जिस आदमी ने दरवाजा खोला, वह एक लम्बा चौड़ा कद्दावर आदमी था । उसके हाथ-पांव खुले खुले थे और आंखे फैनी थीं । सूरत से वह हड़बड़ाया हुआ और जल्दी में ताव खा जाने वाला आदमी मालूम होता था । प्रमोद को देखकर उसके चेहरे पर कोई स्वागतभरी मुस्कराहट नहीं आई ।
"हर्ष कुमार आपका नाम है ?" - प्रमोद ने पूछा ।
"हां । " - वह सन्दिग्ध भाव से बोला ।
"मेरा नाम प्रमोद है, मैं सुषमा ओबेराय का दोस्त हूं।" "फिर ?”
'आपसे कुछ बात करना चाहता हूं।"
“आओ।"
हर्ष कुमार उसे एक अस्त व्यस्त कमरे में ले आया ।
“क्या बात करना चाहते हो ?" - हर्ष कुमार ने सीधा प्रश्न किया ।
"मैं सुषमा का हितचिन्तक हूं। सुषमा की जोगेन्द्र पाल से मित्रता है इसलिए सुषमा की खातिर जोगेन्द्र के भी हित की चिन्ता करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं।"
"अगर तुम इससे उलटी बात कहते तो मुझे ज्यादा आसानी से विश्वास हो जाता ।"
"मतलब ?"
"तुम सुषमा के दोस्त हो । मैं तुम्हारे काफी चर्चे सुन चुका हूं । सुषमा आजकल जोगेन्द्र में दिलचस्पी ले रही है । इस लिहाज से तो तुम्हें जोगेन्द्र पाल के अहित की चिन्ता करना अपना फर्ज समझना चाहिए ।"
"तुम्हारा खयाल गलत है ।"
" हो सकता है।" - हर्ष कुमार लापरवाही से बोला ।
"जोगेन्द्र के हित के लिए मैं यह जरूरी समझाता हूं कि मैं उससे फौरन सम्पर्क स्थापित कर सकूं । वर्तमान स्थिति में उसे यह समझाना जरूरी है कि अगर उसने फौरन स्वेच्छा से आत्मसमर्पण नहीं किया तो हाई कोर्ट उसकी निचली अदालत की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी अपील डिसमिस कर देगा । ऊंची अदालत में इन्साफ हासिल करने के लिए उसका तुरन्त आत्मसमर्पण जरूरी है।"
"इन्साफ तो हासिल हो ही नहीं सकता। अगर इन्साफ हासिल होना होता तो सैशन में ही उसे फांसी की सजा क्यों मिलती ?"
"सैशन कोर्ट को गलती लग सकती है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ऐसी गलतियों के दुरुस्त करने के लिए ही बनाए गए हैं।"
हर्ष कुमार चुप रहा ।
"तुमने आज का अखबार पढा है ?"
“हां ।”
"फिर तो तुम्हें यह मालूम ही होगा कि पिछली रात जीवन गुप्ता का भी खून हो गया है।"
"मालूम है।"
"जहां गुप्ता का खून हुआ है, वहां भी जोगेन्द्र की उंगलियों के निशान मिले हैं। पुलिस उस कत्ल का इल्जाम भी उसके सिर पर थोपने की कोशिश कर रही है । "
"गरीब पर खुदा की मार । पुलिस का तो यह काम ही है कि मरे हुए को और मारो । पुलिस तो कहेगी कि सारे शहर में और भी जो कत्ल हुए हैं, वे भी उसी ने किए हैं।"
“उच्च न्यायालय ऐसी बातों से प्रभावित नहीं होता । मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर जोगेन्द्र आत्मसमर्पण कर दे और हाईकोर्ट में उसके केस की सुनवाई से पहले कुछ ऐसी बातें खोज निकाली जा सकें जो पुलिस की थ्योरी में सुराख पैदा कर सकें तो जोगेन्द्र के बचाव की काफी गुंजायश निकल सकती है ।”
"तुम्हारे यहां आने के पीछे असली उद्देश्य यही है कि जोगेन्द्र आत्मसमर्पण कर दे ?”
"हां । मुझे गलत मत समझो, भाई । मैं तुम्हारे दोस्त की मदद करना चाहता हूं।"
"सुषमा की खातिर ?"
“यही समझ लो । तुम्हारी जानकारी के लिए एक बात पुलिस वालों ने अखबार में रिलीज नहीं की है । "
"क्या ?"
"जहां जीवन गुप्ता का कत्ल हुआ था, वहां एक जनाना हैंडबैग पाया गया था और उस हैंडबैग में अन्य चीजों के साथ सुषमा का ड्राइविंग लाइसेन्स और दस हजार रुपए थे । यह बात जोगेन्द्र और सुषमा दोनों का सम्बन्ध गुप्ता की मौत से जोड़ सकती है । लेकिन मेरी निगाह में एक ऐसी बात आई है जो शायद जोगेन्द्र को बेगुनाह सबित कर सके ।” ।
"क्या ?"
" अखबार में उस गोदाम का नक्शा छपा है जहां लाश पाई गई थी ।"
" हां मैंने देखा है ।"
“उसमें दक्षिण की ओर एक खुली खिड़की दिखाई गई है । उस खिड़की के बाहर पुलिस को पैरों के निशान मिले हैं जो यह जाहिर करते हैं कि कोई उस खिड़की में से बाहर कूदा था । पैरों के निशानों का वह सिलसिला खिड़की से लेकर पचास-साठ गज दूर स्थित पक्की सड़क तक गया था और फिर वहां जाकर गायब हो गया था। क्योंकि पक्की सड़क पर कदमों के निशान बन नहीं पाए थे । वे निशान साफ जाहिर करते हैं कि कोई खिड़की से कूछ कर सड़क की ओर भाग निकला था ।”
"फिर ?"
"जब मैं गोदाम में पहुंचा था तो सारी इमारत में अन्धेरा था । उस कमरे में जिसकी खिड़की से बाहर कूदकर कोई भागा था, जो शायद जोगेन्द्र ही था, एक ही बिजली का स्विच है जो कमरे को उत्तरी भाग में स्थित है। जीवन गुप्ता को बहुत ताक कर गोली का निशाना बनाया गया था जो कि अन्धेरे में सम्भव नहीं था । फर्श पर लाश की स्थिति और लाश में धंसी गोली की स्थिति से यही जाहिर होता है कि गोली दरवाजे के पास से चलाई गई थी। हत्यारे ने दरवाजे के पास से गुप्ता को शूट किया और दरवाजे के पास ही लगा बिजली का स्विच ऑफ कर दिया । यह है स्थिति । अब अगर कातिल जोगेन्द्र है तो इसका मतलब यह हुआ कि वह दरवाजे पर बिजली के स्विच के पास खड़ा था । उसने गुप्ता को शूट किया, बत्ती बुझाई और अन्धेरे में ही खिड़की की ओर बढा और उसमें से कूद कर बाहर भागा। यह बात कतई युक्तिसंगत नहीं लगती। अगर हत्यारा जोगेन्द्र होता तो वह खिड़की के रास्ते क्यों भागता ?"
"शायद दरवाजे वाली दिशा में कोई आदमी मौजूद था जिससे वह बचना चाहता था ।"
"लेकिन जोगेन्द्र अन्धेरे में क्यों भागा ? वह लाश से ही ठोकर खा सकता था।"
"शायद उसने बत्ती न बुझाई हो । शायद बत्ती उस शख्स ने बुझाई हो जो दरवाजे की दिशा में खड़ा था । "
"यानी कि दनवाजे की दिशा में खड़े किसी शख्स ने गुप्ता का कत्ल होते देखा, बत्ती बुझाई और चलता बना ।"
“हां।”
"ऐसा शख्स कौन हो सकता है ? "
"तुम ।"
"लेकिन मैं चलता नहीं बना था। मैंने पुलिस को कत्ल की सूचना दी थी और उसके इन्तजार में वहीं मौजूद रहा था|"
हर्ष कुमार चुप रहा ।
"जोगेन्द्र ने सुषमा को फोन करके बताया था कि वह ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम में छुपा हुआ था । सुषमा के बाद उसका कोई दूसरा घनिष्ट मित्र था तो वे तुम थे । शायद उसने तुम्हें भी फोन किया हो या शायद तुम्हें वैसे ही मालूम हो कि वह कहां छुपा हुआ था । क्या कल रात तुम गोदाम में गए थे ?"
"अब क्या तुम मुझे भी कत्ल में उलझाने की कोशीश कर रहे हो ?"
"नहीं । सुनो। गोदाम की हालत साफ जाहिर करती है कि वहां काफी अरसे से कोई गया नहीं था । यह बात शायद जोगेन्द्र को मालूम थी इसलिए उसने छुपने के लिए वह स्थान चुना था । कल रात जीवन गुप्ता ने मुझसे बात की और मुलाकात के लिए गोदाम को चुना। वह गोदाम में पहुंचा । उसने ताला खोला और बत्ती जलाई । उस अप्रत्याशित आगमन से घबरा कर जोगेन्द्र खिड़की में से बाहर कूदा और वहां से भाग निकला । गुप्ता ने या तो जोगेन्द्र को पहचान लिया था और या फिर उस ने उसे कोई मामूली चोर समझा । वह पुलिस को खबर करने के लिए टेलीफोन की ओर लपका । जिस समय वह टेलीफोन की ओर बढ़ रहा था उसी समय उत्तर दिशा में स्थित दरवाजे पर कोई आदमी प्रकट हुआ उसने गुप्ता को पीछे से अपनी गोली का निशाना बनाया, बत्ती बुझाई और वहां से चलता बना ।"
"कौन था वह आदमी ?"
"कोई ऐसा आदमी जो गुप्ता के साथ ही कमरे में पहुंचा था । हालात साफ जाहिर करते हैं कि गुप्ता को गोदाम में दाखिल होते ही भीतर किसी के होने की खबर लग गई थी । उसने किसी को खिड़की से कूदकर भागते देखा था और वह पुलिस को खबर करने के लिए टेलीफोन की ओर बढ़ गया था । उसी क्षण उसे गोली लगी । इससे साफ जाहिर होता है कि हत्यारा या तो गुप्ता के साथ ही कमरे में दाखिल हुआ था और या एक या दो क्षण बाद दरवाजे की चौखट पर प्रकट हुआ था । सम्भव है हत्यारा गुप्ता की कार पर उसके साथ ही आया हो या वह कोई ऐसा शख्स हो जिससे मेरी ही तरह गुप्ता ने वहां मिलना तय किया हो और वो गुप्ता के पहुंचने से पहले ही वहां पहुंचा हुआ हो ।”
"हूं।"
“जोगेन्द्र के बुलावे पर या अपनी मर्जी से तुम वहां गये थे या नहीं ? यह बात मैं इसलिए पूछ रहा हूं कि शायद तुमने घटनास्थल पर कोई ऐसी बात नोट की हो जो जोगेन्द्र के बचाव में सहायक सिद्ध हो सके।"
हर्ष कुमार चुप रहा । वह कितनी ही देर विचारपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप बैठा रहा ।
"मिस्टर ।" - अन्त में वह बोला- "मैं किसी पचड़े में नहीं पड़ना चाहता । लेकिन मैं तुम्हें एक ऐसी बात बता सकता हूं, जो शायद फायदेमन्द साबित हो ।"
"क्या ?"
" पुलिस की खोजबीन के अनुसार जिस समय कत्ल हुआ था, उससे आधा घण्टा पहले राकेश टण्डन अपनी कार पर गोदाम के आस-पास ही फिर रहा था। "
“तुम्हें कैसे मालूम है ?"
"यह मैं नहीं बताऊंगा ।"
"क्या मैं यह कह सकता हूं कि तुमने उसे वहां देखा था?"
“हरगिज मत कहना । तुम यह बात किसी से कहोगे तो मैं साफ मुकर जाऊंगा।"
"लेकिन..."
"खत्म करो। मैं इससे ज्यादा और कुछ नहीं बता सकता तुम्हें । मुझे अपना भी तो खयाल करना है । "
"ओके ।" - प्रमोद उठ खड़ा हुआ - "थैंक्यू | "
वह वहां से विदा हो गया ।
***
जिस इमारत में हर्ष कुमार का फ्लैट था, उससे बाहर निकलते ही प्रमोद को एक पुलिस कार दिखाई दी। कार में पुलिसा इन्स्पेक्टर आत्माराम मौजूद था ।
क्या पता यह भी हर्ष कुमार से ही मिलने आया हो. प्रमोद ने मन ही मन सोचा ।
प्रमोद जल्दी से बगल की एक दुकान में घुस गया । भीतर आकर ही उसे मालूम हुआ कि वह एक जनरल स्टोर था । प्रमोद स्टोर के पृष्ठ भाग में पहुंच गया ।
उसने एक गुप्त निगाह दरवाजे की ओर डाली तो आत्माराम को स्टोर में दाखिल होता पाया ।
प्रमोद सकपकाया । उसे अपने सामने काउन्टर पर लगे पाइन ऐपल जूस के डिब्बे दिखाई दिए। उसने दो डिब्बे खरीद लिए ।
उसने अनुभव किया कि आत्माराम का ध्यान उसकी ओर नहीं था ।
"यहां का मालिक कौन है ?" - वह भीतर घुसते ही अधिकारपूर्ण स्वर में बोला ।
"मैं हूं, साहब।" - एक अन्य काउन्टर पर मौजूद एक आदमी बोला ।
"इधर आओ।"
मालिक फौरन आत्माराम के पास पहुंचा।
"यह लिस्ट देखो।" - आत्माराम उसे एक फूलस्कोप कागज दिखाता हुआ बोला - "क्या पिछले दो-तीन दिनों में यह सारा सामान या लिस्ट में लिखा अधिकतर सामान तुमने किसी एक आदमी को बेचा था ?"
तो आत्माराम उसके पीछे स्टोर में नहीं आया था - प्रमोद ने मन-ही-मन सोचा- वह तो किसी और ही मतलब से यहां आया था और प्रमोद संयोगवश ही उसी स्टोर में घुस आया था । वह आत्माराम की ओर पीठ करके खड़ा रहा ।
लेकिन आत्माराम ने उसे पीठ से भी पहचान लिया ।
"अरे !" - वह हैरानी से बोला- "यह तो प्रमोद साहब मालूम होते हैं । "
प्रमोद घूमा । "हल्लो, इन्स्पेक्टर ।" - वह बोला ।
"आप यहां क्या कर रहे हैं, बन्दापरवर ?"
"पाइनऐपल जूस खरीद रहा हूं।" - प्रमोद सहज स्वर से बोला ।
"कमाल है ! क्या कमर्शिल स्ट्रीट में कोई ऐसा स्टोर नहीं है जो पाइनऐपल जूस रखता हो ?"
“यह जगह भी कोई ज्यादा दूर नहीं है । "
“क्या आप अपनी खरीददारी अक्सर यहीं करते हैं ?" "नहीं । इधर से गुजर रहा था, यही स्टोर सामने दिखाई दिया। मैंने सोचा यहीं से पाइनऐपल जूस खरीद लेता हूं।"
" ऐसे काम आपका वह चीनी नौकर नहीं करता ?"
"करता है लेकिन जब मैं इधर से गुजर ही रहा था तो से सोचा जूस मैं ही ले चलूं ।"
"कमाल है ! बड़ा खयाल है आपको अपने नौकर का
तभी स्टोर का मालिक बोला- "साहब इस लिस्ट की सारी चीजें..."
"तुम एक मिनट चुप करो।" - आत्माराम कठोर स्वर से बोला । फिर वह दोबारा प्रमोद की ओर घूमा पूर्ववत् चिकने-चुपड़े स्वर से बोला - "ये तो काफी वजनी डिब्बे मालूम होते हैं ।"
"इतना वजन उठा सकता हूं मैं।" - प्रमोद बोला ।
"क्यों नहीं । क्यों नहीं। नौजवान आदमी हैं आप । लेकिन मेरा मतलब यह नहीं था । मेरा मतलब था कि जो चीज आपके फ्लैट के पास उपलब्ध है, उसे कहीं दूर से खरीद कर फ्लैट तक उठाकर लाने की क्या तुक हुई ?"
“मैंने इस ओर ध्यान नहीं दिया था । मैं इस स्टोर के आगे से गुजर रहा था, तभी मुझे पाइनऐपल जूस का ध्यान आया । मैंने जूस यहीं से खरीद लिया । "
आत्माराम स्टोर के मालिक की ओर घूमा ।
“इन साहब को देखो ।" - वह बोला - "क्या तुमने इन्हें पहले कभी देखा है ?"
"नहीं ।" - उत्तर मिला- "और पिछले दो-तीन दिनों में इस लिस्ट का सारा सामान हमने किसी एक आदमी को नहीं बेचा ।"
स्टोर के मालिक ने लिस्ट वापिस इन्स्पेक्टर को थमा दी
"अच्छा !" - आत्माराम के स्वर में निराशा की झलक थी - "और सुनो, मैंने तुमसे जो कुछ पूछा है, उसका जिक्र मत करना किसी से। खास तौर से अपने किसी ग्राहक से । "
"नहीं करूंगा।"
“कमाल है !” - आत्माराम प्रमोद की ओर घूमा - “आप उसी दुकान पर पाइनऐपल जूस खरीदते मिले जहां मैं पूछताछ करने आया हूं।"
"इत्तफाक की बात है ।" - प्रमोद बोला ।
"लेकिन यह इत्ताफाक हुआ कैसे ?"
"मेरी पाइनऐपल जूस की खरीद वजह से हुआ।"
आत्माराम ने एक आह भरी । वह बोला - "चलो अच्छा ही हुआ, आपसे मुलाकात हो गई। मैं आपसे बात करने के लिए आपके फ्लैट पर जाने वाला था । आप ऐसा कीजिए, आप मेरे साथ कार में तशरीफ लाइये । मैं आपको और आपके जूस के डिब्बे को, दोनों को, आपके फ्लैट पर पहुंचा देता हूं।"
"आप तकलीफ मत कीजिए । मैं..."
"अजी तकलीफ कैसी ? हम तो जनता के नौकर हैं । "
"मैं अभी और टहलना चाहता हूं।"
"फिलहाल तो आप इस इलाके से निकलिए । आप मुझे कुछ बातचीत का मौका दीजिए और फिर कहीं और टहलने जले जाइएगा।"
"इस इलाके में क्या खराबी है ? यहां क्या चेचक फैली हुई है ?"
" हो सकता है। मैं पता करवाऊंगा । लेकिन आप क्यों खतरा मोल लेते हैं । लाइए जूस के डिब्बे मुझे दे दीजिए, मैं उठा लेता हूं।"
"मैं आपको तकलीफ नहीं देना चाहता ।”
“अजी तकलीफ कैसी ? हम तो..."
"जनता के नौकर हैं।"
“जी हां । जी हां । आप बहुत समझदार आदमी हैं, मिस्टर प्रमोद । लोगों के मन की बात जान लेते हैं। लड़कियां आपसे बहुत खुश होती होंगी ।"
प्रमोद चुप रहा ।
“तशरीफ लाइए ।"
प्रमोद उसके साथ स्टोर से निकल और जाकर पुलिस की कार में बैठ गया ।
कार रवाना हो गई ।
"मिस्टर प्रमोद ।" - इस बार आत्माराम बोला तो उसके स्वर में कठोरता का पुट था - "यह चोर-सिपाही का खेल अच्छा नहीं होता । आप मुश्किल में फंस सकते हैं।"
"क्या मतलब ?"
"मतलब आप खूब समझते हैं । आप उस स्टोर से यह जानने की कोशिश नहीं कर रहे थे कि गोदाम में जो खाने-पीने का सामान पड़ा मिला था, वह जोगेन्द्र के लिए किसने खरीदा था ?"
"मैंने ऐसी कोई बात उस स्टोर में नहीं की।"
“की नहीं लेकिन करने की तैयारी कर रहे थे । पहले आप थोड़ी खरीददारी करके, यानी कि दो पाइनऐपल जूस के डिब्बे खरीदकर, अपने मतलब की बात पूछने की बुनियाद बना रहे थे । मिस्टर प्रमोद, ये पुलिस के काम हैं। इन्हें पुलिस को ही करने दीजिये ।”
"आप ठीक फरमा रहे हैं । " - प्रमोद दबे स्वर से बोला "आई एम सॉरी ।"
अगर इन्स्पेक्टर प्रमोद की उस इलाके मे मौजूदगी की यह वजह समझाता था तो यह प्रमोद के लिए अच्छा ही था ।
- "गुड | गुड, गुड | " - आत्माराम बोला - "एक बात बताइए । अभी तक आपकी सुषमा ओबेराय से बात हुई या नहीं ?"
"आप क्यों पूछ रहे हैं ?"
"पुलिस को सुषमा ओबेराय की तलाश है । हम उससे कुछ बड़े ही महत्वपूर्ण सवाल पूछना चाहते हैं। उसकी जोगेन्द्र से गहरी मित्रता के चर्च हमने सुने हैं। हमें उम्मीद है उसे मालूम होगा कि जोगेन्द्र कहां छुपा हुआ है ।"
"आपका मतलब है, वह कहां छुपा हुआ था ?”
"नहीं । मेरा मतलब है वह अब कहां है । वह कहां था, यह हमें मालूम है । वह ईस्टर्न ट्रेडिंग कम्पनी के गोदाम में था । किसी ने उसके लिए एक ही बार में इतना ढेर सारा सामान खरीदा था कि वह कम से कम एक महीना एक ही स्थान पर छुपा रह सकता था।"
"आपका खयाल है वह सामान सुषमा ओबेराय ने खरीदा था ?"
"पुलिस का काम अपने खयाल जाहिर करना नहीं होता, मिस्टर प्रमोद | हम खोजबीन करते हैं, हर कोना खुदरा टटोलते हैं, पूरी जांच-पड़ताल करते हैं, तब जाकर कोई ठोस निष्कर्ष निकालते हैं । यह नहीं कि कोई बात सुनी और आंखें बन्द करके उस पर विश्वास कर लिया । मिसाल के तौर पर मुझे इस बात पर कतई विश्वास नहीं कि कल रात आप टैक्सी पर गोदाम तक पहुंचे थे ।”
"तो फिर कैसे पहुंचा मैं वहां ? पैदल चलकर ?"
"नहीं । पैदल चलकर नहीं । सुषमा के बैग की घटनास्थल पर मौजूदगी मुझे यह सोचने पर मजबूर कर रही है कि शायद आप वहां तक सुषमा की कार पर गये थे । मुझे मालूम हुआ है सुषमा के पास एक विलायती टू सीटर कार है |"
“इन्स्पेक्टर साहब, सुषमा के बैग की घटनास्थल पर मौजूदगी यह हरगिज सिद्ध नहीं करती कि वह गोदाम में मेरे साथ गई थी । मुमकिन है वह पहले कभी, अर्थात् गुप्ता के कत्ल से पहले वहां गई हो, गुप्ता को वहां उसका बैग मिला हो और वह उस बैग की वजह से ही मुझसे मिलना चाहता हो । शायद वह मेरे माध्यम से सुषमा का बैग उस तक पहुंचना चाहता हो ।”
" आपके माध्यम से ?"
"जी हां । "
" यानी कि उसे पता था कि आपके माध्यम से बैग सुषमा तक पहुंच सकता था ?"
"जाहिर है । "
"क्या उसने टेलीफोन पर कहा था कि उसे गोदाम में सुषमा का बैग मिला था ?"
“फोन पर तो उसने कुछ भी नहीं कहा था । मैं तो आपको अपना अनुमान बता रहा हूं।"
"मुझे आपका अनुमान पसन्द है । हवलदार !” आत्माराम ड्राइविंग सीट पर बैठे सिपाही से सम्बोधित हुआ - " रफ्तार बढा दो । जल्दी से जल्दी मार्शल हाउस पहुंचो ।"
“वजह !” - प्रमोद हैरानी जाहिर करता हुआ बोला “क्या हो गया है ?" -
"प्रमोद साहब, आपको मालूम ही होगा कि कल रात मेरे आदमियों ने आपके फ्लैट की तलाशी ली थी। मैं सोच रहा हूं कि शायद उन्होंने अच्छी तरह से तलाशी न ली हो ।"
"आप मेरे फ्लैट की तलाशी से क्या हासिल होने की उम्मीद करते हैं ? कहीं आप ऐसा तो नहीं सोच रहे कि मैंने जोगेन्द्र को अपने फ्लैट में छूपाया हुआ है ?"
" या शायद सुषमा ओबेराय को ।”
“अगर कल रात मेरे फ्लैट की तलाशी लेने वालों की निगाह से वह बच गई थी तो क्या वह अभी तक वहां बैठी हुई होगी ?"
"हो सकता है। आपकी जानकारी के लिए आपके फ्लैट की बड़ी तगड़ी निगरानी हो रही है । फ्लैट की तलाशी लेने वालों ने शायद लापरवाही बरती हो लेकिन निगरानी करने वाले आदमी बहुत दक्ष और पूरे भरोसे के हैं। "
“अगर मैं तलाशी पर एतराज करू तो ?"
"तो मुझे सर्च वारन्ट हासिल करना पड़ेगा। लेकिन मिस्टर प्रमोद अगर आपने ऐतराज किया तो मैं समझुंगा कि आप वाकई कुछ छुपा रहे हैं लेकिन आप उस 'कुछ' को छुपाये रखने में कामयाब नहीं होंगे ।"
"मेरा तलाशी से एतराज करने का कोई इरादा नहीं है ।" - प्रमोद बोला । वह जानता था, एतराज से कोई फायदानहीं था । सर्च वारन्ट हासिल होने तक आत्माराम उसके फ्लैट के दरवाजे पर जमकर बैठ सकता था ।
तभी पुलिस कार मार्शल हाउस के दरवाजे पर जाकर रुकी। आत्माराम बाहर निकला । प्रमोद जानबूझ कर ज्यादा से ज्यादा देर लगाकर बाहर निकला । वह चाहता था कि अगर यांग टो उसके फ्लैट की खिड़की पर मौजूद हो तो वह देख ले कि वह पुलिस के साथ वापिस लौटा था।
"आइए न, साहब ।" - आत्माराम बेसब्रेपन से बोला ।
प्रमोद ने एक सिगरेट निकाला । उसे सुलगाने के उपक्रम में उसने लाइटर जमीन पर गिरा दिया । फिर उसने लाइटर उठाया और उसे चालू करने की कोशिश करने लगा ।
“अब चलिए न ।” - आत्माराम बोला ।
"ओफ्फोह, ऐसी भी क्या जल्दी है, इन्स्पेक्टर ! एक सिगरेट तो सुलगा लेने दो । "
"हवलदार, साहब का सिगरेट सुलगाओ।"
हवलदार ने माचिस निकाली । तभी प्रमोद ने सिगरेट सुलगा लिया । वह आत्माराम के साथ मार्शल हाउस की लाबी में दाखिल हुआ । आत्माराम ने लिफ्ट का बटन दबाया ।
"अरे, मेरे जूस के डिब्बे तो आपकी कार में ही रह गए ।" - प्रमोद बोला ।
वह वापिस कार की ओर लपका लेकिन आत्माराम ने उसे बांह पकड़ कर वापिस घसीट लिया ।
"आप चलिए मेरे साथ | आपके डिब्बे हवलदार ले आता है ।” - आत्माराम कठोर स्वर में बोला ।
"ओके ।" - प्रमोद ने कन्धे झटकाये - "ओके ।”
लिफ्ट द्वारा वे तीसरी मंजिल पर पहुंचे ।
घन्टी की आवाज पर यांग टो ने फ्लैट का मुख्य द्वार खोला ।
“यांग टो ।” - प्रमोद चीनी में बोला- "पुलिस फ्लैट की तलाशी...'
"हिन्दुस्तानी बोलिए, साहब ।" - आत्माराम ने फौरन टोका - "ताकि मैं भी समंझ सकूं कि क्या कहा जा रहा है !"
"लेकिन मेरा नौकर चीनी ज्यादा अच्छी तरह समझता है !"
“आप मेरे सब्र का इम्तहान ले रहे हैं मिस्टर प्रमोद ।" - आत्माराम कठोर स्वर में बोला- "मैं कल पैदा नहीं हुआ था । पुलिस की नौकरी में मेरे बाल सफेद हो गए हैं । आप क्या समझते हैं कि जो हरकतें आप कर रहे हैं, मैं उनका मतलब नहीं समझता ? आप मुझे होशियारी दिखाने की कोशिश करेंगे तो मैं एक सैकेण्ड में आपकी सारी होशियारी निकाल दूंगा । आप पढे-लिखे शरीफ आदमी हैं इसलिए मैं आपके साथ शराफत से पेश आना चाहता हूं वर्ना मैं आपको जीवन गुप्ता की हत्या के सन्देह में गिरफ्तार भी कर सकता हूं । फिर लाकअप में पड़े होशियारी दिखाते रहियेगा ।"
"आल राइट।" - प्रमोद हथियार डालता हुआ बोला - "मैं इससे बात ही नहीं करता ।"
“तुम फूटो यहां से ।” - आत्माराम यांग टो से बोला ।
यांग टो तुरन्त किचन की ओर चला गया ।
"और आप फरमा रह थे यह हिंदुस्तानी नहीं समझता ।" - आत्माराम व्यंग्यूपूर्ण स्वर में बोला ।
"मैंने यह नहीं कहा था ।" - प्रमोद बोला - " मैंने कहा था वह चीनी ज्यादा अच्छी तरह समझता है ।"
"अच्छा, ऐसे ही सही ।"
फिर आत्माराम कमरा कमरा फिरने लगा । वह ऐसी बारीकी से तलाशी ले रहा था, जैसे वह कोई खटमल तलाश कर रहा हो । उसने खिड़कियों से बाहर भी झांक कर देखा ।
अन्त में वे किचन में पहुंचे ।
यांग टो एक ओर खड़ा मशीन की तेजी से प्याज काट रहा था ।
सो हा सिंक के सामने खड़ी प्लेटें धो रही थी। उसके बाल खुले हुए थे और मैले-कुचैले लग रहे थे। उसने अपने शरीर के अग्रभाग पर घुटनों तक आने वाला एक ऐपन बांधा हुआ था और वह नंगे पांव थी। उसने केवल एक बार निर्विकार भाव से सिर उठाकर आत्माराम की दिशा में देखा और फिर अपने काम में जुट गई ।
"यांग टो।" - प्रमोद नाराज स्वर में बोला- "तुमने फिर इसे बुला लिया। मैंने तुम्हें कितनी बार कहा है कि घर का सारा काम तुम खुद किया करो । आखिर मैं तुम्हें तनख्वाह किसलिए देता हूं ? निकालो इसे यहां से ।"
"अरे, जाने भी दीजिए ।" - आत्माराम बोला - "गरीब लड़की है बेचारी ।"
" आप इन चीनियों को नहीं जानते, इन्पेक्टर साहब ।" - प्रमोद पूर्ववत नाराज स्वर में बोला- "एक तो इन्हें अपने कौम के लोगों के संसर्ग का वैसे ही भारी चस्का होता है और दूसरे इन चीनियों को बुढौती में जवान छोकरी की ललक बहुत सताती है ।'
"हर जगह यही होता है ।"
"यांग टो, इस छोकरी को अभी निकालों नही तो मैं तुम्हें निकाल दूंगा । यू सावी ?"
"मी सावी ।" - यांग टो बोला । फिर वह सो हा को चीनी में कुछ कहने लगा ।
सोहा तुरन्त किचन से बाहर निकल गई ।
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