दिन भर सुनील ऑफिस में व्यस्त रहा। रात के लगभग दस बजे ऑफिस से छुट्टी मिली और साढ़े दस बजे वह लिंक रोड की नुक्कड़ पर स्थित लिंक फिलिंग स्टेशन पर जयनारायण के सामने बैठा हुआ था ।
“कहिये, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ?" - जयनारायण ने बड़े साधारण स्वर में कहा ।
"मिस्टर जयनाराण" - सुनील ने कहा- "सच पूछिए तो मैं गड़े मुर्दे उखाड़ने आया हूं। मैं आपसे नैशनल बैंक की चोरी के विषय में कुछ बातें करना चाहता हूं।"
"नैशनल बैंक की चोरी में पुलिस ने मुझे बेहद परेशान किया था, यहां तक कि मुझे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा था । मैं उस समय की बातें याद करके खुश नहीं होता हूं, लेकिन फिर भी मैं आपकी भरसक सहायता करने की चेष्टा करूंगा |"
"क्या आप आदी रेस खेलने वाले हैं ?"
"नहीं। उस दिन मैं जिंदगी में पहली और आखिरी बार रेस खेला था। मेरे एक मित्र ने, जो कि इन कामों में बहुत रुचि रखता है, बताया था कि वो घोड़ा जरूर जीतेगा। मैंने जोश में आकर उस पर सौ रुपये लगा दिए थे। हालांकि उन दिनों मुझे केवल दो सौ रुपये वेतन मिलता था। मिस्टर सुनील, मेरा आधा वेतन घोड़े पर लगा हुआ था और यही वजह थी कि मैं अपनी इतनी जिम्मेदारी की ड्यूटी के समय भी मांगा हुआ ट्रांजिस्टर हाथ में थामे रेस के नतीजे का इन्तजार कर रहा था । "
"आपका घोड़ा जीता था ?"
"जीता जी, बराबर जीता। रेस के जीते हुए धन से ही तो आज मैं इतने बड़े पैट्रोल पम्प का मालिक हूं, नहीं तो अभी तक बैंक के दो सौ रुपये पर ही झक न मार रहा होता ।"
"क्या ऐसा हो सकता है कि रुपया खोसला ने ही चुराया हो ?"
"नहीं हो सकता। जिस सावधानी से रुपया ले जाया जाता था उसमें खोसला क्या कोई भी रुपया नहीं चुरा सकता था। किसी बाहरी आदमी के लिये तो बिल्कुल ही कोई चांस नहीं होता था।"
"कोई बाहरी आदमी नहीं जान पाता था कि रुपया कब ले जाया जाने वाला है। यहां तक कि ड्राइवर को भी केवल दस मिनट पहले पता लगता था कि रुपया जाने वाला है । अब अगर ड्राइवर किसी को बता भी दे तो दस मिनट में इतनी बड़ी गड़बड़ करवाना कि बक्से में से रुपये की जगह भुगतान किए हुए चैक निकलें, सम्भव नहीं। रुपया एक विशेष रूप से बनवायी गई बख्तरबंद गाड़ी में ले जाया जाता था जिसमें एक शोर्ट वेव का रेडियो लगा होता था जिसकी जानकारी किसी को भी नहीं होती। रेडियो का सीधा सम्बन्ध पुलिस स्टेशन से होता था। अगर रास्ते में रुपया ले जाते समय कोई गड़बड़ी करने की कोशिश करे तो ड्राइवर को केवल एक बटन दबाना पड़ता था और सूचना पुलिस स्टेशन पहुंच जाती थी।"
"और खोसला के विषय में आप क्या कहते हैं ?"
"मिस्टर सुनील, मैंने छ: साल खोसला के साथ काम किया है और छ: सालों में हमने करोड़ों रुपये इधर से उधर पहुंचाये हैं। मेरा उस पर इतना विश्वास था कि मैंने कभी भी उसकी सख्त निगरानी करने की जरूरत नहीं समझी, लेकिन फिर भी एकदम से बेखबर कभी भी नहीं रहता था। जिस समय मैं कमैंट्री सुन रहा था, खोसला मुझसे बीस कदम दूर बैठा था और मिस्टर सुनील, मैं सौगन्ध खाकर कहता हूं बक्से में वह ठीक-ठीक रुपये भर रहा था लेकिन फिर भी अगर खोसला द्वारा रुपया चुराने की कोई सम्भावना सकती है तो केवल यह कि खोसला कैंसिल किये हुए चैकों की फाइल पास लेकर बैठा होगा और रुपयों को बक्से में डालने को जगह रद्दी की टोकरी में डालता जा रहा होगा और बाद में बक्से को चैकों से भरकर पैक कर दिया होगा, टोकरी बाद में भी हटाई जा सकती है और यह गड़बड़ हो भी सकती है, क्योंकि खोसला टोकरी को अपने शरीर से कवर करके बैठा हुआ था ।"
"ओ के, मिस्टर, जयनारायण" सुनील ने उठते हुए कहा - "आई एम थैकंफुल टू यू फार योर बीन्ग सो हैल्पफुल -
"चलिये मैं भी बाहर तक चलता हूं। बाई दी वे आप किस ओर जा रहे हैं ?"
"बैंक स्ट्रीट की ओर ।”
"तो फिर अगर आपको कष्ट न हो तो शंकर रोड तक के लिये मुझे भी लिफ्ट दे दीजिए ।”
"ओह ! शौक से । कष्ट कैसा ! शंकर रोड राह में ही तो है।"
सुनील ने उसके कार में बैठते ही कार स्टार्ट कर दी ।
"रात बहुत हो गयी है" - जयनारायण ने कहा - "मेरी गाड़ी खराब पड़ी थी । अगर आप न मिलते तो बड़ी दिक्कत हो जाती ।"
"आप तो नाहक शर्मिन्दा कर रहे हैं" - सुनील ने औपचारिकता निभाते हुए कहा - "अच्छा तो जब बक्सा हैड ऑफिस पहुंचा था तो उसमें से केवल कैंसिल्ड चैक ही निकले थे।"
"हां, और उनमें से एक चैक ऐसा भी था जिसका भुगतान रुपया ले जाने से केवल एक घण्टा पहले ही हुआ था और वह उसी समय भुगतान किए गए चैकों की फाइल में डाला गया था । उस चैक की बक्से में मौजूदगी के कारण सारी जिम्मेदारी मुझ पर और खोसला पर ही आ जाती है। अगर रुपया मैंने चुराया होता तो यह बात खोसला से छिपना असम्भव था, इसलिये यह हमारी मिलीभगत भी हो सकती थी, लेकिन अगर रुपया खोसला चुराता तो मुझे पता भी नहीं लग सकता था, क्योंकि रुपया तो बक्से में वही भरता था, मैं तो केवल निगरानी करता था और बक्सा सील हो जाने के बाद अपनी सील लगा देता था।"
"इसका अर्थ यह हुआ कि आपकी जरा-सी भी लापरवाही खोसला के लिए चांस बन सकती थी ।"
"बिल्कुल, और हुआ भी यही । मैं थोड़ी देर के लिए लापरवाह हुआ और उतने में ही गड़बड़ हो गयी ।"
“अच्छा, क्या रुपये वाले बक्से बदले नहीं जा सकते थे?"
"एब्सोल्यूटली इम्पासिबल एकदम असम्भव ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि ब्रांच से लेकर हैड ऑफिस के दरवाजे तक ड्राइवर ने एक बार भी गाड़ी नहीं रोकी और अगर उसने गाड़ी रोकी भी होती तो वह रुपये तक नहीं पहुंच सकता था। जिस कम्पार्टमेंट में रुपया रखा जाता था उसकी चाबी ड्राइवर के पास नही होती ।"
"और अगर उसके पास चाबी होती ?"
"तो भी कुछ नहीं कर सकता था ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि अगर बक्से में से रद्दी अखबार, पुरानी किताबें या ऐसी ही कोई चीज निकलती तो मैं मान लेता लेकिन बक्से में तो निकले थे नैशनल बैंक की हमारी ही ब्रांच के भुगतान किये हुए चैक, जिनमें एक चैक ऐसा भी था जिसका भुगतान एक घण्टे पहले हुआ था और जो सब हमारे बैंक की फाइल में से निकाले गए थे और जबकि ड्राइवर कभी बैंक के भीतर नहीं घुसता है।"
"इससे तो ये ही प्रकट होता है कि चोरी खोसला ने की थी ?"
"खोसला के सिवाय और कोई कर ही नहीं सकता और फिर उसके पास कुछ चुराए हुए नोट निकले भी तो थे 1"
" और मैंने सुना है कि सौ-सौ के कुछ नोटों के नम्बर पुलिस को मालूम हैं।"
"हां और उन नम्बरों की लिस्ट भारतीय सीक्रेट सर्विस के भारी रहस्यों में से एक है। सीक्रेट सर्विस के चीफ को छोड़कर किसी को भी उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है । अगर किसी नोट पर चोरी के नोट का सन्देह होता है तो वह नम्बर ऊपर भेज दिया जाता है। पुलिस के बड़े से बड़े अफसर को भी स्वयं नम्बर मिलाने की सुविधा नहीं है । पुलिस अपनी सूचना भेजती है, लेकिन ऊपर से पुलिस को खाक भी जानकारी नहीं मिलती। और इसके अतिरिक्त, मिस्टर सुनील, अब पुलिस को चोरी गये धन में से एक हजार रुपये के नोट का नम्बर भी मालूम है । "
"कैसे ?" - सुनील ने सफाई से मोड़ काटते हुए कहा ।
"वह नम्बर उन्हें मैंने दिया था । "
"आपने !"
"जी हां, दरअसल बात यह है, मिस्टर सुनील कि मैं किस्मत पर बहुत विश्वास करता हूं और इसी विश्वास के कारण मैंने घोड़े पर रुपया लगाया था। कमैंट्री के समय से आधा घंटा पहले मैं कई तरीकों से आजमा चुका था कि मेरा घोड़ा जीतेगा या नहीं। कभी मैं टॉस करता था, कभी मैं खोसला को दो उंगलियां दिखाकर उसे एक उंगली पकड़ने को कहता था और कभी जमीन पर लकीरें खींचकर देखता था कि गिनती दो से कटती है या नहीं, आप समझ रहे हैं न । यही सब कुछ तो शर्तें लगाने वाले करते हैं इसी तरह अन्धे कुएं में ईटें मारते-मारते मैंने एक हजार का नोट उठा लिया और मन में यह धारणा बना ली कि अगर इस नोट का नम्बर दो से कटेगा तो मैं जीतूंगा, नहीं तो हारूंगा और इसी कारण मुझे नोट का नम्बर याद रह गया। नंबर था 000151| हालांकि नम्बर दो से कटता नहीं है, लेकिन फिर भी मैं जीता और इसीलिए मुझे यह नम्बर याद रह गया बस यहां से जरा दायीं ओर मोड़ लीजिए- पुलिस के पास केवल यही नम्बर है • बस इस तीसरी कोठी के सामने रोक दीजिए।"
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