जगमोहन ने छठे दिन मारियो गोवानी को फोन किया । मोहिते ने कॉल रिसीव की, उसके बाद मारियो गोवानी से बात हुई । वो कुछ व्यस्त-सा महसूस हुआ बातों से ।
"हाँ जगमोहन, बोल !" मारियो गोवानी की आवाज कानों में पड़ी ।
"व्यस्त है तो मैं बाद में बात कर लूँगा ।" जगमोहन बोला ।
"तेरे लिए वक़्त ही वक़्त है ।"
"क्या कोई और काम हाथ में ले रखा है ?"
नहीं, जब तक तेरा काम नहीं होगा, दूसरे काम में हाथ नहीं डालना है । तू कह... ।"
"तैयारी हो गई ?" जगमोहन ने पूछा ।
"हो रही है ।"
"इस काम में तुम दो ही होगे या अन्य लोगों को भी ले रहे हो ?"
"हम दो ही बहुत हैं ।"
"कब तक तैयारी पूरी होगा ?"
"ग्यारह तारीख से पहले ही तैयारी पूरी हो जाएगी । हमारा काम तो ग्यारह को ही... ।"
"तारीख की तरफ ध्यान मत दे । तूने जो तैयारी की है, वो मुझे बतानी होगी कि... ।"
"क्यों ?"
"मेरी तसल्ली कराना तेरा काम है ।"
"ये क्या बात हुई ? क्या तेरे को मारियो पर भरोसा नहीं ?" मारियो गोवानी के स्वर में नाराजगी उभर आई थी ।
"ये बात नहीं मारियो ।" जगमोहन ने बेहद शांत स्वर में कहा, "कभी-कभी तैयारी में कोई कमी रह जाती है जिसे कि सामने वाला ही महसूस कर सकता है । मैं नहीं चाहता कि कहीं कोई लापरवाही हो और सारा काम बिगड़ जाए । मुझे तेरे पर पूरा भरोसा है । पर एक बार मैं तेरी तैयारी पर नजर डालना चाहता हूँ । इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं ।"
चंद क्षण ठिठककर मारियो गोवानी का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा ।
"ठीक है, मैं तेरे को परसों फोन करके बुलाऊँगा । अपनी तैयारी दिखा दूँगा ।"
"शुक्रिया मारियो !" जगमोहन ने कहा और फोन बंद कर दिया ।
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रमेश गोरे, नीरा के साथ खंडाला पहुँचा । मुम्बई से खंडाला का सफर कार पर किया था । दोनों खुश थे कि वे शादी करने जा रहे हैं । आज रमेश गोरे, नीरा की माँ से मिला था । रमेश गोरे का, माँ ने अच्छा स्वागत किया था । वो भली औरत लगी थी उसे । स्नेह से उससे बातें करती रही थी । उसके बाद वे कार पर खंडाला आ पहुँचे थे कि यहाँ की खूबसूरत जगह में वे कोई फ्लैट पसंद कर सके । गोरे ने आज छुट्टी ले रखी थी ऑफिस से । वो भी खंडाला में जल्दी फ्लैट ले लेना चाहता था । उसका इरादा था कि फ्लैट लेने के तुरंत बाद शादी कर लेगा । नीरा के करीब रहने की उसे जरूरत महसूस होने लगी थी । अपने माँ-बाप को बता दिया था कि शादी करने वाला है । ये जानकर माँ-बाप भी खुश थे । देवराज चौहान से उसे इतना पैसा मिल चुका था कि वो फ्लैट ले सके । नीरा ने ये कभी नहीं पूछा था कि फ्लैट के लिए उसके पास पैसा कहाँ से आया ? दिन भर खंडाला की खूबसूरत वादियों में घूमते फ्लैट देखते रहे । तीन अलग-अलग प्रॉपर्टी डीलर से उन्होंने सम्पर्क किया था । सात-आठ फ्लैट देखे थे । कोई पसंद आया तो कोई नहीं आया । शाम होते ही वापस मुम्बई जाने का प्रोग्राम बना लिया कि कुछ दिन बाद फिर फ्लैट देखने खंडाला आयेंगे । खूबसूरत नीरा को करीब पाकर गोरे खुश था परंतु मस्तिष्क में ये सोचकर सुई जैसी चुभन उठती कि डकैती में देवराज चौहान की सहायता करने जा रहा है । क्या सब कुछ ठीक से निपट जाएगा ?
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अगले चार दिनों तक देवराज चौहान और जगमोहन व्यस्त रहे । ग्यारह तारीख करीब आती जा रही थी ।
जगमोहन मारियो गोवानी से मिलकर उसकी तैयारी देख चुका था । मारियो की तैयारी ठीक थी । चंद बातें जगमोहन ने उसे जरूर समझाई । मारियो गोवानी की तरफ से उन्हें तसल्ली हो चुकी थी ।
इस बीच जगमोहन, मोहन भौंसले और सोनिया से मिलने दो बार फ्लैट में जा चुका था । यूँ तो फ्लैट का माहौल ज्यादा अच्छा नहीं था । मोहन भौंसले अभी भी फ्लैट के उसी कमरे में बंद रहता था । परंतु जब भी जगमोहन आया, उसे सब कुछ सामान्य दिखा । मोहन कमरे से बाहर आ जाता था और सोनिया से प्यार से बोलता था जैसे कि बहुत ही प्यार से जीवन बिता रहे हो । प्रताप भी जगमोहन के सामने ठीक से पेश आता था । जगमोहन, सोनिया और मोहन भौंसले को उस काम की बारीक बातें समझाता रहता था जो काम उन्होंने डकैती के दौरान करना था । सोनिया और मोहन ने अपने-अपने काम को ठीक से समझ लिया था । जाते वक्त जगमोहन ने उन्हें बता दिया था कि परसों सुबह उनका काम शुरू होगा और मोहन भौंसले को मुम्बई से कश्मीर की फ्लाइट की टिकट दे दी थी जगमोहन ने जो कि दिल्ली होते हुए कश्मीर जानी थी । ये जानकर कि काम शुरू होने वाला है, उनके शरीरों में अजीब-सा तनाव व्याप्त होने लगा था । जगमोहन के जाने के बाद मोहन भौंसले ने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया था । सोनिया ने चमक भरी नजरों से प्रताप को देखा ।
"क्या देखती है ?" पूछते हुए प्रताप ने मुस्कुराकर भौहें नचाईं ।
"ये डकैती सफल रहेगी न ?" सोनिया ने धीमे स्वर में पूछा ।
"देवराज चौहान डकैती को सफल करेगा ।"
"पर मेरा दिल कहता है कि सब कुछ ठीक नहीं हो रहा ।" सोनिया कह उठी ।
"तुझे बेशक न हो, पर मुझे देवराज चौहान पर पूरा भरोसा है ।"
"देवराज चौहान की नहीं, मोहन की बात है । मुझे उसकी चिंता है ।"
"उसने कुछ कहा ?"
"नहीं ! लेकिन मैंने मोहन की आँखों में ऐसे भाव देखे हैं जो कि अच्छे नहीं हैं ।"
"बेकार की बात मत कर ।" प्रताप ने तीखे स्वर में कहा, "मोहन को भी पैसे की जरूरत है । वो भी चाहता है कि डकैती सफल रहे ।"
"या तो तुम मेरी बात समझ नहीं रहे हो या मैं तुम्हें समझा नहीं पा रही ।" सोनिया उखड़े स्वर में कह उठी, "मोहन... ।"
"मेरी परी ।" प्रताप आगे बढ़ा और सोनिया को बाहों में भर लिया, "जगमोहन ने तेरे को जो काम करने को कहा है, वो तू कर लेगी न ? कहीं उसके लिए तो परेशान नहीं हो रही?"
"वो तो मेरे लिए मामूली काम है । मैं मोहन के बारे में... ।"
"भूल जा मोहन को ।" कहने के साथ ही प्रताप ने सोनिया के होंठों पर अपने होंठ रख दिये ।
सोनिया कसमसाई फिर खुद को ढिला छोड़ दिया ।
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आज की शाम बहुत खास थी इन लोगों के लिए । स्विट्जरलैंड से आने वाली स्विस एयरलाइंस की फ्लाइट नंबर 606, यात्रियों के लिए मुम्बई एयरपोर्ट पर 7:00 बजे पहुँचने वाली थी । जिसमें कि 500 करोड़ का सोना भी मौजूद था । फ्लाइट नंबर 606 में 180 यात्रियों की जगह थी जबकि इसमें मात्र 40 ही यात्री थे । स्विस सरकार ने ऐसा इसलिए किया था कि यात्रियों का सामान रखने वाली जगह खाली रहे और उसमें सोना रखा जा सके ।
देवराज चौहान, जगमोहन, रवीना, प्रताप भौंसले, ललित कालिया, जैकी, काका मेहर एयरपोर्ट से 1 किलोमीटर दूर सड़क किनारे खड़ी कारों में बैठे थे । देवराज चौहान और जगमोहन के अलावा कोई नहीं जानता था कि मामला क्या है । देवराज चौहान ने सबसे इतना कह दिया था कि 10% चांस है कि उन्हें अभी हरकत में आना पड़े । एक फोन आएगा और उसी से ये बात तय होगी कि अभी हरकत में आना है या कल सुबह ।
मोहन भौंसले और सोनिया भी एक कार में उन सब से कुछ दूरी पर मौजूद थे । देवराज चौहान ने अभी तक उन्हें अलग ही रखा था । अगर अभी काम करना पड़ा तो इन दोनों को सबके साथ ही लिया जाना था ।
मारियो गोवानी और मोहिते भी इस वक्त सड़क किनारे खड़ी एक वैन में मौजूद थे । पीछे वो कार खड़ी थी जिसमें मोहिते वहाँ पहुँचा था । मारियो वैन में आया था । दोनों के पास अपनी-अपनी गाड़ियाँ थीं । इस काम के लिए वो अपनी तैयारी पूरी कर चुके थे । उन्हें देवराज चौहान का फोन आने का इंतजार था ।
"आज काम नहीं होगा ।" मारियो गोवानी बोला, "सरकार गोल्ड को रातभर एयरपोर्ट पर ही रखेगी ।
"पक्का ?"
"सरकारी काम, खासतौर से जो पाँच सौ करोड़ की कीमत वाले गोल्ड से वास्ता रखता हो, वो दिन में ही होंगे ।"
"देवराज चौहान का भी ऐसा ही ख्याल है । परंतु वो सतर्कता से हर पहलू पर सोचकर चल रहा है ।"
"वो अपने काम में एक्सपर्ट है ।"
"पाँच सौ करोड़ का गोल्ड बहुत ज्यादा होता है मारियो ।" मोहिते ने शांत स्वर में कहा।
"सच में ज्यादा होता है ।" मारियो गोवानी मुस्कुरा पड़ा ।
"हमें सिर्फ पंद्रह करोड़ मिल रहा है ।"
"पंद्रह करोड़ भी कम नहीं होता । पाँच सौ करोड़ की मत सोच । पंद्रह की सोच, शांति मिलेगी ।"
देर से कार में बैठा प्रताप भौंसले दरवाजा खोलकर बाहर निकला और पीछे खड़ी कारों की तरफ बढ़ने लगा । हर कोई अलग-अलग कार में आया था । देवराज चौहान ने ही कहा था कि वो अपनी-अपनी कार का इंतजाम करके आयें । ऐसा इसलिए कि अगर गोल्ड को एयरपोर्ट से कहीं ले जाया जाता है तो कारों के दम पर गोल्ड ले जाने वालों के रास्ते पर अड़चन पैदा की जा सकती है । प्रताप, ललित कालिया वाली कार के पास पहुँचा । ड्राइविंग सीट पर बैठे ललित कालिया से नजरें मिलते ही प्रताप का हाथ अपने कपड़ों में छिपी रिवॉल्वर पर गया और उसके मौजूद होने का अहसास पाकर हाथ नीचे आ गया । प्रताप झुककर धीमे स्वर में बोला ।
"रिवॉल्वर लाया है ?"
हाँ, अस्सी हजार में खरीदी है ।" ललित कालिया ने कहा ।
"देवराज चौहान क्या करने वाला है ?"
"पता नहीं !"
"कितनी बुरी बात है कि हम डकैती में शामिल है और हमें कुछ भी पता नहीं कि क्या हो रहा है ।" प्रताप ने मुँह बनाया ।
"ऐन मौके पर ही बताएगा वो ।"
तभी प्रताप का फोन बजा ।
देवराज चौहान का फोन था कि वो अपनी कार में जाये और बेवजह बाहर न निकले ।
प्रताप भौंसले कार में चला गया ।
मोहन भौंसले और सोनिया एक ही कार में बैठे थे । सोनिया को देवराज चौहान ने यही कहा था कि वो मोहन के साथ कार में ही रहे । मोहन स्टेयरिंग सीट पर था और खामोश-सा था । देर से उसने सोनिया के साथ बात नहीं की थी ।
"तुम मुझसे इतने नाराज क्यों हो ?" बगल में बैठी सोनिया कह उठी, "कितनी बार तो तुम्हें कहा है कि वो तुम्हारे भाई की ग़लती थी । उसने जबर्दस्ती की मेरे साथ । तुमने तब से ही मेरे से मुँह फुला रखा है ।"
"मैं सिर्फ दस करोड़ के बारे में सोच रहा हूँ ।" मोहन भौंसले शांत स्वर में कह उठा ।
"दस नहीं, बीस । हमें बीस करोड़ मिलने वाला है ।"
"उसमें दस करोड़ ही मेरा है ।"
"ये तेरा-मेरा क्या लगा रखा है । हम पति-पत्नी हैं ।" सोनिया ने झल्लाकर कहा ।
मोहन भौंसले चुप रहा ।
"तुम्हें मुझसे बात करनी चाहिए कि पैसा आ जाने के बाद हम क्या करने वाले हैं । हमें मुम्बई छोड़नी होगी, वरना पुलिस के हाथों में पड़ जायेंगे । तुमने इस बारे में कोई प्लान नहीं बनाया ?"
मोहन भौंसले ने कुछ नहीं कहा ।
"कुछ तो सोचा होगा तुमने कि क्या करना है नोट आ जाने के बाद ?" सोनिया ने पुनः पूछा ।
"अभी पैसा हाथ नहीं आया है ।"
"आ जायेगा ।"
"जब आ जायेगा तभी इस बारे में बात करना ।"
सोनिया, मोहन भौंसले को घूरती रही फिर बोली ।
"तुम इतने रूखे तो नहीं थे कभी ।"
मोहन भौंसले ने कुछ नहीं कहा ।
सोनिया ने हाथ बढ़ाकर, उसकी टाँग पर हाथ रखकर कह उठी ।
"प्लीज मोहन, मुझसे बात करो । तुम्हारी नाराजगी मुझे अच्छी नहीं लग रही ।"
मोहन भौंसले, सोनिया को देखकर मुस्कुराया ।
"बात करो, जैसे पहले किया करते थे ।" सोनिया के स्वर में आग्रह था, "एक बात मुझे समझ नहीं आयी कि तुम आठ-नौ दिन कमरे में बन्द रहकर क्या करते रहे । अपने को कमरे में बन्द क्यों रखा ?"
"मैं तुम्हारे और प्रताप के बीच नहीं आना चाहता ।"
"फिर वही बात । कुछ नहीं है मेरे और प्रताप के बीच ।" सोनिया झल्लाकर कह उठी ।
मोहन भौंसले ने मुस्कुराकर मुँह फेरा और सड़क पर जाते वाहनों को देखने लगा ।
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जगमोहन कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा था । देवराज चौहान पीछे वाली सीट पर मौजूद था । दोनों में काफी देर से बात नहीं हुई थी । तभी जगमोहन कह उठा ।
"रमेश गोरे फोन करना भूल तो नहीं गया ? साढ़े पाँच बज रहे हैं । डेढ़ घण्टे में वो प्लेन आने वाला है ।"
"ये बात वो नहीं भूलेगा ।" देवराज चौहान बोला ।
"अगर सोना एयरपोर्ट पर ही रखना होगा तो ये बात रमेश गोरे को पता चल चुकी होगी । क्योंकि सोना रखने की तैयारी में भी तो वक़्त चाहिए । रमेश गोरे कारगो का सिक्योरिटी चीफ है ।" जगमोहन ने गर्दन घुमाकर देवराज चौहान को देखा, "अभी तक उसे सोना संभालने के आदेश नहीं मिले तो स्पष्ट है कि सोने को हाथोंहाथ ले जाने का प्रोग्राम होगा । ऐसा होता तो भी गोरे को खबर मिल गई होती । सोना ले जाने के लिए सरकारी इंतजाम वहाँ पहुँच चुके होते । मेरी मानो तो गोरे को फोन करके देखो । उसे फोन करने में इतना लेट नहीं... ।"
"अब फोन करके देखो । उसे फोन करने में इतना लेट नहीं... ।"
"वो भूल भी सकता... ।" जगमोहन अपने शब्द पूरे न कर सका ।
देवराज चौहान का फोन बज उठा ।
"हेलो !" देवराज चौहान ने बात की ।
"देवराज चौहान ! मैं गोरे, रमेश गोरे... ।"
"कहो ।" देवराज चौहान सतर्क दिखने लगा ।
"स्विट्जरलैंड से आने वाली फ्लाइट नम्बर 606 में कोई खास चीज या रही है । परंतु हमें बताया नहीं गया है कि वो क्या चीज है, जैसा कि तुम कहते हो, वो गोल्ड ही होगा । सरकारी अधिकारी ऊपर से ऑर्डर लेकर एयरपोर्ट पर पहुँच चुके हैं । वो कारगो का वाल्ट खाली करा रहे हैं कि प्लेन से आने वाला महत्वपूर्ण सामान वाल्ट में रखना है । साथ में सरकारी गनमैन भी हैं । जो करीब दस हैं । सरकारी अधिकारियों का कहना है वो सामान दो दिन तक वाल्ट में रखा जाएगा । परसों वो इस सामान को यहाँ से ले जायेंगे ।"
"परसों ?" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े ।
"कल का पूरा दिन वो सामान कारगो के वाल्ट में ही पड़ा रहेगा ।" गोरे की आवाज आई ।
"ये पक्की खबर है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"पूरी तरह पक्की ।"
"तो अब तुम्हें कारगो के वाल्ट की सुरक्षा पर ध्यान देना है । वो दस गनमैन कहाँ-कहाँ तैनात किए जाते हैं । तुम्हें मुझे ये भी बताना है कि हम कैसे कारगो के वाल्ट में प्रवेश कर सकते हैं ।"
"तुम लोग कारगो के वाल्ट में प्रवेश करोगे ?" रमेश गोरे की आवाज में कुछ घबराहट आ गई थी ।
"उसके बिना वहाँ रखा गोल्ड हम नहीं ले जा सकते । वाल्ट की सुरक्षा कहाँ पर कमजोर है, तुमसे बेहतर ये बात कोई नहीं जान सकता । तुम वहाँ के सिक्योरिटी चीफ हो ।"
"मेरी ड्यूटी रात दस बजे खत्म हो जाएगी । तब तक मैं काफी कुछ जान लूँगा ।" गोरे की आवाज आई ।
"ठीक है !"
"इसके बाद तुम्हारी ड्यूटी कब... ?"
"कल दोपहर दो बजे से रात दस बजे तक की मेरी शिफ्ट है ।"
"ऐसे काम नहीं चलेगा । तुम कल सुबह छः बजे वाली शिफ्ट में अपनी ड्यूटी लगवा लो ।"
"ये कैसे हो सकता है ? मैं अपनी ड्यूटी का टाइम कैसे तय कर सकता हूँ ।" रमेश गोरे का तेज स्वर कानों में पड़ा ।
"तुम देखो कि कैसे अपनी ड्यूटी सुबह की शिफ्ट में लगवा सकते हो ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया और जगमोहन से कहा, "सबसे वापस जाने को कह दो । काम कल होगा । गोल्ड परसों तक कारगो के वाल्ट में रहेगा । मोहन और सोनिया से कह दो कि उन्हें कल सुबह उसी प्लान पर काम करना है । मारियो गोवानी से भी कहो कि गोल्ड एयरपोर्ट पर रखा जा रहा है, ऐसे में कल सुबह वाली योजना पर काम होगा ।"
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शाम 6.30 बजे सीनियर इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े अपने असिस्टेंट इंस्पेक्टर शाहिद खान के साथ एयरपोर्ट पर पहुँचा । ऊपर से ऑर्डर आया था कि पवन कुमार वानखेड़े की ड्यूटी, एयरपोर्ट के कारगो के वाल्ट पर तब तक लगाई जाए जब तक कि ऊपर से दूसरा ऑर्डर नहीं आ जाता । वानखेड़े का काम वाल्ट की सुरक्षा पर नजर रखना है । इस काम के ऑर्डर मिलते ही, वानखेड़े ने अपने साथ इंस्पेक्टर शाहिद खान की ड्यूटी भी अपने साथ लगवा ली ।
फ्लाइट नम्बर 606 के आने में आधा घण्टा बाकी था । वो सही समय पर आ रही थी।
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मामूली-सी गड़बड़ हो गई थी ।
रात 11:00 बजे देवराज चौहान और जगमोहन, रमेश गोरे से मिले थे । गोरे ने बताया कि 4 फुट ऊँची और 4 फुट लम्बी-चौड़ी लकड़ी की 50 पेटियाँ है जो कि कुछ भारी हैं । उन्हें प्लेन से उतारकर कारगो के वाल्ट में रखा गया है । वहाँ पर सरकार की तरफ से भेजे 10 गनमैन पहरे पर हैं और रात 2:00 बजे 10 दूसरे गनमैन उनकी जगह ले लेंगे । इसी तरह सुबह 10:00 बजे उनकी जगह 10 अन्य गनमैन ले लेंगे इसके अलावा उसने वानखेड़े के बारे में बताया ।
"वानखेड़े ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।
"मुझे पता है कि इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े को पुलिस हेडक्वार्टर की तरफ से भेजा गया है । उसके साथ इंस्पेक्टर शाहिद खान भी है । दोनों कारगो के वाल्ट पर नजर रख रहे हैं । सोने की दो पेटियाँ भी उन्होंने अपनी देख-रेख में रखवाई । साथ में अन्य सरकारी अधिकारी भी थे परंतु वे पेटियाँ रखवाने के बाद वहाँ से चले गए ।"
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं ।
"वानखेड़े हमारे लिए समस्या खड़ी कर सकता है ।" जगमोहन ने कहा ।
देवराज चौहान होंठ सिकोड़कर रह गया ।
"आप लोग इंस्पेक्टर वानखेड़े को जानते हैं ?" गोरे ने पूछा ।
"वो हमें पहचानता है ।" देवराज चौहान बोला ।
"ओह !" रमेश गोरे बेचैन हुआ दिखा ।
गड़बड़ वाली बात अब कही गोरे ने ।
"मेरी ड्यूटी कल सुबह वाली शिफ्ट में नहीं लग सकी ।"
"ये जरूरी था ।" देवराज चौहान बोला, "तुम्हारी ड्यूटी के दौरान ही हमारा काम करना ठीक होगा ।"
"पर तब मैं तुम लोगों की कोई सहायता नहीं कर पाऊँगा । जो करना है, तुम लोगों को ही करना है । ये बात पहले ही तय थी कि मैं तुम लोगों को सिर्फ भीतर की जानकारी दूँगा ।" गोरे ने घबराकर कहा ।
"हमें तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं होगी तब परंतु जानकारी तो तुम तब भी हमें दे सकते हो ।"
"कैसी जानकारी ?"
"यही कि वहाँ की क्या स्थिति है । कब-कब वो लोग क्या कर रहे हैं ? ये बातें हमें पता चलती रहेंगी तो इससे हमें काम करने में आसानी होगी । हम फोन पर बातचीत करते रहेंगे गोरे ।"
रमेश गोरे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"तुम्हारी ड्यूटी कल दोपहर 2 बजे से है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"ह...हाँ !"
"तो हम कल दोपहर 2 बजे के बाद ही अपना काम शुरू करेंगे ।"
गोरे परेशान दिखा ।
"अब तुम हमें बताओ कि कल हम वाल्ट में कैसे प्रवेश कर सकेंगे ?"
"कैसे ? वहाँ पर दस गनमैन पहरे पर... ।"
"वाल्ट किस स्थिति में है ? वहाँ किस तरह के गनमैन फैले हैं । वाल्ट को कैसे खोला जाता है ?"
"तुम...तुम लोग सफल नहीं हो सकते ।" गोरे के स्वर में कंपन था ।
"चिंता मत करो । कोई भी बात तुम पर नहीं आएगी । तुम हर हाल में सुरक्षित रहोगे ।"
"तुम लोग पकड़े गए तो मेरा नाम बता... ।"
"ऐसा नहीं होता । फँस जाने की स्थिति में हमारे मुँह से किसी का भी नाम नहीं निकलेगा ।"
"मैं तो पहले ही जानता था कि ये काम फँसने वाला है । म...मैं... ।"
"रमेश गोरे !" देवराज चौहान ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, "तुम देवराज चौहान से बात कर रहे हो । मैं कभी भी झूठ नहीं बोलता । तुम्हारा नाम कभी भी हमारे द्वारा बाहर नहीं आएगा ।"
गोरे ने गहरी साँस ली । चंद पल उनके बीच चुप्पी रही ।
"हम कल दो बजे के बाद ही अपना काम शुरू करेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा, "तुम अब कारगो के वाल्ट के बारे में सब बताना शुरू कर दो । मुझे बारीक से बारीक बात की भी जानकारी चाहिए ।"
"वाल्ट का दरवाजा कॉम्बिनेशन नम्बर से खुलता है और जब भी सिक्योरिटी चीफ ड्यूटी पर आता है तो वो सावधानी के तौर पर अपनी पसंद के नम्बर पर कॉम्बिनेशन लॉक लगाता है और ऑफिस को नम्बर की जानकारी दे देता है ।"
"मैं समझा नहीं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"सिक्योरिटी चीफ तीन है कारगो में । एक मैं, दो अन्य । आठ-आठ घण्टे की ड्यूटी होती है हमारी । वाल्ट में अगर कीमती माल रखा हो तो एहतिहात के तौर पर ड्यूटी पर पहुँचने वाला चीफ, सावधानी के नाते पुराना कॉम्बिनेशन नम्बर हटाकर, अपनी पसंद का कॉम्बिनेशन नम्बर डाल देता है ।"
"उसे कैसे पता लगता है कि पुराना नम्बर क्या है ?"
"ड्यूटी से हटते हुए पुराना सिक्योरिटी चीफ नए वाले को नम्बर बता देता है ।"
तभी जगमोहन कह उठा ।
"फिर तो तुम हमें कॉम्बिनेशन नम्बर बता सकते हो । हम आसानी से वाल्ट के भीतर पहुँच जायेंगे ।"
"म...मैं फँस जाऊँगा ऐसा करके ।" रमेश गोरे घबराकर बोला ।
"तुम क्यों फँसोगे । वहाँ और भी तो होंगे जो वाल्ट को सुरक्षा दे रहे होंगे । बात उन पर भी आएगी ।"
"नहीं, मैं... ।"
"इस स्थिति में मैं बचने का रास्ता तुम्हें बता देता हूँ ।" देवराज चौहान ने कहा, "तुम जब ड्यूटी पर अपना चार्ज सम्भालो और पहले का लगा कॉम्बिनेशन नम्बर, तुम्हें पता लगे तो उसे बदलना मत । ऑफिस में खबर कर देना कि वही नम्बर चल रहा है, तुमने नम्बर नहीं बदला । ऐसे में कोई गड़बड़ होती है तो तुम नहीं फँस सकोगे । तुम्हें संदेह का लाभ जरूर मिलेगा कि तुमने कॉम्बिनेशन नम्बर नहीं बदला । पहले वाला नम्बर ही चल रहा था और जिसने वो नम्बर सेट किया था, वो ड्यूटी खत्म करके जा चुका है । ऐसे में ये बात किसी की समझ में नहीं आएगी कि नम्बर तुमने लीक किया है या पहले वाले सिक्योरिटी चीफ ने या सोना ले जाने वालों ने खुद लॉक को खोला है ।"
"नहीं, ऐसा करना हम में तय नहीं हुआ ।"
"तो अब तय कर लेते हैं ।" जगमोहन गंभीर स्वर में बोला, "हम तुम्हें टोटल पाँच करोड़ देंगे ।"
"पाँच करोड़ ।" गोरे के चेहरे पर घबराहट थी ।
"मामूली-सा काम है और पाँच करोड़ कम नहीं होता । थोड़ी-बहुत मुसीबत आ भी गई तो उससे निपट सकते हो । पर तुम समझदार हो । सब संभाल लोगे । तुमने बताया था कि तुम शादी करने जा रहे हो । शादी के बाद तो जिंदगी के खर्चे शुरू होते हैं । पत्नी का खर्चा, घर का खर्चा, बच्चों का खर्चा, हर कदम पर खर्चा और इस उम्र में तुम ज्यादा पैसा कमा नहीं सकते । पाँच कमाने का तुम्हें बेहतरीन मौका मिल रहा है । चूको मत ।" जगमोहन के स्वर में गंभीरता भरी पड़ी थी, "तुम्हारी जिंदगी आसान हो जाएगी पाँच करोड़ से और हमारा काम आसान हो जाएगा । सब कुछ अच्छा रहेगा । अपनी हिम्मत कायम रखो ।"
रमेश गोरे ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर दोनों को देखा ।
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है कि... ।"
"गोरे, तुम कॉम्बिनेशन नम्बर ऑफिस वाले को भी तो बताते हो ?" देवराज चौहान बोला ।
"हाँ !"
"तो वो नम्बर का क्या करते हैं ?"
"रूटीन में वो उस नम्बर को एक रजिस्टर में दर्ज करते हैं ।" गोरे ने बताया ।
"रजिस्टर कहाँ रखा जाता है ?"
"वहीं टेबल पर ही पड़ा रहता है ।"
"खुले में ?"
"हाँ !" गोरे ने सिर हिलाया ।
"फिर तो वहाँ से वाल्ट के दरवाजे का कॉम्बिनेशन नम्बर देखकर कोई भी हमें बता सकता है । है न ?"
"हाँ !" गोरे की आँखें सिकुड़ीं ।
"तो फिर बात तुम पर क्यों आएगी ? आई तो ये बात तुम पूछताछ करने वालों को बता सकते हो कि वाल्ट के दरवाजे के कॉम्बिनेशन नम्बर तो ऑफिस में कोई भी जान सकता है ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा, "मैं तुम्हें बहका नहीं रहा, सच कह रहा हूँ कि वो नम्बर कभी भी सीक्रेट नहीं रहता होगा । कोई भी जानना चाहे तो जान सकता है ।"
रमेश गोरे के गंभीर और बेचैन चेहरे पर सोच के भाव नाच रहे थे ।
"पाँच करोड़ बहुत बड़ी रकम होती है गोरे ।" जगमोहन ने कहा, "ये मौका हाथ से जाने दिया तो तुम्हारी ग़लती... ।"
"मैं फँसना नहीं चाहता । क्या पता तुम लोग डकैती में सफल हो भी पाते हो या नहीं ।" गोरे ने घबराहट भरे स्वर में कहा, "एयरपोर्ट हाई सिक्योरिटी ज़ोन में आता है । वहाँ कोई भीतर भी नहीं जा सकता । उस पर वाल्ट के चारों तरफ दस गनमैन मौजूद हैं । इंस्पेक्टर वानखेड़े और इंस्पेक्टर शाहिद खान ।"
"तुम फिक्र मत करो, ये सब सम्भालना हमारा काम है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मैं तुम्हें वाल्ट के दरवाजे के कॉम्बिनेशन नम्बर नहीं बता सकता ।" गोरे ने स्पष्ट मना कर दिया ।
"अगर हम डकैती के दौरान ऑफिस से वो रजिस्टर ही उठा लाये तो तब तुम पर बात नहीं आएगी ।"
"तुम ऐसा कर लोगे ?" रमेश गोरे के होंठों से निकला ।
"हाँ ! तुम हमें बताओगे कि एयरपोर्ट पर तुम्हारा ऑफिस कहाँ है और रजिस्टर किस टेबल पर मौजूद रहता है । हम वाल्ट खोलने से पहले ही रजिस्टर को वहाँ से ले आयेंगे ।" देवराज चौहान गंभीर था ।
"अ... अगर न ला सके तो ?"
"मेरी बात का भरोसा करो गोरे । जो तुमसे कहाँ जा रहा है, वो जरूर किया जाएगा ।"
गोरे ने लम्बी साँस लेकर कहा ।
"अगर तुम ऐसा यकीनी तौर पर करोगे तो मैं तुम्हें वाल्ट के दरवाजे के कॉम्बिनेशन नम्बर बता दूँगा । तब तो कोई सोच भी नहीं सकता कि कॉम्बिनेशन नम्बर मैंने किसी को बताया होगा ।" रमेश गोरे की आवाज में हिम्मत आ गई ।
"तो विश्वास करो कि कल एयरपोर्ट पर मौजूद तुम्हारे ऑफिस से वो रजिस्टर वाल्ट का दरवाजा खोलने से पहले ही उठा लिया जाएगा ।"
"वो हरी जिल्द वाला मोटा-सा रजिस्टर है । मैं तुम्हें बता दूँगा कि ऑफिस कहाँ है और किस टेबल पर रजिस्टर रहता है... तुम... ।"
"अब मुझे वो बातें बताओ जो मैं जानना चाहता हूँ ।" देवराज चौहान ने कहा ।
उसके बाद देवराज चौहान, जगमोहन और रमेश गोरे देर तक बातों में व्यस्त रहें । सवाल-जवाब चलते रहे कारगो के वाल्ट पर । वहाँ लगी सिक्योरिटी पर । देवराज चौहान और जगमोहन, गोरे से वहाँ की एक-एक बात, छोटी-छोटी बात के बारे में भी जानकारी लेते रहें । ये भी जाना कि वो हरा रजिस्टर किस टेबल पर होता है और वो ऑफिस एयरपोर्ट पर कहाँ है । ऐसी कोई बात बाकी नहीं बची थी कि जरूरत पड़ने पर, देवराज चौहान के पास उसका जवाब न होता ।
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रमेश गोरे से मिलने के बाद देवराज चौहान और जगमोहन ने सबसे पहले कल की फ्लाइट्स का पता किया । शाम की चार बजे की एक फ्लाइट पसंद आई, जो कि अब उनके बदले हुए प्लान में ठीक बैठती थी । वो फ्लाइट मुम्बई से कश्मीर की थी जिसे की बीस मिनट के लिए दिल्ली रुककर फिर कश्मीर के लिए फ्लाइट पर जाना था । छः बजे फ्लाइट दिल्ली पहुँचती है और 6.20, 6.25 पर पुनः टेक ऑफ करके 7.50 पर कश्मीर के श्रीनगर ।एयरपोर्ट पर लैंड करती है । उन्होंने सुधीर खोंसला के नाम से उस फ्लाइट में टिकट बुक करा ली ।
उसके बाद मारियो गोवानी को फोन करके बताया कि प्लान में थोड़ा-सा बदलाव आया है । इतना ही कि जो काम सुबह शुरू होना था, वो अब शाम को चार बजे शुरू होगा, बाकी सब कुछ वैसा ही रहेगा । फिर मोहन भौंसले और सोनिया को फोन करके प्लान के बदलाव के बारे में बताया ।
जब दोनों फुर्सत में आये तो रात के दो बज रहे थे ।
"इस हिसाब से तो कल हमें काम करते-करते अंधेरा हो जाएगा ।" जगमोहन ने कहा ।
कार चलाते देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।
"अंधेरा हो जाएगा । हमारे प्लान के मुताबिक वो फ्लाइट सीधी मुम्बई एयरपोर्ट पर जाएगी । वो वक़्त रात के साढ़े आठ और नौ के बीच का होगा । उस वक़्त का अंधेरा हमें फायदा भी दे सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तो कल हम काम करने जा रहे हैं ।" जगमोहन के चेहरे पर सख्त-सी मुस्कान उभरी ।
"हाँ !" देवराज चौहान गंभीर था, "इस काम में खतरा ज्यादा है क्योंकि काम एयरपोर्ट पर होगा । हथियारबंद सरकारी आदमी वहाँ पर होंगे । वानखेड़े की ड्यूटी भी कारगो के वाल्ट पर लगी है । हमें बहुत सम्भलकर सारा काम करना है । बारह बजे तक सब लोगों को हमें इकट्ठा कर लेना है कि वो कुछ पूछना चाहें तो पूछ लें । काम कहाँ और कैसे करना है, ये उन्हें साढ़े तीन बजे बताया जाएगा । तुम सुबह सोनिया से मिलकर उसे एक बार फिर समझा देना और मोहन भौंसले को शाम चार बजे की प्लेन की टिकट दे देना । कल सुबह से ही हमें कामों में लग जाना है । ये पाँच सौ करोड़ के सोने की डकैती है और हमें सफल होने की पूरी कोशिश करनी है । तीनों एम्बुलेंस तैयार हैं ?"
"तैयार है ।" जगमोहन ने कहा ।
"गोरे कहता है कि कुल पचास पेटियाँ है और उनका साइज भी उसने बताया है । बड़ी वाली दोनों एम्बुलेंस में पचास पेटियाँ नहीं आ सकतीं । उसमें सिर्फ तीस ही आ सकती हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तो बाकी बीस ?" जगमोहन ने देवराज को देखा, "एक और एम्बुलेंस बड़ी वाली तैयार करूँ ?"
कुछ पलों की खामोशी के बाद देवराज चौहान ने कहा ।
"वक़्त कम है । अब एम्बुलेंस को तैयार नहीं किया जा सकता । कहीं से बड़ी एम्बुलेंस उठाकर लानी होगी । इस तरह हमारे पास चार एम्बुलेंस हो जायेगी । तीन में सोना जाएगा और चौथी एम्बुलेंस बाकी तीन एम्बुलेंस को कवर करेगी । हमें हर पहलू पर बार-बार गौर करना है कि कोई ग़लती न रह जाये ।"
"एम्बुलेंस का इंतजाम मैं कहीं से रात में ही कर लूँगा । नींद नहीं मिलने वाली । मुझे कहीं सरकारी अस्पताल के सामने उतार दो । एम्बुलेंस का इंतजाम करके मैं सुबह तक बंगले पर पहुँच जाऊँगा ।" जगमोहन कह उठा ।
■■■
अगले दिन शाम चार बजे सांताक्रुज एयरपोर्ट पर ।
आज मौसम बदला-बदला-सा था । मुम्बई में ये बरसातों के दिन थे और सुबह से ही मूसलाधार बरसात हो रही थी । आसमान पर काले-काले बादलों के तैरते झुंड नजर आ रहे थे । दिन में ही रात जैसा मौसम हो रहा था परंतु इस मौसम का असर उड़ानों पर नहीं पड़ा था । प्लेन बराबर एयरपोर्ट पर आ-जा रहे थे । प्लेन की आवाज लगभग निरंतर ही कानों में पड़ रही थी । अभी-अभी मुम्बई से कश्मीर जाने वाली प्लेन ने उड़ान भरी थी ।
इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े, इंस्पेक्टर शाहिद खान के साथ एयरपोर्ट के कारगो वाले हिस्से में था । दोनों सादी वर्दी में, कल शाम से ही वहाँ मौजूद थे । कारगो की एक इमारत जिसमें कि छोटा-सा वाल्ट भी था जिसका दरवाजा खुले की तरफ मौजूद था, जहाँ दस गनमैन बाहर बिखरे पहरा दे रहे थे, ये दोनों भी उस वाल्ट की निगरानी पर थे । तेज बरसात होने के कारण दोनों वाल्ट के सामने कुछ हटकर कुर्सियों पर बैठे थे । उनका लंच गनमेन के साथ वहीं पर आ गया था । अब वानखेड़े ने बैठे-बैठे कुछ थकान महसूस की और बरसात भी हल्की हो गई तो वो एयरपोर्ट की मुख्य इमारत को देखता बोला ।
"शाहिद, मैं कॉफ़ी पीकर आता हूँ । तुम्हारे लिए भी लेता आऊँगा ।"
"यस सर !" इंस्पेक्टर शाहिद खान अपने सीनियर इंस्पेक्टर वानखेड़े को सर ही कहता था ।
"सतर्क रहना । ये मत सोचना कि कुछ नहीं होगा । ये सोचो कि कभी भी कुछ भी हो सकता है तभी ठीक से ड्यूटी दे पाओगे ।" वानखेड़े ने कहा और सामने नजर आ रही एयरपोर्ट की इमारत की तरफ बढ़ गया ।
वानखेड़े एयरपोर्ट की इमारत में पहुँचा और उस तरफ बढ़ा जहाँ कॉफ़ी मिलती थी । एयरपोर्ट पर भरपूर व्यस्तता थी । लोग आ-जा रहे थे । अधिकतर बैग्स की ट्रालियों को धकेलते जा रहे थे । किसी के पास इधर-उधर देखने की फुर्सत नहीं थी । विमानों के इंजनों का शोर यहाँ कम ही सुनाई दे रहा था ।
तभी एक औरत की चीख ने उसके कदम रोक दिए ।
उस चीख में खौफ और दहशत शामिल थी । वानखेड़े तेजी से चीख की दिशा में दौड़ा । कुछ दूरी पर उसे सिक्योरिटी स्टाफ की भीड़ नजर आई । ढेरों आवाजें सुनाई दे रही थीं । परंतु औरत का स्वर उन आवाजों से तेज था ।
"मैं कसम खाकर कहती हूँ कि वो अपने साथ एक बम लेकर गया है ।" औरत की आवाज में हिस्टीरियाई पुट था, "भगवान के लिए मेरी बात का विश्वास करो । वो प्लेन को तबाह कर देगा । जैसे भी हो सके उसे रोको । नहीं तो वो बहुत बड़ी तबाही मचा देगा । प्लेन में सवार सब लोग मारे जाएँगे ।"
वानखेड़े वहाँ जा पहुँचा । तब एक ग्राउंड होस्टेस उस औरत से कुछ पूछ रही थी । औरत एक ही बात कह रही थी ।
"वो अपने साथ बम ले गया है । वो प्लेन को तबाह कर देगा ।" औरत और कोई नहीं, सोनिया ही थी ।
वानखेड़े ने भीड़ को पार करके उस औरत के पास जाना चाहा लेकिन एक लम्बे-तगड़े आदमी ने उसका हाथ पकड़कर पीछे खींचा । वानखेड़े ने तुरंत उसकी शक्ल देखी । उसे खींचने वाला पुलिस इंस्पेक्टर था जो कि इन दिनों एयरपोर्ट पर चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर की ड्यूटी कर रहा था । वो प्रकाश भेड़े था और वानखेड़े का पुराना वाकिफकार था । दोनों एक-दूसरे को देखते मुस्कुराए ।
"कमाल है !" प्रकाश भेड़े मुस्कुराकर बोला, "स्पेशल ब्रांच इतनी जल्दी यहाँ पहुँच गई ।"
"मैं कल शाम से ही यहाँ हूँ भेड़े । कारगो के वाल्ट पर ड्यूटी है ।" वानखेड़े ने बताया ।
"तो मुझसे मिले क्यों नहीं ?"
"तुम्हारा ध्यान ही नहीं आया कि तुम यहाँ हो । कल सुबह तक या दोपहर तक यहीं हूँ।"
"अकेले ?"
"शाहिद खान है ।"
"समझा । पर इन दिनों तो तुम्हें जेल से फरार कैदी प्रताप भौंसले को पकड़ने का काम दिया गया है ।"
"तुम्हें कैसे पता ?" वानखेड़े मुस्कुराया ।
"पता नहीं किसने बताया, पर किसी से बात हो गई थी । प्रताप पकड़ा गया ?"
"नहीं, उसका कुछ पता नहीं ! वो अंडरग्राउंड हो चुका है । कहीं से भी खबर नहीं मिली ।"
"प्रताप को मैंने ही गिरफ्तार किया था ।" प्रकाश भेड़े ने बताया, "वह विक्षिप्त हत्यारा है । पागल, सनकी-सा । वो कब क्या कर जाए, पता नहीं चलता । जब मैंने उसे गिरफ्तार किया तो वो मेरी जान लेने की कोशिश में था ।"
"वो खतरनाक है । तभी तो उसे तलाश करने का काम मुझे दिया गया था । एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे या ऐसी हर जगह पर कड़ी नजर रखी जा रही है लेकिन वो कहीं भी नहीं मिल रहा । उसके कहीं देखे जाने की भी खबर नहीं मिली । मुझे लगता है, छिपने में कोई उसकी सहायता कर रहा है ।" बातें करते हुए वानखेड़े की निगाह बार-बार चीखती-चिल्लाती सोनिया को तरफ उठ रही थी, "ये औरत कौन है और क्या कह रही है ?"
"कुछ समझ नहीं आ रहा है । अचानक ही चीखने लगी । कहती है कि कोई आदमी बम लेकर हवाई जहाज में सवार हो गया है । लेकिन मैं नहीं मानता कोई बम को प्लेन तक ले जाने में सफल हो सकता है । हर तरफ तगड़ी चेकिंग है । ऐसा संभव नहीं है । हमने इस औरत की डिटेल जानने की कोशिश की परंतु वो कुछ नहीं बता पा रही है । शायद डरी हुई है, मानसिक रूप से बीमार भी हो सकती है । एयरपोर्ट पर ऐसी घटनाएँ या कुछ-न-कुछ होता ही रहता है ।" इंस्पेक्टर प्रकाश भेड़े ने कहने को तो कह दिया परंतु उसकी आँखें चुगली खा रही थीं । वो उस औरत की बातों से चिंतित था ।
"तो तुम उस औरत की बातों को हल्के में ले रहो हो ।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा।
"इतना भी हल्के में नहीं ले रहा ।" इंस्पेक्टर भेड़े ने गहरी साँस ली, "परंतु वो बम के अलावा कोई भी और बात बता नहीं पा रही ।"
"उससे जानने की कोशिश की तुमने ?"
"की !"
"मैं कोशिश करूँ ?"
"मुझे क्या एतराज हो सकता है वानखेड़े । जिस आदमी ने उससे बात की है, आओ पहले उससे मिल लो, शायद कुछ नया पता चले ।"
वानखेड़े ने सोनिया पर भरपूर निगाह मारी । फौरन ही इस नतीजे पर पहुँच गया कि वो मानसिक रोगी नहीं हो सकती है । सुंदर थी । परंतु इस वक़्त वो हिस्टीरिया की हालत के करीब पहुँची हुई थी ।
"तुमने अब तक क्या किया इस बारे में ?" वानखेड़े ने पूछा ।
"डिपार्चर लाउन्ज में मेरा एक आदमी तैनात है, जरा उससे मिल लो ।"
वानखेड़े, भेड़े के साथ डिपार्चर लाउन्ज में पहुँचा । परंतु जिस आदमी से उन्हें मिलना था, पता चला कि वो स्टाफ रेस्ट रूम में है । वहाँ पहुँचे तो दरवाजे पर ही एक मोटे-से आदमी ने वानखेड़े का रास्ता रोककर नर्म और सूखे स्वर में कहा ।
"आप भीतर नहीं जा सकते ।"
आगे जा चुके भेड़े ठिठककर पलटा और बोला ।
"सूरज, ये इंस्पेक्टर वानखेड़े हैं । मेरे साथ हैं ।"
"ओह ! आप भीतर जाइये । मैं आपको पहचान नहीं सका । आपने उस औरत के बारे में सुना । उसने तो हमारे होश उड़ा दिए हैं ।"
"सुना ।" वानखेड़े ने कहा, "कुछ बताया उसने ?"
"नहीं !" वो वानखेड़े के साथ चल पड़ा, "वो लगातार चिल्लाती रही, असंगत के शब्द कहती रही । सिर्फ इतना ही समझ आया कि कोई आदमी बम लेकर प्लेन में चढ़ा है । पहले वो पागलों की तरह बोल रही थी परंतु अब बच्चे की तरह सहमी हुई है ।"
तीनों कमरे में आ गए ।
प्रकाश भेड़े बेहद धीमे स्वर में बोला ।
"कहती है उसका पति बम लेकर प्लेन में जा चढ़ा है । लेकिन वो अभी तक नहीं बता सकी कि किस प्लेन में चढ़ा है । उसका नाम क्या है । अभी तक तो हमें उस औरत का नाम भी नहीं पता ।"
"तुमने औरत से बात की थी ?" वानखेड़े ने सूरज से पूछा ।
"हाँ, मैंने ही... ।"
"उसके हैंडबैग की तलाशी ली ?"
"क्या ?"
"औरत के हैंडबैग की तलाशी ली ?"
"नहीं ! वो हैंडबैग को इस तरह दबोचे बैठी है जैसे उसमें बेहद कीमती चीज हो ।"
"ये काम तो तुम्हें पहले कर लेना चाहिए था ।" वानखेड़े बोला ।
"बोला तो, वो हैंडबैग दबोचे बैठी है । उसने लेने की कोशिश करता तो वो चीखने लगती ।"
"तो उससे तुम कुछ नहीं जान सके ?"
"नहीं ! वो बता पाने की स्थिति में नहीं है । बहुत घबराई हुई है ।"
"और उसे छोड़कर तुम यहाँ आ गए ।"
"कोई काम याद आ गया था । दोबारा उसके पास जाने ही वाला था ।"
"मैं उस औरत से बात करता हूँ ।" वानखेड़े ने प्रकाश भेड़े से कहा ।
"परंतु तुम्हारी ड्यूटी तो कारगो के स्ट्रांग रूम में... ।"
"शाहिद खान वहीं है । मैं औरत से कुछ जानने की कोशिश करता हूँ । तुमने एक बात सोची है भेड़े ?"
"क्या ?"
"अगर वो औरत सही कह रही हो तब क्या होगा ?" वानखेड़े गंभीर था ।
"ऐसा संभव नहीं ।" भेड़े बेचैन हो उठा ।
"क्यों ?"
"इतनी सिक्योरिटी और चेकिंग में से , बिना किसी को दिखे कोई प्लेन में बम नहीं ले जा सकता ।"
"मैंने कहा है अगर ऐसा हो चुका हो तो ?"
प्रकाश भेड़े ने अपने होंठ भींच लिए ।
"तुम इस बात को हल्के में लेकर भारी ग़लती कर रहे हो ।" वानखेड़े ने कहा ।
"मैं इस बात को हल्के में नहीं ले... ।"
"मुझे उस औरत से बात करनी होगी ।" वानखेड़े ने कहा और पलटकर दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
"मैं भी आ रहा हूँ । रुको तो... ।" आगे बढ़ता हुआ भेड़े बोला, "तुम भी आओ सूरज।"
तीनों कमरे से बाहर निकलकर तेजी से आगे बढ़ गए ।
"सर, अगर वास्तव में किसी उड़ते प्लेन के भीतर बम हुआ तो ?" सूरज ने पूछा । ।
"मुझे यकीन नहीं कि ऐसा हो गया होगा ।" भेड़े ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, "अभी ऐसी कोई बात मत कहो ।"
■■■
तीनों उस जगह पर पहुँचे जहाँ सोनिया एक सोफे पर बैठी थी । उसे सिक्योरिटी स्टाफ के तीन आदमी और दो ग्राउंड होस्टेस ने घेर रखा था । उनके पास एयरपोर्ट का डिप्टी कंट्रोलर भी था ।
सोनिया की भूरी आँखें सब पर जा रही थीं । पहले वो काँपती-घबराई-सी चीखे जा रही थी लेकिन अब वो खामोश और सहमी-सी टुकुर-टुकुर सब लोगों को देख रही थी । उसकी चमक से भरी आँखें इस वक़्त बुझी-बुझी-सी दिखाई दे रही थीं ।
"हमने डॉक्टर को बुलाया है ।" एक ग्राउंड होस्टेस, भेड़े से कह उठी ।
"मैं डॉक्टर हूँ ।" वानखेड़े तुरंत बोला, "मैं मैडम को देख लेता हूँ ।" कहते हुए वानखेड़े, खूबसूरत, भयभीत और सहमी हुई सोनिका के पास बैठ गया । हाथ बढ़ाकर सोनिया की कलाई थामी और नब्ज देखने लगा ।
"मैडम किसी जबर्दस्त सदमे का शिकार लगती हैं ।" वानखेड़े ने कहा ।
"इनके लिए कॉफ़ी मँगवाई है ।" दूसरी होस्टेस ने कहा ।
सोनिया ने उदास-सी नजरों से वानखेड़े को देखा ।
"डॉक्टर !" उसकी आवाज टूटी-बिखरी-सी थी ।
वानखेड़े ने नब्ज चेक करके, कलाई की घड़ी पर निगाह मारी फिर गहरी साँस लेकर उठ खड़ा हुआ । उसके चेहरे पर अजीब से भाव या गए थे ।
"डॉक्टर !" सोनिया ने धीमी आवाज में उसे पुकारा ।
"आप फिक्र न करें मैडम ! आप बिलकुल ठीक हो जाएँगी ।" एक ग्राउंड होस्टेस ने सांत्वना दी ।
"क्या बात है वानखेड़े ?" प्रकाश भेड़े ने धीमे से वानखेड़े से पूछा ।
वानखेड़े कुछ कहना चाहता था परंतु वो सोनिया की तरफ पलटकर बोला ।
"आपका नाम क्या है मैडम ?"
सोनिया ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, परंतु कहा कुछ नहीं ।
"आप बम के बारे में बता रही थीं ।" वानखेड़े ने पुनः कहा ।
"ह...हाँ ! व... वो बम लेकर प्लेन में चला गया है । वो सबको मार देगा ।" सोनिया के होंठों से निकला ।
"उसका क्या नाम है ?"
सोनिया का चेहरा सफेद-सा दिखने लगा ।
"उसका नाम क्या था ?"
सोनिया बेचैन दिखने लगी ।
"तुम्हें कैसे पता कि कोई बम लेकर प्लेन में चला गया है ?" वानखेड़े ने पूछा ।
"वो...वो... ।" सोनिया का स्वर काँपा फिर झुरझुरी-सी लेकर वो चुप हो गई ।
"तुम होश में तो हो ?" वानखेड़े ने सोनिया की आँखों में झाँका ।
सोनिया, वानखेड़े को देखती रही ।
"तुम होश में हो तो अपना नाम बताओ ?"
जवाब में सोनिया के होंठ काँप कर रह गए ।
तभी वानखेड़े एक झटके से दबोचे बैठी हैंडबैग को छीन लिया । वानखेड़े को विश्वास था कि इस बात पर वो एतराज उठाएगी । शायद चिल्लाने भी लगे । परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ । वो खामोश-सी वानखेड़े को देखती रही ।
पास खड़े सूरज ने भी चैन की साँस ली उसे खामोश पाकर । वानखेड़े ने उस हैंडबैग को प्रकाश भेड़े की तरफ बढ़ा दिया । भेड़े ने बैग खोला और भीतर का सामान चेक करने लगा ।
वानखेड़े गहरी निगाहों से सोनिया को देख रहा था । सन्नाटा-सा ठहरा रहा कुछ देर ।
हैंडबैग में मिले वोटर कार्ड को देखने के बाद भेड़े ने कहा ।
"इस मैडम का नाम सोनिया भौंसले है । पति का नाम मोहन भौंसले है ।"
"तुम्हारा नाम सोनिया भौंसले है ?" वानखेड़े इस पूछा ।
"हाँ !" सोनिया ने धीमे स्वर में कहा ।
तभी कॉफ़ी आ गई ।
एक होस्टेस ने कॉफ़ी का प्याला सोनिया को दिया । सोनिया के हाथों में कम्पन था ।
प्रकाश भेड़े तुरंत वहाँ से चला गया । सूरज ने वानखेड़े की बाँह पकड़ी और तीन कदम अलग ले जाकर बोला ।
"तुम्हें क्या लग रहा है कि... ।"
उसी पल डिप्टी कंट्रोलर पास आकर व्याकुल स्वर में कह उठा ।
"अगर किसी विमान में उड़ान के समय विस्फोट हो गया तो सोचो कि इसका परिणाम कितना खतरनाक होगा ।"
"जब तक ये पता न चले कि बम किस फ्लाइट में है, हम कुछ नहीं कर सकते ।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा ।
"ये कैसे पता चलें कि किस विमान में बम है ?" सूरज ने पूछा, "ये औरत तो कुछ बता नहीं रही ।"
वानखेड़े वापस सोनिया के पास पहुँचा और ध्यान से उसे देखने लगा ।
सोनिया वास्तव में सौंदर्य की देवी लग रही थी । उसके ऊपरी होंठ पर पसीने की नन्हीं बूँदें चमक रही थीं । उसके माथे पर भी पसीने की चमक थी । परंतु अब उसकी बुझी आँखों में धीरे-धीरे चमक लौटने लगी थी ।
तभी प्रकाश भेड़े वापस आकर बोला ।
"किसी भी फ्लाइट में मोहन भौंसले नाम का पैसेंजर नहीं है ।"
वानखेड़े ने सिर हिलाया और सोनिया से कह उठा ।
"सोनिया मैडम ! ये गंभीर मामला है कि कोई प्लेन में बम लेकर बैठ गया है । कौन है वो ? क्या वो तुम्हारा पति है ?"
सोनिया ने सहमति से सिर हिलाया और चाय का प्याला होस्टेस को थमा दिया ।
"क्या नाम है उनका ?"
"म... मोहन भौंसले ।" सोनिया के होंठों से फीका-सा स्वर निकला ।
"परंतु इस नाम का कोई पैसेंजर किसी फ्लाइट में नहीं है ।"
"व... वो किसी दूसरे नाम से सफर कर रहा है ।" सोनिया ने काँपते स्वर में कहा ।
"किस नाम से ?" वानखेड़े ने पूछा ।
सब की आँखें सोनिया पर थीं । हर कोई उसके होंठों से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए बेचैन था ।
"म... मुझे नहीं म...मालूम ।" सोनिया ने कहा फिर वो फुट-फुटकर रोने लगी ।
वानखेड़े ने परेशान निगाहों से प्रकाश भेड़े को देखा । भेड़े के होंठ भिंचे हुए थे । डिप्टी कंट्रोलर परेशान नजर आ रहा था । सूरज के चेहरे पर खीज के भाव थे ।
"मैडम !" वानखेड़े ने कुछ सख्त स्वर में कहा, "तुम अपनी बातें कहने में बहुत वक़्त ले रही हो । जरा-सी देरी से बहुत कुछ बिगड़ सकता है । आसमान में उड़ते प्लेन में विस्फोट हो सकता है । सैकड़ों लोगों की जानें जा सकती हैं । तुम अपने पति के बारे में बताओ । ये बताओ कि वो कैसे दिखता है ? उसका हुलिया क्या है ?"
सोनिया आँखों से आँसू पोंछ रही थी ।
"मिसेज सोनिया भौंसले !" वानखेड़े का स्वर कुछ और सख्त हुआ, "अपना मुँह खोलो ।"
सोनिया के कंधे झुक गए । आँखों में आँसू अभी भी चमकते दिखाई दे रहे थे । उसने अपनी साँसें जैसे रोक ली हों । उसने सिर उठाया और वानखेड़े को देखने लगी । जैसे वो कुछ कहने वाली हो ।
"आपका कहना है कि आपका पति थोड़ी देर पहले उड़ने वाली किसी फ्लाइट में बम लेकर गया है ।" वानखेड़े बोला ।
"ह... हाँ !" सोनिया के होंठों से निकला ।
"क्यों ?"
"ह... हम दोनों में झगड़ा हो गया था । वो जाते वक्त एक पत्र छोड़ गया है ।" सोनिया सिसकने लगी ।
"कहाँ है वो पत्र ?" वानखेड़े का सख्त स्वर निकला ।
सोनिया ने शिकायत भरी निगाहों से वानखेड़े को देखा कि वो उससे सख्ती से बोल रहा है । फिर सोनिया ने अपने ब्लाउज के ऊपरी हिस्से में हाथ डाला और मुड़ा-तुड़ा कागज बाहर निकाला । इसके साथ ही एक तस्वीर भी नीचे गिर पड़ी ।
वानखेड़े ने तुरंत तस्वीर उठाकर देखी ।
वो एक दुबले-पतले शक्ल का व्यक्तित्व वाला इंसान था जिसमें वो सोनिया के साथ खड़ा था और सोनिया उससे लम्बी दिख रही थी । वो मोहन भौंसले की तस्वीर थी । वानखेड़े ने सोनिया से लेकर पत्र पढ़ा । पत्र में सोनिया से दाम्पत्य जीवन की शिकायतें की गई थीं और हर बात के लिए सोनिया को जिम्मेदार ठहराया गया था । ये भी लिखा था कि वो सोनिया के अय्याशियों से तंग आ चुका है और अब बम लेकर हवाई जहाज में सवार हो रहा है । उस हवाई जहाज को रास्ते में ही बम से उड़ाकर खुद भी मर जायेगा और बाकी मुसाफिरों को भी मार देगा ।
सबने मोहन भौंसले की तस्वीर गौर से देखी ।
सोनिया ने छिपी निगाहों से कलाई में बंधी घड़ी में वक़्त देखा । 6.20 बज रहे थे । इसके साथ ही उसने सोचा कि मोहन का विमान अब दिल्ली एयरपोर्ट से टेकऑफ करने की तैयारी कर रहा होगा ।
"इस तस्वीर में आपका पति है ?"
"हाँ, यही है !" सोनिया धीमे स्वर में बोली ।
"इसे मैं देख चुका हूँ इंस्पेक्टर साहब !" सूरज सोच भरे स्वर में बोला, "कुछ वक्त पहले देखा था । इसके हाथ में काले रंग का ब्रीफकेस भी था ।" सूरज के स्वर में दृढ़ता आ गई । नजरें तस्वीर पर थीं, "मुझे पूरा विश्वास है कि जब मैंने इसे देखा था तो ये कश्मीर जाने वाली फ्लाइट के वक़्त डिपार्चर लाउन्ज से टर्मिनल की तरफ जा रहा था ।"
"हे भगवान !" डिप्टी कंट्रोलर चिहुँक पड़ा, "उस फ्लाइट में तो स्कूल के बच्चे कश्मीर ट्रिप पर जा रहे हैं ।"
"टॉवर किस तरफ है ?" वानखेड़े ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा ।
"सामने राहदारी में बायें घूम जाइये तो... ।"
"जल्दी चलो ।" वानखेड़े ने भेड़े को धक्का दिया, "सूरज, तुम मैडम को भी साथ ले आओ ।"
वानखेड़े जल्दी से भेड़े के साथ आगे बढ़ गया । डिप्टी कंट्रोलर भी साथ था ।
वे सब उस काल ब्रीफकेस के बारे में सोच रहे थे, जिसमें बम हो सकता था । जिसे मोहन भौंसले साथ लेकर टर्मिनल की तरफ जाते देखा गया था ।
"अब क्या होगा ?" डिप्टी कंट्रोलर ने घबराए हुए पूछा, "उड़ते प्लेन में बम फट गया तो... ?"
"हम जो कर सकते हैं, वो जरूर करेंगे ।" प्रकाश भेड़े ने तेज-तेज कदम उठाते हुए कहा।
"मुझे तो लगता है वो ऑफिसर(सूरज) ग़लत कह रहा होगा कि उसने फोटो वाले को पहचान लिया है ।"
"इंस्पेक्टर सूरज कभी भी ज्यादा नहीं बोलता ।" भेड़े ने कहा ।
"क्या मतलब ?"
"सूरज जो कहता है, उस पर हमें हर हाल में गंभीरता से सोचना है । वो तभी कुछ कहता है, जब उसे भरोसा होता है । उसने तस्वीर देखकर कहा है कि इस आदमी को काला ब्रीफकेस थामे, डिपार्चर लाउन्ज से टर्मिनल की तरफ जाते देखा है ।"
"तुम्हें ऑफिसर की बातों पर यकीन है ?"
"पूरी तरह । वैसे भी हमारे पास और कुछ करने को नहीं है इस वक़्त ।" भेड़े ने तेज-तेज कदम उठाते हुए कहा ।
"हमें अपना पूरा ध्यान कश्मीरन जाने वाली उस फ्लाइट पर लगाना होगा ।" वानखेड़े ने कहा ।
"अगर वो किसी अन्य फ्लाइट में सवार हुआ है बम लेकर तो ?" डिप्टी कंट्रोलर ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा ।
"हमारे पास जो जानकारी है, हम उस पर ही काम करेंगे । तुम कोशिश करो कि उस औरत से कोई नई जानकारी ला सको ।"
"म... मैं कैसे जानकारी ला सकता हूँ ? उस औरत के पास जो कुछ भी बताने को था, उसने बता दिया । ये तो अच्छा हुआ कि उसके पास अपने पति की तस्वीर भी है । परंतु उस ऑफिसर ने उसे सही पहचाना है कि नहीं, ये पता नहीं ।"
"अब तक जो हमारे सामने है, हम उसी आधार पर आगे बढ़ेंगे ।" वानखेड़े बोला ।
"मैं तो सोच-सोचकर काँप रहा हूँ कि अगर हवा में, विमान में विस्फोट हो गया तो... तो... हे भगवान !"
"हम ऐसा नहीं होने देंगे ।" वानखेड़े दाँत भींचकर गुर्रा उठा ।
वो तीनों कंट्रोल टॉवर में जा पहुँचे ।
कंट्रोल टॉवर की दीवार पर एक बड़ा-सा वॉल क्लॉक लगा हुआ था । करीब ही इलेक्ट्रिक बोर्ड पर सारी उड़ानों का वर्णन अंग्रेजी अक्षरों में चमक रहा था । घड़ी की सुईयाँ निरंतर घूम रही थीं । वानखेड़े महसूस कर रहा था कि आने वाला वक़्त बेहद महत्वपूर्ण, खतरनाक और दहशत भरा हो सकता है ।
तभी स्टेशन ग्राउंड होस्टेस तुरंत उनके पास पहुँचता हुआ बोला ।
"क्या बात है ?"
"श्रीनगर जाने वाली फ्लाइट में ठिगने कद का एक आदमी है । नाम उसका पता नहीं, परंतु ये तस्वीर वाला व्यक्ति है ।" कहने के साथ ही वानखड़े ने उसे मोहन भौंसले की तस्वीर दिखाई, "अब तक कि खबर के मुताबिक उसके पास बम है ।"
"क्या ?" वो काँप उठा, "प्लेन में बम ?"
"बम ही नहीं, वो प्लेन को उड़ाने का इरादा रखता है ।"
"क्या ?" उसका मुँह खुला का खुला रह गया ।
"हैरान होना छोड़ो, मेरी बात सुनो । हमने पता लगाया है कि उस आदमी का नाम मोहन भौंसले है, जबकि वो किसी दूसरे नाम से सफर कर रहा है । मुझे इस वक़्त प्लेन की स्थिति बताओ कि वो कहाँ पर है ?"
"वो प्लेन... ।" कहते हुए उसकी निगाह इलेक्ट्रिक बोर्ड पर जा टिकी और फिर तुरंत ही बोला, "दस मिनट पहले उस प्लेन ने दिल्ली से दोबारा उड़ान भरी है श्रीनगर के लिए । इस वक़्त वो प्लेन हवा में है । उसमें बम है, ओह... !"
"हमें तुरंत पायलट से बात करनी होगी ।" डिप्टी कंट्रोलर ने कहा ।
"उसके पास काला ब्रीफकेस है । उसी में बम होगा ।" वानखेड़े होंठ भींचकर बोला, "क्या मैं पायलट से बात कर सकता हूँ ?"
"तुम... ।" स्टेशन ग्राउंड कंट्रोलर होस्टेस ने कुछ कहना चाहा ।
"बेशक, तुम करो !" डिप्टी कंट्रोलर बोला, "परंतु तुम उससे क्या बात करोगे ?"
"तुम सुन लेना । वक़्त बर्बाद मत करो । हमारा एक-एक मिनट कीमती है । मुम्बई से दिल्ली तक के रास्ते में उसने प्लेन को नहीं उड़ाया परंतु अब दिल्ली से श्रीनगर के रास्ते पर प्लेन को उड़ा देगा । अब तो प्लेन में और भी ज्यादा यात्री होंगे । दिल्ली से प्लेन में और भी पैसेंजर चढ़े होंगे । जल्दी करो... ।"
तभी सोनिया की आवाज कानों में पड़ी । वो पलटे तो पीछे सोनिया, सूरज के साथ खड़ी थी ।
"मेरी एक बात मानेंगे ?" सोनिया ने भर्राए स्वर में पूछा ।
"जल्दी कहो !" भेड़े ने कठोर निगाहों से उसे देखा ।
"आप इस तरह नाराजगी से मुझसे बात मत कीजिये ।" सोनिया ने थके स्वर में कहा, "मैं जानती हूँ कि आप परेशान हैं लेकिन इस वक़्त मैं आपसे ज्यादा परेशान हूँ । मेरा पति मेरे से नाराज होकर इतना ग़लत कदम उठा... ।"
"कहिए, आप क्या कहना चाहती हैं ?" वानखेड़े ने शांत स्वर में कहा ।
सोनिया ने घबराए अंदाज में सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा ।
"मोहन बहुत जिद्दी है । वो जो करने की सोच लेता है, करके ही रहता है । वो किसी की बात नहीं मानेगा । अगर मेरी उससे बात हो जाए तो मैं उसे सम्भाल सकती हूँ । वो मेरी बात जरूर मान लेगा और पीछे हट जाएगा अपने इरादे से ।"
"तुमसे ही तो वो नाराज है । तुम्हारी बात क्यों मानेगा ?"
"आप समझते नहीं इंस्पेक्टर साहब ! हम पति-पत्नी हैं । मेरे से जो भी ग़लती हुई, वो जुदा बात है । मुझे पूरा विश्वास है कि मैं ही उसे रोक सकती हूँ । वरना वो प्लेन उड़ा देगा । मुझे उससे बात कर लेने दीजिए ।" सोनिया के स्वर में आग्रह था ।
वानखेड़े के चेहरे पर सोच के भाव उभरे, फिर बोला ।
"पहले हम अपनी कोशिश करेंगे । इतनी बड़ी बात तुम पर छोड़कर, हम लापरवाह नहीं हो सकते । सूरज !"
"जी सर !"
"मैडम के साथ एक तरफ बैठ जाओ । मैडम की जरूरतों का ध्यान रखो ।" वानखेड़े ने कहा ।
"समझ गया सर !" सूरज सतर्क स्वर में बोला ।
तभी इंस्पेक्टर प्रकाश भेड़े कह उठा ।
"एक मिनट । मुझे कुछ याद आ रहा है वानखेड़े । मोहन भौंसले । ये नाम अचानक ही जाना-पहचाना-सा लगने लगा है । मुझे लगता है कि मैं कई साल पहले मैं मोहन भौंसले को बम बनाने के जुर्म में पकड़ चुका हूँ ।"
"पक्की बात ?"
"मेरे ख्याल में ये पक्की बात ही है । मोहन भौंसले पर बम बनाने का केस चला था । परंतु आखिरकार कानून से ये छूट गया था । इसके खिलाफ ये साबित नहीं हो सका था कि ये बम बना रहा था । हाँ, तस्वीर का चेहरा मुझे अच्छी तरह याद आ गया है । मैं ग़लती नहीं कर रहा । वही ठिगना कद । मोहन भौंसले नाम है इसका । यही है ।" भेड़े ने दृढ़ स्वर में कहा।
वानखेड़े ने सोनिया को देखकर कहा ।
"तुम्हें पता है कि मोहन भौंसले बम बना लेता था ?"
"म... मुझे नहीं पता ।" सोनिया ने काँपते स्वर में कहा, "मैंने तीन साल पहले मोहन भौंसले से शादी की थी । मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं देखा-सुना । हो सकता है ये बात मेरी शादी की हो ।"
"तुमने उसे किसी काम में उलझे देखा भी नहीं ?"
सोनिया के चेहरे पर सोच के भाव उभरे । फिर गहरी साँस लेकर कह उठी ।
"पिछले आठ-दस दिनों से उसने अपने को कमरे में बन्द रखा था । वो कमरे में किसी को नहीं आने देता था । बाहर जाता था तो कमरे को बन्द करके जाता था । मुझे नहीं पता वो कमरे में क्या करता रहता था ।"
वानखेड़े ने भेड़े को देखकर गंभीर स्वर में कहा ।
"तुम्हारी बात सही हो सकती है भेड़े कि वो बम बनाना जानता है ।"
"मैंने सही कहा है । मैं उसे पहचान चुका हूँ । ये वही मोहन भौंसले है, जिसे मैंने एक बार बम बनाते हुए पकड़ा... ।"
"जल्दी करो, तुम लोग बातों में क्या वक़्त खराब कर रहे हो ।" डिप्टी कंट्रोलर गुस्से से कह उठा, "उस प्लेन में बच्चे हैं स्कूल के जो कश्मीर में ट्रिप पर गए हैं ।" डिप्टी कंट्रोलर की निगाह इनफार्मेशन बोर्ड और क्लॉक पर जमी हुई थी, "दिल्ली से चला प्लेन बीस मिनट का सफर कर चुका है । एक घण्टा दस मिनट में वो श्रीनगर पहुँचेगा और वो उससे पहले ही प्लेन को उड़ा देगा । हमें तुरंत ही उस प्लेन के पायलट से बात करनी होगी । अगर प्लेन आसमान में फट गया तो एक भी पैसेंजर जिंदा नहीं बचेगा । उस प्लेन के पायलट से मैं बात करूँगा । तुम नहीं । मुझे ही बात करनी होगी ।" कहकर वो भीतर की तरफ तेजी से चला गया ।
वानखेड़े ने उसके पीछे जाना चाहा कि भेड़े ने उसे रोका ।
"ये उसकी ड्यूटी है । वो जानता है कि ऐसे मौके पर उसे क्या करना है ।"
"हमें ये भी नहीं पता कि वो किस तरह का बम लेकर प्लेन में सवार हो गया है ।" वानखेड़े के चेहरे पर चिंता थी ।
"उस प्लेन में करीब पचास बच्चे सवार हैं ।" भेड़े ने होंठ भींच लिए, "उसका क्या होगा ?"
घड़ी की सुईयाँ हिलती रहीं । वक़्त गुजरता रहा । पाँच मिनट बीते फिर आठ मिनट बीत गए ।
वानखेड़े ने सोनिया को देखा जो पचास कदम दूर सूरज के साथ खड़ी थी ।
"सब मेरा कसूर है ।" सोनिया कमजोर स्वर में कह उठी, "अगर मैं मोहन से धोखेबाजी न करती तो वो ये सब नहीं करता । अगर मोहन ने प्लेन उड़ा दिया तो मैं... मैं अपनी जान दे दूँगी । सब मेरी ही वजह से हो रहा है ।"
"सूरज इसे लॉबी में ले जाओ । हम वहीं आते हैं ।"
सूरज, सोनिया को लिए वहाँ से चला गया ।
"आओ, हम भी भीतर चलते हैं ।" कहकर वानखेड़े ने दरवाजे की तरफ कदम बढ़ाए ।
तभी दरवाजा खुला और डिप्टी कंट्रोलर के साथ ट्रैफिक कंट्रोलर भी था । दोनों के चेहरे पर पसीने की नन्ही बूँदें चमक रही थीं । वानखेड़े ने ठिठककर उन्हें देखा ।
"पायलट से बात हुई है । उसे सब समझा दिया है । उसे मोहन भौंसले का हुलिया बता दिया है । उसने दस मिनट का वक़्त माँगा है । हम दस मिनट बाद पायलट से फिर बात करेंगे।"
■■■
प्लेन के सीनियर पायलट विवेक मल्होत्रा के चेहरे पर घबराहट नाच रही थी । अभी-अभी उसकी मुम्बई कंट्रोल से बात हुई थी कि प्लेन में बम है । मोहन भौंसले का हुलिए भी उसे बताया दिया था । प्लेन को सह-पायलट के हवाले करके, वो प्लेन में बैठे पैसेंजर की तरफ चक्कर लगाकर, मोहन भौंसले को हुलिये के आधार पर पहचान भी चुका था । इस बात को चार मिनट बीत चुके थे । वो इसी चिंता में था कि बम फट जाए । मोहन भौंसले को उसने निश्चिन्त बैठे देखा था । वक़्त कम था और पायलट को तुरंत फैसला लेना था ।
"सुनो ।" विवेक मल्होत्रा ने केबिन क्रू के सदस्यों को सारे हालात बता दिए थे । उन सबके चेहरे फक्क थे, "मोहन भौंसले नाम के आदमी के पास काला ब्रीफकेस है । उसी में बम है । तुम में से कोई एक जाए और वहाँ वो ठिगना आदमी बैठा है, उसके ऊपर की बैग रखने की जगह को या उसकी उल्टी तरफ वाली जगह को चेक करो और काला ब्रीफकेस ढूँढो । उसे शक नहीं होना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं । उसे यही लगे कि हम रूटीन के अपने किसी काम में व्यस्त हैं ।"
प्लेन में केबिन क्रू के चार सदस्य थे ।
"अगर वो काला ब्रीफकेस हमें मिल जाता है तो उसका हम क्या करेंगे ?" सीनियर होस्टेस ने पूछा ।
"उस ब्रीफकेस को खोलने या भीतर झाँकने की हिम्मत हम नहीं कर सकते ।" पायलट ने कहा, "कोई और खतरा मोल न लेते हुए किसी तरह उस ब्रीफकेस को प्लेन से बाहर फेंकना होगा । तुरंत जल्दी जाकर देखो ।"
वही सीनियर होस्टेस पर्दा हटाकर प्लेन की यात्रियों की तरफ बढ़ गई । पायलट और बाकी तीनों क्रू व्याकुलता से खड़े रहे । क्रू के मेम्बरों में दो लड़के और दो लड़कियाँ थीं ।
तीन मिनट बाद सीनियर होस्टेस लौट आयी ।
उसने बताया कि वहाँ कोई भी काला ब्रिफकेस नहीं है ।
"हमें ट्रैफिक कंट्रोल से खबर मिली है कि उसके पास काले ब्रीफकेस में बम है ।" पायलट चिंता भरे स्वर में बोला ।
"मैंने अच्छी तरह देखा है सर ।" सीनियर होस्टेस ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
"हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है ।" पायलट ने फ्लाइंग स्टीवड युवक से कहा, "तुम उसे बहाने से यहाँ ले आओ ।"
"ज... जी ।"
"उसका नाम मोहन भौंसले है । समझदारी से काम लेना । ऐसा कुछ न हो कि यात्री डरें।"
"यस सर !" वो फ्लाइंग स्टीवड तुरंत पर्दा हटाकर यात्रियों की तरफ बढ़ गया ।
मोहन भौंसले दोनों तरफ की सीटों के बीच के पास किनारे वाली सीट पर बैठा था ।
"सर !" क्रू का वो सदस्य उसके करीब पहुँचकर झुकते हुए धीमे स्वर में बोला, "आप जरा एक मिनट मेरे साथ आयेंगे ?"
"मैं ?' मोहन भौंसले ने उसकी तरफ देखा ।
"यस सर ! आपका नाम मोहन भौंसले है न ?" क्रू युवक ने पूछा ।
मोहन भौंसले के चेहरे पर मुस्कान फैल गई । शांत और मीठी मुस्कान ।
"प्लीज सर !" युवक ने पुनः कहा ।
"पूछोगे नहीं कि मैं मुस्कुराया क्यों ?"
"क्यों सर ?"
"क्योंकि मैं किसी दूसरे नाम से इस प्लेन में सफर पर रहा हूँ । कोई नहीं जानता कि मैं मोहन भौंसले हूँ परंतु तुम्हें कैसे पता ?" मोहन भौंसले के चेहरे पर बराबर मुस्कान छाई हुई थी ।
युवक से कुछ कहते न बना ।
तभी मोहन भौंसले उठते हुए बोला ।
"चलो । मैं ये भी नहीं पूछता कि काम क्या है । वो तो पता चल ही जायेगा ।"
क्रू युवक, मोहन भौंसले को लेकर सामने के पर्दे के पीछे खड़े पायलट और अन्य क्रू मेम्बरों के पास पहुँचा । सबके चेहरों पर हवाइयाँ उड़ी जा रही थी । मोहन भौंसले के चेहरे पर मुस्कान नाच रही थी ।
"हेलो !" पायलट ने फौरन कहा, "मिस्टर मोहन भौंसले, मैं इस विमान का पायलट हूँ । मुझे अभी-अभी मुम्बई कंट्रोल से बताया गया है कि आप विमान में बम के साथ सफर कर रहे हैं ।"
मोहन भौंसले मुस्कुराता रहा । उन्हें देखता रहा ।
"आपके पास काले ब्रीफकेस में बम है । परंतु वो ब्रीफकेस हमें नहीं मिला ।" पायलट ने अपनी आवाज को संभालते हुए कहा, "हम आपसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट करते हैं कि प्लेन में धमाका न करें । करीब डेढ़ सौ पैसेंजर विमान में हैं । पचास तो बच्चे हैं स्कूल के । इतने लोगों की जान लेकर आपको क्या मिलेगा ? ऐसा मत कीजिये और बम को बेकार कर दीजिए । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कानून आपको बहुत कम सजा देगा । वो काला ब्रीफकेस कहाँ पर है मिस्टर भौंसले ?"
"तुम क्या सोचते हो, मैं बता दूँगा ?" मोहन भौंसले एकाएक गम्भीर दिखने लगा ।
"बात को समझो । तुम्हें इतने लोगों की जान लेने का कोई हक नहीं है ।" पायलट ने समझाने वाले स्वर में कहा ।
"मुझे हर बात का हक है ।"
"ऐसा मत कहो । तुम इतने लोगों की जान के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते ।"
"मैं सब कुछ कर सकता हूँ ।" मोहन भौंसले गंभीर दिख रहा था ।
"किसी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? आखिर तुम चाहते क्या हो ?"
"मैं अपनी जान दे देना चाहता हूँ ।"
"वो तो तुम किसी और ढंग से भी दे सकते हो । दूसरे लोगों की जान क्यों... ?"
"मैं इस तरह मरना चाहता हूँ कि लोग मोहन भौंसले को याद रखें ।" मोहन भौंसले ने कड़वे स्वर में कहा, "मैं... ।"
"आखिर तुम्हारी कोई माँग तो होगी ?"
"मेरी कोई माँग नहीं है । मैं अपनी पत्नी के हाथों सताया हुआ इंसान हूँ ।"
"क्या मतलब ?"
तभी सह-पायलट वहाँ पहुँचकर बोला ।
"सर, डिप्टी कंट्रोलर आपसे बात करना... ।"
"उनसे कहो कि अभी मैं मोहन भौंसले से बात कर रहा हूँ ।" पायलट बोला ।
"वो जानना चाहते हैं कि बम मिला कि नहीं ?"
"नहीं मिला । कह दो । मैं कुछ देर में उनसे बात करूँगा ।"
सह-पायलट चला गया ।
"क्या किया है तुम्हारी पत्नी ने ?" पायलट ने पूछा ।
"दगाबाजी । वो कमीनी दूसरों के साथ मजा करती फिर रही है । जब ये पता लगा तो मैं गुस्से से भर गया ।"
"तुम बेवकूफ हो जो मामूली बात के लिए अपनी जान गवां रहे हो ।" पायलट तेज स्वर में बोला, "अपनी जान क्यों देते हो ? तुम्हारी सामने इतनी लम्बी जिंदगी है । नई शादी कर लो । इस तरह मर जाओगे तो वो खुलकर सब कुछ करने लगेगी ।"
"तुम क्या जानो दगाबाजी का दर्द क्या होता है ।" मोहन भौंसले ने गहरी साँस ली, "तुम शादीशुदा हो ?"
"हाँ ! दो बच्चे हैं मेरे ।"
"और तुम्हें पता चले कि जब तुम ड्यूटी पर होते हो तो पीछे से तुम्हारी पत्नी किसी और के साथ... ।"
"बकवास मत करो ।" पायलट ने दाँत भिंच लिए ।
"आ गया गुस्सा ।" मोहन भौंसले गंभीर था, "इसी तरह मुझे भी गुस्सा आया है । मेरी पत्नी घटिया औरत है । कभी वो बियर बार में काम करती थी । पर मैंने तरस खाकर उससे शादी कर ली । बाद में उसे लगा कि वो ज्यादा खूबसूरत है और मैं उसकी बराबरी का नहीं । साली ने अपनी औकात न देखी कि वो क्या थी ? दो बार पुलिस रेड में पकड़ी जा चुकी थी। उससे शादी करके मैंने उसका जीवन सँवार दिया और उसने मुझे बर्बाद कर... ।"
"तो उसे सजा दो । अपने को सजा क्यों दे रहे हो ? बेगुनाह लोगों की जान क्यों ले लेना चाहते हो ? अच्छे इंसान लगते हो तुम । ऐसा ग़लत काम मत करो । मुझे बताओ वो काला ब्रीफकेस कहाँ है ?"
"तुम मुझसे कुछ नहीं जान सकते । ये प्लेन कभी भी श्रीनगर नहीं पहुँच पाएगा । बीच में ही बम फटेगा और... ।"
"ऐसा मत कहो ।" सीनियर होस्टेस(आई०एफ०एम०) घबराकर कह उठी, "हम इस तरह नहीं मरना चाहते । उस बम को फटने से रोक लो । तुम जो कहोगे हम सब करने को तैयार हैं । तुम अपना इरादा बद ल लो । ये बुरी बात है ।"
"तुम्हें अपनी पत्नी से नाराजगी है तो... ।" पायलट ने कहना चाहा ।
"मुझे अपने से सबसे बड़ी नाराजगी ये है कि मैं सोनिया से प्यार करता हूँ ।" मोहन भौंसले ने गंभीर स्वर में कहा, "मैंने अपने से कई बार पूछा कि ऐसी घटिया औरत से मैंने प्यार क्यों किया, लेकिन इस बात का जवाब मैं खुद को नहीं दे सका । वो खूबसूरत औरत है, कोई शक नहीं । शायद इसी कारण मैंने उससे प्यार किया... ।"
"तुम बातों में वक़्त खराब कर रहे हो । उस बम को बन्द करो, नहीं तो विमान में ब्लास्ट हो जाएगा ।"
"ब्लास्ट ही तो करना है । यही मेरा बदला होगा सोनिया से ।" मोहन भौंसले खतरनाक स्वर में कह उठा ।
■■■
सूरज, सोनिया को वापस खुले लाउन्ज में ले गया था । वहीं दोनों ग्राउंड होस्टेस मौजूद थीं । सोनिया सोफे पर जा बैठी थी । तभी वानखेड़े और इंस्पेक्टर प्रकाश भेड़े भी वहाँ आ पहुँचे ।
"प्लेन के पायलट से बात हुई ?" सूरज ने पूछा ।
"डिप्टी कंट्रोलर साहब विमान से बातचीत कर रहे हैं ।" प्रकाश भेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा । वो व्याकुल नजर आ रहा था और यही सोच रहा था कि अगर प्लेन में बम ब्लास्ट हो गया तो ये दिल दहला देने वाली घटना हो जाएगी ।
"क्या सोच रहे हो ?" वानखेड़े ने भेड़े से पूछा ।
"मैं क्या सोचूँ, कुछ समझ में नहीं आता । इतना ही कि अगर उस प्लेन में बम फटा तो क्या होगा ? सब कुछ खत्म हो जाएगा । प्लेन में मौजूद कोई भी इंसान जिंदा नहीं बचने वाला ।" भेड़े कह उठा ।
"परंतु मैं कुछ और ही... ।" कहते-कहते वानखेड़े ठिठका ।
उसने सोनिया को देखा जो होस्टेस को बाथरूम जाने का इशारा कर रही थी ।
"स्योर मैडम !" होस्टेस के शब्द कानों में पड़े, "सामने जीना उतरकर बाईं तरफ वाली कतार लेडीज के लिए है । चलिए, मैं आपके साथ चलती हूँ ।"
सोनिया ने वानखेड़े और भेड़े को देखा फिर होस्टेस के साथ चली गई ।
वानखेड़े की निगाह सोनिया पर थी ।
"साठ मिनट बचे हैं ।" इंस्पेक्टर भेड़े ने कहा, "प्लेन श्रीनगर एयरपोर्ट पर लैंड कर जाएगा ।"
"सलामत रहा तो लैंड करेगा ।" वानखेड़े गंभीर स्वर में बोला, "मैं अभी आया ।"
"कहाँ जा रहे... ।"
"यहीं रहो, दो मिनट में वापस लौटा ।" कहकर वानखेड़े उसी तरफ बढ़ गया जिधर होस्टेस और सोनिया गई थीं ।
सोनिया, होस्टेस के साथ आगे बढ़ी जा रही थी । अन्य लोगों का भी आना-जाना हो रहा था । शाम हो चुकी थी । एयरपोर्ट पर पर्याप्त रौनक थी । वानखेड़े, सोनिया का पीछा कर रहा था । इस बात का ध्यान रख रहा था कि सोनिया को पीछा होने का पता न चल सके । चंद पलों के बाद उसने महसूस किया कि सोनिया लेडीज बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ रही है तो वो एक थम्ब की ओट में हो गया । नजरें सोनिया पर थीं । होस्टेस उसे बाथरूम का दरवाजा दूर से ही दिखाकर वापस लौट गई थी । वानखेड़े की निगाह सोनिया पर ही टिकी थी ।
अगले ही पल वानखेड़े की आँखें सिकुड़ीं ।
सोनिया बाथरूम में न जाकर, उस दरवाजे के आगे निकल गई थी । आगे का रास्ता ग्राउंड पार्किंग की ओर जाता था । आगे सीढ़ियाँ थीं । वो सीढ़ियाँ उतरने लगी । वानखेड़े ने अपनी जगह छोड़ी और सावधानी से सोनिया की तरफ बढ़ा ।
उसी पल सोनिया आखिरी सीढ़ी पर जा रुकी । वानखेड़े तुरंत एक थम्ब के पीछे ओट में हो गया । नजरें सोनिया पर ही टिकी थीं
तभी वानखेड़े को अपने पीछे किसी के आ जाने का एहसास हुआ । वो तेजी से पलटा। अगले ही पल गहरी साँस ली ।
पीछे आने वाला प्रकाश भेड़े था जो कि गंभीरता से उसे देख रहा था ।
"क्या देख रहे... ?"
"अभी चुप रहो ।" वानखेड़े ने कहा और सोनिया पर नजरें टिका दी ।
दोनों थम्ब की आड़ में थे । भेड़े भी सोनिया को देखने लगा था ।
सोनिया इस वक़्त अपने हाथों से बालों को सँवार रही थी । फिर सोनिया ने अंगड़ाई लेने वाले ढंग में अपने दोनों हाथ ऊपर उठाए । तभी वानखेड़े की निगाह सोनिया के सामने नजर आ रही पब्लिक बूथों की लाइन की तरफ उठ गई । फिर उसकी आँखें सिकुड़ीं और एकाएक वो हौरान-सा दिखा ।
उसी पल सोनिया पलटी और वापस आने लगी ।
वानखेड़े और भेड़े थम्ब की ओट में सतर्कता से छिपे रहे । वानखेड़े जैसे-तैसे अभी भी सोनिया पर नजर रखे हुए था । उसने सोनिया को लेडीज वाश रूम के सामने रुकते, हिचकते फिर भीतर प्रवेश करते देखा ।
"ये सब क्या है ?" भेड़े कह उठा ।
वानखेड़े ने बिना कुछ कहे नजरें दूसरी तरफ घुमाईं तो ग्राउंड होस्टेस को इधर ही देखते पाया । वानखेड़े ने हाथ के इशारे से उसे पास आने को कहा । होस्टेस पास आई तो वानखेड़े ने कहा ।
"सोनिया भौंसले वहाँ, भीतर है । तुम भी भीतर जाओ और उसका हैंडबैग लेने की कोशिश करो । तुम्हें हर हाल में उसका हैंडबैग हासिल करना है । इस तरह कि वो तुम्हें देख न सके ।"
"लेकिन तुम करना क्या चाहते... ?" भेड़े ने पूछना चाहा ।
"ज्यादा सवाल मत करो ।" वानखेड़े ने सख्त स्वर में कहा, "सदमे और दुख को भाव प्रकट करने में, सोनिया भौंसले ने कमाल की एक्टिंग की थी । न तो उसे दुख है, न ही वो सदमे में है ।"
भेड़े और होस्टेस के चेहरे पर हैरानी उभरी ।
"सोनिया जबर्दस्त एक्टिंग कर रही है । लेकिन वो ऐसा क्यों कर रही है, ये समझ के बाहर है ।" वानखेड़े बोला ।
"तुम्हें अपनी बात पर यकीन है ?"
"अच्छी तरह ।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा, "जब मैंने उसकी नब्ज पर उंगलियाँ रखी तो नब्ज किसी स्वस्थ इंसान की तरह नॉर्मल चल रही थी । जबकि देखने में वह थर-थर काँप रही थी जैसे उसे सर्दी लग रही हो । । लेकिन उसका शरीर ठंडा नहीं था । वो प्लेन में बम होने का ड्रामा कर रही है ।"
"तुम्हारा मतलब है कि वो हमें बेवकूफ बना रही है ऐसा कहकर ?"
"हाँ !"
"वो ऐसा क्यों करेगी ?"
"मैंने पहले ही कहा है कि मैं नहीं जानता कि किस वजह के तहत वो ऐसा कर रही है । लेकिन प्लेन की लैंडिंग से पहले इस बात का जवाब मिलना बहुत जरूरी है । वक़्त खराब न करो, उसका हैंडबैग... ।"
"जाओ रोमा । इंस्पेक्टर वानखेड़े जो कह रहा है, वैसा ही करो ।"
रोमा नाम की होस्टेस फौरन चली गई ।
"प्लेन की यात्रियों में कोई वीआईपी नेता या अभिनेता तो नहीं है ।" वानखेड़े ने पूछा ।
"ऐसा कुछ नहीं है । सब साधारण लोग हैं । पचास स्कूली बच्चे अवश्य फ्लाइट में मौजूद हैं ।"
"तो फिर सोनिया भौंसले आखिर चाहती क्या है ?" वानखेड़े ने सोच भरे स्वर में कहा, "क्या स्कीम बनाकर आई है वो ? अभी तक इस मामले में तीन लोग सामने आए हैं ।"
"तीन शख्स ?" भेड़े ने वानखेड़े को देखा, "लेकिन हमारे सामने तो सोनिया ही... ।"
"दूसरा वो जो प्लेन में है । सोनिया का पति मोहन भौंसले ।"
"और तीसरा ?"
"वो उधर बूथ में था ।"
"फोन बूथ... ?" भेड़े की निगाह सीढ़ियों के पार फोन बूथ की तरफ उठी ।
"सोनिया तब आखिरी सीढ़ी पर खड़ी थी । जब उसने अंगड़ाई की थी, तब एक बूथ में, एक आदमी मौजूद सोनिया को ही देख रहा था । अंगड़ाई लेते ही उसने सिर हिलाया और रिसीवर उठाकर नम्बर मिलाने लगा था ।"
"तीसरा कौन हुआ ?"
"तीसरा वो जिसे फोन बूथ वाले ने फोन किया ।"
"मतलब की चौथी सोनिया है ?"
"हाँ !"
"तुमने तभी क्यों नहीं कहा ? फोन बूथ वाले को हम आसानी से पकड़... ।"
"तब तो सारा खेल खराब हो जाता । हम सोनिया का भी मुँह खुलवा सकते हैं । परंतु अभी हमारे पास समय बाकी है और मैं जान लेना चाहता हूँ कि ये सब क्यों किया जा रहा है?"
"तुम्हारा ख्याल है कि प्लेन में बम नहीं है ?"
"मेरे ख्याल में कोई बम नहीं, क्योंकि वो सिर्फ ख्याल है ।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा, "परंतु ये बात पक्की है कि सोनिया नाम की ये औरत कोई खेल खेल रही है । इन बातों के पीछे इनकी कोई चाल है । हो सकता है कि बम की बात का ड्रामा एयरपोर्ट पर खलबली मचाने के लिए किया जा रहा हो । इनका असली मकसद कुछ और हो ।"
"तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आ रही है कि... ।"
"संभावना है कि मेरा दिमाग शायद कुछ बात पकड़ रहा है, लेकिन मैं कुछ ज़्यादा ही सोच रहा... ।"
"क्या सोचा है तुमने ?"
"रहने दो । मैंने कहा न, मैं सोचने में कुछ ज़्यादा ही आगे बढ़ गया हूँ ।" वानखेड़े ने सिर हिलाया, "इस वक़्त मेरी ड्यूटी सामने वाली कारगो की इमारत के बाहरी हिस्से में मौजूद वाल्ट पर है । मुझे विभाग की तरफ से बताया गया है कि उसमें पाँच सौ करोड़ का सोना रखा गया है जो कि कल दोपहर तक वहाँ रहेगा । यूँ ही मेरे दिमाग में आ गया कि कहीं कोई लोग उस पर हाथ डालने की चेष्टा में तो नहीं हैं । लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सकता । सेफ्टी वाल्ट पर सख्त पहरा है । ये एयरपोर्ट जैसा एरिया है । कोई बेवकूफ ही गोल्ड लूटने की सोचेगा ।"
"सेफ्टी वाल्ट में पाँच सौ करोड़ का सोना रखा हुआ है ।" इंस्पेक्टर प्रकाश भेड़े ने सोच भरे स्वर में कहा ।
"हाँ !"
"जो लोग पुलिस और एयरपोर्ट ऑथोरिटी का ध्यान बंटाने के लिए यात्रियों से भरे प्लेन में बम रखवा सकते हैं, जो एयरपोर्ट पर हड़कंप मचा सकते हैं, ये कहकर कि प्लेन में बम है, वो कुछ भी कर सकते हैं ।" भेड़े बोला ।
वानखेड़े ने भेड़े को गहरी निगाहों से देखा ।
"तुम तो मेरे से भी ज्यादा सोचने लगे । गोल्ड को नहीं लूटा जा सकता भेड़े ।" वानखेड़े ने कहा ।
"इस वक़्त के हालात देखकर कह सकता हूँ कि एयरपोर्ट पर कभी भी, कुछ भी हो सकता है ।"
"तुम्हारा मतलब कि सोनिया इतनी बड़ी साजिश रच सकती है ?"
"पता नहीं !" एकाएक भेड़े ने गहरी साँस ली, "लेकिन अब वो मुझे चालाक लगने लगी है । परंतु वो साजिश की सरगना नहीं हो सकती । बल्कि साजिश पर काम करने वाली टीम की मेम्बर हो सकती है ।"
"तुम सच में बहुत तेजी से सोच रहे हो । परंतु हमारा इतनी जल्दी नतीजे पर पहुँच जाना ठीक नहीं । दस गनमैन इस वक़्त वाल्ट की हिफ़ाजत कर रहे हैं । जगह-जगह सिक्योरिटी है । परिंदा भी पर नहीं मार सकता । अगर कोई पर मारने के फिराक में है तो मरेगा ।" वानखेड़े के होंठ भिंच गए, "लेकिन ऐसा कुछ नहीं होने वाला । मैं... ।"
कहते-कहते वानखेड़े ठिठका । उसने रोमा नाम की होस्टेस को सोनिया के हैंडबैग के साथ आते देख लिया था ।
रोमा पास आई । वानखेड़े ने उससे हैंडबैग लिया और बीच में से सोनिया का पहचान-पत्र निकाला । उसका पता पढ़ने के बाद मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा । चेहरे पर गंभीरता थी । पास खड़ा इंस्पेक्टर भेड़े कह उठा ।
"किस चक्कर में हो ?"
"जो काम पहले ही कर लेना चाहिए था, वो अब करने जा रहा हूँ ।" वानखेड़े ने फोन कान से लगाया ।
"कौन-सा काम ?"
वानखेड़े खामोश रहा कि तभी फोन द्वारा उसके कानों में युवती की आवाज पड़ी ।
"हेलो !" आवाज में नींद भरी थी ।
"मुक्ता !" वानखेड़े ने कहा, "इस वक़्त कहाँ हो तुम ?"
"ओह सर !" सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले की आवाज में अब सतर्कता थी, "मैं घर पर नींद में हूँ । चौबीस घण्टे की ड्यूटी के बाद मेरा 12 घण्टे का ऑफ चल रहा है । आप कहिए सर । कोई काम हो तो मैं तैयार हूँ ।"
"काम है सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले !" वानखेड़े ने कहा, "मैं तुम्हें एक पता दे रहा हूँ, तुरंत इस पते पर पहुँचो और वहाँ की तलाशी लो कि मोटे तौर पर उस घर में कोई एतराज के काबिल चीज़ तो नहीं । ये जान लो कि इस घर में रहने वाले पति-पत्नी ने एयरपोर्ट पर हंगामा मचा रखा है । पत्नी एयरपोर्ट पर आकर कहती है कि उसका पति बम लेकर प्लेन में सवार हो गया है । वो प्लेन उड़ा देना चाहता है ।"
"मैं समझ गई सर, आप पता बताइए ।"
वानखेड़े ने पता बताकर कहा ।
"वहाँ जो भी हालत हो, मुझे फोन कर देना सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले !"
"यस सर !"
ठीक इसी वक्त पास में मारियो गोवानी निकला था । उसने वानखेड़े की बात सुन ली थी । मारियो गोवानी तब से एयरपोर्ट पर मौजूद था, जब से सोनिया ने अपना काम शुरू किया था । उसने बाथरूम में होस्टेस के जरिये सोनिया का हैंडबैग मँगवाते देखा तो वो सतर्क हो गया था कि ये पुलिस वाला कुछ करने का इरादा रखता है । ऐसे में जब वानखेड़े फोन पर मुक्ता लेले से बात कर रहा था तो मारियो गोवानी पास से निकला और अपनी जेब टटोलते हुए ठिठक भी गया । वानखेड़े की बात सुनने के लिए ।
उसके बाद मारियो गोवानी ने मोहिते को फोन किया ।
"हाँ मारियो !"
"किधर है ?"
"एयरपोर्ट के बाहर गाड़ी में ।"
"फौरन सोनिया और मोहन भौंसले के घर जा । इस वक़्त वहाँ कोई नहीं होगा । वहाँ की तलाशी ले । उधर कोई पुलिस वाली भी पहुँच रही है तलाशी लेने के लिए । इस गोल्ड की डकैती से वास्ता रखती वहाँ कोई चीज है तो हटा दे । ये काम फौरन करके वापस आ ।"
"इधर मेरी जरूरत पड़ी तो ?"
"मैं हूँ इधर । ये काम करके तू भी जल्दी वापस पहुँच ।" मारियो गोवानी ने कहा और फोन बंद कर दिया ।
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सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले 126 ए कोर्ट रोड पर छोटी अपार्टमेंट की इमारत पर पहुँची । वानखेड़े ने यहीं का पता बताया था । हल्की बरसात हो रही थी । जगह-जगह पानी पड़ा था। मुक्ता इस वक़्त स्कर्ट और ब्लाउज में थी । वो छब्बीस साल की बेहद चुस्त युवती थी और सीधे सब-इंस्पेक्टर के पद पर ही भर्ती हुई थी । वो 32 नम्बर के फ्लैट पर पहुँची और दरवाजा थपथपाया ।
कोई जवाब नहीं आया । वो जानती थी कि भीतर कोई नहीं है । फिर भी उसने तीसरी बार दरवाजा थपथपाया और आस-पास नजरें घुमाईं । इक्का-दुक्का लोग ही राहदारी में आ-जा रहे थे । तभी राहदारी में पैंतालीस साल का मोटा, बेढंगा-सा व्यक्ति आता दिखा । वो मुक्ता लेले को ही घूर रहा था । उसके पास आकर ठिठक गया ।
"क्या है ?" वो मुक्ता से बोला ।
"यहाँ मिस्टर मोहन भौंसले और सोनिया रहती हैं न ?"
"हाँ ! लेकिन इस वक़्त वो दोनों ही घर पर नहीं है । मैंने दोपहर को उन्हें जाते देखा था।" मोटू बोला ।
"मुझे उनमें से किसी एक से मिलना है । कहाँ मिल सकते हैं वो ?"
"मुझे क्या पता ?"
"तुम मुझे उन दोनों के बारे में बता सकते हो ?"
"क्या बता सकता हूँ ?"
"वो लोग कौन है, क्या काम करते... ।"
"मैं तुम्हें इन बातों का जवाब क्यों दूँ ?" मोटे ने सिर हिलाकर कहा ।
मुक्ता लेले समझ गई कि वो किस स्टैण्डर्ड का आदमी है । उसने फौरन स्कर्ट के पॉकेट से सौ-सौ के दो नोट निकाले । मोटू की निगाह नोटों पर जम गई थी । लेले ने नोटों को मोटू के हाथ पर रखा ।मोटू ने गौर से नोटों की तरफ देखा जैसे कि यकीन कर रहा हो कि नोट उसके हाथ में आ चुके है फिर उन्हें आराम से अपनी जेब में रख लिया ।
"दोनों मियां-बीवी हैं । मोहन मैकेनिक का काम करता है । सोनिया घर ही रहती है । कुछ नहीं करती । वो खूबसूरत है । मुझे कभी भी समझ में नहीं आया कि उसने मोहन में ऐसा क्या देखा जो उससे शादी कर ली । पछता तो जरूर रही होगी शादी करके । मुँह से बेशक न कहे । मुझे लगता है कि इन दिनों उनके साथ कोई और भी रह रहा है ।"
"और कौन ?"
"मैंने उसे एक-दो बार देखा है । लम्बा-चौड़ा व्यक्ति है और कम ही बाहर निकलता है।"
"उसका हुलिया बताओ ?"
मोटू ने प्रताप भौंसले का हुलिया बताया ।
"ये आदमी अब कहाँ है ?" मुक्ता लेले ने पूछा ।
"मुझे क्या पता ।" वो फिर मुँह बनाकर कह उठा ।
"तुम कौन हो ?"
"मैं इस इमारत का केअर-टेकर हूँ । यहाँ की देखभाल मैं ही करता हूँ ।" मोटू बोला ।
"तो तुम केअर-टेकर हो । सुनो, मैं मोहन भौंसले का फ्लैट भीतर से देखना चाहती हूँ । तुम केअर-टेकर हो तो तुम्हारे पास फ्लैट की चाबी होगी । तुम्हें मेरा ये काम हर हाल में करना... ।"
"हरगिज नहीं ।" मोटू उछल पड़ा ।
"मैं पुलिस वाली हूँ ।"
"पुलिस वाली ?" मोटू ने मुक्ता को सिर से पाँव तक देखा, "तुम पुलिस नहीं हो सकती।"
मुक्ता लेले ने स्कर्ट की जेब से आईडी कार्ड निकाला और खोलकर मोटू के सामने कर दिया । मोटू ने कार्ड लिया । तसल्ली से देखा और फिर उसे वापस लौटाता कह उठा ।
"तुम तो सच में पुलिस वाली हो ।"
"ये पुलिस का मामला है । मैं चाहूँ तो तलाशी के वारंट ला सकती हूँ परंतु मेरा समय नष्ट हो जाएगा । ये जल्दी का काम है । तुम ये दरवाजा खोलो, मुझे भीतर जाना है । मेरी बात नहीं मानी तो बाद में पुलिस तुम्हारा बुरा हाल कर देगी । मैं तुम्हें हर रोज़ थाने बुलाकर घण्टों बिठाए रखूँगी । तुम परेशान हो जाओगे और... ।"
"तुम पुलिस वाली हो, इसलिए मैं दरवाजा खोल रहा हूँ ।"
"धन्यवाद !"
"पाँच सौ रुपये दो ।"
"पाँच सौ ?" लेले ने मोटू को देखा ।
"इतना तो मेरा हक बनता है ।" मोटू पहली बार लेले को देखकर मुस्कुराया ।
मुक्ता लेले ने बात खत्म करते हुए उसे पाँच सौ रुपए दिए ।
मोटू ने नोटों को जेब में डाला और मास्टर की निकालकर, फ्लैट का लॉक खोलकर कहा ।
"जाते वक्त दरवाजा बंद कर देना । जब मैं इधर आऊँगा तो दरवाजा लॉक कर दूँगा ।" कहकर वो चला गया ।
मुक्ता लेले ने फ्लैट के भीतर प्रवेश किया और बारीकी से वहाँ की तलाशी लेनी शुरू कर दी । दो मिनट के भीतर उसने हर ड्राज की तलाशी ले ली । ड्रॉजों में उसे पुराने बिल, कुछ रसीदें और फिल्मी कलाकारों की एलबम मिली । तभी मुक्ता की निगाह एक टेबल पर पड़े कागज पर पड़ी । उसे उठाकर देखा, उसपर लिखा था ।
'फ्लाइट नम्बर 317', शाम चार बजे कश्मीर के लिए । फिर जबर्दस्त ब्लास्ट होगा और खेल खत्म ।
सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले का दिल उछला ।
ये शब्द खतरनाक संकेत दे रहे थे । वानखेड़े ने भी कम शब्दों में उसे ऐसा ही कुछ बताया था ।
तो क्या सच में कश्मीर जाने वाली फ्लाइट में ब्लास्ट होने वाला है ?
सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले ने बिना वक़्त गँवाए अपनी तलाशी तेज कर दी । अगले दो मिनट में दूसरे कमरे से अलमारी के पीछे से एक इलेक्ट्रॉनिक मीटर, बैटरी और क्वांटिटी बायर के साथ एक डिब्बे में रखा बारूद भी मिला ।
मुक्ता लेले सन्न रह गई ।
ये बम बनाने का सामान था ।
कोई बम बना रहा था यहाँ और इंस्पेक्टर वानखेड़े ने भी यही कहा था कि वो सोनिया भौंसले एयरपोर्ट पर पहुँचकर कह रही है कि उसका पति मोहन भौंसले बम के साथ प्लेन में सवार हो गया है । अभी मिले कागज पर फ्लाइट नम्बर लिखा है और उसके आगे ब्लास्ट लिखा है । तो क्या वो सच में विमान में ब्लास्ट करेगा ।
सोनिया भौंसले जो कह रही है, सही कह रही है ।
वानखेड़े को इन बातों की जानकारी फौरन देनी होगी । कमरे में रखे फोन की तरफ बढ़ी कि अगले ही पल मुक्ता लेले थम से ठिठक गई । चेहरे पर हैरानी-सी आ ठहरी ।
दरवाजे पर मोहिते खड़ा था, उसके हाथ में पिस्टल थी ।
दो पल के लिए वक़्त ठहर गया ।
"तुम पुलिस वाली हो ।" मोहिते शांत स्वर में कह उठा ।
"कैसे कह सकते हो ?"
"वानखेड़े ने तुम्हें ही यहाँ भेजा है कि यहाँ की तलाशी लो ।"
"हैरानी है कि तुम्हें ये बात कैसे पता है ?" मुक्ता लेले ने आँखें सिकुड़ीं ।
"मैं तुम्हारे सवालों का जवाब देने नहीं आया ।" मोहिते पिस्टल वाला हाथ हिलाकर बोला, "मैं गोली चला सकता हूँ ।"
"तुम कौन हो ?" लेले ने पूछा ।
"जुबान बन्द रखो और एक तरफ खड़ी हो जाओ । अगर तुमने कुछ किया तो मैं तुम्हें शूट कर दूँगा ।" मोहिते की आवाज में सर्द भाव थे । मुक्ता लेले की निगाह मोहिते के हाथ में दबी पिस्टल के ट्रिगर पर टिक चुकी थी ।
मोहिते वहाँ की तलाशी लेने लगा । पिस्टल उसके हाथ में थी । वो लेले के प्रति सतर्क था ।
सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले होंठ सिकुड़े मोहिते को ही देख रही थी । इस वक़्त उसके पास हथियार नहीं था, परंतु वो जूडो-कराटे में एक्सपर्ट थी । ब्लैक बेल्ट पा चुकी थी वो । दस लोगों को वो एक साथ संभाल सकती थी । परंतु मोहिते इसे खतरनाक लगा था । उसे मौके की जरूरत थी । मोहिते की हरकत से इतना तो लेले समझ गई कि यहाँ बहुत गड़बड़ चल रही है ।
मोहिते उन सब चीजों की तलाशी लेने लगा, जिसकी तलाशी वो पहले ही ले चुकी थी । पिस्टल अब भी उसके हाथ में थी । मुक्ता लेले की निगाह उस पर ही टिकी थी । मुक्ता को पिस्टल की इतनी परवाह नहीं थी । वो तो देख रही थी को ये आदमी करता क्या है । उसने मोहिते के हाव-भाव से महसूस कर लिया था कि वो उसकी जरा परवाह नहीं कर रहा । ये बात मुक्ता के लिए फायदेमंद थी । वो इस वक़्त चौकन्नी और होशियार थी ।
"तुम हो कौन ?" मुक्ता लेले कह उठी ।
"जुबान बन्द रख ।" मोहिते ने अपने काम में व्यस्त कठोर स्वर में कहा ।
तभी मोहिते की निगाह इलेक्ट्रॉनिक बैटरी, क्वांटिटी वायर पर पड़ी । और भी ऐसी कई चीजें उसने तलाश की, जो कि बम बनाने से ही वास्ता रखती थीं । थोड़ा-सा बारूद भी देखा ।
मोहिते की आँखें सिकुड़ गईं ।
उसने पिस्टल पास ही में रखी और उन सब चीजों को ध्यान से देखने लगा ।
चेहरे पर हैरानी और उलझन के भाव दिखने लगे ।
"ये क्या, मोहन भौंसले ने बम बनाया है ।" मोहिते बड़बड़ा उठा ।
मुक्ता की निगाह उस पर ही टिकी थी ।
"ये सब सामान यहीं पड़ा था ?" मोहिते ने मुक्ता लेले को देखा ।
"हाँ !"
"तुम कितनी देर से यहाँ हो ?"
"तुम्हारे आने से पाँच-दस मिनट पहले ही यहाँ पहुँची हूँ । तुम अचानक परेशान क्यों हो गए ?"
मोहिते के चेहरे पर अजीब-से भाव नाच रहे थे । उसने पिस्टल उठाकर मुक्ता से कहा ।
"कुर्सी पर बैठ जाओ और कोई चालाकी मत करना ।"
मुक्ता लेले शांत भाव से कुर्सी के पास पहुँची और बैठ गई ।
मोहिते ने जेब से फोन निकाला और मारियो गोवानी को फोन किया । उसकी नजरें बम बनाने वाले सामान पर जा रही थीं । चेहरे पर कठोरता और व्याकुलता दिखाई दे रही थी । बात हो गई ।
"मारियो साहब !" मोहिते ने स्थिर लहजे में कहा, "मेरे ख्याल में भारी गड़बड़ होने वाली है ।"
"क्या ?" उधर से मारियो गोवानी की आवाज आई ।
"मोहन भौंसले प्लेन में है और वो पास में बम होने का ड्रामा कर रहा है । यही बात है न ?"
"हाँ !"
"मतलब कि वो जो कुछ भी कर रहा है, वो झूठ है । ये सब ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है ।"
"तुम्हें तो सब पता है ही फिर मुझसे क्यों पूछ रहे हो । मैंने तुम्हें मोहन भौंसले के घर भेजा था ।"
"मैं वहीं से बोल रहा हूँ । मेरे ख्याल में हम सब समझ रहे हैं कि ये सब ड्रामा हो रहा है, परंतु सच बात तो ये है कि ये ड्रामा नहीं हो रहा । मोहन भौंसले के फ्लैट से कुछ ऐसा सामान मिला है कि जिससे लगता है, उसने पिछले दिनों बम बनाया है । वो सच में प्लेन में बम ले गया है ।"
"नहीं !" उधर से मारियो गोवानी का हक्का-बक्का स्वर सुनाई दिया ।
"मैं सच कह रहा... ।"
"तुम्हारा मतलब है कि मोहन भौंसले सच में प्लेन उड़ाने वाला है ?"
"हाँ !"
"वो ऐसा नहीं कर सकता । ये डकैती है और वो डकैती में दिए अपने काम को पूरा कर रहा है ।"
"इस फ्लैट पर मैंने जो देखा, वही बता रहा... ।"
"तुम पागल हो जो ऐसी बात कह... ।"
"तो बताओ मुझे कि उसके घर में ऐसा सामान क्यों बिखरा पड़ा है जिससे बम तैयार होता है । वो भी ऐसे मौके पर, जबकि मोटे माल की डकैती की जा रही हो । मोहन भौंसले ने जरूर बम बनाया है । वो प्लेन को उड़ाने की तैयारी में है ।"
"बेवकूफ, वो ऐसा क्यों करेगा ?"
"मुझे क्या पता ? परंतु वो ऐसा ही कर रहा है । मुझे ऐसा संदेह है । जिसमें मोहन भौंसले सवार है, वो प्लेन किसी भी वक़्त हवा में विस्फोट के साथ उड़ सकता है ।" मोहिते ने गंभीर स्वर में कहा ।
"तुम्हारा मतलब कि मोहन भौंसले आत्महत्या करने की तैयारी में है । नहीं, मैं नहीं मानता ।" मारियो गोवानी का जो स्वर कानों में पड़ रहा था, वो परेशानी से भरा था । जैसे उसे कुछ समझ न आ रहा हो ।
"मेरे ख्याल में मोहन भौंसले के साथ कोई गड़बड़ हुई है । तभी वो ऐसा करेगा ।"
"क्या गड़बड़ ? उसकी पत्नी ही बता सकती है, परंतु वो तो इस वक़्त पुलिस के पास है ।"
"उसका भाई । वो भी तो यहीं रह रहा था । शायद वो कुछ बता... ।"
तभी मुक्ता लेले ने कुर्सी से भारी इलेक्ट्रिक मीटर पर झपट्टा मारा और उसे उठाकर मोहिते की तरफ उछाल दिया । साथ ही खुद भी जंगली बिल्ली की तरह मोहिते पर झपट पड़ी ।
मीटर बहुत जोर से मोहिते के चेहरे पर लगा । पिस्टल हाथ से निकल गई । मुक्ता ने उसकी बाँह पकड़ी और जूडो के जबर्दस्त दाँव का इस्तेमाल किया तो मोहिते दो पल हवा में लहराया फिर मरी हुई छिपकली की तरह पट से फर्श पर आ गिरा । फिर हिल नहीं सका । वो निश्चल पड़ा रहा ।
सब-इंस्पेक्टर मुक्ता लेले ने उसे एक ही बार में बेहोश कर दिया था । मोहिते की तरफ से सतर्क रहते हुए लेले ने पिस्टल उठा ली । मोहिते के मुँह से खून बह रहा था । उसकी आँखें बंद थीं । उसने मोहिते को चेक किया कि कहीं वो मर तो नहीं गया । मोहिते ने जो बातें फोन पर की थीं, उससे काफी मामला समझ में आ गया था । मुक्ता लेले ने जल्दी से मोबाइल निकाला और इंस्पेक्टर वानखेड़े का नम्बर मिलाया । तुरंत ही बात हो गई ।
"कहो मुक्ता ?" वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ी, "कोई काम की बात पता चली?"
"कई बातें पता चली हैं ।" मुक्ता लेले ने मोहिते के बारे में बताकर कहा, "इसने मारियो नाम के किसी आदमी से बात की है । उससे मुझे कई बातें समझ में आईं... ।"
"मारियो ? कहीं मारियो गोवानी का नाम तो नहीं लिया ?" उधर से वानखेड़े ने पूछा ।
"सिर्फ मारियो ही कहा है ।" मुक्ता बोली, "सर, मोहन भौंसले, जो प्लेन में सवार है, वो सब ड्रामा है, उसके पास बम नहीं होना चाहिए था । परंतु अब उसके साथी(मोहिते) का अनुमान है कि उसने बम बनाया है और किसी तरह अपने साथ विमान में ले गया है । उसका इरादा प्लेन को उड़ा देने का है ।"
"क्या ?"
"ये लोग किसी योजना पर काम कर रहे हैं । उसी योजना के तहत मोहन भौंसले प्लेन में गया था । उस योजना में बम का कोई काम नहीं था, परंतु मोहन भौंसले ने अपनी मनमानी की और... ।"
"मुझे पता चला है कि मोहन भौंसले बम बनाना जानता था ।"
"फिर तो सर मेरी बात पक्की है कि वो प्लेन में बम ले गया है । यहाँ उसके फ्लैट से बम बनाने का पूरा सामान मिला है । उसने बम बनाया है सर । प्लेन में उसके पास बम हो सकता है ।"
"ये लोग किस योजना पर काम कर रहे हैं ?"
"पता नहीं । परंतु मेरा ख्याल है कि उसकी पत्नी को इस बारे में जानकारी होनी चाहिए । वो घर में रहकर बम बना रहा था तो उसकी पत्नी को जरूर पता होगा कि वो किस चक्कर में... ।"
दूसरी तरफ से वानखेड़े ने लाइन काट दी थी ।
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