शाम साढ़े चार बजे, वो ही पुलिस वाले आये, जो उस दिन आकर, सुमित जोशी को प्रभाकर के जेल से फरार हो जाने की खबर दे गये थे । देवराज चौहान रिसेप्शन में बैठा था । जोशी भीतर केबिन में था । पुलिस वालों को देखते ही देवराज चौहान समझ गया कि असली खेल तो अब शुरू होने जा रहा है ।
"जोशी साहब हैं ?" एस.आई. ने पूछा ।
"भीतर हैं ।" जूही बोली--- "मैं उन्हें खबर...।"
"कोई जरूरत नहीं ।" देवराज चौहान बोला--- "मैं इन्हें ले जाता हूं।"
एक पुलिस वाला रिसेप्शन पर ही रुक गया ।
दो के साथ देवराज चौहान, जोशी के केबिन में पहुंचा ।
सुमित जोशी ने एस.आई. को देखते हुए कहा---
"अब क्या हो गया ?"
"सोचा आपको खबर दे दूं कि प्रभाकर और जिम्मी की लाशें मिली हैं ।"
"क्या ?" सुमित जोशी का मुंह खुला-का-खुला रह गया ।
"मुम्बई की सीमा पर, हाईवे के पास के जंगल में उन दोनों की लाशें मिली हैं ।"
"ओह...।" जोशी ने खुद को संभाला--- "ये खबर मेरे लिए नई है।"
"आप प्रभाकर के वकील थे । उसका केस लड़ रहे थे । इसलिए बताने आ गया ।"
"अच्छा किया । अच्छा किया । कैसे मरे वे ?"
"पता चला कि उन्हें गोलियां मारी गई हैं। ये घटना शायद उसी दिन की है, जब प्रभाकर जेल से फरार हुआ...।"
"कैसे जाना ?"
"लाशें पुरानी हैं । दो-तीन जगह से कुत्तों ने मांस नोच खाया था ।"
"तुमने लाशें देखी ?"
"नहीं । अभी तो एस.आई. ने फोन पर हैडक्वार्टर खबर दी थी, जिसने लाशों का पंचनामा किया।"
"ओह...। बुरा हुआ ।" सुमित जोशी ने एक निगाह देवराज चौहान पर मारी ।
एस. आई. की निगाह जोशी पर थी ।
"बांटू और गोवर्धन की लाशों की खबर दी ?"
"दे दी...।" एस.आई. ने सिर हिलाया--- "गोवर्धन खबर सुनकर पागल हो गया । पता चला कि वो पागलों की तरह सड़क पर कपड़े फाड़कर दौड़ता फिरा । बांटू ने कठिनता से उस पर काबू पाया ।"
जोशी को काटो तो खून नहीं।
ये हाल हो गया उसका ।
फक्क चेहरा ।
आंखों में नाचता मौत का भय उछाले मार रहा था ।
"मैं चलता हूं ।" सब-इंस्पेक्टर ने कहा ।
"ह...हां । कोई और खबर हो तो मुझे बताना ।"
पुलिस वाले चले गये ।
सुमित जोशी बेजान-सा वापस कुर्सी पर बैठ गया।
"तुम तो फंस गये...।" बोला देवराज चौहान ।
जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर उसे देखा
"बांटू और गोवर्धन अब तेरे को नहीं छोड़ेंगे ।"
"बकवास मत कर ।" जोशी खरखराते स्वर में बोला--- "मैं बच जाऊंगा।"
"मुझे नहीं लगता ।" देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़े--- "अगर तू मेरे कहने पर कल ही खिसक जाता तो सब ठीक रहता ।"
"मैं आज निकल जाऊंगा । बस एक काम कर लूं ।" कहकर जोशी ने मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा ।
"किसे फोन कर रहा है ?"
"कमिश्नर को...।" साला नम्बर ही नहीं लग रहा ।"
सुमित जोशी ने कई बार कमिश्नर का मोबाइल नम्बर ट्राई किया ।
परन्तु फोन नहीं लगा ही नहीं।
आखिरकार सुमित जोशी ने कमिश्नर भूरेलाल के ऑफिस का नम्बर मिलाया । वहां से पता चला कि दो लोग आये थे । उसके साथ कमिश्नर भूरेलाल कहीं गया है । बताकर नहीं गया कि कहां जा रहा है
"कमीने को अभी कहीं मरना था...।"
"क्या हुआ ?" देवराज चौहान ने पूछा । जबकि वो सब कुछ समझ रहा था ।
"कमिश्नर का कुछ पता नहीं कि वो कहां है...।"
"तुम्हें क्या उसकी इजाजत लेनी है, इस शहर से खिसकने के लिए ?"
"उसके हाथों एक आदमी को साफ कराना है ।" सुमित जोशी दांत भींचकर बोला ।
"ये तो कोई जरूरी था नहीं कि...।"
"जरूरी काम है ।" सुमित जोशी गुर्रा उठा--- "जिस आदमी को साफ कराना है, वो मेरे बारे में सब कुछ जानता है । उसका मरना बहुत जरूरी है । कहीं मेरे जाने के बाद वो पुलिस या बांटू के हाथ लग गया तो सब उगल देगा।"
"तो ये बात है...। फिर तो उसे खत्म करवाना ही चाहिए । कमिश्नर के हाथों मरवाना था उसे ?"
"तुझे क्या ?"
"मैं तेरे को राय देना चाहता हूं कि भाड़े के हत्यारे से ये काम करा ले । तेरे को कई पहचान वाले हैं ।"
"तू मुझे सलाह मत दे । जुबान बंद रख ।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा ।
"पास ही कहीं गया होगा कमिश्नर...आ जाएगा ।" बड़बड़ा उठा सुमित जोशी।
"अब करना क्या है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा । वो तनाव के सागर में डूबा लग रहा था ।
"बाहर निकलता तो रतनपुरी के आदमी कहीं टकरा जायेंगे । फोन पर जो रतनपुरी से बात हुई, उसमें उसने साफ कहा कि हम बाहर निकले । यानी कि उसने तंगड़ा इंतजाम कर रखा है । अगर बाहर नहीं निकलते तो बांटू के आदमी तेरे को पकड़ने यहां आ...।"
"मुझे बांटू के आदमियों का डर नहीं है ।" सुमित जोशी ऊंचे स्वर में कह उठा--- "मैंने तो नहीं मारा जिम्मी और प्रभाकर को...।"
"ये बात उन्हें कहना, उन्हें विश्वास दिलाना ।"
सुमित जोशी ने दांत किटकिटाए ।
"मैंने तेरे को पहले भी कहा था कि बांटू और गोवर्धन जैसे लोगों की अपनी अदालतें होती हैं । उन्हें सबूत या गवाहों की जरूरत नहीं होती । वो हवा का रुख देखकर ही पहचान जाते हैं कि मामला क्या है ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
"तू मुझे बचाना ।"
"मैं बांटू और गोवर्धन के आदमियों से नहीं टकरा सकता ।"
"डरता है उनसे ?" सुमित जोशी दांत पीसकर कह उठा ।
"डरता नहीं हूं । दरअसल मेरा ठिकाना मेरे साथ बंधा हुआ है । उनसे पंगा लिया तो वो आसानी से हमें मार देंगे । फिर तू पुलिस वाले की बात भूल गया कि गोवर्धन पागल होकर कपड़े फाड़ता सड़कों पर दौड़ा था । उन दोनों की मौत गोवर्धन ने दिल से लगा दी । गोवर्धन तो वैसे भी हत्यारा है । उसे खत्म कर दो या खुद ही कहीं छुप जाओ ।" देवराज चौहान ने कहा।
"तुम उसे खत्म कर सकते हो ?" जोशी ने व्याकुल स्वर में पूछा ।
"क्यों नहीं कर सकता...।"
"तुम उसे खत्म कर दो । मैं तुम्हें...।"
"तुम्हारे लिये मैं इस तरह का कोई काम नहीं करूंगा । क्योंकि तुम सच में घटिया आदमी हो । जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद कर देते हो । तुमने तो किसी का भी लिहाज नहीं किया ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था ।
"तुम डरते हो गोवर्धन और बांटू से।"
"जब वक्त आयेगा, तुम जान लोगे । परन्तु मुझे लगता है कि वो वक्त देखने के लिये शायद तुम जिंदा ना रहो ।"
"मैं जिंदा रहूंगा । भाग जाऊंगा यहां से...।"
"अब शायद भाग भी ना सको ।"
"क्या मतलब ?"
"बाहर रतनपुरी, भीतर बांटू-गोवर्धन--- निकल जाने का कोई रास्ता नहीं बचा ।"
"बकवास मत करो ।" सुमित जोशी गुर्राया और मोबाइल से नम्बर मिलाने लगा ।
देवराज चौहान के चेहरे पर कड़वी मुस्कान आ ठहरी । वो जोशी को देखता रहा ।
तभी सुमित जोशी के हाथ में दवा मोबाइल बजने लगा ।
जोशी चिंहुंक उठा, जैसे अंजाना-सा कुछ उसके हाथ पर हो गया हो ।
"फोन बजा है ।" देवराज चौहान बोला--- "तुम इतने घबराए हुए क्यों हो ?"
सुमित जोशी ने लम्बी सांस ली जैसे खुद को समझा रहा हो कि वो खामखाह डर रहा है।
"हैलो...।" जोशी ने फोन पर बात की ।
"वकील...।" बांटू का शांत स्वर, सुमित जोशी के कानों में पड़ा ।
जोशी के शरीर में चीटियां की रेंगती चली गईं ।
चेहरा फक्क से भी फक्क हो गया ।
"ब...बांटू...।" जोशी के होंठों से खराखराता स्वर निकला ।
"खबर सुनी ?"
"ह...हां...।"
प्रभाकर और जिम्मी को किसी ने मार दिया वकील...मैं...।"
"दस मिनट पहले पुलिस वाले आये थे, उन्होंने बताया । म...मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि...कि...।"
"गोवर्धन तो पागल हो गया वकील । मैंने पहली बार उसे देखा, कपड़े फाड़कर पागलों की तरह चीखते हुए । उसका तो बहुत बुरा हाल हो गया । अभी पूरी बोतल गटक कर बेहोश हुआ है । बेहोशी में भी चीख उठता है...।" बांटू का स्वर शांत था।
"मुझे भी प्रभाकर और जिम्मी की मौत की खबर सुनकर बहुत झटका लगा...।"
"तू सच बोल दे वकील।"
"सच ?" सुमित जोशी का दिल धड़कना रुका--- "कैसा सच ?"
"क्यों मारा तूने बाप-बेटे को ?"
"म...म...मैंने मारा ?" सुमित जोशी का दिल अब जोरो से धड़कने लगा--- "य...ये तू क्या कहता...।"
"वो आखिरी बार तेरे साथ...।"
"बांटू, मैं तेरे को कह चुका हूं कि मैंने प्रभाकर को जेल से निकालकर जिम्मी के हवाले कर दिया था । इसके साथ ही मेरा काम खत्म हो गया और मैं अपने ऑफिस में आ बैठा । उसके बाद क्या हुआ, मैं नहीं जानता । मेरे ख्याल में कोई नजर रख रहा होगा...जेल के बाहर से ही, फिर मौका पाते ही उसने...।"
"पहले किसको मारा-बाप को या बेटे को ?"
"बांटू तू...।"
"सच कह दे वकील । अब दिल न दुखा और । मैं तेरे से वादा करता हूं कि तेरे को इस शहर से भगा दूंगा । गोवर्धन को कुछ भी पता नहीं चलेगा । बोल, सच कह दे अब।"
देवराज चौहान की निगाह एकटक सुमित जोशी पर थी ।
"ये तू कैसी बातें करता है बांटू ? मुझ पर शक कर रहा है ? उन्हें मारने वाला तो कोई और है । उसे तलाश कर ।"
"पक्की बात ?"
"कसम से बांटू...। अपने परिवार की कसम । उसे ढूंढ जिसने प्रभाकर और जिम्मी को मारा है । इससे उनकी आत्मा को चैन मिलेगा ।"
"वो तू तो नहीं है ?"
"कितनी बार कहूँ...।"
उधर से बांटू ने फोन बंद कर दिया ।
सुमित जोशी ने कांपते हाथों से फोन टेबल पर रखा । चेहरे पर पसीना चमक रहा था।
देवराज चौहान, जोशी को देख रहा था ।
"हरामी मुझ पर शक कर रहा है कि मैंने प्रभाकर और जिम्मी को मारा है ।" जोशी दांत भींचकर कह उठा ।
"इसमें गलत क्या है ?"
"बकवास मत कर ।" सुमित जोशी ने गुस्से में कहते हुए देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"बांटू को विश्वास दिलाना होगा कि मैंने कुछ नहीं किया । तभी बच सकता हूं मैं...।"
"प्रभाकर और जिम्मी से मिलने वाली आखिरी इंसान तू था । बांटू और गोवर्धन सिर्फ ये बात जानते हैं ।"
सुमित जोशी ने देवराज चौहान को देखा ।
"वो तेरे को छोड़ेंगे नहीं । अभी तो प्यार प्यार से सहलाकर पूछ रहे हैं तेरे से ।"
सुमित जोशी उठा और बेचैनी से केबिन में टहलने लगा । चेहरे पर क्रोध और बेबसी थी ।
"कमिश्नर को फोन नहीं करना...।"
ये सुनते ही जोशी ठिठका और टेबल से फोन उठाकर, नम्बर मिलाने लगा।
कई बार कोशिश के बाद भी जोशी की बात कमिश्नर भूरेलाल से न हो सकी ।
ऑफिस में फोन किया तो ये ही जवाब मिला कि वो ऑफिस में नहीं है ।
देवराज चौहान उठते हुए बोला---
"मैं रिसेप्शन पर हूं । जरूरत पड़े तो बुला लेना ।"
"दूर मत जाना, मैं मुसीबत में हूं...।" सुमित जोशी ने जल्दी से कहा ।
"यहीं हूं...।"
देवराज चौहान रिसेप्शन पर पहुंचा । जूही एक तरफ सिर लुढ़काए नींद ले रही थी ।
देवराज चौहान सोफे पर बैठा ही था कि फोन बजा । दूसरी तरफ रमेश सिंह था ।
"मजा आ गया देवराज चौहान । सब बातों की बढ़िया रिकॉर्डिंग हो रही है।
देवराज चौहान नींद में डूबी जूही पर निगाह मारकर बोला ।
"मजा आ रहा है ?"
"बहुत । तुमने तो सच में कमाल कर...।"
"तुमने कमिश्नर का बढ़िया इंतजाम किया है " देवराज चौहान बोला ।
"दयाल बहुत घिसा हुआ ऑफिसर है । वो जब काम करता है तो इसी तरह से करता है । मेरे ख्याल से बांटू-गोवर्धन वकील को छोड़ने वाले नहीं । तुझे क्या लगता है ?" उधर से रमेश सिंह ने पूछा ।
"मैंने तो पहले ही कहा है कि तुम लोगों के हाथ वकील नहीं लगेगा ।"
"ऐसा मत कह । सी०बी०आई० को उसकी जरूरत है।"
"बांटू-गोवर्धन...रतनपुरी या कोई और भी, सबको जरूरत है सुमित जोशी की ।"
"रतनपुरी आज हमला करने को कह रहा है ।
"हां...।"
"जब वकील यहां से चलेगा तो मैं पीछे आऊंगा ।"
"क्यों ?"
"देखूंगा कि रास्ते में क्या होता है ।
"तेरी मर्जी । जगमोहन की कोई खबर नहीं दी तुमने ?"
"दयाल पे भरोसा रख । वो चक्कर चला लेगा, जगमोहन को वहां से बाहर निकालने के लिये ।"
"उसे फोन करके बताया नहीं कि यहां बढ़िया चल रहा है ?"
"उससे क्या होगा ?"
"वो दिल लगाकर काम करेगा ।"
"कमिश्नर का इंतजाम कर दिया ना उसने । इसी तरह वो जगमोहन का काम भी कर देगा । फिक्र मत कर ।"
देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"कोई ठोस सबूत ढूंढ ले वकील के खिलाफ, तो हमारा काम आसान हो जायेगा ।"
"उससे लिखित में ले लूं जुर्मो की लिस्ट...।" देवराज चौहान तीखे स्वर में कहा उठा ।
"मजाक मत कर ।"
"मैं कोशिश कर रहा हूं । तुम सब सुन ही रहे हो । अब जब तक मुझे जगमोहन की खबर नहीं मिलती, मैं कोई काम नहीं करूंगा ।"
"जगमोहन की खबर तेरे को जल्दी मिलेगी ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया । वहीं बैठ रहा।
करीब दस मिनट बाद जूही की आंख खुली । देवराज चौहान को देखते ही हड़बड़ा कर कह उठी---
"पता नहीं कैसे आंख लग गई...।"
देवराज चौहान ने मुंह घुमा लिया ।
"चाय पिएगा सुरेंद्र पाल ?"
"नहीं...।"
"नाराज है मुझसे क्या ?"
"नहीं...।"
"सिर दर्द कर रहा है तो दबा दूं क्या ?"
देवराज चौहान उठा और भीतर, केबिन की तरफ बढ़ गया ।
केबिन में प्रवेश किया तो सुमित जोशी को अपने मोबाइल पर व्यस्त पाया ।
"कमिश्नर का नम्बर ही नहीं मिल रहा । पता नहीं, हरामी कहां मर गया ।" जोशी कह उठा।
"कोशिश करते रहो । कभी तो मिलेगा ।"
"कभी स्विच ऑफ आ रहा है तो कभी ऑउट ऑफ रेंज ।"
देवराज चौहान कुर्सी पर बैठता हुआ बोला---
"इस वक्त तुम्हें अपने बारे में सोचना चाहिये । क्या करना चाहता है तू ?"
जोशी ने रूमाल निकालकर अपना चेहरा पोछा ।
"खतरे में है तू...।" देवराज चौहान बोला ।
"बार-बार मत कह ।"
"तेरे को यहां से बाहर जाना ही पड़ेगा और वहां रतनपुरी के आदमी...।"
"मैं बाहर जाऊंगा । मेरे को कुछ नहीं होगा ।" जोशी की आवाज में घबराहट थी ।
देवराज चौहान उसे देखता मुस्कुरा पड़ा ।
"बांटू और गोवर्धन का कहर भी, कभी भी तुझ पर टूट सकता है ।"
"तू बकवास बहुत करता है देवराज चौहान ?" जोशी ने खा जाने वाली निगाहों से उसे देखा।
"मैं तुझे हर वक्त सतर्क करता रहता हूं...।"
"कभी चुप भी रहा कर ।"
"साढ़े पांच बज रहे हैं, चलना कब है ?"
"तेरे को क्या जल्दी है ?"
"कोई जल्दी नहीं ।"
"तो पूछ मत कि कब चलना है ?" कहने के साथ ही सुमित जोशी ने फोन उठाया और नम्बर मिलाने लगा । चेहरे पर घबराहट और परेशानी थी । बेचैनी थी । आवेश में हाथों में कंपन आ गया था ।
देवराज चौहान उसे देख रहा था ।
"बांटू को फोन कर रहा हूं...।" जोशी व्याकुलता से कह उठा ।
"क्यों ?"
"दो-चार बार फोन करना ठीक है । उसके जख्मों पर मरहम का काम करेगा मेरा फोन । मेरे प्रति उसका शक बहुत कम होगा ।"
देवराज चौहान खामोशी से उसे देखता रहा ।
फोन लग गया। बात हो गई ।
"बांटू ।" सुमित जोशी ने जल्दी से कहा--- "गोवर्धन कैसा है ?"
"नशे में सोया पड़ा है । तू बता ?"
"मैं तो पूछने के लिए फोन कर रहा हूं कि उन कमीनों को ढूंढा जिन्होंने जिम्मी और प्रभाकर को मारा ?"
"आदमी इसी काम पर लगे हैं । ये ही कहने के लिए फोन किया?"
"हां...मैं...।"
"ऐसी बेकार की बातों में मेरा वक्त खराब मत कर । फिर पूछता है, तूने तो कोई गड़बड़ नहीं की न ?"
"कैसी बातें करता है । मेरी इतनी हिम्मत कहां कि मैं...।"
उधर से बांटू फोन बंद कर दिया था ।
"उल्लू का पट्ठा ।" सुमित जोशी होंठ भींचे बड़बड़ा उठा । उसके बाद पुनः कमिश्नर का मिलाया नम्बर मिलाया ।
परन्तु नम्बर नही लगा ।
"कमीना, काम के वक्त जाने कहां जा मरा है...।"
देवराज चौहान की निगाह जोशी के चेहरे पर थी ।
"तू मुझे क्या देखता रहता है ?"
"कुछ नहीं...।" मुस्कुराया देवराज चौहान ।
"जा, रिसेप्शन पर जाकर बैठ । जब जरूरत होगी बुला लूंगा । मैं इस वक्त बहुत परेशान हूं...।"
देवराज चौहान शराफत से उठा और बाहर निकल गया ।
जूही रिसेप्शन पर छोटा-सा शीशा लिए लिपस्टिक लगा रही थी ।
"आखिर ये सब हो क्या रहा है ?" जूही बोली--- "तुम बार-बार सर के पास जाते हो । सर मुझे परेशान लग रहे हैं । तुम दोनों में कोई बात चल रही है, लेकिन मुझे नहीं बता रहे कि आखिर बात क्या है ?"
"आज वकील नहीं आये ?"
"सर ने मुझे बोला था कि उन्हें फोन कर दूं कि आज ऑफिस न आयें । सुबह मिलेंगे । मैंने फोन कर दिया।"
"और कोई क्लाइंट भी नहीं आया मिलने...।"
"सर ने सारी अपॉइंटमेंट कैंसिल कर दी ।"
देवराज चौहान सोफे पर जा बैठा ।
"बताओगे नहीं कि बात क्या है ?"
"ये बात तुम अपने सर से क्यों नहीं पूछती ?"
"मुझे क्या पड़ी है । तुम सामने आये तो पूछ लिया । एक बात कहूं...।"
"बोलो...।"
"पहले वाला सर का जो बॉडीगार्ड था, वो मेरा दीवाना था । मेरे आस-पास ही रहता था ।"
"मतलब कि तुम्हारा बॉडीगार्ड बन गया था ?"
"ऐसा ही समझ लो ।" जूही ने आंखें नचाई--- "वो मुझे बहुत पसंद करता था । तुम जाने कैसे दिमाग के हो...।"
"तुम्हारे ख्याल से मुझे भी तुम्हारा दीवाना होना चाहिये...।"
"ये भी भला कोई कहने की बात है...।"
"इन बातों के अलावा तुम कुछ और नहीं सोचती क्या ?"
"और क्या ?"
"यही कि तुम्हारी शादी होने वाली है । तुम्हें अब सुधर जाना चाहिये । अपने घर-परिवार के बारे में सोचो ।"
"तुम तो बूढ़ों की तरह बात करते हो ।" जूही मुंह बनाकर बोली--- "मेरे बाप की तरह...मेरी शादी ही होने जा रही है । मैं बूढ़ी तो नहीं हो गई जो परिवार के बारे में सोचूं...।"
उसी पल देवराज चौहान का फोन बजने लगा ।
"हैलो ।" देवराज चौहान ने बात की ।
"तुम कैसे हो ?" जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी ।
देवराज चौहान के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा ।
"एक मिनट ।" देवराज चौहान ने कहा । उठा और शीशे के दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
जूही ने उसे देखते हुए फौरन होंठ सिकोड़े ।
देवराज चौहान ने शीशे के दरवाजे से बाहर निकलकर बात की ।
"तुम कहां हो ?"
"मुझे कुछ लोगों ने पुलिस कस्टडी से निकालकर आजाद कर दिया है ।" जगमोहन बोला ।
"शुक्र है कि तुम आजाद हो गये...।" देवराज चौहान ने गहरी सांस ली ।
"वो लोग कौन थे ?"
"C.B.I.वाले...।"
"C.B.I. ?" जगमोहन की चौंकी आवाज उभरी--- "क्या हो रहा है ? तुम क्या कर रहे हो ?"
"तुम्हें आजाद कराने के लिए हाथ-पांव मार रहा था ।"
"अब तो मैं आजाद हो...।"
"भूल में मत रहना । C.B.I. वाले तुम पर नजर रखते भी हो सकते हैं । तुम यही सोचकर चलो कि तुम पर नजर रखी जा रही है । और उन लोगों को पहचानने की कोशिश करो, जो तुम पर नजर रख रहे हैं । शायद कोई भी नजर न रख रहा हो । परन्तु तुम्हें इस बारे में हर हाल में सावधान रहना है । तुम बंगले पर नहीं जाओगे । सबसे पहले अपना हुलिया बदलो कि पुलिस तुम्हें पहचान न सके । उसके बाद किसी होटल में जाकर रुको और...।"
"लेकिन तुम क्या कर रहे हो ? क्या तुम बंगले पर हो ?"
"मैं किसी काम में फंसा हूं ।"
"मुम्बई में हो ?"
"हां...तुम...।"
"कुछ भी बताओ कि...।"
"कुछ भी बताने की मैं जरूरत नहीं समझता । एक-दो दिन में काम खत्म होने वाला है । इस काम में तुम्हारी गुंजाईश कहीं भी नहीं है । अगर तुम्हारे पीछे कोई है तो तुमने उससे पीछा छुड़ाना है ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
"मुझे कुछ तो बताओ कि C.B.I. वालों का क्या चक्कर है ? उनका, तुमसे वास्ता कैसे पड़ गया ? उन्होंने क्यों मुझे...।"
"मैंने जो कहा है, वो ही करो । कल तुमसे बात करूंगा ।" कह कर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।
देवराज चौहान को इस बात की खुशी थी कि उसका काम हो गया । जगमोहन अब आजाद है।
शीशे का दरवाजा धकेलकर देवराज चौहान ने भीतर प्रवेश किया ।
जूही जैसे बेताबी से उसके भीतर आने का ही इंतजार कर रही थी । वो बोली---
"क्यों सुरेंद्र पाल, किसका फोन था ?"
"पहचान वाले का था ।" देवराज चौहान सोफे पर जा बैठा।
"वाले का या वाली का ?" जूही ने आंखें नचाईं।
"वाले का ।" देवराज चौहान ने उसे देखा ।
"तभी तुमने मेरे सामने बातें नहीं की और जल्दी से बाहर निकल गये ।"
तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा ।
"हैलो ।" उसने बात की।
"बाहर निकलकर किससे बात कर रहे थे ?" रमेश सिंह की आवाज कानों में पड़ी ।
"जगमोहन से...।"
"ओह । तो दयाल ने उसे बाहर निकाल दिया ।"
"शुक्रिया...।"
"अब तू खिसक जायेगा ?"
"चिंता मत करो, तुम्हारी इजाजत लेकर ही जाऊंगा । तुम्हारा काम करके जाऊंगा।"
"हमने अपना वादा निभाया । अब तू भी अपनी बात पूरी कर । वकील के खिलाफ तगड़ा सबूत हमें दे ।"
"जरूर । मैं सबूत तलाश करूंगा ।"
"हमारे विश्वास को धोखा मत पहुंचाना ।"
"तुम मेरे साथ ही रहोगे तो मैं भी ठीक रहूंगा ।" देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
"ये फोन तो वाले का था ।" जूही बोली ।
तभी भीतर की तरफ से सुमित जोशी वहां आ पहुंचा ।
"कमिश्नर का फोन मिला ?" देवराज चौहान ने सामान्य स्वर में पूछा ।
"नहीं । साला मर गया लगता है ।" सुमित जोशी ने कड़वे स्वर में कहा--- "आज ही मरना था उसे।"
"सर ।" जूही बोली--- "कोई काम नहीं हो तो मैं जाऊं...?"
जोशी ने उसे देखा ।
"सिर दबाना हो तो मैं रुक जाती...।"
"नहीं । ऑफिस बंद करो और जाओ । हम भी जा रहे हैं ।" जोशी कह उठा ।
"ओ०के० सर ।" कहने के साथ ही जूही ऑफिस बंद करने की तैयारी करने लगी ।
देवराज चौहान ने सुमित जोशी को देखा ।
"चलें देवराज चौहान ?" कहते हुए जोशी परेशान हो उठा।
"हां ।" देवराज चौहान मुस्कुराते हुए उठ खड़ा हुआ--- "बाहर चलकर हमें देखना चाहिये कि रतनपुरी ने तुम्हारे लिए क्या इंतजाम कर रखे हैं ।"
सुमित जोशी के होंठ भिंच गये । जेब से रिवाल्वर निकालकर उसकी मैगजीन चेक की, फिर बोला---
"मुझे कुछ नहीं होगा देवराज चौहान...।"
"रिवाल्वर पर इतना भरोसा ?"
"मैं हर बार बड़ी से बड़ी मुसीबत से बचता आया हूं । किस्मत का धनी हूं मैं ।" जोशी ने होंठ भींच कर कहा ।
"देखते हैं ।" देवराज चौहान होंठ सिकोड़कर कह उठा--- "यहां से जाना कहां है ?"
"घर ।"
"कोई काम नहीं था तो घर से आने की जरूरत ही क्या थी ?"
"अब क्या मुझे तुम्हारे कहने पर चलना होगा ?" सुमित जोशी ने तीखी निगाहों से उसे देखा।
"इस वक्त तुमने अपने से ही नाराज लग रहे हो ।" देवराज चौहान मुस्कुराया ।
"कुछ भी कहो । मैं सच में परेशान हूं । रतनपुरी ने मुझे ज्यादा परेशान कर रखा है । कुछ बांटू और गोवर्धन ने और उधर साले कमिश्नर का भी फोन नहीं मिल रहा । सच बात तो ये है कि रतनपुरी ने मुझे कुछ डर लग रहा है।"
"तुम्हें मुम्बई छोड़कर भाग जाना चाहिये था ।"
"हां, मुझे ऐसा ही करना चाहिये था । चलो अब...।"
■■■
देवराज चौहान की निगाह कार में बैठे, बाहर घूम रही थी ।
सुमित जोशी ने रिवाल्वर हाथ में पकड़ रखी थी । बेचैनी से बार-बार पहलू बदल रहा था । वो डरा हुआ था ।
मंगल कार को ट्रैफिक के बीच दौड़ा रहा था ।
शाम हो चुकी थी । कुछ ही देर में अंधेरा हो जाना था ।
देवराज चौहान देख चुका था कि रमेश शर्मा कार पर पीछे, फासला रखकर आ रहा था । चलते वक्त देवराज चौहान ने जोशी की टेबल के नीचे लगा माइक्रोफोन निकालकर जेब में रख लिया था, ताकि रमेश सिंह बातें सुन सके। C.B.I. वालों ने जगमोहन को आजाद कराया था, इसलिये वो अब उनकी इच्छा के मुताबिक काम करना चाहता था ।
तभी देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।
एक मोटरसाइकिल को वो कार के साथ-साथ आते देख रहा था । वो मोटरसाइकिल कभी कार के आगे हो जाती तो कभी कार से पीछे । उस पर दो लड़के बैठे थे । दोनों ने हैलमेट पहन रखे थे । उनके चेहरे छिपे थे ।
देवराज चौहान ने महसूस कर लिया था कि उनकी निगाह कार पर ही है ।
चूंकि कार पर काले शीशे चढ़े थे, इसलिए भीतर का माहौल न देख पा रहे थे ।
देवराज चौहान जानता था कि रतनपुरी जैसा गैंगस्टर, इस तरह दो लड़कों को नहीं भेजेगा, सुमित जोशी को मारने के लिये । वैसे भी उसने कहा था कि वो तगड़ा इंतजाम किए बैठा है।
पहले जो दो लड़के जिम्मी के हाथों मारे गये थे, उनके बारे में भी देवराज चौहान को पूरा विश्वास था कि वो रतनपुरी के भेजे नहीं है । स्पष्ट था कि कोई तीसरी पार्टी है जो सुमित जोशी को मार देना चाहती है ।
देवराज चौहान की निगाह में तीसरी पार्टी एक ही थी ।
खूबी ।
सुमित जोशी की बत्तीस वर्षीय बीबी।
वो सुमित जोशी की मौत चाहती थी कि पचपन साल के पति से छुटकारे के साथ-साथ उसकी ढेर सारी दौलत भी मिल सके । उसे भी तो खूबी ने कहा था, जोशी को मारने के लिए । खूबी पहले से ही चेष्टा कर रही थी चुपके से। जोशी को साफ करने के लिये । पहले वाले दोनों लड़के और ये वाले दोनों लड़के खूबी के भेजे भी हो सकते हैं ? देवराज चौहान के सामने एक वो ही तीसरी पार्टी थी जो जोशी की जान लेना चाहती थी।
अब तो खूबी और भी ख्वाहिशमंद हो गई सुमित जोशी की मौत के लिये । क्योंकि प्रदीप जोशी परिवार सहित मारा जा चुका था । उसकी भी ढेर सारी दौलत खूबी को मिलनी थी । जोशी की पहली पत्नी के दोनों बच्चों को मिलनी थी । कुल मिलाकर सारी दौलत से खूबी को तीसरा हिस्सा भी मिलता है तो बहुत बड़ी दौलत होगी ।
ये मोटरसाइकिल वाले लड़के खूबी के भेजे हो सकते हैं ।
"तुम कहां खोए हो ?" सुमित जोशी बेसब्री से बोला ।
देवराज चौहान से सुमित जोशी को देखा।
"रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले लो जैसे कि मैंने ले रखी है ।" जोशी ने कहा और अपने हाथ में पकड़ी रिवाल्वर दिखाई ।
वो सच में डरा हुआ था।
देवराज चौहान ने उसका मन रखने के लिए रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले ली ।
"अभी तक तो सब ठीक है ।" जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा ।
"आधा रास्ता भी तय नहीं हुआ अभी--- सुरक्षित नहीं हो तुम ।"
"रतनपुरी क्या सच में आज कुछ करेगा ?"
"मुझसे तो उसने ऐसा ही कहा था ।"
"तो अभी तक...।"
"तभी पीछे से कार में एक जबरदस्त टक्कर लगी ।
"भड़ाक ।"
जोरों की आवाज उभरी ।
कार तेजी से आगे जाती कार से जा टकराई।
देवराज चौहान और सुमित जोशी आगे की सीटों से जा टकराये ।
मंगल स्टेयरिंग से जा लगा । परन्तु बच गया ।
कार रुक गई । एक कार आगे थी तो एक पीछे ।
देवराज चौहान समझ गया खतरा सिर पर आ गया है । उसने मोटरसाइकिल वाले लड़कों को देखा । वो दोनों भी एक तरफ रुक गये थे और कार को ही देख रहे थे । सड़क के बीच कारें खड़ी थीं ।
देवराज चौहान की निगाह तेजी से हर तरफ घूम रही थी ।
मोटरसाइकिल वाले टक्कर होने पर खुद भी उलझन में नजर आ रहे थे।
देवराज चौहान समझ गया कि ये काम मोटरसाइकिल वालों का नहीं है ।
तभी पीछे से कार आई और बगल में पहुंचकर रुक गई । उसके शीशे पहले से ही नीचे थे । एक कार को चला रहा था । दूसरा पीछे वाली सीट पर गन थामें बैठा था ।
"बचो...।" देवराज चौहान ने कहा और नीचे झुक गया ।
सुमित जोशी पूरी तरह घबरा चुका था । रिवाल्वर हाथ में थामें, दरवाजा खोलकर बाहर निकला और तेजी से एक तरफ दौड़ पड़ा । देवराज चौहान ने मोटरसाइकिल के पीछे बैठे लड़के को उतरकर तेजी से जोशी के पीछे जाते देखा ।
उसी पल कार से तड़ातड़ फायरिंग होने लगी ।
देवराज चौहान दांत भींचे पूरी तरह सीट से चिपक गया था ।
दरवाजे में छेद करती दो-तीन गोलियां आईं, परन्तु वो सुरक्षित रहा ।
देवराज चौहान को अभी भी मोटरसाइकिल वाला याद आ रहा था जोकि जोशी के पीछे गया था ।
दोबारा कार पर गोलियां चलाई गईं।
परन्तु तभी उसे रिवाल्वर की गोली की आवाज आई ।
उसके बाद जैसे उसकी तरफ आने वाली गोलियों की बौछार दूसरी तरफ हो गई । इसी के साथ ही उसने बगल वाली कार के आगे जाने का एहसास हुआ ।
देवराज चौहान ने सिर उठाकर देखा ।
उस पर फायरिंग करने वाली कार, भाग खड़ी हुई थी ।
देवराज चौहान ने पीछे देखा । तो वहां रमेश सिंह दिखा । उसी ने फायरिंग वाली कार पर फायर किया था। तभी वो भाग खड़ी हुई । देवराज चौहान होंठ भींचकर उस तरफ दौड़ा । जिधर सुमित जोशी और मोटरसाइकिल वाला लड़का गया था ।
सड़क किनारे लोगों की भीड़ थी ।
अभी कुछ ही आगे गया कि उसे वो लड़का दिखा । उसने अभी भी हैलमेट पहन रखा था । वो अपनी नजरें इधर-उधर दौड़ रहा था । इससे देवराज चौहान को समझते देर न लगी कि जोशी उसके हाथ नहीं लगा।
पास पहुंचकर देवराज चौहान ने उसकी बांह पकड़ ली ।
उसने चौंककर देवराज चौहान को देखा । अपनी बांह छुड़ानी चाही ।
"सुमित जोशी कहां है ?" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में पूछा ।
"छोड़ो मुझे...।" उसने गुर्राकर कहा ।
देवराज चौहान ने उसे हाथ में थमी रिवाल्वर दिखाई ।
आस-पास के लोग पीछे हटते चले गये ।
"मैं जानता हूं तुम जोशी के पीछे हो । उसे मारना चाहते हो । तुम्हें खूबी ने कहा है उसे मारने के लिये ।"
वो कुछ अचकचा गया ।
"वकील कहां है ?"
"पता नहीं ।" उसने झटका देकर बाजू छुड़ाई--- "वो यहीं-कहीं नजरों से ओझल हो गया ।
आस-पास दुकानें थीं।
देवराज चौहान की निगाह हर तरफ गई ।
इतने में वो लड़का वहां से खिसक गया । या यूं कहें कि देवराज चौहान ने उसे जाने दिया था ।
इतने में वो देवराज चौहान वहां से जाने के लिए पलटने लगा एकाएक ठिठक गया ।
सामने ही एक दुकान से झांकते सुमित जोशी को उसने देख लिया । रिवाल्वर जेब में डालकर देवराज चौहान वहां पहुंचा ।
"चलो यहां से ।" देवराज चौहान बोला ।
"वो...वो हमलावर...।"
"चले गये हैं । मेरे होते हुए तुम फिक्र न करो । मेरे साथ आओ।"
जोशी, दुकान से निकला और देवराज चौहान के साथ आगे बढ़ गया ।
"हम कार की तरफ नहीं जा रहे ?" सुमित जोशी ने घबराये स्वर में पूछा ।
"नहीं । तुम्हारी कार में अब कुछ नहीं बचा । उस पर ढेर सारी गोलियां चली हैं ।"
"और मंगल ?"
"मैं नहीं जानता वो किस हाल में है...।"
"दोनों तेजी से उल्टी दिशा में बढ़ते जा रहे थे ।
"हम...हम...कहां...।"
"तुम यहां से सीधा पुलिस स्टेशन जाओ । इस वक्त तुम्हारे पीछे कोई नहीं है । पुलिस को इस हमले के बारे में बताओ, वरना पुलिस तुम्हें ढूंढ के तुम्हारे घर पर आ जायेगी । मैं यहां से तुम्हारे बंगले पर जा रहा हूं ?"
"तुम मेरे साथ नहीं...।"
"मैं देवराज चौहान हूं । मुझे फंसाओगे क्या ?"
सड़क के किनारे ऑटो खड़ा दिखा । देवराज चौहान ने लगभग जबरदस्ती उसे ओटो में बिठाया ।
"सीधा पुलिस स्टेशन जाना । पुलिस वाले घर छोड़ देंगे ।"
"लेकिन तुम तो...।"
"मैं तुम्हें तुम्हारे घर पर मिलूंगा, जब तुम आओगे ।" फिर देवराज चौहान ने ऑटो वाले से कहा--- "इन साहब को पास के पुलिस स्टेशन ले जाओ ।"
ऑटो जोशी को लेकर वहां से चला गया।
■■■
देवराज चौहान टैक्सी से बंगले पर पहुंचा । आठ बज रहे थे । अंधेरा हो चुका था । फाटक पर खड़े दरबानों ने उसे भीतर जाने दिया । बंगले के लॉन में दो नौकर बैठे थे । पोर्च में लाइट जल रही थी । कारें खड़ी थीं ।
देवराज चौहान सीधा हॉल ड्राइंगरूम में जा पहुंचा ।
खूबी उसे कही भी दिखाई न दी । एक नौकर वहां अवश्य दिखा ।
"मेमसाब कहां हैं?" देवराज चौहान ने नौकर से पूछा ।
"मालकिन ऊपर अपने कमरे में हैं ।"
"उनसे कहो, मैंने उनसे बात करनी है ।"
नौकर ने सिर हिलाया और कोने में रखे इंटरकॉम पर पहुंचकर, खूबी से बात करने लगा था ।
पांच मिनट में ही खुबी वहां, देवराज चौहान के सामने थी । नौकर चला गया था ।
"मेरे पति कहां हैं ?" खूबी के होंठों से पहला सवाल ये ही निकला ।
"तुम क्या समझती हो कि जरा-जरा से लड़के सुमित जोशी की जान ले लेंगे ?"
"क्या मतलब ?" वो चौंकी ।
"ज्यादा चालाक मत बनो । पहले भी तुमने दो लड़कों को अपने पति को मारने की सुपाड़ी दी थी। परन्तु वो मारे गये । अब फिर तुमने दो को पीछे लगा दिया । पैसे कहां से दिया उन्हें ?"
खूबी देवराज चौहान को देखती रही ।
"जवाब दो...।" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े थे।
"पहले तुम बताओ कि मेरा पति कहां है ?"
"आ रहा है । पुलिस स्टेशन में है । रतनपुरी ने उस पर हमला किया । किस्मत से बच गया ।"
खूबी ने गहरी सांस ली ।
"तो वो बच गया...।"
"पैसा कहां से दिया तुमने मोटरसाइकिल वालों को ?"
"अभी तो मैंने उन्हें शहद ही चटाया है । पेमेंट देने की बात बाद की थी।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
"थोड़ा सब्र रखो ।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "तुम कुछ मत करो । एक-दो दिन में सुमित जोशी जान गंवा देगा।"
खूबी की निगाहें देवराज चौहान पर जा टिकीं ।
"सच कहते हो।" वो उठी ।
"पक्का सच । तुम भी यहां । मैं भी यहां । देख लेना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"वो कुछ पल देवराज चौहान को देखती रही, फिर मुस्कुराकर कह उठी---
"तुम अजीब से हो । तुम ही सब कुछ क्यों नहीं निपटा देते ? मेरे से तुम्हें सब कुछ मिलेगा।"
देवराज चौहान वहां से हटा और गार्डरूम में आ पहुंचा ।
पंखा चल रहा था कमरे में । कमीज के बटन खोलकर देवराज चौहान पंखे के नीचे कुर्सी पर जा बैठा । हालातों पर उसका दिमाग दौड़ रहा था । सुमित जोशी का वक्त कम होता जा रहा है । रतनपूरी बांटू-गोवर्धन इनमें से कोई कभी भी मार सकता है । अगर मुंबई से खिसक जाता तो शायद बच जाता । अब भी वक्त था उसके पास भाग जाने का, परन्तु वो जाने से पहले, कमिश्नर की सहायता से उसे खत्म कराना चाहता था। उसे डर था कि उसके जाने के बाद वो पुलिस के हाथों में या बांटू-गोवर्धन के हाथों में पड़ गया तो उसकी सारी पोल-पट्टी खोल देगा । बुरा इंसान हमेशा बुरी बातें ही सोचता है । दूसरे को ही बुरा समझता है और इस वक्त सुमित जोशी अपने ही ख्यालों की वजह से, खुद को मुसीबत में डाल रहा था।
जोशी को इसी वक्त मुम्बई से भाग जाना चाहिये था । समझदार होगा तो अब बंगले पर नहीं आयेगा ।
मोबाइल बजा देवराज चौहान का ।
"हैलो...।"
"मैंने तुम्हारी जान बचाई देवराज चौहान ।" रमेश सिंह की आवाज कानों में पड़ी--- "वरना उस गनमैन का इरादा कार पर पूरी गन को खाली कर देने का था । मैंने फायर किया तो वो समझा उसे घेरा जा रहा है । भाग निकला वो ।"
"मेहरबानी...।" देवराज चौहान के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी।
"वकील मजे में है ?"
"वो पुलिस के पास है । रिपोर्ट लिखा रहा है ।"
"तू उसके खिलाफ सबूत इकट्ठा करके दे हमें । अब तो तेरा जगमोहन आजाद हो चुका है ?"
"मैं इसी की कोशिश कर रहा हूं।"
"तू कहां है ?"
"जोशी के बंगले पर ।"
"और वकील ?"
"पुलिस के पास । कभी भी बंगले पर आ सकता है ।"
"साले का मुकद्दर तेज है । हर बार बचता जा रहा है ।" उधर से रमेश सिंह ने कड़वे स्वर में कहा।
"इतना मुकद्दर भी तेज नहीं है कि जो बचा ही रहेगा । मरेगा जरूर । बांटू को शक है कि सुमित जोशी ने ही कोई गड़बड़ करके प्रभाकर और जिम्मी को मारा है । वो चैन से नहीं बैठेगा । कोई कदम उठायेगा।"
"कहीं ऐसा न हो कि वकील मारा जाये ? मेरी और दयाल की सारी मेहनत बेकार जाये ।
रमेश सिंह के गहरी सांस लेने की आवाज कानों में पड़ी ।
"कार का ड्राइवर मारा गया होगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"वकील का ड्राइवर...?" नहीं, जिंदा है । गोलियां कार के पीछे वाले हिस्से की तरफ आई थी। कार का अगला हिस्सा सलामत है । मैं वहीं था, जब वहां पुलिस पहुंची ।" रमेश सिंह ने कहा ।
"तो मंगल बच गया ।
"अब बंद कर।"
"तू जल्दी से सबूत ढूंढना कि...।"
"मुझे तुमसे भी ज्यादा जल्दी है ।"
"मैं सोचता हूं कि वकील को गिरफ्तार कर लूं । उसकी आवाजें तो टेप हैं ही जिनमें उसने अपना जुर्म कबूल कर रखा है। उस के दम पर ही हम वकील की बुरी हालत बना सकते हैं ।" उधर से रमेश सिंह ने कहा ।
"फिर ?" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "तुम्हें वकील के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिलेगा । इस तरह की रिकॉर्डिंग को कानून गंभीरता से नहीं लेता । वो खुद बढ़िया वकील है । आसानी से बच निकलेगा।"
"ठीक है । नहीं करता उसे गिरफ्तार । तुम जल्दी से सबूत ढूंढो, वकील के खिलाफ ।"
देवराज चौहान ने फोन बंद किया । और सिगरेट सुलगा ली ।
देवराज चौहान जानता था कि C.B.I. वालों के हाथ सुमित जोशी जिंदा नहीं लगने वाला । उससे पहले ही उसका काम हो जाना था । ऐसा देवराज चौहान का विचार था। हालात ही ऐसे थे कि उसे ये ही सोचने पर मजबूर कर रहे थे ।
"चाय ले लो ।" नौकर वहां आया ।
देवराज चौहान ने प्याला थामा ।
"मालिक नहीं आये ?" नौकर ने पूछा ।
"अभी आ जायेंगे ।"
"मालकिन ने बताया कि उन पर जानलेवा हमला हुआ ?"
"हां...।" देवराज चौहान ने उसे देखा।
"किसी की नजर लग गई है इस घर को । पहले छोटे मालिक और उनका परिवार एक्सीडेंट में मारा गया । अब बड़े मालिक को कोई मार देना चाहता है । भगवान अच्छे लोगों को अपने पास जल्दी बुला लेता है ।"
देवराज चौहान उसे देखता रहा । कहा कुछ नहीं । वो चला गया ।
चाय के घूंट भरता रहा देवराज चौहान । सोचता रहा ।
चाय समाप्त की ही थी कि मोबाइल पुनः बजने लगा । दूसरी तरफ जगमोहन था ।
"मैं आम्रपाली होटल में ठहरा हुआ हूं ।" उधर से जगमोहन ने कहा।
"पीछे लगा कोई दिखा ?"
"अभी तो नहीं...।"
"ध्यान रखो । शायद कोई तुम्हारे पीछे हो । ऐसा कुछ लगे तो मुझे बताना।"
"तुम मुझे बताओ कि क्या हो रहा है ?" किस चक्कर में हो तुम ?"
"अभी कुछ नहीं बता सकता । तुम्हें समझ में नहीं आयेगी ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"C.B.I. वालों से तुम्हारा वास्ता कैसे पड़ गया ?"
"मिलने पर बताऊंगा । अभी फोन बंद करो...।"
"लेकिन...।"
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।
उसके बाद नहाने के लिये देवराज चौहान बाथरूम में चला गया ।
■■■
सुमित जोशी बंगले पर आया । साथ में ड्राइवर मंगल भी था । उसकी गोलियों से छलनी कार को पुलिस थाने ले गई थी । पुलिस ही दोनों को छोड़ने आई थी । उन्होंने गेट से भीतर प्रवेश किया । मंगल अपने क्वार्टर में चला गया।
नहा-धोकर देवराज चौहान कमरे में पंखे के नीचे बैठा था कि जोशी सीधा वहीं आया ।
"आ गये तुम ?" देवराज चौहान उसे देखते ही बोला ।
"हां ।" सुमित जोशी व्याकुल था । परेशान था--- "मैं इस तरह कब तक बचूंगा ?"
"मैं इस बारे में क्या कह सकता हूं...।"
"रतनपुरी मुझे छोड़ने वाला नहीं ।" उसने दांत भींचकर कहा।
"ये बात मैं तुम्हें पहले ही कह चुका हूं ।"
"तुम ही बताओ देवराज चौहान कि मुझे क्या करना चाहिये ? भाग जाऊं यहां से रातों-रात...।"
"ये राय मैंने तुम्हें पहले ही दी थी ।"
"क्या मतलब ?"
"इस वक्त बंगले के बाहर पुरी या बांटू के आदमी अवश्य मौजूद होंगे। तुम बाहर निकलोगे तो वो तुम्हारे पीछे होंगे ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा । जो इंसान उसे मारने की फिराक में हो, वो उसका भला कैसे करता ?
सुमित जोशी के होंठ भिंच गये ।
"मेरे ख्याल से खिसकने का मौका तुमने खो दिया ।"
"तुम...तुम मुझे यहां से निकाल सकते हो देवराज चौहान ?"
"अब नहीं । पहले अवश्य निकाल देता ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
"कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं तुम्हें अभी तक समझ नहीं पाया ।"
"कमिश्नर का फोन लगा ?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं । मर गया कमीना कहीं । उल्लू का पट्ठा ।" चेहरे पर क्रोध के भाव उभरे ।
देवराज चौहान उसे देखता रहा ।
"मुझे इस मुसीबत से निकालो देवराज चौहान...।"
"मैं तुम्हारा बॉडीगार्ड हूं । कोई तुम पर हमला करता है तो उससे बचाऊंगा ।"
"तुम...।"
"मेरे ख्याल में तुमने प्रभाकर और जिम्मी को मारकर गलती की । अपने को और भी मुसीबत में फंसा लिया । उन्हें मारने का प्लान बनाते वक्त तुम एक बार मुझसे सलाह-मशवरा करते तो ठीक रहता ।"
"वो वक्त बीत गया । अब की बात करो।"
"अब कोई भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता । बांटू और गोवर्धन के पास जाकर सच बात उन्हें बता दो ।"
"वो तब मुझे मार देंगे ।"
"और तुम मुक्ति पा जाओगे, इन सब झंझटों से ।"
सुमित जोशी ने खा जाने वाली निगाहों से देवराज चौहान को देखा ।
"तुम मुझे सही राय नहीं दे रहे ।"
देवराज चौहान खामोश रहा ।
"मैंने बहुत बड़ी दौलत कमाई है । इसलिए नहीं कमाई कि जब खाने का वक्त आये, कोई मुझे मार दे । मैं जिंदा रहूंगा । कोई भी मुझे नहीं मार सकता । मैं खुद को बचा लूंगा । देखना हम एक बार फिर बुढ़ापे में मिलेंगे ।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"तुम मेरी सहायता नहीं करना चाहते तो ना सही । मैं ही कुछ सोचूंगा ।" कड़वे स्वर में बोला जोशी ।
देवराज चौहान उसे देखता रहा ।
तभी जोशी का मोबाइल बजने लगा । उसने बात की ।
"हैलो...।"
"वकील ।" रतनपुरी की आवाज कानों में पड़ी--- "तू आज भी बच गया ।"
सुमित जोशी के दांत भिंच गये ।
"बहुत बढ़िया किस्मत लिखवाकर लाया है ऊपर से ।" उधर से रतनपुरी ने हंसकर कहा--- "तीन बार तू बचा । तेरे को हैरानी नहीं हो रही कि तू बार-बार बच रहा है ?"
"पूरी...।" जोशी गुर्राया--- "क्यों पंगा खड़ा कर रहा है ।"
"पंगा ?"
"मेरे को मार के तेरे को क्या मिलेगा ? मेरा पीछा छोड़ दे । तेरे को करोड़ों दूंगा ।"
"ठीक है । कितना माल रखा है घर में ?"
सुमित जोशी के मस्तिष्क को झटका लगा ।
"मेरी बात मंजूर है तुझे ? तू पीछे हटेगा ?"
"हां...।"
सुमित जोशी को एक बार भी विश्वास नहीं आया ।
देवराज चौहान होंठ सिकोड़े जोशी को देख रहा था ।
"बाद में गद्दारी तो नहीं करेगा ?"
"नहीं । समझ मैंने तेरा पीछा छोड़ दिया । इस वक्त घर में कितना माल तैयार पड़ा है, रकम बोल...।"
"आठ-दस करोड़ तो होगा ही।"
"ठीक है । सारा बांध दे। दो घंटे में मेरा आदमी नोट लेने आ रहा है । समझा क्या ?"
"तू सच कह रहा है कि...।"
"रतनपुरी कभी भी तेरी तरह झूठ नहीं बोलता । मर्द हूं मर्दों वाली जुबान है मेरी । समझा क्या ?"
सुमित जोशी सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा---
"ठीक है । पैसा तैयार करता हूं मैं...।"
"दो घंटे में मेरा आदमी आयेगा ।"
"पैसा तैयार होगा तब...।" कहकर जोशी ने फोन बंद किया और देवराज चौहान को देखकर मुस्कुराया ।
देवराज चौहान, सुमित जोशी को ही देख रहा था।
"रतनपुरी मान गया है । वो पैसा लेकर पीछे हटने को तैयार है ।" जोशी ने कहा ।
"अच्छी बात है ये...।"
"अब बांटू और गोवर्धन से आसानी से निपट लूंगा । रतनपुरी के हमलों ने मुझे परेशान कर रखा था ।"
"पैसा लेकर भी उसने तेरा पीछा न छोड़ा तो ?"
"रतनपुरी ने जुबान दी है कि...।"
"तेरे को उसकी जुबान पर भरोसा है ?"
सुमित जोशी ने होंठ भींच लिए । फिर बोला---
"हालात ऐसे हैं कि मुझे उसकी बात पर भरोसा करना पड़ रहा है ।"
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।
सुमित जोशी, बंगले के भीतर चला गया ।
"कोई तो गड़बड़ है ही ।" देवराज चौहान बड़बड़ाया--- "वरना रतनपुरी जैसा इंसान एकाएक पीछे हटने वाला नहीं ।"
■■■
पुरानी-सी वैन में रतनपुरी के आदमी आये । वैन को वे भीतर ले आये थे । नोटों से ठसाठस भरे बड़े वाले दो सूटकेस, उन्होंने वैन में लादे और वैन में सवार होकर चले गये । तब देवराज चौहान, सुमित जोशी के पास था ।
"ये सब निपटाकर जोशी के चेहरे पर मुस्कान थिरक उठी ।
"रतनपुरी की मुसीबत टली...।" जोशी ने देवराज चौहान से कहा।
जबकि पास मौजूद खूबी बेचैन-परेशान-सी कह उठी---
"ये आपने क्या किया ? इतना सारा पैसा लोगों को दे दिया ?" वो सोच रही थी कि जोशी के मरने के बाद जो पैसा हाथ में आने वाला है, उसमें से करोड़ों रुपया कम हो गया ।
"ये पैसा देकर मैंने अपनी जिंदगी खरीदी है ।" जोशी ने मुस्कुराकर खूबी को देखा ।
"जिंदगी ?"
"जो लोग मुझे मारना चाहते थे, वो अब ऐसा नहीं करेंगे ।" जोशी ने कहा ।
खूबी ने देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान दूसरी तरफ देखने लगा ।
खूबी पांव पटकती भीतर चली गई ।
"मैं बच गया देवराज चौहान ।" जोशी पुनः बोला ।
"हो सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"अब सिर्फ बांटूऔर गोवर्धन बचे हैं । उन्हें भी समझा लूंगा । तुम तो...।"
सुमित जोशी का मोबाइल बजने लगा।
"रतनपुरी होगा ।" कहकर जोशी ने बात की--- "हैलो...।"
"तेरे घर पे वैन आई है । तू उसमें बैठकर कहां जा रहा है ?" बांटू की आवाज कानों में पड़ी ।
सुमित जोशी सिर से पांव तक कांप उठा ।
तो बांटू उसकी निगरानी कर रहा है ।
देवराज चौहान ने सही कहा था कि उस पर नजर रखी जा रही है ।
"बांटू...।" जोशी ने जैसे-तैसे अपने को संभाला ।
देवराज चौहान की निगाह सुमित जोशी पर जा टिकी ।
"जवाब दे मेरी बात का, कहां जा रहा है ?"
"कहीं नहीं । मैं तो घर पे हूं । वैन वाले आये और चले गये ।"
"तू घर पे है ?"
"हां...।"
"तो पोर्च की लाइट को ऑन-ऑफ कर फौरन।
सुमित जोशी ने पोर्च की लाइट एक बार बुझाई फिर जला दी ।
"कर दिया...।" जोशी सूखे स्वर में बोला ।
"वो तो मैं अपने आदमियों से पूछ लूंगा । कान खोलकर सुन ले, तू कहीं भागने की मत सोच लेना...।"
"मैं...मैं क्यों भागूंगा ?"
"ये तू जाने कि...।"
"बांटू...तू मुझ पर भरोसा क्यों रखवा रहा है ?"
"क्योंकि प्रभाकर जिम्मी के साथ आखिरी बार तू देखा गया था । उसके बाद उनकी लाशें ही मिलीं ।
"तू क्या सोचता है कि मैंने उन्हें मारा हैं ?"
"इस बात का फैसला तो गोवर्धन करेगा ।"
"तुम लोग खामखाह ही मुझ पर शक कर रहे हो ।" सुमित जोशी ने तेज स्वर में कहा ।
"आवाज नीचे रख...।"
जोशी गहरी-गहरी सांसे लेने लगा ।
"तू...तू गोवर्धन से मेरी बात करा...।"
"वो तो शाम को ही बोतल चढ़ाकर लुढ़क पड़ा है । जबरदस्ती ही उससे बोतल पिलाई। प्रभाकर जिम्मी की मौत को उसने अपने दिल से लगा लिया था । अब उठेगा तो, तभी कुछ फैसला हो सकेगा ।"
"मैंने...मैंने कुछ नहीं किया बांटू...।"
"तो फिर डरता क्यों है ?" कहकर उधर से बांटू ने फोन बंद कर दिया था ।
जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । फोन बंद करके देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान की निगाह उस पर थी।
"वो...बांटू मुझ पर नजर रखवा रहा है ।" जोशी ने घबराए स्वर में कहा ।
"ये तो होना ही था...।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।
"वो मुझ पर शक कर रहा है कि मैंने ही जिम्मी-प्रभाकर को मारा है ।"
देवराज चौहान चुप रहा ।
"रतनपुरी तो पीछे हट गया । लेकिन बांटू और गोवर्धन को कैसे संभालूंगा ?"
"मौत तो तेरे भाग्य में लिखी जा चुकी है जोशी ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।
"तू मुस्कुरा रहा है ।" जोशी मुस्कुराया ।
"इस सच को स्वीकार कर ले । तब तू भी मुस्कुरायेगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तू तो बहुत घटिया बंदा है ।"
"तेरे से ज्यादा बुरा नहीं हूं मैं...।"
"तू हिन्दुस्तान का माना हुआ डकैती मास्टर...।"
"हूं । डकैती मास्टर कहते हैं लोग मुझे । लेकिन मैं तेरी तरह अपने भाई और परिवार की हत्या नहीं करता । तेरी तरह मैं रतनपुरी, प्रभाकर जैसे लोगों के जज्बातों से नहीं खेलता । तेरी तरह मैं निर्दोष लोगों को अपने मतलब की खातिर मौत के रास्ते पर नहीं डालता । तू अगर किसी का भला करता है तो उसमें अपना फायदा पहले देखता है, जैसे कि ड्राइवर मंगल । तूने उसे कानून से बचाया और अपना गुलाम बनाकर रख लिया, तेरे पर होने वाले हमले, कभी भी मंगल की जान ले सकते हैं, परन्तु तेरे को उसकी कहां परवाह है । तेरे को सिर्फ तेरी परवाह...।"
"ये वक्त इन बातों का नहीं है देवराज चौहान...।" जोशी थके स्वर में बोला--- "मुझे बचाने के लिए कुछ कर ।"
"मैं सोचता हूं कि मैं तेरे पास क्यों हूं...।"
"ऐसा मत कह तू...।"
"तेरे-मेरे बीच का सौदा था । तू जगमोहन को पुलिस के हाथों से निकालेगा और मैं दो महीने तक हर तरह से तेरी रक्षा करूंगा। परन्तु तेरा ये काम जिस कमिश्नर ने करना था, उसका फोन ही नहीं लग...।"
"तो क्या हो गया, कल लग जायेगा ।"
"कल का क्या भरोसा कि तू जिंदा रहेगा या नहीं ?"
"मैं बूढ़ा होकर मरूंगा । जिंदा रहूंगा मैं ।" जोशी के होंठ भिंच गये ।
"वहम है तेरा । तू मरने वाला है । जो मैं देख रहा हूं, वो तू नहीं देख पा रहा वकील ।"
"तू...तू क्या देख रहा...।"
"इस वक्त मेरी बात मत कर ।"
जोशी ने उसे देखते हुए सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"ऐसे में तू ज्यादा देर नहीं जिंदा रहेगा ।"
"तू कमीना है । जो मेरे बारे में ऐसा सोचता है ।" जोशी गुस्से से गुर्राया।
देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
"देवराज चौहान, तू तो...।"
यही वो वक्त था कि जोशी का मोबाइल फिर बजा ।
"ह...हैलो...।" जोशी ने बात की ।
"कितना रुपया दिया मेरे आदमियों को ?" रतनपुरी की आवाज कानों में पड़ी ।
"द...स करोड़...।"
"जानता है इस पैसे का मैं क्या करूंगा ?" रतनपुरी की आवाज में कड़वे भाव आ गये ।
"क...क्या करेगा ?"
"घबरा मत, तेरे को मारने के लिये आदमी नहीं खरीदूंगा मैं...।"
"तूने वादा किया था कि मेरा पीछा छोड़ देगा...।"
"वादे पर कायम हूं । तेरे जैसा कमीना नहीं हूं मैं ।" रतनपुरी की व्यंग भरी आवाज जोशी के कानों में पड़ी--- "ये पैसा मैं गरीबों को बांटूंगा और उनसे कहूंगा कि भगवान से प्रार्थना करें कि मेरा बेटा मक्खन फांसी से बच जाये । तेरे जैसे कमीने ने तो मक्खन को फांसी पर पहुंचा दिया...।"
"मैंने पूरी कोशिश की थी कि...।"
"तेरे से सफाई नहीं मांग रहा...और तूने जो कोशिश की वो मुझे पता है । ढोल मत पीट मेरे कानों में । तू कुत्ता है, कमीना है, हरामजादा है, तो वो सब कुछ है, जो अभी कहना मुझे याद नहीं रहा ।"
सुमित जोशी का चेहरा फक्क था । उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
"अब तो नाराजगी छोड़ दे...।"
"तेरे जैसे इंसान से नाराज होने होकर मैंने नर्क में जाना है क्या ?" उधर से रतनपुरी ने कड़वे स्वर में कहा--- "तू तो इतना गंदा है कि फोन पर ही मुझे बदबू आ रही है । कीड़े से भी गंदा है तू...।"
जोशी ने पुनः सूखे होंठों पर जीभ फेरी। देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर थी ।
"वकील होकर भी तूने एक बात तो सोची नहीं...।" रतनपुरी की आवाज कानों में पड़ी ।
"क्या ?"
"मैंने अचानक, तेरे जैसे हरामी को मारने के लिए अपने कदम को वापस कैसे ले लिया ?"
चुप रहा जोशी ।
"पूछ...।"
"क...कैसे...कैसे...?" अपनी बात पूरी न कर सका सुमित जोशी।
"मुझे पता चला कि तेरे को मारने की दौड़ में बांटू और गोवर्धन भी हैं।"
"न..हीं...।"
उधर से रतनपुरी हंसा--- "सुना है तूने प्रभाकर और जिम्मी को मार दिया । बहुत बड़ी दिलेरी दिखा दी तूने ये करके । ये काम तो मैं भी नहीं कर सकता था । मानना पड़ेगा, शेर है तू...।"
जोशी के होंठों से आवाज न निकली।
"उन दोनों ने तेरा नम्बर लगा रखा है तो मैं अपने हाथ क्यों गंदे करूं । इतनी बात होती तो तब भी मैं पीछे नहीं हटता, मुझे तो इस बात का ख़तरा पैदा हो गया कि अगर तेरे को मैं मार दूं तो बांटू और गोवर्धन मेरे दुश्मन बन जायेंगे कि उनके कीमती शिकार का मैंने शिकार क्यों कर लिया । अब बांटू और गोवर्धन को अपना दुश्मन बनाना मैं तो ठीक नहीं समझता । दम-खम वाले हैं वो । मेरे को पूरी तरह उधेड़ देंगे । इसी वास्ते मैं पीछे हट गया । तेरे से पैसा भी ले लिया कि उससे गरीबों का भला करूंगा । इसी बहाने पुण्य कमा लूंगा ।"
"म...मैंने प्रभाकर जिम्मी को नहीं मारा...।"
"मुझे क्या कहता है ? बांटू-गोवर्धन को कहना । मैंने जो हवा सुनी, तेरे जैसे कमीने को बता दी ।"
"ये सब गलत है...।" जोशी कांपते स्वर में बोला--- "सब गलत...।"
"भाड़ में जा । मुझे क्या...।" कहने के साथ ही उधर से रतनपुरी ने फोन बंद कर दिया था ।
जोशी निचुड़ा-सा खड़ा रहा ।
देवराज चौहान की निगाहें उनके चेहरे पर टिकी थीं ।
सुमित जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और देवराज चौहान को देखा ।
"क्या हुआ ?" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी ।
"रतनपुरी कहता है कि बाहर हवा फैली है कि मैंने प्रभाकर-जिम्मी को मारा है...।" वो घबराये स्वर में बोला ।
"अच्छा...।"
"इसी कारण रतनपुरी मुझे मारने से पीछे हट गया कि बांटू-गोवर्धन ने मुझे मार ही देना है ।"
"समझदार है रतनपुरी...।"
"ऐसा मत कहो । इस वक्त मैं भारी खतरे में हूं...।"
"भारी से ज्यादा खतरे में...।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।
"मैं भाग भी नहीं सकता ।"
"क्योंकि बांटू के आदमी तेरी निगरानी कर रहे हैं ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तू फंस गया है ।"
"मुझे बचा ले देवराज चौहान...।"
"मैं तेरे को नहीं बचाऊंगा ।"
"प्लीज । भगवान के लिये मुझे...।"
"नहीं कभी नहीं ।" देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा ।
सुमित जोशी का चेहरा पीला पड़ चुका था ।
"एक बात मुझे समझ नहीं आ रही कि बांटू तेरी निगरानी क्यों करवा रहा है ? आखिर उसे किस बात का इंतजार है जो वो रुका हुआ है ? उसे तो अब तक तेरा काम कर देना चाहिये था...।"
जोशी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कांपते स्वर में कहा---
"वो गोवर्धन के होश आने का इंतजार कर रहा है । गोवर्धन पूरी बोतल पीकर बेहोश पड़ा है । उसके होश आने पर वे दोनों बात करेंगे और मेरे बारे में फैसला तय करेंगे कि...।"
"ये तेरे को किसने कहा ?"
"बांटू ने...।" जोशी के चेहरे की रौनक उजड़ चुकी थी ।
देवराज चौहान ने सिर हिलाया ।
"मेरे लिये कुछ कर देवराज चौहान, मैं तेरा एहसानमंद रहूंगा कि...।"
"तेरे जैसा इंसान किसी का एहसानमंद नहीं हो सकता ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "तेरी आदत ऐसी बन चुकी है कि जो तेरे काम आयेगा, तू उसी को काटेगा और...।"
"तेरे साथ तो ऐसा नहीं है ?" जोशी कांपते स्वर में बोला ।
देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांका । चेहरा सामान्य था ।
"मैं तेरे किसी काम नहीं आ सकता । बॉडीगार्ड का काम कर रहा हूं, ये बहुत बड़ी बात है।"
"अच्छा...सुन ।" जोशी बुझे स्वर में बोला--- "कल मैं खिसक जाऊंगा ।"
"कल-कैसे ?"
"कल मैं कोर्ट जाऊंगा । मुझ पर नजर रखने वाले कोर्ट के भीतर तो आ नहीं सकते । कोर्ट बहुत बड़ा है । कई रास्ते हैं कोर्ट से बाहर निकलने के । वहां पुलिस की गाड़ियां आती रहती हैं। मैं किसी भी पुलिस की गाड़ी में बैठकर निकल जाऊंगा । किसी को पता ही नहीं चलेगा कि मैं...।"
"कोशिश करके देख लेना ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम्हारा क्या ख्याल मैं सफल हो जाऊंगा भागने में ?"
"हो भी सकते हो और नहीं भी ।"
"मैं...मैं सफल हो जाऊंगा ।"
देवराज चौहान मुस्कुराया । बोला कुछ नहीं ।
"तुम...तुम ये बात किसी से कहना नहीं ।"
"मैं क्यों कहूंगा ?" देवराज चौहान ने कहा और गार्डरूम की तरफ बढ़ गया ।
कमरे में पहुंचकर पंखे के नीचे। पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।
पांच मिनट ही बीते कि उसका फोन बनने लगा ।
"तुम्हारी जेब में माइक्रोफोन पड़े होने के कारण मैं सबकुछ सुन रहा हूं । मजा आ रहा है मुझे ।" रमेश सिंह की आवाज कानों में पड़ी--- "दयाल भी खुश है कि तुम बढ़िया काम कर रहे हो । दयाल अब फिर मेरे पास ही है ।"
"अच्छी बात है ।"
"मैं वकील को कल कोर्ट से भागने नहीं दूंगा । पकड़ लूंगा साले को ।"
"जो मन में आये करो...।"
"दयाल से बात करो ।"
फिर दयाल की आवाज कानों में पड़ी---
"जगमोहन कैसा है ?"
"ठीक है । तुम उस पर नजर तो नहीं रखवा रहे ?"
"नहीं । मुझे नहीं पता वो कहां है । मैंने उसे ईमानदारी से आजाद करवाया है ।"
"ये ही ठीक रहेगा । तभी मैं तुम लोगों का काम कर पाऊंगा।"
"तुम्हारे सब्र का मैं कायल हो गया देवराज चौहान...।" दयाल की मुस्कुराती आवाज कानों में पड़ी ।
"क्या मतलब ?"
"ये जानते हुए कि वकील, कमिश्नर के हाथों तुम्हारे एनकाउंटर का प्रोग्राम बना रहा था, तुमने वकील को कुछ नहीं...।"
"तुम दोनों की वजह से नहीं कहा । क्योंकि अब तुम दोनों के लिये काम कर रहा हूं । तुम लोगों को वकील चाहिये ?"
"हां...।"
"इसी कारण अभी तक जोशी जिंदा है। वरना वो जो मेरे साथ करने की चेष्टा कर रहा था, उसके बाद तो उसके जिंदा रहने का हक नहीं बनता ।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा ।
"सच में बहुत सब्र है तुम्हारे पास...।"
"मैं थक चुका हूं । कोई जरूरी बात हो, तभी मुझे फोन करना ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया । बाकी की रात चैन और शांति से बीती ।
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