“मैं अच्छी तरह समझ गई हूं कि तुम लोग कैसे हालातों में फंसे हुए हो।” उस युवती ने गम्भीर स्वर में कहा-“तिलस्म से बाहर निकलना तुम लोगों के लिये सम्भव नहीं है और मैं भी नहीं जानती कि तिलस्म से कैसे बाहर निकला जा सकता है। यहां से एक ही स्थिति में तुम लोग बच सकते हो कि तिलस्म को तोड़ दो। ऐसा होते ही तुम लोगों के साथी भी, तुम्हें मिल जायेंगे। लेकिन शैतान के अवतार के तिलस्म को तोड़ना मौत को गले लगाने के बराबर है।”
“इसका मतलब तुम जानती हो कि शैतान के अवतार के तिलस्म को कैसे तोड़ा जा सकता है।” देवराज चौहान बोला।
“हां। इस बात का ज्ञान है मुझे...।”
“कैसे तोड़ा जा सकता है तिलस्म को...?” कहते हुए देवराज चौहान की आवाज में सख्ती आ गई।
उसने गम्भीर भाव से देवराज चौहान को देखा।
“ये बात अपने ख्याल से निकाल दो कि तुम तिलस्म को तोड़ सकोगे। बहुत बड़ी ताकत से शैतान के अवतार ने तिलस्म को बांधा है। असम्भव है कि कोई तिलस्म को तोड़ सके।” वो बेहद गम्भीर थी।
“तिलस्म तोड़ने का रास्ता है तो उसे अवश्य तोड़ा जा सकता है।” जगमोहन ने कहा।
“ठीक कहते हो।” युवती बोली-“लेकिन उससे पहले मारे जाओगे।”
“तिलस्म में भटक कर मरने या किसी मायावी जाल में फंस कर मरने से तो बेहतर है कि तिलस्म तोड़ने की कोशिश में जान जाये।” देवराज चौहान के स्वर में दरिन्दगी भर आई थी।
“तुमने मेरे शरीर में जान डाली है, इसलिये नेक सलाह देकर, मैंने अपना फर्ज पूरा किया है।”
“सिर्फ ये बताओ कि तिलस्म कैसे तोड़ा जा सकता है?”
देवराज चौहान ने पहले वाले लहजे में कहा।
उसने तीनों पर बारी-बारी व्याकुल निगाह मारी फिर कह उठी।
“मैं तुम लोगों को ऐसे तालाब पर ले जा सकती हूं, जिसके भीतर इस तिलस्म का ताला है।”
“तिलस्म का ताला?” महाजन के होंठों से निकला।
“हां। उस ताले के खुलते ही तिलस्म तबाह हो जायेगा।” उसने गम्भीर धीमे स्वर में कहा-“परन्तु ताले तक पहुंच पाना ही सम्भव नहीं। कोई पहुंच भी गया तो तिलस्म के ताले को तोड़ पाना असम्भव है। वहां धोखे ही धोखे हैं। झूठ-सच है तो सच-झूठ। कुछ भी समझ नहीं आएगा।”
“तुम सीधे-सीधे बताओ कि वहां...।”
“मैं इससे ज्यादा नहीं बता सकती। उस रास्ते पर चलोगे तो सब कुछ मालूम होता चला जायेगा।” उस युवती ने देवराज चौहान को देखा-“तिलस्म के ताले को तोड़ने का इरादा पक्का है तो मैं तुम लोगों को उस तालाब तक ले चलती हूं, जहां से तुम लोगों का रास्ता आगे जायेगा।”
“अच्छी बात है। तुम हमें उस तालाब तक ले चलो।” जगमोहन दृढ़ता भरे स्वर में कह उठा।
“एक बार फिर सोच लो। जान नहीं बचेगी।”
“बार-बार ये बात मत कहो।” महाजन का स्वर सख्त हो गया।
“तुम लोगों का भला चाहती हूं, इसलिये कहती हूं।” बोलने
के साथ ही वो खड़ी हो गई-“आगे तुम लोगों की इच्छा। आओ, तुम लोगों को उस तालाब तक ले चलूं।”
“अगर तिलस्म का वो ताला टूट जाता है तो हम इस तिलस्म से बाहर निकल सकेंगे?” देवराज चौहान बोला।
“तिलस्म का ताला ही टूट गया तो फिर तिलस्म कैसा।” उसने कहा-“फिर तो हर जगह एक जैसी होगी। तुम लोगों के जो साथी अलग होकर तिलस्म में भटक रहे हैं, वो भी आजाद हो जायेंगे। अन्य कोई तिलस्म में फंसा है तो उसे भी मुक्ति मिल जायेगी। लेकिन उस तिलस्म के ताले को नहीं तोड़ा जा सकता। वहां शैतान के अवतार ने ऐसा जाल फैला रखा है कि ऐसी कोशिश करने वाला अपनी जान गवां बैठेगा।”
☐☐☐
उसके साथ चलते हुए जाने कितने घंटे बीत गये। थकान सी
महसूस होने लगी, परन्तु वे रुके नहीं। इतना वक्त बीत जाने के बाद भी मौसम और समय में कोई बदलाव नहीं आया था।
जगमोहन ने उस युवती से कहा।
“हम जब से तिलस्म में फंसे हैं, तब से ही एक-जैसा मौसम देख रहे हैं। रात भी नहीं हुई...।”
“तिलस्म का ये हिस्सा रोशनी वाला है। एक हिस्सा अंधेरे वाला है। वहां रोशनी नहीं मिलेगी। तीसरा हिस्सा सामान्य है। वहां रात और दिन होते हैं।” उस युवती ने जवाब दिया।
“और कितनी देर लगेगी तालाब तक पहुंचने में?” महाजन बोला-“टांगें दुखने लगी हैं।”
“मैं भी यही कहने वाला था।” जगमोहन के चेहरे पर मध्यम सी मुस्कान उभरी।
“हम पहुंच चुके हैं।” उस युवती ने कहा-“वो सामने देखो।
कुछ दूर तालाब नजर आ रहा है। उस तालाब के बीच में से लोहे की एक मीनार निकलती नज़र आ रही है।”
सबकी निगाह सामने, दूरी पर गई।
वहां पानी चमकता नज़र आया और पानी में से मीनार निकली दिखाई दे रही थी।।
“उस तालाब के भीतर रास्ता है?” देवराज चौहान के होंठ खुले।
“हां।” उसने बेचैनी से कहा-“लेकिन तुम लोग तिलस्म के ताले को देख भी नहीं पाओगे। उससे पहले ही मारे जाओगे। कोई तिलस्म के ताले को न तोड़ सके, इसके बारे में शैतान के अवतार ने कैसे-कैसे इन्तजाम कर रखे होंगे, इसका अनुमान तो कम दिमाग वाला भी लगा सकता है।”
जवाब में देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
जल्द ही वे लोग तालाब के किनारे पहुंचकर रुक गये।
“रास्ता कहां है?” देवराज चौहान ने कहा।
“तालाब में प्रवेश कर जाओ। पानी के नीचे पक्की जगह है। सिर्फ घुटनों तक पानी है।” उसका स्वर गम्भीर था-“तालाब के भीतर मीनार के पास पहुंच जाओ, रास्ता खुद ही मिलता चला जायेगा।”
“यहां तक लाने और रास्ता दिखाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
“ऐसा मत कहो। बल्कि मुझे तो अफसोस हो रहा है कि मैंने तुम लोगों को मौत का रास्ता दिखा दिया।”
“मेहरबानी।” महाजन मुस्कराया-“कोई रास्ता दिखाने वाला
तो मिला यहां। यूं ही भटकते रहने से तो बेहतर ही है कि मौत के रास्ते पर ही चल दिया जाये। कुछ हासिल तो होगा।”
वो कुछ नहीं बोली।
“आओ?” तलवार थामे देवराज चौहान पलटा और तालाब में प्रवेश करता चला गया।
जगमोहन और महाजन उसके पीछे थे।
तभी हंसी की आवाज वहां गूंजी।
वे ठिठके। पलटकर देखा तो तालाब के किनारे पर जिन्न बाधात खड़ा था।
“तुम...।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गये।
“जिन्न बाधात।” वो हंसी रोकते हुए कह उठा-“दूसरे के कामों में बाधा डालना मेरा काम है।”
“तो अब तुम हमें रोकने आये हो कि हम तिलस्म के ताले तक न पहुंच सकें।” जगमोहन दांत भींचकर बोला।
“अशुभ कामों में मैं बाधा नहीं डालता।” जिन्न बाधात मुस्कराया।
“क्या मतलब?”
“जहां तुम लोग जा रहे हो वो अशुभ जगह साबित होगी तुम सब के लिये। तुम लोग वहां मरने जा रहे हो। तो मैं तुम मनुष्यों के आगे बढ़ने में क्यों बाधा डालूं। मौत को गले लगाना तो तुम मनुष्यों की किस्मत बन चुकी है। जाओ-जाओ। आगे बढ़ो।” जिन्न बाधात हंसा।
देवराज चौहान धीरे-धीरे कदम आगे बढ़ाता हुआ तालाब से बाहर आ गया। नजरें जिन्न बाधात पर ही थीं। जगमोहन और महाजन की उलझन भरी नजरें मिलीं।
“तुम तो जिन्न हो।” देवराज चौहान का स्वर बेहद शांत था-“तुम तो किसी से नहीं डरते।”
“नहीं डरता। मालिक के अलावा, किसी से नहीं डरता।” जिन्न बाधात मुस्कराया।
“तुम्हें तो कोई मार भी नहीं सकता।”
“नहीं। कोई नहीं मार सकता। मेरा मालिक अवश्य मुझे घड़े में बंद कर सकता है।”
उसी पल देवराज चौहान तलवार थामे तूफानी गति से जिन्न बाधात की तरफ दौड़ा। सिर्फ पन्द्रह कदमों का फासला था। फौरन ही तय कर लिया देवराज चौहान ने वो फासला। जगमोहन और महाजन हक्के-बक्के से खड़े थे। तालाब के किनारे पर खड़ी युवती के चेहरे पर अजीब से भाव थे।
क्षणों का वक्त भी नहीं बचा था, तलवार जिन्न के शरीर में प्रवेश करने को। तभी देवराज चौहान लड़खड़ाकर रुकता चला गया।
जिन्न अपनी जगह से गायब हो गया था।
देवराज चौहान ने तलवार थामे फौरन पलटकर हर तरफ देखा।
जिन्न बाधात नज़र आया। वो इस बार कुछ दूरी पर खड़ा देवराज चौहान को देखते हुए मुस्करा रहा था।
“तुमने तो कहा था कि तुम किसी से डरते नहीं।” देवराज
चौहान बोला-“तुम्हें कोई नहीं मार सकता।”
“मैंने ज्यादा गलत नहीं कहा था।”
“फिर तुमने मेरे वार से खुद को बचाया क्यों?”
“उसकी वजह ये तलवार है।” जिन्न बाधात बराबर मुस्करा
रहा था-“इस तलवार में ऐसी शक्तियां हैं, जिसका मुकाबला मैं भी नहीं कर सकता। मालूम नहीं ये तलवार तुम्हारे हाथ कैसे लग गई। क्योंकि मुझे इस बात का एहसास हो चुका है कि तलवार की खूबियों से तुम ठीक तरह से परिचित नहीं हो।”
“क्या मतलब?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
इस बार जिन्न बाधात कुछ नहीं बोला।
चंद पलों के लिए सन्नाटा सा उभर आया था।
“तुमने मुझे ऐसी जानकारी दे दी, जिससें मैं अंजान था।” देवराज चौहान एकाएक मुस्कराया।
“कैसी जानकारी पा ली तुमने?” जिन्न बाधात ने पूछा।
जवाब देने की अपेक्षा देवराज चौहान तलाब में प्रवेश करता चला गया। वो तीनों पुनः पानी में कदम उठाते लोहे की मीनार की तरफ बढ़ने लगे। जल्दी ही वे मीनार के पास थे। मीनार छोटे से चबूतरे पर थी। तीन सीढ़ियां चढ़कर वे चबूतरे पर पहुंचे।
जिन्न बाधात अभी भी वहीं खड़ा देवराज चौहान को देख रहा था।
युवती तालाब के किनारे पर खड़ी इधर ही देख रही थी।
तभी मीनार के बीच का हिस्सा इस तरह हट गया, जैसे दरवाजा खोला गया हो।
“यह क्या?” महाजन के होंठों से निकला।
“ये हमारे लिये रास्ता है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में
कहा-“हमारे लिये खुला है। मेरे ख्याल में ये मीनार हमें उस रास्ते पर ले जायेगी, जो रास्ता तिलस्म के ताले तक जाता है।” कहने के साथ ही देवराज चौहान उस रास्ते से खोखली मीनार के भीतर प्रवेश कर गया।
महाजन और जगमोहन ने भी भीतर प्रवेश किया।
उसी पल मीनार का वो दरवाजे जैसा रास्ता बंद हो गया।
फिर बे-आवाज सी वो मीनार धीरे-धीरे पानी के भीतर जाने लगी।
जिन्न बाधात और वो युवती अपनी जगह पर खड़े मीनार को देख रहे थे। दो-तीन मिनट में ही नीचे धंसती वो मीनार नजरों से लुप्त हो गई।
जिन्न बाधात ने उस युवती को देखा।
“तुमने उन मनुष्यों की सहायता करके, शैतान के अवतार के खिलाफ काम किया है।” जिन्न बाधात बोला।
“मैं मिट्टी की थी। मनुष्यों ने मेरे भीतर जान डाली है।” युवती ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसे में मेरा धर्म बनता है कि मेरा हर कर्म उनका भला करने के लिये हो।”
“भला?” जिन्न बाधात मुस्कराया-“तुमने उनका भला नहीं बुरा किया है। उन्हें मौत के करीब भेज दिया। अगर तुमने उनका अच्छा किया होता तो मैं कब की तेरी जान ले लेता। लेकिन तेरी इस हरकत से शैतान अवश्य प्रसन्न हुआ होगा। इसी प्रसन्नता की वजह से मैंने तेरा जीवन बख्श दिया।”
वो कुछ नहीं बोली।
“एक बात तो बता।” जिन्न बाधात के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“क्या?”
“मैंने उसे कैसी जानकारी दे दी है?”
“तुमने उसे गलती से ये इशारा दे दिया है कि वो तलवार का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। तलवार में मौजूद शक्तियों को वो पहचान नहीं पा रहा।” युवती ने गम्भीर व शांत स्वर में कहा।
“हूं। तो इस बात का उसे पहले पता नहीं था।” जिन्न बाधात सिर हिलाकर कह उठा-“वास्तव में पता नहीं होगा। तभी तो ये
बात मेरे मुंह से निकली। फिर भी, वो तीनों अब जिन्दा नहीं बच सकेंगे। तुम अपनी कहो। तिलस्म में क्या करोगी। यहां से बाहर तो जा नहीं सकतीं।”
“मैं क्या करूंगी। तुम्हें इस बात से मतलब नहीं होना चाहिये।”
“मैंने तो इसलिये पूछा था कि अगर तुम्हारा विचार शैतान के अवतार की सेविका बनने का हो तो मैं तुम्हें अभी तिलस्म से बाहर ले जा सकता हूं।” जिन्न बाधात कह उठा।
“मैं तिलस्म में ही रहना पसन्द करूंगी।” युवती ने शांत स्वर में कहा।
“मर्जी तुम्हारी। मालिक की सेवा में आने का मन बने तो मुझे याद कर लेना।” इतना कहने के साथ ही जिन्न बाधात उसी पल उसकी निगाहों के सामने से गायब हो गया।
☐☐☐
लोहे की मीनार के भीतर घुप्प अंधेरा था। तीनों मीनार के भीतर थे। मीनार के नीचे खिसकने का एहसास उन्हें हो रहा था। तभी जगमोहन बोला।
“जिन्न बाधात की बात से तुम्हें कैसी जानकारी मिली?”
“जिस बात से मैं अभी तक अंजान था, जिन्न बाधात ने गलती से उस बात का एहसास करा दिया।” देवराज चौहान ने कहा-“मैं इस तलवार का ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा हूं। क्योंकि मुद्रानाथ जल्दबाजी में मुझे बता नहीं पाया कि इस तलवार में कैसी-कैसी शक्तियां मौजूद हैं।”
“यानि तुम्हारी बात।” महाजन बोला-“लेकिन उन शक्तियों
को इस्तेमाल करने का ढंग तुम्हें कैसे मालूम होगा। मुद्रानाथ तो अब आकर बताने से रहा।”
“तुम ठीक कह रहे हो महाजन।” देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान उभरी। भीतर गहरा अंधेरा था। वो एक-दूसरे को देख नहीं पा रहे थे-“एक बार मुद्रानाथ ने मुझे खंजर दिया था। वो शक्तियों से भरपूर, जादुई-मायावी खंजर था। उस खंजर को कैसे इस्तेमाल करना है। तब मुद्रानाथ ने मुझे बताया था। वो ही तरीका मैं तलवार पर आजमाने की कोशिश करता हूं।”
“कैसे?”
मूठ थामे देवराज चौहान ने मन ही मन गुरुवर को याद किया फिर बुदबुदाया।
“हे तलवार! यहां रोशनी कर...।”
उसी पल वो सारी जगह रोशनी से जगमगा उठी।
महाजन और जगमोहन चौंके।
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई।
“ये क्या...ये...ये रोशनी...।” जगमोहन के होंठों से निकला।
“ओह! मुझे तो यकीन नहीं आ रहा।” महाजन के स्वर में अविश्वास के भाव थे।
“अब होगा इस शक्तियों से भरी तलवार का इस्तेमाल।” देवराज चौहान के चेहरे पर दृढ़ता भरी मुस्कान और आवाज में खतरनाक भाव थे।
मीनार नीचे सरकती जा रही थी।
☐☐☐
मोना चौधरी, सोहनलाल, रुस्तम राव, राधा, सरजू और दया चलते-चलते थकान सी महसूस करने लगे थे। शाम भी अब तो ढलने लगी थी। कुछ ही देर में अंधेरा हो जाना था। अभी तक मोना चौधरी को ऐसी कोई जगह नजर नहीं आई थी, जहां तिलस्म में मौत का जाल बिछा हो। चलने के दौरान उनकी बातचीत भी जारी थी। उनकी बातों का कोई खास मुद्दा नहीं था। परेशानियों को हर कोई अपने-अपने ढंग से जाहिर कर रहा था।
इस बात से सब अंजान थे कि जिस रास्ते पर वो बढ़ रहे हैं। आगे जिन्न बाधात उसी रास्ते पर मौजूद है-और उन्हीं का इन्तजार कर रहा है।
☐☐☐
जिन्न बाधात ने अपनी जगह खड़े-खड़े बेहद लम्बी सांस लेकर हवा में मौजूद गन्ध का एहसास पाया फिर बड़बड़ाया।
“सारे मनुष्य अब पास आ पहुंचे हैं।” बड़बड़ाने के साथ ही उसने अपने हाथ को अजीब से ढंग से, हवा में लहराया तो उसी पल उसका रूप बदल गया।
अब वो देवराज चौहान के रूप में था। बदन पर वही कपड़े थे, जैसे देवराज चौहान ने पहने थे। उसे देखकर कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो देवराज चौहान नहीं है। उसने अपना हाथ हवा में आगे किया तो हाथ में दबी वैसी ही तलवार नज़र आने लगी, जैसी तलवार देवराज चौहान के पास थी।
“अब मैं आसानी से इन मनुष्यों को और भी ज्यादा बाधाओं में फंसा दूंगा।” जिन्न बाधात बड़बड़ा उठा।
तभी उसके कानों में कदमों की आहटें पड़ने लगीं।
जिन्न बाधात तलवार थामे इस तरह खड़ा हो गया, जैसे उसने कदमों की आहटें सुन ली हों और इन्तजार कर रहा हो कि आने वाले कौन हैं। फिर वो सब नज़र आने लगे। वे पास आते जा रहे थे। उनकी निगाह भी जिन्न बाधात पर पड़ चुकी थी।
“आपुन का देवराज चौहान, वो खड़ेला है।” रुस्तम राव की आवाज उसके कानों में पड़ी।
“नीलू भी पास ही होगा।” राधा की आवाज खुशी के सागर में डूबी सुनाई दी-“वो दिखाई क्यों नहीं दे रहा?”
जिन्न बाधात अपने चेहरे पर मुस्कराहट ले आया।
“मैंने तो तुम सबसे मिलने की आशा ही छोड़ दी थी।” उनके पास पहुंचने पर जिन्न बाधात ने मुस्कराकर कहा।
पास पहुंचकर वो जिन्न बाधात के पास आ खड़े हुए थे।
“तुम यहां कैसे देवराज चौहान?” मोना चौधरी खुश थी-“जगमोहन और महाजन कहां हैं?”
“सब बताता हूं।” जिन्न बाधात सबको देखता हुआ कह उठा-“पहले ये बताओ कि बांके और पारसनाथ तुम लोगों के साथ क्यों नहीं हैं और ये युवक और युवती कौन हैं?”
रुस्तम राव ने जल्दी से सब कुछ बताया।
सुनकर जिन्न बाधात ने चेहरे पर गम्भीरता ओढ़ ली।
“बांके और पारसनाथ के बारे में सुनकर चिन्ता होने लगी है। लेकिन शैतान के अवतार के तिलस्म में जाने कब क्या हो जाये। मैं खुद बहुत खतरों से बचकर इस वक्त यहां हूं।”
“नीलू कहां है देवराज चौहान...।” राधा ने व्याकुल स्वर में पूछा।
जिन्न बाधात चेहरे पर गम्भीर मुस्कान ओढ़ कर कह उठा।
“घबराओ मत। महाजन और जगमोहन दोनों ही ठीक हैं। मैं तो कब से यहां खड़ा किसी आसमानी सहायता का इन्तजार कर रहा था। तुम लोग बहुत ही मौके पर पहुंचे हो।”
“क्या हुआ देवराज चौहान?” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
सबकी निगाह जिन्न बाधात के चेहरे पर थी।
गम्भीरता का दिखावा करते जिन्न बाधात कह उठा।
“मैं महाजन और जगमोहन के साथ गहरे तिलस्म में जा पहुंचा था। जिन्न बाधात ने मुझे धोखे से फंसा दिया था। ये तो अच्छा हुआ कि इस शक्तियों से भरी तलवार की वजह से अन्जाने में मुझे तिलस्म के ऊपर के हिस्से में आने का रास्ता मिल गया। उधर कुआं है। मैं उसी कुएं से निकला हूं। लेकिन महाजन और जगमोहन को किसी पक्षी ने चोंच मारकर बेहोश कर दिया है। जाने उस पक्षी की चोंच में क्या असर था। वो दोनों नीचे बेहोश पड़े हैं। कुएं का रास्ता ऐसा है कि मैं अकेला उन्हें उठाकर बाहर नहीं ला सकता और घंटों बीत चुके हैं, वो होश में आने का नाम नहीं ले रहे।”
“फिक्र मत करो।” नीलू को तो मैं अकेली ही उठाकर कुएं से बाहर ले आऊंगी।
राधा कह उठी।
देवराज चौहान बना जिन्न बाधात खामोश रहा।
“कहां है वो कुआं?” मोना चौधरी कह उठी।
“आओ मेरे साथ...।” कहने के साथ ही जिन्न बाधात पलटा और आगे चल पड़ा।
सब उसके पीछे हो गये।
“दया...।” सरजू बोला-“ये इन्हीं का साथी है। जो पहले बिछड़ गया था।”
“हां इनकी बातों से मैं समझ चुकी हूं...।”
कुछ कदमों के बाद देवराज चौहान बना जिन्न बाधात एक कुएं की मुंडेर के पास पहुंचकर ठिठका और मोना चौधरी को देखकर बोला।
“ये ही वो कुआं है मोना चौधरी...।”
आगे बढ़कर मोना चौधरी ने कुएं के भीतर झांका।
सबने कुएं के भीतर देखा।
नीचे जाने के लिए कुएं की मुंडेर के साथ लगती, सीढ़ियां नज़र आईं। कुआं सामान्य कुओं जितना गहरा था। लेकिन उसमें पानी नहीं था। कुएं के तल में, जहां सीढ़ियां खत्म हो रही थीं, वहां खुला दरवाजा नज़र आया। सीढ़ियों का और कुएं की दीवारों का प्लास्टर जगह-जगह से उखड़ा नज़र आया।
“वो दोनों कहां हैं देवराज चौहान?” मोना चौधरी ने पूछा।
“जो दरवाजा नजर आ रहा है उसके भीतर।” जिन्न बाधात ने कहा-“वो बहुत बड़ा कमरा है। ये कुआं शायद बाहर आने का रास्ता है। कुएं की घुमावदार सीढ़ियों की वजह से उन दोनों बेहोशों का उठाकर लाना कठिन है। सीढ़ियों की चौड़ाई भी कम है। दो आदमी हों तो उन्हें एक-एक करके बाहर लाया जा सकता है।”
“मैं अभी नीलू को लेकर आई...।” कहने के साथ ही राधा कुएं की मुंडेर पर चढ़ी।
“जल्दी मत करो राधा।” मोना चौधरी ने टोका। “यहां अंजाने खतरों के प्रति भी हमें सावधान...।”
“मैं संभाल लूंगी खतरों को।” राधा ने सीढ़ी पर पांव रखा और सावधानी से नीचे उतरने लगी।
“यहां कोई खतरा नहीं।” जिन्न बाधात ने कहा-“इधर के खतरों को खत्म करके ही, मैं बाहर आ सका हूं।”
“सीढ़ियां बहुत छोटी हैं।” सरजू ने कहा-“तुम किसी बेहोश को अकेले उठाकर ऊपर नहीं आ सकतीं। आते वक्त कहीं भी अटक कर तुम भी नीचे गिरोगी और उस बेहोश को भी गिराओगी।”
“ये ठीक कह रहा है।” देवराज चौहान के रूप में जिन्न बाधात ने फौरन गम्भीर स्वर में कहा।
“देवराज चौहान...।” सोहनलाल बोला-“हम सब नीचे चलते हैं।”
“यही ठीक रहेगा।” जिन्न बाधात ने सिर हिलाया।
“आओ।” मोना चौधरी बोली फिर कुएं की मुंडेर पर चढ़ कर सीढ़ी पर पांव रखा और नीचे उतरने लगी।
उसके बाद एक-एक करके सब नीचे उतरे।
रुस्तम राव सबसे पीछे था। आधी सीढ़ियां उतरने के पश्चात उसने ऊपर देखा।
जिन्न बाधात शांत मुद्रा में कुएं की मुंडेर के पास ही खड़ा नीचे में देख रहा था।
“तुम नीचे को नेई आईला क्या देवराज चौहान?” रुस्तम राव
ने पूछा।
“मेरी जरूरत नहीं।” जिन्न बाधात ने शांत स्वर में कहा।
“तुम्हारी मर्जी होएला....।” कहने के साथ ही रुस्तम राव पुनः नीचे उतरने लगा।
सब नीचे पहुंचे और देखते ही देखते खुले दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गये। उन्होंने खुद को एक बड़े कमरे में पाया, जो कि पूरी तरह खाली था। उसका सफेद फर्श चमक रहा था। कमरे के एक कोने में संकरी सी गैलरी का रास्ता जाता दिखाई दे रहा था।
“नीलू कहां है?” राधा कह उठी।
सबकी निगाह कमरे में ही फिर रही थी।
“उन दोनों को तो इधर ही होना मांगता बाप। देवराज चौहान कहेला कि वो बेहोश होएला।”
“ये भी तो हो सकता है कि उन्हें होश आ गया हो और वो उस संकरे रास्ते में...।”
“नहीं सोहनलाल।” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में टोका-“होश आने पर वो दोनों संकरे रास्ते की तरफ नहीं जायेंगे। ये दरवाजा खुला है। वो इधर से कुएं की सीढ़ियां चढ़कर, खुले आसमान में निकलेंगे।”
“ये बात तो ठीक कही...।” दया कह उठी।
“तो फिर वो दोनों किधर खिसकेला?”
मोना चौधरी पलटी और कुएं वाले दरवाजे की तरफ बढ़ी।
दरवाजे से बाहर निकलकर ऊपर देख देवराज चौहान बना जिन्न बाधात अभी भी कुएं की मुंडेर से नीचे झांक रहा था। बाकी भी मोना चौधरी के पास आ गये थे।
“देवराज चौहान!” मोना चौधरी बोली-“यहां महाजन और जगमोहन नहीं हैं। कहां जा सकते हैं?”
सबने देखा।
देखते ही देखते देवराज चौहान का चेहरा जहरीली मुस्कान से भर उठा।
“क्या बात होएला बाप?”
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ी।
सोहनलाल के चेहरे पर भी अजीब से भाव उभरे।
फिर देवराज चौहान बना, जिन्न बाधात हंसने लगा।
मोना चौधरी चौंकी। दूसरे ही पल उसने उंगली में पहन रखी अंगूठी को देखा तो चौंक पड़ी। अंगूठी के नग का रंग बदला हुआ था। यानि कि उसके सामने जो भी है, वो दुश्मन है। दोस्त नहीं।
“कौन हो तुम?” मोना चौधरी पुनः ऊपर देखकर कठोर स्वर में बोली-“तुम देवराज चौहान नहीं हो सकते।”
मोना चौधरी के शब्द पूरे होते ही जिन्न बाधात असली रूप में आ गया।
“जिन्न बाधात...।” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“गड़बड़ होएला...।”
“कमीने...कुत्ते...।” राधा गुस्से से कह उठी-“तू इतना घटिया काम भी करता है। डूब मर।”
मोना चौधरी के दांत भिंच गये थे।
“तो तूने देवराज चौहान का रूप बनाकर हमें धोखा दिया।” मोना चौधरी गुर्राई।
“जिन्न बाधात सब कुछ कर सकता है। तुम मनुष्यों को अभी मेरी ताकत का अंदाजा नहीं है।” जिन्न बाधात हंसते हुए कह उठा-“तुम मनुष्यों के कामों में बाधा डालने का काम शैतान के
अवतार ने मुझे सौंपा है। मैं अपने मालिक के हुक्म की पूरी तरह तामील कर रहा हूं...।” जिन्न बाधात के शब्द पूरे हुए ही थे कि उसी पल नज़र आ रही सीढ़ियां गायब हो गईं। वो सामान्य कुआं बन गया।
“सीढ़ियां गायब हो गईं।” राधा के होंठों से निकला-“अब हम ऊपर कैसे जायेंगे?”
“सरजू...।” दया के चेहरे का रंग फक्क पड़ गया था-“अब क्या होगा।”
“मालूम नहीं।”
“तू तो बोत ही घटिया जिन्न होएला...।”
“मेरे मालिक तुम बन जाओ।” जिन्न बाधात हंसा-“मेरे से अच्छे-अच्छे काम कराकर मुझे अच्छा जिन्न बना दो।”
“तुमने हमें कहां फंसाया है?” मोना चौधरी के होंठ भिंचे हुए थे।
“तिलस्म के नीचे वाली सतह में। अब यहां का भी मजा लो। ये तिलस्मी कुआं है। कुएं का तिलस्म तोड़े बिना तुम लोग बाहर नहीं आ सकते। ऐसे में यहां से बाहर निकलने की कोशिश करना व्यर्थ है।” कहने के साथ ही जिन्न बाधात पुनः हंसा-“चलता हूं। वक्त आने पर पुनः बाधा डालने के लिये हाजिर हो जाऊंगा।” इन शब्दों के साथ ही जिन्न बाधात उनकी निगाहों के सामने से गायब हो गया। उसकी जगह धुएं की लकीर ही बाकी रही फिर वो भी गायब हो गई।
“इस कमीने जिन्न को तो मैं नोंच-नोंच कर खा जाऊं...।” राधा गुस्से से कह उठी।
“तब भी ये नेई सुधरेला...।”
“ये सब क्या हो रहा है। मेरी समझ में पूरी तरह कुछ भी नहीं आ रहा...।” सरजू कह उठा।
“समझने को खास कुछ नहीं है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“हम शैतान के अवतार के तिलस्म में फंस चुके हैं। ये जिन्न जगह-जगह पर हमें तंग करने में भटकाने में लगा है। यहां से हम बाहर नहीं निकल सकते।”
“बाहर निकलने का कोई तो रास्ता होगा।” सरजू बोला।
“इन हालातों में हम बाहर निकलने का रास्ता भी नहीं तलाश कर सकते। जिन्न बाधात हमें अटका देता है।”
“सरजू...।” दया की आंखों में पानी चमक उठा-“यहां तो हम मर जायेंगे।”
“हो सकता है।” सरजू ने गम्भीर स्वर में कहा-“हम इनके साथ हैं। जो इनके साथ होगा, वो ही हमारे साथ होगा।”
“मुझे भूख लगी है।” दया ने सरजू को देखा।
“यहां तो खाने को कुछ भी नहीं है।”
“हौसला रख दया।” राधा कह उठी-“बेशक ये तिलस्म हमारी
जान ले ले। लेकिन इस विश्वास को जिन्दा रखना है कि हम नहीं मरेंगे। शायद हमारा विश्वास, किसी मौके पर काम आ जाये।”
रुस्तम राव ने मोना चौधरी के गम्भीर चेहरे को देखा।
“तुम क्या सोचेला बाप?”
“जिन्न बाधात के मुताबिक हम गहरे तिलस्म में आ पहुंचे हैं।” मोना चौधरी बोली।
“तो क्या, होएला। फंसे तो हम पैले भी होएला।”
“रुस्तम!” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर कहा-“मैंने कहा है कि हम गहरे तिलस्म में फंस चुके हैं। यहां हमारे सामने ऐसे खतरे आयेंगे कि हथियारों के बिना उनका मुकाबला करना असम्भव है।”
“हथियार?”
“तिलस्मी हथियार।” मोना चौधरी कुछ परेशान हुई-“जो कि हमारे पास नहीं हैं।”
“अगर कोई खतरा आया तो क्या होगा?” राधा कह उठी।
“मौत...।”
एकाएक गहरी खामोशी छा गई वहां।
“सुना सरजू...।” दया की आवाज भय से कांप उठी-“हम
मर जायेंगे। हमारा ब्याह नहीं होगा। हमारा प्यार...।”
तभी मोना चौधरी बोली।
“यहां खड़े रहना बेकार है।”
“तो जाईला किधर को बाप?”
“वो ही संकरा सा रास्ता जो कमरे में नजर आ रहा है, हमें उसी रास्ते पर आगे बढ़ना होगा।”
इसके अलावा दूसरा रास्ता भी नहीं था।
वो सब कमरे में पहुंचे और आगे बढ़ते हुए एक-एक करके संकरे रास्ते में प्रवेश करते चले गये। सबसे आगे मोना चौधरी थी।
रास्ता इस कदर तंग था कि कभी-कभार दीवार से टकराकर कंधों के रगड़े जाने पर दर्द का एहसास जाग जाता। ऐसे में उन्हें टेढ़ा होकर चलना पड़ता।
“जिन्न बाधात, नम्बरी हरामी जिन्न होएला।”
“उसी ने हमें तिलस्म में फंसाया है।” राधा सड़े स्वर में कह उठी।
“अब चुप भी कर जाओ।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“मालूम नहीं, हमारे साथ आगे क्या होता है।”
☐☐☐
आधे घण्टे बाद वो संकरा रास्ता कुछ खुला सा हो गया था। अब उन्हें आगे बढ़ने में परेशानी नहीं आ रही थी। उनके कदमों की आवाजें सन्नाटे को भंग कर रही थीं। पूरे रास्ते में मध्यम सा प्रकाश फैला हुआ था। वो प्रकाश कहां से आ रहा था, ये कोई भी नहीं समझ पाया।
कुछ देर बाद ही वो संकरा रास्ता खत्म होता महसूस हुआ। कुछ और कदम उठाने के बाद उन्होंने खुद को एक बड़े से कमरे में पाया।
वो सब ठिठक कर कमरे में नजरें दौड़ाने लगे।
सजावट और साजो-सामान से भरपूर था वो कमरा, सोफा, बेड, कुर्सियां-टेबल, आराम की हर वो चीज वहां मौजूद नज़र आ रही थी। परन्तु उसे देखकर उनके चेहरे पर हर तरह के भाव आ ठहरे।
वो बहुत ही खूबसूरत युवती थी। जमकर शृंगार कर रखा था। लाल रंग की साड़ी पहने थी वो। बेड पर आरामदेह मुद्रा
में बैठी, दोनों हाथों से किसी जानवर को पकड़े खा रही थी। उसके दोनों हाथ और मुंह जानवर के खून से सने हुए थे। देखते ही देखते उसने मांस का टुकड़ा तोड़ा और चबाते हुए उन सब से बोली।
“भूख लगी है तो खा लो। बहुत मजा आयेगा।” साथ ही वो हंसी।
“छी...।” राधा ने तीखे स्वर में कहा-“इन्सान क्या ये सब खाते हैं।”
“इन्सान।” वो हंस पड़ी-“मैं इन्सान नहीं हूं। प्रेतनी चंदा हूं। हमें यही खाना अच्छा लगता है।”
“प्रेतनी...?” दया की आवाज थरथरा उठी।
“हां। कभी इसी लाल जोड़े में मैं ब्याही थी। सुहागरात में ही मेरे पति ने गला दबाकर मेरी हत्या कर दी, क्योंकि मैं उसकी पसन्द का दहेज नहीं ला सकी थी। ऐसी मौत मिलने की वजह से मुझे मुक्ति नहीं मिल सकी और प्रेत योनि में चली गई। प्रेतनी बन गईं। सबसे पहले मैंने उसके खानदान को मार डाला, जिसने मेरा गला दबाया था। उसके बाद मैं आवारा होकर पेड़ पर रहने लगी। तभी शैतान ने मुझसे बात की और कहा कि अगर मैं उसके साथ रहकर, उसके लिये एक हजार एक लोगों की जान लूंगी तो वो मुझे प्रेत योनि से मुक्ति दिला देगा। मुझे सहारा तो चाहिये ही था। इसलिये मैं शैतान की सेवा में आ गई। और अब एक हजार एक पूरे होने के सिर्फ दो ही जानें लेना बाकी है। आज बहुत खुश हूं मैं। तुम में से दो को मारकर प्रेत योनि से छुटकारा पा लूंगी। शैतान मुझे आजाद कर देगा और...।”
“कब से हो तुम शैतान के साथ?”
“पांच सौ बरस हो गये।” प्रेतनी चंदा कहने के साथ ही जोर से ठहाका मार कर हंस पड़ी। इसके साथ ही उसने हाथ में पकड़ा जानवर एक तरफ फेंका और बेड से नीचे उतर आई।
“शैतान तुमसे झूठ बोलकर, पांच सौ बरस से, अपने कामों में तुम्हारा इस्तेमाल कर रहा है।” मोना चौधरी के दांत भिंचते चले गये-“अगर भले कार्य किए होते तो भगवान ने खुद-ब-खुद ही तुम्हें प्रेत-योनि से मुक्ति दिला देनी थी। शैतान की शैतानियत से तुम कभी आजाद नहीं हो पाओगी।”
“खामोश हो जाओ बेवकूफ।” वो गुस्से से कह उठी-“खबरदार जो शैतान के खिलाफ कुछ कहा। तुममें से सिर्फ दो की जान लेकर मैं एक हजार एक लोगों की जानें लेने का काम पूरा कर लूंगी। शैतान ने दस बरस से मुझे यहां रहने को कह रखा है कि बहुत जल्द यहां पर मनुष्य पहुंचेंगे और तुम लोग आ गये। शैतान बहुत अच्छा है। अब वो मुझे प्रेत-योनि से मुक्ति दिला देगा।”
“ये तो आपुन को ऊपर खिसकाईला...।”
“सरजू...।” दया, सरजू के साथ चिपक गई।
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई। कठोर अंदाज में कश लिया।
“तू...कुत्ता-बिल्ली खाकर खुद को प्रेतनी कहने लगी।” राधा हाथ नचाकर बोली-“ऐसे तो मैं भी कुत्ता-बिल्ली खाकर तेरी जैसी बातें कहकर, सामने वाले को डरा सकती हूं...।”
प्रेतनी चंदा हंस पड़ी।
“बच्ची है अभी तू। तू नहीं जानती...।”
“बच्ची...।” राधा गुस्से से भर उठी-“मुझे बच्ची कहती है। मैं तेरे को बच्ची लगती हूं। शादी-शुदा हूं। इक्कीस साल छः महीने उम्र है मेरी। मैं कहां से बच्ची हुई...।”
प्रेतनी चंदा पुनः हंसी और कह उठी।
“एक हजार एक की गिनती पूरी करने के लिए, प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए मुझे सिर्फ दो जानों की जरूरत है। तुम में से कौन दो हैं, जो मेरे हाथों मरना चाहते हैं। मैं चाहूं तो पांचों को मार सकती हूं। लेकिन मैं सिर्फ दो की ही जान लूंगी। अगर मुझे खत्म कर सकते हो। हरा सकते हो तो हरा दो। उसके बाद ही तुम लोग यहां से आगे जा सकते हो।” प्रेतनी के स्वर में कठोरता आ गई थी।
सब व्याकुल भाव से एक-दूसरे को देखने लगे।
“जवाब दो।” प्रेतनी चंदा की आंखें सुर्ख पड़ने लगीं-“वरना
मैं तुम सबको मार कर खा जाऊंगी।”
“तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम मनुष्य हैं और मनुष्य प्रेतनी का मुकाबला नहीं कर सकता।” मोना चौधरी बोली।
प्रेतनी चंदा खतरनाक ढंग से हंस पड़ी।
“हम तुमसे मुकाबला करेंगे तो तुम अपनी ताकत का इस्तेमाल करके हमें मार दोगी।” मोना चौधरी गम्भीर थी-“शैतान ने तुम्हें अपनी सेवा में लिया है तो तुम्हें शक्तियां भी दी होंगी।”
“हां। समझदारी वाली बात की तुमने...।”
“लेकिन हमारे पास कोई शक्ति नहीं है। ऐसे में हम तुम्हारा मुकाबला करना भी चाहें तो नहीं कर सकते।”
“क्या कहना चाहती हो तुम?” प्रेतनी चंदा गुर्रा उठी।
“हमें मरने से एतराज नहीं।” मोना चौधरी के दांत भिंचते चले गये-“लेकिन हम चाहते हैं कि हमारी मौत हो तो मुकाबला करते-करते हो। ताकि मरने का ज्यादा दुःख न हो।”
“हूं। बातें तो तुम बहादुरी वाली कर रही हो।” उसने लाल सुर्ख आंखों से मोना चौधरी को घूरा-“लेकिन जो भी चाहती हो, स्पष्ट कहो।”
“तुम मुझे ऐसा हथियार दो, जिससे कि मैं तुम्हारा मुकाबला कर सकूं। अगर वास्तव में तुम बहादुर प्रेतनी हो और शैतान की इज्जत करती हो तो मुझे हथियार देकर, मुझसे मुकाबला करके मेरी जान लोगी।”
“मैंने आज तक ऐसा नहीं किया।” प्रेतनी चंदा गुस्से से गुर्रा
उठी-“परन्तु आज मैं खुश हूं। मेरा एक हजार एकवां शिकार पूरा होने वाला है। इसलिये मैं तेरी बात अवश्य मानूंगी।” कहकर उसने हवा में हाथ घुमाया तो उसी पल हवा में लहराता एक खंजर नज़र आने लगा-“ले ले इस खंजर को...।”
मोना चौधरी आगे बढ़ी और हवा में लहराते खंजर को मूठ से थाम लिया।
“ये खंजर तेरे पे क्या असर करेगा प्रेतनी चंदा?” मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में पूछा।
“इस खंजर की नोक भी मुझे लग गई तो मेरी सारी शक्तियां समाप्त हो जायेंगी। फिर मैं किसी की जान लेने के काबिल नहीं रहूंगी। तब मुझे वापस शैतान के पास, उसकी सेवा के लिए जाना होगा। और जब शैतान मेरी सेवा से खुश हो जायेगा तो सारी शक्तियां मुझे लौटा देगा।” प्रेतनी चंदा दांत पीसकर कह उठी-“लेकिन मैं जानती हूं कि तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी। उससे पहले ही मैं तेरी जान ले लूंगी।”
प्रेतनी चंदा पर नज़रें टिकाये मोना चौधरी गुर्रा उठी।
“तुम सब दीवार के साथ लग जाओ।”
सोहनलाल, रुस्तम राव, राधा, सरजू और दया पीछे हटते हुए
दीवार के साथ जा सटे। सबके चेहरे पर परेशानी-क्रोध और
व्याकुलता के भाव थे।
“मोना चौधरी नेई बचेला बाप...।” रुस्तम राव होंठ भींचकर बड़बड़ाया।
सोहनलाल ने दांत भींच लिए।
सबकी नज़रें मोना चौधरी और प्रेतनी चंदा पर थीं।
☐☐☐
मोना चौधरी की हथेली और उंगलियां खंजर की मूठ के गिर्द लिपट चुकी थीं। आंखों में वहशी जानवर के जैसे भाव नजर आ रहे थे। खतरनाक, घायल शेरनी से कहीं ज्यादा दरिन्दगी से भरी वो लग रही थी। मौत से भरी उसकी नज़रें प्रेतनी चंदा पर टिक चुकी थीं।
प्रेतनी चंदा के गुस्साये चेहरे पर खतरनाक मुस्कान फैल गई।
“तुम मेरा हजारवां शिकार होंगी।” वो कह उठी-“उसके बाद
एक और। फिर मेरी मुक्ति हो...।”
उसी क्षण मोना चौधरी ने खतरनाक उछाल भरी। खंजर वाली
बांह आगे कर दी थी कि उसकी नोक प्रेतनी चंदा के शरीर के किसी हिस्से में लग जाये। लेकिन वो सीधी आगे जाती हुई दीवार से जा टकराई और तुरन्त ही संभल कर पलटी।
प्रेतनी चंदा कहीं भी नज़र नहीं आई। अलबत्ता कमरे में मोटा
सा चमगादड़ उड़ता नज़र आया। उसके बाल जैसे पंजे फैले हुए थे। बड़े-बड़े नाखून नज़र आ रहे थे।
“ये चमगादड़, प्रेतनी चंदा होएला मोना चौधरी।” रुस्तम राव ने जल्दी से कहा।
तभी चमगादड़ ने तेज चीख के साथ मोना चौधरी पर झपट्टा मारा। जैसे वो पंजों के नाखूनों से मोना चौधरी के जिस्म को उधेड़ देना चाहता हो। मोना चौधरी खुद को बचाते हुए फौरन नीचे झुकी और खंजर वाला हाथ आगे कर दिया। चमगादड़ के पंजों के नाखून उसके कंधे पर रगड़ते चले गये।
मोना चौधरी ने दांत भींचकर पीड़ा को बर्दाश्त किया। खंजर थामे वो संभल चुकी थी। निगाह चमगादड़ पर ही थी जो अब और भी तेजी के साथ कमरे के चक्कर लेने लगा था।
हर कोई दम साधे ये सब देख रहा था।
तभी चमगादड़ किसी पत्थर की तरह मोना चौधरी के पांवों के पास गिरा। मोना चौधरी समझ भी नहीं पाई कि क्या हुआ। तब तक चमगादड़ अपने पंजों से उसकी पिंडली का ढेर सारा मांस नोंच कर उड़ता चला गया। और कमरे में उड़ता, चक्कर काटता, पंजों में दबे मांस को खाने लगा।
मोना चौधरी के होंठों से जोरों की चीख निकली और नीचे जा गिरी। पैर पिंडली से फट गई थी। वहां से मांस इस तरह उधड़ा हुआ था जैसे किसी ने मुट्ठी में भींचकर, मांस को तोड़ लिया हो। चेहरे पर दर्द ही दर्द था। आंखों में पीड़ा की बेचैन छटपटाहट थी।
“मोना चौधरी...।” राधा ने आगे बढ़ना चाहा।
सोहनलाल ने उसी पल राधा को रोका।
“आगे जाने की कोशिश मत करना।”
“क्यों?” राधा बोली-“मोना चौधरी का हाल तो देखो, वो...।”
“जो देख रही हो, वो तो होना ही है। खामोशी से खड़ी रहो।” सोहनलाल ने गम्भीर-कठोर स्वर में कहा।
“लेकिन...।”
“चुप होएला बाप।” रुस्तम राव ने दांत भींचकर कहा-“ये वक्त खड़े रहने का होएला।”
दया खौफ से कांपती सरजू के साथ चिपकी खड़ी थी। सरजू का हाल भी बुरा था।
चमगादड़ की तेज चीख सुनकर मोना चौधरी की निगाह ऊपर गई। वो पुनः मोना चौधरी के सिर पर मंडराने लगा था। मोना चौधरी के दांत भिंच गये। अपनी पीड़ा को भूलना पड़ा। नहीं तो वो अच्छी तरह जानती थी कि बहुत जल्द प्रेतनी चंदा उसे मौत के दरवाजे के पार पहुंचा देगी।
मोना चौधरी उठी। खंजर वाला हाथ हवा में लहराया।
कमरे में तेजी से चक्कर काटते चमगादड़ ने मोना चौधरी की पीठ पर पंजा मारा और बड़े नाखूनों में उसकी पीठ का मांस नोंच कर लेता चला गया। मोना चौधरी चीखी। खंजर वाला हाथ पीछे की तरफ घुमाया। चमगादड़ को खंजर तो नहीं, अलबत्ता उसकी बांह अवश्य लगी। दर्द से मोना चौधरी का शरीर कांप सा उठा था।
चमगादड़ के नाखून पीठ में गहराई तक गये थे।
इस बार वो चमगादड़ बेड पर मौजूद तकिये पर जा बैठा और पंजे में फंसे मांस को आराम से खाने लगा। मोना चौधरी गुस्से और पीड़ा से भरी लाल सुर्ख आंखों से उसे देखने लगी
तभी प्रेतनी चंदा की हंसी की आवाज वहां गूंज उठी।
चमगादड़ का मुंह खुला हुआ था। वहीं से हंसने की आवाज आ रही थी।
“मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। तुम अब कुछ ही देर की मेहमान हो।” प्रेतनी चंदा की आवाज सुनाई दी।
“वहम में मत रहो।” मोना चौधरी गुर्रा उठी-“तुम्हारा अंत मेरे ही हाथों होगा।”
प्रेतनी चंदा की हंसी की आवाज पुनः गूंज उठी।
“खुद में दम हो तो घमण्ड भी अच्छा लगता है। किस दम पर इतना कह रही है? इस खंजर के दम पर, जो मैंने ही तेरे को दिया है।” प्रेतनी चंदा की आवाज कानों में पड़ रही थी-“ये खंजर तो तभी तेरे काम का है, जब तू इसे मेरे शरीर पर लगा दे। लेकिन मैं तुझे ऐसा करने का मौका ही क्यों दूंगी। तुमने कैसे सोच लिया कि मनुष्य होकर प्रेतनी का मुकाबला कर लेगी।”
“मनुष्य तुम जैसों का मुकाबला भी करते हैं।” मोना चौधरी गुर्राई।
“अवश्य करते हैं। लेकिन उन मनुष्यों के पास हमसे लड़ाई करने की शक्ति होती है। तू साधारण मनुष्य है और मेरे पास तो
तू शैतान का आशीर्वाद भी है। लो आ रही हूं अपना हजारवां शिकार करने...।” इसके साथ ही बिजली की सी मध्यम चमक उभरी।
वो चमगादड़ उस चमक के साथ ही गायब हो गया।
उसकी जगह तकिये पर बड़ा सा खंजर पड़ा नजर आने लगा।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
हर कोई हक्का-बक्का सा ये सब देख रहा था।
देखते ही देखते वो खंजर तकिये से ऊपर उठा और हवा में घूमने लगा। धीरे-धीरे उसके घूमने की रफ्तार तेज होती जा रही थी। खंजर थामे मोना चौधरी की नजरें खंजर को देखते रहने का प्रयास कर रही थीं, परन्तु खंजर के घूमने में इस कदर तेजी आ गई थी कि मोना चौधरी की नज़रें खंजर को पकड़ने में सफल नहीं हो पाईं। तीव्रता से नज़रें घुमाने की वजह से सिर चकराने सा लगा था।
तभी मोना चौधरी की हरकतें थम सी गईं।
पल भर के लिए उसे लगा जैसे कोई तपता लोहा उसके पेट में समा गया हो। उसका शरीर जोरों से कांपा। दांत भिंच गये। चेहरे पर दर्द नाच उठा।
खंजर उसके पेट में धंस चुका था।
सबने देखा वे सकते में खड़े थे।
लेकिन जालिम लड़का, इन हालातों में भी पूरे होशो-हवास में था। ज्योंहि खंजर मोना चौधरी के पेट में धंसा, रुस्तम राव ने उसी पल बिजली की सी फुर्ती के साथ लम्बी छलांग मारी और मोना चौधरी से जा टकराया। साथ ही उसका हाथ मोना चौधरी के पेट में धंसे खंजर की मूठ पर टिक गया और झटके के साथ खंजर को बाहर खींचा।
मोना चौधरी के होंठों से तेज चीख निकली। एक हाथ उसने पेट पर जमा लिया, जहां खंजर धंसा था। चेहरा लाल सुर्ख हो उठा था।
रुस्तम राव ने पूरी ताकत के साथ खंजर को पकड़ रखा था। उसका ध्यान मोना चौधरी की तरफ न होकर, खंजर पर था।
“ये लड़का क्या कर रहा है?” राधा की आवाज वहां गूंजी।
“सोहनलाल पास पहुंचा-“ये वक्त मोना चौधरी को सभालने का है और तुम...।”
“बाप देखेला नेई। आपुन ने प्रेतनी चंदा को पकड़ेला है।” रुस्तम राव के होंठों से हिंसक स्वर निकला।
“ये क्या कह रहा है।” सोहनलाल के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
“आपुन परफैक्ट कहेला है।”रुस्तम राव उसी लहजे में कह उठा-“पहले प्रेतनी चमगादड़ बनेला फिर खंजर बनकर मोना चौधरी पर वार करेला। ये खंजर नेई प्रेतनी चंदा होएला बाप...।”
तभी मोना चौधरी की पीड़ा भरी आवाज उनके कानों में पड़ी।
“ये...ये ठीक कहता है।”
“मोना चौधरी!” रुस्तम राव सिर से पांव तक दरिन्दगी में लिपटा हुआ था-“तुम अपने हाथ में पकड़े खंजर को इस खंजर पर ये सोचकर मारेला कि ये प्रेतनी चंदा का शरीर होएला।”
“ऐसा मत करना।” ये आवाज जैसे खंजर से आती महसूस हुई। प्रेतनी चंदा की आवाज ही थी-“मुझे माफ कर दो। मैं तुम लोगों को कुछ नहीं कहूंगी।” इसके साथ ही रुस्तम राव को ऐसा महसूस हुआ जैसे खंजर उसके हाथ से निकलने की चेष्टा कर रहा हो।
रुस्तम राव ने दूसरा हाथ भी खंजर पर जमा दिया कि वो निकल न सके।
“आपनु तेरे को माफ नेई करेला।”
“ऐसा मत कहो।” खंजर से प्रेतनी चंदा की आवाज पुनः उभरी-“अपने भगवान के लिये मुझे माफ कर...।”
“तुम्हारा मालिक शैतान होएला...।”
“मैं तुम लोगों को अपना मालिक बना लूंगी। तुम सबकी सेवा
करूंगी। मुझे कुछ मत कहो...।”
मोना चौधरी ने अपनी पीड़ा पर काबू पा रखा था। पेट के जख्म पर हाथ टिका रखा था कि वहां से खून न बहे। लेकिन घायल पिंडली और पीठ उसे खड़े न होने दे पा रहे थे। उसने नीचे बैठना चाहा तो सोहनलाल ने आगे बढ़कर मोना चौधरी को सहारा देकर नीचे बिठा दिया। खंजर मोना चौधरी ने हाथ में दबाये रखा।
“हाय राम, इस कमीनी प्रेतनी ने मोना चौधरी की क्या हालत कर दी है।” राधा पास आ पहुंची थी।
“तुम मोना चौधरी को घायल किएला। वो अब मरेला तो...।”
“मैं उसे ठीक कर देती हूं।” खंजर से आवाज आई।
“कैसे ठीक करेला मोना चौधरी को?” रुस्तम राव के चेहरे पर दरिन्दगी नाच रही थी।
“जहां-जहां से जख्मी है, मेरा शरीर वहां लगा दो। ये ठीक हो जायेगी।”
“तुम्हारा शरीर?”
“ये खंजर ही तो मेरा शरीर है।”
दांत भींचे रुस्तम राव कदम उठाकर मोना चौधरी के पास पहुंचा और दोनों हाथों में खंजर को सख्ती से पकड़े नीचे झुका और खंजर का फल मोना चौधरी की पिंडली पर लगाया। उसी पल मोना चौधरी को करंट जैसा महसूस हुआ और टांग की पीड़ा गायब हो गई। पिंडली का जख्म जाने कहां चला गया। पैंट अवश्य वहां से फटी थी, परन्तु पिंडली पहले की तरह सामान्य हो चुकी थी।
मोना चौधरी ने राहत महसूस की।
“वाह, ये तो कमाल हो गया!” राधा खुशी से कह उठी।
सोहनलाल गम्भीर सा सब देख रहा था।
दांत भींचे रुस्तम राव ने इसी तरह मोना चौधरी के पेट और पीठ का जख्म ठीक किया।
मोना चौधरी सामान्य अवस्था में आते ही उछल कर खड़ी हो गई।
“छोड़ दो मुझे।” प्रेतनी चंदा की आवाज पुनः खंजर से आती महसूस हुई-“तुमने जो कहा, मैंने कर दिया है।”
जालिम लड़के के चेहरे पर वहशी मुस्कान नाचने लगी।
“तुझे छोड़ेला ताकि तू अपुन लोगों को खत्म करेला।”
“नहीं-नहीं। मैं ऐसा नहीं करूंगी। मेरा विश्वास करो।” खंजर से आवाज आई।
“तेरा प्रेतनी का विश्वास करेला अपुन। नेई आपुन मरने को नेई मांगता।” दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठा रुस्तम राव-“तेरी मौत
ही आपुन की जिन्दगी होएला।”
“ऐसा मत कहो। तुमने वायदा किया था कि...।”
“शैतानी धरती पर सारा वायदा बोगस होएला।”
मोना चौधरी पास आ पहुंची थी। उसके चेहरे पर भी खतरनाक
भाव नाच रहे थे।
रुस्तम राव ने मोना चौधरी को देख इशारा किया।
“नहीं।” खंजर से प्रेतनी चंदा की चीख जैसी आवाज आई। साथ ही रुस्तम राव को महसूस हुआ कि खंजर उसकी पकड़ से निकलने की पूरी कोशिश कर रहा है-“मुझे मत मार, मत मारो...।” मैं...।”
तभी मोना चौधरी ने अपने हाथ में पकड़े खंजर की नोक, दूसरे खंजर पर जोरों से मारी। ऐसा होते ही रुस्तम राव के हाथ में पकड़े खंजर से प्रेतनी चंदा की थर्रा देने वाली चीख निकली। दोनों हाथों में दबा खंजर इतनी जोरों से हिला कि रुस्तम राव के लिये जैसे खंजर संभालना कठिन हो गया। लेकिन उसने खंजर को हाथों से नहीं निकलने दिया। अब वो खंजर गर्म होता सा महसूस होने लगा था।
मोना चौधरी ने खंजर से, पुनः उस खंजर पर वार किया।
“आह...!” प्रेतनी चंदा का टूटा सा स्वर खंजर से निकल रहा था-“तुम लोगों ने मेरी पांच सौ बरस की मेहनत तबाह कर
दी। अब मुझे फिर शैतान की सेवा में जाना पड़ेगा। फिर यूं ही
भटकना पड़ेगा। गलती मेरी ही थी जो मैंने तुम लोगों को अपना खास खंजर दे दिया। आह, अब मेरा वजूद सिमट रहा है। कोई भी मुझे नहीं हरा पाया। लेकिन तुम लोगों ने मुझे बहुत बुरी हार दे दी।
दोनों हाथों में दबा खंजर, रुस्तम राव को और भी गर्म होता महसूस हुआ।
“तुम गर्म क्यों होएला?”
“मेरी शक्तियां भस्म हो रही हैं। मेरी ताकतें जल रही हैं अब क्यों पकड़ रखा है मुझे। सब कुछ तबाह हो गया है मेरा। तुम लोग अपनी किसी भी शक्ति से मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे। लेकिन मेरे दिये खंजर ने-।”
“तुम्हारे दिये खंजर की शक्ति भी खत्म ओ गयी है?” मोना चौधरी ने पूछा।
“नहीं।” रुस्तम राव के हाथ में दबे खंजर से प्रेतनी चंदा का थका सा स्वर आया-“मेरी वही शक्तियां, वही ताकतें जल रही है, जो इस वक्त मेरे पास हैं। तुम्हारे पास मेरा खास खंजर है। उसकी ताकत सलामत है, क्योंकि वो इस वक्त मेरे पास नहीं है। ये अब तुम्हारा हो चुका है। इसमें तुम मुझ पर कामयाब वार कर चुकी हो।”
उसी पल रुस्तम राव ने दोनों हाथों में दबा रखे, खंजर को कुछ दूर फर्श पर फेंक दिया। क्योंकि वो बहुत ज्यादा गर्म हो गया
था। खंजर के फर्श पर गिरने की आवाज उभरी और इसके साथ ही खंजर का आकार बड़ा होता चला गया। इसी दौरान उसका रूप बदला और प्रेतनी चंदा फर्श पर पड़ी नजर आई।
अब प्रेतनी चंदा का चेहरा पहले की तरह नहीं चमक रहा था।
मुरझाया सा लग रहा था। आंखों में पीलापन था। ऐसा लग रहा था जैसे उसमें जान ही न हो। वो बहुत कमजोर लग रही थी। चेहरे और शरीर पर झुर्रियां सी नजर आने लगी थीं। उसकी निगाह रुस्तम राव पर जा टिकी।
“तुमने।” वो मध्यम से स्वर में कह उठी-“तुमने मुझे हराया है। बहुत चालाक हो तुम। मेरी सारी शक्तियां छिन गई हैं। जल गई हैं। मैं तुमसे अपनी बरबादी का बदला भी नहीं ले सकती। मैं जा रही हूं शैतान की सेवा में। लेकिन तुम्हें कभी नहीं भूलूंगी।
अगर तुम मुझे न पकड़ते तो, मुझे कोई भी नहीं हरा सकता था।”
“आपुन को याद रख के, आपुन से मैरेज करेला क्या?” रुस्तम
राव हंसा।
प्रेतनी चंदा के कमजोर चेहरे पर मध्यम सी मुस्कान उभरी।
“मैं जा रही हूं शैतान के पास। साथ ही मुझे ऐसा महूसस हो रहा है कि तुमसे बहुत जल्दी फिर मुलाकात होगी।”
“आपुन से-।”
उसी पल, एकाएक प्रेतनी चंदा का शरीर इस तरह नजरों से
ओझल हो गया, जैसे हवा में घुल गया हो। लगा, जैसे वहां कुछ हो ही नहीं।
सोहनलाल ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला कि उसी क्षण बेहद तीव्र जमीनी कम्पन के साथ गड़गड़ाहट की तेज आवाज गूंजी। कम्पन इतना तीव्र था कि अथाह चेष्टाओं के पश्चात भी वे खुद को संभाल नहीं सके और लड़खड़ाकर नीचे जा गिरे।
जमीन अभी भी कांप रही थी।
“ये क्या होएला बाप?”
“वो कमीनी, जाते-जाते कोई जादू-टोना कर गई लगती है।” राधा गुस्से से कह उठी।
तभी ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें जरा सा उछाला हो। फिर जमीनी कम्पन और गड़गड़ाहट की आवाजें एकाएक रुक गईं। उन्होंने संभलते हुए आस-पास नजरें दौड़ाईं।
नया ही नजारा सबको देखने को मिला।
वो कमरा, वो जगह कुछ भी अब वहां नहीं था। उन्होंने खुद को जंगल जैसी जगह पर मौजूद पाया। शाम ढल रही थी। कुछ ही देर में अंधेरा होने वाला था।
“हम कहां आ गये?” राधा के होंठों से निकला।
“हम वहीं हैं, जहां थे।” मोना चौधरी उठते हुए बोली-“तिलस्म का वो हिस्सा प्रेतनी चंदा की जिन्दगी और मौत के साथ जुड़ा
था। इसके हारते ही तिलस्म का वो हिस्सा तबाह होकर गायब हो गया।”
सरजू और दया एक तरफ चिपके से गिरे पड़े थे।
“तुम दोनों ठीक हो?” मोना चौधरी उनके पास पहुंची।
“ड-डर लग रहा है।” सरजू भयपूर्ण स्वर में कह उठा।
“तो डरने की जरूरत नहीं है।” मोना चौधरी ने कहा-“खुद को संभालो।”
सोहनलाल ने बैठते हुए गहरी सांस ली और गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।
रुस्तम राव खड़ा हो चुका था। आसपास देख रहा था।
“तुमने मेरे पेट में धंसे खंजर को पकड़कर प्रेतनी चंदा को हरा दिया।” कहते हुए मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।
“बाप क्यों बच्चे को हवा देईला-।” रुस्तम राव दांत फाड़कर कह उठा-“वो जब चमगादड़ से खंजन बनेला तो समझेला कि खंजर तेरी बॉडी में घुसेला। वो खंजर ही प्रेतनी चंदा होएला। आपुन ने फौरन पक्का कि होएला कि जब वो खंजर तुम्हारी बॉडी में घुसेला तो आपुन खंजर को खिसकने का मौका दिए बिना ही पकड़ेला। वो ई किएला।”
“मैं तो तेरे को बच्चा समझती थी।” राधा बोली-“तू तो-।”
“आपुन बच्चा ही होएला-।”
सरजू और दया अब बहुत हद तक अपनी घबराहट पर काबू पा चुके थे।
सोहनलाल आराम से बैठा सिगरेट के कश ले रहा था।
तभी मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी।
“हम शैतान के अवतार के तिलस्म को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वो कभी भी सहन नहीं करेगा कि उसका तिलस्म बरबाद हो। वो गुस्से में भी आ सकता है।”
“तुम कहना क्या चाहती हो?” सोहनलाल ने मोना चौधरी को देखा।
“यही कि शैतान का अवतार कभी भी हम पर बड़ा वार कर सकता है।” मोना चौधरी कठोर और व्याकुल स्वर में कह उठी-“ऐसे वक्त के लिये हमें हर समय तैयार रहना चाहिये।”
“शैतान के अवतार के वार का जवाब देने के लिये हमारे
पास है ही क्या?” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“तुम्हारे
पास प्रेतनी चंदा का दिया खंजर है। तुम इससे जो कर सको, कर लेना-।”
मोना चौधरी की निगाह, हाथ में दबे प्रेतनी चंदा के दिए खंजर पर जा टिकी।
“बहुत बुरा किया तुम मनुष्यों ने। हैरानी है मुझे कि साधारण मनुष्यों ने ये सब कैसे कर डाला!”
उन सबने फौरन आवाज की तरफ देखा।
पन्द्रह-बीस कदमों के फासले पर जिन्न बाधात खड़ा था।
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