आठ फीट लम्बे और तीन फीट चौड़े बक्से में सौदागर सिंह लेटा हुआ था। उसकी खुली आंखें इधर-उधर घूम रही थीं। पैंतालीस बरस उम्र होगी उसकी। सिर के बाल छोटे-छोटे थे। होंठों पर पतली सी मूँछें थीं। हाथ की उंगलियों में कई तरह के नगीनों वाली अंगूठियां पहनी हुई थीं। नगीने चमक मार रहे थे। वो सफेद कुर्ते-पायजामे में था। वो ऐसा लग रहा था, जैसे अभी-अभी लेटा हो।
उसके दोनों हाथ पेट पर रखे हुए थे।
चेहरा बिल्कुल शांत और सामान्य दिखाई दे रहा था। बक्से का ढक्कन खुलने के बाद भी वो उसी तरह लेटा रहा। पलकें बराबर झपका रहा था वो।
“डर गई बेटी-।” पेशीराम के शब्दों की फुसफुसाहट मस्तिष्क से टकराई।
जवाब में नगीना सूखे होंठों पर जीभ फेरकर रह गई।
“घबराओ मत। वो तुम्हें तो क्या किसी को कुछ नहीं कह सकता।”
“वो-वो बक्से से बाहर निकल आयेगा।”
“शैतान की सख्त कैद में है वो। किसी को कुछ नहीं कह सकता। आगे बढ़ो। बक्से के पास पहुंचो।”
नगीना ने हिम्मत इकट्ठी की और बक्से के पास पहुंच गई। भीतर देखा।
सौदागर सिंह से उसकी नजरें टकराईं।
नगीना ने पुनः अपने होंठों पर जीभ फेरी।
सौदागर सिंह एक टक नगीना को देख रहा था। उसके शरीर के किसी भी हिस्से में हरकत नहीं थी।
“मैं तेरे मस्तिष्क पर काबू पाने जा रहा हूं। बेटी! सौदागर सिंह से बात करनी है मुझे-।”
“जी।” नगीना के होंठ हिले-“लेकिन ये खड़ा क्यों नहीं हो रहा?”
“कैद में है।” मस्तिष्क से पेशीराम की आवाज टकराई।
“कैद? कैद कहां, ये तो आजाद है।”
“तू नहीं समझेगी। देखती रह। सुनती रह। सब समझ जायेगी।”
तभी नगीना के मस्तिष्क को हल्का सा झटका लगा। इसके साथ ही उसे महसूस हुआ कि उसके हाथ-पांव बेकाबू हो गये हैं। अपने शरीर के अंगों पर नियंत्रण नहीं रहा।
नगीना की निगाहें, सौदागर सिंह के चेहरे पर टिकी थीं।
देखते ही देखते सौदागर सिंह के चेहरे पर मुस्कान फैल गई।
“मुस्कराता क्यों है?” नगीना के होंठों से तीखा स्वर निकला।
“तेरे को देखकर खुश हुआ मैं-।” बक्से में लेटे सौदागर सिंह के होंठ हिले।
“क्यों?” नगीना के होंठ हिले। वो एक टक उसे देख रही थी।
“गुरुवर के शिष्य को देखकर खुशी क्यों नहीं होगी।” सौदागर सिंह कह उठा-“मैं जानता था कि पेशीराम नाम का शिष्य यहां
आयेगा। वो कैसे यहां पहुंचेगा? नहीं जानता था। अब तू आया
तो मालूम हुआ-।”
“गुरुवर का शिष्य?”
“हां। तू नगीना नाम की युवती के शरीर में है, परन्तु मैं तुझे देख रहा हूं। पेशीराम है तू-।”
“पहचान लिया तूने-?”
“हां। तू नगीना नाम की युवती के शरीर में है। मुझे जब मेरी शक्ति ने बताया कि तू आयेगा यहां तो उठा। मैं जानता हूं कि तू मुझे कैद से आजाद करा देगा।” सौदागर सिंह के होंठ हिल रहे थे।
“ऐसा क्यों सोच लिया तूने?” नगीना के होंठ हिले।
“हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं। मैं सैकड़ों बरसों पहले गुरुवर के चरणों में रहता था। तू अब रहता है। तेरे को गुरुवर ने भेजा है ना, मेरे को आजाद करवाने के लिये-।” सौदागर के होंठ हिले। चेहरे पर मुस्कान आ गई।
“गुरुवर क्यों तेरा भला चाहेंगे।” नगीना के होंठ हिले-“भूल
गया सौदागर सिंह कि गुरुवर ने तेरे को कितना समझाया था लेकिन तूने शैतान का दामन पकड़ना ठीक समझा और-।”
“शैतान ने मुझ पर अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके, मेरी अकल खराब करके, मुझे अपने रास्ते पर लगा लिया था।” सौदागर सिंह के शब्दों में तीखापन उभरा-“बहुत बुरा किया शैतान ने-।”
नगीना के चेहरे पर कड़वी मुस्कान फैल गई।
“अपनी बातों में फंसाना चाहता है मुझे-। झूठी बातें कहता है।” नगीना की आंखें एक टक सौदागर सिंह पर थीं-“मुझे गुरुवर सब कुछ बता चुके हैं। मैं तेरी बातों में नहीं फंसूंगा।”
बक्से में लेटा सौदागर सिंह उसे देखता रहा फिर धीमे स्वर में बोला।
“मैं जानता था कि तेरे को गुरुवर ने अवश्य सब बता दिया होगा।”
“अपने किए की सजा भुगत।” नगीना के दांत भिंच गये-“तेरे
भविष्य में झांककर तेरे को गुरुवर ने बता भी दिया था कि अगर तू शैतान के रास्ते पर चलेगा तो उसका क्या अंजाम होगा।”
“हां” सौदागर सिंह के होंठों से अफसोस भरा स्वर निकला-“गुरुवर ने चेतावनी दी थी मुझे, परन्तु तब मैं हासिल हो चुकी शक्तियों के नशे में चूर था। भूल गया था कि सागर में से एक बाल्टी के समान थोड़ी-सी शक्तियां मुझे गुरुवर ने दी हैं। मैं पागल हो गया था तब।”
“तूने ही शैतान को इतनी बढ़िया जगह बनाकर दी है कि वो कैदी आत्माओं को रखकर निश्चिंत हो जाये।”
“नहीं पेशीराम। मैंने शैतान को ये जगह बनाकर नहीं दी। ये जगह तो मैंने अपने लिये बनाई थी।” सौदागर सिंह ने गहरी सांस ली-“परन्तु शैतान ने धोखे से मुझे कैद करके इस जगह पर कब्जा कर लिया।”
“तूने क्या सोचा था कि शैतान तेरे को अपने सिर पर बिठायेगा।” नगीना व्यंग्य भरे स्वर में कह उठी-“शिष्य होकर तूने गुरुवर की इज्जत ना रखी तो शैतान से तेरी कौन-सी रिश्तेदारी थी कि तेरे को वो अपने सिर पर बिठायेगा।”
“मुझसे बहुत भूल हो गई।” सौदागर सिंह ने आंखें बंद कर लीं-“गुरुवर के चरणों में गिरकर माफी चाहता हूँ मैं।”
“जो एक बार धोखा दे सकता है, वो सौ बार धोखा दे सकता है।” नगीना भिंचे स्वर में कह उठी-“तेरे को माफी नहीं मिल
सकती। गुरुवर तेरे को माफ करने को तैयार होंगे तो मैं कोशिश करूंगा कि तेरे को माफी न मिल सके।”
“ऐसा मत कह पेशीराम-।” सौदागर सिंह ने आंखें खोलीं-“मैं भी तुम जैसा ही हूं। तुम-।”
“खबरदार जो मुझे अपने साथ मिलाया।” नगीना के होंठों से निकलने वाला स्वर बेहद कठोर हो गया-“तू बेशक बड़ी-बड़ी
विद्याओं का ज्ञाता ही सही, परन्तु तेरे पास धोखेबाजी की भी विद्या है। जो मुंह पर कलंक लगा देती है। जन्म-जन्म को नर्क में धकेल देती है। गुरुवर को धोखा देते हुए तेरा मन नहीं कांपा क्या?”
सौदागर सिंह ने गहरी सांस ली। चेहरे पर अफसोस के भाव उभरे।
“तब मुझे ख्याल ही नहीं आया कि मैं कितना गलत काम कर रहा हूं।” सौदागर के होंठ हिले-“तब तो मुझे लगा गुरुवर गलत कह रहे हैं और शैतान का साथ मेरे लिये फायदेमंद है। जाने क्यों-कैसे मेरा दिमाग फिर गया। शैतान और उसकी बातों के अलावा मुझे कुछ अच्छा ही नहीं लगता था। अब पछताता हूं कि मैंने क्या किया।”
“शैतान ने मारा क्यों नहीं तेरे को?” नगीना के होंठों से तेज स्वर निकला।
“शैतान मेरा फायदा उठाना चाहता हैं क्योंकि मेरे पास गुरुवर की विद्याएं भी हैं और शैतान की भी। दोनों विद्याएं होने के कारण, मैं ऐसे-ऐसे काम कर सकता हूं, जो दूसरा नहीं कर सकता।” सौदागर सिंह ने कहा-“शैतान चाहता है कि मैं उसका नाम रोशन करूं। हर तरफ शैतानियत फैलाऊं। वो चाहता है मैं उसका अवतार बनकर नीचे जाऊं और शैतानी कर्म करूं। यही वजह है कि शैतान मुझे जिन्दा रखे है। वो चाहता है कि मैं अवतार बनने को तैयार हो जाऊं-।”
“तो मानता क्यों नहीं शैतान की बात । बन जा उसका अवतार और-।”
“नहीं-।” सौदागर सिंह के होंठ हिले-“शैतान का साथ बुरा है। बुराई का फल मैं भुगत रहा हूं। बुरे कर्म करके मैं और भी ज्यादा बुरा नहीं बनना चाहता। शैतान की बात मैं कभी भी नहीं मानूंगा।”
नगीना के चेहरे पर कड़ी मुस्कान उभरी।
“तू क्या समझता है सौदागर सिंह! मैं तेरी बातों में आकर, तुझे कैद से आजाद कर दूंगा।”
सौदागर सिंह ने नगीना की आंखों में झांका।
“पेशीराम! गुरुवर ने तेरे को ये नहीं कहा कि मेरे भटके शिष्य को आजाद कराकर वापस मेरे चरणों में ले आना।”
“मैं गुरुवर की आज्ञा से यहां नहीं आया।”
“फिर कैसे आया?”
“बात ही ऐसी थी कि मुझे आना पड़ा।”
सौदागर सिंह ने कुछ पल के लिये आंखें बन्द की, फिर खोली।
“समझा। तो तू इस नगीना के शरीर की आड़ लेकर, देवा की आत्मा को लेने आया है।”
नगीना के होंठ भिंच गये।
“बहुत कठिन है। असम्भव है। सफल नहीं हो सकेगा।” सौदागर सिंह ने कहा।
“तू चाहेगा तो ये काम पलों में हो जायेगा।”
“मैं क्यों चाहूंगा?” सौदागर सिंह की आंखें सिकुड़ीं।
“हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं। इस नाते तो तू मेरी सहायता अवश्य करेगा।”
“यह बात तो तूने अच्छी कही।” सौदागर सिंह मुस्कराया-“तू
मेरी सहायता कर, मैं तेरी सहायता करूंगा। क्योंकि हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य हैं। गुरु भाई हुए हम-।”
नगीना की आंखें सिकुड़ीं।
“मुझे कैद से मुक्ति दिला। खोल दे मेरे बंधन-। उसके बाद देवा की आत्मा को पलों में ले आऊंगा।”
“मैं तेरे को आजाद नहीं कर सकता।”
“क्यों? हम गुरु भाई हैं। हमें एक-दूसरे के काम आना चाहिये।”
तभी शरीर के भीतर खामोश बैठी नगीना ने पूछा।
“बाबा! इसे तो शैतान ने कैद किया है। तुम कैसे इसे आजाद कर सकते हो?”
“खास मंत्र पढ़कर इसके बंधन खोल दूं तो ये आजाद हो जायेगा।”
“ओह! लेकिन इसके बन्धन तो हैं नहीं। ये आराम से लेटा हुआ है।”
“शैतानी दुनिया की बहुत पक्की कैद में है ये। शैतानी दुनिया
से वास्ता रखता कोई भी इसे कैद से मुक्ति नहीं दिला सकता। बाहरी दुनिया का व्यक्ति या फिर स्वयं शैतान ही इसे कैद से आजाद कर सकता है। इसके दोनों हाथों को देखो, जिन्हें पेट पर रखा हुआ है। दोनों कलाइयों पर एक बाल लिपटा हुआ है।”
कुछ खामोशी रही।
“हां बाबा। वो बाल अब नजर आया। लेकिन इस बाल से इस कैद का क्या सम्बन्ध?”
“वे शैतान के सिर का बाल है जो इसकी कलाईयों से लिपटा है। इस बाल में ऐसी-ऐसी शैतानी शक्तियां हैं कि तुम सोच भी नहीं सकतीं। उसी लिपटे बाल की वजह से सौदागर सिंह जैसा शक्तियों का विद्वान भी बेबस हुआ पड़ा है।”
“ओह-!”
दोनों शरीर के भीतर ही बात कर रहे थे।
नगीना के होंठ बंद थे।
तभी सौदागर सिंह ने कहा।
“नगीना को मेरी कैद के बारे में बता रहा है।”
नगीना की नजरें, बक्से में लेटे सौदागर सिंह पर जा टिकीं।
“सोचता क्या है पेशीराम! शैतान की कैद से आजाद कर मुझे-।”
“गुरुवर की ऐसी कोई आज्ञा नहीं है-।”
“मेरी कैद देखकर, मुझ पर तरस नहीं आता कि-।”
“मेरी नजरों में तेरा कैद में रहना ही ठीक है।” नगीना की आवाज में सख्ती आ गई।
“इतना बुरा हूं मैं-?”
“मैं नहीं जानता कि तू कितना बुरा है और कितना अच्छा।” नगीना के होंठों से इस बार शांत स्वर निकला-“मैं तो सिर्फ इतना जानता हूं कि तेरी आजादी सृष्टि की डोर को हिला सकती है। आजाद होकर तू शैतान के खिलाफ गया तो जाने क्या-क्या तबाही हो। अगर गुरुवर के खिलाफ गया तो भी बरबादी।”
“ऐसा नहीं होगा। मैं गुरुवर के चरणों में रहकर अब वक्त बिता देना चाहता-।”
“तेरा विश्वास कौन करेगा, तूने शैतान का साथ देने को कहा तो शैतान भी तब तेरा विश्वास न करे। आजाद होकर तूने फिर अपनी शक्तियों के दम पर कोई नया खेल शुरू कर दिया तो-।”
“ऐसा नहीं होगा। मैं कितनी बार कहूं पेशीराम ऐसा नहीं होगा।”
“तू आग में बैठकर भी कसम खाये, तो भी मैं तेरा विश्वास
न करूं।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“वैसे भी तो तेरे को आजाद करने का हक मुझे गुरुवर ने नहीं दिया।”
“गुरुवर रहमदिल है। वो तेरे को कुछ नहीं कहेंगे।” सौदागर सिंह ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
“भूल है तेरी कि गुरुवर रहमदिल है। जो उनकी आज्ञा और विद्या का आदर करे, उसी के लिये वे रहमदिल हैं। तेरे जैसे धोखेबाज शिष्यों के लिये वो रहम का इस्तेमाल नहीं करते।”
“तो तू मेरे को शैतान की कैद से मुक्ति नहीं दिलवायेगा।” सौदागर सिंह की आंखें सिकुड़ीं।
“तेरे को आजाद कराने की, गुरुवर की ऐसी कोई इच्छा होती तो गुरुवर ने कोई रास्ता निकालकर, अब तक तेरे को आजाद करा लिया होता। तू अभी तक कैद में है तो स्पष्ट है कि गुरुवर की इच्छा नहीं है कि तू आजाद हो। ऐसे में गुरुवर की इच्छा के खिलाफ मैं नहीं जा सकता।” नगीना के होंठों से शांत स्वर निकला।
सौदागर सिंह का चेहरा क्रोध से भर उठा।
“तू मुझे आजाद नहीं करायेगा?”
“नहीं-।”
“जानता है, मैं तेरे को पलों में जला कर राख कर सकता हूं।”
नगीना के होंठों पर मुस्कान फैल गई-।
“मैं जानता था कि अपनी कोशिश नाकाम होते पाकर, ऐसी ही कोई बात कहेगा। लेकिन तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता, जब तक कि तू कैद में है। कैद में तेरी शक्तियां काम नहीं करेंगी। जबकि मैं अपनी शक्ति तेरे पर इस्तेमाल-।”
“तेरी ऐसी कोई शक्ति तेरे पास इस वक्त नहीं है जो मेरे पर इस्तेमाल हो सके। क्योंकि तेरे पास अपना शरीर नहीं है। तू तो इस नगीना के शरीर में प्रवेश किए बैठा है।” सौदागर सिंह ने व्यंग्य से कहा।
नगीना उसे घूरने लगी।
सौदागर सिंह के होंठों पर कड़वी मुस्कान फैल गई।
“मुझे कैद से मुक्ति दिला दे। बहुत फायदा होगा इससे तेरा। देवा की आत्मा फौरन तेरे को ला दूंगा। यहां मेरा ही बनाया चक्रव्यूह है। उस चक्रव्यूह में शैतान ने आत्माओं को कैद कर रखा है।” सौदागर सिंह ने कहा-“मैं तेरे को गुरुवर के श्राप से मुक्ति भी दिला दूंगा। इतनी शक्ति है मेरे पास-।”
“तेरे हाथों श्राप से मुक्ति पाने से तो अच्छा है कि श्राप से मुझे कभी मुक्ति ही न मिले।” नगीना के चेहरे पर सख्ती उभर आई थी-“तू मुझे अपनी तरह लालची समझता है कि अपने मतलब की खातिर मैं गुरुवर से धोखा करूंगा।”
“अपने भले की सोच पेशीराम। तू मेरे साथ रहना। मैं तेरे को बहुत विद्याएं सिखाऊंगा कि-।”
“चुप कर। अपने घटिया लालच, अपने पास ही रख-।” नगीना के होंठों से गुर्राहट निकली।
सौदागर सिंह, नगीना को घूरने लगा।
“मैं जानता हूं कि तू कैद में रहकर भी देवा की आत्मा को यहां तक ला सकता है।” नगीना पहले जैसे स्वर में कह उठी-“बता, देवा की आत्मा को मेरे हवाले करता है।”
“तू मुझे शैतान की कैद से मुक्ति दिलाएगा तो मैं तेरा हर काम करूंगा।”
“अच्छी तरह सुन ले सौदागर सिंह, मैं किसी भी कीमत पर तेरे को शैतान की कैद से मुक्ति नहीं दिला सकता।”
नगीना का चेहरा गुस्से से भर उठा।
“रास्ते से हट। मैं खुद देवा की आत्मा को ले जाऊंगा।”
सौदागर सिंह हंस पड़ा।
“मरेगा। तेरी आत्मा भी शैतान की कैद में चली जायेगी और इस नगीना की भी।”
“अपने काम से मतलब रख। रास्ता दे मुझे-।”
“तेरी इच्छा। जा। मैं जानता हूं कि अब तू वापस नहीं आ सकेगा।” सौदागर सिंह के शब्द पूरे होते ही वो बक्सा फर्श से पांच फीट ऊपर उठा और हवा में ठहर गया।
फर्श पर जहां बक्सा था, वहां अब सीढ़ियां दिखाई देने लगी थीं।
बक्सा बिना हिले हवा में ठहरा हुआ था। तभी सौदागर सिंह की आवाज कानों में पड़ी।
“जा। अब जाता क्यों नहीं?”
तभी नगीना के मस्तिष्क को हल्का सा झटका लगा और उसने खुद को आजाद महसूस किया। वो अब अपनी मर्जी से हाथ-पांव हिला सकती थी।
“आगे बढ़ो नगीना।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये-“लेकिन ध्यान रहे, पहली सीढ़ी पर पांव मत रखना। अब भ्रम का जाल, बार-बार तुम्हारे रास्ते में आयेगा। तुम्हें सावधान रहना होगा। पहली सीढ़ी पर पांव रखते ही तुम अपनी जान गंवा बैठोगी। दूसरी सीढ़ी पर पांव रखो।
“ठीक है बाबा-।”
तभी सौदागर सिंह की कड़वी हंसी गूंजी।
“इसे कब तक बचायेगा पेशीराम। मेरे चक्रव्यूह में तुम्हारी नहीं चल सकती। मरेगी ये-।”
“मैंने तेरे से सलाह नहीं ली।” नगीना के होंठों से ये शब्द निकले। जबकि नगीना को अच्छी तरह एहसास था कि ये शब्द उसने नहीं कहे। जाहिर है कि पेशीराम ने ही उसकी आवाज इस्तेमाल करके कहे हैं।”
नगीना आगे बढ़ी और सावधानी से पहली सीढ़ी को छोड़कर दूसरी सीढ़ी पर पांव रखा और नीचे उतरने लगी। सीढ़ियों के साथ दीवार थी। आगे सीढ़ियां ही नजर आ रही थीं, परन्तु वहां तीव्र रोशनी थी।
“आखिरी सीढ़ी पर भी पांव मत रखना। वरना मर जाओगी।
“समझ गई।” नगीना सीढ़ियां उतरती जा रही थी।
☐☐☐
जब नगीना सीढ़ियां उतर गई तो हवा में स्थिर बक्सा वापस अपनी जगह पर फर्श पर आ गया। सौदागर सिंह के चेहरे पर शांत भाव थे। बक्सा फर्श पर टिकते ही सौदागर सिंह होंठों ही होंठों में कुछ बड़बड़ाया। ज्यों ही उसकी बड़बड़ाहट शांत हुई होंठ बंद हुए थे कि तभी शैतान का स्वर वहां गूंजा।
“सौदागर सिंह-।”
सौदागर सिंह के चेहरे पर तीखी मुस्कान उभरी।
“कैसे आना हुआ शैतान-?” सौदागर सिंह के होंठ हिले।
“मैं यहां प्रवेश नहीं कर पा रहा था। क्यों रोका मेरा रास्ता-?” शैतान की आवाज पुनः सुनाई दी।
“मैं एकान्त चाहता था शैतान। इसलिये अपनी शक्ति का इस्तेमाल करके खुद को अकेला रख लिया। अपनी शक्ति से ऐसी दीवार खड़ी कर दी कि न तो कोई झांक सके। न कोई सुन-महसूस कर सके।” सौदागर सिंह ने शांत स्वर में कहा।
“इतनी देर तुमने पहले कभी रास्ता बंद नहीं किया।”
सौदागर सिंह हौले से हंसा।
“पहले कभी मन नहीं किया इस तरह आराम करने का।”
“सच बता। एकान्त में क्या कर रहा था सौदागर सिंह?”
“बता तो दिया। नहीं विश्वास तो तू बता मैं क्या कर रहा था?” सौदागर सिंह ने कहा।
“तेरे पास कौन था?”
“तेरे को पता है मेरे पास कोई था?” सौदागर सिंह मुस्कराया।
“मेरा मन कहता है कि अवश्य कोई होगा। तभी तूने अपने गिर्द ऐसी दीवार खड़ी कर ली कि कोई उसके बारे में जान सके।”
“ऐसा है तो ढूंढ ले। देख ले कौन है।”
“मैं तेरे से पूछता हूं।”
“मेरे पास कोई होता तो अवश्य बताता।” सौदागर सिंह का स्वर कड़वा हो गया।
कई पलों की खामोशी के बाद शैतान की आवाज गूंजी।
“कब तक तू कैद में रहेगा सौदागर सिंह-?”
“मैं तो अभी इस कैद से मुक्त हो जाना चाहता हूं शैतान-।” सौदागर सिंह मुस्कराया।
“फिर सोचता क्या है। मेरे साथ मिल जा। मेरा अवतार बनकर नीचे जा और मेरा नाम रोशन कर।”
“सौदागर सिंह किसी की शर्त स्वीकार नहीं करता।” सौदागर सिंह की आवाज शांत थी-“मैंने कितनी बार तेरे को मना किया है।”
“बेशक कितनी ही बार इन्कार कर दे मुझे। लेकिन मैं पूछता रहूंगा।”
“तू खतरे में है शैतान-।”
“क्या मतलब?”
“अगर वक्त रहते सब कुछ तूने ठीक नहीं किया तो काला महल में सवार होकर नीचे से आने वाले लोग तेरे को नुकसान देंगे। अभी भी वक्त है सब कुछ संभाल ले।” सौदागर सिंह ने कहा।
“सब कुछ ठीक हो जायेगा। महामाया ने अपनी शक्ति महल पर लगा दी है। गुरुवर की शक्तियों में भी बाल की वजह से महामाया की शक्ति धीरे-धीरे काम करेगी। पन्द्रह दिन में वो महल और महल के भीतर जो भी है, वो जल कर राख हो जायेगा। द्रोणा और प्रेतनी चंदा को पुनः शरीर के साथ शक्तियां दे दी गई हैं। मेरी धरती पर जिन लोगों के कदम पड़ चुके हैं वो ज्यादा देर जिन्दा नहीं रहेंगे।”
“द्रोणा और प्रेतनी चंदा को पुनः शक्तियां और जीवन क्यों दिया?”
“क्योंकि अभी इच्छा पूरी न होने के कारण, वो तड़पते हुए भटक रहे थे। उनकी इच्छा थी कि उन्हें खत्म करें जिन्होंने उनकी जान ली है। वैसे भी दोनों मेरा नाम रोशन करने में माहिर हैं। वो मेरे कई काम करेंगे।”
सौदागर सिंह मुस्कराकर रह गया।
“तू क्यों मुस्कराया?”
“तेरे को क्या।” सौदागर सिंह ने गहरी सांस ली-“अपनी कह।”
“मेरे सामने एक परेशानी है। तूने गुरुवर से भी शिक्षा प्राप्त की है। इसलिये मेरी सहायता कर सकता है। गुरुवर की शक्तियों को पहचानने की विद्या तेरे पास है।” शैतान की आवाज सुनाई दे रही थी-“काला महल से कोई अदृश्य होकर, मेरी धरती पर मौजूद है। उसके भीतर कोई अन्य आत्मा भी छिपी है। गुरुवर की शक्तियों का इस्तेमाल करके, मुझे बता कि वो कौन है जो अदृश्य है और इस वक्त मेरी धरती पर कहां है। अदृश्य होकर वो क्या काम करना चाहता है।”
सौदागर सिंह हंसा।
“क्यों हंसा?”
“तूने कैसे सोच लिया कि मैं तेरे को इस बात का जवाब दूंगा।” सौदागर सिंह बोला।
“मुझे इस बात को जानने की बहुत जरूरत है।”
“जिन्न बाधात उस अदृश्य इन्सान को तलाश तो कर रहा है।”
“उसे वक्त लग सकता है इस काम में।”
“ठीक है। मैं तुम्हें बता देता हूं।” सौदागर सिंह ने सामान्य स्वर में कहा-“लेकिन मैं किसी का काम मुफ्त में नहीं करता। सौदागर सिंह को सिर्फ सौदा करना आता है। मेरे को कैद से मुक्त कर दे। मैं तेरे को तेरे सवाल का जवाब दे देता हूं।”
“मुक्ति चाहता है तो मेरा साथ दे। मेरा नाम रोशन कर। लेकिन तेरे हां कहने से मुक्ति नहीं मिलेगी। तेरे को अपनी शक्तियां मेरी कैद में रखनी होंगी। मुझ पर विश्वास जमाना होगा। तभी तेरे को पूर्ण मुक्ति देकर आजाद करूंगा।”
“तू मेरे को बेवकूफ समझता है कि मैं अपनी शक्तियों को तेरे हवाले कर दूंगा। चला जा।” सौदागर सिंह के चेहरे पर गुस्सा उभरा-“तेरे पर मैं विश्वास जमाऊं अपना। इनाम नहीं लेना मुझे। क्यों तेरा नाम रोशन करूं। मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं है।”
“घमण्ड छोड़ दे सौदागर सिंह।” शैतान की आवाज गूंजी-“वरना तेरी और भी बुरी हालत हो जायेगी।”
“घमण्ड मैं नहीं कर रहा हूं। अपनी जमीन पर मुझे कैद करके धमकियां देता है। आजाद कर। फिर देख क्या होता है। मैं जानता हूं कि तेरे को खत्म नहीं कर सकता। क्योंकि तू शैतान है और सृष्टि का नियम है कि शैतान कभी नहीं मरेगा। लेकिन मैं तेरे को ऐसा नाच नचा दूंगा कि एक-एक पल तेरे को भारी लगेगा। चैन से नहीं बैठने दूंगा तुझे-।”
“पागल मत बन।” शैतान का गम्भीर स्वर उभरा-“तू मेरे से नहीं टकरा सकता। हार तेरी ही होगी। ठण्डे दिमाग से सोच, मेरे संग रहने में ही तेरी मुक्ति है। सोच सौदागर सिंह सोच। मैं फिर आऊंगा तेरा जवाब लेने।”
उसके बाद शैतान की आवाज नहीं गूंजी।
बक्से में लेटे सौदागर सिंह ने आंखें बंद कर लीं। ढक्कन खुला
हुआ था।
☐☐☐
नगीना ने छोटी सी छलांग ली और आखिरी सीढ़ी को बिना पांव रखे ही पार किया और फर्श पर आ गई। यहां तीव्र रोशनी जगमगा रही थी। आगे पांच फीट की गैलरी जाती दिखाई दे रही थी। गैलरी के शुरूआत में सोने के दो चमकते थाल पड़े थे। फर्श-दीवारें चमकती साफ नजर आ रही थीं।
नगीना ठिठक कर हर तरफ देखने लगी।
“वक्त बरबाद मत करो।” पेशीराम का स्वर मस्तिष्क से टकराया-“आगे बढ़ो। अब तुम्हारे सामने समस्या ये है कि सोने के किसी एक थाल पर पांव रखकर ही आगे बढ़ना है, परन्तु एक थाल जिन्दगी सलामत रखता है। दूसरा थाल जिन्दगी लेता है। ऐसे में तुम कौन-से थाल पर पांव रखोगी?”
“मुझे क्या मालूम?” नगीना के होंठों से निकला।
“मैं भी नहीं जानता। इस काम के लिये मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार का इस्तेमाल करो। सौदागर सिंह ने अपने चक्रव्यूह में अधिकतर गुरुवर की सिखाई शक्तियों और शैतानी शक्तियों को मिलाकर, चीजें बनाई हैं। जिसमें भी गुरुवर की सिखाई शक्ति का इस्तेमाल होता है, उसे ये तलवार हटा देगी। कई शैतानी शक्तियों पर भी शक्तियों से भरी ये तलवार भारी पड़ेगी। इन थालों को तलवार की नोक लगाओ। जो थाल जान लेने वाला होगा, उसमें से चिंगारियां निकलेंगी, तो दूसरे थाल पर पांव रखकर आगे बढ़ जाना।”
“इन थालों को रास्ते से हटा दूं, ताकि कोई और जान न गंवा दें।” नगीना के होंठ हिले।
“नहीं। सोने के इन थालों को कोई भी फर्श से नहीं हटा सकता। सौदागर सिंह ने थालों को अपनी शक्तियों से फर्श के साथ इस तरह बांधा है कि इन्हें हिलाया भी नहीं जा सकता। जल्दी करो। हमारे पास वक्त कम है।”
नगीना दो कदम आगे बढ़ी और तलवार की नोक को एक थाल के साथ लगाया। ऐसा करते ही थाल से तीव्र चिंगारियां निकलीं और उसका रंग जैसे गर्म होकर सुर्ख-सा होने लगा।
नगीना ने होंठ भींचे फौरन तलवार पीछे की और दूसरे थाल
से तलवार की नोक लगा दी।
दूसरे थाल पर कुछ भी नहीं हुआ। वो सामान्य रहा।
नगीना ने दूसरे थाल पर पांव रखा और आगे बढ़ गई। तलवार सावधानी से हाथ में थामी हुई थी। साफ-सुथरी चमकदार गैलरी में कुछ आगे जाकर, दायें-बायें लगे दरवाजे नजर आने लगे।
“ये दरवाजे कैसे हैं बाबा?” नगीन के होंठ भिंचे।
“ये दरवाजे मुसीबतों से भरे हुए हैं। दरवाजे खोलते ही अजीबो-गरीब तरह की मुसीबतें घेर लेंगी। जिनसे बचना कठिन है। कोई शैतानी शक्तियों का इस्तेमाल करेगा तो, मुसीबतों के बीच मौजूद गुरुवर की शक्तियां काम करने लगेंगी। मुसीबतों में मौजूद गुरुवर की शक्तियों पर कोई काबू पाने की चेष्टा करेगा तो, शैतानी शक्तियां सामने आ जायेंगी। यानि कि एक वक्त में एक ही शक्ति पर काबू पाया जा सकता है और मुसीबतों में दोनों शक्तियां भरी पड़ी हैं।”
“ओह-!” नगीना के होंठ हिले-“सौदागर सिंह बहुत चालाक है।”
“हां। समझदारी में सौदागर सिंह कम नहीं।”
“तो गुरुवर से सौदागर सिंह ने कैसे धोखेबाजी कर-।”
“तब बुरे सितारे सौदागर सिंह को घेर चुके थे। वरना वो गुरुवर को कभी भी दगा नहीं देता।” पेशीराम को आवाज नगीना को अपने मस्तिष्क से टकराती महसूस हो रही थी-“ये बातें मुझे गुरुवर ने ही बताई थीं। गुरुवर तो अक्सर सौदागर सिंह की तारीफ करते हैं। शैतानी सितारों ने सौदागर सिंह का दिमाग फिराकर, उसे बुरे रास्ते पर डाल दिया।”
“गुरुवर को मालूम है कि सौदागर सिंह ने कुछ नहीं किया। सब कुछ बुरे सितारों ने किया तो गुरुवर सौदागर सिंह को माफ करके, उसे शैतान की कैद से आजाद क्यों नहीं कर देते।” नगीना के होंठों से निकला।
“गुरुवर को सौदागर सिंह पर भरोसा नहीं कि आजाद होकर गलत रास्ते पर न चल पड़े। लोगों को सताना न शुरू कर दे।”
“सौदागर सिंह तो कह रहा था कि वो ऐसा नहीं करेगा।”
“क्या भरोसा सौदागर सिंह की जुबान का। एक बार तो धोखा
दे चुका है। समझाने पर भी नहीं माना था।”
“सौदागर सिंह को अपनी गलती का एहसास हो गया होगा। गुरुवर से धोखा नहीं करेगा।”
“नगीना बेटी!” पेशीराम की आवाज पुनः उसकी सोचों में आई-“ये बातें गुरुवर ही जानें। इस बात में मेरा कोई मतलब
नहीं। आगे देखो। गैलरी का मोड़ आ रहा है।”
चंद कदमों के फासले पर ही था वो मोड़।
नगीना तेजी से आगे बढ़ती हुई मोड़ पर मुड़ी।
उसी पल ही फुर्ती से झुकते हुए, सामने से हुए तलवार के वार से खुद को बचाया। तलवार का वार ऐसा था कि अगर गर्दन पर पड़ता तो जुदा हो जाती। पचास बरस का व्यक्ति था वो। काले रंग के कपड़े का लंगोट पहना हुआ था। गले में मालाएं। माथे पर सुर्ख रंग का लम्बा तिलक। अपने लम्बे बालों को गूंथ कर गर्दन के पिछले हिस्से के पास बालों को इकट्ठा कर रखा था। उसकी आंखों में लाती थी।
वार करते ही वो उछल कर पीछे हो गया था। यही वजह रही कि नगीना की जब तलवार घूमी तो, वार खाली गया था। वरन् वो वार ऐसा था कि लगने के बाद बच पाना संभव नहीं था।
दोनों चार कदमों का फासला रखकर, तलवारें थामे एक-दूसरे को घूरने लगे।
“ये यहां का पहरेदार है।” नगीना के मस्तिष्क में पेशीराम की आवाज टकराई-“ये अदृश्य चीजों को भी देख सकता था। तुम्हें भी स्पष्ट रूप से सामने खड़ा देख रहा है। ये जबर्दस्त तलवारबाज है। इसका मुकाबला तुम्हें ही करना होगा। इसमें मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।”
नगीना के होंठ भिंच गये। वो उसे ही देखती रही।
“कौन है तू?” तलवार थामे वो गुर्रा उठा-“शैतान के इस चक्रव्यूह में कैसे प्रवेश कर गई?”
“नगीना नाम है मेरा और ये चक्रव्यूह शैतान का नहीं, सौदागर सिंह का है।” नगीना ने होंठ भींचकर कहा।
“सौदागर सिंह कभी इसका मालिक हुआ करता था।” वो उसी लहजे में बोला-“अब शैतान इसका मालिक है।”
“तू कौन है?”
“मैं यहां का पहरेदार हूं। जिस भी धोखे से इस चक्रव्यूह में प्रवेश किया, वो मेरे हाथों से मारा गया । चक्रव्यूह में वो यहां से आगे नहीं जा सका। तू भी मरेगी।” वो पहले वाले स्वर में कह रहा था।
“मुकाबला करना पड़ेगा तेरे को, मुझे मारने के लिए-।”
“तू मेरा क्या मुकाबला करेगी।” उसका चेहरा कठोर हो गवा-“बता तू यहां क्यों आई?”
“अपने पति की आत्मा लेने आई हूं।”
“आत्मा?” उसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे-“तेरे को आत्मा की क्या जरूरत पड़ गई।”
“उससे मैं अपने पति को जिन्दा करूंगी।”
“जिन्दा करेगी।” उसकी आंखें सिकुड़ीं-“ऐसा मोह तो नीचे के ग्रह वाले करते हैं। तू तो-।”
“मैं नीचे के ग्रह से ही आई हूं शैतान की धरती पर। मरने के बाद मेरी आत्मा नहीं आई यहाँ।”
“ओह! तो शैतान को खबर होगी इस बात की।”
“खबर है! वो मेरी तलाश कर रहा है।”
“खूब! अब मैं तेरी लाश शैतान को भेंट करूंगा।” एकाएक उसने खतरनाक स्वर में कहा और फुर्ती के साथ उछलते हुए, तलवार का वार नगीना पर किया।
नगीना ने तुरन्त अपनी तलवार आगे कर दी।
दोनों तलवारें टकराते ही तेज आवाज उभरी और चिंगारियां-सी उभरीं। नगीना की तलवार में तीव्र कम्पन हुआ। वो फुर्ती के साथ पीछे हट गई।
नगीना की आंखें सिकुड़ गईं।
“तलवारें टकराते ही चिंगारियां और कम्पन क्यों हुआ?” नगीना के होंठ हिले।
“पवित्र और शैतानी शक्तियां टकरायेंगी तो असर होगा ही। उसके हाथ में दबी तलवार में शैतानी शक्तियां हैं।”
तलवार थामे वो व्यक्ति दांत भींचे नगीना को देख रहा था।
“किससे बातें कर रही है तू?” वो गुस्से से बोला।
जवाब देने की अपेक्षा नगीना तलवार थामे वार की मुद्रा में कुछ आगे बढ़ी।
वो भी मुकाबले के लिये तैयार हो गया।
“तलवारबाजी में मेरा मुकाबला नहीं।” वो खतरनाक स्वर में कह उठा।
नगीना ने ठिठक कर उसे देखा फिर धीरे-धीरे पीछे हटने लगी।
ये देखकर उसकी आंखें सिकुड़ीं। चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“तू क्या मुकाबला करेगी मेरा।” उसके स्वर में वहशी भाव आ गये-“तू तो डर रही है।”
नगीना उसी तरह धीरे-धीरे पीछे होती रही।
“आगे बढ़।” वो गुस्से से बोला-“पीछे क्यों हट रही है?”
नगीना का पीछे हटना जारी रहा।
तभी उसके होंठों से दिल को कंपा देने वाली आवाज निकली। चेहरा दरिन्दे की तरह लगा। और तलवार थामे तीर की तरह नगीना की तरफ दौड़ा। उसका तलवार वाला हाथ हिला। उसका इरादा तलवार से नगीना के शरीर के दो टुकड़े कर देने का था।
नगीना की आंखों में भी तीव्र, खतरनाक चमक भर आई थी। इससे पहले कि वो पहुंचते हुए, तलवार के वार को कामयाबी का जामा पहना पाता। नगीना बिजली की सी फुर्ती के साथ नीचे झुकी और उकड़ू बैठ गई। तभी तलवार का वार उसके सिर के ऊपर से होता चला गया। इसके साथ ही वो लड़खड़ाया। वार खाली जाने की वजह से जो तीव्र झटका लगा, उससे वो खुद को संभाल न पाया और नगीना के करीब आ पहुंचा था।
पलों का ही मामला रहा ये सब।
उसी पल नगीना ने फुर्ती से तलवार वाला हाथ हिलाया और तलवार की नोक उसके पेट में धंसती चली गई। तलवार का कुछ हिस्सा पीछे की तरफ से बाहर आ गया। वो गला फाड़कर चीखा और पीछे हटा। तलवार उसके पेट से बाहर आ गई। वो दोनों हाथों से पेट के घाव को थामे दीवार से जा टकराया। उसके चेहरे पर पीड़ा ही पीड़ा नजर आ रही थी। जख्म से खून बह रहा था। तलवार हाथ से छूटकर दूर जा गिरी थी।
खून से सनी तलवार थामे नगीना उठ खड़ी हुई। चेहरे पर खतरनाक भाव उभरे हुए थे।
पेट थामे दीवार के साथ ही वो नीचे बैठता चला गया। उसकी आंखें आग की तरह सुर्ख हो रही थीं। रह-रह कर वो नगीना को देख लेता था।
अब उसकी चीखों की आवाजों में कमी आ गई थी।
“तुमने बहुत खतरनाक ढंग से वार किया।” वो चाहता हुआ कह उठा-“तलवार चलाने में तुम दक्ष हो।”
“तुमने क्या सोचा, तलवार यूं ही थाम रखी है मैंने।” नगीना फुंफकार उठी।
“मैं धोखा खा गया। मैंने समझा, तू तलवार में इतनी दक्ष नहीं होगी।”
तभी नगीना के मस्तिष्क से, पेशीराम के शब्द टकराये।
“ये अभी भी तेरे से चाल खेल रहा है। ये शैतानी विद्या का इस्तेमाल करके शक्ति एकत्र कर रहा है। कुछ ही देर में ये तेरे पर ऐसा वार करेगा कि तू बच नहीं सकेगी नगीना।”
पेशीराम के शब्दों का एहसास पूरा होते ही नगीना दांत भींचे उसके करीब पहुंची। नगीना की आँखों में वहशी भाव देखकर उसकी आंखें, फैल गईं।
“मुझे मत मारना।” वो जल्दी से कह उठा-“मैं तो वैसे ही मर रहा हूं। तू जीत गई।”
तभी दांत भींचे नगीना ने तलवार वाला हाथ हिलाया।
“नहीं-ऽ-ऽ-ऽ।”
चेहरे पर सुर्खी समेटे नगीना का तलवार वाला हाथ नीचे आया और तलवार की धार उसके सिर पर लगी। साथ ही तलवार के दीवार से टकराने की तीव्र आवाज उभरी। उसके सिर और गर्दन को काटती हुई तलवार छाती के पास जाकर ही रुकी। खून के छींटे इधर-उधर बिखरे।
तड़प का एक तीव्र झटका लगा और उसका शरीर शांत पड़ गया। सिर के दो हिस्से हुए, गर्दन के नीचे से जुदा होकर इधर-उधर लटके वीभत्स नजारा पेश करने लगे थे।
खूंखारता के भाव चेहरे पर समेटे नगीना ने तलवार को देखा। वहां से खून की बूंदें टपक रही थीं।
“नगीना-!”
“बाबा-!” नगीना के होंठ हिले।
“मिनट भर में इसकी लाश शैतानी धुआं बनकर तेरी आंखों में समा जायेगी। फिर तेरे को दिखना बंद हो जायेगा। इसका बहता खून हाथ में भरकर इसके ऊपर छींटे मार दे। तब शैतान की शक्ति इससे दूर भाग जायेगी।”
नगीना ने फौरन उसके बहते खून को अपने हाथ में भरा और उसके छींटे लाश पर मारने लगी। इस क्रिया को करके रुकी ही थी कि एकाएक लाश में से हौले-हौले धुआं निकलने लगा।
नगीना फौरन कुछ कदम पीछे हटी।
“बाबा-धुआं!”
“ये धुआं, शैतानी शक्तियां हैं, जो इसके शरीर से बाहर निकल कर, अपने ठिकाने पर वापस जा रही हैं। इस धुएं से अब तुम्हें घबराने की आवश्यकता नहीं है।” पेशीराम की आवाज मस्तिष्क की तरंगों से टकराई।
नगीना ने मन ही मन राहत की सांस ली।
“आगे बढ़ो। अभी बहुत लम्बा और खतरों से भरा रास्ता है। जाने आने वाले वक्त में क्या हो।”
खून से सनी तलवार थामे नगीना गैलरी में आगे बढ़ गई।
भिंचे दांत। चेहरे पर दृढ़ता।
तीस मिनट लगातार चलने के पश्चात वो गैलरी खत्म हुई।
नगीना कई घंटों से लगातार चलती आ रही थी। ऐसे में उसे थकान का एहसास होने लगा था, परन्तु रुकने का उसका कोई इरादा नहीं था। वो जल्द से जल्द अपनी मंजिल पर पहुंच जाना चाहती थी।
गैलरी समाप्त होते ही नगीना ठिठक गई। आसमान नजर आने लगा।
आंखें सिकुड़ीं। माथे पर बल उभरे। होंठ भिंच से गये थे।
सामने ही दो काले घोड़ों की घोड़ा-गाड़ी खड़ी थी। एक रास्ता सीधा जा रहा था। साफ-सुथरा रास्ता था वो। रास्ते के दोनों तरफ पेड़-झाड़ियां थीं। स्पष्ट था कि उसे रास्ते पर सीधा ही आगे बढ़ना था, परन्तु खाली घोड़ा-गाड़ी की मौजूदगी उसकी समझ में नहीं आई।
“नगीना!” पेशीराम के शब्दों का एहसास उसके मस्तिष्क को हुआ-“घोड़ा-गाड़ी पर मत बैठना।”
तभी दोनों काले घोड़ों ने गर्दनें हिलाकर उसे देखा और जोरों से हिनहिनाये।
शांत वातावरण में उनके हिनहिनाते ही हलचल-सी पैदा हुई।
“क्यों?”
“ये घोड़ा-गाड़ी सौदागर सिंह के चक्रव्यूह का ही एक हिस्सा है। इस पर बैठते ही घोड़े सीधे रास्ते पर भागेंगे और जहां ये रास्ता समाप्त होगा, उसके पार गहरी खाई है। तुम्हें लेकर ये खाई में जा गिरेंगे।”
“ओह-!”
“सौदागर सिंह ने ये इन्तजाम इसलिये किया था कि कोई उसके चक्रव्यूह में यहां तक आ जाये तो, ये घोड़ा-गाड़ी उसे मौत के दरवाजे तक पहुंचा दे।” पेशीराम की आवाज मस्तिष्क की तरंगों को महसूस हो रही थी।
होंठ भींचे नगीना घोड़ों को देखती रही।
“क्या इन घोड़ों की आंखों में भी अदृश्य शक्ति देखने की ताकत है?”
“हां। यहां जो भी काला घोड़ा तुम्हें नजर आयेगा, उसकी आंखों में शैतानी शक्ति मौजूद है। जो अदृश्य चीजों को आसानी से देख सकती हैं। तलवार लेकर आगे बढ़ो और इन दोनों घोड़ों की आंखें फोड़ दो।”
“उससे क्या होगा?”
“इनकी आंखों में भरी शक्तियां लुप्त हो जायेंगी और ये सामान्य घोड़े बनकर घोड़ा-गाड़ी सहित रास्ते पर दौड़ेंगे और रास्ता खत्म होते ही गहरी खाई में जा गिरेंगे। वरना जब तक इस घोड़ा-गाड़ी में कोई सवार नहीं होगा, तब तक वे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ायेंगे। अगर तुम घोड़ा-गाड़ी में सवार न होकर, किसी अन्य रास्ते की तरफ बढ़ गईं तो इन घोड़ों में मौजूद शक्तियां शैतान को यहां पर तुम्हारी मौजूदगी के बारे में खबर कर देंगी।”
“ओह!”
“आगे बढ़ो और तलवार की नोक से इनकी आंखें फोड़ दो।”
दांत भींचे नगीना आगे बढ़ी और घोड़ों के सामने जा पहुंची।
दोनों घोड़ों की निगाह नगीना पर थी।
इसी पल नगीना ने तलवार वाला हाथ उठाया और तलवार की नोक एक घोड़े की आंख में घुसेड़ दी। थोड़ा मुंह फाड़कर जोरों से चीखा। नगीना ने उसकी दूसरी आंख भी फोड़ी तो घोड़ा चीख-चीख कर तड़पने लगा। उछलने लगा।
दूसरा घोड़ा अभी तक इस तरह शांत खड़ा था कि जैसे कुछ हुआ ही न हो।
नगीना ने तलवार की नोक से दूसरे घोड़े की भी आंख फोड़ दी।
ऐसा होते ही वो घोड़ा भी मुंह फाड़कर जोरों से चीखा और उसी पल दोनों घोड़े बग्गी सहित आगे को भाग खड़े हुए। सामने नगीना थी। वो एकाएक खुद को संभाल न सकी। एक घोड़े का माथा उसके कंधे पर लगा-वो लुढ़ककर नीचे जा गिरी। इससे पहले कि वो रास्ते से हट पाती। बग्गी का पहिया उसके ऊपर से निकलता चला गया।
घोड़ों की टप-टप कानों में पड़ती रही। शांत वातावरण भंग
हो चुका था।
नीचे पड़ी नगीना गहरी-गहरी सांसें ले रही थी। तलवार हाथ
से छूटकर पास ही गिर गई थी।
“चोट आई बेटी?”
“नहीं बाबा! मैं ठीक हूं-। बग्गी का पहिया मेरे ऊपर से अवश्य निकला। लेकिन मुझे नुकसान नहीं पहुंचा।” कहने के साथ ही नगीना खड़ी हुई और दो कदमों की दूरी पर पड़ी तलवार उठा ली। फिर रास्ते पर जाती बग्गी की तरफ देखा।
बग्गी बहुत दूर जा चुकी थी। घोड़ों की टापों की आवाज भी अब सुनाई देनी बंद हो गई थी
नगीना के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।
“बाबा-!”
“कहो!”
“तुम्हें सौदागर सिंह के चक्रव्यूह के बारे में सब कुछ मालूम है।”
“नहीं।” पेशीराम के गम्भीर स्वर का एहसास मस्तिष्क को
हुआ-“मुझे कुछ ही बातें पता हैं। गुरुवर ने कभी सौदागर सिंह
के चक्रव्यूह के बारे में बताया था। ज्यादा कुछ नहीं बताया था। वही बातें कुछ याद हैं। आने वाले वक्त में ज्यादातर खतरों का सामना तुम्हें ही करना है। अभी कई नाजुक मौके आने वाले हैं, वहां मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर पाऊंगा।”
होंठ भींचकर नगीना ने सिर हिला दिया।
“अब मैं किधर जाऊं?”
“बाईं तरफ-।”
नगीना रास्ते से उतरी और बाईं तरफ कच्चे रास्ते पर बढ़ गई। जहां झाड़ियां-पेड़ व पथरीली जमीन थी। ऊपर आसमान था। सूर्य था, जो कि कभी बादलों की ओट में छिप जाता तो कभी तेज किरणें फेंकने लगता। सभी ओर तेज हवा का मिला-जुला संगम था, मौसम में।
नगीना दस मिनट ही चली होगी कि दूर नजर आ रही झोंपड़ी पर उसकी निगाह पड़ी तो उसकी रफ्तार धीमी हो गई। झोंपड़ी के आसपास की जगह इस तरह साफ थी कि, जैसे उसे रोज साफ किया जाता हो। झोंपड़ी के बाहर मिट्टी के चूल्हे में आग जल रही थी। ऊपर कोई बर्तन रखा हुआ था। वहां कोई न दिखा।
“ये झोंपड़ी कैसी-यहां कौन है बाबा?”
“मैं नहीं जानता। गुरुवर ने कभी इस झोंपड़े का जिक्र नहीं किया।”
“अब मैं क्या करूं?”
“जिस बारे में मुझे ज्ञान नहीं। उस में मैं तेरे को क्या सलाह दूं बेटी। झोंपड़े में कौन लोग हैं? क्या है? नहीं बता सकता। लेकिन सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में शरीफ लोग तो होंगे नहीं।” पेशीराम की आवाज का एहसास उसके मस्तिष्क को हुआ।
“शरीफ लोग क्यों नहीं हो सकते?”
“क्योंकि भूला-भटका कोई यहां आ फंसा तो शैतानी शक्तियां उसे खत्म कर देंगी।”
झोंपड़े से चंद कदमों की दूरी पर पहुंचकर नगीना ठिठक गई। चेहरे पर उलझन दिखाई दे रही थी। कभी वो झोंपड़े को देखती तो कभी चूल्हे को, जहां कुछ पक रहा था।
“यहां के बारे में तुम मेरी कोई सहायता नहीं कर सकते कि-।”
“नहीं। मैं मजबूर हूं। चाहो तो आगे बढ़ जाओ। जाने यहां क्या हो।”
“ये भी तो हो सकता है कि यहां मेरे फायदे की बात हो-।”
“फायदा-नुकसान कुछ भी हो सकता है।”
एकाएक नगीना आगे बढ़ी। चेहरे पर दृढ़ता थी।
“सावधान रहना।” पेशीराम का बेचैन स्वर मस्तिष्क में पड़ा-“ये आशा कम ही है कि सौदागर सिंह के चक्रव्यूह के दोस्त मिलेंगे।”
नगीना चूल्हे के पास पहुंच कर ठिठकी और ऊपर रखे बर्तन का ढक्कन हटाकर झांका। बर्तन में चावल पक रहे थे। कई पलों तक वो चावलों को देखती रही फिर ढक्कन वापस रख दिया। निगाहें झोंपड़े पर जा टिकीं। झोंपड़े के दरवाजे जैसे प्रवेश द्वार पर फटी सी चादर लटक रही थी। नगीना उस तरफ बढ़ी।
परन्तु दरवाजे के पास पहुंचकर एकाएक ठिठक गई।
भीतर से औरत की आवाज स्पष्ट उसके कानों में पड़ी।
“मेरी बात मानिये। जो हो गया। सो हो गया। औलाद तो गई ही। कहीं हम भी मर न जायें-आप-।”
“चुप रहो तुम। अगर तुम्हें जान प्यारी है तो मेरे साथ आगे मत जाना।” मर्दानी आवाज नगीना के कानों में पड़ी।
“आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे मुझे औलाद का गम नहीं।” औरत की आवाज में इस बार नाराजगी भर आई थी-“मैं तो ये कह रही हूं कि यहां कदम-कदम पर शैतान का जाल फैला है। हम कहीं भी फंस सकते हैं। यहां तक तो आ गये। किसी को खबर नहीं हुई। यहां से आगे जाने की कोशिश की तो-।”
“पार्वती!” मर्द ने तीखे स्वर में कहा-“मुझसे वापस जाने की बात मत करो।”
“होश की बात कीजिये। अभी भी मौका हमारे पास है। वापस जाने का रास्ता हमें पता है। यहां से निकल सकते हैं हम। शैतान को खबर भी नहीं होगी कि हम कभी भीतर आये-।”
“खामोश हो जाओ।” आदमी का गुस्से भरा स्वर सुनाई दिया-“आज एक सौ आठवीं रात आने वाली है। रात को फिर वो रास्ता खुलेगा, जो कैद हुई आत्माओं तक जाता है। मैं अपने बेटे की आत्मा को चुपचाप शैतान की कैद से ले आऊंगा और उसे जिन्दा कर दूंगा।”
“ये काम आसान नहीं। आप अकेले हैं और-।”
“मैं जो कह रहा हूं करने दो। भूख लग रही है। देखो, चावल पक गये होंगे।” आदमी के स्वर में गम्भीरता भरी हुई थी-“तुम
यहीं रहना। मेरे साथ आगे मत जाना। अपने बेटे की आत्मा को लेकर एक सौ आठवीं रात को मैं यहां वापस पहुंच पाऊंगा। फिर हम दोनों वापस चलेंगे, बेटे के शरीर के पास-।”
“जिन्दा वापस रहे तो लौटेंगे।” औरत की आवाज में दुःख था।
“ठीक कहती हो। जिन्दा रहा तो ही लौट पाऊंगा। चावल दो खाने को।”
नगीना के मस्तिष्क में बिजलियां सी कौंधने लगी थीं, इन बातों को सुनकर।
ये लोग अपने बेटे की आत्मा को शैतान की कैद में वापस लाने की बात कर रहे हैं। वो भी देवराज चौहान की आत्मा को शैतान की कैद में निकाल लाना चाहती है।
परन्तु ये लोग हैं कौन?
तभी झोंपड़ी का पर्दा हटाते हुए एक औरत बाहर निकली।
नगीना हड़बड़ाकर पीछे हुई कि वो उसकी निगाहों में आ गई, परन्तु झोंपड़े से बाहर निकलकर वो औरत चूल्हे पर रखे पतीले पर व्यस्त हो गई। तभी नगीना को ध्यान आया कि वो तो अदृश्य है। उसे साधारण निगाहों से नहीं देखा जा सकता।
नगीना की सिकुड़ी आंखें औरत पर टिक चुकी थीं।
वो सूती कपड़े की कमीज-सलवार पहने थी। दुपट्टा ओढ़ रखा था। जो कि सिर पर भी लिया हुआ था। पचास बरस की उम्र थी। बालों में सफेदी आनी शुरू हो गई थी। पांवों में पुरानी हवाई चप्पलें थीं। उसके चेहरे की थकान बता रही थी कि जीवन के बहुत हादसों का मुकाबला किया है उसने।
“बाबा!” नगीना के होंठ हिले-“ये औरत और भीतर आदमी कौन हैं?”
“मैं नहीं जानता।”
“कुछ आभास भी नहीं?”
“नहीं।” पेशीराम की सरसराहट मस्तिष्क में पड़ी-“मैं पहले
ही कह चुका हूं कि गुरुवर ने इस बारे में कोई जिक्र नहीं किया।”
“तो मैं क्या करूं? ये दोनों अपने बेटे की आत्मा को कैद से छुड़ाने की बात कर रहे हैं और मैंने भी देवराज चौहान की आत्मा को कैद से लाना है।” नगीना की बड़बड़ाहट में गम्भीरता थी।
कुछ पलों की चुप्पी के बाद पेशीराम के शब्द दिमाग से टकराये।
“इस बारे में फैसला तुम्हें ही करना है। मेरी कोई भी शक्ति मेरे पास नहीं है कि आने वाले वक्त के बारे में था। इन लोगों के बारे में कुछ जान सकूँ। तुम्हें जो ठीक लगे वो ही करो।”
“मेरे से गलत भी हो सकता है।”
“वो तुम्हारी किस्मत। मैंने पहले ही कहा था कि मैं हर जगह तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता।”
“ये दोनों सौदागर सिंह के या शैतान के चक्रव्यूह का हिस्सा भी हो सकते हैं।” नगीना के होंठ हिले।
“अवश्य हो सकते हैं और ये सच्चे भी हो सकते हैं। इनके बारे में जो करना है, तुम्हें ही करना है।”
“इनकी बातें सुनकर ये स्पष्ट होता है कि ये आत्माओं को कैद रखने की जगह के बारे में जानते हैं।”
“बातों से तो ऐसा ही लगता है, परन्तु हकीकत में सच क्या है। ये मैं नहीं जानता। ऐसे में मैं तुम्हें सलाह देकर इस बात का भागीदार नहीं बन सकता कि मेरे कारण तुम किसी जंजाल में फंस गई-।”
नगीना ने होंठ भींच लिए।
वो औरत चूल्हे पर रखे चावल के बर्तन को उठाकर झोंपड़े के भीतर ले गई।
तभी नगीना के होंठों से मध्यम-सी आवाज निकली।
“मैं अदृश्य हूं। अब मैं सबको नजर आने लगूं।”
इन शब्दों को बड़बड़ाने के बाद नगीना को अपने में किसी चीज का बदलाव महसूस नहीं हुआ। उसे याद था कि बिल्ली ने कहा था कि जब भी वो चाहेगी, सब को नजर आने लगेगी। जब भी वो चाहेगी, अदृश्य हो सकेगी। इस बात की शक्ति उसे दे दी गई है।
उसी पल वो ही औरत पुनः झोंपड़े से बाहर निकली। एक तरफ चार बर्तन रखे थे। उन्हें उठाने के लिये, उस तरफ बढ़ी कि ठिठक कर फौरन नगीना को देखा। दूसरे ही पल उसके चेहरे पर हैरानी का सागर नजर आने लगा। चेहरे पर अजीब-से भाव फैलते चले गये।
नगीना समझ गई कि अब वो औरत उसे देख पा रही है।
“क-कौन हो तुम?”
नगीना उसे देखती रही।
“सुनते हो। एकाएक औरत चीखी-“मैंने कहा ये देखो, कौन
है ये-।”
औरत के शब्द पूरे होत ही झोंपड़ी से पचपन बरस का व्यक्ति बाहर निकला। उसके शरीर पर मैली हो रही पैंट-कमीज थी। शेव बढ़ी हुई थी। वो जिन्दगी से खता खाया लग रहा था। आंखों में थकान के भाव नजर आ रहे थे। नगीना पर निगाह पड़ते ही वो हक्का-बक्का रह गया।
औरत जल्दी से आदमी के करीब पहुंच गई।
“ये-ये कौन है?”
आदमी के दांत भिंच गये।
“इसे भेजकर शैतान हमारा बुरा करना चाहता है।” आदमी ने कठोर स्वर में कहा।
“ओह! तो शैतान को हमारे बारे में मालूम हो गया कि हम यहां-।”
“तभी तो उसने मौत हमारे पास भेज दी।”
“अब क्या होगा?”
नगीना की नजरें दोनों पर थीं।
“मुझे शैतान ने नहीं भेजा-।” नगीना ने शांत स्वर में कहा।
“झूठ कहती हो तुम। शैतान ने भेजा है तुम्हें। वरना तुम यहां तक नहीं पहुंच सकती-।”
“मैं सच कह रही हूं।” नगीना पुनः बोली-“शैतान तो मुझे तलाश कर रहा है। सौदागर सिंह से मुलाकात करके ही सीढ़ियां उतरी थी। रास्ते में एक पहरेदार मिला तो इस तलवार से उसे मार डाला। ये देखो तलवार पर सूखा खून लगा है। फिर जब उस रास्ते से बाहर निकली तो दो घोड़े वाली घोड़ा-गाड़ी खड़ी थी। मैं जानती थी कि उन घोड़ों की आंखों को फोड़ दूंगी तो घोड़ों का खतरा समाप्त हो जायेगा। वरना वो शैतान को मेरी मौजूदगी के बारे में बता देंगे।”
आदमी और औरत की नजरें मिलीं।
“ये कैसी बातें कर रही हैं।” औरत के होंठों से निकला।
“कह तो ठीक रही है। परन्तु इस बात का क्या पता कि ये शैतान की भेजी कोई चाल तो नहीं।”
वो और परेशान-सी खड़ी रही।
“तुम दोनों बेकार में मुझ पर शक मत करो। मैं शैतान के आसमान की वासी नहीं हूं। नीचे जमीन से आई हूं। मेरे साथ कुछ लोग और भी हैं।” नगीना ने कहा-“यहां पर मैं-।”
“तुम यहां कैसे आ सकती हो नीचे से?”
“काला महल में सवार होकर यहां आई हूं-।”
“तो तुम शैतान के अवतार के साथ-।”
“नहीं। शैतान का अवतार मारा जा चुका है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“उससे पहले उसने शैतानी चक्र से मेरे पति
देवराज चौहान को मार दिया। शैतान ने मेरे पति की आत्मा को
यहां कैद कर लिया। ये बात मेरे को पता चली तो मैं देवराज चौहान की आत्मा को लेने आ गई कि अपने पति को फिर से जिन्दा कर सकूं-।” ये सब बातें जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।
“क्या नाम है तेरा?”
“नगीना!”
“ये क्या कह रही है?” औरत ने व्याकुलता से कहा-“मेरी समझ में नहीं आ रहा-।”
“पहले जन्म में तेरे पति का नाम देवा था?” आदमी कह उठा।
“हां-।”
“उसके साथ मिन्नो भी है।” उस व्यक्ति की आंखें नगीना पर थीं।
“आपको कैसे मालूम हुआ?” नगीना के होंठों से निकला।
उसी पल वो व्यक्ति एकाएक परेशान नजर आने लगा।
“क्या हुआ आपको?” औरत अपने आदमी से कह उठी।
“तुम नहीं समझोगी पार्वती। तुम्हारा-मेरा ब्याह तो शैतान ने अब करवाया है। ये तब की बात है, जब मैंने नीचे गुरुवर की
नगरी में जन्म लिया था। उनके यहां ही मैं विद्या ग्रहण करता था। तब गुरुवर ने देवा और मिन्नो की बातें बताई थीं और कहा था कि देवा का नाम तीसरे जन्म में देवराज चौहान होगा। उसकी आत्मा को शैतान ने कैद कर रखा होगा। उसकी पत्नी नगीना शैतान की कैद से, देवा की आत्मा को चुराने पहुंचेगी और तब मेरी नगीना से मुलाकात होगी। गुरुवर ने आखिरी शब्द कहते हुए मेरी तरफ इशारा किया था। अब वही वक्त आया हुआ है। नगीना मेरे सामने है और देवा की आत्मा शैतान की कैद में है।”
“ओह! फिर तो इस पर आपको संदेह नहीं करना चाहिये।”
“अब सन्देह नहीं रहा। पहले अवश्य सन्देह हो गया था। इस पर कि ये शैतान की भेजी चाल है।” कहने के साथ ही वो मुस्करा पड़ा-“मेरा नाम जानकीदास है नगीना।”
नगीना से कुछ कहते न बना। वो उसे देख रही थी।
“आओ। भीतर बैठकर बातें करते हैं। आओ पार्वती-।”
दोनों पलटे और आगे बढ़कर झोंपड़ी में प्रवेश कर गये।
“जानकीदास गुरुवर का शिष्य होता था बाबा?”
“मुझे नहीं मालूम। शक्ति इस वक्त मेरे पास होती तो मालूम करके बता देता।”
“समझ में नहीं आता कि इनकी बातों पर विश्वास करूं या नहीं-।”
“इस बारे में मैं तुम्हें सलाह नहीं दे सकता।” पेशीराम के शब्द
नगीना के मस्तिष्क से टकराये।
चंद पलों की सोच के बाद नगीना झोंपड़ी के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गई।
☐☐☐
“नगरी के लोग थे वे। वो सब शैतानी प्रभाव में थे और उन्होंने अचानक ही गुरुवर के शिष्यों को मारना शुरू कर दिया। गुरुवर ने अपनी शक्तियों से फौरन उन्हें खत्म कर दिया; परन्तु तब तक वो, आठ लोगों को मार चुके थे। उनमें से एक मैं भी था। चूंकि शैतानी प्रभाव की वजह से मेरी मौत हुई थी। इसलिये मेरी आत्मा को शैतान ने अपने पास बुला किया। जानकीदास
कह रहा था-“तभी महामाया को कुछ सेवकों की जरूरत पड़ी
तो शैतान ने मेरी आत्मा को जीवन दिया और महामाया के पास भेज दिया।”
“महामाया कौन है?” नगीना के होंठों से निकला।
“महामाया, शैतान के ऊपर है।”
“शैतान के ऊपर भी कोई है?”
“हां शैतान को भी अपने कर्मों का हिसाब ऊपर देना पड़ता है। जैसे तुम लोगों का भगवान है। भगवान को भी अपने कर्मों का हिसाब ऊपर देना पड़ता है। कोई भी मालिक नहीं है। ये एक लम्बी कड़ी है। अंतहीन सिलसिला है जो एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। अगर एक के हाथ में ही सृष्टि की शक्ति दे दी जाये तो वो जब चाहे, तबाही ला देगा।”
नगीना के चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे थे।
“इसका मतलब महामाया के ऊपर भी कोई है?”
“हां...।”
“कौन है वो?”
“ये बात नहीं बता सकता। इस बारे में अगर मैंने मुंह खोला तो महामाया की खबर हो जायेगी।” जानकी दास गम्भीर स्वर में कह उठा-“तब महामाया मुझे नहीं छोड़ेगी। वो अपनी चुड़ैल को भेजेगी, जो कि मुझे खा जायेंगी।”
“चुड़ैल?”
“हां। महामाया की चुड़ैल बहुत खतरनाक है। वो पहले खून पीती है फिर खा जाती है। शैतानी शक्तियों का पिटारा है वो चुड़ैल। उसका मुकाबला करना बहुत कठिन है।” जानकीदास ने गहरी सांस ली-“देखने में ही बहुत भयानक है वो।”
नगीना जानकीदास को देखती रही।
पार्वती का चेहरा घबराहट से भर उठा था।
“मैं महामाया की सेवा में लग गया। महामाया की सेवा में सिर्फ वही लोग रह सकते हैं जो समझदार हों और अपने काम में कोई गलती न करें। वक्त बीतता रहा। मैं बड़ा हो गया। मुझे औरत की जरूरत पड़ी तो महामाया के कहने पर शैतान ने पार्वती को मेरे पास भेज दिया। इस तरह पार्वती मेरी पत्नी बन गई। हमारा एक बेटा हुआ। धीरे-धीरे बेटा जवान होने लगा। मैं और पार्वती महामाया की सेवा में लगे रहे। बेटा चौबीस बरस का हो गया। तभी एक रात महामाया अपनी पूजा में व्यस्त थी। कि गलती से मैंने पूजाकक्ष में प्रवेश कर लिया। महामाया की पूजा खराब हुई तो गुस्से में आकर उसी वक्त महामाया ने अपनी शक्ति से हमारे बेटे को खत्म कर दिया और मुझे-पार्वती को वापस शैतान के पास भेज दिया। ये सजा थी हमारे लिये महामाया की। हम हर चीज सह लेते, परन्तु बेटे की मौत का गम नहीं सह सके। महामाया ने हमारे बेटे का मृत शरीर भी शैतान के पास पहुंचा दिया था, जिसे कि शैतान ने हमें दे दिया। अपने बेटे के शरीर को हमने संभाल कर रखा। महामाया की सेवा करने के दौरान हमें इतनी जानकारी तो हो गई थी कि शैतान कहां पर आत्माओं को कैद रखता है। सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में प्रवेश करने के कई रास्ते हैं। हमने एक चोर रास्ते से चक्रव्यूह में प्रवेश किया और भटकते-भटकते यहां आ गये। यहां से कुछ दूरी पर ही एक ऐसा बंद रास्ता है जो पांच मिनट के लिये हर एक सौ आठवीं रात खुलता है। तब हम दो रातें देरी से यहां पहुंचे थे और आज एक सौ आठवीं रात है। वो रास्ता आधी रात को पांच मिनट के लिये खुलेगा जो कि सीधा वहीं जाता है जहां शैतान ने आत्माओं को कैद कर रखा है। वहां से मैंने अपने बेटे की आत्मा को लाना है। उसे फिर जिन्दा करूंगा।”
“शैतान को पता चल जायेगा।” नगीना ने कहा।
“बेटा जिन्दा हो गया तो शैतान मुझे कुछ नहीं कहेगा। यहां का नियम है ये। क्योंकि आत्मा को लाने में खतरे बहुत हैं। ऐसे काम में कोई कामयाब हो जाये तो शैतान उसे मेहनत का फल कहता है।” जानकीदास धीमे स्वर में बोला।
नगीना के चेहरे पर गम्भीरता ठहरी हुई थी।
“देवराज चौहान की आत्मा भी वहीं है।” नगीना के होंठों से निकला।
“हां। हर कैदी आत्मा को वहीं रखा जाता है।”
“ये कैसे पहचाना जायेगा कि ये आत्मा किसकी है?” नगीना
बोली।
“वहां अगर पहुंच गई तो देख लेना।” जानकीदास शांत भाव से मुस्कराया।
तभी पार्वती ने कहा।
“वहां मत जाईये। उधर से कोई वापस नहीं लौट सका।”
“कुछ लोग लौटे हैं अपने प्रियजनों की आत्मा को लेकर।”
“उन कुछ के पीछे, हजारों लोग मारे गये हैं, जो असफल रहे।”
“मैं सफल रहूंगा।”
“जो ये काम करते हुए मरें, वो भी यही कहते होंगे कि वो सफल होंगे।” पार्वती तेज़ स्वर में कह उठी।
“जो भी हो। मैं अपने बेटे को जिन्दा देखना चाहता हूं।”
“अभी तो बेटे का दुःख है।” पार्वती की आंखों में आंसू उभरे-“अगर आपको भी कुछ हो गया तो दो-दो दुःखों को छाती पर रखकर कैसे जी पाऊंगी। मेरी हालत पर तो-।”
“समझने की कोशिश करो पार्वती।” जानकीदास ने होंठ भींचकर कहा-“अगर बेटे को जिन्दा कर लिया तो शैतान की निगाहों में कोई रूतबा पा लूंगा। सब कुछ ठीक हो जायेगा। शैतान हमें कोई इज्जत वाला काम देगा। वरना अब वो हमें छोटे से छोटा काम करने को कहेगा। महामाया की सेवा में रहने के बाद, छोटा काम करना कैसे सहन कर पायेंगे हम।”
“मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता कि-।”
“भूख लग रही है। खाने को दो। तुम भी खाओ। नगीना को भी भूख लगी होगी।” जानकीदास ने पार्वती को देखकर कहा-“इतना सुन लो कि मैं अपने इरादे से पीछे नहीं हटने वाला। बेटे की आत्मा लेने में अवश्य आऊंगा।”
“बेटे का तो प्यार किस्मत में रहा नहीं।” पार्वती धीमे स्वर में कह उठी-“पति को भी कहीं खो न दूं। जाने शैतान ने किस्मत
में क्या लिखा है। मेरा मन नहीं मानता है कि आप आत्मा लेने जायें।” कहने के साथ ही पार्वती उठी और चावल के पतीले की तरफ बढ़ गई। आंखों में आंसू चमक रहे थे।
नगीना ने उनके साथ चावल खाये। चावल फीके थे। नमक का वहां कोई इन्तजाम नहीं था। उन्होंने बताया कि कंधों पर चावल के थैले डालकर वे दोनों सौदागर सिंह के चक्रव्यूह में प्रवेश कर के आये थे। नमक डालना भूल गये थे। फिर भी खाने में चावल अच्छे लगे थे। कुछ न मिलने से तो यही खाना लाजवाब था।
इस बीच पार्वती चिन्ता से भरी बातें जानकीदास से करती रही कि वो बेटे की आत्मा लेने न आये। वहां जान का खतरा है परन्तु जानकीदास अपने इरादे पर पक्का हुआ पड़ा था।
खाने से तीनों फारिग हो गये तो नगीना ने कहा।
“रास्ते में आने वाले खतरे कैसे होंगे?”
“ये बात मुझे नहीं मालूम-।” जानकीदास ने कहा।
“खतरों के बारे में जरा भी आभास नहीं?” नगीना ने पूछा।
“नहीं।” खतरों के बारे में शायद इसलिये पहले नहीं बताया जाता कि इधर जाने वाला खतरों से निपटने का इन्तजाम पहले ही कर लेगा। मालूम नहीं रास्ते में क्या होता है।”
“रास्ता कितना लम्बा है?”
“ये भी नहीं जानता। इतना ही मालूम है कि वो रास्ता जहां खत्म होगा, वहीं पर आत्माओं को कैद करके रखा जाता है।” नगीना खामोश हो गई।
पार्वती अपने कामों में व्यस्त हो गई। वो चिन्तित लग रही थी।
“तुम यहीं रहना।” जानकीदास ने कहा-“यहां से तुम आगे जाओ, कोई फायदा नहीं। वापस आया तो यहीं मिलूंगा। तब बेटे की आत्मा भी मेरे साथ ही होगी।”
आंसुओं से भीगी आंखों से पार्वती ने उसे देखा।
“मेरा मन कहता है कि-कि आज मैं आखिरी बार आपको देख रही हूं।” पार्वती फफक पड़ी।
“क्यों मन को छोटा करती हो। जो होना है, वो तो होकर ही रहेगा।”
“आपको कैसे मालूम कि हर एक सौ आठवें दिन, पांच मिनट के लिये कोई रास्ता खुलता है, जो सीधा वहीं जाकर समाप्त होता है, जहां शैतान ने आत्माओं को कैद कर रखा है।” नगीना ने पूछा।
“महामाया की सेवा में रहकर ये बात जानी है।”
“हो सकता है वो जगह कोई दूसरी हो, जहां रास्ता...।”
“नहीं। वो जगह यहीं पर है।” जानकीदास विश्वास भरे स्वर में कह उठा।
“कहां है वो जगह?”
“आओ। दिखाता हूं।”
जानकीदास, नगीना के साथ झोंपड़ी से बाहर निकला और एक दिशा की तरफ बढ़ गया।
“रास्ते में आने वाले खतरों का मुकाबला करने के लिये आपके पास कोई हथियार है?” नगीना ने पूछा।
“हां। शैतान के यहां से एक कटर चुराई थी। उसमें कुछ शैतानी ताकतें हैं।”
“इतने हथियार से, रास्ते में आने वाली अड़चनों से मुकाबला हो पायेगा?”
“मालूम नहीं।” जानकीदास ने गहरी सांस ली-“मेरे पास यही हथियार है।”
पांच मिनट चलने के पश्चात जानीदास एक जगह ठिठका।
सामने ही बीस फीट के दायरे में चार फीट गहरा गड्ढा खुदा हुआ था। वो गड्ढा देखने में ऐसा लग रहा था जैसे रोज वहां सफाई की जाती हो।
“हर एक सौ आठवीं रात इस गड्ढे में से रास्ता बनता है, जिससे भीतर जाया जा सकता है।”
“कैसे रास्ता बनता है?” नगीना की उलझन भरी निगाह गड्ढे पर ही थी।
“रात को अपनी आंखों से देख लेना।”
“लेकिन ऐसा होता क्यों है? क्यों रास्ता बनता है?”
“हम जैसों के लिये।” जानकीदास शब्दों को चबाकर कह उठा-“जो कैदी आत्माओं तक पहुंचने की इच्छा रखते हैं। उन्हें
यहां से भीतर जाने का रास्ता दिया जाता है।”
“इसका मतलब रास्ते में खतरे बहुत हैं। तभी तो इस तरह सीधे-सीधे रास्ता दिया जाता है।” नगीना ने कहा।
“हां। वास्तव में खतरे बहुत होंगे। वरना रास्ता क्यों दिया जाता-।” जानकीदास ने उसे देखा।
नगीना कुछ नहीं बोली। नजरें गड्ढे पर ही फिरती रहीं।
“आओ। यहां से चलते हैं। अंधेरा होने पर यहां आ जायेंगे उसके बाद जब रास्ता बनेगा...।”
“रास्ता बनने पर कोई नजर भी आता है?”
“नहीं। सिर्फ रास्ता ही होता है। नजर कोई नहीं आता।”
दोनों वापस चल पड़े।
झोंपड़ी पर पहुंचकर जानकीदास पार्वती से बातें करने लगा।
नगीना कुछ दूर हट गई, पेशीराम से बात करने के लिये।
“बाबा” नगीना बुदबुदाई।
“कहो!
“मुझे तो ये दोनों मुसीबत के मारे लगते हैं।”
“हो सकता है, तुम्हारा ख्याल ठीक हो।” पेशीराम के शब्द, नगीना के मस्तिष्क की तरंगों ने महसूस किये।
“रात को मैं, जानकीदास के साथ, उस रास्ते पर जाऊंगी, जहां शैतान आत्माओं को कैद रखता है।”
“गुरुवर की कृपा तुम्हारे पर बनी रहे।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना के दिमाग ने महसूस किया।
“जाने क्यों मेरा मन कुछ ठीक नहीं-।” नगीना के होंठ हिले।
“ऐसा क्यों?”
“कुछ समझ नहीं पा रही।”
“क्या तुम्हें इन पर शक है?”
“ऐसी कोई बात नहीं।”
“फिर बेचैनी क्यों?”
“मालूम नहीं हो रहा बाबा।”
कुछ पल उनके बीच खामोशी रही।
“बेटी!” पेशीराम ने गम्भीर शब्द नगीना के मस्तिष्क ने महसूस किया-“पक्का फैसला लेकर एक तरफ हो जा। इसके साथ जाना है तो जा या फिर दूसरा रास्ता पकड़ ले।”
“दूसरे रास्ते पर जाने का तो सवाल ही नहीं होता बाबा।” नगीना के होंठ हिले-“उसने अपने बेटे की आत्मा को लेने जाना है और मुझे देवराज चौहान की आत्मा को लेने। हमारी मंजिल एक है।”
“अगर फैसला ले लिया है तो उलझन में मत पड़। रास्ते में सतर्क रहना। मुझे पूरा विश्वास है कि उस जगह तक पहुंच पाना आसान नहीं। बहुत खतरों से सामना होगा। अपने अलावा किसी पर भी भरोसा मत करना।”
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