जगमोहन शाम को छः बजे लौटा।
देवराज चौहान तब कॉफी पी रहा था। अमन ओबराय पास ही नीचे बंधा बैठा था।
"आ गया तू ।" उसे देखते ही हरीश खुदे कह उठा--- “शुक्र है। बंधे-बंधे हालत बुरी होने लगी है। मुझे पहले पता होता कि तुम लोग मेरा ये हाल करोंगे तो मैं इधर कभी नहीं आता। मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम दोनों ने मेरे साथ ऐसा बुरा व्यवहार किया है।"
“जरा इधर आओ।" पास पहुंचकर देवराज चौहान से कहा, जगमोहन ने।
कॉफी का प्याला रखकर देवराज चौहान उठा तो हरीश खुदे कह उठा।
"जो बात करनी है मेरे सामने कर लो। मैं कौन सा पराया हूं।"
जगमोहन देवराज चौहान को एक तरफ ले गया।
"ये मुझे मारने का प्रोग्राम बना रहे होंगे।" अमन ओबराय ने कहा।
“मेरे साथ रहकर तू डरा मत कर।"
"चुप कर।" अमन ओबराय ने तीखे स्वर में कहा--- "तेरे साथ रहकर तो मैं अपने को भूलने लगा हूं। सुबह से बंधा पड़ा हूं और अभी भी बड़ी-बड़ी बातें हांक रहा है। तूने तो मेरी सारी इज्जत मिट्टी में मिला दी।"
"तेरे को मैंने कितनी बार कहा कि तू इज्जतदार नहीं है। अपनी भाभी के साथ- ?"
"ये बात मेरे को मत कहा कर।" अमन ओबराय भड़का--- "रात तूने भी तो मजे लिए थे।"
"वो तो लेने पड़े। तेरे शरीर के भीतर जो रहता हूँ।"
"तो फिर रानी की बात मत किया कर।” ओबराय गुस्से में आ गया।
“तो तू अपनी इज्जत का रोना, मत रोया कर। मैं जानता हूं असल में तू क्या है।"
"तू मेरी तरफ उंगली उठा रहा है।"
"उंगली नहीं, पूरी बांह उठा रहा हूँ। मेरे सामने, अपने को इज्जतदार मानना छोड़ दे।"
"मैं करोड़पति हूं कि नहीं ?"
"जरूर है।"
"तो हर करोड़पति इज्जतदार होता है। पैसा होता है तो उसकी सब बुराइयां छिप जाती हैं।"
“अब मुझे पता चल रहा है कि करोड़पति किस तरह के इज्जतदार होते हैं। बुरे काम करके, नोटों के पीछे अपना चेहरा छिपा लेते हैं।” हरीश खुदे की निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर थी--- “वो दोनों पता नहीं क्या बात कर रहे हैं।"
"मुझे मारने की बात कर रहे होंगे कि कैसे मारना है। गला दबाना है या गोली मारनी है या चुपचाप चाकू से---।"
"किसी को मारने के लिए इतनी देर नहीं सोचना पड़ता। मुझे पता है ये काम तो फौरन निपटा दिए जाते हैं।" हरीश खुदे ने कहा--- "वो कुछ और ही बात कर रहे हैं। वो भी क्या वक्त था जब ये मेरे से सलाह लेते थे और अब बांध रखा है।"
"तेरे से सलाह लेते थे?"
“हां, सब बातें मेरे सामने करते थे। मेरे पास बैठकर ही डकैती की योजना बनाते और पूछते थे मुझसे। कुछ दिन में ही वक्त कितना बदल गया कि मुझे पहचान भी नहीं रहे। कहते हैं, मैं मर गया हूं। मैं तो टुन्नी के बारे में सोचकर परेशान हो रहा हूं कि इन बेवकूफों ने उसे एक सौ पांच करोड़ दे दिया है। इतनी बड़ी दौलत संभालने के चक्कर में उसकी रातों की नींद उड़ गई होगी।"
“ये अमन ओबराय नाम का करोड़पति बिजनेसमैन ही है!" जगमोहन बोला--- "पुराना बिजनेस है और पहले बिजनेस को बाप-दादे किया करते थे। अब ये संभालता है। इज्जतदार है। काफी लोग जानते हैं इसे। शरीफ भी है। दो-तीन साल छोटा भाई भी है, परन्तु एक्सीडेंट में उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। टांग कट गई। अब वो बेड पर ही पड़ा रहता है। छोटे भाई की पत्नी रानी भी बंगले में रहती है और कुल मिलाकर ये बहुत शरीफ इन्सान है। सवा महीना पहले कार एक्सीडेंट में इसकी दो आंखें खराब हो गई। ये अन्धा हो गया। कुछ दिन पहले ही इसे दो नई आंखें लगाई गई।"
"तो वो हरीश खुदे की आंखें रही होंगी। ऐसा कुछ ही वो कह रहा था।" देवराज चौहान बोला।
"मैं टुन्नी से भी मिला। उससे अमन ओबराय के बारे में पूछा तो उसने कल शाम इसके आने की बात बताई कि वो खुद को हरीश खुदे कह रहा था।" जगमोहन ने सब बातें देवराज चौहान को बताई जो टुन्नी ने कहा था उसे ।
"ये क्यों अपने को हरीश खुदे साबित करता फिर रहा है।" देवराज चौहान बोला।
“आगे तो सुनो।" जगमोहन बोला--- “इसी सिलसिले में टुन्नी ने आज सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे को बताया था। मोहन मोरे वो ही है जो खुदे की लाश को हॉस्पिटल ले गया था। टुन्नी ने मोहन मोरे को अमन ओबराय के आने के बारे में बताया तो मोरे ने उसे कहा कि वो ठीक कह रहा है। वो अमन ओबराय जरूर है, पर उसके शरीर में अब हरीश खुदे भी रहता है। खुदे की आंखें ओबराय को लगाई गई और जाने कैसे कुदरत के करिश्में से खुदे आंखों के रास्ते अमन के शरीर में प्रवेश कर आया और अब अमन ओबराय के शरीर में रहता है। उस पुलिस वाले को इस बात का पूरा यकीन है। क्योंकि खुदे ने डकैती के मामले में उसे ऐसे-ऐसे सवालों का जवाब दिया जो सिर्फ वो ही दे सकता था जो डकैती में शामिल हो।"
देवराज चौहान गहरी सांस लेकर रह गया।
"क्या हुआ?"
“तुम्हारा मतलब कि अमन ओबराय के शरीर में हरीश खुदे भी रहता है।" देवराज चौहान बोला।
"पता नहीं। जो बातें मैंने सुनी, पता लगी वो तुम्हें बता दी।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान के चेहरे पर गम्भीरता नज़र आ रही थी।
"सच बात तो ये है कि अमन ओबराय की बातें सुनकर मैं भी मन ही मन व्याकुल हो रहा हूं क्योंकि जिस तरह की वो बातें कह रहा है, वो सिर्फ हरीश खुदे ही कर सकता था। खासतौर से तब जब वो कहता है कि वो हरीश खुदे---।”
"तो तुम्हें आंखों वाली बात पर यकीन है कि खुदे की आंखें अमन ओबराय को लगाई गई तो खुदे उसके शरीर में आ गया ।"
“ज़रा भी नहीं मानता इस बात को। परन्तु वो जो बातें कर रहा है, जिस ढंग से कर रहा है उसे अनदेखा भी नहीं कर सकता। कोई बात तो है ही जो हमें समझ नहीं आ रही। अमन ओबराय एक पहेली की तरह हमारे सामने है ऐसी पहेली कि जिसे सुलझा पाना हमारे बस का नहीं है। मैं उसकी बातों को हल्के से नहीं ले सकता। वो हर वो बात जानता है जो हरीश खुदे जानता है, खुदे से वास्ता रखती हर बात का जवाब वो ऐसे दे देता है जैसे खुदे ही सामने मौजूद हो। वो पुलिस वाला मोहन मोरे ठीक कहता है कि इसने, उसकी बातों के जवाब दिए। यकीनन तब मोरे भी चकरा गया होगा कि अमन ओबराय इन बातों को कैसे जानता है।"
"मोरे मानता है कि ओबराय के भीतर, हरीश खुदे मौजूद है।" जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
“वो पता नहीं ऐसी असम्भव बात कैसे मानता है। मैं नहीं मान सकता।"
"अमन ओबराय जानता है कि हम यहां रहते हैं, कहीं इसने उसे हमारे ठिकाने के बारे में ना बता दिया हो।"
देवराज चौहान ने अमन ओबराय को देखा ।
अमन ओबराय इधर ही देख रहा था।
"अब क्या करना है इसका?" जगमोहन बोला
“ये हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता।"
“पर ये पुलिस को हमारे बारे में बता।"
"बात करके देखता हूं इससे।" देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव थे।
"अजीब झंझट है।" जगमोहन बोला--- “मरकर खुदे ने हमें अजीब परेशानी में डाल दिया है।"
"जो भी हो, ये तो स्पष्ट है कि ये उस डकैती के बारे में बहुत कुछ जानता है।"
दोनों अमन ओबराय की तरफ बढ़ गये।
"वो मुझे मारने आ रहे हैं।" अमन ओबराय परेशान सा कह उठा--- “उन्होंने बातें कर ली है।"
"देवराज चौहान मुझे नहीं मारेगा।" हरीश खुदे ने कहा।
"मैं अपनी बात कर रहा हूँ।"
"तेरे-मेरे में क्या फर्क है। ये शरीर हम दोनों का ही तो है। तू मरा तो मैं भी मरूंगा।"
"तेरा क्या है। तेरे को तो ये शरीर मुफ्त का मिल गया है। तू मर चुका है। मरा तो मैं ही मरूंगा।"
"गलत मत सोच। तेरे साथ मैं भी मर जाऊंगा।"
"पता नहीं भगवान ने मेरे से किस बात का बदला लिया जो तेरे को मेरे सिर पर बिठा दिया।"
"मुझे पता है भगवान ने किस बात का बदला लिया तेरे से।"
"किस बात का, बता---।"
“तू अपनी भाभी के साथ---?"
"फिर?" अमन ओबराय भड़का--- “तूने फिर वो ही बात शुरू कर दी। मैंने कहा है, वो बात मत किया कर।"
"करोड़पति है ना?" खुदे व्यंग से बोला--- "सच बात नहीं सुन सकता।"
"मैं कुछ भी गलत नहीं कर रहा। विनोद की हालत तुमने देखी ही है। ऐसे में रानी मेरे साथ।"
"तू इस बात को ठीक समझता है?"
"गलत क्या है इसमें। मैं कुछ बुरा नहीं कर...।"
तभी देवराज चौहान और जगमोहन पास आ गये।
"खोलो मुझे देवराज चौहान।” हरीश खुदे बोला--- “इस तरह क्यों मेरी जान लेने पर लगे हो।"
देवराज चौहान ने अमन ओबराय की बांहों के बंधन खोल दिए ।
अमन ओबराय वहीं बैठा अपनी कलाइयों को मसलने लगा।
"बुरी हालत कर दी तुमने।" खुदे ने शिकायत भरे स्वर में देवराज चौहान से कहा।
देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाकर कश लिया।
जगमोहन सोफे पर जा बैठा था।
"क्या पता किया मेरे बारे में?" खुदे बोला--- “कुछ यकीन हुआ मेरी बातों का?"
"आंखों वाली बात कि तुम अमन ओबराय के शरीर में आ गये।" देवराज चौहान मुस्कराया।
"ये ही तो पूछ रहा हूँ ।"
"मरते दम तक भी तुम्हारी बकवास पर यकीन नहीं कर सकता। ऐसा नहीं होता कभी।"
"ये ही तो तेरे को समझा रहा हूं कि ऐसा हो गया है। तू समझता क्यों नहीं ?"
"तुम शहर के शरीफ बिजनेसमैन हो।"
“शरीफ? वो मैं नहीं अमन ओबराय है। मैं तो हरीश खुदे...।"
"खुदे मर चुका है।"
"यार मैं जिन्दा हूं। मेरी बात का भरोसा कर। मैंने तुम्हारा कितना साथ दिया था, कुछ तो---।"
"अब मेरी बात सुन ।”
"क्या ?"
"वो पुलिस वाला, मोहन मोरे मिला था तेरे से।”
"हां।"
"क्या पूछ रहा था?”
"डकैती के बारे में पूछ रहा था। मैंने सब कुछ बता दिया। मामला खत्म हो गया तो बताने में क्या हर्ज था।"
"और क्या पूछ रहा था?"
"और?" हरीश खुदे ने सोचा--- "तुम्हारे बारे में, तुम्हारा ठिकाना पूछ रहा था हरामी। पर मैंने नहीं बताया। क्यों बताता। मैं तेरे से गद्दारी नहीं कर सकता। क्यों करूं, तू बढ़िया बंदा है। वो उस्मान अली, पूरन दागड़े और सतीश बारू के बारे में भी पूछ रहा था परन्तु मैने कुछ नहीं बताया। मैं अपने साथियों से गद्दारी नहीं कर सकता। तब मुझे बड़ा मजा आया। मैं उसके सामने सब कुछ स्वीकार कर रहा था और वो मूर्खों की तरह मुझे देख रहा था। गिरफ्तार भी नहीं कर सकता था मुझे। क्योंकि मैं तो अमन ओबराय के शरीर में रह रहा हूं। साले का चेहरा देखने लायक था।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
जगमोहन ने गहरी सांस लेकर मुंह फेर लिया।
"तो तुमने हमारे बारे में मोहन मोरे को कुछ नहीं बताया?"
"एक शब्द भी नहीं।" अमन ओबराय का सिर इन्कार में हिला ।
"आगे भी नहीं बतायेगा।"
"कभी नहीं ।"
"किसी को भी नहीं बतायेगा। भरोसा करूं तेरा ।"
"खुदे का भरोसा नहीं करेगा तो किसका करेगा।"
"मैं तेरे को छोड़ रहा हूं। जाने दे रहा हूं। मेरे लिए किसी तरह का खतरा पैदा मत करना ।"
मैं तेरा दोस्त हूं देवराज चौहान। विश्वास रख, मेरी वजह से तेरा कभी बाल भी बांका नहीं होगा।"
"जा अब।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
अमन ओबराय खड़ा हो गया।
"तेरे को भरोसा है ना कि मैं हरीश खुदे हूं।"
"जरा भी भरोसा नहीं, पर कहीं पर तो कुछ गड़बड़ है। क्योंकि तू हर बात जानता है।" देवराज चौहान बोला।
"मैंने तो सोचा था कि तू मानेगा कि मैं हरीश खुदे हूं।” हरीश खुदे ने अफसोस भरे स्वर में कहा।
"जो मर गया वो जिन्दा नहीं हो सकता।"
"मैं मर जरूर गया था परन्तु मेरी आंखें खुली रह गई थी देवराज चौहान। मेरा सारा जीवन मेरी खुली आंखों में सिमट आया था और मेरी जिन्दा आंखें जब अमन ओबराय को लगाई गई तो मैं ओबराय के भीतर जीवित हो उठा।" खुदे बोला--- “इतनी सी बात है जो तेरी समझ में नहीं आ रही।"
"मैं तेरी बात कभी भी नहीं मान सकता।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।
“उधर टुन्नी नहीं मानती। इधर तू नहीं मानता। कोई तो मेरी बात का भरोसा---।"
“तूने दूसरों को विश्वास दिलाकर क्या करना है?" अमन ओबराय कह उठा--- "मेरे को विश्वास है, क्या तेरे को इसमें खुशी नहीं। मेरे साथ जिन्दगी जी। छोड़ इन सबको।"
"लेकिन कोई तो।" खुदे ने कहना चाहा।
"तू मेरे शरीर में घुसा बैठा है। तेरा शरीर जल चुका है। लोगों को सामने अमन ओबराय नज़र आता है। हरीश खुदे नहीं। अब अमन ओबराय लोगों से कहेगा कि वो हरीश खुदे है तो लोग क्यों मानेंगे।” ओबराय ने उसे समझाया।
"तू ठीक कहता है।" हरीश खुदे ने दुःख भरे स्वर में कहा--- “हरीश खुदे मर गया है।"
"मर कहां गया है। मेरे भीतर रहता है। जिन्दा है वो। मैं तो इस सच को जानता हूँ। लोगों से ये बात कहने की जरूरत ही क्या है।"
हरीश खुदे ने कुछ नहीं कहा।
"चल यहां से। नमस्ते कर दे देवराज चौहान और जगमोहन को। अब दोबारा इधर नहीं आना।"
हरीश खुदे ने दोनों को देखा और हाथ जोड़ दिए।
"मैं चलता हूं।" हरीश खुदे ने भारी और दुखी स्वर में कहा।
दोनों उसे देखते रहे।
अमन ओबराय पलटा और बाहर निकलता चला गया।
देवराज चौहान और जगमोहन के बीच कुछ देर तक खामोशी रही फिर देवराज चौहान कह उठा।
"कुछ बात तो है ही। जिन्दा आंखें? नहीं, ये नहीं हो सकता। ये सम्भव ही नहीं है।"
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शाम के सात बज रहे थे। टुन्नी आज दाल बना रही थी। घर का दरवाजा खुला था। टीवी चल रहा था। परन्तु आदत के अनुसार वो टीवी देख सुन नहीं रही थी। घर का काम करते वक्त, चेहरे पर सोचें दौड़ रही थी। सतीश बारू के बारे में सोच रही थी कि वो उसका हाथ थामने को तैयार था। शादी करने को तैयार था परन्तु दोबारा पलटकर आया ही नहीं वो। टुन्नी अपनी जिन्दगी को सामान्य ढर्रे पर लाने की सोच रही थी। किसी ना किसी भले इन्सान का हाथ थाम लेना चाहती थी कि सहारे के साथ जिन्दगी कट जाये। उसका सारा वक्त इन्हीं सोचों में बीत जाता था।
तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई।
टुन्नी किचन से निकलकर खुले दरवाजे पर पहुंची तो ठिठक गई।
सामने सतीश बारू खड़ा था। वो टुन्नी को देखकर मुस्कराया।
"आ।" टुन्नी ने सिर हिलाया।
बारू भीतर प्रवेश कर आया।
“बैठ ।" टुन्नी ने सोफे की तरफ इशारा किया--- “पानी लाती हूं।"
बारू बैठ गया।
टुन्नी ने फ्रिज का ठण्डा पानी लाकर उसे पिलाया।
"आज गर्मी बहुत है।" बारू इधर-उधर देखता कह उठा--- "तूने तो कूलर भी नहीं लगा रखा।"
"पैसे नहीं है इतना खर्चा उठाने के लिए।" टुन्नी ने शांत स्वर में कहा और उसके सामने बैठ गई।
"देवराज चौहान नहीं आया?" बारू ने पूछा।
"किस वास्ते?"
"पैसे देने के लिए। वो कहता था कि हरीश खुदे की पत्नी को पैसे---।"
“आया था वो।” टुन्नी बारू को देखते बोली--- “पैसे देने की बात कर रहा था। मैंने लेने से मना कर दिया।"
"मना कर दिया?" बारू के होंठों से निकला।
“हां। मुझे नहीं चाहिये वो पैसा। मेरा पति नहीं रहा तो पैसे का क्या करना है मैंने।"
“पैसा तेरी जिन्दगी संवारने के काम आता ।"
"जिन्दगी संवरनी होगी तो वैसे ही संवर जायेगी।" टुन्नी ने बारू को देखा।
"तेरी मर्जी। मेरा तो ये ही विचार है कि तेरे को पैसा ले लेना चाहिये था।" बारू बोला--- “आगे तेरी मर्जी ।"
टुन्नी चुप रही।
"देवराज चौहान ने मुझे पांच करोड़ दे दिया है।" बारू ने कहा।
"अच्छा।”
“मैं गांव गया था। पैसा वहीं रख आया हूं। अब गांव में ही टिकने की तैयारी कर रहा हूं।"
टुन्नी ने कुछ नहीं कहा।
“तूने मेरी बात पर क्या सोचा?" बारू ने पूछा।
"शादी वाली बात ?"
सतीश बारू ने सहमति से सिर हिलाया।
“मेरे पास पैसा नहीं है। ऐसे में तू मेरे से शादी करके क्या करेगा ?” टुन्नी बोली।
"मेरे पास पांच करोड़ है। गांव में तो पांच करोड़ भी कभी नहीं खत्म होगा। खेती करूंगा उधर। आराम से रहेंगे। किसी चीज की कमी नहीं होगी। मेरा सारा परिवार उधर ही है। तू चल, उधर खुश रहेगी।"
टुन्नी कुछ पल चुप रही। फिर बोली।
"ये तेरा उबाल तो नहीं है, जो दो महीनों में ठण्डा हो जाये और तू सोचे कि टुन्नी के साथ शादी क्यों कर ली ?"
"ऐसा नहीं होगा।" बारू ने कहा।
"खुश रखेगा मुझे।"
"पूरी तरह---।"
"फिर से गलत धंधे में तो नहीं पड़ जायेगा। मैं शरीफ आदमी के साथ शादी करना चाहती हूं।"
"अब तक जो किया सो किया। अब शराफत से जिन्दगी बिताऊंगा। एक बार मेरे साथ चल के तो देख।"
"ये कोई खेल नहीं है कि कभी तेरे साथ चलूं तो कभी किसी और के साथ। सोचना पड़ता है। शादी के बाद आदमी के सामने पूरे कपड़े उतारने पड़ते हैं। ये छोटी बात नहीं होती। बार-बार नया आदमी मुझे पसन्द नहीं है। पहले हरीश खुदे के साथ शादी की तो उसकी बनकर रही, अब जिससे शादी करूंगी तो उसी की बनके रहूंगी। मैं शादी करके देखने वाली बात पर विश्वास नहीं करती। पक्की बात चाहती हूं कि तू शादी के बाद ठीक से निभायेगा ?”
“हां।” बारू मुस्कराया--- “तू खुश रहेगी।"
"पसन्द करता है मुझे?"
"हां। तभी तो तेरे से शादी करने को कह रहा हूं। नहीं तो क्यों कहता। एक ही बार में तू मुझे पसन्द आई थी।”
"शादी में मेरी तरफ से देवराज चौहान शामिल होगा। तूने उसके सामने कहना होगा कि मुझे खुश रखेगा।" टुन्नी बोली।
"मंजूर है।"
“मुझे कोई तकलीफ दी तो देवराज चौहान को जवाब देना पड़ेगा।"
“चिन्ता मत कर। तू खुश रहेगी। मैं ये बात देवराज चौहान से भी कह दूंगा।" बारू बोला।
"खाना खाकर जाना। मैंने दाल चढ़ा रखी है। कौन-सी दाल तेरे को खाने में ज्यादा पसन्द है?" टुन्नी मुस्करा पड़ी।
"जो तू बनाकर खिला दे ।" सतीश बारू मुस्करा पड़ा।
“मुझे इतना भी खुश मत रखना कि तू दुखी हो जाये। बस, मजे से जिन्दगी कटनी चाहिये।"
सतीश बारू पुनः मुस्कराकर रह गया।
“कुछ दिन पहले ही मेरा पति मरा है। ऐसे में चुपचाप शादी करना ही ठीक होगा। मैं अब यहां नहीं रहना चाहती। इस घर में मेरा मन नहीं लगता। पति की याद आ जाती है कभी-कभी। यहां से दूर चली जाऊंगी तो ठीक रहेगा।"
"तभी तो कहता हूं कि शादी करके गांव चलते हैं। इधर ताला लगा देना।"
"कब करेगा शादी?"
"मैं पूरी तरह फुर्सत में हूँ। मुम्बई में पुलिस मुझे डकैती के सिलसिले में पकड़ सकती है। मैं यहां सिर्फ तेरे वास्ते आया हूँ।"
"कल मन्दिर में शादी करके, वहीं से सीधा गांव निकल लें।" टुन्नी ने कहा।
“ये तो अच्छी बात होगी ।"
"मैं देवराज चौहान को अभी फोन कर देती हूं। वो मन्दिर में फेरों का इन्तजाम करा देगा। कल सुबह का वक्त रख लेते हैं शादी का। मैं भी मुम्बई से दूर चले जाना चाहती हूं। इधर अब मेरे लिए कुछ नहीं...।"
तभी दरवाजे पर आहट हुई। दोनों की नज़रें घूमी ।
दरवाजे पर अमन ओबराय खड़ा था।
टुन्नी ने उसे देखा तो देखती रह गई।
"टुन्नी।" अमन ओबराय के भीतर मौजूद हरीश खुदे बोला--- “मौहल्ले वालों को मत बुलाना, मैं तेरे से बात---।"
“भीतर आ जा।" टुन्नी ने गम्भीर स्वर में कहा।
अमन ओबराय भीतर आया और बैठ गया। बारू को देखा।
"तू मेरे घर पर क्या कर रहा है बारू ?" हरीश खुदे ने बारू से कहा।
एक अजनबी के होंठों से अपना नाम सुनकर बारू चौंका।
"कौन हो तुम?" बारू ने अचकचाकर अमन ओबराय को देखा ।
“मुझे नहीं पहचाना। मैं हरीश खुदे हूं बारू। खुदे जिसे सोनी ने गोली मार दी थी।"
बारू एकाएक बुरे हाल में बेचैन दिखने लगा। वो टुन्नी से बोला।
"ये... ये कौन है, कैसी बातें कर रहा है। खुद को हरीश खुदे कह रहा है।"
टुन्नी गम्भीर नज़र आ रही थी।
"बारू ये अमन ओबराय है। मैंने हरीश खुदे की आंखें दान देने को बोल दिया था और इसकी आंखें एक्सीडेंट में चली गई थी तो खुदे की दोनों आंखें इसे लगा दी गई।" टुन्नी कह रही थी--- "अब ये कहता है कि खुदे की आंखें लगने के बाद इसमें हरीश खुदे आकर रहने लगा। खुदे जो जानता था वो ये भी जानने लगा। ये मुझसे ऐसे बात करता है जैसे मेरा पति हो।"
"पति हो?" बारू ने अमन ओबराय को घूरा--- "ये कैसे हो सकता है?"
“मैं तेरा पति ही हूं टुन्नी ।” हरीश खुदे ने कहा--- “मेरा शरीर ही तो बदला है।"
टुन्नी ने अमन ओबराय को देखा और कह उठी।
“तेरे बारे में बात करने के लिये आज मैंने उस पुलिस वाले को बुलाया था वो---।"
"मोहन मोरे?"
"हां। सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे को।" टुन्नी गम्भीर थी--- "तेरे बारे में जब बात की तो वो कहने लगा ये बात सच है। अमन ओबराय में तब से खुदे मौजूद रहने लगा है, जब से उसे हरीश खुदे की आंखे लगी हैं।"
सतीश बारू ध्यान से सब बातें सुन रहा था।
“शुक्र है, किसी ने तो माना।" हरीश खुदे ने गहरी सांस ली।
“मुझे नहीं भरोसा कि मोरे सही कह रहा है, पर वो कहता है तो बीच में जरूर कुछ होगा ही।"
"मैं सच में तेरा पति हूं टुन्नी, खुदे तेरा ही---।"
"तू मर चुका है।" टुन्नी ने ओबराय को देखा।
"तो क्या हो गया। मेरा शरीर ही मरा है। परन्तु मैं तो अमन ओबराय का शरीर इस्तेमाल करने लगा हूं अब ।”
"ये बात कोई मानेगा?"
हरीश खुदे चुप रहा।
"कोई नहीं मानेगा कि---।"
“कोई माने या ना माने, तू तो मानती है ना। बस तो हम दोनों खुश हैं, अब हमें क्या...।"
“मैं नहीं मानती।” टुन्नी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मैं तो तुझे वो बात बता रही हूं जो मुझे मोरे ने कही। वो सच कहता है या झूठ, ये मैं नहीं जानती, पर मैं उसकी बात को इज्जत देते, तेरे से आराम से बात कर रही हूं। तू अमन ओबराय है या हरीश खुदे, इससे मेरी जिन्दगी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हकीकत में तू अमन ओबराय ही---।"
"टुन्नी, क्यों नहीं मानती कि मैं तेरा पति---।"
“तू जो भी है, कान खोलकर सुन।” टुन्नी ने पूर्ववत् स्वर में कहा--- "तेरा शरीर मुझे कहीं भी नहीं दिख रहा, जिससे मैं प्यार करती थी। मेरे सामने अमन ओबराय का शरीर है। जिसे मैं जानती तक नहीं। फिर तू खुदे कैसे हो गया?"
"मैं ओबराय के शरीर के भीतर रहता हूं।"
"तो बाहर निकल, मुझे हरीश खुदे बनके दिखा। तब तू मेरा पति कहलाने के लायक होगा।"
"मैं-मैं ऐसा नहीं कर सकता। क्योंकि मैं मर चुका हूं और---।"
"मर चुका है ना?"
“पर ओबराय के भीतर जिन्दा--।"
"तू मर चुका है। तेरा शरीर जला दिया गया। अब तू ओबराय के भीतर पहुंच जाये अपनी आंखों के माध्यम से या भगवान के घर जाकर रहने लगे। इससे मुझे क्या। मर तो गया ना तू?”
“टुन्नी तू कैसी बातें कर रही?"
"सब जानते हैं कि तू मर चुका है। तू खुद भी ये बात मानता है।”
“पर तू क्यों नहीं मानती कि मैं अमन ओबराय के शरीर में रहने लगा---।"
"मैं भी नहीं मानती। पर मोरे की बात को दो पल के कुछ लिए, सच मानकर मैं तेरे से बात कर रही हूं तू जो भी हो, मैं इस वक्त तुझे इज्जत देकर बात कर रही हूं, समझदारी इसी में है कि मेरी बात को समझ। हरीश खुदे मर चुका है जो मेरा पति हुआ करता था। अब तू जो भी है, बार-बार मेरे पास आकर मेरे को परेशान करना छोड़ दे। नहीं तो मोहल्ले वालों को इकट्ठा कर लूंगी। पुलिस को बुला लूंगी। तेरे को जेल में पहुंचा दूंगी।"
“तू मुझे जेल में पहुंचायेगी टुन्नी ।"
"अगर तू फिर मेरे पास आया तो।" टुन्नी का स्वर सख्त हो गया।
हरीश खुदे ने आहत भाव से, टुन्नी को देखा।
“इज्जत इसी में है कि निकल ले।" अमन ओबराय बोला--- "वो ठीक कह रही है कि जब तू मर गया तो तेरे से उसका मतलब ही क्या? तू मेरे शरीर में रहे या भगवान के घर में तू अब मेरी इज्जत मिट्टी में मत मिला।"
"तू कहां का इज्जतदार हो गया। अपनी भाभी के साथ---।"
"फिर वो ही बात।" अमन ओबराय गुस्से से बोला--- "तेरे को कितनी बार कहा है कि---।"
"अब टुन्नी का क्या करूं। ये तो मुझे मरा समझ रही है ।" खुदे बोला।
"तेरे को मरा नहीं समझेगी तो और क्या समझेगी ?"
"पर मैं तो जिन्दा हूं।"
"कितनी बार कहूं कि तू दुनिया के लिए मर गया है पर मेरे शरीर में आकर रहने लगा है। ये सच सिर्फ मैं ही जानता हूं। लाख समझाने पर भी दूसरा नहीं समझ सकता। ऐसे में अब तेरे को भी मान लेना चाहिये कि दुनिया के लिए तू मर चुका है। ये ही सच है।"
हरीश खुदे ने कुछ नहीं कहा।
"फिर मर गया तू?" अमन ओबराय कह उठा ।
"सोच रहा हूं।”
"क्या?"
“समझ में नहीं आता कि क्या सोच रहा हूं।” हरीश खुदे का स्वर परेशान था--- "तेरे को मेरे पर तरस नहीं आता?"
"जरा भी नहीं। क्योंकि जो बंदा मर जाये, उस पर तरस कभी नहीं आ सकता। क्योंकि वो दिखता ही नहीं ।"
"तू तो चाहता ही यही है कि मैं टुन्नी से दूर हो जाऊं और तू रानी के साथ मजे उड़ा सके।"
“वो तो मैं उड़ाऊंगा ही। ये मेरा शरीर है। मेरी जिन्दगी है। मुझे मजे लेने का हक है।"
“मैं तो अब परेशान होने लगा हूं ऐसे जीवन से, जहां मुझे कोई पहचाने ना। टुन्नी भी परायों की तरह---।”
"परेशान होने की जरूरत नहीं। मैं कब से तेरे को समझा रहा हूं कि तू मर चुका है। तेरा शरीर ख़त्म हो चुका है। अब तू मेरे शरीर के भीतर रहता है तो मेरे शरीर को पूरी तरह स्वीकार करके अपनी नई जिन्दगी की शुरुआत कर। अपनी पहले की जिन्दगी को, अब की जिन्दगी में मत ला, तभी सुखी रहेगा।"
हरीश खुदे ने गहरी सांस ली फिर टुन्नी से बोला ।
"मैं आज देवराज चौहान से मिला, उसने मुझे बताया कि उसने तुम्हें एक सौ पांच करोड़ दे दिए हैं।"
टुन्नी की निगाह सतीश बारू की तरफ उठी फिर ओबराय को देखने लगी।
"पैसा तुझे मिल गया ना टुन्नी?” हरीश खुदे ने पुनः पूछा।
"हां।" टुन्नी ने शांत स्वर में कहा।
"कहां रखा है इतना पैसा ?"
"संभाल रखा है।"
अमन ओबराय, बारू को देखकर कह उठा।
"शायद तू इसके सामने बात नहीं करना चाहती।"
"मैं तेरे से बात नहीं करना चाहती इस बारे में।" टुन्नी ने कहा।
"क्यों?"
"क्योंकि तू मेरा कुछ नहीं लगता। मैंने मोरे की बातों में आकर तेरे को समझाने की खातिर घर में बिठा लिया है। अब मैंने तेरे को जो कहना समझाना था, बता दिया। समझदार होगा तो तू फिर दोबारा इधर नहीं आयेगा।"
"क्या? मैं ना आऊं टुन्नी, ये तू कह रही है।"
"वो ठीक तो कह रही है।" अमन ओबराय कह उठा--- "ये मैं हूं। वो मुझसे, अमन ओबराय से कह रही है। तू है ही कहां?"
"टुन्नी-टुन्नी कहना छोड़ और अब जा। दोबारा मत आना मेरे पास वरना लोगों को इकट्ठा कर लूंगी, पुलिस को बुला लूंगी।"
परेशान से हरीश खुदे ने पहलू बदला।
"और ये, ये बारू तेरे पास क्यों आया। इसका तेरा क्या वास्ता?" हरीश खुदे उखड़े स्वर में बोला ।
"हम शादी करने वाले हैं।" टुन्नी ने कहा।
"शादी? कौन शादी, किसकी शादी?"
"मेरी और सतीश बारू की शादी--।”
"तू पागल हो गई टुन्नी जो मेरे होते, इस आदमी से शादी कर रही है। अगर तेरे को शादी करनी ही है तो मुझसे कर मैं---।"
"तुझसे?"
"हाँ। मैं।"
"कौन है तू?"
"मैं-मैं तेरा पति हरीश खुदे ।"
"बस बहुत हो गया।" टुन्नी के चेहरे पर गुस्सा उभरा--- "तू चला जा वरना मैं मोहल्ले वालों को---।"
"निकल लो।” अमन ओबराय बोला--- “क्यों मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ाता है।"
“टुन्नी तू मुझे समझती क्यों नहीं, मैं---।"
तभी सतीश बारू उठता हुआ कठोर स्वर में बोला।
"तेरे को मेरी भाषा समझ में आयेगी। तेरे को खुश होना चाहिये कि खुदे की आंखों ने तेरे को नई जिन्दगी दे दी। उसकी आंखें तेरे को क्या लगी तू खुद को टुन्नी का पति मानने लगा। खड़ा हो और निकल यहां से वरना...।"
"क्या ?” हरीश खुदे गुस्से से कह उठा--- "तू मेरे को, मेरे घर से निकाल रहा है और मेरी पत्नी के साथ बैठा...।"
"निकल ले। ये ना तेरा घर है ना ये तेरी पत्नी ।" अमन ओबराय परेशान स्वर में कह उठा--- “मेरे को जूतियां पड़वायेगा अब क्या। मेरे जैसे करोड़पति का तूने तो क्या हाल कर दिया। अब तो चल पड़---।"
तभी बारू ने झपट्टा मारा और अमन ओबराय की कमीज का कॉलर पकड़कर गुर्राया ।
“बताऊं तुझे तेरी तो---।" बारू ने उसे घूंसा मारना चाहा कि टुन्नी कह उठी।
"रहने दे बारू। मत मार इसे।"
बारू ठिठक गया। कमीज का कॉलर छोड़कर गुर्राया ।
"दोबारा कभी तेरे को इधर देखा तो---।"
“देख लूंगा तुझे।” हरीश खुदे दांत पीसकर कह उठा--- "तेरे बारे में तो इंस्पेक्टर मोरे को जरूर बताऊंगा। वो मुझसे पूछ रहा था परन्तु मैंने अपना मुंह बंद रखा। पर तेरे बारे में उसे जरूर बताऊंगा कि डकैती का एक मुजरिम सतीश बारू टुन्नी के पास आता-जाता है। सीधा तेरे को जेल ना पहुंचा दिया तो कहना...।”
“चला जा।" बारू गुर्राया--- "वरना बहुत मार खायेगा ।"
“अब तो चल ।” अमन ओबराय बोला--- “मेरी ठुकाई करवा के ही तेरे को चैन मिलेगा क्या?"
हरीश खुदे ने टुन्नी को देखा और शिकायत भरे स्वर में बोला।
"तू मेरे साथ ठीक से व्यवहार नहीं कर रही टुन्नी। तू मेरे साथ बुरा व्यवहार कर रही...।"
"मैं तेरे बारे में मोहन मोरे से शिकायत करूंगी।" टुन्नी ने गुस्से से कहा ।
अमन ओबराय पांव पटकता बाहर निकलता चला गया।
“कैसे-कैसे लोगों को तुम घर में आने देती हो।" सतीश बारू ने टुन्नी से कहा।
"कोई बात नहीं। थोड़ा सनक गया है, मेरे पति की आंखें मिलते ही। ठीक हो जायेगा।" टुन्नी ने सोच भरे स्वर में कहा।
"ये एक सौ पांच करोड़ वाली क्या बात है?" बारू बोला।
"कुछ नहीं। तेरे को बताया तो देवराज चौहान मुझे पैसे देने आया था, पर मैंने नहीं लिए।"
"पर वो तो कह रहा था तुझे पैसे दे दिए और तूने भी हां कहा।"
“वो पागल था। उसे टालने के लिए ऐसा कहना पड़ा। खुद को हरीश खुदे समझ रहा है। मेरे को देवराज चौहान ने कुछ नहीं दिया। दिया तो मैंने नहीं लिया। कल देवराज चौहान मिलेगा तो पूछ लेना।"
"मुझे क्या करना है पूछ के।" बारू ने गहरी सांस ली--- "मेरे को पैसा नहीं चाहिये। तू चाहिये। कल हम शादी कर रहे हैं ना?"
"हां। मैं अभी देवराज चौहान को फोन करके कहती हूं कि मन्दिर में फेरों का इन्तजाम करा दे।" टुन्नी बोली--- “और तू ऐसे नहीं जायेगा। मैं खाना बना रही हूं। खाकर जाना। पहली बार तू मेरे हाथों का बना खाना खायेगा और अब सारी उम्र खाता रहेगा। मैं भी तेरे को बहुत खुश रखूंगी, ऐसी कि तू टुन्नी-टुन्नी कहता मेरे पीछे भागता रहेगा। हम दोनों बहुत मजा लेंगे जिन्दगी का।"
■■■
"तुझे साथ रख के मुझे क्या-क्या सहना पड़ रहा है।" अमन ओबराय खुन्दक भरे स्वर में कह उठा--- "तेरे से पीछा भी नहीं छुड़ा सकता। अब मैं ये भी भूलने लगा हूं कि मैं इज्जतदार करोड़पति अमन ओबराय हूं।"
"इसमें भूलने वाली क्या बात है।” हरीश खुदे ने तीखे स्वर में कहा--- "वो तो तेरे को दो मिनट में याद आ जायेगी कि तू इज्जतदार करोड़पति है। तेरी इज्जत की मुझसे ज्यादा कौन चिन्ता कर सकता है।"
"कैसे याद आयेगा ?"
"बंगले पर जाकर साढ़े पांच हजार की बोतल खोलना और रानी को गोद में बिठा लेना, बस बन गया इज्जतदार करोड़पति।"
"मेरा मजाक उड़ा रहा है।"
“तू भी तो मेरा मजाक उड़ा रहा है।" हरीश खुदे गम्भीर हो उठा--- "तू देख ही रहा है कि मैं कैसे मुसीबत के दौर से निकल रहा हूं और ऊपर से तू मुझे कहता है कि मुझे सह रहा है। मेरे से पीछा नहीं छुड़ा सकता। बड़ी आसानी से तू पीछा छुड़ा सकता है। तेरे को पहले भी कहा है कि मेरी आंखें निकालकर कूड़े में फेंक दे। मेरे से पीछा छूट जायेगा ।"
"तेरी आंखें अब मेरी आंखें बन चुकी हैं। नहीं फेंक सकता।"
"तो मुझे सहने की आदत डाल ले।”
"तू जो जगह-जगह जाकर मेरी बेइज्जती कराता फिर रहा है, ये ही बात मुझे पसन्द नहीं आ रही।"
“मेरे दिल पर क्या बीत रही है ये नहीं देखा तूने। वो कमीना सतीश बारू मेरे घर में बैठा, मेरी पत्नी के सामने, मेरे पर हुक्म चला रहा है। टुन्नी कहती है कि वो उससे शादी करने जा रही हैं। मेरे को घर से निकल जाने को कहती...।"
"यहीं पर तो तू गलत है। मेरी बात को तू समझता क्यों नहीं कि इस दुनिया में शरीर ही इन्सान की पहचान होती है। नाम तो बदले जा सकते हैं परन्तु शरीर नहीं। शरीर गया तो इन्सान भी गया। इसी तरह तेरा शरीर भी इस दुनिया से जा चुका है। दुनिया की नज़रों में तू मर चुका है। जब तू मर गया तो तेरी मौजूदगी दुनिया कैसे स्वीकार करेगी।” अमन ओबराय ने समझाया।
"मुझे क्या समझाता है, तू क्या समझता है कि मेरे में अकल नहीं है।"
“तू सब समझता है तो मेरे शरीर में बैठकर, दूसरों को ये क्यों कहता है कि तू हरीश खुदे है।"
“दिल नहीं मानता कि मैं मर गया हूं। इसलिये कोशिश करता हूं अपनी बीती जिन्दगी में लौट सकूं।"
"नहीं लौट सकता। तू मर चुका है और तेरी आंखें मुझे लगाई गई तो जाने किस करिश्में के तहत तू मेरे शरीर में प्रवेश कर गया। मैं तो मानता हूं कि तू हरीश खुदे है। क्योंकि तू मेरे शरीर में रह रहा है, परन्तु ये बात दुनिया कभी भी नहीं मान सकती।”
“सही कहता है तू ।” हरीश खुदे ने गहरी सांस ली।
"तू देवराज चौहान से मिला। टुन्नी से आज दोबारा मिला । क्या कोई फायदा हुआ?" अमन ओबराय ने पूछा।
"कोई फायदा नहीं हुआ। वो मुझे हरीश खुदे मानने को तैयार नहीं, क्योंकि मैं मर चुका हूँ और वो इस बात को कैसे स्वीकार करे कि मरने के बाद मैं अमन ओबराय के शरीर में आकर रहने लगा हूँ। ये ऊपर वाले का ही कोई करिश्मा है जो जाने कैसे हो गया।"
"अब तू ठीक तरह से बात कर रहा है।"
"क्योंकि मुझे समझ में आ गया है कि दुनिया अब मुझे हरीश खुदे नहीं मानेगी।"
"बिल्कुल ठीक।" अमन ओबराय ने सिर हिलाया--- "तेरा और मेरा फायदा इसी में है कि तू हरीश खुदे बनना छोड़ दे। मेरे भीतर इसी तरह रह और हरीश खुदे बना रह मुझे बिजनेस करने दे। अपनी जिन्दगी बिताने दे और मेरी जिन्दगी में ही, अपनी जिन्दगी को महसूस कर। इस तरह तू आराम से रह पायेगा और मैं भी तनाव मुक्त रहूंगा।"
"तेरी बात मैंने पल्ले बांध ली।"
"तो अब नहीं जायेगा ना टुन्नी के पास?"
"कभी नहीं।"
"देवराज चौहान के पास?"
"उसके पास भी नहीं। मुझे अपनी बीती जिन्दगी, पहले के सारे सम्बंध छोड़ देने होंगे। समझ ले छोड़ दिए।"
“तू अचानक ही इतना समझदार कैसे हो गया?" अमन ओबराय शक भरे स्वर में बोला।
"जब से टुन्नी ने मुझे बताया है कि वो सतीश बारू के साथ शादी करने जा रही है। तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मैं सच में मर चुका हूं। मेरा शरीर खत्म तो इस दुनिया से मैं भी खत्म। टुन्नी मुझे बहुत प्यार करती थी और मुझे मरे कुछ ही दिन हुए कि उसने अपने लिए नया दुल्हा भी ढूंढ लिया। ये शरीर का प्यार था। जिस्मानी प्यार था । इन्सान नज़र आता रहे तो सब कुछ ठीक है अगर वो मर जाता है तो लोग आनन-फानन उसे शमशान ले भागते हैं कि जला कर गंदगी दूर की जा सके। दुनिया का रस्म-रिवाज देख कर मेरा तो मन उखड़ गया है। मैं क्यों तेरे शरीर में आ गया। पूरी तरह मर गया होता तो मुझे आराम मिलता।"
“अब तू दिल छोटा करने वाली बातें कर रहा है।" अमन ओबराय ने कहा ।
"पर मैं जो कह रहा हूं वो सच है।" हरीश खुदे बोला।
“यही दुनिया है। सब दुनिया के साथ चलते हैं तो, हमें भी इसी दुनिया के साथ चलना है।"
“मैं तेरा शुक्रिया अदा करता हूं कि तूने मुझे अपना शरीर इस्तेमाल करने दिया।"
"मैंने कहां करने दिया। तू तो इन जिन्दा आंखों के माध्यम से मेरे शरीर में घुस आया। लेकिन मैं भी तेरा एहसानमंद हू कि तेरी आंखें बहुत बढ़िया हैं तेरी आंखों से मैं फिर से दुनिया देख रहा हूं।"
"हमारा साथ जन्म भर का रहेगा। हम एक-दूसरे के सुख-दुःख के साथी हैं।” हरीश खुदे गम्भीर था।
"हां, हम हमेशा साथ रहेंगे।"
"पर अभी हमारे सामने एक भारी समस्या है।"
" फिर समस्या---तू ।”
“मेरी नहीं, तेरी समस्या है।” हरीश खुदे ने कहा--- "कोई तेरे को मार देना चाहता है। ये भी तो देखना है कि कौन तेरे को मारना चाहता है। किसी ने तेरे को मार दिया तो, हम दोनों ही मर जायेंगे ।"
"हां, ये परेशानी वाली बात तो है ही। पहले किसी ने विनोद को खत्म करना चाहा, फिर मेरे को...।"
"देखना पड़ेगा कि कौन करना चाहता है ऐसा। सच पूछ तो मेरा शक रानी पर है।"
"नहीं।" अमन ओबराय ने दृढ़ स्वर में कहा--- “रानी ऐसा नहीं...।"
“विनोद के और तुम्हारे मरने से सारी दौलत और कारोबार की मालिक रानी बन जायेगी ।"
“रानी ऐसी नहीं है। वो बहुत अच्छी है। तू उसे देख ही चुका है।"
"तो फिर और कौन है जिसे तुम दोनों भाइयों के मरने का फायदा हो। किसी से खानदानी दुश्मनी है?"
“नहीं। हम बिजनेसमैन लोग हैं। लड़ाई-झगड़ा दुश्मनी में यकीन नहीं रखते।" ओबराय बोला।
“लेकिन कोई तो है ही जो तुम दोनों भाइयों को खत्म करना चाहता है। पैसा लाया है?” हरीश खुदे ने पूछा।
“हां। तीन लाख है। सीट के पीछे की जेब में रखा है ।" अमन ओबराय ने कहा।
“पुलिस स्टेशन चलते हैं। वहां मैं बात करूंगा। तू नहीं बोलेगा। इन पुलिस वालों से बात करना मुझे अच्छी तरह आता है। तेरे जैसों के सिर पर प्यार से हाथ फेर कर वापस भेज देंगे। पर मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते।” हरीश खुदे बोला।
■■■
अमन ओबराय पुलिस स्टेशन पहुंचा। रात के नौ बज रहे थे। पुलिस स्टेशन में दिन की भांति चहल-पहल थी। कहीं पुलिस वाले दो पार्टियों का मामला सुलझाने में लगे थे तो कहीं वैन लेकर पैट्रोलिंग पर जा रहे थे। यहां हर तरफ व्यस्तता का आलम नज़र जा रहा था। पुलिस स्टेशन बड़ा था। भीतर तक उसके कमरे जा रहे थे। अमन ओबराय सीधा इंस्पेक्टर के कमरे में पहुंचा तो वो खाली मिला। एक कांस्टेबल से पता करने पर पता चला कि इंस्पेक्टर साहब मीटिंग में, हैडक्वार्टर गये हुए हैं।
"इंस्पेक्टर तो है नहीं।” हरीश खुदे बोला।
"सब-इंस्पेक्टर रतन चावड़े से बात कर। वो जानता है मेरे केस को।” ओबराय बोला ।
"वो किधर होता है।"
रतन चावड़े को पूछकर ओबराय एक कमरे में पहुंचा तो चालीस बरस के लम्बे कद वाले सब-इंस्पेक्टर को वहां मौजूद पाया जो अमन ओबराय को सामने पाकर फौरन उठता हुआ कह उठा।
"ओह मिस्टर ओबराय । आइये बैठिये।”
ओबराय ने उससे हाथ मिलाया।
"इंस्पेक्टर साहब तो हैं नहीं।” हरीश खुदे बोला--- “सोचा तुमसे ही बात की जाये इंस्पेक्टर ।"
“क्यों नहीं, आप बैठिये तो...।"
"यहां नहीं, बाहर आ जाओ। खुली हवा में बात करना ठीक रहेगा।” हरीश खुदे ने कहा।
"जैसी आपकी मर्जी ।"
सब-इंस्पेक्टर रतन चावड़े, ओबराय के साथ थाने के सामने की खुली जगह पहुंचा।
“और बाहर आ जाओ।" ओबराय बाहरी गेट की तरफ बढ़ता बोला--- "पास ही मेरी कार खड़ी है।"
वो थाने के बाहर, एक तरफ खड़ी कार के पास जा पहुंचे।
“सुनाओ चावड़े, कैसे हो?” हरीश खुदे बोला।
"फाइन मिस्टर ओबराय आने की क्यों तकलीफ की। मुझे बुला लिया होता।"
“कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे मामले का क्या हुआ ?"
“तफ्तीश चल रही है...।"
"मैं तफ्तीश के बारे में नहीं पूछ रहा। वो तो चलती ही रहती है। मैंने पूछा है, मेरे मामले का क्या हुआ?"
"हम उन लोगों को ढूंढने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, जिन्होंने आपकी कार के साथ एक्सीडेंट किया...।"
"मेरे भाई के एक्सीडेंट के बारे में भी साल भर से तफ्तीश कर रहे हो।" हरीश खुदे ने चुभते स्वर में कहा--- "तुम भी अच्छी तरह जानते हो और मैं भी अच्छी तरह जानता हूं कोई हम भाइयो को मारने की कोशिश में है। परन्तु इसमें खास बात तो ये है कि पुलिस कुछ भी नहीं कर रही। सिर्फ तफ्तीश कर रही है। पहले की बात तो और थी। मेरे भाई पर हमला हुआ था, जिसे मैंने गम्भीरता से नहीं लिया, परन्तु अब मुझ पर हमला हुआ है। मैं चुप नहीं बैठ सकता। मेरी पहुंच ऊपर तक है चावड़े। सब पुलिस कमिश्नर मेरी मुट्ठी में रहते हैं। मैं पूरा थाना हिला कर रख सकता हूँ। तुम्हारे इंस्पेक्टर की और तुम्हारी ऐसी जगह ट्रांस्फर करवा सकता हूँ जहां ऊपर की कमाई तो दूर, रात को भी बिजली ना मिले और ना ही पीने को पानी। क्या तुम मेरी ताकत देखना चाहते हो ?” हरीश खुदे के आखिरी शब्दों में बेहद कठोरता आ गई थी।
"वो मिस्टर ओबराय, हम पूरी कोशिश कर रहे...।"
हरीश खुदे ने कार का दरवाजा खोला और सीट की पिछली जेब से नोटों की गड्डियां निकाल कर पीछे की सीट पर रख दी। पांच सौ के नोटों वाली छः गड्डियां, यानी कि तीन लाख रुपया था।
"वे तीन लाख रुपया है चावड़े। सात लाख तुम्हें और दूंगा, पर मुझे ये जानना है कि असल मामला क्या है। पुलिस मेरे और मेरे भाई के मामले में ठीक से काम क्यों नहीं कर रही? जो भी बात हो साफ कहो, किसी बात की फिक्र मत करो। जो भी कहोगे वो मेरे और तुम्हारे बीच रहेगा और कुछ नहीं कहोगे तो कल तुम्हें ट्रांस्फर ऑर्डर मिल जायेंगे। अब सोच लो कि मेरे साथ मिलकर चलना है या बीच की बात छिपा कर रखनी है।” हरीश खुदे का स्वर बेहद कठोर था।
रतन चावड़े ने सूखे होठों पर जीभ फेरते ओबराय को देखा। चेहरे पर हिचकिचाहट थी।
खामोशी से भरे कई पल ऐसे ही बीत गये।
"ठीक है चावड़े।” हरीश खुदे ने शब्दों को चबाकर सख्त स्वर में कहा--- “घर जाकर अपना सामान बांधना शुरू कर दो। तुम्हारे ट्रांस्फर ऑर्डर कल...!"
"ऐसा मत कीजिये ओबराय साहब। इसमें मेरा क्या कसूर है, मैं तो---।"
"तुम लोग मेरे मामले को गम्भीरता से नहीं ले रहे। नया भर्ती पुलिस वाला भी आराम से समझ जायेगा कि मुझे और मेरे भाई को मारने की साजिश हो रही है, और तुम लोग इसे सिर्फ एक्सीडेंट कह रहे...।"
"इंस्पेक्टर साहब ऐसा कहते हैं। जब आपके भाई का साल भर पहले ऐक्सीडेंट हुआ था, तब भी मैंने इंस्पेक्टर साहब से कहा था कि ये ऐक्सीडेंट जानबूझ कर किया गया था। वो विनोद साहब को मारने की कोशिश थी और आपके ऐक्सीडेंट पर भी इंस्पेक्टर साहब से मैंने ये ही कहा।"
"तो इंस्पेक्टर ने क्या कहा?"
"उन्होंने कहा कि मामले को ऐक्सीडेंट के तौर पर दर्ज करो और कागजी तफ्तीश चलाते रहो।"
"कागजी तफ्तीश ?"
सब-इंस्पेक्टर रतन चावड़े सिर हिला कर रह गया।
"ऐसा क्यों कर रहा है इंस्पेक्टर ।"
चावड़े खामोश रहा।
"जवाब दो, चुप मत रहो।"
“ओबराय साहब मैंने मुंह खोला तो इंस्पेक्टर साहब मेरा बुरा हाल कर---।"
"मैंने तुम्हें पहले भी कहा है कि बात हम दोनों के बीच रहेगी। मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा।” हरीश खुदे ने कहा।
“पक्का ?
"वादा है मेरा।"
"और दस लाख जो आप देने को कह रहे---।"
“वो भी तुम्हारा, अब बोलो।”
"ओबराय साहब।" चावड़े धीमें स्वर में बोला--- “इस मामले को दबाने के लिए एक औरत पैसा देती है इंस्पेक्टर साहब को ।"
"औरत ?” हरीश खुदे की आँखें सिकुड़ी।
"जी। आपके भाई के ऐक्सीडेंट के वक्त भी वो थाने आई थी। एक घंटा वो इंस्पेक्टर साहब के साथ बन्द कमरे में रही और जाते वक्त पच्चीस लाख रुपया दे गई थी कि ये एक्सीडेंट बना दिया जाये। इंस्पेक्टर साहब ने मुझे बताया क्योंकि ये केस मेरे पास ही था दो लाख रुपया भी दिया इंस्पेक्टर साहब ने और इस बार भी, आपके मामले में इंस्पेक्टर साहब ने मुझे दो लाख रुपये दिया।"
"मतलब कि वो औरत मेरे एक्सीडेंट के बाद भी इंस्पेक्टर से मिली?"
"जी हाँ। इस बार जब वो आई मैं थाने में नहीं था पर इंस्पेक्टर साहब ने खुद ही बताई ये बात।"
"वो औरत कौन है?"
"मैं नहीं जानता ओबराय साहब। सच में नहीं जानता।"
"देखने में कैसी है, उसका हुलिया बताओ।"
"वो तो बुर्का पहनकर आई थी जब मैंने उसे देखा था।" चावड़े बोला---
"बुर्का पहन कर ?"
"जी।” कहकर चावड़े ओबराय को देखने लगा।
"तो तुम उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते ?"
"नहीं। कसम से नहीं ।"
“उसके बारे में पता लगाने की कोशिश करो। इंस्पेक्टर के मुंह से किसी तरह उसके बारे में जानो। ये तीन लाख रुपया उठा लो और बाकी का सात लाख कल मिल जायेगा। उस औरत के बारे में पता करो।"
"जी।" कहने के साथ ही चावड़े ने कार के पीछे की सीट से नोटों की गड्डियां उठाकर जेब में डाली और कह उठा--- “ओबराय साहब किसी से कहियेगा नहीं कि मैंने आपको इस बारे में कुछ बताया है।"
“चिन्ता मत करो। पर तुम उस औरत का पता करो। उसके पैसे अलग से दूंगा।”
रतन चावड़े पुलिस स्टेशन में चला गया।
अमन ओबराय कार में बैठा, स्टार्ट की और कार आगे बढ़ा दी। चेहरे पर गम्भीरता थी।
"सुना तूने।" खुदे सोच भरे स्वर में बोला--- "तुम दोनों भाइयों के एक्सीडेंट के पीछे किसी औरत का हाथ है।"
“पर ये जरूरी तो नहीं कि वो रानी हो।" ओबराय ने बेचैन स्वर में कहा।
“माना कि जरूरी नहीं, परन्तु वो भी हो सकती है।”
"मैं नहीं मान सकता रानी बहुत अच्छी है, वो ऐसा काम नहीं कर सकती।"
"हमें पता करना होगा कि वो औरत कौन है।"
"कैसे पता करेंगे?"
"मैं कोशिश करूंगा किसी तरह।" खुदे ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उस औरत को ढूंढ निकालना होगा।"
"इंस्पेक्टर जरूर जानता होगा कि वो औरत कौन है। वो उससे मिल चुका है।" ओबराय ने कहा।
"वो नहीं बतायेगा। क्योंकि इसमें उसके फंस जाने का भी खतरा बन जायेगा। वो मुंह नहीं खोलेगा।"
"नोट देंगे उसे।"
"मुझे सोचने दे। ये गम्भीर मामला है। मुझे तो शक है कि वो औरत रानी ही होगी।"
"रानी पे शक मत कर।"
"वो तेरी सहेली है इसलिये।"
"पता नहीं, तू रानी से खुन्दक क्यों खाता।"
“मैं खुन्दक नहीं खाता। घूम-फिर कर रानी ही सामने आती है, जिसे तुम दोनों भाइयों की मौत से फायदा होगा। चावड़े ने भी औरत का ही जिक्र किया। क्या कोई दूसरी औरत है, जो तुम दोनों भाइयों से नफरत करती हो?"
"नहीं। मेरे ख्याल में तो कोई भी नहीं है। हम इज्जतदार लोग हैं।"
"तुम्हारी इज्जत का ड्रम तो मैं देख ही चुका हूं।” खुदे हंसा--- "अब बंगले पर जाना है ना?"
“हां। कल से मैं अपने बिजनेस की तरफ ध्यान दूंगा। उसे देखना भी जरूरी है। अब देवराज चौहान और टुन्नी की तरफ नहीं जायेगा। मैं बार-बार उनके पास जाकर अपनी बेइज्जती नहीं कराना चाहता।" ओबराय बोला।
"मैंने भी उन्हें अपने दिमाग से निकाल दिया है। मेरी जिन्दगी तेरे शरीर के साथ है। उनके लिए मैं मर चुका हूं। टुन्नी तो बारू के साथ शादी करने की सोच रही है, तो मैं उसकी चिन्ता क्यों करूं।"
अमन ओबराय ने कुछ नहीं कहा।
"तो तू आज रात भी रानी के साथ मौज-मस्ती करेगा ?" खुदे ने पूछा।
"तेरे को एतराज है?" ओबराय ने चिढ़ कर कहा।
"मेरे को क्यों एतराज होगा। मुफ्त का माल है, बेशक चौबिसों घंटे ये ही काम कर...।"
"मुफ्त का माल नहीं है। बहुत महंगी पड़ती है वो। खुले नोट देता हूं खर्चे के लिए।" ओबराय उखड़ा।
"इज्जतदार करोड़पति जो ठहरा तू। सीधा बोल कि माल की ठोक-बजाकर कीमत देता हूँ।"
"ऐसा मत बोल। वो बाजारू नहीं है। उसका नाम इज्जत से लिया कर। वो मेरे भाई की बीवी है।"
हरीश खुदे जवाब में गहरी सांस लेकर रह गया।
■■■
अमन ओबराय ने बंगले में प्रवेश किया और विनोद के कमरे की तरफ बढ़ गया।
"इधर कहां?" हरीश खुदे ने पूछा।
"मैं जब भी बाहर से लौटता हूं, पांच-दस मिनट विनोद के पास बैठता हूं।" अमन ओबराय बोला।
दो-तीन नौकर दिखे थे जिन्होंने उसे सलाम किया था।
तभी सामने से रानी आ गई।
अमन ओबराय उसे देखता रह गया। काली साड़ी में वो लिपटी हुई थी। गोरा चेहरा चांद की तरह चमक रहा था। उसकी पसन्दीदा बिल्लौरी आंखों में आमंत्रण का भाव था। वो बेहद खूबसूरत लग रही थी।
"बज गई घंटी।” हरीश खुदे बोला ।
अमन ओबाय के होंठों पर मीठी मुस्कान तैर उठी ।
"हैलो रानी।" वो बोला।
“मिस्टर ओबराय ।" रानी आगे बढ़ती कह उठी--- “आप अपना मोबाइल साथ नहीं ले गये ?"
"ओह, भूल गया।"
“मोबाइल भी कोई भूलने की चीज है।" रानी ठिठकी--- “कल से मत भूलियेगा।"
वे साथ-साथ चल पड़े।
"वो अभी भी आपके भीतर है?" रानी ने सरसराते स्वर में पूछा।
"हरीश खुदे की बात कर रही हो तुम?"
"हां।"
"वो हमेशा ही मेरे भीतर रहता है।"
"मुझे बड़ा अजीब सा लगता है जान कि कोई तुम्हारे भीतर रहता है। इससे तुम्हें परेशानी नहीं होती ?"
"अब तो आदत पड़ती जा रही है।"
"वो भीतर रहकर क्या करता है?"
"कुछ नहीं। अपनी जिन्दगी बिता रहा है।" अमन ओबराय ने मुस्कराकर कहा।
"विनोद को बताया हरीश खुदे के बारे में?"
"क्या जरूरत है। मैं उसे परेशान नहीं करना चाहता।"
दोनो विनोद ओबराय के कमरे में पहुंचे।
कोई बदलाव नहीं था। हमेशा की तरह विनोद बैड पर पीठ के बल लेटा हुआ था।
"हैलो विनोद।” अमन पास पहुंचकर मुस्कराया--- “कैसे हो?"
"हमेशा की तरह।” विनोद ने शांत स्वर में कहा--- “तुम कहो, नई आंखें मिलने के बाद जिन्दगी कैसी है।"
“बढ़िया। सब कुछ पहले की तरह है।"
"बैठ जाओ। मैं बोर हो रहा था। तुमसे बातें करूंगा।”
रानी ने फौरन कुर्सी पास सरका दी। कुर्सी पर बैठता ओबराय, रानी से बोला ।
"कॉफी के लिए कह दो।"
रानी ने सिर हिलाया और बाहर निकल गई।
“मैं तुमसे कुछ खास बात करना चाहता हूं अमन, इससे पहले कि रानी वापस आये।” विनोद बोला।
"कहो।"
"रानी के साथ तुम्हारे सम्बंध हैं ना?” विनोद का स्वर शांत और नज़रें अमन पर थी।
अमन ने चौंककर विनोद को देखा। देखता रह गया।
“गलत मत समझना अमन। मैं तुमसे बहुत ही खास बात करना चाहता हूं, परन्तु ये सवाल भी जरूरी था। मैं जानता हूँ रानी किसी से भी सम्बंध बना सकती है। क्योंकि उसे जो चाहिये। वो मैं नहीं दे सकता। मेरी बात का सही जवाब देना अमन ।”
“हां।” अमन ओबराय ने बेचैनी से पहलू बदला और कह गया।
"कोई बात नहीं। इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। तुमने कुछ भी गलत नहीं किया। परन्तु मैं तुम्हें रानी के बारे में सावधान करना चाहता हूं कि अब वो विश्वास के काबिल नहीं रही। मैंने उसमें कई ऐसे बदलाव देखे हैं जो मैं ही महसूस कर सकता हूँ लेकिन बता नहीं सकता। जाने क्यों मुझे लगता है कि मेरे और तुम्हारे एक्सीडेंट के पीछे रानी का हाथ है।"
"विनोद--।" ओबराय के होठों से निकला।
"सुनते रहो। रानी आने वाली होगी। मैंने बहुत सोचा है, सोचता ही रहता हूँ इस तरह बैड पर पड़े रहकर कि हम दोनों की मौत से सिर्फ रानी को फायदा है। रिश्तेदार तो ऐसा काम नहीं कर सकते, क्योंकि उनको इसका कोई फायदा नहीं। ये काम तब से ही शुरू हुआ जब से मैंने रानी के साथ शादी की। मेरे ख्याल से वो हम दोनों को खत्म करके, सबकी मालकिन---।"
"ये तुम्हारी खामख्वाह की सोच है।" अमन ओबराय कह उठा।
"तुम्हें मेरी बात का भरोसा नहीं ?"
अमन ओबराय खामोश रहा।
"मैं तुम्हें साल भर से कहता रहा कि मेरा एक्सीडेंट नहीं हुआ था, मुझे मारने की कोशिश की गई, लेकिन जब तुम्हें भी मारने की कोशिश की गई तो तब तुम्हें मेरी बात का यकीन हुआ कि--।"
"ठीक है। मैं तुम्हारी बात का ध्यान रखूंगा।"
"सिर्फ ध्यान ?” विनोद ने अमन को देखा।
"तुम ही कहो, इसके अलावा मैं क्या कर सकता हूं। सतर्क रहूंगा।" ओबराय गम्भीर था ।
"रानी बहुत बदल चुकी है।" विनोद ने गम्भीर स्वर में कहा--- "वो मुझे तलाक भी नहीं देना चाहती, जबकि मैं उसे करोड़ों रुपया देने को तैयार हूं। यहीं से शक उठता है कि अब भी वो मेरे साथ क्यों जुड़ी हुई है। शायद वो हम दोनों को मारकर सारी जायदाद... ।"
तभी रानी ने भीतर प्रवेश किया।
विनोद खामोश हो गया।
"तुम अपना ध्यान रखो।" अमन कह उठा--- "मैं तुम्हारे लिये किसी बड़े डॉक्टर से बात करूंगा...।"
"अपने भाई की बात को तुम किस तरह ले रहे हो?” हरीश खुदे ने पूछा।
अभी-अभी ओबराय अपने बेडरूम में पहुंचा था।
"बैड पर पड़े-पड़े वो उल्टी-सीधी बातें सोचता रहता है।" ओबराय ने कहा--- "उसकी बात में कोई दम नहीं।"
"मेरा ख्याल है कि तुम्हें उसकी बात को गम्भीरता से लेना चाहिये।"
"मैं सोच भी नहीं सकता कि रानी ऐसा करने की सोचेगी भी करना तो दूर...।"
"रानी का नशा तुम्हें काफी चढ़ा हुआ है। उसके खिलाफ सुनना भी तुम्हें पसन्द नहीं।"
"मुझे आंखें मिल जाये, इसके लिए उसने बहुत मेहनत की। तुम नहीं समझोगे। ऐसे में कैसे मान लूं कि रानी ये काम कर सकती है।"
"तुम उसकी बिल्लौरी आंखों पर और मुफ्त के माल पर फिदा हो। इससे ज्यादा तुम उसके बारे में नहीं सोच सकते।"
"बेकार की बात मत कर।"
"मैं सच कह रहा हूं कि रानी ने तुम्हारा दिमाग खराब कर रखा है तुम---।"
"बकवास बंद करो।" अमन ओबराय झल्लाया--- "मैं रानी के बारे में कुछ भी सुनना नहीं चाहता।"
■■■
“जान।" रानी सरसराते स्वर में, ओबराय के गालों पर हाथ फेरती, उसकी गोद में बैठी कह उठी--- "तुमसे दूर जाने को दिल नहीं करता।"
"दूर कहां।" ओबराय का चेहरा नशे में तप रहा था--- "तुम तो हमेशा मेरे दिल में रहती हो।"
"सच ?"
“तेरी कसम रानी । मैं हर वक्त तुम्हारे बारे में ही सोचता हूं।"
"झूठे---।" रानी भी तगड़े नशे में थी।
"तुम्हारी बिल्लौरी आंखों ने मुझे लूट रखा है। तुम्हारी खूबसूरती मुझे पागल किए रहती है। तुम जैसी दूसरी नहीं देखी मैंने। तुम सबसे सुन्दर और मोहक हो। सबको भूलकर मैं तुम्हारा बन बैठा हूं।"
"ओह जान ।" रानी, ओबराय से लिपट गई।
ओबराय के हाथ उसके जिस्म पर फिरने लगे।
कमरे का माहौल गर्म हो उठा। दोनों के बीच अजीब सा तूफान उठ खड़ा हुआ।
रात के दो बज रहे थे। पूरे बंगले में सन्नाटा छाया हुआ था।
"ओह, तुम तो मुझे पागल कर दोगे।" रानी मदहोश से, सरसराते स्वर में कह उठी--- “तुम्हारे शरीर में कितनी गर्मी है। ऐसा लगता है जैसे मैं गर्म भट्टी पर बैठी हूँ। मैं जल रही हूं जान, मुझे ठण्डा करो, मैं-मैं मुझे चूमो, जोर से चूमो।"
अमन ओबराय जैसे रानी पर टूट पड़ा।
रानी की सिसकारियां गूंज उठी।
पांच-सात मिनट तक यही आलम रहा।
एकाएक रानी उसकी गोद से उठी। बैड पर पड़ा गाऊन उठाकर पहना।
“कहां जा रही हो?" ओबराय अचकचाकर बोला।
"एक मिनट जान। अभी आई, एक मिनट में।" रानी ने आगे बढ़कर उसे चूमा फिर दरवाजा खोलकर बाहर निकल गई।
ओबराय ने अपना व्हिस्की का गिलास उठाया।
"वो इस तरह क्यों चली गई?" हरीश खुदे बोला।
"कुछ याद आ गया होगा।"
"ऐसे मौके पर कभी कुछ याद नहीं आता। जरूर कोई बात है। तुम्हें उसके पीछे जाना चाहिये।" खुदे ने कहा।
"क्या पागलों वाली बातें कर रहे हो। वो आ रही है।"
“एक बार देखो तो सही कि वो क्या करने गई है।"
"चुप रहो। इस तरह की बातें करके मेरा मजा मत खराब करो।" अमन ओबराय ने तीखे स्वर में कहा और गिलास खाली किया।
"तुम मेरी बात को यूं ही क्यों उड़ा रहे हो?"
"वहम शक से भरे हो तुम। जरा सी बात को खींचकर लम्बा कर देते हो। इसमें तुम्हारा कसूर नहीं, तुम्हारी जिन्दगी ही ऐसी रही है खून-खराबा, चोरी-डकैती, शक, लड़ाई-झगड़ा...।"
“ये बातें कहकर तुम सच्चे हो जाना चाहते हो।" खुदे ने नाराजगी से कहा--- "मैंने तो सिर्फ इतना कहा है कि ऐसे मौके पर कोई भी कहीं नहीं जाता। कोई जरूरी काम याद नहीं आता। रानी को देखो, वो क्यों गई है तो तुम---।"
“बस करो। बस करो। मैं तुम्हारी तरह पागल नहीं हूं। वो आती ही होगी। देखा तुमने रानी के साथ कितना मजा आता है। वो कितना मजा देती है। तुम्हारी टुन्नी तो रानी के सामने कुछ भी नहीं होगी।"
"टुन्नी की बात मत करो। वो बारू से शादी करने जा रही है। मैं उसे जल्दी ही भुला दूंगा।" खुदे ने कहा।
"दिल पर चोट लगी।" ओबराय नशे में मुस्कुराया ।
"लगेगी ही।" खुदे ने गहरी सांस ली--- "मेरे मरने के हफ्ते बाद ही टुन्नी बारू से शादी करने को तैयार हो गई। बस इतना ही प्यार था मेरे से। एक हफ्ते में भूल गया मैं उसे। वो तो मेरे से प्यार का दम भरा करती थी।"
"इसमें टुन्नी की गलती नहीं है। दुनिया ऐसे ही चलती है। जो मर गया उसे भुला दिया जाता है और अपनी आगे की जिन्दगी देखी जाती है। वो अभी जवान है। जीवन पूरा पड़ा है तो कोई साथी भी तो चाहिये फिर तू तो...।"
तभी दरवाजे पर आहट हुई। ओबराय की नज़रें उधर घूमी ।
रानी आ गई थी और दरवाजा बंद कर रही थी।
"आ जाओ रानी। तुम्हारे बिना चैन नहीं मिलता।" अमन ओबराय नशे में प्यार भरे स्वर में कह उठा।
दरवाजा बंद करके रानी ने गाऊन उतार फेंका और उसकी टांगों पर आ बैठी ।
ओबराय ने उसे भींच लिया।
उसके बाद तो रानी ने ओबराय को नहीं छोड़ा। तूफान ऐसा उठा कि बढ़ता ही चला गया। ओबराय ने आज रानी का और भी शानदार रूप देखा कि वो कितना गर्मजोशी से, प्यार कर सकती है। सुबह चार बजे जब रानी उसके बैडरूम में गई तो ओबराय थक-टूट चुका था। रानी ने जैसे आज उसे जन्नत की सैर करा दी थी।
"तेरी रानी तो मेरे को पागल कर देगी।” खुदे ने आह भरी--- "ऐसी कमाल की औरत मैंने पहले कभी नहीं देखी।"
"मानता है ना कि तेरी टुन्नी से बढ़कर है ये।” ओबराय पस्त हाल में बैड पर पड़ा कह उठा।
"सच में। टुन्नी तो इसके सामने कुछ भी नहीं।”
“तो ऐसी औरत के खिलाफ मैं कैसे कोई बात सुन सकता हूं।” ओबराय मुस्कराया।
"सही में, ऐसी औरत को तो हर कोई सिर आंखों पर बिठा के रखेगा।" खुदे ने ईमानदारी से स्वीकार किया इस बात को।
“अब सो जा। सुबह बिजनेस का काम-धाम देखना है।" ओबराय बोला ।
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"सोने दे यार ।” हरीश खुदे बड़बड़ा उठा--- "इतनी जल्दी उठने की क्या जरूरत है।"
"मैं नहीं उठ रहा। कोई मुझे उठा रहा है।" अमन ओबराय ने कहा।
"कौन?”
"पता नहीं। मुझे तो खुद तगड़ी नींद आ रही है।"
“सपने में भी रानी के नजारे कर रहा होगा।” हरीश खुदे ने कहा।
“उठना पड़ेगा। अब उठाने वाला मुझे जोर-जोर से हिला रहा है।"
"रानी तो नहीं आ गई दोबारा से ।"
अमन ओबराय ने आंखें खोली। नींद और शराब के नशे से भरी पड़ी थी आंखें।
सामने घर का बूढ़ा नौकर जगदीश खड़ा था।
"क्या बात है?" अमन ओबराय ने आंखें मिचमिचाते उसे देखा ।
“मालिक, छोटे मालिक मरे पड़े हैं।" जगदीश ने भर्राये स्वर में कहा।
“क्या?” अमन ओबराय की आंखें पूरी खुल गई। वो अजीब सी नज़रों से जगदीश को देखने लगा--- "क्या कहा तुमने ?"
“छ-छोटे मा... मालिक... ।” जगदीश घबराया सा लग रहा था।
अमन ओबराय जल्दी से बैड से उतरा और कमरे के बाहर की तरफ दौड़ा।
"विनोद मर गया?" खुदे ने हैरानी से पूछा।
"जगदीश की बात से तो ऐसा ही लगता है।” ओबराय बदहवास सा कह उठा।
"ये कैसे हो सकता है। रात को तो वो ठीक था।"
"पता नहीं क्या बात है, मेरा तो सिर चकरा रहा है। वो जिन्दा होगा। जगदीश से कोई गलती हुई होगी।"
हरीश खुदे चुप रहा।
ओबराय, विनोद के कमरे में पहुंचा तो ठिठक गया।
वहां दो नौकर और भी मौजूद थे।
विनोद वैसे ही बैड पर पड़ा था, जैसे कि पड़ा होता था। परन्तु इस वक्त उसकी छाती और उसके माथे पर गोलियां लगी थी। वो मरा पड़ा था। ओबराय हक्का-बक्का सा खड़ा, विनोद की लाश को देखता रह गया।
"वि... विनोद ।" अमन ओबराय का स्वर थर्रा उठा--- "ये क्या हो गया, किसने किया?"
नौकर भी स्तब्ध से खड़े थे। दीवार घड़ी सुबह के साढ़े छः बजा रही थी।
“जगदीश ये क्या हुआ?" अमन ओबराय चीखने जैसे स्वर में बोला ।
"मालिक के लिये रोज की तरह रमन दूध का गिलास छोटे मालिक के लिए लेकर आया तो तब ये सब देखा।" जगदीश ने कहा।
"बैड के पास देख, नीचे क्या पड़ा है। वो रिवॉल्वर है।" हरीश खुदे ने कहा ।
अमन ओबराय की निगाह रिवॉल्वर पर जा टिकी।
“ये...ये रिवॉल्वर तो मेरी है। नाल पर साइलैंसर चढ़ा है। कल रानी ने चढ़वाकर देखा था साइलैंसर ।” ओबराय के होंठों से निकला।
“सही समझा बेटे। ये रिवॉल्वर तेरी ही है।” हरीश खुदे कह उठा--- "मेरे ख्याल में तेरा तो काम हो गया।"
“क्या मतलब?"
"तेरी रिवाल्वर से तेरा भाई मरा। रिवालवर भी सामने है। अभी भी नहीं समझा कि रानी ने तेरा काम कर दिया।"
"रानी ने? ये तू क्या कह रहा...।"
"मोटी अकल वाले ये खेल रानी ने ही खेला है। देख लेना रिवॉल्वर पर तेरी ही उंगलियों के निशान मिलेंगे। तभी तो कल रानी ने तेरे को रिवॉल्वर दिखाने को कहा था कि उस पर तेरी उंगलियों के निशान आ सकें। उसने सब कुछ प्लॉन कर रखा था। वो हर काम सोच समझकर कर रही थी। रात तू सोचता रहा कि तू उसका काम कर रहा है। जबकि वो तेरा काम कर रही थी। रात को पांच मिनट के लिये कमरे से बाहर गई थी।"
"हां।"
"तब वो ये ही काम करने आई थी। विनोद को शूट करके वो वापस तेरी गोद में आ बैठी थी।"
“नहीं...।” ओबराय के होठों से निकला।
“रानी ने दिन में ही रिवॉल्वर, तेरे कमरे से निकालकर यहां कहीं रख दी होगी, तेरा तो काम हो गया...।"
"तेरा मतलब कि रानी ने सब किया है।"
"मतलब नहीं, सीधी बात कह रहा हूं। ये सब रानी ने ही किया है और तेरे को फंसा दिया है। पुलिस को रिवॉल्वर पर से तेरी ही उंगलियों के निशान मिलेंगे।” हरीश खुदे कड़वे स्वर में बोला--- “रात रानी ने तेरे को यादगार मजा क्यों दिया। वो अब मेरी समझ में आ चुका है, क्योंकि वो रानी की और तेरी आखिरी रात थी। जमकर रगड़वाया रानी ने अपने को कि तू इस रात को कभी भूले नहीं। अब तेरे को समझ आ गया होगा कि रानी में और टुन्नी में क्या फर्क है।"
"तू बकवास कर रहा है। रानी ऐसा नहीं कर सकती।" अमन ओबराय अजीब सी हालत में फंसा था ।
"नहीं कर सकती?"
"नहीं, वो--।"
“पुलिस को फोन कर---।"
“पुलिस को?"
"घर में तेरे भाई की हत्या हो गई है। सब नौकर खड़े हैं। पुलिस को नहीं बुलायेगा क्या?"
"र... रानी कहां है?" अमन ओबराय ने आस-पास देखा।
“पहले पुलिस को फोन कर। शरीफ शहरी का फर्ज निभा। बाकी झंडे तो बाद में गड़ेंगे।” हरीश खुदे बोला ।
अमन ओबराय के चेहरे पर पसीना दिखने लगा था।
बैड पर विनोद की लाश पड़ी थी।
नौकर सहमें से खड़े थे ।
ओबराय ने पुलिस को फोन करके विनोद की हत्या की खबर दी।
“क... कहीं विनोद ने आत्महत्या तो नहीं की?” ओबराय धम्म से कुर्सी पर बैठ गया।
"आत्महत्या की तो, रिवॉल्वर उसके पास कैसे पहुंच गई?"
"रिवॉल्वर मेरी ही है ना?"
"सौ प्रतिशत। मैंने कल रात रिवॉल्वर देखी थी। धोखा नहीं खा सकता। अब तो तेरी समझ में आ गया कि रानी रात को अचानक ही गर्म माहौल में तेरे को छोड़कर क्यों गई थी। उसने सारी प्लानिंग कर रखी थी। तब वो विनोद को शूट करके आई थी।"
"हे भगवान, या तो तू पागल है या फिर मैं।"
"तू ही पागल है।"
ओबराय ने नौकरों को देखकर फीके स्वर में पूछा।
“र... रानी कहां है?"
"मालकिन कुछ देर पहले यहीं थी। हमने पहले उन्हें खबर दी।" एक नौकर ने कहा--- "मालकिन ने लाश देखी तो चीख उठी। नीचे जा गिरी थी। कठिनता से हमने उन्हें संभाला। वो बहुत रो रही थी। उन्हें गहरा सदमा पहुंचा है।"
"वो, वो कहां है?"
“अपने कमरें में।"
ओबराय कुर्सी से उठा और रानी के कमरे की तरफ बढ़ गया।
"सुना तुमने।” हरीश खुदे व्यंग से बोला--- "नौकर कहते हैं मालकिन चीखी, बेहोश हो गई। सदमा लगा उसे। बढ़िया ड्रामा किया उसने। बोझ बने एक अपाहिज पति की मौत का सदमा लगा, जबकि वो अपनी रातें तुम्हारे साथ बिताती ।"
"चुप रहो। विनोद की मौत से मैं पहले ही बहुत परेशान हूं। मुझे और परेशान मत करो।"
“परेशानी तो तुम्हारी अब शुरू होगी। पुलिस को आ लेने दो।"
"क्या कहना चाहते हो?"
“मुझे बहुत कुछ समझ में आ रहा है। पर तुम्हें समझ नहीं आ रहा । इज्जतदार करोड़पति जो ठहरे। तुम्हें अभी तक समझ नहीं आई करोड़पति साहब कि जहां दौलत होती है, वहां कांटे भी होते हैं। इस वक्त तुम्हें कांटा चुभ गया है और तुम्हें चुभने का एहसास भी नहीं हुआ।"
"मैं तुम्हारी बकवास को नहीं समझ रहा।"
"अपने भाई की मौत की वजह से तुम उसकी हत्या में फंसने जा रहे हो।"
"मैं क्यों---मैंने नहीं मारा उसे।"
"रिवॉल्वर पर से तुम्हारी ही उंगलियों के निशान मिलेंगे। रानी खेल, खेल गई है अपना ।"
"तुम इसी तरह की बकवास करते रहोगे।"
रानी के कमरे का दरवाजा बंद था। ओबराय ने दरवाजा थपथपाया।
"रानी।" ओबराय ने पुकारा।
परन्तु भीतर से कोई आवाज नहीं आई।
ओबराय के दो-तीन बार दरवाजा थपथपाने और पुकारने पर भीतर से रानी की आवाज आई।
"चले जाओ। मैं पहले ही बहुत परेशान हूं।"
“दरवाजा खोलो रानी। मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। विनोद को किसी ने मार दिया...।"
"मुझे तंग मत करो। मैं पहले ही बहुत रो चुकी हूं। मुझे डर लग रहा है।" रानी की आवाज पुनः आई ।
"ये सब कैसे हुआ रानी, मैं तुमसे जानना चाहता...।"
"मुझे नहीं पता। मुझे तो नौकर ने बताया।"
"दरवाजा तो खोलो।"
"प्लीज़, मुझे परेशान मत करो। विनोद की लाश देखकर मैं डर गई हूं।"
अमन ओबराय कुछ पल दरवाजे को देखता रहा फिर थके-परेशान अंदाज में वापस चल पड़ा।
विनोद के कमरे में पहुंचा। नौकर कमरे के बाहर खड़े थे।
"मुझे बताओ ये सब कैसे हुआ?" ओबराय गुस्से से नौकरों से बोला ।
परन्तु नौकर क्या जवाब देते।
"तू चुप क्यों है।" अमन ओबराय खुदे से बोला ।
खुदे की तरफ से जवाब नहीं आया।
“खुदे, बोलता क्यों नहीं तू?" अमन ओबराय बहुत व्याकुल हो रहा था।
"मैं सोच रहा हूं कि हम दोनों मुसीबत में पड़ने वाले हैं। विनोद की हत्या का इल्जाम तेरे पर आने वाला---।"
"मैंने उसे नहीं मारा तो मेरे पे इल्जाम क्यों...।"
"तेरे को कानून की ठीक से समझ नहीं है। मुझे है। रिवॉल्वर पर तेरी उंगलियों के निशान मिलेंगे और तू फंसा ही फंसा। रानी ने सोच-समझकर खेल, खेला है। देखा नहीं, अब तो रानी ने दरवाजा भी नहीं खोला।"
"त-तो तेरा ख्याल है कि ये सारा जाल रानी से बुना है।"
"ख्याल नहीं पक्की बात है।" खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- "विनोद का जानलेवा एक्सीडेंट रानी ने ही करवाया था। तेरी जान लेने की कोशिश के पीछे भी रानी का हाथ था। चावड़े ने रात बताया था कि हर बार इस सिलसिले में एक औरत इंस्पेक्टर से मिलने आती है। रात विनोद ने स्पष्ट तौर पर अपना शक रानी पर जता दिया था। इन बातों को तू झुठला नहीं सकता। अब रानी के सपने लेने छोड़ दे। वो तेरे हाथों से दूर जा चुकी है। उसकी नज़र तेरी दौलत पर है और उसने अपनी चाल चल दी। तेरे जैसा बेवकूफ उसका भरोसा करता रहा। उसके शरीर से खेलता रहा और सोचता रहा कि रानी उसकी मुट्ठी में है।"
“रानी ऐसा करेगी। मैं नहीं सोच सकता। क्या पता बात कुछ और हो।"
“तेरे जैसा उल्लू का पट्ठा मैंने कभी नहीं देखा। तेरे साथ तो मैं भी फंस जाऊंगा।"
कुछ देर बाद ही पुलिस वहां आ पहुंची।
पुलिस वाले अपनी जरूरी कार्यवाहियां करने लगे।
अमन ओबराय परेशान सा कुर्सी पर बैठा रहा। पुलिस ने रिवॉल्वर अपने कब्जे में ली और लाश का पंचनामा करके उसे पोस्टमार्टम के लिये भेजने के बाद इंस्पेक्टर, अमन ओबराय के पास आया।
“मुझे आपके भाई की हत्या का दुःख है।" इंस्पेक्टर बोला।
अमन ओबराय कुछ कह ना सका ।
"कैसे हुआ ये सब? किसने मारा होगा आपके भाई को ?"
"मुझे कुछ नहीं पता। मुझे तो नौकर ने उठाया। आप मेरे भाई की पत्नी के ब्यान लीजिये वो---।"
“उसे गहरा सदमा लगा है अपने पति की हत्या से। वो अभी ठीक से बात करने की स्थिति में नहीं है। उनका ब्यान लेने मैं शाम को आऊंगा। तब तक वो खुद को संभाल चुकी होगी। कमरे में जो रिवॉल्वर मिली, वो किसकी है?" इंस्पेक्टर ने पूछा ।
"मेरी है।"
"उसी रिवॉल्वर से गोलियां चली।"
"कैसे पता?" ओबराय ने इंस्पेक्टर को देखा।
"नाल से बारूद की गंध आ रही है। आपकी रिवॉल्वर कमरे में कैसे आ गई ओबराय साहब?"
"पता नहीं। उसे तो मैं वार्डरोब में रखा करता था। कल भी वहीं थी। मैंने देखा था।"
"मुझे आपकी उंगलियों के निशान लेने होंगे।"
इंस्पेक्टर ने ओबराय की उंगलियों के निशान ले लिए।
"आपका भाई बैड पर ही रहता था?"
"हां।"
"और उसकी पत्नी से आपके सम्बंध कैसे हैं?" इंस्पेक्टर ने ओबराय की आंखों में झांका।
"वो इस घर की सदस्य है। घर वालों से जैसे सम्बंध होने चाहिये, वैसे ही हैं।"
“आप कहीं मत जाइयेगा। शायद मुझे आपकी जरूरत पड़े। पूछताछ करनी पड़े।" इंस्पेक्टर बोला।
"लेकिन हत्या किसने की विनोद की ?"
"घर के ही किसी सदस्य ने। आपने या उसकी पत्नी ने ।" इंस्पेक्टर ने स्पष्ट कहा--- "बैड पर इस तरह पड़े इन्सान को बाहर का कोई आदमी नहीं मारेगा। ऐसे इन्सान की मौत से बाहरी आदमी को कोई फायदा नहीं। अमीरों के घरों में इस प्रकार हत्याएं हो जाती हैं और मकसद सिर्फ दौलत होती है। शाम तक ही कुछ पता चल सकेगा।"
"मैंने विनोद को नहीं मारा।"
"नहीं मारा तो अच्छी बात है।” इंस्पेक्टर ने शांत स्वर में कहा--- "मैं इस बारे में शाम तक ही कुछ कह सकूंगा।"
पुलिस वाले चले गये। सुबह के दस बज चुके थे।
अमन ओबराय और भी परेशान हो उठा।
“फंदा कस रहा है तेरे गले में?" ओबराय बोला--- “पुलिस इंस्पेक्टर इशारा भी कर गया है।"
"जब मैंने विनोद को नहीं मारा तो वो मुझे कैसे फंसा सकता है।"
"देखता रह, आगे क्या होता है।"
अमन ओबराय, रानी के पास जा पहुंचा।
इस वक्त रानी के कमरे का दरवाजा खुला था। वो बेड पर आंखें बंद किए लेटी थी।
"रानी, ये क्या हो गया रानी।" ओबराय परेशानी में कह उठा।
रानी ने आंखें खोल कर उसे देखा। हाथ उसकी तरफ बढ़ाया।
"जान।"
ओबराय ने उसका हाथ थाम लिया।
“रानी, ये विनोद---।"
"ये तुमने क्या किया जान।" रानी सरसराते स्वर में कह उठी--- "मुझसे शादी करने के लिए तुमने विनोद को।"
"नहीं रानी नहीं।” ओबराय उसका हाथ थामें कह उठा--- "मैं विनोद की जान लेने की सोच भी नहीं सकता।"
रानी, ओबराय को देखने लगी। बोली।
“मुझे तुम पर भरोसा है जान ।"
“मैं तो सोच रहा था कहीं तुमने मेरी रिवॉल्वर से विनोद को-को...।"
रानी ने आंखें बंद की और पीड़ा भरे स्वर में कह उठी।
"जान, जब से विनोद की लाश देखी है, तब से मेरा सिर बहुत दर्द कर रहा है। लगता है जैसे जान निकल जायेगी। एम्बूलेंस बुलवा दो। मैं नर्सिंग होम में आज का दिन रहना चाहूंगी।"
"ओह मैं तुम्हारे साथ चलता।"
"नहीं। इन हालातों में हमारा साथ रहना ठीक नहीं जान। पुलिस खामखाह का शक करेगी।"
“ठीक है। ड्राइवर तुम्हें नर्सिंग होम छोड़ आता है।” ओबराय रानी को देख रहा था--- "परन्तु विनोद को किसने मारा?"
"मैंने तो यही सोचा कि ये काम तुमने किया है।" रानी का स्वर पुनः सरसरा उठा।
“नहीं रानी नहीं। विनोद मेरा भाई था। तु-तुम रात को कमरे से बाहर क्यों गई थी ?” ओबराय ने पूछा।
"कोई काम याद आ गया था। पर तुम क्यों पूछ रहे हो ये बात। रात को तो नहीं पूछी।"
"कहीं तुमने तो विनोद को नहीं मारा?"
"तुम मुझ पर शक कर रहे हो जान?"
"पूछ रहा हूँ। वो मेरी रिवॉल्वर से मरा है। मेरी रिवॉल्वर विनोद के कमरे में---।"
"आह। मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है। प्लीज़ जान मुझे नर्सिंग होम पहुंचा दो।"
पन्द्रह मिनट में ही रानी, ड्राइवर के साथ नर्सिंग होम भेज दी गई।
"साली बड़ी कुत्ती चीज है।" खुदे बोला--- "क्या एक्टिंग कर रही थी...।"
अमन ओबराय कुछ नहीं बोला।
"कुछ कहेगा भी?" खुदे ने पुनः कहा।
"मैं सोच रहा हूं कि मुझे फंसा कर रानी को क्या फायदा मिलेगा। हर चीज का मालिक तो मैं ही रहूंगा।"
"ये ही तो मैं सोच रहा हूं।" खुदे बोला--- "इस तरह रानी क्या हासिल करना चाहती है। उसे क्या मिलेगा।"
"आजादी तो उसे पहले से ही हासिल है। पति बैड पर है और मैं उसे रोकने वाला कोन होता हूं।" ओबराय ने कहा।
"अभी इन्तजार कर ।" हरीश खुदे ने सोच भरे स्वर में कहा।
"किस बात का ।"
"रानी की अगली चाल का। मेरे ख्याल में अभी उसने अपने पूरे पत्ते खोले नहीं हैं। खेल अभी बाकी है। नर्सिंग होम जाने का ड्रामा उसने इसलिए किया कि वो तेरे से इस वक्त ज्यादा बातें नहीं करना चाहती। वो बहुत सोच-समझ कर कदम उठा रही है। अभी देख आगे वो क्या करती है। कुछ तो करेगी ही।” खुदे का स्वर गम्भीर था।
शाम पांच बजे इंस्पेक्टर पांच पुलिस वालों के साथ बंगले पर आ गया।
"मिस्टर ओबराय।" इंस्पेक्टर ने मिलते ही कहा--- "मुझे बहुत अफसोस के साथ आपको गिरफ्तार करना पड़ रहा है कि आपने अपने भाई विनोद ओबराय की हत्या की है। रिवॉल्वर पर, साइलेंसर पर और चैम्बर में भरी गोलियों पर, आपकी उंगलियों के निशान मिले हैं।"
"नहीं इंस्पेक्टर, मैंने उसे नहीं मारा।" अमन ओबराय बौखला उठा।
"ये तो अब आप ही बतायेंगे कि आपने अपने भाई को क्यों मारा? दौलत की खातिर या उसकी खूबसूरत बीवी को पाने लिए।"
"ये क्या कह रहे हो इंस्पेक्टर, इन दोनों में कोई बात नहीं है। रात भर तो में...।" कहते-कहते ओबराय रुका।
"रात भर क्या?"
"रात को मैं किसी के साथ था।"
"कहां पर?"
"अपने बेडरूम में।" ओबराय ने हिम्मत करके कहा।
"कोई औरत थी या मर्द ?"
"औरत ।"
"आप उसके बारे में बताइये। उसका नाम पता। मैं उसके ब्यान भी ले लूंगा। बाकी फैसला अदालत करेगी।"
अमन ओबराय ने होंठ भींच लिए।
"कौन-सी औरत आपके साथ थी ?"
"मैं-मैं नहीं बता सकता। शायद बताना ठीक नहीं।" ओबराय ने व्याकुल स्वर में कहा।
"बताना बेहतर होगा मिस्टर ओबराय। उसकी गवाही शायद आपको बचा ले।"
"अभी मैं कुछ नहीं कह सकता।" ओबराय गम्भीर स्वर में बोला--- "मुझे सोचने के लिए वक्त चाहिये।"
"फैसला आप पर है। लेकिन कानून अपना काम करेगा। मैं आपको गिरफ्तार कर रहा हूं।"
"सिर्फ उंगलियों के निशानों के आधार पर आप...।"
"वो आपकी रिवॉल्वर थी। उस पर आपकी उंगलियों के निशान मिले। वो रिवॉल्वर आपके भाई की लाश के पास मिली। ऐसे भाई की, जो चल-फिर नहीं सकता था। सिर्फ लेटा रहता था अगर वो चल-फिर सकता तो इससे सोचा जा सकता था कि कहीं उसने ही आपकी रिवॉल्वर उठा ना ली हो। परन्तु ऐसा कुछ नहीं था। वो रिवॉल्वर उड़ कर तो यहां पहुंची नहीं कि रिवॉल्वर ने खुद ही उस पर गोलियां चला दी हो और नीचे जा गिरी हो। उस पर आपकी उंगलियों के निशान हैं तो यकीनन आपने ही उसे शूट किया है। रही बात कि क्या वजह रही होगी हत्या के पीछे तो मेरे ख्याल में उसकी जायदाद वजह हो सकती है कि आप उस बीमार से पीछा छुड़ा कर सब कुछ खुद ही पा लेना चाहते थे। मेरे ख्याल में उसकी पत्नी को हासिल करने के लिए, आपने उसकी हत्या नहीं की होगी।"
"ये क्या कह रहे हो इंस्पेक्टर ।" ओबराय के होठों से निकला।
“सारे सबूत आपके खिलाफ हैं। शायद गवाह भी कोई मिल जाये। अगर आप उस औरत को पेश कर सकें जो रात भर आपके साथ थी। शायद बचाव में कुछ हो सकता है। परन्तु उसके बारे में आप बताना नहीं चाहते।"
"जल्दी में मुझे गिरफ्तार मत करो इंस्पेक्टर, मैं भाग नहीं रहा। मुझे एक-दो दिन का वक्त दो। मैं तुम्हें खुश कर देता हूं अभी मैं---।"
"हत्या के मामले में मैं नोट नहीं खाता मिस्टर ओबराय ।" इंस्पेक्टर ने कहा--- "मेरा बाप भी पुलिस इंस्पेक्टर था कभी और उसने मुझसे कहा था कि कभी भी मर्डर केस में रिश्वत मत लेना। फंस जाओगे। मैं इस बात का हमेशा ध्यान रखता...।"
“लेकिन।"
"सॉरी मिस्टर ओबराय। मैं आपको अभी गिरफ्तार करके ही रहूंगा। पुलिस स्टेशन पहुंचकर आपको बढ़िया से बढ़िया वकील को बुलाने का मौका भी दूंगा। आपकी रिवॉल्वर, उस पर आपकी उंगलियों के निशान और पास में आपके भाई की लाश। मोटिव भी है। ये गम्भीर मामला बनता है। मैं चाहकर भी आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता। कानून तो अपना काम करेगा ही।"
अमन ओबराय को गिरफ्तार कर लिया गया।
पुलिस उसे लेकर थाने चल पड़ी।
“तूने ये क्यों नहीं बताया कि रात को रानी तेरे पास थी।" हरीश खुदे ने कहा।
"क्या पता रानी को अच्छा ना लगे कि मैंने ये बात खोल दी।" ओबराय बेचैन सा बोला।
“भाड़ में गई रानी। तेरे को बताना चाहिये था कि सुबह चार बजे तक रानी तेरे साथ--।"
“ये भी बताता कि रानी मेरी गोद से उठकर अचानक ही, पांच मिनट के लिए कमरे से बाहर गई थी।"
“हां बता, तेरे को सब बताना चाहिये। ये भी कि रानी ने ही तेरे वार्ड रौब से रिवॉल्वर उठाई होगी।" खुदे ने गुस्से से कहा।
"मैं जल्दबाजी में कोई गलत काम नहीं करना चाहता।"
"जल्दबाजी? पुलिस तेरे को गिरफ्तार करके ले जा रही है और तू जल्दबाजी का नाम लेता है।"
"मुझे अभी भी यकीन नहीं कि विनोद को रानी ने शूट किया है।" ओबराय गम्भीर स्वर में बोला।
“पागल। मूर्ख है तू । बेवकूफ उसने तुम्हें बुरी तरह फंसा दिया है।"
"तू शुरू से ही रानी से चिढ़ता है। तुझे रानी कभी पसन्द नहीं आई। तभी तू---।"
"मेरी तरफ से तू कुएं में जा। पहाड़ से छलांग लगा दे। ट्रेन से कटकर जान दे दे। अब मैं तुझे रोकने वाला नहीं।"
■■■
रात भर अमन ओबराय पुलिस स्टेशन में रहा।
अगले दिन उसे अदालत में पेश किया और पांच दिन के रिमाण्ड पर लेकर पुलिस ने उसे जेल भेज दिया। जेल का माहौल ओबराय के लिये नया था परन्तु हरीश खुदे जेल को अच्छी तरह जानता था। बहुत पहले एक मामले में वो जेल में रह चुका था। यूं कि अभी उस पर केस चलना था, सजा नहीं मिली थी, इसलिये वो साधारण, अपने कपड़े पहने हुए था। थोड़ी देर बाद दो पुलिस वाले आ गये जो कि उससे पूछताछ करने लगे, परन्तु ओबराय एक ही बात कहता रहा कि उसने विनोद की हत्या नहीं की। दोनों भाइयों में प्यार था और विनोद को मारने की तो वो सपने में भी नहीं सोच सकता था। वो तो फिर से उसका इलाज करवाने वाला था।
पुलिस वाले चले गये।
शाम के पांच बज रहे थे।
“तूने आज भी पुलिस से नहीं कहा कि ये हत्या रानी ने की है। हत्या की रात रानी तेरे साथ थी।” हरीश खुदे ने कहा।
“एक बार रानी से मिल लूं फिर ।”
"वो अब तेरे से नहीं मिलने वाली। उसकी चाल सफल रही। वो तो बैठी ठहाके लगा रही होगी।" खुदे की आवाज में कड़वापन आ गया।
"वो मेरे से मिलने आयेगी।"
"नहीं आने वाली वो।"
"वो आयेगी।” अमन ओबराय का स्वर विश्वास से भरा था।
■■■
अगले दिन रानी मिलने आई।
जेल के कर्मचारी ने ओबराय को मुलाकाती कक्ष में छोड़ दिया। काउंटर जैसी जगह थी। बीच में लोहे की जाली लगी थी। जिसमें से कैदी और मुलाकाती एक-दूसरे को देख सकते थे।
"रानी ।" ओबराय उसे देखते ही कह उठा--- “ये क्या हो गया रानी। पुलिस समझती है कि मैंने विनोद को मारा है। तुम तो जानती ही हो कि मैंने विनोद को नहीं मारा। सारी रात तो मैं तुम्हारे साथ था। क्या तुमने पुलिस से ये बात कही?"
रानी ओबराय को देखती रही।
"तुम्हें पुलिस को बता देना चाहिये कि हम दोनों उस रात साथ थे और...।"
"जान ।" रानी सरसराते स्वर में कह उठी--- "उस रात तो हमने बहुत मजा किया था। याद है?"
"ह-हां। तुमने पुलिस को क्यों नहीं कहा कि मैं बेकसूर हूं।" ओबराय ने बेचैन स्वर में कहा।
"हम तो हर रात ही मजा करते हैं जान। तुम किस रात की बात कर रहे हो?"
“उ...उस रात, जिस रात विनोद की हत्या हुई।” ओबराय एकाएक और भी परेशान हो उठा था।
“मुझे याद नहीं जान।" रानी की आवाज में सरसराहट थी--- "उस रात मैंने ज्यादा पी ली थी क्या?"
अमन ओबराय रानी को देखता रह गया।
एकाएक रानी के चेहरे पर जहरीली मुस्कान थिरक उठी।
"तुम्हारी हालत देखकर मुझे तुम पर बहुत तरस आ रहा है जान। पर मैं तुम्हारे लिए कुछ कर नहीं सकती।"
"तुम-तुम मुझे बचा सकती हो। पुलिस को बता सकती हो कि उस रात हम साथ थे।" ओबराय ने अजीब से स्वर में कहा।
"बचना चाहते हो।" आवाज में भरपूर सरसराहट थी।
"हां रानी---।"
"सौदा कर लो।"
"सौदा ?" अमन ओबराय अचकचा उठा--- "कैसा सौदा ?"
“दौलत का सौदा।” रानी की सरसराहट विषैले अन्दाज में बदल गई— “मैं तुम्हें आजादी दिला सकती हूं। मेरा एक इशारा तुम्हें जेल से बाहर निकाल देगा। उस पुलिस इंस्पेक्टर को मैंने पहले से ही सेट कर रखा था। चार बार उसके साथ सो चुकी हूँ। दस-दस की किश्तों में पचास लाख उसके मुंह पर मार चुकी हूँ। वो, वो ही कर रहा है जो मैं चाहती हूं और आगे भी मेरा कहना मानेगा।"
ओबराय हक्का-बक्का सा रानी को देखता रह गया।
"अब देख ली इसकी असलियत ।" हरीश खुदे ने कहा।
"रानी तुम---।” ओबराय ने कहना चाहा।
"मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है।" रानी का स्वर तीखा हो गया--- "मुझे अभी कई काम करने हैं। बोलो बचना चाहते हो?"
"ह...हां रानी।" ओबराय का गला सूख रहा था रानी का ये रूप देखकर ।
"आजादी बहुत कीमती चीज होती है। ये बात इन्सान को तब पता चलती है जब वो पिंजरे में कैद हो जाता है। वरना उससे पहले तो आजादी का एहसास भी नहीं होता। मैं तुम्हें आजाद करा सकती हूँ अगर सब कुछ मेरे नाम कर दो।"
"तुम्हारे नाम? तुम्हें पैसे की क्या कमी है। विनोद का सारा हिस्सा अब तुम्हारा ही तो---।"
“मैं तुम्हारा हिस्सा भी चाहती हूं जान---।"
"मेरा हिस्सा ?"
"तो तुम क्या समझते हो कि मैं मेरठ से मुम्बई शादी करने आई थी या हर रात मुझे तुम इस्तेमाल कर सको, इसलिये आई थी। नहीं जान, मेरी उड़ान बहुत ऊंची है। मैं हिरोईन बनने आई थी। पर मुझे चांस नहीं मिला। मिला तो विनोद मिला, जिसकी दौलत के बारे में जानकर, मैंने उससे शादी कर ली कि मैं उसकी दौलत पा सकूं। उसका एक्सीडेंट मैंने ही किराये के लोगों से कराया था कि वो मर जाये। पर वो नहीं मरा। बैड पर लाश की तरह पड़ गया। फिर साल भर का लम्बा इन्तजार किया और सोचा कि अगर तुम मर जाओ तो सारी दौलत पर मेरा कब्जा हो जायेगा। उन्हीं लोगों से तुम्हारा एक्सीडेंट करा दिया। पर तुम भी बच गये। लेकिन आंखे चली गई। अंधे हो गये। तब मुझे लगा, ये तो मुसीबत पाल ली मैंने। एक बैड पर पड़ा है, दूसरा अंधा हो गया। ऐसे में मैंने नई योजना बनाई, ऐसी योजना कि तुम दोनों को रास्ते से हटा सकूं। मैंने किसी तरह भागदौड़ करके तुम्हारी आंखें लगवाकर तुम्हें ठीक किया। ताकि मैं अपनी योजना को अंजाम दे सकूं। और ये जो तुम हरीश खुदे के अपने शरीर के भीतर आ जाने की स्टोरी सुनाते हो, उसे तो मैं बिल्कुल नहीं मानती। ऐसा कभी होता ही नहीं। परन्तु जब भी तुम खुदे की बात करते तो मैं यूं ही हां कर देती थी, खैर मैंने अपनी प्लानिंग चालू रखी। उस रात तुमसे रिवॉल्वर की गोलियाँ डलवाई, साइलेंसर लगवाया। ताकि उस पर अच्छी तरह तुम्हारी उंगलियों के निशान आ सकें और अगले दिन मैंने वार्डरोब से रिवॉल्वर को रूमाल से उठाया कि उस पर मेरी उंगलियों के निशान ना आ सकें और उसे अपने कमरे में छिपा दिया। फिर उसमें अगली रात जब हम प्यार कर रहे थे तो पांच मिनट के लिए मैं वहां से गई थी, याद है ना, बस तभी, तभी मैं विनोद को शूट कर आई और तुम्हारी रिवॉल्वर वहीं गिरा दी। ये सारा काम मैंने रूमाल से रिवॉल्वर पकड़कर किया। विनोद तब सोया पड़ा था और मैंने उसे समझने का मौका ही नहीं दिया और दो गोलियां चला दी। एक उसकी छाती में, दूसरी माथे पर। साइलेंसर लगा होने की वजह से आवाज कमरे से बाहर नहीं निकल सकी। फिर वापस आकर मैंने तुम्हें खूब मजा दिया जान।" रानी मुस्कराई फिर गहरी सांस लेकर बोली--- “इतना मजा कि उस रात को तुम कभी भी ना भूल सको। तुम्हारी जिन्दगी की वो यादगार रात बन जाये। क्योंकि मैं अच्छी तरह जानती थी कि अब तुम्हारी जिन्दगी बदलने जा रही थी। तुम्हारे पास सिर्फ मेरी यादें ही रह जानी थी।"
अमन ओबराय फटी-फटी आंखों से रानी को देख रहा था।
रानी की मुस्कान भरी निगाह ओबराय पर थी।
“मुझे तुमसे कोई दुश्मनी नहीं। तुम शरीफ आदमी हो। लेकिन मुझे पैसे की जरूरत है। बहुत बड़ी हिरोईन बनना है मुझे। अपनी फिल्में मैं खुद बनाऊंगी। कितनी जायदाद है तुम्हारी? क्या... कीमत होगी उसकी ?"
“स...सब कुछ मिलाकर स... सौ करोड़ के आस-पास---।" ओबराय यंत्रचलित सा बोला।
"मेरे सपने पूरे हो जायेंगे इतनी दौलत से।" रानी का स्वर एकाएक सरसरा उठा--- "अगर तुम नर्क से भरी, जेल की जिन्दगी से छुटकारा पाना चाहते हो तो अपनी सारी जायदाद मेरे नाम कर दो। नहीं तो सारी जिन्दगी जेल में सड़ो। फैसला तुम्हारे हाथ में है कि तुम क्या चाहते हो। जेल में सड़ते रहना या आजादी ।"
ओबराय फटी-फटी आंखों से रानी को देखे जा रहा था ।
रानी की आंखों में अजीब सी चमक लहरा रही थी।
“कितना वक्त चाहते हो सोचने के लिए?" रानी पुनः बोली ।
ओबराय रानी को देखे जा रहा था।
लम्बे पल चुप्पी में बीत गये।
"मैं बात करता हूं।" हरीश खुदे बोला--- “ये तेरे बस की नहीं है।"
"मैं पागल हो जाऊंगा खुदे ।” ओबराय बोला--- “रानी का ये रूप, नहीं, विश्वास नहीं हो रहा कि---।"
तभी अमन ओबराय के होंठों से हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज निकली।
"तो तुम सारी जायदाद चाहती हो?"
"फिल्म बनाने में बहुत खर्चा आता है। सौ करोड़ में चार-पांच बढ़िया फिल्में तो बन ही---।"
"ठीक है। तुम मुझे जेल से निकालो। केस खत्म कराओ तो मैं सारी जायदाद---।"
“जान, सौदा तो मेरे ढंग से ही होगा।"
"तुम्हारा क्या ढंग है?"
“पहले जायदाद मेरे नाम करोगे। पूरे बिजनेस मेरे नाम होंगे फिर ही तुम यहां से निकल पाओगे।"
"बाद में तुमने अपनी कही बात पूरी नहीं की तो?"
"इतनी भी कमीनी नहीं हूं, जितना कि तुम समझ रहे हो।" रानी मुस्कराई ।
"ठीक है। पांच-दस करोड़ तो मेरे लिए रहने दोगी ?"
"पांच-दस हजार भी नहीं। एक-एक पाई मेरी होगी। तुम कंगाल होकर ही जेल से निकलोगे ।"
“ये तो गलत बात है, कुछ तो मेरे पास---।”
"कभी नहीं।" रानी ने दृढ़ स्वर में कहा--- “तुम कंगाल रहोगे तो मैं सुरक्षित रहूंगी। पैसा होगा तो तुम मेरे से बदला लेने की कोशिश भी कर सकते हो। पैसा इन्सान की ताकत को बढ़ा देता है। तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।"
"ठीक है।" खुदे ने गम्भीर स्वर में कहा--- “मैं सारी जायदाद तुम्हारे नाम करने को तैयार हूं।"
“ये तुम क्या कह रहे...।" अमन ओबराय ने तड़पकर कहना चाहा।
"तुम चुप रहो। सारी उम्र जेल में बिताने का इरादा है क्या। मुझे आजादी चाहिये।” खुदे बोला।
“ये सारा पैसा ले लेगी तो मैं पागल हो जाऊंगा।"
"चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें पागल नहीं होने दूंगा।"
"चाहो तो सोचने का वक्त ले सकते हो।" रानी बोली ।
"मैंने सोच लिया है। तुम कहो, कहां साइन करने हैं।"
"तो ठीक है।" रानी चमक भरी आंखों से मुस्कराई--- "कल मेरा वकील कागज लेकर आयेगा। सब कागज उसने पहले से ही तैयार कर रखे हैं, उन पर सिर्फ तारीख ही डालनी है जान। वो जहां-जहां कहे, वहां साइन करते चले जाना। कुछ भी पूछना मत। मुझे अपने वकील का तसल्ली भरा ईशारा चाहिये कि सब ठीक है।"
"तुम कल वकील को भेजो। पेपर साइन हो जायेंगे।" खुदे ने कहा--- “लेकिन मुझे बाहर कैसे निकालोगी?"
"बहुत आसान है मेरे लिए।" रानी ने सरसराती आवाज में कहा--- "इंस्पेक्टर के साथ दो बार सोना पड़ेगा। दस-बीस लाख उसे और दूंगी और प्यारी सी चुम्मी दूंगी तो वो मेरी बात ख़ुशी से मान जायेगा और पुलिस की तरफ से दर्ज तुम्हारे खिलाफ केस खत्म हो जायेगा। रिवॉल्वर पर से उंगलियों के निशान गायब हो जायेंगे। रिवॉल्वर भी बदल दी जायेगी। किसी चोर पर तुम्हारे भाई की हत्या का इल्जाम लग जायेगा जो घर में चोरी करने के इरादे से घुसा था। सब कुछ बहुत ही आसान है। तुम किसी बात की फिक्र मत करो। उस पुलिस वाले के लिए तो ऐसा करना मामूली बात है।"
खुदे ने गहरी सांस ली।
"चलती हूं जान। भगवान करे ये हमारी आखिरी मुलाकात हो। तुम मुझे कभी भूल नहीं पाओगे जैसे कि तुम भी मुझे याद आते रहोगे। हमारा साथ बहुत अच्छा रहा। बाय जान ।"
रानी चली गई।
अमन ओबराय को मुलाकाती कक्ष से एक बैरक में पहुंचा दिया गया।
हरीश खुद गुस्से में उबल रहा था।
"बाहर निकलते ही मैं उस कुतिया को खत्म कर दूंगा। वो मुझे जानती नहीं कि मैं---।"
"तुम उसे कुछ नहीं कहोगे।" अमन ओबराय ने फीके स्वर में कहा।
"क्यों? क्यों ना कहूं, वो हरामजादी....।"
"मैं उसे सच्चा प्यार करता रहा हूं। अब भी करता हूं। मैं उसे कभी भी भूल नहीं-।"
"भाड़ में गया तेरा प्यार। वो कुतिया सौ करोड़ पर हाथ मार गई दो झटके दिखाकर और तू उसे प्यार कहता...।"
"हाँ। मैंने उसे हमेशा सच्चे मन से प्यार किया है। उसे मारना मत। कुछ मत कहना उसे।"
"और उसने जो तुम्हारे साथ किया वो...।"
"वो ऊपरवाले का मामला है।" ओबराय थक गया था रानी का नया रूप देखकर उसके दिल को बहुत तकलीफ पहुंची थी--- "जो करना होगा ऊपर वाला करेगा। तू कुछ नहीं कहेगा उसे।"
"उसने तेरे भाई को मारा है। वो हत्यारी है।"
"बैठा है ना ऊपर वाला। सब कुछ उस पर छोड़ दे।"
"ये ऊपर वाला भी तमाशबीन है। मुझे देख, क्या किया मेरे साथ। गोलियां लगी मर गया में तो मुझे मरने देता, पर आंखों के सहारे मुझे जिन्दा रखा और मेरे को तेरे साथ जोड़ दिया। एक शरीर में हम दोनों एक साथ। क्या मजाक है। ना तू आराम से जी सकता है, ना मैं। ऐसे काम करता है तेरा ऊपरवाला।" खुदे ने गुस्से से कहा।
“ऊपरवाला जब मारता है तो आवाज भी नहीं होती और सब कुछ बदल जाता है।"
"ये तू अपने को तसल्ली दे रहा है या मुझे?"
"पता नहीं। शायद तूने मेरे भीतर आना ही होगा और रानी ने मेरे साथ ऐसा करना ही होगा, तभी---।"
"ये तू हारने वाली बातें करने लगा है अब।" खुदे गम्भीर हो गया।
“हार ही तो गया हूं मैं। मेरे शरीर का बंटवारा हो गया। मेरा भाई मारा गया। मेरी सारी दौलत हाथ से निकलने जा रही है। शायद इसमें भी कोई भला होगा। ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।"
■■■
अगले दिन रानी का वकील जेल में आया। अमन ओबराय से ढेर सारे कागजों पर साइन करा कर ले गया। उसके बाद छः दिन लगे अमन ओबराय को जेल से छूटने में। इस बीच दो बार उसे कोर्ट में पेश होना पड़ा था। अब ओबराय पर कोई केस नहीं था। सब मामले से बरी हो गया था। इस मामले में तो रानी अपनी बात पर खरी उतरी थी।
जेल से बाहर आकर ओबराय सड़क किनारे खड़ा हो गया। सड़क पर जाते वाहनों को देखने लगा।
"इज्जतदार करोड़पति अमन ओबराय ।" हरीश खुदे में कड़वे स्वर में कहा--- “एक लड़की के चक्कर में पड़कर, सौ करोड़ की जायदाद से हाथ धो बैठा। मुश्किल से अपनी जान बचा पाया। क्यों, सुनने में कैसा लग रहा है?"
"जले पर नमक छिड़क रहा है।" ओबराय थके स्वर में बोला।
"तू कमजोर इन्सान है। हिम्मतवाला होता तो मेरे को कहता, रानी को काटकर फेंक दे खुदे ।"
"नहीं।" ओबराय ने सिर हिलाया--- "मैंने सच में उससे प्यार किया है।"
“और उसने क्या किया तेरे साथ?"
"बोला तो तेरे को कि ऊपरवाला सब देखता है।"
"कमजोर लोग ऐसा कहते हैं।"
"कुछ भी कह, पर ऊपरवाला देखता जरूर है।"
"देख अभी भी वक्त है। तू एक इशारा कर, चौबिस घंटों में रानी साफ हो जायेगी। मैं उसे ।"
"तू रानी को भूल जा। उसने जो किया है, मेरे साथ किया है।"
"तेरे भीतर मैं रहता हूं। मेरे साथ भी तो किया है उसने। कहां मुझे साढ़े पांच हजार की व्हिस्की की बोतल पीने को मिलती थी और अब साढ़े पांच सौ वाली भी नसीब नहीं होने वाली। मैंने तो सोचा था कि कोठी-बंगले, नौकरों, कारों की ऐश करूंगा और इधर सारा मामला ही साफ हो गया। रानी जी की ठाठ हो गई।” हरीश खुदे ने कड़वे स्वर में कहा--- “बहुत फिदा था ना तू उस पर। तेरे को जान कहती थी। उसकी जान तो तेरे नोटों में थी। ले गई सब। और ले मजे। गोद में बिठाता था उसे। सत्यानाश हो तेरा, तूने खुद ही अपने को बरबाद किया है। साथ में मुझे भी ले डूबा। बड़े प्यार से उसे रिवॉल्वर दिखा रहा था कि कैसे खोलते हैं, कैसे गोलियां डालते है, कैसे साइलेंसर लगाते हैं। बना गई ना चूतिया तेरे को। मार दिया तेरे भाई को और सारी जायदाद ले उड़ी। अगर तू पहले ही मेरी बात मान जाता कि रानी ही सारी गड़बड़ कर रही है तो---।"
"सब किस्मत का खेल रहा मेरे साथ...।"
"साधु-संतों की तरह बातें करने लगा है अब तू ।"
ओबराय कुछ नहीं बोला।
"टुन्नी बहुत अच्छी है। उसने कभी मुझे धोखा नहीं दिया। मुझे प्यार किया। ईमानदारी से रही। टुन्नी जैसी दूसरी कोई नहीं ।"
ओबराय चुप रहा।
"अब यहाँ खड़ा क्या सोच रहा है?" खुदे झल्लाकर बोला।
"कहां जाऊं, मैं तो फुटपाथ पर आ गया।"
"पूरी तरह आ गया। कितना माल है तेरे पास?"
"साढ़े तीन हजार रुपया।"
"साढ़े तीन? क्या कहने, एक रात में साढ़े पांच हजार की शराब की बोतल पी जाने वाले इन्सान के पास कुल जमा पूंजी सिर्फ साढ़े तीन हजार की बची है। एक औरत के चक्कर में...।"
"बार-बार ये बात कहकर तेरे को कुछ नहीं मिलने वाला ।" ओबराय बोला।
"खुन्दक आ रही है तो तुझ पर ही निकालूंगा।” खुदे ने झल्लाकर कहा ।
"जाना कहां है?"
"पता नहीं। पर टुन्नी से मिलने का मन--।”
"फिर टुन्नी...।" ओबराय ने कहना चाहा।
“अब तू ये कहने का हक गवां चुका है कि मैं टुन्नी के पास ना जाऊं। पहले तेरे पास ठिकाना था। माल था। अब तो सब कुछ गवां दिया। क्या पता टुन्नी अपने पास रहने को जगह दे दे।"
"मुझे नहीं लगता।"
"पहली बार जब हम उसके पास गये थे तो उसने मोहल्ले वालो को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। पर दूसरी बार उसने हमें भीतर बिठाया। हो सकता है तीसरी बार वो हमें वहीं रख ले।" खुदे ने कहा।
"कहीं भी चल ।" ओबराय ने गहरी सांस ली--- “अब तो फुर्सत ही फुर्सत है।"
"लानत है ऐसी फुर्सत पर ।"
परन्तु टुन्नी के घर पर ताला लगा मिला।
आस-पड़ोस से पूछा तो पता चला कई दिन से घर बंद हैं। वो कहकर गई थी कि शहर से बाहर जा रही हूं। दो-तीन महीनों में लौटूंगी। हरीश खुदे परेशान सा बोला।
"उसका तो कोई मिलने वाला भी नहीं है, फिर मुम्बई से बाहर किधर चली गई?"
"क्या पता?" ओबराय ने इतना ही कहा।
"वो साला बारू ना ले गया हो उसे कहीं और उससे नोट लेकर गला काट दे टुन्नी का।" हरीश खुदे बेचैन हो उठा।
अमन ओबराय गली से बाहर आकर आगे बढ़ गया।
"तेरे पास मोबाइल तो होगा। जरा दे।"
“जेल से निकले हैं। फोन चार्ज नहीं है। पर फोन किसे करना है?"
"देवराज चौहान को।"
"क्यों ?"
"क्यों का क्या मतलब ?" खुदे ने झल्लाकर कहा--- "हाल-चाल नहीं पूछ सकता उसका।"
"पर वो तो तेरे को पहचानता नहीं, पिछली बार तो उसने---।"
"चुप कर। चल जरा उस दुकान से फोन करते हैं।"
अमन ओबराय दुकान पर पहुंचा। फोन किया।
"हैलो।" उधर से देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
"देवराज चौहान, मैं---खुदे, कैसा है तू?"
देवराज चौहान की तरफ से फौरन आवाज नहीं आई।
“पहचाना नहीं क्या, मैं हरीश खुदे...मैं।"
"अमन ओबराय ?" देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
"वो ही...वो ही, मैं तो उसके शरीर के भीतर रहता।"
"मैंने तुम्हें कहा था कि दोबारा मिलना मत, फोन मत करना। और तुम ।"
"यार ऐसी भी क्या नाराजगी। मेरा शरीर नहीं रहा, पर मैं तो जिन्दा हूं। अभी टुन्नी के यहां गया तो वो भी नहीं मिली। ताला लगा है पता करने पर पता चला कि दो तीन महीने बाद...।"
"टुन्नी ने शादी कर ली है।" उधर से देवराज चौहान ने कहा।
"श...शादी?" हरीश खुदे हक्का बक्का रह गया--- "शादी कर ली टुन्नी ने ।"
"कई दिन हो गये। वो यहां से चली गई है।"
"ब-बारू के साथ शादी की?"
"हां।"
"ओह ।" हरीश खुदे ने दुःख भरे स्वर में कहा--- "कहां गई वो?"
"मैं नहीं जानता।" उधर से देवराज चौहान ने कहा और फोन बंद कर दिया।
खुदे ने रिसीवर रखा।
अमन ओबराय ने कॉल के पैसे दिए और दुकान से बाहर आ गया।
"वो कह तो रही थी शादी करने को।" ओबराय बोला--- "कर ली होगी शादी।"
“त-तब तो मैंने टुन्नी की बात को यूँ ही समझा था।" खुदे ने कहा ।
"उसका आदमी मर गया। वो जवान है। अकेली है तो शादी नहीं करेगी क्या?"
"मैं-मैं तो अभी जिन्दा ।"
"तू अपने लिए जिन्दा है। मेरे लिए जिन्दा है। टुन्नी के लिए, दुनिया के लिए तो मर चुका है कि नहीं?"
"हां। ये बात मैं बार-बार भूल जाता हूं।" खुदे ने गहरी सांस ली--- "सब समझते हैं कि हरीश खुदे मर गया।"
"मैं ऐसा नहीं सोचता। मुझे पता है कि तू जिन्दा है और मेरे शरीर में रहता है।" अमन ओबराय ने गम्भीर स्वर में कहा--- “अब ये बता जाना कहां है। रात कहां बितानी है। मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा।"
अब मैं हरीश खुदे गम्भीरता से इन नये हालातों पर विचार करने लगा। अमन ओबराय तो लुट-पुट कर खाली होकर बैठ गया था। वो शरीफ बंदा था। उसने सिर्फ करोड़पतियों की ही दुनिया देखी थी। कारें देखी थी। बंगले देखे थे। नौकर देखे थे या रानी जैसी खूबसूरत औरतें और कीमती शराब देखी थी। अब सब कुछ मेरे ऊपर आ गया। सारा बोझ मुझे ही संभालना था। मैं अमन ओबराय के शरीर में रहता हूं तो उसकी जरूरतें मेरी जरूरतें थी। परन्तु मैं बिजनेसमैन नहीं था ओबराय की तरह। मैं चोर, उठाईगिरा, डकैती करने वाला, बदमाशी के काम करने वाला हरीश खुदे था। मैंने आज तक ऐसे ही काम किए है और ऐसे ही काम कर सकता था। अब ऐसा कुछ करके ही पैसा बनाना पड़ेगा। परन्तु मेरे पास शरीर नहीं था। ओबराय के शरीर में रहता हूं तो इन कामों के लिये उसका शरीर ही इस्तेमाल करना पड़ेगा और अमन ओबराय को ऐसे कामों का जरा भी अनुभव नहीं था। वो कोमल करोड़पति था। फूलों पर पला और मुझे पत्थरों की आदत थी। जो भी हो अब अमन ओबराय का शरीर ही मेरे लिए सब कुछ था और ओबराय के साथ मुझे तालमेल बिठाना होगा। धीरे-धीरे वो इस बात को जानेगा कि अण्डरवर्ल्ड के लोग कैसे काम करते हैं। बहरहाल अब मुझे अमन ओबराय के शरीर का सहारा लेकर ही किसी तरह नोट पैदा करने थे। साढ़े तीन हजार कुल ओबराय की जेब में पड़ा था। ये तो एक दो दिन में खर्च हो जाना था।
"क्या सोच रहा है?" अमन ओबराय ने पूछा।
"नोटों के बारे में सोच रहा हूं कि नोट कहां से पैदा करूं।"
"पैदा? तू नोटों को पैदा करता है।"
"हां बेटे। नोट पैदा ही करने पड़ते हैं। अपने आप तो हाथ में आते नहीं ।"
"लेकिन करेगा क्या? कहां से नोट ।"
"कोई चोरी-डकैती, कहीं पर हाथ मारना पड़ेगा तभी।"
“क्या?" अमन ओबराय भड़क उठा--- "मैं इज्जतदार करोड़पति अमन ओबराय हूं। मैं चोरी-डकैती...।"
"अब तू ना तो इज्जतदार है। ना ही करोड़पति है। तेरी जमा-पूंजी सिर्फ साढ़े तीन हजार है, जो कि जेब में डाले घूम रहा है तू और तेरे को महंगी शराब चाहिये। खटमलों में तू नहीं सो सकता कि सस्ते से होटल में कमरा ले लें। कल को तू कहेगा कपड़े गंदे हो गये, नये कपड़े चाहिये। तेरे को खाना भी बढ़िया चाहिये, सैंडविच-कटलेट और कॉफी से कम तू बात नहीं करता। बस में तू सफर करेगा नहीं कि लोगों से बदबू आती है। मतलब कि तेरे को हर कदम पर, हर सांस के साथ पैसे की जरूरत है और वो जरूरत मैं ही, अपने ढंग से पूरी कर सकता हूं। तूने तो बहुत बिजनेस कर लिया, अब तू मेरा बिजनेस देखेगा। तेरे को मेरे बिजनेस में हाथ बंटाना ही पड़ेगा। इन्कार करता है तो किसी फुटपाथ पर रात बिता देते...।"
"फुटपाथ पर रात?" ओबराय ने तीखे स्वर में कहा--- “तूने मेरा रहन-सहन देखा नहीं क्या । मैं क्या फुटपाथ पर रात बिताऊंगा। मुझे नर्म गद्देदार, बढ़िया बैड चाहिये सोने को। नहीं तो मुझे नींद नहीं आती।"
"मालूम है मुझे। तभी तो कह रहा हूं कि तेरी जरूरतें पूरी करने के लिए कहीं से पैसा पैदा करना होगा करोड़पति साहब और मुझे अपना बिजनेस शुरू करना होगा चोरी-डकैती या कुछ भी, जिसमें पैसा मिल सके। तेरी मजबूरी है मेरे साथ मेरे बिजनेस में हाथ बंटाना। नहीं तो फिर फुटपाथ पर सोने की आदत डाल और खाने को भी दिन भर में कुछ खास नहीं मिलने वाला।"
अमन ओबराय ने कुछ नहीं कहा।
"बोलेगा कि हवा निकल गई तेरी ।"
"मुझे तेरे वाले काम नहीं आते।" ओबराय परेशान स्वर में बोला--- "मैं शरीफ बंदा हूं, ऐसा करना तो मैं पाप समझता...।"
"वो पाप नहीं था जो भाभी के साथ...।"
"फिर वो ही बात...!" अमन ओबराय झुंझलाया--- "वो बातें मुझे याद ना दिला।"
"ठीक है। ठीक है। अब के बारे में सोच कि तू कंगाल हो गया है। अब तेरे को कैसी जिन्दगी चाहिये ?”
"मैं तेरी बात को समझ रहा हूं।" अमन ओबराय गम्भीर हो गया--- “तू अपनी जगह मजबूर है कि जो कुछ तू जानता है, वो ही तो करेगा। पर सुन, ज्यादा गड़बड़ वाला काम मत करना। मुझे डर लगता है।"
"कोशिश करूंगा।"
"बता क्या करना है?"
"सोचता हूं देखता हूं। तू क्या समझता है कि ये काम ऐसे ही हो जाते हैं। बहुत मेहनत लगती है। कई दिनों का वक्त लगता है, शिकार ढूंढना पड़ता है। पर तेरे शरीर में रहकर मैं बढ़िया से बढ़िया काम कर सकूंगा। क्योंकि तू पढ़ा-लिखा है। तौर-सलीका तुझे आता है। अंग्रेजी भी बोल लेता है। जहां इन बातों की जरूरत पड़े, वो तू संभाल लेना। बाकी सब कुछ मेरे पर छोड़ दे। किस्मत ने साथ दिया तो जल्दी ही वो वक्त आयेगा कि तू पहले से भी बढ़िया जिन्दगी जिएगा।”
"सच?" ओबराय खुश हो गया।
"अभी तो सब राम भरोसे है ।" हरीश खुदे ने गहरी सांस ली--- "देखेंगे अब कि तेरा भगवान क्या चमत्कार दिखाता है।"
समाप्त
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