प्रेतात्मा से मुठभेड़

सुबह दस बजे विराट सिंह राणा एसीबी हैडक्वार्टर पहुंचा तो बाहर कई बड़ी और महंगी गाड़ियां खड़ी दिखाई दीं। जिनके वर्दीधारी शोफरों में से कुछ गाड़ी के बाहर खड़े थे तो कुछ भीतर बैठे हुए थे।
एक उड़ती सी नजर उनपर डालता हुआ वह अपनी फॉर्च्यूनर भीतर बढ़ा ले गया। जहां एक वैन और जिप्सी के बीच की जगह में उसने अपनी गाड़ी पार्क की और नीचे उतर आया।
तभी लपकता हुआ जोशी उसके पास पहुंच गया।
“मैं आपकी ही राह देख रहा था सर।”
“कोई खास बात?”
“बहुत बड़ी गड़बड़ हो गयी है सर।” वह जल्दी से बोला।
“मैं ये सुनने को बिल्कुल भी तैयार नहीं हूं जोशी साहब कि रात को मेरी चेतावनी के बावजूद किसी ने सातों दोस्तों की या उनमें से कुछ एक की पिटाई कर दी थी।”
“वैसा कुछ नहीं हुआ है सर।”
“फिर?”
“उनमें से पांच के बाप यहां पहुंचे हुए हैं, और इस बात पर पैजामे से बाहर निकलकर दिखा रहे हैं कि पुलिस की हिम्मत कैसे हुई उनके नौनिहालों को गिरफ्तार करने की।”
“और कुछ?”
“नहीं सर।”
“किधर हैं?”
“एसीपी साहब के कमरे में, अभी वे लोग क्योंकि अपना सारा गुस्सा साहब पर ही निकाल रहे हैं, इसलिए जाहिर है कि बाद में राजावत साहब हमारी खूब खबर लेंगे।”
“चलो देखते हैं चलकर।”
“क्या बात करते हैं सर, जब वे लोग एसीपी साहब का लिहाज नहीं कर रहे तो हमारा क्या करेंगे? मेरी मानिये तो खिसक लेते हैं। घंटा दो घंटा के लिए मोबाईल भी बंद कर देंगे, ताकि हमें कॉल कर के यहां आने को न कहा जा सके, बाद में जो होगा भुगत लेंगे। कम से कम दोहरी मार पड़ने से तो बच जायेगी।”
“दोहरी मार?”
“पहली उनके बापों की, और दूसरी वो जो बाद में एसीपी साहब से खानी पड़ेगी। जबकि अभी खिसक लेंगे तो बस राजावत साहब की डांट ही भुगतनी होगी, जो हम भुगत लेंगे, क्योंकि पहले भी कई बार खा चुके हैं।”
“आइडिया अच्छा है जोशी साहब। एकदम लोमड़ी जैसा दिमाग पाया है तुमने। बल्कि खिसकने से पहले एक काम और करते जायेंगे, लोगों को पता तो लगे कि पुलिसगिरी भी कोई चीज होती है।”
“वो क्या सर?”
“बाहर उन पांचों की गाड़ियां खड़ी हैं, एक मोटा सा डंडा लेकर आओ। हम दोनों मिलकर सबके शीशे तोड़ देंगे, बड़े बड़े डेंट भी बना देंगे। यूं एसीपी साहब पर चीखने चिल्लाने की सजा भी मिल जायेगी उन्हें, और साहब का ये सोचकर कलेजा ठंडा हो जायेगा कि बदला चुक गया, बोलो क्या कहते हो?”
“साहब के कमरे में ही चल लेते हैं।” जोशी मरे स्वर में बोला।
“पक्का?”
“हां जी पक्का, कोई खा थोड़े ही जायेगा हमें।”
“ये हुई न बात।” विराट थोड़ा हंसकर बोला।
दोनों सीढ़ियां चढ़कर पहली मंजिल पर स्थित एसीपी राजावत के कमरे में पहुंचे। भीतर मौजूद पांचों लोग सूरत से ही संभ्रांत और खासे रईस जान पड़ते थे, अलबत्ता चेहरे पर गुस्सा तो हर एक के दिखाई दे रहा था।
उनमें से दो मोबाईल पर किसी के साथ बात कर रहे थे, एक एसीपी के गले पड़ रहा था, और बाकी के दोनों लोग उस लगातार बोलते जा रहे शख्स का बीच बीच में समर्थन भर किये दे रहे थे।
दोनों ऑफिसर इजाजत लेकर भीतर दाखिल हुए और एसीपी को एड़ियां खटकाकर सेल्यूट करने के बाद उसके सामने तनकर खड़े हो गये। बाकी के पांचों की तरफ तो उन दोनों ने देखने की भी कोशिश नहीं की।
राजावत ने अग्नेय निगाहों से उन्हें घूरा।
“कोई खास बात हो गयी सर?”
“हां हो गयी है - राजावत का लहजा बेहद रूखा था - रात को तुमने जिन बच्चों को अरेस्ट किया था, यहां बैठे साहबान उनमें से पांच के पिता हैं। और ये लोग जानना चाहते हैं कि हमने इनके बच्चों को किस जुर्म में गिरफ्तार किया है।”
“ओह तो तुमने गिरफ्तार किया है रोहताश को? - जयकांत सरदाना विराट को घूरता हुआ बोला - मैं पूछता हूं तुम्हारी इतनी हिम्मत हो कैसे गयी इंस्पेक्टर, और किसी वजह से अरेस्ट कर भी लिया था, तो हमें खबर करना जरूरी क्यों नहीं समझा?”
“आपका नाम?”
“वॉट?”
“मैं आपका नाम पूछ रहा हूं सर।”
“तुम मुझे नहीं जानते?”
“कभी गिरफ्तार हुए हैं तो हामी भरिये, मैं किसी को रिकॉर्ड चेक करने के लिए भेजता हूं, पता तो आखिरकार चल ही जायेगा।”
“बद्तमीजी बहुत महंगी पड़ेगी इंस्पेक्टर, मेरे एक फोन करने भर की देर है, अगले ही पल तुम्हारी वर्दी उतर जायेगी।”
“अगर आपको अपने बच्चे से ज्यादा जरूरी मेरी वर्दी उतरवाना लगता है तो प्लीज, पहले अपना अरमान पूरा कर लीजिए। बच्चों का क्या है वह तो बाद में रिहा कराये जा सकते हैं, नहीं किये गये जेल पहुंच गये तो दूसरा पैदा कर लेंगे, है न?”
सरदाना हकबकाया, एक पल को वह कुर्सी से उठकर विराट की तरफ झपटता दिखाई दिया, फिर अलग ही पल वापिस बैठता हुआ एसीपी से बोला, “तुम्हारा ये ऑफिसर पागल तो नहीं है?”
“सॉरी सर - राजावत बोला - कोई हालिया खलल पैदा हो गया हो इसके दिमाग में तो नहीं कह सकता, वरना पिछले महीने के रुटीन चेकअप में तो एकदम चाक चौबंद पाया गया था।”
“फिर पागलों जैसी बातें क्यों कर रहा है?”
“इस मीटिंग के बाद मैं सबसे पहले किसी साइकियाट्रिस्ट से इसका मुआयना ही कराऊंगा सर, क्योंकि अभी इसकी बातें सुनकर तो मुझे भी डाउट होने लगा है।”
“आप दोनों को मेरे दिमाग में नुक्स दिखाई दे रहा है?” विराट ने पूछा।
“हां दिख रहा है - सरदाना बोला - नहीं होता तो यूं बढ़ चढ़कर बात नहीं कर रहे होते, उल्टा सॉरी बोलते, ये कहते कि किसी गलतफहमी का शिकार होकर रोहताश और उसके दोस्तों को हिरासत में ले लिया था।”
“कमाल है सर, जबकि अभी तक मैंने अपनी जगह से एक इंच खिसकने तक की कोशिश नहीं की। दिमाग में नुक्स होता तो वर्दी उतरवाये जाने की धमकी सुनकर क्या आप पर झपट नहीं पड़ा होता, फिर आपका मुंह नोचता, दांतों से आपको काट खाता, या ऊंचा उठाकर फर्श पर पटक देता, जिसमें आपकी रीढ़ की हड्डी टूट जाती और आप हॉस्पिटल केस बन गये होते। कहिये सर क्या मैंने ऐसा कुछ करने की कोशिश की? अगर नहीं की तो इसका मतलब यही बनता है न कि मेरे दिमाग में कोई नुक्स नहीं है।”
सरदाना की समझ में ही नहीं आया कि उस बात का क्या जवाब दे।
“वो सब छोड़ो इंस्पेक्टर - सैंडी का बाप देसराज बोला - ये बताओ कि हमारे बच्चों का जुर्म क्या है? उनको हिरासत में क्यों लिया तुमने?”
“इसलिए लिया सर ताकि आपको उनकी फोटो पर हार चढ़ाने की मशक्कत से बचा सकूं, आखिर बड़े लोग हैं आप, वक्त निकाल पाना आसान कहां होगा आप सबके लिये।”
“क्या बकते हो?” अरसद का बाप नदीम अहमद गुस्से से बोला।
“यही कि आप लोग जितना वक्त आज यहां जाया कर रहे हैं, उतना अपने बच्चों के लिए निकाला होता तो वो सब आज हवालात में नहीं होते। आप को एहसास भी है कि रात के वक्त नशे में धुत्त आपके नौनिहाल कहां पड़े थे। वहीं छोड़ देता तो किसी ना किसी वारदात का शिकार पक्का बन जाते, जैसे कि उनकी एक दोस्त मधु कोठारी के बन चुका होने का अंदेशा पहले से ही है हमें।”
“कहां थे?”
“इस जगह से बीस किलोमीटर एक खंडहरनुमा हवेली में। ऐसी हवेली में जहां लोग बाग दिन में भी जाने से भी कतराते हैं, क्योंकि वहां मौत बसती है। आस पास के गांवों में रहते लोगों का कहना है कि एक बार जिसने भी उस हवेली में कदम रखा जिंदा वापिस नहीं लौटा। अगर आप लोग अपने बच्चों की मौत का मातम मनाने को तैयार हैं तो कहिए वापिस सबको वहीं छोड़े आता हूं।”
कमरे में एकदम से सन्नाटा छा गया।
“तुम्हारा मतलब है वो सब गिरफ्तार नहीं हैं?”
“हिरासत में तो पक्का हैं, और वह तब तक चलेगी जब तक कि उनसे मेरी पूछताछ मुकम्मल नहीं हो जाती। यानि यहां मेरा जितना भी वक्त आप लोग जाया करेंगे, आपके बच्चों को आजाद होने में उतना ही ज्यादा टाईम लगेगा।”
“अभी करो।”
“क्या करूं?”
“छोड़ दो उन सबको, और जो पूछताछ करनी है हमारे घर पहुंचकर करना, वरना ठीक नहीं होगा।”
बस उस आखिरी बात ने ही विराट का दिमाग खराब कर के रख दिया। वरना वह सच में वही करने जा रहा था जो कि वे लोग चाहते थे। मगर धौंस! वह तो उसे हरगिज भी बर्दाश्त नहीं थी।
“बोलो छोड़ रहे हो या नहीं?” नदीम अहमद ने पूछा।
“नहीं।”
“क्या कहा तुमने?”
“यही कि मेरी पूछताछ मुकम्मल होने से पहले उनमें से कोई भी यहां से नहीं जा सकता, बाकी आप से जो करता बने कर लीजिए क्योंकि उसपर मेरा कोई अख्तियार नहीं है।”
सुनकर देसराज तमतमाता हुआ उठ खड़ा हुआ। आगे उसने विराट का गरेबां पकड़ने की कोशिश की ही थी कि उसने बीच में ही देसराज का हाथ लपक लिया, और वापिस उसी कुर्सी पर धकेल दिया जहां से उठकर वह उसके पास पहुंचा था।
“सर प्लीज अपनी हद में रहिये।”
“नहीं रहूंगा तो क्या कर लोगे तुम?”
“पहले आपका वह हाथ तोड़ूंगा जो मेरी वर्दी पर उठेगा - इस बार विराट को सच में गुस्सा आ गया - फिर ले जाकर लॉकअप में डाल दूंगा, और किसी सिपाही को आदेश दूंगा कि वह तब तक आप पर डंडे बरसाये जब तक कि आपको अपनी गलती का एहसास नहीं हो जाता।”
“लगता है ये नौकरी खोने पर ही तुला है एसीपी।”
“इसकी तरफ से मैं माफी मांगता हूं सर - राजावत हड़बड़ाकर बोला, फिर विराट से मुखातिब हुआ - सर को सॉरी बोलो, अभी और इसी वक्त।”
“पहले इनसे कहिए कि अपनी नाकाम कोशिश की माफी मांगें मुझसे।”
“अपनी औकात देखी है तुमने?” देसराज गुर्राता हुआ बोला।
“आई से सेड सॉरी।” इस बार एसीपी का लहजा चेतावनी भरा था।
“सॉरी सर - कहकर विराट बोला - रही बात मेरी औकात की तो वह अभी अभी आप देख ही चुके हैं। अब बराय मेहरबानी सिर्फ वही साहब यहां बने रहें, जिन्हें आगे भी मेरी औकात का जहूरा देखना हो। बाकी लोग जा सकते हैं। आपके बच्चों को यहां न तो पहले तकलीफ दी गयी थी, ना ही अब दी जायेगी। एक घंटे में हमारी पूछताछ मुकम्मल हो जायेगी उसके बाद उन्हें रिहा कर दिया जायेगा।”
“अभी क्यों नहीं छोड़ सकते?” नदीम अहमद ने पूछा।
“कहा तो उनसे पूछताछ करनी है।”
“ठीक है करो जाकर, तब तक हम यहीं रूकेंगे।”
“वह आपकी मर्जी है सर, मेरी तरफ से पूरे दिन यहां बैठे रह सकते हैं।” कहकर विराट और जोशी कमरे से बाहर निकल गये।
“देखो मैं पहले ही बहुत परेशान हूं - अतुल कोठारी अपनी बीवी को झिड़कता हुआ बोला - और ज्यादा परेशान मत करो प्लीज।”
“ओह स्वीट हॉर्ट, तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि मधु के लापता हो जाने से सिर्फ तुम्हीं दुःखी हो, मेरी क्या वह कुछ नहीं लगती? बेशक मैं उसकी मां नहीं हूं, लेकिन तुम तो जानते ही हो कि हमारे बीच बहुत अच्छी बाउंडिंग बन गयी थी।”
“तो फिर खामोश रहो और बेवजह की बकवास बंद कर दो।”
“मैं सच कह रही हूं, तुम एक बार नकुल पर यकीन कर के तो देखो, इस मामले में उसका कोई मुकाबला नहीं है। बड़ी बड़ी शक्तियां सिद्ध कर रखी हैं उसने। और आज का दिन तो जैसे सोने पर सुहागा है। फिर ये भी तो सोचो कि उसके लिए अलग से करना ही क्या है हमें, सिवाय इसके कि कुछ चीजों का इंतजाम करना है। वह भी नकुल खुद कर लायेगा।”
“मैं ऐसी बातों पर विश्वास नहीं करता।”
“पहले मैं भी नहीं करती थी, मगर एक बार उसने ऐसा चमत्कार दिखाया कि हैरान रह गयी। यकीन जानों कुछ ना कुछ जरूर बता देगा वह। और नहीं भी बता पाया तो उसमें तुम्हारा क्या नुकसान हो जायेगा?”
“किसी को खबर लग गयी तो लोग हंसेंगे मुझपर।”
“कोई नहीं हंसेगा, क्योंकि हर किसी की जिंदगी में ऐसा वक्त कभी ना कभी जरूर आता है जब उसका पुलिस से भरोसा उठ जाता है, हर तरफ बस अंधकार ही अंधकार दिखाई देने लगता है। तुम कल मंदिर गये थे या नहीं?”
“गया था?”
“क्यों गये थे?”
“ईश्वर से अपनी बच्ची के सकुशल लौट आने की दुआ मांगने।”
“जो कि अभी तक पूरी नहीं हुई, ऐसे में एक और कोशिश कर लेने में क्या हर्ज है?”
“बात हर्ज की नहीं है कनिका, बस मेरा यकीन नहीं है ऐसी बातों पर।”
“फिर तो तुम्हें नकुल को एक मौका जरूर देना चाहिए। वैसे भी तुम हमेशा उससे चिढ़े चिढ़े से रहते हो क्योंकि दहेज में मेरे भाई के अलावा और कुछ हासिल नहीं हुआ था तुम्हें।”
“बकवास मत करो, मेरे पास ऐसी क्या कमी है जो दहेज की ख्वाहिश रखता? और बुरा मत मानना, दहेज की चाह होती तो क्या तुमसे शादी करता?”
“हरगिज भी नहीं करते डॉर्लिंग, तुम्हारे आगे भला मेरी औकात ही क्या थी? आज भी क्या है, अगर कुछ है तो वह तुम्हारे ही तो सदके है। इसीलिए मैं तुम्हारी खातिर कुछ करना चाहती हूं, बल्कि नकुल करना चाहता है। फिर भी नहीं मानते तो समझ लो अगर वह फेल हो गया तो फौरन तुम्हारे घर से चला जायेगा।”
“उसकी कोई जरूरत नहीं है, तुम्हारे भाई की चार रोटियां अफोर्ड कर सकता हूं मैं - कहकर वह क्षण भर को रुककर बोला - ठीक है करो जो करना चाहती हो। मगर नीचे बेसमेंट में करना और किसी नौकर चाकर को अपने करीब मत फटकने देना।”
“तुम्हारी मौजूदगी तो फिर भी जरूरी होगी स्वीट हॉर्ट।”
“क्यों भला?”
“क्योंकि किसी बेहद करीबी के जरिये ही ऐसी बातों की तह तक पहुंचा जा सकता है। तुम्हें शामिल नहीं करना होता तो मैं अब तक तुम्हें बताये बिना ही उस काम को अंजाम दे चुकी होती।”
“करना कब होगा?” अतुल का लहजा नम्र पड़ गया।
“नकुल कहता है शाम चार बजे का वक्त सबसे बढ़िया है। क्योंकि उसी वक्त चंद्रमा का वृष राशि पर संचार शुरू हो जायेगा। आगे तीस मिनटों तक यमगंड रहेगा, जो कि शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना जाता है, मगर वह जो करने वाला है उसके लिए वही समय उपयुक्त है।”
“ठीक है कह दो कि इंतजाम करे, मैं ठीक वक्त पर पहुंच जाऊंगा।”
“अभी कहीं जा रहे हो?”
“हां एंटी क्राईम ब्यूरो के हैडक्वार्टर जा रहा हूं, जो कि ओखला में है, इसलिए ज्यादा वक्त नहीं लगेगा आने जाने में।”
“कोई काम है वहां?”
“एसीपी से मिलना चाहता हूं, पता तो लगे कि वे लोग मधु को ढूंढने के लिए क्या कर रहे हैं, कुछ कर भी रहे हैं या नहीं?”
“मैं भी साथ चलती हूं।”
“ठीक है अगर चलना चाहती हो तो जल्दी करो, चार बजे से पहले वापिस भी तो आना है।”
“मैं अभी नकुल को ग्रीन सिग्नल देकर आती हूं।” कहकर वह कमरे से बाहर निकल गयी।
उसके पीठ पीछे अतुल कोठारी बहुत देर तक सिर थामे बैठा रहा फिर उठ खड़ा हुआ।
वह हॉल जैसा बड़ा कमरा था जो एसीबी हैडक्वार्टर में दूसरी मंजिल पर बना हुआ था। गिरफ्तार किये गये सातों बच्चे उस वक्त वहां मौजूद थे। जबकि पुलिस की तरफ से बस विराट और जोशी ही थे।
“रात कैसी गुजरी पापियों?” विराट ने मुस्कराते हुए पूछा।
“बढ़िया, थैंक यू।”
“तुममें से पांच के पेरेंट्स यहां पहुंचे हुए हैं, बहुत गुस्से में हैं।”
“नो वे - सैंडी बोला - मेरे पापा मुझपर कभी गुस्सा नहीं होते।”
“तुमपर नहीं, पुलिस पर।”
“ओह सॉरी इंस्पेक्टर, वो क्या है कि डैड मुझे बहुत प्यार करते हैं इसलिए मेरी गिरफ्तारी की बात सुनकर भड़क गये होंगे।”
“जबकि तुम लोग अपनी मर्जी से हमारे साथ आये थे?”
“ये बात उनको कैसे पता हो सकती है?”
“हां ये भी ठीक कहा। एनी वे अब अब काम की बात शुरू करें?”
“हां प्लीज - वाणी बोली - बहुत जोर की भूख लगी है।”
“मुझे भी।” ऐना ने जोड़ा।
“बिना ब्रश किये नाश्ता कर लोगे?”
“नहीं।”
“फिर तो थोड़ा वेट करना पड़ेगा।”
“कितनी देर?”
“डिपेंड करता है कि तुम लोग मेरे सवालों का सीधा और सच्चा जवाब देते हो या घुमा फिराकर, जैसा कि कल रात दे रहे थे।”
“टू द प्वाइंट बात करेंगे सर।” रोहताश बोला।
“यानि भूख तुम्हें भी लगी है?”
“सबको लगी है इंस्पेक्टर।”
“आपने रात को मुझे थप्पड़ मारा था।”
“तुमने बद्तमीजी की थी।”
“मैं कुछ और कहना चाहता हूं।”
“क्या?”
“आपका वह गुनाह मैंने माफ कर दिया, इसलिए मन पर कोई बोझ हो तो उसे दूर झटक सकते हैं।”
“थैंक यू, बोझ तो बहुत बड़ा था, इतना बड़ा और वजनदार कि आगे की रात मैं चैन से सो भी नहीं पाया। अब तुमने माफ कर दिया है तो उम्मीद है रात को नींद बढ़िया आयेगी।”
“हम पापी ऐसे ही हैं इस्पेक्टर - नैना बोली - लोगों को माफ करने में जरा भी वक्त नहीं लगाते।”
“बहुत अच्छी बात है, चलो अब शनिवार की रात का पूरा किस्सा मुझे कह सुनाओ, कोई भी बात छूटनी नहीं चाहिए।”
“उससे पहले ये जान लीजिए कि हम वैसी किसी सुनसान जगह पर गये ही क्यों।” सैंडी बोला।
“क्यों गये थे?”
“पार्टी करने जो कि हर शनिवार की रात को हम पापी किसी नई जगह पर इकट्ठे होकर करते हैं। डांस, ड्रिंक, डिनर, बल्कि और भी बहुत कुछ। मगर हमारी पार्टी का सबसे खास प्रोग्राम रात बारह बजे शुरू होता है। वह टाईम होता है गेम का, एक ऐसा गेम जो हर बार हमें नये रोमांच से भर देता है।”
“कौन सा गेम?”
“गेम ऑफ डैथ।”
“पहले कभी इस तरह के किसी गेम का नाम नहीं सुना मैंने, ऑनलाईन खेलते हो?”
“नहीं, और नाम इसलिए नहीं सुना होगा क्योंकि वह पूरी तरह एक्सक्लूसिव है। एक ऐसा गेम जिसके टाईटल का नामकरण भी हम पापियों ने ही किया है। मगर गेम हर बार नया होता है, कुछ ऐसा जो चैलेंजिंग हो, जिसमें हारने वाले के लिए एक खास किस्म की सजा मुकर्रर की जाती है, जिसे उसने हर हाल में भुगतना होता है। यानि ये नहीं हो सकता कि आप गेम में हार चुकने के बाद ये कहने लग जायें कि आपको दी जाने वाली सजा कबूल नहीं है।”
“मान लो कोई फिर भी वैसा कर बैठे तो?”
“तो आउट।”
“मतलब?”
“पापी मंडली से बाहर, हालांकि ऐसी नौबत आज तक नहीं आई।”
“यानि सजा भुगतने से इंकार किसी ने नहीं किया अभी तक?”
“हां यही बात है।”
“और सजा किस तरह की होती है?”
“वेरी एक्साइटिंग, चैलेंजिंग, फुल ऑफ थ्रिल - रोहताश बोला - जिसका नजारा एक बार आप खुद भी कर चुके हैं। पिछले से पिछले शनिवार को सजा ये थी कि जो कोई भी हारेगा उसे सड़क पर पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़कर भाग निकलना होगा, और हर हाल में पुलिस से बचकर, अपने दोस्तों को बचाकर दिखाना होगा, वरना वह फिर से हार जायेगा, और वही सजा नये सिरे से भुगतनी पडे़ेगी।”
“ओह तो उस रात तुम लोगों ने जानबूझकर बैरिकेडिंग तोड़ी थी?”
“सॉरी इंस्पेक्टर लेकिन सच यही है।”
“ये नहीं सोचा कि तुम्हारे उस एडवेंचर के चलते कोई पुलिसवाला घायल हो सकता था, खुद तुम्हें चोट लग सकती थी, या पुलिस की गोली का शिकार बन सकते थे?”
“हम पापी ये सब नहीं सोचा करते सर - सैंडी बोला - क्योंकि जीना मरना विधाता के हाथ में है। किसे चोट देनी है और किसे भला चंगा रखना है इसका फैसला भी वही करता है। बल्कि हम जो कुछ करते हैं वह भी तो वही करा रहा होता है, ऐसे में अपने किये धरे के लिए हम कैसे जिम्मेदार हो गये? असल में तो गेम और सजा हम जैसी भी चुनते हैं वह ईश्वर ही हमसे चूज करा रहा होता है। क्योंकि यहां स्क्रिप्ट राइटिंग से लेकर डाइरेक्शन तक का सारा काम वही तो करता है, हम तो बस उसके इशारे पर एक्ट करते हैं, क्योंकि अभिनेता को स्क्रिप्ट में लिखे डॉयलाग बोलने ही पड़ते हैं, डाइरेक्टर के हिसाब से एक्टिंग करनी ही पड़ती है। नहीं करेगा तो आउट नहीं हो जायेगा फिल्म से?”
“मानस में लिखा है - नैना बोली - ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’ यानि हम जो कुछ कर चुके हैं या आगे करने वाले हैं, उसकी प्लानिंग खुद ईश्वर ने कर रखी है, हम सब तो बस उसकी शतरंजी चाल के मोहरे भर हैं, जो उसके इशारे पर नाचने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते।”
“उसी राम चरित मानस में ये भी तो लिखा है, ‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा।’ अर्थात हमारे कर्मों के अनुसार ही ईश्वर हमें फल देता है?”
“पढ़ा बराबर है इंस्पेक्टर साहब - इस बार वार्तालाप की कमान ऐना ने संभाली - लेकिन कंफ्यूज ये सोचकर हैं कि दोनों में से किसको फॉलो किया जाये, इसलिए एक को चूज कर लिया क्योंकि उसे चुनने की पर्याप्त वजह इस संसार में मौजूद है।”
“बयान करो ऐसी कोई वजह?”
“अभी हनी का ही एग्जॉम्पल ले लीजिए, उसके साथ अगर कुछ बुरा होना तय नहीं होता तो भला सैंडी हमें एक ऐसी हवेली में लेकर क्यों जाता जहां भूत प्रेत विचरते हैं। पैसों की क्या कोई कमी है हमारे पास, किसी फाईव स्टार होटल में नहीं जा सकते थे? बल्कि चाहते तो पूरा का पूरा होटल ही बुक कर लेते। मगर नहीं हनी का वहीं पहुंचकर हमसे बिछुड़ना लिखा था, यानि गॉड ने पहले से तय कर रखा था, इसलिए हमें वहां जाना ही पड़ा। इट मींस हम जो कुछ करते हैं, उसको करना हमारी मजबूरी होती है, क्योंकि गॉड चाहता है कि हम वही करें।”
“तर्क बढ़िया दे लेती हो, अच्छा ये बताओ कि उस रात हवेली में हनी के साथ जो कुछ भी हुआ वह तुम्हारे गेम खेलने से पहले हुआ या बाद में?”
“बाद में, तब हुआ जब वह गेम में हार चुकने के बाद अपनी सजा भुगतने जा रही थी, उसी वक्त हवेली में भूत प्रेतों ने उपद्रव मचाना शुरू कर दिया।”
“मतलब उस बार सजा भुगतने के लिए बाहर कहीं नहीं जाना था?”
“जी हां, मौसम बहुत खराब था इसलिए हारने वाले की सजा तय करते वक्त इस बात का खास ख्याल रखा गया था, कि उसके लिए हम लोगों को वहां से बाहर न जाना पड़े।”
“और सजा क्या थी?”
सब खामोशी अख्तियार कर गये।
“बोलो भई, इतनी सी बात पर चुप्पी साध लेना क्या जरूरी है?”
“न....न्यूड डांस।”
“वॉट?”
“द लूजर हैड टू डांस न्यूड, वेदर इट्स अ ब्वॉय ऑर अ गर्ल।”
“यू मीन टू से दैट यू ऑल वेयर वॉचिंग न्यूड डांस? - विराट हैरानी से बोला - जो कि गेम में हारने के बाद मधु वहां कर रही थी।
“नो, दैट डिड नॉट हैप्पेन, उसने तो अभी बस टॉप ही उतारा था कि हंगामा शुरू हो गया।”
“नहीं हुआ होता तो वह कपड़े उतारकर तुम सबके सामने नाचना शुरू कर देती?”
“करना ही था, गेम में हार गयी थी तो मना कैसे कर पाती?”
“सात लोगों के सामने - विराट अभी भी हैरान हुए जा रहा था - जिनमें से चार मर्द थे?”
“हां ऐसा ही था।”
“तुम लोग इंसान हो या जानवर?”
“जानवरों को डांस करना कहां आता होगा इंस्पेक्टर साहब? - नैना बोली - फिर वो तो पहले से नंगे होते हैं, उतारने को उनके पास भला क्या होगा?”
“वेरी फनी, खैर हंगामे से तुम्हारा क्या मतलब है? नहीं पहले ये बताओ कि गेम कौन सा खेल रहे थे तुम लोग उस रात?”
“एक रस्सी के सहारे हॉल के ऊपर बनी छतरी तक पहुंचना था, मतलब की छत पर। जो नहीं पहुंच पाता, या सबसे नीचे रह जाता, वह हार जाता। जैसे कि हनी हार गयी थी।”
“रस्सी कहां से हासिल कर ली?”
“हालांकि एक रस्सी हमेशा हमारे साजो सामान में मौजूद होती है। लेकिन वह उतनी बड़ी नहीं थी कि छतरी के पिलर से बांधने के बाद नीचे हॉल तक पहुंच जाती। मगर गेम की प्लानिंग क्योंकि मैंने और जयदीप ने मिलकर पहले ही कर ली थी, इसलिए लंबी रस्सी का इंतजाम भी कर के गये थे वहां, जिसे गेम से ठीक पहले छत पर पहुंचकर गुंबद के चार पिलर्स में से एक के साथा बांध दिया गया।”
“और हनी के अलावा यहां बैठे सभी लोग ऊपर पहुंचने में भी कामयाब हो गये, वह भी एक रस्सी पकड़ कर। ये कोई मानने वाली बात है?”
“रस्सी में एक एक फीट की दूरी पर गांठे लगाई गयी थीं इंस्पेक्टर, इसलिए उसके सहारे ऊपर चढ़ना कोई बड़ी बात नहीं थी। बस जरूरत थी हिम्मत की, जिसकी हम पापियों के अंदर कोई कमी नहीं है। बावजूद इसके लड़कियों में से दो वहां तक नहीं पहुंच पाईं, मगर हनी क्योंकि सबसे कम ऊंचाई तक जाकर लौट आई थी, बल्कि फिसल गयी थी, इसलिए उसे हारा हुआ मान लिया गया।”
“ठीक है वह गेम हार गयी, जिसके बाद सजा के रूप में उसने डांस करना शुरू कर दिया, उस दौरान उसने अपना टॉप उतार फेंका, मगर बाकी के कपड़े अभी भी उसके तन पर मौजूद थे, उसके बाद क्या हुआ?”
“हॉल में अंधेरा छा गया।” वाणी बोली।
“दरवाजा बाहर से लॉक हो गया।” रोहताश ने बताया।
“एक मुर्गा पंख फड़फड़ाता हुआ हमारे करीब आकर गिरा और एक तरफ को भागता चला गया - सैंडी ने बताया - उसके बाद कुछ सेकेंड ही बीते थे कि वहां खून की बारिश शुरू हो गयी।”
“और तुम लोग चाहते हो कि हम तुम्हारी इस बकवास पर यकीन कर लें?”
“ये सच कह रहा है इंस्पेक्टर।” ऐना ने सैंडी का समर्थन किया।
“अरे खून की बारिश कोई समझ में आने वाली बात है?”
“हो बराबर रही थी सर, साथ ही किसी के जोर जोर से हंसने की आवाज भी कानों तक पहुंच रही थी - कहते हुए सैंडी ने हनी के ऊपर जाने तक का सारा किस्सा बयान किया, फिर बोला - सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात लगी हनी का ये कहना कि, ‘जाती हूं पापियों, देखना आज ऐसे जलवे दिखाऊंगी कि तुम्हारे होश उड़ जायेंगे’ होश तो सच में उड़ गये इंस्पेक्टर साहब, क्योंकि वैसा कहते कहते उसका जिस्म हवा में ऊपर की तरफ उठता चला गया, फिर एक वक्त वह भी आया जब हनी हमें दिखाई देनी बंद हो गयी। लाईट थी नहीं और मोबाईल की रोशनी उतने ऊपर तक पहुंच नहीं पा रही थी।”
“किडनैपर ने कहीं तुम्हारे द्वारा बांधी गयी रस्सी के जरिये ही तो उसे ऊपर नहीं खींच लिया था, अगर खींच लिया हो तो उसके छत की तरफ उठते चले जाने में हैरान होने की क्या बात है?”
“पहली बात तो ये है इंस्पेक्टर कि उस रस्सी को गेम खत्म होते के साथ ही उतार लिया गया था। और नहीं भी उतारा गया होता तो कैसे कोई उस रस्सी में नीचे खड़ी हनी को फंसा सकता था? कोई हुक वगैरह तो लगा नहीं था उसमें। और लाख रूपये का सवाल ये कि उसे जबरन खींचा जा रहा होता तो वह ये क्यों कहती कि हमारे होश उड़ा देगी? उल्टा चिल्ला रही होती, हमसे बचाने को कह रही होती। फिर वहां से निकलने से पहले उसने नैना पर हमला भी तो किया था।”
“कैसा हमला?”
नैना ने बताया।
“पक्का उसी ने किया था? मेरा मतलब है वहां अंधेरा था ऐसे में ये भी तो हो सकता है कि हमला करने वाला शख्स कोई और रहा हो, मगर तुम्हारे करीब क्योंकि मधु ही थी इसलिए सहज सोच लिया कि जो कुछ घटित हुआ वह मधु के ही किये हुआ था।”
“हो सकता है - नैना ने कबूल किया - मगर इतनी गारंटी फिर भी कर सकती हूं कि थी वह कोई लड़की ही। जिन हाथों ने मेरे चेहरे पर अपना पंजा गड़ाया था वह बेहद मुलायम थे, जो कि किसी मर्द के नहीं हो सकते।”
“और बाकी दोनों लड़कियों के भी नहीं हो सकते थे - रोहताश बोला - क्योंकि दोनों ही उस वक्त हम चारों लड़कों के साथ दरवाजे के पास खड़ी थीं।”
“तुम लोगों को सच में भूख लगी है?”
“ऑफ कोर्स लगी है।”
“तो फिर टाईम पास क्यों कर रहे हो?”
“आप गलत सोच रहे हैं सर, हममें से कोई भी टाईम पास नहीं कर रहा, और ऐसा भी नहीं है कि इस तरह की घटना हमारे साथ पहली बार घटित हुई हो। इसलिए हमें यकीन है कि हवेली में जो कुछ भी घटित हुआ वह किसी भूत प्रेत के ही किये हुआ था।”
“पहले क्या हुआ था, कहीं तुम्हारा इशारा राहुल हांडा की गुमशुदगी की तरफ तो नहीं है?”
“जी हां उसी की बात कर रहा हूं मैं। जैसे इस बार हनी को हमसे दूर कर दिया गया, वैसे ही दो महीने पहले राहुल को भी किसी ने गायब कर दिया था। पुलिस ने उसे तलाशने में कोई कोर कसर उठा नहीं रखी होगी, मगर सच यही है कि आज भी उसकी गुमशुदगी एक पहेली ही बनी हुई है।”
“उन दिनों तुम लोगों की संख्या नौ थी?”
“नहीं उस वक्त भी हम आठ ही थे, तब तक जयदीप अभी पापी नहीं बना था। इसने तो राहुल के गायब होने के बाद अभी हाल ही में, करीब एक महीने पहले हमें जॉयन किया था।”
“बीस दिन पहले।” जयदीप ने संसोधित किया।
“राहुल के बारे में भी हम बात करेंगे मगर जरा ठहर कर। अभी जरा मधु पर वापिस लौटो। जब तुम लोगों को उसका जिस्म हवा में ऊपर उठता दिखाई दिया तो क्या खड़े खड़े बस तमाशा ही देखते रहे, उसे बचाने की कोशिश नहीं की?”
“बिल्कुल की थी इंस्पेक्टर, हालांकि उस नजारे ने कुछ देर के लिए हमें फ्रीज कर के रख दिया था, मगर जल्दी ही हमने अपनी हैरानी पर काबू पा लिया, फिर सब लोग दौड़ते हुए छत पर पहुंचे मगर अफसोस कि वहां कोई नहीं था।”
“मधु के दिखाई देना बंद होने और तुम लोगों के छत पर पहुंचने के बीच कितने मिनटों का अंतर रहा होगा।”
“तीन से चार मिनट, बड़ी हद पांच, लेकिन उससे ज्यादा नहीं।”
“फिर भी कुछ दिखाई नहीं दिया?”
“दिया मगर छत पर नहीं भीतर हॉल में।”
“क्या?”
“जिस हनी को हमने अपनी आंखों से ऊपर जाते देखा था, वह नीचे हॉल में एक ऐसे शख्स के सामने नाच रही थी, जो राजा महाराजाओं जैसे कपड़े पहने था। उस नजारे ने हमें बुरी तरह हैरान कर के रख दिया। फिर जयदीप को वहीं से नीचे निगाह रखने के लिए छोड़कर बाकी लोग एक बार फिर हॉल में पहुंचे, तो पाया कि वहां कोई नहीं था। हां नैना वहां बराबर पड़ी हुई थी, खून से लथपथ, बेहोश। फिर जयदीप ने हमें बताया कि हमारे नीचे पहुंचने से पहले ही नृत्य बंद हो चुका था और दोनों वहां से गायब हो गये थे।”
“उसके बाद क्या हुआ?”
“लाईट आ गयी, म्युजिक बज उठा। अरसद ये देखने गेट पर चला गया कि क्या दरवाजा भी तब खोला जा चुका था। उसके बाद इसकी चीख हमारे कानों में पड़ी। हम सब दौड़कर दरवाजे के करीब पहुंचे तो पाया कि बाहर चबूतरे पर ढेर सारा खून फैला हुआ था।”
“अगर था भी तो उसे साफ करने की जरूरत क्यों पड़ी, जैसे का तैसा क्यों नहीं छोड़ दिया तुम लोगों ने?”
“हम भला ऐसा क्यों करते?”
“फिर किसने किया?”
“नहीं जानते, हो सकता है वह काम भी वहां मौजूद पिशाच का ही रहा हो?”
“जिसने खून साफ तो क्या किया होगा - नैना बोली - हां पी जरूर गया होगा। सुना है रक्तपिपाशु पिशाच ऐसा ही किया करते हैं।”
“पागल हो गयी है - ऐना उसे झिड़कती हुई बोली - फर्श पर फैला खून भला कोई पी कैसे सकता है? हां चाट-चाट कर साफ जरूर कर दिया होगा, ऐसे।” कहकर उसने जुबान को दो तीन बार बाहर निकाल कर यूं एक्ट किया जैसे सच में कुछ चाट रही हो।
“तुम लोग जेल जाना चाहते हो? - कहने के तुरंत बाद विराट ने चेतावनी दी - खबरदार जो कल रात की तरह किसी ने भी जेल जाने की बात पर खुश होकर दिखाया।”
“नहीं दिखायेंगे, हम क्या पागल हैं, लेकिन जेल क्यों? - रोहताश ने पूछा - हमने क्या किया है?”
“मधु का कत्ल कर के उसकी लाश गायब कर दी है।”
सुनकर वह हकबकाया, हैरानी से विराट और जोशी को देखा, फिर दायें बायें बैठे अपने साथियों पर यूं निगाह डाली जैसे कोई भारी मजाक की बात सुन ली हो।
“इसलिए - विराट आगे बोला - तुम लोगों की भलाई इसी में है कि सबकुछ सच सच बता दो, वरना बहुत बुरी बीतने वाली है तुम पापियों के साथ। इतनी बुरी कि आत्मा तक त्राहि त्राहि कर उठेगी।”
“बुरे और अच्छे की परवाह हम नहीं करते इंस्पेक्टर - सैंडी बोला - लेकिन हनी का कत्ल हमने नहीं किया, कर भी कैसे सकते थे, वह तो जान थी हमारी।”
“ओह नो डॉर्लिंग - ऐना रो देने वाले अंदाज में बोली - अगर हनी तुम्हारी जान थी तो मैं कौन हूं, क्या तुम मुझे चीट कर रहे थे?”
“समझने की कोशिश करो बेबी - वह बड़े ही प्यार से बोला - जान से मेरा मतलब है हम सब उसे बहुत प्यार करते थे, इसलिए करते थे क्योंकि वह हमारी दोस्त थी, हममें से एक थी।”
“सच कह रहे हो न?”
“ऑफकोर्स स्वीट हॉर्ट।”
विराट बड़े ही धैर्य के साथ उनकी बकवास सुने जा रहा था, मगर जोशी रह रहकर यूं कसमसा उठता जैसे अभी उनमें से किसी को पकड़कर पीटना शुरू कर देगा। वह कर भी देता, मगर विराट का लिहाज कर के जैसे तैसे खुद को शांत रखने की कोशिश किये जा रहा था।
“हनी को अगर तुम लोगों ने नहीं मारा - विराट ने आगे पूछा - तो उसके गायब होने की खबर पुलिस को क्यों नहीं दी? भाग क्यों खड़े हुए वहां से?”
“सच यही है इंस्पेक्टर कि चबूतरे पर फैला खून देखकर हमारा मन बहुत विचलित हो उठा था, उस नजारे ने जैसे यकीन ही दिला दिया कि हमारी प्यारी दोस्त अब इस दुनिया में नहीं थी, इसलिए हनी को ढूंढ़ने की असफल कोशिशों के बाद हम सब वहीं से हरिद्वार के लिए रवाना हो गये।”
“हरिद्वार ही क्यों?”
“सुकून की तलाश में।”
“बहुत अच्छा किया, उन हालात में उससे बढ़िया भला और क्या हो सकता था - कहकर उसने पूछा - मोबाईल ऑफ क्यों कर रखा था?”
“हम नहीं चाहते थे कि किसी को हमारे हरिद्वार जाने का पता लगे, और कोई बात नहीं थी।” ऐना बोली।
“चाह भी कैसे सकते थे इंस्पेक्टर? - नैना ने जोड़ा - आखिर शांति की खोज में जा रहे थे, ऐसे में पुलिस या हमारे घरवालों के फोन आने शुरू हो जाते तो मन और ज्यादा विचलित नहीं हो उठता।”
“तो फिर इतनी जल्दी वापिस क्यों लौट आये, और लौटे तो घर क्यों नहीं गये, हवेली में जाने की क्या जरूरत थी?”
“आचार्य जी ने कहा था कि मन अशांत हो तो शांति की तलाश हमेशा उसी जगह से करनी चाहिए जहां से हृदय में अशांति ने अपनी पैठ बनाई हो। इसीलिए हरिद्वार से लौटकर हम सीधा उस हवेली में पहुंच गये।”
“यकीन के काबिल तो तुम लोगों की कहानी में कुछ भी नहीं है बच्चों, फिर भी थोड़ी देर के लिए तुम्हारे ही कहे को सच माने लेता हूं। अब ये बताओ कि राहुल के साथ क्या हुआ था? तुम लोग दस बजे होटल रॉयल ब्यूटी की छत पर अपनी महफिल जमा चुके थे, उसके बाद से बताना शुरू करो। कोई एक बात भी छूटनी नहीं चाहिए।”
“वहां पहुंचकर हमने सबसे पहले डांसिंग फ्लोर के टुकड़ों को आपस में जोड़ा और नाचना गाना शुरू कर दिया। जो कि बहुत देर तक चलता रहा था। बीच में साढ़े ग्यारह बजे हमने डिनर भी किया, मगर ड्रिंक नहीं किया क्योंकि गेम खेलना अभी बाकी था, इसलिए नशे की तलब को हमने गेम खत्म होने तक के लिये जबरन काबू में कर लिया था।”
“करने क्या वाले थे उस रात?”
“होटल की छत पर पानी की बड़ी बड़ी टंकियां रखी हुई थीं। हम सबको बारी बारी से उसमें उतरना था, और ज्यादा से ज्यादा देर तक सांस रोके पानी के भीतर रहना था। जो सबसे कम वक्त में बाहर निकल आता वह हार जाता।”
“और सजा?”
“होटल में ठहरे किसी भी कस्टमर को किडनैप कर के वहां से यूं बाहर ले जाना था, कि किसी की निगाह पड़ भी जाये तो उसे कोई शक न होने पाये। फिर बाहर पहुंचकर उसे फौरन आजाद कर दिया जाता।”
“यानि सजा भी पूरी की पूरी फसादी ही चुनी गयी?”
“फसादी नहीं एडवेंचर से भरी हुई, फिर आपको भी तो पसंद है।”
“क्या फसाद खड़ा करना?”
“नहीं एडवेंचर, वरना उस रात एक सौ बीस की रफ्तार से दौड़ती गाड़ियों पर वह करतब नहीं दिखाया होता जिसे देखकर हम सब बाद में यही सोचते रहे कि ऐसा बंदा तो हम पापियों के बीच होना चाहिए - कहकर ऐना ने पूछा - जॉयन करेंगे हमें?”
“नहीं।”
“आपकी मर्जी।” कहकर उसने कंधे उचका दिये।
“आगे बढ़ो।”
“सबसे पहले मैं उस टंकी में दाखिल हुआ - सैंडी बोला - और पूरे दो मिनट बाद बाहर निकला, ऐना और रोहताश एक मिनट तीस सेकेंड में, जबकि नैना डेढ़ मिनट में ही बाहर आ गयी थी। उसके बाद राहुल भीतर गया और तीस सेकेंड के अंदर अपना सिर बाहर निकालते हुए बोला कि उसे चक्कर आ रहे थे। वह बहुत हिम्मती लड़का था इंस्पेक्टर साहब इसलिए उस बात पर हमें हैरानी हुई। हम तो ये तक कहने लगे कि वह जानबूझकर हारना चाहता था ताकि किडनैपिंग का मौका उसे हासिल हो पाता। तब उसने ये कहकर बात खत्म कर दी कि घर से निकलते वक्त उसने ड्रिंक कर लिया था, शायद इसीलिए वैसा हो रहा था।”
“कुल मिलाकर वह हार गया?”
“जी हां, क्योंकि बाकी सब लोग उससे कहीं ज्यादा देर तक पानी के नीचे रहकर आये थे।”
“फिर?”
“उसका हारना सुनिश्चित हो गया तो उसके अलावा हम सबने जमकर ड्रिंक किया, उसने इसलिए नहीं किया क्योंकि उसकी हालत पहले से खराब थी, ऊपर से किडनैपिंग में उसका नशा आड़े आ सकता था। आखिरकार मैंने अपनी रिवाल्वर को अनलोड कर के उसे थमाया और सजा भुगतने को कह दिया - सैंडी बता रहा था - खाली गन मेरे हाथों से लेकर राहुल अभी सीढ़ियों के दरवाजे की तरफ बढ़ा ही था, कि तभी वहां जलती लाईट बुझ गयी, म्युजिक बंद हो गया, जो कि बेहद हैरानी की बात थी।”
“उसके बाद हम सीढ़ियों के दरवाजे तक पहुंचे तो वह भी दूसरी तरफ से बंद मिला - इस बार रोहताश ने बताना शुरू किया - फिर हमने वो देखा जो जिंदगी में उससे पहले कभी नहीं देखा था। सफेद कपड़ों में लिपटी एक बला की खूबसूरत औरत हमारे सामने खड़ी जोर जोर से हंसे जा रही थी। भयानक और रोंगटे खड़े कर देने वाली हंसी। जबकि लग कोई आसमानी परी रही थी।”
“अंधेरे में उसकी खूबसूरती दिखाई दे गयी थी?”
“हां, क्योंकि हवेली जैसा घुप्प अंधेरा वहां नहीं था। हमें तो उसे देखने के लिए मोबाईल का टॉर्च भी नहीं जलाना पड़ा। नशे में तो थे ही, ऊपर से भूत प्रेत जैसी बातों पर यकीन भी नहीं था तब तक, इसलिए चुहल के लिए उससे सवाल जवाब भी करने लगे।”
“कैसे सवाल?”
“जैसे कि वह कौन थी, और वहां क्या कर रही थी?”
“क्या हम चारों लड़कों की रात रंगीन करने आई थी?”
“या हममें से कोई एक पसंद आ गया था उसे?”
“हमने तो उसे ड्रिंक भी ऑफर किया था सर।”
“जवाब मिला?”
“हां मिला, एकदम अप्रत्याशित जवाब।”
“क्या?”
“उसने अपना एक हाथ राहुल की तरफ फैलाया फिर अचानक ही उसकी बांह लंबी होती चली गयी, वह हमसे छह-सात फीट दूर खड़ी थी, मगर हमारे देखते ही देखते उसका बढ़ता हुआ हाथ राहुल की गर्दन पर कस सा गया। उसके मुंह से गों गों की आवाजें निकलने लगीं। फिर उसने राहुल को यूं ऊपर उठा लिया जैसे उसके शरीर में कोई वजन ही न हो। बौखलाहट में राहुल को छुड़ाने के लिए हमने उस औरत पर हमला करना चाहा तो ये देखकर सन्न रह गये कि जिधर भी हाथ चलाते वह उसके शरीर के आर-पार गुजर जाता।”
“फिर?” विराट ने बड़े ही सब्र के साथ पूछा।
“देखते ही देखते दोनों के शरीर हवा में ऊपर उठते चले गये। हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, इसलिए बस राहुल राहुल चिल्लाते रहे, आखिर एक वक्त वह भी आया जब आसमान में ऊंचा पहुंचकर वह दोनों हमें दिखाई देने बंद हो गये।”
“बेबी - ऐना बोली - इंस्पेक्टर साहब को उस सांग के बारे में भी तो बताओ जो अचानक ही वहां रखे हमारे म्यूजिक सिस्टम में प्ले होने लगा था।”
“कैसा सांग?” विराट ने पूछा।
“गुमनाम है कोई - वाणी बाकायदा लय के साथ गाने लगी - बदनाम है कोई, किसको खबर, कौन है वो, अंजान है कोई।”
विराट ने कस के लड़की को घूरा।
“सॉरी सर - उसने सकपका कर गाना बंद कर दिया - जानती हूं मेरी आवाज ज्यादा अच्छी नहीं है - फिर नैना की तरफ देखती हुई बोली - तू क्यों नहीं सुना देती? आखिरी राहुल तेरी आवाज को लता जी की आवाज जैसा बताया करता था।”
“ओके गाती हूं...”
“शटअप - विराट का लहजा अचानक ही कर्कश हो उठा - तुम लोगों को लगता है यहां कोई मजाक चल रहा है? अगर लगता है तो साफ बोलो ताकि तुम सबको उस खातिरदारी से नवाजा जा सके, जिसका हकदार यहां पहुंचा हर मुजरिम होता है।”
“आप कहीं ये तो नहीं कह रहे इंस्पेक्टर कि - अरसद धीरे से बोला - ब्रेक फॉस्ट के साथ-साथ ड्रिंक का भी इंतजाम हो सकता है यहां?”
सुनकर विराट को गुस्सा तो क्या आता, उसके लिए अपनी हंसी दबाना भी मुश्किल हो गया।
“अगर ऐसा है इंस्पेक्टर साहब तो थैंक यू - ऐना बोली - क्योंकि हम सब हैंगओवर से परेशान हैं, सिर मारे दर्द के फटा जा रहा है। इसलिए जो करना है जल्दी कीजिए, सवाल जवाब तो आप बाद में भी कर सकते हैं।”
“ये बच्चे नहीं हैं सर, आप खामख्वाह इनका लिहाज कर रहे हैं - जोशी दांत पीसता हुआ बोला - लातों के भूत जान पड़ते हैं, बातों का तो भला क्या असर होगा इनपर।”
“वो चुडै़ल या जो कोई भी थी, राहुल को लेकर पक्का ऊपर की तरफ ही निकली थी, या कहीं दायें बायें, जैसे कि पास की किसी दूसरी छत पर चली गयी हो? - जोशी के कहे को नजरअंदाज कर के वह बोला - जवाब ये सोचकर देना कि उस वक्त तुम सब के सब नशे में थे, इसलिए गलफत हो जाना बहुत मामूली बात है।”
“नहीं सर, अगल-बगल जाती दिखी होती तो हम यही सोचते कि किसी ने कोई करतब दिखाकर हमारे दोस्त को गायब कर दिया था, मगर हवा में ऊपर उठते चले जाना, वह भी साठ-सत्तर किलो के लड़के की गर्दन महज एक हाथ से थामें, हमारी तो सांस ही अटक गयी थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई हॉरर मूवी देख रहे हों।”
“काश वह मूवी ही रही होती इंस्पेक्टर - अरसद का लहजा इस बार बड़ा ही गमगीन था - तो आज राहुल हमारे बीच होता।”
“उसकी गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस ने तुम लोगों से पूछताछ तो की होगी, है न?”
“जी किया तो बराबर था, मगर हमें कुछ पता होता तब तो बताते। और जो पता था उसके बारे में जुबान खोलने का मतलब था अपना मजाक उड़वाना, क्योंकि तब तक भूत प्रेतों के अस्तित्व पर हममें से किसी को भी यकीन नहीं था, पुलिस को तो क्या दिला पाये होते।”
“यानि चुडै़ल वाली बात तुम लोगों ने इंवेस्टिगेशन ऑफिसर से छिपा ली थी?”
“जी ऐसा ही किया था?”
“आज क्यों बता रहे हो?”
“क्योंकि वैसा ही दूसरा हादसा अब हनी के साथ घटित हो चुका है। और दोनों बार हम किसी वहम का शिकार हुए नहीं हो सकते, चाहे कितने भी नशे में क्यों न रहे हों। यही वजह है कि आपके पूछने पर सबकुछ सच सच बता दिया। कोई एक बात भी छिपाने की कोशिश नहीं की।”
विराट ने जोशी की तरफ देखा।
“इनमें से किसी से भी पूछताछ के लिए बस पांच मिनट का मौका दीजिए सर। बेसिर पैर की बातें करना भूल जायेंगे। फिर इन्हें ये भी याद आ जायेगा कि राहुल को कोई चुड़ैल नहीं ले गयी थी? हनी को किसी चंद्रशेखर महाराज की आत्मा ने नहीं अगवा कर लिया था।”
“आपको लगता है हम पापी झूठ बोल रहे हैं?” सैंडी ने पूछा।
“हां यही लगता है - जोशी गरजकर बोला - झूठ ही बोल रहे हो तुम सब। और इसलिए बोल रहे हो क्योंकि राहुल और हनी दोनों का कत्ल तुम लोगों ने ही किया है।”
“आप भूल रहे हैं कि राहुल की मौत के वक्त मैं उस पार्टी में नहीं था।” जयदीप बोला।
“बाकी तो थे?”
“तो क्या हनी भी उसके कत्ल में शामिल थी, अगर ऐसा था तो अब खुद क्यों गायब हो गयी वह? - सैंडी थोड़ा आवेश में बोला - किसी पर कत्ल का इल्जाम लगा देना और बात होती है इंस्पेक्टर साहब, मगर उसे साबित करना कहीं ज्यादा मुश्किल काम होता है। आप हम दोस्तों पर शक जरूर कर सकते हैं, मगर साबित कुछ नहीं कर पायेंगे, क्योंकि सच यही है कि जो कुछ भी घटित हुआ था वह किसी इंसान का किया धरा नहीं था।”
“कानून ऐसी बातों पर यकीन नहीं करता बच्चे।”
“ना करे - रोहताश बोला - उससे क्या ये सच्चाई बदल जायेगी कि आपका डिपार्टमेंट राहुल को जिंदा या मुर्दा आज तक तलाश नहीं कर पाया है। फिर ये भी तो सोचिये कि अगर वैसा नहीं हुआ होता तो क्या बाद में होटल से बाहर जाते समय राहुल हमारे साथ नहीं होता, आगे पीछे भी नहीं होता? अकेले भी नहीं होता? क्योंकि होता तो वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में जरूर दिखाई दे गया होता।”
“अच्छा पल भर के लिए मान लो कि राहुल या मधु के साथ तुम लोगों ने जो कुछ भी होते देखा, वह किसी की सोची समझी चाल थी। भले ही एक नजर देखने पर वह पिशाच लीला जान पड़ती है, फिर भी थोड़ी देर के लिए मान लो कि दोनों किसी के षड़यंत्र का शिकार हो गये थे, ना कि कोई भूत उन्हें उठा ले गया।”
“ठीक है आप कहते हैं तो मान लेते हैं।”
“गुड, ऐसे में क्या तुम्हें कुछ भी ऐसा सूझता है जिसके कारण किसी ने उनका कत्ल कर दिया हो? जैसे कि दोनों का कोई दुश्मन, या उनके परिवार वालों की किसी के साथ रंजिश रही हो? छोटी मोटी ही सही।”
“नहीं सर ऐसा कुछ नहीं था। हम पापी दुश्मनी में यकीन नहीं रखते और दोनों के घरवालों को बिजनेस से फुर्सत मिले तब तो दुश्मन पालेंगे, बल्कि हमारे खुद के पेरेंट्स का भी हाल कुछ कुछ वैसा ही है। सब अपने अपने काम धंधों मे व्यस्त हैं।”
“तुम लोग मेरी बात को गंभीरता से नहीं ले रहे। दोनों का अगर सच में कत्ल किया जा चुका है तो कोई तो वजह यकीनन रही होगी, खामख्वाह तो कोई किसी की जान नहीं ले लेता?”
“यही तो हम भी कहना चाहते हैं सर कि बिना वजह कोई किसी की जान नहीं ले सकता। इसलिए आप माने या न मानें, जो हुआ वह पूरी तरह पैरानार्मल ही था। इंसान हवा में नहीं उड़ सकता। किसी दूसरे को उड़ने के लिए मजबूर भी नहीं कर सकता।”
“ऐसी पैरानार्मल एक्टीविटीज जिसमें दोनों बार बस तुम्हारे ‘गेम ऑफ डैथ’ में हार चुके लोगों को ही निशाना बनाया गया, ऐसा क्योंकर हुआ?”
“वह को-इंसीडेंट भी रहा हो सकता है।”
उस बात पर बहस करने की बजाये विराट ने नया सवाल किया, “सुना है मधु की शादी होने वाली थी?”
“ठीक सुना है, बहुत एक्साइटेड थी वह अपनी शादी को लेकर।”
“किसके साथ होने जा रही थी?”
“मनीराज गोपालन के साथ, हनी उसे मनी कहकर बुलाती थी।”
“मिलना जुलना होता था दोनों के बीच?”
“ज्यादा नहीं होता था।”
“क्यों, आजकल तो ऐसी बातें खूब प्रचलन में हैं?”
“पक्का नहीं पता इंस्पेक्टर साहब - नैना बोली - लेकिन मुझे लगता था जैसे मनीराज हनी को कोई ज्यादा पसंद नहीं करता था। बट इतना श्योर है कि शादी वाली बात पर कभी मीन मेख नहीं निकाला था उसने।”
“लड़का कैसा है मनीराज?”
“हैंडसम है, नौजवान है - कहकर उसने ऐना की तरफ देखा - लेकिन इसे जरा भी पसंद नहीं आता था। सच पूछिये तो उसके शौक इतने निराले थे कि शायद ही आज के जमाने की किसी लड़की को इत्तेफाक हो पाता। हां हनी को उस फ्रंट पर कोई ऐतराज नहीं था।”
“तुम्हें पसंद ना आने की कोई खास वजह?” विराट ने ऐना से पूछा।
“अजीब नमूना है इंस्पेक्टर साहब। एक बार जब हनी नैना, वाणी और मुझे उससे मिलवाने ले गयी तो बच्चों की तरह जिद करने लगा कि चलो सर्कस देखने चलते हैं। ये तो हद ही हो गयी। वह चाहता तो हमें कोई मूवी दिखा सकता था, डिस्को ले जा सकता था, मगर नहीं उसे तो बस सर्कस देखना था, जो कि जहर का घूंट पीते हुए हमें देखना ही पड़ा, और पता है कहां जाकर देखा था?”
“कहां?”
“मुंबई में।”
“फिर तो वाकई में नमूना ही हुआ।”
“और मैं क्या कह रही हूं।”
विराट ने नैना की तरफ देखा, “तुम तो राहुल की गर्लफ्रैंड हुआ करती थीं, ऐसे में एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ सहज ही पता लग जाता है। जबकि तुम भी बाकियों की तरह साफ इंकार किये दे रही हो।”
“मैं उसके बारे में सबकुछ जानती थी इंस्पेक्टर, लेकिन ऐसा कुछ नहीं पता जिससे उसकी किसी के साथ दुश्मनी जैसी बात सामने आती हो। बहुत अच्छा लड़का था, गायब न हो गया होता तो शायद हमने शादी भी कर ली होती। मैं तो आज भी उम्मीद करती हूं कि किसी दिन लौटकर अचानक मेरे सामने आ खड़ा होगा।” कहते हुए उसका स्वर कुछ भर्रा सा गया।
“और कुछ जो तुम लोग अपनी तरफ से बताना चाहो?”
“देखिये इंस्पेक्टर साहब, दोनों घटनाओं के बीच समानता बस यही है कि दोनों ही बार कुछ पैरानॉर्मल चीजें घटित हुई थीं - सैंडी बोला - लेकिन एक पल को अगर हम मान लें कि हनी की मौत का राहुल की मौत से कोई लेना देना नहीं था, और हवेली में हमारे साथ जो कुछ घटित हुआ वह भूत प्रेत का कारनामा नहीं था, तो ऐसे में मेरा ध्यान बार-बार तिमारपुर गांव के मुखिया की तरफ जाता है, क्योंकि हमारे वहां पहुंचने के साथ ही वह अपने तीन दोस्तों के साथ वहां आ खड़ा हुआ था।” कहकर उसने मुखिया के साथ हुआ तमाम वार्तालाप ज्यों का त्यों दोहरा दिया।
“शुक्र है कोई तो काम की जानकारी दी तुमने, वरना अभी तक तो बस बोले ही जा रहे थे, कह कुछ नहीं रहे थे।”
“वह तो ठीक है सर, लेकिन मुखिया की उम्र कम से कम भी पचास साल तो जरूर होगी। कैसे वह हवेली में उस तरह की घटनाओं का जाल बिछा सकता था, जो हमें वहां घटित होती दिखाई दी थीं?”
“डोंट वरी सब मालूम पड़ जायेगा। जल्दी ही हम असलियत की तह तक पहुंच जायेंगे क्योंकि हमेशा से ऐसा ही होता आ रहा है। इस बार भी जरूर होगा।”
“तब तक क्या हमें भूखे रहना होगा?” वाणी ने बेचारों की तरह मुंह बनाकर दिखाया।
“नहीं, अब तुम लोग जा सकते हो। बाद में कोई खास बात याद आ जाये तो इंफॉर्म करना मत भूलना, नंबर नोट कर लो मेरा।”
“थैंक यू सर।” सब एक साथ बोल पड़े, फिर सैंडी ने विराट का मोबाईल नंबर नोट किया और अपने दोस्तों के साथ हॉल से बाहर निकल गया।
कसमसाता सा जोशी विराट के सामने आकर बैठ गया।
“ये सब क्या है सर?”
“कहां क्या है?”
“हम भूत प्रेतों पर कब से यकीन करने लगे?”
“किसने कहा कि हम कर रहे हैं?”
“साफ-साफ भले ही नहीं कहा, मगर जो ढील आप इस पूरे मामले में बरत रहे हैं, उसको देखते हुए और क्या सोचूं मैं?”
“बात ये है जोशी साहब कि मैं इससे कहीं ज्यादा भयानक नजारे कर चुका हूं, इसलिए मुझे लगता है कि बच्चे जो बोलकर गये हैं वह सच भी हो सकता है।”
“या उसी तरह की कहानियां सुना रहे हैं जैसी हमें शेरगिल हत्याकांड में सबके मुंह से सुनने को मिली थीं, जिन्हें सुनकर एक बार को तो मैं यकीन भी करने लगा था कि केस में भूत प्रेतों का कोई न कोई चक्कर जरूर है।”
“हवेली का माहौल, उसके बारे में हर तरफ से सुनाई दे रही बातें, घटनास्थल के भीतर और बाहर फैला खून इस बात को नकारता है कि सातों झूठ बोल रहे हैं। हां इसमें कोई शक नहीं कि राहुल और मधु किसी ना किसी साजिश शिकार बन चुके हैं।”
“साजिश का कोई ओर छोर भी तो हो सर, किसी की बांह चार-पांच फीट लंबी होती चली जाये, कोई एक हट्टे कट्टे लड़के की गर्दन पकड़कर हवा में उड़ता चला जाये, हॉल में बैठी लड़की अचानक टाटा बाय-बाय कहती हुई बिना किसी सहारे के छत की तरफ बढ़ती चली जाये, ये सब कैसे मुमकिन है?”
“हुआ फिर भी हो सकता है, कैसे हुआ इस बात का पता हमें लगाना है। फिर बताया न मैंने कि इससे कहीं भयानक चीजें अपनी आंखों से देख चुका हूं। एक बार तो ऐसी चुड़ैल से पाला पड़ा था जो हवा में उल्टा लटक सकती थी, मुंह से आग की लपटें निकाल सकती थी, और ऐसे कहकहे लगा सकती है जिसे सुनकर ही अच्छे अच्छों की पैंट गीली हो जाये।”
“आपकी माया आप ही जाने प्रभु, ये बताइये कि इस बालक के लिए आगे क्या आज्ञा है?”
“चलो जरा मनीराज गोपालन से मिलने की कोशिश कर के देखते हैं, पता तो लगे कि अपनी मंगेतर की मौत का गम वह कैसे गलत कर रहा है?”
“मौत की पुष्टि अभी हुई कहां है?”
“लाश मिलना भर बाकी है जोशी साहब, जो कि देर सबेर हम ढूंढ ही लेंगे। ना कि उनके मर चुका होने पर कोई संदेह है मुझे।”
“जाने से पहले मनीराज को फोन क्यों न कर लें?”
“घर पर नहीं मिला तो फोन भी करेंगे।”
कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ।
के.एस. गोपालन का आवास खान मार्केट के करीब एक सरकारी बंगले में था। वह पूरा का पूरा एरिया हाई सिक्योरिटी जोन में आता था, इसलिए बिना जांच पड़ताल के कोई उस इलाके में कदम नहीं रख सकता था, मिनिस्टर के आवास तक पहुंच पाना तो बहुत दूर की बात थी।
फॉर्च्यूनर को गली के बाहर ही रोक लिया गया। वहां छह पुलिसकर्मी  बैरिकेडिंग लगाकर खड़े थे, जिनमें से सबसे बड़े ओहदे वाला ऑफिसर सब इंस्पेक्टर की रैंक का था।
“इधर नो एंट्री है सर।” ड्राईविंग विंडो के पास पहुंचकर, विराट का अभिवादन करने के बाद वह बोला।
जवाब में विराट ने अपने आने का मंतव्य बताया तो एसआई ने सिपाही से मांगकर एक रजिस्टर उसके हाथों में थमा दिया। विराट ने उसपर अपना नाम, बैज नंबर, गाड़ी का नंबर, कहां जा रहा था, क्यों जा रहा था और मोबाईल नंबर लिखकर साईन करने के बाद रजिस्टर वापिस लौटा दिया।
तत्पश्चात उन्हें आगे जाने की इजाजत दे दी गयी।
मिनिस्टर के आवास पर एक हैडकांस्टेबल समेत चार हथियारबंद पुलिसकर्मी पहरा दे रहे थे। उन सब ने गाड़ी से उतरते के साथ ही विराट और जोशी को सेल्यूट किया, फिर हवलदार थोड़ा आगे बढ़कर उनके सामने आ खड़ा हुआ।
“मिनिस्टर साहब का लड़का है भीतर?” विराट ने पूछा।
“जी जनाब, अभी बीस-पच्चीस मिनट पहले ही कहीं से वापिस लौटा है।”
“मिजाज कैसा है उसका?”
“ठीक ही है, सबसे बहुत ढंग से पेश आता है। हम लोगों को भी आप कहकर बुलाता है। बाकी अंदर की बात तो हमें क्या पता हो सकती है।”
“उसे हमारे आगमन की खबर देनी हो तो कैसे दोगे?”
“केबिन में एक फोन लगा हुआ है जनाब, उसी के जरिये इंफॉर्म कर सकते हैं, क्योंकि भीतर जाने की इजाजत तो यहां किसी को भी नहीं है।”
“ठीक है उसके मोबाईल पर कॉल कर के बताओ कि हम उससे मधु कोठारी के बारे में कुछ सवाल करना चाहते हैं। तैयार हो गया तो ठीक वरना कोई और रास्ता निकालेंगे।”
“ठीक है सर।” कहकर हवलदार वहां बने लकड़ी के केबिन में जा घुसा, और मिनट भर बाद लौटकर खबर दी कि पांच मिनट इंतजार करने को बोला गया है।
“बात तुम्हारी मनीराज से ही हुई थी?”
“जी जनाब।”
“ठीक है कर लेते हैं वेट।”
पांच मिनट का वह वक्फा पूरे पंद्रह मिनट का साबित हुआ, जो कि आम हो ही जाया करता है। फिर काले रंग का सफारी सूट पहने, कमर पर होलस्टर बांधे, एक खूब हट्टा-कट्टा शख्स गेट से बाहर निकलता दिखाई दिया।
“ये कौन है?” विराट ने धीरे से पूछा।
“यहां का सिक्योरिटी चीफ है सर - हवलदार दबे लहजे में बोला - नाम है उत्कर्ष ताबेदार, बहुत खतरनाक आदमी बताया जाता है, और बद्तमीज तो अव्वल दर्जे का है।”
तभी वह शख्स उनके करीब पहुंच गया।
ना कोई हॉय ना हैलो, उसने तो सीधा हुक्म दनदना दिया, “आप दोनों में से कोई एक ही भीतर जा सकता है।”
सुनकर विराट को गुस्सा तो बहुत आया, मगर कर भी क्या सकता था। जबकि होने को ये भी हो सकता था कि मनिराज उनसे मिलने से ही इंकार कर देता। आखिर मिनिस्टर का बेटा था, इतना तो उसका हक बनता था।
“ठीक है मैं चलता हूं।”
“गन यहीं गेट पर छोड़नी होगी, मोबाईल भी। साथ में कुछ और है तो वह भी। सामान लेकर अंदर जाने की परमिशन नहीं है।”
“ठीक है भाई।” कहते हुए विराट ने सर्विस रिवाल्वर और मोबाईल जोशी के हवाले कर दिया।
तत्पश्चात उत्कर्ष ताबेदार ने उसकी जमकर तलाशी ली, यहां तक कि जेब में मौजूद पेन और पर्स भी वहीं रखवा दिया, जबकि वैसा करने की प्रत्यक्षतः कोई जरूरत नहीं दिखाई दे रही थी।
आगे पीछे चलते दोनों गेट से भीतर दाखिल हुए तो सामने करीब बीस मीटर लंबा ड्राईवे दिखाई दिया जिसके दोनों तरफ पेड़ लगे हुए थे और रास्ते पर लाल बजरी बिछी थी।
लाल बजरी जो कि अमूमन सभी सरकारी आवासों पर दिखाई दे जाती थी। खास तौर से अगर वहां रहने वाला कोई मिनिस्टर या उच्च पदस्थ अधिकारी हो।
उस रास्ते पर ताबेदार बस दस कदम ही आगे बढ़ा फिर दायें मुड़कर लॉन में दाखिल हो गया, जहां उगी घास बड़े ही करीने से तराशी गयी मालूम पड़ रही थी।
थोड़ा आगे, एक दूसरे से करीब पंद्रह फीट के फासले पर दो लोहे के खंबे गड़े थे। उनके बीच एक मोटी रस्सी बंधी हुई थी जिसपर पाजामा कुर्ता पहने एक लड़का नंगे पांव चलता दिखाई दिया। दोनों हाथों से वह एक बड़ी सी लाठी थामे हुए था, जो शायद इसलिए थी कि अगर गिरने लगे तो उसके सहारे खुद चोटिल होने से बचा सके।
ताबेदार के साथ चलता विराट उससे कुछ कदमों की दूरी पर ठिठक कर हैरानी से वह नजारा देखने लगा, फिर जैसे ही लड़के की निगाह उसपर पड़ी उसने हाथ में थमी लाठी का एक सिरा जमीन पर टिकाया और उसके सहारे सात-आठ फीट लंबी जंप लगाकर एकदम विराट के सामने आ खड़ा हुआ।
“आइए इंस्पेक्टर - लॉन में एक टेबल के इर्द गिर्द रखी कुर्सियों की तरफ इशारा करता हुआ वह बोला - आराम से बैठकर बात करते हैं।”
तब जाकर विराट को इस बात का यकीन आया कि वही मनीराज था।
“उत्कर्ष।” बैठ चुकने के बाद मनी बोला।
“यस सर?”
“तुम जा सकते हो भई, यहां तुम्हारा कोई काम नहीं है, फिर भी कोई जरूरत दिखाई दी तो मैं कॉल कर लूंगा।”
ताबेदार हिचकिचाया।
“बात को समझो यार, मुझे इंस्पेक्टर के साथ कुछ प्राईवेट बात करनी है, जो कि तुम्हारे सामने नहीं कर सकता। बल्कि वैसी बातें तुम खुद ही सुनना पसंद नहीं करोगे।”
“मैं समझ गया सर।” कहकर वह वापिस लौट गया।
मनीराज ने थोड़ा आगे की तरफ झुककर विराट की वर्दी पर लगी नेमप्लेट को पढ़ा फिर बोला, “तो तुम्हारा नाम विराट सिंह राणा है?”
“शुक्र है।”
“किस बात का?”
“आज के जमाने में भी तुम्हारे जैसे लड़के हिंदी पढ़ लेते हैं। ‘तुम’ ठीक है न? या ‘आप’ कहकर बुलाऊं, अगर बुरा लग रहा हो तो?”
“अरे नहीं यार, फिर तुम्हारी उम्र भी मुझसे ज्यादा है, इसलिए ‘तुम’ बढ़िया रहेगा। वैसे भी ‘आप’ की बजाये जब हम किसी को ‘तुम’ कहते हैं तो नजदीकी का एहसास होता है, एक जैसा होने का भी - कहकर उसने पूछा - बताओ क्या जानना चाहते हो?”
“पता तो लग ही गया होगा?”
“हां लग गया, संडे को ही लग गया, जब कोठारी अंकल ने फोन कर के मुझसे पूछा कि मधु की कोई खबर है या नहीं?”
“क्या जवाब दिया?”
“वही जो कि सच था, ‘मैं नहीं जानता वह कहां है’, हां इतना जरूर बताया कि होगी अपने अजीबो गरीब दोस्तों के ही साथ, जो इतने अजीब हैं कि मुझे उनके इंसान होने पर भी हैरानी होती है। सबके सब एकदम खिसके हुए जान पड़ते हैं।”
“ऐसा क्या देख लिया?”
“तुम मिले हो उनसे? नहीं मिले कहां होगे, आखिर मधु के साथ साथ उसके बाकी के दोस्त भी तो लापता हैं।”
“अब नहीं हैं, कल रात को हमने उन सातों को ढूंढ निकाला था।”
“सातों को? यानि मधु नहीं मिली, या उनमें से कोई और कम निकल आया?”
“नहीं, बस मधु ही गायब है।”
“एनी वे, जब उनसे मिल चुके हो तो जानते ही होगे कि किस तरह का किरदार है उन लोगों का।”
“नहीं मैं नहीं जानता। मुझे तो सब ठीक ठाक ही लगे थे। सिवाय इसके कि थोड़े बिगड़ैल किस्म के और बातूनी दिखाई देते हैं।”
“पुलिस के सामने अच्छा बनने का नाटक कर रहे होंगे, वरना सब के सब अव्वल दर्जे के चरसी हैं। खुद को पापी कहकर बुलाते हैं। ये भी कहते हैं कि जीवन-मरण और सुख-दुःख जैसी बातों से सर्वथा परे हैं। जरा देखो तो, भला कोई समझदार इंसान ऐसा कह सकता है?”
“कहते ही तो हैं, असल में भी हैं इसकी गारंटी कैसे की जा सकती है?”
“यू हैव अ प्वाइंट, सब दिखावा भी हो सकता है उनका - कहकर क्षण भर को रुकने के बाद वह आगे बोला - देखो अगर तुम सिर्फ मधु की गुमशुदगी के बारे में पूछताछ करने आये हो तो बेकार ही तकलीफ की, क्योंकि मुझे उस बारे में कुछ नहीं पता।”
“कोई अंदाजा ही बता दो कि कहां गयी हो सकती है?”
“मुझे नहीं है, और अगर उसके दोस्त - जैसा कि तुम बताकर हटे हो - वापिस लौट आये हैं। तो मेरे ख्याल से तुम्हें उन्हीं से पूछताछ करनी चाहिए। मधु के बारे में उनसे ज्यादा कोई नहीं जानता होगा। मैं तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि कई मुलाकातों के बाद भी मैं उस लड़की को समझने में कामयाब नहीं हो पाया।”
“बावजूद इसके कि तुम दोनों की शादी होने जा रही है?”
“मैं नहीं कर रहा भाई, डैड करवा रहे हैं।”
“दोनों बातों में कोई फर्क?”
“बहुत बड़ा फर्क है। तुम मुझे गोली मार दो ये एक बात है, कोई तुमसे जबरन मुझपर गोली चलवा दे, वह जुदा बात है।”
“लड़की को तुम्हारे ऊपर थोपा जा रहा है?”
“अपने मन की कहूं तो हां, मगर डैड को अपनी दोस्ती निभानी है, कहते हैं कोठारी को जुबान दे चुके हैं। जैसे राजा हरिश्चंद के बाद अपने कौल पर डटे रहने का ठेका उन्होंने ही ले रखा है।”
“साफ-साफ इंकार क्यों नहीं कर देते? नहीं पसंद तो ना सही, आखिर पूरी जिंदगी का सवाल है, ऐसे में समझौता करना तो बेवकूफी ही मानी जायेगी।”
“हिम्मत ही नहीं होती यार, डैड की मर्जी के खिलाफ जाने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकता, इसलिए अगर वह मिल जाती है, जिंदा मिल जाती है, तो समझ लो शादी होकर रहेगी।”
“नापसंद क्यों है वह तुम्हें?”
“कोई एक ऐब हो तो कहूं, उसका तो जैसे किरदार ही बहुत सारे ऐबों को मिलाकर गढ़ा गया है। स्मैक लेती है, शराब पीती है, चेन स्मोकर है। फिर एक लड़के के साथ अफेयर भी तो है उसका, जो कि उनकी पापी मंडली का ही हिस्सा है। ऐसी लड़की से भला मैं अपनी मर्जी से शादी क्यों करने लगा?”
“अफेयर वाली बात का पता कैसे लगा?”
“बता सकता हूं, अगर उस बात को यहीं भूल जाने का वादा करो।”
“किया।”
“मुकरना मत विराट साहब, वरना कहीं डैड को भनक लग गयी तो उल्टा लटका देंगे मुझे।”
“इतना डरते हो?”
“तुम्हारी सोच से भी कहीं ज्यादा, बालिग हो चुका हूं मगर थप्पड़ मारने से पहले एक क्षण को भी विचार नहीं करते। दो बार तो भरी महफिल में जड़ चुके हैं।”
“फिर तो तुम साक्षात भगवान राम का अवतार हुए।”
“ऐसा क्यों लगता है तुम्हें?”
“आज के वक्त में 18-20 साल का कोई लड़का अपने बाप के हाथों, चार लोगों के सामने थप्पड़ खाकर चुप रह जाये तो मेरी निगाहों में तो वह राम ही है।”
“मजबूरी है यार, इधर मैंने विरोध किया नहीं कि उधर घर से बाहर।”
“ऐसा तो भला क्या करता होगा कोई?”
“मेरे डैड बराबर कर सकते हैं, तुमने उनका गुस्सा देखा नहीं है इसलिए अंदाजा नहीं लगा सकते।”
“चलो तुम कहते हो तो माने लेता हूं, अब बताओ मधु के अफेयर का पता कैसे लगा तुम्हें? और निश्चिंत रहो उस बात का जिक्र मैं किसी के आगे नहीं करूंगा।”
“थैंक यू - मनीराज ने बताना शुरू किया - उसका किसी के साथ अफेयर होने का शक मुझे सात-आठ महीने पहले हुआ था। इसलिए हुआ क्योंकि उसकी पापी मंडली में जितने लड़के थे उतनी ही लड़कियां थीं। यानि सब जोड़ों की शक्ल में थे, ऐसे में उसने भी होकर रहना था। तब मैंने एक डिटेक्टिव को उसके पीछे लगा दिया। उसी ने मुझे तमाम रिपोर्ट्स दी थीं। तस्वीरें तक उतारने में कामयाब हो गया था, जो कि बहुत ज्यादा फूहड़ तो नहीं थीं, मगर रोहताश सरदाना को किस करती और उसकी गोद में बैठी बराबर दिखाई दी थी।”
“फिर तो ये भी तय रहा कि दोनों का अफेयर सीरियस नहीं है, होता तो मधु ने तुमसे शादी करने की हामी नहीं भरी होती, क्योंकि बुराई तो उस लड़के में भी नहीं दिखाई देती, मेरा इशारा उसकी हैसियत की तरफ है।”
“सही कह रहे हो, बल्कि हैसियत में तो उसका बाप मेरे डैड से बीस ही होगा। लेकिन आज के जमाने में ऐसी बातें कोई मायने नहीं रखती। बहुत कम ही ऐसे ब्वॉयफ्रैंड गर्लफ्रैंड होते हैं जो आगे चलकर वैवाहिक बंधन में बंध जाते हैं, वरना अधिकतर का हाल तो यही है कि इंजॉय किसी के साथ और शादी किसी और के साथ। फिर आज के वक्त में तो लिव इन भी खूब प्रचलित है। पहले इस्तेमाल करो फिर विश्वास करो। ना पसंद आये तो कोई दूसरा तीसरा ढूंढ लो।”
“वेरी वैल सेड, ऐसे में दुख तो क्या हुआ होगा मधु के लापता होने की खबर सुनकर?”
“सच पूछो तो नहीं ही हुआ था। उल्टा ये सोचकर मन प्रसन्न हो गया कि अगर हमेशा के लिए गायब हो गयी थी तो अच्छा ही था, इसी बहाने उससे पीछा तो छूट जायेगा मेरा।”
“या छुड़ाने में कामयाब रहे।”
“मतलब?”
“कत्ल, मधु का, ताकि तुम्हें राम बनने का मौका भी हासिल हो जाये और शादी भी न करनी पड़े।”
“डेड बॉडी बरामद हो गयी?”
“अभी नहीं, मगर होकर रहेगी।”
“तो फिर अभी से मुझे कातिल क्यों करार दे रहे हो?”
“तुम्हें यकीन है कि लाश बरामद नहीं होने वाली?”
“उम्मीद तो पूरी पूरी है, होनी होती तो अब तक हो नहीं गयी होती - कहकर वह जोर से हंसा, फिर तत्काल अपनी हंसी को ब्रेक लगाता हुआ बोला - ऐसा कुछ नहीं है इंस्पेक्टर, बेशक मैं उसके साथ शादी करने में इंट्रेस्टेड नहीं हूं, भले ही कई बार मेरे मन में ये ख्याल उठा होगा कि मधु मर जाती तो मेरा पिंड छूटता, मगर कत्ल? नो वे, कभी सोचा तक नहीं।”
“सोच लेते तो कर गुजरते?”
“इट्स वेरी हॉर्ड टू से, कर भी सकता था, नहीं भी कर सकता था। यू नो एवरीथिंग डिपेंड्स ऑन चांस, मुझे लगता कि उसका कत्ल कर के बच जाऊंगा तो शायद कर गुजरता। मगर कहा न उस बारे में कभी ख्याल तक नहीं आया।”
“भई लॉ एंड ऑर्डर मिनिस्टर के बेटे हो तुम। तुम्हारी हैसियत बड़ी है, जुर्म कर के बच निकलने के चांसेज भी दूसरों की अपेक्षा सैकड़ों गुणा बढ़ जाते हैं। फिर जिसके पास दौलत हो, ताकत हो, उसे अपने हाथों से कुछ करने की जरूरत ही कहां पड़ती है? पूरी दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो मोटी फीस के बदले किसी का भी गला काट सकते हैं।”
“कह तो तुम एकदम ठीक रहे हो इंस्पेक्टर, मगर ऐसे प्वाइंड पर बहस करने का क्या फायदा जिसका रिजल्ट पहले से ही जीरो दिखाई दे रहा हो। मान लो कि मैं कातिल हूं, तो क्या तुम्हारे सामने कबूल भी लूंगा? इसलिए जाकर केस को इंवेस्टिगेट करो, अगर सच में कत्ल हुआ है तो अपराधी के खिलाफ एविडेंस जुटाओ, और जब ये साबित करने की पोजिशन में पहुंच जाओ कि हत्यारा मैं ही हूं तो बेहिचक यहां चले आना। मैं वादा करता हूं कि अपनी गिरफ्तारी में रोड़ा अटकाने की कोई कोशिश नहीं करूंगा, डैड की पोजिशन का फायदा उठाकर बचने की भी कोशिश नहीं करूंगा।”
“वेरी नोबल ऑफ यू।”
“थैंक यू।”
“अभी थोड़ी देर पहले रस्सी पर चलने का जो हैरतअंगेज कारनामा तुम कर रहे थे, कहीं तुम्हारे सर्कस वाले शौक का ही तो हिस्सा नहीं है?”
“ओह काफी जानकारियां हासिल कर चुके लगते हो मेरे बारे में। हां ठीक कहा, सर्कस मेरा ऐसा शौक है जो अब जिंदगी का अहम हिस्सा भी बन चुका है। लोग मूवी जाते हैं, डिस्को जाते हैं, मैं सर्कस जाता हूं।”
“करतब कैसे सीख लिया?”
“प्रैक्टिस से, रोज दो घंटे अपनी इस हॉबी को देता हूं। जबकि प्रैक्टिस कई सालों से कर रहा हूं।”
“और कई सालों में अभी तक सिर्फ रस्सी पर चलना ही सीख पाये हो?”
“नहीं एक करतब और कर सकता हूं।”
“क्या?”
“मूविंग सब्जैक्ट के शोल्डर्स पर अपने कदम जमाकर खड़े रहने का।”
“तुम्हारा मतलब है किसी वॉक करते इंसान के कंधे पर खड़े रह सकते हो?” विराट को हैरानी सी हुई।
“ऑफ कोर्स रह सकता हूं, देखना चाहोगे? यहां सब इंतजाम मौजूद हैं।”
“नहीं रहने दो, मैं टिकट लेकर किसी सर्कस में हो आऊंगा।”
“तुम्हारी मर्जी।”
“एक आखिरी सवाल?”
“जितने मर्जी पूछो यार, और हां उससे पहले ये बताओ कि क्या लेना पसंद करोगे? बातों में मैं भूल ही गया कि घर पर एक मेहमान आया है।”
“मैं ड्यूटी पर हूं।”
“मेरे लिए तो मेहमान ही हो, बताओ क्या मंगाऊं? वैसे लंच का टाईम हो रहा है, तो क्यों न वही कर लिया जाये?”
“नो थैंक्स, बस एक आखिरी सवाल का जवाब दे दो, उतना ही बहुत है।”
“तुम तकल्लुफ कर रहे हो?”
“नो वे।”
“ठीक है पूछो।”
“तुम कुछ भी ऐसा जानते हो, जिससे मधु की गुमशुदगी के बारे में कयास लगाये जा सकें, उसके दोस्तों को नजरअंदाज कर के बताना।”
लड़का सोच में पड़ गया।
विराट इंतजार करने लगा।
दो मिनट बाद मनीराज ने मौन तोड़ते हुए पूछा, “कोठारी अंकल के घर गये हो कभी?”
“नहीं।”
“जाकर देखना।”
“बहुत खूबसूरत घर है उनका?”
“घर की मालकिन बहुत खूबसूरत है, इतनी ज्यादा कि अगर कोठारी अंकल की तरफ से ऑफर होता कि मैं या तो मधु से शादी कर लूं या फिर कनिका से, तो मैं फौरन कनिका के साथ ब्याह रचाने को तैयार हो जाता।”
“कनिका कौन, कहीं कोठारी साहब की बीवी तो नहीं है।”
“उसी की बात कर रहा हूं।”
“इतनी खूबसूरत है वह?”
“तुम्हारी सोच से भी कहीं ज्यादा, दुनिया में शायद ही उससे खूबसूरत हॉट और सैक्सी लड़की दूसरी होगी। उम्र भी चौबीस-पच्चीस से ज्यादा नहीं है, मैं बाईस का हूं लेकिन उससे क्या फर्क पड़ता है?”
विराट ने हैरानी से उसकी तरफ देखा, “तुम अपनी होने वाली सास के बारे में ही बात कर रहे हो न?”
“ऑफ कोर्स कर रहा हूं यार, हैरान क्यों हो रहे हो?”
“बात ही ऐसी कर रहे हो, और वह क्या चाहने भर से तुम्हारी हो जायेगी?”
“शादी की गुंजाईश तो खैर नहीं ही दिखाई देती, लेकिन मधु से शादी हो गयी तो मैं कनिका के करीब पहुंचने की कोशिश तो बराबर करूंगा। सच पूछो तो वही एक ऐसी उम्मीद है जिसके सहारे मैं मधु नामक जहर के प्याले को आत्मसात कर पाऊंगा। ये सोचकर कि बीवी पसंद नहीं तो क्या हुआ, उसकी सौतेली मां तो है न दिल बहलाने के लिए।”
सुनकर विराट की हंसी छूट गयी।
मनीराज भी हंसा।
“तुम असल में कुछ और कहना चाहते थे, महज उसके खूबसूरत होने के कारण तो कोठारी साहब के घर जाने की राय दे नहीं दी होगी?”
“ठीक कहा।”
“तो मुद्दे पर आओ प्लीज।”
“कनिका का एक ब्वॉयफ्रैंड जैसा भाई है।”
“ब्वॉयफ्रैंड जैसा भाई क्या होता है? पहले कभी नहीं सुना।”
“ऐसा भाई जो अपनी बहन के साथ बड़े ही बेतकल्लुफ ढंग से पेश आता हो। या बहन उसके साथ वैसे ही ढंग से पेश आती हो। एक बार मधु ने बताया था कि नकुल अगर कनिका का सगा भाई नहीं होता, तो उसका ब्वॉयफ्रैंड ही समझ लेती उसे।”
“ऐसा क्या देख लिया था उसने?”
“बहुत सारी बातें बताती थी वह, जैसे कि कभी कनिका बॉथरूम में हो तो भाई को आवाज लगा देती थी कि ‘नकुल जरा बेड से मेरे कपड़े दे देना’ या कभी उसकी तरफ पीठ कर के कह देती थी कि ‘नकुल जरा मेरे गाउन की जिप लगा देना’ - कहकर वह जोर से हंसता हुआ बोला - शुक्र था कोठारी अंकल के साथ इंटीमेट होते वक्त कभी ये नहीं कह दिया कि ‘नकुल जरा कंडोम थमा देना अपने जीजा को’। मतलब ये है इंस्पेक्टर साहब कि दोनों भाई बहनों की कैमेस्ट्री बेमिसाल है।”
“ये पक्का है कि सगे हैं?”
“मधु ने तो यही बताया था।”
“फिर तो वाकई हैरान कर देने वाली बात है।”
“और मैं क्या कह रहा हूं?”
“उम्र कितनी होगी?”
“नकुल की?”
“हां।”
“कनिका से चार साल छोटा है।”
“लेकिन मुद्दे से जुड़ती कोई बात तो अभी भी नहीं बताई तुमने?”
“अब बताता हूं ध्यान से सुनो। ये जो नकुल है न, वह चौबीसों घंटे कोठारी अंकल के बंगले में ही पड़ा रहता है। और कनिका अक्सर अंकल पर दबाव बनाती रहती है कि वह उसके भाई को अपने बिजनेस में हाथ बंटाने का मौका दें, जिसपर अंकल ने अभी तक तो कान धरने की कोशिश नहीं ही की है, क्या समझे?”
“कुछ भी नहीं।”
“अरे साफ तो जाहिर हो रहा है कि उन दोनों भाई बहनों की निगाह कोठारी अंकल की संपत्ति पर है। ऐसे ही कोई अपने से दोगुने उम्र के मर्द के साथ शादी थोड़े ही कर लेता है।”
“हो सकता है, मगर इसमें मधु के लापता हो जाने की बात कहां से आ गयी?”
“कोठारी अंकल की बस एक ही औलाद है मधु, और दूसरी शादी करने से भी कहीं पहले अंकल अपनी तमाम जायदाद उसके नाम कर चुके थे। इसलिए क्योंकि तब तक फिर से शादी करने का कोई ख्याल उनके जेहन में नहीं आया था। मुझे तो लगता है कि कनिका को देखकर बुढ़ापे में बौरा गये होंगे वरना उनकी उम्र क्या शादी की है?”
“कितनी है?”
“पचास को छूते जान पड़ते हैं, असल में कितनी है मैं नहीं जानता।”
“ये कोई बड़ी बात नहीं है, दूसरी शादी के लिए पचास साल की उम्र कोई हैरान करने वाली घटना नहीं है हमारे समाज में, वह भी तब जबकि मर्द दौलतमंद हो।”
“हो सकता है न हो, मगर शादी के बाद जब कनिका को ये पता लगा कि बुढ़ऊ अपनी तमाम संपत्ति बेटी के नाम किये बैठा है, तो वह अंकल पर जोर डालने लगी कि या तो आधी दौलत अपनी बीवी के नाम करे या फिर पहले वाली वसीयत को खारिज करा दे, ताकि कल को उसे कुछ हो जाये तो कनिका एकदम से सड़क पर ही न पहुंच जाये।”
“वो तो वैसे भी नहीं पहुंच सकती, कानूनन पति की जायदाद पर सबसे पहला हक उसकी बीवी का ही होता है।”
“तब होता है विराट जब कोई वसीयत सामने न हो, यहां तो पहले से ही सबकुछ मधु के नाम से है। वह रजिस्टर्ड बिल है जिसपर उंगली नहीं उठाई जा सकती। फिर भी कोर्ट कचहरी हुई तो आधी संपत्ति तो किसी भी हाल में कनिका के हाथ नहीं लगने वाली।”
“तुम कहते हो तो माने लेता हूं, मगर मतलब क्या हुआ इसका? कहीं ये तो नहीं कहना चाहते कि जायदाद पर कब्जा कायम करने के लिए कनिका ने ही किसी तरह मधु को अपने रास्ते से हटा दिया?”
“क्यों, तुम्हें कोई बहुत बड़ी बात दिखाई देती है ये, ऐसी बात जो पहले कभी घटित ही नहीं हुई हो?”
“नहीं इतनी बड़ी तो नहीं है, मगर...”
“क्या मगर?”
“तुम भूत प्रेतों के अस्तित्व पर यकीन करते हो?”
“बिल्कुल करता हूं भई, एक बार बालाजी गया था तो वहां ऐसे जाने कितने लोग दिखाई दिये जिनपर प्रेतात्माओं ने अपना कब्जा जमा रखा था। और मैं मान ही नहीं सकता कि वह सब के सब वहां बैठे नौटंकी कर रहे थे।”
“फिर तो बात ही खत्म हो गयी।”
“तुम कहो तो सही क्या कहना चाहते थे?”
“मधु के दोस्तों का कहना है कि उसे कोई प्रेत उठाकर ले गया था।”
“वॉट?”
“साथ ही बहुत सारी ऐसी बातें, और उस रात घटित हुई घटनाओं के बारे में भी बताया जो आंशिक रूप से उनके कहे को सच साबित करती थीं, भले ही असल में वह किसी की चाल ही क्यों न रही हो।”
“सचमुच का भूत ही क्यों नहीं हो सकता?”
“क्योंकि मुझे ऐसी चीजों पर जरा भी यकीन नहीं है, और हमारा कानून भी इसे नहीं मानता।”
“ईश्वर पर यकीन करते हो?”
“हां करता हूं, आगे तुम क्या कहने वाले हो वह भी जानता हूं, इसलिए जवाब पहले ही दिये देता हूं। नहीं मैंने ईश्वर को कभी नहीं देखा, मगर उसके होने का एहसास कदम कदम पर महसूस होता है मुझे। जबकि भूत प्रेतों का नहीं होता, इसलिए मैं उनपर यकीन नहीं करता।”
“ये तो बहुत गलत बात है भई, माने जिस चीज पर तुम्हें यकीन है, वह सही है, और जिसपर तुम्हें यकीन नहीं उसका कोई अस्तीत्व ही नहीं, चाहे आधी दुनिया उसे सच मानती हो।”
“है तो कुछ ऐसा ही, मगर बहस करने के लिए ना तो ये सही सब्जेक्ट है, ना ही तुम्हारे या मेरे पास इसके लिए वक्त है, इसलिए अब इजाजत चाहूंगा।”
“ऐज यू विश, बाद में कुछ नया पूछना याद आ जाये तो बेझिझक यहां आ सकते हो, चाहो तो मेरा नंबर ले लो।”
“वह मेरे पास पहले से है, थैंक यू।” कहकर विराट बाहर की तरफ चल पड़ा।
गेट पर हवलदार से अपना सामान कलैक्ट करने के बाद वह गाड़ी में सवार हुआ तो जोशी ने बड़ी उत्सुकता के साथ प्रश्न किया, “कुछ बात बनी सर?”
“हां बनी, उससे कहीं ज्यादा बनी जितने की मैं उम्मीद कर रहा था।”
“थैंक्स गॉड कि केस सॉल्व हो गया।”
विराट ने घूर कर उसे देखा।
“मतलब कि - जोशी ने सकपकाने की एक्टिंग की - इतना न बना कि केस ही सॉल्व हो जाये, है न सर?”
“हां ऐसा ही है, गाड़ी चलाओ।” कहकर उसने मनीराज से हुई अपनी बातचीत ज्यों की त्यों दोहरानी शुरू कर दी।
जोशी बड़े ही ध्यान से उसकी बातें सुनता रहा, फिर विराट के खामोश होते ही बोल पड़ा, “कोठारी की बीवी का कातिल निकल आना बहुत दूर की कौड़ी है सर, क्योंकि जिस तरह का खटराग हवेली में फैलाया गया दिखाई देता है, वह किसी अकेली औरत के वश की बात नहीं है। उल्टा मुझे तो ये लग रहा है कि सब किया-धरा इस मनीराज का ही है, वह नहीं चाहता था कि मधु की जबरन उसके साथ शादी कर दी जाये, इसलिए मुसीबत की जड़ को ही खत्म कर दिया।”
“हो सकता है और नहीं भी हो सकता।”
“कोई एक बात कहिए न सर।”
“अगर वह कातिल है तो मेरे सामने ये बात कबूल ही क्यों की कि उसे मधु पसंद नहीं थी? वह चाहता तो गमगीन बनकर दिखा सकता था। ‘मेरी तो दुनिया ही लुट गयी’ जैसे फेमस डॉयलाग मार सकता था।”
“जिसका आप पर कोई असर नहीं होता, क्योंकि हम आये दिन ऐसी बातें सुनते ही रहते हैं। इसलिए उसने ऐन उलट किया ताकि आप वही सोचें जो इस वक्त सोचते दिखाई दे रहे हैं।”
“एक काम करो, शनिवार रात की उसकी लोकेशन निकलवाओ, देखते हैं उस वक्त कहां था वह?”
“आप भूल गये कि औलाद किसकी है?”
“मतलब?”
“क्या उसमें इतनी भी समझ नहीं होगी कि मोबाईल लेकर तिमारपुर जायेगा तो बाद में उसका भंडा फूटकर रहेगा?”
“तो भी निकलवाओ, क्या पता उस रात घर की बजाये किसी ऐसी जगह पर मौजूद रहा हो, जो उसे अपराधी नहीं तो इनोसेंट ही साबित कर दे, तब कम से कम एक सस्पेक्ट तो कम होगा इस केस में।”
“जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव।”
तभी उसका मोबाईल रिंग होने लगा।
कॉल अटैंड कर के थोड़ी देर बात की फिर विराट की तरफ देखता हुआ बोला, “मुखिया अपने गांव वापिस लौट आया है सर।”
“तुमने किसी को उसकी निगरानी पर लगा रखा है?”
“नहीं, उसके मोबाईल की लोकेशन निगरानी पर है, जो कि इस वक्त तिमारपुर की ही है।”
सुनकर विराट ने एएसआई महेश गुर्जर का नंबर डॉयल किया और कांटेक्ट होते ही बोल पड़ा, “इसी वक्त एक टीम लेकर तिमारपुर पहुंचो और गांव के मुखिया प्रवीन सिंह को उठा लो।”
“यस सर।”
“ध्यान रहे कि उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं होनी चाहिए, मगर उठाना यूं है कि अगर मुखिया के मन में चोर हो तो तुम्हारा वह एक्शन ही उसके कस-बल ढीले कर के रख दे।”
“हो जायेगा सर।”
“गुड।” कहकर विराट ने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
“चलना कहां है सर?”
“कोठारी के बंगले पर चलो, देखें तो सही कि ये कनिका मैडम हैं क्या बला? जिसपर एक कुंवारा लड़का इस हद तक फिदा हो गया कि उसके मन में सास को बीवी बनाने की तमन्ना बलवती हो उठी।”
“ऐसी फूं फां वाली औरत ने हमसे मिलने से इंकार कर दिया तो?”
“तुम्हारा ध्यान कहां है जोशी साहब? भूल गये कि वह सौतेली ही सही मधु की मां है, जिसका पुलिस से कोऑपरेट करना बनता है, क्योंकि उसकी बेटी लापता है?”
“मैं सच में भूल गया था, सॉरी।”
तत्पश्चात गाड़ी में खामोशी छा गयी।
पत्नी के साथ एसीबी हैडक्वार्टर गया अतुल कोठारी वापिस बंगले पर लौटने की बजाये मां कालका के मंदिर चल गया, वहां दोनों पति पत्नी ने पूजा अर्चना की, प्रसाद चढ़ाया, सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों में सौ सौ के नोट बांटे फिर घर की तरफ रवाना हो गये, जहां पहुंचते पहुंचते शाम के पौने चार बज गये।
गाड़ी बंगले पर पहुंची तो उसने पाया कि दो बावर्दी पुलिसवाले गार्ड से बातें कर रहे थे।
“लीजिए साहब आ गये।” गार्ड ने कहा तो विराट ने पीछे मुड़कर देखा।
तभी कोठारी अपनी कार से नीचे उतर आया।
“क्या बात है इंस्पेक्टर?”
“तकलीफ देने के लिए माफी चाहता हूं सर। मैं आपकी बेटी के केस का इंवेस्टिगेशन ऑफिसर हूं, कुछ सवाल करने जरूरी लगे इसलिए यहां चला आया।”
“विराट राणा?”
“यस सर।”
“अच्छा किया, मैं बारह बजे के करीब एसीबी हैडक्वार्टर गया था, वहीं से पता लगा कि केस के इंचार्ज तुम हो। इसलिए मिलना तो मैं भी चाहता था तुमसे।”
“फिर तो यकीनन अच्छा हुआ सर।”
जवाब में कुछ कहने की बजाये कोठारी थोड़ी देर के लिए जाने किस सोच में पड़ गया, फिर बोला, “बात हम अंदर चलकर करेंगे, मगर वह फौरन होगी या आधे घंटे बाद, ये एक सवाल पर डिपेंड करता है इंस्पेक्टर।”
“हुक्म कीजिए।”
“तांत्रिक अनुष्ठानों पर, तंत्र-मंत्र की शक्ति पर, ओझा और पंडितों पर, यकीन करते हो तुम? मेरा मतलब है क्या तुम्हें लगता है कि सच में किन्हीं खास लोगों के पास इस किस्म की शक्तियां होती हैं, या ये कि हो सकती हैं?”
“मंत्र शक्ति एक बार मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं सर इसलिए मेरा जवाब हां में है - वह सावधानी से शब्दों का चयन करता हुआ बोला, क्योंकि साफ-साफ महसूस हो रहा था कि उस बात का जरूर कोई खास मतलब था - बाकी चीजों के बारे में सिर्फ इतना कह सकता हूं कि कभी देखा नहीं है, लेकिन सुना बराबर है। वह भी ऐसे लोगों के मुंह से जिनके कहे पर अविश्वास नहीं जताया जा सकता।”
“ठीक है वेट करो।” कहकर वह अपनी कार के पास पहुंचा।
भीतर बैठी कनिका ने थोड़ा सा विंडो ग्लास डाउन किया फिर पूछा, “क्या हुआ?”
“मैं चाहता हूं कि आगे यहां जो कुछ भी होने वाला है, उसमें ये दोनों पुलिसवाले हमारे साथ रहें।”
“ये कैसे मुमकिन है डॉर्लिंग - वह थोड़ा हड़बड़ाकर बोली - फिर जरा ये भी तो सोचो, कि बाद में ये लोग जाने किस किस से उस बात का जिक्र करते फिरेंगे, क्या तब तुम्हारी बदनामी नहीं होगी?”
“हो, मैं भुगत लूंगा।”
“जरूरत क्या है?”
“मधु को तलाशने का काम इन्हीं के जिम्मे है, इसलिए मैं चाहता हूं कि अगर कोई खास बात सामने आये - जो कि मुझे यकीन है नहीं आयेगी - तो इन लोगों को उसकी हाथ के हाथ खबर लग जाये, ताकि फौरन चेक कर के सच और झूठ का फैसला किया जा सके।”
“ठीक है तुम्हारी मर्जी।”
“गुड, तुम अंदर पहुंचो, मैं इन दोनों को साथ लेकर आता हूं - कहकर वह वापिस विराट के पास लौटा - चलो इंस्पेक्टर।”
तब तक गार्ड गेट खोल चुका था, शोफर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी, जबकि अतुल कोठारी के साथ विराट और जोशी पैदल ही अंदर की तरफ बढ़ चले।
“मेरा साला दावा करता है इंस्पेक्टर कि उसके पास ऐसी तांत्रिक शक्तियां हैं, जिनके जरिये मेरी बेटी के बारे में कोई ना कोई खबर जरूर निकाल लेगा - आगे बढ़ते कोठारी ने बताना शुरू किया - मेरा ऐसी बातों पर कोई यकीन तो नहीं है, लेकिन ये सोचकर मैंने उसे इजाजत दे दी कि कुछ बनेगा नहीं तो बिगड़ भी नहीं जायेगा।”
“आपके एकदम सही फैसला लिया सर।” विराट जबरन अपनी हैरानी दबाता हुआ बोला।
“उसके लिए ठीक चार बजे नकुल एक अनुष्ठान करने वाला है जो कि यहां के बेसमेंट में होना है, और वक्त बहुत कम है इसलिए मैं आप दोनों को चाय भी ऑफर नहीं कर सकता।”
“उसकी कोई जरूरत भी नहीं है सर, आपकी तरह हम भी दिल से चाहते हैं कि आपकी बच्ची का पता लग जाये, वैसा चाहे किसी अनुष्ठान के जरिये ही क्यों न हो।”
“थैंक यू।”
तत्पश्चात सब लोग बेसमेंट में पहुंचे।
कनिका उनसे पहले ही वहां पहुंच गयी थी और इस वक्त नकुल के बगल में बैठी थी, जो काले रंग का एक चोगा पहने हुए था। सामने एक लोहे का बड़ा तगाड़ रखा था, जिसमें लकड़ियों की चिता सजाई गयी थी, अलबत्ता आग अभी नहीं जल रही थी।
तगाड़ के सामने एक मानव खोपड़ी रखी थी। जिसके दोनों तरफ बालों के गुच्छे पड़े थे। एक थाली में कई अजीबो गरीब चीजों के साथ हड्डी का बना चम्मच रखा था। कम से कम विराट और जोशी को तो वैसा ही लगा था।
प्रकाश वहां बस इतना ही था कि सब एक दूसरे को दिखाई दे जायें, जिसके लिए एक टेबल लैंप को एकदम फर्श की तरफ झुका कर जला दिया गया था। लैंप में लगा बल्ब लाल रंग की रोशनी फेंक रहा था, जिसके कारण वहां का माहौल बड़ा रहस्यमयी प्रतीत हो रहा था।
नकुल के इशारे पर सब जूते उतारकर उसके सामने तगाड़ के दूसरी तरफ बिछे आसन पर बैठ गये। तब जाकर विराट को ढंग से कनिका की सूरत दिखाई दी।
उसका चेहरा थोड़ा लंबा था, आंखें बड़ी-बड़ी, नाक सुतवां, बाल कंधों से थोड़ा नीचे पहुंच रहे थे, और कर्ली थे। गर्दन लंबी और होंठ पतले, कुछ कुछ सोनम कपूर जैसा लुक दिखाई दे रहा था।
वह स्लेटी रंग की साड़ी और लो कट ब्लाउज पहने थे, जिसमें आसमान से उतरी अप्सरा नजर आ रही थी। साड़ी के कलर की बाबत विराट का अंदाजा गलत भी हो सकता था क्योंकि टेबल लैंप एकदम कनिका के करीब ही रखा था जो कि लाल रोशनी फेंक रहा था, जिसके कारण उसका चेहरा तपता सा दिखाई दे रहा था।
अलबत्ता इस बात में कोई शक नहीं था कि मनीराज गोपालन ने उसकी खूबसूरती का बखान बिना किसी अतिश्योक्ति के किया था।
बहन के विपरीत भाई बेहद आम शक्लो सूरत वाला युवक था। कद उसका लंबा था और काले रंग के चोगे में वह पूरा का पूरा तांत्रिक ही जान पड़ता था।
आखिरकार नकुल ने आंख बंद किया, अंदाजे से थाली में हाथ डालकर मुट्ठी भर चावल उठाया, फिर कोई अजीब सा मंत्र पढ़ते हुए हाथ ऊपर ले जाकर यूं छिड़क दिया कि वहां बैठे हर शख्स के ऊपर जाकर गिरे ही गिरे।
उसने दोबारा मुट्ठी भरी और उठकर कनिका के चारों तरफ चावल के दानों का एक वृत सा बना दिया। तत्पश्चात वैसा ही उसने बाकी सबके साथ किया और वापिस अपने आसन पर आकर बैठ गया।
“मैं जानता हूं आपमें से कोई भी मुझपर यकीन नहीं करता - वह यूं बोला जैसे किसी किताब से पढ़कर बोल रहा हो - कोई बात नहीं, थोड़ी देर बाद करने लग जायेंगे। मगर वैसा वक्त आने से पहले आप सभी के लिए चेतावनी है। कोई भी मेरा अनुष्ठान पूरा होने से पहले अपनी जगह से नहीं उठेगा। मेरे द्वारा बनाये गये अक्षत घेरों से बाहर तो हरगिज भी नहीं निकलेगा। भले ही यहां आपको कितनी भी डरावनी चीजें क्यों न दिखाई देने लग जायें। हो सकता है आपको आत्मायें खुद पर हमला करती नजर आने लगें, ये भी हो सकता है कि आप सब खून में नहा जायें, या कोई डरावनी आवाज आपको भाग जाने का हुक्म देने लगे। मगर किसी भी हाल में आपको अपनी जगह नहीं छोड़नी है। छोड़ेंगे तो कुछ भी हो सकता है। कुछ भी से मेरा मतलब है आप में से किसी की जान भी जा सकती है। इसलिए अभी भी वक्त है, कोठारी साहब को छोड़कर जो भी यहां से बाहर जाना चाहे जा सकता है, क्योंकि जरूरत सिर्फ उन्हीं की पड़ने वाली है। इनके जरिये ही मैं आह्वान के बाद यहां पहुंची शक्तियों को मधु की तलाश में भेज पाऊंगा, क्योंकि मधु की यादें सबसे ज्यादा इन्हीं के जेहन में होंगी।”
कोई अपनी जगह से नहीं हिला।
“पुलिस ऑफिसर्स से विनती है कि अपनी अपनी रिवाल्वर निकालकर कहीं दूर फेंक दें। नहीं फेंक सकते तो अनलोड कर लें, ताकि घबराहट में आपके हाथों कोई गोली न चल जाये।”
सुनकर जोशी ने विराट की तरफ देखा तो उसने सहमति में सिर हिला दिया। तत्पश्चात दोनों ने नकुल को दिखाते हुए गन अनलोड कर के गोलियां अपनी जेब में और रिवाल्वर को गोद में रख लिया।
“आखिरी चेतावनी - नकुल का लहजा इस बार बड़ा ही भयानक था - कोई भी कैसी भी आवाज नहीं निकालेगा, चीखने जितनी तो हरगिज भी नहीं।”
इस बार भी सब चुप रह गये।
तब नकुल ने वहां रखा लोटा बायें हाथ की हथेली पर रखा और दायें हाथ की अंजुली पानी से भरते हुए मुंह के पास ले जाकर कोई मंत्र पढ़ा फिर पूरी ताकत से तगाड़ में रखी लकड़ियों पर फेंक दिया।
तत्काल अग्नि जल उठी।
कोठारी विस्मित निगाहों से नकुल की तरफ देखने लगा। मगर विराट और जोशी पर उसका कोई खास असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि बाबा महाकाल पहले ही वैसा एक चमत्कार उन्हें दिखा चुका था।
“अंडालिका, चंडालिका, मंडालिका - नकुल दोनों हाथ हवा में उठाकर गरजता हुआ बोला - प्रगट हों, प्रगट हों, प्रगट हों। हे पवित्र आत्माओं आज तुम्हारे इस साधक को तुम्हारी जरूरत है। आओ, आ जाओ, अब आ भी जाओ। कहां हो तुम, किधर हो, चली आओ।”
कहकर उसने चावल के कुछ दाने उठाये, मुंह के पास ले जाकर मंत्र बुदबुदाया और उन्हें अग्नि के हवाले कर दिया। लपटें एकदम से ऊंची हो उठीं।
“आओ चली आओ कहां हो तुम? - कहने के बाद वह पहले से कहीं ज्यादा जोर से बोला - धोखा देने की सोचना भी मत, वरना पछताओगी, आज मेरा अभीष्ट पूरा नहीं हुआ तो मैं तुम्हें नकारा समझ लूंगा, आओ चली आओ।”
कुछ नहीं हुआ।
तब उसने थाली में रखे कुछ नाखून उठाये, मुंह के पास ले जाकर मंत्र बुदबुदाया फिर पूरी ताकत के साथ हवनकुंड में फेंक दिया।
उसी वक्त वहां जलता टेबल लैंप एकदम से बुझ गया। अब बेसमेंट में बस वहां जलती आग की ही रोशनी थी, जिसके पीछे नकुल का चेहरा बड़ा ही वीभत्स नजर आ रहा था। अलबत्ता स्पष्ट कुछ दिखाई नहीं दे रहा था क्योंकि बीच में आग की ऊंची लपटें और थोड़ा धुआं फैला हुआ था।
नाखूनों की आहूति के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो नकुल ने वहां पड़े बालों का एक गुच्छा उठाया और जोर से बोला, “आओ या मरो, करो या भष्म हो जाओ। अंडालिका, मंडालिका, चंडालिका, ये तुम्हें मेरी आखिरी चेतावनी है।”
कहकर जैसे ही वह बालों के गुच्छे को अग्नि के पास ले गया, हॉल में किसी के जोर जोर से कराहने की आवाजें सुनाई देने लगीं। सबके रोंगटे खड़े हो गये। यूं लग रहा था जैसे कोई भयानक पीड़ा से गुजर रहा हो।
“मैं सच में भष्म कर दूंगा।”
“ऐसा मत करना अघोरी - एक स्त्री स्वर उनके कानों में पड़ा - अंडालिका तो तेरी दासी है।”
“मंडालिका भी।” दूसरी आवाज।
“चंडालिका भी।” तीसरी आवाज।
सुनकर नकुल ने बालों के गुच्छे को फर्श पर रखा और थाली से तीन कपूर की तरह कागज में लिपटी चीजें उठाकर हवन कुंड में डाल दिया। आग की लपटें पहले से कहीं ज्यादा ऊंची हो उठीं, साथ ही दिखाई दिया एक ऐसा अविश्वसनीय नजारा जिसने विराट और जोशी को भी आश्चर्य में डाल दिया।
आग की लपटों में तीन जनाना आकृतियों का आभास हुआ, यूं लगा जैसे तीन औरतें उन लपटों में घिरी हुई हों। फिर एक आवाज सबके कानों तक पहुंची।
“क्षमा अघोरी क्षमा, बोल क्या चाहता है तू?”
“ध्यान से सुनो कि मैं क्या चाहता हूं, करो कि मैं जो चाहता हूं - नकुल बुलंद लहजे में बोला - खोजो हर तरफ, देखो पूरी दुनिया में। आकाश, पाताल, और पृथ्वी तीनों छान मारो। कहां छिपी है मधु बताओ, देखकर उसका अक्श अतुल कोठारी के अंर्तमन में।”
तत्पश्चात अजीब सी आवाजें आने लगीं, जैसे कोई हंस रहा हो, या जैसे कुछ लड़कियां बातें कर रही हों। कुछ भुनभुनाया सा, झुंझलाया सा भी महसूस हो रहा था।
सब सांस थामें कुछ सामने आने का इंतजार करने लगे।
वह सिलसिला कुछ देर तक चला, फिर एक स्पष्ट किंतु धीमा नारी स्वर सबके कानों में पड़ा, “नहीं मिली, नहीं मिली। मायाजाल में उलझा है सबकुछ। हर तरफ घना अंधकार है, जिसे तुझे अपने खून से मिटाना होगा अघोरी, फिर तू देख पायेगा मधु को, महसूस कर पायेगा छल बल को, धुंध साफ हो जायेगी, ख्वाहिश पूरी हो जायेगी।”
“खून?”
“क्यों डर गया? - कोई लड़की हंसी - भांजी के लिए इतना भी नहीं कर सकता? बहुत डरपोक है रे तू।”
“कर सकता हूं, अभी करता हूं। झूठ हुई तुम्हारी बात तो आज खत्म होगा तुम्हारा संसार। रहम की भीख न मांग पाओगी, अमावस की चाह तो क्या पूरा कर पाओगी।” कहकर उसने चाकू उठाया।
सब एकदम हतप्रभ रह गये, साफ-साफ भले ही कुछ नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन इतना आभास फिर भी हो गया कि नकुल अपना अंगूठा चीर रहा था।
“अब क्या करना है?”
सन्नाटा।
“बोलो क्या करना है?”
सन्नाटा।
“मेरे साथ ऐसा खेल महंगा पड़ेगा कमीनियों, अभी जला डालूंगा।”
“खून की आहूति दे अघोरी फिर तेरी साधना अवश्य पूरी हो जायेगी।”
सुनकर उसने अपने अंगूठे से निकलते खून को वहां जलती आग में गिराना शुरू कर दिया।
“जला अपना अंगूठा जला। मांस जलने की गंध सबको महसूस होने दे, तभी तेरा अभीष्ठ पूरा हो पायेगा।”
नकुल ने वैसा ही किया, खून टपकते अंगूठे को आग के भीतर कर दिया। अगले ही पल उसका शरीर जोर जोर के झटके लेने लगा। मुंडी यूं दायें बायें होने लगी जैसे कोई जबरन किये दे रहा हो।
तत्पश्चात उसके मुंह से अजीब सी आवाजें निकलने लगीं, जैसे कोई कुछ चबा रहा हो, जैसे कोई शैतान दांत किटकिटा रहा हो, फिर उसने यूं बोलना शुरू किया जैसे भारी तकलीफ में हो, “अंधकार! घोर अंधकार, अमावस की काली रात। हर तरफ सन्नाटा। सन्नाटे में हवेली, हवेली में नरसंहार। हर तरफ एक धुंध, कहकहों की आवाजें। अंधेरा, घना अंधेरा, जिसके बीच से निकले सात मानव, सातों के हाथों में बच्ची, चलते रहे, चलते रहे, कुछ दूर निकल गये, फिर कुछ छिड़क कर उसकी चिता जला दी, वह जल गयी, हाय मेरी भांजी जल गयी। मार डाला कमीनों ने, जलाकर मार डाला उसे। विश्वासघात घोर विश्वासघात। नर्क में जायेंगे सब, आह नर्क में जायेंगे सब - कहकर वह जोर जोर से चींखने लगा - बचाओ, बचाओ।”
और अगले ही पल एकदम से पीठ के बल नीचे जा गिरा। उसका शरीर जोर जोर से तड़पने लगा। मुंडी यूं छटपटा रही थी जैसे किसी से गर्दन छुड़ाने की कोशिश कर रहा हो।
‘क्या वह शख्स मर रहा था?’ विराट ने खुद से पूछा।
मगर जवाब आसान कहां था।
उसने उठने की कोशिश की, तभी कनिका ने इशारे से मना कर दिया।
कुछ देर तक नकुल फर्श पर बुरी तरह तड़पता रहा फिर शांत पड़ गया। उसके शरीर में कोई हरकत शेष नहीं दिखाई दे रही थी। विराट और जोशी को तो जैसे यकीन ही आ गया कि नकुल अपनी जान से हाथ धो बैठा था।
मगर कनिका कोठारी अभी भी ज्यों की त्यों, जहां की तहां तठस्थ हुई थी। भाई की तरफ निगाह घुमाकर भी देखने की उसने कोशिश नहीं की।
‘क्या पुलिस को जानबूझकर उस खेल में शामिल किया गया था, क्योंकि दोनों मियां बीवी जानते थे कि अनुष्ठान के दौरान क्या होने वाला था?’ विराट ने एक बार फिर से खुद से सवाल किया।
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