“मैं... मैं कुछ नहीं जानता ।” कांपते से बलवान सिंह के होंठो से खरखराता सा स्वर निकला ।

“चलाऊँ गोली ?” उसकी छाती पर रिवाल्वर लगाये देवराज चौहान गुर्रा उठा ।

“सच में, मैं... मैं कुछ नहीं जानता ।” बलवान सिंह के गले में कांटा सा चुभने लगा – “म... मैं भी तुम्हारी तरह हैरान हूँ कि वैन में से डेढ़ सौ करोड़ कहाँ चले गए और... ।”

तड़ाक… ।

देवराज चौहान का हाथ जोरों से उसके गाल पर पड़ा । बलवान सिंह लड़खड़ाकर गिरने को हुआ कि जगमोहन बाँह थामता दाँत भींचकर बोला –

“सीधा खड़ा रह । जब गोली लगेगी तो... ।”

“मुझे मत मारो... ।” बलवान सिंह की हालत खौफ से पतली होने लगी थी ।

“कहाँ हैं डेढ़ सौ करोड़ ?” देवराज चौहान मौत भरे स्वर में कह उठा ।

“मैं सच कह रहा हूँ । म...मैं नहीं जानता ।” बलवान सिंह सूखे होंठों पर जीभ फेरकर खौफ भरे स्वर में कह उठा ।

“सोढ़ी यहाँ से वहीं गया होगा, जहाँ तुम दोनों ने पैसे रख छोड़े हैं ।”

भय से बलवान सिंह की आँखों में आँसू चमक उठे ।

“मेरा यकीन करो । वैन में रखी रकम के बारे में मैं कुछ नहीं जानता ।” भर्राये स्वर में बलवान सिंह कह उठा – “मैं भला खाली वैन लेकर क्यों चलता । मैं तो भरी वैन लेकर चला था । नोट मेरे सामने रखे थे वैन में ।”

“अगर तुम्हारी बात को सच माने तो फिर वैन से नोट कहाँ चले गए ?” जगमोहन ने दाँत भींचकर कहा ।

“वो सात थैले थे नोटों से भरे – मैं नहीं जानता वो कहाँ गए ।” बलवान सिंह की आँखों से आँसू निकलकर गालों पर आ गए ।

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं ।

“ये ऐसे नहीं मानेगा ।” जगमोहन खतरनाक स्वर में कह उठा – “सोढ़ी के साथ मिला हुआ है । दोनों के मिले बिना बैंक वैन से नोटों को गायब नहीं किया जा सकता । मुँह नहीं खोलेगा लगता है । गोली मार दो इसे । देखते हैं कैसे नोटों का मजा लेता है ।”

देवराज चौहान की वहशी निगाह पुनः बलवान सिंह पर जा टिकी । बलवान सिंह ने मौत के खौफ में डूबे थूक निगली ।

“अबे बता दे ।” पंचम लाल जल्दी से बोला – “क्यों खामख्वाह अपनी जान गँवा रहा है ।”

“सच में मुझे कुछ नहीं पता ।” वो गीली आँखों से कह उठा ।

देवराज चौहान ने रिवाल्वर की नाल उसके माथे पर रख दी । बलवान सिंह के शरीर में सिर से लेकर पाँव तक मौत की सर्द लहर दौड़ गई ।

“गोली चलने वाली है बलवान सिंह । मुँह खोल दे ।” पंचम लाल की आवाज में चीख जैसे भाव थे ।

“मरेगा अब तू ।” देवराज चौहान गुर्राया ।

“मार दो ।” बलवान सिंह आँसुओं भरे चेहरे के साथ कंपकंपाते स्वर में कह उठा – “मैं कुछ जानता ही नहीं । बताऊँ क्या – खुद ही सोचो – अगर मैंने सोढ़ी के साथ मिलकर गड़बड़ की होती तो सोढ़ी के साथ मैं निकल जाता । उस लानती को क्यों जाने देता ? मेरा यहाँ रह जाना ही जाहिर करता है कि इन सब बातों से मेरा कोई मतलब नहीं । मुझे नहीं मालूम वैन में रखा डेढ़ सौ करोड़ रुपया कहाँ चला गया ।”

देवराज चौहान ने उसके माथे पर लगा रखी रिवाल्वर हटा ली ।

“छोड़ा क्यों ?” जगमोहन के होंठों से निकला – “मारो इसे ।”

“इसे सच में इस मामले का पता नहीं है ।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा ।

“क्या मतलब ?”

“ये ठीक कहता है कि अगर सोढ़ी के साथ ये होता तो जाते वक्त सोढ़ी इसे साथ ले जाने की चेष्टा करता । इसे यहाँ छोड़ न जाता ।” देवराज चौहान ने कहते हुए रिवाल्वर जेब में रखी और नजरें पंचम लाल के चेहरे पर जा टिकीं ।

देवराज चौहान को घूरते पाकर पंचम लाल सकपकाया ।

“म... मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो ?”

“लानती, कैसा बन्दा है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“क्या मतलब ?” पंचम लाल अचकचाया ।

“क्या वो सोढ़ी के साथ मिला हुआ हो सकता है ?” देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर पूछा ।

इस सवाल के साथ ही पंचम लाल का शरीर तनाव से भर गया । वो कई पलों तक गंभीर सा देवराज चौहान को देखता रहा । एक बार कुछ कहने को हुआ कि चुप कर गया ।

“सोचता क्या है ?” जगमोहन की आँखें सिकुड़ी – “लानती तो तेरा पुराना दोस्त है ?”

“हाँ । बहुत पुराना, जानता हूँ उसे ।” पंचम लाल सोच भरे स्वर में बोला – “लेकिन आज के जमाने में किसी की गारंटी लेना कठिन है । अगर वो सोढ़ी के साथ किसी तरह मिला है तो... ।”

“तेरे को लगता है कि वो मिल सकता है ?” जगमोहन ने पूछा – “बाहर राजेन्द्र सिंह बेहोश पड़ा है लेकिन तेरा यार लानती बेहोश नहीं मिला । हो सकता है वो सोढ़ी के साथ भाग गया हो ।”

“एक बात है जो लानती पर शक पैदा करती है ।”

“बोल ।”

“चार-पाँच दिन पहले लानती महँगा मोबाईल फोन लेकर आया । कहने लगा, बचपन का यार मिल गया था । उसने लेकर दिया कि बातें करेंगे । मुझे मालूम था कि वो झूठ बोल रहा है, लेकिन मैंने भी इस बारे में सिर नहीं खपाया कि वो फोन कहाँ से लेकर आया है । तब तक यही सोचता था कि किसी का उठा लाया होगा । वक्त-बे-वक्त उसके मोबाईल पर फोन आते रहते थे ।” पंचम लाल होंठ सिकोड़े धीमे स्वर में कह रहा था ।

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें उस पर टिकी थीं ।

बलवान सिंह आतंकित भाव से राहत की साँस ले रहा था कि गोली खाते-खाते बचा है ।

“जब भी लानती को फोन आते, वो मेरे से दूर जाकर बात करता था । मुझे नहीं मालूम वो क्या बात करता था । किससे बात करता था । लेकिन उसका बात करना मुझे कभी भी ठीक नहीं लगा । जब तुम लोग वैन पर हाथ डाल रहे थे तब भी फोन आया था । हमेशा की तरह मेरे से दूर जाकर ही उसने बात की । लेकिन उलझन में डालने वाली बात तो ये है कि तब उसे अंतिम बार फोन आया था । उसके बाद फोन आने बन्द हो गए । कल से वो हमारे साथ है । लेकिन एक बार भी उसे फोन नहीं आया ।”

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा । देवराज चौहान की नजरें पंचम लाल पर थी ।

“तुम्हारा सोचना है कि लानती, मदनलाल सोढ़ी के साथ मिला हुआ हो सकता है ।”

“शायद ऐसा ही हो । किसी तरह वो सोढ़ी के साथ मिल गया हो । हमारी योजना उसने सोढ़ी को बता दी हो । ऐसे में उन्होंने ठीक मौके पर अपनी योजना तैयार करके उसे अंजाम दे दिया और नोट गायब कर दिये ।”

वहाँ चुप्पी सी छा गई ।

कुछ पलों के बाद देवराज चौहान बोला –

“लानती अक्सर तुम्हारे साथ ही रहता था ।”

“हाँ ।”

“तो फिर ये मदनलाल सोढ़ी से कब मिला ? कब उन्होंने योजना बनाई होगी और... ।”

“इतना वक्त तो लानती के पास था । डेढ़-दो दिन वो टायर कवर बनवाने में व्यस्त रहा । मुझे क्या पता वो इस बीच कहाँ-कहाँ जाता रहा । मेरा मतलब है कि अगर सोढ़ी के साथ वो कोई खिचड़ी पका रहा था तो उसे पकाने के लिए उसके पास बहुत वक्त था । मैंने लानती पर हमेशा विश्वास किया । कभी भी उसकी पहरेदारी नहीं की ।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।

“तुम्हें क्या लगता है कि लानती और मदनलाल सोढ़ी आपस में मिले होंगे ?”

“चलती वैन में डेढ़ सौ करोड़ की दौलत कहाँ गायब हो गई ?” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा – “जाहिर है कि सोढ़ी ने किसी खाली सड़क पर, मौका देखकर सातों बोरे बाहर गिरा दिए । तब योजना के मुताबिक कोई पीछे आ रहा था । वो बोरों को उठाता और लेता चला गया । यानी कि अगर लानती सोढ़ी के साथ मिला है तो वो तीन लोग होने चाहिए । तीसरा वो जो बोरों को समेट कर चला गया ।”

“वो लानती भी हो सकता है ।”

“लानती तब पंचम लाल के साथ था ।” देवराज चौहान बोला ।

“हाँ ।” पंचम लाल ने सिर हिलाया – “लानती सुबह से ही मेरे साथ था ।”

“क्या ऐसा नहीं हो सकता कि लानती, सोढ़ी के साथ न मिला हो ।” जगमोहन बोला ।

“ऐसा है तो लानती कहाँ गया अब ?” देवराज चौहान बोला – “राजेन्द्र सिंह बाहर बेहोश पड़ा है । मदनलाल सोढ़ी और लानती दोनों ही गायब हैं । लानती को इस वक्त हमारे साथ होना चाहिए या सोढ़ी के साथ होना चाहिए । या फिर वो हमें बाहर ही मिलता । ऐसे में हम सोच सकते हैं कि वो सोढ़ी के साथ चला गया । वो इस काम में सोढ़ी का साथी था और यहाँ की खबरें वो मदनलाल सोढ़ी को पहुँचा रहा था ।”

वे देवराज चौहान को देखते रहे ।

“अगर मेरी बात सच है तो वो यहाँ से सीधा पुलिस स्टेशन गए होंगे ।” देवराज चौहान के होंठों से निकला ।

“हाँ । उनकी प्लानिंग दमदार रही ।” देवराज चौहान कश लेता गम्भीर स्वर में कह उठा – “लानती, मदनलाल सोढ़ी और उनका तीसरा साथी जानते थे कि हमने आज वैन पर हाथ डालना है । ऐसे में बलवान सिंह की निगाहों में आये बिना रास्ते में ही बोरे गिराकर उन्होंने चलती वैन से नोटों को गायब कर दिया । कुछ आगे आने पर हमने वैन पर कब्जा कर लिया । अब क्या सोचा जायेगा कि डेढ़ सौ करोड़ कहाँ गए ?”

“हमने ले लिए ।”

“बिल्कुल ठीक और जिनके पास दौलत पहुँच गई । उन पर कोई शक नहीं कर सकता ।” देवराज चौहान के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी – “जबरदस्त प्लानिंग रही उन लोगों की । अब मदनलाल सोढ़ी और लानती सीधा थाने पहुँच जायेंगे कि जैसे वो कठिनता से बचकर आ रहे हैं । वहाँ वे बताएँगे कि बैंक वैन यहाँ पर है । नई कहानी गढ़कर पुलिस को सुना देंगे । यहाँ मौजूद बलवान सिंह अगर पुलिस को बयान देता है कि बैंक वैन से नोट नहीं मिले हैं तो ये मुसीबत में पड़ेगा । सोढ़ी कहेगा कि वो वैन में नोट छोड़कर भागा है । ऐसे में सब यही सोचेंगे कि हम लोगों में बलवान सिंह को नोट देकर खरीद लिया है या फिर अगर वैन से नोट नहीं मिले तो फिर नोट कहाँ गए हैं ? वे लोग तो वैन में नोट लादकर ही निकले थे ।”

बलवान सिंह पर घबराहट चढ़ने लगी ।

“तो... तो मैं क्या कहूँ पुलिस को ?”

“खुद को बचाना है तो पुलिस को यही कहो कि तुम्हें नहीं पता यहाँ क्या हो रहा था । हमने तुम्हें बाँधकर बेहोश करके डाल रखा था । जब तुम होश में आये तो यहाँ कोई भी नहीं था ।”

“तो मुझे बाँध दो । पुलिस यहाँ कभी भी आ सकती है ।” वो घबराया सा कह उठा ।

पंचम लाल ने बलवान सिंह को बाँधकर दूर डाल दिया ।

“तुम बचना चाहते हो तो मेरे साथ लगकर यहाँ से उँगलियों के निशान साफ करो । तब कोई भी ये साबित नहीं कर सकेगा कि तुम यहाँ पर हमारे साथ थे । उसके बाद अपने बचाव में कुछ भी करते रहो ।”

पंचम लाल फौरन वैन पर से और कमरे में हर जगह से उँगलियों के निशानों को साफ करने में लग गया ।

देवराज चौहान और जगमोहन भी इसी काम पर लग गए ।

“तुम्हारे ख्याल में मदनलाल सोढ़ी और लानती के साथ तीसरा भी है ।” जगमोहन बोला ।

“हाँ ।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया – “जो इस वक्त नोटों के बोरों को संभाले बैठा है ।”

पंचम लाल हाथ में कपड़ा थामे ठिठका और अटकी आवाज में कह उठा – “मैंने इतनी मेहनत की और मिला मेरे को कुछ भी नहीं । साला लानती ले उड़ा ।”

“अपनी जान बचा पुलिस से ।” जगमोहन कड़वे स्वर में बोला – “ये ही बहुत है ।”

पंचम लाल ने व्याकुल भाव में सिर हिला दिया ।

आधा घण्टा लगाकर उन तीनों ने वहाँ से उँगलियों के निशान साफ किये । बँधा पड़ा बलवान सिंह परेशान नजरों से उन्हें देख रहा था ।

“हमें यहाँ से निकल चलना चाहिए ।” देवराज चौहान बोला – “पुलिस कभी भी यहाँ आ सकती है ।”

जगमोहन ने बँधे पड़े बलवान सिंह को देखकर कहा –

“तुम राजेन्द्र सिंह और पंचम लाल के बारे में पुलिस को कुछ नहीं बताओगे । दूसरे कुछ भी कहें । लेकिन तुम इस बारे में पुलिस को कुछ नहीं बताओगे ।”

बलवान सिंह ने सिर हिला दिया ।

वे तीनों बाहर निकल आये । दरवाजा खुला ही रहने दिया ।

“उस तरफ पुलिस वाले हैं । हमें इस तरफ से सड़क की ओर चलना चाहिये ।”

वे तीनों छिपते- छिपते आगे बढ़ गए ।

“लुधियाने में हमारा काम खत्म ।” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा – “अपने पैंसठ लाख उठाकर निकल चलते हैं ।”

“अभी नहीं ।” देवराज चौहान बोला – “बाहर निकलने वालों रास्ते पर पुलिस फैली है । जसदेव सिंह से कहेंगे । वो लुधियाने से हमारा निकल जाने का इंतजाम करेगा ।”

“मैं तो चुपचाप जाकर गैराज पर बैठ जाता हूँ । हरामी लानती मेरे लिए मुसीबत खड़ी करेगा । वो... ।” कहते-कहते और चलते-चलते पंचम लाल ठिठका । उसकी आँखें फटकर फैल गई थीं ।

देवराज चौहान और जगमोहन कुछ कदम आगे निकल गए थे । उसे रुका पाकर वे पलटे ।

“जल्दी कर ।” जगमोहन बोला – “इस तरफ पुलिस का खतरा ।”

“लानती... ।” पंचम लाल के होंठों से निकला ।

“क्या ?”

“ये... ये लानती यहाँ... ।” उसके होंठों से कांपता सा स्वर निकला ।

देवराज चौहान और जगमोहन फौरन उसके पास पहुँचे । अगले ही पल जड़ कर रह गए ।

ऊँची झाड़ियों की ओट में लानती मरा पड़ा था । उसका सिर कुचला हुआ था और उसकी गर्दन जिस ढंग से लुढ़की हुई थी, उससे स्पष्ट लग रहा था कि गर्दन की हड्डी टूट चुकी है । पास ही दो बड़े-बड़े पत्थर खून से सने पड़े थे । उसके सिर के आस-पास बहुत खून बिखरा हुआ था ।

पंचम लाल की आँखों में आँसू आ गए ।

“बेचारा ।” वो भर्राये स्वर में कह उठा – “हम इसके बारे में कैसा गलत सोच रहे थे और ये यहाँ मरा पड़ा है । राजेन्द्र सिंह को तो बेहोश किया मदनलाल सोढ़ी ने । लेकिन इसकी तो जान ही ले गया ।”

देवराज चौहान ने दूर नजर आ रहे खेतों में बने कमरों को देखा ।

“हमें यहाँ से चल देना चाहिए ।” जगमोहन बोला ।

“मेरे ख्याल में लानती, मदनलाल सोढ़ी का ही साथी था ।” देवराज चौहान बोला ।

“क्या मतलब ?” जगमोहन के होंठों से निकला ।

पंचम लाल भी देवराज चौहान को देखने लगा था ।

“यहाँ से कमरा काफी दूर है । राजेन्द्र सिंह हमें कमरे के पास ही बेहोश पड़ा मिला । लानती सोढ़ी का ही साथी था । राजेन्द्र सिंह को बेहोश करके लानती और सोढ़ी यहाँ तक आये । चूँकि जो काम करना था, वो निपट चुका है इसलिए अब उसे लानती की जरूरत नहीं थी । लानती को एक सौ पचास करोड़ में से हिस्सा देना पड़ता । ऐसे में सोढ़ी ने उसे खत्म कर दिया ।”

“मैं नहीं मानता ।” पंचम लाल कह उठा ।

देवराज चौहान ने जवाब में कुछ नहीं कहा ।

“मुँह जबानी बात कहने के अलावा तुम्हारे पास कही बात का कोई सबूत हो तो कहो ।”

“हालात जिस तरफ इशारा कर रहे हैं, मैंने वो ही कहा है ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

“तुम गलत भी कह सकते हो ।”

“हाँ ।” देवराज चौहान के चेहरे पर छोटी सी मुस्कान उभरी – “मैं गलत भी हो सकता हूँ ।”

पंचम लाल बेचैन सा कई पलों तक देवराज चौहान को देखता रहा फिर बोला –

“ये भी तो हो सकता है कि लानती, सोढ़ी को पकड़ने के लिए यहाँ तक भागा आया हो ।”

“तुम्हारा मतलब कि सोढ़ी ने राजेन्द्र सिंह को बेहोश किया वहाँ और लानती को छोड़कर भाग निकला । वो ऐसा क्यों करेगा ? सोढ़ी दोनों को चोट पहुँचाने की कोशिश करेगा । एक को सलामत छोड़कर क्यों भागेगा ?”

पंचम लाल ने होंठ भींच लिए ।

“राजेंद्र सिंह को बेहोश करने के बाद वो दोनों वहाँ से भाग लिए परन्तु सोढ़ी ने एक हिस्सेदार लानती को खत्म करना था और यहाँ तक आते उसे मौका मिल गया और खत्म कर दिया । अगर लानती की लाश राजेन्द्र सिंह के आस-पास ही कहीं पड़ी होती तो मेरी सोचों की तस्वीर ही दूसरी होती । लानती की लाश देखकर स्पष्ट नजर आ रहा है कि मरने से पहले मुकाबला करने का इसे मौका ही नहीं मिला । अचानक ही इस पर वार किये गए । यानि कि ये सोढ़ी के साथ उस वक्त आगे की तरफ जा रहा था ।”

पंचम लाल, देवराज चौहान को देखता रहा । कुछ कह न सका ।

“उसके बाद वे लानती की लाश वहीं छोड़कर आगे बढ़ गए । हालात ऐसे थे कि लानती को छोड़ना पड़ा ।”

“तुम गैराज पर जाओगे ?”

“हाँ ।” पंचम लाल ने व्याकुलता भरे अंदाज में गर्दन हिलाई – “और तुम लोग ?”

“जसदेव के यहाँ ।”

“जीजे के पास ।”

फिर कुछ देर बाद सड़क तक पहुँचते-पहुँचते पंचम लाल उनसे अलग हो गया ।

☐☐☐

इंस्पेक्टर दलिप सिंह और सब-इंस्पेक्टर मिलाप सिंह थाने पहुँचे । जीप को रोका और उतरकर थाने में प्रवेश द्वार की तरफ बढ़े । आस-पास से निकलते पुलिस वालों ने उन्हें सलाम किया ।

तभी मदनलाल सोढ़ी हड़बड़ाया सा बदहवास सा दौड़ता आया और भीतर प्रवेश करते दोनों से टकराया ।

“देख के चल ।” मिलाप सिंह गुर्रा उठा ।

“थानेदार… थानेदार साहब किधर मिलेंगे ।” सोढ़ी, मिलाप सिंह की बाँह पकड़े जोरों से हिलाता कह उठा ।

“बाँह छोड़ । होश में आ के बात कर ।” मिलाप सिंह ने उखड़े स्वर में कहा – “भीतर जाकर मुंशी को रपट लिखा दे, जो भी हुआ है । थानेदार साहब तेरी रिपोर्ट लिखेंगे क्या ?”

“मैं मदनलाल सोढ़ी हूँ । उस बैंक वैन का गार्ड जिसे कुछ लोग कब्जे में करके ले गए थे ।” मदनलाल सोढ़ी हाँफता सा कह उठा – “मौका पाकर मैं उनके चंगुल से भाग निकला हूँ । मुझे– मुझे थानेदार साहब के पास ले चलो ।”

दलिप सिंह और मिलाप सिंह को काटो तो खून नहीं ।

सामने उसी बैंक वैन का गनमैन खड़ा था जिस वैन को वे ढूँढ़ते हुए रातें काली कर रहे थे ।

“तुम... तुम मदनलाल सोढ़ी हो ?” दलिप सिंह के होंठों से निकला ।

“हाँ, मैं ।”

“मैं थानेदार हूँ । कल से बैंक वैन को ही ढूँढे जा रहे हैं । मिलापे, इसे भीतर ले के आ, मेरे पास ।”

“बढ़िया सर जी ।”

दलिप सिंह जल्दी से भीतर प्रवेश कर गया । व्याकुलता भरे अंदाज में अपने ऑफिस में पहुँचा और टेबल के पीछे कुर्सी पर जा बैठा । सिगरेट सुलगाई कि मिलाप सिंह ने सोढ़ी के साथ भीतर प्रवेश किया ।

“बैठ ।” उसने सोढ़ी से कहा । फिर मिलाप सिंह से बोला – “जा तू इसे पानी पिला और चाय भी ला । किसी दूसरे को कह दे ।”

मिलाप सिंह ने आवाज देकर हवलदार को पानी और चाय लाने को कहा ।

खुद पास ही खड़ा रहा ।

“अब बोल । क्या चक्कर है ? वो वैन कहाँ है ?”

“इंस्पेक्टर साहब ।” मदनलाल सोढ़ी जल्दी से गहरी-गहरी साँसे लेता कह उठा – “आपने देवराज चौहान का नाम तो सुना ही होगा ।”

“देवराज चौहान... वो डकैती मास्टर जो... ।”

“जी हाँ, वही...वही ।v सोढ़ी जल्दी से कह उठा – “उसने ही हमारी वैन को अपने कब्जे में किया था और... ।”

“एक मिनट ।” कहते हुए दलिप सिंह ने जल्दी से जेब में पड़े चेहरे वाले फोटो-स्टेट कागज निकालकर उसके सामने रखे – “ये देख, क्या ये दोनों भी इस काम में शामिल हैं ?”

सोढ़ी ने उन कागजों पर नजर मारी ।

“यही तो हैं ।”

“देवराज चौहान भी इन दोनों में से है ?”

“हाँ, ये वाला ।”

दलिप सिंह ने बेचैनी से पहलू बदलकर मिलाप सिंह से कहा –

“मिलापे, ये तो खतरनाक मामला है । देवराज चौहान इस मामले में है ।”

“हम कानून वाले हैं । हमें डरने की क्या जरूरत है, पकड़ लेंगे ।”

“डरता कौन है ।” दलिप सिंह बोला फिर सोढ़ी से कहा – “जल्दी से पूरा मामला बता ।”

“मामला तो आप जानते ही हैं । मेरे पास तो बताने के लिए सिर्फ ये ही है कि उन्होंने वैन ले जाकर खेतों में बने एक बड़े से कमरे में खड़ी कर दी है । ड्राइवर बलवान सिंह के हाथ-पाँव बाँधकर एक तरफ डाल दिया । मेरे से कहने लगे कि वैन से बाहर आ जाऊँ । उनका साथी बन जाऊँ । वो मुझे भी करोड़ों दे देंगे । लेकिन मैं जानता था कि वो मुझे मार देंगे । पूरा दिन-पूरी रात मैं वैन में बन्द रहा । मैं समझ रहा था कि वो मुझे छोड़ने वाले नहीं । मार देंगे । आख़िरकार खुद को बचाने के लिए मैंने कहा कि वो मुझे जाने दें । उसके बाद पैसा लेते रहें पीछे से ।”

“फिर ?”

“मजबूरी में उन्होंने मेरी बात मानी और मुझे निकल आने दिया ।”

“फिर तो अब तक उन्होंने नोट समेट लिए होंगे ।”

सोढ़ी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“वो कितने लोग थे ?”

“दो तो ये थे, जिनकी तस्वीर आपने दिखाई । तीन और थे ।”

“तीन और ?”

“हाँ । एक का नाम तो राजेन्द्र सिंह था । जमींदार राजेन्द्र सिंह...वो.... ।”

दलिप सिंह उछलकर खड़ा हो गया । मिलाप सिंह भी चौंका ।

“जमींदार राजेन्द्र सिंह ?”

“हाँ और बाकी के दो गैराज वाले पंचम लाल और लानती थे । उनके गैराज पर वैन ठीक होने जाती थी ।”

दलिप सिंह अपनी हालत पर काबू पाने की चेष्टा कर रहा था ।

“मिलापे, जमींदार तो चालाकी दिखा गया अपने को ।” दलिप सिंह गहरी साँस लेकर बोला ।

“सर जी, आपका खास यार है ।”

“कानून किसी का यार नहीं होता । तूने जमींदार वाला खेतों में बना कमरा चैक किया था ?”

“रात आपने मना कर दिया था ।”

“गलती हो गई । वो बैंक वैन उसी कमरे में खड़ी थी । जल्दी से भाग ले वहाँ । वरना वो नोट लेकर उड़ जायेंगे ।”

“चल सोढ़ी, तू भी साथ चल ।” मिलाप सिंह बोला

“मैं ।” सोढ़ी हड़बड़ाया ।

“रास्ता नहीं दिखायेगा क्या । उठ जा, क्या पता हम गलत सोच रहे हों । जाना कहीं और हो । जल्दी खड़ा हो ।”

वे चलने की तैयारी करने लगे ।

ये खबर पाते ही थाने में भगदड़ मच गई ।

“मिलापे, हम रात को ही बैंक वैन तक पहुँच जाते । साले जमींदार ने धोखा दे दिया ।”

“अब गर्दन नहीं छोड़ेंगे उसकी ।”

“घसीटता हुआ उसे थाने लाऊँगा । पता नहीं सुबह गेहूँ के दो बोरे भी उसने घर पहुँचाये हैं या नहीं ?”

“सर जी, देवराज चौहान को हमने पकड़ लिया तो मजा आ जायेगा ।”

“वाह-वाह हो जायेगी । शायद तरक्की भी मिल जायेगी ।”

“वो हमें गोली भी मार सकता है ।”

“बुलेट प्रूफ जैकेट पहन के चलते हैं ।”

“बुलेट प्रूफ जैकेट तो थाने में एक ही पड़ी है ।”

“वो मेरे को दे देना मैं अपना काम चला लूँगा ।”

☐☐☐

दलिप सिंह की पुलिस पार्टी राजेन्द्र सिंह के खेतों में जा पहुँची ।

मदनलाल सोढ़ी डरा सा जीप में ही बैठा रहा । उतरा नहीं । दलिप सिंह ने उसके पास एक कॉन्स्टेबिल को छोड़ दिया ।

दूर से ही कमरे का दरवाजा खुला देखकर वे समझ गए कि पंछी उड़ गए हैं ।

कमरे में उन्हें बलवान सिंह बँधा पड़ा मिला । बैंक वैन के दरवाजे खुले हुए थे । भीतर सोढ़ी की गन के अलावा कुछ न मिला । एक पैसा भी नहीं ।

“मिलापे, ये तो गड़बड़ हो गई । वो सब पैसा लेकर खिसक गए ।” दलिप सिंह उखड़े स्वर में कह उठा ।

“हमें आने में देर हो गई ।”

“मेरे ख्याल में सोढ़ी के यहाँ से निकलने के पंद्रह-बीस मिनट में ही वे नोट लेकर चलते बने थे ।” दलिप सिंह कमरे में नजरें दौड़ाता कह उठा – “किसी चीज को छेड़ना नहीं है । फिंगर प्रिंट उठाने हैं । हैडक्वार्टर फोन कर ।”

मिलाप सिंह हैडक्वार्टर बात करने में व्यस्त हो गया ।

तभी पुलिस वालों ने बाहर राजेन्द्र सिंह के पड़े होने की खबर दी । दलिप सिंह ने कमरे के बाहर पड़े राजेन्द्र सिंह को बेहोश पड़े देखा फिर पुलिस वालों से बोला –

“इसे फौरन अस्पताल ले जाओ । नजर रखना । ये भी अपराधी है ।”

तीन पुलिस वाले राजेन्द्र सिंह को अस्पताल ले गए । दलिप सिंह ने बलवान सिंह को अपने पास बुलाया ।

“बता, क्या हुआ था, वे किधर गए ?”

“मुझे क्या पता ? मैं तो बँधा हुआ बेहोश था । होश आया तो यहाँ कोई भी नहीं था ।” बलवान सिंह ने कहा ।

“मतलब तू कल से अब तक बेहोश ही था ?”

“बीच में होश आता था मुझे । उनके पास कोई दवा थी । उसे सुंघाकर मुझे बेहोश कर देते थे । रात को होश आया तो वो सब खाना खा रहे थे । मुझे भी खाना दिया । तब हाथ-पैर खोल दिए थे । उसके बाद फिर बाँधकर बेहोश कर दिया ।”

“मारा क्यों नहीं तेरे को ?”

“मुझे क्या पता ।”

“कितने थे वे लोग ?”

“दो से ज्यादा थे । तीन हो सकते हैं ।”

“तेरे को नहीं पता ?”

“नहीं । मैं ज्यादातर बेहोश ही रहा । फिंगर प्रिंट डिपार्टमेंट के लोग आ रहे हैं न ।”

“ठीक है । इसे जीप में सोढ़ी के पास बिठा दे । यहाँ की कार्यवाही पूरी करके, इन्हें थाने ले जाकर इनके बयान नोट करेंगे ।”

बलवान सिंह को जीप में सोढ़ी के पास पहुँचा दिया गया ।

वे दोनों अकेले ही थे जीप में ।

“बहुत बुरा हुआ ।” मदनलाल सोढ़ी गहरी साँस लेकर बोला – “लेकिन बच गए । मुझे तो बचना ही कठिन लग रहा था ।”

बलवान सिंह गम्भीर निगाहों से सोढ़ी को देखता रहा ।

“ये तो अच्छा हुआ कि मैं यहाँ से निकलने में कामयाब हो गया और सीधा पुलिस के पास जा पहुँचा । नहीं तो तू न जाने कब तक यहाँ बँधा रहता । मेरे को तो लग रहा था कि वो जाते-जाते तेरे को गोली मार देंगे । लेकिन तू किस्मत वाला निकला । छोड़ गए वो तेरे को । लेकिन बचेंगे नहीं । पुलिस उन्हें पकड़ लेगी । एक सौ पचास करोड़ की दौलत भी वसूल कर लेगी ।”

“राजेन्द्र सिंह तो बाहर बेहोश पड़ा मिल गया ।न बलवान सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा ।

सोढ़ी की निगाह बलवान सिंह पर जा टिकी ।

“लानती कहाँ है ?”

सोढ़ी के होंठ भिंच गए ।

“वो भी तेरे साथ ही बाहर निकला था लेकिन थाने तू अकेला पहुँचा ।” बलवान सिंह बोला ।

“मैं राजेन्द्र सिंह के साथ उस कमरे से निकला था ।” सोढ़ी ने शांत स्वर में कहा ।

“लानती तेरे साथ था ।”

“तेरे को गलती हुई । मेरे साथ सिर्फ जमींदार राजेन्द्र सिंह ही था । तेरे कहने से पुलिस मानेगी नहीं ।”

“ये बात तो राजेन्द्र सिंह भी कह सकता है ।”

“कोई फर्क नहीं पड़ता ।” मुस्कुरा पड़ा मदनलाल सोढ़ी – “मैं सिर्फ राजेन्द्र सिंह के साथ कमरे से बाहर निकला था । मौका पाकर राजेन्द्र सिंह को बेहोश किया और सीधा थाने जा पहुँचा । पुलिस सिर्फ मेरी बात को ही सच मानेगी ।”

बलवान सिंह होंठ भींचे सोढ़ी को देखने लगा । मदनलाल सोढ़ी के चेहरे पर मीठी सी मुस्कान छाई रही ।

“एक सौ पचास करोड़ कहाँ हैं ?”

“क्या ?” सोढ़ी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे – “ये बात मेरे से क्या पूछता है । तेरे को तो पता ही है ।”

“पता होता तो तेरे से न पूछता ।”

“पैसों को वैन में छोड़कर गया... ।”

“बंदा बन जा सोढ़ी ।” चुभते स्वर में बोला बलवान सिंह – “मेरे सामने तमाशा मत कर ।”

“क्या बकवास कर रहा है ? पैसे तो हम वैन में रखकर ही चले थे । जब पैसे रखे जा रहे थे, वहाँ हम दोनों ही खड़े थे ।”

“ये बात मैंने कब मना की । मैं तो ये कह रहा हूँ कि तू जब गया, वैन खाली छोड़कर गया । पैसा उसमें एक भी नहीं था । जबकि डेढ़ सौ करोड़ की दौलत हम वैन में रखकर चले थे ।”

“क्या उल्टी बातें मारता है । पैसा मैं वैन में ही छोड़कर गया हूँ ।” मदनलाल सोढ़ी ने मुँह बनाकर कहा ।

“उसमें फूटी कौड़ी भी नहीं थी और ये बात तू अच्छी तरह जानता है । क्योंकि पैसे के पास तू था ।”

मदनलाल सोढ़ी कई पलों तक बलवान सिंह को घूरता रहा फिर मुस्कुरा पड़ा ।

“तूने कब से मजाक करना शुरू कर दिया ?”

बलवान सिंह के दाँत भिंच गए ।

“तू ये बात तो अच्छी तरह समझता है कि मुझे सब पता है ।” वो शब्दों को चबाकर बोला ।

“सब – क्या पता है ?” सोढ़ी ने उसकी आँखों में झाँका ।

बलवान सिंह उसे खा जाने वाली नजरों से देखने लगा ।

“हम दोनों ।” सोढ़ी बोला – “बैंक वैन में डेढ़ सौ करोड़ रुपये लेकर चले थे । तू वैन चला रहा था और मैं गन के साथ बैठा नोटों की रखवाली कर रहा था । रास्ते में देवराज चौहान ने वैन अपने कब्जे में कर ली और हमें यहाँ ले आया । तेरे को उसने बन्दी बना लिया, परन्तु मैं किसी तरह वैन से भाग निकला और अब तू कहता है कि वैन में पैसे नहीं मिले ।”

“नहीं ।”

“तेरी बकवास पर कौन विश्वास करेगा ?”

“मुझे तो पूरा विश्वास है ।”

“तेरे विश्वास को कौन मानेगा ? पागलों वाली बातें न कर । पुलिस तेरे को पकड़कर अंदर बन्द कर देगी ।” कड़वे स्वर में कह उठा मदनलाल सोढ़ी – “तेरा भरा-पूरा परिवार है । । चुपचाप अपने बच्चे पाल । उल्टा-सीधा बोलकर पुलिस को उलझायेगा तो तू ही परेशान होगा । नौकरी बचा ले, यही बहुत है ।”

बलवान सिंह गम्भीर निगाहों से उसे देखता रहा ।

“एक बात अपने दिमाग में बिठा ले बलवान सिंह कि डेढ़ सौ करोड़ रुपये देवराज चौहान ले गया है ।”

“वो मेरे सामने खाली हाथ गया है ।”

‘ये बात पुलिस को बता ।” सोढ़ी हँसा – “वो तेरे को उल्टा लटका देगी । बता के तो देख ।”

बलवान सिंह के दाँत भिंच गए ।

“जब तू कहेगा कि देवराज चौहान खाली हाथ गया है तो पुलिस का पहला सवाल होगा कि फिर डेढ़ सौ करोड़ कहाँ है ? इसलिए तेरा मुँह बन्द रखना ही सही है । क्योंकि मैं वैन में नोटों के पास था और जब मैं वैन छोड़कर निकला तो डेढ़ सौ करोड़ रुपये वैन में मौजूद थे । अगर तू कहता है कि वैन में कुछ नहीं था । देवराज चौहान खाली हाथ गया है तो जाहिर है कि देवराज चौहान के इशारे पर तू ऐसा कह रहा है । उसने ऐसा कहने के तेरे को कुछ पैसे जरूर दिए हैं । देवराज चौहान ऐसा क्यों कहलवाना चाहता है, ये बात पुलिस तेरे से जान लेगी । न भी जाने तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ।”

बलवान सिंह के दाँत भिंच गए ।

“पुलिस सिर्फ मेरी बात मानेगी । क्योंकि वहाँ से हम नोट लादकर निकले तो दोनों एक साथ थे । मैं नोटों के पास गन लिए बैठा था । जब देवराज चौहान ने वैन पर कब्जा कर लिया तो मैं नोटों को छोड़कर, वैन से बाहर निकल भागा था । उसके बाद वहाँ पर तू था देवराज चौहान के साथ । तब क्या हुआ, ये बात तो तू ही पुलिस को बताएगा । अगर तू कहता है कि वैन में नोट नहीं थे तो पुलिस तभी समझ जायेगी कि तेरे में और देवराज चौहान में कोई खिचड़ी पक चुकी है ।”

बलवान सिंह उसे देखता रहा ।

“मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता कि तू पुलिस को क्या कहता है । मैं तो तेरे को सिर्फ ये समझा रहा हूँ कि पुलिस तेरी बात का कभी विश्वास नहीं करेगी कि मेरे जाने के बाद वैन में पैसा मौजूद नहीं था । ये बात कहकर अपने लिए नई मुसीबत खड़ी मत कर लेना बलवान सिंह ।”

बलवान सिंह को सोढ़ी की बात जँची कि पुलिस उसकी इस बात का विश्वास नहीं करेगी । कुछ चुप्पी के बाद उसने सिगरेट निकाली और सुलगाकर कश लिया ।

सोढ़ी खिड़की के बाहर नजर आ रहे पुलिस वालों को देखने लगा था ।

“मदन ।” बलवान सिंह बोला – “इस काम में तेरे साथ और कौन-कौन शामिल है ?”

“क्या मतलब ?”

“एक सौ पचास करोड़ का बँटवारा कितने लोगों में होगा ।”

“बकवास पर बकवास कर रहा है तू । कैसा बँटवारा ? मैं क्या तेरे को चोर नजर आता हूँ ।” मदनलाल सोढ़ी ने खा जाने वाले स्वर में कहा – “तेरे को पता है कि सारी दौलत देवराज चौहान ले गया है । इस पर भी तू उल्टा-पुल्टा बोले जा रहा है ।”

बलवान सिंह के होंठों पर अजीब सी मुस्कान नाच उठी ।

“तू अब सारी जिंदगी ऐश करेगा और मैं इसी तरह रो-धोकर जिंदगी बिता दूँगा ।”

सोढ़ी उसे देखता रहा ।

“तू मेरे से बात कर लेता । शायद दोनों भाई मिलकर इस काम को अंजाम दे देते । दो पैसे मेरे को भी मिल जाते ।”

“तेरी बातें मेरी समझ से बाहर हैं । जो बात करनी है, पुलिस से कर ।”

“पुलिस मेरी सच बात को सच नहीं मानेगी सोढ़ी ।”

“तो समझदारी से काम ले और मुँह बन्द करके बैठ जा ।” मदनलाल सोढ़ी ने रूखे स्वर में कहा ।

☐☐☐

गैराज पर पहुँचते ही दोनों लड़कों ने पंचम लाल को घेर लिया । मिस्त्री गायब था ।

“उस्ताद जी । पुलिस आपको पूछने कल भी आई थी और आज भी ।”

“पुलिस ?” पंचम लाल की टाँगे कांपी – “क्यों आई थी ?”

“हमें क्या पता – “पूछ रही थी आपको ।”

“और उन्हें भी पूछ रही थी जो उस दिन दोनों साहब यहाँ आये गैराज को इधर-उधर देख रहे थे और आप दिखा रहे थे । तब मैं छक्के में चाय लेकर आया था ।” दूसरा कह उठा ।

पंचम लाल समझ गया कि देवराज चौहान और जगमोहन की बात हो रही है ।

“पुलिस, लानती को भी पूछ रही थी ।”

“लानती को ?”

“थानेदार ने हमें अपना फोन नम्बर दिया है कि आप आएँ तो हम चुपके से उसे फोन कर दें । अब क्या करें उस्ताद जी । फोन न किया तो थानेदार साहब हमारी गर्दन पकड़ लेगा । हम तो मुसीबत में पड़ गए ।”

पंचम लाल का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था । पुलिस के यहाँ आने तक और उसके बारे में पूछने का मतलब था कि उन्हें शक हो गया है । वे देवराज चौहान और जगमोहन को भी पूछ रहे थे । उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“फोन कर दें थानेदार साहब को ?” छोकरे ने पुनः पूछा ।

“मैं कर लूँगा । तुम क्यों फिक्र करते हो ?” पंचम लाल ने कहा । वो सोचना चाहता था कि पुलिस क्या पूछेगी और उसने पुलिस को क्या कहना है । लेकिन परेशान था कि आखिर फौरन ही पुलिस उस तक कैसे आ पहुँची ?

“उस्ताद जी, लानती किधर है ?”

“लानती ?” पंचम लाल की आँखों के सामने लानती की लाश घूमने लगी ।

“वो भी तो आपके साथ ही गया था ।”

“वो – वो अपने मामा के यहाँ झाँसी चला गया है । वहीं पर काम करेगा ।”

“अच्छा । हमें तो बताया नहीं उसने ।”

पंचम लाल तो पहले से ही परेशान था कि डकैती के बाद खतरे मोल लेने पर भी हाथ कुछ नहीं लगा और अब पुलिस का झंझट खड़ा हो गया था । लानती का साथ छूटा वो अलग ।

बाकी का दिन उसका खौफ के अंदेशों में ही गुजरा ।

शाम को लड़के चले गए । परेशान सा पंचम लाल बोतल ले आया और पीने लगा । वो समझ नहीं पा रहा था कि वैन में से पैसा कहाँ गया ?

उसे देवराज चौहान की बात ठीक लग रही थी कि सोढ़ी ने चलती वैन से पैसा गायब कर दिया । बलवान सिंह को भी पता नहीं लगा । पंचम लाल सोच रहा था कि मदनलाल सोढ़ी कभी हत्थे चढ़ा तो उसे रेल बना देगा । परन्तु ये बात समझ न आ रही थी कि सोढ़ी को ठीक मौके पर कैसे पता चल गया कि वो डकैती के लिए वैन पर हाथ डालेंगे और उसी दिन उसने कमाल दिखा दिया । चूँकि बैंक वैन को देवराज चौहान ले उड़ा था । ऐसे में सबने यही सोचना था कि डेढ़ सौ करोड़ देवराज चौहान ले गया है । कहीं देवराज चौहान का कहना ठीक तो नहीं कि लानती ही इधर की खबरें मदनलाल सोढ़ी को दे रहा था और मदनलाल सोढ़ी अपना ताना-बाना तैयार करने में लगा था ।

आधी से ज्यादा बोतल खाली कर दी पंचम लाल ने । होश गुम होने लगे थे ।

उस वक्त रात के नौ बज रहे थे जब दलिप सिंह, मिलाप सिंह और दो कॉन्स्टेबलों के साथ वहाँ पहुँचा ।

“खूब । बैंक के पैसे लूटकर शराब उड़ाई जा रही है ।” दलिप सिंह तीखे स्वर में कह उठा ।

“बैंक के पैसे ?”

“थाने चल । सब बोलेगा ।”

“इंस्पेक्टर साहब । मैं तो बहुत शरीफ बंदा हूँ ।” पंचम लाल नशे में बोला – “लानती से पूछ लो...मैं ।”

“लानती अब बताने लायक नहीं रहा । लाश मिल गई है उसकी । तेरे को सब पता है । मेरे सामने चालाकी दिखाता है ।”

“मैं बहुत शरीफ... ।”

“मिलापे, पकड़कर ले चल । इसकी शराफत का पिटारा थाने चलकर खोलेंगे । तलाशी भी ले यहाँ की । करोड़ो की लूट की रकम इसने आस-पास ही कहीं छिपा रखी होगी ।”

पंचम लाल गिरफ्तार हो गया ।

तलाश में गैराज से भला लूट के पैसे कहाँ से मिलते ? माल तो हाथ लगा ही नहीं था ।

☐☐☐

“जेठ जी ।” बिल्लो कोफ्तों को प्लेट में डालती कह उठी – “मैंने तो उस पुलिस वाले को कह दिया कि ऐनक टूट गई है मेरी । बनने गई है । जब बनकर आयेगी तो तस्वीरें देखकर बता दूँगी कि पहचानती हूँ कि नहीं । पहचान तो मैंने आप दोनों की तस्वीरें ली थी, पर मैं क्यों बताऊँ कि मैं आपको पहचानती हूँ । पुलिस वालों का क्या भरोसा जाने कौन सी बात आप पर थोप दें । लो जी ये दही-बड़ा भी लो । अब तो लोगों ने नाम ही बदल दिया इसका । हम तो इसको दही-भल्ला कहते थे । चलो, खाना ही है । नाम कुछ भी हो, हमें क्या ।”

रात के दस बज रहे थे ।

डायनिंग टेबल कई तरह के खानों से सजा हुआ था । देवराज चौहान जगमोहन और जसदेव सिंह बैठे खाना खा रहे थे । देवराज चौहान और जगमोहन तो दोपहर को ही यहाँ पहुँच गए थे । तब आते ही सो गए और शाम को सात बजे उठे । जसदेव सिंह को उन्होंने फोन करके बुला लिया था । उसे सारी बात बता दी थी कि बैंक वैन डकैती में गड़बड़ हो गई और यहाँ उनका कोई काम नहीं । वे लुधियाना से निकल जाना चाहते थे ।

तब जसदेव सिंह ने कहीं फोन करके इंतजाम कर दिया था । उसके बाद उसने बताया कि रात ग्यारह बजे के बाद उन्हें लुधियाने से बाहर पहुँचा देने के लिए उसके दो खास आदमी आ जायेंगे ।

अब डिनर चल रहा था ।

बिल्लो जानती थी कि कोई गड़बड़ है । परन्तु न तो उसने पूछा और न ही किसी ने उसे बताया था ।

“अभी तो वो इंस्पेक्टर फिर से आएगा ।”

“फिर आएगा ?” जगमोहन खाते-खाते ठिठका – “वो क्यों परजाई ?”

“पकौड़ों के साथ चाय पीने । मैंने इन्वाइट किया है ।” बिल्लो लम्बी चुटिया को पीछे फेंकती बोली – “आज तो सुबह-सुबह ही आ धमका । सवेरे तो अपने बहुत काम होते हैं । सच बात तो ये है कि मैंने पानी भी नहीं पूछा । सोचा कहीं पानी पीने के चक्कर में बैठ न जाएँ और फिर चाय पीकर ही उठें । मेरा बहुत टाइम खराब हो जाता ।”

“हाँ परजाई । ये बात तो है ।”

“तुसी दोनों ने कोई गड़बड़ तो नहीं की ?”

“गड़बड़ ?”

“पुलिस पूछ रही थी न । इसलिए पूछा है ।”

“हम क्या आपको लगते हैं कि गड़बड़ करेंगे ?”

“मुझे तो पता है । वो तो मैंने यूँ ही पूछा ।”

तभी फोन की बेल बजी । बिल्लो ने कुछ दूर रखे फोन को सुना फिर होल्ड करने को कह कर जसदेव सिंह से बोली –

“सुनना जी । जरा गल ते करो फोन ते । मुझे तो वो ही इंस्पेक्टर की आवाज लगती है । बोलता है पंचम लाल को गिरफ्तार कर लिया है । थाने में है । बिठा रखा है । पता नहीं क्या कहता है कि उसने कोई डकैती की है ।”

जसदेव सिंह फौरन खाना छोड़कर फोन की तरफ बढ़ गया । देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं ।

“पंचम की दाढ़ी-मूँछे जरूर आ गई हैं । लेकिन है तो बच्चा ही । ब्याह भी नहीं हुआ अभी तो । कोई गलती कर दी हो तो भूल जाना और पुलिस से छुड़ा लेना उसको जी ।” बिल्लो जसदेव सिंह से बोली – “जैसा भी है, है तो अपना ही ।”

जसदेव सिंह फोन पर बात करने लगा । बिल्लो डायनिंग टेबल के पास पहुँचती कह उठी –

“खाओ जी खाओ । आप क्यों रुक गए । वो सब ठीक कर लेंगे । बात कर रहे हैं । इन्हें पुलिस वालों से अच्छी तरह बात करनी आती है ।”

देवराज चौहान और जगमोहन पुनः खाना खाने लग गए । बिल्लो सर्व करती रही ।

दस मिनट बाद उन्होंने खाना समाप्त किया तो जसदेव सिंह बात करके आ गया । वो गम्भीर लग रहा था ।

“क्या हुआ जी ?” बिल्लो के स्वर में व्याकुलता थी ।

“आ रहा है पंचम ।” जसदेव सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा – “मेरे कहने पर वो पुलिस वाला उसे छोड़ रहा है ।”

“कितने में बात पक्की हुई ?” बिल्लो ने पूछा ।

“बीस लाख में ?”

“लो ठुक गई बीस की ।” बिल्लो ने गहरी साँस ली – “आने दो पंचम को । अब मैं इसे भैंसों का दूध निकालना सिखाऊँगी । अब वो मेरे यहाँ ही काम किया करेगा । बहुत तमाशा कर लिया उसने । अब और ढील नहीं दूँगी ।”

“परजाई ।” जगमोहन बोला – “मेरे पैंसठ लाख रखे होंगे । वो दे दो । हमारे जाने का वक्त हो रहा है ।”

“अभी लो देवर जी । बहुत संभाल के रखे हैं मैंने । चादर में गठरी बना रखी है । आपकी अमानत जो है ।”

तीन घण्टे बाद ही पंचम लाल पुलिस से छूटकर वहाँ आ पहुँचा था । व्हिस्की का नशा उतर चुका था ।

बीस मिनट बाद ही जसदेव सिंह के आदमी देवराज चौहान और जगमोहन को लेने आ गए । जगमोहन ने बिल्लो से पैंसठ लाख रूपये ले लिए थे । उनसे विदा लेकर वे उन दोनों आदमियों के साथ चले गए और अगले दो घण्टों में ही वे दोनों लुधियाना से बाहर सुरक्षित निकल चुके थे ।

☐☐☐

तीन महीने बाद

दोपहर का एक बज रहा था । सूर्य सिर पर चढ़ा हुआ था । चिलचिलाती धूप में जमीन और सड़के तप रही थीं । नीचे से उठता गरम ताप जैसे चेहरे और सिर को झुलसा रहा था । सड़कों पर बहुत ही कम लोग और इक्का-दुक्का वाहन ही इस वक्त दौड़ते नजर आ रहे थे ।

जगमोहन कार ड्राइव कर रहा था । देवराज चौहान बगल में बैठा था । उसने सिगरेट सुलगा रखी थी और सिर सीट की पुश्त से लगा रखा था । कार का ए.सी. खराब था । दोनों ने अपनी साइडों के शीशे नीचे कर रखे थे । गरम हवा चेहरे से टकराती परेशान सी कर रही थी ।

आखिरकार जगमोहन ने कार को पंचम लाल के गैराज पर जा रोका । कार रुकते ही देवराज चौहान ने आँखें खोलीं ।

“पहुँच गए ।” जगमोहन आस-पास देखता बोला और इंजन बन्द कर दिया ।

तीन महीनों में ही गैराज का रंग कुछ फीका सा पड़ गया था । सफेदी हल्की सी हो गई लग रही थी । बड़े-बड़े दरवाजों का पैंट मैला सा हो रहा था । जैसे उस पर धूल जम गई हो और कपड़ा न मारा हो । वो शीशे का केबिन भी धुंधला सा नजर आया । शीशों पर जमी धूल साफ नहीं की गई थी । शांति सी छाई वहाँ महसूस हुई ।

“पंचम लाल नजर नहीं आ रहा ।” जगमोहन कार से निकलते बोला ।

“गैराज खुला हुआ है । वो भी कहीं होगा ।” देवराज चौहान भी कार से निकला – “मिस्त्री लड़के भी नजर नहीं… ।”

“वो रहा ।” जगमोहन के होंठों से एकाएक निकला ।

देवराज चौहान की निगाह उस तरफ गई ।

पंचम लाल पेड़ की छाया के नीचे कुर्सी पर बैठा हुआ था । शायद नींद में था । तभी तो कार रुकने की आवाज सुनकर भी उसने गर्दन नहीं घुमाई । इधर नहीं देखा था ।

दोनों उसके पास जा पहुँचे ।

वो पंचम लाल ही था । परन्तु पहचानना कठिन हो रहा था । तीन महीनों में उसका क्या से क्या हाल हो गया था । घनी दाढ़ी चेहरे पर फैली थी और चेहरा भी कमजोर सा लग रहा था । शरीर भी कुछ कमजोर सा हो रहा था । बाल उलझे से रूखे इस तरह से थे कि जैसे नींद से उठकर बाहर कुर्सी पर आ बैठा हो । शरीर पर पड़े कपड़े भी मैले से हो रहे थे । पाँवो में हवाई चप्पल पड़ी थी । वो इस कदर गहरी नींद में था कि पसीने से भीग चुकी कमीज का भी उसे ध्यान नहीं था ।

जगमोहन और देवराज चौहान की नजरें मिलीं ।

“पंचम लाल पहचान में नहीं आ रहा ।” जगमोहन बोला ।

देवराज चौहान ने आगे बढ़कर पंचम लाल को कन्धे से हिलाया । पंचम लाल का शरीर हिला । वह कुनमुनाया । बन्द पलकें हिली फिर आँखें खोलीं । नींद से भरी आँखों में हल्की सी लाली नजर आ रही थी । उसने पास खड़े देवराज चौहान और जगमोहन को देखा ।

कुछ पलों तक तो उन्हें इस तरह देखता रहा जैसे उन्हें पहचान रहा हो फिर उसने एक हाथ से दोनों आँखें मली । चेहरे पर हाथ फेरा फिर उठा और पुनः उन्हें देखा ।

“पहचाना नहीं क्या ?” जगमोहन बोला ।

“पहचान लिया । पहचानूँगा क्यों नहीं ।” धीमे से स्वर में कहने के साथ ही वो गैराज की तरफ बढ़ गया ।

“क्या हाल हो गया है इसका ।” जगमोहन परेशानी से कह उठा ।

दोनों उसके पीछे भीतर गए और केबिन में जा पहुँचे ।

केबिन में इस तरह धूल जमी हुई थी जैसे महीनों से सफाई न की हो । टेबल पर उँगली फेरने से लकीर उभर आती थी । कुर्सियों पर भी गर्द थी । जिन शीशों से बाहर सड़क तक का नजारा स्पष्ट नजर आता था । अब वहाँ से बाहर का कुछ नजर नहीं आ रहा था । अस्पष्ट सा ही बाहर देखने को मिल रहा था ।

पंचम लाल टेबल के पीछे, अपनी धूल भरी कुर्सी पर जा बैठा ।

देवराज चौहान और जगमोहन ने बैठने की चेष्टा न की । पंचम लाल ने सुर्ख हो रही निगाहें उठाकर दोनों को देखा ।

“क्या हो गया है तुम्हें ?” जगमोहन ने पूछा ।

“ठीक हूँ मैं ।” कह कर वो झुका और टेबल के नीचे रखी बोतल उठाकर उसे खोला और घूँट भरा फिर बोतल बन्द करके वापस रख दी । दिन में भी वो पी रहा था । कुछ हाल इस बात से स्पष्ट हुआ ।

“पंखा चलाओ ।” जगमोहन ने छत पर लटकते पंखे को देखा – “गर्मी बहुत हो रही है ।”

“दो महीने पहले बिजली कट गई थी ।” पंचम लाल ने मध्यम स्वर में कहा । हालत कुछ और स्पष्ट हुई ।

देवराज चौहान की एकटक निगाह पंचम लाल पर ही थी ।

“यहाँ साफ-सफाई क्यों नहीं की ?” देवराज चौहान बोला ।

“मैं कैसे करूँ... नहीं की मैंने ?” पंचम लाल ने दाढ़ी पर हाथ फेरा ।

“लड़कों से कहकर... ।”

“लड़के सब चले गए । गैराज बन्द हो गया । अब यहाँ काम नहीं होता ।”

“क्यों ?”

“कोई आता ही नहीं यहाँ । लड़के चले गए । मिस्त्री चला गया । उन्हें देने को पैसे नहीं थे । दबी जुबान में बात बाहर निकल गई कि मैं उस डकैती में शामिल था । लानती भी था । लानती तो मारा गया । मैं बच गया । मेरे जीजे ने मुझे बचा लिया । बदनामी हो जाये तो फिर कौन आएगा यहाँ ? जीजे ने नोट देकर पुलिस वाले से मुझे बचा तो लिया, लेकिन पूछताछ के लिए पुलिस का आना लगा रहा । जहाँ पुलिस आएगी, वहाँ लोग नहीं आते ।”

बात कुछ और स्पष्ट हुई ।

“नोट कहाँ से आते हैं अब तेरे पास ? जसदेव देता होगा ।” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े हुए थे ।

“कोई नहीं देता । जीजे ने रिश्ता तोड़ लिया मुझसे । बोलता है तू गलत काम करता है, कब तक तेरे को भुगतूंगा । जीजे के कहने पर बिल्लो ने भी रिश्ता तोड़ लिया । क्या करती वो, मजबूर थी ।” पंचम लाल थके स्वर में कह रहा था – “नोट होते तो बिजली फिर चालू करवा लेता । सबकुछ खत्म हो गया । पहले भी कुछ खास था ही नहीं । लानती के मारे जाने का बहुत दुःख है मुझे । वो ही मेरा अपना था । हर सुख-दुःख में साथ देता था ।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई । जगमोहन अफसोस भरी निगाहों से उसे देख रहा था ।

“नोटों का कुछ पता चला ?” जगमोहन ने पूछा ।

“नहीं । अखबारों में तो यही आया है कि तुम लोग डेढ़ सौ करोड़ ले उड़े हो ।” वो उत्साहीन स्वर में बोला ।

“तेरे को पता है न कि ये बात झूठ है ।” जगमोहन की आवाज में सख्ती आ गई ।

“मैं तो अखबारों की बात तेरे को बता रहा हूँ ।” पंचम लाल ने सिर हिलाकर कहा ।

जगमोहन कई पलों तक उसे घूरता रहा फिर बोला –

“इसका मतलब कोई पकड़ा नहीं गया ।”

पंचम लाल खामोश रहा ।

“तेरे को भी नहीं पता कि पैसा कौन ले गया ?”

“मेरे को कैसे पता चलेगा ? मुझे पता चल ही नहीं सकता । उसके बाद तो मैं खत्म सा हो गया । पुलिस ने अभी तक मेरा पीछा नहीं छोड़ा । वक्त-बे-वक्त आ ही जाती है वो । पुलिस ये सोचती है कि शायद मुझे पैसे का पता हो या देवराज चौहान ने मुझे हिस्सा दिया हो और इस तरह बैठकर सबको बेवकूफ बना रहा हूँ । ठीक वक्त देखकर मैं यहाँ से खिसक जाऊँगा और पैसा खर्च करूँगा । मैंने बहुत समझाया । लेकिन पुलिस वाले अपनी ही कहते हैं । मेरे पास सफाई देने को अब कुछ नहीं है । उधर जीजे और बिल्लो ने मेरे से पल्ला झाड़ लिया । लानती नहीं रहा । गैराज भी बन्द हो गया । खत्म हो गया है ।”

देवराज चौहान और जगमोहन, पंचम लाल को देखे जा रहे थे । उसकी हालत उन्हें अच्छी नहीं लग रही थी ।

“तुम लोग वापस क्यों आये ?”

“देखने आये थे कि पैसा किसके पास है । अब तक तो बात बाहर आ जानी चाहिए थी ।”

पंचम लाल दोनों को देखता रहा । फिर बोला –

“बलवान सिंह आया था । पन्द्रह-बीस दिन पहले ।”

दोनों की निगाह पंचम लाल पर जा टिकी ।

“यूँ ही आया था । कह रहा था कि यहाँ से निकल रहा था कि सोचा मिलता चलूँ । लेकिन मेरी हालत देखकर, सौ रुपया मुझे दे गया । मैंने मना भी नहीं किया । दे रहा था, देने दिया । उसने कई बातें की मुझसे । कुछ घुमा के कहीं तो कुछ स्पष्ट । उसकी बातों का मतलब था कि पैसा मदनलाल सोढ़ी ले गया है ।”

“सोढ़ी ?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े ।

“उस पर तो मुझे शुरू से ही शक है कि नोटों के सातों थैले उसी ने चलती वैन से गिराये और बलवान सिंह को भी ये बात पता नहीं लगी । उसका तीसरा साथी भी था कोई ।” देवराज चौहान बोला ।

“तीसरा ?” पंचम लाल ने देवराज चौहान को देखा – “दूसरा कौन था ?”

“लानती ।”

पंचम लाल आँखें सिकोड़े देवराज चौहान को देखता रहा फिर बोला –

“वो मर गया है । अब क्यों खामख्वाह उसे बदनाम कर रहे... ।”

“तुमने पहले भी मेरी इस बात का विश्वास नहीं किया था ।” देवराज चौहान बोला ।

“तुम्हारी बात विश्वास करने लायक नहीं है । लानती मुझे धोखा नहीं दे सकता ।” पंचम लाल ने कहा ।

देवराज चौहान ने कश लिया । कुछ नहीं कहा ।

“और क्या कहा बलवान सिंह ने ?”

“मदनलाल सोढ़ी ने महीना पहले नौकरी छोड़ दी ।” पंचम लाल बोला – “वो बता रहा था कि उसने मकान खरीद लिया है जो कि महँगा है । कार ले ली । नौकर रख लिए । करता कुछ नहीं और ऐश करता है ।”

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं ।

“मेरा शक ठीक निकला ।” देवराज चौहान कह उठा – “पुलिस ने उसे कुछ नहीं कहा ?”

“बलवान सिंह बता रहा था कि नशे में सोढ़ी ने उसे बताया था कि पुलिस को चुप रहने के लिए उसने दस करोड़ रुपया दिया है ।” वो शान से छाती ठोककर कह रहा था कि पुलिस उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती ।”

“ठीक ही तो कहता है वो ।” जगमोहन कुढ़कर बोला – “लानती से हमारी योजना जानता रहा और ठीक मौके पर उसने इस तरह काम किया कि हर कोई यही सोचे कि नोट हम ले गए हैं ।”

“कोई भी ले गया । लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला । मैं तो पूरी तरह बर्बाद हो गया । लानती को भी खो दिया ।” पंचम लाल ने परेशानी से सिर हिलाया – “गलती हो गई । मुझे डकैती नहीं करनी चाहिए थी ।”

“तुम्हीं ने सबसे ज्यादा जोर दिया था कि... ।”

“हाँ । जानता हूँ ।” पंचम लाल ने शराफत से माना – “मैंने ही तुम लोगों को डकैती के लिए तैयार किया था ।”

“सोढ़ी कहाँ रहता है ?”

“ठीक से पता नहीं । बलवान सिंह ने बताया था । उसके बारे में जो याद है । वो बता देता हूँ ।”

पंचम लाल ने मदनलाल सोढ़ी का टूटा-फूटा पता बताया ।

देवराज चौहान ने दस हजार की गड्डी निकालकर टेबल पर रखी ।

“बिजली चालू करवा लेना ।”

पंचम लाल ने फौरन गड्डी उठाई और कह उठा –

“ये संभाल के रखूँगा । रोटी-पानी चलेगी । यहाँ कौन सा गैराज चलता है कि बिजली चालू करवाऊँ ।”

देवराज चौहान ने बिना कुछ कहे एक गड्डी और रख दी ।

“हाँ ।” उसने फौरन गड्डी उठाई – “अब बिजली चालू करवा लूँगा । पक्का करा लूँगा ।”

वो जाने लगे तो पंचम ने टोका ।

“सोढ़ी के पास जाओगे । मिलोगे उससे ।”

“हाँ ।” जगमोहन ने सिर हिलाया ।

“अगर उससे नोट मिल जाएँ तो थोड़े से मेरे को जरूर देना । मुझे बहुत जरूरत है पैसे की । अब तो मेरे से जीजा भी नहीं बोलता ।”

☐☐☐

अगले दो दिन देवराज चौहान और जगमोहन ने मदनलाल सोढ़ी के घर की निगाह रखी । उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी ली । सोढ़ी ने शानदार कॉलोनी में मकान खरीदा था । बहुत महँगा मकान था वो । लम्बी कार भी उसने ली थी और ड्राइवर हर समय हाजिर रहता था । सोढ़ी का खाना-पीना रेस्टोरेंट और होटल में होता था । साथ में सजी-संवरी उसकी बीवी रहती थी । जो कि सोने के गहनों से लदी रहती थी ।

“बलवान सिंह ठीक कहता है कि इसने पुलिस को दस करोड़ की रिश्वत दी है ।” जगमोहन होंठ सिकोड़े कह उठा – “तभी तो मजे से उस पैसे का इस्तेमाल कर रहा है । नौकरी भी छोड़ दी ।”

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव छाये रहे ।

“मेरे ख्याल में सोढ़ी की गर्दन पकड़ लेनी चाहिए । लानती ही सोढ़ी को हमारी योजना के बारे में बताता रहा और उसी के दम पर सोढ़ी ने लूट की योजना बनाई और खुद को सुरक्षित रखने की योजना भी बना ली ।”

“लानती के अलावा सोढ़ी का एक और साथी भी था ।”

जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा ।

“जब सोढ़ी ने बोरे गिराये होंगे वैन से बाहर तो पीछे आते उसी ने नोटों के थैले को समेटा होगा ।”

“तो ?”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और शांत स्वर में कह उठा –

“हमें उस पुलिस वाले से बात करनी होगी । वो अवश्य तीसरे को जानता होगा ।”

“जमींदार ।” इंस्पेक्टर दलिप सिंह कह उठा – “तू यार है मेरा । इसलिए छोड़ दिया तेरे को । नहीं तो सारी उम्र तूने जेल में चक्की पीसनी थी ।”

“मेरा कसूर सिर्फ इतना ही था कि मैंने दस हजार के लालच में उन्हें कमरा किराये पर दे दिया ।” जमींदार राजेन्द्र सिंह ढीले स्वर में, लम्बी साँस लेकर कह उठा ।

दस मिनट पहले ही दलिप सिंह, राजेन्द्र सिंह के मकान में पहुँचा था ।

“कसूर की लम्बाई मत नाप । वरना मैं तेरी पोल खोलने लगूँगा । उनको क्या पराठे मैंने खिलाये थे ?” दलिप सिंह ने खा जाने वाली नजरों से देखा – “बाप की आत्मा की शांति के लिए तू पराठे गरीबों को खिला रहा था । मेरे सामने तूने ये झूठ बोला था । तब मैं उन लोगों को ही ढूँढ़ रहा था । तेरे को सब मालूम था कि वो डकैती करके तेरे यहाँ खेतों वाले कमरे में ही छिपे हुए हैं ।”

राजेन्द्र सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला ।

“अब क्यों चुप कर गया ?”

“दरोगा – पुरानी बातें जाने दे ।”

“क्यों नहीं – अब तो ये ही कहेगा तू ।” दलिप सिंह ने उखड़े स्वर में कहा – “तब तूने यार से गद्दारी की, देख ले, मैंने नहीं की । चक्की पीसने से बचा लिया तुझे ।”

“मेहरबानी तेरी ।”

“मेहरबानी छोड़ । दोस्ती में तो ये सब चलता ही है ।” दलिप सिंह मुस्कुराया – “ये बता देसी गेहूँ के चार बोरे तू कब मेरे घर भिजवा... ।”

“आज ही भिजवा देता हूँ ।”

“एक बोरा गेहूँ पिसवा कर भिजवा दियो ।”

“ठीक है दरोगा । एक बोरा पिसवा दूँगा । बाकी के तीन तेरे घर पहुँचा दूँगा ।” राजेन्द्र सिंह ने सिर हिलाया – “मैंने सुना है कि तूने विकास नगर में सड़क के किनारे की जमीन करोड़ों में खरीदी है ।”

“कैसे सुन लिया तूने ?” दलिप सिंह ने राजेन्द्र सिंह को देखा – “ये खबर तो किसी को भी नहीं… ।”

“जिसने जमीन बेची, वो मेरा दूर का रिश्तेदार है ।”

दलिप सिंह ने सिर हिलाया ।

“मिलापे ने भी वहाँ तीन करोड़ का बहुत मौके का प्लाट खरीदा है ।”

“बहुत खबर रखता है तू ।”

राजेन्द्र सिंह टुकर-टुकर उसे देखता रहा ।

“ऐसे क्या देख रहा है ?” दलिप सिंह ने मुँह बनाया ।

“देख नहीं रहा । सोच रहा हूँ कि करोड़ों रुपया तुम दोनों के पास कहाँ से आ गया । तू भी तो कहता था कि इस नौकरी की तनख्वाह से खर्च भी पूरा नहीं होता । कहाँ से आया करोड़ों रुपया ?”

“तू क्या हिसाब माँगता है मुझसे ?”

राजेन्द्र सिंह कुछ न बोला । उसे देखता रहा ।

“तू बता – कहाँ से आया होगा मेरे पास पैसा ।”

“मुझे क्या पता – लेकिन कहीं से तो तूने जुगाड़ भिड़ाया ही होगा ।”

“ठीक बोला । जुगाड़ के बिना तो भगवान भी कुछ नहीं देता ।” कहते हुए दलिप सिंह उठ खड़ा हुआ ।

“कहाँ चला ?”

“आगे वाली कॉलोनी में जाना है । वहाँ रात चोरी हो गई । उधर ही जा रहा था कि सोचा कि तेरे को देसी गेहूँ के बारे में बोलता जाऊँ । बीवी दो दिन से डंडा दे रही है कि देसी गेहूँ के लिए राजेन्द्र भाई साहब से कह दूँ ।”

राजेन्द्र सिंह ने गहरी साँस लेकर मुँह फेर लिया ।

“जाता हूँ जमींदार । आज गेहूँ के तीन बोरे और चौथे को पिसवा के भिजवा दियो ।”

दलिप सिंह उसके घर से बाहर निकला और सामने खड़ी जीप में बैठा और स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी ।

तभी उसके मोबाईल फोन की बेल बजी । सब-इंस्पेक्टर मिलाप सिंह का फोन था ।

“बोल मिलापे ।” दलिप सिंह ने बात की ।

“सर जी ।” मिलाप सिंह की आवाज कानों में पड़ी – “गाँधी नगर में एक मौके की दुकान मिल रही है । ले लूँ ।”

“ले ले । पूछता क्यों है – कितने की है ?”

“अस्सी लाख की । बहुत मौके की है । छोटा जवान होता जा रहा है । छठी में पढ़ रहा है । दो-चार सालों के बाद उसे सेट करने की जरूरत पड़ेगी ही । दुकान पे बैठ जायेगा । इलेक्ट्रॉनिक्स का माल डलवा देंगे दुकान में । शादी बढ़िया घर में हो जायेगी उसकी ।”

“ले ले । पैसे भी तो ठिकाने लगाने हैं । कितना माल बचा है अब तेरे पास ?”

“सवा करोड़ के करीब है । अस्सी दुकान लेने में चला जायेगा । समझो पूरा हो ही गया ।”

“बढ़िया कर रहा है ।”

“सर जी, आप आकर एक बार दुकान देख लेते तो... ।”

“मैंने देख के क्या करनी है । अस्सी लाख की दुकान बढ़िया ही होगी । तू पेमेंट दे और कागज करा । रात को उस कॉलोनी में चोरी हो गई थी । मैं वहाँ पूछताछ के लिए जा रहा हूँ । चार पुलिस वाले मैंने पहले भेजे हुए हैं ।”

“मैं आऊँ सर जी ।”

“तू क्या करेगा आ के । दुकान का काम निपटा ।”

“ठीक है सर जी । जो हुक्म ।”

दलिप सिंह ने मोबाइल बन्द करके जेब में डाला । कच्चे रास्ते पर जीप आगे बढ़ती सड़क की तरफ जा रही थी । अभी सड़क आने में दो-चार मिनट का वक्त बाकी था कि उसने आगे रास्ते पर बीचों-बीच खड़ी कार देखी ।

“बेवकूफ लोग कार तो ले लेते हैं, परन्तु खड़ी करनी नहीं आती ।” दलिप सिंह बड़बड़ा उठा ।

उसने कार के पास जाकर कार रोक दी और ऊँचे स्वर में बोला –

“ओये खटारा पीछे हटाओ । किसने खड़ा कर दिया यहाँ ?”

उस आठ फीट के कच्चे रास्ते पर दोनों तरफ खेत थे । तीखी धूप पड़ रही थी । इस गर्मी में वहाँ खड़ा होना भी कठिन सा हो सा हो रहा था ।

तभी दलिप सिंह ने कार में किसी को हिलते देखा । वो लेटा हुआ था । सीधा हुआ ।

“जल्दी से खटारा पीछे हटा ।” दलिप सिंह वर्दी का रौब झाड़ने वाले अंदाज में बोला ।

वो जगमोहन था । दलिप सिंह को देखते हुए उसने कार का दरवाजा खोला और बाहर आ गया ।

दलिप सिंह उसे गुस्से से कहने वाला था कि कार पीछे हटा कि एकाएक ठिठक गया । उसे लगा कि इसे कहीं देखा है । पहचानता है । परन्तु सोचने पर भी याद नहीं आया कि इसे कहाँ देखा है ।

जगमोहन जीप के पास आ पहुँचा ।

“कौन है तू ? तेरे को देखा-भाला है कहीं ।” दलिप सिंह सोच भरे स्वर में कह उठा ।

“पहचान ?”

“पहचान ही तो नहीं पा रहा । वो ही तो सोच रहा हूँ । तू बता ?”

जगमोहन के होंठों पर मुस्कान उभर आई ।

“मुस्कुरा मत मेरे भाई, अब तू बता दे कि... ।”

“अपने पीछे देख ।”

दलिप सिंह फौरन पीछे घूमा । देवराज चौहान पीछे खड़ा था ।

“तू...अरे तेरे को भी देखा है ।” दलिप सिंह के होंठो से निकला – “लेकिन कहाँ, याद नहीं आ रहा ।”

“दिमाग पर जोर दे । नोटों की शक्ल वाले बादाम आजकल तू बहुत खा रहा है । सब याद आ जायेगा ।”

दलिप सिंह की आँखें सिकुड़ी । उसने जगमोहन को देखा । जगमोहन पुनः मुस्कुराया ।

“फिर मुस्कुराता है – बताता नहीं कि... ।” एकाएक वो कहते-कहते रुका । उसका मुँह खुला का खुला रह गया । आँखें फैल गई । दूसरे ही पल आँखों में घबराहट आ ठहरी ।

“लगता है पहचान लिया ?” जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा ।

“त...तुम जगमोहन । ये देवराज...चौहान ।”

“नोटों के बादाम खायेगा तो कभी भी कोई बात भूलेगा नहीं तू ।”

“तुम–तुम दोनों ने बैंक डकैती की और नोट लेकर, डेढ़ सौ करोड़ लेकर... ।”

अगले ही पल जगमोहन का जोरदार चांटा दलिप सिंह के गाल पर पड़ा ।

चांटे की तेज आवाज उभरी थी । दलिप सिंह ने फौरन बायाँ हाथ अपने गाल पर रख लिया ।

“तेरे को अच्छी तरह मालूम है कि हम खाली हाथ रह गए थे । नोट मदनलाल सोढ़ी ले उड़ा था ।” जगमोहन गुर्राया ।

दलिप सिंह गाल पर हाथ रखे भय भरी नजरों से कभी उसे देखे जा रहा था तो कभी देवराज चौहान को देखने लगता ।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और जीप से टेक लगाकर कश लेने लगा ।

“दो घण्टे पहले तेरे बारे में पूछताछ की तो सुनने को मिला तू करोड़ों रूपये की जमीन खरीदने पर लगा है । तेरा वो सब-इंस्पेक्टर भी इधर-उधर से मोटी-मोटी जायदादें खरीद रहा है । कहाँ से नोट आ गए तुम दोनों के पास ?”

दलिप सिंह वैसे ही खड़ा रहा । सूखे होंठो पर जीभ फेरी ।

“मदनलाल सोढ़ी मिला था अभी ।”

“सोढ़ी ।” दलिप सिंह के होंठों से निकला ।

“क्यों... वो क्या हमें मिल नहीं सकता ?” जगमोहन गुर्रा उठा ।

दलिप सिंह कुछ कह न सका ।

“सोढ़ी ने बताया कि करोड़ो रुपया उसने तेरे को दिया ।”

दलिप सिंह के चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गए ।

“तूने नोट लेकर, कानून से गद्दारी करके मुजरिमों को बचाया और हर तरफ शोर यही पड़ा हुआ है कि डेढ़ सौ करोड़ रुपया वैन में से हम ले गए । मजे तू करे और नाम हमारा लगे ।” जगमोहन का चेहरा गुस्से से भर उठा था – “तेरे को तो गोली मार देनी चाहिए । वर्दी की आड़ में बहुत गलत काम कर रहा है तू । हमसे भी गलत काम... ।”

दलिप सिंह को अपनी टांगो में कंपन होता महसूस हुआ ।

“तूने हमें कानून की नजरों में दागी बना दिया । नाम हमारा लगा और ऐश तुम कर रहे.... ।”

“मैंने... मैंने कुछ नहीं किया ?” दलिप सिंह के होंठों से सूखा सा स्वर निकला ।

“तूने कुछ नहीं किया ?”

“न...नहीं ।”

“तो किसने किया है ?”

“सो... सोढ़ी ने... मदनलाल सोढ़ी ने.... ।” घबराया सा दलिप सिंह जल्दी से कह उठा – “उसी ने वैन से पैसा गायब किया था । तुम लोगों की योजना को खराब करते हुए उसी ने नई योजना बना ली । लानती उसे तुम लोगों की योजना की खबर बराबर करता रहता था । इसी कारण सोढ़ी अपना काम ठीक से कर गुजरने में कामयाब रहा । मैंने तुम लोगों के साथ कोई गड़बड़ नहीं की । वो तो तब एक-दूसरे के बयानों को सुनने के बाद मुझे सोढ़ी पर शक होने लगा तो वो मेरे सामने खुला ।”

“उसने मुँह बन्द रखने के लिए तेरे को कितने दिए ?”

“द... दस करोड़ ।”

“उल्लू का पट्ठा ।” जगमोहन ने उसे खा जाने वाली नजरों से देखा ।

“तीन करोड़ मैंने मिलाप को दे दिए ।” जल्दी से कह उठा दलिप सिंह ।

“कह तो ऐसा रहा है जैसे मेरे पे एहसान कर दिया हो ।” जगमोहन ने पूर्ववत स्वर में कहा फिर ठिठककर बोला – “देवराज चौहान को देख – वो तेरे से कुछ नहीं पूछेगा । तेरा जीना-मरना जवाब पर ही निर्भर रहेगा ।”

“मुझे मत मारना ।”

“देवराज चौहान से बात कर ।”

दलिप सिंह ने घबराहट से मरता चेहरा देवराज चौहान की तरफ घुमाया । देवराज चौहान ने कश लेकर शांत स्वर में पूछा –

“सोढ़ी के साथ और कौन-कौन शामिल था ?”

“सोढ़ी और लानती ।” दलिप सिंह के होंठों से निकला ।

“सोच के बता । जल्दी मत कर ।” जगमोहन गुर्राया ।

दलिप सिंह ने जगमोहन को देखा तो उसके हाथ में रिवाल्वर दबी देखी । वो और भी फक्क हो गया ।

“म...मेरे को दो का ही पता है ।”

“और क्या पता है... तीसरा था कि नहीं ?”

“था जरूर... लेकिन उसके बारे में मैं नहीं जानता ।” दलिप सिंह आतंक भरे स्वर में कह उठा – “सच कह रहा हूँ । मुझे मत मारना । गोली मत चलाना । मैं तीसरे को नहीं जानता । मुझे सोढ़ी ने ये तो बताया था कि वो बलवान सिंह की जानकारी में आये बिना, चलती वैन से नोटों के बोरे बाहर फेंकता गया, जो कि वैन के पीछे आ रहे उसके साथी ने उठा लिए । मैंने पूछा था कि  वो तीसरा कौन है लेकिन वो बोला कि तू अपने नोटों से मतलब रख । तेरे को दस करोड़ इसीलिए दे रहा हूँ कि तू कुछ पूछे नहीं । सोचे नहीं । तब मैंने उसके तीसरे साथी के बारे में उससे नहीं पूछा ।”

“मतलब कि तेरे को सब पता था कि मामला क्या है और गड़बड़ कहाँ हुई ?” जगमोहन गुर्राया ।

दलिप सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए ‘हाँ’ में गर्दन हिलाई ।

“तो पंचम लाल के पास क्यों फेरा लगाता रहा ?”

“वो...वो इसलिए कि कहीं उसे शक न हो जाये कि मुझे सब पता है । यूँ समझो कि उसे टटोलने के लिए उसके पास जाता रहा कि कहीं उसे सब कुछ पता तो नहीं चल गया ।”

“कमीना ।” जगमोहन ने खा जाने वाली नजरों से उसे देखा – “पंचम लाल को छोड़ने के भी तूने नोट लिए ?”

“हाँ ।”

“कितने ?”

“ब... बीस लाख ।”

तभी देवराज चौहान बोला –

“मदनलाल सोढ़ी को फोन कर । उसे खड़े पैर फोन करके इधर बुला ।”

“क्या ?” दलिप सिंह के होंठों से घबराया सा स्वर निकला ।

“सुना नहीं तूने ?” जगमोहन गुर्राया ।

“क... करता हूँ फोन ।” दलिप सिंह ने कहा और जल्दी से जेब से मोबाइल निकालकर सोढ़ी के नम्बर मिलाने लगा । वो घबरा रहा था । टांगो में कंपन हो रहा था । मौत सिर पर खड़ी नजर आ रही थी ।

☐☐☐

उसी दिन शाम के चार बजे देवराज चौहान और जगमोहन, पंचम लाल के गैराज पर पहुँचे । पंचम लाल उस दिन वाले कपड़ो में ही था । जो मैले हो चुके थे । वो उन्हें देखते ही बोला –

“मैं जानता था कि तुम लोग जरूर आओगे ।”

“क्यों ?”

“ये बताने कि वो सारा पैसा मदनलाल सोढ़ी ले गया था और उसे तुम लोगों ने शूट कर दिया ।”

“ठीक कहता है तू ।” जगमोहन के चेहरे पर सख्ती उभरी – “आज दोपहर को देवराज चौहान ने सोढ़ी को शूट कर दिया ।”

पंचम लाल, जगमोहन को देखने लगा ।

“मदनलाल सोढ़ी का कसूर ये था कि बैंक वैन से पैसा उसने गायब किया और तुम्हारा नाम लगवा दिया । हमारे साथी को अपने साथ मिलाकर, हमारी योजना जानता रहा । इसी वजह से वो हमें झटका देने में कामयाब रहा ।”

पंचम लाल कुछ न बोला ।

“चल । हम तेरे को जसदेव से मिलाने के लिए, ले जाने आये हैं ।”

“जीजे से ।” पंचम लाल की आँखों में पानी चमक उठा – “वो मेरे से नहीं मिलेगा । उसने गालियाँ देकर मुझे निकाला था ।”

“चल तो सही । गुस्सा आया होगा । तब उसे । अब तेरे जीजे को गुस्सा नहीं आएगा ।”

देवराज चौहान, जगमोहन और पंचम लाल, जसदेव सिंह के बँगले पर पहुँचे । दरबान ने उन्हें भीतर जाने से नहीं रोका । तीनों को अच्छी तरह जानता था वो । भीतर पहुँचे तो सामने बिल्लो पड़ गई ।

“ओह, जेठ जी । देवर जी ।” बिल्लो खिल उठी फिर पंचम लाल की हालत देखते ही उसका गला भर आया – “ओये पंचम । तूने अपना क्या हाल बना लिया । गैराज ठीक नहीं चल रहा । कपड़े भी बहुत गन्दे से पहन रखे हैं ।”

पंचम लाल की आँखें गीली हुई । होंठ कांपे । लेकिन कुछ कहा नहीं ।

“देख । मेरे मन में तो तेरे लिए कोई बात नहीं है । तू मेरा भाई है । लेकिन तेरे जीजाजी अब तेरे को पसन्द नहीं करते । मैंने उन्हें बहुत समझाया कि बच्चा है, गलती हो गई – लेकिन... सुन पंचम तू जा । तेरे जीजाजी घर पर ही हैं । तेरे को देखकर वो... ।”

“ये हमारे साथ आया है परजाई ।”

“ऐसी बात है तो ठीक है । वो कुछ कहें तो आप ही समझा देना ।” बिल्लो ने गम्भीर स्वर में कहा ।

“जसदेव किधर है ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“वो ऊपर अपने कमरे में हैं । चलो जी, मैं आपको वहाँ ले चलती हूँ । आज सुबह भी देर से उठे । सुस्त से थे । रात को पता नहीं किधर से ज्यादा पी आये थे । खाना भी नहीं खाया और यूँ ही पड़ गए थे । सुबह नाश्ते में गोभी के पराठे उन्हें खिलाये तो ठीक से आँख खुली । कुछ होश आया उन्हें । मैंने कहा, आज आराम कर लो । काम पर जाने की क्या जरूरत है । मन तो उनका भी होगा आराम करने का । तभी उसी वक्त मेरी बात मान गए ।”

उन तीनों को लेकर बिल्लो, सीढ़ियाँ तय करके पहली मंजिल पर स्थित एक बेडरूम में पहुँची । जसदेव सिंह कुर्सी पर बैठा अखबार पढ़ रहा था कि उन तीनों को देखकर पहले तो चौंका फिर देवराज चौहान और जगमोहन से खुशी से मिला और पंचम लाल को देखते ही उखड़े स्वर में कह उठा –

“तेरी हिम्मत कैसे हुई, इस घर में पाँव रखने... ।”

“देवर जी और जेठ जी इसे लाये हैं । पंचम तो आना ही नहीं चाहता था ।” बिल्लो कह उठी – “क्यों पंचम ?”

पंचम लाल ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । देवराज चौहान और जगमोहन कुर्सियाँ पर जा बैठे ।

“मैं चाय बनाकर लाती हूँ ।” कहने के साथ ही बिल्लो बाहर निकल गई ।

“इसे क्यों लाये ?” जसदेव सिंह ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा ।

“जसदेव ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा – “आज हम मदनलाल सोढ़ी से मिले थे ।”

“सोढ़ी ।” जसदेव की आँखे सिकुड़ी ।

“मार दिया उसे । उसकी लाश पुलिस को मिल गई होगी या मिल जायेगी ।”

जसदेव सिंह देवराज चौहान को देखता रहा । देवराज चौहान ने जसदेव सिंह की आँखों में झाँका ।

“तूने पूछा नहीं कि सोढ़ी कौन है ?”

जसदेव सिंह वैसे ही बैठा देवराज चौहान को देखता रहा ।

“पंचम लाल के साथ मिलकर हमने जो बैंक वैन डकैती की थी, वो इसलिए असफल रही कि लानती ने हमसे गद्दारी की । वो हमारी योजना की सारी खबरें मदनलाल सोढ़ी को देता रहा । हमारी योजना को जानते हुए सोढ़ी अपनी सुरक्षित योजना बनाता रहा ।” देवराज चौहान एकटक जसदेव सिंह की आँखों में देखे जा रहा था – “जब तक मैं सोढ़ी से नहीं मिला, तब तक तो यही सोचता रहा कि ये सब सोढ़ी की ही योजना पर हुआ है । परन्तु सोढ़ी ने बताया कि सबकुछ उसके तीसरे साथी की योजना पर किया गया है ।”

जसदेव सिंह ने पल भर के लिए अपनी आँखें बन्द कर ली । पंचम लाल की समझ में ये बातें ठीक तरह से नहीं आ रही थीं ।

कई पलों की चुप्पी रही वहाँ ।

“वो तीसरा साथी कौन था सोढ़ी का ?” देवराज चौहान उसी स्वर में कह उठा – “तेरे को पता है जसदेव ?”

“हाँ ।” जसदेव सिंह के होंठों से खरखराती आवाज निकली ।

“कौन ?”

“मैं था । वो तीसरा मैं था ।” हारा सा स्वर निकला जसदेव के होंठों से ।

मरी सी हालत में खड़ा पंचम लाल चौंककर उठा ।

“जीजे, ये क्या कह रहा है तू ?” पंचम लाल के होंठों से निकला ।

जसदेव सिंह ने पंचम लाल को देखा । कहा कुछ नहीं ।

“ऐसा था तो तूने मेरे से रिश्ता क्यों तोड़ा जीजे ?”

“तू आता-जाता रहता तो समझ लेता कभी न कभी कि ये काम मेरा किया है । इसलिए तेरे को अपने से पीछे कर दिया ।”

“बिल्लों को पता है तेरी करतूत जीजे ?”

“न...नहीं ।” फक्क से पड़ गया जसदेव सिंह ।

देवराज चौहान की निगाह जसदेव पर ही टिकी थी ।

“क्या हुआ था जसदेव ?” देवराज चौहान बोला ।

“तुम तब साथ क्यों नहीं मिले जब तेरे को साथ मिलने को कहा था ?” जगमोहन कह उठा ।

“मैं ।” जसदेव सिंह ने गहरी साँस ली – “सारा पैसा अकेले ही लेना चाहता था । पंचम ने तो उस बैंक वैन को लूटने की योजना बहुत बाद में बनाई । मैं तो उस पर हाथ डालने की पहले से ही सोचे बैठा था । इसके लिए मैंने मदनलाल सोढ़ी से पहले ही बात कर रखी थी । वो लालची आदमी था । एक बार में ही मेरे साथ मिलने को तैयार हो गया था । मैं तो कब से मौके का इंतजार कर रहा था कि बैंक वैन पर हाथ डाल सकूँ । जब तुम लोग पंचम के साथ वैन पर हाथ डालने को तैयार हुए तो मुझे बढ़िया मौका लगा । मैंने सोढ़ी से बात की । वो तैयार था । लेकिन हमें तुम लोगों की भी योजना को जानना था । तभी तो मैं मजबूत योजना बना पाता । मैंने सोढ़ी को सबकुछ समझाकर, लानती से मिलने को कहा । सोढ़ी को जैसा मैंने समझाया था, वैसे ही उसने लानती से बात की । सोढ़ी ने ये न बताया कि इस मामले में मैं भी हूँ । वो अपने तौर पर उससे मिला । आधे-आधे घण्टे की उन्होंने बात की । लानती तैयार हो गया । उसके बाद लानती तुम लोगों की सारी योजना सोढ़ी को बताता रहा । इससे मुझे अपनी योजना बनाने में बहुत आसानी हुई ।”

“जीजे ।” पंचम लाल हक्का-बक्का सा बोला – “तू तो बहुत चालू निकला ।”

जसदेव सिंह सिर्फ पंचम लाल को देखकर रह गया ।

“तब भी तेरे को हिस्सा तो देना पड़ा मदनलाल सोढ़ी को ।”

“खास नहीं । पच्चीस करोड़ सोढ़ी को दिया और इंस्पेक्टर दलिप सिंह को सोढ़ी पर शक हो गया था । सोढ़ी के द्वारा दलिप सिंह को दस करोड़ दे दिया । सारा मामला निपट गया था ।” जसदेव सिंह ने परेशानी से पहलू बदला ।

“लेकिन अब हम बीच में आ गए ।” देवराज चौहान के होंठों पर खतरनाक मुस्कान उभरी ।

जसदेव सिंह ने देवराज चौहान को देखा लेकिन कहा कुछ नहीं ।

“जसदेव ।” देवराज चौहान पूर्ववत अंदाज में कह उठा – “जब जीना इसी गली में हो तो इस गली वालों से धोखेबाजी नहीं करते । ऐसा करके गली में ज्यादा देर तक नहीं रहा जा सकता ।”

जसदेव सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । टांगों में भय से भरी कंपन की लहर दौड़ी ।

“इसके सिर में गोली मारना जगमोहन ।” देवराज चौहान की आवाज में मौत के भाव आ गए थे ।

जगमोहन ने रिवाल्वर निकाली ।

तभी पंचम लाल दोनों बाँहें फैलाये जसदेव सिंह के सामने आ गया ।

“खबरदार, जो मेरे जीजे को गोली मारी ।” पंचम लाल एकाएक कठोर स्वर में कह उठा ।

“पंचम ।” जगमोहन के माथे पर बल पड़े ।

“रिवाल्वर पीछे कर ।” पंचम लाल ने गर्दन को झटका देकर कहा ।

“तू किसको बचा रहा है ।” जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा – “तेरे पैसों पर इसने हाथ मार दिए । ऊपर से तेरे से रिश्ता तोड़ लिया । तेरे को भूखा मरने को छोड़ दिया । तेरी बहन को तेरे से दूर कर दिया । ये बहुत घटिया इंसान है । तू इसको बचाने की न सोच पंचम । पीछे हट जा... ।”

“मैं जानता हूँ कि ये बहुत घटिया आदमी है ।” पंचम लाल शब्दों को चबाकर बोला – “तेरे से अच्छी तरह जानता हूँ इसका घटियापन ।”

“फिर पीछे हट जा ।”

“नहीं हट सकता ।” जसदेव सिंह के सामने से न हटने का पंचम लाल का कोई इरादा नजर नहीं आया ।

“ये जीजा है मेरा । मेरी बहन का सुहाग है । ये कितना भी घटिया आदमी सही, लेकिन इसके साथ मेरी बहन की जिंदगी जुड़ी है । ये मर गया तो बिल्लो तो जीते जी मर जायेगी । मैं बिल्लो को क्या मुँह दिखलाऊँगा कि मेरे सामने इसे गोली मार दी । उसे विधवा बना दिया और मैं कुछ न कर सका ।”

“हम इसे नहीं छोड़ेंगे ।” जगमोहन कठोर स्वर में कह उठा – “अगर तू पीछे न हटा तो तेरे को भी गोली मार... ।”

“मार दो । एक क्या पाँच-पाँच गोली मारो मुझे ।” पंचम लाल जिद भरे स्वर में कह उठा – “लेकिन मैं पीछे नहीं हटूँगा । पहले मैं मरूँगा, उसके बाद मेरी बहन का सुहाग मरेगा ।” तभी जसदेव सिंह फूट-फूटकर रो पड़ा ।

बाँहें फैलाए खड़ा पंचम, जगमोहन को ही देख रहा था । परन्तु जसदेव सिंह के पीछे से रोने की आवाज आई तो उसकी आँखें भी भर आई । वो कह उठा –

“तू क्यों रोता है जीजे ? मैं हूँ न, तेरे से पहले अपनी जान देने वाला ।”

“मुझे माफ कर दे पंचम ।” जसदेव सिंह रोते-फफकते कह उठा – “मैं अपनी मौत के गम में नहीं रो रहा । मैं तो इसलिए रो रहा हूँ कि तू दिल का कितना अच्छा है । मैं तेरे को पहचान न सका और मैंने तेरे साथ बहुत बुरा किया । बहुत गलत किया पंचम । मेरे को माफ कर दे पंचम । मेरे को... ।”

“कर दिया जीजे ।” पंचम की निगाह जगमोहन के हाथ में दबी रिवाल्वर पर थी – “माफ कर दिया । अब चुपकर जा । टाइम बहुत खराब चल रहा है । पहले मैं मरूँगा फिर तू ।”

“पंचम लाल ।” जगमोहन गुर्रा उठा – “आखिरी बार कह रहा हूँ । पीछे हट जा । वरना... ।”

“परा जी (भाई साहब) ।” तभी खुले दरवाजे की तरफ से बिल्लो की आवाज आई ।

सबकी निगाह उस तरफ घूमी । दरवाजे पर चाय की ट्रे थामे बिल्लो खड़ी थी । उसकी मोटी-मोटी आँखों से आँसू बह रहे थे जो कि ठोढ़ी तक आ गए थे । उसने सब देख-सुन लिया था । वो छोटे-छोटे कदम उठाती आगे बढ़ी और चाय की ट्रे को टेबल पर रखने के बाद देवराज चौहान और जगमोहन को देखते हुए दोनों हाथ जोड़कर बोली –

“असाँ लुधियाने वाले आँ । मेहमाना दी खातिर कर के, कीमत नेई माँगते । लेकिन आज बिल्लो खातिरदारी दी कीमत माँगती है । इनसे कोई गलती हो गई हो तो, इन्हें माफ कर दो । बिल्लो दे वास्ते, पैण (बहन) दे वास्ते, परजाई (भाभी) दे वास्ते, इन्हें माफ कर दो । मैं समझूँगी कि जिंदगी विच कुछ कमा लिया । खातिरदारी दी कीमत मिल गई मुझे ।”

बिल्लो ने आँसुओ भरे स्वर में कहते हुए ओढ़ रखा दुपट्टा खोलकर दोनों हाथों में थाम, फैला लिया – “अपनी परजाई, पैण, बिल्लो दी झोली भर दो । पहली बार झोली फैलाई है, खाली वापस न करना । माफ कर दो इनको ।”

जगमोहन का रिवाल्वर वाला हाथ कांपा । पंचम लाल अभी भी बाँहें फैलाये खड़ा था । उसके पीछे घुटनों के बल बैठा जसदेव सिंह सुबक रहा था ।

देवराज चौहान कुर्सी से उठ खड़ा हुआ । जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा । देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया तो जगमोहन ने रिवाल्वर वाला हाथ नीचे कर लिया ।

“पैसा कहाँ है ?” जगमोहन ने पूछा ।

“जीजे ।” पंचम लाल बोला – “बता दे कहाँ है पैसा । जान है तो जहान है ।”

“तू बीच में से हट जा ।” जगमोहन बोला – “नहीं मारते इसे गोली ।” कहकर उसने रिवाल्वर जेब में रख ली ।

तभी देवराज चौहान आगे बढ़ा और बिल्लो की बाँहो में फँसा फैला रखा दुपट्टा उसने बिल्लो के गले में डाल दिया । बिल्लो की आँखें बन्द हो गईं । वो एकाएक फफक-फफक कर रोते हुए कह उठी ।

“मेहरबानी परा जी । मैं आपकी इस कीमत को कभी न भूलूँगी ।”

पंचम लाल की आँखें फिर से भर आई । वो जसदेव सिंह के सामने से हट गया ।

“कहाँ है पैसा ?” जगमोहन ने पुनः कठोर स्वर में पूछा ।

“रखा है ।” जसदेव सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

“बता किधर है ?”

जसदेव सिंह आगे बढ़ा और डबलबेड के गद्दे बेड से उठाकर एक तरफ गिराकर उन्हें देखा ।

“इनके बीच में है पैसा ।”

जगमोहन फौरन आगे बढ़ा और बेडों का बक्सा खोला ।

“मार दिया जीजे ।”

बेड हजार-हजार की गड्डियों से ठूस पड़ा था ।

देवराज चौहान जेबों में हाथ डाले बेड के पास पहुँचा । उन्हें देखने के बाद जसदेव सिंह से बोला –

“ये कम है ।”

“एक बेड और भी है । साथ वाले कमरे में ।” जसदेव सिंह फीके स्वर में कह उठा ।

“बल्ले-बल्ले जीजे ।” पंचम लाल का मुँह खुला का खुला रह गया ।

“कमाल वे ।” बिल्लो आँखों से बहते आँसू साफ करते कह उठी – “कब ला के रख दिया ये सब । आपने तो मुझे भी पता न लगने दिया ।”

“एक बेड का पैसा हम ले जा रहे हैं ।” देवराज चौहान बोला – “दूसरे बेड का सारा पैसा पंचम का । तू एक पैसा भी नहीं लेगा । तेरे पास बहुत है ।”

जसदेव सिंह ने सिर हिलाया ।

“मैं ।” पंचम लाल हड़बड़ाया – “मैं इतना पैसा क्या करूँगा ?”

“मौज करना ।” जगमोहन बोला – “दान करना । गरीबों के खाने के लिए लंगर खुलवा देना । गरीबों की स्कूलों की फीसें देना । किताबें लेकर देना । कोई और रास्ता न मिले तो नाले ने फेंक देना नोटों को । आग लगा देना । लेकिन इस बेईमान बन्दे को एक भी फटा हुआ नोट भी न देना ।”

“देवर जी ।” बिल्लो कह उठी – “मैं वादा करती हूँ आपसे कि दूसरे बेड में रखे पैसे में से एक भी पैसा ये नहीं लेंगे । सारा मैं पंचम के हाथों से दान करवा दूँगी । मेरे पे भरोसा रखना ।”

जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा –

“इतने नोटों को हम ले कैसे जायेंगे ?”

“मैं देती हूँ आपको बोरा । दो बोरे दे देती हूँ । नोट भरके उनका मुँह भी अच्छी तरह बाँध देती हूँ । अभी लेके आती हूँ ।” कहने के साथ ही बिल्लो बाहर निकल गई ।

दो घण्टे बाद देवराज चौहान और जगमोहन जब वहाँ से चले तो नोटों से भरा एक बोरा कार की डिग्गी में और दूसरा पीछे वाली सीट पर ठूंसा पड़ा था ।

“परजाई ।” जगमोहन कह उठा – “अगर हमें पता चला कि जसदेव सिंह ने उस पैसे में से एक पैसा भी इस्तेमाल किया है तो हमारा रिश्ता टूट जायेगा ।”

“भरोसा रखो देवर जी । चार दिनों में पंचम के हाथों से सारा पैसा दान न करा दिया तो मेरा नाम बिल्लो नहीं । इस पैसे नूँ कोई भी नेई खायेगा । थोड़ा-बहुत पंचम को चाहिए तो वो रख लेगा ।”

देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ा दी । जसदेव सिंह का शर्म से झुका चेहरा झुका ही रहा ।

समाप्त