बीस जुलाई 2022

सुमन हमेशा छ: बजे का अलार्म लगाकर सोती थी, मगर बीती रात उसने जानबूझकर सात बजे का अलॉर्म सेट किया, क्योंकि जानती थी कि घर के सभी लोग देर तक सोते रहने वाले थे।

अलॉर्म की आवाज ने उसे नींद से जगाया। उठने का उसका जरा भी मन नहीं था, मगर मजबूरी थी इसलिए बिस्तर छोड़ना ही पड़ा। उसकी आँखें लाल हुई पड़ी थीं और सिर मारे दर्द के फटा जा रहा था, जिसकी वजह वह लॉर्ज पैग था, जिसे उसने बीती रात सत्य के ड्रिंक मंगाने पर बेसमेंट में जाकर गटक लिया था।

बॉथरूम में पहुँचकर उसने मुँह हाथ धोया फिर ब्रश करने के बाद बाहर ड्राइंगरूम में पहुँची तो ये देखकर हैरान रह गयी कि शीतल अभी भी सोफे पर ही पड़ी हुई थी।

उसने हौले से हिलाते हुए उसे आवाज दी- “मैडम! ओ मैडम!”

“क्या हुआ?” शीतल बिना आँख खोले बोली।

“आप इधर सोफे पर क्यों सो रही हैं?”

“सोफे पर?” वह चौंकती हुई उठ बैठी।

“मैंने तो रात को भी बोला था आपसे।”

“छोड़ न, क्या हो गया?” उसने दोनों हाथ हवा में उठाकर अंगड़ाई ली – “अपने ही घर में तो हूँ।”

“अब बेडरूम में जाकर सो जाओ, सफाई करनी है।”

“नहीं, अब सोने का मन नहीं है। एक काम कर, चाय बना ला।”

“ठीक है।” कहकर वह किचन की तरफ बढ़ गयी।

शीतल ने दोनों हाथों की उंगलियों से अपने बालों को कंघा किया फिर उन्हें खोलकर पॉनीटोल की सूरत में बांध लिया। नींद की खुमारी उस पर बहुत बुरी तरह सवार थी, मगर आगे जो कुछ करना था, उसको ध्यान में रखते हुए जागना उसकी मजबूरी थी।

थोड़ी देर बाद सुमन ने चाय का प्याला उसके हाथों में थमा दिया।

तभी कॉलबेल बजी।

“इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया?”

“सर्वेंट लोग होंगे, और कौन आयेगा?”

“आठ बज गये?”

“नहीं।”

“फिर उनमें से कोई कॉलबेल क्यों बजायेगा?”

“देखती हूँ जाकर। नौकर नहीं हैं तो जरूर साहब का कोई जानकार होगा, वरना गार्ड लोग उसे अंदर क्यों आने देते?” कहती हुई वह दरवाजे की तरफ बढ़ गयी।

और थोड़ी देर बाद वापिस लौटी तो अनंत गोयल उसके साथ था।

“गुड मॉर्निंग मैडम।”

“गुड मॉर्निंग अनंत, इतनी सुबह-सुबह कैसे?”

“साहब ने नहीं बताया आपको?”

“क्या नहीं बताया?”

“बिजनेस के सिलसिले में मुंबई जाना है, दस बजे की फ्लाइट है। मुझे सात बजे पहुँचने को कहा था, मगर थोड़ा लेट हो गया।”

“चिंता मत करो, तुम्हारे साहब अभी भी घोड़े बेचकर सो रहे हैं।”

“प्लीज उन्हें जगाइए, वरना फ्लाइट मिस हो जायेगी।”

शीतल ने मेड की तरफ देखा।

“मैं जगाऊं?” उसने सवाल किया।

“नहीं रहने दे, वरना बेवजह भड़क उठेंगे तेरे पर।” कहकर वह उठी और बेडरूम की तरफ बढ़ चली।

अनंत और मेड जहाँ के तहाँ खड़े रहे।

तभी शीतल की दिल दहला देने वाली चीखों से पूरा बंगला गूंज उठा।

सुमन और अनंत एक साथ बेडरूम की तरफ दौड़े। आगे जो नजारा दिखाई दिया, उसे देखकर मेड के होश उड़ जाना तो लाजमी ही था, मगर अनंत का भी कोई कम बुरा हाल नहीं हुआ, जबकि वह पहले से ही जानता था कि भीतर उसका सामना सत्यप्रकाश की लाश से होने वाला था।

वह बिना कुछ कहे सुने दौड़कर बेड के पास पहुँचा और लपककर सत्यप्रकाश की लाश को दोनों हाथों से उठा लिया, जबकि उसकी सूरत देखकर अनंत का दिल उल्टी करने को हो रहा था।

शीतल दहाड़ें मार कर रो रही थी।

“रोना बंद कीजिए मैडम।” वह दरवाजे की तरफ बढ़ता हुआ बोला – “क्या पता साहब की साँसें अभी बाकी हों, फौरन हॉस्पिटल ले जाना होगा।” कहकर वह तेजी से मेन गेट की तरफ बढ़ चला।

तभी आकाश भी वहाँ पहुँच गया। उसने भाई की हालत देखी तो अनंत और शीतल से कहीं ज्यादा ओवर एक्टिंग करने में जुट गया, जबकि उसकी कोई जरूरत नहीं थी। औरतों की तरह चीखता-चिल्लाता वह अनंत के पीछे पीछे चल पड़ा।

मिनट भर बाद लाश को गोद में उठाये अनंत गोयल बाहर खड़ी फरारी की पिछली सीट पर बैठा था, शीतल आगे पैसेंजर सीट पर, आकाश ने ड्राइविंग संभाल ली।

अगले ही पल फरारी अंबानी नर्सिंग होम की तरफ भागी जा रही थी।

“हे भगवान्! हे भगवान्! ये क्या हो गया?” शीतल जोर-जोर से रोने लगी।

आकाश ने हैरानी से उसकी तरफ देखा। कार के भीतर भला ऐसा कौन था, जिसे दिखाने के लिए उसे एक्टिंग करने की जरूरत थी, मगर बोला कुछ नहीं।

पांच मिनट से भी कहीं कम समय में आकाश ने गाड़ी को नर्सिंग होम की इमरजेंसी के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि भीतर ही घुसा दिया।

वहाँ के स्टॉफ को जैसे ही पता लगा कि पेशेंट कौन था, हर तरफ हड़कंप का माहौल बन गया। नर्सिंग होम का सीएमओ नरेंद्र पुरी उस वक्त इमरजेंसी में ही मौजूद था। उसने आनन-फानन में सत्यप्रकाश की लाश को स्ट्रेचर पर रखवाया और ओटी की तरफ दौड़ पड़ा।

दो नर्स उसके पीछे लपकीं।

लाश अंदर पहुँच गयी तो स्ट्रेचर को वहाँ तक लाने वाले दोनों लड़के बाहर निकल गये। उसके थोड़ी देर बाद एक नर्स बाहर आई और एक तरफ को बढ़ती चली गयी।

अब ओटी के भीतर बस एक डॉक्टर और नर्स रह गये थे लाश के साथ। कुछ मिनट और गुजरे तो बाहर गयी नर्स ढेर सारे मेडिकल इक्युपमेंट संभाले तेजी से चलती हुई ओटी में जा घुसी। हाथ का सामान उसने डॉक्टर के हवाले किया और उसके इशारे पर फौरन बाहर निकल गयी।

“ये चल क्या रहा है भाभी?” शीतल के कानों में फुसफुसाता हुआ आकाश बोला – “लाश को लाश बताने में डॉक्टर इतना वक्त क्यों लग रहा है?”

“शटअप!” वह दांत पीसती हुई गुर्राई और आंसू बहाने वाले काम को सुचारू रूप से अंजाम देना शुरू कर दिया।

उनसे कुछ दूरी पर दीवार की टेक लेकर खड़ा अनंत गोयल रह-रहकर पहलू बदल रहा था। बॉस की मौत पर दुखी था, या अपने किये धरे की वजह से डरा हुआ था, इस बात का अंदाजा लगाना सहज नहीं था, मगर इस बात में कोई शक नहीं था कि वह बुरी तरह विचलित था।

थोड़ी देर बाद जब भीतर मौजूद इकलौती नर्स बाहर निकली तो आकाश उससे मरीज के बारे में पूछे बिना नहीं रह सका। जवाब मिला अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, डॉक्टर कोशिश कर रहे हैं।

सुनकर तीनों को इतना बड़ा झटका लगा कि थोड़ी देर के लिए शीतल आंसू बहाना तक भूल गयी।

वह नर्सिंग होम अगर सत्यप्रकाश का खुद का नहीं होता तो वे लोग एक बार को सोच सकते थे कि डॉक्टर पैसा बनाने के लिए मरीज की तीमारदारी का दिखावा कर रहा था, मगर मौजूदा हालात में वह बात लागू नहीं होती थी।

फिर?

कहीं सच में तो उसकी साँसें बची नहीं रह गयी थीं?

कैसे हो सकता है?

ये असंभव है।

जरूर कोई और बात होगी।

तीनों के मन में कुछ ऐसे ही सवाल जवाब घुमड़ रहे थे।

डेढ़ घंटे बाद डॉक्टर नरेंद्र पुरी ने ओटी से बाहर कदम रखा।

“सत्य अब कैसे हैं डॉक्टर?” शीतल ने हिचकियां लेते हुए पूछा।

“सॉरी मैडम...।”

तीनों मन ही मन मुस्करा उठे।

“....उनकी हालत बेहद गंभीर है।”

तीनों का हॉर्ट फेल होते-होते बचा।

“अपनी तरफ से हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, बाकी भगवान् की मर्जी। प्लीज आप लोग कहीं जाकर आराम से बैठ जाइए।” कहकर वह वापिस ओटी में चला गया।

“बाहर निकलकर लेफ्ट में एक रेस्टोरेंट हैं, वहाँ चलो।” शीतल फुसफुसाती हुई आकाश से बोली।

सुनकर आकाश आगे बढ़ा ही था कि वह दांत पीसती हुई बोली- “इडियट, मुझे सहारा देकर ले चलो, वरना गिर पड़ूंगी।”

लड़के को फौरन अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने शीतल के दोनों कंधे थामे और धीरे-धीरे चलाता हुआ रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ चला।

अनंत गोयल उन दोनों के पीछे हो लिया।

इमरजेंसी से बाहर निकलकर तीनों उसके ठीक बगल में मौजूद एक छोटे से रेस्टोरेंट में दाखिल हुए और गम की प्रतिमूर्ति बनकर एक टेबल के इर्द-गिर्द बैठ गये।

“कॉफी लेकर आओ।” शीतल धीरे से बोली।

सुनकर अनंत अपनी जगह से उठा और काउंटर से तीन कॉफी ले आया।

“तुम्हारा भाई आदमी है या रावण?” शीतल दबे स्वर में बोली – “कैसे? कैसे कोई इतने खतरनाक हमलों के बाद भी जिंदा बचा रह सकता है?”

“इसने गोली ठीक जगह पर नहीं मारी होगी।” आकाश बोला।

“हो सकता है मुझसे गलती हो गयी हो, लेकिन खून निकलते और उन्हें तड़पते हुए तो हमने अपनी आँखों से देखा था।” अनंत गोयल बोला – “और छुरा तो आपने घोंपा था, या भाई के दिल की जगह गलती से बेड में घोंप दिया था?”

“कैसे हो सकता है। मैं बेशक उस वक्त घबराया हुआ था, मगर खून का

फौव्वारा छूटते तो साफ दिखाई दिया था, जब मैंने छुरे को वापिस खींचा था।”

“फिर भी जिंदा बच गये वह? जबकि मौर्या ने गला भी हमारी आँखों के सामने रेता था, और मैडम ने तेजाब से उनका जो हश्र किया था, वह नजारा तो मैं सात जन्मों तक नहीं भूल सकता। उसके बाद भी साहब का बच जाना किसी करिश्में से कम नहीं है।” कहता हुआ वह एकदम से घबरा उठा – “हे भगवान्! ये किस मुसीबत में फंस गया मैं, साहब जिंदा नहीं छोड़ेंगे मुझे।”

“पागलों जैसी बात मत करो।” शीतल गुर्राती हुई बोली – “जरूरी नहीं है कि वह बच जाये। कंडीशन क्रिटिकल है इसलिए कुछ भी हो सकता है। अभी से उस बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।”

“मगर बच भी तो सकते हैं, उसके बाद हमारा क्या होगा, बल्कि मेरा क्या होगा?”

“इडियट, उसने क्या तुम्हारा चेहरा देखा था?”

“क्या पता देख लिया हो, क्या पता गोली खाने से पहले एक पल को उनकी आँख खुल गयी हो, अब तो गया मैं काम से, छिपने के लिए दुनिया कम पड़ जायेगी।”

“पागलों जैसी बात मत करो, वरना हम सब धर लिए जायेंगे।”

“वह तो वैसे भी होकर रहना है। उन्हें होश आने भर की देर है हम सब जेल में चक्की पीस रहे होंगे।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा।”

“आपके कहने से क्या होता है मैडम, ऊपर से मैं ठहरा गरीब आदमी, जो भी बुरा घटित होना है वह मेरे ही साथ होगा। आप दोनों तो ये कहकर भी बच सकते हैं कि आपने जो किया वह लाश के साथ किया था। ऐसे में कातिल तो मैं ही हुआ न?”

“इडियट, अगर वह जिंदा बच जायेगा तो कत्ल की बात कहाँ से आ जायेगी?”

“कत्ल की कोशिश का केस फिर भी बनेगा। नहीं, मेरा बच पाना अब नामुमकिन है। काश मैं आपकी बातों में न आया होता, काश कि मैं होटल वाली मीटिंग से क्विट कर गया होता।”

“तुम मेरी बातों में नहीं आये थे अनंत, पचास लाख के लालच ने तुम्हें मेरा साथ देने को मजबूर किया था, जो कि तुम्हें सौंपे जा चुके हैं। इसलिए गिला-शिकवा करना बंद करो।”

“अब तो वह रूपये भी किसी काम आते नहीं दिखाई दे रहे मैडम। जेल चला जाऊंगा तो दौलत का अचार डालूंगा और काव्या को तो मैं अभी से दूर हो गया मानने लगा हूँ। हे भगवान्! क्या मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गये थे? अब तो धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।”

“जुबान बंद रख।” शीतल दांत पीसती हुई बोली।

“नहीं रख सकता। यहाँ रहा तो पागल हो जाऊंगा मैं, या डर के मारे ही दम निकल जायेगा मेरा। मैं.... मैं जा रहा हूँ।”

“कहाँ?”

“पता नहीं, यहाँ से कहीं बहुत दूर निकल जाऊंगा।”

“तब जिसको शक ना भी होना हो उसे भी होकर रहेगा। बल्कि पुलिस को फौरन यकीन आ जायेगा कि हमला तुमने किया था इसीलिए बाद में फरार हो गये।”

“परवाह नहीं, शक ही तो करेंगे, जान तो बच जायेगी।”

“अरे कहा न कुछ नहीं होगा।”

अनंत के चेहरे पर इत्मिनान के भाव नहीं आये। वह बार-बार पहलू बदलता रहा। उसकी हालत देखकर साफ लग रहा था कि वहाँ बैठे रह पाना उसके लिए कितना मुश्किल काम साबित हो रहा था।

कुछ देर तक तीनों खामोशी से काफी पीते रहे, फिर अनंत बोला- “मैं वॉश रूम होकर आता हूँ।”

शीतल ने सहमति में सिर हिला दिया।

उसके पीछे दोनों ने कॉफी खत्म की और उसके लौटने का इंतजार करने लगे।

धीरे-धीरे वक्त गुजरता चला गया।

दस मिनट बीत गये मगर अनंत गोयल नहीं लौटा।

बीस मिनट बाद भी उसकी शक्ल नहीं दिखाई दी।

“साला कमीना, डरपोक कहीं का।” शीतल बोली।

“कौन?”

“अनंत गोयल, भाग गया साला।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“वापिस नहीं लौटा, इसलिए कह रही हूँ।”

“क्या पता आस-पास कहीं चला गया हो, थोड़ी देर में लौट आयेगा। फिर उसकी घबराहट को गलत भी तो नहीं कहा जा सकता न। मेरी खुद की हालत भी कुछ उसी के जैसी हो रही है इस वक्त।”

“देख लेना लौटकर नहीं आयेगा।”

“उससे हमें कोई नुकसान?”

शीतल ने कुछ क्षण उस बात पर गौर किया फिर बोली- “नहीं, उल्टा फायदा

ही होगा। सत्य मरे या बच जाये, दोनों ही हालत में अनंत के फरार हो जाने के कारण पुलिस का ध्यान उसी की तरफ जायेगा। बढ़िया है, हालात वापिस हमारे पक्ष में होते दिखाई दे रहे हैं। अब तो मैं खुद चाहूँगी कि वह कमीना ऐसा गायब हो जाये कि किसी को ढूंढे न मिले।”

“वापिस चलें?”

“हाँ चलो।” कहकर वह उठ खड़ी हुई।

जैसे आकाश उसे सहारा देकर वहाँ तक लाया था वैसे ही वापिस ओटी तक लेकर गया। दोनों वहीं एक बेंच पर बैठकर डॉक्टर की तरफ से कोई खबर मिलने का इंतजार करने लगे, जिसमें पूरे दो घंटे लग गये।

डॉक्टर बाहर निकला।

“आप लोगों ने पुलिस को खबर किया?” उसने शीतल से पूछा।

“अभी नहीं।” वह थोड़ा हड़बड़ा सी गयी, फिर संभलती हुई बोली – “होश ही नहीं है डॉक्टर, फिर पुलिस को कॉल करने का ख्याल कहाँ से आता?”

“इट्स ओके, अब कर दीजिए।”

“आकाश!”

“जी भाभी।”

“100 नंबर पर फोन लगाकर बता दो कि सत्य के साथ क्या हो गया है।”

“जी भाभी।” कहकर उसने मोबाइल पर पुलिस कंट्रोल रूम का नंबर डॉयल किया और टहलता हुआ थोड़ा आगे बढ़ गया।

“अब तबियत कैसी है उनकी डॉक्टर?”

“उम्मीद है हम उन्हें बचा लेने में कामयाब हो जायेंगे।”

“हे भगवान्!” उसके मुँह से खुद ब खुद अफसोस भरी सांस निकल गयी, लेकिन अगले ही पल अपने लहजे पर जबरन काबू पाती हुई बोली – “तेरा लाख लाख शुक्र है, थैंक यू डॉक्टर साहब।”

“वेलकम मैम, अब मुझे इजाजत दीजिए।” कहकर वह फिर से ओटी में घुस गया।

‘साला बहन चो... पता नहीं किस मिट्टी का बना है।’ शीतल बड़बड़ा सी उठी।

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