दरियागंज का हत्यारा

र्मियों का मौसम था। होटल खचाखच भरा था और मॉल रोड पर काफ़ी भीड़-भाड़ थी। मसूरी में छुट्टियाँ मनाने आए वार्षिक पर्यटकों की भीड़ थी, जो मैदानी इलाक़ों में स्थित शहरों की गर्मी और धूल से बचने के लिए मसूरी आते थे। यह पर्वतीय स्थल मुख्य रूप से अपने पर्यटकों पर निर्भर था और पर्यटक भी मसूरी के साफ़ व खुले आकाश तथा हिमालय तलहटी की ताज़ी हवा का भरपूर आनंद लेते थे।

मिस रिप्ली-बीन और लोबो, एक बड़े-से देवदार वृक्ष की छाँव में दोपहर की कॉफ़ी पी रहे थे। वह देवदार वृक्ष लगभग सौ वर्ष पहले, जब होटल रॉयल खुला था, लगाया गया था। स्वर्गीय श्री रिप्ली-बीन उस होटल के संस्थापकों में से एक थे और उनकी वृद्धा, अविवाहित पुत्री मिस रिप्ली-बीन, टेनिस कोर्ट वाले हिस्से के कोने में बने दो कमरों की वैध रूप से अधिकारी थीं। उनकी आयु सत्तर के लगभग थी किंतु जो लोग उन्हें जानते थे, उनके अनुसार मिस रिप्ली-बीन अब भी बहुत ज़िंदादिल थीं। होटल के पियानोवादक लोबो और कभी-कभी सहायक मैनेजर को भी (मैनेजर के आम तौर पर छुट्टी जाने पर) वृद्ध मिस रिप्ली-बीन का साथ बहुत पसंद आता था, जबकि वह उनसे आधी उम्र का था। मिस रिप्ली-बीन को देखकर उसे अपनी गोवा वाली किसी आंटी की याद आती थी।

वे लोग गर्मी की उस सुहावनी सुबह में दरियागंज के हत्यारे के बारे में बात कर रहे थे।

दरियागंज दिल्ली का ऐतिहासिक इलाक़ा है, जो आंशिक रूप से व्यवसायिक और आंशिक रूप से आवासीय है तथा नई दिल्ली शहर को पुराने शहर से जोड़ता है। यह मुगलों के समय में अपने शानदार बंगलों के लिए प्रसिद्ध था, जहाँ से घुमावदार यमुना नदी नज़र आती थी। अब वहाँ बहुत भीड़ हो गई है, बहुत-सी दुकानें, दफ़्तर, घर बन गए हैं तथा गाड़ी से लेकर मोटरसाइकिल और हाथ-गाड़ी-सब तरह के वाहन सड़कों पर एकसाथ चलते हैं।

‘यह हत्यारा,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा, ‘इसी इलाक़े में क्यों हत्याएँ करता है? कहीं और, पहाड़गंज अथवा जोर बाग क्यों नहीं जाता?’

‘मुझे नहीं पता,’ लोबो ने कहा। ‘शायद वह दरियागंज में ही रहता है। यदि उसे रात में हत्याएँ करना पसंद है तो हो सकता है, उसे परिचित गलियों में घूमना सहज लगता हो।’

‘उसके हाथों मारे जाने वाले लोग कैसे थे? क्या वह उनका सामान भी चुराता था?’

‘ऐसा लगता तो नहीं है। एक महिला अपनी गाड़ी की ड्राइवर वाली सीट पर मृत मिली थी। हत्यारे ने उस महिला की महँगी अँगूठियों या हार को छुआ तक नहीं था। एक व्यापारी की जेब में, जो अपने ही कार्यालय के सामने सड़क पर मृत पाया गया, नोटों की गड्डी मिली थी। कई औरतें और अधिकतर पुरुष मारे गए - सभी लोग धनवान थे किंतु किसी का सामान नहीं चुराया गया था।’

‘यह बड़ी रोचक बात है,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘फ़िलहाल, जैसा कि अख़बार बताते हैं, उसकी गतिविधियाँ रुकी हुई हैं। एक महीने से ऊपर हो गया है, किंतु किसी की हत्या नहीं हुई।’

‘हो सकता है वह मर गया हो। या फिर कुछ समय रुककर, बाक़ी लोगों की तरह, वह भी छुट्टियाँ मना रहा हो,’ लोबो ने कहा।

‘हमें आशा करनी चाहिए कि वह छुट्टियाँ मनाने मसूरी न आए और न ही होटल रॉयल में ठहरे। यहाँ तो वैसे भी सब कमरे भरे हैं न?’

‘लगभग,’ लोबो ने हँसते हुए कहा। ‘आपके साथ वाले भूतिया कमरे को छोड़कर!’

अब मिस रिप्ली-बीन की मुस्कराने की बारी थी। ‘मैंने ही उस कमरे को भूतिया बना रखा है ताकि मुझे कोई शोरगुल करने वाला पड़ोसी न मिल जाए। मैं जब भी अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखती हूँ तो काँप उठती हूँ। मुझे हर बार वह बेचारा मैनेजर मनोहर लटका हुआ दिखाई देता है जिसने ख़ुद को फाँसी लगा ली थी। वह शायद सब तरफ़ से क़र्ज़ में डूबा हुआ था और होटल के खातों में भी गोलमाल करता था।’

उसी समय मिस रिप्ली-बीन के तिब्बती कुत्ते फ़्लफ़ ने हमारा ध्यान खींच लिया। वह ज़ोर-से भौंकता हुआ बेंच के नीचे से निकला और कुछ बंदरों के पीछे दौड़ा जो एक कमरे में घुसने की चेष्टा कर रहे थे।

‘यहाँ सचमुच बहुत बंदर हो गए हैं,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘ये जल्दी ही नृत्यशाला और रसोईघर में भी घुस जाएँगे। पर मैं सोच रही हूँ, कहीं वह दरियागंज का हत्यारा हमारे बीच यहाँ पहले से ही छुट्टियाँ न मना रहा हो। इस होटल में इतने सारे लोग हैं। क्या वह यहाँ हो सकता है?’

‘यह कैसा डरावना विचार है!’ लोबो ने कहा।

दरियागंज का हत्यारा सचमुच कुछ समय से शांत था। ऐसा नहीं कि उसे जो लोग नापसंद थे, उनकी हत्या करने की उसकी भूख अचानक शांत हो गई थी। दरअसल, उसने जब अपनी पिछली शिकार का, जो एक महिला पत्रिका की साधन-संपन्न संपादक थी, गला दबाना चाहा, तो उस महिला ने हत्यारे की दो अँगुलियाँ तोड़ दी थीं। फिर उसने हत्यारे के पेट और जाँघ के बीच में लात मारी तथा वहाँ से भाग गई। उसे वुमन्स रीम पत्रिका का अगला अंक समय से निकालना था।

हत्यारे की अँगुलियों में पट्टी बँधी थी। उसने अपने चिकित्सक को बताया कि गाड़ी के दरवाज़े में फँसने से उसकी दो अँगुलियाँ टूट गईं।

हाँ, उसके पास एक लाल रंग की सुंदर फ़ोर्ड फ़ीस्टा गाड़ी थी और वह उसी में बैठकर छुट्टियाँ बिताने मसूरी जा रहा था। उसके हाथ में बंधी पट्टी हट गई थी, अँगुलियाँ तेज़ी-से ठीक हो रही थीं और उसके हाथ फिर से, अपना काम करने के लिए खुजला रहे थे।

मिस रिप्ली-बीन दोपहर के खाने के बाद सो रही थीं। तभी फ़्लफ़ के भौंकने की आवाज़ से उनकी नींद खुल गई। कोई सचमुच उनके पड़ोस वाले कमरे में रहने आ गया था। परंतु मिस रिप्ली-बीन को अपने पड़ोसी की पहली झलक शाम को मिल पाई। वह छोटे क़द का दुबला-पतला आदमी था, जिसने मोटे काँच वाला चश्मा पहना था और वह अपने आस-पास मौजूद लोगों के व्यवहार को बड़े ध्यान से देख रहा था। वह थोड़ा लँगड़ाकर चल रहा था। उसे देखकर मिस रिप्ली-बीन को लगा कि वह किसी वयस्क क्या, छोटे बच्चे का गला भी नहीं दबा सकता। उसके हाथ बड़े थे और अँगुलियाँ, संगीतकारों की तरह काफ़ी लंबी थीं। यहाँ तक कि लोबो के हाथ भी इतने बड़े नहीं थे।

मिस रिप्ली-बीन की अगले दिन सुबह अपने नए पड़ोसी से भेंट हो गई। वह टेनिस कोर्ट के पास लगी एक बेंच पर बैठा एक क़िताब की पांडुलिपि पढ़ रहा था। मिस रिप्ली-बीन सुबह की सैर से लौट रही थीं और फ़्लफ़ भी उनके पीछे था। मिस रिप्ली-बीन ने अपने पड़ोसी का अभिवादन किया तो उसने भी सिर हिलाकर उत्तर दे दिया। वह मुस्कराया नहीं। वह गंभीर स्वभाव का व्यक्ति था जो बहुत कम मुस्कराता था।

‘आप कोई बड़े विद्वान लगते हैं,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। वह हमेशा लोगों के व्यवसाय को लेकर उत्सुक रहती थीं।

‘मैं उपन्यास लिखता हूँ,’ उसने कहा और अपने हाथ में पकड़ी पांडुलिपि उठाकर दिखाई। ‘द ग्रेट इंडियन लव स्टोरी’ (एक महान भारतीय प्रेम-कथा)।

मिस रिप्ली-बीन को वह छोटे क़द का आदमी, देखने से महान प्रेमी नहीं लगा, किंतु उन्होंने सोचा कि पुरुषों के बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ कहना मुश्किल होता है। कभी-कभी ये पतले-दुबले मरियल से दिखने वाले पुरुष वास्तव में ज़बरदस्त कामी पहलवान निकलते हैं! मिस रिप्ली-बीन कुछ सोच-विचारकर उस व्यक्ति के सामने बैठ गईं। उन्हें पता था कि कोई व्यक्ति उनसे प्यार करने के बारे में सोचेगा भी नहीं, लेकिन उन्हें उस व्यक्ति की अँगुलियाँ, और उनके खुजलाने का तरीक़ा बिलकुल पसंद नहीं था!

‘मैं किसी उपन्यासकार से मिलना चाहती थी, लेकिन सब एक जैसे नहीं होते न?’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा।

‘नहीं,’ उस लेखक ने कहा। ‘आप उपन्यास पढ़ती हैं?’

‘केवल अपराध कथाएँ,’ मिस रिप्ली-बीन ने उत्तर दिया। ‘अगाथा क्रिस्टी और मेरी रॉबर्ट्स राइनहार्ट।’

‘बेकार हैं। आपको मेरा उपन्यास पढ़ना चाहिए।’

‘ज़रूर! मैं इसके प्रकाशित होते ही अपने लिए एक प्रति ख़रीदूँगी।’

‘प्रकाशित! इसे कोई प्रकाशित नहीं करेगा!’

‘ऐसा क्यों?’

‘यह उनके मतलब की नहीं है!’ वह परेशान हो रहा था। उसका मुँह फड़क रहा था और माथे की नसें तन गई थीं। ‘आजकल के प्रकाशकों को लेखन के बारे कुछ नहीं पता! उन्हें बस मसालेदार प्रेम कहानियाँ या आत्म-सुधार पर लिखी क़िताबें या वित्तीय जगत से संबंधित शर्मनाक किस्से या फिर रातों-रात अमीर बनने के नुस्खे चाहिए। पैसा, पैसा और पैसा!’

‘मेरे विचार से पैसे से ही दुनिया चलती है। आप कहें, तो मैं कुछ प्रयास करूँ। हो सकता है, यह क़िताब आपको भी धनवान बना दे!’

‘अवश्य, परंतु कोई इसे प्रकाशित करे, तब न!’

मिस रिप्ली-बीन ने पांडुलिपि पढ़ने का वादा किया। यह सुनकर युवा लेखक प्रसन्न हो गया और उसके चेहरे की परेशानी भी ग़ायब हो गई।

‘मेरा नाम रोशन पुरी है,’ उसने कहा। ‘आपको एक दिन मेरा नाम अवश्य सुनने को मिलेगा।’

मिस रिप्ली-बीन की रोशन पुरी से अगले दो-तीन दिनों तक मुलाक़ात नहीं हुई। उसके दरवाज़े पर ताला लगा था लेकिन आधिकारिक तौर पर वह कमरा उसी का था क्योंकि वह एक सप्ताह का किराया पहले ही जमा कर चुका था। परंतु किसी को नहीं पता था कि वह कहाँ था। यह कोई असामान्य बात नहीं थी। कभी-कभी कुछ मेहमान, एक-दो दिन के लिए मसूरी से बाहर ऋषिकेश या फिर ऊपर पहाड़ों में घूमने निकल जाते थे।

मिस रिप्ली-बीन ने उपन्यास पढ़ा अथवा उसे पढ़ने का प्रयास किया। उन्हें वह अधिक समझ में नहीं आया। उसमें कहीं, बार्बरा कार्टलैंड तो कहीं, लोबसैंग रैंपा और कहीं पर, ख़लील जिब्रान का असर देखने को मिला। मिस रिप्ली-बीन को लगा कि रोशन पुरी ने उन महान लेखकों की पुस्तकों से काफ़ी अंश ज्यों-के-त्यों उठा लिए थे। उपन्यास का नायक, हिटलर की तरह दोगला है जो सख़्ती के साथ दुनिया पर शासन करता है; किंतु हमारा नायक एक ग़ुलाम लड़की की सहायता से उस तानाशाह को मारकर उसका स्थान ले लेता है तथा सभी देशों में शांति और समृद्धि लाता है। लेखक स्वयं इस उपन्यास का नायक है।

‘अच्छा विचार है,’ मिस रिप्ली-बीन ने सोचा, ‘अंतर सिर्फ़ इतना है कि यह पूरी तरह अव्यवस्थित है। बेकार, बिलकुल बेकार!’

रोशन पुरी की अनुपस्थिति के तीसरे दिन, लोबो सुबह अख़बार हाथ में लेकर आया।

‘क्या हमारा नोबेल पुरस्कार विजेता लौट आया है?’ उसने पूछा।

‘उसका कोई अता-पता नहीं है,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘परंतु वह अपने कमरे की खिड़की खुली छोड़ गया है और बंदर दिन-भर अंदर-बाहर होते हैं।’

‘वे निश्चित ही उसकी क़िताब फाड़ रहे होंगे। देहरादून में एक प्रकाशक अपने घर के सामने मृत पाया गया है। ऐसा लगता है वह रात का भोजन करके घूमने निकला था। बिजली के तार से उसका गला घोंटा गया है। क्या यह हमारे मेहमान का किया काम हो सकता है?’

‘मुझे नहीं लगता। मेरे विचार से दरियागंज का हत्यारा, अपने सब काम दरियागंज में ही करता है।’

‘मैंने सुना है कि सब प्रकाशक गुड़गाँव जा रहे हैं। कुछ ने तो कुत्ते भी पाल लिए हैं!’

‘हम तो प्रकाशक नहीं हैं, क्यों फ़्लफ़?’ मिस रिप्ली-बीन ने फ़्लफ़ को एक अदरक-बिस्कुट दिया जिसे उसने बड़े मज़े से खा लिया।

‘आंटी मे, आप अपना ध्यान रखिए,’ लोबो ने जाते हुए कहा। वह जब लौटे तो मुझे सूचित कर दीजिए।’

रोशन पुरी चाय के समय लौट आया। वह बहुत प्रसन्न और तरोताज़ा लग रहा था।

‘यह देखने से बहुत सीधा-सादा लगता है,’ मिस रिप्ली-बीन ने सोचा।

फ़्लफ़ को ऐसा नहीं लगता था। वह अपने पड़ोसी को देखते ही उस पर गुर्राने लगा।

‘क्या आपने मेरी पुस्तक पढ़ी? आपको नहीं लगता कि वह उत्कृष्ट रचना है?’

मिस रिप्ली-बीन ने इतने वर्षों में घमंडी युवकों से कुशलता के साथ बात करना सीख लिया था। उनका मज़ाक़ उड़ाने पर वे लोग अपना नियंत्रण खो बैठते हैं।

‘वह बहुत रोचक है,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘मैं उसे छोड़ नहीं सकी। यह लीजिए अपनी पांडुलिपि और मैं आपको इसके लिए शुभकामनाएँ देती हूँ। परंतु इसे ऐसे ही मत छोड़िएगा; यहाँ के बंदर बहुत बदमाश हैं।’

‘और प्रकाशक भी,’ पुरी ने गुस्से से कहा। ‘मुझे विश्वास है कि एक प्रकाशक इस होटल में भी ठहरा है।’

‘मेरे परिचय का तो कोई नहीं है,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘वैसे मुझे पता नहीं है। मैं न तो होटल की कर्मचारी हूँ और न ही भुगतान करने वाली ग्राहक। मेरे स्वर्गीय पिता कभी इस होटल को चलाते थे और उन्होंने जब इसे बेचा तो मुझे इसके एक कोने में रहने की जगह दे दी गई। मैंने अपना अधिकतर जीवन यहीं काटा है और आप मेरा विश्वास कीजिए, यहाँ बहुत-से सुनाने योग्य किस्से हैं। मुझे भी शायद एक क़िताब लिखनी चाहिए!’

रोशन पुरी उनकी इस बात से प्रभावित नहीं हुआ। उसके अनुसार दुनिया में सिर्फ़ एक लेखक की लिखी पुस्तकें पढ़ने योग्य थीं और वह था, रोशन पुरी।

प्रकाशक के विषय में पुरी की बात सही थी। होटल में सचमुच एक प्रकाशक रुका हुआ था: ‘चलता है’ बुक्स का गोल-मटोल दयालु मालिक, साइरस पिरान्हा।

साइरस ने कामुक चित्रों से युक्त ताश के पत्ते बनाकर काफ़ी दौलत कमाई थी और वह अश्लीलता के ख़िलाफ़ बने कानून का उल्लंघन करने के अपराध में दो-एक बार मुसीबत में भी फँस चुका था। अब वह ‘साहित्य’ के नाम पर चीनी, जापानी, भारतीय, अरबी तथा मेडागास्कर भाषाओं की कामुक रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित करके प्रतिष्ठा अर्जित कर रहा था। उसकी दौलत दुगुनी हो गई थी और वह छुट्टियाँ मनाने सामान्य तौर पर बरमूडा अथवा स्विट्ज़रलैंड जाता था, जहाँ उसने अपने बुरे दिनों के लिए बहुत-सी दौलत जमा कर रखी थी। वह इस समय सिर्फ़ अपनी पत्नी को, जो कभी मसूरी के शानदार स्टॉकवुड स्कूल में पढ़ी थी, ख़ुश करने के लिए वहाँ आया हुआ था।

साइरस की किसी अप्रकाशित और नए उपन्यासकार के पहले उपन्यास को देखने में कोई रुचि नहीं थी। इस काम के लिए उसने संपादक रखे हुए थे, लेकिन होटल रॉयल के बार में बैठे साइरस का मूड उस समय अच्छा था। उसने रोशन पुरी को मुस्कराकर देखा तो पुरी ने झट-से अपनी क़िताब की पांडुलिपि साइरस की गोद में रख दी और कहा, ‘श्री पिरान्हा, यह आपकी अगली बेस्टसेलर पुस्तक है। आप जब तक यहाँ हैं, इसे पढ़िए - यह आपके लिए यादगार अनुभव होगा!’

उस दिन के बाद, साइरस के लिए मसूरी-यात्रा सचमुच एक यादगार अनुभव बन गई!

मिस रिप्ली-बीन को उस युवा लेखक को देखकर मज़ा आ रहा था, जो बेचारे प्रकाशक के पीछे ही पड़ गया था।

पिरान्हा ने सच में, पांडुलिपि को पलटकर देखा। उसमें वर्णित प्रेम-प्रसंग पुराने थे और उनमें ज़्यादा मसाला नहीं था। साइरस ने पांडुलिपि के साथ एक नोट लिखकर, उसे रोशन पुरी के कमरे में वापस भिजवा दिया। नोट में लिखा था, ‘यह हमारे मतलब की पुस्तक नहीं है। आप इसे शैंपेन प्रेस को भेजकर देखिए।’

रोशन, शैंपेन प्रेस से बात करके देख चुका था। वहीं का प्रबंध संपादक, कुछ समय पहले अंसारी रोड, दरियागंज के छोटे-से अतिथि-गृह में मृत पाया गया था। उसकी गला दबाकर हत्या की गई थी। राजधानी के लगभग हर प्रकाशक ने रोशन की क़िताब छापने से मना कर दिया था। रोशन ने बहुतों से बदला भी ले लिया था। ‘चलता है’ बुक्स का प्रकाशक भी आसानी-से बचने वाला नहीं था!

कुछ समय तक पीछा करने का कार्यक्रम चलता रहा। साइरस पिरान्हा जहाँ भी जाता, रोशन कुछ दूरी पर रहकर उसका पीछा करता था। साइरस को बगीचे में या होटल के आस-पास घूमते देख, रोशन की परेशानी मिस रिप्ली-बीन की नज़रों से छिप नहीं पाती थी। होटल के आस-पास का मैदान बहुत बड़ा था और पैदल चलकर उसका एक चक्कर लगाने में आधा घंटा लगता था। मिस रिप्ली-बीन ने स्वयं से धीमी आवाज़ में कहा:

‘मैरी के पास एक मेमना था

वह बर्फ़ की तरह सफ़ेद था

मैरी जहाँ भी जाती थी

मेमना पीछे जाता था।’

‘आप हमेशा नर्सरी की कविताएँ गाती हैं,’ लोबो ने कहा। वह मिस रिप्ली-बीन के साथ बैठकर चाय पी रहा था।

‘नर्सरी की कविताओं में बड़े-बड़े सच छिपे हैं। उनमें समय की आत्मा बसती है।’

‘पुराना समय या आधुनिक समय?’

‘दोनों। मनुष्य में ज़्यादा बदलाव नहीं आया है। लालच, ईर्ष्या, प्रेम और घृणा आज भी हमारे कंधों पर वेताल की तरह लदे हुए हैं।’

‘मैरी के उस मेमने का क्या हुआ?’

‘मुझे ठीक से नहीं पता, शायद उसे पुदीने की चटनी के साथ पका दिया गया। क्या होटल की आज की व्यंजन-सूची में यही शामिल नहीं है? होटल रॉयल की विशिष्टता।’

रोशन पुरी ने साइरस पिरान्हा को अपनी पुस्तक के गुण एवं उसके महान सामर्थ्य को समझाने का एक अंतिम प्रयास किया। अधिकतर लेखक ख़ुद को बहुत विद्वान समझते हैं, चाहे अन्य लोग उन्हें ऐसा न समझें। उन सभी में रोशन सबसे घमंडी था। कुछ ऐसे ही उन्माद-भरे क्षणों में उसने क्या मानव-जाति के कुछ अयोग्य सदस्यों को मिटा नहीं दिया था?

वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन था। साइरस पिरान्हा घूमने निकला था। वह अधिक नहीं चला था: कैमिल्स बैक के आगे से घूमकर क़ब्रिस्तान को पार करने के बाद लवर्स लीप तक - पहाड़ी की चोटी पर एक भूनासिका है जिसके ऊपर हवाघर बना हुआ है। वहाँ घूमने आए लोग खुले मैदान में बैठकर गपशप करते हैं।

इस पर्यटन-स्थल में यह कहानी प्रसिद्ध है कि एक युवा प्रेमी जोड़े ने, जिन्हें उनके घरवालों ने निकाल दिया और समाज ने बहिष्कृत कर दिया था, वहाँ से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। वहाँ से नीचे लगभग सौ फ़ीट की गहराई है। रास्ते में नीचे गिरते व्यक्ति को रोकने के लिए झाड़ियाँ या पेड़-पौधे भी नहीं हैं। परंतु वह बहुत पहले की बात है। उस घटना के बाद से, किसी ने वहाँ से नीचे छलाँग नहीं लगाई थी।

उस दिन मौसम अच्छा था और मिस रिप्ली-बीन भी फ़्लफ़ के साथ सैर के लिए गई थीं। उन्होंने पुराने चर्च तथा अप्रयुक्त टेनिस कोर्ट से आगे, ऊपर जाने वाली सड़क ली थी, जो उस पहाड़ी के भी ऊपर से गुज़रती थी। वहाँ लगी बेंच पर बैठकर मिस रिप्ली-बीन को नीचे की सड़क और लवर्स लीप का स्थान नज़र आता था।

वहाँ कोई प्रेमी जोड़ा नहीं था। केवल दो पुरुष आपस में झगड़ रहे थे। मिस रिप्ली-बीन ने रोशन पुरी की तीखी आवाज़ पहचान ली, किंतु उन्हें सुनाई नहीं पड़ा कि वह क्या बोल रहा था। दूसरा व्यक्ति साइरस पिरान्हा हो सकता था, लेकिन मिस रिप्ली-बीन को भरोसा नहीं था क्योंकि वह व्यक्ति उनकी ओर पीठ करके छाया में खड़ा था। वह उसे बीच-बीच में हँसते हुए सुन सकती थीं। हाँ, वह साइरस पिरान्हा की ठहाकेदार हँसी थी।

अचानक रोशन अपने हाथ आगे फैलाकर साइरस पर लपका। साइरस अपनी छड़ी लेकर पीछे हट गया। वह अधिक पीछे नहीं जा सकता था क्योंकि उसके पीछे दीवार थी, किंतु रोशन खुले में खड़ा था और उसके पीछे कोई दीवार या जंगला नहीं था। वह लपककर साइरस का गला पकड़ने की कोशिश कर रहा था। साइरस उसे अपनी छड़ी से दूर किए हुए था। वे आगे-पीछे हो रहे थे, मानो दो कीड़े झगड़ रहे हों। तभी साइरस की छड़ी आगे को निकली और रोशन की छाती में घुस गई। रोशन चिल्लाकर जैसे ही पीछे हटा तो वह चीड़ के काँटों पर से फिसलता हुआ पहाड़ी की चोटी से नीचे लुढ़क गया।

गिरने की हलकी-सी धमक हुई और फिर सब शांत हो गया। वहाँ से गुज़र रहे दो-तीन लोग भागकर वहाँ पहुँचे और नीचे झाँकने लगे। साइरस उन्हें कुछ समझा रहा था। नीचे चट्टान पर एक व्यक्ति मृत पड़ा था और उसकी विचार-शून्य आँखें, दोपहर के सूर्य को ताक रही थीं। वह फिसल गया अथवा उसे धक्का दिया गया था? कोई नहीं जानता। यहाँ तक कि मिस रिप्ली-बीन को भी ठीक से नहीं पता था। वह जल्दी-से फ़्लफ़ के साथ होटल लौटीं और उन्होंने लोबो तथा अन्य लोगों को उस घटना की सूचना दी।

ऐसा लग रहा था कि वह एक दुर्घटना थी। रोशन पुरी का कोई परिवार या रिश्तेदार नहीं थे जो वहाँ आकर हंगामा करते। निस्संदेह, शव की मेडिकल जाँच हुई जिसमें उसके शरीर पर लगी चोटों का उल्लेख किया गया था। मौसम बहुत गर्म था इसलिए बिना देर किए रोशन की अंत्येष्टि कर दी गई।

‘आपको लगता है कि वही दरियागंज का हत्यारा था?’ लोबो ने पूछा। ‘वह देखने से निर्दोष दिखता था।’

‘उन बड़े-बड़े हाथों को छोड़कर,’ मिस रिप्ली-बीन ने कहा। ‘और कुछ दिन में सब पता लग जाएगा क्योंकि हमें देखना है दिल्ली के प्रकाशकों की जनसंख्या और कम होती है या नहीं…’

परंतु साइरस पिरान्हा अब भी हँसी-मज़ाक़ कर रहा था। उसने मिस रिप्ली-बीन को उस दिन पहाड़ी के ऊपर खड़ा देख लिया था किंतु उसे यह नहीं पता था कि मिस रिप्ली-बीन ने ऊपर से क्या देखा। मिस रिप्ली-बीन ने भी साइरस से कुछ नहीं कहा।

साइरस ने होटल छोड़कर जाने से एक दिन पहले, मिस रिप्ली-बीन को शराब की एक बोतल भेंट की और पूछा कि क्या वह उनकी कोई सहायता कर सकता है। ऐसा लगा कि होटल में अपने संक्षिप्त किंतु घटनापूर्ण अवकाश के दौरान साइरस, उस वृद्ध महिला को पसंद करने लगा था।

‘आप चाहें तो मेरे लिए अवश्य कुछ कर सकते हैं,’ मिस रिप्ली-बीन ने एक पल सोचने के बाद उत्तर दिया। ‘मैं इस पर्यटन-स्थल का इतिहास लिख रही हूँ। पहाड़ों की रानी, मसूरी को सौ वर्ष से ऊपर हो गए हैं और यहाँ रोचक इंसानों तथा इतने वर्षों में हुए बहुत-से किस्सों की भरमार है। इनमें प्रसिद्ध मेहमान, यादगार घटनाएँ, प्रेमी-जोड़े की छलांग और यहाँ तक कुछ हत्याएँ भी शामिल हैं। मेरा विचार है किसी प्रकाशक को खोजने का समय हो गया है…’

‘और कुछ मत कहिए!’ साइरस ने बीच में टोकते हुए कहा। ‘मुझे अपना प्रकाशक समझिए। मेरे कार्यालय से आपको एक अनुबंध भेजा जाएगा और मैं, जाने से पहले, आपके लिए इस पुस्तक की अग्रिम राशि स्वरूप एक चेक भी देकर जाऊँगा।’

साइरस ने अपने वादे के अनुसार, मिस रिप्ली-बीन को पाँच हज़ार रुपये का चेक दिया। वह उस समय किसी भी भारतीय प्रकाशक द्वारा एक नए लेखक को उसकी पहली पुस्तक के लिए दी गई सबसे बड़ी अग्रिम राशि थी।

और रोशन पुरी की उत्कृष्ट रचना का क्या हुआ? वह विस्मृत पांडुलिपि, उसी दुर्भाग्यपूर्ण व ख़ाली कमरे में कई सप्ताह तक पड़ी रही। एक दिन होटल में काम करने वाले एक लड़के ने वह पांडुलिपि उठा ली। वह उसे अपने साथ घर ले गया और फिर उसने वह पांडुलिपि, सड़क किनारे चाय की दुकान पर काम करने वाले अपने मित्र को दे दी। वह पांडुलिपि उस चाय वाले लड़के से दुकान के मालिक के पास पहुँची, जिसने उसे अपनी बेटी को दे दिया। चाय वाले की बेटी ने उन सैकड़ों पन्नों से काग़ज़ के बहुत-से लिफ़ाफ़े बना दिए और फिर उन लिफ़ाफ़ों में अपने ग्राहकों को चना-मूँगफली भरकर बेच दिया।

यह निस्संदेह, प्लास्टिक थैलियों के चलन में आने, और हताश विद्वानों द्वारा अपनी उत्कृष्ट रचनाओं को ऑनलाइन प्रकाशित करने से बहुत दिन पहले की बात है!