हैदर खान और मोना चौधरी शमशेर के ठिकाने पर थे, जो कि एक-मंजिला बहुत बड़ी इमारत में था। वहां पर सौ से ज्यादा आदमी थे, जब वे वहाँ पहुंचे। शांत पड़ा था ठिकाना, परन्तु उनके पहुंचते ही हलचल मच गई।

हैदर खान ने सबको एक हॉल में इकट्ठा किया। मोना चौधरी हर पल हैदर साथ रही।

हैदर खान ने आदेश दिया कि सबको एक घंटे में यहाँ पर इकट्ठा किया जाये।

भगदड़ मच गई।

एक घंटे का वक्त यूँ निकला जैसे समय को पंख लग गये हों। अब वहाँ तीन सौ से ज्यादा आदमी थे। हैदर खान उनके बीच घूमता ऊँचे स्वर में कह उठा---

"हमारे हिन्दुस्तानी दुश्मनों ने हमारी सारी ड्रग्स जला दी। जबकि हमें ये भी नहीं मालूम कि वो किस बात की दुश्मनी निकाल रहे हैं! और तो और, शमशेर उन लोगों के हाथों में जा फंसा है और वे लोग उससे पूछ-पूछ कर लाली खान के ठिकानों पर हमला कर रहे हैं। लाली खान को भी वे मार डालना चाहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने लाली खान की बेटी का भी अपहरण कर लिया है, जिसने कि बड़ी होकर इसी ड्रग्स के धंधे को संभालना है।" क्षण भर ठिठककर हैदर खान ने पुनः कहा--- "ड्रग्स के जलने की आप लोगों को फिक्र करने की जरूरत नहीं है। आप सब को वक्त पर तनख्वाह मिलती रहेगी। छः-आठ महीनों में हमारी अफीम की फसलें तैयार हो जायेंगी तो धंधा पहले की तरह फिर से चालू हो जायेगा। सब ठीक हो जायेगा। शमशेर के पास न होने की वजह से तुम सबको काम देना अब मेरा काम बन गया है। इस वक्त सबसे बड़ा काम है उन हिन्दुस्तानी को ढूंढ कर खत्म करना, जो हमें बरबाद करने पर लगे हैं। स्थानीय लोग भी उनकी सहायता कर रहे हैं। उन सब को खोजो और मार दो। तुम लोग दस-दस के ग्रुप में बंट जाओ और उन्हें ढूंढो। जो दल उन्हें मार देगा, उसे पचास लाख का नकद इनाम दिया जाएगा। इसलिये ये काम हमारे लिये नहीं तो 50 लाख का ईनाम पाने के लिये करो, परन्तु काम को कर के दिखाओ।"

हैदर खान की आवाज सुनकर उनमें जोश भर आया।

वे हाथ उठा-उठाकर कहने लगे कि वे दुश्मनों को खत्म कर के रहेंगे।

"वक्त बरबाद मत करो...और दस-दस के ग्रुप में बंटकर, उनकी तलाश में लग जाओ। काबुल, नांगारहार, बराली राजन जलालकोर्ट, महमुडे राकी, बामुरा... हमारे दुश्मन किसी भी शहर में हो सकते हैं।

उसके बाद वहाँ हलचल मच गई। निकल चलने के लिये तैयारियाँ शुरू हो गईं।

हैदर खान, मोना चौधरी के साथ एक कमरे में पहुँचा।

हैदर खान का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था।

"हम !" मोना चौधरी बोली--- "उन दुश्मनों को ढूंढ के खत्म कर देंगे हैदर ।"

“ये काम आसान नहीं है।" हैदर खान ने होंठ भींचकर कहा--- "अफगानिस्तान बहुत बड़ा है। क्या पता कि वे कहाँ हों! और सबसे परेशानी वाली बात तो ये है कि हम उन्हें पहचानते नहीं। क्या पता वे कैसे दिखते हैं!"

"हम उन्हें मार देंगे हैदर...। मैं तुम्हारे साथ हूँ...।"

हैदर खान ने छोटी-सी मुस्कान के साथ मोना चौधरी को देखा।

"तुम मेरे पास हो तो मैं हर काम करने का हौसला रखता हूँ... ।" हैदर खान कह उठा ।

“मैं तुम्हारे साथ हूँ।" मोना चौधरी ने मुस्करा कर कहा।

"जब हम दुश्मनों पर विजय पा लेंगे तो कितना अच्छा लगेगा...।"

"ये काम तो हो जायेगा... पर मासो का क्या करेंगे?" मोना चौधरी बोली।

"मासो?" हैदर खान ने मोना चौधरी को देखा।

“उन सब को मार दिया तो हमें मासो के बारे में कैसे पता चलेगा कि वो कहाँ है! वो तो उनकी कैद में कहीं है।"

"मासो का अपहरण दिल्ली में किया गया। वो दिल्ली में कहीं होगी। ये काम लाली देखेगी। वो अपनी बेटी को ढूंढ लेगी। हमें अपने दुश्मनों को खत्म करना चाहिये। मुझे यकीन है कि मासो हमें वापस मिल जायेगी।" हैदर खान ने दृढ़ स्वर में कहा।

मोना चौधरी ने प्यार से हैदर का हाथ थामा और बोली--- "अब हम क्या करेंगे ?"

"अभी तो यहीं रहेंगे। जब हमें हिन्दुस्तानी दुश्मनों के कहीं होने की खबर आयेगी, तो हम वहाँ के लिए चल देंगे।"

"तो अब हमारा काफी वक्त साथ-साथ ही बीतेगा...।"

हैदर खान, मोना चौधरी को देखने लगा। चेहरे पर बेचैनी आ ठहरी।

"क्या बात है?"

“मुझे डर लगता है कि तुम्हें खो न दूँ...।" हैदर खान का स्वर काँप उठा ।

“कैसी बातें करते हो हैदर-- मैं तुम्हारे साथ हूँ...जब भी जाऊँगी, बता के जाऊँगी।"

"तुम्हें तो मैं रोक लूँगा मोना चौधरी, परन्तु डर मुझे लाली की तरफ से है। लाली से आज मेरी बात हुई। वो जान चुकी है कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ और शादी करने का इरादा भी रखता हूँ...।" हैदर खान ने गहरी सांस लेकर कहा।

“ये बात तुमने लाली खान से कही ?"

“गुल ने। बात गुल ने शुरू की तो पूरी मुझे करनी पड़ी। लाली ने स्पष्ट कह दिया है कि शादी जैसी कोई बात नहीं होगी।”

"ऐसा क्यों?"

"हमारे परिवार की परम्परा रही है शादी न करना... और धंधे में ध्यान लगाना।"

"ये तो कोई बात नहीं हुई....।"

"माँ ने भी इस बात को नहीं माना था। अपने पति को हमेशा साथ रखा था। तीन बच्चे पैदा किए उसने। लाली कुछ भी कहती रहे, परन्तु मैं उसकी बात नहीं मानूँगा। मैं तुमसे शादी करूँगा मोना चौधरी । हम शादी कर लेंगे।"

मोना चौधरी, हैदर के खूबसूरत चेहरे को देखती रही ।

"क्या हुआ ?" हैदर खान ने पूछा।

“तुम!" मोना चौधरी उसका गाल थपथपा कर बोली--- “बहुत भोले हो ... ।”

“ये क्या बात हुई?”

"लाली खान नहीं चाहती कि तुम मेरे से शादी करो...तो तुमने कैसे सोच लिया कि वो हमारी शादी होने देगी?" मोना चौधरी बाली ।

"क्या कहना चाहती हो?"

"यही कि वो हमारी शादी नहीं होने देगी।"

"हम करेंगे!" हैदर खान दृढ़ स्वर में बोला--- "वो हमें रोक नही सकती ।"

"रोक लेगी।"

"कैसे?"

"तुमने उसकी बात न मानी तो वो तुम्हें गोली मार देगी।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

"नहीं। लाली मुझे कुछ नहीं कहेगी। मैं उसका भाई हूँ। वो मुझे बहुत चाहती है।"

"तो फिर मुझे गोली मार देगी।"

हैदर, मोना चौधरी को देखने लगा।

मोना चौधरी मुस्कराई।

एकाएक हैदर परेशान हो उठा था।

"ओह! ये तो मैंने सोचा ही नहीं था... लाली ऐसा कर सकती...।"

"वो ऐसा ही करेगी। तुमने इसलिये ये बात न सोची कि तुम्हें अपनों पर भरोसा है। लेकिन अपने एक हद तक ही अपने होते हैं। एक हद के बाद नहीं। मेरे ख्याल में लाली खान की निगाहों में सबसे अहम है ड्रग्स का बिजनेस ।"

"हाँ, सच कह रही हो तुम।"

"इस बिजनेस को जिन्दा रखने के लिए वो जो कर सकती होगी, जरूर करेगी।"

हैदर के होंठ भिंच गये।

"क्या सोचने लगे?"

“लाली हमें नहीं रोक सकती...।" एकाएक हैदर दृढ़ स्वर में कह उठा।

“ये तो वक्त बताएगा।" मोना चौधरी मुस्कराई।

"मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता। हम...हम यहाँ से भाग कर कहीं दूर चले जायेंगे...।"

"तुम खामखाह ही बात को लम्बा कर रहे हो। हम शादी के बिना भी साथ रह सकते हैं।" मोना चौधरी बोली।

"लेकिन मैं तुमसे परिवार बनाना चाहता हूँ। बच्चे पैदा करना चाहता हूँ। पूरी तरह तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ।”

"अभी अपने काम पर ध्यान दो। इन बातों के लिए बहुत वक्त है।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा--- "बाहर हमारे आदमी जाने के लिये तैयार हो रहे हैं। तुम्हें, उनमें जोश भरना चाहिये। उनके पास जाना चाहिये...।"

हैदर खान उठता हुआ कह उठा---

"तुम...तुम तो मेरे साथ हो ना मोना चौधरी ?"

"हाँ। लेकिन तुम बहुत शरीफ हो। तुम्हें ड्रग्स के धंधे में होना ही चाहिये था। जहाँ तक मेरी हिम्मत ने साथ दिया, मैं तुम्हारे साथ ही हूँ। चलो... अपने आदमियों के बीच। जोश भर दो उनमें कि वो काम करके ही लौटें...।"

दोनों कमरे से बाहर निकल गये।

■■■

जयन्त उस कमरे में पहुँचा, जहाँ गुलजीरा खान मौजूद थी।

गुल सोफे पर अधलेटी सी हुई पड़ी थी। जयन्त बैठता हुआ बोला---

"क्या कर रही हो?"

“फुर्सत है अब... ।" गुल ने गहरी सांस लेकर कहा--- "कुछ महीनों के लिये धंधा रुक गया है... ।"

"कहीं माल पहुँचाने को बोलो?"

"बांग्ला देश माल जाना था, लेकिन माल ही नहीं है तो ये सब कैसे होगा? तुम भी अब फुर्सत में हो।" गुल ने करवट लेकर जयन्त को देखते हुए कहा--- "तुम और मोना चौधरी अब चले क्यों नहीं जाते? हमारे पास काम नहीं है। बेकार पड़े रहने का क्या फायदा?"

"हम तो चलने की तैयारी भी कर चुके होते... ।" जयन्त मुस्कराया।

"तो गये क्यों नहीं?"

"मैं मोना चौधरी के लिए काम करता हूँ। जैसा वो कहती है, वैसा ही करता हूँ...।" जयन्त ने लापरवाही से कहा--- "हमने तो हैदर साहब से बहुत कहा कि हमें अब यहाँ से चले जाना चाहिये । परन्तु हैदर साहब, नहीं चाहते कि मोना चौधरी उनसे दूर हो...।"

गुल के होंठ भिंच गये।

"हैदर साहब, मोना चौधरी पर रुकने का दबाव डालने लगे। उसे अपने साथ ले गये।"

“पक्की कुतिया ! हरामजादी!” गुल बड़बड़ा उठी।

"क्या कहा?"

"कुछ नहीं...।"

"हैदर साहब सच में मोना चौधरी को प्यार करने लगे हैं।" जयन्त मुस्करा पड़ा।

"प्यार? कुछ नहीं होता प्यार! दिमाग का भूत होता है! जब भूत उतरता है तो पता चलता है कि वो कितना गलत था...।" गुल ने कड़वे स्वर में कहा--"मुझे तो किसी से प्यार नहीं हुआ। क्योंकि मैं अपने दिमाग पर भूत को बैठने नहीं देती।"

"तुम ही हैदर साहब को क्यों नहीं समझातीं...।"

"वो बच्चा नहीं है जो मेरे समझाने पर समझ जाये। भूत जब काटेगा तो सब समझ आ जायेगी।"

"आज नहीं तो कल हमें जाना ही है। क्योंकि यहाँ पैसा बनाने के लिये, हमारे पास काम नहीं रहा।" जयन्त ने शांत स्वर में कहा।

"तुम समझदार हो।" गुल मुस्करा पड़ी।

"कहीं मेरे को देखकर भूत तुम्हारे सिर पर तो नहीं मंडराने लगा?"

"निश्चिंत रहो।" गुल कड़वे स्वर में बोली--- “ऐसे भूत मेरे से कोसों दूर रहते हैं।"

"अच्छा है। तुम तो... ।”

तभी गुल का मोबाइल बजने लगा।

"हैलो...।" गुल ने बात की।

"गुलजीरा खान है ना तू?" उधर से वो ही आवाज आई।

गुल तुरन्त उठ बैठी । वो आवाज पहचान गई थी।

जयन्त की निगाह उस पर थी।

“हाँ...।" गुलजीरा खान ने कहा ।

"पारसनाथ को मेरे हवाले करने का फैसला कर लिया?"

“वो हमारे पास नहीं है कि उसे तेरे हवाले कर दें।" गुलजीरा खान शांत स्वर में बोली।

"समझा! तो तू मासो के शरीर के टुकड़े चाहती है... बोल पहले कौन से टुकड़े भेजूं। हाथों के या... ।"

"बकवास मत करो। इस तरह की बातों से कोई फायदा नहीं होगा। तुम हमसे मिलकर बात क्यों नहीं करते?"

"मिले बिना ही काम बढ़िया चल रहा है।" उधर से कड़वे स्वर में कहा गया--- “तो मिलने की क्या जरूरत... ।"

"मासो की वापसी के बदले तुम्हें काफी पैसा दिया जा सकता है ।"

"मुझे पैसा नहीं पारसनाथ चाहिये.... ।"

"वो हमारे पास नहीं है। बेहतर होगा कि तुम लाली से बात करो।"

"लाली खान से--उस कमीनी का मेरे पास नम्बर नहीं है। वरना मैं उससे ही बात करता।"

"नम्बर नोट करो। मैं बोलती हूँ...।"

गुलजीरा खान ने लाली खान का नम्बर बताया।

सामने बैठे जयन्त ने भी फोन नम्बर सुना।

उसके बाद गुलजीरा खान ने फोन बंद कर दिया।

"तुम पारसनाथ को उसके हवाले क्यों नहीं देते ?”

"वो हमारे पास हो तो तब उसे दें! मामले में कहीं गड़बड़ है, जो हमें समझ नहीं आ रही।"

जयन्त उठते हुए बोला।

"वक्त नहीं कट रहा। मैं क्या करूँ?"

"घूमो-फिरो, ऐश करो।" गुल ने लापरवाही से कहा--  “और मोना चौधरी को लेकर यहाँ से जल्दी चले जाओ।”

■■■

शाम के पाँच बज रहे थे।

शमशेर वाले ठिकाने पर खामोशी छा चुकी थी। सारे आदमी महाजन और जौहर को ढूंढने और मारने के लिए दस-दस के दलों में जा चुके थे। हथियार उनके पास थे। अब ठिकाने पर सिर्फ आठ-दस आदमी ही बचे थे। जो कि सुरक्षा की खातिर वहीं रहते थे। थोड़ी देर पहले ही हैदर और मोना चौधरी प्यार करके हटे थे।

मोना चौधरी के पास होने पर हैदर खान खुश रहता था। कोई गम पास नहीं आता था।

इस वक्त हैदर खान बाथरूम में था कि मोना चौधरी ने फोन निकालकर जयन्त को फोन किया।

"हैलो...।" जयन्त की आवाज कानों में पड़ी।

"वहीं पर हो ?” मोना चौधरी की आवाज धीमी थी।

“हाँ...!"

"गुलजीरा खान वहीं है?" मोना चौधरी ने पूछा।

"हाँ...।"

"उसका इरादा कहीं जाने का तो नहीं है?"

“अभी तो ऐसा कुछ नहीं है... क्यों?" उधर से जयन्त ने पूछा।

"तुम कमरे में रहना। गोलियों की आवाज सुनो तो तब भी बाहर मत निकलना।"

"कुछ होने वाला है?" उधर से जयन्त ने चौंक कर पूछा।

"शायद हो जाये। मैं गुलजीरा खान को खत्म करवाने जा रही हूं।"

"क्या?" जयन्त के चिहुँकने का स्वर आया।

"गुलजीरा मरेगी तो लाली खान 'बिल' में से बाहर निकलेगी। ये जरूरी है।"

जयन्त की आवाज नहीं आई।

"कितने लोग हैं ठिकाने पर?"

"सुलतान के साथ दस या पन्द्रह। मुझे समझ नहीं आता कि तुमने सही फैसला लिया है या गलत?"

“हमें जल्दी ही कुछ करना होगा। हमारे पास वक्त कम है। लाली खान का ड्रग्स का धंधा बंद हो चुका है। ऐसे में हम ज्यादा देर यहां टिके नहीं रह सकते---बेशक हैदर ही मुझे क्यों न रोकना चाहे! हमारे टिकने की ठोस वजह नहीं होगी तो हमें जाना ही पड़ेगा। ऐसा वक्त आने से पहले मैं अपना मिशन हर हाल में पूरा कर देना चाहती हूँ। हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या है कि हम लाली खान का ठिकाना नहीं जानते और वो खुले में नहीं आती। उसे खत्म किए बिना मिशन अधूरा है।"

"फिर तो हैदर को भी खत्म करना पड़ेगा...।"

"क्यों?"

"जमीनें तो सलामत हैं जहाँ अफीम की खेती होती है। वो फिर से ड्रग्स का काम चालू कर सकता है और पाकिस्तान के अपने संगठन को पैसे की सहायता देकर खड़ा कर सकता है... ।”

"इस बारे में मैं सोचूंगी। परन्तु ये तो पक्का है कि अब लाली खान का परिवार ये धंधा नहीं कर सकेगा। मैं सबको ही साफ कर दूंगी।"

जयन्त के गहरी सांस लेने की आवाज आई।

मोना चौधरी ने फोन काटा और लैला को फोन किया---

"हैलो.....।” लैला की आवाज कानों में पड़ी।

“मेरी बात सुनो। तुम जानती हो ना कि गुलजीरा खान कौन से ठिकाने पर अक्सर होती है?"

"वहीं जहाँ इन दिनों तुम और जयन्त टिके हो।"

“ठीक कहा। वहाँ सुल्तान के अलावा दस-पन्द्रह लोग हैं। गुलजीरा खान भी वहीं है और जयन्त भी। तुमने एक बार फिर अपने को साबित करना है। अपने दस-बीस आदम यहाँ भेज दो। गुलजीरा खान की हत्या करनी है।"

"ओह.....!” लैला के गहरी सांस लेने की आवाज आई।

"काम हो जायेगा?"

"तुम हर बड़ा काम मुझसे करा रही हो। मैंने जिन लोगों का इस्तेमाल तीनों गोदाम तबाह करने के लिए किया था, उनमें से कुछ लोग लाली खान के आदमियों के हाथों में जा पड़े हैं। उनसे पूछताछ हो रही होगी कि ये काम किसने करवाया...।"

"वो तुम्हें जानते हैं?"

“नहीं। लेकिन इतना तो जानते ही हैं कि किसी औरत ने पैसा देकर, तीनों गोदाम तबाह करने को कहा। मैं जब भी उन लोगों से मिलती थी तो चेहरे को ढक लिया करती थी। परन्तु इससे मुझे खतरा तो पैदा हो ही गया। देर-सवेर में लाली खान के लोग मुझ तक पहुंच ही जायेंगे। मैं उनकी नजरों से ज्यादा देर बची नहीं रह सकती...।”

"मेरे ख्याल में बहुत जल्दी सारा खतरा खत्म हो जायेगा।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

"गुलजीरा को खत्म करने से काम नहीं चलेगा...लाली खान को... ।"

"मेरे कदम उसी तरफ बढ़ रहे हैं।" मोना चौधरी का स्वर कठोर हुआ--- "गुल मरेगी तो लाली जरूर अपनी जगह से बाहर निकलेगी।”

"तुम गुलजीरा को खत्म करो। मैंने जयन्त से कह दिया है कि फायरिंग की आवाजें सुनकर कमरे से बाहर न निकले।"

"तुम खुद कहाँ हो?"

"हैदर के साथ शमशेर के ठिकाने पर। हैदर ने शमशेर की जगह ले ली है और सब लोगों को महाजन और जौहर की तलाश में भेज दिया है। गुल की मौत के साथ ही भारी खलबली मच जायेगी। इस परिवार और उन लोगों के पाँव उखड़ने शुरू हो जायेंगे जो इन लोगों के लिए काम करते हैं। तुम्हारे पास ऐसे आदमी हैं जो हमला करके, गुलजीरा खान को खत्म कर सकें?"

"देखती हूं। अपने आदमी इस्तेमाल करने से बेहतर होगा कि भारी कीमत देकर इस काम के लिए बाहर से आदमी लूं। परन्तु इस काम में मुझे खतरा उठाना पड़ेगा। हो सकता है कि लाली खान के आदमियों ने मुझे ढूंढना शुरू कर दिया हो।"

"तुम ये काम कर दो। जरूरी है ये... ।"

तभी बाथरूम की सिटकनी खोले जाने की आवाज आई।

मोना चौधरी ने फौरन फोन बंद करके एक तरफ रख दिया।

हैदर खान बाथरूम से बाहर निकला। उसका चेहरा खिला हुआ था। वो अण्डरवियर में था।

मौना चौधरी उसे देखकर मुस्कराई।

"तुम लाजवाब हो।" हैदर प्यार से कह उठा--- "तुममें नशा है।"

मोना चौधरी खिलखिला उठी। वो उठकर आगे बढ़ी और हैदर के होंठ चूमकर बाथरूम में चली गई।

■■■

"उस औरत को ढूंढो। हर जगह तलाश करो उसकी ।" लाली खान फोन पर कह रही थी--- "वो यकीनन स्थानीय है। वो ही उन हिन्दुस्तानियों का साथ दे रही है। उनकी पूरी सहायता कर रही है। ये मामला खत्म नहीं हुआ। अभी वो फिर किसी न किसी काम के लिये और आदमियों को किराये पर लेगी। तब बेहतर मौका होगा उसे पकड़ने का। ये भी पक्का है कि वो काबुल में रहती है, क्योंकि उसने जिन लोगों को ड्रग्स के गोदामों को तबाह करने के लिये किराये पर लिया, वो काबुल और उसके आस-पास के थे। ये पता लग पाना ही बहुत बड़ी बात है कि वो औरत काबुल में रहती है। पकड़े गये लोग कहते हैं कि वो औरत बुर्के में ही उनसे मिली। उसका चेहरा नहीं देखा गया। सतर्क रहो। वो फिर किसी काम के लिये आदमियों को इकट्ठा करेगी।"

“अब की बार वो बचेगी नहीं मैडम.... ।” उधर से दृढ़ स्वर में कहा गया।

"सबसे कह दो कि जो भी उस उस औरत को पकड़ेगा, उसे मोटा ईनाम दिया जायेगा।" लाली खान का स्वर शांत था।

"जी मैडम... ।”

लाली खान ने फोन बंद करके हाथ में पकड़े रखा और सोच भरी नजरों से इधर-उधर देखने लगी।

लाली खान इस वक्त एक बंगले में थी। बंगला छोटा परन्तु खूबसूरत था। छोटे से ड्राईंग हॉल में नजरें दौड़ाती लाली खान उठी और खिड़की पर जा खड़ी हुई। सोचों की छाप चेहरे पर थी। लॉन में काम करता उसे मेमन दिखा। एक कमजोर से पौधे को डण्डी के साथ बांध रहा था कि वो गिरे नहीं और ऊपर की तरफ बढ़े।

शाम के छः बज रहे थे।

सूर्य पश्चिम की तरफ झुक चुका था।

तभी मेमन पौधे के पास से हटा और एक तरफ बढ़ने लगा। दो कदम बढ़ाकर एकाएक ठिठका और गर्दन घुमा कर उसने खिड़की की तरफ देखा । यकीनन उसे एहसास हो गया था कि कोई खिड़की पर खड़ा है। मेमन की ये खासियत थी कि उसकी नजरों से कोई चीज बच पानी आसान नहीं थी। लाली खान को उसकी तेज नजरों का एहसास था।

लाली खान से नजरें मिलते ही सिर के इशारे से उसे आने को कहा।

मेमन वहां पाईप से बहते पानी से मिट्टी वाले हाथ धोकर भीतर की तरफ चल दिया।

लाली खान खिड़की से हटी और वापस कमरे में आ बैठी।

दो मिनट बाद ही मेमन भीतर आया और खड़ा होकर उसे देखने लगा।

"मेमन!" लाली खान गम्भीर स्वर में बोली--- "वक्त बुरा चल रहा है।"

मेमन उसे खामोशी से देखता रहा ।

"हमारी सारी ड्रग्स को तबाह कर दिया गया... और कोई हिन्दुस्तानी, शमशेर को कैद करके, उससे पूछताछ करता बारी-बारी मेरे हर ठिकाने पर पहुंचकर, मेरे आदमियों को मार रहा है। वो मुझ तक पहुंचना चाहता है।"

"तुम्हारा ख्याल रखना मेरा काम है। और ड्रग्स के धंधे को संभालना तुम्हारा काम है।"

“कुछ पता नहीं वो कभी भी पता लगाकर यहां पहुंच सकता है।"

“यहां वो मारा जायेगा।” मेमन के होंठ हिले--- “क्या यहां के.बारे में शमशेर जानता है?"

"नहीं। परन्तु जानता भी हो तो कह नहीं सकती। शमशेर को पूरी छूट थी कि वो हर तरफ नजर रखे।"

"पता नहीं चला कि वो कौन है, जो तुम्हारे पीछे पड़ा है?"

"एक औरत नजरों में आई है। वो बुर्के में देखी गई है। उसका चेहरा नहीं देखा किसी ने। उसी ने हमारे ड्रग्स के ठिकाने तबाह करने के लिये आदमियों को मोटी रकमें देकर तैयार किया था। अगर अब फिर वो इस तरह आदमी इकट्ठे करने निकली तो पकड़ी जायेगी। वो काबुल की ही है और मेरे आदमी उसकी तलाश में काबुल में फैल चुके हैं।"

"वो जरूर पकड़ी जायेगी।” मेमन के होंठ हिले।

"मुझे शकीला की चिन्ता है।" लाली खान शांत से स्वर में कह रही थी--- "उस रात जब महामुडे राकी के ठिकाने पर शकीला मौजूद थी तो, वहां वो हिन्दुस्तानी आ पहुंचा था। बाद में वहां से चारों आदमियों की लाशें मिलीं, परन्तु शकीला गायब थी। उसकी कोई खबर नहीं मिली। अभी तक कोई खबर नहीं मिली। वो मेरे ठिकाने और मेरे बारे में जानकारी रखती है।"

"स्पष्ट है कि शकीला कैद में पहुंच गई है।"

"मेरा दिल कहता है कि वो मुंह नहीं खोलेगी।" लाली खान ने इस बात का जवाब सुनने की खातिर कहा।

"खोल देगी!" मेमन के होंठ हिले--- “कैद में मुंह खोलना ही पड़ता है।"

"अगर उसने मुंह खोला होता तो अब तक हमारे दुश्मनों ने बहुत कुछ कर दिया होता।"

"वो ज्यादा देर मुंह बंद नहीं रख सकेगी।” मेमन के होंठ पुन: हिले।

लाली खान, मेमन को देखती रही, फिर बोली---

"मासो को भी दिल्ली से हमारे दुश्मनों ने अपहरण कर लिया है। तुम बताओ! अब मैं क्या करूँ?"

"मुझे हुकम दीजिये....!" मेमन के होंठ हिले। चेहरे पर सर्द भाव थे।

"अगर मासो की बात न होती तो परवाह नहीं थी....मैं पाकिस्तान या कहीं और चली जाती कुछ देर के लिए...।"

"डर कर कहीं जाने की जरूरत नहीं। मैं तुम्हारे पास हूं।"

"हमारा दुश्मन हमसे मासो के बदले पारसनाथ को मांगता है, और हम किसी पारसनाथ को नहीं जानते।"

"तुम परेशान हो।" मेमन के होंठ खुले ।

"हाँ! पैंतीस सौ करोड़ की ड्रग्स तबाह हो गई। पैसा खत्म हो गया। पाकिस्तान में मैंने जो संगठन खड़ा किया था, उन्हें पैसा न मिलने की वजह से वो भी अब खत्म हो जायेगा। इधर मासो की चिन्ता । हर तरफ परेशानी ही परेशानी है।"

"बाकी परेशानियां तो तुम्हें ही देखनी हैं। तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा, ये मेरी जिम्मेवारी है।” मेमन बोला।

“मुझे भरोसा है तुम पर... । परन्तु तुम मुझे सलाह दो कि मैं क्या करूँ?"

"अफीम की अगली फसल तैयार होने तक शांत बैठ कर इन्तजार करो...।"

"और मासो?"

"उसका भी कोई हल निकलेगा। जिसने मासो को उठाया है, वो मासो को नुकसान नहीं पहुंचायेगा। मासो के दम पर तुमसे सौदा करेगा।"

"वो मासो के बदले पारसनाथ को मांगता है और पारसनाथ को हम नहीं जानते कि...।"

"शांत रहो।” मेमन के होंठ मशीनी अंदाज में चल रहे थे--- "पारसनाथ तो बहाना है। असल बात कुछ और ही है। जो भी बात है, सामने आ जायेगी। हो सकता है वो मासो के बदले तुमसे मोटी रकम चाहता हो।"

"तो मैंने देने से कब इन्कार किया है? वो अपनी डिमांड तो रखे...।"

"तुम बिलकुल शांत रहो। डिमांड भी सामने आ जायेगी।” मेमन के होंठ हिल रहे थे।

"ये मेरा परेशानी का वक्त है। गुल या हैदर से भी कोई बात नहीं कर सकती। मुझे परेशान देखकर वो भी परेशान हो गये तो काम कौन करेगा। उनके सामने मुझे हौसला दिखाना पड़ता है। मुझे तुम्हारा बहुत सहारा है मेमन...।"

"मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं...।" मेमठ के होंठ हिले ।

"याकूब कहां है?"

"वो सब के लिए रात का खाना तैयार कर रहा है।"

“ठीक है।” लाली खान ने लम्बी सांस ली--- "तुम अपने हाथों से कॉफी बनाकर दो मुझे... ।"

मेमन पलटा और बाहर निकल गया।

लाली खान जानती थी कि जब तक वह पीछे पड़ा हिन्दुस्तानी, काबुल की वो औरत और मासो वापस नहीं मिल जाती, तब तक वो इसी प्रकार परेशान रहेगी। ऐसा मुसीबत भरा वक्त, पहले कभी उस पर नहीं आया था।

■■■

लैला ने दांत भींच कर शकीला के माथे पर रिवाल्वर की नाल रखी और ट्रेगर दबा दिया। गोली का तेज धमाका कमरे में गूंजा और शकीला के सिर का हिस्सा कई टुकड़ों में बदल गया।

लैला के चेहरे पर कठोरता और दरिन्दगी के भाव थे। उसने रिवाल्वर कमर में कपड़ों में छिपाई और एक निगाह शकीला की लाश पर डाली। शकीला के शरीर पर वो ही कमीज-सलवार था जिसे वो तब पहने थी, जब महाजन ने उसे उठाया था। इस वक्त शकीला के दोनों पैर गोलियां लगने से टूटे पड़े थे। खून आस-पास बिखरा था । उसका एक घुटना भी गोली से टूटा हुआ था और उसके कंधे पर गोली मारी गई थी----तब जाकर शकीला ने पीड़ा से छटपटाते हुए लाली खान के दो बंगलों के बारे में बताया था कि वो उन दो में से किसी एक बंगले पर होगी।

बहुत कठिनता से शकीला का मुंह खुल पाया था। उसके बाद शकीला का हाल ऐसा नहीं था कि उसे जिन्दा रखा जा सके। लैला ने सदा के लिये उसे मौत की नींद सुला दिया था।

"जौहर ने ठीक कहा था।" लैला बड़बड़ा उठी--- "यातना की धमकी देने से बेहतर है, यातना देकर दिखाओ।"

लैला ने सामने खड़े आदमी को देखा। कमरे में इकलौता वो ही मौजूद था।

"लाश को बोरे में भरकर कहीं दूर फेंक दो।"

"यस मैडम... ।" उस आदमी ने कहा।

लैला पलटी और दूसरे कमरे में जा पहुंची। जो कपड़े पहने हुए थे, उस पर खून के छींटे पड़ गये थे। लैला ने कपड़े उतारे और बाथरूम में चली गई। वहां उसने अच्छी तरह हाथ-मुंह धोया और चेहरे पर मेकअप किया। परफ्यूम लगया। बालों को संवारा---फिर कमरे से बाहर आकर अलमारी खोली और नया सूट निकाल कर पहना। खुद को शीशे में देखा और बरबस ही मुस्करा कर बड़बड़ा उठी---

“अभी तो ये लैला अपने हुस्न से जाने कितनों का ईमान खराब करेगी...।"

उसके बाद लैला ने रिवाल्वर उठाकर कपड़ों में फंसाई और अलमारी से तह किया बुर्का निकाल कर पहन लिया। बुर्के के पर्दे पर जाली लगी हुई थी, जिसमें से उसे सब कुछ नजर आ रहा था। फिर लैला ने मोबाइल उठाया और मोना चौधरी के नम्बर मिलाने लगी। जल्दी ही बात हो गई।

"मेरी बात सुनो।" मोना चौधरी की आवाज सुनते ही लैला कह उठी--- "मैं जानती हूं कि हैदर तुम्हारे पास ही होगा। इसलिये तुम कुछ मत कहो, सिर्फ मेरी सुनो। शकीला ने मुंह खोल दिया है। उसने लाली खान के दो ठिकानों के बारे में बताया है। दो बंगले। एक चारिकर परवान शहर में। दूसरा लाघमान शहर में। उसने कहा था कि लाली खान इन दो जगहों में से एक बंगले में हो सकती है। दोनों जगहों का पता सुन लो ।” लैला ने दोनों जगहों का पता बताकर कहा--- "अब गुलजीरा का इन्तजाम करवाने के लिए बाहर जा रही हूं। मेरे ख्याल में अगले तीन घंटों तक गुलजीरा खान का काम हो जायेगा। बंद करती हूं फोन। फिर बात करूंगी।" कहकर लैला ने फोन बंद किया और अलमारी से एक ब्रीफकेस निकाला। वो भारी था। लैला ने बैड पर रख कर ब्रीफकेस खोला तो बीच में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान की करेंसी भरी हुई थी। लैला के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी। उसने ब्रीफकेस बंद किया और उसे थामें कमरे से बाहर निकली और आगे बढ़ गई। तभी सामने से सैयद आता दिखा। लेला ने बुर्के का पर्दा उठा दिया।

सैयद लैला के पास आकर रुका और कह उठा---

"लैला, मुझे समझ नहीं आता कि तुम किन कामों में लगी हो। हमारा ड्रग्स का काम भी रुका पड़ा है। तुम कुछ तो धंधे की तरफ ध्यान दो।"

"क्यों परवाह करते हो? तुम तो ड्रग्स के काम में मुफ्त के पार्टनर थे।" लैला मुस्कराकर कह उठी--- "नुकसान मेरा और फायदा आधा-आधा। हमने काफी कमा लिया है। वैसे भी इस वक्त कहीं भी ड्रग्स नहीं है कि हम धंधा चालू रख सकें...।"

"तो क्या ड्रग्स का काम आगे नहीं करना....।"

"कुछ दिन मैं व्यस्त हूं, उसके बाद बात करूंगी।"

"मुझे पता चला है कि तुम लाली खान के खिलाफ काम कर रही हो... ।"

“तुम क्यों पतले होते हो? इसमें तुम्हारा क्या जाता है?"

"वो खतरनाक है। उसे हमारे बारे में पता चल गया तो वो हमें मार देगी।" सैयद बोला।।

"नहीं पता चलेगा।" कहकर लैला ब्रीफकेस थामे आगे बढ़ गई रास्ते के मोड़ पर मुड़ी तो ठिठक गई। सामने से एक आदमी आ रहा था।

"परवेज... ।” उसके पास आने पर लैला ने कहा--- "तुमने लाली खाने से फोन पर बात करनी है।"

"याद है मुझे। तुम कहां जा रही हो?"

"गुलजीरा खान का इन्तजाम करवाने के लिये, रजा के पास जा रही हूँ...।”

"बोकारी वाला रजा ?"

"वो ही।"

"ये...।" परवेज ने गहरी सांस ली--- "काम हो गया तो, लाली खान पर तगड़ी चोट पड़ेगी।"

"मैं दो घंटों में लौट आऊंगी।"

"अपना ख्याल रखना...।" परवेज ने कहा।

लैला मुस्कराई। बुर्के का पर्दा गिराया और आगे बढ़ गई।

■■■

ये भीड़ भरा इलाका था। बुर्का पहने लैला कार ड्राइव कर रही थी। तंग सड़क और भीड़। उसे ध्यान से कार चलानी पड़ रही थी। बाजार था आसपास । देर बाद लैला ने सड़क के किनारे थोड़ी सी जगह में कार रोकी और ब्रीफकेस संभाले उतरकर आगे बढ़ गई। तेज-तेज कदमों से वो आगे बढ़े जा रही थी। फिर एक गली में प्रवेश कर गई। वो गली सात फीट से ज्यादा चौड़ी नहीं थी। लोग आ-जा रहे थे। आसपास के मकान ज्यादा ऊंचे नहीं थे, इसलिये पर्याप्त रोशनी थी गली में।

गली में ही, दो-तीन गलियों में मुड़ने के पश्चात वो एक बंद दरवाजे पर ठिठकी। शांत भावों से बुर्क की जाली में से इधर-उधर नजर मारी, फिर दरवाजा थपथपाया।

फौरन ही उसने भीतर से उठती कदमों की आवाजें सुनीं।

फिर दरवाजा खुला ।

पठानी कपड़ों में एक आदमी दिखा।

"रजा से मिलना है।" लैला कह उठी।

"क्यों?"

“काम है, वो मुझे जानता है।" कहने के साथ ही लैला आगे बढ़ी और उसकी बगल से भीतर प्रवेश कर गई। सामने ही खुला अहाता था। आठ-दस लोग वहां बैठे गप्पें लड़ा रहे थे।

लैला आगे बढ़ती चली गई।

सामने ही कतार में कई कमरे बने नजर आ रहे थे। एक कमरे के बाहर टूटी सी पुरानी कुर्सी पर एक आदमी बैठा, उसे ही आता देख रहा था। लैला उसके पास पहुंच कर ठिठकी।

"रजा से बोल, मैं आई हूं...।"

"मैं कौन?"

"इतना कहेगा तो वो समझ जायेगा कि मैं कौन?"

वो कुर्सी से उठा और कमरे में प्रवेश कर गया।

ब्रीफकेस थामे लैला की नजरें रजा के आदमियों पर जाने लगीं।

तभी वो आदमी दरवाजे पर आया और बोला---

"आओ...।"

लैला भीतर प्रवेश कर गई।

ये साधारण सा कमरा था। डबल बैड के अलावा बैठने के लिए दो कुर्सियां और छोटा सा टेबल था। खिड़की से आती रोशनी ने कमरे में पर्याप्त प्रकाश फैला रखा था।

रजा, पतला और लम्बा व्यक्ति था। तीखी सी नाक थी उसकी। गोरा चेहरा परन्तु गाल धंसे हुए। देखने में वो क्रूर सा लगता था ।

और इस वक्त कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसने बुर्के में छिपी लेला को देखा। बोला--

"मैं समझ गया था कि तुम ही होगी।"

लैला आगे बढ़ी और टेबल पर ब्रीफकेस रखा।

"तुम कई बार मेरे से काम ले चुकी हो, परन्तु तुम्हारा चेहरा मैंने आज तक नहीं देखा।" रजा ने कहा।

"मैं तुझे हमेशा बढ़िया नोट देती हूँ...।" लैला बोली।

"तभी तो तेरा काम करने में मजा आता है।" रजा मुस्करा पड़ा।

लैला ने वहां खड़े आदमी को देखकर कहा---

"इसे जाने को कह, ताकि हम काम की बात कर सकें।"

रजा ने उसे जाने का इशारा किया तो वो बाहर निकल गया। उसकी आंखों में चमक भर आई थी। दरवाजे से कुछ दूर हटकर उसने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा। फौरन ही बात हुई।

"तुम्हें बुर्के वाली औरत की जरूरत है, जो बंदों को किराये पर लेकर काम कराती है?"

"हां...।"

"मुझे ईनाम क्या मिलेगा?”

“पचास हजार...।"

"ठीक है। वो औरत इस वक्त रजा के ठिकाने पर है। कुछ देर में वो बाहर अवश्य निकलेगी। जल्दी पहुंच जा...।"

"मैं उधर ही हूं। अभी पहुंचता हूं बाहर।"

"वो तेज लगती है। साथ में और भी हों तो ठीक रहेगा।" कह कर उसने फोन बंद कर दिया।

लैला कुसी पर बैठती कह उठी---

"एक कत्ल करना है।"

"हो जायेगा।" रजा ने सिर हिलाया।

"कीमत बोल....।"

"एक कत्ल के पचास हजार से ज्यादा क्या लूं?"

"वो कत्ल खास है।"

" तो एक लाख लूंगा।"

"शिकार का नाम नहीं सुनेगा?” बुर्के में छिपे लैला के होंठ हिल रहे थे।

"बता...।"

“गुलजीरा खान...।”

रजा चौंका, फिर गहरी सांस लेकर कह उठा----

"ये तो खतरनाक मामला है। लाली खान मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगी।"

"उसे पता ही नहीं चलेगा कि ये काम तेरे आदमियों ने किया है। चेहरे पर कपड़ा लपेट कर तेरे आदमी जायेंगे और उसे मारकर भाग आयेंगे। मैं तेरे को बता देती हूं कि वो कहां है...।"

"गुलजीरा खान की हत्या करने में मुझे खतरा है। ये काम मैं नहीं कर सकता।" रजा ने इन्कार में सिर हिलाया।

"लैला ने ब्रीफकेस खोला और रजा की तरफ घुमा दिया।

रजा टकटकी बांधे नोटों से भरे ब्रीफकेस को देखने लगा।

“ये बीस लाख हैं। सब तेरे। गुलजीरा खान को खत्म कर दे।"

रजा ने नोटों से नजरें हटाकर लैला को देखकर कहा---

"मैं तेरा गला काट दूं तो वैसे भी ये सब मेरे हो जायेंगे।"

"सोने की मुर्गी का पेट फाड़ेगा तो कल को क्या खायेगा ? दोबारा मेरे से पैसा नहीं लेना क्या?"

"तभी तो तू जिन्दा है!" रजा मुस्कराया और ब्रीफकेस बंद करता कह उठा--- "काम हो जायेगा।"

"अभी...।"

"दो घंटों तक हो जायेगा। गुलजीरा खान कहां है?"

लैला ने ठिकाने के बारे में बता कर कहा---

“वहां दस-पन्द्रह आदमी भी हैं। वो जिंदा रहें या मरें। मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता। काम हो जाना चाहिये।"

“हो जायेगा। तेरी गुलजीरा खान से क्या दुश्मनी है?"

"नहीं बता सकती...।"

"तूने लाली खान का एक ड्रग्स का ठिकाना भी मेरे हाथों बरबाद कराया। तगड़ी दुश्मनी लगती है। लेकिन तेरे को बता दूं कि लाली खान के आदमी एक ऐसी बुर्के वाली औरत को तलाश कर रहे हैं, जो उसके खिलाफ काम करवाने के लिये आदमी इकट्ठे करवाती रहती है। लाली खान के आदमियों का संदेश मुझ तक भी आया कि अगर ऐसी कोई औरत आये तो उन्हें खबर करूँ। ईनाम मिलेगा।"

“तुमने मुझे सतर्क किया। शुक्रिया। मैं ध्यान रखूंगी।" लैला उठ खड़ी हुई--- "दो घंटों में काम कर देना।"

"समझो काम हो गया।"

“फिर मिलूंगी।" कहने के साथ ही लैला बाहर निकलती चली गई।

लैला बाहर निकली और गली में आगे बढ़ती चली गई। और लोग भी आ-जा रहे थे। उसके कदम तेज-तेज उठ रहे थे। लाली खान को उसके बारे में पूरी तरह आभास हो गया था। उसकी तलाश शुरू हो चुकी थी। लैला सोच रही थी कि अब इन कामों के लिये कोई नया ढंग इस्तेमाल करना होगा। बुर्क वाले भेष से लाली खान वाफिक हो चुकी है। वो कभी भी खतरे में फंस सकती है। तेजी से उठते जा रहे थे लैला के कदम।

एकाएक उसे खतरे का अहसास हुआ।

उसे लगा कि कोई देर से उसके पीछे आ रहा है। वो ठिठक कर पलटी।

पीछे पांच कदमों के फासले पर एक आदमी चला आ रहा था। लैला को ठिठक कर पलटते पाकर वो क्षणिक तौर पर सकपकाया, फिर उसने फुर्ती से रिवाल्वर निकालकर लैला की तरफ कर दी।

लैला के होंठ भिंच गये।

“तुमने लाली खान के खिलाफ बहुत काम कर लिया।" वो गुर्राया--- “अब तुम पकड़ी गईं।"

लैला के जिस्म में बिजली सी कौंधी। उसके जूते की तीव्र ठोकर उसके रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ी तो रिवाल्वर हाथ से छूट कर पास की दीवार से टकराती नीचे जा गिरी। इसके साथ ही लैला का घूंसा उसके पेट में धंसता चला गया। वो कराह कर दोहरा होता चला गया। लैला ने उसके सिर के बालों को मुट्ठी में जकड़ा और जोरों से दीवार पर दे मारा। उस आदमी के होठों से कराह निकली और वो नीचे जा गिरा।

आस-पास जाते लोग स्तब्ध ठिठके ये सब देखने लगे थे।

लैला जानती थी कि ये अकेला नहीं होगा। उसने फुर्ती से बुर्के के भीतर हाथ डालकर रिवाल्वर निकाली और पलट कर तेजी से आगे बढ़ती चली गई।

परन्तु लैला से चूक हो गई।

वो दुश्मनों के चेहरे नहीं पहचानती थी।

गली में सामने से दो आदमी आ रहे थे। लैला को रिवाल्वर थामे आते देखकर वो ठिठक कर खड़े हो गये। ज्योंहि लैला उनके पास से निकली, वो लैला पर झपट पड़े।

एक ने पीछे से उसे अपनी बाँहों में कसकर जकड़ लिया ।

लैला की दोनों बाहें उसी जकड़न के घेरे में फंस कर रह गईं। दूसरे आदमी ने उसके हाथों से रिवाल्वर छीननी चाही तो लैला ने ट्रेगर दबा दिया। गोली उसकी पिंडली में जा लगी। वो गला फाड़कर चीखा और नीचे जा गिरा। लैला ने फंसी बांह से ही नीचे गिरे आदमी पर गोली चलाई। परन्तु वो दूसरी गोली से बच गया।

लैला को पीछे से बांहों के घेरे में कसने वाले ने अपनी पकड़ मजबूत रखी थी। वो जानता था कि इस औरत ने आजाद होते ही उस पर गोलियां चला देनी हैं।

"छोड़ कुत्ते..।" लैला तड़प कर गुर्राई। खुद को आजाद करवाने की पूरी चेष्टा की। परन्तु आजाद न हो पाई।

"रिवॉल्वर फेंक दे।" उसे जकड़ने वाला बोला--- "तभी तेरे को आजाद करूंगा।"

लैला अपने को आजाद करवाने के लिए पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी।

तभी पीछे से वो व्यक्ति आ पहुंचा जिसे वो चोट पहुंचा कर निकल आई थी। उसका सिर दीवार पर मारा था। जिसकी वजह सेसिर में बहता खून उसके माथे तक आया दिख रहा था। वो रिवाल्वर थामे था। उसने पीछे से ही रिवाल्वर की भारी नाल की चोट लैला के सिर पर की। लैला तड़प उठी।

उसने एक साथ तीन चोटें सिर पर दे मारीं। लैला की आंखों के सामने लाल-पीले सितारे नाचे और वो बेहोश होकर बांहों की मजबूत पकड़ में झूलती चली गई।

■■■

गुलजीरा खान अपने उसी कमरे में बैठी थी। दोपहर से वो कमरे से बाहर न निकली थी। लंच के नाम पर सुल्तान ने बाजार से कुछ खाने को ला दिया था। बेमन से थोड़ा-बहुत ही खाया। आज उसे फुर्सत मिली थी कि अपने बारे में कुछ सोच सके। इस धंधे के अलावा उसे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। वो समझ नहीं पा रही थी कि क्या उसने इसीलिए जन्म लिया है कि ड्रग्स का काम करती रहे और मर जाये? उसका अपना कुछ नहीं है। इन बातों में उलझी वो ठीक से सोच भी नहीं पा रही थी।

तभी उसका फोन बजने लगा। उसकी सोचें टूटीं। उसने घड़ी में वक्त देखा ! शाम के 7.30 बज रहे थे। कमरे की लाईट जल रही थी। शायद सुल्तान जला गया होगा। उसने फोन पर बात की। दूसरी तरफ आरिफ था।

"नाराज हो मुझसे?" आरिफ ने पूछा।

"क्यों ?" गुलजीरा खान ने गहरी सांस ली।

"कई दिन से मिलीं नहीं....?"

"मैं बहुत परेशान हूँ। ड्रग्स के सारे गोदामों को किसी ने जला दिया। पैंतीस सौ करोड़ का नुकसान हुआ।"

"ओह! दुख हुआ जानकर। ऐसी हालत में तो तुम्हें मिलना चाहिये। बातें करके मन का बोझ हल्का होता है...।"

"मैं इस माहौल से कहीं दूर निकल जाना चाहती हूं... कुछ देर के लिए।"

"दूर कहाँ ?"

"योरोप, इग्लैंड... कहीं भी। तुम साथ चलो तो बहुत अच्छा रहेगा।" गुलजीरा खान ने कहा ।

"क्यों नहीं! मैं तुम्हारे साथ चलूंगा। गुल नौ बजे हम मिलते हैं। प्रोग्राम बना लेंगे। पहुंच रही हो ना वहां ?"

“हां...। मैं आऊंगी।" गुलजीरा खान ने कहा और फोन बंद कर दिया।

गुलजीरा खान ने आवाज लगाकर एक आदमी को बुलाया।

"कॉफी ले आओ।"

वो आदमी चला गया तो उसने हैदर को फोन किया।

“बोल गुल... ।" उधर से हैदर की आवाज कानों में पड़ी।

“क्या किया तूने?"

"सबको उस हिन्दुस्तानी की तलाश में भेज दिया है, जो हमारे पीछे पड़ा है। अब वो बचेगा नहीं।"

"अभी तक किसी ने कोई खबर नहीं दी?"

“नहीं। खबर के इन्तजार में ही बैठा हूँ... ।"

“पक्की कुतिया भी तेरे साथ ही है?"

"गुल!" हैदर खान की आवाज में नाराजगी आ गई--- “उसके बारे में ऐसा मत कहा कर।"

गुलजीरा खान ने फोन बंद कर दिया।

कुछ ही देर में वो आदमी कॉफी दे गया।

गुलजीरा खान कॉफी के घूंट भरने लगी कि तभी गोलियों की आवाजें गूंज उठीं।

गुलजीरा खान बुरी तरह चौंकी। ठिकाने पर गोलियां चलने का मतलब ही नहीं था। तो क्या किसी ने हमला कर दिया है? गुलजीरा खान को खतरे का एहसास हुआ। गोलियां बराबर चल रही थीं। चीखें सुनाई दे रही थीं।

गुलजीरा खान ने टेबल की ड्राज में से रिवाल्वर निकाली और उठ खड़ी हुई, दरवाजे की तरफ बढ़ी।

"कहीं वो हिन्दुस्तानी तो यहां नहीं आ गया...।" वो बड़बड़ाई।

गोलियां लगातार चल रही थीं।

गुलजीरा खान दरवाजे से बाहर निकली तो ठिठक गई।

सामने से तीन आदमी आ पहुंचे। चेहरों को कपड़ों से ढांप रखा था। हाथ में गनें थीं। ठिकाने पर अभी भी गोलियां चलने की आवाजे आ रही थीं। वो समझ गई कि हमला करने वाले कई हैं।

"रिवाल्वर फेंक...।" एक ने गन थामे गुर्रा कर कहा।

गुलजीरा खान ने रिवाल्वर फेंकी और कह उठी---

"क्या चाहते हो?"

"तेरी मौत...।" दूसरे ने कहा और गन का मुंह उसके शरीर पर खोल दिया।

असंख्य गोलियां निकलकर गुलजीरा खान के शरीर में धंसती चली गई। गुलजीरा खान के शरीर को रह-रह कर कई तीव्र झटके लगे। चेहरे पर अविश्वास के भाव थे। फिर उसके घुटने मुड़े और नीचे गिरती चली गई।

इसके बाद पांच मिनट तक वहां फायरिंग होती रही और फिर शान्ति छाने लगी।

■■■

लाली खान का फोन बजा ।

"हैलो...।" लाली खान ने बात की।

"वो औरत हमारे हाथ लग गई है बुर्के वाली... ।” उधर से आवाज कानों में पड़ी।

"शाबाश!” लाली खान के होंठों से निकला--- "ये तूने ईनाम का काम किया। रहमत नाम है ना तेरा?"

"जी मैडम। उसकी चलाई गोली हमारे आदमी के पैर में लगी। बाकी सब ठीक रहा।"

"कितनों को पता है कि वो हमें मिल गई है?"

"हम तीन है।"

"ये बात फैले नहीं। उस औरत को खामोशी से चारिकर परवान ले आओ। चारिकर परवान पहुंचकर मुझे फोन करना।"

“ठीक है मैडम। हम आधी रात तक चारिकर परवान पहुँचकर आपको फोन कर देंगे।"

लाली खान ने फोन बंद कर दिया। चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच रही थी।

“अब मेरी जीत का वक्त शुरू हो गया है...।" लाली खान खतरनाक स्वर में बड़बड़ा उठी।

तभी याकूब ने भीतर प्रवेश किया तो लाली खान कह उठी---

"वो औरत मिल गई है--जो हमारे हिन्दुस्तानी दुश्मन की सहायता कर रही थी। वो आधी रात तक चारिकर परवान पहुँच जायेगी। फोन आयेगा तो उस औरत को जाकर ले आना और उन आदमियों को वापस भेज देना।"

याकूब ने सिर हिला दिया।

■■■

मोना चौधरी और हैदर खान किसी बात पर हंस रहे थे कि हैदर का फोन बजा ।

"हैलो!" हैदर खान ने बात की। दूसरी तरफ सुल्तान था।

"बुरी खबर हैदर साहब।" सुल्तान का घबराया स्वर कानों में पड़ा--- "मैडम को किसी ने मार दिया...।"

"क्या बकवास कर रहे हो?" हैदर खान काँपकर चीख उठा।

मोना चौधरी की निगाह हैदर खान पर जा टिकी।

"मैं... मैं...।"

“किसने मारा गुल को?” हैदर खान का चेहरा दहक रहा था।

“मैं... मैं नहीं जानता। कुछ लोगों ने ठिकाने पर हमला किया। हमारे छः आदमी मारे गये। मैडम को भी उन्होंने मार दिया। सबने अपने चेहरों पर कपड़ा बांधा हुआ था। किसी की पहचान नहीं हो सकी।"

हैदर खान का फोन वाला हाथ मरी हालत में नीचे आ गया।

"हैदर, क्या हुआ....?" मोना चौधरी ने तेज स्वर में पूछा।

हैदर खान की आंखों से आंसू बह निकले।

"हैदर, कुछ मुझे भी तो बताओ...।" मोना चौधरी उसका हाथ पकड़कर कह उठी--- "तुम फोन पर कह रहे थे कि किसी ने गुल को मार दिया-- ये कैसे हो सकता है। दस मिनट पहले तो उसका फोन आया था।"

“सुलतान कहता है कि गुल को मार दिया गया...।" हैदर खान कांपते स्वर में कह उठा।

“ये... ये नहीं हो सकता!" मोना चौधरी हड़बड़ाकर बोली--- “उसे गलती लगी होगी... वो जिन्दा होगी।"

हैदर खान के गालों से बराबर आंसू निकले जा रहे थे।

“रोओ मत हैदर ।" मोना चौधरी ने उसके आंसुओं को साफ करते हुए कहा--- "हम वहाँ जाकर देखते हैं कि... ।”

"सुल्तान गलत नहीं कह सकता...।" हैदर खान फफक पड़ा--- "गुल को मार दिया किसी ने... मेरी बहन को मार दिया।"

मोना चौधरी ने आगे बढ़कर हैदर का चेहरा अपने सीने से लगा लिया। वो गम्भीर नज़र आ रही थी।

हैदर खान रोता रहा। आंसू बहाता रहा।

दो-तीन मिनट इसी हालत में बीत गये।

हैदर ने अपना चेहरा पीछे हटाया। उसका पूरा चेहरा आंसुओं से भरा था।

मोना चौधरी ने उसके गालों से आंसू साफ करते हुए कहा---

“अपने को संभालो हैदर। अगर किसी ने गुल को मार दिया है तो तुमने उसकी मौत का बदला लेना है। इस काम में मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

"ये सब क्या हो रहा है? समझ में नहीं आता कि कौन कर रहा है...।" हैदर पुनः रो पड़ा--- "वो मेरी प्यारी बहन थी...।"

"सब्र से काम लो। चलो हमें वहाँ चलना चाहिये।" मोना चौधरी ने उसके सिर पर हाथ फेरा।

हैदर खान ने अपने आंसू साफ किए और हाथ में थमें मोबाइल से नम्बर मिलाने लगा।

मोना चौधरी शांत-सी उसके पास खड़ी रही।

फोन लग गया। बेल गई, फिर लाली खान की आवाज कानों में पड़ी--- "बोल हैदर...।"

"लाली...।" हैदर खान पुनः फफक पड़ा--- "गुल को मार दिया किसी ने । ठिकाने पर हमला किया। वो... वो मारी गयी। हमारी बहन मर गई लाली...।"

लाली की जवाब में आवाज नहीं आई।

“लाली... हमारी बहन मर गई।" फफकते हुए हैदर खान पुनः कह उठा--- “कमीनों ने उसे मार दिया...।"

“मोना चौधरी कहाँ थी तब?"

"वो तो मेरे साथ, शमशेर वाले ठिकाने पर है दोपहर से...।"

"तू जा। गुल को देख। संभाल उसे।"

"तू भी आ रही...।"

"मैं नहीं आ पाऊँगी। हालात बहुत बिगड़े हुए हैं। मुझे सब कुछ ठीक करना है।"

"अब कितना कुछ भी ठीक हो जाये... गुल तो जिन्दा नहीं होगी लाली... वो...।"

उधर से लाली ने फोन बंद कर दिया था।

■■■

लाली खान का चेहरा निचुड़ सा गया था गुल की मौत की खबर सुनकर। परन्तु उसकी खूबसूरती ऐसी थी कि चेहरा निचड़ने के बाद भी वो कायम रही थी। बुत की तरह बैठी रह गई थी वो। एकाएक सामने दीवार को देखे जा रही थी। गुलजीरा खान का चेहरा उसकी आंखों के सामने नाच रहा था।

सच बात तो ये थी कि गुल की मौत का उसे विश्वास नहीं आ रहा था।

परन्तु वो मर गई थी।

गुल नहीं रही।

ये बात लाली खान के लिए सदमें से कम नहीं थी।

कुछ देर बाद उसका शरीर कांपा और जैसे वो हलचल में आई हो। अपनी जगह से उठी और कमरे से बाहर निकलती चली गई। चेहरे पर फीकापन छाया हुआ था। वो ड्राइंग रूम में पहुँची। मेमन वहाँ गुलदस्ते में फूल को सजा रहा था। इकबाल भी वहाँ दिखा जो एक शीशे को चमकाने में लगा था।

दोनों की निगाह लाली खान पर गई तो ठिठक से गये। फिर दोनों की नजरें मिलीं।

"क्या हुआ?" इकबाल के होंठों से निकला।

"गुल को किसी ने मार दिया है।" लाली खान ने सख्त से शब्द में कहा।

मेमन और इकबाल लाली खान को देखते रह गये।

"खतरा बढ़ गया है। हमारा दुश्मन कमजोर नहीं है। जो हम पर इस हद तक हाथ डाल सकता है, वो कमजोर नहीं हो सकता।"

खामोशी छाई रही।

"मुझे लगता है कि हमारा दुश्मन हम तक भी पहुँच जायेगा।" लाली खान ने दोनों को देखकर कहा।

"यहाँ वो आया तो मरेगा।” मेमन ने शांत स्वर में कहा।

"वो खतरनाक है मेमन।"

"हम उसे देख लेंगे कि वो कितना खतरनाक है!" इकबाल के दाँत भिंच गये।

"हैदर को भी खतरा है।” मेमन बोला--- “उसे सावधान कर दो।"

उसी पल लाली खान हाथ में दबे मोबाइल से हैदर का नम्बर मिलाने लगी।

"हैलो...।" उधर से हैदर खान की आवाज पड़ी।

"तुम कहाँ हो?"

"मैं मोना चौधरी के साथ ठिकाने पर जा रहा हूँ।" हैदर खान का तड़प भरा स्वर कानों में पड़ा ।

"तुम्हें खतरा है हैदर। तुम्हें भी मारा जा सकता है।"

"मैं सतर्क रहूँगा।"

"सवाल सतर्कता का नहीं है---तुम्हें फौरन कहीं छिप जाना होगा। बाकी मैं देख लूँगी।"

"मैं कैसे छिप सकता हूँ?" हैदर ने चीखकर कहा--- "गुल का जनाजा भी तो तैयार करना है। ये काम कौन करेगा? तुम तो आ नहीं रहीं।"

"होश को मत गंवाओ हैदर ।" लाली खान की आंखों में आंसू चमक उठे--- "ये हमारे परिवार के लिए दुख का वक्त है....।"

"मैं पागल हो गया लगता हूँ... ।” उधर से हैदर के रोने की आवाज आई।

“मुझे तुम्हारी चिन्ता है।" लाली खान ने सब्र के साथ कहा।

"मैं सतर्क रहूँगा। मोना चौधरी मेरे साथ है... मैं...।”

“ये काम करके मोना चौधरी के साथ कहीं अण्डरग्राऊंड हो जाना। मैं बहुत जल्दी सब ठीक कर लूंगी।"

उधर से हैदर खान ने फोन बंद कर दिया था।

लाली खान ने फोन कान से हटाया और गालों पर आ लुढ़के आंसुओं को साफ करके बोली---

"सावधान रहना। यहाँ खतरा कभी भी आ सकता है।"

■■■

कार मोना चौधरी ने ड्राईव की थी।

ठिकाने पर पहुँचते ही हैदर खान जैसे होश गंवा बैठा। गुलजीरा खान के गोलियों से छलनी हुए शरीर से लिपट लिपट कर, फूट-फूट कर रोने लगा। सन्नाटा छाया हुआ था वहाँ। सिर्फ हैदर की चीखें ही सुनाई दे रही थीं।

जयन्त भी वहाँ था ।

गम्भीरता से भरा माहौल था वहाँ ।

कुछ देर बाद हैदर खान का रोना कुछ कम हुआ तो मोना चौधरी ने उसे संभाल लिया।

मोना चौधरी का बहुत सहारा मिला हैदर को।

"सुलतान!" मोना चौधरी कह उठी--- "रात भर में सारी तैयारियां कर लेना--- गुल के शरीर को मिट्टी के हवाले करने की।"

सुल्तान ने हौले से सिर हिला दिया।

"चलो हैदर। कुछ आराम कर...।"

"नहीं। मुझे छोड़ दो। मैं गुल के पास ही रहँगा।" हैदर खान ने चीखकर कहा और गुल के शरीर के पास जा बैठा। वो बच्चों की तरह बिलख रहा था। मोना चौधरी उसके पास ही रही।

ये रात इनकी इसी तरह बीतने लगी।

मोना चौधरी और जयन्त को आधी रात को बात करने का मौका मिला।

"तुम क्यों हैदर के साथ परेशान होती फिर रही हो?" जयन्त बोला ।

"मैं उसे पसन्द करती हूँ। हैदर अच्छा इन्सान है...।"

“मिशन की तरफ ध्यान दो।"

“क्या तुम देख नहीं रहे हो कि गु-ले-ल मिशन ही पूरा हो रहा है?" मोना चौधरी ने उसे घूरकर कहा।

"तुम हैदर के प्यार में पड़ रही हो...।”

"मैं सिर्फ काम कर रही हूँ। अब तुमने कोई बकवास की तो मैं तुम्हारा मुंह तोड़ दूंगी।"

जयन्त ने मोना चौधरी की आंखों में झांका, फिर गहरी सांस लेकर बोला---

"तुम्हें लाली खान के ठिकाने के बारे में...।"

"पता चला है। शाम को लैला का फोन आया था। शकीला ने मुँह खोल दिया है। दो ठिकाने बताये हैं उसने। उसका कहना है कि इन्हीं दो में से एक ठिकाने पर लाली खान मिलेगी।"

“ये बात तुमने मुझे तो नहीं बताई... ।" जयन्त ने शिकायती स्वर में कहा।

"मौका नहीं मिला। मैं...।"

तभी मोना चौधरी का फोन बजा ।

"हैलो.....।" मोना चौधरी ने बात की।

"गु-ले-ल... ।”

"कहो।" मोना चौधरी ने सटीक स्वर में कहा।

"मेरा नाम परवेज है।" उधर परवेज ही था--- "मैं लैला के साथ काम करता हूँ। तुम मोना चौधरी हो ?"

"हाँ...।"

"मजबूरन मुझे फोन करना पड़ा है। लैला शाम को बाहर गई थी कि गुलजीरा खान को मारने के लिये हत्यारे खरीद सके। दो घण्टे में आने को कह गई थी, परन्तु लौटी नहीं। मैंने कई बार फोन किया, परन्तु फोन का स्विच ऑफ मिला। लैला फोन बंद नहीं कर सकती और उसे अब तक वापस आ जाना चाहिये था। मैंने सोचा कि तुम्हें ये खबर कर दूँ... ।"

"अच्छा किया जो बता दिया...।" मोना चौधरी गम्भीर हो उठी--- "तुम फोन पर लैला से सम्पर्क साधने की कोशिश करते रहो। बात हो जाये तो मुझे बता देना। लैला जिस काम के लिए निकली। थी, वो काम हो गया है।"

“तुम्हारा मतलब कि गुलजीरा खान मारी गई?"

“हाँ। लैला के बारे में कोई खबर हो तो जरूर बताना।" कहकर मोना चौधरी ने फोन बंद किया और जयन्त से बोली--- "हमारे लिए खतरा बढ़ गया है।"

"कैसे?"

"लैला लापता है। हो सकता है वो लाली के लोगों के हाथ लग गई हो।" मोना चौधरी ने कहा ।

"वो लैला का मुँह खुलवा सकते हैं। लैला उन्हें हमारे बारे में बता सकती है...।" व्याकुल हो उठा जयन्त ।

"तभी तो मैंने कहा कि हमारे लिए खतरा बढ़ गया है।" मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।

दोनों कुछ पल एक-दूसरे को देखते रहे।

"अब हमारा यहां रहना ठीक नहीं...।" जयन्त ने परेशान होकर कहा।

मोना चौधरी ने मोबाइल पर जौहर के नम्बर मिलाये।

दूसरी तरफ फोन बजने लगा। फिर जौहर का नींद में भरा स्वर कानों में पड़ा।

"हैलो।"

"मैं मोना चौधरी हूं। महाजन को फोन दो।"

"रुको।"

मोना चौधरी फोन कान में लगाए सुनती रही। वो महाजन को नींद से उठा रहा था।

“हाँ बेबी... ।” महाजन की नींद से भरी आवाज कानों में पड़ी।

"कहाँ हो तुम?"

"काबुल में पहुंचे हैं, शाम के बाद। इस वक्त जौहर के घर पर हैं। शमशेर ने बताया कि काबुल में भी लाली खान का ठिकाना...।"

मोना चौधरी ने महाजन को गुलजीरा खान की मौत के बारे में बताया, फिर बोली---

"इसके बाद से लैला गायब हो गई। वो कहीं नहीं जा सकती। जाहिर है कि वो लाली खान के आदमियों के हाथों में पड़ गई है।"

"ये गम्भीर बात है।"

"शकीला ने लैला को लाली खान के दो ठिकानों के बारे में बताकर कहा था कि वो इनमें से किसी ठिकाने पर हो सकती है। एक ठिकाना चारिकर परवान में है। दूसरा लाघमान में।" मोना चौधरी ने महाजन को दोनों जगहों के बंगलों के पते बताकर कहा--- "तुम इन दोनों ठिकानों को चैक करो। वहाँ छेड़छाड़ नहीं करनी है। जहाँ तुम्हें लगे, लाली खान हो सकती है, वहां नजर रखो और मुझे फोन करके बताओ। मैं पहुंच पाऊंगी...।" मोना चौधरी ने महाजन को और भी बातें बताई।

बातचीत खत्म हो गई तो मोना चौधरी फोन बंद करके जयन्त से कह उठी---

"तुम नींद ले लो। थोड़ी सी रात बची है।"

"और तुम?"

“मैं हैदर के पास रहूंगी।" मौना चौधरी ने कहा और बाहर निकल गई।

■■■

सुब 3.30 बजे याकूब और इकबाल बंगले पर लौटे। दोनों दरबान मुस्तैदी से पहरा दे रहे थे। उन्होंने पहले कार देखी, फिर भीतर, बैठे इकबाल को देखा तो गेट खोल दिया। कार सीधी बंगले में पोर्च में जा रुकी।

याकूब इंजन बंद करके बाहर निकला। इकबाल भी आ गया। उसने पिछली सीट का दरवाजा खोला, जहां लैला बंधे हाथ-पाँवों से पड़ी थी। इकबाल ने उसके पांवों के बंधन खोले और उसे बांह से बाहर खींचते हुए, जमीन पर खड़ा कर दिया। लैला छटपटा सी उठी। उसने बंगले पर निगाह मारी। इस वक्त वो बुर्के में नहीं थी। इकबाल उसे बांह से खींचता हुआ बंगले के मुख्य दरवाजे की तरफ ले जाने लगा।

“आराम से...।" लैला उखड़े स्वर में कह उठी--- "चल तो रही हूं...।"

परन्तु इकबाल उसे बांह से पकड़े तेज-तेज कदमों से, बंगले में ले गया।

याकूब पांच कदम पीछे आ रहा था।

पहली मंजिल की रेलिंग पर मेमन खड़ा था। उसने लैला को सर्द निगाहों से देखा, फिर पलटकर एक तरफ बढ़ गया। इकबाल लैला को पहली मंजिल के एक कमरे में ले आया।

कमरे में कुछ कुर्सियां ही पड़ी थीं।

इकबाल ने उसकी कलाईयों के बंधन खोल दिए।

लैला ने अपनी कलाईयां मसलते दोनों को देखा और कह उठी---

"कौन हो तुम लोग?"

इकबाल और याकूब खामोश रहे।

लैला जानती थी कि वो फंस चुकी है। अब उसे इस बात का आभास हो रहा था कि यह लाली खान का ही कोई ठिकाना है। वो खुद भी यहां हो सकती है। तभी तो उसे यहां लाया गया। मन ही मन सोच रही थी कि लाली खान के आदमी उसकी आशा से जल्दी ही उस तक पहुंच गये। ये तो वो सोच भी नहीं सकती थी कि रजा के आदमी की गद्दारी की वजह से वो फंसी।

तभी कदमों की आहटें उसके कानों में पड़ीं।

लैला की निगाह दरवाजे की तरफ घूमी ।

मेमन ने भीतर प्रवेश किया।

लैला उसे देखते ही समझ गई कि ये दरिन्दा इन्सान है। उसके पीछे लाली खान ने भीतर प्रवेश किया। उसकी आंखें सूजी सी लग रही थीं।

लाली खान को सामने देखकर लैला के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई।

लाली खान ने उसे भरपूर निगाहों से देखा ।

कमरे में गहरा सन्नाटा था ।

"बैठ जाओ।" लाली खान शांत लहजे में कह उठी।

“मुझे क्यों पकड़ा है? तुम लोग कौन हो?" लैला बोली।

"तुम मुझे बहुत अच्छी तरह जानती हो।" लाली खान चुभते स्वर में कह उठी---  "तुमने मुझे देखा तो तुम चौंकी थीं। हमसे बच्चों की तरह खेल मत खेलो। तुम जानती हो कि फंस चुकी हो। कुर्सी पर बैठ जाओ।"

लैला कुर्सी पर जा बैठी, चेहरे पर घबराहट का नामोनिशान नहीं था।

“अब मेरी इजाजत के बिना कुर्सी से मत उठना।”

लैला बरबस ही मुस्करा पड़ी।

लाली खान का चेहरा कठोर हो उठा।

मेमन, इकबाल, याकूब अपनी जगहों पर पुतलों की तरह खड़े थे।

"मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया तो तुम्हारा इतना बुरा हाल किया जायेगा कि तुम सोच भी नहीं सकती।" लाली खान शब्दों की चबाकर कह उठी--- "अपना नाम बताओ।"

"लैला।"

"कहाँ की रहने वाली हो?"

"काबुल की।" लैला का स्वर सामान्य था।

“वो हिन्दुस्तानी कौन है जो जगह-जगह मुझे ढूंढता फिर रहा है।"

"वो रॉ के लोग हैं।"

"रॉ...?"

"हिन्दुस्तान की जासूसी संस्था 'रॉ'---जो देश के बाहरी मसलों को संभालती है।"

लाली खान की आंखें सिकुड़ गई।

"रॉ का मुझसे क्या वास्ता? मैं तो ड्रग्स का काम ही करती हूं।"

"तुमने नये काम भी तो शुरू कर दिए हैं।"

"नये काम ?"

"पाकिस्तान में अपना संगठन खड़ा करना...।"

"तो इससे रॉ को क्या समस्या है? पाकिस्तान में तो और भी कई संगठन हैं?"

“तुम्हारा संगठन, हिन्दुस्तान में कुछ करने के लिये, पाकिस्तान की आई.एस.आई. से सौदा पटा रहा है।"

लाली खान ने समझने वाले ढंग से सिर हिलाया।

"तो ये बात है...।"

लैला शांत नजरों से उसे देखती रही।

"मेरी बेटी कहां है?"

"मेरा तुम्हारी बेटी से कोई वास्ता नहीं।” लैला ने कहा।

“कसम से?"

"हां...।"

“रॉ के कितने लोग हो तुम सब मेरे खिलाफ यहां ?"

“ये तुम नहीं जान सकती... ।”

“मुझे उन सब की लिस्ट चाहिये।”

"तुम्हें कभी भी ये बात पता नहीं चलेगी।" लैला दृढ़ स्वर में बोली।

लाली खान कुछ पल लैला को देखती रही, फिर कह उठी---

"सुनो लैला। हम दोनों हमवतन हैं। दोनों बहनें हैं। हमें एक-दूसरे का साथ देना चाहिये। हिन्दुस्तानियों का साथ देने से क्या फायदा? वो तो दूसरे देश के हैं। अगर वो तुम्हें पैसा देते हैं तो मैं तुम्हारे सामने पैसे का ढेर लगा दूंगी। तुम मुझे उनके बारे में बताओ। उन्हें खत्म करना जरूरी है। वरना वो लोग हमारे परिवार को खत्म कर देंगे।"

"मैं तुम्हें कुछ नहीं बताने वाली।”

"जिद्द मत करो।"

लैला के चेहरे पर इन्कार भरी दृढ़ता छाई रही।

"तो नहीं बताओगी?"

"किसी भी हाल में नहीं ।"

लाली खान ने सिर हिलाया फिर कह उठी---

"रजा नाम के उस बदमाश के पास तुम क्या करने गई थीं?"

लैल चुप रही।

"रजा को तुम काम देने गई थीं। गुल की हत्या का काम।"

"तुम्हें कैसे पता?" लैला के होंठों से निकला।

लाली खान एकाएक दांत पीसकर गुर्राई---

"तूने गुल को मरवा दिया! उसकी जान ले ली!"

“क्या?" लैला चौंकी--- "वो मर गई? तो आखिर... मैंने ये काम भी कर ही दिखाया...।"

लाली खान आगे बढ़ी और गुस्से से कांपते जोरदार चांटा लैला के गाल पर मारा।

लैला का सिर झनझना उठा। आंखों के सामने सितारे-तारे नाच उठे ।

कुछ पलों बाद वो देखने के काबिल हुई। सामने खड़ी लाली खान उसे मौत भरी नजरों से देख रही थी।

“वो मेरी प्यारी बहन थी, जिसे तूने मरवा दिया। उसने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?" लाली खान चीख उठी।

"हम रॉ के एजेन्ट हैं। हमारा मकसद सिर्फ मिशन को पूरा करना होता है। तुम पाकिस्तान में संगठन को अपने पैसों के दम पर खड़ा कर रही थीं और रॉ तुम्हारा ये हाल कर देना चाहती है कि तुम दोबारा संगठन खड़ा न कर सको।"

"तो ड्रग्स के गोदाम भी तुम लोगों ने ही जलाए ?"

"हां।"

"उसके लिए तुमने ही आदमियों को किराये पर लिया था।"

"बेशक । सारा इन्तजाम मैंने ही किया। परन्तु इसके पीछे दिमाग किसी और का था।"

"किसका ?"

“ये तुम नहीं जान सकतीं।" लैला ने इन्कार में सिर हिलाया--- "मेरे से तुम कभी नहीं जान सकती।"

"तुम बताओगी।"

"कभी नहीं...।"

"तुम मुझे यहां मौजूद रॉ के सब एजेन्टों के नाम बताओगी। पूरी लिस्ट तैयार करके...।"

"मेरे जीते जी ये नहीं होगा।"

"हमें मुंह खुलवाना आता है।" लाली खान ने खतरनाक स्वर में कहा और याकूब मेमन, इकबाल को देखा--- "इसके अन्दर से सारी जानकारी बाहर निकालो। मुझे अपने दुश्मनों के नाम-पते चाहिये।"

याकूब लैला की तरफ बढ़ा तो लैला चीखी---

"रुक जाओ।"

याकूब ठिठका ।

लैला बारी-बारी सबको देखते खतरनाक स्वर में कह उठी---

"मेरे मुंह में जहर भरा दांत है। वो दांत रॉ वाले ऐसे ही मौके के लिए लगाते हैं। मैं यातना नहीं सह सकती, मैं जानती हूं और मुंह खोल कर रॉ का मिशन भी फेल नहीं करूंगी। वैसे भी तुम मुझे छोड़ने वाली नहीं, क्योंकि मैंने तुम्हारी बहन को मौत देने के लिए आदमी भेजे थे। अगर मुझे हाथ भी लगाया गया तो मैं वो जहर भरा दांत तोड़ दूंगी।"

पल भर के लिए सन्नाटा छा गया।

याकूब ने लाली खान को देखा।

"मेरी मौत मेरे हाथ में है। तुम लोगों के हाथ में नहीं। मैं तकलीफ नहीं सह सकती। इसलिये मुंह खोलने से अच्छा है मर जाना।"

"क्या मिलेगा तुम्हें मर कर?" लाली खान ने कठोर स्वर में कहा।

“जिन्दा तो मैं रहने वाली नहीं--तुम अब मुझे कहां छोड़ने वाली हो!" लैला गुर्रा उठी।

"अगर तुम मेरा साथ दो---अपना मुंह खोल दो तो हम दोनों बहुत अच्छी दोस्त बन सकती हैं। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा...।"

"बकवास मत करो!" लैला ने लाली खान को नफरत भरी नजरों से घूरा--- "हम कभी दोस्त नहीं बन सकते।"

"तो फिर तुम मेरी सलाह पर चलो और अपना जहर भरा दांत चबा लो।" लाली खान दांत भींचे कह उठी।

"मैं तुम्हारी बात क्यों मानूं? जब मरूंगी, अपनी मर्जी से मरूंगी।" लैला पुनः गुर्रा उठी।

लाली खान ने याकूब को इशारा किया।

याकूब, लैला पर झपटा ।

लैला ने फुर्ती से कुर्सी छोड़ी और फर्श पर लुढ़कती चली गई।

याकूब ठिठका। उसके चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे।

"मरने से पहले मैं तुम्हें एक और बात बताना चाहती हूँ। ये बात तुम सोच भी नहीं सकतीं। तेरे ये तीनों सबसे खास साथी!" लैला ने बारी-बारी तीनों पर नजर मारी--- "इनमें से एक गद्दार है।"

"गद्दार?" लाली खान के होठों से निकला। आंखें सिकुड़ गईं।

“हाँ गद्दार। इनमें से एक रॉ के लिये काम करता है। मैं चाह तो तुम्हें उसका नाम बता सकती हूं, परन्तु इसलिये नहीं बताऊगी कि तुम मेरे मर जाने के पश्चात भी ये सोच-सोच के परेशान रहो कि तीनों में से गद्दार कौन है...।"

लाली खान के दांत भिंच गये। अगले ही पल वो गुर्रा उठी---

"पकड़ो इसे ! ये जहर वाला दांत न चबाने पाये...।"

मेमन और इकबाल, याकूब की भांति लैला पर झपटे।

लैला ने अपने जबाड़ों को खास अन्दाज में घुमाते हुए मुंह भींच लिया। तब तक तीनों लैला को पकड़ चुके थे। उसका मुंह खुलवाने की चेष्टा की कि तभी लैला का शरीर ढीला पड़ता चला गया। उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। वो इकबाल की बांहों में झूलती चली गई। मुंह में मौजूद जहर भरा दांत चबा लिया था उसने और जहर भी ऐसा कि उसने तुरन्त असर दिखाया था और लैला के दिल की धड़कन थम गई थी।

सन्नाटा सा छा गया वहाँ ... ।

होंठ भींचे लाली खान, इकबाल की बांहों में झूलती, लैला की लाश को देखे जा रही थी।

सब कुछ पलों में हो गया था।

इकबाल ने नीचे झुकते हुए लैला के शरीर को फर्श पर रख दिया था।

लाली खान ने लैला के मृत चेहरे पर से नजरें हटाई और तीनों को देखकर कहा---

"इसकी बकवास पर ध्यान मत देना। मैं जानती हूं तुम तीनों मेरे खास हो। गद्दार कोई भी नहीं। ये बात इसने मरने से पहले इसलिये कही कि हम लोगों में फूट पड़ जाये। अगर तुममें कोई गद्दार होता तो रॉ के एजेन्ट कब के मुझ तक पहुंच गये होते। इसकी लाश उठाओ और यहां से कहीं दूर फेंक दो।"

"रॉ के लोग हमारा पीछा छोड़ने वाले नहीं।" याकूब बोला।

"पाकिस्तान में मैंने जो संगठन खड़ा किया है, उसकी वजह से वो मेरे पीछे पड़े। परन्तु वो संगठन तो अब बिखर गया ही समझो। क्योंकि उन पर खर्च करने को मेरे पास पैसा नहीं रहा। ड्रग्स से पैसा आता है... और वो जला दी गई है। परन्तु अब ये बात हम रॉ को समझा नहीं सकते। हमें उनका मुकाबला करना ही होगा। जाने क्यों मुझे लगता है कि कोई हमें घेर रहा है...।" लाली खान कठोर स्वर में कह उठी--- "हमें हर पल सतर्क रहना होगा। ये बात अच्छी तरह अपने दिमाग में बिठा लो कि हम इस वक्त खतरे में हैं।" कहने के साथ ही लाली खान बाहर निकलती चली गई।

■■■

अगले दिन की शाम आ गई थी।

गुलजीरा खान के शरीर को रस्म के अनुसार मिट्टी के सुपुर्द कर दिया गया था। हैदर रह-रह कर रो उठता था। मोना चौधरी उसे संभाले रही। इस काम के दौरान सुलतान और अपने ही कुछ लोग साथ रहे। थे। इस काम से निपट कर वे सब ठिकाने पर लौट आये थे।

मोना चौधरी के कहने पर सुलतान ने व्हिस्की का एक गिलास तैयार कर हैदर को दिया।

जयन्त अपने कमरे में चला गया था।

"मुझे विश्वास नहीं आ रहा... कि गुल अब दुनिया में नहीं रही...।" हैदर ने भर्राए स्वर में कहा।

"तुम्हें इस बात का विश्वास करना चाहिये। इससे तुम खुद को संभाल लोगे।" मोना चौधरी ने कहा।

"तुम... तुम तो मेरा साथ नहीं छोड़ोगी ना, मोना चौधरी...।"

"मैं तुम्हारे साथ हूं हैदर... ।"

दो पैग लेने के बाद हैदर कुछ संभला ।

परन्तु चेहरे पर उदासी छाई रही।

मोना चौधरी उसके चेहरे को देख रही थी जहां दुःख ही दुःख भरा था।

दोनों में कोई खास बात नहीं हो रही थी।

फिर हैदर का फोन बजने लगा। लाली खान का फोन आया था। बात हुई।

"गुल का काम कर दिया?" लाली खान ने उधर से पूछा ।

"कर दिया।" हैदर खान ने भर्राए स्वर में कहा।

"तकलीफ तो हुई होगी तेरे को...।" लाली खान की आवाज में परेशानी के भाव थे।

"बहुत...।"

"गुल की मौत को लेकर मैं भी बहुत तकलीफ में हूँ। मैं तेरे को कुछ बताना चाहती हूं।"

"क्या?"

"हमारे ड्रग्स के गोदाम जलाए, भारतीय खुफिया एजेन्सी रॉ के एजेन्टों ने। गुल को मारा रॉ के एजेन्टों ने। हमारे पीछे रॉ ही पड़ी है। रॉ की एक एजेन्ट लैला हमारे हाथ लगी थी। उसने बताया, परन्तु उन एजेन्टों के बारे में बताने से पहले ही उसने मुंह में मौजूद जहर भरा दांत चबाकर अपनी जान दे दी.....।"

“लेकिन हमने रॉ का क्या बिगाड़ा है जो वो हमारे पीछे हैं?" हैदर खान अब संभला-सा लगने लगा था।

रॉ का जिक्र सुनत ही मोना चौधरी सतर्क हो गई, नजरें हैदर पर जा टिकीं।

"हमने पाकिस्तान में अपना संगठन खड़ा किया था। हमारे संगठन से पाकिस्तान सरकार की बातचीत चल रही है। पाकिस्तान हिन्दुस्तान में हमारे संगठन द्वारा गड़बड़ कराना चाहता है। इस बात की भनक भारतीय खुफिया रॉ को लग गई तो रॉ ने अपने एजेन्ट हमारे पीछे लगा दिए। रॉ हमें बरबाद करना चाहती है, ताकि हम अपने संगठन की पैसे से सहायता न कर सकें और वो बिखर जाये। यही वजह हमारी बरबादी का कारण बनी है हैदर...।"

"गुल ने इस बात पर एतराज किया था कि हमें संगठन नहीं खड़ा करना चाहिये। ड्रग्स के काम पर ही ध्यान देना चाहिये। परन्तु तुम नहीं मानी थीं। तुम मान गई होतीं तो आज गुल जिन्दा होती...।"

"वक्त वापस लौट के नहीं आ सकता। हमें आगे की सोचनी चाहिये।"

"अब हम क्या करें?"

"हम खतरे में हैं हैदर। रॉ की नजर हम पर है। हम घिरे पड़े हैं। शायद रॉ हमें गुल की तरह खत्म कर देना चाहती है। मुझे लगता है कि रॉ के लोग कभी भी मुझ तक पहुंच सकते हैं। तुम्हें भी कहीं छिप जाना चाहिये। थोड़ा वक्त बीत जायेगा तो हो सकता है मामला शांत हो जाये। भारतीय सरकारी एजेन्सी हमारे खिलाफ है इस वक्त। सरकारी मशीनरी, बेशक वो किसी भी देश की हो, उससे जीता नहीं जा सकता। हमें पीछे हटना होगा। खामोश बैठ जाना होगा।"

"और उस संगठन का क्या होगा?"

"उसे मैं भूल चुकी हूँ। क्योंकि उस पर खर्च करने को मेरे पास पैसा नहीं है। हमारा ड्रग्स का धंधा रुक गया है।"

हैदर खान ने कुछ नहीं कहा।

"सबसे पहला काम तुम ये करो कि कहीं छिप जाओ। चाहो तो मोना चौधरी को अपने साथ रख लो। उसका साथ होना ठीक ही रहेगा। वो तुम्हें मुसीबत के वक्त बचाएगी।" उधर से लाली खान की आवाज आई।

"ऐसा नहीं होना चाहिए था।"

"ये थोड़े वक्त के लिए है हैदर। एक-दो महीना सब कुछ शांत दिखेगा तो रॉ हमारे पीछे से तब हट सकती है।"

"ठीक है।" हैदर खान ने थके से स्वर में कहा और फोन बंद कर दिया।

मोना चौधरी की सतर्क निगाह हैदर खान पर थी।

"हमारे पीछे भारतीय खुफिया एजेन्सी रॉ है...।" हैदर बोला।

"कैसे पता चला?" मौना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

"रॉ की एक एजेन्ट लैला, लाली खान के हाथ लग गई थी। उसी ने बताया। परन्तु उसने जहर भरा दांत चबा कर आत्महत्या कर ली। और कुछ नहीं पता लग पाया कि हमारे खिलाफ अफगानिस्तान में रॉ के एजेन्ट कौन-कौन हैं...।"

मोना चौधरी ने आंखें बंद कीं।

लैला की मौत उसे तकलीफ दे गई थी।

लैला ने उसके काम को सफल बनाने के लिये, बहुत काम किए थे।

"लाली खान कहती है कि हमें कहीं गायब हो जाना चाहिये कुछ देर के लिये। इससे रॉ का ध्यान हमसे हट जायेगा।"

मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।

"तुम क्या कहती हो मोना चौधरी ?"

"लाली खान कहाँ है?"

"पता नहीं। लेकिन ये तुमने क्यों पूछा?"

"हमें उसके पास ही रहना चाहिये।" मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा।

"लाली हमेशा कहती है कि मुसीबत के वक्त हमेशा बिखर के रहो। ताकि एक फंसे तो दूसरा बच जाये। इसलिये वो कभी नहीं चाहेगी कि हम उसके पास जायें। इस बारे में उससे बात करनी बेकार होगी...।” हैदर खान ठिठककर पुनः बोला--- "क्यों ना हम अफगानिस्तान से कहीं दूर चले जायें। मारीशस या ऐसी किसी जगह पर... ?"

"सोचना पड़ेगा... मेरे साथ जयन्त भी है...।"

"जयन्त को तुम हिन्दुस्तान भेज सकती हो।"

“हिन्दुस्तान की पुलिस को जयन्त की तलाश है। वहां जाना खतरे से खाली नहीं। उसका मेरे साथ रहना ही ठीक है ।"

“क्या तुम जयन्त से पीछा नहीं छुड़ा सकती ?"

"वो मेरे काम का आदमी है। तुम देख भी चुके हो।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा ।

"फिर क्या किया जाये ?"

“मुझे सोचने का वक्त दो। आज रात यहीं बिताओ। सुबह तक मैं कोई फैसला ले लूंगी।"

इसके बाद मोना चौधरी दूसरे कमरे में जयन्त के पास पहुंची।

जयन्त बैड पर अधलेटा था। उसे देखते ही उठकर बैठ गया।

“बुरी खबर है...।” मोना चौधरी पास ही कुर्सी पर बैठती आहिस्ता से बोली--- "लैला नहीं रही।"

जयन्त बुरी तरह चौंका।

"क्या ?" जयन्त का मुंह खुला का खुला रह गया।

“लाली खान के हाथों में पड़ गई थी...।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा--- “उसने हमारे बारे में नहीं बताया और आत्महत्या कर ली।"

जयन्त हक्का-बक्का सा मोना चौधरी को देखे जा रहा था। मुंह से बोल न फूटा।

“लाली खान को लैला से पता चल गया है कि रॉ उसके पीछे है। उसने हैदर को छिपने की सलाह दी है।"

"हमें अब तेजी दिखानी चाहिये।" जयन्त के दांत भिंचते चले गये।

“शकीला ने लाली खान के दो जिन ठिकानों के बारे में बताया था, वो मैंने महाजन को बता दिए हैं। उन दोनों ठिकानों की जांच पड़ताल करके वो मुझे खबर देगा। एक ठिकाना चारिकर परवान में है और दूसरा लाघमान में...।"

"तुम्हारी महाजन से कब बात हुई थी?"

“कल रात को । तब वो यहीं काबुल पहुंचा था।"

“फिर तो अब तक उसका फोन आ जाना चाहिये था।" जयन्त ने कहा।

"इस काम में थोड़ा तो वक्त लगेगा ही। काबुल से चारिकर परवान और लाघमान, दो अलग-अलग शहरों में उसे जाना है। यहां पर छानबीन करनी है। उसे भी वक्त चाहिये।"

जयन्त गम्भीर निगाहों से मोना चौधरी को देखता रहा। कहा कुछ नहीं। दोनों के बीच खामोशी रही।

■■■

हैदर खान से बात करके लाली खान ने फोन बंद किया ही था कि फोन बजने लगा।

"हैलो...।" लाली खान ने बात की।

"लाली खान है तू?"

"हां...।" लाली खान की आंखें सिकुड़ी।

"गुलजीरा ने मुझे तेरा नम्बर दिया था बात करने को। तेरी बेटी मासो मेरे कब्जे में है। गुलजीरा खान को हमने मार दिया। इसी तरह मासो के टुकड़े करके भी तेरे को भेज दिए जायेंगे। सीधी तरह पारसनाथ को हमारे हवाले कर दे, वरना पछतायेगी तू ।"

लाली खान के चेहरे पर दरिन्दगी नाच उठी।

"लैला का हाल नहीं पूछेगा...।" लाली खान ने खतरनाक स्वर में कहा।

"लैला ?" उधर से चौंकने का स्वर आया।

"वो मेरे कब्जे में थी और अब वो जिन्दा नहीं है।" लाली खान ने दांत भींच कर कहा।

आवाज नहीं आई उधर से।

“गुल को मारकर तुम लोगों ने बहुत गलत काम किया। रॉ के एजेन्ट हो ना तुम सब...।"

"तो तुम्हें पता चल गया?"

"लैला ने मरने से पहले बताया।"

"कैसे मरी वो?"

"उसके मुंह में जहरीला दांत था। वो चबा लिया।”

“इसका मतलब उसने ऐसी कोई बात तुम्हें नहीं बताई जो रॉ के लिये नुकसानदायक हो ।"

“तुम सब बच नहीं सकोगे...।" लाली खान गुर्रा उठी।

"मासो की फिक्र कर... वो...।"

"बकवास मत करो! मासो को तुम लोग कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकते। क्योंकि भारत सरकार से वास्ता रखते हो तुम सब । अब मैं समझ गई कि मुझ पर दबाव बनाने के लिए तुम लोगों ने मासो का अपहरण किया। परन्तु अब मुझे इस बात की तसल्ली है कि मासो सुरक्षित हाथों में है। मैं तुम सब को बुरी मौत मारूंगी।" गुर्रा उठी लाली खान।

दूसरी तरफ से बिना कुछ कहे फोन बंद कर दिया गया।

■■■

रात का एक बज रहा था, जब मोना चौधरी का मोबाइल बजने लगा। वो हैदर खान के साथ एक अलग कमरे में थी। हैदर काफी ज्यादा पीकर सोया था। जयन्त अपने वाले कमरे में था।

“किसका फोन है?" हैदर खान सोये-सोये कह उठा।

"तुम सो जाओ। मेरी पहचान वाले का है।" मोना चौधरी ने कहा और फोन थामें कमरे से बाहर निकल गई। बात की ।

महाजन था दूसरी तरफ ।

"बेबी!” महाजन की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम्हारी बताई दोनों जगहों पर गया। पहले लाघमान, फिर चारिकर परवान। लाघमान के उस बंगले में शान्ति है। तीन-चार पहरेदार ही हैं वहां। मैंने पता किया, परन्तु वहां लाली खान नहीं है। शाम को चारिकर परवान पहुंचा और तुम्हारे बताये बंगले के पते पर पहुंच कर देखा। नजर रखने लगा। चारिकर परवान वाले बंगले पर हलचल है। मैंने यहां एक खूबसूरत औरत की भी झलक देखी। वो लाली खान हो सकती है, परन्तु मैं उसे पहचानता नहीं।"

"और कितने लोग हैं वहां?"

"एक बाहरी गेट पर और मेरे ख्याल में तीन लोग भीतर हैं उस औरत के अलावा दो को मैंने देख लिया, वो मुझे खतरनाक लगे हैं। तुम कहो तो मैं बंगले के भीतर जाकर देखूं ?" महाजन की आवाज कानों में पड़ी।

“गलती मत करना। अगर वो लाली खान है तो हालात खतरनाक रुख ले सकते हैं। लाली खान जान चुकी है कि भारतीय खुफिया एजेन्सी रॉ उसके पीछे है। मैं जयन्त के साथ सुबह तक चारिकर परवान पहुंच रही हूं। तब तक तुम नजर रखो और कोई खास बात हो तो मुझे फोन पर बताना।"

"ठीक है।"

मोना चौधरी ने फोन बंद किया और कमरे में पहुंची।

हैदर खान सोया पड़ा था।

मोना चौधरी ने उसे उठाया। नशे में होने की वजह से वो कठिनता से उठा।

“क्या है?" बंद आँखों से ही बोला हैदर खान ।

"हमें चलना है।" मोना चौधरी ने कहा।

"कहाँ?"

"चारिकर परवान। मेरा अपना कोई काम है। अगर तुम साथ नहीं चलना चाहते तो नींद लो। काम निपटाकर आ जाऊंगी मैं।"

हैदर खान ने आंखें खोलीं और उठ बैठा।

"मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा।"

"तो फिर चलने को तैयार हो जाओ। कार की पिछली सीट पर नींद ले लेना।"

"आखिर किस काम के लिए तुम चारिकर परवान जा रही हो?"

"बोला तो, मेरा अपना कुछ काम है।"

"अफगानिस्तान में तुम्हारा क्या काम आ गया?"

"मेरा एक दुश्मन है। उसके वहां होने की खबर मिली है। उसे खत्म करना जरूरी है। तुम उठ जाओ। दोबारा मत सो जाना। मैं जयन्त के साथ पांच मिनट में आ रही हूं चलने को तैयार मिलना।"

■■■

चारिकर परवान।

सुबह 9 बजे ।

ये शहर का शांत और खूबसूरत इलाका था। शानदार बंगले बने नजर आ रहे थे। लोगों ने बंगलों में पेड़ लगा रखे थे। हरियाली की वजह से वो बंगले और भी खूबसूरत लग रहे थे।

जयन्त ने मोना चौधरी के इशारे पर कार सड़क के किनारे रोकी तो मोना चौधरी फोन करने लगी।

पीछे वाली सीट पर हैदर उठ बैठा था। शराब की वजह से चेहरे पर थकान के भाव नजर आ रहे थे। रात में वो ठीक से नींद भी नहीं ले पाया था। सीट पर बैठा वो बाहर देखने लगा था।

मोना चौधरी की महाजन से बात हुई।

"कहाँ हो?" मोना चौधरी ने पूछा।

"बंगले पर दूर से नजर रख रहा हूँ।" महाजन की आवाज कानों में पड़ी।

"साथ में जौहर है?"

"हाँ...।"

“हम आ पहुंचे हैं। बंगले का नम्बर क्या है, मुझे याद नहीं।"

“365....। तुम्हारे साथ जयन्त है? "

“हाँ।" मोना चौधरी ने कहा और फोन बंद करके पलट कर हैदर खान को देखती कह उठी--- "चारिकर परवान में तुम्हारी पहचान का कोई है?"

"नहीं तो...।" हैदर खान कह उठा--- "मुझे बताओ कि तुम्हारा दुश्मन कौन है?"

"वापस आकर बताऊंगी। तुम इस कार से बाहर मत आना। बेशक तुम्हें फायरिंग की आवाज सुनाई दे। मैं जब आऊं, तो तुम मुझे कार में मिलो। मिलोगे ना?"

"कार में क्यों, मैं तुम्हारे साथ चलता...।"

"नहीं! तुम कार में रहोगे। मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं। मेरे साथ जयन्त है, वहां दो आदमी और भी हैं। हम चार लोग हैं और दुश्मन एक ही है। तुम यहीं रहोगे, कार में। मैं विश्वास करूं कि तुम कार में रहोगे?" मोना चौधरी ने उसे देखा।

"तुम चाहती हो तो... मैं कार में ही रहूंगा।"

मोना चौधरी ने मुस्कराकर हैदर का गाल थपथपाया, फिर जयन्त से बोली---

"चलो जयन्त।"

दोनों कार से निकले और आगे बढ़ गये।

हैदर खान कार में ही बैठा रहा।

■■■

आठ-दस बंगलों के बाद एक मोड़ पर महाजन खड़ा दिखा। वो गहरे रंग के पठानी सूट में था। उसने भी मोना चौधरी को देखा? और पास आ पहुंचा।

"कैसी हो बेबी ?"

“बढ़िया...।” मोना चौधरी मुस्कराई--- “जौहर कहां है?"

"उस तरफ बंगले पर नजर मारने गया है। वो सामने हमारी वैन खड़ी है। शमशेर उसके भीतर बंधा पड़ा है।"

"उस बंगले में हलचल है क्या?"

"हां। वहां भीतर तीन लोग हैं। एक औरत भी है। जब से हमने बंगले पर नजर रखनी शुरू की है, कोई बाहर नहीं आया। सब कुछ शांत है । परन्तु मुझे इतना महसूस हो चुका है कि वहां कुछ खास है।

मोना चौधरी के चेहरे पर सर्द भाव आ गये।

"शायद हमारा शिकार बंगले में ही हो।" जयन्त ने कहा ।

तभी मोड़ से जौहर आता दिखा। उसके कदमों में तेजी थी।

फौरन ही वो पास आ पहुंचा। वो कुछ कहना चाहता था। परन्तु मोना चौधरी और जयन्त की वजह से चुप रहा।

"ये मोना चौधरी और जयन्त ही हैं।" महाजन ने उसकी उलझन दूर की।

"ओह....।" जयन्त ने सिर हिलाया, फिर कह उठा--- "उस बंगले में लाली खान ही है। मैंने उसे खिड़की पर खड़े देखा है अभी।"

मोना चौधरी के जिस्म में तनाव भरता चला गया।

जयन्त के जबड़ों में खतरनाक कसाव भर उठा।

महाजन शांत भाव से मुस्कराकर बोला---

"तो हमारी मेहनत रंग ले ही आई...।"

मोना चौधरी ने जौहर से पूछा---

"तुम ये काम करने के कितने पैसे ले रहे हो लैला से...।"

"हर काम पैसे के लिए नहीं होता।" जौहर ने शांत स्वर में कहा--- "लैला मैडम के मुझ पर एहसान हैं। जिन्हें मैं कभी भुला नहीं सकता। उन्होंने कहा कि महाजन का साथ देना है। जो ये कह, करना है तो मैं कर रहा हूं...।"

"फिर तो सुनकर तुम्हें दुख होगा कि लैला अब जिन्दा नहीं है।"

"क्या?" जौहर का मुंह खुला का खुला रहा गया।

महाजन भी चौंका।

"लैला मैडम जिन्दा नहीं हैं... ये... ये नहीं हो सकता।" जौहर तड़प कर कह उठा ।

"लैला, लाली खान के हाथ लग गई थी। परन्तु लैला ने मुंह खोलने से बेहतर, खुद को खत्म करना ठीक समझा। उसके मुंह में जहर भरा दांत फिक्स था। जिससे कि उसने आत्महत्या कर ली।"

"ओह...।" जौहर की आंखें गीली हो उठीं।

"अब तुम चाहो तो खुद को हमारे से अलग कर सकते हो। तुम लैला की खातिर ये काम कर रहे थे। वो अब जिन्दा नहीं है। चूंकि उस बंगले पर लाली खान मौजूद है, तो हम अब वहां मौत का खेल, खेलने जा रहे हैं।"

"लैला मैडम जिन्दा नहीं रहीं तो क्या हुआ ! उन्होंने मुझे काम सौंपा था, वो मैं जरूर पूरा करूंगा।" जौहर ने दृढ़ स्वर में कहा--- "इस काम के अंत तक मैं महाजन का साथ दूंगा।"

मोना चौधरी ने सिर हिलाकर कहा---

"तो तुमने बंगले की खिड़की पर लाली खान को देखा ?"

जौहर ने सहमति से सिर हिला दिया।

"वो लाली खान ही थी?"

"पक्का। मैंने दो-तीन बार पहले भी उसे देखा हुआ है। उसका चेहरा पहचानने में मैं धोखा नहीं खा सकता।"

"और कितने लोग हैं बंगले पर, मुझे दोबारा बताओ।"

"एक बाहरी गेट पर दरबान है और तीन लोग भीतर है।" जौहर ने कहा--- "वो तीनों इकबाल, याकूब और मेमन हो सकते हैं जो हर वक्त लाली खान के साथ रहते हैं। वो तीनों बेहद खतरनाक माने जाते हैं, खासतौर से मेमन के बारे में कहा जाता है कि वो बेहद खतरनाक, अचूक निशानेबाज और बेरहम हत्यारा है। वो तीन दस के बराबर है।"

"हमें बंगले में पहुंचकर उन पर हमला करना होगा।" मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।

"अभी?" जौहर व्याकुल हो उठा।

“हाँ। मैं वक्त बरबाद नहीं करना चाहती।”

"मेरे ख्याल ये काम रात को करें तो ज्यादा ठीक...।"

"अभी काम करेंगे हम।" मोना चौधरी ने दृढ़ स्वर में कहा--- "रात तक वे लोग यहां से जा भी सकते हैं। हम नहीं जानते कि उनका प्रोग्राम क्या है... और रात तक का इन्तजार करने में हम सुस्त हो सकते हैं। थक सकते हैं।"

जौहर ने कुछ नहीं कहा।

“तुम बेशक खुद को हमसे अलग कर लो। मैं तुम्हें ये बात कह रही हूं...।” मोना चौधरी ने जौहर से कहा ।

"ये बात दोबारा मत कहना। मैं तुमसे भी बहादुर हूं...।" जौहर ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा ।

मोना चौधरी ने जयन्त को देखा।

"तैयार ?”

"पूरी तरह... ।” जयन्त ने होंठ भींचकर कहा।

मोना चौधरी ने महाजन को देखा।

"मैं तो हमेशा तैयार हूं बेबी। मैं खुश हूं कि हमें लाली खान को खत्म करने का मौका मिल रहा है।"

“इकबाल, याकूब और मेमन को मत भूलो। जौहर ने जो कहा, वो तुमने सुना ही होगा। लाली खान भी कम नहीं होगी। हमें उनसे कड़ा मुकाबला करना पड़ सकता है। रिवाल्वरों के साथ हमें फालतू गोलियों की मैग्जीन भी रखनी होगी।”

"मेरे पास है।" महाजन बोला।

"मैं गन का इस्तेमान करूंगा। उधर वैन में रखी है।" जौहर बोला--- “गन के बिना मुझे मजा नहीं आता।"

"जैसा तुम ठीक समझो। लाली खान का बंगला किधर है?"

"इस मोड़ से मुड़ते ही चौथा वाला बंगला...।" जौहर कह उठा।

उसके बाद मोना चौधरी तीनों को समझाने लगी कि कैसे बंगले में प्रवेश करना है। कैसे काम करना है। परन्तु बंगले के भीतरी हालातों से वाफिक न होने के कारण, वो थोड़ा बहुत ही समझा पाई।

परन्तु एक बात वे सब जानते थे कि शिकार होने से अच्छा शिकारी बन जाओ।

■■■

मोना चौधरी टहलते हुए बंगले के गेट पर जा पहुंची, हालांकि ऐसा करने में खतरा था। लाली खान उसे खिड़की से देखकर पहचान सकती थी, परन्तु ये खतरा उठाना जरूरी था। मोना चौधरी के पीछे-पीछे ही महाजन, जयन्त और जौहर आ पहुंचे थे। आसपास की दीवारों से चिपक कर खड़े हो गये थे। महाजन और जयन्त ने रिवाल्वरें बाहर नहीं निकाली थीं। परन्तु जौहर इस प्रकार गन थामे था कि किसी भी वक्त गोलियां चला सके। वो गन इस्तेमाल करने में एक्सपर्ट था।

गेट के भीतरी तरफ दरबान स्टूल पर बैठा था।

गेट के डिजाइन में बनी झिरी से वो स्पष्ट दिख रहा था।

“भैया!” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में पुकारा--- "जरा सुनो तो...।"

तब दरबान को गेट के बाहर किसी के खड़े होने का एहसास हुआ। वो उठकर गेट के पास पहुंचा।

“क्या है?"

“पानी पिला दो... बहुत भला होगा।”

"चली जाओ यहां से।” दरबान बोला--- "मुझे बाहर के लोगों से बात करने की इजाजत नहीं है।"

"पानी पिलाने में क्या जाता है तुम्हारा?" मोना चौधरी मुंह लटका कर बोली ।

"समझा करो... मैं नहीं पिला सकता।”

"अच्छा, ये पता तो बता दो।” मोना चौधरी हाथ में थमे कागज को लहरा कर बोली--- "बाहर आ जाओ, एक मिनट के लिए।"

“ओफ्फ तुम.... ।” दरबान ने झल्ला कर कहा और भीतर से गेट का कुंडा खोला और थोड़ा सा गेट खोलकर बाहर आया--- "दिखाओ... ।"

मोना चौधरी ने कागज वाला हाथ आगे किया।

दरबान ने कागज पकड़ा।

उसी पल मोना चौधरी ने बाएं हाथ की मुट्ठी में उसके बाल पकड़े और दायें हाथ की जोरदार टक्कर उसकी गर्दन पर मारी। कड़ाक हड्डी टूटने की आवाज आई और उसके घुटने मुड़ते चले गए वो नीचे जा गिरा।

दरिन्दगी नाच उठी थी मोना चौधरी के चेहरे पर। पलक झपकत ही उसके हाथ में रिवाल्वर नजर आने लगी और हाथ के इशारे से महाजन, जौहर और जयन्त को पास आने का इशारा किया और खुले गेट में गर्दन देकर भीतर झांका।

शांत-सा दिखा सब कुछ।

बाईं तरफ खूबसूरत लॉन था। उसके बीच झूला लगा था। फूलों की क्यारियां थी वहां। लॉन के ठीक सामन बंगले में प्रवेश होने के लिए बड़ा सा दरवाजा नजर आ रहा था। दाईं तरफ कोने में सर्वेन्ट क्वार्टर बने दिख रहे थे। तब तक वो तीनों भी मोना चौधरी के पीछे आ पहुंचे थे।

"आओ...।" मोना चौधरी ने कहा और भीतर प्रवेश कर गई।

वो तीनों भी भीतर प्रवेश करते हुए फैलते चले गये।

तभी मोना चौधरी ठिठकी। चेहरे पर से कई तरह के भाव आकर गायब हो गये। उसकी नजरें लाली खान से मिलीं। जो कि पहली मंजिल की सामने की खिड़की पर यूं ही आई थी। मात्र एक पल के लिए ही नजरें मिली थीं। फिर लाली खान खिड़की से गायब हो गई थी।

खतरा...!

"हम देख लिए गये हैं।" मोना चौधरी ने ऊंचे स्वर में चीखकर अपने साथियों को सावधान किया।

तब तक जौहर और जयन्त बगल के मुख्य दरवाजे तक पहुंच चुके थे।

यही वो वक्त था जब महाजन ने लॉन के कोने में हलचल देखी थी। दरअसल वहां पहले से ही बैठा मेमन एक पौधे की फालतू की टहनियां काट कर उसे खूबसूरत शेप दे रहा था कि उसने ये सब होते देख लिया था। उसने फुर्ती से जेब से रिवाल्वर निकाली और उसी पौधे की ओट में हो गया, जिसकी कटाई कर रहा था, परन्तु महाजन उसे देख चुका था।

जौहर और जयन्त भीतर प्रवेश कर चुके थे।

मोना चौधरी बंगले के पीछे घूमकर पीछे की तरफ जा रही थी।

महाजन मेमन की तरफ रिवाल्वर तानकर ऊंचे स्वर में गुर्राया---

"हाथ उठाकर बाहर आ जाओ... ।"

जवाब में मेमन ने फायर कर दिया।

गोली महाजन के चेहरे के पास से निकली।

उसी पल महाजन ने एक के बाद एक दो फायर किए।

तभी गोली की आवाज गूंजी और महाजन को अपनी टांगों में अंगारा धंसता महसूस हुआ। वो उसी पल नीचे गिरा ।

परन्तु रिवाल्वर न छोड़ी। पीछे देखा तो पहली मंजिल पर उसे खूबसूरत औरत खड़ी दिखी। उसके हाथ में रिवाल्वर थीं, वो पुनः फायर करने जा रही थी।

महाजन ने रिवाल्वर उसकी तरफ करके फायर कर दिया।

गोली किसी को लगी तो नहीं, परन्तु फायदा ये हुआ कि वो औरत खिड़की से हट गई।

उसी पल महाजन की गर्दन के पास से धमाके के साथ अंगारा निकला।

यही वो वक्त था---जब महाजन ने पीछे से आगे को गर्दन घुमाई थी। न घुमाई होती तो गोली उनके चेहरे पर लगनी थी। टांग में गोली लगने की वजह से बेपनाह दर्द हो रहा था।

उससे चंद कदमों के फासले पर मेमन आ खड़ा हुआ था।

दोनों की नजरें मिलीं।

एक साथ दोनों ने फायर किए।

महाजन की गोली मेमन की छाती में जा लगी। मेमन की चलाई गोली महाजन के कंधे में जा धंसी।

महाजन चीख कर नीचे लुढ़क गया। परन्तु रिवाल्वर नहीं छोड़ी उसने। दर्द से उसका पूरा शरीर कांप रहा था। आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। वो खुद को संभालने का प्रयत्न कर रहा था।

गोली छाती में लगते ही मेमन पलट कर नीचे जा गिरा था। परन्तु रिवाल्वर उसके हाथ में ही टिका रहा। दर्द से उसका चेहरा सुर्ख पड़ गया था। आंखें लाल हो उठी थीं। कुछ पल तो वो वैसे ही औंधे मुंह पड़ा रहा, फिर पूरी ताकत इकट्ठी करके करवट लेकर सीधा हुआ। उसका लाल सुर्ख चेहरा बता रहा था कि उसकी सांस अटकी पड़ी है, फिर धीरे-धीरे वो बैठने लगा। छाती में जहाँ गोली लगी थी, वहां से खून बह रहा था। कमीज लाल सुर्ख हो उठी थी। जाने कितनी हिम्मत लगाई थी उसने बैठने में। बैठते ही उसने महाजन को देखा। महाजन लॉन की क्यारी में लुढ़का पड़ा हुआ उसे ही देख रहा था।

मेमन ने अपना रिवाल्वर वाला हाथ ऊपर उठाया, महाजन की तरफ। उसका चेहरा बता रहा था कि ये सब करने में बहुत मेहनत करनी पड़ रही है उसे। चेहरा और भी धधककर लाल हो चुका था। छाती में धंसी गोली अपना असर दिखा रही थी। तभी महाजन ने रिवाल्वर वाला हाथ उठाया और एक के बाद एक, दो फायर कर दिए। एक गोली खाली गई, दूसरी मेमन के पेट में जा लगी। उसने मेमन को पीठ के बल लेटते हुए देखा। महाजन देर तक उस पर नजरें टिकाये रहा। परन्तु फिर मेमन का शरीर नहीं हिला था।

मोना चौधरी ने बंगले के पीछे की तरफ से भीतर प्रवेश किया था।

तब तक वो दो बार जौहर की गन चलने की आवाजें और रिवाल्वरों की गोलियों की आवाजें सुन चुकी थी। ये फैसले का निर्णायक वक्त था। मोना चौधरी को पहली मंजिल पर जाने के लिए सीढियां दिखीं, तो रिवाल्वर थामे वो फुर्ती से ऊपर चढ़ती चली गई और अन्दाजे से उस कमरे की तरफ बढ़ी, जहां उसने खिड़की पर लाली खान को देखा था।

तुरन्त ही मोना चौधरी एक कमरे में खुले दरवाजे पर जा पहुंची।

कमरे के भीतर शान्ति दिखी उसे ।

रुकने का इन्तजार करने का वक्त नहीं था। सावधानी से उसने रिवाल्वर थामें भीतर प्रवेश किया। चाक-चौबन्द-सतर्क। रोम-रोम में बसी दरिन्दगी। ये जिन्दगी और मौत का सवाल था। ये वो वक्त था कि जब ये देखा जाता है कि किसकी गोली पहले चली?

कमरा खाली था।

मोना चौधरी तुरन्त पलट कर बाहर निकली और बगल के कमरे के दरवाजे पर जा पहुंची। क्षण भर ठिठक कर उसने भीतर की आहट लेने की कोशिश की। परन्तु शान्ति ही महसूस हुई। रिवाल्वर थामें, होंठ भींचे, चेहरे पर कठोरता समेटे मोना चौधरी ने दबे पांव भीतर प्रवेश किया।

उसी पल मोना चौधरी की उंगली ट्रेगर पर दबती चली गई। सामने ही इकबाल था जो उस पर फायर करने जा रहा था। परन्तु पहले उसने फायर कर दिया था। गोली इकबाल की छाती पर लगी। उसे तीव्र झटका लगा। रिवाल्वर उसके हाथ से छूट गई और वो धीरे-धीरे नीचे बैठने लगा। अभी मोना चौधरी संभली भी नहीं थी कि तभी एक गोली चली और उसकी पीठ में जा धंसी। मोना चौधरी को ऐसा झटका लगा जैसे किसी ने धक्का दिया हो। पीठ में जलते अंगारे को फंसे महसूस किया। इसके साथ ही वो फुर्ती से घूमी तो कमरे की दीवार के पास उसने लाली खान को खड़े देखा। उसके हाथ में रिवाल्वर थी और चेहरे पर दरिन्दगी। वो फिर मोना चौधरी पर गोली चलाने जा रही थी, परन्तु मोना चौधरी ने उसे ये मौका नहीं दिया। रिवाल्वर वाली बांह सीधी करते हुए वो एक के बाद एक गोलियां चलाती चली गई। दो गोलियां लाली खान के पेट में लगी। एक माथे पर।

लाली खान दीवार से टकराई और उसकी आंखें पलट गई थीं। नीचे गिरने से पहले ही वो मर गई थी। मोना चौधरी के चेहरे पर वहशी भाव नाच रहे थे। पीड़ा से उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था। उसने इकबाल को फर्श पर पड़े हिलते पाया तो रिवाल्वर उसकी तरफ करके गोली चला दी।

एक गोली और इकबाल को लगी और वो शांत पड़ गया।

मोना चौधरी पीडा की वजह से होंठ भींचे आगे बढ़ी और एक कुर्सी पर जा बैठी। दरवाजे को देखने लगी। रिवाल्वर हाथ में एकदम तैयार थी। दुश्मन आये तो उसे गोली मारे। पीठ में फंसी गोली की वजह से उसे हिलने में परेशानी हो रही थी।

पांच मिनट इसी प्रकार बीत गये मोना चौधरी को बैठे।

फिर कदमों की मध्यम सी आवाजें उसने कमरे की तरफ आते सुनीं।

मोना चौधरी पीड़ा की वजह से, कुर्सी पर बुत सी बनी बैठी, गोली चलाने को तैयार थी। नजरें दरवाजे पर थीं।

तभी दरवाजे पर जौहर दिखा। हाथों में गन, चेहरे पर दरिन्दगी। उसके पीछे जयन्त था। वो कमरे में भीतर प्रवेश करते चले आये। इकबाल को मरे देखा, फिर लाली खान की लाश पर नजर पड़ी।

“हो गया काम...।" जौहर मुस्करा पड़ा ।

मोना चौधरी मुस्कराई, परन्तु उसे कुर्सी पर अकड़ी हालत में बैठी पाकर जयन्त ने पूछा---

"तुम ठीक तो हो?"

"पीठ में गोली लगी है।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

जयन्त ने फौरन आगे बढ़कर उसे सहारा दिया।

"मैं महाजन को देखता हूं।” जौहर बाहर निकलते बोला--- “मेरे ख्याल में हालात हमारे काबू में हैं।" परन्तु बाहर निकलते ही जौहर चिहुँक उठा। सामने से रिवाल्वर थामे हैदर खान आ रहा था।

जौहर की गन उसकी तरफ उठती चली गई।

■■■

हैदर खान तब कार में ही बैठा था, जब उसके कानों में फायरिंग की मध्यम सी आवाजें पड़ने लगीं। वो बेचैन हो उठा कि मोना चौधरी ठीक हो। खुद को रोक नहीं पाया और कार से निकल कर गोलियों की आवाजों की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही बंगले के बाहर था, जहां दरबान की गर्दन की हड्डी टूटी लाश पड़ी थी।

हैदर खान ने रिवाल्वर निकाली और बंगले में प्रवेश करता चला गया। अब गोलियों की आवाजें थम चुकी थीं। लेकिन दिल धड़क रहा था हैदर खान का कि मोना चौधरी ठीक-ठाक हो। कुछ ही आगे गया तो उसने क्यारी में पड़े घायल महाजन को देखा। महाजन रिवाल्वर थामें उसे ही देख रहा था।

"तुम कौन हो?" हैदर खान ने पूछा--- "क्या मोना चोबरी के साथी हो?"

महाजन रिवाल्वर थामे सतर्कता से हैदर खान को देखे जा रहा था।

तभी हैदर खान की निगाह कुछ दूर मौजूद मेमन की लाश पर पड़ी तो वो उसके पास जा पहुंचा।

मेमन के चेहरे पर नजर पड़ते ही उसके पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई जैसे। लाली का चेहरा उसकी आंखों के सामने चमका और सिर से पांव तक परेशानी में डूबा वो बंगले के दरवाजे की तरफ भागता चला गया।

महाजन उसे उलझन भरी नजरों से देखता रहा। वो हैदर खान को पहचानता नहीं था।

भीतर प्रवेश करने पर हैदर खान ने याकूब की गोलियों से छलनी हुई पड़ी लाश देखी।

हैदर खान का चेहरा फक्क हो चुका था। उसने घबराये अन्दाज में आसपास देखा, फिर सामने दिखाई दे रहीं सीढ़ियां चढ़ता चला गया। उसके जूतों की ठक-ठक गूंज रही थी। फिर वो एक-एक कमरे में झांकता हुआ हड़बड़ाए अन्दाज में आगे बढ़ रहा था कि सामने के कमरे से उसने जौहर को निकलते और अपने पर गन तानते देखा।

थम गया हैदर खान। रिवाल्वर हाथ में दबी थी।

भीतर से मोना चौधरी ने जौहर को किसी पर गन तानते देखा तो कह उठी वो---

"कौन है?"

"हैदर खान....!" जौहर ने कहते हुए कमरे की तरफ नहीं देखा था। नजरें हैदर पर थीं।

मोना चौधरी ने गहरी सांसें लीं। पास खड़े जयन्त से नजरें मिलीं। जयन्त गम्भीर दिखा।

"गन नीचे कर लो। उसे आने दो...।" मोना चौधरी भी गम्भीर हो उठी थी।

"लेकिन...।" जौहर ने कहना चाहा।

"उसे आने दो...।" मोना चौधरी ने पुनः कहा।

जौहर अनमने ढंग से गन को नीचे कर के खड़ा हो गया।

हैदर खान ने मोना चौधरी की आवाज सुन ली थी। वो तेजी से आगे बढ़ा और कमरे में आ गया। उसकी निगाह मोना चौधरी और जयन्त पर पड़ी, फिर इकबाल की लाश के पास आ गया। उसकी लाश को पहचानते ही उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। चेहरा सफेद था। व्याकुल निगाहें कमरे में घूमी और एकाएक उसकी टांगों में तीव्र कम्पन उभरा।

लाली खान की लाश देख ली थी उसने।

"लाली...।" हैदर खान चीखते हुए लाली की तरफ दौड़ा और उसकी लाश से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगा।

कमरे में गहरा सन्नाटा छाया रहा।

हैदर खान रोता रहा।

जौहर गन को सतर्कता से थामे दरवाजे के बीचों-बीच खड़ा था।

एकाएक हैदर खान उठा और गुस्से में कांपते हुए पलटा और हाथ में दबी रिवाल्वर मोना चौधरी की तरफ करके गुर्राया---

"तुमने... तुमने मेरी बहन को मार दिया, तुमने...।"

"गुलजीरा खान भी मेरे इशारे पर मारी गई थी हैदर ।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।

"क्या?" हैदर खान को तीव्र झटका लगा।

"लेकिन मैं तुझे नहीं मारूंगी। क्योंकि तू मुझे अच्छा लगा है। मैं तेरे को पसन्द करती हूं।" मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी--- "अगर तू मुझे वादा करे कि ड्रग्स का काम नहीं करेगा तो तुझे नहीं मारा जायेगा ।"

"ये सब क्यों किया तूने?"

"मैं इस वक्त भारतीय जासूसी संस्था रॉ के लिए काम कर रही हूं। मेरे इशारे पर तुम लोगों की ड्रग्स जलाई गई। मुझे कोई पहचान ना सका और मैं अंत तक तुम लोगों के साथ रही। मुझे गु-ले-ल मिशन सौंपा गया था, जिसका मकसद, तुम लोगों को इस हद तक कमजोर कर देना था कि पाकिस्तान में अपना संगठन खड़ा न कर सको। परन्तु मैं जान गई थी कि दोबारा फिर जब अफीम के खेत तैयार होंगे तो तुम लोग फिर से दौलत में खेलने लगोगे। इसलिये स्थाई हल मुझे लगा कि तुम लोगों को खत्म कर दिया जाये।"

"तुम झूठी हो! धोखेबाज हो। मैं तुमसे प्यार करता रहा। तुमसे शादी के सपने देखता रहा... और तुम मेरे परिवार को खत्म करती जा रही थी? बहुत गलत किया तूने मेरी बहनों को मारकर... मैं तुझे... ।" हैदर खान गला फाड़े चीखे जा रहा था--- "जिन्दा नहीं छोड़ सकता! गुल और लाली की मौत का बदला...।"

इसी पल जौहर ने गन का मुंह खोल दिया।

तड़-तड़-तड़

कमरा गन की आवाज से थर्रा उठा। ढेरों गोलियां हैदर खान के शरीर में प्रवेश करती चली गईं और हैदर खान की रिवाल्वर से जो गोली निकली, वो दीवार में जा धंसी थी।

जौहर गोलियां न चला देता तो हैदर खान ने मोना चौधरी का निशाना ले ही लिया था। पर सब ठीक रहा। हैदर खान को मरते पाकर, मोना चौधरी के चेहरे पर दुख के भाव उभरे।

नीचे गिरा पड़ा था हैदर खान। शांत शरीर। कोई हलचल नहीं।

मोना चौधरी ने गहरी सांस लेकर जयन्त को देखा। जयन्त के होंठ भिंचे हुये थे। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।

"मैं महाजन को देखता हूं।” कहकर जौहर बाहर निकलता चला गया।

"जयन्त... मुझसे अब बैठा नहीं जा रहा।" मोना चौधरी कह उठी--- "पीठ में धंसी गोली तकलीफ दे रही है...।"

"हम अभी डाक्टर के पास चलते हैं...।" कहने के साथ ही जयन्त ने मोना चौधरी को खड़ा किया, फिर उसे पीठ पर लादा और कमरे से बाहर निकलता चला गया।

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दो दिन बाद ।

चारिकर परवान के एक नर्सिंग होम में।

मोना चौधरी और महाजन खतरे से बाहर थे। परन्तु अभी कुछ दिन और उन्हें आराम की जरूरत थी। जौहर और जयन्त दोनों मोना चौधरी का बहुत ध्यान रख रहे थे। मोना चौधरी ने एक दिन पहले ही फिरोजशाह को फोन कर दिया था। वो आज नर्सिंग होम में ही आ पहुंचा था। तब उसे पता चला कि लाली खान और हैदर खान भी नहीं रहे। गुलजीरा खान की मौत के बारे में वो पहले से ही जानता था। लाली खान की मौत के बारे में सुनकर वो खुश हुआ था।

“तुमने मुझसे वादा किया था कि मासो को तुम मुझे दे दोगी।” फिरोजशाह कह उठा ।

“इसीलिए तो तुम्हें यहां बुलाया है...।"

"कहां है मासो?"

“हिन्दुस्तान में ।” मोना चौधरी जयन्त की तरफ इशारा करके बोली--- "ये मिस्टर जयन्त हैं और कल सुबह की फ्लाइट से ये इंडिया वापस जा रहे हैं। तुम इनके साथ चले जाना। ये मासो को तुम्हारे हवाले कर देंगे....।”

फिरोजशाह की आंखें भर आईं।

"मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगा...।" भर्राये स्वर में कह उठा फिरोजशाह ।

मोना चौधरी ने जयन्त से कहा---

"दिल्ली पहुंचकर तुम अपने चीफ से कहना कि पचास करोड़ की दान की रसीदें तैयार रखें। मैं सप्ताह बाद आकर ले लूंगी...।”

जवाब में जयन्त ने मुस्कराकर सिर हिला दिया।

शाम को जयन्त और फिरोजशाह चारिकर परवान से काबुल के लिए रवाना हो गये। सुबह काबुल से दिल्ली के लिए फ्लाइट लेनी थी। यहां ऐसा कोई काम नहीं था कि उसके रुकने की जरूरत हो। मोना चौधरी ने जौहर को देखकर कहा---

"तुम भी अब जा सकते हो जौहर... तुम्हारा काम पूरा हुआ। शुक्रिया... ।”

"मेरा तब तक काम चलेगा, जब तक आप दोनों अफगानिस्तान में हो। आप दोनों को यहां से भेजकर ही, मेरा काम पूरा होगा।" जौहर ने मुस्करा कर कहा ।

"फिर तो तुम्हें सप्ताह भर और हमारे साथ रहना होगा।" मोना चौधरी मुस्करा पड़ी।

"हमारे पास पासपोर्ट वगैरहा नहीं हैं।" महाजन बोला--- "हमें हिन्दुस्तान पहुंचाने का इन्तजाम तैयार रखो...।"

"तैयार ही तैयार है इन्तजाम। मैं खुद पाकिस्तान पार करके हिन्दुस्तान की सीमा तक तुम दोनों को छोड़ के आऊंगा...।"

“पट्ठों ने पाकिस्तान को हाईवे बना रखा है...।” महाजन बड़बड़ा उठा।

समाप्त