शाम हो गयी लेकिन कर्नल ज़रग़ाम वापस न आया। सोफ़िया की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। डिक्सन बार-बार ज़रग़ाम के बारे में पूछता था। एक-आध बार उसने यह भी कहा कि शायद अब ज़रगी अपने दोस्तों से घबराने लगा है। अगर यह बात थी तो उसने साफ़-साफ़ क्यों नहीं लिख दिया।
सोफ़िया इस बौखलाहट में यह भी भूल गयी कि इमरान ने उसे कुछ निर्देश दिये थे जिनमें से एक यह भी था कि अनवर और आरिफ़ मौजूदा हालात के बारे में मेहमानों से कोई बात न करें।
सोफ़िया अनवर और आरिफ़ से यह बताना भूल गयी।
और फिर जिस वक़्त आरिफ़ ने यह मूर्खता की तो सोफ़िया वहाँ मौजूद नहीं थी। वह बावर्चीख़ाने में बावर्चियों का हाथ बटा रही थी और इमरान बातें बना रहा था।
डिक्सन वग़ैरह बरामदे में थे। अनवर बारतोश से रफ़ेल की तस्वीरों के बारे में गुफ़्तगू कर रहा था। आरिफ़ डिक्सन की लड़की मार्था को अपने ऐल्बम दिखा रहा था और डिक्सन दूर पहाड़ियों की चोटियों में शाम की लाली की रंगीन लहरें देख रहा था। अचानक उसने आरिफ़ की तरफ़ मुड़ कर कहा—
‘ज़रगी से ऐसी उम्मीद नहीं थी!’
आरिफ़ उस वक़्त मौज में था। उसमें न जाने क्यों उन लोगों के लिए अपनाइयत का एहसास बड़ी शिद्दत से पैदा हो गया। हो सकता है कि इसकी वजह कर्नल की शोख़ और ख़ूबसूरत लड़की मार्था रही हो।
‘कर्नल साहब! यह एक बड़ा गहरा राज़ है!’ आरिफ़ ने ऐल्बम बन्द करते हुए कहा।
‘राज़...’ कर्नल डिक्सन बड़बड़ा कर उसे घूरने लगा।
‘जी हाँ...वो तक़रीबन बीस दिन से सख़्त परेशान थे। इस दौरान हम लोग रात-रात भर जागते रहे हैं। उन्हें किसी का ख़ौफ़ था। वह कहते थे कि मैं किसी वक़्त भी किसी हादसे का शिकार हो सकता हूँ। और न जाने क्यों वे उसे राज़ ही रखना चाहते थे!’
‘बड़ी अजीब बात है। तुम लोग इस पर भी इतने इत्मीनान से बैठे हो...’ कर्नल उछल कर खड़ा होता हुआ बोला।
बारतोश और अनवर उन्हें घूरने लगे। अनवर ने शायद उनकी ग़ुफ़्तगू सुन ली थी। इसीलिए वह आरिफ़ को खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था। हालाँकि उसे भी इस बात को मेहमानों से छुपाने की ताकीद नहीं की थी लेकिन उसे कम-से-कम इसका एहसास था कि ख़ुद कर्नल ज़रग़ाम ही उसे राज़ रखना चाहता है।
‘ सोफ़िया कहाँ है?’ कर्नल डिक्सन ने आरिफ़ से कहा। ‘शायद किचन में!’
कर्नल डिक्सन ने किचन की राह ली। बाक़ी लोग वहीं बैठे रहे।
सोफ़िया फ्राइंग पैन में कुछ तल रही थी। इमरान उसके
क़रीब ख़ामोश खड़ा था।
‘सूफ़ी!’ कर्नल डिक्सन ने कहा, ‘यह क्या मामला है।’
‘ओह आप!’ सोफ़िया चौंक पड़ी। ‘यहाँ तो बहुत गर्मी है, मैं अभी आती हूँ।’
‘कोई बात नहीं, यह बताओ ज़रग़ी का क्या मामला है?’
इमरान ने उल्लुओं की तरह अपने आँखें घुमायीं।
‘मुझे ख़ुद फ़िक्र है कि डैडी कहाँ चले गये!’ सोफ़िया ने कहा।
‘झूठ मत बोलो। अभी मुझे आरिफ़ ने बताया है।’
‘ओह...वो...’ सोफ़िया थूक निगल कर रह गयी। फिर उसने इमरान की तरफ़ देखा।
‘बात यह है कर्नल साहब! ये सारी बातें बड़ी अजीब हैं।’ इमरान ने कहा।
‘ऐसी सूरत में भी जब ज़रग़ाम इस तरह से ग़ायब हो गया है?’ कर्नल ने सवाल किया।
‘वे अक्सर यही कर बैठते हैं। कई-कई दिन घर से ग़ायब रहते हैं! कोई ख़ास बात नहीं।’ इमरान बोला।
‘मैं मुतमईन नहीं हुआ।’
‘आह...कनफ़्यूशियस ने भी एक बार यही कहा था।’
कर्नल ने उसे ग़ुस्से-भरी नज़रों से देखा और सोफ़िया से बोला, ‘जल्दी आना। मैं बरामदे में तुम्हारा इन्तज़ार करूँगा!’
डिक्सन चला गया।
‘बड़ी मुसीबत है।’ सोफ़िया बड़बड़ायी, ‘मैं क्या करूँ?’
‘यह मुसीबत तुमने ख़ुद ही मोल ली है। आरिफ़ को मना क्यों नहीं किया था?’ इमरान बोला।
‘इन्हीं उलझनों में भूल गयी थी।’
‘मैंने तुम्हें इत्मीनान दिलाया था, फिर कैसी उलझन। यहाँ तक बता दिया कि कर्नल को मैंने ही एक महफ़ूज़ जगह पर भिजवा दिया है।’
‘लेकिन यह उलझन क्या कम थी कि मेहमानों को क्या बताऊँगी!’
‘क्या मेहमान इस इत्तला के बग़ैर मर जाते? तुम्हारे दोनों क़िजन मुझे सख़्त नापसन्द हैं, समझीं!’
‘अब मैं क्या करूँ! आरिफ़ बिलकुल उल्लू है!’
‘ख़ैर...’ इमरान कुछ सोचने लगा। फिर उसने कहा, ‘जल्दी करो...मैं नहीं चाहता कि अब मेरे बारे में मेहमानों से कुछ कहा जाये।’
दोनों बरामदे में आये। यहाँ अनवर उर्दू में आरिफ़ की ख़ासी मरम्मत कर चुका था और अब वह ख़ामोश बैठा था।
‘मुझे पूरे वाक़यात बताओ!’ कर्नल डिक्सन ने सोफ़िया से कहा।
‘पूरे वाक़यात का इल्म कर्नल के अलावा और किसी को नहीं।’ इमरान बोला।
‘किस बात का ख़ौफ़ था उसे?’ डिक्सन ने पूछा।
‘वे लकड़ी के एक बन्दर से बुरी तरह डरे हुए थे।’
‘क्या बकवास है?’
‘इसीलिए मैं कहता था कि वाक़यात न पूछिए...मुझे कर्नल साहब की ज़ेहनी हालत पर शक है।’ इमरान बोला।
‘इसके बावजूद तुम लोगों ने उसे तन्हा घर से बाहर निकलने दिया।’
‘उनकी ज़ेहनी हालत बिलकुल ठीक थी।’ आरिफ़ ने कहा।
‘तू फिर बकवास किये जा रहा है।’अनवर ने उसे उर्दू में डाँटा।
कर्नल डिक्सन अनवर को घूरने लगा।
‘तुम लोग बड़े अजीब लग रहे हो।’ उसने कहा।
‘ये दोनों वाक़ई बड़े अजीब हैं।’ इमरान ने मुस्कुरा कर कहा, ‘आज ये दिन भर एयरगन से मक्खियाँ मारते रहे हैं!’
मार्था इस वाक्य पर अनायास हँस पड़ी।
‘उनसे ज़्यादा अजीब तुम हो।’ कर्नल ने व्यंग्य से कहा।
‘जी हाँ!’ इमरान ने धीरे से सिर हिला कर कहा, ‘मक्खियाँ मारने का मशविरा मैंने ही दिया था।’
‘देखिए! मैं बताती हूँ!’ सोफ़िया ने कहा, ‘मुझे हालात की ज़्यादा जानकारी नहीं...डैडी को एक दिन डाक से एक पार्सल मिला जिसे किसी अनजान आदमी ने भेजा था। पार्सल से लकड़ी का एक छोटा-सा बन्दर मिला और उसी वक़्त से डैडी परेशान नज़र आने लगे। वह रात उन्होंने टहल कर गुज़ारी। दूसरे दिन उन्होंने आठ पहाड़ी नौकर रखे जो रात भर राइफ़लें लिये इमारत के चारों ओर पहरा दिया करते थे। डैडी ने हमें सिर्फ़ इतना ही बताया कि वे किसी क़िस्म का ख़तरा महसूस कर रहे हैं।’
‘और उस बन्दर का मतलब क्या था?’ बारतोश ने पूछा जो अब तक ख़ामोशी से उनकी बातचीत सुन रहा था।
‘डैडी ने उसके बारे में हमें कुछ नहीं बताया। हम अगर ज़्यादा पूछते तो वे नाराज़ हो जाया करते थे।’
‘लेकिन तुमने हमसे यह बात क्यों छुपानी चाही थी?’ डिक्सन ने पूछा।
‘डैडी का हुक्म!...उन्होंने कहा था कि इस बात के फैलने पर ख़तरा और ज़्यादा बढ़ जायेगा।’
‘अजीब बात है!’ डिक्सन कुछ सोचता हुआ बोला, ‘क्या मैं इन हालात में इस छत के नीचे चैन से रह सकूँगा।’
‘मेरा ख़याल है कि ख़तरा सिर्फ़ कर्नल के लिए था!’ इमरान बोला।
‘तुम बेवक़ूफ़ हो!’ डिक्सन झुँझला गया, ‘मैं ख़तरे की बात नहीं कर रहा। ज़रग़ाम के लिए फ़िक्रमन्द हूँ।’
‘कनफ़्यूशियस ने कहा है...’
‘जब तक मैं यहाँ रहूँ, तुम कनफ़्यूशियस का नाम न लेना, समझे!’ कर्नल बिगड़ गया।
‘अच्छा!’ इमरान ने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह सिर हिला कर कहा और जेब से च्यूइंगम का पैकेट निकाल कर उसका काग़ज़ फाड़ने लगा। मार्था फिर हँस पड़ी।
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