करीब साढ़े सात बजे, विक्रम अपने कमरे से निकला । दरवाजा लॉक करके वह सीढ़ियों द्वारा नीचे लॉबी में पहुंचा ।



वहां मौजूद लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किए बगैर वह होटल से बाहर आ गया । और तेजी से सड़क पर चल दिया ।



वह सावधानीवश स्वयं को स्ट्रीट लाइट की रोशनी से दूर रखने का भरसक प्रयत्न कर रहा था ।



पांच-सात मिनट बाद, वह कोई दो फर्लांग दूर स्थित पैट्रोल पम्प पर जा पहुंचा । वहां पब्लिक काल ऑफिस की सुविधा उपलब्ध की ।



वह बूथ में जा घुसा ।



सुलेमान के मकान मालिक का नम्बर डायल करके उसने सुलेमान से सम्बन्ध स्थापित किया । उसे जीवन के बारे में पता लगाने सम्बन्धी निर्देश देकर फोन डिसकनेक्ट कर दिया ।



फिर उसने भरत सिन्हा का नम्बर डायल किया । वह पहले, विक्रम की मृत प्रेमिका प्रेस रिपोर्टर लतिका पुरी का कुलीग हुआ करता था । आजकल वह पी० टी० आई० का कॉरसपोंडेंट था । विक्रम के खतरों से खेलने के स्वभाव, हौसलामंदी और ईमानदारी की वजह से वह उसका फैन था । विक्रम भी उसे अपना भरोसेमंद दोस्त समझता था ।



"हैलो ?" सम्बन्ध स्थापित होने पर दूसरी ओर से उसका स्वर आता सुनाई दिया ।



"भरत सिन्हा ?" विक्रम ने पुष्टि करने के विचार से पूछा ।



"यस । हू इज कालिंग ?"



"विक्रम खन्ना ?"



"कौन ?" संक्षिप्त मौन के बाद हैरानगी भरा स्वर लाइन पर उभरा-"विक्की ?"



"हां ।"



"कहां से बोल रहे हो ?"



"इस बात को गोली मारो ।" विक्रम ने पूछा-"यह बताओ, फ्री हो ?"



"हां । बोलो ।"



"फोन पर नहीं । मैं आमने-सामने बातें करना चाहता हूं ।"



"तो फिर चले आओ ।"



"हालात से वाकिफ हो न ?"



"हां ।"



"और यह भी जानते हो कि किसी मर्डर सस्पैक्ट की मदद करना या उसे पनाह देना कानूनन जुर्म है ?"



"हां । लेकिन इसके साथ-साथ मैं यह भी जानता हूं कि मुल्क में 'फ्रीडम ऑफ प्रेस' नाम की भी कोई चीज है । और एक अलिखित कानून यह भी है कि अखबार वालों को अपने न्यूज सोर्सेज को बचाने को पूरा हक है ।"



विक्रम हंसा ।



"बड़े मतलबी हो, यार !"



"कैसे ?"



"जाहिर है, तुम्हें कहानी की सूंघ मिल गई है, इसीलिए मुझे बुला रहे हो ।"



"तुम्हारे फोन करने का ही मतलब है-धांसू कहानी । खैर, छोड़ो, यह बताओ, कितनी देर में पहुंच रहे हो ?"



"करीब बीस मिनट में ।"



"ओ० के० । आई विल बी वेटिंग ।"



दूसरी ओर से सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया गया ।



रिसीवर हुक पर लटका कर विक्रम बूथ से बाहर आ गया ।



सड़क पर आकर उसने खाली जाता ऑटोरिक्शा रोका और भरत सिन्हा का पता बताता हुआ उसमें सवार हो गया ।



ऑटोरिक्शा तेजी से अपनी मंजिल की ओर दौड़ने लगा ।



मुश्किल से पन्द्रह मिनट बाद, विक्रम एक बहुमंजिला इमारत के सम्मुख ऑटोरिक्शा से उतरा और भाड़ा चुका कर लिफ्ट में दाखिल हो गया ।



वह लिफ्ट द्वारा पांचवे खंड पर पहुंचा ।



भरत सिन्हा अपने फ्लैट में उसे इंतजार करता मिला । व्हिस्की चुसकता हुआ वह अपनी व्याकुलता पर काबू पाने की कोशिश करता प्रतीत हो रहा था । वह कोई पैतीसेक वर्ष का स्वस्थ एवं शक्ल-सूरत से ही बुद्धिमान नजर आने वाला युवक था ।



"आओ, बैठो ।" वह बिना किसी औपचारिकता के बोला-"और फौरन शुरू हो जाओ ।"



विक्रम मुस्कराया ।



"इतनी बेसब्री है ?" वह उसके सामने दूसरी सोफा चेयर पर बैठता हुआ बोला ।



"बेशक ।" भरत सिन्हा ने कहा-"आखिरकार, तुम इस वक्त शहर में हाटेस्ट आइटम हो ।"



विक्रम ने सिर हिलाकर इंकार किया ।



"ऐसा नही है ।"



भरत सिन्हा ने भौंहें चढ़ाकर उसे घूरा ।



"क्या मतलब ?"



"सिर्फ देखने में ही ऐसा लगता है, दोस्त !"



"तुम कहना क्या चाहते हो ?" भरत सिन्हा ने असमंजसतापूर्वक पूछा ।



"यही कि असलियत कुछ और है ।"



"सीधी तरह क्यों नहीं बताते ?" भरत सिन्हा तनिक झुंझलाता-सा बोला-"ख्वामख्वाह सस्पैस पैदा कर रहे हो ?"



"पहले वादा करो, जो कुछ मैं बताऊंगा, वो हम दोनों के बीच रहेगा । उसमें से कुछ भी तुम छापोगे नहीं ।"



"ओ० के० । आई प्रॉमिस ।"



"थैंक्यू ।"



विक्रम ने उसे सब बता दिया ।



अपने कथन की समाप्ति पर उसने नोट किया, भरत सिन्हा व्हिस्की चुसकना भूल गया था । उसके चेहरे की मांसपेशियां तन गई थीं, जबड़े कस गए थे और आंखों में विचारपूर्ण भाव झांकने लगे थे ।



"क्या बात है ?" विक्रम ने पूछा ।



भरत सिन्हा ने व्हिस्की की चुस्की लेकर गिलास नीचे रख दिया ।



"अगर मेरा अनुमान सही है तो तुम्हारी बातों ने एक ऐसी बात की पुष्टि कर दी है जिसे महज अफवाह समझा जा रहा था ।"



विक्रम की आंखें सिकुड़ गईं ।



"कैसी अफवाह ?"



भरत सिन्हा ने एकाएक जवाब नहीं दिया । उसके चेहरे पर हिचकिचाहट भरे ऐसे भाव उत्पन्न हो गए थे मानों तय करना चाहता था कि बताए या न बताए और अगर बताए तो कितना बताए । कुछ पल इसी कशमकश में फंसा वह विक्रम को घूरता रहा ।



"तुम्हारी सूझ-बूझ और समझदारी की मैंने हमेशा तारीफ की है, विक्रम ! और तुम्हारी ईमानदारी का मैं कायल रहा हूं ।" अन्त में वह बोला-"मेरी समझ में नहीं आता कि तुम इस मामले में चोट कैसे खा गए ?"



विक्रम समझ नहीं सका, वह क्या कहना चाहता था ?



"साफ-साफ बताओ ।" उसने कहा-"मेरे पल्ले कुछ भी नहीं पड़ा है ।"



"ओशनोग्राफी का नाम सुना है ?"



"हां ।" विक्रम याद करता हुआ-सा बोला-'अखबारों में इस बारे में कुछ पढ़ा तो है ।"



"तब तो तुम्हें अपने पड़ौसी देश के ओशनोग्राफी प्रोग्राम की जानकारी भी होगी । यह कार्यक्रम वर्षों से चल रहा है और एक महाशक्ति इसमें उस पड़ौसी देश की पूरीपूरी मदद कर रही है ।"



"सिर्फ इतनी जानकारी है ।" विक्रम पुनः सोचता हुआ बोला-"वे लोग ओशन फ्लोर का नक्शा बना रहे हैं । जलधाराओं, ज्वार के प्रभावों, समद्री जीवन, आदि का अध्ययन कर रहे हैं ।" फिर उलझन भरे लहजे में पूछा-"लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो ? मैंने जो बताया है उससे इस सबका क्या ताल्लुक है ?"



"बड़ा गहरा ताल्लुक है ।" भरत सिन्हा बोला-"तुमने पोलारिस मिजाइल का नाम सुना है ?"



विक्रम ने सहमतिसूचक सिर हिलाया ।



"सिर्फ नाम ही सुना है ।"



"वो काम कैसे करती है, यह नहीं जानते ?"



"नहीं ।"



"तकनीकी जानकारी तो मुझे भी नहीं है । मोटे तौर पर इतना समझ लो कि पनडुब्बी से कमप्रेस्ड एयर फायर की जाती है । जो हवा में पहुंचते ही रॉकेट का रूप ले लेती है । और उस रॉकेट को, गाइडेन्स सिस्टम द्वारा, मनचाहे टारगेट तक पहुंचाया जा सकता है ।



"लेकिन इस सबका मेरे साथ हुए बखेड़े से क्या ताल्लुक है ?" विक्रम ने उसकी बात काटते हुए पूछा ।



"उस महाशक्ति की मदद से वो पड़ौसी देश अन्तर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा में, हमारे समद्र तटों से मुश्किल से बीस-पच्चीस मील दूर ही कई साल से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है ।" भरत सिन्हा ने उसके हस्तक्षेप की ओर ध्यान न देते हुए कहना जारी रखा-"हमारी सबसे बड़ी मजबूरी है कि हम उनकी निगरानी करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते ।" वह अपना गिलास उठाकर व्हिस्की का घूंट लेने के बाद बोला-"मान लो, उन्होंने पोलारिस टाइप मिजाइल डेवलप करने में कामयाबी हासिल कर ली और उन्हें हमारे समुद्र तटों से चन्द मील दूर एक परमानेंट प्लेटफार्म पर इनस्टाल कर दिया । उस सूरत में हमारे सागर तट पर बसे प्रमुख शहरों को पूरी तरह तबाह करने के लिए करीब आधा दर्जन मिजाइल्स ही काफी हैं । क्योंकि उन तमाम मिजाइल्स का कंट्रोल एक ही जगह होगा । इसलिए महज एक बटन दबाने से ही यह तबाही मचाई जा सकती है । इस मामले का अहम पहलू यह है कि हमें इस बात की पूर्व जानकारी नहीं मिल सकेगी । हमें पता ही तब चलेगा जब बरबादी हो चुकी होगी । यानी वे जब भी चाहें, तबाही मचा सकते हैं । और हम उस तबाही के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते । क्योंकि वे अपना अभियान पूरा करने के बाद तमाम सबूतों को मिटा देंगे, जिनसे उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा सकता है ।"



"लेकिन तुमने तो कहा था, उनकी निगरानी की जा रही है ।"



"बेशक, कहा था । लेकिन यह क्यों नहीं समझते, विक्रम, कि समुद्र कोई छोटी चीज नहीं होती । साथ ही, पनडुब्बी के विकास और अंडरवाटर एक्सप्लोरेशन्स की उन्नति के मामले में वो महाशक्ति हमसे कई गुना ज्यादा आगे है । इससे भी बड़ी बात है, बहुत मुमकिन है कि जिस की निगरानी हम कर रहे हैं वो सब महज हमें दिखाने के लिए किया जा रहा हो । जबकि उनका असली अभियान कहीं और ऐसी जगह चल रहा हो, जहां हमारा ध्यान भी नं जा सके । यानी हमें शान्ति वार्ता का झांसा दे के, पड़ौसी देश होने के नाते, मैत्री सम्बन्ध बनाने का भुलावा दिए रखने वगैरा जैसी बातों में उलझाकर बड़े ही गोपनीय ढंग से तबाही का सामान किया जा रहा हो सकता है । मेरा मतलब समझ रहे हो न ?"



"हाँ !" विक्रम सिर हिलाकर सहमति देता हुआ बोला-"वो सब तो मैं समझ रहा हूं । लेकिन यह तुम मुझे क्यों सुना रहे हो ? मेरे पल्ले यह नहीं पड़ रहा है । मेहरबानी करके साफ तौर पर बताओ कि तुम कहना क्या चाह रहे हो ?"



"ठीक है ।" कहकर भरत सिन्हा ने अपना गिलास खाली किया फिर फ्रेश ड्रिंक बनाने के बाद बोला-"तुम जानते हो, हम अखबारवालों का काम खबरें सूंघते रहना है । इस काम के लिए हमारे अपने सोर्सेज भी होते हैं ।" उसने व्हिस्की का एक छोटा-सा घूंट लिया-"अपने एक अनधिकृत सोर्स से मुझे पता चला है कि किरण वर्मा इंटेलीजेंस ब्यूरो की एजेंट है । मैं यह भी जानता हूं, ओशनोग्राफी के फील्ड में उसकी नॉलिज को चेलेंज नहीं किया जा सकता । अपने सोर्सेज से यह जानकारी भी मुझे मिली है । कि उसे छ: अन्य व्यक्तियों के साथ किसी अन्य मिशन पर भेजा गया था । मिशन क्या था-यह तो पता नहीं चल सका । अलबत्ता इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वो निश्चित रूप से कोई सीक्रेट मिशन था ।"



किरण वर्मा के बारे में इतना कुछ सुनने के बाद विक्रम का बातचीत में दिलचस्पी लेना स्वाभाविक ही था ।



"सीक्रेट मिशन ?" उसने उत्सुकतापूर्वक पूछा ।



"हां ! सीक्रेट होने के साथ-साथ वो मिशन बेहद महत्त्वपूर्ण भी था ।" भरत सिन्हा जेब से पैकेट निकालकर सिगरेट सुलगाने के बाद बोला-"यही वजह है कि उसके तमाम साथियों की बड़े ही अजीब हालात में मृत्यु हो गई । दूसरे, जल सेना के जिस रिसर्च डिपार्टमेंट से किरण वर्मा और उसके साथी अटैच्ड रहे, उसमें प्रत्यक्षतः कोई जरूरत उनकी नहीं थी । क्योंकि उस विभाग में काम करने की मामूली-सी भी काबलियत किरण वर्मा या उसके साथियों में नहीं थी ।" उसने सिगरेट का गहरा कश लेकर ढ़ेर सारा धुआं उगला-"तुम्हारी दास्तान सुनने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं, सम्भवतया, किरण वर्मा और उसके साथियों का मिशन था-अंडरवाटर मिसाइल साइट्स का का पता लगाना । और वह इस काम में कामयाब हो गई थी । मगर साथ ही इस सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि पड़ौसी देश को भी किरण वर्मा और उसके साथियों के मिशन की जानकारी थी । और उन्हें रोकने की भी कोशिश की गई थी । लेकिन मौजूदा हालात से जाहिर है, किरण वर्मा किसी तरह मिसाइल साइट्स का रिकार्ड हासिल करके भागने में कामयाब हो गई थी । क्योंकि पड़ौसी देश के एजेंट्स को उसके बारे में पता था । इसलिए उसे जिन्दा छोड़ना वे नहीं चाहते थे । उन्होंने अपनी ओर से हर मुमकिन कोशिश की होगी कि किरण वर्मा अपने किसी 'कांटेक्ट' को कांटेक्ट न कर पाए । अपनी इस कोशिश में सिर्फ अपने विचार से ही वे कामयाब हो गए हो सकते हैं । जबकि असलियत यह नहीं है । किरण वर्मा, रेस्टोरेंट के बाहर हुई शूटिंग में जख्मी होने से पहले कैपसूल तुम्हें सौंप चुकी थी । फिर उस कैपसूल को सही हाथों तक पहुंचाना तुम्हारी जिम्मेदारी थी, दोस्त !"



विक्रम खड़ा हो गया ।



"लेकिन इस काम के लिए मुझे ही क्यों चुना गया ?"



भरत सिन्हा मुस्कराया ।



"तुमने खुद ही बताया है किरण वर्मा को तुम्हारे अन्दर वे सब बातें नजर आयी थी जिनकी वजह से वह भरोसा कर बैठी कि तुम अपनी जिम्मेदारी जरूर निभाओगे ।"



"यह सब बकवास है । तुम उल्टे-सीधे अनुमान लगा रहे हो । तुम्हारी इस थ्यौरी से मैं सहमत नहीं हूं ।"



"मान लो, मेरी यह थ्यौरी सही हुई ?' भरत सिन्हा ने शांत स्वर में पूछा ।



"तुम्हारी थ्यौरी के सही-गलत होने से कोई फर्क नहीं पड़ता । सवाल तो यह है कि मुझे इस बखेड़े में क्यों फंसाया गया ?"



"तुम्हारी किस्मत है । बल्कि मैं तो इसे खुशकिस्मती कहूंगा । तुम्हारी ही नहीं, हम सबकी ।"



"खुशकिस्मती ?" विक्रम ने गुर्राकर पूछा ।



"हां ।"



"देखो भरत, मैं मजाक के मूड में नहीं हैं ।" "मजाक कर कौन रहा है ?"



"तुम आखिर असलियत को समझने की कोशिश क्यों नहीं करते ?"



भरत सिन्हा इत्मीनान से व्हिस्की का घूंट लेने के बाद बोला-"समझाओ । मैं समझने के लिए तैयार हूं ।"



"सीधी-सी बात है, अगर मैं मदद के लिए पुलिस के पास जाता हूं तो वे लोग परवेज की हत्या के आरोप में मुझे उठाकर बन्द कर देंगे ।" विक्रम तनिक उत्तेजित स्वर में बोला-"अगर मैं इंटेलीजेंस ब्यूरो वालों से सम्पर्क करता हूं उन्होंने भी मुझे पुलिस के हवाले ही कर देना है । उन्हें मेरी कहानी पर रत्तीभर भी यकीन नहीं आयेगा क्योंकि अपनी कहानी को सही साबित करने के लिए सबूत के तौर पर न तो मैं वो कैपसूल उन्हें सौंप सकता हूं और न ही किरण वर्मा को बतौर गवाह पेश करके अपनी कहानी की पुष्टि करा सकता हूं । क्योंकि वह गम्भीर रूप से घायल है और बातें नहीं कर सकती । अगर वह इसी हालत में मर गई तो मुझे जीते-जी मरना पड़ जाएगा । क्योंकि मैं ज्यादा दिन छुपा नहीं रह सकता । देर-सबेर या तो आफताब आलम के आदमी मुझे ठिकाने लगा देंगे या फिर एक अनकिए जुर्म की खातिर पुलिस के शिकंजे में फंसना पड़ जाएगा । अब तुम ही बताओ, कि मैं क्या करूं ?"



भरत सिन्हा ने एक जोरदार कहकहा लगाया ।



"मैं कुछ नहीं जानता, दोस्त ! लेकिन तुम्हारा किस्सा बेहद दिलचस्प है । यहां तक कि अगर तुक्केबाजी से भी तुम्हारी अबिच्युअरी लिख दी जाए तो भी अखबार की रीडरशिप बढ़ जाएगी ।"



"शुक्रिया । दोस्ती में और तुमसे उम्मीद भी क्या की जा सकती है ?" विक्रम कुढ़ता हुआ-सा बोला-"बाई दी वे, अब तुम्हारा प्रोग्राम क्या है ?"



"कुछ नहीं ।"



विक्रम ने हैरानगी से उसे घूरा ।



"क्या ? इतना सब जानने के बाद भी तुम कुछ नहीं करोगे ?"



भरत सिन्हा मुस्कराया ।



"यह तो मैंने नहीं कहा कि कुछ नहीं करूंगा । मैं आराम से बैठकर नजारा करूंगा । मैं देखता चाहता हूँ एक भूतपूर्व पुलिस अफसर, जिसकी ईमानदारी, सूझ-बूझ और दिलेरी का डंका इस शहर में बजता रहा है और जिसकी गतिविधियों पर फिलहाल गैरकानूनी काम होने का शक किया जा रहा है, देशभक्त बनने वाला है इसलिए नहीं कि बनना चाहता है बल्कि इसलिए कि उसे बनना पड़ रहा है । मानव स्वभाव के अध्ययन के मामले में यह...।"



"बेकार की बातें मत करो ।"



"तो फिर कार की बात यह है कि मुझे सिर्फ कहानी चाहिए-धांसू कहानी ।"



"जहन्नुम में जाओ ।"



"नामुमकिन ! क्योंकि कोई भी जीवित प्राणी न जन्नत में जा सकता है और न ही जहन्नुम में । और फिलहाल मरने का कोई इरादा मेरा नहीं है । वैसे भी जहां जाना है, तुम ही जाओगे ।"



"मतलब ?"



"अब मैं एक्शन देखना चाहता हूं । और तुम्हारे सामने और कोई चारा नहीं है ।"



"कैसे ?"



"तुम्हीं अकेले शख्स हो जिसे तमाम तथ्यों की जानकारी है और तुम्हारे लिए इस मुसीबत से निकलना निहायत जरूरी है । लिहाजा जब भी तुम ऐसी कोशिश करोगे मुझे यकीनन धांसू कहानी हासिल हो जाएगी ।"


विक्रम कुछ देर चुप रहा फिर मुस्कराता हुआ बोला-"लेकिन वो कहानी तो तुम्हें मेरे जरिए ही मिलेगी ।"



"वो तो जाहिर ही है ।"



"मैं भी यही सोच रहा हूं ।"



भरत सिन्हा ने असमंजसतापूर्वक उसे घूरा ।



"क्या ?"



"यही कि कहानी तुम्हें ही मिलनी चाहिए ।"



"चाहिए ? यानी तुम्हारा इरादा कुछ और है ?"



"हो सकता है ।"



"हो सकता है, से क्या मतलब है ?"



"मुझे किसी की मदद की जरूरत है । अगर तुम्हें कहानी चाहिए तो बदले में मेरी मदद करनी पड़ेगी । क्या ख्याल है ?"



भरत सिन्हा ने अपने होंठों पर जुबान फिराई ।



"मुझे यह बात पहले ही सोच लेनी चाहिए थी ।" वह अपने दायें हाथ का मुक्का बायें हाथ पर मारता हुआ बोला-खैर, क्या कराना चाहते हो ?"



"किरण वर्मा से मिलवा दो ।"



भरत सिन्हा बुरी तरह चौंका ।



"क्या ?"



"मुझे किरण वर्मा से मिलवा दो ।" विक्रम दोहराता हुआ बोला ।



"यह नहीं हो सकता ।"



"क्यों ?"



"इसलिए कि अगर तुम अस्पताल तक सकुशल पहुंच भी गए तो भी किरण वर्मा के कमरे में नहीं जा सकोगे । उसके कमरे में बाहर सशस्त्र पुलिस गार्ड मौजूद हैं । आसपास लगभग सभी समाचार-पत्रों के रिपोर्टर्स भी डेरा डाले पड़े हैं । इस तरह तुम्हारे वहां पहचाने जाने के चांस और भी ज्यादा हैं । कुल मिलाकर मुद्दा यह है कि किरण वर्मा तक पहुंच पाना नामुमकिन है ।"



"तो फिर कहानी मिलने की उम्मीद भी छोड़ दो ।"



"अच्छा !"



"हां !"



भरत सिन्हा देर तक कड़ी निगाहों से उसे घूरता रहा, अन्त में बोला-"ठीक है, मैं कोशिश करता हूं ।"



"शुक्रिया ।"