अगले दिन सुबह सात बजे, श्रीनगर से ही मिल्ट्री के एक ठिकाने से उस सफर की शुरूआत हुई। ऐसा सफर जिसमें कुछ भी हो जाने की पूरी-पूरी सम्भावना थी।
दो फुल साईज के ट्रक थे वो मिल्ट्री के और उसके पीछे मीडिया साईज का मिल्ट्री का ट्रक था। तीनों ट्रकों को इस तरह ढांप कर बांधा गया था कि कोई नहीं कह सकता था कि वो खाली भी हो सकते हैं। देखने वाले को यही एहसास होता कि ट्रक ठसाठस माल से भरे पड़े हैं। ऐसा मालूम होने की वजह थी, ट्रकों की रफ्तार कम थी। वो धीमी गति से आग बढ़ रहे थे। वैसे भी कोहरा छाया हुआ था। मौसम अभी खुला नहीं था।
ट्रकों के आगे मिल्ट्री की मोटरसाईकिल चल रही थी। मोटरसाईकिल का एक जवान चल रहा था। दूसरा पीछे बैठा था। वो जवान मिल्ट्री इन्टैलीजैन्ट्स के एजेन्ट थे।
तीनों ट्रकों के पीछे एक जीप थी। जिसे एक जवान ड्राईव कर रहा था और तीन जवान गनों को थामे सतर्क मुद्रा में, साथ में मौजूद थे। वो भी मिल्ट्री इन्टैलीजैन्ट्स के एजेन्ट थे। ये सब करना इसलिये जरूरी हो गया था कि बख्तावर सिंह शक न कर सके कि उसे फंसाने के लिये कोई चाल चली जा रही है।
सबसे आगे वाले मिल्ट्री के ट्रक को पारसनाथ ड्राईव कर रहा था। जो कि मेकअप में था कि बख्तावर सिंह उसे पहचान कर सतर्क न हो सके। उसके साथ अजीत सिंह था। गन उनके पास थी। बीच वाले ट्रक को वजीर सिंह ड्राईव कर रहा था। पास में मेकअप में महाजन बैठा था और ट्रक के पीछे वाले हिस्से में गन के साथ जावेद खान मौजूद था। जावेद खान ने इस काम में हिस्सा लेना पसन्द किया था।
सबसे पीछे वाले ट्रक को बलविन्दर सिंह ड्राईव कर रहा था। पास में गौरव शर्मा था। उसके पीछे वाले हिस्से में मोना चौधरी और कृष्णपाल के साथ सहमी-सी श्वेता बैठी थी।
हर कोई पूरी तरह हथियारों से लैस था।
“मुझे समझ नहीं आ रहा था कि तुम लोग क्या करना चाहते-?” श्वेता ने कहना चाहा।
“तुम्हें अपने मामा बख्तावर सिंह से मिलना है?” मोना चौधरी कह उठी।
“हां।”
“बहुत जल्दी तुम अपने मामा से मिलोगी। वो कभी भी इन ट्रकों को रोक सकता है।” मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“क्यों?” श्वेता के होंठों से निकला- “मेरा मामा ऐसा क्यों करेंगे?”
“क्योंकि तेरा मामा दूध का धुला है। बहुत शरीफ है वो।” कृष्णपाल कह उठा।
“म....मैं समझी नहीं- “ श्वेता ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“तुम्हें समझने की जरूरत भी नहीं है।” मोना चौधरी ने गम्भीर कहा- “हमने तुमसे वायदा किया है कि तुम्हें कुछ नहीं होगा और वापस पाकिस्तान भिजवा दिया जायेगा तो ऐसा ही होगा।”
“लेकिन तुम लोग मामा के पीछे क्यों पड़े हो?”
“तुम्हारा मामा हिन्दुस्तान को नुकसान पहुंचाने वाले काम करता रहता है।” मोना चौधरी ने श्वेता की आंखों में झांका- “तुम बच्ची नहीं हो कि मेरी बात न समझ सको। बेहतर यही है कि खामोश रहो।”
“तुम्हारा नाम क्या है?” श्वेता की आवाज में गम्भीरता आ गई।
“मोना चौधरी।”
“तुम कोई ऑफिसर हो मामा की तरह जो...”
“मैं हिन्दुस्तान में, पुलिस के लिये वांटेड हूं।” मोना चौधरी ने उसे घूरा- “गैर कानूनी काम करती हूं, लेकिन ये पसन्द नहीं करती कि तुम्हारे मामा, बख्तावर सिंह जैसा इन्सान सीमा पार करके हिन्दुस्तान आये और हमारे देश को किसी तरह का नुकसान पहुंचाये। बस यही दुश्मनी है बख्तावर सिंह और मेरे बीच-।”
श्वेता, मीना चौधरी को देखती रही फिर धीमे स्वर में कह उठी।
“मैंने एक बार माया के मुंह से तुम्हारा नाम सुना था। मोना चौधरी-हां। तब तुम पाकिस्तान आई थीं और माया से तुम्हारा झगड़ा हो गया था। तुमने मामा को हैलीकॉप्टर से नीचे फेंका था। लेकिन पेड़ से टकरा कर वो बच गये।”
“बहुत पुरानी बात है ये कि...”
“मामा तुम्हारे दुश्मन हैं तो फिर तुम मेरा क्यों ध्यान रख रही हो?” श्वेता के होंठों से निकला।
“मेरी दुश्मनी सिर्फ बख्तावर सिंह से है। पूरे पाकिस्तान से नहीं। तुमसे नहीं। और ये दुश्मनी कायदे और कानूनों की है। इसमें जाती वजह शामिल नहीं है कि मैं तुम्हें गोली मार दूं।” मोना चौधरी की आवाज में सख्ती आ गई- “बेहतर होगा कि तुम ज्यादा सवाल मत करो।”
श्वेता खामोश हो गई। चेहरे पर गम्भीरता थी।
उधर अजीत सिंह पारसनाथ से कह रहा था।
“यार पासनाथ, कब मौका मिलेगा। कोई नजर आता नहीं दिखता।” “दिख जायेगा अभी तो श्रीनगर से भी बाहर नहीं निकले।”
पारसनाथ से सपाट स्वर में कहा।
“कितनी देर लगेगी श्री नगर से बाहर निकलने में?”
“आधे घंटे बाद हम श्रीनगर से बाहर, हाईवे पर होंगे। उसके बाद ही कुछ होगा।”
“अगर न हुआ तो?”
“क्या मतलब?”
“मैंने पूछा है अगर पूरा दिन बीत गया, हम जम्मू पहुंच गये। कुछ न हुआ तो क्या होगा?”
“कुछ नहीं होगा।”
“कुछ नहीं होंगा?” अजीत सिंह की आंखें सिकुड़ी- “कुछ नहीं हुआ तो गोलियां किस पर चलाऊंगा?”
“दीवार पर चला लेना।
अजीत सिंह उखड़ी निगाहों से पारसनाथ को देखने लगा। वजीर सिंह ने महाजन से पूछा।
“तुम्हारा क्या ख्याल है? बखतावर सिंह कहां पर ट्रकों पर हाथ डालेगा?”
“कुछ नहीं कहा जा सकता। लम्बा रास्ता है। श्रीनगर में जम्मू तक ऐसी बीसियों जगहें हैं, जहां सुनसानी होती है। कोई भी जगह वो चुन सकता है। उसने जबर्दस्त तैयारी कर रखी होगी।” कहने के साथ ही महाजन ने घूँट भरा- “यकीन के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता कि मौके पर जीत किसकी होगी?”
वजीर सिंह ने दांत भींचकर महाजन को देखा फिर दरिन्दगी से कह उठा।
“जीत, बख्तावर सिंह की नहीं, हमारी होगी।”
महाजन ने वजीर सिंह के चेहरे पर निगाह मारी फिर गहरी सांस लेकर रह गया।
मध्यम गति से उनका काफिला आगे बढ़ता जा रहा था।
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मोना चौधरी ने कहलाई पर बंधी घड़ी की सुईयां सैट की कि घड़ी में से पी-पी की मध्यम-सी आवाज आने लगी। दूसरे ही पल कानों में पारसनाथ की भिनभिनाती आवाज पड़ी।
“हेलो...”
ये घड़ीनुमा ट्रांसमीटर कालिया ने दिया यूं कि जरूरत पड़ने पर वे आपस में बात कर सकें।
“पारसनाथ...”
“कहो मोना चौधरी!”
“हमें सफर शुरू किए तीन घंटे हो चुके हैं। अभी तक ऐसा कोई नजर नहीं आया कि उस पर शक किया जाये?”
“नहीं सब ठीक है। इस वक्त हम हाईवे पर एक सौ दस किलोमीटर आगे आ चुके हैं।” घड़ी से निकलकर पारसनाथ की आवाज कानों में पड़ रही थी- “अजीत सिंह आधे घंटे से चाय पीने के लिये जोर मार रहा था।”
“हमें कोई जल्दी नहीं है। किसी भी ठीक जगह पर चाय पीने हो तो ट्रक को रोक सकते हैं। रुकने से पहले आगे और पीछे आ रहे जवानों को खबर कर देना। महाजन को बता देना।” मोना चौधरी ने कहा।
“ठीक है।”
“वो ट्रकों के पीछे वाले हिस्से में हैं। वो किसी भी हाल में बाहर नहीं निकलेंगे। जैसे कि मैं और कृष्णपाल। उधर सामान के ट्रक के पीछे वजीर सिंह है तो वो भी किसी हलचल के भीतर ही रहेगा।”
“ऐसा ही होगा।”
मोना चौधरी ने ट्रांसमीटर ऑफ करके पुनः उसे घड़ी का रूप दे दिया।
कृष्णपाल ट्रक की बॉडी से टेक लगाये पास रखी गन को थपथपा रहा था।
श्वेता व्याकुलता भरे ढंग में एक तरफ बैठी, बार-बार मोना चौधरी को देख रही थी।
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वो काफी बड़ा रेस्टोरेंट था।
उसके सामने भी बहुत जगह खाली थी। पारसनाथ ने वहीं पर ट्रक रोका। चूंकि ट्रांसमीटर द्वारा वो आगे मोटरसाइकिल पर जाते और सबको खबर कर चुका था कि चाय के लिये यहां रुकना है, इसलिये वो सब धीरे-धीरे वहीं रुकने लगे। पारसनाथ ने महाजन को पक्का कर दिया था कि पीछे मौजूद वजीर सिंह किसी भी हालत में वाहर न निकले और ऐसी कोई हरकत न करे कि किसी को भीतर की मौजूदगी का एहसास हो।
बख्तावर सिंह ने अगर आज ट्रकों पर हाथ डालना था तो यकीनन श्रीनगर से ही रवानगी के वक्त से, उसके आदमी किसी न किसी तरह ट्रकों पर नजर अवश्य रखे होंगे।
वे सब मिल्ट्री की वर्दी में थे और वैसे ही चल रहे थे। उन सब लोगों ने एक साथ मिलकर बड़ी सी टेबल संभाल ली थी और चाय के लिये कह दिया था। पारसनाथ और महाजन की नजरें सावधानी से हर तरफ घूम रही थीं। रेस्टोरेंट के भीतर भी टेबलें थीं।
वहां भी लोग बैठे नजर आ रहे थे। आज सूर्य नहीं निकला था। लेकिन मौसम साफ था। सर्दी तीखी न होकर गुनगुनी सी थी। सामने सड़क पर वाहन आते-जाते नजर आ रहे थे। तभी जम्मू की तरफ से आती बस वहां आकर रुकी तो शोर सा पैदा हो गया। लोग उतर कर चाय-पानी के लिए कुर्सियां-टेबल पर बैठने लगे।
महाजन ने बोतल का घूँट भर कर पारसनाथ को देखा।
“मेरे ख्याल में नहीं लंच पर रुकते तो ज्यादा अच्छा रहता।”
“हमें चाय पीने की तलब लगी थी।” पारसनाथ ने अजीत सिंह से कहा।
“मेरे को नहीं। अटैक वाले दिन को वो जब भी किसी चीज की इच्छा जाहिर करता है, मैं उसकी इच्छा जरूर पूरी कर देता हूं। क्या मालूम वो कब अटैक मार दे। बेचारे का ध्यान रखना पड़ता है।”
उसी रेस्टोरेंट के कैश काऊंटर परं चालीस वर्षीय व्यक्ति बैठा था। कमीज-पायजामे के ऊपर उसने स्वेटर पहन रखा था और सिर पर मफलर लपेटा हुआ था। इन लोगों के रुकते ही, उसकी निगाह तीनों ट्रकों पर और उन सब पर फिरने लगी। वो सतर्क-सा नजर आने लगा। दो मिनट पश्चात् वो उठा और रेस्टोरेंट में मौजूद छोटे से केबिन में पहुंचकर, जेब से ट्रांसमीटर निकाला और उसे ऑन करने के पश्चात् सम्बन्ध बताने लगा।
फिर ट्रांसमीटर के भीतर से ता जाता सुनाई दिया।
“सर बख्तावर! सर बख्तावर, हेलो, मैं नम्बर चार बोल रहा हूं। सर बख्तावर-।” ट्रांसमीटर के मुंह के पास ले जाकर वो धीमे स्वर में बड़बड़ाने लगा।
तभी ट्रांसमीटर से निकलता बख्तावर सिंह का स्वर सुनाई दिया।
“नम्बर चार! हैलो नम्बर चार! तुम कहां हो?”
“बख्तावर, मैं अपने रेस्टोरेंट पर हूं।” वो धीमे स्वर में जल्दी-जल्दी कह उठा- “अभी-अभी मिल्ट्री के तीन ट्रक और उनके साथ चल रहे मिल्ट्री वाले मेरे रेस्टोरेंट पर चाय पीने के लिये रुके हैं। वो मिल्ट्री के ट्रक वैसे ही हैं, जैसे कि आपने बताये थे। अभी वो पन्द्रह-बीस मिनट तो अवश्य रुकेंगे। कुछ करना है तो मुझे बताइये।”
“नम्बर चार! उन ट्रकों पर नजर रखी जा रही है और अभी-अभी पीछे लगे लोगों ने मुझे खबर दी थी कि वो मिल्ट्री के ट्रक तुम्हारे रेस्टोरेंट पर चाय पीने के लिये रुके हैं। मैं तुमसे बात करने ही वाला था।
“बताइये सर बख्तावर! मैं आपके लिये क्या कर सकता हूं। आपने मुझे जमीन से उठाकर आसमान पर बिछा दिया। जिसके पास भी खाने को नहीं होता था, उसे आपने इतना बड़ा रेस्टोरेंट खुलवा दिया। आपके किसी काम आ सका तो मैं धन्य हो जाऊंगा।”
“इस वक्त उन ट्रकों में कोई है?” ट्रांसमीटर से निकला, बख्तावर सिंह का स्वर सुनाई दिया।
“नहीं। वो सब टेबल पर चाय के लिये बैठे हैं।”
“तुम्हारी तैयारी कैसी है?”
“मैंने तो सब ही तैयारी कर ली थी सर बख्तावर सिंह, जब आपने ट्रकों के बारे में बताकर कहा था कि शायद वो मेरे रेस्टोरेंट पर रुकें। और वो रुक ही गये। मैंने हर तरह के आदमी तैयार रखे हैं। आपका हुक्म चाहिये।
कुछ पलों की खामोशी के बाद ट्रांसमीटर से बख्तावर सिंह की आवाज आई।
“नम्बर चार सुनो! मैं तुम्हें जो बता रहा हूं वैसे ही करना। इस काम में बढ़िया से बढ़िया आदमी लगाना। वक्त कम है तुम्हारे पास। मेरी सुनो और वैसे ही करते जाओ।”
“कहिये, सर बख्तावर सिंह- “ उसके बाद ट्रांसमीटर से आती आवाज, नम्बर चार के कानों में पड़ने लगी
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चाय भट्टी पर उबल रही थी। पास में गिलास तैयार पड़े थे। होटल का मालिक यानि कि नम्बर चार, चाय बना रहे व्यक्ति के पास पहुंचा और शांत स्वर में बोला।
“फौजियों की चाय तैयार हो गई?”
“हो गई मालिक। बस, गिलासों में डालने जा रहा हूं।” उसने खुले में बड़ी-सी टेबल के गिर्द, कुर्सियों पर बैठे सब पर निगाह मारी।
“जल्दी लाओ चाय।” अजीत सिंह का स्वर कानों में पड़ा- “बहुत देर लगाते हो तुम लोग काम करने में!”
नम्बर चार ने जेब से कागज की पुड़िया निकालकर सावधानी से उसकी तरफ बढ़ाई।
“ये लो। चुपचाप चाय में मिला दे।”
उसने नम्बर चार पर निगाह भारी । पुड़िया ले ली। मालिक की बात को कैसे मना कर सकता था। पुड़िया खोली और उसमें मौजूद पाउडर चाय में डालकर उबाली दी और फिर चाय गिलासों में डालने लगा।
“किसी को पता न चले कि चाय में कुछ डाला गया है। बाद में कोई पूछे तो बताना नहीं।”
“ठीक है मालिक।”
वो कैश काऊंटर की तरफ बढ़ गया।
“छोटू!” चाय बनाने वाले ने ऊंचे स्वर में कहा- “अपने जवाने को चाय दे फटाफट...”
“आया उस्ताद।” कुछ दूरी से आवाज आई।
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महाजन की आंखें सिकुडीं।
वो तो बोतल से घूँट भरने में व्यस्त था। लेकिन उसके देखते ही देखते सबने चाय पी और एक-के-बाद-एक वे बेहोश होते चले गये। किसी का सिर टेबल पर जा टिका तो पुश्त से सिर टिक गया किसी का। पारसनाथ को भी जब बेहोश होते देखा तो समझ गया कि चाय में कोई तीव्र बेहोशी की दवा मिलाई गई है।
महाजन ने सिर घुमाकर उधर देखा, जहां भट्टी थी। वहां चाय बनाने वाला खड़ा था और डरा सा उसे देख रहा था। महाजन की निगाह पुनः घूमी तो कैश का ऊंटर पर बैठे नम्बर चार पर जा टिकी। उसे अपनी तरफ देखता पाकर नम्बर चार सकपका-सा उठा।
महाजन के दांत भिंच गये। उसे समझते देर न लगी की पूरी दाल ही काली है।
ठीक उसी पल मिल्ट्री के तीनों ट्रक स्टार्ट होने लगे। महाजन की गर्दन उधर घूम गई। आंखों में कहर के भाव नाच उठे। चेहरे पर मौत के साये मंडराने लगे। उसके देखते ही देखते तीनों ट्रक स्टार्ट हुए फिर एक के पीछे एक करके बढ़ते हुए, मुख्य सड़क पर पहुंचे और आगे बढ़ते चले गये।
महाजन ने उठने की कोशिश नहीं की। हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा और उसे टेबल पर रखकर कलाई पर बंधी घड़ी जो कि ट्रांसमीटर का काम भी करती थी, उससे मोना चौधरी से सम्बन्ध बनाने लगा।
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एक मिल्ट्री वाले को ठीक-ठाक पाकर नम्बर चार व्याकुल हो उठा। वो समझ गया कि उसने चाय नहीं पी। वो तो बोतल से घूँट भर रहा है। उसे अपनी तरफ देखते पाकर समझ गया कि उसे पूरी तरह शक हो गया है कि चाय में कुछ मिलाया गया है।
कैश काऊंटर पर बैठे ही बैठे ट्रांसमीटर पर अपने बख्तावर सिंह से फौरन सम्बन्ध बनाया।
“सर बख्तावर! काम हो गया। आपने जैसा कहा था मैंने वैसे ही किया। मेरे आदमी मिल्ट्री के तीनों ट्रकों को लेकर आपकी बताई जगह की तरफ चल पड़े हैं। घंटे तक पहुंच लेंगे।” नम्बर चार ने कहा।
“गुड। तुमने बहुत बड़ा काम कर दिया।”
“लेकिन सर, एक गड़बड़ हो गई। उनमें से एक ने चाय नहीं पी।
वो समझ चुका है कि चाय में कुछ मिलाया गया है। वो मुझे भी घूर रहा था। अभी तक वो कुर्सी पर बैठा है। उसने ट्रकों के पीछे जाने की कोशिश भी नहीं की।”
“छोटी-छोटी बातों से घबराते नहीं हैं।” बख्तावर सिंह की आवाज ट्रांसमीटर से निकल रही थी- “अगर उसे वास्तव में शक हो गया और तुम पर हाथ डालने की कोशिश करता है तो चुपके से उसे खत्म करके, पहाड़ से लाश नीचे गिरा दो। तुमने ईनाम के काबिल काम किया है। मैं बहुत जल्द तुमसे मिलूंगा।”
“ज....जी....”
उनकी बातचीत खत्म हो गई।
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“बेबी।” कलाई पर बंधी घड़ीनुमा ट्रांसमीटर से महाजन ने मोना चौधरी से बात की- “ट्रक में सैर कर रही हो।”
“बहुत देर लगा दी, तुम लोगों ने, चाय पीने में।” घड़ी से निकलता पतला-धीमा स्वर महाजन के कानों में पड़ा।
“हम तो अभी भी चाय पी रहे हैं।” महाजन के होंठों से खतरनाक हंसी निकली।
“क्या मतलब?”
“जहां पर हम चाय पीने के लिये रुके थे, वहां हमें चाय में बेहोशी की दवा मिलाकर दी गई। मेरे सामने ही सब बेहोश पड़े हैं। पारसनाथ भी। मैं घूँट भर रहा था। मैंने चाय नहीं पी।”
“मतलब की ट्रक को कोई दूसरा चला रहा है।” मोना चौधरी का चौंका हुआ स्वर, महाजन को सुनाई दिया।
“एक, नहीं तीनों ट्रकों को। वो लोग तीनों ट्रकों को ले गये हैं। और...”
“तुम कहां हो?”
“वहीं, उसी कुर्सी पर। सब बेहोशों को देख रहा हूं।”
“मैं समझी नहीं कि तुम...”
“बेबी- “ महाजन का स्वर खतरनाक हो गया-- “तुम आगे वाले ट्रक में मौजूद वजीर सिंह को सब कुछ बताकर सतर्क कर दो कि वो बिना किसी शोर के पड़ा रहे।”
“लेकिन तुम...”
‘मैं इस रेस्टोरेंट वाले को समझाकर आता हूं कि उसने गलत किया है। वो बड़े ट्रक हैं। ये पहाड़ी रास्ता है। ज्यादा तेज नहीं दौड़ सकेंगे। मिल्ट्री की जीप सामने खड़ी है। मैं बहुत जल्दी तुम लोगों के पास आ जाऊंगा। देर नहीं लगेगी।”
“लेकिन वो जो बेहोश हैं वो?”
“बेबी! मैं वक्त पर पारसनाथ से ट्रांसमीटर पर सम्बन्ध बनाता रहूंगा। तुम भी ऐसी ही कोशिश करती रहना। मेरे ख्याल में ये ज्यादा देर बेहोश नहीं रहेंगे। हम इन्हें अपने पास बुला सकते हैं।” महाजन ने दांत भींचे एकाएक शब्द चबाकर कहा- “तुम ट्रक पर दी गई तिरपाल के बाहर देखकर रास्ता पहचानती जाना कि अगर ट्रक मुख्य सड़क छोड़कर बीच में कहीं मुड़ते हैं तो मुझे ट्रांसमीटर पर खबर कर देना। पांच मिनट में यहां से चल रहा हूं।”
“ध्यान रखना रेस्टोरेंट वाला खतरनाक भी हो सकता है।” मोना चौधरी की आवाज कानों में पड़ी।
“वौ हौसले वाला काम अवश्य कर गया है लेकिन खतरनाक नहीं लगता। मैं देखता हूं उसे।” कहने के साथ ही महाजन ने ट्रांसमीटर ऑफ करके घड़ी सैट की फिर टेबल पर रखी बोतल से घूँट भरा और कुर्सी से सटा रखी गन को थामते हुए उठा और चेहरे पर कहर के भाव समेटे कैश काऊंटर की तरफ बढ़ने लगा।
उसे अपनी तरफ बढ़ते पाकर नम्बर चार सूखे होंठों पर जीभ फेरने लगा। चेहरा पूरी तरह घबराहट से भर गया। यूं तो बख्तावर सिंह के लिये उसने कई काम किए थे लेकिन मिल्ट्री की वर्दी के खिलाफ पहली बार काम किया था। वो ठगा-सा बैठा एकटक महाजन को देखता रहा। चाहकर भी उठ नहीं सका।
महाजन के पास पहुंचने पर, वो हड़बड़ाये स्वर में कह उठा।
“लगता है आपके साथियों ने कुछ ज्यादा पी ली। शायद सब बेहोश...”
“ये कितनी देर में होश में आ जायेंगे?” महाजन ने खतरनाक स्वर में कहा और हाथ में पकड़ी गन छोटे से काऊंटर के पार, नम्बर चार की छाती पर रख दी।
नम्बर चार का चेहरा दूध की तरफ सफेद पड़ गया।
वहां मौजूद कईयों की निगाह इस तरफ गई।
“य-ये आप क्या कर...”
उसी पल महाजन ने उसकी छाती से गन हटाई और नाल उसके चेहरे पर दे मारी । कुर्सी पर बैठे-बैठे वो बुरी तरह हिलकर रह गया। संभला । गाल भीतर से फट गया था। होंठों के कोरों से खून बह उठा था। इसी बीच महाजन को उसके हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर नजर आई। वो उसने नीचे कर रखी थी।
“उल्लू के पट्टे! रिवॉल्वर भी निकाल रखी है और गोती चलाने की हिम्मत नहीं।” महाजन गुर्रा उठा।
“ये....ये तो मैंने पहले से ही पकड़ी हुई थी।” वो सूखे स्वर में कह उठा।
“फेंक इसे।” महाजन ने पुनः गन उसकी छाती पर रख दी।
उसने उसी पल रिवॉल्वर फेंक दी।
“अब मैं तेरे को गोलियों से भून दूंगा।” महाजन के स्वर के ज-जर्रे से मौत टपक रही थी- “बता, मेरे साथियों को कब तक होश आयेगा। देर नहीं, अभी का अभी बता-।”
वो कांप उठा था, महाजन के चेहरे के भावों को देखकर।
“पन्द्रह मिनट में होश आ जायेगा।” नम्बर चार के होंठों से कांपता स्वर निकला- “गोली मत चलाना।”
“किसके कहने पर तूने चाय में बेहोशी की दवा मिलाई?”
“व-बख्तावर सिंह ने कहा था।”
“बख्तावर सिंह!” महाजन के चेहरे पर मौत भरी मुस्कान उभरी- “हूं। सुन । अब तू मरने जा रहा है। देखने वाले नहीं जानते कि असल बात क्या है। लेकिन मैं जानता हूं कि कल अखबार में यही खबर होगी कि एक फौजी पागल हो गया है। जिसने बिना किसी वजह के रेस्टोरेंट के मालिक को गोलियों से भून दिया।” इसके साथ ही महाजन की गन का मुंह खुला और गोलियां उसके शरीर को चिथड़ों में बदलती चली गई।
महाजन ने गन को पीछे किया। कंधे पर लटकाया। गर्म बैरल का एहसास कान को हो रहा था। फिर वो तेजी से जीप की तरफ बढ़ा। जीप में बैठा। जीप आगे बढ़ा दी-उस तरफ जिधर वो तीनों मिल्ट्री के ट्रक गये थे। चेहरे पर गुस्सा और आंखों में मौत नाच रही थी।
☐☐☐
महाजन ने ट्रांसमीटर पर मोना चौधरी से सम्बन्ध बनाये रखा। मोना चौधरी से बराबर उसकी बात होती रही।
महाजन ने आगे जा रहे ट्रकों से सिर्फ पांच मिनट दूरी का फासला बना रखा था। इसी बीच अपने पारसनाथ से सम्बन्ध बनाया तो उससे बात हो गई। उन लोगों को होश आ गया था।
“तुम कहां हो महाजन?” पारसनाथ ने पूछा- “क्या हुआ था? हमें अभी होश आया है और हम कुछ भी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। यहां रैस्टोरैंट का मालिक मरा पड़ा है। और लोग कह रहे हैं कि-।
“उनकी बात छोड़ो।” कहने के साथ ही महाजन ने सारी बात बताकर कहा- “तुम सब फौरन किसी वाहन में पीछे-पीछे आ जाओ। बेबी या मेरे से सम्बन्ध बनाये रखना। इस वक्त ट्रकों को ले जाने के पीछे बख्तावर सिंह है, ये तो स्पष्ट हो गया।”
“अच्छी बात है। हम अभी यहां से चल रहे हैं।” छड़ीनुमा ट्रांसमीटर पर मोना चौधरी की तरफ से संदेश आ रहा था। महाजन ने उससे बात की।
“कहो।”
“वो ट्रक अब बाईं तरफ जाने वाले कच्चे रास्ते की तरफ मुड़ गये हैं।” घड़ी से निकलती मोना चौधरी की आवाज महाजन के कानों में पड़ी- “काफी आगे, मुझे किसी गांव के होने की झलक मिली थी।”
“ओ०के० बेबी। मैं पीछे हूं और ज्यादा दूर नहीं हूं। पारसनाथ और बाकी सब को होश आ गया है। मेरी उनसे बात हो गई है। वो यहां से चल पड़े हैं। तुम उनसे भी बात करती रहना बेबी।”
“अच्छी बात है।”
☐☐☐
उस पहाड़ी गांव में पूरी तरह बख्तावर सिंह के आदी का दबदबा था जो कि गांव का चौधरी था और बख्तावर सिंह ने उसे मौज-मस्ती के लिये नोट मिलते रहते थे। जरूरत पड़ने पर वख्तावर सिंह कई बार उस गांव को अपने काम के लिये इस्तेमाल कर चुका था। बख्तावर सिंह जब भी गांव में आता तो गांव वाले भी सब आ जाते। पैसे के साथ-साथ उन्हें खाने-पीने का भी सामान मिलता। मेला सा लग जाता गांव में।
इस वक्त बख्तावर सिंह उसी गांव में मौजूद था। उसके साथ बीस आदमी हथियारों के साथ थे। उनके अलावा गाव के युवकों के पास भी देसी तमंचे और चाकू वगैरह थे। गांव में चौधरी ने युवकों से कहा था कि वो बख्तावर सिंह के आदमियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें। गांव में अधिकतर मकान पक्के थे। या बड़े-बड़े झोंपड़े थे। गरीबी की मार की छाप स्पष्ट झलक रही थी। औरतें अपने काम में व्यस्त नजर आ रही थीं। बच्चे खेल रहे थे। उनका बख्तावर सिंह की तरफ कोई खास ध्यान नहीं था। यानि कि ऐसी कोई बात होना, गांव वालों के लिये आम बात थी।
एक तरफ फुल बॉडी के तीन ट्रक खड़े थे।
बख्तावर सिंह सिग्रेट सुलगाये, गांव की छोटी सी खुली जगह में ठहर रहा था। वो कुछ बेचैन था और ट्रकों के आने का इन्तजार कर रहा था। इस बीच उसने नम्बर चार से कई बार ट्रांसमीटर पर सम्बन्ध बनाने की चेष्टा की थी। लेकिन सम्बन्ध नहीं बन पाया था। बख्तावर सिंह के कहने पर उसके आदमियों ने वहां पोजिशन ले रखी थी। इस वक्त उसके पास दो आदमी मौजूद थे।
“नम्बर चार से बात क्यों नहीं हो पा रही सर बख्तावर?” एक ने पूछा।
“मेरे ख्याल में उन मिल्ट्री वालों को होश आ गया होगा।” बख्तावर सिंह ने गम्भीर स्वर में कहा- “ऐसे में उन्होंने नम्बर चार को गिरफ्तार कर लिया होगा। या फिर शूट कर दिया होगा।”
“ओह...”
“बहुत देर हो गई-।” दूसरे ने कहा- “अब तक तो मिल्ट्री के ट्रकों को आ जाना चाहिये था।”
उसी पल इंजनों की मध्यम-सी आवाज वहां गूंज उठी।
“शायद ट्रक आ गये।”
बख्तावर सिंह के होंठ भिंच गये।
सबकी निगाह रास्ते पर जा टिकी।
कुछ देर में करीब आते हुए मिल्ट्री के ट्रक नजर आने लगे।
बख्तावर सिंह की आंखों के सामने भांजी श्वेता का चेहरा उभरा कि अब वो बच जायेगी।
☐☐☐
महाजन बराबर फासले पर जीप को रखे, उसी कच्चे रास्ते पर मुड़ गया था, जिधर ट्रक मुड़े थे। अब वो सावधान था और जानता था कि बख्तावर सिंह और उसके आदमी यहां से ज्यादा दूर नहीं हैं। ऐसे में उसे जीप को कहीं छोड़कर पैदल ही ट्रकों के पीछे आगे बढ़ना चाहिये। ट्रकों की रफ्तार बेहद धीमी थी।
तभी उसकी निगाह बैक जिप पर पड़ी तो चौंका। कुछ पीछे एक कार आती नजर आ रही थी। वो तुरन्त समझ गया कि आने वाली कार बख्तावर सिंह के आदमियों की हो सकती है, जो शुरू से ही ट्रकों पर नजर रखे होंगे। यानि कि वो नजर में आ चुका है।
महाजन ने फौरन ट्रांसमीटर पर मोना चौधरी से बात की।
“बेबी! मेरे पीछे शायद बख्तावर सिंह के आदमी हैं और मैं ट्रकों के पीछे हूं। उनसे बच नहीं सकता। कुछ ही दूरी पर मुझे गांव नजर न आ रहा है।”
“अब कुछ नहीं हो सकता।” मोना चौधरी का सख्त स्वर महाजन के कानों में पड़ा- “लेकिन इस वक्त तुम उनका मुकाबला करने की कोशिश मत करना । अगर तुम उनसे मुकाबला करके भाग गये तो बख्तावर सिंह सतर्क हो जायेगा और फिर किसी भी सूरत यहां से निकलने की कोशिश करेगा। मैं चाहती हूं वे निश्चित रहे। जब वो तुम्हें पकड़ने की चेष्टा करें तो खुद को उनके हवाले कर देना।”
“समझ गया। पारसनाथ और वो लोग पीछे आ रहे हैं?” महाजन में जल्द ने पूछा।
“हां। वो सब ज्यादा दूर नहीं हैं।”
पीछे आती कार करीब आ गई थी। महाजन ने ट्रांसमीटर ऑफ करके उसे घड़ी का रूप दिया कि तभी वो कार उसकी बगल से, कच्चे रास्ते की धूल उड़ाती निकली और उसकी जीप के सामने आ गये।
महाजन ने तुरन्त जीप रोकी। वरना टक्कर हो जाती।
आनन-फानन आगे वाली कार से दो व्यक्ति निकले। उनके हाथों में रिवॉल्वरें दबी थीं। तीसरा कार की ड्राईविंग सीट पर बैठा था। ट्रक आगे जाते जा रहे थे। महाजन की निगाह उन दोनों पर जा टिकी।
“कोई हरकत करने की चेष्टा मत करना।” एक ने हाथ में दबी रिवॉल्वर हिलाकर कहा- “बाहर निकलो।”
महाजन चेहरे पर ऐसे भाव ले आया जैसे मजबूर हो गया हो। पास रखी बोतल उठाकर वो जीप से उतर आया। उन्होंने रास्ते में खड़ी जीप को साईड किया और महाजन की रिवॉल्वरों से दबाकर कार में बैठ गये। कार आगे बढ़ गई।
“कौन हो तुम लोग?” महाजन ने सख्त स्वर में पूछा।
“जब तुम अपने बाप पास पहुंचोगे तो सब मालूम हो जायेगा।” एक दांत भींच कर कह उठा।
☐☐☐
मिल्ट्री के तीनों ट्रक सामने ही खड़े थे।
बख्तावर सिंह का चेहरा कठोर था, परन्तु आंखों में तीव्र चमक उभरी हुई थी। मिल्ट्री के इन ट्रकों पर कब्जा पाने के वास्ते, जिन मुसीबतों का सामना करने की सोची थी, वो मुसीबतें उसके सामने नहीं आई थीं। वरना उसका तो ख्याल था कि इन ट्रकों को हथियाने के लिये खून-खराबा बहुत होगा।
“सर बख्तावर!” एक ने खुशी भरे स्वर में कहा- “मामला हमारे हक में बहुत जल्दी निपट गया।”
“हां” बख्तावर सिंह ने उस व्यक्ति के चेहरे पर निगाह मारी- “कुछ ज्यादा ही आसानी से निपट गया।”
तभी रिवॉल्वरों के साये में दो व्यक्ति महाजन के लिए वहां पहुंचे।
“तुम?” महाजन को देखते ही बख्तावर सिंह चौंका।
महाजन ने हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा और बख्तावर सिंह से कह उठा।
“आखिर तुम हाथ मार ही गये ट्रकों पर-।”
“तो तुम्हें मालूम हो गया था कि मैं क्या करने जा रहा हूं।” कहते हुए बख्तावर सिंह के होंठ भिंचते चले गये।
“तुमने क्या समझा कि नहीं मालूम होगा।” महाजन ने तीखे स्वर में कहा और हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा।
“मोना चौधरी कहां है?”
“बेबी को भी पता है कि तुम क्या करने जा रहे हो। वो तुम्हारी तलाश में श्रीनगर में थी।” महाजन ने लापरवाही से कहा- “मेरे ख्याल से बख्तावर सिंह, इस बार तुम चौधरी से बच गये। उसे नहीं मालूम कि तुम कहाँ हो।”
पारसनाथ कठोर निगाहों से महाजन को देखता रहा फिर बोला।
“तुम मिल्ट्री की वर्दी में, इन ट्रकों के साथ थे।” एकाएक बख्तावर सिंह की आंखों में बेचैनी-सी नजर आने लगी।
“हां। मैंने कब मना किया है। देख लो। मैं जवान की वर्दी में हूं। दरअसल थोड़ी-सी जान-पहचान लगाई। थोड़ी सी रिश्वत दी और मिल्ट्री में किसी तरह ड्राईवर की नौकरी पा गया।” महाजन ने गहरी सांस ली- “तुम्हें शायद मालूम नहीं कि मैंने शादी कर ली है। खर्चे बढ़
गये हैं। सोचा तनख्वाह से घर का खर्चा चल जायेगा और बोतलों की समस्या भी हल हो जायेगी। मिल्ट्री में जवानों को बहुत कम रेट पर बोतलें मिल जाती हैं।”
“मोना चौधरी कहां है?” बख्तावर सिंह दांत भींचे कह उठा।
“बताया तो, श्रीनगर में तुम्हें तलाश कर-।”
“बकवास मत करो।” बख्तावर सिंह कठोर स्वर में कह उठा- “मेरे मामले को लेकर तुम मोना चौधरी से दूर नहीं रह सकते। वो या तो आसपास है, या फिर यहां पहुंचने वाली।”
तभी उनके कानों में ढेर सारे वाहनों की आवाजें पड़ने लगी। वो चौंके । बख्तावर सिंह की आंखें सिकुड़ी।
“तो तुम्हारे पीछे आ रही थी मोना चौधरी ।” बख्तावर सिंह खतरनाक स्वर में कह उठा...’
“बख्तावर सिंह।” महाजन ने मुंह बनाकर कहा- “तुम्हें मेरी बात पर विश्वास करना चाहिये कि मोना चौधरी मेरे पीछे नहीं है। इतनी उम्र हो गई तुम्हारी। अब तो शक-वहम करना छोड़...”
“इस पर नजर रखो। जब भी कोई चालाकी करने की कोशिश करें। शूट कर देना।”
बख्तावर सिंह दांत भींचकर उठा- “और बाकी सब लोग सतर्क हो जाओ। आने वाले दोस्त नहीं हो सकते। इंजनों की आवाज से स्पष्ट लग रहा है कि आने वाले वाहनों की संख्या ज्यादा है।”
उसी पल थोड़ी-सी भगदड़ मची फिर शान्ति छा गई।
ट्रक में मौजूद मोना चौधरी के कानों में सब बातें स्पष्ट पड़ी रही थीं। उसने उसी वक्त वजीर सिंह से ट्रांसमीटर पर बात की।
“बाहर के हालात बहुत बदल रहे हैं। तुम सावधान रहना वजीर सिंह! मैं ट्रक से बाहर निकलने की कोशिश कर रही हूं तुम जो भी करना, बाहर के हालातों के मुताबिक समझदारी से करना।” मोना चौधरी ने कहा।
“अच्छी बात है मोना चौधरी। लेकिन आने वाले लोग कौन हो सकते हैं?” वजीर सिंह की आवाज कानों में पड़ी।
“मालूम नहीं, लेकिन जो भी है, जल्दी ही मालूम हो जायेगा।”
“बख्तावर सिंह कौन है? वो...”
“जिसकी आवाज तुम अभी सुन रहे थे। जो महाजन से बात कर रहा था, वो बख्तावर सिंह है-कहने के साथ ही मोना चौधरी ने ट्रांसमीटर ऑफ किया। फिर कृष्णपाल को देखा।
कृष्णपाल ने श्वेता की गर्दन से रिवॉल्वर लगा रखी थी। क्योंकि बख्तावर सिंह की आवाज सुनते ही श्वेता ने खुशी से चिल्ला कर उसे आवाज देनी चाही थी कि मोना चौधरी ने तुरन्त उसके होंठों पर हथेली रख दी और कृष्णपाल ने उससे रिवॉल्वर सटा दी थी। उसके बाद मोना चौधरी ने सख्ती से श्वेता को समझाया था कि अगर उसने मुंह से कोई आवाज निकली या किसी तरह की गड़बड़ की तो उसके लिये नुकसानदेह हो सकता है। जब विश्वास हो गया कि अब श्वेता कोई हरकत नहीं करेगी, अब मोना चौधरी ने उसके होंठों से हथेली हटाई थी।
“तुम लोग मेरे मामा के पीछे क्यों पड़े हो?” श्वेता व्याकुल-सी कह उठी।
“मुंह बंद रख।” कृष्णपाल ने उससे रिवॉल्वर सटाये गुस्से कहा- “बजावर सिंह पाकिस्तान से यहां आकर, मिल्ट्री सामान को लूटने के फेर में है और तुम कहती हो कि हम उसके पीछे क्यों हैं। अपनी फिक्र कर। शराफत से रहेगी तो कम से कम तेरे को कुछ नहीं होगा।”
श्वेता सूखे होंठों पर जीभ फेरकर, होंठ भींच कर रह गई।
“कृष्णपाल!” मोना चौधरी ने पास रखी गन उठाकर कहा- “श्वेता अब तुम्हारे हवाले है। ये कुछ कहे तो तुम इसके साथ कुछ भी कर सकते हो। अगर ये ठीक रहे तो इसे कुछ नहीं कहना है। मैं ट्रक से नीचे जा रही हूं। बाहर के हालातों को समझना है मैंने।”
कृष्णपाल ने सिर हिलाया तो मोना चौधरी आहिस्ता से ट्रक के दूसरी तरफ वाले हिस्से की तरफ बढ़ी और पास पहुंचकर तिरपाल का कोना जरा-सा उठाकर बाहर देखते हुए, ट्रक से बाहर कूदने का मौका तलाश करने लगी। उनकी चमक भरी निगाहें शैतानी बिल्ली की तरह इधर-उधर फिर रही थीं।
☐☐☐
इंजनों की आवाजें आनी बंद हो गई थीं।
उसके बाद कुछ पलों के लिए मिनट भर के लिये सन्नाटा-सा छा गया था। बख्तावर सिंह और उसके आदमियों की नजरें हर तरफ फिर रही थीं। कभी-कभार मध्यम से कदमों की आवाज अवश्य कानों में पड़ जाती फिर चुप्पी छा जाती। दो मिनट बीतने पर भी कोई व्यक्ति नजर नहीं आया था।
एकाएक बख्तावर सिंह की आंखें सिकुड़ गई। उसी पल वो जोरों से चिल्लाया।
“हमें घेरा जा रहा है। जल्दी से घेरा तोड़ो और फायरिंग...”
“तुम्हारे कुछ भी कर गजरने का वक्त निकल गया है, बख्तावर सिंह।” बेहद ऊंचा स्वर वहां गूंजा- “अब तुम कुछ भी नहीं कर सकते। सिर्फ पच्चीस आदमी है मेरे साथ। लेकिन उन्होंने पोजिशन ऐसी ले ली है कि, तम लोग उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते और वो तुम सबको मिनटों में शूट कर देंगे।”
बख्तावर सिंह के साथ-साथ सबकी निगाह घूमने लगी। कोई नजर नहीं आया।
लेकिन महाजन की आंखें सिकड़ चुकी थीं। वो आवाज पहचानने में गलती नहीं कर सकता था। यो आवाज वर्मा की थी। गुलशन वर्मा की। महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव फैल गये थे। वर्मा और यहां? उसे आशा तो थी कि वर्मा शायद बख्तावर सिंह की तलाश में कहीं पास पहुंच पाये, परन्तु ऐसी घेराबंदी कर लेगा। ये नहीं सोचा था।
“कौन हो तुम?” बख्तावर सिंह का कठोर स्वर सबको सुनाई दिया- “तुमसे ज्यादा आदमी हैं मेरे यहां पर। इस तरह धमकी भरी बात करके, कोई फायदा नहीं होगा जो भी बात करनी है, पास आकर करो।”
“कोशिश करो बख्तावर, शायद मुझे पहचान जाओ।”
महाजन माथे पर बल डाले उस तरफ देख रहा था जिधर से वर्मा की आवाज आ रही थी।
“नहीं। मैंने तुम्हारी आवाज पहले कभी नहीं..... “
“मैं आवाज बदल कर बात कर रहा हूं। लो मेरी असली आवाज सुनो।” पल भर की चुप्पी के बाद एक नया स्वर सबके कानों में पड़ा- “तुमने क्या सोचा था कि मुझसे धोखेबाजी करके, अपना काम पूरा कर लोगे?”
बख्तावर सिंह चौंका।
“तुम?” बख्तावर सिंह के होंठो से निकला- “विक्रम दहिया?”
“हाँ। मैं विक्रम दहिया।” इस बार नई आवाज में खतरनाक भाव आ गये थे- “दहिया को तुम कभी नहीं भूल सकोगे। तुमने पाकिस्तान के रास्ते से आती मेरी ड्रग्स को पुलिस के हाथों पकड़वा दिया था। पूरे आठ अरब रुपये की ड्रग्स थी वो । तुम जानते थे कि वो मेरा सामान है। इस पर भी तुमने पुलिस को नहीं रोका। मैंने तुमसे वायरलैस पर बात की। लेकिन तुमने कहा ये मामला मेरी पहुंच से बाहर है। जबकि मैं जानता था कि तुम झूट कह रहे हो। तुमने इसलिये ड्रग्स को हिन्दुस्तान नहीं आने दिया कि अगर ड्रग्स के माध्यम में बहुत ज्यादा दौलतमंद बन गया तो फिर तुम्हारे लिये काम नहीं करूंगा। अगर मुझे पैसे की जरूरत रहेगी तो मैं तुम्हारे लिये काम करता रहूंगा। हिन्दुस्तान में तुम्हें मुझ जैसा ताकतवर एजेन्ट कोई दूसरा नहीं मिल सकता था।”
बख्तावर सिंह के दांत भिंच चुके थे।
“मैं अपनी आठ अरब की ड्रग्स को भूला नहीं था जो तुम्हारी वजह से मेरे पास नहीं पहुंच सकी। और अब जब तुमने मिल्ट्री के ट्रकों पर हाथ डालने की बात कही तो मैंने काम के लिय इन्कार ही नहीं किया बल्कि ये कहकर तुम्हें अपने यहां से बाहर निकाल दिया कि अब मैं तुम्हारे लिये काम नहीं करूंगा। अगर तुमने मेरे खिलाफ कुछ करने की कोशिश की तो हिन्दुस्तान में फैले तुम्हारे आदमियों के नाम-पते पुलिस तक पहुंचा दूंगा। मैं तुमसे रिश्ता खत्म कर लेना चाहता था बख्तावर सिंह। तभी ऐसा कहा मैंने तुम्हें। और तुमने क्या किया।” विक्रम दहिया उर्फ गुलशन वर्मा का मौत से भरा स्वर वहां फैला था- “अपनी हरकत के बारे में तुम बताओगे या मैं ही कहूं- ।”
“तुम ही बता दो।” बख्तावर सिंह दांत भींच कर बोला
“तुमने मेरी हत्या का ठेका मोना चौधरी को दे दिया सत्तर लाख में, ताकि हिन्दुस्तान में फैले तुम्हारे एजेन्टों के नाम-पते में आम न कर दूं। अपने आदमी से मोना चौधरी को फोन करवाकर ये काम किया। पैंतीस लाख उस तक पहुंचा दिया। लेकिन मेरा आदमी भी तो, तुम्हारे आदमियों में था। उसने मुझे सब बता दिया, परन्तु मोना चौधरी अभी तक नहीं जान पाई कि विक्रम दहिया की हत्या के सौदे के पीछे उसका ही दुश्मन बख्तावर सिंह है। तुमने मोना चौधरी को मेरी हत्या का ठेका इसलिये दिया कि मोना चौधरी मेरे पीछे लगकर व्यस्त हो जायेगी। मैं भी खत्म हो जाऊंगा और उसे हिन्दुस्तान में, तुम्हारी मौजूदगी का पता नहीं लगेगा और तुम चुपचाप हिन्दुस्तान से अपना काम करके निकल जाओगे।”
बख्तावर सिंह दांत भींचे खड़ा था।
हर कोई आवाज वाले को तलाश कर रहा था। शायद वो नजर आ जाये।
“मोना चौधरी मेरी हत्या करने के लिये मुझे ढूंढने लगी। लेकिन मोना चौधरी से मुझे कोई शिकायत नहीं थी। क्योंकि मेरे से उसकी कोई दुश्मनी नहीं थी। वो तुम्हारे आदमी के कहने पर मेरी हत्या करने की ताक में थी। तभी मैंने शहर से बाहर जाने का बहाना बनाया और मेकअप करके, मोना चौधरी की हरकतों पर नजर रखने लगा। इसमें मेरे चार खास साथी भी साथ थे। आगे तुम्हारी बुरी किस्मत रही कि मोना चौधरी, सतीश ठाकुर से टकरा गई, क्योंकि वो मिल्ट्री के ट्रकों को लूटने की सारी बातचीत निगाह क्लब में सुन चुका था। तुम्हें और सावरकर को देख चुका था। हालात ऐसे बदले कि मोना चौधरी मुझे भूलकर तुम्हारे ही मामले में उलझा गई और-।”
“ये सब बातें जानता हूं।” बख्तावर सिंह एक-एक शब्द चबाकर कह उठा- “लेकिन दहिया तुम बहुत गलत जा रहे हो। हमारी पहचान बहुत पुरानी है। हम तो पुराने दोस्त हैं। हम।”
“तभी तुमने मेरी जान का सौदा, मोना चौधरी से सत्तर लाख में किया।” दहिया का क्रूरता से भरा स्वर वहां गूंजा।
“वो शायद मेरी गलती थी। अब मुझे अपनी गलती का एहसास...”
“जब ऊंट पहाड़ के नीचे आता है तो तभी उसे अपने छोटे होने का एहसास होता है।” विक्रम दहिया का आने वाला स्वर पहले जैसा ही था- “तुमने मुझे कम आंक लिया।”
“छोड़ो इन बातों को। सामने आ जाओ। हम दोनों की तरह....”
“बहुत हो गया बख्तावर सिंह।” दहिया के स्वर में मौत के भावों का एहसास हो रहा था- “हम तो कभी दोस्त थे न ही अब हैं। हमार बीच काम होता है। दौलत होती है। और ये सम्बन्ध भी खत्म हो चुका है।”
बख्तावर सिंह की आंखों में खतरनाक भाव मचल रहे थे।
“क्या चाहते हो तुम?”
“ये तीनों ट्रक । हथियारों से भरे दोनों ट्रक और तीसरा ड्रग्स से भरा ट्रक । अब ये तीनों मेरे हैं। मिल्ट्री के ट्रकों में से सारा सामान निकालकर, तुम्हारे इन दूसरे ट्रकों पर लाद कर ले जाऊंगा। बहुत मोटा माल कमा लूंगा मैं। बोल तेरे को एतराज है या हाथ खड़े करके मैदान से पीछे हो जाता हूँ।
पैना सन्नाटा छा गया वहां।
महाजन की आंखें सिकुड़ गईं। हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा।
“वर्मा!” महाजन कह उठा- “ये तो तू गलत काम कर रहा है। तू तो हमारे साथ था।”
“हां, साथ था।” विक्रम दहिया का वही स्वर कानों में पड़ा- “सिर्फ तब तक के लिये जब तक कि इन ट्रकों पर काबू नहीं पा लिया जाता। उसके बाद तो मैंने तुम सब को खत्म करके, सारे माल पर कब्जा जमा लेना था। मैंने तुम लोंगों को कहा था कि बख्तावर सिंह को इस काम में सफल नहीं होने देना। लेकिन दूसरी बात नहीं बताई कि इस सारे माल का मालिक मैंने बनना है।”
“ये तो बहुत गलत बात कही तूने-।” महाजन के माथे पर बल नजर आने लगे।
“बोल बख्तावर!” विक्रम दहिया का स्वर वहां गूंजा- “हाथ उठाकर पीछे हटता है या तेरे को खत्म करूं...”
बलावर सिंह के दांत भिंच गये। उसकी नजरें अपने आदमियों पर फिरने लगी। वो जानता था कि विक्रम दहिया बहुत ही गलत मौके पर उसके रास्ते में आया है। समझ नहीं पा रहा था कि दहिया को कैसे संभाले?
☐☐☐
विक्रम दहिया उर्फ गुलशन बर्मा घने पेड़ के मोटे तने के पीछे छिपा हुआ था। हाथ में रिवॉल्वर थी। उसकी चमकपूर्ण खतरनाक निगाह हर तरफ फिर रही थी। वहां से उसे खुले में खड़े बख्तावर सिंह व अन्य लोग स्पष्ट नजर आ रहे थे। वो अच्छी तरह समझ चुका था कि खेल की लगाम उसके हाथ में आ चुकी है। जीत उसकी की है। बख्तावर सिंह के जवाब के इन्तजार में विक्रम दहिया कुछ पल के लिये खामोश हुआ।
तभी उसे अपनी कमर पर रिवाल्वर की नाल का तीव्र दबाब पड़ा।
पहले वो चिहुंका। फिर संभल गया। दांत भिंच गये दहिया के।
“कौन हो तुम?” होंठों से भिंचे-भिंचे से शब्द निकले, दहिया के।
“पहचानों तो जानूं?” दबी सी आवाज कानों में फुसफुसाती हुई पड़ी।
“सीधी तरह बात करो। कौन हो तुम?”
“मैं, मैं हूं। फेवीकोल का जोड़...”
“तुम?” वो चौंका- “अजीत सिंह- “
“हाँ।” अजीत सिंह का हंसी से भरा स्वर कानों में पड़ा- “वर्मा हो या दहिया, जोड़ तो फेवीकौल का ही है।”
विक्रम दहिया ने फौरन खुद को संभाला।
“अच्छा हुआ जो तुम आ गये अजीत सिंह।” दहिया बोला- “बख्तावर सिंह हमारे निशाने पर है, हम उसे...”
“मैंने सुन लिया है प्यारे मैंने । तू हो या बख्तावर सिंह। मेरे लिये एक ही बात है।” अजीत सिंह का स्वर कठोर हो गया- “वो तो देश के बाहर से आने वाला गद्दार है। तू तो धुन की तरह, देश के भीतर से ही देश को चिपका हुआ है। तो तू हमें मार डालता, खत्म कर देता, इन ट्रकों के भीतर पड़ा माल पाने के लिये। वैसे तू हमारी सहायता से ही, यहां तक...”
“ऐसी बात नहीं है अजीत सिंह। मैं तो-।”
“सब सुन लिया है मैंने, साले-कुत्ते।” अजीत सिंह गुर्रा उठा- “तू तो...”
“अजीत सिंह- “ तभी कुछ दूरी से पारसनाथ का स्वर आया। अजीत सिंह ने दांत भींच कर उधर देखा।
“जल्दी करो।” पच्चीस कदमों की दूरी पर झाड़ियों के पीछे से पारसनाथ ने कहा।
अजीत सिंह के हाथ में द रिवॉल्वर का दबाव दहिया की कमर में और बढ़ गया।
“सुना क्या। वक्त कम है। अब.....।”
“अजीत सिंह मेरी तो सुनो-में-।”
“पहले मेरी सुन। तेरी फिर सुनूंगा। अपने आदमियों को आवाज मार कर इकट्ठा कर। जिन कारों में तुम सब लोग आये हो। उन कारों में बिठाकर, उन्हें चलता कर। बाकी बात फिर-! जल्दी-!”
“मेरी सुन अजीत...”
तभी अजीत सिंह का हाथ उसकी गर्दन पर पड़ा।
“साले जो कहा है वही कर। वरना गोली चला दूंगा। तेरे को, तेरी मां ने ये नहीं सिखाया कि दिल के मरीज से ज्यादा बात नहीं करते। उसे गुस्सा जल्दी आ जाता है। जो कहा है वही कर।”
विक्रम दहिया समझ चुका था कि उसकी नहीं चलने वाली। उसने आवाज मार कर अपने एक आदमी को पास बुलाया और उसे कहा कि वो सब को लेकर कारों में बैठकर चले जायें।
फौरन ही भागा-दौड़ी शुरू हो गई।
“वो बख्तावर सिंह है?” अजीत सिंह ने पूछा- “जिसने सफेद कपड़े की आधी बाजू की कमीज पहन रखी है।”
“हां- “ विक्रम दहिया ने भिंचे स्वर में कहा।
“मेरा भी यही ख्याल था। देखने में वो ही हरामी लग रहा है।”
अजीत सिंह ने कड़वे स्वर में कहा फिर ऊंची आवाज में कह उठा- “बख्तावर सिंह तू अपनी जगह से नहीं हिलेगा और तेरा कोई आदमी, हमारे खिलाफ कोई हरकत नहीं करेगा। तू हमारी गनों के निशाने पर है। मेरी बात न मानी तो तेरे को भून देंगे।”
“कौन हो तुम?” बख्तावर सिंह का स्वर सुनाई दिया
“महाजन से पूछ ले। तेरे पास तो खड़ा है।” अजीत सिंह ने कड़वे स्वर में कहा।
बख्तावर सिंह ने प्रश्न भरी निगाहों से महाजन को देखा।
“ये लोग बहुत ही खतरनाक फौजी हैं बख्तावर। ऐसे फौजी तूने कभी नहीं देखे होंगे।” महाजन मुस्कराकर कह उठा- “इन्हें फौज वालों ने भर्ती नहीं किया था। क्योंकि डॉक्टरी चैकअप में ये फेल हो गये थे। लेकिन मेरी निगाहों में इनसे बड़ा कोई फौजी नहीं। ये जान पहले देते और लेते बाद में हैं। बचकर रहना। बख्तावर सिंह हो या मोना चौधरी, इनकी निगाहों में एक ही बात है अगर आप देश के खिलाफ हो रहे हो।”
होंठ भींच कर रह गया बख्तावर सिंह।
मोना चौधरी गन थामे सब देख-सुन रही थी। इस वक्त वो घने पेड़ के ऊपर, पत्तों की ओट में थी। यहां पहुंचने में उसने बेहद सावधानी से काम लिया था। किसी की नजर में नहीं आ पाई थी वो।
इस वक्त सब ठीक चल रहा था।
मोना चौधरी ने अभी पेड़ पर रहना ही ठीक समझा। पन्द्रह मिनट लगे, विक्रम दहिया के सारे आदमी कारों में आकर चले गये। इस बीच दहिया ने अजीत सिंह को पटाने की बहुत कोशिश को उसके आदमी यहीं रहें, परन्तु अजीत सिंह अपनी जगह से, अपनी सोचों से कैसे पीछे हटने वाला था।
“पारसनाथ-!” अजीत सिंह ने ऊंचे स्वर में कहा- “इसके सारे कुत्ते-बिल्लियां चले गये।” कहने के साथ ही अजीत सिंह ने झाड़ियों की तरफ देखा।
झाड़ियों में मौजूद पारसनाथ ने अजीत सिंह को खास ढंग से इशारा किया।
अजीत सिंह की आंखों में तीव्र चमक उभरी।
“वर्मा-!” अजीत सिंह ने कड़वे स्वर में कहा- “तेरे साथ फेवीकोल का जोड़ मैंने लगाया था और अब मैं ही फेवीकोल का जोड़ तोड़ता हूँ।”
“क्या मतलब?” विक्रम दहिया के होंठों से उलझ भरा स्वर निकला।
“तू देश के हित में काम कर रहा होता तो मेरा हाथ तेरे कंधे पर होता। लेकिन अब.....?”
“अब.....?” दहिया के स्वर में उलझन उभरी।
उसी पल फायर का तीव्र धमाका हुआ।
विक्रम दहिया के सिर के चीथड़े-चीथड़े उड़ गये।
कुछ क्षणों के लिये वहां मौत का सन्नाटा छा गया।
“वाह-!” अजीत सिंह दांत भींचे बड़बड़ा उठा- “फेवीकोल का जोड़ पूरी तरह ही टूट गया।”
महाजन ने बलावर सिंह के कठोर हुए पड़े चेहरे पर निगाह मारी।
“विक्रम दहिया तो गया बख्तावर सिंह । तू भी नहीं बच सकता।”
“महाजन! इस बार मेरा बचना बहुत जरूरी है।” बख्तावर सिंह शब्दों को चबाकर दृढ़ता भरे स्वर में कह उठा- “मैं ये काम क्यों कर रहा हूं। तुम नहीं समझ सकते।”
“अपनी भांजी श्वेता के लिये कर रहे हो, जिसका अपहरण किया गया है और...”
“तुम जानते हो?” बख्तावर सिंह जोरों से चौंका।
महाजन के जवाब देने से पहले ही बेहद शांत स्वर वहां सुनाई
“सच में बख्तावर सिंह। तुमने तो कमाल कर दिया।”
सबकी निगाह उस तरफ घूमी।
वो ऊंचा-लम्बा आदमी था। जिसने चेहरे पर रूमाल बांध रखा था। उसके पास मौजूद कुछ आदमियों ने गौरव शर्मा, बलविन्दर सिंह, अजीत सिंह, पारसनाथ और पांच अन्य मिल्ट्री वालों को कवर कर रखा था। एक के पीछे एक व्यक्ति रिवॉल्वर लिए था।
ये नजारा देखकर महाजन ठगा-सा रह गया।
बख्तावर सिंह की आंखें सिकुड़ीं।
“कौन हो तुम?”
“मैं ही हूं वो, जिसके पास तुम्हारी श्वेता है।” वो मेजर बख्शी ही था।
“श्वेता तुम्हारे पास । बख्तावर सिंह के होंठों से निकला। महाजन की निगाह, पारसनाथ और अन्य लोगों से टकराई, परन्तु वे खामोश रहे।
धीरे-धीरे बख्तावर सिंह के आदमी पास आते हुए इकट्ठे होने लगे।
“तुम कौन हो?” बख्तावर सिंह ने जल्दी से खुद को संभाला।
“मैं कौन हूं। इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं होना चाहिये।” चेहरे पर रूमाल लपेटे मेजर बख्शी ने सख्त स्वर में कहा- “हथियारों और ड्रग्स को, इन दूसरे खाली ट्रकों में डालो। ओर ट्रकों को मेरे हवाले करो। उसे बाद एक घंटे में ही तुम्हारी भांजी श्वेता यहीं पर तुम्हारे पास होगी।” पारसनाथ ने होंठ सिकोड़कर, बख्शी को देखा फिर खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।
महाजन के चेहरे पर कड़वी मुस्कान फैल गई।
“ये हरामी तो मेजर बख्सी ही है।” अजीत सिंह कह उठा।
“मरेगा मेरे हाथों।” गौरव शर्मा के दांत भिंच गये।
“गद्दार, कमीना...” बलविन्दर सिंह बोला।
चेहरे पर नजर आती, मेजर बख्शी की आंखें फैल गई।
“क्या बकवास कर रहे हो तुम।” मेजर बख्शी दहाड़ उठा। बख्तावर सिंह के चेहरे पर न समझ में आने वाले भाव नजर आने लगे।
“क्या बातें हो रही हैं?” बख्तावर सिंह का स्वर कठोर हो गया- “साफ-साफ कहो।”
“बख्तावर सिंह!” तभी मीना चौधरी का स्वर उनके कानों में पड़ा- “इस वक्त सबसे पहले तो तुम्हें ये जान लेना चाहिये कि श्वेता का अपहरण करवाने वाला तुम्हारे सामने, चेहरे पर रूमाल बांधे खड़ा है। इसका नाम मेजर बख्शी है। मिल्ट्री पुलिस और मिल्ट्री खुफिया विभाग इसके पीछे लगा हुआ है।”
मोना चौधरी की आवाज सुनकर बख्तावर सिंह चौंका फिर खुद को संभाल लिया। उसके चेहरे पर उलझन ही उलझन थी।
“तुम ये सब बातें मुझे क्यों बता रही हो मोना चौधरी?” बजावर सिंह ऊंचे स्वर में कह उठा।
“इसलिये कि जो मैंने बताया है, इसके अलावा अब ये जो भी कहेगा, वो बात झूठी होगी।” मोना चौधरी का स्वर सबको स्पष्ट सुनाई दे रहा था- “जैसे कि ये कहता है, अब श्वेता इसके पास है।”
“तो कहां है श्वेता?” बख्तावर सिंह के होंठों से निकला।
“मेरे पास।” दहाड़ उठा मेजर बख्शी-- “वो मेरी कैद में है बख्तावर सिंह । ये जो भी है, इसकी बातों में मत आना। ये कोई चाल है इनकी। अपनी भांजी की खैरियत चाहते हो तो ट्रकों में मौजूद हथियार और ड्रग्स मेरे हवाले कर दो। अपने आदमियों से कहो कि मिल्ट्री के ट्रकों में से सारा सामान निकालकर, दूसरे ट्रकों में रख दें। मेरे आदमी ट्रक ले जायेंगे और ठीक एक घंटे बाद श्वेता यहीं पर तुम्हारे सामने होगी।”
“एक घंटा तो बहुत ज्यादा होता है बख्शी।” मोना चौधरी का स्वर कहर से भरा था- “मैं तो अभी श्वेता को हानि कर दूं...”
“क्या बकवास कर रही हो तुम। कौन हो तुम? सामने आओ।”
कुछ पल वहां गहरी खामोशी रही। बख्तावर सिंह के आदमियों की भीड़ ने उन सबको घेर रखा था। हर किसी के हाथ में हथियार था। जबकि मेजर बख्शी के साथ दस-बारह आदमी ही थे, जिन्होंने पारसनाथ और दूसरों को कष्ट कर रखा था। ताकत के हिसाब से बाजी बख्तावर सिंह के हाथ में थी।
तभी एक तरफ से मोना चौधरी बख्तावर सिंह के आदमियों के बीच में से रास्ता बनाती वहां आ पहुंची। बख्तावर सिंह से उसकी नजरें मिलीं और मोना चौधरी ने मेजर बख्शी को देखा।
“देख लो मुझे। मैं हूं।”
“मैं नहीं जानता तुम्हें।” मेजर बख्शी ने दांत भींच कर कहा- “तुम बख्तावर सिंह को श्वेता के बारे में झूठ।”
“वजीर सिंह।” ऊंचे स्वर में पुकारते हुए मोना चौधरी के दांत भिंचते चले गये।
“हां-।” कुछ दूरी से वजीर सिंह की आवाज आई- “बख्शी मेरे निशाने पर है। उड़ा दूं-?”
“नहीं। कृष्णपाल से कहो कि वो श्वेता को बोले कि अपने मामा को पुकारे।”
वजीर सिंह अपनी जगह से हिला और कुछ दूर मौजूद मिल्ट्री के ट्रक की तरफ बढ़ गया।
दूसरे ही पल श्वेता की आवाज गूंजी।
“मामा! तुम कहां हो मामा! मैं यहां मिल्ट्री के ट्रक में हूं मामा।”
मेजर बख्शी चौंका । दांत भींचकर उसने चेहरे पर लपेट रखा रुमाल खींच लिया। उसका चेहरा गुस्से से भरा पड़ा था। आंखें लाल सुर्ख होकर धधक रही थीं। उसके हाव-भाव से हार के लक्षण भटकने लगे थे।
“तुम-तुम कमीनी। तुमने मेरा सारा खेल खराब कर-।”
तभी बख्तावर सिंह के हाथ में रिवाल्वर नजर आई। उसी पल गोली चली। फिर दूसरी चली। उसके बाद तीसरी। सारी गोलियां बख्शी के शरीर में प्रवेश करती चली गईं। वो चीख कर उछला और नीचे जा गिरा।
“ये क्या किया तूने ।” अजीत सिंह चीख उठा- “इस हरामी को तो मैंने मारना था। तूने क्यों मारा। मेरे अटेक वाले दिल को छलनी-छलनी कर दिया तूने। मैं तेरे को-।”
बख्तावर सिंह दरिन्दा लग रहा था इस वक्त।
“अगर अपनी खैरियत चाहते हो तो इन सब को छोड़कर चले जाओ यहां से। बख्तावर सिंह, बख्शी के आदमियों को देखकर गुर्राया। जिन्होंने उन्हें कवर कर रखा था- “जल्दी करो। वरना मेरे आदमी तुम सबको भून देंगे।”
बख्शी मर चुका था।
अब वो किसके लिये कुछ करते हैं। उन्होंने तुरन्त अपनी कवरेज छोड़ी और हथियार थामे पीछे हटने लगे।
“निकल जाओ यहां से।” बख्तावर सिंह के चेहरे पर मौत नाच रही थी। जावेद खान, अजीत सिंह, बलविन्दर सिंह, गौरव शर्मा और मिल्ट्री के वो पांचों जवान आजाद हो गये थे। उन्हें कवर करने वाले दस-बारह कदम पीछे हो चुके थे।
तभी बख्तावर सिंह गला फाड़कर चीखा।
“फायर।”
इसके साथ ही, यहां मौजूद आदमियों ने अपने हथियारों का रुख उनकी तरफ करके फायरिंग शुरू कर दी। आधे मिनट में ही बख्शी के वो सारे आदमी नीचे मरे पड़े थे।
“बख्तावर” मोना चौधरी का जहरीला स्वर उसके कानों में पड़ा- “फुर्सत मिल गई हो तो अब हम बात कर लें।”
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बख्तावर सिंह ने मोना चौधरी की आंखों में झांका। खुद पर काबू पाया। फिर सिर हिलाते हुए हाथ में दबी हुई रिवॉल्वर जेब में डाली।
वहां के माहौल को देखा।
“तो ये है बख्तावर सिंह- “ बलविन्दर सिंह कह उठा- “बहुत नाम सुना था। आज देख भी लिया...”
“अबौटाबा में तो ये हमे दर्शन दिए बिना ही खिसक गया था।” गौरव शर्मा ने कहा- “अब नहीं बनेगा।”
“यहां इसके ही आदमी हैं। हमारी गिनती तो उंगलियों पर ही गिनी जा सकती है।” जावेद खान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हर एक के साथ उसकी उंगलियां भी गिन जावेद खान। उतने हैं हम।” अजीत सिंह का स्वर खतरनाक हो गया- “फिर कभी गिनती गिनने में भूल मत करना कि हम कितने हैं।”
जावेद खान के होंठों पर गम्भीर-सी मुस्कान उभरी।
बख्तावर सिंह दो कदम आगे बढ़कर ठिठका फिर सिग्रेट सुलगाकर गम्भीर स्वर में बोला।
“मैं श्वेता से बात करना चाहता हूं मोना चौधरी।”
“अभी तो तुम मुझसे ही बात करो बख्तावर सिंह।” मोना चौधरी का स्वर कठोर हो गया- - “तुमने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की कि मैं इस मामले से दूर रहूं। यहां तक कि तुमने मुझे खत्म करवाने की भी कोशिश की।”
“हां। तुमने हमेशा मेरे मामले में दखल दिया है।”
“मेरे देश में आकर गलत हरकत करोगे तो, मैं इसे कैसे पसन्द कर सकती हूं।” मोना चौधरी की आवाज में तीखे भाव आ गये थे- “तुम।”
“मैंने जो भी किया। ये मेरी मजबूरी थी। मेरी भांजी को उठा लिया गया था और..”
“मैं सब कुछ जानती हूं। अब की बात करो।’
“क्या बात?” बख्तावर सिंह ने मोना चौधरी की आंखों में झांका।
“अपनी भांजी श्वेता की कि किस हद तक जरूरत है तुम्हें?” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
“हर कीमत पर मैं उसे सही-सलामत पाना चाहता हूं।” बख्तावर सिंह के स्वर में दृढ़ता भरी पड़ी थी।
“वो कीमत तुम्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ेगी।” मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में कहा।
“मैं तैयार हूं--।” बख्तावर सिंह के दांत भिंच गये।
“याद रखना बख्तावर सिंह।” मोना चौधरी उसी लहजे में बोली- “अगर तुमने किसी भी तरह की चालाकी करने की चेष्टा की तो सबसे पहले तुम्हारी भांजी श्वेता को शूट कर दिया जायेगा, जो कि ट्रक में है। तुम भी नहीं बचोगे और-।”
“मैं कुछ नहीं करूंगा।” बख्तावर सिंह भिंचे स्वर में बोला- “मुझे श्वेता ठीक-ठाक चाहिये। मैं उसे ठीक-ठाक हालत में पाकिस्तान, उसकी मां के पास पहुंचा देना चाहता हूं। अपनी बहन से वायदा करके आया था कि श्वेता को कुछ नहीं होगा।”
मोना चौधरी की कठोर निगाह हर तरफ घूमी।
“अपने खास आदमी को छोड़कर, बाकी सबको यहां से भेज दो कि पलटकर वो फिर इधर न देखे। गांव वाले जो लोग तुम्हारे साथ हैं, उन्हें कहो कि गांव में अपने घरों में चले जायें।”
मोना चौधरी के मुताबिक, बख्तावर सिंह ने ऐसा ही किया।
दस मिनट में ही वो सारी जगह खाली हो गई। बख्तावर सिंह के आदमी इधर-उधर छिपे वाहनों पर सवार होकर वहां से चले गये। गांव वाले अपने घरों में प्रवेश कर गये।
बख्तावर सिंह का सिर्फ एक खास आदमी वहां मौजूद रहा।
“इसे तो मैं शूट करूंगा।” अजीत सिंह खतरनाक लहजे में कह उठा।
“तूने क्या ठेका ले रखा है।” गौरव शर्मा ने कहा- “ये मेरा शिकार है। तूने विक्रम दहिया को गोली मारी। मैंने तेरे को रोका क्या?”
“तब तू रोकने के लिये पास ही कहां था। वैसे भी उसका और मेरा फेवीकोल का जोड़ था। तेरे को क्या?”
“चुप रहो।” बलविन्दर ने हाथ हिलाया- “मेरा निशाना देखना।”
“पारसनाथ-!” मोना चौधरी के चेहरे पर दरिन्दगी बरस रही थी- “बख्तावर के हाथ पीछे बांधो।”
पारसनाथ मिल्ट्री के ट्रक के साथ बंधी नायलोन की रस्सी काट लाया और उसने बख्तावर सिंह के हाथ पीछे को करके, सख्ती से बांध दिए। मौत-सा सन्नाटा छा चुका था वहां।
महाजन पास ही पेड़ से टेक लगाये, हाथ में पकड़ी बोतल से छोटे-छोटे घूँट भर रहा था।
“वजीर सिंह! श्वेता को लाओ।” मौत नाच रही थी, मोना चौधरी के स्वर में।
कुछ पलों में बदहवास-सी श्वेता वहां, कृष्णपाल के साथ मौजूद थी।
“मामा...”
“बेटी!” पारसनाथ का स्वर खुशी से कांप उठा।
“ये क्या मामा!” फिर वो तुरन्त मोना चौधरी की तरफ घूमी। आंखों में आंसू भर आये थे- “तुम मेरे मामा के साथ क्या कर रही हो। यहीं के लोगों ने मेरा अपहरण किया। तभी तो मेरे मामा को, मुझे बचाने के लिये आना पड़ा। अपनी बेटी जैसी भांजी को बचाने के लिये, दूसरे में आना क्या गुनाह है।”
मोना चौधरी दांत भींचे श्वेता को देख रही थी।
तभी उन पांचों फौजियों में से एक ने कहा।
“बख्तावर सिंह को हमारे हवाले कर दो। इससे हमें कई बातें मालूम होंगी कि...”
“खामोश रहो।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह उठी- “ये अब फौज का नहीं, मेरा मामला है। तुम लोग न तो इस मामले में आओगे और न ही कुछ बोलोगे। कैप्टन कालिया ने सख्ती के साथ तुम लोगों से कहा था कि तुम लोगों को किसी भी हाल में मेरी बातों से बाहर नहीं जाना है।
पांचों फौजी पुनः पहले की तरह खामोश हो गये।
“बख्तावर सिंह!” मोना चौधरी दरिन्दगी भरे स्वर में कह उठी- “अपने इस खास आदमी के साथ, अपनी भांजी को पाकिस्तान भेज दो। सीमा पार करके आना-जाना तो तुम्हारे लिये मामूली बात है तुम पाकिस्तानी मिल्ट्री के बहुत बड़े ओहदेदार हो। तुम्हारी मौत से पाकिस्त मिल्ट्री को कुछ नुकसान अवश्य होगा। लेकिन बहुत जल्द तुम्हारी जगह कोई और ले लेगा। धीरे-धीरे सब भूल जायेंगे कि कभी कोई सर बख्तावर सिंह भी होता था।”
बख्तावर सिंह ने दांत भींचे अपने आदमी को देखा।
“श्वेता को हिफाजत से पाकिस्तान, इसकी मां के पास पहुंचा दो। कहना बख्तावर ने अपना वायदा पूरा कर दिया।” बख्तावर सिंह की आवाज में दृढ़ता और पक्कापन था। चेहरा पत्थर की तरह कठोर हुआ पड़ा था।
“नहीं मामा नहीं।” श्वेता चीख कर भागी और बख्तावर सिंह की छाती से जा लिपटी- “ऐसा कभी नहीं हो सकता मामा। जब मम्मी मुझसे पूछेगी कि उसका भाई बख्तावर कहां है? मैं उसे क्यों हिन्दुस्तान छोड़ आई तो मैं क्या जवाब दूंगी। मां को पता चलेगा तो उसके मन में मेरे लिये नफरत आ जायेगी कि मैंने उसके भाई की बलि चढ़वा दी। मां को अगर अपनी बेटी की जरूरत है तो भाई की भी जरूरत है। जाओ, पूछ लो मामा मां से कि क्या वो आपकी जान के बदले मेरी जान बची देखना पसन्द करेंगी? नहीं मामा, तुम्हारा ये फैसला गलत है। जब तुम्हारी बात मेरे को अच्छी नहीं लगी तो मां को कैसे अच्छी-।”
“श्वेता!” होंठ भींचे बख्तावर सिंह एक-एक शब्द चबाकर कह उठा- “मैं जो कह रहा हूं। तुम्हें फौरन मान लेना चाहिये। इस आदमी के साथ जाओ। ये तुम्हें सीमा पार कराकर, बहन तक तुम्हें पहुंचा देगा। इस वक्त मेरे हाथ में जो है, वो ही मैं कर रहा हूं। तुम आंसू बहाकर मुझे कमजोर बनाने की कोशिश मत करो। जितनी जल्दी हो सके निकल जाओ यहां से । तुम इन लोगों को नहीं जानतीं। बहुत खतरनाक हैं ये।
इस वक्त इनके शरीरों पर मिल्ट्री की वर्दी है। लेकिन ये मिल्ट्री वाले नहीं बल्कि...’
“तो क्या हुआ मामा।” श्वेता आंखों में आंसू लिए पीछे हटती हुई बोली- “ये लोग जो भी हैं, हैं तो इन्सान ही। भगवान बनाये लोग हैं। इनके सीने में भी दिल है। जज्बात है। भावनायें हैं। इनके भी तो रिश्ते होंगे। ये भी...”
“सुनो लड़की!” मोना चौधरी के चेहरे पर दरिन्दगी नजर आने लगी- “तुम बहुत फालतू बोल रही हो। हमारे पास वक्त कम है। चुपचाप यहां से चली जाओ। हम तुम्हें जाने दे रहे हैं, ये ही बहुत है-वरना बख्तावर के साथ-साथ तुम्हें भी खत्म कर देते। हमारी शराफत का फायदा मत उठाओ। बख्तावर की किस्मत में मौत लिखी जा चुकी है। अगर तुम अपनी आंखों से अपने मामा को मरते हुए देखना चाहती हो तो इसे हम अभी शूट कर देते हैं।”
श्वेता रोती-बिलखती मोना चौधरी के पास पहुंची।
“तुम-तुम तो औरत हो। औरत तो ममतामयी होती है। औरत को तो जरें-जर्रे से प्यार होता है। कठोर से कठोर औरत भी इतनी कठोर नहीं हो सकती, जितनी कि तुम बनने की कोशिश कर रही हो। मैं तो...”
“बकवास मत करो।” मोना चौधरी गुराई- “तुम।”
“अगर तुम वास्तव में पत्थर होतीं तो मुझे भी मामा के साथ खत्म कर देतीं। यूं मुझे जाने नहीं देतीं। देखो-देखो मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ती हूं। भीख मांगती है। मेरे मामा की जान मत लो।” वो फफक रही थी- “अगर लेनी ही है तो मुझे भी खत्म कर दो। मेरे को बचाने की खातिर मामा ने अपनी जान दे दी तो मैं मां का सामना नहीं कर सकूँगी। मैं...”
“श्वेता- “ बरतावर सिंह गुर्रा उठा।
“मामा....!” श्वेता ने रोते हुए, आंसुओं से भरा चेहरा बख्तावर सिंह की तरफ किया- “तुम ही बताओ मामा, कैसे मैं इन लोगों को समझा दूं कि आपकी मौत की कीमत पर मैं आजादी नहीं...”
“यहां जो कुछ भी हो रहा है, उनमें कुछ भी तुम्हारे मतलब का नहीं है।” बख्तावर सिंह गुस्से से कह उठा- “ये सब पिछले झगड़ों का असर है। उसी की वजह से...”
“कैसे मेरा मतलब नहीं, इन बातों से।” श्वेता तड़प कर कह उठी- “मरे का वचान की खातिर तुम अपनी जान दे रहे हो। मेरे मामा को ये लोग मार रहे हैं और तुम कहते हो कि इन बातों से मेरा कोई मतलब नहीं। मागा, अगर तुम्हें मारा तो मैं, भी यहीं पर अपनी जान दे दूंगी। मुझे बचाने के लिये तुम अपनी जान दो। ये लो नाइन्साफी है।”
बख्तावर सिंह ने दांत भींचकर, क्रोध भरी निगाहों से अपने आदमी को देखा।
“श्वेता को ले आओ और सही-सलामत इसे, मेरी बहन तक पहुंचा दो।” बख्तावर सिंह की आवाज में आदर्श था।
वो आदमी तुरन्त आगे बढ़ा और श्वेता की कमाई थाम ली।
“चलो।” उसने कहा- “यहां ज्यादा देर ठहरना ठीक नहीं....”
“छोड़ दो मुझे। मुझे ले जाना चाहते हो तो मेरे मामा को भी साथ लो। नहीं तो मैं नहीं।”
“चलो यहां से।” कठोर स्वर में कहते हुए उसने कलाई थामे, श्वेता को एक तरफ खींचा।
श्वेता ने एक झटके के साथ कलाई छुड़ाई और अन्य लोगों की तरफ दौड़ी। सबसे आगे अजीत सिंह ही था। उसके पास पहुंचकर श्वेता को उसकी कमीज के कॉलर पकड़े और फफकते हुए उसे झिंझोड़ते हुए कह उठी।
“तुम बताओ। अगर तुम्हारी मां-बहन को उठाकर कोई पाकिस्तान ले जाये तो क्या तुम उसे छुड़ाने वापस लाने पाकिस्तान नहीं जाओगे क्या? बोलो-जवाब दो मेरी बात का।”
“जाऊंगा।” अजीत सिंह की निगाह, श्वेता के आंसुओं के चेहरे पर टिकी थी।
“तो ऐसा करके तुम कोई गुनाह करोगे कि...”
“नहीं। गुनाह नहीं ये तो मेरा फर्ज होगा। मेरी मां-बहन के प्रति, प्यार के कर्ज की अदायगी होगी ये।”
श्वेता ने रोते हुए अजीत सिंह की कमीज छोड़ी और पास में खड़े गौरव शर्मा की कमीज पकड़ ली।
“तो मेरा मामा भी तो अपना फर्ज अदा कर रहा है। फिर क्यों जान ली जा रही है उसकी? क्यों मार रहे हो तुम लोग, मेरे मामा को? मेरा अपहरण करके मामा को मजबूर किया गया, हिन्दुस्तान आने के लिये। मामा खुद नहीं आया। फिर क्यों मारा जा रहा है उसको?”
गौरव शर्मा फफकती श्वेता का चेहरा देखता रहा।
उसे छोड़कर श्वेता को देखते हुए रोते हुए बिलखते हुए कह उठी।
“गलत करोगे मेरे मामा की जान लेकर । मेरे मामा देश के लिये नहीं, अपने घर-परिवार के लिये यहां आये हैं। मेरे को बचाने यहां आये हैं । तुम्हारे देश को नुकसान पहुंचाने नहीं आये। तुम लोगों की मामा के साथ जो दुश्मनी है उसे अपनी जगह पर कायम रखो। लेकिन मेरी आड़ में मेरे मामा की जान मत लो। वरना मैं खुद को कभी भी माफ नहीं कर पाऊंगी। ये मत सोचो कि मेरे मामा को तुम लोगों ने पकड़ा है। इतनी आसानी से कोई मेरे मामा को नहीं पकड़ सकता। मैं जानती हूं अपने मामा को। ये तो मेरी वजह से, मामा ने हथियार डाल दिया। ये भी कोई मुकाबला हुआ कि मेरी ओट में तुम लोग मामा को खत्म करने जा रहे हो। मर्द तो वो होते हैं जो आमने-सामने खड़े होकर जंग को जीतते हैं। दुश्मन को खत्म करते हैं। पीछे से आकर पीठ पर वार नहीं करते । इस तरह मेरे मामा की जान लेकर क्या तुम लोग खुद को बहादुर साबित कर लोगे।”
वहां श्वेता का रोता-फफकता स्वर गूंज रहा था। हर किसी की निगाह उस पर थी।
“कैसे हो तुम लोग?” श्वेता रोते हुए कह उठी- “मैंने तो सुना था कि हिन्दुस्तानी न तो पीठ पर वार करते हैं और न ही पीठ पर वार खाते हैं। लेकिन यहां तो मैं कुछ और ही देख रही हूं। जब तुम लोग किसी के अपने को बंदी बना लोगे तो वो उसे बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार होगा ही। इसे क्या तुम लोग बहादुरी भरी जीत कहोगे।”
महाजन ने बोतल खत्म की उसे एक तरफ फेंक दिया।
“ये मुकाबला नहीं। बुजदिली. है तुम लोगों की कि मेरे मामा को इस तरह धोखे से मारने जा रहे हो।” श्वेता फफकते हुए गला फाड़ कर चीख उठी- “अगर सच्चे हिन्दुस्तानी हो तुम लोग तो इस तरह मेरे मामा की जान नहीं...”
उसी पल अजीत सिंह ने हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर को गुस्से से जमीन पर फेंक दिया।
श्वेता कहते-कहते रुक गई। लाल सुर्ख आंखें और आंसुओं भरे चेहरे से, अजीत सिंह को देखने लगी।
“ये कुड़ी ठीक कहती है।” अजीत सिंह हाथ हिलाकर बोला- “हम दुश्मन को घेरकर मारते हैं। न कि उसके परिवार वालों को सामने करके, उसे भावनाओं से बेबस करके, उसे मारें। ये तो हमारे लिए शर्म की बात है।”
“अजीत सिंह ठीक कहता है।” वजीर सिंह की आवाज गूंजी। सबकी निगाह वजीर सिंह की तरफ गई। जो गन थामे हटकर खड़ा था।
“मेरे पर काबू पाना आसान नहीं।” वजीर सिंह गम्भीर स्वर में कह उठा- “लेकिन कोई मेरी मां-बहन को सामने लाकर खड़ा कर दे तो मजबूरी में हाथ उठाकर कहूंगा कि उसे छोड़ दो, मेरी जान ले लो। और इसे में सामने वाले की जीत नहीं, कमजोरी कहूंगा।”
श्वेता आशा भरी निगाहों से दोनों को देखने लगी। बख्तावर सिंह होंठ भींचे, चेहरे पर सख्ती समेटे श्वेता को देखे जा रहा था।
मोना चौधरी के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था। उसकी निगाह सबके चेहरे पर जा रही थी।
तभी मिल्ट्री के ट्रक के पास खड़े कृष्णपाल ने ऊंचे स्वर में कहा।
“क्यों बलवन्दिर सिंह! तू क्या कहता है?”
बलविन्दर सिंह ने कृष्णपाल को देखा फिर गम्भीर स्वर में बोला।
“भाई कृष्णपाल ! किसी की मजबूरी का फायदा उठाना मुझे अच्छा नहीं लगता। बख्तावर सिंह अपनी भांजी की वजह से अपनी जान देने को तैयार है कि वो बच जायेगी।”
“ठीक बोल तू।” कृष्णपाल की निगाह जावेद खान पर गई- “अपना जावेद भाई कुछ नहीं कह रहा।”
“सब कुछ तो तुम लोगों ने कहा दिया।” जावेद खान मुस्कराया- “मेरे पास कहने को बचा ही क्या है।”
“बल्ले-बल्ते। बड़ा समझदार है।” अजीत सिंह कह उठा।
इसके साथ ही वहां पैना सन्नाटा छा गया। हर कोई एक-दूसरे को देख रहा था।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ चुके थे। उसने जेब में हाथ डाला और चार इंच लम्बा चाकू निकाला। चाकू के दस्ते पर क्लिप लगा था, जिसे दबाते ही चाकू का फल सांप की जीभ की भांति बाहर आ गया।
“मोना चौधरी।” वजीर सिंह गम्भीर स्वर में कह उठा- “अगर तुमने इस वक्त बख्तावर सिंह को मारा तो ये हमारी जीत नहीं, बहुत बड़ी हार होगी। जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊंगा।”
“हां मोना चौधारी!” बलविन्दर सिंह कह उठा- “इस वक्त हम बख्तावर सिंह की मजबूरी श्वेता का फायदा उठा रहे हैं। मेरे मां-बाप ने मुझे हमेशा यही सिखाया है कि किसी की मजबूरी का फायदा उठाना गलत बात है।”
“हम सिपाही हैं। सामने जाकर गर्दन काटना हमें अच्छा लगता है।” गौरव शर्मा गम्भीर था- “लेकिन इस तरह किसी की जान लेना, हमें शोभा नहीं देता। ऐसा कुछ हुआ तो ये शर्म की बात होगी हमारे लिये-।”
मोना चौधरी के दांत भिंच चुके थे।
“मेरी मानों तो छोड़ दो बख्तावर सिंह को।” अजीत सिंह कड़वे स्वर में कह उठा- “दुनिया गोल है। ये फिर हमारे पल्ले पड़ेगा। तब इसे पायजामे से घसीट कर मारेंगे।”
“महाजन-!” कृष्णपाल कह उठा- “तुम क्यों नहीं कहते मोना चौधरी को कि...”
“कहने के लिये मेरे फौजी ही बहुत हैं।” महाजन मुस्करा पड़ा.- “अगर तुम लोगों का फैसला गलत होता तो मैं अवश्य बीच में आता। तुम लोग जो भी कह रहे हो। बिल्कुल ठीक कह रहे हो।”
मोना चोधरी ने भिंचे दांतों से पारसनाथ को देखा।
पारसनाथ अपने खुरदरे गाल को रगड़ने लगा। बोला कुछ नहीं।
आंखों में कहर समेटे मोना चौधरी ने चाकू संभाला और पलट कर बख्तावर सिंह की तरफ बढ़ी।
बख्तावर सिंह की कठोर निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी।
“भगवान के लिये मेरे मामा को कुछ मत कहना।” श्वेता एकाएक चीखती हुई दौड़ी। उसकी रूलाई पुनः फूट पड़ी- “मेरी जान ले लो। लेकिन मेरे मामा को कुछ मत कहना।” इसके साथ ही वो बख्तावर सिंह के आगे खड़ी हो गई।
मोना चौधरी पास पहुंचकर ठिठकी।
सब सांस रोके देख रहे थे सब।
“पीछे हट जाओ श्वेता।” बख्तावर सिंह शब्दों को चबाकर बोला।
“नहीं मामा मैं- “ श्वेता की आंखों से आंसू बह रहे थे।
“पीछे हट जाओ।” बख्तावर सिंह चीख उठा।
श्वेता का जिस्म जोरों से कांपा। वो बख्तावर सिंह के सामने से हटी और रोते हुए नीचे बैठते हुए मोना चौधरी की पिंडली थाम ली।
“उठ जाओ श्वेता।” बख्तावर सिंह तड़प उठा- “ये क्या कर रही हो।
“कुछ नहीं मामा।” श्वेता रोते हुए कह उठी- “तुमने अपना फर्ज पूरा किया। अब मैं अपना फर्ज निभा रही हूं-।”
“तुम...”
तभी मोना चौधरी ने चाकू वाला हाथ आगे बढ़ाया और पीठ की तरफ बंधे बख्तावर सिंह के हाथों के बंधन को काट दिया। बख्तावर सिंह की आंखें सिकुड़ीं। मोना चौधरी को देखा।
“हैरान होने की जरूरत नहीं बख्तावर सिंह।” मोना चौधरी चाकू बंद करते हुए, सख्त स्वर में कह उठी- “मैं अपने साथियों के खिलाफ नहीं जा सकती। वैसे भी उन्होंने जो कहा ठीक कहा है। किसी मजबूर की गर्दन दबाना, ताकतवरी नहीं होती। फिर सही। अगली बार सही। इस बार तुम बच ही गये।”
बख्तावर सिंह की निगाह मोना चौधरी पर टिकी रही। श्वेता ने मोना चौधरी की टांग छोड़ी और रोते हुए बख्तावर से जा लिपटी।
“मामा!”
“बेटी-!” बख्तावर सिंह ने उसके सिर पर हाथ फेरा। आंखों में पानी चमक उठा था।
श्वेता, बख्तावर सिंह से अलग हुई और हाथ जोड़कर मोना चौधरी से कह उठी।
“में जानती थी कि तुम औरत हो-औरत के मन में दया करूणा अवश्य होती है, तुम।”
मोना चौधरी श्वेता को देखकर मुस्कराई-वेहद शांत मुस्कान, फिर अपने साथियों की तरफ बढ़ गई।
“चुप हो जाओ श्वेता।” बख्तावर सिंह गम्भीर स्वर में कह उठा- “मोना चौधरी वैसी नहीं है, जैसा तुम उसे समझ रही हो।”
उसके बाद तीसरे मिनट ही बख्तावर सिंह, श्वेता और अपने आदमी के साथ कार पर वहां से जा चुका था।
“इस बार तो हाथ कुछ भी नहीं लगा?” बलविन्दर सिंह गहरी सांस लेकर कह उठा।
“क्यों नहीं लगा।” अजीत सिंह ने हाथ हिलाकर कहा- “मेरे अटैक वाले दिल से पूछ, कितना चैन मिला है इसे कि गलत काम हमारे हाथों से होता-होता बच गया। वो बख्तावर बेशक हमारा और देश का दुश्मन ही सही, लेकिन इस वक्त अपनी भांजी के हाथों मजबूर था और हम किसी की मजबूरी का फायदा नहीं उठाते। इस बार जाने दिया तो बच गया। अगली बार मुर्गों की गर्दन की तरह इसकी गर्दन न मरोड़ी तो मैं दिल का मरीज नहीं।”
“यहां रुकना ठीक नहीं।” सोना चौधरी गहरी सांस लेकर बोली- “चलो यहां से।”
“कहां?” गौरव शर्मा ने उसे देखा।
“वापस । दिल्ली- “ कहते हुए मोना चौधरी ने वहां खड़े मिल्ट्री के पांचों जवानों को देखा- “तुम लोग भी जा सकते हो।”
☐☐☐
कई दिनों की भागदौड़ के कारण महाजन थकान से भरा पड़ा था। दिल्ली पहुंचकर महाजन ने सबसे विदा ली और अपने घर पहुंचा। बेल बजाई।
कुछ ही क्षणों में दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाली राधा ही थी। चेहरा उतरा हुआ था उसका । वो उदास थी। आंखों के नीचे काली झाईयां झलक रही थीं
महाजन को सामने देखते ही वो खिल उठी।
“नीलू-! तू आ गया।” राधा के होंठों से खशी से भरी चीख निकली और वो महाजन से लिपट गई। महाजन के होंठों पर थकान से भरी हल्की-सी मुस्कान फैल गई- “तूने तो मुझे खुश कर दिया। मैं तो तेरे को देखने को तरस गई थी।”
“काम में फंस गया था राधा।” महाजन उसे अपने से अलग करता हुआ बोला।
दोनों भीतर पहुंचे। थका-सा महाजन बैड पर जा लेटा।
उसी पल राधा ने पहले से ही तैयार कर रखी पतली-सी रस्सी को पकड़ा और फुर्ती के साथ महाजन को बांधने लगी। इससे पहले महाजन कुछ समझ पाता-राधा ने मजबूती से उसके हाथ-पांव बैड के साथ बांध दिए थे। ये सब हुआ पाकर महाजन सकपका उठा।
“ये-ये क्या कर रही हो राधा-!”
“क्या कर रही हूं?” राधा मुंह बनाकर तीखे स्वर में बोली- “सुबह जाते हो और बारह दिन बाद लौटते हो नीलू, फिर मेरे से पूछते हो कि मैं क्या कर रही हूं। अब देखती हूं तू बाहर कैसे जाता है।”
महाजन गहरी सांस लेकर रह गया।
“भली जात की औरत, पानी तो पिला दे।”
“सब कुछ मिलेगा। पानी-खाना-नहाना-कपड़ा। हाथ-पांव भी दबाऊंगी, लेकिन इसी बैड पर। तू यहीं बंधा रहेगा नीलू । तेरे को मालूम है मैंने ये बारह दिन कैसे बिताये। मैं।”
“हे भगवान!” महाजन बड़बड़ा उठा- “इन्सान शादी क्यों करता है!”
उसी पल राधा उछल कर बैड के ऊपर महाजन पर आ बैठी।
“ये क्या कर रही हो?” महाजन हड़बड़ाया।
“बताने जा रही हूं कि तुमने शादी क्यों की नीलू।” राधा का स्वर प्यार से भर गया- “मैं तेरे से...”
“अभी नहीं। अभी कुछ मत बताना।” महाजन गला फाड़कर चीखा- “मैं बहुत थका हुआ हूं।”
“फिक्र मत कर नीलू । मैं तो थकी हुई नहीं हूं। तेरी सारी थकान अभी उतार देती हूं।”
“मेरे हाथ-पांव तो खोल दे राधा-। मैं- “ महाजन ने कहना चाहा।
“कोई जरूरत नहीं नीलू । आज मैं तेरे को इंजन बनकर दिखाऊंगी। तू डिब्बा बनकर सैर कर।”
समाप्त
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