देवराज चौहान तीसरी मंजिल पर अपने कमरे में पहुंचा और रूम सर्विस में, इंटरकॉम नाश्ते के लिए कहा और कुर्सी पर बैठकर सिग्रेट सुलगाई और हालातों पर गौर करने लगा। माइक्रोचिप का मामला इसी तरह से बेहतर ढंग से समझ सकता था। अपरहण हो जाने की वजह से बाल्को उत्तरी कोरिया वालों को वो माइक्रोचिप नहीं दे सकेगा और आई.बी. वाले देर-सबेर में बाल्को का मुंह खुलवा ही लेंगे। माइक्रोचिप हासिल कर ही लेंगे ।

अब बाल्को का अपहरण कैसे करना है, ये सोचना था। बाल्को कब मौका देता है अपने अपहरण का। अगर वो कल की तरह, आज भी होटल से बाहर निकलकर, पैदल घूमने निकलता है तो उसे उठा लेना बहुत आसान हो जाएगा वरना होटल से बाल्को का अपहरण करना पड़ेगा, जिसमें कि कुछ समस्या आ सकती है। क्योंकि बाल्को को होटल का स्टॉफ अच्छी तरह पहचानता था। ऐसे में उसे होटल से बाहर ले जाना, जबकि वो भी साथ हो, दिक्कतें पैदा हो सकती थी  

वेटर नाश्ता ले आया। देवराज चौहान सोचों में डूबा नाश्ता करने लगा। नाश्ता करने के बाद उसने बाल्को के वेटर को छोटी-सी मिस्ड कॉल दे दी । उसके बाद वेटर के फोन आने का इंतजार करने लगा।

पांच मिनट बाद बाल्को के वेटर का उसे फोन आ गया ।

"हुकुम साहब जी ।" उधर से वेटर ने कहा ।

"बाल्को क्या कर रहा है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"सो रहा है ।"

"उसका आज का क्या प्रोग्राम है ?"

"अभी तो मुझे कुछ नहीं पता। वो सोया उठेगा तो धीरे-धीरे पता चलेगा।"

"जब-जब भी उसका प्रोग्राम पता चलता रहे, मुझे फौरन बताते रहना। खासतौर से उसके बाहर जाने का प्रोग्राम या किसी से मिलने का प्रोग्राम ।"

"समझ गया साहब जी।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया और सोचने लगा कि कसीनो से आकर सुबह ही बाल्को सोया है तो ऐसे में बारह या एक बजे से पहले वो नहीं उठने वाला। अब देवराज चौहान को वेटर की अगली खबर का इंतजार करना था। क्या पता आज वो होटल से बाहर जाता है या नहीं ? नहीं जाता तो उसे उस वक्त तक इंतजार करना होगा, जब वो होटल से बाहर जाए ।

■■■

आज 26 दिसम्बर थी ।

जगमोहन ग्यारह बजे माला के घर पहुंचा। आज भी माला बाहर ही सर्दी में बैठे उसका इंतजार कर रही थी। उसे आया पाकर उसका चेहरा खिल उठा। वो जगमोहन के गले जा लगी। जगमोहन ने भी उसे बांहों में समेट लिया।

"कैसी हो ?" जगमोहन ने प्यार से बांहों में समेटे पूछा।

"अच्छी। बहुत अच्छी। एक-एक दिन गिन रही हूं कि एक जनवरी आ जाए और तुम्हारे साथ चली जाऊं ।" माला उससे अलग होते कह उठी--- "ये नया साल मेरे लिए कितना अच्छा होगा।"

"अब हम दोनों के लिए, हर नया साल बहुत खुशनसीब होगा ।" जगमोहन ने उसका हाथ थाम लिया--- "हमारा जीवन खुशियों से भरा होगा।"

माला का चेहरा खुशी से चमक रहा था।

"बंधु कहां है ?" जगमोहन ने पूछा।

"भीतर ।"

जगमोहन, माला के साथ भीतर चल पड़ा ।

"मैं तुम्हारे लिए नाश्ता तैयार करती हूं।"

माला किचन की तरफ बढ़ गई।

बंधु ड्राइंग रूम में बैठा था । पदम सिंह भी वहीं था ।

"आओ।" बंधु उसे देखते ही कह उठा--- "मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा था। आज बाज बहादुर से बात करनी है न ?"

"हां।" जगमोहन सोफे पर जा बैठा--- "आज उससे बात की जाएगी ।"

"हाल क्या है उसका ?"

"बुरा। वो सोचता है कि संभव है उसके बेटे को अपहरणकर्ताओं ने मार दिया। तभी तो इस बारे में उसे कोई फोन नहीं आया।"

बंधु हंसा ।

"तुम्हारा प्लान सफल होता लग रहा है।"

"अभी कुछ पता नहीं। क्या पता बाज बहादुर हमारी बात सुनकर पीछे हट जाए।"

"तुम्हारा मतलब कि अपनी बेटी की जिंदगी की परवाह नहीं करेगा वो ?" बंधु बोला।

"कुछ भी हो सकता है। देखते हैं। मैं तुम सबको समझाता हूं कि बाज बहादुर से क्या बात करनी है, कैसे करनी है। रात नौ बजे उसे फोन करोगे। इसमें तुमने अपनी अक्ल का जरा भी इस्तेमाल नहीं करना है, जो मैं कहूं, सब कुछ वैसे ही करना है।"

बंधु ने सहमति से सिर हिला दिया।

"उसके मोबाइल पर किसी भी हाल में फोन मत करना। वो फोन पुलिस द्वारा टेप हो रहा है। पहला फोन उसके ऑफिस की लैंड लाइन पर किया जाएगा।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा--- "नम्बर मैं तुम्हें बताता हूं, अब क्या तुम सब कुछ सुनने-समझने को तैयार हो ?"

"बोलो-बोलो ।" बंधु ने हंसकर कहा--- "इस वक्त का तो मैं कब से बेचैनी से इंतजार कर रहा हूं ।"

और जगमोहन उसे बताने लगा कि बाज बहादुर से आज रात क्या बात करनी है। कैसे बात करनी है।

■■■

दोपहर 2:00 बजे वेटर का फोन देवराज चौहान को आया।

"बाल्को उठ चुका है और नहा-धो जा रहा है। उसने पन्द्रह मिनट बाद नाश्ता मंगवाया है।" वेटर की आवाज कानों में पड़ी।

"कल की तरह वो होटल से बाहर जाएगा ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"अभी तो पता नहीं ।"

"इस बात का पता लगते ही मुझे फोन करना कि वो होटल से बाहर जा रहा है या नहीं ?"

फोन बंद करके देवराज चौहान ने, माथुर को फोन किया।

"काम कर लिया ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"हां। एक जगह तैयार है बाल्को के लिए ।" उधर से माथुर ने कहा ।

"उसे संभालने के लिए भी वहां कोई है ?"

"उसकी तुम चिंता मत करो। मेरे साथ कदम सिंह है, दो-तीन लोग और भी हैं आई.बी. के । क्या आज उसे पकड़ लोगे ?"

"अगर वो होटल से बाहर निकलता है तो...।"

"वो निकलेगा ?"

"अभी तक तो उसके निकलने के प्रोग्राम की खबर नहीं आई ।" देवराज चौहान ने कहा।

"कोई खबर देता है तुम्हें ?"

"हां ।"

"हैरानी है कौन तुम्हें बाल्को की खबर दे रहा है।"

"जो भी पोजीशन हुई तुम्हें बता दूंगा।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।

3:30 बजे बेटर का फोन आया।

"बाल्को ने नाश्ता कर लिया है और आज भी वो होटल के बाहर घूमने जा रहा है।" उसने बताया।

"कितनी देर तक निकलेगा ?"

"निकलने ही वाला है।"

देवराज चौहान ने माथुर को फोन किया।

"बाल्को होटल के बाहर जा रहा है। बेहतर होगा कि तुम और कदम सिंह भी बाहर आ जाओ और मुझ पर नजर रखो। जब मैं बाल्को को पकड़ लूं तो तब तुम दोनों मेरे इशारे पर मेरे पास आ जाना।" देवराज चौहान ने कहा ।

देवराज चौहान होटल के बाहर आया और कल वाली जगह पर खड़ा होकर बाल्को के बाहर आने का इंतजार करने लगा। उसने माथुर और कदम सिंह को होटल से निकलकर, एक तरफ खड़े होते देखा।

पांच मिनट बाद ही देवराज चौहान ने बाल्को को होटल से निकलकर आगे बढ़ते देखा।

देवराज चौहान उसके पीछे हो गया ।

कल की तरह आज भी बाल्को पैदल ही घूमता रहा। आज एक अन्य मंदिर देखा।

आज दूसरे बाजार में घूमा। देवराज चौहान उस पर नजर रखता रहा, परंतु एक वक्त ऐसा भी आया जब बाल्को उसकी निगाहों से गुम हो गया। देवराज चौहान हक्का-बक्का रह गया बाल्को के गायब होते ही। तब वो बाजार में घूम रहा था।

देवराज चौहान ने उसे ढूंढने की चेष्टा की तो एक जगह बाल्को खड़ा दिखा। वो उसे ही देख रहा था। होंठों पर शांत-सी मुस्कान थी । देवराज चौहान ठिठका-सा उसे देखता रहा ।

बाल्को ने इशारे से उसे पास आने को कहा ।

देवराज चौहान बाल्को के पास आ पहुंचा । चेहरा शांत था ।

"तुम मेरा पीछा कर रहे हो ।" बाल्को बोला ।

"हां ।"

"कल भी तुम मेरे पीछे रहे सारा दिन और रात को कसीनो में मेरी टेबल के आस-पास ही मंडराते रहे।"

"तुम्हें पता है ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा बरबस ही ।

"मुझे सब पता रहता है। मैं कभी भी लापरवाह नहीं होता।" बाल्को ने सामान्य स्वर में कहा--- "अगर तुम मुझे शूट करना चाहते हो तो कल तुम्हारे पास बहुत मौके थे। अगर तुमने मेरा अपरहण करना होता तो कल तुम ये भी कर सकते थे। अगर तुमने बात करनी होती तो भी कल हो सकती थी। परंतु तुमने ऐसा कुछ भी नहीं किया और आज भी मेरे पीछे आने लगे ।"

"मैं तुम्हारा अपहरण करने वाला हूं ।" देवराज चौहान ने कहा।

"अच्छा ।" बाल्को मुस्कुराया--- "कल ही कर लेते ।"

"आज ही ये विचार बना ।"

"चाहते क्या हो ?"

"तुम्हारा अपहरण ।"

"उसके बाद ?"

"वो भी पता चल जाएगा ।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका ।

"मेरे पास रिवॉल्वर है ।" बाल्को ने कठोर स्वर में कहा--- "तुम मेरा अपहरण करने में सफल नहीं हो सकते।"

"मेरे पास भी रिवॉल्वर है।" इसके साथ ही देवराज चौहान ने दूर मौजूद माथुर और कदम सिंह को पास आने का इशारा किया--- "मेरे साथ और लोग भी हैं । उनके पास भी रिवॉल्वर है बाल्को। अगर तुमने चालाक बनने की कोशिश की तो तुम्हें शूट कर दिया जाएगा । सोच लो ।"

बाल्को के माथे पर बल दिखने लगे ।

माथुर और कदम सिंह पास आ पहुंचे । बाल्को ने उन्हें देखा ।

"तुम्हारे साथ भी आदमी हैं बाल्को ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"नहीं ।" बाल्को के होंठ भिंच गए ।

"तो फिर अपने को हमारे हवाले कर दो ।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "वरना मारे जाओगे । हमें इस बाजार में तुम्हें उठा ले जाने पर भी एतराज नहीं। बोलो शराफत से हमारे साथ चलोगे या जबर्दस्ती से ?"

बाल्को ने बारी-बारी तीनों को देखा ।

"कौन हो तुम लोग ?"

"तुम्हारे दोस्त तो है नहीं ।" देवराज चौहान उसके पास पहुंचा और जेबें टटोलकर कोट की जेब से रिवॉल्वर निकालकर अपनी जेब में रखते कहा--- "तुम्हें इस तरह अकेले नहीं घूमना चाहिए था । ड्रग्स डीलर के दुश्मन कहीं भी हो सकते हैं ।"

"मैंने नहीं सोचा था कि काठमांडू में ऐसा कुछ मेरे साथ हो सकता है ।" बाल्को परेशान था--- "आखिर चाहते क्या हो ?"

"वो भी पता चल जाएगा । यहां से चलो । " देवराज चौहान ने कहा ।

फिर माथुर कदम सिंह उसे घेरे चल पड़े ।

देवराज चौहान पांच कदम पीछे, सतर्कता  से बाल्को पर नजर रखते चलने लगा ।

■■■

शाम पांच बजे जगमोहन कसीनो में ड्यूटी पर पहुंचा ।

कसीनो में आज भी खासी भीड़ थी। वो जाते ही काम पर लग गया । जबकि उसका पूरा ध्यान बंधु और बाज बहादुर पर था। आज बंधु ने अपहरणकर्ता के तौर पर बाज बहादुर से बात करनी थी। जगमोहन सोच रहा था कि क्या बाज बहादुर, बंधु की बात मानेगा या भड़क जाएगा। यूं वो बंधु से कह आया था कि जब तक उसका फोन न उसे पहुंचे, तब तक फोन न करे । जगमोहन बाज बहादुर से मिलकर उसकी हालत जान लेना चाहता था। नाटियार से मुलाकात हुई, परंतु वो व्यस्त दिखा। अन्य सिक्योरिटी वाले भी कसीनो की उस भीड़ में दिख रहे थे।

आज जगमोहन को बाज बहादुर का ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा । वो पूरे छह बजे कसीनो में आ गया था । उसके चेहरे पर फीकापन नजर आ रहा था। वो थका-सा लग रहा था। चुप-चुप-सा था वो ।

आठ बजे जगमोहन कसीनो की भीड़ वाली जगह पर, बाज बहादुर के सामने पड़ा ।

"नमस्कार साहब जी ।" जगमोहन ने हाथ जोड़कर कहा--- "कुछ पता लगा आपके बेटे का ?"

"नहीं।" बाज बहादुर ने गम्भीर स्वर में कहा--- "आज पुलिस इंस्पेक्टर ने मुझे बुलाया था पुलिस स्टेशन ।"

"क्यों ?"

"वो पूछ रहा था कि कहीं अपहरणकर्ताओं ने गुप्त तौर पर तो मेरे से संबंध स्थापित नहीं किया? मेरे इंकार करने पर इंस्पेक्टर ने कहा कि वो मेरे बेटे की तलाश कर रहे हैं। खबर मिलते ही मेरे को सूचना कर देंगे ।" बाज बहादुर ने परेशान स्वर में कहा ।

"किस बात की सूचना ? क्या बेटे के मिलने की ?"

"पता नहीं ।" बाज बहादुर ने गम्भीर स्वर में कहा और वहां से चला गया ।

जगमोहन ने मौका मिलते ही बंधु को फोन किया और कहा ।

"दस बजे उसे फोन करना। ऑफिस की लैडलाइन पर । और तुम इसके लिए किसी पब्लिक बूथ से फोन करना ।"

थोड़ी देर बाद उसे कसीनो में देवराज चौहान दिखा। जगमोहन उसके पास पहुंचकर बोला---

"बाल्को नहीं दिखा, वो कहां है ?"

"माथुर और कदम सिंह के पास है वो ?" देवराज चौहान ने कहा।

"क्या मतलब ?"

"मैं अपना काम कर रहा हूं । बाल्को का अपहरण कर लिया आज माइक्रोचिप के बारे में जानने के लिए ।"

"ओह। वो मुंह खोलेगा ?"

"जरूर खोलेगा। अब नहीं तो दस दिन बाद खोलेगा। तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"अभी तक तो ठीक है। बंधु आज रात बाज बहादुर से फोन पर बात करेगा। देखना पड़ेगा कि बाज बहादुर क्या कहता है।"

देवराज चौहान, जगमोहन के पास से हट गया।

भीड़ में टहलता रहा देवराज चौहान। आज करने को कुछ नहीं था उसके पास। माथुर और कदम सिंह बाल्को को अपनी कैद में रखे उससे पूछताछ करने में व्यस्त थे कि माइक्रोचिप कहां पर है। दिन में देवराज चौहान उसके साथ जाकर, उसके ठिकाने पर बाल्को को छोड़ आया था। वहां दो आदमी और दिखे थे उसे। देवराज चौहान समझ गया कि आई. बी. वाले बाल्को को संभाल लेंगे। दिन में दो बार सूर्य थापा का फोन आया था और उसने माला के घर की खबर और जगमोहन के वहां आने की खबर दी थी । देवराज चौहान के पास अब खाली वक्त था कि जगमोहन के कामों में हाथ बंटा सके, परंतु वो भी ये जान लेना चाहता था कि बाज बहादुर से बंधु की क्या बात होती है। तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा । वो भीड़ से कुछ अलग हटा और फोन पर बात की ।

"हैलो ।"

"देवराज चौहान।" उधर जंग बहादुर की आवाज आई--- "मैंने पहाड़ी पर बने उस मकान के बारे में जानकारी इकठ्ठी कर ली है ।"

"बताओ ।"

"उधर से जंग बहादुर बताने लगा । शांत-सा देवराज चौहान सब कुछ सुनता रहा ।

■■■

10:40 बजे बाज बहादुर अपने ऑफिस में पहुंचा तो टेबल पर रखे तीनों फोनों में से एक फोन को बजते पाया। बे-मन से बाज बहादुर ने बजते फोन को देखा फिर थका-सा कुर्सी पर आ बैठा। तभी फोन बजना बंद हो गया। मन खड़ा हुआ था बाज बहादुर का, गोपाल की चिंता के साथ अब उसे अपनी पत्नी की भी चिंता रहने लगी थी । गोपाल का अता-पता न लगने की वजह से उसकी पत्नी की हालत भी अब बिगड़ने लगी थी । वो  हर वक्त बिस्तर पर ही पड़ी, रोती रहती। न कुछ बनाने का होश, न खाने का। बाज बहादुर को अब उसे भी संभालना पड़ रहा था। उसे लग रहा था कि अगर गोपाल का जल्दी ही पता न लगा तो उसकी पत्नी की हालत और भी बिगड़ जाएगी। मन-ही-मन उसने फैसला कर लिया था कि वो न्यू ईयर का सीजन चलने तक ही कसीनो में नौकरी करेगा और फिर अपनी पत्नी पर ध्यान देगा। गोपाल को खुद ही ढूंढेगा ।

तभी टेबल पर पड़ा वो ही फोन अब पुनः बजने लगा।

बाज बहादुर ने फोन को बजते देखा। कई पल बैठा रहा फिर बोझ की तरह फोन का रिसीवर उठा लिया ।

"ब्लू स्टार कसीनो ।" रिसीवर कान से लगाते बाज बहादुर बोला।

"बाज बहादुर हो तुम ?" उधर से बंधु की आवाज आई ।

"हां ।" बाज बहादुर शांत रहा--- "कहो मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं ।"

"तुम्हारा बेटा मेरे पास है ।" उधर से बंधु ने शांत स्वर में कहा ।

बाज बहादुर को लगा जैसे किसी ने डंडा उसके सिर पर मारा हो । वो ठीक से कुछ भी नहीं समझा ।

"क्या कहा तुमने ?" बाज बहादुर अजीब-से स्वर में बोला ।

"तुम्हारा बेटा गोपाल मेरे पास है ।"

"गोपाल तुम्हारे पास है ?" बाज बहादुर को होश आने लगा--- "तुम गोपाल को उठा ले गए थे ?"

"हां, मैंने ही...।"

"मेरे बेटे को मुझे वापस दे दो। तुमने क्यों उसे अपने पास रखा हुआ है ।" बाज बहादुर की आवाज कांप उठी थी ।

"मैं सोच रहा हूं कि अब उसे खत्म करके लाश तुम्हारे पास...।"

"नहीं, ऐसा मत करना।" बाज बहादुर फोन पर चीख उठा--- "उसकी मां तो जीते जी मर जाएगी। मैं-मैं कैसे रह पाऊंगा उसके बिना। भगवान के लिए गोपाल को कुछ मत कहना। मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ता हूं ।"

"बहुत प्यार है बेटे से ?"

"बहुत। वो मेरा बेटा है। प्यार क्यों नहीं होगा। प्लीज, गोपाल मुझे वापस कर दो। तुम जितना पैसा कहोगे, मैं...।"

"पुलिस मुझे ढूंढने की कोशिश कर रही है बाज बहादुर?" उधर से बंधु ने तीखे स्वर में कहा ।

"पुलिस ? अब मैं पुलिस के बारे में क्या कह सकता हूं । तुम मेरे बेटे को उठा ले गए तो मुझे पुलिस के पास जाना ही था । लेकिन हमारी इन बातों के बीच पुलिस नहीं आएगी। मैं तुम्हें चुपचाप पैसे दे दूंगा। बोलो कितना चाहते हो ?"

"मैं तुम्हें दो घंटे बाद फोन करूंगा ।"

"द-दो घंटे बाद। अ-अभी बात कर लो। इसमें सोचना कैसा, मैं...।"

"मुझे इस बारे में अपने साथियों से बात करनी होगी। हम कई हैं ।"

"कई लोग हो ।" बाज बहादुर ने सूखे होंठों पर जी फेरी--- "ठ-ठीक है। परंतु मैं तुम्हें बहुत ज्यादा पैसा नहीं दे सकता। मेरे पास जितना है, उतना ही दे सकता हूं। इतना ज्यादा मत मांगना कि...।"

"अगर तुमने पुलिस को कुछ बताया तो हम गोपाल की जान ले लेंगे बाज बहादुर ।" उधर से बंधु ने गुर्रा कर कहा ।

"नहीं, मैं पुलिस को नहीं बताऊंगा, मुझे तो मेरा बेटा चाहिए--- मैं तो...।" बाज बहादुर घबराए स्वर में कह उठा।

"पुलिस हम तक कभी नहीं पहुंच सकेगी और तुम अपना बेटा खो दोगे ।" बंधु ने धमकी भरे स्वर में कहा--- "हम ही तुम्हें तुम्हारा बेटा वापस दे सकते हैं, पुलिस तुम्हें गोपाला लाकर नहीं देगी ।"

"मैं-मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊंगा ।"

"दो घंटे बाद ।" कहने के साथ ही उधर से बंधु ने फोन बंद कर दिया था।

बाज बहादुर फोन कहां से लगाए बैठा रहा। चेहरा फक्क पड़ा हुआ था। सोचों में लगा वो इस बात से खुश था कि गोपाल जिंदा है। आखिरकार अपहरणकर्ताओं ने उससे संबंध बना लिया था। अब क्या उसे पुलिस को फोन करना चाहिए ?

बाज बहादुर का दिमाग तेजी से दौड़ने लगा। उसे फोन करने वाले ने पुलिस से बात करने को मना किया था। उसने कहा था कि अगर पुलिस को बताया तो वो गोपाल को मार देगा । पुलिस उसकी बात सुनकर करेगी भी क्या ? फोन करने वाला खतरनाक था । अगर उसे पता चल गया कि उसने इस फोन के बारे में पुलिस को बता दिया है तो वो गोपाल को मार देगा ।

बाज बहादुर ने रिसीवर रख दिया ।

उसने फैसला किया कि पुलिस को इस बारे में कुछ नहीं बताएगा। बीस-तीस लाख की जो भी फिरौती उससे मांगी जाएगी, वो दे देगा और चुपचाप अपने बेटे को ले आएगा। पुलिस इस मामले के बारे में उसकी कोई सहायता नहीं कर सकती । उसने ठीक कहा था कि पुलिस उसके बेटे को नहीं ला सकती, परंतु फोन करने वाला आदमी, गोपाल को उसके हवाले कर सकता है ।

बाज बहादुर ने अपने को संभाला ।

इस बारे में वो किसी से बात नहीं करेगा। चुपचाप अपहरणकर्ताओं से सारा काम निबटा लेगा। सब ठीक हो जाएगा। बाज बहादुर इस विचार के साथ उठा और ऑफिस के साथ लगे बाथरूम में जाकर गर्म पानी से मुंह धोया। शीशे में अपना चेहरा देखा जो कि कई दिनों से परेशानी के कारण बुझा-बुझा-सा दिख रहा था। सब ठीक हो जाएगा। बाज बहादुर बाल संवार कर बाथरूम से बाहर निकला और टेबल पर पड़े फोन को देखकर सोचा कि अभी दो घंटे हैं अपहरणकर्ता का फोन आने में। तब तक वो खुद को कसीनो में व्यस्त रखना चाहता था और ऑफिस से बाहर आ गया।

■■■

जगमोहन को बंधु का फोन आया था कि बाज बहादुर ने पहली किस्त की बात कर ली है। ऐसे में बाज बहादुर जब अपने ऑफिस से निकला तो जगमोहन की निगाह उस पर टिकी थी । इस वक्त बाज बहादुर शांत और गम्भीर नजर आ रहा था । जैसे उसे किसी की राहत मिल गई हो। जगमोहन उसके पास नहीं गया और अपनी ड्यूटी में व्यस्त होने को दिखाता रहा रहा । वो जानता था कि अभी बाज बहादुर उसे कुछ नहीं बताएगा । परंतु दूसरी बार फोन आने पर शायद उससे बात करे।

एक घंटे बाद जगमोहन ने देखा कि बाज बहादुर बार-बार अपने ऑफिस में जा रहा है । जरूर उसे आने वाले फोन का इंतजार होगा कि कहीं फोन पहले न आ जाए ।

जगमोहन ने सोचा कि अभी तक तो सब ठीक चल रहा है ।

■■■

रात का 1:30 बज चुका था ।

बाज बहादुर अपने ऑफिस की कुर्सी पर बैठा बेहद बेसब्री भरी निगाहों से बार-बार टेबल पर पड़े उस फोन को देख रहा था, जिस पर अपहरणकर्ता का फोन आया था । एक घंटा चालीस मिनट हो चुके थे उसका फोन आए, दो घंटे होने में बीस मिनट बाकी बचे थे। परंतु बाज बहादुर अभी से ही फोन के पास जा बैठा था। जब फोन बजा तो बाज बहादुर ने हड़बड़ा कर रिसीवर उठाया ।

"हैलो ।" स्वर में भी भारी बेचैनी थी ।

"मैं तुम्हारे मोबाइल पर फोन क्यों नहीं कर रहा ।" बंधु की आवाज कानों में पड़ी--- "बताओ ।"

"मुझे नहीं पता ।" बाज बहादुर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।

"सोचो, अभी पता चल...।"

"मोबाइल फोन टेप कर रखा है पुलिस ने ।" बाज बहादुर के होंठों से निकला ।

"तभी तो तुम्हारे मोबाइल पर फोन नहीं आया ।" बंधु के हंसने की आवाज आई--- "पुलिस में मेरे दो आदमी है। वो मुझे पुलिस की हर खबर देते रहते हैं। उन्होंने ही बताया था कि तुम्हारा मोबाइल पुलिस ने टेप कर रखा है ।"

बाज बहादुर के चेहरे से एक रंग जा रहा था, दूसरा आ रहा था। वो घबराया हुआ था ।

"इसमें मेरी कोई गलती नहीं ।" बाज बहादुर ने कहा--- "वो पुलिस ने ही...।"

"मालूम है मुझे...।"

"अब मैंने पुलिस को तुम्हारे फोन के बारे में नहीं बताया।"

"तभी तो तुम्हारा बेटा तुम्हें जिंदा मिलेगा ।" बंधु के स्वर में खतरनाक भाव आ गए थे ।

"मेरे बेटे को कुछ मत कहना। उसे कुछ मत...।"

"अब मेरी बात सुन बाज बहादुर । मैंने अपने साथियों से बात की है। तेरा बेटा एक ही शर्त पर जिंदा तुझे मिल सकता है ।"

"क्या ?" बाज बहादुर का स्वर कांपा--- "मैं लाखों रुपया तुम्हें देने को तैयार...।"

"पैसा नहीं चाहिए तेरे से ।"

"त-तो ?"

"मेरे साथी कसीनो में डकैती करना चाहते हैं ।" उधर से बंधु ने कहा ।

बाज बहादुर कांपा। रिसीवर हाथ से छूटते-छूटते बचा ।

"क-क्या ?" बाज बहादुर एकाएक सिर से पांव तक बेचैनी से भर गया--- "क-कसीनो में डकैती...?"

"मेरे साथी ये ही चाहते हैं । तुम्हें गोपाल जिंदा चाहिए या मरा हुआ ?"

"जि-जिंदा ?" बाज बहादुर की हालत बुरी हो रही थी ।

"तो 31 दिसम्बर की रात  स्ट्रांग रूम में डकैती की तैयारी करो। उस रात तुम कसीनो का पैसा...।"

"न-नहीं। ये नहीं हो सकता।" बाज बहादुर का स्वर कांपा--- "कसीनो में डकैती, वो भी 31 दिसम्बर की रात, ये तुम क्या कह रहे हो। उस रात तो सत्तर-अस्सी करोड़ रूपया स्ट्रांग रूम में इकट्ठा हो जाएगा। ऐसे में अगर डकैती हो गई तो अजीत गुरंग को आत्महत्या करनी पड़ जाएगी। लोगों का पैसा वो कहां से देगा । वो-वो, नहीं, मैं ये काम नहीं कर सकता ।

"नहीं कर सकते ?" बंधु की गुर्राहट कानों में पड़ी ।

"न-नहीं ।"

"तुम्हें गुरंग के आत्महत्या कर लेने की चिंता है, परंतु अपने बेटे की नहीं ।" बंधु उधर से दांत पीसता कह उठा--- "ठीक है। ऐसा ही सही । सुबह तक गोपाल की लाश मिलने की खबर पुलिस तुम्हें दे ही देगी। अपने बेटे की लाश देखने के लिए ।"

"ऐसा मत कहो।" बाज बहादुर चीखा--- "गोपाल को मत मारना।"

"तो तुम्हें स्ट्रांग रूम से पैसा बाहर निकलवाने में हमारी सहायता करनी होगी । नहीं तो मेरे आदमी गोपाल को...।"

"जल्दी मत करो ।" बाज बहादुर हांफता-सा कह उठा--- "मेरी बात को समझो कि तुम जो चाहते हो, वो नहीं हो सकता ।"

"नहीं हो सकता ?" बंधु की गुर्राहट कानों में पड़ी ।

"नहीं-मैं....।"

"लेकिन हम जो करना चाहते हैं, वो हो जाएगा। कल सुबह तुम्हारे बेटे की लाश...।"

"तुम समझते क्यों नहीं ?"

"मुझे मत समझाओ। तुम समझो कि तुम्हारी हां पर तुम्हारा बेटा बच जाएगा। न पर वो मर जाएगा । उसकी जिंदगी तुम्हारे हाथ में...।"

"मैं कसीनो में डकैती नहीं कर सकता ।" बाज बहादुर चीखा--- "मैं तुम्हें फिरौती दे सकता...।"

अगले ही पल बाज बहादुर सन्न रह गया ।

दूसरी तरफ से फोन रख दिया गया था ।

"हैलो-हैलो ।" बाज बहादुर पागलों की तरह फोन का पलंजर ठकठकाने लगा--- "हैलो-हैलो, मेरे से बात करो, हैलो...।'

परंतु फोन शांत था । संबंध कट चुका था ।

बाज बहादुर ने कांपते हाथ से रिसीवर वापस रखा और दोनों हाथों से सिर थाम लिया। गोपाल की लाश उसकी आंखों के सामने घूमने लगी। जिस्म में रह-रहकर कंपकंपी दौड़ रही थी। ये क्या हो गया। वो गोपाल को मार देंगे। अगले ही पल पागलों की सी हालत में उसने रिसीवर उठाया और टेलीफोन एक्स्चेंज का नम्बर मिलाया। बात हुई तो बाज बहादुर ने पूछा कि अभी-अभी इस फोन पर कहां से फोन किया गया है तो बताया गया कि रामपुर रोड के पब्लिक बूथ से फोन किया गया था ।

बाज बहादुर ने रिसीवर रख दिया ।

उसका चेहरा सफेद हो रहा था। गोपाल की मौत के बारे में सोचकर । गोपाल की लाश आंखों के सामने नाचती रही, फिर अपनी पत्नी का चेहरा आंखों के सामने नाचा। हे भगवान, मेरे साथ क्या हो रहा है। चेहरे का रंग पूरी तरह उड़ चुका था । वहां पीलापन और सफेदी नजर आई । हाथ-पांव कांपते से लग रहे थे ।

"गोपाल ।" बाज बहादुर के कांपते होठों से निकला और आंखों में आंसू चमक उठे। उसने फोन को एक तरफ देखा जो कि शांत पड़ा था। अब वो सोचने लगा कि क्या इन ताजे हालातों के बारे में पुलिस को बता देना चाहिए ?

अब बताने में क्या हर्ज है ।

परंतु पुलिस क्या करेगी ? कुछ भी नहीं । सुबह तक गोपाल की लाश मिल...।

उसी पल उसी फोन की बेल बजने लगी ।

बाज बहादुर चौंककर उछला और फटी-फटी आंखों से फोन को देखने लगा। उसे यकीन ही नहीं हुआ कि वो ही फोन बज रहा है। एकाएक उसने झपट्टा मारा और कांपते हाथों से रिसीवर उठाकर कान से लगाया ।

"ह-हैलो ।" बाज बहादुर के होंठों से खरखराता स्वर निकला ।

"हां तो  बाज बहादुर साहब ।" बंधु की आवाज कानों में पड़ी--- "फोन कट गया था। हमारी बात बीच में ही रह गई थी ।"

उसी आवाज को सुनकर बाज बहादुर को बहुत चैन मिला ।

"अब बोलो, क्या कहते हो ? तुम्हारा फाइनल प्रोग्राम क्या है ?" बंधु का स्वर कानों में पड़ा ।

"तुम ऐसी बात कर रहे हो, जो मैं पूरी नहीं कर...।"

"तो तुम्हारे बेटे को मार दिया जाए ? ठीक है, हम उसे...।"

"नहीं, उसे कुछ मत कहना। मैं तुम लोगों को पच्चीस लाख देने को तैयार...।"

"हम क्या चाहते हैं, तुम्हें बता दिया है--- हम...।"

"मैं पचास लाख रुपया दूंगा ।" बाज बहादुर जैसे अपना सब कुछ देने को तैयार था ।

"स्ट्रांग रूम में हम डकैती करेंगे और तुम डकैती में हमारी हर तरह से सहायता करोगे । जो हम कहेंगे, वो ही तुम करोगे । 31 दिसम्बर की रात बारह बजे स्ट्रांग रूम में जो भी पैसा होगा, वो तुम हमारे हवाले करोगे । ये तुमने ही बताना है कि ये काम तुम कैसे कर सकते हो। नहीं तो हम तुम्हें बता देंगे कि तुम कैसे काम करो। ये ही हम चाहते हैं। अगर हमारी सहायता करोगे तो  एक जनवरी को सुबह तुम्हारे बेटे को तुम्हारे घर के बाहर छोड़ दिया जाएगा। हमारी बात नहीं मानोगे तो कल सुबह तुम्हारे बेटे की लाश काठमांडू की किसी सड़क पर पड़ी होगी और पुलिस तुम्हें उसके बारे में खबर देगी ।"

पिघले लोहे की भांति ये शब्द कानों के रास्ते बाज बहादुर के दिमाग से टकरा रहे थे। चेहरा पूरी तरह फक्क था। कभी उसकी आंखों के सामने नोटों से भरा स्ट्रांग रूम नाचता तो कभी अजीत गुरंग का चेहरा, तो कभी अपने बेटे गोपाल की लाश दिखने लगी । बाज बहादुर का सिर घूम रहा था । कमरा जैसे उथल-पुथल हो रहा था। उसे चक्कर आने लगे थे अपने आस-पास के हालातों के बारे में सोच कर। क्या कहना है, वो नहीं समझ पा रहा था ।

कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती ?

बाज बहादुर मुंह खोले गहरी-गहरी सांस लेने लगा ।

"अपना फैसला सुनाओ बाज बहादुर बंधु ।" बंधु की गुर्राहट कानों में पड़ी--- "अब सब कुछ तुम्हारे हाथों में है । तुम चाहो तो अपने बेटे को बचा लो, नहीं तो उसे मरने दो। मैं अब फोन बंद करने वाला हूं। ज्यादा वक्त नहीं मेरे पास । मेरे साथी मुझे इशारे से फोन बंद करने को कह...।"

"फोन बंद मत करना ।" बाज बहादुर ने सूखे होठों पर जीभ फेरी । इतनी सर्दी में भी उसके माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगी थी--- "इतना बड़ा फैसला मैं इस तरह नहीं ले सकता। मुझे-मुझे सोचने का वक्त दो-मैं...।"

"कितना वक्त चाहते हो ?" बंधु के आने वाले स्वर में गुर्राहट थी।

"क-कल तक क-का ।"

"कल कब फोन करूं ?"

"र-रात को । न-नौ बजे । इसी फोन पर । मेरे मोबाइल पर फोन मत करना-वो पुलिस टेप कर...।"

उधर से फोन बंद हो गया था ।

चंद पल तो बाज बहादुर रिसीवर कान से लगाए बैठा रहा। एकाएक उसे महसूस हुआ कि रिसीवर पकड़े हथेली में पसीना भर आया है। उसने रिसीवर रखा और हथेली देखी जहां पसीना चमक रहा था। उसने हाथ साफ किया। टांगों में घबराहट से कम्प्पन हो रहा था। दिल तेजी से धड़क रहा था। बार-बार सूखे होठों पर जीभ फेर रहा था। गोपाल का मासूम चेहरा उसकी आंखों के सामने आ रहा था। उसकी बातें याद आ रही थी। गोपाल को जिंदा पाने का एक ही रास्ता था उसके पास कि 31 दिसम्बर की रात वो कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती करवा दे। बहुत भारी कीमत थी ये उसके लिए। उसने वर्षों कसीनो की सेवा की थी । गुरंग उसे मानता था अपनी नौकरी का ऐसा अंत तो नहीं चाहता था। चेहरे पर पसीना महसूस करके उसने रुमाल निकाला और अपना चेहरा साफ करने लगा । हाथ-पांव अभी तक कांप रहे थे ।

तभी दरवाजा खुला और जगमोहन ने भीतर झांकते हुए कहा ।

"साहब जी । गुरंग साहब पूछ रहे हैं कि आज मिस्टर बाल्को खंडूरी नहीं दिख रहे ।"

बाज बहादुर दो पल जैसे जगमोहन को पहचानने के अंदाज में देखता रहा ।

"साहब जी...।"

"मैं आता हूं ।" बाज बहादुर के होंठों से अजीब-सी आवाज निकली ।

जगमोहन का चेहरा दरवाजे से हट गया । दरवाजा बंद हो गया।

बाज बहादुर दरवाजे को देखता रहा और सोच रहा था कि अब क्या करें ? कल उन लोगों को जवाब देना है । परंतु वो स्ट्रांग रूम में डकैती करवाने की हिम्मत नहीं रखता था। ये सोच कर ही उसके शरीर में कंपकंपी दौड़ने लगी थी । ऐसा कुछ तो वो सोच भी नहीं सकता था। फिर-गोपाल को कैसे बचाएगा? गोपाल उसका बेटा है । उसकी मौत के बारे में तो सोच भी नहीं सकता था, गोपाल को कुछ हुआ तो उसकी मां भी जिंदा नहीं रहने वाली । घर से दो लाशें उठने का बोझ नहीं सह सकेगा। तो क्या करे, इन थर्रा देने वाले हालातों से कैसे बाहर निकले ?

बाज बहादुर के दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था ।

वो वहीं बैठा रहा । परंतु क्या सोच रहा है, वो कुछ भी समझ नहीं पा रहा था ।

तभी दरवाजा खुला और गुरंग ने भीतर प्रवेश किया ।

बाज बहादुर वहीं बैठा गुरंग को देखने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे गुरंग ने उसकी फोन पर बात हुई वार्ता सुन ली  हो । बाज बहादुर तो बुत-सा बन गया था। गुरंग ने उसके पास पहुंचकर उसका कंधा थपथपाया ।

बाज बहादुर बुत की स्थिति से बाहर निकला और गुरंग को देखते ही खड़ा होता बोला ।

"ओह गुरंग साहब।" उसके होंठों से निकला ।

"तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही बाज ।" गुरंग ने उस पर निगाहें टिकाए कहा ।

"तबीयत ?" बाज बहादुर को अपनी हालत का ध्यान आया तो खुद को संभालता कह उठा--- "हां, थोड़ी ढीली है । गोपाल की तरफ ध्यान चला गया था । मैं ठीक हूं । बिल्कुल ठीक हूं गुरंग साहब ।"

"बेहतर है तुम घर जाकर आराम करो। यहां मैं देख लेता हूं। तुम कल आ जाना ।"

"मैं ठीक हूं ।" बाज बहादुर बोला--- "घर नहीं जाना चाहता । यहीं रहूंगा मैं ।"

"तुम्हारी मर्जी । मैं बाल्को खंडूरी को पूछ रहा था कि वो नजर नहीं आ रहा। अपने कमरे में भी नहीं है ।" गुरंग बोला ।

"होगा वो, यहीं कहीं होगा ।"

"नहीं है । मैंने उसे तलाश करवा लिया है ।"

"तो कहीं और चला गया होगा ।" बाज बहादुर अब तक अपने को काफी संभाल चुका था ।

"तुम्हारा मतलब कि किसी और कसीनो में ?"

"सम्भव है ।"

"ये तो गलत बात है कि बाल्को जैसा दौलतमंद किसी और कसीनो में खेले ।" गुरंग ने शिकायत-भरे स्वर में कहा ।

"उसका सूटकेस तो स्ट्रांग रूम में ही पड़ा है ।"

"हां। कल वो कसीनो में पचास लाख हार गया था । टोकन कसीनो से उधार लिए थे उसने। जीतने वालों को पैसा हमने अपने पास से दिया। वो पैसा भी बाल्को ने हमें नहीं दिया अभी तक ।"

"क्या पता वो किसी काम से गया हो ।" बाज बहादुर बोला--- "कब गया था वो होटल से ?"

"दोपहर में।" गुरंग ने सोच भरे स्वर में कहा और बाहर निकलता चला गया ।

बाज बहादुर भी अपने ऑफिस से बाहर निकला और कसीनो का हाल-चाल देखने का बहाना करने लगा जबकि उसका पूरा ध्यान और सोचे तो उलझी हुई थी। सवाल एक ही था सामने कि इन हालातों को कैसे संभाले ?

जब वो मशीनों वाले हॉल में था तो जगमोहन उसके पास आया।

"साहब जी, आज तो बहुत भीड़ है कसीनो में । लोगों पर नजर रखना कठिन होता जा रहा है ।"

बाज बहादुर ने जगमोहन को देखा और बिना जवाब दिए आगे बढ़ गया । उसके चेहरे और आंखों से स्पष्ट लग रहा था कि वो कितना बेचैन हुआ पड़ा है । जगमोहन ने उसकी बेचैनी को आसानी से महसूस कर लिया था ।

■■■

देवराज चौहान एक बजे ही होटल के कमरे में आ गया था । कसीनो में उसका कोई काम नहीं था । जगमोहन अवश्य व्यस्त था अपने कामों में । उसने देखा था उसे । यूं भी आज रात बंधु ने बाज बहादुर को फोन करना था उसके बेटे के बारे में और स्ट्रांग रूम में डकैती के लिए । उसके बाद ही तय होना था कि आगे काम कैसे होगा ?

करीब ढाई बजे देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया ।

"बंधु की बात हुई बाज बहादुर से ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"हो गई । बाज बहादुर ने कल तक का वक्त मांगा है । मैंने देखा बाज पागल उलझा पड़ा है अपने विचारों में ।" जबकि बंधु का कहना है कि वो हमारा साथ देने को तैयार हो जाएगा ।" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।

"अब बात कब होगी ?"

"बाज बहादुर ने उसे कल रात नौ बजे फोन करने को कहा है ।"

"ठीक है। तुम ऐसे ही चलो। मेरे पास कोई काम नहीं है, तुम्हारे पास मेरे लिए कोई काम हो तो बता दो ।"

"अभी तो कोई काम नहीं है । सब ठीक चल रहा है ।"

"मेरी जरूरत पड़े तो बता देना ।"

"बाल्को को उठा ले जाने का कोई फायदा हुआ ?"

"अभी मैंने पता नहीं किया और माथुर का भी फोन नहीं आया।" देवराज चौहान ने बात करने के बाद माथुर को फोन किया तो माथुर की आवाज कानों में पड़ी ।

"कहां हो ? होटल में या बाल्को के पास ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"बाल्को के पास से अभी लौटा हूं । वो माइक्रोफिल्म के बारे में कुछ भी बताने को तैयार नहीं ।"

"कुछ दिन कैद में रहने के बाद टूटेगा। उसे ओढ़ने के लिए रजाई मत दो। रातों को ठंड से ठिठुरने दो। हर समय पूछताछ जारी रखो और दिन में एक बार आधा-अधूरा ही खाना दो । 31 दिसम्बर की रात बाल्को का सूटकेस स्ट्रांग रूम से बाहर निकल आएगा। अगर माइक्रोफिल्म हुई तो हमें मिल जाएगी ।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला ।

"तुमने मुझे नहीं बताया कि 31 दिसम्बर की रात बाल्को का सूटकेस स्ट्रांग रूम से कैसे बाहर...।"

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

■■■

27 दिसम्बर ।

जगमोहन, माला के घर जाने के लिए तैयार हो रहा था । चेहरे पर सोचें नाच रही थी। आज ये बात तय हो जानी थी कि कसीनो का स्ट्रांग रूम कैसे लूटा जाएगा । बाज बहादुर ने रात नौ बजे जवाब देना था। अब सब कुछ उसके जवाब पर ही निर्भर था । वो अगर मान जाता है तो स्ट्रांग रूम से 31 दिसम्बर की रात पैसे को आसानी से निकाला जा सकेगा । उसकी सहायता सब कुछ आसान कर देगी नहीं तो पहली मंजिल के रास्ते स्ट्रांग रूम में प्रवेश करना होगा । ये रास्ता कुछ समस्याएं पैदा कर सकता था, परंतु उन समस्याओं को हाथों-हाथ सुलझाया भी जा सकता था। करोड़ों रुपया पाने के लिए समस्याओं का सामना तो करना ही पड़ेगा । लेकिन जो बात उसे सबसे ज्यादा तसल्ली दे रही थी, वो ये कि माला से शादी करने का वक्त करीब आता जा रहा है । एक जनवरी की सुबह माला के साथ कहीं भी जाने को आजाद होगा । तब वो बंधु की एक नहीं सुनेगा। उसने झंझट डाला तो वो भी निबट लेगा । सिर्फ माला की खातिर तो वो ये डकैती कर रहा था। अब माला का ख्याल ही हर वक्त दिल में बसा रहता था। वो तो अब भविष्य की योजनाएं भी बनाने लगा था जब माला उसकी पत्नी बन चुकी होगी तो जिंदगी में क्या- क्या प्रोग्राम बनाएगा । माला के बिना अब जीवन अधूरा लगने लगा था । अगले चार दिन इंतजार के सिलसिले में उसे भारी लग रहे थे । माला ने ठीक ही कहा था कि बीतने वाला एक-एक दिन जैसे एक-एक साल लग रहा था । जैसे समय के साथ आगे बढ़ने की रफ्तार धीमी कर दी हो । इन्हीं विचारों में उलझा जगमोहन कमरे से बाहर निकला और ताला लगा कर आगे बढ़ गया । माला के बारे में सोच-सोचकर, बरबस ही उसके दिल पर मुस्कान आ जाती थी। उसने घड़ी वक्त देखा ग्यारह बजने में पांच मिनट बाकी थे । माला उसका इंतजार कर रही होगी। हर रोज की तरह दरवाजे के बाहर बैठी उसका इंतजार कर रही होगी । अभी वो सड़क के किनारे-किनारे थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उसका फोन बजने लगा । माला का होगा । ये सोचकर उसने फोन निकाला, बात की ।

"मैं बीस-पच्चीस मिनट में पहुंच रहा हूं माला ।" जगमोहन ने छूटते ही कहा ।

"जगमोहन। मैं बाज बहादुर। कसीनो का मैनेजर ।" दूसरी तरफ से आवाज आई ।

जगमोहन थम गया वहीं-का-वहीं ।

बाज बहादुर ?

जगमोहन का दिमाग तेजी से दौड़ने लगा ।

"साहब जी।" जगमोहन के होंठों से निकला---"साहब जी नमस्कार...।"

"मैंने तुम्हारा फोन नम्बर कसीनो के रिसैप्शन से लिया...।"

"हुक्म साहब जी ।"

"माला से मिलने जा रहे थे ?" बाज बहादुर का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा ।

"हुक्म साहब जी ।" जगमोहन का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था--- "आपके लिए तो जान भी हाजिर है ।"

"तुमसे कुछ बात करनी है । सलाह लेनी है ।"

"बताओ मैं कहां पर आऊं ?" जगमोहन फौरन बोला ।

"मेरे घर पर आ जाओ ।" बाज बहादुर ने उधर से घर का पता बताया--- "आ रहे हो न ?"

"सीधा पहुंचा साहब जी, मैं  टैक्सी कर लेता हूं।" कहकर जगमोहन ने फोन बंद किया । ढेरों विचार मस्तिष्क में उठ रहे थे। इसमें कोई शक नहीं था कि बाज बहादुर उससे अपहरणकर्ता के फोन के बारे में, और अपने बेटे के बारे में बात करने वाला है ।"

जगमोहन ने फौरन सड़क पर जाती टैक्सी रुकवाई और बाज बहादुर के घर का पता बताते हुए भीतर बैठ गया और बंधु को फोन किया। बेल बजते ही बंधु की आवाज कानों में पड़ी थी।

"हैलो ।"

"मैं शायद आज न आ पाऊं । कुछ काम पड़ गया है । माला से कह देना ।" जगमोहन ने फोन पर कहा ।

"ठीक है ।"

"तुमने रात नौ बजे बाज बहादुर से फोन पर बात करनी है ।" जगमोहन ने उसे याद दिलाया ।

"याद है। मैं सोच रहा हूं कि कहीं उसने पुलिस को न बता दिया हो कि...।"

"ऐसा कुछ हुआ तो मैं तुम्हें पहले ही बता दूंगा ।" कहकर जगमोहन ने फोन बंद कर दिया ।

टैक्सी तेजी से दौड़ी जा रही थी ।

पिछली सीट पर बैठा जगमोहन सोचों में डूबा था ।

पांच मिनट बाद ही उसका मोबाइल बजने लगा ।

"हैलो ।" जगमोहन ने बात की ।

"आज नहीं आ रहे क्या ?" माला की आवाज कानों में पड़ी ।

"नहीं । कुछ काम है ।"

"मैं तो कब से इंतजार में बाहर ही बैठी थी । सोचा था आज ढेरों बातें करूंगी तुमसे ।" उधर से माला ने प्यार से कहा ।

"काम पड़ गया...।"

"आज 27 तारीख है । चार दिन रह गए हमें मिलने को ।"

"मैं भी तुम्हारी तरह दिन गिन रहा हूं। तुम्हारे बारे में ही सोचता हूं माला ।" जगमोहन ने मुस्कुरा कर कहा ।

"तुम बंधु का काम जल्दी से करो ताकि मैं आजाद हो सकूं ।"

"वो काम 31 दिसम्बर की रात ही होगा । तब कसीनो में पैसा ज्यादा होता है ।"

"आज नहीं आओगे क्या ?"

"कह नहीं सकता । अगर जल्दी फुर्सत में आ गया तो आऊंगा।" जगमोहन बोला ।

"जरूर आना, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी ।"

■■■

बाज बहादुर ने गम्भीर भाव से जगमोहन का स्वागत किया  उसे अपने ड्राइंग रूम में बैठाया। उसकी गम्भीरता देखकर जगमोहन ने भी गम्भीरता ओढ़ ली । बाज बहादुर ने  गर्म गाउन और पायजामा पहन रखा था ।

"चाय पियोगे ?"

"नहीं साहब जी। किसी चीज की जरूरत नहीं...।"

बाज बहादुर ने नौकर को बुला कर चाय बनाने को कहा ।

जगमोहन, बाज बहादुर को देखता रहा ।

बाज बहादुर के चेहरे पर परेशानी के निशान नजर आ रहे थे ।

"क्या बात है साहब जी। आप चिंतित लग रहे हैं ।" जगमोहन हमदर्दी भरे स्वर में कह उठा ।

"मैं बहुत परेशानी में हूं जगमोहन ।"

"मुझे बताइए । मैं आपकी परेशानी दूर कर दूंगा ।" जगमोहन ने अपनेपन से कहा ।

बाज बहादुर ने उसे देखा फिर बेचैनी से पहलू बदला ।

"आपने तो मुझे भी परेशान कर दिया। मैं आपकी सारी परेशानी दूर कर दूंगा । कहिए तो सही ।"

"मैं जिन हालातों में फंसा हूं, उसके बारे में हर किसी से बात नहीं की जा सकती । एक तुम ही अब मुझे नजर आए क्योंकि ऐसे हालातों में मैं पहले भी एक बार तुम्हारे साथ फंस चुका हूं । जाने क्यों मुझे तुम पर भरोसा है। तुमसे बात करने का मन किया ।"

जगमोहन बाज बहादुर के चेहरे पर निगाहें टिकाए रहा ।

"बात मेरे बेटे से वास्ता रखती है ।" बाज बहादुर बहुत गम्भीर दिख रहा था ।

"वो मिल गया ?"

"नहीं ।"

"उसकी कोई खबर नहीं मिली ?" जगमोहन ने पुनः पूछा ।

"खबर मिली, वो बताने के लिए तुम्हें बुलाया है ।" कहने के साथ ही बाज बहादुर सब कुछ बताता चला गया ।

बंधु के कल रात आई फोन के बारे में भी बताया ।

जगमोहन गम्भीरता से सब कुछ सुनता रहा ।

अपनी बात समाप्त करके बाज बहादुर रुका ।

"ये तो गजब हो गया साहब जी ।" जगमोहन हक्का-बक्का कह उठा ।

अब बाज बहादुर के चेहरे पर और भी ज्यादा परेशानी दिखने लगी थी ।

"वो लोग आपके बेटे को मार देंगे साहब जी ।" जगमोहन तेज स्वर में कह उठा--- "वो खतरनाक लगते हैं ।"

"मैं-मैं समझ नहीं पा रहा हूं क्या करूं-मैं...।"

"आपने गुरंग साहब को बताई ये बात ?"

"नहीं ।"

"पुलिस को ?"

"अभी नहीं ।" बाज बहादुर ने होंठ भींचकर कहा ।

"आपके बेटे की जान खतरे में है साहब जी। अब क्या होगा। अगर उन लोगों की बात मानेंगे तो तभी आपके बेटे की जान बच सकती है। स्ट्रांग रूम में डकैती करना चाहते हैं । वो लोग । वहां पर कितना पैसा होता है साहब जी ?"

"31 दिसम्बर की रात 60-70-80 करोड़ रूपया ।" बाज बहादुर ने होंठ भींचकर कहा ।

"ओह ये तो बहुत पैसा है साहब जी ।"

बाज बहादुर ने व्याकुल नजरों से जगमोहन को देखा ।

जगमोहन ने भी अपने चेहरे पर परेशानी बिछा रखी थी ।

"अब मैं क्या करूं, ये मुझे समझ में नहीं आ रहा ।"

"आप पुलिस को सब कुछ बता...नहीं साहब जी ।" जगमोहन पल भर के लिए ठिठका--- "अगर आप पुलिस को बता देंगे तो वो लोग आपके बेटे को मार देंगे । ऐसे लोग अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं । ये तो बहुत बड़ी मुसीबत हो गई आपके लिए ।"

तभी नौकर चाय और बिस्कुट रख गया ।

कई पर उनके बीच खामोशी रही । उन्होंने चाय नही पी ।

"साहब जी ।" जगमोहन सोचों में डूबा बोला--- "मैं कुछ कहूं ?"

"तुम्हारी राय लेने के लिए ही मैंने तुम्हें बुलाया है कि अब मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता ।" बाज बहादुर पहलू बदलता व्याकुल भाव से कह उठा--- "मुझे गोपाल की चिंता है । उसे कुछ हो गया तो...।"

"शुभ-शुभ बोलिए साहब जी । भला उसे क्यों कुछ होगा, कुछ हो दुश्मनों को ।"

बाज बहादुर की आंखों में आंसू चमका ।

"मेरी मानिए तो स्ट्रांग रूम में डकैती करा दीजिए ।" जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा ।

"ये-ये क्या कह रहे...।"

"आपका बेटा बच जाएगा ।"

"स्ट्रांग रूम  में डकैती करवाने का मतलब होगा मैंने कसीनो से गद्दारी की, मैं...।"

"साहब जी । बेटे की जान से बढ़कर कुछ नहीं है । पैसा तो फिर भी आ जाएगा । परंतु बेटा नहीं...।"

"वो-वो सत्तर-अस्सी करोड़ का मामला...।"

"औलाद तो बेशकीमती होती है ।" जगमोहन ने सिर आगे करके कहा--- "शुक्र है कि अभी तक वो जिंदा है। अगर अब तक वो मर गया होता तो आप की क्या हालत होती । क्या जिंदा रह पाएंगे आप ?"

"मेरी पत्नी तो उसकी मौत की खबर सुनते ही मर जाएगी ।"

"तो फिर सोचते क्या है साहब जी, औलाद को बचाइए...वो...।"

"अगर 31 दिसम्बर की रात कसीनो में डकैती हो गई तो गुरंग पागल हो जाएगा। वो बर्बाद हो जाएगा। उसका सब कुछ खत्म हो जाएगा। शायद वो आत्महत्या कर ले । वो कहां से चुकाएगा लोगों का पैसा-वो तो...।"

"साहब जी, ऐसे मौकों पर दूसरे की चिंता नहीं करते । आपको अपने बेटे के बारे में सोचना चाहिए । कितनी उम्र है उसकी ?"

"साढ़े सत्रह साल ।"

"उसे कुछ हो गया तो आप जी नहीं पाएंगे । आपको हमेशा ही लगता रहेगा कि वो आपकी वजह से मरा । अगर स्ट्रांग रूम में डकैती करा देते। उन अपरहणकर्ताओं की मान लेते हैं तो आपका बेटा जिंदा होता। ये बात आपको खा जाएगी, फिर आपकी पत्नी...नहीं साहब जी ।" जगमोहन सिर हिलाता कह उठा--- "मेरी राय तो ये ही है कि पहले अपने बेटे को बचाइए ।"

"ड-डकैती करवा दूं ?" बाज बहादुर का चेहरा फक्क पड़ गया ।

"ये ही करना चाहिए । बेटा तो जिंदा वापस आ जाएगा ।"

बाज बहादुर ने पहलू बदला । चेहरे के भाव बहुत उलझे दिख रहे थे ।

"मैं तो-पुलिस के पास जाने की सोच रहा था ।"

"वो आपकी मर्जी । मैंने तो आप अपनी सलाह दे दी । पुलिस पर आपको भरोसा है ?" जगमोहन ने पूछा ।

"नहीं ।"

"तो फिर पुलिस के पास जाने का क्या फायदा ? मेरे ख्याल में वो लोग आप पर जरूर नजर रखे होंगे । पुलिस के पास जाते ही, इन बदमाशों ने आपके बेटे की हत्या कर देनी है । तब गुरंग साहब क्या करेंगे? आपका बेटा तो मर गया। थोड़ा-सा अफसोस कर देंगे, बस। आपको गुरंग साहब की जरा भी चिंता नहीं करनी चाहिए । मैं आपको सही सलाह दे रहा हूं ।"

बाज बहादुर परेशान-सा जगमोहन को देखता रहा ।

"अब कई दिन से आपका बेटा गायब है, इन दिनों गुरंग साहब ने क्या किया साहब जी ?"

"कुछ नहीं। पहले दो दिन तो उन्होंने चिंता दिखाई, फिर सामान्य हो गए । वो तो अपने कसीनो को देख रहे हैं कि ये सीजन भी बढ़िया...।"

"वो अपने कसीनो को देखकर, ठीक तो कर रहे हैं। उन्हें आपके बेटे की चिंता क्यों होगी। कसीनो की चिंता होगी । वो समझदार हैं। इसी तरह आप भी समझदार बनिए और अपने बेटे की चिंता कीजिए, उसे जिंदा रखने के उपाय कीजिए ।"

"तुम समझते नहीं जगमोहन । स्ट्रांग रूम में डकैती करवाकर, मैं भी जेल में पहुंच जाऊंगा ।" बाज बहादुर तड़पा ।

"वो बाद की बातें हैं । पहले तो अपने बेटे को जिंदा वापस ले आइए । उन लोगों ने तरकीब बताई कि कैसे स्ट्रांग रूम से...।"

"उसने रात फोन पर कहा कि मैं सोचूं कि 31 दिसम्बर की रात पैसा कैसे निकालना है ।"

"आप क्यों सोचे, ये काम तो उनको करना चाहिए ।" जगमोहन ने कहा ।

"मैं पागल हो जाऊंगा । जगमोहन-मैं...।"

"हौसला रखिए साहब जी । मैं आपके साथ हूं । आपसे कंधे-से-कंधा मिलाकर चलूंगा। लेकिन पहले आपको ये तय कर लेना चाहिए कि करना क्या है। पुलिस के पास जाना है या स्ट्रांग रूम लुटवाकर अपना बेटा बचाना है । एक मिनट ।" जगमोहन उठ खड़ा हुआ--- "मैं जरा मैडम जी को देखना चाहता हूं । हो आऊं भीतर मैडम के पास ?"

बाज बहादुर ने थका-सा चेहरा हिला दिया ।

जगमोहन मकान के भीतरी हिस्से में चला गया ।

बाज बहादुर थका-सा बैठा रहा। बार-बार अपने माथे पर हाथ फेर रहा था ।

दस  मिनट बाद जगमोहन लौटा । चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी ।

"साहब जी ।" जगमोहन बैठता हुआ कह उठा--- "मैडम जी की हालत तो बहुत खराब है। बात-बात पर रो रही है। मेरे को देखते ही सबसे पहले उन्होंने ये ही पूछा, गोपाल आ गया क्या ? वो तो किसी भी वक्त गोपाल के आने की आस लगाए बैठी है । आपने उन्हें नहीं बताया कि गोपाल ठीक है और आप उसे वापस लाने का पूरा प्रयत्न कर रहे हैं ।"

बाज बहादुर ने जगमोहन को देखा, कहा कुछ नहीं ।

"बता देते तो उन्हें हौसला मिलता ।" जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा ।

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं ।"

"मैं आपके साथ हूं । हर कदम पर साथ हूं । पुलिस के पास जाना है तो मैं आपके साथ चलता हूं और अगर अपने बेटे को बचाने के लिए बदमाशों से कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती करवानी है तो तब भी आपके साथ हूं । आप के बदले मैं जेल चला जाऊंगा। अगर आपको उन लोगों से बात करने में घबराहट होती है तो उन्हें मेरा फोन नम्बर दे दीजिए। मैं बात कर लूंगा उनसे। जैसा आप कहें। आपके लिए तो जान भी दे सकता...।"

"मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा जगमोहन कि...।"

"इसमें समझने की क्या बात है साहब जी । बेटे को बचाना है तो स्ट्रांग रूम का पैसा 31 दिसम्बर की रात उन लोगों के हवाले कर दीजिए किसी तरह और ऐसा नहीं चाहते तो पुलिस के पास चलते हैं, सब कुछ पुलिस को बता...।"

"पुलिस पर मुझे भरोसा नहीं है । गोपाल की जान चली जाएगी।" बाज बहादुर तड़प पर बोला--- "एक बार पहले भी तुमने मुझे ऐसी मुसीबत से निकाला था और इस बार भी कुछ करो जगमोहन ।"

"मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता साहब जी । सलाह ही दे सकता हूं। बेटे को बचाना आपका पहला फर्ज है । गुरंग साहब की तो सोचिए भी मत । उन्होंने स्ट्रांग रूम का बीमा करवा रखा होगा ?" जगमोहन ने पूछा ।

"दस करोड़ का ।"

"दस करोड़-क्या मतलब "?

"ऐसे किसी मौके पर चोरी-डकैती हो जाने पर, बीमा कंपनी गुरंग को दस करोड़ से ज्यादा नहीं देगी। ये शर्त है बीमा कंपनी की ।"

"समझा ।" जगमोहन ने सिर हिलाया--- "पहले आप फैसला कर लें कि आप क्या करेंगे ।"

बाज बहादुर ने आंखें बंद कर ली ।

जगमोहन की निगाह उसके चेहरे पर थी ।

बाज बहादुर ने आंखें खोली और जगमोहन को देखते परेशान स्वर में कहा ।

"मैं कुछ भी फैसला नहीं कर पा रहा...।"

"आप फैसला करके मुझे बता दीजिए । मैं....।"

"जा रहे हो ?"

"जैसा आप कहें साहब जी ।"

"मेरे पास ही रहो । दोपहर का खाना मेरे साथ खाना । शाम को हम एक साथ ही कसीनो चलेंगे ।" बाज बहादुर ने कहा ।

"जो हुक्म-साहब जी ।"

उसके बाद जगमोहन दिन भर बाद बहादुर के साथ रहा । यदा-कदा वे पुनः घूम फिर कर इसी मुद्दे पर बात करते रहे । परंतु बाज बहादुर फैसले पर नहीं पहुंचा कि उसे क्या करना चाहिए। दोपहर का खाना उन्होंने एक साथ खाया । जगमोहन उसे ये ही दर्शा रहा था कि उसे बहुत चिंता है उसके बेटे की। इस मामले की। परंतु बीते वक्त के साथ जगमोहन को आशा बनती जा रही थी कि बाज बहादुर कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती के लिए तैयार हो जाएगा । क्योंकि अब पुलिस के पास जाने की बात नहीं कह रहा था ।

शाम पांच बजे जब बाज बहादुर अपने कमरे में था और जगमोहन ड्राइंग रूम में बैठा था तो माला का फोन आया। आज का सारा दिन तो बाज बहादुर के पास ही बीत गया था ।

"आज नहीं आए तुम ?" उधर से माला के प्यार भरे लहजे में, शिकायत का भाव था ।

"किसी काम में फंस गया हूं ।" जगमोहन मुस्कुरा कर बोला ।

"ऐसा भी क्या काम जो मेरे से भी ज्यादा जरूरी हो गया ?"

"बंधु वाला ही काम है ।"

"ओह । मैं तो समझी कि तुम मुझे भूलने लगे हो ।"

"पागल ।" जगमोहन हंसा--- "तुम्हें भूलने से पहले तो मैं अपने को भूल जाऊंगा ।"

"बहुत अच्छी बातें करते हो तुम ।" माला के भी हंसने का स्वर आया ।

"जब तुम सामने होती हो तो मुझे कुछ याद नहीं रहता ।"

"मैं सामने कहां, फोन पर हूं ।"

"एक ही बात है, तुम्हारी आवाज तो मेरे कानों में पड़ रही है ।"  जगमोहन मुस्कुराया ।

"जानते हो, आज मैंने तुम्हारे लिए बैंगन का भर्ता बनाया था । बहुत अच्छा बना। मुझे अफसोस है कि तुम नहीं खा पाए । उसे वो सब खा गए ।" माला की आवाज में पुनः शिकायत आ गई--- "उनके लिए खाना बनाने को दिल नहीं करता ।"

"चार दिन की बात है, आराम से बिता लो माला। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा ।"

"तुम बंधु को आज रात ही क्यों नहीं पैसे निकाल कर दे देते। हमें इंतजार नहीं करना पड़ेगा ।"

"ये काम ऐसे नहीं होते माला। सब कुछ सब्र के साथ करना पड़ता है । काम 31 दिसम्बर को ही होगा। तब पैसा भी ज्यादा होगा स्ट्रांग रूम में और बंधु को शिकायत भी नहीं होगी कि कम पैसा मिला ।" जगमोहन धीमे स्वर में बात कर रहा था ।

"इस वक्त तुम कहां हो ?"

"कसीनो मैनेजर बाज बहादुर के घर पर ।"

"वहां ? वहां तुम क्या कर रहे हो ?"

"अभी कुछ मत पूछो । कुछ काम हो रहा है ।"

"कल आओगे न ?"

"पक्का आऊंगा ।"

"आज तुम्हें देखा नहीं । तुमसे बातें नहीं की तो खाली-खाली सा लग रहा है, जैसे कोई  कीमती चीज खो गई हो ।"

"कल जरूर आऊंगा, बेशक कितना भी जरूरी काम हो। तुम्हें देखे बिना मेरा मन भी नहीं लगता ।"

बातचीत खत्म होने पर जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा ।

साढ़े पांच  बजे बाज बहादुर तैयार होकर उसके पास पहुंचा । चेहरे पर गम्भीरता और परेशानी नाच रही थी ।

जगमोहन ने गम्भीर निगाहों से बाज बहादुर को देखा ।

"मैंने फैसला लिया है ।" बाज बहादुर जगमोहन के पास बैठते, सरसराते स्वर में बोला--- "मैं अपनी पत्नी को इस हाल में नहीं देख सकता। बेटे के बिना घर भी खाली-खाली-सा लगता है, मैंने अपनी पत्नी को सारी बात बता दी ।"

"बता दी ?" जगमोहन, बाज बहादुर को देखने लगा ।

"हां । मुझ से उसकी हालत देखी नहीं जा...।"

"तो मैडम जी ने क्या कहा ?"

"उसने डकैती करवा देने को कहा। वो कहती है जैसे भी हो, मेरे बेटे को वापस ला दीजिए ।"

हर माँ ये ही कहती है । जगमोहन ने सोचा ।

"तो आप ने क्या फैसला लिया ?" जगमोहन के होंठों से निकला।

"उनकी बात मानने का । स्ट्रांग रूम में डकैती करवा देने का ।" बाज बहादुर बहुत परेशान-सा कह उठा ।

"मैंने तो आपसे पहले ही कहा था कि औलाद सबसे पहले, बाकी बातें बाद की। "जगमोहन ने गहरी सांस ली। दिल धड़कने लगा था । चैन से भरी राहत मिली उसे--- "ये फैसला तो आपको पहले ही ले लेना चाहिए था ।"

"तुम नहीं समझोगे कि मेरी हालत क्या है ।" बाज बहादुर के होंठ भिंच गए--- "बेटा अपरहण करने वालों के कब्जे में । पत्नी ने बिस्तर पकड़ लिया है । अपहरणकर्ता मुझसे बात कर रहे हैं कि मैं फैसला लूं। उधर गुरंग, फिर पुलिस । पर अब मुझे पुलिस की भी परवाह नहीं। जो होगा देख लूंगा। सबसे पहले तो बेटे को सकुशल वापस लाना है । मेरा पहला फर्ज ये ही है ।"

"मैं आपके साथ हूं साहब जी ।" जगमोहन कह उठा ।

"तुम ही मुझे अपने लगे। तभी दिल की बात मैंने तुमसे की जगमोहन ।"

"इंसान अपनों से ही दिल की बात कहता है साहब जी। मुझ पर पूरा भरोसा रखिए ।"

"आज रात मैं उन लोगों को हां कह दूंगा ।"

"ऐसे कैसे हां कह देंगे साहब जी। पहले अपने बेटे से बात कीजिए, क्या पता, भगवान न करें, उसे कुछ हो गया हो ।"

बाज बहादुर के होंठ भिंच गए ।

"ये बात तो तुमने सही कही ।" बाज बहादुर ने कहा ।

"अगर आपको उनसे बात करने में घबराहट हो तो, मुझे कहिए मैं उनसे बात कर लूंगा ।"

"तुम नौ बजे मेरे ऑफिस में आ जाना । नौ बजे उनका फोन आएगा ।" बाज बहादुर सोच-भरे स्वर में बोला ।

"पहुंच जाऊंगा साहब जी ।"

"अब कसीनो चलते हैं। वक्त हो गया है चलने का ।"

"मुझे अपने कमरे पर जाना होगा । कसीनो की यूनिफॉर्म वहां पर रखी है ।"

"उसकी तुम फिक्र मत करो। कसीनो के स्टोर रूम में कोट-पैंट और कमीज ले लेना ।" बाज बहादुर ने कहा ।

दोनों कसीनो पहुंचे और बाज बहादुर अपने ऑफिस की तरफ बढ़ गया । जगमोहन को सामने ही नाटियार  मिला ।

"मैनेजर साहब के साथ आए हो ?" नाटियार बोला ।

"रास्ते में मुलाकात हो गई। मैनेजर साहब ने कार में बिठा लिया।" जगमोहन ने कहा ।

"कसीनो की ड्रेस नहीं पहनी ?"

"मैनेजर साहब ने कहा कि स्टोर रूम से नई ड्रेस ले लूं ।"

"ले लो ।" नाटियार कहकर आगे बढ़ गया ।

जगमोहन स्टोर रूम की तरफ बढ़ा और फोन निकालकर बंधु का नम्बर मिलाया ।

साथ ही उसकी निगाह कसीनो में घूम रही थी । आज भी कल की तरह भीड़ थी। आने वाले वक्त में और भी भीड़ बढ़ जानी थी ।

"हैलो ।" बंधु की आवाज कानों में पड़ी ।

"बाज बहादुर हमारा साथ देने को तैयार हो गया है ।" जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा ।

"तो वो पुलिस के पास नहीं गया ।"

"नहीं। आज सारा दिन मुझसे सलाह-मशवरा करता रहा ।"

"समझ गया ।"

"वो तुम से कहेगा कि गोपाल से बात करा दो। करा देना उसकी बात ।" जगमोहन ने कहा ।

"अब हमारा काम हो जाएगा। बाज बहादुर साथ देगा तो स्ट्रांग रूम से आसानी से नोट बाहर आ जाएंगे ।"

"इतना भी आसान नहीं है जितना कि तुम समझ रहे हो।" "जगमोहन ने चुभते स्वर में कहा ।

"क्या मतलब ?"

"जब तक काम पूरा न हो जाए, तब तक हर मुसीबत के लिए तैयार रहो। डकैती में समस्याएं कभी भी आ जाती हैं।" जगमोहन ने फोन बंद करके जेब में रखा और कसीनो के स्टोर रूम में जाकर कोट-पैंट और कमीज इश्यू कराई और पहनकर कसीनो में आ गया ।

■■■

शाम चार बजे देवराज चौहान ने माथुर को फोन किया ।

"बाल्को ने कुछ बताया ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"नहीं। वो बहुत ढीठ है। मुंह नहीं खोल रहा ।" माथुर की आवाज कानों में पड़ी ।

"क्या कहता है ?"

"पहले तो माइक्रोचिप के बारे में ही इंकार करता रहा फिर ज्यादा टॉर्चर किया तो माइक्रोचिप की बात तो स्वीकार की परंतु कहता है बेशक मेरी जान ले लो, ये नहीं बताऊंगा कि माइक्रोचिप कहां है ।" उधर से माथुर ने कहा ।

"वो बताएगा । अभी और टूटेगा । सख्ती ज्यादा कर दो उस पर।"

देवराज चौहान ने कहा ।

"आज रात से ऐसे कमरे में बंद कर रहे हैं, जहां ओढ़ने-बिछाने को कुछ नहीं है । खाने को भी नहीं दे रहे । ऊपर हम उसके सिर पर सवार हैं । देखते हैं कब तक मुंह नहीं खोलता ।" कहते हुए माथुर की आवाज में गुस्सा आ गया था ।

"उसे इस तरह टॉर्चर करो कि उसे लगे कि तुम लोगों को उसकी जान की फिक्र नहीं है । टॉर्चर-टॉर्चर में ही उसकी जान ले सकते हो। उसके दिल में डर बैठा दो । ऐसा कि जब भी तुम लोग उसके पास जाओ तो वो डरने लगे ।"

"समझ गया । तुम ठीक कहते हो । ऐसा ही करना पड़ेगा ।"

"और उसके कमरे की तलाशी लो। चांस तो कम है, परंतु उसके होटल का कमरा चैक करो । ये काम दिन में मत करना । होटल की तरफ से उसके लिए जो वेटर तैनात है, वो सतर्क रहता है । ये काम रात को करना ।"

"ठीक है। तुम उसके सूटकेस की तरफ ध्यान दो, जो कसीनो के स्ट्रांग रूम में...।"

"उसकी फिक्र मत करो। 31 दिसम्बर की रात, वो सूटकेस स्ट्रांग रूम से बाहर आ जाएगा। देवराज चौहान ने फोन बंद किया फिर बाल्को के कमरे के वेटर को फोन किया। आज सुबह के बाद उसका फोन नहीं आया था और सुबह उसने ये ही कहा था कि बाल्को रात को नहीं लौटा । गुरंग साहब भी उसके बारे में पूछताछ कर रहे थे ।

"हैलो ।" उसी वेटर की आवाज कानों में पड़ी ।

"तुमने बाल्को के बारे में खबर नहीं दी ।" इस बारे में देवराज चौहान का वेटर से बात करना जरूरी था। वरना उसे गायब पाकर वो होटल के मालिक गुरंग से कह दे कि वो उसमें दिलचस्पी ले रहा है था । ऐसे में गुरंग उसकी परेशानी बढ़ा देता।

"साहब जी । बाल्को का तो कुछ भी पता नहीं चल रहा । कल दोपहर को वो गया, अभी तक नहीं लौटा ।"

"सच कह रहे हो ?"

"कसम से, मैं झूठ क्यों बोलूंगा। मुझे तो लगा कहीं आपने ही उसे गायब न करवा दिया हो ।"

'बेवकूफ। मैं ऐसा क्यों करूंगा। किया होता तो तुम्हें अब फोन ही क्यों करता ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"बात तो आपकी ठीक है ।"

"बाल्को के आते ही मुझे खबर करना। मैंने तुम्हें इसी काम के पच्चीस हजार दिए हैं ।" देवराज चौहान बोला ।

"साहब जी, मैं तो आपको बराबर खबरें दे रहा हूं ।"

"ऐसे ही देते रहो। पता करो बाल्को कहां है और मुझे बताओ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर सोच के भाव थे। उसने  सिग्रेट सुलगाई और रूम सर्विस को कॉफी लाने के लिए कह दिया ।

साढ़े चार बजे जब कॉफी पी रहा था तो सूर्य थापा का फोन आया ।

"कहो थापा ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"आज जगमोहन, उस मकान पर नहीं आया ।" उधर से सूर्य थापा ने कहा ।

"हूं ।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे--- "तो नहीं आया जगमोहन ?"

"नहीं । वो लड़की रोज की तरह घर के दरवाजे के बाहर उसके आने के इंतजार में बैठी थी परंतु साढ़े ग्यारह बजे उसे किसी का फोन आया। भीतर से एक आदमी उसे फोन देने आया था। उसने बात की फिर घर के अंदर चली गई । उसके बाद नहीं दिखी। घर में कोई खास हलचल नहीं रही कि उसके बारे में बताऊं। दोपहर बाद वो लड़की थैला लेकर पास के बाजार गई और एक घंटे बाद थैले में सामान भरे लौट भी आई थी। इतना ही है बताने को ।"

"ऐसे ही वहां नजर रखे रहो। क्या तुम्हारे पास कार है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"नहीं। क्यों ?"

"अगर वो लोग कार पर बाहर जाएं तो तुम उनके पीछे कैसे...।"

मोटरसाइकिल है मेरे पास। कुछ दूरी पर छिपा रखी है ।" उधर से सूर्य थापा ने कहा ।

"ये ठीक है ।"

"अब कम-से-कम इतना तो बता दो कि चक्कर क्या है ?"

"हर रोज के दस हजार कम नहीं होते थापा ।" देवराज चौहान ने मुस्कुरा कर कहा--- "तुम्हारे नोट मेरे पास इकट्ठे हो रहे हैं ।"

"लेकिन कुछ तो...।"

"वहां की हर खबर मुझे देते रहो ।" देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद किया ।

कॉफी समाप्त की और कुर्सी पर बैठा । सोचा कि सात बजे कसीनो जाएगा। परंतु चेहरे पर सोचे ठहरी नहीं फिर उसने जंग बहादुर को फोन किया। उसकी आवाज सुनते ही उधर से जंग बहादुर ने कहा ।

"मैं तुम्हें फोन करने ही वाला था देवराज चौहान। कुछ और खबर भी है मेरे पास ।"

"बताओ ।"

उधर से जंग बहादुर बताता रहा। देवराज चौहान सुनता रहा ।

बात खत्म होते ही देवराज चौहान ने कहा ।

"तुम्हारा ये काम खत्म हुआ । मैं तुम्हें फोन करूंगा ।"

"लेकिन मामला क्या है देवराज चौहान, तुम...।"

"मैं तुम्हें कल फोन करूंगा। इस बारे में तब बात करेंगे ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।

7:30 बजे देवराज चौहान कसीनो पहुंचा। चेहरे पर गम्भीरता और सोच के भाव नजर आ रहे थे। कसीनो में बहुत भीड़ हो चुकी थी। बंदे पर बंदा चढ़ा, जैसा माहौल था। शोर उठ रहा था। हर कोई अपने-आपको व्यस्त और दौड़ा नजर आ रहा था। ऐसे में उसके लिए जगमोहन को ढूंढना सम्भव नहीं था। देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन किया ।

"कहो ।" उधर जगमोहन  की शोर-शराबे के बीच आवाज सुनाई दी ।

"काम कैसा चल रहा है।" देवराज चौहान पूछा ।

"बढ़िया। वो तैयार हो गया है, काम में सहायता करने को।" जगमोहन की आवाज आई ।

"अच्छी खबर है । आज तुम उस लड़की से मिलने, उसके घर नहीं गए ?"

जगमोहन के गहरी सांस लेने की आवाज आई ।

"तो तुम मुझ पर नजर रखवा रहे हो ।" जगमोहन के शब्द कानों में पड़े ।

"तुम्हारी बेहतरी के लिए कि अगर तुमसे कोई गलती हो जाए तो मैं मामला संभाल लूं ।"

"कोई गलती हुई मेरे से ?"

"दिन में तुम कहां थे ?"

"बाज बहादुर ने बुलाया था। मेरी सलाह की जरूरत थी उसे।"

"समझ गया। तो तुम्हारा काम ठीक रफ्तार से चल रहा है। बाज बहादुर तैयार है तो काम आसानी से हो जाएगा।"

"लगता तो है।"

"31 दिसम्बर की रात कसीनो पर  हाथ डालने का प्रोग्राम है ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां ।"

"अब मेरी बात सुनो । स्ट्रांग रूम में एक काला सूटकेस रखा है। वो बाल्को का सूटकेस है । वो हमें चाहिए ।"

"समझ गया। क्या बाल्को ने बताया कि माइक्रोचिप उसी सूटकेस में है ?" उधर से जगमोहन ने पूछा ।

"बाल्को ने अभी मुंह नहीं खोला। परंतु मेरा ख्याल है कि माइक्रोचिप उसी सूटकेस में है ।"

"ठीक है । 31 दिसम्बर की रात वो काला सूटकेस स्ट्रांग रूम से निकाल लिया जाएगा ।" जगमोहन की आवाज देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।

■■■

"बाज बहादुर 8:30 बजे ताश वाले हॉल में था कि उसे नाटियार मिला ।

"मैनेजर साहब आपको बड़े साहब पूछ रहे थे । वो उस तरफ हैं।" नाटियार ने बताया ।

दस मिनट में बाज बहादुर ने अजीत गुरंग को उस भीड़ में से ढूंढ निकाला। उस वक्त गुरंग एक टेबल के पास खड़ा हॉल में नजर दौड़ाने की चेष्टा कर रहा था । उसके पास पहुंचते ही गुरंग सिर हिला कर बोला ।

"सब ठीक चल रहा है बाज ?"

"सब ठीक है गुरंग साहब ।" बाज बहादुर ने शांत स्वर में कहा ।

"इस बार सीजन पिछले साल से बढ़िया जाएगा ।" गुरंग के चेहरे पर मुस्कान थी ।

बाज बहादुर गुरंग को देखता सोच रहा था कि इसने उसके बेटे के बारे में नहीं पूछा। अपने ही सीजन की, अपने ही नोट कमाने की पड़ी है । उसके बेटे की जरा भी चिंता नहीं। शायद ये भूलने भी जा रहा होगा कि उसका बेटा भी लापता है। बाज बहादुर का मन, गुरंग की तरफ से पूरी तरह खराब हो गया कि उसे सिर्फ अपने मतलब से ही मतलब है। अब उसके दिल से आवाज आई कि उसने सही फैसला लिया है कि अपने बेटे को बचाने की खातिर, कसीनो में डकैती करवा देगा। गुरंग को पैसे की जरूरत थी और उसे अपने बेटे की । कसीनो की भीड़ भाड़ देखकर मस्त था। खुश था। कोई और वक्त होता तो वो भी खुश होता। परंतु उसे तो अपने बेटे की चिंता थी।

"एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है बाज ।" गुरंग बोला ।

"क्या ?"

"बाल्को खंडूरी कहां चला गया । कल रात भी वो होटल नहीं लौटा और आज रात भी कहीं नजर नहीं आ रहा ।"

"उसका सूटकेस तो स्ट्रांग रूम में ही रखा है ।"

"हां ।"

"तो ये पक्का है कि वो किसी दूसरे कसीनो में जुआ नहीं खेल रहा। आ जाएगा ।"

"इन दिनों ही तो उसने हमारे जुआघर में जुआ खेलना था। पचास लाख उस रात वो कसीनो से लेकर हार चुका था। वो भी उससे लेना है। अगर उसे कहीं जाना था तो बताकर जाता । वो तो अपने साथ कपड़े वगैरह भी नहीं ले गया ।

"मेरे ख्याल में तो वापस आ जाएगा ।"

"क्या हमें उसके इस तरह गायब हो जाने की खबर पुलिस को देनी चाहिए ?" गुरंग बोला ।

पुलिस? नहीं। बाज बहादुर ने सोचा कि पुलिस को कसीनो से दूर रखना है। चार दिन बाद वो कसीनो में डकैती करवाने वाला है। ऐसे में पुलिस का इस तरफ आना गलत होगा।

"बाल्को खंडूरी बच्चा नहीं है। ड्रग्स का धंधा करता है ।" बाज बहादुर ने कहा--- "उसके मामले में पुलिस को न लाना ही बेहतर है ।"

अजीत गुरंग आगे बढ़ गया ।

इस बात ने बाज बहादुर को बहुत तकलीफ दी कि गुरंग को बाल्को की तो चिंता है, परंतु उसके बेटे के बारे में पूछना उसे याद नहीं रहा। जो भी हो आज बाज बहादुर बहुत सामान्य नजर आ रहा था  रोज नजर आने वाली व्याकुलता उसके चेहरे पर नहीं थी। उसका बेटा सलामत था और उसे आजाद करवाने के लिए कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती करवाने को तैयार था । उसे अपने बेटे की चिंता करनी चाहिए। गुरंग या कसीनो की परवाह करे तो गोपाल की चिंता नहीं हो पाएगी ।

नौ बजने वाले थे। बाज बहादुर अपने ऑफिस की तरफ बढ़ गया। अपरहणकर्ताओं का फोन आने वाला था। तभी जाने कहां से निकलकर जगमोहन, बाज बहादुर के साथ चलता कह उठा ।

"साहब जी नौ बजने वाले हैं। उनका फोन आने वाला होगा ।"

"मैं अपने ऑफिस ही जा रहा हूं। तुम भी मेरे साथ चलो ।"

दोनों ऑफिस के कमरे में पहुंचे। दरवाजा बंद किया ही था कि टेबल पर पड़े फोन की घंटी बजने लगी।

"साहब जी। आ गया फोन।" जगमोहन जल्दी से कह उठा--- "आप घबराना मत। आपको बेटे की जरूरत है तो उन्हें भी स्ट्रांग रूम के पैसे की जरूरत है। हिम्मत के साथ बात करना । मैं आपके साथ हूं । डरने की जरूरत नहीं है ।"

बाज बहादुर ने जगमोहन को देखा फिर आगे बढ़कर सिर हिलाया और रिसीवर उठा लिया ।

"हैलो।" बाज बहादुर ने महसूस किया कि आज वो घबरा नहीं रहा ।

"बाज बहादुर ।" उधर से बंधु की सख्त आवाज कानों में पड़ी--- "तो क्या सोचा तुमने ? बेटा जिंदा चाहिए या नहीं ?"

"चाहिए।" बाज बहादुर ने शांत स्वर में कहा--- "मुझे तुम्हारी बात मंजूर है ।"

"कसीनो के स्ट्रांग रूम में डकैती करवाने को तैयार हो ?"

"हां ।"

"समझदार हो। अब तुम्हारा बेटा बच जाएगा। 31 दिसम्बर की रात ये कम काम होगा। तब कितना पैसा होगा वहां ?" उधर से बंधु ने पूछा ।

"सत्तर करोड़ से ऊपर। इस बात की मेरी कोई गारंटी नहीं है कि कितना पैसा होगा। पर सत्तर तो होगा ही ।"

"कैसे करोगे ये काम ?"

"तुम बताओ। ये मैं नहीं सोच सकता कि काम कैसे किया जाए।" बाज बहादुर बोला ।

"स्ट्रांग रूम पर तुम्हारा पूरा कंट्रोल है ?"

"हां ।"

"मतलब कि तुम जो हुक्म दोगे वो माना जाएगा ?" उधर से बंधु ने पूछा ।

"हां ।"

"अजीत गुरंग अड़ंगा लगा सकता है अगर उसे पता चला कि तुम पैसे निकाल रहे हो ।"

"वो पैसा क्यों बाहर निकलने देगा ।" बाज बहादुर बेचैनी से कह उठा ।

"गुरंग के अलावा कोई और जो अड़ंगा लगा सके ?"

"नहीं। बाकी सब मेरी बात मानेंगे ।"

"ठीक है सोचकर बताऊंगा कि काम कैसे किया जाएगा। अब तुम अपने फैसले से पीछे हटने की कोशिश मत करना ।"

"मेरा फैसला पक्का है ।" बाज बहादुर ने सूखे होंठों पर जुबान फेरी---"गोपाल से मेरी बात कराओ ।"

"काम के बाद ही गोपाल से बात करना ।" बंधु ने उधर से कठोर स्वर में कहा ।

"नहीं। मैं पहले गोपाल से बात करूंगा।" बाज बहादुर की आवाज में बेचैनी और गुस्सा आ गया ।

"आप बेटे से क्यों बात करना चाहते हो ?"

"उसकी खैरियत मालूम करना चाहता हूं। मैं तुम्हारे काम आऊं तो तुम्हें मेरी बात गोपाल से करानी होगी ।"

"ठीक है। रुक एक मिनट ।"

बाज बहादुर रिसीवर कान से लगाए रहा। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी ।

जगमोहन ने इशारे से पूछा कि क्या हो रहा है ?

"गोपाल से बात होने वाली है ।" बाज बहादुर ने बेचैनी से कहा।

कुछ देर बाद बंधु की आवाज आई ।

"ले, बात कर अपने बेटे से...।"

"ह-हैलो ।" बाज बहादुर का स्वर कांपा--- "गोपाल बेटे ।"

"पापा ।" गोपाल का रो देने वाला स्वर कानों में पड़ा--- "मुझे यहां से निकालो पापा। इन्होंने मुझे बांध रखा है ।"

"चिंता मत कर बेटे।" बाज बहादुर तड़पा--- "मैं सब ठीक कर दूंगा । तू जल्दी ही मेरे पास आ जाएगा ।"

"पापा, मुझे यहां...।"

अगले ही पल बंधु का स्वर कानों में पड़ा ।

"कर ली बेटे से बात ।"

"तुमने उसे बांध क्यों रखा है ?" बाज बहादुर ने गुस्से से कहा ।

"उसने भागने की कोशिश की थी। उसकी फिक्र मत कर बाज बहादुर । ठीक से रखा है उसे । दो वक्त उसे खाने को देते हैं । दूध देते हैं। चाय और बिस्कुट भी देते हैं। कुछ और मांगता है तो वो भी देते हैं ।" बंधु के हंसने की आवाज आई--- "वो हमारे लिए कीमती है। उसकी तो पूरी सेवा कर रहे हैं हम। अब तू काम की तरफ ध्यान देना शुरू कर दे। कल तेरे को इसी वक्त फोन करके बताऊंगा कि काम कैसे करना है। सब कुछ जानने के बाद तू तैयारी करना शुरू कर देना। रही बात गुरंग की तो उसका भी कोई इंतजाम कर देंगे 31 दिसम्बर को ।"

"क-कैसा इंतजाम ?"

"अपने साथियों से बात करके कल ही बताऊंगा ।"

"उसकी जान नहीं लेनी है तुमने ।" बाज बहादुर ने तेज स्वर में कहा ।

"जरा-जरा सी बात पर हम किसी की जान नहीं लेते । तेरे पास दूसरा मोबाइल नम्बर नहीं है ?"

"अभी तो नहीं है। कल नया मोबाइल नम्बर लेकर तुम्हें बता दूंगा ।" बाज बहादुर ने कहा ।

"पुलिस को इस मामले से दूर रखना नहीं तो तुम्हारा बेटा गया।" उधर से बंधु ने खतरनाक स्वर में कहा ।

"अब ऐसी बात क्यों करते हो । मैं तुम लोगों का साथ देने को तैयार हूं ।" बाज बहादुर ने बेचैनी से कहा ।

उधर से बंधु ने फोन बंद कर दिया ।

बाज बहादुर ने रिसीवर रखा और कुर्सी पर बैठ गया ।

"क्या हुआ साहब जी ?"

"सब ठीक है । कल इसी वक्त फोन करके बताएंगे कि सारा काम कैसे होगा ।" बाज बहादुर ने गहरी सांस ली ।

"और आपका बेटा भी सही है । ठीक-ठाक है ?"

"हां। गोपाल भी सलामत है।" बाज बहादुर के चेहरे पर तसल्ली के भाव थे ।

■■■