लॉबी में पहुंचकर ठकरियाल ने कहा--- "कहो, क्या बातें करना चाहते थे एकान्त में?”
“जब मैं इस कदर फंस जाता हूं जिस कदर इस वक्त तुम्हारे चंगुल में फंसा पड़ा हूं तो बचाव का एक... और केवल एक ही रास्ता नजर आता है मुझे।”
" कौन सा रास्ता ?”
“वह जिसे फ्लाप होते मैंने कभी नहीं देखा ।”
“जो कहना है साफ-साफ कहो ।”
गिल ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा---“अगर तुम मेरे राज को राज रखो। गिरफ्तार करने का ख्याल दिमाग से निकाल दो तो मैं तुम्हें मुंहमांगी रकम दे सकता हूं।"
“क्या सोचकर दे रहे हो ये ऑफर?... कि मैं बिकाऊ होऊंगा ?” ठकरियाल गुर्राया।
उसने अपने एक-एक शब्द पर जोर दिया--- "मैं मुंहमांगी रकम की बात कर रहा हूं इंस्पैक्टर | "
“तो?”
“अपने लम्बे आपराधिक जीवन में मैंने ऐसा एक भी पुलिसिया नहीं देखा जो बिकाऊ न हो। यह अलग बात कोई कौड़ी में बिकता है, कोई करोड़ों में । जो जितना कड़क है, जितना ज्यादा ईमानदार नजर आता है, उतने ही ज्यादा में बिकता है, ये भी मत समझो मुझे पहचानने वाले तुम पहले पुलिसिए हो । पहले भी कई बार कई पुलिसिए इस अजीमुश्शान कारनामे को अंजाम दे चुके हैं। मगर कभी जेल नहीं गया मैं। मामला वहीं का वहीं रफ-दफा हो जाता है।"
" जैसे इस वक्त करना चाहते हो ।”
“जो कर रहा हूं पिछले अनुभवों के आधार पर कर रहा हूं।"
"इस बार तुम जरा दूसरे किस्म के पुलिसिए के लपेटे में आ गये हो ।” ठकरियाल ने कहा ।
“यानी सौदा नहीं करोगे, जेल भेजकर मानोगे मुझे ?"
“अगर कहूं-- - हां । तो?”
“मर्जी तुम्हारी ।” अवतार ने लापरवाही के साथ अपने दोनों कंधे उचका दिये --- “तो कर लो वही जो चाहते हो मगर सोचो --- मिल क्या जायेगा तुम्हें ? छब्बीस जनवरी पर मैडल जो पहना नहीं देगी सरकार | पहना भी दिया तो किस काम आयेगा मैडल तुम्हारे ? और क्या बिगड़ जायेगा मेरा ? तुम नहीं लोगे तो इस शहर के एक मजिस्ट्रेट जैसा कोई दूसरा मजिस्ट्रेट ले लेगा । जेल तो फिर भी नहीं जाऊंगा मैं ।”
“ ऐसी फटीचर हालत में तुम किसी को क्या दे सकते हो ?”
“ पुलिस रिकार्ड में केवल वे कारनामे दर्ज हैं जिनमें मैं नाकामयाब हो गया। वे नहीं जिनमें कामयाब हुआ हूं। तुम जैसे पुलिस इंस्पेक्टर का 'उदर' भरने लायक रकम तो मैं चाहे जब चाहे जहां से पैदा कर सकता हूं।”
“ यानी जेब में नहीं है, कमाकर दोगे मेरी मुंहमांगी रकम।”
“तुम्हें एतराज है ?”
" मुंबई में अपने दोस्त की मौत का मातम मनाने आये हो या कमाने ?”
“सौदा मंजूर करो तो बताऊं ।”
“मतलब?”
“ सबसे पहला सवाल ये है कि हमारे बीच सौदा हो सकता है या नहीं?”
“पचास लाख ।” ठकरियाल ने एक झटके से कह दिया ।
“डन !” अवतार मुस्कराया --- “मैंने कहा था न, सब बिकते हैं।"
“कब मिलेंगे ?”
“कब चाहिए?”
“दस दिन के अंदर ।"
“नौवें दिन मिल जायेंगे।"
“गारंटी?”
“मतलब?”
“दस दिन तुम्हें खुला छोड़ना पड़ेगा । इस बीच फरार हो गये तो किसकी मां को मां कहूंगा ?”
“बायोडेटा पढ़ा है मेरा ?”
“पढ़ा है। अब भी थाने में है ।”
“ उसमें यह नहीं लिखा --- गिल वादे का पक्का है?”
"लिखा है।" ठकरियाल ने कहा--- "तुम्हारे जितने भी माथी अभी तक पकड़े गये हैं, सबने पुलिस को एक ही वयान दिया है--- जुवान के बहुत पाबंद हो तुम। एक बार जो कह देते हो उसे पूरा करते हो ।”
“इसके बावजूद गारंटी की जरूरत है ?”
“वे वादे तुमने अपने अपराधी साथियों से किये थे?”
बेहिचक कह दिया पट्ठे होता?” अपराधी नहीं न---"रिश्वतखोर पुलिसिया क्या Join सकपकाकर रह गया ठकरियाल ।
“बुरा मत मानना दोस्त | थोड़ा मुंहफट भी हूं। पुलिस के पास मौजूद बायोडेटा में यह बात नहीं लिखी।” अवतार गिल अव निश्चिन्त और मस्त नजर आ रहा था - - - "वैसे भी जुबान की कीमत आजकल केवल क्राइम की दुनिया में रह गई है। दूसरी बात - - - तुम पुलिस वाले हो, मैं वांटेड मुजरिम चोली-दामन जैसा साथ होता है दोनों का । तुमसे पंगा लेकर भला नहीं हो सकता मेरा । हां, दोस्ती के फायदे ही फायदे हैं । आज भी और भविष्य में भी । इसलिए पचास लाख देकर तुम्हारी और अपनी दोस्ती को मजबूत करना चाहूंगा।"
“यही सब सोचकर सौदा किया है । "
“सौदा तो हो चुका "
“अब बताओ - - किस काम से आये हो मुंबई ? ”
अजीब रहस्यमय स्वर में पूछा गिल ने ---" बता दूं?”
“जब दोस्ती हो ही गई तो बताने में क्या हर्ज है?”
गिल ने एक नजर बैठक कक्ष के दरवाजे पर डाली ।
ठकरियाल उसे लॉबी की तरफ से बंद कर आया था ।
खुला भी होता तो वे दूर थे, यहां की आवाजें वहां नहीं सुनी जा सकती थीं। इसके बावजूद फुसफुसाकर बहुत ही धीमे स्वर में कहा गिल ने---“मैं यहां राजदान की दौलत पर हाथ साफ करने आया हूं।”
“क- क्या ?” चीख सी निकल गई ठकरियाल के हलक से।
बहुत ही जबरदस्त झटका लगा था उसके जेहन को ।
इतना तगड़ा कि कुछ कह न सका ।
आंखें और मुंह फाड़े केवल देखता रह गया गिल की तरफ|
गिल ने कहा --- “अचानक मेरे सिर पर तुम्हें सींग नजर
आने लगे हैं क्या ?”
“ बड़ी ही अजीब बात कही तुमने । भला यह ख्याल तुम्हारे दिमाग में कब आया?”
“ख्याल का क्या है ! वो साला तो अखबार पढ़कर ही आ गया था ।” अवतार गिल कहता चला गया - -- “जब पढ़ा--- राजदान इतना अमीर आदमी था तो सोचा, खूब तरक्की की साले ने । बचपन में तो निहायत ही गरीब फैमिली से था। ऐसे धनकुबेरों की तो हमेशा से तलाश रही है मुझे । अपना यार ही निकल आया । वह भी वह, जो मर चुका है। बस, चल पड़ा यह सोचकर मुंबई की तरफ कि देखें, क्या जुगाड़ भिड़ सकता है?”
“ यानी तुम्हारे दिमाग में कोई निश्चित योजना नहीं है ?”
“यहां पहुंचने से पहले नहीं थी । केवल यही सोचकर चल पड़ा था --- वहां पहुंचकर ही संभावनाएं तलाशृंगा कहां, क्या हो सकता है ! मगर यहां पहुंचने के बाद संभावना तलाशने में ज्यादा हाथ-पैर नहीं मारने पड़े। रास्ता एक तरह से मेरे सामने खुला पड़ा है ।”
“मैं समझा नहीं।”
“बायोडेटा में लिखी मेरी एक और खूबी को याद करो ।”
“कौन सी खूबी ?”
“अवतार गिल खूबसूरत लड़कियों का रसिया है । माहिर है उन्हें पटाने में। पुलिस वालों को खास हिदायत दी गई है --- गिल किसी खूबसूरत लड़की के आस-पास हो सकता है।"
“त-तो?”
“यार की घरवाली लड़की न सही, औरत सही, मगर है लाखों लड़कियों से खूबसूरत | वैसी, जिसे देखकर किसी
शायर ने औरत को हूर की परी कहा होगा। क्या रंग है पट्ठी का | ताजे ताजे पके सेब जैसा । क्या रसभरे होंठ हैं, देखते ही जी चाहता है एक बार मुंह में भरकर छोड़े ही न जायें। और आंखें। सच कहूं इंस्पेक्टर, लाखों लड़कियां देखी हैं मैंने मगर इतनी बड़ी-बड़ी आंखें किसी की नहीं देखीं। सच्चे मोतियों सी जगमगाहट है उनमें । जब वह पलकें झुकाती है तो लगता है --- सीप ने मोतियों को छुपा लिया है। उसके तन पर मुझे सफेद धोती और ब्लाऊज बिल्कुल अच्छे नहीं लगे। कल्पनाओं में तब की दिव्या उभरी जब राजदान जीवित होगा । लिपस्टिक लगाने के बाद दहकते अंगारे नजर आते होंगे उसके होंठ । माथे पर लगी सुर्ख बिंदी ऐसी लगती होगी जैसे पूरब से उदय होता सूरज । वाह ! बहुत ही बुलन्द नसीब पाया था मेरे जालिम दोस्त ने । चारों तरफ दौलत का भण्डार, बगल में हूर की परी ।”
“तुम तो मतलब की बातें छोड़कर उसकी सुन्दरता के वर्णन में खो गये ।”
“मतलब की बातें अवतार गिल के दिलो-दिमाग से न कभी पहले निकली हैं, न आगे निकलेंगी लेकिन वह है ही ऐसी ... ऐसी कि मुझे लगता है --- पहली बार किसी से सच्ची मुहब्बत हो रही है मुझे । रश्क हो रहा है राजदान के भाग्य से । मगर अब कैसा रश्क ! वह तो रहा नहीं, उसके भाग्य को मैं बना सकता है।"
"गिल !” ठकरियाल गुर्राया--- "कहीं पागल तो नहीं हो गये हो तुम ?”
“वाकई! लग तो मुझे भी रहा है ऐसा । ऐसा कि जीवन में पहली बार मैं किसी औरत को देखकर पागल हुआ हूं। बहुत लड़कियां देखी हैं मैंने । जिसे चाहा उसे भोगा भी है। मगर इस कदर पागल कोई नहीं कर सकी। जी चाहता है, उसे केवल भोगूं ही नहीं, पत्नी बना लूं अपनी । कब तक यूं ही भटकता रहूंगा? ठहराव तो आना ही चाहिए कहीं । शादी तो करनी ही पड़ेगी । फिर यहीं क्यों नहीं? दिव्या ही क्यों नहीं? ये विला ही कौन सी बुरी है । ” ।
“तुम एक वांटेड मुजरिम हो ।”
“तो?”
“यहां बसने का ख्याल किया तो धरे जाओगे।"
“इंस्पेक्टर ।” गिल ने बुरा सा मुंह बनाया --- “तुम तो यार मेरा नशा ही उतारने पर लग गये । ”
“जरूरी भी यही है।"
“नहीं।... जो नशा दिव्या को देखकर मुझे चढ़ गया है, उसे उतारने के पक्ष में मैं बिल्कुल नहीं हूं।” गिल कहता चला गया --- “होश संभालने के बाद से दो ही चीजों का रसिया पाया मैंने खुद को---दौलत और औरत । दोनों चीजें हैं यहां। बेशुमार दौलत । अनमोल औरत । अपने ऊपर पूरा विश्वास है मुझे। बहुत जल्द दिव्या को शीशे में उतार लूंगा । वैसे भी अभी उम्र ही क्या है बेचारी की । 'पक' जाती तो शायद मेरे जैसे किसी शख्स के झांसे में नहीं आती। अभी तो खुद.. खुद उसका शरीर वह मांगेगा जिसे बुजुर्गों ने 'प्राकृतिक भूख' कहा है। उसकी वह भूख मेरी मदद करेगी । मगर, यह भी ठीक ही कहा तुमने । वांटेड आदमी हूं । इण्डियन पुलिस चैन से नहीं रहने देगी जबकि दिव्या का रसास्वादन करने के लिए चैन की सबसे ज्यादा जरूरत होगी । करना यह पड़ेगा कि यहां से सबकुछ समेट- समाटकर उसके साथ कहीं विदेश जा बसूं"
“अपना पूरा प्लान तुम एक पुलिसिए को बता रहे हो ।”
“ पुलिसिया कहां, अब तो चोर-चोर मौसेरे भाई हैं हम। वैसे भी, मेरी क्राइम लाइफ का एक्सपीरियंस है ---वारदात छोटी हो या बड़ी, जिस थानाक्षेत्र में करो --- उसके थानेदार को दोस्त जरूर बना लो । सारे खतरे टल जाते हैं। समस्याएं ही सॉल्व हो जाती हैं। पचास लाख का वादा तो कर ही चुका हूं। वे केवल मुझे जेल न भेजने के ‘एवज' में मिलेंगे। रही उस काम की बात जिसके लिए मैंने तुमसे अभी-अभी डिस्कशन किया । उसे निर्विघ्न होने देने की फीस अलग से मिलेगी। मुंहमांगी। राजदान के उक्त खजाने में कोई कमी आने वाली नहीं है।"
मन ही मन हंसा ठकरियाल । जी चाहा, कहे--- 'भ्रम नामक गैस से भरी किस हवा में उड़ रहे हो अवतार प्यारे। पांच करोड़ की पॉलिसी के अलावा कुछ नहीं है दिव्या के पल्ले में | बाकी सब गिरवी पड़ा है । यह विला भी । और जैसा जाल राजदान बिछा गया है उसके रहते पांच करोड़ तक पहुंचना भी एवरेस्ट पर चढ़ने से कहीं ज्यादा कठिन है । "
मगर, यह सब कहा नहीं उसने ।
इससे तो एक ही झटके में गिल का सारा नशा काफूर हो जाता ।
नशा काफूर होने का मतलब था ---उसके अपने प्लान पर पानी फिर जाना ।
दरअसल उसके दिमाग में गिल का बेहतरीन 'यूज' आ चुका था ।
अब, उसने उसे परखने वाले सवाल करने शुरू किये --- “अगर तब भी उसे... Join @धनवान नहीं होती तो क्या तुम
“ ऐसी कल्पना तक मेरा जायका खराब कर देती है इंस्पेक्टर । "
“एक सवाल पूछ रहा हूं।"
“ बगैर दौलत की चाशनी में लिपटी औरत भी कोई औरत होती है । "
ठकरियाल मुस्कराया --- “अभी तो तुम दिव्या के सौन्दर्य के कसीदे पढ़ रहे थे ?”
“झूठी तारीफ नहीं कर रहा था । "
"फिर?"
“फिर क्या ? छोड़ता तो उस अवस्था में भी नहीं उसे । चूसता तो जरूर । चीज है ही इस लायक । बस घंटी बजाकर गले में टांगने के विचार को कैंसिल कर देता ।”
“एक बात और पूछूं?”
“दोस्त बन गये हो, चाहे जितनी बातें पूछो ।”
“राजदान तुम्हारे बचपन का दोस्त था । दिव्या उसकी बीवी है। सुना है सब धोखा दे सकते हैं पर बचपन के दोस्त धोखा नहीं दे सकते ।"
“सरकारी गजट में लिखी है ये बात?”
“मतलब?”
- यार " मैं समझ गया तुम क्या कहना चाहते हो? यह कि के माल और बीवी पर हाथ साफ करने में क्या मुझे जरा भी हिचक नहीं होगी? जवाब बहुत साफ है । एक बार फिर थाने जाकर मेरे बायोडेटा को पढ़ना, अवतार गिल को क्राइम की दुनिया में आना ही इसलिए पड़ा क्योंकि उसके बड़े भाई ने, उस भाई ने मुकम्मल पैतृक सम्पत्ति पर अपना अधिकार जमा लिया था, जिसे वह देवता की तरह पूजा करता था ।
एक कानी पाई तक नहीं दी थी उसने मुझे । सर्वेन्ट्स क्वार्टर तक में उतनी जगह नहीं दी जिसमें उकडू होकर कुत्ते के बच्चे की तरह पड़ा रहता । भाई, भाभी और उनके बच्चे ने धक्के देकर निकाल दिया था महल जैसे घर से... ।” कहते-कहते गिल भावुक हो उठा। चेहरा भभकने लगा था उसका । कहता चला गया --- "उस वक्त किसके पास नहीं गया था मैं मदद के लिए? सबने दुत्कार दिया। उस घटना ने मुझे बताया - - - मां-बाप, भाई-बहन, पत्नी-बच्चे और दोस्त । दुनिया का कोई भी रिश्ता वास्तव में अपना नहीं होता। जो इस भंवर जाल में फंसकर जीता है, मेरी तरह धोखा खाता है । सब साले अपने-अपने स्वार्थ के कारण एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। जहां स्वार्थ टकराये, सब बिखर जाता है। ऐसी लाइफ से गुजरा है अवतार गिल और उस अवतार गिल से तुम एक बेवकूफाना सवाल पूछने वाले थे। अरे, काहे का बचपन ? काहे की दोस्ती ? सब दौलत के दीवाने हैं। अपनों की ठोकरों ने मुझे भी वही बना दिया। कोई संवेदना जिन्दा नहीं है अब मेरे अन्दर । अच्छा है राजदान मर चुका है। अगर मुझे पहले, उसके जिन्दा रहते पता लग जाता उसके पास इतनी दौलत और ऐसी खूबसूरत बीवी है तो क्यों बैंक में डाका डालता? क्यों कॉल गर्ल्स रैकेट चलाने जैसा जलील धंधा करता? सीधा यहीं न आ धमकता | दिव्या को शीशे में उतारता । राजदान का मर्डर करता और जा बैठता उस पायदान पर जहां राजदान बैठा था। मगर, जो हुआ --- अच्छा ही हुआ। अब उसका पायदान कब्जाने के लिए अपने हाथ खून से नहीं रंगने पड़ेंगे मुझे। कब से सोच रहा था छोटी-मोटी चोरियों से पीछा छूटे, कोई बड़ा दांव हाथ लगे ताकि चैन से जी सकूं । ठीक ही कहा है किसी ने--- ऊपर वाले के घर देर है, अंधेर नहीं। यहां पहुंचने से पहले मैंने सोचा भी नहीं था इतना बड़ा दांव मेरा इंतजार कर रहा है।"
यह सब कहते वक्त अवतार गिल की जो हालत हो गई थी उसने ठकरियाल के दिमाग में खुशियों के अनार भर दिये । था --- में वह गिल की दुखती रग पर हाथ रख बैठा है | ऐसा लगा किसी अंजान शख्सियत की इस बात पर आज उसे विश्वास हो गया कि हर आदमी की कोई न कोई दुखती रग जरूर होती है। उधर, अवतार खुद को भावुकता के भंवर से निकालने की कोशिश कर रहा था, इधर ठकरियाल को विश्वास हो चला कि गिल के जरिए वह पूरी तरह बेकाबू हो चले हालात पर काबू पा सकता है। सारी योजना को अपने दिमाग में घुमाते हुए उसने गिल से कहा---- “मैं तुम्हें वकीलचंद से ही नहीं, भट्टाचार्य और अखिलेश से भी मिला सकता हूं।"
“ओह ! ... सभी पधारे हुए हैं।"
“भट्टाचार्य तो पहले ही से राजदान के 'टच' में था।
वही देखभाल कर रहा था उसकी ।”
" देखभाल से मतलब?”
"डॉक्टर है न वह ! "
“ओह, डॉक्टर बन गया पट्ठा । होशियार था पढ़ने में ।”
“अखिलेश राजदान की हत्या की खबर सुनकर आया है।”
“वह क्या है आजकल ?”
ठकरियाल ने बता दिया ।
सुनने के बाद अवतार बोला--- "एक धनकुबेर बन गया था । दूसरा डॉक्टर | तीसरा वकील । चौथा जासूस | एक साला मैं ही रह गया, फदड़ का फद्दड़ ! "
“अखिलेश से तुम्हें सावधान रहना होगा । ”
“कारण ?”
“अपने पेशे से कोई समझौता नहीं करता वह । अगर उसे पता लग गया तुम कितने बड़े क्रिमिनल बन चुके हो तो वह बचपन की दोस्ती का कोई लिहाज नहीं करेगा। ताक पर रख देगा उसे और तुम्हें टेंटवे से पकड़कर कानून के हवाले कर देगा।”
“गले में ढोल डालकर सड़कों पर चिल्लाता नहीं फिरता मैं कि मैं क्रिमिनल हूं।”
“ बताना अपना फर्ज समझा कि कहीं तुम बचपन की दोस्ती के बहाव में बहकर...
" बता चुका हूं इंस्पैक्टर । ऐसे बहावों में बहने से मैंने उसी दिन तौबा कर ली थी जिस दिन भैया-भाभी और उनके बच्चों द्वारा धक्के देकर घर से निकाल दिया गया था । " ovels
“एक और सनक सवार है अखिलेश के दिमाग पर ।”
"वह क्या ?”
“ उसे लगता है --- राजदान का हत्यारा बबलू नहीं है। रि-इनवेस्टीगेशन कर रहा है वह ।”
"बेस?"
ठकरियाल ने बता दिया ।
सुनकर रोमांचित सा हो उठा अवतार । आंखों से दिलचस्पियां झांक रही थीं। बोला--- "बबलू द्वारा राजदान की हत्या का सीधा-सादा नजर आने वाला यह मामला तो तुम्हारे यह बताने के बाद अचानक रहस्यमय मोड़ ले गया है। साबित होता है राजदान धनकुबेर ही नहीं था, बहुत ही ज्यादा घिसा हुआ था | मरने से पहले ही अखिलेश को लेटर लिख दिया पट्ठे ने | उसे मालूम था कब, कौन, क्यों और कैसे उसका मर्डर करेगा और उसने करवा लिया । मर्डर करवा लिया अपना । जीते जी अपने संभावित हत्यारों का कुछ नहीं बिगाड़ा बल्कि रोका तक नहीं। मर जाने दिया खुद को । यह सब सुनकर तो लगता है या तो अपने अंतिम समय में राजदान सनक गया था या... या दुनिया का सबसे आश्चर्यजनक शख्स था वह । क्यों? क्यों किया उसने ऐसा ? क्यों हो जाने दिया अपना मर्डर और फिर क्यों उसकी इन्वेस्टीगेशन के लिए अखिलेश को नियुक्त कर गया ?"
“ अखिलेश इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश कर रहा है। "
“करनी ही चाहिए। सवाल वाकई दिलचस्प हैं। मुमकिन है जवाब इससे भी दिलचस्प हो । मगर मुझे इस झमेले से क्या लेना-देना? बबलू ने मारा हो या काले चोर ने। मेरे लिए इतना काफी है राजदान अब इस दुनिया में नहीं है और उसकी बीवी पर लाइन मारी जाये तो वह लाइन पर आ सकती है।"
“तुम्हें भले ही लेना-देना न हो मगर मुझे है । "
“मतलब?”
“मैंने यह सब तुम्हें एक खास मकसद से बताया है। "
“मकसद स्पष्ट करो।"
“दोस्त होने के नाते अखिलेश तुम्हें सब कुछ बतायेगा । यह भी कि इस दिशा में अब तक वह कितनी प्रगति कर चुका है और आगे क्या सोच रहा है, किस रास्ते पर कदम बढ़ाने वाला है। तुम्हें चौबीस घंटे उसके साथ रहना है और.
“उसकी हर गतिविधियों की रिपोर्ट तुम्हें देनी है।”
ठकरियाल मुस्कराया --- “समझदार हो ।”
“तुम पुलिस वालों की यह सबसे गंदी आदत होती है ।”
“मतलब?”
"चौबीस घंटे यही सोचते रहते हो ---कहां, किस तरह अपना मुखबिर फिट किया जाये?”
“तुम मुखबिर नहीं, उसके साथ रहने वाले मेरे जासूस होगे।"
“ एक ही बात होती है इंस्पेक्टर साहब । एक ही बात होती है।" अवतार ने कहा--- " वैसे क्या मैं जान सकता हूं तुम अखिलेश की गतिविधियों पर नजर क्यों रखना चाहते हो ?”
“ताकि उससे पहले केस हल कर सकूं ।”
“ओह ! ... समझ गया । प्राइवेट डिटेक्टिव और पुलिस वालों में हमेशा लगी रहती है।”
“ऐतराज तो नहीं है तुम्हें कोई ?”
“मुझे क्या एतराज होगा ?"
“अखिलेश तुम्हारा बचपन का याड़ी है ।”
- “वह बचपन का है, जो बीत चुका है। तुम ताजे ताजे दोस्त बने हो। फायदेमंद हो । वह साला भला क्या फायदा कर सकता है मेरा! बल्कि जैसा कि तुमने बताया--- नुकसान ही कर सकता है और फिर, रिश्ता बचपन का हो या एक सेकण्ड पुराना । केवल और केवल दौलत की गांठ ही बांधकर रख सकती है उसे। वह गांठ तुम्हारे और मेरे बीच बंध चुकी है। तुमसे दोस्ती निभाकर मैं इस विला का मालिक बनने वाला हूं और मुझसे दोस्ती निभाकर तुम होने वाले हो --- मालामाल । साथ ही पाने वाले हो दुनिया के सबसे अनोखे केस को अखिलेश से पहले हल करने का तमगा .... तो निचोड़ ये निकला इंस्पेक्टर साहब --आप मुझसे दोस्ती निभाने पर मजबूर हैं, मैं आपसे । एक-दूसरे को धोखा देने का मतलब होगा - - - दोनों का बंटाधार । ऐसा न तुम चाहोगे न मैं । सो, वही होगा जो चाहते हो । अब सीधे-साधे बताओ --- अखिलेश मिलेगा कहां?”
“मेरा मोबाइल नम्बर नोट करो । ठीक दो बजे उस पर फोन करना। तब बताऊंगा।” ठकरियाल ने बता दिया । “ओ. के. ।” गिल ने कहा--- "वैसे क्या मैं इस सावधानी की वजह जान सकता हूं?"
“कौन सी सावधानी ?”
“अखिलेश का पता अभी नहीं बता रहे, दो बजे बताओगे।”
“ पता करना पड़ेगा न।”
"ओह! तो अभी तक जनाब को उसका पता तक मालूम नहीं।”
ठकरियाल केवल मुस्कराकर रह गया ।
“ अब सवाल रह गया हुस्न की परी और उसके देवर का । उन्हें क्या पढ़ाओगे तुम ?”
“पढ़ाने से मतलब ?”
“एक हत्यारे को । बैंक लुटेरे को । वांटेड मुजरिम को तुमने छोड़ क्यों दिया ?”
बड़ी ही अजीब मुस्कान उभरी ठकरियाल के होठों पर। बोला --- " तुम्हें यह गलतफहमी कैसे हो गयी गिल प्यारे कि ठकरियाल तुम्हें छोड़ देने वाला है ?”
“क्या मतलब?” अवतार बुरी तरह चौंका--- "क्या इतनी सब बातों के बावजूद तुम...
वाक्य पूरा न हो सका अवतार का ।
उससे पहले ही ठकरियाल के रिवाल्वर की मूठ का प्रहार उसकी कनपटी पर हुआ।
रंग-बिरंगे तारे नाच गये अवतार की आंखों के सामने ।
यूं लड़खड़ाया जैसे कैपेसिटी से कई गुना ज्यादा पी गया
शराबी लड़खड़ाया हो ।
मस्तिष्क पर काली चादर खिंचती चली गई । अंत तक गिल की ब्राउन आंखों में आश्चर्य का भाव था । दिमाग में सवाल- - - सारी बातें तय हो जाने के बावजूद ठकरियाल ने यह किया तो किया क्यों?
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