वह जानता था कि सीक्रेट सर्विस का कौन-सा सदस्य किस रूप में है, तभी उसके पास नेपाली टोपी लगाए एक छड़ा व्यक्ति आया । जिसके हाथ में एक छड़ी थी और मुंह पान से लाल था । नाक के लगभग मध्य में एक न्यू कट ऐनक रखी हुई थी ।


"प्यारे चीफ !'' विजय होंठों-ही-होठों में बुदबुदाया।


- "यस सर ! " नेपाली टोपी वाले ने मुख से ब्लैक ब्वाय की आवाज निकाली ।


" लूमड़ प्यारे यहां आ चुके हैं। "


"क्या मतलब, किस रूप में? वह धीमे से चौंका ।


"ये अभी पता नहीं लग सका है । "


- "तो !"


" तुम ये चैक करो कि वह हमारे किसी एजेंट के मेकअप में तो नहीं है?"


"आपका मतलब है, पहले हमारे किसी एजेंट का मेकअप ! उसके ऊपर वह मेकअप, जिसमें उसे यहां आना था? " 


"ठीक समझे ।"


"हमारे सब एजेंट वास्तविक हैं, वह मैं पहले ही चैक कर चुका हूं ।


"तुम जरा सबकी नजरों से छुपकर मेरे पीछे आओ।" विजय ने कहा ।


और फिर दोनों !


एक ही बाथरूम में !


पहले विजय... उसके पीछे ब्लैक ब्वाय !


विजय तेजी के साथ घूमा! ब्लैक ब्वाय चीखा - विजय के हाथ में रिवाल्वर था ।


- "क्या मतलब सर ?"


"ये भी हो सकता है प्यारे कि तुम लूमड़ हो ?


प्रत्युत्तर में ब्लैक ब्वाय मुस्कराया और विजय का वहम दूर किया ।


फिर!


कुछ समय बाद!


दोनों ही एक बार फिर भीड़ में मिल गए और अलफांसे को खोजने का प्रयास किया, किंतु असफलता प्राप्त हुई । अलफांसे न जाने किस रूप में था ।


तब !


जबकि केक काटने का समय हुआ !


विकास को बुलाया गया । उसने दस मोमबत्तियां अजीब ढंग से फूंक मारकर बुझाई । हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा । तत्पश्चात!


केक काटा गया !


." हैप्पी बर्थ डे...! " की पंक्तियां हॉल में प्रसारित हो गई। और फिर !


अचानक! बिल्कुल सहसा !


' धायं... धायं... धुम्म.. धुम्म ! "


अनेकों फायरों की आवाज! सब चौंके.... बाहर भागना चाहा!


'किंतु विजय का दिमाग पूर्णत: सक्रिय था । एक पल में ही उसके दिमाग में सारी साजिश घूम गई । वह जान गया कि अलफांसे काफी अच्छी, किंतु पुरानी चाल चल रहा है। उसके दिमाग में घूम गया कि बाहर होने वाले फायर महज धोखे के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । वह ये फायर करके अंदर वालों को भटकाकर बाहर बुलाना चाहता है । अत: इससे पूर्व कि कोई बाहर निकल पाता । विजय चीखा"कोई बाहर न निकले, बाहर वाले खुद ही संभाल लेंगे ! "


वास्तव में सब ठिठककर रुक गए । ठाकुर साहब ने घूमकर विजय की ओर देखा। उनकी आंखों में प्रशंसनीय भाव थे, क्योंकि शायद वे जान गए थे कि विजय के यह कहने का उद्देश्य क्या है, किंतु न जाने क्यों उनके होंठों पर एक मुस्कान उभरी ।


बाहर से निरंतर गोलियां चलने की आवाजें आ रही थी । विकास को चारों ओर से सीक्रेट सर्विस के जांबाजों ने घेर

लिया था ।


तभी !


एक अन्य घटना!


एक फायर ! हॉल के अंदर .. . हवाई!


यह एक प्रेस रिपोर्टर था, जिसके हाथ में इस समय एण्ड रिवॉल्वर था और उसने यह हवाई फायर किया था । वह हॉल के एक कोने में खड़ा था ।


एक पल !


उपस्थित सभी इंसान जांबाज थे ।


एक ही साथ कई इंसानी जिस्म हवा में लहराए । इनमें एक विजय था, दूसरा ब्लैक बॉय और तीसरा अशरफ । तीनों का लक्ष्य था, वही रिपोर्टर!


ये तीनों ही व्यक्ति साक्षात काल थे ।


अगले ही क्षण !


वह रिपोर्टर उनके बंधनों में था ।


किंतु अगला पल !


सबको चौंकाने वाला !


सब कुछ पलक झपकते ही हुआ था- विजय इत्यादि सभी चौंके, इधर विजय, अशरफ और ब्लैक बॉय ने जंप लगाई, उधर 'एक्स्ट्रा' खड़े व्यक्तियों में से एक फुर्ती के साथ उछला और पलक झपकते ही विकास को पकड़ लिया ।


सबका ध्यान रिपोर्टर की ओर था ।


चौंके वो तब !


जबकि उस व्यक्ति ने विकास की कनपटी पर रिवॉल्वर रख दिया और खतरनाक स्वर में बोला-' 'कोई न हिले, वरना अगली गोली विकास के माथे में लगेगी।


सब ठिठक गए!


रैना तो तुरंत बेहोश होकर गिर पड़ी थी ।


उस इंसान के चेहरे पर खतरनाक भाव थे । तीक्ष्ण दृष्टि से वह खास तौर से विजय इत्यादि पर नजर रखे हुए था । धाय!" -


एक गोली चली । लक्ष्य था रघुनाथ का वह हाथ जो रिवाल्वर निकाल चुका था ।


"मिस्टर रघुनाथ, मुझसे चालाकी दिखाना आसान नहीं । इस बार अगर कोई भी गलत हरकत करने की चेष्टा की तो अगली गोली हरकत करने वाले पर नहीं, बल्कि विकास पर चलेगी।"


सब ठिठक गए । अंदर मौत जैसा सन्नाटा था, जबकि बाहर से निरंतर फायरों की ध्यनि आ रही थी, सबके दिमाग सक्रिय थे ।


विजय के पिता !


शहर के इंस्पेक्टर जनरल ठाकुर साहब!


अपने जमाने के दिग्गज जासूस ।


उन्होंने कमाल दिखाया ।


ऐसी फुर्ती - जिससे स्वयं विजय भी हतप्रभ रह गया । न जाने वह कौन-सा पल था, जब ठाकुर साहब ने जेब से रिवॉल्वर निकाला और पलक झपकते ही एक फायर झोंक दिया ।


अचूक निशाना !

गोली सीधी उस व्यक्ति के रिवॉल्वर वाले हाथ पर लगी । उस व्यक्ति की एक चीख ! रिवॉल्वर छिटककर दूर जा गिरा।


ठाकुर साहब का यह रिस्क था, बड़ा ही गंभीर रिस्क ! सूत-भर के अंतर में भी गोली विकास की खोपड़ी में लगती, किंतु निशाना एकदम अचूक था । आखिर शहर के आई.जी. जो थे ।


विजय इत्यादि ने भी फुर्ती दिखाई, किंतु तभी वे चौंके! हॉल में खड़े कुछ 'एक्स्ट्रा' और क्कु रिपोर्टरों के हाथों में रिवॉत्वर नजर आए और अगले ही पल वहां गोलियां सनसनाने लगीं ।


प्रत्येक ने अपनी पोजीशन ले ली ।


विजय ने देखा ।


ठाकुर साहब ने झपटकर विकास को पकड़ लिया और कुर्सियों की बैक में होते हुए कोठी के ऊपर जाने वाली सीढ़ी पर चढ़ने लगे ।


एक रिपोर्टर ने उन्हें निशाना बनाने के लिए रिवाल्वर सीधा किया, किंतु इससे पूर्व कि वह अपने नेक इरादों में सफल हो, विजय के रिवॉल्वर से निकली गोली ने उसे ' धरती छोड़' पत्र थमा दिया ।


ठाकुर साहब विकास को लेकर आगे बढ़ रहे थे, समय-समय पर उनका रिवॉल्वर आग भी उगलता जा रहा था, जो कभी किसी रिपोर्टर की छुट्टी कर देता तो कभी किसी 'एक्स्ट्रा' व्यक्ति की । वे अत्यंत सतर्कता के साथ सीढ़ियों पर बढ़ रहे थे । यह पहला अवसर था, जब विजय ने ठाकुर साहब को खतरों से खेलते देखा था । उसको मानना पड़ा कि उसके पिता भी पूरे शातिर हैं । वह खुश था कि विकास अभी तक सुरक्षित है।


तभी विजय के दिमाग को एक तीव्र झटका लगा ।


अलफांसे कहां है?


उसके दिमाग में विचार आया। उसने चारों ओर दृष्टि घुमाई, किंतु उसे कहीं भी अलफांसे नजर नहीं आया । उसके दिमाग में घंटियां-सी बजने लगीं । वह मान ही नहीं सक्ता था कि अलफांसे इस समय पार्टी में न हो !


विक्रम, अशरफ, नाहर, आशा और रघुनाथ के अतिरिक्त सादे लिबास वाले भी पोजीशन लिए हुए थे और दूसरी ओर थे रिपोर्टर व अन्य एक्स्ट्रा व्यक्ति ।


इन्हीं के साए में ठाकुर साहब सुरक्षापूर्वक विकास को संभाले सीढ़ियों तक पहुंचे और शीघ्रता से सीढ़ियां तय करके ऊपर आ गए ।


विजय के दिमाग में एक विचार आया, कहीं अलफांसे ऊपर ही न ही? अगर वह ऊपर हुआ, तो अकेले ठाकुर साहब से वह निश्चित रूप से विकास को छीन लेगा, अत: वह भी फुर्ती और सतर्कता के साथ ठाकुर साहब के पीछे-पीछे ऊपर आया ।


तब, जबकि वह ऊपर आया ।


ठाकुर साहब को उसने छत की सीढ़ियों पर चढ़ते पाया । वह पीछे भागा, तभी ठाकुर साहब ने उसे देख लिया । क्रोध से उनकी आंखें लाल हो गई और बोले ।


"तुम यहां क्या कर रहे हो?"


"आपकी सुरक्षा! " विजय अजीब अंदाज में बोला। विजय! ठाकुर साहब सख्ती के साथ बोले- ' 'तुम नीचे जाकर अलफांसे को संभालो। " I -


- 'नहीं, हम... ।'


'धायं ।'


विजय अभी कुछ कह भी नहीं पाया था कि ठाकुर साहब के रिवाल्वर से निकली गोली उसके सीधे पैर के जोड़ पर लगी, वह कराहकर गिरा ।


"कमीने ! " वे क्रोध में बोले-' 'मैं पहले ही जानता था कि तुम अलफांसे से मिले हुए हो ।' 


-"नहीं डैडी !


- ' धायं!'


दूसरा फायर !


गोली ने दूसरा पैर भी बेकार कर दिया ।


"नमकहराम, देश के गद्दार ।" ठाकुर साहब चीख उठे 'मैंने तुम जैसे बेटे को जन्म देकर अपने खून को बदनाम किया है, तुम जैसे देशद्रोही बेटे को मुझ जैसा प्रत्येक - ।


बाप यही सजा देगा, मैं अब भी तुम पर गोली चला सकता हूं विजय- मेरे हाथ एक देशद्रोही पर गोली चलाने में कांपते. नहीं हैं - मैं अब भी निशाना लगा सकता हूं ।" ठाकुर साहब की


आंखें ज्वाला उगल रही थीं ।


विजय को इस सबकी आशा कदापि न थी । अगर उसे आशा होती तो संगआर्ट के प्रदर्शन से वह बच सक्ता था, किंतु यहां तो सारी बातें अनहोनी थीं ।


ठाकुर साहब ने कितनी शीघ्रता से निश्चित किया कि वह अलफांसे से मिला हुआ है और उसकी कोई बात सुने बिना ही उस पर गोलियां चला दी, अब वह चलने की स्थिति में नहीं रहा था । दोनों ही पैर की हड्डियां टूट गई थीं-उसने पड़े-ही-पड़े भी कुछ बोलना चाहा, किंतु ठाकुर साहब ने उसे अंतिम बार घृणा से देखा और तीव्रता से छत पर जाने वाली सीढियों पर चढ़ गए ।


विजय तड़पकर रह गया । उसने लानत भेजी सीक्रेट सर्विस की नौकरी को जिसमें बाप ही देश-भक्त पुत्र को अपराधी समझकर परलोक पहुंचाने की सोचे ।


इधर ठाकुर साहब की आंखों में विचित्र से भाव थे । उनकी आंखों में क्रोध व दृढ़ता के अतिरिक्त विजयात्मक सफलता भी थी !


***


"दादाजी, ये क्या हो रहा है? " सहमे-से विकास ने काफी देर बाद जुबान खोली ।


"कुछ नहीं बेटे, इस समय चुप रहो ।"


'लेकिन दादाजी, आपने विजय अंकल को क्या कर दिया?" विकास सुबक पड़ा ।


" "कुछ नहीं बेटे, कुछ नहीं!" ठाकुर साहब ने उसे समझाने का प्रयास किया ।


और फिर !


छत पर पहुंचकर उन्होंने सड़क पर झांका !


बाहर पुलिस बदमाशों पर कब्जा पा चुकी थी ।


उन्होंने रिवाल्वर जेब में रखकर विकास को कंधे पर डाला ओर गंदे पानी के पाइप के जरिए फुर्ती से नीचे उतरने लगे। नीचे से सादे लिबास वालों के रिवाल्वर तने, किंतु उस समय झुक गए, जब उन्होंने ठाकुर साहब को पहचान लिया । वे


तब!


जबकि, वह नीचे पहुंचे।


- "सर, क्या अलफांसे पकड़ा गया? "


- "पता नहीं, अंदर होगा! ।।


"विकास तो सुरक्षित है सर? "


- "वह तो है, लेकिन देखो, अब तुम अंदर वालों की सहायता करो, ऊपर की मंजिल पर विजय पड़ा होगा । वह अलफांसे से मिला हुआ है, मैं उसे गोली मार आया हूं।"


- "सर, आपने विजय बाबू को...!"


"इंस्पेक्टर तिवारी ।' ' ठाकुर साहब सख्त लहजे में बोले- "विजय मेरा बेटा होने के साथ देश का गद्दार भी था ।"


- "यस सर !


"अब तुम आदेश का पालन करो ।'


-" ओके सर ।" तिवारी ने कहा और मुड़ गया । ठाकुर साहब विकास को लेकर जीप में बैठ गए।


ड्राइवर ने जीप स्टार्ट कर दी । रफ्तार में तीव्रता आई और वह विकास सहित घटनास्थल से दूर होते चले गए । जीप में उनके अतिरिक्त सिर्फ ड्राइवर था ।


***


उस दिन की शाम !


एक अन्य चौंका देने वाला समाचार लाई ।


विजय.... घायल विजय को अस्पताल में भर्ती कर दिया गया था । गोलियां निकाल दी गई थी और अब वह पूर्णतया खतरे से बाहर था । एक तो चौंकाने वाला समाचार ये ही था कि जबसे ठाकुर साहब विकास को साथ लेकर जीप में गए थे- तब से न तो जीप को ही कहीं देखा गया था-न जीप के ड्राइवर को ही । वह संपूर्ण जीप तीन इंसानों को लेकर गधे के सींग की भांति गायब हो गई थी ।


समस्त पुलिस और सीक्रेट सर्विस के सदस्य जीप की तलाश में शहर की खाक छान रहे थे, किंतु परिणाम ढाक के तीन पात ।


जो व्यक्ति पार्टी में हंगामा करते हुए पकड़े गए थे, उन सबके बयान एक जैसे थे । उनका कहना था कि अलफांसे ने फोन पर उन्हें एक खंडहर में बुलाया था । उस खंडहर में उसने सबको पांच-पांच सौ रुपए दिए और सबको अलग-अलग कार्य सौंपे-वैसे सबका लक्ष्य विकास को उठाना ही था, किंतु फिर भी उसने सबको अलग-अलग कार्य सौंपे थें। किसी को बाहर रहकर पुलिस को उलझाए रखना तो किसी को अंदर हवाई फायर करना, जैसे ही सबका ध्यान उस ओर आकर्षित हो, दूसरे को विकास की कनपटी पर रिवॉल्वर रखना इत्यादि, लेकिन उनके कहने के अनुसार अलफांसे ने उन्हें खास हिदायत दी थी कि विकास को कोई हानि न पहुंचे ।


जब उनसे ये पूछा गया कि विकास को लेकर वे अलफांसे को कहां मिलते, तो उन्होंने जवाब दिया उसी खंडहर में । पुलिस ने खंडहर को घेरा, किंतु कोई लाभ नहीं हुआ।


विजय को चिंता थी तो सिर्फ विकास की । उसे लग रहा था, जैसे अलफांसे ने अकेले ठाकुर साहब पर हमला करके उन पर कब्जा पा लिया है ।


उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अलफांसे ने आखिर ये चाल कौन-सी चली है ?


इस समय वह कमरे में अकेला था और बेड पर पड़ा हुआ विचारों में खोया हुआ था कि वह चौक पड़ा । चौंकने का कारण था, उसकी चेन में लगे लाकिट में रखा ट्रांसमीटर !


एक छोटी-सी सुई रह-रहकर उसके कंठ में चुभ रही थी । उसने धीरे से ट्रांसमीटर ऑन किया-तभी अलफांसे की आवाज आई।


'कहो बेटे जासूस महोदय, पड़े हो ना बिस्तर पर?