अजय अपने चेहरे पर नकाब की भांति बंधा रूमाल खोल चुका था।

उसने पहले धीमे स्वर में नीलम को आवाजें दीं। फिर सतर्कता को भुलाकर जोर से आवाजें लगाई और टार्च की रोशनी दूर–दूर तक घुमाई। लेकिन न तो नीलम कहीं दिखाई दी और न ही ऐसा कोई चिन्ह नजर आया जिससे उसके बारे में पता चल सके।

विभिन्न आशंकाओं में घिरा बुझी टार्च हाथ में थामे अजय सोच नहीं पा रहा था नीलम कहां गायब हो गई।

सहसा अपने पीछे हल्की सी आहट पाकर वह तुरन्त पलट गया। ठीक उसी क्षण शक्तिशाली टार्च की रोशनी उसके चेहरे पर पड़ी। साथ ही धीमे साफ स्वर में चेतावनी दी गई।

–"हैंड्स अप!"

तेज रोशनी में अजय की आंखें चुंधियाँ रही थीं लेकिन न तो उसने अपनी आंखें पूरी तरह बंद होने दीं और न ही हाथ ऊपर उठाए। उसकी मिचमिचाती आंखें आगंतुक पर जमी थीं। वह औसत कद–बुत वाला एक नकाबपोश था। उसके बाएँ हाथ में टार्च थी और दाएँ में थमी पिस्तौल का रुख सीधा अजय की छाती की ओर था।

–"सुना नहीं?" पुनः चेतावनी दी गई–"हाथ ऊपर करो।"।

पिस्तौल पर निगाहें जमाए अजय ने धीरे–धीरे हाथ ऊपर उठा दिए।

नकाबपोश उसकी ओर बढ़ा।

अजय के बाएं हाथ में टार्च अभी भी थमी थी। जिसकी ओर या तो नकाबपोश का ध्यान गया ही नहीं था या फिर जानबूझकर उसे कोई अहमियत उसने न दी थी। वह पूर्ववत् पिस्तौल ताने और टार्च की रोशनी अजय के चेहरे पर केन्द्रित किए आगे बढ़ता रहा।

ज्योहि नकाबपोश पास आया, अजय ने टार्च का भरपूर प्रहार उसके दाएं हाथ पर किया और स्वयं तुरन्त एक और छलांग लगा गया।

नकाबपोश के कंठ से घुटी सी कराह निकली और पिस्तौल उसके हाथ से छूट गई। लेकिन इस बीच ट्रीगर खिंच जाने की वजह से, पिस्तौल से गोली चल चुकी थी।

तेज रोशनी के सामने से हट जाने के कारण अजय को घोर अंधेरे के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था। उसने अपनी रिवाल्वर निकालनी चाही।

.अचानक एक वजनी घूँसा उसके पेट पर पड़ा। उसके हाथ से टार्च नीचे गिर गई और वह बाएं हाथ से पेट को दबाए नीचे झुकता चला गया।

तभी एक दोहत्तड़ उसकी गरदन पर पड़ा और वह समतल चट्टान पर औंधे मुंह जा गिरा।

असहनीय पीड़ा से होंठ काटता अजय अपनी रिवाल्वर निकालने में कामयाब हो गया। लेकिन उसे अभी भी साफ नज़र नहीं आ रहा था। उसने अनुमान मात्र से बड़ी मुश्किल से एक फायर तो झोंक दिया। लेकिन गरदन पर पड़े दोहत्तड़ के कारण, उसका सर जोर से चकराने लगा था। शायद इसीलिए दोबारा ट्रीगर वह नहीं खींच पाया।

अचानक उसे भागते कदमों की तेजी से दूर होती जा रही आहट सुनाई दी। लेकिन चुपचाप पड़ा रहने के अलावा वह कुछ कर नहीं सका।

चंद सेकण्डोपरांत, एक मोटरसाइकिल का इंजिन स्टार्ट होने की आवाज सुनकर वह चौंका।

दर्द को बरदाश्त करने की कोशिश करता हुआ वह उठा, बड़ी मुश्किल से चलकर अपनी एम्बेसेडर में सवार हुआ और शहर की ओर ड्राइव करने लगा।

आगे तेजी से भागी जा रही मोटर साइकिल की लाइटें कुछ पल उसे दिखाई दीं फिर मेन रोड पर पहुंचकर वे आंखों से ओझल हो गईं।

अजय चाहकर भी मोटर साइकिल का पीछा नहीं कर सका।

* * * * * *

उस वक्त सुबह के चार बजकर पच्चीस मिनट हुए थे। उस इलाके में अभी सड़कों पर नाम मात्र के लिए ही यातायात शुरू हुआ था।

अजय कार ड्राइव करता रहा। उसकी आंखें बराबर बैक व्यु मिरर पर लगी थीं।

नीलम के रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने और नकाबपोश द्वारा किए गए हमले ने उसे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया था। हालात को देखते हुए सीधे होटल अलंकार जाने मैं समझदारी नहीं थी। पहले 'कनकपुर कलैक्शन' का वक्ती तौर पर इंतजाम करना जरूरी था और इसके लिए किराए की दूसरी यानी स्टैंडर्ड कार से ज्यादा मुनासिब जगह फिलहाल और नहीं थी।

विभिन्न सड़कों से गुजरने और पूरी तरह यकीन कर चुकने। के बाद कि पीछा नहीं किया गया था, अजय सर्कुलर रोड पहुंचा। साइड में कार पार्क करके वह नीचे उतरा और उसे लॉक करके करीब सौ गज आगे स्थित पार्किंग लॉट की ओर बढ़ गया।

वहां दोनों अटेंडेंट अलग–अलग चारपाई पर पड़े ऊंघ रहे थे। वे उस वक्त सजग हुए जब अजय ने स्टैंडर्ड का इंजन स्टार्ट किया। उन्हें पार्किंग टिकिट समेत पार्किंग चार्ज देकर अजय कार बाहर ले आया और कोई मील भर दूर स्थित कारपोरेशन के एक अन्य पार्किंग लॉट की ओर ड्राइव करने लगा।

रास्ते में एक सुनसान स्थान पर कार रोककर उसने अपने कंधे से वो थैला उतारा जिसमें 'कनकपुर कलैक्शन' था, फिर पीठ पर बंधी टूल बैल्ट खोली और दोनों चीजों को पिछली सीट के नीचे छुपा दिया।

फिर स्टैंडर्ड को दूसरे पार्किंग लॉट में पार्क करके वह वापस उस स्थान पर लौटा जहां एम्बेसेडर पार्क की थी।

एम्बेसेडर की ड्राइविंग सीट पर बैठकर उसने स्टैंडर्ड का पार्किंग टिकट और उसे किराए पर लेने की कार रैंटल एजेंसी द्वारा दी गई एक हजार की रसीद जेब से निकाली। फिर प्लेयरज गोल्ड लीफ का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली। बाकी सिगरेट निकालकर फेंकने के बाद खाली पैकेट में उसने हजार रुपए की रसीद और पार्किंग टिकट रख लिया। बाएं पैर का जूता उतारकर उसने उसके अन्दर लगा पैतावा उखाड़ा, पैकेट जूते में रखकर उसके ऊपर पुनः पैतावा जमाकर उसने जूता पहना और होटल अलंकार की ओर कार ड्राइव करने लगा।

* * * * * *

होटल के पार्किंग लॉट में कार पार्क करने तक वह यकीनी तौर पर कह सकता था उसका पीछा नहीं किया गया।

होटल में दाखिल होकर लिफ्ट द्वारा चौथे खंड पर पहुंचा।

अपने रूम सुइट का ताला खोलकर उसने अन्दर प्रवेश किया। दरवाजा पुनः बन्द करके उसने लाइट स्विच ऑन किया और बाहरी कमरे से गुजर कर बैडरूम में पहुंचा।

उसने लाइट स्विच ऑन किया। लेकिन अगले ही क्षण बुरी तरह चौंका और आश्चर्य से विस्फारित नेत्रों से पलंग की ओर ताकने लगा।

सिरहाने से पीठ सटाए, जीन्स और पुलोवर पहने, सुडौल आकर्षक जिस्म वाली एक खूबसूरत युवती पलंग पर पसरी हुई थी।

* * * * * *

युवती की आंखों में शरारत भरी चमक थी और चेहरे पर आमंत्रणपूर्ण मुस्कराहट।

–"हलो।" वह पलंग से उतर कर खनकती सी आवाज में बोली।

अजय न सिर्फ सामान्य हो चुका था बल्कि उस अजनबी हसीना की मौजूदगी की वजह भी भांप गया था। साथ ही, अब तक वह नोट कर चुका था सुइट की बड़ी सफाई तथा बारीकी के साथ तलाशी भी ली जा चुकी थी।

–"कौन हो तुम?" उसने कड़े स्वर में पूछा–"और यहां क्या कर रही हो?"

युवती की मुस्कराहट गहरी हो गई। इस प्रयास में उसके मोती जैसे साफ–चमकीले दांत भी नजर आ गए।

–"आप अजय कुमार हैं?" उसने पूछा फिर अजय को जवाब देता न पाकर बोली–"अगर आप ही अजय कुमार हैं तो मेरे पास आपके लिए मैसेज है।"

उसके स्वर में व्यंग्य का पुट पाकर अजय के दिमाग में गुस्से की जबरदस्त लहर दौड़ गई।

–"मैं ही अजय कुमार है।" वह स्वयं को सामान्य बनाए रखने की कोशिश करता हुआ बोला।

–"गुड।" युवती चहकती हुई सी बोली–"मुझे लीना कहते है।"

अजय की सहन शक्ति जवाब दे गई।

वह आगे बढ़ा और युवती के दोनों कंधे जोर से पकड़ कर उसे झंझोड़ते हुए पूछा–"मेरी बीवी कहां है?"

–"आपकी बीवी सही सलामत है।" युवती यानी लीना ने अप्रभावित स्वर में कहा–"और सही सलामत ही रहेगी अगर आप मेरी हिदायतों पर अमल करते हैं।' और व्यंग्यपूर्वक मुस्करा कर बोली–"सबसे पहले तो आप मुझे छोड़ दीजिए। मेरे कंधों में दर्द हो रहा है।"

अजय चाहता तो था मार–मार कर लीना का हुलिया बिगाड़ दे और उसे तभी छोड़े जब वह न सिर्फ सारी सच्चाई बता है बल्कि उसे नीलम के पास भी पहुंचा दे। लेकिन उसकी यह चाहत नीलम के हक में नुकसानदेह साबित हो सकती थी। इसलिए हालात की सही जानकारी हासिल किए बगैर ऐसा कदम उठाना उसने मुनासिब नहीं समझा।

वह लीना को छोड़कर पीछे हट गया।

लीना अपने कंधे सहलाने लगी।

–"मानना पड़ेगा तुम्हारी बीवी है हजारों में एक।" वह बेतकल्लुफी से बोली।

अजय ने उससे पूछा।

–"तुमने देखा है उसे?"

–"हां।" लीना पुनः पलंग पर बैठती हुई बोली–"उस वक्त वह थोड़ी सहमी हुई तो थी लेकिन किसी प्रकार की चोट उसे नहीं पहुंचाई गई।" आश्वासन देने के बाद उसने शरारती लहजे में कहा–"बैठो, खड़े क्यों हो?'

–"तुम्हारे साथ और कौन है?" अजय ने पूछा।

–"मेरा एक दोस्त है। तुम उससे मिल भी चुके हो। मैं उसकी बात कर रही हूं जो मोटरसाइकिल पर भाग आया था।'' कहकर लीना मुस्कराई–“वह तुम से ज्वैल्स लेने गया था। लेकिन तुम पिस्तौल से भी नहीं डरे। इसलिए मजबूरन हमें यह तरीका अख्तियार करना पड़ा।" वह प्रशंसापूर्वक बोली–"लेकिन तुम वाकई हौंसलामंद मर्द हो। मेरा दोस्त भी तुमसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। वो तो गनीमत रही तुम्हारी बीवी को हमने पहले ही अपने कब्जे में कर लिया था वरना।"

अजय ने उसकी बात काटते हुए पूछा–"मेरी पत्नी कहां है?"

लीना हंसी।

–"बताया तो है हमारे कब्जे में है।"

–"तुम क्या चाहती हो?"

–"ज्वैल्स।"

अजय मन ही मन तय कर चुका था लीना को कैसे हैंडिल करेगा।

–"कौन से ज्वैल्स की बातें कर रही हो?" वह स्वयं को अनजान जाहिर करता हुआ मुस्कराकर बोला–"किन्हीं भी ज्वैल्स के बारे में मैं कुछ नहीं जानता।" उसकी मुस्कुराहट गहरी हो गई–"और अगर जानता होता तो भी अपनी बीवी के लौटाए जाने से पहले ज्वैल्स की झलक भी मैंने नहीं दिखानी थी।" वह तनिक रुका फिर बोला–"तुम्हें एक अक्ल की बात बताता हूँ, हनी। अपने दोस्त के पास जाओ और उससे कहो मेरी बीवी को यहां पहुंचा दे।" उसने अपनी रिस्ट वाच पर निगाह डाली–पौने छह बज रहे थे–"ठीक तीन घंटे के अन्दर।"

–"लेकिन...।"

–"लेकिन को गोली मारो।" अजय ने आगे बढ़कर लीना की कलाई पकड़ी। उसे बलपूर्वक पलंग से उठाया। प्रतिरोध का मौका दिए बगैर घसीट कर प्रवेश द्वार तक ले गया–"अपने यार के पास जाओ और मेरा मैसेज उसे दे दो।" उसने कहा और दरवाजा खोलकर लीना को बाहर धकेलने के बाद पुनः दरवाजा बंद कर लिया।

अजय तुरन्त झपट कर टेलीफोन उपकरण के पास पहुंचा।

–"हलो।" वह रिसेप्शन से सम्बन्ध स्थापित करने के बाद बोला–"मैं सुइट नम्बर 417 से बोल रहा हूं। नीली जीन्स और ब्लैक पुलोवर पहने एक लड़की नीचे आने वाली है। उसे रोककर पूछना वह होटल में क्या करने आई है...नहीं वह गलत लड़की नहीं है। हमारा पर्सनल मामला है। मैं उसका एक झूठ पकड़ना चाहता हूँ।...नहीं, गड़बड़ कोई नहीं है।" वह हंसा–"दरअसल हमारे बीच पांच सौ रुपए की शर्त लगी है। अगर तुम उसे पांच मिनट रोके रखोगे तो मैं शर्त जीत जाऊंगा। उस सूरत में तुम्हें भी सौ रुपए दे दूंगा क्या वह आ रही है? गुड, उसे पांच मिनट रोको फिर चली जाने देना।"

सम्बन्ध विच्छेद करके अजय ने फटाफट अपने कपडे बदले। आंखों पर बड़े फ्रेम की ऐनक लगा ली और हल्का सा ओवर कोट और फैल्ट हैट पहन लिए, वह निश्चित था एकदम से नहीं पहचाना जा सकेगा।

वह बाहर निकला और कमरा लॉक करके लिफ्ट की ओर दौड़ गया।

लिफ्ट द्वारा नीचे लॉबी में पहुंचते ही रिसेप्शन काउंटर पर उसे परेशान सी लीना खड़ी दिखाई दी।

वह तुरंत निकटतम टेलीफोन बूथ में जा घुसा। रिसेप्शनिस्ट से सम्बन्ध स्थापित करके लीना को जाने देने के लिए कह दिया।

लीना रिसेप्शन काउंटर से हटकर तेजी से प्रवेश द्वार की ओर जाती दिखाई दी।

बूथ से निकलकर अजय ने भी उसका अनुकरण किया।

लीना एक बार भी पीछे मुड़कर देखे बगैर बाहर निकली टैरेस से गुजर कर मेन गेट से बाहर आई और करीब पचास गज आगे खड़ी मारुति की ओर बढ़ गई।

अजय ने पार्किंग लॉट से अपनी कार निकाली और जब तक वह बाहर सड़क पर आया, लीना मारुति स्टार्ट करके आगे बढ़ा चुकी थी।

अजय पीछा करने लगा।

सड़कों पर यातायात बढ़ता जा रहा था। इसलिए अजय आसानी से पीछा करता रहा।

करीब बीस मिनट बाद लीना की कार समुद्र की ओर जाने वाली सड़क पर दौड़ रही थी। अचानक उसने अपनी कार एक बगल वाली सड़क पर घुमा दी।

एक निश्चित फासले पर रहकर पीछा करते अजय ने भी वैसा ही किया। वहां नाममात्र के लिए ही यातायात होने की वजह से उसे अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ रही थी।

लीना की कार पुनः एक चौड़ी सड़क पर आ गई जिसके दोनों ओर चारदीवारी से घिरी ऊंची–ऊंची पुरानी कोठियां थीं। सड़क के मोड़ पर साइन बोर्ड लगा था।

रहमान स्ट्रीट।

अजय मोड़ काटने के बाद रहमान स्ट्रीट पर पहुंचा तो लीना की कार उसे हरे रंग के गेट से भीतर दाखिल होकर एक सफेद पुती दो मंजिला कोठी की ओर जाती दिखाई दी। वहां से गुजरते वक्त अजय को गेट पर उन्नीस नम्बर पड़ा दिखाई दिया।

–19, रहमान स्ट्रीट मन ही मन दोहराता हुआ वह अगले मोड़ पर जा रुका।

वह ड्राइविंग सीट पर बैठा, विभिन्न पहलुओं से, अपने अगले कदम के बारे में सोचता रहा। अन्त में उसने तय किया फिलहाल नौ बजे तक लीना के ब्वॉयफ्रेंड के जवाब का इंतजार करना ही ठीक रहेगा। अगर कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया तो रात के अंधेरे में इस कोठी में दाखिल होने की कोशिश करके पता लगाने की कोशिश करेगा अन्दर क्या है।

उसने कोठी के आसपास के भूगोल का अध्ययन करने के बाद इंजिन स्टार्ट किया और होटल अलंकार की ओर कार ड्राइव करने लगा।

इस दफा उसने जानबूझकर होटल से बीच–पच्चीस गज पहले ही सड़क पर साइड में कार पार्क कर दी। हैट हाथ में थामे, ओवर कोट उतारकर अपनी बांह पर डाला और पैदल चलता हुआ होटल पहुंचा। उसने रिसेप्शनिस्ट को सौ रुपए देते हुए बताया वह शर्त जीत गया। लेकिन साथ ही उसे ताकीद भी कर दी कि इस बारे में किसी से कुछ भी कहने की कोशिश न करे। सुबह ही सुबह सौ रुपये की कमाई हो जाने से खुश रिसेप्शनिस्ट ने वादा कर दिया।

अजय अपने सुइट में पहुंचा। वहां सब कुछ वैसे ही था जैसे वह छोड़ गया था।

उसने अपने कपड़े उतारे और पलंग पर पड़ गया।

रात भर जागरण और भागदौड़ के कारण उसे सुस्ती घेरने लगी। कुछ देर ऊंघता रहा फिर नींद के आगोश में समा गया।

* * * * * *

जब उसकी आंखें खुली, खिड़की के पर्दे को चीरकर आती सूरज की तेज किरणें उसके मुंह पर पड़ रही थीं। लेकिन जागने की असली वजह यह न होकर प्रवेश द्वार पर दी जा रही दस्तक थी।

अजय पलंग से उतरकर बाहरी कमरे में पहुंचा।

–"कौन है?" उसने अहतियातन पूछा।

–"मैं हूं।" बाहर से लीना की आवाज आई।

अजय ने दरवाजा खोल दिया।

–"आओ।" वह आसमानी सलवार सूट में सजी लीना को देखता हुआ बोला–"मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था।" और एक तरफ हट गया।

हर तरफ खोजपूर्ण निगाहें दौड़ाती हुई लीना भीतर दाखिल हुई। उसकी निगाहें और चेहरे पर व्याप्त व्याकुलतापूर्ण भाव उसकी नीयत की साफ चुगली कर रहे थे ज्वैल्स का पता जानने के लिए मरी जा रही है।

अजय पुनः दरवाजा बंद करके बाल्कनी में आ गया।

लीना ने भी उसका अनुकरण किया।

कार्नर का सुइट होने की वजह से बालकनी की एक साइड से नीचे टैरेस का भी दृश्य साफ नजर आता था। लेकिन अजय को न तो टैरेस पर मौजूद व्यक्तियों में दिलचस्पी थी और न ही बीच पर एनज्वॉय करते जवान–जोड़ों में।

–"मेरी बीवी कहां है?" उसने लीना की ओर पलटकर सीधा सवाल किया।

उसने तुम्हारे लिए लैटर भेजा है।" कहकर लीना ने अपना बड़ा सा हैंडबैग खोला और उसमें से एक सील्ड लिफाफा निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिया।

अजय ने लिफाफा लेने का कोई उपक्रम नहीं किया। लीना के चेहरे पर उपहासपूर्ण भाव लक्ष करके वह मन ही मन हंसा। लीना नहीं जानती थी वह 19, रहमान स्ट्रीट तक उसका पीछा, कर चुका है।

–"तुम अभी मिली थीं उससे?" उसने लीना से लिफाफा लेकर पूछा।

–"नहीं।"

–"तो फिर यह लिफाफा तुम्हें किसने दिया?"

लीना की आंखें खुशी से चमक उठीं।

–"मेरे उसी दोस्त ने।"

अजय ने लिफाफे पर लिखा अपना नाम पढा और साफ पहचाना हैंडराइटिंग नीलम की ही थी। उसने लिफाफे से लैटर निकालकर पढ़ा–

डियर अजय,

मेरी समझ में नहीं आ रहा है यह सब है क्या। पिछली रात जबरन मेरा अगुवा कर लिया गया। लेकिन किसी प्रकार की चोट मुझे नहीं पहुंचाई गई। अभी तक बस एक ही आदमी मुझे यहां मिला है। वह खुशमिजाज किस्म का है।

और कहता है जल्दी ही तुम मुझे मिलने आओगे। मैं शायद किसी कोठी में हूं लेकिन कोठी कहां है यह नहीं जानती।

डार्लिंग, मैं मजे में हूं और यह खत किसी दबाव में आकर नहीं बल्कि अपनी मर्जी से लिखा है। उस आदमी का कहना है तुम होटल में आ गए हो।

तुम्हारी नीलम

पुनश्चः मैं नहीं जानती वह आदमी मुझसे क्या कराना चाहता है। लेकिन तुम सावधान रहना। उसे लीना नाम की किसी स्त्री ने फोन किया था।

अजय ने खत पढकर भारी राहत महसूस की। लेकिन अपनी ओर निगाहें जमाए लीना पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया उसने नहीं जाहिर होने दी और खत मोड़कर अपनी जेब में डाल लिया।

–"हो गई तसल्ली?'' लीना ने पूछा।

–"अभी नहीं।" अजय ने जवाब दिया और उसकी बगल से गुजरकर बैडरूम में आकर अपने कपड़े उतारने लगा।

इस सर्वथा अप्रत्याशित हरकत से हैरान लीना असमंजसता पूर्वक उसे ताक रही थी।

लेकिन उसकी परवाह किए बगैर अजय ने अंडरवीयर के अलावा बाकी तमाम कपड़े उतारे और बाथरूम में घुस गया।

–"लीना।" उसने अन्दर से हांक लगाते हुए कहा–"अगर तुमने बहुत ज्यादा एहतियात नहीं बरती तो बड़ी भारी मुसीबत में फंस जाओगी।" तनिक रुककर पूछा–"तुम्हारे उस दोस्त का नाम क्या है?"

लीना बैडरूम में आ खड़ी हुई थी।

–"अविनाश।" उसने व्याकुलतापूर्ण स्वर में तुरन्त उत्तर दिया।

रंजना के पति हरीश दीवान के भाई का नाम भी अविनाश था। इसलिए अजय ने पूछा–"पूरा नाम बताओ।''

–"वो तुम्हें बताने की इजाजत मुझे नहीं है।''

–"तुम्हारी जुबान खुलवाने का तरीका भी मुझे आता है।"

–"अच्छा?' लीना उपहासपूर्वक बोली–"तब तो अविनाश को भी तुम्हारी पत्नी से वो सब कराने का तरीका जरूर आता होगा जो वह करना नहीं चाहती।"

–"यह बाद में देखा जाएगा।" अजय ने कहा–"अभी मैं नहा रहा हूं। इस बीच तुम हैवी ब्रेक फास्ट और एक पैकेट प्लेयरज गोल्ड लीफ का आर्डर दे दो।" और दरवाजा पूरी तरह बंद कर लिया।

शावर खोलने से पहले उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया जाने की आवाज सुनी फिर उसे लगता रहा लीना बैडरूम में चहलकदमी कर रही थी।

–"लीना।" नहाने के बाद जिस्म पोंछते हुए उसने हांक लगाई–"मैं कपड़े पहनने के लिए बाहर आ रहा हूं। तुम बालकनी में चली जाओ।

लीना द्वारा जवाब न दिया जाता पाकर तौलिया लपेटे अजय ने तनिक इंतजार किया फिर दरवाजा खोल दिया लेकिन बैडरूम में पांव रखते ही वह बुरी तरह चौंका और जहां का तहां ठिठक गया।

* * * * * *