कैदी से पूछताछ

“अब मिजाज कैसा है पहलवान?” इंटेरोगेशन रूम में पहुंचकर एक कुर्सी पर बैठते हुए चौहान ने पूछा। जबकि लल्लन फर्श पर उकड़ू बैठा हुआ था।

“मैंने कुछ नहीं किया सर।”

“इसलिए नहीं किया क्योंकि करने का मौका नहीं मिला।”

“मैं वहां किसी का कत्ल करने नहीं गया था।”

“फिर छुरा लेकर क्यों गया था?”

“वो तो मुझे सीढ़ियों पर पड़ा मिला था, एकदम नया लग रहा था इसलिए उठा लिया।”

“अगर ऐसा था तो भाग क्यों खड़ा हुआ?”

“कमरे के अंदर का नजारा देखकर डर गया था मैं।”

“यानि गया वहां कविता से मिलने ही था?”

“वो कौन है?”

सुनकर चौहान ने बैठे ही बैठे एक जोर की लात उसे जमाई और उठकर खड़ा हो गया, “साले तू सोचता है तेरा झूठ चल जायेगा?”

“मैं कोई झूठ नहीं बोल रहा सर।”

चौहान ने फिर से एक लात जमा दी, उसके बाद लल्लन का दायां कान पकड़कर जोर से उमेठता हुआ बोला, “क्यों अपनी दुर्गति कराना चाहता है, सच कबूल क्यों नहीं कर लेता?”

“पहले पता तो लगे सर कि क्या कबूल करना है।”

“यही कि तू कविता का कत्ल करने उसके फ्लैट पर गया था।”

“कौन कविता?”

चौहान अपना आपा खो बैठा, फिर तो दे लात और दे घूंसे, मार मार कर उसने लल्लन को बेहाल कर दिया, उसके बाद वापिस कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, “अब याद आया कुछ?”

“नहीं।”

“एक बार फिर सोच ले लल्लन क्योंकि अभी तक तेरी गिरफ्तारी की भनक तक नहीं है किसी को, मतलब मैं जो चाहूं तेरे साथ कर सकता हूं। और करूंगा ये कि कहीं ले जाकर तेरी बॉडी डम्प कर आऊंगा, मतलब किस्सा खत्म। जबकि सच बता देगा तो बच जायेगा। इसलिए बच जायेगा क्योंकि कत्ल करने में कामयाब नहीं हो पाया। बड़ी हद हत्या की कोशिश का मामला बनेगा, उससे भी हम तुझे बचा लेंगे क्योंकि हमारा शिकार तू नहीं बल्कि सुशांत अधिकारी और दयानंद दीक्षित हैं। तुझे तो बस ये कबूल करना है कि तू उन दोनों के हुक्म पर ही कविता की हत्या करने गया था।”

“मैं उन दोनों को नहीं जानता, कौन हैं?”

“साले क्यों अपनी जान का दुश्मन बन रहा है?”

“आप मनमानी करने पर तुले हैं सर तो कैसे रोक सकता हूं? जबकि बेकसूर हूं, कुछ नहीं किया मैंने।”

“तू बात को समझ नहीं रहा भई, सच बोल देगा तो बच जायेगा।”

“कुछ साबित नहीं कर पायेंगे सर।”

“अच्छा, क्यों नहीं कर पायेंगे?”

“क्योंकि मैं किसी कविता के घर गया ही नहीं था। मैं तो उससे ऊपर वाली मंजिल पर जा रहा था, जहां मेरा एक दोस्त रहता है, चाहें तो जाकर पता कर लीजिए। लेकिन आप लोग क्योंकि अपनी किसी नाकामी को छिपाने की कोशिशों में जुटे थे, इसलिए मुझे थाम लिया, वह छुरा भी पुलिस ने ही मेरे हाथ में थमाकर जबरन मेरे फिंगर प्रिंट्स उसपर बना दिये थे। वरना मेरे जैसा सीधा सादा आदमी एक अंजान लड़की का कत्ल करने की कोशिश क्यों करेगा?”

चौहान ने क्षण भर को हैरानी से उसकी तरफ देखा फिर बोला, “तू सीधा सादा है?”

“बिल्कुल हूं, छतरपुर के इलाके में मोटर वर्कशॉप चलाता हूं। वहां चाहे जिससे जाकर पूछ लीजिए, सब यही कहेंगे कि लल्लन अपराधी टाईप आदमी नहीं है।”

“तुझे सच में लगता है कि दोस्त के पास जाने वाली कहानी चल जायेगी?”

“ट्राई करने में क्या हर्ज है सर, चल गयी तो ठीक वरना दो साल जेल में रहकर बाहर, जो कि अपनी जान गंवा देने से तो कहीं अच्छा है।”

“ओह अब समझा, तुझे अधिकारी का खौफ सता रहा है?”

“मैं किसी अधिकारी को नहीं जानता।”

“अरे क्यों अपना दुश्मन खुद बन रहा है यार, सच कबूल क्यों नहीं कर लेता?”

“सरासर गरीबमार कर रहे हो साहब, वर्दी वाले हो इसलिए रोक तो नहीं पाऊंगा आपको, लेकिन ऊपर वाला सब देखता है, जो चाहे करो, अब जिस बारे में मैं कुछ जानता ही नहीं हूं उस बारे में क्या बता सकता हूं आपको।”

तभी वहां गरिमा देशपांडे आ खड़ी हुई, जिसपर निगाह पड़ते ही चौहान कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया।

“कुछ बताया इसने?”

“नहीं मैडम, कहता है बिल्डिंग में इसका कोई दोस्त रहता है जिससे मिलने जा रहा था, ना कि कविता का कत्ल करने। ये भी कि किसी इंस्पेक्टर अधिकारी या सब इंस्पेक्टर दयानंद दीक्षित को नहीं जानता।”

“इट्स ओके, सच बोल रहा है या झूठ बोल रहा है, उस बात से अब कोई फर्क नहीं पड़ता, इसलिए जाने दो इसे।”

“क्या कह रही हैं मैडम?” चौहान हैरानी से बोला।

“अब इसकी जुबान खुलवाकर भी कोई फायदा नहीं होगा।”

“वजह जान सकता हूं?”

“दोनों का कत्ल हो गया चौहान, इसलिए लल्लन के मुंह से उनका नाम उगलवाकर भी अब कुछ हासिल नहीं होगा। और कविता इसके खिलाफ कंप्लेन दर्ज कराने को तैयार नहीं हो रही, कहती है किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहती, इसलिए जाने दो इसे।”

चौहान हकबकाया सा उसकी शक्ल देखने लगा, बल्कि उससे ज्यादा हैरान उस वक्त लल्लन हो रहा था, जिसकी तरफ दोनों का प्रत्यक्षतः कोई ध्यान नहीं था।

“अभी अभी कंट्रोल रूम से खबर आई है, दस मिनट में निकलना है, इसे आजाद करो और फौरन मेरे कमरे में पहुंचो।”

“केस तो इस पर फिर भी बनाया जा सकता है मैडम।”

“अरे पहले ही जाने कितने मामले पेंडिंग पड़े हैं, फिर जब अधिकारी और दीक्षित ही नहीं रहे तो मुझे नहीं लगता कि ये दोबारा कविता की जान लेने की कोशिश करेगा, क्योंकि उससे इसे कुछ हासिल नहीं होने वाला।”

“मतलब इतनी मेहनत जाया चली गयी?”

“चौहान...” गरिमा ने आंखें तरेंरी।

“सॉरी मैडम, ठीक है आप चलिए मैं आता हूं।”

“पांच मिनट में।”

“जी बिल्कुल।”

सुनकर गरिमा वापिस लौट गयी।

“किस्मत अच्छी पाई है साले तूने।” कहते हुए चौहान ने जेब से मोबाईल निकाला और कोई नंबर डॉयल करने के बाद कॉल अटैंड किये जाने का इंतजार करने लगा।

“हैलो।”

“नमस्कार चौहान साहब।”

“नमस्कार।”

“कैसे याद किया?”

“पांच लाख रूपये तैयार रखो।”

“समझ लीजिए हो गये, कोई पंगे वाला केस तो नहीं है?”

“नहीं, कोई पंगा नहीं है।”

“उम्र?”

चौहान ने लल्लन की तरफ देखा, “कितने साल का है तू?”

“पैंतीस का।”

“सुन लिया?” वह मोबाईल पर बोला।

“हां सुन लिया।”

“सेहत भी बहुत अच्छी है। डिलीवरी की जिम्मेदारी हमारी, और इस बात की भी कि आगे कोई पूछताछ हुई तो सबको यही सुनने को मिलेगा कि यहां से आजाद किये जाते वक्त उसने कहा था कि अब दिल्ली में नहीं रहेगा, सीधा अपने गांव चला जायेगा। मतलब एकदम सेफ गेम है, लेकिन पैसे एडवांस देने होंगे।”

“वो तो हम हमेशा एडवांस ही देते हैं सर।”

“ठीक है आधे घंटे में मेरे आदमी पैकेज लेकर पहुंच जायेंगे, पैसे तैयार रखना। और एक बात कान खोलकर सुन लो, पिछली बार की तरह फिर से कोई लापरवाही हुई तो इस बार तुम लोगों को बचाने के लिए मैं आगे नहीं आऊंगा।”

“नहीं होगी सर।”

“इसी में तुम्हारी भलाई है।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर के तुरंत कोई दूसरा नंबर डॉयल कर दिया।

लल्लन सुन तो सब रहा था, मगर उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। हां अपने किसी बुरे अंजाम का अंदेशा बराबर सताने लगा था उसे।

“हैलो।” कॉल कनैक्ट होने के बाद चौहान बोला।

“जयहिंद जनाब।”

“जयहिंद, एक कैदी को उसके स्पेशल घर पहुंचाकर आना है, समझ गये?”

“यस सर।”

“इंटेरोगेशन रूम में पहुंचो।”

“अभी आया सर।”

चौहान ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।

थोड़ी देर बाद चार सिपाही वहां पहुंचे जिनमें से दो ने लल्लन को दायें बायें से थाम लिया, “चल भाई तुझे घर छोड़ दें, आखिर लेकर भी तो हमीं आये थे।”

“मैं खुद चला जाऊंगा।” वह हड़बड़ाकर बोला।

“नहीं, क्योंकि दिल्ली पुलिस सदैव तेरे साथ है, अभी हम तुझे बाईज्जत घर पहुंचाकर आयेंगे, तो कल को तू लोगों से तारीफ भी तो करेगा कि पुलिस आजकल कितना अच्छा व्यवहार करने लगी है।”

“तुम लोग मुझे खत्म करने के लिए ले जा रहे हो?” वह बौखलाया सा बोला।

“पागल हुआ है, फिर तू कौन सा इतना बड़ा डॉन है जिसके एनकाउंटर पर बुलेट बर्बाद करें हम, चल।”

“सावधानी से - चौहान बोला - मैडम को भनक भी नहीं लगनी चाहिये।”

“सुनकर एक सिपाही ने रूमाल निकालकर कस के उसका जबड़ा बांध दिया, उसके बाद दूसरे ने लल्लन के हाथ बांधे, जबकि तीसरे ने उसके सिर पर काला नकाब पहना दिया।

“अब किसी को खबर नहीं लगेगी साहब।”

“गुड, बाद में कोई पूछे तो यही कहना कि ये अकेले यहां से गया था।”

“ठीक है जनाब।” कहकर चारों बुरी तरह छटपटाते लल्लन को साथ लेकर लिफ्ट में सवार हो गये। वह विरोध बराबर कर रहा था, मगर चार हट्टे कट्टे सिपाहियों के चंगुल से निकलना क्या कोई मजाक था।

नीचे पहुंचकर उसे एक इनोवा में बैठाया गया, फिर गाड़ी चल पड़ी। लल्लन अपने मुंह से गों गों की आवाजें निकालता रहा, जिसकी किसी को कोई परवाह नहीं थी।

करीब पांच किलोमीटर का सफर तय करने के बाद ड्राईवर ने एक जगह गाड़ी रोकी, तो साथ बैठा सिपाही खिड़की से मुंह बाहर निकालकर बोला, “लाईसेंस दिखाईए, गाड़ी के पेपर दिखाईये।”

“स्टॉफ की गाड़ी है भाई।” ड्राईव करता सिपाही बोला।

“ओह, सॉरी मैं पहचान नहीं पाया - कहकर उसने पूछा - यमुना पार जा रहे हैं?”

“क्यों?”

“ड्यूटी खत्म हो गयी है, लिफ्ट चाहिए थी।”

“जा तो उधर ही रहे हैं भई, लेकिन खास काम से जा रहे हैं इसलिए तुझे अपने साथ नहीं बैठा सकते।” कहकर सिपाही ने इनोवा आगे बढ़ा दी।

फिर थोड़ा आगे जाने के बाद उसने यू टर्न मारा और वापिस लौट चला। दस मिनट बाद वे लोग एक बार फिर पुलिस हेडक्वार्टर के भीतर थे।

“ध्यान से आस-पास देख लो हमारा कोई बिरादरी भाई तो नहीं खड़ा?”

सुनकर एक जना गेट खोलकर नीचे उतरा फिर बोला, “नहीं कोई नहीं है, हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है।”

“सीटी बजा।”

तत्काल जोर से सीटी बजाये जाने की आवाज लल्लन के कानों में पड़ी।

“सिग्नल मिला?”

“अभी नहीं - फिर थोड़ा रुककर बोला - अब मिल गया।”

“ठीक है फिर कैदी को नीचे उतारो।”

तत्पश्चात लल्लन को अपने साथ चलाते वे लोग एक ऐसे कमरे में पहुंचे जहां रोशनी बेहद कम थी। खिड़कियों पर पर्दे पड़े हुए थे और तीन ऐसे लड़के वहां पहले से मौजूद थे जिन्होंने अपनी कमर में सामने की तरफ खाली गन घुसेड़ रखी थी। वह तीनों ही वहां की कैंटीन में काम करने वाले लड़के थे, जिनका इस्तेमाल ऐसे कारनामों के लिए पहले भी किया जा चुका था, इसलिए जानते थे कि क्या करना था।

एक सिपाही ने लल्लन के सिर से नकाब हटा दिया गया।

“ये...ये कौन सी जगह है?” वह गुंगुआता हुआ बोला।

“तेरा नया घर।” सब हंस पड़े।

तभी एक लड़का छोटा सा बैग उन्हें थमाता हुआ बोला, “पूरे पांच लाख हैं, चाहो तो गिन लो।”

“क्यों गिन लें भई, चौहान साहब को धोखा देगा तो क्या धंधा करता रह पायेगा तू। अब कैदी तेरे हवाले और हम वापिस पुलिस हैडक्वार्टर। हमारी तरफ से बेशक इसका कीमा बनाकर चट कर जा।”

“कीमा उसके मुकाबले बहुत सस्ता है भाई जो हम इससे हासिल करने वाले हैं।”

“ठीक है अब हम चलते हैं।”

“एक हैल्प कर के जाओ प्लीज, क्योंकि आज आदमी कम हैं हमारे पास।”

“क्या चाहता है?”

“स्ट्रेचर तक पहुंचा दो इसे, साला बहुत हट्टा कट्टा है, काबू करना मुश्किल हुआ तो गोली चलानी पड़ जायेगी, जो कि पंगे वाला काम होगा।”

“ठीक है पहुंचाये देते हैं।” कहने के बाद चारों लल्लन को जबरन सामने के एक कमरे में ले गये, जो देखने में कुछ कुछ ऑपरेशन थिएटर जैसा दिखाई दे रहा था। वहां एक डॉक्टर पहले से मौजूद था, जो उन्हें भीतर आया देखकर उठ खड़ा हुआ।

लल्लन की समझ में अभी भी नहीं आया कि वहां क्या चल रहा था, लेकिन इतना तो साफ था कि जो चल रहा था वह ठीक नहीं चल रहा था।

चारों सिपाहियों ने मिलकर उसे स्ट्रेचर पर लिटाया और उसके हाथ-पांव कस के चारों पायों के साथ बांध दिये, इतना कस के कि उसे अपना शरीर खिंचता हुआ महसूस होने लगा था।

“निकाल लो जो कुछ भी इसके शरीर से निकालना है - एक सिपाही बोला - लेकिन लाश को साबुत मत फेंकना, और चेहरा पहचान में आने लायक तो हरगिज भी नहीं बचना चाहिए।”

लल्लन का कलेजा हलक में आ फंसा, वह बुरी तरह छटपटाया, निरीह निगाहों से सिपाहियों की तरफ देखा, फिर डॉक्टर बोला, “ये शायद कुछ कहना चाहता है।”

“जिसे सुनने में हमें कोई इंट्रेस्ट नहीं है।”

“सुन लो, कोई जरूरी बात हो सकती है।”

“चलो तुम कहते हो डॉक्टर तो सुने लेते हैं - कहकर उसने लल्लन की तरफ देखा - चिल्लाने की कोशिश मत करना वरना फिर से जबड़ा कस दूंगा।”

उसने तुरंत ऊपर नीचे मुंडी हिला दी।

सिपाही ने रुमाल खोल दिया।

“मैं - वह घबराया हुआ, बुरी तरह हांफता हुआ बोला - सब बता दूंगा, कुछ नहीं छिपाऊंगा, बस मुझे यहां से ले चलो प्लीज।”

“अब ये पॉसिबल नहीं है।”

“चौहान साहब से मेरी बात कराओ।”

“वह भी नहीं करा सकते, जो सौदा हो गया वह हो गया, गुड बाय।” कहकर चारों सिपाही वहां से निकल गये। लल्लन ने अपने बंधनों को तोड़ने में जी जान लगा दिया लेकिन वैसा कर पाना संभव नहीं था। फिर डॉक्टर ने कैंची उठाई और उसकी हुड्डी को काटकर दो भागों में बांट दिया।

लल्लन गला फाड़कर चिल्लाया।

“कोई फायदा नहीं होगा जेंटलमैन - डॉक्टर बड़े आराम से बोला - क्योंकि ये कमरा साउंड प्रूफ है, ना होता तो हमने फिर से तुम्हारा मुंह बंद कर दिया होता।”

“मुझे जाने दो प्लीज।”

“सॉरी उसका फैसला मेरे हाथ में नहीं है। हां मैं तुम्हें अभी क्लोरोफॉर्म सुंघाकर बेहोश कर दूंगा, जिसके बाद कुछ पता नहीं लगेगा, दर्द का एहसास तक नहीं होगा।”

“मुझे जाने दे कमीने।”

“साले - बाहर खड़ा एक लड़का उसकी तरफ गन तानता हुआ बोला - पांच लाख की एडवांस पेमेंट की है, वह पैसा क्या तेरा बाप भरेगा?”

“मैं दस दूंगा।”

लड़का हंसा, “तेरे पास जो खजाना मौजूद है न वह पचास लाख से कहीं ज्यादा का बिकने वाला है, इसलिए तड़पना बंद कर।”

“तो पचास ले लो मुझसे, और जाने दो।”

“तेरी औकात नहीं दिखती उतने पैसों की।”

“अरे बहुत पैसा है मेरे पास, तुम लोग यकीन करो।”

“नहीं वैसा करना चौहान को धोखा देने जैसा होगा, जबकि उसके जरिये हमने बहुत कमाया है, आगे भी कमायेंगे। तुझे छोड़ दिया तो मुसीबत खड़ी हो जायेगी।”

“अच्छा एक बार मेरी चौहान से बात करो दो प्लीज।” वह गिड़गिड़ाया।

“नहीं करा सकते - कहकर उसने डॉक्टर की तरफ देखा - अरे बेहोश कर यार इसे, क्यों इसकी किचकिच सुनकर अपना और हमारा दिमाग खराब करवा रहा है?”

सुनकर डॉक्टर एक तरफ बने काउंटर पर पहुंचा और एक शीशी का ढक्कन खोलने के बाद बेंडेज के रोल को उसके ऊपर रखकर उलटा किया, फिर ढक्कन बंद कर के वापिस लल्लन की तरफ बढ़ा।

“नहीं प्लीज मेरी चौहान से बात करा दो, बस एक बार करा दो।”

“पागल हो गया है?”

“मेरे पास एक ऐसी जानकारी है जो उसके बहुत काम की है।”

“होगी हमें उससे क्या?”

“अरे बात तो करा दो उसके बाद चाहे जो कर लेना, मैं क्या भाग जाऊंगा यहां से?”

लड़के ने उसकी बात पर कुछ क्षण विचार किया फिर अपने मोबाईल पर चौहान का नंबर डॉयल कर के हैंड्स फ्री मोड पर डाला और उसे लल्लन की छाती पर रख दिया।

वंश वशिष्ठ उस वक्त गरिमा के कमरे में उसके सामने बैठा हुआ था, जब एसआई चौहान इंटेरोगेशन रूम से निकलकर वहां पहुंचा और उसके बगल में बैठ गया।

“कर दिया इंतजाम?”

“जी कर दिया।”

“उम्मीद कितनी है?”

“सौ फीसदी, आज तक फेल हुए हैं कभी?”

“यानि अभी तक उसने कुछ नहीं बताया?” वंश ने पूछा।

“बतायेगा, पंद्रह से बीस मिनट में वह सब बतायेगा।”

“जरूर कोई भयानक टॉर्चर देने का इरादा होगा?”

“भयानक जरूर है, मगर उसकी चोट लल्लन के दिमाग पर पड़ने वाली है ना कि शरीर पर - गरिमा ने बताया - क्योंकि मुजरिमों के साथ मार कुटाई मुझे पसंद नहीं है। मेरा मतलब है थर्ड डिग्री टॉर्चर के खिलाफ हूं मैं।”

“फिर भी उम्मीद करती हैं कि वह सच्चाई बता देगा?”

“हां, फिर उसका आधा बल तो मैं ये कहकर निकाल आई हूं कि अधिकारी और दीक्षित मारे जा चुके हैं। अब उनके खिलाफ चुप रहकर भी वह अपना क्या भला कर लेगा?”

“कर सकता है, क्योंकि जुबान खोलने की सूरत में उसे जेल जाना पड़ेगा।”

“जो उसकी निगाहों में उस सजा के एक फीसदी भी नहीं होगी, जो अभी मिलने का अंदेशा उसे खाये जा रहा होगा।”

“बड़ी मिस्टीरियस बातें कर रही हैं मैडम।”

“हां कर तो रही हूं - कहकर उसने पूछा - चाय पियेंगे वंश साहब?”

“सर्दी में इससे बड़ी नियामत और क्या हो सकती है।”

“हो सकती है, कहें तो बोतल मंगवाये लेती हूं।”

“नहीं रहने दीजिए, जो हासिल हो रहा है मैं उसी से काम चला लूंगा।”

सुनकर वह जोर से हंसी, फिर किसी को फोन कर के तीन चाय भेजने को कह दिया।

“पूरे मामले में कुछ ऐसा है वंश साहब, जिसकी खबर बस आपको हो?”

“अभी नहीं लेकिन उम्मीद बराबर कर सकती हैं।”

“मतलब?”

“अधिकारी और दीक्षित से मिलकर निकलते वक्त मैं वहां एक छोटा सा रिकॉर्डिंग डिवाईस छोड़ आया था, जो बाद में जाकर उठा भी लाया था, उसमें कोई खास बात रिकॉर्ड हुई हो सकती है।”

“अभी सुना नहीं आपने?”

“नहीं, क्योंकि उसे सुनने के लिए मुझे ऑफिस जाना पड़ेगा, जिसका मौका अभी तक हासिल नहीं हो पाया है।”

“कोई खास बात हुई तो हमें बतायेंगे?”

“आपके मतलब की हुई तो जरूर बताऊंगा मैडम।”

“उसके अलावा कुछ?”

“और तो बस थ्योरी ही है, जो कहती है कि आगे कुछ बहुत भयानक घटित होने वाला है।”

“कितना भयानक?”

“अधिकारी और दीक्षित का कत्ल हो सकता है।”

“उनका क्यों?”

“क्योंकि डॉक्टर बरनवाल के हत्यारे को अब तक इस बात की खबर लग गयी होगी कि दोनों के खिलाफ जांच चल रही है। ऐसे में उसका ये सोचकर डर जाना स्वभावित बात है कि वो दोनों टूट सकते हैं, और टूट गये तो जाहिर है कातिल के बारे में भी बता कर रहेंगे। ऐसे में वह उन दोनों का मुंह बंद करने के लिए उनकी हत्या कर दे तो क्या बड़ी बात होगी?”

“यानि इस बात में आपको कोई शक नहीं दिखता कि डॉक्टर के कत्ल का राज उनके सीने में दफ्न है?”

“मेरे ख्याल से तो है, इसके विपरीत अगर कत्ल उन दोनों ने ही किया था, तो उन्हें कोई खतरा नहीं है। वैसे अब मुझे ये भी लगने लगा है कि कातिल की खबर कविता को भी है, तभी उसे खत्म करने के लिए लल्लन को भेजा गया। क्योंकि रेप वाली बात को अब साबित कर पाना आसान काम नहीं होगा। वह कहेगी कि अधिकारी ने एक साल पहले उसके साथ जबरदस्ती की थी, अधिकारी कहेगा नहीं की थी। कौन सच्चा और कौन झूठा इसका फैसला संभव नहीं है। और ऐन उसी वजह से उस मामले में अधिकारी को कविता से डरने की भी कोई जरूरत नहीं है।”

“जबकि बतौर कातिल अगर उन्हें पहचानती है तो जरूरत बराबर है - चौहान बोला - लेकिन सवाल ये है वंश साहब कि जो बात आज तक उस लड़की ने किसी को नहीं बताई, वह अब क्यों बताने लगी, इतना तो उन दोनों को भी सोचना चाहिए।”

“अब दोनों पहले जितनी मजबूत पोजिशन में नहीं हैं, सस्पेंड हो चुके हैं और उनके खिलाफ इंक्वायरी चल रही है। ऐसे में कल को गिरफ्तार कर लिये जाते हैं तो फिर लड़की को उनसे कोई खतरा नहीं रह जायेगा, यानि तब के हालात में तो वह उनके खिलाफ गवाही दे ही सकती है, जिससे वे दोनों बचना चाहते होंगे।”

“अगर कविता उनका राज जानती है तो डॉक्टर की हत्या के तुरंत बाद उसे भी क्यों नहीं खत्म कर दिया?”

“मौका नहीं मिला होगा, फिर जिस वक्त डॉक्टर की हत्या हुई उस वक्त कविता अपने घर पर थी, कैसे वे लोग उसे जबरन वहां से निकाल सकते थे?”

“बाद में भी तो खत्म किया जा सकता था उसे?”

“क्या पता उनके बीच कोई डील हो गयी हो, या डरा धमकाकर चुप करा दिया हो, क्योंकि कत्ल होते कोई अपनी आंखों से तो देख नहीं लिया होगा कविता ने।”

“तो और कैसे पता लग सकता था कि बरनवाल की हत्या में अधिकारी और दीक्षित की कोई भूमिका थी?”

“अभी उस बारे में क्या कहा जा सकता है मैडम, लेकिन कातिल अगर आपके दोनों ऑफिसर ही नहीं हैं, तो मुझे यही लगता है कि उनकी हत्या होकर रहेगी, क्योंकि ऐसे लोगों को जिंदा छोड़ना हत्यारा अफोर्ड नहीं कर सकता, जिनके सिर पर गिरफ्तारी का खतरा मंडरा रहा हो।”

तभी एक लड़का वहां चाय रख गया, और उसके तुरंत बाद चौहान का मोबाईल रिंग होने लगा। उसने कॉल अटैंड कर के उसे हैंड्स फ्री मोड पर डाल दिया।

“चौहान साहब आपका बंदा आखिरी बार आपसे बात करना चाहता है।”

“पागल हो गया है?” चौहान गुस्से से बोला।

“कहता है कोई बहुत जरूरी बात है।”

“अरे किस्सा खत्म कर यार, मुझे नहीं सुननी उसकी कोई बात, तुम साले मरवाओगे किसी दिन मुझे।”

“अरे मैं सब बता दूंगा।” लल्लन करीब करीब रो ही पड़ा।

“कौन है तू?”

“लल्लन।”

“मैं किसी लल्लन को नहीं जानता।”

“ऐसा मत कहो चौहान साहब, प्लीज मुझे बचा लो, मैं सब बता दूंगा, कुछ नहीं छिपाऊंगा। बस मुझे इनके चंगुल से निकाल लो।”

“अरे कौन है भई तू?”

“ठीक है मैं कोई नहीं हूं, फिर भी ये बताना चाहता हूं कि कविता का कत्ल करने के लिए मुझे अधिकारी साहब ने कहा था। लेकिन मैं और भी बहुत कुछ जानता हूं, मुझे बचा लो - इस बार वह सच में रो पड़ा - बचा लो मुझे।”

“अजीब दुविधा में फंसा दिया साले तूने, पहले नहीं बोल सकता था?”

“गलती हो गयी, माफ कर दो।”

“मेरे नुकसान की भरपाई कौन करेगा?”

“मैं करूंगा, नुकसान के अलावा भी जो तुम कहोगे दे दूंगा, बस मेरी जान बचा लो।”

“बीस लाख में डन करता है तो मैं कुछ सोच सकता हूं।”

“मैं पच्चीस दूंगा, प्रॉमिस।”

“और बाद में तू फिर से चौड़ा होने लगा तो?”

“नहीं होऊंगा।”

“और किसी से जिक्र भी नहीं करेगा कि मैंने तेरे साथ क्या करने की कोशिश की थी?”

“नहीं करूंगा।”

“करेगा तो जो काम मैं एक बार कर सकता हूं वह दोबारा भी किया जा सकता है, इतना तो समझता है न?”

“हां मैं सब समझता हूं।”

“ठीक है वेट कर, बहुत दूर पहुंचाया जा चुका है तू, कम से कम भी आधा घंटा तो लग ही जायेगा।”

“इन लोगों से तो बोल दो।”

“समझ ले बोल दिया।” कहकर चौहान ने कॉल डिस्कनैक्ट कर के गरिमा की तरफ देखा, फिर दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़े।

लल्लन को जान बूझकर पूरे आधा घंटा बाद वहां से पिक किया गया, फिर हैडक्वार्टर से निकालकर वापिस हैडक्वार्टर लाने में बीस मिनट और गुजार दिये गये, तब कहीं जाकर उसे गरिमा के कमरे में पेश किया गया।

“ये गया नहीं अभी तक?” उसने नकली हैरानी जताई।

“पश्चाताप हो आया है मैडम, इसलिए जाकर लौट आया है।”

“कमाल है, ऐसा अपराधी पहली बार देख रही हूं।”

“अच्छा आदमी है मैडम, इसलिए अपनी अंतर्रात्मा की आवाज सुनने को मजबूर हो गया होगा - कहकर उसने लल्लन की तरफ देखा - आ भई आराम से बैठ जा।”

सुनकर वह हिचकिचाता हुआ सा एक कुर्सी पर बैठ गया।

“क्या बताना चाहते हो?” गरिमा ने पूछा।

“मैं वहां कविता के फ्लैट में जाने का ही इरादा रखता था मैडम, लेकिन भीतर जो कुछ चल रहा था उसे देखकर गड़बड़ी का एहसास हो गया इसलिए भाग निकला था।”

“गये क्यों थे?”

“अधिकारी साहब का हुक्म था, दीक्षित साहब का भी।”

“और वे लोग क्यों खत्म करवाना चाहते थे लड़की को?”

“मैं नहीं जानता मैडम, मुझे तो बस इतना हुक्म दिया गया था कि कविता का मुंह हमेशा हमेशा के लिए बंद कर दूं। उस बारे में मैं और कुछ नहीं जानता मैडम।”

“ऐसा तुम इसलिए तो नहीं कह रहे कि अधिकारी और दीक्षित मारे जा चुके हैं?”

“नहीं मैडम, मैं बस सच बोल रहा हूं।”

“तुम उनका कहा मानने के लिए क्यों मजबूर थे?”

“क्योंकि साल भर पहले मेरे हाथों एक जुर्म हो गया था मैडम, तब अधिकारी साहब छतरपुर थाने में पोस्टेड थे, उन्होंने मुझे बचा तो लिया मगर इस वादे के साथ कि मैं जरूरत पड़ने पर उनका कोई काम करने से इंकार नहीं करूंगा।”

“अब तो वह छतरपुर में नहीं थे, तुम मना कर देते तो क्या बिगाड़ लेते तुम्हारा?”

“आप लोगों को यकीन नहीं आयेगा मैडम, लेकिन सच यही है कि किसी के कत्ल का हौसला मेरे भीतर नहीं है। मैं तो ये सोचकर कविता के फ्लैट पर चला गया कि उसे डरा धमकाकर और थोड़ा समझाकर किसी तरह दिल्ली से दूर चले जाने के लिए तैयार कर लूंगा, फिर साहब से कह देता कि उसे खत्म कर के लाश गायब कर दी थी।”

“तुम समझाते और वह समझ जाती?”

“हां क्योंकि साहब से मिलने के दौरान मैंने अपने मोबाईल की रिकॉर्डिंग ऑन कर दी थी, जो उसे सुनाने का इरादा रखता था मैं। उसके बाद भी नहीं मानती तो जो होता मैं भुगत लेता, क्योंकि कत्ल तो नहीं कर सकता था।”

“ऐसी कोई रिकॉर्डिंग तो अभी भी मौजूद होगी तुम्हारे मोबाईल में?”

“जी हां, और मोबाईल अभी भी आप लोगों के पास ही है, चाहें तो खुद सुनकर देख लीजिए।”

“अगर ऐसा था तो गिरफ्तारी के तुरंत बाद वह बात क्यों नहीं बता दी?”

“क्योंकि मैं अधिकारी साहब का नाम नहीं लेना चाहता था। मगर अब जबकि वह दुनिया में नहीं हैं तो मेरे कुछ कहने या ना कहने से उनका क्या बिगड़ जायेगा। फिर उनका मुझपर एहसान भी तो था, कैसे मना कर देता?

“लेकिन धोखा बराबर दे सकते थे, कविता को गायब हो जाने की सलाह देकर।”

“हां दे सकता था, क्योंकि मुझपर उनका जो एहसान था वह इतना बड़ा नहीं था कि मैं किसी के खून से अपने हाथ रंग लेता। मगर मना करने की हिम्मत नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने वैसा प्लॉन बनाया था।

“जुर्म क्या किया था तुमने?”

“एक लड़की के साथ मेरे संबंध बन गये थे, जबकि मैं पहले से शादीशुदा था और वह बात उसे बता भी चुका था। शुरू में उसे कोई आपत्ति नहीं हुई, लेकिन आगे चलकर वह मुझपर शादी का दबाव बनाने लगी, फिर प्रेग्नेंट हो गयी तो मैंने धोखे से ले जाकर उसका एबॉर्शन करा दिया। उसपर गुस्सा होकर वह थाने पहुंची और मेरे खिलाफ एप्लीकेशन लगा दी कि मैंने उसके साथ रेप किया था। वह केस अधिकारी साहब ने हैंडल किया, और जल्दी ही उन्हें यकीन भी आ गया कि लड़की के आरोप झूठे थे। मगर ये भी सच था कि अगर वह अपनी जिद पर अड़ी रहती तो मुझे जेल जाने से कोई नहीं बचा पाता। तब साहब ने मेरी हैल्प की और जाकर उसके मां बाप से मिले। खूब समझाया बुझाया, हो सकता है थोड़ा डराया धमकाया भी हो, जिसके बाद मेरा उसके साथ सेटलमेंट हो गया।”

“कितने में?”

“पांच लाख में।”

“और अधिकारी को कितनी रिश्वत दी?”

“एक पैसा नहीं लिया साहब ने, बस वादा लिया कि जिस तरह उन्होंने मेरे काम आकर दिखाया था वैसे ही मैं भी उनके काम आकर दिखाने को तैयार रहूं।”

“जो तुम नहीं आये।”

“एक लड़की का कत्ल मुझे गवारा नहीं था मैडम।”

“या महज कहानी सुना रहे हो हमें?”

“कहानी सुनानी होती मैडम तो मैं बातचीत रिकॉर्ड क्यों करता? जाहिर है इसीलिए किया ताकि उसके जरिये कविता को उसके सिर पर मंडराते मौत के खतरे से अगाह कर सकूं। फिर जरा सोचकर देखिये मैडम कि छतरपुर में मेरा बना बनाया बिजनेस है, कमाई भी बहुत अच्छी होती है, मैं भला किसी का कत्ल क्यों करूंगा, वह भी महज फेवर करने के लिए?”

“अधिकारी ने भी तो फेवर ही किया था?”

“हां किया था लेकिन एक ऐसे काम में फेवर किया था, जिसमें मैं निर्दोष था, मतलब उन्होंने बस सच को सच साबित किया था, जबकि मेरे हाथों कत्ल करवाना चाहते थे, दोनों बातें बराबर कैसे हो सकती हैं?”

तत्पश्चात उसके मोबाईल की रिकॉर्डिंग सुनी गयी, जिससे सबको यकीन आ गया कि वह झूठ नहीं बोल रहा था। हां कविता का कत्ल करने गया था या सच में उसे वॉर्न करना चाहता था, ये जानने का पुलिस के पास कोई जरिया नहीं था।

आखिरकार उसे हवालात में डाल दिया गया।

“इतनी लंबी चौड़ी ड्रिल के बाद भी क्या हासिल हुआ चौहान - गरिमा बोली - जो बात वह कबूल कर के गया है वह तो वंश साहब के जरिये हम पहले से जानते थे। ये कि कविता का कत्ल करने के लिए उसे अधिकारी ने भेजा था।”

“रिकॉर्डिंग की सूरत में हमारे पास कुछ तो ऐसा फिर भी है मैडम जिससे हम अधिकारी और दीक्षित को जुबान खोलने पर मजबूर कर सकते हैं।”

“मिलें चलकर?”

“अभी?”

“क्या हर्ज है?”

“ठीक है चलिए - कहकर उसने वंश की तरफ देखा - पूरी रात यहीं तो बैठे रहना नहीं चाहते होंगे आप, है न?”

“नहीं, इसलिए अब ऑफिस जाता हूं।”

“अपने फ्लैट पर नहीं जायेंगे?” गरिमा ने पूछा।

“नहीं क्योंकि मेरे पास जो रिकॉर्डिंग मौजूद है उसे सुने बिना नींद नहीं आयेगी, और सुनने का इंतजाम बस मेरे ऑफिस में ही है।”

“ठीक है फिर चलिए।”

तत्पश्चात तीनों कमरे से बाहर निकल गये।

दोनों पुलिस ऑफिसर गोविंदपुरी के इलाके में स्थित सुशांत अधिकारी के घर पहुंचे, जहां उसकी बीवी कादम्बनी ने बताया कि उसका हस्बैंड अभी तक घर नहीं लौटा था, और फोन पर जवाब भी नहीं दे रहा था। तत्पश्चात दोनों उसी इलाके में स्थित दयानंद दीक्षित के फ्लैट पर पहुंचे तो वहां ताला लगा पाया।

“कमाल है, इतनी रात को कहां हो सकते हैं दोनों।”

“होने को कहीं भी हो सकते हैं मैडम, जैसे कि किसी बार में। लेकिन मेरे दिल से आवाज आ रही है कि दोनों इस वक्त भी साकेत वाले मकान में ही डेरा डाले बैठे हैं, जहां दिन में वंश साहब से उनकी मुलाकात हुई थी।”

“ओके तो आज तुम्हारे दिल की ही सुन लेते हैं।” कहने के बाद गरिमा ने वंश को व्हॉट्सअप पर मैसेज छोड़ा, ‘प्लीज सेंड द एड्रेस, व्हेयर यू मेट सुशांत एंड दयानंद’ - फिर चौहान की तरफ देखकर बोली - “चलो साकेत चलते हैं।”

“रात का वक्त है मैडम, पता नहीं वह मैसेज देखेंगे भी या नहीं।”

“नहीं देखेंगे तो उधर पहुंचकर कॉल कर लेंगे हम।”

तत्पश्चात दोनों पुलिस कार में सवार होकर वहां से निकल गये।

रास्ते में वंश का रिप्लाई मैसेज भी रिसीव हो गया।

रात का वक्त होने के कारण सड़क पर ट्रैफिक ना के बराबर था, इसलिए गोविंदपुरी से साकेत पहुंचने में उन्हें दस मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं लगा।

और उसके पांच मिनट बाद दोनों वंश के भेजे एड्रेस पर जा खड़े हुए।

वह तीन मंजिला मकान था, जहां बाउंड्री वॉल के साथ जुड़े गेट पर बस एक सांकल लगी थी, जो ऊपर की तरफ से यूं लगाई जाने वाली थी कि उसे देखकर इस बात का पता नहीं चल सकता था कि भीतर खड़े होकर लगाई गयी थी या बाहर से।

आस-पास और भीतर, हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, और पूरा मकान अंधेरे में डूबा दिखाई दे रहा था। जिसे देखकर लगता ही नहीं था कि भीतर उस वक्त कोई मौजूद होगा।

“ये इलाका तो बहुत महंगा होगा चौहान, है न?”

“जी मैडम।”

“और घर भी बहुत शानदार ढंग से बना हुआ है।”

“मैं समझा नहीं।”

“सोच रही हूं कि क्या ये प्रॉपर्टी अधिकारी या दीक्षित में से किसी की हो सकती है?”

“कैसे हो सकती है मैडम, चार पांच करोड़ से कम का तो क्या होगा ये घर, इतना पैसा उनके पास होता तो पुलिस की नौकरी क्यों कर रहे होते?”

“और ये नौकरी की ही कमाई हो तो?”

“आप मजाक कर रही हैं, या ये सोच रही है कि रिश्वत के बूते पर इतनी महंगी प्रॉपर्टी खड़ी कर ली होगी?”

“हां वही सोच रही हूं, चलो भीतर चलते हैं।”

कहते हुए उसने दरवाजे का कुंडा हटाया फिर दोनों कंपाउंड में प्रवेश कर गये।

सामने मौजूद लकड़ी का दरवाजा दूर से ही थोड़ा खुला दिखाई दे गया, जिसका मतलब बनता था कि भीतर कोई न कोई तो जरूरत मौजूद था।

गरिमा कॉलबेल पुश कर के किसी के वहां पहुंचने का इंतजार करने लगी।

कोई रिस्पांस नहीं मिला।

उसने फिर से बेल बजाई।

इस बार भी कोई जवाब नहीं मिला, तब उसने जेब से मोबाईल निकाला और उसका टॉर्च जला लिया, फिर दरवाजे को पूरा खोलते हुए भीतर रोशनी फेंकी तो हॉल एकदम खाली नजर आया, सिवाये थोड़ी दूरी पर आमने सामने रखे दो थ्री सीटर सोफा सेट के।

“कोई है?” उसने जोर से आवाज लगाई, जो खाली हॉल में गूंज सी उठी, मगर जवाब तो इस बार भी नहीं मिला। तब दोनों भीतर दाखिल होकर सोफों की तरफ बढ़े, मगर थोड़ा आगे जाते ही उन्हें ठिठक जाना पड़ा।

वहां फर्श पर खून फैला था।

इंस्पेक्टर सुशांत अधिकारी और सब इंस्पेक्टर दयानंद दीक्षित एक ही सोफे पर मरे पड़े थे। यूं पड़े थे जैसे हत्यारे ने कत्ल के बाद एक की लाश उठाकर दूसरे के ऊपर डाल दी हो।

“शिकारी खुद शिकार बन गये।” चौहान के मुंह से निकला।

“वंश का अंदेशा एकदम सही साबित हुआ।”

“कौन सा अंदेश मैडम?”

“भूल गये उसने कहा था कि अगर कातिल ये दोनों नहीं हैं, और हत्यारे के साथ इनकी मिली भगत थी, तो वह इन्हें भी जिंदा नहीं छोड़ने वाला था। और देख लो कुछ घंटों बाद ही उसकी बात सच साबित हो गयी।”

“आपको लगता है इनका कत्ल डॉक्टर बरनवाल के हत्यारे ने किया है?”

“और किसने किया होगा? कोई स्विच बोर्ड तलाशो और लाईट ऑन कर दो, ताकि यहां का मुआयना किया जा सके।”

सुनकर चौहान दरवाजे तक गया और बत्ती जला दी।

अधिकारी को माथे पर गोली मारी गयी थी, जबकि दीक्षित के पेट में, और वह अधिकारी के ऊपर बड़ी अस्वाभाविक मुद्रा में गिरा हुआ दिखाई दे रहा था।

तभी चौहान उसके पास आकर खड़ा हो गया।

“क्या हुआ होगा यहां?”

“मेरे ख्याल से तो पहले अधिकारी को गोली मारी गयी, जिसके तुरंत बाद दीक्षित ने उठकर भाग जाने या हत्यारे पर झपटने की कोशिश की थी, तभी उसने गोली चला दी, जिसके कारण ये अधिकारी के ऊपर जा गिरा।”

“बचाव क्यों नहीं कर पाये, आखिर ट्रेंड ऑफिसर थे?”

“क्योंकि कातिल ने बातचीत के दौरान एकदम से फायर कर दिया था। वह जरूर सामने वाले दूसरे सोफे पर बैठा था। ये भी हो सकता है कि उसने गन से कवर कर के दोनों को एक ही सोफे पर बैठने के लिए मजबूर कर दिया हो।”

“कोई एक बात करो, अगर दोनों यहां बैठकर उससे बातचीत कर रहे थे तो जाहिर है हत्यारा उनका जाना पहचाना था। कोई ऐसा शख्स जिससे उन्हें खतरा महसूस नहीं हुआ, या इन्हें लगता था कि उसपर आसानी से काबू पा लेंगे। जबकि जबरन बैठाये गये थे, तो कातिल कोई अंजान शख्स भी रहा हो सकता था।”

“मेरे ख्याल से तो जबरन ही बैठाये गये थे मैडम।”

“और गोली चलाने वाले हाथ किसके रहे होंगे?”

“कातिल के?”

गरिमा ने घूरकर उसे देखा।

“मेरा मतलब है डॉक्टर बरनवाल के हत्यारे का ही कारनामा जान पड़ता है। वंश साहब के कहे मुताबिक उसे अपना भेद खुलता दिखाई देने लगा था। इसलिए उसने अपने और पुलिस के बीच का पुल तोड़ दिया जिसपर से होकर हम उस तक पहुंच सकते थे।”

“हैरान कर देने वाली बात है कि वैसे किसी आदमी को हमारा महकमा साल भर का वक्त जाया करने के बाद भी खोज नहीं पाया।”

“खोज कहां चल रही थी मैडम? जब ये दोनों उससे मिले हुए थे तो जाहिर है अपराधी को तलाशने की नौटंकी भर करते रहे होंगे। हां उसे कानून के चंगुल से बचाने के लिए बहुतेरे पापड़ बेले होंगे।”

“नहीं वह तो बहुत आसान काम था, उसके लिए दोनों को कोई मेहनत नहीं करनी थी। जिस केस का इंवेस्टिगेशन ऑफिसर ही कातिल को बचाने में जुटा हुआ हो, उसपर किसी और का ध्यान जाना कतई मुमकिन नहीं होता। क्योंकि बाकी लोग तो उसके ऑर्डर फॉलो कर रहे होते हैं। लेकिन कहानी अभी भी पल्ले नहीं पड़ रही। सबकुछ वेल प्लांड और बड़ा ही अजीब दिखाई देता है। एक साल पहले डॉक्टर बरनवाल का कत्ल किया जाता है, फिर इंवेस्टिगेशन ऑफिसर उसके बेटे और वाईफ पर दिल्ली से वापिस पटना लौट जाने के लिए दबाव बनाते हैं। उसके बाद विश्वजीत अपनी मां के साथ फिर से दिल्ली आता है और एक अजीबो गरीब कुचक्र में फंसने के बाद प्लॉन कर के दोनों को बेनकाब कर देता है। फिर आनन फानन में कविता के कत्ल के लिए लल्लन को भेजा जाता है, और डॉक्टर का कातिल यहां पहुंचकर इन दोनों की हत्या कर देता है, ये सब कुछ ज्यादा ही फॉस्ट नहीं हो गया। बल्कि गौर से देखो तो तारीख बदलने से कहीं पहले घटित हो गया।”

“आपको लगता है कातिल विश्वजीत है?”

“हो सकता है, अगर बदला लेने की कोशिश में हो तो क्यों नहीं हो सकता?”

“उसने अगर किसी का कत्ल करना ही होता मैडम तो सबसे पहले अपने बाप के हत्यारे का करता, ना कि उसे सपोर्ट करने वाले पुलिस ऑफिसर्स का।”

“अब हत्यारे का भी करेगा, क्योंकि इन दोनों को खत्म करने से पहले पक्का उसका नाम उगलवाने में कामयाब हो गया होगा। मतलब कल को अगर केस से रिलेटेड लोगों में से किसी का कत्ल हो जाता है, तो हम मान लेंगे कि वही शख्स डॉक्टर बरनवाल का हत्यारा था।”

“लल्लन को कविता का कत्ल करने उसने तो नहीं भेजा था मैडम?”

“नहीं भेजा था, क्योंकि उससे उसे कोई खतरा नहीं था। लेकिन इनको बराबर था, खास करके अधिकारी को। कविता जुबान खोल देती तो पहले से ही सवालों के घेरे में उलझा ये उससे कहीं बड़ी मुसीबत में फंस जाता।”

“विद सॉरी कहता हूं मैडम कि विश्वजीत मुझे कहीं से भी कातिल नहीं दिखाई देता। उसने बदला लेना भी था तो चुपचाप दिल्ली आकर इन दोनों को खत्म करता, इनके मुंह से हत्यारे का नाम उगलवाकर उसे भी खत्म कर देता, और वापिस पटना लौट जाता। तब किसी का ध्यान सपने में भी इस बात की तरफ नहीं जाना था, कि इनके कत्ल का कोई रिश्ता डॉक्टर बरनवाल के साथ जुड़ा हो सकता है, यानि उसके बच निकलने के चांसेज पूरे पूरे थे।”

“तुम बात को ऐसे समझो कि विश्वजीत को इन दोनों ने जानबूझकर अमरजीत की हत्या के इल्जाम में लपेटने की कोशिश नहीं की थी, बल्कि वह उसी तरह इनकी गिरफ्त में पहुंचा था, जैसा कि रिपोर्ट में लिखा गया है। फिर उसका वकील उससे थाने पहुंचकर मिला, और जब ये देखा कि पुलिस के हाथों लड़के की दुर्गति हो रही है, या आगे हो सकती थी, तो उसने एक छोटी सी प्लानिंग की और विश्वजीत को समझा बुझाकर वहां से निकल गया। आगे लड़के ने अमरजीत की हत्या के साथ साथ कुछ और जुर्म भी कबूल कर लिए, मगर उसका सच में जेल जाने का कोई इरादा तो था नहीं, इसलिए अदालत में अधिकारी और दीक्षित पर उंगली उठाना उसकी मजबूरी बन गयी, नहीं उठाता, उन्हें एक्सपोज नहीं करता तो अमरजीत के कत्ल के इल्जाम में उसने फंसकर रहना था।”

“आप भूल रही हैं मैडम कि वैसा उसने एक ऑडियो क्लिप के जरिये किया था। अगर इन दोनों ने सच में उन्हें दिल्ली से भगाया नहीं था तो वह क्लिप वजूद में कैसे आ गयी?”

“हां बस यही वह इकलौती बात है जो पूरी थ्योरी का दम निकाले दे रही है - कहकर उसने पूछा - जब अपने दिमाग से एक्सरसाईज करा ही रहे हो तो इसी तरह किसी संभावित कातिल का भी नाम बता दो।”

“बता सकता हूं।”

“वेरी गुड।”

“मेरे ख्याल से कविता की रेप वाली कहानी झूठी है।”

“यानि कातिल वही है?”

“हो सकता है। साल भर पहले उसने बरनवाल को खत्म किया और इंवेस्टिगेशन ऑफिसर को अपनी तरफ कर के साफ बच गयी। यानि लल्लन को उसके कत्ल के लिए इसलिए भेजा गया था क्योंकि वह बरनवाल की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार हो जाती तो अधिकारी और दीक्षित का नाम सामने आकर रहना था। लल्लन अपने मकसद में फेल हो गया, लेकिन कविता ने कामयाब वार किया और दोनों को खत्म कर दिया, क्योंकि इनकी गिरफ्तारी के बाद उसका भांडा फूट जाना तय था। यानि दोनों पार्टियों को एक दूसरे से खतरा था। बल्कि इसलिए भी खत्म कर दिया हो सकता है, क्योंकि उसे मालूम पड़ गया था कि ये दोनों उसकी जान लेना चाहते थे।”

“कत्ल किया कब होगा उसने?”

“जब हम उसके फ्लैट पर लल्लन के खिलाफ ट्रैप लगाये बैठे थे।”

“ठीक है कल मालूम करो कि हेडक्वार्टर से निकलकर वह अपने बाप के घर कितने बजे पहुंची थी, अगर ज्यादा वक्त लगाया होगा तो उसपर शक करने की एक वजह तो हमें मिल ही जायेगी।”

“ज्यादा वक्त कहां लगना था मैडम, उसने बस थोड़ा सा अपना रूट चेंज भर करना था। यानि हैडक्वार्टर से निकलकर घर जाने से पहले यहां का फेरा लगाना था। इस तरह से देखें तो उसने महज चार-पांच किलोमीटर का एक्स्ट्रा सफर किया था। जिसमें लगे वक्त का ठीकरा दिल्ली की ट्रैफिक पर बड़ी आसानी से फोड़ा जा सकता है।”

“हेडक्वार्टर से मेरी आंखों के सामने एक ऑटो में सवार हुई थी वह, जिसका नंबर गेट पर लगे कैमरों की फुटेज से हासिल हो जायेगा। फिर ये जानने में कितना वक्त लगेगा कि वह हेडक्वार्टर से सीधा मुनिरका गयी थी, या पहले साकेत....” - कहती कहती वह क्षण भर के लिए खामोश हो गयी, फिर वहां फैले खून और लाश पर एक नई नजर डालकर बोली - नहीं उससे कुछ हासिल नहीं होगा, क्योंकि कत्ल हुए उतना वक्त गुजरा नहीं दिखाई दे रहा। हैरानी की बात है कि इस तरफ ध्यान दिये बिना हम तर्क वितर्क करते जा रहे हैं।”

“कब हुआ होगा?”

“ज्यादा से ज्यादा घंटा डेढ़ घंटा पहले।”

“ये भी तो हो सकता है मैडम कि वह फ्लैट पर कुछ घंटे बिताकर यहां कत्ल करने पहुंच गयी हो?”

“होने को कुछ भी हुआ हो सकता है, लेकिन उसका पति वापिस लौट आया है, तो ऐसे में रात को बिना उसकी नॉलेज में आये बाहर जा पाना संभव नहीं दिखता। अब तुम फॉरेंसिक डिपार्टमेंट को कॉल कर के यहां पहुंचने को बोलो, मैं वंश को करती हूं।”

“पत्रकार साहब को किसलिए मैडम?”

“पता तो लगे कि उसकी डिवाईस में कुछ रिकॉर्ड हुआ भी था या नहीं, और हुआ था तो क्या हुआ था? वह हमारे कितने काम का है?”

तत्पश्चात दोनों अपने अपने मोबाईल पर लग गये।

गरिमा ने वंश को कॉल लगाया।

“हैलो।”

“कुछ हासिल हुआ वंश साहब?”

“जी हां, मैं बस आपको इत्तिला करने ही जा रहा था कि आपकी कॉल आ गयी।”

“तभी कहूं मेरी बाईं आंख इतनी जोर जोर से क्यों फड़क रही थी।”

वंश हंसा।

“क्या हाथ लगा?”

“बहुत कुछ, इतना कि उसके दम पर आप चाहें तो अपने दोनों सस्पेंडेड ऑफिसर्स को अभी के अभी गिरफ्तार कर सकती हैं। उन्हें मुंह खोलने को मजबूर कर सकती हैं, बल्कि जेल की हवा भी खिला सकती हैं।”

“नहीं अब कुछ नहीं कर सकती।”

“क्यों?”

“मर गये।”

“व्हॉट?”

“मैं उनकी लाश के पास ही खड़ी हूं।”

“ओह, बहुत बुरा हुआ।”

“इतना अफसोस किसलिए? आपको तो खुश होना चाहिए कि आखिरकार आपका कहा ही सच साबित हो गया।”

“किसी का कत्ल खुश होने जैसी बात कहां है मैडम?”

“अभी ऑफिस में ही हैं?”

“हां, लेकिन निकल रहा हूं यहां से।”

“मुलकात हो सकती है?”

“कहां?”

“जहां भी आप ठीक समझें।”

“मेरे फ्लैट पर?”

“डन, और रिकॉर्डिंग किसी ऐसी चीज में कॉपी कर के लाईयेगा जिसे सुना जा सके।”

“डोंट वरी, वह मैं पहले ही कर चुका हूं - कहकर उसने पूछा - कब तक पहुंच जायेंगी?”

“दो घंटे बाद, अगर आपको कोई असुविधा न हो, वरना यहां की जिम्मेदारी चौहान को सौंपकर अभी निकल लेती हूं।”

“नहीं मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है, बेशक सुबह के चार बजे कॉलबेल बजा लीजिएगा।”

“थैंक यू।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।

रात तीन बजे के करीब दोनों पुलिस ऑफिसर वंश वशिष्ठ के फ्लैट पर पहुंचे, जो कि दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में स्थित था। गरिमा एक बार पहले भी वहां जा चुकी थी, इसलिए स्ट्रीट एड्रेस तलाशने में वक्त जाया नहीं करना पड़ा।

वंश उनके ही इंतजार में जाग रहा था।

तीनों ड्राईंगरूम में जाकर बैठ गये, फिर लैपटॉप में एक पैन ड्राईव इंसर्ट कर के वह ऑडियो क्लिप प्ले कर दी गयी, जो उसने साकेत वाले घर में छोड़ी गयी डिवाईस के जरिये रिकॉर्ड किया था।

गरिमा और चौहान बड़े ही ध्यान से सुनने लगे। जैसे जैसे रिकॉर्डिंग आगे बढ़ती गयी, वैसे वैसे दोनों की आंखों में हैरत के भाव गहरे होते चले गये। मानो जो कुछ सुनाई दे रहा था उसपर यकीन ही न कर पा रहे हों।

आखिरकार क्लिप पूरी हो गयी।

“रिकॉर्डिंग बेहद चौंकाने वाली है वंश, लेकिन असल में ये बस अधिकारी और दीक्षित के किरदारों की असलियत भर बयान करती दिखाई दे रही है। ना कि इसे सुनकर डॉक्टर बरनवाल के हत्यारे के बारे में कोई अंदाजा लगाया जा सकता है - कहकर उसने पूछा - आपकी समझ में आया कुछ?”

“अगर दोनों ऑफिसर्स का कत्ल नहीं हो गया होता मैडम, तो मैं यही कहता कि डॉक्टर बरनवाल के कातिल वही थे, मगर अभी के हालात में तो साफ दिख रहा है कि हत्यारा कोई और ही है।”

“चौहान को कविता कुमावत पर शक है, मुझे भी है और वह शक मैं पहले ही आपके सामने जाहिर कर चुकी हूं। आपको क्या लगता है? जवाब इस रिकॉर्डिंग को ध्यान में रखकर दीजिए। ये सोचकर भी कि पूरे मामले में अभी तक वही एक शख्सियत नजर आ रही है जो डॉक्टर के करीब थी। जो अधिकारी और दीक्षित को भी अच्छी तरह से जानती थी।”

“आपको क्या लगता है, बरनवाल को खत्म करने के बाद मौके पर पहुंचे अधिकारी से उसने कहा होगा कि वह जेल नहीं जाना चाहती इसलिए उसे बचा लें, और उन दोनों ने यस मैम, कहकर वह सब कर दिखाया जो कि वह चाहती थी? ऐसा भी कहीं होता है।”

“मोटी रिश्वत हासिल हो रही हो तो ईमान किसी का भी खराब हो सकता है, फिर कविता के मामले में तो हम सैक्सुअल फेवर के बारे में भी सोच सकते हैं। मतलब उस दिन अगर दोनों के बीच संबंध सच में बने थे तो वह अधिकारी ने जबरदस्ती नहीं बनाये, बल्कि फेवर के बदले फेवर हासिल किया था।”

“महज सैक्सुअल फेवर के लिए उसने कविता की तरफ से आंख बंद कर ली होती मैडम, तो आज भी उसका दैहिक शोषण कर रहा होता। जबकि उस रोज के बाद उसने लड़की को कांटेक्ट तक करने की कोशिश नहीं की।”

“आपको क्या पता कि नहीं की?”

“कविता ने तो इंकार ही किया था।”

“उसे सच बोलने की कोई सनद हासिल है?”

“नहीं है, लेकिन बात फिर भी जम नहीं रही, क्योंकि कविता के पास उसे देने के लिए कोई मोटी रकम नहीं रही हो सकती। और मामले में जितना उलट फेर किया गया दिखाई दे रहा है, उतना करने के लिए तो चालीस-पचास लाख भी कम पड़ जाते।”

“तो जो किया वह बस कविता को हासिल करने के लिए कर दिखाया।”

“दीक्षित को क्या मिला?”

“वही जो अधिकारी को मिला होगा।”

वंश का सिर इंकार में हिलने लगा, “नहीं ये मामला इतना आसान नहीं है गरिमा जी, डॉक्टर के कत्ल के पीछे यकीनन कोई गहरा राज छिपा हुआ है, जिसकी असलियत का पता लगाना आसान नहीं होगा।”

“कविता को कातिल मान लें तो राज जैसा कुछ भी नहीं बचता।”

“वह भला डॉक्टर का कत्ल क्यों करेगी?”

“बहुतेरी वजहें हो सकती हैं। जैसे कि रेप, किसी दिन डॉक्टर ने उसे अपने केबिन में रोक लिया और मनमानी कर डाली। जिसके बाद वह भीतर ही भीतर सुलगती रही और एक रात मौका पाकर उसे खत्म कर दिया। बल्कि यही बात रही होगी, तभी किसी तरह अधिकारी को अपनी आप बीती सुनाकर केस मैनीपुलेट करने के लिए तैयार कर लिया होगा।”

“आपके दोनों ऑफिसर्स किसी की आपबीती सुनकर पसीज जाने वालों में से नहीं थे मैडम। और कविता के लिए डॉक्टर की हत्या करने से आसान तो ये था कि थाने जाकर रेप की कंप्लेन दर्ज करा देती।”

“नहीं करा सकती थी, क्योंकि कौशल के साथ उसका रिश्ता हो चुका था, जो कि उसकी कंप्लेन के बाद हर हाल में टूटकर रहना था, और वैसा होने देना लड़की को मंजूर नहीं था।”

“लेकिन कत्ल करना मंजूर हो गया, जो उसे जेल की हवा खिला सकता था?”

“क्या पता उसे लगा हो कि डॉक्टर का कत्ल कर के वह साफ बच जायेगी, आखिर हर अपराधी यही सोचकर अपराध करता है कि वह बहुत सयाना है, पुलिस चाहकर भी उसे नहीं पकड़ पायेगी।”

“कहीं ऐसा तो नहीं था मैडम - चौहान बोला - कि कविता ने जो किया वह अधिकारी को विश्वास में लेकर किया हो? मतलब दोनों पहले से एक दूसरे के काफी करीब थे। उसी दौरान डॉक्टर ने कविता के साथ जबरदस्ती कर डाली। जिसके बाद लड़की ने बदले की बात कही तो अधिकारी ने बोल दिया कि जो करना चाहे कर सकती थी, वह उसका कुछ भी नहीं बिगड़ने देगा।”

“नहीं वैसा होता तो बदला लेने वाले हाथ अधिकारी के होते, या फिर दोनों के होते, और उनके संबंध आगे भी बने रहे होते।”

“कम से कम एक बात ऐसी जरूर है मैडम जिससे पता लगता है कि लड़की अभी भी दोनों के कांटेक्ट में थी, या वह दोनों उसपर नजर बनाये हुए थे।”

“कौन सी बात?”

“अधिकारी और दीक्षित कविता का करेंट एड्रेस जानते थे, जबकि साल भर पहले वह अपने पेरेंट्स के साथ रहती थी, तब तक उसके नये फ्लैट का कोई वजूद नहीं था, क्योंकि वहां तो उसने शादी के बाद रहना शुरू किया होगा।”

“एड्रेस पता लगा लेना कौन सी बड़ी बात थी चौहान?”

“बड़ी बात नहीं थी, लेकिन लगाया कब? इस रिकॉर्डिंग को सुनकर तो लगता है कि कविता के कत्ल का ख्याल अचानक उनके मन में आया था, और उसके बाद लल्लन को बुलाकर कविता को उसका एड्रेस दे दिया गया। इसका मतलब तो यही बनता है न कि उन्हें पहले से मालूम था कि लड़की कहां रहती है?”

“बात तो ठीक है।”

“उसका एड्रेस दोनों को मालूम होने की दसियों वजहें हो सकती हैं मैडम, ना कि इसलिए मालूम था कि वह उनके कांटेक्ट में थी - वंश वशिष्ठ बोला - फिर रिकॉर्डिंग में एक बार भी इस बात का जिक्र नहीं आया है कि डॉक्टर का कत्ल कविता ने ही किया था। दोनों ऑफिसर उससे डरे हुए थे तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वह उनका कोई राज जानती थी। और सबसे बड़ी बात ये कि कत्ल अगर कविता ने किया होता तो उससे डरने की उन्हें कोई जरूरत नहीं थी, वह क्या चाहकर भी हत्या की होने की बात अपनी जुबान पर ला सकती थी? मेरा जवाब है नहीं।”

“लीजिए आपने तो मुंह पर ढक्कन लगा दिया।” गरिमा हंसी।

“बात तर्क की कसौटी पर एकदम खरी उतरती है मैडम, भला डॉक्टर के कातिल से डरने की उन्हें क्या जरूरत थी? मगर उससे डरने की जरूरत बराबर थी जिसके साथ कभी रेप किया था, क्योंकि दोनों को फंसा देखकर वह अपना मुंह फाड़ सकती थी।”

“अरे कहा तो हमारे मुंह पर ढक्कन लगा चुके हैं आप, इसलिए कविता को थोड़ी देर के लिए भूल जाते हैं। अब बात करते हैं मनसुख और कौशल्या की, कोई अंदाजा कि वह दोनों कौन हो सकते हैं, या अधिकारी उनकी हत्या की प्लॉनिंग क्यों कर रहा था?”

“सिर्फ प्लॉनिंग ही नहीं कर रहा था मैडम, बल्कि अपने प्लॉन को अंजाम तक पहुंचा भी चुका था।”

“मतलब?”

“दोनों खत्म।”

“कब, कहां?”

“रात ग्यारह बजे के करीब अपने घर में मरे पाये गये थे। इत्तेफाक से एक पड़ोसी मनसुख से ये कहने पहुंच गया कि वह अपनी कार थोड़ा साईड में कर ले क्योंकि उसकी वजह से वह अपनी गाड़ी घर तक नहीं ले जा पा रहा था। दरवाजा खुला था और कॉलबेल के जवाब में कोई बाहर नहीं आया, तो पड़ोसी अंदर चला गया जहां उसका सामना दोनों की लाशों से हुआ।”

“इतनी जल्दी कैसे पता लग गया आपको?”

“धंधा ही ऐसा है मैडम, हालांकि खबर हमारे एक क्राईम रिपोर्टर को लगी थी, मैंने तो जो देखा टीवी पर उसकी रिपोर्टिंग में देखा। और इतना बड़ा इत्तेफाक तो नहीं ही हुआ हो सकता कि मरने वाले मनसुख और कौशल्या कोई दूसरे रहे हों।”

“चांसेज तो कम ही हैं, बाकी हम पता लगाने की कोशिश करेंगे कि उनका अधिकारी या दीक्षित से कोई लिंक था या नहीं, और था तो किस तरह का था।”

“या ये कि डॉक्टर बरनवाल के कत्ल के साथ उनका क्या लेना देना था, क्योंकि कहानी जो भी हो उसकी शुरूआत तो वहीं से हुई होगी, तभी तो अधिकारी ने उन दोनों को खत्म कर दिया।”

“ऐसा क्या जानते रहे होंगे वे लोग डॉक्टर की हत्या के बारे में?”

“बिना कोई जांच पड़ताल किये क्या कहा जा सकता है मैडम।”

“कुल मिलाकर हमें बस डॉक्टर के कातिल को खोजना है, जिसके बाद सारे राज खुल जायेंगे, है न वंश साहब?”

“लगता तो यही है।”

“लेकिन काम मुश्किल है।”

“पहले जितना नहीं, डॉक्टर का कत्ल एक साल पहले किया गया था इसलिए खोजना मुश्किल दिख रहा था, लेकिन अधिकारी और दीक्षित के कत्ल के बाद आसान हो गया है, कोई न कोई सूत्र बरामद होकर रहेगा, जो आखिरकार उसकी पोल खोल देगा। ये भी हो सकता है कि वह दोनों से कांटेक्ट कर के उनसे मिलने साकेत पहुंचा हो, अगर वैसा था तो उसके बारे में पता लगा लेना पुलिस के लिए कोई बड़ी बात नहीं होगी।”

“थोड़ी देर पहले तो आप इस काम को बहुत मुश्किल करार दे रहे थे?”

“हां दे रहा था, क्योंकि तब मेरा ध्यान सिर्फ डॉक्टर के कत्ल पर अटका हुआ था, मगर अब वैसा नहीं है।”

“एक आखिरी सवाल का जवाब और दे दीजिए, फिर हम यहां से चले जायेंगे।”

“मेरी तरफ से पूरी रात बैठी रहें मैडम, क्या फर्क पड़ता है - वह हंसता हुआ बोला - पूछिये क्या जानना चाहती हैं?”

“क्या एक परसेंट को भी आपको ये लगता है कि अपने बाप का कत्ल विश्वजीत ने किया हो सकता है?”

“हो सकता था अगर उसने अधिकारी और दीक्षित को कोर्ट में बेनकाब न कर दिया होता, भला अपने पैरों पर कुल्हाड़ी कौन मारना चाहेगा? बल्कि जिस वक्त अधिकारी ने उसे गिरफ्तार किया उसी वक्त अपनी पहचान उजागर कर देता, जिसके बाद उसकी और दीक्षित की मजाल नहीं हुई होती विश्वजीत को अमरजीत की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार करने की, भले ही कत्ल उसी ने क्यों न कर दिया होता।”

“लेकिन अधिकारी और दीक्षित की हत्या उसने बराबर की हो सकती है, बदला लेने के लिए, क्योंकि वह जानता था कि उसके बाप की हत्या का राज उन्हीं के सीने में दफ्न है।”

“अमरजीत को क्यों मार दिया?”

“क्योंकि डॉक्टर के कत्ल में वह भी शामिल था।”

“पेड़ की शाखाओं पर वार क्यों कर रहा है, उसे जड़ समेत उखाड़ क्यों नहीं फेंका, मतलब सीधा हत्यारे को ही क्यों नहीं खत्म कर दिया?”

“यही सवाल कुछ घंटों पहले चौहान ने भी किया था, जवाब ये है कि वह कातिल के बारे में नहीं जानता था, लेकिन अब जान गया हो सकता है। क्योंकि अधिकारी के कत्ल से पहले ये न दरयाफ्त किया हो कि उसके बाप का कातिल कौन था, समझ में आने वाली बात नहीं है - कहकर उसने पूछा - अब क्या कहते हैं?”

“वही जो आप सुनना चाहती हैं, हां इस तरह से हत्यारा विश्वजीत भी हो सकता है, अगर है तो मुझे यकीन है पुलिस उसका पता लगा ही लेगी। संगम विहार से साकेत का सफर उसने हवा में उड़कर तो नहीं पूरा कर लिया होगा।”

“नहीं, कैसे कर सकता था? - कहती हुई वह उठ खड़ी हुई - अब हम चलते हैं, कुछ नया पता लग जाये तो खबर कीजिएगा। हमें कुछ मालूम पड़ा तो आपको बतायेंगे।”

“मैं जरूर करूंगा मैडम, थैंक यू।”

तत्पश्चात दोनों उठकर वहां से बाहर निकल गये।