बबूसा और धरा दिन भर टैक्सी में बैठे मुम्बई की सड़कों पर घूमते रहे। बबूसा, देवराज चौहान की गंध पा लेना चाहता था कि देवराज चौहान पास में कहीं से गुजरे तो गंध उसे मिल जाए।

परंतु अपनी कोशिशों में उसे कामयाबी नहीं मिली।

धरा थक चुकी थी। जबसे डोबू जाति के ठिकाने पर गई थी तब से उसे एक पल का भी आराम नहीं मिला था और भागती ही रही थी। बहुत मन कर रहा था घर जाने का, परंतु घर जाने से उसे डर लग रहा था कि डोबू जाति के योद्धा उसकी जान लेने की खातिर वहां न छिपे हों। बबूसा के साथ ही खुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी वो।

जब दिन ढला तो बबूसा ने धरा के मोबाइल फोन से उस होटल के वेटर को फोन किया, जिसके पास उसने डोबू जाति के हथियार रखे हुए थे। बबूसा अब उन हथियारों को अपने पास रख लेना चाहता था। क्योंकि हालातों की गम्भीरता का अंदाजा उसे होने लगा था। रानी ताशा सदूर ग्रह से कब की निकल चुकी थी। पोपा तेजी से पृथ्वी की तरफ बढ़ रहा था। आने वाला वक्त उसके लिए कठिनाइयों से भरा था, जबकि अभी तक राजा देव के पास नहीं पहुंच पाया था वो। उसे मन-ही-मन इस बात की चिंता थी कि कहीं रानी ताशा, उससे पहले ही, राजा देव तक न पहुंच जाए और राजा देव पहले की तरह रानी ताशा के दीवाने होकर सब कुछ भूल जाए। ऐसे में उन्हें सदूर ग्रह का वो वक्त भी याद नहीं आएगा कि तब रानी ताशा ने क्या किया था उनके साथ।

वेटर ने उसे बताया कि इस वक्त वो ड्यूटी पर है और उसका दिया थैला घर पर रखा है। रात 12 बजे उसकी ड्यूटी खत्म होगी, तब वो थैले को वापस दे सकता है।

बबूसा ने कहा कि वो उसे कल सुबह फोन करेगा।

धरा ने अपने थकने की बात कही तो बबूसा होटल आ पहुंचा कि धरा आराम कर सके।

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी। चेहरे के भाव बन-बिगड़ रहे थे। धरा बेड पर जा लेटी थी और इंटरकॉम का रिसीवर उठाकर उसने दो कॉफी और सैंडविच मंगा लिए थे।

“तुम आराम कर लो।” बबूसा बोला –“उसके बाद हम फिर राजा देव की तलाश के लिए बाहर जाएंगे।”

“मैं थक चुकी हूं।” धरा बोली।

बबूसा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर कह उठा।

“तुम आराम करो, मैं राजा देव को गंध के माध्यम से, बाहर जाकर ढूंढ़ता हूँ।”

“नहीं।” धरा तुरंत उठ बैठी –“मैं तुम्हारे साथ जाऊंगी।” चेहरे पर कई रंग आकर गायब हो गए।

“हां, तुम मेरे साथ ही रहोगी। तुम खतरे में हो।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं तुम्हारे साथ जाऊंगी।”

बबूसा ने सहमति से सिर हिला दिया।

धरा अभी भी बबूसा को देख रही थी। चेहरे पर सोच के भाव थे। वो कह उठी।

“रात तुमने मुझे गंध के सहारे ढूंढ निकाला था।”

“तो?”

“इस तरह तुम देवराज चौहान को भी गंध के सहारे ढूंढ़ सकते हो।”

“ये सम्भव नहीं।”

“क्यों?”

“जब तक मुझे राजा देव की गंध किसी जगह पर नहीं मिलेगी, तब तक मैं राजा देव को तलाश नहीं कर पाऊंगा। जैसे कि मैं सोहनलाल के पर गया। वहां पर बीते चंद दिनों में राजा देव आए होते और मुझे उनकी गंध मिल जाती तो मैं गंध का पीछा करके मालूम कर सकता था कि राजा देव वहां से कहां गए हैं। मतलब कि तब तो मैं हर हाल में राजा देव को ढूंढ़ लेता, परंतु सोहनलाल के यहां राजा देव की गंध न मिलने का मतलब कि लम्बे समय से राजा देव सोहनलाल के घर नहीं आए।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“इसका मतलब कि जहां पर देवराज चौहान गया हो, ऐसी एक जगह का तुम्हें पता चल जाए तो तुम देवराज चौहान तक पहुंच सकते हो।” धरा बोली –“परंतु ये कैसे पता चलेगा कि देवराज चौहान कहां-कहां जाता है।”

“बीते चंद दिनों में जहां राजा देव गए हों। ताकि उनकी गंध वहां के वातावरण में मौजूद हो।”

“ऐसी किसी जगह को हम ढूंढ़ें कैसे?”

“ये तुम सोचो। तुम इस ग्रह की हो। मेरी सहायता कर सकती हो।” बबूसा कहा।

“ये बात तो देवराज चौहान की जान-पहचान का आदमी ही बता सकता है कि बीते कुछ दिनों में देवराज चौहान कहां-कहां गया और हमारे सामने सोहनलाल ही है परंतु वो बताने वाला नहीं।” धरा सोच भरे स्वर में बोली।

“वो अगर मेरे हाथ लग जाता तो मैं उसके मुंह से सब निकलवा लेता।” बबूसा गुर्रा उठा।

“तुम हर वक्त लड़ाई-झगड़े की ही क्यों सोचते हो?”

“तुम नहीं समझती कि कितनी देर होती जा रही है।” बबूसा हवा में हाथ लहराकर बोला –“मुसीबत का वक्त करीब आता जा रहा है। रानी ताशा पोपा में बैठकर आ रही है। आने वाला वक्त कितना खतरनाक होगा, ये मैं ही समझ सकता हूं परंतु तुम्हें नहीं समझा सकता। अगर मुझे राजा देव तक पहुंचने में देर हो गई तो बबूसा अपने फर्ज से हार जाएगा। राजा देव को मैं चौकन्ना कर देना चाहता हूं ताकि वो रानी ताशा की किसी चाल में, या उसकी खूबसूरती के जाल में न फंसे। मैं वो वक्त कभी भी नहीं भूल सकता जब रानी ताशा ने राजा देव को धोखा दिया और चालाकी से सदूर ग्रह से बाहर फिंकवा दिया।”

“भला किसी को ग्रह से बाहर कैसे फेंका जा सकता है?” धरा कह उठी।

“हमारे ग्रह की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि ग्रह से बाहर फेंका जा सकता है। जिसे भी ग्रह से बाहर फेंकना होता है उसे उस पाइप में फेंक दिया जाता है। पाइप का वो रास्ता कभी राजा देव ने ही तैयार किया...।”

“कैसी पाइप?”

बबूसा ने धरा को देखा और कह उठा।

“मैं व्यर्थ की बातों में पड़ गया, मुझे राजा देव के बारे में सोचना...।”

तभी दरवाजा खटखटाया गया।

बबूसा ने दरवाजे को देखा और आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।

वेटर कॉफी और सैंडविच ले आया था।

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बबूसा और धरा शाम के गए रात एक बजे लौटे। परंतु बबूसा को देवराज चौहान की गंध कहीं से नहीं मिली। धरा थक चुकी थी और आते ही सो गई, परंतु बबूसा जागता रहा, सोच-विचार करता रहा। रह-रहकर उसकी निगाह गहरी नींद में डूबी धरा की तरफ भी उठ जाती थी।

इसी तरह तीन दिन बीत गए।

आज चौथा दिन था। महापंडित के कहे मुताबिक आज रानी ताशा का पोपा पृथ्वी ग्रह पर पहुंच सकता था। बबूसा जब सोया उठा तो बहुत परेशान दिखा। वो मात्र दो घंटे ही सो पाया था। धरा इन दिनों बहुत ज्यादा थक चुकी थी। हर वक्त वो बबूसा के साए में रहकर भागती रहती थी। मन-ही-मन उसे इस बात का चैन था कि डोबू जाति के योद्धा उसे नहीं ढूंढ पाए। परंतु डर भी था कि वो कभी भी सामने आ सकते हैं।

“तुम इतने परेशान क्यों हो?” धरा ने सोए उठने पर, बबूसा को देखा तो कह उठी।

“सम्भव है आज रानी ताशा का पोपा पृथ्वी ग्रह पर पहुंच जाए और मैं राजा देव को नहीं ढूंढ़ पाया। वक्त करीब आ चुका है परंतु मुझे सफलता नहीं मिल रही।” बबूसा गुस्से से कह उठा।

“ये पक्का है कि रानी ताशा आज पृथ्वी पर पहुंच जाएगी?” धरा बोली।

“महापंडित ने ऐसा ही कहा था।”

“वो झूठ भी तो कह सकता...।”

“ये बात वो झूठ नहीं कहेगा। इससे उसे कोई फायदा नहीं मिलेगा।” बबूसा गुर्रा उठा –“मेरी गैरमौजूदगी में अगर रानी ताशा, राजा देव के पास पहुंच गई तो फिर जाने क्या होगा...।”

“तुम अपनी परेशानियां खत्म कर सकते हो बबूसा।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“कैसे?”

“अपने इरादे से पीछे हट जाओ। रानी ताशा का साथ दो और राजा देव को सदूर ग्रह पर ले जाओ।”

“दोबारा ऐसा कभी मत कहना।” बबूसा ने बेहद कठोर निगाहों से धरा को देखा।

धरा कुछ सहम-सी गई।

“तुम अभी कुछ नहीं जानती। उस असलियत से बहुत दूर हो जब रानी ताशा ने राजा देव को धोखा दिया था। उस धोखे को रानी ताशा का कैसा भी पश्चाताप कम नहीं कर सकता। वो वक्त माफी के लायक नहीं है, बेशक रानी ताशा ने चार जन्मों तक ही क्यों न अपने किए का पश्चाताप किया हो। राजा देव को जब अपने उस जन्म का होश आएगा और वो सब कुछ जानेंगे तो रानी ताशा को कभी माफ नहीं करेंगे और कठोर से कठोर सजा देंगे।”

“ऐसा क्या कर दिया था रानी ताशा ने?” धरा के माथे पर बल पड़े।

“तुम बातों में मेरा वक्त बर्बाद मत करो। मुझे राजा देव को तलाश करना है। तुम्हारे साथ मैं इस आशा में हूं कि तुम मेरी सहायता करोगी राजा देव की तलाश में...।”

“सहायता कर तो रही...।”

“मुझे राजा देव चाहिए। मैं जल्द-से-जल्द उनसे मिलना चाहता हूं।” बबूसा का चेहरा क्रोध से तप रहा था।

“आज फिर देवराज चौहान को ढूंढने निकलते हैं। तुम समाधि के द्वारा देवराज चौहान से बात करके देखो।”

“कोई फायदा नहीं होगा। कितनी बार तो बात की है परंतु राजा देव अपनी जिद से हिल नहीं रहे। उन्हें मेरी बातों का भरोसा नहीं है। मुझे वो पहचानते नहीं हैं मुझसे मिलने को भी तैयार नहीं हैं। वो आने वाले खतरे को समझ नहीं रहे। मुझे लगता है कि जैसे देर हो चुकी है। सिर्फ आज का दिन ही बाकी है। उसके बाद रानी ताशा कभी भी पृथ्वी ग्रह पर आ जाएगी और...।”

“तो इतनी जल्दी वो कैसे देवराज चौहान तक पहुंच सकती है। हम कितने दिन से उसे ढूंढ़ रहे...।”

“महापंडित।” बबूसा के दांत भिंच गए –“तुम महापंडित को भूल रही हो।”

“मैं समझी नहीं कि महापंडित...।”

“महापंडित बैठा है रानी ताशा को रास्ता दिखाने वाला। वो रानी ताशा को राजा देव तक पहुंचने का सीधा रास्ता बता देगा। महापंडित सच में बहुत बड़ा ज्ञानी है, जैसे सब कुछ उसके बस में हो।”

“परंतु महापंडित तो कहता था कि सदूर ग्रह और पृथ्वी ग्रह में दूरी बहुत है। यहां उसका बस नहीं चल रहा...।”

“वो सब रास्ते निकाल लेता है। रानी ताशा की सहायता करने के लिए तो वो कुछ भी कर सकता है। परंतु वो बबूसा को भूल रहा है जो राजा देव का ही दूसरा रूप है और उसी ने ही मेरा जन्म कराया है। बेशक वो सोमाथ का निर्माण करके, उसे रानी ताशा के साथ भेजा है, लेकिन बबूसा हारेगा नहीं। इन बातों का तभी फायदा है जब मैं राजा देव को तलाश करके, उनके पास वक्त रहते पहुंच जाऊं, नहीं तो अनर्थ भी हो सकता...।”

“तैयार होकर यहां से निकलते हैं बबूसा और जैसे भी हो देवराज चौहान को तलाश करते हैं।” धरा उठते हुए कह उठी –“मैंने पहनने को कपड़े भी लेने हैं। ये बहुत मैले हो चुके हैं। क्या तुम मेरे घर पर चल सकते हो?”

“घर पर-क्यों?”

“वहां से मैं कपड़े ले सकती हूं।”

“मेरे पास वक्त बहुत कम रह गया है। वहां डोबू जाति के योद्धा भी तुम्हारे इंतजार में मौजूद हो सकते हैं, ऐसे में बात बढ़ जाएगी और समय व्यर्थ होगा। बेहतर है तुम कपड़े बाजार से खरीद लो।”

बबूसा और धरा तैयार होने लगे। वे नहा लिए। नाश्ते के बारे में धरा ने कहा कि वो बाहर कहीं से नाश्ता कर लेंगे, होटल में खाने का ऑर्डर देने में वक्त लगेगा।

तब वो कमरे से बाहर निकलने वाले थे कि बबूसा वहीं रुक गया।

उसने चंद गहरी सांसें लीं।

“तुम रुक क्यों गए।” धरा बोली –“चलो अब...।”

“वो फिर आ गए।” बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली।

“क-कौन?” धरा घबरा उठी।

“डोबू जाति के योद्धा।” बबूसा ने दांत भींचकर कहा –“वो बाहर ही हैं।”

धरा के चेहरे का रंग सफेद पड़ गया।

“तुम बाथरूम में जाओ।” बबूसा गुर्राया।

“लेकिन।”

“मेरी बात फौरन मानो, जल्दी... ।”

धरा पलटी और दौड़ती हुई बाथरूम में प्रवेश कर गई। दरवाजा बंद कर लिया। बबूसा की खतरनाक निगाह कमरे के दरवाजे पर जा टिकी।

तभी दरवाजा थपथपाया गया।

बबूसा के शरीर में अजीब-सा तनाव भर आया। वो आगे बढ़ा और दरवाजे के पास पहुंचकर दरवाजा खोल दिया फिर पीछे हटता चला गया। तुरंत ही दरवाजा खुला और एक के बाद एक डोबू जाति के सात योद्धाओं ने भीतर प्रवेश किया और कमरे में फैलते चले गए। उन्हें मौत भरी निगाहों से देखते बबूसा ने पहनी कमीज उतारी तो नीचे लैदर की बनियान जैसी चीज छाती से लिपटी दिखी, जिसमें ढेरों नन्हे-नन्हे चाकू फंसे थे और करीब आधी जगहों पर चाकू नहीं थे। वो इस्तेमाल हो चुके थे।

बबूसा उन सातों को पहचानता था।

“वो लड़की कहां है बबूसा?” एक ने सख्त स्वर में पूछा।

“यहीं है।” बबूसा का स्वर बेहद खतरनाक था।

“हमें तुमसे कोई दुश्मनी नहीं। हम सिर्फ उस लड़की को मारना चाहते है। ओमारू का आदेश है।”

“मेरे होते तुम लोग लड़की का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”

“तुम एक मामूली-सी लड़की की वजह से जाति के दुश्मन बनते जा रहे हो।”

“मैं तुम लोगों में से नहीं हूं। मुझे परवाह नहीं तुम्हारी जाति की।” बबूसा गुर्राया –“रानी ताशा पोपा पर आज आ रही है। मैं उन लोगों में से हूं। रानी ताशा के आने की खबर तो होगी तुम लोगों को।”

उसी पल एक ने पलक झपकते ही बबूसा पर छलांग लगा दी।

वो बबूसा से आ टकराया।

ये होते ही बाकी सब भी बबूसा पर झपट पड़े।

बहुत तेजी से सब कुछ हुआ और बबूसा को संभलने का मौका नहीं मिला। वे सातों मकड़ी के पैरों की भांति बबूसा से आ चिपके कि बबूसा अपने हथियारों का, या हाथ-पैरों का इस्तेमाल न कर सके।

बबूसा गुर्राकर रह गया।

दो ने उसकी टांगें पकड़ रखी थीं। दो ने उसकी बांहें पीछे करके जकड़ ली थीं। एक उसकी कमर से लिपटा हुआ था। दो पास में सतर्क से खड़े थे। बबूसा फड़फड़ा रहा था।

“लड़की को देखो, वो कहां है, वो कमरे में ही कहीं है।” टांगें पकड़ने वाले ने कहा।

बाकी दो तेजी से कमरे में धरा की तलाश करने लगे।

बबूसा ने अपनी बांहों को आजाद करने की चेष्टा की।

लेकिन उनके बंधन बेहद जबर्दस्त थे।

बबूसा पूरी ताकत लगाकर भी सफल नहीं हो पा रहा था। उसके होंठों से गुर्राहट निकल रही थी। वो समझ चुका था कि इस बार इनका प्लान उस पर वार करने का नहीं, उस पर काबू पाने का था, तभी वो धोखे में फंस गया।

धरा को ढूंढ़ते एक बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजे को धक्का दिया तो वो नहीं खुला। उसने जोरों से दरवाजा थपथपाया। दूसरा भी उसके पास आ गया। उनकी नजरें मिलीं।

“वो भीतर है।” एक ने कठोर स्वर में कहा।

“दरवाजा तोड़ दो।”

अगले ही पल दरवाजे को धक्का दिया जाने लगा।

इधर बबूसा आजाद होने के लिए पूरी ताकत लगा रहा था परंतु इन योद्धाओं की पकड़ से बच पाना भी आसान नहीं था। निःसंदेह इनके बंधन लोहे की जंजीरों से भी मजबूत थे और पांच-पांच लोगों ने बबूसा को जकड़ रखा था। बबूसा इन योद्धाओं की ताकत को बखूबी जानता था।

एकाएक बबूसा ने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। जैसे हार मान ली हो।

वो दोनों बाथरूम के दरवाजे को धक्के दे रहे थे।

इस शोर को सुनकर बाहर से निकलता एक वेटर, खुले दरवाजे से भीतर आ गया।

वेटर ने भीतर का नजारा देखा तो चौंका।

“ये क्या कर रहे हो।” वेटर कह उठा –“मैं अभी मालिक को खबर करता...।”

तभी बाथरूम के दरवाजे को धक्का देते एक के हाथ में खंजर चमका और अगले ही पल हवा में तैरता वेटर की छाती में जा धंसा। वेटर दरवाजे से टकराया और नीचे गिरता चला गया। वो आदमी तुरंत उसके पास पहुंचा। वेटर को टांग से पकड़कर भीतर खींचा और दरवाजा बंद कर दिया। फिर उसने वेटर की छाती में धंसे खंजर को एक ही झटके में बाहर खींच लिया। वेटर जोरों से तड़पा और शांत पड़ता चला गया। उसने वेटर के कपड़ों से खंजर का फल साफ किया और उसे कमीज के भीतर कहीं रखते बाथरूम की तरफ बढ़ गया।

“जल्दी करो।” बबूसा की टांग पकड़े, एक योद्धा सख्त स्वर में कह उठा।

“तुम लोग मेरी जान क्यों नहीं ले रहे?” बबूसा गुर्रा उठा।

“सोलाम ने कहा है कि बबूसा पर काबू करो और लड़की को मारो। परंतु हम तुम्हें मार भी सकते हैं बबूसा अगर तुम हमसे बेकाबू हुए तो, तुमने हमारे बहुत से योद्धा साथियों को मार दिया है।”

“तुम लोग भी मेरे हाथों ही मरोगे।”

“अब ये काम खत्म होने जा रहा है। लड़की मार दी जाएगी। वो हमारे ठिकाने पर पहुंचकर बहुत-सी बातें जान चुकी है। उसे जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता। तुम जाने क्यों डोबू जाति से दुश्मनी मोल ले रहे हो।”

“रानी ताशा कब आ रही है?” बबूसा ने पूछा।

“रानी ताशा का तो नहीं पता परंतु पोपा आने वाला है। सोलाम ने बताया था।”

“कब आएगा पोपा?”

“बस आने वाला है आज-कल में...।”

तभी बबूसा ने देखा...बाथरूम का दरवाजा एकाएक खुलता चला गया और भीतर से कांपती-घबराई-सी धरा बहुत तेजी से बाहर निकली। बाहर खड़े योद्धा को उसने पूरी ताकत से धक्का देकर पीछे कर दिया था। इसके साथ ही उसकी निगाह बबूसा के हाल पर पड़ी तो पास ही पड़ी लकड़ी की कुर्सी उठाकर पूरी ताकत से बबूसा की तरफ फेंकी और दरवाजे की तरफ दौड़ी। परंतु बाथरूम के दरवाजे पर खड़े योद्धा के हाथों ही खंजर निकल चुका था। कुर्सी फेंककर धरा दरवाजे की तरफ दौड़ी जब तो खंजर से भी बच गई। उसने वो जगह छोड़ दी थी और खंजर उसी रास्ते को पार करता बेड पर जा लगा और लुढ़कता हुआ नीचे जा गिरा था। तेज आवाज उभरी थी।

परंतु धरा की फेंकी कुर्सी ने अंजाने में बहुत बड़ा काम कर दिया था। लकड़ी की कुर्सी उन तीन पर जा गिरी, जो बबूसा की टांगें थामे थे और एक ने कमर से थाम रखा था।

उन तीनों पर कुर्सी गिरते ही उनकी चीखें और कराहें गूंजी।

बबूसा के बंधन ढीले हुए कुछ कि उसी पल बबूसा ने टांगों को तीव्र झटका देकर, उन तीनों को छिटक दिया। इस दौरान हाथ पकड़ने वालों के बंधन भी पल भर के लिए ढीले हुए, बबूसा ने बांहों का जोर आगे को लगाकर उन्हें सामने खींचा और उसी पल उसकी एक बांह आजाद हो गई। बबूसा ने पास खड़े आदमी के चेहरे पर घूंसा जड़ दिया और जिसने अभी भी बांह थाम रखी थी बबूसा के एक ही घूंसे ने उसे दूर गिरा दिया। उसके साथ ही बबूसा वहां से तीन कदम दूर खड़ा हुआ और हाथ में नन्हा-सा चाकू चमका जो कि उसी पल हवा में लहराता उस व्यक्ति की तरफ लपका, जो कि चौकोर पत्ती जैसा हथियार धरा पर फेंकने जा रहा था, और तब धरा कमरे का दरवाजा खोल चुकी थी और बाहर निकल जाने को तैयार थी।

अगले ही पल बबूसा का फेंका चाकू उस व्यक्ति की कनपटी पर जा धंसा। उसका पत्ती वाला हाथ उठा ही रह गया। धरा बाहर निकलती चली गई।

तभी बबूसा ने छः और नन्हे चाकू तूफानी अंदाज में फेंके जो कि उन सबके शरीरों में जा धंसे। उनका हाल देखने के लिए बबूसा रुका नहीं और बाहर निकलता चला गया। सामने धरा भागती दिखी।

“रुको धरा।” बबूसा ने ऊंचे स्वर में पुकारा।

बबूसा की आवाज सुनते ही धरा ठिठकी। पलटी। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।

बबूसा पास पहुंच गया। दोनों तेजी से आगे बढ़ गए।

“अभी खतरा टला नहीं है।” बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकला –“मैंने पहले भी तुम्हें बताया था कि ये जब शिकार पर हमला करते हैं तो काफी संख्या में होते हैं ताकि शिकार बच न सके।”

“तो वो बाहर होंगे।” धरा हांफती-सी कह उठी।

“यकीनन।”

“तुम तो फंस ही गए थे। तुम्हें फंसा पाकर मैं घबरा गई और कुर्सी फेंक दी। मैं क्या करती...।”

“तुमने बहुत अच्छा काम किया। तुम्हारे कुर्सी फेंकने की वजह से ही मैं बच पाया और सब ठीक हो गया। वो तुम्हें मार देना चाहते थे। मुझे पकड़ रखा था कि मैं तुम्हें बचा न सकूँ। मैं इस बारे में सतर्क नहीं था कि वो इस तरह मुझे पकड़ेंगे। अगर जरा भी अंदेशा होता तो वो मुझे न पकड़ पाते। मैं तो तब उनके दूसरे वारों के प्रति सतर्क था।”

“तुम देखना बबूसा।” धरा की आंखों में आंसू चमके –“एक दिन वो मुझे मारने में सफल हो जाएंगे।”

“जानता हूं। परंतु मैं तुम्हें जब तक उनसे बचाए रख सकूँगा, बचाऊंगा।” बबूसा के कठोर स्वर में गम्भीरता आ गई –“मैंने तुम्हें पहले भी कहा था कि उनसे बचना मुमकिन नहीं। वो तुम्हें मारने में, पक्का सफल होकर रहेंगे।”

“मैं मर जाऊंगी बबूसा?” धरा का चेहरा रोने के भावों से भर गया।

बबूसा ने धरा को देखा और बोला।

“मेरे बस में होता तो मैं तुम्हें कभी भी मरने नहीं देता।”

“तुम रानी ताशा का साथ दो तो तब वो मुझे छोड़ देंगे।”

“भूल में मत रहना। तब भी वो तुम्हें मार के ही रहेंगे और मैं रानी ताशा का साथ कभी नहीं दे सकता। मेरे लिए राजा देव महत्वपूर्ण हैं। मैं सिर्फ उनका सेवक हूं। रानी ताशा को मैं बुरा मानता हूं।”

“तुम रानी ताशा से खार खाते हो क्या?”

“नहीं। परंतु वो राजा देव की अपराधी है। जब तक उस अपराध की समस्या हल नहीं होगी, तब तक मैं चैन से नहीं बैठूंगा।”

“अपराध की समस्या?”

“हां। राजा देव को सब पता होना चाहिए कि रानी ताशा ने उनके साथ कैसा धोखा किया था और सामने रानी ताशा हो। उसके बाद राजा देव पर है कि वो क्या फैसला लेते हैं। रानी ताशा ने जो अपराध किया है उसकी सजा उसे जरूर मिलनी चाहिए।”

वे दोनों सीढ़ियों से नीचे पहुंचे और होटल के मुख्य रास्ते से बाहर निकले। यहां छोटा-सा पार्किंग स्थल था और सामने ही कारों के बाहर जाने का रास्ता था। दोनों ठिठक गए। उनकी नजरें घूमी।

तुरंत ही उन्हें वहां मौजूद डोबू जाति के योद्धा दिखने लगे।

इन दोनों को देखकर वो सब सतर्क हो गए। वे इधर-उधर फैले हुए बबूसा ने गिनती की वो पांच थे।

“तुम मेरी ओट में रहो।” बबूसा सख्त स्वर में कह उठा।

धरा तुरंत बबूसा के पीछे जा छिपी।

बबूसा की निगाह हर तरफ जा रही थी।

“तुम अब कार चलाओगी।” बबूसा बोला।

“लेकिन कार है कहां?” धरा कह उठी।

“मेरे साथ आओ।” कहने के साथ ही बबूसा ने धरा की कलाई पकड़ी और उसे ओट में रखते चंद कदमों के फासले पर खड़ी ऐसी कार की तरफ बढ़ गया, जिसका ड्राइवर भी कार के पास ही टहल रहा था।

तभी, उसी पल...बबूसा ने धरा के थाम रखे हाथ को जोरों का झटका दिया और खुद को ‘धड़ाम’ से नीचे गिरा लिया। धरा तेजी से लड़खड़ाकर चार कदम दूर गिरती चली गई।

तभी ‘उफ’ की आवाज उभरी और दूर खड़ी एक कार में लोहे की पत्ती वाला हथियार धंसा दिखने लगा।

बबूसा ने फुर्ती से करवट ली और हाथ में दो नन्हे चाकू दबे नजर आए जो कि खास अंदाज में झटका देते ही हाथ से निकलते चले गए और बीस कदमों की दूरी पर खड़े एक योद्धा की छाती में जा धंसे। उसी ने वो पत्ती वाला हथियार फेंका था। चाकू लगते ही उसका शरीर कांपा और चंद पल खड़ा रहने के बाद, नीचे बैठता चला गया और जमीन पर जा लुढ़का। पास से जाते लोगों ने उसे गिरते देखा तो वे उसकी तरफ लपके।

बबूसा खड़ा हो चुका था। उसकी निगाह बाकी के चारों योद्धाओं पर फिर रही थी कि कहीं वो कुछ करने का इरादा तो नहीं रखते। बबूसा की निगाहों में चुनौती के भाव थे। बबूसा ने कमीज नहीं पहन रखी थी और बनियान जैसा लैदर का वो टुकड़ा शरीर से चिपका, स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उसमें फंसे चाकू देखने वालों के लिए उलझन खड़ी कर रहे थे।

दो आदमी नीचे गिरी धरा की तरफ लपके।

बबूसा की बाज की तरह पैनी आंखें योद्धाओं पर जा रही थीं।

एक आदमी बबूसा के पास पहुंचा और शरीर से चिपके लैदर जैसे टुकड़े को देखता बोला।

“ये तुमने क्या पहन रखा है? इसमें छोटे-छोटे चाकू भी फंसा रखे हैं। जैसे खिलौने चाकू हों।”

बबूसा ने उस व्यक्ति को देखे बिना, धरा की तरफ बढ़ गया। वो दोनों आदमी धरा का हाल-चाल पूछ रहे थे कि गिरने से उसे चोट तो नहीं लगी। बबूसा धरा को लिए उस कार के पास पहुंचा और पास खड़े ड्राइवर से बोला।

“कार की चाबी दो।”

“क्यों?” ड्राइवर ने उलझन भरी निगाहों से बबूसा को देखा।

“हमें कार की जरूरत है।” बबूसा बोला।

“पागल तो नहीं हो गए क्या। मैं तुम्हें ये कार क्यों दूं? मैं तो...।”

तभी बबूसा का हाथ घूमा और उसके सिर पर पड़ा। उसके होंठों से कराह निकली और नीचे जा गिरा। बबूसा तुरंत उसके पास पहुंचा। उसकी जेब चेक करके चाबी निकाली और घबराई-सी खड़ी धरा को देते हुए कहा –“कार स्टार्ट करो। तब तक मैं इसकी कमीज उतारकर पहन...।”

बबूसा के शब्द मुंह में ही रह गए। मात्र एक पल के लिए उसकी निगाह सामने की तरफ उठी थी कि हवा में किसी चीज को आते देखा और उसी समय समझ गया कि मौत का खतरा है।

बबूसा ने धरा को धक्का दिया और उसी पल अपनी जगह से भी हट गया।

तभी धरा के होंठों से तेज चीख निकली।

बबूसा ने दांत भींचकर धरा को देखा।

धरा के गले से खून की लकीर उभर रही थी।

बबूसा की निगाह दूसरी तरफ गई तो पत्ती वाले हथियार को उधर की दीवार में धंसे, उसे हिलते पाया। बबूसा ने उस तरफ देखा जिधर डोबू जाति के योद्धा मौजूद थे। वहां अब कई लोग इकट्ठे हो चुके थे। क्योंकि उसके फेंके गए चाकू से एक की मौत हो चुकी थी। बबूसा ने धरा के गले का घाव चेक किया। वहां से अब खून बाहर आना शुरू हो गया था। घाव ज्यादा गहरा नहीं था। वो एक लकीर के समान था। बबूसा अगर सही वक्त पर धरा को धक्का न देता तो यकीनन इस वक्त उसकी गर्दन कटकर अलग पड़ी होती। बाल-बाल बची थी वो। बबूसा ने जेब से रूमाल निकाला और गले से बहते खून को बंद करने के लिए गले को बांधता बोला।

“घबराओ मत। सब ठीक है। तुम जल्दी से कार चलाओ। हमें यहां से निकल जाना चाहिए।”

धरा कांपती टांगों से कार के स्टेयरिंग पर जा बैठी। कांपते हाथों से चाबी लगाकर कार स्टार्ट की। तब तक बबूसा उसकी बगल में बैठ चुका था। धरा ने कार आगे बढ़ा दी। उसका चेहरा फक्क पड़ा हुआ था।

बबूसा की बाज जैसी निगाह हर तरफ घूम रही थी।

कार होटल के मेन गेट से बाहर निकलती चली गई।

बबूसा की आंखें पीछे का नजारा करने लगी कि तभी उसने एक और कार को बाहर निकलते और पीछे आते देखा।

बबूसा का चेहरा कठोर हो गया। वो सीधा बैठता बोला।

“वो हमारे पीछे आ रहे हैं।”

“फि-फिर?” धरा की आवाज लड़खड़ा रही थी।

“मैं उनका मुकाबला कर लूंगा। तुम कार चलाती रहो।” सख्त स्वर था बबूसा का।

धरा कुछ नहीं बोली। चेहरा पीला पड़ा था।

बबूसा ने उसके गले पर बंधे रूमाल को चेक किया। रूमाल से भी कुछ खून बाहर आ गया था। परंतु खून बहना रुक चुका था। वरना अब तक तो गल पर बंधे रूमाल ने पूरा गीला हो जाना था।

“तुम डॉक्टर के पास जाना चाहती हो?” बबूसा ने पूछा।

“घाव घातक है क्या?” धरा ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“नहीं। खून बहना रुक चुका है। दो-तीन दिन में घाव ठीक होने लगेगा।” बबूसा ने पुनः पीछे देखा।

पीछे काफी वाहन थे। उसने उस कार को देख लिया, जो उसके पीछे आ रही थी।

“तुमने मुझे बचा लिया।” धरा ने सूखे स्वर में कहा –“नहीं तो चक्रवती साहब या प्रकाश की तरह मेरी गर्दन भी कट जाती।”

“ऐसी बातें मत सोचो, बस तुम जिंदा हो, सलामत हो।” बबूसा ने सीधा होते हुए कहा।

“तुम मेरे लिए भगवान बनकर आए हो।”

“मैं भगवान नहीं, बबूसा हूं। पृथ्वी ग्रह पर लोग भगवान को बहुत मानते हैं।”

“क्या तुम नहीं मानते?”

“सदूर ग्रह पर भगवान नहीं है। वहां सिर्फ अपने कामों को ही महत्व दिया जाता है।” बबूसा बोला।

“तुम जानते हो हम लोग भगवान किसे कहते हैं?”

“किसी मूर्ति को खड़ा करके, उसकी पूजा करने को भगवान कहते हैं।”

ऐसी बुरी स्थिति में भी धरा के होंठों पर मुस्कान रेंग गई।

“तुम्हें अभी नहीं पता कि भगवान किसे कहते हैं।”

“मुझे सिर्फ अपने कामों से वास्ता है, भगवान से नहीं। मेरा वक्त बहुत बर्बाद हो रहा है। सिर्फ आज का दिन ही बाकी है मेरे पास और मैं राजा देव को ढूंढ़ नहीं पा रहा। रानी ताशा कभी भी पृथ्वी पर पहुंच सकती है। पोपा पहुंचने ही वाला होगा।”

“रानी ताशा डोबू जाति में पहुंचेगी न?”

“हां। वो ऐसी जगह है, जहां पर पोपा को उतरते नहीं देख सकता कोई। रानी ताशा और महापंडित ने बहुत सोच समझकर डोबू जाति से सम्बंध जोड़ा था। रानी ताशा का पोपा वहीं पर ही पहुंचेगा।”

“फिर तो तुम्हारे पास काफी वक्त है कि तुम देवराज चौहान को तलाश कर सको।”

“कैसे?”

“रानी ताशा, डोबू जाति में पहुंचेगी तो फौरन ही देवराज चौहान से मिलने तो चल नहीं पड़ेगी...।”

“वो तुरंत चल देगी। राजा देव से मिलने, उन्हें देखने को वो बहुत व्याकुल है।” बबूसा ने कठोर स्वर में कहा –“किसी भी हाल में डोबू जाति में रहकर समय नष्ट नहीं करेगी।”

“इतनी भी जल्दी नहीं होगी बबूसा, जितनी कि तुम बता रहे हो।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा –“चलने की तैयारी भी करनी होगी, जैसे कि तुम बताती हो कि उसके साथ डोबू जाति के योद्धा भी होंगे। कम-से-कम दो दिन तो चलते-चलते लग ही जाएंगे। उसके बाद वहां से मुम्बई तक का सफर काफी लम्बा है। जितनी भी जल्दी की जाए, चार दिन लगेंगे। मतलब कि तुम्हारे पास पांच-छः दिन का वक्त है और हम देवराज चौहान तब तक ढूंढ़ सकते हैं।”

“तुम नहीं समझतीं। ये वक्त भी कम है अगर राजा देव मुझे मिले तो राजा देव को सब कुछ बताना है। उन्हें यकीन दिलाना है कि मैं जो कह रहा हूं वो सच है। तभी तो बात बनेगी परंतु राजा देव मेरी बातों को सत्य नहीं मान रहे। राजा देव से मिलने के बाद भी मुझे काफी परेशानियों का सामना करना होगा।” बबूसा गम्भीर और कठोर स्वर में कह रहा था –“बार-बार ये ही डर मेरे मन में आ रहा है कि कहीं राजा देव पहले की तरह फिर से रानी ताशा की खबूसूरती के दीवाने न हो जाएं। महापंडित ने इस बार रानी ताशा का जन्म कराते समय, उनके चेहरे पर ऐसा कोई प्रभाव डाल दिया था कि राजा देव जब रानी ताशा को देखें तो उसी के होकर रह जाएं। अगर मैंने राजा देव को पहले से ही सतर्क कर रखा होगा तो शायद राजा देव दीवाने होने से अपने को बचा लें। रानी ताशा पूरी तैयारी करके आ रही है कि वो राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाए। महापंडित इस काम में रानी ताशा की भरपूर सहायता करेगा। ऊपर से मुझे सोमाथ की चिंता हो रही है कि महापंडित ने जाने कैसा निर्माण किया है सोमाथ का। महापंडित का कहना है कि उसकी मृत्यु नहीं होगी। बांह कटेगी तो उसकी बांह ठीक हो जाएगी। जाने क्या किया होगा महापंडित ने।”

“वो लोग पीछे आ रहे हैं? धरा ने पूछा।

“हां।” बबूसा ने गर्दन घुमाकर कुछ पलों के लिए पीछे देखा –“वो पीछे ही है।”

“कार में पेट्रोल खत्म होने वाला है।” धरा बोली।

“कहीं से भी डलवा लो।”

“तुम तो पीछे आते डोबू जाति के योद्धाओं में व्यस्त हो। ऐसे में देवराज चौहान तुम्हारे पास से निकले तो तुम्हें पता नहीं चलेगा।”

“फौरन मालूम हो जाएगा।” बबूसा बोला –“राजा देव की गंध को तो मैं फौरन पहचान लूंगा।”

“ओह।” धरा ने सिर हिलाया –“परंतु तुम्हें पीछे आते योद्धाओं के बारे में चिंता करनी चाहिए। उनसे पीछा छुड़ाना चाहिए ताकि देवराज चौहान को तुम तसल्ली से ढूंढ़ सको। जब तक वो पीछे रहेंगे, मुझे भी अपने मरने का डर लगा रहेगा। पता नहीं मैं किस चक्कर में फंस गई। अच्छी-भली चैन की जिंदगी जी रही थी, मां के साथ रहती थी, परंतु सब कुछ खत्म हो गया। कहां से कहां पहुंच गई मैं। इतने लोगों को मरते देख चुकी हूं कि अब मौत भी अपनी लगती है।”

बबूसा के कठोर चेहरे पर मुस्कान उभरी। उसने धरा को देखा।

“तुम्हारी बातें, बता रही हैं कि तुम हारने लगी हो इन हालातों से।” बबूसा ने कहा।

कार चलाते धरा ने बबूसा पर निगाह मारी फिर सामने देखकर गम्भीर स्वर में बोली।

“जब तक तुम मेरे साथ हो, मैं हिम्मत नहीं हारने वाली।”

“तुम हिम्मत से काम लोगी तो मौत तुमसे दूर रहेगी।”

धरा को सामने पेट्रोल पम्प दिखा तो कह उठी।

“पेट्रोल डलवाना जरूरी है। खत्म हो रहा है।”

“डलवा लो।”

“वो जो पीछे आ रहे हैं।”

“तुम उनकी तरफ से निश्चिंत रहो। मेरे होते तुम्हें कुछ नहीं होगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

धरा ने पेट्रोल पम्प पर कार ले जाकर रोकी।

बबूसा की निगाह पीछे की कार पर थी। वो कार पेट्रोल पम्प के सामने ही सड़क पर जा रुकी थी। बबूसा खतरनाक निगाहों से उस कार की तरफ देख रहा था।

पेट्रोल पम्प का कर्मचारी धरा के करीब आया।

“यस मैडम।” वो बोला।

“टंकी फुल कर दो।”

“आपके गले पर क्या हुआ मैडम। वहां खून... ।” पेट्रोल पम्प के कर्मचारी ने कहना चाहा।

“एक बच्चे ने कांच का टुकड़ा फेंका, जो कि मुझे लग गया।” धरा का हाथ अपने गले पर पहुंचा।

“ओह, ये बच्चे भी कितने नासमझ हैं। समझते नहीं कि किसी को चोट लग...।” कर्मचारी वहां से हट गया और पेट्रोल डालने लगा। धरा अभी भी अपने गले पर बंधे रूमाल पर हाथ फेर रही थी और उसे महसूस हो रहा था कि रूमाल पर लगा खून अब सूखने लगा है। मतलब कि खून बहना पूरी तरह बंद हो चुका है।

उस कार को देखते बबूसा ने जेब में हाथ डाला और काफी सारे नोट निकालकर धरा को दिए। धरा ने नोटों को थामा और पेट्रोल डालने वाले का आने का इंतजार करने लगी।

एकाएक बबूसा की आंखें सिकुड़ीं। उसने उस कार का दरवाजा खुलते और भीतर से योद्धाओं को बाहर निकलते देखा फिर कार के सब दरवाजे खुले और चारों योद्धा बाहर निकलकर पेट्रोल पम्प की तरफ बढ़ने लगे।

बबूसा के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे।

“वो इधर आ रहे हैं।” वो कह उठा।

धरा की निगाह तुरंत उस तरफ गई। चेहरा पीला पड़ गया।

“वो मुझे मारने आ रहे हैं।” घबराए स्वर में कहा।

“मैं उन्हें जिंदा नहीं छोडूंगा। तुम कार में ही रहो।” कहने के साथ ही बबूसा ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकलकर खड़ा हो गया। वो एकटक चारों योद्धाओं को सड़क पार करके आते देख रहा था।

तभी एक पुलिस जिप्सी पेट्रोल पम्प पर आ पहुंची। उसमें चार हथियारबंद पुलिस वाले मौजूद थे और पांचवां जिप्सी चला रहा था। वो पुलिस कार डीजल मशीन के सामने जा खड़ी हुई।

धरा बार-बार अपने सूख रहे होंठों पर जीभ फेर रही थी। उसकी निगाह भी करीब आते योद्धाओं पर ही थी। उन्हें मौत का रूप समझ रही थी। वो जानती थी कि कभी तो वो उसे मार ही देंगे। ये भी जानती थी कि उनसे माफी मांगने या समझाने का कोई असर नहीं होगा। वो सिर्फ मरने-मारने की ही बात जानते हैं।

बबूसा का हाथ कमीज के भीतर लैदर की बनियान में फंसे चाकुओं पर जा पहुंचा और देखते-ही-देखते उसके हाथ की उंगलियों के बीच आठ-दस नन्हे जहर बुझे चाकू आ फंसें हाथ बाहर निकल आया।

वो चारों योद्धा सड़क पार कर चुके थे और अब करीब आने लगे थे। उन चारों के चेहरों पर गुस्सा और दृढ़ता नजर आ रही थी। तभी बबूसा ने उनमें से दो का हाथ कमीज के भीतर जाते देखा। वो समझ गया कि वो हथियार निकालने जा रहे हैं तो बबूसा ने पलक झपकते ही अपना दायां हाथ ऊपर उठाया और हाथ को बेहद तीव्रता से झटका दिया तो उंगलियों में फंसे सारे नन्हे चाकू तेजी से उन चारों की तरफ लपके।

वे भी सावधान थे।

दो तो बबूसा का उठा हाथ देखकर फुर्ती से नीचे झुक चुके थे।

परंतु बाकी के दो उन चाकुओं की जद में आ गए। चाकू लगते ही वो थमे और फिर नीचे गिरने लगे। बबूसा ने फुर्ती से बनियान में फंसे और चाकू निकाले कि तभी नीचे गिरे एक ने लोहे की चौकोर पत्ती उस पर चला दी। बबूसा तुरंत उछलकर दो कदम हटा।

वो पत्ती चक्री के समान घूमती कार के शीशे पर लगी और भीतर प्रवेश करते ही उसका रुख बदल गया। वो बबूसा वाली सीट की पुश्त से टकराई और पीछे को जा गिरी।

धरा बाल-बाल बची। दहशत से उसकी आंखें फट चुकी थीं।

बबूसा के हाथों में नन्हे चाकू दबे थे। इससे पहले कि वो बचे उन दोनों पर जहर बुझे चाकुओं का वार कर पाता, एक पुलिस वाला गन थामे उसके सामने आ गया।

“खबरदार जो हिले तो।” पुलिस वाला गुर्रा उठा –“तुमने उन दोनों आदमियों पर कोई चीज फेंकी, जिससे कि शायद वो जान गंवा बैठे हैं। मैंने खुद तुम्हें कुछ फेंकते देखा है उन पर।”

एक पुलिस वाला पीछे से आया और नीचे गिरे उन दोनों व्यक्तियों को चेक करने लगा जो कि चाकू लगने से नीचे जा गिरे थे। जो जिंदा बचे थे वो तुरंत खड़े हो चुके थे।

“ये मर चुके हैं।” चेक करने वाले पुलिस वाले ने उससे कहा, जो बबूसा पर गन थामे खड़ा था।

“मैंने तो पहले ही कहा था कि वो मर गए हैं। पुलिस वाले ने बबूसा को घूरते हुए कहा –“मेरी आंखों के सामने तुमने दो ही हत्या की है। हाथ ऊपर करो और खुद को गिरफ्तार समझो। तुम...।”

तभी उन दोनों बचे योद्धाओं में से एक ने फुर्ती से बबूसा पर खंजर फेंका। बबूसा ने उसे हरकत करते देख लिया था। वो तुरंत नीचे झुक गया तो अगले ही पल खंजर कार की बॉडी में आ धंसा। ये देखकर पुलिस वाले चौंके। उनका ध्यान उन दोनों की तरफ हुआ कि तभी एक खंजर उस पुलिस वाले की गर्दन में आ धंसा जो कि बबूसा पर गन ताने खड़ा था। वो उसी पल नीचे जा गिरा। गन उसके हाथ से छूट गई। पल भर में ही दहशत भरा नजारा हर तरफ आ ठहरा। पेट्रोल पम्प पर मौजूद लोग और कर्मचारी ये देखकर हक्के-बक्के रह गए। उन्हें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है।

उसी पल बबूसा ने कार में धंसा खंजर निकाला और तेजी से उस पुलिस वाले पर फेंक दिया, जो कि अपनी गन को फायरिंग के लिए उठा रहा था। खंजर उसकी छाती में जा लगा। गन उसके हाथ से निकल गई और वो दोनों हाथों से छाती में धंसे खंजर को थामे नीचे बैठता चला गया।

बबूसा तुरंत कार का दरवाजा खोलते चीखा।

“भागो।”

धरा जो कि हक्की-बक्की बैठी थी। कार स्टार्ट थी। उसने कार दौड़ा दी। एक्सीलेटर ज्यादा दब जाने की वजह से कार जोरों का झटका खाया और भाग निकली। धरा के चेहरे का रंग फक्क था।

“ये तुमने क्या किया?” धरा के होंठों से खरखराता स्वर निकला –“पुलिस वालों को मार दिया।”

“वो मुझे मारने वाले थे।”

तभी पीछे से पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी।

“पेट्रोल पम्प पर खड़ी पुलिस कार हमारे पीछे आ रही है।” धरा चिल्लाई।

“मैं नहीं डरता इन लोगों से।” बबूसा गुर्रा उठा।

“ये पुलिस है बबूसा।” कार भगाती धरा चीखी –“ये कभी भी अकेली नहीं होती। कार में वायरलैस सेट होता है। उसी पर ये खबर देकर बाकी पुलिस वालों को बुला लेते हैं। पहले ही रास्ते बंद करा देते हैं। ये एक ऐसी संस्था है जो कि डोबू जाति से भी खतरनाक है। इनकी संख्या असीमित है। ये कानून के दायरे में रहकर काम करते हैं परंतु वक्त आने पर ये कानून को भी पीछे छोड़ देते हैं और बहुत कुछ कर देते हैं। इनका मुकाबला नहीं किया जा सकता। तुमने दो पुलिस वालों की जान...।”

“मैंने एक को मारा है।” बबूसा ने दांत भींचकर कहा।

“उनके लिए तो दो पुलिस वाले मरे हैं। वो हमें गोलियों से भून देंगे।”

धरा का शरीर कांप रहा था।

“तुम कहना क्या चाहती हो?”

“हमने अब और भी बड़ी मुसीबत मोल ले ली।”

पीछे सायरन की आवाज बराबर आ रही थी।

धरा को जो भी रास्ता-सड़क साफ मिलती, उस पर कार दौड़ाए जा रही थी।

बबूसा ने कमीज उठाकर लैदर की बनियान में फंसे नन्हे चाकुओं को चेक किया।

“ये चाकू कम होते जा रहे हैं। उस वेटर से मुझे हथियारों का बैग लेना होगा।” बबूसा बोला।

“तुम्हें हथियारों की पड़ी है। पीछे जो पुलिस है वो...।”

“उनकी मुझे चिंता नहीं है।” बबूसा ने कठोर स्वर में कहा।

“तुम्हें पुलिस की चिंता जरूरी होनी चाहिए। वो हमें नहीं छोड़ेंगे।” धरा तेज सांसें लेती बोली।

बबूसा ने गर्दन घुमाकर पीछे देखा।

सौ-डेढ़ सौ कदमों की दूरी पर पुलिस कार दौड़ी आ रही थी।

कुछ पल देखता रहा फिर बोला।

“मेरे ख्याल में वो सिर्फ दो हैं। मैं आसानी से उन्हें संभाल...।”

“उनसे बचने की सोचो, उन्हें मारने की मत सोचो।”

तभी पीछे आती पुलिस कार की स्पीड एकाएक तेज हो गई।

फासला कम होने लगा।

“वो तेजी से हमारे करीब आ पहुंची है।” बबूसा बोला।

“मैं और तेज नहीं चला सकती।” धरा चीखी।

“मुझे कार चलानी नहीं आती।” बबूसा की निगाह पीछे ही थी –“नहीं तो-ओह वो पीछे...।”

उसी पल पीछे से पुलिस कार ने उनकी कार को जोरदार टक्कर मारी।

कार तेजी से बहक उठी। धरा चीखी। बगल में जाती एक कार को साइड लगी।

बबूसा का सिर खिड़की के शीशे से टकराया। वो तुरंत सीधा हुआ।

धरा ने कार संभाल ली, परंतु वो बदहवास हो चुकी थी। कार की रफ्तार भी कम हो गई थी। इससे पहले कि धरा कार को तेजी से भगाती पीछे से पुनः पुलिस कार ने जोरों से टक्कर मारी।

कार, धरा के कंट्रोल से बाहर हो गई।

तुरंत ही स्टेयरिंग घूमा और फुटपाथ से टकराती कार के अगले दोनों पहिए फुटपाथ पर जा चढ़े। इसके साथ ही कार रुक गई। धरा के हाथ-पांव कांप रहे थे। वो बुरी तरह नर्वस हो चुकी थी। इन झटकों से बबूसा ने खुद को संभाल लिया था और कठोर निगाहों से धरा को देख, जैसे सब कुछ उसकी गलती की वजह से हुआ हो।

धरा की हालत बेकाबू-सी हुई पड़ी थी।

“तुम एक कार को नहीं भगा सकीं।” बबूसा ने सख्त स्वर में कहा।

“मैं, मैं...।” धरा कुछ कह न सकी।

तभी कार के गिर्द दो पुलिस वाले दिखे। एक के हाथ में गन थी, दूसरे के पास रिवॉल्वर। गन वाला कार के आगे की तरफ सतर्क-सा आ खड़ा हुआ था। रिवॉल्वर वाला साइड में था।

“बाहर निकलो।” गन वाला चिल्लाया।

“मैं इन्हें संभाल लूंगा।” बबूसा कार का दरवाजा खोलता गुस्से से कह उठा।

“इन्हें मारना नहीं।” धरा ने थरथराते स्वर में कहा।

बबूसा ने धरा को घूरते हुए कहा।

“तो क्या मैं मर जाऊं। ये मुझे मार दें।”

“तुम खुद को इनके हवाले कर दो।”

“तो ये मेरा क्या करेंगे?”

“स-सजा देंगे।”

“सजा? क्या ये मुझे कैद कर लेंगे?”

“हां।”

“तो फिर राजा देव का क्या होगा। मेरी कोशिशों का क्या होगा। मैं कैद हो गया तो मेरी सारी मेहनत मिट्टी में मिल जाएगी। मैं तुम्हारी बात कभी नहीं मान सकता। तुम मुझे गलत रास्ता दिखा रही हो। ऐसे वक्त में मैं राजा देव के काम न आया तो कब...।”

तभी धरा के होंठों से चीख निकली। आंखें फैल गई उसकी।

बबूसा ने फौरन पुलिस वाले की तरफ नजरें घुमाईं।

तुरंत ही बबूसा की आंखें सिकुड़ीं। उस पुलिस वाले की कनपटी में खंजर धंसा हुआ था।

बबूसा ने फौरन खंजर को पहचाना, वैसा खंजर बबूसा जाति वाले ही इस्तेमाल करते हैं फिर उसने पुलिस वाले को नीचे गिरते देखा। तभी पास ही गोली चलने की आवाज आई। बबूसा तुरंत बाहर निकल आया तो थम गया।

चार कदमों की दूरी पर दूसरा पुलिस वाला रिवॉल्वर लिए खड़ा था। गोली उसने ही चलाई थी और बबूसा के देखते-ही-देखते एक खंजर उसकी छाती मे आ धंसा था।

वो कार से टकराया। रिवॉल्वर हाथ से छूट गई। बबूसा ने उसी पल नजरें घुमाईं तो माथे पर बल आ ठहरे। पंद्रह कदमों के फासले पर सोलाम खड़ा था।

सोलाम बबूसा को देखकर मुस्कराया।

परंतु बबूसा सोलाम को होंठ भींचे देखता रहा। चेहरे पर उलझन दी। इसी वक्त एक और कार वहां आकर रुकी और उसमें से वो ही दो योद्धा बाहर निकले जो पैट्रोल पम्प पर जीवित बच गए थे। वो तेजी से सोलाम की तरफ बढ़े। सोलाम की निगाह भी उन पर जा टिकी थी। चूंकि ये सब चलती सड़क पर हो रहा था, इसलिए लोगों की भीड़ इकट्ठी होने लगी थी।

वाहनों की लम्बी कतार लगती जा रही थी। दो पुलिस वालों की लाशें नीचे पड़ी थीं। उनके हथियार पास गिरे पड़े थे। जनता में आतंक पैदा करने के लिए इतनी बात बहुत थी।

बबूसा की एकटक नजरें सोलाम पर थीं।

दोनों योद्धा सोलाम के पास पहुंचे।

“अब बबूसा बचना नहीं चाहिए सोलाम।” एक ने कहा।

“मार दो।” सोलाम कठोर स्वर में बोला।

“ये हमारे बहुत योद्धाओं को मार चुका है। तुम हमसे बेहतर हो, तुम इसे खत्म कर दो सोलाम।”

“बेहतर।” कहने के साथ ही सोलाम ने अपने कपड़ों में से खंजर निकाला और हाथ ऊपर करके पलक झपकते ही खंजर का फल उस कहने वाले योद्धा के सिर में धंसा दिया।

योद्धा का शरीर जोरों से कांपा। आंखें जैसे फटकर फैल गईं।

सोलाम ने चाकू की मूठ को नहीं छोड़ा था और झटके से उसे बाहर निकाला तो वो योद्धा नीचे जा गिरा और शांत पड़ गया। सोलाम के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

ये दृश्य देखकर, वहां इकट्ठे हो चुके कुछ लोगों के होंठों से चीख निकली। वो पीछे होने लगे।

दूसरा योद्धा ठगा-सा खड़ा, सोलाम को अविश्वास भरी निगाहों से देखने लगा।

“ये क्या सोलाम।” योद्धा के होंठों से निकला –“ये तुमने क्या किया।”

उसी पल सोलाम का खंजर वाला हाथ तेजी से हवा में लहराया और नोंक योद्धा की गर्दन को काफी हद तक काटती चली गई। वो तड़प उठा। गर्दन को थामे वहां से भागा परंतु ज्यादा कदम न उठा सका और नीचे जा गिरा। सोलाम के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

बबूसा हैरानी से सोलाम को देख रहा था।

सोलाम ने नीचे पड़े व्यक्ति के कपड़ों से खंजर साफ किया और वापस कमीज के भीतर कहीं फंसाते हुए बबूसा को देखा। पुनः उसके चेहरे पर मध्यम-सी मुस्कान उभर आई थी।

बबूसा आगे बढ़ा और सोलाम के पास पहुंचते कह उठा।

“तुमने तो मुझे हैरान कर दिया सोलाम।”

“हम बचपन के दोस्त हैं बबूसा।” सोलाम ने कहा।

“तुम चाहते क्या हो?” बबूसा उलझन में था।

“मैं अब वापस जाति में नहीं जाऊंगा। ये शहर मुझे अच्छा लगा। मैं यहीं रहूंगा।”

“वो तुम्हें ढूंढ़ लेंगे। मार देंगे। मेरी बात और थी कि उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। क्योंकि मैं उनमें से नहीं हूं।”

“इस शहर का जीवन मुझे अच्छा लगा जिंदगी जीने के लिए। मैं कही छिपकर जीवन बिता लूंगा। डोबू जाति में जीवन बेकार-सा लगता है इस शहर में आने के बाद। यहां खाने को बहुत कुछ बहुत लोग रहते हैं यहां। सबसे बात करके अच्छा लगता है। यहां कोई योद्धा नहीं है सब सामान्य लोग हैं। यहां मुझे अच्छा लगता है।”

“तुम्हारा विद्रोह खतरनाक है। वो तुम्हें ढूंढ लेंगे। तुम समझदार हो। जैसा चाहो, वैसा करो।” बबूसा ने कहा और पलटकर वापस कार तक जा पहुंचा। धरा अभी तक स्टेयरिंग सीट पर बैठी, कांप-सी रही थी।

लोगों की भीड़ उत्सुक निगाहों से उन्हें देख रही थी।

“चलो।” बबूसा धरा का दरवाजा खोलता बोला –“हमें यहां से चले जाना चाहिए।”

“ल-लोग हैं बाहर-वो...।”

“आओ।” बबूसा ने उसकी बांह पकड़कर उसे बाहर निकाला –“ये हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”

धरा के शरीर में रह-रहकर कम्पन उठ रहा था। बबूसा धरा का हाथ थामे, लोगों पर निगाह मारता तेजी से एक तरफ बढ़ता चला गया। सोलाम की तरफ देखा, परंतु वो कहीं नहीं दिखा।

“स-सब ठीक हो गया?” धरा ने घबराए स्वर में पूछा।

“ह-हां।”

“वो पुलिस वाले...।”

“सोलाम ने उन्हें मारा, मैंने नहीं।” बबूसा ने कठोर स्वर में कहा।

“सोलाम, व-वो तो तुम्हारा दुश्मन है।”

“तुम अपने बारे में सोचो। उसने गले के घाव को डॉक्टर को दिखाओ। मुझे बताओ डॉक्टर कहां मिलेगा। उसके बाद हमने राजा देव को भी ढूंढ़ना है। रानी ताशा का पोपा पृथ्वी पर पहुंचने ही वाला होगा।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

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शाम के सात बज रहे थे। अभी दिन की रोशनी बाकी थी। जगमोहन ने बांद्रा की एक पार्किंग में कार रोकी और इंजन बंद कर बगल में बैठे देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान ने सिगरेट का कश लिया और शीशा नीचे करके सिगरेट बाहर फेंकी और दरवाजा खोलकर बाहर निकला।

जगमोहन भी बाहर निकला। कार को रिमोट से लॉक करके दोनों सामने बने माल की तरफ बढ़ गए। सोहनलाल चार बजे ही अपने घर चला गया था। जगमोहन ने अपने तीन सूट सिलाई के लिए दे रखे थे। चार दिन से दो बार फोन आ गया था कि सूट ट्राई के लिए तैयार है तो देवराज चौहान और जगमोहन सूट ट्राई के लिए इधर आ पहुंचे थे और उसके बाद रात को किसी अच्छी जगह डिनर करने का प्रोग्राम बनाया था जगमोहन ने। इन दिनों दोनों फुर्सत में थे। जबकि जगमोहन बेसब्री से बबूसा के इंतजार में था कि वो समाधि में जैसे कि, देवराज चौहान से बात करता है, वैसे फिर करे तो देवराज चौहान उससे मिलने की बात करे। जगमोहन के मन में अब बबूसा से मिलने की इच्छा खड़ी हो चुकी थी।

“बबूसा ने दोबारा तुमसे बात नहीं की?” जगमोहन ने कहा।

“इतने बेचैन क्यों हो रहे हो बबूसा को लेकर।” देवराज चौहान मुस्काराया –“उसकी बातों में कोई दम नहीं है।”

“एक बार मिलकर देखें तो सही कि वो कैसा है।”

“समाधि के माध्यम से उसने फिर मेरे से बात की तो तब उससे मिलने की बात भी तय हो जाएगी।”

“क्या पता वो सोहनलाल के घर फिर पहुंच जाए।”

“सोहनलाल अब घर पर ही है। बबूसा वहां गया तो सोहनलाल बबूसा को बता देगा कि हम उससे मिलना चाहते हैं।”

“तुम्हें बबूसा की बातों पर जरा भी यकीन नहीं?” जगमोहन ने पूछा।

“ये गलत होगा कहना कि जरा भी यकीन नहीं।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा –“उसकी बातें मेरी समझ से दूर है परंतु उसमें कुछ तो है तभी तो वो दिखाई नहीं देता और अपनी आवाज के माध्यम से बात करता है। जिसे कि वो समाधि लगाने और किसी महापंडित की दी शक्तियों का जिक्र करता है कि उस वजह से वो ऐसा कर पाता है। अब लगता है कि कुछ बात तो उसमें है ही, बाकी उससे मिलने पर पता चलेगा कि वो असल में है क्या।”

“कल मेरी मुलाकात धरा से हुई, जब वो जान बचाती भाग रही थी। तब वो चौकोर पत्तियों जैसे हथियार हमारी तरफ फेंके गए। और बबूसा कहता है कि वो डोबू जाति के हथियार हैं।”

“ये भी सोचने वाली बात है।” देवराज चौहान ने कहा –“हम नहीं जानते कि डोबू जाति कहां है, है भी या नहीं। परंतु धरा की जो हालत तुमने देखी, जिस प्रकार के हथियारों से हमला किया गया, वो हथियार सामान्य नहीं हैं। हर कोई उन हथियारों का इस्तेमाल नहीं कर सकता। उन्हें हाथ में पकड़ना भी खतरे से खाली नहीं, जबकि वो लोग उसे तूफानी गति से निशाने पर फेंकते हैं। इसके लिए तो सालों के अभ्यास की जरूरत है।”

“तो तुम मानते हो कि कहीं पर डोबू जाति है और वो ऐसे हथियार इस्तेमाल करते हैं।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

“हां कहने का दिल नहीं करता और इंकार करना भी आसान नहीं है।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा –“मेरे ख्याल में जब तक हम बबूसा से नहीं मिल लेते, उसे और उसकी बातों का समझ नहीं लेते, तब तक इन बातों पर कोई विचार कायम नहीं किया जा सकता।”

“एक मिनट के लिए हम बबूसा की बातों को सच मान लें तो तब हालातों की क्या स्थिति होगी?” जगमोहन कह उठा।

“तुम्हारा मतलब कि ये मान ले कि बबूसा जो कहता है वो सही है। मैं राजा देव था कभी। रानी ताशा का भी अस्तित्व था और कोई महापंडित भी है और अब रानी ताशा मुझे वापस ले जाने के लिए कि सदूर ग्रह से पृथ्वी ग्रह पर आ रही है। नहीं, इन बातों को नहीं माना जा सकता। मुझे तो लगता है कि असल बात कुछ और ही है, बबूसा जब मेरे सामने आएगा तो तभी असल बात का पता चलेगा।”

जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता थी। वो बोला।

“मैं कभी-कभी ये सोचने लगता हूं कि ये बातें सच भी हो सकती हैं। तो उस स्थिति में क्या होगा।”

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो ऐसा सोचने लगे हो।” देवराज चौहान मुस्कराकर कह उठा।

दोनों मॉल के भीतर प्रवेश करते चले गए।

qqq

डोबू जाति का ठिकाना।

रात का अंधेरा फैल चुका था। बाहर ठंडी हवा चल रही थी। सर्द मौसम था। परंतु आज यहां का नजारा कुछ और था। डोबू जाति के लोगों में हर्ष उल्लास का माहौल था। जाति के अधिकतर लोग खोखले पहाड़ से बाहर, खुले आसमान के नीचे मौजूद थे और रह-रहकर वो आसमान की तरफ देख रहे थे। स्क्रीन वाले यंत्रों पर कुछ देर पहले ही ओमारू की बात हुई थी पृथ्वी की तरफ आते पोपा के भीतर मौजूद लोगों से। उन्होंने कहा था कि वो कुछ ही देर में पृथ्वी पर पहुंच जाएंगे। ओमारू के लिए आज की रात बहुत महत्व रखती थी क्योंकि पोपा में बैठकर रानी ताशा खुद उनके पास आ रही थी, नहीं तो आज तक रानी ताशा से सिर्फ यंत्रों पर ही बात होती रही थी। रानी ताशा इससे पहले कभी पृथ्वी पर नहीं आई थी।

ओमारू रानी ताशा के स्वागत की तैयारियां पूरी कर चुका था। रानी ताशा के लिए खाने के तरह-तरह के सामान तैयार किए गए थे। योद्धा रानी ताशा के स्वागत के लिए दूर के इलाके से फूल लाए थे। पहाड़ को भीतर अच्छी तरह साफ-सफाई करके चमका दिया था। सब बाहर मौजूद रहकर पोपा के आ पहुंचने की राह देख रहे थे।

एकाएक ओमारू पलटा और पहाड़ के भीतर प्रवेश कर गया। भीतर भी लोग थे और अपने-अपने कामों में व्यस्त आ-जा रहे थे। हर कोई जैसे पोपा की ही बात कर रहा था। उत्साह भरा था रानी ताशा को देखने के लिए। ओमारू उस चबूतरों के पास पहुंचा जहां मूर्ति लगी थी। ओमारू चबूतरे के पीछे वाले हिस्से की तरफ पहुंचा जहां संकरा-सा रास्ता आगे को जा रहा था। वो उस रास्ते पर आगे बढ़ गया। वो टेढ़ा-मेढ़ा-सा रास्ता कुछ मिनटों बाद एक कमरे जैसी जगह पर जाकर खत्म हुआ। जहां होम्बी मौजूद थी। होम्बी छातियों से लेकर कमर तक एक कपड़ा लपेटे बैठी थी फर्श पर। वहां मशाल जैसी चीज जल रही थी और होम्बी का चेहरा सुनहरी-सा होकर चमक रहा था। उसके खुले काले बाल पीठ को पार करते फर्श पर बिछ रहे थे। उसका झुर्रियों से भरा चेहरा मशाल की रोशनी में चमक रहा था। बंद आंखों को आहट पाकर खोला।

“आ गया ओमारू।” होम्बी शांत-सी कह उठी।

ओमारू होम्बी के सामने घुटनों के बल बैठ गया।

“सब ठीक है? रानी ताशा का पोपा आने वाला है। आज का वक्त तो खुशी से भरा है जादूगरनी।” ओमारू बोला।

“पर मुझे कहीं भी खुशी दिखाई नहीं दे रही।” होम्बी गम्भीर स्वर में बोली।

“मैं समझा नहीं जादूगरनी-क्या हुआ?” ओमारू की निगाह होम्बी के चेहरे पर जा टिकी।

“रानी ताशा का आना हमारे लिए फायदेमंद नहीं है।” होम्बी बोली।

“खुलकर कहो, तुम क्या देख रही हो?”

होम्बी ने ओमारू को देखा।

“हमें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। बबूसा यहां से चला गया, परंतु हमें उसकी ज्यादा परवाह भी नहीं थी क्योंकि वो हमारा नहीं था। पोपा उसे छोड़कर गया था। हमने बबूसा की परवरिश की, परंतु मुझे सोलाम के बारे में अभी-अभी आभास हुआ है, उसने भी विद्रोह कर दिया है।”

“सोलाम? नहीं जादूगरनी, वो विद्रोह नहीं कर सकता। वो हमारी जाति का है। वो...”

“वो विद्रोह कर चुका है। उसे उस लड़की को खत्म करने भेजा था। योद्धाओं के साथ। परंतु हाथ आने पर भी उसने लड़की को छोड़ दिया। उसने बबूसा की सहायता की और अपने ही दो योद्धाओं को मार दिया।”

“नहीं।” ओमारू के होंठों से निकला।

“सोलाम को वो शहर रास आने लगा है...।”

“मुम्बई।”

“हां मुम्बई। अब वो मुम्बई में ही रहना चाहता है। उसने हमसे नाता तोड़ लिया है। ये सब रानी ताशा की वजह से हुआ। उस लड़की की वजह से हुआ। हमारे लोग शहरों में जाएंगे तो वहां की चमक में गुम हो जाएंगे। पहले हम सही थे, सब यहीं रहते थे। कोई बड़े शहरों में नहीं जाता था। आस-पास की जगहों में ही जाता था।”

“मैं सोलाम को वापस ले आऊंगा जादूगरनी।”

“बात सिर्फ सोलाम की नहीं है। हमारे और भी योद्धा हैं। रानी ताशा को भी राजा देव पर काबू पाने के लिए हमारे योद्धाओं की जरूरत होगी। वो भी बड़े शहर जाएंगे तो उसके बाद यहां उनका मन नहीं लगेगा।”

“तो क्या किया जाए जादूगरनी?”

“इसके अलावा एक और मुसीबत भी रानी ताशा के साथ आ रही है।” होम्बी का झुर्रियों भरा चेहरा हिला।

“वो क्या?”

“सोमाथ नाम है उसका। देखने में वो इंसान ही लगता है, परंतु इंसान नहीं है। वो बिजली की तारों से बना इंसान जैसा (रोबोट) है। उसकी हड्डियां धातु की बनाई गई हैं। उसके दिमाग की जगह मशीन रखी है। वो सिर्फ रानी ताशा की बात को मानेगा। उसके दिमाग की मशीन में, ये ही समझा रखा है। उसके शरीर में ढेरों तरह के केमिकल दौड़ रहे हैं। वो अजूबे से कम नहीं है। उसकी मृत्यु शीघ्रता से सम्भव नहीं है। शायद वो मृत्यु को प्राप्त नहीं हो सकेगा। वो बहुत खतरनाक है, उसके सामने हमारे योद्धा भी कमजोर साबित होंगे। उसका कोई अंग नष्ट हो जाए या कर लिया जाए तो शीघ्र ही वो अंग फिर बन जाएगा। उसकी मृत्यु की तरकीब कोई नहीं जानता। वो कहर ढाने वाला है इस जमीन पर आकर। ऐसा कुछ होने वाला है जो नहीं होना चाहिए।”

“क्या होने वाला है जादूगरनी?” ओमारू परेशान दिखने लगा।

“मुझे स्पष्ट आभास नहीं हो पा रहा इस बारे में। धुंधली-धुंधली-सी आकृतियां हैं, जो मेरे सामने अभी स्पष्ट नहीं हो पा रहीं। परंतु उन आकृतियों में अच्छी बातों का आभास नहीं हो रहा, मुझे।”

“तो मैं क्या करूं जादूगरनी?”

“तू क्या करे, इस बात को मैं भी अभी तक नहीं जान पाई, परंतु कुछ बुरा होने वाला है रानी ताशा के आने पर। उसका आना हमारे लिए अच्छा नहीं है। इस बार पोपा हमारे लिए कष्ट लेकर आ रहा है।” होम्बी गम्भीर थी।

“हमें किससे खतरा है, रानी ताशा से या सोमाथ से?”

“दोनों से। कुछ भी अच्छा नहीं होने जा रहा। क्या होगा, इस बात का आभास भी मुझे नहीं मिल पा रहा। ये तो अनर्थ जैसी बात है कि कुछ होने वाला है और मुझे पता नहीं लग रहा। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।” होम्बी बेचैनी से कह उठी –“ये संकट के आगमन का संकेत है कि मुझे आभास नहीं हो रहा।”

“तुम्हारी बातों ने तो मुझे परेशान कर दिया होम्बी।” ओमारू कह उठा –“मैं तो सोचता था ये खुशी का मौका है। रानी ताशा आ रही है, परंतु तुमने तो मेरे सारे विचार बदल दिए।”

“मुझे सिर्फ कोहरा नजर आ रहा है और कोहरे में न समझ में आने वाली आकृतियां दिख रही हैं। आकृतियां क्या कर रही हैं, मैं समझ नहीं पा रही। कब से ये ही बातें समझने के प्रयास में लगी हूं। आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि मुझे स्पष्ट पता नहीं चल पाया हो, आकृतियां दिखाई देने के बाद भी। जाने क्या हो रहा है और क्या होने वाला है। मैं भविष्य का आभास पाने की चेष्टा में हूं, ओमारू।”

“हां होम्बी।”

“जब तक मैं न कहूँ रानी ताशा को मेरे सामने मत लाना। मैं अपने प्रयास में सफल होने की चेष्टा करते हुए भविष्य की घटनाओं को समझ पाने की चेष्टा कर रही हूं। मुझे पूरी तरह एकांत चाहिए।”

“जब तक तुम नहीं कहोगी, मैं रानी ताशा को तुम्हारे पास नहीं लाऊंगा।” ओमारू ने गम्भीर स्वर में कहा –“कहीं तुम खामख्वाह चिंता तो नहीं कर रही। रानी ताशा हमारी दोस्त है।”

“इस दुनिया में कोई दोस्त नहीं होता। सब अपने मतलब की खातिर दौड़ते रहते हैं। रानी ताशा ने हमें अपना दोस्त बनाया तो सिर्फ इसलिए कि इस दुनिया में आकर, उसने किसी राजा देव को वापस अपने ग्रह पर ले जाना है और इसके लिए उसे जगह चाहिए थी। हमारी सहायता चाहिए थी।”

“ये बात थी तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया। मैं रानी ताशा से से बातचीत खत्म कर देता।”

“इन बातों का स्पष्ट एहसास मुझे अभी हुआ है परंतु तुम रानी ताशा से ठीक से पेश आना। सोमाथ नाम के उस मशीनी व्यक्ति को मत भूलना जो अथाह ताकतवर है। वो ताकत का सागर है हमारे योद्धा सागर की एक बूंद जैसे हैं उसके सामने। तुम्हें बहुत समझदारी से काम लेना होगा और हर बात अपने मन में रखना। किसी से कहना नहीं।”

“समझ गया । क्या रानी ताशा हमारी दुश्मन है?”

“अभी नहीं बता सकती। मैं भविष्य की घटनाओं को देखने की चेष्टा कर रही...।” होम्बी के शब्द अधूरे रह गए। बाहर से तेज शोर की आवाज उभरी। होम्बी की बूढ़ी आंखें ओमारू की आंखों से मिलीं –“जाओ ओमारू। शायद रानी ताशा का पोपा आ पहुंचा है। इस वक्त तुम्हें स्वागत के लिए वहां होना चाहिए।”

“तुम्हारी बात सुनकर जादूगरनी, मैं बेचैन हो उठा हूं। तुम बताती क्यों नहीं कि अब क्या होने वाला है।”

“तेरे को तो तब बताऊं जब मुझे स्पष्ट आभास हो। मैं इसी कोशिश में लगी हूं। तू बाहर जा और जो मैंने समझाया है, वो याद रखना। रानी ताशा अगर हमारी दुश्मन नहीं तो दोस्त भी नहीं है। कुछ बुरा महसूस हो रहा है मुझे। पता लगते ही तुझे बताऊंगी कि क्या होने वाला है। इतना तो यकीन है कि कुछ अच्छा नहीं होने वाला।”

ओमारू, होम्बी को कुछ पल देखता रहा फिर गम्भीर भाव में उठा और बाहर निकल गया।

आंखें खोले होम्बी सामने की पहाड़ी दीवार को देखती रही फिर बड़बड़ा उठी।

“मुझे बार-बार बबूसा क्यों नजर आ रहा है? आखिर इन बातों में रहस्य क्या है। रानी ताशा का आना और मेरी ताकतों का कमजोर पड़ना और बबूसा का दिखाई देना। क्या मेरी ताकतें कोई संकेत दे रही हैं? मुझे सब कुछ समझने की कोशिश करनी चाहिए। एक बार फिर मुझे अपनी ताकतों को इकट्ठा करके, भविष्य में देखने की चेष्टा करनी होगी।”

ओमारू पहाड़ से बाहर निकला तो रात के काले आसमान को देखते ही थम-सा गया।

ठीक आसमान में काफी बड़ा काला-सा गोल धब्बा नजर आ रहा था। डोबू जाति के लोग उसे देखकर खुशी से चीख रहे थे कि पोपा आ गया, पोपा आ गया। एकाएक उस धब्बे के नीचे की तरफ से लेजर लाइट की तरह रोशनी की तीखी लकीर निकली और नीचे उस पहाड़ और लोगों पर पड़ी। सब कुछ रोशन हो उठा। हल्की नीली रोशनी सब तरफ फैल गई। अंधेरा गुम हो गया। इसके साथ ही शोर थम गया। सन्नाटा-सा आ ठहरा। वो काला धब्बा (पोपा) धीरे-धीरे जमीन के करीब आने लगा। लोग हटने लगे। हमेशा की तरह उन्होंने बीच में काफी बड़ी खुली जगह छोड़ दी कि पोपा नीचे उतर सके। वो धब्बा हर पल बड़ा होता जा रहा था। नीली रोशनी करीब आती जा रही थी और वो पल भी आया जब बड़े से छाते की तरह पोपा सिर पर आ पहुंचा और स्पष्ट दिखाई देने लगा। वो लोग और भी दूर हो गए। कुछ तो वापस पहाड़ के भीतर जा घुसे थे। फिर पोपा की टांगों जैसी कोई चीजें नीचे से खुलती दिखीं, जो कि किसी स्टैंड की तरह थीं और पोपा उन्हीं टांगों जैसी चीज पर, जमीन पर आ खड़ा हुआ। पोपा के इंजन की मध्यम-सी आवाज सबके कानों में पड़ रही थी और धीरे-धीरे वो आवाजें भी आनी बंद हो गईं।

रानी ताशा को लेकर पोपा आ पहुंचा था।

qqq

मुम्बई।

रात के 10.30 बजे थे।

बबूसा और धरा ने कुछ देर पहले ही टैक्सी छोड़ी थी और पैदल ही आगे बढ़ रहे थे। धरा के गले पर पट्टी बंधी थी। डॉक्टर को दिखा दिया था। घाव गहरा नहीं था। गले पर दो इंच लम्बा कट लगा था। देवराज चौहान के न मिल पाने की वजह से बबूसा चिंतित दिखाई दे रहा था जबकि धरा बेहद थक चुकी थी। टांगों में इस कदर थकान भरी थी कि उसका मन तो कर रहा था कि यहीं बैठ जाएं, परंतु बबूसा को व्याकुल देखकर वो ऐसा नहीं कर पा रही थी। इस वक्त वे भरे बाजार से गुजर रहे थे। आधी दुकानें बंद हो चुकी थीं, बाकी होने की तैयारी पर थीं। तभी धरा कह उठी।

“मैं यहां कहीं बैठती हूं तुम...।” कहते-कहते धरा ठिठक गई। बबूसा को गहरी-गहरी सांसें लेते देखा।

“क्या हुआ?” धरा के होंठों से निकला।

“राजा देव...।” बबूसा कह उठा।

“कहां?”

“पता नहीं, पर मैंने राजा देव की गंध पा ली है। वो यहां कहीं आए थे।” बबूसा कहता जा रहा था –“मेरे साथ आओ।” कहते हुए बबूसा आगे बढ़ता चला गया –“इस तरफ राजा देव की गंध तेज है, वो इस तरफ गए थे। वो अब मुझे मिल जाएंगे। मैं उन्हें ढूंढ़ लूंगा।” कहने के साथ ही बबूसा एक खास दिशा की तरफ बढ़ता रहा।

धरा उसके पीछे थी।

दुकानें खत्म हो गईं। आगे मॉल आ गया। बबूसा ठिठका और मॉल को देखते बोला।

“ये क्या जगह है?”

“ये शॉपिंग मॉल है। भीतर दुकानें हैं। लोग यहां सामान खरीदने आते हैं।” धरा ने बताया।

“हमें भीतर जाना होगा।”

“परंतु वक्त बहुत हो चुका है। मॉल बंद हो रहा है। अब तक तो ज्यादातर दुकानदार दुकानें बंद करके जा चुके होंगे।”

“राजा देव भीतर हैं।”

“मैं यहीं बैठती हूं। तुम भीतर हो आओ।” धरा बोली।

बबूसा ने एक क्षण भी नहीं गंवाया और मॉल के भीतर प्रवेश करता चला गया। धरा थकी-सी वहीं मॉल की सीढ़ी पर बैठ गई और अपने बारे में सोचने लगीं कि वो किस झंझट में फंस गई है। अगले ही पल ये सोचकर शरीर में झुरझुरी दौड़ गई कि वो यहां पर अकेली है। बबूसा पास नहीं, अगर डोबू जाति के योद्धा आ गए तो...?

धरा वहां से घबराकर खड़ी हुई और एक तरफ अंधेरे में खड़ी हो गई, जहां फौरन उसे कोई नहीं देख सकता था। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ कि उसे बबूसा के साथ ही रहना चाहिए था। उसके साथ रहने पर ही उसका जीवन बच सकता है।

धड़कते दिल के साथ वो अंधेरे में जमी रही। मॉल के भीतर जाकर बबूसा को ढूंढ़ पाना आसान नहीं था। मॉल काफी बड़ा था। ऐसा न हो कि वो भीतर जाए तो बबूसा बाहर आ जाए और उसे न पाकर चला जाए।

आधे-पौने घंटे के बाद उसने बबूसा को बाहर निकलते देखा।

धरा फौरन उसके पास जा पहुंची और बोली।

“मुझे तुम्हारे साथ ही रहना चाहिए...।”

“राजा देव यहां से बाहर निकले हैं।” बबूसा कह उठा –“मैं उनके बाहर निकलने की गंध को महसूस कर रहा हूं। आओ मुझे गंध के पीछे जाना है। हम जल्दी ही राजा देव तक पहुंच जाएंगे।” बबूसा आगे बढ़ा।

धरा उसके साथ थी।

“उधर, सामने सड़क पार जा रही है राजा देव की गंध।” बबूसा सड़क की तरफ बढ़ गया।

सड़क पार करके दोनों सामने की पार्किंग में पहुंचे। वहां बबूसा कुछ देर इधर-उधर टहलने के बाद बोला।

“राजा देव यहां आए थे, परंतु वो चले गए। उनकी गंध बहुत तेजी से बाहर जा रही है। कार, वो कार पर गए हैं। हमें कार की जरूरत है राजा देव की गंध के पीछे जाना है।”

“कार कहां से मिलेगी। सड़क की तरफ चलो, यहां से टैक्सी मिल जाएगी।” धरा बोली –“देवराज चौहान यहां से निकलकर किस तरफ गया है दाईं तरफ या बाईं तरफ...?”

वे सड़क पर पहुंचे और बांई तरफ इशारा करते बबूसा बोला।

“इस तरफ...।”

qqq

टैक्सी मध्यम रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही थी। बबूसा और धरा पीछे की सीट पर बैठे थे और खिड़की के शीशे नीचे कर रखे थे। बबूसा रह-रहकर खुली खिड़की से सिर बाहर निकालता और सूंघने लगता।

टैक्सी ड्राइवर ने बबूसा की इस हरकत पर दो-तीन बार सिर घुमाकर पीछे तो देखा, परंतु कहा कुछ नहीं।

बबूसा बताता जा रहा था कि किस तरफ जाना है, किस तरफ मुड़ना है।

चालीस मिनट बाद बबूसा ने टैक्सी रोक देने को कह।

उन्होंने टैक्सी छोड़ दी। वो चली गई।

बबूसा ने वातावरण में दो-तीन गहरी सांसें लीं और फिर सामने की तरफ देखकर बोला।

“वहां, उधर गए हैं राजा देव।”

धरा ने देखा, सामने रेस्टोरेंट था। डी-लावा, रेस्टोरेंट का नाम चमक रहा था।

“वो तो रेस्टोरेंट है।” धरा ने कहा।

“वहां खाने का सामान मिलता है?” बबूसा के चेहरे पर चमक थी।

“हां।”

“राजा देव यहीं गए हैं, गंध उसी तरफ जा रही है। आओ।” बबूसा धरा का हाथ पकड़े उस तरफ बढ़ गया।

“अगर देवराज चौहान यहां से भी चला गया हो तो?” धरा ने पूछा।

“कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं राजा देव को ढूंढ़ लूंगा। उनकी गंध मैं पकड़ चुका हूं। इसी गंध के सहारे मैं उन्हें ढूंढ़ लूंगा अब वो मेरे से बच नहीं सकते। राजा देव मिल जाएंगे।” बबूसा बच्चों की तरह खुश हो रहा था।

दोनों रेस्टोरेंट के प्रवेश द्वार तक पहुंचे।

बबूसा ठिठका और कुछ तेज सांसें लेने के बाद बोला।

“गंध तेज हो गई है। राजा देव भीतर ही हैं।” बबूसा खुशी से हंस पड़ा –“मैंने राजा देव को ढूंढ़ लिया। गंध सूंघने की शक्ति जन्म के समय महापंडित ने ही मुझमें डाली थी। इस शक्ति से आज मेरी कितनी बड़ी समस्या हल हो गई। राजा देव से ढाई सौ वर्ष के बाद मेरा सामना होगा मैं उन्हें अपने सामने देखूंगा। कितना शुभ दिन है आज का। मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है। राजा देव तो...।”

“परंतु देवराज चौहान तो तुम्हें जानता नहीं। न ही वो तुम्हारी बातों का यकीन...।”

“राजा देव मुझे पहचानेंगे भी और मेरी बातों का यकीन भी करेंगे। उन्हें समझाना मुझे आता है।” कहते हुए बबूसा तेज-तेज कदमों से रेस्टोरेंट के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया। धरा उसके साथ थी।

दरवाजे के पास खड़े दरबान ने फौरन शीशे का गेट खोल दिया।

दोनों भीतर प्रवेश कर गए। बबूसा के कदम तेजी से आगे की तरफ उठ रहे थे। सामने एक और दरवाजा था उसे धकेलकर जब भीतर गए तो खुद को रेस्टोरेंट के हॉल में पाया। ए.सी. की ठंडक फैली थी। पचास से ज्यादा टेबलें लगी थीं। अधिकतर टेबलें फुल थीं। लोग डिनर ले रहे थे। वेटरों की फौज दौड़ती नजर आ रही थी। मसालों की सुगंध वहां फैली थी। मध्यम रोशनी वहां फैली थी और पुरानी फिल्म का गाना ‘मैं आवारा हूं...’ मध्यम-सी आवाज में वहां बज रहा था। बबूसा के कदम रुके नहीं, तेजी से एक तरफ बढ़ते चले गए।

धरा उसके साथ थी।

उसी रेस्टोरेंट की एक टेबल पर देवराज चौहान और जगमोहन बैठे डिनर ले रहे थे और डिनर समाप्ति पर ही था कि एकाएक बबूसा देवराज चौहान के करीब आकर ठिठका और झुककर देवराज चौहान के बालों को सूंघा।

तब तक जगमोहन की निगाह धरा पर पड़ चुकी थी और उसे यहां देखकर चंद पलों के लिए वो स्तब्ध रह गया था।

देवराज चौहान ने फौरन पलटकर बबूसा को देखा।

बबूसा खुशी से गहरी सांस लेता, सीधा होता कह उठा।

“वो ही गंध। आह-कितने लम्बे समय के बाद करीब से इस गंध का एहसास हो पाया है।”

“कौन हो तुम?” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ीं।

“आपने मुझे पहचाना नहीं राजा देव। मैं बबूसा। आपका खास सेवक। महापंडित ने मुझे इस बार आपके ही दिमाग और आपकी ताकत के साथ मेरा जन्म करवाया है। मैं आप ही का रूप हूं। परंतु आपका सेवक हूं। मैंने आपको कहां-कहां नहीं ढूंढा।” एकाएक बबूसा की आंखों में आंसू चमके –“जब रानी ताशा ने आपको धोखा दिया, आपको सदूर ग्रह से बाहर फिंकवा दिया तो मैं कितना रोया था कितना तड़पा था राजा देव। मुझे लगा जैसे किसी ने मेरा अंग काटकर अलग कर दिया हो। परंतु अब वो सब गम भूल गया मैं। आप जिंदा हैं और आपको सामने देख रहा हूं। अब मैं फिर आपकी सेवा करूंगा, पहले की तरह, परंतु राजा देव मुझे लगता है कि आप भारी खतरे में हैं, रानी ताशा आपके लिए पृथ्वी ग्रह पर आ रही है। शायद आज ही-आ चुकी होगी या आ रही है, आ जाएगी। वो आपको वापस सदूर ग्रह पर ले जाने के लिए आ रही है। रानी ताशा और महापंडित आपके खिलाफ गहरी चाल चल रहे हैं कि किसी तरह आपको सदूर ग्रह पर वापस ले जाएं। चाहता तो मैं भी यहीं हूं परंतु मैं आपको इस बात से अंजान नहीं रखना चाहता कि कभी रानी ताशा ने आपके साथ कैसा धोखा किया था। मुझे आपसे बहुत बातें करनी है राजा देव आपको बहुत कुछ बताना है। आप सब कुछ भूल चुके हैं।” बबूसा ने देवराज चौहान का हाथ पकड़ लिया। वो खुशी में कांप रहा था –“मैं बहुत खुश हूँ कि आपको फिर से पा लिया। ये मेरा सौभाग्य है कि आपकी सेवा करने का मौका मुझे फिर से मिल गया। महापंडित बुरा है राजा देव, वो पूरी तरह रानी ताशा का साथ दे रहा है इस काम में और उसने किसी सोमाथ (रोबोट) मानव को तैयार करके उसे बेहद शक्तिशाली बनाकर, रानी ताशा के साथ भेजा है कि वो मेरा मुकाबला करके मुझे मार सके और रानी ताशा की सहायता करे आपको सदूर ग्रह ले जाने में। लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। जो आप चाहेंगे, आपकी उसी चाहत का साथ दूंगा। आपके साथ किए धोखे की वजह से रानी ताशा सजा की हकदार है। उन्हें कठोर से कठोर सजा देना राजा देव। तब उन्होंने बहुत बुरा किया था आपके साथ...”

जगमोहन कभी देवराज चौहान को देखता तो कभी बबूसा को तो कभी धरा को देखने लगता था।

देवराज चौहान हैरानी से बबूसा को देखे जा रहा था।

समाप्त

अगला भाग: बबूसा और राजादेव