वानखेड़े की झुंझलाहट और गुस्सा सातवें आसमान पर था। लियू भी हाथ से निकल गई थी और वह भी हाथ नहीं आया था, जिसने लियू के पक्ष में रहते हुए, उनका रास्ता रोकने की कोशिश की थी।
ट्रांसमीटर पर संबंध बनाकर, वह सब पुनः इकट्ठे हुए।
जिस टैक्सी ने जुगल किशोर का पीछा किया था। उसमें श्याम सुन्दर के साथ रामचरण और मदन लाल थे। तब वानखेड़े ने जोर देकर ट्रांसमीटर पर श्याम सुन्दर से कहा था कि उस आदमी को पकड़ा जाये। अब जब श्याम सुन्दर सामने आया तो वानखेड़े के चेहरे पर और भी गुस्सा भर आया।
“तुम ठीक तरह काम नहीं कर रहे श्याम सुन्दर।” वानखेड़े ने सख्त स्वर में कहा।
“मेरे काम में कोई कमी नहीं।” श्याम सुन्दर के माथे पर बल पड़े।
“कमी नहीं है तो फिर उसे पकड़ा क्यों नहीं गया, जिसका तुमने पीछा किया।”
“जरूरी तो नहीं कि हर बार सफलता ही मिले।” श्याम सुन्दर ने पहले वाले स्वर में कहा –“हमारा टैक्सी वाला सुस्त आदमी था। उसकी टैक्सी भी ज्यादा तेज नहीं दौड़ रही थी।”
“यह सफाई दे देने से तुम्हारी जान छूट जायेगी। तुमने सारा काम खराब कर –।”
“तुमने कौन सा लियू को पकड़ लिया।” श्याम सुन्दर तीखे स्वर में कह उठा।
“श्याम सुन्दर।” वानखेड़े की आवाज बेहद कठोर हो गई।
“मैंने कुछ गलत कहा?”
“सब अच्छी तरह जानते हैं कि हमारा रास्ता रोके जाने की वजह से लियू हमसे दूर हो गई थी। इसलिए वह हमारे हाथों से निकल गई।” वानखेड़े सख्त स्वर में कह उठा।
तभी नम्बरदार ने उनकी बातों में दखल दिया।
“श्याम सुन्दर। इस मामले में देखा जाये तो गलती तुम्हारी है। वानखेड़े ठीक है। लापरवाही हुई है तो तुमसे हुई है।”
श्याम सुन्दर कुछ नहीं बोला।
“लेकिन अब क्या किया जाये। लियू हमारे हाथों से निकल गई है।” दीपसिंह ने कहा।
वानखेड़े ने दीपसिंह के चेहरे पर निगाह मारकर सिर हिलाया।
“हां। लेकिन देवराज चौहान उसके पीछे होगा। इसलिए ज्यादा चिन्ता की बात नहीं है। लेकिन हम हाथ पर हाथ रखे भी नहीं बैठ सकते। जिस टैक्सी में लियू एयरपोर्ट से रवाना हुई है। उसके टैक्सी ड्राइवर से बात करनी होगी कि वह लियू को टैक्सी में कहां तक ले गया था। एयरपोर्ट के टैक्सी स्टैण्ड चलो।”
वह सब एयरपोर्ट पहुंचे।
टैक्सी स्टैण्ड पर जाकर वानखेड़े ने अपना परिचय दिया और लियू वाले टैक्सी ड्राइवर के बारे में पूछा जो अभी एयरपोर्ट पर नहीं लौटा था। वानखेड़े ने उसके घर का पता मालूम किया और मदनलाल-दीपसिंह को वहीं रहने को कहा कि वह ड्राइवर टैक्सी लेकर वहां आ जाये तो उससे लियू के बारे में पूछा जा सके।
अन्यों को लेकर वानखेड़े टैक्सी ड्राइवर के पते पर, उसके घर पहुंचा।
लेकिन वह घर भी नहीं लौटा था।
वानखेड़े ने नम्बरदार और कर्मवीर यादव की ड्यूटी उसके घर पर नजर रखने के लिए लगा दी। वानखेड़े हर हाल में लियू को पा लेना चाहता था। लियू का नजरों से ओझल हो जाना उसे पसन्द नहीं आ रहा था।
☐☐☐
जब लियू बाहर गई थी तो सावधानी के नाते फांग उसके पीछे गया था। इसलिए जुगल किशोर की, देवराज चौहान और जगमोहन से हुई मुलाकात को वह नहीं देख सका था। जोकि जुगल किशोर के लिए अच्छी बात थी। लियू फांग को कह आई थी कि दोपहर तक वह आराम करेगी। इसलिए फांग अपने कमरे में बंद हो गया था और बाहर झांकने की उसने जरूरत नहीं समझी थी।
इधर जगमोहन, लियू के कमरे पर नजर रखे हुए था। कभी-कभार लियू के सामने वाले कमरे पर भी निगाह मार लेता, जो फांग का था।
लियू को वापस आते उसने देखा था।
जुगल किशोर उनसे बात करने के बाद कमरे में ऐसा गया था कि अभी तक बाहर नहीं निकला था। उनके कमरे का दरवाजा बंद हुए तीन घंटे बीत चुके थे।
“साला चिपकू। इतनी देर से दरवाजा बंद करके, पता नहीं कौन सा तीर मार रहा है।” जगमोहन बड़बड़ा उठा।
☐☐☐
जुगल किशोर की आंख खुली तो दोपहर का डेढ़ बज रहा था। उसके चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं था। आंखों में मौज तैर रही थी। उसने लियू पर निगाह मारी। जो बगल में ही लिहाफ को कंधों तक लेकर, नींद में डूबी हुई थी।
कई पलों तक जुगल किशोर उसके खूबसूरत चेहरे को देखता रहा।
साली चीन की हो या नेपाल की, है बड़े काम की। बेड फाइटिंग तो ऐसे जानती है जैसे इस काम में ब्लैक बेल्ट हासिल कर रखी हो?
जुगल किशोर ने हाथ बढ़ाकर उसके गाल को मसला।
“आऊं–?” लियू के होंठ हिले।
“नहीं।”
“डर गये।” लियू ने आंखें खोली। होंठों पर मुस्कान उभरी।
“डरने की बात नहीं है।” जुगल किशोर ने आंखें खोलीं –“पहले देख तो लूं कि मेरे सारे अंग सलामत हैं। कहीं कोई टूट-फूट कर खो तो नहीं गया। क्या तुम यूं ही सबको खा जाने की कोशिश करती हो।”
“किसी-किसी को –।”
“उस किसी में यह मेहरबानी मुझ पर क्यों?”
लियू हौले से हंसी। जुगल किशोर की छाती पर हाथ फेरा।
“क्योंकि तुमने उन गुण्डों से मेरी जान बचाई। हिन्दुस्तान घूमने में मेरा साथ दे रहे हो। मेरे कारण यह सब कर रहे हो तो क्या मैं तुम पर मेहरबानी भी नहीं कर सकती। हमारा कई दिनों का साथ है अब।”
जुगल किशोर की सोचों में बैग में मौजूद पचास हजार रुपये आये। परन्तु साथ ही साथ देवराज चौहान का ध्यान आया तो सोच हवा हो गई। देवराज चौहान बीच में न आया होता तो पचास हजार के साथ कब का हवा हो गया होता।
“कहां खो गये?”
लियू की आवाज पर सोचों से बाहर निकला।
“लंच के बारे में सोच रहा था। ब्रेक फास्ट भी नहीं लिया। डायनिंग हॉल में लंच लिया जाये तो कैसा रहेगा?”
“बढ़िया।”
“तो फिर जल्दी से तैयार हो जाओ। मुझे भूख लग रही है।” जुगल किशोर बोला।
लिहाफ ओढ़े लियू उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई।
जुगल किशोर ने उसे जाते देखा।
हसीनों की खोपड़ी भी अजीब होती है। पहले उतारती हैं। दिखाती हैं। खा-पीकर बदन को ऐसे ढांप लेती हैं जैसे दोबारा कभी हवा लगाने का भी इरादा न हो।
लियू बाथरूम में जा चुकी थी।
उसी समय फोन की घंटी बजी।
जुगल किशोर ने फोन को देखा। फिर बाथरूम की तरफ उसके बाद बेड से उतर कर आगे बढ़ा और रिसीवर उठाया।
“हैलो।”
दूसरी तरफ कोई आवाज नहीं आई।
“हैलो।” जुगल किशोर पुनः बोला।
चंद पलों की चुप्पी के बाद उसके कानों में किसी आदमी की आवाज पड़ी।
“कौन हो तुम?”
“फोन तुमने किया है।” जुगल किशोर ने बाथरूम के दरवाजे की तरफ नजर मारी –“और पूछ मुझसे रहे हो।”
“मैंने तुम्हें नहीं, लियू को फोन किया था।”
“लियू से तुम्हारा क्या मतलब?” जुगल किशोर के चेहरे पर सोच के भाव थे।
“मैं –।” कुछ रुककर आवाज आई –“लियू का अंकल हूं। तुम कौन हो?”
“जुगल किशोर। लियू का दोस्त हूं। वह बाथरूम में है। अपना नम्बर दे दो। उसे फोन करने को कह दूंगा।”
दूसरी तरफ से बिना कुछ कहे, लाइन काट दी गई।
जुगल किशोर ने रिसीवर रखा। बाथरूम की तरफ नजर मारी। बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे? देवराज चौहान की बात माने या नहीं? अगर वह सब कुछ लियू को बता देता है तो लियू से उसे क्या मिलेगा? नहीं, ऐसा करना तो बिलकुल ही गलत होगा। ऐसे में लियू सबसे पहले तो उसे ही रास्ते से हटायेगी।
तो ऐसा क्या करे कि अपनी भी दाल गल जाये?
अगर माइक्रोफिल्म देवराज चौहान के हाथ लग गई तो वह मोटी रकम कमा लेगा। अगर वह फिल्म उसके हाथ आ जाये तो, क्या वह कुछ ज्यादा कमा सकता है? क्या है उस फिल्म में? उसके हाथ फिल्म लग गई तो किससे करेगा, वह, उसका सौदा?
जुगल किशोर के होंठ सिकुड़े।
किसी से सौदा करने की क्या जरूरत है? देवराज चौहान माइक्रोफिल्म पाने की कोशिश में है। एक-दो लाख तो देने की वह कह ही रहा है। अगर देवराज चौहान से, जान बख्शी लेकर, माइक्रोफिल्म अपने हाथ में लेकर बात करें तो पांच-दस लाख तो उससे झाड़ ही सकता है?
यह बात जुगल किशोर को ज्यादा ठीक लगी।
लेकिन पहले माइक्रोफिल्म हाथ तो लगे।
तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और लियू बाहर निकली। वह नये कपड़े पहन चुकी थी और इस वक्त पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।
“बाथरूम में कोई खास क्रीम रखी है?” जुगल किशोर ने पूछा।
“क्या मतलब?”
“बाथरूम का फेरा लगाकर तुम पहले से भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हो।” जुगल किशोर ने मुस्करा कर कहा –“मुझे भी उस क्रीम के बारे में बता दो। थोड़ी सी में भी अपने मुंह पर फेर लूं।”
“सीधे हो जाओ।” लियू भी मुस्कराई –“वरना –।”
“वरना –।” जुगल किशोर ने आंखें नचाई।
“बाद में बताऊंगी। फोन पर कौन था?”
“कोई था। तुम्हें पूछ रहा था। कह रहा था कि तुम्हारा अंकल है।” जुगल किशोर ने कहा।
“हां। अंकल ही होंगे।”
“तुम तो कह रही थी कि हिन्दुस्तान में तुम्हारा कोई पहचान वाला नहीं है।”
“वो तो अब भी कह रही हूं। ये मेरी सहेली के अंकल थे। तो मेरे भी अंकल हुए। मेरी सहेली के लिए उसके अंकल ने कुछ देना था। इसलिए मुझे फोन किया।”
कुछ देना था?
जुगल किशोर मन ही मन सतर्क हुआ।
“जल्दी से तैयार हो जाओ। मुझे भूख लग रही है। लंच के लिए नीचे चलना है।”
जुगल किशोर के बाथरूम में जाते ही लियू ने रिसीवर उठाया, नम्बर मिलाया। बात हुई।
“कहो।” लियू बोली।
“सामान मेरे पास पहुंच गया है। जब चाहो ले लो।”
“मेरे ख्याल में रास्ता साफ है। अब सामान लेने में कोई हर्ज नहीं।”
“कब दूं। पहुंचा दूं या –।”
“इस बारे में शाम को फोन करूंगी।”
“मैं तुम्हारे फोन का इन्तजार करूंगा।”
लियू ने रिसीवर रख दिया।
जुगल किशोर ने जरा सा दरवाजा खोले सब सुना । ‘सामान’ का मतलब भी समझ गया कि माइक्रोफिल्म के बारे में बात हो रही है। लियू ने जिससे बात की, उसे कहा है कि वह शाम को फोन करेगी। मतलब कि आज माइक्रोफिल्म लियू के पास आ जायेगी।
जुगल किशोर का दिमाग तेजी से दौड़ने लगा कि कैसे उस माइक्रोफिल्म को हासिल करना है?
जुगल किशोर और लियू ने हाथों में हाथ डाले होटल के डायनिंग हॉल में प्रवेश किया। लंच का वक्त होने के कारण बीस-पच्चीस लोग वहां लंच में व्यस्त थे। वेटर सर्विस में व्यस्त थे। एक निगाह सब तरफ देखने के बाद, दोनों ने एक खाली टेबल संभाल ली।
वेटर आया तो आर्डर दे दिया।
“दिल्ली देखने का इरादा है अब?” जुगल किशोर ने बात शुरू की।
“दिल्ली देख ली है।” लियू बोली –“तुम बताओ, और क्या देखूं?”
“तुम जहां कहोगी, वहीं ले चलूंगा। गाइड को बताने भर की देर है कि, कहां चलना है।” जुगल किशोर मुस्कराया।
“हिल स्टेशन चलें?” लियू खुशी जाहिर करती हुई बोली।
“चलो।”
“कहां चलें–कश्मीर-श्रीनगर कैसा रहेगा?”
“बहुत बढ़िया।” जुगल किशोर ने सिर हिलाया –“कब चलना है?”
“रात को प्रोग्राम बनायेंगे।”
जुगल किशोर ने टेबल के नीचे से लियू को पैर मारा।
“क्या है?” लियू ने उसे देखा।
“श्रीनगर में सर्दी नहीं लगेगी।”
“क्यों?”
“क्योंकि तुम जैसी गर्मी साथ में होगी।”
“आ गये शरारतों पर।” लियू ने मुंह बनाया।
साली याद करेगी सारी उम्र मुझे, जब वो माइक्रोफिल्म उड़ा लूंगा। तब मेरी इन्हीं शरारतों को भी याद करेगी कि कैसे इसे, बेवकूफ बनाया।
वेटर लंच सर्व कर गया।
दोनों लंच में व्यस्त हो गये।
अभी आधा लंच ही समाप्त हुआ था कि एकाएक लियू जैसे खाना भूल गई। निगाहें डिनर हॉल के प्रवेश द्वार पर जा टिकीं । जुगल किशोर ने भी उधर देखा और सकपका कर खाने में व्यस्त हो गया।
देवराज चौहान और जगमोहन ने अभी भीतर प्रवेश किया था। लियू की निगाहें देवराज चौहान पर टिकी थी। उसे उस आदमी का चेहरा याद आ रहा था जब मुम्बई में होटल पैलेस में वानखेड़े और उसके आदमियों को कमरे में बंद करके लिफ्ट तक पहुंची थी कि, इस आदमी को लिफ्ट से निकलते पाया था।
लियू समझ नहीं पा रही थी कि इस आदमी का मुम्बई के होटल पैलेस में होना और फिर यहां होना इत्तफाक है या यह कोई पुलिस वाला है, जो उसके पीछे-पीछे यहां आ पहुंचा है।
जुगल किशोर खाने के दौरान छिपी-छिपी निगाहों से लियू को देख रहा था।
“जुगल।” लियू धीमे से बोली।
“हूं।” खाने का दिखावा करते हुए उसने सिर हिलाया।
“उस आदमी को मैंने मुम्बई में उसी होटल में देखा था, जहां मैं ठहरी थी। यह अब यहां है।” लियू सोच भरे स्वर में कह रही थी –“कहीं यह उन्हीं बदमाशों का साथी तो नहीं?”
मरता क्या न करता। जुगल किशोर सिर उठाकर बोला।
“किसकी बात कर रही हो?”
“वो बाईं तरफ। दो आदमी हैं जो टेबल पर बैठने जा रहे हैं। मैं काले सूट वाले की बात कर रही थी।”
जुगल किशोर ने देवराज चौहान और जगमोहन की तरफ देखा। प्लेन में कह चुका था कि वह देवराज चौहान को जानता है। ऐसे में अगर अब कह दिया कि नहीं जानता और बाद में लियू को किसी तरह मालूम हो गया कि वह देवराज चौहान है तो लियू की निगाहों में वह शक के घेरे में आ जायेगा।
जुगल किशोर ने सीधे-सीधे चलने में ही भलाई समझी।
“ये यहां?” जुगल किशोर ने चौंकने का ड्रामा किया।
“कौन है ये?” लियू की नजरें जुगल किशोर पर जा टिकीं।
“देवराज चौहान।”
“देवराज चौहान।” लियू जोरों से चौंकी –“वही डकैती मास्टर।”
“हां। जिसके बारे में तुम प्लेन में पूछ रही थी।” जुगल किशोर जल्दी से बोला –“यही है वह। एक बार तो मेरे हाथों से बच गया। लेकिन मैं तो प्राइवेट जासूस हूं। पुलिस में होता तो अब तक गिरफ्तार कर लिया होता।”
लियू की आंखें सिकुड़ी। नजरें पुनः देवराज चौहान पर जा टिकी।
“मेरे ख्याल में पुलिस को खबर कर देना ठीक रहेगा।” जुगल किशोर कह उठा।
“नहीं।”
“क्यों?”
“ज्यादा सवाल मत पूछो डियर जुगल।” लियू एकाएक मीठे स्वर में कह उठी।
“ठीक है। वैसे भी मुझे क्या जरूरत पड़ी है पुलिस को खबर करने की।” जुगल किशोर ने लापरवाही से कहा और खाने में व्यस्त हो गया।
लियू ने भी खाना शुरू किया। सोच में डूबे धीरे-धीरे। अब वह छिपी-छिपी निगाहों से देवराज चौहान की तरफ देख रही थी। हाव-भाव से वह सामान्य थी। लेकिन मस्तिष्क तेजी से दौड़ रहा था। देवराज चौहान यहां? स्पष्ट था कि वह उसके पीछे है। देवराज चौहान ने उसका पीछा नहीं छोड़ा और उसे, उसके पीछे होने का आभास तक न मिला।
देवराज चौहान के पीछे होने का मतलब स्पष्ट था कि वह, उससे माइक्रोफिल्म लेना चाहता है।
खतरा सिर पर है?
“तुम देवराज चौहान को जानती हो?” जुगल किशोर ने एकाएक पूछा।
“नहीं।” लियू ने शांत स्वर में कहा –“नाम सुना है। इसके साथ कौन है?”
“इसका खास बंदा जगमोहन होगा।” जुगल किशोर ने लापरवाही से कहा।
लियू खाना खाती रही।
जुगल किशोर स्पष्ट तौर पर महसूस कर रहा था कि देवराज चौहान को सामने पाकर, लियू बेचैन हो उठी है। स्पष्ट था कि किसी न किसी तरह दोनों की मुलाकात हो चुकी है?
“तुम लंच के बाद कमरे में जाना। मैं बाद में आऊंगी।” लियू एकाएक कह उठी।
“क्यों, देवराज चौहान से मिलने का इरादा है क्या?” जुगल किशोर ने मजाक भरे लहजे में कहा।
“ऐसा ही समझ लो।”
“बेवकूफ, वह बहुत खतरनाक –।”
“प्लीज डियर जुगल।” लियू मीठे स्वर में कह उठी –“एक बार मुझे मिल लेने दो।”
भाड़ में जा। मेरी तरफ से उसके गले में बांहें डालकर झूल।
लेकिन यह बात जुगल किशोर की समझ में नहीं आ रही थी कि लियू, देवराज चौहान से क्यों मिलना चाहती है? क्या बात करना चाहती है?
☐☐☐
देवराज चौहान और जगमोहन ने लंच समाप्त किया ही था कि लियू को पास खड़े पाया। उसे करीब पाकर जगमोहन चौंका जबकि देवराज चौहान उसे देखता रहा।
लियू शांत भाव से मुस्कराई।
“अब यह मत कहना कि तुम मुझे जानते नहीं देवराज चौहान ।” लियू ने बेहद मीठे स्वर में कहा।
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।
“बैठ सकती हूँ?” लियू बोली।
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया।
लियू बैठी।
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह उस पर टिकी थी।
“मेरी समझ में यह नहीं आता कि तुम जैसा डकैती मास्टर, पुलिस वालों के लिए कैसे काम करने लगा?” कहते हुए लियू के होंठों पर जानलेवा मुस्कान बिखर गई।
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
“तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि यह देवराज चौहान है?” जगमोहन ने एकाएक पूछा।
“यह मुझे होटल पैलेस में मिला था। जब मैं वानखेड़े और उसके साथियों को कमरे में बंद करके निकल रही थी। अब यहां देखा तो पहचान गई। क्योंकि, वॉल्ट की छत पर इसका चेहरा थोड़ा-बहुत देखा था।” लियू ने जानबूझ कर जुगल किशोर का जिक्र नहीं किया कि इस नाजुक मौके पर दोनों में पुरानी बात को लेकर झगड़ा न हो जाये। क्योंकि वह तो यही सोच रही थी कि जुगल किशोर प्राइवेट जासूस है और उसने एक बार देवराज चौहान को पकड़ने की कोशिश की थी।
जगमोहन, लियू को देखता रहा। फिर कुछ नहीं पूछा।
लियू की निगाह पुनः देवराज चौहान पर जा टिकी।
“मैं जानती हूं तुम मेरे पीछे हो देवराज चौहान ।” लियू पुनः बोली।
देवराज चौहान खामोश रहा।
लियू के होंठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी।
“पुलिस के लिए तुम मुफ्त में तो काम करने से रहे। क्या कीमत ली, इस मामले में हाथ डालने की?”
देवराज चौहान की निगाहें लियू पर टिकी थीं।
“मैं सीधे-सीधे बात पर आ जाऊं तो ज्यादा बढ़िया रहेगा।” लियू ने देवराज चौहान की आंखों में झांका –“इस मामले से पीछे हटने की मैं तुम्हें मुंह मागी कीमत दे सकती हूं, बशर्ते कि तुम भविष्य में भी मेरे लिए काम करो।”
“तुम्हारे लिए?” देवराज चौहान के होंठ खुले।
“मतलब कि चीन के लिए मेरे देश के लिए मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगी।” लियू धीमे किन्तु उत्साह से कह उठी।
देवराज चौहान मुस्कराया।
लियू भी मुस्कराई।
जगमोहन के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।
“मैं अपनी मां के सीने में चाकू नहीं मार सकता।” देवराज चौहान का स्वर सपाट था –“हिन्दुस्तान मेरी मां का नाम है। इसी की गोद में पला और बढ़ा हुआ। यहीं सब सांसें ली हैं मैंने।”
लियू के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई।
“और अब डकैतियां करके अपनी मां को ही लूट रहे हो?” लियू जहरीले स्वर में कह उठी।
“बच्चे मां से खेलते हैं। मां पर उछलकूद करते हैं। इससे मां की हड्डियां नहीं टूटती। न ही मां को कोई फर्क पड़ता है। और तुम चाहती हो कि मैं बड़ा सा पत्थर उठाकर अपनी मां के सिर पर मार दूं।”
लियू के दांत भिंच गये।
देवराज चौहान की नजरें लियू पर ही रहीं।
जगमोहन ने उखड़े अंदाज में पहलू बदला।
एकाएक लियू मुस्कराई। प्यार भरी मीठी मुस्कान।
“तुम तो नाराज हो गये।” लियू ने लापरवाही से कहा –“मैं तो तुम्हें करोड़ों रुपया देना चाहती थी।”
“चिपकू को दे दो। मुंह फाड़कर ले लेगा।” जगमोहन कह उठा।
“चिपकू?” लियू ने जगमोहन को देखा।
“वहीं जो प्लेन में तुम्हें मिला और अभी तक तुम्हारे साथ चिपका पड़ा है।”
“ओह! तुम लोग जानते हो उसे?”
“जब वक्त आयेगा, उसे भी अच्छी तरह जान लेंगे। पहले तुम्हें तो जान लें।” जगमोहन ने उसे घूरा।
“तुम दोनों तो झगड़े के मूड में हो।” लियू हौले से हंसी –“और मैं तो दोस्ती के मूड में, तुम लोगों के पास आई थी।”
“तुम हमारी दोस्ती के काबिल नहीं हो।”
लियू ने पुनः जगमोहन को देखा।
“तो तुम ही समझा दो कि दोस्ती के काबिल कैसे बना जाता है।”
“तुमने हमारे हाथों से जो माइक्रोफिल्म छीनी, वह हमें वापस कर दो।” जगमोहन ने उसे घूरा।
“बच्चों जैसी बात मत करो। यह काम मैंने, तुम लोगों के लिए नहीं किया।” लियू ने दोनों को देखा –“करोड़ों रुपया चाहते हो तो मुझसे बात कर लेना। यह तो तुम जानते ही होगे कि मैं किस कमरे मैं ठहरी हूं।”
“फिल्म लेने के लिए हमारे पास और भी रास्ते हैं।” जगमोहन ने सख्त स्वर में कहा।
“सब रास्ते बेकार हैं।” लियू मुस्कराकर उठ खड़ी हुई –“क्योंकि माइक्रोफिल्म मेरे पास है ही नहीं। सोच लो। अगर करोड़ों रुपयों की इच्छा हो तो मुझसे बात कर लेना।”
“तुम –।” देवराज चौहान का स्वर सपाट था –“तब तक हिन्दुस्तान की सरहदों से बाहर नहीं निकल सकती। जब तक कि वह माइक्रोफिल्म हमारे पास नहीं आ जाती।”
“बेकार है देवराज चौहान ।” लियू ने व्यंग्य से कहा –“ऐसी बातें न तो मुझ पर असर करती हैं और न ही मुझ पर लागू होती हैं। लियू है नाम मेरा। मेरे रास्ते में न ही आना तो ठीक रहेगा।”
जगमोहन के दांत भिंच गये।
देवराज चौहान के चेहरे पर कोई भाव न आया।
“मेरे ख्याल में तुम जो कहने आई थी। वह, कह लिया है। हमारी बात भी सुन ली होगी।” देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था –“अच्छा यही होगा कि, यहां से जाओ। हमारी मुलाकात अब फुर्सत में होगी।”
लियू की आंखों में सख्ती उभरी। होंठों पर मुस्कान ही रही। वह शांत भाव से पलटी और उनके देखते ही देखते डायनिंग हॉल से बाहर निकलती चली गई।
☐☐☐
जुगल किशोर, तब से ही लियू के उखड़े चेहरे को देख रहा था, जब से उसने कमरे में प्रवेश किया था। कभी चेहरे पर गुस्सा नजर आने लगता तो कभी व्याकुलता।
देवराज चौहान ने तगड़ा ही झाड़ू फेर दिया जो कूल्हे टिक नहीं पा रहे इसके।
“क्या हुआ?” जुगल किशोर ने लापरवाही से पूछा।
लियू ने जुगल किशोर को इस तरह देखा जैसे उसकी मौजूदगी का एहसास अभी-अभी हुआ हो।
“तुम तो देवराज चौहान से मिलने को कह रही थी। मिली उससे?” जुगल किशोर ने पूछा।
लियू ने कोई जवाब नहीं दिया।
अब साली को थोड़ा सा उधेड़ना पड़ेगा, तभी कुछ बोलेगी। मेरे सामने थोड़ा सा मुंह खोले तो, इसकी गर्दन पकड़ में आयेगी। मुझे प्राइवेट जासूस समझती रहेगी तो, मेरे से कोई भी बात नहीं करेगी। प्राइवेट जासूस की छाप को इसके दिमाग से थोड़ा सा हल्का करना पड़ेगा।
“देवराज चौहान ने तुम पर हाथ वगैरह उठाया है तो बता दो। मैं उसकी –।”
“ऐसी कोई बात नहीं।” लियू कह उठी।
“तो फिर क्या बात है। जब से तुम देवराज चौहान से मिलकर आई हो। ठीक नहीं लग रही।”
लियू ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं।
सोच रही है कि मुंह खोलूं या न खोलूं। मैंने तो बड़ी-बड़ी चीजें खोल दी हैं। यह मुंह भला क्या है?
“देवराज चौहान कहीं डकैती का प्रोग्राम तो नहीं बना रहा?” एकाएक जुगल किशोर ने होंठ सिकोड़कर पूछा।
“क्या मतलब?” लियू ने उसे देखा।
“मैं यह पूछ रहा हूं कि देवराज चौहान ने बातों के दौरान ऐसा कोई जिक्र किया हो, या उसकी बातों से झलका हो कि वह कहीं डकैती डालने का प्रोग्राम बना रहा हो। ऐसा हो तो मुझे बता देना। बड़ी मेहरबानी होगी।”
“ताकि उसे पकड़ सको।”
“नहीं।” जुगल किशोर ने गहरी सांस लेकर सिर हिलाया –“उसे पकड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं। दरअसल मुम्बई का वो खुशीराम पाटिल है ना, नाम तो तुमने उसका सुना ही होगा।”
लियू ने ऐसा कोई नाम नहीं सुना था।
“नहीं सुना –कमाल है। मुम्बई अण्डरवर्ल्ड के खुशीराम पाटिल का नाम नहीं सुना।” जुगल किशोर हैरानी से बोला –“वो तो तुम्हारे नेपाल तक फैला हुआ है। नेपाल अण्डरवर्ल्ड के लोग भी उसे जानते हैं। तुमने नहीं सुना?”
जुगल किशोर ने ऐसे कहा, जैसे देश के प्रधानमंत्री का जिक्र कर रहा हो।
“शायद –।” लियू को कहना पड़ा –“सुना है।”
“हां। मैं उसी खुशीराम पाटिल की बात कर रहा हूँ।” जुगल किशोर फौरन सिर हिलाकर कह उठा –“वो ही खुशीराम पाटिल मेरी जान का ग्राहक बना हुआ है। सच बात तो यह है कि मुम्बई में मैं प्राइवेट जासूसी का धंधा करता हूं। लेकिन चलता नहीं है काम। वो तो मैंने तुम पर रौब डालने को कहा कि काम के बोझ की वजह से छुट्टियां मनाने जा रहा हूं। दरअसल बात ये है कि खुशीराम पाटिल का, मटके का धंधा है। थोड़ी–बहुत जान-पहचान की वजह से ‘मटका’ उधार खेलता रहा। जब मुझ पर पूरे बीस लाख का उधार हो गया तो खुशीराम पाटिल के आदमी मेरे पीछे हो गये। हालत यह हो गई कि सुबह-सुबह की फ्लाइट से मुम्बई से मुझे खिसकना पड़ा और तब तक मेरी जान फंसी रहेगी, जब तक मैं खुशीराम पाटिल का बीस लाख वापस नहीं कर देता। इसलिए पूछ रहा था कि अगर देवराज चौहान कहीं डकैती कर रहा हो तो बताओ। ताकि जब वह डकैती कर ले तो मौका पाकर, डकैती के माल पर हाथ साफ करके, खुशीराम पाटिल को बीस लाख देकर, अपनी जान बचा सकूं। कब तक भागूंगा मुम्बई से। धंधा वहीं। घर वहीं। सब कुछ वहीं। कभी तो वापस जाना ही पड़ेगा तो वो मेरी गर्दन काट देगा।”
लियू की निगाह, जुगल किशोर पर टिक चुकी थी।
धीरे-धीरे शीशे में उतरेगी।
“सच कह रहे हो।”
“इतनी बड़ी बात बता दी और पूछ रही हो कि सच कह रहा हूं।” जुगल किशोर ने उसे घूरा।
लियू उसे देखती रही।
“देख क्या रही हो। विश्वास नहीं आ रहा क्या?” जुगल किशोर ने उखड़े स्वर में कहा –“वैसे मैं बुरा आदमी नहीं हूं। यह तो खुशीराम पाटिल के डर से मुम्बई से भागना पड़ा। मटके की वजह से सारी गड़बड़ हो गई। नहीं तो रोटी-पानी चल ही रहा था।”
लियू ने उसे देखते हुए सिर हिलाया।
“तो तुम देवराज चौहान की डकैती पर, हाथ मारना चाहते हो। ताकि बीस लाख का इन्तजाम कर सको।” लियू बोली।
“हां। अभी-अभी यही ख्याल आया था।”
“हूं।” लियू के चेहरे पर सोच के भाव उभरे –“बीस लाख पाने के लिए क्या कर सकते हो?”
अब उतरी शीशे में। पकड़ लो। पकड़ लो।
“अजीब हो तुम भी।” जुगल किशोर का स्वर तीखा हो गया –“मैं तुम्हें बता रहा हूँ कि खुशीराम पाटिल मेरी जान के पीछे है। उसके आदमी मुझे ढूंढ रहे होंगे और तुम पूछ रही हो कि बीस लाख के लिए मैं क्या कर सकता हूं। वो बीस लाख का सवाल नहीं है। मेरी जिन्दगी और मौत का सवाल है। अपनी जिन्दगी बचाने के लिए इंसान क्या नहीं कर सकता। अभी खुशीराम पाटिल को जानती नहीं, तभी ऐसी बात कर रही हो।”
“मतलब कि सब कुछ कर सकते हो।”
“हां। सब कुछ कर सकता हूं।” थके स्वर में जुगल किशोर कह उठा।
“ठीक है। मैं तुम्हें बीस लाख दूंगी।” लियू फैसले वाले स्वर में कह उठी।
आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे। दबा लो। दबा लो।
“तुम-तुम दोगी?” जुगल किशोर अपने चेहरे पर अजीब से भाव ले आया।
“हां। बदले में तुम्हें, मेरा काम करना होगा। पूरी तरह, पूरा काम करना होगा।”
“बोलो, क्या काम है?”
“सोच लो कि।”
“सोच लिया। दो सौ बार सोच लिया। मुझे सिर्फ बीस लाख चाहिये। तुम काम बोलो।” लियू को बातों में फंसते पाकर जुगल किशोर ने बेचैनी भरे स्वर में कहा।
लियू ने हौले से सिर हिलाया। फिर फोन के पास पहुंचकर नम्बर मिलाया। बात की।
“हैलो।” लियू बोली –“वो सामान मैं, दिल्ली में नहीं ले सकती।”
“क्यों?”
“खतरा है। वो सामान मैं श्रीनगर में लूंगी। वहीं पर मुझे डिलीवर करना।”
“सॉरी लियू।” दूसरी तरफ से आवाज आई –“तुम मेरी हद तो जानती ही हो। मैं दिल्ली से बाहर नहीं जा सकता।”
“लेकिन मुझे उस सामान की डिलीवरी श्रीनगर में ही चाहिये।”
“यह मुझसे नहीं हो सकेगा। मैं श्रीनगर नहीं जा सकता। तुम इस बारे में फांग से बात कर लो।”
“फांग? फांग पर मैं इतना बड़ा विश्वास नहीं कर सकती।” लियू का स्वर सख्त हो गया।
“तो फिर कोई और रास्ता सोच लो। चिं–हूं कहां है?”
“वो मुम्बई में है। मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि उसे बुलाया जाये। मैंने आज रात ही श्रीनगर के लिए फ्लाइट लेनी है। दिल्ली में ज्यादा देर रहना मुसीबत मोल लेना है।”
“इसका रास्ता तो अब तुम्हें ही निकालना है। मैं दिल्ली के किसी भी कोने में तुम्हें डिलीवरी दे सकता हूं।”
“मैं तुम्हें फिर फोन करूंगी।” लियू ने सोच भरे स्वर में कहा और रिसीवर रख दिया।
मुर्गी का अण्डा रास्ते में ही फंस गया है।
“क्या बात है, मुझे बताओ तुम परेशान क्यों हो?” जुगल किशोर फौरन बोला –“मैं तुम्हारे किसी काम आ सकता हूं?”
“नहीं।” लियू ने उसे देखा।
“लेकिन तुम तो मुझे बीस लाख देने को कह रही थी।” जुगल किशोर ने फौरन कहा।
“वो काम दूसरा है।”
“वो ही काम बोलो।”
लियू ने उसे देखा फिर शांत स्वर में कह उठी।
“देवराज चौहान मेरे पीछे पड़ा है।”
“क्यों?”
“ज्यादा सवाल मत पूछो।” लियू ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैं चाहती हूं, तुम देवराज चौहान को मेरे पीछे से हटा दो।”
“कैसे? उसे गोली मार कर।”
“जैसे भी। आज रात में श्रीनगर के लिए फ्लाइट पकड़ रही हूँ। मैं नहीं चाहती कि उन्हें मालूम हो, मैं किधर जा रही हूं। वे दोनों मेरा पीछा ही न कर सकें।”
“मामूली काम है। हो जायेगा।” जुगल किशोर ने लापरवाही भरे स्वर में कहा।
“सोच लो।”
“इन कामों में मैं माहिर हूं। जासूसी का धंधा करता हूं। मामूली बात नहीं है। काम हो गया समझो।”
“गुड।”
“बीस लाख निकालो।”
“बीस लाख?”
“तुम रात की फ्लाइट से श्रीनगर जा रही हो। वहां से जाने कहां रहना हो। कहां ढूंढूगा तुम्हें। बीस लाख मेरे हवाले कर दो। ताकि मैं आराम से देवराज चौहान को दूसरी तरफ का रास्ता दिखा सकूँ।”
“मैं अपना आदमी तुम्हारे साथ कर देती हूं। काम होने पर वह तुम्हें बीस लाख –।”
“नहीं। मैं तुम्हारे अलावा किसी पर विश्वास नहीं कर सकता।” जुगल किशोर ने सिर हिलाकर कहा –“बीस लाख दे दोगी तो काम शुरू कर दूंगा। नहीं तो, तुम्हारा डियर जुगल चला।”
लियू ने उसे घूरी।
“पैसे लेने के बाद तुमने काम नहीं किया तो?”
जुगल किशोर का दिल धड़का।
बीस लाख देने जा रही है साली। कस लो। कस लो।
“क्या बात करती हो। मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं। चोर हूं मैं। कुछ तो सोच कर बोला करो। इस वक्त खुशीराम पाटिल के बीस लाख न देने होते तो, मुफ्त में तुम्हारा यह काम कर देता। रहने दो, किसी और से –।”
“डियर जुगल।” लियू एकाएक मीठे स्वर में कह उठी।
पूरी तरह कस गई अब तो।
जुगल किशोर ने उखड़ी नजरों से, लियू को देखा।
“तुम बहुत अच्छे इंसान हो। मैं तुम पर पूरा भरोसा करती हूं।” लियू मीठे स्वर में कह उठी।
भरोसा गया कुएं में। बीस लाख को हवा लगा।
जुगल किशोर चेहरे पर उखेड़े भाव समेटे रहा।
लियू ने फोन पर, सामने वाले कमरे में मौजूद फांग से बात की।
“फांग, मुझे बीस लाख रुपये फौरन चाहिए।”
“कोई खास जरूरत पड़ गई क्या?”
“हां। कब तक इन्तजाम कर सकते हो?”
“डेढ़-दो घंटे तो लगेंगे।”
“जल्दी इन्तजाम करो और मुझे खबर दो।” कहने के साथ ही लियू ने रिसीवर रख दिया।
मार लिया मैदान। बीस लाख आ रहे हैं, उसके लिए।
चेहरा शांत ही रहा जुगल किशोर का।
“दो घंटे में बीस लाख आ जायेंगे।” लियू ने मुस्करा कर जुगल किशोर को देखा –“अब देवराज चौहान के बारे में सोचो कि उसका इन्तजाम कैसे करोगे?”
“वो काम तो मैं चुटकियों में कर दूंगा। पहले वहां चलो।”
“कहां?”
“वहां।” जुगल किशोर ने इशारा किया।
लियू ने उस तरफ देखा। वहां बेड था।
लियू मुस्कराई।
“उठा कर ले चलूं?”
“यह आइडिया बढ़िया है।” लियू एकाएक खिलखिला उठी।
जुगल किशोर ने आगे बढ़कर, उसे बाँहों में उठा लिया। ठग की ठगी के ऊपर ठगी जारी थी।
☐☐☐
करीब ढाई घंटे बाद शाम को चार बजे फोन आया।
“हैलो।” लियू ने बात की।
“मैं अपने कमरे में हूं। बीस लाख मेरे पास हैं।” फांग की आवाज आई।
लियू ने जुगल किशोर पर नजर मारी फिर कह उठी।
“यहीं ले आओ।” कहने के साथ ही लियू ने रिसीवर रखा और आगे बढ़कर दरवाजे की सिटकनी हटा दी।
लियू के पलटते ही जुगल किशोर बोला।
“क्या हुआ?”
“फांग आ रहा है?” लियू ने शांत स्वर में कहा।
“फांग?”
“मेरी पहचान वाला जो बीस लाख लेने –।”
“समझा । तो यूं कहो, मेरा बीस लाख आ रहा है।” जुगल किशोर का दिल धड़का।
साला फांग आकर यह न कह दे कि किसी ने चाकू दिखाकर, बीस लाख लूट लिया है।
“तुम देवराज चौहान को मेरे पीछे से कैसे हटाओगे?” लियू ने जुगल किशोर को देखा।
“मामूली काम है।”
“मैं उसी मामूली काम के बारे में पूछ रही हूं, जिसके लिए तुम बीस लाख ले रहे हो।” लियू उसे ही देखे जा रही थी।
“ऐसे कामों के बारे में बताया नहीं जाता, निपटाया जाता है।”
जुगल किशोर बेहद शान वाले अन्दाज में मुस्कराया –“मेरा काम मुझ पर ही रहने दो। एक बात बताओ, ताकि उसी हिसाब से मैं, इस काम को कर सकूँ।”
“क्या?”
तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई।
दोनों की निगाह उस तरफ गई।
“आ जाओ। खुला है।” लियू ने कहा।
दरवाजा खुला और फांग ने भीतर प्रवेश किया। उसके कंधे पर छोटा सा बैग लटका था। उसने जुगल किशोर को गहरी निगाहों से देखा। जबकि सरसरी तौर पर उसे देखने के बाद जुगल किशोर की निगाह उसके कंधे पर लटक रहे बैग पर जा टिकी।
बैग तो छोटा लगता है। इसमें बीस लाख आ गया होगा? आ गया होगा पांच-पांच सौ की सिर्फ चालीस गड्डियों की तो बात है। चालीस गड्डियां तो इस बैग में आ ही गई होंगी।
“यह फांग है।” लियू ने परिचय कराया।
“वही जो बीस लाख लेकर आया ।” जुगल किशोर ने जल्दी से कहा।
“हां और फांग यह जुगल किशोर है।” लियू हवा देने वाले ढंग में बोली –“बढ़िया आदमी है।”
“वो तो लग ही रहा है।” फांग ने बेहद शांत स्वर में कहा।
साले, बीस लाख को तो हवा ही नहीं लगा रहे।
“देवराज चौहान अभी तक मेरे पीछे है।” लियू ने कहा –“जुगल डियर उससे मेरा पीछा छुड़ायेगा और मैं आज रात की फ्लाइट से श्रीनगर जा रही हूं।”
“आज रात?” फांग ने उसे देखा।
“हां। अब मुझे फौरन यहां से निकल जाना चाहिये।” लियू का स्वर गम्भीर था।
फांग ने सिर हिलाया फिर जुगल किशोर को देखा।
“तो बीस लाख इसलिए दिया जा रहा है कि देवराज चौहान से, यह तुम्हारा पीछा छुड़ायेंगे।”
“हां।” लियू ने भी जुगल किशोर को देखा।
“इस काम के लिए बीस लाख ज्यादा लगता है।” फांग ने होंठ सिकोड़े।
कमीना, भरी थाली को लात मार रहा है।
“ज्यादा हो, कम हो। तुम बीस लाख इसके हवाले करो। बात तय हो चुकी है।”
फांग ने शांत भाव से उस बैग को टेबल पर रख दिया।
जुगल किशोर चाहकर भी, बैग की तरफ न बढ़ा। अपनी जगह खड़ा रहा। अब उसे फांग की मौजूदगी ठीक नहीं लग रही थी। उसका कमरे में खड़ा रहना उसे खल रहा था।
“फांग, मैं आज रात की फ्लाइट से श्रीनगर जा रही हूं।”
“सुन चुका हूं।”
“जुगल डियर, मेरा जाने का रास्ता साफ करेगा। समझ गये।”
“बिल्कुल समझ गया।”
जुगल किशोर का तो पूरा ध्यान बैग में मौजूद बीस लाख पर था। उनकी बातों पर नहीं था।
फांग ने गहरी निगाहों से उसे देखते हुए लियू से कहा।
“मैं चलूं?”
“हां।”
“कोई खास बात?”
“खास बात तुम समझ ही चुके हो। जाओ।”
फांग बाहर निकल गया।
“इसे चाय-पानी तो पिला देती।” जुगल किशोर ने लापरवाही से कहा।
“बैग चैक कर लो। बीस लाख ही है ना, इसमें?” लियू के होंठों पर मुस्कान उभरी।
जुगल किशोर अपने पर काबू रखे, बेहद शांत भाव से आगे बढ़ा। बीस लाख हाथ में आया सोचकर उसकी टांगों में हल्का-हल्का कम्पन हो रहा था। दिल तो कर रहा था कि कुर्सी पर बैठ जाये। लेकिन किसी तरह हिम्मत बांधे खड़ा रहा। बैग खोल कर देखा।
बीस में से पांच, पांच सौ की गड्डियां थीं। सौ की गड्डियों की भी झलक मिली।
“देख लो। पूरा बीस ही है ना?”
दो-चार लाख कम भी हो, तो उसके पल्ले से क्या जाता है।
“पूरा ही होगा।” अच्छी तरह बैग में झांकने के बाद जुगल किशोर, अपनी हालत पर काबू पाये बैग की जिप बंद करता हुआ बोला –“तुमने उसे बीस कहा था तो वह पन्द्रह क्यों लायेगा?”
“अब बताओ, तुम देवराज चौहान से कैसे मेरा पीछा छुड़ाओगे?”
जुगल किशोर चेहरे पर ऐसे भाव ले आया जैसे बहुत बड़ा काम करने जा रहा हो।
“देवराज चौहान को झटका देना आसान काम नहीं। अभी तुम उसे ठीक तरह नहीं जानती।” जुगल किशोर ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा –“लेकिन मेरे लिये यह काम कठिन नहीं है। लेकिन आसानी से यह मामला तभी निपट सकता है, जब तुम मुझे मामले का थोड़ा सा अंश खुलकर बताओ।”
“क्या मतलब?”
“मतलब कि यह बताओ देवराज चौहान तुम्हारे पीछे क्यों है। कुछ तो मालूम हो कि उसी तरह का डण्डा घुमाकर उन दोनों को तुम्हारे पीछे से हटा सकूँ । चिन्ता मत करो। काम तो हो ही जायेगा।”
लियू ने जुगल किशोर की आंखों में झांका।
“यह मालूम भी हो गया तो देवराज चौहान को नहीं संभाल सकते।”
“अगर संभाल लिया तो बीस लाख और दोगी?” जुगल किशोर हंसा।
लियू कई पलों तक खामोश रही फिर कह उठी।
“मैंने देवराज चौहान से कुछ छीना था। वह उसे वापस पाने के लिए मेरे पीछे है।”
“हूं। तो यह बात है।” जुगल किशोर ने सिर हिलाकर सिगरेट सुलगाई –“ऐसा है तो देवराज चौहान तुम्हारे आसपास क्यों फिर रहा है। तुम्हें घेरने की कोशिश क्यों नहीं करता?”
“शायद इसलिए कि वह जानता है, जो चीज उसे चाहिये, इस वक्त वह मेरे पास नहीं है। इसलिए मुझे घेरने का कोई फायदा नहीं है। लेकिन वह यह भी जानता है कि देर-सवेर में वह चीज जहां भी है, मेरे पास आयेगी। इसलिए मुझ पर नजर रखे हुए है।” कहते हुए लियू के दांत भिंच गये।
“समझा।” जुगल किशोर ने कश लिया –“वह चीज छोटी है या बड़ी?”
“क्यों?”
“तुम बताओ तो।”
“छोटी –।”
“कितनी छोटी?”
“इतनी कि मुट्ठी में बंद हो जाये।”
“अब ठीक है।” जुगल किशोर जैसे अपने से कह उठा –“बात बन जायेगी।”
“क्या मतलब?”
“मतलब भी समझ में आ जायेगा। पहले देखना पड़ेगा कि देवराज चौहान होटल में कहां है।” जुगल किशोर सोच भरे स्वर में कह उठा –“तुमने बताया कि वह तुमसे वह चीज लेना चाहता है।”
लियू उसे देखती रही।
“मैं देवराज चौहान से मिलूंगा और उसे बताऊंगा कि कोई, ताज पैलैस होटल में, रात के दस बजे तुम्हें वह चीज देगा। फला-फलां जगह पर। पहले ही जाकर उस जगह को घेर लो।”
“तुम्हारी यह बात मान जायेगा?” लियू की आंखें सिकुड़ी।
“अगर मैंने उसे यह खबर सीधे-सीधे दे दी तो वह नहीं मानेगा। लेकिन वह जानता होगा कि मैं तुम्हारे साथ हूं। प्लेन में उसने हम दोनों को एक साथ तो पक्का देखा होगा।” जुगल किशोर कह रहा था –“मैं उसके सामने यह कहानी रखूगा कि तुम किसी से फोन पर बात कर रही थी और मैंने सब कुछ सुन लिया। अब सवाल यह पैदा होता है कि मैं उसे क्यों बताऊंगा तो नोटों के लिए। इस खबर को बताने की, उसके आगे कीमत रखूंगा और उससे कीमत लूंगा भी। ऐसे में वह शक नहीं कर सकेगा।”
लियू मुस्कराई।
“समझदार हो।”
“कुछ-कुछ।”
“इस पर भी वह मेरे पीछे से न हटा तो?”
"हटेगा। मेरी गारंटी।”
“मैं फांग को होटल के बाहर खड़ा होने को कह रही हूं।” लियू का स्वर सख्त हुआ।
“क्यों?”
“मैं जानना चाहूंगी कि तुम्हारी बात सुनने के बाद देवराज चौहान और जगमोहन यहां से गये या नहीं?”
“तुम मेरी काबिलियत पर शक कर रही हो।” जुगल किशोर ने नाराजगी से कहा।
“नहीं। तुम्हारी काबिलियत पर मुझे पूरा भरोसा है। लेकिन मैं पूरी तरह विश्वास कर लेना चाहती हूं कि बीस लाख खर्च करने के बाद भी देवराज चौहान से मेरा पीछा छूटा कि नहीं।”
“ठीक है।” जुगल किशोर ने फौरन कहा –“अपने तौर पर तुम जो भी करो। मुझे क्या। मैं जरा देखने जा रहा हूं कि देवराज चौहान होटल में किस कमरे में है।”
“यह काम तो मैं अभी कर देती हूं।”
“कैसे?”
लियू ने रिसीवर उठाकर, फांग का नम्बर मिलाया।
“फांग –।” लियू बोली।
“हां।”
“मालूम करके बताओ देवराज चौहान होटल में किस कमरे में ठहरा हुआ है।” कहने के साथ ही लियू ने रिसीवर रख दिया।
“तुम्हारे पास तो सब बातों का इन्तजाम है।” जुगल किशोर ने हवा देने वाले अन्दाज में कहा।
लियू कुछ नहीं बोली।
“तुम्हारे पास फांग जैसा आदमी है तो, तुमने देवराज चौहान का इन्तजाम उससे क्यों नहीं करवाया।”
“वह देवराज चौहान को ठीक तरह से जानता नहीं है। चोट खा सकता है। और तुम जानते हो।”
“हां। यह बात तो है।” जुगल किशोर की निगाह बैग की तरफ उठी –“जाने क्यों मुझे तुम बहुत अच्छी लगी हो। मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ना चाहता। लेकिन इन बीस लाख को लेकर मुम्बई में पाटिल के पास पहुंचना भी जरूरी है। तुम मुझे अपना कोई फोन नम्बर दे दो। ताकि हम बाद में मिल सके।”
“जरूर। एक क्या दो-दो नम्बर दे दूंगी।” लियू मुस्कराई।
सब समझ रहा हूं। मुझे घिस्सा देती है। मैंने कौन सा तेरे से मिलना है। इधर बीस लाख मेरे हाथ में और उधर मैं ऐसा हवा हुआ कि गायब।
“तुम –।” जुगल किशोर कुछ कहने लगा कि फोन की घंटी बज उठी।
लियू ने आगे बढ़कर रिसीवर उठाया।
“हैलो।”
“देवराज चौहान फर्स्ट फ्लोर के चौदह नम्बर कमरे में है।”
“अब तुम सुनो।” लियू जुगल किशोर पर निगाह मारकर कह उठी –“होटल के बाहर जाकर खड़े हो जाओ। देवराज चौहान और जगमोहन जब होटल से निकलें तो आकर मुझे खबर करना।”
“क्या वह बाहर जायेंगे?”
“मैं नहीं जानती। यही देखना है मैंने।” कहने के साथ ही लियू ने रिसीवर रख दिया।
“पता चला?”
“रूम नम्बर चौदह। इसी फ्लोर पर।”
“ठीक है।” जुगल किशोर ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया फिर आगे बढ़कर रिसीवर उठाया। रिसेप्शन से रूम नम्बर चौदह से बात कराने को कहा। रिसेप्शन से रूम नम्बर चौदह की लाइन मिली। बात हुई।
“हैलो।” जुगल किशोर के कानों ने जगमोहन की आवाज को स्पष्ट पहचाना।
“मैं देवराज चौहान से बात करना चाहता हूं।” लियू के चेहरे पर निगाह मारते, जुगल किशोर बोला।
“कमीने तू।” दूसरी तरफ मौजूद जगमोहन ने उसकी आवाज पहचान ली थी –“तू मुझसे बात कर।”
जुगल किशोर मन ही मन सकपकाया। चेहरा चौकस ही रखा।
“हैलो –हां देवराज चौहान । मुझे पहचाना नहीं होगा तुमने। नाम सुनकर पहचान जाओगे । जुगल किशोर नाम है मेरा। मुम्बई का नम्बर वन प्राइवेट जासूस । बच गये थे, मेरे हाथों से।....खैर छोड़ो, वो बीती बातें हैं। इस वक्त मैं तुम्हें बहुत बड़ा फायदा पहुंचा सकता हूं।” कहने के साथ ही जुगल किशोर की निगाह लियू की तरफ भी उठ जाती थी।
लियू एकटक उसे देख रही थी।
“तुम इस वक्त लियू नाम की लड़की के पीछे –मुझे सब मालूम है। जासूस हूं। कोठे का वेटर नहीं। फालतू बात मत कर। जो कह रहा हूं उसे सुन।”
“ओ चिपकू।” दूसरी तरफ से जगमोहन की अजीब सी आवाज आई –“खोपड़ी हिल गई क्या तेरी?”
“मेरी बात सुनो देवराज चौहान फालतू बात मत बोलो। मैं जल्दी में हूं।” जुगल किशोर सुपर अन्दाज में कह उठा –“जो चीज तुम लियू से लेना चाहते हो, वह आज रात उसके हाथ आने वाली है। जगह और वक्त मुझे मालूम है। जानना चाहते हो?”
“लगता है वो तेरे साथ चिपकी खड़ी है।” जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
“ऐसे नहीं बताऊंगा। फोकट में खबर नहीं देता। नोट-माल- रोकड़ा कैश देता है तो बात कर।”
“बंडल दूंगा तेरे को, नोटों के, उठाई गिरे।” जगमोहन का कड़वा स्वर कानों में पड़ा।
“कितना देता है?”
“आ टोकरा भरकर रखा है तेरे लिये।”
“दस हजार, पागल हो गया है। डेढ़ लाख लूंगा। देता है तो ठीक। नहीं तो...ठीक है इस बारे में आकर बात कर लेता हूं। पांच मिनट में तेरे पास पहुंच रहा हूं। नोट तैयार रख।” कहने के साथ ही जुगल किशोर ने रिसीवर रखा और लियू को देखा।
लियू की निगाह उस पर थी।
“तुम चिन्ता मत करो। देवराज चौहान को शीशे में उतार कर दूसरी तरफ का रास्ता दिखाना मेरा काम रहा। समझो देवराज चौहान से तुम्हारा पीछा छूट गया।” जुगल किशोर मुस्कराया।
“ऐसा होने पर ही तुम बीस लाख के मालिक बनोगे।”
“वो तो मैं बन ही गया समझो। आया अभी देवराज चौहान पर पॉलिश फेर कर।”
“एक बात और ध्यान में रखना कि तुम एयरपोर्ट तक मेरे साथ रहोगे। ताकि –।”
“मैं तो जिन्दगी भर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं। यह तो मजबूरी है कि हम अलग हो रहे हैं।”
साली, तेरी तो मैं दोबारा शक्ल भी न देखूं।
“मैं आया अभी देवराज चौहान को निपटा कर। तुम बैग और बीस लाख का ध्यान रखना।” कहने के साथ ही जुगल किशोर पलटा और तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ता चला गया।
जुगल किशोर के निकल जाने के बाद, लियू कई पलों तक खड़ी रही। फिर फोन पर बात की।
“मेरी आज रात की फ्लाइट में श्रीनगर के लिए सीट बुक करा दो। जल्दी से जल्दी।”
“साढ़े ग्यारह बजे की फ्लाइट मिल सकती है।”
“ठीक है। और तुम मुझे एयरपोर्ट पर ही मिलना। वह सामान दे देना।
“ठीक है।”
लियू ने रिसीवर रख दिया।
☐☐☐
जुगल किशोर के भीतर प्रवेश करते ही जगमोहन ने भीतर से सिटकनी लगा ली। जुगल किशोर ने बारी-बारी दोनों को देखा। देवराज चौहान पीछे वाली खुली खिड़की की चौखट से टेक लगाये शांत निगाहों से, उसे देख रहा था।
“जब तू फोन पर बात कर रहा था। वो तेरे पास खड़ी थी।” देवराज चौहान बोला।
“हां।” जुगल किशोर कुछ सतर्क सा नजर आने लगा था।
“तेरा चिपकूपना।” जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा –“तेरे को ले डूबेगा।”
जुगल किशोर सोच रहा था कि बात को कैसे शुरू करे।
“तेरे को क्या काम करने को कहा था और तू कौन से झाड़ू उखाड़ रहा है।”
“काम तो मैं तुम लोगों का ही कर रहा था।”
“ऐसा है तो बता क्या किया?” जगमोहन ने उसे घूरा।
“मेरे कुछ करने से पहले ही उस काम पर तुम लोगों ने पानी फेर लिया। वह दोपहर को तुम लोगों से जाने क्या बात करके आई कि पूरी की पूरी उखड़ चुकी थी।”
“उखड़ गई तो तू चिपकू कब काम आयेगा। चिपक के जोड़ देता।”
“शायद मैंने ही थोड़ा-थोड़ा जोड़ा है उसे।”
“बता उसका कौन-सा हिस्सा जोड़ कर पहले जैसा कर दिया।” जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर उसे देखा।
जुगल किशोर ने देवराज चौहान और जगमोहन पर निगाह मारी।
“अब हालात ऐसे हो गये हैं कि हम लोगों को एक-दूसरे की बातें मान कर चलना पड़ेगा। तभी कुछ फायदा होगा। नहीं तो दोनों को नुकसान और वह मौज करती खिसक जायेगी।”
“सीधी बात करो।” देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।
“पहली बात तो यह है कि वह आज रात की फ्लाइट से श्रीनगर जा रही है।”
देवराज चौहान जगमोहन की आंखें मिलीं।
“वह किसी से मिली?” देवराज चौहान ने पूछा।
“नहीं।”
“किसी ने उसे कुछ दिया। उसके कमरे पर, कोई आदमी लिफाफा या पैकेट दे गया हो?”
“नहीं। ऐसा कुछ नहीं है। तुम लोग उससे माइक्रोफिल्म पाने की फिराक में हो। लेकिन इस वक्त ऐसा कुछ भी उसके पास नहीं है। लेकिन फोन पर वह किसी से सामान नाम का जिक्र कर रही थी। लियू कह रही थी कि मुझे यह सामान श्रीनगर में दिया जाये। लेकिन दूसरी तरफ वाला इस बात के लिए राजी नहीं हो रहा था। बात किसी फैसले पर पहुंचने से पहले ही खत्म हो गई थी।”
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“और तुम फोन पर क्या उल्टा-पुल्टा कह रहे थे। जबकि लियू तब तुम्हारे पास खड़ी थी।” जगमोहन बोला।
“वहीं आ रहा हूं।”
“जरा जल्दी आ जाओ।”
“लियू मुझे अपना हमदर्द समझते हुए कह उठी कि तुम लोग उससे कोई चीज छीनना चाहते हो, जिसे कि उसने तुम लोगों से ही छीना था। वह तुम लोगों से कुछ खतरा महसूस कर रही है। और मुझे परिचय के मुताबिक मुम्बई का तगड़ा प्राइवेट जासूस समझ रही है। उसने मुझे ऑफर दी है कि अगर मैं तुम दोनों को उसके पीछे से हटा दूं तो वह मुझे बीस लाख देकर, श्रीनगर की फ्लाइट पकड़ लेगी।”
“वो तेरे को बीस रुपये नहीं देगी।”
“बीस लाख मेरे को देने के लिए आ चुका है और उसके दर्शन करके ही मैं यहां आ रहा हूं।” जुगल किशोर ने कहा –“होटल के बाहर लियू का साथी फांग मौजूद है। यह देखने के लिए कि तुम दोनों होटल से जाते हो या नहीं। क्योंकि मैं कहकर आया कि बहुत जल्द तुम लोग होटल से निकलोगे। क्योंकि मैंने तुम लोगों को टिप दी है कि ताज पैलेस होटल में रात के नौ बजे, लियू किसी से मिलेगी जो उसे माइक्रोफिल्म देगा। और तुम वहां अपनी घेराबंदी के लिए पहले ही यहां से चल दोगे।”
“यह बात लियू को मालूम है।”
“हां। टिप वाली कहानी उसके सामने ही तो तैयार की है।”
जगमोहन के चेहरे पर डण्डा मारने वाले भाव उभरे।
“वाह मेरे चिपके हुए लाल।” जगमोहन खा जाने वाले स्वर में कह उठा –“तेरे कहने पर हम यहां से चले जायें। तू अपना बीस लाख समेटे और जन्म दिन मनाने चल पड़े। और वो तेरी हीरोइन श्रीनगर की वादियों में जाकर खो जाये। तू तो कौवे से भी ज्यादा सयाना निकला।”
“ये बात नहीं–मैं–।”
“तेरे को मैं सिर से पांव तक पहले ही समझ गया था कि तू हरामी नम्बर वन है। अब यह हरामीपना हमसे भी। दो घंटे में ही तेरे पंख इतने बड़े हो गये कि –।”
जुगल किशोर ने देवराज चौहान को देखा।
“मुझे बात पूरी तो करने दो।”
“करो।”
“यह सब तो प्लान है लियू को दिखाने के लिए। हकीकत में तो यह होगा कि तुम लोग अपने चेहरे बदल कर एयरपोर्ट पहुंच जाओगे। श्रीनगर जाने वाली जिस फ्लाइट से लियू जा रही है। उस फ्लाइट की पैसेंजर लिस्ट से जान लोगे कि वह इसी फ्लाइट से जा रही है। तुम दोनों भी फ्लाइट में टिकटें बुक करा लेना। चेहरों पर मेकअप होगा। ऐसे में लियू तुम लोगों को कहां पहचानेगी।”
“लेकिन असल बात तो रह गई।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा –“हमें माइक्रोफिल्म चाहिये जो लियू या लियू के किसी आदमी के पास है। जब तक उसके बारे में पता नहीं चलता तब तक –।”
“यह तो लियू के साथ रहने से ही पता चलेगा। हो सकता है प्लेन में चढ़ने से पहले ही उसका आदमी उस तक माइक्रोफिल्म पहुंचा दे या फिर श्रीनगर एयरपोर्ट पर ही कोई फिल्म लिए उसका इन्तजार कर रहा हो। इस मामले में, मैं तुम लोगों की और सहायता करता। लेकिन लियू का इरादा नहीं है यहां से आगे मुझे साथ रखने का। अब यह तुम लोगों पर है कि लियू पर कैसे नजर रखते हो।”
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
“यह सारी बात है जो मैं कहना चाहता था। लियू ने श्रीनगर जाना ही है। उसे जबरदस्ती रोकने का भी कोई फायदा नहीं। क्योंकि फिल्म के बारे में क्या खबर है। मालूम नहीं। ऐसे नाजुक वक्त में कोई झगड़ा करना पसन्द नहीं करेगा। क्योंकि उसे फिल्म बचानी है। तुम लोगों को फिल्म हासिल करनी है। चुप्पी से काम होने का यही एक रास्ता है कि लियू पर खामोशी से नजर रखी जाये। जब मौका मिले, मुंडी पकड़ लो।”
“और तुम इस मामले में रुखसत ले रहे हो।” जगमोहन बोला।
“नहीं। लियू चाहती है कि मैं एयरपोर्ट तक उसके साथ रहूं। मतलब कि जब उसका प्लेन टेक ऑफ करेगा, मेरी ड्यूटी खत्म।”
“इतनी वफादारी।” जगमोहन व्यंग्य से कह उठा।
“यह वफादारी उसके साथ नहीं, उसके दिए बीस लाख के नोटों के साथ है।” जुगल किशोर मुस्कराया।
देवराज चौहान ने कश लिया और जुगल किशोर को देखकर बोला।
“इसने जो भी बात कही है। वह सही है। उस पर चला जाये बुरा नहीं। बशर्ते कि इसने सच कहा हो।”
“मैंने सच कहा है। जुगल किशोर के होंठों से निकला –“पैंतीस हजारी की कसम।”
“पैंतीस हजारी की कसम –यह कौन है? जगमोहन के होंठ सिकुड़े।
“मेरी कार। फिएट कार। पैंतीस हजार की है। लेकिन उसे मैं दिलोजान से चाहता हूं।”
“साले तू हमें गोली देता है। मैं तेरी –।”
“यह सच कह रहा है जगमोहन।” देवराज चौहान ने टोका।
“क्या?”
“हां। इसने अब तक तो सच ही कहा है। आगे कोई नया गुल खिला दे तो, वह दूसरी बात है।”
“देवराज चौहान भाई।” जुगल किशोर हाथ जोड़कर मुंह लटका कर कह उठा –“मैंने भला क्या गुल खिलाना है। अब तो मैंने उसके साथ एयरपोर्ट जाना है। उसे टा-टा, बाय-बाय, नॉट सी यू अगेन कहकर, अपना बीस लाख संभालते हुए, अपने रास्ते पर चल पड़ना है। मेरा तो काम खत्म।”
☐☐☐
पैंतालीस मिनट के बाद जुगल किशोर की वापसी, लियू के पास हुई।
“क्या हुआ?” लियू उसे देखते ही बोली।
“होना क्या है।” जुगल किशोर उखड़े स्वर में बोला –“सारा तेल निकल गया।”
“तेल? यू मीन ऑयल।”
“हां, पूरा बह गया।”
“लेकिन वह तो गाड़ी के इंजन में होता है। तुम्हारे पास कहां से?”
“ओ मैं उस तेल की बात नहीं कर रहा। दिमाग के तेल की बात कर रहा हूं। जिससे दिमाग चलता है। तुम क्या समझती हो देवराज चौहान से बात करनी आसान है।” जुगल किशोर ने गहरी सांस लेकर कहा।
“लेकिन हुआ क्या?”
“मैं सड़क छाप जासूस तो हूं नहीं जो आकर कहूंगा कि काम मैं मामला निपटा कर ही लौटता हूं।”
“वैरी गुड। तो काम हो गया। देवराज चौहान गया?” लियू के होंठ सिकुड़े।
“हां। कह तो रहा था जाने को। मालूम नहीं गया है या खाली-खाली कह रहा।”
तभी फोन की घंटी बजी। लियू ने रिसीवर उठाया।
“हैलो।”
“लियू।” फांग की आवाज कानों में पड़ी –“अभी-अभी देवराज चौहान और उसका साथी होटल छोड़कर गये हैं। होटल के स्टैण्ड से ही उन्होंने टैक्सी ली, ताज पैलेस होटल के लिए।”
“गुड।”
“अब तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?”
“वही। रात की साढ़े ग्यारह बजे वाली फ्लाइट से श्रीनगर जा रही हूं। तब तक देवराज चौहान ताज पैलेस होटल में मेरी तलाश करता रहेगा।”
“और वह सामान भी उससे ले लोगी?”
“हां। सामान एयरपोर्ट पर ही मेरे हवाले कर दिया जायेगा।”
तो माइक्रोफिल्म एयरपोर्ट पर मिलेगी इसे?
“मेरे लायक कोई काम?”
“जब तक मैं दिल्ली छोड़ न दूं। मुझ पर नजर रखना। वैसे जुगल किशोर मेरे साथ रहेगा।”
“वह तुम्हारे साथ जा रहा है?”
“नहीं।” कहने के साथ ही लियू ने रिसीवर रख दिया।
जुगल किशोर मुस्कराता हुआ उसे देख रहा था।
“तुमने तो कमाल ही कर दिया।” लियू खुशी से बोली।
“मैं कमाल ही करता हूं।”
“यू आर ग्रेट डियर जुगल।”
“वक्त कितना हुआ है?” एकाएक जुगल किशोर ने पूछा।
“वक्त?” कहते हुए लियू ने कलाई पर बंधी घड़ी में देखा –“शाम के छ: बजने वाले हैं।”
“यहां से कितने बजे चलना है?”
“नौ बजे ठीक रहेगा।”
“मतलब कि हमें अभी तीन घंटे बिताने हैं।” कहने के साथ ही जुगल किशोर उस बैग के पास पहुंचा जिसमें बीस लाख मौजूद थे। बैग पर ताला लगा पाकर ठिठका और लियू को देखा –“लॉक तुमने लगाया है?”
“हाँ।”
“क्यों?”
“बीस लाख जैसी बड़ी रकम को, इस तरह खुले में नहीं रखते। खासतौर से होटल में।” लियू ने मुस्करा कर कहा –“इसकी चाबी मेरी फ्लाइट जाने के बाद फांग तुम्हें दे देगा।”
“फांग –फांग ने अगर न दी तो?”
“तो बैग को काट लेना। दो मिनट लगेंगे। चिन्ता क्यों करते हो।”
“ठीक है।” जुगल किशोर ने बैग को थपथपाया –“आओ तीन घंटे तो बिता लें।”
“बिता लें –कहां?”
“वहां।” जुगल किशोर ने बेड की तरफ इशारा किया।
☐☐☐
जुगल किशोर और लियू रात को दस बजे एयरपोर्ट पहुंचे। रात के इस वक्त लग रहा था जैसे एयरपोर्ट का दिन अभी शुरू हो रहा हो। हर तरफ गहमा-गहमी थी।
इस वक्त कश्मीर के लिए सीधी फ्लाइट न के बराबर ही होती थी। परन्तु दिल्ली एयरपोर्ट से रवाना होने वाली यह इन्टरनेशनल फ्लाइट थी, जो कि श्रीनगर होते हुए टोकियो पहुंचनी थी।
लियू के हाथ में अपने सामान का छोटा सा बैग था। और जुगल किशोर ने उस बैग को कंधे पर लटका रखा था, जिसमें बीस लाख मौजूद था। वह बैग को बहुत संभाल कर रख रहा था। बीस लाख पास होने पर भी उसे वह पचास हजार खटक रहे थे जो लियू के बैग में उसने देखे थे।
आगे बढ़ते हुए दोनों एयरपोर्ट की लॉबी में, कुर्सियों के पास रुके। इस दौरान लियू की निगाहें उस भीड़ में किसी को खोजने की कोशिश कर रही थीं। जुगल किशोर जानता था कि लियू को अपने उस साथी की तलाश है जिससे प्लेन की टिकट और सामान के नाम पर माइक्रोफिल्म लेनी थी।
तभी लियू को अपना वह साथी नजर आया जो कुछ दूर था और उसने इशारे से लियू को कैंटीन की तरफ आने को कहा और पलट कर एक तरफ बढ़ गया।
“जुगल डियर।” लियू अपना बैग कुर्सी पर रखती बोली –“तुम यहीं बैठो मैं अभी आई।”
तू वापस न भी आ तो मेरा क्या जाता है। मेरा काम तो हो चुका।
“ठीक है।” कहने के साथ ही जुगल किशोर कुर्सी पर बैठा।
लियू आगे बढ़कर भीड़ में गुम होती चली गई।
जुगल किशोर ने बीस लाख वाला बैग अपनी टांगों के पास रखा और उस पर पांव रखने के पश्चात बगल की कुर्सी पर पड़ा लियू का बैग उठाकर अपनी गोद में रख लिया। इस दौरान उसकी पैनी निगाह फांग की तलाश में थी। लियू के कहे मुताबिक उसे आसपास ही होना चाहिये। परन्तु वह नजरों में नहीं आ रहा था। निगाहों को बराबर दौड़ाते गोद में रखे लियू के बैग पर धीरे-धीरे उसकी उंगलियां हिल रही थी।
बैग की जिप के अंत में ताला नहीं लगा था। धीरे-धीरे करते उसने थोड़ी सी जिप खोली और हाथ बैग के भीतर इस तरह डाल दिया कि देखने वालों को मालूम न हो कि वह हाथ, बैग के भीतर है। बैग के भीतर तेजी से हरकत करती उसकी उंगलियों को तलाश थी, नोटों की गड्डियों की।
तभी उंगलियां ठिठकीं।
फिर उंगलियों की पकड़ नोटों की गड्डी पर कस गई। बेहद सावधानी से धीरे-धीरे गड्डी फंसी हथेली बाहर आई और पल भर में गड्डी, कमीज के भीतर डाल ली। जो पेट के पास जाकर अटक गई। जुगल किशोर ने हाथ ऊपर किया। उंगलियां सिर के बालों में फेरी। फिर लापरवाही से हाथ को बैग पर रखे, इधर-उधर देखने लगा। दूसरे ही पल हाथ पुनः बैग में था। और उंगलियां नोटों की दूसरी गड्डी की तलाश करने लगीं।
आसपास जाती-गुजरती भीड़ में से, पचास साल का दाढ़ी–मूंछे लगाए, छड़ी थामे एक व्यक्ति निकल कर उसकी बगल वाली सीट पर आ बैठा।
जुगल किशोर पल भर के लिए ठिठका। उस व्यक्ति को देखा। सब कुछ ठीक-ठाक पाकर उसकी उंगलियां पुनः चलने लग दिमाग में सतर्कता परन्तु चेहरे पर लापरवाही। लियू के बैग में मौजूद पूरे के पूरे पचास हजार को साफ करने का इरादा बना लिया था उसने । दूसरे ही पल उसकी हरकत करती उंगलियां ठिठकीं। फिर उसकी उंगलियां नोटों की दूसरी गड्डी के गिर्द लिपट गई। दस पहले, दस यह बीस तो आया।
“छोड़ दे इन गिरी हुई हरकतों को चिपकू।” बगल में बैठे व्यक्ति के होंठों से निकला।
किशोर के शरीर में हल्का सा कम्पन हुआ फिर ठीक हो गया।
“जगमोहन।” जुगल किशोर ने उसकी तरफ बिना देखे कहा।
“बीस लाख कमा लिया। फिर भी पचास हजार से नीयत नहीं हटी। निकाले जा रहा है।”
“बीस लाख संभालकर रखने के लिए है।” जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा –“यह पचास हजार तो रास्ते के चाय-पानी के लिए हैं। इसके साथ ही जुगल किशोर का हाथ गड्डी में दबाये बैग से बाहर निकला और पहली गड्डी की तरह यह गड्डी भी कमीज में, पहली वाली के पास पहुंच गई। इस बार जुगल किशोर ने हाथ बैग के भीतर नहीं डाला। बल्कि थोड़ी सी खुली उसकी जिप बंद कर दी।
“मेरी खबर पर अब तो विश्वास हो गया कि लियू श्रीनगर जा रही है।” जुगल किशोर सामने देखता हुआ बोला।
“कौन प्लेन से?”
“साढ़े ग्यारह बजे कोई फ्लाइट जाती है उसमें।”
“खबर पक्की है?”
“फेवीकोल से भी पक्की। एक और खबर सुनाकर तेरे दिल को धड़का दूं।”
“बोलता जा। पूछा मत कर।”
“प्लेन पर चढ़ने से पहले लियू को माइक्रोफिल्म मिल जायेगी।” जुगल किशोर सिर खुजलाते हुए इधर-उधर देखते हुए हौले से होंठ हिला रहा था –“इस वक्त शायद वह फिल्म लेने ही गई हो।”
“देवराज चौहान उस पर नजर रख रहा है।” जगमोहन ने कहा।
“मैं वायदे के मुताबिक तुम्हारा दो लाख का काम तो नहीं कर सका। माइक्रोफिल्म लाकर तुम लोगों के हवाले करने का। लेकिन माइक्रोफिल्म की खबर देकर, एक लाख का तो काम कर दिया।”
“तो –।”
“लाख रुपया मुझे दो। जो हममें पहले ही तय हो चुका है।”
“वो ठीक सामने देख रहा है। खाकी कपड़ों वाला। जानता है उसे वह कौन है?” जगमोहन कड़वे स्वर में बोला।
“हाँ। कांस्टेबल है। क्यों?”
“उसे जाकर बता दूं कि तेरे पास बैग में बीस लाख रुपया नगद है तो वह तेरे को पकड़ कर बिठा लेगा। गिरफ्तार कर लेगा। या फिर एयरपोर्ट के बाहर अंधेरे कोने में ले जाकर, बीस में से दस तो ले ही लेगा।”
“कांस्टेबल का डर दिखाकर तू मेरा लाख रुपया मार रहा है।” जुगल किशोर ने गहरी सांस लेकर कहा –“लेकिन यह मत भूल कि बाजी अभी मेरे हाथ में है।”
“बता –कैसे–?”
“मैं लियू को लोगों की प्लानिंग बता सकता हूं। वह –।”
“चिपकू। तू लाख रुपए के लिए इतनी घटिया हरकत करेगा।” जगमोहन हड़बड़ा कर जल्दी से बोला।
“जब तू कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता।”
“मान गया कि तू मेरे से बड़ा है।”
“क्या बड़ा है?”
“कमीना।”
“वो तो बोत पहले से हूं। तेरे की आज पता चला।” जुगल किशोर ने व्यंग्य से कहा।
“पहले गले मिलकर मुलाकात नहीं हुई थी। इसलिए मालूम नहीं हुआ। अब मालूम हो गया।”
“लाख रुपया निकाल।”
“चिपकू। मेरे से बड़े कमीने। इस वक्त तू बीस लाख और लियू के बैग में से खिसकाई गड्डियों से ही तसल्ली कर ले। क्योंकि यहां पर मेरे पास लाख रुपया नहीं है। बेकार में अपने या मेरे कपड़े फाड़ने का कोई फायदा नहीं। दोनों ही नंगे होंगे। अगली मुलाकात में दे दूंगा।” जगमोहन ने बला टालने वाले ढंग में कहा।
“लाख रुपया।”
“हाँ।”
“पक्का।”
“मेरी जुबान का जोड़ फेवीकोल से भी ज्यादा मजबूत है। मैं स्पेशल कोल इस्तेमाल करता हूं।”
“लगता तो नहीं।”
“खींचकर देख ले। टूट जायेगी।”
“क्या टूट जायेगी?”
“मेरी बात, लेकिन जुबान नहीं टूटेगी। मजबूत जोड़ है।”
जुगल किशोर ने पहली बार गर्दन घुमाकर, जगमोहन के दाढ़ी लगे चेहरे को देखा।
“खींच रहा है मुझे।” जुगल किशोर की आवाज में तीखापन आ गया।
“लाख रुपया चाहिये?”
“वही तो मांग रहा हूं।”
“अगली बार जब मिले, ले लेना। इस वक्त लेन-देन नहीं हो सकता। तू भी समझता है।”
“कहां मुलाकात होगी तेरे से?”
“ये तो मेरे को भी नहीं पता। इसी तरह यूं ही हो जायेगी। चलता हूँ अब।”
जुगल किशोर को लाख रुपये की होश कहां। वह तो बीस लाख के नशे में डूबा था। कोई और वक्त होता तो लाख लिए बिना जगमोहन का पीछा न छोड़ता।
“मेरा लाख देना न भूलना।”
“चिन्ता मत कर। दूध में धोकर लाख का चेक अगली मुलाकात में दे दूँगा।”
“चेक?”
तब तक जगमोहन आगे बढ़ चुका था।
“लिया-दिया कुछ है नहीं। खामख्वाह वक्त खराब कर गया।” जुगल किशोर बड़बड़ाया –“अभी तक मैं बैग का पूरा का पूरा पचास हजार साफ कर चुका होता।” कहने के साथ ही जुगल किशोर ने बैग की थोड़ी सी जिप पुनः खोली और हाथ भीतर डाल दिया। हाथ की उंगलियां पुनः कमाल दिखाने लगीं।
पांच मिनट में ही तीन और गड्डियां निकाल कर अपनी कमीज में डाली और जिप बंद कर दी।
यह पचास हजार भी अपना हो गया। साली जब बैग से गड्डियां गायब देखेगी तो माथे का ढोल पीट लेगी और याद करेगी कि कोई डियर जुगल मिला था।
लियू आई।
“बहुत देर लगा दी।”
“लग गई।” लियू बैठते हुए बोली –“तुम तो बोर हो गए होंगे जुगल डियर।”
“ऐसी कोई बात नहीं। तुम्हारे इंतजार में कोई बोर हो सकता है।” जुगल किशोर ने बेहद मीठे स्वर में कहा।
“तुम बहुत अच्छे हो। हमारी मुलाकात प्लेन में हुई थी और थोड़ा सा वक्त, साथ बिताने के बाद हम एयरपोर्ट पर ही जुदा हो रहे हैं। मेरा दिल नहीं चाहता तुमसे अलग होने का।”
जल्दी दफा हो।
“लियू डार्लिंग।” जुगल किशोर ने उसके हाथ पर हाथ रखा –“मुझे पूरा विश्वास है कि भगवान अगली बार हमें फिर एयरपोर्ट पर या प्लेन में ही मिलायेगा।”
“जरूर। तब हम पूरा एक महीना साथ रहेंगे। तुम मेरे बहुत काम आये हो। यह बीस लाख तो तुम्हारी मेहनत का है। कुछ मेरी तरफ से भी।” कहते हुए लियू ने अपना बैग खोलकर, बीच में हाथ डाला।
जुगल किशोर सकपका उठा। सत्यानाश। यह क्या देगी। इसका बैग तो मैंने ही खाली कर दिया है। बेटे भाग ले। जुगल किशोर ने जल्दी से पाँवों के नीचे दबा रखा, बीस लाख वाला बैग संभाला।
“यह लो।” लियू ने बैग में से दस हजार की गड्डी निकालकर उसकी तरफ बढ़ाई –“मेरी तरफ से।”
गड्डी देखते ही जुगल किशोर सकपका उठा।
तो बैग में एक और बची पड़ी थी।
“इसकी क्या जरूरत थी।” जुगल किशोर के होंठों से निकला।
“रख लो। मेरी तरफ से।”
“अब तुम प्यार से दे रही हो तो मना करके तुम्हारा दिल नहीं तोड़ना चाहता।” कहने के साथ ही जुगल किशोर ने गड्डी थामी और पैंट की जेब में डाल ली –“तुम मुझे बहुत याद आओगी।”
“हम फिर मिलेंगे।” लियू मुस्कराकर उठ खड़ी हुई।
“जा रही हो।” जुगल किशोर भी मुंह लटकाकर खड़ा हुआ।
“हां। ज्यादा वक्त नहीं रहा। क्लियरेंस लेनी है। कुछ वक्त लगेगा। बाय डियर जुगल।”
“बाय लियू डार्लिंग।”
दोनों गले मिले। तबीयत से मिले।
फिर हाथ हिलाते हुए लियू काउंटर की तरफ बढ़ती चली गई। जुगल किशोर का दिल जोरों से धड़क रहा था कि खामख्वाह ही बीस लाख साठ हजार रुपया झाड़ लिया। इतनी बड़ी रकम। उसने नहीं सोचा था कि अनजाने में ही वह इतनी बड़ी रकम का मालिक बन जायेगा।
बैग को कंधे पर लटकाये जुगल किशोर कुछ आगे आ गया था और लियू को देखता रहा जो कुछ देर पश्चात, चैकिंग के बाद एयरपोर्ट के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गई थी।
किस्सा खत्म। चल भाई जुगल किशोर। हो गई बल्ले-बल्ले।
“चलो।”
जुगल किशोर फौरन पलटा तो पास में फांग को खड़े पाया।
“तुम?” बरबस ही उसके होंठों से निकला।
“क्यों, लियू ने बताया नहीं कि मैंने, तुमसे मिलना है।” फांग शांत स्वर में मुस्कराया।
“हां। हां, वह कह रही थी कि तुमने बैग की चाबी मुझे देनी है। लाओ।”
“देता हूं। लेकिन पहले वह गड्डियां दे दो, जो तुमने लियू के बैग में से निकाली थी।”
“बैग में से।” जुगल किशोर सकपकाया।
“हां। जिन्हें तुमने कमीज के भीतर डाल रखा है।”
जुगल किशोर की निगाह, कमीज की तरफ गई, जो गड्डियों की वजह से, पैंट के पास से उभरी हुई थी।
“कितना निकाला?”
“पचास हजार।”
“वो मुझे दे दो। और बैग की चाबी ले लो।” फांग मुस्कराया।
“मुझे नहीं चाहिये चाबी।” जुगल किशोर ने उसे घूरा –“कुछ नहीं मिलेगा तुम्हें।”
“अक्ल से काम लो। चाबी मेरे पास है। बैग तुम्हारे पास है। मैंने किसी पुलिसमैन को पकड़ कर कह दिया कि तुम मेरा बैग चुराने की कोशिश में हो तो, बच नहीं सकोगे। मैं साबित कर दूंगा कि चाबी मेरे पास है। बैग मेरा है। मैं विदेशी हूं। पुलिस हर हाल में मेरी बात मानेगी। बोलो क्या इरादा है।”
“लियू को पता चल गया कि तुमने।”
“इस वक्त तुम नोटों की बात करो। बीस लाख ले लिया यही बहुत है। यह पचास हजार मुझे दो।”
उसकी बात मानने के अलावा जुगल किशोर के पास कोई और रास्ता नहीं था। मरता क्या न करता। खिसकाये पचास हजार निकालकर, फांग को देने पड़े। फांग ने गड्डियों को जेब में डाला। जुगल किशोर मरी हुई हालत में उन गड्डियों को उसकी जेबों में जाते देखता रहा।
“पहले पैंट मेरी लूज हो रही थी। अब ठीक है। टाइट हो गई।” फांग मुस्कराया।
“लेकिन मेरी तो ढीली हो गई।”
“बकवास मत करो। बीस लाख मिला है तुम्हें। लियू के कहने पर रुपया, मैं ही लाया था। मुझे कुछ तो इनाम दो।”
“इनाम?” जुगल किशोर ने मुंह बनाकर उसे देखा।
“हां।” फांग उसे चाबी थमाते हुए बोला –“बैग खोलो और दस- बीस हजार, जो इच्छा हो दे दो।”
“दस-बीस हजार।”
“बीस लाख हाथ में हैं और दस-बीस हजार को रो रहे हो। इंसान हो, क्या हो।”
जुगल किशोर ने हथेली पर पड़ी चाबी को देखा। लाखों रुपया पास होने की वजह से वह फांग के ज्यादा मुँह नहीं लगना चाहता था। और वह इतना भी समझ रहा था कि बैग खोला तो दस-बीस तो क्या पूरे पचास हजार जायेंगे। क्योंकि भीतर पांच-पांच सौ की गड्डियां थी।
“जल्दी कर। मुझे जाना है।”
जुगल किशोर ने फौरन फैसला किया और लियू द्वारा दी गई इनाम वाली, दस हजार की गड्डी जेब से निकाली और उसकी हथेली पर रख दी।
“यह गड्डी कहां से आई?” फांग गड्डी थामते हुए कह उठा।
“चलता बन। बहुत हो गया।” जुगल किशोर कड़वे स्वर में कह उठा।
“नाराजगी नहीं। इतना ही बहुत है।” फांग मुस्कराया और छठवीं हजार वाली गड्डी को जेब में डालता हुआ पलटा और तेजी से आगे बढ़ता चला गया।
“उल्लू का पट्ठा।” जुगल किशोर बड़बड़ा उठा। फिर उसने आसपास देखा और बाहर की तरफ बढ़ गया।
एयरपोर्ट की इमारत से बाहर निकलते ही टैक्सी हाजिर हुई तो कनॉट प्लेस के लिए कह कर भीतर बैठ गया। टैक्सी आगे बढ़ गई। खुली खिड़की से ठण्डी हवा भीतर आई। जुगल किशोर तो पहले से ही खुद को हवा में उड़ता महसूस कर रहा था। पास में रखे बैग पर रह-रह कर प्यार से हाथ फेर रहा था।
तब रात का एक बज चुका था। जब टैक्सी कनॉट प्लेस के एरिया में प्रविष्ट हुई। जुगल किशोर पुश्त पर सिर टिकाए आंखें बंद किए, बैग पर हाथ रखे बैठा था।
तभी टैक्सी रुकी।
जुगल किशोर ने आंखें खोली तो पास ही पुलिस वालों को और पुलिस बैरियर देखकर चौंका। दो-तीन पुलिस वाले टैक्सी के पास आ पहुंचे थे।
“यह क्या हो रहा है?” जुगल किशोर के होंठों से सूखा सा स्वर निकला। बीस लाख हाथ से जाता दिखाई देने लगा।
“पुलिस चैकिंग है साब।” टैक्सी ड्राइवर बोला और इंजन बंद कर दिया।
पुलिस वाले टैक्सी के बिलकुल करीब आ गये।
एक ने खिड़की से सिर लगाकर भीतर झांका। जुगल किशोर को देखा। फिर पास पड़े बैग को।
“मुझे जल्दी है।” जुगल किशोर ने सूखे स्वर में कहा –“मैं।”
“कहां से आ रहे हैं आप?” पुलिसमैन ने पूछा।
“ए –एयरपोर्ट से।”
“कहीं बाहर से आये हैं?”
“नहीं किसी को छोड़ने गया था।”
पुलिसमैन ने बैग को देखा।
“बैग साथ लेकर।”
“बैग। ह–हां मेरा है क्यों?”
“कोई खास बात नहीं। यह रोज रात की तरह रूटीन चैकिंग है। बैग खोल कर दिखाइये।”
“क्यों?” जुगल किशोर के होंठों से निकला।
“यह पुलिस चैकिंग है।” पुलिसमैन कुछ उखड़ा –“कम सुनते हैं आप। बैग खोलिये।”
“लेकिन बैग में तो कुछ नहीं है।”
“दिखाने में कोई हर्ज है। खोलो।”
जुगल किशोर समझ गया कि फंसा। उसने देखा तीन पुलिसमैन टैक्सी के बाहर थे। तीन दस कदम दूर बैरियर के पास थे। पुलिस कार भी वहां खड़ी थी। यानी के भागने का कोई चांस नहीं। बैग में पड़े बीस लाख कहाँ से आये, इस बात का जवाब वह तो क्या, पुरखे भी नहीं दे सकते।
यह सोचते हुए कितना लम्बा नपेगा। जेब से चाबी निकाल कर बैग का ताला खोला। हाथ की उंगलियां हौले-हौले कांप रही थीं। ताला खुला। हटाया। जिप खोली और टैक्सी के दरवाजे की खिड़की से चेहरा टिकाए पुलिसमैन को देखने लगा।
पुलिसमैन ने दोनों हाथ भीतर किए। बैग को पूरी तरह खोला। तेजी से उसके हाथ चले।
जुगल किशोर ने सीट की पुश्त से सिर टिकाकर आंखें बंद कर ली।
हो गया काम? कमा ले बीस लाख। और ले मजे। कर ले बल्ले-बल्ले। हसीना के पहलू में बैठने का बहुत शौक है तुझे। और ले-ले झूले।
“यह क्या है?” पुलिसमैन का तेज स्वर उसके कानों में पड़ा।
जुगल किशोर ने आंखें नहीं खोली। दो पल के लिए वह सुकून ले लेना चाहता था।
तभी पुलिस के जूतों की आवाज फिर पुलिसमैन का स्वर कानों में पड़ा।
“ए। टैक्सी आगे बढ़ाओ। चलो।”
अगले ही पल टैक्सी स्टार्ट हुई।
जुगल किशोर ने हड़बड़ाकर आंखें खोली।
टैक्सी आगे बढ़ गई।
जुगल किशोर ने जल्दी से पास पड़े बैग को देखा फिर पागलों की तरह उसमें हाथ मारने लगा। मारता रहा। हाथ मारता रहा मारता रहा फिर ऐसे रुक गये जैसे किसी ने उसका स्विच ऑफ कर दिया हो। अंधेरे में –स्ट्रीट लाइट की रोशनी में आंखें फाड़े वह खुले बैग को देखे जा रहा था।
समझ नहीं पा रहा था कि लियू को गालियां दे या धन्यवाद करे?
बैग में मैग्जीन, शैम्पू, साबुन केस, मोड़कर डाली हुई अखबारें वगैरह थी। जब वह देवराज चौहान से बात करने गया था, लियू ने तब यह कमाल दिखाकर, ताला लगा दिया होगा। तभी तो चाबी उसे नहीं दी। मतलब कि एयरपोर्ट पर जो बैग रखवाली के लिए उसे दे गई थी, वो बीस लाख उस वक्त उसमें था? उसने जो पांच गड्डियां निकाली थीं, वो इत्तेफाक से सौ की ही निकली थीं। जिन्हें फांग झटक कर ले गया था। जो दान लियू ने उसे दिया था, वो भी नहीं बचा।
लियू ने तगड़ा झटका दिया था उसे।
लियू झटका न देती तो अब पुलिस ने, उससे भी तगड़ा झटका दे देना था। बैग में बीस लाख होता तो, उसके पास कोई जवाब नहीं था कि, बीस लाख कहां से आया? उसकी गर्दन पुलिस के हाथ में होती।
लियू ने ठीक किया या गलत?
पुलिस से बच गया? यह अच्छा रहा या बुरा?
जुगल किशोर के पास किसी बात का जवाब नहीं था। वह सवाल-जवाब के पचड़े में नहीं पड़ना चाहता था। असल मुद्दा तो यह था कि वह खाली का खाली रह गया था।
जय सिया राम।
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