31-खालीपन
दो दिन बाद अजय अपने परिवार के साथ मुंबई वापस लौट गया।
अभिनव के कालेज खुलने के दो दिन पहले, विजय अभिनव को उसके कॉलेज छोड़ने चला गया। जाते समय अजय ने अजिता से कहा।
“अब आप एक होने वाले डॉक्टर की माँ हैं। अभिनव पढ़ाई खत्म करने के बाद वापस आ जाएगा। तब तक आप वह चीज़े करिए जो पहले नहीं कर पाईं।"
********
एक दिन
केवल जया और अजिता घर पर थे। जया भी अपनी सहेलियों से मिलने बाहर चली गई। अजिता घर पर अकेली थी। उस समय उसके पास करने को कोई भी काम नहीं था। उसने पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था कि जब वो अकेले बैठी हो और उसके पास करने को कोई काम ना हो। वह उठी और उसने टेलीविजन चालू किया और हाथ में एक पत्रिका लेकर सोफ़े पर बैठ गई।
पहले जब वह काम से घिरी रहती थी तब कभी-कभी ऐसे पल का इंतज़ार करती थी कि वह बिना किसी काम के आराम से बैठ सके, लेकिन जब उसे ऐसा मौका मिला तब वो खुश क्यों नहीं थी?
उसे बहुत अकेला और खालीपन महसूस हो रहा था। उसे लगा कि ऐसी स्थिति की आदत डालने में उसे थोड़ा वक्त लगेगा। उसे अपनी सहेलियों का उनके क्लब में शामिल होने के सुझाव याद आया। उसे लगा कि अब उसे उनका क्लब ज्वाइन कर लेना चाहिए।
वह सोफ़े से उठी और अपने कपड़ो की अलमारी खोली और ध्यान से अपनी साड़ियों की ओर देखा। उसे क्लब की मीटिंग के लिए कई साड़ियों की आवश्यकता होगी क्योंकि उसकी सहेलियों के पास कई साड़ियाँ थी। अजिता ने सौम्या की दी हुई साड़ी पहनने के लिए चुनी। चाँदी का बॉर्डर उस मजेन्टा साड़ी पर बहुत सुन्दर लग रहा था। अजिता ने वह साड़ी किसी खास अवसर के लिए रखी थी, लेकिन अब वह उसे अपनी पहली मीटिंग में पहनेगी। इन पार्टी में सारी औरतें एक से बढ़कर एक साड़ी पहनती थी, कुछ तो इतना मेकअप करती थी जैसे कि शादी के समारोह में जा रही हों। अजिता को मालूम था कि उसे सुन्दर दिखने के लिए मेकअप की जरूरत ही नहीं।
अब वह बेहतर महसूस कर रही थी और जया भी अपनी सहेलियों से मिलने के बाद वापस आ गई थी और उन दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर सोने चली गई।
32-टेलीफोन
अगले दिन सुबह जया ड्राइंग रूम में न्यूज पेपर पढ़ रही थी तभी दरवाज़े की घंटी बजी। उसने उठकर दरवाज़ा खोला तो एक मैकेनिक अपने साथ उपकरणों का बैग लिए दरवाज़े पर खड़ा था। “कोई आया है फ़ोन लगाने।" उसने अजिता से कहा।
"हाँ अम्मा, मैं आपको बताना भूल गई थी। अजय ने यहाँ एक फोन लगाने के लिए आवेदन दिया था। उसने कहा था कि अब अभिनव से बात करने के लिए इसकी जरूरत पड़ेगी।” अजिता ने अंदर कमरे से आते हुए कहा
"अंदर आ जाओ।” फिर कमरे में चारों तरफ देखते हुए बोली,
"इसे इस कोने में लगा दो, यह जगह ठीक रहेगी,”
मेकेनिक ने अपना काम शुरू किया और कुछ देर के बाद वह बोला,
"काम हो गया है। आप यह जाँच करके देख लीजिए?” कोने की मेज़ पर लाल नये चमचमाते टेलीफोन ने कमरे की रौनक बदल दी।”
अजिता अब अभिनव, अजय और अपनी सहेलियों से जब चाहे तब बात कर सकती थी। वो अंदर से अपनी डायरी ले आई जिसमें विजय ने अभिनव के छात्रावास का नंबर लिखा था।
"विजय उस समय ज़रूर अभिनव के साथ होंगे। उन्हें शाम तक वापस लौटना है।मैं उन्हें ही कॉल कर देती हूँ" उसने सोचा।
"हैलो, मैं आपकी किस प्रकार से सहायता कर सकती हूँ।“
दूसरी ओर से आवाज़ आई। “मैं अभिनव की माँ बोल रही हूँ और अभिनव से बात करना चाहती हूँ उसका कल ही छात्रावास में दाखिला हुआ है उसके पिता भी उसके ही साथ हैं।" अजिता ने कहा।
उसका दिल धड़क रहा था। उसने इससे पहले खुद फ़ोन नहीं मिलाया था।
"ठीक है मैडम, एक मिनट के लिए लाइन पर बने रहिये। मैं अभिनव को बुलवाती हूँ।" ऑपरेटर ने अपनी मीठी आवाज़ में कहा।
कुछ ही मिनटों के बाद
"हैलो माँ आप कैसी हो? क्या हमारा नया टेलीफोन लग गया?" अभिनव ने उत्साह से पुछा। वह खुश लग रहा था।
“हाँ अभिनव, मैं अपने नए टेलीफोन से ही बात कर रही हूँ, तुम कैसे हो?”
“मैं अच्छा हूँ मम्मी। मेरा एक रूममेट है और मेरी उससे दोस्ती हो गई है। छात्रावास बहुत अच्छा है। एक बड़ा डायनिंग हॉल है और खाना भी बहुत स्वादिष्ट है। माँ, यह कॉलेज बहुत बड़ा है और मेरे स्कूल की बिल्डिंग से ज्यादा बढ़िया है।” अभिनव एक ही साँस में सब कुछ बता गया।
"अच्छा! यह तो बहुत अच्छी बात बताई।” अजिता बोली
"मेरा कमरा नंबर 204 है और आप सुबह और शाम के 5 बजे से 8 बजे के बीच में मुझे फोन कर सकती हैं। पापा यहाँ से चले गए हैं और शाम तक घर पहुँच जायेंगे।”
"क्या तुम वहाँ खुश हो? किसी भी तरह की समस्या हो तो हमें बताने में संकोच मत करना।" अजिता ने कहा।
"मम्मी आप चिंता मत करिये। यहाँ सब कुछ ठीक है। मेरे वार्डन भी बहुत अच्छे हैं और सभी छात्रों का बहुत ख्याल रखते हैं। आप मेरे बारे में चिंता मत करो, आप अपना ध्यान रखना।” अच्छा मम्मी अब मैं खेलने जा रहा हूँ, नहीं तो लेट हो जाऊँगा। अभिनव ने रिसीवर रखा और सीधा खेलने के लिए प्लेग्राउंड में चला गया। अजिता अभिनव से बात करने के बाद अच्छा महसूस कर रही थी।
33-नया सपना
पंद्रह दिनों के बाद,
विजय आफिस से घर लौट कर आए तो उन्होंने अजिता को उदास बैठे देखा।
” कुछ परेशानी है क्या तुम्हें? या तबियत ठीक नहीं है क्या?”
“नहीं, कोई बात नहीं है मैं ठीक हूँ।” अजिता ने धीरे से उत्तर दिया और विजय के लिए चाय बनाने के लिए उठ गई।
” कुछ तो हुआ है मुझे बताओ? तुम उदास लग रही हो।" विजय ने चाय का कप उससे लेते हुए पूछा। उसे यकीन था कि कोई बात है जो अजिता को परेशान कर रही होगी।
पहले इस तरह कभी उदास नहीं देखा था। वह हमेशा चुस्त और उत्साह से भरी रहती है।
"मैं अपनी सहेलियों की पार्टी से तंग आ गई हूँ, मुझे वहाँ बिलकुल अच्छा नहीं लगता है। पहले कुछ दिन तक तो अच्छा लगा था पर अब सब नीरस सा लगता है। आप भी हर समय बाहर यात्रा पर रहते हैं।”
“अगर तुम्हें वहाँ जाना पसंद नहीं है तो तुम उन्हें कह दो कि तुम्हें घर पर कुछ काम है, और मैं अपने अधिकारी से बात करूँगा कि वह मुझे कोई दूसरा काम दे दे जहाँ इतनी यात्रा करने की जरूरत नहीं हो। मैं भी अब यात्राओं से तंग आ गया हूँ और घर पर ही रहना चाहता हूँ।” विजय ने अजिता को समझाया। उसके बाद, अजिता ने क्लब की बैठकों के लिए जाना बंद कर दिया और कुछ दिनों बाद विजय को भी ऑफिस में ऐसा काम मिल गया जिसमें उसे शहर से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती थी।
एक सुबह, विजय और अजिता चाय पी रहे थे, तभी अजिता ने कहा,
"तुम्हें याद है, मैं पहले एक अस्पताल और कुछ अंक वाला सपना देखती थी।"
"मैं कैसे भूल सकता हूँ? कितने आश्चर्य की बात है जो अंक तुमने सपने में देखे वहीं अंक अभिनव को परीक्षा परिणाम में मिले। तुम अभिनव के प्रति इतनी समर्पित थी कि तुम्हें उसके परिणाम का पहले ही एहसास हो गया। लेकिन आज तुम अपने सपने के बारे में क्यों बात कर रही हो, क्या कुछ नया सपना देखा है?
"हाँ, पिछले कुछ दिनों से, एक बहुत बड़ी फैक्टरी का सपना देख रही हूँ।”
"फैक्टरी!" कुछ सोचते हुए, "वह वही होगा, जहाँ मैं काम कर रहा हूँ। विजय ने कहा।
"नहीं, वह अलग है। वह तुम्हारी फैक्ट्री से भी बड़ी है।
"लगता है मैं किसी बड़ी फैक्ट्री मे स्थानांतरित किया जाने वाला हूँ क्या?” विजय ने हँसते हुए कहा और अपने ऑफिस पर जाने के लिए तैयार होने के लिए चला गया। अजिता भी ट्रे उठाकर विजय के लिए दोपहर का भोजन तैयार करने के लिए रसोई घर में चली गई।
दिन बीत रहे थे। अभिनव अपने कॉलेज और पढ़ाई में व्यस्त हो गया था। अजिता रोज़ शाम को उससे फ़ोन पर बात कर लेती थी। जया अधिकतर समय मंदिर की विभिन्न गतिविधियों में बिताती थी। विजय यात्रा पर तो नहीं जाता था लेकिन ऑफिस से अक्सर देर से आता था। अजिता कभी शिकायत नहीं करती थी क्योंकि उसे एक वरिष्ठ और ईमानदार व्यक्ति के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का एहसास था।
उसके जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन अजिता को अपने जीवन में कुछ कमी महसूस हो रही थी। समझ में नहीं आ रहा था कि वह मन से इतनी सुस्त क्यों हो गई थी।
उसने अपनी इस समस्या को बार बार विजय से कहना ठीक नहीं समझा। वह और कर भी क्या सकता था। अपनी समस्या का खुद ही समाधान ढूँढना पड़ता है। फिर उसे ध्यान आया कि जब वह अभिनव के लिए परेशान थी तब डॉ गुप्ता के सुझाव से बात बन गई थी। मैं अपने लिए भी उन्हीं से बात कर लेती हूँ, अजिता ने अपने मन में सोचा।
डॉ गुप्ता के घर में:
"तो आप जानना चाहती हैं कि आप क्यों ऐसा महसूस कर कर रही हैं कि जैसे कुछ कमी है आपके जीवन में।
डॉ गुप्ता सारी बात सुनने के बाद अजिता से बोले।
"हाँ। मुझे लग रहा है कि कोई बीमारी हो गई है मुझे।” अजिता बोली।
"कोई बीमारी नहीं है आपको। चिकित्सकीय रूप से आप पूरी तरह से सामान्य हैं।" फिर कुछ देर ठहर कर डॉक्टर गुप्ता बोले
"कुछ साल पहले आप अभिनव के बारे में बात करने आयीं थी, तब वह भी इसी तरह की समस्या का सामना कर रहा था। उसे भी अपने जीवन में उद्देश्यों की पहचान नहीं हो पाई थी, लेकिन सही मार्गदर्शन करने पर वह अपनी समस्या को दूर कर सका।”
अजिता ने सिर तो हिलाया, लेकिन उसे ज्यादा समझ नहीं आया कि डॉ.गुप्ता क्या कह रहे हैं।
डॉ गुप्ता ने आगे कहा, जीवन में तभी उमंग और उल्लास रहता है जब सामने कोई उद्देश्य होता है। बिना लक्ष्य का जीवन, दरअसल व्यक्ति का आत्म सम्मान कम कर देता है और जब ऐसी अवस्था होती है तो जीवन में नीरसता और व्याकुलता आ जाती है।
"आपने अब तक किसी ना किसी उद्देशय के साथ अपना जीवन बिताया है, कभी छात्रा के रूप में, कभी बेटी, बहू, पत्नी, और माँ के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाया तब उन सभी दायित्वों को निभाना ही आपकी जिन्दगी का उद्देश्य था।"
“उन सभी कर्तव्यों को आपने सफलतापूर्वक पूरा किया। वास्तव में वह बड़ी उपलब्धि है। इतने दायित्वों को एक साथ निभाने का कौशल केवल एक औरत में ही होता है।“
“मैंने ऐसा कोई बड़ा काम नहीं किया है, ये सब तो मेरी ज़िम्मेदारियाँ हैं। हर औरत परिवार के लिए ये करती है।" अजिता बोली। वह डॉ.गुप्ता की सराहना से शर्मिंदा महसूस कर रही थी क्योंकि वो अपने आप को एक साधारण गृहिणी ही मानती थी और किसी भी सराहना की उम्मीद के बिना कर्तव्यों का पालन करती थी।
क्योंकि अजिता जिस परिवेश में पली थी वहाँ गृहणियों का कार्य सामान्य माना जाता था और तब केवल उन्हीं महिलाओं को सफल मानते थे जो घर गृहिस्थी के अलावा अन्य किसी क्षेत्र में उपलब्धि प्राप्त करती थी। गृहणियों के काम को महत्व नहीं दिया जाता था।
"मेरी सोच अलग है। मैं मानता हूँ कि एक महिला ही परिवार का आधार है। वह परिवार के लिए दिन रात काम करती है और हर एक की जरूरतों का पूरा ध्यान रखती है। उसके बलिदान, सेवा, धैर्य और स्नेह, के कारण ही परिवार के सब लोग आराम से अपना काम कर पाते हैं। सच पूछिये तो एक परिवार का विकास किसी भी राष्ट्र के विकास की इकाई है और महिलायें ही परिवार के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। इसलिए मेरा मानना है कि, आपने राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और आप कह रही हैं कि आपने कुछ बड़ा नहीं किया। क्या आप मेरी बात से सहमत नहीं हैं?”
"आप सही कह रहे हैं। लेकिन मैंने इस तरह से कभी भी सोचा नहीं था। आपके कहने का मतलब है कि औरतें परोक्ष रूप से राष्ट्र के विकास में मदद करती है।” अजिता ने कहा।
"हाँ, अब आपने मेरी बात समझी है। मुझे लगता है कि परिवार के लोगों की नि:स्वार्थ सेवा के लिए औरतों को सम्मान देना चाहिए, “डॉ गुप्ता ने मुस्कराते हुए कहा।
“प्रशंसा के लिए धन्यवाद। मैंने खुद को पहले इतना सम्मान जनक महसूस नहीं किया था। हालाँकि डॉ गुप्ता, मैं अभी भी समझ नहीं पा रही हूँ कि अब मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मुझे आत्म संतोष मिले? आप उद्देश्य की बात कर रहे थे, मेरा क्या उद्देश्य होना चाहिए। यह मैं कैसे समझू?”
"यह बताने के लिए मैं आपको अपने अनुभवों के आधार पर समझाने की कोशिश करता हूँ। मेरा बचपन एक ऐसे गाँव में बीता जहाँ कोई अस्पताल नहीं था। इलाज़ के लिए लोगों को पास के शहर में जाना पड़ता था। मामूली बीमारियों के लिए भी देशी उपचार पर ही निर्भर रहना पड़ता था।
एक बार मेरे पिताजी बहुत बीमार हो गए तो पहले गाँव में ही उनका इलाज़ चलता रहा, पर जब तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो उन्हें शहर ले जाना तय किया गया लेकिन ले जाने के समय रास्ते में ही उनका देहांत हो गया। मैं अपने पिता की ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण मौत से बहुत आहत हो गया था और तभी मैंने निर्णय लिया मैं एक दिन डॉक्टर बन के उन सभी गाँवों में अस्पताल खोलूँगा जहाँ लोग इलाज़ से वंचित रह जाते हैं।
मेरी माँ ने उन खराब परिस्थितियों में रहकर भी मेरी पढ़ाई पूरी कराई और मुझे मेरे जीवन का लक्ष्य पाने के लिए पूरा सहयोग दिया। डाक्टॅर बनकर मुझे लोगों की तकलीफों को दूर करके जो आत्मसंतोष मिलता है, वह मेरे लिए प्रेरणा और ऊर्जा का स्त्रोत बन जाता है। और इसलिए मुझे अपनी जिंदगी में कभी मायूसी नहीं महसूस होती है।
हर एक के जीवन का उद्देश्य उसके अंतर्मन में छुपा होता है। उस अंतर्मन की आवाज़ कभी-कभी हमारे रोज़मर्रा के जीवन के शोर में छुप जाती है। उसे सुनने की कोशिश करे, आपको आपका जवाब मिल जाएगा।" डॉ॰ गुप्ता ने समझाया
लेकिन उन्हें अजिता का असमंजस से भरा चेहरा देखकर यह समझ में आ गया था कि अभी अजिता को अपने प्रश्न का पूरा उत्तर नहीं मिला है।
वह बोली, "वाकई में आपकी ज़िंदगी प्रेरणादायक है। आपके लिए काफी मुश्किल हुआ होगा जब आपके पिता की मृत्यु हो गई थी। आपकी माँ बहुत मजबूत महिला होंगी, जिन्होंने इतनी मुश्किल स्थिति में अपने बच्चों को इतनी अच्छी तरह से पाला। मैंने सुना है आपके भाई सेना में अधिकारी हैं।"
“हाँ, वह आर्मी में हैं। अब आपको समझ आया कि मैं क्यों ये मानता हूँ कि महिलायें देश की सेवा में मददगार हैं?
मैं और मेरा भाई हमारे माँ के प्रयासों की वजह से ही देश की सेवा कर रहे हैं।
"जी हाँ आप सही कह रहे हैं।" अजिता बोली और कुछ देर सोच में पड़ गई फिर हिचकिचाते हुए बोली,
“मैंने बचपन से गरीब महिलाओं के लिए कुछ करने की कामना की है। मैं उनकी स्थिति देख कर बहुत बेचैन हो जाती हूँ। क्या उनके लिए कुछ कर पाना, मेरे जीवन का उद्देश्य हो सकता है।“
"हो सकता है। आत्मनिरीक्षण करें। आपको आपका जवाब मिल जाएगा।” डॉ गुप्ता बोले। अजिता को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह ऐसा कर पाएगी, लेकिन उसे डॉ गुप्ता की सलाह पर विश्वास था।
"बहुत बहुत धन्यवाद। मैं आपकी सलाह पर ध्यान दूँगी।” अजिता ने डॉ गुप्ता से कहा।
और वह घर वापस आ गई। अब उसे यह सोचना था कि वह कैसे अपने लक्ष्य की ओर बढ़े।
34-सौम्या का प्रोग्राम
कुछ दिनों बाद॰॰॰॰
"अभिनव की पढ़ाई कैसी चल रही है?" अजय ने कुछ दिनों के बाद अजिता को फोन करके पूछा।
"अच्छी चल रही है और मज़े में है। तुम कैसे हो?"
"हम सब भी ठीक हैं। वैसे मैंने आपको ये बताने के लिए फ़ोन किया है कि अगले हफ्ते सौम्या वहाँ आ रही है।”
"सौम्या अकेले आ रही है? सब कुछ ठीक तो है?" अजिता ने अजय से पूछा।
"सब कुछ ठीक है, चिंता करने की कोई बात नहीं है।" सौम्या जिस कंपनी में काम करती है वहाँ उसके मालिक हमारे शहर के पास के गाँव में धर्मार्थ स्कूल खोलना चाहते हैं। उन्होंने इस काम के लिए सौम्या को जिम्मेदारी सौंपी है। गाँव की जानकारी लेने के लिए उसे गाँव जाना होगा।
भाभी आपको परेशानी होगी लेकिन आप सौम्या के साथ चली जाइएगा। दरअसल मुझे छुट्टी नहीं मिल रही है इसलिए आ नहीं पा रहा हूँ।" अजय ने कहा
"हाँ ठीक है मैं चली जाऊँगी। लेकिन तुम क्यों इतना संकोच कर रहे हो? हम लोग एक परिवार हैं।" अजिता ने हल्की नाराज़गी से कहा
"अच्छा ठीक है भाभी, अब नहीं करूँगा संकोच।" अजय हँसते हुए बोला
दो दिन के बाद “यात्रा कैसी थी? तुम इतने छोटे से बच्चे के साथ अकेले इतनी लंबी यात्रा करने के लिए कैसे तैयार हो गई, “ अजिता ने स्टेशन से बाहर निकलते हुए सौम्या से कहा।
"नौकरी में तो यह करना ही पड़ता है दीदी। कभी-कभी मैं जब थक जाती हूँ तो मन में आता है कि नौकरी छोड़ दूँ, लेकिन घर में बैठे रहने से अच्छा नहीं लगता है। एक आदत सी बन गई है।"
वे टैक्सी करके घर पहुँच गए। सौम्या और अजिता ने अगले दिन गाँव जाने के लिए प्रोग्राम् बनाया। अनुप्रिया की देखभाल करने के लिए घर पर अम्मा थी।
"विश्वास करना मुश्किल है कि आज़ादी के इतने सालों के बाद भी यहाँ सड़कों का निर्माण नहीं किया गया। बचपन में जहाँ हम गर्मी की छुट्टीयों में अपने दादा-दादी के गाँव घूमने जाते थे मुझे याद है कि वहाँ भी तब सड़कें ऐसी ही होती थी। इतने सालों में वैसी ही हैं। गाँव में लोगों को कितनी खराब हालात में रहना पड़ता है,” अजिता ने बस में बैठे हुए सौम्या से कहा।
बस राजमार्ग छोड़ चुकी थी, और ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर आ गई थी।
“यह ऊँट की सवारी की तरह है। यहाँ तक की ऊँट की सवारी भी इससे ज्यादा आसान होगी।” अजिता की बात पर सौम्या हँसी।
बस अपने स्टॉप पर पहुँच गई। बस से उतरकर वहाँ से वे दोनों लोग गाँव के अंदर चले गए। सौम्या को स्कूल खोलने के सम्बन्ध में ग्रामीणों के विचार लेने थे। इसलिए पहले वह ग्राम पंचायत के सदस्यों से मिलने गई और उन्हें वहाँ अपने आने का उद्देश्य बताया, फिर कुछ सवाल पूछने के लिए ग्रामीणों से मिलवाने का अनुरोध किया। एक वरिष्ठ बुजुर्ग उनकों ग्रामीणों के पास ले गया। कुछ ग्रामीण शुरुआत में कुछ बोलने के लिए राज़ी नहीं थे, लेकिन सौम्या ने अपनी बात जब विस्तार से समझाई तो अंत में वे इस बात से सहमत हो गए।
”ये अच्छी बात है कि आपके मालिक यहाँ धर्मार्थ स्कूल खोलना चाहते हैं लेकिन इसी गाँव में क्यों खोलना चाहते हैं?" उनमें से एक ने सौम्या से पूछा। वे कुछ आशंकित दिख रहे थे।
"उनकें महाराष्ट्र में पहले से ही पाँच ऐसे स्कूल चल रहे हैं। इसलिए उत्तरी भारत में भी स्कूल स्थापित करने के लिए मैंने ही सिफारिश की थी।” सौम्या ने जवाब दिया।
"क्यों?" गाँव वाले ने फिर पूछा। वे उसके जवाब से संतुष्ट नहीं लग रहे थे।
"मैंने सुना है कि इस गाँव के ज्यादातर लोग अनपढ़ हैं और इससे सटे अन्य तीन गाँव के लोग भी अनपढ़ हैं। मैंने सोचा ऐसी जगह में स्कूल बनाने से सभी चार गाँवों को लाभ होगा। मेरे मालिकों को ये विचार पसंद आया और तुरंत मुझे इस जगह का सर्वेक्षण करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भेजा है, “सौम्या ने समझाया।
"ये अच्छा है इससे आसपास के गाँव के बच्चे भी पढ़ लिख जाएँगे।" उन ग्रामीणों में से कुछ ने कहा।
जब तक सौम्या गाँव वाले से बात कर रही थी,
अजिता गाँव के लोगों के जीवन स्तर को ध्यान से देख रही थी। उसने देखा कि गाँव के घर कच्चे थे। उनमें से कुछ एक तो बहुत ही दयनीय स्थिति में थे। वहाँ औरते घर के बाहर भोजन पका रही थी जहाँ आसपास का माहौल बहुत गंदा था। लोग बुनियादी जरूरतों से ही वंचित थे। पुरुष खेती करते थे। महिलाएँ और बच्चे घर पर ही रहते थे। उनके पास अपनी आमदनी बढ़ाने का कोई और स्रोत नहीं था। कुछ महिलाएँ जूट की टोकरी बना कर गाँव के बाजार में बेचती थी। यही उनकी जीविका का स्रोत था।
अजिता शहरों और गाँवों के रहने वाले लोगों के जीवन में अंतर को देख कर चौंक गई। शहर में लोग तरक्की और विकास के बारे में बात करते हैं, जिसका गाँव में कोई महत्व नहीं था। वृद्धि और विकास जैसे शब्द इनके जीवन में मौजूद ही नहीं थे। न कोई स्कूल, न ही कोई अस्पताल और न कोई बुनियादी जरूरतें मौजूद थी। अजिता यह सब देखकर उदास हो गई थी। वो उनके लिए कुछ ऐसा करना चाहती थी जिससे उन ग्रामीणों का जीवन बेहतर हो जाए, लेकिन वह क्या कर सकती थी?
"यदि वे महिलाएँ ज्यादा कमाई करती तो अपना जीवन बेहतर बना सकती थी। जो तभी संभव हो सकता था जब वह इस बारे में जागरूक हो सके। महिलाओं के जागरूक हुए बिना कोई बदलाव संभव नहीं था। अजिता सोचने लगी कि अगर वो स्वयं शिक्षित नहीं होती तो वह अभिनव को मार्गदर्शित करने में सक्षम नहीं होती। बच्चे के शिक्षा के लिए माँ का शिक्षित होना बहुत जरूरी था। इस उम्र में, महिलाओं को औपचारिक शिक्षा देना तो संभव नहीं था लेकिन कुछ उपयोगी जानकारी तो जरूर दी जा सकती हैं।”
"हम वापस चलें दीदी?" सौम्या ने अजिता से पूछा। सौम्य ने गौर किया कि अजिता किसी बात में खोई है।
"आप क्या सोच रही है दीदी? मैंने आपको तीन बार बुलाया हमारे वापस लौटने का समय हो रहा है। हमें बस स्टॉप चलना है।” सौम्या बोली
"हाँ हाँ, जल्दी चलो। मैं क्या सोच रही थी ये बस में बैठकर बाद में बताएँगे।” अजिता बोली
"ठीक है," सौम्या ने कहा और वे दोनों बस स्टॉप की तरफ तेज़ी से चल दी।
बस में, अजिता ने सौम्या को अपनी मन की इच्छा बताई कि वह उन गाँव की महिलाओं के बेहतर जिंदगी के लिए उनकी मदद करने में उत्सुक है।
"यह तो बहुत अच्छा विचार है," सौम्या ने अजिता को प्रोत्साहित किया।
"लेकिन मैं क्या कर सकती हूँ यह अभी समझ नहीं आ रहा है।"
"मेरी राय में आप उन महिलाओं को कुछ ऐसा सिखाएँ जिससे वे कुछ कमाई कर सके, “सौम्या ने सलाह दी
"हाँ, मैं भी यही सोच रही थी। मैंने एक मैगजीन में लिज़्ज़त पापड़ बनाने वाली महिलाओं के बारे में पढ़ा था कि वह कुछ ही महिलाओं के सहयोग से शुरू किया गया था और अब उनका नाम कौन नहीं जानता है। मैं भी इसी तरह कुछ करना चाहती हूँ।” अजिता यह कहकर कुछ सोचने लगी।
"आप क्या सोच रही हैं दीदी, मुझे बताइये।” सौम्या ने अजिता से पूछा।
"मुझे लगता है, हर कोई मेरा बनाया अचार पसंद करता है।क्या तुम्हें लगता है कि मैं उन महिलाओं को अचार बनाना सिखा सकती हूँ?"
"हाँ, बिलकुल, क्यों नहीं, मुझे आपका, मुम्बई में हमारे घर पर बनाया अचार याद है। आपका आचार मेरे सभी दोस्तों के बीच में बँट गया था और सबको बहुत पसंद आया था। इसलिए मुझे यकीन है कि यह प्लान ज़रूर काम करेगा। आपको इसके लिए ज्यादा पैसों के निवेश की भी आवश्यकता नहीं है।” सौम्या बोली
"लेकिन, यह मैं अकेले कैसे कर पाऊँगी? इसमें बहुत ज्यादा प्रयास और समय की जरूरत होगी। और यह अकेले भी नहीं किया जा सकता।” अजिता बोली।
"चिंता मत करिये। हम सब लोग इस पर बात करेंगे और तय करेंगे कि इसे कैसे किया जा सकता है। आपका विचार बहुत अच्छा है और अगर सही ढंग से किया जाए तो ज़रूर सफल होगा। मैं इस विषय में अपनी कंपनी में बात करूँगी। अगर कुछ हो सकता है तो वे जरूर कुछ मदद करेंगे। वे लोग बहुत अच्छे लोग हैं।” सौम्या ने कहा
"मैं आपके विचार को अपनी कंपनी में भी बताऊँगी। अगर वहाँ से कुछ मदद हो सकती होगी तो मैं जरूर कोशिश करूँगी।"
35-प्रवाह
सौम्या अपनी रिपोर्ट पूरी करने के लिए अजिता के साथ आसपास के गाँवों में गई और सभी जरूरी जानकारी एकत्र की। अजिता ने भी गाँव की महिलाओं से मिलकर बातचीत की और उन्हें अपने खाली समय में आचार बनाकर बेचने की योजना समझाई। कुछ महिलाएँ तैयार नहीं हुई पर अधिकांश तैयार हो गई। अजिता को इस प्रतिक्रिया से काम करने का प्रोत्साहन मिल गया।
उन दिनों के दौरान, अजिता के पास खाली समय नहीं था। वह जीवन में नयापन महसूस कर रही थी। उसका मन उत्साह से भर गया था। विजय अक्सर उसे इतनी मेहनत न करने के लिए सलाह देते थे।
“अपनी उम्र को देखते हुए काम करना चाहिए तुम्हें।” विजय ने कहा
"उम्र, दिमाग में होती है जितना उसके बारे में कम सोचें, अच्छा है। काम करने से ही ऊर्जा बनी रहती है।" अजिता ने कहा
अजिता की बात सुनकर विजय हँसने लगा और कहा, “ठीक है, मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ। लेकिन कुछ दिन पहले, तुम अलग ही दिखती थी, काफी थकी हुई और परेशान सी अचानक इतना बदलाव कैसे आ गया।"
अजिता ने विजय को गाँव में हुई सारी बातें बताई और वह क्या करना चाहती है उसके बारे में बताया।
विजय ने पूछा, "तो तुम्हें पता है कि जो तुम करना चाहती हो उसमें कितना काम करना पड़ेगा? तुमने तो कभी बाहर नौकरी भी नहीं की।”
"मुझे मालूम है कि यह आसान नहीं है बल्कि बहुत मुश्किल है, लेकिन नई चुनौतियों का सामना करने से जीवन ज्यादा रोमांचक और सार्थक बनता है,” अजिता ने जवाब में कहा
विजय इस बहस को आगे नहीं बढ़ाना चाहता था। उसने सोचा कि जब अजिता ने यह फैसला कर लिया है तब उसके खिलाफ जाने से कोई फायदा नहीं क्योंकि अजिता जब कुछ सोच लेती है तो किसी के समझाने से नहीं मानती थी।
"ठीक है अगर तुम करना चाहती हो, तो ठीक है, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हें जो भी जरूरत हो मुझसे कह देना।"
"सच! मुझे लगा था कि आप मना कर देंगे।“ अजिता ने कहा
विजय की सहमति के बिना इस काम में आगे बढ़ पाना असंभव होता। विजय हमेशा उसका साथ देता था। अजिता खुद को भाग्यशाली महसूस कर रही थी ।
दस दिन बाद सौम्या का सर्वेक्षण खत्म हो गया था। उसने अजिता के काम की भी रूपरेखा बनाई।
अजिता को भरोसा दिया कि वह अपनी कंपनी में उसके काम की भी रिपोर्ट दिखा कर पूरी कोशिश करेगी कि अजिता भी गाँव की महिलाओं के लिए कुछ कर सके।
फिर सौम्या अनुप्रिया को लेकर वापस मुंबई लौट गई। अजिता उन्हें स्टेशन छोड़ने गई। वह दस दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। घर में अनुप्रिया के रहने की वजह से खूब रौनक रहती थी। जया पूरा दिन अनुप्रिया के साथ समय बिताती और अनुप्रिया को भी वहाँ बहुत अच्छा लग रहा था। अभिनव भी रोज़ अपने कॉलेज से फोन करके अनुप्रिया का हाल पूछता रहता था।
स्टेशन से लौटने के बाद अजिता को घर में बहुत सन्नाटा लग रहा था। जया भी दुखी थी इसलिए अपनी सहेलियों से मिलने बाहर चली गई। कुछ देर बाद अभिनव का फोन आ गया। उसे लग रहा था कि सौम्या चाची और अनुप्रिया के जाने के बाद उसकी माँ को घर में सन्नाटा लग रहा होगा।
"चाची और अनुप्रिया आज चली गई?" अभिनव ने पूछा
"हाँ, मैं अभी स्टेशन से लौटी हूँ। घर बहुत खाली लग रहा है, खासकर अनुप्रिया के जाने के बाद।" अजिता ने कहा।
"मुझे लग रहा था कि आप अभी अकेले होंगी।"
"अच्छा किया कि तुमने फोन कर लिया अभिनव।"
"अच्छा माँ आपके गाँव की महिलाओं वाले काम का क्या हुआ।"
"सौम्या कह रही थी कि वह पूरी कोशिश करेगी, मेरे काम में उसकी कंपनी भी मदद करे। लेकिन मैंने उन महिलाओं को अभी अपने घर से ही काम करने के लिए बात कर ली है।"
"बहूत बढ़िया, माँ। लेकिन आप लोग जो आचार बनाएगी वह बाज़ार तक पहुँचेगा कैसे?" अभिनव ने पूछा
"मैंने अपने बनिये से बात कर ली है।
वह कह रहा था कि वह कुछ बोतलें अपनी दुकान में रख लेगा। उसने कुछ और दुकानदारों से भी बात कर ली है कि वह भी अचार की कुछ बोतलें अपनी दुकान में रख ले।"
"और जो आचार बनाने में पैसे लगेंगे, वह कौन देगा" अभिनव ने पूछा।
"जरूरी सभी सब्जियों को गाँव की महिलायें अपने खेतों से लाएगी और मैं अपने सहेलियों की मदद से बाकी चीजों की व्यवस्था करूँगी। मेरी सहेलियाँ भी योगदान करने के लिए तैयार हैं। कल मैं बाजार जाकर वहाँ से सभी जरूरी मसालों और दुसरी चीज़े खरीद लूँगी।”
“आप अकेले गाँव में कैसे सभी चीजें ले जाएँगी?” अभिनव बोला।
"तुम्हारे पापा भी मेरे साथ जायेंगे” अजिता ने कहा।
"काश मैं वहाँ होता। मैं भी देखना चाहता था आप यह सब कैसे कर रही हैं। सुनने में बहुत मज़ा आ रहा है।”
"तुम जब छुटियों में आना तब मेरे साथ गाँव चलना।" अजिता ने कहा और फिर पूछा, "तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?”
"बहुत अच्छी, माँ! यहाँ रोज़ नई चीज़े सीखता हूँ मम्मी, मेरे क्रिकेट अभ्यास के लिए देर हो रही है। कल मेरा मैच है। बाकी बातें शाम को करूँगा, बाय माँ।”
फोन रखकर अजिता सोफ़े पर बैठ गई। वह थोड़ा थका हुआ महसूस कर रही थी। वह उस तरह के काम करने के लिए बाहर कभी नहीं गई थी।कुछ दिनों में काम करने की आदत पड़ जाएगी, उसने सोचा।
थोड़ी देर आराम करने के बाद उसने अच्छा महसूस किया और चाय बनाने के लिए उठ गई। जया उसी समय बाहर से लौट आई थी।
"थोड़ी देर बाहर हो आने से मन बहल जाता है। अनुप्रिया के जाने के बाद घर में बैठा नहीं जा रहा था।" जया ने चाय पीते हुए कहा।
"आप अपने आप को मंदिर के कामों व्यस्त रखती हैं ये बहुत अच्छा है, नहीं तो घर पर रहते रहते आप बहुत ऊब जाती।” अजिता ने कहा।
"हाँ, खुद को व्यस्त रखना बहुत जरूरी है। तुम्हारे ससुर जी हमेशा कहते थे कि परिवार के कर्तव्यों के साथ साथ हमें कुछ समय समाज़ सेवा में भी बिताना चाहिए। उस समय उनकी इस बात का महत्व समझ नहीं आता था, लेकिन अब समझ आता है।"
"पिता जी बहुत अनुभवी व्यक्ति थे।" अजिता बोली।
“अगर वह हमारे साथ होते तो कितना अच्छा होता।" ??
अगले रविवार को, अजिता और विजय गाँव जाने के लिए तैयार हो रहे थे। जया भी साथ में जा रही थी, उन्होंने अपना दोपहर का भोजन साथ में ले लिया और बस स्टॉप पहुँच गये जो उनके घर से करीब आधा किलोमीटर की दूरी पर था। अचार तैयार करने का समान भी साथ में था।
बस की सवारी एक घंटे लंबी थी। महिलाएँ बस स्टॉप पर उनके लिए इंतजार कर रही थी। उन्होंने अजिता के हाथ से बैग पकड़ लिए और सभी लोग गाँव के अंदर चले गए।
गाँव की एक महिला का घर, बड़ा था इसलिए वहीं अचार बनाना तय किया गया था।
अजिता और जया ने अचार बनाने की प्रक्रिया को शुरू किया और महिलाओं को उसमें शामिल किया। शाम तक सभी मसालें तैयार कर लिए गए और सब्जियों को धोया काटा और धूप में सुखाया गया। सब काम हो गया था, अजिता ने मिश्रण में विशेष स्वाद और सुगंध के लिए एक हर्ब मिलाई। महिलाएँ चकित थी कि अचार में वह हर्ब भी पड़ती है। जो उन सबके लिए एक नई चीज़ थी।
“आपने अचार बनाने की यह तरीका कहाँ से सीखा?” महिलाओं में से एक ने पूछा।
"हमने इस तरह का अचार कभी नहीं चखा है। हमें विश्वास है कि लोगों को यह बहुत पसंद आएगा”
"चलिए यह खुशी की बात है कि आप सबको इसका स्वाद पसंद आया। मैंने इसको बनाने का यह तरीका अपनी माँ से सीखा है। अच्छा, अब आपको यह अचार जो बन गया इसका ध्यान रखना होगा। इन बोतलों को बहुत सावधानी से और हर दिन सूरज की रोशनी में रखना होगा। इसमें पानी की एक बूंद भी नहीं जानी चाहिए नहीं तो पूरा अचार खराब हो जायेगा। साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना होगा। अपने कपड़े, हाथ, बोतलें और बर्तन सभी साफ होनी चाहिए।”
अजिता लगातार साफ-सफाई के फ़ायदों का और अचार बनाने का तरीका समझा रही थी। उसने महिलाओं को अपने घरों में साफ-सफाई के सरल नियमों का पालन करना सिखाया। महिलाएँ भी ध्यान लगाकर अजिता को सुन रही थी। उन्हें पहले कभी किसी ने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। सूर्यास्त तक लगभग सौ बोतलें तैयार हो गई थी। अजिता ने महिलाओं को अगले सात दिनों में क्या करना है वह बता कर शाम को विजय और जया के साथ शाम को घर लौट गई।
महिलाएँ कुछ नया सीखकर बहुत उत्साहित थी। उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनके नये काम से वह कुछ कमाई भी कर सकेंगी।
अजिता को इस बात पर विश्वास था कि आने वाले दिनों में अचार की माँग बढ़ेगी।
एक महीने के बाद सौम्या का मुंबई से फोन आया
"बधाई हो दीदी। मेरे बॉस को दोनों रिपोर्टे अच्छी लगी है और वे सर्वेक्षण करने के लिए अगले हफ्ते वहाँ आ रहे हैं,” सौम्या ने कहा।
“सच!" यह तो बहुत अच्छी खबर है। मुझे भी यहाँ बिक्री में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अब मुझे समझ में आया है कि ये काम असल मे व्यापार है।”
"बिक्री से आपका क्या मतलब है? आपने क्या अपना काम शुरू कर दिया है?” सौम्या ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
"हाँ यहाँ काम शुरू हो गया है। हमने अब तक अचार की नब्बे बोतलें बेच दी हैं और दो सौ बोतलें बिक्री के लिए किराने की दुकानों में हैं,” अजिता ने सौम्या को बताया।
"कमाल है, मानना पड़ेगा आपको! आपने अकेले कैसे यह सब कर लिया?”
“मैंने अकेले नहीं, यह सब अभिनव के पिता, मेरी अपनी सहेलियाँ, सासु माँ और गाँव की महिलाओं की सहायता से किया है।”
“मुझे सुनकर बहुत अच्छा लगा और मुझे यकीन है कि मेरे बॉस भी आपके प्रयास के बारे में जानकर बहुत प्रभावित होंगे।” “सौम्या ने कहा और फिर बोली,
"दीदी अभी मुझे जाना होगा क्योंकि अनुप्रिया रो रही है, मैं अगले हफ्ते आपसे मिलती हूँ और फिर आपकी पूरी कहानी सुनूंगी, बाय बाय।"
अजिता ने फ़ोन का रिसीवर रख दिया और सोफे पर आराम से बैठ गई और वह अपने विचारों में खो गई। कुछ दिन पहले तक उसने सोचा भी नहीं था कि वो इस तरह एक अलग काम कर रही होगी। कुछ दिनों पहले उसे अपनी जिंदगी अर्थहीन लागने लगी थी लेकिन अब उसे अपना उद्देश्य मिल गया था और जीवन फिर से आनंदित हो गया था। इस उपलब्धि का श्रेय डॉक्टर गुप्ता को जाता था। उन्हीं की सलाह और दिशा निर्देश से वह अपने उद्देश्य को ढूँढ पाई। हरेक के जीवन में एक गुरु का बहुत महत्व है। सब कुछ जानने के बाद भी कभी-कभी अपनी समस्या का हल खुद नहीं मिल पाता। वह खुश थी कि उसने डॉक्टर गुप्ता से अपनी समस्या बताई।
अगले हफ्ते, सौम्या अपने बॉस और कंपनी के अफसर के साथ गाँव का दौरा करने के लिए आ गई। उन्होंने ग्रामीणों से मुलाकात की और स्कूल के बारे में उनकी प्रतिक्रिया ली। उसके बाद वह लोग वहाँ पहुँचे जहाँ अजिता महिलाओं के साथ अचार तैयार कर रही थी।
करीब डेढ़ सौ महिलाएँ बड़े सुचारु रूप से काम कर रही थी। उन्हें देखकर यह लग रहा था कि वह बहुत दिनों से आचार बनाने का काम कर रही हों।
"आप तो कह रही थी कि आपकी दीदी कुछ काम करने की सोच रही है लेकिन यहाँ देखकर लग रहा है कि काम बहुत दिनों से चल रहा है।" सौम्या के बॉस बोले
"जी सर, मुझे भी अभी पिछले हफ्ते ही पता चला कि दीदी ने काम शुरू कर दिया। और सर, आपको ये जान कर और अधिक आश्चर्य होगा कि दीदी ने इतने कम समय में, गाँव की महिलाओं को थोड़ा-थोड़ा पढ़ना-लिखना भी सिखा दिया है। इन महिलाओं के साथ काम करते हुए, दीदी स्वच्छता के फ़ायदे और प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों, शिक्षा के महत्व आदि जैसे अन्य महत्वपूर्ण विषयों की जानकारियाँ भी देती रहती हैं। मैं जब पिछली बार इस गाँव में आई थी तब से अब यह बहुत साफ दिख रहा है।” सौम्या ने बताया
“हम लोग इसमें क्या मदद कर सकते हैं?"
"जी काम तो शुरू हो गया है लेकिन अब उनको बिक्री और मार्केटिंग के क्षेत्र में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उसके लिए उन्हें मदद की जरूरत है,” सौम्या ने कहा।
"सौम्या, आपकी दीदी ने यह काम बहुत अच्छे इरादे से शुरू किया है और यकीनन बहुत मेहनत भी की होगी। उन्हें शायद यह नहीं मालूम की इसको काफी बड़ा रूप दिया जा सकता है। यह हमारे चैरिटेबल ट्रस्ट के अंतर्गर्ट तो नहीं आ सकता लेकिन हम इसे एक सहकारी सीमिति बना सकते हैं जिसके एक सदस्य हम भी होंगे। फिर उसमें जो भी कानूनी कार्यवाही होगी वह हमारी कंपनी करेगी। तुम इसका बिजनेस प्लान बनाकर कंपनी में दो, जिससे इसकी कार्यवाही जितनी जल्दी हो सके शुरू की जाये।"
“बहुत-बहुत शुक्रिया, सर। मेरी दीदी यह जानकर बहुत खुश होंगी। उन्होंने कभी यह सोचा नहीं होगा कि उनकी छोटी सी पहल इतना बड़ा रूप ले लेगी। सच तो यह है सर, कि उन्हें तो इसके बारे में कुछ पता भी नहीं है।" सौम्या खुश होकर बोली।
सौम्या को सहाय सर पर भरोसा था कि वह जरूर मदद करेंगे। कितने कम लोग होते हैं ऐसे जो दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उनका सपना देश भर में कई स्कूल खोलने का था।
एक बार सौम्या ने उनसे पूछा कि वह क्यूँ इतने स्कूल खोलना चाहते हैं?
“सौम्या, मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूँ कि मैंने ऐसे परिवार में जन्म लिया जहाँ हमारे पास सब कुछ जरूरत से बहुत बहुत ज्यादा था। मुझे लगा कि मुझे दूसरों मे खुशियाँ बाँटनी चाहिए। मेरा मानना है कि शिक्षा हर एक के जीवन में किसी न किसी रूप में खुशी जरूर लाती है। बस इसीलिए मैंने यह सपना देखा है।“
"सर मैं दीदी को आपसे मिलवाना चाहती हूँ।" सौम्या ने कहा और अजिता को, जो महिलाओं के साथ व्यस्त थी, बुला कर ले आई।
अजिता ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया। और फिर जब सौम्या ने अजिता को पूरी बात बताई तो अजिता के आँखों में खुशी से आँसू आ गए। उसे इतनी मदद की उम्मीद नहीं थी।
उस दिन घर लौटने पर अजिता ने सौम्या और विजय से समझा कि सहकारी सीमिति क्या होती है और अब आगे का काम कैसे होगा। सारी बात समझने के बाद वह बोली,
"सौम्या, मैं तो कुछ जानती ही नहीं थी। तुम्हारी वजह से ही आज मैं इस मंजिल तक पहुँची हूँ। तुमने एक बहन की तरह मेरी मदद की है।"
"बहन की तरह, क्या मैं आपकी बहन ही हूँ?” सौम्या ने हँसते हुए कहा।
अजिता, विजय और सौम्या हँस पड़े।
"सच मानें तो सौम्या, तुम्हारे सहाय सर धन्यवाद के असली हकदार हैं। उनकी मदद के बिना काम आगे नहीं बढ़ सकता था। उतना बड़ा काम तो हम लोग नहीं कर पाते।" विजय बोला
"हाँ, आप सही कह रहे हैं। हम लोग भाग्यशाली हैं जो वह साथ देने के लिए तैयार हो गए। नहीं तो बहुत से लोग काम तो करना चाहते हैं पर इतनी मदद करने वाले न करने वाले से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।" अजिता ने कहा।
"हाँ यह तो सच है" सौम्या बोली फिर सोचने लगी,
अच्छा दीदी, आप अपनी इस समिति के लिए कोई नाम बता दीजिए। मुझे इसका पेपर वर्क कल से शुरू करना है क्योंकि रजिस्ट्रेशन में समय लग जाता है।"
"नाम?" अजिता बोली और फिर सोच में पड़ गई। क्या नाम होना चाहिए।" यह समिति महिलाओं के विकास के लिए बनी है। इस समिती को निरंतर काम करते हुए बढ़ते जाना चाहिए।"
नारीशक्ति "प्रवाह," यानि बहाव जो आगे बढ़ता जाता है। कैसा रहेगा यह नाम?" अजिता अचानक बोली।
“हाँ दीदी ! अच्छा है और बिलकुल फिट बैठता है। चलिए नाम तो फ़ाइनल हो गया।"
"क्या फ़ाइनल हो गया?" विजय ने दूसरे कमरे से आते हुए पूछा।
"नाम फ़ाइनल हो गया, “प्रवाह” कैसा लगा आपको," सौम्या ने विजय से पूछा।
"हाँ, बिलकुल ठीक है। अब तुम लोग थक गई होंगी। बाकी बातें कल करना। अब सोने की तैयारी करो।"
36-स्कूल का उदघाटन
अगले दिन से सौम्या अपने सहयोगियों के साथ स्कूल का काम करने मे जुट गई थी। राज्य सरकार की अनुमति पत्र, स्कूल के लिए जमीन ढूँढना, निर्मांणकार्य के लिए कांट्रेक्टर ढूँढना इत्यादि बहुत काम थे। साथ ही साथ उसने “प्रवाह” के लिए भी कागजी कार्यवाही शुरू कर दी थी।
गाँव की महिलाओं को जब पता चला कि उनका काम एक सहकारी समिति बनने जा रहा है तो उनमें उत्साह की नई लहर फैल गई। धीरे-धीरे यह बात पूरे गाँव में ही नहीं फैल गई, बल्कि आसपास के गाँव वालों को इसकी खबर लग गई तो उन लोगों में भी इस काम में रूचि जगने लगी।
उधर सौम्या और उसकी टीम भी लगातार काम कर रही थी। जल्द ही उन्होंने स्कूल की जमीन ढूँढ ली थी और निर्माण कार्य शुरू करने के सभी इंतजाम कर लिए थे। साथ ही “प्रवाह” का रजिस्ट्रेशन हो गया था और उसका बिजनेस प्लान भी कंपनी ने पास कर दिया था।
सौम्या की मदद से प्लान के अनुसार अजिता काम करना सीख रही थी। समय बीतता गया और धीरे-धीरे “प्रवाह सहकारी समिति” से निर्मित अचार “सुगंध” के नाम के ब्रांड से बाज़ार में मिलने लगा। लोगों को उसका स्वाद बहुत पसंद आया इसलिए वितरक मिलने में परेशानी नहीं हुई।
कुछ स्वयं सेवी संस्थान वाले भी “प्रवाह” से जुड़ गए जिनकी मदद से अजिता “प्रवाह” को और गाँवो में पहुँचाने में सफल रही। जो महिलाएँ इसकी सदस्य थी उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आने लगा था। उन्हें अब अपने समय का सदुपयोग करना आ गया था।
वह अपने घर, परिवार व बच्चों की देखभाल भी करती और साथ में अचार बनाने का काम भी करती। अजिता की मुहिम में महिलाओं को केवल आर्थिक मदद करना ही नहीं था बल्कि उन्हें शिक्षित करना भी था इसलिए उसके सेंटर पर सरकार की मदद से उन महिलाओं को शिक्षा भी मिल रही थी।
धीरे-धीरे एक साल पूरा हो गया और सौम्या का स्कूल का काम भी पूरा हो गया था। उसी स्कूल के प्रांगड़ में “प्रवाह” के लिए भी जगह नियुक्त की गई थी।
स्कूल के उदघाटन के दिन सौम्या, उसके सहयोगियों ने आसपास के कई गाँव के लोगों को निमंत्रित किया था। स्कूल की इमारत बहुत भव्य थी। बच्चों के आकर्षण के लिए झूले लगे थे। खेल का मैदान भी काफी बड़ा सा था। गाँव वाले अपने बच्चों को लेकर उदघाटन समारोह में शामिल होने आए थे। स्कूल की भव्यता देखकर बच्चों से ज्यादा उनके माँ बाप खुश थे कि उनके बच्चे इतनी सुंदर जगह में पढ़ाई करेंगे।
स्कूल के साथ साथ "प्रवाह सहकारी समिति" के कार्यालय का भी उदघाटन हुआ। उदघाटन, सौम्या की कंपनी के मालिक सहाय सर ने किया। अजिता के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उदघाटन करने के लिए अजिता का नाम बुलाया। वह मन में कृष्ण सहाय जी को धन्यवाद कर रही थी जिनकी वजह से उसका छोटा सा कदम इतना बड़ा हो गया था अजिता ने कभी सोचा नहीं था कि वह कभी इतना बड़ा काम कर पाएगी, हजारों महिलाएँ संस्थान के साथ जुड़ चुकी थी। अजीता के मन में आत्मसंतोष था। अभिनव के मेडिकल कॉलेज चले जाने के बाद अजीता के मन में जो खालीपन व बेचैनी हो गई थी वह न जाने कहाँ खो गई थी। वह अपने अनुभवों से इस तथ्य की पुष्टि कर चुकी थी कि जीवन का आनंद और आत्मसंतोष किसी जरूरतमंद के चेहरे पर खुशी लाने पर ही मिलता है। यह कर पाना वास्तव में आसान तो नहीं है पर असंभव भी नहीं है।
कभी-कभी जब हम अपने जीवन के पिछले पन्नों को पलटते हैं तो हमें एहसास होता है कि हम अपने जीवन में और कितना कुछ कर सकते थे। लेकिन जो बीत गया उसे तो बदला नहीं जा सकता। अब हम जो कर सकते हैं ऐसे अवसर हमेशा हमारे पास होते हैं इसलिए अपने जीवन के इन अनमोल पलों को तो व्यर्थ न जाने दें।
अजिता सही दिशा में जा रही थी। उसने अपने स्वयं के भविष्य के साथ साथ कई महिलाओं का भविष्य संवारा था और उसके साथ के लोग उसके व्यक्तित्व के इस पहलू से बहुत प्रभावित हुए।
37-कुछ पंक्तियाँ
"जब उसने गाँव की महिलाओं की मदद करने के बारे में मुझे बताया था तो मैं बहुत आश्चर्यचकित थी कि जो कभी बाहर ही नहीं गई थी वो कैसे ये सब कर पाएगी। एक साधारण सी महिला इस तरह का साहसिक कदम लेने के बारे में कैसे सोच सकती है। हमने उसे एक क्षणिक आवेग ही समझा था।"
" हाँ शुरू में गाँव की कुछ यात्राओं के बाद उसने निराश हो कर काम छोड़ने का मन बना लिया था लेकिन फिर अपनों के आत्मविश्वास के बल पर उसने काम जारी रखा।"
"बिना किसी अनुभव के साथ, इस तरह के एक बड़े संगठन की नींव रखनी और प्रबंधन कर पाना बहुत मुश्किल था। लेकिन सौम्या बहन के प्रयासों को भी भुलाया नहीं जा सकता।"
"अगर कोई सच्चे इरादे के साथ कुछ करने की इच्छा रखता है, तो भगवान भी उसकी मदद करता है। अजिता एक रोशनी की तरह हमारे अव्यवसथित जीवन में आई और हमें जीवन जीने की कला सिखाई वर्ना हम तो पता नहीं क्या कर रहे थे।"
“जहाँ तक परिवार के प्रति दायित्वों की बात है अजिता ने उन्हें भी बखूबी निभाया है। अभिनव को एक सफल जीवन और एक सफल इंसान बनाने में उसका बड़ा योगदान है।"
'तभी प्रवाह' की अध्यक्षा की आवाज़ आई, "दोस्तों कृपया ध्यान दें।"
हॉल में मौजूद सब शांत हो गए। जो हाँल के बाहर थे उन लोगों के लिए बाहर एम्पलीफायर लगाया गया। मेन गेट पर एक गाड़ी आकर रुकी। एक छोटा बच्चा और उसके पिता गाड़ी से बाहर निकले और सीधे हॉल की तरफ चले गए।
"पापा हमारे घर में इतनी भीड़ क्यों है? ये सब लोग रो क्यों रहे हैं?" बच्चा जवाब जानने के लिए अपने पिता को देख रहा था, पिता शांत बने रहे।
अध्यक्षा ने भाषण शुरू किया।
"यह अजिता मैडम की ओर से कुछ पंक्तियाँ हैं। जो उन्होंने सभी अपनों के लिए लिखवाई थी।
सभी प्रियजन
आप सभी को मेरी शुभकामनाएँ और आशीर्वाद, मैं हमेशा अपने सभी रिश्तेदारों और दोस्तों के दिल के बहुत करीब रही हूँ और मुझे हमेशा उनसे स्नेह व समर्थन मिला है जिसके लिए मैं उनका तहे दिल से धन्यवाद करना चाहती हूँ। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मैं इस परिवार का हिस्सा हूँ। जब भी कोई मुझे ज़रूरत हुई, तो हमेशा सभी मेरे साथ खड़े रहे हैं। मेरी परिवार ही मेरी ताकत है, उसके बिना मेरे अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं है।
भगवान की भी हमेशा मेरे ऊपर कृपा रही है और अभिनव के रूप में मुझे सबसे प्यारा आशीर्वाद दिया है। अभिनव मेरे जीवन का अनमोल सितारा है। बेटा अभिनव! तुमने मुझे मातृत्व की खुशी दी है। एक सफल डॉक्टर बनने के लिए तुम्हारे प्रयास पर मुझे बहुत गर्व है। मेरी दुआ है कि तुम सफलता के आकाश को छुओ !
मेरे पति ने जीवन की हर परिस्थिति में मेरा साथ दिया। उनके मार्गदर्शन और प्रोत्साहन के बिना, मैं अपने जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकती थी। एक औरत की सफलता अपने पति के समर्थन पर बहुत निर्भर करती है। मैंने जो कुछ भी हासिल किया, वह उन्हीं के सहयोग से ही किया है।
पिछले सात वर्षों के दौरान, उन्होंने जो भी किया वो अविश्वसनीय है। हर कोई जानता है कि मैं पिछले सात सालों में पूरी तरह से अस्वस्थ हूँ और वह बहुत मेहनत से मेरी सेवा कर रहे हैं। वह कभी एक पल के लिए भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। उन्होंने मेरी निस्वार्थ सेवा की है। मैं दिल से उनकी कृतज्ञ हूँ। मेरी दुआ है कि उन्हें असीम संतोष हासिल हो। सभी बहनों के प्रायस से प्रवाह को सफल बनाने में भगवान ने हमेशा रास्ता दिखाया है।
हमें लगातार इसका विस्तार करना है और हमारे संगठन में सुधार करते रहना है। मैं इस संगठन में किए गये प्रयासों के लिए आप सभी को धन्यवाद और बधाई देती हूँ। 'प्रवाह' सभी महिलाओं की वास्तविक शक्ति का उदाहरण है। इस शक्ति की लौ कभी बुझनी नहीं चाहिए।
मुझे मेरे दर्द से राहत देने के लिए मैं भगवान से यह प्रार्थना करती हूँ कि वह मुझे अपनी शरण में ले। मैं इस दुनिया को छोड़ भी दूँ तब भी मेरी आत्मा हमेशा आप सभी के साथ ही रहेगी। मैं भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि अगले जन्म में भी मुझे मेरे लोगों के बीच ही वापस भेज दें।
मेरा प्यार और आशीर्वाद आप सबके साथ है।
भवदीय,
अजिता
उन शब्दों के अंत के साथ, हॉल की चुप्पी एक दर्द भरे विलाप में बदल गई।
"पापा दादी यहाँ क्यों लेटी हैं? वह चुप क्यों है? मैं उनसे बात करना चाहता हूँ। आप मुझे उनके पास जाने दो।” उस बच्चे ने अपने पिता अभिनव से कहा।
“बेटा दादी अब भगवन के घर जा रही हैं, वो अब तुमसे बात नहीं कर पाएँगी। अब उनको जाना होगा।" अभिनव ने उत्तर दिया।
अभिनव ने अपना प्रेरणा स्रोत खो दिया था। उसकी माँ हमेशा उसके लिए एक मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में रही। वह अंदर से टूटा हुआ महसूस कर रहा था। वह कैसे अपने छोटे बेटे से को समझा सकता है कि उसकी दादी क्यों जा रही है।
अभिनव स्वयं एक बच्चे की तरह रोना चाहता था और भगवान से पूछना चाहता था कि क्यों उसकी माँ को उससे दूर किया, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था। उसकी माँ ने हमेशा उसके अंदर साहस जगाया था कि खुद को हर परिस्थिति में मज़बूत रखना चाहिए। जीवन में कभी न कभी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
"प्रवाह" की अध्यक्ष अभिनव के पास आई और कहा, मैं समूह के सभी सदस्यों की ओर से अपनी प्यारी मैडम के लिए कुछ शब्द कहना चाहती हूँ।”
"जी जरूर,” अभिनव ने कहा।
हमारी आदरणीय महोदया,
हम हमारी प्यारी बहन जी द्वारा सब हमारे लिए किए गए प्रयासों के लिए अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हम लोग गाँव के अंधेरे में रह रहे थे और वह हमारे जीवन में प्रकाश का स्रोत बनकर आईं और हमारे जीवन को प्रबुद्ध किया। हमारे पास कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं है। भगवान आपकी आत्मा को शांति दें। आप अनगिनत चेहरों पर मुस्कान लाने वाली एक महान महिला हैं। आप हमेशा हमारे दिल मे रहेंगी।"
धीरे-धीरे जीवन की लौ हमेशा निराशा मे बुझ जाती है जो लोगों के लिए आशा की एक स्तंभ की तरह बन जाती है। और अपने पीछे कई दुखी दिल और खुश यादों को छोड़ जाती हैं। वह छोटा हो या बड़ा हर मायनों में जीवन को अनगिनत रूप दिये हैं जिसका अर्थ है उसकी विरासत।
उन्होंने अपने दिल में सबसे खास जगह अपने बेटे के लिए सुरक्षित रखी थी जिसने उसे उसके जीवन का सबसे खुशियों भरा समय दिया। अजिता ने उसे तब संभाला जब वो अकेला था, डरा हुआ था, और अपने जीवन के मोड़ पर खो गया था। अभिनव उसके जीवन का सबसे बड़ा गर्व था। उसका जीवन आसान नहीं था, उसे कई मुश्किल परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा जिसकी तुलना नहीं की जा सकती लेकिन सभी परिस्थितियों का सामना उसने दृढ़ता से किया था। उसने दृढ़ संकल्प के साथ अपने जीवन में उसकी जगह खुद तय की और अंत में संतोष के साथ उसने जीवन में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उसने दुनिया छोड़ दी लेकिन अपनी आखरी साँस तक ये नहीं सोचा होगा कि उसकी उपस्थिति हर तरफ एक सुखद यादों की तरह सालों साल सबके मन में रहेगी।
समाप्त
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