कुछ घंटे बाद चेंग राक्षस के साथ पहाड़ों में स्थित राक्षस के पड़ोस वाली गुफा में था जिससे वो राक्षस पर नज़र रखने का काम करता था।
“ये लीजिये आपका नया पासपोर्ट, नया नाम और नए आधार कार्ड के साथ नया पता। आपका मनचाहे चित्र के साथ। बस कल भर आप मेरा साथ दे दें उसके बाद आप जहाँ चाहें जा सकते हैं। आपके लिए सारे रास्ते खुले हैं। अगर आप चीन की नागरिकता चाहते हैं तो उसका भी मैं इंतेजाम कर सकता हूँ।”
चेंग ने अपनी सारी असलियत राक्षस को बता दी थी क्योंकि अगर उसकी असलियत किसी और तरीके से पता चलती तो राक्षस की नज़र में वो झूठा साबित हो सकता था।
“धन्यवाद चेंग। फिलहाल इतना ही काफी है। जैसा तुम चाहोगे कल वैसा ही होगा। पर मौका मिलते ही मैं सबसे पहले ब्रह्मदेव की गर्दन मरोड़ना चाहता हूँ। न केवल उसने मेरे गुरुदेव को बरगलाया है बल्कि तंत्र की परंपरा को भी बदनाम किया है। विक्रांत चतुर्वेदी जैसे महान तांत्रिक को जाने कौन सा जादू कर अपने आश्रम में पंगु बना रखा है। जब तक मैं इस पाखंडी को नरक के गर्त में धकेल नहीं दूं मुझे चैन नहीं आएगा। पर उसके पहले मेरा एक और शिकार बाकी है।”
“कौन?”
“शरवन।”
“ओह। चिंता नहीं करो। कल उसे भी मैं तुम्हारे हवाले कर दूंगा। उसके बाद तुम निश्चिंत होकर अपनी यात्रा पर निकल सकते हो।”
यही तो वह चाहता था। २-३ दिन के अन्दर वो ब्रह्मदेव को निपटाकर अपनी अनंत यात्रा पर निकल जाना चाहता था। चेंग ने उसे नई पहचान देकर उसकी नयी जिंदगी का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
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एस पी गौतम ने अपने घर में कदम रखा।
पिछले आठ वर्षों से अपनी ड्यूटी निभाते-निभाते वह तंग आ गया था।
और यह अकेलेपन की दोहरी जिंदगी।
लंगडाते क़दमों से उसने अपने फ्लैट का ताला खोला। अन्दर पहुंचकर उसने दरवाजा अच्छी तरह से बंद कर लिया।
कुछ ही देर में वह एक तौलिया लपेटकर अपने सोफे पर बैठा था। पैर को उठाकर उसनें सामने वाले टेबल पर रख लिया। घाव अभी तक पूरी तरह सूखा नहीं था। मरहम पट्टी के लिए भी वह किसी और पर भरोसा नहीं कर सकता था।
कमबख्त मोहिनी ने घाव ही ऐसा दिया था। स्ट्रोंग सिदेटिव भी पूरी तरह काम नहीं कर पा रहा था। वह ही जानता था कि किस तरह इतना दर्द होते हुए भी वह अगले दिन आश्रम पहुंचकर अपने आपको सामान्य रख सका था। वरना उस नरेन्द्र में कहाँ इतना दम था कि उसे हिला भी सके!
वर्षों पहले जब वह किसी तरह बचकर निकल भागा था तो सोचा भी नहीं था कि इतना लम्बा सफ़र तय कर सकेगा।
फिर से ग्रेजुएशन और फिर कमीशनर की तैयारी।
डी एस पी और फिर एस पी।
सब कुछ सही चल रहा था और फिर अचानक मोहिनी से पुनः मुलाक़ात।
यहीं से उसके जीवन ने नया मोड़ ले लिया था।
लगभग कुछ महीने पहले ही उसने पुनः साधना कि शुरुआत की थी। वहीँ अगर उसकी मुलाक़ात ताशी से न हुई होती तो उसे मालूम भी नहीं होना था कि मोहिनी इसी शहर में थी।
पहली बार जब वह उससे मिला तो वह शहर से दूर जंगले में साधना करते मिली थी। उस समय तो उसने बात करने का भी वक़्त नहीं दिया था और भाग निकली थी।
दूसरी बार ताशी के सदके आश्रम में मिली। भले ही उसके कठोर शब्दों से आहत होकर वह आपे से बाहर हो गया था और उस पर प्रहार कर बैठा था।
पर वह प्रहार जानलेवा नहीं था। उसे जीता-जागता छोड़कर आया था वह।
कल उसे मालूम हो जाना था कि उसकी मोहिनी को किसने मारा था।
उसे सुबह का इंतज़ार था।
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सुबह का इंतज़ार तो ताशी को भी था।
जिस गुफा को उसने अपना अड्डा बनाया था उसी के बगल में पहली बार राक्षस को अपने गुरु के चित्र से बातें करते देखा था।
जिसे वह अर्जुन देव के रूप में आराम से पहचान गया था। यह चतुर्वेदी उसे काम का आदमी लगा था।
पहले उसका इरादा आश्रम में अफरा-तफरी मचने का था जिससे वह आने वाली मीटिंग कैंसिल करवा सके।
इसी के तहत उसने राक्षस को मोहिनी से भिड़ने में मदद की थी।
सब कुछ उसकी योजना अनुसार हुआ। एकदम परफेक्ट टाइमिंग से सहदेव भी वहां पहुँच गया था।
सब कुछ उसकी आँखों के सामने हुआ था। वही छुपकर उसने सबकुछ देखा था।
मोहिनी को क़त्ल करने में भी उसे कोई हिचक नहीं हुई थी।
विनय चतुर्वेदी उर्फ़ एस पी गौतम सचदेवा को राक्षस कि पदवी हासिल हुई थी पर असली राक्षस की पदवी उसे मिलनी चाहिए थी।
पर जब ऊपर से आदेश आया था कि मीटिंग उसके आका के पक्ष में है तो उसने अपने प्लान में थोडा फेर बदल कर लिया था।
अब वह जानता था कि दयाल का क़त्ल राधा ने किया था। पर इलज़ाम तो अल्फांसे पर रखना उसके लिए बेहतर था।
एक तीर से दो शिकार। या तीन शिकार।
बस कल सुबह उसे राक्षस के सामने यह सिद्ध करना था कि सरस्वती ने उसके क़त्ल कि सुपारी दी थी।
पर कुछ बात अभी भी उसके समझ से परे थी।
सरस्वती इतना बड़ा घोलमाल क्यों कर रही थी?
अगले दिन मोहिनी को किसी मंत्री का रिश्तेदार क्यों बताया जा रहा था?
राधा और कन्हैय्या जैसे खतरनाक जासूस आश्रम में करने क्या आये थे?
रजनी वाला काण्ड अभी भी उसकी समझ से परे था।
क्या इन सबके पीछे अल्फांसे था? या सरस्वती?
और सबसे बड़ा सवाल था कि इन लोगों ने सुपर कंप्यूटर को कहाँ छुपा रखा था।
जुलाई ५
सुबह आठ बजे आश्रम के पार्क के खुले हिस्से में प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था जिसे खुद आचार्य ब्रह्मदेव संबोधित करने वाले थे। ये प्रेस कांफ्रेंस पत्रकारों के लिए रखा गया था और यहाँ करीब २५ पत्रकार मौजूद थे। ये कांफ्रेंस इसलिए भी महत्वपूर्ण था कि वर्षों बाद आचार्य जी प्रेस के सामने आने को तैयार हुए थे। आश्रम के लगभग सभी लोगों के साथ-साथ सुधीर भी वहां उपस्थित था। राधा और कन्हैया दोनों वहां नहीं होकर बरसाहब की हवेली में मौजूद थे। महंत ने अपना काम फिर से संभाल लिया था और आचार्य जी ने भी कोई विरोध नहीं जताया था। पुलिस की एक टुकड़ी के साथ डी सी पी के आदेशानुसार एस पी विपिन सचदेवा भी वहां मौजूद था। उसे चीनी विदेश मंत्री के वापस जाने तक लगातार ड्यूटी पर रहने को कहा गया था।
सवाल जवाब का दौर शुरू हो चुका था।
“एक वरिष्ठ पत्रकार का सवाल था कि इतने महतवपूर्ण मीटिंग के लिए चांदीपुर ही क्यों चुना गया।”
“इस सवाल का बेहतर जवाब तो वो लोग ही दे सकते हैं जिन्होंने हमसे अनुरोध किया कि मीटिंग चांदीपुर में ही होने दे। दोनों लामाओं ने अनुरोध किया और हमनें स्वीकार किया। आप लोगों का भी ऐसा अनुरोध हो तो ज़रूर बताएं हम उसे भी स्वीकार करेंगे।”
सभी लोग जोर से हँसे।
“इस मीटिंग में आपकी क्या भूमिका होगी? एक तटस्थ गुरु की या फिर आप एक सक्रिय भूमिका निभाएंगे?”
“जो वास्तव में एक गुरु है वो तटस्थ नहीं हो सकता। जिधर सत्य है उधर गुरु है।”
“तो क्या आप भी स्वतंत्र तिब्बत का समर्थन करते हैं?”
“प्रथम तो लोग तिब्बत को परतंत्र मानने के पक्ष में नहीं है। ये तिब्बत की जनता को निश्चय करना है कि वह स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में रहना चाहते हैं या नहीं। अगर उनका संघर्ष आज़ादी के लिए है और वो हमसे समर्थन मांगते हैं तो सर्वप्रथम दलाई लामा को आगे बढ़कर आना होगा। जहाँ तक मेरा व्यक्तिगत प्रश्न है मैं सभी प्रकार के स्वतंत्रता के पक्ष में हूँ। पर सबसे पहले हमें परजीवी विचारों से स्वतंत्रता प्राप्त करनी होगी।”
“क्या महात्मा बुद्ध के विचार आपको प्रभावित करते हैं?”
“महात्मा बुद्ध के विचार जैसी किसी चीज़ का अस्तित्व नहीं। वो विचारों और विकारों से परे हैं।” आचार्य ने मुस्कुराते हुए कहा।
“तिब्बत को जादूगरों और तंत्र मन्त्र की नगरी कहा जाता है। सुना है कि वहां लोग उड़ना भी जानते हैं। आपको क्या लगता है?”
“सभी कुछ संभव है। पर इसका अध्यात्म से कोई सम्बन्ध नहीं।”
“तो तंत्र में आपकी कोई आस्था नहीं?”
“नहीं। ये बेवकूफी है। मनुष्यता को गुमराह करने के साधन हैं। अगर मेरा बस चले तो तंत्र मंत्र के सभी पाठों को देश में बंद करवा दूं।”
सरस्वती ने आश्चर्य से आचार्य को देखा। तंत्र के विषय में उनकी इतनी कठोर धारना तो न थी। अर्जुन देव एक तरफ बैठे थे और उनके चेहरे पर गंभीरता थी।
एस पी गौतम सचदेवा पत्रकारों के मध्य में ही बैठा था। उसकी भंवे तन गयी। पास बैठे एक पत्रकार से उसने माइक छीन लिया और बोला,
“आप तंत्र की महान परंपरा का अपमान कर रहे हैं।”
आज गौतम सचदेवा उर्फ़ विनय चतुर्वेदी को किसी प्रकार का डर न था। वह सर पर कफ़न बांधकर आया था।
दो घंटे पहले ही जब ताशी ने कुछ सबूतों के साथ बताया कि नरेन्द्र ही अल्फांसे है तो उसे स्वीकार करने में ज्यादा मुश्किल नहीं हुई। उसने उसके बारे में सुन रखा था। ये भी सिद्ध करने में ताशी को मुश्किल नहीं हुई की सरस्वती ने ही उसे मोहिनी के क़त्ल की सुपारी दी थी। अब सरस्वती और अल्फांसे को भी मरना ज़रूरी हो गया था। आज अल्फांसे तो यहाँ नहीं था पर सरस्वती और ब्रह्मदेव दोनों सामने थे।
आचार्य ब्रह्मदेव को मानो आज किसी की परवाह न थी। सरस्वती जो आचार्य जी के बगल में ही खड़ी थी वह भी आश्चर्य से अपने गुरु को देख रही थी।
“कौन सी महान परंपरा? जिसके नाम पर तांत्रिक और कापालिक लोग निर्दोषों की बलि देते हैं? जिस परंपरा में इंसानों की क्या पशुओं की बलि दी जाए ऐसी परंपरा को इश्वर स्वीकार कर सकता है!”
एस पी ने गहरी सांस ली। खुद को संयत किया फिर बोला,
“शायद तंत्र के विषय में आपका ज्ञान कम है इसलिए आप ऐसी बात कर रहे हैं। बलि उन्हीं जीवों की दी जाती है जिनमें जीवन तत्व कम हो या फिर जिसका जीवन निरुद्देश्य हो चुका है।”
‘हर जीव में जीवन तत्त्व सामान होता है एस पी साहब। लगता है कि दो चार किताबें आपने तंत्र के ऊपर पढ़ ली है इसलिए शेखी बघार रहे हैं। हा हा हा जीवन तत्त्व।’
एस पी का क्रोध बढ़ता जा रहा था। गुस्से से उसने माइक फेंक दिया और खड़ा हो गया।
“किताबी बातें आपके अन्दर भरी होंगी। मैंने जो कुछ भी सीखा किया है वो अपने गुरु से सीखा है।” वो लगभग चिल्लाने लगा था।
आचार्य पर उसके चिल्लाने का मानों कोई असर नहीं पड़ा था। सुधीर पूरी तरह सावधान हो चुका था। जैसा वह चाहता था वैसा ही होने वाला था।
इस बात में भी दो राय नहीं थी कि आचार्य ब्रह्मदेव उसे उकसा रहे थे। मतलब उन्हें भी मालूम हो चुका था कि एस पी ही विनय चतुर्वेदी उर्फ़ राक्षस है।
आचार्य जी ने मानों ब्रह्मास्त्र छोड़ा,
“होगा कोई दो टेक का गुरु। ऐसे गुरु तो आजकल कौड़ियों के भाव में मिलते हैं।”
एस पी इस वक़्त अपनी पूरी वर्दी में था। सबसे पहले उसने अपने कैप और गोगल्स उतार फेंके। अन्दर से राक्षस का चेहरा उभर आया।
“दो टके का पुजारी तू महान तांत्रिक विनय चतुर्वेदी के सामने तंत्र का मजाक उडाता है! तंत्र में भोलेनाथ का वास है। तंत्र शिव है शिव ही तंत्र है!”
मंत्र उसके मुख से बरसने लगे। उसका साफ़ सुथरा मुख विवर्ण हो चुका था। शरीर का आकार असाधारण सा लगने लगा था! क्रोध में ही उसने अपने शरीर पर मौजूद कपडे को फाड़ डाला। अब उसके ऊपर का शरीर अनावृत हो चुका था। सामान्यतः रात होने के बाद जब वह अपने गुरु के दिए वस्त्र को धारण करता था तो उसे असीम शक्ति का एहसास होता था। पर आज तो इस दो टके के पुजारी ने उसके गुरु का अपमान कर उसकी शक्ति को अनायास ही जागृत कर दिया था।
सामने उसका शिकार था। यही दुष्ट था जिसनें आज से दस साल पहले उसके गुरु के साथ साथ उसकी भैरवी को भी बरगला डाला था और दोनों को लेकर भाग निकला था। एक भले मानस का साथ मिला था और साथ में मिला था नया नाम। सब कुछ भूलकर वो अध्ययन में जुट गया था। पांच वर्ष के अन्दर उसने कमीशन कि परीक्षा पास करने में सफलता हासिल कर ली थी। सब कुछ अच्छा चल रहा था। अपने वर्तमान से खुश था वह। कभी कभी अजीब अजीब सपने आते थे, भयानक भयानक चेहरे और कभी कभी एक मोहिनी सूरत। और एक दिन वो सचमुच सामने आ गयी थी। फिर धीरे धीरे सब याद आ गया। एक महान कापालिक एक सुबह शाम की नौकरी में उलझकर रह गया था।
पूरी तेजी से वो आचार्य ब्रह्मदेव पर झपटा। आचार्य एक सोफे पर बैठे थे और सामने एक लोहे का भारी टेबल था। आचार्य इस परिस्थिति के लिए पहले से तैयार थे। उन्होंने टेबल को धक्का दे दिया। वो टेबल को लेकर धडाम से गिरा।
राक्षस ने सँभलने में देरी नहीं की। एक कुर्सी उठाकर उसने सुधीर पर दे मारा जो उस पर गोली चलाने की कोशिश कर रहा था।
राक्षस सामने मौजूद था। पत्रकार फोटो पर फोटो खींचे जा रहे थे। दूर खड़ा होकर चेंग लेई राक्षस की बेवकूफी का नज़ारा देख रहा था। राक्षस के उठने से पहले ही सुधीर ने उसके पैर पर गोली चला दी। पर राक्षस पलट चुका था। राक्षस पुनः अपने शिकार पर झपटा। अपने बायें हाथ से उसने आचार्य ब्रह्मदेव के गर्दन को दबोच कर एक तरफ धकेल दिया। आचार्य लडखडाते हुए पीछे हटे। राक्षस को मौका मिल गया था। उसनें भारी-भरकम टेबल को उठाकर सरस्वती पर फ़ेंक डाला। सरस्वती को कुछ ऐसी ही उम्मीद थी। तेजी से उसनें एक तरफ होकर खुद को बचाया।
“ताशी दूर खड़ा होकर सब देख रहा था।”
“शाबाश मेरे शेर!” वह बुदबुदाया। “अब अगला वार मिमी कि तरफ से।”
यह थी असली जासूसी। बिना मार-धाड़ किये भी बहुत कुछ किया जा सकता था।
मिमी, जो एक पत्रकार के वेश में वहां मौजूद थी ने धीरे से छोटे छोटे बम अपने पॉकेट से निकालकर आसपास गिरा दिए।
पटाक-पटाक कि तेज आवाज के साथ चारों तरफ धुआं फैलने लगा था। पत्रकारों में भगदड़ मच गयी। अब कोई आगे नहीं आने वाला था।
एस पी के साथ जो पांच पुलिस वाले भी थे पर राक्षस को सामने देख उनकी घिग्घी बांध चुकी थी।
राक्षस गुर्राया, “पुजारी। जो तू चाहता था वही हो गया न? तू चाहता था कि राक्षस को सारी दुनिया के सामने खड़ा कर ले। देख राक्षस सबके सामने खड़ा है, अकेला निडर। और मेरे सामने सभी लोग दुबके खड़े हैं। हो सकता है कि ये सभी लोग मिलकर मुझे मार डाले। ये सभी लोग तुझे पूजते हैं क्योंकि ये सभी कायर लोग हैं। तू आश्रम में सौ पचास लोगों के साथ रहता है क्योकि तू डरपोक है। मुझ कापालिक को देख अकेला जंगल में साधना करता हूँ क्योंकि मुझे किसी का डर नहीं। तेरा धर्म डरना सिखाता है और मेरा धर्म लड़ना सिखाता है। डरपोक लोगों की जमात है तेरा नकली धर्म। एक रावण से लड़ने के लिए तेरे राम को हजारों के फ़ौज की ज़रुरत पड़ी। तेरा इतिहास डरपोकों का इतिहास है।”
आचार्य ब्रह्मदेव ने मुस्कुराते हुए टोका,
“इतने बहादुर हो गए कि सारे इतिहास को टक्कर देने लगे? औरों का मुझे पता नहीं पर देख मैं अकेला हूँ। मुझे परास्त कर के देख लो।”
राक्षस ने ठहाका लगाया,
“कौन सी शक्ति है तेरे पास?”
“मेरे पास योग की शक्ति है विनय बाबू।”
आचार्य ब्रह्मदेव बिलकुल सीधे खड़े थे। उनके श्वेत केश सुबह के मंद बयार में हलके हलके लहरा रहे थे। इतनी देर में एक बार ही उनके स्वर में तनाव नहीं आया था। चेहरे पर स्मित मुस्कान थी जो कापालिक के क्रोध को और भड़काए दे रही थी।
“पर पहले यह तो बता दो कि तुम मुझको मारना क्यों चाहते हो? अगर मुझे तुम मारने में सफल हो गए तो मरते मरते पता तो चले कि मुझे क्यों मारा गया है?”
उपस्थित सभी लोग अवाक् होकर उनकी बातचीत सुनने में लगे थे। सुधीर ने पुनः गोली चलने का उपक्रम किया था पर कुछ सोचकर वो रुक गया था। आखिर आचार्य के बहाने उसे कॉन्फेशन सुनने का अवसर मिल रहा था।
“तू सबसे बड़ा गुनाहगार है। पहले तूने मेरे गुरु को दूर किया और फिर मेरे भैरवी को।”
“तुम्हारा सबसे बड़ा शत्रु तेरा क्रोध है। यही हाल एक जमाने में तेरे गुरु का था। आज से दस साल पहले तेरा गुरु ऐसे ही क्रोध से भरा मेरे पास आया था। आज उसने क्रोध को त्याग कर साधना के सर्वोच्च शिखर को छूने के करीब है।”
“तेरी ये चिकनी बातों का मुझ पर असर नहीं होने वाला।” तांत्रिक दोनों हाथ फैलाकर आचार्य पर झपटा।
आचार्य ने अपनी अंगुलियाँ कापालिक के अँगुलियों में फंसा दी। अब दोनों के हाथ एक दुसरे के गिरफ्त में थे। तांत्रिक की उम्मीद के विपरीत आचार्य की पकड़ मजबूत थी। तांत्रिक की आँखें आचार्य के चेहरे पर जमी थी। क्या ये सम्मोहन था? उन आँखों में खौफ का नामोनिशान नहीं था। कोई प्रतिक्रिया भी नहीं। कुछ पलों में ही कापालिक को ऐसा लगा कि वो उन आँखों में डूबता जा रहा है। उसनें हाथ को झटका देना चाहा पर सफल नहीं हुआ। थोड़ी देर में ही वो अपने आप को शक्तिहीन महसूस करने लगा था! वो ठगा सा खड़ा रहा।
‘ये बुड्ढा तो सारा खेल बिगाड़ देगा!’ कहाँ तो ताशी सोच रहा था कि इस राक्षस के हाथों सरस्वती के साथ साथ आचार्य को भी निपटा देगा पर ये तो उसे सम्मोहन में फंसता जा रहा था!
अगले ही पल वह राक्षस के करीब दौड़ा।
एक जबरदस्त फ्लाइंग किक के साथ ही राक्षस धरती पर था।
चेंग चिल्लाया,
“मेरे रहते मेरे गुरु का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता! ज़ल्दी मार डालो उसे।”
बाकी लोगों को लगा हो कि ये बात उसने आचार्य जी के लिए कही है, पर राक्षस को लगा कि ताशी ने ये बात उससे कही थी।
यही वो पल था जब एक साथ कई गोलियां एक साथ राक्षस पर झपटी। पुलिस अपने हरक़त में आ चुकी थी। तीन-चार गोलियां उसके शरीर में रास्ता बना चुकी थी।
राक्षस समझ चुका था उसके पास वक़्त कम है। उसका क्रोध अपने चरम सीमा पर था।
अगले ही पल उसके एक बांह में आचार्य का और दुसरे बांह में सरस्वती का सर था।
अब वह तेजी से दोनों को घुमा रहा था।
दोनों को अपनी सांस घुटती महसूस हो रही थी।
सुधीर के साथ-साथ बाकी पुलिसवालों ने भी अपना गन नीचे कर लिया था।
ताशी अब निश्चिन्त था। अब कुछ नहीं होने वाला था।
एकाएक सुधीर ने अपनी गन ऊंची कर ली।
अब राक्षस का सर उसके निशाने पर था। वह तेजी से घूम रहा था।
सुधीर के रिवाल्वर से गोली निकली और ठीक विनय चतुर्वेदी के बायीं आँख से टकराई।
एक भयानक चीख के साथ वह गिर पड़ा। साथ में ब्रह्मदेव और सरस्वती भी।
आधे घंटे के बाद आचार्य जी पुनः प्रेस से संबोधित थे।
“तंत्र के बारे में अभी मैंने जो कुछ कहा उसके लिए मैं अपने आराध्य शिव से माफ़ी मांगता हूँ। मेरे आराध्य जानते हैं कि तंत्र के प्रति मेरे मन में कोई दुर्भावना नहीं। तंत्र एक महान विज्ञान है पर परेशानी यही है कि यह गलत हाथों में पड़ गया है।”
“तो क्या यहाँ आने से पहले आपको मालूम था कि एस पी के खोल में कापालिक छुपा है?”
“नहीं। पर एस आई सुधीर गुप्ता ने ऐसी मंशा जाहिर की थी। मैं जानता था कि विनय चतुर्वेदी और कुछ हो न हो एक सच्चा कापालिक अवश्य है बस उसे अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं है। तंत्र की बेईज्ज़ती वो सह नहीं सकता।”
“एक और बात आप लोगों से मैं कहना चाहता हूँ। विनय चतुर्वेदी जो भी है पर राक्षस नहीं है। ये सही है कि उसने कुछ लोगों की हत्या की है पर असली राक्षस तो वो है जिसनें उसके गुरु के चित्र में आग लगवाकर उसे जानबूझकर लोगों की हत्या के लिए उकसाया। हर मनुष्य को अपने पंचेन्द्रिय पर नियंत्रण नहीं होता। कुछ राक्षस अपने निहित स्वार्थ के लिए उनका इस्तेमाल करते हैं। आप लोगों के बीच हमारे एक प्रिय बर्मन बैठे हैं जो तिब्बत से आये शरणार्थी हैं। तिब्बत में इनके सामने इनके सारे परिवार को अकारण बेदर्दी से क़त्ल कर डाला गया। इन्होने बताया था कि ऐसे लोग वहां हजारों में नहीं लाखों में हैं। उनपर अत्याचार करने वाले लाखों में हैं। विनय चतुर्वेदी से पहले ऐसे लोग राक्षस कहलाने के लायक हैं।”
उपस्थित सभी लोगों ने तालियाँ बजाई।
‘इस बर्मन को तो मैं बंगाली समझ रहा था। और ये बुड्ढा हम सभी लोगों को राक्षस करार दे रहा है। कल की रात इसके लिए आखरी रात होगी चेंग की आँखों में अंगारे नाच रहे थे।’
प्रश्नोत्तर का दौर पुनः शुरू हो गया था जो २०-२५ मिनट और चला।
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शाम चार बजे
हवेली के बाहर एक टेंट की व्यवस्था की गयी थी जिसमें बैठने की अच्छी व्यवस्था थी। राधा, कन्हैय्या और सुधीर के साथ साथ डी जी पी चार कमांडोज के साथ यहाँ मौजूद थे। दोनों तिब्बती धर्मगुरु अपने दो सहयोगी के साथ पहुँच चुके थे पर अन्दर जाने की अनुमति केवल दोनों धर्मगुरुओं को ही मिली थी। सुरक्षा में कोई ढील नहीं बरती गयी थी और कन्फर्म होने के बाद ही उन्हें अन्दर जाने दिया गया था। दोनों सहयोगियों को ससम्मान एक अलग टेंट में बैठाया गया था जिसमें सभी मॉडर्न सुविधाएं थी।
वांग के लिए बड़ी बात थी कि राधा, कन्हैय्या और सुधीर पूरा सहयोग कर रहे थे और पिछले दो दिनों में हवेली के भीतर एक चिड़ियाँ तक ने पर नहीं मारा था। ये वांग के लिए एक तरफ राहत की बात थी तो दूसरी तरफ उसका टेंशन भी बढ़ता जा रहा था। सारे कैमरे चाक चौबंद थे। सेंसिटिव जगहों पर सेंसर भी लगाये गए थे।
“चार बज चुके हैं। अभी तक तो अल्फांसे नज़र नहीं आया।” वांग ने सुधीर से कहा। सुधीर के चेहरे पर कुछ पट्टियाँ बंधी थी। वांग को मालूम था कि आज राक्षस से उसकी अच्छी खासी मुठभेड़ हुई थी।
“ये भी चिंता का विषय है। कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो हम लोगों के नज़रों से मिस हो रहा हो।”
“मुझे भी ऐसा ही कुछ शक हो रहा है।”
“मुझे लगता है कि हमें हवेली के अन्दर फिर से चेक करना चाहिए। हो सकता है कि वो पहले से ही अन्दर छुपा हो।”
“पर दो तीन दिन से तो हम लोग यहीं पर हैं। सारे कैमरे सही काम कर रहे हैं। पूरी हवेली की अच्छी तरह रेकी कि गयी है चाहे वो फाल्स सीलिंग हो या फिर बाथरूम वगैरह।”
“तुम्हारे मिनिस्टर कितने बजे निकलने वाले हैं?”
“गया से लगभग साढ़े पांच बजे निकलेंगे और छह बजकर पांच मिनट तक यहाँ पर होंगे।
“मतलब अभी हम लोगों के पास दो घंटे और हैं। हमें लगता है कि एक बार और पूरे हवेली कि छान बीन कर लेनी चाहिए।”
“सही कह रहे हो।”
“कमाल है वांग। कल रात ही हम चारों पूरी हवेली को छान चुके हैं। लगता है कि अल्फांसे का खौफ आपके दिमाग पर सवार हो चुका है।” पास आते हुए कन्हैय्या ने कहा।
उत्तर सुधीर ने दिया। “बाद में लकीर पीटने से अच्छा है कि पहले सारी लकीर को चेक कर लें। आप लोग यहीं ठहरे हम दोनों आते हैं।”
वांग के एक कमांडो और डी जी पी के साथ आये कमांडो द्वारा अच्छी तरह चेक किये जाने के बाद दोनों ने हवेली में प्रवेश किया। ये आज का प्रोटोकॉल था ताकि कोई भी भेष बदलकर या कोई हथियार वगैरह अन्दर प्लांट नहीं कर सके। हवेली के सारे कमरे ग्राउंड फ्लोर पर ही थे। हवेली के सारे कमरे को अच्छी तरह चेक किये जाने के बाद दोनों उस दरवाजे से गुजरे जो तहखाने की ओर जाता था।
“वांग के द्वारा लगाया गया इलेक्ट्रॉनिक लॉक अभी भी मौजूद था जिसकी दो चाभी होती थी। एक चाभी उसके पास थी और दूसरी उसने अपने एक कमांडो के पास रख छोड़ी थी। बेचारा वह कमांडो अल्फांसे का शिकार हो गया था और चाभी फिर उसके पास पहुँच गयी थी। ताला खोलकर वह अन्दर प्रविष्ट हुआ।
पहली सीढ़ी पर ही वह ठिठक गया। छठी इन्द्रिय ने उसके दिमाग पर दस्तक दे दी थी।
अल्फांसे तहखाने में था! और कही हो ही नहीं सकता था!
वो बेवकूफ बन चुका था! उस रात अल्फांसे के किसी साथी ने उसके कमांडो का मर्डर किया क्योंकि अल्फांसे तो ठक्कर के घर में काफी देर से था। फिर अल्फांसे ने झूठ कहा कि हत्या उसने की है। वो भी शेरिंग से खबर पाकर अल्फांसे के पास पहुँच गया। अल्फांसे वहां से भागकर हवेली पहुंचा। फिर चाभी से उसके मददगार ने ताला खोल अल्फांसे को यहाँ बंद कर दिया!
कौन था उसका मददगार? क्या उसके कमांडो में से कोई बिक चुका था? या राधा और कन्हैय्या? या फिर सरस्वती? सुधीर पर भी वह विश्वास नहीं करना चाहता था। सैकड़ों ख्याल उसके मन में आये और चले गए पर क्या मजाल कि उसने अपने चेहरे पर आने दिया हो। प्रत्यक्षतः वह पलटा और मुस्कुराकर बोला,
“यहाँ तो सब चाक चौबंद है सुधीर। चलो चलते है। “वह सबसे पहले यहाँ से निकल जाना चाहता था।”
पर दो दिन के भीतर वह दूसरी बार मात खाने वाला था। सुधीर के पैर की ज़ोरदार ठोकर उसके पैरों पर पड़ी।
तहखाने में अल्फांसे की हलकी आवाज गूंजी, “क्यों ठक्कर बेटे, दो दिन से यहाँ बिस्किट खाकर गुज़ारा कर रहा हूँ। बीच में एक फेरा तो लगा लेते।”
“अरे मरवा दिया तुम लोगों ने मुझे,” सुधीर के मुंह से अब ठक्कर की आवाज निकली थी, पैसे के चक्कर में तुम लोगों की बात मान ली वरना इस फेर में कभी न पड़ता। ऐसा लग रहा था कि किसी भी समय ये वांग मुझे धर पकड़ेगा। १०-१२ बार हार्ट अटैक आने से बचा है।”
“सुधीर का क्या हाल है।”
“मैडम जी के कब्जे में है।”
वांग समझ सकता था कि सुधीर रुपी ठक्कर किस मैडम की बात कर रहा है।
वांग को अल्फांसे ने अच्छी तरह दबोच कर रखा था। वो जानता था कि एक छोटा मौका पूरा खेल पलट सकता है।
तहखाने में एक तीसरी आवाज गूंजी,
“यही तो तुम इंसानों के साथ मजबूरी है। भूख प्यास डर भय के चक्कर में बनाया बनाया खेल बिगाड़ देते हो। पहले मुझे देखो, वांग के रूप में मैं कैसा लग रहा हूँ?”
वांग के सामने वांग का प्रतिरूप खड़ा था।
“अब ज़ल्दी इस बेहोश करो। समय बीतता जा रहा है।” अल्फांसे बोला। वांग के प्रतिरूप ने देरी नहीं की। बेहोश होते होते वांग सोच रहा था, होश में आने पर पहला मौका मिलते ही वो आत्महत्या कर लेगा।
“बस अब आपको कैमरे और सेंसर से बचकर चलना होगा।”
“मुझे जानकारी है।”
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दोनों बाहर निकले।
“क्यों वांग और सुधीर बाबू सबकुछ चाक चौबंद है न?” कन्हैय्या ने प्रश्न किया।
सुधीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ ,बस हमारे वांग महोदय दुखी है कि इनकी अल्फांसे से मुलाक़ात नहीं हुई।”
उसी समय दो गाड़ी वहां आकर रुकी। एक से आचार्य ब्रह्मदेव के साथ साथ जुनी और सरस्वती भी मौजूद थी। दुसरे में आश्रम के ही तीन और वाशिंदे भी मौजूद थे। नकली वांग के साथ उसके एक कमांडो ने चेकिंग की औपचारिकताएं पूरी की।
आचार्य अन्दर की और बढ़ गए जबकि अन्य लोग दूसरे टेंट में चले गए जिसमें धर्मगुरु के सहयोगी पहले से मौजूद थे।
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छह बजकर पांच मिनट के स्थान पर छह बजकर पैंतालिस मिनट पर चीनी विदेश मंत्री के हेलीकाप्टर का आगमन हुआ। लगभग एक किलोमीटर तक नो एंट्री जोन बनाया गया था और चारों तरफ से बल्लियों और रस्सी से स्थान को घेर दिया गया था। उसके पार स्थानीय निवासियों की भीड़ जमा हो गयी थी।
बी एस एफ के जवान मुस्तैदी से अपने काम को अंजाम दे रहे थे। प्रेस और टीवी चैनल वालों को भी पास जाने नहीं दिया गया था फिर भी दूर से ही अपनी रिपोर्टिंग में वे व्यस्त थे।
लगभग सात बजकर पंद्रह मिनट पर मीटिंग शुरू हो चुकी थी। मीटिंग स्थल पर दोनों धर्मगुरुओं, चीनी मंत्री और आचार्य ब्रह्मदेव के अतिरिक्त मंत्री का दुभाषिया डेनियल भी था जो मंत्री जी के लिए बॉडीगार्ड का भी काम करता था।
अभी तक सब कुछ सही चल रहा था। डेनियल भी पूरी तरह संतुष्ट नज़र आ रहा था।
उधर आश्रम में भी खेल शुरू हो चुका था।
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सात बजे के आसपास चेंग ने शेरिंग और मीमी के साथ कल रात बनाये गए रास्ते से आश्रम में प्रवेश किया। तीनों आश्रम के पारंपरिक नीले रंग के लिबास में थे। राक्षस के पकडे जाने पर उनका काम थोडा मुश्किल हो गया था। बाकी तीन लोग बाहर ही रहे।
तलाशी का काम शुरू हो चुका था। सबसे पहले तीनों ने आचार्य ब्रह्मदेव के क्वार्टर में ताला तोड़कर प्रवेश किया। अन्दर जैसी की उम्मीद थी, कोई नही था। आधे घंटे की तलाशी के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ।
अगली सबसे महत्वपूर्ण मंजिल सरस्वती का क्वार्टर था। लक उनके साथ था क्योंकि नीचे वाली मंजिल पर कोई मौजूद न था और पहली मंजिल पर सरस्वती का क्वार्टर खुले छत के बीच में था। इन तीन कमीने लोगों के लिए दरवाजे में लगे ताले का कोई खास महत्व न था। तीनों अन्दर प्रविष्ट हुए। यहाँ का नक्शा उन्होंने पहले ही देख रखा था जो दयाल ने बनाया था। सामने बड़ा सा बैठकखाना था जिसमें आराम के सारे साजो सामन मौजूद थे। हर सामान करीने से लगा था। बैठकखाने से एक रास्ता अन्दर कि ओर चला गया था। इसी गलियारे के दाईं ओर एक किचेन और उसके बाद एक छोटा सा पूजाघर था। दरवाजा खोल कर तीनों ने अन्दर झाँका। कोई चार फीट बाई चार फीट का पूजा घर था जिसमें एक शिव लिंग के अतिरिक्त कई हिन्दू देवताओं की छोटी छोटी मूर्तियाँ थी। और उसके सामने एक आसन था।
“कमाल है न।” चेंग ने मुस्कुराकर कहा, “पूजाघर की गहराई चार फीट और किचेन की छह फिट।”
मीमी और शेरिंग ने हैरत से उसे देखा। असलियत समझने में उसे पल भर भी नहीं लगा था। तीनों पूजा घर के अन्दर प्रविष्ट हुए। पीछे के दीवार में छुपे गुप्त द्वार को खोलने में उन्हें देर नहीं लगी। अन्दर तिब्बत के गुरु पद्मसंभव की मूर्ति लगी थी और वहां ताजा फूल मौजूद थे। मतलब आज ही यहाँ पूजा की गयी थी।
मतलब ये चपटी नाक वाली छोरी न इंडियन जासूस है न अमेरिकी। ये शुद्ध तिबेत्तियन है। शेरिंग ने कहा।
“अब सारा चक्कर समझ में आ रहा है। इस छोरी ने अपने गुरु को भी घनचक्कर बना कर रखा है।”
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मीटिंग शुरू हुए ३५ मिनट हो चुके थे। डेनियल को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पर रही थी। आचार्य ब्रह्मदेव को चीनी भाषा का असाधारण ज्ञान था। कमरे को अन्दर से लॉक नहीं किया गया था।
डेनियल टहलते हुए बाहर निकला। नकली वांग कमरे के आसपास ही था।
“ये बुड्ढा कमाल का है। मुझसे बेहतर चाइनीज़ बोल रहा है। अन्दर मेरी ज़रूरत नहीं।”
वांग डेनियल को खींचकर एक कोने में ले गया।
“क्या कह रहे हो? पर बूढे को तो चाइनीज़ की ए बी सी डी भी नहीं आती।” वांग ने अचम्भे स्वर में कहा, “वो तो खुद अपने दुभाषिये आनंद को लाने वाला था।”
नकली वांग ने डेनियल के दिमाग में शक का कीड़ा डाल दिया था।
“यहाँ कोई है जो इस पुजारी को बेहतर तरीके से पहचानता हो?”
“ऐसा तो एक ही है। एस आई सुधीर गुप्ता। इसका करीबी भी है। बरसों से इसे पहचानता भी है। दूसरी सरस्वती है। इसकी पीए।”
“नहीं नहीं। उस एस आई को ही भेजो। सरस्वती विश्वास के काबिल नहीं। उसके बारे में बहुत नेगटिव रिपोर्ट है।”
“ठीक है। उसे भेजता हूँ। थोडा भी कुछ शक हो तो मिनिस्टर को कनेक्टिंग रूम में भेज बाहर खड़ा रहना। बहाना कर देना कि मंत्री जी फ्रेश हो रहे हैं।” कहते हुए वो बाहर की और लपका।
कुछ ही देर में वो सुधीर के साथ अन्दर आया।
“ये सुधीर गुप्ता है। इस पर आँख बंद कर भरोसा कर सकते हो। मैं अन्दर के कमरे में दूसरी तरफ से जाकर रूम चेक कर लेता हूँ।” कहते हुए नकली वांग लपका।
डेनियल की धड़कन तेज हो गयी थी। तो क्या उस पुजारी के भेस में अल्फांसे था। सुधीर ने दरवाजे की झिर्री से अन्दर झाँका। अन्दर आचार्य ब्रह्मदेव जाने किस चीनी भाषा में बोले जा रहे थे। सुधीर के चेहरे पर हैरत के भाव आये।
वो घबराये स्वर में धीरे से बोला, “ये कौन है? आचार्य जी को तो तरीके से इंग्लिश नहीं आती। आज तो ये चीनी बोले जा रहे हैं?”
“क्यों ये आपके आचार्य जी नहीं हैं?”
“हैं तो ये आचार्य जी ही। चेहरा तो उन्हीं का है। पर...।”
सुधीर ने डेनियल के सस्पेंस को बढ़ा दिया था।
“पर क्या?”
“आज उनके बैठने का अंदाज, बोलने का अंदाज़ सब अलग है।”
डेनियल ने पल भर में निश्चय कर लिया। वो अपने मिनिस्टर से अकेले में बात करना चाहता था। सुधीर को वहीँ बाहर रुकने का इशारा करके डेनियल अन्दर जाकर अपनी सीट पर बैठ गया।
अन्दर दोनों में से एक लामा धीमे स्वर में विरोध में कुछ कह रहे थे पर मंत्री महोदय अविचलित नज़र आ रहे थे। उसी समय डेनियल ने मंत्री को एक गुप्त इशारा किया। ये इशारा संभावित खतरे का था।
मंत्री जी ने खड़े होकर बाथरूम जाने का इशारा किया।
“चलिए मैं आपको अन्दर तक लिए चलता हूँ।” आचार्य भी खड़े हो गए थे।
“मंत्री जी ने मुस्कुराते हुए चाइनीज़ में कहा, “अरे नहीं मैं इस मामले में अपनी सहायता कर सकता हूँ।”
डेनियल ने कनेक्टिंग रूम में झांक कर देखा। कमरा खाली था। वैसे उसने यहाँ आते ही इस कमरे और इसके बाथरूम को चेक कर लिया था। मंत्री जी के साथ वो कमरे में प्रवेश कर बुदबुदाया, आप अन्दर जाएँ वांग आता ही होगा।
वो बाहर निकल आया।
पलक झपकते ही अल्फांसे बाथरूम से निकला और उसका हाथ मंत्री जी के मुंह पर चिपक गया।
अपहरण हो चुका था।
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तीनों वहां से बाहर निकले। गलियारे के दायीं ओर बाथरूम था। दयाल के बनाये नक्शे में बाथरूम को छह फूट का दिखाया गया था पर यहाँ तो मुश्किल से चार फुट ही था। दस मिनट के मशक्कत के बाद तीनों सरस्वती के स्पेशल कंप्यूटर रूम में थे।
“इस कंप्यूटर में तो कोई डेटा है ही नहीं।” मीमी ने निराश स्वर में कहा।
“छोरी ने कंप्यूटर में ऑटो सेव आप्शन ऑफ कर दिया है। मतलब ब्राउज़र ऑफ करते ही सारी हिस्ट्री कंप्यूटर से गायब हो जाती है।”
“पर कोई तो तरीका होगा जिससे डिलीट हुए डाटा की रिकवरी हो सके।”
शेरिंग ने मुस्कुराते हुए कहा, “बहुत सारे तरीके हैं बहन जी। पर उसके लिए कंप्यूटर में हार्ड डिस्क होना ज़रूरी है। आपकी चपटी आँख वाली छोरी ने मेरे हिसाब से हार्ड डिस्क ही सीपीयू से निकाल रखा है। अब जब हार्ड डिस्क ही नहीं तो डेटा रिकवर कहाँ से करूं। ये भी हो सकता है कि वो एक्सटर्नल हार्ड डिस्क का इस्तेमाल कर रही हो।”
“मतलब छोरी हम लोगों से कम कमिनी नहीं है।”
“तो क्या कहते हो शेरिंग? यही है तुम्हारा सुपर कंप्यूटर?”
“सुपर क्या ये तो तरीके का कंप्यूटर भी नहीं है।” शेरिंग भुनभुनाया।
“तो चलो अब उस छोरे आनंद का भी सिस्टम चेक कर लेते हैं।” मीमी बोली।
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लगभग दस मिनट के बाद अन्दर के कमरे से कोई रेस्पोंस नहीं आने पर डेनियल गड़बड़ाया। मंत्री जी देर क्यों कर रहे थे?
धीरे से वो अन्दर प्रविष्ट हुआ। अन्दर मंत्री जी के साथ सुधीर मौजूद था।
सुधीर ने हडबडा कर कहा, “वांग अपने कमांडोज को निर्देश देने बाहर गया है। उसका कहना है कि मंत्री जी को तुरंत निकल जाना चाहिए।”
“क्यों क्या हुआ?”
“उसके दो कमांडो बाहर बेहोश पड़े हैं। सी सी टी वी कैमरे को भी किसी ने डिस्टर्ब किया है।”
“तुरंत एक लाइव विडियो का इंतेजाम करो। अन्दर के कमरे में तीनों को कह दो की मीटिंग समाप्त हो चुकी है। अब मैं पोस्ट मीटिंग स्टेटमेंट देने जा रहा हूँ।” घबराये हुए स्वर में मंत्रीजी ने कहा।
सब कुछ इतने तेजी से हुआ कि डेनियल को कुछ सोचने का वक़्त नहीं मिला।
कुछ ही पल में सुधीर और डेनियल ने मिलकर बैठकखाने को टेम्पररी कांफ्रेंस हाल में बदल डाला था। दोनों धर्मगुरु बार बार कहना चाह रहे थे कि उनकी बात पूरी नहीं हुई है। आचार्य जी भी मंत्री जी को अन्दर के कमरे में ले जाना चाह रहे थे पर वांग के चार कमांडो ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। डेनियल को अब लगभग यकीन था कि वह अल्फांसे है पर वो ऐसी कोई हरक़त नहीं करना चाह रहा था कि आचार्य के भेस में मौजूद अल्फांसे को शक हो।
बेचारे को क्या मालूम था कि किस तरह वो अंतररास्ट्रीय शातिर के जाल में फंस चुका है।
सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी। मंत्री जी के दोनों तरफ धर्मगुरुओं को बिठा दिया गया था।
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“आपका अपहरण हो चुका है ली कियांग महोदय।” अल्फांसे ने मीठे स्वर में कहा।
“मंत्री जी को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था। क्या डेनियल ने उसे धोखा दिया?”
अपने कमजोर इंग्लिश में वो बोले, “अन्दर मीटिंग चल रही है। जल्द ही तुम पकडे जाओगे।”
“मीटिंग की चिंता आप न करें। अब तो विडियो कांफ्रेंस की तेयारी चल रही होगी। अन्दर एक और विदेश मंत्री मौजूद हैं।”
“कौन विदेश मंत्री?” हकबकाकर वो बोले।
“आप ही का डुप्लीकेट है। देखोगे तो ऐसा लगेगा कि आइना देख रहे हो।”
“बेवकूफी है ये। लोग समझ जायेंगे। अगर न भी समझें तो यहाँ से छूटने के बाद मैं एक और प्रेस कांफ्रेंस कर लूँगा।”
“कॉन्फिडेंस अच्छा है। पर यहाँ से जिंदा बचोगे तब न। प्रेस कांफ्रेंस के बाद यहीं गाड़ दूंगा तुझे।” अल्फांसे का स्वर हिंसक हो उठा।
“नहीं...।”
“या तुझे अभी छोड़ देता हूँ। अपने देश जाकर मेरे लिए १० मिलियन डालर तैयार रखना। मैं जाकर वसूल कर लूँगा।”
मंत्री जी को विश्वास नहीं हुआ।
“तो तुम मुझे छोड़ रहे हो?”
“हाँ छोड़ ही देता हूँ। पर उसके पहले ये इयरफोन कान में लगा और इस मोबाइल स्क्रीन पर देख। अपने भाषण को लाइव सुनने का इतना अच्छा मौका फिर कहा मिलेगा। बाहर जाने के बाद जितना चिल्लाना होगा चिल्ला लेना। कोई तुम्हारी बात नहीं मानेगा कि पहले वाला स्टेटमेंट तेरा नहीं है।”
मंत्री जी बेवकूफों की तरह अपना भाषण सुनने लगे।
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“ये बहुत हीं एडवांस ब्लूटूथ डिस्प्ले है। आनंद के कमरे में मौजूद स्क्रीन को देख शेरिंग ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा। ज़रूर इसका इस्तेमाल बहुत ही एडवांस सिस्टम के लिए किया जाता होगा।”
“वो सब तो ठीक है पर इसका सिस्टम कहा है। इसके साथ तो कोई सीपीयू अटैच्ड ही नहीं है। कहीं आनंद उसे ले तो नहीं गया।”
“वो कोई छोटी चीज़ तो होगी नहीं कि वो छोरा उसे लेकर घूमता रहे।”
“मैं भी क्या करू, यहाँ तो इन्टरनेट कनेक्शन भी नहीं है कि मैं अपने मिनी कंप्यूटर का इस्तेमाल कर सकूँ।” अपने मोबाइल को देखते हुए उसने कहा।
अचानक वो चौंका। मोबाइल में ४जी का फुल टावर आ रहा था।
“अभी तो यहाँ फुल टावर आ रहा है।”
“बढ़िया”, चेंग ने ख़ुशी से कहा। “सबसे पहले फेसबुक ऑन करो। मंत्री जी का पोस्ट स्टेटमेंट लाइव आ रहा होगा।”
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विदेशमंत्री ली कियांग लाइव थे। स्टेटमेंट चीनी भाषा मंदारिन में था पर सबटाइटल अंग्रेजी में था।
“सबसे पहले मैं आचार्य जी का धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने मुझे यहाँ आमंत्रित किया और दोनों धर्मगुरुओं के साथ बात करने का मौका दिया। हम तिब्बतवासियों के हर दुःख में वो हमारे साथ हैं। पर जहाँ तक उनके धार्मिक स्वतंत्रता की बात है हम उसमें किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप के खिलाफ है।”
उधर चेंग मुस्कुराया। भाषण में उसके मंत्री जी का कोई सानी नहीं था।
मंत्री जी लगभग पांच मिनट तक बोलते चले गए जैसी की उनसें उम्मीद थी। पर अंतिम पंक्तियों तक आते आते चेंग का मुंह खुला का खुला रह गया। ये आदमी उसका मंत्री नहीं हो सकता था!
“मैं जानता हूँ कि दुनिया में कई ऐसे लोग है जो तिब्बत के आज़ादी कि बात कर रहे है। लोग समझते हैं कि दुनिया में चीन ही अकेला राष्ट्र है जो तिब्बत के बारे में नहीं सोचता पर इस टेलीकास्ट के ज़रिये मैं भरोसा दिलाता हूँ कि शीघ्र ही हमारी सरकार एक अध्यादेश लाने वाली है जिसके माध्यम से तिब्बत के आज़ादी का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।”
अपने स्टेटमेंट के अंत में मंत्री जी ने भारतीय तरीके से दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया।
डेनियल हक्का बक्का होकर अपने मंत्री को सुन रहा था।
उसके बाद तेजी से वे अन्दर के कमरे में प्रवेश कर गए।
पांच मिनट बाद ही अन्दर से असली मंत्री जी का उदय हुआ।
वो बेवकूफों जैसे डेनियल को ताक रहे थे।
डेनियल को छोड़ असली मंत्री जी अपनी वापसी की यात्रा पर निकल चुके थे।
अल्फांसे के साथ साथ नकली वांग, नकली मंत्री जी गायब हो चुके थे। करीब आधे घंटे बाद असली वांग तहखाने से बरामद हुआ।
पुरे वातावरण में अगर कोई सबसे ज्यादा खुश था तो वो थी चपटी नाक वाली लड़की।
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और अगर सबसे ज्यादा गुस्से में कोई था तो वो चेंग लेई था। मंत्री का भाषण वो मोबाइल पर देख चुका था। डेनियल से उसकी बात हो चुकी थी।
“अल्फांसे ने आख़िरकार हम लोगों को चकमा दे दिया।
“और इधर उस कंप्यूटर का भी पता नहीं चला।” शेरिंग बोला।
“तुम सबलोग बेवकूफ हो।” अचानक मीमी गुर्राई और फिर हंसने लगी। काफी देर तक हंसती रही वो।
“अब भी समझ नहीं आया तुम लोगों को सारा माजरा क्या है? जब तक आनंद यहाँ पर मौजूद था कोई भी मोबाइल काम नहीं कर रहा था। आनंद अब यहाँ नहीं है तो इस शेरिंग का ही नहीं मेरा मोबाइल भी काम करने लगा। यहाँ के किचेन में देख। इस घर में देख, किचेन का कोई अस्तित्व नहीं है। और चेंग ने कई बार कहा था कि उसे आजतक कुछ खाते नहीं देखा। कमाल की बात है कि इतने दिन आश्रम में रहने के बाद भी हमारे सुपर जासूस चेंग लेई भी कुछ समझ नहीं पाए।” मीमी बोली।
चेंग माथा पकड़कर वहीँ ज़मीन पर बैठ गया।
“हमारे खबरी राजन से उससे मुठभेड़ भी हुई थी। राजन ने बाद में जो कुछ बताया उससे भी मुझे समझ लेना चाहिए था कि वो आनंद कम से कम इंसान नहीं है। मैं इसे उसके दिमाग का खलल समझता रहा।”
“आनंद इंसान नहीं कंप्यूटर है! आनंद इन्सान नहीं कंप्यूटर है! अद्भुत! एक महान साइंटिस्ट का शाहकार !आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस का चमत्कार। कुछ महीने पहले एक ऐसा ही चमत्कार सोफिया सारी दुनिया के सामने आयी थी। ये आनंद उसके भी कहीं बढ़कर है। अगर राजन की बात माने तो यह अपने चेहरे को भी बदल सकता है। मुझे तो ये भी लगता है कि आज विदेश मंत्री के भेष में भी यही था!
“और वांग?”
“वो भी वही होगा। और कौन हो सकता है?” शेरिंग बोलता भी जा रहा था और उसकी ऑंखें अभी भी अपने मोबाइल पर जमी थी।
“और इन सबको उस सरस्वती ने तैयार किया?”
“और कोई नहीं कर सकती थी। इसी काम में विशेषज्ञ थी वो।”
“पर उसने हमारे मंत्री के अपहरण की साजिश क्यों रची?” मीमी बोली।
“क्योंकि वो तिब्बत की है। वो बर्मन की बहन है।” इस बार आश्चर्यचकित करने की बारी चेंग की थी।
शेरिंग ने चौंककर चेंग को देखा।
“क्यों शेरिंग? सारी जानकारी गूगल से ही तुम्हें मिल जाती है? या फिर तुम्हारे सीआइए से?” शेरिंग ने कुछ नहीं कहा।
“शक तो मुझे पहले से ही था। पर जब तक ये हम लोगों के काम आ रहा था इसे डिस्टर्ब करने की ज़रुरत नहीं थी। ये अकेला नहीं था, इसके पीछे सीआईए की एक टीम काम कर रही थी। मेरे हिसाब से इसका इंटरेस्ट केवल उस आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस वाले प्रोजेक्ट में था।”
“सही कहा तुमने चेंग। मेरे आकाओं को जुनी और सरस्वती के बारे में मालूम था। आखिर वो अमेरिका में वर्षों से थी। पर उसके जीवन का इकलौता उद्देश्य अपने देश यानि तिब्बत के लिए कुछ करना था। मुझे बताया गया था कि आश्रम में कोई रोबोट जैसी चीज़ होगी। मुझे क्या पता था कि उसने एक इंसान खड़ा कर दिया है। इस प्रोजेक्ट को उसने अमेरिका से छुपाकर रखा था। वो अक्सर अमेरिका जाती थी और वादा करती थी कि इंडिया में अपना काम ख़त्म होने के बाद वापस लौट आएगी। पर उन लोगों को कुछ शक हो गया था।”
“तो अब क्या सोचा तुमने?”
“सोचना क्या है। मैंने तुम लोगों को कोई धोखा नहीं दिया है। मैंने उन लोगों को इनफार्मेशन दे दिया है जिसके लिए मुझे पैसे मिले थे। अब बस तुम लोगों का साथ देना चाहता हूँ।”
“तो चलो अब सरस्वती का इंतज़ार करते हैं।”
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वांग अभी लौटना नहीं चाहता था पर अपने मंत्री के सख्त आदेश के बाद एक घंटे के भीतर सभी लोग रवाना हो गए। राधा कन्हैय्या के लायक भी कोई काम नहीं बचा था इसलिए वो दोनों भी दिल्ली के लिए रवाना हो गए। बी एस एफ ने भी रात होते होते अपना कैंप हटा लिया था। डी जी पी और उनकी टीम भी रवाना हो चुकी थी। आचार्य ब्रह्मदेव आनंद के साथ आश्रम की और निकल चुके थे। अंदर अल्फांसे के साथ सरस्वती मौजूद थी।
“शुक्रिया अल्फांसे।”
“तुम्हारे साथ काम करके अच्छा लगा।”
“मैंने सोचा नहीं था की काम इतनी आसानी से निपट जायेगा।”
“ताशी बहुत गुस्से में होगा। उसके साथ दो तीन और लोग भी होंगे। तुम्हारा नुकसान भी कर सकते हैं।”
“चिंता मत करो। मैं निपट लूंगी। तुम अपनी चिंता करो। उस चीनी मंत्री के सदके उनका एक एक जासूस तुम्हारी तलाश कर रहा होगा।”
“तुम अपनी और अपने भाई बर्मन की फ़िक्र करो। मैं चलता हूँ।”
सरस्वती दौड़ी और अल्फांसे के गले लग गयी। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे।
“अगर मैं किसी लायक होती तो तुम्हें प्रोपोज करती।”
“बहुत प्यारी हो तुम पर अल्फांसे ऐसे रिश्तों के लिए नहीं बना। चलता हूँ।
सरस्वती उसे जाते हुए देखती रही।
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दरवाजे का लॉक खोलकर वो अपने कमरे में प्रविष्ट हुई। अन्दर शेरिंग, मीमी और चेंग के अतिरिक्त दो अन्य जासूस भी मौजूद थे।
“बाहर से दरवाजा लगाने की क्या ज़रुरत थी। मुझे मालूम था की तुम लोग यहाँ मौजूद होंगे। तुम्हारा एक भाई बाहर होगा उसे भी बुला लो।”
एक और चीनी अन्दर प्रविष्ट हुआ।
“हाँ अब ठीक है। अब ये लो एक चपटी नाक वाली लड़की तुम्हारे सामने मौजूद है। जो पूछना है पूछ लो।” सरस्वती मुस्कुराते हुए एक कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी। बाकी लोगों ने सोफे कब्जाया हुआ था।
“मानना पड़ेगा। जानदार लडकी हो। वैसे भी इस कांफिडेंस की तुम हकदार हो। बड़े बड़े धुरंधर को तुमने चकमा दे दिया। ऐसा चक्कर चलाया की सभी लोग चक्कर खा गए। वांग जैसा खतरनाक आदमी भी आत्महत्या की बात सोचने लगा। अपने गुरु ब्रह्मदेव को भी हवा नहीं लगने दी।”
“वो मेरे गुरु नहीं। हाँ मैं उनकी मुलाजिम अवश्य हूँ।”
“शेरिंग ने किसी खोपड़ी के विषय में बताया था जिसकें तुमने अरबों रूपये जमा कर रखे हैं। क्या करोगी इतने रूपये का?”
“सभी मेरे देश के लोगों के काम आयेगे। आज सुबह ही मैंने खोपड़ी खाली कर दी है।” सरस्वती आराम से बोली।
“लगता है तुम्हारी चपटी नाक वाली लड़की को सुबह ही अपने होने वाले मौत का एहसास हो गया था। खैर ये बताओ कि आनंद कहाँ है।” मीमी बोली।
“आनंद तुम लोगों को कैसे दे दूंगी। अगर आनंद न होता तो तुम्हारी पूरी सरकार को चक्करघिन्नी बनाकर तिब्बत तक पैसे नहीं पहुंचा पाती। अगर आनंद नहीं होता तो जो आज हुआ वो इतनी आसानी से नहीं होता। बेशक इसमें सबसे बड़ा योगदान अल्फांसे का है।”
“अल्फांसे से तो हम लोग बाद में निपट लेंगे। पहले तेरा नंबर है फिर बर्मन का। और फिर तेरे गुरु का।”
“मेरे तक तो ठीक है। पर बाकी दोनों का नंबर नहीं आएगा।”
“क्यों? उन दोनों ने अमृत पी रखा है क्या?”
अमृत पीकर तो कोई नहीं आया। मौत के बारे में मुझसे बेहतर कौन जानता है। बारह साल की थी जब तुम्हारे देश के चंद कमीनों ने मेरे परिवार के ग्यारह लोगों को मार डाला। मेरी मां क्या मेरे बाप की बूढी मां को भी नहीं छोड़ा कई लोगों ने बलात्कार किया उनका। बलात्कार समझती है न तू मीमी? सरस्वती के मुंह से अब अजीब सी हिंसक आवाज निकल रही थी,
“ये इस कमीने चेंग को देख रहे हो न तुम सब वो भी खड़ा था उस समय। इसनें भी मजा लूटा था उस दिन। फिर मेरा भाई जुनी जिसे तुम लोग बर्मन के नाम से जानते हो मुझे और मेरी छोटी बहन को लेकर भागा। पर रास्ते में हम लोग पकडे गए। फिर वही सब हुआ हमारे साथ। मेरी छोटी बहन जो बस सात साल की थी और मैं बारह साल की। हम दोनों बारी बारी से लुटे। कई बार लुटे, फिर मेरी बहन मर गयी। किसी तरह मुझे लेकर मेरा भाई कई दिन तक भागता रहा। याद है तुझे कमीने? कहाँ से याद रहेगा तुझे। जिंदगी में कुछ एक बार हो तो याद रहेगा न। तुम लोगों का तो ये रोज का काम है। पिछले उन्नीस साल से इस शरीर को धो रही हूँ। ऐसा हाल किया था कमीनों ने की किसी काम का नहीं रहा ये शरीर। शारीरिक सुख नहीं प्राप्त कर सकती मैं। पर दीमाग तो था न। देख इस दिमाग का कमाल। तेरे सारे देश को नचा कर रख दिया। हो सकता है कि मैं जिंदा नहीं रहू पर मेरा आनंद तुम सबको नाचता रहेगा। अब जैसे इन दोनों को देखो जो दरवाजे के पास खड़े हैं। पर अगर मौत आएगी तो सबसे पहले इन्हें ही दबोचेगी।”
चेंग को सच में कुछ याद नहीं था। पिछले २५ वर्षों में इतने केसों को वो निबटा चुका था की उसका हिसाब रखना मुश्किल था।
सरस्वती खड़ी हो चुकी थी। उसने ध्यान से सामने देखा। दो चीनी दरवाजे के पास खड़े थे। शेरिंग कमरे में मौजूद फ्रीज़ से अड़कर खड़ा था। उसके सामने दायीं ओर दीवार से लगाकर लगे सोफे पर मीमी और एक अन्य जासूस बैठा था। सिंगल सीटर सोफे पर चेंग लेई बैठा था जिसका मुंह उसकी ओर था। सभी शिकार उसके सामने थे। शेरिंग पर जाकर उसकी निगाहें रुकी।
“शेरिंग महोदय यानि डबल एजेंट। तो अपने अमेरिकी आकाओं को खबर दे दी आनंद के बारे में? पर वो बेचारे आनंद को पहचानेंगे कैसे? वो अपना चेहरा हजारों बार बदल सकता है।”
शेरिंग मुस्कुराया, “अमेरिका में तेरे जैसे सैकड़ों साइंटिस्ट भरे हैं। पर उसकी ज़रुरत नहीं पड़ेगी। उसको पहचानने के लिए मैं ही काफी हूँ। अन्दर से वो टीन का कनस्तर ही है न?”
“तू जिंदा रहेगा तब न?” कहते हुए सरस्वती ने बिना वक़्त दिए शेरिंग पर छलांग लगा दी। उसके बालों को मजबूती से थाम पूरी ताकत से गिरते गिरते ज़मीन पर दे मारा। शेरिंग का सर नारियल की तरह फट चुका था। बचने की कोई गुंजाईश नहीं थी।
सभी हतप्रभ होकर उसे देख रहे थे। अपना पहला शिकार कर सरस्वती आराम से खडी थी।
चेंग टहलता हुआ उसके पास पहुंचा, “तो तुझे हाथ चलाना भी आता है।”
“क्या करूं ताशी। तुम लोगों के ज़ुल्म ओ सितम ने बहुत कुछ बना दिया है।”
“तूने जो नुक्सान करना था वो कर डाला। अब तेरी जो दुर्गति होगी वो हमारे मंत्री जी लाइव देखेंगे। एक सीन तुम लोगों ने हम लोगों को लाइव दिखाया था अब तेरी मौत का तमाशा लाइव होगा। मीमी चल अपने मोबाइल से मंत्री जी का मोबाइल कनेक्ट कर।”
“इससे अच्छी तो कोई बात हम लोगों के हक में कुछ हो ही नहीं सकती।” सरस्वती बोली।
मीमी ने मोबाइल सेट कर दिया।
चेंग बहुत पास आ चुका था। सरस्वती मुस्कुराई। झटके से उसने अपने सर का वार चेंग के सर पर करना चाहा पर उससे पहले ही उसके मुंह से चीख निकल गयी। चेंग के हाथ का चाक़ू तेज़ी से उसके पेट को चीरता हुआ निकल गया।
“वार करने का मौका हम लोगों को भी मिलना हम चाहिए न!” चेंग ने तीखे स्वर में कहा।
पाँचों लोग अभी भी आश्चर्य से शेरिंग के मृत शरीर को देख रहे थे। उसे यमपुरी पहुँचने में एक मिनट का भी वक़्त नहीं लगा था।
सरस्वती के कपडे रक्त से भीग चुके थे। चेंग के चाकू ने काफी गहरा वार किया था। इस बार मीमी ने आगे बढ़कर उसका बाल पकड़ना चाहा पर सरस्वती पीछे हट गयी। फिर भी उसके कपडे उसके हाथ में आ चुके थे। मीमी ने कपडे पकड़कर जोर का झटका दिया। वो दूर अन्य जासूस के पैरों के पास जा गिरी।
“परदे के पीछे के खेल में भले ही तू माहिर होगी पर...।”
मीमी के शब्द मुंह में ही रह गए। सरस्वती के हाथ में उस जासूस का पैर आ चुका था जिसे उसने जोर का झटका दिया। वो धराम से जा गिरा। पर अभी उसने उसका पैर छोड़ा न था। अब जासूस दोनों पैर उसके हाथ में थे। साठ सत्तर किलो के उस आदमी को उसने यूँ उठा लिया जो किसी हैवी वेट पहलवान को ही शोभा दे सकता था। पूरे वेग से उसे घुमाकर उसे दरवाजे के पास के दीवार पर दे मारा।
“ये लो दूसरा भी गया। अब चार बचे।”
सरस्वती अब हांफ रही थी। भरी शरीर उठाने के कारण पेट से खून और तेजी से निकलने लगा था। वो अब पेट पकड़कर दरवाजे के पास बैठ गयी थी।
“ये लड़की पागल हो गयी है।” मीमी चिख उठी, “शूट हर।”
मीमी के बोलने से पहले ही एक चीनी गोली चला चुका था। शायद ये घबराहट का असर था या सरस्वती के खौफ का असर, उसका निशाना चुक चुका था।
पर सरस्वती का निशाना नहीं चूका। अपने कपडे में फंसे छोटे से रिवाल्वर को निकलकर मीमी ने लगातार दो गोली चलाई। आज सरस्वती पूरी तरह तैयार हो कर आयी थी। शायद उसे एहसास था कि वो अपनी जिंदगी की आख़री लडाई लड़ रही है। अब केवल दो लोग बचे थे।
“ये मेरे जीवन की आख़री लड़ाई है ताशी। इस कहानी की स्क्रिप्ट बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। आज अगर तुम पांच क्या पचास को भी लेकर आते उन सबका भी यही हश्र होता।”
ताशी समझ चुका था कि कोई भी पल उसके और मीमी के मौत का पैगाम लेकर आ सकता है। उसने रिवाल्वर निकला और बिना कोई देरी किये गोली चला दी। गोली ठीक उसके दिल के पास लगी थी। सरस्वती जो खड़े होने की कोशिश कर रही थी एक चीख के साथ पीछे दरवाजे से टकराई। पर उसने अपने आप को गिरने नहीं दिया था। वो जानती थी कि अब मौत उसके बहुत करीब है। मीमी धीरे धीरे उसके करीब पहुँची और अपनी अंगुली गोली लगे स्थान की तरफ बढ़ायी। सरस्वती के पास अब बहुत कम वक़्त था। उसने तेज़ी से अपना हाथ मीमी के मुंह में डाल दिया। मीमी समझ नहीं पाई की वो करना क्या चाह रही है। तभी झटके से अपने दूसरे हाथ से उसके ऊपर के जबड़े को थाम लिया। अब उसके दोनों जबड़े उसके दोनों हाथों में थे।
अगला नजारा बहुत ही खौफनाक था। उस चपटी नाक वाली लड़की ने पूरी ताकत से उसका मुंह दो हिस्सों में चीर डाला था।
चेंग जैसे शख्स ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया था। क्या ऐसी क्रूरता कोई औरत दिखा सकती थी!
भले ही इसके बाद चेंग ने अपन रिवाल्वर सरस्वती के शरीर पर खाली कर डाला था पर उस नज़ारे ने उसे अन्दर तक कंपा डाला था। इसने जघन्य मौत की वो कल्पना भी नहीं कर सकता था जो मीमी को मिली थी।
विदेश मंत्री ने भी इस नज़ारे को देखा होगा!
चेंग सरस्वती के आने से पहले अपने विदेश मंत्री को बता चुका था कि किस तरह सरस्वती ने सारा खेल रचा था और सारी दुनिया से पैसे इकट्ठे कर आनंद के जरिये पैसे ट्रान्सफर कर रही थी। मंत्रीजी ने सरस्वती के मारने के बाद उसे तुरंत चीन वापस लौटने को कहा था।
पर अभी एक छोटा सा काम उसके लिए बचा था। आश्रम के जिस गुरु के नाक के ठीक नीचे सरस्वती ने ये सारा खेल रचा था उसे वह कैसे माफ़ कर सकता था। ब्रह्मदेव ने उसे तो असली राक्षस कहा था। एक बारगी वो अल्फांसे या जुनी को माफ़ कर सकता था पर ब्रह्मदेव को नहीं। उसके आश्रम में ही तो रहकर ये छोकरी चीन के विरुद्ध सारा चक्कर चला रही थी।
वो कमरे से बाहर निकला।
उसे ज्यादा तलाशी नहीं लेनी पड़ी। ब्रह्मदेव के गुरु जयंत देव की समाधि कक्ष का द्वार बाहर से बंद नहीं था।
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जिस समय चेंग लेई समाधि कक्ष में प्रवेश कर रहा था ठीक उसी समय अल्फांसे ने सरस्वती के कमरे में प्रवेश किया।
वो चुपचाप इस शहर से निकल जाना चाहता था पर उसे यकीन नहीं था कि सरस्वती उन चीनी जासूसों का सामना करना चाहती है।
पर यहाँ खेल ख़त्म हो चुका था।
मृत लोगों में चेंग नहीं था। सरस्वती बाकी लोगों को मारकर मरी थी। उसे सरस्वती के मौत का अफ़सोस हो रहा था। अपने मिशन की खातिर उसने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। वो सरस्वती के सामने बैठ गया। अभी भी सरस्वती दीवार के सहारे अधलेटी अवस्था में थी। अचानक धीरे से उसके होंठ हिले। उसने आंखें खोल दी। अल्फांसे को देखकर हलकी सी मुस्कुराई।
“अच्छा हुआ तुम आ गए।” बहुत हलके स्वर में वह बोल रही थी, “बस मेरा एक काम कर दो।”
“क्या...?” अल्फांसे ने अपनी आवाज के भर्राहट को छुपाने का प्रयत्न किया। उससे थोड़ी सी भूल हो गयी थी वरना आज वो उसे बचा सकता था। पर वो जानता था कि अब देर हो चुकी है।
“वो राक्षस मेरे गुरु को मारने गया है। बचा लो उन्हें...देर मत करो...।”
तो चेंग लेई उर्फ़ ताशी नाम का वो राक्षस अभी जिंदा था और पास में ही था।
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चेंग जयंत देव के समाधी स्थल में प्रविष्ट हुआ।
सामने कमरे के लगभग बीच में गुरु जयंत देव की विशाल मूर्ति लगी थी। वहां कोई नहीं था। इस कमरे में वह पहली बार आया था।
मूर्ति दीवार से छह इंच आगे थी। टहलते हुए उसने मूर्ति के पीछे झाँका। पीछे नीचे जाने के लिए सीढ़ी बनी थी।
तो ये माजरा था! ये था उस आचार्य के साधना कक्ष का रहस्य। सीढ़ी को छुपाने के इंतेजाम थे पर वो आज खुला था। सीढ़ी से वो दबे पांव नीचे पहुंचा।
वो एक पतली सी राहदारी थी जिसके दोनों तरफ दो कमरे थे जो अन्दर से बंद थे। वो नीचे उतर आया। आगे एक और कमरा था जो अन्य कमरों से ज्यादा बड़ा मालूम होता था। उसके दरवाजे के हैंडल को पकड़कर उसने हलके से धक्का दिया। हर खतरे के लिए वो पूरी तरह तैयार था।
“कौन ताशी?” अन्दर से आचार्य ब्रह्मदेव की आवाज आयी।
“अन्दर आ जाइए। मैं आप ही का इंतज़ार कर रहा था।”
चेंग अन्दर चला आया। उसका हाथ पॉकेट के अन्दर रिवाल्वर के ट्रिगर पर जमा था।
अन्दर आचार्य के अतिरिक्त कोई नहीं था। कमरा लभग खाली था। एक सोफे पर वो खुद बैठे थे। सामने दीवार पर एक विशाल टीवी स्क्रीन लगी थी। दाईं ओर एक और सोफे लगा था जिस पर जाकर वो आराम से बैठ गया।
“तो अपने ये अंडरग्राउंड कमरा भी देख लिया।”
“तो यह है आपका साधना कक्ष।”
“साधना कक्ष तो ऊपर ही है। बस कभी कभी यहाँ भी चला आता हूँ।”
“मैं कई बार तुम्हारे साधना कक्ष में आकर गया था। पर कोई रास्ता पता नहीं चला था।”
“हाँ, आज तुम्हारे लिए खोल आया था। लगता है की काफी भाग दौड़ के बाद यहाँ पहुंचे हो। कपड़े पर खून के छींटे भी हैं। किसी से मारपीट करके पहुंचे हो क्या?”
“हाँ।” चेंग ने संक्षिप्त उत्तर दिया, “आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ।”
“पूछिये।”
“अगर किसी देश के लोग अपने देश में किसी अन्य देश के खिलाफ षड़यंत्र रचें तो उस देश के प्रधान की जिम्मेवारी बनती है या नहीं?”
“बिलकुल। एक शासनाध्यक्ष का ये कर्त्तव्य है कि वो ऐसे किसी भी कोशिश पर नियंत्रण रखे।”
“तब तो मुझे आपको मारने पर कोई दुःख नहीं होगा।”
“ऐसा क्या हो गया आश्रम के अन्दर? किसने किया ऐसा?”
“आपकी शिष्या सरस्वती ने। यहाँ उसने चीन के विरुद्ध षड़यंत्र रचा। एक क्रिमिनल को इस आश्रम में इतने दिनों तक नरेन्द्र नाम से छुपाकर रखा। आपको तो अभी तक पता भी नहीं होगा कि उसका असली नाम कुछ और है।
आचार्य के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़े, “क्यों? मैं तो समझता था की उसका असली नाम अल्फांसे है। जैसे कि आपका असली नाम चेंग लेई है और आप चीन के महान जासूस हैं। और फिर अल्फांसे को यहाँ लाने का काम तो दरअसल मैंने किया था, इसमें बेचारी सरस्वती की क्या गलती है।”
चेंग के सारे फ्यूज एक साथ उड़ गए। वो आचार्य को बेवकूफों की तरह देख रहा था।
“ये सही है कि सरस्वती की इसमें बहुत बड़ी भूमिका थी। उसने बहुत एक्टिव रोल अदा किया और अपने देश के नाम पर शहीद हो गयी।”
उसे अब मालूम हो रहा था कि वो ‘बकरा’ बन चुका है।
“तो आपको मालूम है कि सरस्वती मेरे हाथों मारी जा चुकी है?”
“सरस्वती के सामने तुम्हारी क्या बिसात कि तुम उसे मार सको। उसने खुद को तुम्हारे हाथों मरवाया है।”
“तो सारे मोहरे तुम्हारे थे?”
“कोई किसी का मोहरा नहीं था। सरस्वती और जुनी अपने देश के लिए कुछ करना चाहते थे। मैंने उनकी सहायता की। अपने देश के लिए ऐसी गुमनाम कुर्बानी किसी ने नहीं दी होगी। चाहती तो बच भी सकती थी। पर वो जानती थी की मरकर वो अपने देश के लिए ज्यादा काम आ सकती है।”
“वो कैसे?”
“मरने से पहले सब समझ जाओगे।”
“तो सारा प्लान तुमनें सरस्वती के लिए बनाया?”
“नहीं। वो एक बड़े प्लान का हिस्सा था।”
“ओह, समझा मैं।” चेंग लेई के जबड़े कस गए थे।
“क्या समझे?”
“तुम शुरू से ही जानते थे कि मैं चीन का जासूस हूँ। फिर भी तुमनें उन दिल्ली वाले जासूस को नहीं बताया। या फिर वो भी मेरी असलियत जानते थे। अगर ऐसा है तो इसका मतलब तुम भारत सरकार के लिए काम कर रहे हो। शायद एच आई जी के लिए।”
“ऐसा ही है”, आचार्य ब्रह्मदेव को सच कबूलने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी, “दरअसल एच आई जी मेरा ही ब्रेन प्रोजेक्ट है। दस साल तक मैं रॉ का जासूस था। उसके बाद नौकरी छोड़ सन्यासी बन गया। वर्षों तक यहाँ वहां फिरा। तिब्बत में तुम लोगों के ज़ुल्म ओ सितम देखे। फिर कैलाश मानसरोवर की यात्रा की। कैलाश यानि हमारे भोलेनाथ का घर। वहां जाने के लिए हम भारतवासियों को तुम्हारे आगे गिडगिडाना पड़ता है। तिब्बत यानि ज्ञानगंज और शम्भाला यानि सारे बुद्धपुरुषों का घर। सारी दुनिया घूमकर यहाँ पहुंचा जहाँ एक जागृत पुरुष जयंतदेव से मुलाक़ात हुई। यहाँ आया तो यहीं का होकर रह गया। फिर कुछ साल पहले अपने पुराने सहकर्मियों से अचानक मुलाक़ात हुई। देशऋण चुकाने का अच्छा मौका मिल गया।”
“और ये आनंद?”
“आनंद हमारे साइंसदानों का ड्रीम प्रोजेक्ट है। वह मेरे द्वारा कण्ट्रोल होता था। रजनी की असलियत मालूम हुई तो उसे भी आनंद के द्वारा बाहर का रास्ती दिखाया गया।”
“और मंदा? उसके बारे में राक्षस ने बताया था। वह भी कुछ ऐसे ही किसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है?”
“नहीं। अर्जुन जी एक महान तांत्रिक हैं। मंदा एक अन्य लोक की जीव है। मुझे मालूम नहीं था कि वह अभी भी अर्जुन जी के साथ है। उसका यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं है। उसने एक औरत कि हत्या भी की थी। अर्जुन जी को मैंने कह दिया है कि उसे आश्रम से बाहर करे। उसके कारण एक भोला भला इंसान सेवाराम बेवकूफ बना।
“और सन्यासी का ढोंग भी साथ साथ चलता रहा।”
“तुम नहीं समझोगे चेंग। हमारी संस्कृति में सन्यास और कर्म का कोई विरोध नहीं। जिसनें निष्काम कर्म को नहीं समझा वो संन्यास को भी नहीं समझ सकता।”
“विश्वास नहीं होता की एक संन्यासी इतनी खतरनाक प्लानिंग को अंजाम दे सकता है। पर तुम इतनी आसानी से सबकुछ मुझे क्यों बता रहे हो?”
“मैं नहीं चाहता कि मृत्यु से पहले कोई भी प्रश्न तुम्हारे लिए अनुत्तरित रह जाये। वैसे तुम्हारे मंत्री जी के अपहरण का प्लान अल्फांसे का था। कुछ पल के लिए मैं भी चक्कर खा गया था।”
“ओह। तो मेरी मृत्यु भी तुम्हरी प्लानिंग का एक हिस्सा है?” चेंग ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा। अब वो रिवाल्वर अपने पॉकेट से निकलकर अपने हाथ में घुमा रहा था।
बाहर अल्फांसे खड़ा होकर हैरत से सबकुछ सुन रहा था।
“वो तो इस गेम का सबसे महत्वपूर्ण पार्ट है वरना सारा प्लान चौपट हो जायेगा। वैसे तुम्हारे जैसे राक्षस को मारकर मुझे भी बहुत ख़ुशी होगी। एक अच्छे भले तांत्रिक को तुमनें राक्षस बना दिया। सबसे पहले तुमनें विनय चतुर्वेदी के लिए जाल बिछाया और फिर एक महान योगिनी भुवन मोहिनी कि हत्या कर डाली। उसे बार-बार बहकाने की कोशिश करते रहे और आखिरकार चार चार लोगों को उससे मरवा दिया। तुम्हारे तो रग रग में राक्षसी गुण भरे हैं।”
“मुझे बार बार लग रहा था की दोनों दिल्ली वाले जासूस आधे मन से काम कर रहे है।”
“वो दोनों जासूस कुछ छानबीन करने नहीं बल्कि इस आश्रम के रहस्यों को पुलिस और पब्लिक से छिपाने पहुंचे थे। सुधीर इन रहस्यों के तह तक पहुँचने ही वाला था। तब उसे कुछ सच्चाई से अवगत कराकर इस गेम का हिस्सा बना लिया गया।”
“मतलब वांग से जो सुधीर मिला था वो ठक्कर न होकर असली सुधीर था?
“हाँ। सुधीर, चेंग को रस्सी से बाँध दो।” आचार्य ने चेंग के पीछे देखते हुए कहा।
“चेंग हडबडाकर पीछे पलटा। आचार्य के हाथ से एक लकड़ी का टुकड़ा तेजी से निकला और वांग के रिवाल्वर से टकराया। रिवाल्वर उछलकर आचार्य के क़दमों में जा गिरा। वो एक पुरानी तकनीक का शिकार हो गया था।”
“और कोई सवाल।”
“अगर मुझे कुछ हो जाता है तो कुछ ही देर में हमारे विदेश मंत्री जो अभी दिल्ली में ही हैं उनके एक इशारे पर यहाँ पुलिस फ़ोर्स जमा हो जाएगी। कुछ ही देर पहले मेरी उनसे बात हुई है।”
“ये रिस्क हम नहीं उठा सकते।” आचार्य ने मुस्कुराते हुए कहा, “इसलिए तुम्हारी मौत हो जाये, चेंग को वापस चीन पहुँचने से हम नहीं रोकेंगे। एक दूसरे चेंग को हमने तैयार रखा है।”
“दूसरा चेंग!” चेंग अचानक चुप हो गया। तो ये था असली प्लान! अब उसे पूछने की ज़रुरत भी नहीं थी की उसका डुप्लीकेट कौन बनाने वाला है! अब उसके समझ में आया कि जुनी उर्फ़ बर्मन क्यों उसके आस पास घूमता रहता था। वो उसकी हर एक्टिविटी को नोट कर रहा था। मतलब सारा प्लान एक नकली चेंग को खड़ा करने का था ताकि चीन में वो उसकी जगह ले सके। जैसे एक और इंडियन जासूस महीनों तक चीन में रहा था। इसलिए सबकुछ जानकर भी यहाँ उसकी गुस्ताखियाँ माफ़ की जा रही थी। अब समझ में आया की जब वो ऊपर मुठभेड़ के वक़्त लाइव रिकॉर्डिंग करने जा रहा था तो सरस्वती ने क्यों कहा था कि इससे अच्छी तो कोई बात हम लोगों के हक में कुछ हो ही नहीं सकती। उसके मंत्री के नज़र में वह असली मुजरिम को मर चुका था। सरस्वती मरकर भी अपने मिशन के काम आ गयी थी।
“बड़ी मेहनत की है जुनी ने तुम्हारे हाव भाव और आवाज मिलाने में। तुम्हारे फाइटिंग स्टाइल को भी मेहनत से सिखा है उसने। लम्बाई ऊंचाई से लेकर आदतें भी वैसी ही बना ली है उसने। बाकी रहा चेहरा मोहरा तो वो कमी भी पूरी कर देंगे हम लोग। बहुत सारी टेक्निक्स हैं हमारे पास। पिछली बार भी जिसे हमनें चीन भेजा था वो भी सफल रहा। मृत्यु के बाद ही पकड़ में आ पाया। रही बात आपकी मृत्यु की तो वो अपनी पसंद के अनुसार चुनाव कर सकते हो।”
चेंग चुनाव कर चुका था। वो हार चुका था। अब वो कोई संघर्ष करने की कोशिश नहीं करना चाहता था। उसकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गयी। उसने कोई जहर खा लिया था।
कमरे में अन्दर के दरवाजे से महंत का प्रवेश हुआ। उसने चेंग की नब्ज़ चेक की। वो सच में मर चुका था।
“आनंद कहाँ है।”
“यहीं तहखाने में।”
“उसे बाहर मत जाने देना। कुछ अमेरिकी जासूस उसके फिराक में होंगे। सभी को कह दो की वो अपने अपने कमरे में ऊपर जा सकते हैं। बाहर अल्फांसे खड़ा है। मैं ऊपर अल्फांसे के साथ सरस्वती से मिलने जा रहा हूँ। मेरे लिए उसके प्राण अटके होंगे।”
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जुनी सरस्वती को गले लगाकर जार जार रोये जा रहा था।
“मैं कैसे जियूँगा रे। तू ऊपर लड़ मर रही थी और मैं नीचे रोने के सिवा कुछ कर नहीं पाया। तू चाहती तो खुद को बचा सकती थी।”
“मैं अपने मरने की कहानी में जान डालना चाहती थी भैय्या। मैं बच जाती तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाता। मुझे जो करना था मैंने कर दिया। बस अब तेरा रोल बाकी है।”
अल्फांसे और आचार्य ने कमरे में प्रवेश किया। जुनी आचार्य से लिपट गया।
“आप जानते थे न गुरुदेव कि ये खुद को बचने नहीं देगी। फिर भी आप मुझे झूठा दिलासा देते रहे।”
“क्या करता जुनी। मैं इस पगली की क़ुरबानी को व्यर्थ कैसे जाने देता। सबकुछ सोच कर रखा था इसने।” गुरदेव भी बच्चों की तरह रोने लगे थे। खुद पांच को मार कर मरी फिर भी इसने मुझे बचने के लिए अल्फांसे को नीचे भेज दिया।
“क्या करती गुरदेव। अपने बाप को इन चीनियों के सामने मरते देखा था मैंने। उसे दोबारा कैसे मरने देती।”
आचार्य ने सरस्वती को अपने सीने में भींच लिया।
समाप्त
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