16 मई : शनिवार

टोनी पचेरो के लिए इरफ़ान को तलाश करना और भी कठिन काम साबित हुआ।
उसके बारे में एक ही लीड उसे उपलब्ध थी कि वो काली-पीली टैक्सी चलाता था। नगर के प्रमुख टैक्सी स्टैण्ड्स से दरयाफ़्त करने पर हर जगह से एक ही जवाब मिला – कौन इरफ़ान?
तब उसे ज़ाती तर्जुबा हुआ कि किसी कैब ड्राइवर के बारे में दरयाफ़्त करना हो तो नाम न मालूम होने की सूरत में दो सवाल जरूर सामने आते थे :
टैक्सी अपनी या भाड़े की? अपनी तो नम्बर बोलने का! पता चला कि भाड़े की टैक्सी से ड्राइवर की शिनाख्त अमूमन नहीं हो पाती थी। भाड़े की टैक्सी तो हो सकता था कि महीने में दस बार बदली जाती। यानी आज एक नम्बर तो कल दूसरा, परसों तीसरा।
पचेरो के हाथ फिर नाकामी ही लगी।
सुबह चाय की ट्रे उठाए सलाउद्दीन ख़ुद टॉप फ्लोर वाले बैडरूम में पहुँचा जहाँ विमल के साथ इरफ़ान और शोहाब भी मौजूद थे।
“अरे, जनाब, ये क्या करते हैं?”– विमल ने तत्काल ऐतराज़ जताया – “चाय
खुद क्यों लेकर आए?”
“क्योंकि” – सलाउद्दीन बोला – “मैं भी पियूँगा।”
“फिर भी...”
“बनाता हूँ।”
“शुक्रिया। हमारे लिए फरव की बात है कि ख़ुद होटल के मालिक ने हमें चाय सर्व की।”
“दोस्त ने। कद्रदान दोस्त ने।”
“जनिवाज़ी है आप की, जनाब, लेकिन दिन चढ़ा ही है कि अभी आप इतने संजीदासूरत दिखाई दे रहे हैं! कोई खास वजह?”
“है तो सही!”
“अच्छा, है! बताइए क्या वजह है?”
“पहले चाय पी लें, फिर बताता हूँ। पहले बताऊँगा तो चाय बद्मज़ा हो जाएगी।”
“इतनी संजीदा बात है?”
“सिर्फ मेरे कानों के लिए?”
“तुम ऐसा चाहो तो तुम्हारी मर्जी। इरफ़ान, शोहाब मेरे तुम्हारे जैसे ही अजीज़ हैं, मेरा इन से कोई छुपाव नहीं।”
तीनों एक दूसरे का मुँह देखने लगे। फिर चारों ने ख़ामोशी से सुबह की पहली चाय का लुत्फ उठाया।
“अब बोलिए।” – आख़िर विमल बोला।
“बात ऐसी है, बिरादरान” – सलाउद्दीन संजीदगी से बोला – “कि आम हालात में उसकी ख़बर मेरे को हरगिज़ न लगती। लेकिन तुम्हारी अमानत रकम के साथ कल रात ऐसा कुछ हुआ कि हालात आम न रहे।”
“क्या हआ?” — विमल उत्सक भाव से बोला। सलाउद्दीन ने सप्रयास जावेद से, और रकम से, ताल्लुक रखता पिछली रात का किस्सा बयान किया।
“जावेद बहुत अच्छा लड़का है।” – विमल बोला – “मेरे को हैरानी है कि उसने ऐसा किया।”
“वक्ती लालच के हवाले” – शोहाब बोला – “कोई भी हो सकता है।”
“गलत काम का” – इरफ़ान बोला – “दिल से पछतावा भी गुनाह की कालख धो डालता है।”
“सब ठीक।”– सलाउद्दीन बोला – “मैं जानता हूँ मेरे फरजन्द ने कल रात जो किया, वक्ती जोशोजुनून में किया। मुझे अपनी औलाद पर ऐतबार है। मैं जानता हूँ वो दिल से शर्मिंदा है और ऐसी हरकत दोहराने का आइन्दा कभी ख़याल भी नहीं करेगा।”
“तो फिर बात क्या है?” — विमल तनिक उतावला होता बोला – “क्या रकम से ताल्लुक रखता फिर कुछ हो गया?”
“हमारे किए न हुआ। जब हो चुका तो हमारा दख़ल बना।”
“मतलब?”
“मतलब ये कि जावेद बाले बाकए के बाद सारी रात मेरे को नींद न आई। सुबह बार-बार मेरे जेहन में ये ख़याल दस्तक देने लगा कि बतौर अमानत जो रकम मेरे हवाले थी, मेरे को मालूम होना चाहिए था कि वो कितनी थी?”
“बत्तीस करोड़ थी।” – इरफ़ान बोला।
“फॉरेन करेंसी में” – शोहाब बोला – “जिस की रूपी वैल्यू बत्तीस करोड़ थी।”
“असल में”– विमल बोला – “पैंतालीस लाख डॉलर के करीब थी।”
“कैसे मालूम?” – सलाउद्दीन बोला – “गिनी थी किसी ने?”
“गिनी नहीं थी लेकिन हमें मालूम था कि रकम बत्तीस करोड़ रुपए थी क्यों कि मवालियों की डिमांड बत्तीस करोड़ थी, क्योंकि सोलह ट्रेडर्स ने दो-दो करोड़ रुपया कॉन्ट्रीब्यूट करके वो रकम खड़ी की थी और ज्वेलर कालसेकर को रकम
आगे पहुँचाने का जिम्मा सौंपा गया था।”
“यानी जैसे रकम कब्जाई गई थी, वेसे मेरे को सौंप दी गई थी?”
“हाँ।”
“बिना गिने? बिना कनफर्म किए?”
“हाँ। गिनने, कनफर्म करने की ज़रूरत ही नहीं थी।”
“गिनते, कनफर्म करते और फिर मेरे को सौंपते तो जो हुआ, वो न हुआ होता।”
“क्या हुआ? क्या न हुआ होता? बड़े मियां, प्लीज़ ... प्लीज़, पहेलियाँ न बुझाइए।”
“आज सुबह सवेरे यहाँ तहखाने में पहुँच कर मैंने रकम वाला ताला लगा ट्रंक खोला और पूरी एहतियात के साथ रकम मैंने गिनी। वो फॉरेन करेंसी में बत्तीस करोड़ नहीं थी।”
विमल के अवाक् उसकी तरफ देखा।
“नहीं थी?” – फिर उसके मुंह से निकला।
“नहीं थी। दो बार सारे नोट गिने।”
“कितनी थी?”
“बाइस करोड़। तकरीबन इकत्तीस लाख डॉलर।”
“बाकी कहाँ गई?”
“यही तो सवाल है जिसका जवाब नुमायां नहीं।”
“दस करोड़!” – इरफ़ान बोला – “दस करोड़ निकाल लिए किसी ने?”
“किसने? मैंने?”
“हरगिज़ नहीं।” – शोहाब आवेश से बोला – “ऐसा ख़याल करना भी कुफ़ है।”
“मैं इस बात की पुरज़ोर ताइद करता हूँ।” – विमल बोला – “मैं पुरइसरार कहता हूँ कि रोकड़ा जैसे हमारे काबू में आया, वैसे बड़े मियां को सौंपा गया। अगर वो पूरा नहीं था तो यकीनन काबू करने के लिए ही पूरा नहीं था। कल रात जावेद वाला किस्सा न वाकया हुआ होता तो रोकड़ा दिनोंदिन बेसमेंट में ट्रंक में बन्द पड़ा रहता, किसी को सपने में ख़याल न आता कि गिनती में रकम पूरी नहीं थी, बत्तीस करोड़ नहीं थी, दस करोड़ कम थी।”
“क्यों कम थी?” – इरफ़ान बोला।
“क्योंकि रकम का सफर दस करोड़ कम से ही शुरू हुआ था। इसके अलावा कोई दूसरी वजह रकम के कम होने की मुमकिन नहीं।”
“जावेद ने कुछ न किया?” – सलाउद्दीन दबे स्वर में बोला।
“क्या? क्या कुछ न किया? क्या है आपके ज़ेहन में? उसने फिर, दूसरी, कोशिश की?”
सलाउद्दीन ख़ामोश रहा।
“ये मुमकिन नहीं। आप कहें न कहें, मैं कहता हूँ ये मुमकिन नहीं। जावेद आप का बेटा है और पेड़ ने बीज पर ही जाना होता है। उसने बहुत मामूली रकम पर निगाह मैली की और उसका भी उसे पछतावा है। जिसे पहली बार साठ लाख रुपयों से तसल्ली हो, दूसरी बार उसका टार्गेट दस करोड़ रुपया नहीं हो सकता। मुझे यकीन है जावेद ने कुछ नहीं किया।”
“तो ... तो बाकी रकम कहाँ गई?”
“मालूम करेंगे। न मालूम हो सका तो समझेंगे जिसकी किस्मत में थी, उस के पल्ले पड़ गई। मेरी दरख्वास्त है कि अब ये किस्सा खत्म किया जाए।”
सलाउद्दीन फिर न बोला।
दोपहरबाद विमल इरफ़ान और शोहाब के साथ मैरीन ड्राइव ताज ज्वेलर्स के शोरूम में पहुँचा। तीनों कालसेकर के केबिन में उसके रूबरू हुए।
ज्वेलर उनकी आमद से ही विचलित दिखाई देने लगा, वो ऊपर से नार्मल दिखने की भरपूर कोशिश करने लगा।
“कैसे आए?” – अपने स्वर को भरसक सहज बनाता वो बोला। विमल ने अपलक उसे देखा।
अब ज्वेलर सहज बना न रह सका, वो साफ विचलित दिखाई देने लगा।
“क-क्या ... क्या बात है?” – वो बोला।
“कालसेकर साहब” – विमल संजीदगी से बोला – “हमें आप से ऐसी उम्मीद नहीं थी।”
“क-कैसी ....कैसे उम्मीद नहीं थी?”
“आप हमारी तरफ थे, शुरू से हमारी तरफ थे, हर तरह का सहयोग आपने हमारे साथ किया, अपने मोबाइल पर मवालियों के बिग बॉस की कॉल तक मेरे को सुनने दी, फिर इतनी बड़ी बात क्यों छुपा ली?”
“कितनी बड़ी बात? तुम किस बात का ज़िक्र कर रहे हो?”
“मेरे से ही कहलवाएँगे?”
“भई, कौन-सी बड़ी बात?”
“यानी जो बात प्रत्यक्ष है, दो जमा दो चार जैसी सरल है, आप उसकी पर्दादारी करना चाहते हैं?”
“जब कि जानते हैं कि कर नहीं पाएंगे।” – इरफ़ान रूखे स्वर में बोला।
“हम तीन जने नाहक यहाँ नहीं हैं।” – शोहाब बोला।
“भई, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।” – ज्वेलर बोला।
“मैं समझाता हूँ।” – विमल बोला – “मवालियों को आगे डिलीवर करने के लिए कल फॉरेन करेंसी में बत्तीस करोड़ की रकम आपके पास थी?”
“हाँ।”
“चौकस? गिनी गिनाई?”
“हाँ।”
“आपने ख़ुद तसदीक की कि रकम बत्तीस करोड़ थी?”
“फाइनल रकम को काउन्ट करने की ज़रूरत नहीं थी। मैंने सोलह कंट्रीब्यूशंस को काउन्ट किया था और हर कंट्रीब्यूशन का दो करोड़ चौकस पाया था। फिर फाइनल काउन्टिंग की क्या ज़रूरत थी?”
“आप बताइए?”
“कोई ज़रूरत नहीं थी।”
“रकम को एम्बूलेंस में लादने से पहले किसी साथ चलने वाले मवाली को ऑफर किया था कि वो रकम को काउन्ट कर के चौकस कर ले?”
“मेरे को क्या ज़रूरत थी ऐसा कुछ कहने की? कोई दूसरा कहता तो कहता!”
“किसी ने न कहा?”
“न।”
“कोई कहता – मसलन मवालियों का लीडर, जो कोई भी वो था – तो बेहिचक आप उसे रकम चौकस करने देते?”
“भई, जो माँग उठी नहीं .....”
“जवाब दीजिए।”
“यही जवाब है। मेरे को कल कोई न बोला कि वो पहले रकम काउन्ट करना चाहता था।”
“मेरा फिर सवाल है, कोई बोलता तो रकम चौकस पाता?”
“क्यों न पाता?”
“जवाब दीजिए।” – इरफ़ान चिड़ कर बोला – “सवाल के बदले में सवाल न परोसिए।”
“आप से” – शोहाब बोला – “एक सिम्पल सवाल पूछा गया है, उसका सिम्पल जवाब दीजिए।”
जवाब देने की जगह वो बेचैनी से पहलू बदलने लगा।
“आप” – विमल बोला – “बेईमान हैं?”
ज्वेलर ने तमक कर सिर उठाया।
“इरादतन? या इत्तफ़ाकन?”
उसने जवाब न दिया, खाली ज़ोर से थूक निगली।
“मैं आप पर इलज़ाम लगाता हूँ कि डिलीवरी के लिए तैयार रकम में से दस करोड़ रुपए आपने सरका लिए ...”
“नो! नैवर!”
“... क्योंकि आप जानते थे कि रकम लुट जाने वाली थी, आख़िर में रकम कम निकलती – दस करोड़ कम निकलती – तो यही समझा जाता कि बीच वालों ने कोई करतब किया।”
“जबकि असल में” – इरफ़ान बोला – “जो किया, आपने किया।”
“मैंने कुछ नहीं किया” — ज्वेलर ने आर्तनाद किया – “मैं गणपति की कसम खा कर कहता हूँ मैंने कुछ नहीं किया।”
“हमें आप पर, आपकी कसम पर ऐतबार है।” – विमल बोला – “हमें कुबूल है कि रकम के साथ आपने कुछ न किया। लेकिन रकम कम थी – दस करोड़ कम थी- और वो ओरीजन पर ही कम हो सकती थी। लिहाज़ा मुकम्मल रकम के साथ बेजा हरकत आपने न की तो किसी और ने की, आपकी जानकारी में किसी और ने की, क्योंकि ये काम आपकी, रकम के कस्टोडियन की, जानकारी से बिना हो ही नहीं सकता था। आप ने मजबूरन या इरादतन किसी को रकम में बड़ी भांजी मारने की इजाजत दी ...”
“म-मजबूरन।”
“ओके! नाम लीजिए उस शख़्स का! उस शख्स का इस सिलसिले में जिसके सामने आपकी पेश न चली! जिसके सामने, बकौल ख़ुद, आप मजबूर थे। कौन था वो शख्स? नाम लीजिए उसका!”
“नहीं मालूम।”
“बंडल!” – इरफ़ान भड़कने से हुआ।
“आपने ऐसे भीड़ को” – शोहाब भी गुस्से से बोला – “दस खोखा रोकड़ा सौंप दिया जिसका आप नाम नहीं जानते थे?”
“मैंने पूछा। कई बार पूछा। नहीं बताता था।”
“तो कैसे आपने उसे दस खोखा रोकड़ा सौंपने के काबिल मान लिया?”
“वो जिसके साथ आया था, उससे मैं वाकिफ़ था, यहीं पहले मिल चुका था। उस ने तसदीक की कि वो भीड़ गैंग का बिग बॉस था और हैसियत में नम्बर टू के आस पास ही था।”
“कौन बोला ऐसा? किसके साथ आया था?”
“अनिल विनायक के साथ आया था।”
“उसकी तो” – इरफ़ान के मुँह से निकला – “माहिम क्रीक में कल शाम लाश तैरती पाई गई थी!”
ज्वेलर के नेत्र फैले।
“ताकि” – विमल धीरे से बोला – “दस खोखा किसके हवाले हुआ, इसका कोई गवाह न बचता।”
“ये थे न गवाह!” – इरफ़ान ने ज्वेलर की तरह मज़बूत इशारा किया।
“कैसे गवाह थे ये” – विमल के स्वर में वितृष्णा का पुट आया – “जो उस शख्स का नाम तक नहीं जानते थे?”
कोई कुछ न बोला।
“कालसेकर साहब” – फिर विमल बोला – “रोकड़ा रास्ते में लुट जाने वाला था, ये – इतनी अहम – बात सिर्फ आपको मालूम थी। पर जिस अन्दाज़ से दस करोड़ रुपया आपसे झटका गया था, उससे साफ जाहिर होता था कि उस गुमनाम गैंगस्टर को भी मालूम थी। वो जानकारी होने पर ही दस करोड़ की धाँधली छुपी रह सकती थी, कहा जा सकता था कि जो घोटाला हुआ वो या आपने किया था दूसरे सिरे पर लुटेरों में से किसी ने किया। कुबूल कीजिए कि वो खास जानकारी गुमनाम गैंगस्टर को आपने दी।”
“मैं मजबूर था। मेरे सिर पर मेरे बेटे के बुरे अंजाम की धमकी की तलवार लटक रही थी। पहले भी एक बार मेरे पर प्रेशर बनाने के लिए विष्णु का अगवा हो चुका था। ऐसा फिर हो सकता था इसलिए मैं ख़ामोश न रह सका।”
“जो कहा, अनिल विनायक के सामने कहा?”
“जब पूछा उसके सामने गया था तो ...." वो ख़ामोश हो गया।
“इसी वजह से वो जान से गया! गवाह कौन छोड़ता है!”
“उसे गुमनाम गैंगस्टर से मरवाया?”
“खुद मारा। मरवाता तो फिर गवाह खड़ा हो जाता।”
“देवा!”
“मुलाकात कहाँ हुई थी उनसे?”
“यहीं। मेरे ऑफिस में।”
“वो दोनों ख़ुद यहाँ आए? आपने न बुलाया?”
“खुद आए।”
“एकाएक?”
“बोल के आए कि आ रहे थे।”
“शेकड़े की रवानगी से पहले?”
“काफी पहले। जबकि स्टाफ के आने में अभी बहुत टाइम था।”
“इतनी सुबह – अर्ली इन दि मॉर्निंग – आप यहाँ क्या कर रहे थे?”
“मेरे को हुक्म हुआ था।”
“किसका?”
“उस गुमनाम बिग बॉस का। लेकिन सीधे नहीं, अनिल विनायक की मार्फत।”
“क्या हुक्म? ये कि आप जाकर अपना शोरूम खोलें, बिग बॉस वो गुमनाम गैंगस्टर – आता था?”
“हाँ।”
“इस वजह से आप इतनी सुबह शोरूम में थे?”
“हाँ।”
“ये बड़ा, एक्सपेंसिव, अल्ट्रामॉडर्न शोरूम है। यहाँ सीसीटीवी कवरेज का
इन्तज़ाम होना लाज़िमी है। छत के साथ लगा एक कैमरा तो मुझे आपके केबिन में भी मौजूद दिखाई दे रहा है।”
“सीसीटीवी कवरेज का है इन्तज़ाम यहाँ।”
“जिस मवाली को अपना नाम बताने से परहेज़ था, वो नकाब तो न ओढ़े होगा!”
“मैं समझा नहीं।”
“क्यों न समझे? फारसी बोली मैंने?”
वो कसमसाया, फिर बोला – “तुम्हारा मतलब है उसकी सूरत सीसीटीवी कवरेज में रिकार्डिड होगी?”
“शुकर! रिकार्डिंग को कल सुबह उसके आमद के वक्त तक बैक कीजिए और उसके रुख़सत हो जाने के वक्त तक अपनी कम्प्यूटर स्क्रीन पर चलाइए।”
उसने आदेश का पालन किया।
सबने अनिल विनायक के साथ आए बड़े मवाली की शक्ल देखी। इरफ़ान ने अनिल विनायक को पहचाना, क्योंकि छापे में उसकी फोटो छपी थी लेकिन बड़े मवाली को किसी ने न पहचाना – बावजूद इसके कि रिकार्डिंग को दो बार बैक करके देखा गया।
“इस रिकार्डिंग में” – विमल बोला – “साफ दिख रहा है कि गुमनाम बड़ा मवाली अपने मातहत के साथ खाली हाथ आया था लेकिन वापिसी के वक्त मातहत के, अनिल विनायक के हाथ में एक सूटकेस था। रकम उस सूटकेस में थी?”
“हाँ।”
“तकरीबन चौदह लाख डॉलर?”
“हाँ।”
“सूटकेस में आ गए?”
“भई, आ ही गए! जो बात प्रत्यक्ष है...”
“इतनी प्रत्यक्ष नहीं है। हमारे पास ये जानने का कोई ज़रिया नहीं कि सूटकेस में रकम कितनी थी!”
“भई, जब माँग दस करोड़ की थी ...”
“कौन कहता है? आप ही तो कहते हैं!”
ज्वेलर ने आहत भाव से विमल की ओर देखा।
“सूटकेस कहाँ से आया?”
“यहीं था। बेसमेंट में रखा रहता था, कभी-कभार ज्वेलरी या कोई रकम ढोने के काम आता था।”
“वो सूटकेस यहाँ न होता तो?”
“तो वो लोग ख़ुद कोई इन्तज़ाम करते।”
“खुद तो न करते, आप ही को हुक्म देते कि आप उन्हें कोई कन्टेनर मुहैया कराते – जैसे कोई बड़ा बैग, कोई बड़ा बक्सा, कोई कार्डबोर्ड का कार्टन!”
“हो सकता है।”
“इस फुटेज में उनकी रुखसती के वक्त अनिल विनायक के हाथ में एक सूटकेस तो नज़र आ रहा है लेकिन उसकी किस्म का पता नहीं चल रहा। सूटकेस आपकी मिल्कियत था इसलिए आप बताइए कैसा था!”
“चमड़े का था, रंगत में लाल था और वैसा था जैसा ट्रैवल बैगेज होता
“लॉक कैसे थे? चाबी से खुलने वाले या नम्बई?”
“नम्बई।”
“नम्बर आपने उन्हें बताया?”
ऐसी कोई ज़रूरत ही नहीं थी। गैरइस्तेमाल की घड़ियों में उसके लॉक नहीं लगे होते थे। तब इस्तेमाल के वक्त बिग बॉस ने लॉक्स पर खुद कोड नम्बर सैट था किया जो कि उसे ही मालूम था।”
“आई सी। कोई स्पेयर पैन ड्राइव है आपके पास?”
“देखता हूँ।” – ज्वेलर दराज़ खोलता बोला।
“नहीं है तो मार्केट से मँगवाइए।”
“देखता हूँ, भई।”
“उसने एक पैन ड्राइव बरामद की और रिकार्डिंग का वो हिस्सा उस पर
ट्रांसफर किया जिसमें गुमनाम गैंगस्टर की और अनिल विनायक मरहम की शोरूम में अर्ली मार्निंग विज़िट चित्रित थी। विमल के कहने पर उसने पैन ड्राइव इरफ़ान को सौंपी।
फिर तीनों उठ खड़े हुए।
“कालसेकर साहब” – विमल संजीदगी से बोला – “रुखसत पाने से पहले मैं एक बात बोल के जाना चाहता हूँ। आप भले आदमी हैं, फिर भी आपके हालिया कंडक्ट पर बहुत बड़ा सवालिया निशान है। मसलन, हमें यकीन नहीं कि आपके सुपुत्र का अगवा हुआ था ... न, न, बीच में न टोकिए, जो मेरे जेहन में है, वो मुझे कहने दीजिए ... मसलन, मुमकिन है आप पर सोलह ट्रेडर्स से कलैक्ट किए रोकड़े के हवाले से किसी का भांजी मारने का दबाव हो लेकिन कितनी रकम का दबाव था, इसका ज़िक्र कहीं एक बार भी रिकार्डिंग में नहीं आया....”
“रोकड़ा बेसमेंट में था” – ज्वेलर बोला – “जहाँ कि सीसीटीवी कवरेज का इन्तज़ाम नहीं है। उन्होंने खुद एक रकम काबू में की थी और मेरे को खाली बताया था कि वो रकम कितनी थी।”
“दस करोड़?”
“मुमकिन है आपको रकम पाँच करोड़ बताई गई थी जो कि हैण्डी भी
“हैण्डी भी होती?”
“सूटकेस के साइज़ और उसकी कपैसिटी के मद्देनज़र!”
“लेकिन जब रकम दस करोड़ कम बताते हो ..." ।
“आपने मौके का फायदा उठाया। बहती गंगा में हाथ धोए। मसलन, पाँच करोड़ उस बेईमान, गुमनाम गैंगस्टर को ले जाने दिए और उतनी ही रकम ख़ुद भी मार ली। नहीं?”
जवाब में गिला करती निगाह से उसने विमल की तरफ देखा।
“इसी वजह से मैंने सूटकेस की बाबत सवाल किया था ताकि मुझे उसकी स्टोरेज कपैसिटी का कोई अन्दाज़ा हो पाता।” – विमल एक क्षण विठका, फिर सर्द लहजे से बोला – “बहरहाल अगर आपने ऐसा किया है तो वो रकम आप पचा नहीं पाएँगे – जैसे वो गुमनाम गैंगस्टर नहीं पचा पाएगा – ये मेरा वादा है आप से। नमस्ते।”
ज्वेलर से हासिल क्लिप के ज़रिए गुमनाम गैंगस्टर की सूरत के प्रिंट बनाए गए और उनके ज़रिए अन्डरवर्ल्ड में पूछताछ की गई।
नतीजा सिफर निकला।
कुछ ने तसवीर में दर्ज शक्ल पहचानने से साफ इंकार किया तो कुछ ने शिकायत की कि तसवीर साफ नहीं थी, एनलार्जमेंट में ग्रेस फट गए थे इसलिए पहचान मुश्किल थी।
अलबत्ता इरफ़ान ने ये शक भी ज़ाहिर किया था कि चन्द लोगों ने तसवीर पहचानी थी लेकिन डर के मारे हामी नहीं भरना चाहते थे क्योंकि बड़े मवाली का मामला था, कौन नाहक पंगा लेता।
“वान्दा नहीं, बाप।” – इरफ़ान बोला – “अभी और कोशिश करेंगे। साला कोई तो ज़ुबान को लगा ताला खोलेगा!”
“करना कोशिश अपनी।” – विमल बोला – “वैसे शिनाख्त का एक ज़रिया मेरी निगाह में भी है।”
“अच्छा, है? क्या है वो ज़रिया?”
“साउथएण्ड बार।”
शाम ढले नौ बजे के करीब विमल साउथएण्ड बार में मौजूद था।
वहाँ हाज़िरी भरने से पहले अपनी सूरत में उसने जो तब्दीलियों की थीं, वो थीं : सिर पर बिना माँग निकाले जैल से व्यवस्थित किए बाल।
आँखों में बिना पॉवर के नीले कॉन्टेक्ट लैंस और ऊपर बिना नम्बर का ही सुनहरी फ्रेम वाला चश्मा।
नथुनों में प्लास्टिक की दो गोलियों जिनकी वजह से नाक फूली हुई जान पड़ती थी और बोलता था तो आवाज़ बदली हुई जान पड़ती थी।
निचले होंठ की जड़ में सोल पैच।
उन तब्दीलियों से वो कदरन नौजवान भी लगता था और फैशनेबल भी।
वो भीतर दाखिल हुआ तो वहाँ की कर्टसी के मुताबिक एक स्टीवॉर्ड ने उसे रिसीव किया और टेबल – रिज़र्ल्ड या अनरिज़र्ल्ड- की बाबत सवाल किया। विमल ने ‘बाद में बोला और फिर ख़ुद ही बार पर पहुँचा जहाँ काउन्टर पर के सिर्फ दो स्टूल ऑकूपाइड थे। विमल ने उनसे परे एक कोने के स्टूल पर कब्ज़ा किया।
बारमैन अपनी तरफ से चलता तत्काल काउन्टर से पार विमल के सामने पहुँचा।
विमल ने नोट किया वो बुधवार रात वाला ही बारमैन था जिसका नाम मिस्टर क्वीन उर्फ राजा सा'ब ने उसे एडविन लियो बताया था।
“मे आई हैव योर ऑर्डर, सर?” – वो अदब से बोला।
“यस, प्लीज़।” — विमल बोला – “ए लॉर्ज ग्लैनफिडिक विद आइस एण्ड वॉटर।”
“एण्ड ए स्पलैश ऑफ सोडा, सर?”
“नो! नो सोडा।”
उसने ड्रिंक तैयार किया और कोस्टर पर विमल के सामने रखा। फिर काउन्टर के नीचे से पोटेटो चिप्स से भरा एक बाउल निकाल कर ड्रिंक के बाजू में काउन्टर पर रखा। सर्विस कम्पलीट जान कर वो वहाँ से हटने को हुआ तो विमल ने उसे टोका।
“वेट!”
वो बोला – “जाना नहीं अभी।”
बारमैन ठिठका।
“बार पर अभी रश नहीं है इसलिए मेरी बात सुन के जाना।”
“श्योर, सर।”
“मैं मिस्टर क्वीन का फ्रेंड हूँ।”
“सर!”
“तुम शायद उन्हें राजा सा'ब के नाम से बेहतर जानते हो! नो?”
“आप अपनी बात कहिए।”
“राजा सा'ब इस बार के मालिक हैं।”
“मेरे को ख़बर नहीं, सर। अपनी मुलाज़मत में मेरा मैनेजर से ऊपर वास्ता नहीं पड़ता।”
“ओके! तुम उन्हें बतौर मालिक नहीं जानते लेकिन जानते तो हो न!”
वो ख़ामोश रहा।
“ये देखो।” — विमल ने बारमैन के नाम और मोबाइल नम्बर वाला नैपकिन खोल कर उसे दिखाया – “ ‘साउथएण्ड’ के मोनोग्राम वाला नैपकिन है। इस पर तुम्हारा मोबाइल नम्बर और तुम्हारा पूरा नाम – एडविन लियो-ख़ुद राजा सा'ब ने दर्ज किया था। पूछो क्यों?”
“क्यों?”
“ताकि यहाँ मेरे को किसी स्पैशल सर्विस की दरकार हो तो वो मैं तुम्हारे ज़रिए हासिल करूँ। क्या?”
“ऐनीथिंग यू से, सर।”
“मालिक का हैण्डराइटिंग पहचानते हो न?”
“आप अपनी बात कहिए।”
“बुधवार रात को राजा सा'ब के साथ यहाँ एक नौजवान लड़की थी जिसने पूछे जाने पर अपना नाम गुलाब बताया था लेकिन मुमकिन है नाम कोई और हो। हम दो मर्दो के बीच उसकी वजह से बातचीत में कोई विघ्न आ सकता था इसलिए मेरी दरख्वास्त पर वो यहाँ बार पर आ बैठी थी और मेरी दरख्वास्त पर ही तुमने उसे वोदका मार्टिनी, शेकन नॉट स्टर्ड, का जाम सर्व किया था। याद आया?”
“बुधवार से शनिवार हो गया, सर। कैसे याद आएगा? मैं तब तक सैंकड़ों
कस्टमर्स को सर्व कर चुका हूँ।”
“कुबूल। लेकिन वो अपनी किस्म की एक ही थी और उसमें दो बड़ी खूबियाँ थीं। पूछो, क्या?”
“क्या, सर?”
“एक तो ये कि बला की हसीन थी- परीचेहरा हुस्न की मलिका थी – जैसे ऊपर वाले ने ख़ुद अपने हाथों से गढ़ा हो।”
“सॉरी, सर। ऐसी खूबियों वाली इधर की पेट्रन कोई मैडम मेरे को याद नहीं।”
“बहुत उतावले हो। अभी दूसरी खूबी तो सुन लेते!”
“सॉरी, सर। क्या है दूसरी खूबी?”
“मालिक की माशू ... ख़ास थी।”
“सर, नहीं याद मेरे को।”
“याद नहीं या याद करना नहीं चाहते?”
“एक ही बात है।”
“है तो नहीं एक बात! लेकिन ... खैर! अब बोलो, राजा सा'ब ने ख़ुद अपने हाथ से मुझे तुम्हारा नाम और मोबाइल नम्बर नोट कर के दिया, वो मेरे किस काम आया?”
“जिस काम के लिए नोट कर के दिया, सर, उस काम अगर अभी नहीं आया तो आइन्दा कभी आएगा।”
“किस काम के लिए नोट कर के दिया?”
“आपको मालूम है। नहीं मालूम तो नैपकिन फाड़ के फेंकिए, ये आपके किसी काम का नहीं।”
“वैरी स्मार्ट! वैरी स्मार्ट इनडीड!”
“इजाज़त दीजिए।”
“क्या? नहीं, अभी एक मिनट, खाली एक मिनट और रुको।” — विमल एक क्षण को ठिठका, फिर उसने जोड़ा – “प्लीज़!”
“यस, सर।”
विमल ने जेब से गुमनाम बिग बॉस का – जो कल ज्वेलर कालसेकर से दस खोखा रोकड़ा झटक कर ले गया था – वो प्रिंट निकाला जो ज्वेलर से हासिल हुई उसके शोरूम की सीसीटीवी रिकार्डिंग की वीडियो क्लिप से बनाया गया था और उसे बारमैन के सामने किया।
“इसे पहचानते हो?” – उसने पूछा।
“नहीं।”
“इतनी जल्दी जवाब न दो, भई। पहले प्रिंट को ठीक से देख तो लो!”
“नहीं।”
“इस शख़्स की सूरत तुमने पहले कभी नहीं देखी?”
“नहीं देखी।”
“ये तुम्हारे बॉस राजा सा'ब का कलीग है।”
“मैं नहीं पहचानता। नाम बोलिए, शायद नाम से कुछ याद आ जाए!”
“ये गैंग में तुम्हारे बॉस का बराबर का ओहदेदार है।”
“कैसा गैंग? कौन ओहदेदार? मैंने ये लफ्ज़ कभी नहीं सुना।”
“इतने भोले हो तो नहीं जितनी भोली बात कर के दिखा रहे हो!”
“सर, योर ड्रिंक इज़ गैटिंग वॉर्म।”
“बैंक्स फॉर टैलिंग मी। प्लीज़ पुट एनादर कपल ऑफ आइसक्यूब्ज़ इन इट।”
बारमैन ने ख़ामोशी से आदेश का पालन किया।
“मैं” – विमल बोला – “ड्रिंक के साथ टेबल पर शिफ्ट हो सकता हूँ?”
“श्योर, सर।”
“मैं अकेला हूँ। यहाँ की किसी होस्टेस की कम्पनी चाहूँ तो ....”
“टेबल पर जाकर पता कीजियेगा। वो क्या है कि यहाँ की होस्टेसिज़ इस मामले में बहुत चूज़ी हैं।”
“तुम सिफ़ारिश कर देना।”
“सर आई एम ओनली ए बारमैन!”
“ओह!”
“टेबल पर पहुँचिए। अगर आपकी पसन्द का कुछ होना होगा तो अपने आप होगा।”
“ओके!” — विमल अपना जाम थामे उठ खड़ा हुआ – “आख़िरी बार पूछ रहा हूँ। तसवीर में दर्ज इस सूरत से बाकिफ हो?”
“सर, यू आर टू मच।”
इससे पहले कि विमल बारमैन से फिर कोई सवाल करता, बारमैन परे चला गया। टेबल तक पहुँचने में एक स्टीवॉर्ड ने उसकी मदद की। तत्काल एक वेटर ने टेबल पर हाज़िरी भरी। “थोड़ी देर बाद।” – विमल बोला – “इशारा करूँगा।”
“राइट, सर।”
विमल अपना ड्रिंक चुसकने लगा।
उसकी अपेक्षा से जल्दी शिफौन की साड़ी में – जो कि वहाँ होस्टेसिज़ की यूनीफॉर्म मालूम होती थी- सजी एक होस्टेस उसके करीब पहुँची।
“हल्लो!” – वो मुस्कुराहट के मोती बिखेरती बोली – “एनजाइंग योर ड्रिंक?”
“ऐज़ ए मैटर ऑफ फैक्ट” – विमल अपने होंठों पर मीठी, निर्दोष मुस्कुराहट लाता बोला – “दैट्स ऑल आयम एनजाइंग।”
“दैट्स टू बैड! इतनी नाउम्मीदी किसलिए?”
“अब तुम आ गई हो तो नाउम्मीदी का क्या मतलब!”
“ओह!”
“यहाँ होस्टेसिज़ को मेहमान की कम्पनी की मनाही तो नहीं?”
“कैसे जाना मैं होस्टेस हूँ?”
“ऐसी जगहों के ज़ाती तजुर्बात से जाना। यूनीफॉर्म जैसी साड़ी से जाना। अकेले मेहमान का लिहाज़ करने के अन्दाज़ से जाना।”
“वैरी स्मार्टी में आई सिट डाउन?”
“यस, प्लीज़। लेकिन एक शर्त है।”
“वो क्या?” – उसके माथे पर बल पड़े।
“ढाई मिनट में उठ कर न चल देना!”
वो हँसी – बेवाक हँसी हँसी- और उसके सामने बैठ गई। “ढाई में नहीं।” — फिर बोली – “पौने तीन का पता नहीं।”
“वैरी बैल सैड!”- विमल बोला। वो फिर हँसी – जैसे कोई ड्यूटी भुगता रही हो।
“बाई दि वे, आज क्या बार है?”
“शनिवार। क्यों?”
“तभी!”
“क्या तभी? क्या कहना चाहते हो?”
“वो क्या है कि मैंने सुना था कि परियाँ शनिवार को ही धरती पर उतरती हैं।”
वो ज़ोर से हँसी – इस बार ड्यूटी भुगताती भी न लगी।
“यू टॉक नाइस।” – फिर बोली।
“कुछ गलत कहा मैंने?”
“नहीं, गलत तो नहीं कहा! लेकिन लगता है अक्सर कहा।”
“बोले तो?”
“ये फैंसी लाइन मेरे जैसी कितनी लड़कियों पर मार चके हो?”
“खामखाह और लड़कियाँ! वो तो आजशनिवार निकल आया, इसलिए बोला।”
“सोमवार निकल आता तो बोलते आसमानी परियों का प्लैनेट अर्थ विज़िट करने का वीकली प्रोग्राम सोमवार होता है, बुधवार निकल आता तो ...”
विमल धूर्त भाव से हँसा।
ऐनीवे” – वो बोली – “यू टॉक नाइस।”
“अभी तो शुरूआत है।” – विमल पूर्ववत् हँसता-मुस्कराता बोला – “टिकोगी तो देखोगी नाइसिटी टॉक की। टिकोगी?”
“बट ऑफकोर्स। सच बोलूँ तो तुम तो मुझे पसन्द आने भी लगे हो।”
“इन दैट केस, मे आई ऑर्डर ए ड्रिंक फॉर यू।”
“डिपेंड करता है।”
“किस बात पर?”
“संकोच से पूछ रही हूँ, मेरी पसन्द का ड्रिंक अफोर्ड कर सकोगे?”
“नाम लो अपनी पसन्द का, फिर देखते हैं।”
“आइल हैव ए सैक्स ऑन द बीच।”
विमल उस कॉकटेल से बाकिफ़ था – वो वोदका, पीच, लेमन, क्रैनबरी और आरेंज जूस के सम्मिश्रण से बनती थी और हाईबॉल ग्लास में आरेंज स्लाइस और चेरी की गारनिशिंग के साथ सर्व की जाती थी।
फिर उसका दिमाग कहीं और भटक गया :
‘माफी देना, सोहनयो!’ – नीलम को बरबस याद करता विमल मन ही मन बोला – ‘पर्सनल कुछ नहीं...’
‘हो भी तो क्या है!’ – उसे नीलम कहती लगी – अब किसकी जवाबदारी करनी है?’
‘तेरी याद की। हमेशा।’
‘सच कह रहे हो?’
‘हाँ। जिसकी मर्जी कसम उठवा ले।’
‘हाय, मैं मर जावां ... . रब्बा! गलत मुँह से निकला ... हाय मैं ज्यूं जावां ...’
“ओय, हल्लो! कहाँ हो?”
ख़यालों से उबर कर विमल हकीकी दुनियाँ में लौटा। होस्टेस उससे मुखातिब थी।
“सैक्स ऑन द बीच!” – प्रत्यक्षतः वो अंजान बनता बोला – “ब्रावो! बड़ी बोल्ड ऑफर है! सोच लेंगे उस बारे में भी। बीच कौन-सा यहाँ से कोसों दर है!
.. पर पहले ड्रिंक बोलो!”
“नॉटी! नॉटी!”
“ओ, माई गॉड! कहीं ये किसी ड्रिंक का नाम तो नहीं!”
“कॉकटेल का। वोदका विद सैवरल जूसिज़।”
“आई सी! पर, माई डियर, वोदका कॉकलेट में अफोर्ड करने, न करने की क्या बात थी? मैंने तो सोचा था कोई विन्टेज शैम्पेन ऑर्डर करोगी – जैसे कि वाइट गोल्ड!”
“मैंने मज़ाक किया था।”
“मज़ाक किया था या मेरी औकात परखी थी?”
“मज़ाक किया था। ऑनेस्ट!”
“ओके!”
विमल ने वेटर को बुलाकर सैक्स ऑन द बीच’ और चिकन लॉलीपोप का ऑर्डर दिया।
वेटर चला गया तो युवती ने अपलक उसे देखा।
“क्या देखती हो?” — विमल तनिक विचलित हुआ।
“तुम्हें ही देखती हूँ। मेरे को ऐसा लगा जैसे बीच में तुम कहीं खो गए थे।”
“खो गया था! कहाँ खो गया था?”
“मज़ाक न करो। बात को समझो। अभी एकाएक तुम्हारी सूरत से लगा जैसे तुम ट्रांस में थे, जैस किसी दूसरी दुनिया में थे।”
“अच्छा! ऐसा लगा?”
“हाँ। बरोबर।”
“फिकर नॉट। मैं कोशिश करूँगा कि दोबारा ऐसा न लगे।”
“तुम बात को बहुत हल्के में ले रहे हो! मज़ाक में उड़ा रहे हो।”
“अब छोड़ न!” – विमल अपने लहजे में नकली तिक्तता पैदा करता बोला – “डोंट बिकम ए नैगिंग वाइफ। ऐसी बीवी से आज़िज़ होकर ही तो मैं यहाँ आया हूँ!”
तभी वेटर उनका ऑर्डर ले आया और उस बद्मज़ा वार्तालाप को ब्रेक लगा।
“अब चियर्स बोलें?” – विमल बदले, खुशनुमा लहजे से बोला।
“चियर्स! ओ, यस। यस।”
दोनों ने जाम टकराए।
“तो तुम” — फिर वो संजीदगी से बोली – “मैरीड हो!”
“नहीं, भई!”
“अभी तुमने बोला न, नैगिंग बीवी से आज़िज़ हो के यहाँ आए!”
“अरे, भई, नैगिंग बीवी बोला, अपनी बीवी कब बोला मैंने?”
“तुम्हारा मतलब है दूसरे की बीवी?”
“अब्ब ... है तो ऐसीच।”
“वो नैग करती है?”
“हाँ।”
“वही तो!”
“ऐसी नौबत आती है तो यहाँ आ जाते हो!”
“या ऐसी किसी और जगह। लेकिन ये आख़िरी बार है।”
“क्यों भला?”
“मुझे नैगिंग वाइब्ज़ पसन्द नहीं। चाहे अपनी हो, चाहे दूसरे की हो।”
“दूसरे की क्यों हो?”
“ये वो जाने।”
“वाह, भई। मानना पड़ेगा कि बहुत पहुँचे हुए आदमी हो।”
“सैक्स की तरफ ध्यान दो, बीच को भले ही जाने दो।”
“क्या बोला!”
“नो ऑफेंस, माई डियर। खाली तुम्हारी कॉकटेल की तुम्हें याद दिलाई। नाम ऐसा बढ़िया है तो तासीर भी तो कम करारी नहीं होगी!”
“ज्यादा करारी नहीं। वो क्या है कि इस कॉकटेल में कई जूस होते हैं इसलिए वोदका का ज़ोर कमज़ोर हो जाता है, वो ज़्यादा नशा नहीं करती।”
“करे तो क्या है?”
“है न! दो बजे तक ड्यूटी करनी होती है, अभी तो दस भी नहीं बजे!”
“आईसी। बाई दिवे, मेरा ख़याल है कि ड्रिंक्स शेयर करना बड़ा इंटीमेट काम
“क्या मतलब?”
“मेरा नाम अरविन्द है। अरविन्द कौल।”
“ओह! आयम सॉरी! मैंने सोचा था तुम्हीं बेनाम रहना पसन्द करोगे!”
“काहे को?”
“अच्छा है कि ऐसा नहीं है। मेरा नाम काव्या खरे है।”
“हल्लो, काव्या खरी!”
“अरे, भई, खरे! खरे सरनेम है मेरा।”
“ओह खारी! हल्लो काव्या!”
“हल्लो, अरविन्द!”
कुछ अरसा दोनों में हल्की-फुल्की बातें हुईं जिन को युवती साफ एनजॉय करती लगी।
आख़िर विमल को लगा कि अब वो किसी गम्भीर वार्तालाप के लिए तैयार थी। उसका हाईबाल ग्लास भी तब तक खाली हो चुका था।
“मे आई ऑर्डर रिपीट फॉर यू?” - वो बोला।
“यस, प्लीज़।” – तत्काल वो बोली – “आइल हैव अनदर एण्ड दैट विल बी ऑल फॉर दि डे।”
“वाई, माई डियर। तुमने तो रात दो बजे तक रुकना है!”
“ऑल दि सेम, आई नैबर हैव मोर दैन टू ड्रिंक्स इन ए कैलेंडर डे।”
“आई सी।”
“एण्ड यू नो वाई?”
“नो! बट आई वुड लाइक टु नो।”
“दैन लिसन। ड्रिंक्स आर लाइक दि यू-नो-वॉट ऑफ ए वूमैन। वन इज़ नॉट ऐनफ एण्ड थ्री आर वन टू मैनी।”
“इसलिए” – विमल ने एक क्षण को उसके उन्नत वक्ष को घूरा – “दो।”
“यस। एण्ड आई एम ऑलरेडी फीलिंग दि फर्स्ट वन।”
“जसिज़ की वजह से। वोदका के साथ स्वीटनर का काम करते हैं।”
“अच्छा! मैंने इस बारे में कभी नहीं सोचा था।”
“अगली बार सोचना।”
“नहीं। मेरे को यही कॉकटेल पसन्द। प्लीज़ ऑर्डर रिपीट। अपने लिए भी। क्योंकि तुमने तो रात के दो बजे तक ड्यूटी नहीं करनी!”
“यू आर राइट, माई डियर।”
रिपीट ऑर्डर सर्व हुआ।
वो अपने नए जाम का उद्घाटन कर चुकी तो विमल सहज स्वर में बोला –
“एकाध हल्की-फुल्की बात करने की इजाज़त दोगी?”
“बोलो।” – वो बेहिचक बोली।
“सुना है इस बार का मालिक एक गैंगस्टर है?”
“अरे, धीरे बोलो। कोई सुन लेगा।”
“है?”
“कैसे जानते हो?”
“है न?”
“ये कोईसीक्रेट नहीं है। जगविदित है कि इस बार का मालिक मवालियों के एक गैंग का बिग बॉस है। पर मेरे को क्या! मेरे को तो खाली इधर जॉब करना है न!”
“पिछले शनिवार रात को मैं उससे मिला था।”
“कहाँ।”
“यहीं।”
“ओह, नो!”
“तब उसने मुझे अपना नाम मिस्टर क्वीन बताया था। बोला था वो राजा सा'ब के नाम से बेहतर जाना जाता था।”
“ठीक बोला था।”
“तब उसके साथ एक निहायत खूबसूरत, नौजवान युवती थी जो मेरे इसरार पर उठ कर बार पर जा बैठी थी और तब तक वहाँ बैठी रही थी जब तक कि मेरी बिग बॉस से गुफ़्तगू खत्म नहीं हो गई थी।”
“तुम्हारी बिग बॉस से गुफ़्तगू! बोले तो तुम भी मवाली हो?”
“लगता हूँ?”
“नहीं। लगते तो किधर से भी नहीं हो!”
“शुक्र है। काव्या, मेरा सवाल है, क्या तुम उस युवती से वाकिफ़ हो?”
“नहीं।”
“मालिक के साथ दिखाई देती थी।”
“मालिक रंगीला राजा हो तो उसके साथ रोज़ नई लड़की दिखाई दे सकती है। कोई किस-किस को याद रखे! फिर मालिक की कम्पनी की तरफ ज़्यादा तवज्जो देना मेरे जैसी मामूली होस्टेस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। मेरी नौकरी छूट सकती है।”
“खैर! जब तुम जानती हो कि मालिक गैंगस्टर है, ‘भाई’ है, तो उसके मिलने जुलने वाले भी तो ऐसे ही होते होंगे?”
“वो तो है!”
“अगर ऐसे किसी शख्स की तसवीर मैं तुम्हें दिखाऊँ तो पहचान लोगी?”
“मुमकिन है।”
“देखो।”
विमल ने उसे गुमनाम गैंगस्टर की तसवीर दिखाई। तत्काल होस्टेस के चेहरे पर शिनाख्त के भाव आए, उसके नेत्र फैले। विमल ने तसवीर जेब में रख ली।
“लगता है पहचाना?” – वो बोला। उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
“कौन है?”
“जैसा तुमने कहा – मवाली है।”
“बड़ा? राजा सा'ब जितनी हैसियत बाला?”
“हाँ।”
“कैसे जानती हो?”
“बिग बॉस के साथ इधर देखा दो तीन बार।”
“पहचान में कोई गलती नहीं? यही था?”
“हाँ।”
“नाम?”
“नहीं मालूम।”
“फिर ये कैसे मालूम कि मवाली था? गैंगस्टर था?”
“क्योंकि गैंगस्टर की सोहबत में था।”
“बस, यही वजह थी?”
“हाँ।”
“ये कोई माकूल वजह नहीं। लेकिन तुम्हारी बात फिर भी सच है। मुझे किसी और ज़रिए से मालूम है कि ये गुमनाम शख़्स ‘भाई’ है। मेरे लिए इसका नाम जानना निहायत ज़रूरी है। अगर इस सिलसिले में तुम मेरी कोई मदद कर सको
“मेरे ख़याल से बारमैन लियो को मालूम है लेकिन वो हामी भरने को तैयार नहीं।”
“और मैं तुम्हारा हिंट पकड़ने को तैयार नहीं। मैं इस बाबत उससे सवाल नहीं कर सकती। लियो मालिक का चहेता है। मेरे सवाल करने पर वो चुटकियों में मुझे नौकरी से निकलवा देगा। कोई और भी सजा मेरे को दिलवाए तो कोई बड़ी बात नहीं।”
“कुछ और सोचो।”
वो सच में सोचने लगी, संजीदगी से सोचने लगी। विमल धीरज से प्रतीक्षा करता रहा। एकाएक उसके चेहरे पर रौनक आई।
“सुनो।” – वो दबे स्वर में बोली – “ये शख़्स मवाली हो या न हो लेकिन इस शख्स का मालिक से कोई करीबी, प्रोफेशनल रिश्ता यकीनन है।”
“वो कैसे?” – विमल आशापूर्ण स्वर में बोला।
“यहाँ मालिक का पर्सनल ऑफिस है जो उसकी आमद की उम्मीद में खुला रखा जाता है और झाड़-पोंछ कर, चमका कर रखा जाता है। मेंटेनेंस स्टाफ को छोड़ कर उस ऑफिस के बारे में सबको हिदायत है कि उसमें कदम नहीं रखना। एक बार, सिर्फ एक बार, कोई ख़ास ही वजह बन गई थी तो बहुत थोड़ी देर के लिए मेरे को उस ऑफिस के भीतर जाना पड़ा था। मिस्टर कौल, तब मैंने एग्जीक्यूटिव चेयर के पीछे की दीवार पर एक कोई पन्द्रह गुणा अट्ठारह इंच साइज़ की फ्रेम्ड ग्रुप फोटो देखी थी और उस ग्रुप में एक शख़्स ये भी था।”
“सिर्फ इसको पहचाना?”
“दो जनों को और पहचाना। एक राजा सा'ब था जो इस बार का मालिक है और दूसरी वो नौजवान लड़की थी जिसका तुमने अभी हुलिया बयान किया था।”
“नाम नहीं मालूम?”
वो हिचकिचाई। “प्लीज़!”
“मेरे ख़याल से रोज़ी नाम है।”
“मालिक की, राजा सा'ब की, स्टैडी है?”
“मेरे ख़याल से।”
“नाम रोज़ी! ये भी तुम्हारे ख़याल से?”
“भई, मैंने एक बार राजा सा'ब को उसे इस नाम से पुकारते सुना था। अब पता नहीं वो नाम सच में था या लाड़ का था।”
“मेरे ख़याल से सच में था।”
होस्टेस की भवें उठीं।
“उसने ख़ुद अपना नाम गुलाब बताया था। गुलाब ... बोले तो रोज़ ... और बोले तो रोज़ी।”
“ओह!”
“ग्रुप फोटो में बाकी के दो जने कौन थे?”
“मेरे को नहीं मालूम।”
“मैं इस ग्रुप फोटो पर एक निगाह डाल सकता हूँ।”
“नहीं।”
“ए क्विक इन एण्ड आउट!”
“नो!”
“सोचो कोई तरकीब!”
“फॉरगैट इट मैन! इतनी संजीदा बातों ने इतनी बढ़िया कॉकटेल का मज़ा बिगाड़ दिया।”
“सॉरी! आइल ऑर्डर एनदर वन फॉर यू!”
“नो! ए थर्ड वन इन ए डे इज़ एब्सोल्यूट नो-नो विद मी। एण्ड आई एक्सप्लेंड दि रीज़न।”
“यू डिड। यू डिड इनडीड। फीमेल अनाटमी की – बोले तो मैमरी ग्लैंड्स
उसके चेहरे पर असमंजस के भाव आए।
“बट” – फिर बोली – “यू कैन ऑर्डर एनदर ड्रिंक फॉर युअरसैल्फ!”
“यस, बट मे भी लेटर।”
“ओके, यू नो बैटर।”
कुछ क्षण ख़ामोशी रही। उस दौरान दोनों ने अपने अपने ड्रिंक्स चुसके।
“ये हाईएण्ड बार है।”— फिर वो बदले लहजे से बोली- “इस लिहाज़ से यहाँ होस्टेसिज़ की सैलरीज़ भी हाईएण्ड होनी चाहिएं। नहीं?”
“हाँ, होनी तो चाहिएं!”
“मानते हो?”
“हाँ।”
“लेकिन नहीं हैं।”
“ऐसा क्यों?”
“मैनेजमेंट की लीचड़पन्ती के अलावा, शोषण की नीयत के अलावा और कोई वजह नहीं। तंग आकर कोई जॉब छोड़े तो एक जाती है, बीस आ जाती हैं उसकी जगह लेने। शिकायत करो तो मैनेजर कहता है, फ्री ड्रिंक्स भी तो मिलती हैं, टिप्स भी तो मिलती हैं!”
“कितनी तनखाह है?”
वो हिचकिचाई।
“ओ, कम ऑन!”
“बहुत डिसग्रेसफुल फिगर है।”
“मेरे से आगे नहीं जाएगी।”
“पैंतीस हज़ार।”
“वैसे होनी कितनी चाहिए?”
“डबल से ज़्यादा।”
“ये तो जुल्म है!”
“अब, है न!”
“देखो! सुनो! तुम एक छोटा-सा रिस्क लेकर मेरा एक छोटा-सा काम करो, मैं तुम्हें पाँच हज़ार रुपए टिप दूँगा।”
“काम मालिक के ऑफिस में लगी ग्रुप फोटो से ताल्लुक रखता न हो।”
“उसी से ताल्लुक रखता है। तुम मेरा क्विक इन एण्ड आउट अरेंज नहीं कर सकती तो अपना तो कर सकती हो न!”
“बोले तो?”
“उस ग्रुप फोटो की अपने मोबाइल से एक फोटो खींच लाओ – बाद में वो फोटो मेरे को ट्रांसफर कर देना – आधे मिनट का काम है।”
“बस? और कुछ नहीं?”
“कतई कुछ नहीं।”
“टिप पहले दो।”
विमल ने मेज़ के नीचे से उसे पाँच हज़ार रुपए थमाए।
“आती हैं।” – वो उठ खड़ी हुई। विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
“मेरी पूरी, सिंसियर कोशिश के बावजूद अगर तुम्हारा काम करने का मेरा दाँव न लगा तो?”
“तो पाँच हज़ार तुम्हारे।”
“गॉड ब्लैस यू, सर। यू श्योर आर ए काइन्ड हार्टिड पर्सन। नम्बर दो!”
“जब कामयाब होकर लौटो तब माँगना।”
“ओके।”
वो चली गई। विमल प्रतीक्षा करने लगा।
उस दौरान उसने पेपर नैपकिन पर से एक टुकड़ा फाड़कर उस पर अपना मोबाइल नम्बर लिन कर रख लिया।
दस मिनट गुज़र गए। जबकि उसे दो मिनट में लौट आना चाहिए था। पाँच मिनट और गुज़रे। विमल की उसके लौट आने की उम्मीद धूमिल होने लगी। पाँच हज़ार गए! तभी वो लौट आई। वो धम्म से अपने द्वारा खाली की कुर्सी पर वापिस बैठी।
“क्या हुआ?” – विमल उत्सुक भाव से बोला – “इतनी देर ....”
“चुप करो।” – वो अपना कॉकटेल का गिलास काबू करती बोली – “आज मेरे लालच ने मेरे को मरवा देना था। पिछले पैसेज में, जहाँ कि बिग बॉस का ऑफिस है, एकाएक आवाजाही शुरू हो गई जब कि वो अमूमन खाली पड़ा रहता है। बड़ी मुश्किल से तसवीर खींचने का दाँव लगा। देवा रे! मैं वहाँ दाखिल होती या वहाँ से निकलती देख ली जाती तो ... तो...”
“ऑल इज़ वैल दैट एण्ड्स वैल। तसवीर ठीक आई?”
“खुद देखना। नम्बर दो जिस पर फॉरवर्ड करनी है।”
विमल ने मेज़ के नीचे से उसे नैपकिन का पूर्जा थमा दिया।
वो उठकर रेस्ट रूम्स की तरफ गई और उलटे पाँव वापिस लौटी।
“देखो।” – वो बोला। विमल ने फॉरवर्ड की गई तसवीर चैक की।
“बढ़िया है।” – वो बोला – “अपने फोन से इरेज़ करना न भूलना।”
“ये भी कोई कहने की बात है!”
“पक्की बात है कि ग्रुप फोटो के बाकी दो जनों को तुम नहीं पहचानतीं?”
“अरे, पहले पक्की बात थी तो अब भी पक्की बात है। मैंने तसवीर खींचते वक्त ग्रुप फोटो की तरफ झाँका तक नहीं था। न ही फॉरवर्ड करते वक्त।”
“ओह!”
“अब तुम यहाँ न रुको।”
“ठीक है, पर पेमेंट के लिए बिल तो मँगाना होगा!”
“मँगाओ। बिल की बाबत एक बात और सुनो।”
“बोलो।”
“बिल में दो कॉकटेल्स दर्ज होंगी। चार की पेमेंट करना।”
विमल ने अपलक उसे देखा।
“प्लीज़! तुम बहुत मेहरबान आदमी हो। मेरी इतनी-सी रिक्वेस्ट पर सवालिया निशान न लगाना।”
“ओके।”
विमल ने उसकी गैरहाज़िरी में उसके कहे मुताबिक बिल अदा किया। रिक्वेस्ट की वजह उसे मालूम भी।
दो कॉकटेल्स की पेमेंट कैश में हुई थी। अपनी पहली फुरसत में होस्टेस काव्या खरे को पेमेंट कैश में ही वापिस हासिल कर सकती थी।
तनखाह जो कम थी!
बारह बजे के करीब विमल वापिस ‘मराठा’ लौटा।
उसके साथी उसके इन्तज़ार में जाग रहे थे। “अरे!” – विमल बोला – “सोये नहीं अभी तक?”
“तेरा इन्तज़ार कर रहे थे।” – इरफ़ान बोला।
“कुछ खाया पिया?”
“हाँ। तूने?”
“मैंने भी यूँ समझो कि रस्म अदायगी कर ली।”
“नीचे से कुछ मँगवाएँ?”
“नहीं, ज़रूरत नहीं।”
“अब बोल, क्या हुआ? ‘साउथएण्ड’ से कुछ हाथ लगा?”
“नहीं। लेकिन फिर लगा भी!”
“बोले तो?”
जवाब में नीचे से लैपटॉप मँगवाया गया। विमल ने बाज़रिया होस्टेस काव्या खरे हासिल हुई ग्रुप फोटो उस पर डाली और स्क्रीन पर ली।
“इसमें तो” – इरफ़ान तत्काल बोला – “हमारी तसवीर वाला गुमनाम मवाली भी है!”
“और?” – विमल धीरज से बोला।
“जुहू के सात नम्बर बंगले वाला जोड़ा भी है!”
“राजा सा'ब उर्फ मिस्टर क्वीन उर्फ मिस्टर जाधव। मिसेज जाधव ने ‘साउथएण्ड’ में मुलाकात में अपना नाम गुलाब बताया था जो कि सरासर फर्जी था। अब मालूम पड़ा है कि उसका नाम रोज़ी है लेकिन गारन्टी कोई नहीं।”
“मेरी बात पूरी ही समझो क्योंकि जिस उम्मीद से इस फोटो का अक्स हासिल किया था, वो तो पूरी हुई नहीं! गुमनाम गैंगस्टर की शिनाख़्त तो न हो पाई!”
“ठीक! लेकिन इस भीड़ की बाबत”– इरफ़ान ने ग्रुप में से एक शख़्स की ओर इशारा किया – “हमें अन्दाज़ा है।”
“क्या?”
“शुक्रवार को शिवाजी चौक से हमारी रिहाई के दौरान तूने गैंग के एक बिग बाँस माइकल गोटी का ज़िक्र किया था। अन्डरवर्ल्ड में जब हम गुमनाम गैंगस्टर की तसवीर की बाबत दरयाफ़्त कर रहे थे तो मैंने ये नाम सुना था। किसी ने इस बात पर भी रौशनी डाली थी कि इस शख्स का नाम गोटी क्यों था! तब शोहाब ने बोला था कि गोट जैसी, बकरे जैसी, दाढ़ी को गोटी’ कहते थे। तसवीर में दिखते इस भीड़ की ठोढ़ी पर गोट जैसी दाढ़ी, इस वास्ते इसका नाम माइकल गोटी। क्या!”
“दूर की कौड़ी है।”
“आपके अपने अनुमान के मुताबिक” – शोहाब बोला – “माइकल गोटी नाम के गैंगस्टर का वजूद तो है! बकरा दाढ़ी वाला, गोटी वाला शख़्स गैंग के नम्बर टू के साथ इस ग्रुप फोटो में दिखाई दे रहा है, तो ये माइकल गोटी हो सकता है बराबर।”
“हालिया पूछताछ से” – इरफ़ान बोला – “हमें भनक लगी है कि टॉप बॉस के नीचे- जो कि शाह कहलाता है- एक तो राजा सा'ब है जिसकी हैसियत गैंग के नम्बर टू के तौर पर है और बाकी तीन नम्बर टू से मिलती-जुलती हैसियत के और हैं जिनको मिला कर इनका मजमुआं गैंग ऑफ फ़ोर’ कहलाता है। उनमें से एक का नाम माइकल गोटी बराबर है – क्योंकि तेरी उससे बात तक हो चुकी है – भले ही वो ग्रुप फोटो में दर्ज गोटी वाला न हो।”
“बाकी दो?” – विमल ने सवाल किया।
“बाकी दो में से एक तो बतौर गुमनाम गैंगस्टर साफ हमारी पहचान में आ रहा है, खाली नाम हम अभी भी उसका नहीं जानते।”
“चौथे का भी।” – शोहाब ने चेताया।
“इस ग्रुप फोटो की कॉपी अब हमें भी हासिल होगी।” – इरफ़ान दृढ़ता से बोला – “हम इस गैंग ऑफ फ़ोर की शिनाख्त कर के रहेंगे।”
“गुड! अब इससे पहले कि मैं भूल जाऊँ, अपनी एक फिक्र मैं आप दोनों से साँझा करना चाहता हूँ।”
दोनों सजग हुए।
“बोले तो?” — फिर इरफ़ान बोला।
“मैं रोकड़े की यहाँ मौजूदगी से राज़ी नहीं। बड़े मियाँ इस सिलसिले में मुलाहज़े में फंसे हुए हैं। जुबानी कुछ नहीं कहते – कहेंगे भी नहीं लेकिन फिक्रमंद बराबर हैं। उनकी फिक्र को औलाद की पिछली रात की हरकत ने और बढ़ा दिया होगा!”
“वो तो है!”
“भले आदमी का तो”– शोहाब संजीदगी से बोला – “इसी बात में मरन है कि वो भला आदमी है।”
“बिल्कुल! इसी वास्ते मैं चाहता हूँ कि बुज़ुर्गवार उन पर जबरन थोपी गई ज़िम्मेदारी से मुक्ति पाएँ।”
“कैसे?”
“तुम बोलो। दोनों सलाह दो कोई!”
“रोकड़ा कहीं और शिफ्ट करें?” – इरफ़ान बोला।
“कहीं और कहाँ! कोई और सेफ जगह सूझी होती तो ‘मराठा’ हमारी चॉयस न होता।”
“बोले तो बरोबर।”
विमल ने शोहाब की तरफ देखा।
“जनाब” – शोहाब बोला – “बहुत बड़ी रकम का मामला है। बड़े मियाँ का ही ऐतबार था और है।”
“तो?”
“किसी दीगर आदमजात पर ऐतबार की जगह दूसरा सेफ ठिकाना तो मेरे जेहन में रेलवे स्टेशन का क्लॉक रूम ही आता है।”
“वो ऑप्शन अवेल करने के लिए भी रोकड़ा ऑन रोड होगा। आजकल शहर में जगह-जगह नाकाबन्दी दिखाई देती है। नाके पर इतनी बड़ी रकम के साथ पकड़े गए तो ... नतीजा गम्भीर होगा।”
“दादर से ‘मराठा’ तक तो न पकड़े गए!”
“ज़्यादा हौसला भी मुसीबत का बायस बन सकता है। अधिक साहस को भी विडम्बना माना गया है। एक बार न फँसे तो दोबारा न फँसने के हम लाइसेंसधारी नहीं हो जाते।”
“ठीक!”
“फिर मुमकिन है क्लॉकरूम वाला रेलवे स्टेशन करीब कहीं न हो, ऐसी सर्विस के लिए कहीं दूर जाना लाज़िमी हो!”
“फिर तो तू ही बोल, बाप, तेरे मगज में भी तो आख़िर कुछ होगा!”
“है तो सही!”
“क्या ?”
“अभी बोलो, ये रोकड़ा – पूरा बत्तीस खोखा होता तो पूरा, मौजूदा हालात में दस खोखा कम – हमारे पास क्यों है? सच में लुटेरे तो हम नहीं हैं! मकसद दुश्मन को चोट पहुँचाना था जिसमें कि हम कामयाब हुए। इस मकसद के तहत ये रोकड़ा हमारा तो नहीं हो गया न! हम तो खाली इस रकम के कस्टोडियन हैं! नहीं?”
दोनों के सिर सहमति में हिले।
“तो क्या ज़रूरत है रोकड़े की सम्भाल की, सम्भाल के साथ जुड़ी किसी मुमकिन फौजदारी की?”
“बोले तो?”
“अरे भई, जिनका पैसा है, उन्हें लौटा देते हैं। ईज़ी!”
इरफ़ान और शोहाब ने एक दूसरे की तरफ देखा। “आख़िर भी तो हमने वही करना होगा!”
“चन्दा!” – इरफ़ान बोला – “बड़े कारोबारियों ने तुका के ट्रस्ट को चन्दा दिया!”
“ये ऑफर पहली, बीस लाख की रकम की बाबत भी हुई थी! जब वो ऑफर हमें नामंजूर थी तो ये कैसे मंजूर होगी?”
इरफ़ान लाजवाब हो गया। “लेकिन” – शोहाब बोला – “रकम ऑन रोड तो फिर भी होगी!”
“नहीं होगी।” – विमल बोला – “होगी तो हमारी ज़िम्मेदारी से नहीं होगी। हम रकम को उसके ओरीजिनेटर के हवाले करेंगे।”
“ज्वेलर के? कालसेकर के?”
“हाँ। वैसे उस पर से मेरा ऐतबार हिल चुका है लेकिन फिर भी उसके हवाले करेंगे।”
“बाइस करोड़?”
“और क्या?”
“वो शार्टेज की बाबत सवाल नहीं करेगा?”
“पागल है! मुँह बनता है उसका! जिस रकम में मोटी भांजी मारी जाने में वो ख़ुद शरीक था, उसकी बाबत सवाल करेगा?”
“ये सोच के बोला कि शायद सोच रहा हो कि हमने बाकी रकम भी गुमनाम मवाली से वसूल कर ली होगी!”
“जैसे हम उसी के कारिन्दे हैं! और कोई काम नहीं हो!”
“ज्वेलर से खफ़ा हैं आप!”
“उसकी पैंतरेबाज़ी से। चोर की चोरी में मदद करता है, साह को होशियार करता है।”
शोहाब चुप हो गया।
“इतना कंडम भीड़ नहीं वो, बाप।” – इरफ़ान बोला – “जो गलत किया मजबूरी में किया, मालूम तेरे को।”
“मालूम। अभी बोल, तेरे को यकीन उसके लड़के का अगवा हुआ?”
“बहरहाल”- विमल बोला – “जैसा वो है तो है। उम्मीद करते हैं कि आइन्दा अक्ल करेगा, ज़्यादा ज़िम्मेदार बन के दिखाएगा।”
“ठीक!” – शोहाब बोला – “उसे यहाँ तलब करेंगे?”
“नहीं, यहाँ नहीं। ‘मराठा’ हमारा सेफ़ ठिकाना हैं, आज तक जिस पर कभी किसी दुश्मन का फोकस नहीं बना, कम्पनी’ का भी नहीं।”
“ठीक!”
“अब रोकड़ा ट्रांसफर करने की कोई माकूल जगह तुम सोचो जो कि ‘मराठा’ हरगिज़ न हो लेकिन ‘मराठा’ से दूर भी न हो।”
“सोचेंगे।”
इरफ़ान ने भी सहमति में गर्दन हिलाई।
“जल्दी ?”
“भरपूर कोशिश होगी, जनाब।” – शोहाब बोला।
“गुड! अब बोलो, तुम रोज़ी बियांको के बारे में ख़ास कुछ कहने जा रहे थे!”
“हाँ।” – इरफान बोला – “पूछताछ के दौरान इस लड़की के बारे में – जो कि
हुई जो कि तेरे काम आ करती हैं।”
“मसलन क्या?”
“एक योगा ट्रेनर की खबर लगी है जिसका अपना कोई ठीया नहीं है, लिमिटिड क्लायंट्स को उनके घर जा के योगा सिखाता है। शोहाब ये कहता उससे मिला था कि ये अपनी वाइफ के लिए उसे ऐंगेज करना माँगता था। आगे तू खुद बोल, शोहाब।”
“भला आदमी था।” – शोहाब बोला – “इसलिए बहुत अदब से बोला कि उसके पास कोई टाइम स्लॉट खाली नहीं था। सबूत के तौर पर उसने मुझे अपनी सारी मौजूदा ऐंगेजमेंट्स की लिस्ट दिखाई। उस लिस्ट में एक नाम रोज़ी बियांको का भी था और उसके लिए बुक्ड टाइम स्लॉट सुबह ग्यारह से बारह का था।”
“पता?”
“पता किसी क्लायन्ट का भी दर्ज नहीं था।”
“फोन नम्बर?”
“वो भी नहीं। लिस्ट खाली हर किसी के नाम से थी।”
“ट्रेनिंग का ये सिलसिला कब से शुरू होता था?”
“सुबह छः बजे से।”
“कम्यूटिंग का ज़रिया?”
“मालूम करेंगे। लेकिन अपनी कोई सवारी उसके पास ज़रूर होगी। पैसे वालों का योगा ट्रेनर है तो कोई कम तो नहीं कमाता होगा!”
“कार हो तो भी प्वायन्ट टु प्वायन्ट पहुँचने में टाइम तो ज़ाया होता होगा!”
“मैंने ये सवाल उससे किया था। कहता था कि वो एक ही इलाके के क्लायन्ट्स को टाइम देता था। उसके साथ ऐसा नहीं था कि एक क्लायन्ट तारदेव में हो और दूसरा बोरीवली में। बकौल उसके, कम्यूटिंग में टाइम वेस्ट करना वो अफोर्ड नहीं कर सकता था।”
“ठीक! रोज़ी बियांको कॉमन गोवनीज़ नाम है। हो सकता है राजा सा'ब की ख़ास होने की जगह वो कोई और हो!”
“हो सकता है।”
“ट्रेनर का क्या नाम है?”
“भरत खनाल।”
“नाम तो नेपाली जान पड़ता है!”
“हो सकता है। मुम्बई में नेपालियों की क्या कमी है! लोअर परेल में बाकायदा नेपाली बस्ती है।”
“योगा ट्रेनर है तो उम्रदराज़ शख़्स होगा!”
“मेरे को पैंतीस और चालीस के बीच का लगा था।”
“कहाँ पाया जाता है?”
“खार में। ये'- शोहाब ने एक पर्चा विमल को थमाया – “उसका पब्लिसिटी पैम्फलेट है जिसमें उसके कॉन्टैक्ट नम्बर छपे हैं और उसका एक क्लोज़-अप भी छपा है।”
“भीड़ का थोबड़ा ख़ास तवज्जो से देखने का, बाप।” – इरफ़ान बोला – “क्योंकि ख़ास है।”
विमल ने सबसे पहले इरफ़ान की राय पर ही अमल किया।
“खासियत है तो सही हुलिए में!” – फिर बोला।
“मसलन?” – इरफ़ान आशापूर्ण स्वर में बोला।
“मसलन, सिर के बाल। घने, घुघराले ऐसे बाल हैं कि उन में चाह कर भी माँग नहीं निकाली जा सकती। किसी ज़िद के तहत निकाली जाएगी भी तो थोड़ी ही देर में अपने आप गायब हो जाएगी।”
“बरोबर! बोले तो बाल ऐसे जैसे कि विग हो।”
“ये हेयर स्टाइल’
शोहाब से जोड़ा – “ब्लैक्स में आम पाया जाता है और ‘एफ्रो’ कहलाता है।”
“और?” - इरफ़ान तनिक उतावले स्वर में बोला।
“कलमें घनी हैं।”- विमल बोला – “कान की लौ से नीचे तक आती हैं। भवें भी घनी हैं और वैसी ही घनी मूंछ है। मूंछ से मैच करता सोल-पैच है।”
“और?”
“और तो कुछ नहीं सूझ रहा!”
“बोले तो इतना काफी। और कुछ हैइच नहीं जो सूझे।”
“मैं बोले तो ऐसे हुलिए वाला भीड़ मील से पहचाना जा सकता है।”
“तो?”
“बोलूँगा। पैम्पलेट्स में उसके मोबाइल नम्बर हैं। उनमें से किसी के ज़रिए क्या उसका खार का पता जाना जा सकता है?”
इरफ़ान ने शोहाब की तरफ देखा जो कि ढेर पढ़ा लिखा था।
“जाना जा सकता है।” – शोहाब पूरे विश्वास के साथ बोला। “कैसे?”
“कई तरीके मुमकिन हैं।”
“ओके। लेकिन छ: बजे से पहले!”
“ये शर्त मुश्किल है। बारह तो बजे भी पड़े हैं!”
“भई, मुम्बई चौबीस घन्टे का शहर है। यहाँ दिन क्या, रात क्या!”
“बाप, ठीक बोला। करेंगे कुछ।” – इरफ़ान शोहाब की तरफ घूमा – “करेंगे, न!”
“हाँ।” – शोहाब बोला।
“बोले तो क्या?”
“किसी का कूरियर आए तो अच्छी कम्पनियाँ कूरियर पर दर्ज पता कनफर्म करने के लिए क्लायन्ट को फोन करती हैं।”
“सुबह छ: बजे से पहले?” – विमल की भवें उठीं।
“जनाब” – शोहाब बोला – “अभी आपने खुद ही तो फरमाया कि मुम्बई चौबीस घन्टे का शहर है!”
“लेकिन कूरियर के लिए ... .”
“टेलीफोन कॉल के लिए। नहीं रिसीव करेगा तो .... देखेंगे।”
विमल ने उस बात पर मनन किया।
“योगा एक्सपर्ट के” – फिर बोला – “घर से उसको छ: बजे से बहुत पहले कवर करना होगा। बाकी ईस्साभाई विगवाला का काम सुबह दस तक भी हो जाए तो कोई प्राब्लम नहीं होगी।”
“ये भी कोई पूछने की बात है!”
“रोज़ी बियांको के घर में घुसेगा?”
“उसका योगा ट्रेनर बन कर।”
“मेरे को इसी बात का अन्देशाथा। बाप,यूँ कितने खतरों में कदम रखेगा, मालूम?”
“तैयार?”
“नहीं।”
“तो नौबत आने पर तेरे को इलहाम होगा कि तूने कब, क्या, कैसे करना है?”
“नहीं।”
“तो?”
“इरफ़ान भाई खतरा मोल लिए बिना कोई काम नहीं होता। ख़तरा कहाँ, किस हद तक लेना है ये मौकायवारदात ख़ुद बोलेगा। ऐन वक्त पर हमें पता लगेगा कि काम हमारे बस का नहीं, इसमें हासिल कम है, ख़तरे ज़्यादा हैं तो नक्की करेंगे। अभी अहमतरीन बात ये जानना है कि सुबह ग्यारह बजे योगा ट्रेनर की कहाँ डेली हाज़िरी होती है। क्या?”
“बरोबर। पण फाइनल फैसला कल सुबह ग्यारह बजे रोज़ी बियांको का रिहायशी मुकाम मालूम पड़ने से पहले बोला। अभी हाँ बोल!”
“हाँ।”
“तू ख़ुद बोला तेरी तैयारी कोई नहीं पण कुछ फच्चर ऐसे भी तो हैं जो तेरी तैयारी के बावजूद तेरे काबू में नहीं आने वाले।”
“मसलन, कौन से?”
“तेरा कद कितना है?”
“पाँच फुट आठ इंच। क्यों?”
“वो ट्रेनर करके भीड़ कद में अमिताभ बच्चन निकला या राजपाल यादव निकला तो कद कैसे एडजस्ट करेगा?”
“ये बड़ा फच्चर है। अगर ट्रेनर कद में मेरे से लम्बा निकला या ठिगना निकला तो कोई एडजस्टमेंट मुमकिन नहीं होगी। फिर जो स्कीम मेरे जेहन में है, उससे पल्ला झाड़ना लाज़िमी होगा।”
“शुकर।”
“और बोल!”
“वो बाई, रोज़ी बियांको- बड़ेमवाली की माशूक है तो किसी कबूतर के दड़बे जैसे फ्लैट में तो रहती नहीं होगी! किसी बड़ी जगह में रहती पाई गई तो तेरे को कैसे मालूम होगा कि वहाँ पहुँच कर तूने कहाँ हाज़िरी भरनी है— बोले तो योगा वो कहाँ सीखती है! अपनी ख़्वाबगाह में, बैठक में, बरामदे में या खुल्ले में!”
विमल उस बात पर गम्भीर विचार करता लगा।
“मैं वहाँ पहुँचूँगा तो ऐसे इन्तज़ाम के साथ पहुँचगा” – फिर बोला – “कि उसका कोई प्यादा, कोई गार्ड मेरे को वहाँ पहुँचा के आएगा जहाँ कि वो होगी। मैं ऐन टाइम पर वहाँ पहुँचूँगा इसलिए वो जहाँ भी होगी मेरे को रिसीव करने के लिए, उस रोज़ के योगा लैसन के लिए तैयार होगी।”
“आगे वो तेरे को अकेली न मिली तो?”
“क्यों भला? उसने योगा ट्रेनर से मिलना है या डांस डायरेक्टर से?”
“बरोबर बोला। अब बोल, इन्तज़ाम क्या?”
विमल ने बोला।