जगमोहन ने कमरे में प्रवेश किया तो जब्बार को नाश्ता करते पाया ।

“मैंने तो सोचा था कि तुम नींद में होगे ।”

जब्बार ने जगमोहन को देखा । वह नाश्ते में व्यस्त रहा ।

“अब्बा हुजूर का फोन आया अभी ।” जगमोहन ने बैठते हुए कहा, “उन्होंने एक सूचना दी है ।”

“क्या ?” खाते-खाते जब्बार ने जगमोहन को देखा ।

“मोती खान नाम का आदमी... ।”

“मोती खान ?” जब्बार के होंठों से निकला ।

“तुम जानते हो इसे ?”

“हाँ ! ये बड़ा खान के लिए दलाली का काम करता है । इसका भाई गफ्फार भी बड़ा खान के लिए दलाली का काम करता है । कश्मीर में आतंकवादी दल इन दोनों भाइयों के जरिये भी बड़ा खान से काम करवाते हैं ।”

“मैं उसी के बारे में बता रहा हूँ । अब्बा जान ने बताया है कि मोती खान 60 लाख रुपया बारह बजे तक मुबारक गली में पहुँचाने जायेगा । पैसे का काम रशीद और मस्तान सँभालते हैं । वह वहाँ से कभी भी पैसा लेने आ जायेंगे या फिर अपना आदमी भेजकर पैसा कहीं और मँगवायेंगे हमारे पास मौका है रशीद-मस्तान को पा लेने का ।”

“जरूरी तो नहीं ।”

“परन्तु मौका तो है ।”

“मैं क्या करूँ ?”

“तुम मुबारक गली का ठिकाना जानते हो ?”

“हाँ !”

“फिर तो तुम्हें साथ चलना होगा । तुम काले शीशे वाली कार में बैठे रहना और हमें मुबारक गली के ठिकाने के बारे में और वहाँ जाते मोती खान को पहचानकर हमें बताना, क्योंकि हम उसे पहचानते नहीं । समझ रहे हो न मेरी बात ?”

“ठीक है । मैं साथ चलूँगा ।”

“तैयार हो जाओ ।” जगमोहन उठते हुए कह उठा, “मैं भी बाकी तैयारी कर लूँ ।”

☐☐☐

उस समय 11.30 बजे थे जब एक सड़क के किनारे काले शीशे वाली कार में बैठा जब्बार पास बैठे जगमोहन से बोला और हाथ का इशारा सामने की तरफ किया ।

“वह रहा मोती खान ।”

जगमोहन ने उस तरफ देखा । फुटपाथ पर कई लोग आ जा रहे थे ।

“कौन सा ?” जगमोहन की नजर बाहर ही थी ।

“काली जैकिट वाला । जिसने हाथ में बड़ा सा ब्रीफकेस उठा रखा है ।” जब्बार बोला ।

जगमोहन की निगाह काली जैकिट वाले पर जा टिकी जो कि मोती खान ही था, और देखते ही देखते फुटपाथ से लगी सीढ़ियाँ चढ़कर नजरों से ओझल हो गया ।

“उस ब्रीफकेस में 60 लाख रुपया था ।” जगमोहन बोला ।

जब्बार की नजर उन सीढ़ियों की तरफ ही थी ।

“तुम इस ठिकाने पर कभी आये हो ?” जगमोहन ने पूछा ।

“बहुत बार ।”

“कैसा है ये ठिकाना । क्या होता है यहाँ ?”

“ये ठिकाना खबरों का लेन-देन करता है । चार कमरे हैं ऊपर । जहाँ बड़ा खान के कुछ आदमी रहते हैं ।”

“खबरों का लेन-देन कैसे ?”

“किसी आदमी के पास बड़ा खान के काम की खबर है तो वह खबर देकर पैसे ले जाता है और जिसे खबर देनी हो उसे बुलाकर खबर दे दी जाती है । इस जगह को बड़ा खान का पोस्ट ऑफिस कह सकते हो ।”

“रशीद-मस्तान यहाँ आते हैं ?”

“वह हर जगह जाते हैं ।”

तभी जगमोहन का फोन बजने लगा ।

“हैलो !” जगमोहन ने मोबाइल निकालकर बात की ।

“मोती खान को ऊपर जाते देखा ?” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।

“ओह, अब्बा जान ! जब्बार पास में है । उसने मोती खान की पहचान करा दी है ।” जगमोहन बोला ।

“मेरे ख्याल में तुम्हें वहीं रहकर नजर रखनी चाहिए । शायद वे दोनों आयें ।”

“प्रोग्राम तो यही है ।” जगमोहन ने कहा ।

जब्बार की निगाह बाहर थी ।

देवराज चौहान ने फोन बन्द किया उधर से तो जगमोहन ने फोन जेब में रखा ।

“क्या कह रहे थे मियांजी ?”

“मोती खान के बारे में बता रहे थे कि वह अभी ऊपर गया है ।”

“मियांजी भी यहाँ नजर रखवा रहे हैं ?”

“ये उनकी पुरानी आदत है कि वह कभी भी चैन से नहीं बैठते ।”

“मियांजी कश्मीर में हैं या जम्मू में ?”

“उनका कुछ पता नहीं चलता कि वह कब कहाँ पर हों । जब जरूरत पड़ती है मेरे से मिल लेते हैं ।” जगमोहन ने कहा और मोबाइल निकाल कलाम को फोन करके कहा, “तुम सब अपनी जगह पर हो ?”

“जी हाँ !”

“वहीं रहो । हम ठिकाने पर नजर रख रहे हैं, कुछ हुआ तो बताएँगे ।” कहकर जगमोहन ने फोन बन्द किया ।

“मोती खान अब बाहर आ गया । वह खाली हाथ है । ब्रीफकेस भीतर दे आया है ।”

“हम यहीं पर नजर रखेंगे । मोती खान से हमें कुछ भी मतलब नहीं ।”

“तुम्हारे अब्बा को कैसे पता चला कि मोती खान पैसा लेकर इस ठिकाने पर आएगा ?” जब्बार ने पूछा ।

“ऐसी बातें मैं अब्बा जान से नहीं पूछता ।

☐☐☐

डेढ़ बजे एक आदमी उन्हीं सीढ़ियों से उतरकर फुटपाथ पर आया । उसने वह ही ब्रीफकेस थाम रखा था जो कि मोती खान लाया था । उस पर सबसे पहले जगमोहन की नजर पड़ी ।

“उसने वही ब्रीफकेस थाम रखा है जो मोती खान लाया था ।” जगमोहन मोबाइल निकालते कह उठा ।

जब्बार ने उधर देखा और कह उठा-

“हाँ, वही ब्रीफकेस है ! वह रशीद-मस्तान को पैसा पहुँचाने जा रहा है ।”

जगमोहन ने मोबाइल पर कलाम से बात की ।

“तुमने उस आदमी को देखा, जो अभी-अभी सीढ़ियाँ उतरकर फुटपाथ पर पहुँचा है ?”

“हाँ, वह मेरी नजर में है ।”

“उसके पीछे जाना है । ब्रीफकेस में पैसा है । वह रशीद-मस्तान के पास जा रहा है ।”

“ठीक है ! हम उसके पीछे जायेंगे ।”

“हम भी हैं पीछे कलाम । परन्तु वह नजर से खिसकना नहीं चाहिए । मैं रशीद-मस्तान तक पहुँचने का मौका गंवाना नहीं चाहता ।” कहकर जगमोहन ने मोबाइल जेब में रखा और पीछे से बाहर निकलकर ड्राइविंग सीट पर आ बैठा ।

जब्बार पीछे बैठा उस आदमी पर नजर रख रहा था ।

वहाँ पहले से ही खड़ी सफेद मारुति में वह बैठ रहा था । वह अकेला था । ब्रीफकेस उसने बगल की सीट पर रख दिया था ।

जगमोहन ने कार स्टार्ट की । वह सफेद मारुति आगे बढ़ी तो जगमोहन ने भी अपनी कार आगे बढ़ा दी ।

पीछा शुरू हो गया ।

दोनों कारों के बीच दो पहिया वाहन थे । कारों में फासला था ।

“कलाम की गाड़ी देखो, कहाँ पर है ?” जगमोहन बोला ।

जब्बार ने काले शीशों के पार आगे-पीछे नजरें दौड़ाई । फिर कह उठा ।

“हमारे पीछे उसकी वैन है ।”

जगमोहन सावधानी से कार के पीछे लगा रहा । सफेद मारुति कई मोड़ों से मुड़ रही थी ।

“तुम्हारा क्या ख्याल है जब्बार कि ये रशीद-मस्तान के पास ही जा रहा होगा ।” जगमोहन ने पूछा ।

“कह नहीं सकता । परन्तु पैसा तो उन दोनों के पास ही जाना है ।”

“इसका मतलब वह दोनों बड़ा खान का ठिकाना जानते हैं ।”

“कैसे ?”

“अंत में पैसा बड़ा खान तक ही पहुँचाया जाता होगा ।”

“हाँ ! क्या पता बड़ा खान किस तरह इनसे पैसा लेता होगा । अपने आदमी भी भेज सकता है पैसा लेने के लिए । बड़ा खान सतर्क रहने वाला इंसान है और ये दोनों हर वक्त फिल्ड में रहते हैं । ऐसे में जरूरी नहीं कि ये दोनों बड़ा खान का ठिकाना जानते हों ।”

जगमोहन कुछ नहीं बोला ।

“परन्तु ये दोनों बड़ा खान के बारे में काफी जानकारी रखते होंगे ।”

आधे घण्टे तक पीछा जारी रहा । सफेद मारुति वाले को पीछा करने के बारे में पता नहीं चल सका । वह सावधान नहीं था और सोच भी नहीं सकता होगा कि उसका पीछा भी किया जा सकता है ।

सफेद मारुति वाला ऐसे शो रूम पर पहुँचा जहाँ टी०वी०, फ्रिज मिलते थे । उसने बाहर ही गाड़ी रोकी और ब्रीफकेस थामे उतरकर शो रूम में प्रवेश कर गया । जगमोहन ने सफेद मारुति के पीछे ही कार रोकी और इंजन बन्द करके उतरता हुआ बोला ।

“मैं अभी आया ।” इसके साथ ही जगमोहन तेज-तेज कदमों से शो रूम में प्रवेश कर गया ।

जब्बार शो रूम पर नजरें टिकाये कार में ही बैठा रहा ।

जगमोहन ने शो रूम के भीतर प्रवेश किया और ठिठककर हर तरफ नजरें घुमाई ।

काफी बड़े हॉल में वह शो रूम था । कतारों में फ्रिज और टी०वी० रखे हुए थे । दस-पंद्रह ग्राहकों की भीड़ भी थी वहाँ । जगमोहन हौले-हौले आगे बढ़ने लगा । उसकी निगाह सफेद मारुति वाले को ढूंढ रही थी ।

जल्दी ही वह नजर आ गया, जो कि हॉल के कोने में बने एक केबिन से बाहर निकला था । अब वह खाली हाथ था । यानी कि ब्रीफकेस केबिन के भीतर किसी को दे आया था ।

अब वह बाहर की तरफ बढ़ रहा था ।

जगमोहन ने फोन निकालकर कलाम से बात की ।

“वह बाहर आ रहा है, उसे जाने दो । अब उसका पीछा करने की जरूरत नहीं ।”

तभी शो रूम का सेल्समैन उसके पास पहुँचा ।

“कहिये जनाब, क्या दिखाऊँ ?”

“दो बड़े फ्रिज लेने हैं, परन्तु मेरी बीवी अभी तक नहीं आई । उसने यहीं मिलना था ।”

“तब तक मैं आपको फ्रिज दिखा देता हूँ ।”

“कोई फायदा नहीं । मेरी पसन्द की चीज मेरी बीवी को पसन्द नहीं आती । वह ही आकर पसन्द करे तो बेहतर होगा ।” जगमोहन मुस्कुराया ।

सेल्समैन उसके पास से हट गया ।

जगमोहन बाहर पहुँचा । सफेद मारुति वहाँ नहीं थी । जगमोहन कार को स्टेयरिंग सीट पर आ बैठा और पीछे बैठे जब्बार से कहा ।

“ये जगह क्या है ?”

“मैं नहीं जानता । मैंने पहली बार जाना है कि ये ठिकाना भी है बड़ा खान का ।” जब्बार बोला ।

“इसका मतलब तुम बड़ा खान के सब ठिकाने नहीं जानते ।”

“मैं बड़ा खान का आदमी नहीं हूँ । उसके काम अवश्य करता था । ऐसे में मुझे जितनी जानकारी होनी चाहिए, उतनी ही है । तो वह आदमी ब्रीफकेस शो रूम के भीतर किसे दे गया है ?” जब्बार ने पूछा ।

“भीतर बने केबिन से मैंने उसे निकलते देखा । तब वह खाली हाथ था ।” जगमोहन ने कहा ।

“अब हम किस पर नजर रखेंगे ?”

“ब्रीफकेस पर ।” जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा, “वह बड़ा ब्रीफकेस है । छिपाकर नहीं ले जाया जा सकता । मुझे पूरा यकीन है कि जल्दी ही कोई आदमी वह ब्रीफकेस लेकर यहाँ से निकलेगा । हमें उसके पीछे जाना होगा । परन्तु एक बात समझ नहीं आई ।”

“क्या ?”

“साठ लाख जैसी मामूली रकम को इतने रहस्य-भरे ढंग से क्या इधर-उधर किया जा सकता है ?”

“क्योंकि ये पैसा रशीद-मस्तान के हवाले करना है । मोती खान ने दिया है । इतनी सावधानी तो जरूरी है ।

तभी उसकी कार के पीछे एक कार आ रुकी । जगमोहन ने पीछे देखने वाले शीशे पर नजर मारी । पीछे वाली कार में उसे ड्राइवर के अलावा पीछे सीट पर दो आदमी बैठे दिखे । जगमोहन ने वहाँ से नजर हटाकर शो रूम पर नजर मारी फिर कह उठा-

“यहाँ हमें लंबा इंतजार करना पड़ सकता है ।”

पीछे रुकी कार का ड्राइवर बाहर निकला और शो रूम की तरफ बढ़ गया । दो मिनट बाद जब वह वापस शो रूम से बाहर निकला तो उसके हाथों में वही ब्रीफकेस दबा था । जब्बार उसका चेहरा देखते ही चिहुँक पड़ा । आँखों में खतरनाक चमक नाची । उसके होंठ से निकला-

“ये तो रशीद-मस्तान का ड्राइवर है ।”

“ब्रीफकेस इसके पास है, ओह ! ये तो पीछे रुकी कार का ड्राइवर है । उस कार में पीछे दो आदमी बैठे हैं ।” जगमोहन के होंठों से निकला ।

जब्बार ने फौरन गर्दन घुमाकर पीछे के काले शीशे के पार, पीछे खड़ी कार में देखा । अगले ही पल उसके बदन में चीटियाँ रेंगती चली गई । रशीद और मस्तान पीछे की कार में, पीछे की सीट पर बैठे दिख गए थे ।”

“वह... वह पीछे बैठे हैं ।” जब्बार के होंठों से निकला ।

“कौन ?”

“रशीद-मस्तान ।” जब्बार ने वापस गर्दन घुमा ली । चेहरे पर कठोरता आ गई थी ।

जबकि जगमोहन की आँखों में खतरनाक चमक लहरा रही थी ।

“हमने बहुत जल्दी उन्हें ढूंढ निकाला ।” जगमोहन ने तुरन्त मोबाइल निकाला और कलाम का नम्बर मिलाया ।

कार के काले शीशे होने की वजह से बाहरी लोग, भीतर ठीक से नहीं देख पा रहे थे ।

“कहो ।” कलाम के कानों में आवाज पड़ी ।

“मेरी कार के पीछे एक कार खड़ी है ।”

“हाँ । देखा है उसे ।”

“रशीद और मस्तान उसमें हैं । उसका ड्राइवर भीतर से वही ब्रीफकेस लाया है ।”

“समझ गया । हाँ, मैंने उस आदमी को देख लिया जो ब्रीफकेस कार के खुले शीशे में से भीतर रख रहा है ।”

“इस वक्त वह लापरवाह है ।” जगमोहन सख्त स्वर में बोला, “यहीं पकड़ लो उन्हें । ले चलो वैन में बिठाकर ।”

“ठीक है !”

जगमोहन ने फोन जेब में रखा ।

“वे दोनों खतरनाक हैं ।” जब्बार बोला, “परन्तु इस वक्त उन पर काबू पाया जा सकता है ।”

“मेरे आदमी सब काम ठीक से करना जानते हैं ।”

☐☐☐

ड्राइवर को आते पाकर मस्तान ने पीछे का शीशा नीचे कर लिया था । पास आकर ड्राइवर ने ब्रीफकेस खिड़की से भीतर सरकाया तो मस्तान ने ब्रीफकेस थामकर रशीद की तरफ सरका दिया और खुद शीशा ऊपर करने लगा । रशीद ने ब्रीफकेस खोला तो उसे नोटों की गड्डियों से भरा पाया । बन्द करके उसने ब्रीफकेस पाँव के पास ही रख लिया । तब तक ड्राइवर अपनी सीट पर आ बैठा था । परन्तु कार स्टार्ट नहीं कर सका । उसके सीने पर खुली खिड़की से गन की नाल आ लगी थी । वह वैसे का वैसा ही थमकर रह गया । ये देखकर रशीद और मस्तान चौंके । रशीद ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाली कि तभी कारों के दोनों तरफ के दरवाजे बाहर से खोल लिये गए । गनें उन पर तन गईं । रशीद और मस्तान के चेहरों पर खतरनाक भाव दिखने लगे ।

“चलो उतरो ।” एक गन वाले ने दाँत भींचकर कहा ।

“जानते हो तुम किससे उलझ रहे हो ?” मस्तान गुर्रा उठा ।

“रशीद और मस्तान से । रिवॉल्वर रख दो और बाहर आ जाओ ।” वह पुनः गुर्रा उठा ।

“कौन हो तुम लोग ?”

“आजादी-ए-कश्मीर संगठन है हमारा ।”

“तुम ?” रशीद चौंका, “तुम लोगों ने ही जब्बार को हमारे हाथों से छीना था ।”

“बाहर आओ ।” उसने खतरनाक स्वर में कहा ।

परन्तु रशीद ने हाथ में दबी रिवॉल्वर से गोली चला दी ।

तेज धमाके के साथ गोली गनमैन की छाती में जा लगी ।

वह चीखते हुए पलटकर जमीन पर जा गिरा ।

रशीद ने दूसरी तरफ खड़े गनमैन पर गोली चलानी चाही । वह गनमैन कलाम था । मस्तान ठगा सा बैठा था । अपने आदमी को गोली लगते देखकर कलाम ने उसी पल गन वाला हाथ आगे किया । रशीद की छाती पर गन रखी और घोड़ा दबा दिया । तड़-तड़ गोलियाँ निकलीं और रशीद की छाती को उधेड़ गईं । दो पलों में ही रशीद शांत पड़ गया । मस्तान जैसे पागल सा हुआ बैठा था । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था । पागल हुए कलाम ने मस्तान के सिर के बाल मुट्ठी में जकड़े और बाहर खिंच लिया । बाहर खड़े आदमियों ने मस्तान को थाम लिया । मस्तान की तलाशी ली गई । दो रिवॉल्वर और एक चाकू मिला । उसके बाद वह मस्तान को घेरे चंद कदमों पर खड़ी वैन की तरफ बढ़ गए । कलाम दूसरी तरफ गिरे पड़े अपने आदमी के पास पहुँचा । गोली उसकी छाती पर लगी थी । वह कराह रहा था । दो आदमी पास आये तो उन्हें कहा, “इसे उठाकर वैन में डालो ।”

घायल को फौरन उठाकर वैन में ले जाया गया ।

उसने ड्राइवर की छाती से गन हटा ली और सब वैन में जा बैठे ।

वैन सड़क पर पहुँचते ही तेजी से दौड़ पड़ी । सहमे से खड़े लोग ये सब देख रहे थे । चंद पलों में ही सब कुछ हो गया था । ऐसा खून-खराबा कश्मीर की सड़कों पर हो जाना बड़ी बात नहीं थी । लोग जानते थे कि यहाँ के संगठन आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं । तभी जगमोहन बाहर निकला । पीछे वाली कार तक पहुँचा । रशीद मरा हुआ पसरा पड़ा था । खून सीट पर इकट्ठा हो रहा था । जगमोहन ने भीतर पड़ा ब्रीफकेस उठाया जो कि काफी हद तक रशीद के खून से रंग गया था । वापस अपनी कार में पहुँचा । बगल वाली सीट के पास पायदान पर रखा ब्रीफकेस और कार स्टार्ट करके सड़क पर दौड़ा दी ।

पीछे वाले सीट पर बैठे जब्बार के चेहरे पर मुस्कान फैल गई ।

“तुम्हारे आदमियों ने अच्छी तरह काम किया है ।” जब्बार बोला ।

“वह अच्छी तरह ही काम करते हैं ।”

“रशीद मर गया । उसने तुम्हारे साथी पर गोली चला दी थी ।”

“मेरे आदमी रहम करना नहीं चाहते ।”

“तुमने भी मौका नहीं गंवाया और नोटों वाला ब्रीफकेस उठा लाये ।”

“पैसे को छोड़ता नहीं हूँ । पैसा हमारी जरूरत है । हमारे संगठन के काम आता है ।”

“मुझे ये बात भी अच्छी लगी कि तुम लोग अपने घायल साथी को, वहाँ छोड़कर भागे नहीं ।”

“हम अपने साथियों की पूरी कद्र करते हैं । परन्तु ये बताओ कि हम जो जानकारी चाहते हैं, उस जानकारी को पाने के लिए रशीद की मौत के साथ हमें क्या फर्क पड़ेगा ?” जगमोहन ने पूछा ।

“कोई फर्क नहीं पड़ेगा । जो रशीद जानता था, वह मस्तान जानता है ।”

☐☐☐

सब ठिकाने पर पहुँचे ।

सबसे पहले घायल के लिए डॉक्टर बुलाया गया । तीन गनमैन मस्तान को लेकर एक कमरे में चले गए । जगमोहन और जब्बार ने घायल को देखा । गोली दायीं तरफ छाती की हड्डियों में फंसी हुई थी । डॉक्टर फौरन उसका ऑपरेशन करने में लग गया था । कलाम को अपने घायल साथी की बहुत चिंता थी । वह गुस्से में था ।

जब्बार ने जगमोहन से कहा-

“मस्तान से मैं पूछताछ करूँगा ।”

“तुम ?”

“हाँ !” जब्बार के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी, “मुझे बड़ा खान से अपना बदला भी लेना है । उसने सूरजभान की बातों में आकर मुझे गद्दार समझा । मुझे शहीद बनाने जा रहा था वह ।”

“तुम गुस्से में उसे मार भी सकते हो और हम जानकारी से मरहूम रह जायेंगे ।”

“ऐसा नहीं होगा । मैं जानता हूँ कि हम उसे क्यों लाये हैं ।” जब्बार गुर्रा उठा ।

“ठीक है चलो । मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगा । तुम ज्यादा आगे बढ़े तो तुम्हें रोक दूँगा ।”

तभी जगमोहन का मोबाइल बजा ।

“तुम क्या समझते हो कि मस्तान आसानी से मुँह खोल देगा ।” जब्बार ने दाँत भींचकर कहा ।

“उसके सामने रशीद को जिस तरह मारा गया, उससे वह जरूर डर गया होगा ।” कहते हुए जगमोहन ने फोन निकाला, “हैलो !”

“मस्तान तुम्हारे हाथ लग गया ?” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।

“हाँ अब्बाजान ! मस्तान हमारे पास है ।”

“उसका मुँह खुलवाओ और बड़ा खान के बारे में सारी जानकारी निकलवाओ ।”

“यही करने जा रहे हैं अब्बाजान ! परन्तु जब्बार कहता है कि मस्तान का मुँह वह खुलवायेगा । जब्बार गुस्से में है ।”

दो क्षणों की खामोशी के बाद देवराज चौहान की आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

“हो सकता है जब्बार तुमसे कोई खेल खेल रहा हो । वह अभी भी बड़ा खान का वफादार हो और मुँह खोलने से पहले ही मस्तान को मार देना चाहता हो । जब्बार पर यकीन मत करना और मस्तान के पास उसे अकेला मत छोड़ना ।”

“ठीक है अब्बाजान !”

“जो भी जानकारी मिले मस्तान से वह मुझे बताना ।” इधर से देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।

जगमोहन फोन को जेब में रखता जब्बार से बोला-

“अब्बाजान को जाने इतना भरोसा क्यों है तुम पर ।”

“क्या कहा मियांजी ने ?”

“वह कहते हैं जब्बार जो करेगा ठीक करेगा । ठीक है, चलो मस्तान के पास ।”

दोनों उस कमरे से बाहर निकलकर आगे बढ़े कि सामने से कलाम आ गया ।

“तुम्हारे साथी की हालत कैसी है ?” जगमोहन ने पूछा ।

“अभी कुछ पता नहीं । डॉक्टर ऑपरेशन करके गोली निकाल रहा है ।” कलाम ने कहा ।

“तुम उसका ध्यान रखो । हम मस्तान से बात करने जा रहे हैं ।”

“मैंने रशीद को मारकर गलती तो नहीं की । उस वक्त मुझे गुस्सा आ गया था अपने साथी को गोली लगते देखकर ।”

“रशीद की मौत से हमें नुकसान नहीं पहुँचा । अगर तुम मस्तान को भी मार देते तो तब नुकसान ही नुकसान था ।”

जगमोहन और जब्बार उस कमरे में जा पहुँचे जहाँ मस्तान को रखा था । तीन आदमी गनें थामे उसके सिर पर सवार थे ।

मस्तान गुस्से में दिख रहा था । परन्तु बेबस भी लग रहा था ।

जब्बार पर निगाह पड़ते ही मस्तान चिहुँक उठा ।

“तुम ?” मस्तान के होंठों से निकला, “गद्दार ।”

जब्बार के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी ।

“ये संगठन आजादी-ए-कश्मीर का है मस्तान ।” जब्बार खतरनाक लहजे में कह उठा, “इस संगठन ने मुझे सहारा दिया । वरना बड़ा खान ने तो मेरे लिए सारे दरवाजे बन्द करवा दिए थे ।”

मस्तान के होंठों से गुर्राहट निकली ।

“बड़ा खान ने तो मुझे शहीद बनाने की तैयारी कर ली थी । जबकि मैं गद्दार नहीं हूँ । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के साथ मेरी कोई गोटी फिट नहीं थी । उसने मुझे मुफ्त में ही जेल से फरार करवा दिया था और बड़ा खान सोचता रहा कि जरूर बीच में कोई बात है । लेकिन ऐसा कुछ नहीं था । मैं बड़ा खान का वफादार था ।”

“और अब ?”

“अब हालात बदल गए हैं । ये बात तुम भी अच्छी तरह समझते हो कि... ।”

“तो तुम आजादी-ए-कश्मीर का सहारा लेकर बड़ा खान के खिलाफ काम कर रहे हो ।”

“मैं इस संगठन का सदस्य बन चुका हूँ । मेरी वफादारी की इन्हें जरूरत थी और मुझे भी साबित करना था कि मैं इनका वफादार हूँ । इस संगठन की चाहत है कि हर उस संगठन को खत्म कर दें जो कश्मीर का माहौल खराब कर रहा है और इसके लिए सबसे पहले बड़ा खान के ही संगठन को चुना गया । अब देख ही रहे हो कि क्या हो रहा... ।”

“गद्दार हो तुम ।”

“ये बात तब मेरे पे जमती जब मैं बड़ा खान के लिए काम करता । बड़ा खान ने तो मेरे को दूध में से मक्खी की तरह निकालकर मुझे मारने की कोशिश की । वह मेरे को खत्म कर देना... ।”

“तुम पुलिस के साथ मिल गए थे । तुम... ।”

“छोड़ो । इन बातों का कोई अंत नहीं । इससे मिलो । ये अब्दुल्ला हैं । मियांजी का बेटा ।” उसने जगमोहन की तरफ इशारा किया ।

“मियांजी कौन ?” मस्तान के दाँत भिंच गए ।

“आजादी-ए-कश्मीर के मालिक ।”

“मैंने ये नाम कभी नहीं सुने ।”

“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । रशीद को शानदार मौत मिली ।” जब्बार कड़वी हँसी हँसा ।

मस्तान के चेहरे पर दर्द और गुस्सा आ ठहरा ।

“तुम बचोगे नहीं जब्बार । बड़ा खान की ताकत जानते हुए भी तुमने उससे पंगा लिया ।”

“मुझे आजादी-ए-कश्मीर की बात बहुत अच्छी लगी कि जो संगठन कश्मीर में दहशत फैला रहे हैं पहले उन्हें खत्म करो । कश्मीर से गोला-बारूद की आवाज आनी बन्द होगी तो दिल्ली तक हमारी आवाज पहुँचेगी । वरना गोला-बारूद में ही आवाज दबकर रह जायेगी ।”

“तुम कुत्ते हो जब्बार । तुम तो... ।”

तभी जब्बार ने चीते की तरह झपट्टा मारा और मस्तान के सिर के बाल मुट्ठी में जकड़ लिए ।

मस्तान तड़प उठा ।

जब्बार दरिंदा लग रहा था । जगमोहन होंठ भींचे सतर्क सा पास ही खड़ा था ।

“तूने ठीक कहा कि मैं कुत्ता ही हूँ ।” जब्बार गुर्राया, “जब्बार के खौफ को भूल गया तू, जो मुझे गालियाँ दे रहा है । मैं वही जब्बार हूँ जिसके सामने तुम और रशीद आते थे तो संभल जाते थे । वही जब्बार हूँ मैं ।”

सिर के बालों के खिंचाव के कारण, पीड़ा की वजह से मस्तान का चेहरा लाल सुर्ख हो उठा था । आँखों में भी लाली भर आई थी । पानी चमक उठा । परन्तु उसके दाँत भिंचे हुए थे ।

“इस बात को मत भूलना कि अब तू जब्बार के सामने है ।” जब्बार दाँत किटकिटा उठा, “बता बड़ा खान कौन है और उसका ठिकाना कहाँ है । वह कहाँ मिलता है । वह... ।”

“तू मेरे से कुछ भी नहीं जान सकता ।” मस्तान चीखा ।

जब्बार का घूँसा उसके चेहरे पर पड़ा । वह कुर्सी सहित नीचे जा गिरा । मस्तान संभलकर उठा और खतरनाक ढंग से जब्बार पर छलांग लगा दी । जब्बार ने उसे दोनों हाथों से रोका और घुटना उसकी टांगो के बीच दे मारा । मस्तान के होंठों से बुरी चीख निकली और फर्श पर जा गिरा । गहरी-गहरी साँसे लेने लगा ।

“कोई गोली नहीं चलाएगा ।” जब्बार गनमैनों से बोला, “ये मेरे लिए मामूली चीज है ।”

मस्तान ने करवट ली और सीधा हो बैठा । तभी जब्बार ने जूते की ठोकर उसकी छाती पर मारी । मस्तान चीख कर फर्श पर जा लुढ़का ।

“बड़ा खान को याद कर । बुला उसे । मैं भी देखता हूँ कि जब्बार के हाथों से वह तुझे कैसे बचाता है ।”

मस्तान फिर उठा और जब्बार ने उसे मौका दिया खड़ा हो जाने का ।

“बोल ! बड़ा खान के बारे में बोल ।” जब्बार दाँत पीस उठा ।

“तू कुत्ता है ।” मस्तान ने खतरनाक स्वर में कहा ।

जब्बार की टांग घूमी । परन्तु इस बार मस्तान सतर्क था । मस्तान ने फुर्ती से जब्बार की टाँग पकड़ ली ।

जब्बार जोरों से लड़खड़ाया और नीचे जा गिरा । टाँग छोड़कर मस्तान उस पर झपट पड़ा । परन्तु जब्बार तेजी से करवट लेता चला गया और मस्तान फर्श से जा टकराया । अगले ही पल जब्बार उछलकर खड़ा हुआ और नीचे पड़े मस्तान की गर्दन पर जूता रखकर दबाव बढ़ा दिया । मस्तान तड़पा ।

“बड़ा खान यूँ ही जब्बार का दीवाना नहीं था मस्तान ।” जब्बार कह उठा, “कुछ तो बात होगी जब्बार में । तेरे जैसे तीन को एक साथ मसल दूँ । बता, बड़ा खान के बारे में बता कि वह कहाँ मिलेगा ?”

गले पर जूते का दबाव बढ़ने से, साँस रुकने से मस्तान का चेहरा लाल हो उठा था । जब्बार ने उसकी गर्दन से जूता हटा लिया । मस्तान मुँह खोले गहरी-गहरी साँसे लेने लगा । उसकी हालत बुरी हो रही थी ।

“बता बड़ा खान कहाँ मिलता है ?” कहने के साथ ही जब्बार ने उसकी कमर में ठोकर मारी ।

मस्तान चीख उठा । तड़प उठा । फिर मस्तान हिम्मत करके उठने लगा । जब्बार खूनी नजरों से उसे देखे जा रहा था । मस्तान उठ खड़ा हुआ । गहरी-गहरी साँसे ले रहा था ।

उसी पल जब्बार की टाँग घूमी और तेज वेग के साथ उसके पेट में जा पड़ी । मस्तान गला फाड़कर चीखा और उछलकर पीठ के बल जा गिरा ।

जब्बार उसके सिर पर जा पहुँचा और गुर्राया ।

“रशीद आसान मौत मर गया । पर तेरी मौत उतनी ही बुरी होगी ।

“मैं पूछता रहूँगा, तुझे मारता रहूँगा । इसी तरह तड़प-तड़प कर तू मर... ।”

“मैं नहीं जानता बड़ा खान कहाँ रहता है ।”

“तेरा क्या ख्याल है कि तेरा झूठ सुनकर मैं शांत हो जाऊँगा । खुश हो जाऊँगा ।” जब्बार ने मौत भरे स्वर में कहा फिर पलटकर वहाँ खड़े गनमैनों से कह उठा, “चाकू और नमक मिर्च ले आओ । मैं इस हरामजादे को मरने नहीं दूँगा । तड़पाता रहूँगा ।”

गनमैन ने जगमोहन को देखा । जगमोहन के सिर हिलाने पर गनमैन बाहर निकल गया ।

“मैं सच में नहीं जानता कि बड़ा खान कहाँ रहता है । उसका ठिकाना नहीं जानता ।” मस्तान हांफता हुआ कह उठा, “जब भी वह मिलता है किसी ठिकाने पर आ जाता है या मुझे और रशीद को किसी ठिकाने पर बुला लेता था ।”

“अब तुम कहोगे कि मैं तुम्हारा भरोसा करूँ ?”

“हाँ ! मैं सच कह रहा... ।”

तभी जगमोहन कह उठा-

“हम बड़ा खान तक पहुँचना चाहते हैं । तुम हमें बताओ कि कैसे हम उस तक पहुँच सकते हैं ?”

“मैं नहीं जानता ।”

“वह कहाँ आता-जाता है ?”

“वह कभी भी, कहीं भी पहुँच जाता है । चूँकि उसे कोई पहचानता नहीं, इसलिए वह बेखौफ़ होकर घूमता है ।”

“उससे कौन-कौन लोग मिलते हैं ?”

“नहीं पता ।”

“ये हरामजादा आसानी से मानने वाला नहीं ।” जब्बार गुर्राया, “नमक-मिर्च और चाकू ले आने दो । तब मैं इसके जिस्म पर चीरा लगाऊँगा और उसमें नमक-मिर्च भरूँगा । तब देखना कैसे तड़पता है ये ।”

“मेरा विश्वास करो जब्बार, मैं सच... ।”

“चुप साले कुत्ते ।” जब्बार दाँत किटकिटा उठा ।

“ये तो हो ही नहीं सकता कि तुम बड़ा खान से मिलने वालों में से किसी को भी न जानते होगे ।”

“रोशनआरा जहाँ ?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े, “ये कौन सी जगह है ?”

“जगह नहीं, ये औरत का नाम है । रोशनआरा श्रीनगर में लड़कियों से धंधा कराती है । बड़ा खान इससे लड़कियाँ मँगवाता रहता है रात भर के लिए । रोशनआरा बड़ा खान को मुस्तफा के नाम से जानती है । बड़ा खान लड़की मँगवाने के लिये खुद को मुस्तफा कहता है ।”

“लड़कियाँ कहाँ मँगवाता है बड़ा खान ?”

“ये मैं नहीं जानता ।”

“तो तुम कैसे जानते हो कि बड़ा खान वहाँ से लड़कियाँ मँगवाता है ?”

“मेरे और रशीद के सामने उसने कई बार रोशनआरा से बात की । इसलिए ये हमें पता है ।”

“जब्बार, इसके जख्मों पर नमक-मिर्च लगाओ और इसके मुँह से सारी बातें निकलवाओ ।”

“जो भूल गया है । वह भी बताएगा ।” जब्बार खतरनाक स्वर में कह उठा ।

तभी दरवाजा खुला और गनमैन ने भीतर प्रवेश किया । वह चाकू, नमक-मिर्च ले आया था । जगमोहन कमरे से बाहर निकला और मोबाइल निकालकर देवराज चौहान का नम्बर मिलाने लगा । वह देवराज चौहान को जहाँ आरा के बारे में बता देना चाहता था ।

☐☐☐

जगमोहन से बात करने के बाद देवराज चौहान होटल के कमरे से निकला और पैदल ही आगे बढ़ गया । अब उसे तलाश थी एक एडवरटाइजिंग एजेंसी की, जो कि अखबारों में इश्तिहार देती हो । शाम के साढ़े चार बज रहे थे । आधे घण्टे बाद ही वह एक दुकान में मौजूद था । जहाँ फोटो स्टेट और टाइपिंग का भी काम होता था और अखबारों में इश्तिहार भी दिए जाते थे । देवराज चौहान ने वहीं से कागज-पेंसिल लेकर अखबार में इश्तिहार देने का मैटर लिख दिया । जो कि इस प्रकार था –

हकीम मुल्ख राज पंजाबी । खानदानी हकीम । अब श्रीनगर में, रॉयल होटल के कमरा नम्बर 304 में । विशेषज्ञ एच०आई०वी० और एड्स में । हकीम साहब ने निजी तौर पर एड्स और एच०आई०वी० की दवा ईजाद कर रखी है जो कि महज सात दिनों में एच०आई०वी० और एड्स के असर को खत्म कर देती है । एक सप्ताह तक हकीम जी रॉयल होटल के कमरा नम्बर 304 में सुबह से शाम तक मिलेंगे । शर्तिया इलाज । अपनी बीमारी दूर करें ।

दुकान वाले ने मैटर पढ़ा तो कह उठा-

“एड्स और एच०आई०वी० की दवा सच में खोज ली है हकीम साहब ने ।” उसके चेहरे पर अविश्वास था ।

“हाँ ! एक बार आजमाकर देखो ।”

“लेकिन मुझे तो ये बीमारी है ही नहीं ।”

“तो इश्तिहार बुक करो । यहाँ के स्थानीय अखबारों में पाँच दिन तक ये इश्तिहार आना चाहिए ।”

उसने हिसाब लगाकर पैसे लिये और कहा कि कल के अखबारों में इश्तिहार छप जायेगा । देवराज चौहान वहाँ से बाहर आ गया ।

उसके बाद देवराज चौहान रोशनआरा जहाँ का पता लगाने लगा जो लड़कियों से जिस्मानी व्यापार कराती थी । दो घण्टे बाद एक टैक्सी ड्राइवर मिला । उसने कहा कि वह उसे रोशनआरा जहाँ तक पहुँचा देगा । बदले में पाँच सौ लेगा ।

देवराज चौहान उसकी टैक्सी में बैठ गया ।

आधे घण्टे बाद टैक्सी वाले ने टैक्सी रोकी और उसे बताया कि सामने वाली बिल्डिंग रोशनआरा जहाँ की है और यहीं से वह अपना धंधा चलाती है । पुलिस सब जानती है, परन्तु रोशनआरा जहाँ नोटों से उसका मुँह बन्द रखती है ।

देवराज चौहान ने उसे पाँच सौ का नोट दिया और उस बिल्डिंग की तरफ बढ़ गया ।

शाम के साढ़े छः बज रहे थे । अँधेरा घिर चुका था । सर्दी बढ़ रही थी । इस इलाके में ज्यादा भीड़-भाड़ नहीं थी । वह तीन मंजिला फैली हुई इमारत थी । इमारत की तीसरी मंजिल लकड़ी की बनी दिख रही थी । देवराज चौहान दरवाजे पर पहुँचा । बाहर एक बल्ब जल रहा था । दरवाजा बन्द था । देवराज चौहान ने दरवाजे के पास ही लगा कॉलबेल का स्विच दबा दिया । भीतर कहीं बेल बजने की मध्यम सी आवाज आई ।

कुछ पल बीते की दरवाजा खुला । दरवाजा खोलने वाली पच्चीस बरस की खूबसूरत औरत थी । वह मुस्कुराई ।

“रोशनआरा जहाँ से मिलना है ।” देवराज चौहान ने कहा ।

“आप बिल्कुल ठीक जगह आये हैं ।” वह पीछे हटती हुई बोली, “भीतर आइये । बाहर सर्दी बहुत है ।”

देवराज चौहान भीतर आया तो वह दरवाजा बन्द करके बोली-

“जनाब पहली बार यहाँ आये हैं ?”

“हाँ !”

“कश्मीर के तो नहीं लगते । बाहर से आये हैं कश्मीर में ।” उसके चेहरे पर अदा से भरी मुस्कान थी ।

“ठीक समझीं आप । रोशनआरा जहाँ से मेरी बात करवा दीजिये ।”

“उनकी क्या जरूरत है, आपकी समस्या का मैं ही हल करा दूँगी । हमारे यहाँ हर तरह की लड़कियाँ आपको मिलेंगी । आठ-दस तो अभी यहीं पर मौजूद हैं । पन्द्रह साल से लेकर पच्चीस तक । सब खूबसूरत हैं और कश्मीरी हैं । दरअसल बाहर से आने वाले ग्राहकों की चाहत कश्मीरी लड़कियाँ ही होती हैं । चलिए मैं आपको लड़कियाँ दिखा दूँ ।”

“मैं रोशनआरा जहाँ से बात करना चाहता हूँ ।” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान थी ।

“उनसे काम है ?” वह कुछ सम्भली ।

“हाँ !”

“मैडम को आप पहले से जानते हैं ?”

“नहीं !”

“पुलिस के अफसर हैं ?”

“नहीं !”

“आइये !” कहकर वह पलटी ।

देवराज चौहान उसके पीछे चल पड़ा ।

वह देवराज चौहान को लेकर इमारत की पहली मंजिल पर एक कमरे में जा पहुँची । वहाँ सत्तर बरस की औरत बेड पर टेक लगाये बैठी थी । उसने कमर तक कम्बल ले रखा था । एक नजर में देखने पर इस बात का एहसास हो जाता था कि उसकी टाँगे नहीं हैं घुटनों तक । यूँ वह सेहतमंद और चाक-चौबंद लग रही थी । उसने देवराज चौहान को देखा फिर युवती को ।

“मैडम ! ये आपसे बात करना चाहते हैं ।” वह बोली ।

“पुलिस वाले हो ?” मैडम ने पूछा ।

“नहीं ! कुछ व्यक्तिगत बात करनी थी अकेले में ।”

“बैठो !” उसने बेड के पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा किया, “चाय-कॉफी-कहवा कुछ लोगे ?”

“हाँ ! कुछ भी मँगवा लीजिये ।”

“कहवा ले आ बन्नो !”

बन्नो चली गई । रोशनआरा देवराज चौहान को देखकर आँख का इशारा करके बोली-

“कहिये, क्या बात है ? मैंने आपको पहले कभी नहीं देखा ।”

देवराज चौहान उठा और कमीज के भीतर फँसा रखी पाँच-पाँच सौ की गड्डियाँ निकालकर बेड पर रखने लगा । पूरी दस गड्डियाँ निकालकर बेड पर रख दीं ।

रोशनआरा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे । होंठ गोल हो गए । वह बोली-

“ये पाँच लाख रुपया है ।”

“हाँ !”

“इतने पैसे में तो मैं तुम्हें दो साल तक अपना दामाद बनाकर रख सकती हूँ ।”

“मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है ।”

“हूँ !” उसकी निगाह अभी भी नोटों की गड्डियों पर थी, “क्या चाहते हो तुम ?”

“आपकी टाँगे नहीं हैं ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“पचास साल पहले मेरे शौहर ने काट दी थीं । क्योंकि मैं उसे छोड़कर किसी और से प्यार करने लगी थी ।” रोशनआरा जहाँ शांत स्वर में बोली, “मैं टाँगों के बिना भी खुश हूँ और अच्छा जीवन बिता रही हूँ । तुम अपनी बात कहो कि ये पाँच लाख मेरे सामने क्यों रख दिए । चाहते क्या हो ?”

“मेरा एक काम आपके द्वारा पूरा हो सकता है । वह करके आप पाँच लाख ले सकती हैं ।”

“अच्छा । बोलो क्या काम है ?” वह दिलचस्पी से बोली ।

“आपके पास ऐसी कोई लड़की होगी जो एच०आई०वी० या एड्स से पीड़ित हो ।”

रोशनआरा की आँखें सिकुड़ी । वह देवराज चौहान को देखने लगी ।

“है कि नहीं ?”

“है । दो हैं । परन्तु बीमारी की वजह से मैं उनसे धंधा नहीं कराती । वह यहीं रहती हैं । उनका खर्चा मैं ही उठाती हूँ ।”

“आपका एक कस्टमर है मुस्तफा ।”

“हाँ, है ।” रोशनआरा की आँखें सिकुड़ी ।

“उसे देखा है आपने ?”

“नहीं ! वह फोन करके ही लड़की मँगवाता है ।”

“महीने में कितनी बार ?”

“दस-बारह बार ।”

“पिछली बार कब उसने लड़की मंगवाई थी ?”

“तीन-चार दिन हो गए । आखिर तुम चाहते क्या हो ?”

“जो लड़कियाँ उसके पास जाती हैं, वह मुस्तफा को पहचानती हैं ?”

रोशनआरा कुछ पल खामोश रहकर कह उठी ।

“किसी ने भी उसका चेहरा नहीं देखा आज तक । वह किसी न किसी होटल के कमरे में लड़की को भेज देने को कहता है । उस कमरे में उसने अँधेरा कर रखा होता है । लड़की उसका चेहरा नहीं देख पाती । शुरू-शुरू में तो हमें अजीब बात लगी थी, परन्तु बाद में लड़कियों ने उसके चेहरे की परवाह करनी छोड़ दी थी । क्योंकि वह लड़कियों को हर बार काफी ज्यादा पैसा देता है ।”

“आप ये पाँच लाख रुपया कमाना चाहती हैं ?” देवराज चौहान बोला ।

“तुमने अभी तक नहीं बताया कि तुम चाहते क्या हो ?”

“मैं चाहता हूँ कि तुम एच०आई०वी० या एड्स पीड़ित लड़की को उसके पास भेजो ।”

“क्या ?” वह हैरान हुई ।

“ऐसा करोगी तो ये पाँच लाख तुम्हारा ।”

“ये... ये तो गलत बात होगी ।”

“सही-गलत छोड़कर पाँच लाख के बारे में सोचो । तुमने कहा कि पाँच लाख के बदले तुम दो साल तक मुझे दामाद बनाकर रख सकती हो । जब कि मैं तो तुम्हें बहुत ही मामूली काम करने को कह रहा हूँ ।”

रोशनआरा के चेहरे पर सोच के भाव नजर आ रहे थे ।

तभी बन्नो कहवा का गिलास थामे भीतर आई और देवराज चौहान को गिलास थमाया । उसकी नजरें नोटों की गड्डियों पर टिक चुकी थीं । वह रोशनआरा से कह उठी ।

“मैडम, ये सारा पैसा ले जाऊँ ?”

“अभी नहीं ।” देवराज चौहान बोला ।

बन्नो मुँह लटकाकर बाहर निकल गई । रोशनआरा ने देवराज चौहान को देखा । देवराज चौहान ने कहवे का घूँट भरा ।

“मुस्तफा से तुम्हारी दुश्मनी है ?”

“हाँ !”

“क्या ?”

“ये मैं नहीं बताऊँगा ।”

“तुम कौन हो ?”

“मेरे बारे में जानने की तुम्हें जरूरत नहीं । मैं छोटे से काम की तुम्हें बड़ी कीमत दे रहा हूँ । सोचो ।”

“ठीक है ! तुम्हारा काम हो जायेगा ।” रोशनआरा बोली ।

“मेरे से धोखेबाजी की तो अंजाम तुम जानती ही हो ।” देवराज चौहान ने धमकी भरे स्वर में कहा ।

“तुमने जैसा कहा है वैसा ही होगा । इस बार मुस्तफा के पास एड्स वाली लड़की ही भेजूँगी ।”

“तो ये पाँच लाख तुम्हारा । रख लो ।”

“शुक्रिया !” वह मुस्कुराई ।

देवराज चौहान ने कहवे का गिलास एक तरफ रखा और जेब से रिवॉल्वर निकाली ।

“ये देख लो । मैं टाँगे काटने में विश्वास नहीं रखता । सिर में गोली मारूँगा अगर काम मेरे मुताबिक न हुआ तो ।”

“निश्चिन्त रहो । मुस्तफा के पास इस बार एड्स वाली लड़की ही भेजी जायेगी ।”

“अपना मोबाइल नम्बर बताओ ।”

रोशनआरा ने बताया ।

“चलता हूँ । फोन करके तुमसे पूछता रहूँगा कि मुस्तफा का फोन आया कि नहीं ।”

☐☐☐

मस्तान की हालत बहुत बुरी हो रही थी ।

जब्बार ने उस पर जरा भी रहम नहीं किया था । शरीर पर जगह-जगह चाकू से काटकर, वहाँ पर नमक-मिर्च डाली गई थी और मस्तान पानी बिना मछली की तरह तड़प रहा था । चीखा रहा था । उसका सारा शरीर खून से भरा पड़ा था । फर्श पर भी कुछ खून बिखरा पड़ा था । वह इस वक्त अंडरवियर में था । फर्श पर पड़ा वह रह-रहकर चीख उठता था । रो रहा था, तड़प रहा था मस्तान । परन्तु जब्बार को उस पर रहम नहीं आया था ।

जगमोहन और तीनों गनमैन कमरे में ही मौजूद थे ।

रात हो चुकी थी । मस्तान ने बड़ा खान के बारे में कई बातें बताई थीं, जो कि काम-धंधे से वास्ता रखती थीं, परन्तु ये नहीं बताया कि बड़ा खान का ठिकाना कहाँ है । वह कहाँ मिलेगा । इस सवाल के जवाब में ये ही कहता रहा कि वह नहीं जानता कि बड़ा खान कहाँ मिलेगा । इस वक्त मस्तान पस्त हाल में पड़ा था ।

जब्बार उसके पीछे हाथ धोकर पड़ चुका था ।

तभी दरवाजा खोलकर कलाम ने भीतर प्रवेश किया ।

“अब तुम्हारे आदमी का क्या हाल है ?” जगमोहन ने पूछा ।

“उसकी छाती से गोली निकालकर बैंडिज कर दी गई है ।” कलाम बोला, “डॉक्टर कहता है कि अगले चौबीस घण्टे निकाल गया तो बच जायेगा । 

इसने कुछ बताया बड़ा खान के ठिकाने के बारे में ?”

“नहीं ! कहता है नहीं पता कि बड़ा खान का ठिकाना कौन सा है । वह कहाँ रहता है ।”

“छोड़ना मत इस हरामजादे को ।” कलाम गुर्राया ।

“चिंता मत कर ।” जब्बार गर्दन घुमाकर कलाम को देखकर खतरनाक स्वर में कह उठा, “इसे तड़पाने का काम मेरा है और मरने भी नहीं दूँगा । कमीना मुझे गद्दार कहता है ।”

“मुझे छोड़ दो ।” मस्तान रो पड़ा ।

“बड़ा खान के लिए काम करते हुए तूने हमेशा अपने को दादा समझा । जाने कितनों को मारा तूने । लेकिन अब तू मेरे हाथ के नीचे है । जब तक तू बड़ा खान का ठिकाना नहीं बताएगा, तब तक तुझे... ।”

“मैं नहीं जानता ।” मस्तान क्षीण स्वर में कह उठा ।

“तू सब जानता है ।”

“जानता होता तो बता देता । मेरे में यातना सहने की हिम्मत नहीं है ।”

“मैं तेरी बातों में नहीं... ।”

तभी फोन बज उठा । फोन बजने की आवाज मस्तान के उतरे कपड़ों में से आ रही थी । कलाम दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया । जगमोहन आगे बढ़ा और मस्तान की पैंट की जेब से मोबाइल निकाला ।

फोन बजे जा रहा था ।

“बड़ा खान का हो सकता है ।” जब्बार ने कहा ।

जगमोहन ने फोन कॉलिंग स्विच दबाकर कान से लगाते कहा-

“हैलो !”

दूसरी तरफ से खामोशी रही ।

“हैलो !” जगमोहन पुनः बोला ।

“कौन हो तुम ?” वह आवाज बड़ा खान की ही थी । परन्तु जगमोहन उस आवाज को नहीं पहचानता था ।

“तुम कौन हो ?”

“ये फोन मस्तान का है ।”

“तुम कौन हो ?” जगमोहन की आँखें सिकुड़ चुकी थीं ।

“बड़ा खान ।”

जगमोहन के दाँत भिंच गए ।

“मस्तान कहाँ है ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“मेरे पास ।”

“तुम कौन हो ?”

“अब्दुल्ला । आजादी-ए-कश्मीर नाम का संगठन मेरे अब्बा का है ।” जगमोहन शांत स्वर में बोला ।

जब्बार जगमोहन को ही देख रहा था ।

“आजादी-ए-कश्मीर ।” बड़ा खान का कठोर स्वर कानों में पड़ा, “जब्बार भी तुम लोगों के पास है ।”

“हाँ ! वह अब आजादी-ए-कश्मीर का सिपाही है ।”

“मैंने इस संगठन का नाम कभी नहीं सुना ।”

“अब तो सुन लिया ।”

“जब्बार गद्दार है । वह पुलिस के साथ मिला हुआ है । तभी तो जेल से फरार हो सका ।”

“वह जैसा भी है हमें मंजूर है ।”

“तुम मेरी बात गंभीरता से नहीं ले रहे । जब्बार... ।”

“जब्बार एक ईमानदार इंसान है बड़ा खान । तुम उसे पहचानने में धोखा खा गए ।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा, “मेरे अब्बा तुम्हारी तरह धोखा नहीं खाते ।”

“तुम लोग कश्मीर के हो ?” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“पूरी तरह ।”

“तुम्हारा लहजा कश्मीरी नहीं है ।”

“मैं हर जुबान बोल लेता हूँ । तुमसे इसी जुबान में बात करूँगा ।”

“रशीद को तुम लोगों ने मारा ?”

“हाँ !”

“और मस्तान को उठा लाये । ये बताओगे कि क्यों ?”

“हमने अपना काम करने का ढंग बदल लिया है । पहले हम कश्मीर को आजाद कराने की सोच रहे थे । परन्तु अब हम हर उस संगठन को खत्म करेंगे जो कश्मीर में कत्लेआम करके, हालातों को बिगाड़ रहा है । हमने पहला निशाना तुम्हें बनाने की सोची । तुमने संगठनों की आदतें बिगाड़ रखी हैं । वह पैसा देते हैं और तुम पैसा लेकर उनकी पसन्दीदा जगहों पर विस्फोट करा देते हो । लोगों को मार देते हो । हमने जरूरी समझा कि पहले तुम्हें खत्म किया जाये ।”

“खूब ! तो तुम मुझे खत्म करना चाहते हो । मस्तान को इसलिए उठा लिया कि वह तुम लोगों को मेरा ठिकाना बता देगा ।”

“हाँ !”

“और जब्बार ने इस काम में तुम्हारा साथ दिया ।”

“ठीक समझे ।”

“बेवकूफ हो तुम । मस्तान मेरे बारे में जानता ही नहीं तो बताएगा क्या । मेरा ठिकाना वह नहीं जानता ।”

“ये देखना हमारा काम है । तुम बच नहीं सकोगे ।”

“मुझे कोई नहीं मार सकता । कोई मुझ तक नहीं पहुँच सकता । मैंने खुद को सुरक्षित रखा है । लेकिन तुमने मेरे रास्ते में आकर बहुत बड़ी गलती कर दी । मैं तुम्हारे संगठन को खत्म कर दूँगा । तुम मेरी ताकत ठीक से नहीं जानते । मैं वह सब कुछ कर सकता हूँ । जो तुम सोच भी नहीं सकते । कश्मीर के सारे संगठन मेरे साथ हैं । चौबीस घण्टों में तुम्हारे संगठन को खत्म कर दूँगा ।”

“तुम हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते ।” जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा ।

“ये अब तुम्हें पता चल जायेगा ।”

“हमारी ताकत का तुम्हें एहसास नहीं । हम यूँ ही नहीं बुरे संगठनों को खत्म करने निकल पड़े । हमें पता है कि हमारी ताकत का अंत नहीं है । पहले हम खामोशी से काम करते थे और अब खुलकर मैदान में आये हैं ।”

“मैं तुम्हें बहुत जल्दी बताऊँगा कि मुझमें कितनी ताकत है ।”

“क्या तुम कभी सोच सकते थे कि रशीद की इस तरह हत्या कर दी जायेगी और मस्तान को उठा लिया जायेगा ।” जगमोहन ने दाँत भींचकर कहा, “अपने खास साथी खोकर तुम्हें तकलीफ तो बहुत हो रही होगी ।”

“तुम्हारा संगठन अब अपनी मौत का इंतजार करे ।” उधर से बड़ा खान ने दरिंदगी से कहा और फोन बन्द कर दिया ।

जगमोहन ने कान से मोबाइल हटाया । उसके दाँत भिंचे हुए थे ।

“क्या कहता है बड़ा खान ?” जब्बार गुर्रा उठा ।

“वह कहता है कि हमारे संगठन को खत्म कर देगा ।”

“वह खत्म कर सकता है । वह ताकत रखता है अब्दुल्ला ।” जब्बार बोला ।

“वह हमारी हवा भी नहीं पा सकता ।”

“सारे संगठन उसकी मदद को आगे आ जायेंगे और वे आजादी-ए-कश्मीर, हमारे संगठन को ढूंढ लेंगे ।”

“उसे जरा भी सफलता नहीं मिलेगी । और ये मस्तान सच में उसका ठिकाना नहीं जानता ।”

“बड़ा खान ने कहा ये ।”

“हाँ ! उसके शब्दों की सच्चाई मैंने महसूस कर ली । ये बड़ा खान के बारे में हमें कुछ नहीं बता सकता ।”

“ऐसा है तो इसे मारकर सड़क पर फेंक देते हैं ।”

“ये ही ठीक रहेगा ।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा ।

“मुझे मत मारो ।” पीड़ा से छटपटाता मस्तान चीखकर कह उठा ।

“तो हम बड़ा खान तक कैसे पहुँचेंगे ?” जब्बार ने दाँत भींचकर कहा ।

“अब्बा हुजूर से बात करता हूँ । उन्होंने जरूर कुछ सोच रखा होगा ।” जगमोहन ने कहा और कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया । इधर-उधर मौजूद कुछ गनमैन वहाँ टहलते दिखे ।

जगमोहन ने देवराज चौहान का नम्बर मिलाया । बात हुई तो मस्तान के बारे में और बड़ा खान के आये फोन के बारे में बताया ।

“इसका मतलब मस्तान कुछ नहीं जानता ।” देवराज चौहान की सोच भरी आवाज कानों में पड़ी ।

“वह हमारे लिए बेकार रहा जबकि हमने सोचा था कि वह हमें बड़ा खान तक पहुँचा देगा । परन्तु बड़ा खान सतर्क इंसान है । उसने पहले ही इस बारे में सोच रखा होगा कि ऐसा होगा । रशीद-मस्तान से उसने अपना ठिकाना छिपाकर रखा । जब्बार ठीक कहता है कि बड़ा खान का मुकाबला करना आसान नहीं ।”

“मस्तान ने एक काम की बात बताई । रोशनआरा जहाँ के बारे में ।”

“ओह, तुमने कुछ किया इस बारे में ?” देवराज चौहान ने जगमोहन को सब कुछ बताया । अपनी योजना बताई ।

“तुम इस तरह बड़ा खान को तब पकड़ सकते हो जब वह किसी होटल में लड़की से मिले । रोशनआरा तुम्हें बता देगी ।”

“मेरी योजना तुमने सुन ली ?”

“हाँ !”

“तो क्या उससे तुम्हें नहीं लगता कि बड़ा खान खुद ही मेरे पास आएगा ।”

“पता नहीं !” जगमोहन ने गहरी साँस ली, “मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है । तुम अकेले हो बड़ा खान तुम्हारी योजना में फँसकर आ गया तो ?”

“तो फँस जायेगा ।”

“तुम भी मुसीबत में पड़ सकते हो ।”

“ऐसा कुछ नहीं होगा । वह अकेला ही होगा ।”

“मैं तुम्हारे पास आ जाऊँ ?”

“नहीं ! तुम्हारा जब्बार के पास रहना ही ठीक रहेगा । तुम बड़ा खान तक पहुँचने की अपनी कोशिश जारी रखो । जब्बार से उसके ठिकानों के बारे में पूछो और वहाँ हमला करो । सब ठिकानों पर एक साथ ही हमला करो । उसका जो आदमी दिखे उसे शूट कर दो और आठ-दस ग्रेनेड फेंककर भाग जाओ । इससे वह और भी परेशान हो जायेगा ।”

“मेरे ख्याल में तुम्हारी योजना सही है ।” जगमोहन ने कहा ।

“मेरी योजना मेरे लिए रहने दो और तुम अपने काम पर ध्यान दो । बड़ा खान के ठिकाने तबाह करो । ऐसा होने पर हड़बड़ाहट में वह बाहर आने की गलती कर सकता है । 

अपने आदमियों को मुखबिर बनाकर फैला दो । कभी भी कहीं से भी बड़ा खान की खबर मिल सकती है । रुको मत । कुछ न कुछ करते रहो ।”

☐☐☐

अगले दिन देवराज चौहान सुबह आठ बजे उठा ।

होटल वालों से कहकर श्रीनगर के स्थानीय अखबार मँगवा लिए । हर अखबार में आधे पेज पर उसका दिया इश्तिहार छपा था । इस इश्तिहार को देखकर एड्स या एच०आई०वी० पीड़ित एक बार तो अवश्य उसके पास दवा लेने आएगा ।

अब देवराज चौहान को इंतजार था रोशनआरा जहाँ से खबर मिलने का कि मुस्तफा ने उसके वहाँ से लड़की मंगवाई है । ये खबर आज भी मिल सकती थी और दो-चार दिन बाद भी । उसे इंतजार करना था । नाश्ते के बाद उसने रोशनआरा को फोन किया ।

“मुस्तफा की कोई खबर ?” उसकी आवाज सुनते ही देवराज चौहान ने कहा ।

“अभी तो नहीं ।” रोशनआरा की आवाज कानों में पड़ी ।

“मेरे से चालाकी मत करना । कहीं उसे तुम बता दो कि मैंने क्या करने को कहा है । ऐसा हुआ तो तुम्हारे सिर में गोली मारूँगा ।”

“पाँच लाख मेरे लिए बड़ी रकम है । तुमने जो कहा है, मैं वही करूँगी ।”

“मेरा फोन नम्बर तुम्हारे मोबाइल में आ गया है । तुम मुझे फोन पर खबर दे सकती हो मुस्तफा की ।”

बात खत्म हो गई । इंतजार करने के अलावा देवराज चौहान के पास कोई रास्ता नहीं था ।

☐☐☐

शाम चार बजे बड़ा खान के चार ठिकानों पर लगभग एक ही वक्त पर हमले हुए । चारों ठिकानों पर दो-दो, तीन-तीन आदमी मरे । हर ठिकाने पर दस-बारह ग्रेनेड फेंके गए । बड़ा खान के लोगों में हलचल मच गई । वह नहीं सोच सकते थे कि कश्मीर ने उन पर ऐसा हमला हो सकता है । इन धमाकों के पश्चात कश्मीर की पुलिस भागी-दौड़ी फिरती दिखी ।

☐☐☐

उस समय रात के आठ बज रहे थे । मस्तान के मोबाइल की बेल बजने लगी । मस्तान का फोन जगमोहन के पास था । जबकि जब्बार ने मस्तान की जान ले ली थी और दोपहर में ही उसकी लाश बाहर किसी सड़क पर फेंक दी गई थी । ठिकाने पर इस वक्त जगमोहन, जब्बार और दो आदमी थे । बाकी सब लोग बड़ा खान के ठिकानों पर हमला करने के बाद, मुखबिर बने इधर-उधर फिर रहे थे कि शायद बड़ा खान से वास्ता रखती कोई खबर मिले । मस्तान के फोन पर जगमोहन ने बात की ।

“बोलो, तुम बड़ा खान हो न ?” जगमोहन ने कहा ।

“हाँ, तुमने... !”

“मस्तान की लाश मिल गई ? हमने उसे दोपहर में ही सड़क पर फेंक दिया था ।”

“इस बारे में खबर नहीं मिली । मेरे ठिकानों पर क्या तुमने हमले करवाये हैं ?” बड़ा खान की कठोर आवाज कानों में पड़ी ।

“अब तो तुमने आजादी-ए-कश्मीर की ताकत की झलक देख ली होगी ।”

“ये काम तो कमजोर से कमजोर लोग भी कर सकते हैं ।” बड़ा खान खतरनाक स्वर में बोला, “मेरे उन ठिकानों के बारे में बहुत लोग जानते हैं । ये सब करके तुमने तीर नहीं मारा ।”

“मैं जानता हूँ कि हमने तीर मारा है । परन्तु तुम ये बात कभी स्वीकार नहीं करोगे ।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा ।

“मेरे आदमी तुम लोगों को ढूंढ रहे हैं ।”

“उन्हें सफलता नहीं मिलेगी । परन्तु अब हम कश्मीर में तुम्हें काम नहीं करने देंगे ।”

“तो तुम मुझे कश्मीर से भगा दोगे ?” बड़ा खान मुस्कुराकर कड़वे स्वर में बोला था ।

“देखते जाओ । हर रोज तुम्हारे ठिकानों पर हमला होगा । तुम्हारे आदमी मारे जायेंगे । मैं देखता हूँ कि वह कैसे काम कर पाते हैं । जब मौत का डर सिर पर होगा तो वह काम नहीं करेंगे ।”

“मतलब कल भी हमला होगा ?” बड़ा खान गुर्राया ।

“हर रोज होगा ।”

“कल हमला करने वाले तुम्हारे आदमी जिन्दा वापस नहीं जा सकेंगे ।”

“तुम हमारा मुकाबला नहीं कर सकते । रशीद और मस्तान की मौत को मत भूलो । तुम्हारी मौत उससे भी बुरी होगी ।”

“इसका जवाब तुम्हें जल्दी ही मिलेगा ।” उधर से बड़ा खान ने दाँत पीसकर कहा और फोन बन्द कर दिया ।

जगमोहन ने गहरी साँस लेकर फोन कान से हटाया ।

“क्या कहता था ?” सामने बैठे जब्बार ने पूछा ।

“परेशान है । कलपा पड़ा है । ये तो स्पष्ट है कि उसके आदमी हमें, हमारे संगठन को ढूंढ रहे होंगे ।” जगमोहन ने कहा ।

“वह हम तक पहुँच भी सकते हैं अब्दुल्ला ।” जब्बार कह उठा, “बड़ा खान के हाथ बहुत लम्बे हैं ।”

“निश्चिन्त रहो ! बड़ा खान हमारे संगठन तक नहीं पहुँच सकता ।”

दो पल चुप रहकर जब्बार पुनः बोला ।

“मियांजी इस मामले पर क्या कह रहे हैं ?”

“अब्बा ने बड़ा खान के लिए खूबसूरत जाल फैलाया है । शायद वह उसमें फँस जाये ।”

“बड़ा खान किसी के जाल में फँसने वाला नहीं है ।” जब्बार सिर हिलाकर कह उठा ।

“जाल मेरे अब्बा हुजूर का हो तो, उसमें वह फँस सकता है ।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा ।

“तुम बड़ा खान को कम आँक रहे हो ।”

“तुम मेरे अब्बा हुजूर को कम आँक रहे हो । वह बूढ़े हो गए तो क्या हुआ, उनका दिमाग जवान है । बहुत कम उनके जाल से बचते देखा है किसी को । देखते हैं कि इस बार क्या होता है ।”

☐☐☐

रात बीत गई ।

अगले दिन सुबह छः बजे एक साथ बड़ा खान के छः ठिकानों पर कलाम के आदमियों ने हमला किया । तब दिन का उजाला भी नहीं फैला था । सुबह-सवेरे ही धमाके गूंज उठे । ग्रेनेड फटे । गोलियों की आवाजें गूंजी । बड़ा खान के आदमियों की तरफ से हमले के लिए कोई भी तैयार नहीं था । चीख-पुकार मची । हमला करके कलाम के आदमी भाग निकले थे । बड़ा खान के कई आदमी इस हमले में मारे गए ।

☐☐☐

देवराज चौहान अगले दिन सुबह आठ बजे जगमोहन का फोन आने पर उठा ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।

“हमने आज सुबह बड़ा खान के छः ठिकानों पर हमला किया । हमला सफल रहा । उसके आठ आदमी मरे ।”

“इतनी सुबह हमला क्यों किया ?” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े ।

“ताकि बड़ा खान के आदमी, हमारे आदमियों का मुकाबला न करे । कलाम को अपने आदमियों की चिंता है ।”

“हर रोज इसी तरह बड़ा खान को कहीं न कहीं चोट देते रहो ।”

“हमारे आदमी श्रीनगर में फैले हैं । शायद उन्हें कहीं से बड़ा खान की खबर मिले ।”

“मस्तान का क्या किया ?”

“कल दोपहर उसकी लाश सड़क पर फेंक दी गई थी ।”

“बड़ा खान के आदमी आजादी-ए-कश्मीर के लोगों की तलाश कर रहे होंगे ।” देवराज चौहान बोला ।

“आजादी-ए-संगठन नाम का कोई संगठन है ही नहीं तो उन्हें क्या मिलेगा ।” जगमोहन ने उधर से कहा, “तुम्हारा काम आगे बढ़ा । रोशनआरा का कोई फोन... ।”

“अभी कुछ नहीं ।”

उसके बाद देवराज चौहान ने मोती खान को फोन किया ।

“हैलो !” मोती खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“मेरी आवाज से तुमने मुझे पहचान लिया होगा ।” देवराज चौहान बोला ।

“हाँ !”

“रशीद की मौत की खबर सुनी होगी ?”

“कल ही पता चल गया था । सुनने में आया है कि कल कहीं से मस्तान की लाश भी मिली है ।”

“ये तुम्हारे साथ देने का नतीजा है ।”

“ओह ! तुमने किया ये काम ।”

“तुमने मेरा साथ दिया और मैंने ये कर दिया । तुमने अपने भाई की मौत का बदला ले लिया ।”

“शुक्रिया !”

देवराज चौहान ने फोन बन्द किया और नहा-धोकर तैयार हुआ और होटल से बाहर निकला तो साढ़े दस का वक्त हो रहा था । कुछ पैदल चलने के बाद एक जगह से नाश्ता किया ।

दोपहर तक का वक्त ऐसे ही बीता । कुछ नहीं हुआ था ।

साढ़े तीन बजे देवराज चौहान का मोबाइल बजने लगा ।

“हैलो !” तब देवराज चौहान एक पार्क में बीच पर बैठा था ।

“मैं रोशनआरा बोल रही हूँ ।” उधर से आती रोशनआरा की आवाज कानों में पड़ी ।

“कहो !”

“मुस्तफा का फोन आया है । शाम सात बजे उसने लड़की भेजने को कहा है ।”

“कहाँ पर ?”

“उसने कहा है साढ़े छः बजे फोन करके जगह बता देगा ।”

“ठीक है ! मुझे जगह जानने की जरूरत नहीं है । तुमने उसके पास एड्स वाली लड़की भेजनी है ।”

“ऐसा ही होगा ।”

“लड़की को समझा देना कि इस बारे में अपनी जुबान बन्द रखे कि उसे एड्स है ।”

“मेरी लड़कियाँ समझदार हैं ।”

“तुमने ये काम कर दिया तो पाँच लाख पूरी तरह तुम्हारे हो गए, जो मैं तुम्हें दे चुका हूँ ।”

“शुक्रिया !”

बात खत्म हो गई । देवराज चौहान ने मोबाइल बन्द करके जेब में रख लिया ।

☐☐☐

रात दस बजे देवराज चौहान ने रोशनआरा को फोन किया ।

“लड़की वापस आ गई ?” देवराज चौहान ने पूछा ।

“मैंने अभी फोन किया था उसे । वह वहाँ से चल पड़ी है ।”

“ठीक है !” देवराज चौहान ने फोन बन्द किया और फोन में से वह नम्बर तलाशा, जिस नम्बर से बड़ा खान उसे फोन किया करता था । दूसरी तरफ बेल जाने लगी ।

“हैलो !” फिर बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।

“कैसे हो ?” देवराज चौहान के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी ।

“तुम, नकली सूरजभान यादव ।”

“सही पहचाना ।”

“तुम्हारा फोन आना मेरे लिए हैरानी की बात है । आखिर तुम मेरे से चाहते क्या हो ?”

“जब्बार तो आजादी-ए-कश्मीर में शामिल हो गया ।”

“मालूम है । लेकिन वह ज्यादा देर जिन्दा नहीं रहेगा । तुम अपने बारे में क्यों नहीं बता देते मुझे ?”

“क्या करोगे मेरे बारे में जानकर ?”

“ये ही बता दो कि जब्बार को जेल से निकालने के दौरान, उसके साथ क्या समझौता हुआ ?”

“बता चुका हूँ तुम्हें । कोई समझौता नहीं हुआ । मैंने ये काम मुफ्त में किया है । अब तुम काम की बात पर आ जाओ ।”

“काम की बात ?”

“जिसके लिए मैंने फोन किया है । रोशनआरा की भेजी लड़की का स्वाद कैसा लगा ?”

“तुम्हें कैसे पता ?” बड़ा खान का चौंका स्वर कानों में पड़ा ।

“मैंने ही तो रोशनआरा से कहकर वह लड़की भिजवाई थी ।” देवराज चौहान कड़वे स्वर में बोला ।

“असम्भव !”

“मैं चाहता तो तुम्हें तब गोली मार देता जब तुम उस लड़की के साथ थे । परन्तु मैंने ऐसा नहीं किया ।”

“इसका क्या मतलब हुआ कि रोशनआरा से कहकर तुमने लड़की भिजवाई थी । तुम्हें कैसे पता चला कि... ।”

“जो लड़की आज तुम्हारे पास आई । वह पहले तुम्हारे पास नहीं आई होगी ।”

“हाँ ! ऐसा ही है, लेकिन तुम... ।”

“रोशनआरा उस लड़की को कहीं नहीं भेजती क्योंकि उसे एड्स है ।”

“क्या ?” बड़ा खान का चीखने जैसा स्वर कानों से टकराया ।

“मैं जानता हूँ तुम्हें मेरी बात पर भरोसा नहीं होगा । तुम ये बात रोशनआरा से क्यों नहीं पूछ लेते । मैंने रोशनआरा से ये काम करवाने के लिए उसे पाँच लाख दिए थे ।”

“नहीं !” बड़ा खान का घबराया स्वर कानों में पड़ा, “ये नहीं हो सकता । तुम मुझे परेशान करना चाहते हो ये बात कहकर ।”

“तुम खुद को सुरक्षित समझते रहे परन्तु तुम कभी भी सुरक्षित नहीं रहे । एच०आई०वी० के कीटाणु तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर चुके हैं जो कि तुम्हें धीरे-धीरे अपनी पकड़ ले लेंगे । बहुत आतंकवाद फैलाया तुमने । लेकिन अब से तुम हर पल एड्स के आतंक में बाकी जिंदगी जिओगे और मौत तेजी से तुम तक पहुँचेगी ।”

“तुम बकवास कर रहे हो ।”

“एच०आई०वी० की दुनिया में तुम्हारा स्वागत है बड़ा खान ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।

चंद पल बीते कि मोबाइल पुनः बजने लगा ।

बड़ा खान का फोन था ।

परन्तु देवराज चौहान ने कॉल रिसीव नहीं की । फोन बजकर बन्द हो गया । देवराज चौहान जानता था कि बड़ा खान अब रोशनआरा को जिन्दा नहीं छोड़ेगा । देवराज चौहान को रोशनआरा से कोई हमदर्दी नहीं थी । वह बुरी औरत थी जिसने कि पाँच लाख के लालच में एड्स पीड़ित लड़की को बड़ा खान के पास भेज दिया । उसके शौहर ने कभी उसकी टाँगे काटी थी, जबकि उसे चाहिए था कि गला काट देता ।

☐☐☐

अगला दिन शुरू हुआ । देवराज चौहान ने सोकर उठने के बाद वेटर से कहकर आज के स्थानीय अखबार मँगवाये । हर अखबार में कल की तरह, एड्स एच०आई०वी० ठीक कराने का इश्तिहार था ।

देवराज चौहान नहा-धोकर तैयार हुआ और कमरे में ही नाश्ता मँगवा लिया । उसकी योजना शुरू हो चुकी थी । बड़ा खान जानता था कि उसने एड्स पीड़ित लड़की का इस्तेमाल किया है और यकीनन उसके शरीर में एच०आई०वी० के कीटाणु प्रवेश कर चुके हैं । ऐसे में वह इलाज कराने की खातिर उसके पास आ सकता था । कल से हर अखबार में इस बीमारी के बारे में इश्तिहार जो आ रहे थे । बड़ा खान आज भी आ सकता था । कल या परसों भी आ सकता था । या फिर नहीं भी आ सकता था ।

बारह बजे थे तब, जब फोन बजा ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।

“मैं हूँ !” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी, “अभी-अभी खबर मिली है कि रोशनआरा को और उसके साथ की सात लड़कियों को रात में किसी ने मार दिया ।”

“ये काम बड़ा खान ने किया है ।”

“तो तुम्हारी योजना शुरू हो गई ।”

“हाँ !”

“फिर तो बड़ा खान अपना इलाज कराने कभी भी तुम्हारे पास आ सकता है । मैंने अखबारों में आये तुम्हारे इश्तिहार देखे हैं । वह काफी बड़े हैं और सीधी उन पर नजर पड़ती है । बड़ा खान श्रीनगर की अखबारें जरूर देखता होगा ।”

“हाँ, जरूर देखता होगा !”

“तुमने बात की थी उससे ?”

“रात को उसे बताया कि जो लड़की उसके पास आई थी, वह एड्स पीड़ित थी ।”

“ये जानने के बाद वह रात को ठीक से नींद भी नहीं ले पाया होगा ।”

“तुमने आज बड़ा खान के ठिकानों पर हमला कराया ?”

“आज शाम छः बजे हमला करने का प्रोग्राम है ।”

“जब्बार तुम्हारा साथ दे रहा है ?”

“पूरी तरह । मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ । वहाँ अगर बड़ा खान आया तो ।”

“तुम्हें जब्बार के पास रहने की जरूरत है ।”

जगमोहन के गहरी साँस लेने की आवाज आई । फिर उसने कहा-

“मैं कलाम को तुम्हारे पास भेज देता हूँ ।”

“अभी मुझे किसी की जरूरत नहीं है ।” देवराज चौहान ने , “तुम अपने काम का ध्यान रखो ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बन्द करके रखा और सिगरेट सुलगाकर कश लिया ।

देवराज चौहान को भरोसा नहीं था कि बड़ा खान इलाज कराने उसके पास आएगा । उसने तो ये सब करके एक चांस लिया था कि इस तरह शायद बड़ा खान उसके सामने आ पहुँचे । एक कोशिश की थी उसने ।

☐☐☐

उस वक्त शाम के सवा चार बज रहे थे जब रिशेप्शन से कमरे में इंटरकॉम आया ।

“हैलो !” देवराज चौहान ने रिसीवर उठाकर कहा ।

“कोई साहब हकीम साहब से मिलना चाहते हैं ।” रिसेप्शनिस्ट ने उधर से कहा ।

“भेजो !” कहकर देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया ।

आने वाला बड़ा खान भी हो सकता था और कोई दूसरा भी । देवराज चौहान ने कमरे का दरवाजा खोला और कुर्सी पर आ बैठा ।

पाँच मिनट बीते कि एक आदमी खुले दरवाजे पर आ खड़ा हुआ । देवराज चौहान ने उसे देखा । वह भी देवराज चौहान को देखने लगा ।

कई पलों तक दोनों एक-दूसरे को देखते रहे ।

वह 52-53 की उम्र का होगा । क्लीन शेव्ड था । उसने पैंट-कमीज पहनी थी, चेहरा प्रभावशाली था । उसने काले जूते पहन रखे थे । सिर के बालों में कुछ सफेद बाल भी दिख रहे थे ।

“आइये !” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

वह भीतर आया । दरवाजा बन्द कर दिया ।

“हकीम मुल्ख राज पंजाबी हो तुम ?” वह मुस्कुरा पड़ा ।

“हाँ, बैठिये !”

“कभी तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बन जाते हो तो कभी हकीम... ।”

देवराज चौहान बुरी तरह चौंका ।

ये समझते देर न लगी कि सामने बड़ा खान ही मौजूद है ।

“तुम हैरान हो रहे होगे कि मैंने तुम्हें पहचान लिया । मैंने तुम्हें जम्मू में तब देखा था जब तुम इंस्पेक्टर की वर्दी पहनकर, यादव बनकर जब्बार से मिलने जाते थे; और अब तुम यहाँ पर मेरा ही इंतजार कर रहे थे । पहले रोशनआरा को पाँच लाख देकर, एड्स पीड़ित लड़की भिजवा दी थी । साथ ही अखबारों में इश्तिहार देना शुरू कर दिया कि तुम एड्स और एच०आई०वी० का इलाज करते हो । इस आशा से कि मैं अपने इलाज के लिए तुम्हारे पास आऊँगा ।”

“और तुम आ गए ।” देवराज चौहान की पैनी निगाह उस पर थी ।

“हाँ ! मैं आ गया । मुझे नहीं पता था कि तुम यहाँ मिलोगे ।”

“तो तुम बड़ा खान हो ।”

“हाँ, मैं ही हूँ बड़ा खान !” कहते हुए वह आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठ गया, “तुमने मुझे एड्स पीड़ित लड़की भिजवाकर तगड़ी चोट दी । एड्स का डर ही ऐसा होता है कि इंसान जीते जी मर जाये ।”

“आतंकवाद से भी ज्यादा डर होता है क्या ?”

“हाँ ! एड्स का मरीज बनने से अच्छा है कि आतंकवाद का शिकार हो जाओ ।” बड़ा खान बोला ।

“फिर तो तुम आत्महत्या करने की सोच रहे होगे ।”

“नहीं !” बड़ा खान ने इंकार में सिर हिलाया, “मैं इतना कमजोर नहीं हूँ कि आत्महत्या कर लूँ । ये ठीक है कि इससे मेरे दिमाग की शांति भंग हो गई है । परन्तु मैं अभी भी लम्बी उम्र जी सकता हूँ । मेरे पास पैसा है और इस बीमारी से मुकाबला करने के लिए मैं महंगी दवायें खरीद सकता हूँ ।”

“तुम्हें तो मुझ पर गुस्सा आना चाहिए क्योंकि मैंने तुम्हें एड्स जैसी मुसीबत में डाला ।”

“गुस्सा बहुत आ रहा है तुम पर । परन्तु मैं पहले तुमसे बातें करना चाहता हूँ ।”

“बातें ?”

“हाँ, बातें !” बड़ा खान चुभते स्वर में बोला, “मैं तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानता ।”

“ये बातें करना चाहते हो तुम ?”

“तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो । कह दो कि पुलिस वाले हो ।” बड़ा खान बोला ।

“मैं पुलिस वाला नहीं हूँ ।”

“पुलिस से कोई नाता ?”

“इतना ही कि पुलिस को मेरी तलाश रहती है ।”

“कौन हो तुम ?”

“देवराज चौहान ।”

“कौन देवराज चौहान ? मैंने ये नाम पहले कभी नहीं सुना ।” बड़ा खान की आँखें सिकुड़ी ।

“हिन्दुस्तान में मुझे डकैती मास्टर देवराज चौहान कहा जाता है ।”

“ओह ! मैंने सुन रखा है इस नाम को । डकैती मास्टर देवराज चौहान । तो वह तुम हो ?”

“हाँ !”

“दिलचस्प !” बड़ा खान ने कुर्सी पर पहलू बदला, “डकैती मास्टर देवराज चौहान । खूब । तो क्या हिन्दुस्तान में दौलत की इतनी कमी हो गई कि तुमने डकैतियाँ छोड़कर आतंकवाद के रास्ते से दौलत इकट्ठी करनी शुरू कर दी ।”

“मैं ऐसे गन्दे काम नहीं करता ।”

“डकैती करने को तुम अच्छा समझते हो ।”

“ये काम तुम्हारे काम से तो बहुत अच्छा है ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।

“तुमने जब्बार को क्यों जेल से फरार करवाया । क्यों मेरे पीछे पड़े हो ? क्या मैंने तुम्हारा कुछ बिगाड़ा है ?”

“मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा । परन्तु मेरे हिन्दुस्तान को बिगाड़ने की चेष्टा कर रहे हो ।”

“तो ये बात है । मेरी तरफ तुम्हारा ध्यान कैसे गया ?”

“जब तुमने दिल्ली में इंस्पेक्टर सूरजभान यादव पर जानलेवा हमला कराया । इत्तेफाक से तब मैं पास ही था और मेरी वजह से ही आज वह जिन्दा है । उसने मुझे यूँ ही सारा मामला बताया । मैं डकैतियाँ अवश्य डालता हूँ परन्तु आतंकवाद से मुझे सख्त नफरत है । मैं पहले भी तुम जैसे कई सौदागरों को खत्म कर चुका हूँ ।”

“तो अब तुम मुझे खत्म करना चाहते हो ?” बड़ा खान के चेहरे पर जहरीले भाव नाच उठे ।

“हाँ ! अब तुम मेरे सामने आ चुके हो ।” देवराज चौहान की आवाज में खतरनाक भाव उभरे ।

“मेरी ताकत जानते हो डकैती मास्टर ?”

“तुम्हारी ताकत कुछ भी नहीं है । इसका एहसास तुम्हें अब हो जायेगा । वैसे तुम्हारे साथ कितने लोग हैं ?”

“अभी तो एक भी नहीं ।”

“आजादी-ए-कश्मीर का नाम सुना है न ?”

“हाँ, क्यों ?”

“वह मेरा ही संगठन है । तुम्हें खत्म करने के लिए वह संगठन बनाया है । तुम्हें खत्म करते ही वह संगठन खत्म हो जायेगा । जब्बार उसी संगठन में शामिल हुआ है, परन्तु वह नहीं जानता कि वह मेरी चाल का शिकार हुआ पड़ा है ।”

“तो जब्बार ने जेल में तुम्हें कुछ नहीं बताया मेरे बारे में ?”

“नहीं ! परन्तु तुम ऐसा ही समझते, इसलिए मैंने उसे जेल से फरार करवा दिया । तुम उस पर शक करने लगे । तुम्हारी और जब्बार की बिगड़ गई । मैं तुम दोनों को अलग-अलग कर देना चाहता था ताकि दोनों एक साथ काम करके देश की जनता को नुकसान न पहुँचा सको और जब्बार का मुँह भी खुलवाना चाहता था, तुम्हारे बारे में । जेल में रहकर उसने तुम्हारे बारे में कुछ नहीं बताया, परन्तु आजादी-ए-कश्मीर में शामिल होने के बाद रशीद-मस्तान के बारे में बताया । तुम्हारे ठिकानों के बारे में बताया, रोशनआरा के बारे में बताया ।” देवराज चौहान का स्वर सख्त था ।

“रशीद और मस्तान की मौत से मुझे नुकसान पहुँचा । तुमने शायद मुझे भी एच०आई०वी० पीड़ित कर दिया है ।”

“शायद नहीं यकीनन ।” देवराज चौहान के दाँत भिंच गए, “अब तुम कभी भी ठीक से नहीं जी सकोगे । एड्स का डर सोते-जागते तुम्हारे दिमाग पर हावी रहेगा । तुम बेकार होते जाओगे । परन्तु मैं वह वक्त आने नहीं दूँगा । अब तुम मेरे हाथों मारे जाओगे । तुम्हें बिल से ही तो निकालना चाहता था मैं । तुम हमेशा कहते रहे कि तुम सुरक्षित हो परन्तु तुम कभी सुरक्षित रहे ही नहीं । मैंने तुम्हें एच०आई०वी० पीड़ित बना दिया ।” कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फुर्ती से जेब से रिवॉल्वर निकाली और खड़ा हो गया । चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे थे ।

ये देखकर बड़ा खान मुस्कुराया ।

“तुम तो बहुत जल्दी में लगते हो डकैती मास्टर ।”

“बहुत कोशिशों के बाद तुम सामने आ सके हो ।”

“यहीं, होटल में गोली मारोगे ?”

“यहाँ मुझे कोई नहीं जानता । वैसे भी मुझे किसी की परवाह नहीं है ।” देवराज चौहान सतर्क था ।

“तो तुम्हें मस्तान ने बताया कि मैं रोशनआरा से कभी-कभी लड़की मँगवाता हूँ ।”

“हाँ !”

“मस्तान को मुँह नहीं खोलना चाहिए था ।”

“अब तुम्हें अपनी मौत के बारे में सोचना चाहिए । तुम मेरे पास एच०आई०वी० का इलाज कराने आये थे । मैं तुम्हें इस बीमारी से मुक्ति दिला रहा हूँ । तुम जीवन की सारी परेशानियों से मुक्त होने जा रहे हो ।”

और बड़ा खान ने जो किया उसकी देवराज चौहान को जरा भी आशा नहीं थी ।

कुर्सी पर बैठे बड़ा खान ने चीते की तरह छलांग लगाई और सीधा देवराज चौहान से जा टकराया । इस अचानक हुए हमले की वजह से देवराज चौहान के पाँव उखड़ गए । वह पीछे पड़ी कुर्सी से टकराया और नीचे जा गिरा ।

रिवॉल्वर हाथ से छूटकर फर्श पर कहीं फिसल गई । बड़ा खान उसके ऊपर आ गिरा था । देवराज चौहान ने फुर्ती से बड़ा खान को अपने ऊपर से उछाल दिया ।

पास ही गिरा बड़ा खान तुरन्त ही उछलकर उठ खड़ा हुआ । रिवॉल्वर हाथ में दिखने लगी । लेकिन रिवॉल्वर का इस्तेमाल न कर सका । नीचे पड़े ही देवराज चौहान ने जूते की ठोकर रिवॉल्वर वाली कलाई पर मारी ।

रिवॉल्वर बड़ा खान के हाथ से निकलकर दूर जा गिरी । अगली ठोकर देवराज चौहान ने बड़ा खान की पिंडलियों पर मारी ।

बड़ा खान लड़खड़ाया । संभला । तब तक देवराज चौहान खड़ा हो चुका था । दोनों खतरनाक निगाहों से एक-दूसरे को देखने लगे ।

“तुम डकैती मास्टर हो । तुम्हें मुझसे नहीं उलझना चाहिए । हम दोनों ही कानून तोड़ते हैं ।”

“तुम हिन्दुस्तानी नहीं हो ।”

“इससे क्या फर्क पड़ता है ।”

“बहुत फर्क पड़ता है ।” देवराज चौहान दरिंदगी भरे स्वर में कह उठा, “मेरे देश में आकर तुम आतंकवादी हरकतें कर रहे हो ।”

“मैं सिर्फ बिजनेस कर रहा हूँ । आतंकवाद से मुझे कुछ लेना-देना नहीं । दूसरे संगठन मेरे पास काम कराने आते हैं और मैं पैसे लेकर उनकी पसन्दीदा जगह पर आतंक फैला देता हूँ ।”

तभी देवराज चौहान ने बड़ा खान पर छलांग लगा दी । बड़ा खान सतर्क था और देवराज चौहान से हमले की आशा कर रहा था । इससे पहले कि देवराज चौहान उससे टकराता, बड़ा खान ने दोनों हाथ आगे करके उसे रोका और घुटना वेग के साथ पेट में दे मारा ।

देवराज चौहान के होंठों से चीख निकली और पेट थामे नीचे गिरता हुआ दोहरा हो गया । बड़ा खान आगे बढ़ा और जोरदार ठोकर देवराज चौहान की कमर में मारी ।

देवराज चौहान छटपटा उठा ।

“मैं तुझे बहुत बुरी मौत दूँगा डकैती मास्टर । तूने जब्बार के लिये मेरे मन में गलतफहमी डाली । रशीद-मस्तान को तेरे ही कारण जान गंवानी पड़ी । मेरे ठिकानों पर तेरे आदमी दो दिनों से हमला कर रहे हैं । तूने इंस्पेक्टर सूरजभान यादव और उसके परिवार को कहीं छिपा रखा है और वे मेरे से बचे हुए हैं । तू खामख्वाह ही मेरा दुश्मन बनकर मेरे रास्ते में आ गया । सबसे बड़ी बात कि तेरी वजह से मेरे शरीर में एच०आई०वी० के कीटाणु प्रवेश कर चुके हैं । इस बात से मैं बहुत परेशान हूँ । तूने मेरा चैन हराम कर दिया । मेरी जिंदगी को नर्क बना दिया । बहुत बुरी मौत दूँगा तेरे को ।”

तब तक देवराज चौहान ने कुछ हद तक अपने पर काबू पा लिया था और बिल्ली की तरह झपट्टा मारकर बड़ा खान के पैरों तक पहुँचा और दोनों पिंडलियाँ पकड़कर तेजी से झटका दिया । बड़ा खान के पैर जमीन से उखड़ गए और कूल्हों के बल फर्श पर आ गिरा । पीड़ा से पूरा शरीर झनझना उठा । इससे पहले कि देवराज चौहान दोबारा उस पर झपटता, बड़ा खान दो-तीन करवटें लेता गया ।

चंद कदमों पर बड़ा खान को रिवॉल्वर पड़ी दिखी । वह जल्दी से उठा और रिवॉल्वर उठाने के लिए आगे झपटा ।

देवराज चौहान ने पास ही पड़ी कुर्सी उठाई और पूरी ताकत लगाकर, बड़ा खान की तरफ उछाल दी । इससे पहले कि बड़ा खान रिवॉल्वर थाम पाता, कुर्सी उसकी पीठ पर आ लगी । कुर्सी की एक टाँग उसके सिर पर लगी । जिसकी वजह से वह चकराकर नीचे जा गिरा । दो पलों के लिए आँखों के आगे अँधेरा छा गया । देवराज चौहान तब तक खड़ा होकर बड़ा खान के पास पहुँच चुका था । उसने बड़ा खान को धक्का दिया तो बड़ा खान लड़खड़ाकर बेड से टकराता फर्श पर जा गिरा । देवराज चौहान ने रिवॉल्वर उठा ली । बड़ा खान की आँखों के सामने से अँधेरा छटा तो सम्भलकर उसने देवराज चौहान को देखा । रिवॉल्वर थामे देवराज चौहान मौत भरी निगाहों से उसे देख रहा था ।

बड़ा खान के चेहरे पर कहर भरी मुस्कान थिरक उठी ।

“अब मैं तुम्हें बताऊँगा कि मौत कितनी तकलीफ से भरी होती है ।” देवराज चौहान दाँत भींचकर कह उठा, “इस मामले में मैंने कदम ही इसलिए रखा कि तुम्हें खत्म कर सकूँ ।”

बड़ा खान संभलकर खड़ा हो गया था ।

“तुम पाकिस्तानी हो और सीमा पार करके हिन्दुस्तान में आतंक फैला रहे हो । अगर ये बिजनेस है तो तुम इस बिजनेस को पाकिस्तान में भी कर सकते थे । मेरे देश में आने की क्या जरूरत थी ?”

“हिन्दुस्तान में आतंक फैलाकर जो मजा आता है, वह पाकिस्तान में नहीं आ सकता ।” बड़ा खान बोला ।

“हिन्दुस्तान में मरने का भी बहुत मजा आता है, जैसे कि अब तुम मरने जा रहे हो ।”

“मेरे पास बहुत पैसा है डकैती मास्टर ।”

“पैसा मेरे पास भी बहुत है ।”

“मुझसे और पैसा लेकर तुम अपने पैसे को बढ़ा सकता है । मुझे मारकर तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा ।”

“बहुत फायदा होगा । तुम्हारी मौत से मेरे देश को… ।”

कहते-कहते देवराज चौहान चौंका ।

बड़ा खान ने देवराज चौहान के पीछे किसी को इशारा किया था । रिवॉल्वर थामे देवराज चौहान फुर्ती से पीछे घूमा और यहीं पर मात खा गया देवराज चौहान । 

ये बड़ा खान ने चाल चली थी कि उसका ध्यान हटे उस पर से और वही हो गया था । बड़ा खान ने, देवराज चौहान के पलटने से पहले ही उस पर छलांग लगा दी ।

तेजी के साथ वह देवराज चौहान से टकराया ।

देवराज चौहान बुरी तरह लड़खड़ा कर नीचे गिरता चला गया । परन्तु रिवॉल्वर थामे लेटे ही लेटे फुर्ती से पलटा कि उसने बड़ा खान को भागते हुए, दरवाजा खोलकर बाहर जाते देखा ।

“हम दोबारा जल्दी ही मिलेंगे देवराज चौहान ।” बड़ा खान की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।

देवराज चौहान के दाँत भिंच गए ।

बड़ा खान बच निकला था । देवराज चौहान जानता था कि अब वह हाथ में नहीं आएगा । देवराज चौहान उठा और कमरे में नजरें दौड़ाने लगा । कमरे में काफी उलट-पलट हो गई थी । उसे इस बात की तकलीफ हो रही थी कि बड़ा खान उसके हाथ से फिसल गया । एक तरफ से उसे बड़ा खान की रिवॉल्वर पड़ी दिखी तो उसे उठा लिया । तभी उसकी निगाह नीचे पड़े मोबाइल पर पड़ी । वह उसका फोन नहीं था । जाहिर था कि बड़ा खान का था, जो कि झगड़े के दौरान जेब से गिर गया होगा । उसने फोन उठाकर जेब में रखा ।

फिर अपना फोन निकालकर राठी को फोन किया ।

“मुझे श्रीनगर में रहने को जगह चाहिए । जगह होटल न हो ।” देवराज चौहान ने कहा ।

राठी ने श्रीनगर के एक परिवार का पता बताया कि वहाँ चला जाये । वह उन्हें फोन कर देता है ।

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