“मियां, ये बताओ कि तुम कौन-से खेत के गन्ने हो ? और यूं खेत-खेत क्यों घूम रहे हो?"


"क्या तुम ये जानना चाहते हो कि मैं यहां क्यों आया हूं?"


"तुम्हारा ढांचा तो निःसंदेह सठियाए हुए इंजीनियर ने पास किया ----- लेकिन दिमाग बनाने वाला इंजीनियर कोई बिरला ही रहा होगा।'


"क्या वास्तविकता बता दूं कि मैं यहां पर क्यों आया हूं?" 


"आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।" विजय उसे चिढ़ाने वाले अंदाज में बोला।


"मैं ये जानने आया हूं कि तुम्हें मेरा तोहफा कैसा लगा?"


"कैसा तोहफा?"


"वही, जो तुम्हारी कोठी के बाहर पड़ा है ? "


"अच्छा...!" विजय मुस्कराकर बोला--- "तो तुम अपने उस शिकार की बात कर रहे हो ?"


" ---" नि:संदेह उसी की कर रहा हूं। -----"आखिर प्यारे टुम्बकटू... इन अजीब हरकतों के पीछे तुम्हारा उद्देश्य क्या है?"


-"कोई विशेष उद्देश्य नहीं।"


"तो फिर इसका मतलब?"


"सिर्फ मनोरंजन... या यूं समझ लो कि मैं ये देखना चाहता हूं कि धरती पर कोई ऐसा प्राणी भी है, जो टुम्बकटू से टकरा सके?"


"अजीब आदमी हो यार ! " विजय उलझता हुआ बोला-----''लगता है, तुम्हारे दिमाग का भी कोई स्क्रू ढीला है, यह भला मनोरजंन का कौन-सा साधन है?"


"ये तुम्हारे सोचने का ढंग है प्यारे जासूस महोदय !' टुम्बकटू बोला-----"प्रत्येक व्यक्ति के अपने अलग-अलग ढंग होते हैं। मैंने समूचे विश्व को चैलेंज दिया है कि मेरी हत्या कर दें। इसीलिए मैंने सोचा है कि जब तक जीवित हूं इसी प्रकार मनोरंजन करता रहूं।"


"और वह जांघ में माइक्रोफिल्म वाली गप्प तुमने कौन-से उपन्यास में पड़ी थी ?"


"वह गप्प नहीं प्यारे जासूस मियां!" टुम्बकटू विचित्र सिगरेट का कश लेता हुआ बोला ----- "हर बात इसी प्रकार सत्य है, जैसे सूर्य का पूर्व में उदय होना।"


-----" यानी कि तुम यारों को भी नहीं बताओगे कि वास्तविकता क्या है?"


---- "इस समय मैं कुछ भी कहूं-----लेकिन तुम्हें विश्वास नहीं होगा, किंतु जिस दिन कोई भी व्यक्ति मेरी हत्या करने में सफल हो जाएगा तो तुम्हें ज्ञात होगा कि टुम्बकटू कभी झूठ नहीं बोला करता।"


"तुम्हारा मतलब है कि वास्तव में वह गप्प सत्य है।"


"अगर तुम विश्वास करो।"


" तो फिर प्यारे, कर लिया विश्वास ।" विजय एकदम इस प्रकार बोला, मानो उसने टुम्बकटू की बात का विश्वास करके उस पर कोई बहुत बड़ा एहसान किया हो । फिर वह तुरंत बोला-----"लेकिन प्यारे टुम्मकटूं! इतना धन भला तुम्हारे पास कहां से आ गया ?"


" ये जानोगे तो और भी आश्चर्य करोगे।"


" अब हम कोई आश्चर्य नहीं करेंगे।" विजय सोफे पर ही पलौथी मारकर बैठता हुआ बोला-----"क्योंकि फिलहाल आश्चर्य जैसी बोगस वस्तु का स्टॉक हमारे पास से खत्म हो गया है।"


"तो सुनो।'


"सुनाओ।" विजय इस तरह से बोला मानो वह सत्यनारायण की कथा सुनने जा रहा हो।


-"क्या तुमने मुझे कल से पहले कहीं देखा था या मेरे विषय में किसी से कुछ सुना था ?"


-"बिल्कुल नहीं।


"तो फिर मैं अचानक कहां से आ गया ?" "कहां से आ गए?"


.'' मैं धरती का निवासी नहीं हूं।"


-----"अब तुम्हारी गप्पें जरूरत से कुछ ज्यादा ही ऊंची होती जा रहीं हैं। "


----- "मैं पहले ही कह चुका हूं कि मैं झूठ नहीं बोलता।" ." तो फिर कहां के निवासी हो?"


"वास्तविकता ये है कि मैं चांद से आया हूं।"


."क्या...?" विजय का चौंकना एकदम स्वाभाविक था।


"मैंने पहले ही कहा था कि तुम्हें आश्चर्य होगा।" टुम्बकटू उसी प्रकार मुस्करा रहा था।


. "तो तुम चंद्र निवासी हो?"


. ''सौ प्रतिशत।" टुम्बकटू बोला ----- "क्या तुम मेरी दस उंगलियां नहीं देख रहे हो? क्या धरती के किसी निवासी के एक हाथ में दस उंगलियां हैं? या धरती पर कोई भी व्यक्ति ऐसी सिगरेट पीता है, जैसी मैं पी रहा हूं ? "


"बेटा ठुम्मकटूं, तुम तो यार, हमारे दिमाग को चकरा रहे हो । " विजय बोला-----"जब धरती के मानव चंद्रमा पर गए तो उन्होंने यह बताया कि चंद्रमा प्राणीरहित है । "


. " उन्होंने बिल्कुल सही कहा था। "


."तो फिर तुम कहां से आ गए?"


"चंद्रमा से ही । "


."अबे मियां, क्या उलझी पुलझी बातें कर रहे हो ?"


"मैंने सुना था विजय, कि तुम काफी बुद्धि रखते हो, लेकिन देख रहा हूं कि तुम मजाक के अतिरिक्त दूसरी कोई बढ़िया बात नहीं सोच सकते-- -जरा ये तो सोचो कि अगर किसी अन्य ग्रह का व्यक्ति धरती की यात्रा के लिए चले और वह धरती पर आकर हिमालय की चोटी पर उतरे तो क्या दूर-दूर तक भी उसे सांस लेने के लिए वायु मिलेगी अथवा किसी प्राणी के दर्शन होंगे?"


"तो, तुम्हारे कहने का तात्पर्य यह कि पृथ्वी के अंतरिक्ष यात्री चंद्रमा पर पहुंचकर किसी ऐसे स्थान पर उतरे हैं जो भाग धरती के हिमालय पर्वत की भांति है-----जहां न सांस लेने हेतु पर्याप्त वायु है और प्राणी के होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।"


."अब तुम सिद्ध कर रहे हो कि तुम कुशाग्र बुद्धि के मालिक हो।"


"तो इसका मतलब ये हुआ कि चंद्रमा पर मानव हैं। " ." जिनमें से एक तुम्हारे सामने है।"


--"क्या तुम अकेले ही धरती की यात्रा के लिए निकले थे?"


"बिल्कुल अकेला!" टुम्बकटू बोला ----- " और ये भी

बता दूं कि मैं चंद्रमा से किसी का भेजा हुआ नहीं हूं बल्कि मैं चंद्रमा का एक अपराधी हूं-----चांद की सारी सरकार मुझसे परेशान है। लाख प्रयास के पश्चात भी वे कभी मुझे गिरफ्तार नहीं कर सके। मैं चांद पर हमेशा बड़े-बड़े अपराध करता रहा, लेकिन जब वहां से मन भर गया तो धरती पर देखने आया हूं कि क्या यहां का मानव इतना महान है कि वह टुम्बकटू पर विजय प्राप्त कर ले?"


." और प्यारेलाल, वह खजाना?"


"वह खजाना, मैं अपने साथ चंद्रमा से ही लाया हूं----- तुम्हें शायद इस बात का विश्वास नहीं हो रहा है कि वास्तव में किसी खजाने में इतना धन हो सकता है, जितना समूची धरती पर नहीं है। तुम्हारी समझदारी के लिए मैं तुम्हें खुद बता दूं कि हीरे, पन्ने, सोने इत्यादि अनेक वस्तुएं जो धरती पर धन मानी जाती है, वे सभी वस्तुएं चंद्रमा पर निरर्थक होती हैं। "


"क्या मतलब?" विजय की उलझन बड़ी ।


"मतलब ये प्यारे जासूस, कि हीरे और पन्नों इत्यादि को चंद्रमा पर कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। वहां तो ये सब वस्तुएं इस प्रकार फैली रहती हैं, जैसी तुम्हारी धरती पर मिट्टी इत्यादि, वे वस्तुएं, जिन्हें तुम इतना महत्त्व नहीं देते। जरा गौर से सोचो कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि धरती की कोई भी वह वस्तु जिसे तुम उपेक्षीय समझते हो-----ब्रह्मांड के किसी अन्य ग्रह पर उसे ही धन समझा जाता हो।"


-"तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि वे वस्तुएं जो धरती पर अत्यधिक कीमती समझी जाती हैं अथवा जिन्हें धरती पर धन या मुद्रा की संज्ञा प्राप्त है, उन वस्तुओं का चंद्रमा पर कोई महत्त्व नहीं है। वहां ये सब वस्तुएं उसी प्रकार पड़ी रहती ये हैं ----- जिस प्रकार धरती पर मिट्टी इत्यादि वे वस्तुएं, जिनका यहां महत्त्व नहीं है?"


"तुम काफी हद तक ठीक सोच रहे हो। "


."तो फिर उन वस्तुओं को तुम्हारा साथ लाने का अभिप्राय ?"


."सच पूछो तो मैंने वे वस्तुएं अपने साथ इसलिए रख ली थी, कि मेरा चंद्रयान कुछ इस प्रकार का है कि जब तक उसमें एक टन वजन न हो, वह ठीक प्रकार से चलता नहीं है। मुझमें कितना वजन है, यह तुम देख ही रहे हो, उस वजन को पूरा करने हेतु मैने चांद पर मौजूद ये बेकार की वस्तुएं अपने यान में भर ली । "


'और इत्तफाक से वे यहां मुद्रा बन गई । "

“यस।"


"और वह वस्तु क्या है, जिसकी प्राप्ति पर धरती का मानव ईश्वर पर विजय प्राप्त कर सकेगा?"


"वह वस्तु तो मेरे लिए भी और चंद्र निवासियों के लिए भी उतना ही महत्त्व रखती है, जितना कि तुम्हारे यानी धरती निवासियों के लिए वह वस्तु तो मैं बड़े प्रयासों के पश्चात वहां से लाने में सफल हुआ हूं। उस वस्तु की चंद्र सरकार को भी बहुत अधिक आवश्यकता है। अत: वे मेरी तलाश में समूचे चंद्रमा की खाक छान रहे होंगे। ये समझ लो कि वह वस्तु इतनी महत्त्वपूर्ण है कि अगर चंद्र सरकार को यह पता लग गया कि मैं उसे लेकर धरती की ओर रवाना हो गया हूं, तो संभव है ----- वे भी यहां की यात्रा करें।"


."तो फिर प्यारेलाल, शीघ्र बताओ कि वह वस्तु क्या है?"


."ये मैं अभी नहीं बताऊंगा... सिर्फ ये कहूंगा कि उसकी प्राप्ति मानव को ईश्वर से भी ऊंचा ले जाएगी।


"वह खजाना कहां है?"


"मेरी जांघ में समझो।"


उसके इस उत्तर पर विजय उसे घूरता रह गया, किंतु फिर बोला-~~~~"लेकिन तुम हमारी भाषा में कैसे बोल लेते हो?''


."धरती के कालचक्रानुसार मैं यहां एक माह पूर्व आया था और इस एक माह में मैंने यहां की भाषा, यहां का रहन-सहन, बड़ी-बड़ी हस्तियों के नाम बड़ी शांति के साथ

एकत्रित किए हैं।'' टुम्बकटू की सिगरेट समाप्त हो गई तो उसने उसे मेज पर रखी ऐश-ट्रे में मसलकर डाल दिया।


----- " यानी कि मियां टुम्बकटू! तुम बड़े खतरनाक आदमी । हो । "


-----"अब जैसा भी तुम समझो। "


"लेकिन मियां, तुम्हारा ये कसरती बदन तो यह नहीं कहता।"


- "इस बदन के विषय में भी वास्तविकता बताऊं?'


"एक गप्प और मारो।"


"वास्तविकता ये है कि मेरी हैल्थ चंद्रमा पर सबसे अच्छी है।"


‒‒‒‒‒ ----"क्या...! " विजय टुम्बकटू की इस बात पर उछले बिना नहीं रह सका- - परंतु अगले ही पल उसका मन चाहा कि वह टुम्बकटू की इस बात पर एक जोरदार कहकहा लगाए । वह कुछ देर तक तो उसके गन्ने जैसे बदन को ध्यान से देखता रहा, फिर बोला ।


"तो फिर प्यारे, तुम चंद्रमा के सबसे हैल्थी व्यक्ति हो ।" -"निःसंदेह ।


विजय को लग रहा था कि या तो यह विचित्र नमूना जो कुछ कह रहा है, वह एकदम सत्य है अथवा एकदम खूबसूरत गप्प। उसकी समझ में अभी तक नहीं आया था कि आखिर ये नमूना है क्या? और वह वस्तु क्या है, जिसकी प्राप्ति पर मानव ईश्वर पर विजय प्राप्त कर लेगा? परंतु इन सब बातों को फिर खटाई में डालकर विजय बोला----"लेकिन मियां टुम्बकटू! तुमने जो ये चैलेंज दिया है----उसे हमारे चचा और वह साली मम्मी पड़ेंगी तो निश्चित रूप से तुम्हारा कचूमर निकाल देंगे।"


-"यही तो मैं चाहता हूं।"


-"मुझे ऐसा लगता है कि तुम्हारी प्राप्ति के लिए कहीं चचा और मम्मी की ही न ठन जाए।"


"तुम्हारा संकेत सिंगही और जैक्सन की ओर ही है ना?"


- "बिल्कुल उसी ओर है।"


"बस तो, यहीं मैं चाहता हूं कि उन दोनों का टकराव हो और ये पता लगे कि उनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है ?"


" यानी कि तुम उन दोनों की टक्कर कराना चाहते हो ?"


"ताकि देख सकूं कि उनमें से कौन अधिक शक्तिशाली है, और उससे मैं स्वयं टकरा सकूं। टुम्बकटू मुस्कराता हुआ बोला।


'प्यारे टुम्बकटू!" विजय उसे घूरता हुआ व्यंग्यात्मक लहजे में बोला-----''माना कि तुम भी खलीफा हो, लेकिन उन दोनों में से किसी से भी टकराने के ख्वाब देखना छोड़ दो ----- क्योंकि उनके लिए तुम एक चिराग के आसपास घूमते अनेक कीड़ों में से एक से अधिक महत्त्व नहीं रखते। "


"यह तो वक्त बताएगा।" टुम्बकटू लापरवाही के साथ बोला। 


"तो क्या...।" विजय अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि!


'अगर हिले तो गोलियां तुम्हारे जिस्म के पार हो जाएंगी।" एकाएक वहां सुपरिंटेंडेंट का चेतावनी - भरा सख्त लहजा गूंजा।


विजय स्वयं आश्चर्यचकित रह गया। वास्तव में विजय भी न जान सका था कि रघुनाथ ने इस कमरे को घेर लिया था। उसने टुम्बकटू की ओर देखा तो एक बार फिर चकरा गया-----क्योंकि वह उसी इत्मीनान के साथ सोफे पर बैठा मुस्करा रहा था।


."वो मारा साले पकौड़ी वाले को।" विजय कहता हुआ एकदम सोफे से खड़ा हो गया।


. ----- "मैं जानता हूं प्यारे रघुनाथ, कि तुम यहां मेरे इस तोहफे को देखने आए थे। विजय की कोठी पास ही देखकर तुम यहां आए, किंतु यहां मुझे देखकर तुमने दो-चार सिपाही लगाकर यह समझा कि तुमने टुम्बकटू को घेर लिया।" टुम्बकटू के किसी भी चिंह से ऐसा प्रतीत न हो रहा था कि इस समय वह किसी विशेष परिस्थिति में है।


"अब "प्यारे टुम्बकटू!" विजय ने हाथ नचाए तुम्हारी कोई भी हरकत तुम्हें बचा नहीं सकती।" कहता हुआ विजय कमरे की हर खिड़की से झांकती बंदूक की नाल देख रहा था। दरवाजे पर स्वयं रघुनाथ डटा था।


- "मुझे तुम्हारी ये बचकानी हरकतें देखकर हंसी आती है।" टुम्बकटू अपनी विचित्र सिगरेट सुलगाता हुआ बोला।


-"बोल लाल लंगोटे वाले की जय..." कहते हुए विजय ने आव देखा न ताव, तुरंत उस पर जंप लगा दी । किंतु वह रिक्त सोफे से टकराया।


"तुमसे इस बात को मैं स्पष्ट रूप से लगातार कहता आ रहा हूं कि मैं इस तरह गिरफ्तार नहीं हो सकता।" टुम्बकटू उसके पीछे खड़ा कह रहा था।


-'धायं... धायं... धायं ।'


एक साथ अनेकों गोलियां चलीं।


विजय सोफे से ही छिपकली की भांति चिपक गया। अगर कोई भी अंग उठाता तो गोलियां उसके जिस्म को बेंध सकती थीं। "पहले ही कह चुका हूं कि ये सब हरकतें बेकार हैं । " टुम्बकटू की आवाज एक अन्य सोफे के पीछे से आई, "फिलहाल विदा।" 


और उसी क्षण !


टुम्बकटू की अगली हरकत देखकर स्वयं विजय हतप्रभ रह गया! उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गई! उसे लगा कि वह संसार का सर्वश्रेष्ठ आश्चर्य देख रहा है। वह नहीं मान सकता था कि यह सब हो सकता है, जो हो रहा है, किंतु...किंतु उस समय उसे सब कुछ मानना पड़ा जब टुम्बकटू ने अपने गन्ने जैसे जिस्म को एक विचित्र ढंग से सिकोड़ा और कमरे के बाहर जाने वाली नाली में समा गया।


.... धाय.... -' धाय ।'


अनगिनत गोलियां चली।


परंतु तब तक वह खतरनाक छलावा किसी लंबे सांप की भांति रेंगता हुआ उस नाली के माध्यम से कमरे से बाहर था।


उसके निकलने का ढंग ठीक ऐसा था, जैसे सांप अपने बिल में घुसता चला जाए। विजय को लगा कि टुम्बकटू की हड्डियां ठीक सर्प की भांति लचीली हैं, जिन्हें कहीं से भी, किसी भी ढंग से मोड़ा जा सकता है।


उसके पश्चात!


रघुनाथ ने विजय के साथ समूची कोठी में टुम्बकटू को खोजा, किंतु टुम्बकटू गधे के सींग की भांति गायब था।


टुम्बकटू चला गया ----किंतु इस बार वह अपने पीछे अनेक महान आश्चर्य और रहस्य छोड़ गया था। विजय उलझकर रह गया था।


विकास!


तेरह वर्षीय एक अत्यधिक खूबसूरत किशोर !


वह लड़का सौंदर्य का एक उदाहरण था।


गोरा-चिट्टा रंग... नक्श मानो स्वयं ईश्वर ने निर्मित किए हों, पलकें काली और बड़ी, मस्तक चौड़ा, घुंघराले बाल, गठा हुआ सुदृढ़ कसरती जिस्म... कद तेरह वर्षीय बालक की अपेक्षा इतना बड़ा कि वह सोलह-सत्रह वर्ष का लगता। ऐसा सुंदर किशोर कि


एक बार देख लो तो बस ऐसा मन करे कि देखते ही रहो ।


परंतु यह खूबसूरत किशोर जितना खूबसूरत था, उससे कहीं अधिक खतरनाक भी! इतना दिलचस्प भी कि स्वयं विजय परेशान हो जाए। यह तेरह वर्षीय किशोर इतनी अधिक कुशाग्र बुद्धि का मालिक था कि साधारण व्यक्तियों को तो समूचे जीवन में इतनी बुद्धि प्राप्त न हो। अपनी उस छोटी-सी बुद्धि से वह ऐसी-ऐसी हरकतें सोचता कि बड़े से बड़ा व्यक्ति दांतों तले उंगली दबाकर रह जाता।


उस समय एक व्यक्ति कितना खतरनाक होता है, जब उस पर बुद्धि के साथ हुनर और शक्ति भी हो ? बुद्धि और शक्ति तो विकास ईश्वर के घर से ही लेकर आया था और हुनर अलफांसे ने उसमें भर दिए थे। अलफांसे ने विकास को एक-से-एक अधिक खतरनाक कार्य में दक्ष कर दिया था।


विकास के बारे में विस्तारपूर्वक जानने के लिए 'राजा पॉकेट बुक्स' द्वारा प्रकाशि वेदप्रकाश शर्मा के रोमांचकारी उपन्यास 'दहकते शहर और 'आग के बेटे' अवश्य पढ़ें ।


यह खतरनाक लड़का नित्य नई-नई और आश्चर्यचकित कर देने वाली योजनाएं सोचता। 'आग के बेटे' अभियान में उसने एक ऐसी गहरी मजाक. भरी साजिश की थी, जिससे उसने समूचे भारत में हलचल मचा दी थी और दूसरी ओर ' आग के बेटों' को चकरा दिया था। जिसके परिणामानुसार जैक्सन जैसी खतरनाक अपराधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था।


विकास!