसरे ग्रह से आई है और देवराज चौहान कुछ जन्म पहले उसका पति था। राजा देव कहते थे उसे-वो अब
उसी राजा देव को लेने आई है।”
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
“वो कोई नाटक खेल रही है।” मोना चौधरी ने गुस्से से कहा –“ऐसा
नहीं हो सकता।”
“पहले ये ही लगता है कि वो कोई षड्यंत्र कर रही है, परंतु धीरे-धीरे
उसकी बातों का यकीन आने लगता है।”
“तो तुम मानती हो कि वो सच कहती है?”
“मैं कुछ नहीं मानती। परंतु हालात खराब होते जा रहे हैं, इतने खराब
कि मुझे तेरी याद आ गई। कुछ भी ठीक नहीं हो रहा। अच्छा ये ही होगा
कि पहले तू सारी बातें जान ले, तभी कुछ कहना।”
“बता बेला। सब कुछ बता।” मोना चौधरी के चेहरे पर उलझन आ गई थी –“ऐसा क्या हो गया कि देवराज चौहान भी बेबस हो गया।”
नगीना ने बताना शुरू किया।
शुरू से लेकर अंत तक एक-एक बात बता दी।
सब कुछ सुनकर मोना चौधरी के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी।
नगीना कहकर रुकी फिर बोल पड़ी।
“रानी ताशा सच है या झूठ। बबूसा जो कहता है उसके बारे में भी मैं यकीन से कुछ नहीं कह सकती। ये बातें ही ऐसी हैं कि उन पर भरोसा करना कठिन है। परंतु हालात बुरे होने लगे हैं। अर्जुन भारद्वाज ने इशारा दिया है कि रानी ताशा के सामने आने पर शायद हम उसे न रोक सकें और वो देवराज चौहान को अपने साथ ले जा सकती है। अर्जुन भारद्वाज पर मुझे पूरा भरोसा है। वो समझदार जासूस है और इस मामले को गहराई से जानने की कोशिश कर रहा है।”
“तो बेला तू चाहती है कि मैं रानी ताशा को रोकूं कि वो देवराज चौहान को न ले जा सके।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में बोली।
“मैं चाहती हूं कि रानी ताशा अपनी मनमानी न कर सके। मैं अभी तक नहीं समझ पाई कि वो क्या चीज है। देवराज चौहान अगर अपने होशोहवास में, अपनी खुशी से ताशा के साथ जाना चाहे तो मुझे जरा भी एतराज नहीं। परंतु मैं नहीं चाहती कि रानी ताशा अपनी ताकत के दम पर, जबर्दस्ती देवराज चौहान के ले जाए अपने साथ।”
मोना चौधरी के होंठ भिंचे थे। चेहरे पर सोचें थीं। वो बोली।
“जो बातें तूने बताई हैं, उससे मेरा दिमाग जोरों का हिल रहा है। सच बात तो ये है कि मैं जानती हूं तू जो भी कह रही है, सच कह रही है, परंतु तब भी जैसे इन बातों का यकीन नहीं आ रहा कि रानी ताशा, किसी दूसरे ग्रह से आई है और अपने पहले के जन्म के पति राजा देव (देवराज चौहान) को वापस ले जाना चाहती है। परंतु जो भी है, मैं जरूर देखूगी इस मामले को और जैसा तू चाहती है, तेरे लिए वैसा ही काम करूंगी। हैरानी है इन बातों को देवराज चौहान मान रहा है, जगमोहन मान रहा है और अब अर्जुन भारद्वाज वो प्राइवेट जासूस भी मानने लगा है। पर मैं नहीं मानती। मुझे तो वो बबूसा भी, रानी ताशा की किसी चाल का हिस्सा लगता है।”
“मैं किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।” नगीना बोली –“तू इस मामले में कुछ कर सके तो मुझे चैन मिलेगा मिन्नो।”
“फिक्र मत कर।” मोना चौधरी उठते हुए बोली –“मैं अभी तेरे साथ
चलती हूं। रानी ताशा को मैं देखूंगी।” मोना चौधरी के चेहरे पर सख्ती उभरी –“वो कोई खतरनाक खेल खेल रही है और मैं उसे कामयाब नहीं होने दूंगी।”
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जगमोहन पागलों की तरह देवराज चौहान को ढूंढ़ता फिर रहा था। जब उसे होश आया तो बंगले पर कोई नहीं था। बबूसा और धरा भी नहीं थे। जगमोहन के माथे पर आया खून साफ करने के बाद धरा को फोन किया तो धरा से बात हो गई थी। जगमोहन ने देवराज चौहान के बारे में पूछा।
“देवराज चौहान का कुछ पता नहीं है। बबूसा एक बार फिर उसे गंध के सहारे ढूंढ़ने का प्रयास कर रहा है।”
जगमोहन ने फोन बंद किया और उसी वक्त कार पर होटल सी-व्यू पर्ल के लिए जुहू बीच की तरफ निकल पड़ा। होटल पहुंचकर, बाहर रहकर निगरानी करने लगा कि देवराज चौहान इसी होटल में आने को कह रहा था। रानी ताशा इसी होटल में ठहरी हुई है। परंतु वो नहीं जानता था कि रानी ताशा इस होटल के किस कमरे में ठहरी हुई है। जगमोहन को चिंता थी कि देवराज चौहान रानी ताशा तक न पहुंच जाए। तीन घंटे इंतजार करने के पश्चात भी जब उसे देवराज चौहान नजर नहीं आया तो वो होटल के भीतर प्रवेश कर गया। रिसेप्शन से रानी ताशा के कमरे का नम्बर पता करके तीसरी मंजिल के 204 नम्बर कमरे में जा पहुंचा।
दरवाजे के पास लगी कॉलबेल बजा दी।
जल्दी ही दरवाजा खुला और विजय बेदी दिखा।
“कहिए।” बेदी ने शीतल स्वर में कहा।
“मैं होटल का असिस्टेंट मैनेजर हूं।” जगमोहन ने जबरन मुस्कराकर कहा –“डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूं परंतु बगल वाले कमरे में ठहरे साहब ने शिकायत की है कि इस कमरे से ठक-ठक की आवाजें आ रही हैं।”
“ठक-ठक की आवाजें?” विजय बेदी ने अजीब से स्वर में कहा –“नहीं जनाब, ऐसा कुछ नहीं हो रहा यहां।”
“अगर आपको एतराज न हो तो मैं भीतर देख सकता हूं।”
“क्यों नहीं देख सकते जनाब। आपका होटल है। हम तो मेहमान हैं। आइए।” बेदी दरवाजे से हट गया।
जगमोहन ने धड़कते दिल के साथ कमरे में प्रवेश किया। नजरें घूमी।
सोमाथ को, रानी ताशा को और सोमारा को देखा फिर बाथरूम की तरफ बढ़ गया।
“तो ये है रानी ताशा।” जगमोहन बड़बड़ाया –“बेहद खूबसूरत। बिल्कुल रानी की तरह लग रही है।”
जगमोहन ने बाथरूम चेक किया।
देवराज चौहान कहीं नहीं था।
“तकलीफ के लिए माफी चाहता हूं।” जगमोहन सबको देखकर मुस्कराता हुआ दरवाजे की तरफ बढ़ता बोला। बेदी उसके साथ-साथ था कि दरवाजा बंद कर सके।
“ठक-ठक कहीं मिली?” जगमोहन दरवाजे से बाहर निकला तो बेदी कह उठा।
“नहीं।”
“मैंने तो पहले भी कहा था कि नहीं मिलेगी।” बेदी ने मुस्कराकर सिर
हिलाया।
बाहर निकलकर जगमोहन आगे बढ़ता चला गया। जेहन में रानी ताशा का खूबसूरत चेहरा नाच रहा था। बबूसा ने बताया था कि वो इंतहाई खूबसूरत है तभी वो रानी ताशा को पहचान सका था। परंतु वो देवराज चौहान के पीछे क्यों पड़ी है। देवराज चौहान यहीं पर आने के लिए भागा था और अब इस बात को घंटों हो चुके हैं। वो यहां तक पहुंचा क्यों नहीं?”
जगमोहन पुनः होटल के बाहर आकर जम गया।
परंतु देवराज चौहान आता-जाता कहीं नहीं दिखा। जब उसे विश्वास हो गया कि देवराज चौहान यहां नहीं आएगा तो कार पर सीधा बंगले पर पहुंचा कि देवराज चौहान कहीं वापस न आ गया हो। बंगला खुला पड़ा था। भीतर आने पर देवराज चौहान तो नहीं मिला, परंतु जिसे देखा, उसे देखकर जगमोहन क्रोध से सिर से पांव तक कांप उठा। हाथों की मुट्ठियां
भिंच गईं। चेहरा दहक उठा।
वीरेंद्र त्यागी ठीक सामने सोफे पर टांग पर टांग रखे बेहद आराम से
बैठा था।
“कमीने त्यागी, तुम...?” जगमोहन गुर्रा उठा।
वीरेंद्र त्यागी बेहद शांत भाव में मुस्कराया और कह उठा।
“मुझे यहां देखकर अगर ये सोचते हो कि मुझे पकड़ लोगे या मार दोगे तो ये तुम्हारी भूल है। त्यागी को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। त्यागी का मुकाबला नहीं कर सकते तुम।”
समाप्त
अगला भाग: बबूसा खतरे में
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