उसके इस सीधे और सपाट जवाब ने गिरजा प्रसाद के जेहन में जैसे कोई चोट की | कुछ बोला नहीं वह, विभा की तरफ देखते हुए आंखों में अजीब से भाव उभर आए थे।


गोपाल मराठा ने विभा का परिचय दिया और उसका परिचय पाते ही गिरजा प्रसाद के चेहरे पर मौजूद दौलतमंद होने का गुरूर रेत के महल की तरह गिरता नजर आया।


आंखों में विभा के लिए सम्मान के भाव उभर आए ।


इसलिए नहीं कि वह किसी इन्वेस्टीगेटर से मिल रहा था बल्कि इसलिए क्योंकि जानता था ---- उसकी दौलत जिंदलपुरम घराने के एक कोने के बराबर भी नहीं है ।


“इंस्पेक्टर ने ठीक कहा ।" गोपाल मराठा बोला ---- "देखने मात्र से बिल्कुल पता नहीं लग रहा कि ये मर चुकी है इसलिए सबसे पहला सवाल यह उठता है कि इसे मृत किसने घोषित किया?”


“मैंने।” एक सफेद बालों वाला ऐसा शख्स बोला जिसके गले में टेलिस्थकोप लटक रहा था ।


“आप?”


“डाक्टर तेवतिया | बगल वाली कोठी में रहता हूं।"


“ओह ! हम पूरा किस्सा सुनना चाहते हैं । "


“मैं बताता हूं सर ।" इंस्पेक्टर ने कहा ---- "बिड़ला साहब का बयान ये है कि लंच लेने के बाद मक्तूला हमेशा की तरह सोने के लिए डायनिंग से सींधी अपने बैडरूम में आई थीं। लेकिन जब..


“एक मिनट | " मराठा ने उसे रोका और सीधा सवाल गिरजा प्रसाद से किया ---- “क्या लंच के बाद ये हमेशा सोती थीं ?”


“नियमित ।” गिरजा प्रसाद ने बताया ---- “लंच के बाद अवंतिका एक घंटा आराम जरूर करती थी । पर एक ही घंटा । अपवाद स्वरूप कभी सवा या डेढ़ घंटा हो गया हो तो, हो गया हो लेकिन आज जब इवनिंग - टी टाइम तक भी नहीं उठी तो हमारी मिसेज को थोड़ा अजीब लगा । उन्होंने बिरजू से इसे जगाने के लिए कहा। "


“ इवनिंग - टी से मतलब?”


“शाम के चार बजे।"


“बिरजू मतलब घर का नौकर ?”


“हां "


“खैर, उसके बाद क्या हुआ?”


“बिरजू ने वापस हमारी मिसेज के पास आकर बताया कि वह आवाज दे-देकर थक गया लेकिन बहू उठ नहीं रही हैं। "


गोपाल मराठा ने बैडरूम के दरवाजे की तरफ इशारा करते हुए पूछा ---- “ये अंदर से बंद नहीं था ? ”


“दिन के समय अवंतिका इसे कभी-भी बंद नहीं करती थी। केवल ढुकाकर सो जाती थी । बिरजू के बाद हमारी मिसेज यहां आईं । आवाजें दीं। तब भी नहीं उठी तो दोनों कंधे पकड़कर झंझोड़ा । कोई प्रतिक्रिया न होने पर वह भी घबरा गई । चीखने-चिल्लाने लगी । हम उस वक्त अपने रूम में थे। आवाजें सुनकर हड़बड़ाए से बाहर आए। माजरा समझ में आते ही डाक्टर तेवतिया को फोन किया । ये फौरन ही आ गए । चैक करने के बाद बताया कि इसमें कुछ नहीं है । " 


मैंने पूछा ---- “लंच में खाया क्या था इन्होंने ?”


“वही, जो मैंने और मेरी मिसेज ने खाया था।"


“ नहीं वेद जी ।” मेरे कुछ भी बोलने से पहले गोपाल मराठा ने कहा---- “ये मौत किसी जहर से नहीं हुई है। फेस पर ऐसा एक भी लक्षण नहीं है। क्यों डाक्टर साहब ?”


“जहर कोई भी हो, उसके लक्षण फेस पर कहीं न कहीं जरूर नजर आते हैं।” तेवतिया बोला ---- "यह बात डाक्टर होने के बावजूद मेरी समझ में नहीं आ रही है कि मौत कैसे हुई?' "


“ये मौत नहीं, कत्ल है ।" एकाएक विभा ने कहा


मराठा बोला-“अब तो मैं भी आपसे सहमत हूं।"


“वजह?” विभा ने उसे दिलचस्प नजरों से देखा ।


“वेद जी का पहला ही सवाल बहुत मायनेखेज था । यह कि इसे कंबल किसने उढ़ाया। अगर इसे मक्तूला ने खुद ओढ़ा होता तो कोई न कोई सिरा अवंतिका के जिस्म के नीचे जरूर दबा होता । ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये तो बहुत सलीके से उढ़ाया हुआ लग रहा है। ठीक वैसे जैसे लोग मृत व्यक्ति के ऊपर चादर डालते हैं।"


“गुड ।” विभा की आंखों में उसके लिए प्रशंसा उभर आई।


“किसी न किसी ने तो कंबल उढ़ाया है और जिसने उढ़ाया है उसे तेवतिया साहब से पहले मालूम था कि यह मर चुकी है । " गोपाल मराठा अपनी ही धुन में कहता चला गया- -“ और जिसे यह बात पहले से मालूम थी वह शोर मचाने की जगह आराम से कंबल उढ़ाकर निकल गया, इसी से जाहिर है कि उसके मन में बदनियती थी और ऐसे मामलों में ऐसी बदनियती केवल हत्यारे के जेहन में होती है।” 


"वैरीगुड मराठा... वैरीगुड ।" इस बार विभा ने खुले दिल से उसकी तारीफ की----“कमीश्नर साहब ने ठीक कहा था| तुम वाकई एक काबिल अफसर हो ।”


“य... ये क्या बातें कर रहे हैं आप?” मारे हैरत के गिरजा प्रसाद का बुरा हाल था ---- “यहां, बैडरूम में आकर भला कौन हत्या कर जाएगा अवंतिका की? और... हत्या हो कैसे गई? न गोली चलने की आवाज, न कहीं खून | रूम में किसी संघर्ष का निशान तक नहीं है। ऐसी खामोशी के साथ भला कोई कैसे हत्या कर सकता है ?”


“हमारा अगला कदम वही पता लगाना है।” विभा बैड के पीछे वाली दीवार में मौजूद खिड़की की तरफ बढ़ती बोली ---- “पल्ले भले ही बंद हों लेकिन यह अंदर से खुली हुई है। क्या अवंतिका इसे इसी पोजीशन में रखे सोती थी ? अंदर से चटकनी बंद नहीं करती थी ?”


“इस बारे में हम विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कह सकते।"


मराठा बारीकी से बंद खिड़की की चौखट को देख रहा था और विभा सहित सब देख रहे थे उसे । उसने तेजी से गिरजा प्रसाद की तरफ पलटते हुए कहा ---- “मेरे ख्याल से अगर इस खिड़की को खोल दिया जाए तो आपका किचन लॉन नजर आने लगेगा।”


"हां"


“और उसका कोई हिस्सा इस वक्त खुदा हुआ भी होना चाहिए।” कहने के साथ उसने अपनी जेब से रुमाल निकाल लिया था- -“खुदा हुआ होने से मेरा मतलब इससे है कि वहां घास नहीं होगी।”


“घास तो इस वक्त लान में जरा भी नहीं है। नई पौध लगाने के लिए माली ने सारा खोदकर डाल रखा है लेकिन आपको कैसे पता?"


“हमें ऐसी ही बातें पता लगा लेने की तनख्वाह मिलती है।” कहने के बाद वह विभा की तरफ घूमा ---- “यहां मिट्टी लगी है विभा जी "


“उसी पीली मिट्टी के कण कार्पेट पर भी हैं जो बता रहे हैं कि कोई खिड़की के रास्ते से बैड तक आया है ।”


“मगर फुट - स्टेप्स स्पष्ट नहीं हैं।" कहने के साथ उसने अपने हाथ में मौजूद रुमाल से खिड़की के पल्ले का हैंडिल पकड़कर खिड़की खोली और कुछ देर तक बाहर का निरीक्षण करता रहा ।


एक बार उसने पलटकर कमरे में देखा ।


खासतौर पर बैड के आसपास के क्षेत्र को ।


अगले ही पल वह खिड़की के दूसरी तरफ कूद गया था ।


मराठा की इस हरकत पर जहां मुझ सहित सभी हैरान रह गए वहीं विभा के गुलाबी होठों पर हल्की सी मुस्कान उभरी थी । बौखलाया सा गिरजा प्रसाद कह उठा ---- “ये कर क्या रहे हैं आप लोग? वह इस तरह कूदकर किचन-लॉन में क्यों गया है ?”


“मैं समझ गया ।” उत्साहित शगुन बोला- --- “उन्हें यहां आने वाले के फुट-स्टेप्स की तलाश है ।”


गिरजा प्रसाद ने चौंककर शगुन की तरफ देखा ।


“किचन-लॉन की मिट्टी पाए जाने से साबित हो चुका है गिरजा प्रसाद जी कि खिड़की के रास्ते से यहां कोई आया है।” विभा ने पूरे विश्वास के साथ कहा---- “ और इतना तो आप भी समझ सकते हैं कि इस तरह आने वाले की नीयत साफ नहीं हो सकती ।”


“म... मतलब?”


“ अपनी सोचों की नजर किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में जो ये काम कर सकता है । " घुमाइए


“ह... हम समझे नहीं कि आप क्या कह रही हैं?”


“करीब दस दिन पहले बेटे का कत्ल । अब बहू का । क्या आपको लगता है कि ऐसा कोई आपका अच्छा चाहने वाला कर सकता है ?"


“अ... अरे !” गिरजा प्रसाद हैरान नजर आया ---- “आप इन दोनों वारदातों को कैसे मिला सकती हैं? रतन के बारे में तो स्पष्ट हो चुका है कि उससे एक गलती हो गई थी, जिसका मणीशंकर की उस जालिम बहू ने खुद भी बराबर की दोषी होने के बावजूद इतना भयानक बदला लिया । उस पर केस भी चल रहा है । "


विभा ने एक झटके से कह दिया ---- "इस बात को अपने दिमाग से खुरच-खुरचकर निकाल दीजिए गिरजा प्रसाद जी कि आपके बेटे का कत्ल चांदनी से रेप के कारण हुआ था ।"


गिरजा प्रसाद अवाक् ।


मैं और शगुन दंग ।


ये क्या कह दिया था विभा ने?


हममें से किसी की समझ में कुछ नहीं आया ।


“य... ये क्या कह रही हैं आप?” मारे हैरत के गिरजा प्रसाद का बुरा हाल था - - - - “रतन का कत्ल तो किस वजह से हुआ?” अगर उस वजह से नहीं हुआ


“वही ।” विभा ने अपना हर शब्द जमाया ---- “वही कह रही हूं । सोचिए कि वह दूसरी वजह क्या हो सकती है? जितनी जल्दी सोचकर बता पाएंगे उतनी ही जल्दी हम हत्यारे को ढूंढ सकेंगे और अब तो, जबकि उसने अवंतिका की भी हत्या कर दी है तो सोचना आसान होना चाहिए। दोनों हत्याओं की वजह एक ही है ऐसी क्या वजह हो सकती है कि किसी को पति-पत्नि, दोनों को कत्ल करना पड़ा ? सवाल इसलिए कर रही हूं क्योंकि इस बारे में आप हमसे बेहतर सोच सकते हैं। अपने दोस्त और दुश्मनों का आदमी को खुद ही पता होता है । " ।


गिरजा प्रसाद ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि जिस तरह गोपाल मराठा जम्प मारकर खिड़की के उस तरफ गया था उसी तरह वापस आ गया । कमरे में आते ही उसने कहा----“यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि हत्या किसी लड़की ने की है । "


विभा उसे देखती रह गई ।


बड़ी अजीब-सी नजरें थीं उसकी । उनमें गोपाल मराठा के लिए तारीफ के भाव भी थे और कुछ और भी... उस 'कुछ और' को उस वक्त मैं पकड़ नहीं सका। एक पल को तो मुझे ऐसा लगा था जैसे विभा बहुत कुछ कहना चाहने की इच्छा के बावजूद कुछ नहीं कह सकी । बस इतना ही पूछा उसने- “दावे की वजह ?”


“खुदे पड़े लॉन में लेडीज सेंडिल्स के निशान बहुत स्पष्ट हैं। उसके आने के भी और जाने के भी ।” कहने के बाद उसने विभा के जवाब की प्रतीक्षा किए बगैर फोटोग्राफर से कहा---- “तुम लॉन में जाकर उन निशानों को कैमरे में कैद कर लो । ”


“तुम्हारी ये परफारमेंस देखकर मुझे तो लग रहा है कि अब इस केस में मेरी जरूरत नहीं रही।" उसकी प्रशंसा करने वाले अंदाज में कहने के बाद उसने मुझसे कहा था - - - - “क्यों वेद?” --


“क... कैसी बातें कर रही हैं विभा जी ?” उत्साह से भरा मराठा अचानक झेंप गया ---- “मुझे तो नहीं लगता कि मैंने कोई बड़ा तीर मार दिया है । लॉन खुदा होने के कारण सेंडिल्स के निशान वहां इतने स्पष्ट हैं कि अंधे को भी दिखाई दे जाएंगे । ”


“कार्पेट पर और खिड़की की चौखट पर लगी मिट्टी तो इतनी नहीं है जिसे आम आदमी देख सके और अगर तुमने उसे न देखा होता तो लॉन में जाने का ख्याल ही दिमाग में न आया होता।"


“इसे तो आपने भी देख लिया था । ”


“मैं तो ऐसी चीजों को देख ही लेती हूं । महत्वपूर्ण ये है कि तुमने भी देखा । यकीन मानों, तुममें एक अच्छे इन्वेस्टीगेटर के गुण हैं।"


“अगर आप ऐसा सोचती हैं तो यह मेरा सौभाग्य है । "


“लेकिन अभी तक यह पता नहीं लगा पाए हो कि तुम्हारी उस सेंडिल वाली लड़की ने हत्या की कैसे है । "


“यह पता लगाने के लिए शायद कंबल को हटाना जरूरी है।"


“यहां भी तुम हंडरेट परसेंट करेक्ट हो ।” एक बार फिर उसकी आंखों में मराठा के लिए प्रशंसा के भाव थे----“फोटोग्राफर अपना यहां का काम निपटा चुका है, अब हमें देर नहीं करनी चाहिए।” और गोपाल मराठा ने देर की भी नहीं, उसने कंबल का एक कोना पकड़ा और एक झटके से अलग कर दिया । मुझ सहित सभी के मुंहों से सिसकारी - सी निकल गई । काफी देर तक तो कोई किसी से आंखें ही नहीं मिला सका । -


लाश बिल्कुल नग्न थी।


कपड़े के नाम पर एक धागा भी तो नहीं था जिस्म पर ।


पेट पर बाएं से दाएं लिखा था ---- 'किवो' ।


ये शब्द लाल रंग के स्केच पेन से नाभि के ऊपर से होता हुआ वक्ष और टांगों के जोड़ के बीच लिखा गया था ।


बैड पर बिछी चादर अस्त-व्यस्त थी ।


और उसी पर एक जोड़ी कपड़े पड़े थे ।


कपड़े जूतों सहित थे ।


मर्दाना ।


काली पेंट, काला कोट, सफेद शर्ट, लाल टाई, सेंडो बनियान और वी- शेप का एक अंडरवियर ।


अवंतिका की बॉडी पर कोई जख्म नजर नहीं आ रहा था।


जख्म की तो बात ही दूर, कहीं भी, खून की एक बूंद तक नहीं ।


सच्चाई ये है कि उस दृश्य को देखने के बाद कमरे में काफी देर तक खामोशी छाई रही थी । कोई भी खुद को किसी से भी कुछ कहने की अवस्था में महसूस नहीं कर पा रहा था ।


दिमागों में सवाल भले ही सैंकड़ों चकरा रहे हों लेकिन वे बस दिमागों में ही घुमड़ रहे थे । वह विभा ही थी जिसने अंततः गिरजा प्रसाद से पूछा ---- “क्या अवंतिका इसी तरह सोती थी ! बगैर कपड़ों के?”


“इ... इस तरह तो कोई भी नहीं सो सकता।"


“मेरा भी यही ख्याल था, खासतौर पर दिन में और वह भी कमरे को अंदर से बंद किए बगैर तो हरगिज नहीं ।”