मोना चौधरी की निगाह उसकी एकमात्र आँख पर जा टिकी । उसे इस तरह सामने खड़ा पाकर मोना चौधरी के दिल की धड़कन की रफ्तार बढ़ गई थी । इस तरह रहस्यमय जीव के सामने आने का ये पहला मौका था, वरना पहले तो इसके बारे में सुना ही था । जब हाथ आया था तो बेहोश था, उस वक्त हालात दूसरे थे ।

मिनट भर का वक्त ऐसे ही बीत गया । दोनों एक-दूसरे को देखते रहे ।

उसकी छाती पर अभी भी बैंडिज मौजूद थी जो उन्होंने गोली निकालकर चार दिन पहले बांधी थी । बैंडिज मैली होकर अपनी सफेद रंग खो चुकी थी ।

उसकी आँख जरा-सी नीचे हुई । वह मोना चौधरी के हाथ में देखने लगा था फिर मोना चौधरी को देखा । ये देखने में उसकी आँख कई बार जरा-जरा ऊपर-नीचे हुई ।

मोना चौधरी उसकी हरकत देख रही थी ।

वहाँ सनसनी-सी फैली थी । पोजिशन लिए पुलिस वालों की हालत अजीब-सी हो रही थी । कई ऐसे भी थे जो रहस्यमय जीव को भून देना चाहते थे, परंतु बीच में मोना चौधरी के मौजूद होने के कारण किसी तरह की अपनी इच्छा को दबाकर रखा । वे मोना चौधरी के सामने से हटने या फायरिंग के आदेश के इंतजार में थे ।

मोना चौधरी तैयार थी फायरिंग के लिए कि वह कोई हरकत करने की कोशिश करें ।

तभी वह हुआ जिसकी किसी को आशा भी नहीं थी ।

रहस्यमय जीव ने अपने गाल को हाथ की उंगलियों के नाखूनों से खुजलाया और नीचे झुकते हुए कुल्हों के बल जमीन पर बैठ गया ।

ठीक वैसे जैसे साधारण इंसान बैठता है ।

साँस रोके दूर से ये सब देख रहे थे ।

मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं । कई पलों तक वह उसे समझने वाले ढंग से देखती रही । रहस्यमय जीव की ये हरकत उसकी समझ में नहीं आई थी । ढेरों पल उसे देखते-सोचते बीत गये ।

मोना चौधरी की पोजिशन में कोई फर्क नहीं आया ।

वह टकटकी बाँधे मोना चौधरी को देखे जा रहा था । इस बीच कई बार वह उसके हाथ में पकड़ी गन को भी देख चुका था । मोना चौधरी को लगा कि वह गन से डर रहा है । अगर वह गन से डर रहा है तो वास्तव में हैरानी की बात थी ।

एकाएक मोना चौधरी पीछे हटने लगी, गन थामे नजरें रहस्यमय जीव पर जमी थीं ।

दस कदमों का फासला पहले था । दस कदमों के फासला और बढ़ाकर मोना चौधरी ठिठकी फिर धीरे-धीरे नीचे बैठती चली गई । गन को अपने पास ही हाथ में रख लिया । इस बीच एक बार भी नजर नहीं हटी थी ।

उसे बैठते पाकर रहस्यमय जीव जोर-जोर से अपना सिर हिलाने लगा ।

मोना चौधरी उसकी इन बात का, इस हरकत का भी मतलब नहीं समझी ।

तभी बैठे-ही-बैठे वह धीमे से आगे सरका ऐसा करने में उसने जमीन पर ही हथेली रखकर सहारा लिया था । वह एक कदम आगे सरक आया था ।

मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये । नजरें उस पर से हट नहीं पा रही थी ।

वह पुनः आगे सरका बैठे-ही-बैठे । दो कदम के करीब और भी आगे आ गया । इस दौरान वह भी बराबर मोना चौधरी को देख रहा था ।

एकाएक मोना चौधरी का मस्तिष्क तेजी से दौड़ने लगा । खुद को उसने अजीब-अजीब-सी स्थिति में महसूस किया । उसकी सोचे कई तरह से नये रूप लेकर बनने-बिगड़ने लगी ।

ये रहस्यमय जीव, दरिंदा बनकर सबको मार रहा था । लाशों के बुरे हाल कर देता था । अचानक ही दिखाई देता और लोगों की जान लेता और उसके बाद फुर्ती से गायब हो जाता । लेकिन इस वक्त सीधा-सीधा पास आया था । अपनी पहले वाली हरकत, वैसा अंदाज नहीं दोहराया था । बेहद सामान्य व्यवहार कर रहा था । अगर इसका इरादा खून-खराबा करने का होता तो ये ऐसा सब न करता । इसे छुपकर आना था और मौत का तूफान खड़ा कर देना था ।

लेकिन नहीं, सीधे-सीधे सामने आया ।

इसके व्यवहार से ऐसा कुछ नहीं लगता कि यह कुछ कर सकता है । उसे सामने खड़ा पाकर नीचे बैठ गया । उसके हाथ में दबी गन को कई बार देखा । शायद उसे महसूस हो गया था कि हाथ में जो भी पकड़ा है, उससे कुछ ऐसा निकलता है जिससे शरीर में तकलीफ उठती है । फिर यह नीचे बैठ गया । उसे बैठते पाकर अपनी गर्दन हिलाई और बैठे-ही-बैठे थोड़ा-थोड़ा सरक करके उसकी तरफ बढ़ने लगा ।

क्या करना चाहता है ये ?

लड़ाई-झगड़ा-हमला करना होता तो ऐसा न करता ।

एकाएक मोना चौधरी के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा । आँखें सिकुड़ीं । कहीं ये सब हरकतें करके ये अपना प्यार तो नहीं दिखा रहा ?

प्यार दिखाने का यह अंदाज तो नहीं ?

अगर ये प्यार दिखा रहा है तो इसे एहसास हो गया होगा कि इस की छाती से गोली निकाली गई है । या इसे बेहोश करके इसकी छाती को छेड़ा गया है । उसके बाद इसकी छाती में जो दर्द उठता था, वह दोबारा नहीं हुआ इससे इसकी समझ में आ गया कि इसके साथ जो भी किया गया, उसके अच्छे के लिए था ।

इस सोच के साथ ही जैसे मोना चौधरी ने अपने सिर से बोझ-सा उतरता महसूस किया 

तो क्या उसकी कोशिश सफल रही ?

ये दोस्ती के ख्याल से यहाँ आया है ? तभी ये हमला नहीं कर रहा ?

इन सोचों के साथ ही मोना चौधरी ने अपने चेहरे पर मधुर-मीठी-सी मुस्कान बिछा ली । ये मुस्कान देखते ही उसने जोरों से गर्दन हिलाई और उसके मोटे लटकते होंठ बेहद भद्दे ढंग से फैल गये । ये उसकी मुस्कान थी । जिसे देखकर साधारण इंसान के तो हाथ-पाँवों काँप उठते । इसके साथ ही वह सरकने वाले ढंग से तेजी से आगे बढ़ा और मोना चौधरी के करीब आकर बैठ गया ।

मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कान थी, परंतु दिल में भय व्याप्त था । यह ताकतवर जीव कभी भी उस पर कोई वार कर सकता था । उसे संभलने का मौका नहीं मिलना था ।

पोजिशन लिए पुलिस वालों की साँसें थम चुकी थी । ऐसा कुछ देखने को मिलेगा, यह उन्होंने सोचा भी नहीं था । महाजन दाँत भींचें धड़कते दिल के साथ यह सब देख रहा था । हर पल उसे लगता की रहस्यमय जीव अभी मोना चौधरी पर हमला करेगा और फिर सब कुछ खत्म हो जायेगा । पास बैठकर वह और भी खुलकर मुस्कुराया ।

मोना चौधरी ने खुद को संभाला और मुस्कुराते हुए प्यार से कह उठी ।

“कैसे हो तुम ?” जवाब में उसने हाथ हिलाकर मोना चौधरी को छुआ । फिर अपना हाथ पीछे कर लिया ।

उसके ऐसा करते ही अजीब-सी सनसनाहट मोना चौधरी के जिस्म में दौड़ गई । उसकी उंगलियों का, चमड़ी का सख्त खुदरापन उसके पूरे जिस्म में सनसनाहट फैला गया था ।

मोना चौधरी ने फौरन खुद को संभाला ।

“लगता है तुम अच्छे हो गये । अब दर्द नहीं होती तुम्हें ।”

मोना चौधरी का वही लहजा, वही ढंग था ।

जवाब में उसकी मुस्कान और फैली, फिर उसने पहले की ही तरह मोना चौधरी का हाथ छुआ ।

मोना चौधरी ने हिम्मत इकट्ठी की और चेहरे पर मुस्कान समेटे बाँह उठाकर हाथ बढ़ाया और उसके कंधे पर रखा । फिर हाथ से धीमे-से, मध्यम-से अंदाज में उसके कंधे को थपथपाया । जवाब में रहस्यमय जीव ने मोना का घुटना थपथपाया ।

“लगता है तुम ठीक हो गये ।” मोना चौधरी उसी स्वर में बोली, “अब छाती में दर्द नहीं होता ।”

मालूम नहीं उसकी समझ में आया या नहीं, लेकिन वह गर्दन हिलाने लगा ।

मोना चौधरी ने उसका कंधा थपथपाकर कहा ।

“तुम बैठो । मैं ये बैंडिज खोल देती हूँ ।” इसके साथ ही वह उठी और उसकी छाती पर बँधी बैंडिज खोलने लगी, जो कि मैली हो चुकी थी । ये सब करते हुए उसका दिल धड़क रहा था । कभी-कभी उसे लगता कि यह हमला करेगा और उसकी जान ले लेगा । शरीर के टुकड़े कर देगा ।

मोना चौधरी ने बैंडिज खोलकर उसकी छाती के जख्म को देखा । जख्म लगभग पूरी तरह भर चुका था । निशान बाकी बचा था, जिसे कि वक्त के साथ मिट जाना था । इसके बाद मोना चौधरी उसके सामने आ बैठी । वह बच्चों की तरह जमीन पर बैठा था । मोना चौधरी ने हाथ आगे बढ़ाया और मुस्कराकर बोली ।

“हैलो !”

उसने हाथ को देखा, परन्तु कुछ समझा नहीं ।

“इस तरह हैलो करते है ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने उसकी दाईं कलाई पकड़कर बाँह को थोड़ा-सा ऊपर किया और उसका हाथ अपने हाथ में पकड़कर हौले-हौले हिलाने लगी ।

बहुत भारी था उसका हाथ । फिर उसके हाथ को छोड़ दिया । रहस्यमय जीव ने अपने हाथ को देखा । फिर मोना चौधरी के हाथ को देखा । इसके फौरन बाद ही उसने हैलो के अंदाज में अपनी हथेली आगे फैला दी ।

मोना चौधरी ने मुस्कराकर उसके हाथ में अपना हाथ दिया और बोली ।

“तुम तो एक ही बार में हैलो करना सीख गये ।”

उसने मोना चौधरी का हाथ छोड़ा और पास रखी गन को उठाया । मोना चौधरी तुरंत ही सतर्क हो गई । दूसरे ही पल उसने उसको एक पल में ही दूसरा हाथ लगाकर तिनके की तरह मोड़ा और उसे दूर फेंककर मुस्कराकर मोना चौधरी को देखने लगा । ऐसा होते देखकर मोना चौधरी मुस्कुरा पड़ी । मोना चौधरी ने जेब में हाथ डालकर वह गोली निकाली जो उसकी छाती से निकाली थी । हथेली पर उसे दिखाते हुए बोली ।

“ये गोली तुम्हारी छाती में धँसी थी । जिसकी वजह से तुम्हें दर्द होता था ।”

उसने हथेली में पड़ी गोली को देखा । मालूम नहीं वह मोना चौधरी की बात को समझा या नहीं । लेकिन उसने हथेली में रखी गोली उठाकर दूर फेंक दी । भद्दे होंठ मुस्कुराहट के रूप में फैले थे ।

“तुम बहुत अच्छे हो ।” मोना चौधरी ने पुनः उसके कंधे पर हाथ रखा ।

वह सिर हिलाते हुए अपनी मुस्कान के साथ मोना चौधरी को देखता रहा ।

“कुछ खाओगे ?”

जवाब में वह सिर्फ मोना चौधरी को देखता रहा ।

महाजन, मोना चौधरी को देखता रहा ।

“महाजन !” मोना चौधरी ने ऊँचे स्वर में पुकारा ।

रहस्यमय जीव के चेहरे पर कुछ बदलाव आ गया । उसकी मुस्कान गायब हो गई । आँख मोना चौधरी के चेहरे को देखने लगी ।

शायद वह समझ नहीं पा रहा पाया था कि मोना चौधरी चीखी या ऊँचा क्यों बोली ?  

तभी अपनी ओट से महाजन निकला । उसकी निगाह महाजन पर पड़ी तो वह महाजन को देखने लगा ।

“आओ, महाजन !” मोना चौधरी बराबर मुस्कुरा रही थी, “तुम्हें इससे मिलाती हूँ । महाजन के चेहरे पर स्पष्ट तौर पर हिचकिचाहट के भाव नजर आ रहे थे, परंतु वह इधर आने लगा ।

“घबराओ मत ! ये बहुत अच्छा है । इसका दिल बहुत अच्छा है । डरो मत, महाजन !” मोना चौधरी कह उठी ।

“मेरी तो हवा निकल रही है बेबी !” महाजन वास्तव में गंभीर था । खुद को अजीब-सी स्थिति में फँसा महसूस कर रहा था ।

“आ जाओ । मेरे ख्याल में सब ठीक है । वक्त पड़ने पर खुद को बचाने के लिए तैयार रहना ।” मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कान थी ।

महाजन पास आकर ठिठका ।

“हैलो करो, महाजन !” मोना चौधरी मुस्कान भरे स्वर में कह उठी । महाजन समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें । उसे सामने बैठे देखकर, इतने करीब पाकर वह घबराया-सा था ।

शायद ‘हैलो’ शब्द से वह रहस्यमय जीव कुछ बात समझा । उसने अपना हाथ महाजन की तरफ बढ़ाया । इसके साथ ही उसके होंठ भद्दे ढंग से मुस्कुराहट के रूप में फैल गये । नजरें भी महाजन पर थी ।

“हाथ आगे बढ़ा दो महाजन ! दोस्ती करो इससे ।” मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।

महाजन के चेहरे पर उलझन और परेशानी के भाव थे । हिचकिचाकर उसने एक कदम आगे बढ़ाया और हाथ आगे कर दिया । हाथ मिलाया । रहस्यमय जीव ने उसको हाथ हिलाकर छोड़ दिया और उसी तरह भद्दे होंठों को फैलाकर मुस्कान में रूप में मोना चौधरी को देखने लगा । मोना चौधरी खुलकर मुस्कराई ।

महाजन भयभीत निगाहों से रहस्यमय जीव को देखते हुए अपना हाथ पैंट के साथ रगड़ रहा था ।

“महाजन !” मोना चौधरी ने कहा, “ये अब हमारा दोस्त बन गया है ।”

“म… मालूम नहीं, बेबी !” महाजन के होंठों से निकला, “मुझे तो ये अब भी खतरनाक लग रहा है ।”

“घबराओ मत । दुलानी को बुलाओ ।”

“दुलानी !” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।

“बुलाओ उसे ।”

महाजन चला गया ।

मोना चौधरी ने पुनः उससे हाथ मिलाया । ऐसा करते हुए वह बच्चों की तरह खुश नजर आ रहा था ।

महाजन, दुलानी को वहाँ ले आया ।

हरीश दुलानी का रंग फक्क पड़ा हुआ था । उसका चेहरा बता रहा था कि बिना मर्जी के उसे यहाँ लाया गया है । उसकी भय भरी निगाहें रहस्यमय जीव पर ही टिकी थीं । उसके खड़े होने का अंदाज बता रहा था कि जैसे वह कभी भी भाग खड़ा होगा । बार-बार वह अपने सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था ।

रहस्यमय जीव की निगाह दुलानी पर पड़ी तो उसकी आँख तेजी से पट्टी के भीतर इधर-उधर हिलने लगी जैसे वह दुलानी को देखकर परेशान हो उठा हो । उसके होंठ भिंच गये । वह कुछ क्रोध में दिखने लगा । शायद उसे इस बात का ध्यान आ गया था कि सामने खड़े इंसान ने एक रात उससे टकराने की चेष्टा की थी ।

उसका बदलता रूप देकर हरीश दुलानी का चेहरा आतंक से घिर गया ।

मोना चौधरी ने उसके बदले रूप को फौरन पहचाना ।

“म... महाजन !” दुलानी काँपकर महाजन के पीछे हो गया, “ये... ये... ।”

तभी मोना चौधरी ने हाथ बढ़ाकर रहस्यमय जीव का कंधा थपथपाया ।

रहस्यमय जीव ने उसी तरह क्रोध भरी नजरों से मोना चौधरी को देखा ।

“गुस्सा नहीं करते ।” मोना चौधरी मुस्कराकर कह उठी, “गुस्सा नहीं । यहाँ सब दोस्त हैं ।”

उसके होंठों से हल्की-सी गुर्राहट निकली ।

“गुस्सा नहीं !” कहते हुए मोना चौधरी ने उसका कंधा, उसकी बाँह थपथपाई, “पीछे की बातें याद नहीं रखते । तुम दुलानी साहब से हैलो करोगे ।” कहते हुए मोना चौधरी उठी ।

दुलानी अभी भी घबराया-सा महाजन की ओट में था ।

“मेरे पास आओ, दुलानी !”

दुलानी अभी भी घबराया-सा महाजन की ओट में था ।

“मेरे पास आओ, दुलानी !”

दुलानी ने महाजन के पीछे से निकलने की कोशिश नहीं की ।

“जाओ, दुलानी !” महाजन गंभीर स्वर में बोला ।

“न... नहीं !” दुलानी के स्वर में कंपन था ।

“देर मत करो, दुलानी !” मोना चौधरी कह उठी, “ये तुम्हें कुछ नहीं करेगा । हैलो करो इससे ।”

“नहीं ! मैं नहीं ! मैं जा रहा हूँ । यह पहचान गया है कि मैंने इसके रास्ते में आने की कोशिश... ।”

तभी रहस्यमय जीव ने मोना चौधरी की पिंडली पर हाथ मारा ।

मोना चौधरी ने उसे देखा ।

नजर मिलते ही एकाएक रहस्यमय जीव मुस्कुराया । फिर देखते-ही-देखते उठा और महाजन के पीछे छिपे दुलानी की तरह बढ़ा । महाजन की धड़कन तीव्र हो गई ।

दुलानी सिर से पाँव तक काँप उठा ।

“घबराओ मत, दुलानी !” मोना चौधरी गंभीर, कुछ परेशान थी, “ये तुम्हें कुछ भी नहीं कहेगा । हैलो करेगा ।”

दूरी पर पोजिशन लिए सब पुलिस वाले धड़कते दिल के साथ यह सब देख रहे थे । कइयों के मन में था कि उसे गोलियों से भून दें, परन्तु दूसरों के मौजूद होने की वजह से वे कुछ नहीं कर पा रहे थे ।

रहस्यमय जीव, दुलानी के पास पहुँचकर ठिठका ।

उसे एक कदम की दूरी पर पाकर सिर से लेकर पाँव तक काँप उठा । माथे और चेहरे पर पसीने की बूँदें स्पष्ट तौर पर चमक उठी थीं । चेहरा पीला पड़ गया था । रहस्यमय जीव उसी तरह मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था । फिर उसने दुलानी की तरफ हाथ बढ़ाया और दुलानी के होश गुम होने लगे ।

“हाथ बढ़ाओ, दुलानी ! हैलो करो !” मोना चौधरी ने जल्दी से कहा ।

दुलानी ने अपनी बाँह हिलाई, परन्तु ठीक तरह से हाथ उसकी तरफ न बढ़ा सका ।

तभी वह थोड़ा और करीब आया और दुलानी का बायाँ हाथ अपने हाथ में लेकर हिलाया । दायें हाथ पर तो प्लास्टर था । दुलानी तो निर्जीव बूत की तरह खड़ा था । रहस्यमय जीव ने उसका हाथ छोड़ा और पलटकर वापस अपनी जगह पर आ बैठा और मुस्कुराकर मोना चौधरी को देखा ।

मोना चौधरी भी खुलकर मुस्कुराई ।

दुलानी अभी तक पहले की स्थिति में हक्का-बक्का खड़ा था ।

“तुम्हें भूख लगी होगी ।” मोना चौधरी ने उसकी बाँह थपथपाकर कहा, “कुछ खाओगे ?”

जवाब में उसने भी देखा-देखी मोना चौधरी की बाँह थपथपा दी ।

“महाजन ! दुलानी !” मोना चौधरी ने उन्हें देखा, “इसके खाने के लिए सामान लाओ । जो सामान हम साथ ले जाने वाले थे, वो इसके सामने लाकर रख दो ।

दोनों जल्दी से एक तरफ बढ़ गये ।

“वो तुम्हारे लिए खाने का सामान लेने गये हैं ।” मोना चौधरी उसे देखकर मुस्कुराते हुए कह उठी ।

जल्दी ही दोनों खाने का बँधा हुआ सामान वहाँ ले आए और उसे खोलने लगे । दुलानी अपने पर काबू नहीं रख पा रहा था । वह बहुत हद तक असामान्य-सा था ।

सामान खोलकर दोनों पीछे हट गये ।

रहस्यमय जीव ने वहाँ पड़ी चपातियाँ, सब्जी, पराठों और बिस्किटों को देखा । फिर सवालिया निगाहों से मोना चौधरी को देखने लगा । मोना चौधरी ने एक चपाती उठाई और उसे तोड़कर सब्जी लगाकर अपने मुँह में डाली और चबाने लगी । वह बहुत ध्यान से मोना चौधरी की हरकत को देख रहा था ।

“तुम भी खाओ ।”

लेकिन वह मोना चौधरी को देखता रहा ।

मोना चौधरी ने हाथ में पकड़ी चपाती के साथ सब्जी लगाई और उसके मुँह के पास ले गई । उसके होंठ खोल देने पर चपाती-सब्जी उसके मुँह में डाल दी । वह मुँह चलाने लगा । मोना चौधरी बहुत ध्यान से उसकी हरकत देख रही थी । फिर उसका हाथ पकड़कर चपातियों पर रख दिया । ऐसा करते ही उसने चपाती उठाई और मुँह में डाल ली ।

उसका रोटी-सब्जी खाने का सिलसिला शुरू हो गया ।

हर कोई हैरानी से, उलझन में भरा उसे चपाती-सब्जी खाते देख रहा था ।

खाने-पानी के बाद वह वहीं जमीन पर लेट गया था । रह-रह कर आँख की पट्टी निकलकर आँख को ढाँपने लगी थी । मोना चौधरी समझ गई कि उसे नींद आने लगी है । वह उसकी पीठ पर थपकी देने लगी । जल्दी ही पलक आँख को ढाँपते हुए स्थिर हो गई । मोना चौधरी समझ गई कि वह नींद में डूब चुका है । उसे थपथपाना छोड़कर मोना चौधरी खड़ी हो गई ।

महाजन और हरीश दुलानी कुछ कदमों की दूरी पर, अजीब-से भाव चेहरों पर समेटे खड़े थे ।

मोना चौधरी के चेहरे पर राहत के भावों के साथ-साथ खुशी के भाव थे ।

“इसे नींद लेने दो ।” मोना चौधरी उनके पास पहुँचकर बोली, “यहाँ आ जाओ ।”

तीनों कुर्सियों के पास पहुँचे ।

दुलानी की टाँगें काँप रही थी । चेहरा अभी भी पसीने से भरा था ।

महाजन गंभीर-व्याकुल उलझन से भरा नजर आ रहा था ।

“अपने पुलिस वालों से कह दो कि अब डरने की जरूरत नहीं !” मोना चौधरी के गम्भीर स्वर में प्रसन्नता थी, “कोई भी उस पर गोली चलाने की कोशिश न करें । वरना उसे संभालना असंभव होगा । वो फिर लाशें बिछा देगा ।”

हरीश दुलानी ये आर्डर देकर फौरन ही वापस आ गया ।

तीनों कुर्सियों पर बैठ गये ।

वहाँ से दूरी पर, जमीन पर सोया रहस्यमय जीव साफ़ नजर आ रहा था ।

ये सब हालात देखकर अजीब-सी स्थिति में फँसे पुलिस वालों में बातचीत की फुसफुसाहट जारी थी । वे डरे हुए थे । उस जीव को इतने करीब पाकर रोमांचित भी थे । निगाहें उस पर से हटने का नाम नहीं ले रही थी ।

हरीश दुलानी से कुछ कहते न बन पा रहा था । वह रह-रहकर बैचेनी से पहलू बदलने लगता ।

सब कुछ समझकर भी महाजन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।

मोना चौधरी ने गंभीर निगाहों से दोनों को देखा, फिर आसपास फैले नजर आते पुलिस वालों पर मारी ।

“मैं अपनी इस कोशिश को असफल मान बैठी थी । वो कोशिश सफल रही ।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा, “उसकी छाती में फँसी गोली ही उसे दर्द दे रही थी और गुस्से में वह दूसरों की जानें ले रहा था । लेकिन अब सब ठीक है । वो हमारा दोस्त बन गया है । वह जान चुका है कि हम उसके दुश्मन नहीं हैं ।”

“वो मालूम नहीं क्या शह है ?” दुलानी ने नींद में डूबे रहस्यमय जीव पर निगाह मारी, “उसके दिमाग पर विश्वास नहीं किया जा सकता । क्या मालूम उठते ही वह हम लोगों को मारना शुरू कर दे ।”

“ऐसा नहीं होगा ।” मोना चौधरी के स्वर में विश्वास के भाव थे ।

“क्यों नहीं हो सकता ?” दुलानी ने मोना चौधरी को देखा, “तुम उसकी गारंटी कैसे ले सकती हो ?”

“पहले की बात और थी । हम उसको लेकर शक में थे । लेकिन अब सब खत्म हो चुका है । वो आया और जो भी हुआ सब ने देखा ।” मोना चौधरी गंभीर थी, “अब तो तुम्हें उस पर किसी तरह का शक नहीं करना चाहिए । वो पहले भी ठीक था और अब भी ठीक है । बीच में बदलाव उसमें तब आया जब उसे गोली मारी गई । गोली उसके सीने में जा फँसी, जिससे कि उसे दर्द होता रहता था और गुस्से में वो लोगों को मारने लगा । अब गोली निकाल दी गई है, उसे दर्द नहीं होता । ऐसे में वो किसी की जान नहीं लेगा ।”

हरीश दुलानी ने उलझन भरी निगाहों से महाजन को देखा ।

“तुम्हारा क्या ख्याल है महाजन !” बोला दुलानी, “अब ये किसी की जान नहीं लेगा ?”

“मेरे ख्याल में तो नहीं लेगा ।” महाजन गंभीर था, “तुमने देखा ही है कि वह बहुत समझदारी के साथ दोस्ताना व्यवहार कर रहा था । अगर उसे किसी की जान लेनी होती तो ऐसी शराफत न दिखाता ।”

“तुमने कभी ये कहा है कि मोना चौधरी गलत है ।” दुलानी ने तीखे स्वर में कहा ।

“जब बेबी गलत बोलेगी तो जरूर कहूँगा ।”

दुलानी उखड़े अंदाज से गहरी साँस लेकर रह गया ।

“ये केस खत्म हो चुका है ।” मोना चौधरी ने गहरी साँस ली, “अब तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं !”

“केस खत्म हो गया ?”

“हाँ !”

“तो अपराधी कहाँ है ? मैं अपने ऑफिसरों को क्या बताऊँगा की... ।”

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी ने उसे देखा, “इस केस का असली अपराधी सरकारी गनमैन को ही कहा जायेगा, जिसने बिना सोचे-समझे इस रहस्यमय जीव को गोली मार दी । अगर उस वक्त इसे गोली न मारी गई होती तो इसे यह खून-खराबा करना ही नहीं था ।”

“मैं ऐसी रिपोर्ट दूँगा तो मेरे डिपार्टमेंट वाले मुझे पागल समझेंगे ।”

“वो तुम जानो ।”

हरीश दुलानी ने गर्दन घुमाई और नजरें नींद में डूबे रहस्यमय जीव पर जा टिकी ।

“इसका कोई नाम नहीं ! ऐसा रहस्यमय जीव किसी ने नहीं देखा ।” दुलानी ने कहा ।

“इसकी तस्वीरें तुम्हारे पास है । यहाँ मौजूद ढेर सारे पुलिस वालों ने सब कुछ देखा है । ऐसे में इस बात के लिए तुम्हें गवाहों की भी कमी नहीं ! तुम अपनी रिपोर्ट तैयार कर सकते हो ।”

“मोना चौधरी !” दुलानी ने उसकी आँखों में देखा, “मैं इस रहस्यमय जीव को गिरफ्तार करना चाहता हूँ ।”

“पागल तो नहीं हो गया ?” महाजन के होंठों से निकला ।

मोना चौधरी के चेहरे पर खिंचाव आ गया ।

“मेरे ख्याल में इसे गिरफ्तार करने की कोई जरूरत नहीं है ।” मोना चौधरी ने दुलानी को घूरा ।

“तुम नहीं समझोगी । इसे गिरफ्तार करना बहुत बड़ी बात होगी ।” दुलानी शब्दों को चबाकर कह उठा, “ऐसे जीव को किसी ने देखा नहीं है । मेरे कारण अगर इसे दुनिया के सामने लाया जाता है तो मुझे बहुत फायदा होगा । मेरा नाम होगा । तरक्की मिलेगी । इंटरव्यू देने की एवज में मुझे ढेरों दौलत मिलेगी । मेरी दुनिया बदल जायेगी । मोटे-मोटे ईनाम मिलेंगे मुझे और... ।”

“बेबी !” महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा, “इसका तो काम हो गया पूरी तरह ।”

दुलानी ने महाजन को देखकर कहा ।

“मेरी बात समझने की कोशिश... ।”

“मुझे कोशिश करने की जरूरत नहीं ।” महाजन की आवाज में व्यंग आ गया, “मैं तुम्हारी बात अच्छी तरह समझ चुका हूँ ।”

हरीश दुलानी ने मोना चौधरी को देखा ।

“मैं इस जीव को गिरफ्तार करूँ । तुम्हें एतराज तो नहीं ?”

“नहीं !” मोना चौधरी बुझे ढंग से मुस्कुरा उठी, “मुझे कोई एतराज नहीं ! कैसे पकड़ोगे उसे ?”

“एक जाल अभी बचा हुआ है जैसा तुम ने बनवाया था । जिसे वो तोड़ नहीं सकता । जिसमें फँस जाने के बाद वह बचकर बाहर नहीं निकल सकता । उस जाल से इसे आसानी से फाँसा जा सकता है । अभी बहुत अच्छा मौका है, उसे जाल में फँसा लेने का । वो निश्चित होकर सोया हुआ है । हम सफल रहेंगे ।” दुलानी कह उठा ।

“ठीक कहते हो !” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “जाओ, उसके ऊपर जाल फेंककर पकड़ लो उसे ।”

“तुम मजाक तो नहीं कर रही ?” दुलानी के होंठों से निकला ।

“मैं मजाक नहीं कर रही ।”

दो पल के लिए वहाँ चुप्पी छा गई । दुलानी कभी मोना चौधरी को देखता तो कभी महाजन को ।

“ठीक है, आओ मेरे साथ ।” दुलानी कह उठा ।

“मैं ?” मोना चौधरी के होंठों से मुस्कान उभरी, “मेरी अब जरूरत नहीं । मुझे जो काम करना था, जितना करना था । वो कर दिया । वो खून-खराबा कर रहा था, उसे रोकना चाहती थी, जिसमें मैं सफल रही । अब तुम उसके साथ क्या करते हो या उसके साथ क्या होता है, इस बात का मुझे कोई वास्ता नहीं ! हम यहाँ से जा रहे हैं ।”

“जा रहे हो ?”

“हाँ ! उसे पकड़ने का काम तुम अपने साथी पुलिस वालों के साथ आसानी से कर सकते हो ।”

हरीश दुलानी कुछ व्याकुल हुआ ।

महाजन ने मोना चौधरी पर निगाह मारी फिर घूँट भरा ।

“हमारे जाने के बाद तुम बेशक जो भी करो ।” मोना चौधरी ने मुस्कुराकर दुलानी की आँखों में झाँका, “लेकिन इतना अवश्य कहूँगी कि ऐसा करके अपनी और कई पुलिसवालों की मौत को बुलाओगे । अब वह सतर्क हो चुका है । सच कह रही हूँ कि वह समझ चुका है कि जाल में फँसने के बाद उसे कैसे बचना है । तुम देख ही चुके हो कि वह कितनी कठिनता के साथ ठीक हुआ है । ऐसी कोई हरकत करके तुम फिर उसे मजबूर कर रहे हो कि वह जल्लाद बनकर दूसरों की जान लेना शुरू कर दे । उसकी ताकत देख चुके हो । उसका गुस्सा से भरे जल्लादीपन से भी वाकिफ हो चुके हो । ऐसे में तुम्हें समझदारी से काम लेना चाहिए । ऐसा कुछ मत करो कि वह पुरानी हरकतों पर आ जाये। वो इस बात को कभी भी सहन नहीं करेगा कि कोई उसके साथ कैसी भी जबरदस्ती करें । उसे पकड़ने की कोशिश… ।”

“उसे जाल में फाँसा जा सकता है मोना चौधरी ! वो इस वक्त नींद में... ।”

“मैंने तुम्हें रोका नहीं है ।” दाँत भींचें कहते हुए मोना चौधरी उखड़े अंदाज में खड़ी हो गई, “जाल लो और उसे फाँसने की तैयारी शुरू करो । अगर कामयाब न हुए तो उसका अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहना । आओ, महाजन !”

महाजन फौरन उठ खड़ा हुआ ।

“ओके, इंस्पेक्टर हरीश दुलानी !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में शब्दों को चबाकर कहा, “हमारी मुलाकात यहाँ तक ही थी । मेरे जाने के बाद समझदारी से काम लेना । कोई गलत हरकत मत कर बैठना ।”

दुलानी कभी मोना चौधरी को देखता तो कभी महाजन को । उसके चेहरे के भाव बता रहे थे जैसे उनका जाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था । महाजन ने दया भाव के अंदाज में हाथ उठाकर हिलाया और मोना चौधरी के साथ आगे बढ़ गया । चलते-चलते दोनों में गर्दन घुमाकर कई बार नींद में डूबे रहस्यमय जीव को देखा । जाने क्यों वह उन्हें अच्छा लगने लगा था । उनके कदम गाँव की तरफ बढ़ते जा रहे थे ।

“तुम्हारा क्या ख्याल है बेबी !” महाजन बोला, “दुलानी उस विचित्र जीव के साथ क्या करेगा ?”

“अगर उसके साथ कोई गलत हरकत करने की कोशिश करेगा तो अंजाम बुरा होगा ।” मोना चौधरी का गम्भीर स्वर उखड़ा हुआ था, “ रहस्यमय जीव बहुत जिद्दी है । अगर वो गुस्से में आ जाये तो सबसे बड़ा जल्लाद बन जायेगा । समझदारी की कमी नहीं है । वह हर किसी को अपना दुश्मन समझने लगता है और घात लगाकर लोगों के शरीरों को चीर-फाड़ करने लगता है । सच तो यह है कि उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता । वैसे मुझे पूरा विश्वास है कि दुलानी समझदारी से काम लेगा । कोई गड़बड़ नहीं करेगा । सब ठीक है ।”

महाजन ने गहरी साँस ली । कुछ पलों के बाद कह उठा ।

“अब क्या प्रोग्राम है ?”

“यहाँ से गाँव चलेंगे । गौरी से मिलकर दिल्ली निकल चलना है ।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा, “गौरी से वायदा किया था कि जिंदगी बिताने के लिए उसे पैसे की कमी नहीं होगी । दिल्ली पहुँचकर पारसनाथ से कह दूँगी गौरी को मोटी रकम पहुँचा दें । उसके बाद में बीच-बीच में किसी को भेजकर, उसकी जरूरतें पूरी करता रहे ।”

“ठीक कह रही हो ।” महाजन ने सिर हिलाया, “बिशना तो रहा नहीं । किसी तरह दौलत से अपना और अपने बच्चों का दिल बहला लेगी । उससे बात करना कि वह दूसरी शादी कर ले । पूरी जिंदगी पड़ी है उसके पास । अकेलेपन में रहकर इतनी बड़ी जिन्दगी कहाँ से बिता पायेगी ।”

सोच में डूबी मोना चौधरी ने महाजन को देखते हुए सहमति से सिर हिला दिया ।

दुलानी, मोना चौधरी और महाजन को जाते तब तक देखता रहा जब तक कि वह नजर आते रहे । फिर रहस्यमय जीव को देखा, जो नींद में था । दुलानी ने कुर्सी की पुश्त से गर्दन टिकाई और आँखें बंद कर ली । चेहरे पर उलझन और कश्मकश के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे ।

चुप्पी-सी छाई थी पुलिस वालों में । रहस्यमय जीव बेशक नींद में था परंतु उसकी मौजूदगी की वजह से हर कोई बेचैन व्याकुल नजर आ रहा था । उसे देखकर उन्हें अपने साथी पुलिस वालों की लाशें याद आ रही थी ।

धीरे-धीरे पुलिस वाले इकट्ठे होने लगे । उनमें धीरे-धीरे बातें होने लगीं । कई पुलिस वाले विरोध में नजर आ रहे थे । कई पुलिस वाले अपने साथियों की मीटिंग में हिस्सा नहीं ले रहे थे । देर तक पुलिस वालों के बीच आपसी बातचीत होती रही ।

घंटा बीत । दो घंटे बीत गये ।

दुलानी कुर्सी की पुश्त पर गर्दन टिकाये गहरी नींद में डूबा हुआ था । एकाएक दुलानी नींद से जागा और आँखें मलते हुए इधर-उधर देखने लगा ।

तभी चार पुलिस वाले वहाँ पहुँचे । उनमें दो इंस्पेक्टर थे, दो सब-इंस्पेक्टर थे ।

“सर !” सब-इंस्पेक्टर तिवारी बोला, “वो जालिम दरिंदा-जल्लाद हमारे सामने मौजूद है ।”

मोना चौधरी, महाजन और दुलानी की नजरें मिली । फिर उन पुलिस वालों को देखा ।

“क्या कहना चाहते हो ?” दुलानी बोला ।

“सर !” दूसरे इंस्पेक्टर ने कहा, “वो सामने नींद में पड़ा है आसानी से उसे भून सकते हैं ।”

“मेरे ख्याल से अब ऐसा करने की जरूरत नहीं ।” गंभीर स्वर में दुलानी बोला, “वो अब किसी को नहीं मारेगा ।”

“लेकिन वह हमारे पाँच साथियों को मार चुका है । कई निर्दोष लोगों की जानें ले चुका है । इस बारे में कोई गारंटी नहीं ली जा सकती है कि अब वो कुछ नहीं करेगा । उसे खत्म कर देना चाहिए ।”

“अब वो हमारे लिए खतरा नहीं रहा ।” दुलानी ने समझाने वाले स्वर में कहा, “वो... ।”

“माफ कीजिए सर ! वह दरिंदा है । जल्लाद है । पागल है । हम अभी तक नहीं समझ पाए कि इंसान है या जानवर । ये लोगों की हत्याएँ करता फिर रहा है और हम उसे खाना खिला रहे हैं । हाथ मिला रहे हैं । यह सब हमें पसंद नहीं सर ! हम सिर्फ इतना जानते हैं कि वह हत्यारा है । बहुतों को उसने मारा है ।” सब इस्पेक्टर तिवारी के स्वर में गुस्सा आ गया, “अब भी कोई गारंटी नहीं कि कुछ देर बाद यह क्या करेगा । एक बार हाथ में आया । जान पर खेलकर हमने इसे जाल में फाँसा और फिर आपने इसके बच जाने की झूठी कहानी सुना दी । जबकि उसकी छाती पर बँधी पट्टी कुछ और ही कह रही थी । दूसरी बात, यह फिर हमारी गनों की जद में है और आप इसे शूट करने का आर्डर नहीं दे रहे हैं । हमें समझ नहीं आता कि... ।”

“मैं इस केस का इंचार्ज हूँ ।” हरीश दुलानी का स्वर सख्त हो गया, “तुम्हें कुछ भी समझने की जरूरत नहीं । जो मैं कहता हूँ, वही करो । जब तक मैं कोई आर्डर नहीं देता तब तक खामोश रहो ।”

तभी दूसरा उठा ।

“सर, हम इस मामले में जान की बाजी लगा रहे हैं ! हमें भी हक है बोलने का । हत्यारा सामने है । हम तो सिर्फ यही कह रहे हैं कि खतरनाक दरिंदा हमारे निशाने पर है, अच्छा मौका है उसे खत्म करने का । आर्डर क्यों नहीं देते आप ।”

दुलानी के दाँत भिंच गये ।

मोना चौधरी और महाजन की नजरें मिलीं ।

“बेवकूफ हो तुम लोग ।” दुलानी ने उन्हें देखते हुए सख्त स्वर में कहा, “ये कोई साधारण जीव नहीं है । इसके कारनामे तुम सब देख चुके हो । यह समझदार भी है और दरिंदा भी है । ऐसे में... ।”

“सर !” सब इस्पेक्टर तिवारी नाराजगी भरे स्वर में कह उठा, “आप इस केस की असल बात से हट रहे हैं । भूल रहे हैं ।”

“असल बात ?”

“यस सर ! यह कानून का, मानवता का दुश्मन है । दरिंदा है । अगर इस वक्त यह ठीक हो गया है तो भविष्य में ये कभी भी फिर दरिंदा बन सकता है । खतरा है सदा के लिए मासूम लोगों को । इसे खत्म कर देना ही ठीक है ।”

दुलानी के होंठ भिंच गये । वह समझ नहीं पाया कि क्या करें ?

ये लोग ठीक कह रहे हैं थे । वह खुद भी इन बातों से इत्तेफाक रखता था, परंतु कोई फैसला नहीं ले पा रहा था ।

“आर्डर दीजिए सर !”

मिनट भर की खामोशी के बाद दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा ।

“मैं सोच रहा हूँ कि इस रहस्यमय जीव को जिंदा पकड़ लिया जाये ।”

“जिंदा ?” पुलिस वाले के होंठों से निकला ।

“हाँ !”

“वो कैसे ?” दूसरा पुलिस वाला कह उठा ।

“ये तो ज्यादा खतरे वाली बात हो सकती है, सर !”

“मेरे ख्याल से इससे खतरा कम है, उसे खत्म करने की अपेक्षा ।” दुलानी ने सोच भरे व्याकुल स्वर में कहा, “मैंने ये महसूस किया है कि उसके शरीर में बहुत ताकत है । कोई बड़ी बात नहीं कि उसके जिस्म में ढेरों गोलियाँ फँसी रहे और वो मरे नहीं ! सिर्फ उसे दर्द का एहसास होता रहे । ऐसे में वह सबसे बड़ा जल्लाद बन जायेगा । उसे संभाल पाना असंभव हो जायेगा । जाने कितनों की जान ले लेगा । अगर हम पहले की ही तरह जाल में कैद करके उसे बेबस कर देते हैं तो हमारी बड़ी जीत मानी जायेगी ये । ऐसा जीव धरती पर पहले कभी नहीं देखा गया । इसके साथ-साथ हमारा भी नाम होगा । सब इस कारनामे को याद रखेंगे ।”

“आप ठीक कह रहे हैं, सर !”

“राइट सर ! अभी वह नींद में है । हम जाल का इस्तेमाल करके आसानी से उसे फँसा सकते हैं ।”

“गुड !” दुलानी के चेहरे पर दृढ़ता के भाव उभरे, “सावधानी से तैयारी करो । इस वक्त अच्छा मौका है ।”

मोना चौधरी और महाजन की गंभीर निगाहें मिली ।

पुलिस वाले जाने के लिए मुड़ ही रहे थे कि तभी सब-इंस्पेक्टर तिवारी एकाएक कठोर स्वर में कह उठा ।

“माफ कीजियेगा सर ! मुझे आपकी बात पसंद नहीं आई ।”

“क्या मतलब ?” दुलानी की आँखें सिकुड़ीं ।

“उसे कैद करने की कोशिश करना खतरनाक काम है । हम आसानी से चूक सकते हैं । जरूरी तो नहीं कि एक काम में एक बार सफलता मिल गई तो दूसरी बार भी हम सफल ही होंगे ।” इंस्पेक्टर की आवाज और भी कठोर हो गई, “उसे गिरफ्तार करने की सोचकर आप दूसरों की जान खतरे में डाल रहे हैं । उसे जाल में फाँस भी लिया गया तो उसे संभाल पाने की जिम्मेदारी बहुत बड़ी होगी । हम हर समय अपना ध्यान उस पर नहीं लगा सकते । ये कठिन काम होगा हमारे लिए ।”

“कोई कठिन काम नहीं ! सब ठीक हो जायेगा ।”

दुलानी ने उसे घूरा ।

“आपकी बात मानने का मेरा मन नहीं कर रहा ।” इस्पेक्टर ने शब्दों को चबाकर कहा ।

हरीश दुलानी ने दाँत भींचकर उसे देखा ।

“चाहते क्या हो ?”

“उसे शूट करना ठीक होगा । आप सोचिए । मेरी बात आपको ठीक लगेगी ।”

“तुम अपनी सोचे मुझ पर थोपने की चेष्टा मत करो ।” दुलानी कुर्सी से खड़ा हो गया, “मैं इस केस का इंचार्ज हूँ और इस वक्त तुम्हारा ऑफिसर भी । जो मैं कहूँ, वो तुम्हें हर हाल में करना है ।”

“सॉरी सर ! आप बेशक इस केस के इंचार्ज हैं । इस वक्त हमारे ऑफिसर हैं ।” सब-इंस्पेक्टर तिवारी का लहजा बगावत से भर उठा, “लेकिन हम आपका आदेश मानकर जानबूझकर मौत को गले से नहीं लगा सकते । अगर हमें महसूस हो कि आपका ऑर्डर सिरे से गलत है तो हम ठीक से काम नहीं कर सकते । मेरे ख्याल में इस वक्त आप ठीक से फैसला नहीं ले पा रहे हैं । पहले आप रहस्यमय जीव को शूट करने को कह रहे थे । अब उसे गिरफ्तार करने को कह रहे हैं । ये जानते हुए भी कि वह बहुत खतरनाक जल्लाद है । बे-काबू हो गया तो... ।”

“शटअप ।” दुलानी का चेहरा गुस्से से धधक उठा, “इस वक्त तुम्हें मेरा ऑर्डर मानना है । अगर यहाँ की तुम्हें कोई बात पसंद नहीं आ रही तो ऊपर वालों को रिपोर्ट... ।”

“वो बाद की बात है सर !” सब इस्पेक्टर तिवारी का चेहरा भी धधक उठा, “इस वक्त मैं आपको ऑफिसर मानने से इनकार करता हूँ । मैं आपके नीचे काम नहीं कर रहा । क्योंकि आपका ऑर्डर जाने कितने पुलिस वालों की जान ले ।”

“इंकार का अंजाम जानते हो ?”

“यस इंस्पेक्टर दुलानी ! कानून की रक्षा की वर्दी मैंने भी पहन रखी है । कायदे मैं भी जानता हूँ ।” तिवारी ने शब्दों को चबाकर कहा, “मैं उस दरिंदे को मारने जा रहा हूँ ।”

“नहीं ! तुम ऐसा नहीं करोगे ।” दुलानी दाँत भींचकर आगे बढ़ना चाहा ।

तिवारी ने तुरंत उसकी छाती पर हाथ रखकर उसे पीछे कर दिया ।

“आप मुझे नहीं रोक सकते । यह मेरा नहीं, आधे से ज्यादा पुलिस वालों का विचार है ।” उसने दुलानी को खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा, “जब मैं ऊपर वालों से बात करूँगा, तो मेरे साथ उन सब पुलिस वालों का साइन किया पर्चा होगा जो इस वक्त मेरी राय से सहमत है ।” इसके साथ ही वह वहाँ से हटा और तेज-तेज कदमों से उस तरफ बढ़ गया, जिधर गन पड़ी नजर आ रही थी ।

“रुक जाओ ! पागलपन न करो । बेवकूफ !”

सब-इंस्पेक्टर तिवारी आगे बढ़कर गन उठा चुका था ।

“जो इस दरिंदे को खत्म करने में मेरे साथ है, वह अपने-अपने हथियार उठा लो ।” तिवारी ने चीखकर कहा ।

उसकी आवाज के साथ ही पुलिस वालों में भगदड़ पैदा हो गई देखते-ही-देखते करीब आधे पुलिस वालों ने हथियार संभाल लिए ।

गन थामें सब-इंस्पेक्टर तिवारी नींद में डूबे जीव की तरफ बढ़ा ।

“आगे बढ़ो !” वो गला फाड़कर चीखा, “दरिंदे को निशाने पर लो, फिर एक साथ फायरिंग ।”

“खबरदार !” हरीश दुलानी गुस्से से गला फाड़कर और भी ऊँचे स्वर में बोला, “अगर किसी ने... ।”

“जो मैं कह रहा हूँ, वही करो !” तिवारी ने गुस्से भरे स्वर में कहा और नींद में डूबे रहस्यमय जीव से पन्द्रह कदम पहले गन थामें खड़ा हो गया था ।

पुलिस वाले भी धीरे-धीरे पास पहुँचने लगे थे ।

गुस्से से भरे दुलानी ने जेब से रिवॉल्वर निकाला और तिवारी के पास, जमीन पर निशाना लेकर फायर किया । फायर की तेज आवाज गूँजी और गोली तिवारी के पास मिट्टी में जा धँसी ।

तिवारी ने दाँत भींचकर सुलगती निगाहों से गर्दन घुमाकर दुलानी को देखा ।

“अगर तुमने गन नहीं फेंकी तो मैं तुम्हारे हाथ का निशान लेकर... ।”

दुलानी के शब्द मुँह में ही रह गए । चेहरे पर कई रंग आकर गुजर गये थे । कहते-कहते उसकी निगाह रहस्यमय जीव पर पड़ी थी । जो वैसे ही लेटा हुआ था परंतु उसकी पलक हट चुकी थी । आँख नजर आ रही थी, जो कि दायें-बायें हिल रही थी । यानी कि वह नींद से बाहर आ गया था गोली की आवाज सुनकर । अब मामला समझ रहा था ।

तभी वह रहस्यमय जीव उछलकर खड़ा हुआ । उसका चेहरा गुस्से से भर उठा था । वह अजीब-सी आवाज में चीखा । पुलिस वालों में भगदड़ पैदा हो गई । वह हड़बड़ाकर चीखते हुए पीछे भागे ।

गन थामें तिवारी जो दुलानी को देख रहा था, उसने तुरंत गर्दन घुमाकर रहस्यमय जीव को देखा । उसे चंद कदमों की दूरी पर खड़ा पाकर वह सिर से पाँव तक काँप उठा । रहस्यमय जीव ने पुनः चीखकर गर्दन हिलाई तो वह दहशत में डूबा काँपती टाँगों से पीछे हटा । इसके साथ ही गन को रहस्यमय जीव की तरफ कर दिया ।

“आगे मत बढ़ना !” खरखराती आवाज में तिवारी चीखकर काँपते स्वर में बोला, “गोली मार दूँगा ।”

“गोली मत चलाना ।” दुलानी को अपनी आवाज, अपने ही बस से बाहर लग रही थी ।

उसी पल उस रहस्यमय जीव ने आसमान की तरफ मुँह करके होंठों से ऐसी अजीब-सी आवाज निकाली कि वहाँ मौजूद सुनने वाले भय से थरथराकर कर रह गये ।

सब-इंस्पेक्टर तिवारी के हाथ-पाँव उस भयानक चीख सुनते ही बेकाबू हो गये । गन का मुँह तो पहले ही रहस्यमय जीव की तरफ कर रखा था । जाने कैसे मन में ऐसा करने का कोई विचार नहीं था, परंतु गन के ट्रिगर पर रखी उंगली दबती ही चली गई ।

फायरिंग की तेज आवाज वहाँ गूँज उठी ।

“बेवकूफ !” दुलानी हड़बड़ाकर चीखा, “ये क्या किया ?”

कई गोलियाँ रहस्यमय जीव के शरीर के कई हिस्सों में जा लगी ।

रहस्यमय जीव वहशी स्वर में चीखा और तिवारी पर झपट पड़ा सबसे पहले उसने गन की नाल को पकड़कर उसे तोड़ा और दूर फेंका । तब तक तिवारी काँपती टाँगों से भागने को हुआ कि खौफ ने उसकी टाँगें को जकड़ लिया । वह लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा । रहस्यमय जीव ने पुनः अपने गले से कँपा देने वाली आवाज निकली और नीचे पड़े तिवारी की एक टाँग पर अपना पाँव रखा और दूसरी टाँग को हाथों में पकड़ा और इस तरह खींचा कि उसका शरीर लंबाई में, बीच में से दो फाड़ होता चला गया ।

खून के छींटे रहस्यमय जीव पर पड़े ।

एकाएक दहशत की चादर वहाँ फैल गई ।

पुलिस वालों के चेहरे पीले पड़ चुके थे । लड़खड़ाते से अंदाज में वह धीरे-धीरे पीछे से जा रहे थे ।

तिवारी को छोड़कर रहस्यमय जीव उन सब को देखने लगा ।

उसकी इकलौती आँख कान के एक सिरे से होकर माथे की पट्टी से गुजरती दूसरे कान तक भागी फिर रही थी । उसके मोटे-मोटे भद्दे होंठों से गुर्राहट निकल रही थी । गुस्से में वह पागल-सा नजर आ रहा था ।

तभी वह चीखा । ऐसा करने पर उसका मुँह पूरा खुल गया फिर वह तेजी से पुलिस वालों की तरफ बढ़ा । उसे अपनी तरफ आता पाकर पुलिस वालों में भगदड़ मच गई । वह घबराकर चीखते हुए पलटकर भागे । रहस्यमय जीव की दहशत उनके सिर तक सवार हो चुकी थी ।

दुलानी समझ चुका था कि सारी मेहनत बेकार गई । मोना चौधरी और महाजन के चेहरे आँखों के सामने नाच उठे । मोना चौधरी ही इस पर किसी तरह काबू पा सकती थी । तभी उसके देखते-ही-देखते विचित्र जीव के हाथ दो पुलिस वाले लगे तो एक को उसने जमीन पर ऐसा पटका कि उसका सिर फट गया । वह वहीं शांत पड़ गया था । दूसरे की गर्दन हाथों से पकड़कर उसे तोड़कर जुदा कर दी ।

पुलिस वाले दूर और दूर भागते जा रहे थे । उनकी चीखें जारी थी । वे एक-दूसरे को भाग जाने को कह रहे थे । उसी वक्त दुलानी ने रहस्यमय जीव को अपनी तरफ बढ़ते पाया तो वह सिर से पाँव तक थर्रा उठा और पूरी ताकत से भाग खड़ा हुआ । वह सिर से पाँव तक पसीने में डूब चुका था । कुछ होश नहीं था कि वह कैसे और कब गाँव पहुँचा !

वह सीधा गौरी के घर पहुँचा । गौरी बाहर ही मिली ।

“वो... वो... ।” दुलानी हाँफता हुआ कह उठा, “म… मोना चौधरी कहा है ?”

“कौन ? मेमसाहब ?” गौरी ने पूछा, “वो तो यहाँ आते ही अपना बैग लेकर चली गईं । दो घंटे हो गये उन्हें गये ।”

दुलानी को सब कुछ चकराता-सा लगा ।

रहस्यमय जीव को सिर्फ मोना चौधरी ही काबू में ला सकती थी । वह जा चुकी थी । दुलानी को हर तरफ फटी-फटी बिखरी, खून में डूबी लाशें नजर आने लगी । उसे गोलियाँ लगी थीं । दर्द से पागल हो चुका है वह । उस जल्लाद पर कोई भी काबू नहीं पा सकेगा । अब तक न जाने कितनी जाने ले ली होंगी ।

दुलानी को जमीन-आसमान चकराते लग रहे थे ।

आँखों के सामने सिर्फ जल्लाद का ही रंग-रूप आ रहा था ।

मोना चौधरी और महाजन उस आधे दिन का और रात भर का सफर करके भोर के उजाले के साथ दिल्ली पहुँचे । सफर और नींद की वजह से वे थके हुए थे । बीते दिनों में रहस्यमय जीव की वजह से आराम भी नहीं कर पाये थे । रास्ते में उन्होंने एक जगह पर खड़ी कार को हासिल कर लिया था ।

दिल्ली पहुँचते ही सड़क के किनारे उन्होंने कार छोड़ी और बाहर निकले ।

दिन का फैलना शुरू हो गया था ।

“चलता हूँ बेबी ! घर जाकर राधा से निपटना पड़ेगा । जितने दिन में बाहर रहा, वो पल-पल का हिसाब लेगी ।”

“बीवी को तो हिसाब देना ही पड़ता है ।” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान उभरी ।

“राधा जैसी बीवी को तो लिखकर हिसाब देना पड़ता है ।” महाजन ने मुँह बनाया, “बातों-बातों में वो हिसाब नहीं लेती ।”

मोना चौधरी ने टैक्सी की तलाश में इधर-उधर नजरे दौड़ाईं ।

“रहस्यमय जीव की तुम्हें याद नहीं आ रही ?” एकाएक महाजन ने पुछा ।

“याद आ रही है ।” मोना चौधरी पुनः मुस्कुराई, “वो जो भी है, अच्छा है । दुश्मनी की भावना तब तक उसके मन में नहीं आती, जब तक कि उसे तकलीफ-दुख न दिया जाये । मेरी निगाह में वो किसी मासूम बच्चे की तरह है । वो दोस्ती और प्यार चाहता है । अपनापन चाहता है ।”

“सच में ।” महाजन ने सिर हिलाया, “वो साफ़ मन का अच्छा जीव है । जब तुमने उसे खाना खिलाया, उसने खुद भी खाया तो वास्तव में मायूस लग रहा था । उसके बाद किसी शरीफ बच्चे की तरह सो गया ।”

“वो प्यारा है ।”

“तुम्हें वहाँ न पाकर उदास अवश्य हुआ होगा ।” महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।

मोना चौधरी सिर हिलाकर बोली ।

“इतनी देर का ही मेरा-उसका वास्ता था । उसकी अपनी जिंदगी और हमारी अपनी । उसके बारे में जो फैसला लेना होगा, सरकार लेगी । लेकिन मैं अभी तक नहीं समझ पाई कि वो कहाँ से आया ? वो हमारी धरती का जीव नहीं है ।”

“बेबी, एक बात बार-बार मेरे दिमाग में खटक रही है ।”

मोना चौधरी ने सवालिया नजरों से महाजन को देखा ।

“वो रहस्यमय जीव अब आजाद, खुले में घूमेगा ।” महाजन बोला, “शंका ये है कि कहीं उसे कोई चोट न पहुँचा दे । वो पहले की तरह वहशी जल्लाद न बन जाये ।”

“मेरे ख्याल में ऐसा नहीं होगा ।” मोना चौधरी कह उठी, “दुलानी जो भी काम करेगा, समझदारी से करेगा । वो अच्छी तरह जानता है कि रहस्यमय जीव दरिंदगी पर आ गया तो कैसा कहर बरपा देगा ।”

महाजन ने कुछ नहीं कहा । गहरी सोच के भाव चेहरे पर थे ।

“पारसनाथ को कह देना कि किसी के हाथ गौरी के लिए पैसे भिजवा दें और ऐसा इंतजाम कर दे की गौरी को कभी भी किसी चीज़ की कमी न रहे ।” मोना चौधरी के सामने से आती खाली टैक्सी को देखकर कहा ।

“घर पहुँचते ही मैं पारसनाथ को फोन कर दूँगा ।”

मोना चौधरी के हाथ देने पर टैक्सी पास आकर रुक गई ।

“चलती हूँ ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी आगे बढ़ी और दरवाजा खोलकर टैक्सी में बैठ गई ।

टैक्सी आगे बढ़ गई ।

दूसरी टैक्सी की तलाश में महाजन सड़क पर नजरें दौड़ने लगा ।

फ्लैट पर पहुँचकर मोना चौधरी नींद में डूब गई । शाम चार बजे ही उसकी आँखें खुली जब लगातार फोन की बेल बजने लगी । बेल बजती रही तो आखिरकार मोना चौधरी ने हाथ बढ़ाकर रिसीवर उठाया ।

दूसरी तरफ पारसनाथ था ।

“कहो ।” उसकी आवाज सुनते ही मोना चौधरी कह उठी ।

“महाजन का सुबह फोन... ।” पारसनाथ ने कहना चाहा ।

“गौरी को पैसे देने के लिए किसी को भेजा ?” मोना चौधरी ने पूछा ।

“हाँ !” उसी वक्त ही मैंने अपने खास आदमी को... ।

“कितना भेजा ?”

“पाँच लाख ।”

“ठीक है, किसी की ड्यूटी लगा दो कि गौरी का हाल जानता रहे । उसका ध्यान रखने की जिम्मेदारी तुम अपने पर ले लो ।”

“अच्छी बात है ! गौरी की देखभाल की जिम्मेदारी मुझ पर रही ।”

“मैं उसे समझाकर आई हूँ । शायद वो शादी कर ले । तब भी उसका ध्यान रखना ।”

“ठीक है ! महाजन ने रहस्यमय जीव के बारे में बताया । मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि... ।”

“वो सब सच है, लेकिन अब ठीक है । मामला खत्म हो गया । मिलने पर इस बारे में बात करूँगी ।”

“गणपत सेठ का कई बार फोन आया है ।”

“क्या कहता है ?”

“पहले तो जानना चाहता था कि क्या हुआ ? काम हो रहा है या नहीं, लेकिन आखिरी दो बार बहुत बवाल खड़ा हुआ था । उसे खबर मिल गई कि सरकार ने वो ड्रग्स तबाह कर दी और तुम काम नहीं कर पाई । उसका फोन फिर आयेगा ।”

“गणपत सेठ का नंबर दो ।”

पारसनाथ ने फोन नम्बर बताया । मोना चौधरी ने नम्बर याद किया ।

“अभी गणपत सेठ से बात कर लेती हूँ ।”

“मैं उसके बारे में जानना चाहता था ।” पारसनाथ का खुरदरा स्वर पुनः कानों में पड़ा, “ऐसा जीव धरती पर कहीं भी नहीं है तो फिर कौन है ? उसकी हकीकत क्या है ?”

“लम्बी बात है । फोन पर नहीं हो पाएगी । कल आऊँगी । हम मिलेंगे ।” कहने के बाद ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया ।

मोना चौधरी ने उठकर हाथ-मुँह धोया फिर किचन में जाकर चाय बना लाई । लम्बी गहरी नींद के बाद वह अभी जिस्म में थकान महसूस कर रही थी । चाय का घूँट भरते हुए उसने गणपत सेठ का नंबर मिलाया । पहले किसी और से बात हुई फिर आधे मिनट बाद गणपत सेठ लाइन पर आया ।

“मोना चौधरी !” गणपत सेठ की आवाज कानों में पड़ी, “तुमने काम पूरा नहीं... ।”

“मैं वहाँ काम करने नहीं बल्कि दो करोड़ में ये देखने गई थी कि काम किया जा सकता है या नहीं ! लेकिन वहाँ काम नहीं हो सका । ड्रग्स की पहरेदारी में लगे गनमैन को किसी ने मार दिया । सारा मामला बिगड़ गया । जो भी है अब तुम्हारे सामने है । काम नहीं हो सका । अगर तुम्हें अपना दो करोड़ चाहिए तो बेशक वो वापिस... ।”

“ये बात नहीं । बल्कि मुझे तो अपने पर झुंझलाहट हो रही है कि ड्रग्स हाथ से निकल गई ।”

गणपत सेठ के यह शब्द सुनकर मोना चौधरी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी ।

“तो मैं आशा करूँ कि अब तुम पारसनाथ को फोन नहीं करोगे ?” मोना चौधरी बोली ।

“कम-से-कम इस सिलसिले में तो फोन नहीं करूँगा । दोबारा कभी तुम्हारी जरूरत पड़ी तो... ।”

“फिर की फिर देखेंगे । बाय गणपत !”

“बाय !” गणपत सेठ का बे-मन से भरा स्वर आया, “फिर कभी मिलेंगे ।”

मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया ।

उस दिन भी मोना चौधरी ने आराम किया ।

अगला दिन भी घर पर ही रही । बारह बजने पर दरवाजा खोला तो बाहर दाँत फाड़ू अंदाज में नंदराम सकलानी को खड़े पाया ।

“गुड नून साईं !” नंदराम और भी दाँत फाड़कर कह उठा, “कल तेरे को देखा वडी, तो दिल को बोत चैन मिला नी । बोत दिन से तेरे को देखा नई । साईं बाहर गया था नी ?”

“हाँ !” मोना चौधरी मुस्कुराई, “तुम्हारी बीवी घर पर नहीं है ?”

“वडी, तो अपने बॉस के साथ दस दिन के टूर पर गया है नी ।”

“धन्य है ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।

“क्या धन्य है नी ?”

“तुम्हारी बीवी । कितना काम करती है ।”

“बोत मेहनत करती है नी । उसके बिना तो उसके बॉस का काम ही नहीं चलता साईं ।”

“वो तो मैं पहले से ही जानती हूँ ।”

“क्या नी ?”

“यही कि उसके बिना उसके बॉस का काम नहीं चलता । जहाँ भी जाता है उसे साथ ले जाता है ।” मोना चौधरी ने गहरी साँस लेकर कहा, “तुम्हारी बीवी का बच्चा था वो ।”

“पचरा हो गया ।” नंदराम ने गहरी साँस ली ।

“पचड़ा ? क्या हुआ ?”

“दो महीने पैले मेरा वाइफ के साथ टूर गया नी तो वो ये फिशिंग करते वक्त मेरी बीवी का पैर स्लिप हो गया साई । बच्चा खराब हो गया । बोत मुश्किल से मेरी बीवी बची ।” नंदराम ने मुँह लटकाकर कहा ।

“बहुत देर लगा दी तुम्हारी बीवी ने अपना पैर फिसलाने में ।” मोना चौधरी के होंठों पर मुस्कान थी ।

“देर ।”

“हाँ ! मेरे ख्याल में तो यह काम पहले ही हो जाना चाहिए था । जिनकी बीवियों बॉस के साथ टूर पर रहती हैं, उनके पाँव फिसल ही जाते हैं । उनके लिए माँ बनना कठिन हो जाता है ।”

“मोना डार्लिंग, मेरे को समझ नहीं आ रहा कि तुम क्या कहती हो ! ये बातें तो बाद में हो जायेंगी । दरवाजे से परे हट नी । भीतर आने दे । फिर मारते-वारते हैं नी ।

“मारते ?”

“वोई बियर, वडी ! ये देख ।” नंदराम ने अपनी जेबों पर हाथ मारे, “विदेशी बियर के दो टीन एकदम ठंडे नी जेबों में ठूंस रखे हैं । एक बियर तू मरना, दूसरी मैं नी । जल्दी हट नी, नीचे सब ठंडा हुआ जा रहा है वडी !”

“दोनों बीयर तुम मारो ।”

“क्यों नी ?”

“मेरा मन नहीं है । मैं पूरी तरह से आराम के मूड में हूँ ।”

“ये क्या बोलता है नी । तेरे साथ बियर मारने का बहुत मन है साईं ! मैं कब से... ।”

“बाय नंदराम जी ! फिर कभी ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने दरवाजा बंद कर लिया ।

लंच में यूँ ही कुछ खाकर मोना चौधरी ने अपना काम चला लिया था । दोपहर को नींद लेने के बाद शाम को बाहर निकालने का इरादा था उसका कि तभी फोन बेल बजी ।

“हैलो !” मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया ।

“मोना चौधरी !” पारसनाथ का खुरदरा स्वर उसके कानों में पड़ा, “मेरा आदमी गौरी को पैसे देने गया था । अभी-अभी उसका फोन आया है कि गौरी को आज सुबह ही मार दिया गया ।”

“क्या ?” मोना चौधरी चिहुँक पड़ी ।

“हाँ !” पारसनाथ के खुरदरे स्वर में गंभीरता थी, “मेरे आदमी ने फोन पर मुझे बताया कि वहाँ पर किसी विचित्र जीव का आतंक फैला है । वो पच्चीस-तीस लोगों को डेढ़-दो दिन में मार चुका है । वो किसी की पकड़ में नहीं आ रहा । शायद ही कभी-कभार नजर में आता है । उसने बताया कि वह विचित्र जीव ठीक हो गया था, परंतु एक पुलिसवाले की चलाई गोलियों से घायल होकर वह जल्लाद बन गया और लाशें बिछाने लगा ।

मोना चौधरी के दाँत भिंच गये ।

“मोना चौधरी !” आवाज न सुनकर पारसनाथ का स्वर उसके कानों में पड़ा ।

“बहुत बुरा हुआ ।”

“ये वही रहस्यमय जीव है जिसके बारे में महाजन बता रहा... ?”

“हाँ ! वही है । गलत हुआ । उसे नहीं छेड़ना चाहिए था । मैंने मना किया था । मेरी बात नहीं मानी इस्पेक्टर दुलानी ने ।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह रही थी, “गौरी को उसी रहस्यमय जीव ने मारा ?”

“हाँ ! जाने कैसे वह गौरी के घर पहुँच गया । पहले वहाँ किसी को तलाश करता रहा । घर का सामान तोड़ता रहा । फिर हाथों से धकेलकर घर को गिरा दिया । गौरी एक तरफ दुबकी नजर आई तो उसे मार दिया । दूर से लोगों ने यह सब देखा तो... ।”

“वो, वहाँ मुझे तलाश कर रहा था ।” मोना चौधरी के होंठों से धक्का-सा निकला ।

मोना चौधरी ने महाजन को फोन किया । दूसरी तरफ राधा थी ।

“तुम कैसी हो मोना चौधरी ? कभी तो आकर मेरे हाथ का खाना खा लिया करो । आज आओगी क्या ?” राधा की आवाज आई ।

“आज नहीं आ पाऊँगी । महाजन कहाँ है ?”

“सामने ही बैठा है । नीलू ने बहुत तंग कर रखा है । कई-कई दिन घर नहीं आता । तुम इसे... ।”

“महाजन को फोन दो ।

“लेकिन मेरी बात... ।”

“बाद में राधा ! महाजन से बात करना जरूरी है ।” मोना चौधरी का स्वर गंभीर था ।

दो पलों बाद ही महाजन की आवाज कानों में पड़ी ।

“यस बेबी ?”

मोना चौधरी ने महाजन को रहस्यमय जीव और गौरी की हत्या के बारे में बताया ।

जवाब में महाजन की तरफ से कोई शब्द सुनने को नहीं मिला ।

“महाजन !”

“हाँ !” महाजन की लम्बी साँस की आवाज मोना चौधरी के कानों में पड़ी, “ये तो बहुत बुरा हुआ बेबी ! मैंने तो सोचा भी नहीं था कि ऐसा हो जायेगा । अब उस जल्लाद को कोई भी संभाल नहीं सकेगा ।”

“ठीक कहते हो । गोलियाँ उसके जिस्म में धँसी हुई हैं । उसे दर्द होता रहेगा और वह दर्द उसे हमेशा इस बात का एहसास दिलाता रहेगा कि सब उसके दुश्मन हैं । दूसरों की वह जाने लेता रहेगा ।”

“वो... वो ज्यादा देर जिंदा नहीं रहेगा ।” महाजन का गंभीर स्वर कानों में पड़ा, “उसके जिस्म में जो गोलियाँ धँसी हैं, बहुत जल्द गोलियों का जहर फैलने लेगा और उसकी जान चली जाएगी ।”

“ऐसा नहीं होगा महाजन !” दृढ़ स्वर में कह उठी मोना चौधरी, “उसकी छाती में पहले भी कई दिनों तक गोली धँसी रही थी लेकिन जहर नहीं फैला । हो सकता है उसके शरीर पर जहर असर न करता हो ।”

“शायद ।” महाजन का सोचों में डूबा गंभीर स्वर कानों में पड़ा ।

मोना चौधरी रिसीवर थामे, होंठ भींचे कुछ परेशान लग रही थी ।

“अब क्या किया जाये बेबी ?”

“किस बारे में ?”

“रहस्यमय जीव के बारे में… ।”

“हम कुछ नहीं कर सकते ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में दृढ़ता थी, “एक बार उसे ठीक करने के लिए, लोगों में फैला खौफ मिटाने के लिए मैंने भारी खतरा मोल लिया था । सब ठीक कर दिया था । उसके बाद दुलानी को मेरी बात माननी चाहिए थी । उस पर गोलियाँ नहीं चलानी चाहिए थी । अब मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती । उसके सामने जाना बहुत खतरनाक होगा । वो मुझ पर भी गुस्सा निकाल सकता है । मेरी भी जान ले सकता है ।”

महाजन की तरफ से कोई आवाज नहीं आई । वह भी नहीं चाहता था कि रहस्यमय जीव के सिलसिले में ऐसा कोई खतरा उठाया जाये । उस दरिंदे का जल्लाद रूप वह अपनी आँखों से देख चुका था ।

बात जैसे आई-गई हो गई थी ।

मोना चौधरी, महाजन और पारसनाथ अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए थे ।

दसवें दिन महाजन का फोन आया मोना चौधरी को । मोना चौधरी के फ्लैट में कदम रखते ही बेल बजी थी । मोना चौधरी ने फ़ौरन पास पहुँचकर रिसीवर उठाया ।

“हैलो !”

“बेबी ! अखबार पढ़ा ?”

“नहीं !” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े, “खास बात है क्या ?”

“हाँ !” गम्भीर स्वर था महाजन का, “वो रहस्यमय जीव याद होगा । भूली तो नहीं ।”

“वो मुझे हमेशा याद रहेगा । तुम क्या कहना चाहते हो ?”

“आज के अखबार में है कि उसे जयपुर के पास देखा गया है । बीती रात उसने वहाँ दो की जान ली । उनके शरीर को विक्षिप्त ढंग से चीर-फाड़ दिया गया ।”

“जयपुर के पास ?” मोना चौधरी जोरों से चौंकी, “इतनी दूर से वो जयपुर तक कैसे आ पहुँचा ?”

“कैसे आया मालूम नहीं ! आते हुए किसी ने देखा भी नहीं ! खुद को उसने छिपाकर रखा । उसकी इंसानों की तरह की समझदारी को हम जानते हैं । वो चालक भी है । शातिर इंसान से कम नहीं है वो । दरिंदा जल्लाद वो है ही । हम इंसानों के मुकाबले पर उतरते पर वो किसी खतरनाक गोले से कम का दम नहीं रखता ।”

मोना चौधरी व्याकुल हो उठी । दाँत भिंच गये ।

“क्या हुआ बेबी ?”

“उसका इस तरह आबादी वाले इलाके में आ जाना खतरनाक है । जाने कब मरेगा । नहीं भी मरे ।” मोना चौधरी सख्त से परेशान स्वर में कहे जा रही थी, “लेकिन वह बहुतों की जान ले लेगा । ऐसा खून-खराबा करेगा कि पूरा शहर काँप उठेगा । असंभव है उसे संभाल पाना ! इतना कुछ होने पर भी मैं उसे कभी गलत नहीं कहूँगी ।”

“मैं समझा नहीं !”

“तुम देख चुके हो कि वह बच्चे की तरह मासूम और भोला-भाला है । उसे कुछ न कहा जाये तो वो कुछ नहीं कहता । पास बैठकर बच्चों की तरह खेलता है ।” मोना चौधरी गंभीर हो गई, “ऐसे में उसे गोली मारकर दुश्मनी के लिए मजबूर किया जाये तो वह गलत नहीं है । मैंने बहुत मेहनत से उसे ठीक किया था, लेकिन लोगों के खिलाफ नफरत और बदले का जहर पुनः उसके दिलोदिमाग में भर दिया गया । उसे फिर दरिंदा बना दिया गया ।”

“वो... वो बहुतों दिनों की जान ले लेगा बेबी ! वो... ।”

“मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती ।” मोना चौधरी ने होंठ भींचकर कहा, “कर सकती हूँ तो तुम ही बता दो ।”

दूसरी तरफ से महाजन की गहरी साँस लेने की आवाज आई ।

परेशानी और बेचैनी में डूबी मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया ।

इसके बाद पन्द्रह दिन और बीत गये ।

मोना चौधरी हाथ में आये नये काम में व्यस्त हो चुकी थी ।

रहस्यमय जीव की बात धुँधली-धुँधली-सी ही मस्तिष्क में बाकी बची थी ।

उस दिन सुबह मोना चौधरी जल्दी तैयार हो गई थी । बहुत ही खास काम आज पूरा करना था । पारसनाथ के साथ जाना था । उसे रास्ते में मिलना था । तैयार होने के बाद सुबह के करीब साढ़े छः बजे मोना चौधरी ने बाहर जाने के लिए दरवाजा खोला । दरवाजे के साथ ही अखबार अटका हुआ था । यूँ ही उसने सरसरी तौर पर पल भर के लिए अखबार खोला ।

मुख्य पृष्ठ पर नजर पड़ते ही मोना चौधरी की आँखें फैलती चली गईं । बहुत मोटे-मोटे शब्दों में छपा था – रहस्यमय जीव अब दिल्ली में।

मोना चौधरी साँस रोके सारी खबर एक ही साँस में पढ़ती चली गई ।

बीती रात आश्रम चौक के पास सड़क किनारे आग जलाकर पास बैठे तीन व्यक्तियों को अपने जल्लादी अंदाज में मार दिया था । ये घटना रात के बारह बजे के आसपास की थी । इस घटना की खबर हर तरफ फैल गई, परंतु रहस्यमय जीव किसी को नहीं दिखा । इसके साथ ही रहस्यमय जीव की तस्वीर छपी थी । मोना चौधरी ने स्पष्ट पहचाना कि वह तस्वीर योगेश मित्तल द्वारा खींची गई थी, जो कि उसी वक्त ही रहस्यमय जीव के हाथों मारा गया था ।

पलों में ही, इस अखबार में मोना चौधरी की दिमागी हालत ऐसी कर दी कि वह कुछ भी ठीक से सोच-समझ पाने की काबिल नहीं रही थी । उसने साफ़ तौर पर महसूस किया कि उसका मस्तिष्क उसका साथ नहीं दे रहा । बाहर जाने का ख्याल तो उसे जैसे रहा ही नहीं । दरवाजा बंद करके मोना चौधरी वापस कमरे में पहुँची और पस्त से हाल में सोफे पर जा बैठी । आँखें बंद कर ली ।

जेहन से एक ही बात बार-बार टकरा रही थी कि रहस्यमय जीव इतनी लम्बी दूरी तय करके दिल्ली तक आ पहुँचा हैं । यहाँ लोगों की जानें लेनी शुरू कर दी । आखिर क्यों ? वह इतनी दूर दिल्ली तक कैसे आ पहुँचा ? किसी दूसरे शहर में क्यों नहीं गया ?

मोना चौधरी जाने क्यों एकाएक थकान-सी महसूस करने लगी थी ।

तभी फोन की बेल बज उठी ।

मोना चौधरी ने आँखें खोली और कुछ दूर मौजूद फोन को देखा । उठने की कोशिश नहीं की ।

बेल बजती रही ।

लम्बी सोच के बाद, हिम्मत इकट्टी करके मोना चौधरी उठी । पास पहुँचकर रिसीवर उठाया ।

“हैलो !”

“बेबी !” महाजन की तेज आवाज कान में पड़ी, “मैंने अभी-अभी अखबार में पढ़ा । रहस्यमय जीव दिल्ली आ पहुँचा है । रात उसने तीन की जान... ।”

“अखबार पढ़ लिया है मैंने ।” मोना चौधरी धीमे स्वर में बोली ।

कुछ पलों की चुप्पी के बाद महाजन का गंभीर स्वर पुनः कान में पड़ा ।

“सोचने की बात तो यह है कि वह दिल्ली क्यों आया ? मेरे ख्याल में बेबी, वो तुम्हारे पीछे-पीछे दिल्ली आया है । मालूम नहीं उसे रास्ता कैसे पता चला ? कैसे मालूम हुआ कि तुम यहाँ हो ? लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि वह तुम्हारे लिए ही दिल्ली तक आया है ।”

“शायद ।” मोना चौधरी के होंठ खुले, “वो मेरे लिए ही दिल्ली में आ पहुँचा है ।”

“क्यों ?”

“यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकती ।” मोना चौधरी धीमी गंभीर स्वर में कहे जा रही थी, “मैंने उसे अच्छा रास्ता दिखाया । मैंने उसे बताया कि हम सब उसके दोस्त है । उसने मेरी बात मान ली । लेकिन बाद में उस पर गोलियाँ चलायी गई । ऐसे में उसने यही सोचा होगा कि मैंने उसके साथ धोखेबाजी की । झूठा नाटक किया है । वो मुझे अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगा और मेरी जान लेने के लिए दिल्ली आ पहुँचा । वो अपने इरादे का पक्का है । खतरनाक रहस्यमय जीव है । वो देर-सवेर में मुझ तक अवश्य पहुँचेगा; और यह बात भी तय है कि मैं उसका मुकाबला नहीं कर सकती ।”

“हे भगवान !” महाजन का फटा-सा स्वर उसके कानों में पड़ा, “तुम्हारी जान तो खतरे में है ।”

मोना चौधरी के होंठ भींच लिये ।

“तुम वही रहना बेबी ! मैं अभी आया । इतनी जल्दी वो तुम तक नहीं पहुँच सकता ।” इसके साथ ही महाजन ने उधर से रिसीवर रख दिया था ।

मोना चौधरी ने रिसीवर रखा और नजरें सोफे पर मौजूद अखबार की तरफ उठी और वहीं ठहर गई । अखबार में छपी रहस्यमय जीव की तस्वीर स्पष्ट नजर आ रही थी । सोचों में-मस्तिष्क में, दिल में एक ही बात बार-बार उठ रही थी ।

अब क्या होगा ?

☐☐☐

समाप्त