धर्मा के जाने के बाद, एक्स्ट्रा कुछ देर तक अपने कमरे में ही रहा, फिर टहलने के अंदाज में कमरे से निकला और बंगले के बाहर आ गया, जहां गनमैन अपनी जगहों पर मौजूद थे । उसने हर तरफ घूम कर सिक्योरिटी पर तसल्ली भरी निगाह मारी- फिर वापस बंगले में आ गया ।

जाने क्या सोचकर उसके कदम, रतनचंद के कमरे की तरफ बढ़ गये ।

एक्स्ट्रा रतनचंद के कमरे में पहुंचा ।

कमरा खाली था । रतनचंद वहां नहीं दिखा । बैड की चादर पर एक भी सिलवट नहीं थी । स्पष्ट था कि अभी तक वहां कोई लेटा नहीं था । उसने बाथरूम के दरवाजे पर निगाह मारी । बाथरूम का दरवाजा बंद पाकर वो समझ गया कि रतनचंद बाथरूम में है और वहां पड़ी कुर्सी पर जा बैठा ।

एक्स्ट्रा की नजरें इधर-उधर घूमती रही ।

रात के नौ बज रहे थे ।

बंगले पर चुप्पी का माहौल था ।

"दो,चार, पांच, सात और दस मिनट बीत गये। उसने बाथरूम के बंद दरवाजे की तरफ देखा, फिर उठकर उस तरफ बढ़ गया। बाथरूम के दरवाजे को थपथपाते हुए बोला-

"रतनचंद, मैं बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं ।"

परन्तु भीतर से कोई आवाज नहीं आई ।

दरवाजे का हैंडल दबाते हुए एक्स्ट्रा ने पल्ला धकेला तो वो खुलता चला गया ।

एक्स्ट्रा ने भीतर झांका।

बाथरूम खाली था ।

एक्स्ट्रा चौंका । रतनचंद कहां गया ?

उसने उसी पल सुन्दर को फोन किया ।

"कहां हो तुम ?" एक्स्ट्रा ने पूछा ।

"अपने कमरे में ।"

"रतनचंद कहां है ?"

सुन्दर की आवाज नहीं आई ।

"मैंने पूछा, रतनचंद कहां है ?"

"बाहर गये हैं ।"

"बाहर-किधर बाहर ?" एक्स्ट्रा का स्वर तेज हो गया ।

"बंगले से बाहर । काम था उन्हें और-।"

"तुमने बाहर अकेले क्यों जाने दिया और-"

"मैंने रोका था परन्तु..."

"तो हमें कहते ।"

"उन्होंने मना कर दिया था कि तुम लोगों को नहीं बताना ।"

"अब देवराज चौहान ने रतनचंद को शूटकर दिया तो कौन जिम्मेवार होगा ?"

"वो कह रहे थे कि दो घंटे में लौट आऊंगा ।"

"बेवकूफ हो तुम ।"

सुन्दर की तरफ से आवाज न आई ।

"कब गया रतनचंद बाहर ?"

"पौन घंटा हो गया । जब धर्मा गया, उससे कुछ पहले ।"

"सारा काम खराब कर दिया ।" गुस्से में भरे एक्स्ट्रा ने फोन बंद किया और कमरे से बाहर निकल गया।

अब कमरे में पहुंचा ।

गुस्सा अभी भी उसके चेहरे पर सवार था। ।

नौकर को बुलाकर कॉफी लाने को कहा। कॉफी आ गई तो घूंट भरते हुए गहरी सोच में डूब गया । उसकी सोचो का केंद्र देवराज चौहान था कि उसने इस सारे मामले पर क्या-क्या किया ?

सब सोचा उसने, परन्तु  दो बातों का जवाब से नहीं मिल पाया।

एक तो ये कि काशीनाथ से हो-हल्ला करवाकर, उसने उस दिन अपना कौन-सा मतलब निकाला ?

दूसरी बात ये की रतनचंद का मॉस्क बनवा कर, उसने उसका क्या इस्तेमाल किया ?

ये दोनों बातें एक्स्ट्रा को परेशान कर रही थी ।

■■■

सोहनलाल ने खाने का थाल बैड पर एक तरफ रखा और जगजीत के बंधन खोलने लगा ।

"मैं तेरा कितना ध्यान रख रहा हूं ।" सोहनलाल कह उठा- "तेरे को सुबह नाश्ता देता हूं। दोपहर को लंच और रात को डिनर। तेरे को जरा भी भूखा नहीं रहने देता। इतना ख्याल तो तेरी बीवी भी नहीं रखती होगी ।"

"मैंने शादी नहीं की ।"

"तब तो तेरे को मेरा एहसानमंद होना चाहिये कि मुझे तेरी कितनी चिंता है ।"

सोहनलाल ने बंधन खोल दिया ।

"चल, खा ले खाना ।"

"पानी तो ला दे ।" जगजीत हाथ-पांवो को सीधा करते बोला ।

"खाना शुरु कर । पानी भी आ जायेगा ।"

जगजीत खाना खाने बैठ गया ।

"तुने बताया नहीं कि कल एक्स्ट्रा और धर्मा तेरे पास क्या करने...।"

"बताऊंगा भी नहीं । बार-बार मत पूछ ।"

"मेरे को कैद से कब रिहा करेगा ?"

"जब देवराज चौहान का ऑर्डर आयेगा । तेरे को क्या पड़ी रिहा होने की। तेरी सेवा तो पूरी कर रहा हूं ।"

जगजीत ने कुछ नहीं कहा । खाना खाता रहा।

"मिर्ची तेज है ।"

"अभी पानी लाता हूं ।" कहने के साथ ही सोहनलाल बाहर निकल गया ।

जगजीत फुर्ती से उठा। उसकी निगाह कमरें घूमी और छोटी तिपाई उठाकर, दरवाजे के पास ही पल्ले की ओट में जा खड़ा हुआ। तिपाई को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठा लिया था । इस वक्त वो घबरा भी रहा था और हिम्मत से भी काम ले रहा था । इस कैद से निकलना चाहता था जगजीत, परन्तु उसे मौका नहीं मिल पा रहा था। लड़ाई-झगड़े के कामों से उसका कभी खास वास्ता नहीं पड़ा था, परन्तु जब-जब जरूरत पड़ी तो वो कर लेता था ।

तभी कानों में कदमों की आहट पड़ी ।

सोहनलाल, पानी का गिलास थामें भीतर आया। खाने का थाल देखा। पास जगजीत नहीं था। एकाएक सोहनलाल को खतरे का अहसास हुआ। तभी दरवाजे की ओट में खड़े जगजीत ने तिपाई उसके सिर पर दे मारी।

सोहनलाल की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाचे। गिलास उसके हाथ से छूट गया। फिर उसके घुटने मुड़े और नीचे गिरता चला गया। उसके बाद वहां शांति छा गई।

जगजीत ने अभी भी तिपाई थाम रखी थी। वो गहरी-गहरी सांसे ले रहा था ।

नजरें सोहनलाल पर थीं ।

जब उसे विश्वास हो गया कि सोहनलाल बेहोश हो चुका है तो उसने तिपाई को नीचे फेंका और सोहनलाल के शरीर को सीधा किया। कई पलों तक सोहनलाल के चेहरे पर नजरें टिकाये रहा।

"सच में तुमने बहुत सेवा की मेरी।" जगजीत बड़बड़ा उठा- "और तेरी सेवा करके, मैंने हिसाब बराबर कर दिया।" इसके साथ ही जगजीत कमरे से निकला और फिर मुख्य द्वार खोलकर बाहर निकलता चला गया ।

■■■

एक्स्ट्रा ने कलाई पर घड़ी में वक्त देखा । धर्मा को गये काफी देर हो गई थी। अब तक उसका फोन आ जाना चाहिये था क्या क्या हुआ। सोहनलाल क्या कहता है। एक्स्ट्रा ने फोन निकाला और धर्मा के नम्बर मिलाये।

पाठकों को याद होगा कि देवराज चौहान ने फोन आने पर, एक्स्ट्रा से बात की थी ।

एक्स्ट्रा फोन हाथ में थामें ठगा सा बैठ रह गया ।

राघव के बाद भी, देवराज चौहान की कैद में जा पहुंचा। हैरत की बात है कि इतनी आसानी से देवराज चौहान ने राघव और धर्मा को कैसे पकड़ लिया? राघव-धर्मा आसानी से किसी के हत्थे चढ़ने वाले नहीं। कहीं तो गड़बड़ है? फिर देवराज चौहान को कैसे पता चला कि धर्मा बाहर जा रहा है? देवराज चौहान चौबीसों घंटे बंगले की निगरानी करने से तो रहा ।

आखिर मामला क्या है ?

ये सब हो क्या रहा है ?

एक्स्ट्रा के चेहरे पर खतरनाक भाव नजर आने लगे । उन लोगों को किसी ने पकड़ कर इस तरह कैदी बनाया हो, ये कभी नहीं हुआ था। पहली बार ये सब हो रहा था उसके साथ। और एक्स्ट्रा ये मानने को तैयार नहीं था कि देवराज चौहान कोई अफलातून है कि हर काम को कर डालता है। वो भी तो इंसान ही है।

गुस्से में एक्स्ट्रा अपने कमरे से बाहर निकल आया ।

तभी सामने से सुन्दर आता दिखा ।

"इधर आ ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"सेठ जी को गये काफी वक्त हो गया...।"

"तूने किसको बताया था कि धर्मा बंगले से बाहर जा रहा है ?" एक्स्ट्रा ने खा जाने वाले स्वर में पूछा ।

"क्यों ?"

"मेरी बात का जवाब दे, तूने किसको बताया कि धर्मा बाहर जा रहा है ।"

"सेठ जी को ।"

एक्स्ट्रा, सुन्दर चेहरा देखने लगा ।

"क्या हुआ ?"

"उस दिन राघव को बाहर जाने के बारे में भी, तूने रतनचंद को बताया था, फिर राघव गायब हो गया। बाद में पता चला कि राघव देवराज चौहान की कैद में है।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

"हां, लेकिन अब धर्मा को भी कुछ हुआ क्या ?"

"वो भी देवराज चौहान की कैद में जा पहुंचा है ।"

"नहीं।" अनायास ही सुन्दर के होंठों से निकला ।

एक्स्ट्रा की निगाहें सुन्दर पर जा टिकी रहीं ।

"रतनचंद भला कैसे गड़बड़...।"

एक्स्ट्रा अपने शब्द पूरे ना कर सका। उसके शरीर में जैसे चींटियां सी रेंग उठी। शरीर के रोयों में सनसनाहट सी महसूस की। सिर से पांव तक एक कम्पन सा उठा। आंखों में हैरानी भरे अजीब से भाव आ गये ।

"क्या हुआ ?" सुन्दर फौरन बोला ।

"क-कुछ नहीं। तू जा। निकल।" एक्स्ट्रा अपने पर काबू पाता कह उठा।

"लेकिन हुआ क्या ?"

"कॉफी बना के ला ।" कहने के साथ ही एक्स्ट्रा पलट कर अपने कमरे में प्रवेश कर गया।

बिजलियां सी कौंध रही थी एक्स्ट्रा के मस्तिष्क में ।

एक ही विचार उसके मन-मस्तिष्क में आ रहा क्या देवराज चौहान ने रतनचंद की जगह ले रखी है? क्या इसी काम के लिये देवराज चौहान ने रतनचंद के चेहरे का मॉस्क बनवाया था ?

अगर बनवाया था तो देवराज चौहान ने रतनचंद की जगह कब ली ?

आखिर कब...?

अगले ही क्षण एक्स्ट्रा के मस्तिष्क में बिजलियां कौंधने लगी ।

काशीनाथ ।

काशीनाथ ने जब शादी वाले घर के बाहर खामखाह का शोर-शराबा करके सबका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया। तब ही देवराज चौहान के लिये मौका था कि रतनचंद के चेहरे पर मॉस्क लगाकर, उसके रूप में, रतनचंद की जगह पर आ जाये। क्योंकि तब रतनचंद गनमैन बना हुआ था। उस पर हाथ डालना सबसे आसान था। अगर ये मालूम हो कि रतनचंद गनमैन के वेष में है। तो क्या देवराज चौहान को तब मालूम था कि रतनचंद गनमैन के वेश में है?

अब तो यही कहा जा सकता था कि देवराज चौहान को ये बात मालूम थी।

कैसे मालूम हुई ये बात ?

इसका मतलब, कोई बंगले की खबरें बाहर निकालकर, देवराज चौहान तक पहुंचा रहा होगा। परन्तु अब सवाल ये नहीं था कि कोई खबरें अन्दर-बाहर कर रहा था या नहीं। सवाल ये था कि इस वक्त देवराज चौहान रतनचंद बना हुआ, उन्हीं की बगल में मौजूद है और एक-एक करके राघव और धर्मा को अपनी कैद में ले जा फंसाया ।

एक्स्ट्रा का चेहरा दरिंदगी से भर उठा ।

"हरामजादा ।" एक्स्ट्रा दांत भींचकर बड़बड़ा उठा- "हमसे पंगा। ऐसी की तैसी साले देवराज चौहान की ।"

तभी उसका फोन बजा ।

एक्स्ट्रा ने स्क्रीन पर आया नंबर देखा। उसके लिये अंजान नंबर था वो ।

"हैलो।" एक्स्ट्रा ने बात की। वो अभी भी उत्तेजना में था ।

"एक्स्ट्रा।" जगजीत की आवाज कानों में पड़ी ।

"जगजीत।" एक्स्ट्रा चौंका ।

"हां । मैं...।"

"तू...तो देवराज चौहान की कैद में था ?"

"हां, कुछ देर पहले ही कैद से भागने में सफल हुआ हूं। जानता है मैं कहां कैद था ?"

"कहां ?"

"सोहनलाल के फ्लैट पर। पीछे वाले कमरे में ।"

एक्स्ट्रा चिंहुक उठा ।

"वहां तो कल मैं और धर्मा गये थे..."

"पता है। तब मैं पीछे वाले कमरे में बंधा पड़ा था। मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था ।"

"साला-कुत्ता ।"

"क्या ?"

"तेरे को नहीं कहा, देवराज चौहान को कहा।"

"उसी की बारे में तेरे को बताने के लिए फोन...।"

"तूने उसको रतनचंद के चेहरे का मॉस्क बना कर दिया ?"

"देना पड़ा, सिर पर रिवाल्वर लगा रखी थी। मैंने तेरे को ये बताने के लिए फोन किया है कि तुम लोगों के पास जो रतनचंद है, वो नकली हो सकता है, उसकी जगह देवराज चौहान ने ली हो सकती है ।"

एक्स्ट्रा हंसा। अजीब-सी हंसी ।

"क्या हुआ ?"

"अगर ये बात तूने कुछ घंटे पहले बता दी होती तो बात कुछ और ही होती ।"

"अब क्या हुआ ?"

"अभी-अभी मैं भी इसी नतीजे पर पहुंचा हूं, जो तूने बताया । मेरी बगल में रतन चंद के रूप में बैठा देवराज चौहान एक-एक करके राघव और धर्मा को अपने कैद में ले गया ।"

"ओह ।"

"अब साले को मैं नक्शा दिखाऊंगा ।"

"मैं आऊं क्या ?"

"तू क्या करेगा आकर। ये मामले तेरे बस के नहीं है ।"

"लगता है देवराज चौहान ने नचा दिया, तुम लोगों को ।"

"अब देवराज चौहान नाचेगा। तू बेशक अपने फ्लैट पर जा कर आराम कर। देवराज चौहान को मैं इतना मौका नहीं देने वाला कि वो इधर-उधर देख सकें।" कहने के साथ ही एक्स्ट्रा ने फोन बंद किया। उसके चेहरे पर रह-रहकर जहरीले भाव चमक मारने लगते। मस्तिष्क में एक ही नाम था, देवराज चौहान ।

तभी सुन्दर ने भीतर प्रवेश किया और कॉफी का प्याला टेबल पर रखते बोला-

"कम पिया करो। कॉफी सेहत के लिए अच्छी नहीं होती ।"

"बैठ। तेरे से बात करनी है ।"

सुन्दर ने एक्स्ट्रा के चेहरे को देखा और बैठ गया ।

"क्या हुआ?" उसके चेहरे के भाव देखकर कह उठा- "सब ठीक तो है ?"

"हमने तेरे पे शक किया कि तू ही है जो खबरें बाहर भेज रहा है। हम गलत थे।" एक्स्ट्रा मुस्कुरा पड़ा।

"अब शक नहीं है ?"

"नहीं ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि खबरें बाहर करने वाला रतनचंद है वो...।"

"ये कैसे हो सकता है?" सुन्दर के माथे पर बल पड़ गये- "सेठ जी, क्यों...।"

"जिसे तू रतनचंद समझ रहा है, वो रतनचंद नहीं, देवराज चौहान है ।" एक्स्ट्रा ने कड़वे स्वर में कहा।

सुन्दर की आंखें फैल गई।

"ये नहीं हो सकता।"

"ये ही हुआ पड़ा है। देवराज चौहान ने हमें तगड़ा गच्चा दिया। एक्स्ट्रा खुंदक भरे स्वर में बोला- "वो हमारे बीच रहता रहा, परन्तु हमें पता ना चला। राघव, जब जगजीत से मिलने गया तो देवराज चौहान ने वहां अपने बंदे भेज दिए कि राघव को पकड़कर कैद में डाला जा सके धर्मा जब बाहर निकला तो देवराज चौहान पहले ही बाहर जा खड़ा हुआ और उसके रतनचंद होने की वजह से धर्मा गच्चा खा गया और फंस गया।"

"लेकिन देवराज चौहान ऐसा कैसे कर पायेगा? सेठ जी की जगह कैसे ली होगी ?"

"रतनचंद के चेहरे वाला, फेस मॉस्क को तो देवराज चौहान ने बनवा लिया था। उस दिन जब हम रतनचंद के साथ, उसके साले की शादी पड़ गये, रतनचंद गनमैन बना हमारे साथ मौजूद था, तो वहां काशीनाथ ने हो-हल्ला मचाया ।"

सुन्दर ने सिर हिलाया ।

"उसी हो-हल्ले में देवराज चौहान ने रतनचंद पर हाथ डाला, वो जानता था कि रतनचंद गनमैन बना हुआ है। मैं नहीं जानता कि ये खबर देवराज चौहान तक कैसे पहुंची। बहरहाल वो ही वक्त था, जब देवराज चौहान ने रतनचंद की जगह ले ली और रतनचंद को अपनी कैद में कर लिया। मुझे याद है, तब मैं रतनचंद के पास गया था और उसके चेहरे पर दाढ़ी को मैंने ही ठीक किया था, जो कि एक तरफ से हटकर लटक रही थी । तब मुझे क्या मालूम था कि मैं रतनचंद की नहीं, देवराज चौहान की दाढ़ी ठीक कर रहा हूं ।"

"ये सब बातें मेरी समझ से बाहर हैं।" सुन्दर परेशान-सा कह उठा- "क्या देवराज चौहान सच में...।"

"हां-हां सच में। अभी वो आयेगा तो देख लेना।" एक्स्ट्रा कहर भरे स्वर में बोला ।

सुन्दर, एक्स्ट्रा को देखता रहा ।

"इतना बड़ा धोखा...।"

"तो राघव के बाद धर्मा भी देवराज चौहान के फंदे में फंस गया ?" सुन्दर ने कहा ।

"हां। लेकिन अब देवराज चौहान नहीं बचेगा ।"

"अगर सेठ जी वास्तव में, सेठ जी हुए, देवराज चौहान ना हुआ तो ?"

"वो देवराज चौहान ही है, आने दे उसे।" एक्स्ट्रा दांत भींचकर कह उठा ।

■■■

जगमोहन अच्छी कॉलोनी के एक मकान के सामने पहुंचा । कार रोकी। उतरा और मकान का नम्बर देखा। ये ही रंजन श्रीवास्तव का मकान था। रात के ग्यारह बज रहे थे।

जगमोहन ने कॉलबेल बजाई ।

जल्दी ही दरवाजा खुला। दरवाजा खोलने वाला बीस बरस का नेपाली नौकर था ।

"कहिये ?" नेपाली बोला ।

"रंजन श्रीवास्तव से मिलना है।" जगमोहन ने कहा ।

"भीतर आ जाइये ।"

जगमोहन मकान के भीतर छोटे से ड्राइंग रूम में पहुंचा ।

साफ-सफाई वाला घर था।

जगमोहन बैठा तो उसी पल पैंतालीस-सैंतालीस बरस के व्यक्ति ने वहां कदम रखा, उसने नाइट गाउन पहन रखा था और आंखों से स्पष्ट लग रहा था कि उसने पैग लगा रखे हों।

"कहिये।" वो आगे बढ़कर जगमोहन से हाथ मिलाता बोला- "मैंने आपको पहले कभी देखा नहीं ।"

"आप ही रंजन श्रीवास्तव हैं ?"

"जी हां।" उसने सिर हिलाया। वो सामने ही बैठ गया ।

"मैं प्राइवेट जासूस जगमोहन हूं और मीरा के बारे में आपसे बात करना चाहता हूं ।"

"मीरा ?" रंजन श्रीवास्तव चौंका ।

"नागेश शोरी की बीवी ।"

रंजन श्रीवास्तव ने बेचैनी से पहलू बदला ।

"मीरा से वास्ता रखता क्या केस है आपके पास ?"

"खास नहीं, नागेश शोरी ने मुझे पता करने को कहा है कि मौत से पहले मीरा के संबंध किस-किस से थे ?"

"ओह ।"

"मैं सब से मिल रहा हूं, रतनचंद से भी मिला और अब आपके पास आया हूं ।"

"नागेश शोरी मेरे बारे में जानता है कि...।" कहते-कहते वो ठिठका ।

"कहिये। क्या कह रहे थे आप ?"

"आप कहिये। मेरे से क्या पूछने आये हैं आप ?"

"मीरा के संबंध आपके साथ थे ?"

"हां । हम एक-दूसरे को प्यार करते थे ।"

"ये जानते हुए भी कि वो नागेश शोरी की पत्नी है ?"

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वो औरत थी और मैं मर्द था।" रंजन श्रीवास्तव ने कहा ।

"आपकी शादी हुई ?"

"नहीं, मैंने मेरा से ही शादी करने का प्रोग्राम बना लिया था । वो न मरती तो आज मेरी बीवी होती ।"

"नागेश शोरी, तुम्हें मीरा से शादी करने देता ?"

"मैं नहीं जानता।" उसने बेचैनी से कहा ।

"जानते हो वो कैसे मरी ?"

"ये बात क्यों पूछ रहे ?"

"मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हें उसकी मौत का असली कारण पता है कि नहीं ?"

"पता है ।"

"कैसे मरी ?"

"नागेश शोरी ने मीरा को जबरदस्ती ड्रग्स की ओवरडोज दे दी, जिससे उसकी मौत हो गई ।"

"कैसे जाना ?"

"ये बातें छुपी नहीं रहती। मैंने सब पता किया था और पता चल गया ।"

"तुम्हें नागेश शोरी ने, जानते हो, क्यों कुछ नहीं कहा ?"

"क्यों ?"

"क्योंकि वो अभी तुम्हारे बारे में जानता नहीं है। उसे नहीं पता चला कि, वो तुम्हारे लिये उसे छोड़ रही थी ।"

"अब ये बात तुम उसे बताओगे ?"

"मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं ।"

रंजन श्रीवास्तव और व्याकुल नजर आने लगा था ।

"अब एक बात का जवाब दो ।"

"क्या ?"

"मीरा के रतन चंद के साथ भी संबंध थे ?"

"नहीं ।"

"लेकिन मुझे कुछ शब्द ऐसे सबूत मिले कि मीरा का खास वास्ता रतनचंद से था ।"

"वो सबूत झूठे हैं ।" रंजन श्रीवास्तव ने सख्त स्वर में कहा- "दोनों में पवित्र रिश्ता था ।"

"मुझे ऐसा नहीं लगता ।"

"तो फिर तुम्हें अपना काम करना नहीं आता।" रंजन श्रीवास्तव ने गुस्से से कहा- "मीरा मुझे सब बताती रहती थी कि नागेश शोरी सोचता है कि उसका संबंध रतनचंद के साथ है। वो रतनचंद का नाम लेकर उसे ताने देता रहता है। परन्तु हकीकत में मीरा का रिश्ता मेरे साथ था। रतनचंद तो उसके भाई जैसा था ।"

"पक्का ?"

"हां। ये बात मुझसे ज्यादा कोई दूसरा नहीं जान सकता ।" रंजन श्रीवास्तव ने दृढ़ स्वर में कहा।

"नागेश शोरी और रतनचंद में से ड्रग्स का धंधा कौन करता है ?"

"नागेश शोरी ।"

"तुम्हें कैसे पता ?"

"मीरा बताया करती थी। नागेश शोरी की पूरी तस्वीर मेरे सामने है। वो परेशान थी शोरी की हरकतों से। उसे अपना पति शोरी अच्छा लगना बंद हो चुका था, क्योंकि वो उससे क्रूरता वाला व्यवहार करता था। महीने में पच्चीस दिन वो बाहर रहता था । इस दौरान मीरा को पता चला कि शोरी के किसी और के साथ भी रिश्ते हैं ।"

"वो तो मीरा के तुम्हारे साथ भी रिश्ते थे ।" जगमोहन बोला ।

"हां। मेरे साथ रिश्ते थे। मजबूरी में मीरा ने मुझे चुना। क्योंकि ड्रग्स का धंधा, मीरा को अच्छा नहीं लगता था। वो कब से कह रही थी कि शोरी से कि ये धंधा छोड़ दे, परन्तु शोरी को ये धंधा छोड़ना गंवारा न था। जबसे नागेश शोरी ने ड्रग्स का धंधा शुरू किया था, तब से शोरी में कड़वाहट ज्यादा आ गई थी। वो बात-बात पर मीरा को डांटता और हाथ भी उठा देता था। एक बार तो उसने मीरा को चार दिन कमरे में बंद रखा, क्योंकि उसने शोरी से अलग होने को कह दिया था। तुम शोरी के लिये काम कर रहे हो, तो उसके खिलाफ बात क्यों सुनोगे ।"

"ऐसी बात नहीं। मैं प्राइवेट जासूस हुआ तो क्या हुआ, मुझे मामले की तह तक भी पहुंचना है। अगर शोरी की गलती है तो मैं अवश्य कहूंगा कि वो गलत है। तुम्हारे पास मीरा के साथ खींची तस्वीरें होंगी ?"

"क्यों ?"

"मैं जानना चाहता हूं क्या सच में तुम ठीक कह रहे हो कि मीरा के साथ तुम्हारा रिश्ता था।"

"मुझे नहीं समझ आता कि आखिर तुम क्या चाहते हो।" रंजन श्रीवास्तव उठते हुए बोला- "फिर भी तुम्हें तस्वीर दिखा देता हूं।" कहने के साथ ही वो कमरे से बाहर निकल गया ।

जल्दी ही वो कमरे में लौटा ।

उसके हाथ में छोटा सा बक्सा था, जिसे कि उसने टेबल पर रखा और खोल दिया। भीतर तस्वीरों का ढेर लगा हुआ था । जगमोहन ने तस्वीरें उठा कर देखी ।

तस्वीरों के साथ बैठा शख्स एक औरत के साथ था औरत तीस-पैंतीस से ज्यादा की ना लग रही थी । वो खूबसूरत थी ।

जगमोहन ने कई तस्वीरें देखीं। विभिन्न मुद्रा में दोनों की ढेरों तस्वीरें थीं ।

जगमोहन ने चुपके से एक तस्वीर जेब ने डाल ली।

बक्सा बंद किया और उठते हुए बोला-

"अब मैं चलूंगा ।"

"तुम शोरी को मेरे बारे में बताओगे ?"

"नहीं ।"

"तो फिर तुमने एक तस्वीर क्यों अपने पास रख ली ?"

जगमोहन ने गहरी सांस ली और बोला-

"दरअसल, मैंने मीरा को कभी देखा नहीं है। उसकी तस्वीर देखना भी याद नहीं रहा। क्या पता तुम किसी और की तस्वीर दिखा कर मुझे बेवकूफ बना रहे हो, इसलिए मैं किसी से पता कर लूंगा कि ये तस्वीर मीरा की ही है ।"

"किससे पता करोगे ?"

"रतनचंद से ।"

"तुम्हारा मकसद मैं ठीक से समझ नहीं पाया कि तुम मेरे पास क्यों आये हो। फिर भी तुम तस्वीर ले जा सकते हो। अब इस मामले में कुछ भी नहीं रहा। तुम नागेश को मेरे बारे में ना ही बताओ तो ठीक रहेगा। वो ठीक बंदा नहीं है। मेरे को मरवा देगा। खामखाह ही मेरी जान खतरे में पड़ जायेगी ।"

"इतना ही डर था तो मीरा पर हाथ नहीं डालना था ।"

"जब तक मीरा जिंदा थी, मुझे कोई डर नहीं था । उसकी मौत के बाद, मेरे सामने ऐसा कुछ नहीं है कि मैं किसी से झगड़ा करूं ।"

"निश्चिंत रहो। मेरी वजह से तुम्हारा नाम शोरी तक नहीं पहुंचेगा।"

रंजन श्रीवास्तव ने सिर हिला दिया ।

जगमोहन बाहर निकला और देवराज चौहान को फोन किया । फौरन ही बात हो गई ।

"तुम कहां हो ?" जगमोहन ने पूछा ।

"रास्ते में, रतनचंद के बंगले पर जा रहा हूं। बात हुई रंजन श्रीवास्तव से ?" उधर से देवराज चौहान ने पूछा। जगमोहन ने सारी बातचीत बता कर कहा-

"उसकी बातों से तो लगता है कि रतनचंद ठीक कहता है ।"

"इसका मतलब शोरी ने हमसे झूठ बोला कि रतनचंद ड्रग्स का काम करता है और उसकी वजह से उसकी पत्नी मरी ।"

"लगता तो ऐसा ही है ।"

"तुम बंगले पर पहुंचो और राघव, धर्मा और रतनचंद का ध्यान रखो। अब हमें जल्दी ही शोरी से मिलना पड़ेगा ।"

"शोरी ने हमें झूठ के जाल में फंसाकर काम के लिये तैयार क्यों किया ?" जगमोहन बोला ।

"शोरी बतायेगा ये बात ।"

"केकड़ा के बारे में पता चला ?"

"उससे बात करके, कभी-कभार उसकी आवाज मुझे पहचानी-सुनी सी लगी थी। वो आवाज बदल कर और फोन पर कपड़ा रखकर बोल रहा था, ताकि उसकी आवाज को पहचान न लूं ।"

"लेकिन तब तो वो यही सोच रहा होगा कि, वो रतनचंद से बात कर रहा है । इसका मतलब रतनचंद उसे पहचानता होगा, तभी वो आवाज बदल कर बोलने की कोशिश कर रहा होगा ।"

"सही कहा तुमने ।"

"तो केकड़ा, रतनचंद की पहचान का है ।"

"हां। लेकिन वो जो भी है, जल्दी सामने आयेगा।" कहने के साथ ही उधर से, देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था। जगमोहन कार में बैठा और कार आगे बढ़ा दी ।

बंगले पर पहुंचा जगमोहन ।

कार पोर्च में खड़ी की ।

मुख्य द्वार खुला पड़ा था। जगमोहन को ये बात अजीब सी लगी। देवराज चौहान को जाते वक्त दरवाजा बंद करके जाना चाहिये थे। शायद वो दरवाजा खुला छोड़ेगा भी नहीं ।

फिर दरवाजा कैसे खुला है ?

जगमोहन भीतर प्रवेश करता चला गया ।

चुप्पी सी छाई हुई थी बंगले में। जगमोहन उस कमरे में पहुंचा, जहां राघव को बांध रखा गया था। कमरे में प्रवेश करते ही जगमोहन हक्का-बक्का रह गया।

राघव वहां नहीं था। वो नाईलॉन की रस्सी अवश्य फर्श पर पड़ी थी। जगमोहन फौरन उस कमरे में पहुंचा जहां धर्मा था। वहां अब धर्मा नहीं था। नाईलॉन की डोरी फर्श पर पड़ी मिली।

तीसरे कमरे में देखा, रतनचंद भी वहां नहीं था।

जगमोहन की हालत देखने वाली थी। उसने रिवाल्वर निकाली और पूरा बंगला छान मारा ।

तीनों में से कोई भी ना दिखा।

अब वो समझा कि मुख्य द्वार क्यों खुला हुआ है।

राघव, धर्मा और रतनचंद वहां से निकल भागे थे। किसी एक ने अपने बंधनों से आजादी पा ली होगी और उसने बाकी दोनों के बंधन खोले और भाग लिए तीनों।

जगमोहन के मस्तिष्क में धमाके हो रहे थे।

उसे विश्वास ना आ रहा था कि वो तीनों भाग निकले हैं ।

अगले ही पल जगमोहन के शरीर में ठंडी सिरहन दौड़ती चली गई ।

देवराज चौहान खतरे में है ।

वे तीनों बंगले पर पहुंचेंगे। वहां देवराज चौहान होगा। यानि कि देवराज चौहान फंसा ।

जगमोहन उसी पल फोन निकालकर देवराज चौहान को फोन करने लगा ।

उसकी निगाह बंगले में घूम रही थी ।

रिवाल्वर की जेब में रख ली थी ।

दूसरी तरफ बेल होने लगी। जगमोहन की व्याकुलता उसके चेहरे पर गहरी होती जा रही थी । वो चाहता था कि देवराज चौहान से जल्दी से बात हो जाये और बात हो गई । देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी ।

■■■

देवराज चौहान कार को बंगले में ले जाता चला गया ।

पोर्च कार रोकी और उतरकर भीतर की तरफ बढ़ गया। चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था । रात के बारह बजने वाले थे । देवराज चौहान सीधा रतनचंद के कमरे में पहुंचा और हाथ-मुंह धोकर कपड़े बदलने लगा ।

तभी सुन्दर वहां पहुंचा ।

"आ गये सर ।" सुन्दर ने कहा ।

देवराज चौहान ने सुंदर को देखा और सिर हिलाने के बाद अपने काम में व्यस्त हो गया ।

देवराज चौहान ना समझ पाया कि सुंदर परखने वाली निगाहों से उसे देख रहा है ।

"ऐसा क्या काम पड़ गया है था आपको कि इन हालातों में आपको अकेले बाहर जाना पड़ा ?"

"था कोई काम ।" देवराज चौहान के होठों से रतनचंद जैसी आवाज निकली ।

"खाना लगा दूं ?"

"भूख नहीं है । कॉफी ला दो । उसके बाद मैं नींद लूंगा ।"

सुन्दर बाहर निकल गया ।

सुन्दर सीधा एक्स्ट्रा के कमरे में पहुंचा ।

कुर्सी पर बैठे एक्स्ट्रा ने अपना कठोर हुआ चेहरा उठाकर उसे देखा ।

"सेठ जी आ गये हैं ।"

एक्स्ट्रा ने दांत भिंच गये ।

"मेरी बात सुनो ।" सुन्दर ने गंभीर स्वर में कहा- "जल्दबाजी मत करो ।"

"क्या मतलब ?"

"मैंने सेठ जी को ध्यानपूर्वक देखा है, मुझे तो वो सेठ जी ही लगे ।"

एक्स्ट्रा के चेहरे पर कड़वे भाव फैल गये ।

"जल्दबाजी में कोई काम गलत काम मत कर देना, मुझे नहीं लगता कि वो देवराज चौहान है ।"

"वो देवराज चौहान ही है ।" एक्स्ट्रा गुर्रा उठा ।

"मुझे तो नहीं लगता ।"

"देखता रह ।" एक्स्ट्रा गुर्राया- "तू बीच में दखल मत देना, वरना तेरे दांत तोड़ दूंगा ।"

"अगर तुमने कोई ज्यादती की तो मैं दखल दूंगा। मैं तुम्हारी नहीं। सेठ जी की नौकरी करता हूं ।"

"वो रतनचंद नही, देवराज चौहान है ।"

"ये बात अभी साबित नहीं हुई ।"

एक्स्ट्रा ने रिवाल्वर निकाली और दांत किटकिटाकर कह उठा-

"अभी साबित हो जायेगी। अगर तुमने मेरे काम में दखल दिया तो तेरे को गोली मार दूंगा ।"

"तैश में ना आ, यहां तुम अकेले हो और बाहर मौजूद दसियों गनमैन मेरे हैं ।" सुन्दर ने गंभीर स्वर में कहा ।

"दखल मत देना मेरे काम में ।" एक्स्ट्रा ने कहा और रिवाल्वर थामें बाहर निकलता चला गया ।

सुन्दर फुर्ती से उसके पीछे चल पड़ा ।

देवराज चौहान तब बैड पर, तकिये से टेक लगाए बैठा था, जब एक्स्ट्रा ने भीतर प्रवेश किया ।

एक्स्ट्रा के पीछे सुन्दर भी भीतर आ गया ।

देवराज चौहान की निगाह एक्स्ट्रा के हाथ में दबे रिवाल्वर पर पड़ी तो उसकी आंखें सिकुड़ी ।

"क्या बात है ?" देवराज चौहान कह उठा ।

एक्स्ट्रा का चेहरा तप रहा था।

देवराज चौहान को महसूस हो चुका था कि कोई बात तो है ही।

सुन्दर सतर्क दिख रहा था ।

"मैं सोच भी नहीं सकता था कि रतनचंद की आड़ में देवराज चौहान मेरी बगल में बैठा होगा..."

देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े ।

"तूने नहीं सोचा होगा कि तेरा भेद खुल जायेगा ।" एक्स्ट्रा ने दांत भींचकर कहा ।

"भेद-।"  देवराज चौहान ने खुद को संभाला। अपना चेहरा सामान्य रखा- "किस भेद की बात कर रहे हो? तुम मुझे देवराज चौहान कह रहे हो। क्यों? मैं रतनचंद नहीं हूं ?"

"नहीं, तुम देवराज चौहान हो।" खतरनाक स्वर में कहते हुए एक्स्ट्रा मुस्कुरा पड़ा- "इसमें कोई शक नहीं कि तुमने शानदार प्लानिंग का इस्तेमाल किया। हम सोच भी नहीं सकते थे कि तुम ऐसा कर गुजरोगे। जगजीत से रतन चंद का चेहरा बनवा लिया और काशीनाथ से हो-हल्ला करा कर हमारा ध्यान बांटा और गनमैन बने रतनचंद को गायब करके उसकी जगह ले ली । हम सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा कुछ तुम कर सकोगे । हम बहुत बड़ा धोखा खा गये।

"मुझे नहीं समझ आ रहा कि तुम क्या कहे जा रहे...।"

"तुम ही थे देवराज चौहान जो यहां की खबरें बाहर करते रहे । राघव जब जगजीत से मिलने गया तो सुन्दर जानता था ये बात, सुन्दर ने तुम्हें बताया कि राघव कहां जा रहा है तो तुमने फोन करके अपने आदमियों को खबर दे दी, लेकिन धर्मा को तो तूने कैद ही कर किया। जब बंगले से बाहर निकला, रास्ते में तुम उसे मिले, चूंकि तुम रतनचंद बने हुए हो, तो वो धोखा खा गया।"

"कह लिया ?" देव चौहान मुस्कुराया ।

"बहुत कुछ है मेरे पास कहने को-।"

"मैं रतनचंद हूं, ये बात अच्छी तरह जान लो ।"

"अभी तुम कबूल करोगे कि तुम देवराज चौहान हो ।"

"मैं कबूल करूंगा ?" देवराज चौहान बराबर मुस्कुरा रहा था ।

"हां ।"

"कराओ मुझसे कबूल...।"

"जगजीत सोहनलाल की कैद से कुछ देर पहले भाग निकला है। उसका फोन आया था ।"

देवराज चौहान उसे देखने लगा।

एक्स्ट्रा ने हाथ में पकड़ी रिवाल्वर का रुख, देवराज चौहान की तरफ कर दिया ।

"तो...जगजीत और सोहनलाल का मुझ से क्या संबंध?" देवराज चौहान बोला ।

"कोई संबंध नहीं ?"

"नहीं, तुम खामखाह ही मुझ पर शक...।"

"सुन्दर ।" एक्स्ट्रा की आवाज में गुर्राहट आ गई- "इसने चेहरे पर रतनचंद के चेहरे वाला फेस मॉस्क पहन रखा है, वो उतार...।"

"मैं उतारूं ?"

"हां ।"

"मैं रिवाल्वर संभाल लेता हूं। तू मॉस्क उतार-।" सुन्दर बोला ।

"नहीं-रिवाल्वर मेरे पास ही रहेगी...।"

"क्यों ?"

"वक्त आने पर तू गोली चलाने पर हिचक जायेगा, क्योंकि सामने रतनचंद का चेहरा है और मैं-।"

"अभी ये बात स्पष्ट नहीं हुई कि हमारे सामने सेठ जी नहीं हैं, देवराज चौहान है ।"

"वो ही तो स्पष्ट करने जा रहा हूं ।" एक्स्ट्रा ने भींचे स्वर में कहा-और सिगरेट निकाल कर सुलगाने लगा ।

एक्स्ट्रा ने सुन्दर को इशारा किया ।

उलझन में फंसा सुन्दर आगे बढ़ा ।

"वहीं रुक जाओ ।" देवराज चौहान ने कश लेते हुए कहा ।

सुन्दर ठिठका  ।

अगले ही पल देवराज चौहान ने अपने चेहरे पर लगा रखा रतनचंद के चेहरे वाला फेस मॉस्क हटा दिया ।

अब सामने देवराज चौहान था ।

एक्स्ट्रा के दांत भींच गये ।

"तो तुम हो डकैती मास्टर देवराज चौहान ।"

"हां। मैं हूं देवराज चौहान ।"

"तुमने हमारे मामले में दखल देकर अच्छा नहीं किया ।"

"तुम लोगों ने दखल दिया है मेरे मामले में, मैंने नहीं ।"

"अब इन बातों का वक्त निकल चुका है । सुन्दर...।"

सुन्दर ने गहरी सांस ली ।

"इसके हाथ-पांव बांधकर किसी कमरे में डाल दे ।" एक्स्ट्रा ने कड़वे स्वर में कहा ।

"राघव और धर्मा मेरे कब्जे में है ।" देवराज चौहान ने कहा- "तुम मेरे साथ बुरा नहीं कर सकते ।"

"तुम मेरे कब्जे में हो। अब मुझे उन दोनों की चिंता नहीं। वे मुझे वापस मिल जायेंगे । दोनों मुझे मिलेंगे तो तुम्हें छोड़ा जायेगा ।"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"सुन्दर, हांथ-पांव बांध इसके ।"

सुन्दर ने पर्दे की नायलॉन की डोरी निकाली और देवराज चौहान के हाथ पीछे करके बांधने लगा।

एक्स्ट्रा ने सावधानी से उस पर रिवाल्वर तान रखी थी ।

सुन्दर ने मजबूती से देवराज चौहान के हाथ बांधे ।

एक्स्ट्रा ने आगे बढ़कर बंधनो को चैक किया, फिर तसल्ली से सिर हिलाकर रिवाल्वर जेब में रखते हुए बोला-

"अब बोलो, किसने तुम्हें तीन करोड़ दिए, रतनचंद को मारने के लिये ?"

"ये बात रतनचंद से पूछना ।"

"रतनचंद से ?"

"हां, उससे बात करके आ रहा हूं, उसे ये बात मैं बता चुका हूं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

एक्स्ट्रा ने उसे सिर से पांव तक गहरी निगाहों से देखा और व्यंग कह उठा-

"तो डकैती मास्टर देवराज चौहान हो तुम ।"

जवाब में उसे देखता देवराज चौहान मुस्कुरा कर रह गया ।

"डंका बजता है तुम्हारे नाम का अंडरवर्ल्ड में। नाम भी बहुत सुना था तुम्हारा। वैसे काम भी तुमने हिम्मत का किया है, कि जो हमारे बीच रतनचंद बनकर आ बैठे । तुम्हें डर नहीं लगा कि तुम्हारा भेद खुल सकता है, हमें कभी भी मालूम हो सकता है कि तुम रतनचंद नहीं ?"

"मैं डर को नहीं जानता। मेरे जीवन में डर नाम की कोई चीज नहीं ।"

"पक्का ।" एक्स्ट्रा ने व्यंग से कहा।

देवराज चौहान देखता रहा ।

"अगर मैं रिवाल्वर तुम्हारे सिर से लगाकर ट्रेगर दबा दूं...।"

"तुम ऐसा कुछ भी नहीं करने वाले। अगर तुम्हारा इरादा ऐसा कुछ करने का होता तो मुझे मालूम होता ।"

एक्स्ट्रा ने देवराज चौहान को घूरा ।

"तुम्हारा मतलब कि मैं तुम्हें गोली नहीं मारूंगा ?"

"नहीं ।"

"क्यों नहीं मारूंगा ?"

"क्योंकि तुम्हें राघव और धर्मा चाहिये। मुझे गोली मार दी तो, वो तुम्हें जिंदा कैसे मिलेंगे ?"

"वो भी जिंदा मिल सकते हैं ।" एक्स्ट्रा गुर्राया।

"कैसे ?"

"मैं अब तुम्हारा मुंह खुलवाऊंगा कि राघव, धर्मा को तुमने कहां रखा है, तुम बताओगे, फिर मैं राघव धर्मा को वहां से आजाद करा दूंगा और आकर तुम्हें गोली मार दूंगा ।" एक्स्ट्रा ने गुस्से से कहा ।

"तुम्हारे बस का कुछ नहीं है ।"

"बकवास मत करो। दिल तो करता है कि अभी तुम्हारी जुबान काट लूं-।"

"अपने दिल की बात पूरी क्यों नहीं करते ?"

"जुबान कट गई तो तुम राघव और धर्मा का पता-ठिकाना कैसे बताओगे। सुन्दर, इस साले को कुर्सी पर बांध दे। चाकू और नमक-मिर्च ले आ। मैं इसके शरीर के साथ तब तक खेलता रहूंगा, जब तक कि ये राघव और धर्मा के बारे में नहीं बताता ।"

सुन्दर खड़ा रहा ।

एक्स्ट्रा ने सुन्दर को देखा ।

"जो कहा है वो कर-।"

"नहीं ।" सुन्दर बोला ।

"क्यों ?"

"सेठ जी भी इसकी कैद में है। मुझे उनके बारे में उससे पूछना...।"

"रतनचंद याद है मुझे। भूला नहीं हूं ।" एक्स्ट्रा ने तीखे स्वर में कहा- "राघव-धर्मा के साथ रतनचंद भी है ।"

"इसे यातना देने की जरूरत नहीं पड़ेगी । मुझे बात करने दो ।"

"तू बात करेगा ?"

"मैं बात क्यों नहीं कर सकता ?" सुन्दर ने उसे देखा ।

"बात तो मैं भी कर सकता हूं ।" एक्स्ट्रा ने कहा- "लेकिन पहले मैं देवराज चौहान की हेकड़ी तोड़ना चाहता हूं। यातना के दौरान ये अपने मुंह से कहेगा कि बस करो। मुझे छोड़ दो साला कहता है कि मैं किसी से डरता नहीं...।"

"ये कुछ भी कहे, तुझे क्या। तू क्यों इसे डरा देखना चाहता है ?" सुन्दर उखड़ा ।

"बहुत लम्बी-लम्बी बातें बोल रहा है।" एक्स्ट्रा ने सुन्दर को घूरा।

सुन्दर की निगाह  देवराज चौहान पर गई ।

देवराज चौहान मुस्कुराता हुआ दोनों को देख रहा था ।

"सेठ जी कहां हैं ?" सुन्दर ने गंभीर स्वर में पूछा ।

"उसकी फिक्र मत करो। रतनचंद सही-सलामत वापस मिल जायेगा ।" देवराज चौहान बोला ।

"कब ?"

"ये मामला थोड़ा सा बचा है। उसके निपटते...।"

"क्या बचा है मामला ?"

"ये तुम्हें बताना जरूरी नहीं...।"

क्षणिक सोच के पश्चात सुन्दर पुनः बोला-

"राघव और धर्मा के साथ तुम क्या करना चाहते हो ?"

"कुछ नहीं। तीनों को, काम खत्म होने पर, एक साथ छोड़ देने का इरादा है मेरा ।"

सुन्दर ने एक्स्ट्रा को देखा ।

"अब तुम कहोगे कि मैं इसे छोड़ दूं, ताकि काम खत्म करके तीनों को छोड़ने की स्थिति में आ सके ।"

"नहीं । मैं ऐसी कोई बात तुम्हें नहीं कहने वाला ।"

एक्स्ट्रा की नजरें देवराज चौहान पर जा टिकीं ।

"तुमने रतनचंद को मारना था, फिर उसे कैद में क्यों रख लिया ?"

"मुझे यहां आना पड़ा ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि मेरी बातें रतनचंद तक पहुंच रही थीं और मैं जानना चाहता था कि कौन बातें पहुंचा रहा है ?"

"केकड़ा है वो ।"

"केकड़ा तो है, परन्तु असल में कौन है, ये जानना था मुझे ।"

"जाना ?"

"अभी नहीं ।"

"राघव और धर्मा को क्यों कैद-?"

"तुम लोग मेरे रास्ते में अड़चनें डाल रहे थे। कभी भी मेरे लिए रुकावट बन गए सकते थे ।"

"इसलिए एक-एक करके उन्हें कैद कर लिया ?"

"तुमने सामने डिरिस्ट्रेक्ट सेन्टर की इमारत में मेरे एक आदमी को मारा ।" देवराज चौहान बोला ।

"हां। वो गन पर बैठा इधर का निशाना लेने की चेष्टा कर रहा था। उसे मारकर मैंने समझा कि काम निपट गया, उसी ने रतनचंद को मारने की सुपारी ली होगी । परन्तु तुम बच गये...।"

"मैं ऐसे किसी आदमी को नहीं छोड़ता जो काम के दौरान मेरे आदमी को मार दे। परन्तु खुश किस्मत हो कि वो मेरा आदमी नहीं था। वो सुपारी देने वाले का आदमी था ।" देवराज चौहान ने सर्द स्वर में कहा ।

"नहीं तो तुम मुझे मार देते ?" एक्स्ट्रा मुस्कुराया ।

"अब तक तुम मर चुके होते।" देवराज चौहान ने खतरनाक स्वर में कहा ।

"अपनी हालत देख रहे हो ।" एक्स्ट्रा व्यंग से मुस्कुराया- "अपनी परवाह करो ।"

देवराज चौहान उसे देखता रहा ।

"फालतू बातें छोड़ो और राघव-धर्मा की बात करो, वो कहां हैं ? उन्हें मेरे हवाले कर दो, मैं तुम्हें आजाद कर देता हूं ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"जब तक मेरा काम खत्म नहीं होगा, तब तक मैं उन्हें नहीं छोडूंगा ।"

"मुझे सख्ती करने पर मजबूर कर रहे हो ।"

"जो चाहे कर लो । मुझे मेरी सोच से नहीं हटा सकते ।"

"सुन्दर ।" एक्स्ट्रा दांत पीसकर कह उठा- "इसकी टांगे भी बांध और चाकू ,नमक-मिर्च ले आ। मैं भी तो देखूं की डकैती मास्टर देवराज चौहान के इरादे कितने बुलंद हैं, जो कि हट ही नहीं सकते ।"

"ज्यादती मत करो ।" सुन्दर एक्स्ट्रा से बोला- "इसे सोचने का वक्त दो ।"

"सोचने का वक्त ?"

"हां-।" इसके हाथ-पांव बांधकर एक तरफ डाल देते हैं । फिर ये सोचेगा कि इसे क्या करना है। मूंछ के बाल की साख वाली वाली बात मत करो । हो सकता है, सोचने के बाद ये बताने को तैयार हो जाये कि...।"

तभी सुन्दर का फोन बजा ।

सुन्दर ने फोन निकाल कर बात की। उसके चेहरे पर अजीब से भाव छाते चले गये।

"मैं अभी आया...।" सुन्दर कहते हुए पलट कर बाहर निकल गया ।

देवराज चौहान एक्स्ट्रा की नजरें मिलीं ।

"कोई शरारत करने की मत सोचना...।" एक्स्ट्रा खतरनाक स्वर में कह उठा ।

देवराज चौहान सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया

■■■

तीन-चार मिनट बीते होंगे कि कई कदमों की आहटें उनके कानों में पड़ी और देखते-ही-देखते सुन्दर के साथ रतनचंद, धर्मा और राघव ने भीतर प्रवेश किया ।

देवराज चौहान की आंखे सिकुड़ी उन्हें देखकर ।

एक्स्ट्रा का चेहरा हैरत से खुल गया ।

"तुम तीनों यहां ?" एक्स्ट्रा के होंठों से निकला ।

उनकी निगाह देवराज चौहान पर टिक चुकी थी। देवराज चौहान ने जो मॉस्क चेहरे से उतारा था, वो नीचे पड़ा था । रतनचंद ने उस मॉस्क को उठाकर देखा ।

"तुम हो देवराज चौहान-।" रतनचंद ने गहरी सांस ली ।

"तुम लोग वहां से निकल कैसे आये ?" पूछा देवराज चौहान ने।

"बंगले में कोई नहीं था।" राघव कह उठा- "जब मुझे पता चला कि धर्मा भी कैद में आ पहुंचा है तो मौका मिलने पर मैं लुढ़कता हुआ किसी तरह कमरे से निकला और आवाज मार कर जाना कि धर्मा किधर है। फिर बहुत मेहनत के पश्चात मैं धर्मा के पास पहुंचा तो इसने मुंह से मेरे बंधन खोले, इस तरह सब आजाद हो गये। वहां से आ गये ।"

देवराज चौहान गहरी सांस लेकर रह गया ।"

"अब तेरा क्या होगा देवराज चौहान।" धर्मा कड़वे स्वर में बोला।

"दो दिन से मैं बंधा पड़ा हूं ।" राघव ने कहा- "बुरा हाल हो गया मेरा ।"

"इन्हें यहां देखकर, तकलीफ तो हुई होगी देवराज चौहान ।" एक्स्ट्रा हंस कर कह उठा- "R.D.X पर हाथ डालना कठिन ही नहीं, असंभव है। जो हम पर हाथ डालता है, उसे R.D.X उड़ा देता है । तुम्हें सारे मामले में इस बात का फायदा मिला कि तुम रतनचंद बनकर हमारे पास रहे और हमारी बगलों में छुरियां चलाते रहे। ऐसे में तूने समझा कि तू जीत गया, लेकिन R.D.X जैसे बारूद से पार पाना तेरे बस का नहीं देवराज चौहान ।"

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

"अब तेरे पास मुस्कुराने के अलावा दूसरा कोई रास्ता भी नहीं।" एक्स्ट्रा (X-TRA) कड़वे स्वर में बोला ।

"मेरी एक सलाह ले लो ।" देवराज चौहान कह उठा ।

"बोल-बोल ।"

"न तो कभी डर नीचे आना चाहिये और न ही कभी ज्यादा हवा में उड़ना चाहिये। क्योंकि हमारा धंधा ही ऐसा है, कहीं भी कुछ भी हो सकते हो जाता है । बाजी पलटते देर नहीं लगती ।"

"तो क्या तेरा ख्याल है, तू अब हमारे हाथों से निकल जायेगा ?"

"इस बारे में मैंने सोचा नहीं। परन्तु मैं अपने को फंसा हुआ भी नहीं समझ रहा। मेरे हाथ बांध देने से ये मत समझो कि तुमने देवराज चौहान पर काबू पा लिया। मेरे लिये ये सब मामूली सी बातें हैं ।"

"वाह ! ये तो बोलता भी है ।" एक्स्ट्रा हंस पड़ा ।

तभी राघव ने गंभीर स्वर में कहा-

"मजाक बंद करो एक्स्ट्रा ।"

"इसने तुम लोगों को कैद...।" एक्स्ट्रा ने कहना चाहा ।

"कोई बात नहीं। इसके इरादे बुरे नहीं थे। हमें सिर्फ ये ही तकलीफ हुई थी इसने हमें बांधकर रखा। वैसे हमारा ख्याल रखा गया। बाद में हमें छोड़ने का इरादा रखता था।" राघव ने बेहद शांत स्वर में कहा- "मेरे ख्याल में ये बुरा नहीं है ।"

"इसने हमें कैद किया।" धर्मा बोला- "इस बात का इसे सबक सिखाना चाहिये ।"

"जरूर सिखायेंगे।" राघव बोला- "इसे ये समझाना है कि हमें कम समझने की भूल ना करे ।"

तभी रतनचंद कह उठा-

"तुमने उस बारे में रंजन श्रीवास्तव से बात की ?"

"जगमोहन ने की।" देवराज चौहान ने कहा- "शायद तुम्हारी बात सही है ।"

"मैं तो अब भी कहता हूं कि मैं सही हूं ।" रतनचंद अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा- "शोरी की पत्नी मीरा, रंजन श्रीवास्तव को चाहती थी, मुझे नहीं। हमारा पवित्र रिश्ता था, परन्तु शोरी समझता रहा कि उसके संबंध मेरे साथ हैं ।"

"ये बात तुम्हें शोरी से स्पष्ट करनी चाहिये थी ।"

"नहीं कहीं।" रतनचंद ने गहरी सांस ली- "वो रंजन श्रीवास्तव को मार देता ।"

"नतीजा तुम्हारे सामने है। अब वो तुम्हें मारने पर उतारू है।"

रतनचंद ने होंठ भींच लिए ।

R.D.X की नजरे मिलीं ।

"क्या बातें हो रही हैं ।" धर्मा बोला- "हमें भी बताओ ।"

"शोरी-मीरा कौन है ?"

"कौन तुम्हें मारना चाहता है रतनचंद ?"

रतनचंद ने शांत स्वर में कहा ।

"देवराज चौहान के हाथ खोल दो ।"

"क्यों ?"

"खोल दो, ये हमारा बुरा नहीं करेगा ।"

"बुरा कर भी नही सकता ।" एक्स्ट्रा ने देवराज चौहान को घूरा। टेढ़ी आंख से भी हमें देखेगा। तो हम इसकी आंखें फोड़ देंगे। परन्तु इसके हाथ नहीं खोलेंगे। राघव, धर्मा ने तकलीफ सही है बंधनों की, इसे भी तकलीफ महसूस कर लेने दो ।"

"मेरे हाथ-पांव बांधकर तुम्हें खुशी मिलती है तो मैं चाहता हूं तुम खुश रहो ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"चुप रहो तुम। तुम्हारी राय किसी ने नहीं पूछी ।" एक्स्ट्रा ने चिढ़ कर कहा ।

धर्मा ने रतनचंद को देखकर पूछा-

"क्या बातें कर रहे थे तुम देवराज चौहान के साथ ?"

रतनचंद ने नागेश शोरी से वास्ता रखती सारी बात बताई ।

R.D.X ने सब कुछ सुना ।

कई पलों के लिए वहां चुप्पी आ ठहरी ।

"तो अब देवराज चौहान का इरादा तुम्हें मारने का नहीं है ?"

"नहीं ।" रतनचंद बोला- "होता तो कब का मुझे मार चुका होता।"

"तुम क्या चाहते हो ?" राघव ने देवराज चौहान से पूछा ।

"जाने क्यों मुझे लगने लगा था कि रतनचंद ड्रग्स का धंधा नहीं करता। वो ऐसा नहीं है, जैसा कि मुझे नागेश शोरी ने...।"

"तुम्हें इसमें क्या, नोट लो और अपना काम खत्म करो । तुम्हें तीन करोड़ मिले ना ?"

"परन्तु जानकारी गलत दी गई। मैं उन लोगों के लिये कभी काम नहीं करता, जो झूठ बोलते हैं ।"

"अजीब बात है ।" राघव ने गहरी सांस ली।

"ये इसी जमाने का है या दूसरे ग्रह का?" एक्स्ट्रा ने व्यंग से कहा।

"यही वजह है कि तुम रतनचंद को अब तक नहीं मार रहे ।"

"हां, मैं पेशेवर हत्यारा नहीं। कोई मजबूरी में फंसा हो तो उसकी सहायता कर देता हूं, अगर वो सच्चा हो तो। यूं तो मुझे किसी को मारने का हक नहीं हैं, परन्तु ये जानकर कि रतनचंद शहर में ड्रग्स फैलाता है, इसे मारने को तैयार हो गया। लेकिन ये बात गलत कही थी शोरी ने ।" देवराज चौहान गंभीर था ।

"उसूल वाला है देवराज चौहान।" धर्मा ने राघव से कहा।

"इसके बंधन खोल दो ।" रतनचंद बोला ।

"ये हमारा मामला है रतनचंद।" एक्स्ट्रा बोला- "दोबारा ये बात मत कहना कि-।"

तभी फोन बजा ।

जो फोन बज रहा था, वो देवराज चौहान की जेब मे था।

धर्मा ने फोन निकाला। स्क्रीन चमक रही थी । वहां नम्बर आ रहा था ।

"किसका फोन आया है?" धर्मा ने स्क्रीन देवराज चौहान के सामने की ।

स्क्रीन पर नजर मारने के पश्चात देवराज चौहान बोला-

"जगमोहन का ।"

धर्मा के होंठ सिकुड़े। वो फौरन उन सब लोगों से दूर, दरवाजे के पास पहुंचा और बात की ।

"हैलो।" धर्मा के होंठों से ठीक देवराज चौहान जैसा स्वर निकला था ।

धर्मा के होंठों से अपनी आवाज निकलते पाकर, देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"तुम जब बंगले से निकले थे तो राघव-धर्मा और रतनचंद किस हाल में थे ?" जगमोहन का सवाल कानों में पड़ा ।

"वो बंधे हुए थे, क्या हुआ?" धर्मा देवराज चौहान की ही आवाज में बोला ।

"गड़बड़ हो गई। मैं जब बंगले में पहुंचा तो वहां कोई नहीं था, नाइलोन की डोरियां खुली पड़ी थीं "

"ओह...तो वे भाग गये ?"

"हां। वो सीधा बंगले में ही पहुंचेंगे, तुम खतरे में हो, चुपचाप वहां से निकल लो ।"

"अब मेरी बात सुनो।" धर्मा, देवराज चौहान की आवाज में कह उठा- "वो तीनों यहां आ गये हैं, परन्तु खतरे की कोई बात नहीं, मैंने उन सब पर काबू पाकर, बांधकर एक तरफ डाल दिया है।"

"सब पर ?"

"हां, R.D.X और रतनचंद। चारों को। बंगले में मौजूद किसी को भी इस बात का पता नहीं। बेहतर होगा कि तुम बंगले पर आ जाओ। तुम्हारी जरूरत पड़ सकती है ।" धर्मा, देवराज चौहान की आवाज में बोला।

"आता हूं मैं ।"

धर्मा ने फोन बंद किया और देवराज चौहान से मुस्कुरा कर बोला-

"देखा देवराज चौहान। चेहरा बदलकर, या आवाज बदलकर किसी को धोखा देना बहुत आसान होता है। इसलिए ये मत सोचना कि रतनचंद बनकर तुमने R.D.X को झटका दे दिया। ये सब मामूली बातें हैं। तुम यहां अकेले पड़ गये हो, तुम्हारा दिल नहीं लग रहा होगा, इसलिए जगमोहन को बुला लिया। वो आ रहा है ।"

देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"ये मुस्कुराता बहुत है ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"कोई बात नहीं, जब मुस्कुरा-मुस्कुरा कर गाल थक जायेंगे तो सीधा हो जायेगा।"

"तुम लोग ये साबित करना चाहते हो कि, तुम तीनों मुझसे कम नहीं हो ।"देवराज चौहान बोला ।

"हम जानते हैं कि कम नहीं है, परन्तु ये बात तेरे को समझाना चाहते हैं ।"

"जरूरत नही। मैं समझ चुका हूं।" देवराज चौहान पुनः मुस्कुरा पड़ा ।

"साला, हमें खींच रहा है।" राघव ने माथे पर बल डालकर कहा।

"खींच नही रहा, सच कह रहा हूं। तुम तीनों सच में खतरनाक हो ।"

"तमगा देने का शुक्रिया ।"

■■■

जगमोहन कार पर वहां पहुंचा ।

बंगले का गेट बंद था। गेट पर हैड लाईट का प्रकाश पड़ते ही, गेट खोला गया और पहले से ही वहां खड़ा सुन्दर कार के पास जा पहुंचा। जगमोहन ने हैडलाईट की रोशनी में उसे सुन्दर के तौर पर पहचान लिया था।

"आपका नाम ?" सुन्दर ने मुस्कुराकर जगमोहन से पूछा ।

"जगमोहन ।"

"ओह, आइये । सेठ जी आपका इंतजार कर रहे हैं ।" कहने के पश्चात सुन्दर कार के साथ घूम कर दूसरी तरफ पहुंचा और उसके बगल वाली सीट पर जा बैठा- "चलिये, सेठ जी ने मुझे कहा कि उनके खास मेहमान यानि कि आप आने वाले हैं, मैं गेट पर जाकर खड़ा हो जाऊं, तो मैं यहां खड़ा आपके आने का ही इंतजार कर रहा था ।"

जगमोहन ने कार आगे बढ़ाई और कार गेट के भीतर प्रवेश करती चली गई ।

"उधर-पोर्च में ले चलिये कार को। आप क्या मुंबई में ही रहते हैं ? या शहर के बाहर से आ रहे हैं ?" सुन्दर ने उसे बातों में लगाए रखा ।

"रतनचंद ने तुम्हें बताया नहीं ?" जगमोहन ने शांत स्वर में कहा।

"पूछने की हिम्मत कहां होती है ।" सुन्दर ने दांत दिखाये ।

"रतनचंद से ही पूछना ।"

पोर्च में कार रुकी।

दोनों बाहर निकले ।

"आइये, सेठ जी आपका इंतजार कर रहे हैं । आइये-आइये ।"

"जगमोहन, सुन्दर के साथ बंगले में प्रवेश करता चला गया ।

"किधर है रतनचंद ?" जगमोहन बन गए नजरें दौड़ता कह उठा।

"उधर कमरे में आप ही का इंतजार कर रहे हैं ।"

सुन्दर जगमोहन को लेकर एक कमरे में पहुंचा ।

अगले ही पल जगमोहन ठगा सा रह गया । मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा ।

सामने ही R.D.X मौजूद थे ।

रतनचंद कुर्सी पर बैठा गम्भीर निगाहों से जगमोहन को देख रहा था ।

जगमोहन को खतरे का एहसास हो चुका था। उसने गर्दन को घुमा कर देखा ।

"गुलाम हूं।" सुन्दर दांत फाड़ता थोड़ा सा झुककर बोला- "मालिकों का हुक्म बजाना पड़ता है ।"

जगमोहन का चेहरा सख्त हो चुका था ।

"देवराज चौहान कहां है ?" वो गुर्राया ।

"दूसरे कमरे में ।" एक्स्ट्रा जहरीले स्वर में बोला- "हांथ-पांव बंधे पड़े है, फ्लैट हुआ पड़ा है । तुम्हें भी वहीं भेजते हैं ।"

"अपनी कैद में हमें बांध कर रखा ।" राघव मुस्कुराया- "इस तरह बंधे रहने से कैसी तकलीफ होती है, क्या इसका अनुभव नहीं करना चाहोगे? मुझे तो बहुत तकलीफ हुई थी, कैद में पड़े-पड़े ।"

"हाथ-पांव सुन्न हो जाते हैं। जिस्म बेकार हो जाता है। दिमाग में आग लगी रहती है, परन्तु बस में कुछ नहीं होता।" धर्मा ने हंसकर कहा- "ये सब बातें अब पता चलेंगी तुम्हें। बांधो इसे ।"

जगमोहन ने रिवाल्वर निकालने के लिए जेब में हाथ डाला।

उसी पल उसके कमर में रिवाल्वर की नाल आ लगी। पीछे सुन्दर था।

"कोई शरारत मत करना। खाली हाथ बाहर निकलो।" सुन्दर ने कठोर स्वर में कहा।

जगमोहन ने खाली हाथ बाहर निकाला ।

सुन्दर ने उसकी रिवाल्वर निकालकर, फर्श पर एक तरफ सरका दी।

"मुझसे बात किसने की थी?" जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली।

"अपने हाथ पीछे करो ।" सुन्दर ने कहा ।

जगमोहन ने दोनों हाथ पीछे किये तो सुन्दर उसकी कलाइयों पर नायलॉन की रस्सी लपेटने लगा ।

"मैंने की थी तुमसे बात ।" धर्मा कह उठा। मुस्कुराया वो ।

"देवराज चौहान की अच्छी आवाज बनाई तुमने ।" जगमोहन ने चुभते स्वर में कहा- "धोखा खा गया ।"

"तो तुम क्या समझते हो कि देवराज चौहान ही रतनचंद की आवाज निकाल सकता है ?"

सुन्दर ने कस कर हाथ डोरी से  पीछे की तरफ बांध दिए थे ।

"तुम लोगों ने ।" राघव कह उठा- "बहुत बड़ी हिम्मत का काम किया था, हमें कैद करके ।"

"अब तुम लोग भी हिम्मत का काम कर रहे हो, मुझे और देवराज चौहान को इस तरह कैद कर के ।" जगमोहन राघव को घूरा।

"कभी वो पलड़ा भारी तो कभी वो पलड़ा भारी ।"

एक्स्ट्रा उठा और आगे बढ़कर जगमोहन की बाहें पकड़ी ।

"चलो, देवराज चौहान वहां अकेला बोर हो रहा होगा ।"

"बहुत चिन्ता हो रही है देवराज चौहान की ?"

"क्यों ना होगी । नई-नई रिश्तेदारी जो बनी है ।"

एक्स्ट्रा, जगमोहन को लेकर बाहर निकल गया । सुन्दर उसके साथ चल दिया।

रतनचंद कह उठा-

"मुझे तुम लोगों की ये हरकत पसंद नहीं आ रही है ।"

"क्यों ?"

"मेरे ख्याल में सारा मामला सुलझ गया है। देवराज चौहान मुझे नहीं मारना चाहता। बात खत्म करो ।"

"साले ने हमें कैद करके रखा।" धर्मा कह उठा- "अब हिसाब भी तो बराबर करना है ।"

तभी फोन बजा ।

देवराज चौहान का ही फोन बजने वाला था।  

"हैलो ।"

"जगजीत मेरी कैद से भाग निकला है देवराज चौहान ।" दूसरी तरफ सोहनलाल था ।

धर्मा समझ गया कि सोहनलाल बोल रहा है ।

"कोई बात नहीं। उसकी परवाह मत करो । तुम मेरे पास आ सकते हो ?" धर्मा, देवराज चौहान की आवाज में बोला ।

"अभी ?"

"हां, काम है, मैंने जगमोहन को भी बुलाया है, वो भी आने वाला होगा ।"

"सिर का बुरा हाल है। जगजीत ने स्टूल उठाकर सिर पर मारा था । मैं चूक गया ।"

"तुम्हें उससे सावधान रहना चाहिए था ।"

"जाने कैसे लापरवाही हो गई ।"

"मेरे पास पहुंचो । मैं रतनचंद के बंगले पर, रतनचंद की शक्ल में हूं ।"

"आ रहा हूं ।"

धर्मा ने फोन बंद किया और मुस्कुराकर राघव से बोला-

"तीसरा मुर्गा भी आ रहा है ।"

जगमोहन को देखते ही देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"एक बार यहां से निकल जाऊं, फिर इन्हें नाच नचाऊंगा ।" जगमोहन ने खा जाने वाले स्वर में कहा ।

"जो कैद में होता है, वो ऐसा ही सोचता है । मुझे इसका पुराना अनुभव है ।" एक्स्ट्रा व्यंग से कह उठा- "टांगे बांध इसकी।

सुन्दर ने जगमोहन को सोफा चेयर पर गिराया और उसकी टांगें बांधने लगा ।

कमरे में एक तरफ बैड दूसरी तरफ सोफा पड़ा था। बड़ा कमरा था ये ।

जगमोहन को जब, अपने को घूरता पाया तो सुन्दर कह उठा-

"नौकर बंदा हूं। हुक्म तो मानना ही पड़ता है। मेरा कोई कसूर नहीं ।"

"तुमने मुझ पर वाल्वर लगाई थी।" जगमोहन कड़वे स्वर मैं बोला ।

"हां, तब जरूरी था मेरा रिवाल्वर निकालना। तुम रिवाल्वर निकाल कर गोलियां चला देते और मेरा मालिक मारा जाता तो मुझे तनख्वाह कौन देता? आजकल नई नौकरी ढूंढना भी तो आसान नहीं ।"

तभी धर्मा कमरे में प्रवेश करता कह उठा-

"सोहनलाल भी आ रहा है। देवराज चौहान का पूरा कुनबा इकट्ठा हो रहा है इधर तो-।"

■■■

R.D.X

अगले दिन सुबह ।

तीनो कॉफी की  घूंट भर रहे थे। उनके बीच चुप्पी ठहरी हुई थी।

"मेरे ख्याल में देवराज चौहान ठीक कहता है कि वो अब रतनचंद की जान नहीं लेगा ।" धर्मा बोला ।

"हां, लेनी होती तो उसके पास ढेरों मौके थे। वो ले चुका होता।" राघव ने सिर हिलाया ।

"तो हमारा काम खत्म ।" एक्स्ट्रा ने दोनों को देखा ।

"जल्दी करो ।" धर्मा ने कहा- "अभी नागेश शोरी तो सलामत है जो रतनचंद की जान के पीछे है। देवराज चौहान ने रतनचंद को नहीं मारा तो किसी और को रतनचंद के पीछे लगा देगा। हम रतनचंद से मुंह मांगी कीमत ले रहे हैं, उसकी जान बचाने की-तो उसके सिर से खतरा पूरी तरह हटाना हमारी जिम्मेदारी है ।"

"तो तुम क्या चाहते हो कि नागेश शोरी से निपटा जाये ?"

"निपटना ही पड़ेगा ।"

"रतनचंद से बात करें ?"

"कर लेते हैं ।"

"जैसा रतनचंद चाहेगा, हम वैसा ही करेंगे। क्योंकि जान उसकी फंसी पड़ी है ।"

एक्स्ट्रा कॉफी समाप्त करते हुए कह उठा।

"देवराज चौहान और उसके कुनबे का क्या करना है ?"

"देवराज चौहान ने हमारे साथ कुछ भी बुरा नहीं किया, जबकि चाहता तो कुछ भी कर देता ।"  राघव ने एक्स्ट्रा को देखा ।

"हां । राघव ठीक रहता है ।" धर्मा बोला- "हमारी देवराज चौहान से कोई दुश्मनी नहीं ।"

"मतलब कि उसे छोड़ दें ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

राघव और धर्मा ने सहमति से सिर हिला दिया ।

आजाद होने के बाद देवराज चौहान हमारे पीछे पड़ गया तो ?" एक्स्ट्रा ने दोनों को देखा- "उसके दिमाग का क्या भरोसा ?"

तीनो एक-दूसरे को देखने लगे ।

"वो हमारे पीछे पड़ा तो देख लेंगे । डरना किस बात का ?" धर्मा एकाएक मुस्करा पड़ा ।

"मेरे ख्याल में देवराज चौहान ऐसा करेगा नहीं ।" राघव बोला ।

तीनो की कॉफी खत्म हो चुकी थी ।

"चलो। रतनचंद  से बात कर लें। उसके बाद हम यहां से चलने की तैयारी करें ।"

R.D.X रतनचंद के पास पहुंचे ।

रतनचंद की आंखों से लग रहा था कि वो अभी ही सोया, उठा है ।

R.D.X को देखते ही रतनचंद मुस्कुराया ।

"खुश है पट्ठा की जान बच गई ।" राघव मुस्कुराया ।

"सच में। जिसकी जान पर बनी होती है, वो ही जानता है कि रातों की नींद-चैन हराम हो जाता है ।" रतनचंद बोला ।

"बात तो ठीक कहता है ।" एक्स्ट्रा ने कहा ।

R.D.X ने कुर्सियां संभाली। वे बैठे ।

"काम तो निपट गया ।" धर्मा बोला- "हमारे नोट दे, निकलें हम यहां से ।"

"नोट तैयार हैं ।" रतनचंद बोला ।

"आज तो दिल खोल दिया रतनचंद ने ।" राघव ने पूर्ववतः लहजे में कहा ।

रतनचंद ने R.D.X को देखा और बोला-

"लेकिन काम अभी बाकी है ।"

"बाकी है। वो कैसे ?" एक्स्ट्रा ने मुंह बनाया।

देवराज चौहान तो मेरी हत्या से पीछे हट गया है, परन्तु नागेश शोरी तो पीछे नहीं हटा ।"

R.D.X की नजरें मिली ।

"सुना ।" धर्मा ने दोनों को देखा- "ये आसानी से मानने वाला नहीं। अपना काम पूरा करवा कर ही रहेगा ।"

"शोरी फिर किसी को मेरे पीछे लगा सकता है ।" रतनचंद गंभीर स्वर में बोला ।

"जरूर लागायेगा।"

"उसे निपटो ।"

"साफ कर दें उसे ?"

"मैं नहीं चाहता, उसकी जान ली जाये, रतनचंद गंभीर स्वर में बोला- "वो पीछे नहीं हटता तो, उसे खत्म करना मजबूरी है ।"

R.D.X की नजरें मिलीं ।

"क्या कहते हो ?" राघव ने दोनों को देखा ।

"रतनचंद ठीक कहता है । अगर शोरी नहीं मानता तो उसे खत्म कर देना ही ठीक रहेगा ।

"अपना काम तो रतनचंद को तसल्ली देना है। दो-चार को मारना पड़ा तो मार भी देंगे ।" धर्मा ने कहा ।

"तो मिलें शोरी से ?"

"अब तो मिलना ही पड़ेगा ।"

"रतनचंद ।" एक्स्ट्रा बोला- "तू भी हमारे साथ चल ।"

"साथ ?"

"हां । तेरे सामने शोरी से बात होगी। अगर बात तसल्ली वाली नहीं हुई तो मुझे इशारा कर देना । साले को हलाल कर देंगे ।"

"मेरे साथ जाने की क्या जरूरत है। तुम ही...।"

"जरूरत इसलिए है कि हमें वो पीछे हटता लगा, हमने उसे छोड़ दिया। बाद में उसका दिमाग फिर गया और वो फिर तेरे पीछे पड़ गया तो तू सारी बात हम पर लाद देगा कि हमने काम अधूरा छोड़ दिया था। तब शोरी फिर से तेरी जान लेना चाहता है । तब तू मुफ्त में हमसे काम करवायेगा। ऐसा ना हो इसलिए तेरा साथ चलना जरूरी है। तब सारी जिम्मेवारी तेरे सिर पर होगी ।"

"ठीक है ।" रतनचंद ने सिर हिलाया- "जैसी तुम्हारी मर्जी । साथ चलूंगा मैं ।"

तभी सुन्दर ने भीतर प्रवेश किया। वो रतनचंद के लिए कॉफी लेकर आया था ।

रतनचंद कॉफी का प्याला थामता सुन्दर से बोला-

"उन तीनों के लिए भी कॉफ़ी बना लाओ। देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल के लिये ।"

सुन्दर बाहर निकल गया ।

रतनचंद R.D.X को देखता कह उठा-

"उन तीनों को छोड़ दो । बहुत हो गया । रात भर बांध के रखा। इतना ही बहुत है ।"

"हां, उन्हें छोड़ना ही है । हाथ-पांव बांधने का हिसाब बराबर हो गया । ऐसी कोई बात भी नहीं बची कि उन्हें रोक कर रखा जाये।"

■■■

R.D.X और रतनचंद उस कमरे में पहुंचे जहां देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल को बांध कर डाला गया था साथ में सुन्दर ट्रे में कॉफी लिए हुए था ।

कमरे का नजारा देखते ही वे चौंके ।

R.D.X की नजरें मिलीं ।

"बाप की जगह समझकर पड़े हैं ।" सुन्दर बड़बड़ा उठा ।

देवराज चौहान सोहनलाल बैड पर औधे मुंह पड़े गहरी नींद में थे ।

जगमोहन सोफे पर सो रहा था ।

तीनों के बंधन खुले पड़े थे ।

कौन कह सकता था कि उन्हें कैदी बना कर डाला गया है। कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। वे चाहते तो आसानी से यहां से खिसक सकते थे, परन्तु खिसकने से बेहतर उन्होंने नींद लेना ही ठीक समझा था ।

"ये तो मजे से पड़े हैं ।" एक्स्ट्रा मुंह बनाकर बोला ।

"हाथ-पांव के बंधन भी खोल लिए ।" राघव ने कहा ।

"हम ये क्यों भूलते हैं ये डकैती मास्टर देवराज चौहान और बाकी के दोनों इसके साथी अपराध की नदी में तैरते रहना इनका पेशा है, मामूली से बंधन इन्हें कहां बांधेंगे । धर्मा ने गहरी सांस लेकर कहा ।

"अगली बार सालों को तबीयत से बांधेंगे।" एक्स्ट्रा ने सिर हिलाकर कहा ।

तभी जगमोहन ने करवट ली और आंखें खोलता कह उठा ।

"अगली बार हाथ-पांवो में लोहे की बेड़ियां डालना ।"

"तू जाग रहा है ?"

"तुम लोगों की आवाज सुनकर आंख खुली ।"

"तुम लोगों ने बंधन कब खोले ?"

'तुमने ठीक से बांधे नहीं थे। मैं तुम्हें समझाऊंगा कि बांधते कैसे हैं । बेकार हो तुम लोग। देवराज चौहान की तलाशी भी ठीक से नहीं ली और रिवाल्वर उसके पास ही रहने दी। अगर रात को तुम सबको शूट कर देते तो ?"

"ज्यादा हवा में न उड़, नीचे आ जा ।" धर्मा ने कड़वे स्वर में कहा।

तब तक देवराज चौहान और सोहनलाल भी उठ गये थे ।

"कॉफी ठंडी हो रही है ।" सुन्दर ट्रे थामें कह उठा ।

"तो दे इन्हें, हमें क्या कह रहा है ।" राघव बोला ।

सुन्दर ने तीनों को कॉफी दी ।

"शुक्रिया।" जगमोहन मुस्कुराया- "ऐसी सेवा होती रहे तो हम और भी यहां रहने को तैयार हैं ।"

"कॉफी खत्म करो और चलते बनो यहां से ।" एक्स्ट्रा ने बारी-बारी तीनों को देखते हुए कहा ।

"बस, इतना ही सेवा भाव था। सिर्फ एक रात।" जगमोहन हंसा।

"हमारा सेवा भाव बहुत महंगा होता है। फिर कभी सामने पड़े तो समझ जाओगे। क्यों खामखाह हमारे मुंह लगते हो। सस्ते में निपट रहे है तो तुम्हें खुश होना चाहिये।" धर्मा ने सख्त स्वर में कहा।

"भगवान जाने सच्चा सौदा तुम्हारे लिए क्या है। तुम्हारे लिये या हमारे लिये । इस बारे में सोचा है क्या ?"

"तेरी तबियत हरी करूं ?" एक्स्ट्रा दांत भींचकर कह उठा ।

"तुम कुछ नहीं कह सकते। अपनी दादागिरी बंद कर दे, वरना अच्छी तरह समझा दूंगा ।"

"तेरी तो ।" एक्स्ट्रा ने गुस्से में उसकी तरफ बढ़ना चाहा ।

उसी पल जगमोहन ने नीचे दबा रखी रिवाल्वर निकाली और उसकी तरफ कर दी ।

एक्स्ट्रा ठिठक गया ।

जगमोहन के एक हाथ में रिवाल्वर थी, दूसरे में कॉफी का प्याला ।

"जगमोहन ।" देवराज चौहान बोला- "रिवाल्वर नीचे कर।"

"जगमोहन ने रिवाल्वर नीचे कर ली ।

राघव और आगे बढ़ा और एक्स्ट्रा (X-TRA) का कंधा थपथपा कर बोला-

"ये मामला बकाया रहने दे। फिर कभी सामने पड़े तो सारे मामले बराबर कर लेंगे ।

उसके बाद R.D.X बाहर निकल गये ।

रतनचंद और सुन्दर वहां रहे ।

"मैं तुम लोगों का एहसानमंद हूं कि तुम लोगों ने मुझे मारा नहीं।" रतनचंद बोला ।

तीनों ने रतनचंद को देखा ।

"इसमें एहसानमंद होने की जरूरत नहीं ।" देवराज चौहान बोला- "बल्कि मुझे खुशी है कि मेरी गोली से, एक बार तुम नहीं तुम्हारा साथी मरा। तुम मरे होते तो मुझे दुख होता कि मैंने गलत बंदा मार दिया। क्योंकि शोरी ने गलत जानकारी देकर मुझे इस काम पर लगाया था ।"

"ये अच्छा हुआ कि वक्त रहते, तुम्हें इस बात का एहसास हो गया, वरना तो मुझे मार कर ही रहते ।"

देवराज चौहान कुछ नहीं बोला ।

"अब तुम क्या करोगे ?"

"ये काम तो खत्म हो ही गया है। बस एक बार नागेश शोरी से मिलना रह गया है ।"

"हम भी नागेश शोरी के पास मिलने जा रहे हैं ।"

"हम ?"

"R.D.X और मैं ।" रतनचंद बोला- "चाहो तो तुम भी हमारे साथ चल सकते हो ।"

"तुम लोग शोरी के पास क्यों जा रहे हो ?"

"क्योंकि उसी ने तुम्हें मेरी हत्या की सुपारी दी थी, तुम्हारे पीछे हटने पर वो फिर किसी को मेरे पीछे लगा सकता है । इस बारे में उससे बात करनी है, अगर वो नहीं माना तो मुझे मजबूरन उसकी जान लेने के लिए कहना पड़ेगा ।"

देवराज चौहान खामोश रहा ।

"केकड़ा का कुछ पता चला कि वो कौन है ?"

"नहीं ।" देवराज चौहान इन्कार में सिर हिलाया- "उससे एक बार ही बात की थी। कभी उसकी आवाज के भांवों से लगता कि उसकी आवाज मैंने सुन रखी है, तो कभी नहीं लगता नहीं सुन रखी। वो जो भी था, अपनी आवाज बदल कर बात कर रहा था। अगर एक-दो बार और बात हुई होती तो शायद मैं उसे पहचान जाता। परन्तु मैंने उसे बताया कि मैं देवराज चौहान हूं, रतनचंद नहीं। तो उसने दोबारा फोन नहीं किया ।"

"वो मुझसे भी आवाज बदल कर ही बात करता था ।" रतनचंद ने कहा- "इसका मतलब, वो मेरी पहचान का हो सकता है और उसे इस बात का डर रहा हो कि असली आवाज में बोलेगा तो कहीं मैं उसकी आवाज ना पहचान जाऊं ।"

कॉफी समाप्त करके देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।

"हमारे मोबाइल फोन, हथियार हमें वापस दे दो।" देवराज चौहान ने कहा

"अभी भिजवा देता हूं। तुम चाहो तो नागेश शोरी के पास हमारे साथ चल सकते हो ।"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा ।

"हमें क्यों ऐतराज होगा ।" जगमोहन ने कहा ।

रतनचंद और सुन्दर बाहर निकल गये ।

सोहनलाल ने अपने सिर पर हाथ फेरा जहां गूमड़ निकला पड़ा था ।

"साले जगजीत ने बहुत जोरों से सिर पर स्टूल मारा था । जरा भी दया का इस्तेमाल नहीं किया ।"

"तुमने उसे बांधकर रखा हुआ था तो वो दया का इस्तेमाल क्यों करेगा ?" जगमोहन मुस्कुराया।

सोहनलाल ने सिगरेट सुलगाई गोली वाली ।

नहीं ?"

"फिर भी उसने जोरों का मारा ।" सोहनलाल मुस्कुरा पड़ा।

तभी सुन्दर आया और उसके मोबाइल और रिवाल्वर दे गया ।

"इन सालों R.D.X की तबीयत हरी करूंगा। तीनों ही बहुत उड़ते हैं ।" जगमोहन कह उठा ।

देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।

"तुम क्यों मुस्कुरा रहे हो ?" जगमोहन ने मुंह बनाया ।

"वो तीनों R.D.X नामक बारूद से कम नहीं हैं। उनका नाम उनके काम पर फिट बैठता है ।"

"हैरानी है। तुम पहली बार किसी की तारीफ कर रहे हो ।" जगमोहन ने अजीब से स्वर में कहा ।

"तारीफ उसी की की जाती है जो काबिल हो। R.D.X सच में बहुत खतरनाक हैं । इन्हें कभी भी मत समझाना ।"

"तुम देखना, अब की बार रास्ते में आये तो इन्हें अच्छी तरह समझा दूंगा कि हम भी कम नहीं ।"

"मैं ये नहीं कह रहा कि हम, उनसे कम हैं। बल्कि ये मतलब है मेरा कि उन्हें अपने से कम मत समझना ।" देवराज चौहान ने कहा।

"देखूंगा ।" जगमोहन भुनभुनाने वाले स्वर में कह उठा।

■■■

आगे वाली कार में रतनचंद के साथ R.D.X थे।

पीछे वाली कार में देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल।

चालीस मिनट तक दोनों कारें सड़कों पर दौड़ाती नागेश शोरी के बंगले पर पहुंची ।

बंगले का फाटक बंद था ।

दोनों कारें बाहर ही रुकीं। फाटक के भीतर की तरफ दो गनमैन मौजूद थे। उन्हें आया पाकर एक गनमैन 'विकेट' गेट खोलकर बाहर आया। कार के पास पहुंचा ।

तब तक पीछे वाले कार से निकलकर जगमोहन भी वहां आ गया ।

"गेट खोलो ।" रतनचंद बोला- "नागेश शोरी  से मिलना है ।"

"वो तो बंगले पर है नहीं ।" गनमैन बोला ।

"कहां है ?"

"कई दिन से वे गए हुए हैं ।" हमें खबर नहीं कि सेठ जी किधर हैं।"

रतनचंद के चेहरे पर सोच के भाव आ ठहरे ।

गनमैन वापस चला गया।

"अब ?" जगमोहन ने रतनचंद से पूछा ।

"उसका एक ठिकाना मैं जानता हूं। फार्म हाउस है। वो अक्सर कई दिन के लिये वहां चला जाता है ।" रतनचंद ने कहा ।

"वो कहीं और भी गया हो सकता है ।" जगमोहन बोला ।

"हां, परन्तु उसके फार्म हाउस पर भी देख लेना ठीक रहेगा । तुम लोग अपनी कार में मेरे पीछे आओ। घंटे भर का रास्ता है।"

उसके बाद उनके कारें आगे-पीछे फिर दौड़ने लगीं।

शोरी फार्म हाउस ।

प्रवेश गेट पर बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ था ।

गेट बंद था। दोनों कारें वहां रुकीं। एक तरफ छाया में बैठा चौकीदार फौरन वहां आ पहुंचा। वो पुराना चौकीदार था रतनचंद को जानता था। दुआ-सलाम के साथ चौकीदार ने गेट खोल दिया, उसने बताया कि सेठ जी फार्म हाउस पर ही हैं।

दोनों कारें फार्म हाउस में प्रवेश करती चली गईं ।

लम्बा रास्ता था ये। उसके बाद पेड़ो में घिरा दो-मंजिला मकान नजर आ रहा था । खूबसूरत जगह थी और शांति सुकून से भरा इलाका था ये । तेज हवा के कारण पेड़ों के पत्ते खड़क रहे थे । यहां ना तो किसी वाहन की आवाज गूंज रही थी, न अन्य किसी तरह का शोर-शराबा। दोनों कारें उसी सड़क पर से होती, छोटे से पोर्च से पहले ही रुक गईं। वहां पर दो कारें पहले से ही मौजूद थीं। मकान का मुख्य दरवाजा खुला हुआ था ।

वे सब बाहर निकले ।

तभी देवराज चौहान की निगाह हरीश मोगा पर जा टिकी ।

हरीश मोगा पेड़ की छाया में कुर्सी पर बैठा उसे देख रहा था । दोनों की नजरें मिली। हरीश मोगा उठा और देवराज चौहान की तरफ बढ़ने लगा। तभी खुले दरवाजे से दिनेश चुरू बाहर निकला और उन सब को देखते ही सकपका उठा ।

"तुम, रतनचंद के साथ। यह कैसे ?" हरीश मोगा सख्त स्वर में बोला ।

"शोरी कहां है ?" देवराज चौहान ने कहा ।

"भीतर बाद में। पहले मेरी बात का जवाब...।"

"तुम कौन होते हो मुझसे सवाल-जवाब करने वाले ?" देवराज चौहान उसकी आंखों में झांका- "अपने काम से मतलब रखो ।"

"ये मेरा ही काम है ।" हरीश मोगा ने कहा- "तुम मुसीबतें लेकर आये हो ।"

"मुसीबतें ?" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।

"हां। रतनचंद की पत्नी सोनिया, इस वक्त शोरी के साथ भीतर है ।"

देवराज चौहान चौंका ।

"रतनचंद की पत्नी- शोरी के साथ ?" देवराज चौहान के होंठों से निकला ।

हरीश मोगा ने सहमति से सिर हिलाया ।

"ये कैसे हो सकता है ।"

"तुम्हें रतनचंद को खत्म कर देना चाहिए था। तीन करोड़ में सिर्फ एक हत्या तो करनी थी तुमने। बहुत आसान काम था । तुम्हारी जगह मैं होता तो कब का खत्म कर देता। परन्तु शोरी ने ये काम मुझे नहीं करने दिया, तुम्हें ही चुना इस काम के लिये ।"

देवराज चौहान, हरीश मोगा की बात को समझने की चेष्टा कर रहा था ।

तभी दिनेश चुरू पास आया। उसके आते ही हरीश मोगा मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गया ।

R.D.X और रतनचंद इस वक्त मकान के भीतर प्रवेश कर रहे थे ।

"क्या किया तुमने-रतनचंद और R.D.X को अपने साथ क्यों लाये ?" दिनेश चुरु बोला ।

"मैं नहीं लाया उन्हें, बल्कि मैं उनके साथ आया ।"

"लेकिन तुम इनके साथ। मुझे तो कुछ भी समझ...।"

"शोरी कहां है ?"

"भीतर ।"

"भीतर चलो। सब समझ में आ जायेगा ।" देवराज चौहान कठोर स्वर में कहा और आगे बढ़ गया ।

उस लंबे-चौड़े मकान के ड्राइंगहॉल से ही पहली मंजिल के लिये सीढ़ियां जा रही थीं। उन सीढ़ियों से नागेश शोरी उतर रहा था । उसके चेहरे पर कठोरता नाच रही थी। वो रह-रह कर रतनचंद को देख रहा था ।

हॉल में R.D.X रतनचंद और देवराज चौहान, जगमोहन सोहनलाल मौजूद थे ।

दिनेश चुरु, हरीश मोगा और अवतार सिंह अलग-अलग सतर्क मुद्रा में खड़े थे ।

सबकी निगाहें नागेश शोरी पर थीं।

नागेश शोरी नीचे पहुंचा और देवराज चौहान से कह उठा-

"इन लोगों के साथ उन्हें देखकर मुझे हैरानी हुई ।"

"ये इत्तेफाक ही है कि शोरी हम लोगों का एक साथ आना हुआ।" बोला देवराज चौहान ।

"उलझन में डाल देने वाला इत्तेफाक है। मेरे ख्याल में तुमने इन्हें बता दिया है। कि मैंने ही तुम्हें रतनचंद को मारने को कहा था ।"

"जरूरी हो गया था बताना ।"

"क्यों ?"

"क्योंकि तुमने जो झूठ बोला मुझसे रतनचंद के बारे में उसकी सत्यता भी जाननी थी। जाने क्यों मुझे पहले से ही तुम्हारी बात पर शक सा हो रहा था, परन्तु जब जगमोहन ने मुझे कहा कि तुम्हारी कहीं बातें सच हैं तो मैं रतनचंद को शूट करने में लग गया। तुमने ऐसा जाल फंसाया कि जगमोहन को भी चक्कर में ला दिया। इसने रतनचंद के बारे में जिन लोगों से पता किया, वो तुम्हारे ही आदमी थे। तुम्हारी चाल बहुत हद तक कामयाब रही थी ।"

नागेश शोरी खामोश रहा ।

देवराज चौहान सिगरेट सुलग कर बोला-

"तुमने झूठ कहा कि रतनचंद ड्रग्स का धंधा करता है।

अखबारों की कटिंग्स तुमने झूठ तैयार कीं। रतनचंद के बारे में तुमने जो कहा, झूठ कहा। ऐसा क्यों किया तुमने शोरी ?"

"क्योंकि मैं तुम जैसे शातिर से ही रतनचंद की हत्या कराना चाहता था। मैं जानता था कि तुमने अगर काम हाथ में ले लिया तो फिर हर हाल में पूरा करके रहोगे। परन्तु तुम्हारे बारे में मैं ये भी पता कर चुका था कि तुम बिना वजह मेरे कहने पर रतनचंद की जान नहीं लोगे। इसलिए मुझे ड्रग्स वाली वजह तैयार करनी पड़ी ।

"तुमने कहा कि तुम्हारी पत्नी की मृत्यु ड्रग्स लेने की वजह से हुई और ड्रग्स शहर में रतनचंद फैलाता है ।"

"ये सब ना कहता तो तुम इस काम के लिये तैयार भी ना होते।"

"तो झूठ बोल कर मुझे काम के लिए तैयार किया ?"

"हां ।"

"इसका अंजाम जानते हो ?" देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया ।

नागेश शोरी ने गम्भीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा ।

"धन्यवाद कर मेरे को, जो मैंने तेरे को बचा लिया। जगमोहन कह उठा- "देवराज चौहान तो तेरे को झूठ बोलने की एवज में गोली मार देना चाहता था। लेकिन मैंने उसे समझा कर चुप करा दिया कि शोरी के लिये झूठ की सजा यही बहुत है कि उसका तीन करोड़ वापस ना दें। दोबारा कभी इसने ऐसा काम किया तो तब साले को मार देंगे ।"

शोरी मुस्कुरा कर बोला-

"मुझे तीन करोड़ की परवाह नहीं है ।"

"तेरे को नहीं तो मेरे को तो है। तभी मैंने ये बात छेड़ी की तू बाद में तीन करोड़ ना मांगने लगे ।"

रतनचंद की कठोर निगाह नागेश शोरी पर थी ।

"अब तेरी आवाज मैं पास से सुन रहा हूं शोरी ।" देवराज चौहान बोला- "तेरी और केकड़ा की आवाज में बहुत समानता है ।"

"मैं ही हूं केकड़ा ।"

"तुम ?"

"हां, केकड़ा के नाम से मैं ही फोन किया करता था ।" नागेश शोरी ने शांत स्वर में कहा।

सब चौंकें।

"सुना रतनचंद ।" एक्स्ट्रा बोला- "केकड़ा बनकर तेरे कानों में ही ठंडा घुमा रहा था ।"

"तुम।" देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला- "केकड़ा बनकर रतनचंद को मेरी खबरें क्यों पहुंचाते रहे ?"

"मैं रतनचंद को डरा देना चाहता था। मैं इसे पागल बना देना चाहता था। इतना तो मैं जानता था कि तुम रतनचंद को देर-सवेर मैं शूट कर दोगे। मुझे तुम पर पूरा विश्वास था, इसलिए थोड़ी-थोड़ी खबर मैं रतनचंद को देता रहा। ताकि हर वक्त खौफ के साये में रहे। रहा भी। उधर तुम इसे खत्म करने में लगे रहे ।"

"सनकी है साला।" राघव कह उठा- "कभी खामखाह की मौत मरेगा ।"

"तुमने ये नहीं सोचा कभी कि इन सब बातों को मेरे को पता चलेगा तो तेरा क्या होगा ?" देवराज चौहान कड़वे स्वर मैं बोला।

"मैंने केकड़ा बन कर ऐसा कुछ गलत नहीं किया जो...।"

"अबे चुप कर, तूने बहुत गलत किया है ।" जगमोहन सख्त सर मैं बोला- "ये कह कर तूने कुछ भी नहीं किया, हमें क्यों भड़का रहा है ।"

नागेश शोरी ने गहरी सांस ली और मुंह घुमा लिया ।

"ये सब तूने क्यों किया ?" देवराज चौहान ने पूछा ।

"मैं अपनी बीवी की मौत का बदला...।"

"झूठी बात मत कह । तेरे को अच्छी तरह मालूम है कि रतनचंद के साथ तेरी बीवी का कोई वास्ता नहीं था ।" देवराज चौहान ने उसकी बात काट कर कहा- "जो सच है, वो ही बात बोल ।"

नागेश शोरी खामोश हो गया।

"बोलेगा अब।"  जगमोहन झल्लाया।

शोरी चुप रहा ।

"मैं जानता हूं ऊपर कौन है ।" देवराज चौहान कह उठा ।

नागेश शोरी ने आंखें सिकोड़ कर उसे देखा ।

"क्या जानते हो तुम ?"

"कि ऊपर कौन है ।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका।

नागेश शोरी होंठ भींचकर रह गया ।

R.D.X की नजरें मिलीं।

"कौन है ऊपर ?" धर्मा ने धीमे स्वर में पूछा ।

"क्या पता ।" एक्स्ट्रा बोला ।

"लेकिन देवराज चौहान को कैसे पता चला गया कि ऊपर कौन है। वो तो हमारे साथ ही आया है ।" राघव ने कहा ।

"बोलो।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा- "रतनचंद की जान तुम क्यों लेना चाहते थे ?"

"ये बात तुम क्यों पूछ रहे हो ?" नागेश शोरी बोला ।

"मैं नहीं पूछूंगा तो ये जानकारी मिलने पर कि ऊपर कौन है, रतनचंद तुमसे पूछेगा, R.D.X तुमसे पूछेगा। तुम्हें बताना तो पड़ेगा ही। अभी तो बात आराम से हो रही है फिर पता नहीं बात कैसे हो। कहो तो मैं नहीं पूछता। चला जाता हूं ।"

रतनचंद ने उलझन भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा ।

"कौन है ऊपर? तुम क्या कहना चाहते हो? मैं कुछ भी नहीं समझ रहा ।"

"देखते-सुनते रहो। अगर नहीं बतायेगा तो मैं तुम्हें बताऊंगा कि ये तुम्हारा कत्ल क्यों कराना चाहता था ।"

कुछ चुप रहकर शोरी कह उठा-

"रतनचंद ! सच बात तो ये है कि मैं और सोनिया, एक दूसरे को बहुत चाहते हैं ।"

"क्या ?" रतनचंद चिंहुक पड़ा- "तूम मेरी बीवी की बात कर रहे हो ?"

"हां। हम दोनों एक दूसरे को चाहते...।"

"बकवास मत करो ।"

"हम दोनों तीन सालों से एक-दूसरे को चाहते हैं। हम दोनों एक साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहते हैं, परन्तु इसके लिये तुम और मेरी पत्नी मीरा, हमारे रास्ते की अड़चन थे।" नागेश शोरी ने सामान्य स्वर में कहा ।

रतनचंद हैरानी से भरा पड़ा था ।

"इसलिए तुमने मीरा की जान ली ?"

"हां। वो रंजन श्रीवास्तव के चक्कर में इसलिए पड़ी कि क्योंकि वो जान चुकी थी कि मैं किसी औरत के चक्कर में हूं, परन्तु वो ये नहीं जानती थी कि वो औरत सोनिया है। चूंकि तुम्हारी बीवी का रिश्ता, मेरे साथ हो गया था, इसलिए तुम्हें अपने से दूर करना जरूरी था। यही वजह थी कि मैंने तुम पर मीरा के संबंध होने का इल्जाम लगाया ।"

"हे भगवान ।" रतनचंद  की हालत देखने वाली थी ।

"मीरा ने जानबूझकर रंजन श्रीवास्तव से दोस्ती कर ली, ताकि मुझ पर दबाव बना सके। वो कहती थी कि मैं उसके अलावा किसी औरत के साथ रिश्ता ना रखूं, तो वो भी रंजन को छोड़ देगी। मुझे उसकी परवाह कहां थी। रोज-रोज की लड़ाई होते- होते एक दिन बहुत बढ़ी और सामान लेकर रंजन श्रीवास्तव के पास जाने के लिए तैयार हो गई। उस समय हालात ऐसे हो गये कि, लड़ाई में मैं पागल हो गया। पास ही ड्रग्स रखी थी। मैंने ड्रग्स की हैवी डोज का इंजेक्शन उसे लगा दिया ।"

"और वो मर गई है ।" रतनचंद के होंठों से निकला ।

"हां। मैं उसे रास्ते से ही तो हटाना चाहता था ।"

"और ये बात सोनिया को मालूम है ?" रतनचंद ने पूछा ।

"मालूम है ।"

"फिर भी वो तुम जैसे हत्यारे के साथ रहने को तैयार है ?"

नागेश शोरी के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी।

"इस बात का उसी ने जोर लगाया है कि तुम्हारी हत्या करवा दूं।"

"मेरी हत्या के लिए सोनिया ने कहा?" रतनचंद का मुंह खुल गया ।

"हां, वो मेरे साथ रहने को बेताब है और मैं भी । हम दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते हैं ।"

"लानत है, ऐसे प्यार पर ।" रतनचंद भड़क उठा- "तुम दोनों इतने ही मरे जा रहे थे तो मुझसे कह देते। मैं खुद अपने हाथों से तुम्हारी शादी करा देता। इस तरह खून-खराबा करने की क्या जरूरत थी ?"

नागेश शोरी ने कुछ नहीं कहा ।

तभी सीढ़ियों से सोनिया उतरती दिखी।

रतनचंद ने सोनिया को देखा तो सिर से पांव तक सुलग उठा । उसने सफेद चमकदार साड़ी पहनी हुई थी। बला की खूबसूरत लग रही थी वो। चेहरे पर शांत भाव नजर आ रहे थे ।

"आ, नागेश की लैला ! मुझे मरवाने की क्या जरूरत थी? मुंह से कह देती, मैं इंकार नहीं करता। वैसे भी मुझे ऐसी औरतों की जरूरत नहीं है, जो दूसरे मर्द के पहलू में बैठे। और मेरी हत्या करवाती फिरे। जा, मैंने तेरे को आजाद किया। तेरा-मेरा कोई रिश्ता अब बाकी नहीं, तू नागेश शोरी की रातें सजा। दुख तो मुझे इस बात का है कि तू दगाबाज निकली। मेरे में क्या कमी तेरे को दिखी जो नागेश शोरी का सहलाने लगी ।"

"तुम अच्छे हो। कोई कमी नहीं तुममें। परन्तु मुझे शोरी भा गया।" सोनिया कह उठी।

नागेश शोरी मुस्कुरा पड़ा ।

रतनचंद ने गहरी सांस लेकर कहा-

"तुम दोनों खुश रहो और मुझे कभी ना दिखो, यही कामना करता हूं मैं ।" फिर वो R.D.X से बोला- "चलो यहां से ।"

"यानि हमारी कोई जरूरत नहीं ।"

"सब कुछ निपट गया। मैं अब इन दोनों को अपने सामने नहीं देखना चाहता ।"

"नोट ।"

"बंगले पर चलो और ले लो ।"

R.D.X की नजरें मिलीं।

"पार्टी जब कहे काम खत्म हो गया तो फिर रुकना नहीं चाहिये। निकल चलो ।" एक्स्ट्रा बोला।

जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा-

"हमारी यहां जरूरत नहीं। चलें ?"

"हां ।"

"हम जा रहे हैं शोरी ।" जगमोहन कह उठा- "फिर कभी हमसे झूठ बोला तो तेरी खैर नहीं ।"

"तीन करोड़ मुफ्त में कमा लिए । धर्मा व्यंग से बोला ।

जगमोहन ने धर्मा को घूरा।

"खायेगा क्या ?" धर्मा ने मुंह बनाया ।

"R.D.X को जलती तीली लगाने की जरूरत होती है, बाकी काम तो अपने आप ही हो जाता है ।" जगमोहन तीखे स्वर में बोला ।

"लगा, जलती-तीली ।"

"वो तीली जरा खास होती है । बनवा लूं, फिर मिलूंगा ।"

"तुझे तो मैं भी देखूंगा ।"

देवराज चौहान, जगमोहन और सोहनलाल के साथ बाहर निकल गया ।

बाहर कार के पास ठिठका जगमोहन। ये वो कार थी जिस पर रतनचंद और  R.D.X आये थे। जगमोहन जानता था कि वो कभी भी बाहर आ सकते हैं। उसने फुर्ती से जेब से चाकू निकाला और कार के पहिये में घुसेड़ने लगा ।

देवराज चौहान दूसरी कार के स्टेयरिंग पर बैठ चुका था। कार स्टार्ट की ।

बगल में सोहनलाल बैठा था ।

तभी जगमोहन फुर्ती से वहां से हटा और दूसरी कार के पीछे वाली सीट पर जा बैठा । देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ा दी। जगमोहन ने उस खड़ी कार को देखा हवा कम हो रही थी। तभी उसकी निगाह हरीश मोगा पर पड़ी जो दरवाजे पर खड़ा उसे घूर रहा था । उसने पहिया पंचर करते, जगमोहन को देख लिया था ।

जगमोहन ने उसे देखते हुए मुस्कुराकर हाथ हिला दिया।

■■■

अगले दिन देवराज चौहान और जगमोहन की आंख देर से खुली।  काम खत्म हो गया था। नींद से उठने की कोई जल्दी तो थी नहीं । सुबह के नौ बज रहे थे ।

"मैं चाय बनाकर लाता हूं ।" जगमोहन ने कहा और किचन की तरफ बढ़ गया ।

देवराज चौहान बैड से उतरा ही था कि फोन बजा  ।

"हैलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।

"कहां हैं आप। दस दिन से आये नहीं ।" दूसरी तरफ नगीना थी, देवराज चौहान की पत्नी ।

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान बिखर गई ।

"किसी काम में व्यस्त हो गया था, लेकिन अब फुर्सत में हूं दो घंटे में तुम्हारे पास पहुंचता हूं ।" देवराज चौहान ने कहा ।

"देवर जी को भी साथ ले आइये। मैं बढ़िया सा लंच तैयार करती हूं ।" दूसरी तरफ से नगीना ने कहा।

"ठीक है।" देवराज चौहान ने कहा और फोन रख दिया ।

तभी जगमोहन वहां पहुंचा।

"किसका फोन था ?"

"तेरी भाभी का ।"

"कोई हुक्म ?"

"हमें वहां जाना है ।"

"मुझे भी ?"

"लंच तैयार कर रही है नगीना, उसने कहा है तो तेरे को जाना पड़ेगा ही ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।

"लंच, भाभी के हाथ का ! वाह-मजा आ जायेगा । दो-चार दिन वहां आराम भी हो जायेगा ।"

"चाय बना के ला ।"

"अभी लाया ।" जगमोहन चला गया ।

देवराज चौहान पोर्च में आई अखबार ले आया। अखबार वाला वहीं अखबार फेंक जाता था ।

जगमोहन जब चाय बनाकर लाया तो देवराज चौहान ने अखबार का पहला पन्ना खोला हुआ था ।

"कोई खास खबर ?" जगमोहन पास ही चाय का प्याला रखता बोला ।

"हां ।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।

"क्या ?"

"पढ़ लो ।"

जगमोहन अखबार की ओर पहले पन्ने पर नजर पड़ते ही चिंहुक उठा।

अखबार में नागेश शोरी और सोनिया की लाशों के चेहरे की तस्वीरें थी। खबर ये थी कि कल शाम फार्महाउस पर दोनों की किसी ने हत्या कर दी । हत्यारे का अभी पता नहीं चल पाया है।

"R.D.X ।" जगमोहन के होंठों से निकला ।

"जाहिर है, रतनचंद के हाथों से ही, उन दोनों को खत्म कराया है ।"

"रतनचंद ने। ओफ्फ! कोई भी काम नहीं ।" जगमोहन ने अखबार एक तरफ रखी और फोन उठाकर नम्बर मिलाने लगा। फौरन ही नम्बर मिला राघव की आवाज कानों में पड़ी-

"हैलो।"

"शोरी और सोनिया को साफ कर दिया ?" जगमोहन छूटते ही बोला ।

"जगमोहन ।"

"हां। मैं ।"

"नोट मिलने चाहिये। काम हम पूरा करते हैं। रतनचंद ने कहा । हमने शाम को ही दोनों को साफ कर दिया। बड़े लोगों की लड़ाई में, अपना भी कुछ फायदा हो जाता है ।"

"सच में कमीने हो ।"

"वो तो मैं तुम्हें मिलने पर बताऊंगा। तुमने कल कार का टायर पंचर कर दिया था ।

"मैंने...पंचर...। पागल तो नहीं हो गया क्या?" जगमोहन फोन पर ही दांत निकाल कर बोला- "क्या बच्चों जैसी बातें करता है, मैं भला ऐसा घटिया काम क्यों करूंगा। ये काम तो  छोटे बच्चे करते हैं ।"

"हरीश मोगा ने बताया कि ये काम तुमने किया ।"

"वो तो वैसे भी मुझसे खार खाता है। पहले भी वो मेरे बारे में झूठी खबरें फैलाता...।"

"हमसे पंगा लेगा तो जल्दी मरेगा ।" राघव का कठोर स्वर कानों पर पड़ा ।

"साले तू क्या तोप है? मुझे जानता नहीं। एक बार सामने पड़ियो तेरी खटिया जमुना में फेंक कर आऊंगा। साला मुझे धमकी देता है। अब की बार कार के चारों टायर पंचर करूंगा । हरामी मुझ पर रौब मारता है।" जगमोहन ने तेज स्वर में कहकर फोन बंद कर दिया ।

देवराज चौहान मुस्कुराता हुआ उसे देख रहा था

"क्या हुआ?" जगमोहन ने गहरी सांस ली और प्याला उठा लिया- "राघव मुझे अकड़ दिखा रहा था ।"

"तैयार हो जाओ, नगीना के पास वक्त पर पहुंचना है।" देवराज चौहान ने कहा और और चाय के घूंट भरने में व्यस्त हो गया ।

"रतनचंद ने जो शोरी और सोनिया की हत्या करवाई, ठीक  किया उसने ?" जगमोहन ने पूछा ।

"मैं नहीं जानता कि ठीक किया या गलत, परन्तु खून खराबे की शुरुआत शोरी ने की थी। जब सारी बात रतनचंद के सामने आई तो R.D.X के पास होने का फायदा उठाया और दोनों को खत्म करवा दिया ।"

उसके बाद दोनों नगीना के पास जाने के लिए तैयार होने लगे ।

सोहनलाल का फोन आया । जगमोहन ने बात की ।

"आज का अखबार पढ़ा ?" सोहनलाल ने पूछा ।

"हां। रतनचंद ने दोनों का कत्ल करवा दिया।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।

"मुझे आशा नहीं थी कि रतनचंद ऐसा कदम उठायेगा ।" खैर-तीन करोड़ तो मिल गया। उसमें से थोड़ा सा मुझे दे दो ।"

'तुझे क्यों ?"

"मैंने सिर पर जगजीत से स्टूल खाया है, मेरा भी कुछ हिस्सा बनता है...।'

"हैलो...हैलो...।" जगमोहन एकाएक फोन पर चीखने लगा- "हैलो, आवाज नहीं आ रही। कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा।" इसके साथ ही जगमोहन में फोन बंद कर दिया और बड़बड़ा उठा- "पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं, हिस्सा मांगने। स्टूल सिर पर खाया है तो एक-दो गिलास जूस पिला देता हूं, हिस्सा काहे का। खामखाह ही...।"

समाप्त