जसमिन को जब होश आया तो उसकी समझ में ही न आया कि वो कहां थी और कब तक अचेत रही थी। उसने फड़फड़ा कर आंखें खोली तो पाया कि बाथटब में पड़ी थी। घबरा कर उसने उठने की कोशिश की तो वो हिल भी न सकी। फिर उसे मालूम पड़ा कि उसकी दोनों टांगे मज़बूती से टखनों के करीब आपस में बंधी हुई थीं, दोनों बांहें आजू-बाजू उसके जिस्म के साथ यूं जकड़ी हुई थीं कि वो सिर्फ कलाइयों के आगे से उंगलियां हिला सकती थी। उसकी कमर के गिर्द एक और रस्सी थी जो बाथटब के उन लम्बे आयताकार सुराखों से गुजर रही थी जो कि टब में दाखिल होते समय या निकलते समय हैंडल के तौर पर काम आते थे। अपनी वर्तमान पोज़ीशन में वो या अपने हाथ पांव के पंजे हिला सकती थी या गर्दन हिला सकती थी।
फिर उसकी निगाह भारकर पर पड़ी।
उसके पहले से विस्फरित नेत्र और फैल गए और अब उनमें आतंक की छाया तैर गई। बाथरूम में ही मौजूद वो टब के करीब एक कुर्सी डाले बैठा हुआ था।
जसमिन के आने से कोई डेढ़ घन्टा पहले से वो वहां था। उस दौरान उसने सूई तलाश करने की तरह सारे फ्लैट की तलाशी ली थी। पिछले तजुर्बे के तहत कोई ऐसी खोखली जगह उसकी निगाह से नहीं बचा थी जिसमें कुछ छुपाया जा सकता था। बाथरूम में टूथपेस्ट की ट्यब के अलावा बैडरूम में ड्रैसिंग टेबल पर कई तरह के कॉस्मेटिक्स की, लोशंस की ट्यूबें उपलब्ध थीं जिनकी पड़ताल के लिए, अब वो जानता था कि, उन्हें पेंदे से काट कर खोलना भी ज़रूरी नहीं था। वहीं ड्रैसिंग टेबल पर ही एक लम्बी सलाई पड़ी थी जो उसने काबू में की थी और हर ट्यूब का ढक्कन खोल कर, ट्यूब में पेंदे तक सलाई फिरा कर तसल्ली की थी कि भीतर पेस्ट के अलावा कुछ नहीं था।
अब वो दावे के साथ कह सकता था कि वीडियो क्लिप, या उसकी कोई कॉपी, फ्लैट में कहीं नहीं थी।
उसे पहले से ख़बर थी कि जसमिन रात एक बजे के करीब बार से छुट्टी करती थी और डेढ़ बजे तक घर पहंचती थी। उसकी आमद से पहले वो फ्लैट की सारी बत्तियां बुझा कर बैठक में जाकर बैठ गया था।
“हल्लो!” – वो बोला – “जाग गई लोरी सुने बिना सोईं न, इसलिए जल्दी जाग गईं।”
“क-क्-क्या ... क्या ...” – वो बड़ी मुश्किल से बोल पाई।
“क्-क्या’ भी मालूम पड़ता है, पहले तू मेरी एक ज़रूरी बात सुन ले।”
“क-क्या?”
“चिल्लाने की कोशिश की तो वही जुराब हलक में लूंस दूँगा जिससे तेरी खोपड़ी सेकी थी। क्या!”
जसमिन के मुंह से बोल न फूटा।
“वीडियो क्लिप की बाबत तू बेशक कुछ न बताना लेकिन एक कहानी मैंने तेरे साथ करनी है, वो जरूर सुन ले। तेरे को पसन्द आने वाली कहानी है इसलिए ज़रूर ही सुन ले। सुन रही है?”
सप्रयास उसने सहमति में सिर हिलाया।
“मैं तेरे से बिल्कुल सवाल नहीं करूँगा कि वीडियो क्लिप कहां छुपाई तूने। मैं खाली हथेली की तरफ तेरी कलाईयों पर ब्लेड से एक छोटा सा, लम्बा सा – कोई दो इंच लम्बा – कट मारूंगा, नतीजतन कलाईयों पर से खून रिसने लगेगा - ऐसे कि तेरे को ख़बर ही नहीं लगेगी कि ऐसा कुछ हो रहा था। लेकिन कलाइयों की नसें कट जाने की वजह से खून का रिसना तब तक बन्द नहीं होगा जब तक कि जिस्म का सारा खून नहीं निचुड़ जाएगा, प्राण नहीं निकल जाएंगे। जो कुछ होगा, बहुत सुस्त रफ्तार से होगा इसलिए हो सकता है आखिरी सांस आ चुकने तक ढाई तीन घन्टे लग जाएं। आशिकी में खता-खायी नौजवान लड़कियों में खुदकुशी करने का ये बड़ा पापुलर तरीका है जिसमें, यूं समझो कि, बिल्कुल तकलीफ नहीं होती। पहले धीरे-धीरे बेहोशी तारी होती है फिर पता ही नहीं लगता कि कब गणपति बप्पा ने अपने पास बुला लिया। क्या!”
दाता!
हाकिम के खिलाफ कत्ल का चश्मदीद गवाह होने का जो हवाला एक कारगर धमकी का रुख अख्तियार करने वाला था, वही अब उसकी मौत का फरमान बनता जान पड़ रहा था।
“तु-तुम ... तुम ऐसा नहीं कर सकते।”– बड़ी कठिनाई से वो बोल पाई- “यूं तुम मेरी जान ले सकते हो, अपनी जान नहीं बचा सकते क्योंकि तुम्हें वीडियो क्लिप की हवा भी नहीं लगेगी। फिर तुम्हारा क्या होगा?”
“परवाह नहीं मेरे को। मैं खतरों का खिलाड़ी हूँ– हूँ नहीं तो हालात ने मुझे अब बना दिया है। अभी पहले मैं तेरा ‘तुम्हारा क्या होगा’ देख लूं फिर देखूगा, सोचूंगा कि मेरा क्या होगा। तेरे जैसी धमकी की तलवार गोरे भी लटकाए था मेरे सिर पर! खतरे से खेला न मैं! मुकाबला किया न उसका - उस आस्तीन के सांप का! आखिर जो नतीजा निकला, वो मेरे को माफिक आया न! मेरे खिलाफ उसके पास जो कुछ था, वो घर में ही छुपाए था क्योंकि वो तो श्याना था, मैं साला खजूर था। क्योंकि उसे यकीन था कि खुफिया जगह की मुझे ख़बर नहीं लग सकती थी। लेकिन लगी न आखिर! क्या!’
उसके मुंह से बोल न फूटा।
“साला हरामी कभी बोलता था वीडियो क्लिप थी ही नहीं, कभी बोलता था एक ख़ास जगह महफूज़ थी। क्या ख़ास जगह? उसके बाथरूम में पड़ी टुथपेस्ट की एक ट्यूब। अब तू बोल, तेरी ख़ास जगह कौन सी है, कहां हैं? घर में है या घर से बाहर है? और जोड़ीदार का नाम न लेना क्योंकि जोड़ीदार कोई नहीं है।”
उसके चेहरे पर सकपकाहट के भाव आए।
“सकपकाती क्या है? बेध्यानी में ख़ुद तेरे मुंह से निकला था कि किसी तीसरे को इनवॉल्व करने की तेरी कोई मंशा नहीं थी। ख़ुद तेरे मुंह से निकला कि हासिल रकम का कोई शेयर होल्डर खड़ा करने का तेरा कोई इरादा नहीं था। कोई जोड़ीदार होता तो मेरे को फोन तूने उससे करवाया होता, फोन पर आवाज़ बदल कर बोलने की ड्रिल न की होती। वैसे भी ख़ुद फोन न करना तेरी मूर्खता थी क्योंकि जोड़ीदार नहीं भी था तो आखिर तो मेरे रूबरू तुझे होना ही पड़ना था, क्योंकि वसूली के लिए किसी जोड़ीदार का भरोसा तू नहीं करने वाली थी। क्या?’
वो ख़ामोश रही, उसने अपने सूखे होंठों पर ज़ुबान फेरी।
“अभी बोल, वीडियो क्लिप छुपाने की तेरी खुफिया जगह कहां है? मैं एक ही बार पछंगा!”
वो ख़ामोश रही।
“तेरी ख़ामोशी कुबूल है मेरे को। अब देख, आगे क्या होता है!”
भारकर के हाथ में एक ब्लेड प्रकट हुआ।
जसमिन के नेत्र फट पड़े।
“कोई तकलीफ नहीं होगी” – कुर्सी से उठकर बाथटब के करीब आता वो सहज, सन्तुलित स्वर में बोला – “कुछ पता नहीं लगेगा, खाली कलाईयों में सनसनी-सी महसूस होगी, कटी कलाईयों में नसें फड़कती-सी महसूस होंगी और ज़िन्दगी का दामन तेरे हाथ से मुतवातर छूटता चला जाएगा।”
उसने एक कलाई पर ब्लेड चलाया।
जसमिन ने चीखने के लिए मुंह खोला तो भारकर ने फुर्ती से उसके मुंह में रूमाल लूंस दिया।
चीख जसमिन के गले में ही घुट कर रही गई।
“भरी जवानी में तैरे जान से जाने का मुझे अफसोस होगा लेकिन क्या करूँ, दो में से एक को तो जान से जाना ही होगा! तू अभी रुखसत हो जाएगी, वीडियो क्लिप मैं न हासिल कर पाया तो मेरी मौत का सामान कर जाएगी। अभी देखते हैं क्या होता है!”
उसने दूसरी कलाई पर भी कट लगाया।
जसमिन जोर से तड़पी लेकिन रस्सियों की जकड़न को हिला भी न पाई।
भारकर ने ब्लेड वापिस जेब में रख लिया, कुर्सी बाथ टब के और करीब घसीट ली और सामने का निर्लिप्त नज़ारा करता कुर्सी पर बैठा रहा।
“इन्तज़ार और अभी, और अभी, और अभी।” – वो हौले-हौले गनगनाने लगा।
ऐसी ही निर्दयी प्रवृति का आदमी था थानेदार उत्तमराव भारकर उर्फ काला नाग। पहले गोरे की पंखे से टंगी लाश से निर्लिप्त उसके घर की बारीक तलाशी लेता रहा था और अब जसमिन के सिरहाने बैठा तिल-तिल करके उसे मौत के करीब होता देख रहा था।
पांच मिनट गुज़रे।
वो बड़ी मुश्किल से गर्दन नीचे झुका कर, आंखें दाएं-बाएं घुमाकर अपनी कलाईयों को देख पाती थी और जो नज़ारा उसे होता था, वो उसके सारे वजूद पर हाहाकार बरपा देता था।
“इन्तज़ार और अभी ...”
बन्धनमुक्त होने को तड़पती जसमिन हलक से धो-धों की आवाज़ निकालने लगी।
“कुछ कहना चाहती है?” – भारकर मीठे, हमदर्दीभरे स्वर में बोला।
बड़ी मुश्किल से वो गर्दन ऊपर से नीचे की तरफ हिला पाई।
“चिल्लाएगी तो नहीं?”
उसने पुरज़ोर इंकार में सिर हिलाया।
भारकर ने बैठे बैठे हाथ बढ़ाकर उसके मुंह से गोला बना रूमाल खींच लिया। बोल पाने से पहले वो कई बार ज़ोर-ज़ोर से हांफी।
“कह, जो कहना है।” – भारकर बोला।
“बन्द करो! बन्द करो!” – वो आर्तनाद करती बोली – “भगवान के लिए खून बन्द करो। और कुछ होने से पहले खून देखकर ही मेरा हार्टफेल हो जाएगा।”
“नहीं, भई। शेर के जबड़े में बांह देने से हार्टफेल नहीं हुआ तो ज़रा सा खून रिसता देख कर क्या होगा!”
“प्लीज़! प्लीज़! बस करो।”
“वीडियो क्लिप जोड़ीदार के पास है?”
“नहीं। मेरा कोई जोड़ीदार नहीं।”
“अभी तक जो किया, ख़ुद किया?”
“हं-हां।”
“खुद ही हैंडल कर लेती सब?”
“सो-सोचा . . . सोचा तो यही था!”
“पलटवार भारी पड़ गया!”
“हां।”
“अब बताने को तैयार है कि वीडियो क्लिप कहां है?”
“हां। हां। हां।”
“या फिर कोई श्यानपन्ती मगज में है?”
“नहीं। नहीं।”
“बढ़िया। पण मेरे को ऐतबार आने में टाइम लगेगा।”
“क-क्या बोला?”
“तेरी पहली कोशिश झूठ बोल के जान छुड़ाने की हो सकती है - बोले तो होगी ही – इस वास्ते अभी मेरे को वेट करना मांगता है।”
“क्या? अरे, मैं मर जाऊँगी!”
“अभी टाइम है, बहुत टाइम है। बोला न, वो नौबत आने में ढाई-तीन घन्टे लगेंगे।”
“अरे, मेरा हार्टफेल हो जाएगा।”
“नहीं होगा। मज़बूत है दिल तेरा। न होता तो इतना बड़ा पंगा ले पाई होती!”
“अरे, भगवान के लिए दया करो।”
“इन्तज़ार! इन्तज़ार!”
थोड़ा वक्त गुज़रा।
“अरे, रहम खाओ।” – वो बिलखती-सी बोली – “तुम जो हुक्म करोगे, मैं करूँगी।”
“पक्की करके बोलती है?”
“हां। हां।”
“अभी बोलेगी वीडियो क्लिप कहां छुपाई?”
“हां।”
“कोई कॉपी कहीं रखी?”
“नहीं।”
“क्यों?”
“ज़रूरी न समझा।”
“इतनी गारन्टी थी कि धमकी कारगार होगी, मैं मिमियाता लगूंगा।”
“अब क-क्या बोलूं?”
“हां या न में जवाब दे।”
“हं-हां।”
“कहां है वीडियो क्लिप?”
“बताती हूँ। पहले मेरे बन्धन खोलो और खून बन्द करो।”
“पहले बोला”
“अरे, कम से कम खून तो बन्द करो।”
“बाद में। पहला काम पहले।”
“लेकिन ....”
“तू कोई शर्त लगाने की पोज़ीशन में नहीं है। कोई बारगेन अवेलेबल नहीं है तेरे को। ‘तू ये करेगी तो मैं वो करूँगा’ जैसी कोई आप्शन तेरे सामने नहीं है।”
“मैं कोई शर्त नहीं लगा रही। मैं तो सिर्फ जानबख़्शी की इल्तजा कर रही हूँ।”
“होगी, जानबख़्शी होगी, लेकिन वीडियो क्लिप मेरे हाथ में आ जाने के बाद।”
“वादा करते हो?”
“हां।”
“मोबाइल में है।”
“किसके ... किसके मोबाइल में है?”
“मेरे।”
“तू . . . तू वीडियो क्लिप अपने मोबाइल में रखे है?”
“हां।”
“ऐसी नादानी की वजह?”
“नादानी नहीं, स्ट्रेटेजी।”
“कैसी स्ट्रेटेजी!”
“चिराग तले अन्धेरा वाली स्ट्रेटेजी।”
“बोले तो सोचा मैं सब जगह तलाश करूँगा लेकिन ये जगह मेरे को नहीं सूझेगी!”
“हां।”
“साली डेढ़ दीमाक! क्या दूर की सूझी! मेरे को सच में ही तेरे ख़ुद के मोबाइल का ख़याल नहीं आने वाला था। कहां है मोबाइल?”
“मेरे हैण्ड बैग में, और ....”
“हैण्ड बैग कहां है?”
“बाहर ही कहीं होगा! ध्यान नहीं कहां छोड़ा था। तुमने डराया ही ऐसा कि...”
“आता हूँ।”
“अरे, ऐसे न जाओ, प्लीज़! मेरी जान जा रही है। मेरे से तो अब बोला भी नहीं जा रहा। मैं तुम्हारे लौटने से पहले मर जाऊँगी।”
“येड़ी! मैं क्या काले कोस जा रहा हूँ? अभी आता हूँ।”
उसने रूमाल वापिस जसमिन के मुंह में लूंस दिया और बाथरूम से बाहर की ओर बढ़ा।
घों-घों करके विरोध जाताती, अपील लगाती, जसमिन पीछे तड़पती ही रह गई।
पांच मिनट में उसके आई-फोन के साथ भारकर वापिस लौटा।
जसमिन की आंखों में प्रत्याशा की चमक आई।
“मैंने” – भारकर बोला – “सिम और फोन दोनों जगहों से मैमरी इरेज़ कर दी है और इसे मैं तेरे पास यहां रख रहा हूँ।” – उसने फोन बाथ टब के चौड़े रिम पर जसमिन के सिर के करीब रख दिया – “अब तेरे को मेरे को ये यकीन दिलाना है कि वीडियो क्लिप का वजूद ख़त्म है, उसकी कोई कॉपी पीछे कहीं नहीं है।”
जसमिन ने गर्दन दाएं बाएं घुमा कर अपने बन्धनों की तरफ इशारा किया।
“उसमें अभी टाइम लगेगा। मैं इन्तज़ार करता हूँ, तू भी कर।”
तुरन्त निगाह जैसे बुझ गई।
भारकर ने उसके मुंह से रूमाल खींच कर निकाला।
“बोल सकती है?” – उसने पूछा।
“मु-मुश्किल से।”
“फिर चिल्ला तो क्या सकती होगी!”
उसकी गर्दन इंकार में हिली।
“बस थोड़ी देर और मेरे को पक्की करने दे कि तेरा झूठ बोलने का, मेरे को गोली सरकाने का कोई इरादा नहीं।” उसका सिर ज़ोर से इंकार में हिला।
“थोड़ी देर’ बोला न मैं! उसके बाद मैं तेरे बन्धन खोल दूंगा। और तेरे को समझा दूँगा कि कलाईयों से खून का रिसना कैसे रोका जाता है।”
“क-कैसे?”
“जो रस्सियां मैं खोलूं, उन्हीं में से दो को दोनों बाहों पर कोहनी और कलाई के बीच कसके बांधना, फिर खून बहना बन्द हो जाएगा। तेरा फोन तेरे सिरहाने पड़ा है, फिर किसी डॉक्टर को फोन करना या मैडीकल हैल्प के लिए. 102’, या पुलिस के लिए ‘100’ बजाना और उन्हें अपनी हालत बताना, फिर सब ठीक हो जाएगा।”
“म-मैं ये सब कर पाऊंगी? ब-बोल पाऊंगी?”
“सब कर पाएगी। रस्सियों से आज़ाद होते ही तू अपने में ताकत लौटती महसूस करेगी, फिर यकीनन वो सब कर लेगी जो मैं बोला। अब वेट कर। देख, तेरे पर ऐतबार करके अब मैं रूमाल भी तेरे मुंह में नहीं लूंस रहा। तेरी हालत मेरे को बिगड़ती लगेगी तो जो कुछ आगे तूने करना होगा, वो सब तेरे लिए मैं करूँगा। ओके?”
उसने जवाब न दिया, उसकी आंखें धीरे-धीरे मुंदने लगीं।
“काबू में कर अपने आपको।” – वो उसे झिड़कता-सा बोला – “अभी मैंने तेरे से कुछ और पूछना है।”
उसकी पलकें फड़फड़ाईंलेकिन खुल न पाईं, होंठ हिले लेकिन मुंह से मध्दमसी आवाज़ भी न निकली।
“अभी बोल, कॉपी कहां है?”
ख़ामोशी।
“मेरे को मालूम तू साली डेढ़ दीमाक कॉपी रखने से बाज नहीं आने वाली। ये भी मालूम कि तेरी पहली कोशिश इंकार में ही होती पण पहली कोशिश तू कर चुकी। अब बोल, कॉपी कहां है? . . . चुप रहने से काम नहीं चलेगा। बोल, कॉपी कहां है? बोल! बोल! बोल!”
उसने जसमिन को कन्धा पकड़ के झिंझोड़ा।
“मो . . . मो. . .बाइल में।”
उसके मुंह से इतनी क्षीण आवाज़ निकली कि भारकर बड़ी मुश्किल से सुन पाया।
“किसके मोबाइल में?”
“म-मेरे..... मेरे ....”
बहक रही थी साली! मगज पर असर होने लगा था!
या हो चुका था।
“अरे, कॉपी . . . कॉपी ... कॉपी की बोल. . .”
“मो. . . मो. . . मो....”
“क्या मो-मो? बोल!”
फिर ख़ामोशी।
“मेरे बाहर जाने से पहले जब तू हैण्ड बैग का बोली तो कुछ और कहने जा रही थी। अभी बोल, क्या कहने जा रही थी?”
ख़ामोशी।
“तेरे हैण्ड बैग में मैंने एक चाबियों का गुच्छा देखा था जिसमें चार चाबियाँ थी। एक चाबी से साफ पता लग रहा था कि इस फ्लैट में मेन डोर की थी। बैडरूम में एक गोदरेज की अलमारी है, एक और चाबी पर गोदरेज गुदा था इसलिए ज़ाहिर है कि उसकी थी। बैडरूम में बैड के नीचे एक ट्रंक था जिसमें पुराने जमाने का ताला था, तीसरी चाबी जरूर उस ताले की थी क्योंकि चाबी के मुंह में गोल छेद था और ऐसी चाबियां पुराने जमाने के तालों की ही होती थीं। मेरे को फ्लैट में और कहीं ताला लगा नहीं दिखाई दिया था। अभी बोल, चौथी चाबी कैसी है, कहां की है?”
जवाब नदारद।
भारकर के माथे पर बल पड़े, उसने कई क्षण अपलक जसमिन की ओर देखा।
साली किस फिराक में थी! इतनी जल्दी तो होश खाने वाली नहीं जान पड़ती थी। अभी तो जैसे-तैसे जवाब दे रही थी!
वो वापिस कुर्सी पर बैठ गया – यूं, जैसे हस्पताल में शफ़ा पाते मरीज़ के सिरहाने बैठा हो। कई क्षण उसे जसमिन की सूरत का मुआयना किया तो उसे अहसास हुआ कि वो अचेत तो थी लेकिन उसकी सांस अभी ठीक चल रही थी और शाह रग भी छूने पर साफ फड़कती जान पड़ती थी।
वान्दा नहीं।
वो हाथों में चमड़ी की रंगत के लेटेक्स रबड़ के दस्ताने पहने था जिनकी तरफ जसमिन की तवज्जो नहीं गई थी और जिनकी वजह से जसमिन के फ्लैट में कहीं – जसमिन के मोबाइल पर भी नहीं, चाबियों के गुच्छे पर भी नहीं – फिंगर प्रिंट्स छूट जाने का उसे कोई अन्देशा नहीं था। उसके मोबाइल के नोट्स’ में उसने पहले ही दर्ज कर दिया थाः
मैं ख़ुदकुशी कर रही हूँ, मेरी मौत के लिए
किसी को ज़िम्मेदार न ठहराया जाए।
जसमिन गिल
किसी को ज़िम्मेदार न ठहराया जाए।
जसमिन गिल
उसने फिर मरती जसमिन का मुआयना किया।
कलाइयों से खून बदस्तूर रिस रहा था और अब उसका चेहरा कागज की तरह सफेद लगने लगा था। लेकिन बह चुके खून की अपर्याप्त मात्रा बताती थी कि अभी मौत उससे दूर थी।
ये अहसास अब उसे बराबर होने लगा कि अब वो वापिस होश में नहीं आने वाली थी।
उसने उठकर उसके बन्धन खोले और रस्सियां बदस्तूर अपनी जेबों में रख लीं। फिर ग़ौर से उसने पैरों से ऊपर उसकी टांगों का मुआयना किया।
दोनों जगह टखनों से ऊपर रस्सी के बन्धने से बने लाल, वृताकार निशान साफ दिखाई दे रहे थे।
उसने बड़े सब्र से टखनों के ऊपर के उन निशानों को तब तक मसला जब तक कि वो ग़ायब न हो गए।
बढ़िया!
वो वापिस बैडरूम में लौटा और एक बार फिर एक सोफे पर पड़े जसमिन के हैण्ड बैग पर काबिज हुआ। उसने बैग से चाबियों का गुच्छा निकाला और ग़ौर से चौथी, अनचीन्ही चाबी का मुआयना किया।
कहां की थी!
वहां की इतनी बारीक तलाशी के बाद इतनी अब उसे गारन्टी थी कि वो फ्लैट की किसी जगह की नहीं थी।
क्यों थी ऐसी चाबी उसके हैण्ड बैग में जो फ्लैट में कहीं लगती नहीं थी?
बैक के लॉकर की?
हो सकती थी, वैसी लगती भी थी देखने में, लेकिन ये बात उसकी कल्पना से परे थी कि कोई अपने लॉकर की चाबी हमेशा साथ लिए फिरता हो! लॉकर की चाबी हर कोई घर में महफूज़रखता था और बावक्ते ज़रूरत ही घर से निकालता था। लोग-बाग महीनों लॉकर नहीं खोलते थे, तो क्यों भला वो चाबी साथ ले के फिरेंगे!
नहीं, हैण्ड बैग में बाकी रोज़मर्रा के इस्तेमाल की चाबियों के साथ पिरोई गई वो चाबी किसी बैंक के लॉकर की नहीं हो सकती थी।
लेकिन लॉकर!
लॉकर!
उसके ज़ेहन में बिजली सी कौंधी।
अच्छे व्यवसायिक संस्थान अपने कर्मचारियों को लॉकर मुहैया कराते थे – ख़ासतौर से ऐसे संस्थान जिनको अपनी ड्यूटी के दौरान यूनीफार्म पहननी पड़ती थी।
बार, रेस्टोरेंट, होटल, उड्ययन ऐसे ही संस्थान होते थे।
जैसे कि ‘ब्लैक ट्यूलिप’!
जहां कि जसमिन मुलाज़िम थी, स्टीवार्डेस थी, यूनीफार्म पहनती थी।
ज़रूर वो चौथी चाबी ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में उसको अलॉट हुए लॉकर की थी, इसीलिए उसके हैण्ड बैग में थी क्योंकि रोज़ इस्तेमाल में आनी होती थी।
उसके जेहन में बीती बातों की न्यूज़रील सी घूमी। उसे याद आया कि जब उसने उसके मोबाइल की बाबत सवाल किया था, जब जवाब में उसने हैण्ड बैग का ज़िक्र किया था तो वो कुछ और भी कहना चाहती थी लेकिन उसी के टोक देने से वो आगे नहीं बढ़ पाई थी :
“कहां है मोबाइल?”
“हैण्ड बैग में और ....”
देवा! देवा!
जवाब का मिजाज़ ही बताता था कि वो एक और मोबाइल का ज़िक्र करने जा रही थी।
कहां है मोबाइल!
हैण्ड बैग में और फलां जगह!
फलां जगह यानी ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में उसको अलॉट हुआ लॉकर!
अपने उतावलेपन में नाहक उसने उसे टोका था। वो झठ बोलने की या कोई बात छुपाने की स्थिति में कतई नहीं थी। वो तो अतिव्यग्र थी सब सच-सच बयान कर देने को ताकि उसकी जानबख़्शी हो पाती। बाद में जब उसे उससे सवाल करना सूझा कि वो ‘और’ क्या कहना चाहती थी तो वो जवाब देने के हाल में नहीं रही थी- उसके झिड़की जैसे इसरार के बावजूद चाह कर भी जवाब नहीं दे पाई थी।
वो कहां है कॉपी’ के जवाब में जब बामुश्किल ‘मोबाइल . . . मोबाइल’ बोल पाई थी तो उसका इशारा उस मोबाइल की तरफ नहीं था जो वो उसके हैण्ड बैग से बरामद कर चुका था, उसकी मिल्कियत उस दूसरे मोबाइल की तरफ था जो ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में उसके लॉकर में महफूज था।
कॉपी दूसरे फोन में थी।
जो उसकी पहुंच से बाहर था।
देवा!
बाज़ न आई साली कॉपी का इन्तज़ाम किए बिना!
कैसी नादानी हुई थी उससे! कितना भारी पड़ा था उसका उतावलापन उसे! उसने गुच्छे से चौथी चाबी अलग की, गुच्छे को वापिस हैण्ड बैग में डालकर
उसे यथास्थान रखा और बाथरूम में वापिस लौटा।
जसमिन की सूरत पर अब राख मली जान पड़ती थी लेकिन अब साफ ज़ाहिर हो रहा था कि उससे कोई सवाल करने की ख़ातिर उसे वापिस होश में लाने की कोशिश बेकार थी, उसके ख़ुद होश में आने की उम्मीद करना तो बिल्कुल ही बेकार था।
अब उसके सामने जो बड़ा काम था वो ये था कि उसने तसदीक करनी थी कि ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में अन्य कर्मचारियों की तरह उसे भी लॉकर अलॉटिड था और उस लॉकर तक, उसके भीतर तक, पहंच बनाने की उसने जगत करनी थी।
लेकिन पहला काम पहले।
वो वापिस कुर्सी पर बैठ गया और इन्तज़ार करने लगा।
मौत के फरिश्ते का।
जिसने जसमिन की रूह की शिपिंग, फॉरवर्डिंग हैंडल करनी थी।
ऐसा ही चंगेज़ी मिज़ाज़ पाया था कड़क हाकिम ने!
भारकर के जाने वाले को अन्तिम विदा कहते सुबह के साढ़े चार बज गए।
वो सावधानी से फ्लैट से बाहर निकला। जैसा कि फिलहाल अपेक्षित था, बाहर सन्नाटा था।
जसमिन की चाबियां उसके बैग में छोड़ना जरूरी था, वर्ना सवाल होता कि वो फ्लैट में दाखिल क्योंकर हुई, इसलिए फ्लैट का मेन डोर लॉक करने के लिए उसे लॉक बस्टर की टूलकिट का आसरा लेना पड़ा। एक बार ताला खोला चुका होने की वजह से अब उसे इस काम का तजुर्बा हो गया था इसलिए ताला बन्द उसने जल्दी कर लिया।
तभी सीढ़ियाँ चढ़ता एक अधेड़ व्यक्ति वहां पहुंचा। दरवाज़े के सामने भारकर को खड़ा देखकर वो ठिठका।
“क्या मांगता है?” – वो सन्दिग्ध भाव से बोला।
“अरे, देखता नहीं” – भारकर ने नकली झुंझलाहट का इज़हार किया – “कॉलबैल बजाता है।”
“जसमिन के फ्लैट की?”
“हां।”
“मेरे को लगा कि ताला खोलता था!”
“माथा फिरेला है?”
“बोले तो अभी लगा न! जसमिन मालूम कौन?”
“हां। तभी तो मिलने आया?”
“इतनी सुबह!”
“पांच बज रहे हैं, भीड़।”
“अभी टेम है” – कलाई घड़ी पर निगाह डालता वो बोला – “बहुत टेम है।”
“है तो तेरे को क्या वान्दा है?”
“कोई नहीं पण, वो क्या है कि, इधर चोरी-चकारी की वारदात बहुत होने लगी हैं।”
“अच्छा ! तो मैं चोर लगा तेरे को?”
“ये मैं कब बोला?”
“अच्छा! नहीं बोला!” ।
“तो जसमिन मालूम कौन, इस वास्ते घन्टी बजाता है!”
“हां। मैं भी ‘ब्लैक ट्यूलिप’ का मुलाज़िम है। मालिक ने भेजा किसी काम से। अभी कॉल बैल का जवाब नहीं मिल रहा।”
“ड्यूटी के बाद कई बार वो घर नहीं आती। साथ काम करती कलीग के साथ चली जाती है।”
“यही बात होगी...”
तभी उसे अहसास हुआ कि हाथों में दस्ताने वो अभी भी पहने था।
देवा!
ऐसी लापरवाही!
उसने जल्दी से हाथ अपनी जेबों में धंसाए और बोला – “जाता है।”
“हैरानी है मालिक के भेजे तुम इतनी सुबह इधर है!”
“अरे, तुम भी तो यहां हो इतनी सुबह!”
“मैं फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट हूँ। स्टूडियों में कई बार देर रात तक शूटिंग चलती है, इस वास्ते . . .”
“ठीक! ठीक! अभी जाने का।”
व्यस्तता जताता वो उस व्यक्ति की बगल से गुजरा और सीढ़ियाँ उतरने लगा।
टूल किट समेत हाथ जेब में धंसाने में उसे बहुत दिक्कत हो रही थी लेकिन जब तक उस व्यक्ति की निगाह उसका पीछा कर रही थी, वो हाथ बाहर नहीं निकाल सकता था।
वो व्यक्ति माथे पर उलझन के प्रतीक बल डाले तब तक भारकर को जाता देखता रहा जब तक कि वो निगाहों से ओझल न हो गया।
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जसमिन अपने फ्लैट में मरी पड़ी थी, इसका पता नहीं कब तक किसी को पता न चलता अगरचे कि सुबह उसकी मेड के आने का वक्त न हो गया होता।
मेड वफादार थी, रजिस्टर्ड एजेन्सी से थी, पुलिस वेरीफाइड थी इसलिए जसमिन को उसपर पूरा भरोसा था, इतना कि फ्लैट के मेन डोर की एक चाबी स्थाई रूप से मेड के पास थी। वो नौ बजे के करीब वहां आती थी और सोई पड़ी जसमिन को डिस्टर्ब किए बिना अपने रोजमर्रा के कामों में लग जाती थी। उसके रोजमर्रा के काम थे- झाड़-पोंछा, कपड़े धोना, लंच तैयार करके फ्रिज में रखना, तब तक मैडम जाग गई हो तो ब्रेकफास्ट सर्व करना और आखिर में यूं जूठे हुए बर्तन धोकर जाना। दिन का पहला काम झाडू-पोंछा वो इतनी ख़ामोशी से करती थी कि सोई पड़ी मैडम को उसकी आमद की भनक भी नहीं लगती थी।
सुबह की अपनी पहली रूटीन पर अमल करती वो नीमअन्धेरे बैडरूम में पहुंची तो उसने पाया कि मैडम बैडरूम में नहीं थीं जो कि कोई बड़ी बात नहीं थी। कई बार वो ड्यूटी से जल्दी आ जाती थीं तो जल्दी सोती थीं, जल्दी जागती थीं और वॉक पर निकल जाती थी।
लेकिन बैड से तो लगना नहीं था कि रात उस पर कोई सोया था!
ज़रूर रात को लौटी ही नहीं मैडम। ऐसा कभी होता था तो वो मेड को फोन करके ख़बर करती थी लेकिन इस बार शायद भूल गई थीं।
बैडरूम से फारिग होकर उसने बाथरूम में कदम रखा ....।
उसकी दिल हिला देने वाली चीखों से सारा ब्लॉक गूंज गया।
भारकर ओपनिंग टाइम से बहुत पहले ‘ब्लैक ट्यूलिप’ पहुंचा।
मालूम पड़ा कि बाजरिया कोलाबा स्टेशन हाऊस पुलिस, जसमिन के अंजाम की ख़बर वहां पहुंच भी चुकी थी। बार के दो वेटर वहीं सोते थे जिन्हें कोलाबा थाने से पुलिस ने आकर सोने से जगाया था और वो न्यूज़ ब्रेक की थी। फौरन बार का मैनेजर प्रखर भाटिया वहां पहुंचा था और पुलिस से दो-चार हुआ था।
भारकर के पहुंचने से पहले पुलिस वहां आके जा भी चुकी थी।
भारकर को वो ख़बर रास न आई। जसमिन की मेड की रूटीन से नावाकिफ़ उसे जसमिन की मौत की ख़बर इतनी जल्दी आम हो जाने की उम्मीद नहीं थी। उसने तो वहां ख़ामोशी से अपनी पूछताछ करनी थी, पूछताछ पर अमल करने लायक कुछ था तो अमल करना था और ख़ामोशी से वहां से रुख़सत हो जाना था।
फिर उसे बार में मैनेजर की मौजूदगी की ख़बर लगी।
वो मैनेजर से उसके ऑफिस में मिला।
“बुरी हुई आपकी बेचारी स्टीवार्डेस के साथ।” – भारकर भरसक अपने लहजे को सहानुभूति का पुट देता बोला।
“जी हां” – मैनेजर गमगीन लहजे में बोला – बहुत अच्छी लड़की थी। न किसी के लेने में, न देने में। पता नहीं क्यों ख़ुदकुशी कर ली!”
“इश्क में खता खाई किसी लड़की के मिज़ाज़ में ऐसी आत्मघाती तब्दीली एकाएक ही आती है।” – भारकर बोला।
“जी हां। शायद।” – मैनेजर एक क्षण ठिठका, फिर बोला – “गुस्ताख़ी माफ, जनाब, आपका यहां कैसे आना हुआ?”
“इस केस का एकाध ऐंगल है जिसका तार मेरे थाने से भी जुड़ा है इसलिए मेरी भी इसमें दिलचस्पी है।”
“कैसा तार?”
“मालूम पड़ेगा। अभी तफ्तीश जारी है इसलिए... मालूम पड़ेगा।”
“आपको ख़बर कैसे लगी?”
“पुलिस से ऐसी ख़बर कहीं छुपती है!”
“पुलिस की माया पुलिस जाने, आप मेरे लायक सेवा बताइए।”
“हां, वो क्या है कि मेरे को पता लगा है कि यहां स्टाफ को निजी इस्तेमाल के लिए लॉकर प्रोवाइड किए जाते हैं?”
“जी हां, लेकिन सबको नहीं, सिर्फ सुपरवाइज़री स्टाफ को। या फीमेल स्टाफ को, जैसे कि कुछ वेट्रेसिज हैं, क्लर्क हैं।”
“जसमिन गिल को?”
“उसको भी। वो सुपरवाइज़री स्टाफ में आती है...थी। स्टीवार्डेस थी।”
“ये लॉकर इकट्ठे हैं या अलग-अलग जगह हैं?”
“गोदरेज की एक कैबिनेट है जिसमें एक फुट वर्ग के बीस लॉकर हैं।”
“कहां होती है वो कैबिनेट?”
“सुपरवाइजरी स्टाफ के रैस्ट रूम में। मेन हॉल के पिछवाड़े में है।”
“सब अलॉटिड हैं?”
“नहीं। अभी छः खाली है।”
“उसमें जसमिन का भी लॉकर है?”
“जी हां। नम्बर सात। टॉप से सैकण्ड लाइन में तीसरा।”
“आपका भी लॉकर है?”
“जी हां।”
“यानी एक लॉकर की चाबी आपके पास भी है?”
“जी हां।”
“फिर तो वो चाबी आपकी जानी पहचानी आइटम हुई!”
“जी हां, हुई तो सही!”
“अमूमन कहां होती है?”
“यहीं होती है मेरे ऑफिस में। मेज़ के दराज में।”
“देखें जरा।”
मैनेजर ने दराज़ से चाबी निकाल कर भारकर के सामने मेज पर रखी।
भारकर ने उसका मुआयना किया।
चौथी चाबी! वैसी चाबी जैसी उसने जसमिन के चाबियों के गुच्छे से निकाली थी।
वो आन्दोलित होने लगा!
क्या था जसमिन के लॉकर में?
वही, जो वो सोच रहा था।
दूसरा मोबाइल!
जो उसके रात के अभियान की कामयाबी के बावजूद उसकी वाट लगा सकता था!
“सात नम्बर लॉकर की पड़ताल ज़रूरी है।” – प्रत्यक्षतः भारकर बोला।
“ये तो मुमकिन नहीं!” – मैनेजर खेदप्रकाश करता बोला।
“पुलिस इनवेंट्री! एक केस के सिलसिले में।”
“जनाब, तो भी नहीं।”
भारकर ने घूर कर उसे देखा।
“मैं पुलिस से बाहर नहीं हूँ” – मैनेजर जल्दी से बोला – “लेकिन आप वो लॉकर नहीं खोल सकते।”
“अगर में कहँ कि मेरे पास उस लॉकर की चाबी है!”
“तो भी नहीं।”
“वॉट नॉनसेंस! – भारकर भड़का – “जानते हो किससे बात कर रहे हो?”
“सर, आप समझ नहीं रहे हैं।”
“क्या नहीं समझ रहा मैं?”
“वो लॉकर कोलाबा पुलिस सील करके गई है . . .”
भारकर हकबकाया।
“कोर्ट ऑर्डर बिना वो लॉकर नहीं खोला जा सकता।”
भारकर मुंह बाए उसका मुंह देखने लगा।
“तुम मैनेजर हो।” – फिर बोला – “मालिक से मेरी बात कराओ। उसे यहां बुलाओ।”
“जनाब, कोई फायदा नहीं होगा। कोर्ट ऑर्डर की रू में सिंह साहब भी कुछ नहीं कर सकते। आपके दबाव में आकर करेंगे तो कन्टैम्पट ऑफ कोर्ट के मुजरिम ठहराए जाएंगे। और भी कई तरह के चार्ज उन पर आयद होंगे।”
“मैं फिर भी मालिक से बात करना चाहता हूँ।”
“अच्छा !”
“हां। बुलाओ।”
“मैं” – वो उठ खड़ा हुआ – “अभी आता हूँ।”
भारकर को बिना प्रतिवाद का अवसर दिए मैनेजर ऑफिस से बाहर निकल गया।
अपनी उत्कण्ठा छुपाता भारकर पीछे ख़ामोश बैठा रहा।
पांच मिनट में मैनेजर लौटा लेकिन वापिस अपनी कुर्सी पर न बैठा - जैसे यूं मीटिंग के समापन का संकेत दे रहा हो।
“सर” – वो बोला – “सिंह साहब को बुलाए जाने से कोई ऐतराज नहीं लेकिन वो कोर्ट की हुक्मउदली करने के लिए किसी सूरत में तैयार नहीं।”
भारकर ने घूर कर उसे देखा।
“आई एम सॉरी, सर” – मैनेजर बोला – “बट यू नो हाउ इट इज़।”
भारकर एकाएक उठा और बिना मैनेजर पर निगाह डाले लम्बे डग भरता वहां से रुख़सत हो गया।
उसने बार के हाल का मेन डोर खोल कर बाहर कदम रखा तो सीधा झालानी से टकरा गया।
“अरे, भारकर साहब, आप!”– झालानी के मुंह से निकला – “यहां! कहीं कोलाबा वाला केस तो यहां नहीं लाया?”
“ख़बर लग गई?”
“हां, जी, लग तो गई!”
“पुलिस से?”
“अब प्रैस पुलिस की इतनी भी मोहताज नहीं, जनाब!”
“बोले तो?”
“कोई ख़बर वायर सर्विस पर आ जाए तो मीडिया से दूर कैसे रह सकती है? ‘एक्सप्रेस’ से दूर कैसे रह सकती है!”
“यहां कैसे आया?”
“मालूम पड़ा था कि मरने वाली यहां की मुलाज़िम थी, पब्लिक इन्टरेस्ट में उसके बारे में कोई एक्सटेंडिड जानकारी हासिल करने की कोशिश में चला आया।” – वो एक क्षण ठिठका, फिर बोला – “लेकिन आप यहां कैसे?”
“क्यों, भई, मेरे आने पर मनाही है?”
“अरे, आप मालिक हैं, सर? मेरा मतलब है कि यूं अकेले कहीं जाना थानाप्रभारी की शान के खिलाफ है।”
“भले ही वो डबलरोटी खरीदने आया हो!”
“ओह, सॉरी! मेरे को नहीं मालूम था मार्निंग में ब्लैक ट्यूलिप’ में डबलरोटी भी मिलती थी।”
“अब मालूम हो गया न!”
“हो ही गया समझिए। फिर केस तो कोलाबा थाने का है!”
“जो थाने एक डिस्ट्रिक्ट में आते हैं, उनमें सब साझा होता है।”
“आई सी। फिर भी कैसे आए यहां?”
“मालिक से मिलने आया था, मिला नहीं। थाने तलब करूँगा। तू अपना बोल।”
“मेरा तो मैनेजर से मिलना भी चलेगा। भारकर साहब, आप बोले कि एक डिस्ट्रिक्ट के थानों में सब साझा होता है, इस इक्वेशन के लिहाज़ से कोई ख़बर लगी क्योंकि ख़ुदकुशी जसमिन गिल नाम की उस लड़की ने की जो यहां ब्लैक ट्यूलिप’ में स्टीवार्डेस की नौकरी करती थी?”
“कोई तो लगी!”
“मसलन क्या?”
“आशिकी में खता खाई। ब्वायफ्रेंड ने ख़ुदकुशी कर ली तो डिप्रेशन में आ गई। फिर चाहने वाले के वियोग में ख़ुद भी जान दे दी।”
“चाहने वाला कौन?”
“ये भी कोई पूछने की बात है!”
“है न!”
“अनिल गोरे।”
“ओ, माई गॉड! दि प्लॉट थिकंस। पर आपको कैसे पता लगा कि मरने वाली का गोरे से अफेयर था?”
“भई, मैं थानाप्रभारी हूँ, थानाप्रभारी को ज़ीरो नम्बर बहुत कुछ बताते हैं प्रभारी की गुड बुक्स में आने के लिए।”
“ये अफेयर वाली बात किसी मुखबिर के ज़रिए आपको मालूम हुई?”
“हां।”
“एक नौजवान लड़की का एक शादीशुदा, दो बच्चों के बाप से अफेयर!”
“क्या पता लगता है, भई! आज की सोसायटी में जो न हो जाए, थोड़ा है।”
“अच्छा !”
“फिर तलाक की बात भी तो उड़ती-उड़ती कान में पड़ी है!”
“तलाक!”
“सुना है, बीवी को तलाक देने की फिराक में था!”
“आशिकी का कारोबार इतना आगे बढ़ चुका था?”
“सुना है, भई।”
“कैसे सुना? अपनी इस नीयत का ज़िक्र उसने किससे किया होगा? बीवी से तो नहीं किया होगा क्योंकि बीवी को ऐसा कुछ मालूम होता तो वारदात के बाद उसने इस बाबत ज़बान ज़रूर खोली होती!”
“भई, ऐसी बात मर्द सबसे पहले उस माशूक से ही डिसकस करता है जिसकी बाबत कि उसके भविष्य के इरादे गम्भीर होते हैं।”
“डाइवोर्स जसमिन से डिसकस किया?”
“ज़ाहिर है।”
“ज़ाहिर तो नहीं है लेकिन ऐसा है भी तो आपको क्या मालूम! आपके ख़बरी को क्या मालूम! मन ही बात तो कोई अन्तर्यामी ही जान सकता है जो कि न आप हैं, न आपका ख़बरी है, नहीं?”
“मैं फिर बात करूँगा उससे। थाने तलब करूँगा।”
“तो जो शख़्स, जो रोमान्टिक, इश्कियाया हुआ शख़्स एक गैरऔरत के साथ ...”
“माशूक के साथ!”
“. . . भविष्य के इतने रंगीन, इतने ख़ुशनुमा सपने बुन रहा था, उसने ख़ुदकुशी कर ली!”
“भई, प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या?”
“अपनी मौत से पहले आपका मातहत सब-इन्स्पेक्टर अनिल गोरे बतौर करप्ट पुलिसिया आपके राडार पर था और आखिर जब उसे पकड़ मंगवाया जाने वाला था तो उसने अपने आइन्दा अंजाम से घबरा कर ख़ुद को ख़त्म कर देने वाला एक्सट्रीम स्टैप उठाया?”
“हां।”
“तो उस अफेयर की ख़बर आपको अपने मातहत से नहीं, जो कि अफेयर में ईक्वल पार्टनर था, अफेयर के दूसरे ईक्वल पार्टनर जसमिन गिल से लगी!”
“कर्टसी ज़ीरो नम्बर। झालानी, तेरे को मालूम होना चाहिए कि मुखबिरों, खबरियों, भेदियों के बिना पुलिस का महकमा नहीं चलता।”
“ऐसे ही सही! वो ख़बर जैसे भी लगी, आपको लगी?”
“हां।”
“फिर भी गोरे की खुदकुशी के बाद आपने जसमिन को स्क्रीन करने की कोशिश न की?”
साला डेढ़ दीमाक! पीछा ही नहीं छोड़ता! इम्तहान लेता है मेरे सब्र का! बाज ही नहीं आता उंगली करने से!
“भई, फौरन तो न की” – प्रत्यक्षतः भारकर बोला – “क्योंकि गोरे की मौत सुईसाइड का ओपन एण्ड शट केस था, पर उस लड़की से पूछताछ मेरे एजेंडा में बराबर थी। फिर आज कल में मैं उसकी ख़बर लेने ही वाला था कि ....चाहने वाले से दूसरी दुनिया में जा मिली।”
“बाथटब में लेट कर कलाईयां काट लीं!”
“इश्कियाई हुई लड़कियों में, इश्क में ख़ता खाई हुई लड़कियों में, ये बड़ा पॉपुलर, बड़ा मॉडर्न तरीका है जान देने का।”
“यही काम आराम से, इत्मीनान से बैडरूम में लेट कर रिलैक्स करती करती तो चालान हो जाता!”
“नफासतपसन्द होगी – वो क्या कहते हैं फिरंगी ज़ुबान में, मेटीकुलस होगी - बैडशीट्स को खून से तर-ब-तर नहीं पीछे छोड़ना चाहती होगी!”
“भारकर साहब, हैरानी है कि जसमिन के बारे में, उसकी ज़ाती ज़िन्दगी के बारे में आपको इतना कुछ मालूम था लेकिन किसी दूसरे को इस बाबत, इस अफेयर की बाबत भनक तक न लगी!’
“थाना ऐसे ही नहीं चलता झालानी, आंख, कान हमेशा खुले रखने से चलता है। फिर कौन कहता है कि भनक न लगी! यहां ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में आम चर्चा थी कि मालिक की शह पर वो लड़की मेरे एसआई अनिल गोरे को भाव देती थी।”
“सर, भाव देना एक कारोबारी इक्वेशन होती है, किसी पर दिल-ओ-जान न्योछावर करना एक पाक जज़्बे के तहत होता है। दोनों बातों में वही फर्क है जो किसी को इरादतन अपने आप पर आशिक करवाने में या टूट कर उस पर निसार हो जाने में होता है।”
“भई, जिस स्कूल में तूने ये फैंसी बातें पढ़ा है, मैंने उसकी शक्ल नहीं देखी।”
“खुदकुशी में कोई फाउल प्ले?”
“कैसे होगा! फ्लैट लॉक्ड था।”
“जैसे गोरे की खुदकुशी के वक्त उसका फ्लैट लॉक्ड था?”
“क्या कहना चाहता है, भई?”
“सर, मोटे तौर पर एक घटना ने दूसरी घटना को दोहराया, ये महज़ इत्तफाक है आपकी निगाह में?”
“और क्या होगा! ये न भूलो कि छोटा-मोटा शक-शुबह प्रत्यक्ष, आकट्य सबूतों को ओवरशैडो नहीं कर सका। कोलाबा वाली वारदात के वक्त फ्लैट भीतर से लॉक्ड था जिसे मेड ने आकर अपनी चाबी कर खोला था . . .”
“जैसे धोबी तलाव वाली वारदात के वक्त पुलिस ने आकर मेन डोर तोड़ कर लॉक्ड फ्लैट में पहुंच बनाई थी?”
“हां। फिर उसकी डाइंग डिक्लेयरेशन भी है।”
“वो भी है?”
“बरोबर।
“तहरीरी? उसके अपने हैण्डराइटिंग में? दस्तख़तशुदा?”
“इतनी ज़हमत उस मामूली काम के लिए उसने नहीं की थी।”
“तो क्या किया था? कैसे डाईंग डिक्लेयरेशन वजूद में आई?”
“मोबाइल इस्तेमाल किया। अपने मोबाइल के नोट्स’ में दर्ज करके गई कि वो ख़ुदकुशी कर रही थी, उसकी मौत के लिए किसी को ज़िम्मेदार न ठहराया जाए।”
“कमाल है!”
“क्या कमाल है? मर्जी से खुदकुशी करने वाले पीछे ऐसा नोट छोड़ते ही हैं।”
“एसआई अनिल गोरे ने तो न छोड़ा!”
“क्योंकि उसने एकाएक ख़ुदकुशी की। अपने आइन्दा अंजाम से घबराकर एकाएक ख़ुदकुशी की। इसलिए ज़ाहिर है कि वो वो काम करना भूल गया। इस लड़की जसमिन ने तो गोरे की मौत के बाद डिप्रेशन की वजह से ख़ुदकुशी की।”
“शत के एक बजे ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद घर आकर?”
“ज़ाहिर है। अब ये न पूछना कि यहीच टाइम उसने क्यों चुना? वो कोई भी टाइम चुनती, तेरा खुराफाती दिमाग उस पर सवालिया निशान लगा देता।”
“हम्म। यानी फाउल प्ले की कोई गुंजायश नहीं?”
“तू बोल, फाउल प्ले कहां से होगा, कैसे होगा!”
“कोलाबा पुलिस की जानकारी में एक गवाह आया है जो कल रात, बल्कि आज सुबह भोर होने से पहले नाइट शिफ्ट में बतौर जूनियर आर्टिस्ट फिल्म की शूटिंग करके लौट रहा था जबकि उसने जसमिन के फ्लैट के बन्द दरवाज़े पर एक उम्रदराज़, भारी-भरकम आदमी को खड़े देखा था जो उसे लगा था कि फ्लैट का ताला खोलने की कोशिश कर रहा था।”
“नॉनसेंस! कॉलबैल बजा रहा था।”
“जी!”
“मेरा मतलब है कॉलबैल बजा रहा होगा, जिसका कि उसे जवाब नहीं मिल सकता था क्योंकि फ्लैट की मालकिन भीतर मरी पड़ी थी।”
“ठीक!” – झालानी एक क्षण ठिठका फिर बोला – “गवाह कहता है कि वो शख़्स हाथों में स्किन कलर के दस्ताने पहने था!”
भारकर का दिल ज़ोर से उछला।
“नॉनसेंस!” – प्रत्यक्षतः वो बोला – “ज़रूर गवाह को विज़न चैक कराने की ज़रूरत है।”
“उसे साफ ऐसा लगा था।”
“लगने और होने में ज़मीन आसमान का फर्क होता है, झालानी।”
“गवाह की उससे बात हुई थी, उसने उस शख्स के इतनी सुबह-सवेरे पहुंचा होने को शक की निगाह से देखा था तो जवाब मिला था कि वो ‘ब्लैक ट्यूलिप’ का मुलाज़िम था और मालिक ने उसे किसी काम से जसमिन के यहां भेजा था। तब गवाह ने सुझाया था कि कई बार वो रात को घर नहीं आती थी और छुट्टी के बाद किसी कलीग के साथ उसके घर चली जाती थी और इसीलिए घन्टी का जवाब नहीं मिल रहा था।”
“ठीक तो सुझाया था!”
“इस बात की ‘ब्लैक ट्यूलिप’ के प्रोप्राइटर फतह सिंह से तसदीक हो सकती है। अगर वो शख्स उसका भेजा आदमी था तो प्रोप्राइटर ज़रूर उसे जानता होगा ...”
भारकर का दिल फिर उछला।
“. . . इसी सिलसिले में मैं प्रोप्राइटर फतह सिंह से मिलने आया था जबकि आप से टकरा गया- आप जा रहे थे तो मैं आ रहा था. . .”
“मिलना। कोई माकूल नतीजा निकले तो मेरे को भी ख़बर करना। अभी जाने दे।”
झालानी को पीछे खड़ा छोड़कर अत्यन्त चिन्तित भारकर वहां से रुखसत हो गया।
शाम को भारकर फिर लेमिंगटन रोड पर था।
इस बार उसका मरकज़ ‘ब्लैक ट्यूलिप’ नहीं, इमारत के टॉप फ्लोर पर चलता खुफिया ब्रॉथल था जिसके धन्धे पर धमकी की तलवार लटकाने का वही मुनासिब वक्त था।
‘ब्लैक ट्यूलिप’ में जसमिन मरहूम का लॉकर कोर्ट के हुक्म से सील हुआ था, उस हुक्म को रिवर्स कराने के लिए पुलिस को कोर्ट में अर्जी दाखिल करनी पड़नी थी जो कि फौरन हो जाने वाला काम नहीं था। लिहाज़ा उसके पास अपने मंसूबे पर अमल करने के लिए काफी टाइम था।
टॉप फ्लोर पर वो बेवर्दी पहुंचा और अकेला पहुंचा। पहले वहां उसे कस्टमर ही समझा गया लेकिन जल्दी ही वहां उसको पहचानने वाले भी निकल आए।
ऐसा एक आदमी दौड़ा हुआ उसके करीब पहुंचा, उसने अदब से भारकर का अभिवादन था।
“यहां का इंचार्ज कौन है?” – भारकर रौब से बोला – “जो कोई भी वो है, उसे बुला।”
“बाप, हुक्म बोलो न?”
“यही हक्म है। बुला।”
“अभी।”
“किसको बुलाएगा? कौन है इंचार्ज?”
“भौंसले साहब। दामोदारराव भौंसले साहब।”
“क्या हैं भौंसले साहब यहां?”
“बाप, खास हैं। वही सब इन्तजाम करते हैं। सब कन्ट्रोल करते हैं।”
“बुला।”
“आप बैठिए, मैं ...”
“बहरा है?” – भारकर का लहजा खूखार हुआ – “सुनाई में लोचा?”
“सॉरी बोलता है, बाप!” – वो बौखलाया – “पण मैं साथ ले के चलता है न!”
“चल!”
भारकर उसके साथ हो लिया।
एक लम्बे गलियारे में भारकर को चलाता वो आदमी उसे सिरे के बन्द दरवाज़े पर लाया। उसने बन्द दरवाज़े पर दस्तक दी, अन्दर से हुक्म होने पर उसने अदब से भारकर के लिए दरवाज़ा खोला। भारकर भीतर दाखिल हुआ तो उसने उसकी पीठ पीछे दरवाज़ा बन्द कर दिया।
भारकर के ख़ुद को इन्टीरियर डेकोरेटर द्वारा सुसज्जित ऑफिस में पाया। सामने ऑफिस टेबल के पीछे एग्जीक्युटिव चेयर पर बैठे व्यक्ति को वो बाखूबी पहचानता था फिर भी जानबूझ कर अंजान बनता रूक्षस्वर में बोला- “भौंसले?”
“अरे, भारकर साहब!” – वो आदमी उछल कर खड़ा हुआ और मेज़ का घेरा काट कर हाथ फैलाए भारकर की ओर बढ़ता बोला – “वैलकम! वैलकम! आइए! आइए।”
भारकर ने उस पर अहसान करते हुए मिलाने के लिए उसका हाथ थामा और छोड़ा।
“बिराजिए।”
उसके अनुरोध पर भारकर एक विज़िटर्स चेयर पर ढेर हुआ।
भौंसले वापिस अपनी कुर्सी पर जाकर बैठा।
“आपने क्यों ज़हमत की?” – वो खींसे निपोरता बोला – “मेरे को बुलाया होता?”
“जो काम मैं करने आया हूँ” – भारकर पूर्ववत् रुक्ष स्वर में बोला – “मेरे खुद के आए बिना होने वाला नहीं था।”
“ऐसा क्या काम है, जनाब?”
“रेड आर्गेनाइज़ करने का काम।”
“क्या!”
“ये गैरकानूनी रंडीखाना है। यहां रेड का हुक्म है।”
भौंसले जैसे आसमान से गिरा।
“नीचे ट्रकलोड पुलिस वाले मौजूद हैं। इमारत को चारों ओर से घेरा जा चुका है। कोई यहां से बचके नहीं जा पाएगा।”
“ल-लेकिन . . . ये . . . नामुमकिन है।”
“क्यों भला?”
“हमें ... हमें प्रोटेक्शन हासिल है।”
“किस की?”
“आपको मालूम है किस की!”
“जवाब दो।”
“अमर नायक की।”
“कोई मवाली, भले ही टॉप का हो, सरकारी हुक्म को खारिज नहीं कर सकता।”
“साहब, ऐसी ज़ुबान तो हमारे साथ आज तक कोई नहीं बोला!”
भारकर ख़ामोश रहा।
“क्या खता हो गई हमारे से?”
भाकर फिर भी ख़ामोश रहा।
“हम तो हर काम चौकस करते हैं, हाकिमों की मर्जी के मुताबिक करते हैं। सबकी खातिर करते हैं। डीसीपी तक को रेगुलर गुलदस्ता भेजते हैं। फिर रेड...”
“रुक सकती है।”
भौंसले सकपकाया। उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे कोई बात समझ में आने से रह गई हो।
“मैंने ठीक सुना?” – वो बोला।
“हां, ठीक सुना। रेड रुक सकती है।”
“अरे, जनाब, तो रुकवाइए न, और सेवा बोलिए। जो हुक्म होगा, बजाएंगे, जो डिमांड होगी, पूरी करेंगे!”
“हुक्म मामूली है। डिमांड मामूली है।”
“न हो मामूली। भौंसले है न! आप बस, हुक्म कीजिए।”
“तो सुनो हुक्म। ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में सुपरवाइज़री स्टाफ के लिए लॉकर्स का इन्तज़ाम है, बैंक लॉकर्स जैसा लेकिन साइज़ में बड़े लॉकर्स का। मालूम होगा!”
“आप अपनी बात कहिए।”
“उन लॉकर्स में से एक लॉकर कोर्ट के हुक्म पर पुलिस ने आज सुबह सील किया है .....”
“जसमिन गिल का लॉकर? नीचे की स्टीवार्डेस जिसने पिछली रात ख़ुदकुशी कर ली!”
“वही। वाकिफ थे उससे?”
“पर्सनल वाकफियत कोई नहीं थी, खाली सूरत से वाकिफ था। आते-जाते दिखाई देती थी, इसलिए पहचानता था।”
“हूँ।”
“जसमिन की क्या बात है!”
“लॉकर की बात है।”
“क्या?”
“इन्वेन्ट्री लेना चाहता हूँ। देखना चाहता हूँ लॉकर में क्या है?”
“वजह?”
भारकर ख़ामोश रहा।
“जहां तक मेरे को इन बातों की समझ है, पुलिस ऐसी इन्वेन्ट्री लेती ही है, लेकिन ये तो कोलाबा पुलिस का काम होगा जिनकी ज्यूरिस्डिक्शन में वो वारदात हुई।”
“पुलिस का काम है। मुम्बई पुलिस का काम है।”
“चलिए, ऐसे ही सही। लेकिन उस पुलिस रूटीन से ताल्लुक रखते काम का यहां रेड से क्या रिश्ता?”
“मैं . . . मैं देखना चाहता हूँ उस लॉकर में क्या है?”
“आप . . . आप देखना चाहते हैं?”
“हां।”
“पुलिस नहीं?”
“मैं पुलिस हूँ।”
“तो फिर . . . बोले तो आप पुलिस हैं बराबर, फिर प्रॉब्लम क्या है? सीलिंग का हुक्म कोर्ट का है लेकिन सील्ड लॉकर पर कब्ज़ा तो पुलिस का ही है! जब सील हटे तो देखिएगा भीतर क्या है?”
“अभी देखना चाहता हूँ।”
“आप . . . पहेलियाँ बुझा रहे हैं।” भारकर ख़ामोश रहा।
“वो लॉकर ब्लैक ट्यूलिप में है। ‘ब्लैक ट्यूलिप’ का मालिक सरदार फतह सिंह है। अगर जाना ही था तो वहां जाना था, यहां क्यों... हमारे पर नज़रेइनायत किसलिए?”
“सरदार नहीं सुनता।”
“जी!”
“कायदे कानून का गुलाम बताता है अपने आपको। कहता है कोर्ट के हुक्म से, पुलिस से बाहर नहीं जा सकता। सैट तो मैं उसे भी कर सकता हूँ लेकिन टाइम लगेगा क्योंकि उसकी कोई इमीजियेट पोल, इमीजियेट कमजोरी या इमीजियेट मजबूरी मेरी पकड़ में नहीं है। जब तक पकड़ में आएगी तब तक लॉकर वैसे ही खुल जाएगा जबकि मेरे को लॉकर में हर हाल में अभी झांकना है। भौंसले, मेरा ‘ब्लैक ट्यूलिप’ पर ज़ोर नहीं है लेकिन इस खुफिया ब्रॉथल पर ज़ोर है। मैं चाहता हूँ कि तुम सरदार को मजबूर करो कि वो मेरे से सहयोग करे।”
“मैं करूं?”
“हां।”
“फतह सिंह क्यों सुनेगा मेरी?”
“तुम सुनाओगे तो सुनेगा। तुम समझाओगे तो समझेगा। मेरे को हिन्ट मिला है- जिसकी वजह से कि मैं यहां हूँ-वो इस ब्रॉथल में पार्टनर है और तुम ‘ब्लैक ट्यूलिप’ में पार्टनर हो। अब बोलो, जब तुम एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हुए तो वो
तुम्हारी सुनेगा या नहीं? तुम्हारे मुलाहज़े में मेरे से कोऑपरेट करेगा या नहीं!”
“कैसे करेगा? कोर्ट की सील का क्या होगा?”
“सील पुलिस ने लगाई है। कोर्ट सिर्फ हुक्म करता है, हुक्म की तामील करना पुलिस का काम है।”
“लेकिन सील ....”
“जैसे पहली बार लगी, वैसे दोबारा लग सकती है।”
“हम्म!”
कई क्षण ख़ामोशी रही।
“रेड सच में ऑन है?” — फिर भौंसले संजीदगी से बोला।
“पीछे एक खिड़की दिखाई दे रही है जिस पर पर्दा पड़ा है।” –भारकर बोला – “कहां खुलती है?”
“फ्रंट में।”
“उसे खोलो और बाहर झांको।”
“ज़रूरत नहीं। मुझे आपकी बात पर ऐतबार है। आपने रेड की कहानी मेरे पर दबाव बनाने के लिए की। आपका काम हो जाएगा तो रेड की ज़रूरत तो रहेगी नहीं! जब आप इन्तज़ाम के साथ आए हैं तो उसका क्या होगा!”
“गलत टिप मिली। ऐक्शन के बाद पता चला कि वहां ऐसा कोई कारोबार नहीं चलता था। रेड फेल हो गई।”
“ओह! फिर तो शक्रिया लेकिन ...”
“अब क्या है?”
“सवाल होगा कि टॉप फ्लोर पर . . . जो था, वो नहीं था तो क्या था?”
“तुम बोलो।”
“मैं बोलं?”
“और कौन बोले! ठीया तुम्हारा है, सवाल तुम से होगा तो और कौन बोले?”
भौंसले ने बोला।
“बढ़िया!” – भारकर बोला।
“अब कोई ख़ास सेवा?”
“वही है जो मैं कह चुका। ख़ास भी और आम भी।”
“आप गारन्टी करके हैं कि सील जैसे पहले लगी हुई थी, वैसे फिर लग जाएगी?”
“करता हूँ।”
“देखने पर किसी को कोई फर्क नहीं जान पड़ेगा!”
“नहीं जान पड़ेगा।”
“जान पड़ा तो सील के साथ हुई टेम्परिंग की ज़िम्मेदारी फतह सिंह पर आएगी?”
“नहीं आएगी। सील हूबहू पहले जैसी होगी।”
“लॉकर खुलने पर आप ख़ाली इन्वेन्ट्री लेंगे, लॉकर में कोई घट-बढ़ आपकी वजह से नहीं होगी?”
“ये मुमकिन नहीं।”
“मतलब?”
“ऐसी घट-बढ़ हो सकती है।”
“फिर तो प्रॉब्लम होगी!”
“क्यों होगी, भई? जब अभी किसी को मालूम ही नहीं कि भीतर क्या है तो क्यों होगी? किसके पास लिस्ट है भीतर के सामान की? फतहसिंह के पासा! किसी और के पास! या जसमिन के पास थी?”
भौंसले ख़ामोश रहा।
“पुलिस की जानकारी में वो लॉकर कोर्ट ऑर्डर के बाद पहली बार खुलेगा। फिर कोई लिस्ट होगी तो उस सामान की होगी जो तब लॉकर के भीतर पाया जाएगा और वही लिस्ट फाइनल होगी। अव्वल तो होगी नहीं लेकिन मेरे किये कोई घट बढ़ होगी तो कैसे किसी के नोटिस में आएगी?”
“लॉक टेम्पर्ड पाया गया तो सील हटने के बाद वो बात भी पुलिस की पारखी निगाह से नहीं छुपी रह पाएगी।”
“ऐसा कुछ नहीं होगा। लॉक के साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं होगी।”
“वो कैसे?”
“देखना।”
फिर ख़ामोशी छा गई।
भारकर उतावला दिखाई देने लगा।
एकाएक भौंसले उठ खड़ा हुआ।
“आइए!” – वो निर्णायक भाव से बोला।
भारकर ने मन ही मन चैन की सांस ली।
□□□
बहरामजी कान्ट्रैक्टर कभी ‘भाई’ होता था और स्मगलर और कालाबाजरिया के तौर पर जाना जाता था लेकिन अब हाजी मस्तान, अरुण गावली की तरह भाईगिरी छोड़ कर नेतागिरी में आ गया था। राजनीति में उसकी वर्तमान स्थिति ये थी कि वो मराठा मंच नाम की सियासी पार्टी का सदर था, विधान सभा में मराठा मंच पार्टी के चालीस एमएलए थे, केन्द्र में तीन एमपी थे और वो निकट भविष्य में चीफ मिनिस्टर नहीं तो मिनिस्टर बनने के सपने बराबर देखता था।
कल का ‘भाई’, गैंगस्टर, नोन समगलर और कालाबाजरिया मिनिस्टर! चीफ मिनिस्टर!
लोग बाग आम कहते पाए जाते थे कि ऐसा हो जाता तो इससे ज़्यादा देश का और क्या दुर्भाग्य हो सकता था! अवसाद से गर्दन हिलाते आम कहते थे कि नेतागिरी लुच्चों की आखिरी पनाह बन गई थी। ‘पोलिटिक्स इज़ दि लास्ट रिज़ॉर्ट आफ स्काउन्ड्रल्स!’
वर्तमान में नेताजी बहरामजी कान्ट्रैक्टर का शाहाना आवास सी-रॉक एस्टेट, कोलाबा प्वॉयन्ट, कोलाबा था हाल ही में जहां की एक बड़ी पार्टी में पार्टी ख़त्म होने के, मेहमानों के रुखसत हो जाने के बाद बहरामजी के बैडरूम में बम विस्फोट हुआ था जिसमें उसकी जान जाते-जाते बची थी। तदुपरान्त अभी भी वो पूरी तरह से स्वस्थ नहीं था इसलिए वो एस्टेट से बाहर कम ही कदम रखता था और उसका लोगों से मिलना जुलना भी बहुत सीमित हो गया था। बहरामजी से मुलाकात के तमन्नाई बनकर एस्टेट में आने वाले मुलाकातियों को बहरामजी की तरफ से या तो उसका भतीजा जहांगीर कान्ट्रैक्ट सम्भालता था या बहरामजी का चचेरा भाई सोलोमन कान्ट्रैक्टर सम्भालता था जो कि एस्टेट का सिक्योरिटी चीफ था।
बहुत मुश्किल से भारकर अपनी पहुंच भतीजे जहांगीर तक ही बना सका। बहरामजी ने उसकी मुलाकाम का जवाब उसे मज़बूत इंकार की सूरत में मिला।
मुलाकात नहीं हो सकती थी। हालिया हादसे से उबरे नेताजी अभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुए थे इसलिए मुलाकात नहीं हो सकती थी।
लेकिन वो पुलिस इन्स्पेक्टर था, एक थाने का थानेदार था!
तो भी नहीं।
बहुत इसरार के बाद उसे सोलोमन कान्ट्रैक्टर से मिलने दिया गया लेकिन उसका भी जवाब वही था।
नेताजी से मुलाकात नहीं हो सकती थी, एक महीने बाद फिर कोशिश करें।
मुम्बई पुलिस की इतनी नाकद्री पर भारकर बहुत भुनभुनाया, बहुत तिलमिलाया लेकिन मजबूर था।
फिर उसे बेजान मोरावाला का ख़याल आया।
आमतौर पर यही सुनने में आता था कि भाईगिरी से नेतागिरी में कदम रखने के बाद हाजी मस्तान और अरुण गावली की तरह बहरामजी ने अपने तमाम काले धन्धे छोड़ दिए थे लेकिन अन्डरवर्ल्ड के ज़ीरो नम्बर बताते थे कि ऐसा बिल्कुल नहीं था। बहरामजी के नॉरकॉटिक्स, गोल्ड-सिल्वर, घड़ियां, हाई-एण्ड मोबाइल्स समगलिंग जैसे तमाम धन्धे इस फर्क के साथ जारी थे कि अब वो धन्धे मार्फत बेजान मोरावाला चलते थे जो कि बहरामजी का विश्वासपात्र था, ख़ासुलख़ास था।
यानी मोरावाला बहरामजी का फ्रन्ट था जिसकी ओट से बहरामजी के तमाम काले धन्धे बदस्तूर जारी थे, बहरामजी की मजबूरी के तहत जारी थे।
मराठा मंच पार्टी ने महाराष्ट्र से बाहर पांव पसारने की कोशिश की थी, हालिया गोवा इलैक्शंस में बेतहाशा पैसा फूंका था लेकिन बहरामजी की सियासी पार्टी मराठा मंच उस इलैक्शन में एक भी सीट नहीं निकाल पाई थी। नतीजतन गम्भीर फाइनेंशल सैट बैक के हवाले बहरामजी ने अपने काले धन्धे बेजान मोरावाला को फ्रंट बनाकर चलाने शुरू कर दिए थे। मोरावाला अपने बॉस का इतना वफादार था कि कैसी भी कोई ऊंच नीच हो जाती, वो जान दे देता लेकिन बहरामजी कान्ट्रैक्टर का नाम बीच में न आने देता।
उस बेमिसाल वफादारी की ही वजह से उसका दर्जा अब बहरामजी से बस उन्नीस ही था।
मोरावाला का पता हासिल करने में उसे ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई थी। कोलाबा से वो दादर वैस्ट के लिए रवाना हुआ जहां कि मोरावाला का आवास था।
पिछली शाम की लेमिंगटन रोड की रेड का नतीजा सुखद निकला था। फतह सिंह बहुत बिदका था, बहुत पसरा था लेकिन आखिर भौंसले ने उसे भारकर से सहयोग करने के लिए मना ही लिया था।
लॉकर से जो दूसरा फोन बरामद हुआ था, गोरे वाली वीडियो क्लिप उसमें भी बराबर थी जिसको नष्ट तो उसने किया ही था, फोन को भी पूरी तरह से कचरा करके समुद्र में बहा दिया था।
ये ख़याल करके भी उसका दिल हिलता था कि क्या होता अगरचे कि वो उस दूसरे फोन को काबू में न कर पाता या दूसरे फोन की उसे ख़बर ही न लगती।
अन्त भला सो भला।।
भारकर को त्योरी चढ़ाए मोरावाला ने अपने आवास के एक ऑफिसनुमा कमरे में रिसीव किया।
मोरावाला कोई पैंतालीस वर्ष का, गंजेपन की ओर अग्रसर, क्लीनशेव्ड, लम्बा-तडंगा, मजबूत काठी वाला, सख़्तमिज़ाज़ आदमी था जिसकी त्योरी आदतन हमेशा चढ़ी रहती थी।
भारकर वर्दी में था और उम्मीद कर रहा था कि मोरावाला वर्दी का, वर्दी के तीन सितारों का रौब खाता लेकिन मोरावाला की सूरत में ऐसा कुछ न लगा।
“यस!” – मोरावाला भावहीन स्वर में बोला।
भारकर ने आह-सी भरी। कोई ‘हल्लो’ नहीं, कोई कर्टसी नहीं, खाली ‘यस’।
उसने उसे रेमंड परेरा के बारे में बताया, उसकी फेमस, एक्सक्लूसिव टोपाज़ क्लब के बारे में बताया।
“डायग्राम फॉलो किया मैं।” – मोरावाला बोला – “अब इस को कलर करने का। बोलने का कि मांगता क्या है ताकि इस मीटिंग का मकसद मेरे मगज में पड़े।”
“मांगता तो” – भारकर अपनी आदत के खिलाफ विनयशील स्वर में बोला – “बिग बॉस बहरामजी से एक छोटी सी मीटिंग का चांस है।”
“बट दैट इज़ इमपॉसिबल।”
“फिर तो . . . फिर तो ....”
वो ख़ामोश हो गया। अब उसके चेहरे पर से निराशा छुपाए नहीं छुप रही थी।
“जो मांगता है, मेरे को बोलने का। बिग बॉस की जगह मोरावाला तक अप्रोच बनाया, ये भी बड़ा काम किया। अभी मैं है न इधर तुम्हेरे सामने! अभी टेम खोटी किए बिना बोलने का कि क्या मांगता है!”
भारकर के चेहरे पर अनिश्चय के भाव आए।
“स्पीक फियरलैसली। अभी डायग्राम बनाया, उसको कलर किया तो कोई प्रॉब्लम? प्रॉब्लम बोलने का। अगर वो बिग बॉस के नोटिस में लाने जितना इम्पॉर्टेट होगा तो लाएगा न नोटिस में!”
“ऐसा?” – भारकर आशापूर्ण स्वर में बोला।
“बरोबर! अभी डायग्राम बनाया, कलर किया, अभी उसको फ्रेम भी करने का ताकि इम्पॉर्टेस मेरे मगज में आए। कम ऑन! स्पीक!”
भारकर ने खंखार कर गला साफ़ किया, फिर बोला – “वो क्या है कि विनायक घटके कर के एक भीड़ से मेरा कोई लफड़ा है. . .”
“ख़ास उससे या उसकी वजह से?”
“पहले उसकी वजह से, फिर उससे।”
“पर्सनल या ऑफिशियल?”
भारकर हिचकिचाया।
“ओ, कम ऑन! डोंट वेस्ट टाइम। टाइम इज़ मनी, यू नो।”
“पर्सनल। पण मैं जब पुलिस में है, एसएचओ है तो पर्सनल भी टोटल पर्सनल नहीं रह पाता न!”
“बोले तो किसी से खुन्नस? पर्सनल एनमिटी?”
“हां।”
“घटके से?”
“नहीं, किसी दूसरे से। घटके से लफड़ा बाद में बना उस दूसरे भीड़ की वजह से।”
“वो क्या कहता है?’
“वो अब इस दुनिया में नहीं है।”
“इसलिए फोकस घटके पर?”
“हां।”
“आगे?”
“ये भीड़ घटके – विनायक घटके – रेमंड परेरा का ख़ास है इस वास्ते भाव खाता है, परेरा के दम पर फैलता-पसरता है।”
“अपनी खुद की औकात में कोई इम्पॉर्टेट कर के भीड़ ये... घटके?”
“नहीं, मामूली टपोरी है।”
“क्या बात करता है, इन्स्पेक्टर, तुम! एक थ्री स्टार इन्स्पेक्टर से, स्टेशन हाउस ऑफिसर से एक मामूली टपोरी नहीं सम्भलता!”
“वो सम्भलता है, उसका बॉस परेरा नहीं सम्भलता जो कि अपने ख़ास भीड़ को प्रोटेक्ट करता है। परेरा को कराची वाले ‘भाई’ की शह है, इस वास्ते घटके परेरा की सरपरस्ती का सुख पाता है और किसी का ख़ौफ नहीं खाता। मेरा भी नहीं।”
“कमाल है? बोले तो लफड़ा क्या है?”
“मैं कोई गलत काम किया, बोले तो आउट ऑफ दि वे काम किया ...”
“वॉट आउट ऑफ दि वे काम? कम क्लीन।”
“इललीगली एक्ट किया। मेजर गैरकानूनी हरकत की।”
“बोले तो जिस पर कानून की रखवाली की ज़िम्मेदारी, वही गैरकानूनी काम किया!”
“अब . . . है तो ऐसा ही!”
“मेजर वायलेशन ऑर माइनर?”
“मेजर?”
“क्या किया? रेप! मर्डर! रॉबरी!”
भारकर ख़ामोश रहा, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“बोलना नहीं मांगता! वान्दा नहीं। पण प्रॉब्लम किधर है? साले को ऑफ करने का। या करवाने का।”
“काम इतना आसान नहीं।”
“क्यों?”
“उसके पास मेरी मेजर, गैरकानूनी हरकत का सबूत है।”
“जो वो तुम्हेरे खिलाफ यूज़ करना मांगता है! उसके दम पर तुम्हेरे को ब्लैकमेल करना मांगता है?”
“नहीं।”
“नहीं! तो क्या लफड़ा करता है वो? बोलते काहे नहीं?”
“मैं फरियाद करता है कि मेरे को नंगा न करो। बात ये है कि एक केस के सिलसिले में मेरे को घटके की गवाही मांगता है। मेरे पास घटके के खिलाफ एक मेजर क्राइम का सबूत है जिसके हवाले से मैं उसको गवाही देने के लिए मजबूर कर सकता हूँ।”
“करने का। वान्दा किधर है?”
“वो गवाही उसके लिए भी प्रॉब्लम बन सकती है...”
“तो ऐसा बोलने का न!’
“पण मैं उसको वादामाफ गवाह बनाने का अश्योरेंस दिया न!”
“वो अश्योरेंस उसे अश्योर न किया। यहीच बात?”
“हां।”
“तुम उसको गवाही के लिए मजबूर नहीं कर सकता, बावजूद इसके कि तुम्हेरे पास उसके खिलाफ मेजर करके कुछ है, मजबूर नहीं कर सकता!”
“हां।”
“क्योंकि उसके पास भी तुम्हेरे खिलाफ बड़ा कुछ है। नो?”
“यस।”
“बोले तो दोनों के पास जो बड़ा कुछ है, वो एक दूसरे को काउन्टर करता है?”
“हां।”
“तुम घटके भीड़ के लिए लफड़ा खड़ा करेगा तो वो तुम्हेरे लिए लफड़ा खड़ा करेगा?”
“हां।”
“ऐसा कि जो तुम्हरे से झेला नहीं जाएगा?”
“मौत की राह दिखा देगा। मेरी जान पर आ बनेगी।”
“हम्म! अभी मांगता क्या है?”
रेमंड परेरा क्राइम के समन्दर की छोटी मछली है। बड़ी मछली छोटी मछली के लिए बड़ा खतरा बन सकती है और ऐसा होना छोटी मछली को नहीं मांगता होयेंगा।”
“मैन, यू टॉक इन रिडल्स! स्ट्रेट कर के बोलने का।”
“परेरा घटके को सैट कर सकता है। और बहरामजी का एक इशारा परेरा को सैट कर सकता है।”
“वॉट नॉनसेंस! तुम साला ‘गॉडफादर’ से मीटिंग मांगता है? बहरामजी कान्ट्रैक्टर डॉन वीटो कारलियज़ोन है जिसका डॉटर का मैरेज, इस वास्ते कोई जो मांगेगा उसको मिलेगा! वो सब के लफड़े सैट करेगा!”
भारकर से जवाब देने न बना।
“और कौन बड़ी मछली! कैसी बड़ी मछली! कोई बड़ी मछली नहीं है इधर। बिग बॉस बहरामजी कान्ट्रैक्टर एक इम्पॉर्टेट करके पोलिटिकल लीडर है। इम्पॉर्टेट करके पोलिटिकल पॉर्टी मराठा मंच का चालीस एमएलए, तीन एमपी की स्ट्रैग्थ वाला पार्टी प्रेसीडेंट है। बड़ी मछली बोलता है! बहरामजी डॉन कारलियोन! होली शिट!”
“ऐसे भाव खाने से क्या होगा?” – तब भारकर के स्वर में भी आवेश का पुट आया – “इधर कौन नावाकिफ है बहरामजी कान्ट्रैक्टर की असलियत से?”
“मैंने ख़ुद तुम्हेरे से मिलना कुबूल किया इस वास्ते तुम्हेरे को आउट नहीं बोला, जो मेरे को अभी का अभी बोलने का था, इस वास्ते पूछता है, चानस देता है तुम्हेरे को, कौन-सी असलियत?”
“वो असलियत जिससे कोई बेख़बर नहीं?”
“क्या? बहरामजी गैंगस्टर! स्मगलर! कालाबाजारिया!”
“हर कोई ऐसा बोलता है।”
“मेरा सवाल हर किसी से नहीं है, तुम्हेरे से है।”
“वो . . . वो . . . असलियत जुबान पर नहीं आती।”
“तो ज़िक्र क्यों छेड़ा?”
वो ख़ामोश रहा, उसके गले की घन्टी उछली।
“भाव खा गया जोश में! नो? वान्दा नहीं। अभी जो बात तुम्हेरी जुबान पर नहीं आती, मैं अपनी जुबान पर लाता है। तुम साला कोई ऐरा-गैरा भी नहीं, एक पुलिस ऑफिसर है। अभी बोलो, उस बहरामजी नाम के गैंगस्टर, काला बाजारिया, स्मगलर के नाम पुलिस में कभी कोई केस रजिस्टर हुआ?”
भारकर ने कठिन भाव से इंकार में सिर हिलाया।
“कभी गिरफ्तार हुआ?”
“न-नहीं।”
“कभी कोर्ट में पेशी हुई?”
“नहीं।”
“बरी हुआ या ज़मानत पर छूटा?”
“नहीं।”
“तो कैसे इतना बड़ा दावा किया बिग बॉस बहरामजी की असलियत के बारे में? अभी ख़बरदार जो बोला कि लोग ऐसा बोलते हैं। कुत्तों को भौंकने से कोई नहीं रोक सकता। साले किसी पर भी भौंकने लगते हैं। भूलने का नहीं, दारोगा, कि बहरामजी कान्ट्रैक्टर एक बड़ा, पावरफुल पोलिटिकल लीडर है, उसको मजाक में भी समगलर, गैंगस्टर वगैरह कुछ बोला तो वर्दी उतर जाएगी। क्या?”
“सच को झुठलाना इतना आसान नहीं होता।”– भारकर हिम्मत करके बोला – “अन्डरवर्ल्ड में बच्चा-बच्चा जानता है कि गोवा में मराठा मंच पार्टी की करारी हार के बाद से बहरामजी फाइनेंशल क्रंच में है, क्योंकि इलैक्शन में उसका करोड़ों रुपया फुक गया इसलिए वो बाई प्रॉक्सी अपना पुराना धंधा चलाता है।”
“प्रॉक्सी बोले तो?”
“भरोसे के भीडू की ओट में पुराना धन्धा चलाता है। तुम उसके टॉप के भरोसे भीड़ हो, गैरकानूनी धन्धों में उसका फ्रंट हो।”
“यूआर ए फूल।” – भड़कने की जगह मोरावाला सब्र से बोला – “एण्ड एन इग्नोरेंट फूल ऐट दैट। इधर कोई गैरकानूनी धन्धा नहीं होता। बिग बॉस का इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का बिज़नेस है जिसको मैं मैनेज करता है। इधर के सब पेपर्स – इम्पोर्ट लाइसेंस, एक्सपोर्ट लाइसेंस, रिजर्व बैंक की फोरेक्स क्लियरेंस, स्टेट ग़ौरमेंट का लाइसेंस वगैरह सब चौकस हैं। अपनी पुलिस की हैसियत में कभी इधर रेड मारने आना, सब दिखाएंगे। आएगा तुम?”
भारकर ने इंकार में सिर हिलाया।
मोरावाला अपलक उसे देखता रहा।
“तो” – आखिर भारकर बोला – “मैं इधर बेकार आया! मैंने गलत उम्मीद की कि बिग बॉस बहरामजी मेरी अपील पर परेरा को सैट कर देता और परेरा आगे घटके को सैट कर देता!”
“अरे, तुम कैसा पुलिस ऑफिसर है? तुम्हेरे हाथ में ताकत है, ये सब ख़ुद काहे नहीं करता?”
“नहीं कर सकता। कर सकता होता तो कब का कर चुका होता।”
“एक मामूली टपोरी तुम्हेरी वाट लगाता है . . .”
“परेरा की शह पर।”
“. . . क्योंकि उसके पास तुम्हेरे खिलाफ बड़ा कुछ है?”
“हां।”
“पण तुम बोला तुम्हारे पास भी उसके खिलाफ बड़ा कुछ है?”
“हां। पहले भी बोला।”
“बोले तो तुम भी उसकी वाट लगा सकता है। क्यों नहीं लगाता?”
“क्योंकि वो रेमंड परेरा का ख़ास है और परेरा की पीठ पर कराची वाले
‘भाई’ का हाथ है।”
मोरावाला हंसा।
भारकर ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“अभी इमेजिन करने का, फॉर दि टाइम बीइंग इमेजिन करने का कि पब्लिक करैक्ट कर के बोलता है कि बिग बॉस गैंगस्टर! अन्डरवर्ल्ड डॉन! ओके?”
भारकर ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
रेमंड परेरा वो भीड़ जिसको कराची वाले ‘भाई’ की शह! जिसकी पीठ पर कराची वाले ‘भाई’ का हाथ! स्टिल ओके?”
“यस।”
“अभी कराची वाले ‘भाई’ के बारे में अक्खा वर्ल्ड जानता है कि वो एशिया का सबसे बड़ा अन्डरवर्ल्ड डॉन। अभी बोलो ऐसे पावरफुल डॉन के आगे – जिसे कि किसी एक शख्स की नहीं, एक मुल्क की सरपरस्ती हासिल है - बिग बॉस बहरामजी कान्ट्रैक्टर – अगर वो, अन्डरवर्ल्ड डॉन है - कहां ठहरता है! कैसे बहरामजी बॉस कराची वाले भाई’ को डिक्टेट कर सकता है कि वो आगे परेरा को सैट करे जिसको, तुम बोलता है कि, ‘भाई’ की शह है?”
भारकर एकाएक उठ खड़ा हुआ।
मोरावाला की भवें उठीं।
“जाता है।” — वो संजीदा लहजे से बोला – “खाली हाथ। टाइम देने का शुक्रिया।”
रुखसत पाने के लिए वो वापिस घूमा तो मोरावाला बोला – “वेट! वेट ए मिनट! अभी रुकने का।”
भारकर ठिठका, घूमा, उसकी सवालिया निगाह मोरावाला पर पड़ी।
“तुम फरियादी बन कर बिग बॉस बहरामजी के द्वारे आया, या इधर आया, एकीच बात। इस वास्ते मेरे को नहीं मांगता कि तुम साला सरकारी अमलदार खाली हाथ लौटे।”
भारकर सकपकाया।
“बोले तो?” – वो बोला।
“तुम्हेरे को एक इम्पॉर्टेंट करके टिप देता है। बहुत काम आएगा तुम्हेरे उस प्रॉब्लम को फेस करने का वास्ते जो तुम्हेरे को इधर लाया। मांगता है?”
भारकर ने व्यग्र भाव से सहमति से सिर हिलाया।
रेमंड परेरा फ्रॉड है साला।”
भारकर ने तमक कर सिर उठाया।
“उसके सिर पर किसी ‘भाई’ का कराची के या किधर और के- कोई हाथ नहीं। वो खाली अपनी एडवांटेज का वास्ते एक ख़ास फील्ड में ख़ास हैसियत बनाने का वास्ते इधर साउथ और सैन्ट्रल मुम्बई में ये अफवाह सैट करके रखा। उसे किसी ‘भाई’ की कोई शह नहीं।”
‘ज़रूरी नहीं कि किसी ‘भाई’ की शह पर उछलने वाले बड़ी औकात वाले हों’ – उसके ज़ेहन में ख़ुद अपने अलफाज़ – जो डीसीपी ने भी दोहराए थे – गूंजे – ‘गोली सरकाने में माहिर होते हैं इसलिए अक्सर उनका सैटअप फर्जी निकल आता है।’
देवा!
अक्ल मारी गई थी उसकी। ख़ुद इतनी सी बात और उसकी अहमियत याद न रख पाया।
“क्योंकि” – प्रत्यक्षतः वो बोला – “वो ख़ुद ‘भाई’ है?”
“टपोरी है। फंटर है। दुबई के एक ‘भाई’ का कारिन्दा है।”
“कारिन्दा बोले तो?”
“मुलाज़िम। सर्वेट। नौकर। जिसका काम नौकरी करना होता है।”
“कमाल है! कैसे टोपाज़ क्लब का मालिक एक मामूली ....”
“मालिक किधर? मालिक किधर? बोला न नौकर है, एम्पलाई है।”
“कि-किसका?”
“टोपाज़ क्लब का।”
“उसका तो तुम बोला न, एम्पलाई है! मेरा मतलब है अगर रेमंड परेरा टोपाज़ क्लब का मुलाज़िम है तो मालिक कौन है?”
“इन्तखाब हक्सर। सरनेम हक्सर से कुछ पकड़ में आया?”
“आया तो सही! बोले तो कराची वाले ‘भाई’ का कोई रिश्तेदार या कोई ख़ास करीबी।”
“बहुत दूर दराज का कोई रिश्तेदार जो ‘भाई के आगे-पीछे ही मुम्बई से फरार हुआ था और अब परमानेंट करके दुबई में सैटल्ड है और उधरीच से अपना बिजनेस चलाता है।”
“बिज़नेस, जैसे कि टोपाज़ क्लब!”
“अभी आई बात पकड़ में।”
“मालिक वो इन्तख़ाब हक्सर! परेरा ख़ाली मुलाज़िम! मालिक का फ्रंट!”
“हां। तभी तो बोला रेमंड परेरा साला फ्रॉड। उसकी ख़ुद की कोई हैसियत नहीं पण फ्रॉड बोला न, इस वास्ते साइलेंटली, स्नीकिंगली हैसियत बनाना मांगता है।”
“क-कैसे?”
“कराची वाले ‘भाई’ के नाम की हूल देता है और ऐसे किसी के जमे जमाए बिजनेस को टेकओवर करने की कोशिश करता है।”
“कैसे? छीन लेता है?”
“पहले टो होल्ड बनाता है फिर पसरने लगता है। पहले पार्टनरशिप मांगता है फिर ओनरशिप पर कब्ज़ा करता है।”
“दुबई वाले अपने बॉस की, मालिक की जानकारी के बिना?”
“हां।”
“कामयाब होता है?”
“हमने जानने की कोशिश नहीं की। खाली इतना जाना कि परेरा टोपाज़ क्लाब का मालिक नहीं था – मालिक दुबई में बैठेला है - और परेरा उसके धन्धे की ओट में अपना धन्धा फिट करता था कराची वाले ‘भाई’ का नाम उछाल के।”
“दुबई वाले ‘भाई’ का नहीं?”
“इन्तखाब हक्सर की अभी इतनी हैसियत नहीं बनी कि कराची तक उसका ज़ोर चल सके।”
“ओह!”
“मुम्बई में उसका कारोबार इस वास्ते है कि जब इन्डिया से फरार हुआ था तो उसका बहुत सारा रोकड़ा इधरीच फंस गया था। दुबई में पांव जमा चुकने के बाद हवाला के ज़रिए वो उसे दुबई में हासिल कर सकता था लेकिन उसको अपना रोकड़ा इधरीच इन्वेस्ट करना बैटर ऑप्शन लगा था। ऐसी एक इनवेस्टमेंट टोपाज़ क्लब है।”
“जिसका रेमंड परेरा मुलाज़िम के अलावा कुछ नहीं!”
“बोले तो मैनेजर। मैनेजर के तौर पर टोपाज़ क्लब का मुलाज़िम।”
“और इन्तखाब हक्सर कर के फरार मवाली का, दुबई में बैठेले मवाली का फ्रन्ट!”
“हां।”
“जैसे तुम बहरामजी का फ्रन्ट!”
तुरन्त मोरावाला का मिज़ाज़ बदला, उसने आग्नेय नेत्रों से भारकर की तरफ देखा।
“सॉरी!” – भारकर ने थूक निगली – “जुबान फिसल गई।”
“ऐसे ही कभी गफलत में जिन्दगी हाथ से फिसल जाएगी।”
“स-सॉरी!”
“अभी बोले तो रेमंड परेरा मामूली भीडू?”
“बरोबर।”
“ऐसे भीड़ को पुलिस क्लब की ओनरशिप के बारे में क्वेश्चन करे तो वो क्या जवाब देगा?”
“पता करना।”
“जो भी ख़ुद किसी की सरपरस्ती में है, वो क्या किसी का सरपरस्त बनेगा!”
“अभी पकड़ में आया सब। तुम तो साला पिक्चर को ड्रॉ ही नहीं किया, कलर ही नहीं किया, फ्रेम ही नहीं किया, हैंग भी किया। साला टिप को ऐन पर्फेक्ट करके कैच किया तुम। कांग्रेट्स। नाओ गैट अलांग।”
भारकर ने उठकर, मेज पर दोहरा होकर बड़ी गर्मजोशी से जबरन मोरावाला से हाथ मिलाया।
“अरे, अरे! क्या करता है? क्या करता है तुम?”
“ताकतवर के जलवा-जलाल को सलाम करता है।”
उसने – उत्तमराव भारकर, इन्स्पेक्टर मुम्बई पुलिस ने – सच में ही टॉप के मवाली के फ्रंट को सलाम ठोका।
वो जाने को घूमा तो पीछे से मोरावाला का शुष्क स्वर सुनाई दिया – “एक बात सुन के जाने का।”
भारकर ठिठका, घूमा।
“फिर कभी इधर नहीं आने का।”
भारकर सकपकाया फिर स्वंयमेव उसका सर सहमति में हिला।
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