“तन्ने सुना छोरे कि कर्मे ने क्या बोलया के फाइल किधरो हौवे। " बांकेलाल राठौर ने रुस्तम राव को देखा।
रुस्तम राव ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया।
"बाप सुना। अक्खा बात सुना। "
"शंकर भाई की तिजोरी से म्हारे को वो फाइल लानी हौवे। ईब के करयो तू?"
"बाप, सुनेला है वो शंकर भाई बोत खतरनाक होएला। " रुस्तम राव ने उसे देखा।
"खतरनाक हौवे, तभ्भी तो कर्मा, देवराज चौहान से मिलना चावे तू इस कामो को निपट सको के ना ही। "
"काम तो पक्का होएला। पण टेम लगेएला बाप।"
बांकेलाल राठौर के कुछ कहने से पहले ही कर्मपाल सिंह बोल पड़ा।
"देर लगी तो बंगाली किसी के दम पर कहीं फाइल न ले उड़े।"
"सुन बाप। " रुस्तम राव ने कर्मपाल सिंह को देखा— "कितनी भी भूख लगेयला पण गेहूं को नेई खाएला बाप उसका आटा बनेला फिर रोटी। तब पेट में कुछ पहुंचेला बाप। हर काम को वक्त लगेएला है। जो काम जितना वक्त मांगेला, उतना वक्त तो लगेएला ही बाप। गेहूं ही खाने का तेरे को आदत होएला बाप तो सीधे शंकर भाई के पास पहुंचकर फाइल की डिमांड करेला बाप । "
कर्मपाल सिंह कुछ नहीं कह सका।
"कर्मे। छोरा ठीक बोले हो। कामों में जो वकत लगो, वो तो लगो ही। ज्यादा जल्दो ठीको न हौवे। तू छोरे को कामो पे लगने दे। यो छोरा दूजो को बापो को बाप बोलो, पण सबसे बड़ा बाप ये ही हौवो। तू न जानो अभ्भी इसो। यो सोलह बरस का दिखो पर हौवो एक सौ सोलह का। "
"बाप! क्यों आपुन को सौ बरस ऊपर चढ़ा डाला। "रुस्तम राव ने सोच भरे स्वर में कहा—"इतना आसान नेई होएला ये काम । 'टफ' मामला होएला ये। उधर बंगले पर गनमैन बोत होएला ।"
"म्हारे पास बोत आदमी हौवे। कर्मों के पास भी--।"
"आपुन को वा पे जंग नेई जीतने का बाप। फाइल पाने का है। वां पे पोंचकर ढोल-शहनाई नेई बजाने का मुंह बंद कर अंदर घुसेला है।"
"ये बात तो तू ठीक बोले हो। पण वो तिजोरी कैसे खोलो। उसो का नंबर तो म्हारे पासो न हौवे कर्मा भी न जानो नम्बर को " बांकेलाल राठौर गंभीर स्वर में बोला- "यो तो प्राब्लम खड़ी हो गयो । "
रुस्तम राव ने अपने कान को मसला।
"तिजोरी का कोई तोड़ भी सोचेला बाप। " रुस्तम राव होंठ सिकोड़े सोच रहा था "कम्बीनेशन नंबर नहीं होएला तो वहीं पहुंचकर बोत बड़ी प्राब्लम खड़ी होएली। "
"ईब का करनो हौवे छोरे।"
रुस्तम राव के होंठों पर मुस्कान उभरी।
"बाप कोई रास्ता तो समझ में आएला ही। अभ्भी तो भेजा गर्म होएला। ठण्डा होएला तो सोचेला। "
"म्हारे को तो यो कामो में दिक्कत लगो हो। वो शंकर भाई खतरनाक हौवे यो भी इसो कामों में आड़े आयो। बहुत जरूरी होवे थारे को ये फाइल कर्मे।" बांकेलाल राठौर ने गंभीर स्वर में कहा।
"हाँ" कर्मा बोला—"तेरे को बताया ही है कि उस फाइल में, शंकर भाई की अरबों की दौलत तक पहुंचने का रास्ता दर्ज है। जो उसने कहीं छिपा रखी है। " कर्मपाल सिंह जल्दी से बोला।
"यो दौलत और औरत फसाद की जड़ो हौवे। म्हारे को देख म्हारी वो गुरदासपुर वाली म्हारी नेई बनो तो मन्ने उसकी डोली को कंधो देकर, सारो झगड़ा ही खत्म कर दयो। तबो म्हारे दिलों में कुछ भी रा हौवा हो पण मनने मूंछ का एको बाल भी टेडा न होने दयो और गुरदासपुर से चलो आयो ।"
कर्मपाल सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला।
रुस्तम राव उठ खड़ा हुआ।
"तू किधर को चल्लो छोरे।"
"यापर साहब का एक काम होएला बाप उसे आज निपटाकर, तुम्हारे यार का काम देखेला।"
"काम तो पकको हौवो ना ?"
रुस्तम राव मुस्कराया।
"बाप काम तो पकका होएला ही, आपुन चला।" कहने के साथ ही रुस्तम राव पलटा और बाहर निकल गया।
कर्मपाल सिंह बेचैनी से बोला।
"बांके। इतना बड़ा और खतरनाक काम ये सोलह बरस का छोकरा कैसे कर सकता है। कुछ तो अक्ल से काम ले। अभी इसके दूध के दांत तो टूटे नहीं और तू।"
"कर्मे।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर गया- "तू इसो को जानो ना। तभ्भी ये बोले हो। यो छोरा शैतान का बापो लगो हो। यो तो म्हारी खटिया भी सरका दयो। तू इसो का रंग न जानो। पर मन्ने पता होवे, ये यारी गर्दन साफ़ कर दयो, तेरे को पतो ही न लगो। "
"लेकिन...।"
"अब म्हारे को न बुला, जा म्हारे पास बोत काम होवो फाइल थारे को मिल्लो ही मिल्लो घरो पोंच कर चैन की नींद ले। म्हारे पे भरोसा होवे चारे को या न होवे?"
चेहरे पर अविश्वास के भाव लिए कर्मपाल सिंह उठ खड़ा हुआ। उसके चेहरे के भाव ये बात तो स्पष्ट कह रहे थे कि फाइल उसके हाथ नहीं लगने वाली गलत जगह आ गया है।
***
सुबह दस बजे देवराज चौहान और जगमोहन कृष्णलाल से सड़क पर ही तयशुदा जगह पर मिले।
कृष्णलाल पचास बरस का कोई सेठ सा दिखने वाला व्यक्ति था। सफेद धंधे वाले उसे बहुत बड़े बिजनेसमैन की हैसियत से जानते थे और काले धंधों वालों में भी उसकी खास जगह थी। शरीफों और बदमाशों की दोनों कश्तियों में एक-एक पांव रखे, सालों से अभी तक तो सलामत ही रहा था।
कारें पास-पास खड़ी करके अपनी अपनी कारों से बाहर निकले। ये ऐसी सड़क थी जहां से बहुत कम वाहनों का आना-जाना होता था। मुलाकात के लिए ये जगह ठीक समझी गई थी।
तीनों में हैलो हैलो हुई। कृष्णलाल के कुछ कहने से पहले जगमोहन बोला।
"पच्चीस करोड़ में दरिया-ए-नूर नाम के हीरे का सौदा मंजूर है?"
"हाँ ये बात मैं तुमसे कल फोन पर कह चुका हूं।" कृष्णलाल ने शांत स्वर में कहा।
"मालूम है। मालूम है। इसलिए पूछा कि आगे की बात उस करोड़ के बाद होगी, जो खर्चे-पानी के लिए, तुम एडवांस देने वाले थे। साथ लाए हो या इंतजाम करना भूल गए।" जगमोहन ने होंठ सिकोड़े।
"लाया हूं।"
जगमोहन ने कार पर नजर मारी।
"डिग्गी में हैं?"
"हां। बड़ा बैग पड़ा है, जो कि पांच-पांच सौ की गड़ियों से भरा पड़ा है। '' कृष्णलाल मुस्कराया।
"पूरा करोड़ ही है ना। कम तो नहीं अब सड़क पर बैठकर तो गिनने से रहा। इसलिए पूछ रहा हूं।"
"कम की जिम्मेवारी मेरी है। ज्यादा रहा तो वापस नहीं लूंगा" कृष्णलाल हौले से हंसा।
जगमोहन भी मुस्कराया।
"बंदे मजेदार हो। मैं जरा बैग अपनी कार की डिग्गी में रखकर आता हूं। कहीं बाद में तुम देना और मैं लेना न भूल जाऊं। कहने के साथ ही जगमोहन उसकी कार की डिग्गी की तरफ बढ़ गया। देवराज चौहान और कृष्णलाल की नजरें मिली।
"वैसे तो दरिया-ए-नूर नाम के हीरे को लेकर हममें सब बातें हो चुकी हैं। " कृष्णलाल बोला- "फिर भी मैं अब उन बातों को मोटे तौर पर दोहरा देना चाहता हूं। निजाम की जो पुश्त अब चल रही है। दरिया-ए नूर उनके पास है। लेकिन उसे कोई ले न जाए, इस बारे में सावधानी बरती जा रही है और यही वजह है कि दरिया-ए-नूर के बारे में कोई नहीं जानता कि उसे कहां रखा है। "
"कोई नहीं?" देवराज चौहान बोला।
"हां। घर के खास सदस्यों के अलावा कोई नहीं।" कृष्णलाल ने सिर हिलाकर कहा— "ये कहावत बहुत पुरानी है कि दीवारों के भी कान होते हैं। दरिया-ए-नूर के बारे में भी कुछ ऐसा ही हुआ। परिवार के दो सदस्य दरिया-ए-नूर नामक हीरे के बारे में जिक्र कर रहे थे कि नौकर ने सुन लिया। उसने यूं ही आगे किसी से बात कर दी और इस तरह बात निजाम के खानदान से बाहर निकली कि बेशकीमती हीरा दरिया-ए-नूर को उन लोगों ने कहां रखा है। खबर मुझ तक भी पहुंच गई।"
देवराज चौहान कृष्णलाल को देख रहा था।
"दरिया-ए-नूर नाम का बेशकीमती हीरा—। " कृष्णलाल ने धीमे स्वर में कहा—''हैदराबाद में प्राइवेट लॉकर में है। नईमा प्राइवेट लॉकर माल रोड पर है ये और हैदराबाद में नईमा प्राइवेट लॉकर को सबसे सुरक्षित माना जाता है। जो सुना है। वो ही बता रहा हूं। नईमा प्राइवेट लॉकर के सुरक्षा प्रवन्ध क्या हैं। इस बात से मैं वाकिफ नहीं हूं। यह तुम्हें ही मालूम करना पड़ेगा।"
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और जगमोहन को देखा। जो कृष्णलाल की डिग्गी से बड़ा सा बैग निकालकर अपनी कार की डिग्गी में रख रहा था।
"लॉकर नंबर क्या है, जिसमें दरिया-ए-नूर है?" देवराज चौहान ने पूछा।
"तीन सौ इक्यावन। " कृष्णलाल ने बताया।
"और कुछ?" "
"क्या और कुछ?
"कोई बात जो तुम बताना भूल रहे हो।
"नहीं, इसके अलावा दरिया-ए-नूर को लेकर मेरे पास और कोई जानकारी नहीं है। "
देवराज चौहान ने सिर हिलाया।
"हो जाएगा ये काम ?” कृष्णलाल ने पूछा।
"हो जाएगा।"
"कब?"
“आज ही मैं हैदराबाद रवाना हो जाऊंगा और जब लौटूंगा तो दरिया-ए-नूर नाम का हीरा साथ में होगा।"
अपना काम निपटाकर जगमोहन वहां आ पहुंचा।
देवराज चौहान के शब्द सुनकर कृष्णलाल मुस्कराया।
"मैं जानता हूं। तुम्हारे लिए ये काम करना मामूली है।"
तुम।"
"मामूली काम नहीं है ये कृष्णलाल " देवराज चौहान ने शांत स्वर में अपनी बात कही–“अगर ये मामूली काम होता तो, तुम मेरे साथ पच्चीस करोड़ में सौदा करने पर मजबूर न होते। इंकार करके, हां नहीं करते।"
जवाब में कृष्णलाल मुस्कराकर रह गया।
"हो गई बात?" जगमोहन ने पूछा।
कृष्णलाल ने मुस्कराकर सिर हिलाया। "मैं चलता हूं। जब दरिया-ए नूर के साथ लौटो तो खबर करना।"
"चिंता मत कर मेरे भाई।" जगमोहन भी मुस्कराया— "एयरपोर्ट से ही फोन लगा देंगे। "
उनके देखते ही देखते कृष्णलाल कार में बैठा और वहां से चला गया।
देवराज चौहान ने सिगरेट एक तरफ उछाली और कार की तरफ बढ़ा। जगमोहन फौरन ड्राइविंग सीट पर जा बैठा। देवराज चौहान बगल में बैठ चुका था। कार आगे बढ़ी।
"अब क्या प्रोग्राम है?" जगमोहन ने पूछा।
"दरिया-ए-नूर नाम का हीरा, हैदराबाद में नईमा प्राइवेट लॉकर नंबर तीन सौ इक्यावन में है।" देवराज चौहान ने कहा- "कृष्णलाल के मुताबिक वो प्राइवेट लॉकर हैदराबाद का सबसे सुरक्षित लॉकर माना जाता है।"
"ओह।" जगमोहन ने सिर हिलाया- "सिक्योरिटी सिस्टम तगड़े हांगे। "
"हां। "
"क्या सिस्टम है?" "इस बारे में कृष्णलाल नहीं जानता। हैदराबाद पहुंचकर ही इसके बारे में जानकारी पानी पड़ेगी।"
खामोश रहकर जगमोहन बोला।
"चलना कब है हैदराबाद?"
"आज ही रात की अवश्य कोई ट्रेन हैदराबाद के लिए होगी। " देवराज चौहान ने कहा।
"प्लेन से चलें तो——।"
"नहीं।" देवराज चौहान ने टोका–"प्लेन में पहचाने जाने का खतरा है। ट्रेन ठीक रहेगी।"
"ठीक है।"
"सोहनलाल की कोई खबर ? "
"नहीं। पन्द्रह-बीस दिन से वो नहीं मिला। लगा होगा किसी चक्कर में। क्यों?"
"सोहनलाल को भी साथ ले चलना पड़ेगा। " देवराज चौहान का स्वर शांत था-"क्योंकि मामला लॉकर का है। उसे खोलने का यह काम उसके बस का है। "
"समझा। " जगमोहन ने सिर हिलाया "सोहनलाल को देख लेते हैं। "
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
"मैं एक बात सोच रहा हूं। " जगमोहन कह उठा।
"क्या?"
“रुस्तम राव, जिसे अपने साथ लाया था। उसे मिल तो लेते कि वो क्या बात करना चाहता था। "
देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।
"जिस रास्ते पर नहीं जाना। उसके बारे में पूछने का क्या फायदा?"
"फिर भी क्या हर्ज है। एक बार उससे बात—।"
"मैं उससे बात करने की जरूरत नहीं समझता। हम व्यस्त हैं और दूसरा काम हाथ में ले नहीं सकते। "
जगमोहन ने देवराज चौहान पर निगाह मारी।
“फकीर बाबा की बात का विश्वास करके उसकी बात मानकर, तुम उसकी बात नहीं सुनना चाहते। "
“ये भी समझ सकते हो। मोना चौधरी से टकराने में मेरी तब तक दिलचस्पी नहीं है, जब तक कि वो मेरे रास्ते में नहीं आती। मेरे काम में अड़चन नहीं बनती। अगर मेरा जरा सा रास्ता बदल लेने में फकीर बाबा का कुछ भला होता है और मुझे कोई नुकसान नहीं होता तो, मुझे रास्ता बदलने में कोई हर्ज नहीं।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर
में कहा- "बाबा के मुताबिक ये पंद्रह दिन भारी हैं और अब यही पंद्रह दिन हमारे, हैदराबाद में दरिया-ए-नूर नाम के हीरे को हासिल करने में लग जाने हैं। हमें अपने काम की तरफ ध्यान देना चाहिए। अगर पहले ही मालूम हो कि झगड़ा हो सकता है तो, समझदारी से काम लेकर झगड़े से दूर रहा जा सकता है। "
जवाब में जगमोहन सिर हिलाकर रह गया।
"हैदराबाद से लौटकर, बांके से मिलकर पूछूंगा कि उसके बंदे को क्या काम था। " i
देवराज चौहान खामोश रहा।
सोहनलाल के घर पर पहुंचे।
दरवाजे पर मोटा ताला लटक रहा था।
'सोहनलाल तो है नहीं।" जगमोहन बोला।
"तुम स्टेशन जाकर, जैसे भी हो, आज रात की ट्रेन से तीन टिकट हैदराबाद के लिए बुक कराओ। ट्रेवल्स एजेन्ट से बात कर लेना। उसके बाद देखो, सोहनलाल कहां मिल सकता है। उसे हर हाल में साथ ले चलना है। "
"बढ़िया बात—।"
"ये कार ले जाओ। मैं टैक्सी से बंगले पर--। "
"कार की डिग्गी में करोड़ रुपया पड़ा है। " जगमोहन फौरन बोला ।
"ठीक है। कार मैं ले जाता हूं। तुम टैक्सी का इस्तेमाल करो।" देवराज चौहान ने कहा।
जगमोहन ने कार आगे बढ़ाई और मुख्य सड़क पर आकर उसे रोका। कार से बाहर निकला। देवराज चौहान ने ड्राइविंग सीट संभाली और कार आगे बढ़ा दी।
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