रश्मि एकदम हड़बड़ाकर उठ बैठी।

कमरे में अंधेरा छाया हुआ था। हर तरफ सांय-सांय करती खामोशी।
पलंग पर बैठी वह आंखें फाड़-फाड़कर अपने चारों तरफ छाए अंधेरे को देखने लगी। किसी वस्तु के गिरने की तेज धमाके जैसी आवाज ने उसकी निद्रा तोड़ दी थी।
एक अजीब-सी दहशत उसे अपने मन-मस्तिष्क पर हावी होती-सी महसूस हुई—टटोलकर उसने देखा—विशेष पलंग पर सोया पड़ा था।
उसे कुछ शान्ति-सी महसूस हुई।
निद्रा टूट जाने की वजह की तलाश में भटक रहे मन-मस्तिष्क को एकाएक ही यह अहसास हुआ कि कमरे में कोई अजनबी है—इस विचार मात्र से रश्मि रोमांचित हो उठी।
कमरे में किसी तीसरे व्यक्ति के सांस लेने की आवाज गूंज रही थी।
रश्मि के मस्तक पर पसीना उभर आया। जिस्म के रोएं खड़े हो गए—उसे यह यकीन होता चला गया कि कमरे में कोई है। डर ने पूरी मजबूती के साथ उसके दिलो-दिमाग को कस लिया। सच बात तो यह है कि आतंक की अधिकता के कारण उसकी हिम्मत पलंग से स्विच तक जाने की न पड़ रही थी।
साहस करके वह फर्श पर खड़ी हो गई। फिर कमरे में छाए अंधेरे को घूरती हुई स्विच की तरफ बढ़ी और अभी मुश्किल से दो या तीन कदम ही चली थी कि दृष्टि कमरे के पीछे की तरफ खुलने वाली खिड़की पर पड़ी।
अनायास ही रश्मि के कण्ठ से एक चीख उबल पड़ी।
बड़ी ही डरावनी और हृदयविदारक इस चीख ने सन्नाटे को झंझोड़कर रख दिया—अगले ही पल अंधेरे में विशेष की आवाज गूंजी— "क...क्या हुआ मम्मी, तुम कहां हो?"
मगर रश्मि को तो मानो होश ही न था।
विशेष की आवाज जैसे उसने सुनी ही न थी। अपने स्थान पर जड़वत्त्-सी खड़ी वह पथराई-सी आंखों से खिड़की की तरफ देख रही थी। वहां एक भयानक शक्ल नजर आ रही थी।
उसी चेहरे को देखकर रश्मि के कण्ठ से चीख निकली थी।
चेहरा बुरी तरह जला हुआ था। वह अपनी खूंखार आंखों से कमरे में ही देख रहा था। बुरी तरह डरे हुए अन्दाज में रश्मि चीख पड़ी—क....कौन है?"
आतंकित रश्मि पागलों की तरह स्विच की तरफ भागी और अगले ही पल उसने स्विच ऑन कर दिया—कमरा प्रकाश से भर गया।
खिड़की के उस पार से जला हुआ चेहरा गायब।
हक्का-बक्का-सा विशेष पलंग पर बैठा नजर आया।
रश्मि दौड़कर उसकी तरफ भागी, परन्तु पलंग पर पहुंचते-पहुंचते उसने खिड़की के शीशे का कटा हुआ भाग देख लिया था—शीशा काटने वाले हीरे से काटा गया चार इंच का वर्गाकार भाग—बड़ी तेजी से रश्मि के जेहन में यह विचार कौंधा कि अगर मेरी नींद न खुल जाती तो वह डरावने चेहरे वाला अन्दर से बन्द खिड़की की चिटकनी खोल लेता।
"क...क्या बात है मम्मी, यहां कौन है?" विशेष की आवाज कांप रही थी।
"प...पता नहीं बेटे!" कहती हुई रश्मि ने विशेष को बांहों में भर लिया और उसी क्षण नजरें कमरे के फर्श पर बिखरे कांच पर पड़ीं—वह खिड़की के कटे टुकड़े का कांच था।
रश्मि समझ गई कि इस टुकड़े के टूटने की खनक से ही उसकी नींद टूटी थी—वह बुरी तरह डर गई थी, बोला— चलो....वीशू।"
"क...कहां मम्मी?"
" न...नीचे, मांजी के पास। कहने के साथ ही विशेष की कलाई पकड़कर वह दरवाजे की तरफ बढ़ी।
कांपते हाथों से ही उसने दरवाजे की चिटकनी खोली और दरवाजा खोलते ही उसके हलक से पुन: चीख उबली।
इस बार नन्हां विशेष भी बुरी तरह चीख पड़ा था।
विशेष को संभाले रश्मि पीछे हट गई।
भयानक, डरावने, जले हुए और वीभत्स चेहरे का मालिक दरवाजे के बीचो-बीच खड़ा अपनी खूंखार और रक्तिम आंखों से उन्हें घूर रहा था। रश्मि अपने आतंक पर अभी काबू भी नहीं कर पाई थी कि एक लम्बे कदम के साथ यह कमरे में आ गया।
दहशत के कारण विशेष ने अपना चेहरा रश्मि के अंक में छुपा लिया था।
जिस वक्त डरावने चेहरे वाला दरवाजा बन्द करने के बाद अन्दर से चिटकनी चढ़ा रहा था, तब रश्मि चीख पड़ी— क......कौन हो
तुम....क....क्या चाहते हो?"
चिटकनी बन्द करने के बाद वह घूमता हुआ बोला— म.....मेरा नाम रूपेश है।"
"रूपेश?"
"वही, जिसे उसने जीवित जलाने की कोशिश की थी—देख रही हो यह जला चेहरा—उसी हरामजादे की करतूत है ये—वह तुम्हारा पति बन बैठा है—हुंह—एक विधवा का पति।”
" व...वह मेरा पति नहीं है।" भयभीत रश्मि कह उठी।
"देख रहा हूं।" रूपेश के कण्ठ से गुर्राहट-सी निकली—"तुमने सफेद धोती पहन रखी है—मस्तक पर बिंदी है, न मांग में सिंदूर—न पैरों में बिछुए हैं, न कलाइयों में चूड़ियां—फिर भी पुलिस उसे तुम्हारा पति कहती है और तुम्हारी इस वेशभूषा को देखकर ही मैंने उसे विधवा का पति कहा है।"
"त...तुम यहां क्यों आए हो?"
रूपेश दांत भींचकर गुर्राया— हरामजादे की बोटी-बोटी नोच डालने के लिए।"
"म...मगर" विशेष को लिए पीछे हटती हुई वह बोली— इस वक्त वह यहां नहीं है।"
"मैं जानता हूं।"
“फ.....फिर तुम यहां? मेरे कमरे में क्यों आए हो?"
"सुना है कि इस लड़के से वह बहुत प्यार करता है।"
"न...नहीँ।" विशेष को अपने से लिपटाए वह हलक फाड़कर चिल्ला उठी—जबकि उसकी तरफ बढ़ता हुआ रूपेश बड़ी ही खतरनाक मुस्कराहट के साथ कहता चला गया—“मैं इसे यहां से ले जाऊंगा, और फिर जहां मैं उस कुत्ते को बुलाऊंगा, वहां घुटनों के बल रेंगते हुए उसे आना होगा।"
"त...तुम्हें गलतफहमी है। वास्तव में वह वीशू से बिल्कुल प्यार नहीं करता है—इसे प्यार करने का नाटक करके उसने सिर्फ इसे अपने मोहजाल में फंसाया था—केवल इस घर की चारदीवारी में शरण लेने के लिए—वह हत्यारा है, पुलिस से बचने मात्र के लिए वह सर्वेश बना है।"
तभी कमरे के बन्द दरवाजे को किसी ने जोर से खटखटाया।
रूपेश ने बुरी तरह चौंककर पीछे देखा, दरवाजा खटखटाने के साथ ही बूढ़ी मां की आवाज भी सुनाई दी—रश्मि और विशेष की चीखों ने शायद उसे जगा दिया था।
उचित अवसर जानकर रश्मि दरवाजे की तरफ लपकी।
रूपेश ने बिजली की-सी फुर्ती के साथ जेब से रिवॉल्वर निकालकर दस्ते का वार रश्मि की कनपटी पर किया—वार इतना ' सैट' था कि एक चीख के साथ रश्मि वहीं ढेर हो गई।
"म...मम्मी मम्मी ।" चिल्लाता हुआ विशेष उसे झंझोड़ने लगा।
हड़बड़ाए-से रूपेश ने एक वार उसकी कनपटी पर भी किया—एक चीख के साथ विशेष भी बेहोश हो गया, दरवाजा पीटने के साथ ही बूढ़ी मां ज्यादा जोर से चिल्लाने लगी थी—बौखलाए हुए रूपेश ने रिवॉल्वर जेब में रखा।
एक कागज निकालकर कमरे के फर्श पर फेंकने के बाद विशेष के बेहोश जिस्म को उठाकर उसने कन्धे पर लादा और खिड़की की तरफ दौड़ा।
अगले कुछ ही पलों बाद वह खिड़की के समीप से गुजर रहे ' रेन वाटर पाइप' के सहारे तेजी के साथ उतरता चला जा रहा था।
¶¶
"तू...तू हत्यारा है—कमीने....पापी....मैं तुझे कच्चा चबा जाऊंगी।" दोनों हाथों से युवक का गिरेबान पकड़े उसे झंझोड़ती हुई रश्मि चीखे चली जा रही थी— बहुत बड़ा जालसाज है तू—पुलिस ठीक ही कहती थी—तूने मुझे ठग लिया है—मैं लुट गई, मेरा बच्चा भी तूने मुझसे छीन लिया—मेरा वीशू....मेरा बेटा लौटाकर दे मुझे।"
इस खबर से युवक को भी शॉक-"सा लगा था कि रूपेश विशेष को ले गया है। अवाक् और जड़वत्-सा खड़ा रह गया था वह—बूढ़ी मां एक तरफ पड़ी दहाड़े मार-मारकर रो रही थी।
 बोलता क्यों नहीं हत्यारे—बोल, मैं कहती हूं बोल कि मेरे वीशू को लाएगा या नहीं?" पागलों की तरह चीखती हुई रश्मि ने उसे झंझोड़ा, मगर तब भी युवक की तंद्रा भंग न हुई।
रश्मि पुन: चीखी—"अब बोलता क्यों नहीं, बहुरूपिए—अब कह कि तूने किसी रूबी की हत्या नहीं की थी—किसी रूपेश को जिन्दा नहीं जलाया था तूने।"
"प्लीज रश्मि, ' शाही कोबरा' की साजिश को समझने की कोशिश करो—मैंने कहा था कि वह कोई भी चाल चल सकता है, मेरे और तुम्हारे बीच दरार पैदा करने वाली चाल भी—उसने वही किया है—छिड़ी हुई जंग में मेरे द्वारा किए गए हमलों से वह चीखता गया है—मैं उनके बहुत-से रहस्य जान चुका हूं, रश्मि—मुझ पर उनका वश न चला तो अब वीशू को उठा ले गए हैं—केवल इसीलिए कि कहीं मैं सारे राज पुलिस को न बता हूं।"
" म...मैं कुछ नहीं जानती—मुझे वीशू चाहिए—वीशू को वे तभी छोड़ेंगे जब तू खुद को उनके हवाले कर देगा—मगर वीशू तेरा लगता ही कौन है? उसकी जान बचाने के लिए तू भला खुद को उनके हवाले क्यों करने लगा?"
जाने क्यों युवक की आंखें भर आई थीं, बोला—“मैं मांजी की कसम खाकर कहता हूं रश्मि कि खुद अपनी जान दे दूंगा, मगर वीशू को कुछ नहीं होने दूंगा।"
रश्मि अवाक्-सी युवक को देखती रह गई।
"मैं वापस आ सकूं या न आ सकूं, रश्मि—मगर ये वादा रहा कि वीशू यहां जरूर आएगा—मैं उसका बाल भी बांका नहीं होने दूंगा, मगर...।"
"मगर?" आग का एक भभका-सा रश्मि ने उसकी तरफ फेंका।
"जरा शांति के साथ रूपेश द्वारा छोड़े गए इस पत्र को पढ़ लो।"
रश्मि ने पत्र लिया, पढ़ा—
"हम विशेष को ले जा रहे हैं—अगर तुमने पुलिस को कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच या ' शाही कोबरा' के हैडक्वार्टर के बारे में हल्की-सी भी जानकारी देने की कोशिश की तो हम विशेष को मार डालेंगे—अगर तुम्हें विशेष को जीवित पाना है तो तुरन्त ' मुगल महल' में आ जाओ।
' शाही कोबरा' ।"
पत्र पढ़कर रश्मि के रोंगटे खड़े हो गए। युवक ने कहा— अब तुम समझ सकती हो कि रूपेश का सम्बन्ध मेरे द्वारा किए गए किसी हत्याकाण्ड से नहीं, बल्कि ' शाही कोबरा' से छिड़ी मेरी वर्तमान जंग से है—मेरी तलाश में किसी भी क्षण पुलिस यहां आ सकती है। वीशू की बेहतरी के लिए तुम उससे कुछ नहीं कहोगी।"
¶¶
उसने ' मुगल महल' में कदम रखा। देखते-ही-देखते चार गुण्डों ने उसे घेर लिया। युवक को यह समझने में देर नहीं लगी कि अब वह कैद है।
चार में से एक ने उसे अपने पीछे चले आने का संकेत किया—विवश युवक चुपचाप पीछे चल दिया—शेष तीनों उसे तीन तरफ से घेरे हुए थे, उनके हाथ जेब में थे और युवक समझ सकता था कि उनकी जेब में रिवॉल्वर पड़े हैं।
कई गैलरियों में से गुजरते हुए वे उसे कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच के सामने ले गए, कमरे का दरवाजा बन्द था।
एक ने विशेष अन्दाज में दस्तक दी।
यहां सन्नाटा था, अत: शेष तीनों भी उसके नजदीक आ गए—दरवाजा सरसराकर स्वयं ही खुल गया—एक साथ तीनों रिवॉल्वरों की नालें उसके जिस्म से चिपक गईं।
दो पसलियों से, एक पीठ पर।
उसे कवर किए वे अन्दर दाखिल हो गए—दरवाजा स्वयं ही बंद।
युवक समझ गया कि गैंग का चीफ अपने बिल में बैठा शायद किसी टीo वीo स्क्रीन पर उन्हें देख रहा था और ये दरवाजे आदि कुछ बटनों के माध्यम से उसकी उंगलियों के इशारे पर ही खुल और बन्द हो रहे थे।
सरसराकर कमरे के बीच का फर्श एक तरफ हट गया।
अब वहां नीचे उतरने के लिए खूबसूरत टायलदार चिकनी सीढ़ियां नजर आने लगीं—रिवॉल्वरों के साए में युवक उन पर उतरता चला गया—घुमावदार सीढ़ियां तय करके वे एक गैलरी में पहुंचे।
हल्की सरसराहट के साथ रास्ता बन्द हो गया।
तहखाने की उस गैलरी में लाइट का समुचित प्रकाश था।
फिर वे उस हॉल में पहुंच गए, जिसका दृश्य पाठक पहले भी कई बार पढ़ चुके हैं। दीवारों के सहारे सशस्त्र गार्ड खड़े थे। हरी वर्दी—लाल बैल्ट—लाल कैप वाले गार्ड।
युवक को मंच के काफी नजदीक ले जाकर खड़ा कर दिया गया।
अचानक ही मंच की छत पर लगा बल्ब लपलपाया और मंच पर नजर आया चमकीले लिबास वाला नकाबपोश—युवक के जेहन में बड़ी तेजी से वह हाथ चकरा उठा, जिसे उसने न्यादर अली पर फायर करते देखा था।
"त...तुम?" युवक के मुंह से अनायास ही निकल पड़ा।
“हां, हम।" मंच से बॉस की आवाज उभरी— बहुत तूफान उठा रखा है तुमने।"
"क्या तुम वही हो जिसने न्यादर अली का मर्डर किया है?”
"बूढ़े का मरना जरूरी हो गया था, क्योंकि उसे ' शाही कोबरा' समझकर तुमने बहुत-से रहस्य बता दिए थे—ऐसे कि हमारा यह हैडक्वार्टर ही खतरे में पड़ जाता।"
"तो ' शाही कोबरा' तुम हो?"
"' शाही कोबरा' तुम जैसे कुत्तों से बात नहीं किया करते—मैं उनका छोटा-सा खादिम हूं और तुम जैसे लोगों से मैं ही निपट लेता हूं।"
"मैं ' शाही कोबरा' से बात करना चाहता हूं।"
 ऐसे खूबसूरत ख्वाब देखने छोड़कर तुम जरा ऊपर देखो बेटे।" बॉस के इस वाक्य के तुरन्त बाद हॉल में विशेष की आवाज गूंजी—"पापा...पापा...।"
युवक ने एक झटके से ऊपर देखा।
हॉल की छत करीब तीस फुट ऊपर थी और वहां उल्टा झूल रहा विशेष उसे नजर आया। युवक के समूचे जिस्म में अजीब-सा तनाव उत्पन्न हो गया।
दो पतले तार हॉल के इस सिरे से उस सिरे तक छत के समानान्तर बंधे हुए थे। उन लोहे के तारों में लोहे का एक-एक छल्ला पड़ा था और इन छल्लों से दो रस्सी के छोटे टुकड़ों द्वारा विशेष के पैर सम्बद्ध थे।
उल्टा लटका हुआ था वह। तारों पर छल्ले फिसल रहे थे।
युवक का चेहरा लाल-सुर्ख हो गया। मुट्ठियां और दांत भिंच गए—गुस्से की अधिकता के कारण अभी वह बुरी तरह कांप ही रहा था कि बॉस की आवाज गूंजी—"हमारे एक इशारे पर वह सिर के बल फर्श पर जा गिरेगा और फिर उसके सिर के अंजाम की कल्पना तुम कर सकते हो।"
“मुझे बचाओ, पापा।" विशेष की आवाज ने युवक की रगें फड़का दीं—वह एकदम मंच की तरफ देखकर गुर्राया—"म...मैंने खुद को तुम्हारे हवाले कर दिया है, वीशू को छोड़ दो।"
"अभी कहां बेटे—तमाशा तो अब शुरू हुआ है।" व्यंग्यात्मक लहजे में कहने के बाद बॉस ने किसी को पुकारा—"गुल्लू।"
"यस बॉस।" पंक्ति से दो कदम आगे निकलकर जो कद्दावर व्यक्ति आया, उसकी बाईं आंख पर हरे रंग की एक ' आई-कैप' थी।             
"इस हरामजादे की जेब में शायद एक रिवॉल्वर है—उसे निकाल लो।"
गुल्लू युवक की तरफ बढ़ा। उसके नजदीक पहुंचने के बीच बॉस ने चेतावनी दी— अगर तुमने हरकत की तो बच्चा नीचे जा गिरेगा।"             
युवक अपने स्थान पर खड़ा कांपता रहा।
विशेष की चीखें हॉल में लगातार गूंज रही थी—युवक कुछ भी न कर सका और गुल्लू ने ना केवल उसकी जेब से रिवॉल्वर निकाल लिया, बल्कि पूरी तलाशी ले डाली।
बॉस ने पुकारा— रूपेश!"
"यस बॉस।"
"तुम्हारा शिकार सामने है।"
युवक की दृष्टि रूपेश पर जम गई। रूपेश की आंखों में लहू नाच रहा था—उसके जले हुए चेहरे पर भयानकता को देखकर एक बार को तो युवक भी सिहर उठा—युवक तक पहुंचने से पहले ही रूपेश ने गुल्लू से युवक की जेब से निकला रिवॉल्वर ले लिया।
हॉल में बॉस की आवाज गूंजी—" हमसे पहले तुम रूपेश के मुजरिम हो, अब रूपेश जो चाहेगा, तुम्हें सजा देगा।"
युवक के बहुत नजदीक आकर रूपेश गुर्राया—"उस बच्चे से शायद तू उतना ही प्यार करता है, जितना मैं माला से करता था।"
"न..नहीं रूपेश।" युवक गिड़गिड़ा उठा—"व...वीशू ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है—तुम्हारा मुजरिम मैं हूं—बदला लेना है तो मुझसे लो—वीशू मेरा कोई नहीं है—एक विधवा का आखिरी सहारा है वह—उसे छोड़ दो।"
"हुंह।" दिल में भरी घृणा जब रूपेश ने अपने चेहरे पर उड़ेली तो उसका डरावना चेहरा कई गुना ज्यादा वीभत्स हो गया। गुस्से में सुलगता हुआ वह बोला— उसे छोड़ हूं जिसकी मौत पर तू वैसे ही तड़पेगा जैसा माला की मौत पर रूपेश तड़पा था—मरेगा तू भी कुत्ते, तेरी मौत का मंजर भी मैं अपनी आँखों से देखूंगा, मगर उसमें यह मजा नहीं आएगा, जो बच्चे की मौत पर तेरी तड़प देखने में आएगा।"
“ऐसा मत करो रूपेश—प्लीज।"
"धांय।" एक फायर करने के साथ ही रूपेश ने अट्ठहास लगाया।
युवक पूरी ताकत से चीख पड़ा—" न.....नहीँ।"
विशेष के एक पैर की रस्सी टूट चुकी थी। अब वह एकमात्र पैर पर एक कुन्दे में झूलता चीख रहा था—" मुझे बचा तो पापा....पापा।"
रूपेश हंसा—" हा-हा-हा.....उसे देख कुत्ते देख उसे।"
" प...प्लीज़, वीशू को छोड़ दो....उसे जाने दो।" युवक पागलों की तरह रूपेश के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाया, परन्तु रूपेश के मुंह से निकलने वाले खूनी कहकहे बुलन्द और बुलन्द होते चले गए। उसका रिवॉल्वर वाला हाथ दूसरा फायर करने की पोजीशन में आया और—धांय।”
हॉल में फायर की आवाज गूंजी, मगर ऐन वक्त पर दीवाने-से हो गए युवक ने रूपेश के दोनों पैर पकड़कर खींच लिए थे। परिणामस्वरूप न केवल निशाना चूक गया, बल्कि खुद रूपेश चारों खाने चित्त फर्श पर गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से निकलकर दूर तक फिसलता चला गया।
जिन्दगी और मौत की परवाह किए बिना युवक ने रूपेश पर जम्प लगा दी—सारे हॉल में सनसनी-सी दौड़ गई। दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र गार्ड्स ने गनें सीधी कर लीं और तभी मंच से बॉस की आवाज गूंजी—"कोई बीच में नहीं आएगा।"
सभी लोग हैरत से मंच की तरफ देखने लगे।
"हम उसका हाथ जरा देखना चाहते हैं, जिसने एक साथ रंगा-बिल्ला का न केवल मुकाबला किया, बल्कि बिल्ला को मार भी डाला—सुनो रूपेश, अपने मुजरिम से निपटने का हम तुम्हें पूरा मौका दे रहे हैं।"
रूपेश और युवक में मल्लयुद्ध तो छिड़ चुका था।
बॉस की उक्त घोषणा से युवक का साहस बढ़ा। छत पर उल्टा लटका हुआ विशेष बुरी तरह चीख रहा था, मगर फिलहाल उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था।
धड़कते दिल से सभी रूपेश और युवक को देख रहे थे—उन्हें, जो एक-दूसरे के खून के प्यासे हुए जंगली भेड़ियों की तरह भिड़े हुए थे—लड़ने के तरीके निश्चय ही युवक ज्यादा जानता वा, किन्तु कम रूपेश भी नहीं था।
शारीरिक ताकत में युवक से कुछ इक्कीस ही था।
रूपेश का दांव लगा। युवक को उसने अपने दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठा लिया। किसी दांव का इस्तेमाल करने के लिए युवक अभी हाथ-पांव मार ही रहा था कि रूपेश ने उसे पूरी ताकत से फर्श पर दे मारा।
युवक का सिर बहुत ही जोर से फर्श पर टकराया।
रंगबिरंगी चिंगारियों के बाद मस्तिष्क पर गहरे काले रंग की चादर तनती चली गई और बेहोश होकर वह एक तरफ लुढ़क गया।
¶¶
जब चेतना लौट रही थी, तब उसने महसूस किया कि इस वक्त वह ढेर सारी रस्सियों के द्वारा मजबूती से एक थम्ब के साथ बंधा हुआ है—उसके मस्तिष्क पटल पर बेहोश होने से पूर्व के दृश्य उभरने लगे।
एक फियेट की ड्राइविंग सीट पर वह स्वयं था।
बहुत तेज, अंधाधुंध ड्राइविंग कर रहा था वह—तभी सामने से एक ट्रक आया। उससे भी कहीं ज्यादा तेज और अंधाधुंध।
बचने के लिए उसने स्टेयरिंग घुमाया, मगर ट्रक बिल्कुल रांग साइड पर आ गया।
एक पल सिर्फ एक पल के लिए वह ड्राइवर का चेहरा देख पाया था, क्योंकि अगले ही पल कर्णभेदी विस्फोट के साथ कार और ट्रक
में आमने-सामने की टक्कर हो गई।
बस—उसके बाद उसे अस्पताल में होश आया था।
डॉक्टरों ने उससे नाम पूछा। वह बता नहीं सका—डॉक्टर इस नतीजे पर पहुंचे कि वह अपनी याददाश्त गंवा बैठा है—सचमुच उसे कुछ भी याद नहीं रहा था।
मगर अब उसे सब कुछ याद आ रहा था।
अपना नाम भी।
"आंखें खोलो बेटे।" व्यंग्य में दूबी एक आवाज उसके कानों से टकराई।
युवक की विचार श्रृंखला भंग हो गई—आवाज़ उसे परिचित-सी लगी थी—दर्द से कराहते हुए उसने आंखें खोल लीं—पहले उसे सब कुछ धुंधला-धुंधला-सा नजर आया—युवक को स्थान जाना-पहचाना-सा लगा।
जैसे यहां पहले भी आया हो।
"पापा...पापा।" एक बच्चे की पुकार सुनकर उसने छत की ओर देखा। बच्चे को उसने पहचान लिया—वह विशेष था—अस्पताल में होश आने से लेकर पुन: बेहोश होने तक के सभी दृश्य चलचित्र के समान मस्तिष्क पटल पर तैर गए।
"उधर देखो बेटे, अपने पेट पर।" बॉस की आवाज सारे हॉल में गूंज गई और मंच की तरफ विशेष रूप से बॉस को देखकर उसके चेहरे पर अजीब-से भाव उभर आए—घबराकर उसने अपने पेट की तरफ देखा।
पेट पर कपड़े की एक बैल्ट के साथ बम बंधा हुआ था।
इस बम का पलीता बहुत लम्बा था। हॉल के सबसे दूर वाले किनारे तक—वह इस बम और विशेष रूप से लम्बे पलीते का अर्थ नहीं समझ सका। हाथ-पैर आदि थम्ब के साथ बंधे थे, स्वेच्छा से हिल तक नहीं सकता था।
बॉस की आवाज गूंजी— तुमने रंगा के माध्यम से एक खिलौने को बम कहकर हमें दूसरा कमाल दिखाया था और उसी के जवाब में अब हम तुम्हें तुम्हारे पेट पर बंधे बम का कमाल दिखाएंगे, मगर यह खिलौना नहीं है।"
युवक के जबड़े अजीब-से अन्दाज में कस गए थे।
 तुम्हारी मौत का यह तरीका ' शाही कोबरा' ने चुना है—रूपेश अपने हाथ से पलीते के सिरे पर चिंगारी लगाएगा—वह चिंगारी पलीते पर धीरे-धीरे चलती हुई तुम्हारी तरफ बढ़ेगी और तुम्हारे देखते ही देखते बम तक पहुंच जाएगी—एक जबरदस्त विस्फोट होगा—और फिर तुम्हारे जिस्म के चीथड़े बिखर जाएंगे।"
मौत की ठंडी लहर के स्थान पर युवक के जिस्म में क्रोध की लहर दौड़ गई।
इस हॉल को, हॉल में मौजूदा एक-एक व्यक्ति को, यहां तक कि मंच पर मौजूद बॉस को भी जानता था वह। उसे अच्छी तरह याद आ गया कि जिस ट्रक से उसका एक्सीडेंट हुआ था—उसे वही गुल्लू नामक व्हाइट आई कैप वाला व्यक्ति ड्राइव कर रहा था।
युवक के दिमाग की सारी गुत्थियां सुलझती चली गईं। एक के बाद एक सारी वारदातें, सारी बातें उसे याद आती चली गईं। जाने किस बात को याद करके उसका सारा जिस्म असीम क्रोध एवं अत्यधिक उत्तेजनावश कांप उठा।
तभी बॉस ने कहा—"पलीते में आग लगा दो रूपेश।"
पलीते के सिरे के पास खड़े रूपेश ने लाइटर जलाया।
 ठहरो।" युवक के कण्ठ से एक विशेष भर्राटदार आवाज निकली और इस आवाज को सुनकर न सिर्फ रूपेश लड़खड़ा गया, पंक्तिबद्ध खड़े गुण्डे और दीवारों के सहारे खड़े सशस्त्र गार्ड उछल पड़े, बल्कि स्वयं बॉस के पैरों के तले से जमीन खिसक गई।
हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति के मुंह से हैरत में डूबा स्वर निकला—"श...शाही कोबरा?"
"हां।" युवक के मुंह से वही भर्राहटदार आवाज निकली थी— मैं ' शाही कोबरा' हूं—ध्यान से मेरी आवाज सुनो— मैं ही ' शाही कोबरा' हूं।"
बुरी तरह आतंकित और बौखलाया हुआ बॉस चीख पड़ा—"ये झूठ बोलता है।"
"झूठा तू है कुत्ते—गद्दार—नमकहराम।" थम्ब से बंधा युवक दांत भींचकर गुर्रा उठा— इसे पकड़ लो रूपेश, यहां से भागने न पाए।"
"बेवकूफी मत करना रूपेश—यह इस हरामजादे की नई चाल है—जाने कहां से इसने ' शाही कोबरा' की आवाज की नकल करनी सीख ली है। मैं कहता हूं क्विक, पलीते में आग लगा दो।"
"खबरदार रूपेश, यह गद्दार है—हमारी याददाश्त गुम हो गई थी—हमें मारकर यह सारे गैंग पर अपना कब्जा...।"
"धांय। मंच की ओर से एक शोला लपका।
हैरअंगेज ढंग से उछलकर गुल्लू युवक की ढाल बन गया। गोली गुल्लू के सीने में लगी और एक चीख के साथ वह वहीं शहीद हो गया।
गार्ड्स की गनें गरज उठीं।
सबका निशाना मंच पर मौजूद बॉस था, मगर गोलियां उसके चांदी के चमकदार लिबास से टकराकर छितरा गईं और अगले ही पल बॉस मंच के उसी कोने में विलीन हो गया, जिसमें से प्रकट हुआ करता था।
युवक चीख पड़ा— वह नमकहराम भागने की कोशिश कर रहा है रूपेश, जल्दी से मंच पर पहुंचो—दाईं दीवार में एक स्विच प्लेट है—उस प्लेट का लाल रंग का बटन दबा दो, जल्दी करो।"
और रूपेश के जिस्म में जैसे बिजली भर गई।
एक ही पल पहले वह जिसकी जान का ग्राहक था, उस पल उसके आदेश का गुलाम की तरह पालन करता हुआ एक ही जम्प में मंच पर पहुंच गया।
"हमें मुक्त करो।" युवक ने जोर से कहा।
हॉल में मौजूद सभी व्यक्ति उसके आदेश का पालन करने के लिए लपक पड़े।
सबसे पहले एक गार्ड ने उसके जिस्म से बहुत ही सावधानी के साथ बम अलग किया और फिर रस्सियों से मुक्त होते उसे देर नहीं लगी—इस बीच रूपेश उसके हुक्म का पालन कर चुका था। युवक ने आंधी-तूफान की तरह दौड़ लगाई।
"आप सब यहां रहें, मैं उस नमकहराम को आपके सामने ही सजा देना पसन्द करूंगा।"
कहने के तुरन्त बाद युवक ने मंच के उसी भाग में जम्प लगा दी, जिसमें बॉस गुम हुआ था। रूपेश सहित हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति हक्का-बक्का-सा खड़ा रह गया, जबकि मंच के उस दरवाजे को पार करने के बाद युवक एक बहुत ही संकरी गैलरी में दौड़ा चला जा रहा था। तीन मोड़ पार करने के बाद वह खूबसूरती से सजे एक छोटे कमरे में पहुंचा।
वहां एक डैस्क और डैस्क के पीछे दो टी वी रखे थे।
डैस्क पर बहुत-से बटन थे।
युवक ने जल्दी से उनमें से एक बटन दबा दिया, कमरे के बीच का एक छोटा हिस्सा सरसराकर हट गया, अब वहां चक्करदार लोहे की सीढ़ी नजर आ रही थी—आंधी-तूफान की तरह उतरता हुआ वह नीचे पहुंचा।
एक काफी चौड़ी गैलरी में वह भागा चला जा रहा था।
शीघ्र ही गैलरी के अंतिम सिरे पर पहुंच गया—वहीं, जहां चमकीले लिबास वाला बॉस इस्पात के बने एक दरवाजे का हैंडिल पकड़कर उससे जूझ रहा था। गैलरी के इस सिरे से उस सिरे तक शानदार कार्पेट बिछा हुआ था।
बॉस को यूं दरवाजे से जूझता देखकर युवक के होंठों पर पैशाचिक मुस्कान उभरी। अपने स्थान पर खड़ा होकर वह गुर्राया—"सात जन्म तक जोर लगाने के बावजूद वह नहीं खुलेगा साठे, उसका लॉक हॉल के मंच पर है और वह मैं बन्द करा चुका हूं।"
चमकीले लिबास वाले ने अपना नकाब उतारकर एक तरफ फेंक दिया, वह ' मुगल महल' का मैनेजर साठे ही था। एक झटके से रिवॉल्वर निकालकर तानता हुआ गुर्राया— वहीं रुक जाओ सिकन्दर, वरना मैं तुम्हें शूट कर दूंगा।"
सिकन्दर इस तरह मुस्कराया, जैसे किसी छोटे-से बच्चे ने खिलौना रिवॉल्वर दिखाकर उसे धमकी दी हो, बोला—" अब मैं याददाश्त खोया हुआ युवक नहीं बेटे, इस सारे ' डैन' का मालिक हूं—' शाही कोबरा' —मेरी इजाजत के बिना यहां एक पत्ता भी नहीं हिल सकता—फायर करने से पहले जरा अपने पीछे का नजारा देख लो।"
बौखलाकर साठे ने पीछे देखा और इसी क्षण सिकन्दर ने झुककर फर्श पर बिछे कार्पेट को एक झटका दिया, कार्पेट के उस किनारे पर खड़ा साठे चारों खाने चित्त गिरा।
रिवॉल्वर उसके हाथ से छूट गया था।
सिकन्दर ने किसी जख्मी गोरिल्ले की तरह उस पर जम्प लगाई। हवा में लहराकर वह सीधा साठे के ऊपर जा गिरा।
साठे महसूस कर रहा था कि वह मौत के जबड़े में फंस चुका है।
¶¶
उस चौंका देने वाले रहस्य के खुलने पर काफी गहमा-गहमी के बाद हॉल में अब सन्नाटा व्याप्त था और उस वक्त तो सन्नाटा कुछ और ज्यादा बढ़ गया, जब मंच पर हॉल में मौजूद प्रत्येक व्यक्ति को ' शाही कोबरा' यानि वही युवक नजर आया—कुछ ही देर पहले जिसके मरने की तैयारियों थीं—इस वक्त उसके कन्धों पर बेहोश साठे था। जिस्म पर वही चमकीला लिबास, परन्तु नकाबरहित चेहरा।
मंच ही से पूरी बेरहमी के साथ सिकन्दर ने साठे को हॉल के फर्श पर फेंक दिया, बोला— इसे उसी थम्ब के साथ बांध दो, जिसके साथ तुम सबको धोखे में डालकर इसने हमें बंधवा दिया था।"
रूपेश के साथ अन्य तीन व्यक्ति इस आदेश का पालन करने में जुट गए।
मंच पर खड़े सिकन्दर ने ऊपर लटक रहे विशेष को देखा, उसी स्थिति में लटका हुआ अब तक यह बेहोश हो चुका था। सिकन्दर की आंखों के सामने रश्मि का चेहरा नाच उठा।
विशेष को यहां से उतारने का हुक्म जारी करते ही चार व्यक्ति उस हुक्म का पालन करने में जुट गए और दस मिनट बाद ही विशेष के बेहोश जिस्म को मंच पर पहुंचा दिया गया। विशेष को लिए सिकन्दर मंच का दरवाजा पार करके संकरी गैलरी से गुजरकर खूबसूरती से सजे कमरे में पहुंचा।
डेस्क का एक बटन दबाते ही कमरे की बाईं दीवार में एक दरवाजा प्रकट हो गया। विशेष को गोद में लिए सिकन्दर उस कमरे में पहुंचा, कमरे में मौजूद बेड पर उसने आहिस्ता से विशेष को लिटा दिया।
विशेष के मासूम चेहरे पर नजर पड़ते ही सिकन्दर के दिल में जाने कैसे अरमान मचले कि उसने झुककर विशेष को चूम लिया—फिर उस मासूम बच्चे को किसी दीवाने के समान सिकन्दर चूमता ही चला गया—आंखें भर आईं उसकी।
फिर तेजी के साथ कमरे से बाहर निकला। डैस्क पर मौजूद बटन को ऑफ करते ही दरवाजा बन्द हो गया—वह तेज कदमों के साथ मंच पर पहुंचा।
साठे को थम्ब के साथ बांधा जा चुका था।
हॉल में मौजूद एक-एक व्यक्ति पर नजर डालने के बाद सिकन्दर ने ' शाही कोबरा' वाली आवाज़ में कहा—" आप सब लोग चकित होंगे कि यह सब क्या और कैसे हो गया है, ' शाही कोबरा' होने के बावजूद मैं उस थम्ब तक कैसे पहुंच गया—संयोग से मेरी शक्ल तो आप देख ही चुके हैं, मगर नाम अभी तक नहीं जानते, मैं अपनी एक लम्बी कहानी बहुत संक्षेप में सुनाता हूं, इस कहानी में आप लोगों को उन हर सवालों का जवाब मिल जाएगा जो आप लोगों के जेहन में चकरा रहे हैं।"
हॉल में खामोशी छाई रही, साठे अभी तक बेहोश था।
"मैं बहुत ही विचित्र व्यक्ति हूं—खुद को विचित्र सिर्फ इस मायने में कह रहा हूं कि मैंने एक ही जन्म में दो जिन्दगियां जी हैं—एक अपनी वास्तविक जिन्दगी, दूसरी वह जो याददाश्त खोने के बाद मैंने जी—और दुर्भाग्य की बात यह है कि वे दोनों ही जिन्दगियां गुनाहों से भरी हैं।"
वह सांस लेने के लिए रुका, हॉल में ऐसी खामोशी थी कि चींटी के रेंगने तक की आवाज सब सुन सकें। सिकन्दर ने आगे कहा—" मेरे ख्याल से हर व्यक्ति अपने जन्म के साथ ही कोई खास प्रवृत्ति, गुण या आर्ट लेकर पैदा होता है, उसे हम "गॉड गिफ्ट' अर्थात प्रकृति द्वारा दिया गया तोहफा कहते हैं—मेरा नाम सिकन्दर है और मैंने इस होटल के मालिक यानि न्यादर अली के घर जन्म लिया—आप सभी जानते हैं कि न्यादर अली एक करोड़पति हस्ती थी और उसके बेटे को कम-से-कम दौलत के लिए कोई गैरकानूनी काम करने की जरूरत नहीं थी, परन्तु ' गॉड गिफ्ट' के रूप में शायद मुझे ' अपराध प्रवृत्ति' मिली थी। तभी तो जवान होते ही मैंने इस गैंग का गठन किया।"
सभी धड़कते दिल से ' शाही कोबरा' का बयान सुन रहे थे।
सिकन्दर ने आगे कहा—"मेरे डैडी का बहुत बड़ा बिजनेस है, इतना ज्यादा फैला हुआ कि यह 'मुगल महल' तो उस बिजनेस का एक जर्रा है—वे साल में यहां मुश्किल से दो या तीन बार ही आते थे—और मुझे यानि अपने मालिक के लड़के को तो ' मुगल महल' के स्टॉफ ने कभी देखा ही नहीं था—न्यादर अली होटल का बिजनेस नहीं करना चाहते थे—मैंने ही जिद करके इस होटल का निर्माण कराया—होटल का बिजनेस करना मेरा मकसद भी नहीं था—मेरी ' गॉड गिफ्ट' मुझे जुर्म करने के लिए उकसा रही थी और उसी मकसद से मैंने 'मुगल महल' के नीचे यह तहखाना बनवाया—साठे मेरा कोलिज का दोस्त है, यह भी अपराध प्रवृत्ति का है, अत: डैडी से कहकर मैंने उसे प्रत्यक्ष में ' मुगल महल' का मैनेजर बनवा दिया औरों को इस बात की भनक भी नहीं थी कि होटल के नीचे हमने कुछ खिचड़ी पकने के लिए एक तहखाना भी बनवाया है।
"हम दोनों ने मिलकर एक गैंग खड़ा कर लिया, आर्थिक रूप से कमजोर न होते हुए भी मैंने ' गॉड गिफ्ट' से विवश होकर स्मगलिंग शुरू कर दी—मैँ ' शाही कोबरा' बन गया—साठे को बॉस यानि गैंग का दूसरे नम्बर का लीडर बना दिया—आप लोग मुझे मेरी आवाज से पहचानते थे—मैं यहां कभी-कभी आया करता था—वह भी छुपकर—एक गुप्त दरवाजे के माध्यम से होटल में मैं कभी नहीं आया—यही डैडी भी समझते थे—आप सब लोग मेरे हुक्म के पाबन्द थे—भले ही वह अक्सर साठे के द्वारा मिलता हो।
"मेरी एक बहन भी थी—सायरा मैं उससे बेइन्तहा प्यार करता था, मगर एक सुबह उसके कमरे में उसकी निर्वस्त्र लाश पाई गई—फर्श पर पड़ी आंखें फाड़े मेरी सायरा कमरे की छत को घूर रही थी—किसी ने गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी और मैं उस हत्यारे से बदला लेने के लिए पागल हो उठा—मगर बदला लेता कैसे—किससे—मुझे नहीं मालूम था कि सायरा को क्यों और किसने मारा है—बदला लेने के लिए तड़पता हुआ मैं अपने उद्गार साठे के सामने व्यक्त करता रहता, यह हकीकत तो मुझे काफी समय गुजर जाने के बाद पता लगी कि सायरा का हत्यारा मेरा दोस्त, मेरा विश्वसनीय साठे ही था।"
"स...साठे?' हॉल में मौजूदा सभी लोगों के मुंह से हैरत में डूबा स्वर निकला और सबकी नजर थम्ब के साथ बंधे साठे की तरफ उठ गई।
“हां—साठे ही ने सायरा की हत्या की थी, खैर।" एक ठण्डी सांस भरते हुए सिकन्दर ने कहा—"इस कहानी का बाकी हिस्सा मैं आप तीनों को एक अन्य छोटी-सी कहानी सुनाने के बाद सुनाऊंगा और यह छोटी-सी कहानी यह है कि एक दिन साठे ने मुझे बताया कि सर्वेश नाम का एक हू-ब-हू मेरी शक्ल का युवक ' मुगल महल' में निकली कैशियर की वैकेन्सी के लिए इन्टरव्यू देने आया था—साठे ने मुझे उसका फोटो दिखाया तो मैं दंग रह गया—सचमुच सर्वेश और मैं एक ही कार्बन से बने पोजिटिव थे—सर्वेश को नौकरी दे दी गई—धीरे-धीरे हमने उसे इस गैंग में शामिल कर लिया—मैंने और साठे ने सोचा था कि यदि कभी दुर्भाग्य से पुलिस के हाथ "' शाही कोबरा'' का फोटो लग गया तो हम सर्वेश की लाश कानून तक पहुंचा देंगे—उन हालात में कानून को चकमा देने के लिए मुझे सर्वेश भी बनना पड़ सकता है, इसीलिए मैंने सर्वेश के हाव-भाव, चाल-ढाल और बातचीत करने के अन्दाज को रीड करके उनकी नकल करने की प्रैक्टिस शुरू की—मुझमेँ और सर्वेश में एक बड़ा फर्क यह था कि वह ' राइट हैण्डर' या और में लैफ्ट हैण्ड, किन्तु प्रैक्टिस के बाद मैं भी सीधे हाथ का उपयोग उतने ही स्वाभाविक ढंग से करने लगा, जितने स्वाभाविक ढंग से बाएं हाथ का करता था—मैँ मुसलमान हूं—किसी मुसीबत के समय मुंह से "खुदा" ही निकलता था और प्रैक्टिस के बाद मेरी जुबान इतनी ' रवां' हो गई कि स्वाभाविक रूप से मेरे मुंह से हे ' भगवान' ही निकलने लगा—कहने का मतलब यह कि अब मैं समय पड़ने पर खुद को कभी भी सर्वेश साबित कर सकता था। मगर जैसा सब कुछ सोचकर मैं और साठे सर्वेश को गैंग में लाए थे, वैसा समय कभी आया ही नहीं और उससे पहले ही हुआ यह कि सर्वेश इस भेद को जान गया कि गैंग का बॉस मैनेजर साठे है—हमारे लिए सर्वेश को खत्म कर देना जरूरी हो गया और तब, आप जानते ही हैं कि मैं उसे मंच के पीछे अपने ' सीक्रेट रूम' में ले गया—उस वक्त मेरे चेहरे पर नकाब था, अत: वह नहीं देख सकता था कि मेरी शक्ल उससे मिलती है—मैंने उसे यह आश्वासन देते हुए बीयर पिलाई कि अगर वह साठे के बारे में किसी को कुछ नहीं बताएगा तो उसे एक करोड़ रुपया दिया जाएगा—यह सौदा उसने स्वीकार कर लिया था, किन्तु किस कम्बख्त को उसे एक करोड देने थे—बीयर में ऐसा जहर था, जिसे पीने के दस मिनट बाद ही वह मर गया और तब मैंने उसकी लाश रंगा-बिल्ला को रेल की पटरी पर डाल आने का हुक्म दिया—उसके चेहरे को क्षत-विक्षत कर देने का उद्देश्य यह था कि कहीं मेरे परिचित उसे मेरी ही लाश न समझ लें।"
सिकन्दर ने एक लम्बी सांस लेने के बाद आगे बताया— हेलेन नाम की एक लड़की थी, जिससे साठे के नाजायज सम्बन्ध थे—आप सभी जानते हैं कि स्मगलिंग का माल इधर-से-उधर करने के लिए हमारा गैंग कभी भी अपनी गाड़ियां प्रयोग नहीं करता है—चोरी की गाड़ियां" इस्तेमाल की जाती हैँ—तुम्हें याद होगा मुकेश कि आज से करीब चार महीने पहले हमने तुम्हें ' हेरोइन' स्मग्ल करने का हुक्म दिया था?”
"मुझे याद है ' शाही कोबरा' ।" हॉल में मौजूद एक युवक ने कहा।
"उस हेरोइन को स्मग्ल करने के लिए किसकी गाड़ी चुराई थी तुमने?"
"प्रीत विहार में रहने वाले किसी अमीचन्द जैन की फियेट थी वह—मैंने वह जैन के गैराज का ताला तोड़कर चुराई थी।"
"फिर तुमने क्या किया?"
"काम पूरा करके लौटने में मुझे सुबह के आठ बज गए—तब ' बॉस' ने कहा कि दिन में फियेट को कहीं छोड़कर आना खतरनाक है, अत: रात होने पर यह किया जाए कि गाड़ी एक दिन के लिए होटल के सीक्रेट गैराज में खड़ी कर दी जाए।"
"बस, उसी दिन दस बजे के करीब मैं कैडलॉंक लेकर होटल के सीक्रेट गैराज में पहुंचा।" सिकन्दर ने बताया—"गाड़ी गैराज में खड़ी करके गुप्त रास्ते से इस तहखाने में आ रहा था कि तहखाने के एक कमरे से मुझे साठे और हेलेन के बातें करने की आवाज आई—उनकी बातचीत में सायरा का नाम सुनकर मैं चौंक पड़ा और दरवाजे के बाहर ही खड़ा होकर उनकी बातें सुनने लगा—उन बातों से मुझे मालूम हुआ कि साठे नाम का वह कमीना, जिसे मैं अपना दोस्त समझता था, मेरी बहन पर बुरी नजर रखता था, एक रात बलात्कार की नीयत से वह सायरा के कमरे में जा घुसा—सायरा से उसने जबरदस्ती की—मेरी बहन के सारे कपड़े उतारकर फेंक दिए, तब भी अपना मुंह काला करने में सफल न हो सका और इसने गला घोंटकर सायरा को मार डाला।
"यह सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बाद मैं गुस्से से पागल हो गया, अपने आपे में न रहा और रिवॉल्वर निकालकर उस कमरे में घुस गया—मैंने साठे पर फायर किया, मगर गोली हैलेन को लगी—हेलेन वहीं ढेर हो गई, परन्तु साठे बौखलाकर भाग निकला—अब मैं साठे को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ सकता था और खुद को बचाने के लिए साठे का मुझे मारना जरूरी हो गया था—साठे गैराज से मेरी कैडलॉक लेकर भागा—मैं उसके पीछे फियेट लेकर—हड़बड़ाहट में मेरे हाथ से जाने कहां रिवॉल्वर छूट गया—मगर भागने से पहले मैँ हेलेन के गले से अपना सोने का नेकलेस निकाल चुका था—उसी दिन स्मग्लिंग का माल लिए गुल्लू एक ट्रक द्वारा हरियाणा से आ रहा था। संयोग से हमारी कारें भी रोहतक रोड पर निकल गईं—अंधाधुन्ध ड्राइविंग करता हुआ मैं कैडलॉक का पीछा कर रहा था—तभी साठे ने एक चाल चली—ट्रासमीटर पर उसने गुल्लू को आदेश दिया कि यह ट्रक को फियेट से टकरा दे—मेरी फियेट का नम्बर उसने गुल्लू को बता दिया और गुल्लू बेचारा क्या जानता था कि फियेट में उसका ' शाही कोबरा' ही है —अपने ' बॉस' के हुक्म को ' शाही कोबरा' का हुक्म जानकर ही उसने ट्रक को फियेट से टकरा दिया।"
सिकन्दर थोड़ा गुस्से में नजर आने लगा था। वह कहता ही चला गया—" हालांकि साठे ने यह एक्सीडेण्ट मुझे खत्म कर देने की मंशा से कराया था, किन्तु मैं जीवित बच गया और यह पता लगने पर कि मैं अपनी याददाश्त गंवा बैठा हूं, साठे कुछ समय के लिए चकरा गया—वह निश्चय नहीं कर सका कि क्या करे, मुझे मारना जरूरी है या नहीं-साठे दुविधा में ही फंसा रहा कि अखवार में दीवान द्वारा दिए गए विज्ञापन के आधार पर डैडी अस्पताल पहुंच गए—मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा था और इसी वजह से मेरा दुर्भाग्य कि सारे सबूतों के बावजूद मैं खुद को न्यादर अली का बेटा सिकन्दर मानने के लिए तैयार नहीं हुआ—याददाश्त गुम होने के बाद सायरा की लाश मेरे अवचेतन मस्तिष्क पर छाई रही और एक हिंसक बीमारी के रूप में मुझ पर हावी हो गई—जुनून-सा सवार होने लगा मुझ पर और इसीलिए डैडी ने मेरी सेवा के लिए ' जेंट्स नर्स' हेतु विज्ञापन दिया।
 मुझे कुछ याद नहीं था, जबकि इधर साठे इस दुविधा का शिकार था कि क्या करे—उसे यह शक भी होने लगा कि कहीं मैं याददाश्त गुम हो जाने का नाटक तो नहीं कर रहा हूं—अत: इसकी पुष्टि करने के लिए विज्ञापन की आड़ में इसने रूपेश को वहां भेजा।"
"मुझे हुक्म देते समय इसने कहा था बॉस कि न्यादर अली के लड़के सिकन्दर को चैक करने का आदेश 'शाही कोबरा' ने ही दिया है।" रूपेश ने बताया।
"तुम सब क्योंकि ' शाही कोबरा' के प्रति ही कर्तव्यनिष्ठ थे—इसीलिए यह प्रत्येक आदेश यही कहकर जारी करता था कि वह ' शाही कोबरा' का आदेश है—तुम बेचारे क्या जानते थे कि तुम्हारा ' शाही कोबरा' याददाश्त गंवा बैठा है और जो आदेश यह गद्दार ' शाही कोबरा' के नाम पर दे रहा है, वह ' शाही कोबरा' ही के विरुद्ध है—तुमने साठे को रिपोर्ट दी रूपेश कि सिकन्दर वाकई याददाश्त गंवा बैठा है और उसे अपने सिकन्दर होने में संदेह है। अब साठे ने सोचा कि सिकन्दर को मारना जरूरी नहीं है—हां, न्यादर अली और देहली से बहुत दूर निकाल देना अधिक सुरक्षित रहेगा और इस उद्देश्य से उसने मुझे जॉनी बनाने का जो नाटक रचा, वह सब तुम जानते ही हो।"
हाल में सन्नाटा व्याप्त रहा।
 मैं इस नाटक में पूरी तरह फंस चुका था कि बीमारी के रूप में लग गए मेरे जुनून ने साठे की सारी योजना बिखेर दी। मैंने तुम्हारी पत्नी माला की हत्या कर दी रूपेश और तुम्हें भी जीवित जलाने की कोशिश की, मगर सच मानो, वह सब कुछ मैंने जानकर नहीं किया—जुनून के अन्तर्गत कर बैठा—मैं तुम्हारा मुजरिम हूं रूपेश।"
"असली मुजरिम तो ये है ' शाही कोबरा', जिसने आपकी बहन का मर्डर किया—उसी मर्डर की वजह से आपको यह बीमारी हुई और आपके जुनून का शिकार माला बन गई।
"मैं गाजियाबाद से बौखलाकर भागा और संयोग से सर्वेश के घर पहुंच गया, जिस तरह मैं पुलिस की नजरों से गुम हो गया था, उसी तरह साठे भी न जान सका कि मैं हत्याकाण्ड करने के बाद कहां गायब हो गया हूं—इसे यह चिंता सताए जा रही थी कि कहीं मेरी याददाश्त वापस न आ जाए—इस बीच 'शाही कोबरा' के नाम पर ही तुम सबसे काम लेता रहा—उधर पुलिस और साठे की नजरों से छुपा मैं सर्वेश के घर में रहा—विशेष और रश्मि से मुझे प्यार हो गया और उस दरिन्दे के खिलाफ मेरा दिल नफ़रत से भर गया। जिसने विशेष, रश्मि और बूढ़ी मां से उनके सहारे सर्वेश को छीना था।"
एक गहरी सांस लेने के बाद सिकन्दर ने कहा—“ऐसी अजीब बात है कि सर्वेश के हत्यारे से बदला लेने की कसम, सर्वेश का हत्यारा ही खा बैठा—विधि का विधान देखो कि सर्वेश बनकर मैं खुद ही अपने द्वारा की गई हत्या की इन्वेस्टिगेशन में जुट गया—अपने ही गैंग से टकराने और इसे नेस्तनाबूद करने मैं खुद निकल पड़ा—सर्वेश बनकर जब मैं ' मुगल महल' में आया तो मुझे देखते ही साठे चौंक पड़ा—मैँ उसे मिल गया था—यह सोचकर वह भी मुस्करा उठा कि सर्वेश का हत्यारा सर्वेश बनकर, सर्वेश ही के हत्यारे से बदला लेने निकला है...अब साठे को मुझसे छुटकारा पाने के लिए सबसे सरल रास्ता यह जान पड़ा कि वह मुझे माला की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटका दे—अपने इसी उद्देश्य में सफल होने के लिए उसने सर्वेश के घर पुलिस भेज दी—अब मेरी समझ में आ रहा है कि पुलिस और रश्मि को चकमा देने की स्कीम मेरे दिमाग में कहां से आ रही थी—आखिर था तो मैँ ' शाही कोबरा' ही—एक षड्यन्त्रकारी दिमाग।"
"जब साठे का यह हमला भी नाकामयाब हो गया तो मुझे मारने का काम इसने रंगा-बिल्ला को सौंपा—उस मोर्चे पर भी इसे शिकस्त का ही मुंह देखना पड़ा—अब तक मिले सबूतों के आधार पर मुझे ' शाही कोबरा' होने का शक न्यादर अली पर हो गया— क्या जानता था की कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच मैंने खुद ही अपने पिता के नाम बुक करा रखा है—एक ऐसा बेटा जो खुद ' शाही कोबरा' था, अनजाने में अपने पिता को ' शाही कोबरा' होने की गाली देता रहा—साठे ने उसी समय इस डर से कि कहीं न्यादर अली मुझे सिकन्दर होने का यकीन न दिला दे, मेरे डैडी की हत्या कर दी....अब तक मैं इसके लिए काफी परेशानियां खड़ी कर चुका था, अत: विशेष को किडनैप करके यहां लाने का हथकण्डा अपनाया गया—उस बम के द्वारा साठे मुझसे छुटकारा पाना ही चाहता था कि कुदरत ने मुझे मेरी याददाश्त वापस लौटा दी और पासे पलट गए—कैसी अजीब बात थी कि एक गद्दार के कारण, सारा गैंग अपने ही चीफ को बम से उड़ाने जा रहा था—अस्पताल में होश आने से लेकर इस हॉल में बेहोश होने तक की घटनाएं मुझे उसी तरह याद हैं, जैसे कोई स्वप्न देखा हो।"
सिकन्दर चुप हो गया।
हॉल में खामोशी छाई रही, तब सिकन्दर ने ऊंची आवाज में पूछा—" अब मैं आप सब लोगों की राय जानना चाहता हूं—इस नमक हराम, गद्दार और विश्वासघाती साठे को क्या सजा दी जाए?"
सारा हॉल कह उठा—“इसकी एक ही सजा है—मौत।"
¶¶
"न...नहीँ सिकन्दर।" थम्ब के साथ बंधा साठे गिड़गिड़ा उठा—"मुझे बख्श दो, माफ कर दो—मैं पागल हो गया था।"
"जो बम तुमने कुछ ही देर पहले मेरे पेट पर बांधा था, अब वही तुम्हरे पेट पर बंधा है और देखो, उस बम से सम्बद्ध पलीते का यह सिरा मेरे हाथ में है—सभी लोगों की राय है कि इस सिरे को मैं खुद चिंगारी दूं।"
"ऐ...ऐसा मत करना सिकन्दर प.....प्लीज, ऐसा न करना।" अपने पेट पर बंधे बम को देखकर साठे पीला पड़ गया, बोला—"मुझे माफ कर दो।"
"क्यों साथियों, क्या इसका जुर्म माफ कर देने लायक है?" सिकन्दर ने ऊंची आवाज में पूछा।
एक साथ सभी ने कहा—"नहीं....नहीं।"
सिकन्दर ने लाइटर जलाया, पलीते के सिरे पर आग लगाते वक्त सिकन्दर के चेहरे पर पत्थर की-सी कठोरता थी, चिंगारी पलीते पर दौड़ी।
" न...नहीं...नहीं।" चिल्ताते हुए साठे के चेहरे पर साक्षात् मौत ताण्डव कर रही थी।
साठे के अलावा सिकन्दर समेत सभी खामोश खड़े थे, आंखों में दहशत-सी लिए वे सभी पलीते पर अपनी यात्रा पूरी करती हुई चिंगारी को देख रहे थे—वह ज्यों-ज्यों साठे की तरफ सरकती जा रही थी, त्यों-त्यों सभी के दिलों की धड़कनें बढ़ती चली गईं—चीखते हुए साठे की जुबान लड़खड़ाने लगी।
चिंगारी बम तक पहुंची।
सिकन्दर समेत सभी ने अपनी आंखें बन्द कर लीं।
'धड़ाम' एक कर्णभेदी विस्फोट।
साठे की चीख उसी विस्फोट में कहीं दबकर रह गई।
¶¶
विस्फोट के तीस मिनट बाद मंच पर खड़ा सिकन्दर कह रहा था—" मैँने साठे को क्यों मारा है—इसीलिए न कि उसने जिसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की, वह मेरी बहन थी—जिनकी उसने हत्या की, वे मेरे अपने थे—और जब कोई मुजरिम हमारे किसी अपने को मारता है तो हम उससे बदला लेना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं—यह नहीं सोचते कि जिन्हें हमने मारा है वे भी किसी के अपने थे।"
सभी चकित भाव से सिकन्दर को देखते रह गए।
और एक बहुत ही घिनौने सच को सिकन्दर कहता चला गया— हम सब भी उतने ही दोषी हैं, जितना साठे था और तुम सबसे बड़ा दोषी मैं हूं।"
"य...ये आप क्या कह रहे हैं ' शाही कोबरा'?"
"वही, जो सच है—और यह सच मुझे सर्वेश के घर से पता लगा है—उसके घर से, जिसे बीयर में जहर मिलाकर मैंने कीड़े-मकोड़े की तरह मार डाला—जिसे हम अपनी उंगलियों के एक इशारे पर मार डालते हैं—नहीं सोच पाते कि उसके पीछे वे कितने लोग हैं, जिन्हें हमने जीते-जी मार डाला है।"
गहरा सन्नाटा व्याप्त हो गया।
"उस छोटे-से परिवार में केवल एक महीना गुजारकर मुझे यह महसूस हुआ कि जिसने वीशू से उसका पिता, देवी-सी मासूम रश्मि से उसका पति और बूढ़ी मां से बुढ़ापे का सहारा छीना है, वह इंसान कभी नहीं हो सकता—पशु होगा, दरिन्दा होगा और इसीलिए मैंने सर्वेश के हत्यारे से बदला लेने की कसम खाई थी। आज पता लगा है कि वह पशु, यह दरिन्दा मैं खुद हूं—यह अहसास करके ही मुझे गुनाह की अपनी इस जिन्दगी से नफरत हो गई है, मैं ' शाही कोबरा' नाम के इस गैंग को हमेशा के लिए तोड़ता हूं।"
"श...शाही कोबरा!
सिकन्दर के होंठों पर बड़ी ही जहरीली मुस्कान उभर आई, बोला—" फिक्र मत करो, दोस्तों—मैं न खुद को पुलिस के हवाले करने की सोच रहा हूं और न ही तुम्हें ऐसा करने की सलाह दे रहा हूं—बस, यह गैंग खत्म कर रहा हूं—गैंग के पास जितनी भी दौलत है, वह सभी में तुम लोगों में बराबर-बराबर बांट दूंगा, इस विश्वास के साथ कि जहां तुम अपने परिवार के साथ आज रहते हो, कल वहां से बहुत दूर निकल जाओगे—मिले हुए पैसे से नई और शराफत की जिन्दगी शुरू करोगे, भूल जाओगे कि तुम किसी आपराधिक गैंग के सदस्य थे, कोई ' शाही कोबरा' तुम्हारा चीफ था।"
¶¶
वर्दीधारी गार्ड्स समेत सिकन्दर इस तहखाने से गैंग के सभी व्यक्तियों को अलविदा कहकर विदा कर चुका था। लूट की दौलत तहखाने में थी, उसने उसे सभी लोगों में बराबर बांट दिया।
अब तहखाने में वह था या बेहोश विशेष।
जेहन में उत्तेजित अन्दाज में अपने ही द्वारा कहे गए शब्द गूंज रहे थे—'मुझे पूरा हक है रश्मिजी—अगर सच्चाई पूछें तो सर्वेश के हत्यारों से बदला लेने का आपसे ज्यादा हक मुझे है, क्योंकि सर्वेश के नाम और परिचय ने मुझे शरण दी है—म...मैं जिसे यह नहीं मालूम कि मैं कौन हूं—मैं दर-दर भटक रहा था—दुनिया में कहीं मेरी कोई मंजिल नहीं थी —तब मुझे इस घर में, इस छोटी-सी चारदीवारी में शरण मिली। शरण ही नहीं, यहाँ मुझे बेटे का स्नेह मिला है—मां की ममता गरज-गरजकर बरसी है मुझ पर और आप आप कहती हैं कि इस घर की नींव रखने वाले के लिए मेरा कोई हक नहीं है—अरे कच्चा चबा जाऊंगा उन्हें जिन्होंने मेरे भाई को मारा है—वीशू को यतीम करने वालों की बोटी-बोटी नोच डालूंगा मैं—एक बूढ़ी मां से उसका जवान बेटा छीनने की सजा उन्हें भोगनी होगी।
मैं वीशू की कसम खाकर कह चुका हूं कि हत्यारों को आपने कदमों में लाकर डाल देना ही मेरा मकसद है—बदला आप खुद अपने हाथों से लेंगी।
अपने ही इन वाक्यों ने उसे इस कदर झिंझोड़ डाला कि—
'नहीं।' हलक फाड़कर चिल्लाता हुआ वह एक झटके से खड़ा हो गया और फिर फटी-फटी आंखों से चारों तरफ देखने लगा—कमरे की खूबसूरत दीवारें उसे मुंह चिढ़ाती-सी महसूस हुईं।
पसीने-पसीने हो गया सिकन्दर।
दृष्टि पुन: मासूम विशेष पर जम गई।
' पापा-पापा' —कहकर उसका लिपट जाना याद आया।
तभी उसके अन्दर छुपी आत्मा कहकहा लगाकर हंस पड़ी—'क्यों, क्या अपने ही कहे शब्दों पर आज़ तुम्हें शर्म आ रही है?'
' न...नहीं।' वह सचमुच बड़बड़ा उठा।
' तो फिर सोच क्या रहा है—उठ—वीशू को लेकर उस बेवा के पास जा—अपनी कसम पूरी कर—जो तूने किया है उसका प्रायश्चित तो करना ही होगा—खुद को उसके कदमों में डाल दे।'
' म...मैं जा रहा हूं।'  पागलों की तरह बड़बड़ाते हुए उसने विशेष को उठाने के लिए हाथ बढ़ाए। फिर जाने क्या सोचकर बिना विशेष को लिए ही हाथ खींच लिए, तेजी के साथ बाहर वाले कमरे में अया। डैस्क के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठकर उसने पुश बटन दबाए। परिणामस्वरूप एक टीo वीo स्क्रीन पर ' मुगल महल' के रिसेप्शन का दृश्य उभर आया।
वहां ढेर सारी पुलिस, इंस्पेक्टर दीवान और चटर्जी को देखकर सिकन्दर के मस्तक पर बल पड़ गए। वे डॉली के स्थान पर रखी गई नई काउण्टर गर्ल से कुछ बातें कर रहे थे। सिकन्दर ने जल्दी से एक अन्य स्विच बंद कर दिया।
अब वह काउंटर पर होने वाली बातें सुन सकता था।
काउंटर गर्ल कह रही थी— मै आपसे कह चुकी हूं कि मुझे नहीं मालूम है कि इस वक्त मैनेजर साहब कहां हैं।"
"हमें कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच चेक करना है।" चटर्जी ने कहा।
"क्यों?”
 हमें इन्फॉरमेशन मिली है कि इस होटल के नीचे कोई तहखाना है और वह तहखाना ही कुख्यात तस्कर ' शाही कोबरा' का हेडक्वार्टर है।"
 क्या बात कह रहे हैं आप?” काउन्टर गर्ल हकला गई।
उसकी आंखों में झांकते हुए चटर्जी ने कहा—“और वहां के लिए रास्ता कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच से जाता है।"
"क...कमाल की बात कर रहे हैं आप—वह कमरा तो हमेशा इस होटल के मालिक न्यादर अली के नाम बुक रहता है।"
"उस कमरे को चैक करना इसीलिए और जरूरी हो जाता है।"
"ठ...ठहरिए मैँ आपके जाने की सूचना मालिक को देती हूं।" कहने केसाथ काउण्टर गर्ल ने रिसीवर उठाया ही था कि क्रेडिल पर हाथ रखते हुए चटर्जी ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कहा—“कोई फायदा नहीं होगा, क्योंकि पिछली रात सेठ न्यादर अली की हत्या हो चुकी है।"
"क...क्या?" काउण्टर गर्ल मुंह फाड़े चटर्जी का चेहरा देखती रह गई।
इससे ज्यादा बातें सुनने की सिकन्दर ने कोई कोशिश नहीं की, वह यह तो नहीं समझ सका कि पुलिस यहां तक कैसे पहुंच गई थी, परन्तु जानता था कि चटर्जी बहुत काईयां था—कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच चैक किए बिना अब वह लौटने वाला नहीं था और कमरे में पहुंचने के बाद रास्ता खोज लेने में भी उसे कोई दिक्कत नहीं होगी—अतः कोई खतरनाक निश्चय करके वह कुर्सी से उठा।
कमरे में मौजूद एक मजबूत सेफ के नम्बर सैट करके उसे खोला और एक टाइम बम हाथ में लिए, संकरी गैलरी से गुजरकर हॉल में पहुंचा। हॉल सूना पड़ा था।
सिकन्दर ने बम को एक थम्ब पर सेट किया, उसमें टाइम भरा और वापस स्क्रीन वाले कमरे में लौट आया—इस सारे काम में उसे करीब बीस मिनट लग गए थे—स्क्रीन पर रिसेप्शन का दृश्य अब भी मौजूद था, परन्तु वहां अब पुलिस नजर नहीं आ रही थी। कुर्सी पर बैठकर सिकन्दर स्क्रीन पर मौजूद दृश्य में परिवर्तन करने लगा—कुछ ही देर बाद कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच का दृश्य उसके सामने था।
कमरा पुलिस और होटल के स्टाफ से भरा हुआ था। चटर्जी अपनी पैनी आंखों से फर्श को घूरता फिर रहा था। अचानक ही सिकन्दर ने एक बटन ऑन किया और भर्राहटदार आवाज में बोला— हैलो इंस्पेक्टरा!"
चटर्जी सहित सभी चौंककर कमरे की दीवारों को घूरते नजर आए। शायद उन्हें उस स्थान की तलाश थी, जहां से आवाज आई थी। उनकी मनःस्थिति की परवाह किए बिना सिकन्दर ने कहा— मैं ' शाही कोबरा' बोल रहा हूं।"
अचानक चटर्जी ने कहा— क्या तुम हमारी आवाज भी सुन सकते हो?"
"जो कहना चाहते हो, कहो।"
"अब हम यहां से तुम्हें गिरफ्तार किए बिना लौटने वाले नहीं हैं।"
"यह जानकर तुम्हें हैरत होगी इंस्पेक्टर कि कुछ देर पहले ही यह गैंग हमेशा के लिए खत्म हो चुका है, जो ' शाही कोबरा' के नाम से तुम्हारी फाइलों में दर्ज था—अब तुम्हें कभी इस गैंग की तरफ से किसी वारदात की सूचना नहीं मिलेगी—रही मेरी बात—यानि ' शाही कोबरा' की बात सुनो, पन्द्रह मिनट बाद एक धमाका होगा और इस धमाके के साथ ही ' शाही कोबरा' हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।"
"अगर ये बचकाना चालें चलने के स्थान पर तुम खुद को हमारे हवाले कर दो तो शायद ज्यादा फायदे में रहोगे।"
"अगर तुमने मेरे शब्दों को ' बात' समझने की भूल की तो अपने साथ इन बेचारे ढेर सारे बेकसूर पुलिस वालों को भी ले मरोगे।"
 क्या मतलब?"
"तहखाने में मैंने एक टाइम बम फिक्स कर दिया है, अब उसके फटने में केवल तेरह मिनट बाकी रह गए हैं, टाइम बम बहुत शक्तिशाली है—इतना ज्यादा कि जिस कमरे में तुम खड़े हो, शायद उसकी दीवारों में भी दरारें जा जाएं।"
"तुम बकते हो।"
"अपनी कसम इंस्पेक्टर, यह सच है। कसम इसीलिए खा रहा हूं ताकि तुम विश्वास कर लो और विश्वास इसीलिए दिलाना चाहता हूं के क्योंकि मैं बेकसूरों का खून बहाना नहीं चाहता—प्लीज, उस कमरे से बाहर निकल जाओ।" कहने के बाद वह उठा और तेजी से अन्दर वाले कमरे में पहुंचा—एक हैंगर पर लटके काले कपड़े उसने सूटकेस में रखे, दो मिनट बाद ही गोद में विशेष और सूटकेस को लिए वह कमरे से बाहर निकला, स्क्रीन पर उसने देखा कि चटर्जी आदि कमरा खाली कर रहे थे।
बम के फटने से पहले ही गुप्त गैराज वाले रास्ते से सिकन्दर को निकल जाना था और यह विश्वास भी उसे था कि गैराज में अभी तक उसकी कैडलॉंक खड़ी होगी।
¶¶
विशेष को देखते ही रश्मि खुशी के कारण जैसे पागल हो गई—फफक-फफककर रोती हुई रश्मि ने उसे अनगिनत बार चूमा—बूढ़ी मां अलग पागल हुई जा रही थी। रास्ते ही में विशेष की चेतना लौट चुकी थी।
"दहशत के कारण वीशू को बुखार हो गया है—इसे डॉक्टर को दिखा लेना।" सिकन्दर ने कहा।
पहली बार रश्मि का ध्यान सिकन्दर की तरफ गया।
विशेष को बूढ़ी मां ने अपने कलेजे से लगा लिया।
कुछ देर तक आंखों में अजीब-से भाव लिए रश्मि खामोशी से उसे देखती रही और सिकन्दर का दिल किसी भारी कीड़े की तरह उसकी पसलियों पर चोट करता रहा।
बहुत ज्यादा देर तक वह रश्मि की चमकदार आंखों का सामना नहीं कर सका। सूनी मांग पर नजर पड़ते ही उसका चेहरा कागज-सा सफेद पड़ गया। दृष्टि स्वयं ही झुकती चली गई। रश्मि ने कहा—" मेरे वीशू की जान बचाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मिस्टर सिकन्दर।"
एक झटके से उसने चेहरा ऊपर उठाया। समूचा जिस्म ही नहीं बल्कि आत्मा तक सूखे पत्ते की तरह कांप उठी थी उसकी—या खुदा—रश्मि को कैसे पता लग गया कि मैं सिकन्दर हूं—मुंह से बुरी तरह कांपते स्वर में पूछा—" सिकन्दर?"
"क्या तुम सिकन्दर नहीं हो?" उसे घूरती हुई रश्मि ने पूछा।
सिकन्दर की हालत बुरी हो गई, मस्तिष्क अन्तरिक्ष में चकराता-सा महसूस हो रहा था। जिस्म सुन्न, मगर फिर भी उसने पूछ ही लिया— अ..आप यह कैसे कह सकती हैं?"
"एक बार फिर वही इंस्पेक्टर दीवान और चटर्जी आए थे।"
" फ...फिर? ” सिकन्दर के प्राण गले में आ अटके।
"वे कह रहे थे कि तुम्हारा नाम सिकन्दर है—पिछली रात तुम अपने पिता न्यादर अली का खून करके आए थे—पुलिस को यह बयान न्यादर अली की कोठी के चौकीदार और एक नौकर ने दिया है।"
 व...वह झूठ है।"
"खैर।" एक ठंडी सांस भरने के बाद रश्मि ने कहा—" तुम क्या हो, मैँ इस सवाल में और ज्यादा उलझने की जरूरत महसूस नहीं करती—इस वक्त केवल इतना ही जानती हूं कि तुम मेरे वीशू को बचाकर लाए हो और इसीलिए आगाह कर रही हूं कि पुलिस तुम्हें ढ़ूंढती फिर रही है, चटर्जी के पास तुम्हारे खिलाफ पूरे सबूत भी हैं।"
"क...कैसे सबूत?"
"रुई के गोदाम में उन्हें दो लाशें मिली हैं। एक बिल्ला की दूसरी डॉली की—चटर्जी का ख्याल है कि वे दोनों हत्याएं तुमने की हैं।"
"तुम तो जानती हो रश्मि कि यह गलत है, डॉली को मैंने नहीं मारा—हां, बिल्ला जरूर मेरे द्वारा फेंके गए चाकू से मरा है।"
"वह चाकू तुमने अपने बाएं हाथ से ही फेंका होगा न? ”
"हां।”
"अब वे तुम्हारे बाएं हाथ की ही उंगलियों के निशान लेने की फिराक में हैं—यह एक ठोस सबूत उनके पास है, जिसके आधार पर वे यहां आसानी से डॉली का हत्यारा भी तुम्हें ही साबित कर देंगे, उधर न्यादर अली की हत्या के सिलसिले में तो उनके पास दो गवाह भी हैं।"
सूखे रेत पर पड़ी मछली की-सी अवस्था हो गई उसकी, बोला— प...प्लीज रश्मि—कम-से-कम तुम मुझ पर ये व्यंग्य बाण न चलाओ।"
"बेशक—यह कहने का हक तुम्हें है, क्योंकि तुम मेरे बेटे को बचाकर लाए हो और केवल इसीलिए बता रही हूं कि पुलिस के इतना सब कहने के बावजूद भी मैंने तुम्हारे बारे में उन्हें कुछ नहीं बताया था, परन्तु इंस्पेक्टर चटर्जी बहुत काईयां है—उसने वह पत्र पकड़ लिया जो रूपेश यहां छोड़ गया था और उसे पढ़ने के बाद, बिना मेरे बताए ही वह शायद सब कुछ समझ गया था।"
अब सिकन्दर की समझ में पुलिस के ' मुगल महल' तक पहुंच जाने का रहस्य आ गया। अन्दर-ही-अन्दर चीखता रह गया वह। समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। तभी रश्मि ने पूछा—"क्या मैं जान सकती हूं कि इतने सारे गुण्डों के बीच से तुम वीशू के साथ-साथ खुद को भी सुरक्षित कैसे निकाल लाए?"             
 छोड़ो रश्मि, जो हुआ, उसे दोहराने से कोई लाभ नहीं है।" सिकन्दर बात को टालता हुआ बोता, " बस यूं समझ लो कि पुलिस के वहां पहुंचने से पहले ही मैं ' शाही कोबरा' के सारे गैंग को खत्म कर चुका था।"
रश्मि के हलक से गुर्राहट-सी निकली—“' शाही कोबरा'?"
"वह अभी जिन्दा है।"
"कहां है?" खूनी और चट्टानी स्वर—ऐसा कि सुनकर सिकन्दर के रोंगटे खड़े हो गए।
अपने दिलो-दिमाग को काबू में रखकर वह बोला—" मेरी कैद में है।"
"तुमने उसे मुझे सौंप देने का वादा किया था।"
"सौंप दूंगा, मगर...।"
"मगर?"
एक पल चुप रहा सिकन्दर, रश्मि की आंखों में झांकता रहा, मगर उसकी सख्त दृष्टि का सामना नहीं कर सका वह। अत: घबराकर नजरें झुका लीं—खुद को सामान्य दर्शाने की कोशिश में चहलकदमी करता हुआ बोला— मैँ कुछ पूछना चाहता हूं।"
"क्या? ”
"' शाही कोबरा' ने जो कुछ किया है, अगर वह आज अपने पश्चाताप की आग में सुलग रहा हो, क्या तब भी तुम उसे गोली मारना
पसन्द करोगी?"
रश्मि हिंसक-सी गुर्रा उठी—" पश्चात्ताप की आग में जलना उस दरिन्दे की सजा नहीं है, सजा उसे मेरे रिवॉल्वर से ही भोगनी होगी।"
सिहर उठा सिकन्दर, बोला—" सर्वेश की हत्या करने के बाद अगर ' शाही कोबरा' ने तुम पर या इस पूरे परिवार पर कुछ एहसान किया हो तो?"
एकाएक ही रश्मि की आंखों में शंका के साए उभर आए। यह अजीब-सी दृष्टि ते सिकन्दर को घूरती हुई बोली—" उस कमीने ने भला मुझ पर क्या एहसान कर दिया है?"
 मान लो कि आज वीशू उसी की बदौलत यहां जीवित पहुंचा हो?"
बड़ा ही कठोर स्वर— क्या मतलब?"
"अगर वह न चाहता तो सचमुच इतने बड़े गैंग के बीच से मेरे लिए वीशू को निकालकर लाना नामुमकिन था। उसने ना केवल मुझे और वीशू को वहां से सुरक्षित निकाला, बल्कि खुद ही अपने सारे गैंग और हैडक्वार्टर को नष्ट भी कर दिया।"
"फिर भी मेरी नजरों में उसका गुनाह कम नहीं हो जाता।" रश्मि ने पूरी दृढ़ता के साथ कहा—" अगर वह यह सोचता है कि तुम्हारे मुंह से इस सूचना को मुझ तक पहुंचाकर मेरे प्रतिशोध की आग से बच सकेगा तो यह उसकी मूर्खतापूर्ण कल्पना है। उससे कह देना मिस्टर, रश्मि नाम की विधवा उस सौदागर से सुहाग की जान का सौदा बेटे की जान से नहीं करेगी—मैंने उनकी मौत का बदला लेने की कसम खाई है और हर हालत में अपनी कसम पूरी करके रहूंगी।"
रश्मि के शब्दों से कहीं ज्यादा उसके लहजे की दृढ़ता ने सिकन्दर के होश फाख्ता कर दिए। यह समझने में उसे देर नहीं लगी कि हकीकत खुलने के बाद एक क्षण भी रश्मि उसे जीवित नहीं छोड़ेगी, बोला—“तब ठीक है, मैं उसे तुम्हारे हवाले कर दूंगा।"
“कब—कहां?"
"आज ही रात, दस बजे—प्रगति मैदान में।"
बेलोच स्वर में हाथ फैलाकर रश्मि ने कहा—“मेरा रिवॉल्वर।"
जेब से रिवॉल्वर निकालकर रश्मि को देते वक्त जाने क्यों सिकन्दर का दिल बहुत जोर से कांप उठा था, शायद यह सोचकर कि इसी रिवॉल्वर से रात के दस बजे वह खुद मरने वाला है, मनोभावों को काबू में करके बोला—“मेरे ख्याल से ' मुगल महल' से निराश होने के बाद पुलिस वापस सीधी यहीं आएगी, अत: मेरा यहां रहना ठीक नहीं है।"
"बेशक तुम जा सकते हो, मगर दस बजे प्रगति मैदान में तुम भी पहुंचोगे न?"
 मैं मिलूं न मिलूं, मगर ' शाही कोबरा' तुम्हें जरूर मिलेगा रश्मि।" कहने के बाद वह मुख्य द्वार की तरफ बढ़ा, फिर जाने क्या सोचकर बोला— वीशू को डॉक्टर के यहां जरूर ले जाना—उसे बहुत तेज बुखार है।"
रश्मि ने उल्टा सवाल किया—" क्या मैं पूछ सकती हूं कि बाहर खड़ी कार किसकी है?"
“श.....' शाही कोबरा' की। एक झटके से कहने के बाद वह निकल गया।
¶¶
सिकन्दर के समूचे जिस्म पर चुस्त लिबास था, चेहरे पर उसी लिबास के साथ का नकाब—प्रगति मैदान के बाहर वाली लाल बारहदरी में बने बहुत-से थम्बों में से एक के पीछे खड़ा था वह—दूर-दूर तक हर तरफ खामोशी छाई हुई थी।
चांदनी छिटकी पड़ी थी—आकाश पर चांदी के थाल-सा चन्द्रमा मुस्करा रहा था। थम्ब के पीछे छुपे सिकन्दर ने मुख्य द्वार की तरफ देखा, कहीं कोई न था।
प्रगति मैदान के चौकीदार को वह पहले ही बेहोश करके एक अंधेरे कोने में डाल चुका था। सिकन्दर ने रिस्टवॉच में समय देखा।
दस बजने में सिर्फ पांच मिनट बाकी थे।
सिकन्दर के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं—जाने कौन उसके कान में फुसफुसाया—'पांच मिनट, सिर्फ पांच मिनट बाकी रह गए हैं सिकन्दर—हाथ में रिवॉल्वर लिए रश्मि आएगी—तुझे उसके सामने जाना होगा—वह तुझे मार डालेगी।"
सिकन्दर पसीने-पसीने हो गया।
लोहे वाला मुख्य द्वार धीरे से खुला।
नजर मुख्य द्वार की तरफ उठी तो दिल 'धक्क्' की आवाज के साथ एक बार बड़ी जोर से धड़का और फिर रबड़ की गेंद के समान उछलकर मानो उसके कण्ठ में आ अटका—वह रश्मि ही थी।
चांदनी के बीच, सफेद लिबास में इसी तरफ बढ़ती हुई वह सिकन्दर को किसी पवित्र रूह जैसी लगी—हां, रूह ही तो थी वह—ऐसी रूह, जो उसके प्राण लेने आई है—खामोश। रश्मि चौकन्नी निगाहों से अपने चारों तरफ देखती धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ी चली जा रही थी। विचारों का बवंडर पुनः सिकन्दर के कानों के आसपास चीखने-चिल्लाने लगा, आत्मा चीख-चीखकर कहने लगी—तेरे मरने का समय आ गया है सिकन्दर, यहां इस थम्ब के पीछे छुपा क्यों खड़ा है—बाहर निकल यहां से—उसके सामने पहुंच—अगर बहादुर है तो सीना तानकर खड़ा हो जा उसके सामने—क्योंकि तेरे गुनाहों की यही सजा है।
फिर किसी अजनबी शक्ति ने उसे थम्ब के पीछे से धकेल दिया—शराब के नशे में चूर-सा वह लड़खड़ाता हुआ चांदनी में पहुंच गया। उसे अचानक ही यूं अपने सामने प्रकट होता देखकर एक पल के लिए तो रश्मि बौखला-सी गई, परन्तु अगले ही पल अपने आंचल से रिवॉल्वर निकालकर तान दिया।
कंपकपाकर सिकन्दर किसी मूर्ति के समान खड़ा रह गया।
रश्मि उसके काले लिबास पर चमकदार गोटे से जड़े ' कोबरा' को देखते ही सख्त हो गई, मुंह से गुर्राहट निकली—“तू ही ' शाही कोबरा' है?"
"हां।" सिकन्दर की आवाज उसके कण्ठ में फंस गई।
रश्मि के संगमरमरी चेहरे पर सचमुच के संगमरमर की-सी कठोरता उभर आई, आग का भभका-सा निकला उसके मुंह से—"तुम ही ने सर्वेश को मारा था?"
"हां।"
"फिर इतनी आसानी से खुद को मेरे हवाले क्यों कर रहे हो?"
रश्मि के इस सवाल का जवाब ' हां' या ' नहीं' में नहीं दिया जा सकता था, और जिस सिकन्दर के मुंह से आतंक की अधिकता के कारण ' हां' भी पूरी तरह ठीक न निकल रहा हो, वह भला एकदम से इस सवाल का जवाब कैसे दे देता?
उसने कोशिश की, परन्तु आवाज कण्ठ में ही गड़बड़ाकर रह गई—तेज हवा से घिरे सूखे पत्ते-सा उसका जिस्म कांप रहा था, जिस्म ही नहीं, जेहन और आत्मा तक—आंखों के सामने अंधेरा छाया जा रहा था, खड़े रहना मुश्किल हो गया—अपनी तरफ तने रिवॉल्वर को देखकर भला ऐसी हालत किसकी न हो जाएगी?
सिकन्दर अभी इस अन्तर्द्वन्द से गुजर ही रहा था कि रश्मि की गुर्राहट गूंजी—"जवाब क्यों नहीं देता, इतनी आसानी से खुद को मेरे हवाले क्यों कर रहा है?"
और उस क्षण मरने से डर गया सिकन्दर।
बिजली की-सी गति से घूमा और किसी धनुष के द्वारा छोड़े गए तीर की तरह एक तरफ को भागा।
उसे भागते देख रश्मि की आंखें सुलग उठीं।
‘धांय-धांय।' उसने दो बार ट्रेगर दबा दिया।
.मगर निशाना साध्य नहीं था अत: गोलियां बेतहाशा भागते हुए सिकन्दर के दाएं-बाएं से निकल गईं और उसी पल भागता हुआ सिकन्दर बुरी तरह लड़खड़ाया—गिरते-गिरते बचा वह।
रश्मि की दृष्टि उसके जूते की घिसी हुई एड़ियां पर पड़ी। फायर करने तक का होश न रहा—रिवॉल्वर ताने किसी सफेद स्टैचू के समान खड़ी रह गई थी वह। कानों में अपने ही कहे गए शब्द गूंज रहे थे—'तुम्हारे दोनों जूतों की एड़ियां घिस गई हैं। शायद इसीलिए आंगन पार करते समय कई बार लड़खड़ा गए, मेरी सलाह है कि एड़ियां ठीक करा लो, वरना कहीं मुंह के बल गिर पड़ोगे।'
¶¶
कैडलॉक को स्वयं ड्राइव करता हुआ सिकन्दर अब प्रतिपल प्रगति मैदान से दूर होता चला जा रहा था। उस वक्त उसके चेहरे पर कोई नकाब नहीं था।
कैडलॉंक उसने लारेंस रोड की तरफ जाने वाली सड़क पर डाल दी—अपने बंगले के पिछले हिस्से में जाकर उसने कैडलॉक रोकी—दूर-दूर तक खामोशी छाई हुई थी। उसका अपना बंगला सन्नाटे की चादर में लिपटा खड़ा था।
सिकन्दर ने कैडलॉक में पड़े सूटकेस से शीशा काटने वाला एक हीरा तथा पेन्सिल टॉर्च निकालकर गाड़ी ' लॉक' कर दी—एक ही जम्प में चारदीवारी के पार 'धप्प'—की हल्की-सी आवाज के साथ बंगले के पिछले लॉन में गिरा।
दो मिनट बाद ही वह ग्राउण्ड फ्लोर पर स्थित एक कमरे की खिड़की का शीशा काट रहा था—शीशा काटने के बाद कटे हुए भाग में हाथ डाला और चिटकनी खोल ली।
अगले पल वह कमरे में था।
पैंसिल टॉर्च के क्षीण प्रकाश में ही यह दीवार के साथ जुड़ी नम्बरों वाली एक मजबूत सेफ के नज़दीक पहुंच गया।
सेफ न्यादर अली की थी—हालांकि सिकन्दर ने इसे पहले कभी नहीं खोला था, परन्तु नम्बर जरूर जानता था—नम्बर मिलाकर उसने बड़ी सरलता से सेफ खोल ली।
सेफ नोटों की गड्डियों और पुराने कागजात से अटी पड़ी थी।
तलाश करने पर सिकन्दर को उसमें से एक हफ्ते पहले की ' डेट' का "बॉण्ड पेपर" मिल गया। उसकी आंखें किसी अन्जानी खुशी के जोश में चमक उठीं।
फिर अचानक ही सिकन्दर के हाथ एक ऐसी डायरी लग गई, जिस पर शब्द ' व्यक्तिगत' लिखा था जाने क्या सोचकर सिकन्दर ने डायरी उठा ली।
डायरी से एक फोटो निकलकर फर्श पर गिर पड़ा।
यह किसी बहुत ही खूबसूरत युवा लड़की का फोटो या। उत्सुकता के साथ सिकन्दर ने फोटो उठा लिया।
फोटो को ध्यान से देखते ही वह चौंक पड़ा।
उसे लगा कि यह फोटो सर्वेश की मां की युवावस्था का है और यह ख्याल आते ही सिकन्दर के जेहन में बिजली-सी कौंध गई।
उसने पलटकर फोटो की पीठ देखी, वहां लिखा था—" मेरे दिल की धड़कन सावित्री।” और सिकन्दर अच्छी तरह जानता था कि यह
राइटिंग उसके डैडी न्यादर अली की है।
सिकन्दर ने जल्दी से डायरी खंगाल डाली।
अपने पिता और सावित्री नामक सर्वेश की मां के बहुत-से प्रेम-पत्र थे उसमें—सावित्री का एक पत्र यूं था—
' तुमने तो शादी कर ली न्यादर, लेकिन मैं हिन्दू ही नहीं बल्कि सावित्री भी हूं—वह, जो एक जीवन में किसी एक ही पुरुष को अपना पति मानती है। हालांकि अपना तन मैंने तुम्हें कभी नहीं सौंपा, परन्तु मन से तुम्हें ही पति स्वीकार कर चुकी हूं, अत: दूसरी शादी कभी नहीं करूंगी।
तुम बेवफा निकल गए न्यादर—हजार कसमें खाने के बाद भी तुम मजहब की दीवारों को फांदकर मुझे अपना नहीं सके—इतना ही नहीं, शादी भी रचा ली तुमने—यह भी न कर सके कि यदि सावित्री से शादी नहीं हो सकती तो किसी से भी न करते—मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकी—जिस दिन तुमने शादी की, उसी दिन मैंने तुम्हें बेवफाई की सजा देने का निश्चय कर लिया था—मैंने सोच लिया था कि जिस दिन तुम्हारी पत्नी पहले बच्चे को जन्म देगी, चोर बनकर उसे चुरा जाऊंगी और पालूंगी।
मगर विधि शायद सब कुछ सोचने के बाद ही विधान लिखती है। मुझे सूचना मिली है कि तुम्हारी पत्नी ने जुड़वां  बच्चों को जन्म दिया है, भगवान ने खुद ही फैसला कर दिया।
एक तुम्हारा, एक मेरा।
आखिर ये लम्बी जिन्दगी काटने के लिए मुझे भी तो कोई सहारा चाहिए—पति के रूप में न सही, बेटे के रूप में तुम्हारा बेटा ही सही—एक नारी होने के नाते जानती हूं कि तुम्हारी पत्नी पर क्या गुजरेगी, फिर उस बेचारी का कोई दोष भी तो नहीं है, दोष तो सिर्फ इतना कि वह भी एक नारी है और तुम जैसे पुरुषों की करनी को भरने की तड़प सदियों से बेगुनाह नारी को ही तो सहनी पड़ती है। मेरा ऐसा करना दो कारणों से जरूरी है।
पहला, मुझे जीने का सहारा चाहिए—कुछ तो ऐसा होना ही चाहिए, जिससे तुम्हें अपनी बेवफाई का हमेशा अहसास रहे। मैं जानती हूं कि यह पत्र अपनी पत्नी को दिखाने की हिम्मत तुममें नहीं है—सारी जिन्दगी उस बेचारी को यही कह-कहकर ठगते रहोगे कि तुम नहीं जानते कि बच्चे को कौन उठा ले गया। मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगी।
—तुम्हारी सावित्री।
¶¶
अपनी आत्मा के चिल्लाने की आवाज वह साफ सुन रहा था—' सर्वेश तेरा भाई था सिकन्दर—अब तेरी समझ में उसके हमशक्ल होने का रहस्य आया—वह तेरा भाई था, जिसे तूने मार डाला कुत्ते—जलील-कमीना है तू—अपने ही भाई को मार डाला तूने....देखा ऊपर वाले की लाठी कितनी सख्त है?
वह बड़बड़ा ' उठा—"म...मगर अब में क्या करूं? 
' वहीं जा—उसी छोटे-से घर की चारदीवारी में तुझे सुकून मिलेगा।'
"म...मगर रश्मि तो मुझे मार डालेगी।”
' हुंह—मरने से अभी तक डरता है? ' आत्मा व्यंग्य कर उठी—' मौत से यूं भागते हुए तुझे सुकून नहीं मिलेगा।'
जीने की ललक पहली बार बिल्कुल स्पष्ट होकर उभरी—'म....मगर मैं मरना नहीं चाहता, मरने का साहस नहीं है मुझमें।'
'चल यूं ही सही—मगर ये पुष्टि तो तुझे करनी ही होगी कि बूढ़ी मां का नाम सावित्री है या नहीं—रश्मि के पति—वीशू के पिता और अपने भाई की हत्या का पश्चाताप तो करना ही होगा—अपनी सारी दौलत तुझे वीशू के नाम करनी है—कागज उसे सौंपने तो वहां जाना ही होगा।'
यह बड़बड़ाया—'म...मुझे जाने में क्या है—रश्मि बेचारी क्या जाने कि मैं ही ' शाही कोबरा' हूं।'
¶¶
रश्मि के कानों में एकाएक वह शब्द गूंज रहा था, जो ' मुगल महल' से लोटने पर युवक और विशेष ने कहा था—अब हर शब्द का अर्थ उसकी समझ में आ रहा था—इस निश्चय पर पहुंचने के बाद वह खुद हैरान थी कि वही युवक ' शाही कोबरा' है।
अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी वह छत को घूरती हुई यह समझने का प्रयास कर रही थी कि जब मरने के लिए वह खुद को पेश कर चुका था तो ऐन मौके पर भाग क्यों खड़ा हुआ? अत्यधिक ही तेजी के साथ                जेहन में एक सवाल कौंधा—" क्या वह फिर यहां आएगा?
‘हां, आ सकता है—यह सोचकर कि मैं भला क्या जानूं कि वह नकाबपोश जाने किस भ्रम का शिकार होकर यहां जरूर आ सकता है।'
'अगर आ गया तो? '
सोचते-सोचते रश्मि के रोंगटे खड़े हो गए—उत्तेजना के कारण लेटी-लेटी ही कांपने लगी वह। चेहरा सख्त हो गया और बड़बड़ा उठी—अगर वह इस बार यहां आ गया तो इस घर के दरवाजे से बाहर उसकी लाश ही निकलेगी।'
तभी मकान के मुख्य द्वार पर सांकल जोर से बज उठी।
रश्मि बिस्तर से लगभग उछल पड़ी—जिस्म के सभी मसामों ने एक साथ ढेर सारा पसीना उगल दिया—उत्तेजना के कारण थर-थर कांप रही थी वह—'क्या वही कमीना आया है? '
'हां, इतनी रात गए और यहां आ भी कौन सकता है? '
विशेष गहरी नींद सो रहा था।
बाहरी दरवाजे की सांकल एक बार पुन: बजी।
'आ रही हूं कुत्ते—अपनी मौत का दरवाजा खटखटा रहा है तू।' बड़े ही भयंकर स्वर में बड़बड़ाती हुई रश्मि ने सिरहाने से रिवॉल्वर निकालकर ब्लाउज में ठूंस लिया और उसे आंचल से ढांपकर आगे बढ़ गई।
¶¶
'कैडलॉक' वह ऐसे स्थान पर छुपा आया था, जहां सहज ही किसी की नजर नहीं पड़ सकती थी और वक्त पड़ने पर उसके जरिए वह देहली पुलिस की पकड़ से बहुत दूर निकल सकता था—हां, एक सूटकेस जरूर उसके हाथ में था।
तीसरी बार सांकल खटखटाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि दरवाजा खुल गया और सामने ही खड़ी संगमरमर की प्रतिमा उसे नजर आई। कई पल तक एक-दूसरे के सामने वे खामोश खड़े रहे। सिकन्दर महसूस कर रहा था कि इस वक्त रश्मि के मुखड़े पर बहुत सख्त भाव थे, परन्तु उनका बिल्कुल सही कारण वह नहीं समझ पाया।
चौखट पार करके उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया। रश्मि की तरफ पलटता हुआ धीरे से बोला—" मुझे दुख है रश्मि कि दो फायर करने के बावजूद भी तुम उसे मार नहीं सकीं।"
"क्या तुम यह जानते हो?"
"हां।"
"कैसे?" रश्मि ने एक झटके से पूछा— मेरा मतलब, क्या तुम भी वहीं थे?"
"हां।"
"नजर तो वहां आए नहीं?"
सिकन्दर ने अजीब-से स्वर में कहा—"मैं वहीं था—तुम्हें नजर न आया तो इसमें मेरा क्या दोष?"
मन-ही-मन रश्मि बड़बड़ाई कि मुझे तू बहुत अच्छी तरह नजर आ चुका है कुत्ते मगर प्रत्यक्ष में उसने कहा—" तुम वहीं थे तो भागते हुए 'शाही कोबरा' को पकड़ा क्यों नहीं?
"' शाही कोबरा' को न मैंने पेश किया था और न ही पकड़ सका।"
"क्या मतलब?"
"पश्चाताप की आग में झुलसते हुए ' शाही कोबरा' ने मरने के लिए तुम्हारे सामने खुद को खुद ही पेश किया था, परन्तु शायद ऐन वक्त पर मौत से डरकर भाग खड़ा हुआ।
"बहुत कायर निकला तुम्हारा ' शाही कोबरा' ।"
यूं कहा सिकन्दर ने— मौत से ज्यादा बहादुर शायद कोई नहीं है।"
 खैर, मुझे पूरा विश्वास है कि अब वह भागकर कहीं न जा सकेगा—बहुत जल्दी ही मेरी गोली का निशाना बनना होगा उसे।"
"तुम उसे पहचान कैसे सकोगी?"
"हुंह!" व्यंग्य, धिक्कार और जहर में बुझी मुस्कान के साथ रश्मि ने कहा— एक बार रश्मि जिसे देख लेती है, उसे पहचानने में कभी भूल नहीं करती—मैंने उसे भागते हुए देखा है और मैं विश्वास के साथ कहती हूं कि ' चाल' से ही मैं उसे पहचान लूंगी।
पसीने छूट गए सिकन्दर के। दिमाग में बिजली के समान गड़गड़ाकर यह वाक्य कौंधा कि कहीं रश्मि जान तो नहीं गई है कि मैं ही ' शाही कोबरा' हूं?
घबराकर सिकन्दर ने विषय बदल दिया—" वीशू कैसा है?"
"डॉक्टर की दवा के बाद अब ठीक है।"
सिकन्दर ने महसूस किया कि वह वाक्य रश्मि ने दांत सख्ती भींचकर बोला है—एक-एक शब्द को चबाकर—और यह अन्दाज उसकी वर्तमान उत्तेजक स्थित का द्योतक है। रश्मि इतनी उत्तेजित क्यों है?
जवाब में पुन: वही सवालरूपी शंका घुमड़ उठी।
अचानक ही रश्मि ने सवाल दागा—'अब तुम यहां क्यों आए हो? '
एक पल के लिए गड़बड़ा-सा गया सिकन्दर। अगले ही पल संभलकर बोला “मु....मुझे तुमसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं।"
"कैसी बातें?" स्पष्ट स्वर।
थोड़ा हिचकते हुए सिकन्दर ने कहा—"वे बातें किसी कमरे में हों तो बेहतर है।"
रश्मि ने मन-ही-मन सोचा कि ठीक है, तुझे कमरे के अन्दर ही गोली मारनी उचित होगी—यहां चांदनी का मद्धिम प्रकाश है, वहां भरपूर प्रकाश होगा मैं मरते वक्त तेरे चेहरे पर उभरने वाले भावों को स्पष्ट देख सकूंगी कमीने—तू अभी तक रश्मि को मूर्ख समझता है—हमेशा की तरह इस वक्त भी ठग रहा है मुझे—मगर अब तू उल्टा ठगा जाएगा—मैं ठगूंगी तुझे—ऐसा कि सात जन्मों तक तुझे याद रहेगा।
वे उस कमरे में पहुंच गए, जिसमें सिकन्दर रहा करता था, रश्मि ने लाइट ऑन की—एक-दूसरे को भरपूर अंदाज में देखा उन्होंने। उसे घूरती हुई रश्मि ने पूछा—" बोलो, क्या बात कहना चाहते थे?"
" म...मैं मांजी का नाम जानना चाहता हूं।"
प्रश्न सुनकर वाकई चौंक पड़ी रश्मि—“क्यों?”
“यूं ही।”
"इस अजीब-से प्रश्न की कोई वजह तो होगी?"
"वजह मैं आपको बाद में बता दूंगा, प्लीज—पहले आप नाम बताइए।"
 सावित्री।”
पहले से शंका होने के बावजूद भी सुनकर सिकन्दर के दिलोदिमाग को एक झटका-सा लगा। बड़ी तेजी से उसके चेहरे पर भाव परिवर्तित हुए। इस परिवर्तन को नोट करके अन्दर-ही-अन्दर रश्मि चौंक पड़ी, अधीर होकर उसने कहा— अब तुम्हें वजह बतानी है।"
"प्रगति मैदान से मैं सेठ न्यादर अली की कोठी पर गया, यह पुष्टि करने कि जब सभी लोग मुझे सिकन्दर रहे को हैं तो कहीं मैं वास्तव में सिकन्दर ही तो नहीं हूं।"
"किस नतीजे पर पहुंचे?"
"वहां पहुंचने के बाद जहां मुझे विश्वास हो गया कि मैं सिकन्दर ही हूं—वहीं एक और बहुत हैरतअंगेज रहस्य पता लगा।"
"कैसा रहस्य?"
"यह कि सर्वेश मेरा भाई था, जुड़वां भाई।"
"क...क्या?' रश्मि अनायास ही उछल पड़ी और फिर अचानक ही बड़ी तेजी से उसके जेहन में विचार कौंधा कि अब यह जालसाज मुझे ठगने के लिए एक बिल्कुल ही नया प्वाइंट लाया है, चेहरा एकदम सख्त हो गया—"खुद को सर्वेश होने का विश्वास न दिला सके तो अब हमशक्ल होने का लाभ उनका जुड़वां भाई बनकर उठाना चाहते हो?"
"न...नहीं रश्मि, प्लीज—इसे झूठ मत समझो—इस रहस्य ने खुलकर मेरे अन्दर जैसे उथल-पुथल मचा दी है—ऐसी कसक पैदा कर दी है, उसे केवल मैं ही महसूस कर सकता हूं। इसे देखो—यह मेरे पिता न्यादर अली की व्यक्तिगत डायरी है।"
सिकन्दर ने जेब से डायरी निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दी।
रश्मि ने डायरी ली।
पन्द्रह मिनट बाद वह पूरी तरह जान गई कि सिकन्दर झूठ नहीं बोल रहा है। एकाएक ही उसके जेहन में विचार उभरा कि यह जानने के बाद इस दरिन्दे की हालत क्या हुई होगी कि इसने अपने ही भाई की हत्या कर दी है?
बड़ी ही कठोर दृष्टि से उसे घूरती हुई रश्मि बोली—" तो तुम सिकन्दर हो, मेरे पति के भाई?"
"हां—मैंने खुद भी इस डायरी को देखने के बाद जाना है।"
उसे कातर दृष्टि से देखती हुई रश्मि ने पूछा—" तो फिर इसमें इतना उदास होने की क्या बात है?"
सिकन्दर ने एक-एक शब्द को चबाया—"हां, इसमें किसी उदास होने जैसी कोई बात नजर नहीं आएगी, तुम्हें भी नहीं रश्मि, म..मगर मैं ही जानता हूं कि जब से यह रहस्य खुला है, तब से मेरे दिल पर क्या गुजर रही है—मुझे हैरत है रश्मि कि अभी तक मैं पागल क्यों नहीं हो गया हूं।
रश्मि दांत भींचकर गुर्राई— हो जाएगा दरिन्दे, पागल भी हो जाएगा तू।"
“क.....क्या मतलब?" सिकन्दर रश्मि के इस परिवर्तन पर उछल पड़ा।
एक झटके से रश्मि ने रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दिया, गुर्राई-—"तुझमें अब भी यह कहने की हिम्मत नहीं है कुत्ते कि सर्वेश की हत्या तूने ही की थी।"
"र...रश्मि।" सिकन्दर की आंखें फट पड़ीं।
"मैं जानती हूं कमीने कि ' शाही कोबरा' तू ही है।" चेहरे पर असीम घृणा लिए रश्मि गुर्राती चली गई—" तेरे जूते की एड़ियां अभी तक घिसी हुई हैं, प्रगति मैदान में भी लड़खड़ा गया था तू।"
हैरत के कारण सिकन्दर का बुरा हाल हो गया, आंखें फाड़े रश्मि को देखता ही रह गया था—जिस्म और आत्मा सूखे पत्ते की तरह कांप उठीं, चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—अपने ठीक सामने उसे साक्षात् मौत नजर आई।
एकाएक ही रश्मि खिलखिलाकर हंस पड़ी।
सिकन्दर हक्का-बक्का रह गया।
पागलों की तरह हंसने के बाद रश्मि ने कहा—"मरने से तू अभी तक डरता है, हत्यारे—देख, जरा अपनी आंखों के आईने में अपने सफेद चेहरे को देख—कैसा निस्तेज पड़ गया है—जैसे जिस्म में खून की एक भी बूंद न हो—लाश के चेहरे से भी कहीं ज्यादा फीका।"
सिकन्दर की हालत बयान से बाहर थी।
उसी तरह खिलखिलाती हुई रश्मि ने कहा—" डरता क्यों है कुत्ते, मैं तुझे मारूंगी नहीं।"
सिकन्दर की आंखों में हैरत के भाव उभर आए।
"यह बात तो मेरी समझ में अब आई है कि मौत तेरे जुर्मों की उचित सजा नहीं है—ब.....बहुत देर से समझी कि तुझे जीवित छोड़ देना, मार देने से हजार गुना सख्त सजा है—जा, मैं तुझे नहीं मारती।" कहने के साथ रश्मि ने रिवॉल्वर एक तरफ फेंक दिया।
"र...रश्मि।"
 अगर मार हूं तो तू केवल एक क्षण के लिए तड़पेगा और अपने पति के हत्यारे को इतनी आसान सजा देकर मैँ उनकी खाई हुई कसम का अपमान नहीं करूंगी—नहीं कह सकती कि तू समझेगा या नहीं—मगर मैं समझती हूं कि तुझे जीवित छोड़कर मैंने अपनी कसम पूरी कर ली है, उनके हत्यारे से बदला ले लिया है मैंने—तुझे जीवित रहना होगा, यह सोच-सोचकर पश्चाताप की आग में सुलगते रहना होगा तुझे कि तू अपने भाई का हत्यारा है।" कहने के बाद वह मुड़ी और सिकन्दर को कुछ भी कहने का अवसर दिए बिना हवा के तीव्र झोंके की तरह कमरे से बाहर निकल गई।
सिकन्दर अवाक्-सा खड़ा रह गया।
¶¶
अपने कमरे में सर्वेश के फोटो के सामने हाथ जोड़े खड़ी रश्मि कह रही थी—म...मैँ अकेली हूं प्राणनाथ—बहुत अकेली हूं मैं—और तुमने बहुत बड़ी दुविधा में फंसा दिया मुझे—वह तुम्हारा हत्यारा है, तुम्हारा ही भाई भी और यह भी सच है कि तुम्हारे लाल को प्राणों की बाजी लगाकर बॉस के चंगुल से निकालकर लाया था वह ऐसा कोई सलाहकार भी मेरे पास नहीं है, जो यह राय दे सके कि तुम्हारी यह अबोध गुड़िया उसके साथ क्या सुलूक करे—अगर उसे मार देती तो हो सकता है, तुम मुझसे नफरत करने लगते। कहते कि मेरे भाई को क्यों मारा तूने और बदला न लेती तो शायद यह कहते कि तू मेरी लाश पर खाई गई कसम का बदला भी न ले सकी रश्मि।"
कमरे में खामोशी छाई रही, सर्वेश मुस्करा रहा था।
दीवानी-सी रश्मि कहती चली गई—नहीँ जानती सर्वेश कि मैंने गलत किया है या सही, तुम्हारी इस नादान गुड़िया के छोटे से दिमाग ने जो निर्णय किया, वही मैंने अपना लिया—नहीं जानती कि वह कमीना जिसे जिंदगी से बहुत ज्यादा मोह है, मेरे द्वारा बख्श दिए जाने को सजा समझेगा भी या नहीं, परन्तु रश्मि को पूरा विश्वास है कि वह चाहे जहां रहे, पश्चाताप की जो आग उसके दिल में सुलग रही है, वह उसे जलाकर राख कर देगी।"
¶¶
सिकन्दर एक कागज पर अपने मनोभावों को उतार रहा था। उसने लिखा— अगर मैं किसी काल्पनिक उपन्यास का आदर्श नायक होता रश्मि, तो जरूर लिखता कि तुम्हारी दी हुई सजा ने मुझे अंदर तक झकझोंर डाला है और मैं तुमसे चीख-चीखकर मौत की भीख भी मांगता—तब भी तुम मुझे न मारतीं तो दहाड़ें मार मारकर रोता और कहता कि नहीं रश्मि, मुझे इतनी सख्त सजा मत दो—पश्चाताप की आग में सुलगने के लिए अब मैं जी नहीं सकता—प्लीज, मुझे मार डालो।
"मगर न मैंने ऐसा कुछ किया है और न ही लिखूंगा-क्योंकि सचमुच मेरे मन में ऐसी कोई भावना नहीं है—मैँ बिल्कुल आम आदमी हूं—स्वार्थी—वह, जो अपनी ही नजर से पूरी तरह गिर जाने के बावजूद भी मरना नहीं चाहता—दरअसल आदर्श भरी बातें करना जितना आसान है, अमल करना उतना ही कठिन।
"मुझे जीवित छोड़कर अपनी समझ में तुमने मुझे ' सजा' दी है—मगर मैं कहता हूं कि मुंहमांगी मुराद मिल गई है मुझे—मेरे उन्हीं प्राणों को बचा दिया है तुमने, जिन्हें बचाने के लिए प्रगति मैदान में मैं भागा था और जिन्हें बचाने के लिए मैंने अपने ' शाही कोबरा'' होने की हकीकत तुम्हें खुद नहीं बताई। जीवनदान मिलने पर मैं खुश हूँ में सारी भाग—दौड़ इसी के लिए कर रहा था।
"सम्भव है कि इन शब्दों को पढ़कर तुम्हें मुझसे कुछ और नफ़रत हो जाए या मुझे जीवित छोड़ देने के अपने फैसले पर तुम्हें गुस्सा जाए, मगर जब तुम यह पढ़ रही होगी, तब तक मैं तुम्हारे रिवॉल्वर की रेंज से बहुत दूर निकल चुका होऊंगा।
 स्वीकार करता हूं कि मैंने जो घृणित जुर्म किए हैं वे अक्षम्य हैं, परन्तु फिर भी मरने की मेरी कोई इच्छा नहीं है—मेरे मरने से न तुम्हारा पति वापस मिलेगा, न वीशू का पापा और न ही मेरा भाई—फिर मैं क्यों मरूं?
“हां, जो किया—उसके प्रायश्चित के रूप में मैं अपनी सारी चल-अचल सम्पति वीशू के नाम किए जा रहा हूं—इस आशय का बॉण्ड पेपर मैंने तैयार कर दिया है—सर्वेश के बदले में जो कुछ मैं तुम्हें दिए जा रहा हूं, मेरी नजर में वह सर्वेश से कुछ ज्यादा ही है। कम हरगिज नहीं—यही मेरा प्रायश्चित है।
"तुम खीर बहुत अच्छी बनाती हो। सुबह के खाने में तुमसे उसकी मांग करूंगा और वह खाने के बाद मैं इस शहर ही से नहीं, बल्कि इस मुक्त के कानून की पकड़ से भी बहुत दूर निकल जाऊंगा, विदेश में जा बसूंगा—मुझे पूरा विश्वास है, मैं वहीं अपनी बाकी जिदगी पूरी तरह सुरक्षित और खुशहाल बना लूंगा पश्चाताप की जिस आग की बात तुम करती हो, कम-से-कम मैं इस बॉण्ड पेपर पर साइन करने के बाद अपने अन्दर कहीं महसूस नहीं कर रहा हूं—इतना सब कुछ दिए जा रहा हूं कि खुश तो तुम हमेशा रहोगी और वीशू भी पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनेगा।"
¶¶
सुबह, विशेष के माध्यम से जब रश्मि के पास सिकन्दर की ' खीर' वाली डिमांड गई, तब एक पल को तो रश्मि के तन-बदन में आग लग गई—सोचा कि देखो इस ढीठ हत्यारे को। सब कुछ स्पष्ट हो जाने के बावजूद भी खीर मांग रहा है।
जी चाहा कि सिकन्दर को कच्चा चबा जाए।
अभी जाए और गोलियों से भून डाले उसे। विशेष पर चिल्ला पड़ने के लिए उसने मुंह खोला ही था कि दिमाग के जाने किस कोने ने कहा "क्या कर रही है रश्मि, तेरा यह व्यवहार तो उसे सुकून दे देगा चोट तो उसे तब लगेगी जब सारे काम उलटे हों—उसकी आशाओं के विपरीत-उसे तेरे द्वारा खीर बनाए जाने की कोई उम्मीद नहीं होगी, तू बना देगी तो वह तड़प उठेगा-यह सोचकर कि आखिर सर्वेश की विधवा क्यों मेरी खातिर कर रही है—ये पहेली उस कमीने की समझ में नहीं जाएगी।'
यही सब सोचकर वह किचन में चली गई।
उधर सिकन्दर आराम से टांगें  फैलाएं रेडियो पर प्रसारित होने वाले समाचार सुन रहा था। उस वक्त वह चौंका, जब रेडियो पर कहा गया—" इंस्पेक्टर चटर्जी ने अपनी सूझ-बूझ से तस्करों के एक सदस्य रूपेश को गिरफ्तार कर लिया है और रूपेश ' शाही कोबरा' के बारे में सब कुछ बता चुका है—रूपेश के अनुसार ' मुगल महल' के मालिक न्यादर अली का लड़का सिकन्दर ही ' शाही कोबरा' है—सिकन्दर अभी तक फरार है और पुलिस ने उसे जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिए एक लाख रुपए इनाम देने की घोषणा की है।" इतना सुनते ही सिकन्दर ने जल्दी से रेडियों बन्द कर दिया।
एकाएक ही उसकी पेशानी पर चिंता की लकीरें उभर आईं—सारी रात उसने जागकर गुजारी थी, विशेष रूप से भारत से निकलने की स्कीम बनाने के चक्कर मैं—स्कीम उसने बना ही ली थी, परन्तु समाचार सुनने के बाद अचानाक ही गड़बड़ होती-सी महसूस हुई। जाहिर था कि पुलिस पूरी सरगर्मी से उसे तलाश कर रही होगी—फिर भी सिकन्दर हार मानने वाला नहीं था। अपने दिमाग को उसने पुलिस का घेरा तोड़कर निकलने की किसी स्कीम को सोचने में लगा दिया।
काफी सोचने के बाद उसने एक स्कीम तैयार कर ली।
तभी विशेष थाली ले आया—थाली में रोटियां और सब्जी भी थी सिकन्दर के दिल में वैसी कोई भावना नहीं उभरी, जिसकी कल्पना करके रश्मि ने खाना तैयार किया था।
रोटी आदि से सिकन्दर को कोई मतलब नहीं था। यह गपागप खीर खाने लगा और साथ ही सोचता जा रहा था कि पुलिस के घेरे को तोड़कर किस तरह भारत से बाहर निकलना है। सामने बैठे उसे विचित्र नजरों से देख रहे विशेष ने कहा—"वाकई आप मेरे पापा नहीं हो सकते।"
ठहाका लगाकर हंस पड़ा सिकन्दर— तुम बिल्कुल ठीक समझ रहे हो वीशू बेटे, मैं सचमुच तुम्हारा पापा नहीं हूं।"
विशेष मासूम आंखों से उसे देखता रहा।
जाने क्या सोचकर सिकन्दर ने तकिए के नीचे से बॉंण्ड पेपर निकाला और वीशू को देता हुआ बोला— जाओ वीशू—यह अपनी मम्मी को दे दो।"'
विशेष ने बॉंण्ड पेपर लिया और कमरे से बाहर निकल आया।
रश्मि आंगन में ही थी—विशेष ने जब बॉण्ड पेपर उसे दिया तो वह चौंक पड़ी। अभी उसका एक भी शब्द नहीं पढ़ पाई थी कि मुख्य द्वार के बाहर ब्रेकों की तीव्र चरमराहट के साथ एक पुलिस जीप रुकी। रश्मि दरवाजे की तरफ लपकी।
जीप से कूदकर चटर्जी तेजी के साथ अन्दर आता हुआ बोला—“ सिकन्दर कहां है?"
"व...वह भला अब यहां क्यों जाएगा" रश्मि ने जल्दी से कहा।
"झूठ मत बोलिए, हमें सूचना मिली है कि रात वह यहां आया था।" चटर्जी ने रश्मि को घूरते हुए सख्त लहजे में कहा। इस बीच इंस्पेक्टर दीवान भी दरवाजा पार कर चुका था, बोला—'' उसे बचाने के लिए बार-बार नाटक कर रही हैं—याद रखिए कि अब वह कुख्यात
मुजरिम ' शाही कोबरा' है और अगर आपने हमारी मदद न की तो हम आपको गिरफ्तार करने के लिए विवश हो जाएंगे।"
रश्मि के कुछ कहने से पहले ही विशेष बोल पड़ा— आप झूठ बोलकर अपने ऊपर पाप क्यों चढ़ाती हैं, मम्मी, ' शाही कोबरा' उस कमरे में है।"
"व...वीशू।" रश्मि हलक फाड़कर चीख पड़ी…“ तुझे कब पता लगा कि वह ' शाही कोबरा' है?"
"मेरे सामने सब बदमाशों ने उसे ' शाही कोबरा' कहा था।"
चटर्जी और दीवान उस कमरे की ओर दौड़ पड़े, जिधर विशेष ने इशारा किया था। जबकि विशेष ने रश्मि के कान में कहा—" अब पुलिस को पापा का हत्यारा जिंदा नहीं मिलेगा मम्मी, मैंने उसकी खीर में जहर मिला दिया है।"
"ज...ज़हर?  रश्मि के कण्ठ से चीख निकल गई।
नन्हें विशेष ने मासूम स्वर में कहा—"मेरे पापा को उसने जहर ही तो दिया था।"
"त..तेरे पास जहर कहां से आया?"
"डॉक्टर अंकल के क्लिनिक से चुरा लाया था।"
तभी कमरे की तरफ से चटर्जी की आवाज आई—  अरे यह तो मर चुका है दीवान।"
गुस्से से तमतमाती हुई रश्मि ने अचानक ही विशेष के गाल पर जोरदार चांटा मारा। विशेष एक चीख के साथ उछलकर दूर जा गिरा, जबकि उस पर लात और घूंसे बरसाती हुई रश्मि चीख रही थी "यह सब करने के लिए तुझे किसने कहा था नासपीटे—नीच, तूने मेरी सारी तपस्या भंग कर दी—उस कुत्ते को इतनी आसान मौत देने के लिए तुझसे किसने कहा था—जा, मेरी आँखों के सामने से गारत हो जा।"
—समाप्त—