उसके पास दो पुलिस वाले खड़े थे कि वह भीतर न चली जाये । मोदी ने एक ही नजर में पहचाना कि मोना चौधरी है । परंतु इस वक्त वह ऐसे मेकअप में थी कि किसी के लिए पहचान पाना संभव नहीं था कि वह मोना चौधरी है । शरीर पर जिन्स की पैंट और ढीली-ढीली कमीज थी ।

मोदी ने खुद पर काबू पाया और पास जा पहुँचा ।

“आप मुझसे मिलना चाहती हैं ? मोदी ने बेहद समान्य स्वर में पूछा ।

“जी !” मोना चौधरी ने हौले से सिर हिलाया ।

“कहिए, क्या बात है ?”

“मैं अकेले में बात करना चाहती हूँ ।” मोना चौधरी ने पहले वाले स्वर में कहा ।

मोदी ने पास खड़े पुलिस वालों को जाने का इशारा किया तो दोनों पुलिस वाले चले गये ।

“तुमने मुझे पहचाना नहीं मोदी !” मोना चौधरी असली आवाज में बोली ।

“पहचान चुका हूँ ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ।”

“मेरा आना मजबूरी बन गई थी ।”

“क्यों ?”

“महाजन उस जीव के साथ कमरे में बंद है । वहाँ बच्चे भी हैं ।” मोदी ने कहा, “अगर पुलिस वालों ने उस कमरे पर गोलियाँ चला दी या किसी भी स्थिति में गोलियाँ चल गई और गोली उस जीव को लग गई तो वो वहशी हो जायेगा । कमरे में मौजूद बच्चों की जान ले सकता है वो । तुम उसे नहीं जानते । मैं अच्छी तरह जानती हूँ उसे ।”

मोदी व्याकुल निगाहों से मोना चौधरी को देखता रहा ।

“महाजन को और उस जीव को वहाँ से निकाल दो । बच्चों की जान खतरे में मत डालो ।”

“ये सब करना मेरे बस में नहीं है । यहाँ बड़े ऑफिसर भी हैं । वही फैसला कर... ।”

“मुझे उनके पास ले चलो । मैं उनसे बात करती हूँ ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी ।

“तुम ?” मोदी चौंका ।

“मेरे बात करने में क्या हर्ज है ।”

“अगर किसी ने तुम्हें पहचान लिया कि तुम मोना चौधरी हो तो तुम बच नहीं सकोगी ।” मोदी के होंठ भींच गये ।

“मैंने ऐसा मेकअप कर रखा है कि मुझे नहीं पहचाना जा सकता ।” मोना चौधरी के स्वर में विश्वास और दृढ़ता थी, “मुझे बच्चों की जान खतरे में लग रही है, इसलिए मैं सामने आई । तुमने या दुलानी ने पुलिस को बताया कि कोटेश्वर बीच पर, रहस्यमय जीव पर काबू पाने वाले मोना चौधरी और महाजन थे ।”

“नहीं ! इस मामले में तुम लोगों के नाम जगजाहिर नहीं हैं ।” मोदी ने गंभीर निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।

“ये अच्छी बात है ।” मोना चौधरी ने सिर हिलाया, “इंस्पेक्टर दुलानी इस वक्त कहाँ होगा ?”

“भीतर है ।”

“उसे मेरे पास भेजो । मेरे ख्याल में अब सब ठीक हो जायेगा ।”

“तुम करना क्या चाहती हो ?”

“देख लेना ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “दुलानी को बुलाओ ।”

सोच में डूबा मोदी कुछ कदमों पर खड़े पुलिस वालों के पास गया और उन्हें भीतर से दुलानी को बुला लाने को कहा ।

कमिश्नर रामकुमार ने गम्भीर निगाहों से सब पर निगाह मारी और कह उठा ।

“तो ये तय हो गया कि उस व्यक्ति को जीव के साथ यहाँ से निकाल देते हैं, ताकि बच्चों की जान बचाई जा सके । उसके बाद उस जीव और उस व्यक्ति के बारे में सोचेंगे ।”

“उन्हें एक वैन देनी होगी, जिस पर वो यहाँ से निकल सके ।” एक पुलिस वाले ने कहा ।

“वैन का इंतजाम हो जायेगा ।”

“वो अपने साथ कुछ बच्चे भी ले जायेगा ताकि पुलिस उसके पीछे न रहे ।”

“हम उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकते ।” रामकुमार ने व्याकुल स्वर में कहा, “जो वैन उसे दी जाये, उसमें पेट्रोल इतना हो कि वैन बीस किलोमीटर से ज्यादा दूर न जा सके । हम उससे बात कर लेंगे कि बच्चों को जल्दी ही कहीं उतार दे । उसे विश्वास दिलाएँगे कि हम उसका पीछा नहीं कर रहें ।”

तभी मोदी और दुलानी ने मोना चौधरी के साथ भीतर प्रवेश किया ।

सबकी निगाह उनकी तरफ उठी और मोना चौधरी पर ठहर गई ।

मेकअप में होने के कारण कमिश्नर रामकुमार, मोना चौधरी को नहीं पहचान सके ।

“सर !” किसी को कुछ कहने-पूछने से पहले ही इंस्पेक्टर हरीश दुलानी कह उठा, “ये मैडम कोटेश्वर बीच पर मेरे साथ ही थी जब रहस्यमय जीव पर काबू पाया गया था । सच बात तो यह है कि इनकी वजह से ही उसको पकड़ा गया था । इन्होंने अपनी जान खतरे में डाली परन्तु किस्मत अच्छी थी कि ये बच निकली ।”

“ओह !”

“तो अपनी रिपोर्ट में तुमने इन मैडम का जिक्र किया था ।”

“लेकिन इनकी क्या दिलचस्पी है उस जीव में ।”

“मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है उस जीव में ।” मोना चौधरी गम्भीर हो उठी, “मेरी दिलचस्पी लोगों में है, जो उसके शिकार होकर अपनी जान गँवा रहे थे । अगर उसे ठीक न किया जाता तो वो जाने कितने लोगों की जानें ले लेता । लोगों को बचाने के लिए ही मैंने अपनी जान खतरे में डालकर उसको ठीक किया, लेकिन पुलिस वालों ने उस पर फायरिंग करके मेरी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया ।”

“वो इंस्पेक्टर तिवारी की वजह से... ।” दुलानी ने कहना चाहा ।

“किसी भी वजह से हुआ हो, लेकिन मामला गड़बड़ हो गया ।”

“कैसे ठीक किया था तुमने उसे ?” कमिश्नर रामकुमार ने पूछा ।

“तब उसके शरीर में गोलियाँ धँसी थी । उसे दर्द होता और गुस्से में लोगों की जान ले लेता । मैंने इस बात को महसूस किया और किसी तरह से जाल में फँसाकर उसे बेहोश किया और उसके शरीर में धँसी गोलियाँ निकालकर बैंडिज कर दी । उसके बाद वो ठीक हो गया । मैं वहाँ से आ गई । लेकिन बाद में पता चला कि पुलिस वालों ने उस पर गोलियाँ... ।”

“इस वक्त भी उसके जिस्म में गोलियाँ धँसी हुई हैं ।” मोदी बोला ।

“लेकिन अब मैं उसके जिस्म से गोलियाँ नहीं निकाल सकती । मेरे प्रति उसके मन में गुस्सा है । सच बात तो ये है कि उसी गुस्से की वजह से मुझे मारने के लिए वो कोटेश्वर बीच से यहाँ आया है और... ।”

“तुम कैसे कह सकती हो कि वो तुम्हारे पीछे ही दिल्ली तक आया है ।”

“मेरे पीछे ही आया है । वो मेरे शरीर की गंध को अच्छी तरह पहचानता है और गंध पहचाने कि उसकी शक्ति बहुत तेज है । उसी गंध के दम पर वो मेरे पीछे दिल्ली तक आ पहुँचा ।”

तभी बाहर कुछ शोर-सा सुनाई दिया ।

एक-दो की चीखें सुनाई दिया । भागदौड़ की आवाजें भी थीं ।

“ये क्या ?”

“बाहर क्या हो रहा है ?”

मोना चौधरी के होंठ भिंच गये ।

दुलानी और मोदी दरवाजे की तरफ दौड़े ।

दरवाजे पर थपथपाहट होते ही महाजन ने दरवाजे की तरफ देखा । उसके होंठ भिंच गये ।

“कौन ?” दूसरे ही पल उसके होंठों से गुर्राहट निकली ।

मैडम शर्मा की नजरें भी दरवाजे की तरफ उठी ।

कुछ बच्चे डैक्स पर बैठे-बैठे नींद में डूब गये थे । कुछ परेशान थे कि उन्हें जाने क्यों नहीं दिया जा रहा और कुछ बच्चे उत्सुकता भरी निगाहों से अभी भी रहस्यमय जीव को देख रहे थे जो कि नींद से जाग गया था और अब फर्श पर बैठा इधर-उधर देख रहा था, परन्तु जाने क्यों इस वक्त वह कुछ व्याकुल-सा दिखाई देने लगा था । उसकी आँख बेचैनी से एक कान से दूसरे कान तक फिर रही थी ।

“मैडम शर्मा को कमिश्नर साहब ने बुलाया है ।” बाहर से आवाज आई ।

महाजन ने मैडम शर्मा को देखा ।

सिर हिलाया दरवाजे के पास पहुँची और बोली ।

“क्या काम है ?”

“ये तो मुझे मालूम नहीं !” बाहर से आवाज आई, “कमिश्नर साहब ने बुलावा भेजा है ।”

“अभी आती हूँ ।”

मैडम शर्मा के शब्दों के साथ ही बाहर, दूर जाती कदमों की आहट सुनाई देने लगी ।

“ये सब नहीं चलेगा ।” महाजन शब्दों को चबाकर कह उठा ।

मैडम शर्मा ने महाजन को देखा ।

“क्या नहीं चलेगा ?”

“तुम्हारे लिए इस तरह बुलावा आना ।” महाजन ने उसे घुरा, “या भीतर रहो या बाहर । यहाँ तुम बच्चों के लिए हो ।”

तभी रहस्यमय जीव उठ खड़ा हो गया ।

महाजन ने उसे देखा । रहस्यमय जीव परेशान-सा जैसे कुछ सूँघने की चेष्टा कर रहा था ।

“कमिश्नर से मिलकर भी आती हूँ और उसे कह भी आती हूँ कि इस तरह बुलावा न भेजें ।”

महाजन की निगाह मैडम शर्मा पर टिकी रही ।

“जाऊ ?”

“जल्दी आना । मैं... ।”

“मैडम, मैं भी आपके साथ जाऊँगा !” तभी एक बच्चा कह उठा ।

“मैं भी आपके साथ जाऊँगा मैडम !” दूसरा बच्चा खड़ा हो गया ।

“मुझे भी यहाँ से जाना है ।”

“मैं भी... ।”

“मैं भी... ।”

एक-के-बाद-एक आवाजें उठने लगी । बच्चों की आवाजें बढ़ती जा रही थी ।

“चुप हो जाओ ।” एकाएक महाजन गला फाड़कर चीखा ।

बच्चे सहमकर चुप हो गये ।

कुछ बच्चे सुबक उठे ।

“इस तरह बच्चों से बात नहीं करते ।” मैडम शर्मा ने बच्चों पर निगाह मारी, “इस वक्त तो वैसे भी ये परेशान है कि इन्हें कमरे में बंद रखा हुआ है । घर नहीं जाने दिया जा रहा ।”

“तो इन्हें समझा दो कि खामोशी से बैठे रहे ।” महाजन ने दाँत भींचकर कहा ।

“बच्चों से इस तरह बात नहीं करते ।” कहने के साथ ही मैडम शर्मा बच्चों की तरफ बढ़ गई ।

बच्चों को चुप कराने और समझाने में उसे दस-बारह मिनट लग गये ।

मैडम शर्मा, महाजन के पास पहुँची ।

“मैं कमिश्नर साहब के पास होकर आती हूँ ।”

“जल्दी आना ।” महाजन ने सख्त स्वर में कहा, “मैं बच्चों की हरकतों को ज्यादा देर सहन नहीं... ।”

“जल्दी आऊँगी ।” कहने के पश्चात मैडम शर्मा ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला ।

बाहर निकलने को हुई कि तभी पीछे से उसकी बाँह पकड़कर खींचा गया । उसने देखा कि खींचने वाला वही रहस्यमय जीव है । उसे इस हद तक करीब पाकर मैडम शर्मा के होंठों से चीख निकल गई ।

“हैलो !” महाजन ने हड़बड़ाकर पुकारा ।

परन्तु उसने महाजन की पुकार पर ध्यान नहीं दिया । वह मैडम शर्मा के बदन को सूँघने लगा । उसके बाद मैडम शर्मा को छोड़कर कमरे में टहलने लगा । उसके होंठों से हल्की-हल्की गुर्राहट निकल रही थी ।

महाजन अजीब-सी निगाहों से रहस्यमय जीव को देख रहा था ।

“ये... ये... ।” मैडम शर्मा ने कहना चाहा ।

“तुम जाओ ।” महाजन की निगाह जीव पर थी, “जल्दी वापस आना ।”

चेहरे पर घबराहट समेटे मैडम दरवाजे की तरफ बाहर निकलने को हुई । तभी रहस्यमय जीव ने झपट्टा-सा मारा और मैडम शर्मा के पास आ पहुँचा । मैडम शर्मा के होंठों से दहशत भरी चीख निकली । वह दरवाजे से टकराई और लड़खड़ाकर नीचे गिरी ।

इसके साथ ही रहस्यमय जीव दरवाजे से बाहर निकल गया ।

महाजन के चेहरे पर हक्के-बक्के-से भाव आ ठहरे ।

‘हैलो !” महाजन चीखा ।

परंतु रहस्यमय जीव ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया ।

महाजन भागा । दरवाजे से बाहर निकला । जीव नजर आया । जो परेशान-सा, बेचैन-सा गैलरी में आगे बढ़ा जा रहा था । उसकी गर्दन इधर-उधर घूम रही थी जैसे वह किसी को तलाश कर रहा हो ।

“हैलो !” महाजन बदहवास-सा जोरों से बोला और उसकी तरफ लपका ।

पीछे से बच्चों के चीखने-शोर डालने की आवाज आई ।

महाजन ने पीछे देखा तो सब कुछ खत्म होता-सा लगा ।

बच्चे जल्दी-जल्दी बाहर निकल रहे थे और मैडम शर्मा कुर्ती के साथ बच्चों को दूसरी दिशा की तरफ भाग जाने को कह रही थी । बच्चे खुशी से चिल्लाते कमरे से निकलकर दूसरी तरफ भाग रहे थे ।

महाजन ने जीव की तरफ नजर मारी ।

वह गैलरी में आगे निकल गया था । राह में जो भी उसे दिखता, भय से चीखकर, जहाँ जगह मिलती, वही दुबक जाता । बहुत मस्ती से बाँह हिलाता वह आगे बढ़ रहा था । महाजन समझ नहीं पाया था कि अचानक ही रहस्यमय जीव को क्या हो गया । महाजन तेजी से दौड़ा और जीव के सामने पहुँचा ।

“हैलो !” महाजन दोनों हाथ फैलाकर चीखा, “ये क्या कर रहे हो ? कहाँ जा रहे हो ? तुम मेरे साथ रहो । इसी में हम दोनों का भला है । इस तरह भागोगे तो पुलिस वाले तुम्हें तकलीफ देंगे । तुम पर गोलियाँ चलाना शुरू कर देंगे । रुक जाओ । अभी भी हम सब ठीक कर लेंगे ।”

“वो पागलों की तरह आगे बढ़ा जा रहा था ।

महाजन रुका ।

तभी वह महाजन टकराया और हाथ से महाजन को पीछे करके आगे बढ़ता रहा । महाजन ने खुद को संभाला । चेहरे पर अजीब-सी घबराहट के भाव आ ठहरे थे । रहस्यमय जीव की हरकत बिल्कुल नई थी उसके लिए । वह समझ नहीं पा रहा था कि जीव क्या चाहता है ? इस तरह किधर जा रहा है ? कहीं फिर से लोगों को मारना न शुरू कर दे । लेकिन उसे रोक पाना महाजन को असंभव लग रहा था ।

तभी आगे मोड़ आया ।

जीव मोड़ पर इस तरह मुड़ गया जैसे उसे पता हो कि उसे किस तरफ जाना है ।

हड़बड़ाया-सा महाजन उसके पीछे था ।

सामने एक जगह ढेर सारे पुलिस वाले इकट्ठे हुए नजर आ रहे थे । जीव उसी तरफ बढ़ रहा था । तभी पुलिस वालों की निगाह उस पर पड़ी तो उनमें हड़बड़ी फैल गई ।

पुलिस वाले इधर-उधर भागे ।

कुछ के होंठों से चीख निकली । भागदौड़ का माहौल नजर आने लगा । शोर उठ खड़ा हुआ ।

उसके पीछे आता महाजन सकते की-सी हालत में आ गया । समझ गया कि रहस्यमय जीव, पुलिस वालों को खत्म करने जा रहा है । ये विचार आते ही जोरों से चीखकर पुलिस वालों से बोला ।

“भाग जाओ । खुद को बचाओ ।” महाजन हाँफ-सा रहा था । चेहरे पर पसीना चमकने लगा ।

पुलिस वालों में और भी भगदड़-सी मच गई ।

तभी जहाँ पुलिस वाले खड़े थे, उसके पास का दरवाजा खुला और मोदी व दुलानी ने बाहर कदम रखा । सामने से आते रहस्यमय जीव को देखकर उनके होश उड़ गये ।

“जीव ! वही खतरनाक... ।” दुलानी ने गला फाड़कर कहना चाहा ।

तब तक वह सिर पर आ पहुँचा था ।

मोदी दाँत भींचें, आँखें फाड़े दीवार से सट गया था ।

रहस्यमय जीव पास पहुँचा । दरवाजे पर दुलानी आँखें फाड़े उसे देख रहा था । रहस्यमय जीव में उसकी बाँह पकड़कर उसे रास्ते से हटाया और भीतर प्रवेश कर गया ।

दूसरे ही पल वह रुक गया ।

कमरे में सामने ही मोना चौधरी खड़ी थी ।

पुलिस वाले रहस्यमय जीव को कमरे में, इतने करीब पाकर हक्के-बक्के रह गये । कइयों के होंठों से दबी-दबी चीख निकली । कुछ पीछे दीवार के साथ जा लगे । उनके दिलों में दहशत-सी प्रवेश कर गई ।

मोना चौधरी को देखकर रुका था रहस्यमय जीव ।

उसे एकाएक सामने पाकर मोना चौधरी के दाँत भींच गये । दम साधे खड़ी रह गई वह । मोना चौधरी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि रहस्यमय जीव एकाएक इस तरह सामने आ जायेगा । जबकि वह जीव के सामने पड़ने से कतरा रही थी । इस जीव के सामने पड़कर वह बे-मौत मरना नहीं चाहती थी । लेकिन अब वह जीव सामने था । उसकी हर पल इधर-उधर फिरने वाली आँख ठीक माथे के बीचोबीच ठिठकी मोना चौधरी को देख रही थी ।

बूत की तरह खड़ी मोना चौधरी रहस्यमय जीव को देखे जा रही थी । वह मेकअप में थी । चेहरा देखकर पहचानना होता तो रहस्यमय जीव भी धोखा खा जाता । परंतु जीव ने तो उसे शरीर की गंध के दम पर पहचाना था । जहाँ भी था वहीं इसे उसके शरीर की गंध मिल गई थी और ये सीधा यहाँ आ पहुँचा था ।

मोना चौधरी को कोई रास्ता न दिखा कि बचकर निकल सके । वैसे भी वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थी कि इस रहस्यमय जीव से बचकर, भागकर दूर नहीं जा सकेगी । वह एकटक रहस्यमय जीव को देखे जा रही थी । इस आशा से की वह कभी भी उस पर झपट पड़ेगा और... ।

उसी पल तूफान की भाँति महाजन ने भीतर प्रवेश किया ।

“बेबी !” महाजन ठिठका । उसका चेहरा फक्क था । फिर आगे भागा और पास पहुँचकर जीव का हाथ पकड़कर हिलाता हुआ बदहवास-सा कह उठा, “ह... हैलो !  हैलो !!”

रहस्यमय जीव ने उसे नहीं देखा । अपनी बाँह को झटका देकर महाजन के हाथ से हाथ छुड़ाया, परंतु इस बीच नजर मोना चौधरी पर ही रही ।

“ऐ !” महाजन संभलकर रहस्यमय जीव के सामने आ गया, “ये क्या कह रहे हो । पीछे हटो । बेबी को कुछ नहीं कहना । हमने तुम्हारे साथ कोई बुरा नहीं किया ।” महाजन का चेहरा पसीने से भर उठा था, “हम तुम्हारी तरह ही अच्छे... ।”

महाजन ने जब ‘बेबी’ शब्द का इस्तेमाल किया तो कमिश्नर रामकुमार चौंका । वह जानता था कि महाजन, मोना चौधरी को बेबी भी कहता है । इसके साथ ही मोना चौधरी को पहचानता चला गया कि मेकअप में और कोई नहीं, मोना चौधरी है । मतलब कि इंस्पेक्टर मोदी को पहले से ही मालूम था कि वह मोना चौधरी है । तभी तो उसे इस मामले में डाला, लेकिन क्या कोटेश्वर बीच पर जीव को संभालने वाले मोना चौधरी और महाजन ही थे ?

वहाँ मौजूद पुलिस वाले सहमे-से रहस्यमय जीव को, महाजन को और मोना चौधरी को देख रहे थे । इस बीच अगर किसी पुलिस वाले को बाहर निकलने का मौका मिला तो वह दबे पाँव बाहर निकल गया ।

महाजन घबराहट में बोलता जा रहा था, परन्तु जीव ने उसकी तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया । उसकी आँख तो मोना चौधरी पर ही टिकी थी और मोना चौधरी जीव के हमले का इंतज़ार कर रही थी ।

रहस्यमय जीव ने सामने खड़े महाजन को हाथ से पीछे किया तो महाजन लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा ।

तभी रहस्यमय जीव ने मोना चौधरी की तरफ कदम बढ़ाया ।

होंठ भींचें मोना चौधरी ने आँखें बंद कर लीं ।

करीब पहुँचकर रहस्यमय जीव ने मोना चौधरी का हाथ पकड़ा । मोना चौधरी ने उसी पल आँखें खोली तो रहस्यमय जीव के मोटे-भद्दे होंठों को मुस्कुराहट के रूप में फैले देखा । वह मुस्कुरा रहा था ।

मोना चौधरी की अविश्वास से भरी निगाह उस पर टिकी रही ।

नीचे गिरा पड़ा महाजन आँखें फाड़े सब देख रहा था । उसके चेहरे पर अभी भी दहशत थी ।

पुलिस वाले हक्के-बक्के-से ये सब देख रहे थे । जो भी हो रहा था उनकी आशा के अनुरूप नहीं हो रहा था । वे तो सोच रहे थे कि अभी इस युवती की विक्षिप्त लाश देखने को मिलेगी परंतु यहाँ तो नजारा ही कुछ और था ।

तभी रहस्यमय जीव मोना चौधरी के हाथ को अपने शरीर के हर उस हिस्से पर लगाने लगा, जहाँ-जहाँ उसे गोलियाँ लगी थीं । जैसे वह शरीर का घायल वह हिस्सा मोना चौधरी को दिखा रहा हो ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से फटा-फटा-सा स्वर निकला, “ये... ये तुम्हें अपने जख्म दिखा रहा हैं ।”

मोना चौधरी के होंठों से गहरी साँस निकली और मुस्कुरा पड़ी ।

उसे मुस्कुराता पाकर जीव के होंठों से माध्यम-सी आवाज निकली जो कि शायद खुशी से भरी आवाज थी ।

“बेबी !” महाजन के चेहरे पर अजीब-से भाव थे ।

“हम इसे बहुत गलत समझे ।” मोना चौधरी कह उठी, “ये मुझे मारने के लिए यहाँ नहीं आया था ।”

“त... तो ?” महाजन उठकर पास आ पहुँचा था ।

“कोटेश्वर बीच पर सब-इंस्पेक्टर तिवारी की गोलियाँ इसे लगी थी । पहले की ही तरह अपने शरीर से गोलियाँ निकलवाकर दर्द से मुक्ति पाना चाहता था । इसलिए ये मेरे पीछे-पीछे दिल्ली आ पहुँचा ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“और हम सोचते रहे कि हमें मारने आया है ।”

“हाँ !”

“ले... लेकिन इसने गौरी को क्यों मारा ? वो... वो... ।”

“शायद उस वक्त जिस्म में धँसी गोलियों से इसे बहुत अधिक पीड़ा हो रही होगी । इसी वजह से गुस्से में इसमें गौरी को मार दिया ।”

रहस्यमय जीव ने अभी भी मोना चौधरी का हाथ पकड़ा हुआ था ।

कुछ पलों के लिए गहरी चुप्पी-सी छा आई ।

मोना चौधरी ने उसकी पकड़ से अपना हाथ छुड़ाया और उसके कंधे को थपथपाया । रहस्यमय जीव ने भी उसके कंधे को थपथपाया । वह मुस्कुरा रहा था । मोना चौधरी भी मुस्कुरा रही थी । तभी जीव नीचे फर्श पर बैठ गया तो मोना चौधरी भी उसके सामने नीचे बैठी और उसके घुटने को छुआ । उसके बाद तो दोनों के बीच एक-दूसरे को छूने का सिलसिला शुरू हो गया । प्यार दिखाने का रहस्यमय जीव का ये अपना तरीका था ।

महाजन गहरी साँस लेकर खाली कुर्सी पर जा बैठा । चेहरे पर चैन के भाव थे ।

कुछ देर पहले वहाँ दहशत का माहौल था, परंतु यह सब देखकर पुलिस वालों के चेहरों पर राहत-सी नजर आने लगी थी । मौत के खौफ से वे बहुत हद तक बाहर आ गये थे । रहस्यमय जीव का ये नया रूप था उनके लिए । वरना अब तक तो उसे दरिंदे-जल्लाद के रूप में ही पहचाना था ।

साँसों की आवाजें वहाँ महसूस हो रही थीं ।

तभी मोना चौधरी ने जीव के घुटने को थपथपाया और उठ खड़ी हुई । रहस्यमय जीव नीचे ही बैठा रहा । वह कभी मोना चौधरी को देखता तो कभी इधर-उधर मौजूद पुलिसवालों को देखने लगता ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से निकला, “तुम इसके शरीर से गोलियाँ निकालो ।”

मोना चौधरी ने महाजन को देखा और सख्ती भरे ढंग से इंकार में सिर हिलाया ।

“नहीं ! मैं इसके शरीर में धँसी गोलियाँ नहीं निकालूँगी ।”

“यह क्या कह रही हो बेबी !” महाजन कह उठा, “अगर इसे पीड़ा का अहसास होता रहा तो ये लोगों की जान लेता रहेगा ।”

“इस बात से मुझे कोई मतलब नहीं !” मोना चौधरी की आवाज सख़्त थी, “इसके शरीर से बार-बार गोलियाँ निकालना मेरी ड्यूटी नहीं है । मैं गोलियाँ निकालूँ और पुलिस वाले इसे गोलियाँ मारकर जल्लाद बनाते रहे । ये सब नहीं चलेगा ।”

चुप्पी-सी छा गई वहाँ ।

पुलिस वालों की गंभीर निगाह मोना चौधरी व रहस्यमय जीव पर थी ।

“तुम्हें इसके शरीर से गोलियाँ निकाल देनी चाहिए ।” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “नहीं तो यह लोगों की जान लेता रहेगा ।”

“इस बात की क्या गारंटी है कि पुलिस अब इस पर गोलियाँ नहीं चलाएगी ?” मोना चौधरी ने मोदी को घूरा ।

तभी कमिश्नर रामकुमार ने कहा ।

“अगर किसी की जान नहीं लेगा तो पुलिस इस पर गोलियाँ भी नहीं चलायेगी ।”

“जब पुलिस ने इस पर नहीं गोलियाँ चलाई तो ये दोस्ताना ढंग से पुलिस वालों के बीच बैठा ।”

“वो सिर्फ एक पुलिस वाले की गलती थी ।” रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “ये इंसानों का दोस्त बन सकता है तो हम इंसान भी इसके दोस्त बन सकते हैं । इस पर गोली न चलाने का आर्डर पुलिस वालों को मिल जायेगा ।”

मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे ।

“बेबी !”

मोना चौधरी ने महाजन को देखा ।

“अब क्या सोच रही हो ?”

“यही कि पुलिस वालों की बातों का विश्वास करूँ या... ?”

“आखिरी बार देख लेते हैं जीव के शरीर से गोलियाँ निकालकर ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “पुलिस ने अब इस पर गोलियाँ चलाई तो फिर हम पुलिस और जनता की सहायता के लिए आगे नहीं आयेंगे ।”

तभी अन्य कमिश्नर कह उठा ।

“आप दोनों विश्वास कीजिए । पुलिस वाले अब इस पर गोलियाँ नहीं चलायेंगे ।”

कुछ लम्बी  खामोशी के बाद मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।

“ठीक है । आखिरी बार मैं ये काम कर रही हूँ, लेकिन काम होगा कोटेश्वर बीच पर ही ।”

“वहाँ क्यों ?” एक पुलिस वाले के होंठों से निकला ।

“वो जगह ही इसकी जमीन है । पहली बार इसे वही देखा गया था ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “वैसे भी दिल्ली जैसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर इसे रखना ठीक नहीं होगा । पुलिस नहीं तो कोई दूसरा भी इसे तकलीफ पहुँचा सकता है । इसका वो सही ठिकाना वही वीरान जगह है । अगर इसके साथ कोई गलत छेड़छाड़ न करें तो ।”

“गोलियाँ तो यहाँ भी निकाली जा सकती हैं ।”

“ये काम मैं कोटेश्वर बीच पर ही करना पसंद करूँगी ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“रास्ते में इसे गोलियों की वजह से शरीर में पीड़ा का अहसास हुआ तो ये दूसरों की जान ले सकता है । तुम्हें भी मार सकता है ।” रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “इसलिए इसके शरीर में से... ।”

“जब तक मैं इसके साथ हूँ, यह जल्लाद नहीं बनेगा । इसकी जिम्मेदारी मैं लेती हूँ ।”

दूसरे कमिश्नर ने रामकुमार से कहा ।

“इसकी बात पर हमें क्या एतराज हो सकता है । ये जीव को ज्यादा जानती है ।”

“अच्छी बात है ।” रामकुमार गंभीर स्वर में बोला, “बेशक इसे कोटेश्वर बीच पर ले जाओ ।”

“मेरे जाने के लिए एक बंद वैन का इंतजाम कीजिए ।”

“साथ में पुलिस वालों की जरूरत हो तो... ।”

“मैं इंस्पेक्टर हरीश दुलानी के नेतृत्व में पुलिस वालों को साथ ले जाना चाहूँगी । क्योंकि दुलानी साहब इस मामले के हालातों से अच्छी तरह वाकिफ है । वहाँ पर दुलानी की सहायता की जरूरत पड़ सकती है ।”

“इंस्पेक्टर दुलानी !” कमिश्नर रामकुमार ने कहा, “तुम पुलिस वालों को साथ लेकर, इनकी वैन के साथ-साथ जाओगे ।”

“यस सर !”

रहस्यमय जीव अभी भी फर्श पर बैठा इधर-उधर देख रहा था ।

कमिश्नर रामकुमार ने जीव पर नजर मारी फिर मोना चौधरी से बोला ।

“ये जीव है क्या ? हमारी दुनिया का तो नहीं लगता ?”

“आप ठीक कह रहे हैं कि ये हमारी दुनिया का नहीं है ।” मोना चौधरी में शब्दों पर जोर देकर कहा, “अगर हमारी दुनिया का होता तो बार-बार पुलिस वालों की गोलियों का शिकार न होता । इंसानों की हरकतों की पहचान होती इसे ।”

“ये जानना जरूरी है कि ये जीव आया कहाँ से है ?”

“इस बात का जवाब ये नहीं दे सकता और दूसरा कोई जानता नहीं ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “आप लोग वैन का इंतजाम कर दे, ताकि हम जाये । दुलानी साहब आप भी कोटेश्वर बीच पर चलने की तैयारी कीजिये ।”

“इंस्पेक्टर दुलानी के साथ मैं चल सकता हूँ ?” इंस्पेक्टर मोदी ने पूछा ।

“नहीं ! इस काम में इंस्पेक्टर दुलानी का साथ होना ही ठीक है । मैं नहीं चाहती कि कोई दूसरा समझदार इस काम में आये और फिर कोई गड़बड़ हो जाये ।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।

अन्य पुलिस वालों की मौजूदगी की वजह से इंस्पेक्टर मोदी खामोश ही खड़ा रहा । जवाब में कुछ नहीं कहा ।

कोटेश्वर बीच के पास, गौरी के गाँव की तरफ जहाँ पहले भी इंस्पेक्टर दुलानी के नेतृत्व में पुलिस ने डेरा डाला था, वहीं पर एक बार फिर पुलिस वालों का जमघट लगा हुआ था ।

कुछ दूर खुले मैदान की तरफ एक कपड़े पर रहस्यमय जीव बेहोशी में डूबा पड़ा था । उसके शरीर के कई हिस्सों पर बैंडिज की गई थी । मोना चौधरी ने उसके शरीर से गोलियाँ निकाल दी थी और इस वक्त जीव नींद की दवाओं के असर में नींद में डूबा पड़ा था ।

मोना चौधरी और महाजन कुछ दूर कुर्सियों पर बैठे थे । इधर-उधर फैले पुलिस वाले अपने कामों में व्यस्त थे । आधी रात को सब दिल्ली से यहाँ पहुँचे थे और दिन निकलते ही रहस्यमय जीव के शरीर में धँसी गोलियाँ निकालने की तैयारी शुरू कर दी गई थी । दुलानी ने वहाँ और भी पुलिस वालों को बुला लिया था ।

अब काम से फुर्सत मिल चुकी थी ।

रहस्यमय जीव को कभी भी होश आ सकता था ।

दो पुलिस वाले अपनी ही बातों में व्यस्त थे । उनमें से एक इंस्पेक्टर था और दूसरा हवलदार ।

“सर !” हवलदार ने आखिरकार कहा, “पुलिस वाले इसलिए इस जीव को छोड़ रहे हैं कि इस पर काबू नहीं पाया जा रहा ।”

“मैं भी यही सोच रहा हूँ ।” इंस्पेक्टर ने होंठ भींचकर कहा, “अगर हम इस पर काबू पा ले तो डिपार्टमेंट में नाम कमा सकते हैं ।”

“बात तो आपकी ठीक है, लेकिन हम इस पर काबू नहीं पा सकते ।”

“मेरे ख्याल में पा सकते हैं ।” इंस्पेक्टर की निगाह कुछ दूर कपड़े पर बेहोश पड़े जीव पर थी, “माना कि इसके शरीर पर गोलियाँ असर नहीं करती, लेकिन इसकी आँख पर तो गोली असर करेगी ।”

“क्या मतलब ?”

“जब ये देख नहीं सकेगा तो किसी के खिलाफ कुछ नहीं कर पायेगा । तब इसे आसानी से पकड़कर, अपनी मर्जी से इसे चलाया जा सकता है ।” इंस्पेक्टर ने कहा, “ये इस वक्त नींद में है । इसकी आँख की पट्टी से नाल लगाकर सारी-की-सारी गोलियाँ चला दूँगा । हो सकता है मर भी जाये । नहीं तो अंधा हो ही जायेगा ।”

“लेकिन आपको ऐसा कोई नहीं करने देगा ।”

“किसी को मालूम ही नहीं होगा कि मैं क्या करने जा रहा हूँ । दबे पाँव रहस्यमयी जीव के पास पहुँचकर रिवॉल्वर निकालूँगा और उसकी बंद आँख के पास रिवॉल्वर से गोलियाँ चला दूँगा ।” इंस्पेक्टर कुछ कर गुजरने पर आमादा था ।

“हाँ, सर ! ऐसा किया जा सकता है ।”

‘मैं उसकी आँख पर गोलियाँ चलाने जा रहा हूँ । तुम देखना बाद में सबको अफसोस होगा कि ये काम करके उन्होंने नाम क्यों नहीं कमा लिया ।” इंस्पेक्टर ने कहा, “जीव पर काबू पाने की एवज में तरक्की और इनाम मुझे ही मिलेंगे ।”

“सर !” हवलदार ने जल्दी से कहा, “अपने इस कारनामे में जरा-सा नाम मेरा भी जोड़ लीजिएगा ।”

“सोचूँगा ।” इंस्पेक्टर ने कहा और जेबों में हाथ डाले लापरवाह भरे ढंग से जीव की तरफ बढ़ने लगा ।

“संभलकर सर !” पीछे से हवलदार ने कहा ।

इंस्पेक्टर लापरवाही से चलता, इधर-उधर देखता जीव के पास पहुँचता जा रहा था । दूर कुर्सियों पर मोना चौधरी और महाजन बैठे नजर आ रहे थे । पुलिस वाले अपने कामों में व्यस्त थे । कुछ खाना बना रहे थे । खाना बनाने के लिए पहले की तरह गाँव से दो-चार और आदमी-औरतों को बुला लिया था । कुछ छोटे-छोटे तम्बू लगाने में व्यस्त थे ।

दुलानी इस वक्त मोना चौधरी और महाजन से बात करने के बाद पुलिस वालों में जा पहुँचा था ।

वह इंस्पेक्टर जीव से कुछ कदम पहले ठिठका । इधर-उधर देखा । सब ठीक था । उस पर खास तौर से किसी की नजर नहीं थी । एकाएक वह अपनी जगह से हिला और तेज-तेज कदम उठाते हुए जीव के पास पहुँचा । इसके साथ ही उसने फुर्ती से जेब से रिवॉल्वर निकाली और गोली चलाने के लिए रहस्यमय जीव पर झुका ।

उसी पल वह ठिठक गया । उसकी आँखें खौफ से फैलकर चौड़ी होती चली गई । रहस्यमय जीव की आँख शायद अभी-अभी खुली थी । वह उसी तरह कपड़े पर लेटा कभी उसे देखता तो कभी उसके हाथ में दबी रिवॉल्वर को । रिवॉल्वर थामें हक्का-बक्का-सा वह जीव को देखता रह गया । गोली चलाना तो भूल ही गया था वह ।

तभी रहस्यमय जीव का शरीर हिला । वह उठकर बैठ गया । गुस्सा उसके चेहरे पर नजर आने लगा था ।

इंस्पेक्टर घबराकर भागने को हुआ कि भय से लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा । रिवॉल्वर हाथ से छूटकर नीचे जा गिरी ।

कइयों की नजरें इस तरह उठ चुकी थी । कुछ ने शोर भी पैदा किया ।

पुलिस वाले जल्दी से हथियार उठाने लगे ।

उसी पल रहस्यमय जीव उठ खड़ा हुआ । उसका चेहरा क्रोध से धधक रहा था ।

“इसका तो काम हो गया ।” महाजन बड़बड़ा उठा ।

मोना चौधरी के दाँत भिंच चुके थे ।

पुलिस वाले हथियार थामे सकते की-सी हालत में खड़े थे । वह गोली भी नहीं चला सकते थे । सब ऐसी पोजिशन में थे कि उनकी चलाई गोलियाँ अपने ही साथी को लग सकती थी ।

“कोई गोली नहीं चलायेगा ।” गला फाड़कर चीखा हरीश दुलानी । उसकी हालत भी खराब हो रही थी ।

तभी रहस्यमय जीव ने कदम उठाया और नीचे गिर पड़े इंस्पेक्टर की तरफ बढ़ा। इंस्पेक्टर ने चाहा कि कदम उठा के भाग ले, परन्तु ख़ौफ की वजह से उसकी हिम्मत जवाब दे गई ।

देखने वालों के रोगंटे खड़े हो गये । चेहरे फक्क । टाँगों में कंपन शुरू हो गया था । आँखों के सामने वह लाशें घूमने लगीं, जो इसी रहहस्मय जीव की देन थी । इंस्पेक्टर की लाश भी उनकी सोचों में वैसी ही दिखी ।

नीचे पड़ा इंस्पेक्टर चीखना चाहता था, लेकिन आवाज गले में ही दबकर रह गई थी । खुश्क गला । मौत के भय और दहशत से फटी आँखें । हिलने का तो दम ही नहीं था उसमें ।

रहस्यमय जीव उसके पास पहुँचकर ठिठका । उसके चेहरे पर गुस्सा नाच रहा था । वह अब बहुत ही भयानक लगने लगा था । एकाएक पुनः उसके गले से चीख की आवाज निकली इसके साथ उसने अपना दायाँ पाँव उठाया । पाँव का निशाना था उसका सिर । जो कि उसके भारी पाँव की एक ही चोट में कुचल जाना था ।

“नहीं !” मोना चौधरी जोरों से चीखी और उसकी तरफ दौड़ी, “रुक जाओ ।”

मोना चौधरी की चीख इतनी तेज थी कि दूर तक उसकी गूँज गई ।

हर कोई स्तब्ध-सा था ।

मोना चौधरी दौड़ती हुई उसके पास पहुँची ।

रहस्यमय जीव का पाँव उठा-का-उठा रहा गया । उसने पास आ पहुँची मोना चौधरी को देखा । क्रोध में वह सुलग रहा था । गुस्से से भरी गहरी-गहरी साँसें ले रहा था ।

“ऐसा मत करो ।” मोना चौधरी ने गर्दन हिलाकर कहा, “इसे मत मारो । ये तुम्हें कुछ नहीं कहेगा ।”

जवाब में उसके होंठ खुले और तेज आवाज निकली । अजीब-से ढंग से वह गर्दन हिलाने लगा ।”

“ये... ये बेवकूफ है ।” मोना चौधरी ने उसकी बाँह दोनों हाथों से थाम ली, “तुम तो अच्छे हो । छोड़ दो इसे । ये अब कुछ नहीं करेगा । रहने दो । हट जाओ पीछे ।”

उसके गले से पुनः चीख निकली । गुस्से में वह फुफकार-सा उठा ।

“तुम कितने अच्छे हो ।” कहने के साथ मोना चौधरी एक हाथ उसकी पीठ पर फेरने लगी । वह घबराई हुई थी कि उठे हुए पाँव से वह कही टाँग को कुचल न दे । उसकी निगाह मोना चौधरी पर थी, “एक मिनट ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी वहाँ से हटी और कुछ दूर पड़ी रिवॉल्वर उठा लाई, “लो तोड़ दो इसे । पकड़ो... ।”

उसने हाथ बढ़ाकर रिवॉल्वर को पकड़ा और दोनों हाथों से पल भर में ही कच्चे खिलौने की तरह उसे मसलकर एक तरफ फेंक दिया । मोना चौधरी ने उसका कंधा थपथपाया और पीठ पर हाथ फेरने लगी । इसके साथ ही वह अपने चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कान ला पाई । अपनी लड़खड़ाती आवाज पर काबू पाकर कह उठी ।

“तुम बहुत अच्छे हो । ये बेवकूफ हैं । इसे समझाया, लेकिन ये समझा नहीं । अब अपनी गलती मान रहा है । गुस्सा मत करो । पीछे हट जाओ । मेरी बात नहीं मानोगे क्या ?”

मोना चौधरी ने मुस्कुराते हुए प्यार से उसकी उठी टाँग को इस तरह थपथपाया की दो टाँगों को नीचे कर ले । पीछे कर ले । इस दौरान उनके चेहरे पर मुस्कुराहट बिछाये रखी ।

रहस्यमय जीव बराबर मोना चौधरी को देख रहा था । मोना चौधरी की हरकत पर वह चीखा और टाँग को गुस्से-से भरे ढंग में नीचे रख अपने सिर को हिलाने लगा ।

मोना चौधरी बराबर उसकी पीठ पर हाथ फेर रही थी ।

रहस्यमय जीव का चेहरा गुस्से से भरा हुआ था ।

मोना चौधरी ने उसका कंधा थपथपाया और पलटकर नीचे गिरे मौत के ख़ौफ में डूबे इंस्पेक्टर के पास पहुँची । इस दौरान उसके दाँत भिंच चुके थे । आँखों में क्रोध से भरी सुर्खी आ गई थी । पास पहुँचकर उसने नीचे पड़े इंस्पेक्टर को उसके सिर के बाल पकड़कर उठाया और जोरदार घूँसा उसके गाल पर मारा ।

भय की अधिकता की वजह से शायद वह चीखने की ताकत भी इकट्ठी नहीं कर पाया ।

“तुम गोलियों से भुनोगे उसे । देख लिया नतीजा ।” पास पहुँचकर मोना चौधरी ने गुर्राते हुए उसकी कमीज का कॉलर पकड़कर उसे टाँगों पर खड़ा किया, “कितना रोका लेकिन तुम लोग नहीं माने । वर्दी की ताकत हर जगह नहीं चलती । वर्दी का रौब हर जगह नहीं चलता । जिसे तुम मारने की कोशिश कर रहे थे, वो किसी कानून को नहीं जानता । उसका अपना ही कानून है । आराम से रहो और रहने दो ।” इसके साथ ही मोना चौधरी ने पुनः उसके गाल पर घूँसा मारा ।

इस बार वह तेजी के साथ नीचे जा गिरा । होंठों के कोरों से खून बहने लगा । यकीनन उसके एक-दो दाँत हिल गये थे । नीचे गिरा अभी भी वह दहशत में था ।

“म... मुझे माफ़ कर दो । गलती हो गई । मैं... ।”

मोना चौधरी ने दाँत भींचें उसे ठोकर मारी । वह छटपटाकर चीखा ।

मोना चौधरी ने हर तरफ फैले पुलिस वालों को गुस्से से भरी नजरों से देखा ।

“तुम लोग इसकी जान लेना चाहते थे । आओ, कोशिश करके देख लो । डरपोक हो तुम लोग, जो नींद में डूबे मासूम जीव को मारकर अपनी बहादुरी साबित करना चाहते थे । ये तुम लोगों से ज्यादा शरीफ और ईमानदार है । इसने किसी को कुछ नहीं कहा । पहले भी इसे गोली मारकर मजबूर किया गया कि ये बदले की भावना से दूसरों की जान ले । गोलियाँ इसके जिस्म में धँसी रही । इसे पीड़ा पहुँचाती रही और ये दूसरों को मारता रहा । अब गोलियाँ निकाल दी गईं । ये ठीक हो गया । फिर से गोली मारकर, उसके मन में नफरत भरने जा रहे हो । तुम लोग भी इसे दरिंदा बनाने के जिम्मेदार हो । अब ये बेकाबू हो गया तो जाने कितने मरेंगे ।”

हर किसी की निगाह कभी मोना चौधरी पर जाती तो कभी रहस्यमय जीव पर ।

मोना चौधरी पुनः पुलिस वालों पर निगाहें दौड़ाते हुए चीखकर कह उठी ।

“जो भी इस तरह की आजमाइश रहस्यमय जीव पर करना चाहता है कर ले । उसे बचाने की गारंटी मैं लेती हूँ । या तो इसे पकड़कर मेरी तसल्ली कर दो, ये गिरफ्त में आ गया है या फिर हाथ खड़े करके पीछे हो जाओ कि कभी इसे टेढ़ी आँख से नहीं देखोगे । हर वक्त मैं तो पास रहूँगी नहीं । मैं जाने वाली हूँ । अगर मेरी बात समझ में आये तो मेरे जाने के बाद तुम सब ठीक रहोगे । इससे तुम लोगों की दुश्मनी नहीं होगी । सब कुछ शांत-सा चलेगा ।”

मोना चौधरी के खामोश होते ही वहाँ पैनी चुप्पी-सी छा गई थी ।

कोई कुछ नहीं बोल रहा था ।

“कोई अपनी सोचों को कोशिश के रूप में अंजाम नहीं देना चाहता ?” मोना चौधरी ने पुनः ऊँचे स्वर में कहा ।

सब खामोश ही रहे । कहीं से आवाज नहीं आई ।

“याद रखना, कुछ ही देर में मैं यहाँ से चली जाऊँगी । उसके बाद तुम लोगों ने इसके साथ कोई गलत हरकत की तो उसके जिम्मेदारी तुम सब पर ही होगी । अपनी वर्दी का रौब इसे दिखाने की चेष्टा मत करना । क्योंकि ये किसी भी वर्दी को नहीं पहचानता । सिर्फ शराफत को पहचानता है या दुश्मनी को ।”

हर तरफ चुप्पी ही थी ।

मोना चौधरी पलटी और रहस्यमय जीव को देखने लगी ।

वह पहले की ही तरह जमीन पर बैठ चुका था । उसका गुस्सा गायब हो चुका था । बिल्कुल सामान्य नजर आ रहा था वह । मोना चौधरी को अपनी तरफ देखते पाकर उसके भद्दे होंठ मुस्कुराहट के रूप में फैल गये ।

मोना चौधरी भी मुस्कुराई और उसके पास पहुँचकर जमीन पर बैठ गई ।

“कैसे हो ?” मोना चौधरी ने मीठे स्वर में कहा और उसके घुटने को छुआ, “ठीक हो ?”

उसने पहले के से अंदाज में गर्दन हिलाई और हाथ बढ़ाकर मोना चौधरी का घुटना छुआ ।

“अब तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा । हम सब दोस्त हैं ।” मोना चौधरी उसी मिठास वाले लहजे में कह उठी ।

वह मुस्कुराया और मोना चौधरी को देखने लगा ।

‘पानी पियोगे ?” जवाब में मोना चौधरी को देखता रहा ।

“महाजन !” मोना चौधरी ऊँचे स्वर में बोली, “पानी लाओ इसके लिए ।”

“लाया बेबी !” महाजन की आवाज आई ।

मिनट भर में ही महाजन वहाँ था । प्लेट में पानी के चार गिलास रखे थे । मोना चौधरी ने उसके हाथ से प्लेट ली और उसके सामने रख दी । जब उसने खाना खाया था, तब गिलास से पानी पीना सीख चुका था । पानी के गिलास देखते ही उसने हाथ से गिलास उठाया और अपने होंठों से लगा लिया ।

आधा पानी उसके भीतर गया । आधा उसके शरीर पर गिरा । तीन गिलास उसने इस तरह पिये । फिर वह मुस्कराकर मोना चौधरी को देखने लगा । मोना चौधरी भी मुस्कुराई ।

हर कोई अपनी जगह पर स्तब्ध-चुप-सा खड़ा ये सब देख रहा था ।

“तुम आराम करो ।” मोना चौधरी ने उसके कंधे पर हाथ रखा, “अब तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा । अगर कोई कुछ कहने की कोशिश करें और तुम देख लो, महसूस कर लो तो फिर जो मन में आये वही करना । ये मत सोचना कि मुझे बुरा लगेगा । अब बुरा नहीं लगेगा । मैं तुम्हें रोकूँगी भी नहीं ।”

जवाब में उसके मोटे-भद्दे होंठ मुस्कुराहट के रूप में फैल गये ।

दोपहर के तीन बज गये थे, इन सब बातों में ।

मोना चौधरी वापस कुर्सी पर बैठी । थकी-सी लग रही थी । महाजन और दुलानी भी कुर्सियों पर जा बैठे थे । सब गंभीर थे । उत्सुकता और खुद को अजीब-सी स्थिति में फँसे अब पुलिस वाले भी घेराबंदी के रूप में उनके पास आ गये थे । महाजन ने उस दिशा की तरफ से उन्हें हटने को कह दिया था जिस दिशा की तरफ रहस्यमय जीव बैठा था, ताकि उन्हें वहाँ से नजर आता रहे और वह भी उन्हें देखता रहे ।

रहस्यमय जीव अपनी जगह पर बैठा इसी तरफ देख रहा था । मोना चौधरी ने महाजन और दुलानी को देखा फिर आसपास खड़े पुलिस वालों को देखने लगी । पुलिस वाले मक्खियों की भाँति एक-दूसरे से सटे उन्हें ही देख रहे थे ।

“दुलानी साहब !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “अगर आप पुलिस वाले रहस्यमय जीव के खिलाफ कुछ नहीं करना चाहते हो । उसके प्रति सबका मन साफ़ हो तो गाँव से बेशक पुलिस वालों का पहरा उठा लीजिये । वो किसी की जान नहीं लेगा ।”

“मैं समझता हूँ ।” दुलानी ने गंभीर स्वर में कहा, “मैं उसे उसके हाल पर छोड़ देना चाहता हूँ ।”

“अपने साथियों से भी पूछ लो ।” मोना चौधरी बोली ।

हरीश दुलानी ने वहाँ खड़े पुलिस वालों को देखा ।

“अगर तुम में से कोई उस जीव को मारना या पकड़ना चाहता है तो अपनी कोशिश कर सकता है ।”

दुलानी के शब्द सब पुलिस वालों की कान तक पहुँचने लगे । खुसर-पुसर की आवाज शुरू हो गई ।

करीब दो मिनट बाद सब के होंठों से निकलता जवाब आया । पास खड़े पुलिस वालों के होंठों से निकला ।

“नहीं सर ! अब उसके खिलाफ कोई कुछ नहीं करना चाहता । जो आप कहेंगे, वही होगा ।”

दुलानी ने मोना चौधरी को देखा ।

“अच्छी बात है । गाँव से पुलिस वालों को हटा दो । मेरे ख्याल में अब तुम लोगों के रहने की भी जरूरत नहीं ।” मोना चौधरी की निगाह दूर बैठे रहस्यमय जीव की तरफ उठी, “उसे उसके हाल पर छोड़ दो । तुमने अपनी जो रिपोर्ट ऑफिसरों को देनी हो, वो दे देना । इस रहस्यमय जीव का क्या करना है, ये बात सरकार तय करेंगी ।”

“मैं ऐसा ही करूँगा ।” हरीश दुलानी के गम्भीर स्वर में दृढ़ता थी ।

तभी होंठ सिकोड़े महाजन कह उठा ।

“बेबी ! तुम गलत कह रही हो । मामला इस तरह छोड़ देना खतरे वाली बात है ।”

मोना चौधरी की निगाह महाजन पर जा टिकी ।

“क्या मतलब ?”

“बेबी ! हम-तुम या दुलानी या गाँव वाले दूसरे लोगों की गारंटी नहीं ले सकते ।” महाजन व्याकुल-सा अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा, “हम चले जायेंगे । पुलिस और दुलानी वापस हो जायेंगे । लेकिन रहस्यमय जीव यही रहेगा । बहुत लोग इसे देखेंगे । कोई भी शरारत कर सकता है । इसे चोट पहुँचा सकता है । यह घायल होकर फिर गुस्से में पागल होकर लोगों की जान लेना शुरू कर सकता है । ये मामला तो कच्चे धागे में बँधी सिर पर लटकती तलवार जैसा हुआ ।”

महाजन को देखती रही मोना चौधरी ।

पलों की लम्बी खामोशी के बाद मोना चौधरी सिर हिलाकर कह उठी ।

“ठीक कहते हो महाजन । ऐसा हो नहीं सकता बल्कि ऐसा होगा । क्योंकि तरह-तरह के शरारती लोग दुनिया में भरे पड़े हैं । जिस जीव को कभी न देखा हो, सामने आ जाये तो देखने वाला कुछ भी कर सकता है, जैसे सरकारी गनमैन ने उस पर गोली चला दी थी और उसने गुस्से से पागल होकर खून-खराबा शुरू कर दिया था ।”

“इस बात का क्या हल है ?” महाजन कह उठा ।

“सरकार इस बारे में बाद में क्या कदम उठाती है, बाद की बात है । लेकिन अब इस बात का ध्यान रखना पुलिस वालों का ही काम है ।” मोना चौधरी ने दुलानी को देखा ।

“पुलिस वालों का काम ?” दुलानी उलझन में घिरा ।

“हाँ ! यहाँ पर और आसपास की जगहों पर पुलिस वालों की ड्यूटियाँ लगानी होगी कि वो रहस्यमय जीव के बारे में आने-जाने वालों को समझाये कि उसे कुछ न कहा जाये । छेड़छाड़ बहुत खतरनाक होगी । उससे दोस्ती करने के इरादे से बेशक उसे खाने को दे । ऐसी ही दूसरी बातें और जोड़ लो दुलानी कि लोग उससे डरे नहीं । उसे अपना समझकर पेश आये, जब भी दिखे । इस बात की सख्त हिदायत होनी चाहिए कि कोई भी बंजर जमीन की तरफ न जाये । जहाँ से वो आता है । इन बातों को बोर्ड पर लिखकर फौरन ही जगह-जगह पर लगवा देना है । गाँव वालों को भी समझाना है, बल्कि उनकी दोस्ती कराओ इस रहस्यमय जीव से । ताकि उनके मन में इसकी विचित्रता का भय निकल जाये । इस बीच सरकार फैसला कर लेगी कि इसका क्या करना है ।”

हरीश दुलानी ने गंभीरता से सिर हिलाया ।

“इन सब बातों की रिपोर्ट मुझे तुरंत ऊपर भेजनी होगी । साथ ही मैं तैयारी शुरू करवा देता हूँ इस इंतजाम की ।”

“बेहतर यही होगा कि शाम तक बोर्ड तैयार करवाकर खास-खास जगहों पर लगवा दो । इस बात को आसानी से तय कर सकते हो कि आगे का काम कैसे करना है । अब मेरे और महाजन के यहाँ रुकने की जरूरत नहीं है ।”

“वो तो ठीक है ।” दुलानी की निगाह रहस्यमय जीव की तरफ उठी, “ये क्या यही बैठा रहेगा ।”

“तुम्हें इससे घबराना नहीं चाहिए । अपना दोस्त ही समझो इसे । यहाँ रहे कहीं भी रहे । ध्यान मत दो । जब मन करे खाने-पीने को इसे दे देना । दो बार इसके पास जाओगे तो फिर डर नहीं लगेगा ।” मोना चौधरी गंभीर थी ।

दुलानी गंभीर और बेचैन नजरों से रहस्यमय जीव को देखता रहा ।

“मैडम !” तभी एक पुलिस वाला कह उठा, “आप जाने कैसे इसके पास चली गईं । हमें तो अभी भी डर... ।”

वह कहता-कहता रुक गया ।

एकाएक वह रहस्यमय जीव उठा और इस तरफ आने लगा ।

“वो इधर आ रहा है ।” एक पुलिस वाले के होंठों से निकला ।

“गुस्से में तो नहीं है ।”

“यहाँ से हटकर दूर... ।”

“कोई अपनी जगह से नहीं हटेगा ।” मोना चौधर कह उठी, “सब यही रहो । वो किसी को कुछ नहीं कहेगा ।”

अजीब-सी चुप्पी और न समझ में आने वाला ख़ौफ पुलिस वालों पर सवार हो गया था ।

“वो... वो इधर क्यों आ रहा है ?” दुलानी ने हड़बड़ाकर मोना चौधरी को देखा ।

“अब वो हमारी पहचान वाला है ।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा, “हमें उसका डर नहीं । उसका हमें डर नहीं तो ऐसे में कहीं भी आ-जा सकता है ।”

सबकी निगाह करीब आते रहस्यमय जीव पर टिक चुकी थी ।

जब वह पास आ गया तो मुस्कराकर मोना चौधरी उठ खड़ी हुई ।

“हैलो !” मोना चौधरी उसके पास पहुँची और हाथ बढ़ाया । उसने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे करके मोना चौधरी का हाथ पकड़ा । दोनों ने हाथ मिलाया । मोना चौधरी ने हाथ छुड़ाना चाहा परंतु उसने नहीं छोड़ा और हौले से उसे खींचा ।

मोना चौधरी ने प्रश्न भरी निगाहों से उसे देखा ।

उसने हाथ छोड़ा और मोना चौधरी को साथ आने का इशारा करके आगे बढ़ा ।

सबकी निगाहें उसकी हरकतों पर थी ।

कुछ आगे बढ़कर उसने ठिठके मोना चौधरी को खड़े देखा तो मुस्कराकर बाँह हिलाकर पास आने का इशारा किया । तभी महाजन कह उठा ।

“ये तुम्हें बुला रहा है बेबी !”

“हाँ !” कहने के साथ ही मोना चौधरी आगे बढ़ी और उसके पास जा पहुँची ।

उसने दायें-बायें गर्दन हिलाई और आगे बढ़ गया ।

मोना चौधरी उसके साथ चल पड़ी ।

कुछ आगे जाने पर मोना चौधरी को महसूस हुआ कि वह उसे कहीं आगे ले जाना चाहता है ।

“कहाँ जा रहे हो ?” उसका कंधा थपथपाकर मोना चौधरी ने पूछा और ठिठक गई ।

वह भी रुका और मोना चौधरी की बाँह पकड़कर साथ चलने को कहा ।

मोना चौधरी को पक्का विश्वास हो गया कि वह उसे कहीं ले जाना चाहता है । कहाँ ? ये उसकी समझ में नहीं आ रहा था । उसने पुनः मोना चौधरी को साथ चलने के लिए उसकी बाँह को हौले से खींचा । मोना चौधरी ने उसे देखा फिर बंजर, खाली जमीन पर निगाह मारी, जो धूप में चमक रही थी ।

“महाजन ! दुलानी ! ये कहीं ले जाना चाहता है ।” मोना चौधरी ने कहा, “आओ, साथ चलते हैं ।”

महाजन फौरन मोना चौधरी की तरफ बढ़ आया ।

दुलानी हिचकिचाता-सा वहीं खड़ा रहा ।

हर कोई चुप, ये सब देख रहा था ।

“दुलानी नहीं आ रहा ?” उसके पास पहुँचने पर मोना चौधरी ने पूछा ।

“मालूम नहीं ।” कहने के साथ ही महाजन ने पीछे देखा ।

दुलानी, पुलिस वालों के साथ खड़ा इधर ही देख रहा था ।

“तुम आ रहे हो या नहीं ?” मोना चौधरी, दुलानी की तरफ देखकर ऊँचे स्वर में बोली ।

क्षणिक हिचकिचाने के बाद हरीश दुलानी उनकी तरफ बढ़ आया ।

मोना चौधरी ने रहस्यमय जीव को देखा तो उसे लगा वह नाराजगी भरी निगाहों से उसे देख रहा है । मोना चौधरी समझ गई कि इसे महाजन और दुलानी का आना अच्छा नहीं लगा ।

“नाराज हो गये ।” मोना चौधरी मुस्कराकर मीठे स्वर में बोली और उसकी बाँह पर हाथ रखा, “ये भी तो तुम्हारे दोस्त हैं । हम सब ही तुम्हारे साथ चलेंगे । महाजन, मुस्कराकर हैलो करो !”

महाजन फौरन मुस्कराकर हाथ आगे बढ़ाया ।

“हैलो, दोस्त !”

उसने महाजन को देखा । हाथ आगे नहीं बढ़ाया ।

हरीश दुलानी भी पास आ पहुँचा था ।

“हैलो करो !” मोना चौधरी ने मुस्कराकर पुनः उसकी बाँह थपथपाई ।

महाजन का हाथ आगे बढ़ा हुआ था हैलो के लिए ।

मोना चौधरी को घूरते उसने हाथ बढ़ाया । महाजन से हाथ मिलाया ।

“तुम भी हैलो करो दुलानी !”

दुलानी ने फौरन हड़बड़ाकर हाथ आगे किया ।

रहस्यमय जीव ने उससे भी हाथ मिलाया ।

“तुम बहुत अच्छे हो ।” मोना चौधरी ने मुस्कराकर प्यार से पुनः उसकी बाँह थपथपाई, “चलो, आगे बढ़ने का इशारा किया । एक कदम भी आगे बढ़ाया ।”

रहस्यमय जीव ने दायें-बायें गर्दन हिलाई और फिर आगे बढ़ने लगा ।

मोना चौधरी, महाजन और दुलानी उसके साथ चलने लगे । आगे बढ़ते हुए वह कई बार मुस्कुराकर मोना चौधरी को देखता तो मोना चौधरी भी मुस्कुराने लगती ।

“ये हमें कहाँ ले जा रहा है बेबी ?” महाजन का स्वर उलझन से भरा था ।

“मालूम नहीं !” मोना चौधरी बोली, “लेकिन बिना वजह नहीं ले जा रहा कहीं ।”

दूर-दूर तक बंजर, खाली जमीन नजर आ रही थी ।

पुलिस वाले बहुत पीछे रह गये थे ।

उनका आगे बढ़ना जारी था ।

डेढ़ घंटा हो गया था उन्हें चलते हुए ।

शाम के पाँच बज रहे थे । सूर्य तेज चमक के साथ पश्चिम की तरफ बढ़ता जा रहा था ।

“बहुत देर हो गई चलते हुए ।” दुलानी कह उठा ।

रास्ते में कई जगह बीते महीनों में आये भूकंप की वजह के कारण कहीं जमीन धँसी हुई थी तो कहीं गीलापन, कीचड़ लिए हुए था । कहीं-कहीं जमीन में दरारें भी नजर आ रही थी ।

मोना चौधरी हर तरफ देखते हुए कह उठी ।

“उस दिन सुबह जब इसे होश आया तो ये इसी तरफ गया था ।”

“तुम्हारा मतलब कि ।” महाजन के होंठों से निकला, “हमें उस तरफ ले जा रहा है, जहाँ यह रहता है । जहाँ इसका ठिकाना है ।”

“ठीक समझे तुम । मेरा ख्याल पक्का होता जा रहा है कि ये हमें अपनी जगह पर ले जा रहा है ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “हमें लेकर यूँ ही इस तरफ नहीं जाने वाला ।”

“व... वहाँ कोई खतरा तो नहीं होगा ?” दुलानी के होंठों से निकला ।

“मेरे ख्याल में हमें किसी खतरे में लेकर नहीं जायेगा ।” मोना चौधरी ने पहले जैसे स्वर में कहा ।

दुलानी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए महाजन को देखा ।

“तेरे को घबराहट नहीं हो रही कि ये हमें किसी खतरे में फँसा देगा ?”

“मुझे क्या जरूरत पड़ी है घबराने की । इस काम की जिम्मेदारी तो तूने अपने सिर पर ले ली है ।” महाजन ने शांत स्वर में कहा ।

तब शाम के छः बजने जा रहे थे । वह बार-बार मोना चौधरी को देखकर मुस्कुराने लगा था । मोना चौधरी भी उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान से दे रही थी ।

हरीश दुलानी बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था ।

“ये बार-बार मुस्कराकर मोना चौधरी को क्यों देख रहा है ?” उसने महाजन से धीमे स्वर में पूछा ।

“जब बकरे को काटने का वक्त आता है तो बहुत खुशी से उसे देखा जाता है ।” महाजन बोला, “मेरे ख्याल से यहाँ भी यही हो रहा है ।”

“तुम कहना क्या चाहते हो ?”

“ये तो मुझे भी नहीं मालूम ।”

दूर-दूर तक वीरानी नजर आ रही थी । डूबते सूर्य की किरणों में हर तरफ की जमीन चमकती-सी महसूस हो रही थी । वह ऐसी जगह आ पहुँचे थे, जहाँ कई जगह जमीन में दरारें नजर आ रही थीं ।

“भूकंप की वजह से जमीन फटी है ।” बोला महाजन ।

“यहाँ की जमीन पर भूकंप ने ज्यादा असर किया है । शायद इसलिए कि ये खाली है । सपाट है ।” मोना चौधरी ने कहा ।

“लेकिन हम जा कहाँ रहे है ?” दुलानी उखड़े स्वर में कह उठा, “ये हमें कहाँ ले जा... ?”

दुलानी के शब्द मुँह में ही रह गये ।

रहस्यमय जीव एकाएक ठिठक गया था, फिर पलटकर मोना चौधरी को देखा ।

सबकी निगाह सामने गई । जहाँ रुके थे, वहाँ पर जमीन कुछ ऊँची थी । यही वजह थी कि उन्हें नजर नहीं आया कि उस पार क्या है ? अब वह स्पष्ट देख रहे थे आगे की जमीन फटी हुई थी । जमीन फटने के दस-बारह फिट की लम्बी दरार कुछ दूर तक जा रही थी । दरार के भीतर खाई जैसी खाली जगह महसूस हो रही थी । एकाएक उसने अपने गले से चीख जैसी आवाज निकाली ।

दूसरे ही पल फटी जमीन के भीतर से वैसी आवाज आई तो रहस्यमय जीव मुस्कराकर, खुशी से मोना चौधरी को देखने लगा ।

भीतर से आने वाली आवाज सुनकर मोना चौधरी की आँखें सिकुड़ीं ।

दुलानी ने घबराकर कहा ।

“य... यहाँ इसके और भी साथी हैं ।”

महाजन ने गंभीर निगाहों से दुलानी को देखा । कहा कुछ नहीं ।

“मेरे ख्याल में हम फँस गये हैं ।” दुलानी का चेहरा फक्क था, “ये कुछ बुरा सोचकर हमें यहाँ लाया है ।”

“चुप रहो ।” मोना चौधरी के होंठों से सख्त-सा स्वर निकला ।

तभी रहस्यमय जीव में हाथ के इशारे से मोना चौधरी को आने को कहा और दरार के किनारे तक जा पहुँचा । चेहरे पर गंभीरता समेटे मोना चौधरी उसके पास पहुँची । एकाएक रहस्यमय जीव ने पाँव आगे बढ़ाया और दरार के भीतर रखा । फिर दूसरा रखा ।

मोना चौधरी ने सिर आगे करके ठीक तरह दरार के भीतर झाँका ।

उसे बड़े-बड़े पत्थर रखे नजर आये । वे पत्थर इस तरह समझदारी के साथ टिकाकर रखे गये थे कि उन्हें सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करके नीचे उतरा और चढ़कर बाहर आया जा सके ।

वह धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा और हाथ के इशारे से मोना चौधरी को साथ आने को कहा ।

मोना चौधरी ने गहरी निगाहों से रहस्यमय जीव को देखा, फिर आगे बढ़ी और दरार के भीतर मौजूद पत्थर पर पाँव रखा । इसके साथ ही वह उसके पीछे-पीछे नीचे उतरने लगी ।

महाजन भी करीब पहुँचा और दरार के भीतर पाँव रखकर पत्थरों के सहारे नीचे उतरने लगा ।

“मैं नहीं आऊँगा ।” हरीश दुलानी का चेहरा फक्क था ।

महाजन ने गंभीर निगाहों से उसे देखा । कहा कुछ नहीं । वे बड़े-बड़े पत्थरों रूपी सीढ़ियाँ उतरते चले गये । दुलानी बाहर ही खड़ा रहा और वे नीचे उतरते हुए उसकी निगाहों से ओझल हो गये ।

दो-तीन मिनट तक पत्थरों पर पाँव रखते हुए वे नीचे जा पहुँचे । रास्ते में अंधेरा था, परन्तु उस दरार के तल पर पहुँचते ही उन्हें वहाँ फैली माध्यम-सी नीली-सी रोशनी देखने को मिली । वह रोशनी, एक तरफ रखे पत्थर से फुट रही थी । बहुत हद तक वहाँ साफ़-साफ़ नजर आ रहा था ।

उबड़-खाबड़ जमीन थी ।

परन्तु देखने पर ये स्पष्ट महसूस हो रहा था कि जमीन को समतल करने की पूरी कोशिश की गई है । उस जगह का बहुत-सा हिस्सा बैठने-उठने लायक बनाया हुआ था । वहाँ कई जगह पत्रों के बड़े-बड़े टीले नजर आ रहे थे । दो-तीन सौ गज जितनी खुली जगह थी । मिट्टी की कच्ची दीवारें स्पष्ट नजर आ रही थी । एक तरफ दीवार में ही चार फीट ऊँचा और इतना ही चौड़ा रास्ता जाता दिखाई दे रहा था, परंतु उसके भीतर क्या था, अंधेरा होने की वजह से देखा नहीं जा रहा था । वहाँ का बंद-बंद-सा माहौल था ।

ऊपर से सूर्य डूबा होने की वजह से बाहर से भीतर रोशनी नहीं आ रही थी ।

लेकिन मोना चौधरी और महाजन हैरानी-अजीब से भाव लिए आँखों से वह सब देख रहे थे, जिसकी उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी । अजीब-सा एहसास उनके शरीर के दौड़ते खून में पैदा हो गया था ।

उस जैसा ही दूसरा जीव वहाँ मौजूद था ।

लगभग वैसी ही ऊँचाई-लम्बाई, परंतु फर्क ये था कि वह मादा (औरत) जीव था । उसकी छाती के ठीक बीचोबीच एक भारी-सा स्तन कुछ नीचे को झुका नजर आ रहा था । उन जैसा ही छोटा-सा बच्चा उस जीव ने उठा रखा था, जो कि छाती से मुँह लगाये, शायद दूध पीने में लगा था । परन्तु उन दोनों को आया देखकर वह अपनी माँ जैसे जीव के हाथों से निकलकर कुछ फासले पर वहाँ जा पहुँचा था, जहाँ उस जैसे छोटे-छोटे बच्चे मौजूद थे । कोई दो फिट का था । कोई ढाई कोई तीन फिट का । वह कुल मिलाकर छः बच्चे थे । आपस में खेल कूद रहे थे । एक-दूसरे के ऊपर चढ़ रहे थे । लड़ाई जैसा माहौल था । एक-दूसरे को गिरा रहे थे, लेकिन उनके वहाँ आ जाने की वजह से उनकी हरकतें थम गई थी । माथे की पट्टियों के बीच नजर आने वाला आँख उन पर जा टिकी थी ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से हक्का-बक्का स्वर निकला ।

“ये इसका परिवार है महाजन !” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर धीमे गंभीर स्वर में कह उठी, “मेरे ख्याल में ये इनसे मिलवाने के लिए ही हमें यहाँ लाया है ।”

महाजन कहना चाहकर भी कुछ नहीं कह सका । होंठों पर जीभ फेरकर रह गया ।

रहस्यमय जीव के बच्चों की आवाजें एकदम बंद हो गई थी ।

“महाजन !” मोना चौधरी के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला, “ये... ये हमारी दुनिया का जीव नहीं है ।”

“क्या मतलब ?”

“सब कुछ तुम्हारे सामने है ।” मोना चौधरी की नजरें हर तरफ जा रही थी । वह वहाँ का माहौल देख रही थी । अब वहाँ पत्थर जैसी चीज़ से फटती रोशनी में सब कुछ स्पष्ट दिखाई देने लगा था । वहाँ दो कुत्तों की हड्डियाँ बिखरी पड़ी थी । कुछ बकरियाँ या ऐसे ही जानवरों के सड़े से शव थे । हल्की-सी सड़न की स्मेल वहाँ फैली थी । ये सब खाकर रहस्यमय जीव अपना पेट भर रहे थे, “ये हमारी दुनिया के जीव होते तो दुनिया इन्हें देख चुकी होती । न तो जानवर हैं, न इंसान । बीच के लगते हैं, क्योंकि ये बात नहीं कर सकते, परंतु समझदार इंसानों की तरह ही हैं ।”

“ल... लेकिन ये आये कहाँ से ?” महाजन की हालत अजीब-सी हो गई थी ।

“ये जमीन के नीचे रहने वाले जीव हैं । पाताल लोक के जीव भी कह सकते हैं । इनकी अपनी दुनिया है ।” मोना चौधरी सोच भरे गंभीर स्वर में कह उठी थी, “लेकिन भूकंप की वजह से जमीन फट और खिसक जाने से शायद किसी तरह इनका अपनी दुनिया वालों से संपर्क टूट गया । इधर-उधर जाने के रास्ते बंद हो गये । इधर आने का रास्ता मिला होगा तो ये इधर को आ गये । वो देखो दीवार में छेद, इनका रास्ता है कहीं जाने का, परंतु जमीन के ऊपर-नीचे हो जाने से इनका रास्ता बंद हो चुका है । मजबूरन इन्हें बाहर धरती पर आना पड़ा । यहाँ के हालात तो यही सब जाहिर कर रहे हैं ।”

“ये कितनी अजीब बात है ।” महाजन के होंठों से निकला ।

“ठीक कहते हो । कोई विश्वास नहीं करेगा, जो हम देख-महसूस कर रहे हैं ।”

“विश्वास करना पड़ेगा । अब ये दुनिया की नजरों से नहीं छिप सकते ।” महाजन जाने क्यों कुछ परेशानी महसूस कर रहा था, “वो पत्थर कैसा है, जिसमें से रोशनी फूट रही है ?”

“वो हीरा या हीरे जैसा कोई पत्थर है जो अपनी किरणें फैला रहा है ।”

“अ... अब क्या करना है ? वो देखो दुलानी ।”

मोना चौधरी की निगाह फौरन घूमी ।

जिस रास्ते से वह पत्थरों पर पाँव रखकर नीचे आये थे । उन्हीं पत्थरों पर दुलानी, पास की दीवार को थामें खड़ा था । उसकी आँखें हैरानी, भय, घबराहट से फटी हुई थी । वह बार-बार सूखे होंठों पर जीभ फेर रहा था । ऐसा महसूस हो रहा था कि वह जैसे पत्थरों से अभी गिर पड़ेगा । उस नीली रोशनी में उसका चेहरा बेहद अजीब-सा लग रहा था । एक निगाह में देखने पर तो इस समय कोई भूत जैसा लग रहा था ।

मोना चौधरी ने दुलानी पर से नजरें हटाकर, रहस्यमय जीव को देखा ।

वह मोना चौधरी को देख रहा था । उसे अपनी तरफ देखते पाकर, उसके होंठ मुस्कुराहट के रूप में फैल गये । इसके साथ ही उसके पास आकर मोना चौधरी की कलाई पकड़ी और दूसरी तरफ से हौले से खींचा ।

मोना चौधरी शांत गम्भीर-सी स्तनधारी जीव के पास पहुँचकर ठिठकी । उसने गले से मध्यम-सी आवाज निकालकर अपने साथी को देखा तो उस स्तनधारी जीव के होंठ मुस्कान के रूप में फैल गये । इसके साथ ही उसने अपनी बात आगे बढ़ाई और हाथ में मोना चौधरी का हाथ थाम लिया ।

मोना चौधरी समझ गई कि स्तनधारी जीव हाथ मिला रही है । पहले वाले जीव ने बता दिया होगा कि कैसे हाथ मिलाते हैं । मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कान ओढ़ ली ।

“हैलो !”

मोना चौधरी के होंठों से निकली आवाज सुनकर, स्तनधारी जीव ने अपने गले से हल्की-सी आवाज निकाली । शायद इस आवाज के साथ उसने अपनी खुशी का इजहार किया था ।

रहस्यमय जीव, महाजन के पास पहुँचा और उसका हाथ पकड़कर उस तरफ खींचा । महाजन बिना किसी एतराज के पास आ पहुँचा । वह जान चुका था कि क्या करना है । मुस्कराकर उसने स्तनधारी जीव की तरफ हाथ बढ़ाया ।

“हैलो !”

स्तनधारी जीव ने उसी तरह मुस्कुराते हुए मोना चौधरी का हाथ छोड़ा और उसका हाथ थाम लिया ।

ये सब करना अजीब-सी अनुभूति थी उनके लिए ।

“महाजन !” मोना चौधरी बोली, “ये इनके बच्चे हैं । आओ, इनसे भी हैलो करें । हमारा ऐसा करना, इन दोनों को अच्छा लगेगा ।”

मोना चौधरी और महाजन बच्चों की तरफ बढ़ गये । रहस्यमय जीव के छोटे-छोटे बच्चे शायद बात समझ चुके थे कि ये दोस्त ही हैं । वे डरे नहीं । उन्हें हाथ मिलाना नहीं आता था । मोना चौधरी और महाजन उनका हाथ पकड़कर हैलो के ढंग से हिलाने लगे । ये देखकर उन दोनों जीवों के गले से आवाज-सी निकली । यकीनन खुश हो रहे थे । डर, रोमांच और खुशी से भरा, न समझ में आने वाला अजीब-सा माहौल था ।

तभी यहाँ रहस्यमय जीव ने पत्थरों जैसी सीढ़ियाँ पर खड़े हरीश दुलानी को देखा और हाथ से पास आने का इशारा किया । उसे ऐसा करते पाकर दुलानी की आँखें और भी फैल गईं । भय से डूबा हड़बड़ाकर वह काँपती टाँगों के साथ पलटा और पत्थरों पर पाँव रखता ऊपर चढ़ते हुए नजरों से ओझल हो गया ।

उसके बाद वहाँ का माहौल न समझ में आने वाला, प्यार से भरा था ।

रहस्यमय जीव और स्तनधारी जीव, मोना चौधरी और महाजन के पास ही रहे । दोनों नीचे बैठ गये थे । ये देखकर वे दोनों जीव भी नीचे बैठ गये । कभी वह उनके हाथों को छूते तो कभी टाँगों और घुटनों को । कभी रह-रहकर अपने गलों से आवाजें निकालकर एक-दूसरे को देखने लगते । ये आवाजें यकीनन उनकी भाषा का बातचीत का हिस्सा थी । उनके बच्चे भी करीब आ गये थे । वे भी ऐसा ही करने लगे । साथ ही उनकी आपस में शरारतें शुरू हो गई थी । फिर वही पहले जैसा माहौल वहाँ बन गया ।

वक्त बीतने लगा ।

मोना चौधरी और महाजन के दिलों में किसी भी तरह का डर नहीं रहा । धीरे-धीरे उन्हें सब अच्छा लगने लगा । खुद को वह किसी नई दुनिया में ही महसूस कर रहे थे ।

उन्हें होश तब आया, जब नीचे आने वाले रास्ते से बाहरी प्रकाश ने भीतर आना शुरू किया ।

“बेबी !” महाजन के होंठों से निकला, “सारी रात बीत गई ।”

“हाँ !” मोना चौधरी ने ऊपर से आती रोशनी को देखा, “अब हम यहाँ से चलेंगे ।”

“ये हमें जाने देंगे ?” महाजन के स्वर में शंका के भाव थे ।

“रोकेंगे क्यों ?” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा, “ये पक्का हमें जाने देंगे । आओ ।”

मोना चौधरी और महाजन उठ खड़े हुए ।

नीचे बैठे दोनों रहस्यमय जीवों ने और उनके बच्चों ने सिर उठाकर उन्हें देखा ।

मोना चौधरी ने मुस्कराकर बाय-बाय करने वाले ढंग में हाथ हिलाया और इसके साथ ही पत्थरों वाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगे । महाजन ने भी ऐसा ही किया ।

उनकी इस हरकत से रहस्यमय जीव समझ गए कि वे जा रहे हैं । बैठे-ही-बैठे रहस्यमय जीव ने उनकी नकल की और हाथ हिलाने लगा । यह देखकर स्तनधारी जीव भी बाँह उठाकर, हाथ हिलाने लगी । ऐसा होते देखकर उनके बच्चे भी हाथ हिलाने लगे । अजीब-सा दृश्य अजीब-सा नजारा बन गया था वहाँ ।

हाथ हिलाते हुए मोना चौधरी और महाजन पत्थरों तक पहुँचे और पत्थरों पर पैर रखते खुद ऊपर चढ़ने लगे । इस दौरान उनका हाथ हिलाना बराबर जारी था और वे उन पत्थरों पर चढ़ते हुए दरार कि उस खोह से वापस ऊपर जमीन पर आ गये । भोर के उजाले की रोशनी उन्हें बहुत अच्छी लगी । वे खुद को थके महसूस कर रहे थे । लेकिन हाथ-पाँव में अजीब-सी ताजगी थी । दिलों-दिमाग में इस बात का अहसास था कि जमीन के नीचे पाताल की दुनिया में कहीं रहने वाले रहस्यमय जीवों के साथ, उनके परिवार के साथ रात बिताकर आये हैं । उनके दोस्त बनकर, उन्हें दोस्त बनाकर आये हैं ।

कुछ दूरी पर जमीन पर बैठा हरीश दुलानी नजर आया । उसकी आँखें इधर ही टिकी थी । उन्हें बाहर आते पाकर वह उछलकर खड़ा हो गया ।

मोना चौधरी और महाजन के चेहरों पर मुस्कान उभरी ।

“तुम रात भर से यहाँ हो ।” मोना चौधरी बोली, “मालूम था तुम्हें कि हम वापस आयेंगे ?”

“हाँ, आशा थी !” दुलानी गंभीर-अजीब-से स्वर में कह उठा, “रात दो बार मैं चुपके से भीतर झाँक आया था । तुम दोनों को उनके बीच बैठे पाकर समझ गया कि सब ठीक है । खतरे जैसी कोई बात नहीं ।”

“रात तुम आये क्यों नहीं, जब रहस्यमय जीव ने तुम्हें इशारे से आने को कहा था ?” महाजन ने पूछा ।

दुलानी ने लम्बी साँस ली और कह उठा ।

“समझ में नहीं आता कि तुम दोनों कैसे उनके करीब रहकर इतना वक्त बिता आते हो । मैं... मैं तो घबरा जाता हूँ उनके पास पहुँचकर । उनका रंग-रूप देखकर हिम्मत साथ नहीं देती ।”

“उनका रूप देखकर तुम्हें डरना नहीं चाहिए । वो भी भगवान के बनाए जीव हैं ।” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “फर्क सिर्फ इतना है कि भगवान ने उन्हें इस तरह बनाया कि वो जमीन के नीचे, पाताल लोक में रह... ।”

“पाताल लोक ?” दुलानी के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला । चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गये ।

“हाँ, दुलानी !” महाजन ने सिर हिलाकर कहा, “भूकंप की वजह से जमीन फटी । दरार उभर आई । ऐसे में जाने कैसे ये जीव अपनी दुनिया से बिछड़ गये और दरार से निकलकर हमारी दुनिया में आ पहुँचे ।”

दुलानी फटी-फटी-सी निगाहों से कभी मोना चौधरी को देखता तो कभी महाजन को ।

“आओ चलें ।” महाजन बोला, “रात भर से मैं बहुत थक गया हूँ । गौरी के यहाँ पहुँचकर जमकर नींद लूँगा ।”

तीनों वापस चल पड़े ।

अभी दस मिनट ही हुए थे उन्हें वापसी के लिए चलते हुए ।

तभी तीव्र गड़बड़ाहट गूँज उठी जैसे बादल आपस में टकरा गये हो । तेज बारिश करने वाले हो, जबकि मौसम बिल्कुल साफ़ था । प्यारी-सी सुबह की रोशनी फैली हुई थी ।

गड़गड़ाहट के साथ ही जमीन में तीव्र कम्पन हुआ । धरती इतनी जोरों से हिली जैसे आँधी में जमीन पर पड़ा कागज बुरी तरह हवा के बहाव में संग डोलने लगता है ।

“ये क्या ?” दुलानी ने कहना चाहा ।

तभी जमीन इतने जोरों से हिली की लाख संभलकर भी संभल न सके । बुरी तरह लड़खड़ाते हुए तीनों ही नीचे जा गिरे । गिरते ही उन्हें जमीन का कंपन ऐसा लगा जैसे किसी को बिजली का तार लगने से कंपन उभरता है । सब कुछ इतनी जल्दी और तीव्रता से हुआ कि उन्हें कुछ भी समझने का मौका नहीं मिला ।

“ये भूकंप है ।” मोना चौधरी चीखी ।

‘जबरदस्त भुचाल है, पहले की तरह ।” महाजन के शब्द पूरे न हो सके ।

तभी हरीश दुलानी की चीख उनके कानों में पड़ी ।

खुद को संभालते हुए उनकी निगाह दुलानी की तरफ उठी तो वे हक्के-बक्के रह गये । दुलानी जमीन पर गिरा पड़ा था, वहाँ उसके पास ही जमीन फट-सी गई थी और दरार उभर गई थी । कंपन की वजह से दुलानी खुद को संभाल नहीं पा रहा था और दरार में सरकता जा रहा था ।

“बताओ मुझे... ।” दुलानी की दहशत भरी चीख उनके कानों में पड़ी ।

लेकिन मोना चौधरी और महाजन खुद ही इस स्थिति में नहीं थे कि उठकर दुलानी की सहायता कर पाते । मोना चौधरी ने एक बार उठने की चेष्टा की । आँधी उठते ही जमीन बेहद तीव्रता से हिली और नीचे जा गिरी । पहली बार उन्हें एहसास हुआ कि भूकंप का असल रूप क्या होता है । इससे पहले सिर्फ सुना ही था कि... ।

“बेबी !” महाजन खुद को संभालते ऊँचे स्वर में कह उठा, “दुलानी गया ।”

मोना चौधरी की निगाह दुलानी वाली दिशा की तरफ गई ।

दुलानी नजर नहीं आया ।

स्पष्ट था कि वह नई पैदा हुई जमीन की दरार में जा गिरा था ।

मोना चौधरी ने दाँत भींच लिए ।

तभी एकाएक सब कुछ थम गया । दो मिनट में ही भूकंप अपना विकराल रूप दिखा गया था । हर तरफ की जमीन अब बदली-बदली नजर आ रही थी । कहीं गड्ढे पैदा हो गये थे, कहीं पानी बहता नजर आने लगता था । दूर धूल के गुबार उठते दिखाई देने लगे । जमीन की दिशा जैसे भीतर से महसूस हो रहे थे । उनके कानों में अभी भी गड़गड़ाहट की आवाजें गूँज रही थी । जमीन अभी भी हिलती महसूस हो रही थी ।

मोना चौधरी व महाजन खड़े हुए तो उन्हें लगा जैसे अभी भी जमीन के कंपन से उनकी टाँगें, उनका शरीर हिल रहा हो । मस्तिष्क सुन्न हो गया था ।

“दुलानी को देखो ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी जमीन में पैदा हुई दरार की तरफ दौड़ी ।

महाजन भी उधार भागा ।

दरार के पास पहुँचकर दोनों ठिठक गये ।

वह दरार बीस-पच्चीस फिट गहरी थी । नीचे अंधेरा था । वह ज्यादा चौड़ा नहीं था । कहीं-कहीं से तो दरार के आपस में सटे महसूस हो रहे थे । दुलानी ऐसी ही दरार की जगह में फँसा था । वह नीचे नहीं गिरा था । खौफ की वजह से दुलानी की आँखें फटी हुई थी । कहीं वह और नीचे न गिर जाये, ये सोचकर दहशत में डूबा हुआ था । सहमा-सा वहीं पड़ा था । हिलने की चेष्टा नहीं की थी उसने ।

दरार के कोनों पर मोना चौधरी और महाजन को देखते ही उसकी आँखों में चमक उभर आई ।

“हिलना नहीं ।” मोना चौधरी जल्दी से कह उठी, “तुम्हारे नीचे की मिट्टी खोखली हो सकती है । हिलते ही कही तुम दरार के भीतर न पहुँच जाओ । तुम बच नहीं सकोगे ।”

दुलानी का चेहरा और भी पीला पड़ गया । उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी । वह किनारे से ज्यादा नीचे नहीं था । मोना चौधरी दरार के किनारे पर सावधानी से लेट गई । उसे खतरा था कि कहीं दरार के कोने से मिट्टी भरभराकर बिखर न जाये और वह नीचे न गिर जाये ।

“महाजन !” मोना चौधरी लेटते ही कह उठी, “मेरी पिंडली थाम लो कि कहीं मैं नीचे न चली जाऊँ ।”

“ओके बेबी !” कहने के साथ महाजन, मोना चौधरी की पिंडलियों के पास बैठा और पिंडली थाम ली ।

मोना चौधरी ने दुलानी को देखा ।

“हाथ मेरी तरफ बढ़ाओ ।”

दुलानी ने दम साधे आहिस्ता से बाँह उठाई । हाथ मोना चौधरी की तरफ किया ।

परन्तु दुलानी का हाथ चार-पाँच इंच दूर रह गया ।

“ऐसे ही रहो ।” मोना चौधरी बोली, फिर महाजन से कहा, “पिंडली ढीली छोड़ो । मुझे जरा-सा आगे सरकना है ।”

महाजन ने पिंडली ढीली छोड़ी । मोना चौधरी जरा-सा आगे सरकी । दुलानी का हाथ उसके हाथ में आ गया । मोना चौधरी ने बेहद पक्केपन के साथ उसकी हथेली अपने हाथ में जकड़ ली ।

“महाजन !” मोना चौधरी भिंचे होंठों से कह उठी, “मैं इसे खींच रही हूँ । तुम मुझे पिंडली से खींचो ।”

“राइट बेबी !”

“म... मेरा हाथ मत छोड़ना ।” दरार में फँसे पड़े दुलानी ने घबराहट से काँपते स्वर में कहा ।

इसी पल मोना चौधरी ने उसका हाथ पकड़कर बाहर की तरफ खींचा ।

महाजन में मोना चौधरी की पिंडली थामें उसे पीछे खींचा ।

“हरीश दुलानी को बिना किसी परेशानी के दरार से बाहर खींच लिया गया । उसे अभी भी विश्वास नहीं आ रहा था कि वह बच गया है । जमीन पर पीठ के बल पड़ा वह गहरी-गहरी साँसें लेने लगा । मोना चौधरी गहरी साँस लेकर उठी और हाथ साफ़ करने के बाद कपड़ों पर लगी मिट्टी झाड़ने लगी ।

“बेबी !” महाजन ने बैठे-ही-बैठे इधर-उधर नजरें मारी, “जबरदस्त भूकंप आया है । बहुत तबाही मच गई होगी । समतल जमीन का हाल बुरा है तो वहाँ क्या हुआ होगा, जहाँ इमारतें-बिल्डिंग खड़ी होंगी ।”

“ये प्रकृति का प्रकोप है । नेचर की देन है । सदियों से इंसान बर्बादी सहन करता आ रहा है ? कभी ये उथल-पुथल फायदा पहुँचा देती है तो कभी भारी नुकसान ।” कहते हुए मोना चौधरी की निगाह दूर-दूर तक जाने लगी ।”

जमीन कई जगह से टूटी-फूटी दिख रही थी । वह पहले नहीं थी ।

अचानक ही मोना चौधरी चौंकी । उसकी आँखें सिकुड़ गईं ।

“महाजन !” मोना चौधरी के होंठों से तेज स्वर निकला, “मैं वापस जा रही हूँ ।”

“वापस ?” महाजन ने अचकचाकर उसे देखा ।

“रहस्यमय जीव की तरफ । भूकंप बहुत जबरदस्त था । कहीं वो... ।” कहने के साथ ही मोना चौधरी उस तरफ दौड़ पड़ी । जिधर से अभी-अभी आये थे । रास्ता अब वह नहीं था, जिसे तय करके यहाँ तक आये थे । जमीन की शक्लों-सूरत बदल चुकी थी । कहीं दरारें तो कहीं पानी था । कहीं कीचड़ थी तो कहीं जमीन धँस गई थी । मोना चौधरी जल्दी-जल्दी किंतु सावधानी से आगे बढ़ती जा रही थी । वह सतर्क थी कि कहीं किसी दरार या नई पैदा हुए गड्ढे में न जा गिरे ।

कुछ भी नहीं था वहाँ ।

वह चौड़ी दरार । वह रास्ता-आसपास की जगह । बहुत कुछ बदल चुका था ।

पहले भूकंप की वजह से वह दरार पैदा हुई थी, जिसमें से रहस्यमय जीव को बाहर आने का रास्ता मिला था । पाताल लोक, अपनी दुनिया से निकलकर जमीनी दुनिया में आ पहुँचा था । अजीब-सा जीव था वह दरिंदा भी । दोस्त भी । अच्छा भी । बुरा भी । लेकिन अब अपने परिवार के साथ वापस अपनी दुनिया में चला गया था । महीनों बाद आज जो भूकंप आया इससे दरार पुनः वापस बंद हो गई थी । ऐसा होते ही यकीनन इसकी दुनिया के भीतर के रास्ते भी खुल गए होंगे, जो कि दरार पैदा होने के बाद बंद हो गये थे ।

वह जहाँ से आया था, जहाँ का था, वही पहुँच गया ।

जो हुआ, सिर्फ यादें बनकर साथ था । सपने जैसा लग रहा था वह सब ।

मोना चौधरी का मन जाने क्यों भारी-सा हो उठा था ये सोच कर कि अब उससे कभी नहीं मिल सकेगी । उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका कुछ खो गया हो । कोई प्यारी चीज़ हमेशा के लिए गुम हो गई हो ।

कदमों की आहट गूँजने पर मोना चौधरी ने पीछे देखा ।

महाजन और दुलानी भी वहाँ आ पहुँचे थे । उनकी निगाहें भी जमीन पर घूम रही थी ।

“ये... ये तो वही जगह है जहाँ दरार थी और भीतर रहस्यमय जीव अपने परिवार के साथ मौजूद था ।” दुलानी के होंठों से निकला ।

मोना चौधरी गहरी साँस लेकर रह गई ।

महाजन ने अजीब-सी निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।

“जैसे महीनों पहले आये भूकंप की वजह से जमीन फटी थी और उसे बाहर आने का रास्ता मिल गया था । वैसे ही इस बार आने वाले भूकंप की वजह से जमीन वापस अपनी जगह आ गई । दरार बंद हो गई । मोना चौधरी ने धीमे, गंभीर स्वर में कहा, “वो रहस्यमय जीव पहले की ही तरह अपनी दुनिया में वापस पहुँच गया ।”

“ओह !” महाजन के होंठों से निकला ।

“हे भगवान !” दुलानी के होंठों से निकला, “ये तेरी कैसी माया है !”

“मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि... ।” महाजन अजीब-सी स्थिति में था ।

“जो हुआ, बहुत अच्छा हुआ । उसका वापस चले जाना ही ठीक था ।” मोना चौधरी की निगाह जमीन पर ही फिर रही थी, “ कोई भी हो । इंसान हो या जीव हो । वो सिर्फ अपनी ही दुनिया में खुश रह सकता है । जिस तरह हम उसकी दुनिया से चले जाये तो खुश नहीं रह सकेंगे । ठीक उसी तरह हमारी दुनिया में आकर, रहकर कोई खुश नहीं रह सकता । अपनी जमीन की खुशबू, अपनी ही होती है । बेशक वो कैसी भी हो ।”

महाजन और हरीश दुलानी अविश्वास की स्थिति में ठगे-से खड़े थे ।

मोना चौधरी ने महाजन को देखा फिर भारी मन से कह उठी ।

“हम आज ही यहाँ से दिल्ली के लिए चल देंगे । रहस्यमय जीव सपना बनकर अवश्य हमारे दिलों-दिमाग पर छाया रहेगा । वो हमारी यादों से कभी भी दूर नहीं हो सकेगा । लगता है जैसे हमारा कुछ ले गया है ।”

महाजन ने कुछ नहीं कहा । उसके चेहरे पर थकी-सी भारी-सी मुस्कान उभरी ।

“सच कहती हो बेबी ! अब बीते वक्त के बारे में सोचता हूँ तो सपने जैसा ही सब कुछ लगता है । महसूस होता है, जैसे गहरी नींद से अभी आँख खुली हो । वो वास्तव में हमें याद आता रहेगा ।”

दुलानी तो अभी तक हक्की-बक्की स्थिति में खड़ा था ।

तभी हिम्मत इकट्ठी करके दुलानी ने कहा ।

“य... यहाँ से चले ?”

मोना चौधरी और महाजन ने उसे देखा ।

“चलो ।” मोना चौधरी लम्बी साँस लेकर भारी मन से कह उठी ।

निगाहें पुनः जमीन पर फिराने लगी । शायद उसे दरार देखने की चाह थी लेकिन ये भी जानती थी कि रहस्यमय जीव हमेशा के लिए किसी सपने की भाँति बिखर चुका है । वह अब कभी नहीं मिलेगा । कभी नहीं दिखेगा । 

समाप्त