दूसरी सुबह के सारे अख़बार ऐलफ़्रेड पार्क में किसी अधेड़ उम्र आदमी की लाश बरामद होने की कहानी सुना रहे थे। पुलिस का नज़रिया और दूसरे पहलू भी छपे थे। इमरान अपने तलाक़ दफ़्तर में उदास बैठा था....रूशी दूसरे कमरे से निकल कर शायद चाय का पैकेट लेने के लिए बाहर जाने लगी....इमरान ने बड़ी फुर्ती से अपनी दायीं टाँग आगे बढ़ा दी। रूशी बेख़बर थी इसलिए पेट के बल धड़ाम से ज़मीन पर जा गिरी। साथ ही उसके मुँह से इमरान के लिए कुछ ग़लत जुमले भी निकल गये।

मगर इमरान ने कुछ इस तरह गर्दन हिला कर ‘‘ठीक है’’ कहा जैसे उसने रूशी की बातें सुनी ही न हों। वह आगे की तरफ़ झुका हुआ होंट सिकोड़े उसे देख रहा था....रूशी के ज़मीन से उठते ही वह सीधा हो कर बैठ गया।

‘‘तुम बिलकुल जंगली हो!’’ रूशी पैर पटक कर चीख़ी।

‘‘सब ठीक है जाओ!’’ इमरान ने बड़ी संजीदगी से कहा।

‘‘नहीं जाऊँगी!’’ रूशी ने रुँधी आवाज़ में कहा और फिर कमरे में वापस चली गयी।

इमरान ने गमगीन अन्दाज़ में अपना सिर हिलाया और सामने फैले हुए अख़बार की तरफ़ देखने लगा।

कुछ देर बाद उसने रूशी को आवाज़ दी।

‘‘नहीं आऊँगी!’’ रूशी ने दूसरे कमरे से ललकारा। ‘‘तुम जहन्नुम में जाओ।’’

‘‘मुझे रास्ता नहीं मालूम रूशी डियर....वरना कभी का चला गया होता....तुम मेरी बात तो सुनो!’’

‘‘नहीं सुनूँगी! मुझसे मत बोलो।’’

इमरान को उठ कर उसी कमरे में जाना पड़ा जहाँ रूशी थी....वह पलँग पर औंधी पड़ी हुई दिखी....

‘‘आख़िर बात क्या है?’’ उसने बड़ी मासूमियत से पूछा।

‘‘चले जाओ यहाँ से। शर्म नहीं आती....औरतों से इस तरह का मज़ाक़ करते हो। बिलकुल जंगली हो।’’

‘‘अब मौक़े पर कोई और न मिले तो मैं क्या करूँ!’’ इमरान ने दबी आवाज़ में कहा। ‘‘वैसे मैं यही कोशिश करता हूँ कि औरतों से ये क्या....किसी तरह का मज़ाक़ न करूँ।’’

‘‘यहाँ से चले जाओ!’’ रूशी और ज़्यादा झल्ला गयी।

‘‘तुम कहती हो तो चला जाऊँगा! वैसे मैं तुमसे यह पूछने आया था कि भेड़ के बच्चे को मेमना कहते हैं या भैंस के बच्चे को....और आदमी के बच्चे को सिर्फ़ बच्चा क्यों कहते हैं। आदमी क्यों नहीं कहते।’’

रूशी उठ बैठी....कुछ पल इमरान को घूरती रही फिर कुछ कहने ही वाली थी कि बाहर से किसी ने दरवाज़े पर दस्तक दी। बाहर का दरवाज़ा बन्द था।

‘‘कौन है?’’ इमरान ने तेज़ आवाज़ में पूछा।

‘‘मैं हूँ फ़ैयाज़!’’

‘‘तुम आ गये बेटा!’’ इमरान धीरे से बड़बड़ाता हुआ दूसरे कमरे में चला गया।

दरवाज़े के क़रीब पहुँच कर वह एक पल के लिए रुका....फिर एक तरफ़ हट कर दरवाज़ा खोल दिया....

जैसे ही फ़ैयाज़ अन्दर आया इमरान की दायीं टाँग उसके पैरों में उलझ गयी....और फ़ैयाज़ बेख़बरी में ज़मीन पर ढेर हो गया....

लेकिन! वह दूसरे ही पल उलट कर इमरान पर आ गिरा....यह और बात है कि इस हरकत से भी तकलीफ़ उसी को हुई हो क्योंकि उसका घूँसा इमरान की बजाय दीवार पर पड़ा था! इमरान एक तरफ़ हट कर ललकारा। ‘‘आप के लिए चाय लाऊँ....!’’

‘‘चाय के बच्चे! यह क्या हरकत थी?’’ फ़ैयाज़ ने झपट कर उसका कॉलर पकड़ लिया।

‘‘हाँय....हाँय....!’’ इमरान धीरे से बोला। ‘‘वह देख रही होगी।’’

फ़ैयाज़ ने कॉलर छोड़ दिया और बौखला कर दूसरे कमरे की तरफ़ देखने लगा! रूशी सचमुच दरवाज़े पर खड़ी दोनों को हैरत से देख रही थी।

‘‘ओ हो....रूशी....!’’ इमरान जल्दी से बोला। ‘‘इनसे मिलो....ये फैपटेन कैयाज़....अर्र लाहौल....कैप्टन फ़ैयाज़ हैं! मेरे गहरे दोस्त! हाँ....और यह मेरी पार्टनर रूशी....सीनियर पार्टनर समझो! क्योंकि रूशी ऐण्ड को....! हिप!’’

फ़ैयाज़ ने जल्दी में दो-चार जुमले कहे और कुर्सी पर गिर कर हाँफने लगा। वह अब भी इमरान को घूर रहा था।

‘‘रूशी!’’ इमरान तेज़ आवाज़ में बड़बड़ाया। ‘‘अब तो चाय का इन्तज़ाम करना ही पड़ेगा। ये बहुत बड़े आदमी हैं। सी.बी.आई. के सुपरिन्टेंडेण्ट....!’’

‘‘ओ हो!’’ रूशी मुस्कुरा कर बोली। ‘‘आपसे मिल कर बड़ी ख़ुशी हुई।’’

‘‘मुझे भी!’’ फ़ैयाज़ जवाब देते हुए मुस्कुराया।

इमरान ने उर्दू में कहा। ‘‘फ़ैयाज़ साहब, ख़याल रहे कि मैं तलाक़ दिलवाने का धन्धा करता हूँ। ज़रा अपनी मुस्कुराहट ठीक करो....होंटों के कोने काँप रहे हैं और यह जिन्सी लगावट की पहचान है....यक़ीन मानो मैं तुम्हारी बीवी से एक पैसा फ़ीस नहीं लूँगा! तुम केस भी तो दिलवाओ....ऐसी ख़िदमत करूँगा कि तबियत ख़ुश हो जायेगी तुम्हारी!’’

फ़ैयाज़ कुछ न बोला! इमरान के ख़ामोश होते ही रूशी ने पूछा। ‘‘क्यों कैप्टन....सी.बी.आई. में इमरान का क्या ओहदा था?’’

‘‘मेरा मातहत था!’’ फ़ैयाज़ ने अकड़ कर कहा।

‘‘अरे ख़ुदा ग़ारत करे....!’’ इमरान बड़बड़ाया। ‘‘अच्छा, मैं तुमसे निपट लूँगा।’’

रूशी हँसते हुए दूसरे कमरे में चली गई।

‘‘हाँ, अब बताओ।’’ फ़ैयाज़ आस्तीन चढ़ाने की कोशिश करता हुआ बोला। ‘‘किसी दिन मैं तुम्हारी शेख़ी निकाल दूँगा।’’

‘‘शेख़ी नहीं पठानी कहो! मैं पठान हूँ! समझे।’’

‘‘तुम कोई भी हो! लेकिन ये क्या हरकत थी....आख़िर कब तक तुम्हारा बचपना बर्दाश्त किया जायेगा।’’

‘‘तुम कैप्टन फ़ैयाज़....तुम इसे बचपना कह रहे हो। मुझे हैरत है! अगर तुम जेम्स बॉण्ड के ज़माने में होते तो तुम्हें गोली मार दी जाती और बिलकुल जेम्स बॉण्ड ही की तरह जानता हूँ तुम इस वक़्त यहाँ क्यों आये हो?’’

‘‘क्यों आया हूँ?’’ फ़ैयाज़ ने पूछा।

‘‘मैं यह भी बता सकता हूँ कि किस तरह आये हो।’’

‘‘किस तरह आया हूँ।’’

‘‘सिर के बल चलते हुए! अब पूछो डॉक्टर वॉटसन कि यह बात मैंने इतने भरोसे के साथ क्यों कही है? जवाब यह है प्यारे वॉटसन कि मुझे तुम्हारे बालों में कुछ छोटे-छोटे तिनके दिखाई दे रहे हैं! हा हा हा....देखा है न यही बात....!’’

‘‘बोर मत करो।’’ फ़ैयाज़ ने बुरा-सा मुँह बनाया। ‘‘मैं एक ज़रूरी काम से तुम्हारे पास आया हूँ।’’

‘‘मैं आज का अख़बार पूरा पढ़ चुका हूँ।’’ इमरान संजीदगी से बोला, ‘‘हालाँकि वह इश्तहार भी पढ़ डाले हैं जिन्हें शादीशुदा आदमियों के अलावा और कोई शरीफ़ आदमी नहीं पढ़ता।’’

‘‘तो तुम समझ गये?’’ फ़ैयाज़ मुस्कुराया।

‘‘मैं बिलकुल समझ गया....न सिर्फ़ समझ गया, बल्कि काम भी शुरू कर दिया है।’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब मैं ज़रूर बताता, मगर उसी सूरत में अगर घूँसा दीवार पर पड़ने को बजाय मेरे जबड़े पर पड़ा होता.... ख़ैर.... होगा मुझे क्या....जो बोएगा, सो काटेगा....फ़ैयाज़ साहब! हिप.... अरे....रूशी....चाय!’’

‘‘नहीं, मैं चाय नहीं पियूँगा।’’

‘‘हालाँकि तुम पिछली रात से अब तक जागते रहे हो अभी तुमने नाश्ता भी नहीं किया! रूशी कटलेट बड़े अच्छे बनाती है! हालाँकि अभी वह भी इसी ज़मीन पर औंधे मुँह गिर चुकी है।’’

‘‘वह भी!’’ फ़ैयाज़ ने हैरत से दोहराया। ‘‘इमरान तुम आदमी हो या जानवर....’’

‘‘वह भी उस वक़्त से बराबर यही एक सवाल दोहरा रही है!’’ इमरान ने लापरवाही से कहा। ‘‘मैं ख़ुद को हर तरह से इत्मीनान दिलाने की कोशिश करूँगा कि चाहे वह एक ऐंग्लो इण्डियन लड़की हो, चाहे कैप्टन फ़ैयाज़ और अब मुझे यक़ीन आ गया है कि उस लाश के बारे में तुम लोगों का नज़रिया बिलकुल ग़लत है।’’

‘‘क्या मतलब?’’ फ़ैयाज़ सँभल कर बैठ गया।

‘‘तुम्हारा यही नज़रिया है कि मरने वाला किसी चीज़ से ठोकर खा कर गिरा....उसके माथे में चोट आयी....और कोई ज़हरीली चीज़ इतनी तेज़ी से ज़ख़्म के रास्ते ख़ून में घुस गयी कि गिरने वाले को उठने का भी मौक़ा न मिला....मैं यह नहीं कहता कि मौत के बारे में डॉक्टरों की राय ग़लत है! इस तरह किसी का मर जाना समझ से बाहर है! लेकिन यह ख़याल कि वह ठोकर खा कर गिरा....और उसका माथा ज़ख़्मी हो गया। मगर नहीं, ठहरो, क्या उसकी लाश किसी ऐसी जगह मिली है जहाँ की ज़मीन साफ़ न हो.... या गिरने की सूरत में उसका सिर किसी ऐसी चीज़ से जा टकराया हो जो ज़मीन की सतह से ऊँची हो!’’

‘‘नहीं....! लाश ऐलफ़्रेड पार्क में मिली थी और वहाँ दूर-दूर तक कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जो ज़मीन की सतह से ऊँची हो।’’

‘‘तब मेरी जान यह बताओ कि तुम्हारा माथा क्यों नहीं ज़ख्मी हुआ....और रूशी भी बेदाग़ माथा लिये घूम रही है। तुम दोनों ही बेख़बरी में काफ़ी दूर से गिरे थे....! बताओ!’’

फ़ैयाज़ पलकें झपकाने लगा....!

‘‘मेरा दावा है अगर उस वक़्त तुम दोनों के नज़दीक कोई दीवार या कुर्सी या पेड़ का तना होता तो यक़ीनन तुम्हारे माथे ज़ख्मी हो जाते!’’

‘‘बात तो ठीक है! मगर क्यों?’’

‘‘फ़ितरत! अपनी हिफ़ाज़त आप करने की कोशिश! जब हम मुँह के बल गिरते हैं तो कोशिश किये बग़ैर ही हमारी हथेलियाँ या कुहनियाँ ज़मीन से टिक जाती हैं! इस तरह फ़ितरत ख़ुद ही हम से हमारे जिस्म के बेहतरीन और सबसे ज़्यादा क़ीमती लेकिन कमज़ोर हिस्सों की हिफ़ाज़त कराती है।’’

‘‘यार, बात तो ठीक कह रहे हो!’’ फ़ैयाज़ सिर हिला कर बोला।

‘‘रूशी, चाय....!’’ इमरान ने फिर हाँक लगायी और फिर धीरे से बोला। ‘‘यार, एक-आध केस लाओ! इस शहर की औरतें बेग़ैरत मालूम होती हैं। मैं सोच रहा हूँ कि कम-से-कम एक माह तक रोज़ाना इश्तहार देता रहूँ। क्या ख़याल है?’’

‘‘इमरान, तुम उसे बेवक़ूफ़ बनाना जो तुम्हें बेवक़ूफ़ समझता हो।’’

‘‘उसे भला मैं क्या बेवक़ूफ़ बना सकूँगा।’’

‘‘मैं इसलिए आया था कि तुम लाश देख लेते।’’

‘‘क्या वह अब भी मौक़ा-ए-वारदात पर है?’’

‘‘नहीं! मुर्दाघर में है। अभी पोस्ट मॉर्टम नहीं हुआ?’’

‘‘जब वह मौक़ा-ए-वारदात से हटा ली गयी है तो देखने से क्या फ़ायदा होगा?’’

‘‘तुम चलो तो....नाश्ता कहीं और करेंगे।’’

‘‘वह तो ठीक है! मगर खायेंगे कहाँ से! भला तुम्हारे इस केस में मुझे क्या मिल जायेगा?’’

‘‘बस, उठो....बोर मत करो....! उस वक़्त तुम पर ग़ुस्सा तो बहुत आ रहा था....मगर ख़ैर उस गिरने के सिलसिले में एक काम की बात मालूम हुई! मगर तुमने इस बेचारी को भी गिराया था।’’

‘‘क्या करता....मजबूरी थी....तजरुबा तो करना ही था।’’

‘‘बड़े सुअर हो।’’

‘‘आच....छा!’’ इमरान उठता हुआ बोला। ‘‘मैं चलूँगा....मगर यह न भूल जाना कि मैंने अभी नाश्ता नहीं किया....और हाँ, पहले हम ऐलफ़्रेड पार्क चलेंगे?’’

इमरान जानता था कि रूशी इस वक़्त नाश्ता हरगिज़ तैयार नहीं करेगी! इसलिए उसने सोचा कि फ़ैयाज़ के सामने शर्मिन्दगी उठाने से यही बेहतर है कि यहाँ से कहीं टल जाये।

बाहर आ कर उन्होंने एक छोटे-से रेस्तराँ में नाश्ता किया और ऐलफ़्रेड पार्क की तरफ़ रवाना हो गये....

‘‘हाँ। कल वह लेडी तनवीर क्यों आयी थी?’’ फ़ैयाज़ ने पूछा।

‘‘कहने के लिए कि अगर सर तनवीर हमारी फ़र्म की ख़िदमत हासिल करना चाहे तो उसे फ़ौरन खबर कर दिया जाये। शायद लेडी तनवीर तलाक़ नहीं लेना चाहती!’’

‘‘बकवास है! तुम बताना नहीं चाहते।’’

‘‘भला मैं तुम्हें अपने बिज़नेस की बातें कैसे बता सकता हूँ।’’

थोड़ी देर बाद वे दोनों ऐलफ़्रेड पार्क में थे....और फिर फ़ैयाज़ उसे उस जगह ले गया जहाँ लाश पायी गयी थी।

‘‘यही जगह है। ठीक यहीं पर लाश मिली थी।’’

‘‘औंधी पड़ी थी?’’ इमरान ने पूछा।

‘‘हाँ....!’’

‘‘लेकिन इतनी जल्दी यह कैसे मालूम कर लिया कि वह कोई ज़हरीली चीज़ थी जो माथे के ज़ख्म के ज़रिये जिस्म में दाख़िल हो गयी हो।’’

‘‘फिर और क्या कहा जा सकता है! इसके अलावा जिस्म पर और कोई निशान नहीं। गला घोंट कर भी नहीं मारा गया।’’

‘‘तुमने यहाँ से लाल बजरियाँ तो ज़रूर समेटी होंगी।’’

‘‘क्यों....? नहीं तो....!’’

‘‘यार, तुम डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन के सुपरिन्टेंडेण्ट हो....! या....!’’

‘‘मैं गधा हूँ और तुम्हें इससे क्या मतलब? मैंने इसे ज़रूरी नहीं समझा था कि यहाँ से बजरियाँ समेटी जायें, क्योंकि मुझे इस पर यक़ीन नहीं है कि वह यहीं और इसी जगह मरा होगा। आख़िर वह कितना पावर वाला ज़हर था कि मरने वाला गिरने के बाद उठने की कोशिश नहीं कर सका। लाश को मैंने यहाँ पड़ा देखा था.... उसकी पोज़ीशन यही ज़ाहिर कर रही थी कि वह गिरने के बाद हिल भी न सका होगा।’’

‘‘वेरी गुड....! फिर तुम मुझे क्यों लाये हो?’’

‘‘मैं जानता हूँ कि लाश यहाँ फेंकी गयी होगी....! मौत कहीं और हुई होगी।’’

‘‘अब बहुत ज़्यादा अक़्लमन्द बनने की कोशिश मत करो।’’ इमरान मुस्कुरा कर बोला....‘‘उसकी मौत यहाँ भी हो सकती है और वह इसी जगह गिर कर मर भी सकता है।’’

‘‘बात का बतंगड़ मैं भी बना सकता हूँ।’’

‘‘अच्छा मैं बात बनाता हूँ, तुम बतंगड़ बनाने की कोशिश करो....! फ़ैयाज़ साहब....! यह ऐलफ़्रेड पार्क है....और आप यह भी जानते होंगे कि यहाँ साँप बहुत ज़्यादा रहते हैं....! मान लीजिए, उसे साँप ने काटा हो....! अभी पोस्ट मॉर्टम भी नहीं हुआ....ज़हर वाली बात़ भी साबित हो सकती है....! वह तो कहो कि मैंने इस वक़्त नाश्ता भी तुम्हारे पैसों से किया है, वरना बताता....मुझे बेकार में यहाँ तक दौड़ाया है तो अब लाश भी दिखा दो।’’

‘‘बहरहाल, तुम मुझसे सहमत नहीं हो।’’

‘‘लाश का पोस्ट मॉर्टम हो जाने दो, उसके बाद देखा जायेगा।’’

फिर इस सिलसिले में आगे बातचीत नहीं हुई और वे सरकारी मुर्दाघर की तरफ़ चले गये।

लाश शायद पोस्ट मॉर्टम के लिए ले जायी जाने वाली थी, क्योंकि मुर्दा ढोने वाली गाड़ी कम्पाउण्ड में मौजूद थी। फ़ैयाज़ ने इमरान को धक्का दे कर आगे बढ़ाया।

और फिर मुर्दाघर में पहुँच कर फ़ैयाज़ ने जैसे ही लाश के चेहरे पर से कपड़ा हटाया, इमरान की आँखें हैरत से फैल गयीं....वह बड़ी तेज़ी से लाश पर झुक गया....थोड़ी ही देर में उसे यक़ीन हो गया कि वह लाश उस बूढ़े के अलावा और किसी की नहीं हो सकती, जिसका पिछली रात वह पीछा कर चुका था।

‘‘ये माथे का ज़ख़्म देखो।’’ फ़ैयाज़ ने कहा।

‘‘देख रहा हूँ....’’ इमरान सीधा खड़ा होता हुआ बोला। ‘‘मुझे तो इसमें कोई ख़ास बात नज़र नहीं आती।’’

‘‘हूँ! अच्छा, ख़ैर परवाह नहीं....अब तुम बहुत घमण्डी हो गये हो!’’ फ़ैयाज़ मुँह बनाते हुए कहा। ‘‘तुम समझते हो शायद दुनिया में तुम ही सबसे ज़्यादा अक़्लमन्द हो....!’’

‘‘नहीं तो....मेरा ख़याल है कि तुम न तो अक़्लमन्द हो और न घमण्डी....चलो छोड़ो....ज़िस्म नीला पड़ गया है....!ज़हर ही हो सकता है....पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट ही बता सकेगी कि ज़हर जिस्म में क्योंकर दाख़िल हुआ....इसलिए रिपोर्ट मिलने तक अगर हम इस मामले को कैंसिल ही रखें तो बेहतर है।’’

‘‘वैसे क्या उसके जिस्म पर कपड़े हैं....’’

‘‘नहीं....कपड़े....लेबोरेट्री में है।’’

‘‘लेबोरेट्री में क्यों?’’

‘‘शक है कि कपड़ों पर से लॉण्ड्री के निशान मिटाने की कोशिश की गयी है।’’

‘‘आ हा....!’’ इमरान कुछ सोचने लगा। फिर धीरे से बोला। ‘‘क्या उसकी जेब से कुछ काग़ज़ात वग़ैरह भी बरामद हुए हैं?’’

‘‘कमाल करते हो! जिन लोगों ने निशान मिटाये हैं, उन्होंने काग़ज़ात वग़ैरह क्यों छोड़े होंगे।’’

‘‘निशान....ओ हो....हो सकता है कि निशान ख़ुद मरने वाले ही ने अपनी ज़िन्दगी में मिटाये हों।’’

‘‘अच्छा, बस ख़त्म करो।’’ फ़ैयाज़ ने हाथ उठा कर कहा। ‘‘वरना अभी ये भी कहोगे कि मरने वाला प्रिंस ऑफ़ डेनमार्क था।’’

वह दोनों मुर्दाघर से बाहर आ गये।

‘‘अच्छा, मैं चला।’’ इमरान ने कहा। ‘‘पोस्ट मॉर्टम की रिपोर्ट आने के बाद मुझे ख़बर करना।’’

‘‘अगर ज़रूरत समझी गयी!’’ फ़ैयाज़ बोला। उसकी आवाज़ में भी कड़कपन मौज़ूद था।

‘‘मुझसे उलझोगे तो सिर पकड़ कर रोना पड़ेगा....! जानते हो कि मेरी फ़र्म किस क़िस्म का कारोबार करती है।’’

इतने में वहाँ मुर्दाघर का इनचार्ज आ पहुँचा....! उसने फ़ैयाज़ से बातचीत शुरू कर दी और इमरान वहाँ से हट कर उस जगह आया जहाँ फ़ैयाज़ की मोटर साइकिल खड़ी हुई थी।

उसने बहुत इत्मीनान से उसे स्टार्ट किया। फ़ैयाज़ ने देखा और सिर्फ़ मुँह फुला कर रह गया....! मुर्दाघर के इनचार्ज के सामने वह बेतहाशा दौड़ भी तो नहीं सकता था....! वह बेबसी से इमरान की उस हरकत को देखता रहा। मोटर साइकिल फ़र्राटे भरती हुई कम्पाउण्ड के बाहर निकल गयी।