मुंबई

श्रीकांत और नैना दलवी ने छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट के डीजीसीए प्रशासनिक भवन में कदम रखा। वहाँ के डायरेक्टर को पहले ही मुंबई पुलिस कमिश्नर के ऑफिस से उनके आगमन के बारे में जानकारी दे दी गयी थी। डायरेक्टर अपने ऑफिस में मौजूद थे। श्रीकांत से औपचारिक परिचय का आदान-प्रदान करने के बाद पिछले दिनों की बेंगलूरु के लिए फ्लाइट से जाने वाले यात्रियों की सूचियाँ श्रीकांत के सामने थी।

उन सभी सूचियों को सरसरी तौर पर देखने के बाद श्रीकांत और नैना ने दुबई, कराची, इस्लामाबाद और काबुल की तरफ जाने वाली फ्लाइट के यात्रियों पर अपना ध्यान लगाया। जिस दिन विस्टा टेक्नोलॉजी के आदमी गायब हुए उस दिन कराची के लिए मुंबई से सात बजकर बीस मिनट पर दुबई की एक फ्लाइट थी जो दुबई होकर कराची पहुँचती थी। उसने उस पर सवार होने वाले सभी यात्रियों की लिस्ट को चेक किया।

चालीस आदमी उस फ्लाइट पर मुंबई से सवार हुए और उनमें से चार आदमी उसी फ्लाइट से कराची पहुँचे। श्रीकांत ने उन चारों की डिटेल नोट की। उन डिटेल से नीलेश का न तो कोई सुराग लगना था, न ही लगा। उन सब यात्रियों की वीडियो डीटेल देखने में उन्हें बहुत समय लगने वाला था।

डायरेक्टर के केबिन से उठकर वे दोनों उस ऑफिस के साथ लगते हुए कॉन्फ्रेंस रूम में शिफ्ट हो गए जिसके बाहर एक अटेंडेंट को सख्त हिदायत दे कर बैठा दिया गया कि वह किसी को अंदर न आने दे।

“अब इन सारी बातों का क्या मतलब है, श्रीकांत? हम यहाँ पर क्या कर रहें हैं जबकि हमें अपने ऑपरेशन रूम में होना चाहिए था!” नैना ने कहा।

“यहाँ आने से पहले हमने नीलेश का पूरा वीडियो देखा है। जयराम का कहना है कि वह वीडियो बिना किसी छेड़छाड़ के बनाया हुआ है। कोई एडिटिंग उसमें दिखाई नहीं दे रही है। पुलिस ने तुर्भे और अंधेरी का पूरा एरिया छान मारा है। तो फिर कहाँ गए नीलेश और उसके साथ के आदमी?” सुधाकर ने नैना से पूछा।

“तुम सोच रहे हो कि यह आदमी अब इंडिया में नहीं है! ये तुम क्या बकवास कर रहे हो ?” नैना ने परेशान होते हुए कहा।

“मैं बकवास नहीं कर रहा हूँ? इस बात पर हमें आज नहीं तो कल सोचना ही पड़ेगा। नीलेश अपने साथियों के साथ इस मुंबई में कहीं भी हो सकता है। इसलिए जमीन पर उन्हें सुधाकर ढूँढ रहा है, नागेश पाताल में ढूँढ रहा है और हमें आकाश में उन्हें ढूँढना है। हो सकता है, उन लोगों में से कोई आतंकवादियों के संपर्क में हो। अपने साथियों का अपहरण करवाने के बाद खुद यहाँ से भाग गया हो।”

“वे सभी लोग आकाश मार्ग से तो एक साथ नहीं जा सकते। ओह, कम ऑन श्रीकांत, वे लोग कोई पिकनिक पर नहीं गए हैं, दे आर किडनैप्ड।”

“आई अंडरस्टैंड देट। मैं कब कह रहा हूँ कि वे लोग पिकनिक पर गए हैं।”

“श्रीकांत, वो वीडियो यहाँ पर भी बनाया हुआ हो सकता है। इसके लिए किसी किडनैपर को कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। मेरे ख्याल से हम लोग यहाँ समय बर्बाद कर रहे हैं।”

“अब जब हम यहाँ पर आ ही गए हैं तो इन वीडियो फुटेज को देखने में कोई हर्ज नहीं है। हो सकता है हमें कोई क्लू मिल जाए।”

“ठीक है। लेकिन हम...”

“ओके। अगर तुम्हें लगता है कि हम लोग यहाँ पर बैठ कर टाइम किल कर रहें हैं तो ये वीडियो फुटेज साथ लिए चलते हैं।”

नैना हालाँकि श्रीकांतसे बहस कर रही थी लेकिन उसकी आँखें स्क्रीन पर लगी हुई थी। तभी उसकी निगाहें स्क्रीन पर कुछ देख कर चमकी।

“श्रीकांत...जरा यहाँ देखो!” नैना ने स्क्रीन की तरफ इशारा करते हुए कहा।

श्रीकांत ने उत्सुकता भरी निगाहों से स्क्रीन की तरफ देखा। एक व्हील चेयर पर एक आदमी को ले जाया जा रहा था। उसके चेहरे पर ऑक्सिजन मास्क लगा हुआ था जिससे उसे पहचानना बड़ा मुश्किल काम था।

“इसे देखकर तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। और देखो, ये लोग तो बड़ी आसानी से चेक-इन और सेक्योर्टी की सारी बाधाओं को पार कर गए। इस आदमी के बारे में हमें पता करना पड़ेगा।”

“जो लिस्ट हमें दी गयी है उसमें तो इस आदमी का नाम अब्दील राज़िक के नाम से रजिस्टर्ड है। मैं इसका रिकॉर्ड चेक करवाता हूँ।”

इसके बाद श्रीकांत अपने फोन पर उलझ गया।

कुछ समय के बाद उनके पास अब्दील राज़िक के बारे में सूचना आयी कि वह एक पच्चीस साल का पाकिस्तानी नागरिक था। भारत में अपने नर्वस सिस्टम से सम्बन्धित किसी बीमारी का इलाज करवाने मुंबई आया था। उसके साथ उसके भाई का भी वीजा लगा हुआ था और वे लोग इलाज करवाने के बाद वापस लौट गए थे। इसमें कहीं कोई लूपहोल दिखाई नहीं दे रहा था। उसके सारे दस्तावेज़ दुरुस्त थे।

वो सारा रिकॉर्ड अपने कब्जे में लेने के बाद श्रीकांत और नैना दलवी निराशा से भरे हुए वापस अंधेरी पुलिस स्टेशन स्थित ऑफिस की तरफ रवाना हो गए।

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दिल्ली

तिहाड़ जेल से फारिग होकर अभिजीत देवल और राजीव जयराम संसद मार्ग पर वापस आकर अपने ऑफिस में चाय पी रहे थे तो उसी वक्त अभिजीत के फोन की घंटी बजी। पीएम के राजनैतिक सलाहकार गोविंद श्रीवास्तव का फोन था। उन्होंने तत्काल कॉल रिसीव की।

“कहाँ हैं आप?” गोविंद ने छूटते ही पूछा।

“अपने ऑफिस में! अभी आया ही हूँ। क्यों? क्या हुआ?” अभिजीत देवल ने पूछा।

“करंट न्यूज़ पर विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारियों के लापता होने की न्यूज़ प्रसारित हो रही है। ये मसला अब हमारी चारदीवारी तक सीमित नहीं रहा। अब ये जिन्न बाहर आ गया है।” गोविंद श्रीवास्तव का जवाब आया।

“ये तो कभी न कभी होना ही था। अब सभी लोग इस आग में अपनी रोटियाँ सेंकने के लिए निकल पड़ेंगे। तुम इसके डैमेज कंट्रोल पर ध्यान दो। किसी सीनियर डिप्लोमेट को इसके लिए प्रवक्ता निर्धारित कर दो जो सरकार की तरफ से आधिकारिक जवाब दे।” अभिजीत ने इतना कहकर फोन रख दिया।

“क्या हुआ?” राजीव ने पूछा।

“वही... जो नहीं होना चाहिए था। अब खरगोश बिल के बाहर निकल आया है तो सब शिकारी उसके पीछे होंगे।” इतना कहकर उन्होंने ऑफिस में लगा एलईडी ऑन कर दिया।

स्क्रीन पर ‘करंट न्यूज़’ का चमचमाता न्यूज़रूम का सेट दमकने लगा। स्वर्ण भास्कर अपने पैनल के साथ स्क्रीन पर नाटकीय अंदाज में ब्रेकिंग न्यूज़ के एलान के बाद विस्टा टेक्नोलॉजी के कर्मचारियों के लापता होने की सनसनीखेज खबर का ऐलान कर रहा था। वह इस समय समर्थ सिंह के साथ लाइव था और समर्थ उसे जे बी स्कूल से न्यूज़ का विवरण दे रहा था। उसका एक संवाददाता मोहन डेयरी के सामने डटा हुआ था और वह जगह दिखा रहा था जहाँ पर पुलिस की भिड़ंत बदमाशों से हुई थी।

न्यूज़ रूम में चार आदमियों का पैनल बैठा हुआ था जो अपने-अपने एजेंडे के अनुसार इस मामले पर अपनी रोटियाँ सेंक रहे थे।

“आ गया यह भी मैदान में!” राजीव ने चाय की घूँट भरते हुए कहा।

“आना ही था। इसी की ही तो खाता है। अब इस बात का बतंगड़ बन जाएगा, राजीव, जो नीलेश के मामले के लिए ठीक नहीं रहेगा।” अभिजीत देवल ने स्क्रीन की तरफ देखते हुए कहा।

तभी राजीव जयराम के फोन में कंपन होने लगी। श्रीकांत का फोन था। उसने अभिजीत से मोहलत माँगते हुए फोन उठाया। श्रीकांत ने उसे अपने एयरपोर्ट जाने की और वहाँ से मिली जानकारी की रिपोर्ट दी। जयराम ने बड़ी गंभीरता से उसकी बात सुनी।

अभिजीत देवल के साथ उसके ऑफिस में चाय पीने के बाद राजीव जयराम हैड़क्वार्टर स्थित अपने ऑफिस में पहुँचा। श्रीकांत से बातचीत होने के बाद राजीव जयराम काफी बेचैनी अनुभव कर रहा था। अपने ऑफिस में पहुँच कर उसने लैपटॉप खोला और एक नंबर पर मैसेज किया। उस मैसेज में अब्दील राज़िक का कराची का पता था।

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मुंबई

नागेश के कदम ‘सिनलाइफ बार’ में पड़े। उसकी आँखें गिरिजा को ढूँढ रही थी। गिरिजा इस बार का ‘मालिक’ था जो कभी अंधेरी का दबंग मवाली होता था। वीरा देसाई रोड़ पर चल रहे इस बार का असली मालिक ‘भाई’ तो अब भारत से भाग कर सिंगापुर में शरण लिए हुए था। उसने गिरिजा को अपना प्रतिनिधि घोषित कर दिया था। अब ‘भाई’ ने तो वापस आना नहीं था तो गिरिजा में धीरे-धीरे ‘मालिक’ वाला कीड़ा कुलबुलाने लगा था। लोगों ने भी उसे बार का मालिक ही समझना शुरू कर दिया था।

गिरिजा की एक खास बात, जिसका मुंबई का बड़े से बड़ा मवाली भी लोहा मानता था, यह थी कि मुंबई में अंडरवर्ल्ड से संबंधित कोई भी वारदात होती थी तो उस घटना की सारी रिपोर्ट उसके पास होती थी।

गिरिजा नागेश कदम को बहुत मानता था। उसका कारण यही था कि वो आज अगर जिंदा था तो नागेश की वजह से ही जिंदा था। खैर, वो किस्सा फिर कभी। नागेश ने वेटर से गिरिजा के बारे में पूछा तो उसने ऑफिस की तरफ इशारा कर दिया।

उसका ऑफिस दूसरे फ्लोर पर था और काफी चमकदार था। अपनी जिंदगी की दबी हुई हसरतें गिरिजा ने उस ऑफिस के रख रखाव में पूरी तरह से निकाली थी।

नागेश ने उसके ऑफिस में कदम रखे तो वह शीशे की दीवार के पास खड़ा हुआ था और उसके हाथ में व्हिस्की का गिलास था। वो दीवार वन-वे मिरर थी जिससे वो बार में चल रही गतिविधियों को आसानी से देख सकता था।

नागेश के ऑफिस में कदम रखते ही वो उसकी तरफ मुड़ा और अपने चेहरे को जगमग करता हुआ बोला, “अरे नागेश भाऊ, आओ... आओ... आज तो कमाल हो गया जो मैं तुम्हें इधर खड़ा देख रहा हूँ। आज हमारी याद कैसे आ गयी!”

“तू गिरिजा ही होता न। कोई बड़ा साहब तो नहीं घुस गया उस हलकट गिरिजा के भेस में जिसको मैं जानता हूँ।”

“हा हा हा। अरे भाऊ, तू भी मेरे को आते ही वापस वहीं, उसी दुनिया में, ले जाता है जहाँ से मैं दूर आने का सोचता हूँ। पण तेरे वास्ते तो मैं हमेशा वही गिरिजा रहेगा। आज अपुन जिंदा है तो तेरे कारण वरना पुलिस ने तो अपुन को टपका दिया होता कबका।”

“ऐसे बात करेगा तो सही रहेगा तेरे वास्ते। अगर तू जमीन से ही जुड़ा रहेगा तो बचा रहेगा। आजकल आसमान से जो गिरता है... वो सीधा जहन्नुम जाता। पूछ काहे को?”

“काहे को?”

“आजकल खजूर नहीं होता न। सब कट गया। तो फिर बीच में अटकने का चांस ख़तम।”

नागेश की बात को समझ कर गिरिजा ज़ोर से ठहाका लगा कर हँसा।

“और जो एक आध खजूर बचा वो भी साला ऐसे चमकदार ऑफिस में जाके बैठ गया।” नागेश ने अपनी बात पूरी की।

एक पल के लिए गिरिजा रूका फिर हँसते-हँसते अपनी तरफ इशारा किया। उसके बाद दोनों का गगन भेदी अट्टहास ऑफिस में गूँज उठा। कौन कह सकता था कि वो समाज के दो विपरीत ध्रुवों से आते थे। इतने में वेटर नागेश की आवभगत के लिए पूरा सामान ले आया जिसमें से नागेश ने सिर्फ़ जूस लिया।

“भाऊ, आज इतने दिनों बाद मेरी याद आयी जरूर कोई इंपोर्टेंट बात होगी।”

“हाँ गिरिजा, पिछले दिनों एक बहुत बड़ी आईटी कंपनी के कुछ लोग अगवा हो गए। उसमें एक नेता का बेटा भी है। मुझे ऐसे लोगों की लिस्ट चाहिए जो इस तरह के मामले में शामिल हो सकते हैं। इस बात की सूँघ ले कि कौन हलकट इस काण्ड में अपनी... टाँग फँसाए हुए है।”

“योगराज पासी के बेटे की बात कर रहे हो, भाऊ।”

“हाँ, उसी की बात करता है मैं। पंद्रह आदमी गायब हुए थे। चार मिल गए लेकिन बाकी के आदमी पता नहीं किस खोखे में बंद है। साला, पता नहीं लग रहा कि जमीन खा गयी कि आसमान निगल गया।”

“उस भिड़ू नीलेश का फोटु तो टीवी में चमका है आज।”

“ऐसा क्या? किधर चमका?”

“करंट न्यूज़ पर। इस बात पर बहुत बवाल काटा न्यूज़ मास्टर ने। वहीच बोलता कि इंडिया में तूफान आ गया... बिजली गिर गया करके।”

“एसी रूम में बैठ के मौसम का हाल सुनाना बड़ा आसान होता है रे गिरिजा। फील्ड की जान-मारी वो टाई लगाने वाला क्या समझे! अच्छा एक बात बता मेरे को, अभी कुछ दम बाकी है तेरे में या इस शीशे के पीछू बैठ पिलपिला गया है, अपना गिरिजा।”

“वो तो जो आदमी अपुन को आजमाता है, उसे ही पता चलता है कि अपुन की नरमी का और गर्मी का।”

“अच्छा! तो ये बात है। जरा ये फोटू देख। इस छोकरे को हम लोगों को कल मार्केट में टपकाना पड़ा। इसके साथ एक आदमी और था जो इधर के रिकॉर्ड में नहीं मिला। तू तो अक्खा मुंबई के अंडरवर्ल्ड का एनसाइक्लोपीडिया है। इस छोकरे का भूगोल... इतिहास सब मेरे को चाहिए।”

इतना कहकर नागेश ने अपने मोबाइल में अमीन गोटी और राहुल तात्या की फोटो निकालकर गिरिजा को दिखाई।

“ये भाई लोग इस मामले में अपनी टाँग फँसाए हुए हैं। एक ये अमीन गोटी नाम का भीडू तो अभी गया ऊपर पण ये दूसरा छोकरा अभी हमारी पकड़ से दूर है।”

“तो मेरे को क्या करना है इसमें?”

“तेरे को इस छोकरे का जन्मपत्री मेरे को बना के देने का। पिछले एक महीने से ये लोग किस फिराक में थे, कौन लोग इन दोनों के पास आते थे, ये सब बातें मेरे को पता होनी चाहिए।”

“ठीक है, भाऊ। मैं ट्राई करता है, कुछ पता चलता है तो मैं...”

“कुछ से काम नहीं चलने वाला, मेरे को सब कुछ पता लगना चाहिए। इज्जत का सवाल है मेरे लिए। एसीपी आलोक देसाई ने मेरे ऊपर भरोसा किया है और दाँव खेला है मेरे ऊपर। मैं नहीं चाहता कि कोई मेरी वजह से कोई उसके ऊपर ऊँगली उठाए।”

गिरिजा ने सहमति से सिर हिलाया। नागेश ने अपने जूस का गिलास खाली किया और वहाँ से बाहर निकल गया।

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विश्वरूप रूंगटा और सीईओ नलिनी दासगुप्ता विस्टा हाउस के कॉम्प्लेक्स में एक आलीशान ऑफिस में आमने-सामने बैठे थे। विश्वरूप रूंगटा के चेहरे पर बड़े गंभीर भाव थे। इस उच्चस्तरीय बैठक में चर्चा का विषय बड़ा गंभीर था जिसका कारण बना था ‘करंट न्यूज़’ पर प्रसारित हुआ स्वर्ण भास्कर का प्रोग्राम। उस प्रोग्राम की वजह से विस्टा समूह के सभी कंपनियों के शेयर मंदी की चपेट में आ गए थे।

इस तरह के उतार चढ़ाव विश्वरूप ने अपने लंबे कैरियर में बहुत देखे थे लेकिन अब की बार उनकी कंपनियों को व्यापार और कर्मचारियों के लिए असुरक्षित बता कर दुष्प्रचार किया जा रहा था। स्वर्ण भास्कर के प्रोग्राम में नीलेश के साथ एक दर्जन से ज्यादा कर्मचारियों के अगवा होने के साथ डेढ़ हजार करोड़ की फिरौती की बात को भी बहुत तूल दिया गया था।

इन सबका मिला जुला असर था कि विश्वरूप रुंगटा को इस तरह से एक मीटिंग बुलानी पड़ी थी। इसमें अभी उनके आर्थिक सलाहकार जयंत दसानी को भी शामिल होना था।

जयंत दसानी को शेयर मार्केट का ‘बिग बुल’ कहा जाता था। चालीस साल की उम्र का जयंत दसानी अब अपनी इनवेस्टमेंट कंपनी चलाता था जो देश के धन कुबेरों की इनवेस्टमेंट को देखता था। उसके बारे में मशहूर था कि जो चाल दलाल स्ट्रीट पर दसानी चलता था, वही शेयर मार्केट का फ़ैशन बन जाता था।

आज शेयर मार्केट की चाल विश्वरूप रूंगटा की कंपनियों के खिलाफ थी और उसे अपने विश्वासपात्र जयंत दसानी के ऊपर पूरा भरोसा था। जयंत दसानी के आने पर विश्वरूप रुंगटा उससे बड़ी गरम जोशी से मिला।

“कैसे हैं आप, साहेब।” दसानी ने अपनेपन से भरे लहजे में पूछा।

“मेहरबानी है दोस्तों की... और दुश्मनों की भी।” रुंगटा ने विनोद पूर्ण स्वर में कहा।

“आपके दुश्मन... यह बात कुछ हजम नहीं हुई। आप तो अजातशत्रु हैं, आपका दुश्मन कौन हो सकता है।”

“वक्त से बड़ा तौलने वाला कोई नहीं होता है, दसानी। आज मुझे महसूस हो रहा है कि मेरा समय ठीक नहीं है। बहरहाल इनसे मिलो ये विस्टा टेक्नोलॉजी की सीईओ नलिनी दासगुप्ता, तुम जानते ही होगे।”

“जी हाँ, कॉर्पोरेट वर्ल्ड में शायद ही कोई होगा जिसे मैं नहीं जानता। अगर अपने फील्ड के लोगों को जानूँगा नहीं तो फिर मैं जिऊँगा कैसे!”

इसके बाद रूंगटा के कहने पर नलिनी दासगुप्ता ने विस्टा टेक्नोलॉजी को मिली फिरौती की माँग और लश्कर-ए-जन्नत की मेल के बारे में बताया।

“इन बातों का प्रभाव अस्थाई होता है, नलिनी जी। शेयर मार्केट कई बार सेंटिमेंट्स पर चलती है। जैसे ही यह मामला निपटेगा आपकी कंपनी फिर से अपनी प्राइस हासिल कर लेगी। यह तो साधारण सी बात है। इसमें इतनी परेशानी क्यों?” दसानी ने कहा।

“ये बात तो सब जानते हैं, दसानी, लेकिन बात थोड़ी गंभीर है जिस के लिए तुम्हें मैंने यहाँ पर बुलाया है। विस्टा टेक्नोलॉजी को चोरी छिपे टेक-ओवर का निशाना बनाया जा रहा है। जबसे नीलेश और उसके साथियों के अपहरण होने की बात करंट न्यूज़ से ब्रॉडकास्ट हुई है और आग की तरह फैली है, तब से स्टॉक मार्केट के मंदड़िये इस के ऊपर हावी हो रहें हैं। मेरो कंपनी का शेयर लगातार तोड़ा जा रहा है। अब हालत यह है कि पिछले पाँच साल के निचले स्तर पर आकर खड़ा हो गया है। मेरी धुर विरोधी कंपनी कॉसमॉस टेक्नोलॉजी कई सालों से विस्टा के पीछे पड़ी हुई है। अब की बार वो अपने मंसूबों में कामयाब होते दिख रहें हैं।” विश्वरूप चिंतित स्वर में बोले।

“विस्टा के शेयर बड़ी तेजी से नीचे गिरे हैं। हमें जानकारी मिली है कि कॉसमॉस के प्रोमोटर्स मार्केट से हमारी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहें हैं।” नलिनी ने अपनी बात रखी।

“हम्म, विस्टा कोई हलवा नहीं है जो आपके होते हुए कोई भी आँख मूँद कर खा जाएगा। आप निश्चिंत रहें। मेरी एक गुजारिश है कि अगर आपने मुझसे उम्मीद लगाई है तो मुझे इस मामले में पूरी छूट दीजिये। सामने अगर शकुनि बैठा हो तो युधिष्टर बने रहने में कोई फायदा नहीं।” दसानी ने पूरे विश्वास के साथ कहा।

“ठीक है, दसानी। संकट की इस घड़ी में जो लोग मेरी पीठ पर वार करने चले हैं, उनसे निपटने के लिए मैं साम-दाम-दंड-भेद, सब कुछ आजमाने की इजाजत देता हूँ।” विश्वरूप धीर-गंभीर स्वर में बोले।

“अब ठीक है साहेब। आपको यह विश्वास मैं दिलाता हूँ कि विस्टा पर किसी किस्म की कोई आँच नहीं आएगी। मुझे विस्टा के सारे प्रोमोटर्स की लिस्ट चाहिए और विस्टा में उनकी शेयर होल्डिंग पर्सेंटेज और बाकी दूसरे मेजर शेयर होल्डर्स की एक लिस्ट चाहिए।” दसानी ने नलिनी की तरफ देखते हुए कहा।

नलिनी ने एक फ़ाइल जयंत दसानी को दी जिसमें सारी वांछित सूचनाएँ थी।

इसके बाद वहाँ पर कॉफी सर्व हो गयी और फिर दसानी, विश्वरूप और नलिनी आगे की रणनीति के बारे में बातें करने में मशगूल हो गए।

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कराची

यासिर ख़ान का असली नाम जुनैर ख़ान बुगती था। बलोचिस्तान के एक बड़े मिलिट्री ऑपरेशन में अपने लीडर अकबर ख़ान बुगती के मारे जाने के बाद जुनैर ख़ान बुगती का परिवार अपनी जान बचाकर वहाँ से रातों रात निकल कर कराची में आ बसा था। अकबर ख़ान की जगह अब फिरदौस ख़ान बुगती ने ले ली थी जो अकबर ख़ान बुगती का बड़ा भाई और यासिर यानी जुनैर ख़ान का बाप था।

उन लोगों की अलग देश के लिए लड़ाई जारी थी। फिरदौस ख़ान नहीं चाहता था कि उसका सारा परिवार आर्मी के निशाने पर आये इसलिए उसने परिवार के बाकी सदस्यों को अलग-अलग जगह फैल जाने के लिए कहा था।

बलोचिस्तान के लिए वहाँ के लोगों का संघर्ष वक्ती तौर पर फिलहाल ठंडा पड़ा हुआ था। पाकिस्तान की आर्मी और आइएसआई उन लोगों को नेस्तनाबूद करने के लिए उनके पीछे हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई थी।

जुनैर ख़ान बुगती को यासिर ख़ान बने हुए एक जमाना बीत गया था। अब वह यासिर ख़ान के रूप में इतना ढल गया था कि अब अगर कोई उसे जुनैर कह कर भी पुकारता तो उसके कानों पर जूँ भी नहीं रेंगती थी।

कराची में टैक्सी चलाने का काम उसके लिए बहुत मुफीद साबित हो रहा था। इसके कारण वह कराची और उसके आस पास के सभी रास्तों से परिचित तो हो ही गया था और साथ में यह फायदा भी था कि शहर में जगह-जगह लगे बैरियर पर तैनात आर्मी वाले भी उसे अब पहचानते थे।

आज उसके पास कोई सवारी की बुकिंग नहीं थी तो इसलिए तफ़रीहन सदर टाऊन की ‘महबूब क्लॉथ मार्केट’ की एक दुकान में बैठा अपनी मनपसंद बिरयानी खा रहा था। तभी उसके फोन पर एक मैसेज आया जिसमें एक एड्रेस दिया गया था।

अब्दील राज़िक, सईद मोहम्मद असलम रोड़, बोराही मोहल्ला, कराची।

अगले मैसेज में उसे उस पते पर जाकर अब्दील राज़िक के बारे में छानबीन करने के लिए कहा गया था।

यासिर ख़ान ने बिरयानी का बिल अदा किया और ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करता हुआ अपनी कार में जा बैठा। वह चाकीवाड़ा रोड़ से होता हुआ मोहम्मद असलम रोड़ के पास स्ट्रीट नंबर पंद्रह में जा पहुँचा।

अपनी कार को एक चौड़ी गली में खड़ी करके उसने मोबाइल पर लोकेशन को देखा। यासिर दिये गए पते के मकान पर सीधा जाने की बजाय उस मकान के पीछे उस्मान रोड़ पर चला गया जहाँ पर एक अच्छी ख़ासी मार्केट थी। यासिर खान मार्केट में घूमने लगा। उसने मार्केट में ‘आफताब क्लोथिंग सेंटर’का बोर्ड देखा। वो एक अच्छी ख़ासी बड़ी सी दुकान थी। यासिर शीशे का दरवाजा खोलकर अंदर चला गया।

“आओ मियाँ, क्या खिदमत करें आपकी।” काउंटर पर बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति, जिसका नाम आफताब आलम था,ने उसकी तरफ तवज्जो देते हुए कहा।

“चचा, मुझे एक पठानी सूट सिलवाना है। बढ़िया सा...”

“हाँ... हाँ, जरूर। अरे वाजिद, जरा मियाँ को पठानी सूट के लिए कपड़ा दिखाओ तो... आप उधर तशरीफ ले जाइए और पसंद कर लीजिये। हमारे यहाँ बहुत आला दर्जे का दर्जी है, अगर आप चाहें तो बड़े किफ़ायती दाम में आपको सिलाई भी पड़ जाएगी।” आफताब आलम ने कहा।

“इसीलिए तो यहाँ पर आया हूँ, जनाबे मोहतरम। अब्दील भाई ने इसी बात के लिए आपकी दुकान की बड़ी तारीफ की थी।” यासिर ने दाना फेंका।

“अब्दील... ये जनाब कौन हुए?” बुजुर्गवार के चेहरे पर कोई पहचान के भाव नहीं आए।

“अब्दील राज़िक... यहीं पीछे बोराही मोहल्ले में ही रहते हैं।” यासिर ने फिर से दोहराया।

“ये जनाब शायद राज़िक भाई के बारे में बात कर रहें है। जो इंडिया गए हुए हैं अपना इलाज करवाने।” अपनी जगह पर खड़े दुकान के कारिंदे वाजिद ने यासिर की बात को सहारा दिया।

“ओह! राज़िक मियाँ! खुदा उनको तंदुरस्ती बख्शे। अच्छे खासे नौजवान और सेहतमंद दिखते थे, पता नहीं एकदम क्या क़ज़ा आयी[2] कि एक महीने के अंदर ही उन्हें इलाज के लिए इंडिया जाना पड़ा। सुना है कि यहाँ के डॉक्टर तो उनके मामले में हाथ खड़े कर चुके थे। अब तो माशाल्लाह जल्दी ही राज़िक मियाँ तंदरुस्त हो कर वापस आने वाले हैं।” बुजुर्गवार ने उम्मीद जताई।

“अच्छा! यह तो काफी ताज्जुब की बात है, बड़े मियाँ। मेरा जिगरी दोस्त होते हुए भी उसने मुझे इस बारे में कोई इत्तिला[3] नहीं दी। मैं तो उससे मिलने यहाँ आया था। ये तो अच्छा हुआ आपसे मुलाक़ात हो गयी और पता लगा।” यासिर अफसोस जाहिर करता हुआ बोला।

आफताब आलम ने भी अपना सिर अफसोस से हिलाया और अपने काउंटर पर किसी दूसरे ग्राहक से बातचीत में मसरूफ़ हो गया जो यासिर के लिए अच्छा ही था, नहीं तो हो सकता था कि वह उससे सवाल जवाब शुरू कर देता। उसने एक अपने मनपसंद कपड़े को पसंद कर अपना माप दिया और पैसे देकर दुकान से बाहर आ गया।

उसने वहाँ पर गली के मोड़ पर दो दुकानों से भी पूछताछ की तो वहाँ से भी उसे यही जवाब सुनने को मिला। अब्दील राज़िक नाम का शख़्स नर्वस सिस्टम की किसी लाइलाज बीमारी का मरीज बताया गया था और अपने इलाज के लिए इस वक्त इंडिया में था। वहाँ उसका इलाज़ हो चुका था और वह वापस आने वाला था। उसके घर में उसने उसकी एक फोटो लगी हुई देखी, जो यह तस्दीक़ करती थी कि जो पता उसे दिया गया था और जो फोटो उसे दी गयी थी वो एक ही आदमी की थी।

उसने इस बात की तस्दीक़ की सूचना मैसेज से फॉरवर्ड कर दी जो राजीव जयराम के फोन पर तुरंत पहुँची। उसने इस मैसेज को श्रीकांत को फॉरवर्ड कर दिया।

श्रीकांत ने वह मैसेज देखा और गहरी साँस लेकर फोन वापस जेब में रख लिया।