हेमंत उन सबको ग्रेटर कैलाश पार्ट 1 के एक नर्सिंग होम में ले गया। इस वक्त नर्सिंग होम में हंगामा मचा हुआ था। एक हार्टअटैक हुए व्यक्ति को लाया गया था। उसके साथ पन्द्रह लोग आये थे। डॉक्टर और नर्स मरीज को स्ट्रेचर पर लिटाये जल्दी से एक तरफ ले जा रहे थे।
हेमंत उन लोगों को एक कमरे में ले गया।
उस छोटे-से कमरे में नीले रंग का नाइट बल्ब जल रहा था। बैड पर देवराज चौहान सोया पड़ा था। उसके चेहरे से लग रहा था कि अब वो पहले से काफी बेहतर है।
"यही है?" मौला ने पूछा।
"ह...हां...।" हेमंत ने कहते हुए सिर हिलाया।
"पक्का ये ही है।" मोहनलाल दारूवाला कह उठा--- "ये झूठ बोलता तो मैं सच बता देता।"
तभी देवराज चौहान की आंख खुल गई।
देवराज चौहान ने बारी-बारी सबको देखा। हेमंत से निगाह मिली तो हेमंत अपराध बोध से कह उठा---
"मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था...। ये लोग मुझे मार रहे थे।"
"पीछे तकिया लगाओ। मैं बैठूंगा।" देवराज चौहान ने कहा। हेमंत ने तकिए लगाए।
देवराज चौहान टेक लगाकर बैठ गया।
"ये वो ही ईराकी लोग हैं?" देवराज चौहान ने मोहनलाल से पूछा। मोहनलाल दारूवाला ने फौरन सिर हिला दिया।
"इन्हें मेरे पास लाने की क्या जरूरत थी?"
"मुझे पकड़ लिया था। डॉयरी मांग रहे थे। परन्तु वो डॉयरी तो मैं तुम्हें दे गया था।" मोहनलाल ने कहा।
"मिस्टर देवराज चौहान!" हुसैन शांत स्वर में बोला--- "हम तुम्हें अपने बारे में बता देते हैं कि हम ईराक के एक ऐसे संगठन से संबंध रखते हैं जो कि ईराक में खतरनाक माना जाता है। इस संगठन का हर सदस्य खतरनाक है और हमारे संगठन के नेता सुलेमान बाजमी बहुत जल्दी ईराक के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। हम रहम करना नहीं जानते। हमें अपना काम पूरा करने की लालच रहती है और इस वक्त हमारा काम है उस काली जिल्द वाली डॉयरी को हासिल करना।"
देवराज चौहान हुसैन को देखने लगा।
"हमें पता चला है कि तुम जान गये हो कि वो डॉयरी क्या महत्व रखती है?"
"हां...।" देवराज चौहान ने कहा।
"सद्दाम हुसैन की दौलत ईराक की दौलत है। उस पर किसी एक का हक नहीं हो सकता। अमेरिका ने ईराक को पूरी तरह तबाह कर दिया है। ईराक की जनता को आर्थिक सहायता की जरूरत है। उनके पास खाने को रोटी नहीं है और ईराक को भी खड़ा करना है सुलेमान बाजमी साहब ने। राष्ट्रपति बनते ही यह सब काम शुरू हो जाएंगे। मरहूम सद्दाम हुसैन साहब की दौलत ही ईराक को पुनः जिंदा कर देगी और ये ही उनकी कामना थी।" हुसैन की आवाज में गंभीरता थी--- "अगर तुम सोचते हो कि सद्दाम हुसैन साहब की दौलत को अपना बना लोगे तो यह तुम्हारी बहुत बड़ी भूल है सुलेमान बाजमी साहब के जिंदा होते हुए यह नहीं हो सकता। वो दौलत ईराक की है और ईराक को ही मिलनी चाहिए। फिर भी हम तुम्हें डॉयरी के बदले पांच-सात करोड़ दे देंगे। तुम वो डॉयरी हमारे हवाले कर दो।"
"मैं सद्दाम हुसैन की दौलत लेना भी नहीं चाहता।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये तो अच्छी बात है मिस्टर देवराज चौहान।"
"जो दौलत इतनी बड़ी है कि वो ईराक को फिर से खड़ा कर सकती है, इतनी बड़ी दौलत को अपना बना कर मैं परेशान नहीं होना चाहता कि जीवन भर उसे संभालने में ही समय बिता दूं...।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"तुम्हारे विचार जानकर खुशी हुई। वो डॉयरी कहां है?"
"इस वक्त मेरे पास नहीं है। अगर वो डॉयरी चाहते हो तो दस करोड़ डॉलर ढूंढकर मेरे हवाले कर दो।"
"ये---ये गलत कह रहा है।" मोहनलाल दारूवाला हड़बड़ा कर कह उठा।
"दस करोड़ डॉलर तुम्हारी दौलत नहीं है।" मौला ने कहा।
"किसकी है?"
"उस पर जुगल किशोर का हक बनता है।"
"उस पर मेरा हक है। वो मैंने अपने तीन साथियों के साथ अमरीकियों से ली थी।"
"परन्तु तब वो, दौलत को जुगल किशोर को देने जा रहे थे।"
"इससे मुझे कोई मतलब नहीं। परन्तु तुम लोग जुगल किशोर की साइड क्यों ले रहे हो?"
"हमने जुगल किशोर को जुबान दी थी कि दस करोड़ डॉलर तलाश करके उसके हवाले...।"
"मेरे से पूछे बिना तुम कैसे जुबान दे सकते हो?" एकाएक मोहनलाल गुस्से से कह उठा--- "मैंने तो ये भी सोच रखा है कि उसे कहां खर्च करना है। वो मेरी है, मेरे पास है। मैं किसी को नहीं दूंगा।"
"मिस्टर देवराज चौहान।" मौला ने शांत स्वर में कहा--- "जुगल किशोर ने अमरीकी जासूस का अपहरण करके, दस करोड़ डॉलर फिरौती तय की थी। वो पैसा उसका है, तुम तो यूं ही बीच में आ गये।"
"मैं जरूरत नहीं समझता कि तुम लोगों को सफाई दूं। डॉयरी चाहिए तो दस करोड़ डॉलर जहां भी हैं, मेरे हवाले करो।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "वो मेरे और मेरे साथियों के थे। साथी मर चुके हैं, अब वो मुझे मिलने चाहिए।"
वहां खामोशी छा गई।
इराकियों की नजरें मिलीं।
"दस करोड़ डॉलर जुगल किशोर का है, उसे मिलना चाहिए।" हुसैन बोला।
"लेकिन उस तक पहुंचने से पहले ही डॉलर मिस्टर देवराज चौहान के हाथ में आ गए थे।" शेख ने कहा--- "जुगल किशोर के तो तब होते,जब अमरीकी पैसा उसके हवाले कर देते...।"
"परन्तु हम जुगल किशोर को यूं बाहर नहीं कर सकते। उसने ही हमें मोहनलाल के बारे में बताया कि वो कहां रहता है। तब हमने उसे जुबान दी थी कि दस करोड़ डॉलर हम उसके लिए तलाश करेंगे।"
मोहनलाल परेशान सा बारी-बारी सबको देख रहा था। वो झल्लाकर कह उठा---
"कम से कम मेरे से तो पूछ लो---। वो डॉलर मेरे पास हैं और मेरे हैं। मैं किसी को नहीं दूंगा।"
परन्तु उसकी बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।
"मेरे ख्याल में।" जाकिर ने देवराज चौहान को कठोर निगाहों से देखा--- "हमें इसकी गर्दन पकड़कर पूछना चाहिए कि डॉयरी किधर है?"
बाकी सबकी निगाह भी देवराज चौहान पर गई।
"तुम घायल हो।" मौला ने कहा--- "हम तुम्हे टॉर्चर करके भी पूछ सकते हैं कि...।"
देवराज चौहान ने ऊपर पड़ा लिहाफ हटाया और बैड से उतर कर खड़ा हो गया।
"डॉक्टर ने मुझे चलने-फिरने की इजाजत दे दी है।" देवराज चौहान बोला--- "इन हालातों में मेरे लिए इतना ही बहुत है कि मैं अपनी मर्जी से आ-जा सकूं। रही डॉयरी की बात--- तो वो तुम मेरी इच्छा के बिना नहीं पा सकते।"
वो सब देवराज चौहान को देखते रहे।
"इसका गला पकड़ लो।" मोहनलाल दारूवाला जल्दी से कह उठा--- "तोते की तरह बताएगा कि डॉयरी कहां पड़ी है?"
तभी हुसैन का जोरों का घूंसा देवराज चौहान के चेहरे पर पड़ा।
दो पलों के लिए देवराज चौहान का सिर झनझना उठा--- फिर अगले ही पल संभलते हुए उसने हुसैन के पेट में घूंसा मारा। हुसैन पीड़ा से झुकने लगा कि देवराज चौहान ने फिर से सिर की जोरदार टक्कर उसके सिर पर मारी।
हुसैन लड़खड़ा कर पीछे गिरने को हुआ कि वजीर खान ने उसे संभाल लिया।
"कोशिश कर लो, शायद मुफ्त में तुम्हें डॉयरी मिल जाये।" देवराज चौहान ने सर्द लहजे में कहा।
मोहनलाल दारूवाला के चेहरे पर सिटपिटाहट के भाव थे।
पल भर के लिए उनके बीच सन्नाटा छा गया।
हुसैन, मौला, और शेख के चेहरे कठोर हो गए। परन्तु वजीर खान संभला सा दिखा। उसकी अनुभवी आंखों ने पहचान लिया था कि देवराज चौहान साधारण इंसान नहीं है।
तभी हेमंत सूखे होंठों पर जीभ फेर कह उठा---
"पागलों की तरह झगड़ा मत करो। ये हिन्दुस्तान का नामी डकैत मास्टर देवराज चौहान है। इससे पंगा लोगे तो इससे जीत नहीं पाओगे और डॉयरी भी हाथ से जायेगी। मेरी मानो तो...।"
तभी वजीर खान आगे आया और अपने साथियों से बोला---
"हमें डॉयरी से मतलब होना चाहिए, जिसके लिए हम ईराक से आये हैं। सुलेमान बाजमी साहब को पूरा यकीन था कि हम डॉयरी लेकर लौटेंगे। दस करोड़ डॉलर कौन लेता है, इससे हमें कोई मतलब नहीं...।"
हुसैन पेट थामें गहरी-गहरी सांस ले रहा था। चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।
"ठीक है। हमें डॉयरी से मतलब होना चाहिए।" शेख ने सिर हिलाया--- "तुम ठीक कहते हो।"
"ये हमें शराफत से डॉयरी देने को तैयार है और बदले में दस करोड़ डॉलर चाहता है, जो इस मोहनलाल के पास...।"
"क्या मतलब?" मोहनलाल दारूवाला भड़क उठा--- "तुम लोग क्या मेरे से डॉलर लेकर इसको देना चाहते हो? ये कभी नहीं हो सकता। मैं किसी को नहीं दूंगा। मैं...।"
वजीर खान आगे बढ़ा और मोहनलाल का गला पकड़ लिया।
"ये क्या करते...।"
"तुम हमें दोगे वो डॉलर...।" वजीर खान गुर्राया।
"नहीं। किसी भी कीमत पर नहीं दूंगा। तुमने मुझे क्या समझ रखा है?"
"यहां हंगामा हुआ तो हम पुलिस की नजरों में आ जायेंगे।" जाकिर ने कहा--- "ले चलो इसे।"
शेख ने देवराज चौहान से कहा---
"तुम्हें हमारे साथ चलना होगा मिस्टर देवराज चौहान। हम तुम्हें इससे दस करोड़ डॉलर लेकर देंगे और डॉयरी ले लेंगे।"
"बेशक मैं चलने को तैयार हूं...।"
"मैं नहीं दूंगा दौलत...मैं...।"
"चुप रहो।" वजीर खान गुर्राया--- "अभी हम तुम्हें सिर्फ अपने साथ ले जा रहे...।"
"मैं नहीं जाऊंगा तुम लोगों के साथ। तुम लोगों ने वादा किया था कि तुम्हें डॉलर नहीं डॉयरी चाहिए...अब...।"
"ले चलो इसे।" मौला गुर्रा उठा।
"मेरा तो तुम लोगों के साथ कोई काम नहीं है।" हेमंत जल्दी से कह उठा।
"तुम्हारा कोई काम नहीं।" वजीर खान ने सख्त स्वर में कहा--- "परन्तु तुम लोगों को मत बताते फिरना की डॉयरी में क्या है?"
हेमंत ने सिर हिला दिया।
"मेरी भी तो सुनो...।" मोहनलाल दारूवाला पांव पटककर बोला--- "मैं किसी भी कीमत पर डॉलर नहीं दूंगा...।"
"यहां से चलो। तुमसे भी बात कर लेते हैं।" शेख ने कहकर उसकी बांह पकड़ ली।
■■■
"ये तुम मुझे कहां ले आये...।" लक्ष्मी होश में आते ही गुस्से से कह उठी--- "मोहनलाल तुम्हारी हड्डियां तोड़ देगा।" उसके हाथ बंधे हुए थे।
जुगल किशोर ने लक्ष्मी को घूरते हुए सिगरेट सुलगाई।
"धुआं बंद करो, मुझे अच्छा नहीं लगता।" लक्ष्मी ने कलपकर कहा।
जुगल किशोर ने धुआं उसके चेहरे पर मारा।
"बड़े कमीने हो तुम...।"
जुगल किशोर हँसा।
तभी दरवाजा खुला और एक आदमी ने चाय के गिलास के साथ भीतर प्रवेश किया।
"गुरु चाय...।" वो पास आकर बोला।
"तुम्हें बे-वक्त तकलीफ दी।" जुगल किशोर चाय का गिलास थामते मुस्कुरा कर बोला।
"क्या बात करते हो यार! मुझे तो खुशी हुई कि तुमने मुझे सेवा का मौका दिया।" वो दांत फाड़ कर बोला।
"जाते वक्त दरवाजा बंद कर देना।" जुगल किशोर ने चाय का घूंट भरा।
"बस एक बात ध्यान रखना गुरु... कि ये चीखे-चिल्लाये नहीं। रात का वक्त है, इसलिए...।"
"मैं चीखूंगी। चिल्लाऊंगी। यहां पुलिस आ जाएगी और...।"
"मैं तुम्हारे मुंह में ऐसा कपड़ा ठूंस दूंगा जो गले तक चला जाएगा और तुम्हारी सांस रुक जाएगी।" जुगल किशोर दांत भींचकर कह उठा--- "और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि तुम जिंदा रहती हो या मर जाती हो।"
वो आदमी बाहर निकल गया और दरवाजा बंद कर गया।
लक्ष्मी, जुगल किशोर को देखती जा रही थी। फिर बोली---
"मुझे क्यों इस तरह उठा लाये?"
"जान बचाना चाहती हो या मरना?"
"मरना क्यों चाहूंगी?"
"मैं तुम्हारे पति को भी मार दूंगा।"
"तुम इतने बुरे काम क्यों करते हो? मैं तुम्हें फिल्मों में विलेन का रोल दिला सकती हूं। करोगे?"
"विलेन का रोल?"
"हां। मैं उस फिल्म में हीरोइन हूं। तुम्हें विलन का काम...।"
"चुप रहो...।" जुगल किशोर गुर्राया।
"लोग तो मरे जाते हैं फिल्म में काम पाने के लिए और तुम मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे...।"
"डॉलर कहां हैं?"
"डॉलर! मुझे क्या पता कि कहां हैं। मोहनलाल के पास होंगे।"
"उसने कहां रखे...?"
"मेरे से क्यों पूछते हो, उससे पूछो कि...।"
"निजामुद्दीन स्टेशन के क्लॉक रूम में रखे हैं ना डॉलर?"
"मालूम है तो फिर पूछते क्यों हो?"
"वो आधे हैं बाकी की आधे कहां हैं?" जुगल किशोर के चेहरे पर गंभीरता थी।
"मुझे नहीं पता।"
"तो किसे पता है?"
"मोहनलाल को। परन्तु वो तुम्हें किसी कीमत पर नहीं देगा। वो...।"
"उसकी तो माँ भी देगी।" जुगल किशोर गुर्राया।
"माँ कहां से देगी, वो तो मर चुकी है।"
"तो तू नहीं बतायेगी कि डॉलर कहां हैं?"
"मालूम नहीं तो कैसे बता दूं तेरे को?"
लक्ष्मी तीखे स्वर में कह उठी।
जुगल किशोर ने सिगरेट जूते तले मसली और चाय की घूंट लेने लगा।
ये बोरियों से भरा पड़ा कमरा था। वहां इतनी ही जगह थी कि वो दोनों बैठ सकें। जुगल किशोर लकड़ी के एक स्टूल पर बैठा था और लक्ष्मी नीचे बोरी से टेक लगाए बैठी थी। उसके हाथ आगे की तरफ बंधे हुए थे।
"मुझे डॉलर न मिले तो पहले मैं तुझे मारूंगा, फिर तेरे पति मोहनलाल को...।"
"तू फिल्म में विलेन का रोल क्यों नहीं कर लेता? सच में बहुत अच्छा काम करता है तू। मैं देख ही रही हूँ। ये सब तूने कैमरे के सामने किया होता तो तू स्टार बन जाता। मोहनलाल से कहकर मैं तेरे को बढ़िया रोल दिलवा दूंगी।"
"मोहनलाल से कहकर?" जुगल किशोर की आँखें सिकुड़ी।
"एक बात बताऊं तेरे को...।" लक्ष्मी धीमे स्वर में बोली।
"क्या?"
"किसी से कहेगा तो नहीं?"
"बता बता...।" जुगल किशोर लक्ष्मी को घूर रहा था।
"मोहनलाल उन डॉलरों से बहुत बढ़िया फिल्म बनायेगा। मैं हीरोइन रहूंगी। तू विलेन बन जा। कसम से, एकदम हिट हो जायेगी फिल्म...।"
जुगल किशोर ने कहर भरी निगाहों से लक्ष्मी को देखा।
"तो तुम लोगों ने ये भी सोच लिया कि मेरे डॉलरों को कैसे बर्बाद करना है?" जुगल किशोर ने दांत भींचकर कहा।
"बर्बाद? क्या कहते हो! फिल्म हिट होगी और पैसा चार गुना बढ़...।"
तभी जुगल किशोर ने रिवाल्वर निकाल ली।
"मैं मोहनलाल से कहूंगी कि ये ही सीन रखे फिल्म में और...।"
"उल्लू की पट्ठी! बक-बक बंद कर। ये बता, बाकी के आधे डॉलर सलामत हैं ना?"
"सलामत...? क्या मतलब है तेरा?"
"फिल्म के चक्कर में उजाड़ तो नहीं दिए?"
"अभी कहां, अभी तो मोहनलाल फिल्म की कहानी लिख रहा है, उसके बाद...।"
जुगल किशोर उठा और आगे बढ़कर रिवाल्वर लक्ष्मी के माथे पर लगा दी।
"क्या सीन है!" लक्ष्मी कह उठी--- "ये फिल्म हिट होने से कोई नहीं रोक सकता।"
"भूतनी की, ये तेरी जिंदगी का आखिरी सीन बनने जा रहा है। डॉलरों के बारे में बता, वरना...।"
"मेरे से क्या पूछता है, मोहनलाल से पूछ। मैं तो आजकल अपनी फिगर मेंटेन करने में लगी हूं कि हीरोइन बन सकूं फिल्म में।"
"नंबर बता--- मोबाइल नंबर मोहनलाल का।"
लक्ष्मी ने मोहनलाल का मोबाइल नंबर बता दिया जुगल किशोर को।
■■■
मोहनलाल दारूवाला वापस उसी कमरे में पहुंच गया, जहां से भागा था। इस बार खिड़की को काफी मजबूती से बंद किया गया था और एक आदमी कमरे में उस पर नजर रखने को भी मौजूद था। वो आदमी भी ईराकी ही था। मोहनलाल मन ही मन बहुत परेशान था कि उसके नसीब के पत्ते पलटी मारकर फिर से वहीं ले आये हैं। परन्तु मन ही मन वो इस बात के लिए पक्का था कि डॉलरों को वापस नहीं देगा। वो उसके हैं। उसने फिल्म बनानी है। लक्ष्मी को हीरोइन बनाना है। सुनहरा भविष्य उसका इंतजार कर रहा है।
इन लोगों को डॉयरी चाहिए थी। देवराज चौहान डॉयरी देने के बदले डॉलर मांग रहा है।
गलती उसकी ही है।
उसने खामखाह ही बिना मांगे देवराज चौहान को डॉयरी दे दी। डॉयरी उसके पास होती तो सब कुछ ठीक हो जाना था।
बहुत झुंझलाया हुआ था इन हालातों पर मोहनलाल दारूवाला।
■■■
देवराज चौहान को एक कमरे में ले जाकर मौला ने कहा---
"तुम यहां पर आराम करो। हम अभी मोहनलाल से पूछते हैं कि उसने डॉलर कहां रखे हैं?"
"डॉलर मुझे मिल जायेंगे तो डॉयरी तुम लोगों को मिल जाएगी।" देवराज चौहान ने कहा।
"क्या अभी डॉयरी तुम्हारे पास है?" उसने पूछा।
"नहीं है। मैंने तलाशी ले ली है।" शेख कह उठा।
"डॉयरी सुरक्षित जगह पर है।" देवराज चौहान बोला--- "उसे वहां से कोई नहीं ले...।"
तभी सोहनलाल और मेनन ने भीतर प्रवेश किया।
"आखिर तुम लोग कब तक हमें इस तरह बंद रखोगे?" सोहनलाल ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।
अगले ही पल उसके कदम वहीं के वहीं ठिठक गए।
हैरानी से भरी नजरें देवराज चौहान पर जा टिकीं।
देवराज चौहान भी सोहनलाल को वहां देख कर हैरान हुआ।
"ये कौन है?" देवराज चौहान ने सोहनलाल पर नजरें टिकाये पूछा।
"सोहनलाल नाम है इसका। मिस्टर जुगल किशोर का साथी था।" वजीर खान ने कहा।
"इसे मेरे पास ही छोड़ दो। ये मेरी देखभाल करेगा।"
उसके बाद वे लोग सोहनलाल को वहीं छोड़कर मेनन को साथ लेकर बाहर निकल गये।
"तुम यहां कैसे?" सोहनलाल ने हैरानी से पूछा।
"यही तो मैं जानना चाहता हूं... कि तुम इन लोगों के पास क्या कर रहे हो?"
उसके बाद सोहनलाल और देवराज चौहान की बातें हुईं।
दोनों एक-दूसरे के सारे हालातों से वाकिफ हो गये।
"जुगल किशोर अब भी इन लोगों से संबंध बनाए हुए है।" देवराज चौहान ने कहा।
"कमीना-कुत्ता है वो।" सोहनलाल गुस्से से कह उठा--- "पूरी तरह बेईमान है।"
"वो ऐसा ही इंसान है। मुझे पहले भी एक बार धोखा दे चुका है...।" देवराज चौहान ने कहा।
"हम तीन लोगों के साथ मिलकर उसने अपहरण किया और उधर वीरा त्यागी को तैयार कर लिया कि जब फिरौती देने के लिए वो रास्ते में हों तो, डॉलरों को लूट लिया जाये और जब ये काम हो गया तो सबको मार कर सारे डॉलर ले भागना चाहता था।" सोहनलाल ने दांत भींचकर कहा--- "एक बार कमीना हाथ तो आ जाये! सारी गोलियां उसके सीने में उतार दूंगा।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"मैं तो चाहता हूं कि उसके हाथ कुछ भी ना लगे।" सोहनलाल ने पुनः कहा।
"लगता नहीं कि अब उसके हाथ कुछ आयेगा। बेईमानी से कभी फायदा नहीं होता सोहनलाल।"
"इन्होंने मुझे यहां कैद रखा हुआ...।"
"निश्चिंत रहो। अब तुम मेरे साथ हो।"
"तुम्हें यकीन है कि वो दस करोड़ डॉलर मोहनलाल से लेकर तुम्हें देंगे?"
"उन्हें डॉयरी की सख्त जरूरत है। ऐसे में उन्हें मेरे लिए डॉलर ढूंढने ही होंगे।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
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मौला, जाकिर, शेख, वजीर खान और हुसैन मोहनलाल दारूवाला के पास, उस कमरे में पहुंचे।
मोहनलाल दारूवाला सुलगा सा कमरे में टहल रहा था। उन्हें देखते ही भड़क उठा---
"आखिर तुम लोगों ने मुझे समझ क्या रखा है? बार-बार पकड़ कर बंद कर देते हो। कभी कोई आता है तो मेरे पे सवार हो जाता है, तो कभी कोई। जब मैंने कह दिया कि वो सारी दौलत मेरी है तो मेरी ही है।"
"चुप रहो।" वजीर खान दांत भींचकर कह उठा।
"तुम इस तरह मुझे चुप नहीं करा सकते। मैं फौजी हूं और...।"
वजीर खान गुस्से से मोहनलाल दारूवाला पर झपटा।
परन्तु शेख ने उसे रोकते हुए कहा---
"पहले मुझे बात करने दो वजीर...।"
वजीर दांत भींचता, ठिठक गया।
मोहनलाल दारूवाला सच में बहुत परेशान था।
शेख, मोहनलाल की तरफ बढ़ा तो वो कह उठा---
"तुम ये बात दिमाग से निकाल दो कि मैं पैसा तुम लोगों के हवाले कर दूंगा। मेरे सामने बहुत बड़ा खर्चा पड़ा है करने को। वो सब करना है। लक्ष्मी भी कभी नहीं चाहेगी कि मैं...।"
"मेरी बात सुनो मोहनलाल...।" शेख करीब पहुंचकर ठिठका--- "हमें डॉयरी हर हाल में चाहिए और वो डॉयरी देवराज चौहान के पास है। ये बात तो तुम जानते ही हो। ये भी जानते हो कि वो डॉयरी के बदले डॉलर मांगता है।"
"तो मैं क्या करूं?" मोहनलाल ऊंचे स्वर में बोला।
"तुम वो दस करोड़ डॉलर हमें दे दो--- ताकि हम अपनी डॉयरी को वापस पा...।"
"खूब! दस करोड़ डॉलर तुम्हें देकर नंगा हो जाऊं--- ताकि तुम लोग अरबों के खजाने का नक्शा पा सको? मुझे पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं डॉलर तुम लोगों को दे दूंगा? पागल दिखता हूं मैं...।"
"तुम्हें वो डॉलर हमें देने ही होंगे।"
"कभी नहीं...।"
"वो तुम्हारे नहीं हैं।"
"अब मेरे हैं।"
"तुम डॉलर हमें दो--- हम तुम्हें पांच करोड़ रुपये देंगे...।"
"पांच करोड़?"
"पांच करोड़ रुपये देंगे। उससे तुम...।"
"पांच करोड़ से क्या होगा, मैं नहीं देने वाला डॉलर। वो सिर्फ मेरे हैं।"
"दस करोड़ रुपये तुम्हें देंगे।"
"दस करोड़ डॉलर के बदले तुम मुझे दस करोड़ रूपये दोगे--- कौन मुझे अक्लमंद कहेगा? अगर मैंने तुम्हारी बात मान ली तो एक डॉलर पैंतालीस रुपये से भी ज्यादा का है--- और तुम एक डॉलर के बदले एक रुपया दे रहे हो।" मोहनलाल ने गुस्से में कहा--- "तुम लोग तो...।"
"शेख...।" हुसैन सख्त स्वर में बोला--- "ये सीधी तरह नहीं देगा।"
"मैं देखता हूं कैसे नहीं देगा।" होंठ भींचे वजीर खान मोहनलाल की तरफ बढ़ा।
"आ-आ... फौजी से झगड़ा करेगा।" मोहनलाल बांहें फैलाकर बोला।
तभी वजीर खान ने जोरों से घूंसा उसकी छाती पर मारा।
मोहनलाल लड़खड़ाया तो वजीर खान ने दोनों हाथों में उसे धक्का दिया तो वो पीछे को जा गिरा। परन्तु, फौरन ही उठ खड़ा हुआ और खतरनाक निगाहों से मोहनलाल को देखने लगा।
"मैं तुझे इतना मारूंगा मोहनलाल कि...।"
"तू पाकिस्तानी है?"
"गलत मत कह।" वजीर खान गुर्राया--- "मैं ईराकी हूं और...।"
"मैं तुझे पाकिस्तानी ही समझूंगा, तभी तो जी-जान से लड़कर, तुझे हरा दूंगा। आ...आगे बढ़...।"
वजीर खान दांत भींचे मोहनलाल पर झपटा।
मोहनलाल ने उसकी बांह पकड़कर वजीर खान के पेट में जोरदार घूंसा मारा। वजीर खान पीड़ा से दोहरा हुआ और झुककर मोहनलाल की टांगें खींच लीं। मोहनलाल धड़ाम से नीचे जा गिरा।
वजीर खान ने जोरों की ठोकर मारी मोहनलाल की कमर में।
मोहनलाल बिलबिला उठा।
तभी जाकिर आगे आया और नीचे पड़े मोहनलाल की छाती पर जूता रखकर कठोर स्वर में बोला---
"तुम हमारा मुकाबला करने की चेष्टा कर रहे हो?"
"मैं तो यहां से चले जाना चाहता हूं, तुम ही मुझे जाने नहीं दे रहे...।" मोहनलाल ने गुस्से से कहा।
"वो डॉलर हमें दो और दस करोड़ रुपये लेकर चले जाओ।"
"दस करोड़ रुपये में फिल्म नहीं बनती।"
"क्या...फिल्म? तुम फिल्म बनाने की सोच रहे हो?" मौला कह उठा।
"मैं कुछ भी करूं, तुम लोगों को क्या?"
"हम!" जाकिर ने खतरनाक स्वर में कहा--- "अभी तुम पर सख्ती करेंगे। तुम्हें यातना देंगे और तुम हमें डॉलर दोगे। जबकि हम चाहते हैं कि ऐसा ना हो। प्यार से पूछ रहे थे अब तक, परन्तु...।"
"फौजी को यातना से डर नहीं लगता।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा--- "वो डॉलर मुझे जान से भी प्यारे हैं।"
वजीर खान ने रिवाल्वर निकाली और आगे आया।
जाकिर दो कदम पीछे हट गया।
वजीर खान ने रिवाल्वर की नाल ठीक उसके दिल वाले हिस्से पर रखी और गुर्रा उठा---
"मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।"
"मुझे डराओ मत। मैं जानता हूं, तुम मुझे नहीं मार सकते। क्योंकि तुम्हें डॉलर चाहिए जो कि मेरे पास हैं।"
"मैं सच में मारने जा रहा हूं।" वजीर खान ने दांत किटकिटाकर कहा।
"मार कर दिखा...।" मोहनलाल खुंदक भरे स्वर में कह उठा।
वजीर खान उसे घूरने लगा। चेहरे पर मौत नाच रही थी।
"मार मार! मारता क्यों नहीं?"
वजीर खान ने एकाएक गहरी सांस ली और पीछे हट गया।
मोहनलाल दारूवाला उठा और अपने कपड़े झाड़ता हुआ कह उठा---
"मुझे गोली मारेंगे! सोचा मैं डरकर डॉलर दे दूंगा। फौजी हूं। डरने वाला नहीं। वो डॉलर सिर्फ मेरे हैं। जान दे दूंगा पर डॉलरों को नहीं दूंगा। मैंने फिल्म बनानी है। लक्ष्मी को टॉप की हीरोइन बनाना है। कहते हैं डॉलर मुझे दे दो...।"
वजीर खान ने अपने साथियों को देखा।
"ये इस तरह मुंह नहीं खोलेगा।" हुसैन ने गुस्से में कहा--- "यातना देकर इसका मुंह खुलवाना पड़ेगा। दो घंटों में ये मुंह खोल देगा।"
"इसे दूसरे कमरे में ले जाओ। जहां यातना देने का सामान---।" मौला कहते-कहते रुका। उसका फोन बजने लगा था।
"हैलो...।"
"मौला...।" उधर से बेहद शांत आवाज कानों में पड़ी।
मौला चौंका। उसने अपने साथियों पर नजर मारते हुए कहा---
"ओह, सुलेमान बाजमी साहब! आप कैसे हैं जनाब। मिजाज तो अच्छे हैं।"
"मैं वो डॉयरी का इंतजार कर रहा हूं। बहुत देर लगा दी...।" उधर से सुलेमान बाजमी की आवाज कानों में पड़ी।
सब इस तरह सतर्क हो गए जैसे सुलेमान बाजमी उनके पास खड़ा हो।
"चौबीस घंटों के भीतर हम सद्दाम हुसैन साहब की वो डॉयरी हासिल कर लेंगे बाजमी साहब। जिसके पास वो डॉयरी है, वो इस वक्त हमारी पकड़ में है। बस जरा सा मामला फंसा हुआ है, वो मामला किसी भी वक्त ठीक हो जाएगा।"
"डॉयरी के साथ जल्दी ईराक आओ। यहां के हालात अब हमारे पक्ष में होते जा रहे हैं।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
मौला ने गहरी सांस लेकर फोन कान से हटाया।
"सुलेमान बाजमी साहब थे?" वजीर खान ने बेचैनी से पूछा।
"हां।" मौला ने गंभीर स्वर में कहा--- "वो डॉयरी के साथ हमारी वापसी की राह देख रहे हैं।"
"काफी वक्त लग गया।" हुसैन ने कहा--- "हमें जल्दी से काम निपटाना चाहिए।"
सबकी निगाह पुनः मोहनलाल दारूवाला पर जा टिकी।
"हां-हां।" मोहनलाल दारूवाला हड़बड़ाया-घबराया सा कह उठा--- "अब मारो मुझे। मारो, ताकि मैं तुम्हें दौलत दे दूं। लेकिन मेरे जीते जी ये नहीं होगा। मैं एक पैसा भी नहीं दूंगा, बेशक जान दे दूंगा। फौजी हूं, पाकिस्तानियों की बात कैसे मान सकता हूं।"
"हम ईराकी हैं।" मौला गुर्राया।
"मैं पाकिस्तानी ही समझूंगा, तभी तो अच्छे ढंग से मुकाबला कर पाऊंगा।"
पांचों की नजरें मिलीं।
"सुलेमान बाजमी साहब भी चाहते हैं कि हम जल्दी डॉयरी लेकर ईराक पहुंचें। वो कह रहे थे कि हालात अब उनके पक्ष में हो रहे हैं। जनाब बाजमी साहब राष्ट्रपति बनने के करीब हैं। उन्होंने ईराक को फिर खड़ा करके, अमेरिका को दिखाना है। हमारे पास वक्त कम है, हमें जल्दी से डॉयरी लेकर ईराक पहुंच जाना चाहिए...।"
"इसे यातना वाले कमरे में ले चलो...।"
उसी पल मोहनलाल दारूवाला का मोबाइल बजने लगा।
"मैं नहीं जाऊंगा यातना वाले कमरे में। तुम लोग फौजी को सीमा पर हथियार डालने को कहकर यातना गृह में नहीं ले जा सकते। फैसला ऑन द स्पॉट होगा। यहीं पर। मैं मरने को तैयार हूं...।" मोहनलाल दारूवाला चीखा।
"यह पागल हो गया लगता है डॉलरों को हाथ से जाते देखकर...।"
"डॉलर तो मेरे ही पास हैं। गए कहां हैं?" मोहनलाल हाथ नचाकर बोला।
मोहनलाल की जेब में पड़ा मोबाइल बजे जा रहा था। एकाएक उसे फोन बजने का ध्यान आया तो वो जेब से मोबाइल निकालता, गुस्से में डूबा कह उठा---
"खबरदार जो किसी ने मेरे पास आने...।" उसने कॉलिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया--- "हैलो...।"
"नींद में थे क्या?" जुगल किशोर का स्वर कानों में पड़ा।
"तुम, हरामी, कुत्ते--- तुमने इराकियों को मेरे घर का पता बताया! उन्हें मेरे पास भेजा। मैं...।"
इराकियों की नजरें मिलीं।
वो समझ गये कि जुगल किशोर का ही फोन है।
"अभी तक उनके हाथों में फंसे हो क्या? देवराज चौहान से उन्होंने डॉयरी ली कि नहीं?"
"तू कमीना है, हरामी है। फौजी से पंगा लेगा तो भगवान भी तुझे माफ नहीं करेगा।" मोहनलाल गुस्से से कह उठा।
उधर से जुगल किशोर के हंसने की आवाज आई।
"डॉलर कैसे हैं मोहनलाल?"
"वो मेरे हैं और मेरे पास हैं। तुझे क्या कि वो कैसे भी हों! मैं तुझे नहीं देने वाला मंगते...।"
"वो मेरे हैं।"
"वो सिर्फ मेरे हैं।" मोहनलाल चीखा--- "मैं किसी को नहीं दूंगा।"
"लगता है तुम अभी तक घर नहीं पहुंचे?" उधर से जुगल किशोर ने पूछा।
"तेरे को क्या! मेरा घर है। मेरी मर्जी कि जब भी अपने घर जाऊं... पर तेरे को मेरा मोबाइल नंबर कहां से मिला?"
"बहुत देर बाद पूछी यह बात...।"
"बता--- मेरा नंबर...।"
"तेरी पत्नी लक्ष्मी मेरे पास है। उसी ने तेरा नंबर दिया। सुना कि तू डॉलरों से मुंबई जाकर फिल्म बनाना चाहता है।"
मोहनलाल बुरी तरह चौंका।
"तेरी पत्नी फिल्म में मुझे विलेन का रोल देना चाहती है। वो कहती है कि विलेन के काम में जचूंगा मोहनलाल...।"
"लक्ष्मी तेरे पास है?" मोहनलाल के होंठों से निकला।
"हां। मेरे सामने है। फर्श पर बैठी है। उसके हाथ बांध रखे हैं। अब तेरी फिल्म कैसे बनेगी? तेरी हीरोइन तो मेरे पास है।"
"तू तो बड़ा कमीना निकला। मर्दो पर जोर नहीं चला तो औरतों की आड़ ले ली! तू तो सच में---।"
"लक्ष्मी को जिंदा चाहता है या खत्म कर दूं?"
"खबरदार जो उसे हाथ भी लगाया तो...।"
"हाथ तो क्या उसे सब कुछ लगा सकता हूं। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया। परन्तु अब देख रहा हूं कि तू साली कमाल की चीज है। ढेर सारी खूबसूरत भी है। अंग-अंग जैसे बुलावा दे रहा है। क्यों मोहनलाल--- स्वाद कैसा है इसका?"
"खबरदार, वो मेरी पत्नी है।" मोहनलाल फोन पर चीखा--- "उसे हाथ भी लगाया तो गर्दन काट दूंगा।"
"ये...ले...। हाथ लगा दिया। अब क्या करेगा तू?" जुगल किशोर की हंसी भरी आवाज आई।
मोहनलाल दारूवाला तिलमिला उठा। चेहरा धधक उठा।
"शर्म नहीं आती तुझे--- पराई औरत को हाथ लगाता है?" कसमसाया-सा मोहनलाल तड़प कर बोला।
"तेरे को हीरोइन जिंदा चाहिए कि नहीं?" अब जुगल किशोर की आने वाली आवाज में खतरनाक भाव आ गए थे।
"खबरदार जो...।"
"सीधी तरह बता फौजी, वरना तेरी हीरोइन के सिर में गोली मार दूंगा। रिवाल्वर मेरे पास है।"
मोहनलाल दारूवाला संभला।
उसे लगा कि मामला गंभीर है।
उसने सामने खड़े पांचों को देखा।
सब खामोश थे और सबकी निगाह मोहनलाल पर थी।
"बोलती बंद हो गई तेरी?" जुगल किशोर की आवाज पुनः कानों में पड़ी।
"मेरी पत्नी को तूने क्यों पकड़ा।"
"डॉलर दे दे वरना तेरी हीरोइन मारी जाएगी। कानों में पड़ने वाले जुगल किशोर के स्वर में दरिंदगी थी।
मोहनलाल दारूवाला से कुछ कहते नहीं बना।
"सुना तूने?"
"लक्ष्मी तेरे पास है?" मोहनलाल गंभीर था।
"बिल्कुल पास। उसके दिल की धड़कन मैं सुन रहा हूं।" जुगल किशोर के स्वर में जहरीलापन आ गया।
"ऐसा मत कर कमीने...।"
"तो मेरे डॉलर दे दे। वरना...।"
"लक्ष्मी से मेरी बात करा...।"
"कर ले...।"
दो पलों बाद लक्ष्मी की आवाज कानों में पड़ी।
"मोहनलाल...।"
"ओह लक्ष्मी! तू ठीक है ना?"
"अभी तक तो ठीक हूं। मैंने इसे कहा तेरे को विलेन का रोल दे देंगे पर मानता नहीं। ये तो...।"
"तेरे साथ इसने कुछ किया तो नहीं?"
"करके तो देखे, मुंह नोच लूंगी। फौजी की बीवी हूं। ऐसी-वैसी नहीं।"
"शाबाश...। तू है कहां पर?"
"पता नहीं। ये मुझे बेहोश करके लाया था।"
"बेहोश करके... कहीं इसने बेहोशी में तेरे साथ गड़बड़...।"
"ऐसा कुछ नहीं है मोहनलाल। होता तो मेरे को पता चल जाता।" लक्ष्मी की आवाज आई।
"तू बता? अब मैं क्या करूं लक्ष्मी? ये डॉलर मांगता है। दे दिए तो फिल्म नहीं बनेगी। नहीं दूंगा तो तुझे मार देगा।"
"मैं हीरोइन बनना चाहती हूं मोहनलाल। तूने वादा किया था कि...।"
"तू वहां से भाग आ...।"
"कैसे भागूं? ये तो मेरे सिर पर बैठा है। रिवाल्वर भी दिखाता है। हाथ भी बांध रखे हैं।कुछ देर पहले कह रहा था कि मैं खूबसूरत बहुत हूं और फौजी के चक्कर में क्यों पड़ी हूं। कहता है मेरे साथ भाग चल--- रानी बनाकर रखूंगा।"
"हरामी ऐसा बोलता है। जरा उसे फोन दे...। साले को ठोंकता हूं।"
फिर जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी---
"इसने तेरे को सब बता दिया मोहनलाल कि मैं...।"
"तू मेरी पत्नी पर लाइन क्यों मारता है? उसे फंसाने के चक्कर में पड़ेगा तो डॉलर भी जायेंगे।"
"तो तू डॉलर दे रहा है मुझे...।"
"सोचा नहीं...।"
"सोच ले। तेरी हीरोइन मेरे पास है। खूबसूरत भी है। मुझे भी काफी दिन हो गये...।"
"किस बात को काफी दिन हो गये?" मोहनलाल का स्वर एकाएक तेज हो गया--- "क्या मतलब है तेरा?"
"तू ठीक समझ रहा है मेरा मतलब।"
"भूतनी के, तेरी तो---।"
"मैं चार घंटे बाद फोन करूंगा। अगर तूने डॉलर नहीं दिए तो तेरी हीरोइन खत्म।" इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
मोहनलाल फोन कान से लगाए ठगा सा खड़ा रहा।
चेहरे की रंगत फीकी पड़ गई थी। उसने फोन वाला हाथ नीचे किया। फोन जेब में रखा।
"जुगल किशोर था?" जाकिर ने पूछा।
"वो ही कमीना था। मेरी पत्नी को कहीं पर कैद कर लिया है उसने। कहता है डॉलर उसे दे दूं, वरना वो उसे मार देगा।"
इराकियों की आपस में नजरें मिलीं।
"तुम डॉलर हमें दोगे।" मौला सख्त स्वर में कह उठा।
"और मेरी पत्नी?" मोहनलाल दारूवाला भड़का--- "उसका क्या होगा?"
"उससे हमें कोई मतलब नहीं। डॉलरों की वापसी के बदले हम तुम्हें दस करोड़ रुपये...।"
"मेरी पत्नी से तुम लोगों को कोई मतलब नहीं--- परन्तु मुझे मतलब है।" मोहनलाल ने गुस्से से कहा--- "वो कमीना मेरी पत्नी को उठाकर ले गया। वो कहता है कि अगर उसे डॉलर नहीं दिए तो लक्ष्मी को मार देगा। फिर मैं तुम लोगों को डॉलर कैसे दे सकता हूं।"
"मतलब कि तुम जुगल किशोर को डॉलर दोगे?"
"सारे तो नहीं दूंगा। सौदा करूंगा। वो आधे-आधे में मान जायेगा। छोटे बजट की फिल्म बना लूंगा मैं।"
"कैसे दोगे तुम उसे पैसे?" वजीर खान क्रूरता भरे स्वर में मुस्कुरा पड़ा।
"क्या कहना चाहते हो?"
"तुम तो हमारी कैद में हो। फिर उसे डॉलर कैसे दोगे? कैसे अपनी पत्नी को छुड़ाओगे?"
"तो क्या तुम लोग मुझे छोड़ोगे नहीं?"
"क्यों छोड़ेंगे?"
मोहनलाल दारूवाला का चेहरा सख्त हो उठा।
"अगर हम तुमसे डॉलर लेकर देवराज चौहान को देते हैं तो वह हमें काली जिल्द वाली डॉयरी दे देगा।"
"मेरी मानो तो तुम उसे छत पर उल्टा लटका दो। साला तुरन्त-फुरन्त डॉयरी दे देगा।"
"हम तेरे को क्यों ना लटकाएं उल्टा...।"
"डॉयरी तो उसके पास है।"
"हम उसको कोई भी कष्ट पहुंचाना नहीं चाहते।" मौला कड़वे स्वर में बोला--- "हम नहीं चाहते कि उसे यातना देने पर उसे दिल का दौरा पड़े और वह मर जाये। इस तरह से डॉयरी हमेशा के लिए हमारे हाथों से निकल जाएगी। हमारे लिए सबसे सुरक्षित रास्ता है कि तुमसे डॉलर लेकर उसे दें और उससे डॉयरी ले लें।"
"मैं डॉलर नहीं दूंगा।"
"लेने हमें आते हैं।"
"फौजी से जबरदस्ती तुम लोग कुछ नहीं करा सकते?"
"इसे यातना वाले कमरे में ले चलो...।"
हुसैन और मौला आगे बढ़े और मोहनलाल को पकड़ लिया।
"तुम लोग ऐसा नहीं कर सकते। मुझसे डॉलर चाहिए तो मेरी पत्नी को उस कमीने से बचाओ...।" मोहनलाल चीखा।
"चलो...।" वो दोनों उसे खींचते हुए दरवाजे की तरफ ले जाने लगे।
"मैं फिर कहता हूं फौजी से पंगा मत...।"
वे लोग मोहनलाल को धकेलते हुए दरवाजे की तरफ ले गए।
"कोई फायदा नहीं होगा।" मोहनलाल चीखा--- "जब तक मेरी पत्नी उसकी कैद में है, तब तक...।"
"अभी तू मुंह खोलेगा।" जाकिर गुर्राया।
"कभी नहीं...।" मोहनलाल गुस्से में दांत भींच कर कह उठा।
"हमने बड़े-बड़ों का मुंह खुलवा लिया है।"
"वो फौजी नहीं होंगे। मैं फौजी...।"
■■■
मोहनलाल दारूवाला की हालत बुरी हो रही थी।
उसे एक छः फीट लंबी टेबल पर पीठ के बल लिटा रखा था और उसके हाथ-पाँवों में रस्सियां बांधकर चार आदमी रस्सियों को खींचते तो मोहनलाल दारूवाला की रूह कांप उठती। उसे लगता कि हाथ-पांव अभी अलग हो जाएंगे। होंठों से पीड़ा भरी चीखें निकलने लगतीं। दो घंटे से मोहनलाल दारूवाला का ये हाल हो रहा था।
पास में वजीर खान और मौला मौजूद थे। मौला बार-बार पूछ रहा था कि डॉलर कहां हैं।
परन्तु मोहनलाल था कि बताने को तैयार नहीं था। निढाल हो गया था वो।
"तुम इसी तरह से मर जाओगे।" वजीर खान गुर्रा उठा।
"मुझे नहीं पता कि डॉलर कहां पर हैं।" मोहनलाल चीखा--- "डॉलरों का पता सुनना चाहते हो तो लक्ष्मी को जुगल किशोर के पास से लाकर मेरे हवाले करो, तब आधे डॉलर तुम्हें दे दूंगा।"
"हमें पूरे डॉलर चाहिए। दस करोड़ डॉलर...।" मौला ने दांत भींच कर कहा।
"सालों एक भी नहीं दूंगा।" मोहनलाल गुस्से से तड़पा।
"खींचो...।" वजीर खान खतरनाक स्वर में कह उठा।
रस्सियां चारों दिशाओं को पुनः खींची जाने लगीं।
मोहनलाल दारूवाला शरीर पर खिंचाव पड़ते ही चीख उठा। शरीर पीड़ा से कांप उठा।
"खींचकर ही रखो।"
मोहनलाल दारूवाला जल बिना मछली की भांति तड़पने लगा।
"बता दो--- वरना मर जाओगे तुम इसी तरह...।"
"भारत माता की जय...।" मोहनलाल गला फाड़कर चीखा।
"ये क्या बकवास कर रहे हो?"
"फौजी के मुंह से ये ही निकलेगा मुसीबत में। तुम पाकिस्तानी कभी भी अपनी कोशिश में कामयाब नहीं...।"
"हम पाकिस्तानी नहीं ईराकी हैं।" मौला ने दांत किटकिटा कर कहा।
"मैं तुम लोगों को पाकिस्तानी ही समझूंगा। तभी मुकाबला कर पाऊंगा इन हालातों का।" मोहनलाल पीड़ा भरे स्वर में चीखा।
"यह पागल लगता है।"
"हां-हां मैं पागल हूं।" मोहनलाल पुनः चीखते स्वर में कह उठा।
"डॉलरों के बारे में बताओ...।"
"लक्ष्मी को ले आओ। आधे डॉलर दे दूंगा। नहीं तो एक भी नहीं, बेशक मेरी जान ले लो।"
मौला ने वजीर खान को देखा।
वजीर खान का चेहरा गुस्से से भरा हुआ था। वो चारों आदमियों से कह उठा---
"रस्सी ढीली करो और इसके शरीर पर कोड़े मारो...।"
रस्सी ढीली कर दी गई।
मोहनलाल ने चैन की सांस ली। पीड़ा से उसका शरीर झनझना रहा था।
"साले कुत्ते कहीं के...।" हांफता मोहनलाल कह उठा।
एक आदमी कोड़ा ले आया था। उसने कोड़ा मोहनलाल के नंगे बदन पर जोरों से मारा।
मोहनलाल चीख उठा।
"बता...।" वो आदमी बोला।
"तू हारामी है...।"
एक और कोड़ा पड़ा।
मोहनलाल पुनः चीखा।
मोहनलाल के जिस्म पर रह-रहकर कोड़े पड़ने लगे।
तभी हुसैन ने भीतर प्रवेश किया। यहां का नजारा देखकर वो पल भर के लिए ठिठका।
"मुंह नहीं खोला इसने?" हुसैन उनके पास पहुंचकर कह उठा।
"सख्त है। फौजी जो ठहरा...।"
"खोलेगा?"
"अभी पता नहीं।" वजीर खान ने कहा--- "कहता है पहले मेरी पत्नी को जुगल किशोर से छुड़ाकर लाओ।"
"जुगल किशोर ने हमारे लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है।" हुसैन ने झुंझलाकर कहा।
"क्या हम जुगल किशोर से बात करें ?" मौला ने कहा।
"नहीं। उससे बात करके नुकसान ही होगा। इस तरह से जुगल किशोर को यहां के हालातों का पता चल जाएगा और वह इसकी पत्नी को किसी भी हालत में नहीं छोड़ेगा।" हुसैन कह उठा।
"तो क्या करें?"
हुसैन के चेहरे पर सोच के भाव थे।
तभी कोड़े मारने वाला कह उठा---
"यह तो बेहोश हो गया...।"
सबकी नजर टेबल पर पड़े मोहनलाल दारूवाला की तरफ उठी।
मोहनलाल वहां पस्त हाल में पड़ा था।
हुसैन ने आगे बढ़कर मोहनलाल के पास जाकर देखा, फिर पलटकर मौला से बोला---
"मैं देवराज चौहान से बात करता हूं...।"
"क्या बात करोगे उससे?"
"पता नहीं।" हुसैन गंभीर स्वर में बोला--- "देखता हूं...।" वो बाहर निकल गया।
वजीर खान ने वहां खड़े आदमियों से कहा---
"इसे होश में लाओ।"
■■■
देवराज चौहान कमरे में कुर्सी पर बैठा सिगरेट के कश ले रहा था। सोहनलाल बेड पर लेटा था।
"अब तुम चलने-फिरने के काबिल हो?" सोहनलाल ने पूछा।
"हां, चलने-फिरने में कोई समस्या नहीं।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये सारी गड़बड़ जुगल किशोर की रची हुई है।" सोहनलाल गहरी सांस लेकर बोला--- "अगर उसने डॉलर छीनने के लिए वीरा और बाकी लोगों को तैयार नहीं किया होता तो सब काम ठीक से निपट जाता। उसने वीरा को तैयार किया, वीरा ने अपने साथ के दूसरे लोगों को और तुम्हें तैयार कर लिया। जबकि जुगल किशोर का इरादा बाद में उन सबको मार कर दौलत खुद ले भागने का था। जुगल किशोर बहुत ही घटिया इंसान है।"
"हकीकत में वो ठग है। चालाकी करना उसके खून और आदत में शामिल है। बिना हेराफेरी के शायद वह सांस भी नहीं ले सकता। ऐसे में वो कोई काम इमानदारी से कैसे कर सकता है? नहीं कर सकता।" देवराज चौहान ने कहा।
"अभी भी वो ये ही सोच रहा होगा कि मोहनलाल से किस तरह डॉलर ले?"
सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा।
देवराज चौहान उठा और सिगरेट एशट्रे में डाल दी।
तभी हुसैन ने भीतर प्रवेश किया और ठिठक कर दोनों को देखा।
"तुम बेड पर क्या कर रहे हो?" हुसैन सोहनलाल को देखते ही कह उठा।
"आराम...।"
"ये घायल है, इसे...।"
"मैं ठीक हूं।" देवराज चौहान कह उठा।
"तुम दोनों।" हुसैन की आंखें सिकुड़ी--- "क्या एक-दूसरे को जानते हो?"
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।
हुसैन आगे बढ़ा और कुर्सी खींचकर देवराज चौहान के पास बैठ गया।
"डॉलर मिलने में समस्या आ रही है।" हुसैन ने गंभीर स्वर में कहा।
"कैसी समस्या--- मोहनलाल तुम लोगों के पास है और...।"
'वो डॉलर देने को तैयार नहीं...।"
"क्या कहता है?"
"वो नहीं बता रहा कि डॉलर कहां हैं। हम उसे यातना दे रहे...।"
"यातना...।"
"हां...उसे...।"
"क्या कर रहे हो उसके साथ?" आंखें सिकुड़ी देवराज चौहान की।
"वो मुंह नहीं खोल रहा--- तो उसका मुंह खुलवाने की चेष्टा की जा रही...।"
"तुम्हें किसने कहा था कि इस तरह उसका मुंह खुलवाओ--- ऐसे पैसे लेने मुझे पसंद नहीं, जो कि किसी शरीफ इंसान को तकलीफ...।"
"वो बदमाश है...।"
"वो फौजी है।"
"तो उसे इस मामले में नहीं आना चाहिए था।"
"उसे डॉलर मिले तो वो क्यों छोड़ेगा? दौलत पाने की इच्छा तो सबकी होती है।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम लोगों ने गलत किया उसे यातना देकर। उसके साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था।"
"मिस्टर देवराज चौहान।" हुसैन स्थिर स्वर में कह उठा--- "वो डॉलर नहीं दे रहा--- और तुम उन डॉलरों को लिए बिना डॉयरी देने से रहे। ऐसे में हम जो कर रहे हैं, सही कर रहे हैं।"
"मोहनलाल के साथ बुरा सलूक नहीं होना चाहिए--- जो कि हो रहा है।"
"तुम हमें डॉयरी दे दो। हम मोहनलाल को कुछ नहीं कहेंगे।"
"इतनी आसानी से तुम लोगों को डॉयरी नहीं मिलेगी।" देवराज चौहान कह उठा--- "मुझे उसके पास ले चलो।"
"तुम क्या करोगे वहां?" हुसैन भी उठा।
"पता नहीं...।" कहते हुए देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा।
"मैं यहीं ठीक हूं।" सोहनलाल ने कहा।
हुसैन और देवराज चौहान कमरे से बाहर निकले।
"सोहनलाल से तुम्हारी अच्छी पहचान लगती है?" हुसैन ने चलते-चलते कहा।
"हां...।"
"पुरानी पहचान है?"
"हां...।"
"परन्तु वो तो जुगल किशोर के साथ काम कर रहा था और तुम किसी और के साथ।"
"हम दोनों को नहीं पता था कि हम एक ही काम कर रहे हैं।"
"समझा...।"
दोनों इमारत के एक कमरे में पहुंचे जो कि यातना देने का कमरा था।
देवराज चौहान के कदम ठिठक गये।
वहां मौजूद वजीर खान, मौला और अन्य लोगों ने उन पर नजर मारी।
परन्तु देवराज चौहान की निगाह मोहनलाल दारूवाला पर टिक चुकी थी, जो कि टेबल पर बेहोश पड़ा था।
"बहुत बुरा हाल कर दिया इसका।" देवराज चौहान कह उठा।
"अभी तो और भी बुरा होगा।" वजीर खान ने गुर्राहट भरे स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने वजीर खान को, फिर मौला को देखा।
"लगता है इस हाल में पहुंचकर भी इसने मुंह नहीं खोला?" देवराज चौहान बोला।
"खोलेगा, जल्दी खोलेगा।" वजीर खान के शब्दों को चबाकर कहा।
"तुम लोग इस बेकसूर इंसान को यातना दे रहे...।"
"तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है।" मौला बोला--- "ये हमारा काम है। अब तो इसे बहाना मिल गया है मुंह बंद करने का, परन्तु ये हमारे सामने ज्यादा देर चुप नहीं रह सकता।"
"किस बहाने की बात कर रहे हो?"
"जुगल किशोर ने इसकी पत्नी को उठा लिया है। इसे फोन आया था।" वजीर खान कह उठा--- "वो इसकी पत्नी को छोड़ने के बदले सारे डॉलर मांगता है--- और मोहनलाल कहता है कि मेरी पत्नी को लाओ और डॉलर ले लो।"
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
"ठीक तो कहता है। तुम इसकी पत्नी को जुगल किशोर के पास से छुड़ा लो।"
"ऐसा ही करते, अगर हमें पता होता कि जुगल किशोर इसकी पत्नी को लेकर कहां छिपा हुआ है।" हुसैन ने कहा।
"उसकी और तुम लोगों की फोन पर बात होती है?" देवराज चौहान ने कहा।
"हां---तो?"
"तुम लोग उससे कहो कि इसकी पत्नी को छोड़ दे...।"
"इस तरह उससे कुछ भी कहने का कोई फायदा नहीं। वो हमारी बात नहीं मानेगा। बल्कि हमारी बात सुनकर वह सतर्क हो जाएगा और अपने काम को वह और भी सही ढंग से अंजाम देगा। उससे बात करने का मतलब है कि उसे इशारा देना कि वह जो कर रहा है ठीक कर रहा है।"
देवराज चौहान की सोच भरी निगाह हुसैन पर थी।
"वो पहले भी हमें धोखा दे चुका है। जुगल किशोर पर किसी भी तरह का विश्वास करना ठीक नहीं होगा।"
"तुम जानते हो जुगल किशोर को?" मौला ने पूछा।
"सिर्फ दो बार ही मिला हूं। वो भी कई साल हो गए।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम ही क्यों नहीं जुगल किशोर से बात...।"
"वो किसी की बात नहीं सुनेगा। सिर्फ पैसे की आवाज को ही वो पहचानता है।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"तुम तो उसे काफी अच्छी तरह जानते हो।" हुसैन बोला।
"ज्यादा अच्छी तरह नहीं। बस इतना ही जानता हूं। मेरा उसका ख़ास वास्ता नहीं रहा।"
"तो तुम उससे बात नहीं करोगे?"
"कोई फायदा नहीं।"
"ठीक है हम मोहनलाल का मुंह खुलवा लेंगे।" मौला विश्वास भरे स्वर में कह उठा।
"ये काम बंद कर दो। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे लिए इस तरह दौलत का इंतजाम करो।" देवराज चौहान ने टेबल पर पड़े मोहनलाल पर नजर मारी--- "शरीफों के साथ इस तरह बात नहीं की जाती।"
"शरीफ दूसरे की दौलत पर कभी भी कब्जा नहीं करते।" वजीर खान ने चुभते स्वर में कहा।
"करते हैं। हर कोई दूसरे की दौलत पर कब्जा करना चाहता है। ये मामूली बात है। मेरे ख्याल से इन हालातों में बढ़िया रास्ता यही है कि किसी तरह जुगल किशोर को तलाश करके उससे इसकी पत्नी को हासिल करो।"
"इसका मुंह खुलवाना हमारे लिए आसान रास्ता है।" मौला ने सख्त स्वर में कहा।
तभी मोहनलाल दारूवाला के होंठों से कराह निकली।
"ये होश में आ रहा है जनाब...।" उसके पास खड़ा आदमी कह उठा।
"आने दो।" वजीर खान मोहनलाल दारूवाला की तरफ बढ़ गया।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी। वो हुसैन से बोला---
"मोहनलाल को इस तरह तकलीफ मत दो।"
"तो तुम हमें डॉयरी दे दो।" हुसैन ने शांत स्वर में कहा।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े। चेहरे पर सोचें नजर आ रही थीं।
"तुम मोहनलाल को कुछ घंटों के लिए मेरे हवाले कर दो।" देवराज चौहान कह उठा।
"उससे क्या होगा?"
"शायद कोई रास्ता निकाल सकूं...।"
"तुम ऐसा क्यों नहीं करते कि मोहनलाल को तुम ले लो--- डॉलरों के बारे में पूछते रहना। हमें डॉयरी दे दो।"
"मुझे बेवकूफ मत समझो...।"
"मैं तो अपनी राय दे रहा हूं। वैसे तुम मोहनलाल से क्या बात करोगे?"
"पास रहना। सुन लेना।"
"तुम्हारे दिमाग में कुछ चल रहा है?"
"हां। तुम इसकी पत्नी इसे वापस दिए बिना, डॉलरों के बारे में नहीं जान सकते। इसकी अब की हालत देखकर मैं समझ सकता हूं यह किसी भी कीमत पर पत्नी को पाए बिना, डॉलर नहीं बताएगा।"
उधर मोहनलाल दारूवाला को होश आ गया था। पीड़ा से कराहते उसने आंखें खोलीं।
"तुम...।" पास खड़े वजीर खान को देखकर वह गुस्से से बोला--- "घटिया पाकिस्तानी...।"
"मैं ईराकी हूं...।" वजीर खान गुर्राया।
"तुम्हें पाकिस्तानी कह कर मुझे बल मिलता है कि मेरे इरादे दृढ़ रहें। आह...सालों, कितना बुरा हाल कर दिया है मेरा। ऊपर वाले को कभी पसंद नहीं आता कि फौजी का यह हाल हो। ऊपरवाला भी कहता है कि फौजी को इस तरह तकलीफ मत दो। बेशक सीधे-सीधे गोली मार दो। भगवान तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा।"
"हाल तो तुम्हारा अब बुरा होने वाला...।"
"मेरी पत्नी को उस कमीने से वापस ला दो। आधे डॉलर...।"
"हमें नहीं पता कि जुगल किशोर कहां छुपा है। पता होता तो हम ऐसा ही करते। अब तुम नहीं बचोगे--- तुम्हें...।"
"मरे हुए को क्या मारोगे! मेरा तो हाल ऐसा है कि एक ऊंगली लगाओगे तो मैं चीख...।"
तभी देवराज चौहान पास आ पहुंचा।
उसे देखते ही मोहनलाल के चेहरे नापसंदगी के भाव आये।
"तुम्हारी वजह से मेरा यह हाल हो रहा है...।"
"मेरी वजह से?" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"और क्या--- तुम इन्हें डॉयरी दे दो तो अभी सब ठीक हो जाये...।"
"दस करोड़ डॉलर?"
"वो तो मेरे हैं।"
"तभी तो तुम्हारा ये हाल हो रहा है...।"
"तुम तो इनके साथ मिल गए। मुझे बचाओ इनसे। ये फौजी की जान ले लेंगे। मेरी पत्नी को जुगल किशोर ने पकड़ रखा है। मुझे इन लोगों ने। ये तो...मेरा परिवार ही बर्बाद हो गया। उस कमीने ने मेरी पत्नी के साथ कुछ कर ना दिया हो...।"
तभी हुसैन पास पहुंचता कह उठा---
"इसे खोल दो वजीर खान। देवराज चौहान इससे बात करना चाहता है।"
मोहनलाल दारूवाला एक कमरे में बैड पर बैठा था। कमीज-पैंट पहनी हुई थी। पास ही प्लेट में केले और कटे हुए सेब रखे थे, जिन्हें कि वो धीरे-धीरे खा रहा था। चेहरे पर एक आंख के पास सूजन नजर आ रही थी। इस वक्त बुरे हाल में था और रह-रहकर कराह उठता था।
उसके सामने कुर्सी पर देवराज चौहान बैठा था और हुसैन पास ही टहल रहा था।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी। हुसैन के होंठ भिंचे हुए थे।
"पहले मारते हो, फिर सेब-केले खिलाते हो।" मोहनलाल दारूवाला दृढ़ स्वर में कह उठा--- "लेकिन जो भी हो, तुम लोगों को डॉलर नहीं दूंगा। ना ही ये बताऊंगा कि वो कहां रखे हैं। वो सिर्फ मेरे हैं। मेरे...।"
"तुम्हारी पत्नी कहां है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"उस कमीने के पास। पीछे से वो लक्ष्मी को उठाकर ले गया। पता नहीं क्या कर रहा होगा...।"
"जुगल किशोर ने तुम्हारी पत्नी को उठाया?"
"हां। तुम भी कम कमीने नहीं हो।" मोहनलाल दारूवाला नाराजगी से कह उठा--- "ये सारी मुसीबत तुम्हें पानी पिलाने जाने की वजह से आई है। लक्ष्मी की बात मानकर उस रात ना जाता तो अब मुंबई में बैठा ऐश कर रहा होता। अब तक तो मैंने वो जगह भी खरीद लेनी थी जहां ऑफिस बनाना था। तुमने डॉयरी कहां पर छुपा रखी है?"
"जहां तुमने डॉलर रखे हैं।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
मोहनलाल दारूवाला, देवराज चौहान को घूरकर रह गया।
हुसैन पीठ पर हाथ बांधे पास ही चहल-कदमी करता उनकी बातें सुन रहा था।
"मैं तुम्हारी पत्नी को बचा लाने के बारे में सोच रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम? तुम तो घायल हो।"
"इतना भी नहीं कि ये काम ना कर सकूं। अब मैं चल-फिर सकता हूं।"
"तुम सच में डकैती मास्टर हो?"
"पता नहीं। पर लोग ऐसा ही कहते हैं। इस वक्त तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सोचना चाहिए...।"
मोहनलाल दारूवाला ने सेब खाना छोड़ दिया।
"कुछ अंदाजा है जुगल किशोर ने तुम्हारी पत्नी को कहां रखा होगा?"
"मुझे क्या पता! मैं जुगल किशोर को जानता ही कहां हूं जो पता होगा।" मोहनलाल बोला।
"फोन पर उसने तुम्हें क्या कहा?"
"वो मेरी पत्नी को मार देगा--- अगर मैंने उसे डॉलर नहीं दिए तो। और भी बहुत कुछ कह रहा था, क्या बताऊं अब।"
"अगर मैं तुम्हारी पत्नी को छुड़ा लाऊं तो डॉलर मुझे दे दोगे?"
"तुम कैसे छुड़ाओगे। क्या तुम्हें पता है कि...।"
"तुम सिर्फ मेरी बात का जवाब दो।"
"आधे डॉलर दूंगा। सारे नहीं...।"
"सारे देने पड़ेंगे, तभी तुम्हारी पत्नी को वापस लाऊंगा।"
"आधे डॉलर दूंगा। लाओ या ना लाओ, तुम्हारी मर्जी है...।"
"जुगल किशोर ने तुम्हारी पत्नी को मार दिया तो फिर डॉलरों का क्या करोगे?"
"ऐश करूंगा।" मोहनलाल दारूवाला सामान्य स्वर में बोला--- "दूसरी शादी कर लूंगा।"
"इसका मतलब तुम्हारे मन में अपनी पत्नी के लिए प्यार नहीं है?" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
हुसैन भी ठिठककर उनकी बातें सुनने लगा था।
"प्यार है, क्यों नहीं है। तभी तो आधे डॉलर दे रहा हूं उसे वापस लाने के बदले।" मोहनलाल कह उठा।
"ये लोग तुम्हे छोड़ेंगे नहीं। मार-मार के तुम्हारी जान ले लेंगे। दौलत के लिए खामखाह जान गंवाना अक्लमंदी नहीं होगी।"
"तुम्हारा मतलब है कि तुम्हारी बात से डर कर मैं तुम्हें डॉलर दे दूं...।" मोहनलाल ने बुरा सा मुंह बनाया--- "पागल नहीं हूं मैं। फौजी हूं।"
"तो तुम नहीं बताओगे कि डॉलर कहां रखे हैं?"
"कभी नहीं।"
"तुम्हारी पत्नी को पता है कि डॉलर कहां पर हैं?" देवराज चौहान ने कहा।
"ये बात मैं नहीं बताऊंगा तुम्हें।"
"मानो कि तुम्हारी पत्नी को पता है और उससे जुगल किशोर ने जान लिया तो गये सब डॉलर तुम्हारे हाथ से...।"
मोहनलाल दारूवाला के जिस्म में बेचैनी की लहर दौड़ी।
देवराज चौहान ने उसके चेहरे पर आये बदलाव को महसूस किया।
"इस तरह तो जुगल किशोर सारी दौलत भी ले लेगा और तुम्हारी पत्नी को भी गोली मार देगा। तुम्हें नुकसान ही नुकसान है।"
"हूं...।" मोहनलाल ने देवराज चौहान को घूरा--- "तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें बता दूं डॉलर कहां हैं? ताकि तुम सारे डॉलर ले लो और लक्ष्मी भी मुझे ना मिले। घर बैठकर ढोलक बजाता...।"
"तुम्हारी पत्नी तुम्हें मिल जाएगी, अगर तुम सारे डॉलर देने को तैयार हो।"
"आधे...।" मोहनलाल दारूवाला ने दृढ़ स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली और सिगरेट सुलगा ली।
"सिगरेट मत पिया करो। सेहत के लिए खराब होती है।" मोहनलाल बोला।
"ठीक है। आधे डॉलर ही सही...।" देवराज चौहान ने कहा।
"ओह... तो तुम आधे डॉलर के बदले लक्ष्मी को ला दोगे?"
"कोशिश करूंगा।"
"क्या मतलब?"
"जुगल किशोर का फोन तुम्हें आएगा ना?"
"कहता तो था कि चार घंटे बाद फोन करूंगा। पता नहीं लक्ष्मी के साथ क्या कर रहा है...। चार घंटे हो चुके...।"
"तुम मुझसे वही बात करोगे, जो मैं तुम्हें बताने जा रहा हूं।"
"क्या?"
"उससे कहना कि तुम डॉलर देने को तैयार हो और...।"
"क्या मतलब? तुम चाहते हो कि आधे मैं तुम्हें दे दूं और आधे उसे...और लक्ष्मी आकर मेरी गोद में बैठ...।"
"बात सुनो पूरी...।"
"तुम मुझसे चालाकी मत...।"
तभी मोहनलाल दारूवाला की पैंट में पड़ा मोबाइल बजने लगा।
"उसी कमीने का फोन होगा।" मोहनलाल जेब से फोन निकालता कह उठा।
"उसे बातों में टाल देना और कहना, एक घंटे बाद फोन करे।" देवराज चौहान ने जल्दी से बात की।
जुगल किशोर का ही फोन था।
मोहनलाल दारूवाला ने उससे बात की।
"लक्ष्मी का क्या हाल है?" स्वर में व्याकुलता थी मोहनलाल के।
"वो मजे में है।"
"मजे में से तुम्हारा क्या मतलब है?" मोहनलाल के होंठ भिंच गये।
"मेरे पास वो खुश है।" उधर से जुगल किशोर हंसा।
"तेरी तो हरामजादे...।"
"नाराज क्यों होता है फौजी।" जुगल किशोर का स्वर पुनः कानों में पड़ा--- "अभी तक उसके हाथ बंधे हुए हैं। मेरे सामने है वो और इस वक्त फर्श पर सोई पड़ी है। बिल्कुल ठीक हाल में है।"
"तुमने उसके साथ कुछ किया तो नहीं?"
"नहीं...।"
"छेड़खानी भी नहीं?"
"नहीं...।"
"फिर ठीक है।" मोहनलाल दारूवाला ने चैन की सांस ली।
"इतना भी निश्चिंत मत हो। अगर तेरे से मुझे डॉलर नहीं मिलते तो उसकी खैर नहीं। सबसे पहले खूबसूरत जिस्म का मजा लूंगा फिर उसके सिर में गोली मारकर लाश सड़क पर फेंक दूंगा।"
मोहनलाल दारूवाला ने देवराज चौहान पर नजर भर कर कहा---
"बुरी तरह फंसा पड़ा हूं। अब डॉलर तुझे क्या दूं... तेरी तरह का एक कमीना और भी है, वो...।"
"देवराज चौहान?"
"वो ही। वो ही। देवराज चौहान। डकैती मास्टर कहता है खुद को। मैंने तेरे को बताया था की डॉयरी मैंने उसको दे दी है। उसने डॉयरी कहीं पर छुपा दी है--- लेकिन हम दोनों इराकियों के कब्जे में हैं। अब देवराज चौहान इराकियों से कहता है कि उसे डॉलर मिलेंगे तो उन्हें देगा। अब हालात यह हैं कि इराकियों ने उसे तो दामाद बना रखा है कि डॉयरी उसके पास है और मेरा बुरा हाल कर रहे हैं। डॉलर मांग रहे हैं। सालों ने कोड़े मारे मुझे। हाथ-पांव बांधकर विपरीत दिशा में खींचा। मारा-ठुकाई की। पूरी तरह तोड़-फोड़ दिया और...।"
"डॉयरी इस वक्त देवराज चौहान के पास नहीं है?" उधर से जुगल किशोर ने पूछा।
"नहीं। वो उसने पहले से ही कहीं छिपा दी है।"
जुगल किशोर की आवाज नहीं आई।
"अब मेरे से मार-मार के पूछा जा रहा है कि मैंने डॉलर कहां रखे हैं। इधर लक्ष्मी को तूने पकड़ रखा...।"
"तू अपनी बीवी को जिंदा देखना चाहता है या नहीं?" जुगल किशोर ने उधर से खतरनाक स्वर में कहा।
"देखना चाहता हूं।" मोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"तो मुझे बता दे कि डॉलर कहां हैं। स्टेशन क्लॉक रूम में हैं ना। तू मुझे रसीद दे दे वहां की, तो मैं तेरी हीरोइन को इज्जत के साथ छोड़ दूंगा। ये ही एक रास्ता है अपनी हीरोइन को बचाने का।"
"तो मेरा क्या होगा?"
"तेरा?"
"हां। मैंने डॉलर तेरे को दे दिए तो ये ईराकी मुझे मार देंगे। मैं फंसा पड़ा हूं। तू एक काम कर कमीने।"
"क्या?"
"मेरे को यहां से बाहर निकाल ले। मैं तेरे को सारे डॉलर दे दूंगा।"
"तू वहीं पर है, जहां से पहले फरार हुआ था? निजामुद्दीन वाले ठिकाने पर?"
"हां, वहीं पर हूं।"
दो पलों की खामोशी के बाद जुगल किशोर की आवाज मोहनलाल के कानों में पड़ी।
"ये काम मैं नहीं कर सकता।"
"क्यों?"
"वो खतरनाक लोग हैं। मैं अब नई मुसीबत में नहीं पड़ना चाहता। तू डॉलर मुझे दे और अपनी हीरोइन को छुड़ा ले। मेरी मान, तो पहले की तरह कोशिश कर वहां से भाग जाने की।" उधर से जुगल किशोर ने सलाह दी।
"इन हरामियों को छोड़कर तेरे जैसे कमीने के पास आ फंसूं...।"
"मेरे पास तेरी हीरोइन है। तेरी पत्नी है। तुझे वो जिंदा चाहिए, तो ऐसा ही कर।"
"देखता हूं...।" मोहनलाल दारूवाला ने लम्बी साँस ली।
"तो मुझे कैसे पता चलेगा कि तू क्या कर रहा है?" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"तू एक घण्टे बाद मुझे फोन करना। तब तक मैं कोई रास्ता तलाशता हूं...।"
"ठीक है। वहां से बाहर निकल आ। तेरी सारी मुसीबतों का अंत हो जायेगा।"
"लेकिन आधे डॉलर दूंगा तेरे को, सारे नहीं। मैंने भी तो फिल्म बनानी है।"
"आजकल फिल्म बनाने में कुछ नहीं रखा। वहां मुंबई में सब रो रहे हैं। किसी की फिल्म नहीं चलती।"
"तू इस तरह मेरा हौसला मत तोड़। लक्ष्मी हीरोइन होगी तो फिल्म जरूर चलेगी। तेरे को आधे डॉलर दूंगा।"
"ठीक है, आधे ही सही। पहले तू वहां से निकल तो सही। मैं घण्टे बाद तेरे को फोन करता हूं।"
फोन पर बातचीत खत्म हो गई। मोहनलाल ने फोन कान से हटाया।
"क्या बात हुई?" देवराज चौहान बोला--- "क्या कहता है वो?"
मोहनलाल दारूवाला ने बे-मन से सारी बात देवराज चौहान को बताई।
पूरी बात सुनने के बाद देवराज चौहान ने कहा---
"अब मेरी बात सुन मोहनलाल, एक घण्टे बाद तूने जुगल किशोर से क्या कहना है...।" फिर देवराज चौहान बताता चला गया।
■■■
एक घण्टे बाद जुगल किशोर का फोन पुनः मोहनलाल दारूवाला को आया।
तब भी देवराज चौहान और हुसैन पास ही थे।
"टाइम का तू बहुत पक्का है।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा--- "ठीक एक घण्टे बाद तूने फोन कर दिया।"
"वहां से भागा कि नहीं?" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"इतना आसान होता तो तेरे कहने से पहले ही भाग गया होता। पहले जिस खिड़की से भाग निकला था, वहां पर सालों ने अब खिड़की ही ठोक-पीटकर इस तरह सील कर दी है कि वो खुलने से रही। ये ईराकी भी तेरी तरह महाहरामी हैं।"
"काम की बात कर। वहां से निकल जा...।"
"जुगाड़ तो भिड़ा रहा हूं। यहां से निकलते ही तेरे से फोन करूंगा। अपना नम्बर बता दे मोबाइल का।"
"जिस नम्बर से बात कर रहा हूं, इसी पर फोन कर देना।"
"ठीक है।"
"जल्दी वहां से निकलना।"
"मैं तो अभी निकल जाना चाहता हूं। मौका तो मिले! फौजी को ये पाकिस्तानी ज्यादा देर कैद में नहीं रख सकते।"
"पाकिस्तानी नहीं, ये ईराकी हैं।"
"मेरे लिए पाकिस्तानी ही हैं। क्योंकि मैं फौजी हूं। इन्हें पाकिस्तानी समझूंगा तो मजबूती से डटा रहूंगा।"
"तू जल्दी से जल्दी निकल वहां से...।"
"बातचीत खत्म हो गई।
मोहनलाल दारूवाला ने फोन बंद करके देवराज चौहान को देखा।
"ठीक है। अब तेरे को बताता हूं कि आगे क्या करना है?"
खामोश खड़ा हुसैन बोला---
"आखिर तुम लोग करना क्या चाहते हो?"
"मैं तुम लोगों की सहायता कर रहा हूं।" देवराज चौहान बोला--- "तुम लोगों की राहें आसान करने की कोशिश कर रहा हूं।"
"कुछ मुझे भी तो पता चले...।"
"सुनते रहो। अगर तुम लोगों को मेरी बात पसंद आये तो, तभी ये काम किया जाएगा।"
फिर देवराज चौहान मोहनलाल दारूवाला को अपना प्लान समझाने लगा।
करीब आधा घंटा देवराज चौहान मोहनलाल को समझाने में लगा रहा।
पास मौजूद हुसैन ने भी सब सुना।
"समझ गये?" देवराज चौहान आखिरकार बोला।
"मैं तो समझ गया।" मोहनलाल दारूवाला हुसैन को देखकर कह उठा--- "क्या तुमने इन लोगों से बात कर ली है?"
देवराज चौहान ने हुसैन को देखा।
हुसैन के चेहरे पर सोचें नाच रही थीं।
"तुमने मेरी सारी योजना सुन ली?"
हुसैन ने सहमति से सिर हिलाया।
"इस तरह हम जुगल किशोर को पकड़ सकते हैं। इसकी पत्नी को आजाद करा सकते हैं। तुम्हें मंजूर है?"
"कह नहीं सकता। मुझे इस बारे में अपने साथियों से पूछना होगा।" हुसैन बोला।
"पूछ लो...। हमारे पास वक्त काफी है।"
हुसैन बाहर निकल गया।
"ये अच्छा रास्ता है जुगल किशोर को पकड़ने का। तुममें तो सच में दिमाग है देवराज चौहान...।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"लेकिन याद रखना, आधे डॉलर दूंगा।"
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सिर हिलाया।
"ये पाकिस्तानी मान जायेंगे तुम्हारी योजना?"
"मानेंगे...।"
"बहुत विश्वास के साथ कह रहे हो।"
"ये लोग भी फंसे पड़े हैं। ये भी चाहते हैं कि जल्दी काम खत्म हो और अपने देश वापस लौटें...।" देवराज चौहान ने कहा।
"वो डॉयरी सद्दाम हुसैन की दौलत का पता बताती है ना कि अपनी दौलत उसने कहां छुपाई हुई है?"
"हां...।"
"मतलब कि तुम्हारे पास बहुत बड़े खजाने का नक्शा है। उसकी दौलत खजाने से कम तो नहीं होगी।"
"उसके पास दौलत का भंडार रहा होगा।" देवराज चौहान ने सहमति दी।
"तो तुम हो डॉयरी वो नक्शा इनके हवाले क्यों कर रहे हो?"
"मुझे इतनी बड़ी दौलत की चाह नहीं कि उसकी निगरानी में ही जिंदगी बिता दूं। मैं आजाद रहना चाहता हूं।"
"अजीब आदमी हो तुम! यूं तो तुम दौलत के लिए डकैतियां करते हो--- और ऊपर से कहते हो कि...।"
देवराज चौहान उठते हुए कह उठा।
"आज का दिन तुम आराम करो। तुम्हारी हालत सुधर जाएगी। जुगल किशोर का फोन आया तो तुम जानते हो कि क्या बात करनी है...।"
"वो तो ठीक है, परन्तु पहले इन पाकिस्तानियों की तो हां मिल जाये कि योजना में तुम्हारा साथ देंगे या नहीं?"
"साथ देंगे। अब वो अपने साथियों से बात कर रहा होगा और आकर वो हां ही कहेगा।"
■■■
देवराज चौहान अपने कमरे में पहुंचा। सोहनलाल कुर्सी पर बैठा था और उसके चेहरे से लग रहा था कि वो नींद लेकर अभी उठा है। देवराज चौहान कुर्सी पर जा बैठा तो सोहनलाल ने पूछा---
"क्या करते फिर रहे हो?"
देवराज चौहान ने बताया।
"तुम्हें क्या जरूरत है इस मामले में आने की?"
"मैं बीच में नहीं आऊंगा तो वो पूछताछ करते-करते मोहनलाल की जान ले लेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
सोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"ईराकी मान गये?" सोहनलाल ने पूछा।
"उनकी तरफ से अभी जवाब आना बाकी है। परन्तु वो...।"
तभी हुसैन ने जाकर और मौला के साथ भीतर प्रवेश किया।
दोनों की निगाह उन पर टिकी।
"हुसैन ने बताया कि तुम क्या करने का इरादा रखते हो मिस्टर देवराज चौहान।" जाकिर कह उठा--- "पर हम पूरी तरह से सहमत नहीं हैं।"
"क्यों?" देवराज चौहान बोला।
"इस तरह मोहनलाल खतरे में पड़ जाएगा। जुगल किशोर ने उनकी जान ले ली तो उसी स्थिति में क्या होगा?"
"मैं समझा नहीं खुलकर बात करो।"
"तुम उन डॉलरों को लिए बिना डॉयरी देने वाले नहीं--- और डॉलर मोहनलाल के पास हैं। ऐसे में अगर मोहनलाल मर गया तो उस स्थिति में हमारा क्या होगा? क्योंकि तुम तो डॉलरों के बिना डॉयरी दोगे नहीं।"
"मेरी योजना पर चलकर अगर मोहनलाल को कुछ होता है तो बिना डॉलरों के ही मैं तुम लोगों को डॉयरी दे दूंगा।"
"जुबान देते हो?" मौला बोला।
"पक्का वादा...।"
हुसैन, जाकिर और मौला की नजरें मिलीं।
"फिर तो हमें ऐतराज नहीं होना चाहिए इसकी योजना पर चलने पर।" हुसैन ने कहा।
"बात अभी बाकी है।" मौला ने गंभीर स्वर में कहा--- "मोहनलाल हमारी निगरानी में इस मारे काम को अंजाम देगा देवराज चौहान। तुम योजना के वक्त यहीं पर रहोगे।"
"ऐसा क्यों... मैं...।"
"हम तुम्हें किसी भी तरह के खतरे में नहीं डालना चाहते। क्योंकि डॉयरी तुम्हारे पास है।"
"मैं सुरक्षित रहूंगा, तुम मेरी फिक्र मत...।"
"इन मामलों में हम तुम्हारी बात नहीं सुनने वाले।" मौला ने स्पष्ट कहा--- "तुम इस योजना में भागदौड़ नहीं करोगे। सब कुछ संभालना हमारी जिम्मेवारी। अगर तुम जिद करोगे तो तुम्हारी किसी योजना पर गौर नहीं किया जाएगा।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"जो भी जवाब हो, सोच-समझ कर बता---।"
"मैंने तुम लोगों की बात मानी।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम मेरी योजना पर काम करो।"
"मतलब कि योजना के वक्त तुम यहीं पर, हमारे साथियों के बीच रहोगे?"
"हां...।"
"अब ठीक है।" मौला ने तसल्ली भरे अंदाज में सिर हिलाया--- "हम तुम्हारी योजना पर जरूर काम करेंगे।"
"मैं तो तब तुम्हारे साथ रह सकता हूं?" सोहनलाल बोला।
"तुम क्या करोगे?"
"जुगल किशोर से भी मुझे हिसाब चुकाना है।" सोहनलाल कड़वे स्वर में कह उठा।
"तुम्हारा हिसाब हम चुकता कर देंगे।" जाकिर बोला--- "इस काम में हमारे साथ सिर्फ मोहनलाल ही रहेगा।"
तभी अजहर मेनन ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा---
"तुम लोगों ने हमें यहां पर क्यों रखा हुआ है? हमारा काम ही क्या...।"
"कोई काम नहीं है।" मौला कह उठा--- "परन्तु जब तक हमें डॉयरी नहीं मिलती, तब तक हमारी नजरों के सामने रहोगे। हम नहीं चाहते कि यहां से आजाद होने के बाद तुम लोग जुगल किशोर के साथ मिलकर हमारे लिए परेशानी खड़ी करना शुरू कर दो।"
"मैं उस कमीने के साथ मिलूंगा?" मेनन दांत किटकिटा उठा--- "उसे तो मैं कुत्ते की मौत मारूंगा, कमीना गद्दार है वो...।"
"ये काम भी कर लेना। हो सकता है उससे तुम्हारा बदला, हम ही ले लें।"
"तो पता चल गया कि वो कहां है?" मेनन के होंठों से निकला।
"अभी नहीं। लेकिन चल जाएगा।"
मौला, हुसैन, जाकिर वहां से बाहर निकले गए।
"साला जुगल किशोर भी कमाल की चीज है। पहले इन इराकियों को धोखा दिया। फिर हमें धोखा दिया, जिनके साथ मिलकर उसने रिचर्ड जैक्सन का अपहरण किया था। फिर अपने उन साथियों को धोखा दिया, जिनके द्वारा उसने फिरौती की रकम हथियाई। मुझे नहीं लगता कि उसने जिंदगी में कभी कोई काम शराफत से किया होगा।" सोहनलाल कह उठा।
■■■
मोहनलाल दारूवाला बैड पर बैठ सेब काट रहा था। साथ-साथ खाता भी जा रहा था। अंधेरा हो चुका था। कमरे में लाइट रोशनी थी। घण्टा भर उसने नींद भी ले ली थी। पहले से कुछ आराम था उसके शरीर को।
"सालों ने बुरा हाल कर दिया।" सेब खाता मोहनलाल दारूवाला बड़बड़ाया।
तभी उसका मोबाइल बज उठा।
"हैलो!" खाते-खाते उसने बात की।
"क्या कर रहा है?" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"सेब खा रहा हूँ।"
"मैंने पूछा कि वहां से फरार होने के लिए क्या कर रहा है?" जुगल किशोर की झल्लाई आवाज कानों में पड़ी।
"जुगाड़ भिड़ा रहा हूँ।"
"दोपहर से जुगाड़ ही भिड़ा रहा है कि वहां से निकलेगा भी?"
"अभी तो जुगाड़ ही भिड़ा रहा हूँ। शायद रात को मौका मिले, यहां से निकलने का। शायद एक की जान लेनी पड़े।"
"एक की क्या दस की जान ले। तू वहां से बाहर आ जा। अपनी पत्नी को बचाना है तुमने।"
"लक्ष्मी कैसी है?"
"मजे में है।"
"ऐसा मत कहा कर। मैं कुछ और सोचने लगता हूँ। जरा बात तो करा उससे।"
"बात...।"
"करा करा। इतनी तो तसल्ली हो जायेगी कि वो जिंदा है।" मोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"एक मिनट...।"
फिर कुछ पलों बाद लक्ष्मी की परेशान आवाज कानों में पड़ी---
"मोहनलाल! मोहनलाल! मुझे यहां से निकाल। तू तो फौजी है।"
"चिंता मत कर लक्ष्मी। तेरे को इस कमीने के हाथों से निकालने ही जोड़-तोड़ चल रही है। तू ठीक है?"
"हाँ।"
"बिल्कुल ठीक है ना! इसने तेरे को उंगली वगैरह तो नहीं लगाई?"
"इस मामले में तो अभी तक शरीफ बंदा लगता है। लेकिन मुझे पटाने की कोशिश करता है कि तू फौजी के साथ रहकर जिंदगी खराब कर रही है। मेरे साथ रहना शुरू कर दे। बहुत मजे आएंगे और...।"
"उसकी बातों में मत फंसना।" मोहनलाल तिलमिलाकर कह उठा।
"फंसे मेरी जूती! तू इस वक्त कहां है?"
"मैं तो तेरे से भी बुरी तरह फंसा पड़ा हूं। पूछ मत... मैं यहां से भागने की सोच रहा हूं, रात में। ये बात जुगल किशोर को बता देना, सुनकर उसे ठंडक मिलेगी। भगवान ने चाहा तो कल हम फिर से एक साथ होंगे।"
"सच?"
"अभी तक तो सच ही---।"
तभी जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"कर ली बात? हाल-चाल पूछ लिया अपनी हीरोइन का...।"
"तू... तू मेरी पत्नी को फंसाने में लगा है।" मोहनलाल ने भड़के स्वर में कहा।
"बिल्ली कब तक दूध की रखवाली करेगी! कभी तो उसे पीयेगी ही।" जुगल किशोर के हंसने की आवाज कानों में पड़ी।
"तू दूध है?"
"तेरी हीरोइन दूध है और मैं बिल्ली हूं। तू वहां से निकल ले रात में। वरना बिल्ली का गला सूख रहा है, वो दूध पी जाएगी सारा।"
"तू बिल्ली है तो मैं भी कुत्ता हूं। पूरे फरीदाबाद में तेरे को ना दौड़ाया तो मैं भी मोहनलाल दारूवाला फौजी नहीं। कान खोल कर सुन! अभी तो सब ठीक है, दूध पीने के चक्कर में फौजी से पंगा लिया तो तू कहीं भी भाग जा। मैं छोड़ने वाला नहीं।"
"सब ठीक है। तेरी हीरोइन को कुछ नहीं कह रहा। मुझे डॉलर चाहिए... वो...।"
"वो तेरे को मिल जायेंगे, पर दूध-बिल्ली से बच कर रहना।"
"कब भागेगा वहां से?"
"रात का मौका लगेगा तो देखूंगा।" कहकर मोहनलाल दारूवाला ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर गुस्से के भाव थे--- "कमीना! लक्ष्मी को दूध कहता है, खुद को बिल्ली कहता है! ये भूल गया कि बिल्ली के पीछे कुत्ता पड़ गया तो बिल्ली की तो...।"
■■■
रात के तीन बजे।
एक कमरे में मोहनलाल दारूवाला, हुसैन, मौला, जाकिर, शेख वजीर खान और देवराज चौहान मौजूद थे। मोहनलाल ने मोबाइल से नम्बर मिलाया और कान से लगा लिया।
सब खामोश थे।
सबकी निगाह मोहनलाल दारूवाला पर थी।
मोहनलाल के कान पर लगे फोन से दूसरी तरफ बेल जा रही थी।
फिर नींद से भरी जुगल किशोर की आवाज, मोहनलाल दारूवाला के कान में पड़ी---
"हैलो...।"
"क्या कर रहा है?" मोहनलाल दारूवाला के माथे पर बल पड़े।
"तू?" जुगल किशोर की आवाज कुछ संभली आई।
"मैंने पूछा है क्या कर रहा है?" मोहनलाल दारूवाला का स्वर तीखा था।
"सो रहा था।"
"सच कह रहा है?"
"सच ही कहूंगा, झूठ क्यों बोलूंगा?"
"कहीं बिल्ली-दूध वाला काम तो नहीं हो रहा?"
"फालतू की बकवास मत कर...।"
"कान खोलकर सुन ले, फौजी की बीवी से पंगा मत लेना, वरना फौजी कुत्ता बन जायेगा और तेरी...।"
"वहम में मत पड़। अपनी कह, निकल आया वहां से?"
"शायद एक घण्टे तक निकल जाऊं यहां से...।"
"निकलने का रास्ता बना लिया?"
"थोड़ा-बहुत बना लिया है, हो सकता है एक की हत्या करनी पड़ जाये, भागते वक्त...।"
"परवाह मत कर। बेशक दो-चार को मार दो...।"
"हवा मत दे मेरे को...। ये बता, तू कहां है?"
"क्यों?"
"यहां से भागकर मैं कहां जाऊंगा? मेरे पास तो कोई ठिकाना नहीं है। घर जाऊंगा तो वहां से फिर पकड़ा जाऊंगा...।"
जुगल किशोर की आवाज नहीं आई।
"अब चुप क्यों हो गया?"
"मेरे ख्याल में तेरे को डॉलरों वाला बैग हाथ में लेकर मुझे फोन करना चाहिए था। तब मैं तुम्हारी हीरोइन लेकर...।"
"वो तो बाद में होगा। पहले यहां से भागकर कहीं छिपने की तो जगह मिले---।"
"डॉलर कहाँ रखे हैं?"
"निजामुद्दीन स्टेशन पर...।"
"वो तो एक छोटा सूटकेस था। जिसमें वो सारे डॉलर नहीं आ...।"
"तेरे को क्यों बताऊं कि दूसरा कहाँ है? तू अपने आधे डॉलरों से मतलब रख।" भड़का मोहनलाल।
जुगल किशोर ने उधर से कुछ नहीं कहा।
"तू कार लेकर आ जा...।"
"मैं...?"
"तेरे से बात कर रहा हूँ तो तेरे से ही कह रहा हूँ। यहां से भागते समय जाने क्या हालात पैदा हो जाये। मुझे फौरन कोई गाड़ी चाहिए होगी कि निकल सकूँ। पहले तो खिड़की से भागा था, इस बार दरवाजे से भागूंगा।"
"सुन...।" जुगल किशोर का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा--- "एक घण्टे बाद उसी गली के बाहर एक कार खड़ी होगी, जिसमें से पहले तू फरार हुआ था। समझ गया?"
"समझ गया---कार का रंग---नम्बर...।"
"ये मेरे को भी नहीं पता। बस, गली के सामने जो कार खड़ी हो, उसी में तेरे को आ बैठना है।"
"तू होगा कार में?"
"मैं होऊंगा या मेरा आदमी होगा। तू वहां से सुरक्षित निकल आयेगा।"
"ठीक है।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा और फोन बंद करके सबको देखा।
"क्या हुआ?" शेख ने पूछा।
"चालू बंदा है। खुद नहीं यहाँ आयेगा। मेरे ख्याल में किसी को भेजेगा।" मोहनलाल ने कहा।
"उसका आदमी तुम्हें उसके पास ले जायेगा क्या?"
"ये बात नहीं हुई। उससे ये बात पूछना, उसके मन में शक पैदा करने वाली बात होती।"
"हम देवराज चौहान की प्लानिंग के हिसाब से ही चलेंगे।" हुसैन ने कहा--- "और हम सफल भी रहेंगे।"
"सफल रहो या असफल।" मोहनलाल दारूवाला कह उठा--- "जब तक लक्ष्मी मुझे नहीं मिल जाती, तब तक मैं आधे डॉलर नहीं दूंगा। तुम भी सुन लो डकैती मास्टर। असल बात तो ये ही है। फौजी को तुम लोग खामख्वाह खतरे में डाल रहे हो। वो हरामी भांप गया कि कोई गड़बड़ है तो मुझे गोली मार सकता है, या लक्ष्मी को मार देगा। सारी मुसीबत तो मुझ पर ही है।"
"तुम सारा मामला आसानी से संभाल लोगे मोहनलाल?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"ऊपरवाले ही जाने।"
"तुम।" जाकिर कह उठा--- "मिस्टर मोहनलाल दारूवाला। एक बात हमेशा अपने दिमाग में रखना--- कि हम बहुत खतरनाक लोग हैं। तुम हर वक्त हमारी निगाहों में रहोगे, यहां से निकलने के बाद। अगर तुमने हमें धोखा देकर, हमारी नजरों से भागने की चेष्टा की तो तुम्हें उसी वक्त गोली मार देंगे। धोखेबाज लोग हमें जरा भी पसन्द नहीं हैं।"
"जुगल किशोर ने भी तुम लोगों को धोखा दिया था, उसे गोली क्यों नहीं मारी?" मोहनलाल भड़का।
"वो अभी तक हमारे सामने नहीं पड़ा। फोन पर ही बातें करता रहा।"
"तो क्या अब वो सामने पड़ा तो उसे गोली मार दोगे?"
"हमारे उसूल तो ये ही कहते हैं कि उसे गोली मार देना ही बेहतर है।" जाकिर के दांत भिंच गये।
"सुनो, बेशक उसे मार देना। वो मेरा रिश्तेदार नहीं है कि उसे बचाता फिरूं। मुझे तो वो वैसे भी पसंद नहीं कि बिल्ली बना, वो दूध पीने का मौका ढूंढ रहा है। मार देना हरामी को! लेकिन पहले मैंने दूध, मेरा मतलब है कि लक्ष्मी को वापस लेना है उससे। लक्ष्मी मुझे मिलेगी तो मैं देवराज चौहान को आधे डॉलर दूंगा और देवराज चौहान तुम लोगों को वो डॉयरी देगा।"
"हमें अपनी बात याद है। तुम्हारी पत्नी को हासिल करने के लिए ही ये सब कर रहे हैं।"
"क्या वक्त आ गया है, मुझे पाकिस्तानियों के साथ मिलकर काम करना पड़...।"
"हम पाकिस्तानी नहीं ईराकी हैं।" मौला गुर्रा उठा।
"चुप रहो। मुझ जैसे फौजी के लिए तुम पाकिस्तानी ही रहोगे, जब तक मेरा पीछा नहीं देते।"
"ये पागल है।" शेख बोला--- "क्या इसे इस तरह बाहर भेजना ठीक होगा?"
"ये चालाक है।" जाकिर ने गम्भीर स्वर में कहा--- "सब संभाल लेना। सख्तजान भी है। हमने कितनी यातना दी, परन्तु इसने मुंह नहीं खोला। ये सब कुछ संभाल सकता है। फिर हमारी नजर इस पर तो होगी ही।"
उसने देवराज चौहान से कहा---
"ये सब कुछ तुम्हारी योजना पर किया जा रहा है। अगर मिस्टर मोहनलाल को कुछ हो जाता है तो तुम सीधे-सीधे डॉयरी हमें दे दोगे।"
"हां। मेरा वादा अपनी जगह कायम है।" देवराज चौहान ने कहा।
"इस तरह तो ये लोग मुझे गोली मारकर तुम्हें कह सकते हैं कि मोहनलाल मर गया। अब डॉयरी हमें दे दो।" मोहनलाल बोला।
"हम इतने गिरे हुए नहीं हैं।" हुसैन ने गुस्से से मोहनलाल को देखा--- "काम को काम की तरह करते हैं।"
"सारी मुसीबत तो मेरे ही सिर पर है।"
"वक्त होता जा रहा है।" वजीर खान ने कहा--- "तुम अपनी तैयारी कर लो।"
"मैंने क्या तैयारी करनी है! कुछ करने को है ही नहीं।" मोहनलाल ने कहा--- "तैयारी तो तुम लोगों को करनी है कि मुझ पर नजर रख सको। जुगल किशोर जैसी कमीने-कुत्ते-हारामी से मेरी पत्नी को वापस ले ले सको।"
पांचों वहां से बाहर निकल गए।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और मोहनलाल दारूवाला से कहा---
"तुम्हारा इरादा क्या है?"
"इरादा?"
"यहां से निकलकर, मौका मिलते ही तुम फरार हो जाने की तो नहीं सोच रहे?"
"नहीं।" मोहनलाल ने इंकार में सिर हिलाया--- "मैं ऐसा कुछ भी नहीं सोच रहा।"
"मेरे ख्याल में तो तुमने ऐसा जरूर सोचा होगा।"
"तुम मेरी मजबूरी नहीं समझ रहे देवराज चौहान।" मोहनलाल दारूवाला गंभीर स्वर में कह उठा--- "मुझे जुगल किशोर बहुत कमीना और बहुत हारामी लगता है। मैं उस पर भरोसा नहीं कर सकता कि आधे डॉलर देने के बाद भी वह मेरी पत्नी को मेरे हवाले करेगा या उसे मार देगा। जबकि ये ईराकी कम से कम इतने भरोसेमंद तो हैं ही कि इनका भरोसा किया जा सके। इस काम में मैं ईमानदारी से इराकियों के साथ हूं। कोई गड़बड़ नहीं करूंगा।
सुबह के साढ़े चार बजे थे। अभी चिड़ियों का चहचहाना भी आरम्भ नहीं हुआ था। तभी एक के बाद एक तीन फायर हुए और चंद पलों के बाद मोहनलाल दारूवाला रिवाल्वर हाथ में थामें हड़बड़ाया सा उस इमारत के बाहर निकला और उस चार फीट चौड़ी गली के मोड़ की तरफ दौड़ा। गली समाप्ति पर एक कार खड़ी दिखाई दे रही थी। दौड़ता हुआ मोहनलाल गली से बाहर निकलकर कार तक पहुंचा और आगे वाला दरवाजा खोलकर भीतर जा बैठा।
ड्राइविंग सीट पर कोई आदमी बैठा था। अंधेरे में उसका चेहरा नहीं दिखा। उसने कार स्टार्ट की और दौड़ा दी। मोहनलाल ने गहरी सांस ली। रिवाल्वर हाथ में पकड़ी थी।
मोहनलाल ने कार चलाते आदमी को देखा।
कम से कम जुगल किशोर नहीं था।
"लक्ष्मी कैसी है?" मोहनलाल दारूवाला ने पूछा।
"कौन लक्ष्मी?" स्वर शांत था।
"मेरी पत्नी।"
"मैं नहीं जानता।" मोहनलाल ने उसका चेहरा देखने की कोशिश की---
"तुझे उसी हरामी ने भेजा है ना?"
"किसने?"
"जुगल किशोर ने।"
"हाँ। लेकिन तुम उसे गाली दे रहे...।"
"तो कह देना उससे। मैं क्या डरता हूं?" मोहनलाल ने उखड़े स्वर में कहा--- "तो तुम मेरी पत्नी के बारे में नहीं जानते?"
"नहीं।"
कार तेजी से दौड़ी जा रही थी।
"वो कमीना कहां है?"
"कौन?"
"जुगल किशोर की बात कर रहा हूं तुमसे--- और किसके बारे में पूछूंगा!"
"पहले तुम उसे हरामी कह रहे थे, अब कमीना--- तो मैंने सोचा दो अलग-अलग लोगों की बातें हो रही...।"
"एक की ही बात हो रही। कुत्ता-बिल्ली भी कहूं तो समझना उसके बारे में ही बात कर रहा हूं।" मोहनलाल दारूवाला कड़वे स्वर में कहा उठा---- "मैंने पूछा है, वो कहां पर छिपा हुआ है?"
"मैं नहीं जानता।"
"तुम उसके पास से नहीं आये?"
"नहीं। मुझे तो उसका फोन आया था कि उस गली के बाहर मुझे कार खड़ी करके इंतजार करना है। जो भी कार में आकर बैठे, उसे ले आना है और हिफाजत से रखना है। मैंने ऐसा ही किया।"
"कहां ले जा रहे हो मुझे?"
"अपने ठिकाने पर।"
"मैंने तो सोचा था कि तू मुझे सीधा उस कमीने के पास ले जायेगा।"
"मुझसे जो कहा है, मैं वो ही कर रहा हूं।"
"जानता है तू, मैं फौजी हूं।"
"नहीं जानता।"
"अब तो जान गया ना। याद रख, मुझसे पंगा मत लेना।" मोहनलाल दारूवाला ने कहा--- "अभी एक-दो को गोलियां मार कर आया हूं। पता नहीं वो जिंदा हैं या मर गये होंगे। तूने सुनी गोलियों की आवाजें?"
"हां। तब मैं समझ गया था कि वो इंसान अब बाहर आने वाला है, जिसका मुझे इंतजार है।"
"बातें मत कर। पीछे भी ध्यान रख। वो लोग पीछे भी हो सकते हैं।"
मिनट भर बाद कार चलाने वाला कह उठा---
"हमारे पीछे कोई नहीं है।"
"पता नहीं साले पाकिस्तानी!" बड़बड़ाया मोहनलाल--- "किस तरह पीछा कर रहे हैं कि नजर नहीं आ रहे पीछे आते...।"
"क्या कहा?"
"तुम्हें कुछ नहीं कहा। अपने आपसे कह रहा हूँ कि फौजी होकर, चोर-उचक्के के मुंह लगना पड़ रहा है मुझे।"
■■■
आध-पौने घण्टे में ही वो मालवीय नगर में एक मकान पर जा पहुंचे। कार बाहर खड़ी की और दोनों भीतर प्रवेश कर गये। सुबह के 5:15 हो रहे थे। अंधेरा छंट रहा था। चिड़ियों के चहचहाने की आवाज सुनाई दे रही थी।
वो मकान के भीतर पहुंचे।
हर तरफ शांति थी। छोटे से ड्राइंग-रूम में रुककर आदमी ने कहा---
"यहां मेरा परिवार रहता है। पत्नी और दो बच्चे हैं, सो रहे हैं, अभी उठ जायेंगे। मैं तुम्हें एक कमरा दे देता हूँ। उस कमरे से बाहर मत आना। वैसे भी मेरी पत्नी जानती है कि मैं किसी मेहमान को लेने गया हूं।"
उसने एक कमरा मोहनलाल को दिया। सजा हुआ कमरा था। बैड लगा था।
"तुम्हारा नाम क्या है?"
"चावला कह सकते हो मुझे।"
"तुम जुगल किशोर जैसे कुत्ते के साथी हो?"
"उसके बहुत एहसान हैं मुझ पर। पर मैं उसका साथी नहीं हूँ।"
"हैरानी है कि वो कमीना किसी पर एहसान कैसे कर सकता है!" मोहनलाल बोला--- "मेरे बारे में उसने तुम्हें क्या बताया?"
"कुछ भी नहीं। तुम्हें यहां लाकर रखना था। मैंने ऐसा ही किया।"
"तुम सच में नहीं जानते कि वो कहां है?"
"नहीं जानता।"
"तो मैं यहां रहकर क्या करूंगा?"
"जुगल किशोर के फोन का इंतजार।"
"उसका फोन नम्बर है मेरे पास। मैं भी उसे फोन कर सकता हूँ।" मोहनलाल ने चावला को देखा।
"वो आप जानें। मुझे इन बातों से कोई मतलब नहीं।"
"तुम क्या काम करते हो?"
"कुछ भी करूं, उससे आपको मतलब नहीं।"
"मैं कुछ देर की नींद लूंगा। रात भर का जगा हूँ। मेरे जागने पर तुम क्या घर पर ही रहोगे?"
"जब तक तुम यहां हो, मैं घर पर ही हूँ।"
"बेहतर।" मोहनलाल दारूवाला ने गहरी सांस ली।
"चाय-कॉफी या कुछ खाना पसंद करेंगे?"
"नहीं। मैं नींद लूंगा।"
■■■
मोहनलाल दारूवाला को लग रहा था कि फोन बज रहा है। पर उसकी नींद इतनी गहरी थी कि वो उठ नहीं सका। एक बार बंद होकर फोन पुनः बजने लगा तो मोहनलाल की नींद टूटी। बंद आंखों से ही उसने जेब में हाथ डालकर मोबाइल निकाला और कालिंग स्विच दबाता कान से लगाकर उसने हैलो कहा।
"नींद में हो...।" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"फौजी को तंग करके चैन से नहीं रह सकता। नींद में था तो नींद में ही रहने देता।"
"मैं बिल्ली हूँ।" उधर से जुगल किशोर ने हँसकर कहा।
मोहनलाल दारूवाला की आंखें फौरन खुल गईं।
"क्या कहा तूने?"
"मैं दूध पीने वाली बिल्ली हूँ... और तेरा दूध मेरे पास ही पड़ा है।"
"बेटे! मैं भी वो कुत्ता हूँ जो तेरे जैसी बिल्ली को फरीदाबाद में दौड़ा-दौड़ाकर--- बस समझ जा। फौजी से पंगा मत लेना--- वरना इतना भारी पड़ेगा कि तेरे जैसी बिल्ली गुम हो जायेगी।" मोहनलाल कड़वे स्वर में बोला--- "मेरी पत्नी कैसी है?"
"एकदम ठीक...?"
"दूध पिया?"
"नहीं। भूख तो है, फिर भी नहीं पिया।"
"इसी में तेरी खैर है। साला, कमीना!"
"मेरे आदमी ने तेरे को ठीक से रखा है ना?"
"औरतों की तरह हाल-चाल मत पूछ। काम की बात कर। मत भूल तू फौजी से बात कर...।"
"इस वक्त सुबह के नौ बजे हैं। कुछ खा-पीकर वहां से निकल। चावला तेरे साथ होगा। निजामुद्दीन स्टेशन के क्लॉक रूम से डॉलरों वाला सूटकेस निकालकर, मुझे फोन कर। तब तेरे को बताऊंगा कि कहां पर पहुंचना है।"
"फौजी को बेवकूफ समझता है?"
"वो कैसे?"
"पहले लक्ष्मी से बात करा।"
"फिक्र मत कर, तेरी हीरोइन एकदम मजे से है। पहले तेरे को हीरोइन के दर्शन कराऊंगा, फिर डॉलर लूंगा।"
मोहनलाल दारूवाला के चेहरे पर सोच नाच रही थी।
"तेरा आदमी चावला मेरे साथ रहेगा?" मोहनलाल ने कहा।
"तेरे को इससे क्या परेशानी है?" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी।
"बेटे, परेशानी ये है कि हो सकता है तूने अपने आदमी को पहले ही पढ़ा-लिखा रहा हो कि जब मैं क्लॉक रूम से सूटकेस निकाल लूँ--- तो वहीं पर वो मुझे गोली मार के, मेरी लाश पटरियों पर फेंक...।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।"
"तेरे जैसे कमीने की बात का भरोसा मैं नहीं करता। तू पाकिस्तानियों से कम है क्या?"
"डॉलर मुझे दे रहा है ना?"
"हां। क्योंकि मैंने अपनी पत्नी को पाना है।"
"तो मैं तेरी जान क्यों लूंगा? मुझे तो डॉलर चाहिए।"
"क्या पता मेरी पत्नी को तूने पटा लिया हो। डॉलर लेने के बाद उसके साथ मुंबई भाग जाने का प्रोग्राम हो। ऐसे में मैं जिंदा रहा तो तेरे इरादे कैसे पूरे होंगे?" मोहनलाल के स्वर में ठहराव था।
"इतने डॉलर पास होने पर क्या मैंने तेरी पत्नी को ही भगाना है? बाकी मर गई हैं क्या?"
"मैं जानता हूँ कि लक्ष्मी कितना दम-खम रखती है। खूबसूरत वो है ही और कहीं तू दूध पीकर, स्वाद ना ले चुका हो और उसका दीवाना बन गया हो तो?"
"तू चाहता है कि चावला तेरे साथ न हो?" जुगल किशोर ने बात खत्म करनी चाही।
"साथ नहीं--- आगे-पीछे भी नहीं। समझ गया कि पीछा नहीं होना चाहिए। हम में सौदा ये है कि लक्ष्मी को मेरे हवाले करेगा और मैं आधे डॉलर तेरे को दूंगा।" मोहनलाल ने कहा।
"ठीक है। तेरी बात नहीं मानी।" मोहनलाल ने मुंह बनाकर कहा--- "मैं चावला की कार ले लूंगा।"
"ले लेना।"
"बढ़िया होगा अगर तू मुझे अभी बता दे कि डॉलर लेकर कहां पर...।"
"वो भी बता दूँगा। पहले तू डॉलर निकाल...।"
"तेरे को कैसे पता चलेगा कि मैंने डॉलर निकाल लिए हैं?" मोहनलाल बोला।
"तेरे पास मेरा मोबाइल नम्बर है। बता देना।"
"बता दूंगा। वहां कितने मरे?"
"कहाँ?"
"रात जहां से मैं भागा था।"
"मुझे क्या पता!"
"मैंने सोचा तेरे को वहां की खबर होगी। दो को गोली मारनी पड़ी, भागने के लिए। अगर बाहर मेरे लिए तेरा आदमी मौजूद नहीं होता तो मैं फंस गया होता। वो साले पाकिस्तानी सच में बहुत खतरनाक हैं।"
"ईराकी हैं वो...।"
"फौजी के लिए तो वो पाकिस्तानी ही...।"
"चावला के घर से तू कब चलेगा?" उधर से जुगल किशोर ने पूछा।
"एक घण्टे बाद।"
■■■
मोहनलाल दारूवाला, चावला के घर से ग्यारह बजे निकला। नहा-धो लिया था। नाश्ता भी कर लिया था। निकलने में उसने जरा भी जल्दी नहीं की थी। वो कुछ सोचे जा रहा था। इस दौरान जुगल किशोर का दोबारा फोन आ गया था कि वो अभी तक निकला क्यों नहीं। जाहिर था कि चावला जुगल किशोर को उसकी खबर दे रहा होगा।
चावला ने उसे कार देने में जरा भी एतराज नहीं दिखाया था।
मोहनलाल दारूवाला चावला की कार पर निकला और निजामुद्दीन की तरफ चल दिया।
पांच मिनट भी नहीं बीते होंगे कि उसका मोबाइल बजने लगा।
"हैलो...।" मोहनलाल दारूवाला ने बात की।
"अकेले हो?" जाकिर की आवाज कानों में पड़ी।
"हां। कोई पीछे भी नहीं है।" मोहनलाल ने फोन पर कहा।
"ये बात तुम कैसे कह सकते हो?"
"कोई मेरे पीछे होता तो उसे तुम लोगों ने देख लिया होता।"
"कब से हमारे दो आदमी तुम्हारे पीछे हैं, उन्होंने हमें देखा?"
"नहीं।"
"हो सकता है इसी तरह हम भी उन्हें ना देख पा रहे हों।"
"हूं। सिर्फ दो हो मेरे पीछे?"
"हां। शेख और एक अन्य आदमी। मैं तो वहीं पर हूँ, जहां तुम सुबह थे। जुगल किशोर से क्या बात हुई?"
मोहनलाल दारूवाला ने सारी बात बताई।
"तो अभी तक उसने जगह नहीं बताई कि जुगल किशोर कहाँ मिलेगा?"
नहीं बताई। वो कहता है पहले डॉलर हाथ में लो, फिर जगह बतायेगा।"
"ठीक है। तुम ऐसा ही---।"
"क्या हुआ--- चुप क्यों हो गये?"
"देवराज चौहान तुमसे बात करेगा...लो...।"
फिर देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी---
"तुम इस भूल में मत रहना कि जुगल किशोर तुम पर नजर नहीं रख रहा। वो आंखें बंद करके बैठने वालों में से नहीं है। खास तौर से तब, जब कि बड़ी दौलत का मामला हो। वो तुम पर नजर रख रहा होगा या उसके इशारे पर कोई और तुम्हारी एक-एक हरकत नोट करके खबर उसे दे रहा होगा। इस बात को हमेशा दिमाग में रखो कि जुगल किशोर की कई नजरें इस वक्त तुम पर टिकी हैं।"
"तुम तो डरा रहे हो यार...।"
"मैं तुम्हें हकीकत से वाकिफ करा रहा हूँ।"
"इस तरह तो मेरी दौलत को खतरा पैदा हो जायेगा। वो दौलत छीन सकते हैं और लक्ष्मी को भी वापस नहीं...।"
"निश्चिंत रहो। तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा। यहां से बाकी लोग भी तुम्हारी तरफ रवाना हो रहे हैं। तुम अपनी पत्नी की चिंता मत करो। जुगल किशोर सिर्फ दौलत का दीवाना है। दौलत के मौके पर औरत उसके लिए मायने नहीं रखती...वो...।"
"तुम उसे जानते हो?"
"इतना तो जानता ही हूँ कि इन हालातों में वो दौलत लेकर तुम्हारी पत्नी से छुटकारा पाकर भाग जाना चाहेगा।"
"क्या हालत हो गई है फौजी की!" मोहनलाल ने गहरी सांस ली।
"तुम्हारी हरकतों की वजह से तुम्हारा ये हाल हो रहा है। तुम दौलत ना लेते तो इस मामले से दूर रहते...।"
"कैसे ना लेता? राह में इतनी बड़ी दौलत पड़ी मिले तो कौन छोड़ता है! तब मुझे नहीं पता था कि मुसीबत इतनी लंबी खिंच जाएगी। एक बात बताओ।"
"क्या?"
"मान लो कि जुगल किशोर मुझसे दौलत छीन लेता। भाग जाता है, तब मेरा क्या होगा?" मोहनलाल ने पूछा।
"आने वाले वक्त की चिंता करना छोड़ दो। तुम हर तरह के हालातों में सुरक्षित रहोगे।"
"मैंने पूछा कि तब मेरा क्या होगा? वो पाकिस्तानी मेरे को नहीं छोड़ेंगे। वो तब चाहेंगे कि बाकी का आधा पैसा तुम्हें देकर डॉयरी...।"
"तुम ये समझो कि मैदान में जो आधे डॉलर आने वाले हैं, वो मेरे हिस्से के होंगे।"
"तुम्हारे हिस्से के?"
"जो तुमने मुझे देने हैं। अगर वो डॉलर हाथ से निकल जाते हैं तो, मेरा हिस्सा जाएगा। तुम्हारे पैसे को कुछ नहीं होगा।"
"और तुम वो डॉयरी पाकिस्तानियों को दे दोगे?"
"हां...।"
"अजीब आदमी हो। अपनी दौलत का इतना बड़ा रिस्क ले रहे हो?" मोहनलाल के होंठों से निकला।
"कुछ नहीं होने वाला दौलत को। मेरी योजना बहुत सीधी सी है। जुगल किशोर को चक्कर में डालकर उसे 'बिल' से बाहर निकालना है और घात लगाकर उसे पकड़ लेना है। इसमें जुगल किशोर कुछ नहीं कर सकता। तुम वैसे ही करना जैसे मैंने समझाया है।"
"तुमने अभी कहा कि और लोग भी मेरी तरफ रवाना हो रहे हैं---।"
"हां। तुम्हारे आसपास सुरक्षित घेरा रहेगा। मस्ती से काम करो।"
"फौजी को चोर-उचक्कों से हाथ मिलाना पड़ रहा है।क्या जमाना आ गया है!" मोहनलाल दारूवाला ने कहा और फोन बंद करके जेब में रखा और ड्राइविंग पर ध्यान लगा दिया।
■■■
देवराज चौहान ने मोबाइल जाकिर की तरफ बढ़ाते हुए कहा---
"तुम जाओ। शेख, मोहनलाल के पीछे है। उससे पूछ लेना कि कहाँ पहुँचना है।"
जाकिर मोबाइल लेकर जाने लगा तो देवराज चौहान बोला---
"लापरवाह मत होना। जुगल किशोर पर हाथ डालने और मोहनलाल की पत्नी को छुड़ाने का मौका तुम लोगों को मिलने वाला है।"
"हम लापरवाह नहीं होते।"
"मैं ठीक हूं। कहो तो मैं भी तुम्हारे साथ...।"
"तुम यहीं रहो। तुम्हारे पास डॉयरी है। तुम्हें कुछ हो गया तो डॉयरी हमारे हाथ से निकल जाएगी।"
जाकिर बाहर निकल गया।
देवराज चौहान उस कमरे से निकलकर सोहनलाल के कमरे में पहुंचा। मेनन भी वहीं पर था।
"क्या रहा?" सोहनलाल ने पूछा।
"तुम उनके साथ नहीं गए?" मेनन ने पूछा।
"मामूली काम है, वो संभाल लेंगे।"
"वो हरामी इंसान है और तुम कहते हो मामूली काम है?" मेनन ने दांत भींचकर कहा--- "कम से कम मुझे ही उनके साथ भेज देते। कमीने को गोली मारने का मौका मुझे मिल जाता।"
"वो मौका शायद तुम्हें नहीं मिलता। ये काम भी वो लोग ही निपटा देंगे।"
"सब काम बढ़िया हुआ था। हरामी ने अपने लालच की वजह से सब बिगाड़ दिया।" मेनन ने गुस्से से कहा--- "हरामी मेरे सामने नहीं पड़ा। वरना मैंने ही उसे मार दिया होता। समझ में नहीं आता कि वह कमीनेपन के साथ ही पैदा हुआ था या बाद में ऐसा बना?"
"मेनन।" सोहनलाल मुस्कुराया--- "वो कैसी भी आदतों के साथ पैदा हुआ हो, क्या फर्क पड़ता है? हमारा काम तो खराब कर दिया उसने।"
देवराज चौहान शांत भाव से उनकी बातें सुन रहा था।
"तुम्हें उनके साथ जाना चाहिए था।" सोहनलाल बोला।
"वो रिस्क नहीं लेना चाहते कि मुझे कुछ हो और उन्हें डॉयरी ना मिले।"
"डॉयरी है कहां?" मेनन ने पूछा।
देवराज चौहान ने मेनन को देखा और मुस्कुरा दिया।
"ओह...मैंने गलत सवाल पूछ लिया। लेकिन क्या तुम यहां कैदी हो?"
"नहीं...। डॉयरी की वजह से उन्होंने मुझे पास में रखा हुआ है।"
"तुम्हें तो फिर भी दौलत मिल जाएगी।" मेनन अफसोस भरे स्वर में बोला--- "परन्तु हम खाली हाथ रहे। ये सब कुत्ते जुगल किशोर की वजह से हुआ। सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। बेचारा जैकी खामखाह ही अपनी जान गंवा बैठा।"
"किए का फल भी उसे मिलने वाला है।" सोहनलाल ने कहा--- "ईराकी उसे नहीं छोड़ने वाले।"
"जुगल किशोर को अपने साथियों के साथ धोखा नहीं करना चाहिए था।" देवराज चौहान ने कहा--- "इस मामले में सबसे बड़ी गलती उसने यही की थी तभी तो वो खुद भी मुसीबत में पड़ा हुआ है और खाली हाथ है।"
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