वसीहत
खाने की मेंज पर देर तक वातें होती रहीं। लाला केदारनाथ मेजर की बातों में बड़ी दिलचस्पी लेते रहे थे। कुछ देर बाद बोले, "आज आपने बहुत मेहनत की है । जाइए, जाकर सो जाइए । कल फिर आपको कड़ी मेहनत करनी है ।"
मेजर लाला जी को नमस्ते करके उठ खड़ा हुआ और अपने कमरे में आते ही दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया।
उसने अपने सूटकेस में से एक लम्बा-सा लिफाफा निकालकर उसमें से एक फोटो निकाला । यह फोटो एक चौबीस-पच्चीस वर्ष की युवती का था | मेजर वह फोटो सोनिया को दिखाते हुए बोला, "मैं इस लड़की की तलाश में दिल्ली आया हूं । सोनिया वह फोटो अपने हाथ में लेकर देखती रही और कुछ सोचती रही । एकाएक उसकी आंखों में चमक पैदा हुई और उसने कहा, "यह लड़की, रजनी - डाक्टर बनर्जी की पत्नी - से कितनी मिलती-जुलती है ! "
"ओह सोनिया ! तुमने मेरे विचार का समर्थन कर दिया है। मनुष्य के जीवन में संयोग बहुत शक्तिशाली होते हैं । तुम जानती हो कि दिल्ली आकर हम प्राचीन और दुर्लभ चीजें बेचने वाली दुकानों में घूमते रहे हैं । वह सब इस लड़की को ढूंढ़ने के लिए किया गया था। मैं समझता हूं कि जिस लड़की को ढूंढ़ने के लिए मैं दिल्ली आया हूं, वह दीवान सुरेन्द्रनाथ की बेटी कामिनी है । "
सोनिया आश्चर्य से मेजर का मुंह ताकने लगी, "कामिनी, जो अपने पिता से सख्त नाराज है और जो अपने जीवन का अलग रास्ता अपना चुकी है ?"
“हां, लेकिन मैं अभी विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकता। इस बात की पुष्टि करनी होगी कि जिस लड़की को ढूंढ़ने के लिए आया हूं, वह कामिनी है और दीवान सुरेन्द्रनाथ की बेटी है। मुझे उसका नाम कामिनी नहीं रोहिणी बताया गया था।"
"फिर आपको यह भ्रम कैसे रोहिणी ही कामिनी है।" सोनिया ने पूछा ।
"मैंने बम्बई में उसकी तलाश के सिलसिले में जितना काम किया उससे केवल यही परिणाम निकलता था कि रोहिणी का सम्बन्ध प्राचीन और दुर्लभ चीजें बेचने वाली किसी फर्म से है | बम्बई में जिस कमरे से वह गुम या गायब हुई थी उसमें रोहिणी के अते-पते के सारे चिह्न मिटा दिए गए थे। उसके सूटकेसों में पड़े हुए सारे कागजात भी गायब थे ! शायद वह सारे कागजात पुर्जे पुर्जे करके स्वयं जला गई थी या यह उस व्यक्ति का काम था जिसने रोहिणी का अपहरण किया था । जो हो, मुझे कागज का एक छोटा सा पुर्जा मिल गया था - वह छपे पैड का कागज था। कागज के पुर्ज़े पर छपा हुआ नाम अधूरा था। वह रोहिणी के नाम एक पत्र था । पत्र अंग्रेजी में लिखा गया था। कागज का वह पुर्जा उस जगह से फटा हुआ था जहां केवल दो अक्षर पढ़े जाते थे—एन और आई। रोहिणी और कामिनी के पीछे यही एन और आई के दो अक्षर आते हैं। कागज के उस पुर्जे पर अंग्रेजी में छपे हुए फर्म के नाम की दो पंक्तियों के कुछ छन्द बाकी थे- ऊपर की मोटी पंक्ति के चार अक्षर -- एन. टी आई क्यू और नीचे की पहली पंक्ति के अक्षर बाकी थे— एल एच आई। इसके सिवा मुझे रोहिणी के कमरे से ऐसी कोई चीज नहीं मिल सकी थी जिससे यह पता चलता कि रोहिणी कहां की रहने वाली थी, उसके माता-पिता कौन थे । जिस व्यक्ति ने मुझे रोहिणी का पता लगाने का काम सौंपा था, उसके पास रोहिणी का एक फोटो था और रोहिणी का अपने बम्बई के कमरे का दिया हुआ पता था । वह व्यक्ति एक फिल्म प्रोड्यूसर है। वह एक फिल्म बना रहा है जिसका नाम है 'प्यासी आत्माएं'। उसने अपनी फिल्म में रोहिणी को वैम्प ( खलनायिका) का रोल दिया था। फिल्म की तीन रीलें तैयार हो चुकी हैं। अब अगर रोहिणी नहीं मिलती तो उसकी सारी मेहनत और तीन रीलें बिल्कुल बेकार हो जाती हैं। वह रोहिणी को दस हजार रुपये पेशगी भी दे चुका है।
"उसने किसी न किसी के द्वारा ही रोहिणी से कांट्रैक्ट किया होगा | क्या वह व्यक्ति फिल्म प्रोड्यूसर को रोहिणी को पता नहीं बता सकता था ?" सोनिया से पूछा।
"रोहिणो ने किसी के द्वारा उससे कांट्रैक्ट नहीं किया था। उस फिल्म प्रोड्यूसर ने अपनी ओर से बड़ी नूतनता से काम लिया था । उसने कलकत्ता के एक होटल में कमरा बुक कराया। वहां के एक अखवार में विज्ञापन दिया कि वह अपनी नई फ़िल्म के लिए नये एक्टरों और एक्ट्रेसों की खोज में आया है। चुन लिए जाने पर उनको उचित पारिश्रमिक दिया जाएगा। फिल्म प्रोड्यूसर इस तरह एक तीर से दो शिकार करना चाहता था- ऐयाशी और फिल्म के लिए सस्ते एक्टर और एक्ट्रेसे प्राप्त करना । वह अपने दोनों उद्देश्यों में सफल रहा । एक्ट्रेस बनने की इच्छुक कई लड़कियां उससे मिलने आई । अन्त में उसने रोहिणी को चुन लिया और उसे अपना पता देकर कहा कि यह बम्बई में आकर उससे मिले।"
“उसने रोहिणी से उसका कलकत्ता का पता नहीं पूछा था ?"
“पूछा था लेकिन रोहिणी ने उसे गलत पता बताया था । वह शायद यह नहीं बताना चाहती थी कि वह कौन है और वहां की रहने वाली है। जब वह गायव हो गई तो फिल्म प्रोड्यूसर ने अपना एक आदमी कलकत्ता दौड़ाया। लेकिन वह आदमी एक हफ्ते तक कलकत्ता की खाक छानकर वापस आ गया ।"
"पर आपको यह शक कैसे हुआ कि रोहिणी ही कामिनी है ? "
"मैं तुम्हें बता तो रहा हूं कि कागज का जो टुकड़ा मुझे बम्बई में रोहिणी के कमरे से मिला था उसकी ऊपर की छपी हुई मोटी पंक्ति के चार अक्षर एन टी आई और क्यू बाकी थे । नीचे की छपी हुई पतली पंक्ति के तीन अक्षर एल एच आई बाकी थे | मैंने बहुत सिर पटका और अन्त में यह समझने में सफल हो गया कि बचे हुए अक्षर किन शब्दों के अंश थे। ऊपर के शब्द का अर्थ था, 'प्राचीन वस्तुएं नीचे का शब्द था 'डेलही' | इस बात का पता चलते ही मैंने दिल्ली आकर प्राचीन वस्तुएं बेचने वाली दुकानों में घूमने का प्रोग्राम वनाया ।"
“अव मैं समझी कि आप हर दुकानदार को अलग ले जाकर उससे दबी जवान में बातें क्यों करते थे । "
“मैं उनको रोहिणी का फोटो भी दिखाता था। मुझे कहीं भी सफलता नहीं मिली और तुम्हें याद होगा कि जब इन्स्पेक्टर धर्मवीर सलूजा ने मुझे फोन पर बताया कि वह इण्टरनेशनल म्यूजियम यानी प्राचीन और दुर्लभ वस्तुएं बेचने वाली एक फर्म में .. हत्या की वारदात की तहकीकात में मेरी सहायता प्राप्त करना चाहता है तो मैं तुरन्त उसकी सहायता करने के लिए तयार हो गया । तुम्हें यह भी याद होगा कि इन्स्पेक्टर ने दीवान सुरेन्द्रनाथ के हालात बताते हुए कहा था कि उनकी बेटी कामिनी कलकत्ता में पढ़ती रही है और अब बम्बई में है, जहां वह स्वतन्त्र रूप से जीवन व्यतीत करना चाहती है— मेरी सारी मालूमात इसी बात की ओर संकेत करती हैं कि हो न हो 'रोहिणी ही कामिनी है । जो हो, बात प्रमाणित किए बिना मेरा सन्देह विश्वास में नहीं बदल सकता ।"
अगली सुवह मेजर और सोनिया दस बजे इण्टरनेशनल म्यूजियम में जा पहुंचे। इन्स्पेक्टर धर्मवीर सलूजा पहले से वहां मौजूद था।
"हमारे आने से पहले आप काफी काम कर चुके होंगे।" मेजर ने मुस्कराते हुए कहा और इन्स्पेक्टर की नजर बचाकर उसने अपनी दाईं आंख दबाई और इस प्रकार सोनिया को संकेत किया कि वह जाकर अपना काम शुरू कर दे ।
"अभी तक तो मैं केवल इतना ही मालूम कर सका हूं कि इस घर में किस किसको दीवान सुरेन्द्रनाथ के वसीयतनामे का विवरण मालूम था ।" इन्स्पेक्टर ने कहा । "वसीयत का विवरण किस-किस को मालूम है ?”
"सबको मालूम है । डाक्टर बनर्जी, राजेश, मिसेज रजनी, लक्ष्मी, सिद्दीकू, मिस्टर डिक्सन और रूपा - सभी लोग जानते हैं कि दीवान साहव अपनी वसीयत में किस-किसको क्या-क्या दे गए हैं । "
"दीवान साहब ने अपना अधिक धन किसके नाम छोड़ा है ?"
"रजनी के नाम ।" इन्स्पेक्टर ने उत्तर दिया ।
"रजनी को दीवान साहब का अधिक धन मिलने पर किसी को आपत्ति तो नहीं?”
"नहीं।'
"क्या राजेश को भी नहीं ?
"नहीं।" इन्स्पेक्टर ने कहा, “मुझे तो यह जानकर आश्चर्य हुआ है कि डाक्टर बनर्जी को दीवान साहब के धन का जरा-सा भाग न मिलने पर भी कोई दुःख नहीं हुआ ।"
“ उनको दुःख क्यों हो ।” मेजर ने कहा, “उनकी पत्नी को जो कुछ मिल रहा है वह उन्हीं का तो है ।”
"जी हां। एक बात और आश्चर्यजनक है— दीवान साहब ने अपनी वसीहत में किसी को भी नहीं भुलाया । अपने सभी नौकरों तक का खयाल रखा है लेकिन उन्होंने सगी वेटी को एक कौड़ी भी नहीं दी। ये सब मैं वसीयतनामा निकलवाकर पढ़ चुका हूं
"सचमुच यह बात मेरी समझ में भी नहीं आती कि उसके पिता अपनी इकलौती बेटी से इतना बड़ा अन्याय कैसे कर सका है !"
‘‘मैंने सबसे पूछा है। कोई भी सन्तोषजनक उत्तर नहीं दे सका। सभी यह कहते हैं कि दीवान साहब अपनी हठ के बड़े पक्के थे। उनकी बेटी चूंकि उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करने पर तुली हुई थी इसलिए उन्होंने अपनी धमकी को पूरा कर दिखाया ।”
“क्या आपने वसीयतनामे पर तारीख पढ़ी है ? " मेजर ने पूछा ।
“जी हां, दीवान साहब ने आज से वाईस दिन पहले अपनी वसीयत को कानूनी शक्ल दी थी।"
"आपने उनके वसीयतनामे के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त की है । " मेजर ने इन्स्पेक्टर की प्रशंसा करते हुए कहा, "काफी के प्याले की गुत्थी सुलझी कि नहीं ?"
"काफी के प्याले के बारे में अभी कोई पूछताछ नहीं की।"
सिद्दीकू उधर से गुजरा, तो मेजर ने उसे आवाज दी।
"सिद्दीकू, क्या तुम्हें मालूम है कि इस घर में अफीम कौन खाता है ? या कौन अपने पास अफीम रखता है ? " मेजर ने उससे पूछा।
“अफीम !” हब्शी ने पहले आश्चर्य प्रकट किया, फिर वोला, "अफीम का पाउडर ! डाक्टर साहब कश्मीर की खुदाई की मुहिम के लिए सामान जमा करते रहे.. हैं। उन्होंने बहुत सी दवाएं भी खरीदी हैं। मैंने अफीम के पाउडर का छोटा-सा टीन का डिब्बा डाक्टर साहब के सोने के कमरे की अलमारी में देखा था । "
“क्या दवाएं डाक्टर साहब खुद खरीदकर लाए थे ? "
"नहीं -- राजेश लाया था।"
“क्या तुम अफीम के पाउडर का वह डिब्बा डाक्टर साहब की अलमारी में से ला सकते हो ?
"जी हां, अभी लाकर दिखाता हूं ।" सिद्दीक ऊपर चला गया ।
“इंस्पेक्टर साहव ! ” मेजर ने मुस्कराते हुए कहा, "मैंने जान-बूझकर सिद्दीकू को ऊपर भेजा है। अफीम का डिव्वा डाक्टर साहब की अलमारी में नहीं हो सकता।"
कुछ देर बाद सिद्दीकू वापस आ गया । उसके हाथ में टीन का छोटा-सा डिब्बा था ।
"तुम यह डिब्बा कहां से लाए हो ?” मेजर ने पूछा, "डाक्टर साहब की अलमारी में से तो हरगिज नहीं लाए
होगे ?"
हब्शी नौकर हकलाते हुए बोला, "यह डिब्बा डाक्टर साहब की अलमारी में नहीं था। उनकी अलमारी में जिस जगह यह डिब्बा पड़ा रहता था, वह जगह खाली थी।"
"फिर यह डिब्बा तुम्हें कहां से मिला ?"
"यह डिब्बा मेरे कमरे में था। कुछ दिन हुए मुझे नींद नहीं आ रही थी। असल में मुझे अपच की शिकायत रहती है। मैं डिब्बा डाक्टर साहब की अलमारी से उठा लाया था। मैंने उस रात थोड़ा-सा पाउडर खा लिया था और मुझे गहरी नींद आ गयी थी ।"
“नहीं, तुम सच नहीं बोल रहे - बताओ कि तुम्हें यह डिब्बा कहां पड़ा हुआ मिला है ? यह तुम्हारे कमरे में नहीं था।"
"मैंने आपको सच्ची बात बता दी है। यह डिब्बा मेरे कमरे में था और मैं वहीं से इसे लाया हूं।"
"तुम बड़े जिद्दी हो -तुम जा सकते हो। "
सिद्दीकू मुड़ा तो उसे कोठी के पिछवाड़े में शोर सुनाई दिया। मेजर और इन्स्पेक्टर उधर बढ़ने ही लगे थे कि इतने में सब-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल डाक्टर बनर्जी को बाजू से पकड़े हुए उनके पास ले आया।
“सरकार, आपने हुक्म दिया था ।" सब-इंस्पेक्टर ने इंस्पेक्टर धर्मवीर को सम्बोधित करते हुए कहा, " कि इस घर से किसी को बाहर न निकलने दिया जाए । डाक्टर साहब जा रहे थे। मैंने इनको रोक लिया तो ये शोर मचाने लगे । "
"कमरे में मेरा दम घुटा जा रहा था। मैं जरा बाहर ताजा हवा खाने के लिए जाना चाहता था । " डाक्टर ने कहा ।
"क्यों नहीं ।” मेजर बोला, "इनको जाने दीजिए ।"
और फिर मेजर ने डाक्टर की ओर मुंह फेरते हुए कहा,
"आधे घण्टे तक वापस आ जाइएगा । हम आपसे कुछ पूछना चाहते हैं।"
"जी हां, मैं बीस मिनट तक वापस आ जाऊंगा ।" डाक्टर ने यह बात इस तरह कही जैसे उसका कण्ठ सूखा जा रहा था ।
डाक्टर दरवाजे की ओर बढ़ा । सब-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल उसके पीछे-पीछे चल दिया, क्योंकि मेजर ने अपनी आंख दबाकर उसे डाक्टर का पीछा करने का संकेत कर दिया था ।
इन्स्पेक्टर ने कुछ सोचते हुए पूछा, "आपके ख्याल से सिद्दीकू को अफीम के पाउडर का डिब्बा कहां मिला था ?"
"अवश्य ही राजेश के कमरे में मिला होगा।" मेजर ने कहा।
“राजेश के कमरे में ! " इन्स्पेक्टर के मुंह से निकला, "सिद्दीकू ने फिर यह क्यों कहा कि वह डिब्बा उसे अपने कमरे में मिला है ?"
"सिद्दीकू राजेश की पर्दापोशी कर रहा है । आप शायद यह देख नहीं पाए हैं कि राजेश और रजनी के बीच गहरा सम्वन्ध है | सिद्दीकू रजनी का सेवक बल्कि पुजारी है | रजनी चूंकि राजेश को पसन्द करती है, इसलिए सिद्दीकू भी राजेश को पसन्द करता है।"
“आप यह कैसे कह सकते हैं कि सिद्दीकू राजेश के कमरे से अफीम का डिब्बा उठाकर लाया था ? "
"सिद्दीकू ने अफीम का डिब्बा डाक्टर के कमरे में नहीं, राजेश के कमरे में देखा था । जब मैंने उसे ऊपर डिब्बा लाने के लिए भेजा तो वह घबराया हुआ था । वह रजनी के पास गया और रजनी की हिदायत पर हमारे पास डिव्वा उठा लाया और हमें यह किस्सा बताया कि डिब्बा वह अपने कमरे से उठाकर लाया है।"
उन्होंने देखा कि रजनी खिड़की के पास एक कुर्सी पर बैठी थी और राजेश दूर कोने में सोफे पर बैठा पुस्तक पढ़ रहा था । ऐसा मालूम होता था कि वे दोनों उनके भीतर आने से पहले अलग-अलग जगहों पर जा बैठे थे ।
"कष्ट के लिए हम क्षमा चाहते हैं लेकिन आपसे कुछ सवाल पूछन जरूरी है ।" मेजर बोला ।
और फिर उसने राजेश की ओर मुंह करके कहा, "मिस्टर राजेश, मैं आपसे प्रार्थना करूंगा कि आप थोड़ी देर के लिए अपने कमरे में चले जाएं । हम आपसे बाद में बात करेंगे ।"
राजेश मेजर की इस प्रार्थना पर एकदम परेशान हो गया ।
"क्या मैं यहां नहीं ठहर सकता ? " राजेश ने पूछा ।
"नहीं। इस समय आपका अपने कमरे में होना अधिक ठीक रहेगा।" मेजर बोला, "इन्स्पेक्टर साहब इनको इनके कमरे में ले जाइए और इनके कमरे के बाहर किसी की ड्यूटी लगा दीजिए। जब तक हम इनके पास न जाएं या इनको अपने पास न बुलाएं, तब तक इनको अपने कमरे में रहना होगा और किसी से कोई बात नहीं करनी होगी।"
इन्स्पेक्टर धर्मवीर राजेश को बाहर ले गया ।
मेजर की भवें तन गईं । उसने कहा, "आप यह बताइए कि आपके पति व दीवान साहब से कोई झगड़ा तो नहीं हुआ था ?
"मैं आपका यह प्रश्न समझ नहीं सकी। डाक्टर साहब बहुत ही भले आद हैं। जीवन में उनको बीसियों लोगों ने धोखा दिया है। सिद्दीकू भी उनसे घृणा करता है । लेकिन डाक्टर साहब बहुत समझदार हैं। अगर आप यह संकेत कर रहे हैं दीवान, साहब की हत्या डाक्टर साहब ने की है तो आप भारी गलती कर रहे है । मेरे पति ने अगर दीवान साहब की हत्या की होती तो वे अपने विरुद्ध इतने प्रमाण कैसे छोड़ सकते थे । डाक्टर साहब बहुत ही तीक्ष्ण बुद्धि के व्यक्ति हैं। वे ऐसी मूर्खता कभी नहीं कर सकते | एक बात और है। अगर उनको हत्या ही करनई थी तो उन्होंने किसी दूसरे की हत्या की होती — दीवान साहब की नहीं।"
"क्या सिद्दीकू की हत्या की होती ?"
"सम्भव है ।" रजनी ने उत्तर दिया ।
“राजेश की हत्या की होती ? " मेजर ने पूछा।
रंजनी ने धीमी आवाज में कहा, "दीवान साहब के सिवा वह किसी की भी हत्या कर सकते थे।"
"आपको ऐसा विश्वास क्यों है ?"
"दीवान साहव ने डाक्टर साहब पर बड़े उपकार किए थे| उनसे मेरी शादी की थी और वे कश्मीर में खुदाई की मुहिम के लिए पैसा लगाने के लिए तैयार थे।"
मेजर कुछ सोचने लगा और फिर उससे पूछा, "मैंने सुना है कि दीवान साहब की वसीयत के अनुसार सबसे अधिक लाभ आपको और राजेश को होगा।"
“जी हां-- आपने ठीक सुना है।"
इतने में इन्पेक्टर धर्मवीर सलूजा भी कमरे में आ गया ।
"अगर आपको रुपया मिले तो क्या आप कश्मीर में खुदाई के लिए डाक्टर साहब की मुहिम में पैसा लगाने को तैयार होंगी ?"
"हां, अगर डाक्टर साहब मुझसे कहेंगे।"
"आपके ख्याल में यहां कौन ऐसा व्यक्ति हैं जिसने आपके पति को हत्यारा सिद्ध करने की कोशिश की है ? "
"मैं ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानती ।"
"आपको शायद मालूम हो गया होगा कि आपके पति की काफी के प्याले मे किसी ने अफीम मिला दी थी ?"
“जी हां, मुझे पता चल चुका है । "
"आपको यह वात किसने बताई ?"
"सिद्दीकू ने।"
"अफीम का डिब्बा कहां पड़ा रहता है ?"
“पता नहीं।"
"क्या राजेश को मालूम था ?"
"हां, राजेश को मालूम हो सकता है, क्योंकि वह डाक्टर साहब के सारे काम करता है। उनका सारा सामान वही खरीदकर लाता है। "
"मैंने अभी-अभी सिद्दीकू को अफीम का डिब्बा लाने के लिए भेजा था, क्योंकि उसने मुझे बताया था कि उसने अफीम का डिब्बा डाक्टर के सोने के कमरे को अलमारी में पड़ा देखा था । मैं समझता हूं कि वह डिब्बा राजेश के कमरे से उठाकर लाया था।" मेजर ने कहा ।
मेजर की यह बात सुनकर रजनी की आंख चिनगारियां बरसाने लगीं । उसने तुनककर कहा, "अफीम का डिब्बा मेरे कमरे में नहीं था।"
"अच्छा, आप यह बताइए कि कल सुबह क्या आप दोबारा काफी पीने के लिए किचन में गई थीं ?
" दोबारा काफी पीने गई थी तो ऐसी क्या खास बात है ?"
"देखिए, आप कह चुकी हैं कि आप हमारी हर सम्भव सहायता करने के लिए तैयार हैं, लेकिन मैं यह देख रहा हूं कि आप हमारी कोई सहायता नहीं कर रही हैं । कल सुबह हत्या की वारदात से पहले आप बाहर चली गई थीं। क्या मैं पूछ सकता हूं कि आप कहां गई थीं ?"
"मुझे कुछ चीजें खरीदनी थीं ।"
"आप क्या कुछ खरीदकर लाई हैं ?'
"मैं कुछ खरीदकर नहीं लाई । " "
"अजीब वात है !
"मुझे एक गाउन बनवाना था। मैं नाप देकर चली आई थी।"
“धन्यवाद । अभी हम आपसे और कुछ नहीं पूछना चाहते।" मेजर ने कुर्सी पर से उठते हुए कहा ।
इन्स्पेक्टर भी उठकर खड़ा हो गया । दोनों नीचे आए । इतने में बाहर भारी कदमों की आहट सुनाई दी, कुछ क्षणों के वाद सव-इन्स्पेक्टर गुरुदयाल डाक्टर बनर्जी को घसीटता हुआ भीतर लाया। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे ।
“इन्होंने यहां से निकल भागने की कोशिश की। जब ये हवाखोरी के लिए बाहर निकले तो इस ब्लाक के पार्क में टहलते रहे । मैं एक अंग्रेज औरत को देखने लगा जिसने घुटनों के ऊपर तक स्कर्ट पहना हुआ था। मेरी नजर उस औरत पर से हटी तो क्या देखता हूं कि डाक्टर साहब गायब हैं। मैं चारों तरफ नजर दौड़ाने लगा । इस ब्लाक में एक बैंक भी है। मैंने इन्हें उसमें जाते देखा। मैं इनकी ओर लपका और छिपकर एक कोने में खड़ा हो गया – यह देखने के लिए कि डाक्टर साहब क्या कुछ करते हैं । इन्होंने बैंक से काफी रुपए निकलवाए । फिर टैक्सी स्टैण्ड की ओर हो लिए । मैं भी पीछे-पीछे चल पड़ा । डाक्टर साहब मुड़कर नहीं देख रहे थे । फिर ये एक टैक्सी में बैठ गए | मैंने भी दूसरी टैक्सी से इनका पीछा किया । यह नई दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर पहुंचे। वहां इन्होंने एक टिकट खरीदा और प्लेटमार्म पर पहुंचकर इन्क्वायरी आफिस से कुछ पूछने लगे । ठीक उसी समय मैंने इनको जा पकड़ा और इनसे प्रार्थना की कि चुपके से मेरे साथ वापस चले चलें ।”
"अच्छा तो डाक्टर साहब ने फरार होने की कोशिश की ?" इंस्पेक्टर बोला ।
“जी हां —— इनकी जेब में बम्बई का सेकेंड क्लास का टिकट है।"
"मैं समझता हूं कि डाक्टर साहब को स्वयं इसका कारण बताना चाहिए कि इन्होंने फरार होने की कोशिश क्यों की ?
डाक्टर, एक प्रकार से सन्नाटा मार गया था, हकलाते हुए बोला, “मेरी मजबूरी को कोई भी नहीं समझता। आप देख तो रहे हैं कि इस घर में कोई व्यक्ति मुझे हत्यारा सिद्ध कर देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहा है।
वह अपने उद्देश्य में असफल रहने के बाद मेरी भी हत्या कर सकता है। फर्ज करें अगर आप मेरे स्थान पर होते, तो क्या करते ? अपनी जान किसे प्यारी नहीं होती। इसलिए मैं भाग जाना चाहता हूं क्योंकि मुझे विश्वास है कि अगर मैं यहां रहा तो कोई मेरी हत्या देगा ।”
" बिल्कुल ठीक ।" मैजर बोला, "डाक्टर साहब की इस दलील को झुठलाया नहीं जा सकता । क्यों इन्स्पेक्टर साहब, अगर आप डाक्टर साहब की जगह होते तो क्या करते ?"
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