ट्रांसमीटर पर दूसरी ओर की गुर्राहट सुनकर विजय इस प्रकार सीट से उछला-मानो अचानक उसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो । क्षणमात्र के भी हजारवें भाग में वह समय की गंभीरता को भांप गया । वह जान गया कि आग के बेटों का चीफ निहायत ही चालाक है उसका राज अब राज न रहा था |


विद्युत गति से उसके हाथ अपने रिवॉल्वर पर पहुंच गए ।


वास्तव में इस मामले में विजय ने अपनी संपूर्ण फूर्ती का प्रयोग किया था, किंतु इसका क्या किया जाए कि वह अपने इरादे में असफल रहा । इसके कई कारण थेपहला ये कि ऑस्टिन अत्यंत छोटी थी और उसमें छः-सात इंसान बड़ी कठिनाई से समाए हुए थे। इतने छोटे-से स्थान पर इस स्थिति में विजय के लिए उन पांचों से टकराना असंभव ही था


परिणामस्वरूप जैसे ही उसका हाथ रिवॉल्वर तक पहुंचा कि वह सिहर उठा । एक साथ तीन रिवॉल्वरों की नालों ने उसके जिस्म के विभिन्न अंगों को स्पर्श किया। दो रिवॉल्वर पीछे बैठी छायाओं ने उसकी गुद्दी से चिपका दिए और तीसरा रिवॉल्वर दाएं बैठे एक अन्य नकाबपोश ने उसकी पसलियों से सटा दिया । उसका हाथ जहां-का-तहां ही ठिठक गया । तभी उसके कानों से अपने पीछे वाले के शब्द टकराए ।


"अगर कोई भी चालाकी दिखाने की चेष्टा की तो खुदागंज पहुंचा दिए जाओगे ।"


नहीं... नहीं भाई साहब, ऐसा बिल्कुल मत करना ।" विजय चहककर बोला-''अगर हम खुदागंज पहुंच गए तो हमारे बीवी-बच्चों का क्या होगा? बेचारे अनाथ हो जाएंगे। अरे वाह अरे वाह...वाह !" विजय ऐसे बोला- मानो स्टेज पर खड़ा कोई शायर का भतीजा-"क्या झकझकी याद आई है । हां तो झकझकी का विषय है अनाथ हो जाएंगे। भई वाह, हां तो प्या...।"


- "बको मत !" अचानक पीछे वाला खतरनाक स्वर में गुर्राया । कारणवश विजय की कैंची की भांति चलती जुबान में ब्रेक लग गए । उसकी बोलती पर ढक्कन लग गया, किंतु वह भी अपने नाम का बस एक ही विजय था। उसकी बोलती पर तो ढक्कन निःसंदेह लग गया, किंतु अब वह शुतुरमुर्ग की भांति अपनी गरदन अकड़ाए, अपने चेहरे पर मूर्खता के भाव उत्पन्न किए बड़ी विचित्र नजरों से एक-एक को घूर रहा था। तभी पीछे वाला गुर्राया ।


- "अगर बकवास की तो गोली मार दूंगा ।"


- "भाई साहब आप बुरा न माने तो एक बात कहूं ।" विजय के लहजे से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह पैदाइशी शरीफ रहा हो । उसके बाद कोई शरीफ पैदा ही न हुआ हो । वैसे इस समय वह अपनी पुरानी चल चल रहा था । अत: बेकार की बकवास से शत्रु को बोर करके उसे असावधान करने की चाल... |


उसके उपरोक्त वाक्य से क्योंकि शराफत टपकती थी इसलिए पांचों चुप रहे । विजय फिर बोला ।


-"हां तो भाई साहब -- क्या मैं कहूं...? "


- "बको क्या बकना चाहते हो ?" पीछे वाला कुछ

झुंझलाए-से स्वर में बोला ।


- "हां तो भाई साहब, बात ये है कि मैं आप लोगों को एक झक्का सुनाना चाहता हूं। वैसे तो मैं झक्का सुनाने का टैक्स लेता हूं, इस समय क्योंकि तुम मेरे बीवी बच्चों को अनाथ करने का परमिट रखते हो, इसलिए मैं तुम्हें मुफ्त में एक झक्का सुनाता हूं।" विजय लगातार बके जा रहा था और वे पांचों शांत उसकी बात सुन रहे थे । विजय आगे बोला ।


- "हां तो मैं कह रहा था कि झक्का ये है... एक बार एक बिल्ली और कुत्ते में फ्री स्टाइल कुश्ती हो रही थी । बिल्ली मौसी ने कुत्ते मामा के छक्के छुड़ा रखे थे... या यूं कहिए कि उसे नाकों चने चबवा रखे थे... या यूं कहिए कि छठी का दूध याद दिला रखा था... या यूं कहिए ... | "


"चुप...।" पीछे वाला सख्ती के साथ गुर्राया- "बंद कर अपनी ये बकवास ।"


एक बार फिर विजय की बोलती पर ढक्कन लग गया ।


- "अगर अब आगे तुमने एक लफज भी कहा तो मैं तुम्हारी खोपड़ी में रोशनदान बना दूंगा ।" वह व्यक्ति गुर्राया ।


- "देखो भाई साहब!" विजय फिर उसी शराफत के साथ बोला- "बात यह है कि आप खोपड़ी में रोशनदान बनाएं अथवा चूहेदान, लेकिन हम भी अपना झक्का पूरा किए बिना बाज नहीं आएंगे । हां तो हम कह रहे थे कि बिल्ली मौसी ने कुत्ते मामा की ऐसी-तैसी कर रखी थी कि तभी चूहा ताऊ उनके बीच में आया और उनका फैसला करने लगा । अब जनाब फैसला तो हो गया, किंतु तभी बिल्ली मौसी और कुत्ते मामा, चूहे ताऊ पर झपटे ।" इतना कहकर विजय एकदम चुप हो गया, मानो लकवा मार गया हो ।


उन पांचों में से किसी के पास बुद्धि का इतना स्टॉक न था कि उसके झक्के के अर्थ को समझ पाते । अत: एक-दूसरे की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे। मानो एक-दूसरे से पूछ रहे हों कि झक्के का अर्थ क्या हुआ? किंतु वे बेचारे क्या अर्थ सोच सकते थे... जबकि वास्तविका यह थी कि विजय खुद इस बकवास का अर्थ नहीं जानता था । वह तो उन्हें असावधान करने के लिए, जो उसके दिमाग में आया, बकता चला गया और वास्तव में वह किसी हद तक उन लोगों को अपनी अटपटी बातों में उलझाकर असावधान कर भी चुका था, किंतु इस छोटी-सी ऑस्टिन में कुछ करने में असफल रहा - जब उन पांचों के काफी मत्था-पच्ची करने के बाद भी कुछ समझ में नहीं आया तो पीछे वाला विजय से बोला ।


- "इस बकवास का मतलब?"


- "मतलब सन् 2028 ई० में विविध भारती से पौने पौ बजकर साढ़े गप्तालीस मिनट पर तारीख 32 को बौम्बार के दिन- जिदम्बर महीने में प्रसारित किया जाएगा ।"


विजय की बेपर की बात सुनकर उन पांचों की बुद्धि का मानो दिवाला निकल गया। उनकी समझ में नहीं आया कि यह आदमी है या जोकर ! वे बेचारे क्या जानते थे कि विजय उन्हें बातों में उलझाए उन मागों को दिमाग में अच्छी तरह सुरक्षित करता जा रहा था जहां से ऑस्टिन गुजर रही थी । वह अभी और बकवास करने ही जा रहा था कि चौंक पड़ा ।


अचानक उसके सिर के पिछले भाग से रिवॉल्वर का दस्ता टकराया । यह सब क्योंकि अचानक हुआ था । अत: इसकी उसे तनिक भी आशा नहीं थी । चोट क्योंकि सख्त थी, इसलिए उसकी आंखों के आगे लाल-पीले तारे नाच उठे । उसने स्वयं को काफी संभालने की कोशिश की, किंतु उसके मस्तिष्क पर स्याह पर्दा छाता चला गया और फिर उसे ज्ञान न रहा कि वह कहां है उसे किन मागों से गुजारा जा रहा है?


- उन पांचों ने विजय के अचेत जिस्म को देखा और ठंडी सांस ली -मानो उस जोकर की बोरियत भरी बातों से छुटकारा पाकर किसी बड़ी परेशानी से छुटकारा पाया हो। ऑस्टिन का वातावरण पूर्णतया शांत था । सिर्फ इंजन की घुर्र घुर्र का ही साम्राज्य था । आस्टिन तीव्र वेग से, सड़क के सीने को रौंदती जा रही थी ।


बात उस समय की है जब विजय की चेतना लौट रही थी। कराहकर उसने आंखें खोल दी। उसके सिर के पिछले भाग में उस स्थान पर, जहां हमलावर ने हमला किया था-बुरी तरह से पीड़ा हो रही थी । वहां एक गूमड़ बन गया था जो बुरी तरह टीस रहा था । कराहकर उसने आखें खोल दी । धीरे-धीरे करवट ली तो उसे अनुभव हुआ कि आसपास का स्थान गीला है । अत: उसे पानी डालकर होश में लाया गया है । अपने आसपास का दृश्य देखा उसे कुछ धुंधला-सा नजर आया ।


उसने महसूस किया कि वह किसी चमचमाते हॉल में पड़ा है । धुंधला दृश्य धीमे-धीमे स्पष्ट होने लगा । 


उसने देखा कि वह एक गोल हॉल के बीचोबीच फर्श पर पड़ा था । सामने एक शक्तिशाली-सा युवक हाथों में रिक्त बाल्टी लिए खड़ा था । जो इस बात का प्रमाण था कि इस बाल्टी में कुछ क्षण पूर्व पानी था जो उसके ऊपर डाल दिया है और जिसके कारण उसकी चेतना वापस लौटी है। उसने चारों ओर देखा तो पाया कि हॉल में लगभग पच्चीस शक्तिशाली इंसान है, जिनके जिस्मों पर ग्रीन लिबास और सिर पर लाल कैप हैं । कुछ समय तक तो विजय दृश्य को निहारता रहा । हॉल में शांति थी ।


अचानक विजय उछलकर खड़ा हो गया और बाल्टी वाले को घूरता हुआ बोला ।


"अमां यार... तुम हमें पहले बता देते कि मरने के बाद ऐसी जन्नत में तुमसे मुलाकात होगी तो कसम खुदा पहलवान की, हम जन्म लेने से पहले ही मर जाते ।"


हाथ में खाली बाल्टी लिए व्यक्ति अजीब ढंग से पलकें झपकाने लगा, किंतु तभी विजय के पीछे खड़ा एक अन्य ग्रीन लिबास वाला व्यक्ति बोला ।


- "मिस्टर विजय... अगर अब एक भी लफ्ज़ बोले तो हजारों गोलियां तुम्हारे जिस्म को छलनी कर देंगी ।"


-" अमां यार हरियाले विजय झटके के साथ उसकी ओर घूमकर बोला- "अगर तुम्हारे पास शर्म नहीं थी तो मुझसे कह दिया होता, मैं तुम्हें छप्पन छुरी की दुकान से दस-पांच किलो शर्म लाकर दे देता । अमां यार, जरा ये तो सोचो कि मैं जब मरा नहीं था तो दुनिया वाले बोलने के लिए मना करते थे और मरने के बाद तुम, यानी यमराज के चमचे बोलने पर कर्फ्यू लगा रहे हो । मुझे तुरंत अल्लामियां की अदालत में ले चलो । ले मैं तुम पर मानहानि का दावा करूंगा और अल्लामियां से पूछूंगा कि जब हर जगह बोलना मना है तो फिर ये जुबान क्यों दी गई? यानी कि सोचो...?" विजय न जाने अभी क्या-क्या बकता, किंतु एकाएक उसके पीछे से शक्तिशाली ठोकर पड़ी और वह मुंह के बल फर्श पर गिरा |


विजय फर्श पर पड़ा-ही- पड़ा अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि थम गया। आगे होने वाली घटनाओं को ध्यान से देखने लगा । हॉल का समस्त प्रकाश मानो सिमटने लगा... समस्त हॉल में गहन शांति का साम्राज्य हो गया । विजय भी चुपचाप फर्श से उठकर खड़ा हो गया ।


स्टेज पर चमचमाता-सा विचित्र नकाबपोश प्रकट हुआ । उसके समस्त जिस्म पर रंग-बिरंगे बत्व जले हुए थे... नकाब पर किसी चमकीले पदार्थ से 'आग के बेटे' शब्द लिखा हुआ था। हॉल में उपस्थित अन्य सभी लोग अत्यंत आदर के साथ नकाबपोश के स्वागत में झुक गए। अभी हॉल में सन्नाटा था कि एकाएक विजय के साथ सभी चौंक पड़े ।


हॉल में पिक... पिक की तीव्र ध्वनि गूंज रही थी । नकाबपोश भी धीमे से चौंका और अगले ही पल वह धीमे से चलता हुआ दाई ओर पहुंचा । वहां उपस्थित एक स्विच दबाया तो दाई ओर की दीवार एक धीमी-सी ध्वनि के साथ एक ओर को हट गई । वहां एक कमरा नजर आने लगा जिसमें लाल प्रकाश प्रसारित हो रहा था और वहां एक विशाल मशीन रखी थी ।


हॉल में चूंकि धुंधला-सा प्रकाश था, विजय को लगा जैसे कुछ करने के लिए यह समय उपयुक्त है, अत: उसने जेब में हाथ डाला, किंतु निराश होकर रह गया, क्योंकि जेब रिक्त थी । अत: समस्त हथियार अचेतन की अवस्था में उससे जुदा कर दिए गए थे वह फिर ध्यान से लाल कमरे को देखने लगा - |


विचित्र नकाबपोश ने मशीन का एक स्विच दबाया और

माइक हाथ में लेकर बोला ।


- "यस सर... आग का स्वामी स्पीकिंग!


"तुमने मिस्टर विजय को गिरफ्तार कर ही लिया ।" दूसरी ओर से अत्यंत गुर्राहट-भरा स्वर उभरा ।


- "यस सर, वे इस समय हॉल में ही है ।" नकाबपोश आदर के साथ बोला ।


- "विकास कहां है?


- "नंबर टू में कैद कर लिया गया है सर । "


- "वैरी गुड...! " आवाज ने आगे समझाया- "मि. विजय को नंबर थ्री में सतर्कता के साथ रखो और साथ ही एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण आदेश सुनो- उस पर तुरंत और इसी समय कार्य करना है।"


विजय के कान उसी ओर लगे थे- नकाबपोश का स्वर उभरा "आप आज्ञा दीजिए सर...!"


-"प्रोफेसर हेमंत को जानते हो ?" दूसरी ओर से पूछा गया। हेमंत का नाम सुनते ही विजय के कान खड़े हो गए । उत्तर में नकाबपोश कह रहा था ।


- "जी हां... आप शायद उन्हीं हेमंत की बात कर रहे हे, जो भारत की निगाहों में महान वैज्ञानिक हैं।"


"बिल्कुल मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं। भारत की निगाहों में ही नहीं वे विश्व की निगाहों में महान वैज्ञानिक है । हमें

रिपोर्ट मिली है कि प्रोफेसर हेमंत शीघ्र ही आग के बेटों के रहस्य को पहचानने जा रहे हैं, सिर्फ इतना ही नहीं उनका यह भी कहना है कि वे 'आग के बेटों' से टकराने का वैज्ञानिक ढंग भी निकाल लेंगे क्या इस प्रकार हमारे 'आगे के बेटे' महत्त्वहीन न हो जाएंगे ?"


- "निःसंदेह सर.... यह हमारे लिए भयानक खतरा है ।"


-"अब इस प्रोफेसर हेमंत का क्या किया जाए?


- ''मेरे विचार से उसे दुनिया से मुक्ति दिला दी जाए।"


- "क्या बेवकूफी की बातें कर रहे हो आग के स्वामी ? " दूसरी ओर से गुर्राया स्वर उभरा-"क्या प्रोफेसर हेमंत जैसे महान वैज्ञानिक को मार देना उपयुक्त है? और हमें वैज्ञानिकों की हमेशा आवश्यकता रही है, क्या हेमंत हमारे काम नहीं आ सकता? हमें हेमंत को मारना नहीं है।"


-'तो उसका अपहरण कर लिया जाए सर ? "


"अभी तो रात शेष है, अत: यह कार्य आज ही की रात को कर लिया जाए । "


- "जैसी आज्ञा सर ।" नकाबपोश ने कहा ।


उसके बाद वे कुछ देर तक आपस में ही बातें करते रहे-फिर संबंध-विच्छेद करके स्विच दबाकर नकाबपोश ने वह कमरा बंद किया और स्टेज पर आकर विजय से संबोधित होकर बोला- "मिस्टर विजय... | " I


-"अबे मियां चमचमाहट । विजय चहककर बोला-''जरा ये अपना पर्दा हटाकर अपना हसीन थोबड़ा तो दिखा दो।"


- ''इस नकाब के पीछे छुपे थोबड़े को देखकर चौंक पड़ोगे मिस्टर विजय! "


- "क्यों, क्या हमें चौंकने की बीमारी है ?"


-''यह तो तभी पता लगेगा जब यह नकाब उठे ।"


- "तुम थोबड़ा तो दिखाओ वादा करता हूं कि नहीं चौंकूंगा" 


- "यह तुम्हारे अपने सोचने का ढंग है... फिलहाल इतना जान लो कि तुम चौकोगे अवश्य । खैर-तुमसे बातें बाद में होंगी- पहले बॉस के आदेश का पालन कर लें ।" उसके बाद विजय को वहां से ले जाया गया ।

वातावरण अभी स्याह रात के दामन की कैद से मुक्त नहीं हो पाया था । चारों ओर उसी प्रकार का सन्नाटा -वही नीरवता, वही भयानकता व्याप्त थी ।

प्रोफेसर हेमंत की विशाल कोठी आबादी से दूर एकांत में स्थित थी । स्याह अंधकार में खड़ी विशाल इमारत किसी दैत्य की भांति प्रतीत होती थी । कोठी के चारों ओर दूर-दूर तक का इलाका खेतों और मैदानों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था ।

ऐसा प्रतीत होता था, मानो नाटे कद के स्याह साए को आवारागर्दी के अतिरिक्त दूसरा कोई काम ही नहीं था । मानो सारी रात वह इसी प्रकार व्यतीत कर देना चाहता हो। इस समय वह प्रोफेसर हेमंत की दैत्याकार कोठी के सामने वाली झाड़ियों में चुपचाप पड़ा था । न जाने किसकी प्रतीक्षा थी उसे? झाड़ियों में छिपे नाटे स्याह साए की आंखें प्रत्येक पल प्रोफेसर हेमंत की इमारत पर जमी हुई थीं- मानो उसे आज की रात वहां कुछ होने का संदेह हो ।

कभी-कभी वह दूर तक वीरान पड़ी हुई उस सड़क को भी देख लेता था जो शांत सोई हुई थी - कोठी के बरामदे में निरंतर उसे एक जुगनू ऊपर-नीचे होता हुआ चमक रहा था । जब यह कछ ऊंचा उठता तो क्षणमात्र के लिए प्रोफेसर हेमंत के चौकीदार पठान का रोबीला चेहरा दमक उठता । यह जुगनू बीड़ी के अतिरिक्त कुछ भी न था जो पठान ने अभी कुछ - क्षणों पूर्व ही सुलगाई थी । नाटे कद के साए ने सब कुछ देखा था, किंतु शांत था । वह चुपचाप झाड़ियों में छुपा रहा ।

रघुनाथ की कोठी के पास से वह सीधा यही आया था और उसे झाड़ियों में पड़े लगभग दो घंटे व्यतीत हो गए थे। उसने अपना धैर्य नहीं खोया था। तब से अब तक कोई विशेष घटना भी घटित नहीं हुई थी, किंतु उसे शायद पूर्ण आशा थी कि कोई घटना अवश्य घटित होगी-तभी तो वह धैर्य के साथ झाड़ियों में पड़ा हेमंत की कोठी की निगरानी कर रहा था । निगरानी भी विशेषतया... हेमंत के कमरे की ।

हेमंत का कमरा दूसरी मंजिल पर था- जिसकी शीशे युक्त खिड़की से कमरे के भीतर का दृश्य हल्का व नीला धुंधयुक्त-सा दीख पड़ता था, क्योंकि कमरे में शायद नीले रंग का नाइट बल्ब हंस रहा था । टकटकी बांधे नाटा साया उसी खिड़की को घूर रहा था । कभी-कभी उसकी निगाह रिक्त सड़क की ओर भी उठ जाती थी । वातावरण यूं ही शांत रहा -किसी घटना अथवा दुर्घटना ने जन्म नहीं लिया, किंतु कमाल था इस नाटे में भी उसने भी अपना धैर्य नहीं खोया था । शांत पड़ा वह किसी विशेष घटना की प्रतीक्षा कर रहा था ।

इस बार जैसे ही उसकी निगाहें खिड़की से हटकर दाई ओर की रिक्त सड़क पर पड़ी तो एकाएक उसकी आंखें सफलता की स्थिति में चमकने लगी। उसकी आंखें किसी बिजली की भांति चमक उठी ।

सोई हुई सड़क को रौंदता हुआ कोई वाहन निरंतर उसी ओर आ रहा था। इस बात का अनुमान नाटा साया उसकी चमचमाती हैडलाइटों से लगा चुका था जो निरंतर तीव्र वेग से निकट आती जा रही थीं । नाटा साया सतर्क हो चुका था । इतनी देर में यह पहला वाहन था जिसने सोई सड़क की निद्रा को भंग कर दिया था और अपनी ध्वनि से सन्नाटे को पराजित कर दिया था । उसने झाड़ियों में पड़े ही पड़े पहलू बदला और आंखें उन चमचमाते बिंदुओं पर जम गई । 

नाटे कद के स्याह साए का पिस्तौल उसके हाथ में आ गया ।

जब वे बिंदु अत्यंत निकट आ गए तो उसने स्पष्ट देखा कि यह वही स्याह ऑस्टिन थी- जिसने कुछ समय पूर्व विकास का अपहरण किया था । उसके पीछा किए जाने पर वह एक मोड़ पर गधे के सिर से सींग की भांति गायब हो गई थी, किंतु इस समय वह एक बार फिर उसके सामने थी ।

ऑस्टिन हेमंत की कोठी के ठीक सामने थमी। उसमें से पांच साए बाहर निकले । रिवॉल्वर संभाले वह शांत पड़ा सायों की प्रत्येक प्रतिक्रिया देखता रहा । एकाएक ऑस्टिन के अंदर से भर्राया-सा स्वर ।

- "काम शीघ्रता से हो । "

-"ओके सर!" पांचों में से एक ने कहा और फिर पांचों कोठी के दरवाजे की ओर बढ़ गए | तब तक बरामदे में बैठा पठान चौकीदार दरवाजे तक आया और भारी - से स्वर में बोला ।

- "कौन हो तुम? किससे मिलना है?"

-"प्रोफेसर हेमंत से । " पांचों में से एक बोला और साथ ही वे दरवाजे तक पंहुच गए । दूसरी तरफ पठान भी दरवाजे तक पहुंचता हुआ बोला ।

- "यह कौन सा समय...?"

और फिर जो कुछ हुआ वह पठान के लिए तो आश्चर्य से परिपूर्ण था ही वह नाटा साया भी चौक पड़ा-सब कुछ देखकर साए की आंखों में उन सायों के प्रति घृणा के भाव उजागर हो गए ।

हुआ यह कि अभी पठान अपना वाक्य भी पूरा नहीं कर पाया था कि सायों के बीच से 'फिस' की एक धीमी-सी ध्वनि ने जन्म लिया और क्षणमात्र के लिए दहकता शोला रिक्त वायुमंडल में चमककर सीधा पठान के जिस्म में प्रविष्ट हो गया ।

पठान के मुख से धीमी-सी कराह निकली। उसने अपना बल्लम उन सायों की ओर बढ़ाया कि तभी 'फिस' की एक अन्य धीमी सी ध्वनि के साथ एक और गोला लपका और सीधा पठान के जिस्म में प्रविष्ट हो गया । परिणामस्वरूप पठान के मुख से घुटी-घुटी-सी चीख निकली, उसके हाथ से बल्लम छूट गया । वह धड़ाम से फर्श पर गिरकर ठंडा हो गया ।

दृश्य देखकर नाटे साए की आंखों में धीमा-सा क्रोध उजागर हो गया । शायद उसे उनकी यह हरकत अच्छी न लगी थी । उसका जी चाहा कि वह अपने रिवॉल्वर से वह सबको एक-एक गोली मारकर पूछे कि अब बताओ कैसी होती है पीड़ा ? वह जानता था कि दोनों गोलियां उन्होंने साइलेंसरयुक्त रिवॉल्वर से चलाई हैं उन्होंने बिना विशेष शोर-शराबे के पठान को धरती छोड़ो पत्र थमा दिया था ।

अपने क्रोध को दबाए वह शांत झाड़ियों में पड़ा रहा और सायों की प्रत्येक हरक देखता रहा । सायों ने दरवाजा खोला । दो ने पठान के मृत शरीर को उठाकर बगीचे में फेंक दिया और फिर सभी कोठी के भीतर की ओर बढ़ गए ।

-"तुम यहीं रहो ।" एक साए ने दूसरे साए को आदेश दिया ।

-"ओके सर!" वह साया बोला-जिसे आदेश दिया गया था - शेष चारों साए कोठी के अंदर प्रविष्ट हो गए ।

नाटे साए ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की । वह शांत खड़ा उनके क्रिया कलाप देखता रहा-लगभग पांच मिनट बाद ही हेमंत के कमरे की खिड़की के शीशे पर उसने उन लोगों को देखा- उसका दिमाग तेजी से कुछ करने के लिए सोच रहा था । एक साया बरामदे में खड़ा सिगरेट फूंक रहा था। तभी उसने ऑस्टिन की ओर देखा वहां उपस्थित साया भी सिगरेट पी रहा था ।

नाटे साए ने शीघ्र ही कुछ निश्चय किया और किसी दक्ष जासूस की भांति सतर्कता के साथ झाड़ियों के बराबर-बराबर ऑस्टिन की ओर बढ़ने लगा । वह प्रत्येक खतरे का सामना करने के लिए पूर्णतया सतर्क था वह रेंगने में इतनी सावधानी का परिचय दे रहा था कि स्वयं उसे रेंगने की ध्वनि नहीं सुनाई पड़ रही थी। इसी प्रकार रेंगता हुआ वह ऑस्टिन तक पहुंच गया ।

इससे पूर्व कि कोठी के अंदर प्रविष्ट होने वाले चारों साए बाहर आते-नाटा साया पूर्ण सतर्कता के साथ बरामदे में खड़े साए और ऑस्टिन के भीतर बैठे साए की आंखों में धूल झोंकता हुआ ऑस्टिन की डिक्की में समा गया । वहां उपस्थित किसी अन्य इंसान को इस बात का लेशमात्र भी अहसास न हुआ । यहां तक कि ऑस्टिन में बैठा साया भी नाटे की उपस्थिति से पूर्णतया अनभिज्ञ था ।

नाटे साए ने डिक्की में हल्की-सी दरार उत्पन्न की हुई थी, जिसमें से वह बाहर का दृश्य देख रहा था। उसने देखा, अगले पांच मिनटों में चारों साए बरामदे में आए । ऑस्टिन के निकट आते-आते वे पांच हो गए। उनमें से एक के कंधे पर एक अचेत जिस्म पड़ा था जो निःसंदेह प्रोफेसर हेमंत का ही था । वह जान गया कि प्रोफेसर का अपहरण किया जा रहा है । वह चुपचाप सब कुछ देखता रहा ।

कुछ क्षणोपरांत ऑस्टिन एक झटके से आगे बढ़ गई और फिर ऑस्टिन तीव्र वेग से अज्ञात दिशा की ओर दौड़ती चली गई । नाटा साया शायद प्रत्येक मार्ग को अपने दिमाग में सुरक्षित करता जा रहा था। वह आग के बेटों को उनके अपराध का मजा चखाने के विषय में सोच रहा था।

ऑस्टिन के अंदर शांति थी । छहों साए चुपचाप बैठे थे । पिछली गद्दी के आगे प्रोफेसर हेमंत का अचेत जिस्म पड़ा हुआ था । ड्राइवर तीव्र वेग और दक्षता के साथ कार ड्राइव कर रहा था ।

अचानक पिक... पिक की ध्वनि ने शांत वातावरण को पराजित कर दिया । लगभग सभी लोग चौंके - ड्राइवर के पास बैठे साए ने कार में लगे ट्रांसमीटर को ऑन किया और बोला ।

"यस नंबर शर्मीला सेशन स्पीकिंग ।"

- "तुम क्या खाक सतर्क रहते हो ?" दूसरी तरफ से भयानक गुर्राहट-भरी आवाज ।

- "क्या मतलब सर?" शर्मीला सेशन बुरी तरह से चौंक पड़ा

तुम पहली बार भी मात खा गए और इस बार भी ।" फिर वही गुर्राहट भरी आवाज ।

- " मैं समझा नहीं सर!"

" "तुम क्या खाक समझोगे? " गुर्राहट अत्यंत भयानक थी "पहली बार जो व्यक्ति मोटरसाइकिल से तुम्हारा पीछा कर रहा था इस बार वह तुम्हारी ऑस्टिन में ही उपस्थित है।"

- "कौन है वह ? " शर्मीला सेशन के साथ अन्य सभी साथी चौंके ।

- "वह इस तरह नजर नहीं आएगा बेवकूफों । वह तुम्हारी ऑस्टिन की डिक्की में बैठा है । तुम्हारी ये असावधानी किसी दिन तुम्हारी जान ले लेगी ।'

उपस्थित समस्त साए आश्चर्य के साथ एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे । साथ ही वे सभी अपने चीफ की जानकारियों पर हैरान थे । क्या उनका चीफ प्रत्येक मिशन पर उनके साथ रहता है...?