वानखेड़े, ए.सी.पी. खेमकर और ए.सी.पी. कामेश्वर का पूरा दिन व्यस्तता से बीता।
ए.सी.पी. चंपानेरकर को गिरफ्तार करके पूछताछ की गई। उसकी गिरफ्तारी अभी गुप्त रखी गई थी। चंपानेरकर के पास छिपाने को कुछ भी नहीं था। वानखेड़े के साथ हुई बातचीत और तब की तस्वीरें भी रिकार्ड हो चुकी थीं। चंपानेरकर के ऑफिस में आने से पहले ही रिकॉर्डिंग का सारा इंतजाम कर लिया गया था।
पूछताछ में चंपानेरकर ने ईमानदारी से सब कुछ कबूला।
मजिस्ट्रेट के सामने चंपानेरकर के बयान लेकर उन्हें सील बंद कर दिया।
उसके बाद ए.सी.पी. चंपानेरकर के साथ पुलिस और इनकम टैक्स वालों ने उसके बंगले पर छापा मारा, जिसमें कि बंगले पर से तीन करोड़ रुपये की नकदी बेडों के बक्सों से भरी पड़ी मिली।
ये सारा काम होते-होते शाम हो गई।
फिर वो तीनों पुलिस कार में बैठकर पिंटो के पास पहुंचे।
वहाँ इंस्पेक्टर विजय दामोलकर भी मौजूद था और उसने बताया कि पिंटो के बयान मजिस्ट्रेट के सामने लिए जा चुके हैं। तब वे कमरे में जाकर पिंटो से मिले।
पिंटो का हाल पहले से बेहतर था।
“तुमने।” वानखेड़े ने पिंटो से कहा –“अपने बयान में ए.सी.पी. चंपानेरकर का जिक्र किया है?”
“चंपानेरकर?” पिंटो चौंका।
“चंपानेरकर ने बयान दिया है कि उसने किस प्रकार परेरा को, देवराज चौहान के हाथों में पहुंचाया।”
“वो कमीना पुलिस वाला पकड़ा गया?” पिंटो के होठों में निकला।
“आज सुबह ही उसे गिरफ्तार किया जा चुका है।”
“उसके बारे में बताना मुझे याद नहीं रहा। सच बात तो ये है कि मैंने सोचा भी नहीं कि वो देवराज चौहान यानि उस त्यागी के लिए तब काम कर रहा था। मैं उसके बारे में बताऊंगा, सब बताऊंगा। जिस लड़की का हमने अपहरण किया उस बेचारी को उसने गोली मार दी थी। वो-वो बहुत बड़ा कमीना था।”
“चंपानेरकर के बारे में तुम्हारा बयान लिया जायेगा।”
“मैं तैयार हूं...।”
खेमकर, विजय दामोलकर को बुलाकर, पिंटो के बयान लेने का इंतजाम करने लगा।
“परेरा को किसने मारा या वो खुद ही मर गया?” पिंटो ने पूछा।
“उसे चंपानेरकर ने जहर देकर मारा था।”
“क्यों?”
“ताकि वो उसकी पोल ना खोल दे हमारे सामने...कि उसने तुम दोनों द्वारा अपहरण की गई लड़की की हत्या की और परेरा को उसने ही देवराज चौहान तक पहुंचाया...।”
“दूसरी बात मैं नहीं जानता था। शायद परेरा समझ गया होगा। परंतु अब तो मैं भी समझ गया। ये सारी मुसीबत उसी पुलिस वाले की लाई हुई हैं। वरना हमारी जिंदगी तो आराम से बीत रही थी।” पिंटो ने तेज स्वर में कहा।
“तुम्हारे जुर्म भी कम नहीं हैं।”
“जानता हूँ। इस बार लंबा ही अंदर जाऊंगा।” पिंटो ने दुःख भरे स्वर में कहा –“मैं सरकारी गवाह बनने को तैयार हूं। इसमें मुझे सजा में छूट मिल जायेगी।”
“इस बारे में बाद में बात करेंगे।”
“वो दोनों पकड़े गये जो देवराज चौहान और जगमोहन बनकर सब कुछ कर रहे थे?”
“पकड़े जायेंगे। बचने वाले तो नहीं...।”
तभी खेमकर ने विजय दामोलकर से कहा–
“मजिस्ट्रेट के सामने पिंटो के बयान ले लेना। ये ए.सी.पी. चंपानेरकर की पोल खोलेगा कि इसके सामने उसने क्या किया?”
“यस सर!” विजय दामोलकर कह उठा।
“जरूरत पड़े तो मुझे फोन कर लेना। मैं हेडक्वार्टर जा रहा हूँ।”
“पर मुझे कब तक आप लोग यहां रखेंगे। मैं ठीक हूं। मुझे जल्दी से सरकारी गवाह बना लो...।”
“कल तुम्हें कोर्ट में पेश करके पूछताछ के लिए रिमांड पर लिया जायेगा और तब हम तुमसे बात करके इस बात पर विचार करेंगे कि तुम्हें सरकारी गवाह बनाना फायदेमंद रहेगा या नहीं।”
“क्यों नहीं फायदे में रहेगा? मैं उस पुलिस वाले चंपानेरकर के बारे में जानता हूं। मैं ये जानता हूं कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती देवराज चौहान और जगमोहन ने नहीं, बल्कि इनके चेहरों के मास्क लगाकर, वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत ने की। बैंक भी इन्होंने लूटा। ज्वैलर्स शॉप भी इन्होंने लूटी। इस दौरान ये कहां-कहां रहे, क्या-क्या करते रहे, मुझे सब पता है। मेरी गवाही पुलिस का काम आसान कर देगी।”
☐☐☐
ए.सी.पी. खेमकर, ए.सी.पी. कामेश्वर और वानखेड़े पुलिस हेडक्वार्टर में कामेश्वर के ऑफिस में बैठे थे। हेडक्वार्टर में सबको पता चल गया था कि चंपानेरकर रंगे हाथों गिरफ्तार हो गया है। इस मामले में दबी स्वर में बातें जारी थी।
तीनों के सामने कॉफी के प्याले और स्नैक्स मौजूद थे।
“जो भी हुआ मैं उससे खुश नहीं हूं।” खेमकर ने गंभीर स्वर में कहा – “हमारी मंजिल ए.सी.पी. चंपानेरकर को रंगे हाथों पकड़ना नहीं थी। हमें त्यागी चाहिये –वो डिवाइस चाहिये जो...!”
“चंपानेरकर ने अगर डिपार्टमेंट से गद्दारी करके त्यागी को खबर न दी होती तो हमने उस दिन त्यागी को पकड़ लेना था, जब वो अपना मोबाईल टेबल पर छोड़कर भाग निकला था। तब डिवाइस भी हमें मिल जानी थी।” कामेश्वर ने कहा।
“वो हमारा सबसे बुरा दिन था।” वानखेड़े बोला।
“हमारे पास इस बात के पर्याप्त सबूत इकट्ठे हो चुके हैं कि ये संगीन डकैती देवराज चौहान ने नहीं की, बल्कि देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे का मास्क पहनकर त्यागी और जगजीत ने की है। इस मामले में जीता-जागता गवाह पिंटो हमारे पास है। उसने त्यागी और जगजीत को अपने चेहरों पर से मास्क उतारते भी देखा है। कल पिंटो को अदालत में पेश किया जायेगा और रिमांड भी ले लिया जायेगा। ये मामला तो आगे चलता ही रहेगा, परंतु असली मुद्दा त्यागी, जगजीत और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हासिल करना है। जब तक वो हमें नहीं मिलेगी, तब तक हम असफल रहेंगे।”
“हमारे मुखबिर काम पर लगे हैं।” कामेश्वर बोला।
“परंतु वो काम की कोई खबर नहीं दे रहे।” खेमकर ने कहा।
“वो अगर खबर देते भी, तो वो खबर हमारे लिए बेकार होती। हमने उन्हें देवराज चौहान और जगमोहन के लिये दौड़ा रखा था। देवराज चौहान और जगमोहन पकड़े भी जाते तो मामला वहीं-का-वहीं रहता। क्योंकि ये काम तो त्यागी और जगजीत ने...।”
“हां।” खेमकर कह उठा –“आज त्यागी और जगजीत के बारे में, देशभर में रेड एलर्ट जारी कर दिया है। हालांकि जगजीत की तस्वीर पुलिस रिकॉर्ड में नहीं है परंतु त्यागी की तस्वीर पुलिस और पब्लिक के सामने पेश कर दी है। खबरी टी.वी. चैनल हर पन्द्रह मिनट बाद वीरेन्द्र त्यागी की तस्वीर दिखा रहे हैं। मुझे यकीन है कि इनके बारे में जल्दी ही कोई खबर –।”
“तब तक त्यागी ने डिवाइस का सौदा किसी देश से कर लिया तो?” वानखेड़े बोला –“डिवाइस अगर किसी दूसरे देश के हाथ चली गई उसे वापस पाना असम्भव ही जायेगा।”
“तो क्या करें वानखेड़े?” कामेश्वर ने पूछा।
“हमें तेजी दिखानी होगी।”
“मुम्बई पुलिस सड़कों पर नाके लगा के काम कर रही है। मुखबिर हमारे दौड़े फिर रहे हैं। पुलिस का ज्यादातर काम मुखबिरी के दम पर ही होता है। वीरेन्द्रा त्यागी के बारे में हमें जल्दी ही कोई खबर मिलेगी।”
“मतलब कि अभी हमारे पास करने को कुछ नहीं।”
“सही कहा। हम सिर्फ रूटीन की भाग दौड़ कर सकते हैं।” खेमकर बोला- “या फिर मुखबिर की कोई खबर आई तो…।”
“त्यागी या जगजीत का कोई पर घर-परिवार नहीं है क्या?” वानखेड़े ने पूछा।
कामेश्वर सिर हिलाकर कह उठा- “पुलिस रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी दर्ज नहीं है।” कामेश्वर ने कहा।
“हमारे पास हर जानकारी अधूरी है।”
“त्यागी की हमारे पास कभी भी खबर आ सकती है।” खेमकर बोला-“यूं समझो कि आज से हमारा काम शुरू हुआ है।” देवराज चौहान शाम चार बजे बंगले पर पहुंचा।
जगमोहन वहां नहीं था।
देवराज चौहान ने हाथ-मुंह धोकर कपड़े बदले, और बैडरूम में जाकर सो गया।
शाम छः बजे जगमोहन लौटा तो देवराज चौहान की आंख खुली।
“कुछ पता चला त्यागी का?” जगमोहन ने पूछा।”
“नहीं...।”
“मुझे भी नहीं पता चला। वो कहीं छिपे पड़े हैं या मुम्बई से बाहर निकल गये हैं।”
“दो बार वो मुम्बई पुलिस के हाथ आते-आते बचे हैं। ऐसे में मुम्बई से निकल जाने की संभावना ज्यादा है।” देवराज चौहान ने कहा- “जगजीत की बहन होने का पता चला। लेकिन वो कहां रहती है, ये नहीं पता।”
“त्यागी के पास भरपूर वक्त है कि वो डिवाइस का सौदा कर सके।”
“हां-और ये खतरनाक बात है।” देवराज चौहान ने कहा हम...।”
तभी देवराज चौहान का फोन बजा।
देवराज चौहान ने बात की।
दूसरी तरफ विनय बरुटा था।
“क्या हाल है मेरे बच्चे का?” बरुटा की आवाज कानों में पड़ी।
“बढ़िया हूँ...।” देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
“पुलिस से बचते फिर रहे होगे?”
“हाँ। इन दिनों कुछ ऐसा ही है।”
“पिछली बार तुम्हारी वजह से 100 करोड़ रुपये मुझे मिले। तब मुझे तो कुछ करने का मौका नहीं मिला।” (ये सब जानने के लिये पढ़ें अनिल मोहन का उपन्यास ‘राबरी किंग’।)
“मैं इतना जानताहूं कि वो काम हम दोनों ने मिलकर किया था।”
“जो भी कहो। परंतु सच तो मैं जानता हूं कि सारा काम तुमने ही किया था। त्यागी का कुछ पता चला?”
“नहीं।”
“मुझे पता चल गया है। त्यागी से मेरी बातचीत भी होती है।”
विनय बरुटा की आवाज कानों में पड़ी।
देवराज चौहान तुरंत सीधा होकर बैठ गया।
“त्यागी से तुम्हारी बातचीत होती है?”
सामने खड़े जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं।
“हां। वो देवराज चौहान बनकर मेरे से बात करता है। जगजीत को जगमोहन बना रखा है उसने। साले मुझे बेवकूफ समझ रहे हैं।”
“लेकिन-लेकिन तुम किस दम पर उनसे बात करते...।”
“मैं चीन की तरफ से उनके साथ डिवाइस का सौदा कर...।”
“चीन की तरफ से?”
“सुनने-समझने की बात है। चीन कहीं भी नहीं है। मैंने उस तक पहुंचने के लिए चीन का नाम आगे रख दिया क्योंकि वो डिवाइस का सौदा अमेरिका या पाकिस्तान से करने जा रहा था तो चीन की तरफ से पार्टी बनकर मैं उसके सामने आ गया और उसे पूरी तरह अपनी बातों में फंसा लिया।”
“वो कहां है इस वक्त?” देवराज चौहाम के दांत भिंच गये।
“ये तो मैं भी नहीं जानता। मैं तुम्हें सारी बात बताता हूं।” कहकर बरुटा ने सारी बात बताई।
देवराज चौहान सुनता रहा । उसकी आंखों में चमक आ ठहरी।
“तो आज से पांचवें दिन शिमला के माल रोड पर तुमने त्यागी, जगजीत से मिलना है।”
“हां और ये सारा काम मैं तुम्हारे लिए कर रहा हूं देवराज चौहान! क्योंकि मैं तुम्हें खामख्वाह फंसते हुए नहीं देख सकता। पिछली बार तुमने जिस शराफत से मुझे 100 करोड़ दिया था, वो मैं भूल नहीं सकता। यही वजह थी कि मैंने इस मामले में दखल दिया।”
“शुक्रिया...।”
“शुक्रिया की कोई जरूरत नहीं। मैंने अपना फर्ज समझकर ये काम किया। अब तुम शिमला पहुंचने की तैयारी कर लो। चौथे दिन तक तुम्हें शिमला पहुंच जाना है। वहां हम मिलेंगे और अगला प्रोग्राम बनायेंगे। त्यागी को मैं तुम्हारे हवाले करूंगा कि उससे तुम अपना हिसाब चुकता कर सको।” विनय बरुटा ने उधर से कहा।
“परंतु मैं उसका बाल भी बांका नहीं करूंगा।”
“क्या मतलब?”
“मैंने कानून की नजरों में ये स्पष्ट करना है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती मैंने नहीं की। इसके लिए जरूरी है त्यागी और जगजीत कानून के हाथों में पहुंचे और सच बोलें!” देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
“तो ये काम कैसे करोगे?”
“मैं कोई इंतजाम करूंगा।”
“ऐसा ना हो कि तुम्हारे इंतजाम में मैं ही फंस जाऊं, कहीं...।”
“ऐसा नहीं होगा, जो होगा उसमें हम सुरक्षित होंगे।”
“ठीक है। चौथे दिन शिमला में फोन पर बात करेंगे –फिर मिलकर आगे का प्रोग्राम बनायेंगे।”
देवराज चौहान ने फोन बंद करके जगमोहन को सारी बात बताई।
“तो अब तुम क्या करने की सोच रहे हो?”
“वानखेड़े से बात करूंगा।”
“वानखेड़े क्या तुम्हारे हिसाब से काम करना पसंद करेगा?” जगमोहन ने कहा।
“अगर उसे त्यागी चाहिये। डिवाइस वापस चाहिये तो वो मेरी बात जरूर मानेगा।”
देवराज चौहान ने उसी पल वानखेड़े का नंबर मिलाया और फोन कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी –फिर वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ी।
“हैलो।”
“पिंटो के पकड़ में आने का कुछ फायदा हुआ पुलिस को?” देवराज चौहान ने पूछा।
“इतना ही कि उसके बयान से पता चल जायेगा कानून को कि संगीन डकैती देवराज चौहान ने नहीं, त्यागी और जगजीत ने की है। इससे पुलिस को आगे बढ़ने की सही दिशा मिल जायेगी।” उधर से वानखेड़े ने कहा।
“ये ध्यान रखना कि परेरा की तरह कहीं पिंटो भी पुलिस कस्टडी में ना मारा जाये।”
“ऐसा नहीं होगा अब –।”
“परेरा को किसने मारा, कुछ पता –।”
“ए.सी.पी. चंपानेरकर ने। ये पुलिस का मामला है, हम देख लेंगे। तुम त्यागी, जगजीत और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के बारे में बात करो। तुम इस मामले में तभी पाक-साफ हो सकते हो, जब त्यागी-जगजीत हाथ में आ जायें।”
“तुम्हें यकीन है कि उनके हाथ में आने पर तुम उनका मुंह खुलवा लोगे?”
“पुलिस के सामने पत्थर भी बोल पड़ते हैं।” वानखेड़े के कानों में पड़ने वाले स्वर में सख्ती आ गई –“हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत हाथ में आ जायें। आज सुबह से ही इन दोनों के बारे में देशभर में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है। टी.वी. पर हर 15 मिनट के बाद त्यागी की तस्वीर दिखाई जा रही है। वो बचने वाला नहीं, कभी भी त्यागी की खबर हमारे पास आ सकती है कि वो कहां है। मुझे यकीन है कि तुम भी त्यागी को तलाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे होगे। मुझे इस वक्त न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की चिंता है कि कहीं त्यागी उसे दूसरे देश के हाथों में ना बेच दे और हम कुछ ना कर सकें।”
“मेरे पास त्यागी की खबर है।” देवराज चौहान ने कहा।
“क्या?”
“आज से पांचवें दिन वो कहीं पर अमेरिका और चीन के बीच, डिवाइस की नीलामी कराकर, उसे बेचने जा रहा है। जगह और वक्त का मुझे पता चल गया है।”
“ये तो बहुत बढ़िया बात है।” वानखेड़े का तेज स्वर कानों में पड़ा –“पुलिस उसे...!”
“जल्दी मत करो। पहले मेरी बात सुन लो।” देवराज चौहान गंभीर था।
“बोलो।”
“विनय बरुटा का नाम तो तुमने सुन रखा होगा?”
“विनय बरुटा, वो –जो डकैतियां करता –।”
“उसी की बात कर रहा हूँ मैं। कुछ महीने पहले उसने मेरे साथ कोई काम किया था और उसे लगता है कि उस काम के दौरान मैंने उस पर कोई एहसान किया है। यही वजह है कि वो इस मामले में मुझे बचाने के लिए आ गया।”
“तो?”
“त्यागी के बारे में उसी ने खबर दी है मुझे –।”
“समझा। तुम विनय बरुटा को कब से जानते हो?”
“कुछ महीने पहले, पहली बार मिला था और एक काम उसके साथ किया फिर –!”
“बुलेट ट्रेन वाला काम तो नहीं, जिसमें नौशाद –!”
“वो ही काम –।”
“तब टी.वी. के रिपोर्टरों ने बुलेट ट्रेन के बीच होने वाले हादसे की फिल्म ले ली थी और बाद में वो सब टी.वी. पर दिखाया गया। तुमने, जगमोहन ने, विनय बरुटा ने, नजरीना और –!”
“ये वक्त बीती बातें करने का नहीं है वानखेड़े...!”
वानखेड़े की गहरी सांस लेने की आवाज आई। फिर बोला– “कहो, तुम क्या कह रहे थे?”
“ये मामला अब विनय बरुटा का हो गया है, क्योंकि वो चीन की तरफ से पार्टी बनकर, त्यागी से मिलने जा रहा है, जबकि चीन का इस मामले से कोई वास्ता नहीं है।”
“समझ गया...।”
“दूसरी पार्टी अमेरिका है।”
“जहां पर मीटिंग होनी है वहां मैं, जगमोहन और विनय बरुटा होंगे। इस बार हम ही सारा मामला संभालेंगे। पुलिस इस मामले में तब तक नहीं आयेगी, जब तक कि हम इशारा ना करें।”
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वापस चाहिये सरकार –!”
“मैं जानता हूं और पूरी कोशिश होगी कि उसे हम वापस पाकर तुम्हारे हवाले कर सकें। परंतु मुद्दा ये है कि अगर मैं तुम्हें बताता हूं कि ये सब कहां होने जा रहा है तो तुम मुझे, जगमोहन और विनय बरुटा को गिरफ्तार करने की कोशिश जरूर करोगे और इससे मामला गड़बड़ा सकता है।” देवराज चौहान ने कहा।
“तुम जानते हो कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का वापस पाना कितना जरूरी है...।”
“जानता हूं।” देवराज चौहान गंभीर था।
“ऐसी स्थिति में हमें तुम लोगों की जरूरत नहीं। पहले डिवाइस की जरूरत है। हम तुम लोगों को गिरफ्तार नहीं करेंगे। वहां से निकल जाने का रास्ता देंगे।” वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ी।
“पक्का?”
“पक्का।”
“काम के बाद तुम्हारा मन बदल गया और तुमने हमें गिरफ्तार करने की...।”
“ऐसा नहीं होगा।”
“ये तो तुम कह रहे हो। तुम्हारे साथ तब और ऑफिसर भी जरूर होंगे। जैसे कि खेमकर या कामेश्वर –।”
“वो मेरी बात मानेंगे।”
“बेहतर है कि जिन्हें तुम इस काम में साथ रखोगे, पहले उनसे बात कर लो।”
“मेरी बात का विश्वास करो देवराज...!”
“ये मामला ऐसा है कि मैं इस बारे में हर तरह की तसल्ली कर लेना चाहता हूं। विनय बरुटा मेरी खातिर इस मामले में आया। उसी की मेहनत रंग
ला रही है और मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से वो कानून के पंजे में जा फंसे। मुझ पर वहां इस बारे में जिम्मेदारी होगी कि बरुटा को कुछ न हो।”
“नहीं होगा।”
“तुम इस मौके पर किसे अपने साथ रखोगे वानखेड़े?”
“ए.सी.पी. खेमकर और कामेश्वर को। क्योंकि वो शुरू से इस मामले में हैं।”
“तो उनसे बात कर लो।”
“मुझे पूरा विश्वास है कि वो ही होगा जैसा मैं चाहूंगा। परंतु तुम कहते हो तो बात कर लेता हूं उनसे। लेकिन अभी तक तुमने वो जगह नहीं बताई जहां –!”
“पहले उनसे बात करो और मुझे फोन करो।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
पास खड़ा जगमोहन गंभीर स्वर में कह उठा।
“मेरे ख्याल में अभी वानखेड़े को कुछ न बताया जाये। उसे सिर्फ शिमला पहुंचने को कह दो।”
“क्यों?”
“ये रिस्क लेना ठीक नहीं होगा कि पुलिस हमें तब गिरफ्तार ना करे। वो हमें जरूर गिरफ्तार –।”
“पुलिस को डिवाइस वापस चाहिये –इसके लिए वो किसी को भी आजाद कर सकती है। जबकि हम तो पहले से ही पुलिस को पकड़ से दूर हैं।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा –“पुलिस हमारी परवाह भी नहीं करेगी कि हम उनके सामने से जा रहे हैं। वो हमें गिरफ्तार नहीं –।”
“हम क्यों ना पहले डिवाइस को हासिल कर लें –त्यागी को पकड़ लें, तब सब कुछ पुलिस के हवाले कर...।”
“मैं डिवाइस को छूना भी पसंद नहीं करूंगा। वो बहुत खतरनाक है और मैं चाहूंगा कि उसे कानून के हाथों में पहुंचाकर अपने सिर पर लगा संगीन डकैती का दाग उतार दूं। त्यागी और जगजीत को भी पुलिस के पास पहुंचा दूं। त्यागी ने मेरे खिलाफ बहुत खतरनाक चक्रव्यूह फैलाया है। मैं इसमें से बाहर निकल सका तो मेरे लिए खुशी की बात होगी।”
☐☐☐
वानखेड़े ने ए.सी.पी. कामेश्वर और खेमकर पर नजर मारी।
तीनों के बीच गंभीरता ठहरी हुई थी।
वानखेड़े सारी बात बता चुका था उन्हें।
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वापस पाने की कीमत पर हम उन्हें गिरफ्तार नहीं करेंगे और जाने देंगे।” कामेश्वर बोला।
“इस बात की पक्की गारंटी नहीं कि वो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस हासिल कर ले।” वानखेड़े ने कहा।
“क्या मतलब?” कामेश्वर की निगाह वानखेड़े पर जा ठहरी।
“विनय बरुटा, देवराज चौहान और जगमोहन इस बात की पूरी चेष्टा करेंगे कि वो किसी तरह त्यागी से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस हथिया लें।” वानखेड़े बोला –“परंतु उनसे चूक भी तो हो सकती है।”
“इसका मतलब डिवाइस को वापस पाने की बात पक्की नहीं है।”
“नब्बे प्रतिशत तो पक्की है। दस प्रतिशत हमें इस बात को भी लेकर चलना होगा कि वो असफल हो सकते हैं। उनके सफल या असफल होने की स्थिति में, हमें उन तीनों को गिरफ्तार नहीं करना है और जाने देना है उन्हें।”
चंद पलों के लिए वहां खामोशी छा गई।
“मेरे ख्याल में हमें देवराज चौहान की बात को मंजूर कर लेना चाहिये।” ए.सी.पी. खेमकर ने कहा –“वैसे भी हम इस बारे में कुछ नहीं जानते कि त्यागी, जगजीत कहां पर हैं और कब वो डिवाइस का सौदा किससे करने जा रहे हैं। हम खाली हाथ हैं। बैठे-बैठे अगर हमें कुछ मिलने जा रहा है तो देवराज चौहान की बात मान लेने में क्या हर्ज है। देवराज चौहान हमें इस बात की खबर भी इसलिए दे रहा है कि त्यागी उसके चेहरे और उसके नाम की आड़ में ये सब कर रहा है। पुलिस के सामने ये सब करके वो अपने आपको संगीन डकैती में निर्दोष साबित करना चाहता है। हो सकता है वो लोग जगजीत, त्यागी को भी पकड़कर हमारे हवाले कर दें या फिर डिवाइस भी ना मिले। परंतु हमें इस मामले में देवराज चौहान का साथ देना चाहिये। इसी में देश का फायदा है।”
कामेश्वर के चेहरे पर सोच के भाव थे।
वानखेड़े गंभीर था।
“बोलो कामेश्वर।” खेमकर बोला।
“ठीक है। कामेश्वर ने सिर हिलाया –“देवराज चौहान की बात मानने में ही बेहतरी है।”
“तो हम देवराज चौहान, जगमोहन और विनय बरुटा को गिरफ्तार नहीं करेंगे।” वानखेड़े ने कहा।
“हां, ऐसा ही करेंगे।” कामेश्वर ने वानखेड़े को देखा।
“हम सिर्फ हालातों पर नजर रखेंगे। काम इन तीनों का होगा, प्लानिंग इनकी होगी। ये ही देवराज चौहान चाहता है।”
खेमकर और कामेश्वर ने सिर हिला दिया।
“तो तुम दोनों में से कोई देवराज चौहान को विश्वास दिलाये कि –।”
“तुम्हारा मतलब कि देवराज चौहान से हम बात करें।” खेमकर बोला।
“नम्बर मैं मिला देता हूं।” वानखेड़े ने टेबल पर अपना रखा मोबाईल उठाया।
“देवराज चौहान ने अभी तक ये नहीं बताया कि ये सब कुछ कहां होने जा रहा है।” कामेश्वर ने कहा।
“जब तुम उससे बात करके उसकी तसल्ली कर दोगे तो वो बतायेगा।” वानखेड़े ने देवराज चौहान का मोबाईल नंबर बताया और कामेश्वर की तरफ फोन बढ़ाया –“तुम बात करो देवराज चौहान से –।”
कामेश्वर ने गंभीर अंदाज में मोबाईल लिया और कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जा रही थी –फिर देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी–
“हां, वानखेड़े...!”
“मैं ए.सी.पी. कामेश्वर हूं...।” कामेश्वर बोला –“वानखेड़े और खेमकर मेरे सामने हैं।”
देवराज चौहान की आवाज नहीं आई।
“ये पहली बार है कि मैं किसी अपराधी से वक्ती तौर पर दोस्ती करने जा रहा हूं।” कामेश्वर ने कहा।
“देश की भलाई के लिए ये करना इस वक्त ठीक है ए.सी.पी. साहब! हिन्दुस्तान को न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वापस चाहिये। पुलिस को अपराधी चाहिये और मुझे संगीन डकैती के आरोप से मुक्ति चाहिये। इस तरह सबकी जरूरतें पूरी हो जायेंगी।”
“हमें तुम्हारी बात मंजूर है।”
“क्या मंजूर किया है, वो अपने मुंह से कहिये –।”
“तुम्हें, जगमोहन और विनय बरुटा को, सामने आने पर भी हम गिरफ्तार नहीं करेंगे।”
“और...?”
“क्या और?”
“प्लानिंग हमारी होगी, परंतु आप लोगों की नजर में सब कुछ होगा। आप लोग दखल तब देंगे, जब हम कहेंगे।”
“ठीक है। तुम डिवाइस त्यागी से लेकर हमारे हवाले कर दोगे?”
“ऐसा ही करूंगा, अगर डिवाइस हाथ में आ गई तो –।”
“क्या तुम्हें शक है कि डिवाइस हाथ में नहीं आयेगी?”
“कोई शक नहीं। परंतु बुरी स्थिति आ जाने पर ऐसा हो सकता है।”
कामेश्वर ने गहरी सांस ली। फिर कहा–
“तुम बताओ कि ये सब कहां होने जा रहा है...?”
“इस बारे में मैं वानखेड़े से बात करूं तो आपको एतराज नहीं होगा।” देवराज चौहान ने उधर से कहा।
“बेशक तुम वानखेड़े से बात करो।” कहते हुए कामेश्वर ने फोन वानखेड़े को दे दिया।
“कहो –।” वानखेड़े ने फोन पर कहा।
“आज से पांचवें दिन शिमला के माल रोड पर, वक्त सुबह के ग्यारह बजे।”
☐☐☐
चौथे दिन, शिमला में।
देवराज चौहान और जगमोहन, माल रोड के पास ही बने, गुलमर्ग होटल में ठहरे थे। होटल के मालिक जैन साहब थे। जगमोहन ने होटल पहुंचते ही जैन साहब से दोस्ती गांठी और दूसरी मंजिल पर ऐसा कमरा ले लिया, जहां से दूर-दूर तक पहाड़ों का पूरा नजारा दिखता था। कमरा भी शानदार था। दीवारों और कमरे की छत पर शीशे लगा रखे थे। कमरा हर वक्त चमकता नजर आता था।
जगमोहन नहा-धोकर बाहर जाने लगा तो देवराज चौहान बोला– “यूं शिमला में तुम्हारा खुले घूमना ठीक नहीं। त्यागी, जगजीत ने तुम्हें देख लिया तो वो सतर्क हो जायेंगे और उस स्थिति में डिवाइस का सौदा ना करके, शिमला से चले जायेंगे।”
जगमोहन ठिठक गया। बात सही थी देवराज चौहान की।
“मतलब कि कमरे में ही बंद रहें –।”
“ये ही ठीक रहेगा। कल सुबह माल रोड पर डिवाइस का सौदा –।”
तभी देवराज चौहान का फोन बजा।
“हेलो!” देवराज चौहान ने बात की।
“शिमला पहुंच गये?” विनय बरुटा की आवाज कानों में पड़ी।
“हां...।”
“कहां ठहरे हो?”
“होटल गुलमर्ग। कमरा नंबर 218! देवराज चौहान ने बताया।
“मैं आता हूं।”
देवराज चौहान ने फोन बंद करते हुए जगमोहन से कहा–
“बरुटा यहां आ रहा है।”
“साला 100 करोड़ हजम कर गया था बुलेट ट्रेन में।” जगमोहन कह उठा।
“तुम कभी किसी बात को भूल भी जाया करो।” देवराज चौहान बोला।
“नोटों वाली बात मैं नहीं भूलता।”
आधे घंटे बाद विनय बरुटा उनके पास आ पहुंचा।
जगमोहन ने तीखी निगाहों से उसे घूरा।
“तुम कहां रुके हो?” देवराज चौहान ने पूछा।
“रॉयल होटल में। पास ही में है।” बरुटा एक कुर्सी पर बैठता बोला और जगमोहन को देखा।
जगमोहन उसे घूर रहा था।
“तुम्हें क्या हुआ?” बरूटा मुस्कराया।
“तेरे को देखकर मुझे 100 करोड़ की याद आ गई –जो तू मुफ्त में ले उड़ा था।”
“इतना भी मुफ्त में नहीं ले गया कि तेरे को मुंह फुलाना पड़े।”
“तू मुफ्त में ले गया था।” जगमोहन उखड़े स्वर में बोला।
“मैंने मेहनत की थी। जान हथेली पर रखकर बुलेट ट्रेन में –!”
“लेकिन काम तो सारा देवराज चौहान ने किया था। तूने तो...!”
“मुझे मौका ही कहां मिला कुछ करने का। तेरे साथ मैं पैंट्री कार में फंस गया था। फिर भी बाद में जितना मौका मिला, उतना तो किया ही था। 100 करोड़ पर मेरा पूरा हक था। ये बात पहले ही तय हो गई थी कि रकम आधी-आधी –।”
“तेरे से ज्यादा काम तो नजरीना ने किया था। रोहन ने किया –!”
“चुप रह। जितना मौका मिला मैंने काम किया, बाकी मेरे बच्चे ने कर दिया तो क्या हो गया –?”
“बच्चा?” जगमोहन के होंठ भिंचे।
“मेरा बच्चा ही तो है देवराज चौहान। देवराज चौहान से बड़ा डकैती
मास्टर हूं मैं।”
“तूने फिर गलत बात बोली।”
“गलत क्या? ठीक तो कहा है। देवराज चौहान साल में दो-चार डकैतियां करता है। मैं आठ-नौ करता हूं, तो बड़ा कौन हुआ?”
“तेरा नाम कहीं भी सुनने में नहीं आता। देवराज चौहान का नाम गूंजता है।” जगमोहन का स्वर तीखा था।
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई थी।
“देवराज चौहान हर डकैती के बाद ढोल पीटता है कि मैंने डकैती कर ली तो पुलिस पीछे पड़ जाती है। जबकि मैं खामोशी से काम करके निकल जाता हूं। शोर भी नहीं करता।” विनय बरुटा कह उठा –“मैं बड़ा डकैती मास्टर हूं और देवराज चौहान मेरा बच्चा है।” बरुटा कुर्सी से उठा और जगमोहन के पास पहुंचकर धीमे स्वर में बोला –“तू मेरे साथ डकैतियां करना शुरू कर दे। देवराज चौहान में क्या रखा है। तुम और मैं बीस दिन में एक डकैती किया करेंगे और माल आधा-आधा। मेरे साथ रहकर तू बहुत दौलत कमायेगा।”
जगमोहन के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।
“मेरी बात पर शांति से सोचना।” बरुटा की आवज धीमी ही थी।
“मैं कुछ कहूं?” जगमोहन भी धीमे स्वर में बोला।
“कह...।”
“एक दिन मैं तेरी दौलत पर हाथ मारूंगा। कहां रख छोड़ी है तूने अपनी दौलत?”
“तेरे से तो बात करना ही मुसीबत मोल लेना है!” बरुटा वहां से हटा और वापस देवराज चौहान के पास कुर्सी पर जा बैठा –“जरा ये तो सोच कि मैं इस मामले में क्यों आया। उसी 100 करोड़ की वजह से। जिस शराफत से देवराज चौहान ने मुझे 100 करोड़ ले जाने दिए, वो मैं भूला नहीं था। जब मुझे पता चला कि वीरेन्द्र त्यागी नाम का आदमी खतरनाक शरारत कर रहा है। वो देवराज चौहान बनकर संगीन डकैती करके देवराज चौहान को फंसाने पर लगा है तो देवराज चौहान को बचाने की खातिर मैं इस मामले में...!”
“बड़ी मेहरबानी –।” जगमोहन ने व्यंग्य से कहा।
“मेहरबानी उन 100 करोड़ की दे जो मैं ले गया था। उन्हीं की वजह से मैं इस मामले में आया।”
“कितनी बार कहेगा?” तीखा स्वर था जगमोहन का।
“जब तू मान जायेगा तो मैं कहना छोड़ दूंगा।” बरुटा मुस्कराया।
“बहुत घिसा हुआ है तू।”
“मुझे तो तेरी घिसावट ज्यादा लगती है।” बरुटा बराबर मुस्करा रहा था।
“कम-से-कम सौ करोड़ में मुझे तो कुछ दे देता।” जगमोहन ने कहा।
“क्यों, तेरे को देवराज चौहान ने नहीं दिया जो मुझसे –।”
“मैं ये 100 करोड़ भूलने वाला नहीं –।”
बरुटा ने देवराज चौहान को देखकर कहा– “ये हमेशा ही ऐसा रहता है या इस वक्त ऐसा लग रहा है?”
“कभी मौका लगा तो मैं जवाब दूंगा इस बात का।” जगमोहन कुढ़कर बोला।
“पता नहीं तू मेरे पीछे क्यों पड़ा है –।” जगमोहन पर नजर मारकर बरुटा ने देवराज चौहान से कहा –“हमें त्यागी और डिवाइस के बारे में बातें करनी चाहिए। मैं दो दिन से शिमला में हूं और त्यागी-जगजीत की खबर पाने की चेष्टा में लगा हूं। परंतु उनकी खबर मुझे नहीं मिली। अगर वो किसी होटल में ठहरे हैं तो मैं उनका पता नहीं लगा पाया।”
“कल काम कैसे करना है, हमें इस पर बात करनी चाहिये।” देवराज चौहान ने कहा।
“मेरी जब भी त्यागी से बात होती है तो वो देवराज चौहान बनकर मुझसे बात करता है और जरूरत पड़ने पर जगजीत को जगमोहन के रूप में पेश करता है, फोन पर। मुझे पूरा यकीन है कि अमेरिका वालों से भी वो देवराज चौहान बनकर बात कर रहा होगा और कल जगजीत के साथ देवराज चौहान और जगमोहन बनकर ही सामने आयेंगे।”
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता नाच उठी।
“कल साले नहीं बचेंगे।” जगमोहन गुर्रा उठा।
“तैश में आकर हमें कुछ नहीं करना है।” बरुटा गंभीर स्वर में बोला –“शांत और ठंडे दिमाग से काम लेना है। फायदा तभी है जब हम उनसे डिवाइस हासिल कर सकें और उन्हें पकड़ सकें। मैं अपनी सारी प्लानिंग बताऊंगा देवराज चौहान –लेकिन तुम मुझे बताओ कि तुमने क्या-क्या प्लान किया है। अब हमें कल के लिए तैयार हो जाना चाहिये।”
☐☐☐
वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत कल ही शिमला पहुंचे थे और टूरिस्ट के तौर पर एक होटल में कमरा किराये पर ले लिया था। दोनों के पास सिर्फ एक सूटकेस था जिसमें उनके दो जोड़ी कपड़े और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस रखी हुई थी। दोनों ने चेहरों पर देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे वाले मास्क लगा रखे थे औ उस पर मूंछे और नजर का चश्मा (प्लेन शीशों का चश्मा) दोनों ने लगा रखा था कि टी.वी. पर देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरों को कोई पहचान ना ले।
रात उनकी आराम से बीती थी।
अगले दिन नाश्ते के बाद दोनों कमरे में ही बैठे थे।
चेहरों पर से अभी-अभी मास्क हटाये थे।
जगजीत के चेहरे पर चिंता दिख रही थी। आखिरकार त्यागी कह उठा– “तुम परेशान क्यों हो?”
“मैं ये काम जल्दी खत्म करके वापस सूरत पहुंच जाना चाहता हूं।”
“अभी बहन और बच्चों के लिए?”
“हां। पता नहीं वो किस हाल में होंगे। इतने दिन हो गये, अपहरण करने वाले ने मुझे फोन नहीं किया। अब तो विभा के फोन पर फोन करता हूं तो वो भी नहीं मिलता। उन्हें ढूंढना है मैंने।”
“फिक्र मत कर, मैं इस काम में तेरा पूरा साथ दूंगा।” त्यागी में कहा।
“तब तक विभा और उसके बच्चों को कुछ हो गया तो?”
“तो उसे कुत्ते की मौत मारेंगे, जिसने उनकी जान ली।” त्यागी की आवाज में दरिंदगी आ गई।
“इससे मुझे क्या फायदा? मेरी बहन-बच्चे तो गये जान से – ।” जगजीत जैसे तड़प उठा –“हमारे पास बीते तीन-चार दिन थे, उस वक्त में हम उन्हें ढूंढ सकते थे। परन्तु –!”
“डिवाइस को बेचने का काम भी जरूरी है। इसे हम ज्यादा लटका नहीं सकते। कल इससे फुर्सत मिल जायेगी तो फिर सूरत जाकर तेरी बहन को तलाश कर लेंगे।”
जगजीत ने कुछ नहीं कहा –फिर चुप रहकर बोला–
“हमें पता करना चाहिये कि विनय बरुटा और रॉबर्ट शिमला पहुंचे कि नहीं...।”
“हमें खामोशी से बैठना चाहिये। इस बारे में ज्यादा उत्सुकता नहीं दिखानी है। कल सुबह का वक्त है मीटिंग का, तब तक दोनों का ही फोन आ जायेगा।” वीरेन्द्र त्यागी ने कहा।
जगजीत कंधे उचकाकर रह गया।
“तुम्हारा भविष्य का क्या प्रोग्राम है?” त्यागी ने जगजीत से पूछा।
“कितना दोगे मुझे?” जगजीत के होंठों पर मुस्कान उभरी।
“जो कैश मिलेगा वो तुम ले लेना। मतलब कि कुल रकम का पच्चीस प्रतिशत...।”
“ये तो मेरे लिए बहुत बड़ी रकम है।” जगजीत के चेहरे पर खुशी की मुस्कान आ गई।
“मैं डायमंड लेकर चला जाऊंगा। हम दोनों के पास एक-दूसरे के फोन नंबर रहेंगे और हम बातचीत कर लिया करेंगे। जरूरत पड़ने पर मिलेंगे भी। पर तुमने क्या सोचा कि कहां जाओगे?”
“मुझे तो ये शिमला अच्छा लगा। मुम्बई से दूर है। विभा और बच्चों के साथ शिमला में कोई बंगला लेकर आराम से जिंदगी बिता दूंगा। अपनी शादी के बारे में भी सोचूंगा।”
त्यागी मुस्कराया।
“मुस्कराये क्यों?”
“तुम्हारी शादी की बात सुनकर। मेरी जिंदगी में शादी का महत्व नहीं है। मुझे दौलत से प्यार है। शादी को मैं बेकार की चीज समझता हूं। मेरा मानना है कि दौलत के साथ औरत भी हो तो हालात खतरनाक हो जाते हैं।”
“ये तुम्हारा सोचना है।”
“मेरे साथ हमेशा ऐसा ही हुआ है। कई बार औरतों की वजह से मुझे दौलत खोनी पड़ी।”
“जो भाग्य में नहीं हो, वो कैसे मिल सकता है?”
“मैं भाग्य पर भरोसा नहीं करता। मेहनत पर विश्वास है मुझे। अब ही देख लो, हमने मेहनत की, दिमाग लगाया और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस जैसी बेशकीमती आईटम हमने हासिल कर ली। जिसकी कीमत सैकड़ों करोड़ रुपये हमें मिलने जा रही है। ये भाग्य नहीं, मेहनत का नतीजा है।”
“इस मामले में मेरी राय तुमसे अलग है।” जगजीत मुस्कराया –“मेहनत के साथ भाग्य भी होता है, वरना मेहनत तो हर कोई करता है। कोई अमीर बन जाता है तो कोई गरीब रह जाता है।”
“तुम अपने विचारों के साथ जिंदा रहो –और मुझे अपने विचारों के साथ जीने दो।” त्यागी भी मुस्करा पड़ा।
जगजीत बात खत्म करने वाले अंदाज में उठा। “मैं बाहर का चक्कर लगा!”
“बाहर मत जाना। यहीं रहो। हमें सतर्कता बरतनी है। अपने रूप में या देवराज चौहान, जगमोहन के रूप के साथ बाहर जाना ठीक नहीं। मेरा और देवराज चौहान का चेहरा टी.वी. में –।”
“परंतु मेरी कोई तस्वीर नहीं है पुलिस के पास।”
“तुम्हें देवराज चौहान और जगमोहन पहचानते हैं।” वीरेन्द्र त्यागी ने कहा।
“तो वो शिमला में नहीं आने वाले।”
“ठीक है, तुम अपने चेहरे के साथ बाहर जा सकते हो। होटल वालों से सतर्क रहना। कहीं वो पुलिस को खबर कर दें कि यहां हम वेश बदलकर रह रहे हैं।” त्यागी बोला।
“मैं ध्यान रखूंगा।”
☐☐☐
विनय बरुटा दोपहर बाद अपने होटल के कमरे में पहुंचा तो हुशांग ली को नींद में पाया। बेल बजाने पर उसने उठकर दरवाजा खोला, तो बरुटा कह उठा– “तुम नींद बहुत लेते हो।”
“कभी-कभी तो फुर्सत का वक्त मिलता है।” हुशांग ली नींद भरे चेहरे पर मुस्कराहट लाकर बोला –“मेहरबानी करके तुम मेरी पत्नी को फोन करके बता दो कि मैं तुम्हारे साथ हूं –किसी औरत के साथ नहीं...।”
“तुम्हारी पत्नी ये बात जानती है। आते समय पांच दिन के हिसाब से ढाई लाख रुपया उसे दिया था।” बरुटा बोला।
“पर औरतों को चैन कहां। डेढ़ घंटा पहले फोन आया और मुझे कहनी लगी कि मैं लंबी औरत के साथ हूं या नहीं?”
विनय बरुटा मुस्करा पड़ा।
“उसे बता दो कि मेरे पास किसी भी साईज की औरत नहीं है। मैंने जिंदगी में कभी गड़बड़ नहीं की, परंतु उसका शक कभी खत्म नहीं होता। कॉलेज से आता हूं तो रोज पूछती है कि आज किसी लड़की की एक्स्ट्रा क्लास तो नहीं ली। अब तो मैंने उसे समझाना भी छोड़ दिया है कि शक न करे। ये उम्र मेरी इज्जत से बिताने की है।”
विनय बरुटा कमरे का दरवाजा बंद करता कह उठा – “अपनी पत्नी का फोन नंबर मिलाकर मुझे दो।”
हुशांग ली ने मोबाईल से नंबर मिलाया और फोन उसे देता बोला– “अगर वो तुम्हें कुछ कह दे तो बुरा मत मानना।”
विनय बरुटा ने फोन कान से लगाया, फौरन ही बात हो गई।
“ये होटल के कमरे में क्या कर रहे हैं?” उधर से हुशांग ली की पत्नी ने पूछा।
“मेरे साथ हैं। ये बहुत शरीफ आदमी हैं। किसी लड़की के साथ नहीं हैं ये...।” विनय बरुटा ने कहा।
“मैं जानती हूं कि ये कितना शरीफ है। इसने मुझे फंसाने में बहुत मेहनत की थी। एक थप्पड़ भी खाया था, परंतु मुझे फंसाकर ही रहा ये। मैं भी बेवकूफ थी जो चीनी से शादी कर ली।”
“मुझे तो ये बहुत शरीफ दिखता है।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि आप भी औरत के साथ –।”
“राम-राम! आप कैसी बातें करती हैं। मैंने तो अभी शादी भी नहीं की।” विनय बरुटा जल्दी से कह उठा –“मैं ऐसे काम नहीं करता। जरा भी नहीं-और कोई साथ होता है तो उसे भी नहीं करने देता।”
“ये बात तो आप सरासर झूठ बोल रहे हैं।”
“कौन-सी बात?”
“कि आपने किया ही नहीं है –।”
“सच में –।”
“तो पहली मुलाकात में आपने ये बात क्यों नहीं बताई?”
“क्या बताता कि मैंने आज तक किया नहीं है –।”
“हां।”
“फिर आप क्या करतीं?” विनय बरुटा अचकचा उठा।
“खैर छोड़िये, वापस मुम्बई आयें तो मुझसे जरूर मिलें।” उधर से उसने गहरी सांस लेकर कहा।
बरुटा ने सकपकाकर हुशांग ली को देखा।
हुशांग ली उसके चेहरे के भाव देखकर मुस्कराया।
“मिलेंगे ना?”
“ह...हां...जरूर।” बरुटा ने कहा और फोन बंद करके हुशांग ली से कहा –“तुम्हारी पत्नी तो बहुत खतरनाक है।”
“क्यों?”
“ये सुनकर कि मैंने आज तक नहीं किया, वो मिलने को कहने लगी।”
हुशांग ली हंस पड़ा।
“तुम हंस रहे हो –।” विनय बरुटा ने आंखें सिकोड़ी।
“तुम मेरी पत्नी को गलत समझ रहे हो। उसकी तीस साल की बहन कुंवारी बैठी है। उसके लिए वो कोई शरीफ लड़का ढूंढ रही है, इसीलिये उसने तुमसे मिलने को कहा।”
“ओह!” बरुटा के होंठ सिकुड़े –“तो ये बात है –।”
“तुम बताओ कि देवराज चौहान मिला?”
“हां, बात हो गई। कल हम सब मिलकर काम करेंगे।” बरुटा गंभीर-सा कह उठा।
“एक बात सोच-सोचकर मैं परेशान हूं कि दो-दो डकैती मास्टर न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हासिल करके पुलिस को लौटा देना चाहते हैं। तुम मुझे बेवकूफ तो नहीं बना रहे?”
“विश्वास करो। मैंने ईमानदारी से तुम्हें सच कहा है, जरा भी झूठ नहीं कहा। कल वहां पुलिस भी होगी।”
“पुलिस?” हुशांग ली सकपकाया।
“सादे कपड़ों में, परंतु वो हमारे लिए नहीं होगी। वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत के लिए होगी।”
“कभी-कभी तो सोचता हूं कि तुम्हारी बातों पर यकीन करके मैं गलती कर रहा हूं।” हुशांग ली ने उसे देखा।
“तुमने कोई गलती नहीं की, बल्कि इस वक्त तुम देश के लिए जरूरी काम कर रहे हो। परंतु तुम्हारा नाम सुनहरे शब्दों में नहीं लिखा जायेगा, क्योंकि तुम प्राईवेट तौर पर काम कर रहे हो।”
“कल वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत पकड़े जायेंगे, न्यूक्लियर डिवाइस हमें मिल जायेगी?”
“आशा तो है।”
☐☐☐
अगले दिन सुबह साढ़े नौ बजे होटल में त्यागी और जगजीत।
वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत मेकअप में थे।
त्यागी ने देवराज चौहान के चेहरे वाला मास्क पहन रखा था और उस पर दाढ़ी-मूंछे लगा रखी थीं। आंखों पर नजर का चश्मा लगा लिया था। ऐसे में उसे देवराज चौहान के तौर पर भी पहचानना आसान नहीं था।
जगजीत के चेहरे पर जगमोहन के चेहरे वाला मास्क लगा था। वो पूरी तरह जगमोहन लग रहा था।
“तुम अच्छी तरह जानते हो जगजीत कि तुम्हें क्या करना है।” त्यागी गंभीर स्वर में बोला।
“हां।” जगमोहन बने जगजीत ने सिर हिलाया।
“मैं दूर रहकर तुम पर नजर रखूंगा अमेरिका और चीन को सिर्फ पांच मिनट का वक्त देना है। नीलामी पांच मिनट में खत्म हो जानी चाहिए। किसी चीज की बोली लगाने और कीमत तय करने में पांच मिनट बहुत होते हैं। बाकी बातें जैसे समझाई हैं वैसे ही करना। जब तुम वहां से चलोगे तो मैं वहीं रहूंगा और इस बात का ध्यान रखूंगा कि कोई तुम्हारा पीछा ना करे। अगर ऐसा हुआ तो तुम्हें खबर कर दूंगा। उनसे अलग होने के बाद तुमने यहां नहीं आना। घूमते रहना और इस बात का ध्यान रखना कि तुम पर कोई नजर तो नहीं रख रहा। जब तसल्ली हो जाये, कि नजर नहीं रख रहा, तो तभी होटल पहुंचना।”
जगजीत ने सिर हिलाकर कहा–
“समझता हूं मैं...। फिक्र मत करो। मेरी तरफ से कोई गलती नहीं होगी।”
“हम बहुत बड़ी दौलत के मालिक बनने जा रहे हैं जगजीत।” त्यागी ने हंसकर कहा।
“इस वक्त मुझे लग रहा है कि जैसे मैं बहुत बड़ा काम करने जा रहा हूं –।” जगजीत मुस्कराकर बोला।
“बड़ा काम करने ही तो जा रहे हो। इतना बड़ा सौदा तुम ही तय करोगे और मैं तुम पर नजर रखूंगा। अभी हमारे पास दो घंटे पड़े हैं, परंतु तुम्हें अभी यहां से निकल जाना चाहिये। टहलते हुए माल रोड पहुंचो। मैं आधे घंटे बाद होटल से निकलूंगा। रिवॉल्वर तुम्हारे पास है?”
“हां।” जगजीत ने जेब थपथपाई –“मोबाईल फोन भी मेरे पास है। माल पर आगे-पीछे हुए तो वो मुझे ही फोन करेंगे।”
“तो जा। ये ध्यान रखना कि वापसी पर किसी को अपने पीछे यहां तक मत ले आना कि वो यहां से मुफ्त में डिवाइस ले जाये।”
“क्या बच्चों जैसी बातें करता है।” जगजीत ने हंसकर कहा और दरवाजे की तरफ बढ़ता कह उठा –“इस बात को भूल मत जाना कि ये काम खत्म करके तूने मेरे साथ सूरत जाना है और मेरी बहन और उसके बच्चों को तलाशना है।”
“मुझे भी तुम्हारी बहन की चिंता है। भूला नहीं हूँ मैं...।”
☐☐☐
शिमला की माल रोड और रिज रोड।
दिन के ग्यारह बज रहे थे। धूप खिली हुई थी। वहां पड़े हर बेंचों पर लोग बैठे धूप सेक रहे थे और दूर-दूर तक नजर आते बर्फ से ढकी पहाड़ों की चोटियों के दृश्यों का मजा ले रहे थे। टूरिस्ट भी थे उनमें और स्थानीय लोग भी थे। भीड़ बहुत थी। लोगों का आना-जाना बराबर लगा हुआ था। कई फोटोग्राफर घूम रहे थे। जो कि टूरिस्टों की तस्वीर स्थानीय ड्रेस में खींचकर तैयार करके देते थे। कुछ टूरिस्ट घोड़ों पर सवार होकर माल रोड का चक्कर लगा रहे थे।
गुब्बारे वाले गुब्बारे बेचने पर लगे थे।
एक तरफ बनी स्टॉल पर चाय-कॉफी, आइसक्रीम मिल रही थी। हर तरफ भीड़-ही-भीड़ थी। हर कोई अपने काम में व्यस्त था। विवाह करके हनीमून के लिए आये जोड़े भी बहुत संख्या में दिख रहे थे।
विनय बरुटा, हुशांग ली के साथ इस वक्त यहीं पर मौजूद था। हुशांग ली ने ब्राउन कलर का सूट पहन रखा था। टाई लगा रखी थी, जबकि बरुटा कमीज-पैंट में था। आधी बांह का स्वेटर पहन रखा था।
विनय बरुटा की निगाह हर तरफ फिर रही थी। वो देवराज चौहान और जगमोहन से संबंध बनाए हुए था फोन पर, जो कि पास में ही कहीं मौजूद थे।
तभी हुशांग ली कह उठा–
“इतनी भीड़ में कैसे तुम त्यागी और जगजीत को तलाश कर पाओगे?”
“हौसला रखो, वो मिल जायेंगे।” बरुटा ने शांत स्वर में कहा और मोबाईल निकालकर नंबर मिलाने लगा।
बात हुई। जगजीत की आवाज कानों में पड़ी–
“हैलो।”
“मैं विनय बरुटा।” बरुटा आसपास नजरें दौड़ाता कह उठा –“आज हमें शिमला में मिलना था। वक्त हो चुका है।”
“मैं यहीं हूं...।”
“तुम जगमोहन हो शायद...।” विनय बरुटा ने जानबूझकर कहा।
“हां।”
“देवराज चौहान कहां है?”
“वो भी यहीं है। तुम गांधी की मूर्ति की तरफ आ जाओ, मैं वहीं हूं।”
“अभी पहुंचा।” विनय बरुटा ने फोन बंद किया और पुनः नंबर मिलाने लगा।
“क्या हुआ, वो मिलेंगे या नहीं?” हुशांग ली बोला।
“वो यहीं हैं, उस तरफ, गांधी जी की मूर्ति के पास।”
“ओह! अब तुम किसे फ़ोन कर रहे हो।”
“देवराज चौहान को...हैलो।” बरुटा ने फोन पर बात की- “वो लोग गांधी की मूर्ति की तरफ हैं और मैं वहीं जा रहा हूं। सब काम ध्यान से करना, चूक मत जाना।” कहकर बरुटा ने फोन बंद किया।
हुशांग ली थोड़ा परेशान दिखा।
“अब तुम्हें क्या हुआ?” बरुटा ने पूछा।
“घबराहट हो रही है।” हुशांग ली ने कहा।
“तुम्हें मालूम है कि तुमने क्या करना है?”
“वो तो सब याद है...।”
“तो घबराओ मत। वो सब याद रखो। मैं तुम्हारे साथ हूं, किसी बात की फिक्र मत करो।”
“तुमने बताया था कि वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत खतरनाक है।”
“सब ही खतरनाक हैं।” बरुटा का स्वर कड़वा हो गया –“सिर्फ तुम्हें छोड़कर, परंतु यहां हम झगड़ा करने नहीं आये। खासतौर से जब तक तुम पास में हो, कोई झगड़ा नहीं होगा। तुमने सिर्फ सौदा करना है डिवाइस का –और जैसा मैंने समझाया है, उसी ढंग से बात करना। कोई भी बात भूल मत जाना। चलो, हमें गांधी की मूर्ति के पास पहुंचना है।”
दोनों चल पड़े।
आस-पास भीड़ थी।
“मैं अगर तुम्हारी बताई बातें भूल गया तो?” हुशांग ली ने पूछा।
“तो मैं तुम्हें नीचे फेंक दूंगा –और मुम्बई जाकर तुम्हारी पत्नी से ढाई लाख वापस ले लूंगा।”
“इतना ज्यादा मत सोचो। मुझे सब याद है। मैं भूलने वाला नहीं।”
☐☐☐
जगजीत को रॉबर्ट का फोन भी आया था, तो जगजीत ने उसे भी गांधी जी की मूर्ति के पास पहुंचने को कहा और पहले रॉबर्ट ही जगजीत के पास पहुंचा। उसके साथ एक और अमेरिकन व्यक्ति था।
जगजीत को अकेला पाकर रॉबर्ट ने कहा– “देवराज चौहान कहां है?”
“यहां उसका काम नहीं है।” जगजीत बोला –“डिवाइस की कीमत ही तो लगानी है यहां...।”
“तुम जगमोहन हो। टी.वी. पर तुम्हारी तस्वीर भी दिखाई गई थी। रॉबर्ट ने कहा, फिर अपने साथी की तरफ इशारा करके बोला –“ये विलियम है।”
जगजीत ने उसे देखकर हौले से सिर हिलाया।
“हम तुम्हें 1500 करोड़ देने को तैयार हैं, डिवाइस के बदले। रकम साथ लाये हैं।” रॉबर्ट बोला।
“चीन की पार्टी को आ लेने दो।” जगजीत ने कहा।
“वो कहां है?”
“यहीं है और आ रही है।”
“मेरे ख्याल में तो चीन की पार्टी की जरूरत नहीं है। 1500 करोड़ रुपये बहुत बड़ी रकम –।”
“जैसा कि हममें पहले ही बात हो चुकी है –कि नीलामी में जो रकम ज्यादा बोलेगा वो ही –।”
तभी विनय बरुटा और हुशांग ली उनके पास आ पहुंचे।
“कैसे हो जगमोहन?” विनय बरुटा ने मुस्कराकर कहा –“मैं विनय बरुटा हूं –और ये हैं मिस्टर हुशांग ली। चीन का सरकारी आदमी है और डिवाइस का सौदा करने आये हैं।”
जगजीत ने हुशांग ली से हाथ मिलाया।
रॉबर्ट ने हुशांग ली को घूरा।
जबकि हुशांग ली ने मुस्कराकर उससे और विलियम से हाथ मिलाया।
“दोस्तों!” जगजीत गंभीर स्वर में कह उठा –“अब आपके पास पांच मिनट हैं, कीमत तय कीजिये डिवाइस की। ये बात जेहन में रखें कि जिसके पास डिवाइस होगी वो दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क बन जायेगा।”
पल भर के लिए वहां खामोशी छा गई।
“1500 करोड़ रुपये।” विलियम बोला।
विनय बरुटा ने हुशांग ली को देखा।
“1550 करोड़ रुपये।” हुशांग ली बोला।
“1600 करोड़ रुपये...।” विलियम ने पुनः कहा।
हुशांग ली ने विनय बरुटा को देखा।
“आगे बढ़िये मिस्टर हुशांग ली। आपने तो कहा था कि आप हर कीमत पर डिवाइस खरीदना चाहेंगे।”
“वो बात तो ठीक है, परंतु कीमत ज्यादा बढ़ी तो उतना पैसा इस वक्त मेरे पास नहीं होगा।”
“चिंता क्यों करते हैं। कीमत बढ़ने पर इन अमरीकियों के पास भी इतना पैसा नहीं होगा। जितना इस वक्त है, वो दे देंगे। बाकी दिल्ली स्थित एम्बेसी से संपर्क बनाकर, इन्हें रुपया तैयार रखने को कह दीजियेगा।” बरुटा बोला।
हुशांग ली ने सिर हिलाया, फिर बोला– “1650 करोड़ रुपये –।”
विलियम ने रॉबर्ट को देखा, तो रॉबर्ट ने कहा– “1700 करोड़ रुपये –।”
“1750 –।”
“1800 –।”
“मिस्टर रॉबर्ट!” हुशांग ली ने कहा –“आप बेवजह डिवाइस की कीमत बढ़ा रहे हैं।”
“तो तुम पीछे हट जाओ।” रॉबर्ट बोला।
“1850 करोड़ रुपये –।” जवाब में हुशांग ली बोला।
“1900 करोड़ रुपये –।” रॉबर्ट ने पक्के स्वर में कहा। नजरें हुशांग ली पर थीं।
“1950 करोड़ रुपये –।”
“2000 करोड़ रुपये –।”
हुशांग ली ने विनय बरुटा को देखा।
“आगे बढ़िये हुशांग ली साहब। चीन को इस डिवाइस की बहुत जरूरत है।”
“लेकिन रकम बहुत बढ़ रही है। मेरी भी सीमा है कुछ...।”
“सीमा अभी दूर है आपकी।” बरुटा बोला।
हुशांग ली ने रॉबर्ट को देखकर कहा– “ये तो मैं अब देख रहा हूं कि अमेरिका जनता से टैक्स लेकर, पैसा किस तरह बरबाद करता है।”
रॉबर्ट और विलियम मुस्कराये, परंतु चुप रहे।
“2050 करोड़ रुपये –।” हुशांग ली कह उठा।
“2100 करोड़ रुपये –।”
“बस!” हुशांग ली माथे का पसीना पोंछते हुए बोला –“मैं और आगे नहीं बढ़ सकता।”
“ये बात तो गलत हैं हुशांग ली साहब। मैंने कितनी मेहनत की है। मेरी कमीशन नहीं मिलेगी इस तरह तो –।”
“तुम्हारी कमीशन के चक्कर में मैं बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकता। तुम्हें चाय-पानी का खर्चा मिल जायेगा।”
“अभी गुंजाइश है। कुछ तो आगे बढ़िये...।”
“2150 करोड़ रुपये –।”
“2200 करोड़ रुपये –।” विलियम बोला।
“बस।” हुशांग ली ने हाथ उठाकर कहा –“मैं इससे ज्यादा कीमत नहीं लगा सकता।”
“परंतु –।” विजय बरुटा ने कहना चाहा।
“सॉरी, बहुत हो गया। मैं पहले ही बहुत बड़ी रकम बोल गया हूं। अब और नहीं। सॉरी जेंटलमैन।” हुशांग ली जगजीत, रॉबर्ट और विलियम से कह उठा –“मैं खुद को, यानि कि चीन इस नीलामी से बाहर होता है।” कहने के साथ ही हुशांग ली पलटा और तेजी से आगे बढ़ गया।
“सुनिये तो –।” कहते हुए विनय बरुटा उसके पीछे लपका।
विनय बरुटा उसके पास पहुंचा।
दोनों तेजी से आगे बढ़ते चले गये।,
“मैंने सब कुछ ठीक किया?” हुशांग ली ने पूछा।
“बहुत बढ़िया ड्रामा किया। पूरे नंबरों में पास हो गये तुम।”
“शुक्र है।”
दोनों भीड़ में कुछ आगे निकल आये थे, तो बरुटा ठिठककर बोला “तुम होटल जाओ, मैं कुछ देर में आऊंगा।”
“जाऊं होटल ?”
“सीधा होटल पहुंचो। रास्ते में कहीं भी नहीं रुकना है।”
हुशांग ली आगे बढ़ता चला गया।
विनय बरुटा ठिठका और पलटकर भीड़ में सावधानी से आगे बढ़ने लगा।
☐☐☐
“बधाई हो मिस्टर रॉबर्ट, और विलियम साहब आपको भी। अमेरिका को भी बधाई हो।” जगमोहन का चेहरा ओढ़े जगजीत मुस्कराकर कह उठा –“2200 करोड़ रुपये में न्यूक्लियर खोजी डिवाइस आपकी हुई।”
“थैंक्स –।” रॉबर्ट ने कहा –“इस वक्त हमारे पास कैश और डायमंड मिलाकर 1500 करोड़ रुपये हैं। वो हम आपको दे देते हैं –और दिल्ली में चौबीस घंटों में आपको बाकी के 700 करोड़ रुपये मिल जायेंगे।”
“इस बारे में जो भी फैसला होगा –वो देवराज चौहान करेगा।”
“देवराज चौहान से फोन पर बात कर –।”
“जल्दी क्या है मिस्टर रॉबर्ट! सारा दिन अभी बाकी है। आप जहां ठहरे हैं वहीं होटल पहुंचिये। कुछ ही देर में आपको देवराज चौहान का फोन आ जायेगा –और बाकी बातें तय हो जायेंगी।” जगजीत ने मुस्कराकर कहा।
“हम लेन-देन से पहले एक बार डिवाइस जरूर चेक करना चाहेंगे।” विलियम ने कहा।
“डिवाइस चेक करा दी जायेगी। जैसा आप चाहते हैं, वैसा ही होगा। आगे की बात अब देवराज चौहान करेगा।”
विलियम ने रॉबर्ट को देखकर कहा– “हमें होटल चलना चाहिये।”
“ठीक है।” रॉबर्ट ने सिर हिलाया और जगजीत से कहा –“देवराज चौहान से कहना कि हमें जल्दी फोन करे।”
“ऐसा ही होगा। एक घंटे में देवराज चौहान आपको फोन करके बात करेगा।”
रॉबर्ट और विलियम ने जगजीत से हाथ मिलाकर विदा ली और वहां से भीड़ में से होते आगे बढ़ते चले गये। वो सोच भी नहीं सकते थे कि विनय बरुटा उनके पीछे लग चुका है।
☐☐☐
देवराज चौहान और जगमोहन ने दूर रहकर इन लोगों की मुलाकात देखी। जगमोहन मन-ही-मन सुलग रहा था कि जगजीत उसके चेहरे वाला मास्क लगाये घूम रहा है।
देवराज चौहान सुबह से कई बार वानखेड़े से बात कर चुका था और कई बार वानखेड़े का फोन देवराज चौहान को आया था। इस वक्त वानखेड़े, खेमकर और कामेश्वर भी वेश बदले माल रोड पर मौजूद थे और इन लोगों की मीटिंग देखी थी उन्होंने। देवराज चौहान ने फोन पर उन्हें बता दिया था कि वो लोग कहां मिलने वाले हैं।
परंतु देवराज चौहान और जगमोहन सतर्क थे।
क्योंकि जगजीत, जगमोहन के रूप में अकेला आया था। त्यागी कहीं नहीं दिखा था। इससे ये बात तो उन्हें समझ आ गई थी कि वीरेन्द्र त्यागी पास ही कहीं होगा और इस मीटिंग पर नजर रख रहा होगा। परंतु यहां भीड़ इतनी थी कि किसी को देख पाना, पहचान पाना आसान नहीं था।
फिर उन्होंने विनय बरुटा और हुशांग ली को वहां से जाते देखा।
देवराज चौहान ने तुरंत वानखेड़े को फोन किया।
बात हो गई।
“विनय बरुटा और उस चीनी को तुमने जाते देखा?” देवराज ने पूछा।
“हां, वो –।”
“तुम लोगों को उनके पीछे जाने की जरूरत नहीं है, जहां हो वहीं रहो। मेरी और जगमोहन की स्थिति तुम्हें पता है?”
“नहीं।”
“तो सुन लो। हम मेकअप में हैं और...।” देवराज चौहान ने बताया कि वो कहां पर हैं –“अब तुम उन लोगों को छोड़कर हम दोनों पर नजर रखो।”
“ऐसा क्यों?”
“जो कहा वो करो वानखेड़े। जल्दी तुम्हें समझ आ जायेगा कि मैंने ऐसा क्यों कहा।” बातें करते हए देवराज चौहान की निगाह जगजीत, रॉबर्ट और विलियम पर थी –“हमें देख लिया तुमने?”
“हम तुम्हारी बताई दिशा की तरफ आ रहे हैं।”
“जल्दी करो, वक्त कम है।” देवराज चौहान ने फोन कान से लगा रखा था।
जगजीत, रॉबर्ट, विलियम बातें कर रहे थे।
तभी देवराज चौहान और जगमोहन ने उन लोगों को हाथ मिलाते देखा।
“मैंने देख लिया हैं तुम्हें और जगमोहन को।” वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ी।
“ठीक है, वो लोग अब अलग हो रहे हैं। हम जगमोहन बने जगजीत के पीछे जायेंगे और तुम हमारे पीछे आओगे। जब तक मैं तुम्हें पास आने को ना कहूं, तब तक तुम पास नहीं आओगे।”
“समझा, तुम कुछ करने वाले हो?”
“हां...।”
“ठीक है, हम तुम पर नजर रख रहे हैं।” वानखेड़े की आवाज कानों में पड़ी।
देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा।
जगजीत इसी तरफ आ रहा था।
दोनों सावधानी से पीठ मोड़े खड़े हो गये।
जगजीत उनके पास से निकल गया।
दोनों ने अपनी जगह छोड़ी और लापरवाही भरे अंदाज में फासला रखकर जगजीत के पीछे चल पड़े। भीड़ होने की वजह से वो आसानी से पीछा कर पा रहे थे, परंतु भीड़ में जगजीत के गुम हो जाने का खतरा भी था।
“सावधान रहना। त्यागी कहीं पास में ही है। हो सकता है वो इस बात पर नजर रख रहा हो कि कोई जगजीत के पीछे तो नहीं है।” देवराज चौहान ने कहा –“इसलिए ऐसे आगे बढ़ो कि उसका पीछा करते न लगे।”
“हमारे चेहरों पर मेकअप है। त्यागी देखेगा तो हमें पहचान नहीं पायेगा।” जगमोहन बोला।
सावधानी से बराबर वो जगजीत के पीछे रहे –फासला रखकर।
“विनय बरुटा कहां गया?” जगमोहन बोला।
“वो भी यहीं कहीं पास में होगा।”
जगमोहन ने चलते-चलते मोबाईल निकाला और बरुटा कानंबर मिलाया।
बात हो गई।
“तुम कहां हो?” जगमोहन ने पूछा।
“बहुत जरूरी काम कर रहा हूँ।” विनय बरुटा की आवाजकानों में पड़ी।
“क्या?”
“बच्चों को बताने वाली बात नहीं है। तुम क्या कर रहे हो?”
“जगजीत के पीछे हूं।”
“बढ़िया है। अब मैंने सारी बाजी तुम लोगों के हाथों में दे दी है। खुद ही संभालो सब कुछ।” कहने के साथ ही उधर से विनय बरुटा ने फोन बंद कर दिया था।
“उल्लू का पट्ठा, हवा में उड़ रहा है।” जगमोहन बड़बड़ा उठा।
☐☐☐
जगजीत को वहां से चले पन्द्रह मिनट हो गये थे। होटल तक पहुंचने के लिए अभी दस मिनट और चलना था। वो खुश था कि 2200 करोड़ रुपये की कीमत तय हो गई है और रॉबर्ट 1500 करोड़ रुपये अभी देने को तैयार है। कोई गड़बड़ नहीं हुई थी, सब कुछ ठीक से निपट गया था। उसके मन में था कि ये काम करके सीधा सूरत पहुंचेगा और विभा और बच्चों को जैसे भी ढूंढ लेगा। अगर अपहरणकर्ता फिरौती चाहते हैं तो उन्हें मुंहमांगी दौलत देकर अपनी बहन और बच्चों को छुड़ा लेगा।
तभी जगजीत का मोबाईल बजा।
“हैलो।” जगजीत ने फोन निकालकर बात की।
“मैं S.T.D. बूथ से बोल रहा हूं।” त्यागी की आवाज कानों में पड़ी –“सौदा क्या तय हुआ?”
“2200 करोड़ रुपये में अमरीकियों ने तय किया।” जगजीत ने खुशी से बताया।
“ये तो बहुत बढ़िया रहा।” त्यागी ने हंसकर कहा –“मैं कुछ ही देर में होटल पहुंचूंगा। अमरीकियों ने तेरा पीछा नहीं किया, वो दूसरी दिशा की तरफ चले गये हैं, शायद अपने होटल –।”
“और विनय बरुटा और चीनी?”
“वो तो पहले ही वहां से चले गये थे। तू होटल पहुंच, मैं कुछ ही देर में आ रहा हूं –।”
“अमरीकियों के पास 1500 करोड़ रुपये हैं इस वक्त और वो अभी देने को तैयार हैं, परंतु पहले न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को चेक करना चाहते हैं।” जगजीत ने कहा।
“सब ठीक हो जायेगा। मैं आधे घंटे तक होटल पहुंचूंगा, फिर बात होगी।” इसके साथ ही फोन बंद हो गया।
जगजीत ने मोबाईल जेब में रखा और आगे बढ़ता रहा।
“जगजीत...!” तभी पीछे से, करीब से आवाज उसके कानों में पड़ी।
जगजीत ठिठका और फौरन पीछे की तरफ घूमा।
अगले ही पल उसे अपने पांवों के नीचे से जमीन निकलती महसूस हुई।
सिर घूम गया उसका।
सामने देवराज चौहान और जगमोहन खड़े थे। उनके चेहरों पर अब मेकअप नहीं था।
जगजीत को काटो तो खून नहीं।
इस वक्त पास से कोई और लोग नहीं निकल रहे थे। ये सुनसान जैसा रास्ता था, वरना एक जैसे दो चेहरों को देखकर वो आश्चर्य में पड़ जाते।
जगजीत की काटो और खून नहीं वाली हालत हो रही थी। फटी आंखों, कांपते होंठ, बुरे हाल वो तीन कदमों के फासले पर खड़े देवराज चौहान और जगमोहन को देखे जा रहा था।
“तुमने सोचा भी नहीं होगा कि हम तुम्हें इस तरह मिल जायेंगे।” देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
जगजीत का चेहरा सफेद पड़ गया। उसके होंठ कांपे, परंतु शब्द नहीं निकला बाहर।
“तू हमें फंसाने चला था।” जगमोहन गुर्रा उठा –“तूने मेरे और देवराज चौहान के चेहरे के मास्क बनाये। त्यागी के साथ मिलकर हमें फंसाने की जबर्दस्त प्लानिंग की और बुरी हालत कर दी हमारी...।”
“म...मैंने कुछ नहीं किया।” जगजीत के होंठों से फीका-सा स्वर निकला।
“तू तो नादान है, भोला है। तूने तो –।”
“सच में मैंने कुछ नहीं किया।” जगजीत कांपते स्वर में बोला –“सब कुछ त्यागी ने किया। वो खतरनाक है। मैं उसकी बात नहीं मानता तो वो मुझे मार देता। मैं तो मजबूरी में उसके साथ –।”
“त्यागी है कहां?”
“व...वो माल रोड पर होगा। वो –।”
“तो डिवाइस की कीमत तय हो गई। उसे अमरीका ले जा रहे हैं। कितने में? देवराज चौहान ने पूछा।
“2200 करोड़ रूपये में...।”
देवराज चौहान के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान उभरी।
“बहुत बुरी मौत मारूंगा तुम दोनों को।” जगमोहन का हाथ घूमा और जगजीत के चेहरे पर पड़ा।
जगजीत के होंठों से कराह निकली। थोड़ा सा लड़खड़ाकर संभल गया।
“मुम्बई से बहुत दूर जाकर तुम लोगों ने डिवाइस की सौदेबाजी की।” देवराज चौहान पूर्ववतः स्वर में बोला –“परंतु बच नहीं सके। हम यहां भी पहुंच गये।”
“क...कैसे पहुंचे?”
“विनय बरुटा।”
“क्या?” जगजीत चौंका –“विनय बरुटा, वो –वो –।”
“वो हमारे लिए काम कर रहा था। वो नकली पार्टी बना चीन का। अब तो सब समझ गये होंगे।”
जगजीत का चेहरा फक्क था।
“अब तेरे को पुलिस के सामने सब कुछ सच-सच बताना होगा।” जगमोहन ने कहा।
“पुलिस के...।”
“हमारे हाथों कुत्ते की मौत मरने से तो बेहतर है कि पुलिस को सब कुछ बताओ कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती तुम लोगों ने कैसे देवराज चौहान और जगमोहन बनकर की। इस भागने में हमने खुद को बेगुनाह रखना है। तुम अपनी और त्यागी की पोल खोलोगे, पुलिस के सामने–।”
जगजीत ने ढेर सारी हिम्मत इकट्ठी की और बोला–
“द...देखो। इस सौदे में मुझे पच्चीस परसेंट मिलेगा। मतलब कि साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये 50 करोड़ मुझे देकर पांच सौ करोड़ तुम रख लो। ये सारी रकम नकद होगी, परंतु पुलिस का चक्कर मत डालो। मैंने जो किया –त्यागी से डरकर किया। मेरा कसूर सिर्फ इतना ही है कि मजबूरी में मुझे उसकी बात माननी पड़ी। मुझे माफ कर दो और पांच सौ करोड़ लेकर, मुझे जाने दो। पुलिस का हम लोगों के बीच क्या काम –।”
“मतलब कि डिवाइस की डकैती के मामले में पुलिस हमें ढूंढती रहे?” देवराज चौहान सख्त स्वर में बोला।
“करो तुम, भुगतें हम। पांच सौ करोड़ को क्या गले में लटकायेंगे, जब जीने को सांसें ही नहीं मिलेंगी –और पुलिस कभी भी हमें घेरकर खत्म कर देगी उस जुर्म में, जो हमने नहीं, तुमने किया है।” जगमोहन ने दांत पीसकर कहा –“पुलिस के सामने हमने पाक-साफ न होना होता तो अब तक तू बुरी मौत मर चुका होता।”
“पुलिस का चक्कर मत डालो, मैं –।”
“चुप...।” जगमोहन दहाड़ उठा। चेहरा सुर्ख हो उठा था उसका।
जगजीत ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस कहां है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हो-होटल के कमरे में...।”
“होटल का नाम?”
जगजीत ने बताया।
कमरा नंबर बताया।
देवराज चौहान ने वानखेड़े को फोन किया।
“तुम लोग हमें देख रहे हो?” देवराज चौहान ने आस-पास नजरें घुमाते पूछा।
“हां...।” वानखेड़े की आवाज आई।
“हमारे पास आ जाओ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
“कि...किसे फोन किया?” घबराया-सा जगजीत कह उठा।
“पुलिस –।”
“मैं...मैं पुलिस को कुछ नहीं बताऊंगा।” जगजीत एकाएक तड़प भरे स्वर में कह उठा।
“नहीं बतायेगा?”
“नहीं। मैं यही कहूंगा कि डिवाईस की डकैती मैंने नहीं की, त्यागी ने भी नहीं की और –।”
“तेरे को अपनी बहन की जिंदगी प्यारी नहीं है क्या?”
जगजीत उछला था।
“क्या?” जगजीत का मुंह खुला-का-खुला रह गया –“वि...विभा तुम लोगों के पास है?”
“दोनों बच्चे बंटी और सूरज भी।” जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा –“अगर तू पुलिस को सच नहीं बतायेगा तो उन तीनों को मारकर लाशें सड़क पर –।”
“नहीं...।” जगजीत का स्वर कांपा –“ऐसा मत करना।” उसकी आंखें गीली हो गई थीं।
“तो तू पुलिस को सच बतायेगा?” जगमोहन के दांत भिंचे हुए थे।
“हाँ...।” जगजीत का चेहरा एकाएक बुझ-सा गया था।
तभी वानखेड़े, खेमकर और कामेश्वर वहां आ पहुंचे।
“ये जगजीत है वानखेड़े!” देवराज चौहान ने कहा –“इस वक्त इसने चेहरे पर जगमोहन के चेहरे वाला मास्क पहन रखा है।”
जगजीत ने सबके सामने अपने चेहरे पर से जगमोहन वाला मास्क उतार दिया।
नीचे जगजीत का चेहरा चमक उठा।
वानखेड़े ने फौरन उसके हाथ से मास्क ले लिया।
“इसके बयान शिमला में ही लो वानखेड़े। साथ में गवाह जरूर...।”
“मजिस्ट्रेट के सामने और गवाहों की मौजूदगी में इसके बयान लिए जायेंगे।” वानखेड़े ने कहा –“ये काम आज ही हो जायेगा और अपने बयान से मुकर नहीं सकेगा।”
“मैं संगीन डकैती का झूठा जुर्म अपने सिर से उतार देना चाहता हूँ।”
“इसके बयान के बाद झूठा जुर्म तुम्हारे सिर पर नहीं रहेगा।” वानखेड़े ने दृढ़ स्वर में कहा।
“लेकिन हमें न्यूक्लियर खोजी डिवाइस चाहिए।” कामेश्वर कह उठा।
“आप लोग जगजीत को ले जायें और इसके बयान की तैयारी करें। कोई एक हमारे साथ आ सकता है। उसके हवाले हम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस कर देंगे।” देवराज चौहान ने कहा।
“वो कहां है?” वानखेड़े ने पूछा।
“जगजीत ने बताया कि होटल के कमरे में है। होटल का नाम, रूम नंबर हमने ले लिया है। जगमोहन मेरे साथ है इसलिए हमें उस कमरे में जाने से कोई नहीं रोकेगा।”
“मैं तुम्हारे साथ चलता हूं।” खेमकर ने कहा।
“हम इसके बयान लेने का इंतजाम करते हैं।” कामेश्वर बोला।
“लेकिन वीरेन्द्र त्यागी का क्या होगा?” वानखेड़े ने पूछा।
“मैं और जगमोहन होटल के कमरे में इंतजार करेंगे, अगर त्यागी इन सब बातों से बेखबर वहां आ गया तो वो भी पकड़कर लोगों के हवाले कर दिया जायेगा।” देवराज चौहान ने कहा –“हमारे साथ चलिये खेमकर साहब! कहीं त्यागी ना लौट आये। उससे पहले ही आप डिवाइस लेकर निकल जाईये।”
“मैं भी साथ चलूं?” वानखेड़े बोला।
“नहीं, तुम दोनों जगजीत को संभालकर ले जाओगे। जिस तरह देश के लिए डिवाइस जरूरी है, उसी तरह मेरे लिए जगजीत के बयान जरूरी हैं। मैं नहीं चहता कि जगजीत हाथ से निकल जाये। इसे तुम दोनों संभालो।”
जगजीत का चेहरा फक्क पड़ा हुआ था।
☐☐☐
देवराज चौहान, जगमोहन और खेमकर उस होटल में पहुंचे जहां त्यागी और जगजीत ठहरे हुए थे। चूंकि जगमोहन के चेहरे में था जगजीत, इसलिए जगमोहन को कमरे तक पहुंचने में कोई परेशानी नहीं आई। रिसेप्शन में कमरे की चाबी मिल गई थी। खेमकर डिवाइस का हुलिया पहचानता था और डिवाइस की मशीन के बारे में भी जानता था। इसलिए उसने सूटकेस में रखी डिवाइस को फौरन पहचान लिया। डिवाईस के मिलने पर सबने चैन की सांस ली।
खेमकर डिवाइस और मशीन लेकर फौरन वहां से निकल गया।
देवराज चौहान और जगमीहन की नजरें मिलीं।
“अब?” जगमोहन ने पूछा।
“त्यागी के आने का इंतजार करेंगे। जगजीत तो पुलिस के हाथों में पहुंच चुका है। त्यागी भी हाथ आ जाये तो बहुत बढ़िया रहेगा।”
“अगर त्यागी को जगजीत के पकड़े जाने या हमारे कमरे में पहुंचने का पता चल गया होगा तो वो नहीं आयेगा।” जगमोहन ने कहा।
“देखते हैं, आज का दिन इंतजार करके देख लेते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
“डिवाइस मिल गई। जगजीत पकड़ा गया। मुम्बई में पिंटो पुलिस की गिरफ्त में है, जो ये बयान दे चुका है कि डिवाइस की डकैती करने वाले वीरन्द्र त्यागी और जगजीत हैं, हम दोनों नहीं मेरे ख्याल में हम जो चाहते थे, वो हो गया है। ऐसे में त्यागी भी हाथ लग जाये तो सोने पर सुहागा हो जायेगा।” जगमोहन ने गंभीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान हौले से सिर हिलाकर रह गया।
40 मिनट बाद बेल बजी।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
देवराज चौहान ने जगमोहन को इशारा किया और खुद खिड़की के मोटे पर्दे के पीछे जा छिपा।
जगमोहन दरवाजे के पास पहुंचा और सिटकनी हटाकर दरवाजा खोला।
सामने त्यागी खड़ा था। देवराज चौहान के चेहरे का मास्क लगाए। उस पर मूंछें-दाढ़ी और प्लेन ग्लास का चश्मा लगाये। जगमोहन तुरंत सामने से हट गया तो त्यागी ने भीतर प्रवेश किया।
परंतु अगले ही पल ठिठककर बोला– “एक मिनट-मैं कुछ लेकर आया।”
“क्या?”
“है कुछ। नीचे कार में छोड़ आया हूं।” त्यागी तुरंत पलटा और बाहर निकलता चला गया।
जगमोहन दरवाजे पर ही खड़ा रहा। एक निगाह उधर मारी, जिधर पर्दे के पीछे देवराज चौहान था।
“उसे शक तो नहीं हो गया कुछ...?” जगमोहन ने कहा।
“शक नहीं हो सकता।” पर्दे के पीछे से देवराज चौहान ने कहा –“अभी तो उसने कमरे में कदम रखा ही था। वो यहां तक आ गया तो जाहिर है कि उसे कुछ भी पता नहीं चल पाया कि क्या हो गया है। वो अभी वापस आता होगा।”
जगमोहन कमरे में टहलने लगा।
कमरे का दरवाजा खुला था।
दस मिनट बाद एक तरफ रखे होटल के फोन की बेल बजने लगी।
“हैलो!” जगमोहन ने आगे बढ़कर रिसीवर उठाया।
“जगमोहन!” त्यागी की हंसी भरी आवाज कानों में पड़ी –“मुझे हैरानी है कि तुम मुझ तक पहुंच गये।”
जगमोहन ने गहरी सांस ली।
“जगजीत कहां है?” त्यागी की आवाज पुनः आई।
“तुमने कैसे पहचान लिया कि मैं जगजीत नहीं, जगमोहन हूं?” जगमोहन के होंठ भिंच गये थे।
देवराज चौहान ये सुनकर पर्दे के पीछे से बाहर आ गया था।
“बहुत आसानी से। तुमने जो कपड़े पहन रखे हैं, वो जगजीत नहीं पहनता। उसके पास ऐसे कपड़े हैं ही नहीं। साथ ही तुम्हारी और जगजीत की कद-काठी में फर्क है। मैं तुम्हें देखते ही समझ गया कि तुम जगजीत नहीं हो सकते। बाकी कसर तुम्हारी आवाज ने पूरी कर दी, जब मैंने तुमसे बात की।”
देवराज चौहान उसी पल कमरे से बाहर निकलता चला गया।
“तुम बच नहीं सकते।” जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा।
“मैं बचा हुआ ही हूं। तुम लोग मुझे नहीं पकड़ सकते। देवराज चौहान के क्या हाल हैं?” उधर से त्यागी हंसा।
जगमोहन के दांत भिंच गये।
“चलो अब बात करते हैं। जगजीत कहां है?”
“पुलिस के पास।”
“ये तो बुरा हुआ। तुमने और देवराज चौहान ने ये सब किया है।”
“हां, हम ही –!”
“ये कैसे पता चला कि हम शिमला में डिवाइस का सौदा कर रहे –।”
“तुम बच नहीं सकोगे त्यागी।” जगमोहन गुर्रा उठा –“हम तुम्हें बहुत बुरी मौत देंगे।”
“ख्वाब मत देखो।” उधर से त्यागी ने कड़वे स्वर में कहा –“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस कहां है?”
“पुलिस के पास...।”
“ओह! तुम दोनों ने तो सत्यानाश कर दिया मेरे काम का। उसके बदले मुझे 2200 करोड़ मिलने जा रहे थे।” त्यागी की गुस्से से भरी आवाज कानों में पड़ी –“मैं सोच भी नहीं सकता था कि तुम दोनों मुझ तक पहुंच सकते हो।”
“बहुत बुरी मौत मरोगे तुम –।”
“उससे पहले ही मैं देवराज चौहान का इंतजाम कर दूंगा। देवराज चौहान मुझे खत्म करना चाहता है, परंतु मैं ऐसे-ऐसे खेल खेलूंगा कि देवराज चौहान कहीं का भी नहीं रहेगा और आत्महत्या कर लेगा।” त्यागी की गुर्राहट कानों में पड़ रही थी –“मेरा खेल खराब कर दिया तुम लोगों ने। 2200 करोड़ रुपया मेरे हाथों से निकल गया। जगजीत को पुलिस के हाथों में पहुंचा दिया। सालों-कमीनों-अबकी बार तो मैं तुम लोगों का ऐसा इंतजाम करूंगा कि–।”
“उससे पहले तेरा ही काम हो जायेगा।”
“त्यागी से पंगा बहुत महंगा पड़ता है ये तुमने देख भी लिया है और आगे भी देख लोगे।” इसके साथ ही उधर से त्यागी ने फोन बंद कर दिया था।
जगमोहन ने गुस्से से भरे अंदाज में रिसीवर रखा और टहलने लगा।
पन्द्रह मिनट बाद देवराज चौहान वापस आया।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा तो वो कह उठा– “मैंने सोचा वो होटल से या आस-पास से फोन कर रहा होगा। परंतु वो मुझे कहीं नहीं मिला।”
“त्यागी अब इस होटल के आस-पास भी नहीं आयेगा।” जगमोहन बोला।
“सही कहा, वो नहीं आयेगा।” देवराज चौहान बोला –“हमें वापस अपने होटल चलना चाहिये। वो बच गया, हमारे हाथों से निकल गया। लेकिन अगली बार –।”
“त्यागी कह रहा था कि इस बार और भी बुरा फंसायेगा हमें...।”
“हां!” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर जगमोहन को देखा –“वो ऐसा जरूर करने की कोशिश करेगा फिर से। लेकिन कब तक बचेगा, कभी तो हाथ में आयेगा ही –और वो दिन उसकी जिंदगी का आखिरी दिन होगा।”
☐☐☐
देवराज चौहान और जगमोहन होटल गुलमर्ग में थे। वीरेन्द्र त्यागी के हाथ से निकल जाने का उन्हें अफसोस था। त्यागी बेहद सतर्क रहने वाला इंसान था। तभी तो पलक झपकते ही जगमोहन और जगजीत के फर्क को पहचान गया था और हाथों में आकर भी आसानी से निकल गया।
देवराज चौहान ने शाम सात बजे वानखेड़े से फोन पर बात की।
वानखेड़े ने बताया कि जगजीत के बयान हो गये हैं। उन बयानों के आधार पर वो दोनों इस मामले से पूरी तरह निकल गये हैं। संगीन डकैती का आरोप उनके सिरों से हट गया है। जगजीत के बयान लिखित भी लिए गये हैं और रिकॉर्ड भी किए गये हैं। देवराज चौहान ने वानखेड़े को बताया कि किस तरह त्यागी हाथ से निकल गया।
वानखेड़े ने बताया कि कल वो जगजीत को लेकर दिल्ली के लिए निकलेंगे और दिल्ली से मुम्बई के लिए फ्लाईट लेंगे। बातें खत्म हो गईं।
देवराज चौहान ने खुद को हल्का महसूस किया कि संगीन डकैती का बोझ अब उस पर नहीं रहा।
“चलना कब है यहां से?” जगमोहन ने पूछा।
“कल चलेंगे।” देवराज चौहान बोला।
“बरुटा का फोन आया था?”
“नहीं।” देवराज चौहान ने कहा।
आधे घंटे बाद ही बरुटा का फोन आ गया। देवराज चौहान ने बात की।
“तुमने इस मामले में मेरी काफी सहायता की।” देवराज चौहान ने कहा।
“करनी पड़ी। क्योंकि पिछली बार 100 करोड़ मुफ्त का मिला था तुम्हारी वजह से।”
“वो तो चांस की बात थी कि सारे काम मेरे हिस्से में आये थे और तुम जगमोहन के साथ फंसे रह गये थे।”
“जरा जगमोहन से मेरी बात कराना।”
देवराज चौहान ने जगमोहन को फोन दिया।
“क्या कर रहे हो?” बरुटा की आवाज कानों में पड़ी।
“वीरेन्द्र त्यागी के हाथ से निकल जाने का दुःख हो रहा है।” जगमोहन बोला।
“वो फिर हाथ आ जायेगा –“बचेगा नहीं। मैं तुमसे अभी मिलना चाहता हूं...।”
“क्यों?”
“है कोई बात...।”
“तो होटल आ जाओ –।”
“होटल नहीं आ सकता। मेरे पास कुछ सामान है –जिसे मैं कमरे में नहीं छोड़ सकता।”
“मतलब कि शिमला से जा रहे हो।”
“मेरा यहां कोई काम नहीं।” विनय बरुटा की आवाज कानों में पड़ रही थी –“तुम अभी गुलमर्ग से बाहर निकलो। एक रास्ता ऊपर की तरफ जाता है और दूसरा बाईं तरफ, नीचे की ओर। नीचे जाने वाले रास्ते पर बढ़ो। पांच मिनट की ढलान उतरने पर वो रास्ता नीचे की सड़क पर जा मिलेगा। मैं वहीं पर कार में तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं, जल्दी पहुंचो।”
“लेकिन –।”
तब तक बरुटा ने फोन बंद कर दिया था।
जगमोहन ने फोन बेड पर रखते हुए कहा– “बरुटा मुझे होटल के बाहर मिलने के लिए बुला रहा है। वो अभी शिमला से जा रहा है कुछ कहना चाहता है।”
“हो आओ।” देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन होटल से बाहर निकला और दाईं तरफ बढ़ गया। पास ही में ढलान का रास्ता शुरू हो रहा था। वो उस पर बढ़ता चला गया। शाम के साढ़े सात बज रहे थे। मौसम में ठंडक थी। उस रास्ते के एक तरफ होटल बने हुए थे और दूसरी तरफ मिलिट्री के ऑफिस और रहने की जगह बनी हुई थी। ढलान का रास्त उतरते पांच मिनट में ही जगमोहन नीचे की सड़क पर जा पहुंचा। ये सड़क नीचे की तरफ सीधा कालका, चंडीगढ़ जा रही थी। पास ही एक तरफ लाल जैसे रंग की कार खड़ी थी। अंधेरा था, कोई कार से टेक लगाये खड़ा दिखा। जगमोहन सावधानी से उस तरफ बढ़ा।
कार से टेक लगाये इंसान कार छोड़कर उसकी तरफ देखता बोला – “आओ जगमोहन –।” वो विनय बरुटा ही था।
जगमोहन उसके पास पहुंचता बोला–
“क्यों बुलाया?”
“तुम्हें बताने के लिए कि मैं देवराज चौहान से बड़ा डकैती मास्टर हूं।”
“तू उसकी पूंछ भी नहीं है।” जगमोहन ने कड़वे स्वर में कहा।
“मैं कोई भी मौका नहीं छोड़ता। कार में देख –।”
“क्या है?”
“देख तो –।”
जगमोहन आगे बढ़ा और झुककर कार में देखा।
पीछे की सीट पर तीन सूटकेस ठसाठस भरे पड़े थे।
“ये क्या है?”
“इन सूटकेसों में ठसाठस हजार-हजार के नोटों की गड्डियां भरी पड़ी हैं। एक सूटकेस डिग्गी में बंद है। ये वो दौलत है जिसे लेकर रॉबर्ट त्यागी से डिवाइस का सौदा करने आया था। मैं तो दिन में ही रॉबर्ट के पीछे लग गया था जब दो जगजीत से मिलकर वापस अपने होटल गया था। क्योंकि मैं जानता था कि वो बहुत बड़ी दौलत अपने साथ लाया हुआ है और मुझे ये मौका अच्छा लगा, उसकी दौलत पर हाथ मारने का। पर एक गड़बड़ हो गई।”
“क्या?”
“उसके पास ऐसे बारह सूटकेस थे, जो कि मैं सारे नहीं ला सका। तब वो होटल के डाइनिंग हॉल में अपने साथी के साथ लंच करने पहुंचा था। आधे-पौने घंटे में मैं उसके कमरे से सिर्फ चार सूटकेस ही निकाल सका। फिर भी मुझे इस बात की तसल्ली है कि इस मामले से मैंने कुछ तो कमाया, लेकिन देवराज चौहान खाली-का-खाली रहा। वो –!”
“देवराज चौहान अपने कामों में व्यस्त था।” जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा –“वैसे भी देवराज चौहान को चोरी करने की आदत नहीं है। वो सिर्फ डकैतियां करता –!”
“चोरी हो या डकैती, मतलब तो मोटी रकम हाथ आने से है।” बरुटा मुस्कराया –“चारों सूटकेसों में बहुत बड़ी दौलत है।”
“और तू मुझे बुलाकर ये सब दिखा-बताकर मेरे दिल को क्यों जला रहा है?” जगमोहन ने उखड़े स्वर में कहा।
“इसमें से एक सूटकेस मैं तुझे देना चाहता हूं...।”
“मुझे?”
“हां...।”
“क्यों?
“मेरी मर्जी है कि मैं तुझे देना चाहता हूं, नहीं लेना हो तो तेरी मर्जी।”
जगमोहन ने उसकी कार का पिछला दरवाजा खोला और एक सूटकेस बाहर निकालने लगा। सूटकेस बड़ा था और ठूँसकर, फंसाकर कार में डाला गया था। इसलिए निकालने में कुछ परेशानी हुई।
परंतु सूटकेस निकाल ही लिया जगमोहन ने।
बरुटा मुस्कराकर जगमोहन को देखता रहा।
जगमोहन ने सूटकोस नीचे रखा और उसे खोला। इस अंधेरे में भी उसने नोटों की गड्डियों की खुशबू पा ली, जो कि सूटकेस में भरी पड़ी थीं। जगमोहन ने सूटकेस बंद किया और सीधा खड़ा होकर विनय बरुटा से कहा– “तूने कहा और मैंने नोटों से भरा एक सूटकेस ले लिया।”
“अब तेरे को समझ में आ गया कि देवराज चौहान मेरा बच्चा है।” बरुटा मुस्कराकर बोला।
“एक और सूटकेस दे, तब मानूंगा तेरी बात को।” जगमोहन ने कहा।
“सूटकेस तो नहीं मिलेगा, पर तेरे को एक ऑफर दे रहा हूं।”
“क्या?”
“देवराज चौहान में कुछ नहीं रखा। मेरे साथ काम करेगा तो बहुत पैसा कमा लेगा। हर डकैती का आधा दूंगा। तेरे से संभाला नहीं जायेगा। मेरा साथी बन जा। देवराज चौहान तो मेरा बच्चा है। छ: महीने मेरे साथ काम करके देख, मजा ना आये तो वापस देवराज चौहान के पास चले जाना।”
जगमोहन ने गहरी सांस लेकर कहा– “बरुटा! तूने अभी ताजा-ताजा मेरे को नोटों से भरा सूटकेस दिया है, इसलिए मैं तुझे सख्त बात नहीं कहना चाहता। परंतु इतना जरूर कहूंगा कि तू देवराज चौहान की पूंछ के बराबर भी नहीं है। तू देवराज चौहान को बच्चा कहता है-जबकि तेरे जैसे पचासों बच्चे देवराज चौहान के चरणों में पड़े रहते हैं।”
“मैं देवराज चौहान से बड़ा डकैती मास्टर हूं।”
“तू कुछ भी नहीं है देवराज चौहान के सामने।”
“सोच ले, आराम से फोन पर जवाब दे देना कि मेरे साथ काम करेगा कि नहीं...।” विनय बरुटा ने कहा और कार की ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट की।
“मुझे खुशी होगी बरुटा कि तू नोटों से भरे ऐसे सूटकेस मुझे दान के रूप में देता रह और मैं लेता रहूंगा। इस तरह हमारा रिश्ता कितना अच्छा –!”
“फोन पर बात करना। आराम से सोच ले।” बरुटा ने कहा और कार आगे बढ़ा दी।
“साला चालाक कौआ!” जगमोहन बड़बड़ा उठा –“मुझे दाना डालता है –।”
☐☐☐
पास में नोटों से भरा सूटकेस होने की वजह से देवराज चौहान और जगमोहन विमान द्वारा मुम्बई ना जा सके। अगले दिन मुम्बई के लिए प्राईवेट कार का इंतजाम किया और चल पड़े मुम्बई के लिए। शाम को जब दिल्ली तक पहुंचे थे कि एक बुरी खबर से उनका सामना हो गया।
वानखेड़े का फोन आया देवराज चौहान को।
“जगजीत को वीरेन्द्र त्यागी छुड़ाकर ले गया।” वानखेड़े के शब्द विस्फोट से कम नहीं थे।
“क्या?” देवराज चौहान हक्का बक्का रह गया –“ये कैसे हुआ?”
“दोपहर तीन बजे हम करनाल में, हवेली रेस्टोरेंट में खाने के लिए रुके। क्वालिस में मैं, खेमकर, कामेश्वर के साथ जगजीत थे। जगजीत हथकड़ी में था। पार्किंग में कार रोककर हम रेस्टोरेंट की बिल्डिंग की तरफ जा रहे थे कि तभी एक कार हमारे पास रुकी। चार हथियारबंद लोग बाहर निकले और हमें घेर लिया। कार की ड्राइविंग सीट पर वीरेन्द्र त्यागी को बैठे देखा हमने। परंतु हम कुछ नहीं कर सके और त्यागी, जगजीत को हमारी आंखों के सामने ले गया। तब से अब तक हाईवे पर, करनाल में, हर तरफ पुलिस की घेराबंदी करवा दी, परंतु वो नहीं मिले हमें।”
“ये तो बहुत बुरा हुआ...!” देवराज चौहान कह उठा।
जगमोहन का पूरा ध्यान देवराज चौहान पर था।
“ड्राईवर तेजी से कार भगा रहा था।”
“सच में बुरा हुआ...।”
“मेरी सारी मेहनत पर पानी...।”
“तुम संगीन डकैती के जुर्म से सुरक्षित हो। जगजीत के मजिस्ट्रेट के सामने बयान हुए हैं। वो बयान अपनी जगह कायम हैं। तुम पर से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का जुर्म हट चुका है।”
“क्या तुम ये बात टी.वी. में दोगे?”
“जरूर देंगे। संगीन डकैती के जुर्म से तुम बच जाओगे, परंतु कानून से तुम नहीं बच सकोगे।” वानखेड़े की आवाज आई।
“जो बात मैं जानता हूं वो मुझसे मत कह वानखेड़े! कानून के हाथों में तो एक दिन मैंने पड़ना ही है।” देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा –“अब मैं फोन बंद कर रहा हूँ। नया नंबर लूंगा, ताकि तुम मुझे फोन ना कर सको।”
“इस पूरे केस में तुम्हारे नाम का जिक्र आयेगा कि तुमने कोशिश करके न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को वापस पुलिस तक पहुंचाया और जगजीत को भी तुमने ही पुलिस के हवाले किया। इस तरह कानून तुम्हें बहुत रियायत देगा।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“खुद को कानून के हवाले कर –।”
देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया फिर फोन को ऑफ कर दिया।
जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर थी।
“त्यागी, जगजीत को छुड़ा ले गया...।” देवराज चौहान ने बताया।
जगमोहन ने गहरी सांस ली और सीट की पुश्त से सिर टिककर आंखें बंद कर ली।
“परंतु हमारा काम हो गया। हमारे सिर से न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती का जुर्म हट गया।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा –“वीरेन्द्र त्यागी का हमें कोई इंतजाम करना होगा। वरना ये फिर हमारे लिए कोई नई मुसीबत खड़ी करेगा।”
“एक बार सामने तो पड़ जाये ये कमीना –।” जगमोहन के चेहरे पर दरिंदगी नाच उठी थी।
“विनय बरुटा ने इस मामले में हमारे लिए जो किया वो भूला नहीं जा सकता।” देवराज चौहान मुस्कराया।
“चालू है बरुटा तो। मुझे दाना डालता रहता है कि मैं उसके साथ काम करने लगूं। उसने ताजा-ताजा नोटों से भरा सूटकेस दिया था तो लिहाज करके मैंने कुछ कहा नहीं। कोई बात नहीं, अगली बार बरुटा को सीधा करूंगा।”
जवाब में देवराज चौहान मुस्कराकर रह गया।
समाप्त
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