देवराज चौहान के कानों में जूतों की ठक-ठक पड़ने लगी । सलाखों वाले दरवाजे के पास खड़ा उस तरफ देखने लगा, जिधर से जूते की आवाज करीब आ रही थी ।

फिर उसे लेखा दिखाई दिया ।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गई।

लेखा पास आया और हाथ में पकड़ी रिवॉल्वर के ताले पर फायर किया। ताला टूट कर नीचे जा गिरा। लेखा ने ताले का कुंडा हटायाफिर दरवाजा खोल दिया।

“तुम गोलियां चला रहे थे ?” देवराज चौहान बोला।

“हां।” लेखा ने सपाट स्वर में कहा- “मुखिया के आदमी मेरे रास्ते में आ रहे थे।”

“तुम हो कौन ? ” देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता के भाव थे।

“इस सवाल के फेर में मत पड़ो। ये लो रिवॉल्वर।” दूसरे हाथ में दबी रिवॉल्वर वो देवराज चौहान को थमाता हुआ बोला-“खुद को बचाने के काम आएगी।”

देवराज चौहान देखता रहा लेखा को।

“मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि तुम रोनिका को तलाशो। उन्हें मैं संभाल लूंगाजो तुम्हारे रास्ते में आएंगे। तुमने अच्छा किया कि हीरों को कहीं सुरक्षित रख दिया है।” लेखा ने सपाट स्वर में कहा ।

“तुम इस मामले की हर बात जानते हो।”

“हां।”

“ये भी मालूम होगा कि रोनिका कहां है ?” देवराज चौहान ने हाथ में दबी रिवॉल्वर को देखा ।

“रोनिका के बारे में नहीं मालूम।” लेखा बोला- “यहां से निकल जाओ। मुखिया के आदमी आ सकते हैं। वैसे मुखिया को मैंने मार दिया है । उसके आदमी की लाश देखते ही खिसक गए हैं कि लड़ने का कोई फायदा नहीं। किसके लिए वो लड़े। लेकिन नये आदमी आ सकते हैं।”

“मुखिया को भी मार दिया।” देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

“बातों में वक्त बर्बाद मत करो ।” कहने के साथ ही लेखा आगे बढ़ गया ।

देवराज चौहान भी उसी तरफ बढ़ गया ।

इमारत से वे बाहर आ गए । भीतर कहीं भी टकराव की स्थिति नहीं आई। दो आदमी अवश्य मिले । परंतु उन्होंने फौरन हाथ उठा दिए कि वो मुकाबला नहीं करना चाहते।

बाहर पहुंचते ही लेखा अपनी कार में बैठा और वहां से चला गया।

देवराज चौहान रिवॉल्वर जेब में डाल चुका था । जल्दी उसे टैक्सी मिल गई। उसकी सोचें लेखा के गिर्द ही घूम रही थी कौन है वो ? इस मामले में उसका क्या वास्ता ? जहां भी उसे घेरा जाता है वो अनजान व्यक्ति उसे बचाने आ जाता है और कहता है रोनिका को तलाश करो ।

वो जीवन पाल का भेजा आदमी हो सकता है ?

मुखिया अब नहीं रहा। मुखिया के अलावा दूसरा आदमी थाजो रोनिका को वापस करने की बात कर रहा था। उसका फोन दोबारा नहीं आया। मुखिया ने स्पष्ट कहा था कि रोनिका उसके पास नहीं है।  तो क्या दूसरे आदमी के पास है। कहीं रोनिका की हत्या तो नहीं की जा चुकी ?”

इन हालातों में वो रोनिका को खुद तलाश कर लेना चाहता था। परंतु पहले की तरह इस बात का इंतजार करना चाहता था कि रोनिका के बारे में कोई उससे संबंध स्थापित तो नहीं करता ? शायद मुखिया की मौत के बाद कोई रोनिका को लेकर सामने आए। पहले वो मुखिया के डर से छिपा बैठा हो। इतना तो देवराज चौहान को एहसास हो चुका था कि जिन लोगों ने रोनिका के बारे में जीवन पाल से संबंध बनाकर छः करोड़ के हीरे मांगे थेरोनिका किसी तरह उनके हाथों से निकल चुकी थी।

■■

लेखा ने एस.टी.डीबूथ से केशोपुर फोन करके मीरा पाल से बात की।

“काम हो गया लेखा ? ” उसकी आवाज पहचानते ही मीरा पाल के उठी ।

“नहीं।”

“इतनी देर क्यों लग रही है ? देवराज चौहान नहीं मिला ?"

“देवराज चौहान के बारे में जानता हूं कि वो कहां पर है।”

“तो सोचते क्या हो लेखा। तुम

“देवराज चौहान को शुट करना कोई समस्या नहीं है।”

लेखा ने शांत स्वर में कहा-“परंतु इस वक्त देवराज चौहान को मार दिया तोरोनिका तक पहुंचना कठिन हो जाएगा। वो रोनिका को ढूंढ रहा है और मैं नहीं जानता कि रोनिका कहां है। रोनिका को सामने आने दो। मैं दोनों को खत्म कर दूंगा।”

“ओह । तो देवराज चौहान को इसलिए नहीं मार रहे कि वो रोनिका को ढूंढ निकालेगा।”

“हां ।”

“जिनके पास रोनिका हैवो रोनिका को लेकरदेवराज चौहान के पास सौदे के लिए क्यों नहीं आते ?”

“रोनिका के बारे में ये स्पष्ट नहीं कि  वो कहां है।” लेखा बोला –“रोनिका की कोई खबर नहीं। हीरे हर कोई लेना चाहता हैपरंतु रोनिका के बारे में बात करने को कोई तैयार नहीं।”

“ऐसा तो नहीं कि रोनिका को उन लोगों ने मार दिया होजिन्होंने रोनिका को बंधक बना रखा था।”

“मालूम नहीं।”

“लेकिन मेरा ख्याल है कि रोनिका को मारा जा चुका है।” मीरा पाल की आवाज कानों में पड़ी ।

“क्या मतलब ?”

“कुछ घंटे पहले ही जीवनआशाराम और प्रमोद सिंह के साथबैग लेकर गया है। मुझे पूरा विश्वास है कि वो केशोपुर से बाहर गया है। शायद रथपुर ही आ रहा हो। ऐसे मौके पर कहीं और तो जाने से रहा। जाने से पहले उसने मुझे नहीं बताया मतलब कि जिस ढंग से वो गया हैउससे लगता है कि कहीं उसे रोनिका की मौत की खबर ना मिली हो।”

लेखा होंठ भींचें सोच भरे स्वर में खड़ा रहा ।

“लेखा ।” मीरा पाल की आवाज आई ।

“सोच रहा हूं।”

“क्या?”

“सिर्फ ये कि क्या मालिक रथपुर आ रहे हैं।” लेखा शब्दों को चबाकर बोला।

“तुम सतर्क रहना। हो सकता है रथपुर पहुंचकर जीवनदेवराज चौहान से मिले।”

“ध्यान रखूंगा।”

“रोनिका कब तक मिलेगी या उसकी लाश या उसके बारे में कोई खबर ?”

“मालूम नहीं। कोई बात हुई तो फोन करूंगा।” लेखा ने रिसीवर रख दिया। मस्तिष्क में सोचें दौड़ रही थी कि क्या जीवन पाल आशाराम और प्रमोद सिंह के साथ रथपुर रहा है ?

■■

जुगल किशोर शाम को वापस आया ।

“उस आदमी का पता चलाजिसे पापा ने भेजा है।” रोनिका ने पूछा।

“नहीं ।” जुगल किशोर ने इनकार में सिर हिलाया-“अभी तो कोई खबर नहीं मिली।”

“कब तक हम इस तरह भागते रहेंगे।” रोनिका खींझ भरे स्वर में कहा उठी।

“मैं कहां भागना चाहता हूं पच्चीस लाख दे। मैं दफा हो जाऊं ।

“मैं तो कोशिश कर रहा हूं।  कब का काम हो गया होता। संतसिंह ने गड़बड़ ना की होती तो

“हम यहां वक्त बर्बाद कर रहे हैं।” रोनिका ने कहा-“केशोपुर पापा के पास निकल चलते हैं।”

जुगल किशोर ने सिगरेट सुलगाई। कहा कुछ नहीं ।

“पापा के पास पहुंच गए तो वो सब संभाल लेंगे। तुम पापा को नहीं जानते अभी

“बदमाश है वो ?”

“क्या ?”

“मैंने कहा तुम्हारा  पापा बदमाश हैदादा हैजुगल किशोर ने बनाया।

“ऐसा ही समझ लो।” रोनिका ने होंठ भींचकर कहा।

जुगल किशोर गहरी सांस लेकर रह गया ।

“चलते हो यहां से।”

“केशोपुर।”

“हां ।”

“जल्दी मत करो। मुझे पूरा विश्वास है कि कई लोग तुम्हें ढूंढ रहे हैं। कोई जान चुके होंगे कि तुम्हें पकड़ ले तो फिरौती के रूप में उन्हें छः करोड़ मिल  सकते हैं। बहुत खतरा है तुम्हें बाहर निकलने पर।”

“तो मैं यहीं बंद रहूंगी।” रोनिका गुस्से से कह उठी।

जुगल किशोर ने कश लिया और रोनिका को देख कर कहा ।

“तुम मुझे पच्चीस लाख इसलिए दोगी कि तुम्हें इन खतरों से निकालकर तुम्हारे पापा तक पहुंचा दूं। ”

“क्या कहना चाहते हो ?”

“यही कि मुझे अपना काम करने दो। रास्ता दिखाने की कोशिश मत करो कि मुझे क्या करना है।”

रोनिका दांत भींचकर रह गई ।

“मुझे तुमसे ज्यादा जल्दी है कि तुम्हें तुम्हारे पापा के पास पहुंचा कर अपने पच्चीस लाख लूं। लेकिन जल्दबाजी से कोई काम बिगड़ेये मैं पसंद नहीं करूंगा।” जुगल किशोर ने सिगरेट ऐश-ट्रे में डाली और उठ खड़ा हुआ।

रोनिका होंठ भींचे घूर  रही थी उसे ।

“दो-तीन दिन में तुम्हारे पापा का भेजा आदमी नहीं मिला तो किसी तरह केशोपुर निकल चलने की कोशिश करेंगे।” जुगल किशोर ने गंभीर स्वर में कहा-“लेकिन पहले मुझे अपनी कोशिश कर लेने दो।”

“जल्दी करो । इन सब हालातों से मेरा दम घुटने लगा है।”

पचास हजार की गड्डी तो संतसिंह पर कुर्बान कर दी और अब दम घुटने की बात मुझे बताती हो ।

“दरवाजा बंद कर लो।”

“पत्नियों की तरह बात मत करो। मेरा आना-जाना ।तुम्हारे काम के सिलसिले में ही है। जुगल किशोर ने कहा-“तुम्हारे पास रहूंगा तो उसका भी कोई फायदा नहीं। तुम पांच फिट दूर रहोगी। इससे बढ़िया तो बाहर ही हूं। मैं लोहे का तो नहीं बना । तुम्हें मेरा ध्यान रखना चाहिए।”

“मेरे से किसी तरह की आशा मत रखो।” रोनिका ने मुंह बनाया-“ज्यादा ही आफत है तो बाहर मुंह मार लो। हमारे बीच सिर्फ काम की बातें हैं।”

“तुम्हें सर्दी नही लगती। कोयलों की अंगीठी सुलगाकर ही गर्मी ले लेती हो क्या ?  ऐसा है तो नकली गर्मी का कोई फायदा नही। असल गर्मी तो सूर्य से ही मिलती है। नकली चीजें छोड़ दो।”

“ये बातें तुम मुझे समझाओगे।” रोनिका ने चुभते स्वर में कहा ।

“नासमझ को समझाना पड़ता हैलेकिन बेवकूफों  को तब भी समझ नहीं आती।”

“मैं बहुत बड़ी बेवकूफ हूं। चलते बनो तुम यहां से।

ये तो अपने कपड़ों पर पड़ी धूल भी मुझे नहीं झाड़ने देगी।

जुगल किशोर बाहर निकल गया ।

रोनिका ने दरवाजा भीतर से बंद कर लिया ।

जुगल किशोर मन ही मन परेशान था कि रोने का मामला लंबा खिंचता जा रहा है जबकि वो पच्चीस लाख फौरन अपने हाथ में देखना चाहता था। होटल में तो वो गया था कि कुछ देर आराम करेगा । परंतु आराम का ख्याल छोड़ कर बाहर आ गया कि जल्दी से उस आदमी को तलाश करें जो केशोपुरा से लेने आया है।इस तरह रोनिका उसके पास सुरक्षित हो जाएगी और अपने पापा के पास पहुंचते ही वायदे के मुताबिक उसे पचीस लाख दे देगी ।

होटल की पार्किंग में खड़ी पैंतीस हजारी में बैठा और स्टार्ट कर के बाहर सड़क पर आ गया । समझ नहीं पा रहा था कि कहां जाए। किससे पूछे कि

तभी उसकी निगाह बगल से गुजरती टैक्सी पर पड़ी। ये टैक्सी वही  थीजिसे संतसिह चला रहा था और उसकी कार को पीछे से टक्कर मारी थीजब वो रथपुर पहुंचा था। ड्राइविंग सीट पर बैठे आदमी की निगाह पड़ते ही जुगल किशोर की आँखे सिकुड़ी।

कल्लू उस टैक्सी को ड्राइव कर रहा था ।

परन्तु जुगल किशोर फौरन पहचान गया कि यही आदमी आया था संतसिह के घर में और चाकू दिखाया था। संत सिंह को। पैसे मांगे और रोनिका ने उसे पन्द्रह हजार देकर वापस भेजा था जुगल किशोर को पूरा विश्वास था कि संतसिह ने रोनिका से पैसे झाड़ने का ड्रामा किया था।

जुगल किशोर ने पैंतीस हजारी की रफ्तार बढ़ा दी।

ज्यादा देर नहीं लगीउस टैक्सी के पास तक पहुंचने में ।एक सड़क पर उस टैक्सी के आगे धीमी रफ्तार से अपनी कार लगा दी।

आखिरकार उसकी कार और कल्लू की टैक्सी रुकी। उसे इस तरह रोके जाने पर गुस्से से भरा कल्लू टैक्सी से बाहर निकल कर उसकी कार की तरफ बढ़ा।

जुगल किशोर भी बाहर आ गया था ।

“इस तरह मुझे रोकने” कल्लू के गुस्से से भरे शब्द मुंह में ही रह गए।

जुगल किशोर के चेहरे पर नजर पड़ते ही वो हड़बड़ा उठा था ।

“पहचाना प्यारे।” जुगल किशोर ने कड़वे स्वर में कहा ।

एकाएक कल्लू कुछ नहीं कह सका।

“उस दिन तू घर में आकरड्रामा करकेनोट झाड़ कर ले गया कि संतसिह ने तेरा उधार देना है।” जुगल किशोर ने अपनी आवाज में खतरनाक भाव भर लिए थे-“क्या किया माल का।”

कल्लू ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“बोल साले। वरना अभी

“मैंने कुछ नहीं किया। संतसिह जो बोलामैंने वो ही किया। दोस्ती की खातिर उसकी बात मानी। ” जल्दी से उठा कल्लू-“संतसिंह ने ही वहां पहुंच कर मुझे ऐसा करने को कहा था। ”

“क्या किया उस पैसे का ?”

“दो हजार मुझे दिया। बाकी संतसिह ने ले लिया था।”

“संतसिह क्या करता फिर  रहा है।”

कल्लू ने होंठ भिंच लिए।

“मेरी कार में बैठ।” जुगल किशोर ने उसे घूरा।

“क्योंमैं

“बैठ तेरे को कुछ दिखाता हूं। जो दिखाऊंगा उससे तेरी तबियत हरी हो जाएगी।”

कल्लू हिचकिचाया।

“आ। कहीं जाना नहीं है। कार में बैठ कर बातें करेंगे। ”

जुगल किशोर ने कल्लू की कलाई पकड़ी और चार कदमों के फासले पर मौजूद उसके साथ कार में जा बैठा ।

“क्या कहना है।” कल्लू उलझन में दिखा।

जुगल किशोर ने अपनी सीट के नीचे हाथ डाला और गुप्त तौर पर चिपका रखी रिवॉल्वर निकाली। रिवॉल्वर को देखते ही कल्लू का चेहरा फक्क पड़ गया ।

“जो मेरी बात का जवाब नहीं देतावो इसे देखकर बोलने लगता है। जो इसे देखकर नहीं बोलता तो फिर गुस्से में आकर ये बोलने लगती है।” जुगल किशोर ने दांत भींच कर धीमे स्वर में कहा-“क्या इरादा है तू बोलेगा या फिर ये रिवॉल्वर तेरे से बात करें।”

“इसे..इसे दूर करो। तुम जो पूछोगेबताऊंगा।”

सड़क पर वाहन गुजर रहे थे ।

जुगल किशोर ने रिवॉल्वर वापस सीट के नीचे हाथ करकेचिपका दी।

“तू देख ही चुका है कि इसे मैं कितनी जल्दी निकाल लेता हूं।” जुगल किशोर ने धमकाने वाले स्वर में कहा-“ब्रता संतसिह किस फेर में है।”

“वो किसी को आगे करके रोनिका के बाप से माल ऐंठना चाहता था। पहले वो सोनू भाटिया के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहा था। फिर उसे मारकर मुखिया से बात की। उसके बाद वो मुखिया को भी धोखा देकर छः करोड़ के हीरे खुद पा लेना चाहता थाक्योंकि रोनिका उसके घर पर थी। लेकिन आज सुबह ही मुखिया को उसकी हरकतों की भनक पड़ गई।” कल्लू सूखे स्वर में बोला ।

“फिर ।”

“मुखिया ने संतसिह को गोली मार दी।”

जुगल किशोर चौंका।

“संतसिह मर गया ? ” उसके होठों से निकला ।

“हां। तुम्हें नहीं मालूम क्या ?”

“नहीं ।”

“फिर तो ये भी नहीं मालूम होगा कि मुखिया को दो घंटे पहले किसी ने मार दिया उसके ठिकाने पर।”

“मुखिया को ?”

कल्लू उसे देखता रहा ।

“मुखिया भी गया ? ” जुगल किशोर के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।

कल्लू ने सहमति से सिर हिलाया।

“किसने मारा मुखिया को ?”

“सुना है की रोनिका के बाप ने जिस आदमी को हीरे देकर यहां भेजामुखिया ने उस आदमी को उठाकर अपने पास कैद कर लिया था। उससे हीरे लेने के लिए। परंतु ऊपर से उसका साथी आ गया। उन्होंने मुखिया के अलावा उसके आदमियों को भी मार दिया।”

जुगल किशोर का मस्तिष्क तेजी से चल रहा था ।

कल्लू को देखते वो गहरी सोच में डूबा रहा।

“रानिका तुम्हारे पास है ?” एकाएक कल्लू ने पूछा ।

“मेरे पास ? नहीं।” जुगल किशोर ने फौरन खुद को संभाला-“वो जाने कहां भाग गई है।”

“तुम्हारे भले की बात बताऊं ?” कल्लू ने सूखे होठों पर जीभ फेरी ।

“कह ।”

“तेरी जान खतरे में है।”

हो गया काम ।

“मैंने किसी का क्या खोल लिया ?”

“सुना है मुखिया के आदमी तेरे को तलाश कर रहे हैं कि रोनिका तेरे पास है।” उसने कहा ।

“रोनिका मेरे पास नहीं है। वो मुझे छोड़ कर भाग गई।”

“मुझे क्या कहता हैजो तेरे को ढूंढ रहे है।  उनसे बात करना।”

“मुखिया तो मर गया। क्या अब भी वो मेरे को ढूंढेंगे।”

“मेरे ख्याल में तो ढूंढेंगे। मेरी सलाह यही है कि पतली गली से निकल जा।”  कल्लू ने गंभीर स्वर में कहा-“मुखिया की मौत से से वे खुश होंगे कि रोनिका मिल गई तो वे उसका सौदा करके छः करोड़ के हीरे पा सकते हैं। अगर तू उन्हें रोनिका के बारे में नहीं बताएगा तो वो तेरे को जिंदा नहीं छोड़ेंगे। बेशक तू लाख कहे कि रोनिका तेरे पास नहीं है। वो तो तेरे को कहेंगे कि तो रोनिका को पैदा कर।”

पच्चीस लाख कमाना आसान नहीं है बेटे।

“तू ये सब मेरे को क्यों बता रहा है ?”

“इन बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं। इसलिए सब कुछ तेरे से कह दिया।  खुद को बचाना तेरा काम है। बेवकूफ तो तू है नहींजो मेरी बात ना समझे।”

जुगल किशोर ने सिगरेट सुलगाई। पैकेट उसकी तरफ बढ़ाया ।

“ले। सिगरेट पी।”

कल्लू ने सिगरेट सुलगा ली।

“तू क्या काम करता है ?”

“टैक्सी चलाता हूं। वो मेरी ही टैक्सी है।”

“जीवन पाल ने जिस आदमी को छः करोड़ के हीरे देकर भेजा है उसके बारे में जानता है कुछ ?”

“संतसिंह ने बताया था कि वो सिल्वर होटल में ठहरा है।”

जुगल किशोर के शरीर पर चीटियां रेग गई ।

“सिल्वर होटल ?”

“हां । फोन पर बात की थी संतसिंह ने की रोनिका को उसके हवाले करके हीरे ले सकेपरंतु तब तक मुखिया ने उसे मार दिया।”

जुगल किशोर अपने गले में कांटे चुभते महसूस कर रहा था।

वो भी तो सिल्वर होटल में ही ठहरा था।

अब और देवराज चौहान भी वही ठहरा हुआ है।

“नाम क्या है उसका जो सिल्वर होटल में ठहरा हैजिसे जीवन पाल ने भेजा है।”

“मैं नहीं जानता। इस बारे में संतसिंह से मेरी कोई बात नहीं हुई थी। मैं जो भी जानता था तेरे को बता दिया अब मेरे पास ऐसी कोई बात नहीं जो तेरे काम की हो।” कल्लू ने गंभीर स्वर में कहा-“मैं ज्यादा देर तेरे पास नहीं रहना चाहता। मुखिया के आदमी ने हमें एक साथ देख लिया तो

“मुखिया के आदमी मुझे पहचानेंगे कैसे ?”

“इस काम में वो मेरा इस्तेमाल कर रहे हैं। वो जानते हैं कि मैंने तुम्हें देखा है । तुम्हें तलाश करते हुए वो मुझे साथ रख रहे हैं। मेरी बहन बीमार है। कठिनता से एक घंटे की छुट्टी लेकर निकलता हूं। ”

“तू उनसे मत कहना कि तुने मुझे देखा है।”

“नहीं कहूंगा।” इसके साथ ही कल्लू ने बाहर निकलने के लिए कार का दरवाजा खोला।

“वो जो सिल्वर होटल में हीरो के साथ ठहरा है। तूने देखा है उसे ?”

“नहीं।”

“हीरे उसके पास है तो सीधा उसे ही क्यों नहीं पकड़ लेते और हीरे

“वो बहुत चालाक है। उसके साथी के पास हीरे हैं जो कि रथपुर में ही कहीं छिपा है। वो रोनिका को देखेगातब उसके कहने परउसका साथी हीरे लेकर सामने आएगा।”

उसका साथी…?

तो क्या जगमोहन हीरे लेकर कहीं छिपा है ?

देवराज चौहान होटल में अकेला ठहरा है ?

रोनिका के बाप ने देवराज चौहान को भेजा है इस काम के लिए या सिल्वर होटल में ठहरना इत्तेफाक ही है। देवराज चौहान अपने किसी काम से वहां ठहरा है। रथपुर आया है ?

इन जवाबों की उसे सख्त जरूरत महसूस होने लगी।

“तू जा ।” जुगल किशोर ने कहा- “किसी से मेरे बारे में बात मत करना।”

कल्लू कार से निकला और पीछे खड़ी अपनी टैक्सी की तरफ बढ़ गया।

जुगल किशोर ने पैंतीस हजारी को स्टार्ट किया और आगे बढ़ा दी। ये सोचकर वो परेशान हुआ जा रहा था कि रोनिका के बाप ने क्या,  देवराज चौहान को भेजा है ?

■■

सिल्वर होटल में प्रवेश करके सोचों में डूबा जुगल किशोर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। एक निगाह लिफ्ट की तरफ मारी। उस पर-“आउट ऑफ ऑर्डर  का बोर्ड कब से लटका हुआ था ।

अभी आधी सीढ़ियां ही चढ़ा होगा कि पीछे से देवराज चौहान की आवाज आई ।

“कब से हो रथपुर में ?”

जुगल किशोर ठिठक कर पलटा।

देवराज चौहान पास आ पहुंचा था।

“दो-तीन दिन हो गए।”  जुगल किशोर ने लापरवाही दर्शाते हुए कहा। जबकि रथपुर में रहते हुए उसे दो सप्ताह होने को आ रहे थे।

“किस काम से हो ?”

“मेरे काम ऐसे ही होते हैं। तुमने अपना कमरा नहीं दिखाया। किस नंबर में हो।”

“नंबर क्या पूछते हो। कमरा ही देख लो ।” देवराज चौहान का स्वर शांत था।

सीढ़ियां तय करके दोनों गैलरी में आगे बढ़ने लगे थे।

“कल शायद मैं रथपुर से चला जाऊंगा।” जुगल किशोर ने यूं ही कहा।

“कहां ?”

“कहीं भी। मेरा काम यहां अब बाकी नहीं रहा ।” कहते हुए जुगल किशोर ने देवराज चौहान पर निगाह मारी।

तभी देवराज चौहान एक बंद दरवाजे के सामने रुका। चाबी निकालकर लॉक खोलने लगा ।

“अकेले हो यहां।”

“हां।”

“जगमोहन साथ नहीं आया ?”

“साथ है। रथपुर में ही है वो ।परंतु कहीं और ठहरा हुआ है।” कहते हुए देवराज चौहान ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश करता चला गया ।

जुगल किशोर ने मन ही मन गहरी सांस ली कि कल्लू की बातें फिट बैठ रही थी। इसका मतलब जगमोहन हीरे लेकर रथपुर में कहीं और मौजूद है देवराज चौहान रोनिका को पाने के लिए यहां है कि जब रोनिका को देख लेगा। सौदेबाजी का आखरी वक्त आएगा तो हीरों के साथ जगमोहन को बुला लेगा ।

जुगल किशोर ने भी भीतर प्रवेश किया ।

“लगता है रथपुर में किसी खास काम पर हो ।”

तभी देवराज चौहान की फोन की बेल बजी ।

उसने फौरन फोन निकालकर बात की ।

“हैलो ।”  

“देवराज चौहान ।” आवाज जीवन पाल की थी- “तुमने कोई खबर नहीं दी।”

जुगल किशोर का ध्यान उसकी बात पर था ।

“जरूरत नहीं पड़ी । देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

“मैंने सुना है कि मामला बिगड़ गया है । रोनिका तुम्हें नहीं मिल रही ?”

“तुमने मुखिया के बारे में कहा था। वो रोनिका को लेकर मेरे सामने नहीं आया। कुछ घंटे पहले उसने मेरे सामने माना कि रोनिका उसके पास नहीं है। वो बेईमान होकर मेरे से हीरे लेना चाहता था।”

तो मेरा ख्याल ठीक निकला। देवराज चौहान ही छः करोड़ के हीरे लेकर आया है कि रोनिका को सही-सलामत वापस ले सके।

“तुमने मुखिया को मार दिया। यही सुना है अभी-अभी मैंने। ”

“हां । ऐसा ही समझो ।

“अब रोनिका कहां है ?”

“मैं नहीं जानता। मुझे वक्त नहीं मिला रोनिका को तलाश करने का।

“तुम अपना करने में असफल रहे।”

“गलत मत बोलो। मेरा काम रोनिका को सुरक्षित वापस लाना था। जिसके पास रोनिका हैवो मेरे पास नहीं आया उसे लेकर। मेरा काम रोनिका को तलाश करना नहीं था जीवन पाल। रोनिका मुझ तक आ जाती तो उसकी सारी जिम्मेवारी मुझ पर थी।”

“मैंने तुम्हें कहा था कि मैं हर हाल में अपनी बेटी को सलामत वापस चाहता हूं।”

“मेरी तरफ से कोई कमी रही हो तो बताओ।”

जीवन पाल की तरफ से आवाज नहीं आई।

“इन हालातों से जाहिर है कि रोनिका खतरे में है। इस खबर के मिलते ही मैं रथपुर आ गया।”

“तुम्हें कैसे पता चला कि यहां पर क्या हो रहा है ?”

“नजर रखनी पड़ती है।” जीवन पाल की आवाज कानों में पड़ी-“तुम्हारे पास पहुंच रहा हूं मैं ।”

“मेरे होटल के बारे में भी मालूम है ? ”

“हां। रथपुर में मेरा आदमी यहां के हालातों पर नजर रख रहा है। उससे ही सब पता चला। पहुँचता हूं तुम्हारे पास। तब बात करेंगे।”

देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में डाला।

खुद को सामान्य रखते  हुए जुगल किशोर कुर्सी पर बैठ गया ।

“किस मामले में फंसे हो। कुछ घंटे पहले ये तो मैंने भी सुना कि मुखिया नाम के दादा को किसी ने मार दिया।”

देवराज चौहान कश लेकर कह उठा।

“इन बातों से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं।”

“वास्ता पैदा होते देर नहीं लगती। हो सकता है रोनिका से मेरी पहचान हो।”

देवराज चौहान की निगाहजुगल किशोर पर  जा टिकी।

“क्या कहना चाहते हो ?” देवराज चौहान का स्वर शांत था ।

“मैंने कहा कि शायद मैं जीवन पाल की बेटी रोनिका के बारे में कुछ जानता हूं। लेकिन इस बारे में तभी तुमसे कुछ बात कर पाऊंगाजब तुम मुझे बताओगे कि मामला क्या है।” जुगल किशोर ने गंभीर स्वर में कहा- “मेरे से बात करके तुम्हें कोई नुकसान नहीं होगा। अगर तुम्हें मेरी बात गलत लगे तो बेशक मेरा सिर फोड़ देना।”

देवराज चौहान ने जुगल किशोर की आवाज में दम महसूस करकेउसे सब कुछ बताया ।

एक-एक शब्द सुना जुगल किशोर ने ।

“मतलब कि जो तुम्हें रोनिका देगा। उसे तुम छः करोड़ के हीरे दे दोगे।” जुगल किशोर का दिमाग उल्टा होकरतेजी से दौड़ने लगा था।

जुगल किशोर को गहरी निगाहों से देखते देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया ।

जुगल किशोर ने पहलु बदला और सिगरेट सुलगा ली।

“क्या हुआ ?” देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर से नहीं हटी थी।

“सोच रहा हूं। सोचने दो।” जुगल किशोर के स्वर में स्पष्ट तौर पर बेचैनी भर आई थी।

“रोनिका तुम्हारे पास है ?” एकाएक देवराज चौहान ने पूछा ।

वो नहीं बोला ।

“जानते हो वो कहां है ?”

जुगल किशोर ने पुनः पहलू बदला ।

“छः करोड़ के हीरों की बात करो। क्या तुम उसे सच में हीरे दोगेजो रोनिका को तुम्हारे हवाले करेगा।”

“हां।” देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।

“मैं अगर तुम्हें रोनिका देता हूं तो तुम मुझे छः करोड़ के हीरे दोगे ।” जुगल किशोर ने फंसे स्वर में पूछा ।

“हां।”

“मुझे तुम पर भरोसा है देवराज चौहान। लेकिनलेकिन छः करोड़ जैसी बड़ी रकम का सवाल

“मुझ पर भरोसा है तो अविश्वास वाली बातें मत करो । बताओ रोनिका कहां है ?”

जुगल किशोर ने सूखे होठों पर जीभ फेरी।

“हीरे जगमोहन के पास है ?”

“हां।” देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान उभरी-“ये भी जानते हो।”

“हीरे दो। मैं तुम्हें रोनिका

“रोनिका दिखा दो। आधे घंटे में जगमोहन हीरों के साथ यहां होगा।” देवराज चौहान बोला।

जुगल किशोर व्याकुल सा कुर्सी से उठा और कमरे में टहलने लगा।

देवराज चौहान की पैनी निगाह उस पर थी ।

“मुझे बताओ क्या परेशानी है। ” देवराज चौहान ने कहा-“मुझसे बात करो।”

“छः करोड़ के हीरों की बात है। वैसे तो मुझे तुम पर विश्वास है लेकिन कभी-कभी विश्वास हिल जाता है-तुम पहले हीरे क्यों नहीं मुझे दे देते। मैं भागूँगा नहीं। मेरे साथ  रहना।”

“रोनिका को मेरे सामने खड़ा कर दो। हीरे  ले लो।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा-“मैं जानता हूं तेरे को फैसला करने में वक्त लगेगा जुगल किशोर। जामैं यही हूं । सोच के बता देना कि तेरे को क्या करना है।”

जुगल किशोर ठिठका और देवराज चौहान को देखने लगा ।

“गलत मत समझो। मैं जानता हूं तुम अपनी जुबान से पीछे नहीं हटोगे।” जुगल किशोर के दिल पर पत्थर रखते हुए कहा–“मुझे छः करोड़ के हीरे दोगे ना ?”

“अगर तुम रोनिका को मेरे हवाले करोगे तो ?”

“आओ ।” बेसब्र सा कह उठा जुगल किशोर- “मैं तुम्हें रोनिका के पास ले चलता हूं।”

देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से देखा फिर उठ खड़ा हुआ ।

दोनों बाहर निकले ।

“कहां है रोनिका ?”

“मेरे पास इसी होटल में । यहां आठ-दस कमरे आगे।”

देवराज चौहान के होठों से गहरी सांस निकल गई ।

जुगल किशोर देवराज चौहान के लिएअपने कमरे के दरवाजे पर रुका। दरवाजा थपथपाया। भीतर से कदमों की आहट उभरी फिर दरवाजे के पास से आवाज आई ।

“कौन ?”

“मैंजुगल ?”

उसी पल दरवाजा खुला ।

जुगल किशोर भीतर प्रवेश कर गया ।

देवराज चौहान उसके पीछे था ।

रोनिका कि देवराज चौहान से आंखें मिली ।

“रोनिका । ये मेरा बहुत पुराना दोस्त है। अचानक ही मिल

“तुम” रोनिका के होठों से निकला ।

देवराज चौहान के होठों पर शांत मुस्कान आ ठहरी ।

जुगल किशोर हड़बड़ा सा उठा ।

“तुम इसे जानती हो ?” जुगल किशोर ने हड़बड़ाकर रोनिका को देखा ।

“हां ।” रोनिका के चेहरे पर खुशी से भरी चमक थी-“मुंबई में बीच पर जब तुमसे मिली थी तो उससे कुछ देर पहले ही इसने मेरी जान बचाईतीन बदमाशों को मारकर। वो मेरी हत्या करने के लिए बीच के शांत इलाके में मुझे ले जा रहे थे । तुम्हारा दोस्त बहुत अच्छा है और शरीफ इंसान है।”

जुगल किशोर ठगा सा रोनिका  को देखता रह गया ।

कहीं इन दोनों को मिलाकर उसने गलती तो नहीं कर दी । ये तो पहले से ही एक दूसरे को जानते हैं। छः करोड़ के हीरे अब ये मुझे देगा कि नहीं ?

“तुम्हें सामने पाकर सच में मुझे खुशी हुई।” रोनिका कह उठी-“ मैंने तो सोचा भी नहीं था कि कभी तुमसे मिल पाऊंगी । अब मुझे किसी का डर नहीं। तुम अवश्य मेरी सहायता करोगे। मुझे मेरे पापा तक पहुंचा दोगे। उस वक्त तुम अवश्य व्यस्त रहे होगे। अब तो मेरे लिए तुम्हारे पास वक्त होगा।”

मेरी हालत तो दूध में पड़ी मक्खी की तरह हो गई।

“इस समय तो मेरा सारा वक्त ही तुम्हारा है। ” देवराज चौहान के है उठा ।

“क्या मतलब ?”

“जीवन पाल ने केशोपुर से मुझे भेजा हैतुम्हें वापस लाने के लिए।”

“ओह”  रोनिका से कुछ कहते ना बना। वो खुश थी ।तभी जुगल किशोर बोला।

“मैंने अपना वादा निभाया। रोनिका को तुम्हारे हवाले कर दिया।”

देवराज चौहान ने उसी वक्त नंबर मिलाया। जगमोहन से बात की।”

“हीरे लेकर मेरे पास आ जाओ।”

“क्या ? ” जगमोहन का हैरानी भरा स्वर कानों में पड़ा-“रोनिका मिल गई।”

“हां।” रोनिका से मिले हो तुम ?”

“चिंता मत करो। सब ठीक है। रोनिका मेरे सामने खड़ी है। तुम हीरों के साथ यहां पहुंचो। जीवन पाल भी रथपर में है। और यहां कभी भी पहुंच सकता है।” देवराज चौहान ने कहा।

“ओह ! मैं पहुंचा । रोनिका किसके पास थी ? किसने रोनिका को तुम्हारे हवाले किया ?”

“जुगल किशोर ने ।”

“कौन…?”

“जुगल किशोर। वो ही जो तुम समझ रहे हो।” देवराज चौहान के होठों पर मुस्कान उभरी ।

“वो हरामी फटीचर।” जगमोहन के चीखने की आवाज आई-“वो साला छः बकरोड़ के हीरे लेगा। मर जाएगाइतना माल अपने पास देख कर। पागल हो जाएगा। करोड़ों को सह नहीं सकेगा। उसे

देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।

जुगल किशोर की सवालियां निगाह देवराज चौहान पर थी।

“जगमोहन आ रहा है।” देवराज चौहान ने कहा।

“हीरे लेकर।”

“हां । अब वो तुम्हारे हैं।”

“क्या मतलब ।” एकाएक रोनिका कह उठी-“हीरेछः करोड़ के हीरों की बात कर रहे हो ।”

“हांहां।” जुगल किशोर सकपकाया ।

“तुम्हारा हीरों से क्या वास्ता। तुम तो पच्चीस लाख के लिए काम कर रहे थे। जब मुझ पर सब खतरे हट जाएंगे तो तुम्हें पच्चीस लाख दूंगी।” रोनिका की आंखें सिकुड़ चुकी थी। जुगल किशोर ने जल्दी से देवराज चौहान को देखा ।

“रोनिका ।” देवराज चौहान ने कहा-“तुम्हारा पच्चीस लाख का मामला अलग है कि तुम दोनों में क्या बात हुई । छः करोड़ के हीरों की बात से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं। जीवन पाल के बीच मेरी बात तय हो चुकी है कि रोनिका को मेरे हवाले करेगावो ही छः करोड़ के हीरे लेने का हकदार बनेगा।”

रोनिका ने देवराज चौहान की बात पर जरा भी ऐतराज नहीं उठाया।

जुगल किशोर ने राहत भरी लम्बी सांस ली ।

बच गए। मैंने तो सोचा थासाली हड़ताल कर देगी कि मुझे हीरे नहीं देने है।

जीवन पालआशारामप्रमोद सिंह सिल्वर होटल के बाहर कार से उतरे तो वहां पर पहले से ही मौजूद लेखा ने उन्हें देखा तो आंखें सिकुड़ गई। होंठ भिंच से गए ।उसके मुताबिक जीवन पाल को यहां नहीं होना चाहिए था।

फौरन ही फैसला करके वो जीवन के पास के पास पहुंचा।”

“मालिक।”

“तुम ? ”जीवन पाल ने उसे देखा तो हैरानी से कह उठा-“तुम यहां पर लेखा

“जी मालिक।”

“लेकिन यहां पर कैसे ? तुम तो छुट्टी लेकर

“क्या करूं मालिक । आपने तो मुझे पराया समझा। छोटी मालकिन का अपहरण हो गया और मुझे बताया तक नहीं। बहुत गलत किया आपने। लेकिन मैंने तो आपका नमक खाया है। सब कुछ मालूम होते ही छुट्टी लेकर रथपुर आ गया।”

“तो यहां आकर तुमने क्या किया ?” जीवन पाल ने उलझन भरे स्वर में कहा- “रोनिका का पता लगाया।”

“मालिक । रोनिका का पता तो देवराज चौहान लगा रहा है।” लेखा ने कहा- “मैं देवराज चौहान की सहायता कर रहा हूं। दो बार मुखिया के आदमियों ने देवराज चौहान को घेरकर मारना चाहा। देवराज चौहान का अपहरण भी किया। लेकिन मैंने ही देवराज चौहान को बचाया। कहा कि तुम रोनिका तलाश करोऐसे लोगों को मैं संभाल लूंगा। देवराज चौहान लगा हुआ है रोनिका मालकिन को तलाश करने में कि मैंने आपको देखा है यहां पर ।”

आशाराम और प्रमोद सिंह की नजरें मिली।

“मुखिया कैसे मरा ?” प्रमोद सिंह ने पूछा ।

“मैंने मारा ।” लेखा ने सपाट स्वर में कहा- “रोनिका मालकिन उसके पास नहीं है। ऐसे में देवराज चौहान का अपहरण करकेदेवराज चौहान से छः करोड़ के हीरे पा लेना चाहता था। मैं बीच में ना आता तो देवराज चौहान को मार देता।”

जीवन पाल ने सिर हिलाया ।

“अब तक तो लेखामैं इसलिए पीछे था कि इस मामले में मेरा नाम ना उछले। खामोशी से मेरी बेटी मुझे ठीक-ठाक वापस मिल जाए। लेकिन मुझे लगता है कि मेरी बेटी खतरे में है। मुझे ये मामला देवराज चौहान के हवाले ना करकेखुद ही सब कुछ कर चाहिए था।” जीवन पाल की आवाज में खतरनाक भाव आ गए-“अपहरण के मामले हमेशा फौरन निपट जाने चाहिए नहीं तो जिसका अपहरण होता हैउसकी जान खतरे में पड़ जाती है और मैं किसी भी हालत में अपनी बेटी का बुरा नहीं होने देता।”

“अब आप आ गए हैं मालिक ।” लेखा ने सर्द स्वर में कहा-“मुझे हुक्म दीजिए कि क्या करना है।”

“आओ । पहले देवराज चौहान से बात हो जाए। मैं उसके हाथ से मामला वापस लेकरअपने ढंग से काम करूंगा। रोनिका को वापस पाने के लिए मैं इतना लंबा इंतजार नहीं कर सकता।” कहने के साथ ही जीवन पाल आगे बढ़ गया ।

“आओ लेखा।” आसाराम ने कहा और वे तीनों भी आगे बढ़ गए ।

■■

देवराज चौहान के कमरे में प्रवेश करते हुए जीवन पाल के कदम जड़ हो गए। देवराज चौहान के अलावा वह जुगल किशोर और रोनिका भी थी।

जीवन पाक अविश्वास भरी निगाहों से रोनिका को देखता रह गया ।

“पापा ।” रोनिका का स्वर कांप सा उठा।

“बेटी ।”

रोनिका भागी और जीवन पाल के गले जा लगी। 

“कैसी हो बेटी ? ”  जीवन पाल उसके सिर पर हाथ फेरता कह उठा। उसकी आंखों में आंसू थे।

“अच्छी हूं पापा। मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि आप सामने है मेरे।”

“मैं तेरे पास ही हूं बेटी। सब ठीक हो गया।” जीवन पाल ने रोनिका को अपने से अलग किया और देवराज चौहान को देखा-“तुमतुमने बताया नहीं कि रोनिका तुम्हारे पास है।”

“पहले ये मेरे पास नहीं थी। कुछ देर पहले ही मिली है मुझे ।” देवराज चौहान ने कहा और जुगल किशोर की तरफ इशारा किया-“इसे रोनिका को मेरे हवाले किया है।” इसने रोनिका को मेरे हवाले किया है।”

जुगल किशोर सकपका सा उठा ।

दरवाजे पर लेखा प्रमोद सिंह और आशाराम खड़े थे।

जीवन पाल ने दांत भींचकर जुगल किशोर को देखा।

“तो तुमने मेरी बेटी का अपहरण किया ।

“ममैं ?” जुगल किशोर के होठों से निकला ।

तभी लेखा दो कदम आगे बढ़ा ।

“मालिकइसे में संभालू ?”

रोनिका के होठों पर मुस्कान फैल गई ।

“पापा इसका कोई कसूर नहीं। ये तो मुझे बचाता रहा है और इस देवराज चौहान ने तो मुंबई में भी मुझे बचाया थाजब बदमाश लोग मेरी हत्या करने जा रहे थे।” रोनिका ने कहा ।

“मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या हो रहा है। क्या मामला है ? ” जीवन पाल उलझन भरे स्वर में कहा उठा ।

रोनिका ने देवराज चौहान की मुंबई में मिलने से लेकर जुगल किशोर के साथ रथपुर में हुए सारे मामलों की जानकारी जीवन पाल को दी। जो रोनिका नहीं जानती थीवो जुगल किशोर ने बताया ।

जीवन पाल ने उनकी एक-एक बात को ध्यान से सुना।

लेखाआशाराम और प्रमोद सिंह भी सब सुन रहे थे ।

उनके खामोश होने पर जीवन पाल ने सिगरेट सुलगाई फिर शब्दों को चबाकर बोला ।

“लेकिन बात क्या है ? मुंबई में हुआ क्यातुम्हें वहां से भागना क्यों पड़ा ? ” तुम तो वहां पढ़ाई कर रही हो।”

रोनिका का चेहरा कठोर हो गया ।

“ये सब आपकी गलती की वजह से हुआ हैमां की मौत के बाद आपने उस घटिया औरत से शादी कर ली।”

“क्या मतलब?” जीवन पाल की आंखें सिकुड़ी ।

“पापा ।” रोनिका ने गंभीर स्वर में कहा- “मैं आपकी बेटी हूं। औलाद को पिता के सामने ऐसी बातें मुंह से नहीं निकालनी चाहिये। लेकिन चुप भी नहीं रह सकती। जिससे आपने ब्याह किया है। वो गिरे चरित्र की घटिया औरत है। जाने कितने मर्द से उसका संबंध रहा है। वैसे बीस साल पहले उसका ब्याह हो गया था और तब उसने लड़के को जन्म दिया था। पति के साथ-साथ बहुतों से उसका रिश्ता चलता रहा। उसमें से एक सुदर्शन सिटी भी था जो कि उसका दीवाना था और।”

“सुदर्शन सेठी ? ” जीवन पाल के होठों से निकला ।

“हां। वो ही सेठीजो केशोपुर में अखबार चलाता है।”

जीवन पाल के दांत भींच गए ।

“आगे बोलो।”

“मीरा हमेशा ही दौलत की भूखी रही। जबकि उसका पति ज्यादा नहीं कमाता था। मीरा ही अपने दोस्तों से पैसा लाती थी और घरवाले सारे ऐश करते थे। मुंबई में हर बुरा काम करती थी मीरा। तभी मीरा की मुलाकात आपसे हो गई और आप उसकी खूबसूरती पर फिदा हो गए। मां तो दुनिया में रही नहीं रही थी। तो आपने मन ही मन मीरा को अपनी पत्नी के रूप में देखा। मीरा आपके मन की बात भांप चुकी थी। मालूम कर चुकी थी केशोपुर में कितनी बड़ी हस्ती रखते हैं आप। ऐसे दौलतमंद आदमी को मीरा कैसे जाने देती। उसके मन में कई विचार उठने-बैठने लगे। सेठी से तो पहले ही रिश्ता था मीरा का। उसने सेठी से बात की। दोनों ने मिलकर इस योजना को अंजाम दिया। उनमें तय हुआ कि दौलत आधी-आधी होगी। अब उनके सामने दो बातें थी। मीरा का आपसे ब्याह करना और उसके बाद आपकी इस हत्या  करना कि वो आत्महत्या लगे। दोनों ने यही विचार बनाया कि आपकी कोई कमजोरी बार-बार अखबारों में छापी जाए और उसी वक्त में आप की हत्या कर दी जाए। फिर अखबार ये छापे की बदनामी से बचने के लिए आपने आत्महत्या कर ली।”

जीवन पाल के दांत भिंच गए। दरिंदगी चेहरे पर नाच उठी ।

“लेकिन उस वक्त उनके सामने ये समस्या थी कि मीरा आपसे ब्याह कैसे करे। क्योंकि वो तो ब्याहता थी। उसका पन्द्रह साल का लड़का था तब। आपको मीरा ने यही बताया कि उसके आगे-पीछे कोई नहीं। उसकी बात को सच मान लिया। मीरा की कहीं भी पूछताछ नहीं की। वो परेशान थी आप जैसे दौलतमंद से शादी करने के लिए। ऐसी में उसने आनन-फानन ही फैसला कर लिया। सेठी को अपने घर बुलाया। पहले से ही योजना बना रखी थी। मीरा ने अपने पति के हाथ-पांव पकड़े और सेठी ने चाकू से उसे मार दिया।”

रोनिका के चुप होते ही वहां खामोशी आ ठहरी।

“मीरा ने अपने पति को इस तरह मारा कि लगे घर में लुटेरे आ घुसे थे। सेठी की पहुंच ऊपर तक है। उसने सारा मामला बढ़िया ढंग से संभाल लिया। वो आत्महत्या ही लगी। सेठी के पैसे ने कमाल दिखाया। उसके बाद मीरा ने आपसे शादी कर ली केशोपुरा आकर। उससे पहले उसने अपने लड़के को हॉस्टल में पढ़ने को डाल दिया। वो नहीं जानता कि उसकी मां मीरा कहां है। सेठी ही उसकी सारी जरूरतों को पूरा करता । ऐसा इसलिए कि कोई ये ना जान सके कि मीरा ब्याहता  थी । कोई उसकी औलाद भी है । पांच सालों में मीरा आपकी हत्या के लिए कोई आसान रास्ता तलाश कर रही है।”

“हरामजादी।” जीवन पाल दांत किटकिटा उठा।

तभी देवराज चौहान बोला ।

“इस सारे मामले में तुम कहां से आ गई।”

“वही बताने जा रही हूं।” रोनिका के चेहरे पर नफरत और क्रोध था-“मीरा का लड़का अब कॉलेज में पढ़ रहा है। और मेरा सहपाठी है। मित्र है मेरा। हम दोनों कई बार दोस्तों के ग्रुप में मिलते हैं। पिकनिक पर जाते हैं । मैं नहीं जानती थी कि मीरा का लड़का है वो। और उसे नहीं मालूम था कि उसकी मां ने मेरे पापा से शादी कर ली है। वो नहीं जानता कि उसकी मां कहां है। मीरा उससे सिर्फ फोन पर ही बात कर लेती है। एक बार मैं उसके रुम में बैठी थी। साथ में मेरी सहेली भी थी। वो मुझे दुखी लगा । मैंने और मेरी सहेली ने बहुत जोर देकर पूछा कि वो अक्सर परेशान और दुखी क्यों रहता है। हमने उसे विश्वास में लेकर पूछा तो उसने बताया कि उसकी मां ने अपने दोस्त के साथमिलकर अपने पति की हत्या की और तब वो दूसरे कमरे में था। बैड के नीचे छिप गया था। सब कुछ देखा उसने । सुनकर मैं और मेरी सहेली सकते में रह गए। उसने बताया कि तब उसने नया-नया कैमरा खरीदा था ।तस्वीरें लेने का शौक था उसे और जब उसके पिता की हत्या की गई तोउसने उस वक्त की कई तस्वीरें खींच ली।”

सबकी निगाह रोनिका पर थी ।

“उसने अपनी मां का नाम मीरा और उसके दोस्त का नाम सेठी बताया।”

“मीरा नाम की तो बहुत औरतें हैं।”

“हां । तभी तो मैं सोच भी नहीं सकी कि पापा आपने जिस मीरा से शादी की हैवो उसी मीरा का बेटा है और उसी की बातें मुझे बता रहा है।” रोनिका कड़वे स्वर में कह उठी-“मेरी सहेली को बहुत जोर देने पर उसने टेबल के ड्राइवर का लॉक खोलकर लिफाफा निकाला और उसमें से तस्वीरें निकाल कर दिखाई। तस्वीरों पर नजर पड़ते ही मैं पत्थर का बुत बन गई। उन तस्वीरों में आपकी पत्नी मीरा थीजिसने एक व्यक्ति के दोनों हाथों को दबा रखा है और दूसरा व्यक्ति उस व्यक्ति को चाकू मार रहा है  तस्वीरों में सब कुछ स्पष्ट था। हर सवाल का जवाब उस तस्वीर में था कि तस्वीर में क्या हो रहा है। उसने ये बात इसलिए आज तक किसी को नहीं बताई थी कि उसकी माँ को पुलिस पकड़ लेगी। तस्वीर वाला व्यक्ति उसके पास एक-दो महीनों में एक बार आता था और खर्चा-पानी दे जाता था। वो नहीं जानता कि वो व्यक्ति कौन है। उसे सिर्फ इतना मालूम था कि इस व्यक्ति ने उसकी मां के साथ मिलकर उसके पिता को जान से मारा है। उस व्यक्ति को एक बार मैंने भी उसके पास आया देखा था। और उस व्यक्ति सुदर्शन-सेठी को मैं भी नहीं जानती थी बरहाल उस वक्त उन तस्वीरों को देखकर मेरी क्या हालत हुई होगी। ये आप सोच ही सकते हैं। उसी वक्त मैंने फैसला किया कि इस सच्चाई की जानकारी आपको होनी चाहिए कि जिस औरत को आपने पत्नी बना रखा हैअसल में कैसी नीच हरकतों की मालकिन है। हत्यारी है और आपकी भी जान ले लेना चाहती है।”

हैरानी में डूबे सब सुन रहे थे रोनिका की बात।

जीवन पाल का चेहरा गुस्से से सुलग रहा था ।

देवराज चौहान और जुगल किशोर के चेहरे गंभीर थे।

आशारामप्रमोद सिंह और लेखा के चेहरे पर सख्तियां थी।

“अजीब ही मामला सामने आ रहा है।” जुगल किशोर ने धीमे स्वर में देवराज चौहान से कहा ।

“तेरे को पहले नहीं बताया रोनिका ने ?”

“नहीं । पूछा । लेकिन नहीं बताया।” जुगल किशोर ने इनकार में सिर हिलाया ।

“रोनिका को लेकर भागता रहालेकिन ये नहीं मालूम था तेरे को कि उसेकिस से बचाना है।” देवराज चौहान ने उसे देखा ।

“इसने नहीं बताया तो मैं क्या करता। फिर भी जितना कर सकता था किया।” जुगल किशोर ने गहरी सांस ली-“वो वक्त ऐसा नहीं था कि रोनिका पर किसी बात को पूछने के लिए दबाव डाल सकता। मैंने सोच लिया था कि अगर इसे सुरक्षित इसके बाप तक पहुंचा देता हूं पच्चीस लाख मिल जाएगा। नहीं तो अपने रास्ते पर लग जाऊंगा। ”

तभी रोनिका कह उठी।

“मीरा के बेटे की बातों से मालूम हो गया था कि वो अपनी मां को प्यार करता है। कम से कम उन तस्वीरों के दम पर मीरा को किसी मुसीबत में नहीं फंसा एगा। उन तस्वीरों को वो मेरे हवाले नहीं करेगा। सावधानी के नाते मैंने उसे नहीं बताया कि उसकी मां मीरा ने मेरे पापा से ब्याह रखा है। बाद में ये बात मैंने अपनी सहेली से की। सब कुछ उसे बताया। फिर मैं और मेरी सहेली सोचने लगी कि कैसे तस्वीरेंइससे हासिल करें उसी रात हम उसके कमरे में गए। तब वो खाना खाने गया था। चाबियां भी उसके कमरे से मिल गई। ड्रॉअर खोलकर हमने वो तस्वीरें और साथ में ही पड़े नेगेटिव्स लिए और मैं अपने कमरे चली आई। मेरी सहेली अपने कमरे में चली गई। उसके बाद जब वो लौटा तो तस्वीरें नेगेटिव्स  गायब मिले उसे। ड्रॉअर खुला देखा। तब उसका हम पर ही शक गया होगा। उसने फोन पर अवश्य सेठी को खबर दी होगी कि उसके पास तस्वीरें थी और कोई उसे ले गया। मेरा और मेरी सहेली का ही उसने जिक्र किया होगा।अगले दिन सुबह ही सुदर्शन सेठी वहां आ गया। सारी बात उसे पता चली। उसके बाद मैं उस लिफाफे को पैक करकेउसे पापा को पोस्ट करने के इरादे से सहेली के साथ बाहर निकली की एक सड़क पर कुछ लोगों ने मुझे और मेरी सहेली को पकड़ लिया। लिफाफा मैंने अपने कपड़ों में छुपा रखा था। फिर एक मकान में मुझे और मेरी सहेली को ले गया। वहां सुदर्शन सेठी मौजूद था। जब उसे पता चला कि मैं आपकी बेटी हूं तो वो अपने और मीरा के लिएसाथ ही आपकी जायदाद के लिए मुझे भारी मुसीबत मानने लगा। उसने मुझे मालूम करने की चेष्टा की की वो तस्वीरें और नेगेटिव्स कहां है। मेरी सहेली को भी पूछा। लेकिन हमने यही कहा कि हमारे पास नहीं है। सेठी ने अपने आदमियों से कहा कि वे मुझे ले जाए और खत्म कर दे। तस्वीरें-नेगेटिव्स के बारे में तो मेरी सहेली से भी पूछ लेंगे। उसी वक्त उसके तीन आदमी मुझे लेकर वहां से चल दिए कि मेरी हत्या कर सके। अभी आधे रास्ते पर ही पहुंचे होंगे की सेठी का फोन आया। बदमाश के मोबाइल फोन पर की वो लिफाफा मेरे ही पास है। मेरी सहेली को यातना देकर उसका मुंह खुलवा लिया होगा। तब बदमाशों ने कपड़ों में छिपे तस्वीरें और नेगेटिव्स का लिफाफा बरामद कर लिया। कुछ देर बाद ही बीच के सुनसान हिस्से में ले जाकर उन्होंने मेरी हत्या कर देनी थी कि इटेत्तेफा से देवराज चौहान बीच में आ गया और उन तीनों को मार कर मुझे बचा लिया। लिफाफा फिर से मेरे पास आ गया। तब जुगल किशोर मुझे मिला और उसके बाद जो भी हुआवो तो आपको बता ही चुके हैं।”

पल भर के लिए वहां गहरी खामोशी छा गई ।

रोनिका ने लिफाफा निकालकर जीवन पाल को दिया।

“इसमें तस्वीरें और नेगेटिव्स हैं पापा। ये खतरा मैंने इसलिए मोड़ लिया कि आपकी आंखें खुल जाएं कि आपने गलत औरत के साथ शादी की है। वो औरत आपकी और मेरी जान की दुश्मन है। वो अपने पहले पति की हत्या कर चुकी है और अब आपकी हत्या करने की तैयारी में है।”

दांत भींचें जीवन पाल ने लिफाफा खोला। तस्वीरें देखी।

सबने आगे बढ़-बढ़कर देखी।

मीरा पाल और सुदर्शन सेठी ने किसी भी हाल में नहीं बचना था।

“पाल साहब ।” प्रमोद सिंह ने खतरनाक स्वर में कहा-“पुलिस इन्हें नहीं छोड़ेगी। मर्डर करते हुए दोनों साफ नजर आ रहे हैं। ये किसी कीमत पर नहीं बच सकेंगे।”

“जब मेरा दबाव होगा तो ये खुद को बचाने की कोशिश भी नहीं कर सकेंगे।” जीवन पाल ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा-“सच में मैंने बहुत ही गलत औरत के साथ शादी की। वो मेरी जान की दुश्मन बन गई। मेरी बेटी की जान लेना चाहती है। मालूम नहीं था मुझेवरना मैं अपने हाथों से उसका गला

“वो वक्त निकल गया है। अब तो तुम्हें अपने गले की फिक्र करनी चाहिए जीवन पाल।”

सबने चौककर दरवाजे की तरफ देखा ।

वहां मीरा पाल खड़ी थी। मौत से भरे भाव चेहरे पर समेटे। उसकी बगल में जो रिवॉल्वर थामे खड़ा थावो सुदर्शन सेठी था। उसकी आंखों में वहशी भाव नजर आ रहे थे ।

आशाराम का हाथ फौरन जेब की तरफ सरका।

“खबरदारजो किसी ने रिवॉल्वर निकालने जैसी हरकत की।” सुर्दशन सेठी गुर्रा उठा-“ऐसे मौके पर मुझसे रहम की  जरा भी उम्मीद मत करना। यहां हम जान देने नहींलेने आए हैं।”

आशाराम का हाथ रुक गया।

“सेठी।” जीवन पाल मौत भरे स्वर में कह उठा-“मैं नहीं जानता था कि तू इतना बड़ा हरामजादा है। ना ही इस नागिन को जानता था। वरना तुम दोनों अब तक जिंदा होते ही नहीं।”

“बातें भी करेंगेपहले काम हो जाए।” सेठी ने दांत पीसे-“मीरा,तस्वीरें-नेगेटिव्स लें।”

मीरा आगे बढ़ी और जीवन पाल के हाथ से तस्वीरें-नेगेटिव्स ले लिए।

“पापा। कुछ करो।” रोनिका दबे स्वर में चीख उठी। मीरा हंसी और पीछे हट गई।

“सेठी।” मीरा की आवाज में खुशी के भाव थे- “भगवान हमारा साथ दे रहा है। तस्वीरें-नेगेटिव्स हमें मिल गए। अब कोई खतरा नहीं। कितने खुशनसीब है हम।”

देवराज चौहान खामोश खड़ा सब कुछ देख रहा था चेहरे पर शांत भाव थे।

सुदर्शन सेठी हंसा। सावधानी से रिवाल्वर थाम रखी थी । वो सतर्क था ।

“तुम्हारी सारी मेहनत बेकार रही।” मीरा पाल ने कड़वे स्वर में कहा- “तुमने बहुत कोशिश की कि ये तस्वीरें-नेगेटिव्स अपने बाप को दो और पुलिस मुझे और सेठी को हत्या के जुर्म में जेल में ठूंस दे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका। खेल का पासा हमारे ही हक में रहा।”

“छः करोड़ के हीरे कहां है ?” सेठी बोला-“वो लो इनसे।”

“जीवन” मीरा पाल शब्दों को चबाकर बोली-“छः करोड़ के हीरे मेरे हवाले कर।”

जीवन पाल दरिंदगी भरी नजरों से मीरा पाल को देख रहा था ।

उसी पलबला की फुर्ती के साथ लेखा ने रिवॉल्वर निकाली और हाथ हिलाते हुए दो बार ट्रेगर दबाया। कानों को फाड़ देने वाले तीव्र धमाके हुए। एक गोली मीरा पाल की छाती में लगी। दूसरी सुदर्शन सेठी के माथे पर । उसके बाद तो वे खड़े भी नहीं रह सके। दोनों ही गिरने से पहले मर चुके थे। प्रमोद सिंह फुर्ती से आगे बढ़ा और दरवाजे पर पड़ी सुदर्शन सेठी की लाश को भीतर खींचकर दरवाजा बंद कर लिया । आशाराम ने नीचे गिरी पड़ी तस्वीरें और नेगेटिव्स उठाये और जीवन पाल के हवाले कर दिए।

लेखा रिवॉल्वर थामे सर्द निगाहों से दोनों लाशों को देख रहा था।

“बहुत बढ़िया हैजीवन पाल का ये आदमी।” जुगल किशोर ने धीमे स्वर में कहा।

देवराज चौहान शांत सा खड़ा रहा ।

जीवन पाल ने होंठ भींचे तस्वीरें-नेगेटिव्स थामे और लाशों को देखकर सर्द स्वर में बोला-

“इन लाशों की कोई परवाह नहीं। मैं पुलिस से बात कर लूंगा।” फिर उसको देखा-“हमेशा की तरह तुमने आज भी बहुत बढ़िया काम किया। इन दोनों का मर जाना ही ठीक था।

“देवराज चौहान ।” जुगल किशोर बेचैनी भरे स्वर में कह उठा-“हीरे कब मिलेंगे। मैं

तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई।

दो पलों के लिए कमरे  की हरकत थम गई ।

“फायरों की आवाज सुनकर कोई आया होगा।” आशाराम होंठ भींचकर कर बोला ।

“खोल दो दरवाजा ।” जीवन पाल ने सख्त स्वर में कहा-“मैं सब देख लूंगा।”

प्रमोद सिंह ने दरवाजा खोला।

जगमोहन था बाहर । यहां सब लोगों को और लाशों को देखकर वो उलझन में भरा भीतर आया। ऐसा नजारा होगा। ये तो सोचा ही नहीं था उसने।

“ये सब क्या…?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखते ही पूछना चाहा तो देवराज चौहान ने टोका।

“हीरे दो।”

जगमोहन ने जेब से हीरों की दो थैलियां निकाली और देवराज चौहान को दी। देवराज चौहान ने हीरों की दोनों थैलियां जुगल किशोर को थमा दी। हीरे लेते हुए जुगल किशोर का शरीर कांप रहा था। इतना बड़ा हाथ कभी मार सकेगासपने में भी कभी नहीं सोचा था उसने।

“संभाल अपने को ।” जगमोहन कड़वे स्वर में कहा उठा- “तेरा थोबड़ा बता रहा है कि तेरे को दिल का दौरा पड़ने वाला है।”

वास्तव में जुगल किशोर की हालत कुछ ऐसी ही थी ।

देवराज चौहान ने जीवन पाल से कहा ।

“अब यहां मेरी कोई जरूरत नहीं । तुम्हारा काम हो गया।”

“शुक्रिया  ।” जीवन पाल के होठों पर जबरदस्ती की मुस्कान उभरी-“तुमने अपना काम पूरा किया।”

“शुक्रिया फिर देना। पहले पचास लाख की बात करो। वो दो और” जगमोहन कह उठा।

“मेरा पैसा केशोपुर में पड़ा है।”

“केशोपुर में ? ” जगमोहन ने मुंह बनाकर देवरा चौहान को देखा-“सुना।”

“पचास लाख हर वक्त तैयार रखना।” देवराज चौहान बोला-“हम कभी भी वहां आकर तुम से ले लेंगे।

जीवन पाल ने सहमति से सिर हिलाया।

“मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूं।” जुगल किशोर ने जल्दी से कहा ।

देवराज चौहान और जगमोहन ने उसे देखा।

तभी रोनिका बोल उठी ।

“अभी तुम कैसे जा सकते हो जुगल ।”

“कक्या मतलब ? ” जुगल किशोर हड़बड़ा कर बोला ।

“मुझ पर तुम्हारा उधार है। तुम जैसे भी होमुझे दुश्मनों से बचाकर रखा। तुम्हारा पच्चीस लाख

“रहने दो। उसकी मुझे जरूरत नहीं।”  जुगल किशोर ने जल्दी से कहा।

“अब तो साला दानवीर बन गया है।” जगमोहन कड़वे स्वर मैं बोला-“पांच-पांच रुपए को ढूंढता था और पच्चीस लाख की जरूरत नहीं। छः करोड़ के हीरों की गर्मी बोल रही है।”

“पापा ।” रोनिका कह उठी-“जुगल को नहीं जाने देना। ये मेरे बहुत काम आया है। कई बार मुझे बचाया है। मुसीबत के वक्त में बहुत सहारा रहा इसका मुझे। पच्चीस लाख इसे हर हाल में देने हैं। मैंने इससे वायदा किया था कि मैं ठीक-ठाक पापा के पास पहुंच जाऊंगी तो इसे पच्चीस लाख दूंगी।”

“तुम हमारे साथ चलो।” जीवन पाल ने गंभीर स्वर में कहा-“केशोपुर पहुंचकर तुम्हें पच्चीस लाख दूंगा। रोनिका बेटी का वायदा है। मैं पूरा करना चाहूंगा।”

जुगल किशोर तो हीरों को लेकर भाग जाना चाहता था। पच्चीस लाख की परवाह ही अब किसे थी। परंतु जीवन पाल के शब्दों के बाद निकल जाने के लिए जोड़ देना ठीक नहीं था ।

“हमारे पचास लाख तैयार रखना जीवन पाल।” जगमोहन ने कहा-“बिना खबर दिए हम दो-चार दिन में ही तेरे पास केशोपुर पहुंचेंगे। तब ये सुनने को ना मिले कि अभी गड्डियां गिनी नहीं।”

“जब भी आओगे । सूटकेस तैयार-बंद मिलेगा ।”

“नोटों से भरा सूटकेस पचास लाख से कम ना हो।”

जवाब में जीवन पाल मुस्कुरा कर रह गया ।

देवराज चौहान और जगमोहन बाहर निकल गए ।

जीवन पाल ने मीरा और सुदर्शन सेठी की लाशों को देखा ।

“आशाराम । पुलिस को फोन करो। इन लाशों का इंतजाम करके वापस चलते हैं।”

“मालिक ।” लेखा ने सर्द स्वर में कहा-“ये काम तो बाद में भी हो जाएंगे ।”

सबकी निगाहें लेखा की तरफ गई ।

रिवॉल्वर थामें लेखा जुगल किशोर की तरफ बढ़ा।

“मैंने आपकी बहुत सेवा की। मरने से पहले आपकी हरामी बीवी मीरा ने मुझे इतना समझा दिया था कि यूँ जिंदगी बिताने का कोई फायदा नहीं। मुझे अपने लिए भी कुछ करना चाहिए। यही सोच कर मैं रथपुर आ गया कि इन छः करोड़ के हीरों के दम पर में नई जिंदगी शुरु कर सकता हूं।” जुगल किशोर के पास पहुंचकर उसके हाथों से हीरों की दोनों थैलियां ले ली ।

हक्के-बक्के से जुगल किशोर ने जरा भी ऐतराज नहीं किया। लेखा तो गोली चलाते देख चुका था कि किस आसानी से उसने मीरा और सेठी को शुट कर दिया था ।

जीवन पाल आंखें सिकोड़े लेखा को देख रहा था।

प्रमोद सिंह और आशाराम लेखा का बदला रूख देखकर हैरान हो उठे थे।

“लेखा।” जीवन पाल का स्वर बेहद शांत था-“ये सब तो मजाक तो नहीं कर रहे ? ”

“नहीं । मैं कभी भी मजाक नहीं करता मालिक। आप जानते हैं। वैसे मैं ये सब ना करताअगर आपकी पत्नी ने मुझे औरत के शरीर का स्वाद ढंग से ना चखाया होता। सच में इंसान के लिए औरत बहुत जरूरी होती है और जिंदगी बिताने के लिए पैसा। इन छः करोड़ के हीरों से मैं यही सब करूंगा। मैंने आपकी बहुत सेवा की है और आपने मेरा बहुत ध्यान रखा । ऐसे में हीरो का हकदार तो मैं बनता ही हूं।”

“होश में आओ लेखा। तुम

“अब होश में ही तो आया हूं। चलता हूं। मेरी तलाश मत करना। पुलिस को मेरे पीछे लगाने की कोशिश भी मत करना ।

आपको तो मालूम ही है कि मेरा निशाना कभी नहीं चूकता। ऐसा मौका मुझे मत देना कि मुझे आपके सिर का निशाना लेना पड़े मालिक।”

जीवन पाल मौत भरी निगाहों से लेखा को देख रहा था।

“लेखा मेरी ताकत को तुम अच्छी तरह जानती हो कि

“जानता हूं तभी तो कहा है मालिक कि मेरे अचूक निशाने को कभी मत भूलना।” लेखा ने सर्द स्वर में कहा और एक हाथ में रिवॉल्वर और दूसरे हाथ में हीरों की दोनों थैलियां दबाये सावधानी से दरवाजे की तरफ बढ़ा। उसकी आंखों में मौत भरी चमक ठहरी हुई थी।

तभी दरवाज़ा खुला ।

कुछ की निगाह दरवाजे की तरफ गई।

लेखा फुर्ती से घूमा ।

दरवाजे पर रिवॉल्वर थामें देवराज चौहान खड़ा था  एक कदम पीछे जगमोहन था ।

“रिवॉल्वर देने आया हूं।” देवराज चौहान ने लेखा से कहा-“जो तुमने  दी थी।”

लेखा रिवॉल्वर थामें उसी तरह खड़ा देवराज चौहान को देखता रहा ।

“हीरों की थैलियांतुम्हारे पास कैसे ?” जगमोहन के होठों से निकला।

“मेरे से छीन ली।” जुगल किशोर रो देने वाले स्वर में चीखा।

तभी देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवॉल्वर का ट्रेगर हिला। तेज आवाज उभरी।   गोली लेखा के ठीक दिल वाले हिस्से पर लगी। देवराज चौहान ने लेखा के हाथ की हरकत देख ली थी। गोली चलाने में एक सैकिंड को भी देर करता तो लेखा के हाथ में दबी रिवॉल्वर से गोली निकल जाने थी उसके लिए।

लेखा के लिए शरीर को झटका लगा। वो आंखें फाड़े देवराज चौहान को देखता रहा। उसका शरीर झूमने के ढंग से हिलने लगा। एकाएक वो पीठ के बल गिरा और शांत पड़ गया था।

वहां मौत से भरा पैना सन्नाटा छा गया था ।

सांसों की आवाज जैसे एक-दूसरे को सुनाई देने लगी थी। तभी लुटा-पिटा सा जुगल किशोर भागा और मरे पड़े लेखा के हाथ से हीरों की दोनों थैलियां लेकर इस तरह पीछे हो गया जैसे मां अपने बच्चे को संभाल लेती है।

देवराज चौहान  ने हाथ मे दबी रिवॉल्वर जीवन पाल की तरफ उछाली।

“मैं सच  में लेखा की दी रिवॉल्वर ही ऊसर लौटाने आया था।”

तभी दरवाजे की तरफ भागा ।

“तू कहां जा रहा है।” जगमोहन ने हडबडा कर पुछा।

“मुझे नहीं चाहिए पच्चीस लाख ।” जुगल किशोर हड़बड़ाया सा बोला-“मैं चला।”

उसे किसी ने रोकने की चेष्टा नहीं की। छः करोड़ के हीरों की थैलियां थामें वो बाहर निकलता हुआ भागता चला गया ।

जगमोहन के होठों से गहरी सांस निकल गई ।

“छः करोड़ के हीरों का क्या करेगा?” जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा- “इतना मोटा माल संभालने में कहीं पागल तो नहीं हो जाएगा।”

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और पलटते हुए वापस चला गया ।

जगमोहन ने लेखा की लाश पर निगाह मारी फिर जीवन पाल से कहा ।

“जुगल किशोर के पच्चीस लाख हमारे सूटकेस में डाल देना। उसका हिसाब चलता रहता है। मैंने उसे कई बार उधार दिया हैजो साले ने लौटाया नहीं। मेरा डूबा पैसा वापस आ जाएगा।”

“जवाब तो दे दे।” जगमोहन मुंह बनाकर बोला-“हां या ना ?”

“सूटकेस तुम्हें मिल जाएगा। कभी भी आ जाना।”

“सूटकेस में कितना माल होगाये बता।”

“पचहत्तर लाख। पच्चीस लाख जुगल किशोर वाले भी तुम्हें मिल जाएंगे।”

“वो तो ठीक है।” जगमोहन सिर हिलाकर बोला-“इस दगाबाज लेखा  को मारने का काम तो हमारे हवाले नहीं था। मौके पर आकर तेरी सहायता की। तेरी जगह में होता तो इस काम के भी दस-पांच लाख तो दे ही देता। तेरे को दौलत ही क्या परवाह है। हाथ तंग तो नहीं है।”

जीवन पाल के होठों पर सख्त-सी मुस्कान उभरी।

“मिल जाएगा ।” जीवन पाल ने शांत कठोर स्वर में कहा।

“मिल जाएगा पर मैं यकीन नहीं करता। ये बता सूटकेस में  होगा कितना ?”

“अस्सी लाख।”

“ये हुई बात। अब चैन की नींद आएगी। अस्सी लाख तैयार रखना। मैं दो दिन मेंकेशोपुर में तेरे से मिलूंगा। माल आना ही तो  मैं देर नही लगाता। शुक्रिया-मेहरबानी-धन्यवाद और जो भी कहते हैवो तभी कहूंगा। चलता हूँ। देर हो गई तो देवराज चौहान मरेगा।” इसके साथ ही जगमोहन बाहर निकल गया।

समाप्त

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