जगवामा की आंखें पथरा चुकी थीं। वो अभी भी सिटवी को ही देख रहा था। सिटवी ने उसकी कलाई छोड़ी और बेड के साथ घूमकर, दूसरी तरफ गिरी रिवॉल्वर उठाई जगवामा के तकिए के नीचे रख दी। पेट में धंसा इंजेक्शन निकाला और सोफे के पास पहुंचकर डिब्बी में रखा और डिब्बी जेब में रख ली। फिर जगवामा के बेड की तरफ देखे बिना सोफे पर पीठ करके लेट गया। अब उसे तब तक नहीं उठना था जब तक कि कोई कमरे में आकर, जगवामा की लाश देखकर, उसे हिलाकर उठाता नहीं।

वो जानता था कि कुछ देर में जगवामा का शरीर नीला पड़ जाएगा क्योंकि बहुत ज्यादा मात्रा में, कोबरा का जहर उसके शरीर में गया है। जो भी हो, कोई भी नहीं सोच सकता था कि वो, जगवामा की हत्या कर सकता है। ये ही सोचा जाएगा कि वो गहरी नींद में था और कोई कर्मचारी ही चुपके से वहां आया और जगवामा को जहर दे गया। उस पर कोई शक नहीं आने वाला। इन बातों को सोचते-सोचते सिटवी की आंखों में आंसू चमक उठे । जगवामा से उसे कोई शिकायत नहीं थी। वो उसकी जान नहीं लेना चाहता था। उसकी मौत का उसे भी दु:ख था, दर्द भी हो रहा था, पर इस बात का चैन था कि अब रोही सुरक्षित हो चुकी है।

☐☐☐

पुलिस चीफ जामास आधी रात को उस मकान पर पहुंचा था। होपिन ने जामास को खाना दिया, जिसके बाद जामास सोने चला गया। देवराज चौहान और जगमोहन एक कमरे में सो रहे थे, मोक्षी और रत्ना ढली भी वहीं, उनके पहरे पर थे। एक नींद लेता तो दूसरा जागता रहता। आदिन ने पूरी नींद ली थी। इसी तरह रात बीत गई। आदिन छः बजे ही उठ गया था और बाजार से ब्रेड-बटर ले आया कि सबके नाश्ते का इंतजाम हो सके। उस वक्त सुबह के 7.50 बज रहे थे जब जामास का मोबाइल बजने लगा।

जामास ने तुरंत कॉल रिसीव की।

“हैलो।”

“साहब जी। मैं राजी, गर्मागर्म खबर तो आपने सुन ही ली होगी।”

“नहीं –क्या बात है?”

“वोमाल जगवामा नहीं रहा।”

“क्या?” जामास हक्का-बक्का रह गया।

“रात को इस्टेट के ही किसी कर्मचारी ने चुपके से जगवामा को जहर दे दिया। ये ही सुना जा रहा है। उसका शरीर नीला पड़ चुका है। तब पास ही सिटवी था, लेकिन वो गहरी नींद सोया रहा। ये ही खबर इस्टेट से बाहर आई है।”

जामास के चेहरे पर मुस्कान नाच उठी।

“बेवकूफ ये गाठम की हरकत है।” जामास विश्वास भरे स्वर में कह उठा।

“गाठम की?”

“हां। उसने ही जगवामा का इंतजाम किया है। उसके इशारे पर जगवामा की हत्या की गई। बहुत शॉर्टकट रास्ता अपनाया गाठम ने कमाल कर दिया। गाठम ने। इतनी जल्दी जंग जीत ली। कोई गोलियां नहीं। लाशें नहीं। शोर-शराबा नहीं। पब्लिक को कोई समस्या नहीं आई और गैंगवार खत्म। एक तरफ का राजा मारा गया।”

“जगवामा के आदमी भी तो...।”

“वो कुछ नहीं कर सकते। जगवामा ने ही सब संभाल रखा था। वो था तो सब कुछ था, वो नहीं तो कुछ भी नहीं। अब संगठन को संभालने वाला कोई नहीं रहा। बेवू को संगठन चलाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मानना पड़ेगा गाठम को कि बहुत सोच-समझकर उसने चाल चली और जगवामा को साफ कर दिया।” जामास बहुत खुश नजर आ रहा था –“अब कहां है गाठम?”

“मुझे अभी तक उसके ठिकाने की खबर नहीं मिली।” उधर से राजी ने कहा।

“उसे कोई खबर पहुंचानी हो तो कैसे पहुंचाएगा?”

“वो पहुंच जाएगी।”

“तो जल्दी से मेरे पास आ। पता सुन ले।” जामास ने यहां का पता बताया –“जल्दी-से भी तेज पहुंच । गाठम ने अपना काम खत्म कर लिया है। वो रुकने वाला नहीं। वो वापस चला गया तो ये मौका फिर कभी नहीं मिलेगा।”

“खास बात है साहब जी?”

“बहुत ही खास । जल्दी-से मेरे बताए पते पर पहुंच।” कहकर जामास ने फोन बंद किया और जोरों से हंस पड़ा।

जामास की हंसी की आवाज सुनकर मोक्षी और रत्ना ढली दौड़े आए।

“क्या हुआ साहब जी?”

“हम जीत रहे हैं । जगवामा मारा गया। रात इस्टेट में ही किसी ने उसे जहर दे दिया। ये काम गाठम के इशारे पर किया गया है। हमारी मेहनत रंग लाई। आधा काम हो गया है, अब गाठम भी रगड़ा जाए तो बात बने।” जामास खुशी से कह रहा था –“गाठम भी नहीं बचेगा। वो देवराज चौहान, गाठम को मारेगा। कहता है बिना वजह के किसी को नहीं मारता तो वजह पैदा कर देते हैं, तब तो मारेगा गाठम को या खुद मारा जाएगा। कुछ तो अब होकर ही रहेगा।”

☐☐☐

राजी सवा घंटे बाद वहां पहुंचा।

पुलिस चीफ जामास राजी को उस कमरे में ले गया, जहां देवराज चौहान और जगमोहन थे। रत्ना ढली, होपिन, मोक्षी, आदिन भी वहीं थे। जामास जगमोहन की तरफ इशारा करके कहा।

“इसे पहचान। अच्छी तरह पहचान ले। इसका नाम जगमोहन है और ये हिन्दुस्तानी है।”

राजी ने गहरी निगाहों से जगमोहन को देखा।

देवराज चौहान को भी देखा फिर जामास को देखकर कहा।

“पहचान गया साहब जी।”

“ये तेरे को बाहर कहीं दिखेगा तो पहचान लेगा?”

“पक्का, साहब जी।”

“तो आ, बताता हूं कि तेरे को क्या करना है।” जामास, राजी के साथ दूसरे कमरे में चला गया।

देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली।

“ये हमें किसी मुसीबत में फंसाने की तैयारी कर रहा है।” जगमोहन बोला।

“मुसीबत का नाम गाठम है।” देवराज चौहान ने उन चारों पर नजर मारकर कहा।

“क्या मतलब?”

“जगवामा को रात में जहर देकर मार दिया गया।” देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा –“जामास का कहना है कि ये काम गाठम के इशारे पर हुआ। बच गया गाठम और जामास, गाठम के मुकाबले पर मेरे को उतारना चाहता है।”

“तुम गाठम को क्यों मारोगे?”

“ये ही तो मैं कहता हूं, पर जामास कहता है कि वो मारने की वजह पैदा कर देगा।” देवराज चौहान गम्भीर था।

“जामास तो एक तरह से हमें ब्लैकमेल कर रहा है। मुझे कैद कर रखा है और तुम्हें गाठम के आगे डाल रहा है। ये तो जबर्दस्ती से भी बुरी बात हो गई।” जगमोहन भी गम्भीर था।

“साहब जी का कहना है कि तुममें खास बात है। तुम गाठम का मुकाबला कर सकते हो, उसे मार सकते हो।” होपिन ने देवराज चौहान से कहा –“इस तरह के काम तुम हिन्दुस्तान में बहुत कर चुके हो।”

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

“जामास ने हमारे बारे में हिन्दुस्तान से पूरी रिपोर्ट मंगवाई है।” जगमोहन ने कहा।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

“गाठम को हम भी मार सकते हैं।” मोक्षी बोला –“उसे घेरकर आसानी से मार सकते हैं, पर साहब जी चाहते हैं कि अब हम पुलिस वालों को और खतरे में न डालें जबकि तुम जैसा इंसान पास हो तो...।”

“तुम लोग गलत सोच रहे हो।” देवराज चौहान ने कहा –“गाठम मुझे भी मार सकता है।”

“हम लोग वहां नजर रखे होंगे तब। अगर तुम मारे गए तो तब हम गाठम को मारेंगे।”

“तुम लोग ये काम पहले क्यों नहीं कर लेते?”

“पहले नहीं। साहब जी ने सोच रखा है कि पहले तुम्हें इस्तेमाल करेंगे।”

“मुफ्त का माल जो हाथ लग गया है।” जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा।

☐☐☐

जामास सारा दिन वहीं मौजूद रहा। वो बेचैन और व्याकुल दिखता रहा। बार-बार अपने फोन को देखता रहा। वक्त बीतने के साथ उसकी बेचैनी बढ़ती चली गई। मोबाइल जाने कितनी बार बजा। परंतु उसे राजी के फोन का इंतजार था उसका इंतजार शाम को चार बजे खत्म हुआ। राजी का फोन आ गया।

“बोल राजी?” जामास व्यग्रता से कह उठा।

“मामला सेट हो गया है साहब जी।”

“पूरी तरह” जामास के होंठ भिंच गए।

“हो। आप शिकार को, लाजा स्टेट के पास वाले गोल चौराहे पर, बाईं तरफ वाला रास्ता जो पैल्लिवा की तरफ जाता है, एक घंटे में वहां पहुंचा दें।” राजी के शब्द कानों में पड़े।

“पहचान कैसे होगी जगमोहन की?”

“मैं चिकी के साथ होऊंगा। मैं गाठम से मिला हूं। मैंने उन्हें बताया कि शिकार पांच बजे के आसपास लाजा स्टेट के चौराहे पर आने वाला है।” राजी ने उधर से कहा।

“चिकी के साथ कितने लोग होंगे?”

“वो अकेला होगा।”

“अकेला क्यों?”

“गाठम इस वक्त किसी का भरोसा नहीं कर रहा। हालांकि जगवामा मर चुका है, पर वो सतर्कता बरत रहा है कि उसका अपना ही कोई आदमी जगवामा के लोगों से न मिला हो और उस पर वार न कर दे। गाठम ने आज रात वापस चले जाना था, पर वो मेरी बात सुनकर रुक गया है कि एक बार जगमोहन से मिला जाए।”

“तुम उस तक कैसे पहुंचे?”

“गाठम के आदमियों तक मेरी पहुंच है। उन्होंने सारी बात आगे बताई तो एक जगह से चिकी ने मुझे रिसीव किया और गाठम के पास ले गया। गाठम के लोग भी नहीं जानते कि गाठम कहां पर है।”

“तुम जान चुके हो?”

“जी साहब जी?”

“पैलिल्वा के आगे जंगल शुरू हो जाता है। उसी जंगल में चार कमरों की एक कॉटेज है, जो कि फॉरेस्ट ऑफिसर की है। फॉरेस्ट ऑफिसर तो वहां है नहीं और गाठम मजे से वहां टिका है। अब साहब जी वक्त बर्बाद मत कीजिए और जगमोहन को लाजा स्टेट वाले चौराहे पर पहुंचा दीजिए।”

☐☐☐

जगमोहन की टांगों के बंधन खोले गए।

ये देखकर देवराज चौहान सतर्क हो गया।

“मैं तुम्हें आजाद कर रहा हूं।” जामास ने गम्भीर स्वर में कहा –“लेकिन बहुत जल्द तुम गाठम के पास पहुंच जाओगे। दो बातें तुमने गाठम को नहीं बतानी है। पहली बात तो ये कि इस मामले में हम पुलिस वाले शामिल हैं। गाठम को हमारी कहानी सुनाने मत बैठ जाना। इस बात को मत भूलना कि देवराज चौहान हमारे पास है।”

“मुझे गाठम के पास क्यों भेज रहे...।”

“मेरी बात सुनो। बीच में मत बोलो, दूसरी बात तुमने ये याद रखनी है कि वहां पर राजी होगा। वो ही आदमी जो सुबह यहां तेरे को देखने आया था, याद है न?”

“हां।”

“तुमने राजी को भी नहीं पहचानना।” जामास शब्दों को दबाकर बोला –“ये दो बातें अपने दिमाग में डाल लो हम पुलिस वाले गाठम को घेर रहे हैं। तुम्हें कोई खतरा नहीं आएगा और तुम्हें वहां से निकाल लेंगे। इन दो बातों के अलावा तुम गाठम से जो भी बात करो, हमें एतराज नहीं।”

“तुम मेरा करना क्या चाहते...।”

“चुप रहो। सिर्फ मेरी सुनो। हम अपनी प्लानिंग के तहत तुम्हें गाठम के पास पहुंचा रहे हैं और तुम्हें आसानी से वहां से निकाल लेंगे। जब तक हम न आएं, तब तक तुमने गाठम और चिकी को बातों में उलझाए रखना है। हमारे पास वक्त कम है तुम्हें अभी जाना होगा। होपिन इसे पहनने को ठीक कपड़े दो।”

होपिन बाहर निकल गया।

“तुम साफ क्यों नहीं कहते कि मुझे बकरे की जगह इस्तेमाल कर रहे हो।” जगमोहन के दांत भिंच गए।

“तुमने सही कहा। बकरा बनने से तुम बच नहीं सकते। इसलिए जो कहता हूं वो करो और...।”

“ये हो क्या रहा है?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी पड़ी थीं।

“तुम शांत रहो देवराज चौहान । ऐसा कुछ नहीं हो रहा जो नहीं होना चाहिए। तुम इन बातों से वाकिफ हो कि सब करना पड़ता है। सब ठीक होने जा रहा...।”

“तुम ऐसा नहीं कर सकते। जगमोहन को गाठम के हवाले नहीं कर...।”

“मैं सब कुछ कर सकता हूं।” जामास का स्वर कटोर हो गया –“तुम देख ही रहे हो कि इस मामले में मैंने क्या-क्या किया है। आगे भी बहुत कुछ कर सकता हूं। बीच में मत बोलो। जो कर रहा हूं, वो होकर रहेगा।”

देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता नाच उठी। जगमोहन को देखा।

जगमोहन गुस्से में था।

होपिन कपड़े ले आया।

“कपड़े पहनो।” जामास के स्वर में आदेश के भाव थे।

देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती के भाव आ गए थे। पर वो चुप था। जानता था कि इस वक्त जामास अपनी करेगा। अगर कुछ करने की चेष्टा की तो जगमोहन को खतरा हो सकता है।

“तुम मुझे इस तरह नहीं नचा सकते।” जगमोहन गुस्से से कहा।

“मैं सब कुछ कर सकता हूं। जो दो बातें तुम्हें बताई है, उन्हें याद रखना। वो बातें गाठम से कहीं तो तुम्हें ही नुकसान हो जाएगा। तब शायद वो तुम्हें मार दे और हम तुम्हें बचा न सकें।”

देवराज चौहान जामास के खेल को समझने की चेष्टा कर रहा था। उसने फटे कपड़े उतारकर नए कपड़े पहने। हाथ-मुंह धोया। अब वो काफी ठीक लग रहा था। चेहरे पर दो-तीन जगह चोटों के निशान अवश्य दिख रहे थे। चेहरा उखड़ेपन से भरा हुआ था। उसने देवराज चौहान को देखा तो देवराज चौहान ने कहा।

“इस वक्त ये किसी की नहीं सुनेगा। पुलिस चीफ है, अपनी करके रहेगा।”

“ये मुझे मुसीबत में डाल रहा है।” जगमोहन झल्लाया।

“तुम्हें मुसीबत से निकाला भी जाएगा।” जामास बोला।

“पर डाला ही क्यों जा रहा है।”

“कुछ तो बात होगी। तुम घबराओ मत। चिंता मत करो। गाठम और चिकी को बातों में लगा के रखना। बाकी सब हम देख लेंगे।” जामास ने कहा फिर रत्ना ढली से बोला –“तुम जगमोहन को लाजा स्टेट के चौराहे पर बाईं तरफ वाले मोड़ पर छोड़ देना। जगमोहन तुमने वहां आधा घंटा खड़ा रहना है। हिलना मत। वरना गड़बड़ हो जाएगी।”

जगमोहन ने खा जाने वाली निगाहों से देखा जामास को।

“आदिन, होपिन, तुम दोनों जगमोहन का पीछा करके देखोगे कि वो लोग इसे कहां ले जाते हैं। ये काम सावधानी से करना। वहां राजी के साथ गाठम का कोई आदमी पहुंचेगा। वे इसे गाठम तक ले जाएंगे।”

होपिन और आदिन ने सिर हिला दिए।

“जल्दी से जाओ। इसे लाजा स्टेट के चौराहे पर छोड़ दो ढली।”

वो सब बाहर निकल गए।

कुछ पलों बाद कारें स्टार्ट होने की आवाजें आई।

वहां जामास, देवराज चौहान और मोक्षी ही बचे थे।

“तुमने जगमोहन को गाठम के पास भेज कर गलत किया।” देवराज चौहान कह उठा।

“मैंने कुछ भी गलत नहीं किया।” जामास गम्भीर स्वर में बोला –“तुम गाठम को मारने को तैयार जो नहीं हो। ऐसे में मुझे ये सब करना पड़ा। जगमोहन गाठम की कैद में होगा तो तुम्हारे पास वजह होगी गाठम को मारने की।”

“ओह –तो ये सब तुम इसलिए कर रहे...।”

“तुम्हें दुश्मनी की वजह चाहिए थी न। वजह तैयार हो रही है। राजी, गाठम को बता चुका है कि देवराज चौहान और जगमोहन हिन्दुस्तान के जाने-माने डकैती मास्टर है। हिन्दुस्तान पुलिस को हर कीमत पर इन दोनों की जरूरत है और हिन्दुस्तान की सरकार इन्हें पाने के लिए बहुत बड़ी रकम दे सकती है। जगमोहन कुछ देर में लाजा स्टेट के चौराहे पर आने वाला है, वो हाथ में आ गया ये भी पता चल जाएगा कि देवराज चौहान कहां मिलेगा। इन दोनों को पकड़कर हिन्दुस्तान सरकार से मोटा सौदा किया जा सकता है। बात गाठम की समझ में आ चुकी है।”

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए। आंखें सिकुड़ी।

“ये बात राजी, गाठम को बता चुका है।”

“हां। अब गाठम के लोग जगमोहन का अपहरण करने वाले हैं लाजा चौराहे से। राजी, जगमोहन की पहचान करेगा।”

“और ये सारा प्लान तुम्हारा है?”

“हां।”

“जगमोहन को रोक लो। मैं इसके बिना ही, गाठम को मारने की कोशिश...।”

“अब कुछ नहीं हो सकता देवराज चौहान । राजी इस मामले में खुलकर सामने आ चुका है। अगर गाठम के लोगों को लाजा स्टेट के चौराहे पर जगमोहन नहीं मिला तो, ये बात राजी के हक में ठीक नहीं होगी। मामला अब ऐसे ही चलेगा, जैसे कि शुरू हो चुका है। तुम्हें पहले ही मेरी बात मान लेनी चाहिए थी, पर तुम्हें तो वजह की जरूरत थी।”

देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता नाच रही थी।

“अगर तुम पुलिस वाले न होते तो, अब तक जिंदा न होते।

जामास ने मुंह फेर लिया।

“इसके बाद क्या होगा?” देवराज चौहान बोला।

“वो लोग जगमोहन को ले जाएंगे। होपिन और आदिन ये देखेंगे कि वो जगमोहन को कहां ले जाते हैं। उनका ठिकाना देखने के बाद, मुझे खबर करेंगे और मैं तुम्हें उस ठिकाने तक पहुंचा दूंगा कि तुम जगमोहन को छुड़ा सको। परंतु आसपास पुलिस भी होगी। पुलिस तुम्हारे मामले में दखल नहीं देगी। तुम या तो गाठम को मारकर, जगमोहन को आजाद कराकर ले आओगे, नहीं तो मारे जाओगे। अगर तुम मर गए तो फिर पुलिस गाठम को भून देगी।” जामास गम्भीर स्वर में कह रहा था –“पर मुझे तुम्हारे बारे में जो रिपोर्ट मिली है, उसे देखते हुए कह सकता हूं। तुम गाठम को मारने में कामयाब हो सकते हो। जबकि तुम्हारा मतलब जगमोहन को आजाद कराना होगा, लेकिन ये काम गाठम को मारे बिना नहीं हो सकेगा।”

“इस काम में पुलिस क्यों नहीं मेरा साथ देती?”

“तुम असफल रहे तो उस स्थिति में पुलिस आगे आएगी। तुम जो भी काम करोगे, अपने दम पर करोगे। मैं पुलिस वालों को इस मामले में कम-से-कम आगे लाना चाहता हूं। आखिर तुम किस काम के हो, तुम्हारा खास दोस्त, गाठम की कैद में पहुंच रहा है, उसे बचाने के लिए तो तुम जान की बाजी भी लगा सकते हो।”

“मुझे कब पता चलेगा कि जगमोहन कहां पर...।” देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती ठहरी हुई थी।

“एक-डेढ़ घंटे में सब कुछ सामने आ जाएगा।”

“कोई जरूरी तो नहीं कि जहां जगमोहन को ले जाया जाए, वहां गाठम हो।”

“राजी से इस बात का पता चल जाएगा।” जामास ने गम्भीर स्वर में कहा।

☐☐☐

जगमोहन, लाजा स्टेट के चौराहे पर उस सड़क के फुटपाथ पर खड़ा था जहां के लिए राजी ने जामास से कहा था। जगमोहन का खून गुस्से में खौल रहा था कि जामास पुलिस वाला होने का पूरा रौब दिखा रहा है। अगर वो जामास की बात न मानता तो जामास उन पर कैसी भी सख्ती कर सकता था। जेल में सड़ने के लिए डाल सकता था या ऐसा ही, बहुत कुछ कर सकता था। जामास से झगड़ा लेना ठीक नहीं था।

जगमोहन ये नहीं देख सका कि एक तरफ खड़ी कार की ड्राइविंग सीट पर राजी बैठा है और उसकी बगल में चिकी बैठा था। राजी चिकी को बता चुका था कि वो जगमोहन है। चिकी ने पांच मिनट इंतजार किया फिर कार से निकलकर जगमोहन की तरफ बढ़ने लगा। फुटपाथ पर और लोग भी आ-जा रहे थे। चिकी जगमोहन के पास पहुंचकर रुका। जगमोहन की निगाह चिकी पर गई। चिकी की सर्द आंखों में देखकर वो तुरंत समझ गया कि ये क्रूर हत्यारा है। किसी की जान लेना इसके लिए मामूली बात है।”

“हिन्दुस्तानी हो?” चिकी ने फुसफुसाते लहजे में पूछा।

जगमोहन तुरंत सतर्क हो गया और हां में सिर हिलाया।

“जगमोहन नाम है तुम्हारा?”

जगमोहन के होंठ भिंच गए।

“तुम्हें क्या?”

"मैं चिकी हूं, नाम सुना है।” वो फुसफुसाने वाले अंदाज में ही बातें कर रहा था।

“नहीं।”

“गाठम का नाम सुना है?”

“नहीं।” कहकर जगमोहन इधर-उधर देखने लगा।

“मेरे साथ चलो।” चिकी ने उसकी बांह की कोहनी को पकड़ लिया।

“क्यों चलूं... । चले जाओ यहां से...।”

उसी पल चिकी ने रिवॉल्वर निकालकर जगमोहन को दिखाई।

“मैं तुम्हारा अपहरण कर रहा हूं। ये गाठम का काम है। गाठम के बारे में तुम जल्दी ही जान जाओगे। साथ चलने से मना किया तो यहीं पर मार दूंगा।” चिकी की आवाज में सर्द भाव आ गए और आते जाते लोगों की परवाह किए बिना रिवॉल्वर उसके पेट से लगा दी –“चलो, उस सफेद कार तक जाना...।”

“मुझसे क्या चाहते...।”

“यहां से चलो।” चिकी की फुसफुसाती आवाज में दरिंदगी उभरी –“ये बात तुम बाद में भी पूछ सकते हो।”

जगमोहन ने चिकी को घूरा और चल पड़ा। सब समझ रहा था कि ये जामास का खेल है परंतु उसे महसूस होने लगा था कि जामास कुछ ज्यादा ही खतरनाक खेल, खेल रहा है। वो कार तक पहुंचा। चिकी ने कार का पिछला दरवाजा खोला और जगमोहन को भीतर धकेला फिर खुद भी बैठा और दरवाजा बंद करके रिवॉल्वर जगमोहन की कमर से लगा दी। उसी पल राजी ने कार आगे बढ़ा दी।

जगमोहन ने राजी को देखा, पर अंजान बना रहा। जामास ने ऐसा ही करने को कहा था। उसने चिकी को देखा जो कि पूरा निश्चिंत हुआ बैठा था कि शिकार अब कहीं नहीं जा सकता।

☐☐☐

आदिन का फोन आया जामास को।

“जगमोहन को पैतिल्वार्क जंगल में ले जाया गया है, जंगल के भीतर दाईं तरफ की दिशा में एक किलोमीटर आगे एक जगह पर खराब बदरंग-सी कार खड़ी है। उस कार के पीछे ढलान पर एक कॉटेज है। उसी कॉटेज में जगमोहन को ले जाया गया है। राजी भी साथ में है और वो भी जिसने जगमोहन का अपहरण किया है। इस बात की सम्भावना है कि वहां पर गाठम भी मौजूद हो। कॉटेज के आसपास किसी तरह का पहरा नहीं है।”

“तुम दूर रहकर कॉटेज पर नजर रखो। कोई खास बात हो तो फोन कर देना।” जामास ने कहा और फोन बंद कर दिया।

“क्या बात है?” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में पूछा।

“जगमोहन गाठम की कैद में पहुंच गया है।”

“तो मुझे वहां ले चलो।”

“अभी इंतजार करो। राजी का फोन आएगा अभी।”

“जगमोहन को वहां खतरा भी हो सकता...।”

“नहीं देवराज चौहान। जगमोहन को कोई खतरा नहीं है। गाठम अपने शिकार की जान कभी नहीं लेगा। उसकी सौदेबाजी करेगा। राजी का फोन आने दो फिर तुम्हें वहां पहुंचा देंगे।” जामास ने कहकर मोक्षी को देखा –“अपने लोग तैयार हैं हथियारों के साथ?”

“वो सब लाशियो के पास, कारों में बैठे हमारा इंतजार कर रहे हैं।” मोक्षी ने कहा।

“देवराज चौहान को हर वो हथियार दे दो, जो ये चाहता है।”

“मेरे साथ दूसरे कमरे में आओ।” मोक्षी ने देवराज चौहान से कहा।

देवराज चौहान मोक्षी के साथ दूसरे कमरे में चला गया।

जामास व्याकुलता और गम्भीरता से कमरे में टहलने लगा। दस मिनट बाद देवराज चौहान और मोक्षी वापस कमरे में आ गए। कुछ देर बाद जामास का फोन बज उठा।

“हैलो।”

“साहब जी।” राजी का फुसफुसाता स्वर कानों में पड़ा –“आपको पता चल गया कि जगमोहन को कहां ले जाया गया।”

“हां। गाठम कहां...।”

“गाठम यहीं है। जगमोहन के पास।” इतना कहने के साथ ही उधर से राजी ने फोन बंद कर दिया था।

जामास के दांत भिंच गए। फोन बंद करके जेब में रखते वो देवराज चौहान से बोला।

“अब तुम्हारा काम शुरू होता है देवराज चौहान। गाठम, जगमोहन के पास ही है। जगमोहन को बचा सकते हो तो बचा लो। वहां सिर्फ गाठम और चिकी ही हैं। मैंने वजह पैदा कर दी कि तुम गाठम की जान ले सको।”

“तुम बेवकूफ हो। अगर तुमने ये सब करना था तो मैं वैसे ही गाठम को मार देता।” देवराज चौहान ने गुस्से से कहा।

“तब तो तुम कुछ और ही कह रहे थे।” जामास ने चुभते स्वर में कहा।

“मुझे नहीं पता था कि तुम जगमोहन को इस तरह खतरे में...।”

“अब तो जो होना था हो गया। हमारे साथ चलो और जगमोहन को वहां से निकाल सकते हो तो निकाल लो। तुम्हें जगमोहन को ढूंढ़ने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ रही। हम पूरी तरह तुम्हारी सहायता कर रहे हैं। अब तुम्हें वहां पहुंचा रहे हैं, जहां पर जगमोहन है। ऐसी पुलिस तुम्हें कहां मिलेगी, जो तुम लोगों की इतनी चिंता करे।” जामास के चेहरे पर गम्भीरता छाई थी।

☐☐☐

जगमोहन एक कुर्सी पर बैठा था और नायलोन की डोरी से कुर्सी के साथ ही उसे बांध रखा था। गाठम एक कुर्सी पर बैठा था। चिकी खुले दरवाजे पर खड़ा बाहर देख रहा था, भीतर की तरफ उसकी पीठ थी। राजी सतर्कता से कमरे में खड़ा था।

“मुझे कम बोलने की आदत है।” गाठम ने शांत स्वर में कहा –“पता चला कि तुम और तुम्हारा साथी देवराज चौहान, बर्मा (म्यांमार) में हो। हिन्दुस्तान के जाने-माने डकैती मास्टर हो और हिन्दुस्तान की पुलिस को तुम दोनों की जरूरत है। क्या ये बात सच है?”

जगमोहन होंठ भींचे गाठम को देखता रहा।

“जवाब दो मैंने ठीक कहा?”

“हां।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।

“फिर तो हिन्दुस्तान की सरकार से तुम्हारा और देवराज चौहान का सौदा किया जा सकता है। देवराज चौहान को पकड़ना बाकी है, तुम बताओगे कि वो कहां मिलेगा फिर बर्मा स्थित इंडियन एम्बेसी से सौदेबाजी की बात की जाएगी। मेरे खयाल में इंडियन गवर्नमेंट तुम दोनों के बदले काफी बड़ी रकम दे देगी।”

“तुम कौन हो?”

“मैं गाठम हूं। अपहरण करना और फिरौती लेना मेरा धंधा है। धीरे-धीरे पहचान जाओगे मुझे। तुम दोनों के बारे में इसने।” गाठम ने राजी की तरफ इशारा किया –“बताया। ये हमें शिकारों के बारे में खबर देता रहता है। पुराना आदमी है मेरा। मैं तो यहां किसी काम के लिए आया था, और काम खत्म करके आज रात को वापस अपने ठिकाने पर जा रहा था कि तुम्हारे और देवराज चौहान के बारे में पता चला।” फिर दरवाजे पर खड़े चिकी को पुकारा –“चिकी।”

चिकी पलटा और गाठम को देखने लगा।

“मेरे ख्याल में हमें अपना प्रोग्राम नहीं बदलना चाहिए। जगमोहन को अपने लोगों के हवाले कर देते हैं, वो देवराज चौहान का पता इससे पूछकर, देवराज चौहान को पकड़ेंगे और दोनों को वहां ले आएंगे। ये हिन्दुस्तान सरकार का मामला है, लम्बा हो सकता है। ऐसे में दोनों को उसी जंगल में रखना ठीक होगा।”

चिकी ने सिर हिला दिया।

“इस रात को ही यहां से चल... ।”

“तुम लोग मुझे और देवराज चौहान को हिन्दुस्तान सरकार के हवाले नहीं कर सकते।” जगमोहन गुर्राया।

“क्यों?”

“ये गलत होगा। तुम्हें हम जैसे लोगों के साथ नरमी से पेश आना चाहिए।”

“मैंने बताया न, कि मेरा काम शिकार के बदले नोट लेना है। हिन्दुस्तान सरकार मुझे काफी बड़ी दौलत देगी तुम्हारे और देवराज चौहान के बदले।” गाठम मुस्कराया –“मैं ठीक कर रहा हूं।”

“तुम ऐसा नहीं कर सकते...।”

चिकी पलटा और कमरे से बाहर निकलकर खुले में आ गया। हर तरफ जंगल ही नजर आ रहा था। पेड़-पौधों की कतारें झुंड दिख रहे थे। शाम हो चुकी थी। चिड़ियों और पक्षियों की आवाजें रह-रहकर सुनने को मिल रही थी। चिकी आगे बढ़ गया। उसकी निगाह हर तरफ जा रही थी। टहलते-टहलते वो उस छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगा। कॉटेज ढलान पर बनी हुई थी। पांच मिनट में ही पहाड़ी पर पहुंच गया। वहां वो ही खटारा कार खड़ी थी। उसके लोहे के रिम आधे जमीन में धंसे हुए थे। चिकी ने हर तरफ देखा फिर एक बड़े-से पत्थर के पास पहुंचा और उस पर बैठ गया। जेब से तम्बाकू की पुड़िया निकाली और तम्बाकू निकालकर के भीतर रखा और पुड़िया वापस जेब में रख ली। तभी चिकी के कानों ने कुछ सरसराहट सुनी।

चिकी बिजली की सी तेजी के साथ खड़ा हो गया और पलटा। हर तरफ देखा। कोई भी नहीं दिखा। मिनट भर वो इधर-उधर नजरें घुमाता रहा फिर वहां टहलने लगा कि तभी कुछ आहट पुनः उसके कानों में पड़ी।

चिकी ठिठक गया।

उसकी आंखें सिकुड़ी। हाथ जेब में पड़ी रिवॉल्वर पर जा पहुंचा और सतर्कता से टहलते हुए कुछ खोजने की चेष्टा करने लगा। जाने क्यों उसे लग रहा था कि यहां कोई है। टहलते-टहलते वो कार के पास पहुंचा कि तभी कार के पीछे से देवराज चौहान ने उस पर छलांग लगा दी।

चिकी फौरन घूमा। रिवॉल्वर निकाली।

उसी पल देवराज चौहान उसकी छाती से आ टकराया। चिकी को जबर्दस्त झटका लगा। उसके पांव उखड़ गए, वो पीछे को जा गिरा। रिवॉल्वर हाथ से छिटककर दूर खिसकती चली गई।

देवराज चौहान अपने को संभाल चुका था।

चिकी उसी पल उछलकर खड़ा हो रहा था कि देवराज चौहान ने पुनः उस पर छलांग लगा दी और दोनों जमीन पर लुढ़कते चले गए। चिकी ने नीचे पड़े ही पड़े जोरों का घूंसा देवराज चौहान के चेहरे पर मारा, जो कि उसकी गर्दन पर लगा। देवराज चौहान के होंठों से कराह निकली कि तभी चिकी ने एक ओर घूंसा जड़ दिया।

देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली और नीचे पड़े ही पड़े चिकी से भिड़ गया। चिकी ने फौरन देवराज चौहान को अपने दोनों पैरों पर लिया और टांगों को झटका दिया।

देवराज चौहान उछलकर तीन कदम दूर जा गिरा।

चिकी फौरन खड़ा हो गया।

देवराज चौहान की निगाह चिकी पर थी और उसकी आँखों में झांकता खड़ा हो गया। उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि चिकी बहुत फुर्तीला, ताकतवर और लड़ने में माहिर है। इस पर काबू पाना आसान नहीं होगा। तभी उसने चिकी की निगाह को बार-बार एक तरफ जाते देखा।

देवराज चौहान ने उधर देखा।

वहां चिकी की रिवॉल्वर पड़ी थी।

चिकी रिवॉल्वर चाहता था, जबकि इस वक्त गोली चलाना खतरनाक था। गाठम सतर्क हो जाएगा फायर की आवाज सुनकर और जगमोहन को वापस लाना कठिन हो जाएगा।

एकाएक चिकी रिवॉल्वर की तरफ दौड़ पड़ा।

देवराज चौहान भी दौड़ा। चिकी की कोशिश जगमोहन की जान की दुश्मन बन सकती थी। वो चिकी को किसी भी कीमत पर, रिवॉल्वर तक नहीं पहुंचने देना चाहता था। तभी चिकी ने दौड़ते-दौड़ते रिवॉल्वर की तरफ छलांग लगा दी। वो जमीन पर घिसटता चला गया और अगले ही पल रिवॉल्वर पर उसका हाथ जा पड़ा।

चिकी के हाथ की उंगलियां फौरन रिवॉल्वर के साथ लिपटने लगी कि देवराज चौहान की जोरदार ठोकर चिकी के हाथ पर पड़ी। रिवॉल्वर उसके हाथ से निकल गई। दूर तक घिसटती चली गई फिर ढलान से नीचे जाते ही नजरों से ओझल हो गई। चिकी के होंठों से गुर्राहट निकली और उसने उसी पल देवराज चौहान की टांग खींच ली। देवराज चौहान बुरी तरह लड़खड़ाया और आखिरकार नीचे जा गिरा।

चिकी ने दांत पीसते हुए उस पर छलांग लगा दी।

देवराज चौहान दो-तीन पलटी खा गया।

चिकी को जमीन ही मिली कि तब तक देवराज चौहान उछलकर खड़ा हो गया था। चिकी ने भी उठने में देर नहीं लगाई और दोनों ही शेरों की तरह एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे।

“कौन हो तुम?” चिकी के होंठों से फुसफुसाती-सी गुर्राहट निकली।

“देवराज चौहान।” देवराज चौहान के दांत भिंचे हुए थे।

“उस जगमोहन का साथी?” चिकी गुर्राया। उसके माथे पर बल आ ठहरे।

“सही कहा।”

“अच्छा हुआ जो तू आ गया। अब तेरे को ढूंढ़ना नहीं पड़ेगा।”

“मैं जगमोहन को ले जाने आया हूं।”

चिकी के होंठों से डरा देने वाली गुर्राहट निकली।

“तेरे को खत्म करना मेरे लिए कठिन नहीं है।” दरिंदगी भरे स्वर में कहते हुए देवराज चौहान ने रिवॉल्वर निकाली।

चिकी की आंखें सिकुड़ी।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर वापस जेब में रख ली।

चिकी की आंखें और भी सिकुड़ी।

“गोली चलने की आवाज से गाठम सतर्क हो जाएगा और मैं ऐसा नहीं चाहता।”

तभी चिकी सांड की भांति तेजी से देवराज चौहान की तरफ बढ़ा।

देवराज चौहान ने चिकी पर छलांग लगा दी।

दोनों भिड़ गए।

एकाएक चिकी ने देवराज चौहान को बांहों में भींच लिया। इस तरह कि देवराज चौहान की दोनों बांहें उसकी बांहों के बीच दब गईं। अगले ही पल देवराज चौहान चिहुंक पड़ा। चिकी उसकी जेब से रिवॉल्वर निकालने की कोशिश में था। हाथ जेब के पास सरक आया था। देवराज चौहान ने उसी पल सिर की ठोकर, चिकी के चेहरे पर दे मारी। चिकी के होंठों से चीख निकली। वो दो-तीन-चार कदम पीछे हटता चला गया। सिर की ठोकर उसकी नाक पर पड़ी थी और नाक से खून बहने लगा था। वो भयानक-सा दिखने लगा।

उसी पल देवराज चौहान ने जोरदार ठोकर चिकी के पेट में मारी। ठोकर चिकी को लगी, वो कराहा, परंतु उसी क्षण उसने देवराज चौहान की पिंडली थाम ली। चिकी गिरा। देवराज चौहान भी गिरा। परंतु चिकी ने गजब की फुर्ती से जेब से चाकू निकाला और तेजी से करवट लेकर देवराज चौहान की छाती पर वार किया।

देवराज चौहान ने दोनों हाथों से उसकी कलाई पकड़ ली।

चाकू छाती से मात्र दो इंच ही दूर था। चिकी कोशिश कर रहा था कि चाकू छाती में चला जाए जबकि देवराज चौहान पूरा जोर लगाकर चाकू को दूर रखने की कोशिश में था। दोनों के चेहरे इस कोशिश में लाल हो रहे थे। चिकी का चेहरा खून से सना था। उसके दांत भी खून में रंग गए थे। तभी देवराज चौहान ने चिकी के हाथ के पास से कलाई मोड़ दी। चिकी के चेहरे पर पीड़ा के भाव उभरे। देवराज चौहान ने कलाई और मोड़ी और चिकी के हाथ को जोरों का झटका दिया। चाकू चिकी के हाथ से निकलकर, देवराज चौहान की छाती पर जा गिरा। देवराज चौहान ने तेजी से करवट ली और चिकी के ऊपर जा पड़ा कि चिकी ने घुटने की जोरदार ठोकर पीछे से देवराज चौहान के कूल्हे पर मारी और हाथों से उसने देवराज चौहान के सिर के बाल पकड़े और पूरी ताकत से खींचने लगा।

देवराज चौहान का सिर पीड़ा से झनझना उठा।

आंखों में दर्द से पानी चमक उठा कि तड़पकर देवराज चौहान जोरों का घुसा चिकी के गाल पर दे मारा। चिकी की कराह निकली लेकिन सिर के बालों का खिंचाव कम नहीं किया। तभी देवराज चौहान ने चिकी के सिर के बाल हाथ में भींचे और पूरी ताकत से उसका सिर जमीन पर दे मारा।

चिकी के होंठों से छोटी-सी चीख निकली उसने सिर के बाल छोड़े और ऊपर बैठे देवराज चौहान की छाती में घूंसा मारा और साथ ही जोरों का धक्का दे दिया। देवराज चौहान उसके ऊपर से लुढ़ककर पास ही जा गिरा। चिकी ने फौरन पास ही नीचे पड़ा चाकू उठाया और करवट लेकर देवराज चौहान पर वार कर दिया।

चाकू दो इंच तक देवराज चौहान के कंधे में जा धंसा।

देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।

चिकी ने तेज झटके से चाकू बाहर निकाला और देवराज चौहान पर पुनः वार करना चाहा कि करवट लेता देवराज चौहान फुर्ती से तीन कदम दूर हुआ और उछलकर खड़ा हो गया।

चिकी ने भी खड़े होने में देर नहीं लगाई। दोनों खूनी निगाहों से एक दूसरे को घूर रहे थे। देवराज चौहान के कंधे के पास से कमीज खून से लाल होती दिखाई दी। इसी पल देवराज चौहान सावधानी से चिकी की तरफ बढ़ने लगा कि चाकू थामे चिकी उस पर झपट पड़ा। चाकू का निशाना पेट था। लेकिन इस वक्त देवराज चौहान ने जोरों से अपनी टांग घुमा दी। जूते की ठोकर उसकी पिंडली पर पड़ी। चिकी लड़खड़ाया कि देवराज चौहान ने उसकी चाकू वाली कलाई पकड़ी और एक के बाद एक चिकी के पेट में घूंसे मारता चला गया।

आखिरकार चिकी दोहरा होकर गिर पड़ा।

चाकू अभी भी उसके हाथ में था। वो हांफ रहा था।

देवराज चौहान ने पास पहुंचकर अपना जूता उसकी गर्दन पर रखना चाहा कि चिकी ने उसी पल अपना चाकू वाला हाथ घुमा दिया। चाकू का फल देवराज चौहान की पिंडली में लगा तो तड़पकर देवराज चौहान पीछे हटा। चिकी ने चाकू का वार उसके जूते पर किया।

देवराज चौहान उछलकर और भी पीछे हो गया।

चिकी उसी पल खड़ा हो गया।

दोनों में छः कदमों का फासला था और एक-दूसरे को खूनी निगाहों से घूर रहे थे। देवराज चौहान के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी। पिंडली के पास से पैंट खून से सुर्ख होने लगी थी। बहता खून जुराब को भी गीला कर रहा था। देवराज चौहान को इस बात का एहसास बराबर हो रहा था।

तभी चाकू थामे चिकी देवराज चौहान की तरफ दौड़ा।

वो चाकू का वार देवराज चौहान के पेट में करना चाहता था।

देवराज चौहान अपनी जगह पर स्थिर खड़ा रहा। पास पहुंचते हुए चिकी का चाकू वाला हाथ पेट की तरफ होता चला गया। मात्र एक फुट का फासला बचा था और आधे सेकेंड में वार हो जाना था कि देवराज चौहान ने बिजली की तेजी से चिकी की कलाई पकड़ी और पूरी ताकत लगाकर चिकी की तरफ मोड़ दी। कलाई वापस घूमी और चिकी के हाथ में दबे चाकू का रुख स्वयं उसके अपने पेट की तरफ हुआ और झोंक में आता उसका शरीर, सीधा देवराज चौहान से आ टकराया। पूरा का पूरा चाकू चिकी के पेट में धंस गया था। चिकी की आंखें फैल गईं। वो चंद पल तो स्थिर-सा, देवराज चौहान के साथ चिपका खड़ा रहा। फिर उसका शरीर जोरों से कांपा।

दो कदम पीछे हुआ देवराज चौहान।

चिकी अभी तक फटी आंखों से खड़ा उसे देख रहा था।

चाकू मूठ तक उसके पेट में धंसा पड़ा था।

दांत भींचे देवराज चौहान ने अपना हाथ आगे किया। चाकू को मूठ से पकड़कर बाहर खींच लिया। पूरा फल खून में डूबा लाल हो रहा था। चिकी ने दोनों हाथों से पेट थाम लिया। तभी देवराज चौहान का चाकू वाला हाथ हवा में घूमा और चिकी का आधा गला काटता चला गया। चिकी के शरीर को जोरों का झटका लगा। कम्पन-सा हुआ फिर उसके घुटने मुड़े और घुटनों के बल नीचे जा बैठा। गर्दन नीचे को लटक गई थी। फिर उसका शरीर बाईं तरफ को जा गिरा। शांत हो गया था चिकी। हमेशा के लिए शांत।

देवराज चौहान ने चाकू एक तरफ फेंका और आगे बढ़ते हुए ढलान के पास जा पहुंचा। वहां से नीचे बनी कॉटेज दिखी। उसने रिवॉल्वर निकाली और सावधानी से ढलान से नीचे उतरने लगा। शाम ढल चुकी थी और अंधेरा होना शुरू हो चुका था। कुछ ही देर में रात की काली स्याही फैल जानी थी। ढलान पर उतरते हुए देवराज चौहान कॉटेज के पास जा पहुंचा। कॉटेज के साथ सावधानी से घूमते हुए, कॉटेज के मुख्य दरवाजे के पास जा पहुंचा जो कि खुला हुआ था और भीतर जल रही रोशनी बाहर तक आ रही थी। देवराज चौहान दीवार से सट गया और भीतर की आहटें लेने की चेष्टा करने लगा। मिनट भर वो इसी तरह दीवार से सटा खड़ा रहा। रिवॉल्वर हाथ में थी।

“मितकीनी।” तभी एक आवाज उसके कानों में पड़ी –“दो घंटे बाद वैन को उसी जगह ले आना। वापस जाना है हमें।” इसके बाद चुप्पी छा गई फिर वो ही आवाज सुनाई दी –“तुम्हें यहां मेरे लोगों के हवाले कर दिया जाएगा। जब देवराज चौहान हाथ में आ जाएगा तो मेरे लोग तुम दोनों को मेरे पास पहुंचा देंगे और मैं इंडियन एम्बेसी से तुम दोनों की सौदेबाजी करके काफी बड़ी रकम लूंगा। राजी...।”

“ज-जी।” राजी की आवाज आई।

“चिकी को बुलाओ। अब हमें चलने की तैयारी करनी है। वो बाहर कहीं होगा, उसे आवाज लगाओ। अंधेरा हो रहा...।”

तभी देवराज चौहान ने दीवार छोड़ी और रिवॉल्वर थामे तेजी से खुले दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया।

उस पर निगाह पड़ते ही गाठम के शब्द मुंह में ही रह गए।

राजी का चेहरा सफेद पड़ गया।

देवराज चौहान की निगाह सब तरफ घूमी और गाठम पर जा टिकी।

“जगमोहन को खोलो।” देवराज चौहान के ये शब्द राजी के लिए थे।

राजी ठगा-सा अपनी जगह पर खड़ा रहा।             

गाठम ने देवराज चौहान के हाथों में लगे खून को देखा फिर अजीब-से स्वर में बोला।

“कौन हो तुम?”

“देवराज चौहान।”

“ओह, मुझे हैरानी है कि तुम यहां तक कैसे पहुंच गए। वो भी इतनी जल्दी, बाहर चिकी नहीं मिला?”

“मिला। मार दिया उसे।” देवराज चौहान सर्द स्वर में बोला।

“मार दिया?” गाठम के चेहरे पर पहली बार व्याकुलता नाचती दिखी –“चिकी को मार दिया।”

“मैंने सुना है तुम्हारे कहने पर वोमाल जगवामा को जहर दिया गया।” देवराज चौहान के दांत भिंचे हुए थे।

“हां।” गाठम ने गर्दन भी हिलाई।

“वहां तुम्हारा आदमी कौन है जिसने जहर दिया जगवामा को?”

“मेरा कोई आदमी नहीं। मैंने सिटवी को फंसा लिया था। उसकी बेटी को उठा लिया था। बेटी को बचाने के लिए सिटवी को ये काम करना पड़ा। मेरे से पंगा लेगा जगवामा तो जिंदा थोड़े न बचेगा।” गाठम देवराज चौहान को घूर रहा था।

“ये ही बात मैं कहना चाहता हूं कि तूने मेरे से पंगा ले लिया जगमोहन का अपहरण करके तो तू कैसे जिंदा बचेगा।” देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली –“तूने बर्मा सरकार से, पंगे लेने का परमिट तो ले नहीं रखा होगा...।”

“सुनो-सुनो।” गाठम जल्दी-से कह उठा –“नाराज होने की जरूरत नहीं। चिकी को तुमने मार दिया। सच में तुम काबिल आदमी हो। मेरे पास चिकी की जगह खाली हो गई है। तुम मेरे साथ काम...।”

‘धांय’ उसी पल देवराज चौहान ने ट्रिगर दबा दिया। गोली गाठम के दांतों को तोड़ती गले में धंसी और गर्दन के पिछले हिस्से से बाहर आ गिरी। गिरने की आवाज स्पष्ट कानों में पड़ी।

गाठम की आंखें फैल गईं।

‘धांय-धांय’, अगले ही पल देवराज चौहान ने दो फायर एक साथ कर दिए। एक गोली गाठम के माथे पर लगी। दूसरी उसके कान को उड़ा गई और गाठम पीठ के बल पीछे को जा गिरा।

राजी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। वह कभी गाठम की लाश को देखता तो कभी देवराज चौहान को।

“यहां इसके कितने लोग हैं?”

“एक भी नहीं।” राजी के होंठों से कांपता स्वर निकला –“चिकी था, तुम कहते हो कि उसे मार दिया।”

“जगमोहन को खोलो।” कहते हुए देवराज चौहान आगे बढ़ा और नीचे पड़े गाठम के पास पहुंचा। तसल्ली की कि वो मर गया है।

राजी ने जगमोहन को खोला।

जगमोहन कुर्सी पर ही बैठा रहा।

“तुम सही वक्त पर आए।” जगमोहन ने गहरी सांस ली –“गाठम, वोमाल जगवामा से भी खतरनाक इंसान था।”

“निकलो यहां से।”

जगमोहन कुर्सी से उठा।

तभी दबे पांव होपिन और आदिन भीतर आ गए।

देवराज चौहान ने रिवॉल्वर जेब में डाल ली।

“गाठम का काम कर दिया?” होपिन गाठम की लाश को देखता कह उठा।

“जामास जो चाहता था, वो मैंने कर दिया।” देवराज चौहान बोला –“अब मैं और जगमोहन जा रहे...।”

“एक काम अभी बाकी है।” आदिन कह उठा –“साहब जी को बेवू चाहिए और वो तुम लोगों के पास है।”

“तुम लोग बेवू की हत्या करना चाहते...।”

“जरूरी है। वो जगवामा का संगठन पाकिस्तानियों को बेच देगा और मुसीबत हमारे देश के लिए खड़ी हो जाएगी।” आदिन बोला –“यहां से चलो। साहब जी कुछ दूर मौजूद हैं, जो बात करनी हो उनसे करना। बाहर हमारे आदमी घेरा डाले हुए हैं, यहां का मामला वो संभाल लेंगे। तुम सच में कमाल के आदमी हो। जैसे तुमने चिकी का मुकाबला किया, जैसे तुमने गाठम को शूट किया, बर्मा पुलिस में होते तो एक ही छलांग में कमिश्नर बन जाते।”

☐☐☐

“तुम्हारे बारे में मुझे सही रिपोर्ट मिली थी। तुम खतरनाक हो और इरादे के पक्के हो। जब कोई काम करने पर आ जाओ तो करके ही रहते हो।” पुलिस चीफ जामास ने उत्साह-भरे स्वर में कहा –“तुम नहीं जानते कि गाठम को खत्म करके तुमने कितना बड़ा काम किया है, ये बात बर्मा पुलिस ही समझ सकती है। वोमाल जगवामा को गाठम के इशारे पर मार दिया गया और तुमने गाठम को। अब बर्मा पुलिस चैन से सांस ले सकेगी। सब ठीक हो गया। अब छोटा-सा काम बचा है बेवू का। उसे हमारे हवाले कर दो कि उसे खत्म किया जा सके। अगर उसने जगवामा का संगठन पाकिस्तानियों के बेच दिया तो बर्मा (म्यांमार) किसी काबिल नहीं रहेगा और यहां आतंकवाद पनपने लगेगा।”

देवराज चौहान और जगमोहन उसी जंगल के एक हिस्से में मौजूद थे। यहां पांच-छः कारें खड़ी थी। आस-पास सादी वर्दी में कुछ पुलिस वाले मौजूद थे। अंधेरा दूर करने के लिए, दो कारों की हेडलाइट ऑन थी। उधर गाठम वाली कॉटेज पर पंद्रह सादे कपड़ों में पुलिस वाले मौजूद थे।

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

“सोच क्या रहे हो?” जामास बोला –“बेवू को हमारे हवाले करो।”

“ताकि तुम उसे खत्म कर सको।”

“ये जरूरी है।”

“कोई जरूरी नहीं है। मुझे बेवू को इस तरह मारा जाना पसंद नहीं। वो संगठन से दूर रहना चाहता है। बुरा इंसान नहीं है वो। रही बात कि वो संगठन पाकिस्तानियों को बेच रहा है तो ये बात बेवू से की जा सकती है।”

जामास की आंखें सिकुड़ी।

“क्या कहना चाहते हो?” जामास बोला।

“बेवू को समझाया जा सकता है कि वो संगठन को बिखरने दे। पाकिस्तानियों को मत बेचे।” जगमोहन ने कहा।

“वो समझेगा इस बात को?” जामास तेज स्वर में बोला –“जबकि पाकिस्तानी लोग संगठन की तगड़ी कीमत उसे दे रहे हैं।”

“समझेगा, तभी तो जिंदा रहेगा।” जगमोहन गम्भीर था।

“ठीक है बेवू को सामने लाओ। उससे बात कर लेते हैं।” जामास सोच-भरे स्वर में कह उठा।

सोहन गुप्ता तय जगह पर बेवू को लेकर पहुंचा। वहां पर जामास, देवराज चौहान, जगमोहन, मोक्षी और रत्ना ढली मौजूद थे। सोहन गुप्ता वापस चला गया।

वे सब लोग बेवू को लेकर कार में बैठे। कार तेजी से दौड़ पड़ी।

“तुम्हें इन लोगों के साथ देखकर हैरानी हो रही है।” बेवू जगमोहन से कह उठा।

“शहर में बहुत कुछ हो रहा है बेवू।” जामास गम्भीर स्वर में बोला –“कहो तो बताऊं।”

“हां, कहो।”

“गाठम ने तुम्हारे पापा की हत्या कर दी है।”

“ओह।”

“कहने को तो वोमाल जगवामा को इस्टेट के किसी कर्मचारी ने जहर दिया, पर ये काम गाठम के इशारे पर किया गया। देवराज चौहान ने गाठम की हत्या कर दी।”

बेवू ने देवराज चौहान को देखा।

“सच में, बहुत कुछ हो गया। मुझे पापा का ज्यादा दुख नहीं। क्योंकि वो बीमार थे और बुरी जिंदगी जी रहे थे पर तुम्हारा और देवराज चौहान का वास्ता कैसे पड़ गया। तुम्हें पता चल गया होगा कि इन्होंने मुझे कैद कर रखा था।”

“वो मामूली बात है।” जामास बोला –“इस वक्त मैं तुमसे बड़ी बात करने वाला हूं।”

“वो भी कहो।”

“तुम संगठन को पाकिस्तानी लोगों को बेचने की तैयारी में हो।”

“तुम्हें तो सब पता है जामास।”

“पर पुलिस चाहती है कि तुम संगठन को बेचो नहीं, उसे बिखर जाने दो।” जामास गम्भीर था।

“पुलिस ऐसा क्यों चाहती है?” बेवू के स्वर में उलझन थी।

“स्पष्ट बात तो ये है मेरे दोस्त।” जगमोहन कह उठा –“अगर तुमने जामास की बात न मानी तो ये तुम्हें मार देगा। इस वक्त पूरे शहर में पुलिस का डंडा घूम रहा है। सफाई हो रही है। उस सफाई में तुम्हारा नाम भी लिखा है। पुलिस नहीं चाहती कि पाकिस्तानी संगठनों की धरती बर्मा बन जाए। जामास तुम्हारी सफाई कर देना चाहता है। पर हमने कहा कि एक बार बेवू से पूछ लो कि शायद वो संगठन को उसके ही हाल पर छोड़ दे।”

बेवू गम्भीर दिखा। कुछ क्षण चुप रहकर कह उठा।

“जामास जानता है कि मैं संगठन सिर्फ इसलिए बेच रहा था कि संगठन से जुड़े हजारों लोगों को तकलीफ न हो और उनके परिवार चलते रहें। अगर इस वजह से मेरी जान खतरे में है तो मैं ये काम नहीं करूंगा। पापा की छोड़ी इतनी दौलत है कि मुझे और दौलत की इच्छा नहीं। वैसे भी मेरी दुनिया पापा की दुनिया से जुदा है। मैं उषमा के पास जंगल में उसकी बस्ती में चला जाऊंगा, या उषमा को इस्टेट में ले आऊंगा। मैं उषमा के साथ सादा-सा प्यार भरा जीवन जीना चाहता हूं। इसके अलावा मुझे किसी और चीज से कोई मतलब नहीं।”

“वादा करते हो बेवू?” जामास गम्भीर स्वर में बोला।

“वादा। मैं संगठन को उसके हाल पर छोड़ दूंगा। मेरा उससे कोई मतलब नहीं होगा।”

“अगर इस बात से पलटे तो...।” जामास ने कहना चाहा।

“भरोसा रखो। मैं जो कह रहा हूं, वैसा ही करूंगा।” बेवू ने दृढ़ स्वर में कहा।

जामास ने रत्ना ढली का कंधा थपथपाकर कहा।

“कार रोको।”

रत्ना ढली ने सड़क किनारे कार रोक दी।

“उतर जाओ बेवू। अब तुम आजाद हो। इस्टेट पर जाकर अपने पिता का अंतिम संस्कार करो। इस काम के लिए वहां पर तुम्हारा इंतजार किया जा रहा है कि जगवामा की मौत की खबर सुनकर तुम जरूर इस्टेट पहुंचोगे।”

बेवू ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलकर खड़ा हो गया। कार के भीतर झांका।

जामास उसे देखकर मुस्कराया।

जगमोहन ने हाथ हिलाया।

रत्ना ढली ने कार आगे बढ़ा दी।

“हमें भी कार से उतार दो कहीं पर।” देवराज चौहान ने कहा।

“वापस इंडिया जाओगे?”

“हां।”

“तुम दोनों हमारे बहुत काम आए हो।” जामास ने कहा –“मैं समंदर के रास्ते तुम लोगों के जाने के इंतजाम...।”

“जब तक तुम हमारे पास रहोगे, हमें ठीक से सांस भी नहीं आएगी।” जगमोहन बोला –“तुम पहले ही हम पर बहुत मेहरबानी कर चुके हो। हमें कहीं उतार दो ताकि हम ठीक से सांस ले सकें।”

“मेरे बारे में ऐसा सोचते हो।” जामास ने गहरी सांस ली।

“क्या मेरा ये कहना जरूरी है कि मैं इससे भी बुरा सोचता हूं पर कम कहा कि तुम बुरा न मान जाओ।”

“गाड़ी रोको।”

रत्ना ढली ने पुन सड़क के किनारे कार रोक दी।

“उतरो।” जामास बोला –“पर बर्मा (म्यांमार) में टिकने की मत सोच लेना। कब जाओगे यहां से?”

“बहुत जल्दी। आज कल में।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा।

“मुझे आशा है कि अब हम कभी नहीं मिलेंगे।” जामास ने कहा और इसके साथ ही कार आगे बढ़ गई।

इस वक्त रात के बारह बजने जा रहे थे। एक पब्लिक बूथ से देवराज चौहान ने सोहन गुप्ता को फोन किया। पहली बेल पर ही सोहन गुप्ता ने कॉल रिसीव की और बोला।

“तुम दोनों कहां हो? यहां से हमारे सारे एजेंट वापस जा चुके हैं। तुम लोगों के चक्कर में हम यहां रुके हुए हैं।”

“हमारा वापस जाने का इंतजाम कर दो गुप्ता।”

“सच कह रहे हो?”

“हां। जब भी तुम कहोगे हम...।”

“देर किस बात की। इसी वक्त रंगून (यंगून) के लिए चल देते हैं। कल रात को समंदर पार करके इंडिया पहुंच जाएंगे।” सोहन गुप्ता की आवाज कानों में पड़ी।

“तुम लोग चलने की तैयारी शुरू कर दो। मैं और जगमोहन अभी तुम्हारे पास पहुंच रहे हैं। देवराज चौहान ने कहा और रिसीवर रखकर फोन बूथ से बाहर आया और जगमोहन से बोला –“हम आज रात ही ये शहर छोड़ देंगे। सोहन गुप्ता ने तैयारी शुरू कर दी होगी। यहां से रंगून पहुंचेंगे और कल रात समंदर के रास्ते इंडिया में प्रवेश कर जाएंगे।”

“शुक्र है।” जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा –“इंडिया की बहुत याद आ रही है। जब से बर्मा में कदम रखा है तब से मुसीबतें पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही। सच में, मार्शल बहुत कमीना इंसान है। फिर कभी इसके चक्कर में फंसकर अपनी बुरी हालत नहीं बनवाऊंगा।”

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा और मुस्करा पड़ा।

“टैक्सी देखो। सोहन गुप्ता हमारा इंतजार कर रहा होगा।” देवराज चौहान कह उठा।

समाप्त