ट्रांसमीटर पर दूसरी ओर की गुर्राहट सुनकर विजय इस प्रकार सीट से उछला-मानो अचानक उसे बिच्छू ने डंक मार दिया हो । क्षणमात्र के भी हजारवें भाग में वह समय की गंभीरता को भांप गया । वह जान गया कि आग के बेटों का चीफ निहायत ही चालाक है उसका राज अब राज न रहा था |
विद्युत गति से उसके हाथ अपने रिवॉल्वर पर पहुंच गए ।
वास्तव में इस मामले में विजय ने अपनी संपूर्ण फूर्ती का प्रयोग किया था, किंतु इसका क्या किया जाए कि वह अपने इरादे में असफल रहा । इसके कई कारण थेपहला ये कि ऑस्टिन अत्यंत छोटी थी और उसमें छः-सात इंसान बड़ी कठिनाई से समाए हुए थे। इतने छोटे-से स्थान पर इस स्थिति में विजय के लिए उन पांचों से टकराना असंभव ही था
परिणामस्वरूप जैसे ही उसका हाथ रिवॉल्वर तक पहुंचा कि वह सिहर उठा । एक साथ तीन रिवॉल्वरों की नालों ने उसके जिस्म के विभिन्न अंगों को स्पर्श किया। दो रिवॉल्वर पीछे बैठी छायाओं ने उसकी गुद्दी से चिपका दिए और तीसरा रिवॉल्वर दाएं बैठे एक अन्य नकाबपोश ने उसकी पसलियों से सटा दिया । उसका हाथ जहां-का-तहां ही ठिठक गया । तभी उसके कानों से अपने पीछे वाले के शब्द टकराए ।
"अगर कोई भी चालाकी दिखाने की चेष्टा की तो खुदागंज पहुंचा दिए जाओगे ।"
नहीं... नहीं भाई साहब, ऐसा बिल्कुल मत करना ।" विजय चहककर बोला-''अगर हम खुदागंज पहुंच गए तो हमारे बीवी-बच्चों का क्या होगा? बेचारे अनाथ हो जाएंगे। अरे वाह अरे वाह...वाह !" विजय ऐसे बोला- मानो स्टेज पर खड़ा कोई शायर का भतीजा-"क्या झकझकी याद आई है । हां तो झकझकी का विषय है अनाथ हो जाएंगे। भई वाह, हां तो प्या...।"
- "बको मत !" अचानक पीछे वाला खतरनाक स्वर में गुर्राया । कारणवश विजय की कैंची की भांति चलती जुबान में ब्रेक लग गए । उसकी बोलती पर ढक्कन लग गया, किंतु वह भी अपने नाम का बस एक ही विजय था। उसकी बोलती पर तो ढक्कन निःसंदेह लग गया, किंतु अब वह शुतुरमुर्ग की भांति अपनी गरदन अकड़ाए, अपने चेहरे पर मूर्खता के भाव उत्पन्न किए बड़ी विचित्र नजरों से एक-एक को घूर रहा था। तभी पीछे वाला गुर्राया ।
- "अगर बकवास की तो गोली मार दूंगा ।"
- "भाई साहब आप बुरा न माने तो एक बात कहूं ।" विजय के लहजे से ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह पैदाइशी शरीफ रहा हो । उसके बाद कोई शरीफ पैदा ही न हुआ हो । वैसे इस समय वह अपनी पुरानी चल चल रहा था । अत: बेकार की बकवास से शत्रु को बोर करके उसे असावधान करने की चाल... |
उसके उपरोक्त वाक्य से क्योंकि शराफत टपकती थी इसलिए पांचों चुप रहे । विजय फिर बोला ।
-"हां तो भाई साहब -- क्या मैं कहूं...? "
- "बको क्या बकना चाहते हो ?" पीछे वाला कुछ
झुंझलाए-से स्वर में बोला ।
- "हां तो भाई साहब, बात ये है कि मैं आप लोगों को एक झक्का सुनाना चाहता हूं। वैसे तो मैं झक्का सुनाने का टैक्स लेता हूं, इस समय क्योंकि तुम मेरे बीवी बच्चों को अनाथ करने का परमिट रखते हो, इसलिए मैं तुम्हें मुफ्त में एक झक्का सुनाता हूं।" विजय लगातार बके जा रहा था और वे पांचों शांत उसकी बात सुन रहे थे । विजय आगे बोला ।
- "हां तो मैं कह रहा था कि झक्का ये है... एक बार एक बिल्ली और कुत्ते में फ्री स्टाइल कुश्ती हो रही थी । बिल्ली मौसी ने कुत्ते मामा के छक्के छुड़ा रखे थे... या यूं कहिए कि उसे नाकों चने चबवा रखे थे... या यूं कहिए कि छठी का दूध याद दिला रखा था... या यूं कहिए ... | "
"चुप...।" पीछे वाला सख्ती के साथ गुर्राया- "बंद कर अपनी ये बकवास ।"
एक बार फिर विजय की बोलती पर ढक्कन लग गया ।
- "अगर अब आगे तुमने एक लफज भी कहा तो मैं तुम्हारी खोपड़ी में रोशनदान बना दूंगा ।" वह व्यक्ति गुर्राया ।
- "देखो भाई साहब!" विजय फिर उसी शराफत के साथ बोला- "बात यह है कि आप खोपड़ी में रोशनदान बनाएं अथवा चूहेदान, लेकिन हम भी अपना झक्का पूरा किए बिना बाज नहीं आएंगे । हां तो हम कह रहे थे कि बिल्ली मौसी ने कुत्ते मामा की ऐसी-तैसी कर रखी थी कि तभी चूहा ताऊ उनके बीच में आया और उनका फैसला करने लगा । अब जनाब फैसला तो हो गया, किंतु तभी बिल्ली मौसी और कुत्ते मामा, चूहे ताऊ पर झपटे ।" इतना कहकर विजय एकदम चुप हो गया, मानो लकवा मार गया हो ।
उन पांचों में से किसी के पास बुद्धि का इतना स्टॉक न था कि उसके झक्के के अर्थ को समझ पाते । अत: एक-दूसरे की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे। मानो एक-दूसरे से पूछ रहे हों कि झक्के का अर्थ क्या हुआ? किंतु वे बेचारे क्या अर्थ सोच सकते थे... जबकि वास्तविका यह थी कि विजय खुद इस बकवास का अर्थ नहीं जानता था । वह तो उन्हें असावधान करने के लिए, जो उसके दिमाग में आया, बकता चला गया और वास्तव में वह किसी हद तक उन लोगों को अपनी अटपटी बातों में उलझाकर असावधान कर भी चुका था, किंतु इस छोटी-सी ऑस्टिन में कुछ करने में असफल रहा - जब उन पांचों के काफी मत्था-पच्ची करने के बाद भी कुछ समझ में नहीं आया तो पीछे वाला विजय से बोला ।
- "इस बकवास का मतलब?"
- "मतलब सन् 2028 ई० में विविध भारती से पौने पौ बजकर साढ़े गप्तालीस मिनट पर तारीख 32 को बौम्बार के दिन- जिदम्बर महीने में प्रसारित किया जाएगा ।"
विजय की बेपर की बात सुनकर उन पांचों की बुद्धि का मानो दिवाला निकल गया। उनकी समझ में नहीं आया कि यह आदमी है या जोकर ! वे बेचारे क्या जानते थे कि विजय उन्हें बातों में उलझाए उन मागों को दिमाग में अच्छी तरह सुरक्षित करता जा रहा था जहां से ऑस्टिन गुजर रही थी । वह अभी और बकवास करने ही जा रहा था कि चौंक पड़ा ।
अचानक उसके सिर के पिछले भाग से रिवॉल्वर का दस्ता टकराया । यह सब क्योंकि अचानक हुआ था । अत: इसकी उसे तनिक भी आशा नहीं थी । चोट क्योंकि सख्त थी, इसलिए उसकी आंखों के आगे लाल-पीले तारे नाच उठे । उसने स्वयं को काफी संभालने की कोशिश की, किंतु उसके मस्तिष्क पर स्याह पर्दा छाता चला गया और फिर उसे ज्ञान न रहा कि वह कहां है उसे किन मागों से गुजारा जा रहा है?
- उन पांचों ने विजय के अचेत जिस्म को देखा और ठंडी सांस ली -मानो उस जोकर की बोरियत भरी बातों से छुटकारा पाकर किसी बड़ी परेशानी से छुटकारा पाया हो। ऑस्टिन का वातावरण पूर्णतया शांत था । सिर्फ इंजन की घुर्र घुर्र का ही साम्राज्य था । आस्टिन तीव्र वेग से, सड़क के सीने को रौंदती जा रही थी ।
बात उस समय की है जब विजय की चेतना लौट रही थी। कराहकर उसने आंखें खोल दी। उसके सिर के पिछले भाग में उस स्थान पर, जहां हमलावर ने हमला किया था-बुरी तरह से पीड़ा हो रही थी । वहां एक गूमड़ बन गया था जो बुरी तरह टीस रहा था । कराहकर उसने आखें खोल दी । धीरे-धीरे करवट ली तो उसे अनुभव हुआ कि आसपास का स्थान गीला है । अत: उसे पानी डालकर होश में लाया गया है । अपने आसपास का दृश्य देखा उसे कुछ धुंधला-सा नजर आया ।
उसने महसूस किया कि वह किसी चमचमाते हॉल में पड़ा है । धुंधला दृश्य धीमे-धीमे स्पष्ट होने लगा ।
उसने देखा कि वह एक गोल हॉल के बीचोबीच फर्श पर पड़ा था । सामने एक शक्तिशाली-सा युवक हाथों में रिक्त बाल्टी लिए खड़ा था । जो इस बात का प्रमाण था कि इस बाल्टी में कुछ क्षण पूर्व पानी था जो उसके ऊपर डाल दिया है और जिसके कारण उसकी चेतना वापस लौटी है। उसने चारों ओर देखा तो पाया कि हॉल में लगभग पच्चीस शक्तिशाली इंसान है, जिनके जिस्मों पर ग्रीन लिबास और सिर पर लाल कैप हैं । कुछ समय तक तो विजय दृश्य को निहारता रहा । हॉल में शांति थी ।
अचानक विजय उछलकर खड़ा हो गया और बाल्टी वाले को घूरता हुआ बोला ।
"अमां यार... तुम हमें पहले बता देते कि मरने के बाद ऐसी जन्नत में तुमसे मुलाकात होगी तो कसम खुदा पहलवान की, हम जन्म लेने से पहले ही मर जाते ।"
हाथ में खाली बाल्टी लिए व्यक्ति अजीब ढंग से पलकें झपकाने लगा, किंतु तभी विजय के पीछे खड़ा एक अन्य ग्रीन लिबास वाला व्यक्ति बोला ।
- "मिस्टर विजय... अगर अब एक भी लफ्ज़ बोले तो हजारों गोलियां तुम्हारे जिस्म को छलनी कर देंगी ।"
-" अमां यार हरियाले विजय झटके के साथ उसकी ओर घूमकर बोला- "अगर तुम्हारे पास शर्म नहीं थी तो मुझसे कह दिया होता, मैं तुम्हें छप्पन छुरी की दुकान से दस-पांच किलो शर्म लाकर दे देता । अमां यार, जरा ये तो सोचो कि मैं जब मरा नहीं था तो दुनिया वाले बोलने के लिए मना करते थे और मरने के बाद तुम, यानी यमराज के चमचे बोलने पर कर्फ्यू लगा रहे हो । मुझे तुरंत अल्लामियां की अदालत में ले चलो । ले मैं तुम पर मानहानि का दावा करूंगा और अल्लामियां से पूछूंगा कि जब हर जगह बोलना मना है तो फिर ये जुबान क्यों दी गई? यानी कि सोचो...?" विजय न जाने अभी क्या-क्या बकता, किंतु एकाएक उसके पीछे से शक्तिशाली ठोकर पड़ी और वह मुंह के बल फर्श पर गिरा |
विजय फर्श पर पड़ा-ही- पड़ा अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि थम गया। आगे होने वाली घटनाओं को ध्यान से देखने लगा । हॉल का समस्त प्रकाश मानो सिमटने लगा... समस्त हॉल में गहन शांति का साम्राज्य हो गया । विजय भी चुपचाप फर्श से उठकर खड़ा हो गया ।
स्टेज पर चमचमाता-सा विचित्र नकाबपोश प्रकट हुआ । उसके समस्त जिस्म पर रंग-बिरंगे बत्व जले हुए थे... नकाब पर किसी चमकीले पदार्थ से 'आग के बेटे' शब्द लिखा हुआ था। हॉल में उपस्थित अन्य सभी लोग अत्यंत आदर के साथ नकाबपोश के स्वागत में झुक गए। अभी हॉल में सन्नाटा था कि एकाएक विजय के साथ सभी चौंक पड़े ।
हॉल में पिक... पिक की तीव्र ध्वनि गूंज रही थी । नकाबपोश भी धीमे से चौंका और अगले ही पल वह धीमे से चलता हुआ दाई ओर पहुंचा । वहां उपस्थित एक स्विच दबाया तो दाई ओर की दीवार एक धीमी-सी ध्वनि के साथ एक ओर को हट गई । वहां एक कमरा नजर आने लगा जिसमें लाल प्रकाश प्रसारित हो रहा था और वहां एक विशाल मशीन रखी थी ।
हॉल में चूंकि धुंधला-सा प्रकाश था, विजय को लगा जैसे कुछ करने के लिए यह समय उपयुक्त है, अत: उसने जेब में हाथ डाला, किंतु निराश होकर रह गया, क्योंकि जेब रिक्त थी । अत: समस्त हथियार अचेतन की अवस्था में उससे जुदा कर दिए गए थे वह फिर ध्यान से लाल कमरे को देखने लगा - |
विचित्र नकाबपोश ने मशीन का एक स्विच दबाया और
माइक हाथ में लेकर बोला ।
- "यस सर... आग का स्वामी स्पीकिंग!
"तुमने मिस्टर विजय को गिरफ्तार कर ही लिया ।" दूसरी ओर से अत्यंत गुर्राहट-भरा स्वर उभरा ।
- "यस सर, वे इस समय हॉल में ही है ।" नकाबपोश आदर के साथ बोला ।
- "विकास कहां है?
- "नंबर टू में कैद कर लिया गया है सर । "
- "वैरी गुड...! " आवाज ने आगे समझाया- "मि. विजय को नंबर थ्री में सतर्कता के साथ रखो और साथ ही एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण आदेश सुनो- उस पर तुरंत और इसी समय कार्य करना है।"
विजय के कान उसी ओर लगे थे- नकाबपोश का स्वर उभरा "आप आज्ञा दीजिए सर...!"
-"प्रोफेसर हेमंत को जानते हो ?" दूसरी ओर से पूछा गया। हेमंत का नाम सुनते ही विजय के कान खड़े हो गए । उत्तर में नकाबपोश कह रहा था ।
- "जी हां... आप शायद उन्हीं हेमंत की बात कर रहे हे, जो भारत की निगाहों में महान वैज्ञानिक हैं।"
"बिल्कुल मैं उन्हीं की बात कर रहा हूं। भारत की निगाहों में ही नहीं वे विश्व की निगाहों में महान वैज्ञानिक है । हमें
रिपोर्ट मिली है कि प्रोफेसर हेमंत शीघ्र ही आग के बेटों के रहस्य को पहचानने जा रहे हैं, सिर्फ इतना ही नहीं उनका यह भी कहना है कि वे 'आग के बेटों' से टकराने का वैज्ञानिक ढंग भी निकाल लेंगे क्या इस प्रकार हमारे 'आगे के बेटे' महत्त्वहीन न हो जाएंगे ?"
- "निःसंदेह सर.... यह हमारे लिए भयानक खतरा है ।"
-"अब इस प्रोफेसर हेमंत का क्या किया जाए?
- ''मेरे विचार से उसे दुनिया से मुक्ति दिला दी जाए।"
- "क्या बेवकूफी की बातें कर रहे हो आग के स्वामी ? " दूसरी ओर से गुर्राया स्वर उभरा-"क्या प्रोफेसर हेमंत जैसे महान वैज्ञानिक को मार देना उपयुक्त है? और हमें वैज्ञानिकों की हमेशा आवश्यकता रही है, क्या हेमंत हमारे काम नहीं आ सकता? हमें हेमंत को मारना नहीं है।"
-'तो उसका अपहरण कर लिया जाए सर ? "
"अभी तो रात शेष है, अत: यह कार्य आज ही की रात को कर लिया जाए । "
- "जैसी आज्ञा सर ।" नकाबपोश ने कहा ।
उसके बाद वे कुछ देर तक आपस में ही बातें करते रहे-फिर संबंध-विच्छेद करके स्विच दबाकर नकाबपोश ने वह कमरा बंद किया और स्टेज पर आकर विजय से संबोधित होकर बोला- "मिस्टर विजय... | " I
-"अबे मियां चमचमाहट । विजय चहककर बोला-''जरा ये अपना पर्दा हटाकर अपना हसीन थोबड़ा तो दिखा दो।"
- ''इस नकाब के पीछे छुपे थोबड़े को देखकर चौंक पड़ोगे मिस्टर विजय! "
- "क्यों, क्या हमें चौंकने की बीमारी है ?"
-''यह तो तभी पता लगेगा जब यह नकाब उठे ।"
- "तुम थोबड़ा तो दिखाओ वादा करता हूं कि नहीं चौंकूंगा"
- "यह तुम्हारे अपने सोचने का ढंग है... फिलहाल इतना जान लो कि तुम चौकोगे अवश्य । खैर-तुमसे बातें बाद में होंगी- पहले बॉस के आदेश का पालन कर लें ।" उसके बाद विजय को वहां से ले जाया गया ।
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