गोम्स रात के दस बजे लौटा।
तब तक देवराज चौहान आराम करता रहा। वहां मौजूद अखबारों और पत्रिकाओं के पन्ने पलटता रहा। बाहर जाने की उसने कोई कोशिश नहीं की। इस दौरान जैकी कई बार उसके पास आया, बातचीत के मूड में, परन्तु देवराज चौहान ने उससे उतनी ही बात की, जितनी कि उस वक्त जरूरत रही। जैकी का अधिकतर वक्त किचन में रात का खाना बनाने में ही बीता था।
गोम्स कुछ थका-सा लग रहा था। आते ही उसने हाथ-मुंह धोये और नाईट ड्रेस पहनकर जैकी को खाना लगाने को बोला, फिर देवराज चौहान के साथ डाइनिंग टेबल पर जा बैठा।
जैकी टेबल पर खाना लगाने लगा।
जैकी को दिखाने-सुनाने के लिए गोम्स बोला।
"टोनी! आज हम बरसों बाद एक साथ खाना खा रहे हैं।"
"यस।" देवराज चौहान मुस्कुराया--- "सालों बाद आज अपने घर में खाना खा रहा हूं।"
"जैकी के हाथ का खाना खाकर देखना, ऐसा खाना तुमने पहले कभी नहीं खाया होगा।"
"थैंक्यू सर!" खाना लगाते हुए जैकी मुस्कुराकर कह उठा--- "लेकिन खाना खाने के बाद बताइएगा कि कैसा लगा। आज तो मैंने खास मेहनत करके डिनर तैयार किया है।"
बहरहाल उन दोनों ने खाना खाया।
खाना वास्तव में स्वादिष्ट था।
जैकी की तारीफ करने के बाद गोम्स ने कहा।
"दो कॉफी हमें बना दो। उसके बाद तुम डिनर लेकर, सो जाओ और कोई काम नहीं।"
"जी! मैं अभी कॉफी बनाकर लाता हूं---।"
गोम्स और देवराज चौहान ड्राइंगरूम में पहुंच गए। इधर-उधर की बातें होती रहीं। दस मिनट में ही जैकी कॉफी के दो प्याले ले आया। गोम्स ने उसे पुनः कहा कि खाना खाकर वो सो जाए।
जैकी चला गया।
देवराज चौहान ने कॉफी का प्याला उठाकर घूंट भरा।
गोम्स ने चेहरे पर गंभीरता समेटे सिगरेट सुलगा ली।
"मदन मेहता कहां है?" देवराज चौहान ने उसे उलझन में देखकर पूछा।
"मालूम नहीं हुआ---।"
"क्या मतलब?" देवराज चौहान की निगाह उस पर जा टिकी।
"मदन मेहता के बारे में जानकारी पाने की चेष्टा की, परन्तु उसकी कोई खबर नहीं मिली।"
"क्या मतलब? तुम तो मदन मेहता के लिए काम करते हो। ऐसे में ये कैसे हो सकता है कि उसके बारे में तुम्हें कोई खबर न मिले---!" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
गोम्स ने इंकार में सिर हिलाते हुए कहा।
"मैं क्या, मेरे जैसे जाने कितने हैं जो कि मदन मेहता के लिए काम करते हैं। परन्तु मदन का काम करने का ढंग ऐसा है कि अक्सर उसके बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं होती। उसे जब काम होता है तो वो अपने आदमी को फोन करके काम बता देता है। काम का पूरा ब्यौरा बता देता है। उसके बाद काम हो जाता है तो उसका सामान, पहले से ही मालूम जगह पर पहुंचा दिया जाता है। काम का मेहनताना हम तक पहुंच जाता है। मदन से सीधा-सीधा वास्ता न के बराबर रहता है।"
"और अगर तुम लोगों में से किसी को मदन मेहता की जरूरत पड़े तो?"
"उसके लिए एक फोन नंबर मिला हुआ है हमें या फिर बस्ती के ही एक रेस्टोरेंट के बारे में हमें मालूम है, जहां मदन साहब के लिए बात कर सकते हैं। हमारा मैसेज मदन तक पहुंच जाता है। उसके बाद मदन साहब ही तय करते हैं कि उन्होंने हमसे मिलकर बात करनी है या मैसेज के जवाब में मैसेज देकर ही काम चलाया जा सकता है।"
"यानी कि मदन मेहता का ठीक-ठीक ठिकाना भी तुम्हें मालूम नहीं।"
"मालूम है। वो जहां-जहां मिलता है, उसके अधिकतर ठिकाने उसके आदमी जानते हैं। लेकिन वो कब, कहां, किधर मिलेगा, ये किसी को नहीं मालूम।" गोम्स ने कहा।
"वो इतनी सावधानी क्यों बरतता है?"
"क्योंकि उसके दुश्मन बहुत है।"
"लेकिन बस्ती में तो, उसे ऐसा कोई खतरा नहीं, जो---?"
"क्यों नहीं है खतरा---।" गोम्स ने कहा--- "बस्ती में भी उसे खतरा है। जैसे मैं किसी मजबूरी के तहत, तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचाने की चेष्टा कर रहा हूं। ठीक इसी तरह मजबूरी के तहत किसी के कहने पर कोई मदन को खत्म करने की भी कोशिश कर सकता है। मदन साहब उन लोगों में हैं, जो कम ही किसी पर विश्वास करते हैं और अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखते हैं।"
देवराज चौहान ने गोम्स को देखते हुए कॉफी का घूंट भरा।
"इसका मतलब कि कोई बस्ती में पहुंच जाए तो भी, चुपचाप मदन मेहता तक नहीं पहुंच सकता।"
"नहीं। ये लगभग असंभव-सी ही बात होगी।" गोम्स ने भी कॉफी का प्याला उठा लिया।
कई पलों तक उनके बीच खामोशी रही।
"तो तुम नहीं मालूम कर पाए कि मदन मेहता कहां है।" आखिरकार देवराज चौहान बोला।
"नहीं। अभी मालूम नहीं हुआ और खासतौर से मदन साहब के लिए पूछताछ करना ठीक नहीं। एक-दो दिन में मदन साहब के बारे में मालूम हो जाएगा कि वो कहां हैं।"
"मतलब कि मुझे इंतजार करना पड़ेगा।"
"हां। तुम इस तरह मदन मेहता तक पहुंचने को मामूली बात मत समझो। मत भूलो कि तुम एक तरह से मदन के घर में हो और उसकी गर्दन पकड़ने की भी कोशिश में हो। बहुत संभलकर चलना पड़ेगा। अगर इंतजार करना पड़े तो बेहद तसल्ली से करो। जल्दी में काम ही खराब होगा।"
देवराज चौहान मुस्कुराया।
"मैं इंतजार करने को मना नहीं कर रहा। इतना जानना चाहता हूं कि इस काम में कितना वक्त लग सकता है।"
"कुछ कहा नहीं जा सकता। एक दिन में भी तुम मेहता साहब तक पहुंच सकते हो और पांच दिन भी लग सकते हैं। जब तक मुझे मदन साहब के बारे में खबर नहीं मिलती, तब तक तुम यहीं पर आराम से वक़्त बिताओ। अगर ये बात-मामला मेरे हाथों में होता तो मैं अभी सब कुछ निपटा देता। अभी इंतजार करो---।"
■■■
एक-दो क्या, पांच दिन बीत गए।
गोम्स, मदन मेहता के बारे में कोई खबर नहीं ला पाया।
"तुम्हें नहीं मालूम कि इस काम में अब ज्यादा वक्त लगने लगा है।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं इसमें कुछ नहीं कह सकता। मदन साहब के बारे में टोह पाने की पूरी चेष्टा कर रहा हूं। इस काम में जल्दबाजी करके मैं खुद को खतरे में नहीं डालना चाहता। सब्र के साथ चल रहा हूं।" गोम्स ने सोच भरे स्वर में कहा--- "कुछ ज्यादा वक्त लगकर भी, काम ठीक-ठाक हो जाए तो कोई गिला नहीं।"
"ज्यादा सब्र भी ठीक नहीं होता कि दो-चार दिन के काम को दो-चार सप्ताह लग जाएं। गोवा में कदम रखे हुए पन्द्रह-सोलह दिन हो चुके हैं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "मेरे पास दो सप्ताह से ज्यादा का वक्त नहीं है। इस मामले में मुझे किसी को जवाब देना है।"
"मेरी यही कोशिश है कि काम जल्दी हो। मैं खुद चाहता हूं कि तुम जल्दी से जल्दी यहां से चले जाओ। जब तक तुम यहां हो, मेरे लिए खतरा बने बैठे हो।" गोम्स ने गंभीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। सिगरेट सुलगा ली। वो जानता था कि गोम्स की यही इच्छा होगी कि वो यहां से जल्दी चला जाए।
"वैसे उड़ती-उड़ती खबर अवश्य कानों में पड़ी है कि मदन साहब गोवा में नहीं हैं।" गोम्स ने कहा।
"मदन मेहता गोवा में नहीं है!" देवराज चौहान की निगाह, गोम्स के चेहरे पर टिकी।
"सुना तो यही है, परन्तु खबर पक्की नहीं है।" गोम्स ने सोच भरे स्वर में कहा--- "मेरे पास ऐसा कोई काम नहीं है कि मैं मदन साहब से संबंध बनाने की चेष्टा करूं। ताकि मालूम हो सके कि वो गोवा में मौजूद हैं या नहीं। मेरा एक खास आदमी है, वो मदन साहब के बारे में मालूम करने की चेष्टा कर रहा है।"
"कोई काम पैदा करके, मदन मेहता तक मैसेज पहुंचा सकते हो। इससे मालूम हो जाएगा कि वो वास्तव में गोवा में नहीं है या---।"
"बच्चों वाली बात मत करो। मदन मेहता से बात करने या मिलने के लिए, ठोस वजह होनी चाहिए। काम पैदा करके, मदन साहब से मिलने वाली बचकाना बात मत करो। वो फौरन समझ जाएगा कि कोई गड़बड़ है। उसे मैं तुमसे कहीं अच्छी तरह जानता हूं---।"
"उसके घर-परिवार वाले तो होंगे।"
"मदन साहब ने शादी नहीं की। अकेले रहते हैं। रिश्तेदार हैं, लेकिन उनके पास आना-जाना कम ही है। सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही मदन साहब उनसे मुलाकात करते हैं।" गोम्स ने बताया।
"राजन राव से मुलाकात हुई?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा।
"नहीं। उससे मुलाकात की अब कोई जरूरत नहीं है। तुम्हें मेरे हवाले करके, उसने जो काम मुझे करने को कहा है, वो देर-सवेर में हो जाएगा। उससे क्या बात करनी है।"
■■■
इतने दिन बीत जाने पर देवराज चौहान की खबर न मिलने पर जगमोहन चिंता में था।
उसके ख्याल में तो अब तक देवराज चौहान को अपना काम निपटाकर वापस आ जाना चाहिए था। उसका आना तो दूर, उसका कोई फोन भी नहीं आया था।
वानखेड़े इस बीच कई बार उसके पास देवराज चौहान के बारे में पूछने आ चुका था।
जगमोहन के मन में तीव्र इच्छा थी कि राजन राव के ठिकाने पर जाकर मालूम करे कि उसके पास देवराज चौहान की कोई खबर है या नहीं। परन्तु ऐसा करना ठीक नहीं था। क्योंकि ब्रिंगेजा के आदमी अभी भी उसकी निगरानी पर थे। राजन राव के आदमियों ने ब्रिंगेजा के दो आदमियों को खत्म कर दिया था। लेकिन इस बारे में उससे बात करने के लिए ब्रिंगेजा या उसका कोई आदमी नहीं आया था। ये अजीब बात लगी थी जगमोहन को।
दरवाजे पर थपथपाहट पाकर जगमोहन ने दरवाजा खोला तो बाहर वानखेड़े मौजूद था। वो भीतर आ गया। जगमोहन ने सिटकनी चढ़ा दी।
"देवराज चौहान का कोई फोन--- कोई खबर?" वानखेड़े ने पूछा।
"नहीं।" जगमोहन के चेहरे पर व्याकुलता थी।
"अजीब बात है। कम-से-कम उसे फोन तो करना चाहिए था कि--।"
"वो फंस न गया हो---।" जगमोहन ने आशंका जाहिर की।
वानखेड़े कुछ न कह सका।
"राजन राव से बात करने भी नहीं जा सकता। बाहर ब्रिंगेजा के आदमी मौजूद हैं।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा--- "दो-तीन दिन तक देवराज चौहान की कोई खबर न मिली तो उसकी तलाश में, मुझे बस्ती में जाना होगा मछुआरों की। ये काम इतने दिन का नहीं था।"
"तुम्हारा वहां जाना ठीक होगा?"
"तो कब तक इस तरह बैठे देवराज चौहान का इंतजार करता रहूंगा। क्या मालूम मदन मेहता ने उसके साथ क्या किया हो!" जगमोहन ने खतरनाक स्वर में कहा।
"अभी इंतजार करो। जल्दबाजी में कोई कदम न उठाना---।" वानखेड़े की आवाज में सोच के भाव थे।
तभी दरवाजे पर थपथपाहट पड़ी।
दोनों ने एक-दूसरे को देखा। जेब में पड़ी रिवाल्वर को थपथपाकर जगमोहन दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजा खुलते ही चौंका। अगले ही पल उसकी आंखें सिकुड़ती चली गईं।
सामने ब्रिंगेजा मौजूद था। उसका चेहरा गुस्से से भरा हुआ था।
ब्रिंगेजा उसे धकेलते हुए भीतर प्रवेश कर गया। उसके चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे। उसके रंग-ढंग देखकर जगमोहन के जिस्म में गुस्से की लहर दौड़ी। परन्तु तुरन्त ही खुद पर काबू पा गया। उसके पीछे-पीछे दो आदमी और भीतर आ गये थे, जो कि खतरनाक लग रहे थे।
जगमोहन इस बारे में तैयार था कि अगर जरूरत पड़ी तो फौरन रिवाल्वर का इस्तेमाल कर सके। वानखेड़े आंखें सिकोड़े ब्रिंगेजा और उसके साथियों को देख रहा था।
"अजीब हिसाब-किताब है गोवा का।" जगमोहन व्यंग्य से भरे तीखे स्वर में कह उठा--- "यहां के होटलों के कमरे तो पब्लिक फोन बूथ की तरह हैं कि, जिसके मन में आए, घुसता चला आए।"
ब्रिंगेजा ने मौत की-सी निगाहों से उसे देखा।
"मेरे आदमियों पर हाथ उठाने के लिए भी हिम्मत चाहिए।" ब्रिंगेजा दरिंदगी भरे स्वर में कह उठा--- "तुमने और देवराज चौहान ने मेरे दो आदमियों को शूट कर दिया। तुमने क्या सोचा कि मैं गोवा से बाहर गया हूं तो कभी वापस लौटूंगा ही नहीं---। तुम---।"
"क्या बकवास कर रहे हो!" जगमोहन का दिमाग तेजी से चल रहा था--- "मैंने तुम्हारे साथियों को शूट किया है! पागल तो नहीं हो गए तुम! मुझे क्या मालूम तुम्हारे आदमी कौन हैं और कब वो मरे! कम-से-कम मैंने और देवराज चौहान ने गोवा में किसी की हत्या नहीं की। बल्कि मैं तो तुमसे पूछने वाला था कि देवराज चौहान को तुमने कहां कैद कर रखा है? उल्टे तुम ही मुझ पर---।"
"देवराज चौहान---!" ब्रिंगेजा ने दांत पीसकर उसे देखा--- "मैंने उसे कैद कर रखा है!"
"तो और कौन करेगा। तुम ही उस दिन धमकी देकर गए थे और उसके दो-तीन दिन बाद देवराज चौहान गायब हो गया। मेरी आंखों के सामने उसे कुछ लोग उठा ले गए।" जगमोहन के स्वर में बेहद गुस्सा था--- "तुम्हारे अलावा गोवा में हमारा कोई दुश्मन नहीं। तुमने ही हमें धमकी दी थी कि---।"
"मैंने या मेरे आदमियों ने देवराज चौहान को कुछ नहीं कहा। उस दिन से मैं गोवा से बाहर था और आज ही लौटा हूं। मेरे साथ मदन भी गया था। तुम अपनी हरकत छिपाने के लिए मुझ पर---।"
"बकवास मत करो। तुम्हारे इशारे पर ये काम तुम्हारे आदमी आसानी से कर सकते हैं। तुम गोवा में हो या न हो, इससे इस बात का कोई मतलब नहीं।" जगमोहन ने खा जाने वाले स्वर में कहा।
"और अपने दो आदमियों को भी मैंने मरवा दिया?"
"वो तुम जानो। मुझे तुम्हारे आदमियों की कोई खबर नहीं।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "ये मत सोच बैठना कि गोवा में तुम तोप हो। देवराज चौहान को वापस कर दो। नहीं तो मैं गोवा को हिलाकर रख दूंगा।"
ब्रिंगेजा के दांत पीसने का स्वर स्पष्ट कानों में पड़ा।
"कब गायब हुआ देवराज चौहान---?"
"गायब नहीं, मेरी आंखों के सामने तुम्हारे आदमियों ने उसे उठाया और कार में भरकर ले गए।"
"मेरे आदमी---! तुम जानते हो मेरे आदमियों को?" ब्रिंगेजा ने खा जाने वाले स्वर में पूछा।
"तुम्हारे ही आदमी होंगे वो, गोवा में हमारी सीधे-सीधे तुम्हारे साथ ही तू-तडंग हुई थी---।"
"ये किस दिन की बात है?"
"सुबह का वक्त था और दिन---।" जगमोहन ने वो दिन बताया, जब देवराज चौहान गया था।
"इसी दिन सुबह मेरे दो आदमियों को शूट किया गया था।" ब्रिंगेजा के माथे पर बल पड़े। उसने अपने साथ आए दोनों आदमियों को देखा--- "मैंने ठीक बोला---?"
"यस ब्रिंगेजा साहब---।" एक ने फौरन सिर हिलाया।
"मुझे अपनी बातों में उलझाओ। देवराज चौहान को गायब हुए पांच दिन हो चुके हैं। मेरी पेशंस का ज्यादा इम्तिहान मत लो। उसे सही-सलामत लौटा दो। जगमोहन के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे और आवाज में दरिंदगी सिमटी पड़ी थी--- "मैं तुम्हें दो दिन का वक्त देता हूं---।"
"दो दिन! तुम ब्रिंगेजा को दो दिन का वक्त देते हो।" ब्रिंगेजा शब्दों को चबाते हुए कह उठा--- "अगर दो दिन में देवराज चौहान तुम्हें न मिला तो तुम क्या करोगे?"
"इस बात का जवाब तुम्हें तीसरे दिन मिल जाएगा।" जगमोहन पूर्ववत स्वर में कह उठा।
दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे।
"अब तक मैं तुम्हें खत्म कर चुका होता, जिस तरह तुम मेरे सामने पेश आए हो। तुम्हारे अभी तक सलामत रहने की वजह यह है कि तुम्हारी बात से मैं उलझ गया हूं कि मेरे आदमियों को शूट करके कौन देवराज चौहान का अपहरण करके ले गया। मैंने यह काम नहीं किया। मदन मेहता ने ये काम नहीं किया। मालूम करना पड़ेगा कि तीसरा कौन बीच में आ गया या फिर तुमने झूठ बोला---।"
"मुझे झूठा कहने से पहले अपने भीतर झांको ब्रिंगेजा---।" जगमोहन ने जल्दी से बात काटकर कहा।
"ब्रिंगेजा साहब!" उन दोनों में से एक ने कहा--- "हो सकता है ये ठीक कह रहा हो, देवराज चौहान को कोई उठा ले गया है। क्योंकि उस दिन की सुबह के बाद देवराज चौहान को नहीं देखा गया। ये अकेला ही होटल में रह रहा है।"
"सच-झूठ तो सामने आ ही जाएगा।" कहते हुए ब्रिंगेजा की निगाह वानखेड़े पर गई--- "ये कौन है?"
"मेरी पहचान वाला है।"
"पहचान वाला।" ब्रिंगेजा की निगाह अभी भी वानखेड़े पर थी--- "मैं पुलिस वालों को दूर से ही पहचान लेता हूं। बेशक वे बिना वर्दी के ही मेरे सामने क्यों न आ जाएं---।"
जगमोहन पल भर के लिए सकपकाया फिर तीखे स्वर में कह उठा।
"तो क्या पुलिस वाले पहचान वाले नहीं हो सकते। वो इंसान नहीं होते क्या?"
"तुम।" ब्रिंगेजा ने जगमोहन को खा जाने वाले ढंग से देखा--- "गोवा से बाहर जाने की कोशिश मत करना। मैं देखूंगा कि देवराज चौहान को किसने उठाया है, मेरे आदमियों को किसने शूट किया है।"
जगमोहन के चेहरे पर कड़वे भाव उभरे।
"तुमने कैसे सोच लिया कि मैं देवराज चौहान को लिए बिना गोवा से जाऊंगा। कान खोलकर सुन लो अगर तुमने देवराज चौहान को पकड़ा है तो उसकी वसूली मैं तुमसे डंके की चोट पर करूंगा। कोशिश करना कि तुम गोवा से बाहर मत जाना। जरूरत पड़ने पर मेरी नजरों से छुप नहीं पाओगे।"
ब्रिंगेजा गुर्राया।
"बहुत ज्यादा बकवास कर रहे हो जगमोहन। जुबान बंद रखो। मैं अपना आपा न गंवा दूं। मैं तुमसे जल्दी मिलूंगा, ये जानकर कि देवराज चौहान के गायब होने और मेरे आदमियों के शूट करने के पीछे असल बात क्या है। उसके बाद बाकी की बात होगी।" कहने के साथ ही ब्रिंगेजा दांत भींचे पलटा और अपने दोनों आदमियों के साथ गुस्से से भरा बाहर निकलता चला गया।
जगमोहन और वानखेड़े की नजरें मिलीं।
"तुमने ब्रिंगेजा को ऐसा क्यों कहा कि...।"
"इस वक्त ब्रिंगेजा जैसे खतरनाक आदमी से पल्ला झाड़ना जरूरी था।" जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा।
"क्यों?"
"क्योंकि मुझे देवराज चौहान की चिंता हो रही है। अगर एक-दो दिन में उसकी कोई खबर न मिली तो उसे ढूंढने के लिए जाने कहां-कहां भटकना पड़े। ऐसे में ब्रिंगेजा से झगड़ा लेकर, मैं देवराज चौहान को नहीं तलाश कर पाऊंगा। अब ब्रिंगेजा गया है तो कम-से-कम पांच-सात दिन से पहले तो मेरे पास आने से रहा। वो मालूम करने की चेष्टा करेगा कि देवराज चौहान को कौन उठाकर ले गया। किसने उसके दो आदमियों को शूट किया। मेरे ख्याल में ब्रिंगेजा इन दोनों बातों में उलझकर रह जाएगा। किसी भी बात की तह तक नहीं पहुंच पाएगा। देवराज चौहान के बारे में तो उसे अभी खबर मिलने से रही और राजन राव ने इतना कच्चा खेल नहीं खेला होगा कि ब्रिंगेजा आसानी से उस तक पहुंच सके।"
वानखेड़े सोच भरी निगाहों से जगमोहन को देखने लगा।
"लेकिन देर-सवेर में देवराज चौहान के बारे में ब्रिंगेजा को मालूम हो जाएगा कि देवराज चौहान किस फेर में है। देवराज चौहान मदन मेहता की तरफ गया है। उसकी ये हरकत ब्रिंगेजा से छिपने वाली नहीं।"
"ये बाद की बात है। इस वक्त ब्रिंगेजा का यहां से ठंडे-ठंडे भेजना जरूरी था वानखेड़े---।"
"संभलकर रहना। देवराज चौहान के बारे में मालूम होते ही ब्रिंगेजा सीधा तुम्हारे पास पहुंचेगा, तुम्हें खत्म करने के लिए। वो दो घंटे बाद भी लौट सकता है और दो दिन बाद भी---।"
"ऐसा वक्त आया तो आसानी से संभाल लूंगा ब्रिंगेजा को।" जगमोहन कहर भरे स्वर में कह उठा--- "देवराज चौहान को कुछ लोग उठाकर ले गए। उसके बाद देवराज चौहान के साथ क्या हुआ। मुझे क्या मालूम। मैं तो होटल में था। अगर मदन मेहता की तलाश में उसे जाना था तो वो अकेला क्यों जाता? मैं भी उसके साथ जाता। मैं उसके दिमाग में ये बात भर दूंगा कि ये सारी गड़बड़ उन्हीं लोगों की है, जिन्होंने उसके दो आदमियों को शूट किया। पहले अपने आदमियों के हत्यारे को तलाश करे।"
"वो इतना सीधा नहीं लगता कि तुम्हारी बातों में आ जाएगा।" वानखेड़े गंभीर था।
"मुझे पूरा विश्वास है कि मैं ब्रिंगेजा को संभाल लूंगा।"
वानखेड़े उठ खड़ा हुआ।
"ये तुम्हारा मामला है और अच्छी तरह जानते हो कि सब कुछ कैसे ठीक करना है।"
"मुझे तो बार-बार एक ही झल्लाहट हो रही है मदन मेहता, जैक्सन के नाम से हमारे पास आया और हम उसे पहचान नहीं पाए। इतनी बड़ी गलती हमारे से हो गई---।" एकाएक जगमोहन उखड़े स्वर में कह उठा।
वानखेड़े के होंठों पर मुस्कुराहट उभरी।
"जल्दबाजी में अक्सर गलती हो ही जाती है। वैसे कसूर तुम दोनों का भी नहीं था। मुंबई में ऐसे हालातों में उलझे कि शायद हर पहलू पर सोचने का मौका ही नहीं मिला। खांडेकर की बीवी का सारा जुर्म एकाएक तुम लोगों के सिर पर आ पड़ा। उधर तुम लोगों की अपनी योजना फेल ही नहीं बल्कि पहाड़ बनकर तुम्हारे सिर पर आ पड़ी। ऊपर से सांवरा चौहान तुम लोगों के मामले में आ गया। यानी कि सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि सोचने का वक्त नहीं मिला। अगर जरा भी फुर्सत मिली होती तो मदन मेहता की तलाश से पहले कम-से-कम कहीं से उसकी तस्वीर का इंतजाम जरूर करते।"
जगमोहन गहरी सांसे लेकर रह गया।
"हां। शायद यही गलती हुई हमसे। वरना, मदन मेहता के चेहरे से पहले वाकिफ हो गए होते तो उस समय तक मामले की तस्वीर ही कुछ और होती।" जगमोहन के स्वर में अफसोस के भाव थे।
"मैं चलता हूं---।" वानखेड़े दरवाजे की तरफ बढ़ता हुआ बोला--- "फिर कह रहा हूं, ब्रिंगेजा से सावधान रहना---।"
जगमोहन ने वानखेड़े को देखा। कहा कुछ नहीं। चेहरे पर चिंता आ ठहरी थी। मस्तिष्क देवराज चौहान की तरफ भटक गया था कि वो किस हाल में होगा? उसकी कोई खबर क्यों नहीं आई? अभी तक वो काम निपटाकर वापस नहीं आया? कहीं उसके साथ कुछ बुरा तो नहीं हो गया?
जगमोहन को, राजन राव से मुलाकात करने की सख्त जरूरत महसूस होने लगी। परन्तु ब्रिंगेजा के निगरानी करते आदमियों की वजह से राजन राव तक पहुंच जाने में उसे दिक्कत महसूस हो रही थी। उनकी निगाहों से बचकर राजन राव तक पहुंचने की चेष्टा करता और राजन राव, ब्रिंगेजा के आदमियों की नजर में आ जाता तो, ये बात भी खतरे से भरी थी।
आखिरकार जगमोहन इसी नतीजे पर पहुंचा कि उसे सोच-समझकर कदम आगे बढ़ाना होगा। कहीं अंजाने में गलत कदम उठ गया तो राजन राव के साथ-साथ देवराज चौहान को भी नुकसान पहुंच सकता है। देवराज चौहान जाने अपनी योजना के किस चरण में है। उसकी किसी हरकत से वो नई मुसीबत में न फंस जाए।
सोचों में उलझा देवराज चौहान का दिमाग तेजी से दौड़ रहा था।
■■■
अगले दिन सुबह ग्यारह बजे वानखेड़े उसके कमरे में पहुंचा।
"इतना ज्यादा मेरे पास आना-जाना मत रखो।" जगमोहन कह उठा--- "कहीं ऐसा न हो कि मेरे साथ-साथ ब्रिंगेजा के आदमी तुम्हारे पीछे भी पड़ जाएं। फोन पर बात कर लिया करो---।"
वानखेड़े ने जगमोहन को देखा। कहा कुछ नहीं।
जगमोहन ने वानखेड़े के चेहरे पर गंभीरता के भाव देखे तो उसके होंठों से निकला।
"क्या हुआ?"
"कुछ देर पहले मैंने मुंबई हैडक्वार्टर फोन किया। शाहिद खान से बात हुई---।" वानखेड़े ने गहरी सांस ली।
"तो?"
"खांडेकर के बारे में बुरी खबर है।"
"बुरी खबर?" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"हां।" वानखेड़े ने बेचैनी भरे स्वर में कहा--- "कल दिन में दस-ग्यारह बजे नशे में धुत सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर सड़क पार कर रहा था कि एक ट्रक के नीचे आकर कुचला गया---।"
"क्या?" जगमोहन चिंहुक पड़ा--- "खांडेकर मर गया?"
"हां। तब वो बहुत नशे में था। शाहिद खान ने बताया कि वो ट्रक से खुद को बचा न सका और कुचला गया। मर गया खांडेकर।" वानखेड़े ने दुखी भाव से जगमोहन को देखा--- "अच्छा-भला इंसान खत्म हो गया। बीवी की मौत का गम उसे ले डूबा। शराब में न डूबा होता। समझदारी से काम लिया होता। होशो-हवास कायम रखता तो ये सब न होता। देर-सवेर में उसकी पत्नी के मुजरिम को सामने तो आना ही था।"
जगमोहन वानखेड़े को देखता रहा। कुछ कहते न बना।
कुछ लंबी खामोशी के बाद जगमोहन ने अफसोस भरी सांस ली।
"खांडेकर के इस तरह मरने से मुझे वास्तव में दुख हुआ। वो ट्रक ड्राइवर भी खामख्वाह पुलिस के लपेटे में फंस गया।"
"वो रुका नहीं। लोगों ने बताया कि ट्रक ड्राइवर ने ट्रक को रोकने की जरा भी कोशिश नहीं की। वो भाग गया।"
जगमोहन की निगाहें पुनः वानखेड़े पर जा टिकीं।
"ट्रक ड्राइवर ने रुकने की कोशिश नहीं की?"
"नहीं।"
"वो भाग गया?" जगमोहन होंठों-ही-होंठों में बुदबुदाया फिर बोला--- "ट्रक का नंबर लोगों ने नोट किया होगा?"
"इंस्पेक्टर शाहिद खान का कहना है कि इस बारे में लोगों ने बताया कि ट्रक की नंबर प्लेटों पर मिट्टी के धब्बे पड़े थे जिस वजह से वे ट्रक के नंबर को स्पष्ट नहीं देख पाए। जो भी हो खांडेकर खत्म हो गया।"
जगमोहन के होंठों में कसाव आता चला गया।
"वानखेड़े!" जगमोहन के होंठों में कसाव आ गया।
"हां।"
"तुम्हें सब ठीक लग रहा है?"
"क्या मतलब?" वानखेड़े ने उसे देखा।
"सुनो।" जगमोहन का स्वर धीमा परन्तु आवाज में तीखापन था--- "पहले किसी ने खांडेकर की बीवी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी। किसने ये किया, मालूम करने की कोशिश की जा रही है कि इसी बीच खुद खांडेकर ट्रक के नीचे आकर कुचला गया और ट्रक भाग गया। ट्रक की नंबर प्लेटों पर मिट्टी लगी हुई थी, ताकि कोई नंबर न देख सके।"
"तुम-तुम---?"
"मेरी सुनो। खांडेकर की मौत के साथ ही मुझे गड़बड़ का एहसास हो रहा है। खांडेकर ट्रक के नीचे गलती से नहीं आया, बल्कि उसे कुचला गया है। योजना बनाकर खांडेकर को इस तरह मारा गया है कि उसकी मौत एक्सीडेंट लगे। ट्रक का न रुकना, नंबर प्लेटों पर मिट्टी लगा होना।" जगमोहन तेज स्वर में कहता जा रहा था--- "और खांडेकर की मौत की वजह दो ही बातें हो सकती हैं।"
"क्या?"
"शायद वो किसी तरह जान गया था कि किसने उसकी बीवी के साथ बलात्कार करके उसे मारा। किसने अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली को खत्म किया। कौन असली मुजरिम है। वो मुंह न खोल पाए। किसी को बता न सके, इसलिए उसका मुंह हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।" जगमोहन ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।
वानखेड़े होंठ भींचे जगमोहन को देखता रहा। फिर बोला।
"दूसरी बात?"
"दूसरी बात---।" जगमोहन का चेहरा कठोर हो गया--- "दूसरी बात शायद तुम्हारी समझ में कम आ सके।"
"क्या मतलब?"
"याद है कल ब्रिंगेजा ने कहा था कि वो मदन मेहता के साथ गोवा से बाहर गया हुआ था और कल ही लौटा है?"
"हां।"
"और कल सुबह ही खांडेकर ट्रक के नीचे आकर मारा गया।"
"तुम कहना चाहते हो कि---।"
"मेरी सुनो वानखेड़े!" जगमोहन कहता जा रहा था--- "शायद मदन मेहता महसूस कर चुका था कि जब तक खांडेकर सही-सलामत है तब तक ये मामला नहीं रुकने वाला। देवराज चौहान उसके पीछे पड़ा रहेगा। आने वाले वक्त में पुलिस की नजर भी उस पर पड़ सकती है। उसे हमसे ज्यादा खांडेकर मुसीबत लगने लगा। खांडेकर नहीं रहेगा तो धीरे-धीरे ये मामला ठंडा पड़ता जाएगा। इसलिए मदन मेहता ने खांडेकर को खत्म करना ही ठीक समझा। हम पर हाथ डालने में मदन मेहता के लिए परेशानियां खड़ी हो सकती थीं। ऐसे में वो खामोशी के साथ ब्रिंगेजा को लेकर मुंबई गया और खांडेकर का काम निपटा आया---।"
वानखेड़े खामोश-सा जगमोहन को देखता रह गया।
"मानो वानखेड़े मैं सच कह रहा हूं।"
"मैंने तुम्हारी बात से इंकार नहीं किया।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन तुम ये भूल रहे हो कि मैं पुलिस वाला हूं। हवा में उड़ती बातों पर विश्वास नहीं कर सकता। हर बात का कोई आधार सबूत होता है और अगर होता है तो हम उसे तलाश कर लेते हैं।"
"वानखेड़े तुम...।"
"मैं अभी वापस मुंबई शाहिद खान को फोन करता हूं कि वो इस मामले की गहराई से छानबीन करे। शाहिद खान काबिल पुलिस वाला है और वो इस मामले की परतें उधेड़कर रख देगा। अगर वास्तव में ऐसा हुआ है तो जिसने भी खांडेकर की जान ली है वो बचने वाला नहीं है। बेशक वो मदन मेहता हो या कोई और, कानून के लंबे हाथों से कोई दूर नहीं है।" वानखेड़े एक-एक शब्द चबाकर पक्के स्वर में कह उठा।
जगमोहन के चेहरे पर तीखे भाव उभरे।
"तुम लोग सबूत ही ढूंढते रह जाते हो और बाद में फाइल बंद कर देते हो।"
जवाब में वानखेड़े मुस्कुराकर रह गया।
"मान लो तुम्हें मदन मेहता के खिलाफ सबूत मिल जाते हैं तो तुम उस तक कैसे पहुंचोगे। ये तो अब तक जान ही चुके हो कि मदन मेहता अगर मछुआरों की बस्ती में पहुंच जाए तो उस पर हाथ डालना असंभव है।"
"गलती पर हो।" वानखेड़े का स्वर सख्त हो गया--- "अगर मदन मेहता मुजरिम है तो फिर वो कहीं भी छिप जाए कानून से बच नहीं सकता। मुजरिम तक पहुंचने के कई रास्ते होते हैं। ये बात हम पुलिस वाले ही जानते हैं।"
जगमोहन एक-एक शब्द चबाकर कह उठा।
"मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि खांडेकर की हत्या की गई है। उसे ट्रक के नीचे कुचलकर मारा गया है कि देखने वाले यही समझें कि वो एक्सीडेंट से मरा है और उसे इसलिए मारा गया है कि उसकी मौत के बाद तुम लोगों पर इस बात का प्रेशर डालने वाला कोई नहीं रहेगा कि उसकी पत्नी के मुजरिम को तलाश करो। और...।"
"ट्रक का एक्सीडेंट के बाद न रुकना। नंबर प्लेटों पर मिट्टी लगा होना।" वानखेड़े खड़े होते हुए बोला--- "इन दोनों बातों की वजह से मैं कुछ सोच में था और किसी फैसले पर पहुंचने की चेष्टा कर रहा था। मेरा दिल भी कह रहा था कि खांडेकर की मौत सामान्य नहीं है। शायद वो एक्सीडेंट नहीं है। शाहिद खान से बात होने के बाद में इन्हीं सोचों में उलझा हुआ था। बहरहाल मैं मुंबई फोन करके शाहिद खान से इस मुद्दे पर बात करता हूं---।"
वानखेड़े चला गया।
जगमोहन होंठ भींचे सोचों में डूबा रहा। फिर उसका ध्यान देवराज चौहान की तरफ चला गया कि पांच दिन से वो कहां होगा? अच्छा-बुरा, उसके साथ क्या हुआ होगा?
■■■
"मदन मेहता गोवा से बाहर गया हुआ था। आज ही लौटा है।" गोम्स ने कहा।
"हूं। अब कहां है वो?"
"बस्ती में अपने खास ठिकाने पर है। वहां तक पहुंच पाना आसान काम नहीं।" गोम्स ने गंभीर स्वर में कहा--- "और कल सुबह वो काले टापू पर जा रहा है। वहां...।"
"काला टापू?" देवराज चौहान ने उसे देखा।
"हां। यहां से आठ-दस किलोमीटर समुन्दर के भीतर है काला टापू। जो कि सिर्फ आधा किलोमीटर, उबड़-खाबड़ लंबा-चौड़ा है। कुछ साल पहले जमीन का एक टुकड़ा समुन्दर से निकला था, जिसकी जमीन काली है। इसलिए हम लोग उसे काला टापू कहते हैं। जब वो समुन्दर से निकला तो दो साल तक उसके बारे में छानबीन करने सरकारी आदमी आते रहे। उसके बाद उनका आना बंद हो गया तो मदन साहब ने उस पर कब्जा जमा लिया। जब उनका आराम करने का प्रोग्राम होता है तो वो काले टापू पर चले जाते हैं। वहां पर तीन कमरों का छोटा-सा ठिकाना बना रखा है। जिसके बारे में चंद खास लोग ही जानते हैं वरना लोगों के ख्याल में यही है वो टापू वीरान है, वहां कोई नहीं रहता।"
"मेरे ख्याल में मदन मेहता को टापू पर पकड़ा जा सकता है।" देवराज चौहान ने उसे देखा।
गोम्स के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभरी।
"भूल में हो। उस टापू पर सुरक्षा का ऐसा तगड़ा इंतजाम है कि मदन मेहता की मर्जी के खिलाफ परिंदा भी पर नहीं मार सकता। वहां पर तस्करी का जखीरा भी मौजूद रहता है। ऐसे में सोच सकते हो कि वहां पहरे का क्या इंतजाम होगा। मदन मेहता के खतरनाक से खतरनाक आदमी आंखें फाड़े चौबीसों घंटे पहरा देते हैं। कोई गलती से भी वहां पहुंच जाए तो उसे खत्म करके लाश को समुन्दर में फेंक देते हैं। उनके पास रात को स्पष्ट देखने वाली दूरबीन है और वो पहरे से कभी लापरवाह नहीं होते---।"
देवराज चौहान ने सोच भरी निगाहों से गोम्स को देखा।
"टापू पर जाना तो सरासर मौत के मुंह में जाना होगा देवराज चौहान---।"
"तो फिर तुम मुझे मदन मेहता तक कैसे पहुंचाओगे?"
"मैं तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचाने का रास्ता बता सकता हूं। पहुंचा नहीं सकता। ये बात पहले भी हो चुकी है। राजन राव ने भी यही कहा था। तुम्हें याद होगा।" गोम्स ने गंभीर स्वर में कहा--- "आज मदन मेहता कहां है। ये तुम्हें बता देता हूं और कल टापू पर होगा, ये बात तुम्हें बता दिया है और ये भी बता दिया कि मौत से लड़कर भी तुम मदन मेहता तक पहुंच सकते हो और मेरे ख्याल में तुम मदन मेहता तक नहीं पहुंच सकते। रास्ते में ही मारे जाओगे।"
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता की परत नजर आने लगी।
"तुम अच्छी तरह जानते हो कि मदन मेहता से मिलना मेरे लिए कितना जरूरी है।" देवराज चौहान दांत पीसकर बोला।
"मैं तुम्हें मिलने के लिए मना नहीं कर रहा। ये बता रहा हूं कि जबरदस्ती तुम मदन साहब तक नहीं पहुंच सकते। उसके आदमी तुम्हें शूट कर देंगे। तुम अभी मदन साहब के बारे में ठीक से नहीं जानते।"
देवराज चौहान, गोम्स को देखता रहा।
"मैं टापू पर मदन मेहता से मिलूंगा। रात को ही टापू की तरफ रवाना हो जाऊंगा। तुम मेरी रवानगी का इंतजाम कर देना। उसके बाद तुम्हारा काम खत्म।" देवराज चौहान के शब्दों में कठोरता भरी पड़ी थी।
गोम्स सिर हिलाकर रह गया।
तभी जैकी ने भीतर प्रवेश किया।
"सर! शाम की कॉफी बनाऊं। उसके बाद मैंने रात का खाना तैयार करना है।" जैकी बोला।
"हां। कॉफी ले आओ।" गोम्स ने कहा।
जैकी सिर हिलाकर बाहर निकल गया।
गोम्स ने गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
"मैंने सुना है तुम अपनी जुबान के पक्के इंसान हो?" गोम्स बोला।
"मैं समझा नहीं...।"
"मैं तुम्हें, मदन साहब से मिलवा सकता हूं।" गोम्स ने देवराज चौहान की आंखों में झांका--- "लेकिन तुम राजन राव को नहीं बताओगे कि मैंने तुम्हें सीधे-सीधे मदन मेहता से मिलवा दिया है। उससे यही कहोगे कि मैंने तुम्हें रास्ता दिखाया और तुम अपनी कोशिशों से ही मदन मेहता तक पहुंचे।"
देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ गईं।
"खुल कर कहो।" देवराज चौहान सतर्क-सा नजर आने लगा।
"पहले मैं तुम्हें राजन राव के बारे में बता दूं कि उसके पास मेरी कोई ऐसी बात है जो मुझे फांसी के फंदे तक या उम्रकैद दिलवा सकती है। वो बात जानते ही कानून वाले मेरे पीछे पड़ जाएंगे। इसलिए मुझे मजबूरी में राजन राव की बात माननी पड़ी कि तुम्हें मदन मेहता तक पहुंचा दूं।" गोम्स के चेहरे पर गुस्सा और बेचैनी नजर आने लगी--- "लेकिन मैं मदन साहब से भी गद्दारी नहीं कर सकता। उनके बहुत एहसान हैं मुझ पर। मैं तुम्हें यहां लाऊं और तुम मदन साहब तक पहुंचने के लिए खून-खराबे पर आ जाओ। मरने से पहले तुम मदन साहब के कई आदमियों को मार डालो, ये बात मुझे ठीक नहीं लग रही। अगर तुम खामोशी से मदन साहब से मिलना चाहो तो मैं आसानी से मुलाकात का इंतजाम कर सकता हूं। लेकिन राजन राव को ये बात मालूम न हो।"
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए।
"इसका मतलब तुमने मदन मेहता को बता दिया है मेरे बारे में कि---।"
"मेरी बातों का मतलब मत निकालो।" गोम्स ने गंभीर स्वर में कहा---"बल्कि मेरी बातों में अपने मतलब की बात देखो कि कहां सबका फायदा है। मदन साहब से मुलाकात करके तुम्हारी समस्या हल होती है तो...।"
"ऐसे बात नहीं बनेगी। जो मैं चाहता हूं वो सिर्फ मुलाकात से ही हल नहीं होगा।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर कह उठा--- "मदन मेहता एक ऐसा जुर्म करके आया है, जिसका मुजरिम मुझे माना जा रहा है। मैंने, उसे इस बस्ती से बाहर ले जाना है। जहां उसकी पेश न चले। और आसानी से अपना जुर्म कबूले।"
गोम्स ने गंभीरता से पहलू बदला।
"तुम्हें पूरा विश्वास है कि जिस जुर्म के बारे में तुम कह रहे हो, वो मदन साहब ने ही किया है? या फिर शक के आधार पर ही ये सब कह रहे हो?" गोम्स ने अपनी नजरें देवराज चौहान के चेहरे पर टिका दीं।
"पहेलियां मत डालो। जो भी कहना है, साफ कहो।" देवराज चौहान ने तीखी निगाहों से उसे देखा।
कुछ पल खामोश रहने के बाद गोम्स बोला।
"राजन राव से ही मुझे मालूम हुआ था कि मदन मेहता मुंबई में पुलिस वाले की बीवी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या करके आया है। वो इल्जाम तुम्हारे सिर पर आ गया है। इसलिए तुम मदन मेहता को पकड़कर उसके मुंह से उसका जुर्म इकबाल कराकर, अपने को इस मामले से साफ रखना चाहते हो।"
"यही बात है।" देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"मैं कुछ कहूं।"
देवराज चौहान की नजरें उस पर टिकी रहीं।
"ये मत सोचना कि मैं मदन साहब का आदमी हूं और उनकी साइड ले रहा हूं।" गोम्स का स्वर गंभीर था--- "सच बात तो ये है कि मदन साहब बलात्कार जैसा काम कभी नहीं कर सकते, और अगर कर सकते तो समझो, हर बाप अपनी बेटी के साथ ये काम कर सकता है। हर भाई ये काम कर सकता है। दुनिया का कोई भी इंसान अपने खून के रिश्तो के साथ बुरा काम कर सकता है। अगर मदन साहब बलात्कार जैसा काम कर सकते हैं तो।" गोम्स का चेहरा गुस्से से भर उठा था। आवेश में उसका जिस्म कांप रहा था--- "मदन साहब हत्या कर सकते हैं। चोरी-डकैती, तस्करी कर सकते हैं। अपहरण कर सकते हैं। सब कुछ कर सकते हैं। जहां उन्हें पैसा मिलता हो। लेकिन दुनिया भर की दौलत उनके कदमों में रख दो, बलात्कार करना तो दूर, वो किसी औरत की मर्जी के बिना उसे छुएंगे भी नहीं। ये बात मैं चिल्ला-चिल्लाकर दावे के साथ पूरी दुनिया को बता सकता हूं। तुम भारी गलतफहमी के दौर में से गुजरते हुए, मदन साहब के पीछे पड़े हो। जबकि असली मुजरिम कोई और है।"
देवराज चौहान कठोर निगाहों से गोम्स को देखता रहा।
"मुझे क्या देखते हो। मेरी बात पर विश्वास तो मत करो। मैं तुम पर जबरदस्ती का सौदा नहीं डाल रहा।" गोम्स की आवाज में भरपूर गुस्सा था--- "मैं रात को ही इंतजाम कर दूंगा कि तुम काले टापू की तरफ जा सको। वहां खून-खराबा करना और फिर खुद भी मारे जाना और इंस्पेक्टर की बीवी का जो असली मुजरिम है वो तुम्हारी बेवकूफी पर हंसता रहेगा, कितनी आसानी से बच गया। देवराज चौहान और मदन मेहता को आपस में भिड़वा दिया। उसके बाद वो हमेशा आजाद रहेगा। कोई उस तक नहीं पहुंच पाएगा।"
जैकी कॉफी के दो प्याले रख गया।
लेकिन दोनों में से किसी ने भी कॉफी के प्यालों की तरफ हाथ नहीं बढ़ाया।
"तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो कि मदन मेहता बलात्कार जैसा काम नहीं कर सकता---?" देवराज चौहान बोला।
गोम्स दांत भींचे खामोश रहा।
"तुम मुझे विश्वास दिला सकते हो कि मदन मेहता ने पुलिस वाले की बीवी के साथ बलात्कार नहीं किया?"
"मैं तुम्हें अपने विश्वास की वजह बता सकता हूं। दूसरे को विश्वास दिलाना मुझे नहीं आता।" गोम्स अभी भी गुस्से में था।
"बताओ वजह"?
"वजह ये है कि आज से छः-सात साल पहले मदन मेहता की अट्ठारह वर्षीय बहन के साथ एक साथ बारह लोगों ने बलात्कार किया था। वो उसी वक्त मर गई। बारहवें को नहीं बर्दाश्त कर पाई। मदन साहब को जब ये मालूम हुआ तो वो पागल हो उठा। उसका खाना-पीना हराम हो गया। उसके बाद छः महीने की मेहनत के पश्चात ये जाना कि किस-किसने उसकी बहन के साथ बलात्कार किया। और अपनी बहन के हत्यारों को जानने के पश्चात एक-एक को उसने चुन-चुनकर मारा। बहुत बुरी मौत दी उन्हें। उनमें से चार इसी बस्ती के थे और बाकी के आठ बाहर के। उसके बाद मदन साहब ने पूरी बस्ती से कह दिया कि जो किसी औरत को उसकी मर्जी के बिना हाथ लगाएगा। बलात्कार जैसा घिनौना काम करेगा। वो उसका जाती दुश्मन होगा और वो उसे छोड़ेगा नहीं। इसके बाद भी बस्ती में बलात्कार की कई वारदातें हुईं। मदन साहब ने बलात्कार करने वाले को बस्ती वालों के सामने गोली से उड़ाया। कम-से-कम पन्द्रह बलात्कारियों को वो बस्ती में शूट कर चुका है। ऐसे में मस्ती में बलात्कार जैसा गंदा काम होना न के बराबर हो गया। और तो और अगर कहीं और भी बलात्कार हो तो मदन साहब को मालूम हो जाए कि किसने किया है तो वो उसे शूट कर आते हैं। पूछने पर एक ही बात कहते हैं कि हर बलात्कारी उसकी बहन का हत्यारा है। और उसकी जान लेकर अपनी बहन की आत्मा को शांति पहुंचाता है। मदन साहब को मैं अच्छी तरह जानता हूं। वो इंसान सब कुछ कर सकता है लेकिन बलात्कार नहीं। जब भी कहीं बलात्कार होने की बात सुनता है तो गुस्से से पागल हो उठता है। ऐसा इंसान क्या किसी के साथ बलात्कार करेगा। नहीं, कभी नहीं हो सकता ये। तुम पागल हो जो इस बात को लेकर मदन मेहता के पीछे पड़े हो।"
चेहरे पर सख्ती समेटे देवराज चौहान गोम्स को देखे जा रहा था।
दांत भींचे गोम्स गुस्से में लिपटा देवराज चौहान को देख रहा था।
"माना कि मदन साहब गैरकानूनी काम करते हैं। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हर बुरा इंसान, हर बुरा काम करे। तुम अपने को ही लो। तुम भी तो गैरकानूनी काम करते हो। लेकिन तुम्हारे बारे में जब मैंने जानकारी इकट्ठी की तो मालूम हुआ कि तुम बेशक जो भी करते हो, लेकिन वास्तव में जुबान के धनी, अच्छे इंसान हो---। लोगों ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया तो मैं मान गया। क्योंकि लोग गलत क्यों कहेंगे। और अब मैं तुम्हें मदन साहब के बारे में बता रहा हूं। मानो या न मानो। तुम्हारे ऊपर। बच्चे तो तुम हो नहीं। मदन साहब से बातचीत करके अंदाजा लगा सकते हो कि वो सच कह रहे हैं या झूठ। अगर लगे कि वो झूठ कह रहे हैं तो फिर जो मन में आए वही करना। न तो मदन साहब कहीं जाने वाले हैं, न ही तुम।"
देवराज चौहान की सिकुड़ी निगाह गोम्स पर टिकी रही।
चुप्पी लंबी होने लगी तो गोम्स गहरी सांस लेकर धीमे स्वर में बोला।
"मिलना चाहोगे मदन साहब से? मुलाकात का इंतजाम करा दूं?"
देवराज चौहान का सोचों से भरा चेहरा हौले से सहमति भरे भाव में हिला।
"जैकी---।" गोम्स ने आवाज लगाई।
फौरन ही जैकी वहां आ पहुंचा।
"आज तीन बंदों का खाना तैयार करना। मदन साहब आज यहीं डिनर लेंगे।" गोम्स ने गंभीर स्वर में कहा।
■■■
शाम के आठ बजे मदन मेहता, गोम्स के मकान पर पहुंचा। वो वही था जो होटल में उन्हें जैक्सन के नाम से मिला था। वो अकेला था। चेहरे पर शांत भाव थे। कहीं से भी खौफ-बेचैनी या उलझन नहीं झलक रही थी। वो इस तरह सामान्य था, जैसे अचानक ही यहां मिलने आ गया हो।
गोम्स ने भरपूर मुस्कान और इज्जत के साथ मदन मेहता का स्वागत किया।
अपनी जगह पर बैठा देवराज चौहान एकटक मदन मेहता को देखे जा रहा था। मदन मेहता ने भी होंठों पर मुस्कान समेटे उसे देखा फिर गोम्स से कहा।
"तुमने डिनर के लिए कहा था गोम्स---।"
"जी मदन साहब। जैकी शायद डिनर तैयार कर चुका है।" गोम्स ने खुशी भरे स्वर में कहा।
"जाकर देखो, जैकी ठीक काम कर रहा है या नहीं।"
मदन मेहता के शब्दों का इशारा समझकर गोम्स ड्राइंगरूम से निकल गया।
मदन मेहता आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठता हुआ बोला।
"अब तो पहचान लिया होगा कि मैं तुमसे मिलने होटल में भी आया था?"
"मैं तुम्हें अपने साथ लेने आया हूं मदन मेहता---।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा।
"जानता हूं।" मदन मेहता पहले वाले स्वर में कह उठा--- "और तुम भी ये बात जान चुके होगे कि मुझे यहां से ले जाना तो दूर मेरी मर्जी के बिना मुझ तक नहीं पहुंच सकते। क्या करूं, मेरे दुश्मन ही इतने हैं कि सब इंतजाम करके रखना पड़ता है। जो भी मुझ तक पहुंचने की कोशिश करेगा वो जान गंवा बैठेगा।"
"मुझे अपनी जान बचाने आती है।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कह उठा--- "ये बात अब मैं साबित कर दूंगा।"
"मैं मानता हूं कि देवराज चौहान में कुछ बातें खास हैं।" मदन मेहता ने सिर हिलाया--- "हो सकता है तुम साबित कर दो।"
देवराज चौहान ने मदन मेहता की आंखों में झांका।
"राजन राव ने जब तुम्हें गोम्स के माध्यम से यहां पहुंचाने का प्रोग्राम बनाया तो मुझे सब कुछ मालूम हो गया।"
"गोम्स ने बताया?"
"हां। गोम्स क्या शायद मेरा कोई भी आदमी मेरे खिलाफ नहीं जा सकता। क्योंकि मैं अपने आदमियों का पूरा ध्यान रखता हूं। उन्हें शिकायत का मौका नहीं देता। और मेरे आदमी ये भी जानते हैं कि जब तक मैं सलामत हूं, मेरा हाथ उनके सिर पर है, वो मजे में हैं। अगर मुझे कुछ हो गया तो वो दर-दर की ठोकरें खाएंगे और मुसीबतों में फंस जाएंगे। मैं शायद तुमसे पहले ही मिल लेता। लेकिन किसी काम की वजह से मुंबई गया था। कल ही लौटा हूं।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
"तुम कुछ भी कहना-सुनना नहीं। मैं तुम्हारे सारे हालातों से अच्छी तरह वाकिफ हूं।" मदन मेहता ने गंभीर स्वर में कहा--- "माईकल और ब्रिंगेजा की बातें सुनकर सब समझ चुका हूं। तुम्हारी जगह मैं भी होता तो शायद तुम्हारी सोचों के मुताबिक ही चलता। क्योंकि हालात ही ऐसे नजर आए हैं। लेकिन सच बात तो यह है कि पुलिस वाले की बीवी के साथ हुए बलात्कार और हत्या से मेरा कोई वास्ता नहीं। अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली की हत्या से मेरा कोई लेना-देना नहीं। तुम्हारा पचास करोड़ कहां गया, कौन ले गया, मैं नहीं जानता।"
"मैं जानता था कि जब भी तुमसे मुलाकात होगी, तब तुम यही कहोगे।" देवराज चौहान दांत भींचकर बोला--- "तुम---।"
"ठीक कहते हो। तुम्हारी जगह मैं होता तो पक्का यही कहता।" मदन मेहता गंभीर था--- "लेकिन मेरी बात कान खोलकर सुन लो कि जब भी किसी के साथ बलात्कार होता है तो मुझे लगता है मेरी बहन के साथ बलात्कार हुआ है। ऐसे में क्या मैं बलात्कार जैसा काम कर सकता हूं? कभी नहीं। ये सारी बात गोम्स तुम्हें बता चुका है। तुम ये इल्जाम मुझ पर लगा रहे हो, इसी कारण ब्रिंगेजा तुमसे खार खाए बैठा है। मेरे कहने पर वो रुका हुआ है वरना, वो अवश्य कुछ कर चुका होता। मैं नहीं चाहता कि खामख्वाह की गलतफहमी के तहत हममें झगड़ा हो। खून-खराबा हो। तुम--- मैं या मेरे आदमी बेकार के झगड़े में जान गंवाएं।"
"तुम क्या सोचते हो तुम्हारे ज्यादा बोलने से मैं तुम्हें सच्चा मान लूंगा।"
"मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोचता। मैं तो वो बातें तुम्हारी जानकारी में दे रहा हूं जिनसे तुम वाकिफ नहीं हो।"
"सुधाकर बल्ली तुम्हारा आदमी था, और जब तुमने देखा कि इत्तेफाक से वो मेरे से जा मिला है तो तुम समझ गए कि पचास करोड़ कहीं नहीं जाने वाला। तब तुमने---।"
"सुन चुका हूं। माईकल मुझे ये सब बातें बता चुका है। लेकिन ये सब गलत बातें हैं। सुधाकर बल्ली मेरी पहचान वाला था। बस। उसे मैंने सुखदेव से मिला दिया। बस। उसके बाद क्या हुआ, मैं नहीं जानता। जब तुम गोवा आकर, रेस्टोरेंट ऑफ माईकल में, ब्रिंगेजा से मिले, तो मुझे मालूम हुआ कि तुम मुझे ढूंढ रहे हो। उसके बाद माईकल से मालूम हुआ कि तुम देवराज चौहान हो और क्यों मुझे ढूंढ रहे हो। मैं समझ गया कि किसी गलतफहमी में पड़ चुके हो। मैंने तुम्हारी गलतफहमी दूर करने की पूरी कोशिश की। यहां तक कि मैं खुद तुमसे होटल में जाकर तुम्हें समझाने की कोशिश की, परन्तु सब बेकार रहा।"
"तुम साबित कर सकते हो कि तुमने खांडेकर की पत्नी के साथ---?"
"यही बात मैं तुमसे कहूं कि तुम साबित कर सकते हो ये काम मैंने किया है। या तुम ये साबित कर सकते हो कि मैं उस कॉलोनी में गया, जहां खांडेकर का घर है। या तुम ये साबित कर सकते हो कि मैंने या सुधाकर बल्ली ने मिलकर, तुमसे कोई धोखेबाजी की। सच नहीं तो झूठ ही कह दो कि सुधाकर बल्ली ने तुमसे कहा कि मदन के कहने पर वो कुछ कह रहा है। तुम कहोगे। तो मैं तुम्हारी कही हर बात को स्वीकार कर लूंगा, जो मैंने की ही नहीं। कोई बात भी विश्वास के साथ कह दो, मैं सिर झुकाकर सामने खड़ा हो जाऊंगा और उसके बाद तुम जो कहोगे, वही मान लूंगा, वही करूंगा।" मदन मेहता का चेहरा गंभीर था। सपाट था।"
देवराज चौहान खूंखार चीते की तरह उसकी आंखों में झांक रहा था।
"तुम क्या समझते हो, तुम्हारी ये झूठी बातें सुनकर मैं बहक जाऊंगा और तुम्हें भूल जाऊंगा?" देवराज चौहान का स्वर कठोर था।
"मैं सिर्फ तुम्हें ये बताना और समझाना चाहता हूं कि तुमने मुंबई में जो भी काम किया, और तुम्हारे काम के दौरान जो भी हुआ उससे मेरा दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं।" मदन मेहता शब्दों पर जोर देकर कह उठा--- "तुम गोवा में बेकार में वक्त जाया कर रहे हो। और मैं नहीं चाहता कि तुम ज्यादा देर गोवा में टिककर मेरी परेशानी बढ़ा दो। कहीं तुम ऐसा कोई काम न कर दो कि गोवा की पुलिस हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ जाए। जो कि मेरे लिए नुकसान का सौदा होगा। इसलिए मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि तुम्हें यकीन दिला दूं कि तुम्हारे किसी मामले से मेरा वास्ता नहीं है।"
मदन मेहता की आंखों में झांकते हुए देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
"खांडेकर की बीवी के साथ जो हादसा पेश आया, उसके फौरन बाद तुम मुंबई से भागकर गोवा में आकर क्यों छुप गए?"
देवराज चौहान ने दांत भींचकर एक-एक शब्द चबाकर कहा।
उनके बीच खामोशी छाई रही। फिर मदन मेहता धीमे स्वर में कह उठा।
"वैसे तो इस बात का वास्ता तुमसे दूर-दूर तक नहीं है। लेकिन मैं चाहता हूं तुम जब गोवा से जाओ तो दुश्मन बनकर नहीं, दोस्त बनकर जाओ। देवराज चौहान जैसी शख्सियत से मैं किसी भी तरह का मनमुटाव नहीं चाहता। क्योंकि तुम गुणी आदमी हो और मुझे भविष्य में तुम्हारी कभी भी जरूरत पड़ सकती है।" मदन मेहता ने गंभीर स्वर में कहा--- "मेरे काम-धंधों के बारे में तो तुम जान ही चुके होगे। गलत-सही कई तरह के काम करने पड़ते हैं। किसी से दोस्ती तो किसी से दुश्मनी लेनी पड़ती है। ये सब बातें मेरे काम का ही हिस्सा हैं। तब मुझे नहीं मालूम था कि तुम या सुधाकर बल्ली क्या कर रहे हो। मैं तो अपने काम में व्यस्त था। बिल्ला दारूवाले का नाम तो तुमने सुना ही होगा।"
उसके रुकने पर देवराज चौहान कठोर स्वर में बोला।
"कहते रहो---।"
"मुंबई में हर दो नंबर का धंधा करने वाला बिल्ला दारूवाले को जानता है। मुंबई में सत्तर प्रतिशत दारू के अवैध धंधे पर उसका कब्जा है। खतरनाक आदमी है। साथ में मादक पदार्थों का भी काम करता है। छः महीने पहले उसने गोवा की खास शराब 'फैनी' मेरे द्वारा मुंबई मंगवाई। मैंने उसे सस्ते में माल सप्लाई किया और उसने महंगे दामों में फैनी बेचकर मोटा मुनाफा कमाया। पांच महीने मैं उसे 'फैनी' मुंबई में सप्लाई करता रहा। बिल्ला दारूवाले के पास करीब एक करोड़ की फैनी पांच महीनों में पहुंच गई। लेकिन वो इतना बड़ा हरामजादा निकला कि मुझे ही निचोड़ने का उसने प्लान बना डाला। मेरा एक करोड़ देने में आनाकानी करने लगा। मैंने सख्ती से कहा तो उसने स्पष्ट तौर पर इंकार कर दिया कि मैंने जो करना है कर लूं। वो एक पैसा भी नहीं देगा। अब इतना शरीफ तो मैं भी नहीं कि करोड़ की चोट खाकर, आराम से बैठ जाऊं। तभी मुझे खबर मिली कि बिल्ला दारुवाले की मादक पदार्थो की खेप आ रही है। जिसकी कीमत कम-से-कम दस करोड़ है। और ये काम बेहद खामोशी से हो रहा है। उसके दो आदमी तयशुदा जगह पर जाएंगे और खेप लेकर आ जाएंगे। मुझे ये वक्त बढ़िया लगा, बिल्ला दारूवाले पर चोट मारने का। मैंने मुंबई में अपने चार आदमी इकट्ठे किये और जब बिल्ला दारूवाले के दो आदमी दस करोड़ की मादक पदार्थो की खेप लेकर आ रहे थे, तो मैंने अपने चारों आदमियों के साथ उन्हें घेरा। उन दोनों को गोली मारी और दस करोड़ की मादक पदार्थो की खेप हथिया ली। मैं निश्चिंत था कि बिल्ला दारूवाले को नहीं मालूम होने वाला कि ये काम किसने किया है। लेकिन उसके दो में से एक आदमी जाने कैसे बच गया और उसने बता दिया कि दस करोड़ की मादक पदार्थो की खेप मैंने लूटी है। ये मालूम होते ही मुझे मुंबई में खतरा महसूस होने लगा। मैं जानता था कि बिल्ला दारूवाला मुझे छोड़ने वाला नहीं। तब मैंने जल्दी से मुंबई छोड़कर गोवा पहुंच जाने का फैसला किया। क्योंकि यहां मैं हर तरह से सुरक्षित हूं। मेरा तीन लाख रुपया सुखदेव के पास पड़ा था। और उसका एंटीक शोरूम रास्ते में आता था। कुछ देर के लिए मैं वहां रुका और अपना तीन लाख लेकर वहां पहुंचा। और उससे दूसरे-तीसरे दिन ही मुझे ब्रिंगेजा और माईकल से तुम्हारे बारे में मालूम हुआ कि तुम मेरी तलाश में गोवा में हो।"
उसके चेहरे पर निगाहें टिकाए देवराज चौहान सख्त अंदाज में कश लेता रहा।
"राजन राव के बारे में तुम क्या जानते हो या नहीं, मैं नहीं जानता। लेकिन गोम्स ने मुझे बताया कि राजन राव ने अपने बारे में तुम्हें कुछ नहीं बताया।" मदन मेहता ने कहा--- "दरअसल राजन राव बिल्ला दारूवाले का ही आदमी है। वो वहशी इंसानों जैसी आदतों का मालिक है। बिल्ला दारूवाले ने उसे मेरे पीछे-पीछे गोवा भेज दिया कि वो मुझसे मादक पदार्थों की वसूली कर सके और मुझे खत्म कर दे। लेकिन मेरे खिलाफ इस तरह आने की उसकी भी हिम्मत नहीं। इस बीच वो गोवा में तुम्हें इसलिए पहचान गया कि तुम मेरे बारे में पूछताछ करते माईकल तक गए थे और ये जानना उसके लिए बड़ी बात नहीं कि तुम क्यों मेरे पीछे हो। ऐसे में उसने तुम्हारे कंधे पर बंदूक रखकर मेरा निशाना लेने की कोशिश की है। गोम्स उसकी बात मानने को मजबूर है लेकिन बेबस नहीं। गोम्स ने मुझे स्पष्ट बता दिया कि राजन राव उससे क्या चाहता है। तो मैंने ही गोम्स को, तुम्हें यहां लाने को कहा। राजन राव जानता है कि तुम मिलने पर मुझे इस बस्ती से बाहर लेकर आओगे। और वो इसी इंतजार में है कि कब तुम मुझे बस्ती से बाहर लाओ और वो मेरा निपटारा करे। यही वजह है कि उसने मुफ्त में तुम्हारी सहायता की। मैं जानता हूं ब्रिंगेजा के दोनों आदमियों को उसने शूट किया है। मैं जानता हूं लाला भाई के आदमियों को उसने मारा है। एक-दो अवश्य तुम लोगों के हाथों मरे। लेकिन अभी तक मैंने राजन राव को इसलिए कुछ नहीं कहा कि पहले मैं तुम्हारा मामला निपटाना चाहता था। एक साथ दो-दो से दुश्मनी लेना ठीक नहीं होगा। और फिर राजन राव नहीं जानता कि मेरे आदमियों की नजरें उस पर हैं वो गोवा से बाहर नहीं निकल सकता। राजन राव मेरे लिए कोई मसला नहीं है।असर मसला तो तुम हो कि जाने किस धोखे में आकर, अपने मन में मेरे लिए दुश्मनी रखने लगे। अब तुम ही बताओ कि तुम्हें मैं कैसे विश्वास दिलाऊं कि, तुम्हारे किसी मामले में मैंने कभी दखल नहीं दिया?"
"तुम होटल में मेरे पास मेकअप करके क्यों आए? वैसे भी आ सकते थे?" देवराज चौहान भिंचे स्वर में बोला।
"चेहरा छुपाकर आना मेरी मजबूरी थी। एक तो मैं तुम्हें समझाने की कोशिश करना चाहता था कि तुम गलत रास्ते पर चल रहे हो। लेकिन तुम नहीं समझे। दूसरे, ब्रिंगेजा तुमसे खार खाए हुए है और तुम्हें खत्म करने के लिए मुझसे इजाजत मांग रहा था, लेकिन मैंने उसे ऐसा कदम उठाने के लिए मना कर दिया था। ऐसे में वो जानता है कि मैं तुमसे मिला हूं तो उसे अच्छा नहीं लगता। तीसरे, राजन राव के आदमी तुम्हारी निगरानी कर रहे थे। वो मुझ पर हाथ डाल सकते थे।" मदन मेहता ने गंभीर स्वर में कहा।
"खतरा तो तुम्हें मुझसे भी था। अगर मैं तुम्हें पहचान लेता तो---?"
"हां। इस बात का ख़तरा था।" मदन मेहता ने सहमति से सिर हिलाया--- "लेकिन ये खतरा मैंने उठाया। मेरा ख्याल ठीक निकला कि तुम मुझे नहीं पहचानते। हम पहले कभी नहीं मिले। अगर पहचान लेते, मुझ पर काबू पाने की चेष्टा करते तो बचाव के लिए मेरे दो आदमी कमरे के बाहर ही मौजूद थे।"
काफी देर तक उनके बीच तीखी खामोशी छाई रही।
"तुम जो भी पूछना चाहते हो, पूछ लो, मैं पूरी कोशिश करूंगा कि तुम्हारी तसल्ली कर सकूं।"
कश लेकर देवराज चौहान ने सिगरेट ऐश-ट्रे में मसल दी।
"मैं तुम्हारी बात को सच मान लूं तो उसकी बात को कैसे झूठा मान सकता हूं?" देवराज चौहान बोला।
"किसकी बात?"
"जिसने तुम्हें सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर के घर से रात के वक्त सुधाकर बल्ली के साथ बाहर निकलते देखा है। वो सुधाकर बल्ली को तो नहीं जानता। लेकिन तुम्हारी शिनाख्त वो दावे के साथ करता है कि उसने मदन मेहता को खांडेकर के घर से निकलते देखा है वो भला मुझसे झूठ क्यों बोलेगा।"
मदन मेहता ने देवराज चौहान को देखा। उसके चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे।
"मतलब कि किसी ने मुझे उस रात खंडेकर के घर से निकलते देखा है?" मदन मेहता सिर हिलाकर बोला।
"हां।" देवराज चौहान ने कठोर निगाहों से उसकी आंखों में झांका।
"अजीब बात है।" मदन मेहता बड़बड़ाया।
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
"देवराज चौहान!" मदन मेहता ने शांत स्वर में कहा--- "वो जो कोई भी है। उसे गलती हुई है। उसने किसी और को देखा होगा। वो कम-से-कम मैं नहीं हो सकता। उसे एक बार मेरे सामने कर दो। खांडेकर के घर से निकलते तो क्या अगर मुझे उसने उस इलाके के आसपास भी देखा हो तो तुम सारे जुर्म मेरे सिर पर डाल सकते हो। मैं कुछ नहीं कहूंगा।"
"इसके लिए तुम्हें मुंबई चलना होगा।" देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर कहा।
"वो जो भी है, यहां नहीं आ सकता?"
"क्यों तुम्हें मुंबई चलने में क्या एतराज है?" देवराज चौहान की आवाज में कठोरता आ गई--- "तुम्हारे मुताबिक तुमने तो कोई जुर्म नहीं किया। फिर दिक्कत कैसी?"
"ये बात नहीं। दरअसल बिल्लू दारूवाला दिक्कत दे रहा है। उसने किसी को बीच में डालकर मामला निपटाने की बात कही है। उसी सिलसिले में मैं और ब्रिंगेजा मुंबई गए थे। परन्तु अभी मामला निपटा नहीं। उसे मेरे मुंबई आने की खबर मिली तो वो मुझे खत्म करने की चेष्टा कर सकता है।" मदन मेहता का चेहरा कठोर होता चला गया--- "लेकिन कोई बात नहीं। जो होगा देखा जाएगा। तुम मेरे साथ रहोगे। अगर ऐसी कोई मुसीबत आई तो हम दोनों आसानी से निपट सकते हैं।"
"मेरे साथ जगमोहन भी होगा।" देवराज चौहान ने उसकी आंखों में झांकते शब्दों को चबाकर कहा।
"फिर किस बात की चिंता!" मदन मेहता ने सिर को ऊपर नीचे हिलाया--- "जब कहोगे, चल पड़ूंगा।"
"आज ही चलना है। अभी---।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा।
मदन मेहता ने देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मारी फिर शांत स्वर में कह उठा।
"मुझे कोई एतराज नहीं। मैं अभी चलने को तैयार हूं।"
"अगर उस आदमी ने तुम्हारी शिनाख्त कर दी कि उसने तुम्हें ही खांडेकर के यहां से निकलते देखा है तो मैं तुम्हें सफाई का मौका नहीं दूंगा, उसी वक्त शूट कर दूंगा।" देवराज चौहान ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा।
"वो जो कोई भी है, मुझे देखकर यही कहेगा कि वो मैं नहीं---।"
"इतना विश्वास क्यों?"
"क्योंकि मैंने किसी भी सूरत में तुम्हारे किसी मामले में दखल नहीं दिया। और मेरी तरफ कोई पागल ही खामख्वाह उंगली उठाएगा। और इतना विश्वास तो तुम्हें होगा कि कम-से-कम वो पागल नहीं है। तभी तो तुमने उसकी बात पर विश्वास किया।" कहते हुए मदन मेहता मुस्कुरा पड़ा।
"उठो। हम अभी चल रहे हैं।" देवराज चौहान खड़ा हो गया।
मदन मेहता भी उठ खड़ा हुआ।
"गोम्स!" उसने ऊंचे स्वर में पुकारा।
फौरन ही गोम्स वहां आ पहुंचा।
"कहिए मदन साहब!"
"हमें अभी खास काम के लिए जाना पड़ रहा है।" मदन मेहता ने कहा--- "डिनर, तुम्हारे पर उधार रहा। मैं गोवा से बाहर जा रहा हूं और कल तक लौट आऊंगा।"
गोम्स ने गंभीर निगाह देवराज चौहान पर मारी फिर मदन मेहता को देखा।
"जी! अगर जरूरत हो तो मैं भी साथ चलूं?"
"नहीं। सब ठीक है।" कहने के साथ ही मदन मेहता ने देवराज चौहान को देखा--- "चलें---?"
"चलो---।" देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती थी।
दोनों बाहर निकलते चले गए।
रात के अंधेरे में मदन मेहता, देवराज चौहान को लेकर बस्ती की अंधेरी गलियों से गुजरने लगा। उनके कदमों की मध्यम-सी गूंज उठ रही थी। मदन मेहता एक कदम आगे था, ताकि देवराज चौहान को अंधेरे में उन रास्तों पर आगे बढ़ने में परेशानी न हो।
"तुम मेरे साथ चल तो पड़े हो।" देवराज चौहान ने चुभते स्वर में कहा--- "बस्ती से निकलने के बाद तुम अपनी मनमानी नहीं कर सकोगे और शायद मैं तुम्हें कहीं भी गोली मारकर फेंक दूं।"
"मैं जानता हूं इन हालातों में मेरे साथ कुछ भी हो सकता है। लेकिन होगा कुछ नहीं। क्योंकि मैंने सुन रखा है कि देवराज चौहान धोखेबाज नहीं करता। अपनी जुबान का पक्का है। तुम्हारी जगह कोई और होता तो मिलना या बात करना भी, बहुत दूर की बात होती। तुम सिर्फ एक मौके पर मुझे गोली मार सकते हो कि अगर शिनाख्त करने वाला मुझे सामने देखकर मेरी तरफ उंगली उठा दे कि उसने मुझे खांडेकर के घर के आसपास या उस कॉलोनी के अगल-बगल भी देखा है और वो मुझे देखते ही कहेगा कि वो मैं नहीं था। क्योंकि वो मैं था ही नहीं। दूर-दूर तक तुम्हारे किसी मामले में मेरा दखल नहीं रहा।" मदन मेहता के स्वर विश्वास के भाव थे।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
दोनों अंधेरे में गलियों को पार करते रहे।
"हम बस्ती के बाहर ऐसे रास्ते से निकलेंगे कि राजन राव के आदमी वहां नहीं हो सकते।" कुछ देर बाद मदन मेहता ने कहा--- "फिर भी हो सकता है कि वो वहां हों। हमें उनके बारे में सतर्क रहना होगा।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
पन्द्रह मिनट बाद वो बस्ती से बाहर आ गए। सामने कुछ दूर, चंद्रमा की रोशनी में समंदर चमकदार नजर आ रहा था। कभी-कभार लहरें उछाल मार देती थी थीं। तीव्र ठंडी हवा बदन को महसूस हो रही थी।
"अब हम उस तरफ बढ़ेंगे। वहां से...।"
"कोई जरूरत नहीं---।"
मदन मेहता ठिठका। उसने फौरन गर्दन घुमाकर देवराज चौहान को देखा। अंधेरे में देवराज चौहान के चेहरे के भाव देखने की कोशिश की, परन्तु चमकती आंखों के सिवाय और कुछ नजर न आया।
दो पल उनके बीच खामोशी रही।
"कोई जरूरत नहीं।" मदद मेहता के होंठों से निकला--- "किस चीज की जरूरत नहीं?"
"तुम्हारी अपनी बेगुनाही की सफाई देने की।" देवराज चौहान का स्वर सपाट था--- "मुझे विश्वास हो गया है कि मेरे मामले से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं है। खांडेकर की बीवी के अपराधी तुम नहीं हो।"
मदन मेहता के होंठों से लंबी गहरी सांस निकली।
"मेहरबानी। शुक्रिया।" मदन मेहता के स्वर में खुशी भरा कंपन था--- "मुझे ये महसूस करके बहुत खुशी हो रही है कि तुमने मुझे निर्दोष मान लिया है।"
देवराज चौहान खामोशी से मदन मेहता के अंधेरे से भरे चेहरे को देखता रहा।
"अब तो हमारे बीच किसी तरह की दीवार नहीं रही। मेरी मेहमान-नवाजी कबूल करने में तुम्हें कोई एतराज नहीं होना चाहिए। आओ, मेरी मेहमान-नवाजी, यादगार मेहमाननवाजी होगी। तुम...।"
"अभी नहीं। अभी मेहमाननवाजी के लिए मेरा मन ठीक नहीं है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "फिर कभी सही। जगमोहन को कई दिनों से मेरी कोई खबर नहीं मिली। वो चिंता कर रहा होगा।"
"अच्छी बात है।" मदन मेहता ने शांत स्वर में कहा--- "मैं तुम्हें जबरदस्ती नहीं रोकूंगा। फिर आओगे?"
"हां। आऊंगा।" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"मैं इंतजार करूंगा।" मदन मेहता भी मुस्कुराया--- "कभी मेरी जरूरत पड़े तो जरूर याद करना---।"
"जरूर---।"
मदन मेहता ने हाथ आगे बढ़ाया।
दोनों ने हाथ मिलाए।
देवराज चौहान पलटा और आगे बढ़ता चला गया। मदन मेहता वहीं खड़ा देवराज चौहान को देखता रहा। तब तक देखता रहा, जब तक कि वो उसकी निगाहों से ओझल नहीं हो गया।
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन के बीच लंबी खामोशी छाई रही। आधी रात से ज्यादा का वक्त हो रहा था। दो घंटे पहले ही उन्होंने डिनर लिया था। इस दौरान जगमोहन, सारे हालातों से वाकिफ हो चुका था और उससे कुछ कहते न बन पा रहा था। और उसने देवराज चौहान को खांडेकर के बारे में बता दिया था कि मुंबई में ट्रक के नीचे आकर अपनी जान गंवा चुका है।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर, जगमोहन को देखा।
"हम गलत रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे।" देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया--- "हमारा शिकार मदन मेहता नहीं कोई और है। जो कि अब शायद हमारे हाथों से दूर हो गया होगा। बीस-बाईस दिन का वक्त बहुत होता है। असली शिकार अब बहुत दूर निकल गया होगा।"
"तुम्हारा मतलब कि कि खांडेकर की पत्नी के जुर्मी को हम नहीं पकड़ पाएंगे।" जगमोहन के होंठों से निकला।
"अब शायद नहीं।" देवराज चौहान के होंठ भिंच गए--- "शायद देर हो चुकी है। जिसने भी हमारे मामले में दखल दिया। यकीनन वो बहुत चालाक निकला। सब कुछ उसने ऐसे किया कि हम धोखा खा गए। वो अपनी चाल में पूरी तरह सफल रहा।"
"इसका मतलब पुलिस अब यही समझेगी कि खांडेकर की बीवी के साथ बलात्कार, उसकी हत्या, अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली की जान हमने ली है।" जगमोहन दांत पीसकर गुर्रा उठा--- "हत्याओं के इल्जाम सिर पर आ जाएं तो इतना दुखद नहीं होगा। लेकिन बलात्कार जैसा झूठा इल्जाम सिर पर लेकर, हम रातों को सो भी नहीं पाएंगे।"
देवराज चौहान के चेहरे पर जलजले के भाव उभरे और गुजर गए।
"इस मामले में हम कुछ नहीं कर सकते।" देवराज चौहान हिंसक स्वर में कह उठा--- "फिर भी कोशिश तो जारी रहेगी कि किसी तरह दूसरे के पाप का बोझ अपने सिर से उतार सकें।"
देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे दरिंदों जैसे लग रहे थे। ऐसे दरिंदे, जो भूखे हों, खाने का सामान सामने पड़ा हो, परन्तु उनके हाथ-पांव बांध दिए गए हों।
■■■
अगले दिन सुबह दस बजे।
वानखेड़े कमरे में देवराज चौहान और जगमोहन के पास मौजूद था।
"वानखेड़े!" देवराज चौहान गंभीर स्वर में कह उठा--- "सब कुछ तुम्हारे सामने है। कुछ भी तुमसे छिपा नहीं कि खांडेकर की बीवी के मुजरिम हम नहीं हैं। लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि हम खुद को बेगुनाह साबित नहीं कर पा रहे। मजबूरी और उलझन की मोटी दीवार हमारे सामने आ गई है।"
वानखेड़े के चेहरे पर गंभीरता के भाव नजर आ रहे थे।
"देवराज चौहान! मैं अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं।" वानखेड़े ने व्याकुल स्वर में कहा--- "वापस जाकर मुझे तुम्हारी फाइल में ये भी दर्ज करना पड़ेगा कि तुम जगमोहन और अंग्रेज सिंह सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर की बीवी के बलात्कारी और हत्यारे हो। तुम ऐसा घिनौना जुर्म भी करते हो।"
देवराज चौहान का चेहरा गुस्से से दहक उठा।
जगमोहन की आंखों में सुर्खी चमक उठी।
दोनों की निगाहें वानखेड़े पर थीं।
" फिर भी, मैं पुलिस डिपार्टमेंट की तरफ से खांडेकर की पत्नी के मामले में पूरी मेहनत के साथ तफ्तीश करूंगा। मुझे विश्वास है कि बेशक देर से ही सही, लेकिन असली मुजरिम तक अवश्य पहुंच जाऊंगा।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में होंठों को भींचते हुए कहा।
देवराज चौहान और जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
"बाहर।" वानखेड़े बोला--- "आज न तो ब्रिंगेजा के आदमी निगरानी पर हैं और न ही राजन राव के आदमी।"
"मदन मेहता ने सब ठीक कर लिया होगा।" देवराज चौहान ने अपने गुस्से को दबाते हुए जगमोहन को देखा--- "गोवा में हमारा कोई काम नहीं। हम अभी मुंबई चलेंगे।"
जगमोहन दांत पीसकर रह गया कि उन्हें खाली हाथ मुंबई लौटना पड़ रहा।
तभी फोन की बेल बजी।
"हैलो---।" जगमोहन ने रिसीवर उठाया।
"मैं रूद्रपाल तिहाड़ बोल रहा हूं---।" तिहाड़ की आवाज कानों में पड़ी।
"तुम!" जगमोहन के माथे पर बल उभरे--- "कहां से बोल रहे हो?"
"मुंबई, ब्लू स्टार से। सर, का कहना है कि एक्सीडेंट में सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर खत्म हो चुका है। इसलिए उनकी तरफ से तुम और देवराज चौहान आजाद हो। शिकायत करने वाला ही नहीं रहा तो, मामला वहीं खत्म हो जाता है।"
"तुम्हें कैसे पता चला कि हम यहां, इस फोन नंबर पर हैं?"
जवाब देने की अपेक्षा दूसरी तरफ से तिहाड़ ने लाइन काट दी थी।
जगमोहन ने रिसीवर रखकर देवराज चौहान को देखा।
"ब्लू स्टार से फोन था। चाचा की तरफ से। खांडेकर जिंदा नहीं रहा, इसलिए हमें ये साबित करने की अब जरूरत नहीं कि हम ठीक हैं या गलत---।" जगमोहन बोला।
देवराज चौहान होंठ भींचकर रह गया।
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन रात बारह बजे तक मुंबई पहुंच गए। मन में भारी बेचैनी लिए, दिल पर बोझ लिए हुए थे। दोनों में कोई खास बात नहीं हुई थी। रात को भी वे ठीक तरह से नींद नहीं ले पाए। सुबह कब हुई, मालूम नहीं हुआ।
"हम सोहनलाल के पास चलेंगे।" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा--- "उसके पास अंग्रेज सिंह मौजूद है। उसका हाल भी जानना है। वे भी हमारा इंतजार कर रहे होंगे कि गोवा में क्या हुआ---।"
"क्या होना है गोवा में!" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा--- "अच्छी तरह घूम आए हैं गोवा। अच्छी हवा है वहां। उन्हें भी कह देना कि वे भी गोवा घूम आएं। तबियत खुश हो जाएगी।" जगमोहन जला-भुना पड़ा था।
■■■
दरवाजा खोलते ही सामने देवराज चौहान और जगमोहन को पाकर सोहनलाल चौंका, फिर मुस्कुरा पड़ा।
"ओह, आओ। तुम दोनों का इंतजार करते-करते मैं थक गया था। बहुत देर लगा दी। कब आए गोवा से?"
दोनों भीतर प्रवेश कर गए। अंग्रेज सिंह को कमरे में न पाकर जगमोहन के होंठों से निकला।
"अंग्रेज सिंह कहां है?"
"वो आज ही दोपहर में गोवा गया है।" सोहनलाल ने बताया--- "वो पूरी तरह ठीक हो चुका था। तुम लोगों की कोई खबर नहीं आई। कमरे में बैठा तंग हो गया था, तो बोला, गोवा का फेरा लगा आता हूं। इसी बहाने कुछ दिन के लिए मुंबई से भी दूर हो जाऊंगा।"
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
"मदन मेहता का मामला निपट गया?" सोहनलाल ने दोनों को देखा।
"हां। खरा-खरा मदन मेहता निपट गया।" जगमोहन होंठ भींचे कह उठा।
"क्या मतलब?"
"मदन मेहता निर्दोष निकला।"
सोहनलाल के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे।
"मैं--- मैं समझा नहीं---।" सोहनलाल के होंठों से निकला।
"सीधी-सी बात है। क्या नहीं समझा तू---?"
सोहनलाल, जगमोहन के गुस्से से भरे चेहरे को देखता रहा।
"इसका मतलब।" सोहनलाल ने गहरी सांस ली--- "पुलिस तुम लोगों को ही खांडेकर की पत्नी का मुजरिम समझेगी।"
"हां। क्योंकि हम खुद को बेगुनाह साबित नहीं कर पाए।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर बोला।
"ओह!" सोहनलाल खाली-खाली निगाहों से दोनों को देखने लगा--- "जिसने भी ये सब किया। अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली की जान ली। पचास करोड़ ले गया, बहुत तेज निकला वो। उसने अपनी तो किसी को हवा भी नहीं लगने दी कि वो कौन रहा होगा।"
दोनों खामोश रहे।
"खांडेकर के बारे में सुना। वो नशे में धुत ट्रक के नीचे...।"
"सुना, गोवा में ही ये खबर मिल गई थी।"
■■■
महीना बीत गया था।
वानखेड़े कब का मुंबई से दिल्ली पहुंचकर अपने कामों में व्यस्त हो चुका था। खांडेकर की पत्नी वाला मामला वो इंस्पेक्टर शाहिद खान के हवाले कर आया था कि, जैसे भी हो, वो असली मुजरिम को हर हाल में तलाश करे।
शाहिद खान से एक-दो बार फोन पर बात हुई थी। दोनों बार उसने यही कहा कि वो असली अपराधी के बारे में जानने की पूरी चेष्टा कर रहा है। परन्तु अभी कोई सफलता नहीं मिली।
डेढ़ महीना बीत गया।
वानखेड़े को मुंबई से फोन आया। इंस्पेक्टर शाहिद खान का नहीं। देवराज चौहान का।
"वानखेड़े---।"
"तुम...?" देवराज चौहान की आवाज सुनते ही वानखेड़े चौंका।
"तुम्हें गोवा आना होगा।"
"गोवा?" वानखेड़े के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे--- "क्यों?"
"खांडेकर की बीवी के हत्यारे-बलात्कारी को नहीं देखना चाहोगे।अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली के हत्यारों को नहीं देखना चाहोगे। मेरे ख्याल में ऐसा सुनहरा मौका तुम किसी भी हाले-सूरत में खोना नहीं चाहोगे---।"
ये सुनते ही वानखेड़े हक्का-बक्का रह गया।
"वो मुजरिम मिल गया! तुमने उसे ढूंढ लिया! मुझे तो विश्वास ही नहीं आ रहा---!" वानखेड़े के होंठों से निकला।
"विश्वास तो मुझे भी नहीं आ रहा। मैं आज रात तक गोवा पहुंच जाऊंगा। तुम कब तक आ रहे हो? मैं ज्यादा इंतजार नहीं कर पाऊंगा तुम्हारा। अगर देर की तो---।"
"मैं पहली फ्लाइट से गोवा पहुंच रहा हूं। तुम कहां मिलोगे?" वानखेड़े के स्वर में बेसब्री आ गई थी।
"उसी होटल में, जहां डेढ़ महीना पहले ठहरे थे। सुरेंद्र पाल के नाम से ठहरूंगा। मालूम कर लेना।"
"ठीक है। लेकिन वो है कौन, जिसने...?" वानखेड़े ने पूछना चाहा।
"गोवा पहुंचो। सब सवालों का जवाब मिल जाएगा।"
■■■
गोवा।
रात के बारह बज रहे थे।
देवराज चौहान और जगमोहन ने होटल के पार्किंग में कार रोकी। दिन भर के सफर से कार पूरी तरह धूल में लिपटी पड़ी थी। परन्तु उनके चेहरों पर थकान का नामोनिशान नहीं था। पीछे वाली सीट पर पसरा सोहनलाल गोली वाली सिगरेट के कश लगाने में व्यस्त था।
"उतरो---।" जगमोहन ने कार का इंजन बंद करते हुए कहा।
"पहुंच गए।" सोहनलाल ने कहा और सीधा होते हुए कार का दरवाजा खोला और बाहर आकर बाहें फैलाकर अंगड़ाई ली।
देवराज चौहान भी बाहर निकल चुका था।
तीनों आगे बढ़े और होटल में प्रवेश कर गए।
वानखेड़े उन्हें होटल की लॉबी में ही मिला।
"मैं तो शाम को छः बजे ही यहां पहुंच गया था।" वानखेड़े उनके पास पहुंचा--- "मालूम करने पर मालूम हुआ कि तुम अभी नहीं पहुंचे हो तो लॉबी में ही इंतजार करना ठीक समझा।"
"क्या जमाना आ गया है!" सोहनलाल मुंह बनाकर बोला--- "बिना लेन-देन के ही पुलिस वाले गैर कानूनी काम करने वालों से दोस्ताना संबंध रखते हैं। याद रखना, एक दिन तुम इसी वजह से बुरी तरह फंसोगे।"
वानखेड़े ने जगमोहन को देखा फिर देवराज चौहान से कह उठा।
"तुम बता रहे थे कि खांडेकर की बीवी का मुजरिम गोवा में---।"
"हां। कुछ देर रुको। सब मालूम हो जाएगा।" देवराज चौहान की निगाह अंग्रेज सिंह पर टिक चुकी थी, जो लॉबी में मौजूद सोफा चेयर से उठकर उनकी तरफ आ रहा था।
अंग्रेज सिंह पास पहुंचा।
"सब ठीक है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"हां---।" अंग्रेज सिंह की निगाह वानखेड़े पर गई।
"तुम-तुम तो शाम से यहीं हो।" वानखेड़े ने अंग्रेज सिंह से कहा--- "मैं कब से तुम्हें देख रहा हूं।"
अंग्रेज सिंह ने सवालिया निगाहों से देवराज चौहान को देखा।
"तुम दोनों नाम से एक-दूसरे को जानते हो। ये इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े हैं। और वानखेड़े, ये अंग्रेज सिंह हैं।"
"अंग्रेज सिंह। ओह---!" वानखेड़े के होंठों से निकला।
"वो कहां है?" देवराज चौहान की निगाह अंग्रेज सिंह पर जा टिकी।
"वहीं है।"
"तुम्हें कोई धोखा तो नहीं हुआ कि---।" देवराज चौहान ने कहना चाहा।
"धोखा होने की कहीं भी कोई गुंजाइश नहीं।" अंग्रेज सिंह विश्वास भरे स्वर में बोला।
"हम अभी उस तक पहुंच सकते हैं।"
"क्यों नहीं।" अंग्रेज सिंह गंभीर था।
देवराज चौहान का चेहरा कठोर हो गया।
"चलो---।"
"लेकिन मुझे भी तो पता चले कि---।" वानखेड़े ने कहना चाहा।
"चल रहे हैं वानखेड़े। सब कुछ तुम्हारे सामने आ जाएगा।" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में कहा।
उसके बाद वे पांचों होटल से बाहर निकले और पार्किंग में खड़ी कार में बैठे।
जगमोहन ने कार पार्किंग से निकाली और सड़क पर लाते हुए कहा।
"रास्ता बताते जाना।"
अंग्रेज सिंह ने सिर हिला दिया।
"तुमने कैसे उसे देखा?" जगमोहन ने अंग्रेज सिंह पर नजर मारी।
"यूं ही नजरों के सामने पड़ गया।" अंग्रेज सिंह ने गहरी सांस ली--- "मुंबई में मैं सोहनलाल के यहां ठीक हो गया था। परन्तु तुम लोग गोवा से नहीं लौटे। वहां पड़े-पड़े मैं बोर होने लगा। बाहर निकलना भी खतरे से खाली नहीं था। पुलिस पहचानकर मुझे पकड़ लेती तो, फिर बचना असंभव था। ये सोचकर कि मुंबई से दूर हो जाऊंगा और गोवा में शायद तुम लोग भी मिल जाओ। मैं गोवा पहुंच गया। यहां तुम लोग तो मिले नहीं। खर्चा-पानी चलाने के लिए, यहां घूमने आए विदेशी लोगों की जेबें साफ करने लगा। रात के अंधेरे में तट पर दो-चार को चाकू दिखाकर लूटा भी। इसी तरह डेढ़ महीने से काम चला रहा था...।"
"तुम मेरे सामने अपने जुर्मों को मान रहे हो।" वानखेड़े सख्त स्वर में कह उठा।
अंग्रेज सिंह ने वानखेड़े को देखा फिर शांत स्वर में बोला।
"मैं तुमसे कोई बात नहीं कर रहा। जिस काम के लिए आए हो। उस तरफ ध्यान दो। मैं तुम्हें खांडेकर की बीवी के मुजरिम के पास ले जा रहा हूं। मेरा लाख बार धन्यवाद अदा करो।"
वानखेड़े कठोर निगाहों से उसे देखता रहा।
अंग्रेज सिंह पुनः कह उठा।
"मैं जानता था कि मुंबई की पुलिस को मेरी तलाश होगी, इसलिए साल भर गोवा में ही बिताने की सोच ली थी। ऐसे में गोवा में अपनी पहचान बनाने के लिए मैं हर छोटे-बड़े होटल, रेस्टोरेंट और दो नंबर का काम करने वालों से मेल-जोल बढ़ाने लगा। मैं गोवा में अपनी जिंदगी को सामान्य बनाकर कोई ठीक-ठाक धंधा करने की सोचने लगा कि जिससे मोटा पैसा बना सकूं। अपनी इसी भागदौड़ में लगा था कि एक होटल में एक शाम वो नजर आ गया। वहां मेरी किसी से मुलाकात तय थी। परन्तु उसे देखते ही सब कुछ भूल गया। बहुत कीमती कपड़े पहने था वो। होटल में इस अंदाज में घूम रहा था, जैसे उसके बाप का होटल है। डेढ़ महीना पहले ही उसने होटल खरीदा है। ये मालूम होते ही सारा मामला मेरी समझ में आ गया और मैंने, तुम लोगों को मुंबई फोन करके खबर दे दी।"
"एक नंबरी हरामजादा निकला वो।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
"खोपड़ी बहुत तेज है उसकी।" सोहनलाल मुस्कुराया--- "तभी तो उसने हम लोगों को और सारी पुलिस को बड़े आराम से, बड़ी सफाई से बेवकूफ बना दिया और उसके बारे में किसी को ख्वाब भी नहीं आया।"
कार तेजी से दौड़ जा रही थी।
देवराज चौहान के चेहरे पर जहान भर की कठोरता नाच रही थी। वानखेड़े बेचैनी से बार-बार पहलू बदल रहा था। वो बेसब्र था, असली मुजरिम का चेहरा देखने के लिए। कौन है वो? यही सोचे जा रहा था।
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वह चार-मंजिला आलीशान होटल था।
रात का एक बज रहा था और होटल के भीतर का आलम पूरे जोशो-खरोश पर था। डांसिंग हॉल में युवक-युवतियां, जोड़े, हंगामे से भरे डांस में व्यस्त थे। स्टेज पर न के बराबर कपड़े पहने डांसर, वहां के माहौल को और भी रंगीन बना रही थीं।
जुए के हॉल में बड़े-बड़े दांव लगा रहे थे।
बार रूम में जो हंगामा था, वहां का नजारा देखने का अलग ही मजा था। स्कर्ट और टॉप, छोटे साइज के पहने वेट्रेस व्हिस्की-बियर सर्व कर रही थीं। जिनकी वजह से ग्राहकों की भीड़ कुछ ज्यादा ही थी। अगर कोई, किसी वेट्रेस को अपने साथ ले जाता तो उसकी जगह फौरन दूसरी वेट्रेस ले लेती।
डिनर हॉल की तो ये हालत थी जैसे सबको अभी भूख लगी हो। खचाखच भरा हुआ था वह। आर्डर लेने और सर्व करने का काम फुर्ती से हो रहा था।
रिसेप्शन पर खूबसूरत रिसेप्शनिस्ट अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ मौजूद थी। वह स्कर्ट-ब्लाउज पहने थी और ब्लाउज का कट इतना गहरा था कि सिर आगे करके झांकने की कोई आवश्यकता नहीं थी। चार कदमों की दूरी से ही दर्शन सुलभता से हासिल थे। होटल की लॉबी में बैठे कई जोड़े अपनी-अपनी मस्तियों में मस्त थे। ऐसा लगता था जैसे गोवा की सारी रंगीनी वहीं सिमट आई हो। होटल के स्टाफ में युवक बहुत कम थे, अधिकतर युवतियां ही नजर आ रही थीं, और हर किसी ने बहुत कम, जितनी जरूरत है, उतनी ही कपड़े पहन रखे थे।
पांचों ने होटल के भीतर प्रवेश किया। अंग्रेज सिंह पल भर के लिए ठिठका फिर सबके साथ रिसेप्शन की तरफ बढ़ गया। पास पहुंचने पर रिसेप्शनिस्ट ने खास अदा के साथ उनका स्वागत किया।
"वेलकम सर! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं?" उसका स्वर बेहद मधुर था।
"मिस्टर डिशूजा से मिलना है।" अंग्रेज सिंह मुस्कुराया।
"श्योर। लेकिन पहले आपको बताना पड़ेगा कि उनसे क्या काम है और---।"
"मैडम!' अंग्रेज सिंह ने मीठे स्वर में कहा--- "हम दिल्ली से आए हैं और एक कॉलेज के ट्रस्टी हैं। हमारे कॉलेज के सौ-सौ लड़के लड़कियां परसों गोवा के टूर पर आ रहे हैं, और हम उनके लिए किसी होटल को पसंद कर रहे हैं कि जहां उन्हें सारी सुविधाएं मिलें और होटल का खर्चा भी ठीक हो। इसलिए---।"
"यस-यस। आप मिस्टर डिसूजा से मिल सकते हैं। अभी-अभी वो अपनी मिसेज के साथ ऑफिस में गए हैं।आप लोग उस तरफ चले जाइए। वहां से तीसरा दरवाजा मिस्टर डिसूजा के ऑफिस का ही है।" रिसेप्शनिस्ट अपने अंदाज में बोली।
"थैंक्यू मैडम...।" अंग्रेज सिंह ने लंबी-चौड़ी मुस्कान के साथ कहा।
उसके बाद पांचों रिसेप्शनिस्ट के बताए रास्ते पर आगे बढ़ गए। मिनट भर में ही वे पांचो तीसरे दरवाजे के सामने मौजूद थे। अंग्रेज सिंह ने गंभीर निगाहों से चारों को देखा। गुस्से में लिपटे दांत भींचकर देवराज चौहान ने कदम आगे बढ़ाया और डोर नॉब पकड़कर घुमाते हुए दरवाजे के धकेला तो वो खुलता चला गया। बिना रुके देवराज भीतर प्रवेश करता चला गया।
उसके पीछे चारों भी अंदर प्रवेश करते चले गए।
दरवाजा बंद हो गया।
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आलीशान ऑफिस था वो।
देखते ही बनता था। फर्श पर मखमली कालीन। चिकनी दीवारों पर महंगी पेंटिंग्स। छत पर छोटा-सा फानूस, जोकि जगमगाकर वहां की खूबसूरती और भी बढ़ा रहा था। मन को लुभाने वाली महक वहां फैली हुई थी। ऑफिस को खूबसूरत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी।
काफी बड़ी कीमती टेबल के एक तरफ छः कुर्सियां थीं और पीछे की तरफ लंबी पुश्त वाली रिवाल्विंग चेयर थी। जिस पर वो बैठा था। उसके होंठों पर मूंछें थीं। बाल गर्दन तक बेहद नफासत से लहरा रहे थे और उसकी टांगों पर करीब चौबीस वर्षीय बेहद खूबसूरत युवती बैठी थी। उसकी मांग में सिंदूर था। कलाईयों में चूड़ा था, जिससे कि स्पष्ट था कि उसकी शादी को ज्यादा वक्त नहीं बीता। गले में सोने का भारी हार था। कलाईयों में सोने के दो भारी कड़े डाल रखे थे। वो साड़ी-ब्लाउज में थी। और दोनों बांहें उसके गले में डाल रखी थीं उसकी भी दोनों बांहें युवती की कमर से लिपटी हुई थीं। अजीब-सी मस्ती में थे वे दोनों इस वक्त।
परन्तु इस तरह किसी को भीतर आते देखकर युवती फौरन खुद को संभालते हुए उठ खड़ी हुई।
उन पांचों को देखते ही उसके चेहरे का रंग पीलेपन में बदलने लगा। आंखें हैरानी और भय से फैलती चली गईं। उसके शरीर में जोरों से कम्पन हुआ और बेजान-सा बुत की तरह बैठा, आंखें फाड़े उन्हें देखता रह गया। इस वक्त उसका जो हाल हुआ था, वो बयान करते नहीं देखते ही बनता था।
देवराज चौहान अंगारों भरी निगाहों से उसे देख रहा था। जगमोहन के चेहरे पर उभरी दरिंदगी स्पष्ट नजर आ रही थी। सोहनलाल की आंखों में कड़वे भाव थे और होंठ भिंचे हुए थे। अंग्रेज सिंह खा जाने वाली निगाहों से उसे देख रहा था, जबकि वानखेड़े की आंखें फैलकर, अविश्वास और हैरानी से चौड़ी हो गई थी। आसमान नीचे और जमीन ऊपर चली जाती तो वो इतना हक्का-बक्का न होता, जितना कि उसे देखकर हुआ था।
युवती ने वहां के माहौल को देखा फिर उलझन भरे स्वर में कह उठी।
"क्या बात है डार्लिंग! क्या हुआ, कौन हैं ये लोग?"
लेकिन उसके मुंह से तो जैसे जुबान ही गायब हो चुकी थी।
वो और कोई नहीं, सब-इंस्पेक्टर रंजीत खांडेकर था।
"खांडेकर तुम! तुम-तुम जिंदा हो!" वानखेड़े के होंठों से फटा-फटा-सा स्वर निकला।
रंजीत खांडेकर का चेहरा और भी जर्द पड़ गया। जवाब में होंठ तक नहीं हिले। खौफ भरी निगाहों से टुकुर-टुकुर वो पांचों को देखे जा रहा था।
वानखेड़े अभी तक अपनी हक्की-बक्की हालत पर काबू नहीं कर पाया था।
"डार्लिंग कौन हैं ये लोग? तुम इतना डर क्यों रहे हो?" युवती के चेहरे पर गहरी उलझा आ ठहरी थी।
देवराज चौहान दांत भींचे आगे बढ़ा और कुर्सी पर बैठने के पश्चात सिगरेट सुलगा ली। इस दौरान उसकी कठोर निगाहें खांडेकर पर ही टिकी रहीं।
"बोलो---।" देवराज चौहान का सख्त स्वर सर्द था--- "अब जो बोलना है तुमने ही बोलना है। मेरे पास पूछने के लिए सिर्फ एक ही सवाल है कि तुमने अपनी ही बीवी के साथ बलात्कार करके जान क्यों ली? अंकल चौड़ा को क्यों मारा? सुधाकर बल्ली को किस तरह मारा? रही बात पचास करोड़ की तो, वो नजारा मैं देख ही रहा हूं कि उन्हीं पचास करोड़ के दम पर तुम इतने बड़े होटल के मालिक बन गए हो। रंजीत खांडेकर से डिसूजा हो गए। मूंछें रख लीं। तो मैंने तुमसे पूछा है कि तुमने ये सब क्यों और कैसे किया? सब जी-जंजालों से छुटकारा पाने के लिए तुमने दुनिया और कानून की निगाहों में खुद को मरवा दिया। कैसे-कैसे ये सब किया?"
देवराज चौहान के शब्द सुनते ही युवती का चेहरा भी फफक गया।
खांडेकर बेजान-सा बैठा सूनी सूनी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा।
तभी दांत पीसकर जगमोहन आगे बढ़ा और जोरदार घूंसा खांडेकर के चेहरे पर जड़ दिया। खांडेकर के होंठों से हल्की-सी चीख निकली और कुर्सी पर बैठे-बैठे ही घूमता गया। जगमोहन कुर्सी थामकर गुर्राया।
"बता हरामजादे। सब कुछ बता।"
खांडेकर के होंठों से खून की लकीर निकलकर, ठोड़ी तक आ पहुंची थी। लेकिन खून को साफ करने की उसे होश ही कहां थी। अलबत्ता जगमोहन के घूंसे ने उसे शॉक जैसी स्थिति से बाहर निकाल दिया था। वो खुद को संभालकर बैठा और सबको देखने के बाद, थके-टूटे स्वर में कह उठा।
"मैं रजनी से छुटकारा पाना चाहता था।" खांडेकर के स्वर में हार और डर के भाव थे।
"छुटकारा?" वानखेड़े के होंठों से निकला--- "उसके मरने से, महीना भर पहले ही तो उससे तुम्हारी शादी हुई थी।" वानखेड़े के माथे पर बल-ही-बल नजर आ रहे थे।
"नहीं। वो शादी नहीं। जबरदस्ती का सौदा था। ब्लैकमेल करके, नाजायज दबाव डालकर उसने मुझसे शादी की थी। और मुझे करनी पड़ी। इंकार करके मैं फंसना नहीं चाहता था और शादी करते वक्त ही मैंने सोच लिया था कि जैसे भी हो, रजनी से मुझे जल्दी ही छुटकारा पाना है। क्योंकि मैं ममता को चाहता था।" कहते हुए खांडेकर की निगाह पास खड़ी युवती पर गई--- "इसी से शादी करना चाहता था। परन्तु रजनी की वजह से मैं बेबस होकर रह गया था।"
"शुरू से बात करो। ऐसे कि हमें कुछ भी पूछना न पड़े।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा।
खांडेकर ने सिर झुका लिया। कुछ पलों बाद सिर उठाया और फीके स्वर में कह उठा।
"रजनी, कोठे की पैदाइश थी। परन्तु बचपन से ही कोठे से दूर रही। उसकी मां ने उसे हॉस्टल में पढ़ाया और पढ़ाई समाप्त करने के बाद वो बढ़िया जगह पर किराए का मकान लेकर रहने लगी। तब तक उसकी मां नहीं रही। खुला खाने-पीने की आदतों उसे पड़ चुकी थी। मां के गुण तो पैदाइशी ही उसके भीतर थे। खर्चे-पानी और अय्याशी की खातिर वो हाई सोसाइटी की कालगर्ल बन गई। और एक बार 'रेड' के दौरान मैंने ही उसे गिरफ्तार किया। जाने उसने मुझमें क्या देखा कि वो मुझे अपना बनाने पर तुल गई ये जानते हुए भी कि मैं उसकी हकीकत से वाकिफ हूं। इसमें कोई शक नहीं कि वो खूबसूरत थी। परन्तु वो गिरे चरित्र की थी और फिर मैं तो ममता से शादी करने जा रहा था। एक रात मैं ड्यूटी पर था कि रजनी का फोन आया वो मुसीबत में है। मुझसे कोई खास सलाह लेना चाहती है। तब मैं सोने के लिए अपने क्वार्टर में जाने वाला था। पहले तो मेरे मन में आया कि इंकार कर दूं। क्योंकि रजनी की सोचों से मैं भलीभांति वाकिफ था। फिर जाने क्या सोचकर मैं उसके घर जा पहुंचा। वहां उसके पास एक और लड़की मौजूद थी। रजनी ने मुझे उससे मिलवाया कि वो उसकी सहेली है। मैं नहीं जानता था कि उस लड़की से बातें करते हुए कोई मेरी तस्वीर ले रहा है। फिर रजनी ने कहा कि वो चाय बनाकर लाती है। उसके बाद अपनी समस्या उसके सामने रखेगी, कहकर वो किचन में चली गई। मैं उस युवती के साथ कमरे में बैठा रहा। तभी दूसरे कमरे से एक व्यक्ति निकला। आगे जो होने वाला था, उससे वो युवती भी अंजान थी। उस व्यक्ति के हाथ में चाकू था। मेरे देखते ही देखते उसने युवती के पेट-छाती में तीन-चार घातक वार किए और चाकू मेरी तरफ उछालकर बाहर की तरफ भागता चला गया। हड़बड़ाहट में अपनी तरफ आते खून से सने चाकू को मैंने लपक लिया और जल्दी से युवती की तरफ बढ़ा। उसे संभाला। मेरे दूसरे हाथ में खून से सना चाकू था और चोरी-छिपे एक के बाद एक मेरी तस्वीरें ली जा रही थीं। जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता था। उस युवती ने फौरन ही मेरी बांहों में दम तोड़ दिया। तब तक रजनी भी वहां पहुंची थी। वो जानती थी कि मैंने खून नहीं किया। ये सब उसी की चाल और उसी का किया-धरा था। इस पर उसने यह स्पष्ट कहा कि वो मुझे खून के जुर्म में फंसा सकती है। वो कह देगी कि, मैं उसका ग्राहक हूं और अक्सर उसके पास आता रहता हूं। और आज पैसे के लेन-देन पर झगड़ा हुआ और मैंने गुस्से में उसका खून कर दिया। मैं जानता था कि उसकी बात को सच माना जाएगा, क्योंकि कॉलगर्ल्स के तौर पर वो गिरफ्तार हो चुकी थी। और गिरफ्तार भी मैंने ही किया था उसे, बहुत ही सस्ती और घटिया चाल में फंस गया मैं। लेकिन मैंने उसकी बात की परवाह नहीं की। चाकू पर मेरी उंगलियों के निशान आ गए थे। इसलिए उस चाकू को लिए वहां से चला आया ये सोचकर कि रजनी जैसी घटिया औरत से कभी भी किसी भी कीमत पर वास्ता नहीं रखूंगा।"
खांडेकर खामोश हो गया।
सबकी तीखी, गुस्से से भरी निगाहें खांडेकर पर थीं।
ममता डरी-सी कभी खांडेकर को देखती तो कभी दूसरों को।
खांडेकर पुनः बोला।
"मैं निश्चिंत था कि रजनी खून का जुर्म मुझ पर नहीं थोप सकती। अगले दिन मैं पुलिस स्टेशन में मौजूद था कि रजनी खुद वहां आई और एक बंद लिफाफा मुझे देते हुए बोली कि वो शाम को घर पर मेरा इंतजार करेगी। मैंने सख्ती से इंकार किया कि अगर वो दोबारा मेरे सामने पड़ी तो किसी केस में उसे बंद कर दूंगा। जवाब में मुस्कुराकर वो पुलिस स्टेशन से चली गई। मैंने लिफाफा खोलकर देखा तो मेरे होश उड़ गए। लिफाफे में मौजूद तस्वीरें इस बात की स्पष्ट गवाही दे रही थीं कि मैंने ही इस युवती की हत्या की है। बहुत सोचा-विचारा और इसी नतीजे पर पहुंचा कि अगर बात खुलती है तो मैं खुद को बचा नहीं पाऊंगा। रही-सही रजनी की झूठी गवाही मुझे फंसा देगी। मैंने खुद को फंसा पाया और शाम से पहले ही रजनी के घर पहुंच गया। रजनी जैसे मेरे ही इंतजार में थी। और तो और बीती रात से युवती की लाश भी वैसे ही पड़ी थी, जैसे कि मैं उसे छोड़कर गया था। मेरे पूछने पर उसने कहा कि वो मुझसे शादी करके इज्जत से जिंदगी बिताना चाहती है। मैंने उसे लाखों रुपयों का लालच दिया कि वो मेरा पीछा छोड़ दे। परन्तु वो नहीं मानी। और तो और उसने स्पष्ट कहा कि मैं शादी भी आज ही उससे करूंगा। तभी लाश उसके घर से हटेगी नहीं तो आज ही वो पुलिस को हत्या के बारे में खबर कर देगी, और उसके खिलाफ ठोक-बजाकर गवाही देगी। मैं ऐसा फंसा कि मुझे सोचने का वक्त ही नहीं मिला। फिर वही हुआ जो वो चाहती थी। उसी शाम मुझे उससे मंदिर में शादी करनी पड़ी। परन्तु मैंने तभी सोच लिया था कि रजनी से पीछा छुड़ाकर रहूंगा। इसलिए शादी के बाद रजनी के साथ हंसी-खुशी वक्त बिताने लगा। हर कोई यही समझता रहा कि मैं रजनी जैसी पत्नी पाकर बहुत खुश हूं। मुझे उसकी बहुत चिंता रहती है, ताकि जब रजनी की मौत हो, तो कोई मुझ पर शक न कर सके। और मैं इंतजार कर रहा था मौके का कि कब रजनी को रास्ते से हटा सकूं। इधर ममता को मैंने सब समझा दिया था कि रजनी का खेल ज्यादा नहीं चलने दूंगा, कि थोड़ा सब्र के साथ काम ले।"
खांडेकर के चुप होते ही वहां गहरी खामोशी छा गई।
सबकी निगाहें खांडेकर के फक्क चेहरे पर थीं। खांडेकर ने पहलू बदला। सूखे होंठों पर जीभ फेरी। वानखेड़े को देखा फिर कह उठा।
"और मौका मुझे मिला। जब देवराज चौहान अपने साथियों और पचास करोड़ के साथ पुलिस से बचता हुआ मेरे ही घर में आ छिपा। जब मुझे घर जाने पर ये पता लगा तो मैंने उन्हीं हालातों में रजनी को समाप्त करने का सोच लिया। ऐसे मौके पर कोई भी मुझ पर शक नहीं करेगा। सब यही सोचेंगे कि यह काम देवराज चौहान या उसके साथियों ने किया है। सब हालातों को नजर में रखते हुए मैं ऐसे वक्त की टोह में रहने लगा जब अपना काम कर सकूं और जिस रात ये लोग मेरा घर छोड़ने जा रहे थे, वो वक्त मुझे सबसे बढ़िया लगा।"
"उल्लू का पट्ठा।" जगमोहन सुलगे स्वर में कह उठा--- "तेरी वजह से हमारी नींद आराम हो गई थी।"
"देवराज चौहान ने मेरे सामने अपनी योजना सबको बता दी थी कि कैसे वहां से निकलना है। मैंने सब सुना और देवराज चौहान से पहले ही हैडक्वार्टर की तरफ चल पड़ा। हैडक्वार्टर के रेस्टरूम में पहुंचकर मैंने वहां मौजूद पुलिसवालों को अपनी मौजूदगी दिखाई। और कुछ देर बाद मैं वहां से खिसक आया। वापस घर। जहां मैं रेस्टरूम में सोया था, वहां चादर के नीचे दो तकिए रख दिए, ताकि देखने में यही लगे कि मैं सोया पड़ा हूं। जब घर पहुंचा तो मेरा अंदाजा ठीक निकला। वहां अंकल चौड़ा और सुधाकर बल्ली मौजूद थे। जो कि जगमोहन के फोन का इंतजार कर रहे थे। वहां पहुंचते ही मैंने अपनी योजना के मुताबिक बिना मौका दिए अंकल चौड़ा को खत्म कर दिया। इससे पहले कि सुधाकर बल्ली कुछ कर पाता, मैंने उसके हाथ-पांव बांधे। और उसे एक तरफ डाल दिया। तब तक रजनी यही सोच रही थी कि मैं अपने फर्ज को अंजाम दे रहा हूं। जबकि मैं इस मामले को ऐसा रूप देना चाहता था कि कोई ये सोच ही न सके कि मैंने ये काम किया है या इस खून-खराबे से मेरा कोई वास्ता है। तब मैंने रजनी से कहा कि ये सब मैंने उसे बुरी मौत देने के लिए किया है, और जिस दिन से तूने मेरे साथ शादी की है तब से ही मैं कोई ऐसा मौका तलाश कर रहा था कि तेरे को खत्म कर सकूं और इल्जाम मुझ पर न आए।"
खांडेकर रुका। सूखे होंठों पर जीभ फेरी। हाथ बढ़ाकर टेबल पर पड़ा पानी का गिलास उठाया और एक ही सांस में उसे खाली करके वापस टेबल पर रखा। उसके हाथ का कम्पन स्पष्ट महसूस हो रहा था।
"रजनी तुरन्त समझ गई कि मेरे इरादे क्या हैं। उसने बचना चाहा, भागना चाहा। लेकिन मेरी ताकत के सामने वो हरामजादी कुछ नहीं कर सकी। वो अपनी मौत से बचने के लिए तड़पती रही, भागने का रास्ता ढूंढती रही। परन्तु मैंने उसे चीखने तक का भी मौका नहीं दिया। उसका मुंह बंद किया। उसके कपड़े फाड़े। उसके साथ बलात्कार किया। जबकि वो हर पल अपनी मौत को करीब पा रही थी। मुझसे माफी मांग रही थी, कह रही थी मुझसे तलाक ले लेगी, लेकिन मैं उसकी जान न लूं। लेकिन मैं उसे कैसे छोड़ सकता था, जिसने हत्या का इल्जाम मुझ पर थोपकर जबरदस्ती मेरे से शादी करके, वो सस्ती औरत मेरी बीवी बन बैठी थी। रजनी से बलात्कार करने के बाद मैंने निर्ममता के साथ उसकी हत्या कर दी। वो थी ही इसी काबिल। उसकी मौत पर मुझे आज तक दुख नहीं हुआ। मेरा दिलो-दिमाग आज तक यही कहता है कि उसे खत्म करके मैंने बहुत अच्छा किया। उससे बलात्कार इसलिए किया कि कोई भी शक भरी उंगली मेरी तरफ न उठा सके। लेकिन मेरी सारी हरकतों का गवाह सुधाकर बल्ली था। जो बंधा हुआ खौफ में डूबा, सब कुछ देख सुन रहा था। उसे खत्म करना तो सबसे जरूरी था। वरना मैं कहीं का नहीं रहता। लेकिन उसे वहां मारने से सारा मामला कच्चा पड़ जाता। हर कोई यही सोचता कि वहां पड़े पचास करोड़ पाने की खातिर ये हत्या कांड हुआ है। इसलिए मैंने मामले को और भी उलझाने के लिए सुधाकर बल्ली को घर से बाहर खत्म करने का फैसला किया। उसे भी अपनी मौत अपनी आंखों के सामने नजर आ रही थी। परन्तु जब मैंने उसे ऑफर दी कि वो मेरे साथ मिल जाए तो उसकी जान ही नहीं बचेगी, करोड़ों भी मिलेंगे तो वो तुरन्त तैयार हो गया। मैं हैडक्वार्टर से पुलिस कार लाया था। सुधाकर बल्ली के साथ मिलकर मैंने नोटों के दोनों थैलों को कार में ठूंसा और उसे लेकर चल पड़ा। कुछ ही दूर मैंने सुधाकर बल्ली की हत्या की और पचास करोड़ के साथ ममता के घर जा पहुंचा। सारा मामला जल्दी से उसे समझाया और सारा पैसा इसके हवाले करके कहा कि गोवा में जाकर कोई बढ़िया-सा होटल खरीद ले और फोन पर मुझे खबर कर दे। मौका मिलने पर मैं भी पहुंच जाऊंगा। और तब ममता ने वहां पहुंचकर इस होटल को पसंद किया। खरीद लिया।"
"साले हमारा पैसा ठिकाने लगा दिया।" जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा।
"उसे बात पूरी करने दे।" अंग्रेज सिंह ने टोका।
"आगे बोल---।" वानखेड़े की कठोर निगाह खांडेकर पर थी।
"उधर मैं मुंबई में अपनी योजना के मुताबिक चलता रहा। मैं इस तरह मुंबई छोड़ना चाहता था कि बाद में कोई भी मेरी तलाश न करे और मैं आराम से गोवा में ममता के साथ रह सकूं। मुंबई में की मेरी सारी हरकतें, मेरी इसी योजना का हिस्सा थीं। और फिर ठीक मौका पाकर मैंने अपनी ही कद-काठी के एक आदमी को, अपने कपड़े पहनाकर, उसे तगड़ी शराब पिलाकर, सड़क पार करने को कहा और कुछ दूर पहले से तैयार कर रखे ट्रक को चलाकर, उसे इस तरह कुचल दिया कि उसका चेहरा ठीक तरह पहचाना न जा सके और देखने वाले, मेरी पहचान वाले, उसको मेरे ही रूप में, रंजीत खांडेकर के रूप में शिनाख्त करें। और यही हुआ। रंजीत खांडेकर मर गया और मैं डिसूजा बनकर गोवा पहुंच गया। लेकिन---लेकिन फंस गया।" खांडेकर का स्वर कांप उठा।
कई पलों तक वहां मौत से भरी खामोशी छाई रही।
एकाएक वानखेड़े फट पड़ा।
"खांडेकर! तुमने चार-चार हत्याएं और बलात्कार किया है। पुलिस वाले हो तो इसकी सजा से भी वाकिफ होगे। पुलिस वाला होने के नाते तुम्हें कानून और भी कठोर से कठोर सजा देगा और वो सजा फांसी से कम नहीं होगी शायद।"
खांडेकर का चेहरा मौत के भय से जर्द पड़ गया।
पास खड़ी ममता भी पूरी तरह भय में डूबी हुई थी।
"अब तुम खुद को कानून की गिरफ्त में---।" वानखेड़े ने कहना चाहा।
"वानखेड़े---!" देवराज चौहान सर्द स्वर में कह उठा--- "ये कानून का मुजरिम बाद में है पहले मेरा है। इसने मेरे मामले में धोखे से दखल दिया। जिस दौलत पर मेरा और मेरे साथियों का हक था, उसे ले गया। अपनी बीवी के बलात्कार का जुर्म मेरे सिर पर लगा दिया। मेरे दो साथियों को मार दिया। अपने को बेगुनाह साबित करने के लिए, मैंने कितनी भागदौड़ की, इसके गवाह तुम हो। इसने मुझे फंसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।"
वानखेड़े ने आंखें सिकोड़कर देवराज चौहान को देखा।
"क्या कहना चाहते हो?"
अगले ही पल देवराज चौहान के हाथ में रिवाल्वर नजर आने लगी।
"ये क्या कर रहे हो।" वानखेड़े के होंठों से तेज स्वर निकला। उसने आगे बढ़ना चाहा।
तभी जगमोहन ने रिवाल्वर निकाली और वानखेड़े की तरफ कर दी।
"हिलना नहीं।" जगमोहन दांत भींचकर बोला।
वानखेड़े ने खा जाने वाली निगाहों से जगमोहन को देखा।
"देवराज चौहान!" जगमोहन की निगाह वानखेड़े पर ही थी--- "इसने पूरे के पूरे पचास करोड़ का तो होटल खरीदा नहीं होगा। पांच-सात करोड़ तो बचा ही लिया होगा। इससे पूछो वो कहां है।"
"वानखेड़े!" देवराज चौहान जगमोहन की बात पर ध्यान न देकर कह उठा--- "मैं उससे अपना हिसाब बराबर कर रहा हूं। ये होटल या इसकी बीवी का क्या करना है, ये तुम जानो। अब ये बात तो तुम्हारे सामने स्पष्ट हो चुकी है कि इस मामले का मुजरिम मैं नहीं। ये है।"
"रुक जाओ देवराज चौहान। कानून इसे---।"
"कानून।" देवराज चौहान ने वानखेड़े को घूरा--- "कानून का काम बहुत लंबा है। पहले केस तैयार होगा। अदालत में पेश किया जाएगा। वकीलों की बहस होगी। फिर रिमांड मिलेगा। पुलिस उससे पूछताछ करेगी। तब ये अपनी बातों से पीछे हट जाएगा। इस वक्त तो इसलिए बोल गया कि हम सब इसके सिर पर सवार हैं। जब कानून बीच में आ जाएगा तो ये कानून की आड़ लेकर बच जाएगा। अदालत में वकीलों की बहसें होती रहेंगी। तारीखें पड़ती रहेंगीं। वक्त के साथ-साथ केस ढीला होता चला जाएगा और एक दिन अदालत शक की बिनाह पर इसे आजाद कर देगी। कुछ परेशानियां उठाने के अलावा इसका और कुछ नहीं बिगड़ेगा। इसलिए मैं जो कर रहा हूं, वही ठीक है।"
"लेकिन---।" वानखेड़े ने आहट भाव में कहना चाहा।
"इससे पूछ तो लो कि बचा हुआ पांच-सात करोड़ कहां रखा है?" जगमोहन ने जल्दी से कहा।
"मुझे बचा लो।" खांडेकर,वानखेड़े को देखकर, फक्क स्वर में चीखा।
तभी वहां धमाके का तीव्र स्वर गूंजा और कुर्सी पर बैठे खांडेकर की छाती पर दिल वाले हिस्से में खून का धब्बा प्रकट हुआ, जोकि धीरे-धीरे बड़ा होने लगा। गोली लगते ही खांडेकर के शरीर को तीव्र झटका लगा था और उसी पल ही उसकी आंखें फटी रह गई थीं। वो तुरन्त मर गया था।
वानखेड़े होंठ भींचकर रह गया।
सिर्फ ममता के होंठों से ही दहशत भरी दबी-दबी चीख निकली थी। फिर वो धीरे-धीरे घुटनों के बल नीचे बैठती चली गई थी। और दोनों हाथों से मुंह ढांपे फफकने लगी थी।
अंग्रेज सिंह और सोहनलाल की निगाहें मिलीं।
चुप्पी के बीच, देवराज चौहान कुर्सी से उठा और रिवाल्वर जेब में डालते हुए सर्द स्वर में बोला।
"संभालो वानखेड़े। अब आगे जो करना है वो तुम बखूबी जानते हो।"
वानखेड़े गहरी सांस लेकर रह गया।
"चलो यहां से---।" कहने के साथ ही देवराज चौहान दरवाजे की तरफ बढ़ा।
अंग्रेज सिंह और सोहनलाल भी उसके पीछे हो गए। जब वे तीनों बाहर निकल गए तो वानखेड़े की तरफ रिवाल्वर किए जगमोहन दरवाजे के पास पहुंचा।
"इसने कभी भी कानून के हाथ नहीं आना था। कम-से-कम हमें थैंक्स तो कह दो।" जगमोहन एकाएक मुस्कुराया।
वानखेड़े की गंभीर निगाह कुर्सी पर मौजूद खांडेकर की लाश पर गई।
जगमोहन दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।
समाप्त
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