वातावरण में हल्की सी धुन्ध फैली हुई थी । जिसके कारण सड़क पर लगी बत्तियों की रोशनी धुन्धली सी मालूम हो रही थी । महात्मा गान्धी रोड पर स्थित उर्मिला के फ्लैट वाली चार मन्जिली इमारत की कुछ खिड़कियों में प्रकाश की किरण दिखाई दे रही थीं। इमारत के मुख्य द्वार की बगल में वह बोर्ड अब भी लगा हुआ था जिस पर लिखा था - "फ्लैट किराए के लिए खाली है। जानकारी के लिए ग्राउन्ड फ्लोर के दूसरे फ्लैट में वर्मा से मिलिए ।”
प्रमोद इमारत में घुस गया और सीढियों के रास्ते तीसरी मन्जिल पर पहुंच गया ।
गलियारा सुनसान पड़ा था । वह अपनी फाउन्टेन पैन के आकार वाली टार्च से रास्ता रेखता हुआ उर्मिला के फ्लैट के सामने पहुंचा। उसने कालबैल बजा दी ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
प्रमोद ने की होल में आंख लगाकर देखा । भीतर एकदम अंधेरा था । उसे कुछ दिखाई नहीं दिया ।
उसने अपनी जेब से अपनी चाबियों का गुच्छा निकाला और बारी-बारी से एक-एक चाबी द्वार के स्प्रिंग लाक में ट्राई करने लगा ।
सौभाग्यवश एक चाबी उस ताले में लग गई और द्वार खुल गया । प्रमोद ने नाब को घुमाकर धीरे से द्वार खोला और भीतर घुस गया । भीतर जाकर उसने अपने पीछे द्वार बन्द कर लिया ।
उसने टार्च की रोशनी फ्लैट के चारों ओर घुमाई ।
जगन्नाथ की तस्वीर अब भी कोने की उसी मेज पर पड़ी थी जहां वह उसे शाम को दिखाई दी थी ।
प्रमोद तस्वीर की ओर बढा ।
उसी समय बाहर का गलियारा भारी बूटों की आवाज से गूंज गया । प्रमोद ने घबराकर फौरन टार्च का स्विच बन्द कर दिया और द्वार की बगल में सांस रोक कर खड़ा हो गया ।
भारी कदम उसी ओर बढ़ रहे थे ।
प्रमोद ने धीरे से हाथ बढाकर द्वार की चिटखनी लगा दी
भारी कदम द्वार के सामने आकर रुक गये । अगले ही क्षण ही किसी ने बाहर से द्वार भड़भड़ाना प्रारम्भ कर दिया । साथ ही कालबैल भी बज उठी ।
रहा । प्रमोद पत्थर के बुत की तरह द्वार की बगल में खड़ा
द्वार फिर भड़भड़ाया गया और साथ ही वातावरण में इन्स्पैक्टर आत्माराम का अधिकारपूर्ण स्वर गूंज उठा - "दरवाजा खोलो ।"
"शायद भीतर कोई नहीं है।" - एक पतली सी आवाज सुनाई दी ।
"यही मालूम होता है ।" - आत्माराम बोला - "चलो नीचे । नीचे जीप में बैठकर उसके लौटने का इन्तजार करते। इमारत का बाहर निकलने का रास्ता तो एक ही है न ? जिधर जीप खड़ी है ?"
“जी हां ।" - पतली आवाज बोली ।
"तुम उसे पहचान लोगे ?"
"क्यों नहीं पहचानूंगा, इन्स्पैक्टर साहब । मैंने बीसियों बार उसे जगन्नाथ के साथ देखा है ।"
“चलो, नीचे चलकर उसकी प्रतीक्षा करते हैं । भीतर तो वह उसी रास्ते से घुसेगी । उसके आने पर मैं उसके फ्लैट की तलाशी लूंगा ।”
कदम चल पड़े । आवाज दूर होती होती विलीन हो गई।
प्रमोद ने एक गहरी सांस ली ।
वह एक खिड़की के पास पहुंचा और उसका एक पल्ला थोड़ा सा खोलकर बाहर झांकने लगा ।
इमारत के मुख्य द्वार के सामने सड़क की दूसरी ओर पुलिस की जीप खड़ी थी और जीप के हुड के साथ टेक लगाए आत्माराम खड़ा था। दो आदमी जीप के अन्दर बैठे हुए थे ।
मुख्य द्वार की पूरी निगरानी हो रही थी। आत्माराम इमारत में घुसने या बाहर निकलने वाले हर आदमी को देख सकता था । उसके सामने इमारत से बाहर निकलना भारी मुसीबत मोल लेना था । वह उर्मिला के फ्लैट में बैठा भी नहीं रह सकता था । अगर वह लौट आई तो आत्माराम उसके साथ फ्लैट में आएगा और वह फंस जाएगा । ऐसा ही हाल जगन्नाथ की तस्वीर का भी था । उसे साथ वह ले जा नहीं सकता था और वहीं छोड़ देने से वह आत्माराम के हाथ में पड़ सकती था ।
वह फंस गया था ।
कुछ क्षण वह विचारपूर्ण मुद्रा में वहीं खड़ा रहा । उसके नेत्र अन्धेरे कमरे के एक अनजाने बिन्दु पर टिके हुए थे । उसके दिमाग में केवल एक ही विचार हथौड़े की तरह बज रहा था । यहां से बाहर कैसे निकला जाए |
एकाएक उसने अपने सिर को एक झटका दिया और फ्लैट से बाहर निकल आया । उसने नाब घुमाकर द्वार बन्द कर दिया और सीढियों की ओर बढ़ गया ।
ग्राउन्ड फ्लोर पर पहुंचकर उसने दो नम्बर फ्लैट तलाश किया । द्वार पर वर्मा की तख्ती लगी हुई थी । प्रमोद ने घन्टी बजा दी ।
कुछ क्षण बाद नाइट गाउन पहने हुए एक आदमी ने द्वार खोला ।
"यस !" - वह बोला ।
"मैं मिस्टर वर्मा से मिलना चाहता हूं।" - प्रमोद बोला ।
"फरमाइये ।" - वह आदमी उसे ऊपर से नीचे घूरता हुआ बोला- "मैं ही वर्मा हूं।"
"वह.. मैं उस फ्लैट के बारे में बात करना चाहता था, जो किराये के लिए खाली है । "
"बड़ा बढिया वक्त चुना है आपने किराए के लिए फ्लैट ढूढने का ?" - वर्मा तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
"मैं माफी चाहता हूं, वर्मा साहब ।" - प्रमोद विनयपूर्ण स्वर मे बोला - "लेकिन क्या करू, मेरी ड्यूटी ऐसी है कि मुझे समय ही यह मिलता है ।"
"क्या करते हैं आप ?"
"ट्रेवलिंग सेल्समैन हूं।"
"फ्लैट का किराया दो सौ रुपए है।" - वर्मा संदिग्ध स्वर में बोला ।
"कोई बात नहीं । आप मुझे फ्लैट दिखा दीजिए । अगर फ्लैट अच्छा हुआ तो मुझे किराये से कोई एतराज नहीं होगा ।"
“आप ठहरिये, मैं चाबी लेकर आता हूं।" - वर्मा बोला और वापिस फ्लैट में घुस गया ।
थोड़ी देर बाद वह चाबी, लेकर वापिस लौटा।
“आइये ।" - वह सीढियों की ओर बढता हुआ बोला । प्रमोद उसके पीछे हो लिया ।
वर्मा उसे तीसरी मंजिल पर ले आया और एक फ्लैट का ताला खोलने लगा ।
प्रमोद का दिल धड़कने लगा । वह फ्लैट उर्मिला के फ्लैट के एकदम बगल में था ।
वर्मा ने द्वार खोलकर बत्ती जला दी और बोला- "देख लीजिये साहब ।"
कुछ क्षण प्रमोद फ्लैट का निरीक्षण करने का बहाना करता रहा और फिर निर्णायात्मक स्वर में बोला- "मुझे फ्लैट पसन्द है ।"
वर्मा चुप रहा । ।
"मैं किराया आपको अभी दिये देता हूं। आप मुझे चाबी दे दीजिए कल सुबह किसी वक्त मैं अपना सामान और बीवी बच्चों को लेकर आ जाऊंगा ।"
"जैसा आप चाहें ।" - वर्मा बोला ।
"मेरा नाम विनोद कुमार है।" - प्रमोद बोला- "रसीद मैं आपसे सुबह ले लूंगा।"
प्रमोद ने उसे सौ-सौ के दो नोट निकालकर दे दिये । और फिर उसके साथ ही सीढियां उतरकर ग्राउन्ड फ्लोर पर पहुंच गया ।
“अच्छा वर्मा साहब, गुड नाइट ।" - प्रमोद मुख्य द्वार की ओर चला । वर्मा के फ्लैट का द्वार बन्द होते ही वह घूम पड़ा और फिर जल्दी-जल्दी सीढियां चढता हुआ तीसरी मन्जिल पर पहुंच गया ।
उसने उर्मिला के फ्लैट का द्वार खोला और भीतर घुस गया । उसने जगन्नाथ की तस्वीर उठाई और फौरन ही बाहर निकल आया । उसने उर्मिला के फ्लैट का ताला बन्द किया और वापिस अपने पांच मिनट पहले किराये पर लिए फ्लैट पर लौट आया । उसने फ्लैट का द्वार भीतर से बन्द किया और बत्ती जला दी । फ्लैट के भीतर कमरे में एक मैला सा जगह-जगह से फटा हुआ गलीचा बिछा हुआ था, जो शायद पिछला किराएदार बेकार समझकर छोड़ गया था। प्रमोद ने तस्वीर के कैनवस को फ्रेम पर से उतार लिया । उसने फर्श पर से गलीचा उठाया और कैनवस उसके नीचे रखकर गलीचा फिर बिछा दिया। फिर उसने फ्रेम के छोटे-छोटे टुकड़े करने शुरू कर दिए, फिर वे सारे टुकड़े उसने वार्ड रोब के दराज में डाल दिए ।
उसी समय उसे गलियारे में से उर्मिला की उत्तेजित आवाज सुनाई दी ।
"बकती है। जगन्नाथ के फ्लैट में से पोर्ट्रेट के साथ दो बजे मैं निकली थी और मैं इसे सिद्ध कर सकती हूं । वह पोर्ट्रेट अभी भी मेरे पास है ।"
"लेकिन आप वह तस्वीर लाई क्यों वहां से ? " आत्माराम का स्वर सुनाई दिया।
"मुझे गुस्सा आ गया था ।" - उर्मिला का स्वर सुनाई दिया - "वह हरामजादी औरत जो अपने आपको आर्टिस्ट कहती है, रोज रात को पोर्ट्रेट बनाने के बहाने मेरे पति के फ्लैट में पहुंच जाती थी... हां हां जगन्नाथ मेरा पति है... मैंने कह दिया था कि अगर वह दुबारा मेरे पति के पास आई तो मैं पोर्ट्रेट की तरह उसे भी उधेड़कर रख दूंगी। वह रण्डी..."
उसी समय आवाज आनी बन्द हो गई ।
फिर एक द्वार खुलने और फिर भड़ाक से द्वार बन्द होने का स्वर सुनाई दिया ।
प्रमोद ने अपना द्वार थोड़ा सा खोल लिया और कान लगाकर सुनने लगा । कभी-कभी जब कोई जोर से बोलता था, तो आवाज उसके कान में पड़ जाती थी ।
“आप जगन्नाथ से सम्बन्धित किसी चीनी लड़की को जानती हैं ?" - आत्माराम पूछ रहा था ।
"नहीं।" - उर्मिला का स्वर सुनाई दिया ।
"लेकिन उस रात को ढाई बजे एक लड़की यह कहकर जगन्नाथ के फ्लैट में घुसी थी कि वह उर्मिला की सहेली है । अगर आप उसे जानती नहीं हैं तो उसने आपका हवाला कैसे दिया ?"
उर्मिला का उत्तर प्रमोद को सुनाई नहीं दिया ।
कुछ क्षण बाद उर्मिला की चीखती हुई आवाज उसके कान में पड़ी - "मेरे पर उल्टे इल्जाम लगाने की कोशिश मत करो इन्स्पैक्टर साहब । मैं कहती हूं जगन्नाथ की पोर्ट्रेट मेरे पास थी । यहीं इसी कमरे में । वह किसी ने चुरा ली है । "
"किसी ने केवल पोर्ट्रेट ही क्यों चुराई ?" - आत्माराम का अविश्वासपूर्ण स्वर सुनाई दिया- "और कुछ क्यों नहीं चुराया ?”
"मुझे नहीं मालूम । चोर ने मुझसे सलाह करके चोरी नहीं की। अगर आपको विश्वास नहीं है, तो इस इमारत के मालिक वर्मा से पूछ लो । उसने जगन्नाथ की पोर्ट्रेट मेरे फ्लैट में देखी थी । मैं शाम को सात बजे अपने फ्लैट में से गई थी और तब तक पोर्ट्रेट यहीं थी। मैं कहती हूं, वह उसी आर्टिस्ट की बच्ची की करामात है। आखिर आप उसे गिरफ्तार क्यों नहीं करते ?"
द्वार फिर खुलने और बन्द होने की आवाज आई । फिर कई कदमों के गलियारे से सीढ़ियों की ओर चलने की आवाज आई।
कई क्षण शान्ति छाई रही ।
शायद उर्मिला इन्स्पैक्टर को वर्मा के फ्लैट में लेकर गई थी ।
अपनी सोहा से मित्रता के कारण उर्मिला चीनी लड़की का जिक्र नहीं रही थी । प्रमोद ने सोचा ।
प्रमोद का खयाल था कि आत्माराम उर्मिला को हैडक्वार्टर ले जाएगा और फिर उसको वहां से निकल भागने का मौका मिल जायेगा, लेकिन उसे यह सुनकर बहुत निराशा हुई कि आत्माराम अपने दल बल के साथ फिर वापस लौट रहा था ।
"मुझे बड़ा दुःख है, तस्वीर आपके फ्लैट से चोरी हो गई ।" - आत्माराम सहानुभूति पूर्ण स्वर में कह रहा था - "यह मेरी गलती थी कि मैंने आप पर सन्देह किया मुझे विश्वास हो गया है कि रात को दो बजे तस्वीर के साथ जगन्नाथ के फ्लैट से निकलने वाली लड़की आप थीं, सुषमा ओबेराय नहीं । अब सुषमा ओबेराय इस केस में नम्बर वन सस्पैक्ट बन गई है। मैं आपसे केवल एक दो सवाल और पूछूंगा और फिर इजाजत चाहूंगा ।”
उर्मिला के फ्लैट का द्वार एक बार फिर खुल कर बन्द हुआ।
प्रमोद ने धीरे से अपना द्वार खोल कर बाहर झांका । गलियारा खाली था ।
वह लपक कर खिड़की के पास पहुंचा। उसने नीचे सड़क पर झांका । जीप अपने स्थान पर खड़ी थी लेकिन भीतर कोई नहीं था ।
प्रमोद चुपचाप अपने फ्लैट में से बाहर निकल आया । उसने धीरे से द्वार बन्द किया और सीढियां उतर गया ।
पोर्ट्रेट की चिन्ता करने का अब समय नहीं था । आत्माराम पता नहीं कब टले और अगर टले भी तो सम्भव है किसी को निगरानी के लिये पीछे छोड़ जाये ।
प्रमोद चुपचाप इमारत से बाहर निकल आया और एक ओर चल दिया ।
सुषमा आत्माराम की नजर में नम्बर वन सस्पैक्ट थी । लेकिन फिर भी जब तक दूसरी तस्वीर सामने नहीं आ जाती सुषमा सुरक्षित थी । नैतिक रूप से उर्मिला की बात से सहमति प्रकट करना और बात थी लेकिन उर्मिला अपने कथन की सत्यता के लिए कोई सबूत पेश नहीं कर सकती थी । जबकि सुषमा का सबसे बड़ा सबूत ही यह था कि तस्वीर उसके पास थी । बाद में हर हाल में उर्मिला ही झूठी सिद्ध होने वाली थी । अतः अब सुषमा को यह बताना बहुत जरूरी हो गया था कि वह अपनी पहले वाली बात पर ही अड़ी रहे कि वही दो बजे तस्वीर के साथ जगन्नाथ के फ्लैट में से निकली थी । अगर आत्माराम प्रमोद से पहले सुषमा से सम्पर्क स्थापित करने में सफल हो गया तो सब कुछ गड़बड़ा जाने की सम्भावना थी । आत्माराम बहुत चालाक अफसर था । उर्मिला ने उसके मन में सुषमा के प्रति सन्देह का बीजारोपण तो कर ही दिया था। अब अगर उसने सुषमा को अपने वाग्जाल में फंसा कर यह कहने के लिए तैयार कर लिया कि उसने पहले झूठ बोला था तो फिर उसका बचना मुश्किल हो जाता ।
प्रमोद जल्दी से जल्दी मार्शल हाउस पहुंचना चाहता था और ट्रेजडी यह थी कि कहीं कोई टैक्सी नहीं दिखाई दे रही थी । मार्शल हाउस तक का आधा रास्ता पैदल तय कर चुकने के बाद उसे टैक्सी मिली ।
***
प्रमोद मार्शल हाउस की लाबी में घुस गया ।
वह लिफ्ट की ओर बढा ।
लिफ्ट नीचे ही आ रही थी ।
ग्राउन्ड फ्लोर पर पहुंचकर लिफ्ट का द्वार खुला और जो आदमी उसमें से बाहर निकला, वह राजेन्द्र नाथ था ।
"बड़े अच्छे दोस्त हो तुम !" - प्रमोद को देखते ही वह भड़क कर बोला ।
“राजेन्द्र नाथ ।” - प्रमोद शान्ति से बोला- "मुझे याद नहीं है कि मैंने कभी तुम्हारी दोस्ती का दावा किया हो और विश्वास रखो जो काम मैंने पहले नहीं किया है वह अब भी नहीं करूंगा।"
"सुषमा कहां है ?" - राजेन्द्र नाथ ने वैसे स्वर में पूछा ।
प्रमोद उत्तर देने का उपक्रम किए बिना लिफ्ट की ओर बढने लगा ।
राजेन्द्र नाथ ने उसे कन्धे से पकड़ कर रोक लिया ।
"तुम इतनी रात गए भी सुषमा को अपने फ्लैट में रखे हुए हो ?"
"तुम कौन होते हो मुझसे ऐसे सवाल पूछने वाले ?” "मैं सुषमा का रिश्तेदार हूं।"
"तुम सुषमा के नहीं, सुषमा की बहन के रिश्तेदार हो ।
सुषमा तुम्हारी कोई नहीं लगती ।"
"वह मेरी भाभी की बहन है । "
"तुम्हारी बहन तो नहीं है न ?"
राजेन्द्र नाथ का दांया हाथ घूंसे की शक्ल में प्रमोद के जबाड़े की ओर लपका लेकिन प्रमोद सतर्क था । उसने अपने बायें हाथ से हवा में ही राजेन्द्र नाथ की कलाई थाम ली । उसके दायें हाथ का घूंसा राजेन्द्र नाथ के जबाड़े पर पड़ने ही वाला था कि उसके कानों में आत्माराम की मीठी आवाज पड़ी- "नो, नो, नो । आप लोगों को बच्चे की तरह झगड़ना शोभा नहीं देता । बहुत बुरी बात है । विशेषरूप से इसलिए क्योंकि मैं जानता हूं, आप दोनों में से कोई भी गिरफ्तार होना पसन्द नहीं करेगा । ऊपर चलिए प्रमोद साहब ?"
"क्यों ?"
"मैं आपके फ्लैट की तलाशी लेने आया हूं ?"
“वारन्ट है आपके पास ?"
"मैं किसी जासूसी उपन्यास का इन्स्पैक्टर तो नहीं हूं न, प्रमोद साहब ।" - आत्माराम अपने स्वभावगत चिकने चुपड़े स्वर में बोला - " जो बिना वारन्ट लिये ही तलाशी लेने दौड़ा चला आऊं ।”
प्रमोद चुप रहा । और उसने वारन्ट प्रमोद के सामने रख दिया ।
“आप तलाश क्या कर रहे हैं, इन्स्पैक्टर साहब ?" - प्रमोद ने पूछा ।
“जगन्नाथ की तीन गुणा ढाई फुट आकार एक पोर्ट्रेट । वह पोर्ट्रेट आज शाम सात बजे उर्मिला नाम की एक महिला के फ्लैट में से चोरी हो गई है । "
"और आप समझते हैं, वह पोर्ट्रेट मैंने चुराई है ।"
“च, च, च । एकदम यूं कूद कर दरवाजे पर मत पहुंचिये साहब । मैंने यह कब कहा है। मैं तो केवल इसलिए आपके फ्लैट की तलाशी लेना चाहता हूं कि कहीं शरारती आदमी ने आपको फंसाने के लिए आपके फ्लैट में जगन्नाथ की पोर्ट्रेट या केस से सम्बन्धित कोई दूसरी चीज न छुपा दी हो ।"
"आपका मतलब है कि यह पोर्ट्रेट केस से सम्बन्धित है?"
"जी हां । "
“आइये ।”
"लेकिन प्रमोद तुम 'अब' कैसे इन्हें अपने फ्लैट की तलाशी लेने दे सकते हो ?" - राजेन्द्र नाथ एकदम फट पड़ा ।
“अब ! 'अब' क्या हुआ है, साहब ?" - आत्माराम सतर्क स्वर में बोला- "इस वक्त में क्या खराबी है ?"
राजेन्द्र नाथ मुंह से कुछ नहीं बोला । उसने दृष्टि झुका ली।
"क्या प्रमोद के फ्लैट में इस केस से सम्बन्धित कोई और आदमी पहले से ही मौजूद है ?" - आत्माराम ने भरसक अपने स्वर में से सन्देह का पुट दूर रखने के प्रयत्न करते हुए पूछा ।
किसी ने उत्तर नहीं दिया ।
आत्माराम, दो सिपाही, प्रमोद और राजेन्द्र नाथ सब लिफ्ट के रास्ते प्रमोद के फ्लैट पर जा पहुंचे ।
" और प्रमोद साहब ।" - आत्माराम बोला - "अपने चीनी नौकर को बता दीजिएगा कि वह मामले में दखल देने का कोशिश न करे । वह हमारी बात जरा मुश्किल से समझता है।"
याट-टो ने द्वार खोला ।
"याट-टो" - प्रमोद जल्दी से कैन्टोनीज में बोला "पुलिस वाले तलाशी लेने आये हैं। मैं थोड़ी देर इन्हें यहां रोकता हूं। भगवान के लिए पेन्टर महिला को यहां से निकालो । मैं..."
"ऐसी भाषा बोलिये जो हमें समझ आये ।” आत्माराम उसकी बात काटकर बोला ।
"मैं इसे यह बता रहा था कि वह आप लोगों के काम में दखल न दें।" - प्रमोद बोला ।
"थैंक्यू । आप हमारी बहुत मदद कर रहे हैं । इससे कहो कि वह यहीं मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठ जाये और जब तक मेरे आदमी तलाशी न ले लें यहां से हिलने की कोशिश न करें ।”
ऐसा ही हुआ ।
आत्माराम याट-टो, राजेन्द्र नाथ और प्रमोद को अपने सामने रोके रहा और दोनों सिपाही आधे घन्टे तक फ्लैट के बखिये उधेड़ते रहे । कहीं कुछ नहीं मिला ।
प्रमोद हैरानी के मारे मरा जा रहा था ।
“आखिर सुषमा कहां गई ?"
बहुत छुपाने के बाद भी आत्माराम के चेहरे पर उलझन के भाव उतर आये थे ।
"तुम्हें कैसे मालूम था, सुषमा ओबेराय यहां है ?" - उसने राजेन्द्र नाथ से पूछा ।
"इन्स्पैक्टर साहब, आप तो यहां पोर्ट्रेट तलाश करने आये थे ।" - प्रमोद बोल पड़ा ।
“आप बिल्कुल ठीक फरमा रहे हैं, साहब । लेकिन कानून में ऐसा तो कोई बन्धन नहीं होता कि आप एक चीज तलाश करते-करते दो चीजें तलाश कर सकते ? हम सुषमा ओबेराय से बहुत कुछ पूछना चाहते हैं और मुझे पूरा विश्वास था कि वह यहीं होगी। राजेन्द्र नाथ ने भी ऐसा सन्देह प्रकट किया था, सुषमा ओबेराय यहां थी, मार्शल हाउस के सामने, पिछवाड़े और छत पर भी हमारे आदमी मौजूद हैं लेकिन फिर भी..."
और उसने असहाय भाव से कन्धे उचका दिये ।
“आपको कैसे मालूम है, सुषमा यहां थी ?" - प्रमोद ने इन्स्पैक्टर से पूछा ।
"क्यों ड्रामा कर कर रहे हो ?" - राजेन्द्र नाथ बोला पड़ा - "तुम जानते हो सुषमा यहां थी, तुम उस लड़की की इज्जत मिट्टी में मिला कर मानोगे, आधी-आधी रात तक उसे अपने फ्लैट में घुसाये रहते हो और फिर ऊपर से झूठ बोलते हो । प्रमोद किसी दिन कोई तुम्हारा खोपड़ा तोड़ देगा ।"
"कौन तोड़ेगा मेरा खोपड़ा ?" - प्रमोद कठोर स्वर में बोला।
- "छोड़िए साहब ।" - आत्माराम बोला - "आप लोग फिर बच्चों की तरह झगड़ने लगे, प्रमोद साहब, आप मानते हैं वह लड़की यहां थी ?”
“मैं कुछ नहीं जानता ।”
"लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि वह यहां थी ।"
"अगर आपको पूरा विश्वास है तो मेरी हां, ना से आपको क्या फर्क पड़ता है।"
" लेकिन राजेन्द्र नाथ कहता है..."
"आल राइट, पहले आप राजेन्द्र नाथ को ही बाहर निकालिए ।”
"क्यों ?"
"क्योंकि राजेन्द्र नाथ कोई पुलिस अफसर नहीं है और नहीं मैंने इसे यहां बुलाया है। मैं चाहता हूं कि यह मेरे फ्लैट में से दफा हो जाए नहीं तो किसी प्रकार की गड़बड़ के लिए आप जिम्मेवार होंगे। "
" आप ठीक कह रहे हैं।" - आत्माराम बोला - "राजेन्द्र नाथ, तुम जरा बाहर गलियारे में चले जाओ । लेकिन कहीं दूर मत जाना मैंने तुम से बहुत कुछ पूछना है ।"
राजेन्द्र नाथ कहर भरी नजरों से प्रमोद को घूरता हुआ बाहर निकल गया ।
अगला आधा घन्टा सारे फ्लैट की नये सिरे से तलाशी में गुजर गया । आत्माराम के आदमियों ने हार मान ली । लेकिन आत्माराम की विनयशीलता में कोई अन्तर नहीं पड़ा |
" आप को असुविधा हुई, मुझे हार्दिक दुख है साहब ।” - वह मीठे स्वर में बोला और दोनों सिपाहियों के साथ बाहर निकल गया ।
द्वार बन्द होते ही प्रमोद याट-टो की ओर घूमा - "लड़की कहां गई ? "
"पेन्टर महिला, बैडरूम के बाहर लगे पाइप के रास्ते ऊपर चढ गई थी ।" - याट-टो ने बताया ।
" ऊपर कहां ?" - प्रमोद हैरानी से बोला ।
याट-टो ने कन्धे उचका कर अनभिज्ञता प्रकट की।
प्रमोद बैडरूम में आ गया । उसने खिड़की खोल कर बाहर झाका । धुंध के कारण नीचे गली दिखाई नहीं दे रही थी और न ही इमारत का ऊपर का भाग दिखाई दे रहा था।
प्रमोद ने पाइप को छूकर देखा । पाइप बर्फ की तरह ठन्डा था ।
प्रमोद के शरीर में सिरहन दौड़ गई।
उसने कपड़े बदले और बिस्तर में घुस गया ।
सुषमा कहां गई ? वह सोच रहा था ।
उसी क्षण किसी ने खिड़की का शीशा ठकठकाया ।
प्रमोद ने खिड़की की ओर देखा ।
सुषमा खिड़की के प्रोजेक्शन पर खड़ी थी । और एक हाथ से ग्रिल को पकड़े हुए दूसरे हाथ की उंगलियों से शीशा खटखटा रही थी ।
प्रमोद उछल कर खड़ा हो गया ।
उसने झपट कर खिड़की खोली और सुषमा को बाहों में भरकर भीतर खींच लिया। उसके कपड़े मैले थे और ओर से भीगे हुए थे । वह सर्दी से ठिठुर रही थी लेकिन खुश थी ।
"हल्लो खरगोश |" - वह बोली ।
प्रमोद हक्का-बक्का सा उसका मुंह देखता रहा।
" हैरान हो गये न ।" - वह उपहासपूर्ण स्वर में बोली "मैं भी तुमसे कम एडवेन्चरस नहीं हूं।" -
प्रमोद ने रूम हीटर जला दिया ।
वह एक कम्बल लपेट कर हीटर के सामने बैठ गई ।
"क्या किस्सा है ?" - प्रमोद ने पूछा।
"राजेन्द्र नाथ को पता नहीं कैसे पता लग गया था मैं यहां हूं । तुम्हारे जाने के बाद किसी समय वह यहां आया और लगा द्वार पीटने । याट-टो उसे भीतर नहीं घुसने दे रहा था । उन दोनों के झगड़े की आवाज से मेरी नींद खुल गई । मुझे भय था कि कहीं राजेन्द्र नाथ जबरदस्ती भीतर न घुस आए । वह बड़ा संकुचित दृष्टिकोण का आदमी है। मुझे तुम्हारे बिस्तर में यूं सोया देख लेता तो तूफान खड़ा कर देता । मैं कुछ करने का इरादा कर ही रही थी कि राजेन्द्र लौट गया । मैं यहां से निकल जाने की तैयारी ही कर रही थी । फिर मुझे तुम्हारी, राजेन्द्र नाथ और आत्माराम की आवाजें सुनाई दीं । मैं चुपचाप खिड़की के रास्ते बाहर निकल गई पाइप पकड़ कर एक मन्जिल ऊपर चढ गई । ऊपर की मन्जिल की खिड़की खुली थी। मैं उसमें घुस गई वह भी बैडरूम ही था । मैं चुपचाप जाकर कुर्सी पर बैठ गई।"
"बैडरूम खाली था ?"
रहा था ।" "नहीं । एक आदमी सोया हुआ जोर-जोर से खर्राटे भर
"तुम्हें डर नहीं लगा ?”
"खरगोश" बहुत डर लगा ।" सुषमा सिहर कर बोली - "भगवान कसम
" कि कहीं तुम पाइप से गिर न जाओ ?"
"नहीं। कहीं वह आदमी जाग न जाए और मुझे कोई आसमान से टपकी चीज समझ कर हजम न कर जाए।"
“लेकिन राजेन्द्र नाथ को कैसे पता लगा कि तुम यहां हो ?"
“भगवान जाने... लेकिन खरगोश" - सुषमा एकदम तेज स्वर में बोली- "मैं तुम्हारे बैडरूम में कैसे पहुंच गई ?"
"तुम शराब के नशे में होश खो बैठी थीं। मैं तुम्हें उठा कर बैडरूम में उठा लाया था ।”
"उठाकर ?"
"हां ।" - प्रमोद हिचक कर बोला ।
“बाई गॉड, दैट्स ग्रेट ।" - सुषमा हर्ष से चिल्लाई “वैल जरा बताओ तो कैसे उठाया था तुम ने मुझे ?"
“सुसी ।"
उसी क्षण जोर-जोर से द्वार भड़भड़ाया जाने लगा ।
"प्रमोद, दरवाजा खोलो।" - राजेन्द्र नाथ चिल्ला रहा था - "मुझे मालूम है सुषमा भीतर है। मैंने उसकी आवाज सुनी है। पुलिस जा चुकी है। इसलिए दरवाजा खोल दो । सुषमा बाहर आओ प्लीज । "
“दैट्स डैम फूल ।” - सुषमा क्रोधित स्वर में बोली - "प्रमोद दरवाजा खोल ही दो वर्ना वह गधा सारा मार्शल हाउस सिर पर उठा लेगा ।"
प्रमोद ने दरवाजा खोल दिया ।
" तुम्हें क्या कभी अकल नहीं आएगी, राजेन्द्र नाथ ।” प्रमोद क्रोधित स्वर में बोला ।
" ऐसी की तैसी तुम्हारी ।" - राजेन्द्र नाथ गर्जा - "तुम साले कौन हो मुझे अकल देने वाले ? चलो सुषमा ?"
और वह बलात सुषमा की बांह पकड़ कर उसे बाहर ले जाने लगा ।
“आर यू ए फूल ।" - सुषमा चिल्लाई "लीव माई हैण्ड यू आर हर्टिंग मी ।"
राजेन्द्र नाथ ने हाथ छोड़ दिया । वह प्रमोद की ओर घूमा और जहर उगलता हुआ बोला "किसी दिन मैं तुम्हारी बोटी-बोटी अलग कर दूंगा ।"
“आज ही कोशिश क्यों नहीं करते ?" - प्रमोद शान्ति से बोला ।
राजेन्द्र नाथ पगलाये हुए बैल की तरह प्रमोद पर झपटा
सुषमा की चीख निकल गई ।
प्रमोद का दायां हाथ और बायां पांव मशीन की तरह चले, फिर अगले ही क्षण न जाने क्या हुआ कि राजेन्द्र नाथ ने हवा में एक कलाबाजी खाई और भड़ाक की आवाज से गलियारे के फर्श पर जा कर गिरा |
उसी क्षण बगल के फ्लैट के एक दरवाजे में से आत्माराम निकला और लपक कर प्रमोद के फ्लैट के सामने पहुंचा।
प्रमोद फिर राजेन्द्र नाथ की ओर बढा ।
“बस, बस, बस।" - आत्माराम बोला- "बहुत हुआ । वर्ना मैं आप दोनों को स्थायी रूप से एक ऐसे कमरे के फ्लैट में पहुंचा दूंगा जहां बोर्डिंग और लाजिंग दोनों फ्री होते हैं । और मिस सुषमा ओबेराय मैं आपको जगन्नाथ की हत्या के अपराध में गिरफ्तार करता हूं।"
"आपके पास सुषमा को अपराधी सिद्ध करने के लिए सबूत हैं ?"
" हैं भी और हो भी जायेंगे ।"
"क्या ?"
"मैं अपने पत्ते दिखा कर ताश नहीं खेला करता । "
प्रमोद चुप रहा ।
राजेन्द्र नाथ धीरे-धीरे गलियारे के फर्श से उठने का प्रयत्न कर रहा था ।
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