देवांश के जाने के कुछ देर बाद तक बैठक में खामोशी रही।
मगर ।
वह ऐसी खामोशी थी जिसमें बहुत सारी बातें हो रही थीं।
दिव्या ने महसूस किया ---अवतार की आंखों में उसके लिए वही भाव है जो किसी औरत की 'चाहना' पर मर्द की आंखों में उभरता है। इस एहसास ने दिव्या का दिल जोर-जोर से धड़काना शुरू कर दिया था। नजरें चुराने लगी वह | अवतार का यूं एकटक देखते रहना उसे जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था । एकाएक उसने कहा--- "आपने जवाव नहीं दिया ?”
“क- किस बात का ?” दिव्या बौखला सी गई ।
“कहां रहता था वह, जिसका नाम शायद बबलू है ? "
“स-सड़क के सामने वाली तीन मंजिला बिल्डिंग के एक फ्लैट में ।”
“ सुना है थाने से फरार हो गया । पूरा थाना सोता रह गया ?"
“कहां सुना आपने ?”
“पेपर में ही लिखा था । "
“ओह! हां ।”
“ कमाल की बात है। सोलह साल का होने के बावजूद ऐसा कर गया । काफी शातिर किस्म का लड़का मालूम पड़ता है।”
दिव्या ने कोई टिप्पणी नहीं की।
पुनः अवतार ने ही कहा--- "उस बेवकूफ को तो यह भी पता नहीं होगा आप पर कितना बड़ा जुल्म कर बैठा है ।”
“म मुझ पर ?”
“ उम्र ही क्या है अभी आपकी ।... ये लिबास ।” कहते वक्त अपनी आंखों में बड़ा गहरा भाव भरकर उसने दिव्या की आंखों में झांका था ---- “नहीं! ठीक नहीं किया उस लड़के ने।"
दिव्या ने नजरें झुका लीं।
अवतार पुनः कुछ करने वाला था कि देवांश वापस आ गया । अपने स्थान पर बैठते हुए उसने पूछा--- "कलकत्ता में क्या करते हैं आप?"
“ मैनेजर था एक होटल में । "
“था से क्या मतलब?”
“होटल बंद हो गया।"
“क्यों?”
“उसमें रेड पड़ी। पता लगा ---मालिक लोग होटल की आड़ में कॉल गर्ल्स रैकेट चलाते थे । बहुत-सी लड़कियां और ग्राहक पकड़े गये। सारे शहर में काफी बदनामी हुई।”
“होटल में रैकेट चलता था। आप उसके मैनेजर थे और आपको पता नहीं था ? "
“सब यही कहते हैं। इसीलिए तो तभी से बेरोजगार हूं। कोई काम देकर राजी नहीं है ।”
“ आपकी बातों पर विश्वास आ भी नहीं सकता । भला होटल के मैनेजर को पता न हो कि...
“ अजी काहे का मैनेजर था मैं! बस नाम के लिए दे रखी थी यह पोस्ट । असल में देखते तो सब मालिक लोग ही थे। वो तो जब रेड पड़ी और वेश्यायें पकड़ी गईं तब मेरी समझ में आया --- उन्होंने मुझे मैनेजर नहीं बलि का बकरा बना रखा था। "
“क्या मतलब ?”
"रेड के बाद मालिक लोग पल्ला झाड़कर एक तरफ खड़े हो गये। कहने लगे--- उनके पास टाइम ही कहां है होटल के धंधे को देखने का ? मैनेजर रखा हुआ था ---इसी ने चला रखा होगा हमारे होटल में वेश्याओं का अड्डा ।"
“फिर?”
“फिर क्या ? बौखला गया मैं । होश फाख्ता हो गये। पुलिस ने 'धप्प' से गर्दन पकड़ ली। मैं खूब रोया, चीखा, चिल्लाया, सफाई दी । कहा -- मुझे कुछ नहीं मालूम । मगर, पुलिस वाले उसकी सुनते कहां हैं जो उनकी जेब गर्म करने की हैसियत नहीं रखता । जेब तो मालिक लोगों ने गर्म की उनकी बल्कि शायद पूरे के पूरे ही गर्म कर डाले तभी तो जब केस बना तो यही बना --- मालिक लोगों का कोई कुसूर नहीं है। उन्हें तो कॉल गर्ल्स रैकेट की भनक तक नहीं थी । जो कर रहा था मैनेजर कर रहा था ।... इस आरोप पत्र के साथ उन्होंने मुझे कोर्ट में पेश कर दिया। कोर्ट ने चौदह दिन की रिमांड पर पुलिस को सौंप दिया । चौदह दिन क्या, चौदह घण्टे पुलिस के लिए बहुत होते हैं। ऐसा हवाई जहाज बनाया पट्ठों ने मेरा कि उस वक्त अगर वे यह कुबूल करने को कहते कि तीनों गांधियों की हत्या मैंने की है तो सौ सी बार कुबूल कर लेता ।”
“यानि उन्हें दिये बयान के मुताबिक होटल में तुम ही कॉल गर्ल्स रैकेट चला रहे थे । मालिक लोगों को उस बारे में कुछ पता नहीं था ? ”
“साइन करने पड़े इस बयान पर । मरता क्या न करता !”
“ उसके बाद ?”
“जेल भेज दिया गया।" अवतार ने बताया--- "एक महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत हुई। तब से नौकरी के लिए भटक रहा हूं। केस चल रहा है सो अलग।"
देवांश को लगा --- मालिकों वाली कहानी वह खुद को बेदाग साबित करने के लिए 'गढ़' रहा है ।
असलियत वही है जो चार्ज उस पर लगाया गया है। अर्थात् वाकई वह होटल में रैकेट चलाकर मालिकों को चूना लगा रहा होगा । देवांश को ऐसा लगने का कारण शायद उसकी हालत और हाव-भाव थे। लेकिन इस टॉपिक को यहीं ड्राप करके उसने पूछा--- “भैया के मर्डर की खबर कव पढ़ी?”
“परसों ।”
" और यहां के लिए रवाना हो गये ?"
“हां | "
“क्यों?”
“क्यों से क्या मतलब, भई ? राजदान यार था अपना ।”
“ उससे पहले तो यार की कोई याद नहीं आई?”
“शायद तुम्हारे अपने बचपन का कोई यार नहीं है बर्खुरदार जो ये बात कही। आदमी साला सबकुछ भूल सकता बचपन के याड़ियों को नहीं भूल सकता। हां, हालात कभी-कभी ऐसे जरूर बन जाते हैं कि चाहकर भी बंदा उनसे मिल नहीं पाता । अब हमारी ही टुकड़ी को लो। जबलपुर के एक ही मुहल्ले में रहते थे । बड़े होते-होते तितर-बितर हो गये । न मुझे राजदान, वकीलचंद, भट्टाचार्य और अखिलेश को पता रहा वे कहां हैं, न ही शायद उन्हें मेरा पता था। मैं ये भी नहीं जानता वे एक-दूसरे के टच में भी हैं या नहीं। हां, अखबार में वकीलचंद का नाम जरूर पढ़ा था | लिखा था--- जिस रात बबलू थाने से फरार हुआ, उस रात मानवाधिकार आयोग से वहां वकीलचंद नाम का एक वकील भी तैनात था । शायद तुम मुझे बता सकते हो --- क्या वह वही, राजदान के बचपन का दोस्त वाला वकीलचंद था या कोई और था ? ”
“वही है ।”
“गुड ! ... यही सोचा था मैंने।" एकाएक उसकी चमकदार आंखें जगमगा सी उठीं--- “यही कि शायद मेरी तरह बाकी तीनों में से भी किसी ने राजदान के मर्डर की खबर पढ़ी हो और शायद वह भी यहां पहुंचे। मन में यही उम्मीद लेकर आया था कि शायद किसी से मुलाकात हो जाये मगर...
"मगर ?”
“ बात कुछ समझ में नहीं आई।” धाराप्रवाह बोलता-बोलता थोड़ा अटक सा गया वह --- “वकीलचंद अपनी मंडली का साथी है । और थाने में था मानवाधिकार आयोग की तरफ से उसके हत्यारे के हितों की रक्षा के लिए | मानवाधिकार की तरफ से उसकी नियुक्ति का सीधा अर्थ है --- वह वहां इसलिए मौजूद था ताकि पुलिस बबलू के साथ थर्ड डिग्री का इस्तेमाल न कर सके। अपने ही यार के हत्यारे के हितों की रक्षा क्यों कर रहा है वह ?”
“एक वकील के लिए उसका पेशा पहले, दोस्ती बाद की बातें होती हैं । " असलियत को पर्दे में रखे देवांश ने कहा --- “उसे मानवाधिकार की तरफ से सौंपी गई ड्यूटी निभानी थी।”
“बात तो ठीक है।” अवतार बड़बड़ाया--- " ड्यूटी इज ड्यूटी ।”
देवांश चुप ही रहा।
“ और कोई आया ?” एकाएक उसने पूछा ।
“ और किसी से मतलब?"
“भट्टाचार्य या अखिलेश ? "
ठकरियाल की तरफ से अभी उसके इस सवाल का जवाब देने की परमीशन नहीं थी अतः बात को घुमाते हुए देवांश ने पूछा--- "यानि तुम अपने दोस्तों से पूरी तरह कटे हुए थे?"
“क्या तुम्हें मेरे इतने सवालों के बाद भी अपने सवाल का जवाब नहीं मिला ?”
“ मैंने सोचा था मुमकिन है, बिछुड़ने के बाद कभी कहीं किसी से मिले हो ।”
“नहीं। पता नहीं कौन कहां है !”
“ओह!”
“वकीलचंद से मिलना है मुझे | क्या तुम मुझे उसका पता बता सकते हो ?”
“मैं मिला सकता हूं तुम्हें उससे ।" एकाएक बैठक में ठकरियाल की आवाज गूंजी।
तीनों ने एक साथ पलटकर दरवाजे की तरफ देखा और... अवतार के चेहरे पर नजर पड़ते ही चौंक सा पड़ा ठकरियाल । दिमाग में कुछ फ्लैश सा हुआ ।
ऐसा लगा जैसे कुछ याद आने वाला है।
इधर, पुलिस इंस्पैक्टर की ड्रेस में सजे अदरक की गांठ जैसे जिस्म को देखकर एक पल के लिए अवतार भी सकपकाया सा नजर आया था । परन्तु अगले ही पल, बहुत फुर्ती से संभाला उसने खुद को । सवाल किया --- “आपकी तारीफ ?”
"इंस्पैक्टर ठकरियाल कहते हैं मुझे ।" वह जूतों समेत बैठक में घुस आया - -- “राजदान मर्डर केस का विवेचनाधिकारी।”
“ओह । हां! हां । पेपर में आपका नाम भी पढ़ा था मैंने । राजदान के हत्यारे को रणवीर राणा और आप ही ने पकड़ा है।"
ठकरियाल का जहन बार-बार, चीख-चीखकर उससे कह रहा था - - - अवतार नाम के इस शख्स को उसने कहीं देखा है।
मगर कहां?
कहां?
कुछ याद नहीं आ रहा था ।
ऐसा लग रहा था जैसे दिमाग जवाब उगलने वाला है ।
बस याद आने ही वाला है उसे कहां देखा था ।
मगर ।
दिमाग से बाहर नहीं निकल पा रही थी तस्वीर ।
उसे बाहर निकालने के प्रयास में वह लगातार अवतार की तरफ देख रहा था कि शायद इसी तरह कुछ याद आ जाये। इधर, जाने क्यों ---ठकरियाल को यूं एकटक अपनी तरफ देखता पाकर अवतार के चेहरे पर पसीना झिलमिलाने लगा। बोला --- “ऐसे क्या देख रहे हैं?”
दिमाग पर जोर डालते ठकरियाल ने कहा--- "मैंने तुम्हें कहीं देखा है । "
“म - मुझे ?” घबराहट छुपाने के प्रयास में रोकते रोकते भी उसकी आवाज हकला ही उठी --- “भ - भला मुझे कहां देख लिया आपने? मैं तो मुंबई ही पहली बार आया हूं।"
“क्या नाम बताया आपने अपना ?”
"अवतार ।"
“पूरा नाम ?”
हलक में सूखा सा पड़ गया था। बोला-~-“अवतार पोद्दार।”
‘क्लिक ।' ठकरियाल के दिमागी कैमरे का 'फ्लैश' चमका। पलक झपकते ही याद आ गया वह कौन है?
याद आते ही बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी ठकरियाल के दिमाग में।
बुरी तरह चौंका था वह ।
“देवांश !” हलक से गुर्राहट सी निकली थी ।
उसके अंदाज पर चौंकते हुए देवांश ने कहा---“क्या हुआ?”
" बैठक का मेन गेट बंद कर दो ।”
“म - मतलब ?” देवांश समझ न सका ।
“सवाल नहीं, जो कहा है वह करो !” गुर्राते वक्त ठकरियाल की नजर अवतार पर ही स्थिर थी ।
देवांश उठा ।
सस्पैंस में फंसा दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
अवतार के चेहरे पर घबराहट के चिन्ह उभरने लगे थे। थूक निगलते हुए उसने मिलाने वाले थे....।” कहा--- उसने कहा--- "अ- आप मुझे वकीलचंद से मिलाने वाले थे...।"
“मिलाता हूं | सबसे मिला दूंगा मैं तुम्हें । "
देवांश दरवाजे के नजदीक पहुंच चुका था ।
और...।
बैठक में मानो बिजली कौंधी ।
दिव्या के हलक से तो चीख ही निकल गई।
अवतार छलावे की सी फुर्ती के साथ उछलकर खड़ा हो गया था । न केवल खड़ा हो गया था बल्कि शर्ट और जीन्स के बीच में से रिवाल्वर भी निकाल चुका था ।
उसके हाथ में रिवॉल्वर की केवल एक झलक नजर आई।
अदरक जैसे शख्स की टांग अवतार से भी कहीं ज्यादा फुर्ती के साथ चली ।
भारी बूट की ठोकर रिवाल्वर वाले हाथ पर पड़ी थी ।
रिवाल्वर अवतार के हाथ से निकलकर बैठक की एक दीवार से जा टकराया |
फर्श पर गिरा।
अवतार ने ठकरियाल पर जम्प लगानी चाही ।
मगर ।
उसी पल --- ठकरियाल के हाथ में उसका सर्विस रिवाल्वर नजर आया।
“हिले ... तो भूनकर रख दूंगा!" ठकरियाल की गुर्राहट बैठक कक्ष को थर्रा गयी ।
अवतार जहां का तहां ठिठक गया।
मानो अचानक खिलौने में भरी चाबी खत्म हो गयी थी ।
चेहरे पर उत्तेजना के भाव लिए वह ठकरियाल की तरफ देखता रह गया ।
ठकरियाल के चेहरे पर उत्तेजना के भाव थे।
होठों पर सफलता की मुस्कान । दिव्या भयभीत थी । हैरत से मुंह फटा हुआ था उसका । बंद दरवाजे के नजदीक खड़े देवांश की हालत भी कुछ वैसी ही थी ।
दोनों में से किसी की भी समझ में नहीं आया कि पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया था ?
सचमुच!
जो भी हुआ, पलक झपकते ही हुआ था ।
अपने रिवाल्वर को लहराते ठकरियाल ने कहा --- “क्या नाम बताया था तुमने अपना ?”
“अवतार पोद्दार ।”
“पोद्दार नहीं... गिल | अवतार गिल ।”
अवतार के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं।
“ठीक पहचाना मैंने ?”
वह चुप रहा ।
“जीन्स घिसी हुई पहनते हो । शर्ट फटी हुई। जूते भी लद्दड़ मगर... रिवाल्वर वो रखते हो जिसकी कीमत आज बाजार में तीन लाख है।" ठकरियाल ने एक नजर फर्श पर पड़े उसके रिवाल्वर पर डालते हुए कहा--- "स्मिथ एण्ड बेसन कम्पनी का बना प्वाइंट थ्री फाइव रिवाल्वर ।"
अवतार अब भी चुप रहा।
“क्या सोचा था तुमने कि तुम अगर पगड़ी बांधनी छोड़ दोगे, दाढ़ी कटवा लोगे और बालों को एक फटीचर आदमी की तरह बिखेर लोगे तो दुनिया का कोई भी पुलिस वाला तुम्हें पहचान नहीं सकेगा? नहीं मिस्टर गिल ! दुनिया का हर पुलिस वाला तुम्हारे हुलिया बदल लेने से धोखा नहीं खा सकता । जयपुर के स्टेट बैंक में पड़ी पैंसठ लाख की डकैती के एकमात्र फरार मुजरिम की फोटो पूरे बायोडेटा के साथ हिन्दुस्तान के हर थाने में मौजूद है। "
“ब - बैंक रॉबरी ?” देवांश चौंक पड़ा--- “बैंक रॉबरी का मुजरिम है ये? ये तो कह रहा था --- कलकत्ता के होटल में मैनेजर था । होटल कॉल गर्ल्स रैकेट चलाने के जुर्म में बंद हो गया । और..
“वो तो पुरानी बात हो गयी देवांश । उसके बाद तो उससे कई गुना ज्यादा बड़े कई कारनामे अंजाम दे चुका है ये ।” है ठकरियाल कहता चला गया --- “दीवाना है दौलत का। बनारस में एक बूढ़े दम्पत्ति की हत्या की। उसकी तिजोरी खंगाली मगर हाथ कुछ नहीं लगा बेचारे के। अपना सब कुछ वह बूढ़ा बैंक लॉकर में रखता था।"
अब ।
खुलकर बोला गिल --- “अगर तुम्हें इतना सब मालूम है तो यह भी मालूम होगा - - - बैंक रॉबरी के पैंसठ लाख में से मेरे हाथ फूटी कौड़ी नहीं लग सकी। उस काम में मेरे तीन साथी थे। तीनों पकड़े गये। पूरे पैंसठ लाख के साथ| बस इतना ही हाथ लगा मेरे कि अब तक पुलिस के हाथ नहीं लग सका हूं।"
ठकरियाल ने बड़ी अजीब मुस्कान के साथ कहा- “मैं क्या
नजर आता हूं तुम्हें ?”
वह चुप रह गया |
“जवाब दो मिस्टर अवतार गिल !"
“मैं तुमसे एकान्त में कुछ बातें करना चाहता हूं।"
“एकान्त से मतलब ?”
उसने दिव्या और देवांश की तरफ इशारा करके साफ कहा -“ओ.के।"
गिल के होंठों पर मुस्कान रेंगी।
उसके होठों पर जिसकी तरफ देखते हुए दिव्या और देवांश हैरत और खौफ के झूले में झूल रहे थे कि भेद खुलने से पहले वे कल्पना तक नहीं कर सके थे कि यह शख्स... फटीचर सा नजर आने वाला यह शख्स इतना खतरनाक मुजरिम होगा।
हत्यारा! बैंक लुटेरा!
वांटेड!
“ अंदर चलो !” ठकरियाल ने रिवाल्वर लहराते हुए कहा ।
वह बैठक के छोटे गेट की तरफ मुड़ा ।
"इंस्पैक्टर, ये क्या कर रहे हो तुम?” देवांश ने कुछ कहना चाहा --- “ये भैया का दोस्त..
ठकरियाल ने उसे चुप रहने का इशारा किया ।
सेन्टेंस अधूरा छोड़ दिया देवांश ने।
ठकरियाल ने रिवाल्वर की नाल गिल की पीठ से सटा दी। हुक्म सा दिया --- “चलो !”
वे दोनों दरवाजा क्रास कर गये ।
दिव्या और देवांश की समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।
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